देवदास की नई पारो

बौलीवुड में देवदास पर बन रही एक और फिल्म में एक नया नाम जुड़ने जा रहा है. निर्देशक सुधीर मिश्रा ने अपनी इस फिल्म का नाम ‘और देवदास’ रखा है और इस फिल्म में पारो का किरदार आदिति निभा रही हैं. फिल्म ‘बौस’ के बिकनी सीन की वजह से आदिति तो जैसे खबरों के बाजार से गायब ही हो गई थीं लेकिन वे अब हर इवेंट में दिख जाती हैं.

एक इवेंट में जब पत्रकारों ने महिलाओं की सुरक्षा पर उन से पूछा तो उन का कहना था कि हमारी कंट्री में आप कहीं सेफ नहीं हैं. यहां जिस किस्म की परवरिश होती है, उस में बलात्कार जैसी घटनाएं होना कोई बड़ी बात नहीं. लड़कों की बीमार मानसिकता के पीछे वजह यह है कि वे लड़कियों की दुनिया से पूरी तरह कटे हुए हैं. मेरे खयाल से बलात्कार जैसी घिनौनी वारदात को अंजाम देने वाले किसी भी उम्र के शख्स को बख्शना नहीं चाहिए. लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है.

अलग ही तेवर हैं इस छोरे के

कैरियर शुरू करने के 2 साल के बाद अपने पापा की फिल्म तेवर में काम कर रहे अर्जुन कपूर के अलग ही तेवर इस फिल्म में दर्शकों को देखने मिलेंगे. पापा की फिल्म को इतने समय के बाद साइन करने पर अर्जुन कहते हैं कि मैं पहले खुद को परख रहा था कि मैं होम प्रोडक्शन की फिल्म साइन करने लायक हूं या नहीं. मैं ने  इस फिल्म में यह सोचकर काम नहीं किया कि यह पापा की फिल्म है तो मुझे ज्यादा अच्छा काम करना है. बतौर कलाकार मैं हमेशा हर किरदार को उम्दा तरीके से निभाने की कोशिश करता हूं. हालांकि होम प्रोडक्शन फिल्म होने के कारण इससे मेरा इमोशनल जुड़ाव है. फिल्म की कहानी आम प्रेम कहानी नहीं है. इस फिल्म के निर्देशक अमित शर्मा उत्तर प्रदेश से तअल्लुक रखते हैं और वहीं पलेबढ़े हैं. उन्होंने वहां के लहजे, उच्चारण को मुझे सिखाने में मेरी मदद की. इस फिल्म की स्क्रिप्ट मजबूत है. मुझे तो बस किरदार को जीवंत करना था. मेरे तेवर दर्शकों का कैसे लगेंगे, यह तो फिल्म रिलीज होने के बाद ही पता चलेगा.

अक्षय को नैचुरल बौडी पसंद है.

बौलीवुड के स्टंट कुमार यानी अक्षय कुमार का मानना है कि उन्होंने कभी भी अपने शरीर को ऐक्सपोज करने की कोशिश नहीं की, क्योंकि वे सिर्फ नैचुरल बौडी में विश्वास करते हैं. बौलीवुड में ऐब्स के चलन के बारे में पूछे जाने पर अक्षय ने कहा कि ऐब्स बनाने में बहुत वक्त लगता है. ऐब्स टहलतेटहलते नहीं बनते. मैं सिक्स पैक या एट पैक का समर्थन नहीं करता. बहुत से लोग ऐब्स बनाने के लिए ऐसे हैल्थ प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करते हैं, जो उन के शरीर को कुछ दिनों के लिए अच्छा महसूस कराते हैं, लेकिन आगे चल कर शरीर को इन के साइड इफैक्ट झेलने पड़ते हैं. अक्षय की नई फिल्म ‘बेबी’ 23 जनवरी को आने वाली है, जिस में वे एक इंटैलिजैंस इंसपैक्टर की भूमिका निभा रहे हैं.

धर्म के चोले में लिपटे हवस के पुजारी

हमारे देश में धर्म के नाम पर लोगों की भावनाओं का शोषण सदियों से होता आ रहा है. इस के नवीनतम उदाहरण हैं रामपाल और आसाराम बापू. आसाराम ने भगवान की दलाली करतेकरते अपने चारों ओर लाखों अनुयायियों की न सिर्फ भीड़ एकत्र कर ली वरन आश्रमों के नाम पर करोड़ों रुपए की संपत्ति तथा ऐशोआराम के तमाम साधन भी जमा कर लिए.

धर्म के नाम पर चल रही तिजारत तथा लोगों के शोषण का दूसरा घिनौना चेहरा है रामपाल, जो अपनेआप को भगवान का अवतार घोषित कर चुका है और जो किसी भी माने में आसाराम से पीछे नहीं है. रामपाल पहली बार तब सुर्खियों में आया, जब 2006 में उस ने आर्य समाज जैसी एक पुरानी तथा प्राचीन धार्मिक संस्था को समाज विरोधी घोषित कर के उस के खिलाफ मुहिम छेड़ दी.  इसी साल उस पर अपना हरियाणा का करोंधा आश्रम बेचने में धोखाधड़ी करने का भी आरोप लगा. इस मामले में उस के खिलाफ अदालत में मुकदमा चल रहा है, लेकिन 42 बार अदालत की सुनवाई में हाजिर होने का सम्मन मिलने के बावजूद, वह अदालत में हाजिर न होने का दुस्साहस कर चुका है. इतना ही नहीं, रामपाल के खिलाफ कई अदालतों में अनेक आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं. ये महाशय तो इस माने में आसाराम से भी दो कदम आगे बढ़ गए कि इन्होंने अपनी सुरक्षा तथा पुलिस को अपने आश्रम में घुसने से रोकने के लिए अपने अनुयायियों की एक हथियारबंद फौज तक खड़ी कर डाली.

