हैटों की होड़

लंदन के बर्कशायर में होने वाली रेसों में घोड़ों से ज्यादा वहां रेस देखने पहुंची युवतियों के हैटों की होड़ धूम मचाती है. लोग घोड़ों को देखें या न देखें, हैटवालियों को जरूर देखते हैं.

अजब नाव की गजब सवारी

नाव की सैर करने जा रहे हैं तो इतरा क्यों रहे हो. अजी, इतरा इसलिए रहे हैं कि ये नावें घरों में बनी हैं और इन के डूबने का पूरा डर है. डूबीं तो मरेंगे तो नहीं, पर भीगेंगे जरूर. यह किर्गिस्तान की राजधानी बिशकेक की एक झील में कंपीटिशन में हुआ. वहां जम कर गरमी पड़ी, भारत की तरह.

यह हुजूम कैसा

इतने सारे लोग, सत्ता पलटने के लिए? नहीं समाज को दिखाने के लिए कि समलैंगिक संबंध हक हैं, दया नहीं. और यह हुजूम जमा कहां हुआ? इसलामी देश टर्की की राजधानी इंस्तांबुल में. टर्की कई दशकों से कभी उदार यूरोपीय देश बनना चाहता है तो कभी इसलामी एशियाई देश, क्योंकि यह देश दोनों महाद्वीपों में फैला है.

कानून एक सवाल अनेक

बलात्कार के मामलों की गिनती बढ़ रही है पर इस के साथ ही उन मामलों को भी बलात्कार कहा जाने लगा है जहां युवती ने अपनी मरजी से युवक के साथ शारीरिक संबंध बनाए थे. देश के थानों में सैकड़ों ऐसे मामले दर्ज हैं जिन में शिकायतकर्ता युवती का कहना है कि उस का अभियुक्त के साथ सालों तक संबंध रहा. अभियुक्त विवाह का वादा करता रहा फिर मुकर गया. इसलिए यह संबंध बलात्कार की श्रेणी में आता है.

इंडियन पीनल कोड की धारा 375 में बलात्कार के अपराध की परिभाषा दी गई है, जिस में सहमति से हुए यौन संबंध को बलात्कार नहीं माना गया. पर अगर सहमति बहलाफुसला कर या चाहने के लिए राजी करने के नाम पर ली गई है तो यह सहमति नहीं मानी जाएगी. इस प्रावधान का इस्तेमाल अब लड़कियां गुस्से में जानबूझ कर इसलिए कर रही हैं क्योंकि उन का कहना है कि न तो वे सुख से जीएंगी न जीने देंगी.

अगर लड़कियों की मरजी होती है तो वे जब चाहें प्यार, दोस्ती या लिव इन और लगातार बने यौन संबंधों को छोड़ कर जा सकती हैं. पर यदि लड़के ऐसा करें तो अब लड़कों को थानों में लाइनें लगानी होती हैं. केरल के एक मामले में एक लड़के ने, जो विवाहित था, अपनी मुसलिम प्रेमिका से संबंध बनाए. दोनों साथ रहने लगे पर चूंकि लड़का अपनी पत्नी को तलाक न दे पाया, युवती ने आरोप लगा दिया कि उसे यह कह कर झांसे में रखा गया कि उस का तलाक हो चुका है.

इस मामले में और पेच भी हैं और बहुत से अनुत्तरित सवाल भी. पर मुख्य बात यह है कि जब बालिग लड़की बिना जोरजबरदस्ती के एक जानपहचान वाले युवक के साथ घूमफिर रही हो, घंटों फोन पर बातें कर रही हो, जगहजगह होटलों में दोनों पतिपत्नी की तरह रह रहे हों, वहां बलात्कार का मामला दर्ज भी कैसे हो सकता है?

बलात्कार का मामला दर्ज होने का मतलब है खाकी और काली वरदी वालों की बन आना. खाकी वरदी वाली पुलिस तुरंत न केवल लड़के बल्कि उस के दोस्तों और घर वालों को भी बंद करने पर आमादा हो जाती है, तो काले कोट वाले वकील मामले को लंबा लटकाने के लिए हर तरह के बहाने बनाते हैं. लड़के की रातें जेलों में कटती हैं और उस के घर वालों की मकानजायदाद बेच कर पैसे गिनने में.

