कट्टे फुस्स हुए पर रिचा हुईं हौट

रिचा चड्ढा की फिल्म ‘देशी कट्टे’ तो बौक्स औफिस पर बिलकुल ठंडी पड़ गई पर फिल्म में रिचा ने अपने भरपूर जलवे दिखाए. रिचा ने अपने कोस्टार के साथ इंटीमेट सीन भी दिए हैं. रिचा के बोल्ड सीन की वजह से फिल्म रिलीज होने के पहले व बाद में जबरदस्त सुर्खियों में रही. हाल ही में ईद के मौके पर रिचा ने अपने कोस्टार के साथ तिहाड़ जेल में कैदियों से मुलाकात की. दोनों जेल अधिकारियों के अनुरोध पर वहां गए और जेल के म्यूजिक बैंड के साथ परफौर्म किया, जिसे कैदियों ने खूब ऐंजौय किया. आज भी रिचा दिल्ली को बहुत मिस करती हैं.

घटाएं कमर ऐसे

कमर कम करने की सब से बड़ी रुकावट है जानकारी की कमी. आप यह टैस्ट कर के देख लें. अपने आसपास के जिमों में जा कर देखें, ज्यादातर मोटी महिलाएं जमीन या मशीन पर लेट कर अथवा कई और तरीकों से क्रंचेस (क्रंचेस आमतौर पर वे कसरतें होती हैं, जिन में आप घुटनों को नाक की तरफ लाती हैं या फिर नाक को पेट की तरफ) करती मिलेंगी. यह सब से पौपुलर कसरत है.

यह कसरत 1-2 माह जम कर करने का नतीजा निकलता है कमर में कुछ सैंटीमीटर की कमी आना और पेट का सख्त होना. मैडम, क्रंचेस से सिर्फ पेट सख्त होता है. ये कसरतें उन लोगों के लिए हैं, जिन का पेट फ्लैट है और उन्हें ऐब्स बनाने हैं. अगर आप मोटी हैं, तो आप को फुल बौडी ऐक्सरसाइज करनी होगी. यकीन नहीं आता तो किसी बड़े हैल्थ प्रोफैशनल से कनफर्म कर लें. हम यह नहीं कह रहे कि क्रंचेस किसी काम के नहीं, मगर मोटे लोगों के लिए ये कुल कसरत का 10% ही रहें तो ही ठीक है.

पेट को कम करने वाली कुछ कसरतें

रनिंग, साइकिलिंग, पीटी, क्रौस टे्रनर, बर्पी, स्क्वेट थ्रस्ट, बौक्स जंप, स्किपिंग, कैटलबौल अथवा डंबल स्विंग. अगर आप के पास इंटरनैट की सुविधा है तो इन में से जिन कसरतों के बारे में आप को नहीं पता, उन्हें इसी नाम से सर्च कर के तसवीरें देखें. आप तुरंत समझ जाएंगी.

जरूर घटेगा पेट

आप जिम जाएं, पार्क जाएं और ऐसी कसरतों का चुनाव करें, जिन में आप के ज्यादा से ज्यादा बौडी पार्ट हिस्सा लें. इस बात को गांठ बांध लें कि स्पौट रिडक्शन जैसा कुछ नहीं होता. आप यह सोचें कि सिर्फ कमर कम हो जाए बाकी सब वैसा ही रहे तो यह सिर्फ प्रोफैशनल बौडी बिल्डरों के बस की बात है.

पेट के बारे में सोचना छोड़ कर वेट के बारे में सोचें. वेट कम करने के लिए कार्डियो (रनिंग, पीटी आदि) के साथसाथ वेट टे्रनिंग भी जरूरी है.  विज्ञान के साथ चलेंगी तो वक्त और पैसा बरबाद होने से बचा पाएंगी. टाइम ज्यादा है और पास नहीं हो रहा तो ठीक है वरना अपनी कसरत में स्ट्रैचिंग को कम से कम शामिल करें. यह आप के किसी काम की नहीं. जरूरत से ज्यादा कार्डियो का मतलब है अपने पैरों की मसल्स को कमजोर करना. रोज रनिंग करना जरूरी नहीं. आसान कसरतों से वेट कम नहीं होता. आप 20 मिनट कार्डियो करें, उस के बाद वेट टे्रनिंग और फिर हलकीफुलकी स्ट्रैचिंग कर घर जाएं. कभीकभी कार्डियो भी छोड़ दें. बस वार्मअप करें और हैवी वेट टे्रनिंग करें. कभीकभी जिम भी छोड़ें और सिर्फ पार्क में वक्त बिताएं. चैलेंज लें, अपनी सीमाओं को पहचान कर उन्हें लांघने की कोशिश करें. पेट खुदबखुद कम हो जाएगा.

एक छोटा सा प्लास्टिक का डब्बा रख कर उस पर 1 घंटे तक वनटूवनटू करने से 10 गुना बेहतर है, जिम में मौजूद सारे वेट को एक से दूसरी जगह रखना. इस सच को स्वीकार करें कि वेट कम करने की कसरत स्टाइलिश नहीं होती. वह बुरी होती है, दम निकालने वाली होती है.

सुरों में दर्द आज भी है

तनहाई को अपना साथी बनाने वाली सदाबहार अदाकारा भानुरेखा गणेशन यानी रेखा की खूबसूरती आज भी बरकरार है. अपनी जिंदगी के 60 वसंत देख चुकी रेखा का जीवन कई उतारचढ़ावों से गुजरा, लेकिन इन्होंने उन के साथ तालमेल बनाए रखा. कविताएं लिखने और गाने की भी शौकीन रेखा का गाने का हुनर पिछले दिनों कपिल के कौमेडी शो में सब के सामने तब आया जब रेखा ने कुछ नगमों की कुछ लाइनें गाईं. उन में अधिकतर वे नगमे थे जिन्हें उन के और बिग बी के साथ फिल्माया गया था. वे सब से ज्यादा भावुक तब हो गईं जब एक बच्ची ने शो के दौरान ‘सिलसिला’ फिल्म का गीत ‘नीला आसमां सो गया…’ गाया.

रेखा का नाम लंबे समय तक अभिताभ बच्चन के साथ जुड़ा रहा. दोनों की जोड़ी परदे पर भी काफी लोकप्रिय रही. यश चोपड़ा की ‘सिलसिला’ अमिताभ और रेखा की आखिरी फिल्म थी. रेखा की अभिनेता विनोद मेहरा से शादी की खबरें भी आई थीं, लेकिन एक साक्षात्कार में रेखा ने विनोद से शादी की बात से इनकार करते हुए कहा था कि कोई कुछ भी कह सकता है. विनोद मेरे शुभचिंतक और बहुत करीब थे, लेकिन इस से आगे कुछ नहीं. रेखा कई सालों बाद फिर से फिल्म ‘सुपर नानी’ से वापसी कर रही हैं.

शाहरुख, आमिर खूबसूरत थोड़े ही हैं : सोनम कपूर

फैशनेबल पोशाकों को ले कर चर्चित रहने वाली अदाकारा सोनम कपूर को उम्मीद थी कि फिल्म ‘बेवकूफियां’ को बौक्स औफिस पर फिल्म ‘रांझणा’ से भी ज्यादा सफलता मिलेगी. मगर अफसोस ऐसा हुआ नहीं. अब यह पहला मौका है, जब उन्हें किसी फिल्म में बड़े स्टार के साथ काम करने का मौका मिला. वरना तो वे 7 सालों के कैरियर में हर फिल्म में नवोदित कलाकार के साथ ही नजर आईं.

जी हां, पहली बार सोनम कपूर सूरज बड़जात्या के निर्देशन में फिल्म ‘प्रेम रतन धन पायो’ कर रही हैं, जिस में उन के नायक सलमान खान हैं.

पेश हैं, सोनम से हुई गुफ्तगू के कुछ अहम अंश:

फिल्म ‘बेवकूफियां’ बौक्स औफिस पर तो उम्मीदों पर खरी उतरी नहीं?