ये सारे मामले यह साबित करते हैं कि धर्म हमेशा ही बच्चों तथा महिलाओं या फिर यों कहें कि पूरे समाज के लिए सुरक्षित नैतिक विकास का जरीया नहीं होता और अकसर ये धार्मिक संस्थाएं अनैतिक गतिविधियों का गढ़ बन जाती हैं.

ऐसा ही एक वहशियाना किस्सा अमेरिका जैसे प्रगतिशील देश के एक तथाकथित मसीहा का हाल ही में सामने आया है, जिसे लोगों ने अपनी आस्था के कारण भगवान का दर्जा दे रखा था. यह हमेशा अपने अनुयायियों को केवल एक पत्नी रखने की तथा उस के प्रति वफादार रहने की सीख देता रहा. लेकिन खुद धार्मिक आडंबर की आड़ में मासूम बच्चियों तथा महिलाओं को अपनी हवस का शिकार बनाता रहा.

यह तथाकथित मसीहा है अमेरिका के मौरमौन चर्च का संस्थापक जोसेफ स्मिथ, जो हमेशा यह दम भरता रहा कि वह अपनी एकमात्र बीवी इमा के प्रति पूरी तरह वफादार रहा. मौरमौन चर्च ‘द चर्च औफ जीसस क्राइस्ट औफ लैटर डे सैंट्स’ के नाम से भी जाना जाता है और आज अमेरिका के अनेक प्रसिद्ध व्यक्ति इस चर्च के अनुयायी हैं. इन में रिपब्लिकन पार्टी के मिट रोमनी भी शामिल हैं, जो मैसाचुसेट्स के गवर्नर भी रह चुके हैं और 2012 में राष्ट्रपति पद का चुनाव भी लड़ चुके हैं.

पिछले कई सालों से जोसेफ स्मिथ के बारे में नैट पर अलगअलग लोगों द्वारा इस तरह के आरोप लगाए जाते रहे हैं, लेकिन पहली बार मौरमौन चर्च ने आधिकारिक रूप से अपनी वैबसाइट पर यह सच स्वीकार किया है कि उस के संस्थापक जोसेफ स्मिथ की 40 से भी अधिक जवान पत्नियां थीं और उन में से कुछ महिलाएं ऐसी भी थीं, जिन की पहले से ही किसी अन्य पुरुष के साथ शादी हो चुकी थी. जोसेफ स्मिथ की इन पत्नियों में से 1 केवल 14 साल की मासूम बालिका भी थी, जो उस के एक मित्र की बेटी थी.

दब न सका सच

बरसों तक किसी शुतुरमुर्ग की तरह अपना मुंह रेत में छिपाए रखने की नाकामयाब कोशिशों के बाद जब मौरमौन चर्च के लिए इस सचाई से मुंह मोड़ना मुश्किल हो गया, तो अधिकारियों के पास अपने पंथ की इज्जत बचाने के लिए इसे स्वीकार करने के अलावा और कोई चारा नहीं बचा ताकि चर्च के अनुयायियों को दूसरे लोगों से मुंह छिपाते न फिरना पड़े.

पत्रकार एमिली जैनसन के शब्दों में, ‘‘मेरे जैसे अनेक लोग जोसेफ स्मिथ को सर्वगुणसंपन्न इंसान मानते थे. लेकिन अब मौरमौन चर्च की इस स्वीकारोक्ति के बाद ऐसा लगता है जैसे मानों मुझे किसी ने आसमान से जमीन पर पटक दिया हो. चर्च के अन्य अनुयायी भी मेरी जैसी स्थिति में होंगे.’’

चर्च के एक वरिष्ठ नेता एल्डर स्टीवेन स्नो इन आलोचनाओं के जवाब में कहते हैं, ‘‘चर्च के इतिहास में यह एक कठिन समय है. हमें हर हालत में सचाई का साथ देना चाहिए और साथ ही हमें अपने इतिहास को भी समझना चाहिए. मैं यह मानता हूं कि हमारा इतिहास आस्था, भक्ति तथा कुरबानियों की कहानियों से भरा पड़ा है, लेकिन इस के साथ ही हमें यह भी स्वीकार करना पड़ेगा कि ये लोग सामान्य मानवीय कमजोरियों से परे नहीं थे.’’

घृणित जीवन पर धार्मिक मुलम्मा

मौरमौन पंथ के अनेक अनुयायियों का कहना है कि वे यह बात अच्छी तरह जानते थे कि स्मिथ के उत्तराधिकारी ब्रीघम यंग जब साल्ट लेक सिटी में चर्च का नेतृत्व कर रहे थे, तो उन्होंने कई बीवियां रखी हुई थीं और वे खुलेआम बहुविवाह प्रथा की वकालत करते थे. मौरमौन चर्च ने भी अपनी एक विज्ञप्ति में इस बात का खुलासा किया है कि ओहिओ तथा इलिनौय में मौरमौन आंदोलन के शुरू के दिनों में स्मिथ ने अपने अनुयायियों को यह बताया था कि स्वयं ईश्वर ने उन से बहुविवाह प्रथा को अपनाने का आदेश दिया था.

