शिकार: क्यों रंजन से नफरत करने लगी काव्या

वह एक बार फिर उस के सामने खड़ा था. लंबाचौड़ा काला भुजंग. आंखों से झांकती भूख. एक ऐसी भूख जिसे कोई भी औरत चुटकियों में ताड़ जाती है. उस आदमी के लंबेचौड़े डीलडौल से उस की सही उम्र का पता नहीं लगता था, पर उस की उम्र 30 से 40 साल के बीच कुछ भी हो सकती थी.

वहीं दूसरी ओर काव्या गोरीचिट्टी, छरहरे बदन की गुडि़या सी दिखने वाली एक भोलीभाली, मासूम सी लड़की थी. मुश्किल से अभी उस ने 20वां वसंत पार किया होगा. कुछ महीने पहले दुख क्या होता है, तकलीफ कैसी होती है, वह जानती तक न थी.

मांबाप के प्यार और स्नेह की शीतल छाया में काव्या बढि़या जिंदगी गुजार रही थी, पर दुख की एक तेज आंधी आई और उस के परिवार के सिर से प्यार, स्नेह और सुरक्षा की वह पिता रूपी शीतल छाया छिन गई.

अभी काव्या दुखों की इस आंधी से अपने और अपने परिवार को निकालने के लिए जद्दोजेहद कर ही रही थी कि एक नई समस्या उस के सामने आ खड़ी हुई.

उस दिन काव्या अपनी नईनई लगी नौकरी पर पहुंचने के लिए घर से थोड़ी दूर ही आई थी कि उस आदमी ने उस का रास्ता रोक लिया था.

एकबारगी तो काव्या घबरा उठी थी, फिर संभलते हुए बोली थी, ‘‘क्या है?’’

वह उसे भूखी नजरों से घूर रहा था, फिर बोला था, ‘‘तू बहुत ही खूबसूरत है.’’

‘‘क्या मतलब…?’’ उस की आंखों से झांकती भूख से डरी काव्या कांपती आवाज में बोली.

‘‘रंजन नाम है मेरा और खूबसूरत चीजें मेरी कमजोरी हैं…’’ उस की हवस भरी नजरें काव्या के खूबसूरत चेहरे और भरे जिस्म पर फिसल रही थीं, ‘‘खासकर खूबसूरत लड़कियां… मैं जब भी उन्हें देखता हूं, मेरा दिल उन्हें पाने को मचल उठता है.’’

‘‘क्या बकवास कर रहे हो…’’ अपने अंदर के डर से लड़ती काव्या कठोर आवाज में बोली, ‘‘मेरे सामने से हटो. मुझे अपने काम पर जाना है.’’

‘‘चली जाना, पर मेरे दिल की प्यास तो बुझा दो.’’

काव्या ने अपने चारों ओर निगाह डाली. इक्कादुक्का लोग आजा रहे थे. लोगों को देख कर उस के डरे हुए दिल को थोड़ी राहत मिली. उस ने हिम्मत कर के अपना रास्ता बदला और रंजन से बच कर आगे निकल गई.

आगे बढ़ते हुए भी उस का दिल बुरी तरह धड़क रहा था. ऐसा लगता था जैसे रंजन आगे बढ़ कर उसे पकड़ लेगा.

पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. उस ने कुछ दूरी तय करने के बाद पीछे मुड़ कर देखा. रंजन को अपने पीछे न पा कर उस ने राहत की सांस ली.

काव्या लोकल ट्रेन पकड़ कर अपने काम पर पहुंची, पर उस दिन उस का मन पूरे दिन अपने काम में नहीं लगा. वह दिनभर रंजन के बारे में ही सोचती रही. जिस अंदाज से उस ने उस का रास्ता रोका था, उस से बातें की थीं, उस से इस बात का आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता था कि रंजन की नीयत ठीक नहीं थी.

शाम को घर पहुंचने के बाद भी काव्या थोड़ी डरी हुई थी, लेकिन फिर उस ने यह सोच कर अपने दिल को हिम्मत बंधाई कि रंजन कोई सड़कछाप बदमाश था और वक्ती तौर पर उस ने उस का रास्ता रोक लिया था.

आगे से ऐसा कुछ नहीं होने वाला. लेकिन काव्या की यह सोच गलत साबित हुई. रंजन ने आगे भी उस का रास्ता बारबार रोका. कई बार उस की इस हरकत से काव्या इतनी परेशान हुई कि उस का जी चाहा कि वह सबकुछ अपनी मां को बता दे, लेकिन यह सोच कर खामोश रही कि इस से पहले से ही दुखी उस की मां और ज्यादा परेशान हो जाएंगी. काश, आज उस के पापा जिंदा होते तो उसे इतना न सोचना पड़ता.

पापा की याद आते ही काव्या की आंखें नम हो उठीं. उन के रहते उस का परिवार कितना खुश था. मम्मीपापा और उस का एक छोटा भाई. कुल 4 सदस्यों का परिवार था उस का.

उस के पापा एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में काम करते थे और उन्हें जो पैसे मिलते थे, उस से उन का परिवार मजे में चल रहा था. जहां काव्या अपने पापा की दुलारी थी, वहीं उस की मां उस से बेहद प्यार करती थीं.

उस दिन काव्या के पापा अपनी कंपनी के काम के चलते मोटरसाइकिल से कहीं जा रहे थे कि पीछे से एक कार वाले ने उन की मोटरसाइकिल को तेज टक्कर मार दी.

वे मोटरसाइकिल से उछले, फिर सिर के बल सड़क पर जा गिरे. उस से उन के सिर के पिछले हिस्से में बेहद गंभीर चोट लगी थी.

टक्कर लगने के बाद लोगों की भीड़ जमा हो गई. भीड़ के दबाव के चलते कार वाले ने उस के घायल पापा को उठा कर नजदीक के एक निजी अस्पताल में भरती कराया, फिर फरार हो गया.

पापा की जेब से मिले आईकार्ड पर लिखे मोबाइल से अस्पताल वालों ने जब उन्हें फोन किया तो वे बदहवास अस्पताल पहुंचे, पर वहां पहुंच कर उन्होंने जिस हालत में उन्हें पाया, उसे देख कर उन का कलेजा मुंह को आ गया.

उस के पापा कोमा में जा चुके थे. उन की आंखें तो खुली थीं, पर वे किसी को पहचान नहीं पा रहे थे.

फिर शुरू हुआ मुश्किलों का न थमने वाला एक सिलसिला. डाक्टरों ने बताया कि पापा के सिर का आपरेशन करना होगा. इस का खर्च उन्होंने ढाई लाख रुपए बताया.

किसी तरह रुपयों का इंतजाम किया गया. पापा का आपरेशन हुआ, पर इस से कोई खास फायदा न हुआ. उन्हें विभिन्न यंत्रों के सहारे एसी वार्ड में रखा गया था, जिस की एक दिन की फीस 10,000 रुपए थी.

धीरेधीरे घर का सारा पैसा खत्म होने लगा. काव्या की मां के गहने तक बिक गए, फिर नौबत यहां तक आई कि उन के पास के सारे पैसे खत्म हो गए.

बुरी तरह टूट चुकी काव्या की मां जब अपने बच्चों को यों बिलखते देखतीं तो उन का कलेजा मुंह को आ जाता, पर अपने बच्चों के लिए वे अपनेआप को किसी तरह संभाले हुए थीं. कभीकभी उन्हें लगता कि पापा की हालत में सुधार हो रहा है तो उन के दिल में उम्मीद की किरण जागती, पर अगले ही दिन उन की हालत बिगड़ने लगती तो यह आस टूट जाती.

डेढ़ महीना बीत गया और अब ऐसी हालत हो गई कि वे अस्पताल के एकएक दिन की फीस चुकाने में नाकाम होने लगे. आपस में रायमशवरा कर उन्होंने पापा को सरकारी अस्पताल में भरती कराने का फैसला किया.

पापा को ले कर सरकारी अस्पताल गए, पर वहां बैड न होने के चलते उन्हें एक रात बरामदे में गुजारनी पड़ी. वही रात पापा के लिए कयामत की रात साबित हुई. काव्या के पापा की सांसों की डोर टूट गई और उस के साथ ही उम्मीद की किरण हमेशा के लिए बुझ गई.

फिर तो उन की जिंदगी दुख, पीड़ा और निराशा के अंधकार में डूबती चली गई. तब तक काव्या एमबीए का फाइनल इम्तिहान दे चुकी थी.

बुरे हालात को देखते हुए और अपने परिवार को दुख के इस भंवर से निकालने के लिए काव्या नौकरी की तलाश में निकल पड़ी. उसे एक प्राइवेट बैंक में 20,000 रुपए की नौकरी मिल गई और उस के परिवार की गाड़ी खिसकने लगी. तब उस के छोटे भाई की पढ़ाई का आखिरी साल था. उस ने कहा कि वह भी कोई छोटीमोटी नौकरी पकड़ लेगा, पर काव्या ने उसे सख्ती से मना कर दिया और उस से अपनी पढ़ाई पूरी करने को कहा.

20 साल की उम्र में काव्या ने अपने नाजुक कंधों पर परिवार की सारी जिम्मेदारी ले ली थी, पर इसे संभालते हुए कभीकभी वह बुरी तरह परेशान हो उठती और तब वह रोते हुए अपनी मां से कहती, ‘‘मम्मी, आखिर पापा हमें छोड़ कर इतनी दूर क्यों चले गए जहां से कोई वापस नहीं लौटता,’’ और तब उस की मां उसे बांहों में समेटते हुए खुद रो पड़तीं.

धीरेधीरे दुख का आवेग कम हुआ और फिर काव्या का परिवार जिंदगी की जद्दोजेहद में जुट गया.

समय बीतने लगा और बीतते समय के साथ सबकुछ एक ढर्रे पर चलने लगा तभी यह एक नई समस्या काव्या के सामने आ खड़ी हुई.

काव्या जानती थी कि बड़ी मुश्किल से उस की मां और छोटे भाई ने उस के पापा की मौत का गम सहा है. अगर उस के साथ कुछ हो गया तो वे यह सदमा सहन नहीं कर पाएंगे और उस का परिवार, जिसे संभालने की वह भरपूर कोशिश कर रही है, टूट कर बिखर जाएगा.

काव्या ने इस बारे में काफी सोचा, फिर इस निश्चय पर पहुंची कि उसे एक बार रंजन से गंभीरता से बात करनी होगी. उसे अपनी जिंदगी की परेशानियां बता कर उस से गुजारिश करनी होगी

कि वह उसे बख्श दे. उम्मीद तो कम थी कि वह उस की बात समझेगा, पर फिर भी उस ने एक कोशिश करने का मन बना लिया.

अगली बार जब रंजन ने काव्या का रास्ता रोका तो वह बोली, ‘‘आखिर तुम मुझ से चाहते क्या हो? क्यों बारबार मेरा रास्ता रोकते हो?’’

‘‘मैं तुम्हें चाहता हूं,’’ रंजन उस के खूबसूरत चेहरे को देखता हुआ बोला, ‘‘मेरा यकीन करो. मैं ने जब से तुम्हें देखा है, मेरी रातों की नींद उड़ गई है. आंखें बंद करता हूं तो तुम्हारा खूबसूरत चेहरा सामने आ जाता है.’’

‘‘सड़क पर बात करने से क्या यह बेहतर नहीं होगा कि हम किसी रैस्टोरैंट में चल कर बात करें.’’

काव्या के इस प्रस्ताव पर पहले तो रंजन चौंका, फिर उस की आंखों में एक अनोखी चमक जाग उठी. वह जल्दी से बोला, ‘‘हांहां, क्यों नहीं.’’

रंजन काव्या को ले कर सड़क के किनारे बने एक रैस्टोरैंट में पहुंचा, फिर बोला, ‘‘क्या लोगी?’’

‘‘कुछ नहीं.’’

‘‘कुछ तो लेना होगा.’’

‘‘तुम्हारी जो मरजी मंगवा लो.’’

रंजन ने काव्या और अपने लिए कौफी मंगवाईं और जब वे कौफी पी चुके तो वह बोला, ‘‘हां, अब कहो, तुम क्या कहना चाहती हो?’’

‘‘देखो, मैं उस तरह की लड़की नहीं हूं जैसा तुम समझते हो,’’ काव्या ने गंभीर लहजे में कहना शुरू किया, ‘‘मैं एक मध्यम और इज्जतदार परिवार से हूं, जहां लड़की की इज्जत को काफी अहमियत दी जाती है. अगर उस की इज्जत पर कोई आंच आई तो उस का और उस के परिवार का जीना मुश्किल हो जाता है.

‘‘वैसे भी आजकल मेरा परिवार जिस मुश्किल दौर से गुजर रहा है, उस में ऐसी कोई बात मेरे परिवार की बरबादी का कारण बन सकती है.’’

‘‘कैसी मुश्किलों का दौर?’’ रंजन ने जोर दे कर पूछा.

काव्या ने उसे सबकुछ बताया, फिर अपनी बात खत्म करते हुए बोली, ‘‘मेरी मां और भाई बड़ी मुश्किल से पापा की मौत के गम को बरदाश्त कर पाए हैं, ऐसे में अगर मेरे साथ कुछ हुआ तो मेरा परिवार टूट कर बिखर जाएगा…’’ कहतेकहते काव्या की आंखों में आंसू आ गए और उस ने उस के आगे हाथ जोड़ दिए, ‘‘इसलिए मेरी तुम से विनती है कि तुम मेरा पीछा करना छोड़ दो.’’

पलभर के लिए रंजन की आंखों में दया और हमदर्दी के भाव उभरे, फिर उस के होंठों पर एक मक्कारी भरी मुसकान फैल गई.

रंजन काव्या के जुड़े हाथ थामता हुआ बोला, ‘‘मेरी बात मान लो, तुम्हारी सारी परेशानियों का खात्मा हो जाएगा. मैं तुम्हें पैसे भी दूंगा और प्यार भी. तू रानी बन कर राज करेगी.’’

काव्या को समझते देर न लगी कि उस के सामने बैठा आदमी इनसान नहीं, बल्कि भेडि़या है. उस के सामने रोने, गिड़गिड़ाने और दया की भीख मांगने का कोई फायदा नहीं. उसे तो उसी की भाषा में समझाना होगा. वह मजबूरी भरी भाषा में बोली, ‘‘अगर मैं ने तुम्हारी बात मान ली तो क्या तुम मुझे बख्श दोगे?’’

‘‘बिलकुल,’’ रंजन की आंखों में तेज चमक जागी, ‘‘बस, एक बार मुझे अपने हुस्न के दरिया में उतरने का मौका दे दो.’’

‘‘बस, एक बार?’’

‘‘हां.’’

‘‘ठीक है,’’ काव्या ने धीरे से अपना हाथ उस के हाथ से छुड़ाया, ‘‘मैं तुम्हें यह मौका दूंगी.’’

‘‘कब?’’

‘‘बहुत जल्द…’’ काव्या बोली, ‘‘पर, याद रखो सिर्फ एक बार,’’ कहने के बाद काव्या उठी, फिर रैस्टोरैंट के दरवाजे की ओर चल पड़ी.

‘तुम एक बार मेरे जाल में फंसो तो सही, फिर तुम्हारे पंख ऐसे काटूंगा कि तुम उड़ने लायक ही न रहोगी,’ रंजन बुदबुदाया.

रात के 12 बजे थे. काव्या महानगर से तकरीबन 3 किलोमीटर दूर एक सुनसान जगह पर एक नई बन रही इमारत की 10वीं मंजिल की छत पर खड़ी थी. छत के चारों तरफ अभी रेलिंग नहीं बनी थी और थोड़ी सी लापरवाही बरतने के चलते छत पर खड़ा कोई शख्स छत से नीचे गिर सकता था.

काव्या ने इस समय बहुत ही भड़कीले कपड़े पहन रखे थे जिस से उस की जवानी छलक रही थी. इस समय उस की आंखों में एक हिंसक चमक उभरी हुई थी और वह जंगल में शिकार के लिए निकले किसी चीते की तरह चौकन्नी थी.

अचानक काव्या को किसी के सीढि़यों पर चढ़ने की आवाज सुनाई पड़ी. उस की आंखें सीढि़यों की ओर लग गईं.

आने वाला रंजन ही था. उस की नजर जब कयामत बनी काव्या पर पड़ी, तो उस की आंखों में हवस की तेज चमक उभरी. वह तेजी से काव्या की ओर लपका. पर उस के पहले कि वह काव्या के करीब पहुंचे, काव्या के होंठों पर एक कातिलाना मुसकान उभरी और वह उस से दूर भागी.