मगर मेरी उम्मीदों पर खरी उतरी. मेरी उम्मीदें सिर्फ अभिनय तक होती हैं. मेरे अभिनय की खूब तारीफ हुई. मेरे हिसाब से फिल्म का प्रमोशन सही ढंग से नहीं किया गया था.

किसी भी किरदार को निभाने के लिए लुक पर कितना ध्यान देती हैं?

हर बात पर ध्यान देती हूं. मैं हर फिल्म के लिए खुद को बदलती रहती हूं, क्योंकि लुक बहुत माने रखता है. कभी बाल कटवाती हूं, कभी मोटी होती हूं तो कभी पतली. बौडी लैंग्वेज पर भी ध्यान देती हूं. इसीलिए आप को हर फिल्म में अलग सोनम कपूर नजर आएगी. फिर चाहे फिल्म ‘आएशा’ हो, ‘दिल्ली 6’ हो, ‘रांझणा’ हो अथवा ‘बेवकूफियां’. आप को कहीं कोई समानता नजर नहीं आएगी.

चर्चा है कि आप की निजी जिंदगी और फिल्म ‘खूबसूरत’ के किरदार में काफी समानता है?

मैं ईमानदारी से कहूं तो फिल्म की निर्माता और मेरी बहन रिया तथा निर्देशक व लेखक शशांक घोष मुझे इतनी अच्छी तरह जानते थे कि उन्होंने मेरे निजी जीवन के करैक्टर को फिल्म ‘खूबसूरत’ के मेरे किरदार में डाल दिया.

चर्चा है कि आप ने 80 के दशक की रेखा द्वारा अभिनीत फिल्म ‘खूबसूरत’ का रीमेक करवाया?

ऐसा कुछ नहीं है. हमारी यह फिल्म ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्मों से बस इंस्पायर्ड है.

जब यह फिल्म ‘खूबसूरत’ का रीमेक नहीं है, तो फिर इस का नाम ‘खूबसूरत’ क्यों रखा?

इस की सब से बड़ी वजह यह है कि इस फिल्म की कहानी खूबसूरत लोगों के बारे में है. यह ऐसे लोगों की कहानी है, जो दिखने में भले ही खूबसूरत न हों, पर उन का नेचर, उन की प्रकृति, उन का स्वभाव इतना खूबसूरत है कि वे दुनिया को भी खूबसूरत बना देते हैं. इस फिल्म के माध्यम से हम खूबसूरती की परिभाषा बदलना चाहते हैं. हम इस बात को रेखांकित करना चाहते हैं कि एक इंसान की आंखें, नाक, कान, चेहरा ठीकठाक हो, तो वह खूबसूरत लगे यह जरूरी नहीं है.आप दूसरों से कुछ अलग हैं, तो आप खूबसूरत हैं.

पर बौलीवुड में हीरोइन बनने के लिए तो चेहरे की खूबसूरती को महत्त्व दिया जाता है?

ऐसा कैसे कह सकते हैं? काजोल, परिणीति चोपड़ा ये सभी इतनी बड़ी हीरोइनें कैसे बन गईं? शाहरुख खान, अजय देवगन, आमिर खान ये सब भी खूबसूरत थोड़े ही हैं. फिर भी सफल हीरो हैं.

फिल्म ‘खूबसूरत’ के अपने किरदार को ले कर आप क्या कहेंगी?

मैं इस फिल्म में फिजियोथेरैपिस्ट डाक्टर मिली चक्रवर्ती का किरदार निभाया है. उस की परवरिश बहुत ही खुलेपन में हुई है. यह एक ऐसी लड़की है, जिस का अपने मातापिता से दोस्ताना रिश्ता होता है. मिली का अपनी मां के साथ वह रिश्ता नहीं है, जो निजी जिंदगी में उन की मां का अपनी मां के साथ था. मिली से उस की मां का रिश्ता बहुत अलग है. दरअसल, पीढि़यों का जो अंतर होता है, वह मिली के किरदार में नजर आता है. इस में यह दिखाया गया है कि वर्तमान पीढ़ी अपने मातापिता से हर तरह की बात कर लेती है. यह एक अमेजिंग रिश्ता है.

क्या मिली चक्रवर्ती का किरदार निभाने के लिए आप ने कोई ट्रेनिंग ली?

मैं अपनी हर फिल्म की शूटिंग शुरू होने से पहले उस फिल्म के किरदार के लिए जरूरी ट्रेनिंग जरूर लेती हूं. बिना ट्रेनिंग मुझे नहीं लगता कि मैं अच्छा काम कर पाऊंगी. मिली चक्रवर्ती का किरदार निभाने के लिए मैं ने 2 फिजियोथेरैपिस्ट के साथ काम किया. उस के बाद मैं ने स्पोर्ट्स साइंटिस्ट करिश्मा बुलानी से ट्रेनिंग ली. उन्होंने मुझे 2 माह की ट्रेनिंग दी. इस के अलावा मैं ने काफी रिसर्च की.

क्या प्रिंस का किरदार निभाने के लिए कोई भारतीय कलाकार नहीं था, जो पाकिस्तानी अभिनेता फवाद खान को लेना पड़ा?

‘जिंदगी गुलजार है’ जैसे उन के कुछ सीरियल भारत में काफी लोकप्रिय हैं. 30 साल से अधिक उम्र की हर औरत उन की दीवानी है. फिल्म में नयापन लाने के लिए प्रिंस के किरदार के लिए फवाद खान को चुना गया. फवाद खान एक बेहतरीन रोमांटिक कलाकार हैं.

फवाद के साथ काम करते समय किस तरह की सहूलयत रही?

बहुत सहूलत रही. उस में बहुत तमीज है. सैट पर समय से पहुंचता. लड़कियों की तरफ बुरी निगाह से नहीं देखता. स्पौट बौय हो या निर्देशक हर किसी के साथ अच्छा व्यवहार करता. हर किसी से प्यार से बात करता. किसी को बुरा नहीं कहता. बहुत मृदुभाषी है. आजकल ऐसे लड़के मिलते ही कहां हैं.

चर्चा है कि आप ने किसी दक्षिण भारतीय फिल्म में अभिनय करने के लिए 5 करोड़ मांगे?

बकवास. इतने पैसे तो मैं पूरी जिंदगी में नहीं कमाऊंगी. जब मैं किसी फिल्म को न कहती हूं, तो निर्माता अपनी नाक बचाने के लिए कुछ तो कहेगा ही. मैं ने डेट्स न होने की बात कही थी.

ब्यूटी और फिटनैस की बात करीना के साथ

करीना कपूर. कपूर घराने की नई पीढ़ी की कामयाब बौलीवुड नायिका. करीना वैसे तो कपूर घराने की जगमगाहट साथ ले कर बौलीवुड में आईं, लेकिन जतन कर उन्होंने थोड़े ही समय में अपनी अलग पहचान बना ली. बौलीवुड में किसी भी कलाकार को ले कर गौसिप तो होता ही है, अफवाहें भी उड़ती हैं. ऊलजलूल चर्चाएं होती हैं तो आलोचना भी होती है. लेकिन करीना इन सभी बातों को नजरअंदाज कर सकारात्मक सोच ले कर चलीं और अपनी मेहनत व लगन से काम जारी रखा. नतीजा, उन्होंने ग्लैमरस व्यक्तित्व वाली व बौलीवुड के जानेमाने घराने की होने पर भी ग्लैमरस भूमिकाएं करने के साथसाथ फिल्म ‘चमेली’ व ‘अशोका’ जैसी फिल्मों में अपने व्यक्तित्व से हट कर कैरेक्टर निभाए.