शारीरिक संबंध प्रकृति की देन है, वे चाहे विवाहित लोगों में हो, अविवाहितों में हो या एक विवाहित और एक अविवाहित में हो. जब तक रजामंदी है तब तक अपराध बनता ही नहीं है. मारपीट, जबरदस्ती, नशा कराने आदि के बाद यदि बलात्कार हो तो ही अपराध माना जाना चाहिए और तब ही पुलिस हरकत में आए और वह भी तब जब पीडि़ता सीधे पुलिस के पास जाए. 2-4 सप्ताहों, महीनों या सालों बाद की गई शिकायत पर ध्यान देना प्रकृति के बीच आ कर यौन आनंद से खिलवाड़ करना है.

कुछ अदालतों ने अब लड़कों को छूट देनी शुरू कर दी पर यह छूट भी तब मिलती है जब महीनों जेल काटी जा चुकी हो और वकीलों पर खर्च हो चुका हो. सहमति का अधिकार छीनने का हक क्या समाज और कानून को है?

ऐसे तो कभी नहीं आएंगे अच्छे दिन

नई सरकार से महंगाई पर काबू पाने की जो आशाएं थीं वे एक माह में ही फूल के धूल में समा जाने जैसी हो गईं. नरेंद्र मोदी की सरकार उसी तरह चल रही है जैसे पहले सरकारें चल रही थीं और एक माह में एक भी फैसला ऐसा न हुआ

जिस से देश में महंगाई सुरक्षा, सुकारक, शराफत और सुख का एहसास हो. बात साफ है कि नीयत अच्छी हो तो भी सरकार चलाना एक टेढ़ी खीर है. और जब जनता की अपेक्षाएं बहुत ज्यादा बढ़ा दी जाएं तो थोड़ी भी ढील बहुत अखरती है.

महंगाई की जिम्मेदारी इराक के युद्ध को दी जा सकती है पर यह अधूरी बात है. कच्चा तेल अब महंगा होने लगा है, क्योंकि इराक युद्ध का असर, ईरान, कुवैत, बहराइन, सऊदी अरब सब पर पड़ने का डर लगने लगा है और तेल कंपनियों ने आगे के लिए स्टौक बढ़ाना शुरू कर दिया है.

पर देश में महंगाई का जिम्मेदार ढीला व बेईमान शासन है. यहां गरीब को बुरी तरह लूटा जाता है और लूटने की आदत पड़ गई है, तो लूट की आग में मध्य व उच्च वर्ग भी फंस जाता है. महंगाई पगपग पर बढ़ती है. लोगों की मेहनत का बड़ा हिस्सा उत्पादन में नहीं, शासन की सड़ी नीतियों के हवन में स्वाहा होता है. ऊपर से अब वह सरकार है जो हर जरा से काम में घी, तेल, लकड़ी जलाना शुभ काम समझती है और आग के सामने घंटों मंत्र पढ़ने को मेहनत समझती है.

लोग समझ रहे थे कि महंगाई की वजह भ्रष्टाचार है, कोयला घोटाला है, 2जी स्कैम है, कौमनवैल्थ खेलों की हेराफेरी है. पर निकला यह कि महंगाई तो सरकार के निकम्मेपन का सुबूत है और 30-40 दिनों में सरकार की गति तेज होने लगी है, कहीं से नहीं दिख रहा.

महंगाई की मार अभी हर रोज और ज्यादा तेज होगी, क्योंकि इस बार मौनसून का मूड बिगड़ा है और खेतों का उत्पादन कम हो सकता है. ऐसा होते ही प्याज व आलू ही नहीं, गेहूं, चावल भी महंगे होने लगेंगे. मजदूरी महंगी होगी और फिर महंगाई डायन सब को खाने लगेगी. डायन को समाप्त करने के लिए पंडों, ओझाओं को नहीं कर्मठता को पुरस्कार देने की जरूरत है. लेकिन इसे यहां भाग्य का असर माना जाता है.