‘‘काव्या, मेरी बांहों में आओ,’’ रंजन उस के पीछे भागता हुआ बोला.

‘‘दम है तो पकड़ लो,’’ काव्या हंसते हुए बोली.

काव्या की इस कातिल हंसी ने रंजन की पहले से ही भड़की हुई हवस को और भड़का दिया. उस ने अपनी रफ्तार तेज की, पर काव्या की रफ्तार उस से कहीं तेज थी.

थोड़ी देर बाद हालात ये थे कि काव्या छत के किनारेकिनारे तेजी से भाग रही थी और रंजन उस का पीछा कर रहा था. पर हिरनी की तरह चंचल काव्या को रंजन पकड़ नहीं पा रहा था.

रंजन की सांसें उखड़ने लगी थीं और फिर वह एक जगह रुक कर हांफने लगा.

इस समय रंजन छत के बिलकुल किनारे खड़ा था, जबकि काव्या ठीक उस के सामने खड़ी हिंसक नजरों से उसे घूर रही थी.

अचानक काव्या तेजी से रंजन की ओर दौड़ी. इस से पहले कि रंजन कुछ समझ सके, उछल कर अपने दोनों पैरों की ठोकर रंजन की छाती पर मारी.

ठोकर लगते ही रंजन के पैर उखड़े और वह छत से नीचे जा गिरा. उस की लहराती हुई चीख उस सुनसान इलाके में गूंजी, फिर ‘धड़ाम’ की एक तेज आवाज हुई. दूसरी ओर काव्या विपरीत दिशा में छत पर गिरी थी.

काव्या कई पलों तक यों ही पड़ी रही, फिर उठ कर सीढि़यों की ओर दौड़ी. जब वह नीचे पहुंची तो रंजन को अपने ही खून में नहाया जमीन पर पड़ा पाया. उस की आंखें खुली हुई थीं और उस में खौफ और हैरानी के भाव ठहर कर रह गए थे. शायद उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उस की मौत इतनी भयानक होगी.

काव्या ने नफरत भरी एक नजर रंजन की लाश पर डाली, फिर अंधेरे में गुम होती चली गई.

आलिया ही नहीं ये ऐक्ट्रैसेस भी हुई ऊप्स मोमेंट का शिकार, रिवीलिंग ड्रैस पहनने से पहले जानें ये टिप्स

बौलीवुड ऐक्ट्रैसेस खूबसूरत दिखने के लिए अपनी फैन फौलोइंग बढ़ाने के लिए क्याक्या नहीं करती. ऐक्टिंग से लेकर ड्रैसिंग तक, हर एक चीज का उन्हें ध्यान रखना पड़ता है. इसके अलावा ऐक्ट्रैसेस  कोई भी ड्रैसेज कैरी करती हैं, तो वो फैशन बन जाता है.

फैशनेबल दिखने के लिए बौलीवुड ऐक्ट्रैसेस पहनती हैंं अजीबोगरीब कपड़े

फैशन और लाइमलाइट में बने रहने के लिए बौलीवुड डीवाज अजीबोगरीब कपड़े पहनती हैं. कई बार ये फैशन उन पर भारी भी पड़ जाता है और उन्हें पब्लिकली शर्मिंदा भी होना पड़ता है. कई ऐक्ट्रैसेस हैं, जो अपनी आउटफिट की वजह से ही ऊप्स मोमेंट का शिकार होती है. हाल ही में आलिया भट्ट का एक वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आया है. जिसमें ब्लैक कलर की लेदर ड्रैस में नजर आ रही हैं. ऐक्ट्रैस ने रुककर कैमरे के लिए पोज भी दिया है. हौल्टर नेक की आलिया ने जो ड्रैस पहनी हुई थी, उस पर एक स्लिक बन भी बना हुआ था. आलिया अपने लुक को कम्पलीट करने के लिए मिनमल मेकअप भी किया था. ऐक्ट्रैस इस ड्रैस में बेहद खूबसूरत नजर आ रही थी, लेकिन गाड़ी से उतरते समय आलिया ऊप्स मोमैंट का शिकार हुई, जो कैमरे में साफ दिखाई दे रहा है.

सोशल मीडिया पर फैंस को आलिया का ये रूप जरा भी पसंद नहीं आया और वो कमेंट करने लगे. हालांकि कुछ यूजर्स ने ऐक्ट्रैस की तारिफ भी की तो वहीं कुछ लोगों ने आलिया की ड्रैस को खराब बताया.

आलिया के अलावा ये ऐक्ट्रैसेस भी हुईं ऊप्स मोमेंट का शिकार

दिशा पटानी

दिशा पटानी अपनी क्यूट अंदाज के कारण फैंस के दिल पर राज करती हैं. वह अपनी दमदार ऐक्टिंग के लिए भी जानी जाती है, लेकिन वह कई बार उप्स मोमेंट का शिकार हो चुकी हैं. उनका एक वीडियो सामने आया था जिसमें दिशा पैपराजी को पोज दे रही होती हैं कि तभी तेज हवा चलने के कारण उनका टौप उड़ने लगता है, ऐसे में दिशा अनकम्फर्टेबल हो जाती है, वो अपने टौप को संभालते हुए गाड़ी में जाकर बैठ जाती है. ये वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ था, लोगों ने भद्दे कमेंट्स भी किए थे.

अंकिता लोखंडे

पौपुलर ऐक्ट्रैस अंकिता लोखंडे भी इस लिस्ट में शामिल है. वो भी अपनी ड्रैस की वजह से ऊप्स मोमेंट का शिकार हो चुकी हैं. दरअसल, एक अवार्ड शो में अंकिता लोखंडे अपने पति के साथ पहुंची थी. उन्होंने बहुत ही डीपनेक ड्रैस पहनी थी, जिसकी वजह से झुकते समय अंकिता को ऊप्स मोमेंट का सामना करना पड़ा.

नोरा फतेही 

नोरा फतेही हर ड्रैसेज में ग्लैमरस नजर आती हैं, लेकिन कई बार ऐक्ट्रैस ऐसी ड्रैस पहन लेती हैं, जिससे उन्हें ऊप्स मोमेंट का सामना करना पड़ता है. जब वह अपने गाने बड़ा पछताओंगे के  सक्सेस पार्टी में  पहुंची थी, जहां नोरा उप्स मोमेंट का शिकार हुई थीं.

ऐक्ट्रैसेज कुछ भी पहनती हैं, आम लड़कियां भी उनकी कौपी करने की कोशिश करती हैं. अगर ऐक्ट्रैस की तरह उनको ड्रैसेज मिल गया तो उन्हें लगता है कि वो सबसे फैशनेबल दिखेंगी, लेकिन आप उस तरह का ड्रैस पहनें जो आपके बौडी पर सूट करे. कम्फर्टेबल  ड्रैस पहनने आप कौन्फिडैंट नजर आएंगी और आपकी खूबसूरती भी बढ़ेगी.

जानें ऊप्स मोमेंट से कैसे बचें 

  • छोटी ड्रैस या डीपनेक ड्रैस सही तरीके से पहना जाए तो किसी भी तरीके के ऊप्स मोमेंट से बचा जा सकता है.
  • अगर आप शौर्ट ड्रैस पहनने जा रही हैं, तो हमेशा अंडरगार्मेट्स का ख्याल रखें.
  • शौर्ट ड्रेस के साथ न्यूड शेड या फिर स्किन कलर की अंडर गार्मेट्स जरूर कैरी करें.
  • अगर आपका ड्रैस उठनेबैठने के दौरान स्ट्रैच भी होती है, तो किसी भी तरह के ऊप्स मोमेंट से बच सकती हैं.
  • छोटी और टाइट फिटिंग ड्रेस पहनने के दौरान लेजर कट, थौन्ग्स, लैस वाली अंडरवियर और स्ट्रैपलेस बौडीसूट कैरी कर सकती हैं.
  • अगर आप ट्रांसपैरेंट टौपवियर या डीपनेक ड्रैस पहन रही हैं, तो स्ट्रैपलेस ब्रा पहन सकती हैं.

सामाजिक मुद्दों पर बनी फिल्मों के जरिए बौलीवुड कलाकारों ने दिया बड़ा संदेश

फिल्में समाज का आईना होती है, लिहाजा फिल्म में वही दिखाया जाता है जो कहीं ना कहीं समाज में चल रहा होता है और कई बार कई फिल्में दर्शकों को जागरूक करने वाले शिक्षाप्रद संदेश भी देते हैं . जिससे दर्शक सीख लेकर अपनी जिंदगी में भी लागू करते हैं. फिर चाहे वह अमिताभ बच्चन अभिनीत पारिवारिक फिल्म बागबान हो, जिसमें बूढ़े मांबाप को बच्चे अपने स्वार्थ के चलते तकलीफ देते हैं. बूढ़े मांबाप को घर से बेघर कर देते हैं या सुनील दत्त नरगिस अभिनीत फिल्म मदर इंडिया ही क्यों ना हो जिसमें एक मां एक औरत की इज्जत की रक्षा करने के लिए अपने बेटे को भी गोली मार देती है. गौरतलब है पुराने जमाने में ज्यादातर सामाजिक फिल्में ही बनती थी. जो न सिर्फ परिवार के साथ देखने वाली पारिवारिक फिल्में होती थी बल्कि उन फिल्मों के जरिए आम इंसान बहुत सारी अच्छी बातें भी सीखता था.

लेकिन बाद में एक समय ऐसा भी आया जब सिर्फ पैसा कमाने के उद्देश्य से फिल्मों का निर्माण होने लगा. और कई तरह की फिल्में बनने लगी. फिर चाहे वह आक्रामक हिंसा से भरपूर फिल्में हो या सेक्स पर आधारित अश्लील फिल्में ही क्यों ना हो. जिनका मकसद सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाना और बौक्स औफिस पर अच्छा कलेक्शन करना होता था. लेकिन फिर से एक बार समय का चक्र घुमा और एक बार फिर सामाजिक फिल्मों का दौर शुरू हुआ. जिसमें नामी गिरामी एक्टरों ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया. फिर चाहे वह अक्षय कुमार हूं अमिताभ बच्चन हो या तापसी पन्नू और दीपिका पादुकोण ही क्यों ना हो.

बौलीवुड के कई कलाकारों का सामाजिक फिल्मों की तरफ रुझान बढ़ा. जिसके बाद कई सामाजिक फिल्में प्रदर्शित हुई. जिन फिल्मो ने सफलता भी हासिल की. जैसे टौयलेट एक प्रेम कथा, बधाई हो, पैडमैन, थप्पड़ आदि. कई सारी सामाजिक फिल्मों ने न सिर्फ देश के लोंगो को जागरूक किया. बल्कि बड़ा संदेश और शिक्षा भी प्रदान की. इसी सिलसिले पर एक नजर….

वह सामाजिक फिल्में जिन्होंने खासतौर पर नारी जाति को जागरूक किया…

सामाजिक फिल्मों की बात हो और अक्षय कुमार का जिक्र ना हो ऐसा तो हो ही नहीं सकता. क्योंकि अक्षय कुमार उन एक्टरों में से हैं जिन्होंने नारी जाति को जागरूक करने के लिए कई सारी सामाजिक फिल्में की है. फिर चाहे वह भाई बहन पर आधारित फिल्म रक्षाबंधन हो, टौयलेट एक प्रेम कथा हो, या औरतों के लिए पीरियड के दौरान सैनिटरी पेड कितना जरूरी है जैसे विषय पर आधारित फिल्म पैडमैन ही क्यों ना हो. अक्षय कुमार ने औरतों के सम्मान और हक के लिए सिर्फ फिल्में ही नहीं की बल्कि सैनिटरी पेड के विज्ञापन में भी काम किया है. अक्षय कुमार की हमेशा कोशिश रही है कि वह औरतों की सेहत और सुरक्षा के लिए ऐसे कार्य करें. जिससे सीख लेकर औरतें जागरूक हो.

अक्षय कुमार के अनुसार मैं नारी जाति का सम्मान करता हूं और चाहता हूं कि औरतें भी अपने हक के लिए आवाज उठाएं. जागरूक और शिक्षित हो ताकि महामारी के दौरान हुई बीमारियों की वजह से उनकी बेवजह मौत ना हो . मैंने हमेशा अपनी फिल्मों के जरिए नारी जाति को सही राह दिखाने की कोशिश की है.इतना ही नहीं मैंने अपने मार्शल आर्ट ट्रेनिंग सेंटर में औरतों को अपनी सुरक्षा के लिए स्पेशल ट्रेनिंग भी देनी शुरू की है. जिससे वह राह चलते आवारा लड़कों से अपनी रक्षा कर सके.

अक्षय कुमार की तरह तापसी पन्नू भी उन हीरोइनों में से एक है जो थप्पड़ और नाम शबाना जैसी सामाजिक फिल्मों के जरिये औरतों को यह संदेश देना चाहती हैं की औरतें कमजोर नहीं है उन्हें जागरूक और हिम्मत होने की जरूरत है. अपनी फिल्मों के जरिए औरतों को सम्मान से कैसे जीना है ये पाठ पढ़ा चुकी है. जाति तौर पर भी तापसी पन्नू काफी दबंग है. उनका कहना है कि औरतों को अपनी रक्षा खुद ही करनी होगी. कोई और उनको बचाने नहीं आएगा. माना की मर्दों के मुकाबले शारीरिक तौर पर औरतें कमजोर होती है. लेकिन वह दिमाग का इस्तेमाल करके अपनी रक्षा कर सकती हैं. मैंने अब तक अपनी जिंदगी हमेशा सम्मान के साथ जी है.

मैं ऐसी फिल्में करना पसंद करती हूं जो नारी सुधार के लिए संदेश देती हो.जैसे थप्पड़ फिल्म में मैंने पत्नी के सम्मान के हक के लिए आवाज उठाई है , इसी तरह नाम शबाना में भी मैंने औरत की छिपी हुई ताकत को उजागर किया है. मैंने अपनी हर फिल्म में यह साबित किया है कि औरत किसी से कहीं भी कम नहीं है. बस उसे अपनी काबिलियत और अंदरुनी ताकत पहचानने की जरूरत है. कहने का मतलब यह है कि सामाजिक फिल्मों में कलाकारों के द्वारा दी गई शिक्षा कहीं ना कहीं हमारी जिंदगी में लागू होती है. जिसे सभी को गंभीरतापूर्वक लेने की जरूरत है.

Anupamaa : शाह हाउस से गायब होगी काव्या की बेटी, क्या आशा भवन को खरीदेगा वनराज ?

Anupama Upcoming Twist: टीवी सीरियल अनुपमा में लगातार ट्विस्ट एंड टर्न देखने को मिल रहा है. शो में आपने अब तक देखा कि अनुज अंकुश को धमकी देता है. वह सारे रिश्तेनाते भुलाकर अपने हक की लड़ाई का ऐलान करता है. तो दूसरी तरफ तोषु और बा में जमकर टक्कर होती है, बा हथौड़े से तोषु का कौन्ट्रिब्यूशन बौक्स तोड़ देती है और अपनी हुकुम चलाती है.

दूसरी तरफ आद्या चाहती है कि उसके मम्मी पापा दोबारा शादी कर लें. बापूजी भी अपनी ये इच्छा जाहिर करते हैं. आइए जानते हैं आज के एपिसोड में क्या दिखाया जाएगा.

क्या वनराज शाह की होगी वापसी

शो में आप देख रहे हैं कि अनुज-अनुपमा साथ है. लेकिन उनकी परेशानियां कम नहीं हो रही हैं. एक तरफ अनुज की कंपनी डूबने की कगार पर हैं, तो दूसरी तरफ आशा भवन को बचाने के लिए अनुपमा पैसे इकट्ठा कर रही है. इन सबके बीच शो से वनराज शाह गायब है. रिपोर्ट के अनुसार शो में फिर से वनराज शाह की धमाकेदार एंट्री होगी. वह अनुज-अनपमा के लिए नई मुसीबत खड़ा करेगा.

आशा भवन का मालिक बनेगा वनराज शाह?