करीना को सभी प्रकार के कैरेक्टर निभाना पसंद है, लेकिन उन की पसंदीदा चीजें है फैशन और लाइफस्टाइल. अपनी पसंद की वजह से ही करीना ने कलम पकड़ी और ‘द स्टाइल डायरी औफ ए बौलीवुड डिवाइस’ नाम की किताब लिखी. हाल ही में इस किताब का अमेय प्रकाशन द्वारा किया हुआ अनुवाद ‘फैशन गाइड स्टाइल और फैशन का नया मंत्र’ आया तो करीना कपूर का एक अलग रूप पाठकों के सामने आया.

करीना की यह किताब मुख्य रूप से उन के पसंदीदा विषय फैशन पर है, लेकिन फैशन के अलावा अन्य विषयों पर भी करीना ने अपनी राय, अपने विचार बड़ी परिपक्वता से रखे हैं. इस में क्या नहीं है. जीने का समूचा आनंद उठाने वाले हर स्त्री को अपनी सी लगने वाली सभी बातें इस में है. इस किताब से करीना महिलाओं से बातचीत करती लगती हैं.

अभी हाल में करीना से बातचीत करने का मौका मिला तो फिल्मों के अलावा फैशन और लाइफस्टाइल पर उन्होंने बहुत सी बातें कीं. वही बातें उन्होंने अपनी किताब में भी कही हैं.

ठोस आहार और योगा

आहार और योगा करीना के प्रिय विषय हैं. अपने सुंदर और सुडौल दिखने का सारा श्रेय करीना ऋजुता दिवेकर को देती हे. करीना कहती हैं कि अपनी सहेली शायरा खान के द्वारा मेरी ऋजुता नाम के जादूगर से मुलाकात हुई और फिर ऋजुता ने मेरी आहार की पारंपरिक धारणाओं को बदल कर मुझे खाने से प्यार करना सिखाया. आज मैं सब कुछ खाती हूं. कपूर होने के कारण मुझे घी, पनीर व परांठा बहुत प्रिय है. यह सब खाने के लिए ऋजुता ने कभी मुझे रोका नहीं बल्कि उस ने घी, पनीर खाने को कह कर और बहुत कुछ खाने के लिए कहा.

करीना की पसंदीदा डाइट का रिजल्ट फिल्म ‘टशन’ के द्वारा सब के सामने आया. जीरो फिगर का करिश्मा दिखाने के बाद आज भी करीना ने इस आहार प्रणाली को अपनी जीवनचर्या बना रखा है. आज भी करीना हर 2 घंटे बाद खाती हैं. बाहर का खाना जो उन्हें दिल से अच्छा नहीं लगता, उसे वे नहीं खातीं. हवाई जहाज से सफर करते वक्त भी करीना पर्स में चीज, मूंगफली व मखाना साथ रखती हैं.

लेकिन जब करीना देश के बाहर होती हैं, तो वहां के स्थानीय खाने का आनंद वे उठाती हैं. वे नेपाल में मोमो और थुक्पा खाती हैं, तो वहां के लोकल फलों का स्वाद भी चखती हैं. सुबह की उन की चाय पीने की आदत को ऋजुता ने इजाजत तो दी है, लेकिन उस के पहले यानी नींद से उठते ही एक फल खाने के लिए कहा है.

अपनी आहार प्रणाली की तरह करीना पर योगा का भी खासा प्रभाव है. वे खुद को मजाक से सूर्य नमस्कार की रानी कहती हैं. आज भी करीना लगातार 108 सूर्य नमस्कार करती हैं. करीना को स्पीड से चलना भी अच्छा लगता है. जब वे शूटिंग के लिए बाहर होती हैं या फिर योगा नहीं कर पातीं तो वे चलने का ऐक्सरसाइज करती हैं. लेकिन ऐक्सरसाइज को अनदेखा नहीं करतीं.

फैशनेबल करीना

फैशनेबल रहना करीना को हमेशा अच्छा लगता है. उन पर लाल रंग बहुत खिल कर दिखता है. इस लाल रंग ने उन का फिल्म ‘चमेली’ से साथ दिया. फिल्म ‘चमेली’ में उन्होंने गहरे लाल रंग की साडि़यां पहनीं. फिर फिल्म ‘कभी खुशी कभी गम’ में उन की स्पैशल लाल ड्रैस उन के डिजाइनर दोस्त मनीष मल्होत्रा ने खास उन के लिए डिजाइन की. उन की फिल्म ‘रा वन’ की साड़ी की तो बात ही अलग है. इस में डांस करते वक्त वह साड़ी बीच में आ रही थी, तब शाहरुख और मनीष ने उन्हें उस का पल्लू सीधा कर लपेटने के लिए कहा. फिर उस हिसाब से ब्लाउज भी बदल गया और फिर ज्यादा ग्लैमरस दिखने के लिए नाक में नथुनी भी पहनी गई. इस का पौजिटिव असर समूचे गाने पर दिखा और गाना सुपरहिट हुआ.

यह बात तो हुई फिल्मों के बारे में. वास्तविक जीवन में करीना को जींस बहुत प्यारी है. करीना कहती हैं कि अच्छी जींस एक अच्छे बौयफ्रैंड की तरह होती है. फिट रहने वाली, उस की ज्यादा देखभाल की जरूरत नहीं और दिनोंदिन अच्छी होने वाली. शूटिंग के बाद अगर कहीं जल्दी जाना हो तो करीना जींस को ही प्राथमिकता देती हैं. अपनी पसंदीदा जींस, हाई हील शूज और चमकदार टौप पहन कर वे तैयार होती हैं.

बाहर बहुत ही ग्लैमरस दिखने वाली करीना घर में क्या पहनती होंगी? इस सवाल का जवाब उन्होंने अपनी किताब में ही दिया है. घर में करीना सुंदर, आरामदायक कफ्तान पहनती हैं और वह भी इस्तेमाल किया हुआ, यानी धो कर मुलायम किया हुआ. करीना को मुलायम कफ्तान पहन कर सोफे पर लेट कर टीवी देखना अच्छा लगता है. इस के लिए सैफ द्वारा उन का मजाक उड़ाना भी चलता है. करीना कहती हैं कि संभव हुआ तो वे किसी खास समारोह में भी कफ्तान पहन कर जाएंगी और फिर उस का भी फैशन बनेगा.

करीना बाहर जाते वक्त चेहरे पर मेकअप पसंद नहीं करतीं. उन के पर्स में काजल, मसकारा व लिपस्टिक, मेकअप के सिर्फ 3 सामान मिलेंगे. अपनी पाठक सहेलियों को करीना यही सलाह देती हैं अगर आप की डाइट अच्छी होगी और आप नियमित रूप से ऐक्सरसाइज करती होंगी, तो आप को स्किन के लिए अलग से कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ेगी. आप की त्वचा अपने आप निखरेगी. करीना कभी फेशियल भी नहीं करातीं, न ही चेहरे पर फेसवाश लगाती हैं.

टीशर्ट पहनना करीना की एक और पसंद है. पटियाला सलवार पर टीशर्ट पहनने का फैशन उन्होंने ही फिल्म ‘जब वी मेट’ से लोकप्रिय बनाया है.

वे और सैफ

सैफ और उन के रिश्ते के बारे में बातें करते वक्त करीना बहुत इमोशनल हो जाती हैं. उन की और सैफ की उम्र में 10 साल का अंतर है, लेकिन सैफ के साथ शादी करने के बाद वे और भी सुंदर दिखने लगी हैं. सैफ उन के लिए बहुत केयरिंग हैं. उन के बच्चों के साथ करीना का प्यार भरा रिश्ता है.

सैफ और करीना दोनों को एकदूसरे को गिफ्ट देना अच्छा लगता है और सैफ से मिलने वाले हीरे के आभूषण करीना को बहुत अच्छे लगते हैं. करीना का गुस्सा दूर करने के लिए सैफ को हीरों का सहारा लेना पड़ता है.