अब्राहम तथा ओल्ड टेस्टामैंट के अन्य नेताओं की भी अनेक पत्नियां थीं और इसीलिए स्मिथ तथा उन के अनुयायियों को मजबूरन ईश्वर की बात माननी पड़ी. जाहिर है, चर्च के अधिकारी अपने संस्थापक स्मिथ के भोगविलास से भरपूर घृणित जीवन पर धार्मिक मुलम्मा चढ़ाने की नाकामयाब कोशिश कर रहे हैं.

किस तरह एक अदना सा इंसान लाखों अमेरिकी अनुयायियों वाले एक पंथ का संस्थापक बन गया, यह अपनेआप में बड़ी विचित्र कहानी है और आम आदमी की उस कमजोरी की तरफ इंगित करती है, जो न सिर्फ धार्मिक चमत्कारों में विश्वास करता है वरन जो अपनी इसी कमजोरी के कारण तथाकथित धार्मिक नेताओं के शोषण का भी शिकार बनता रहा है.

खूब बनाया बेवकूफ

जोसेफ स्मिथ का जन्म शैरों (वैरमौंट) में 23 दिसंबर, 1805 में एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था, लेकिन 12 साल का होतेहोते वह अपने परिवार के साथ पश्चिमी न्यूयौर्क में जा कर बस गया. जब स्मिथ जवान हुआ, तो उस ने छोटेमोटे बहुत काम किए. उस समय अमेरिका के बहुत से लोग सोने तथा गुप्त खजानों की खोज में इधरउधर भटक रहे थे. लोगों में यह अंधविश्वास था कि स्मिथ जब आंखें बंद कर के ध्यान लगाता था, तो उसे यह पता चल जाता था कि किसी की खोई वस्तु कहां मिल सकती है या फिर जमीन के किस हिस्से में खुदाई करने पर धन या सोना मिल सकता है. अपने इसी फरेब के बल पर वह कुछ समय तक लोगों को बेवकूफ बनाता रहा. फिर अपने इसी काम के दौरान उस ने लोगों से दावा करना शुरू कर दिया कि जब एक दिन वह पूजा कर रहा था तो उसी समय खुद भगवान तथा जीसस क्राइस्ट उस से मिलने आए और उन्होंने उसे एक मसीहा की तरह लोगों का नेतृत्व करने का आदेश दिया. उस ने यह भी दावा किया कि मौरौनी नामक एक देवदूत उसे उस स्थान पर ले गया, जहां एक सुनहरा गं्रथ जमीन में दबा था. फरिश्ते की मदद से इस ग्रंथ को जमीन से खोद कर निकालने पर स्मिथ को पता चला कि इस की सोने की तख्तियों पर प्राचीन अमेरिकी सभ्यता का धार्मिक इतिहास अंकित था. तब तक भक्तों की भीड़ स्मिथ के इर्दगिर्द एकत्र होने लगी थी. अपने इन भक्तों को उस ने बताया कि मौरौनी की ही सहायता से उस ने इन सोने की तख्तियों पर अंकित इतिहास का अंगरेजी में अनुवाद किया. बाद में स्मिथ का यह तथाकथित प्राचीन इतिहास प्रकाशित हुआ, जिसे उस ने उस देवदूत के नाम पर ‘द बुक औफ मौरमौन’ नाम दिया. उसी साल उस ने एक चर्च की भी स्थापना की, जो बकौल स्मिथ सब से प्रारंभिक ईसाई गिरजाघर था और इस गिरजाघर के अनुयायियों को स्मिथ ने ‘लैटर डे सैंट्स’ या ‘मौरमौन’ नाम दिया.

क्या है मौरमौन

मौरमौन पंथ के अनुयायी दरअसल ईसाई ही हैं, पर इन की कुछ विचारधाराएं ईसाईयों से अलग हैं. ये बाइबिल को मानने के साथसाथ दूसरे धर्मग्रंथ ‘बुक औफ मौरमौन’ में भी विश्वास रखते हैं. दूसरे महाद्वीपों के मुकाबले मौरमौन संस्कृति का प्रभाव उत्तरी अमेरिका में ही देखने को मिलता है. हालांकि ये अमेरिका से बाहर बड़ी संख्या में बसे हुए हैं.

इन का मुख्य केंद्र अमेरिका के उटा में है. अमेरिका की मुख्यधारा में शामिल हो चुके मौरमौंस में गोरे अमेरिकी लोगों के अलावा अफ्रीका, ब्राजील और कैरेबियन देशों के कुछ लोग भी शामिल हैं.

मौरमौंस परिवार बढ़ाने और पीढ़ी दर पीढ़ी रिश्तों को बनाए रखने में विश्वास रखते हैं. इन का मानना है कि ये रिश्ते मुत्यु के बाद भी अनंतकाल तक जुड़े रहते हैं. मौरमौंस की एक खास बात यह भी है कि इन का एक ‘हैल्थ कोड’ होता है जिस का पालन करते हुए ये शराब, सिगरेट या अन्य नशीली चीजों से दूर रहते हैं.

मौरमौन पंथ के अनुयायी एक से ज्यादा शादियां करना धार्मिक कर्तव्य मानते थे परंतु 1878 में यू. एस. सुप्रीम कोर्ट ने धर्म की आड़ में एक से ज्यादा शादी करने पर रोक लगा दी थी. इस के बाद भी मौरमौंस में एक से ज्यादा शादी करने का सिलसिला नहीं रुका. 1904 के बाद इस में कमी तब आई जब जोसेफ स्मिथ ने इस पर रोक लगाने के लिए दूसरा मैनिफैस्टो जारी किया. यह बात और है कि बाद में जोसेफ स्मिथ पर 40 बीवियां रखने और उन का यौन शोषण करने का आरोप लगा.

