हम तो बराती हैं मेरे भैया

बराती बनना एक कला है तथा हर भारतीय व्यक्ति इस कला का दक्ष कलाकार. बराती बनते ही आम भारतीय का मन हिरन की भांति कुलांचे भरने लगता है और महिलाएं तो चर्चा के दौरान यह कहते हुए कि आज शाम एक बरात में जाना है, अपनेआप को गौरवान्वित महसूस करती हैं. शादी के मौसम में दफ्तरों में तो अनेक बाबुओं/अधिकारियों का लंच टाइम वगैरह तो शहर के रईसों की बरातीय व्यवस्था का तुलनात्मक अध्ययन करने और बहसमुबाहिसों में ऐसे मजे से गुजरता है कि यू.पी.ए. सरकार का भी पिछले 4 वर्षों में क्या गुजरा होगा. बराती बनना अर्थात सामान्य से विशिष्ट बनना. घोड़ी के पीछे बरात में विचरण करना तो हर किसी को आम से खास का दर्जा दिलवाता है.

भारतवर्ष में प्रत्येक व्यक्ति को मौलिक अधिकार प्राप्त हैं. उन में कुछ अघोषित अधिकार भी हैं. जैसे सड़क पर गंदगी करना, सार्वजनिक स्थान पर पान की पीक मारना, स्वयं की खुशी का इजहार ऐसे करना कि दूसरे दुखी हो जाएं. इसी तर्ज पर हमें एक और मौलिक अधिकार अनाधिकारिक रूप से प्राप्त है और वह है बराती होने का अधिकार. बराती बनना सिखाया नहीं जाता. यह गुण तो व्यक्ति नैसर्गिक रूप से अपने साथ ले कर पैदा होता है.

बराती होने की कुछ अर्हताएं होती हैं, जो या तो जन्मजात होती हैं या फिर अनुभवी बरातियों से सीखी जा सकती हैं. बराती बनने हेतु आप के पास 2 जोड़ी इस्तिरी किए हुए कपड़े होना प्राथमिक शर्त है, तो घोड़ी या बग्घी के सामने अपनी हैसियत से बढ़ कर नाचना बराती बनने की दूसरी शर्त. नागिन नाच नाचने वाले बराती ऊंची किस्म के माने जाते हैं तथा बरात में इन्हें विशिष्ट दर्जा भी प्राप्त होता है.

आजकल बरातियों के सिर पर साफे बांध कर उन्हें उच्च प्रजाति का बराती बनाने का चलन जोरों पर है. जिस मध्यवर्गीय बाबू के जीवन का सूरज टेबल पर पड़ी फाइलों में ही उदय और अस्त होता आया हो और दफ्तर से घर पहुंच जिस व्यक्ति ने रोजर फेडरर के अंदाज में सांझ के समय पाजामेबनियान में रैकेट हाथ में ले सिर्फ मच्छर मारे हों और जो व्यक्ति सब्जीमंडी में लौकी, तुरई वगैरह का मोलभाव करने हेतु प्रसिद्धि के शिखर पर पहुंचा हो, ऐसे व्यक्ति के सिर पर यदि गुलाबी रंग का साफा बांध दिया जाए, तो सोचिए उस की स्थिति क्या होती होगी और गुलाबी साफे का बोझ संभालने हेतु उसे अपने व्यक्तित्व से क्याक्या लड़ाई लड़नी पड़ती होगी. सदा कमान की तरह झुकी रहने वाली कमर इस साफे की अहमियत जान कर एकदम सीधी हो जाती है.

सच्चा बराती वह है, जो बरात चलने के दौरान बीचबीच में टै्रफिक कंट्रोल का कार्य भी पूरी निपुणता से करता है. हर बरात में 2-4 ऐसे स्वयंसेवी बराती होते हैं, जो बिना किसी के आदेश के सुचारु आवागमन हेतु निर्देश देते रहते हैं.

आदर्श बरात में पहले होता है बैंड, उस के पीछे घोड़ी, उस पर दूल्हा और उस के पीछे महिला और पुरुषों का इत्रमय हुजूम. इन सब के आगे होता है बरात का महत्त्वपूर्ण बराती, जो पटाखे धारण करने का कार्य करता है तथा महत्त्वपूर्ण अवसरों पर अगरबत्ती की सहायता से पटाखे चलाचला कर ध्यानाकर्षण प्रस्ताव लाता रहता है. कुछ बराती सांकेतिक भाषा में भौंहें उचका कर ‘व्यवस्था क्या है’ वाली बात कर लेते हैं तथा बीचबीच में सुरापान हेतु अदृश्य भी होते रहते हैं.

बरात जब लड़की के द्वार पर पहुंचती है तो वहां बराती का बराती गुण अपने शबाब पर होना जरूरी होता है. द्वार पर अधिकाधिक नृत्य प्रदर्शन करना अच्छी बरात होने का प्राथमिक लक्षण माना जाता है. बरात को दरवाजे के भीतर धकेल कर लड़की का बाप यह जान लेता है कि पहली लड़ाई उस ने जीत ली है. अब 7 फेरों से ले कर विदाई तक बरात संभल जाए तो ठीक नहीं तो राम ही राखेगा हमेशा की तरह.

यह तो शिक्षा के सिद्धांत के विरुद्ध है

शिक्षा मंत्री स्मृति ईरानी ने गुजरात मौडल के तिथि भोजन को देश भर में लागू कराने की योजना बनाई है. इस योजना के अंतर्गत स्कूली बच्चों को लोग किसी खास अवसर पर खाना खिलाते हैं. यह अवसर उन के बच्चों के जन्मदिन व परीक्षा में विशेष स्थान पाने आदि के उपलक्ष्य में हो सकता है. स्मृति ईरानी का कहना है कि यह भोजन बच्चों में आपसी प्रेम, स्कूलों के अभिभावकों में संवाद और बराबरी का एहसास आदि पैदा करता है.

असल में यह मुफ्त का भोजन पंडों को भोजन कराने की परंपरा को और मजबूत बनाना है. खुशी के अवसर पर मित्र संबंधी मिल कर खाना खाएं यह तो ठीक है, क्योंकि खुशी का खाना एकएक कर के हरेक के घर में हो ही जाता है. पर स्कूली बच्चों की भारी संख्या को खाना खिलाना हरेक के बस में नहीं होता. यह काम कुछ लोग करेंगे और बाकी बच्चे गरीब भिखारियों की तरह खाएंगे.

यह धर्मों की संस्कृतियों का कमाल है कि वे भक्तों से खाना ही नहीं कपड़े, ऐश का साधन और आमतौर पर लड़कियां और औरतें भी वसूल लेते हैं. लेकिन फिर भी उन के धर्म गुरु एहसान करते हुए गुर्राते हैं. स्मृति ईरानी इस परंपरा को सरकारी कार्यक्रम की शक्ल दे रही हैं. दोपहर का भोजन जो पिछली सरकारें दे रही थीं, वह पुण्य कमाने का हिस्सा नहीं है. वहां हरेक बच्चे का हक होता है खाना पाने का. उस में कोई दानी या दाता नहीं होता और पाने वाला याचक या भिखारी नहीं होता.

यह मुफ्त का खाना है, जो कई धर्मों में बांटा जाता है पर यह धर्म का काम करने के नाम पर किया जाता है और इस का मतलब ईश्वर को खुश करना होता है ताकि या तो इस जीवन में या अगले जीवन में कुछ अच्छा फल मिले. धर्मों ने यह सब तरहतरह के चमत्कारों की झूठी कहानियां फैला कर कायम किया है.