करीना का अपने सहेली पाठिकाओं से कहना है कि अपने लाइफ पार्टनर को गिफ्ट देने से दोनों का एकदूसरे के प्रति प्रेम और भी गहरा हो जाता है. लेकिन उस से भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण है विश्वास. आज हम दोनों जिस क्षेत्र में हैं वहां यानी फिल्मों में किसी के प्यार में पागल होना हमारा काम होता है. लेकिन ऐसा होने पर भी हमारा एकदूसरे पर अटूट विश्वास हमारा रिश्ता और भी गहरा करता है. आज हम जब एकदूसरे के बारे में गौसिप्स पढ़ते हैं तब सिर्फ हंसने के सिवा और कुछ भी नहीं करते. मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकती हूं कि सैफ दुनिया के किसी भी कोने में हों और कितनी भी सुंदर लड़कियां उन के आसपास हों, वे सिर्फ मुझ से ही प्रेम करते हैं.

करीना की किताब पढ़ते वक्त व उन के जीवन के बारे में उन के विचार सुनते वक्त यह लग रहा था कि एक परिपूर्ण महिला मेरे सामने खड़ी है. सुंदर, सुडौल, आत्मविश्वास से पूर्ण, जीवन की सभी चुनौतियों का हंसते हुए सामना करने के लिए तैयार.

गोल्ड खरीदने के गोल्डन रूल

दीवाली आते ही महिलाओं पर शौपिंग का जनून सवार हो जाता है. हो भी क्यों न. यह अवसर ही नई चीजों को आशियाने में लाने का और पुरानी को बाहर करने का होता है. लेकिन दीवाली की शौपिंग तब तक अधूरी रहती है जब तक कि गोल्ड की कोई चीज न खरीदी जाए. दरअसल, भारत में गोल्ड को लग्जरी से ज्यादा इन्वैस्टमैंट के रूप में देखा जाता है. फिर सोने की लगातार बढ़ती कीमत ने इस बात को साबित भी कर दिया है कि गोल्ड निवेश का एक अच्छा जरीया है.

फाइनैंस सलाहकार अभिनव गुलेचा कहते हैं, ‘‘गोल्ड में निवेश करने से महिलाओं के दोनों शौक पूरे हो जाते हैं. पहला उन के गोल्ड कलैक्शन में इजाफा हो जाता है और दूसरा उन की इन्वैस्टमैंट की ख्वाहिश भी पूरी हो जाती है.’’

सोने में निवेश के कई विकल्प मौजूद हैं. गहनों के रूप में या फिर सिक्कों के रूप में सोना खरीदने के अलावा भी सोने में और कई तरीकों से पैसे लगाए जा सकते हैं. इन के अलावा सोने में निवेश के लिए म्यूचुअल फंड प्रारूप भी उपलब्ध है. गोल्ड ईटीएफ और गोल्ड फंड भी अच्छे विकल्प हैं. यह निवेशक की अपनी सहूलियत पर निर्भर करता है कि वह इन में से किस विकल्प को चुनता है. आइए, इन विकल्पों पर एक नजर डालते हैं.

गोल्ड ईएमआई स्कीम

गोल्ड में निवेश का यह सब से आसान तरीका है. आजकल हर ज्वैलरी ब्रैंड गोल्ड पर तरहतरह की स्कीमें ला रहा है. जैसे 12 महीनों में 11 किस्तें ग्राहक भरे और 12वीं किस्त ज्वैलरी ब्रैंड खुद भरेगा. यदि आप 1,000 की किस्त हर महीने भरें तो 12वें महीने एक निश्चित तिथि पर आप 12,000 की कोई भी गोल्ड ज्वैलरी ले सकती हैं. लेकिन अभिनव की मानें तो यह ज्यादा फायदे का सौदा नहीं है. वे कहते हैं, ‘‘इस तरह की स्कीम तब फायदेमंद होगी जब आप को अपना ज्वैलरी कलैक्शन बढ़ाना हो, क्योंकि इस स्कीम से आप को जमा की गई किस्तों के मूल्य की ज्वैलरी ही मिलेगी. यदि आप इसे पैसों में कन्वर्ट कराना चाहें तो भी नहीं करा सकतीं.’’

गोल्ड फ्यूचर्स

गोल्ड फ्यूचर्स के जरीए सोना खरीदने के लिए पूरी राशि की जरूरत नहीं पड़ती. इस प्रक्रिया में मार्जिन मनी से काम चल जाता है. किसी भी वक्त सौदा किया जा सकता है और समाप्त भी. इस में लिक्विडिटी की समस्या नहीं होती. आप चाहें तो कैश में सौदे का निबटान कर दें या फिर इस की फिजिकल डिलिवरी ले सकती हैं. आप के पास यह सुविधा भी होती है कि आप अगली ऐक्सपायरी में सौदे को रोलओवर कर लें. लेकिन इस के कुछ नुकसान भी हैं. पहली बात तो यह कि फ्यूचर्स में जोखिम अधिक होता है. इस के अलावा सौदे की ऐक्सपायरी से पहले आप को निर्णय लेना ही होता है. गोल्ड फ्यूचर्स में खरीदारी और बिक्री दोनों ही वक्त ब्रोकरेज देना पड़ता है. इसलिए इस प्लान में इन्वैस्ट करने से पहले किसी अच्छे इन्वैस्टमैंट सलाहकार से राय जरूर ले लें.

गोल्ड फंड

गोल्ड फंड म्यूचुअल फंड का ही एक रूप है, जिस में अंतर्राष्ट्रीय फंडों के जरीए सोने की माइनिंग से संबंधित कंपनियों में निवेश किया जाता है. गोल्ड फंड में निवेश के कई फायदे हैं. यह इलैक्ट्रौनिक फौर्म में रखा होता है, जिस से इस की हिफाजत की चिंता नहीं रहती है. इस तरह की योजनाओं में निवेश करने से निवेशकों को फंड मैनेजर के कौशल और सक्रिय फंड प्रबंधन का फायदा मिलता है.

अभिनव बताते हैं, ‘‘गोल्ड फंड का सब से बड़ा फायदा यह है कि इसे बगैर डीमैट अकाउंट के औपरेट किया जा सकता है और इस में एसआईपी (सिप) सुविधा भी है. सिप के जरीए छोटी रकम से भी निवेश किया जा सकता है. इस प्लान में आप महज कुछ सौ रुपए की राशि से भी सोने में निवेश कर सकती हैं. गोल्ड फंड में सिप से मिलने वाले रिटर्न पर कोई संपत्ति कर भी नहीं लगता. लेकिन इस की कुछ सीमाएं हैं. कौस्ट औफ होल्डिंग के हिसाब से गोल्ड फंड ईटीएफ से थोड़ा महंगा पड़ता है.’’

गोल्ड ईटीएफ

गोल्ड ईटीएफ वे म्यूचुअल फंड होते हैं, जो सोने में निवेश करते हैं और शेयर बाजार में लिस्टेड होते हैं यानी इन के जरीए सोने में निवेश करने के लिए यह जरूरी है कि आप के पास डीमैट और ट्रेडिंग खाता हो. हालांकि यह घरेलू महिलाओं के लिए थोड़ा कठिन है, लेकिन कामकाजी महिलाओं के लिए डीमैट अकाउंट और ट्रेडिंग अकाउंट खुलवाना आजकल कोई मुश्किल काम नहीं है. लेकिन अभिनव की मानें तो गोल्ड ईटीएफ में निवेश करना भले ही आसान है, लेकिन इस की भी अपनी सीमाएं हैं. वे बताते हैं, ‘‘इस के लिए आप को ब्रोकरेज चार्ज और फंड मैनेजमैंट चार्ज देना होता है. गोल्ड ईटीएफ में निवेश करने वाले निवेशकों को फंड मैनेजर के कौशल और सक्रिय फंड प्रबंधन का भी कोई फायदा नहीं मिल पाता.’’