जी हां, शो में आपको हाईवोल्टेज ड्रामा देखने को मिलेगा. बताया जा रहा है कि मेकर्स इस शो के लिए नए वनराज की तलाश में जुट गए हैं . दावा किया जा रहा है कि शो में वनराज शाह की नए अंदाज में एंट्री होगी. दरअसल सीरियल में दिखाया गया था कि वनराज शाह करोड़ों रुपये लेकर फरार हो गया है.तो दूसरी तरफ आशा भवन को का केयर टेकर उसे बेचना चाहता है. सीरियल गौसिप के अनुसार, अब वनराज खुद ही आशा भवन को खरीद लेगा. इस बात में कोई शक नहीं है कि शो में वनराज शाह वापस आता है, तो वह इनकी अकल ठिकाने लगाएगा.

वनराज और काव्या को कोसेगा तोषु

शो में आज आप ये भी देखेंगे कि शाह हाउस में माही किसी को मिलती नहीं है और सभी लोग परेशान हो जाते हैं. तो दूसरी तरफ माही आशा भवन से वापिस आ रही होती है. तब तोषू माही को खूब सुनाता है. इतना ही नहीं वह वनराज और काव्या को भी कोसता है. शो में ये भी दिखाया जाएगा कि आशा बेन का बेटा अनुपमा और बाकी लोगों से मिलने आता है. जो टैक्स भरने की बात बताता है. वह ये भी कहता है कि अगर टैक्स नहीं भरा गया तो आशा भवन खाली करना पड़ेगा. लेकिन अनुपमा आशा भवन के बेटे को संभाल लेती है.

अनुज-अनुपमा लोगों को देंगे दिलासा

इसके बाद आशा भवन में रहने वाले सभी लोगों के बीच डर फैल जाता है कि भवन बंद हो जाएगा, लेकिन अनुज-अनुपमा सबको शांत करवाते हैं. अब शो में ये देखना दिलचस्प होगा कि अनुज-अनुपमा आशा भवन को कैसे बचाएंगे.

प्यार का विसर्जन : क्यों दीपक से रिश्ता तोड़ना चाहती थी स्वाति

अलसाई आंखों से मोबाइल चैक किया तो देखा 17 मिस्ड कौल्स हैं. सुबह की लाली आंगन में छाई हुई थी. सूरज नारंगी बला पहने खिड़की के अधखुले परदे के बीच से झंक रहा था. मैं ने जल्दी से खिड़कियों के परदे हटा दिए. मेरे पूरे कमरे में नारंगी छटा बिखर गई थी. सामने शीशे पर सूरज की किरण पड़ने से मेरी आंखें चौंधिया सी गई थीं. मिचमिचाई आंखों से मोबाइल दोबारा चैक किया. फिर व्हाट्सऐप मैसेज देखे पर अनरीड ही छोड़ कर बाथरूम में चली गई. फिर फै्रश हो कर किचन में जा कर गरमागरम अदरक वाली चाय बनाई और मोबाइल ले कर चाय पीने बैठ गई.

ओह, ये 17 मिस्ड कौल्स. किस की हैं? कौंटैक्ट लिस्ट में मेरे पास इस का नाम भी नहीं. सोचा कि कोई जानने वाला होगा वरना थोड़े ही इतनी बार फोन करता. मैं ने उस नंबर पर कौलबैक किया और उत्सुकतावश सोचने लगी कि शायद मेरी किसी फ्रैंड का होगा.

तभी वहां से बड़ी तेज डांटने की आवाज आई, ‘‘क्या लगा रखा है साक्षी, सारी रात मैं ने तुम को कितना फोन किया, तुम ने फोन क्यों नहीं उठाया? हम सब कितना परेशान थे. मम्मीपापा तुम्हारी चिंता में रातभर सोए भी नहीं. तुम इतनी बेपरवाह कैसे हो सकती हो?’’

‘‘हैलो, हैलो, आप कौन, मैं साक्षी नहीं, स्वाति हूं. शायद रौंग नंबर है,’’ कह कर मैं ने फोन काट दिया और कालेज जाने के लिए तैयार होने चली गई.

आज कालेज जल्दी जाना था. कुछ प्रोजैक्ट भी सब्मिट करने थे, सो, मैं ने फोन का ज्यादा सिरदर्द लेना ठीक नहीं समझ. बहरहाल, उस दिन से अजीब सी बातें होने लगीं. उस नंबर की मिस्ड कौल अकसर मेरे मोबाइल पर आ जाती. शायद लास्ट डिजिट में एकदो नंबर चेंज होने से यह फोन मुझे लग जाता था. कभीकभी गुस्सा भी आता, मगर दूसरी तरफ जो भी था, बड़ी शिष्टता से बात करता, तो मैं नौर्मल हो जाती. अब हम लोगों के बीच हाय और हैलो भी शुरू हो गई. कभीकभी हम लोग उत्सुकतावश एकदूसरे के बारे में जानकारी भी बटोरने लगते.

एक दिन मैं क्लास से बाहर आ रही थी. तभी वही मिस्ड कौल वाले का फोन आया. साथ में मेरी फ्रैंड थी, तो मैं ने फोन उठाना उचित न समझ. जल्दी से गार्डन में जा कर बैठ कर फोन देखने लगी कि कहीं फिर दोबारा कौल न आ जाए. मगर अनायास उंगलियां कीबोर्ड पर नंबर डायल करने लगीं. जैसे ही रिंग गई, दिल को अजीब सा सुकून मिला. पता नहीं क्यों हम दोनों के बीच एक रिश्ता सा कायम होता जा रहा था. शायद वह भी इसलिए बारबार यह गलती दोहरा रहा था. तभी गार्डन में सामने बैठे एक लड़के का भी मोबाइल बजने लगा.

जैसे मैं ने हैलो कहा तो उस ने भी हैलो कहा. मैं ने उस से कहा, ‘‘क्या कर रहे हो?’’ तो उस ने जवाब दिया, ‘‘गार्डन में खड़ा हूं और तुम से बात कर रहा हूं और मेरे सामने एक लड़की भी किसी से बात कर रही है.’’ दोनों एकसाथ खुशी से चीख पड़े, ‘‘स्वाति, तुम?’’ ‘‘दीपक, तुम?’’

‘‘अरे, हम दोनों एक ही कालेज में पढ़ते हैं. क्या बात है, हमारा मिलना एकदम फिल्मी स्टाइल में हुआ. मैं ने तुम को बहुत बार देखा है.’’

‘‘पर मैं ने तो तुम्हें फर्स्ट टाइम देखा है. क्या रोज कालेज नहीं आती हो?’’

‘‘अरे, ऐसा नहीं. मैं तो रोज कालेज आती हूं. मैं बीए फर्स्ट ईयर की स्टूडैंट हूं.’’

‘‘और मैं यहां फाइन आर्ट्स में एमए फाइनल ईयर का स्टूडैंट हूं.’’

‘‘ओह, तब तो मुझे आप को सर कहना होगा,’’ और दोनों हंसने लगे.

‘‘अरे यार, सर नहीं, दीपक ही बोलो.’’

‘‘तो आप को पेंटिंग का शौक है.’’

‘‘हां, एक दिन तुम मेरे घर आना, मैं तुम्हें अपनी सारी पेंटिंग्स दिखाऊंगा. कई बार मेरी पेंटिंग्स की प्रदर्शनी भी लग चुकी है.’’

‘‘कोई पेंटिंग बिकी या लोग देख कर ही भाग गए.’’

‘‘अभी बताता हूं.’’ और दीपक मेरी तरफ बढ़ा तो मैं उधर से भाग गई.

कुछ ही दिनों में हम दोनों अच्छे दोस्त बन गए. कभीकभी दीपक मुझे पेंटिंग दिखाने घर भी ले जाया करता. मेरे मांबाप तो गांव में थे और मेरा दीपक से यों दोस्ती करना अच्छा भी न लगता. कभी हम दोनों साथ फिल्म देखने जाते तो कभी गार्डन में पेड़ों के झरमुट के बीच बैठ कर घंटों बतियाते रहते और जब अंधेरा घिरने लगता तो अपनेअपने घोंसलों में लौट जाते.

एक जमाना था कि प्रेम की अभिव्यक्ति बहुत मुश्किल हुआ करती थी. ज्यादातर बातें इशारों या मौन संवादों से ही समझ जाती थीं. तब प्रेम में लज्जा और शालीनता एक मूल्य माना जाता था. बदलते वक्त के साथ प्रेम की परिभाषा मुखर हुई. और अब तो रिश्तों में भी कई रंग निखरने लगे हैं. अब तो प्रेम व्यक्त करना सरल, सहज और सुगम भी हो गया है. यहां तक कि फरवरी का महीना प्रेम के नाम हो गया है.

इस मौसम में प्रकृति भी सौंदर्य बिखेरने लगती है. आम की मजरिया, अशोक के फल, लाल कमल, नव मल्लिका और नीलकमल खिल उठते हैं. प्रेम का उत्सव चरम पर होता है. कुछ ही दिनों में वैलेंटाइन डे आने वाला था और मैं ने सोच लिया था कि दीपक को इस दिन सब से अच्छा तोहफा दूंगी. इस दोस्ती को प्यार में बदलने के लिए इस से अच्छा कोई और दिन नहीं हो सकता.

आखिर वह दिन भी आ गया जब प्रकृति की फिजाओं के रोमरोम से प्यार बरस रहा था और हम दोनों ने भी प्यार का इजहार कर दिया. उस दिन दीपक ने मुझसे कहा कि आज ही के दिन मैं तुम से सगाई भी करना चाहता था. मेरे प्यार को इतनी जल्दी यह मुकाम भी मिल जाएगा, सोचा न था.

दीपक ने मेरे मांबाप को भी राजी कर लिया. न जैसा कहने को कुछ भी न था. दीपक एक अमीर, सुंदर और नौजवान था जो दिनरात तरक्की कर रहा था. आखिर अगले ही महीने हम दोनों की शादी भी हो गई. अपनी शादीशुदा जिंदगी से मैं बहुत खुश थी.

तभी 4 वर्षों के लिए आर्ट में पीएचडी के लिए लंदन से दीपक को स्कौलरशिप मिल गई. परिवार में सभी इस का विरोध कर रहे थे, मगर मैं ने किसी तरह सब को राजी कर लिया. दिल में एक डर भी था कि कहीं दीपक अपनी शोहरत और पैसे में मुझे भूल न जाए. पर वहां जाने में दीपक का भला था.

पूरे इंडिया में केवल 4 लड़के ही सलैक्ट हुए थे. सो, अपने दिल पर पत्थर रख कर दीपक  को भी राजी कर लिया. बेचारा बहुत दुखी था. मुझे छोड़ कर जाने का उस का बिलकुल ही मन नहीं था. पर ऐसा मौका भी तो बहुत कम लोगों को मिलता है. भीगी आंखों से उसे एयरपोर्ट तक छोड़ने गई. दीपक की आंखों में भी आंसू दिख रहे थे, वह बारबार कहता, ‘स्वाति, प्लीज एक बार मना कर दो, मैं खुशीखुशी मान जाऊंगा. पता नहीं तुम्हारे बिना कैसे कटेंगे ये 4 साल. मैं ने अगले वैलेंटाइन डे पर कितना कुछ सोच रखा था. अब तो फरवरी में आ भी नहीं सकूंगा.’मैं उसे बारबार समझती कि पता नहीं हम लोग कितने वैलेंटाइन डे साथसाथ मनाएंगे. अगर एक बार नहीं मिल सके तो क्या हुआ. खैर, जब तक दीपक आंखों से ओझल नहीं हो गया, मैं वहीं खड़ी रही.

अब असली परीक्षा की घड़ी थी. दीपक के बिना न रात कटती न दिन. दिन में उस से 4-5 बार फोन पर बात हो जाती. पर जैसे महीने बीतते गए, फोन में कमी आने लगी. जब भी फोन करो, हमेशा बिजी ही मिलता. अब तो बात करने तक की फुरसत नहीं थी उस के पास.

कभी भूलेभटके फोन आ भी जाता तो कहता कि तुम लोग क्यों परेशान करते हो. यहां बहुत काम है. सिर उठाने तक की फुरसत नहीं है. घर में सभी समझते कि उस के पास काम का बोझ ज्यादा है. पर मेरा दिल कहीं न कहीं आशंकाओं से घिर जाता.

बहरहाल, महीने बीतते गए. अगले महीने वैलेंटाइन डे था. मैं ने सोचा, लंदन पहुंच कर दीपक को सरप्राइज दूं. पापा ने मेरे जाने का इंतजाम भी कर दिया. मैं ने पापा से कहा कि कोईर् भी दीपक को कुछ न बताए. जब मैं लंदन पहुंची तो दीपक को इस बारे में कुछ भी पता नहीं था. मैं पापा (ससुर) के दोस्त के घर पर रुकी थी. वहां मु?ो कोई परेशानी न हो, इसलिए अंकलआंटी मेरा बहुत ही ध्यान रखते थे.

वैसे भी उन की कोई संतान नहीं थी. शायद इसलिए भी उन्हें मेरा रुकना अच्छा लगा. उन का मकान लंदन में एक सामान्य इलाके में था. ऊपर एक कमरे में बैठी मैं सोच रही थी कि अभी मैं दीपक को दूर से ही देख कर आ जाऊंगी और वैलेंटाइन डे पर सजधज कर उस के सामने अचानक खड़ी हो जाऊंगी. उस समय दीपक कैसे रिऐक्ट करेगा, यह सोच कर शर्म से गाल गुलाबी हो गए और सामने लगे शीशे में अपना चेहरा देख कर मैं मन ही मन मुसकरा दी.

किसी तरह रात काटी और सुबहसुबह तैयार हो कर दीपक को देखने पहुंची. दीपक का घर यहां से पास में ही था. सो, मुझे ज्यादा परेशानी नहीं उठानी पड़ी.

सामने से दीपक को मैं ने देखा कि वह बड़ी सी बिल्ंडिंग से बाहर निकला और अपनी छोटी सी गाड़ी में बैठ कर चला गया. उस समय मेरा मन कितना व्याकुल था, एक बार तो जी में आया कि दौड़ कर गले लग जाऊं और पूछूं कि दीपक, तुम इतना क्यों बदल गए. आते समय किए बड़ेबड़े वादे चंद महीनों में भुला दिए. पर बड़ी मुश्किल से अपने को रोका.

तब से मुझ पर मानो नशा सा छा गया. पूरा दिन बेचैनी से कटा. शाम को मैं फिर दीपक के लौटने के समय, उसी जगह पहुंच गई. मेरी आंखें हर रुकने वाली गाड़ी में दीपक को ढूं़ढ़तीं. सहसा दीपक की कार पार्किंग में आ कर रुकी तो मैं भौचक्की सी दीपक को देखने लगी. तभी दूसरी तरफ से एक लड़की उतरी. वे दोनों एकदूसरे का हाथ पकड़े मंदमंद मुसकराते, एकदूसरे से बातें करते चले जा रहे थे. मैं तेजी से दीपक की तरफ भागी कि आखिर यह लड़की कौन है. देखने में तो इंडियन ही है. पांव इतनी तेजी से उठ रहे थे कि लगा मैं दौड़ रही हूं. मगर जब तक वहां पहुंची, वे दोनों आंखों से ओल हो गए थे.

मैं पागलों सी सड़क पर जा पहुंची. चारों तरफ जगमगाते ढेर सारे मौल्स और दुकानें थीं. आते समय ये सब कितने अच्छे लग रहे थे, लेकिन अब लग रहा था कि ये सब जहरीले सांपबिच्छू बन कर काटने को दौड़ रहे हों. पागलों की तरह भागती हुई घर वापस आ गई और दरवाजा बंद कर के बहुत देर तक रोती रही. तो यह था फोन न आने का कारण.

मेरे प्यार में ऐसी कौन सी कमी रह गई कि दीपक ने इतना बड़ा धोखा दिया. मैं भी एक होनहार स्टूडैंट थी. मगर दीपक के लिए अपना कैरियर अधूरा ही छोड़ दिया. मैं ने अपनेआप को संभाला. दूसरे दिन दीपक के जाने के बाद मैं ने उस बिल्ंिडग और कालेज में खोजबीन शुरू की. इतना तो मैं तुरंत समझ गई कि ये दोनों साथ में रहते हैं. इन की शादी हो गई या रिलेशनशिप में हैं, यह पता लगाना था. कालेज में जा कर पता चला कि यह लड़की दीपक की पेंटिंग्स में काफी हैल्प करती है और इसी की वजह से दीपक की पेंटिंग्स इंटरनैशनल लैवल में सलैक्ट हुई हैं. दीपक की प्रदर्शनी अगले महीने फ्रांस में है. उस के पहले ये दोनों शादी कर लेंगे क्योंकि बिना शादी के यह लड़की उस के साथ फ्रांस नहीं जा सकती.

