अक्षय कुमार-नुपुर सेनन की Filhaal 2 सौंग हुआ रिलीज, केमिस्ट्री ने जीता फैंस का दिल

अक्षय कुमार और नूपुर सेनन के 2019 के सबसे पौपुलर सौंग्स में से एक ‘फ़िलहाल’ का Filhaal 2 रिलीज हो गया है. वहीं सोशलमीडिया पर रिलीज होते ही यह गाना फैंस का दिल जीत रहा है. दर्द और प्यार से भरा B Praak का गाना Filhaal 2 तेजी से वायरल हो रहा है. आइए आपको दिखाते हैं Filhaal 2 की म्यूजिक वीडियो…

गाना हो रहा है वायरल 

https://www.youtube.com/watch?v=JZWYUG3vYhk

‘फ़िलहाल’ की तरह B Praak का गाना Filhaal 2 मोहब्बत गाना भी सोशलमीडिया पर फैंस का दिल जीत रहा है, जिसके बोल Jaani ने लिखे हैं. वहीं इस गाने के वीडियो में अक्षय और नुपुर का प्यार और दर्द भरा अंदाज एक बार फिर से फैंस को बैचेन करता हुआ नजर आ रहा है. इसी के चलते रिलीज होते ही इस सौंग्स को तेजी से लाइक्स और लाखों लोग देख चुके हैं.

 

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अनपल्ग्ड वर्जन ने भी जीता था फैंस का दिल

5 मिनट के शॉर्ट वीडियो में नुपुर ने गाया था. वहीं फैंस को नुपुर का ये अंदाज फैंस को काफी पसंद आया था. हर कोई इस प्यारे गाने का दिवाना हो गया था.

फिलहाल को भी मिला था फैंस का प्यार

पंजाबी सेंसेशन बी प्राक द्वारा गाया और जानी द्वारा लिखा गया है. इस सौंग को यूट्यूब पर 650 मिलियन व्यूज मिले थे, जिसके बाद यह ट्रेंडिंग चार्टबस्टर नंबर 1 पर रहा था. वहीं इस गाने का अनपल्ग्ड वर्जन भी रिलीज  हुआ था, जिसे 3000 मीलियन से ज्यादा बार देखा गया था.

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पापा आमिर खान के तलाक के बाद बेटी Ira ने किया पोस्ट, लिखी ये बात

बौलीवुड एक्टर आमिर खान ने हाल ही में फैंस को अपने और किरण राव के तलाक की खबर से फैंस और इंडस्ट्री के लोगों को झटका दिया था. हालांकि दोनों ने साथ में आकर एक इंटरव्यू भी दिया था. इसी बीच आमिर खान की बेटी Ira ने तलाक की खबर के बाद सोशल मीडिया पर एक पोस्ट शेयर किया है, जिसे फैंस वायरल कर रहे हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

पापा के तलाक के बाद किया पोस्ट

ira

आमिर के तलाक की खबरों के बाद उनकी बेटी Ira (Ira Khan) ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर एक पोस्ट किया है, जिसमें जिसमें उन्होंने अपनी एक फोटो शेयर करते हुए लिखा है कि, ‘अगला रिव्यू कल. आगे क्या होने वाला है?’ Ira के इस पोस्ट के बाद फैंस इसे आमिर खान और किरण राव के तलाक से जोड़ रहे हैं.

 

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तलाक पर बोले आमिर-किरण

 

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तलाक के खबर आने के बाद आमिर और किरण ने एक इंटरव्यू में कहा कि वह अभी खुश हैं साथ में काम करते हुए मिलकर अपने बेटे आजाद को पालेंगे. वहीं इस वीडियो में आमिर खान और किरण राव एक-दूसरे हाथ पकड़े हुए हैं और काफी खुश नजर आ रहे थे. वहीं इस वीडियो पर फैंस के कई रिएक्शन सामने आ रहे हैं. इसी बीच टीवी और फिल्मी सितारे अपना रिएक्शन दे रहे हैं, जिनमें हिना खान और राखी सावंत जैसे सितारे शामिल हैं.

 

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बता दें कि आमिर खान ने 1986 में रीना दत्ता से शादी की थी, जिनसे 2 बच्चे जुनैद और Ira हैं. वहीं साल 2002 में दोनों का तलाक होने के बाद साल 2005 में आमिर खान ने किरण राव से शादी की थी, जिनका एक बेटा आजाद है.

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REVIEW: जानें कैसी है तापसी पन्नू की फिल्म ‘हसीन दिलरूबा’

रेटिंगः डेढ़ स्टार

निर्माताः भूषण कुमार,किशन कुमार, आनंद एल राय और हिमांशु शर्मा

निर्देशकः विनील मैथ्यू

लेखकः कनिका ढिल्लों

कलाकारः तापसी पन्नू, विक्रात मैसे, हर्षवर्धन राणे, आदित्य श्रीवास्तव, दया शंकर पांडे, अलका कौशल, अमित ठाकुर, पूजा सरुप, अशीष वर्मा व अन्य.

अवधिः दो घंटे 12 मिनट

ओटीटी प्लेटफार्मः नेटफ्लिक्स

‘‘पति,पत्नी और वह’’के इर्द गिर्द घूमने वाली कहानियों पर सैकड़ों फिल्में बन चुकी हैं. अब इसी तरह की एक प्रेम त्रिकोण के साथ प्रेम, वासना,विश्वासघात की रोमांचक मर्डर मिस्ट्री युक्त फिल्म ‘‘हसीन दिलरूबा’’ लेकर आए हैं निर्देशक विनील मैथ्यू,जो कि इससे पहले तमाम विज्ञापन फिल्मों के अतिरिक्त फिल्म ‘‘हंसी तो फंंसी’’ का निर्देशन कर चुके हैं.

कहानीः

यह कहानी दक्षिण दिल्ली में पली बढ़ी रानी (तापसी पन्नू )से शुरू होती है. रानी एक ब्यूटीशियन है. वह बिंदास व कामेच्छुक लड़की है. जिसे उच्श्रृंखल पति की चाहती है. उसके अपने सपने हैं कि घर से दस कदम की दूरी पर राफ्टिंग हो,बालकनी से पहाड़ दिखे.

रानी की पसंद के अनुरूप उत्तराखंड में गंगा नदी के तट पर बसे ज्वालापुर में रहने वाले सीधे,शिष्ट व सुशील तथा पेशे से इंजीनियर रिषभ कश्यप उर्फ रिशु (विक्रात मैसे) के साथ शादी हो जाती है. उनके मकान से नदी व पहाड़ सब कुछ नजर आता है. रानी हमेशा दिनेश पंडित लिखित अपराधिक उपन्यासों की दुनिया में रहती है और अक्सर दिनेश पंडित के उपन्यासों के संवादों को गुनगुनाती रहती हैं.

ज्वालापुर पहुंचने के बाद रानी के सास (अलका कौशल) व ससुर (अमित ठाकुर) को पता चलता है कि रानी को खाना बनाना तो दूर चाय बनानी भी नहीं आती. पर रानी अपने ससुर के बाल काले कर,उनके चेहरे पर फेशवाश वगैरह लगाकर खुश कर देती है.

उधर रानी को दिल से प्यार करने वाले मगर होम्योपैथिक दवाओ में अपनी मर्दांनगी को तलाशते रिषभ कश्यप,रानी के साथ पति पत्नी के रिश्ते नही बना पाते,पर वह हमेशा रानी का दिल जीतने के प्रयास में लगे रहते हैं.

मगर शादी के बाद पत्नी को जिस सुख की चाहत है,उसे वह नही दे पा रहे हैं. इस बात की शिकायत रानी अपनी मॉं लता (यामिनी दास) व बीना मौसी (पूजा सरुप) से करती है, जो कि रिषभ को बुरा लगता है. रिषभ सारी बात अपने दोस्त अफजर ( ) को बताता रहता है.

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इसी बीच रिषभ का मौसेरा भाई नील त्रिपाठी (हर्षवर्धन राणे) उनके यहां एक माह के लिए सैलानियों को नाव में बैठाकर नदी की सैर कराने का काम करता है. नील को अहसास हो जाता है कि उसकी भाभी रानी को किस सुख की तलाश है. दोनों के बीच शारीरिक संबंध बनते हैं. और अब रानी चाय से लेकर मटन वगैरह सब कुछ बनाना सीखकर नील सहित पूरे परिवार को बनाकर खिलाती है.

इधर रानी व रिषभ के बीच दूरियां बढ़ती जाती हैं. एक दिन नील से रानी कहती है कि वह रिषभ को सच बताकर नील के साथ दिल्ली जाएगी. लेकिन एक दिन नील बिना किसी को बताए वहां से चला जाता है. उसके बाद रिषभ,रानी से कहता है कि जो अब तक हुआ उसे भूल कर नई शुरूआत करते हैं.

तब रानी, रिषभ को सच बता देती है कि वह तो अब नील से प्यार करती है और नील से उसने शारीरिक संबंध भी बनाए हैं. इस पर नील दिल्ली जाकर रिषभ को मारने का प्रयास करता है,पर खुद मारकर वापस आ जाता है. इससे रानी को अपनी गलती का अहसास होता है और वह रिषभ से माफी मांग कर नई शुरूआत करने की बात कहती है.

रिषभ उसे माफ करने को तैयार नही. लेकिन हालात ऐसे बनते हैं कि रानी व रिषभ के बीच प्यार परवान चढ़ता है. दोनो के बीच पति पत्नी जैसे शारीरिक संबंध भी बनते हैं. मगर एक दिन पता चलता है कि घर में आग लगी और एक कटा हुआ हाथ मिला,जिस पर रानी लिखा हुआ है. इससे पुलिस इंस्पेक्टर किशोर रावत (आदित्य श्रीवास्तव) को अहसास होता है कि रिषभ की हत्या हुई है. वह जांच शुरू करते हैं. शक की सुई रानी पर है.

लेखन व निर्देशनः

पिछले कुछ दिनों से मीडिया में इस बात को प्रचारित किया जाता रहा है कि पहली बार किसी लेखक को सम्मान मिला है. क्योंकि फिल्म ‘हसीन दिलरूबा’के ट्रेलर व पोस्टर में लेखक कनिका ढिल्लों का नाम दिया गया. जबकि अब तक ऐसा नही होता था. यदि यह बदलाव फिल्म इंडस्ट्री में आता है,तो वह स्वागत योग्य है. हम चाहेंगे कि इसी तरह हर फिल्म में लेखक का नाम प्राथमिकता के साथ दिया जाए.

मगर हमें इस बात को नजरंदाज नही करना चाहिए कि फिल्म ‘हसीन दिलरूबा’ के निर्माताओं में से एक हिमांशु शर्मा,लेखक कनिका ढिल्लों के निजी जीवन के पति हैं.

फिल्म ‘‘हसीन दिलरुबा’’ की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी इस फिल्म की कहानी,पटकथा व संवाद लेखक कनिका ढिल्लों ही हैं. इस फिल्म को देखते हुए कनिका ढिल्लों की कुछ वर्ष पहले की ‘पति पत्नी और वह’ के इर्द गिर्द घूमने वाली फिल्म ‘‘मनमर्जियां’’ की याद आ जाती है, जिसमें तापसी पन्नू के साथ अभिषेक बच्चन और विक्की कौशल थे.

फर्क सिर्फ इतना है कि ‘हसीन दिलरूबा’में मर्डर मिस्ट्री व रहस्य का तत्व जोड़ दिया गया है. अन्यथा फिल्म ‘मनमर्जिया’ में पति,पत्नी व प्रेमी का चरित्र जिस तरह का था, ठीक उसी तरह से ‘हसीन दिलरूबा’ में भी है. ‘मनमर्जियां’की ही तरह ‘हसीन दिलरुबा’ में पत्नी अपने पति से स्वीकार करती है कि प्रेमी संग उसके शारीरिक संबंध रहे हैं. ‘मनमर्जियां’की ही तरह ‘हसीन दिलरूबा’में टूट कर प्यार करने वाला पति,कामेच्छुक पत्नी व उच्श्रृंखल व हमबिस्तर होने को आमादा प्रेमी है. लेकिन ‘हसीन दिलरूबा’ में कसावट नही है.

फिल्म में रोमांच है,मगर बीच में फिल्म बोझिल हो जाती है. यह लेखक व निर्देशक दोनो की मात है. कई घटनाक्रम विश्वसनीयता व तार्किकता से कई गुना परे हैं. क्लायमेक्स भी गड़बड़ है. बतौर निर्देशक विनील मैथ्यू बुरी तरह से मात खा गए.

फिल्म के कुछ संवाद ठीक ठाक हैं. मसलन-‘अमर प्रेम वही है जिस पर खून के हल्के हल्के-से छींटे हों, ताकि उसे बुरी नजर न लगे. ’ अथवा ‘होश में तो रिश्ते निभाए जाते हैं. ’

कैमरामैन का काम भी औसत दर्जे का है.

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अभिनयः

तापसी पन्नू के अंदर अभिनय क्षमता की कमी नही है. आत्मग्लानि से भर कर अपराध को स्वीकार करने वाली गृहिणी के रूप में तापसी जरुर प्रभावित करती हैं. मगर कई दृश्यों में वह वह खुद को दोहराते हुए ही नजर आती हैं. इससे बचने के लिए तापसी को मुंबइया फिल्म मेंकिंग से दूरी बनाने की जरुरत है.

विक्रांत मैसे 2008 से टीवी व फिल्मों में अभिनय करते आ रहे हैं,पर पता नहीं क्यों वह बार बार किरदार व फिल्मों का चयन गलत करते जा रहे हैं.

इस फिल्म में नील के छोटे किरदार में भी हर्षवर्धन राणे अपने अभिनय का जलवा दिखाकर दर्शकों पर अपनी अमिट छाप छोड़ जाते हैं. आदित्य श्रीवास्तव,दयाशंकर पांडे आदि कलाकार ठीक ठाक हैं.

एक बार फिर ट्रोल हुईं Kareena Kapoor Khan, फोटोज देख कही ये बात

बौलीवुड एक्ट्रेस करीना कपूर खान (Kareena Kapoor Khan) आए दिन सुर्खियों में छाई रहती हैं. हालांकि कई बार वह ट्रोलिंग का शिकार भी हो जाती हैं. इसी बीच एक्ट्रेस करीना कपूर (Kareena Kapoor Khan) के लेटेस्ट फोटोज के चलते ट्रोलिंग का सामना करना पड़ रहा है. दरअसल, हाल ही में दूसरी बार मां बनने के बाद करीना कपूर खान के फोटोज शेयर की थीं, जिसमें उनका ट्रांसफौर्मेशन देख फैंस का रिएक्शन देखने को मिल रहा है. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला…

फोटोज में दिखा ट्रांसफौर्मेशन

दूसरी बार मां बनने के बाद एक्ट्रेस करीना का वजन बढ़ गया था, जिसके कारण ट्रोलिंग का सामना करना पड़ता था. इसी बीच हाल ही में शेयर की गई फोटोज में करीना कपूर खान घर की बालकनी में योगा करती हुई नजर आईं थीं, जिसके बाद फैंस का रिएक्शन देखने को मिला था. वहीं कुछ लोगों ने उन्हें बूढ़ी भी कह दिया था.

 

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ट्रोलर्स ने कही ये बात

करीना कपूर की फोटोज पर ट्रोलर्स को एक बार फिर से अपनी भड़ास निकालने का मौका मिल गया है. एक यूजर ने फोटोज पर कॉमेंट किया है, तुम इतनी सूजी हुई क्यों दिख रही हो बेबो? ऐसा लग रहा है कि किसी ने तुम्हें कई बार मारा है. एक दूसरे यूजर ने लिखा है, बेबो अब तुम बूढ़ी हो गई हो.

बता दें, बीते दिनों करीना कपूर बहन करिश्मा की बर्थडे पार्टी में नजर आईं थीं, जिसमें उनका लुक बेहद खूबसूरत लग रहा था. हालांकि ट्रोलर्स ने उनके मोटापे को लेकर ट्रोल करना शुरु कर दिया था. हालांकि वह अपनी नई फिल्म के लिए दोबारा ट्रांसफौर्मेशन के लिए तैयार हो रही हैं. अब देखना है कि बेबो ट्रोलर्स को कैसे करारा जवाब देती हैं.

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REVIEW: जानें कैसी है वेब सीरीज समांतर 2

रेटिंगः तीन स्टार

निर्माताःअरूण सिंह बरन और कर्तक डी निभानवर

लेखकः सुहास शिरवलकर के उपन्यास ‘समांतर’ पर आधारित

निर्देशकः समीर विदवांस

कलाकारः स्वप्निल जोशी,तेजस्वी पंडित,साई ताम्हणकर,नितीश भारद्वाज,विक्रम गायकवाड़,जयंत सावरकर,मनोहर कोल्हाटकर,रिषिकेश पांडे,गणेश महादेव रेवाड़ेकर,अमृत गायकवाड़ व अन्य.

अवधिः 20 से 32 मिनट के दस एपीसोड,लगभग सवा चार घंटे

ओटीटी प्लेटफार्म: एम एक्स प्लेअर

भाषाएं: मराठी,हिंदी,तमिल व तेलगू

यदि आपको पहले से ही पता चल जाए कि भविष्य में क्या होने वाला है,तो आप होने वाली घटनाओं को रोकने और अपनी तकदीर को अपने सपनों जैसा बनाने की कोशिश कर सकते हैं?क्या कोई नियति को चुनौती देकर उससे जीत सकता है?इसी सवाल का जवाब ढूढ़ने के लिए निर्देशक समीर विदवंास मराठी भाषा की दिलचस्प रोमांचक वेब सीरीज ‘समांतर’ का दूसरा सीजन  लेकर आए हैं,जो कि ओटीटी प्लेटफार्म ‘एम एक्स प्लेअर’ पर एक जुलाई से स्ट्रीम हो रही है. पहले सीजन का निर्देशन समीर ने नही किया था.

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कहानीः

2020 में ‘‘एम एक्स प्लेअर’’ पर ही वेब सीरीज ‘‘सामांतर ’का पहला सीजन स्ट्रीम हुआ था. इस कहानी में एक इंसान,एक साया और इन दोनों के हाथ की लकीरों को जोड़ने का प्रयास है. कहानी के अनुसार  अपनी जिंदगी और रोज रोज की कलह से परेशान होकर शादीशुदा कुमार महाजन (स्वप्निल जोशी)  अपने मित्र की सलाह पर एक स्वामी(जयंत सावरकर)  जी के पास अपना भविष्य जानने गए थे. स्वामी जी ने अपनी विद्या के बल पर कहा था कि उसके हाथ की लकीरें तो किसी और के हाथों की लकीरे हैं,वह इंसान तीस वर्ष पहले अपनी जिंदगी जी चुका है और अब वही कुमार महाजन का भविष्य होने वाला है. स्वामी जी की सलाह पर कुमार महाजन,सुदर्शन चक्रपाणी(नितीश भारद्वाज)की तलाश में निकल पड़ते हैं. उनकी मुलाकात चक्रपाणी से होती है. चक्रपाणी उन्हे डायरी देते हुए कहता है कि इसके पन्नों में चक्रपाणी का अतीत और महाजन का भविष्य लिखा है. चक्रपाणी हिदायत देते हैं कि वह डायरी का जिक्र किसी से न करें तथा एक दिन में सिर्फ एक ही पन्ना पढ़े. यहीं से ‘समांतर’के सीजन दो की कहानी शुरू होती है.

पूरे सीरीज में तीस वर्ष पहले की सुदर्शन चक्रपाणी, उनकी पत्नी और चक्रपाणी की जिंदगी में आने वाली संुदरा(साई ताम्हणकर )की कहानी चलती है,उसी के समांतर कुमार महाजन की जिंदगी में भी वही सब घटित होता रहता है.  इन दोनों की जिंदगी एक जैसी है और शायद उनकी किस्मत भी.

कुमार महाजन(स्वप्निल जोशी)  के ससुर शरद(गणेश महादेव रेवाड़ेकर)  अपनी बेटी व कुमार महाजन की पत्नी नीमा (तेजस्वनी पंडित)को समझा रहे हैं कि कुमार को छोड़ देने में ही उसकी भलाई है. मगर डायरी मिलते ही कुमार महाजन की जिंदगी बदलती है. उसे ‘शाह एंड कंपनी’’ में डिवीजन मैनेजर की नौकरी मिल जाती है और कोल्हापुर में कंपनी की तरफ से बंगला और गाड़ी भी मिलती है. कुमार महाजन अपनी पत्नी नीमा व आठ वर्ष के बेटे संजू(अमृत गायकवाड)  के साथ कोल्हापुर पहुंचते हैं. जिंदगी खुशहाल है. वह इमानदार है. इसी के चलते ‘शाह एंड कंपनी’के पुराने ग्राहक प्रताप बावसकर (रिषिकेश देशपांडे)  से उसकी नही जमती. प्रताप बावसकर,कुमार को खरीदने के लिए नोटों से भरा बैग भेजते हैं. कुमार डायरी का पन्ना पढ़ता है,जिसमे लिख है‘‘एक औरत जिंदगी में आएगी. ’कुमार तय करता है कि वह किसी भी औरत को अपनी जिंदगी में नही आने देगा. पर रात में आफिस से देर में लौटने पर नीमा के सवालों से चिढ़ जाते हैं. गुस्से में नीमा बेटे संजू के साथ अपने पिता शरद के पास मंुबई लौट जाती है. इधर कुमार महाजन,प्रताप बावसकर के घर उनका नोटों का बैग वापस देने जाते है,वहीं पर वह देखता हैं कि प्रताप बावसकर अपनी पत्नी मीरा बावसकर(साई ताम्हणकर)संग विक्षिप्त की तरह शारीरिक संबंध बनाते हुए मीरा को प्रताड़ित कर रहे हैं. कुमार चुपचाप लौट आते हैं. मगर मीरा देख लेती है कि कुमार महाजन पैसे का बैग रख कर गए. फिर मीरा,अपनी नग्न तस्वीर कुमार महाजन के मोबाइल पर भेज देती हैं. इधर मीरा और कुमार के बीच फोन पर मीठी बातें होते होते कड़वाहट आ जाती. तो वहीं मीरा किसी न किसी बहाने कुमार के नजदीक आने के प्रयास में रहती है. कहानी में कई मोड़ आते हैं. कुमार महाजन न चाहते हुए भी मीरा के जाल में फंस जाते हैं,पुलिस पकड़ती है, अदालत में मीरा के एक बयान से अदालत कुमार को निर्दोष बताकर छोड़ देती है,मगर मीरा के बयान से नीमा आहत होती है और अपने पिता के घर जाकर आत्महत्या कर लेती है. उसके बाद कुमार महाजन,चक्रपाणी से मिलते है और कहते हैं कि अब वह अपने वर्तमान व अपने कर्म के बल पर अपनी नियति बनाएंगे,पर चक्रपाणी कहते हैं कि तेरी नियति तकदीर तय है और वही होगा,जो डायरी के अंतिम पन्नें में लिखा है. फिर कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. अंततः डायरी के अंतिम पन्ने पर लिखी हुई घटना ही घटित होती है.

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लेखन व निर्देशनः

पहले सीजन के मुकाबले दूसरा सीजन काफी कसा हुआ और दर्शकों को बांधकर रखने वाला है. शायद इसकी वजह यह है कि इसका निर्देशन अनुभवी निर्देशक समीर विदवांस ने किया है. लेकिन इस वेब सीरीज में बेवजह गंदी गालियों व अश्लील सेक्सी दृश्यों को ठॅूंसा गया है,यदि इनसे बचने का प्रयास किया जाता,तो भी यह एक बेहतरीन वेब सीरीज बन सकती थी. पर ‘एमएक्स प्लेअर’की हर वेब सीरीज में गालियां और सेक्स दृश्यों का होना अनिवार्य सा होता जा रहा है. फिल्म की गति बेहतरीन है,हर एपीसोड में रोचकता बरकरार रहती है. पर कुछ दृश्यों का दोहराव अखरता है. वहीं कुछ दृश्यों पर यकीन करना मुश्किल होता है. इसके अलावा यह वेब सीरीज कहीं न कहीं ज्योतिष और नियति तकदीर को लेकर अंधविश्वास को बढ़ावा देती है,जिसे सही नही जा सकता. क्योंकि यह वेब सीरीज इंसान के कर्म से भविष्य बदलने को दरकिनार करते हुए कहती है कि इंसान की किस्मत में जो लिखाहै,उसे वह बदल नही सकता. यह व्यावहारिक भी नहीं है. इस सीरीज की कहानी एक नास्तिक इंसान को आस्तिक बनाने का प्रयास ही है.

वेब सीरीज का क्लायमेक्स जबरदस्त है.

अभिनयः

कुमार महाजन में स्वप्निल जोशी का अभिनय शानदार है. कुमार महाजन जिस तरह से डायरी में लिखी बात को गलत साबित करने के लिए एक मानसिक लड़ाई लड़ता है,उसे बेहतर तरीके से स्वप्निल जोशी ने जीवंतता प्रदान की है. नीमा के छोटे किरदार में भी तेजस्वनी पंडित अपनी छाप छोड़ जाती हैं. संुदरा और मीरा की दोहरी भूमिका में कमाल का अभिनय किया है.  सुंदरा और मीरा दोनो का मकसद एक ही है,फिर भी दोनों में उनके आर्थिक पक्ष और जिस माहौल के है,उस अंतर को बाखूबी निभाने में साई ताम्हणकर सफल रही हैं. फिर भी सुंदरा की बनिस्बत मीरा के किरदार में साई ताम्हणकर का अभिनय ज्यादा शानदार है. सुदर्शन चक्रपाणी के किरदार को नितीश भारद्वाज ने अपने अभिनय से जीवंतता प्रदान की है,मगर उनके चेहरे की मुस्कान व हॅंसी का जो मैनेरिज्म है,वह हमें तीस वर्ष पहले सीरियल ‘महाभारत’में उनके द्वारा निभाए गए कृष्ण की मुस्कान की याद दिलाता है. अन्य कलाकार भी अपनी जगह एकदम फिट हैं.

एक्ट्रेस विद्या बालन को नहीं करना पड़ता अब किसी का इंतज़ार, जानें वजह  

फिल्म ‘परिणीता’से एक्टिंग के क्षेत्र में चर्चित होने वाली अभिनेत्री ‘विद्या बालन ने इंडस्ट्री में अपनी एक अलग छवि बनाई है. उन्होंने इंडस्ट्री में अभिनेता और अभिनेत्री के बीच पारिश्रमिक और सुविधाओं की असमानता को कम किया है और सिद्ध कर दिया है कि अभिनेत्रियाँ भी फिल्म को लीड कर सकती है. यही वजह है कि आज कई निर्माता निर्देशक उन्हें अपनी फिल्मों में लेना पसंद करते है. उनकी प्रसिद्ध फिल्में‘लगे रहो मुन्ना भाई’, ‘द डर्टी पिक्चर’ ‘कहानी’ आदि कई है. विद्या स्वभाव से हँसमुख, विनम्र और स्पष्ट भाषी है. फिल्म ‘लगे रहो मुन्ना भाई’ उसके करियर की टर्निंग पॉइंट थी, जिसके बाद से उन्हें पीछे मुड़कर देखना नहीं पड़ा. उन्होंने बेहतरीन परफोर्मेंस के लिए कई अवार्ड जीते और साल 2014 में उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से नवाज़ा गया. विद्या तमिल, मलयालम, हिंदी, अंग्रेजी और बांग्ला अच्छा बोल लेती है. विद्या की फिल्म ‘शेरनी’रिलीज हो चुकी है, जिसमें उन्होंने शेरनी की मुख्य भूमिका निभाकर मानव और जंगली जानवरों के बीच एक तालमेल के बारे में बताई है, जो इस धरती के लिए जरुरी है. फिल्म की सफलता पर खुश विद्या ने बात की. पेश है कुछ अंश.

सवाल-फिल्म की सफलता आपके लिए क्या माइने रखती है?

इस सफलता से मुझे बहुत ख़ुशी है, क्योंकि ये एक अलग तरीके की फिल्म है. इसे दर्शक कितना पसंद करेंगे, ये पता नहीं चल पा रहा था, लेकिन एक लालच थी कि 240 देशों के लोग इसे देख सकेंगे. अच्छी बात अभी ये भी है कि ओटीटी पर रिलीज होने की वजह से दर्शक जब चाहे इसे देख सकता है. दर्शकों ने फिल्म देखी और मुझे अच्छे-अच्छे मेसेज भेजे, इस बार शर्मीला टैगोर ने भी फिल्म की तारीफ की.

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सवाल-आपने हमेशा अलग-अलग विषयों पर काम किया है, इस दौरान कई उतर-चढ़ाव आये, किसने साथ दिया?

मेरे जीवन की सबसे स्ट्रोंग पर्सन मेरी माँ सरस्वती बालन है, जो मुश्किल घड़ी में शांत रहकर आसानी से उसे पार कर लेती है. उन्होंने हम दोनों बहनों को खुद की ड्रीम पूरा करने का साहस दिया है. फिल्म इश्कियां से पहले मैं बहुत कन्फ्यूज्ड रहा करती थी. मैं हिंदी फिल्मों के लिए बनी हूं या नहीं. ये सोचती रहती थी, लेकिन इश्कियां के लिए मैं फिट बैठ गयी. आगे भी मैंने  अलग विषयों पर काम किया है. मेरे लिए हीरो ओल्ड है या जवान कुछ फर्क नहीं पड़ता. मैंने रिस्क लिया और कामयाब रही. अभी जब मैं पीछे मुड़कर देखती हूं, तो लगता है कि मैंने जो ड्रीम अपने जीवन में देखी थी, वह धीरे-धीरे पूरी हो रही है. मैं एक विषय से ऊब जाती हूं, इसलिए अलग-अलग विषयों पर काम करती हूं, इससे मेरे अंदर काम करने की इच्छा बनी रहती है.

सवाल-आजकल की महिलाएं बहुत मजबूती से आगे बढ़ रही है, लेकिन एक सीमा तक पहुँचने के बाद उन्हें मंजिल तक जाने से रोका जाता है, इसकी वजह आप क्या मानती है?

फारेस्टलाइफ में शेरनी चुपचाप शिकार की तलाश में शांत बैठी रहती है और शिकार को देखते ही उसपर छलांग मारकर उसे झपट लेती है, लेकिन रियल लाइफ में ऐसा नहीं हो सकता, लेकिन औरतों को जब भी ताने सुनने को मिले या लोग उनके सपनों को समझ नहीं रहे है,तो चुपचाप उसे सुने या अनसुना कर दें और समय आने पर उसका जवाब दें, क्योंकि जिंदगी एक है और हर महिलाको अपनी ड्रीम पूरा करने का हक है.

सवाल-कई बार उच्च प्रशासनिक पद पर कार्यरत महिलाएं एक मुकाम तक पहुंचकर आगे नहीं बढ़ पाती, क्योंकि उस स्थान से वापस आना ही भलाई समझती है, ऐसे महिलाओं के लिए आपकी मेसेज क्या है?

ये सही है कि लड़कियों की परवरिश इसी तरह से की जाती है, उन्हें किसी प्रकार की चुनौतियों से आगे बढ़ने की सलाह नहीं दी जाती, बल्कि पीछे हटने के लिए कह दिया जाता है. डर पर काबू पाना जरुरी है और सभी महिलाओं में ताकत होती है, उन्हें सिर्फ समझना पड़ता है, तभी हम आगे बढ़ सकते है.

सवाल-महिलाओं को कमतर समझने की वजह क्या है? क्या आपको कभी इसका सामना करना पड़ा?

महिलाएं खुद को ही कमतर समझती है, उन्हें खुद की काबिलियत पर संदेह होने लगता है. ये उनके दिमाग में चलता रहता है. असल में महिलाओं ने काफी सालों बाद बहुत सारे क्षेत्रों में काम करना शुरू किया है. उसमें एडजस्ट होने में समय लगेगा. हर महिला अपनी बात तेज आवाज में नहीं रख पाती. चुप रहकर भी कुछ महिलाएं अपना काम निकाल लेती है. कैरियर की शुरू में बहुत बार ऐसा हुआ है, जब सबने मुझे कमतर समझा. जब मैंने फिल्म कहानी की, तो सबको लग रहा था कि ये फिल्म नहीं चलेगी, जबकि ‘ द डर्टी पिक्चर’ को सबने सही कहा, क्योंकि ये मसाला और सेक्सी फिल्म है. एक प्रेग्नेंट महिला, जो अपने खोये हुए पति की खोज में है, उस पिक्चर को कौन देखना चाहेगा? इसकी वजह केवल मैं नहीं, बल्कि सब्जेक्ट, फिल्म की टीम सभी को कम समझा गया, लेकिन कहानी इतनी चली कि सबकी बोलती बंद हो गयी.

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सवाल-फिल्म इंडस्ट्री में क्या आपको लैंगिक असामनता का सामना करना पड़ा? उसे कैसे लिया?

बहुत बार सामना करना पड़ा, क्योंकि आसपास के लोगों में ये धारणा रहती है कि लड़की और लड़के की काम में अंतर है. जब लड़की इसे तोड़ कर आगे बढती है, सब उन्हें रोकते है. जब मैं इश्कियां कर रही थी तो सबका कहना था कि बड़ी मुश्किल से एक फिल्म महिला प्रधान बनती है, लेकिन मैंने इन 13 वर्षों में उनके इस प्रश्न का उत्तर दे दिया है. इसके अलावा शुरूआती दौर में एक्टर के हिसाब से डेट देने पड़ते थे, एक्टर के लिए बड़ा कमरा, बड़ा वैन होता था. ये सीनियर कलाकारों को ही नहीं, बल्कि नए चेहरे को भी ऐसी सहूलियत मिलती थी. वह सही नहीं लगता था. इसके अलावा एक्टर समय से 3 या 4 घंटे लेट आता था. मुझे अच्छा नहीं लगता था और सोचती थी कि ये कब बदलेगा. अभी बदला है, मुझे किसी का अब इंतज़ार नहीं करना पड़ता.

REVIEW: लिखावट में बिखराव के बावजूद पीरियड कहानी का बेहतरीन चित्रण ‘ग्रहण’

रेटिंगः ढाई स्टार

निर्माताः जार पिक्चर्स

निर्देशकः राजन चांदेल

लेखकः सत्य व्यास के उपन्यास ‘‘चैरासी’’से प्रेरित

क्रिएटरः शैलेंद्र झा

कलाकारः पवन मल्होत्रा, जोया हुसैन, अंशुमन पुष्कर, वामिका गब्बी, टीकम जोशी, सहिदुर रहमान व अन्य.

अवधिः 45 से 55 मिनट के आठ एपीसोड,कुल अवधि छह घ्ंाटे 48 मिनट

ओटीटी प्लेटफार्मः हॉट स्टार डिज्नी

लेखक सत्यव्यास ने 1984 के सिख विरोधी दंगों की पृष्ठभूमि में  एक प्रेम कहानी के साथ कुत्सित राजनीति,जांच आदि की भावनात्मक उथल पुथल वाला काल्पनिक उपन्यास ‘‘चैरासी’’ लिखा था,जिस पर निर्देशक राजन चंदेल लगभग सात घंटे की अवधि की आठ एपीसोड वाली वेब सीरीज ‘‘ग्रहण’’लेकर आए हैं.

‘ग्रहण’एक भावनात्मक रूप से आहत करने वाली कहानी है,जो 1984 के सिख विरोधी दंगों की भयानक तबाही के बीच नाटकीय रूप से चलती हुई मानवता के उत्कर्ष को छूती है,जहां अब 1984 के दंगो को राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते हवा देने वाला इंसान ही उस गंदगी को खत्मकर राजनीति को भी साफ करने पर आमादा है.

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कहानीः

कहानी 2016 में रांची से शुरू होती है और बार बार 1984 के बोकारो आती जाती रहती है. कहानी 2016 में रांची से शुरू होती है,जहां गुरूसेवक(पवन मल्होत्रा ) अपनी बेटी व एसपी अमृता सिंह (जोया हुसेन ) के साथ रह रहे हैं. अम्रता सिंह का प्रेमी कार्तिक (नंदिश संधू ) कनाडा से आया हुआ है, दोनों के बीच प्रेम कीड़ा शुरू होते ही पत्रकार संतोष जायसवाल का फोन आता है. अमृता तुरंत कार्तिक को वैसे ही छोड़कर भागती है,मगर संतोष मारा जाता है.

शक के तौर पर अमृता सिंह दो लोगों को गिरफ्तार करती है,जिन्हे बाद में डीआईजी केशर छोड़ देते हैं. उधर मुख्यमंत्री केदार भगत( सत्यकाम आनंद  )अपने प्रतिद्वंदी संजय सिंह उर्फ चुन्नू (टीकम जोशी )को फंसाने के लिए डीआईजी केशर को आदेश देते हंै कि वह 1984 के बोकारो कांड की जांच के लिए एआईटी बनाएं. केशर एसआईटी बनाकर जांच अधिकारी डीएसपी विकास मंडल(सहिदुर रहमान  ) को बना देते हैं. फिर डीआई केशर,अमृता सिंह को एसआईटी का प्रमुख बना देते हैं.

विकास मंडल,अमृता को 1984 के बोकारो दंगे के दौरान लोगों के घरो में आग लगा रहे रिषि रंजन की एक तस्वीर देता है. तस्वीर देखकर अमृता परेशान हो जाती है. क्यांेकि यह तस्वीर तो उनके पिता गुरूसेवक की है और उसने अपने पिता को लोगों की मदद करते हुए देखती आयी है. वह अपने पिता से सवाल करती है,पर पिता चुप रहते हैं. लेकिन अब अमृता भी सच जानना चाहती है कि अगर  दंगे के समय उसके पिता थे,तो क्या वजह थी.

इसी के साथ अब कहानी तीन स्तर पर 2016 के रांची व 1984 के बोकारो में चलती रहती है. एक तरफ 1984 में रिषि रंजन(अंशुमन पुष्कर) और मंजीत कौर छाबड़ा उर्फ मनु(वामिका गब्बी )की प्रेम कहानी चलती है,जो कि संजय सिंह की नफरत भरी महत्वाकांक्षा से घिरी हुई है. जबकि रिषि रंजन का दोस्त झंडू भी मनू से प्यार करता है. तो दूसरी तरफ अमृता व विकास मंडल बोकारो में जब लोगों से मिलते हैं,तो वह 31 अक्टूबर व एक नवंबर 1984 की घटना व उससे जुड़े लोगों के बारे में बताते हैं.

31 अक्टूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री की हत्या के बाद बोकारो की स्टील फैक्टरी के प्रबंधक द्वारा ही कत्लेआम की साजिश रची गयी थी,जिसमें रिषि रंजन,झंडू सहित कई युवक शामिल हुए थे. तीसरे स्तर पर वर्तमान समय में 1984 के दंगो से जुड़े रहे राजनेेताओं की एसआईटी जांच की आड़ में एक दूसरे को पटकनी देने की राजनीतिक शतरंजी चालें चली जाती रहती हंै.

लेखन व निर्देशनः

कुछ जख्म कभी नही भरते. वह सतह के नीचे सदैव फड़फड़ाते रहते हैं. और इन जख्मों की छाप उसकी अगली पीढ़ी पर भी पड़ती ही है. ऐसे ही जख्म और मानव द्वारा रचे गए प्रलय के घटनाक्रम पर यह वेब सीरीज बनायी गयी है,जो कि इंसानों के अलावा सदैव राजनीतिक हलकों में भी गर्म रहती है,तो वहीं महज राजनीतिक स्वार्थ की रोटी सेंकने के लिए कुछ नेताओं ने जिस तरह से इस घटना को अंजाम दिलाया था,वह सब कुछ बहुत से लोगों के दिलों में जिंदा है.

कुछ दिन पहले ही एक सिख फिल्मकार से हमारी बात हुई,तो उसने कबूला कि उनके माता पिता को किस तरह से पंजाब मंे सब कुछ छोड़कर गुजरात में शरण लेनी पड़ी थी और गुजरात में भी उन्हे आतंकवादी कहा जाता था. पर वेब सीरीज में वह दर्द उसी वेग के साथ नही उभरता. जबकि मानवता का चरमोत्कर्ष जरुर है. कुत्सित राजनीति पर भी खुलकरकुछ भी कहने से फिल्मकार बचते हुए नजर आए हैं,यानीकि वह पलायनवादी हो गए हैं. परिणामतः कुछ बातें अस्पष्ट रह जाती हैं. प्रेम कहानी में भी ऐसा कुछ नही है,जो कि लोगों के दिलों को दू सके.

हर एपीसोड का अलग नामकरण भी किया है. अफसोस पहला एपीसोड जितना कसा हुआ है,वैसी कसावट बाद के एपीसोडो में नही हैं. विखरी हुई लिखावट के चलते कहानी यानी कि कथा कथन में प्रवाह नही रहता. आठवें एपीसोड में जिस तरह से अदालत के अंदर के दृश्य फिल्माए गए हैं,वह तो काफी हास्यास्पद हैं. क्लायमेक्स भी जंचा नही.

लेखक व निर्देशक ने बहुत कुछ सत्य निरूपित किया है. इसमें गुरसेवक यानी कि पवन मल्होत्रा का एक संवाद है-‘‘उस वक्त हालात ऐसे थे कि हम या तो उनके साथ थे या उनके ख्लिाफ. ’’पर तीन एपीसोड बाद चुन्नू उर्फ संजय सिंह यानी कि अभिनेता टीकम जोशी,गुरूसेवक यानी कि अभिनेता पवन मल्होत्रा से कहते हैं-‘‘आज भी वही हालात है, या तो हम उनके साथ हो सकते हैं या उनके खिलाफ. ’’यह संवाद आज भी सच्चाई का आईना हैं. यानी कि वर्तमान मंे जो हालात हैं,उसमें आप या तो ‘बाएं‘ या ‘दाएं‘ हो सकते हैं,बीच का कोई रास्ता नहीं है.

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इसके कुछ दूसरे संवाद मसलन-‘‘हम दूसरे घाव दिखाकर अपने घाव छिपाना चाहते हैं. ’

आठ एपीसोडों को अनु सिंह चैधरी, नवजोत गुलाटी, प्रतीक पयोढ़ी, विभा सिंह, रंजन चंदेल, शैलेंद्र कुमार झा और सलाहकार लेखक करण अंशुमान और अनन्या मोदी ने गढ़ा है. सूक्ष्मता से लिखी गयी इस कहानी में एक मार्मिक और विचलित करने वाली तस्वीर भी है तो वहीं काफी कुछ मेलोड्ामा भी है. कहानी में दोहराव काफी है. यदिल लेखकीय टीम व निर्देशक ने थोड़ी मेहनत की होती तो यह एक क्लासिंक वेब सीरीज बन सकती थी,जिसकी जरुरत भी है.

इतना ही तकनीक रूप से भी यह वेब सीरीज काफी कमजोर है. निर्देशन के साथ साथ एडीटिंग में भी कमियां हैं. दो तीन दृश्यों में तो दृश्य बाद में शुरू होता है और संवाद पहले आ जाते हैं. मसलन- कनाडा में कार्तिक ,मंजीत कौर से मिलने उनके घर जाता है. कार्तिक घर के बाहर ही रहता है,मगर कार्तिक व मंजीत के बीच बातचीत के संवाद शुरू हो जाते हैं.

प्रोडक्शन डिजाइनर वसीक खान अस्सी के दशक व उस काल के बोकारो को सटीक ढंग से उभारा है. कैमरामैन कमलजीत नेगी बधाई के पात्र हैं. अमित त्रिवेदी के गाने गति के साथ तालमेल बिठाते हैं.

अभिनयः

गुरूसेवक के किरदार में पवन मल्होत्रा ने शानदार परफार्मेंस देते हुए एक बार फिर हर किसी को अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने में सफल रहे हैं. जोया हुसेन की परफार्मेंस जानदार है. कुछ दृश्यों में तो वह बेहतरीन काम कर गयी,पर कुछ जगह मात खा गयी.

रिषि रंजन के किरदार में अस्सी के दशक के हालात से मजबूर,गुस्सैल पर प्यार के लिए किसी भी हद तक जाने वाले रिषि रंजन के किरदार को अंशुमान पुष्कर ने एकदम सही ढंग से परदे पर उकेरा है.

मंजीत कौर उर्फ मनु के किरदार में वामिका गब्बी आकर्षक हैं. कुछ दृश्यों में उन्होने इंगित किया है कि उनके अंदर अभिनय क्षमता है,उसे निखारने वाले निर्देशक की जरुरत है.

तेज तर्रार, कपटी व चालाक लोमड़ी चुन्नू के किरदार को टीकम जोशी ने अपने शानदार अभिनय से जीवंतता प्रदान की है.

डीएसपी विकास मंडल के रूप में सहिदुर रहमान अद्भुत यथार्थवादी हैं. कई दृश्यों में उनकी आंखे व उनके चेहरे के भाव काफी कुछ कह जाते हैं.

फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह का हुआ निधन, एक हफ्ते पहले छूटा था पत्नी का साथ

काफी दिनों तक कोरोना से जंग लड़ने के बाद भारत के महान धावक मिल्खा सिंह जिंदगी की जंग हार गए. 91 साल की उम्र में कोरोना के चलते फ्लाइंग सिख ने चंडीगढ़ पीजीआई में अंतिम सांस ली. मिल्खा सिंह वो धावक हैं जिन्होंने ने चार बार एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीता है. साथ ही वह 1958 कॉमनवेल्थ गेम्स के चैंपियन भी हैं. 1960 रोम ओलिंपिक खेलों में कुछ मामूली अंतर से पदक से चूक गए थे. दरअसल मेडलिस्ट मिल्खा सिंह को मई माह में कोरोना पॉजिटिव हो जाने पर अस्पताल में भर्ती कराया गया था और पिछले एक महीने से कोरोना से जंग लड़ रहे थें.

खबरों के मुताबिक मिल्खा सिंह को 3 जून को पीजीआई में भर्ती कराया गया था.क्योंकि उनका ऑक्सीजन लेवल कम हो गया था. इससे पहले उनका घर पर ही इलाज चल रहा था….जबकि वो इससे पहले उनकी कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव आए थें. इसके बाद उन्हें कोविड आईसीयू से सामान्य आईसीयू में भेज दिया गया था. फिर खबरों से पता चला की उनकी हालत गंभीर हो गई थी और अब नतीजा आपके सामने है.

सबसे दु:खद बात ये है कि उनके परिवार ने बताया था कि इससे पहले उनकी पत्नी निर्मल कौर का कोविड-19 संक्रमण से जूझते हुए 13 जून को मोहाली में एक निजी अस्पताल में निधन हो गया था. निर्मल कौर खुद एक एथलीट रही थीं. खास बात ये है कि वह भारतीय महिला वॉलीबॉल टीम की कप्तान रह चुकी थीं. मिल्खा जी के लिये दिन थोड़ा मुश्किल रहा…लेकिन वह इससे संघर्ष कर रहे थें. मिल्खा सिंह के साथ निर्मल कौर की शादी साल 1962 में हुई थी. लेकिन दोनों ने ही बारी- बारी से इस दुनिया को अलविदा कह दिया.

आइए जानते हैं उनकी जिंदगी की कुछ दिलचस्प बातें…

भले ही अब भारत के सबसे महान एथलीट मिल्खा सिंह हमारे बीच नहीं रहे लेकिन उनका कभी नहीं भूल पाएगा ये देश….

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मिल्खा सिंह का जन्म 20 नवंबर 1929 को पाकिस्तान में हुआ था….मिल्खा सिंह का जन्म अविभाजित भारत (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था, लेकिन आजादी के बाद वो हिंदुस्तान आ गए थें. चार बार एशियन गेम्स के गोल्ड ट्रेक एंड फील्ड में कई रिकॉर्ड बनाने वाले इस दिग्गज को फ्लाइंग सिख नाम किसने दिया तो….दरअसल उन्हें ये नाम पाकिस्तान के तानाशाह जनरल अयूब खान ने दिया था. ये नाम उन्हें सन 1960 के धाकड़ एथलीट अब्दुल खालिक को रेस में हराने पर दिया था. इतना ही नहीं उस वक्त शायद वो ओलंपिक भी जीत जाते लेकिन बहुत ही मामूली अंतर से वो चौथे स्थान पर आए थें लेकिन कड़ी टक्कर दी थी. मिल्खा सिंह को सन 1959 में पद्मश्री सम्मान भी मिला था.

मिल्खा सिंह ने एक बार एक इंटरव्यू में कहा था…कि मेरी आदत थी कि मैं हर दौड़ में एक दफा पीछे मुड़कर देखता था… रोम ओलिंपिक में दौड़ बहुत नजदीकी थी और मैंने शुरुआत तो बहुत जबरदस्त ढंग से की थी. लेकिन आदत से मजबूर मैंने एक बार पीछे मुड़ कर देखा और वहीं मेरी गलती थी…मैं वहीं चूंक गया क्योंकि उस दौड़ में कांस्य पदक विजेता का समय 45.5 सेकंड था और मेरा ने 45.6 सेकंड…मैं मात्र एक सेकंड से चूक गया. हालांकि एशियाई खेलों में 4 और कॉमवेल्थ गेम्स में एक गोल्ड हैं मिल्खा सिंह के नाम…एक जानने वाली बात ये भी है कि रोम ओलंपिक में मिल्खा सिंह नंगे पांव बिना जूतों के दौड़े थें.

मिल्खा सिंह के संघर्ष पर फिल्म भी बन चुकी है जिसमें मिल्खा सिंह का रोल निभाया था एक्टर फरहान अख्तर.
दिग्गज धावक मिल्खा सिंह के जीवन पर ‘भाग मिल्खा भाग’ नाम से फिल्म बनी है. खबरों के मुताबिक उड़न सिख के नाम से फेमस मिल्खा सिंह ने कभी भी हार नहीं मानी उनका पूरा जीवन संघर्षों से भरा रहा. हालांकि मिल्खा सिंह ने कहा था कि भले ही उन पर फिल्म बनी है लेकिन फिल्म में उनकी संघर्ष की कहानी उतनी नहीं दिखाई गई है जितनी कि उन्होंने अपने जीवन में झेली है.

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महान ऐथलीट के निधन पर पीएम मोदी ने भी दु:ख जताया है. तस्वीर शेयर करते हुए शोक व्यक्त किया है. उन्होंने ट्वीट किया- “मिल्खा सिंह जी के निधन से हमने एक महान खिलाड़ी खो दिया, जिसने देश की कल्पना पर कब्जा कर लिया और अनगिनत भारतीयों के दिलों में एक विशेष स्थान बना लिया. उनके प्रेरक व्यक्तित्व ने उन्हें लाखों लोगों का प्रिय बना दिया. उनके निधन से आहत हूं.”इसके साथ ही मिल्खा सिंह के निधन पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने दुख व्यक्त किया है…उन्होंने कहा..स्पोर्टिंग आइकन मिल्खा सिंह के निधन से मैं दुखी हूं…उनके संघर्षों की कहानी और चरित्र की ताकत भारतीय पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी…गृहमंत्री अमित शाह ने भी उनके निधन पर दुःख जताया और कहा कि उन्हें देश हमेशा याद रखेगा…पूरे देश सें उन्हें श्रद्धांचलि दे रहे हैं…।

सच में आज देश ने अपना एक महान एथलीट खो दिया…..

Neena Gupta को बिन शादी के मां बनने पर Satish Kaushik से मिला था शादी का प्रपोजल, पढ़ें खबर

बौलीवुड एक्ट्रेस नीना गुप्ता अपनी एक्टिंग से लेकर स्टाइलिश लुक को लेकर सुर्खियों में रहती हैं. वहीं उनकी पर्सनल लाइफ से भी कोई अनजान नही हैं. लेकिन हाल ही में रिलीज हुई नीना गुप्ता (Neena Gupta) की बायोग्रॉफी ‘सच कहूं तो’ में कई सारे खुलासे हुए हैं, जिन्हें पढ़कर हर कोई हैरान है. शादी से लेकर मां बनने की कहानी बयां करती नीना गुप्ता की किताब में कई अनकही बातों का जिक्र है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

मां बनने के समय मिला शादी का प्रस्ताव

दरअसल, अपनी जिंदगी पर आधारित इस किताब में नीना गुप्ता ने बताया है कि जब वह बिन ब्याही मां बनने वाली थी तो उनके दोस्त और को-स्टार सतीश कौशिक ने आगे बढ़कर शादी का प्रस्ताव दिया था. हालांकि नीना गुप्ता ने अपनी बेटी मसाबा गुप्ता को बिना शादी के ही जन्म दिया था. वहीं इस बारे में एक्टर सतिश कौशिक (Satish Kaushik) ने भी एक इंटरव्यू में पुरानी यादों ताजा की हैं.

 

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सतीश कौशिक ने कही ये बात

 

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सतीश कौशिक ने कहा, ‘आप उनकी किताब में जो कुछ भी पढ़ रहे हैं वो मेरा उनके लिए एक सच्चे दोस्त के तौर पर लिया गया प्यार भरा फैसला था. मैं चाहता था कि वह अकेला न महसूस करें. आखिरकार अंत में दोस्त होते ही इसलिए हैं. जैसा किताब में लिखा है, जब मैंने उन्हें शादी का प्रस्ताव दिया तो वो एक हल्के मजाक, देखभाल, सम्मान और मेरे बेस्ट फ्रेंड को सहारा देने के लिए था. जिसे इसकी बहुत जरूरत थी. मैंने उन्हें कहा, मैं हूं न, तू चिंता क्यों करती है, वो इस प्रस्ताव से बेहद भर गई थी और उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े थे. उसके बाद हमारी दोस्ती और भी गहरी होती चली गई.’

प्रैग्नेंसी में शादी ना करने पर कही ये बात

 

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बुक रिलीज होने के बाद नीना गुप्ता ने एक इंटरव्यू में प्रैग्नेंसी में शादी ना करने की वजह बताते हुए कहा कि उनके प्रेगनेंट होने के बावजूद उन्हें शादी के ऑफर्स मिल रहे थे. हालांकि उन्होंने फैसला किया. नीना ने कहा, ‘मुझे अपने ऊपर बहुत गर्व था. मैंने खुद से कहा कि मैं केवल इसलिए शादी नहीं करूंगी क्योंकि मुझे किसी के नाम की जरूरत हैं या पैसे की जरूरत है जैसेकि मुझे एक समलैंगिक आदमी से शादी का ऑफर आया था.’

बता दें, नीना गुप्ता की बेटी मसाबा गुप्ता के पिता वेस्ट इंडिज क्रिकेटर विवियन रिचर्ड्स हैं. हालांकि दोनों की शादी नही हुई है. इसके बावजूद सिंगल मदर होने के बाद भी नीना गुप्ता ने मसाबा गुप्ता को जन्म दिया और पाला है. वहीं आज मसाबा मशहूर फैशन डिजाइनर्स की लिस्ट में शामिल हैं.

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REVIEW: जानें कैसी है विद्या बालन की Film ‘शेरनी’

रेटिंगः दो स्टार

निर्माताः भूषण कुमार, किशन कुमार,  विक्रम मल्होत्रा, अमित मसूरकर

निर्देशकः अमित वी मसूरकर

कलाकारः विद्या बालन, शरत सक्सेना,  विजय राज, ब्रजेंद्र काला, इला अरूण , नीरज काबी, मुकुल चड्ढा व अन्य.

अवधिः दो घंटे दस मिनट 44 सेकंड

ओटीटी प्लेटफार्मः अमेजॉन प्राइम वीडियो

एक तरफ देश के राष्ट्ीय पशुं टाइगर(बाघ )की प्रजाति खत्म होती जा रही है. तो दूसरी तरफ विकास के नाम पर जंगल खत्म हो रहे हैं, ऐसी परिस्थितियों में हर जानवर के सामने समस्या है कि वह कहां स्वच्छंदतापूर्ण विचरण करे. जंगल के खत्म होने से टाइगर, भालू आदि हिंसक जानवर खेतों व आबादी की तरफ बढ़ रहे हैं. जिसके चलते पशु और इंसान के बीच संघर्ष बढ़ता जा रहा है. तो वहीं इस समस्या का सटीक हल ढूढ़ने की बनिस्बत राजनेता अपनी रोटी सेंकने में लगे हुए हैं, जिसका फायदा अवैध तरीके से टाइगर का शिकार करने वाला शिकारी उठा रहा है. इन्ही मुद्दों व पशु व इंसान के बीच  संघर्ष को खत्म कर संतुलन बनाने का संदेश देने वाली फिल्म ‘‘शेरनी’’ लेकर आए हैं फिल्म निर्देशक अमित वी मसुरकर, जो कि 18 जून से ‘‘अमैजॉन प्राइम’’पर स्ट्रीम हो रही है.

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कहानीः

कहानी शुरू होती है विजाशपुर वन मंडल के जंगलों से, जहां कुछ पुलिस  की टीम व वन संरक्षण अधिकारी टाइगर की आवाजाही को समझने के लिए वीडियो कैमरा लगा रही है. उसी वक्त नई वन अधिकारी विद्या विंसेट(विद्या बालन) भी वहां पहुंचती है और हालात का जायजा लेती है. वाटरिंग होल सूखा हुआ है. क्योंकि स्थानीय विधायक जी के सिंह(अमर सिंह परिहार  )का साला मनीष उस जंगल में सुविधाएं देखने वाला ठेकेदार है. वह किसी नही सुनता. उधर जंगल के नजदीक में बसे गांव वासी अपने मवेशियों को चारा खिलाने इसी जंगल में कई वर्षों से जाते रहे हैं. मगर अब राष्ट्रीय पार्क और इस जंगल के बीच हाइवे सहित कई विकास कार्य संपन्न हो चुके है, जिसकी वजह से जंगल कें अंदर मौजूद टाइगर व भालू जैसे हिंसक पशु नेशनल पार्क नही जा पा रहे हैं और वह ग्रामीणों का भक्षण करने लगे हैं. पूर्व विधायक पी के सिंह(सत्यकाम आनंद)  ग्रामीणों के जीवन की सुरक्षा के नाम पर वन अधिकारियों को धमकाते हुए अपनी राजनीति को चमकाने में लगे हैं. वन अधिकारी विद्या विंसेट चाहती है कि इंसानों और पशुओं के बीच संघर्ष खत्म हो और एक संतुलन बन जाए. इसके लिए वह अपने हिसाब से प्रयास शुरू करती हैं, जिसमें वन विभाग से ही जुड़े मोहन, हसन दुर्रानी(  विजय राज )  व अन्य लोगों की मदद से प्रयासरत हैं. पर विधायक जी के सिंह के चमचे व वन विभाग के अधिकारी बंसल(ब्रजेंद्र काला )  व अन्य अपने हिसाब से टंाग अड़ाते रहते हैं. तभी चुनाव जीतने के लिए विधायक जी के सिंह शिकारी पिंटू को लेकर आते हैं.  विद्या चाहती है कि नर भक्षी बन चुकी बाघिन टी 12 व उसके दो नवजात बच्चों को इस जंगल से निकालकर नेशनल पार्क भेज दिया जाए, जिससे ग्रामीणों की भी सुरक्षा हो सके. जबकि बंसल व पिंटू(शरत सक्सेना) की इच्छा टाइगर यानी कि शेरनी को बचाने में बिलकुल नही है. इसी बीच अपने उच्च अधिकारी नंागिया(नीरज काबी )  की हरकत से विद्या विंसेट को तकलीफ होती है. अब राजनीतिक कुचक्र और नेताओं के इशारे पर नाच रहे कुछ भ्रष्ट वन अधिकारियों व इमानदार वन अधिकारी विद्या विंसेट में से किसकी जीत होती है, यह तो फिल्म देखने पर ही पता चलेगा.

लेखन व निर्देशनः

‘‘सुलेमानी कीड़ा’’ और ऑस्कर के लिए भारतीय प्रविष्टि के रूप में भेजी जा चुकी फिल्म‘‘ न्यूटन’’के निर्देशक अमित वी मसूरकर  इस बार मात खा गए हैं. फिल्म की कमजोर पटकथा के चलते फिल्म काफी नीरस और धीमी है. जंगल में  नरभक्षी टाइगर की मौजूदगी के चलते जो डर व रोमांच पैदा होना चाहिए, उसे पैदा कर पाने में अमित वी मसूरकर असफल रहे हैं. शेरनी की आंखों से पैदा होने वाला सम्मोहन भी नदारद है. दो राजनेताओं के बीच की राजनीतिक चालों का भी ठीक से निरूपण नही हुआ है.

फिल्म‘‘शेरनी’’ अवनी या टी1 के मामले की याद दिलाती है. जब बाघिन पर 13 लोगों की हत्या का आरोप लगा था. महीनों के लंबे शिकार के बाद,  2018 में महाराष्ट्र के यवतमाल में एक नागरिक शिकारी के नेतृत्व में वन विभाग के कुछ अधिकारियों के साथ उसकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. कई कार्यकर्ताओं ने इसे ‘कोल्ड ब्लडेड मर्डर‘ बताया और मामला भारत के सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंच गया. यह मामला अभी भी चल रहा है और अधिकारी यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि अवनी नामक बाघिन आदमखोर थी या नहीं. लेकिन फिल्मकार इस सत्य घटनाक्रम को सही अंदाज में नही उठा पाए.

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फिल्म का संवाद ‘‘विकास के साथ जाओ, तो पर्यावरण को नहीं बचा सकते. और यदि पर्यावरण के साथ जाएं, तो विकास बेचारा उदास हो जाता है. ’’कई सवाल उठाता है, मगर अफसोस की बात यह है कि इस तरह की बात करने वाले नंागिया का कार्य इस संवाद से मेल नही खात. यानी कि चरित्र चित्रण में भी फिल्मकार ने गलतियंा की हैं. फिल्म में पशुओं को लेकर मनुष्य की संवेदनहीनता, वन विभाग में भ्रष्टाचार, राजनेताओं की नकली नारेबाजियां, जैसे मुद्दे उठाए गए हैं मगर बहुत ही सतही तौर पर. बीच बीच में फिल्म पूरी तरह से डाक्यूमेंट्री बनकर रह जाती है.

कैमरामैन राकेश हरिदास बधाई के पात्र हैं.

अभिनयः

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो विद्या बालन का अभिनय शानदार है. उन्होने वन अधिकारी विद्या विसेंट को जीवंतता प्रदान की है. फिर चाहे डर का भाव हो या कुछ न कर पाने की विवशता. मगर लेखक व निर्देशक ने विद्या बालन के किरदार को भी ठीक से नही गढ़ा है. वह कहीं भी दहाड़ती नही है, उसके कारनामे ऐसे नही है जो कि याद रह जाएं. नीरज काबी व मुकुल चड्ढा की प्रतिभा को जाया किया गया है. हसन दुर्रानी के किरदार मे विजय राज एक बार फिर अपने अभिनय की छाप छोड़ जाते हैं. ब्रजेंद्र काला को अवश्य कुछ अच्छे दृश्य मिल गए हैं.

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