पूरे भारत में लोग दीवाली पर सोने की शौपिंग करते हैं. अगर आप भी इस बार दीवाली पर सोना खरीदने का मूड बना रही हैं, तो कुछ बातों का खयाल जरूर रखें. खासतौर पर गोल्ड की क्वालिटी और प्योरिटी का वरना लेने के देने पड़ सकते हैं. आइए, जानते हैं इन जरूरी बातों को:

कैरेट रेटिंग चैक करें

यह सभी को पता होता है कि गोल्ड की प्योरिटी कैरेट से मापी जाती है. कैरेट के मुताबिक ही गोल्ड की कीमत तय की जाती है. प्योर गोल्ड 24 कैरेट में आता है, लेकिन यह बेहद सौफ्ट होता है, इसलिए ज्वैलरी बनाने के लिए इस में कुछ इंप्योरिटी डाली जाती है, जिस से 24 की जगह 22 कैरेट गोल्ड से ज्वैलरी तैयार होती है. कई बार ज्वैलरी खरीदते वक्त जौहरी ग्राहक को 24 कैरेट गोल्ड कह कर ज्यादा पैसे ऐंठ लेता है जबकि ज्वैलरी हमेशा 22 कैरेट या 18 कैरेट गोल्ड से ही तैयार की जाती है. गोल्ड में कैरेट के हिसाब से ही ज्वैलरी की कीमत लगाई जाती है. इसलिए ज्वैलरी खरीदते समय इस बात का पूरा खयाल रखें कि आप कितने कैरेट की गोल्ड ज्वैलरी ले रही हैं और फिर उसी हिसाब से पेमैंट करें.

हौलमार्क चार्ज

हौलमार्क के गहने खरीदते वक्त आप को थोड़ी कीमत अधिक देनी होगी. उस में इस परीक्षण की लागत को भी शामिल किया जाता है. कई बार हौलमार्क के गहनों की कीमत भी अलगअलग दुकानों पर अलगअलग हो सकती है. इसलिए कई जगहों पर पता कर के ही सही जगह से हौलमार्क ज्वैलरी खरीदें.

गोल्ड रेट जरूर चैक करें

आप जब गोल्ड खरीदने जाएं तो उस दिन गोल्ड का रेट क्या है, यह जरूर पता कर लें. इस के बाद पेमैंट करते वक्त भी गोल्ड की कीमत जरूर पूछें, क्योंकि गोल्ड की कीमत घटतीबढ़ती रहती है.

मेकिंग चार्ज

मेकिंग चार्ज अलगअलग गहनों के मुताबिक अलगअलग होता है, जिसे ज्वैलर्स सोने के गहने बनाने के मेहनताने के रूप में लेते हैं. ऐसे में ज्वैलरी खरीदते वक्त अलगअलग जगहों के मेकिंग चार्ज की जानकारी जरूर लें ताकि आप के गहनों की कीमत में कम से कम मेकिंग चार्ज हो, क्योंकि जब भी आप गहने बेचेंगी मेकिंग चार्ज की कीमत का नुकसान आप को ही उठाना पड़ेगा. ऐसे में कम मेकिंग चार्ज वाली खरीदारी ही फायदे का सौदा है. हां, ध्यान रखें आप सोने में जितने अधिक नगों और डिजाइनों की मांग करेंगी, उन पर मेकिंग चार्ज भी उतना ही अधिक होगा और फिर सोने की शुद्धता भी उतनी ही कम होगी.

रिटर्न पौलिसी जान लें

ज्वैलर या सेल्समैन से रिटर्न पौलिसी और प्रामाणिकता के सर्टिफिकेट के बारे में जानकारी जरूर ले लें. हो सकता है कल को आप का अपनी ज्वैलरी बेचने का मन बन जाए, तब यह सर्टिफिकेट आप के काम आएगा. दूसरे, इस सर्टिफिकेट से यह भी पता चल जाएगा कि आप ने जो गोल्ड खरीदा है वह असली है. इस बात को याद रखें कि प्योर गोल्ड रिटर्न के दौरान लेबर चार्जेज के अलावा दूसरा कोई चार्ज नहीं काटा जाता.

समय के साथ वापसी करता फैशन: मसाबा गुप्ता

मसाबा गुप्ता देश के युवा और होनहार फैशन डिजाइनरों की लिस्ट में शुमार हो चुकी हैं. कभी टैनिस खिलाड़ी, कभी डांसर तो कभी संगीतकार बनने की मंशा रखने वाली मसाबा को आखिर फैशन डिजाइनिंग से पहचान मिली. ऐक्ट्रैस नीना गुप्ता और वैस्टइंडीज के क्रिकेटर विवियन रिचर्ड्स की बेटी मसाबा को 2009 में लैक्मे फैशन वीक में इंटरनैशनल इंस्टिट्यूट औफ फैशन डिजाइनिंग की ओर से मोस्ट प्रौमिसिंग डिजाइनर का खिताब मिला, जिस ने मसाबा के लिए फैशन डिजाइनिंग में कामयाबी के दरवाजे खोल दिए. इंडियन और वैस्टर्न फैशन का फ्यूजन पेश करने में माहिर मसाबा खुद सादगी से रहना पसंद करती हैं.

पिछले दिनों एक मशहूर ब्रैंड के शोरूम के उद्घाटन के मौके पर पटना पहुंचीं मसाबा ने बातचीत के दौरान बताया कि मसाबा का मतलब प्रिंसेज होता है और यह नाम उन के पिता विवियन ने दिया था. मुंबई में जन्मी मसाबा ने पढ़ाई के बाद कैरियर की शुरुआत भी वहीं से की. डिजाइनिंग कैरियर के बारे में वे कहती हैं कि जब वे 8 साल की थीं तो टैनिस खेलने का शौक था. उस के बाद डांस में रुचि बढ़ी और श्यामक डाबर गु्रप जौइन कर लिया. उस में मन नहीं रमा तो लंदन जा कर क्लासिकल म्यूजिक सीखना शुरू किया और आखिरकार फैशन डिजाइनिंग के क्षेत्र को अपनाया.

डिजाइनर का अवार्ड

मसाबा बताती हैं कि शुरुआत में उन्होंने 8 ड्रैस पीस बनाए और सभी को लैक्मे जेन नेक्स-2009 के लिए भेज दिया. अच्छी बात यह रही कि सभी पीसों को चुन लिया गया. फैशन की दुनिया में 3 महीने गुजारने के बाद ही मोस्ट प्रौमिसिंग डिजाइनर का अवार्ड मिल गया. इस से हौसला बढ़ा और जीजान से फैशन डिजाइनर की फील्ड में रम गईं. उस के बाद अपना ब्रैंड ‘मसाबा’ लौंच किया.

क्या मातापिता की तरफ से कैरियर को ले कर कोई दबाव था? प्रश्न के जवाब में मसाबा कहती हैं कि किसी की तरफ से कोई प्रैशर नहीं था. जो मन में आया करती गई. स्टेट लैवल पर टैनिस खेलने के बाद डांस में कैरियर बनाने की सोची. उस से मोहभंग हुआ तो क्लासिकल म्यूजिक सीखने लंदन चली गई. भारत लौटने के बाद म्यूजिक से लगाव खत्म हो गया. फिर फैशन डिजाइनिंग का कोर्स कर लिया.

अपने कलैक्शन की खासीयत के बारे में वे कहती हैं कि उन में इंडियन और मौडर्न फैशन का संगम है. वे साडि़यों के कई कलैक्शन लौंच कर चुकी हैं. उन्होंने हमेशा भारतीय महिलाओं को ध्यान में रख कर ही कलैक्शन तैयार किया है. साड़ी उन का मनपसंद पहनावा है.

आम लोगों की फैशन की समझ और ट्रैंड के बारे में मसाबा की राय है कि आम लोग फैशन को ले कर काफी कन्फ्यूज होते हैं. हीरोइीरोइनों के पहनावे को ही फैशन समझ कर आंख मूंद कर उस की नकल करने की कोशिश करते हैं. इस से कई बार वे हंसी का पात्र बन जाते हैं.