नरेंद्र मोदी की सरकार के पास कोई फौर्मूला नहीं दिखता, जिस से मेहनत का सही मुआवजा मिलने की नीति बने और आलसी को भुगतने की सजा. यहां उलटा है. आलसी, बातें बनाने वाले राज करते हैं और काम करने वाले पिसते हैं. अगर सरकार के नियमकानून ढीले होने लगें तो अपनेआप चीजें सस्ती हो जाएं. मोबाइल सस्ते हैं, क्योंकि  इन पर नाम का आयात टैक्स है और लोग धड़ल्ले से तरहतरह के मोबाइल आयात कर रहे हैं. पर उत्पादन करने वाली मशीनों पर भारी आयात टैक्स और तरहतरह की बंदिशें हैं. बकबक करने वाला देश बकबकिए काम को प्रोत्साहन देगा तो सामान कैसे बनेगा? पहले सोचते थे कि यह सब सिर्फ कांग्रेसी नेताओं के कारण हो रहा है. अब साबित हो रहा है कि नेता कोई हो, सरकार तो वही है.

विवाह कोई खेल नहीं

पति पत्नी विवाद अकसर आपे से बाहर हो जाते हैं और या तो पत्नी अपने को आग लगा लेती है या पति उसे मार डालता है. दिल्ली के आदर्श नगर के अजित कुमार का अपनी सुंदर सलोनी सी पत्नी शालिनी से विवाद इतना बढ़ा कि उस ने पहले तो उस का गला घोंट दिया फिर दूसरी मंजिल से उसे नीचे फेंक दिया. यह एहसास होने पर कि अब उन की बेटी का खयाल रखने वाला कोई न होगा, पुलिस के पहुंचने से पहले उसे भी मार डाला.

पतिपत्नी विवाद पुराने हैं.तब से चल रहे हैं जब विवाह की संस्था शुरू हुई होगी पर अब इस युग में भी जब लोग अपनी समस्याएं हिंसा से नहीं, मेज पर सुलझाते हैं, पत्नियों की हत्याएं जताती हैं कि पतिपत्नी के संबंधों में अभी भी बहुत कुछ संभलना बाकी है.

पहले अधिकांश पत्नियां पतियों की ज्यादतियों को नियति मान कर चुप हो जाती थीं पर अब वे उग्र हो जाती हैं. मातापिता अब बेटियों का साथ जम कर देते हैं और बातबात में नए कानूनों का हवाला दिया जाता है. पति अपनी मर्दानगी दिखाता है, पत्नी पुलिस का रोब दिखाती है. दोनों के मातापिता आग पर पैट्रोल छिड़कते हैं.

जिस तरह पतिपत्नी संबंधों में हिंसा का इस्तेमाल हो रहा है और पुलिस केस बन रहे हैं, उतने तो शायद पैसे के लेनदेन पर भी नहीं बन रहे. लोग शांति से संपत्ति और कर्ज के मामले सुलटा लेते हैं पर विवाहों के मामलों में अति हो रही है. इन में टैनिस खिलाड़ी लिएंडर पेस व रिया पिल्लै जैसे मामले भी हैं और प्रीति जिंटा व नेस वाडिया जैसे भी. इस में शक नहीं कि इस का एक कारण औरतों में आ रही नई जाग्रति है. वे अब अपने को कमजोर समझने को तैयार नहीं. दूसरा कारण यह भी है कि यदि पति पत्नी की मांगों को पूरा करने में असमर्थ हो तो विवाह के फैसले का दोष औरतें पतियों पर मढ़ती हैं. ज्यादातर मामलों में पत्नियों की मांग होती है कि अगर दूसरी औरतों के पति कमा सकते हैं तो उन का पति क्यों नहीं?