भोगविलास में बीता जीवन

1831 में स्मिथ अपने अनुयायियों को ले कर अमेरिका के पश्चिमी भाग में स्थित मिसूरी नामक स्थान पर जा कर बस गया, जहां वह अपने अनुयायियों की एक बस्ती बसाना चाहता था, जो उस के बनाए कानूनों पर चलें और जिन का वह एकमात्र शासक हो. इस काम के लिए वह स्थानीय राजनीति को भी हथियाना चाहता था. यहां से स्मिथ ने अपने चर्च के प्रचार के लिए अमेरिका के विभिन्न भागों में अपने मिशनरी भेजने शुरू कर दिए. यहां रहने के दौरान वह अकसर अपने धार्मिक इलहामों के बारे में लोगों को बताता रहता था, जो पुस्तकाकार में भी प्रकाशित होते रहते थे. यहां पर उस ने एक शानदार चर्च भी बनवाना शुरू कर दिया. इस बीच अपने पंथ के एक बैंक की स्थापना भी कर डाली.

लेकिन चर्च बनवाने तथा स्मिथ के भोगविलास में इतना पैसा खर्च हुआ कि मौरमौन बैंक फेल हो गया. इस के अलावा स्थानीय लोगों का आक्रोश स्मिथ के अनुयायियों के खिलाफ इतना ज्यादा भड़क गया कि वहां आए दिन दोनों गुटों के बीच हिंसक घटनाएं घटने लगीं. अंतत: स्मिथ को यह स्थान छोड़ कर नौवू (इलिनौय) जाना पड़ा, जहां उस ने फिर से एक नई बस्ती बसाई. इस नई बस्ती का धार्मिक तथा राजनीतिक नेतृत्व पूरी तरह से स्मिथ के हाथ में आ गया था. उस के अनुयायी उसे मोजेज तथा एलीजा के समकक्ष ही एक मसीहा के रूप में उस की आराधना करने लगे.

काला चिट्ठा

1844 में स्मिथ तथा नौवू सिटी कौंसिल ने, जो पूरी तरह से स्वयं स्मिथ तथा उस के अनुयायियों के कब्जे में था, एक अखबार के दफ्तर को पूरी तरह से नष्ट कर डाला. इस अखबार का कुसूर केवल इतना था कि उस ने स्मिथ तथा उस के दूसरे प्रमुख साथियों के भोगविलास का काला चिट्ठा छाप दिया था. इस घटना ने मिसूरी की तरह यहां के लोगों को भी स्मिथ तथा उस के अनुयायियों के खिलाफ भड़का दिया. दंगेफसाद इस कदर बढ़े कि स्मिथ को जेल में डाल दिया गया. इतना ही नहीं, क्रोधित भीड़ ने जेल के भीतर घुस कर स्मिथ की हत्या कर दी. और इस तरह कुल 39 साल की उम्र में स्मिथ इस दुनिया को अलविदा कह गया.

स्मिथ के जीवनकाल में ही उस के अनेक भक्त उस के भोगविलास के कारण मौरमौन पंथ से अलग हो गए. यह भी कहा जाता है कि जब स्मिथ ने अपने अनुयायियों की बीवियों तथा उन की अबोध बच्चियों को भी अपनी हवस का शिकार बनाना शुरू कर दिया था, तो उस के कुछ करीबी लोगों समेत अनेक भक्तों ने भी उस का विरोध करना शुरू कर दिया था. तब इस अशोभनीय स्थिति से बाहर निकलने के लिए स्मिथ ने बहुपत्नी प्रथा को स्वयं भगवान का आदेश बता कर उस की पैरवी करनी शुरू कर दी थी. वह अकसर कहने लगा था कि वह तो केवल उन महिलाओं के उद्धार के लिए उन्हें अपनी पत्नियों के रूप में स्वीकार कर रहा है. उन के साथ उस के यौन संबंध नहीं हैं.

स्मिथ की यह पूरी जीवनगाथा पढ़ कर आप को शायद ओशो रजनीश की याद आ जाए. ऐसा लगता है कि स्मिथ के जीवन से प्रभावित हो कर ही रजनीश ने भी अमेरिका में बस कर एक स्वयंभू स्वामी बनने की कोशिश की थी, लेकिन स्मिथ की ही तरह उन्हें भी स्थानीय लोगों के घोर विरोध के कारण अमेरिका से भाग कर स्वदेश लौटना पड़ा. गनीमत सिर्फ इतनी है कि वह स्थानीय लोगों की हिंसा का शिकार होने से बच गया.

इस बात में कोई संदेह नहीं कि स्मिथ अपने बुद्धिकौशल तथा आकर्षक व्यक्तित्त्व के कारण अमेरिका के धार्मिक इतिहास में आज भी सब से ज्यादा प्रभावशाली नेता माना जाता ह

सच की आलोचना क्यों

हाल ही में चीनी मूल की विवादास्पद अमेरिकी लेखिका ऐमी चाऊ की पुस्तक ‘द ट्रिपिल पैकेज’ प्रकाशित हुई है, जो उन्होंने अपने यहूदी पति जेड रूबेनफेल्ड के साथ मिल कर लिखी है. इस पुस्तक में ऐमी ने इस बात पर बल दिया है कि अमेरिका में बसे कुछ जातीय अथवा धार्मिक समूह दूसरे लोगों के मुकाबले अधिक प्रगति कर पाए हैं. इन

8 समूहों की सूची में उन्होंने चीनियों को सब से ऊपर रखा है. उन के बाद यहूदी, भारतीय, ईरानी, लेबनानी, नाइजीरियन, क्यूबन तथा मौरमौन लोगों का नाम आता है.