कोई फैशन पुराना नहीं

मसाबा कहती हैं कि मोटे, दुबले और छोटे कद के लोग पहनावे को ले कर बहुत परेशान रहते हैं. कम हाइट के लोगों को हौरिजैंटल टाइप की ड्रैस पहननी चाहिए. वहीं ज्यादा मोटे लोगों को यह ध्यान रखना चाहिए कि वे डार्क और ज्यादा प्रिंटेड कलर न पहनें. इस से उन का शरीर और ज्यादा हाईलाइट हो जाता है. मोटे लोगों को हैवी कपड़े पहनने से भी परहेज करना चाहिए. दुबलेपतले लोगों को ढीले कपड़े पहनने के बजाय स्मार्ट फिटिंग वाली ड्रैस पहननी चाहिए.

फैशन शोज में आमतौर पर जिस तरह की ड्रैसेज दिखाई जाती हैं, वे आम जिंदगी में नहीं पहनी जाती हैं? सवाल के सवाल पर मसाबा कहती हैं कि फैशन चैनलों और फैशन शोज पर दिखाए जाने वाले कपड़ों को सच में आम जिंदगी में नहीं पहना जा सकता है. दरअसल, फैशन आर्ट को नया लुक देने के लिए प्रयोग होते रहते हैं. फैशन डिजाइनर इसी आर्ट को ध्यान में रख कर ड्रैसेज को कमर्शियली रैंप पर उतारते हैं और यह किसी न किसी थीम पर आधारित होता है. अकसर फैशन शोज के बाद कुछ ऐसे कलैक्शन को भी दिखाया जाता है जो आम लोगों के लिए भी होता है.

फैशन के चलन और उस में बदलाव आने के बारे में मसाबा का मानना है कि कोई भी फैशन कभी पुराना नहीं होता है. कुछ समय के बाद वह दोबारा आता है. मिसाल के तौर पर कुछ साल पहले बैलबौटम को आउट औफ फैशन करार दे दिया गया था, पर वह फिर से फैशन में आ रहा है. फैशन एक सर्किल की तरह होता है, जो तय समय के बाद वापसी करता है. अब 80 और 90 के दशक का रैट्रो फैशन दोबारा फैशन के दरवाजे पर दस्तक दे रहा है.

इबोला : जरूरी है सावधानी

पश्चिमी अफ्रीका के 3 देशों लाइबेरिया, सियरालियौन और नाइजीरिया में इन दिनों इबोला वायरस का संक्रमण काफी तेजी से फैला हुआ है. इन देशों में करीब 1 हजार से अधिक लोगों की मृत्यु इबोला की वजह से हो चुकी है.

इस वायरस ने पूरी दुनिया में चिंता की लहर दौड़ा दी है. इसलिए कहीं भी अगर कोई व्यक्ति उन देशों से आता है, तो उस की पूरी जांच की जाती है. इस के बारे में हील फाउंडेशन के तहत नैशनल हैल्थ राइटर्स ऐंड एडीटर्स कनवैंशन के सेमिनार में आए

डा. सौमित्र रावत का कहना था कि इबोला जानलेवा है पर यह हवा में नहीं फैलता. यह ब्लड ट्रांसमीटेड डिजीज है. यह एचआईवी की तरह ही है. इस में वायरल फीवर होने की वजह से सभी बड़ेबड़े बौडी और्गन जल्दी फेल होने लगते हैं और मरीज को बचाना असंभव हो जाता है. इसलिए जो भी व्यक्ति उन देशों में जाता है उसे सावधानी बरतनी जरूरी है. यह संक्रमण हवा के जरीए नहीं फैलता.

इबोला के लक्षण

इस बीमारी के लक्षण अन्य कई वायरल फीवर की तरह ही होते हैं और इस की अवधि 2 से 21 दिनों तक की होती है. लक्षणों की शुरुआत के बाद लगभग 5वें दिन के आसपास त्वचा पर लाललाल चकते होेने लगते हैं.

कुछ अन्य लक्षण निम्न हैं:

– तेज बुखार.

– जी मचलना.

– उलटी होना.

– गले में खराश.

– सीने में दर्द.

– पेट दर्द और दस्त का होना.

इस के लक्षण तेजी से बढ़ते जाते हैं जिस से पीलिया, तेजी से वजन का घटना, मल्टी और्गन फैल्योर आदि हो जाना प्रमुख हैं. इबोला से अधिकतर ब्रेन हैमरेज होता है. इस बारे में मुंबई फोर्टिस हौस्पिटल के संक्रमित बीमारी का इलाज करने वाले डाक्टर प्रदीप शाह बताते हैं कि इबोला के मरीज अभी तक भारत में पाए नहीं गए. जो भी केस संदेहजनक था उसे इबोला नहीं था. अफ्रीका के पिछड़े देशों में यह अधिक हो रहा है, क्योंकि वहां सैक्स कौमन है और साफसफाई अच्छी नहीं है.

परीक्षण

इबोला के इलाज के लिए निम्न परीक्षण आवश्यक है:

 – ऐंटीबौडी कैप्चर ऐंजाइम लिंक्ड इम्युनोसोरबेंट ऐसे (इलिसा).

 – ऐंटी डिटैक्शन टैस्ट.

 – सीरम न्यूट्रोलाइजेशन टैस्ट.

 – रिवर्स ट्रांस्किप्टस पोली मर्से चेन रिऐक्शन ऐसे.

 – इलैक्ट्रोन माइक्रोस्कोपी.

 – वायरस आईसोलेशन बाई सेल कल्चर.

एक बार इस वायरस का संक्रमण हो जाने पर मरीज के बचने की उम्मीद कम रह जाती है क्योंकि मरीज का तेज बुखार उस के दिमाग पर प्रभावित करता है. 90% मरीज बच नहीं पाते, लेकिन जिस की रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है, वह व्यक्ति बच सकता है.

 – यह आम फ्लू या टीबी की तरह हवा में नहीं फैलता. इस से बचने के उपाय निम्न हैं:

 – मरीज के रक्त, पसीना या उलटी के जरीए निकले पदार्थ से दूर रहें.

 – इबोला संक्रमित व्यक्ति के कै और दस्त से भी दूर रहें.

डा. प्रदीप आगे बताते हैं कि इस के वैक्सीन पर काम चल रहा है और उम्मीद है कि कुछ दिनों में इस के वैक्सीन मिलने लगेगा. प्रायोगिक वैक्सीन वानरों पर प्रयोग किए जा रहे हैं जिस के परिणाम अच्छे मिल रहे हैं.

मैंगो संदेश

सामग्री

1 किलोग्राम ताजा छेना, 250 ग्राम चीनी, 1 बड़ा चम्मच घी, 100 ग्राम मैंगो पल्प, 100 ग्राम मैंगो क्रश, 50 ग्राम स्कवैश, 50 ग्राम हरा पिस्ता.

विधि

छेना और चीनी को मिला कर कड़ाही में चढ़ाएं. फिर लगातार चलाते हुए इस का पूरा पानी सुखा लें. मिश्रण को चलाते हुए पूरी तरह महीन मैश कर लें. इसे एक ट्रे या थाली में निकाल लें और ठंडा होने दें.

मैंगो संदेश बनाने के लिए इस में आम का पल्प, क्रश और स्क्वैश डाल कर अच्छी तरह गूंधते हुए मिला लें. एक चौकोर ट्रे में घी लगा कर मिश्रण को जमा दें. मैंगो संदेश में पिस्ते का चूरा फैला दें और हलके हाथों से जमा दें. फिर चौकोर आकार में काट लें.

हौसलों की उड़ान से छू लिया आसमान

कोलकाता की रहने वाली 17 साल की मारवाड़ी परिवार की चंदा झावेरी 1984 में घर से इसलिए भाग गईं, क्योंकि उन के मांबाप जबरदस्ती उन की शादी करा रहे थे. जबकि जिंदगी को ले कर उन के सपने कुछ और ही थे. वे नोबल प्राइज जीतना चाहती थीं.