अब पति अपनी मर्दानगी रोब झाड़ने के लिए नहीं अपनी असफलताओं को छिपाने के लिए इस्तेमाल करते हैं. पत्नी यदि रातदिन कोई मांग करे तो पति चाह कर भी पूरा नहीं कर पाता. बहुत थोड़े से पतिपत्नियों में विवाद पत्नी से पैसे मांगने या पति के दूसरी औरत से संबंध पर होता है. आज का पति डरासहमा रहता है और पत्नी हावी रहती है.

दिल्ली में हुई घटना के बाद अब 2 परिवार लगभग नष्ट हो जाएंगे. पत्नी के परिवार वालों को सदा सदमा रहेगा कि उन की बेटी व नातिन नहीं रही. वहीं, पति के परिवार वालों को अब बेटे की करतूत की वजह से जेलों व अदालतों से जूझना होगा.

विवाह को खेल समझने का बड़ा कारण यह है कि विवाह के बारे में हलकीफुलकी जानकारी के आधार पर शादियां हो रही हैं. लड़कियों को लगता है कि विवाह के बाद सपनों का कोई शहर उन के इर्दगिर्द उग आएगा. लेकिन जब वास्तविकता की धरातल से सामना होता है तो ज्यादातर लड़कियां बिफर जाती हैं और शिकार पति होते हैं. अंतत: नुकसान सब को होता है. दोनों के परिवार वालों को और खुद पतिपत्नी व बच्चों को. विवाह को गंभीरता से लें. विवाह बिना जीवन अधूरा है, पत्नी का भी उतना ही जितना पति का.

फूल भी कांटे भी

गृहशोभा के जून (प्रथम), 2014 ‘हैल्थ×फिटनैस स्पैशल’ में प्रकाशित संपादकीय टिप्पणी, ‘आई हेट यू पापा’ की जितनी तारीफ की जाए कम होगी.

सच, जब पिता ही बलात्कारियों की कतार में खड़ा हो जाए तो अपनी रक्षा के लिए बेटियां किस से गुहार लगाएं? रिश्तों की सारी मर्यादाओं को लांघते हुए ऐसे राक्षसों की गलत करतूतों को उजागर करती इस टिप्पणी ने मनुष्य को जानवरों की पंक्ति में खड़ा कर दिया है. लानत है ऐसी पाशव मानसिकता पर जहां पिता की कामपिपासा अपनी ही बेटियों की देह से बुझती है और इस में कोई शक नहीं है कि मां, बहन, बहूबेटियों की सैक्स से जुड़ी गालियां सदियों से हो रही इसी दरिंदगी की देन हैं.
रेणु श्रीवास्तव, बिहार

सर्वश्रेष्ठ पत्र
गृहशोभा का जून (प्रथम), 2014  अंक बहुत पसंद आया. सरल शब्दों में प्रकाशित इस की ज्ञानवर्धक रचनाओं को पढ़ कर दिलोदिमाग को एक दिशा मिलती है, जो हमें जीवन में अपने लिए, अपनों के लिए और दूसरों के लिए बहुत कुछ करने को प्रेरित करती है.
विहंगम के अंतर्गत प्रकाशित टिप्पणी ‘बच्चे जंजीर नहीं आत्मबल हैं’, में कामकाजी महिलाओं की समस्या पर बेहद बारीकी से प्रकाश डाला गया है और उस का समुचित समाधान भी बताया गया है.
यह सत्य है कि वर्तमान समय की कामकाजी युवतियां अपना कैरियर भी बनाए रखना चाहती हैं और मातृत्व का आनंद भी प्राप्त करना चाहती हैं. मगर समस्या तब उत्पन्न होती है जब एकल परिवारों में रहने वाले युगलों में पत्नी को अपने बच्चों की परवरिश हेतु नौकरी छोड़नी पड़ती है. मां की ममता बच्चों को आया के भरोसे भी कब तक छोड़े. बच्चे प्रत्येक मातापिता की अनमोल उपलब्धि हैं, उन का आत्मबल हैं,उन के जीवन की खुशियां हैं, यह समझाने के लिए संपादकजी का हार्दिक धन्यवाद.
दोयल बोस सिंह, दिल्ली

