रितिक को नहीं है गम

जब से रितिक और सुजैन कानूनी रूप से अलग हुए हैं तब से रितिक खुल कर जिंदगी ऐंजौय कर रहे हैं. उन का ऐक्टिंग और ऐक्सरसाइज करना और सब से महत्त्वपूर्ण बच्चों के साथ छुट्टियां बिताना, सब कुछ पहले जैसा ही चल रहा है. कुछ दिनों पहले ही दोनों कानूनी रूप से अलग हुए हैं, लेकिन इन दोनों ने कभी भी आम कपल्स की तरह एकदूसरे पर आरोपप्रत्यारोप नहीं लगाए. न ही अलग होने के कारण मीडिया को बताए. दोनों ने 14 वर्ष की कम उम्र से ही एकदूसरे को प्यार किया और लंबी कोर्टशिप के बाद कोई 17 बरस का विवाहित जीवन भी जी चुके हैं. परंतु बिना किसी बाहरी दबाव या बिना कारण ही उन का अलगाव और तलाक हो गया.

मूंछें हों तो विद्या जैसी

बड़ीबड़ी मूंछों पर रोब से ताव देती हुई ये कुड़ी कहीं विद्या बालान तो नहीं है? दरअसल, अपनी आने वाली फिल्म ‘बौबी जासूस’ के प्रमोशनल इवेंट पर विद्या का यही रूप सामने आया. इस फिल्म में वे जासूस का किरदार निभा रही हैं. उन से यह पूछा गया कि आम भारतीय औरतों की तरह उन्होंने कभी अपने पति की जासूसी की है, तो उन का जवाब था कि उन की जासूसी कोई क्या करे. वे तो हद से ज्यादा सीधे इंसान हैं. लेकिन उन का यह भी कहना था कि जासूसी का कीड़ा हर किसी में छिपा होता है. असल जिंदगी में उन्होंने भी छोटीमोटी जासूसी की है.

इस फिल्म में वे अभिनेता अली फैजल के साथ काम कर रही हैं. अली का विद्या के लिए कहना है कि वे बहुत सहज हैं और मुझे ऐसी कोई झिझक नहीं थी कि वे एक विवाहिता और सीनियर अभिनेत्री हैं. शायद यह उस वर्कशौप वजह से था, जो हम ने शूटिंग शुरू होने से पहले साथ में किया था. अली इस फिल्म में विद्या के साथ एक गाने और डांस में भी दिखेंगे.

मल्लिका की राजनीति

राजस्थान की राजनीति में भूचाल लाने वाले बहुचर्चित भंवरी देवी हत्याकांड पर बनी फिल्म ‘डर्टी पौलिटिक्स’ के पोस्टर पर विवाद गहराता जा रहा है. इस में मल्लिका सेहरावत को तिरंगा लपेटे हुए लाल बत्ती कार पर सीडी हाथ में लिए हुए दिखाया है. मल्लिका के इस 3 रंग के साड़ीनुमा कपड़े पर कुछ राजनीतिक दलों को एतराज है. मल्लिका ने इस फिल्म में अनोखी देवी का किरदार निभाया है, जो राजनितिक दांवपेचों में उलझ कर अपना शारीरिक शोषण करवाने पर मजबूर होती है.

फिल्म के निर्देशक के.सी. बोकाडि़या कहते हैं कि राजस्थान की कुछ राजनीतिक पार्टियां मेरे खिलाफ शिकायत दर्ज कराने की योजना बना रही हैं. हमारी फिल्म के पोस्टर का किसी भी राजनीतिक पार्टी से कोई लेनादेना नहीं है. यदि कोई जबरदस्ती अपनी पार्टी को हमारी फिल्म से जोड़ना चाहता है, तो यह हमें स्वीकार्य नहीं होगा. कांग्रेस का दावा है कि उन का पार्टी ध्वज पोस्टर में दिखाए गए झंडे से मिलता है. जबकि कांग्रेस के झंडे में पंजे का निशान है और हमारे पोस्टर में ऐसा कोई निशान नहीं है. यदि झंडे का रंग एक सा है, तो यह हमारी तरफ से इरादतन नहीं है.

पंजाबन कुड़ी बनेगी सोहा

आजकल सोहा अली खान कुणाल खेमू के साथ नहीं अभिनेता वीरदास के साथ लप्पीझप्पी कर रही हैं. दरअसल, सोहा वीरदास के साथ निर्देशक शिवाजी लोतन पाटिल की फिल्म कर रही हैं, जो 1984 के सिक्ख विरोधी दंगों पर आधारित है. इस फिल्म की शूटिंग जालंधर के गांव गंगराना में हुई है. इस फिल्म में एक सिक्ख दंपती की जिंदगी और वह दंगों में कैसे उजड़ गई, इस का यथार्थ चित्रण है. सोहा ने किरदार पर पकड़ बनाने के लिए सब कुछ किया. यही नहीं, उन्होंने अपने किरदार के लिए पंजाबी भी सीखी.