3 दशक बाद जब चंदा वापस लौटीं तो अमेरिका की मिलेनियर ऐंटरप्रन्योर बन कर और यह मुमकिन हुआ उन की कठिन मेहनत, लगन व हौसलों की वजह से.

घर छोड़ते वक्त चंदा के पास केवल 1 जोड़ी हीरे के इयररिंग्स थे, जिस से उन्होंने ब्रिटिश एअरवेज का टिकट खरीदा और बोस्टन पहुंचीं.

वहां पहुंच कर चंदा ने कठिन मेहनत की. अमेरिकी बुजुर्गों के लिए मेड तक का काम किया. साथ में ऊंची पढ़ाई भी की और अंतत: एक दिन उन्होंने अपनी ऐक्टिजन कंपनी की स्थापना कर अपना सपना पूरा किया. आज इस कंपनी का टर्नओवर करोड़ों का है. जो पड़ोसी और रिश्तेदार उन की वजह से उन के परिवार का मजाक उड़ाते थे, उन्हीं लोगों की नजरों में आज चंदा का कद काफी ऊंचा उठ चुका है.

जाहिर है, हौसलों की उड़ान ऊंची हो तो बुलंदियों तक पहुंचना मुश्किल नहीं. इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह स्त्री है या पुरुष या फिर उस की उम्र क्या है और वह किस देश का वासी है.

परिश्रम व लगन

कल्पना सरोज की कहानी भी कम प्रेरक नहीं. इन्हें आप स्लमडौग मिलेनियर भी कह सकते हैं. पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित सरोज वर्तमान समय में कमानी ट्यूब्स कंपनी की अध्यक्षा हैं. खास बात यह है कि वर्ण व्यवस्था के सब से निचले स्तर पर आने के बाद भी उन्होंने अपने लिए जगह बनाई.

कल्पना की शादी सिर्फ 12 साल की उम्र में कर दी गई थी और उस वक्त वे मुंबई में अपने पति के साथ एक स्लम एरिया में रहती थीं. ससुराल वालों द्वारा प्रताडि़त किए जाने पर उन के पिता उन्हें घर ले आए.

16 साल की उम्र में वे फिर से मुंबई आ गईं जहां उन्होंने सिलाई का काम किया. बाद में सिलाई मशीन ले ली और फिर बैंक से ऋण ले कर फर्नीचर की दुकान चलाने लगीं. 1997 में उन्होंने मुंबई में जमीन खरीदी और फिर उस पर एक इमारत खड़ी की.

2006 में उन्होंने ट्यूब बनाने वाली कंपनी कमानी ट्यूब की कमान संभाली, जिस पर मोटा कर्ज था. एक तरह से वह दिवालिया होने के कगार पर थी. पर कल्पना सरोज के प्रयास व मेहनत की बदौलत अब वही कंपनी अच्छा मुनाफा कमा रही है.

कुछ अलग सोचने का जज्बा

सफलता के लिए जरूरी है, अलग सोच. कहते हैं न कि सफल व्यक्ति कोई अलग काम नहीं करते, बल्कि किसी भी काम को अलग ढंग से करते हैं.

महिमा बख्शी का ही उदाहरण लीजिए. महिमा बीते एक दशक से कागज बनाने के उद्योग से जुड़ी हैं लेकिन वह कागज पेड़ों को काट कर नहीं, बल्कि हाथी के गोबर से तैयार किया जाता है. महिमा जयपुर की हैं. वहां हाथी आमतौर पर नजर आते हैं. एक दिन उन के एक साथी की नजर हाथी के गोबर पर पड़ी, तो उस ने कहा कि इस में फाइबर होता है. क्या इस का कुछ इस्तेमाल नहीं हो सकता?

महिमा उस वक्त तो इस बात पर कुछ बोल नहीं सकीं, लेकिन बाद में इंटरनैट सर्च करने पर उन्हें पता चला कि कुछ देशों में इस से कागज बनाए जाते हैं. बस फिर क्या था, महिमा ने इसे कारोबार के रूप में अपना लिया और आज इस से ग्रीटिंग कार्ड से ले कर दूसरे कई उत्पाद बना रही हैं.

उम्र कम हौसला बड़ा

सफलता के लिए कभी भी उम्र कोई माने नहीं रखती. बस जरूरी होता है सपना देखना और उसे पूरा करने का हौसला रखना.

अमेरिका की डेन टेक्स सैंट्रल इंक कंपनी की सी.ई.ओ. और प्रैसिडैंट, डौन लाफ्रीडा आज अमेरिका में 6 राज्यों के 76 स्थानों पर डेनीज रैस्टोरैंट खोलने वाली, सिस्टम की पहली सिंगल ओनर फ्रैंचाइजी हैं.

उन की इस सफलता की नींव उन की मात्र 13 साल की उम्र में पड़ गई थी, जब उन्होंने अमीर बनने की ख्वाहिश की. 16 साल की उम्र में उन की इच्छा एक कार खरीदने की हुई. उन की मां सिंगल मदर थीं और उन पर 3 बच्चों की जिम्मेदारी थी. बच्चों की खातिर वे एक डेनी रैस्टोरैंट में काम करती थीं. लाफ्रीडा की ख्वाहिश जान कर मां ने उन्हें भी रैस्टोरैंट में काम करने को प्रोत्साहित किया. बस फिर क्या था, लाफ्रीडा ने कैलिफोर्निया के एक स्थानीय डेनी रैस्टोरैंट में होस्टेस का काम शुरू कर दिया और बहुत जल्द अपनी मेहनत से वेट्रैस बनने की राह पर आगे बढ़ गईं.

पढ़ाई के साथसाथ उन्होंने नौकरी जारी रखी और 1984 में सिर्फ 23 साल की उम्र में उन्हें एक छोटे शहर, एरिजोना में डेनीज का एक रैस्टोरैंट खरीदने का औफर मिला, जिसे उन्होंने तुरंत स्वीकार कर लिया और पूरे जोश से इस नए बिजनैस की शुरुआत की. 18 माह बाद ही लाफ्रीडा के काम से संतुष्ट डेनीज ने उसे पश्चिम टेक्सौस में 4 रैस्टोरैंट और दे दिए. समय के साथ उन्हें जैन ऐंटोनिया जैसे बड़े शहर का स्टोर भी मिल गया और फिर बड़ी तेजी से उन्होंने अपना साम्राज्य बढ़ाया. आज वे सिस्टम की पहली सब से बड़ी सिंगल ओनर फ्रैंचाइजी बन गई हैं.

बकौल लाफ्रीडा, ‘‘इस बात का विश्वास मुझे हमेशा से था कि मैं जल्दी ही आत्मनिर्भर बन जाऊंगी. पर महज 23 साल में रेस्तरां संभालने का अलग ही अनुभव होता है. इस उम्र में आप वैसे नहीं सोचते जैसा कि बड़े होने पर सोचते हैं. आप बहुत बेखौफ होते हैं और सोचते हैं कि आप सब कुछ कर सकते हैं. इन सब बातों ने मुझे मजबूत बनाया.’’

फेमिला फैशंस की सी.ई.ओ. केतकी अरोड़ा सिर्फ 23 साल की हैं. वे कहती हैं, ‘‘दुनिया का कोई भी देश हो, यदि आप यंग ऐंटरप्रन्योर हैं तो आप को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है. लोग आप को सीरियसली नहीं लेते. तब जरूरत होती है, मजबूती के साथ इन चुनौतियों का सामना करने की.’’

भारत में भी ऐसी महिलाओं की कमी नहीं जिन्होंने कम उम्र में अपना बिजनैस शुरू किया और ऊंचे मुकाम हासिल किए. उदाहरण के लिए 29 साल की शाहमा कबानी, मार्केटिंग जेन ग्रुप (वेब मार्केटिंग एजेंसी) की फाउंडर हैं, जो इंपैक्ट के यंग ऐंटरप्रन्योर द्वारा आरंभ 100 टौप कंपनियों की लिस्ट में शुमार है.