उन के अनुसार, इन जातीय समूहों में 3 खास विशेषताएं देखने को मिलती हैं. पहली विशेषता है उन की यह भावना कि वे दूसरे लोगों से कुछ खास हैं, दूसरी वे हमेशा अपनेआप को असुरक्षित महसूस करते हैं और इसीलिए वे हमेशा कुछ न कुछ नया करते रहते हैं. इन समूहों की तीसरी विशेषता है अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखने की योग्यता. अपनी इन 3 विशेषताओं के कारण ये 8 समूह बराबर हमेशा आगे बढ़ते रहने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं.

ऐमी चाऊ का मानना है कि 7 अन्य जातीय समूहों की तरह मौरमौन धर्म के अनुयायी अपनेआप को दूसरों से श्रेष्ठ मानते हैं और इस विशाल देश में संख्या में अपेक्षाकृत कम होने के कारण वे दूसरों के मुकाबले अधिक असुरक्षित महसूस करते हैं. यही असुरक्षा की भावना एक संयमित मनोस्थिति के कारण उन की प्रगति का कारण बन जाती है. यही वजह है कि मौरमौन लोगों में अनेक सफल राजनीतिज्ञ, व्यापारी, गायक, अभिनेता तथा खिलाड़ी पैदा हुए हैं. इन में मिट रोमनी तथा उटाह के 16वें गवर्नर जौन हंट्समैन जैसे राजनीतिज्ञ, स्टीव यंग जैसे खिलाड़ी, जौन हैडर जैसे अभिनेता, कैमरीन डे जैसी अभिनेत्री, डोनी व मैरी ओसमौंड जैसी गायिकाएं तथा मैरियट होटलों के मालिक जौन विलार्ड जैसे अनेक व्यापारी शामिल हैं.

पादरियों पर लगे आरोप

कैथोलिक चर्च के पादरियों द्वारा बच्चों तथा महिलाओं के यौन शोषण के अनगिनत किस्से बरसों से सामने आते रहे हैं और अब न्यूयौर्क के येशीवा हाईस्कूल के 19 पुराने छात्रों ने स्कूल के 2 यहूदी रैबियो के खिलाफ एक अदालत में मुकदमा दायर कर के उन पर यह आरोप लगाया है कि वे बरसों तक उन का यौन शोषण करते रहे. इन छात्रों ने अपनी शिकायत में यह भी स्पष्ट किया है कि जब वे स्कूल में पढ़ते थे, तो उस समय भी उन्होंने स्कूल के उच्च अधिकारियों से इन धर्म गुरुओं के खिलाफ शिकायत दर्ज की थी, लेकिन स्कूल की बदनामी के डर से इन्हें स्कूल से नहीं हटाया गया.

धर्म तो एक बहाना है…

अगर केवल कल में झांक कर देखें तो धर्म के नाम पर भोगविलास तथा आपराधिक गतिविधियों में लिप्त इन तथाकथित ‘गौडमैन’ की सूची शैतान की आंत की तरह लंबी होती चली जाएगी. इस सूची में जुड़ने वाला पहला नाम जो दिमाग में आता है, वह है डेरा सच्चा सौदा के संस्थापक गुरमीत राम रहीम सिंह का, जिस की गतिविधियों का मुख्य केंद्र हरियाणा के सिरसा नामक स्थान पर है और जिस पर बलात्कार तथा हत्या जैसे घिनौने अपराधों के लिए मुकदमे चलाए जा रहे हैं. उत्तर भारत ही क्या दक्षिण भारत भी इस दौड़ में पीछे नहीं है. केरल के शक्तिशाली माता अमृतानंदमयी मठ पर उन्हीं के एक पूर्व भक्त गेल ट्रेडवेल ने अपनी लिखी एक पुस्तक में मठ के भीतर चल रहे यौन शोषण का रहस्योद्घाटन किया है.

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न्यूडिटी में वल्गैरिटी नहीं : आमिर खान

49 वर्षीय आमिर खान ने अपने फिल्मी कैरियर में बाल कलाकार से ले कर अभिनेता, निर्माता, निर्देशक, पटकथा लेखक, गायक आदि सभी में अपना हुनर दिखाया. वे अपनी हर फिल्म को चुनौती मानते हैं. हर किरदार को परदे पर पूरी तरह उतारना चाहते हैं. इसीलिए फिल्म की शूटिंग शुरू होने से 5-6 महीने पहले से पूरी तैयारी करते हैं ताकि सैट पर जाने से पहले हर सीन याद हो जाए.

आमिर खान की एक खूबी यह भी है कि वे फिल्म के प्रमोशन के वक्त फिल्म की कहानी को जरा भी लीक नहीं करते ताकि दर्शकों की फिल्म में रुचि बनी रहे और वे सिनेमाहौल तक जाएं. प्रस्तुत हैं, फिल्म ‘पीके’ को ले कर हुई उन से गुफ्तगू के अहम अंश :

फिल्म ‘पीके’ के पोस्टर को ले कर कई बार कंट्रोवर्सी हुई. क्या आप ने जानबूझ कर ऐसा पोस्टर निकाला? क्या आप इस कंट्रोवर्सी के लिए तैयार थे?