सोहा ने बताया कि हां मैं अपने किरदार के लिए पंजाबी सीख रही हूं और अपने लुक पर भी ध्यान दे रही हूं. जिस से मैं खालिस पंजाबन लगूं.

अक्षय की क्लास

आज के समय में जब महिलाओं को राह चलना भी मुश्किल हो रहा है, उन्हें आत्मरक्षा स्वयं करनी होगी, यह कहना है बौलीवुड के खिलाड़ी कुमार अक्षय कुमार का जो महिलाओं को आत्मरक्षा के नए दांवपेचों से अवगत कराएंगे. उन का यह भी कहना है कि महिलाओं को आत्मरक्षा से जुड़े गुर सिखाना भी एक समाजसेवा का काम है. अक्षय ने महिलाओं को आत्मरक्षा सिखाने के लिए आदित्य ठाकरे के साथ मिल कर एक स्कूल शुरू किया है. अक्षय  ने कहा कि यह प्रयास निजी लाभ के लिए नहीं है बल्कि समाजसेवा के लिए है. हम यहां समाज को कुछ लौटाने के लिए हैं, आर्थिक लाभ लेने के लिए नहीं.

अदिति बनेंगी भूपेन हजारिका की प्रेमिका

बौलीवुड की जानीमानी फिल्मकार कल्पना लाजमी असमिया गीतकार व गायक भूपेन हजारिका पर फिल्म बनाने जा रही हैं. इस फिल्म में कल्पना और भूपेन के प्रेम संबंधों को दिखाया जाएगा. फिल्म में कल्पना लाजमी का रोल अदिति राव निभाएंगी जबकि भूपेन का किरदार इरफान खान व प्रसन्नजीत में से कोई एक निभा सकता है. ‘द टेपेस्ट’ नाम से बन रही फिल्म में पहले कल्पना लाजमी की भूमिका पूजा भट्ट निभाने वाली थीं. लेकिन अब उन की जगह अदिति राव हैदरी का चयन किया जा सकता है. कल्पना लाजमी अपनी इस फिल्म के लिए एक ऐसी अभिनेत्री का चयन करना चाहती हैं जो 17 वर्ष की लग सके. चर्चा है कि हाल ही में कल्पना ने अदिति से मुलाकात की है.

आरुषि पर फिल्म

गुलजार साहब की लाडली मेघना जल्दी ही नोएडा के मशहूर व आज तक न सुलझे बहुचर्चित आरुषि हत्याकांड पर फिल्म बना रही हैं. पहले इस विषय पर मिलन लूथरिया ‘रहस्य’ नाम से फिल्म की घोषणा कर चुके थे. लेकिन उन के हाथ खींच लेने पर ही मेघना ने इस विषय पर फिल्म बनाने की सोची है. फिल्म में हत्याकांड की जांच करने वाले पुलिस अधिकारी की भूमिका निभाने के लिए मेघना ने इरफान खान को लिया है. वहीं शेफाली शाह आरुषि की मां नूपुर तलवार का किरदार निभाएंगी. वर्ष 2008 में नोएडा स्थित तलवार परिवार के घर में उन की 13 साल की आरुषि और उन के नौकर हेमराज की हत्या कर दी गई थी. फिल्म का निर्माण विशाल भारद्वाज करेंगे.

जैकलीन करेंगी हाउसफुल

श्रीलंकन सुंदरी जैकलीन फर्नांडिस जल्दी ही अभिषेक बच्चन और रितेश देशमुख के साथ हाउसफुल शृंखला की तीसरी फिल्म ‘हाउसफुल 3’ में जल्दी ही दिखाई देंगी. पहले की दोनों हाउसफुल सीरीज का निर्देशन साजिद ने किया था, लेकिन इस बार साजिदफरहाद की जोड़ी को निर्देशन की कमान सौंपी गई हैं. करीबी सूत्रों ने बताया कि ‘हाउसफुल 3’ में काम करने के लिए अभिषेक बच्चन ने हामी भर दी है. जैकलीन से बातचीत चल रही है, लेकिन अभी कुछ तय नहीं हुआ है. अन्य 2 अभिनेत्रियों के नाम पर भी जल्द ही फैसला किया जाएगा. साजिदफरहाद की जोड़ी इस से पहले ‘बोल बच्चन’, ‘रेडी’, ‘गोलमाल रिटर्न’ और ‘गोलमाल 3’ जैसी फिल्मों का निर्देशन कर चुकी है.