इसी तरह 22 साल की उम्र में अपनी पहली कंपनी शुरू करने वाली ओशमा अमेरिका में यंग इंडियन ऐंटरप्रन्योर हैं और वर्तमान समय में ग्लोबल कंपनी की सी.ई.ओ. हैं. यंग ऐंटरप्रन्योर, अमीषा सिंह, माईडाला.कौम की सी.ई.ओ. हैं. इस कंपनी का टर्नओवर करोड़ों में है.

इन के अलावा शुची मुखर्जी, सुभद्रा चड्ढा, उपासना टाकु, अर्चना प्रसाद जैसे बहुत से नाम हैं, जिन की उपलब्धियां अच्छीखासी हैं. बौर्नरिच. और्ग. की सी.ई.ओ., यंग नंदिनी राठी कहती हैं, ‘‘मैं धनी पैदा नहीं हुई थी मगर बौर्नरिच.और्ग. ने मुझे धनी बना दिया.’’

आसान नहीं है राह

विश्व में औसतन देखा जाए तो टौप सी.ई.ओ. की पोजिशन पर केवल 3% महिलाएं हैं जबकि कुल वर्कफोर्स में 50% तक हैं. इंटरनैशनल ऐग्जिक्यूटिव रिसर्च फर्म, ई.एम.ए. पार्टनर्स इंटरनैशनल द्वारा हाल में किए गए इस अध्ययन में भारत की स्थिति तुलनात्मक रूप से थोड़ी बेहतर पाई गई. 11% भारतीय कंपनियों की सी.ई.ओ. महिलाएं हैं जबकि कुल वर्कफोर्स में उन की मौजूदगी 40% पाई गई.

सवाल यह उठता है कि महिलाएं बेहतर काम करने के बावजूद टौप लैवल तक कम संख्या में क्यों पहुंचती हैं? यह भी पाया जाता है कि बहुत सी महिलाएं घरेलू जिम्मेदारियों की वजह से नौकरी छोड़ देती हैं.

सैंटर फौर सोशल रिसर्च नामक एन.जी.ओ. ने विमन मैनेजर्स पर अध्ययन किया और पाया कि इन में से 70% महिलाएं ऐसी हैं, जो टौप मैनेजमैंट लैवल तक पहुंचना चाहती हैं, मगर परिवार की जिम्मेदारियों व औफिस कल्चर में कई तरह की परेशानियों की वजह से आगे नहीं बढ़ पातीं. बात ग्लास सीलिंग की हो या पारिवारिक जिम्मेदारियों की, महिलाओं के लिए तालमेल बैठाना आसान नहीं होता.

अभी हाल ही में पैप्सिको की भारतीय मूल की सी.ई.ओ. इंदिरा नूयी, जो दुनिया की सब से शक्तिशाली महिलाओं में शुमार हैं, ने यह बात स्वीकार की कि आम भारतीय कामकाजी महिलाओं की तरह उन के मन में भी यह कसक उभरती है कि वे अपनी बेटियों को पूरा वक्त नहीं दे पातीं और उन की स्कूल ऐक्टिविटीज में हिस्सा नहीं ले पातीं, क्योंकि उन के लिए अचानक छुट्टी लेना बेहद कठिन होता है. औफिस में कामकाज बनाए रखना आसान नहीं होता. कुछ लोग यह भी सोचते हैं कि महिलाएं दिल से कमजोर होती हैं. वे सही प्रबंधकीय निर्णय नहीं ले सकतीं.

केतकी अरोड़ा कहती हैं, ‘‘लोग यह बात मानते हैं कि महिलाएं बिजनैस शुरू नहीं कर सकतीं. मगर मैं कहती हूं कि औरतें ही ऐसा कर सकती हैं. समाज में इस बात को ले कर काफी विवाद रहता है कि औरतों की जगह क्या है, वर्कप्लेस या फिर घर? लोगों में शायद यह गलत भावना है कि महिलाएं एक से ज्यादा जिम्मेदारियां नहीं उठा सकतीं. वास्तव में लोग जो बात भूल रहे हैं वह यह कि हमारा डीएनए ही कहता है कि हम एकसाथ कई काम कर सकती हैं और कई काम व जिम्मेदारियों के बोझ से दबे होने के बावजूद टौप पर पहुंचती हैं. इसलिए मैं फीमेल ऐंटरपे्रन्योर्स को यही टिप देना चाहूंगी कि वे लोगों को ‘क्या कर पाओगी’ कह कर स्वयं को नीचा न दिखाने दें.

लुक बियौंड की डायरैक्टर, सीमा आनंद कहती हैं, ‘‘यह सच है कि महिलाएं बहुत ज्यादा इमोशनल होती हैं और यही वजह है कि वे औफिस में भी प्रैक्टिकल रवैया नहीं रख पातीं. इसी वजह से पुरुष उन्हें सीरियसली नहीं लेते.

‘‘पर सच कहा जाए तो यही उन की सब से बड़ी ताकत भी है. वे कोई भी काम दिल से करती हैं. औफिस में भी रिश्ते बना लेती हैं, जिन्हें उम्र भर कायम भी रखा करती हैं.’’

सफलता के अचूक मंत्र

जरूरी है सही तालमेल बैठाना: औफिस और घर को सही ढंग से संभालते हुए कामयाबी पाने के लिए जरूरी है, सही तालमेल बना कर रखना.

टपरवेयर, इंडिया की मैनेजिंग डायरैक्टर आशा गुप्ता कहती हैं, ‘‘यह सच है कि काम के प्रैशर की वजह से मैं अपने बच्चे को पूरा वक्त नहीं दे पाती. मगर मेरी कोशिश यह जरूर रहती है कि उस के साथ जितना भी मुमकिन हो क्वालिटी टाइम बिताऊं.’’

सफलता के लिए जरूरी है पैशन: यदि आप अपने काम से प्रेम नहीं करतीं तो आप कभी भी कुछ बेहतर नहीं कर सकेंगी.

स्काईडाइविंग के क्षेत्र में अग्रणी, काकनी ऐंटरप्राइजेज प्रा. लि. कंपनी की संस्थापिका, डा. आंचल खुराना कहती हैं, ‘‘यदि आप काम से प्रेम करती हैं, तो यह आप की जिंदगी का मकसद बन जाता है. अपनी पसंद का काम करते हुए आप को खुशी मिलती है.’’

स्वयं पर यकीन: यदि आप को अपनी सफलता पर यकीन है तो निस्संदेह आप जीतेंगी. यू.एस.ए. नैटवर्क के फाउंडर के. कोपलोविट्ज के शब्दों में, ‘‘आप को इस बात के लिए कंफर्टेबल रहना होगा कि आप ने जो सोचा है, उसे आप अपनी इच्छानुसार वास्तविकता में ढाल सकती हैं.’’

रिस्क लेने में घबराएं नहीं: जरूरी है कि कभीकभी हम रिस्क भी लें. सफल महिलाएं हड़बड़ी में रिस्क नहीं लेतीं. मगर कैलकुलेटेड रिस्क ले कर आगे बढ़ती हैं.

 असफलता से हताश नहीं होतीं: असफलता, सफलता का उलटा नहीं बल्कि स्टैपिंग स्टोन है. सफल महिलाएं जानती हैं कि वे हमेशा सफल हों यह जरूरी नहीं. कैरियर में कभीकभी नाकामयाबी भी मिलती है. यह जिंदगी का एक अनिवार्य हिस्सा है.

उदाहरण के लिए जे.के. रोलिंग की पहली हैरीपोटर बुक को 12 प्रकाशकों ने अस्वीकृत कर दिया था, मगर इस से रोलिंग ने हताश हो कर अपनी किताबें भेजनी नहीं छोड़ीं.

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