किट्टी पार्टी में भी एक जना सब को खिलाता है पर चूंकि बारीबारी सब यह खाना खिलाते हैं, यह दान नहीं होता. तिथि भोजन केवल और केवल दान होगा. यह शिक्षा के सर्वमान्य सिद्धांत के विरुद्ध है. यह धार्मिक संस्कृति का अंग है.

भारतीय जनता पार्टी धर्म के रथ पर चढ़ कर जीती है पर जीवन के हर अंश में इसे थोपा जाए यह शर्मनाक है.

वोट के नाम पर यह कैसी चोट

औरतों को किसी भी साधुसंत के प्रवचन में बड़ी संख्या में देखा जा सकता है. घर वालों को पंडेपुजारी, पादरी, मुल्ला समझाते हैं कि धर्म सही शिक्षा देता है, सद्व्यवहार सिखाता है, शांति लाता है. पर असल में होता है उलटा ही. जितना क्लेश धर्म के कारण होता है उतना और किसी वजह से नहीं.

भारी सीटें जीतने के बाद भी नरेंद्र मोदी संसद से घबराए हैं, क्योंकि उन की एक चेली निरंजन ज्योति, जो अपनेआप को साध्वी कहती है भगवा कपड़ों में भजभज मंडली की ओर से उत्तर प्रदेश की एक लोक सभा सीट से जीत कर ही नहीं आई मंत्री पद भी ले गई, ने एक आम चुनावी सभा में असभ्य भाषा का इस्तेमाल किया. यह भाषा है गालियों की, अपशब्दों की, दूसरों को नीचा दिखाने की, धर्म के नाम पर आदमी को आदमी से अलग करने की.

उन्होंने दिल्ली में एक चुनावी सभा में कह डाला कि तय करिए कि अगली दिल्ली विधान सभा रामजादों की बनेगी यानी रामभक्त भाजपाइयों या हरामजादों की. यह शब्द भगवाधारी एक वर्ग विशेष के लिए इस्तेमाल करते हैं, जिसे लिखना भी अपमानजनक माना जाता है. जिन के हम हिंदू सदियों से गुलाम रहे, उन्हें आज गाली दे कर देश कौन सी भड़ास निकालता है, यह तो नहीं मालूम पर ये शब्द न केवल धर्मों के बीच वैमनस्य पैदा करते हैं, बल्कि जबान पर भी चढ़ जाते हैं और लोग आपस में भी ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करने लगते हैं.

भगवा कपड़ा, काला चोला या सफेद कुरता पहनने से लोगों के काले दिल पवित्र नहीं होते, बल्कि यह जताते हैं कि उन के धर्म की व्यावसायिक पोशाक है, जिसे देख कर भक्त लोग अपनी मुट्ठी तो खोल ही दें, मरनेमारने को भी तैयार हो जाएं. गुरमीत रामरहीम सिंह, रामपाल और आसाराम भी इन्हीं की बिरादरी के हैं और इराक में उत्पात मचा रहे इसलामिक स्टेट के आतंकी भी. इन्हें धर्म के नाम पर लूटना है और लूटने के लिए लोगों की मति भ्रष्ट करनी है.

देश के विपक्षी दलों को मौका मिल गया कि भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरा जा सके.

सवाल यह है कि इस तरह के शब्द धर्म के नाम पर जबान पर आते ही क्यों हैं? स्पष्ट है, धर्म के नाम पर एक झूठी काल्पनिक शक्ति को बेचा जाता है और बेचने वाले हर तरह के प्रपंच रचने में कामयाब हो जाते हैं.

सदियों से धर्म के नाम पर राजाओं को दूसरों की हत्याएं करने के लिए भी उकसाया गया है और अपने तथाकथित काल्पनिक ईश्वर या उस के स्वरूप, पुत्र आदि के भवन, मंडप या स्मारक भी बनवाए गए. अगर दूसरों को, विरोधियों को अथवा प्रतिस्पर्धियों को गालियां न दी जाएं तो भक्तों में जोश पैदा नहीं होता. राम मंदिर के नाम पर लालकृष्ण आडवाणी ने देश भर में धर्म का झंडा फहराया था. उस से पहले इंदिरा गांधी ने विदेशी हाथ कह कर वोट बटोरे थे. लालू यादव जैसे भी उन धर्म स्थलों में जाते हैं, जहां केवल छलफरेब है. मायावती ने स्मारकों के नाम पर मंदिर बनवाने की कोशिश की.

ये सब समयसमय पर विरोधियों को उसी भाषा में संबोधित करते हैं, जो निरंजन ज्योति ने इस्तेमाल की और जो घरघर में औरतें व आदमी प्रयोग करते हैं. जेठानियों, देवरानियों, भाभियों, बहुओं के लिए ही नहीं, बहनों, भाइयों तक के लिए इस तरह की भाषा का प्रयोग हो रहा है.

सड़क छाप लोगों द्वारा, वेश्याघरों, नाइट क्लबों में ऐसी भाषा का इस्तेमाल करना आम है पर यह दोस्तों में होती है. मगर अनजान पर ऐसी भाषा के इस्तेमाल करने पर हंगामा खड़ा हो जाता है. औरतें पड़ोसिनों के लिए ऐसी भाषा इस्तेमाल करती हैं पर बंद कमरों में. धर्म वालों को ही यह छूट है कि वे खुली सभाओं में ये शब्द इस्तेमाल करें, क्योंकि उन्हें सुरक्षा की गारंटी रहती है. भक्तों की भीड़ उन्हें रामरहीम, रामपाल, भिंडरावाले जैसों की सुरक्षा दिलाती है.

समाज में सब से ज्यादा गंद ये गालियां फैलाती हैं. औरतों की सुरक्षा में यही आड़े आती हैं. ‘हरामजादे’ शब्द असल में औरत का अपमान है जिस ने बिना विवाह संतान पैदा की. दोष न बच्चे का है न औरत का, है तो उस आदमी का जो औरत के साथ सोया होता है. लेकिन वह तो साफ बच निकलता है. गालियां औरतों और उन के निर्दोष बच्चों को मिलती हैं.

राजनीति अभी नहीं : अपर्णा यादव

समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव का परिवार देश का सब से बड़ा राजनीति परिवार है. एकसाथ विधानसभा, विधानपरिषद, राज्य सभा और लोक सभा में किसी एक परिवार के इतने सदस्य नहीं रहे हैं. मुलायम सिंह के छोटे बेटे प्रतीक यादव की पत्नी अपर्णा यादव ने राजनीति के बजाय समाजसेवा के जरीए जनता की सेवा करने का काम शुरू किया है. वे ‘बी अवेयर’ नामक स्वयंसेवी संगठन के जरीए महिलाओं को उन के अधिकारों और कानूनों की जानकारी देने का काम कर रही हैं. महिलाओं के लिए होने वाले ज्यादातर कार्यक्रमों में पुरुष नहीं दिखते हैं लेकिन जब अपर्णा यादव महिलाओं के लिए कार्यक्रम करती हैं तो महिलाओं के साथसाथ बड़ी संख्या में पुरुष भी शामिल होते हैं.

12 वीं कक्षा तक की पढ़ाई लखनऊ के लोरैटो कौन्वैंट कालेज से और ग्रैजुएशन आईटी कालेज से करने के बाद अपर्णा ने इंटरनैशनल रिलेशनशिप विषय पर इंगलैंड की मैनचैस्टर यूनिवर्सिटी से एमए की डिगरी हासिल की. फिर लखनऊ के भातखंडे संगीत महाविद्यालय से शास्त्रीय संगीत में डिगरी हासिल की. 2010 में उन की शादी मुलायम सिंह यादव के छोटे बेटे प्रतीक के साथ हुई. आज वे डेढ़ साल की बेटी की मां हैं. वे समाजसेवा और स्टेजशोज के जरीए जनता से सीधा संवाद कर रही हैं. वे राजनीति करने के बजाय समाजसेवा से जुड़ कर काम करना चाहती हैं.

साधारण परिवार में पलीबढ़ी अपर्णा ने सब से बड़े राजनीति परिवार के साथ कैसे तालमेल बनाया ऐसे ही और कई सवालों के जवाब अपर्णा ने एक खास मुलाकात के दौरान दिए:

स्कूली शिक्षा के समय आप ने कभी सोचा था कि आप को समाजसेवा के जरीए जनता से जुड़ने का मौका मिलेगा?

मेरे मातापिता ने मुझे डाक्टर बनाने का सपना देखा था. मैं 10वीं कक्षा में जीवविज्ञान विषय से पढ़ाई कर रही थी. इसी दौरान मुझे जीवविज्ञान के प्रैक्टिकल करने पड़े. कई तरह के प्रैक्टिकल थे. एक में मुझे स्लाइड पर अपना ब्लड निकाल कर उस की जांच करनी थी. यह काम करने के बाद मैं बेहोश हो गई. यह बात मेरे मातापिता को पता चली तो उन्होंने फैसला किया कि मुझे आगे की पढ़ाई जीवविज्ञान से नहीं करनी है. फिर 11वीं कक्षा में मैं ने आर्ट्स ले लिया. मेरे पिता ने मुझे बताया कि क्रांतिकारी विचारों के जनक ज्यादातर आर्ट्स के क्षेत्र से ही आए हैं. उसी समय आरक्षण को ले कर जोरदार बहस चल रही थी. केंद्र सरकार में मंत्री रहे दिवंगत अर्जुन सिंह ने आरक्षण को ले कर एक बदलाव किया था. हम सब उस का विरोध कर रहे थे. हम ने पहली बार स्कूल की लड़कियों को साथ ले कर एक बड़ा धरना दिया और नारा दिया ‘गरम जलेबी तेल में अर्जुन सिंह जेल में.’ समाजसेवा के प्रति मेरा रुझान उसी समय से है.

इस समय प्रदेश में आप के परिवार की सरकार है, जो काम आप समाजसेवा के जरीए करना चाहती हैं वह सरकार के जरीए भी तो हो सकता है? अलग रास्ते पर चलने की खास वजह?

एमए की पढ़ाई के दौरान मैं ने महिलाओं की हालत विषय पर अपना रिसर्च पेपर दाखिल किया था. मेरे साथ के कुछ लोगों ने महिलाओं पर एक स्टडी की, जिस में बताया गया कि किसकिस तरह से महिलाओं का समाज में शोषण होता है. उसी समय मैं ने तय किया था कि मैं इस के लिए जागरूकता अभियान शुरू करूंगी. हर काम के लिए हमें सरकार पर आश्रित नहीं होना चाहिए. एनजीओ का काम सरकार और जनता के बीच पुल की तरह काम करने का होता है. मैं 2 माह से कम समय में ही लखनऊ, गोरखपुर, फैजाबाद और लखीमपुर खीरी में महिलाओं के बहुत सारे सेमिनार कर चुकी हूं. महिलाओं का मेरे अभियान के साथ जुड़ना मेरा हौसला बढ़ा रहा है. मैं केवल इतना समझाती हूं कि महिलाएं अपने अधिकारों, कानूनों को जानेंसमझें. जरूरत पड़ने पर कहां जाए और उन की बात न सुनी जाए तो वे क्या करें, इस की जानकारी उन्हें हो.

कुछ लोग सोचते हैं कि आप राजनीति में जाने का रास्ता बना रही हैं?

जो लोग हमारे परिवार को जानतेसमझते हैं, वे ऐसा नहीं सोच सकते. मैं अभी यह तो नहीं कह सकती कि मैं राजनीति नहीं करूंगी, मगर यह जरूर कह सकती हूं कि मैं समाजसेवा इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए नहीं कर रही. मैं ने राजनीति में जाने को ले कर कोई योजना तैयार नहीं की है. मेरी इच्छा केवल समाजसेवा के जरीए महिलाओं को जागरूक करने की है. मैं इस काम को आगे बढ़ाना चाहती हूं. केवल उत्तर प्रदेश में ही नहीं देश के दूसरे हिस्सों में भी जाने की योजना बना रही हूं.

आप साधारण परिवार की रही हैं. आप दूसरी बिरादरी से हैं. ऐसे में आप के सामने मुलायम परिवार में शामिल होने में कोई परेशानी का अनुभव हुआ?

मेरे सासससुर और पति सभी बहुत ही सहयोगी स्वभाव के हैं. घर के दूसरे लोगों ने भी मेरा हमेशा सम्मान किया. मैं गायन में रुचि रखती थी. भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय से शास्त्रीय संगीत में डिगरी ली. शादी के बाद जब मैं ने स्टेज पर गाने की बात सोची तो मुझे लगा कि शायद मेरे ससुराल पक्ष के लोगों को यह अच्छा न लगे. लेकिन जब यह बात नेताजी (मुलायम सिंह यादव) को पता चली तो उन्होंने मेरा हौसला बढ़ाते हुए कहा कि सैफई महोत्सव से अच्छा कोई मंच हो ही नहीं सकता. इस के बाद मैं ने लखनऊ महोत्सव और दूसरे मंचों पर भी गाया. मुझे किसी तरह की कभी कोई परेशानी नहीं हुई. लोक सभा चुनाव के समय मेरी आवाज में समाजवादी पार्टी के चुनाव प्रचार के लिए एक कैसेट भी तैयार कराया गया.

आप ने आज की महिलाओं की क्याक्या परेशानियां अनुभव की हैं?

समाज में अभी भी हर स्तर पर महिलाओं को ले कर मानसिकता बदली नहीं है. मेरा मानना है कि महिलाओं का मान बढ़ाने और उन के खिलाफ होने वाली आपराधिक घटनाओं को रोकने के लिए परिवारों को अपने घरों के पुरुषों और बेटों को समझाना होगा ताकि वे महिलाओं का सम्मान करें. जब तक बेटे नहीं सुधरेंगे तब तक हालात नहीं बदलेंगे. महिलाएं अभी भी अपने खिलाफ होने वाली घटनाओं को छिपाने की कोशिश करती हैं. कई बार उन की बातों को ढंग से सुना भी नहीं जाता. पीडि़ता को ही गुनहगार समझा जाता है. ऐसी तमाम जटिलताएं हैं, जिन्हें दूर कर के ही महिलाओं की परेशानियों को हल किया जा सकता है. हालांकि कुछ समय से महिलाओं में आत्मविश्वास बढ़ा है पर उसे और बढ़ाने की जरूरत है.

आप इतने काम एकसाथ कैसे कर लेती हैं?

मेरे पति और परिवार जिस तरह से मेरा हौसला बढ़ाता है उस से मुझे ताकत मिलती है. दिल से काम करती हूं, जो लोगों को पसंद आता है.

फुरसत के पलों में मन क्या करने को करता है?

मुझे पढ़ने का शौक बचपन से है. मेरे पिता बचपन में मुझे बच्चों की पत्रिका ‘चंपक’ ला कर देते थे. तब वह छोटे साइज में आती थी. मैं ने भी सोच रखा है कि जब मेरी बेटी पढ़नालिखना सीख रही होगी, तो मैं उसे चंपक जरूर ला कर दिया करूंगी. स्कूल के बाद कालेज के दिनों में मेरे घर में ‘सरिता’ और ‘गृहशोभा’ आती थी. हम उन्हें पढ़ते थे. कई बार इन में प्रकाशित महिलाओं के संबंध में लेख मुझे प्रभावित करते थे. मेरा मानना है कि आज महिलाओं को खुद से ज्यादा समय इन पत्रिकाओं को पढ़ने को देना चाहिए.

महिलाएं कुछ भी कर सकती हैं : मैरी कौम

भारत की एकमात्र वूमन बौक्सर जिन की जिंदगी बहुत कठिन व अभावों से भरी रही. फिर भी अपने आत्मविश्वास और लगन के बल पर उन्होंने 5 बार विश्व चैंपियन का खिताब जीता और बौक्सिंग में ओलिंपिक मैडल जीत कर देश का नाम रोशन किया.

जी हां, हम बात कर रहे हैं भारतीय महिला बौक्सिंग चैंपियन मैंगते चुंगवेईजंग मैरी कौम की, जिन का निक नेम मैग्नीफिशिएट मैरी कौम है और ये एम.सी. मैरी कौम के नाम से भी जानी जाती हैं.

मेरी कौम अब एशियाई खेलों में भी गोल्ड मैडल जीतने वाली पहली महिला मुक्केबाज बन गई हैं. 17वें एशियन गेम्स में ओलिंपिक के बाद मैरी कौम की यह पहली प्रतियोगिता थी, जिस में मैरी ने भाग लिया और यह उन के लिए बहुत शानदार अनुभव रहा. एशियाई खेलों में पहला गोल्ड मैडल जीत कर उन्होंने एक और मैडल अपने नाम कर लिया.

पेश हैं, मैरी से बातचीत के महत्त्वपूर्ण अंश:

राष्ट्रमंडल खेलों में महिलाओं का प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा और एशियन गेम्स में भी महिलाओं ने बेहतर प्रदर्शन किया था. आप अपने देश की महिलाओं से क्या कहना चाहेंगी?

मैं बहुत खुश हूं कि दोनों खेलों में महिलाओं का प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा. मैं सभी महिलाओं से कहना चाहूंगी कि वे किसी भी क्षेत्र में बेहतर हो सकती हैं. अपने में कौन्फिडैंस बनाए रखें तो कोई काम मुश्किल नहीं है. हर अच्छे काम में दिक्कतें आती हैं पर कभी भी हिम्मत न हारें आगे बढ़ती रहें.

आप ने बौक्सिंग के क्षेत्र में आने के लिए कब सोचा और आप किस से प्रभावित हुईं?

मेरा जन्म मणिपुर के चुराचंदपुर जिले के कांगाथेई गांव के एक गरीब परिवार में हुआ. गरीबी के कारण हमारी जिंदगी बहुत कठिनाइयों से भरी थी. घर में बड़ी होने के कारण मैं ने अपने मांबाप की मदद करने की सोची और मेरी खेलकूद में रुचि बचपन से थी, इसलिए मैं ने निर्णय लिया कि बौक्सिंग के क्षेत्र में मैं नाम कमाऊंगी. पर यह बात मैं ने अपने मातापिता से छिपा कर रखी क्योंकि उस समय खेल में महिलाओं के लिए बौक्सिंग के बारे में सोचना भी मुमकिन नहीं था. मैं मणिपुर के बौक्सर डिंगको सिंह से प्रेरित थी, जिन्होंने 1998 में एशियन गेम्स में गोल्ड मैडल जीता था. मेरा मुख्य उद्देश्य अपने परिवार को गरीबी से ऊपर उठाना था और मैं अपने नाम से ही जानी जाऊं, यही मेरा मकसद था.

आप की लिखी आत्मकथा ‘अनब्रैकेबल’ पर फिल्म ‘मैरी कौम’ बनी. यह मूवी आप की लाइफ में किस तरह से इंपैक्ट करेगी?

मेरे लिए यह बहुत खास है. मैं ने कभी सोचा भी नहीं था कि मेरी लाइफ के ऊपर कोई फिल्म बनेगी. मैं बहुत खुश हूं. यह मेरे लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है. इस बात से मेरी फैमिली वाले और पति बेहद खुश हैं. मेरी मूवी से अगर कोई भी इंसपायर हो और उसे कुछ सीखने को मिले, तो इस से बड़ी बात क्या होगी. मुझे तो अभी भी नहीं लगता कि मेरी जीवनी पर कोई फिल्म बन सकती है. हां, यह जरूर है कि फिल्म के द्वारा अब ज्यादा लोग मुझे जानने लगे हैं.

आप के किरदार को प्रियंका चोपड़ा ने क्या बखूबी निभाया है?

हां, प्रियंका ने मेरा किरदार निभाने में काफी मेहनत की है और उसे बखूबी निभाया है. उन्होंने मुझे जानने और समझने के लिए मुझ से 6 महीने की ट्रेनिंग भी ली. मैं उन के काम से बहुत खुश हूं. इस के अलावा इस फिल्म में मेरे पति के किरदार को दर्शन कुमार ने बखूबी निभाया. प्रियंका इस फिल्म में एक प्रशिक्षित एथलीट लगी हैं.

3 बच्चों की मां होेने के बाद भी आप ने दोबारा सफलता प्राप्त की. इस का श्रेय आप किसे देती हैं?

बच्चे होने के बाद इस मुकाम तक पहुंचना मेरे लिए वाकई बहुत मुश्किल था. मेरे फादर ने भी मुझे दोबारा खेल में आने के लिए मना कर दिया था. उन्हें ऐसा लगता था कि अब मैं सफलता प्राप्त नहीं कर पाऊंगी. पर मेरी मेहनत, लगन और हसबैंड ओनलर कारोंग की समझदारी और सहयोग की बदौलत, बच्चों की देखभाल से चिंतामुक्त हो कर मैं दोबारा अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में कामयाब रही. हसबैंड ने मेरा बहुत साथ दिया और अभी तक दे रहे हैं.

आप की नजर में सफलता का क्या मंत्र होना चाहिए? शादी के बाद जो महिलाएं हार मान जाती हैं, उन के लिए कुछ बताएं?

सफलता का मंत्र यही है कि किसी भी काम के प्रति ईमानदारी, लगन, कठिन परिश्रम और परिवार का सहयोग बहुत जरूरी है. तभी कोई सफलता पा सकता है. हां, शादी के बाद अधिकतर महिलाएं हार मान जाती हैं पर अगर परिवार व पति का साथ हो तो महिलाएं कुछ भी कर सकती हैं. हर महिला में आत्मविश्वास होना बहुत जरूरी है. यह आत्मविश्वास और दृढ़ निश्चय ही किसी की भी सफलता की कुंजी है.

आप अपने तीनों बच्चों रिंचुगवार और खुपनेलवार (जुड़वां) और चुंगयान ग्लेन को कितना समय दे पाती हैं और बाहर जाने पर बच्चों को कितना मिस करती हैं?

मैं बच्चों को ज्यादा समय नहीं दे पाती क्योंकि कभीकभी मैं बच्चों से महीनों अलग रहती हूं. पर मेरे हसबैंड ओनलर बच्चों का बहुत अच्छे से ध्यान रखते हैं. मेरे जुड़वां बच्चे तो थोड़े बड़े हो गए हैं पर छोटा बेटा मुझे बहुत मिस करता है क्योंकि मैं उसे समय नहीं दे पाती हूं. मैं भी बच्चों को बहुत मिस करती हूं पर मेरे हसबैंड एक मां की तरह बच्चों का खयाल रखते हैं. मुझे कोई परेशानी न हो, इसलिए बच्चों की छोटीमोटी बीमारी या तकलीफ वगैरह के बारे में मुझे नहीं बताते. कभी जब मैं घर पर फोन करती हूं तो मेरा छोटा बेटा मेरी आवाज सुन कर रो पड़ता है.

बौक्सिंग के अलावा आप को और क्या पसंद है?

मुझे मेकअप करना पसंद है. इसलिए जब मैं टूर्नामैंट में भाग लेने विदेश जाती हूं तो वहां से कौस्मैटिक्स खूब खरीदती हूं. मुझे बौलीवुड का प्रोफेशनल मेकअप पसंद है और ड्रैसेज में मुझे वैस्टर्न ड्रैसेज पसंद हैं.

खाली समय में आप अपने व अपने परिवार के लिए कौन सी डिशेज बनाना पसंद करती हैं?

मैं अपने और अपनी फैमली के लिए उबला खाना बनाना ज्यादा पसंद करती हूं, जिस में झींगा, मछली और चावल मुझे बहुत पसंद है.

आप की लाइफ का कोई ऐसा पल, जो बहुत खास रहा हो?

वैसे तो कई पल खास हैं जैसे, शादी होना, बच्चों का जन्म. पर मेरे लिए एक पल ऐसा खास है जो मुझे अभी तक याद है. वह है 2002 में ऐंटाल्या में विश्व वूमन बौक्सिंग चैंपियनशिप में पहली बार तुर्की में स्वर्ण पदक जीतना.

ओनलर से पहली मुलाकात कब हुई और शादी कब हुई?

जब मैं पहली बार 2001 में राष्ट्रीय खेल, पंजाब में भाग लेने के लिए दिल्ली में थी, तब ओनलर दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाई कर रहे थे. तभी से शुरू हुई 4 साल की डेंटिंग के बाद, 2005 में हमारी शादी हुई.

मूवी में आप के जीवन का संघर्ष देख कर आप से महिलाएं बहुत प्रभावित हुई हैं. आप उन के लिए एक तरह से प्रेरणास्रोत बन गई हैं. ऐसा होना आप को कैसा लगता है?

यह तो बहुत अच्छी बात है कि मैं किसी के लिए प्रेरणास्रोत बनी हूं. यह हकीकत है कि मुझ पर बनी मूवी के जरीए ही लोगों ने मेरे बारे में ज्यादा जाना है.

सैक्सी हूं इसलिए

अपनी आने वाली हौरर फिल्म ‘एलोन’ की ट्रेलर लौंचिंग के मौके पर प्रैस कान्फ्रैंस में जब  बिपाशा से लगातार हौरर फिल्में करने और टाइप कास्ट होने का सवाल उठाया गया तो इस बात पर वे भड़क उठीं. उन का कहना था कि मैं सैक्सी हूं इसलिए मुझे फिल्मों के रोल औफर होते हैं. सलमान व अक्षय भी तो एक जैसे रोल सालों से करते रहे हैं, उन पर तो कोई उंगली नहीं उठाता. आगे उन का कहना था कि मुझे नहीं लगता कि टाइप कास्ट होने का डर होना चाहिए, क्योंकि हमें वही फिल्में बारबार औफर होती हैं, जिन में दर्शक हमें देखना चाहते हैं. ‘एलोन’ फिल्म जुड़वां बहनों पर बनी हौरर स्टोरी है, जिस में एक बहन की मौत के बाद उस की जुड़वां बहन का साया हमेशा उस पर रहता है. ऐसी अनचाही घटनाएं होती रहती हैं, जो स्वाभाविक नहीं होतीं.

लिव इन रिलेशनशिप शादी ही है : इलियाना

मूलतया गोवा की रहने वाली इलियाना डिकू्रज ने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत दक्षिण भारत की फिल्मों से की. वहां 18 फिल्मों में अपने अभिनय का जलवा दिखाने के बाद अनुराग बसु की फिल्म ‘बर्फी’ से हिंदी फिल्मों में कदम रखा. उस के बाद ‘फटा पोस्टर निकला हीरो’ और ‘मैं तेरा हीरो’ जैसी हास्य फिल्मों में नजर आईं. अब वे सैफ अली खान के साथ फिल्म ‘हैप्पी एंडिंग’ में नजर आ रही हैं, जिस में उन्होंने अनरोमांटिक किरदार निभाया है.

पेश हैं, इलियाना से हुई गुफ्तगू के कुछ अहम अंश:

आप का कैरियर किस दिशा में जा रहा है?

मेरा कैरियर सही दिशा में जा रहा है. मुझे अच्छी कहानियों वाली फिल्में मिल रही हैं. पहली हिंदी फिल्म ‘बर्फी’ में काम करने के बाद 2 कमर्शियल फिल्में कीं. फिर ‘हैप्पी एंडिंग’ की, जो अलग तरह की फिल्म है.

आप के लिए सफलताअसफलता क्या माने रखती है?

दोनों बहुत जरूरी हैं. यदि आप निरंतर सफलता की ओर अग्रसर रहते हैं, तो काम में विविधता नहीं आती. मेरी पहली फिल्म ‘बर्फी’ हिट रही. इस फिल्म को कई अवार्ड भी मिले. मेरी दूसरी फिल्म ‘फटा पोस्टर निकला हीरो’ कम चली. जब कैरियर में इस तरह का उतारचढ़ाव आता है, तो हमें काम करने में ज्यादा आनंद मिलता है, क्योंकि हम कुछ नया करने की कोशिश करते हैं. ‘हैप्पी एंडिंग’ दर्शकों को जरूर पसंद आएगी.

सैफ के साथ काम करने की इच्छा ‘हैप्पी एंडिंग’ में पूरी हो गई. उन के साथ काम करने पर क्या पाया?

उन के साथ काम कर के मुझे बहुत अच्छा लगा. वे बेहतरीन कलाकार के साथसाथ बेहतरीन और ईमानदार इंसान भी हैं. वे सैट पर बहुत कम बोलते हैं. मैं ने उन से बहुत कुछ सीखा. उन की वजह से सैट पर हमेशा खुशनुमा माहौल बना रहता था.

आप ने रणबीर कपूर, वरुण धवन, सैफ अली खान के साथ काम किया है. अपनी उम्र से काफी बड़ी उम्र के अभिनेताओं के साथ काम करना आप के लिए कितना सहज रहा?

मैं एक कलाकार हूं. शूटिंग के वक्त कैमरे के सामने मुझे हर कलाकार पात्र के रूप में नजर आता है.

अपनी हमउम्र अभिनेत्रियों से प्रतिस्पर्धा को किस तरह लेती हैं?

मैं किसी से प्रतिस्पर्धा नहीं करती. हर अभिनेत्री की अपनी खासीयत होती है. मैं कंपीटिशन की बात सोचती ही नहीं.

किस निर्देशक के साथ काम करने की ख्वाहिश है?

किसी एक का नाम नहीं ले सकती क्योंकि मैं कई निर्देशकों के साथ काम करना चाहती हूं. लेकिन मुझे होमी अदजानिया का काम बहुत पसंद है और अनुराग बसु चाहे किसी भी तरह की फिल्म का औफर दें, मैं उन के साथ काम करना चाहूंगी.

आप की निजी जिंदगी में रोमांस को ले कर क्या सोच है?

मैं प्यार में यकीन करती हूं और शादी में भी. कोई भी रिश्ता हो उस में खुशी ही मिलती है पर उसे बनाए रखने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है. मैं खुशहाल औरत की जिंदगी जीना पसंद करती हूं पर शादीशुदा जिंदगी सदैव खुशहाल नहीं हो सकती इस के लिए प्रयास करना जरूरी होता है.

यानी आप यह मानती हैं कि दोस्ती हो, शादी हो या कोई अन्य रिश्ता उसे बरकरार रखने के लिए समझौता करना ही पड़ता है?

सौ प्रतिशत. 2 इंसान हैं, तो दोनों को कोई न कोई समझौता करना ही पड़ेगा. यह नियम लिव इन रिलेशनशिप और शादी दोनों जगह लागू होता है. जब 2 लोग मिलते हैं, तो वे एकजैसे हों, यह संभव नहीं. दोनों का टैंपरामैंट, आदतें, काम करने का तरीका सब कुछ अलग होगा, तो कंप्रोमाइज करना ही पड़ेगा.

लिव इन रिलेशनशिप को ले कर आप की सोच क्या है?

मेरी सोच के अनुसार लिव इन रिलेशनशिप और शादी में ज्यादा फर्क नहीं है. लिव इन रिलेशनशिप भी शादी की ही तरह है. लेकिन इस में कोई बंधन नहीं होता. जब चाहें अलगअलग राह पकड़ सकते हैं. कानूनन तलाक लेने की जरूरत नहीं पड़ती यानी इस में जटिलताएं कम हैं. विदेशों में तो लिव इन रिलेशनशिप में रहते हुए कपल बच्चे भी पैदा करते हैं और जब मन किया अलग हो जाते हैं.

अवार्ड या बौक्स औफिस कलैक्शन किस की चाहत?

अवार्ड से कलाकार को निजी सैटिस्फैक्शन और बेहतर काम करने का उत्साह मिलता है. जबकि अच्छा बौक्स औफिस कलैक्शन होने पर निर्माता दूसरी फिल्म बनाने के लिए प्रेरित होता है. चूंकि यह भी एक व्यवसाय है इसलिए बौक्स औफिस कलैक्शन भी बेहद महत्त्वपूर्ण है.

क्या आप बहुत चूजी हैं?

हां, फिल्मों के चयन को ले कर मैं बहुत चूजी हूं. मैं 18 साल की उम्र से काम करती आ रही हूं. इसलिए बारबार अपने को दोहरा नहीं सकती. मैं उन फिल्मों से कदापि नहीं जुड़ना चाहती, जिन्हें करने के बाद मुझे इरिटेशन हो.

सर्दियों में भी पाइये कोमल त्वचा

सजने संवरने का असली मजा सर्दियों में ही होता है. लेकिन ब्यूटी ऐक्सपर्ट का कहना है कि 80% महिलाओं को इस मौसम में स्किन ड्राइनैस की समस्या हो जाती है, क्योंकि जब तापमान गिरता है, तो त्वचा का मौइश्चराइजर स्तर भी कम हो जाता है. और फिर सर्दियों में रक्तप्रवाह भी धीमा हो जाता है, जिस का असर चेहरे पर सब से ज्यादा नजर आता है. चेहरा बेजान सा लगता है.

नोएडा के ऐंजल ब्यूटीपार्लर की ब्यूटीशियन सीमा अग्रवाल बता रही हैं कि इस मौसम में कैसे अपनी त्वचा की देखभाल कर के अपनी खूबसूरती बरकरार रखी जा सकती है.

त्वचा की देखभाल

चेहरे की बादाम के तेल से अच्छी तरह मालिश करें, लेकिन मालिश दिन में न करें, क्योंकि इस से चेहरे पर डस्ट अधिक चिपक जाएगी.

कामकाजी महिलाओं को घर और बाहर के तापमान के फर्क के कारण अकसर त्वचा की समस्या ज्यादा होती है. इस से बचने के लिए हफ्ते में कम से कम 2 बार क्लींजिंग का प्रयोग और मसाज जरूर करें.

बहुत गरम पानी से मुंह न धोएं. इस से भी नैचुरल औयल खत्म हो जाता है.

सर्दियों में स्किन क्रैक्स की भी परेशानी होती है. इस से बचने के लिए ग्लिसरीन में गुलाबजल और नीबू का रस मिला कर चेहरे पर लगाएं.

सर्दियों में त्वचा की सफाई के लिए मड पैक्स से त्वचा खुश्क हो जाती है, इसलिए जैल पैक ही इस्तेमाल करें.

होंठों पर मलाई, ग्लिसरीन और शहद का प्रयोग करें.

सर्दियों में मेकअप स्टिक्स का इस्तेमाल बिलकुल न करें. हमेशा ग्लौस बेस का ही इस्तेमाल करें. इस के बाद फाउंडेशन का भी सीधा इस्तेमाल न करें. फाउंडेशन में थोड़ी सी क्रीम और 2 बूंदें पानी मिला कर लगाएं.

हथेलियां शुष्क रहती हों तो 1/2 चम्मच चीनी हथेली पर रख कर 3-4 बूंदें नीबू का रस डाल कर दोनों हथेलियों को तब तक रगड़ें जब तक कि चीनी का 1 भी दाना न बचे. 5 मिनट बाद हाथों को सादे पानी से अच्छी तरह धो लें. हथेलियां मुलायम हो जाएंगी.

होंठों का मेकअप

विटामिन ई युक्त लिपस्टिक होंठों को मुलायम बनाने के साथसाथ चमक भी प्रदान करती है.

मौइश्चराइजर युक्त लिपस्टिक होंठों का रूखापन दूर करती है.

अगर होंठों को हाईलाइट करना चाहती हैं, तो लिप कलर डार्क रखें.

8-9 घंटे लगातार लिपस्टिक लगाए रहने से होंठ रूखे हो जाते हैं. इसलिए लिपगार्ड या वैसलीन का प्रयोग नियमित रूप से करें.

यदि सर्दी में होंठ फटते हों तो रात को सोते समय नाभि पर तेल या देशी घी की कुछ बूंदें लगाएं.

कसे नारियल का दूध निकाल कर होंठों पर लगाएं. इस से होंठों का गुलाबीपन और कोमलता कायम रहती है.

केशों की देखभाल

ठंड का मौसम केशों को रूखा और बेजान बना देता है. अत: सर्दियों में केशों की कंडीशनिंग करना बहुत जरूरी है.

हर्बल तेलों का इस्तेमाल सर्दी के मौसम में कम करें, क्योंकि उन में शामिल तत्त्वों की तासीर ठंडी होती है.

सर्दी में केशों को ठंडी हवाओं से बचाएं और बारबार न धोएं.

हफ्ते में 1-2 बार कुनकुने औलिव औयल से मालिश करें. इस से केशों को पोषण मिलेगा और वे चमक उठेंगे.

सिर में तेल अधिक समय लगा कर न छोड़ें.

केशों को सर्दी में खुला न छोड़ें, क्योंकि शुष्क हवा से वे रूखे और बेजान हो जाते हैं.

कैलाश हौस्पिटल, दिल्ली की स्किन स्पैशलिस्ट, डाक्टर सुप्रिया महाजन की सलाह

सौंदर्य समस्याएं

मैं 19 साल की युवती हूं. मेरी समस्या यह है कि मेरे बाल दोमुंहे हो गए हैं, जिस की वजह से वे बेजान और रूखे दिखते हैं. साथ ही गिर भी रहे हैं. मैं क्या करूं, समाधान बताइए?

दोमुंहे बालों से छुटकारा पाने के लिए सब से पहले आप नियमित अंतराल पर बालों की ट्रिमिंग करवाएं. इस के अतिरिक्त जब भी शैंपू करें कंडीशनर अवश्य लगाएं व गीले बालों में ही बालों के सिरों पर सीरम लगाना न भूलें. इस के अलावा बालों पर होममेड पैक लगाएं.

पैक बनाने के लिए दही में 1 चम्मच काला तिल व मेथीदाना पाउडर मिला कर बालों में 1 घंटे के लिए लगाएं फिर बालों को धो लें. इस से बालों में शाइनिंग व सौफ्टनैस आएगी. बाल घने व मजबूत बनें, इस के लिए प्रोटीन युक्त डाइट व फलों का सेवन अधिक से अधिक करें.

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मैं 25 वर्षीय युवती हूं. मेरी समस्या यह है कि मेरे चेहरे का रंग गेहुआं है, लेकिन हाथों का रंग चेहरे की तुलना में बहुत गहरा है. इस की वजह से मैं स्लीवलेस पहनने से बचती हूं. हाथों का रंग निखारने का कोई उपाय बताइए?

ज्यादा देर सूरज की किरणों के प्रभाव में रहने से हाथों पर टैनिंग हो जाती है जिस से त्वचा का रंग गहरा हो जाता है.हाथों की रंगत साफ करने के लिए होममेड स्क्रब का प्रयोग करें. इस के लिए दही में बादाम पाउडर, उरद की दाल का पाउडर, सूजी व शहद मिला कर नहाते वक्त स्क्रब की तरह प्रयोग करें.

इस से हाथों की त्वचा का रंग निखर जाएगा. साथ ही गरमियों में 12 से 4 बजे के बीच धूप में निकलने से बचें, निकलना पड़े तो फुल स्लीव्स कपड़े पहनें.

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मैं 28 वर्षीय महिला हूं. मेरी समस्या मेरे होंठों को ले कर है. मेरे होंठ अत्यधिक ड्राई हैं. लिपबाम, घी, बटर सब ट्राई कर लिया, डाक्टर को भी दिखा चुकी हूं पर कोई फायदा नहीं हुआ. कृपया कोई स्थायी समाधान बताइए?

होंठों के सूखने की समस्या स्किन की ड्राईनैस की वजह से होती है. होंठों को सूखने से बचाने के लिए नाभि पर सरसों या नारियल का तेल लगाएं. साथ ही होंठों पर मैट लिपस्टिक की जगह क्रीम बेस्ड लिपस्टिक का प्रयोग करें. पानी अधिक से अधिक मात्रा में पीएं व फलों का अधिक से अधिक सेवन करें.

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मेरी परेशानी यह है कि मेरे चेहरे पर बाल उग रहे हैं, जिस की वजह से मैं कहीं आनेजाने में झिझकती हूं. कृपया कोई उपाय बताइए जिस से इन्हें हटाया जा सके?

चेहरे पर बालों की समस्या के पीछे हारमोनल बदलाव हो सकता है. इस के लिए चिकित्सक से परामर्श करें व इलाज करवाएं. बालों को हाथ से प्लक करने की कोशिश बिलकुल न करें. आप जितना बालों को प्लक करेंगी उस से दोगुनी रफ्तार से वे उगेंगे. आप चाहें तो पार्लर से इस के लिए कटोरी वैक्सिंग करा सकती हैं. अगर चेहरे के बालों का परमानैंट इलाज चाहती हैं तो ऐक्सपर्ट द्वारा लेजर ट्रीटमैंट करवाएं.

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मैं 16 वर्षीय छात्रा हूं. मेरी समस्या यह है कि मेरी स्किन बहुत औयली है जिस की वजह से चेहरे पर बहुत पिंपल्स हो रहे हैं. मैं क्या करूं जिस से त्वचा की तैलीयता और पिंपल्स की समस्या का समाधान हो सके?

औयली स्किन पर पिंपल्स अधिक होते हैं. औयली स्किन के लिए चंदन के पैक का प्रयोग करें. पिंपल्स पर भी चंदन लगाएं. इस से पिंपल्स ड्राई हो जाएंगे. साथ ही जब भी चेहरा धोएं औयल फ्री फेसवाश का प्रयोग करें. औयल फ्री मौइश्चराइजर व कौस्मैटिक का भी प्रयोग करें. इस के अलावा अगर आप चाहें तो ओजोन ट्रीटमैंट भी करा सकती हैं. साथ ही भोजन में तलेभुने पदार्थों का सेवन कम से कम करें.

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मेरी समस्या मेरे बालों को ले कर है. मेरे बाल बहुत पतले हैं और उन की ग्रोथ बहुत कम है. बालों को घना व लंबा करने का कोई उपाय बताएं?

आप ने अपनी उम्र नहीं बताई. दरअसल, मेनोपौज के समय बालों की ग्रोथ बढ़ाना मुश्किल होता है. अगर आप की उम्र कम है तो बालों को घना व लंबा किया जा सकता है. इस के लिए बालों में सप्ताह में एक बार औयलिंग अवश्य करें. तेल लगाने के बाद स्टीम लें. इस से सिर की त्वचा के रोमछिद्र खुलते हैं व बालों की ग्रोथ व संख्या में बढ़ोतरी होती है. आप चाहें तो बालों के लिए पार्लर जा कर ओजोन ट्रीटमैंट भी ले सकती हैं.

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मैं 20 वर्षीय युवती हूं. मेरे होंठ लिपस्टिक लगाने से ड्राई और ब्लैक हो गए हैं. उन्हें सौफ्ट और पिंक बनाने का तरीका बताएं?

लिप्स पर घटिया और ऐक्सपायरी डेट वाली लिपस्टिक लगाने से लिप्स की ऊपरी परत काली पड़ने लगती है इसलिए ब्रैंडेड लिपस्टिक ही लगाएं. लिप्स को सौफ्ट दिखाने के लिए मौइश्चराइजर बेस्ड लिपस्टिक बैस्ट होती है.

निजी जिंदगी पर बात करना मेरी गलती थी : कल्की

अपने फिल्मी कैरियर की पहली फिल्म ‘देव डी’ में आधुनिक चंद्रमुखी का किरदार निभा कर कल्की कोचलीन ने काफी शोहरत बटोरी थी. फिर फिल्म ‘जिंदगी ना मिलेगी दोबारा’ में एक अमीर परिवार की सिरफिरी लड़की के किरदार में भी उन्होंने दर्शकों का दिल जीत लिया. फिल्म ‘शंघाई’ में वे एक सामाजिक कार्यकर्ता के किरदार में नजर आईं. इस के बाद फिल्म ‘हैप्पी एंडिंग’ में एक पुरुष के प्यार में पागल विशाखा के किरदार में दिखीं. लेकिन जैसे निजी जिंदगी में अनुराग कश्यप से शादी सफल नहीं हो पाई वैसे ही ‘हैप्पी एंडिंग’ में भी विशाखा को प्यार नहीं मिला.

पेश हैं, कल्की कोचलीन से हुई मुलाकात के कुछ अहम अंश:

अब तक की फिल्मों में किस फिल्म में कलाकार के तौर पर काम करने पर संतुष्टि मिली?

मुझे फिल्म ‘मार्गरीटा विथ ए स्ट्रा’ करने में सब से ज्यादा आनंद मिला. इस फिल्म की निर्देशक सोनाली बोस काफी बुद्धिमान और इमोशनल हैं. उन्होंने इस फिल्म में बहुत पैसा लगाया था. इस फिल्म को तमाम अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में सराहा गया है. भारत में यह जनवरी, 2015 में रिलीज होगी.

फिल्म ‘मार्गरीटा विथ ए स्ट्रा’ के किरदार पर रोशनी डालेंगी?

इस फिल्म में मैं ने लैला का किरदार निभाया है, जो अपाहिज है. वह दिल्ली यूनिवर्सिटी की छात्रा भी रही है. न्यूयौर्क यूनिवर्सिटी में प्रवेश मिलने पर अपनी मां के साथ अमेरिका चली जाती है, जहां उसे खानुम (सयानी गुप्ता) से प्यार हो जाता है और फिर एक दिन खानुम उसे बिस्तर तक ले जाती है.

लैला को कई तरह के इमोशंस से गुजरना पड़ता है. यह एक बोल्ड किरदार है. वह बहुत ही ज्यादा ढीलेढाले कपड़े पहनती है. ऐसे कपड़े पहनती है, जिन में जिप नहीं होती, बटन नहीं होते. इस में न्यूडिटी भी है. यह गे किरदार भी है. इस फिल्म में सीमाओं से परे कुछ दिखाया गया है. भारतीय सैंसर बोर्ड इसे किस तरह लेगा, कुछ कह नहीं सकती.

लैला का किरदार निभाने के लिए किस तरह की ट्रेनिंग लेनी पड़ी?

मैं ने बहुत ट्रेनिंग ली, क्योंकि मुझे डर था कि यदि मैं ने इस किरदार के साथ न्याय नहीं किया, तो गलत हो जाएगा. मेरा ध्यान अपाहिजों के साथ न्याय करने पर केंद्रित था. हम उन्हें किसी भी तरह से गलत नहीं दिखाना चाहते थे. फिल्म की निर्देशिका सोनाली की बहन मनाली अपाहिज हैं. उन के साथ मैं ने बहुत काम किया. मैं उन के घर गई. कुछ दिन उन के साथ रही. उन के साथ घूमते हुए मैं ने यह जानने की कोशिश की कि दूसरे लोग उन के साथ किस तरह का व्यवहार करते हैं.

इस के अलावा मैं ने फिजियोथेरैपिस्ट और स्पीच थेरैपिस्ट के साथ भी काम किया. इस से मुझे समझ में आया कि हमारे शरीर के मसल्स किस तरह काम करते हैं. दिमाग और मसल्स के बीच संबंध जुड़ने में थोड़ा समय लगता है.

आप यह फिल्म करने के बाद क्या अपाहिजों के लिए कुछ करना चाहती हैं?

मैं ऐसे लोगों के लिए काम कर रही हूं. सोनाली बोस की बहन मनाली एडौप्ट सैंटर, जो मुंबई के बांद्रा में है, में काम करती हैं. मैं उन के साथ काम कर रही हूं.

जब हम इस फिल्म की शूटिंग के लिए न्यूयौर्क गए, तो वहां ऐसे लोगों के लिए जो सुविधाएं हैं, उन्हें देख कर हमें बहुत आश्चर्य हुआ. वहां व्हीलचेयर पर बैठे लोगों के लिए बस में चढ़ने के लिए अलग सुविधा होती है, अलग प्लेटफार्म बना होता है. हमारे देश में तो ऐसी कोई सुविधा है ही नहीं. वहां इतनी सुविधाएं हैं कि हर अपाहिज आत्मनिर्भर है.

फिल्म ‘मार्गरीटा विथ ए स्ट्रा’ में जो मुद्दे उठाए गए हैं, उन्हें भारतीय दर्शक किस तरह से लेंगे?

भारतीय दर्शक काफी समझदार हैं. भारतीय फिल्मकारों की समस्या है कि वे दर्शकों को बुद्धिमान नहीं मानते. यह मान कर चलते हैं कि दर्शक सिर्फ सलमान खान की कमर्शियल फिल्में देखना चाहते हैं. भारतीय दर्शक इस तरह की फिल्में इसलिए देखने जाते हैं, क्योंकि उन के पास दूसरी फिल्में देखने की चौइस ही नहीं होती. मुझे उम्मीद है कि दर्शक हमारी इस फिल्म को जरूर पसंद करेंगे. हो सकता है कि हमारे लिए इस फिल्म को छोटे शहरों तक पहुंचाना मुश्किल हो जाए.

क्या इंटैलिजैंट ऐक्ट्रैस की इमेज की वजह से आप को फिल्में कम मिलती हैं?

सब से बड़ा नुकसान यह हुआ है कि अभी तक मुझे किसी बड़ी कमर्शियल फिल्म में हीरोइन के रूप में बड़ा काम करने का मौका नहीं मिला. शायद फिल्म निर्माता सोचते हों कि मैं बहुत ज्यादा लोकप्रिय नहीं हूं. इसलिए वे मुझे बड़ी फिल्मों के औफर नहीं देते. मैं एक बेहतरीन कलाकार हूं, यह तो वे समझते हैं. पर बड़े बैनर की फिल्म तक पहुंचने में समय लगता है.

चर्चा है कि ‘मार्गरीटा विथ ए स्ट्रा’ के बाद आप फिल्म ‘जिया और जिया’ में लेस्बियन का ही किरदार निभा रही हैं?

गलत. यह फिल्म 2 लड़कियों की दोस्ती और उन की भावनाओं के बारे में है. मैं इस में एक जिंदादिल पंजाबी लड़की का किरदार निभा रही हूं. फिल्म में मेरे साथ रिचा चड्ढा हैं.

निजी जिंदगी में रोमांटिक होते हुए भी अनुराग कश्यप से अलगाव हो गया?

यह निर्णय करना बहुत कठिन रहा. हम एकदूसरे से बहुत प्यार करते हैं, पर एकसाथ रहना मुश्किल हो रहा था. इसलिए अलग हो कर मैं ने लेखन व अपने कैरियर पर ध्यान देना शुरू किया.

निजी जिंदगी में जब रिश्ता टूटता है, तो उस का कैरियर पर किस तरह से असर पड़ता है?

मैं अपनी निजी जिंदगी के अनुभवों के आधार पर कह सकती हूं कि मेरी सब से बड़ी गलती है कि मैं अपनी निजी जिंदगी को ले कर खुल कर बात करती थी. अब मेरी समझ में आ चुका है कि निजी जिंदगी की बातें सार्वजनिक नहीं करनी चाहिए. अब मैं बहुत कम बात करती हूं.

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