इसे ‘की आर्ट’ कहा जाता है. यह फिल्म के भाव को दिखाता है. किसी भी फिल्म को ‘की आर्ट’ के द्वारा ही दर्शकों को देखने के लिए प्रेरित किया जाता है. ‘तारे जमीं पर’ फिल्म में एक बच्चे को क्लासरूम मेज पर बैठा दिखाया गया और पीछे मैं बैठा था. इस से टीचर और बच्चे की पूरी कहानी का आभास हुआ. ‘पीके’ के इस पोस्टर की आलोचना होगी, यह मुझे पता था पर भरोसा था कि दर्शकों को समझ होगी. पहला इंप्रैशन हमेशा प्रभावशाली होता है. उस के बाद कई पोस्टर निकाले गए पर लोग इसी पोस्टर की आलोचना कर रहे हैं. ऐसा पोस्टर फिल्म की पब्लिसिटी के लिए नहीं, बल्कि कहानी के आभास के लिए निकाला गया.

आप ‘सौ करोड़’ क्लब को किस तरह लेते हैं?

हर फिल्म अलग होती है. फिल्म ‘पिपली लाइव’ की ‘थ्री ईडियट’ के साथ तो फिल्म ‘धोबी घाट’ की ‘गजनी’ के साथ तुलना नहीं की जा सकती. अगर आप ने करोड़ रुपया लगाया है तो उस से अधिक पाने की इच्छा होती है. कलैक्शन के आधार पर फिल्म की गुणवत्ता नहीं आंकी जाती. ‘पीके’ यूनिवर्सल फिल्म है, जो सभी छोटेबड़े गांवों, शहरों, कसबों के दर्शकों के लिए है. कलैक्शन के आंकड़े 99% गलत होते हैं. इन्हें बढ़ाचढ़ा कर लिखा जाता है. इन की प्रामाणिकता को सटीक आंकने के लिए अमेरिका की तरह ‘रेन ट्रैक कंपनी’ भारत में भी होनी चाहिए जिस के आंकड़े सही हों.

मुझे याद नहीं कि पहले की फिल्मों में ऐसी समस्या थी. मेरी पसंदीदा फिल्में ‘प्यासा’ और ‘मुगलेआजम’ हैं. इन का हर सीन मुझे अभी भी याद है. लेकिन तब किसी ने उन के कलैक्शन के बारे में नहीं सोचा था.

फिल्म के चरित्र को सजीव बनाने के लिए किस तरह का प्रयास करते हैं?

हर फिल्म के लिए मेरा प्रयास अलग होता है. मैं रियल लाइफ के औब्जर्वेशन इकट्ठा करता हूं. फिर लोगों से मिल कर उन की प्रवृत्ति को समझने की कोशिश करता हूं. जब मैं ने ‘थ्री ईडियट’ फिल्म में 18 साल के लड़के की भूमिका निभाई तो वह मेरे लिए बड़ी चुनौती थी. 44 साल का हो कर मैं ने 18 साल के लड़के के हावभाव दर्शाए. इस के लिए मैं ने उस उम्र के बच्चों के साथ समय बिताया. जब फिल्म सैट पर जाती है तब तक मैं पूरी तरह से वैसा ही बन जाता हूं. क्रिएटिव इंसान के मन में जो कुछ होता है अगर वह उसे खुल कर सामने ला पाता है तो ही क्रिएटिविटी दिखती है. मैं प्रैशर में काम नहीं कर सकता. यही वजह है कि टीवी पर धारावाहिक ‘सत्यमेव जयते’ भी हिट रहा. सारे शो मैं ने पूरी रिसर्च के बाद प्रस्तुत किए. फिल्म हो या शो, तभी सफल होता है जब आप ईमानदारी से उस के भाव को दिखा पाएं, दर्शक उसे ठीक से समझ पाएं. आजकल न्यूडिटी और वल्गैरिटी में अंतर कर पाना मुश्किल हो गया है. न्यूडिटी में वल्गैरिटी नहीं होती. क्या आप को बच्चा वल्गर लगता है?

आप को परिवार की तरफ से कितना सहयोग मिलता है?

मेरी अम्मी का असर मुझ पर बचपन से है. वे मेरी हर फिल्म देखती हैं. अगर फिल्म में आलोचना की बात दिखे तो आलोचना भी करती हैं. उन्हें ‘पीके’ फिल्म बहुत पसंद आई. मेरे बच्चे भी मेरी हर फिल्म देखते हैं.

फिल्मों की सफलता में क्रिटिक की क्या अहमियत है?

क्रिटिक की अहमियत होती है, लेकिन कई बार यह भी देखना पड़ता है कि क्रिटिक किस मूड में फिल्म देख रहा है. इस के अलावा हर व्यक्ति फिल्म का टिकट खरीद कर मनोरंजन के लिए जाता है. अगर वह फिल्म उसे पसंद नहीं आती तो गलती हम से हुई है. हम कहानी को ठीक तरह से दर्शकों तक नहीं पहुंचा पाए हैं. क्रिटिक दर्शक है, जो लिख कर हमें बताता है कि फिल्म कैसी लगी. वह कभी सहमत होता है तो कभी नहीं.

स्वच्छता अभियान से जुड़ कर क्या करने की इच्छा है?

स्वच्छता अभियान में शामिल होना मेरे लिए अच्छी बात है. इस से न केवल भारत सुंदर होगा, बल्कि स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी दूर होंगी. फिर इस से कई लोगों को काम भी मिलेगा. आर्थिक लाभ भी होगा.

‘लव जिहाद’ को ले कर कई राज्यों में चर्चा है. आप इस से कितना सहमत हैं?