तभी एक प्यारी सी आवाज आई, लगा जैसे हजारों सितार एकसाथ बज उठे हों. मेरी तंद्रा भंग हुई तो देखा, एक लड़की सामने खड़ी थी.

‘‘आप को कई दिनों से यहां भटकते हुए देख रही हूं. क्या मैं आप की कुछ मदद कर सकती हूं.’’  मैं ने सिर उठा कर देखा तो उस की मीठी आवाज के सामने मेरी सुंदरता फीकी थी. मैं ने देखा सांवली, मोटी और सामान्य सी दिखने वाली लड़की थी. पता नहीं दीपक को इस में क्या अच्छा लगा. जरूर दीपक इस से अपना काम ही निकलवा रहा होगा.

‘‘नो थैंक्स,’’ मैं ने बड़ी शालीनता से कहा.

मगर वह तो पीछे ही पड़ गई, ‘‘चलो, चाय पीते हैं. सामने ही कैंटीन है.’’ उस ने प्यार से कहा तो मुझ से रहा नहीं गया. मैं चुपचाप उस के पीछेपीछे चल दी. उस ने अपना नाम नीलम बताया. मु?ो बड़ी भली लगी. इस थोड़ी देर की मुलाकात में उस ने अपने बारे में सबकुछ बता दिया और अपने होने वाले पति का फोटो भी दिखाया. पर उस समय मेरे दिल का क्या हाल था, कोई नहीं समझ सकता था. मानो जिस्म में खून की एक बूंद भी न बची हो. पासपास घर होने की वजह से हम अकसर मिल जाते. वह पता नहीं क्यों मुझ से दोस्ती करने पर तुली हुई थी. शायद, यहां विदेश में मुझ जैसे इंडियंस में अपनापन पा कर वह सारी खुशियां समेटना चाहती थी.

एक दिन मैं दोपहर को अपने कमरे में आराम कर रही थी. तभी दरवाजे की घंटी बजी. मैं ने ही दरवाजा खोला. सामने वह लड़की दीपक के साथ खड़ी थी. ‘‘स्वाति, मैं अपने होने वाले पति से आप को मिलाने लाई हूं. मैं ने आप की इतनी बातें और तारीफ की तो इन्होंने कहा कि अब तो मु?ो तुम्हारी इस फ्रैंड से मिलना ही पड़ेगा. हम दोनों वैलेंटाइन डे के दिन शादी करने जा रहे हैं. आप को इनवाइट करने भी आए हैं. आप को हमारी शादी में जरूर आना है.’’

दीपक ने जैसे ही मुझे देखा, छिटक कर पीछे हट गया. मानो पांव जल से गए हों. मगर मैं वैसे ही शांत और निश्च्छल खड़ी रही. फिर हाथ का इशारा कर बोली, ‘‘अच्छा, ये मिस्टर दीपक हैं.’’ जैसे वह मेरे लिए अपरिचित हो. मैं ने दीपक को इतनी इंटैलिजैंट और सुंदर बीवी पाने की बधाई दी.

दीपक के मुंह पर हवाइयां उड़ रही थीं. लज्जा और ग्लानि से उस के चेहरे पर कईर् रंग आजा रहे थे. यह बात वह जानता था कि एक दिन सारी बातें स्वाति को बतानी पड़ेंगी. मगर वह इस तरह अचानक मिल जाएगी, उस का उसे सपने में भी गुमान न था. उस ने सब सोच रखा था कि स्वाति से कैसेकैसे बात करनी है. आरोपों का उत्तर भी सोच रखा था. पर सारी तैयारी धरी की धरी रह गईर्.

नीलम ने बड़ी शालीनता से मेरा परिचय दीपक से कराया, बोली, ‘‘दीपक, ये हैं स्वाति. इन का पति इन्हें छोड़ कर कहीं चला गया है. बेचारी उसी को ढूंढ़ती हुई यहां आ पहुंची. दीपक, मैं तुम्हें इसलिए भी यहां लाई हूं ताकि तुम इन की कुछ मदद कर सको.’’ दीपक तो वहां ज्यादा देर रुक न पाया और वापस घर चला गया. मगर नींद तो उस से कोसों दूर थी. उधर, नीलम कपड़े चेंज कर के सोने चली गई. दीपक को बहुत बेचैनी हो रही थी. उसे लगा था कि स्वाति अपने प्यार की दुहाई देगी, उसे मनाएगी, अपने बिगड़ते हुए रिश्ते को बनाने की कोशिश करेगी. मगर उस ने ऐसा कुछ नहीं किया. मगर क्यों…?

स्वाति इतनी समझदार कब से हो गई. उसे बारबार उस का शांत चेहरा याद आ रहा था. जैसे कुछ हुआ ही नहीं था. आज उसे स्वाति पर बहुत प्यार आ रहा था. और अपने किए पर पछता रहा था. उस ने पास सो रही नीलम को देखा, फिर सोचने लगा कि क्यों मैं बेकार प्यारमोहब्बत के जज्बातों में बह रहा हूं. जिस मुकाम पर मु?ो नीलम पहुंचा सकती है वहां स्वाति कहां. फिर तेजी से उठा और एक चादर ले कर ड्राइंगरूम में जा कर लेट गया.

दिन में 12 बजे के आसपास नीलम ने उसे जगाया. ‘‘क्या बात है दीपक, तबीयत तो ठीक है? तुम कभी इतनी देर तक सोते नहीं हो.’’ दीपक ने उठते ही घड़ी की तरफ देखा. घड़ी 12 बजा रही थी. वह तुरंत उठा और जूते पहन कर बाहर निकल पड़ा. नीलम बोली, ‘‘अरे, कहां जा रहे हो?’’

‘‘प्रोफैसर साहब का रात में फोन आया था. उन्हीं से मिलने जा रहा हूं.’’

दीपक सारे दिन बेचैन रहा. स्वाति उस की आंखों के आगे घूमती रही. उस की बातें कानों में गूंजती रहीं. उसी के प्यार में वह यहां आई थी. स्वाति ने यहां पर कितनी तकलीफें ?ोली होंगी. मु?ो कोई परेशानी न हो, इसलिए उस ने अपने आने तक का मैसेज भी नहीं दिया. क्या वह मु?ो कभी माफ कर पाएगी.

मन में उठते सवालों के साथ दीपक स्वाति के घर पहुंचा. मगर दरवाजा आंटी ने खोला. दीपक ने डरते हुए पूछा, ‘‘स्वाति कहां है?’’

आंटी बोलीं, ‘‘वह तो कल रात 8 बजे की फ्लाइट से इंडिया वापस चली गई. तुम कौन हो?’’

‘‘मैं दीपक हूं, नीलम का होने वाला पति.’’

‘‘स्वाति नीलम के लिए एक पैकेट छोड़ गई है. कह रही थी कि जब भी नीलम आए, उसे दे देना.’’

दीपक ने कहा, ‘‘वह पैकेट मुझे दे दीजिए, मैं नीलम को जरूर दे दूंगा.’’

दीपक ने वह पैकेट लिया और सामने बने पार्क में बैठ कर कांपते हाथों से पैकेट खोला. उस में उस के और स्वाति के प्यार की निशानियां थीं. उन दोनों की शादी की तसवीरें. वह फोन जिस ने उन दोनों को मिलाया था. सिंदूर की डब्बी और एक पीली साड़ी थी. उस में एक छोटा सा पत्र भी था, जिस में लिखा था कि 2 दिनों बाद वैलेंटाइन डे है. ये मेरे प्यार की निशानियां हैं जिन के अब मेरे लिए कोई माने नहीं हैं. तुम दोनों वैलेंटाइन डे के दिन ही थेम्स नदी में जा कर मेरे प्यार का विसर्जन कर देना…स्वाति.

चेहरे पर ही क्यों ज्यादा नजर आती हैं झुर्रियां, इस तरह पाएं छुटकारा

उम्र बढ़ने के साथसाथ त्वचा पर कई तरह के बदलाव नजर आने लगते हैं. इन में त्वचा पर  झुर्रियां और फाइनलाइंस पड़ना सब से आम हैं. दरअसल, जैसेजैसे उम्र बढ़ती जाती है त्वचा में कोलोजन और इलास्टिन नामक प्रोटीन की मात्रा लगातार कम होने लगती है. ऐसे में त्वचा की नमी, चमक और खूबसूरती कम होने लगती है, साथ ही त्वचा पर  झुर्रियां और महीन रेखाएं भी पड़ने लगती हैं. इस का असर सब से ज्यादा चेहरे पर देखने को मिलता है.

आनुवंशिक और पर्यावरणीय कारकों के कारण भी  झुर्रियां, त्वचा का रंग बदलना और दागधब्बे आदि दिखने लगते हैं. कुछ साल पहले तक  झुर्रियां बढ़ती उम्र की पहचान हुआ करती थीं लेकिन बदलते लाइफस्टाइल के बीच 30 से 35 साल के लोगों में भी  झुर्रियों की समस्या होने लगी है. इस से बचने के लिए पहले यह सम झना जरूरी है कि  झुर्रियां आती क्यों हैं?

पराबैगनी विकिरण और फोटोएजिंग

सूर्य की रोशनी में रहना त्वचा की जल्दी उम्र बढ़ने (फोटोएजिंग नामक प्रक्रिया) का सब से महत्त्वपूर्ण कारण है. त्वचा को नुकसान पहुंचाने वाली 2 प्रकार की सूर्य की किरणें पराबैगनी ए (यूवीए) और पराबैंगनी बी (यूवीबी) हैं. पराबैगनी विकिरण के संपर्क में आने से त्वचा की जल्दी उम्र बढ़ने के अधिकांश लक्षण दिखाई देते हैं. ज्यादातर नुकसान 20 साल की उम्र तक होता है क्योंकि लोग कम उम्र में लंबे समय तक धूप में रहते हैं यानी त्वचा पर दिखने से कई साल पहले ही नुकसान हो जाता है.

यूवीए त्वचा की गहरी परतों को प्रभावित करती हैं. पृथ्वी तक पहुंचने वाली अधिकांश पराबैगनी किरणें वीए होती हैं. वीए, यूवीबी जितनी तीव्र नहीं होतीं. वीए किरणें पूरा दिन और पूरे वर्ष में समान रूप से तीव्र होती हैं. वीए बादलों और कांच के माध्यम से गुजर सकती हैं. हालांकि वीबी जितनी तीव्र या कैंसरकारी नहीं होतीं लेकिन वीबी की तुलना में हमें बहुत अधिक  वीए प्राप्त होती हैं. यूवीबी सनबर्न का मुख्य कारण हैं. यह ज्यादातर त्वचा की बाहरी परतों को प्रभावित करती हैं.

यूवीबी से त्वचा को नुकसान सर्दियों के दौरान, ऊंचाई पर या बर्फ और बर्फ वाले स्थानों पर भी हो सकता है जो त्वचा पर किरणों को परावर्तित करते हैं. खिड़की के शीशे ज्यादातर यूवीबी किरणों को फिल्टर कर देते हैं. यहां तक कि पराबैगनी विकिरण की थोड़ी सी मात्रा भी त्वचा पर  झुर्रियां उत्पन्न करने वाली प्रक्रियाओं को सक्रिय कर देती है.

सूरज की रोशनी कोलोजन फाइबर को नुकसान पहुंचाती है. कोलोजन मुख्य प्रोटीन है जो त्वचा को संरचना प्रदान करता है. सूरज की रोशनी इलास्टिन को भी नुकसान पहुंचाती है. यह त्वचा में एक और प्रोटीन है जो इसे और नीचे के ऊतकों को लचीला और मजबूत बनाए रखने में मदद करता है. सूर्य के कारण होने वाली इलास्टिन क्षति के कारण शरीर मैटालोप्रोटीनैस नामक ऐंजाइम का बड़ी मात्रा में उत्पादन करता है. इन में से कुछ ऐंजाइम कोलोजन को तोड़ देते हैं. इस से असामान्य त्वचा पुनर्निर्माण की पुनरावृत्ति होती है जिस से  झुर्रियां होती हैं.

झुर्रियों के लिए जिम्मेदार अन्य कारक

सिगरेट पीना: धूम्रपान करने से शरीर में  झुर्रियां और उम्र से संबंधित त्वचा संबंधी समस्याएं जल्दी विकसित होती हैं. अध्ययनों से पता चलता है कि धूम्रपान और उस के परिणामस्वरूप औक्सीकरण से मैटालोप्रोटीनैसिस का उच्च स्तर बनता है. धूम्रपान करते समय होंठों को सिकोड़ना भी चेहरे पर  झुर्रियों का कारण बन सकता है.

वायु प्रदूषण: ओजोन एक आम वायु प्रदूषक है. यह शरीर के विटामिन ई के स्तर को कम कर सकता है. विटामिन ई एक महत्त्वपूर्ण ऐंटीऔक्सीडैंट है जो कोशिकाओं को फ्री रैडिकल्स के प्रभाव से बचाता है. इस वजह से  झुर्रियों का खतरा बढ़ता है.

आज के समय में  झुर्रियों को छिपाने या मिटाने के लिए कई तरह की कौस्मैटिक प्रक्रियाएं मौजूद हैं जिन्हें अपना कर आप बेहतर और जवां स्किन वापस पा सकती हैं:

होम ऐक्सफौलिएशन

ऐक्सफौलिएशन (रीसर्फेसिंग) त्वचा को बेहतर बनाने और छोटी  झुर्रियों को खत्म करने के लिए बुनियादी तरीकों में से एक है. इस में नई त्वचा के विकास के लिए त्वचा की ऊपरी परत को हटाना शामिल है. इस से त्वचा फिर से जीवंत हो उठती है. घरेलू ऐक्सफौलिएशन विधियों में स्क्रब और विशेष क्रीम शामिल हैं.

कौपर पेप्टाइड्स

तांबे से युक्त कुछ यौगिक त्वचा की रक्षा कर सकते हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि तांबा एक ऐंटीऔक्सीडैंट है. कौपर पेप्टाइड्स त्वचा की मरम्मत में भी मदद कर सकते हैं क्योंकि ये त्वचा को कोलोजन और इलास्टिन बढ़ाने में मदद करता है. शरीर में बहुत अधिक मात्रा में तांबा हानिकारक होता है. इन उत्पादों का उपयोग करते समय पैकेज पर दिए गए निर्देशों का पालन करना जरूरी होता है.

रासायनिक पील

कैमिकल पील को डर्मा पीलिंग के नाम से भी जाना जाता है. यह  झुर्रियों वाली, धूप से क्षतिग्रस्त, हलके दाग वाली या दागदार चेहरे की त्वचा को बेहतर करने में मदद करता है. कैमिकल पील त्वचा की ऊपरी परतों को हटाता है और यह गहरे कोलोजन को नई त्वचा बनाने का संकेत देता है ताकि त्वचा जवां दिखे.

यह प्रक्रिया ऊपरी होंठ के लिए बहुत प्रभावी है लेकिन इसे आंखों के आसपास नहीं किया जा सकता है. कैमिकल पील को ट्रेटिनौइन और विटामिन सी जैसे ऐंटीऔक्सीडैंट के साथ भी जोड़ा जा सकता है.

लेजर रिसर्फेसिंग

लेजर  झुर्रियों को खत्म करने का एक प्रभावी जरीया है. अन्य रिसर्फेसिंग विधियों की तुलना में लेजर का एक लाभ यह है कि वह त्वचा को कसने की क्षमता रखता है. एक सफल प्रक्रिया लोगों को जवां बना सकती है और इस के परिणाम 10 साल तक रह सकते हैं. यह प्रक्रिया आंखों, नाक और मुंह के आसपास सब से अधिक मदद करती है और इसे गरदन पर भी किया जा सकता है. लेजर थेरैपी मुंहासों के निशान, नसों और चेहरे पर फैले उम्र के धब्बों के लिए भी प्रभावी हो सकती है.