मैं जब भी गृहशोभा का नया अंक पढ़ती हूं तो हमेशा यही सोचती हूं कि भई यह अंक तो पढ़ लिया. अब अगली बार क्या नया होगा? उन्हीं पुरानी चीजों में थोड़ा फेरबदल कर और कोई नया नाम दे कर दूसरा लेख छाप देंगे और जनता को बेवकूफ बनाएंगे. परंतु मुझे हमेशा मुंह की खानी पड़ती है, क्योंकि गृहशोभा का हर अंक कोई न कोई नवीनता लिए तो होता ही है, उस में कुछ न कुछ विविधता भी होती है. तभी तो गृहशोभा शीर्ष पर विराजमान है. भले ही आज हिंदी पत्रिकाओं की बाढ़ आ गई हो तो भी जैसी सामग्री गृहशोभा में प्रकाशित होती है वैसी किसी और पत्रिका में नहीं.
यों तो गृहशोभा की सभी रचनाएं ज्ञानवर्द्धक होती हैं, पर उन में भी विहंगम में प्रकाशित टिप्पणियां सब से ऊपर होती है, जिन्हें पढ़ कर हम वाकई एक नई दिशा में सोचने को मजबूर होते हैं.
निधि लखोटिया, आंध्र प्रदेश

गृहशोभा का जून (प्रथम), 2014 ‘हैल्थ×फिटनैस स्पैशल’ बहुत पसंद आया. आज के प्रतिस्पर्धा के युग में गृहशोभा ही एक ऐसी पत्रिका है जिस के कहे हर शब्द में फटकार है, तो आत्मीयता भी है, चेतावनी है तो संरक्षण भी है, चुनौती है, तो मार्गदर्शन भी है. इस ने हमेशा भ्रष्टाचार एवं पाखंडियों के खिलाफ आवाज उठाई है.
गृहशोभा का हर लेख अंदर तक झकझोरते हुए कहता है कि सिर्फ कहना ही नहीं है अपने आचरण से शिक्षा भी प्रदान करना है.
निधि जैन, . बंगाल

गृहशोभा का जून (प्रथम), 2014 अंक बारिश की पहली फुहार की तरह सुखद और शीतल लगा. इस में प्रकाशित स्वास्थ्य से संबंधित लेख ‘ब्रैस्ट कैंसर’ और ‘घुटने का प्रत्यारोपण’ बहुत उपयोगी हैं. मैं स्वयं आर्थ्राइटिस की मरीज हूं और बहुत परेशान रहती हूं. इस लेख को पढ़ने के बाद उम्मीद जगी कि मैं भी इस दर्द से मुक्ति पा सकूंगी.
शकीला एस. हुसैन, .प्र.

गृहशोभा के जून (प्रथम),2014 ‘हैल्थ×फिटनैस स्पैशल’ की लाभप्रद सामग्री ने अंक को मनोहारी बना दिया है. ऐसी सर्वांगसुंदर हिंदीभाषी पत्रिका कोई और नहीं देखी. इस के सभी लेख जीवन को उन्नत, खुशहाल और रोगरहित रखने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. शीर्ष लेख ‘मातापिता के सपनों तले मिटता बचपन’ किशोरवय अभिभावकों को नसीहत देता अविस्मरणीय रहा.
आधुनिक युग में मातापिता बच्चों की रुचियों की अवहेलना कर के अपनी अधूरी इच्छाओं को पूरा करने के लिए उन पर मानसिक दबाव पैदा करते हैं. यह जानते हुए भी कि हर बच्चे की क्षमता भिन्नभिन्न होती है. जब बच्चों को पूरी मेहनत करने के बाद भी सफलता नहीं मिलती तो वे कुंठाग्रस्त हो जाते हैं या आत्महत्या करने की ओर अग्रसर हो जाते हैं. सफलता की इस अंधी दौड़ ने बच्चों का सुकून छीन लिया है.
लेख में मशहूर हस्तियों के उदाहरण देते हुए लेखक ने अभिभावकों को सीख दी है कि हमें अपनी इच्छाएं बच्चों पर न थोप कर उन्हें उन की रुचि के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए स्वतंत्र छोड़ देना चाहिए. तब देखिए कैसे बच्चों का सर्वांगीण विकास होगा और वे देश के अच्छे नागरिक बनेंगे.
डा. रीता जैन, .प्र.