किसी भी धर्म के 2 बालिग व्यक्ति अपने मनमुताबिक शादी का निर्णय ले सकते हैं. यह संविधान भी चाहता है. किसी धर्म या जाति का इस से कुछ लेनादेना नहीं होना चाहिए.

कुछ समय अपने लिए

आज की भागतीदौड़ती जिंदगी में आप चाहती हैं आराम के दो पल. हम यहां आप को कुछ ऐसे तरीके बता रहे हैं, जिन के जरीए आप अपने शरीर को इन पलों में पूर्ण आराम दे सकेंगी.

फिश थेरैपी

फिश थेरैपी भारत में कुछ अरसा पहले ही आई है. इस के बारे में सुन कर आप के दिमाग में अजीबोगरीब विचार आ रहे होंगे, लेकिन आप विचारों में न उलझिए, क्योंकि फिश थेरैपी पैरों की मृत त्वचा को अलग कर पैरों को आराम देने और उन्हें खूबसूरत बनाने का एक नया तरीका है. इस में पैरों को गररा रूफा प्रजाति की मछलियों से भरे टब में डुबोया जाता है. ये तुर्की की खास मछलियां हैं, जो मृत त्वचा को खा लेती हैं. ये आप को हलकी सी चुभन के साथ आराम का भी एहसास कराती हैं. इन दांतरहित मछलियों के अटैक के बाद यह एहसास होगा कि पैरों में जान आ गई है. बस इस के बाद पैडीक्योर और फुट मसाज लें ताकि प्रैशर पौइंट्स के जरीए भी आराम मिल सके.

बैंबू मसाज

20 मिनट की नींद के बाद आप को बैंबू मसाज के लिए जगाया जाता है. बांस का नाम सुन कर घबराने की जरूरत नहीं है. इस में शरीर की अच्छी तरह मसाज कर के उस के ऊपर बांस की गोल छड़ों को रोल किया जाता है ताकि मांसपेशियों को आराम मिल सके. बांस की छड़ों को कुछ समय गरम पानी में रखने के बाद उपयोग में लाया जाता है.

वाइन फेशियल

पूरे शरीर का वजन उठाने वाले पैरों को आराम देने के बाद आप चेहरे की अनदेखी कैसे कर सकती हैं. अगर आप की त्वचा तैलीय है, तो वाइन मसाज आप के लिए ही है. इस की क्लींजिंग, स्क्रबिंग और मसाज बिलकुल अलग अनुभव होगा. मसाज के दौरान चेहरे पर वाइन क्रीम के ग्रैन्यूल्स यानी छोटेछोटे दानों को भी आप महसूस कर पाएंगी. सारी प्रक्रिया के बाद 20 मिनट तक पैक लगाए रखने के दौरान ली गई नींद सुकून को चरम देने के लिए काफी है.

कैंडल मसाज

इस में बौडी मसाज के लिए तेल और खुशबूदार स्पा कैंडल का प्रयोग होता है. सोयाबीन कैंडल को पिघला कर उस में पौधे से बना औयल मिलाते हैं. इस के बाद इसे लोशन जैसा चिकना कर बौडी परलगाया जाता है. फिर उचित स्ट्रोक के साथ प्रैशर पौइंट्स पर दबाव देते हुए मसाज की जाती है.

प्रैग्नेंसी मसाज

गर्भवती महिलाओं में पीठ का दर्द और तनाव जैसी समस्याओं में बढ़ोतरी के कारण पै्रग्नेंसी मसाज करवाने वालों की संख्या में इजाफा हो रहा है. इस में बटक मसाज, थाई मसाज व बैक मसाज होती है.

मसाज और्गेनिक औयल व मौइश्चराइजर का प्रयोग कर के हलके हाथों से की जाती है. लेकिन यह मसाज फिजियोथैरेपिस्ट या अपने डौक्टर की सलाह ले कर करवाएं. इस से डिलीवरी के दौरान मांसपेशियों पर पड़ने वाले दबाव को सहन करने की शक्ति भी मिलती है. मसाज आप को आराम देने के साथ ही शरीर में खून के संचार को भी बढ़ा देती है, जिस से आप खुद को पहले से ज्यादा तरोताजा महसूस करेंगी.

व्यंजन गार्निश करें ऐसे

दालसब्जियों की गार्निशिंग

दाल और सब्जियों की गार्निशिंग करते समय उन के कलर का ध्यान रखें. मूंग की दाल को धनियापत्ती, लौंग, इलायची व जीरे के तड़के से सजाएं तो उरद की दाल पर क्रीम डालें अथवा कद्दूकस किया चीज बुरक दें. हरे रंग की ग्रेवी वाली सब्जियों को कद्दूकस किए चीज या पनीर से सजाएं.

ग्रीन व रैड करी वाली सब्जियों को ताजे फेंटे दही या फै्रश क्रीम से भी सजाया जा सकता है.

लंबे कतरे प्याज और लंबाई मेें कटे टमाटरों के कतलों से भी ग्रीन करी को सजाया जा सकता है.

तेल या घी में हींग, जीरा, साबूत मिर्च व लहसुन का तड़का तैयार करें. उसे कढ़ी, व्हाइट ग्रेवी व दाल पर ऊपर से डालें.

पीली दाल को भुने लाल प्याज से भी सजाया जा सकता है.

चावल की गार्निशिंग

तले हुए ड्राइफ्रूट्स जैसे काजू, बादाम आदि को पुलाव पर डालें. देखने में सुंदर और खाने में स्वादिष्ठ लगेगा.

लंबाई में कटे प्याज के कतरों को भूरा होने तक फ्राई कर के रख लें. फिर चावलों के ऊपर डालें और सर्व करें.