लोग फिल्म और रियल लाइफ में अंतर समझें : अक्षय कुमार

100से अधिक फिल्मों में काम कर चुके अक्षय कुमार ने सिर्फ ऐक्शन फिल्में ही नहीं कीं, बल्कि रोमांस, सैक्स कौमेडी, कौमेडी, हौरर सभी प्रकार की फिल्मों में काम किया. उन्हें एक ढर्रे की फिल्म बारबार करना पसंद नहीं. वे हर दिन को नए ढंग से जीते हैं और हर काम को ऐंजौय करते हैं.

उन की कुछ फिल्में हिट तो कुछ फ्लौप भी रहीं पर वे इस के लिए परेशान नहीं होते. उन्हें लगता है कि फिल्में केवल सितारों की वजह से नहीं चलतीं. उन की सफलता व असफलता तो बहुत कुछ कहानी और स्क्रिप्ट पर भी निर्भर करती है. इसलिए किसी भी फिल्म को कलाकार के आधार पर नहीं आंका जाना चाहिए.

पिछले साल उन की फिल्म ‘बौस’ फ्लौप रही, तो इसे वे महज एक ऐसी फिल्म के रूप में लेते हैं, जो दर्शकों को पसंद नहीं आई. अभी हाल में ही उन की फिल्म ‘हौलीडे’ रिलीज हुई, जिस के लिए उन्होंने अपना वजन 12 किलोग्राम कम किया और आर्मी औफिसर की भूमिका निभाई. ह्यूमर पसंद करने वाले अक्षय कुमार से मुलाकात हुई तो दिलचस्प बातचीत हुई. पेश हैं बातचीत के खास अंश:

आप किस तरह की कहानी से अधिक प्रभावित होते हैं?

पहले उस का विषय देखता हूं कि कौमेडी है, सीरियस है या थ्रिलर है. विषय अगर अच्छा और नया है तो मैं तुरंत हां कर देता हूं. इस के अलावा निर्देशक और बैनर भी देखता हूं.

आप अपना हौलीडे कहां बिताना पसंद करते हैं?

भारत में मैं गोवा जाता हूं क्योंकि वहां मेरा घर है. इस के अलावा विदेश में थाइलैंड बहुत पसंद है. हर 3 महीने के बाद 6 या 7 दिन के लिए मैं छुट्टी ले कर परिवार के साथ घूमने अवश्य जाता हूं. छुट्टियों का प्लान मैं काम के साथसाथ बना लेता हूं और साल में एक बार 1 महीने के लिए विदेश जाने की कोशिश करता हूं. मुझे लगता है कि काम के साथसाथ परिवार के साथ समय बिताना बहुत जरूरी है. जब मैं अकेला था तो घर जाने की फिक्र अधिक नहीं रहती थी. अब जब घर जाता हूं तो बच्चे के डैडी कह कर बुलाते ही मेरी सारी थकान दूर हो जाती है.

आप हमेशा खुद स्टंट करते हैं. क्या किसी खतरे का डर आप को नहीं रहता?

मैं खुद स्टंट इसलिए करता हूं, क्योंकि वह मुझे अच्छा लगता है. मैं कोई नाम के लिए स्टंट नहीं करता. आजकल स्टंट करने वालों का बीमा किया जाता है और शूटिंग के वक्त एक डाक्टर और ऐंबुलैंस साथ में शूटिंग स्पौट पर रहती है. इस के अलावा हौस्पिटल से संपर्क रखा जाता है. इसे करना मुश्किल पहले था जब मैं इंडस्ट्री में आया था. आज तकनीकी सुविधा की वजह से स्टंट करना आसान हो चुका है.

सोनाक्षी के साथ बारबार काम करने की वजह क्या है?

सोनाक्षी एक अच्छी अभिनेत्री है और बहुत प्रोफैशनल है. दूसरी हीरोइनों की तरह वह 4-5 घंटा वैन से निकलने में नहीं लगाती. समय से पहले ही वह सैट पर खड़ी मिलती है.

फिल्में समाज का आईना होती हैं. ऐसे में मारधाड़ वाली फिल्में क्या समाज को प्रभावित नहीं करतीं?

समाज में हिंसा है, दुख है, परेशानियां हैं. उन्हें ही फिल्मों में दिखाया जाता है. इस से कुछ बिगड़ता नहीं है. लोग उसे फिल्म की तरह ही देखते हैं. लेकिन उन्हें कुछ नई बातें समझ में आती हैं, जिस से वे सतर्क होते हैं. मैं ने हर तरह की फिल्में की हैं जिस में मैं ने सैक्स कौमेडी भी की. इस का मतलब यह नहीं कि समाज बिगड़ गया या मैं वैसा हूं. जरूरत है फिल्म और रियल लाइफ में अंतर को समझने की. फिल्मों का मकसद मनोरंजन भी है.