इंजैक्टेबल स्किन फिलर्स

इंजैक्टेबल स्किन फिलर्स  झुर्रियों और सिलवटों को कम करने का एक सामान्य तरीका है. फिलर्स का उपयोग आंखों के नीचे के गड्ढों के साथसाथ मुंहासों और अन्य निशानों के लिए भी किया जा सकता है. इस प्रक्रिया में आमतौर पर उपचार किए जाने वाले क्षेत्र की त्वचा के नीचे फिलिंग प्रोडक्ट्स को इंजैक्ट करने के लिए एक छोटी सूई और सिरिंज का उपयोग किया जाता है. फिलर्स का उपयोग अकसर  झुर्रियों को कम करने के लिए बोटुलिनम टौक्सिन जैसे अन्य ऐजेंटों के साथ किया जाता है.

बोटुलिनम टौक्सिन इंजैक्शन

बोटुलिनम टौक्सिन प्रोडक्ट्स (बोटौक्स, मायोब्लौक, डिस्पोर्ट, जियोमिन, ज्यूवो) का उपयोग उन  झुर्रियों को चिकना करने के लिए किया जाता है जो चेहरे के हावभाव बनाते समय  मांसपेशियों की एक्टिविटी के कारण सालों में बनती हैं. माथे की  झुर्रियों, भौंहों की रेखाएं आदि का बोटुलिनम टौक्सिन कुछ समय के लिए सफलतापूर्वक इलाज करता है. इंजैक्शन के लगभग 1 सप्ताह बाद परिवर्तन देखा जाता है. हर 3-4 महीनों में इंजैक्शन दोहराए जाने की आवश्यकता होती है क्योंकि इस का प्रभाव खत्म हो जाता है.

कौस्मैटिक सर्जरी

कौस्मैटिक सर्जरी किसी व्यक्ति के रंगरूप को बेहतर बनाने के लिए की जाने वाली सर्जरी है. उम्र बढ़ने के कारण चेहरे की स्किन और टिशू अपनी दृढ़ता खो देते हैं. नतीजतन ये ढीले पड़ जाते हैं जिस से  झुर्रियों पड़ जाती हैं. कौस्मैटिक सर्जरी से ऐसी  झुर्रियों को ठीक किया जा सकता है. चेहरे और गरदन की  झुर्रियों के लिए कौस्मैटिक सर्जरी के मुख्य प्रकार हैं- फेसलिफ्ट, फोरहैड लिफ्ट और नैक लिफ्ट.

लाइफस्टाइल से जुड़े उपाय

झुर्रियों और दागधब्बों से बचने का सब से अच्छा उपाय स्वस्थ जीवनशैली और त्वचा को सूर्य की हानिकारक किरणों से बचाना है.  झुर्रियों की रोकथाम के कुछ घरेलू, लाइफस्टाइल से जुड़े और खानपान संबंधी उपाय ये हैं:

स्वस्थ भोजन खाएं

भरपूर मात्रा में ताजे फल और सब्जियां तथा साबूत अनाज के साथसाथ स्वस्थ तेल (जैसे जैतून का तेल) युक्त आहार त्वचा को मुक्त कणों से होने वाले नुकसान से बचा सकता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि इन खाद्यपदार्थों में ऐंटीऔक्सीडैंट का उच्च स्तर होता है.

व्यायाम

रोजाना व्यायाम करने से रक्त प्रवाह सुचारु बना रहता है जिस से त्वचा को औक्सीजन मिलती है. स्वस्थ त्वचा के लिए औक्सीजन महत्त्वपूर्ण है. बहुत सी फैशियल ऐक्सरसाइज भी होती हैं जिन का अभ्यास कम उम्र से ही शुरू कर देना चाहिए.

तंबाकू के धुएं से बचें

धूम्रपान से  झुर्रियां बढ़ती हैं. धूम्रपान छोड़ने से न केवल अस्वस्थ त्वचा बल्कि कई स्वास्थ्य समस्याओं से भी बचाव होता है. सैकंड हैंड धुएं के संपर्क में आना भी सारे स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है और त्वचा को नुकसान पहुंचाता है.

चेहरे की सफाई

सुबह एक बार और रात में एक बार अपना चेहरा धोएं. पसीना आने के बाद भी धोएं. पसीना त्वचा को नुकसान पहुंचा सकता है. लेकिन चेहरे को बारबार धोने से बचें क्योंकि इस से त्वचा से तेल और नमी निकल सकती है. कुनकुने पानी और सौम्य त्वचा क्लींजर का उपयोग करें. क्लोरीनयुक्त पानी, विशेष रूप से उच्च तापमान पर  झुर्रियों का कारण बन सकता है. अपने चेहरे को किसी ऐसे माइल्ड क्लींजर से धोएं जिस में मौइस्चराइजर हो. डियोड्रैंट साबुन का इस्तेमाल न करें. इन में ऐसे पदार्थ होते हैं जो त्वचा में जलन पैदा कर सकते हैं.

मौइस्चराइजर लगाएं

सूर्य के प्रकाश और वी किरणों से सुरक्षा: हमेशा सनस्क्रीन लगाएं भले ही आप थोड़े समय के लिए बाहर जा रही हों. हर दिन वीए और यूवीबी सनस्क्रीन युक्त क्रीम लगाने से त्वचा को सूरज की वजह से होने वाले नुकसान से बचाने में मदद मिलती है. ऐसा सनस्क्रीन इस्तेमाल करें जो वीए और यूवीबी दोनों किरणों से सुरक्षा प्रदान करे. एसपीएफ 30 या उस से ज्यादा वाला सनस्क्रीन सब से अच्छा होता है.  बाहर निकलने से 15 से 30 मिनट पहले सनस्क्रीन की मोटी परत लगाएं. पानी में जाने के बाद या हर 2 घंटे में दोबारा लगाएं. अधिकतम समय के दौरान धूप में निकलने से बचें जिसे आमतौर पर सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे के बीच माना जाता है जब सूर्य की वी किरणें सब से अधिक प्रबल होती हैं. धूप से बचने के लिए कपड़े पहनें. यह सनस्क्रीन लगाने के अलावा लंबी आस्तीन वाली शर्ट, लंबी पैंट और चौड़ी किनारी वाली टोपी पहनें. आप ऐसे विशेष कपड़े भी खरीद सकते हैं जो यूवी किरणों को सोख लेते हैं.

मौइस्चराइजर रूखेपन, चोट लगने और फटने से बचाता है लेकिन अकेले इस्तेमाल करने पर  झुर्रियों पर इस का कोई असर नहीं होता. मौइस्चराइजर सब से ज्यादा तब प्रभावी होता है जब इसे धोने के बाद भी नम त्वचा पर लगाया जाता है. यह उत्पाद कई तरह से त्वचा की नमी बनाए रखता है:

सौंदर्य प्रसाधनों का प्रयोग

कौस्मैटिक्स जैसे कंसीलर और फाउंडेशन वगैरह त्वचा पर उम्र बढ़ने के निशानों को छिपाने में कारगर हो सकते हैं जिस में  झुर्रियां और उम्र के धब्बे शामिल हैं. कई कौस्मैटिक में सनस्क्रीन होता है. इस से भी स्किन की सुरक्षा होती है.

विटामिन ए

विटामिन ए त्वचा के स्वास्थ्य के लिए महत्त्वपूर्ण है. यूवी विकिरण से त्वचा में विटामिन ए की कमी हो जाती है. त्वचा पर लगाने वाले विटामिन ए प्रोडक्ट्स पर शोध किया गया है और उम्र बढ़ने के कारण होने वाली त्वचा की समस्याओं के उपचार के लिए उन्हें मंजूरी दी गई है. इन प्रोडक्ट्स में विटामिन ए के प्राकृतिक रूप (रैटिनौल, रैटिनाल्डिहाइड) और विटामिन ए से संबंधित रसायन शामिल हैं जिन्हें रैटिनोइड्स (ऐडापेलीन, ट्रेटिनौइन, टैजरोटीन, ट्राइफारोटीन) कहा जाता है. ये प्रोडक्ट्स सनबर्न और प्राकृतिक उम्र बढ़ने के कारण त्वचा को होने वाले नुकसान जैसेकि महीन  झुर्रियां, लिवर स्पौट और रूखी त्वचा को ठीक करने में मदद करते हैं.

विटामिन सी

विटामिन सी या एस्कौर्बिक ऐसिड एक मजबूत ऐंटीऔक्सीडैंट है जो कोलोजन के पुनर्निर्माण में भी मदद कर सकता है. विटामिन सी यूवी विकिरण के कारण त्वचा कोशिकाओं को होने वाले नुकसान को कम करता है या उस से बचाता भी है. विटामिन सी यूवी किरणों के संपर्क में आने के बाद त्वचा कोशिकाओं को जीवित रहने में भी मदद करता है. विटामिन सी का उपयोग सुबह सनस्क्रीन के साथ करना सब से अच्छा होता है.

विटामिन ई लगाएं

विटामिन ई त्वचा के लिए किसी वरदान की तरह है. यह आप की त्वचा को टाइट बनाने में बहुत तेजी से काम करता है. विटामिन ई आप की त्वचा की कोशिकाओं में मौजूद इलास्टिसिटी को बढ़ाता है और कोलोजन के स्तर को बनाए रखने में मदद करता है. इस के नियमित उपयोग से आप के चेहरे की त्वचा पर मौजूद  झुर्रियां पूरी तरह गायब हो सकती हैं.

आप रात को सोने से पहले विटामिन ई को चेहरे पर लगाएं. इस के लिए आप विटामिन ई कैप्सूल का उपयोग करें. कैप्सूल काट कर उस का लिक्विड निकालें और चेहरे पर लगा कर सो जाएं या किसी ऐसी नाइट क्रीम को लगाएं जो विटामिन ई रिच हो. एक ही रात में आप को इन का असर देखने को मिलेगा.

कुछ और उपाय

सोने से 3 घंटे पहले तक शराब न पीएं. शराब से छोटी रक्त वाहिकाओं में रिसाव का खतरा बढ़ जाता है. इस से रक्त वाहिकाओं में ढीलापन और सूजन हो सकती है. जब आप लेटती हैं तो रिसाव बढ़ जाता है.

जब आप रातरातभर एक खास पोजीशन में सोते हैं तो इस से स्लीप लाइंस बनती हैं. करवट ले कर सोने से गालों और ठुड्डी पर  झुर्रियां पड़ती हैं जबकि मुंह के बल सोने से माथे पर  झुर्रियां पड़ जाती हैं.

सैल्मन प्रोटीन का एक बेहतरीन स्रोत है जो अच्छी त्वचा के निर्माण में सहायक है. इस में ओमेगा 3 फैटी ऐसिड भी भरपूर मात्रा में होता है. विशेषज्ञों का कहना है कि आवश्यक फैटी ऐसिड त्वचा को पोषण देता है और इसे कोमल और युवा बनाए रखता है और इस से  झुर्रियों को कम करने में मदद मिल सकती है.

चेहरे पर कोई भी भाव जो आप बारबार दिखाते हैं जैसेकि आंखें सिकोड़ना आदि चेहरे

की मांसपेशियों पर बहुत ज्यादा इफैक्ट करता है और त्वचा की सतह के नीचे रेखाएं बनाता है

जो धीरेधीरे  झुर्रियां बन जाती हैं. इसलिए अपनी आंखें चौड़ी रखें. अगर आप को जरूरत हो तो पढ़ने के लिए चश्मा पहनें और धूप का चश्मे भी पहनें. वह आंखों के आसपास की त्वचा को

सूरज की किरणों से होने वाले नुकसान से बचा सकता है और आप को आंखें सिकोड़ने से बचा सकता है.

झुर्रियां कम करने वाला स्वादिष्ठ पेय कौफी आजमाएं. एक अध्ययन से पता चलता है कि

2 ऐंटीऔक्सीडैंट (ऐपिकैटेचिन और कैटेचिन) के उच्च स्तर वाला कोकोआ त्वचा को सूरज की क्षति से बचाता है, त्वचा की कोशिकाओं में रक्त के प्रवाह को बेहतर बनाता है, नमी बनाए रखता है और त्वचा को चिकना बनाता है.

रात को सोने से पहले 2-3 बूंद बादाम का तेल ले कर आप इस से अपने चेहरे की मालिश करें और फिर सो जाएं. यह आप के चेहरे पर ओवर नाइट फेस मास्क की तरह काम करेगा. बादाम के तेल में भी विटामिन ई प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. इस के अलावा कई दूसरे माइक्रो न्यूट्रिऐंट्स से भी यह तेल भरपूर होता है जो स्किन को तेजी से हील कर के त्वचा की अंदरूनी कोशिकाओं को स्वस्थ बनाने और रीजनरेट करने में मदद करते हैं. बादाम का तेल रात को लगा कर सोने पर आप अगले दिन ही सुबह में अपने चेहरे पर इस का असर देख सकती हैं. इस के नियमित उपयोग से त्वचा में कसावट आती है, रोमछिद्र छोटे होते हैं और त्वचा से  झुर्रियां पूरी तरह गायब हो जाती हैं.

ऐलोवेरा जैल भी ऐसा प्रभावी नुसखा है जो त्वचा पर एक रात में असर दिखाता है. आप बादाम के तेल की तरह इसे भी ओवर नाइट मास्क के रूप में उपयोग कर सकती हैं और त्वचा में कसावट ला सकती हैं.

क्या क्लाउड सीडिंग सुहाने मौसम की गारंटी बनेगा?

दुबई का जिक्र होते ही दिमाग में बस एक ही छवि आती है चकाचौंध, पैसा, महंगीमहंगी गाडि़यां, शानोशौकत वाली जिंदगी और ऊंचीऊंची इमारतें. दुबई में ही दुनिया के सब से अमीर लोग रहते हैं. लेकिन हमेशा चमकने वाले इसी दुबई कुछ समय पहले महज कुछ घंटे की बारिश ने धो डाला. आधुनिकता की दौड़ में सरपट दौड़ रहा दुबई पानीपानी हो गया. जो दुबई बारिश के लिए तरसता था वहां आसमान से इतना पानी बरसा कि शहर समंदर बन गया. शहर में बाढ़ जैसे हालात हो गए. एअरपोर्ट पर पानी का कब्जा हो गया. मैट्रो स्टेशंस, सड़कें और व्यापारिक संस्थानों में बाढ़ का पानी घुस गया. स्कूल बंद कर दिए गए.

तेज बारिश से राजधानी अबू धाबी के कई इलाके दरिया में तबदील हो गए. दुबई में केवल 24 घंटे में इतनी बारिश हुई जितनी यहां 1 साल में होती है. भीषण बारिश के बाद दुबई जैसे तैरने लगा. यह अपनेआप में एक बड़ी प्राकृतिक आपदा है और दुबई के लोगों के लिए एक बुरे सपने की तरह था. 24 घंटे में ही यहां 160 किलोमीटर बारिश हुई. तेज हवा के साथ आई बारिश ने यहां एक नया संकट खड़ा कर दिया. यहां के लोगों ने इतनी बारिश पहले कभी नहीं देखी थी. पूरा शहर जलमग्न हो गया. ऊंचीऊंची इमारतों के बीच सड़कों पर सैकड़ों गाडि़यां फंस गईं. जिस शहर को दुनिया के सब से आधुनिक शहरों में गिना जाता है उस का एक बारिश में ही दम निकल गया.

आमतौर पर दुबई की सड़कों पर महंगीमहंगी गाडि़यों को दौड़ते आप ने देखा होगा. यहां की सड़कों पर ड्राइव का अलग ही मजा होता है. लेकिन बारिश के बाद दुबई में घुटनों तक पानी भर गया जिस में जगहजगह गाडि़यां फंस गईं और शहर में ही नाव चलने लगी.

अब सवाल है कि जिस दुबई में पूरे साल में 140 से 200 मिलीमीटर बारिश होती है, वहां 24 घंटे में ही 160 मिलीमीटर बारिश कैसे हो गई? पूरे साल यहां भीषण गरमी पड़ती है और अधिकतम तापमान 50 डिग्री सैल्सियस तक पहुंच जाता है. यहां हमेशा पानी की कमी रहती है. इसीलिए यहां की सरकार हर साल क्लाउड सीडिंग यानी कृत्रिम बारिश का सहारा लेती है. क्या यही कारण रहा यहां की तबाही का? क्या क्लाउड सीडिंग सुहाने मौसम की गारंटी बनेगा?

