गलतियां सभी से होती हैं: क्या रोली ने कामयाबी पाई

दुलहन के जोड़े में सजी रोली बेहद ही खूबसूरत और आकर्षक लग रही थी. वैसे तो रोली प्राकृतिक रूप से खूबसूरत थी, परंतु आज ब्यूटीपार्लर के ब्राइडल मेकअप ने उस के चेहरे पर चार चांद लगा दिया था, किंतु उस के कमनीय चेहरे पर आकुलता थी. उस की नजरें रिसेप्शन में आ रहे मेहमानों पर ही टिकी हुई थीं. उस की निगाहें बेसब्री से किसी के आने का इंतजार कर रही थीं.

रोली को इस प्रकार परेशान देख वीर उस के हाथों को थामते हुए बोला, “क्या बात है? आर यू ओके?”

रोली होंठों पर फीकी सी मुसकान लिए बोली, “यस… आई एम ओके,  परंतु थोड़ी सी थकान लग रही है.”

ऐसा सुनते ही वीर ने कहा,  “पार्टी तो काफी देर तक चलेगी. तुम चाहो तो कुछ देर रूम में रिलैक्स हो कर आ जाओ.”
वीर के ऐसा कहने पर रोली रूम में चली आई और फौरन मोबाइल फोन निकाल नंबर डायल करने लगी. फोन बजता रहा, लेकिन किसी ने नहीं उठाया.रोली दुखी हो कर वहीं सोफे पर पसर गई.

उसे डौली आंटी याद आने लगी. आज वह जो भी है, उन्हीं की वजह से है वरना  वह तो इस महानगरी में गुमनामी की जिंदगी जीने की ओर अग्रसर थी. वो डौली आंटी ही थीं, जिन्होंने वक्त पर उस का हाथ थाम लिया और वह उस गर्त में जाने से बच ग‌ई.

आज उस का प्यार वीर उस के साथ है. यह भी डौली आंटी की ही देने है. पर, अब तक वे आई क्यों नहीं? उन्होंने तो वादा किया था कि वे अंकल के साथ उस की शादी में जरूर आएंगी.

यही सब सोचती हुई रोली वहां पहुंच गई. अपने परिवार वालों से जिद कर वह एक सफल इंटीरियर डिजाइनर बनने का इरादा मन में ठाने जब अपने छोटे से शहर जौनपुर से दिल्ली आई थी.

यहां दिल्ली यूनिवर्सिटी में आ कर उस ने जो देखा, उसे देख वह भौंचक्की सी रह गई. यहां सभी लड़केलड़कियां बिना किसी पाबंदी के उन्मुक्त बिंदास अंदाज में खुल कर जीता देख रोली खुशी से उछल पड़ी. ऐसा उस ने पहले कभी नहीं देखा था.यहां ना तो कोई किसी को रोकने वाला था और ना ही कोई टोकने वाला, जैसा चाहो वैसा जियो.

रोली भी अब आजाद पंछी की भांति आकाश में उड़ने को तैयार थी.

वहां जौनपुर में दादी, मम्मीपापा, चाचाचाची, ताऊ यहां तक कि उस का छोटा भाई भी उस पर बंदिशें लगाता. हर छोटीबड़ी बातों के लिए उसे अनुमति लेनी पड़ती, परंतु यहां ऐसा कुछ नहीं था.

यहां रोली स्वयं अपनी मरजी की मालकिन थी. वह वो सब कर सकती थी, जो उस का दिल चाहता.

दिल्ली में आने के पश्चात रोली अपना लक्ष्य भूल यहां के चकाचौंध में खो गई. वह तो अपनी रूम पार्टनर रागिनी के संग जिंदगी के मजे लूटने लगी.

रागिनी उस से एक साल ‌सीनियर थी और हर मामले में स्मार्ट, र‌ईस लड़कों को अपनी अदाओं से रिझाना, उन्हें फांसना और उन से पैसे खर्च कराना, ये सारे हुनर उसे बखूबी आते थे, लेकिन रोली इन सब बातों से बेखबर बस रागिनी के बोल्डनेस और उस के बिंदास जीने के अंदाज की कायल थी.

रोली बिना सोचेसमझे कालेज में दिखावा और खुद को मौडल बताने के चक्कर में पैसे खर्च करने लगी. उसे इस बात का भी खयाल ना रहा कि वह एक मध्यमवर्गीय संयुक्त परिवार से ताल्लुक रखती है, जहां पैसे हिसाब से खर्च किए जाते हैं.

अपने घर की सारी परिस्थितियों से भलीभांति अवगत होने के बावजूद रोली रागिनी के रंग में रंगने लगी. केवल अब तक वह सिगरेट और शराब से बची हुई थी, लेकिन रागिनी को बिंदास धुआं उड़ाते, कश लगाते और पी कर लहराते देख कभीकभी उस का भी मन करता, लेकिन ना जाने कौन सी बात उसे रोक लेती. इस बार पैसे खत्म होने पर जब उस ने घर पर मां को फोन किया, तो मां भरे कंठ से बोली, “रोली, देखो बेटा हम हर महीने तुम्हें जितने पैसे भेजते हैं, तुम उसी से खर्च चलाने की कोशिश करो अन्यथा तुम्हें यहां वापस आना पड़ेगा.”

मां और भी कुछ कहना चाहती थीं, लेकिन उन के कहने से पहले ही रोली ने फोन काट दिया. होस्टल के कमरे में आई, तो उस ने देखा कि रागिनी अपना सारा सामान समेट कर कहीं जाने की तैयारी में है. यह देख रोली बोली, “कहां जा रही हो?”

रागिनी हंसते हुए अपने दोनों हाथ रोली के कंधे पर टिकाती हुई बोली, “ऐश करने, मेरी जान.”

रोली आश्चर्य से रागिनी को देखने लगी, तभीरागनी धुआं उड़ाती हुई बोली, “नहीं समझी मेरी मोम की भोली गुड़िया, मैं सौरभ के पास जा रही हूं. अब हम दोनों साथ ही रहेंगे. उस के बाप के पास बहुत माल है. उसे उड़ाने के लिए कोई तो चाहिए ना, सो मैं जा रही हूं. वैसे भी सौरभ मुझ पर लट्टू है.”

यह सुनते ही रोली बोली, “लेकिन…”

रागिनी उसे बीच में ही टोकती हुई बोली, “लेकिन क्या…? माई स्विट हार्ट मुझे मालूम है कि मैं क्या कर रही हूं. मेरी मान तो तू भी होस्टल छोड़ करबकिसी पीजी में रहने चली जा, फिर बिंदास रहना अपने वीर के साथ, समय पर होस्टल लौटने का कोई लफड़ा  नहीं, अच्छा चलती हूं… फिर मिलते हैं,” कहती हुई रागिनी झूमते हुए चली गई.

रागिनी के होस्टल से चले जाने के पश्चात रोली भी कुछ दिनों में होस्टल छोड़ पीजी में डौली आंटी के यहां आ गई.

यहां आने के बाद उसे पता चला कि यहां रहना इतना आसान नहीं है. लोग डौली आंटी के बारे में तरहतरह की बातें किया करते थे. कोई उन्हें खड़ूस, कोई पागल, तो कोई उन्हें सीसीटीवी कहता, क्योंकि उन की नजरों से कुछ भी छुपना नामुमकिन था. आसपड़ोस की महिलाएं तो उन से बात करने से भी कतरातीं, सब कहतीं कि न जाने कब ये सनबकी बुढ़िया किस बात पर सनक जाए.

डौली आंटी की टोकाटाकी की वजह से कोई ज्यादा दिनों तक यहां टिकता भी नहीं था, लेकिन रोली का अब यहां रहना मजबूरी था, क्योंकि वह होस्टल छोड़ चुकी थी और सब से बड़ी बात डौली आंटी पैसे भी कम ले रही थी, यहां से कालेज की दूरी भी ज्यादा नहीं थी, जिस की वजह से बस और रिकशा के पैसे भी बच रहे थे और साथ ही साथ डौली आंटी के हाथों  में वो जादू था कि वह जो भी खाना बनाती स्वादिष्ठ और लजीज होता, उस में बिलकुल मां के हाथों का स्वाद होता.

सब ठीक था, लेकिन डौली आंटी की टोकाटाकी और जरूरत से ज्यादा हस्तक्षेप रोली को नागवार गुजरने लगा. वह वीर के साथ भी वैसे समय नहीं बिता पा रही थी, जैसा उस ने सोचा था.
जब उस ने वीर से इस बारे में बात की, तो वह कहने लगा, “आंटी स्ट्रिक्ट है तो क्या हुआ… वह तुम्हारा भला ही चाहती है. 1-2 साल में मेरा  प्रमोशन हो जाएगा. कंपनी की ओर से मुझे फ्लेट भी मिल जाएगा और तुम्हारा ग्रेजुएशन भी पूरा हो जाएगा, फिर हम शादी कर साथ रहेंगे.”