सुना है सैल्फ डिफैंस पर आप कुछ कर रहे हैं. वह क्या होगा और किस तरह का होगा?

मैं ने कई साल ऐक्शन फिल्मों में काम किया. अब मैं चाहता हूं कि बच्चों की कक्षा में सैल्फ डिफैंस एक विषय के रूप में हो ताकि बचपन से ही उन्हें शिक्षा मिलती रहे. मेरा विश्वास है हर बच्चा इसे पढ़ना चाहेगा. मार्शल आर्ट आज बहुत जरूरी हो चुका है. मैं इस पर भी काम कर रहा हूं.

आप के काम में परिवार का कितना सहयोग रहता है?

अपने परिवार के साथ मैं बहुत खुश हूं क्योंकि उस का सहयोग मुझे हमेशा मिलता है. ट्विंकल मेरी कोई स्क्रिप्ट नहीं पढ़ती, न ही कोई दखलंदाजी करती है. फिर अपने घर में अपने बच्चों को बढ़ते हुए देखना, उसे महसूस करना, उस का सुख अलग होता है. उसे नापा नहीं जा सकता. मेरा बेटा ‘कूडो’ में गोल्ड मैडल जीता है, इसलिए मैं एक प्राउड फादर हूं.  

एक थी ऐंबैसेडर

ऐंबैसेडर कार को कौन नहीं जानता. यह नाम किसी परिचय का मुहताज नहीं है. भारत की सब से मजबूत कार के रूप में पहचानी जाने वाली ऐंबैसेडर कार को भारत सरकार का अधिकृत वाहन माना जाता रहा है. पुलिस और सेना में भी इस का रुतबा कायम रहा है. नेताओं से ले कर अभिनेता तक ऐंबैसेडर सभी की पसंदीदा कार रही है, लेकिन बदलते वक्त और बढ़ती आधुनिकता ने इस कार की मांग, अहमियत और रुतबे को न केवल प्रभावित किया, बल्कि इस के अस्तित्व को ही खत्म कर दिया.

24 मई को पश्चिम बंगाल के उत्तरपारा में स्थित हिंदुस्तान मोेटर्स ने घटती बिक्री औैर हर महीने 7-8 करोड़ के हो रहे घाटे की वजह से ऐंबैसेडर के उत्पादन कार्य को हमेशा के लिए बंद कर दिया, जिस के साथ ही इस का नाम इतिहास के पन्नों पर दर्ज हो गया.

एक वक्त था जब लोगों के बीच यह कार स्टेटस सिंबल हुआ करती थी. जिस घर में यह कार होती, उस घर के लोगों को समृद्घशाली समझ जाता. भारतीय लोकतंत्र में भी इसे शानोशौकत का प्रतीक समझ जाता. लेकिन वक्त बदलने के साथसाथ किसी ढलती उम्र के अभिनेता की तरह ऐंबैसेडर कार की भूमिका भी बदलती चली गई. धीरेधीरे यह कार टैक्सी और दूल्हादुलहन को ढोने के काम आने लगी.

लेकिन ऐंबैसेडर को झटका तब लगा जब सरकारी महकमे ने सुरक्षा कारणों से ऐंबैसेडर की जगह दूसरी गाडि़यों का इस्तेमाल शुरू कर दिया. सब से पहले 2003 में अटल बिहारी बाजपेयी जब प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने ऐंबैसेडर की जगह बीएमडब्ल्यू को चुना. इस के बाद धीरेधीरे कर के सभी नेताओं ने अपनीअपनी पसंद की विदेशी गाडि़यों को चुनना शुरू कर दिया.

पिछले कुछ सालों से तो सरकारी विभाग में ऐंबैसेडर कारों की खरीद लगभग शून्य ही हो गई थी. साथ ही आम जनता ने भी ऐंबैसेडर को नजरअंदाज करना शुरू कर दिया था. बस यहीं से ऐंबैसडर के बुरे दिन शुरू हो गए.  

देश में प्रथम स्वदेशी कार बनाने वाली हिंदुस्तान मोटर्स लिमिटेड ने 1942 में ऐंबैसेडर का उत्पादन शुरू किया था. तब से अब तक के बीच कई नई देशीविदेशी कार कंपनियां नई तकनीकों से लैस अपनीअपनी कार मौडलों को पेश कर चुकी हैं, जिन के मुकाबले ऐंबैसेडर में बहुत से बदलावों की जरूरत थी. लेकिन इन जरूरतों को कंपनी पूरा नहीं कर सकी जिस के चलते इस कार को आने वाले वक्त में इतिहास के पन्नों में दफन होना पड़ेगा.

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