जी हां, भविष्य में क्लाउड सीडिंग सुहाने मौसम की गारंटी देने वाला है. वैज्ञानिक अब जब चाहें बारिश करा देंगे और रोक भी देंगे. जी हां यह संभव है. संगीत सम्राट तानसेन ऐसा ही करते थे. तानसेन राग मल्हार गा कर बारिश करवा देते थे. ऐसी और भी कई कथाएं प्रचलित हैं. दरअसल, क्लाउड सीडिंग, जब बारिश की कमी से फसलें सूख रही हों और कोई बड़ा क्षेत्र सूखे की चपेट में आ जाए वहां बारिश कराने के लिए वैज्ञानिकों ने एक नया तरीका खोजा. उसे क्लाउड सीडिंग या कृत्रिम वर्षा कहते हैं. क्लाउड सीडिंग का पहला प्रयोग 1946 में अमेरिकी रसायन और मौसम विज्ञानी विंसेंट जे सेफर द्वारा किया गया था और इस के बाद से इसे कई देशों में समयसमय पर उपयोग किया जाने लगा.

अब शादी में बारिश खलल नहीं डालेगी

शादी के फंक्शन के लिए लोग बहुत मेहनत से तैयारियां करते हैं. कपड़े और सजावट से ले कर अच्छे खाने तक. पर यदि शादी के दौरान बारिश हो जाए तो सारी मेहनत बेकार हो जाती है और मेहमानों को भी परेशानी होती. ऐसे में यदि कोई कंपनी आप की शादी के दिन आप के क्षेत्र में बारिश को रोकने और सुहाने दिन की गारंटी दे तो कैसा रहेगा? जी हां, ऐसे कुछ क्लाउड सीडिंग करने वाली कंपनियां यूरोप और दुनिया के कई अलगअलग भागों में हैं जो आप की शादी के दिन बारिश न होने और खुले आसमान की गारंटी देती हैं. पर इन कंपनियों का पैकेज लगभग क्व1 लाख से शुरू होता है.

अब बारिश के कारण खेल रद्द नहीं होंगे

आप को कितना बुरा लगता होगा जब स्टेडियम में क्रिकेट मैच शुरू होते ही बारिश आ जाए. घंटों इंतजार के बाद भी खेल शुरू न हो और अंत में अंपायर खेल को रद्द कर दें. घबराएं नहीं, अब किसी भी खेल में बारिश दखल नहीं दे पाएगी. वैज्ञानिक बारिश वाले बादल को स्टेडियम तक आने ही नहीं देंगे. पानी भरे बादल को स्टेडियम से दूर कहीं और बरसा देंगे. यह सब क्लाउड सीडिंग द्वारा होगा.

चाइना की राजधानी बीजिंग में 2008 में जब ओलिंपिक गेम्स खेले गए थे तब चाइनीज गवर्नमैंट ने ओलिंपिक गेम्स की ओपनिंग और क्लोजिंग सेरेमनी से पहले क्लाउड सीडिंग के द्वारा पहले ही बारिश करा दी थी ताकि बादलों में नमी कम हो जाए और ओलिंपिक गेम्स की ओपनिंग और क्लोजिंग सेरेमनी के दौरान बारिश न हो तथा स्टेडियम सूखे रहें. लेकिन तब उन्होंने क्लाउड सीडिंग के लिए हवाईजहाज के बजाय मिसाइल का प्रयोग किया था.

रेन थैफ्ट का आरोप

क्लाउड सीडिंग भविष्य में आपस में  झगड़ने का बहुत बड़ा कारण बनेगा क्योंकि बारिश की चोरी होगी तो लोग आपस में लड़ेंगे. चीन में क्लाउड सीडिंग का उपयोग बहुत अधिक होता है.  इसी वजह से वहां ऐसे मामले भी आते रहते हैं जहां एक प्रांत दूसरे प्रांत पर बारिश चोरी करने यानी रेन थैफ्ट का इलजाम लगाता है. चाइना में वर्षा के दिनों में जब मौनसूनी बादल वर्षा ले कर आते हैं तो बादलों के रास्ते में पड़ने वाला कोई एक प्रांत क्लाउड सीडिंग कर के अपने यहां ज्यादा बारिश करवा देता है. इस से बादलों की बूंदें बहुत कम हो जाती हैं. फिर जब भी बादल आगे बढ़ कर किसी दूसरे प्रांत में जाते हैं तो उस को कम बारिश मिलती है क्योंकि बादल पहले ही काफी हद तक बरस चुके होते हैं. फिर यह प्रांत जिसे कम बारिश मिली होती उस प्रांत पर आरोप लगता है कि उस ने इस की बारिश चुरा ली.

युद्ध में हथियार के रूप में

क्लाउड सीडिंग का उपयोग युद्ध में हथियार के रूप में भी किया जाता रहा है. वियतनाम वार के दौरान वहां पर औपरेशन पोपोई के तहत यूएस एअरफोर्स द्वारा 1967 से 1972 के बीच एक खाई के पास एक खास स्थान पर बहुत अधिक बारिश कराई गई ताकि बाढ़ और भूस्खलन से उस सड़क को खराब किया जा सके, जिस सड़क से वहां की वियतनामी मिलिटरी को सभी जरूरी सामान पहुंचाया जाता था. इस प्रकार क्लाउड सीडिंग का उपयोग युद्ध में हथियार के रूप में भी किया जा चुका है.

ऐसा नहीं है कि भारत में क्लाउड सीडिंग का इस्तेमाल नहीं होता. तमिलनाडु सरकार ने सूखे से बचने के लिए 1983, 84, 87 और 94 में इस तकनीक का उपयोग किया था. 2003-04 में कर्नाटक और महाराष्ट्र सरकार द्वारा भी क्लाउड सीडिंग का उपयोग किया गया.

फौग से मिलेगी राहत

दिल्ली में हर साल सर्दियों में फौग और स्मोक मिल कर स्मौग बन जाता है और प्रदूषण का स्तर बहुत बढ़ जाता है. ऐसे में प्रदूषण से बचने के लिए वहां क्लाउड सीडिंग द्वारा अगर बारिश करा दी जाए तो इस से राहत मिल सकती है. कई देश ऐसा करते भी हैं. साथ ही कुछ देशों में एअरपोर्ट के आसपास फौग हटाने के लिए भी क्लाउड सीडिंग की मदद ली जाती है ताकि हवाईजहाज की लैंडिंग और टेक औफ में आसानी हो.

सरकारी वर्षा की आस

कभीकभी बारिश के मौसम में भी बारिश नहीं होती और सूखा पड़ जाता है. इस की वजह से पूरी की पूरी फसलें तबाह हो जाती हैं. ऐसे में वैज्ञानिक आर्टिफिशियल रेन का सहारा लेते हैं. इस प्रक्रिया में कुछ खास तकनीक की मदद से बारिश वाली वही प्राकृतिक प्रक्रिया कृत्रिम रूप से कराई जाती है. क्लाउड सीडिंग का सब से पहला प्रदर्शन फरवरी, 1947 में आस्ट्रेलिया में हुआ था. भारत में क्लाउड सीडिंग का पहला प्रयोग 1951 में हुआ था. दरअसल, भारत में क्लाउड सीडिंग का प्रयोग सूखे से निबटने और डैम वाटर लैवल बढ़ाने में किया जाता रहा है. इसलिए किसानों की आम बोलचाल की भाषा में सरकारी वर्षा भी कहा जाता है.

इलैक्ट्रिकली चार्ज बादल से बरसात

बादलों को इलैक्ट्रिकली चार्ज कर के भी बारिश कराई जा सकती है. यह एक नई तकनीक है. पिछले साल जुलाई में भरी गरमी से परेशान संयुक्त अरब अमीरात ने ड्रोन के जरीए बादलों को रिचार्ज कर के अपने यहां कृत्रिम बारिश कराई थी. इस में बादलों को बिजली का  झटका दे कर बारिश कराई गई थी. इलैक्ट्रिक चार्ज होते ही बादलों में घर्षण हुआ और दुबई और आसपास के शहरों में  झमा झम बारिश हुई. हालांकि यह तकनीक थोड़ी सी महंगी होती है.

इस बारिश के फायदेनुकसान भी कई हैं. गरमी का बहुत अधिक बढ़ जाना, सूखी फसलें, जीवजंतुओं को बचाने और वायु प्रदूषण जैसी समस्या से निबटने के लिए कृत्रिम बारिश सहायक होती है. लेकिन हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि प्रकृति ने बारिश कराने की व्यवस्था अपनेआप बनाई है. वह हमारी जमीन और पूरे वातावरण को सेहतमंद बनाती है. लेकिन स्थान की प्रवृत्ति, हालात और जरूरत को सम झे बिना आननफानन में कृत्रिम बारिश कराना नुकसानदेह साबित हो सकता है.

इस के अलावा भले ही फसलों को बचाने के लिए कृत्रिम बारिश का इस्तेमाल किया जाता है लेकिन इस में इस्तेमाल की जाने वाली सिल्वर एक जहरीली धातु है जो वनस्पति और जीवों को धीरेधीरे गहरा नुकसान पहुंचा सकती है. एक और चीज हमें दिमाग में रखनी होगी कि अलगअलग इलाकों में बादलों की बनावट अलगअलग होती है. चीन में इस बारिश कराने के तौरतरीकों को ले कर खासतौर पर इसलिए सवाल उठ रहे हैं क्योंकि इस में कई शहर गैस चैंबर में बदल चुके हैं. शहरों में कृत्रिम बारिश सामान्य न रह कर ऐसिड रेन में बदल जाती है जो ज्यादा नुकसानदेह होती है.

राजस्थानी जायकों की बात निराली, आपने गुड़ और बाजरे की रोटी चखा क्या ?

राजस्थानी संस्कृति भारतीय सभ्यता का एक अभिन्न अंग है. यहां की बोली, पहनावा, परंपराएं सभी भारतीयता से ओतप्रोत हैं. जहां संस्कृति की बात आती है, वहीं भाषा, पहनावा, परंपरा इन सभी को बहुत महत्त्व प्रदान किया जाता है. फिर भला राजस्थानी खाना इस का भाग क्यों नहीं बने. न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी राजस्थानी खाना प्रसिद्ध है. राजस्थानी खाने में यहां की खुशबू आती है.

राजस्थान की मिट्टी सरसों, बाजरा, गेहूं, तिलहन आदि की जननी है और भारतवर्ष में कई उपजें ऐसी हैं जो सर्वाधिक राजस्थान में ही उगाई जाती हैं. इन सब चीजों से राजस्थान में अलगअलग तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं. राजस्थान की गलीगली में सर्दियों के और गरमियों के खाने की धूम रहती है.

कुछ खाने रसभरे, कुछ चटाकेदार तो कुछ नमकीन और कुछ मिठास से भरे हुए होते हैं. जहां राजस्थान दर्शन करने जाओ वहीं कुछ न कुछ विशेष प्रकार का भोजन खाने को मिल जाता है. देशीविदेशी सैलानियों का विशेष आकर्षण केवल यहां के पर्यटन स्थल ही नहीं हैं यहां का खाना भी इस की संस्कृति का विशेष भाग है जिस के लगाव से पर्यटक आते हैं और लजीज खाने का लुत्फ उठाते हैं.

स्वाद का अनोखापन संस्कृति

वैसे तो बहुत सारे खाने प्रसिद्ध हैं पर कुछ खाने विशेष रूप से यहां की पैदाइशें हैं. स्वाद का अनोखापन संस्कृति की श्रेष्ठता का प्रतिपादन करता है. मुख्य राजस्थानी खानों में भुजिया, सांगरी, दालबाटी, चूरमा, दाल की पूरी, मालपूआ, घेवर, हलदी की सब्जी, बीकानेर का रसगुल्ला, पटोर की सब्जी, बाजरे की रोटी, पंचकूट की सब्जी, गट्टे की सब्जी आदि आते हैं. राजस्थान में जोधपुर की मावे की कचौरी और मिर्ची बड़ी प्रसिद्ध है.

कुछ खाने ऐसे हैं जो अलग प्रकार से बनाए जाते हैं. सब से पहले इस सांस्कृतिक शृंखला में आती है- राजस्थान की कैर सांगरी की सब्जी जो स्वाद में अलग और बनाने में अनोखी. राजस्थानी जायके के साथ मौसम के अनुकूल कैर सांगरी की सब्जी बहुत ही अच्छी होती है. इस सब्जी की सब से बड़ी विशेषता यह है कि यह 3-4 दिन तक खराब नहीं होती है. राजस्थानी संस्कृति के विशेष त्योहार शीतला अष्टमी पर इसे मुख्य तौर पर बनाया जाता है. राजस्थान में इस तरह की सब्जियां बनाई जाती हैं जो घरेलू रसोई के सामान से ही बनाई जाती हैं.

गट्टे की सब्जी बेसन से बनती है जोकि हर घर में मिल ही जाता है. बड़ी मोटी सेव टमाटर की सब्जी, मिर्ची के टिपोरे, राजस्थान की कड़ी, हलदी की सब्जी, चक्की की सब्जी, गुलाबजामुन की सब्जी ऐसी सब्जियां हैं जिन के लिए हरी सब्जियों की नहीं अपितु बनी हुई सामग्री से बनती हैं. स्वाद और स्वास्थ्य दोनों ही राजस्थान की संस्कृति की सब्जियों के भाग हैं.

मजेदार स्वाद

मीठे में राजस्थानी बालूशाही, घेवर, मावे की कचौरी, ब्यावर की तिलपट्टी, मलाई घेवर, बीकानेर रसगुल्ला,चमचम व अलवर का मावा बहुत अधिक प्रसिद्ध है. वहीं यहां का चूरमा दालबाटी बेहद प्रसिद्ध है और राजस्थानी थाली का सर्वाधिक मुख्य भाग है.

गेहूं के आटे का चूरमा, बाजरे का चूरमा साथ में दालबाटी की खुशबू यहां की संस्कृति को बेहद सुगंधित बनाती है और उस में लगने वाला देशी घी का छौंक, बाटी का घी वाह क्या बात है, बन गया बेहतरीन खाना. यही तो है राजस्थानी खाना और उस की संस्कृति. पुष्कर के मालपूए, नसीराबाद का कचौरा और अजमेर की कड़ीकचौरी. किसकिस खाने का नाम लें सब अनोखे और स्वास्थ्यवर्द्धक हैं. यहां का घेवर खासकर मलाई घेवर विदेशी केक को फेल कर देता है.

गुड़ और बाजरे की रोटी

गुड़ और बाजरे की रोटी सर्दियों के मुख्य आहार में से एक हैं. सर्दियों में यहां बाजरे की खिचड़ी और मकई का दलिया भी बनाया जाता है जोकि शरीर को चुस्तदुरुस्त रखता है. राजस्थानी खाना भारत का प्राचीन गौरव है. पर्यटकों का आकर्षण परंपरा का आह्वान करते हुए बेहतरीन लजीज खाना जिस ने न केवल हमारी संस्कृति परंपरा को बनाए रखा है अपितु पर्यटन उद्योग और खाद्यपदार्थों से संबंधित उद्योगों को भी बढ़ावा दिया है.

राजस्थान के पापड़ और अचार ने भी इस वित्तीय कार्यक्रम को आगे पहुंचाया है. अब हम कह सकते हैं कि राजस्थानी संस्कृति इस अभिन्न अंग को हमेशा जड़ों से जुड़े रहना चाहिए ताकि हमें स्वाद का यह संगम हमेशा मिलता रहे और खानपान की हमारी संस्कृति हमेशा हमारे साथ रहे.

मिठाइयों का लुत्फ

राजस्थान के कुछ शहरों के कुछ स्थानीय व्यंजनों के लिए जाने और पहचाने जाते हैं. सब से पहले गुलाबी नगरी यानी जयपुर के बारे में बात कर लेते हैं. यहां का दालबाटी चूरमा बहुत प्रसिद्ध है. यह व्यंजन जयपुर में आप को हर जगह मिलेगा लेकिन विरासत रेस्तरां आदि की बात ही अलग है. जहां तक घेवर की बात तो भी पूरे राजस्थान में मिल जाता है लेकिन यह सब से ज्यादा जायकेदार लक्ष्मी मिष्ठान्न भंडार यानी एलएमबी जोकि जयपुर में जौहरी बाजार में स्थित है वहां मिलता है.

घेवर कई प्रकार के होते हैं जैसेकि सादा घेवर, मावे वाला घेवर, मलाई वाला घेवर. जयपुर का रावत मिष्ठान्न भंडार अपनी मिठाई के लिए प्रसिद्ध है. यहां अलगअलग प्रकार की मिठाइयों का लुत्फ लिया जा सकता है विशेष तौर पर यहां की प्याज की कचौरी तो बात ही अलग है.