वीर से यह सब सुन रोली स्तब्ध रह ग‌ई. वह तो उस से शादी करना ही नहीं चाहती. वह तो बस वीर को अपनी खूबसूरती और मोहपाश के झूठे जाल में केवल पैसों के लिए बांध रखी थी और वह भी रागिनी के कहने पर, लेकिन अब वीर उस से शादी की सोच रहा है. यह जान कर रोली विचलित हो ग‌ई.

अपसेट रोली घर पहुंची, तो उस ने देखा कि डौली आंटी और अंकल कहीं जाने की तैयारी में हैं. उसे देखते ही आंटी बोली, “रोली बेटा मैं और अंकल एक शादी में  जा रहे हैं. कल रात तक लौटेंगे. तुम अपना और घर का खयाल रखना, रात को दरवाजा अच्छी तरह बंद कर लेना,” इतना कह कर वे दोनों चले गए.

परेशान रोली को कुछ सूझ नहीं रहा था कि वह क्या करे. तभी रागिनी का फोन आया.

रोली उसे फोन पर सारी बातें बता कर इस समस्या से बाहर निकलने का हल पूछने लगी, तो रागनी ने कहा, “डोंट वरी डियर, आज रात मैं तेरे रूम पर आती हूं. दोनों पार्टी करते हैं और सोचते हैं कि क्या करना है.”

रोली नहीं चाहती थी कि रागिनी आए, लेकिन वह उसे मना ना कर सकी. रागिनी शराब, सिगरेट और दो चीज पिज्जा ले कर पहुंची.

ये सब देख कर रोली चिढ़ती हुई बोली, “तू ये सब क्या ले कर आई है? आंटी को पता चल गया, तो वह मुझे निकाल देगी.”

“चिल यार… किसी को कुछ पता नहीं चलेगा. वैसे भी आंटी तो कल रात तक लौटेंगी?” कहती हुई रागिनी एक गिलास में शराब डालती हुई धुआं उड़ाने लगी.

रोली भी वीर की बातों से परेशान तो थी ही, वह भी सिगरेट सुलगा कर पीने लगी. तभी रागिनी अपने बैग से एक छोटी सी पुड़िया निकाल कर रोली को देती हुई बोली, “इसे ट्राई कर… ये जादू की पुड़िया है. इसे लेते ही तेरी सारी परेशानी उड़नछू हो जाएगी.”

यह सुन कर रोली पुड़िया खोल कर एक ही बार में ले ली. पुड़िया लेने के कुछ समय पश्चात वह बेहोश होने लगी. यह देख कर रागिनी उसे उसी हालत में छोड़ भाग गई.

जब रोली को होश आया, तो उस ने स्वयं को अस्पताल के बेड पर लेटा पाया, जहां एक ओर डौली आंटी डबडबाई आंखों से स्टूल पर बैठी थी और अंकल डाक्टर से कुछ बातें कर रहे थे.

रोली को होश में आया देख आंटी ने रोली का माथा चूम लिया. रोली घबराई हुई डौली आंटी की ओर देखने लगी, तभी आंटी रोली का हाथ अपने हाथों में लेती हुई बोली, “शादी में पहुंचने के बाद मैं ने रात को क‌ई दफे तुम्हें फोन किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला, किसी अनहोनी के भय से हम उसी वक्त घर लौट आए. यहां आ कर देखा, तो बाहर का दरवाजा खुला था और तुम बेहोश पड़ी थी. पूरे कमरे में शराब की बोतल, सिगरेट और ड्रग्स के पैकेट पड़े थे. हम समझ गए कि आखिर माजरा क्या है.”

फिर आंटी लंबी सांस लेते हुए बोली, “तुम सब यह सोचते हो ना कि मैं इतनी खड़ूस, इतनी स्ट्रिक्ट क्यों हूं. मैं ऐसी इसलिए हूं, क्योंकि इसी ड्रग्स की वजह से मैं ने अपने एकलौते बेटे को खोया है…

“और मैं यह नहीं चाहती कि कोई भी मांबाप अपने बच्चे को इस वजह से खोए. मेरा बेटा भी तुम्हारी तरह आंखों में क‌ई सुनहरे सपने लिए बीई की पढ़ाई करने जालंधर गया था, लेकिन वहां जा कर वह बुरी संगत में पड़ ड्रग्स लेने लगा, क्योंकि वहां कोई रोकटोक करने वाला नहीं था और हर कोई बस यही सोचता था कि हमें क्या करना…?

“एक बार सप्ताहभर उस ने कोई फोन नहीं किया, हमारे फोन लगाने पर वह फोन भी नहीं उठा रहा था, तब हम परेशान हो कर उस के पास पहुंचे, तो पता चला कि वह ड्रग्स की ओवरडोज के कारण हफ्तेभर से अपने कमरे में बेहोश पड़ा है. उसे देखने वाला कोई नहीं था. हम उसे उसी हालत में यहां ले आए, लेकिन बचा ना सके.”

यह सब कहती हुई डौली आंटी फूटफूट कर रो पड़ी. रोली की आंखों के कोर में भी पानी आ गया.

आंटी ने आगे बताया कि तुम भी ड्रग्स के ओवरडोज की वजह से बेहोश पड़ी थी. आज पूरे 2 दिन बाद तुम्हें होश आया है.

यह सुन कर रोली की आंखें शर्म से झुक गईं. तभी आंटी बोली, “बेटी, गलतियां तो सभी से होती हैं, लेकिन उन गलतियों से सबक ले कर आगे बढ़ना ही जीवन है. अक्लमंदी और समझदारी इसी में है कि वक्त रहते उन्हें सुधार लिया जाए .”

फिर आंटी मुसकराती हुई बोली, “वीर एक अच्छा लड़का है. तुम्हें बहुत प्यार भी करता है और शायद तुम भी, वरना पिछले डेढ़ साल में रागिनी की तरह तुम भी क‌ई बौयफ्रेंड बदल चुकी होती.

“वीर तुम्हें क‌ई बार फोन कर चुका है, मैं ने उस से कहा है कि तुम हमारे साथ शादी में आई हो और अभी काम में व्यस्त हो.”

खटखट की आवाज से रोली वर्तमान में लौट आई. दरवाजा खोलते ही डौली आंटी और अंकल सामने खड़े थे. उन्हें देखते ही रोली आंटी से लिपट रो पड़ी, उसे शांत कराती हुई आंटी बोली, “रोते नहीं बेटा, अब तुम एक सफल इंटीरियर डिजाइनर हो. तुम सफलता के उस शिखर पर हो, जहां पहुंचने का सपना लिए तुम इस महानगरी में आई थीं. आज खुशी का दिन है,अब आंसू पोंछो और चलो वीर तुम्हारा पार्टी में इंतजार कर रहा है.”

इन इन्फ्लुएंसर्स को यूथ में आइडियलाइज करता बिग बौस

हर युवक का अपना एक आइडियल होता है, जिस के नक्शेकदम पर चल कर वह कुछ बनना चाहता है. मगर पिछले कुछ वर्षों में हमारी युवा पीढ़ी के सामने कोई आइडियल नहीं रहा. हम सिर्फ फिल्मी हीरो की बात नहीं कर रहे हैं, बल्कि समाज या राजनीति किसी भी क्षेत्र में कोई हीरो नहीं रहा. इस चलते युवा पीढ़ी दिशाहीन हो गई है जिस का फायदा ‘धनलोलुप’ टीवी चैनल व फिल्म के निर्माता भुनाने में लगे हुए हैं. ये लोग बहुतकुछ ऐसा परोस रहे हैं कि जिस से युवा पीढ़ी न सिर्फ दिग्भ्रमित हो रही है बल्कि बरबाद भी हो रही है. फिल्म निर्माता तो युवा पीढ़ी के सामने बेनकाब हो चुके हैं, इसलिए अब युवा पीढ़ी अपनी गाढ़ी कमाई फिल्में देखने में नहीं खराब करती. यही वजह है कि बौलीवुड फिल्में बौक्सऔफिस पर टें बोलती जा रही हैं.

लेकिन ओटीटी प्लेटफौर्म हो या टीवी, यह तो दर्शक या यों कहें कि युवा पीढ़ी को लगभग मुफ्त में ही देखने को मिल रहा है. जिन के पास औफिस या अन्य तरह से ‘इंटरनैट डाटा’ मुफ्त में मिला है वे तो यूट्यूब पर ही टीवी व अन्य कार्यक्रम देख लेते हैं वरना ओटीटी का सब्सक्रिप्शन ले रखा है, जोकि फिल्मों के टिकट से तो कम ही लागत में काम चला देता है. यह और बात है कि हर ओटीटी प्लेटफौर्म कर्ज में डूबा हुआ है.

कटु सत्य यह है कि टीवी या ओटीटी प्लेटफौर्म पर परोसा जा रहा हर रिऐलिटी शो ‘स्क्रिप्टेड’ यानी कि पहले से ही लिखा हुआ होता है पर इस के निर्माता इस सच को छिपा कर दर्शकों की आंखों में धूल ?ांकने का काम करते आ रहे हैं. फिर भी किसी को दर्शक नहीं मिल पा रहे हैं पर अब हालत यह है कि न तो ‘ओटीटी’ प्लेटफौर्म और न ही टीवी चैनल अपनी दुकान बंद कर भागना चाहते हैं बल्कि सभी इस जुगत में लगे हैं कि वे किस तरह दर्शकों को मूर्ख बना कर उन्हें अपने साथ जोड़े रखें.

इसी कवायद के चलते ‘तथाकथित’ लोकप्रिय इंफ्लुएसंर्स व ‘यूट्यूबरों’ या सोशल मीडिया पर नकली फौलोअर्स की संख्या रखने वालों को अपने सीरियल्स या ‘बिग बौस’ से जोड़ रहे हैं. ऐसा ये लोग अपने दिमागी दिवालिएपन और इस सोच के साथ कर रहे हैं कि वे युवा पीढ़ी के ‘नए हीरो’ को अपने सीरियल्स या ‘बिग बौस’ का हिस्सा बना कर युवा पीढ़ी के दर्शकों को अपनी तरफ खींच लेंगे, जोकि जमीनी सचाई से कोसों दूर है.

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इन दिनों ‘नकली फौलोअर्स’ व ‘व्यूज’ का धंधा भी खूब फलफूल रहा है. यही वजह है कि तमाम प्रयासों के बावजूद दर्शक नहीं मिल रहे हैं. मगर ‘बिग बौस’, खासतौर पर ‘ओटीटी’ के ‘बिग बौस’, के माध्यम से अब ये लोग युवा पीढ़ी पर इन घटिया, फालतू, बदतमीज व ?ागड़ालू इन्फ्लुएंसर्स को ‘हीरो’ के रूप में थोपने का असफल प्रयास करने में लगे हुए हैं.

यदि हम यह कहें कि इस वक्त ‘चैनल, ‘बिग बौस’ के निर्माता और ये फालतू इन्फ्लुएंसर्स, ये तीनों ही अपनेअपने स्वार्थ की रोटी सेंकते हुए दर्शकों को मूर्ख बनाने का दंभ पालते  हुए खुश हो रहे हैं, जोकि इन के दिमागी दिवालिएपन के अलावा कुछ नहीं है.

मजेदार बात यह है कि ओटीटी के ‘बिग बौस’ के निर्माता की तरफ से दावे किए जा रहे हैं कि फालतू व घटिया इन्फ्लुएंसर्स के चलते वे कमाई कर रहे हैं. बिग बौस ओटीटी सीजन 3 ने जो आंकड़े जारी किए, उन से यह बात साबित होती है कि इन्फ्लुएंसर्स का उन्हें फायदा मिला. प्रसारण के 2 सप्ताह के भीतर ‘बिग बौस ओटीटी 2.40 करोड़ से अधिक वीडियो व्यूज के साथ भारत में सब से अधिक स्ट्रीम किया जाने वाला मनोरंजन शो बन गया. 3.5 करोड़ दर्शकों के बीच इसे 4 अरब मिनट तक देखा गया. ओटीटी जो दावा कर रहा है वह कितना सच है, इस की जांच करना संभव नहीं है. यह तो पूरी तरह उन का अपना निजी मामला है.

‘बिग बौस’ चाहे टीवी वाला हो या ‘ओटीटी वाला हो, इन के निर्माताओं व इन के प्लेटफौर्म को इस सच को कुबूल करलेना चाहिए कि दर्शक हिंसा, मारपीट, गालीगलौज, सैक्सी सीन्स या सैक्सी जोक्स वगैरह सुनने के लिए अब फिल्म या टीवी सीरियल या ‘बिग बौस’ नहीं देखना चाहता.

यदि दर्शक हिंसा, गालीगलौज व सैक्स देखना चाहता है तो हाल ही में प्रदर्शित करण जौहर की 2 फिल्मों- ‘किल’ और ‘बैड न्यूज’ ही नहीं, हौलीवुड फिल्म यानी कि मार्वल स्टूडियो की फिल्म ‘डेडपूल एंड वुल्वरिन’ ने सफलता के ?ांडे गाड़ दिए होते पर अफसोस बौक्सऔफिस पर इन की दुर्गति हुई है. कटु सत्य यह है कि साड़ी पहने हुए ढकी औरत ज्यादा सैक्सी नजर आती है बनिस्बत जिस्म की नुमाइश करने वाली औरत के.

बिग बौस और फालतू इन्फ्लुएंसर्स में समानता

‘बिगबौस’ के निर्माताओं ने इस सोच के साथ इस की शुरुआत की थी कि वे रिऐलिटी के नाम पर ‘स्क्रिप्टेड’ गालीगलौज, किचन पौलिटिक्स, हाथापाई, तूतूमैंमैं, मारपीट वगैरह परोस कर दर्शकों को मूर्ख बनाते रहेंगे. हम यहां याद दिला दें कि पहले 2 एपिसोड ने हंगामा बरपाया था. लोगों को लगा कि क्या हम इतने आधुनिक हो गए हैं? मगर औरतों के बीच इसे काफी पसंद किया गया. पहले 2 सीजन तो काफी अच्छे चले. इस की सब से बड़ी वजह यह भी थी कि ‘बिग बौस’ हर सीजन में ऐसी इमेज वाले कलाकार या दूसरे क्षेत्रों के लोगों को समाहित करता रहा है जोकि उन की स्क्रिप्ट के अनुसार हरकतें कर सकें, मारपीट कर सकें या गालीगलौज व वाहियात बातें कर सकें.

सभी को याद होगा कि 2009 में प्रसारित तीसरे सीजन में अभिनेता कमाल आर खान ने हास्य अभिनेता राजू श्रीवास्तव को थप्पड़ मार दिया था (वैसे केआरके और राजू श्रीवास्तव को इसी बात के पैसे मिले थे). फिर 2010 के सीजन में चंबल की मशहूर डकैत सीमा परिहार ‘बिग बौस’ का हिस्सा थीं और इस सीजन में जो कुछ हुआ था, उस से सभी परिचित हैं. तो कहने का अर्थ यह है कि ‘बिग बौस’ साफसुथरे, ईमानदार या शालीन लोगों को अपने कार्यक्रम में ला कर दर्शकों को शालीनता, नैतिकता या मौरैलिटी का पाठ नहीं पढ़ाना चाहता. ‘बिग बौस’ के कर्ताधर्ता मानते हैं कि आज की पीढ़ी के पास कोई ‘हीरो’ नहीं है तो वे ऐसे लोगों को उन के सामने आइडियल लोगों के रूप में पेश कर रहे हैं जिन्हें देख वे अचंभित हों और दिग्भ्रमित भी. और फिर येनकेनप्रकारेण उन की जेबें भरती रहें.

‘बिग बौस’ की ही तरह ये फालतू के इन्फ्लुएंसर्स हैं. ये सभी नकली ‘व्यूज’ और नकली ‘फौलोअर्स’ खरीद कर उद्दंड व गुंडे बने हुए हैं, जिन के पास 2 करोड़ फौलोअर्स हैं. आप इन्हें टिपटौप कपड़ों में देख कर प्रभावित होंगे पर जब आप इन से आमनेसामने बात करेंगे तो इन की अतिघटिया व बदतमीजी वाली भाषा सुन कर अपने कान बंद कर लेने में ही अपनी भलाई समझेंगे.

वास्तव में ये फालतू के इन्फ्लुएंसर्स अपनी निजी जिंदगी में भी घटियापन ही करते रहते हैं. मजेदार बात यह है कि ये इन्फ्लुएंसर्स अपने फौलोअर्स और व्यूज की संख्या गिना कर गुंडागर्दी/दादागीरी/ मारपीट करने से बाज नहीं आते. इतना ही नहीं, ये निजी जिंदगी में भी काफी घटिया होते हैं.

शिवानी कुमारी

ओटीटी के ‘बिग बौस’ सीजन 3 में नजर आ चुकीं औरैया, उत्तर प्रदेश के अरियारी गांव में रहने वाली इन्फ्लुएंसर शिवानी कुमारी को ही लें. गरीब मां की बेटी शिवानी कुमारी को उन की मां ने घर का अनाज बेच कर 7 हजार रुपए दिए थे कि वह स्कूल की फीस भर दे पर शिवानी कुमारी ने स्कूल की फीस भरने के बजाय ‘वीवो’ कंपनी का मोबाइल खरीद कर पूरे गांव वालों को उन के वीडियो वगैरह बनाते हुए परेशान करती रही. आज 9वीं कक्षा तक पढ़ाई कर चुकी शिवानी कुमारी का दावा है कि उन के यूट्यूब चैनल पर 24 लाख फौलोअर्स और इंस्टाग्राम पर 46 लाख से अधिक फौलोअर्स हैं.

ऐसे में ‘बिग बौस’ के निर्माता ने सोचा कि वे शिवानी कुमारी को युवा पीढ़ी के सामने कम उम्र वाली लोकप्रिय इन्फ्लुएंसर के रूप में पेश करेंगे तो उस के इंस्टाग्राम व यूट्यूब के फौलोअर्स ‘बिग बौस’ देखेंगे, इस से ‘बिग बौस’ की कमाई होगी. जो लड़की मोबाइल खरीदने के लिए अपनी मां को धोखा दे सकती हो वह तो पैसा कमाने के लिए स्क्रिप्टेड संवाद बोलने में हिचक क्यों करेगी भला?

कहने का अर्थ यह कि ‘बिग बौस’ के निर्माता युवा पीढ़ी या समाज को नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाला हीरो नहीं परोसना चाहते. बल्कि, उन का मकसद ऐसे लोगों को ‘आइडियल’ के रूप में परोसना है जिन के चलते उन की जेब भर सके. ‘बिग बौस’ का सब से बुरा प्रभाव मंदबुद्धि, अनपढ़, कम पढ़ेलिखे या गांव वालों पर पड़ रहा है.

एल्विश यादव

आप इन्फ्लुएंसर एल्विश यादव को कैसे भूल सकते हैं. ‘बिग बौस’ तो इन्हें युवा पीढ़ी का ‘हीरो’ ही मानता है. जब एल्विश ‘बिग बौस’ में था तभी उस पर सांप के जहर व सांपों की तस्करी करने का आरोप लगा था. एल्विश के खिलाफ कई मुकदमे दायर हैं पर ‘बिग बौस’ की नजर में वह आइडियल है. मजाल है कि कोई रोक दे. ‘बिग बौस’ ने तो उसे ही विजेता घोषित किया था.

एल्विश ने 2016 में बतौर इन्फ्लुएंसर कैरियर शुरू किया. उस का यूट्यूब चैनल हास्य रेखाचित्रों और वैब शो के साथ लोगों का मनोरंजन करने के लिए समर्पित है. अपने प्लेटफौर्म पर लगातार घटिया कंटैंट पोस्ट करने की बदौलत चैनल के सब्सक्राइबर्स की संख्या साढ़े 14 लाख, इंस्टाग्राम पर लगभग 16 लाख फौलोअर्स हैं. एल्विश ने अपने दर्शकों को ‘बिग बौस’ में अपनी एंट्री की जानकारी देने के लिए एक रील बनाई थी, जिस में कहा था, ‘तो अब समय आ गया है घर का सिस्टम चेंज करने का तो तुम्हारा भाई… मैं आ रहा हूं घर के अंदर का सिस्टम हैंग करने और सब को बैंग करने. तो आप लोगों से वहां मिलते हैं.’

लवकेश कटारिया

एल्विश का खास दोस्त लवकेश कटारिया उर्फ लवकेश उस से कम नहीं है. ओटीटी के बिग बौस 3 में नजर आ चुका 28 सितंबर, 1998 को गुरुग्राम, हरियाणा में जन्मा 26 वर्षीय लव कटारिया उर्फ लवकेश भी इन्फ्लुएंसर है. समझ नहीं आता इन्हें इन्फ्लुएंसर कहा ही क्यों जाता है. वह बिग बौस ओटीटी 2 के विजेता एल्विश यादव का करीबी दोस्त है. खुद को सोशल मीडिया सनसनी के रूप में स्थापित करने के अलावा वह मटका भारी (अंजलि अरोड़ा के साथ) और वेहेम सहित विभिन्न संगीत वीडियो भी कर चुका है. वह खुद को ‘करप्ट ट्यूबर’ भी बुलाता है. वह गरूर में किसी को भी मारने या खरीद लेने के दावे करता है. ‘बिग बौस’ में उस की अकड़, पैसों का घमंड सहित वह सबकुछ नजर आया जो कि गुरुग्राम के अचानक अमीर हुए बिगडै़ल युवकों में नजर आता है. इंस्टाग्राम पर 3 लाख और यूट्यूब पर महज 4 हजार फौलोअर्स हैं.

चंद्रिका दीक्षित उर्फ वड़ा पाव गर्ल

दिल्ली की ‘वड़ा पाव’ गर्ल के नाम से मशहूर चंद्रिका अपने स्टोल के वायरल वीडियो की बदौलत मशहूर हुई. सोशल मीडिया पर फुटपाथ पर रेहड़ी लगाने को ले कर नगर प्रशासन से उस के ?ागड़े ने उसे वायरल कर दिया. वह शो की पहली कन्फर्म प्रतियोगी थी.

सना सुल्तान

मुंबई के एक मुसलिम परिवार में जन्मी व पलीबढ़ी सना सुल्तान टिकटौक बनातेबनाते इन्फ्लुएंसर बन बैठी हैं. उन के इंस्टाग्राम पर 66 लाख, जोश ऐप पर 25 लाख और फेसबुक पर 4 लाख फौलोअर्स हैं.

विशाल पांडे

सोशल मीडिया पर 9 लाख फौलोअर्स के साथ ही खुद को ‘टीन तिगड़ा’ कहलाने का शौक रखने वाले विशाल पांडे सोशल मीडिया के साथ ही म्यूजिक वीडियो में छाए रहते हैं.

2022 में ‘इन्फ्लुएंसर्स औफ द ईयर’ का अवार्ड जीत चुकीं बिहार की मनीषा रानी भी खुद को अनुभवी यूट्यूबर और इंस्टाग्रामर मानती हैं. बिग बौस ओटीटी में रहते हुए उन्होंने ‘ब्रैंड एम्पावर इंडस्ट्री लीडर्स अवार्ड 2023’ में ‘रिऐलिटी शो ‘एंटरटेनर औफ द ईयर’ की श्रेणी में एक पुरस्कार भी जीता पर ‘बिग बौस’ में वे विजेता न बन पाईं.

अभिषेक मल्हान उर्फ फुकरा इंसान

अभिषेक मल्हान एक अन्य कंटैंट क्रिएटर और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर है, जिस के यूट्यूब और इंस्टाग्राम पर लाखों में फौलोअर्स हैं. अभिषेक मल्हान को उस के अच्छे स्वभाव के लिए पसंद किया गया. वह ‘बिग बौस’ का रनरअप रहा और एल्विश से हारा.

पुनीत सुपरस्टार

इंस्टाग्राम पर 30 लाख से अधिक फौलोअर्स के साथ इंटरनैट की दुनिया में ‘लौर्ड पुनीत’ के नाम से भी जाने जाने वाला सुपरस्टार पुनीत मजाकिया वीडियो बनाने में माहिर है पर यह घर के अंदर अपने दुर्व्यवहार के कारण 24 घंटे के भीतर ही शो से बाहर हो गया था. उसे कैमरे पर चिल्लाने और अपने चेहरे पर फ्लोर क्लीनर, मिर्च पाउडर और टूथपेस्ट सहित विभिन्न चीजें लगाने के लिए जाना जाता है. अब इस से दर्शक क्या सीखेंगे, यह तो वही जाने पर ‘बिग बौस’ के निर्माता व चैनल की नजरों में यह आइडियल है.

फालतू इन्फ्लुएंसर्स हैं ‘बिग बौस’ के भस्मासुर

‘बिग बौस’ पर जिन बदतमीज, फालतू, नौटंकीबाज, अति गुस्सैल इन्फ्लुएंसर्स को ‘आइडियल’ रूप में पेश किया गया उन से हम ने कुछ परिचय करा दिया. ज्यादा जानना चाहते हैं तो इन के इंस्टाग्राम पर जा कर देख लें कि ये किस तरह की बकवास करते हैं, किस तरह मारामारी की बातें करते हैं.

‘बिग बौस’ में इन्हें आइडियलाइज करने के लिए पूरी तरह से मार्केटिंग और पीआर टीम दोषी हैं. सब से पहले पीआरओ ने इन इन्फ्लुएंसर्स को फिल्म की प्रैस कौन्फ्रैंस में बुलाना शुरू किया. पीआरओ ने ही अपने चहेते इन्फ्लुएंसर्स को ‘बिग बौस’ में भिजवाया पर एक दिन ये इन्फ्लुएंसर्स ‘बिग बौस’ के निर्माता व ओटीटी के लिए भस्मासुर साबित होंगे. आखिर आप गलत लोगों को आदर्श के रूप में पोषित करेंगे तो खमियाजा आप भी भुगतेंगे.

अभी हाल ही में फिल्म ‘खेल खेल में’ का गाना रिलीज कार्यक्रम था, जहां मीडिया यानी कि पत्रकारों को ही होना चाहिए था. मगर पीआरओ ने कुछ इन्फ्लुएंसर्स को बुलाया था. पहले तो इन इन्फ्लुएंसर्स के इंतजार में कार्यक्रम कुछ देर में शुरू हुआ. गाना रिलीज होने के बाद एक महिला इन्फ्लुएंसर सीधे स्टेज पर पहुंच गई और अभिनेत्री तापसी पन्नू से कुछ कहे बिना उन के साथ सैल्फी खींचने लगी. तापसी ने टोक दिया.

इतना सुनते ही वह इन्फ्लुएंसर आगबबूला हो गई. चिल्लाते हुए उस ने कहा कि, ‘आप मना कैसे कर सकती हैं, पीआरओ ने हमें आप के साथ रील बनाने, गाने पर रील बनाने और आप के साथ सैल्फी खींचने तथा आप के इस गाने का प्रचार करने के लिए बुलाया है.’

आखिरकार, यहां भी सुरक्षाकर्मियों को ही हस्तक्षेप करना पड़ा. उस के बाद लगातार 4 दिनों तक उस इन्फ्लुएंसर ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर जम कर उस की आलोचना की. उस ने यह अपने सभी फौलोअर्स का अपमान तक बता डाला.

तो धीरेधीरे ये फालतू के इन्फ्लुएंसर्स फिल्म वालों के लिए भी ‘भस्मासुर’ ही बनते जा रहे हैं. एक दिन ‘बिग बौस’ के लिए भी इन्फ्लुएंसर्स ‘भस्मासुर’ ही साबित होंगे.

गौडफादर के बिना हिंदी फिल्मों में काम नहीं मिलता : स्कंद ठाकुर

हिंदी फिल्मों और टैलीविजन शो में काम करने वाले अभिनेता स्कंद ठाकुर बहुत ही विनम्र स्वभाव के और हंसमुख हैं. हिमाचल में जन्मे और मुंबई में पलेबड़े हुए हैंडसम स्कंद को बचपन से ही अभिनय का शौक था, लेकिन उन के पिता की शर्त थी कि वे अपनी पढ़ाई पूरी करें, फिर अभिनय की तरफ ध्यान दें.

उन्होंने उन की बात मानी और अपनी ग्रैजुएशन की पढ़ाई पूरी कर अभिनय की तरफ मुड़े. उन्होंने फिल्मों में आने के लिए काफी संघर्ष किया, लेकिन हार नहीं मानी. वे जानते हैं कि गौडफादर के बिना हिंदी फिल्मों में ऐंट्री पाना आसान नहीं होता, लेकिन प्रतिभा है तो उन्हें काम अवश्य मिलेगा.

मिला ब्रेक

वर्ष 2019 में उन्होंने नैटफ्लिक्स की ऐंथोलौजी सीरीज ‘फील्स लाइक इश्क’ से अभिनय की शुरुआत की है. उन की कुछ खास फिल्में ‘लाल सिंह चड्ढा’, ‘आरआरआर’, ‘गहराइयां’, ‘सूर्यवंशी’, ‘आर्टिकल 370’ आदि हैं. इस के अलावा उन्होंने टीवी सीरीज ‘फील्स लाइक इश्क’, ‘स्कैम 1992’ आदि में भी अभिनय किया है.

स्कंद को उन के अभिनय कौशल के लिए आलोचकों और दर्शकों दोनों ने सराहा है. उन्हें वर्ष 2022 में फिल्मफेयर अवार्ड्स में सर्वश्रेष्ठ पुरुष पदार्पण के लिए नामांकित किया गया था. स्कंद का पूरा परिवार गृहशोभा पत्रिका पढ़ते हैं, जिस में उन की मां खासकर महिलाओं को प्रेरित करने वाले लेख पढ़ती हैं. जियो सिनेमा पर स्कंद की वैब सीरीज खलबली रिकौर्ड्स रिलीज पर है.

उन से बात हुई, आइए जानते हैं उन की कहानी उन की जबानी :

सीरीज करने की खास वजह

इस सीरीज को करने की खास वजह के बारे में पूछने पर स्कंद कहते हैं कि इस शो में मेरा किरदार राघव राय सिंह एक म्यूजिक लवर की है, जो एक फैमिली बिजनैस चलाता है. रियल लाइफ में भी मुझे संगीत से बहुत लगाव है, इसलिए यह भूमिका मेरे लिए खास रही. संगीत में भी हिपहौप म्यूजिक मुझे बहुत पसंद है। मैं काफी सालों से इसे फौलो करता आ रहा हूं. फिल्म को करते हुए मैं ने कई बड़ेबड़े कलाकारों से भी मिल चुका हूं, वही मेरे लिए बड़ी बात रही.

इस शो में एक पितापुत्र की विचारों में नए और पुराने जमाने के संगीत में अंतर को दिखाने की कोशिश की गई है, जो म्यूजिक इंडस्ट्री से जुड़ी है. पर्सनल लाइफ में मैं अपने पिता से काफी क्लोज हूं, समय के साथसाथ इस में अधिक निकटता आई है। बचपन में मुझे याद है जब मेरे पिता कहीं तो मैं कहीं दूसरी जगह पर बैठता था, लेकिन अब हम दोनों अच्छे दोस्त भी हैं.

मिली प्रेरणा

अपने बारे में स्कंद कहते हैं कि मैं ने वर्ष 2015 में पृथ्वी थिएटर के एक थिएटर ग्रुप के बैक स्टेज से काम शुरू किया है. ऐक्टिंग को चुनने की मेरी खास वजह यह थी कि मुझे पढ़ाई में बिलकुल भी मन नहीं लगता था और इस काम में मुझे डर भी नहीं लगता था। मैं 100-200 लोगों के सामने ऐक्टिंग कर सकता था. लोगों का अटैंशन मुझे पसंद था, इसलिए मैं ने इसे ही अपना रास्ता चुना और 2-3 साल तक थिएटर में अभिनय किया.

शुरुआत के 4 से 5 साल तक क्या काम अच्छा है, क्या बुरा है, इस पर विचार किया और जाना कि इंडस्ट्री में ऐंट्री किस तरह लेनी पड़ती है, क्योंकि यहां मेरा कोई गौडफादर नहीं है.

औडिशन देने के बाद धीरेधीरे काम मिलता गया, लेकिन पिता का निर्देश था कि मैं ग्रैजुएशन की पढ़ाई पूरी करूं और मैं ने किया.

पारिवारिक सहयोग

स्कंद कहते हैं कि जब मैं 9 महीने का था, तब मेरे पेरैंट्स मुझे मुंबई ले आए थे, इस के बाद मैं यहीं रहा. मेरे पिता संजीव ठाकुर पहले सपोर्ट में नहीं थे, क्योंकि उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी मुंबई से शुरू की है. अभी उन का खुद का व्यवसाय है, लेकिन उन की शुरुआती दिन बहुत संघर्ष भरे थे. जब वे पहले मुंबई आए थे, तो 16 साल के थे। पैसे के लिए वेटर का काम किया, टैक्सियां धोए. धीरेधीरे उन्होंने खुद को मुंबई में स्थापित किया, इसलिए मुझे भी वे जीरो से कैरियर शुरू करने से मना कर रहे थे, क्योंकि फिल्म इंडस्ट्री में मेरा कोई गौडफादर नहीं है, जो मेरे लिए कुछ करें, लेकिन अच्छी बात यह रही कि उन्होंने मुझे 1 साल का समय इंडस्ट्री में काम करने के लिए दिया.

1 साल में ही मैं ने थोड़ा काम शुरू कर लिया था, इस से उन्हें खुशी मिली और अभी तक वे मेरे सपोर्ट में हैं. हर परिस्थिति में वे मेरे साथ हैं.

स्कंद आगे कहते हैं कि मुझे बहुत संघर्ष करना पड़ा, क्योंकि मुझे ऐक्टिंग में जाने की पूरी प्रोसेस को जानना जरूरी था. मुझे करीब 6 से 7 साल का समय लगा था, लेकिन मेरे लिए वह लर्निंग पीरियड रही. कोई गाइड करने वाला नहीं था. औडिशन देते गए, जो भी भलाबुरा सुनने को मिलता, उसे फिल्टर कर आगे बढ़ते गए.

जब मुझे पहली नैटफ्लिक्स की शौर्ट फिल्म ‘ऐंथोलौजी’ मिली, उस में भी सबकुछ खुद ही फिगरआउट करना पड़ा। उस में काफी समय लगा. वह मेरे लिए बड़ी चुनौती थी.

अभी इंडस्ट्री में मेरे 9 साल बीत चुके है और मैं जहां हूं, खुद को खुशनसीब मानता हूं. फिल्म ‘आर्टिकल 370’ में खुद को बड़े परदे पर दिखना भी मेरे लिए सपने जैसा ही था. उस फिल्म के दौरान मैं ने बहुत कुछ सीनियर आर्टिस्टों से सीखा है.

ओटीटी ने दिया काम

ओटीटी को स्कंद नए कलाकारों के लिए एक बड़ी प्लेटफौर्म मानते हैं, जिस का फायदा उन्हें मिला है। वे कहते हैं कि मेरे जीवन में बड़ा बदलाव ओटीटी की वजह से ही आया है. ऐसे प्लेटफौर्म न होने पर मैं कहां रहता पता नहीं. इस माध्यम ने फिल्म इंडस्ट्री में भाईभतीजावाद को कम कर दिया है.

मुझे इस मंच की वजह से ही एक से दूसरा काम मिला है. इसलिए मेरे लिए यह वरदान है. इतना ही नहीं पहले जो नए हो या पुराने कलाकार जिन पर किसी का ध्यान नहीं जाता था, आज उन सभी को काम मिल रहा है. इस मंच से प्रतिभावान लोग बड़ी फिल्मों में भी काम पा रहे हैं. मेरी ड्रीम है कि मैं एक यादगार रोमांटिक फिल्म करूं, जिस में मेरे को स्टार अभिनेत्री मृणाल ठाकुर, सानिया मल्होत्रा हो.

त्योहार होते हैं खास

त्योहारों को मैं अपने परिवार के साथ मनाना पसंद करता हूं. घर पर परिवार के साथ रहने की इच्छा हमेशा रहती है. कई बार काम की वजह से घर नहीं जा पाता हूं. नए कलाकारों से मेरा कहना है कि आप को जो भी काम मिले, उसे मेहनत और लगन से करते जाएं, हर काम को सीखने में समय लगता है। उस के लिए धीरज बनाए रखें, तभी आप आगे बढ़ सकते हैं.

घर की दीवारों पर दीमक ने कर लिया है कब्जा, तो इन तरीकों से पाएं छुटकारा

घर की दीवारों में छोटेछोटे छेद, लकड़ी की धूल और कमजोर अलमारी व दरवाजे इस तरफ इशारा कर रहे हैं कि आप के घर में दीमक है और इस के अलावा सफेद या हलके भूरे रंग के उड़ने वाले कीड़े भी दिख रहे हैं, तो सतर्क हो जाइए क्योंकि आप के घर में दीमक ने भी अपना घर बना लिया है. ये छोटे से कीड़े खासकर लकड़ी और कागज को खाते हैं जो घरों में चुपचाप रह कर फर्नीचर, दरवाजे, खिड़कियां और लकड़ी की चीजें खराब कर देते हैं.

ये गीली और नमी वाली जगहों को ज्यादा पसंद करते हैं, इसलिए अगर घर में सीलन हो, तो वे जल्दी फैल जाते हैं. लेकिन अगर घर में दीमक फैल भी गई है, तो घबराने की बात नहीं है. नियमित जांच, सही रसायनों का उपयोग और नमी नियंत्रण जैसे उपाय अपना कर आप अपने घर और फर्नीचर को दीमक के हमले से बचा सकते हैं.

नमी पर नियंत्रण रखें

दीमक की समस्या का एक प्रमुख कारण नमी है. दीमक को नम वातावरण में पनपना आसान लगता है, इसलिए घर के आसपास और भीतर नमी को नियंत्रित रखें. घर के बाहर बारिश का पानी जमा न होने दें. घर के फर्श और दीवारों को सूखा रखें.

लकड़ी को सुरक्षित रखें

दीमक लकड़ी पर निर्भर होते हैं, इसलिए लकड़ी की वस्तुओं को सुरक्षित रखना जरूरी है. फर्नीचर और लकड़ी की वस्तुओं पर दीमक निरोधक पेंट या पौलिश का उपयोग करें. घर के लकड़ी के हिस्सों को दीमकरोधी कैमिकल से ट्रीट करवाएं.

घर के बाहर की सफाई का ध्यान रखें

घर के आसपास का इलाका भी दीमक की उत्पत्ति का एक कारण हो सकता है. इसलिए घर के बाहर भी सफाई का ध्यान रखना जरूरी है.पुराने और गिरे हुए पेड़ों या लकड़ी के ढेर को साफ रखें. दीमक के संभावित ठिकानों को हटाएं, जैसे लकड़ी के टुकड़े, कचरा और गीली लकड़ी.

वैंटिलेशन का ध्यान रखें

घर के विभिन्न हिस्सों में पर्याप्त वैंटिलेशन (हवा का प्रवाह) होना चाहिए. बंद और अंधेरे जगहों पर दीमक आसानी से पनप सकते हैं. अच्छे वैंटिलेशन से नमी कम होती है, जो दीमक के लिए प्रतिकूल स्थिति बनाती है.

घर की संरचना को सुरक्षित बनाएं

अगर आप नए घर का निर्माण करवा रहे हैं, तो पहले से ही दीमकरोधी कैमिकल का उपयोग करें. नींव में दीमक नियंत्रण कैमिकल का छिड़काव करवाएं ताकि भविष्य में दीमक का खतरा न हो.

कागजी दस्तावेजों को सुरक्षित रखें

दीमक कागज के दस्तावेजों को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं. जरूरी दस्तावेजों को प्लास्टिक शीट या फाइल में रखें और उन्हें दीमकरोधी उपायों से सुरक्षित रखें.

दीमक का रासायनिक इलाज

दीमक से बचाव और इलाज के लिए रासायनिक उपाय सब से प्रभावी माने जाते हैं. इन रसायनों का उपयोग कर के आप दीमक की समस्या से छुटकारा पा सकते हैं.

क्लोरपायरीफौस

यह एक प्रभावी रसायन है जिस का उपयोग दीमक को जड़ से खत्म करने के लिए किया जाता है. इसे मिट्टी और लकड़ी में छिड़का जाता है जहां दीमक की मौजूद होती है.

यह दीमक के संपर्क में आते ही उन्हें मारता है और लंबे समय तक उन की पुनरावृत्ति को रोकता है.

इस का उपयोग घर की नींव और अन्य कमजोर स्थानों पर किया जा सकता है.

इमिडाक्लोप्रिड

इमिडाक्लोप्रिड एक कीटनाशक है जो दीमक को उनकी कालोनियों में खत्म करता है.

यह रसायन लकड़ी और मिट्टी में छिड़का जाता है जो दीमक के शरीर में प्रवेश कर उन्हें मारता है.

इस का उपयोग दीमक प्रभावित फर्नीचर और लकड़ी की वस्तुओं पर भी किया जा सकता है.

फीप्रोनिल

फीप्रोनिल एक शक्तिशाली रसायन है जो दीमक की आबादी को तेजी से खत्म करता है.

इसे सीधे दीमक प्रभावित क्षेत्रों में छिड़का जाता है और यह दीमक के संपर्क में आते ही उन्हें मारता है.

यह दीमक की कालोनी को खत्म करने में मददगार होता है और दीमक की वापसी को रोकता है.

बोरिक ऐसिड

बोरिक ऐसिड दीमक के लिए एक विषाक्त रसायन है जो उन की तंत्रिका प्रणाली को प्रभावित करता है.

इसे दीमक प्रभावित जगहों पर पाउडर के रूप में या पानी में घोल कर छिड़का जा सकता है.

दीमक इस रसायन को खा कर मर जाते हैं और यह उन के शरीर में धीमी गति से काम करता है.

हेक्साफ्लुमुरौन

हेक्साफ्लुमुरौन एक विशेष रसायन है जो दीमक की वृद्धि को रोकता है.

इसे दीमक के ट्रैप सिस्टम में उपयोग किया जाता है. दीमक इस रसायन को खा कर वापस अपने घोंसले में ले जाते हैं, जिस से पूरी कालोनी नष्ट हो जाती है.

इस का प्रभाव दीमक की संख्या को धीरेधीरे कम करता है.

कैल्ड्रोन

  • यह एक प्रभावी और व्यापक रूप से उपयोग किया जाने वाला दीमक निवारक रसायन है.
  • इसे दीमक प्रभावित मिट्टी, लकड़ी और घर की नींव में इंजैक्ट किया जाता है.
  • यह दीमक के संपर्क में आते ही मारता है और दीमक की पुनरावृत्ति को रोकता है.

रासायनिक उपचार का सही उपयोग :

ऐक्सपर्ट्स की मदद लें : अगर दीमक का हमला गंभीर है, तो पेस्ट कंट्रोल सेवाओं की सहायता लें. वे सही तरीके से रसायनों का उपयोग कर सकते हैं और दीमक को जड़ से खत्म कर सकते हैं.

सुरक्षा व सावधानियां : रासायनिक उपचार करते समय हमेशा सुरक्षा का ध्यान रखें. यह सुनिश्चित करें कि रसायनों का उपयोग उचित तरीके से हो और परिवार के सदस्यों और पालतू जानवरों के संपर्क से दूर रखें.

नियमित जांच : रासायनिक इलाज के बाद भी दीमक की समस्या की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए नियमित रूप से अपने घर की जांच करवाते रहें.

इस फैस्टिव सीजन में करें हैल्दी शो औफ, ये भी है जरूरी

अब कोई माने या न माने, लेकिन सच है कि हर साल फैस्टिव सीजन पर गेटटूगेदर में सभी दोस्तोंरिश्तेदारों में यह होड़ सी लगी रहती है कि वे कुछ ऐसा अलग हट कर करें कि सब उन्हें नोटिस किए बिना रह न पाएं.

अब नमिता को ही लीजिए, पिछले साल की ड्रैसिंग सेंस पर उन के रिश्तेदार अब भी कानाफूसी करते दिखते हैं. किसी को उन की साड़ीब्लाउज का डीप बैक पसंद आया, तो कुछ ऐसे भी थे जिन के मुंह से मैडम की तारीफ के बोल तक नहीं निकले, बहरहाल वे उन्हें नोटिस करने से खुद को नहीं रोक पाए और एकदूसरे के कान में दबी आवाज में नमिता को ‘सेंटर औफ अट्रैक्शन’ बनने का खिताब तक दे डाला.

वैसे, देखा जाए तो इस हैल्दी शो औफ में कोई बुराई भी नहीं है. अगर आप खुद को बेहतर प्रेजैंट करने के लिए सैल्फ ग्रूमिंग पर समय और पैसा खर्च करते हैं, तो उस का असर आप की पर्सनैलिटी और कौन्फिडेंस पर साफ नजर आता है.

खास मौके पर खास बात

कुछ लोग तो इस मौके की तलाश में होते हैं कि कब वे अपना नया टेलैंट या कोई नई चीज दोस्तों को दिखाएं. भले इस के लिए कुछ महीनों का इंतजार ही क्यों न करना पड़े.

नमिता की तरह ही कितने लोग अपनी नई ड्रैस तो कुछ लोग अपनी नई कार, नया घर या घर का नया पेंट वर्क और कुछ नहीं तो नया क्रौकरी सेट, डाइनिंग टेबल, सोफासेट जैसी छोटी से बड़ी चीजों को शो औफ करने का कोई मौका नहीं चूकते.

हैल्दी शो औफ में कोई बुराई नहीं

हरकोई अपने स्वभाव और कूवत के हिसाब से या फिर नए ट्रैंड के हिसाब से फैस्टिव रेडी होना चाहता है. ऐसे में अगर वह अपनी मेहनत को नोटिस कराना चाहे तो उस में कोई बुरी बात नहीं है.

वक्त के साथ हमें अपने कंफर्ट जोन का दायरा बढ़ाना चाहिए. कुछ नया सिर्फ घर के डैकोरेशन में नहीं बल्कि ड्रैसिंग में भी लाना चाहिए. अगर आप इस टैंशन में हैं, तो इतना तैयार हो कर किचन में खड़े रहना पड़ेगा. दोस्तोंरिश्तेदारों के लिए तरहतरह के व्यंजन बनाने पड़ेंगे तो उस के लिए आप शेफ कार्ट जैसी सुविधाओं को फायदा ले सकते हैं, जहां शेफ आप के घर आ कर आप के ही किचन में मिनिमम खर्चे में 20-25 लोगों का न सिर्फ खाना बना कर सर्व करेंगे, बल्कि किचन को भी चकाचक करेंगे.

वैसे, शो औफ की यह टैक्निक आप के काम आएगी, जिस में बिना मेहनत मजेदार खाने का आनंद ले पाएंगे. साथ ही अपनी ड्रैस और मेकअप भी अच्छे से फ्ल॔नट कर पाएंगे.

नेल्स, हेयर और आईलैश ऐक्सटेंशन ट्राई करें

नेल्स ऐक्सटेंशन का ट्रैंड काफी समय से लोगों में है. इस में आप तरहतरह के डिफरैंट नेल आर्ट करा कर अपनी पर्सनैलिटी को नया लुक दे सकते हैं. आजकल नेल्स पोट्रेट जैसे नेलआर्ट भी मार्केट में आसानी से उपलब्ध हैं, जिस में आप अपने उंगुलियों के नाखूनों पर अपने परिवार के करीबी लोगों की तसवीर बनवा सकते हैं. लेकिन ध्यान दीजिएगा कि तसवीरों में खुद को भी जगह देना न भूलें, बच्चे और पति के साथ एक नाखून पर अपना पोट्रेट भी जरूर बनवाएं. फिर देखिएगा पार्टी में कैसे आप के नेल्स के चर्चे होते हैं.

नेल्स की तरह ही आप अपने बालों में भी ऐक्सटेंशन करा कर अपने लुक के साथ ऐक्सपेरिमैंट कर सकते हैं. आईलैश ऐक्सटेंशन भी आप के पर्सनैलिटी में चार चांद लगाने का काम करेंगे. इस में आप को फेक आईलैश लगाने की मेहनत नहीं करनी पड़ेगी, किसी भी सैलून में यह सुविधा आसानी से उपलब्ध है। इस से आप को हैवी मसकारा लगाने की झंझट भी खत्म हो जाएगी. इन सब के बाद यकीनन लोग आप को नोटिस करने से खुद को रोक नहीं पाएंगे.

डांस परफौर्मेंस करें तैयार

इन दिनों शादियों में कोरियोग्राफर बुला कर डांस परफौर्मेंस तैयार करने का खूब ट्रैंड है. बैस्ट परफौर्मेंस को लंबे वक्त तक याद भी रखा जाता है। तो क्यों न इस बार पार्टी के लिए डांस तैयार किया जाए.

आप अपना सिंगल या कपल डांस स्टैप्स तैयार कर सकते हैं. इस के लिए आप चाहें तो कोरियोग्राफर भी हायर कर सकते हैं जो आप के घर आ कर कुछ ही घंटो में आप को डांस की तैयारी करा देंगे या फिर आप अपने आसपास के डांस स्टूडियो जा कर भी प्रैक्टिस कर सकते हैं.

यूट्यूब और इंस्टाग्राम डांस इन्फ्लुऐंसर के पेज पर मौजूद वीडियो की मदद से भी डांस की तैयारी की जा सकती है. इस मेहनत के बाद जब आप गेटटूगेदर में थिरकेंगे तो आप को अटैंशन मिलना तो लाजिम है.

अबौर्शन के बाद कैसे रखें अपना ध्यान, जानें यहां

बहुत सारे लोग बच्चा 30 की उम्र के बाद सोचते हैं. एक विश्वव्यापी सर्वे के अनुसार हर 4 में से 1 महिला का अबौर्शन 45 साल की उम्र से पहले हो जाता है. यदि आप या आप के आसपास किसी महिला का अबौर्शन हुआ है तो आप का इस ब्लौग को पढ़ना और भी जरूरी है. आइए, इस से पहले जानते हैं कि अबौर्शन क्या होता है.

अबौर्शन क्या होता है और इसे करने/करवाने के क्या तरीके होते हैं? अबौर्शन यानी प्रैग्नेंसी पूर्ण होने से पहले या तो गर्भ का अपनेआप गर्भ से निकल जाना या उसे जबरदस्ती शल्यचिकित्सा या गोलियों के माध्यम से निकालना. इस का अंतिम परिणाम यह होता है कि प्रैग्नेंसी खत्म हो जाती है यानी अबौर्शन हो जाता है.