टमाटर व शिमलामिर्च के स्लाइसों से भी चावलों को गार्निश कर सकती हैं.

सेम के बीजों को तल कर रख लें. उन्हें उबले चावलों पर बुरकिए, चावल सुंदर लगेंगे.

बेसन के गट्टों से अथवा कटहल के मसालेदार टुकड़ों से भी चावलों को सजाया जा सकता है.

कश्मीरी पुलाव के लिए मीठे चावलों में खूब सारे कटे अंगूर, किशमिश, बादाम व केसर डालें. सुंदर भी लगेंगे और स्वादिष्ठ भी.

मीठी चीजों की गार्निशिंग

स्वीट डिश यानी खीर, कस्टर्ड आदि को अनार के दानों, कटे फलों और गुलाब की पंखुडि़यों से सजाएं.

स्वीट डिश को बारीक कटे ड्राइफ्रूट्स, गुलाबजल में घुटे केसर, पिसी हुई दालचीनी, छोटी इलायची आदि से गार्निश करें.

स्वीट डिश की गार्निशिंग के लिए जैम, जेली, पेठे की रंगबिरंगी टुकडि़यां प्रयोग में लाएं.

ब्रैड क्रंब्स में कांप्लान, हौर्लिक्स, माल्टोवा आदि मिला कर स्वीट डिश को गार्निश करें.

चौकलेट, सौस, स्ट्राबैरी सौस, चौकलेट के टुकड़ों, जैम की गोलियों आदि से भी सजावट की जा सकती है.

हनीमून संजोएं यादों के पल

ख्वाबों के सच होने की रुत, मुहब्बत के एहसास में भीग जाने का मौसम, किसी को पा लेने, किसी के हो जाने का एहसास, काश, हनीमून पर बिताया हर लमहा यादगार बन जाए. कुछ ऐसा ही एहसास होता है जब वक्त बीतता जाता है और मन करता है कि पिया के साथ बिताए उन हसीन लमहों को मुट्ठी में कैद कर लें.

अरे, तो फिर कर लीजिए न कैद, मना कौन करता है? यह इतना मुश्किल भी नहीं है, हनीमून पर जाने वाले दंपती कुछ बातों का खयाल रख और कुछ तरीके अपना कर इस पल को यादगार बना सकते हैं. आइए जानें, इस के लिए कुछ खास टिप्स:

हनीमून के दौरान एकदूसरे को ‘जानू’, ‘जान’, ‘स्वीटू’, ‘हब्बी’ जैसे निक नेम दें. बहुत साल बाद भी जब आप एकदूसरे को इन नामों से पुकारेंगे तो इन नामों के नामकरण का स्थान जरूर याद आएगा.

अपने हनीमून पर कोई चीज, जो आप को पसंद है पर आप के साथी को नहीं, वह छोड़ देने का वादा ले लें या फिर कोई ऐसी कौमन चीज, जो आप नहीं खाते, खानी शुरू कर दें. इस के बाद जब भी आप वह चीज खाएंगे, तो हो न हो, आप को अपना हनीमून जरूर याद आएगा.

एकदूसरे से कुछ वादा करें, लेकिन शादी के बाद किया यह वादा तोड़ने के लिए नहीं बल्कि निभाने के लिए होना चाहिए, क्योंकि हजारों तोड़े गए वादों के बीच यही एक वादा होगा, जो आप के पुराने प्यार की यादें ताजा कर तोड़े गए वादों की कड़वाहट भुला देगा.

स्टेट बैंक में काम करने वाले अशोक का कहना है कि हम अपने हनीमून पर नैनीताल गए थे. वहां मेरा एक बहुत अच्छा दोस्त बना. आज भी हमारी और उस की फैमिली जब भी मिलते हैं तो नैनीताल की यादें ताजा हो जाती हैं.

आप के हनीमून सुईट्स के पास कुछ और हनीमून कपल भी ठहरे होंगे. उन सभी से भी घुलमिल कर बातें करें. क्या पता वहां आप को कोई ऐसा दोस्त मिल जाए, जिस से आप की गहरी दोस्ती हो जाए. फिर आप चाहें तो भी अपना हनीमून नहीं भूल सकते, क्योंकि वहां आप को अपना सब से प्यारा दोस्त जो मिला था.

यादों को संजोने का एक तरीका मीनाक्षी अग्रवाल ने बताया, ‘‘अगर आप के हसबैंड की मूंछें हैं, तो हनीमून पर उन्हें क्लीन शेव करा दें. जब आप लौट कर घर आएंगे तो आप तो क्या, पूरा घर शायद कभी यह बात न भूल पाए. ऐसा ही कुछ मेरे साथ हुआ. ऐसी ही कुछ छोटीमोटी यादें होती हैं, जो कई साल बाद भी हमें भीतर तक गुदगुदा जाती हैं.’’

हनीमून को यादगार बनाने के लिए कैमरा साथ ले जाएं. कैमरा ऐसा हो जिस में समय और दिनांक भी सेव हो सके. अपने साथी को बिना बताए उस के कुछ ऐसे खुशनुमा पलों के फोटो खींचें जिन्हें बाद में देख कर वह चौंक जाए.

हनीमून के लिए किसी ऐसी जगह पर जाएं, जहां जाने का ख्वाब आप के साथी ने हमेशा से देखा हो. ऐसा करते समय एक बात अवश्य ध्यान में रखें कि यह हनीमून ट्रिप साथी के लिए सरप्राइज गिफ्ट होनी चाहिए ताकि यह ट्रिप वह जिंदगी भर न भुला सके.

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