जयपुर की तरह जोधपुर भी अपने व्यंजनों के लिए अच्छाखासा प्रसिद्ध है. सब से पहले यहां की मखनिया लस्सी की बात कर लेते हैं जो कि छाछ का एक मलाईदार मिश्रण है जिस में मेवा, केसर, गुलाबजल आदि सामग्री मिलाई जाती है. इस के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थान है श्री मिश्रीलाल होटल, क्लौक टावर के पास सिर्फ, जोधपुर. मिर्चीबड़ा भी जोधपुर का बहुत ही प्रसिद्ध व्यंजन है जोकि गरम चाय के साथ अच्छा नाश्ता है. यह अकसर टोमैटो सौस और हरी चटनी के साथ परोसा जाता है. इस के लिए रौयल समोसा नामक जगह प्रसिद्ध है. जोधपुर की गुलाबजामुन की सब्जी, मावे की कचौरी, कैर सांगरी की सब्जी, हलदी और चक्की की सब्जी आदि प्रसिद्ध हैं.

मिठाइयों में तो गुलाब हलवा बहुत ही जानीपहचानी डिश है. यह शुद्ध देशी घी एवं पिश्ते से बना एक पोषक युक्त हलवा है. इस के लिए गुलाब हलवा वाला, थ्री बी रोड, सरदारपुरा प्रसिद्ध है.

बीकानेरी व्यंजनों की खासीयत

बीकानेर भी अपने व्यंजनों की खासीयत के लिए प्रसिद्ध शहर है. यहां का मीठा और स्पंजी रसगुल्ला एक अलग पहचान रखता है. यहां रसगुल्ले अलगअलग प्रकार के मिलते हैं.

यह व्यंजन आप को 56 भोग नामक स्थान पर जायकेदार मिलेगा. बीकानेर भुजिया भी जानापहचाना व्यंजन है. पूरे देश में यह अपनी अलग पहचान रखती है. यह यों तो शहर में आप जहां भी जाएंगे मिल जाएगी लेकिन छोटी मोटी जोशी मिठाई की दुकान पर जा कर इस का स्वाद चखकर तो देखिए आप को मजा आ जाएगा.

अब एक और शहर के व्यंजन को मजा लेते हैं. इस में अलवर का मिल्क केक, गट्टे की सब्जी, अलअजीज रेस्तरां, शालीमार गेट के पास, भगवानपुरा, अलवर से ले सकते हैं, वहीं मिल्क केक के लिए ठाकुर दास ऐंड संस की दुकान बहुत लोकप्रिय है.

विविध भोजन का आनंद लेने हेतु मोती डूंगरी बस टर्मिनल के पास काफी अच्छे भोजनालय हैं जहां से आप भोजन का मजा ले सकते हैं. जैसलमेर में देशविदेश के पर्यटक बहुतायत में आते हैं तो यदि आप राजस्थानी थाली की तलाश में हैं तो प्लेस व्यू रेस्तरां में जाएं. यहां की मखनिया लस्सी के लिए कंचन श्री प्रसिद्ध हैं. यहां के घोटुआं लड्डू मशहूर हैं. मिठाइयां विशेष रूप से घोटुआं लड्डू के लिए धनराज रावल भाटिया की मिठाई की दुकान प्रसिद्ध है.

पारंपरिक भोजन

चित्तौड़गढ़ अपने किलोग्राम, पर्यटन स्थल के लिए बहुत प्रसिद्ध है. यह ऐतिहासिक तौर पर समृद्ध शहर है. यहां का स्थानीय खाना चखने का मजा आप अपने पर्यटन के दौरान ले सकते हैं. यहां का अरावली हिल रिजोर्ट शाकाहारी भोजन करने वालों की पसंदीदा जगह है. यह पारंपरिक भोजन अलग ही नवीनता लिए हुए है.

आप यहां पर नवीन और पारंपरिक भोजन का अलग ही तालमेल देख सकते हैं. यह रिजोर्ट उदयपुरकोटा राजमार्ग, सर्किल, किले के पीछे सेमलपुरा, चित्तौड़गढ़ पर स्थित है. राजसी रिजोर्ट अपनी पाक कला के लिए जाना जाता है. यह प्रामाणिक राजस्थानी व्यंजन बनाने के लिए माहिर है. यहां का घेवर जरूर चखना चाहिए.

राजस्थान का माउंट आबू एक अच्छा हिल स्टेशन है. यहां पर एक डिश कीचुचु विशेष रूप से प्रसिद्ध है जोकि चावल के आटे से बना नाश्ता है. माउंट आबू के गट्टे की खिचड़ी प्रसिद्ध है. जोधपुर भोजनालय टैक्सी स्टैंड पर माउंट आबू में यह आप को आसानी से मिल जाएगी.

बौलीवुड में ग्रुपबाजी बहुत है : शबीना खान

‘मैं माधुरी दीक्षित बनना चाहती हूं,’ ‘प्रेम रतन धन पायो,’ ‘ऊंचाई’ और ‘गदर 2’ सहित कई सफलत व बड़े बजट की फिल्मों में नृत्य निर्देशन कर चुकीं शबीना खान का आज बौलीवुड में अपना एक अलग मुकाम है. मगर इस मुकाम तक पहुंचने के लिए शबीना खान व उन के पूरे परिवार को अपने समाज, अपने खानदान से बहुत कुछ  झेलना पड़ा. वास्तव में शबीना खान का संबंध एक कंजर्वेटिव मुसलिम (पठान) समुदाय से है.

पढ़ाई में तेज होने के बावजूद घर के हालात कुछ ऐसे थे कि वे 9 वर्ष की उम्र में ‘मधुमती डांस ऐंड ऐक्टिंग अकादमी’ में उर्दू पढ़ाने व अभिनय सीखने जाने लगी थीं. वहीं पर उन्होंने शास्त्रीय नृत्य भी सीखा. फिर 13 वर्ष की उम्र में वह सहायक नृत्य निर्देशक के रूप में बौलीवुड से जुड़ गईं.

इस बात की खबर मिलते ही उन के खानदान के लोगों ने शबीना के मातापिता से कहा कि उन की बेटियां संगीत व नृत्य का काम न करें पर शबीना के मातापिता ने नहीं रोका. तब इन के परिवार को खानदान से बाहर का रास्ता दिखा दिया.

18 साल की उम्र में राम गोपाल वर्मा ने शबीना को 2003 में प्रदर्शित फिल्म ‘मैं माधुरी दीक्षित बनना चाहती हूं’ में स्वतंत्र रूप से नृत्य निर्देशक बना दिया. तब से उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा.

पेश हैं, शबीना खान से हुई मुलाकात के कुछ खास अंश:

शबीना खान से हम ने लंबी बातचीत की, जोकि इस प्रकार रही. क्या आप के घर में संगीत व नृत्य का कोई माहौल रहा है?

हमारे परिवार में कला, संगीत या डांस का कोई माहौल नहीं रहा है. मेरी परवरिश कंजरवेटिव/दकियानूसी मुसलिम परिवार में हुई है. हम लोग पठान हैं. कंजरवेटिव का मतलब यह नहीं है कि हम लोग पढ़ेलिखे नहीं हैं. सभी को पता है कि इसलाम धर्म का पालन करने का मतलब सिर पर दुपट्टा होना अनिवार्य है. मु झे घर की जरूरतों को देखते हुए बहुत छोटी उम्र में काम करना शुरू करना पड़ा तो मैं हिजाब ले कर ही काम करती थी.

मैं ‘मधुमती डांस ऐंड ऐक्टिंग अकादमी’ में खुद अभिनय सीखती थी और दूसरों को वहां पर उर्दू भाषा सिखाती थी. मु झे हिंदी, उर्दू, फारसी व अंगरेजी भाषाएं आती हैं. मैं ने वहीं से शास्त्रीय नृत्य की भी विधिवत शिक्षा ली है. खानदान ने हमारे पिताजी को धमकी दी कि अगर उन की बेटियां संगीत व नृत्य से जुड़ा काम करेंगी तो खानदान से समाज से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा. आप की बेटियों से हमारे लड़के शादी नहीं करेंगे. आप की बेटियों की शादी नहीं हो पाएगी. खानदान की इस धमकी के आगे  झुकने के बजाय हमारे मातापिता ने हमारा साथ दिया.

मेरी मम्मी ने कहा कि ऐसी कम्युनिटी किस काम की जो हमें सपोर्ट तो नहीं कर रही है लेकिन हमारे बच्चों को आगे बढ़ने से रोक रही है. आज यह काम करना हमारी जरूरत है. हम अपनी बेटियों से जबरन काम नहीं करवा रहे हैं. हमारी बेटियां भी इस काम को करना चाहती हैं. अगर हमारी बेटियों को लगता है कि उन्हें कुछ रचनात्मक काम करना है तो हम उन्हें सपोर्ट करेंगे. हमारे पापा ने उन से कह दिया कि ठीक है कोई बात नहीं.

उस के बाद मेरे पापा ने मु झ से कहा कि हमारा खानदान हमारे साथ नहीं है, फिर भी हम आप को सपोर्ट कर रहे हैं तो अब आप को भी हमारी इज्जत व मानसम्मान को बरकरार रखना होगा. आप जिस जगह काम करने जा रहे हो, वहां पर मन लगा कर ईमानदारी से काम करो. फालतू बातें नहीं, अफेयर नहीं. उस के बाद हमारे मम्मीपापा हम लोगों को ले कर पूरे खानदान से अलग हो गए. मेरी मम्मी ने अपनी पसंद के लड़के के साथ छोटी उम्र में ही मेरी शादी भी करवा दी. मेरे मम्मीपापा ने हमारे लिए रास्ते खोले तो हम ने भी उन की इज्जत को बनाए रखा.

हम काम करते रहे पर माथे तक हम दुपट्टा ले कर काम करते थे. इस की वजह से पसीना आता था और मु झे माइग्रेन की बीमारी हो गई. तब डाक्टरों ने मु झ से कहा कि सिर मत ढको. सिर ढकने पर जो पसीना निकलता है उसी के चलते यह माइग्रेन की बीमारी हो रही है. तब से मैं जहां जरूरत होती है वहां पर सिर ढक लेती हूं.

जिस खानदान ने आप लोगों का विरोध कर आप को समाज से बाहर का रास्ता दिखाया, अब वही समाज वापस आप लोगों के साथ क्यों जुड़ा?

इस के 2 पहलू हो सकते हैं. पहला यह कि अब शबीना को शोहरत मिल गई है तो जब उन के बच्चों की शादी होगी, तब वह गर्व से दूसरों से कह सकेंगी कि उन की कजिन इतनी बड़ी कोरियोग्राफर है, दूसरा पहलू यह हो सकता है कि तमाम विरोधों के बावजूद बच्चों ने मेहनत की. सामाजिक मानमर्यादा का खयाल रखते हुए अच्छा काम किया. तो मैं अच्छा पहलू यह देखती हूं कि खानदान के लोग अब पछताते हैं कि हम ने तुम्हारा साथ नहीं दिया पर तुम अपनी मेहनत के बल पर एक मुकाम पा गई हो. हम तुम्हें आशीर्वाद देते हैं.

क्या आप को लगता है कि धर्म कहीं न कहीं इंसान की प्रगति में बाधक भी बनता है?

जी नहीं. कम से कम मेरी राह में धर्म बाधक नहीं बना. धर्म के नाम पर खानदान व समाज ने हमारी राह में कांटे बोए पर हम नहीं रुके.

सहायक कोरियोग्राफर/नृत्य निर्देशकसे स्वतंत्र रूप से कोरियोग्राफर बनना कैसे संभव हुआ?

मैं तो कोरियोग्राफर/नृत्य निर्देशक बनना ही नहीं चाहती थी. मैं तो डाक्टर बनना चाहती थी. मैं पढ़ाई में बहुत तेज थी. पहली कक्षा से स्नातक तक मेरे 90त्न से अधिक नंबर आते रहे हैं. मगर घर के हालात कुछ ऐसे थे कि मुझे छोटी उम्र में ही पढ़ाई के साथ काम भी करना पड़ा. मैं तो काम इसलिए भी कर रही थी ताकि डाक्टरी की पढ़ाई के पैसे आसानी से दे सकूं.

स्नातक के फाइनल साल की परीक्षा संपन्न होती उस से पहले ही रामगोपाल वर्मा ने मु झे बुलाया और कहा कि तुम्हें ‘मैं माधुरी दीक्षित बनना चाहती हूं’ में कोरियोग्राफर बना दिया. उस वक्त मैं 17 वर्ष की थी. मेरे सारे निर्णय मेरी मम्मी लेती थीं. जब रामगोपाल वर्माजी ने मुझे बुला कर यह काम दिया तो पहले मेरी मम्मी ने उन से कहा कि यह तो अभी बच्ची है, नहीं कर पाएगी. तब उन्होंने मम्मी को सम झा दिया कि एक गाना कर के देखने दो. मैं ने पहला गाना कोरियोग्राफ किया और मु झे इतना मजा आया कि क्या कहूं. यह गाना मेरा अपना क्रिएशन था.

उसे जब मैं ने परदे पर देखा तो मैं ने अपनी मम्मी से कहा कि अब मु झे यही करना है. अब मु झे डाक्टर नहीं बनना है. इस फिल्म के बाद फिल्म इंडस्ट्ी ने मु झे हाथोंहाथ लिया. राम गोपाल वर्माजी ने अपनी हर फिल्म मु झे ही दी. मैं ने उन की मुंबई में अंतिम फिल्म ‘सत्चा 2’ तक सभी फिल्में कीं.

शिखर पर पहुंचने में इतना वक्त क्यों लगा?

मेरी भी सम झ में नहीं आया. मैं उन दिनों बहुत छोटी थी इसलिए फिल्म इंडस्ट्री और इस की कार्यशैली को सम झ नहीं पा रही थी. मैं इस मसले पर विशेष टिप्पणी तो दे नहीं पाऊंगी कि ऐसा क्यों हुआ लेकिन मु झे पता है कि लोग गु्रप बनाबना कर काम रहे हैं जैसाकि मैं ने पहले ही कहा था कि मैं कभी किसी गु्रप का हिस्सा नहीं रही. मैं किसी फिल्मी पार्टी में नहीं जाती. मेरे घर का माहौल बहुत अलग है. जब आप का कैरियर अच्छा चल रहा था, तभी 2008 में आप ने शादी कर ली. उस वक्त यह डर नहीं लगा कि शादी से कैरियर में रुकावट आ सकती है?

हुआ यह कि मेरी मम्मी बीमार थीं. हम 5 भाईबहन हैं. मैं सब से बड़ी हूं. डाक्टर ने मम्मी से एक औपरेशन करवाने के लिए कहा तो मम्मी ने सोचा कि यदि औपरेशन में उन्हें कुछ हो गया तो शबीना जिम्मेदारी से अपने भाईबहनों को आगे बढ़ाएगी पर खुद शादी नहीं करेगी. इसलिए उन्होंने मु झ से कम उम्र में ही शादी करने के लिए कहा. मैं ने उन से कहा कि ठीक है, मैं आप की पसंद के मुसलिम लड़के से ही शादी करूंगी पर मैं उस से मिल कर 2-3 सवाल पूछूंगी, उस के बाद ही हां या न कहूंगी. लड़का भी फिल्मी दुनिया से जुड़ा हुआ था पर दुबई में रहता था.

मैं उस से मिली तो मैं ने उस से कहा कि शादी के बाद भी मैं कोरियोग्राफर का काम नहीं छोड़ूंगी. दूसरी बात मैं 1 रुपए से ले कर चाहे जितना कमाऊं उस पर आप का अधिकार नहीं होगा. मैं अपनी कमाई का पूरा हिस्सा या कुछ भाग अपने मम्मीपापा को दूं तो आप को ऐतराज नहीं होना चाहिए. लेकिन आप के पैसों पर मेरा हक होगा. उस ने मेरी बात मान ली तब मैं ने शादी कर ली.

पहले तो फिल्म की सफलता का सारा दारोमदार फिल्म के गाने की सफलता पर निर्भर करता था मगर अब ऐसा नहीं हो पा रहा है?