जोधा के पति को नहीं एतराज रोमांस सीन पर

‘जोधा अकबर’ की जोधा परिधि शर्मा का कहना है कि औनस्क्रीन रोमांस पर उन के हब्बी को कोई एतराज नहीं है. इस से जुड़े सवाल पर उन का कहना था कि शुक्र है टीवी शोज में रोमांस उतना विस्तृत नहीं होता है, लेकिन हाल ही में मुझ से कुछ ऐसा करने के लिए कहा गया था, जिसे करते हुए मैं सहज नहीं थी. ऐसे ही एक सीन को ले कर मैं ने अपनी टीम को इस बात को बताया था तो उन्होंने मेरी बात पर कोई सवाल नहीं किया. मेरे पति और मेरा परिवार यह अच्छी तरह  समझता है कि यह मेरे काम का हिस्सा है और जब तक मैं अपनी हद पार नहीं करती तब तक उन्हें इस पर कोई आपत्ति नहीं है.

बिग बी का टीवी सीरियल

रुपहले परदे के महानायक अमिताभ बच्चन अब छोटे परदे के दर्शकों का दिल जीतने के लिए तैयार हैं. उन के अभिनय से सजा पहला टीवी शो ‘युद्ध’ जल्द ही सोनी इंटरटैनमैंट चैनल पर प्रसारित होगा. हाल ही में दिल्ली में शो के पहले पोस्टर का अनावरण किया गया, जिस में बिग बी के साथ शो की पूरी कास्ट और प्रोडक्शन टीम मौजूद थी. अनुराग कश्यप द्वारा निर्देशित इस शो को अमिताभ बच्चन के सरस्वती क्रिएशंस और एंडेमोल द्वारा प्रोड्यूस किया गया है. अमिताभ इस शो में एक कंस्ट्रक्शन किंग की भूमिका में हैं, जिस का नाम युधिष्ठिर सकरवार है. एक वाक्य में कहें तो पूरी कहानी सामाजिक मुद्दों के इर्दगिर्द घूमती नजर आती है.

इस शो में अमिताभ बच्चन के अलावा नवाजुद्दीन सिद्दीकी, केके मेनन और सारिका भी अहम रोल निभाते दिखाई देंगे. प्रैस कौन्फ्रैंस के दौरान जब अनुराग कश्यप से यह पूछा गया कि शूटिंग के दौरान सदी के महानायक को निर्देश देते हुए वे नर्वस हुए थे क्या? तो उन का जवाब था कि अमितजी को निर्देशित करने के नाम पर ही मेरे हाथपैर फूल गए थे. पर उन्होंने बड़े ही सहज भाव से सब के साथ मिल कर काम किया. हम लोगों को कभी एहसास ही नहीं हुआ कि हम इतने बड़े नायक के साथ काम कर रहे हैं.

अनुपम के मेहमान बने बादशाह

अभिनेता अनुपम खेर का नया चैट शो ‘कुछ भी हो सकता है’ जल्द ही कलर्स टैलीविजन पर शुरू होने वाला है जिस में वे जानीमानी सैलिब्रिटीज के साथ बातचीत करते हुए नजर आएंगे. इस के लिए नए ऐपिसोड की शूटिंग शुरू हो गई है और खबरों के अनुसार जहां इस शो में पहले कौमेडियन कपिल शर्मा पहुंचे थे, तो इस बार बौलीवुड के किंग खान यानी शाहरुख के साथ ऐपिसोड शूट किया गया है. शो की शूटिंग के दौरान बादशाह खान ने अनुपम के सवालों के जवाब बड़े ही मजाकिया मूड में दिए. इस बात से हर कोई वाकिफ है कि टैलीविजन से अपना कैरियर शुरू करने वाले किंग आज फिल्मी दुनिया के दूसरे सब से ज्यादा कमाई करने वाले ऐक्टर हैं.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें