इस से अच्छा क्या तरीका

सस्ती पर टिकाऊ शादी के लिए भारत में बहुत जगह बहुविवाह सम्मेलन होते हैं. मुंबई में तो एक में सभी धर्मों के लड़केलड़कियों को बुलाया गया कि दूल्हादुलहन ढूंढ़ो, शादी करो और सुख से रहो. जब घर वाले न हों या बहुत चूंचूं कर रहे हों तो इस से अच्छा क्या तरीका है.

आकर्षण आज भी बरकरार

इटली की राजधानी रोम का ऐतिहासिक आकर्षण आज भी बरकरार है. ईसापूर्व बने इस विशाल स्टेडियम कोलोसियम को देखे बिना रोम से कोई जा ही नहीं सकता. इसीलिए तो इंगलैंड के शाही खानदान के प्रिंस हैरी ने भी एक गाइड पकड़ी और पहुंच गए इस कोलोसियम में होने वाली रेसों और कुश्तियों के बारे में जानने के लिए.

यह कैसी सनक

अमेरिका में सिरफिरे गनमैनों का आतंक जारी है. वहां का संविधान हरेक नागरिक को बंदूक रखने का हक देता है. पर इस का जम कर दुरुपयोग हो रहा है और तनावपरस्त युवा निहत्थे, निर्दोषों को गोलियों से छलनी कर रहे हैं. नया मामला 22 वर्षीय इलीयट रोजर का है जिस ने कई को मारा और फिर खुद आत्महत्या कर ली. उस के शव के पास से 3 बंदूकें, सभी कानूनन मिलीं. उन बिलखते चेहरों को देखें जिन के अजीज इस हत्यारे के रास्ते में आए और बिना वजह मारे गए.

हमें भी हक है

अब ये आदमी हैं या औरतें यह न पूछें पर लड़कियों की पोशाकों में तड़कभड़क वाली में दर्शकों की रुचि बहुत होती है. बर्लिन, जरमनी में इन्होंने जम कर उत्सव मनाया. भारत के सुप्रीम कोर्ट ने भी अभी हाल ही में हिजड़ों को संवैधानिक हक दे कर इन के छिने अधिकार वापस लौटाए हैं.

हौलीवुड की सुपर हीरोइन

बेशक एंजेलिना जोली हौलीवुड की सब से आकर्षक और बढि़या अभिनेत्री हैं. उन की फिल्में करोड़ों में बनाती हैं. नई फिल्म ‘मैलफीसेंट’ को भी भारी सफलता मिल रही है और इस के लिए जब वे टोक्यो पहुंची तो वहां भी प्रशंसकों की भीड़ कम न थी.

हैटों की होड़

लंदन के बर्कशायर में होने वाली रेसों में घोड़ों से ज्यादा वहां रेस देखने पहुंची युवतियों के हैटों की होड़ धूम मचाती है. लोग घोड़ों को देखें या न देखें, हैटवालियों को जरूर देखते हैं.

अजब नाव की गजब सवारी

नाव की सैर करने जा रहे हैं तो इतरा क्यों रहे हो. अजी, इतरा इसलिए रहे हैं कि ये नावें घरों में बनी हैं और इन के डूबने का पूरा डर है. डूबीं तो मरेंगे तो नहीं, पर भीगेंगे जरूर. यह किर्गिस्तान की राजधानी बिशकेक की एक झील में कंपीटिशन में हुआ. वहां जम कर गरमी पड़ी, भारत की तरह.

यह हुजूम कैसा

इतने सारे लोग, सत्ता पलटने के लिए? नहीं समाज को दिखाने के लिए कि समलैंगिक संबंध हक हैं, दया नहीं. और यह हुजूम जमा कहां हुआ? इसलामी देश टर्की की राजधानी इंस्तांबुल में. टर्की कई दशकों से कभी उदार यूरोपीय देश बनना चाहता है तो कभी इसलामी एशियाई देश, क्योंकि यह देश दोनों महाद्वीपों में फैला है.

कानून एक सवाल अनेक

बलात्कार के मामलों की गिनती बढ़ रही है पर इस के साथ ही उन मामलों को भी बलात्कार कहा जाने लगा है जहां युवती ने अपनी मरजी से युवक के साथ शारीरिक संबंध बनाए थे. देश के थानों में सैकड़ों ऐसे मामले दर्ज हैं जिन में शिकायतकर्ता युवती का कहना है कि उस का अभियुक्त के साथ सालों तक संबंध रहा. अभियुक्त विवाह का वादा करता रहा फिर मुकर गया. इसलिए यह संबंध बलात्कार की श्रेणी में आता है.

इंडियन पीनल कोड की धारा 375 में बलात्कार के अपराध की परिभाषा दी गई है, जिस में सहमति से हुए यौन संबंध को बलात्कार नहीं माना गया. पर अगर सहमति बहलाफुसला कर या चाहने के लिए राजी करने के नाम पर ली गई है तो यह सहमति नहीं मानी जाएगी. इस प्रावधान का इस्तेमाल अब लड़कियां गुस्से में जानबूझ कर इसलिए कर रही हैं क्योंकि उन का कहना है कि न तो वे सुख से जीएंगी न जीने देंगी.

अगर लड़कियों की मरजी होती है तो वे जब चाहें प्यार, दोस्ती या लिव इन और लगातार बने यौन संबंधों को छोड़ कर जा सकती हैं. पर यदि लड़के ऐसा करें तो अब लड़कों को थानों में लाइनें लगानी होती हैं. केरल के एक मामले में एक लड़के ने, जो विवाहित था, अपनी मुसलिम प्रेमिका से संबंध बनाए. दोनों साथ रहने लगे पर चूंकि लड़का अपनी पत्नी को तलाक न दे पाया, युवती ने आरोप लगा दिया कि उसे यह कह कर झांसे में रखा गया कि उस का तलाक हो चुका है.

इस मामले में और पेच भी हैं और बहुत से अनुत्तरित सवाल भी. पर मुख्य बात यह है कि जब बालिग लड़की बिना जोरजबरदस्ती के एक जानपहचान वाले युवक के साथ घूमफिर रही हो, घंटों फोन पर बातें कर रही हो, जगहजगह होटलों में दोनों पतिपत्नी की तरह रह रहे हों, वहां बलात्कार का मामला दर्ज भी कैसे हो सकता है?

बलात्कार का मामला दर्ज होने का मतलब है खाकी और काली वरदी वालों की बन आना. खाकी वरदी वाली पुलिस तुरंत न केवल लड़के बल्कि उस के दोस्तों और घर वालों को भी बंद करने पर आमादा हो जाती है, तो काले कोट वाले वकील मामले को लंबा लटकाने के लिए हर तरह के बहाने बनाते हैं. लड़के की रातें जेलों में कटती हैं और उस के घर वालों की मकानजायदाद बेच कर पैसे गिनने में.

शारीरिक संबंध प्रकृति की देन है, वे चाहे विवाहित लोगों में हो, अविवाहितों में हो या एक विवाहित और एक अविवाहित में हो. जब तक रजामंदी है तब तक अपराध बनता ही नहीं है. मारपीट, जबरदस्ती, नशा कराने आदि के बाद यदि बलात्कार हो तो ही अपराध माना जाना चाहिए और तब ही पुलिस हरकत में आए और वह भी तब जब पीडि़ता सीधे पुलिस के पास जाए. 2-4 सप्ताहों, महीनों या सालों बाद की गई शिकायत पर ध्यान देना प्रकृति के बीच आ कर यौन आनंद से खिलवाड़ करना है.

कुछ अदालतों ने अब लड़कों को छूट देनी शुरू कर दी पर यह छूट भी तब मिलती है जब महीनों जेल काटी जा चुकी हो और वकीलों पर खर्च हो चुका हो. सहमति का अधिकार छीनने का हक क्या समाज और कानून को है?

ऐसे तो कभी नहीं आएंगे अच्छे दिन

नई सरकार से महंगाई पर काबू पाने की जो आशाएं थीं वे एक माह में ही फूल के धूल में समा जाने जैसी हो गईं. नरेंद्र मोदी की सरकार उसी तरह चल रही है जैसे पहले सरकारें चल रही थीं और एक माह में एक भी फैसला ऐसा न हुआ

जिस से देश में महंगाई सुरक्षा, सुकारक, शराफत और सुख का एहसास हो. बात साफ है कि नीयत अच्छी हो तो भी सरकार चलाना एक टेढ़ी खीर है. और जब जनता की अपेक्षाएं बहुत ज्यादा बढ़ा दी जाएं तो थोड़ी भी ढील बहुत अखरती है.

महंगाई की जिम्मेदारी इराक के युद्ध को दी जा सकती है पर यह अधूरी बात है. कच्चा तेल अब महंगा होने लगा है, क्योंकि इराक युद्ध का असर, ईरान, कुवैत, बहराइन, सऊदी अरब सब पर पड़ने का डर लगने लगा है और तेल कंपनियों ने आगे के लिए स्टौक बढ़ाना शुरू कर दिया है.

पर देश में महंगाई का जिम्मेदार ढीला व बेईमान शासन है. यहां गरीब को बुरी तरह लूटा जाता है और लूटने की आदत पड़ गई है, तो लूट की आग में मध्य व उच्च वर्ग भी फंस जाता है. महंगाई पगपग पर बढ़ती है. लोगों की मेहनत का बड़ा हिस्सा उत्पादन में नहीं, शासन की सड़ी नीतियों के हवन में स्वाहा होता है. ऊपर से अब वह सरकार है जो हर जरा से काम में घी, तेल, लकड़ी जलाना शुभ काम समझती है और आग के सामने घंटों मंत्र पढ़ने को मेहनत समझती है.

लोग समझ रहे थे कि महंगाई की वजह भ्रष्टाचार है, कोयला घोटाला है, 2जी स्कैम है, कौमनवैल्थ खेलों की हेराफेरी है. पर निकला यह कि महंगाई तो सरकार के निकम्मेपन का सुबूत है और 30-40 दिनों में सरकार की गति तेज होने लगी है, कहीं से नहीं दिख रहा.

महंगाई की मार अभी हर रोज और ज्यादा तेज होगी, क्योंकि इस बार मौनसून का मूड बिगड़ा है और खेतों का उत्पादन कम हो सकता है. ऐसा होते ही प्याज व आलू ही नहीं, गेहूं, चावल भी महंगे होने लगेंगे. मजदूरी महंगी होगी और फिर महंगाई डायन सब को खाने लगेगी. डायन को समाप्त करने के लिए पंडों, ओझाओं को नहीं कर्मठता को पुरस्कार देने की जरूरत है. लेकिन इसे यहां भाग्य का असर माना जाता है.

नरेंद्र मोदी की सरकार के पास कोई फौर्मूला नहीं दिखता, जिस से मेहनत का सही मुआवजा मिलने की नीति बने और आलसी को भुगतने की सजा. यहां उलटा है. आलसी, बातें बनाने वाले राज करते हैं और काम करने वाले पिसते हैं. अगर सरकार के नियमकानून ढीले होने लगें तो अपनेआप चीजें सस्ती हो जाएं. मोबाइल सस्ते हैं, क्योंकि  इन पर नाम का आयात टैक्स है और लोग धड़ल्ले से तरहतरह के मोबाइल आयात कर रहे हैं. पर उत्पादन करने वाली मशीनों पर भारी आयात टैक्स और तरहतरह की बंदिशें हैं. बकबक करने वाला देश बकबकिए काम को प्रोत्साहन देगा तो सामान कैसे बनेगा? पहले सोचते थे कि यह सब सिर्फ कांग्रेसी नेताओं के कारण हो रहा है. अब साबित हो रहा है कि नेता कोई हो, सरकार तो वही है.

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