मैं इतना जानती हूं कि गाने पर ही फिल्म का प्रोमो बनता है. गाने पर ही फिल्म का टीजर और टेलर भी बनता है. इस बात की चर्चा होती है कि एक गाने के फिल्मांकन पर कितना बड़ा बजट खर्च किया गया और उसी हिसाब से गाने को बड़ा बताया जाता है. 1-1 गाना भी रिलीज किया जाता है. प्रोमो, टीजर व टेलर देख कर ही दर्शक थिएटर तक जाते हैं. इस का मतलब आज भी गाने के आधार पर ही दर्शकों को थिएटर के अंदर बुलाया जाता है. इस से फिल्म का कोरियोग्राफर भी बड़ा हो जाता है. मगर फिल्म का हर गाना हिट नहीं होता. हर फिल्म के 1 या 2 गाने ही हिट होते हैं. उन की बदौलत ही फिल्म सफल होती है.

मेरा घर: बेटे आरव को लेकर रंगोली क्यों भटक रही थी

रंगोली अपने दफ़्तर से जब घर पहुंची तो आरव ने रोरो कर पूरा घर सिर पर उठा रखा था. रंगोली को देखते ही उस की मम्मी ने राहत की सांस ली और आरव को उस की गोदी में पकड़ाते हुए बोली, “नाक में दम कर रखा है इस लड़के ने, पलक एक मिनट के लिए भी चैन से पढ़ नहीं पाई है.”

रंगोली बिना कुछ बोले आरव को गोद मे लिए लिए वाशरूम चली गई. बाहर आ कर रंगोली ने चाय का पानी चढ़ाया और खड़ेखड़े सब्जी भी काट दी.

चाय की चुस्कियों के साथ रंगोली आरव को सुलाने की कोशिश करने लगी. आरव के नींद में आते ही रंगोली की भी आंखें झपकने लगी थीं कि तभी मम्मी कमरे में तूफान की तरह घुसी, बोली, “रंगोली, थोड़ीबहुत मेरी भी मदद कर दिया करो, मेरे जीवन में तो सुख है ही नहीं. पहले बच्चों की ज़िम्मेदारी उठाओ, फिर उन के बच्चों की.”

रंगोली झेंपती सी बोली, “मम्मी, आरव को सुलातेसुलाते नींद लग गई थी.”

आरव को सुला कर रंगोली बाल लपेट कर रसोई में घुस गई थी. पापा व मम्मी के लिए परहेजी खाना, पलक के लिए हाई प्रोटीन डाइट और खुद के लिए, बस, जो भी दोनों में से बच जाए.

जब रंगोली रात की रसोई समेट रही थी तब तक आरव उठ गया था. रंगोली की रोज़ की यह ही दिनचर्या बन गई थी. मुश्किल से 4 घंटे की नींद पूरी हो पाती है.

रंगोली ने आरव लिए दूध तैयार किया और फिर धीरे से अपने कमरे का दरवाजा बंद कर लिया था. अगर आरव की जरा भी आवाज़ बाहर आती थी तो सुबह मम्मी के सिर में दर्द आरंभ हो जाता था.

रंगोली की ज़िंदगी कुछ समय पहले तक बिलकुल अलग थी. रंगोली थी एकदम बिंदास और अलमस्त, दुनिया से एकदम बेपरवाह. लंबा कद, गेंहू जैसा रंग, आम के फांक जैसी आंख, मदमस्त मुसकान और घुंघराले बाल. हर कोई कालेज और दफ़्तर में रंगोली का दीवना था. पर रंगोली थी दीवानी अभय की. अभय उस के साथ ही इंजीनियरिंग कालेज में था. दोनों की मित्रता गहरी होतेहोते प्यार में परिवर्तित हो गई थी.

रंगोली के मम्मीपापा अभय के घर गए थे और अभय के मम्मीपापा के तेवर देख कर उन्होंने रंगोली को आगाह कर दिया था, ‘बेटा, ऐसा प्यार बहुत दिनों तक नहीं टिकता है. हमारे यहां प्यार 2 लोगो के बीच नहीं, बल्कि 2 परिवारों के बीच होता है. हमारा और उन का परिवार काफी भिन्न हैं.’

पर उस समय तो रंगोली को कुछ समझ नहीं आ रहा था. लड़झगड़ कर और मिन्नतें करकर के आखिरकार रंगोली ने अपने परिवार को मना ही लिया था.

अभय का परिवार भी बड़ी बेदिली से तैयार हो गया था.

जब रंगोली और अभय हनीमून पर गए तो रंगोली को अभय का व्यवहार अजीब सा लगा. रंगोली पुरुषस्त्री के रिश्तों से अब तक अनभिज्ञ ही थी. अभय न जाने क्यों प्रेमक्रीड़ा के दौरान हिंसक हो उठता था. रंगोली पूरी तरह संतुष्ट भी नहीं हो पाती थी पर अभय मुंह फेर कर सो जाता था.

हनीमून से वापस आ कर भी अभय के व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आया था. रंगोली को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे और किस से बात करे.

अभय का परिवार जबतब रंगोली को नीचा दिखाता रहता था और अभय चुपचाप सब सुनता रहता था.

अगर रंगोली अभय से बात करने की कोशिश करती तो अभय कहता, ‘मम्मीपापा ने हमारे फैसले का सम्मान किया है. अब एक बहू के रूप में तुम्हारी ज़िम्मेदारी है कि तुम उन का दिल जीत लो.’

रंगोली एक चक्रव्यूह में फंस कर रह गई थी. दफ़्तर के 8 घंटे होते थे जब वह खुल कर सांस ले पाती थी.

रात में अभय रंगोली के शरीर को रौंदता और तड़पता हुआ छोड़ देता और दिन में अभय का परिवार रंगोली के स्वमान को रौंदता था.

रंगोली को एक बात तो समझ आ गई थी कि चाहे लव मैरिज हो या अरेंज्ड, समझौता हमेशा लड़की को ही करना होता है. इस बीच, रंगोली गर्भवती हो गई थी. रंगोली को लगा, शायद अब उस के विवाह की जड़ें मजबूत हो जाएंगी.

लेकिन आरव के जन्म के बाद भी समस्या ज्यों की त्यों ही बनी रही थी. अब रंगोली की ज़िम्मेदारी और अधिक बढ़ गई थी. रात में आरव और घर की ज़िम्मेदारी और दिन में दफ़्तर. देखते ही देखते रंगोली एक कंकाल जैसी हो गई थी.

विवाह के डेढ़ वर्ष में ही अभय रंगोली के लिए एक पहेली बन कर रह गया था. धीरेधीरे रंगोली को समझ आ गया था कि अपनी मर्दाना कमज़ोरी को छिपाने के लिए अभय उस पर हर समय हावी रहता है. रंगोली भरसक प्रयास करती थी कि उस की किसी बात से अभय की मर्दानगी को ठेस न पहुंचे पर जब एक दिन अति हो गई थी तो रंगोली अपना सामान और आरव को गोद में ले कर अपने घर आ गई थी.

रंगोली के मम्मीपापा हक्केबक्के रह गए थे. पापा तो गुस्से में बोले, ‘पहले अपनी मरजी से विवाह किया और अब यहां आ गई हो. तुम्हारी इन हरकतों का पलक पर क्या प्रभाव पड़ेगा?’

मम्मी नरमी से बोली, ‘थोड़े दिन रहने दो न. देखो न, कितनी कमजोर हो गई है.’

पर जब मम्मीपापा के घर में रहते हुए रंगोली को 2 माह हो गए तो रिश्तेदारों और पड़ोसियों के कान खड़े हो उठे थे. दिन में पासपड़ोसी मम्मीपापा को कोंचते और रात में मम्मीपापा रंगोली को, ‘कब तक इस घर में पड़ी रहोगी, अपने घर जाओ न.’

रंगोली सबकुछ सुन कर भी अनसुना कर देती थी. उस का घर कहां हैं? कई बार रंगोली को लगता, उस की स्थिति अभी भी जस की तस ही बनी हुई है. बस, मम्मीपापा के घर में कोई रंगोली के शरीर को रौंदता नहीं था. पर मानसिक शांति तो यहां भी एक पल के लिए न थी.

रंगोली अपने वेतन का 75 प्रतिशत भाग मम्मी को दे देती थी. मम्मी बड़ी बेदिली से ले कर कहती थी, ‘आजकल महंगाई इतनी है, दूध और सब्जी के भाव आसमान छू रहे हैं. पूरा एक लिटर दूध तो आरव ही पी जाता है.’ मम्मी के मुंह से यह बात सुन कर रंगोली का मन खट्टा हो जाता था.

पापा जबतब सुनाया करते, ‘यहां पर रह रही हो, इस कारण तुम्हारा निर्वाह हो भी रहा है. 50 हज़ार रुपए में तो आजकल कुछ नहीं होता.’

रंगोली यह बात सुन कर मम्मीपापा के एहसान तले दबी जाती थी.

कभी मम्मी कहती, ‘रंगोली, पलक के बारे में सोच कर मुझे रातरातभर नींद नहीं आती है. जिस की बड़ी बहन घर छोड़ कर बैठी हो, उस लड़की से कौन रिश्ता करेगा?

रंगोली को ऐसा लगने लगा था मानो उस ने मम्मीपापा के घर आ कर उन के साथ बहुत ज़्यादती कर दी है.

पलक बिना बात ही रंगोली से खिंचीखिंची रहती थी. पलक के दिमाग में यह बात बैठ गई थी कि जब तक रंगोली उन के साथ रहेगी तब तक उस का रिश्ता नहीं हो पाएगा.

आज भी पलक को लड़के वाले देखने आ रहे थे. रंगोली जब दफ़्तर जाने के लिए तैयार हो रही थी तो मम्मी बोली, ‘आज जल्दी आ जाना, घर के काम में थोड़ी मेरी मदद कर देना.’

रंगोली झिझकते हुए बोली, ‘मम्मी, आज तो दफ़्तर में औडिट है.’

मम्मी गुस्से में बोली, ‘मैं क्याक्या करूंगी अकेले? आरव को संभालू या मेहमानों को.’

रंगोली बोली, ‘मम्मी, मैं आरव को किसी सहेली के घर पर छोड़ दूंगी.’

पापा तुनकते हुए बोले, ‘आरव के लिए किसी क्रेच का इंतज़ाम कर देना, मेरी और तुम्हारी मम्मी की उम्र नहीं है छोटे बच्चे की ज़िम्मेदारी उठाने की.’

पलक बोली, ‘रंगोली दीदी, आप अच्छाखासा कमाती हो, कम से कम आरव के लिए एक मेड तो रख सकती हो.’

दफ़्तर जा कर रंगोली ने जल्दीजल्दी काम निबटाया और फिर हाफडे लेने के लिए जब बौस के पास गई तो बौस बोले, ‘रंगोली, यह तुम्हारा इस माह तीसरा हाफडे है.’

घर आ कर रंगोली ने फ़टाफ़ट पकौड़े तले, हलवा भुना और फिर जल्दी से आरव को ले कर अपने कमरे में बंद हो गई थी. रंगोली मेहमानों के सामने पड़ना नहीं चाहती थी. इस बार पलक की बात बन गई थी. जैसे ही मम्मी यह बात बताने रंगोली के कमरे में गई तो आरव एकदम से कमरे से बाहर आ गया.

मजबूरी में मम्मीपापा को रंगोली का परिचय मेहमानों से करवाना पड़ गया था. मेहमानों ने जब रंगोली से उस के घर और पति के बारे में पूछताछ की तो पापा बात संभालते हुए बोले, ‘अरे, रंगोली तो अभी आ पके आने से पहले ही आई है. हमें आरव से बहुत प्यार है, इसलिए आतीजाती रहती है.’

लड़के वालों की तरफ से लगभग बात फाइनल थी. पूरा परिवार बेहद खुश नजर आ रहा था. मम्मी रंगोली से बोली, ‘अब तुम अपने घर जाने के बारे में सोचो, रंगोली तुम्हारी गलतियों की सजा पलक को नहीं मिलनी चाहिए.’

रंगोली सोच रही थी कि उस के मम्मीपापा इतने पत्थरदिल कैसे हो सकते हैं? सबकुछ तो बता चुकी है वह उन्हें.

रंगोली रोज़ सोचती कि वह कहां जाए. उसे अपने ऊपर विश्वास नहीं था कि वह अकेली रह पाएगी.

रंगोली ने यह तय कर लिया था कि वह वापस अभय के घर चली जाएगी.

वह सुखी नहीं तो न सही, कम से कम उस के कारण पलक की जिंदगी में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए.

ऐसे ही एक दिन जब रंगोली दफ़्तर में मायूस सी बैठी हुई थी तो उस की सहकर्मी अतिका उस के पास आ कर बैठ गई और बोली, ‘रंगोली, आज पार्टी करने चलोगी क्या?’

रंगोली की अतिका से कोई दोस्ती न थी, पर न जाने क्यों रंगोली फफकफफक कर रो उठी और अपनी पूरी कहानी सुना दी.

अतिका बोली, ‘अरे, तो तुम क्यों एक बैल की तरह इधरउधर सहारे की तलाश में घूम रही हो?

तुम एक स्वतंत्र महिला हो, अपना और अपने बेटे का ख़याल खुद से रख सकती हो.’

रंगोली बोली, ‘अतिका, मेरे पास अपना घर कहां है? वह घर मेरे पति का था और यह मेरे मम्मीपापा का. मैं कैसे आरव को ले कर अकेली रह सकती हूं? गलती मेरी है, तो फिर सज़ा भी तो मुझे ही भुगतनी होगी.’

अतिका हंसते हुए बोली, ‘बेवकूफ लड़की, अपनी मरजी से विवाह करना एक गलत फ़ैसला हो सकता है पर यह कोई ऐसी गलती नहीं कि तुम्हें इस की सजा मिले. इन सामाजिक बेड़ियों से बाहर निकालो अपनेआप को और अपना घर खुद बनाओ.’

अतिका दफ़्तर में एक चालू महिला के रूप में जानी जाती थी क्योंकि वह अपनी जिंदगी को अपने हिसाब से जीती थी. लेकिन जिंदगी के इस मुश्किल दौर में अतिका ही थी जो रंगोली को समझती थी और उस की ढाल बन कर खड़ी रही थी. रंगोली को अतिका से दोस्ती करने के बाद यह बात समझ आ गई थी कि हर स्वतंत्र महिला को समाज में चालू की संज्ञा दी जाती है.

अतिका की हिम्मत देने पर ही रंगोली अपने बेटे को ले कर मम्मीपापा का घर छोड़ने का फैसला कर लिया था.

अतिका ने ही आगे बढ़ कर रंगोली को एक वक़ील से मिलवाया और रंगोली ने अभय से लीगली अलग होने का भी फ़ैसला कर लिया था. आतिका ने जब रंगोली को उस के किराए के फ्लैट की चाबी पकड़ाई, तो रंगोली की आंखों में आंसू आ गए थे.

अतिका मुसकराते हुए बोली, ‘रंगोली, फ़्लैट भले ही किराए का है पर इसे अपना घर बनाना अब तुम्हारी ज़िम्मेदारी है. अपने नाम के अनुकूल ही अपनी ज़िंदगी में रंग भर लो.’

जब रंगोली ने अपना और आरव का सामान बांध लिया तो मम्मी खुशी से बोली, ‘शुक्र है तुम ने अपने घर जाने का फ़ैसला कर लिया है.’

रंगोली मम्मी की बात सुन कर मुसकराते हुए बोली, ‘मम्मी, आप सच कह रही हैं, मैं ने अपने घर जाने का फ़ैसला ले लिया है. कब तक मैं आप के या किसी और के सहारे अपनी ज़िंदगी गुज़ारूंगी. अब आप लोगों को मेरे कारण कोई मुश्किल नहीं होगी. आरव मेरी ज़िम्मेदारी है, इस ज़िम्मेदारी को खुद पूरा करूंगी.’

पापा गुस्से में बोले, ‘क्या मतलब?’

रंगोली बोली, ‘मतलब यह है कि पापा, आज से मैं अपनी ज़िंदगी की बागड़ोर खुद अपने हाथों में लेती हूं. जो भी अच्छाबुरा होगा, सब मेरी ज़िम्मेदारी होगी. आप को मैं आरव और अपनी ज़िम्मेदारी से मुक्त कर रही हूं.’

मम्मी बोली, ‘पलक की ससुराल वालों से क्या कहेंगे तुम्हारे बारे में?’

रंगोली बोली, ‘बोल देना कि वह खुद की जिंदगी जी रही है.’

उस के बाद रंगोली अपने नए घर का पता लिख कर पापा के हाथ में थमा गई.

रंगोली का घर छोटा ही सही, पर अपना था जहां उस के वजूद की जड़ें मजबूती से जमी हुई थीं.

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