अबौर्शन के कई अलगअलग प्रकार हैं. एक डाक्टर किसी भी महिला की आवश्यकताओं और प्रैग्नेंसी के अनुसार उस के लिए उपयुक्त विधि की प्रयोग करेगा. अबौर्शन के प्रकारों में शामिल हैं: अबौर्शन की गोली, निर्वात आकांक्षा, अर्थात् वैक्यूम ऐस्पिरेशन फैलाव और निकासी या डी ऐंड ई.

अबौर्शन के बाद

इन प्रक्रियाओं के बाद एक महिला की सामान्य माहवारी अवधि 4-8 सप्ताह में वापस आ जानी चाहिए. हालांकि उसे शुरू में अनियमित स्पोटिंग या रक्तस्राव हो सकता है. कुछ लोगों में अबौर्शन के बाद के दिनों और हफ्तों में मजबूत भावनाएं और मूड में बदलाव होता है. हारमोन में अचानक परिवर्तन इस का कारण बन सकता है. अबौर्शन होना भावनात्मक और मानसिक रूप से चुनौतीपूर्ण अनुभव हो सकता है और प्रक्रिया के बाद के दिनों और हफ्तों में आप को दोस्तों और करीबी संबंधों का सहारा लेना चाहिए.

जैसे ही कोई व्यक्ति ओव्यूलेट करती है, गर्भवती होना संभव है. यह पहली माहवारी से पहले होता है और यह अबौर्शन के तुरंत बाद हो सकता है. इसलिए, यदि कोई व्यक्ति गर्भधारण से बचने की कोशिश कर रही है तो गर्भनिरोधक का उपयोग या सैक्स से परहेज करना जरूरी है.

अबौर्शन के बाद दिखने वाले निम्नलिखित लक्षण हैं:

खून आना

कुछ महिलाओं को अबौर्शन के बाद बिलकुल खून नहीं आता तो कुछ को अगले 2 से 6 हफ्तों तक योनि से खून आ सकता है, घबराइए मत यह अबौर्शन का एकदम सामन्य लक्षण है.

  1. योनि से जो खून आ रहा है वह थोड़ा स्पौटी, भूरे रंग का हो सकता है, उस में यदि आप को क्लाट्स दिखें तो घबराएं नहीं क्योंकि यह एकदम सामान्य है.
  2. अबौर्शन के बाद शुरू के कुछ दिनों में खून नहीं आता, मगर फिर हारमोनल बदलावों के कारण खून थोड़ा ज्यादा आ सकता है.
  3. यदि ज्यादा खून आ रहा हो तो पैड्स का प्रयोग करें और उस के बाद गर्भाशय वाली जगह को 10-15 मिनट के लिए आराम से मलें, हीटिंग पैड का उपयोग करें और ज्यादा दर्द होने पर पेनकिलर लें.

बहाव: आपका बहाव कुछ इस प्रकार हो सकता है:

  1. बिना खून का, भूरे या काले रंग का
  2. बलगम की शक्ल जैसा.

क्रापिंग, अबौर्शन के बाद होने वाली बहुत ही साधारण सी हरकत है. इस का मतलब यह होता है कि गर्भाशय वापस अपनी जगह पर आ रहा है.

अबौर्शन के बाद अपना ध्यान कैसे रखें

शारीरिक तौर पर: अबौर्शन के बाद महिलाओं को किसी दोस्त या परिवार के सदस्य को अपने साथ रखना चाहिए. अगर हो सके तो अगले 2-3 दिन तक पूरी तरह आराम करना चाहिए, हो सके तो काम से छुट्टी भी ले लेनी चाहिए. खुद को शारीरिक या भावनात्मक रूप से मुश्किल काम करने से बचाने की कोशिश करनी चाहिए.

अबौर्शन होने के बाद खुद का खयाल रखना भी जरूरी है. हालांकि यह प्रक्रिया छोटी सी होती है, लेकिन शारीरिक रूप से ठीक होने में कई दिन या सप्ताह लग सकते हैं. एक महिला यह कोशिश कर सकती है:

– पेट और पीठ के निचले हिस्से की मालिश करना.

– हीटिंग पैड का उपयोग करना.

– पेनकिलर लेना.

मानसिक तौर पर: अबौर्शन का चुनाव करना एक कठिन निर्णय हो सकता है और यह भावनात्मक रूप से चुनौतीपूर्ण अनुभव है.

प्रक्रिया के बाद हारमोनल बदलाव इसे बढ़ा देता है जिस से मूड में बदलाव हो सकता है. अबौर्शन होने के बाद एक महिला के प्रोजेस्टेरौन और ऐस्ट्रोजन का स्तर धीरेधीरे कम हो जाता है, जो मूड में बदलाव का कारण बन सकता है. जैसे ही किसी महिला की माहवारी सामान्य हो जाती है, उसे हारमोन का स्तर स्थिर हो जाएगा.

मेनोपौज से जुड़ी फैक्ट और इलाज के बारे में बताएं

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मुझे मेनोपौज होना शुरू हो गया है. ऐसे में क्या मुझे जन्मनियंत्रण का खयाल रखना चाहिए या नहीं?

जवाब-

आप को मेनोपौज होना शुरू हो चुका है तो संभव है आप को 1 साल से मासिकधर्म नहीं हुआ होगा. महिलाओं को 1 साल मासिकधर्म नहीं होता है तो उन्हें जन्मनियंत्रण के साधनों का प्रयोग करना चाहिए. मेनोपौज के बाद भी महिलाओं को यौन संक्रमण के जोखिम को कम करने के लिए कंडोम का उपयोग जारी रखना चाहिए.

सवाल-

मैं 53 वर्षीय हूं. मुझे अभी तक मेनोपौज नहीं हुआ है. मैं जानना चाहती हूं कि शरीर इस बदलाव की ओर बढ़ रहा है या नहीं?

जवाब-

मेनोपौज की औसत आयु 45 से 55 वर्ष के बीच होती है, इसलिए संभव है कि आप भी इस बदलाव की ओर बढ़ रही हैं. मगर यह जरूरी नहीं होता कि सभी महिलाओं को इस उम्र तक मेनोपौज हो ही जाए.

सवाल-

मैं 40 वर्षीय हूं और मुझे मेनोपौज हो रहा है. जल्दी मेनोपौज होने के कारण मुझे पेट पर बहुत ब्लोटिंग हो रही है. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

मेनोपौज में सूजन व ब्लोटिंग बहुत आम बात है और ऐसा कई कारणों से हो सकता है. ऐस्ट्रोजन का गिरता स्तर पाचन को प्रभावित कर सकता है, जिस के परिणामस्वरूप सूजन हो जाती है. ऐस्ट्रोजन का गिरता स्तर कार्बोहाइड्रेट के पाचन पर भी प्रभाव डाल सकता है, जिस से स्टार्च और शुगर पचाने में और अधिक मुश्किल हो जाती है. इस से अकसर सूजन हो जाती है और साथ ही आप थकान भी महसूस कर सकती हैं.

रोज सैर करना आप के लिए बहुत फायदेमंद साबित हो सकता है, क्योंकि इस से आप का पाचनतंत्र मजबूत होगा. सैर करने के अलावा गहरीगहरी सांसें लें और शरीर को टोन करें.

पास्ता, केक, बिस्कुट और सफेद चावल से परहेज करें. अगर लंबे समय तक दर्द ठीक न हो तो किसी स्त्रीरोग विशेषज्ञा से मिलें.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर पर 9650966493 भेजें. 

या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

न्यूड मौडल: कृष्णा ने क्यों चुना वह रास्ता

मैं तकरीबन 20 साल की थी, जब पहली बार कालेज पहुंची. मुझे एक बहुत बड़े कमरे में ले जाया गया, जहां तेज रोशनी थी और बीच में था पलंगनुमा तख्त. वहीं मुझे बैठना था, एकदम न्यूड. नीचे की देह पर बित्तेभर कपड़े के साथ. कई जोड़ा आंखें मुझे देख रही थीं. देह के एकएक उभार, एकएक कटाव पर सब की नजरें थीं. ‘‘मैं बिना हिले घंटों बैठी रहती. सांस लेती, तब छाती ऊपरनीचे होती या पलकें झपकतीं. मुझ में और पत्थर की मूरत में इतना ही फर्क रहा,’’

एक कमरे के उदास और सीलन भरे मकान में कृष्णा किसी टेपरिकौर्डर की तरह बोल रही थीं. कृष्णा न्यूड मौडल रह चुकी हैं. मैं ने मिलने की बात की, तो कुछ उदास सी आवाज में बोलीं, ‘‘आ जाओ, लेकिन मेरा घर बहुत छोटा है. मैं अब पहले जैसी खूबसूरत भी नहीं रही.’’ दिल्ली के मदनपुर खादर के तंग रास्ते से होते हुए मैं कृष्णा की गली तक पहुंचा. वे मुझे लेने आई थीं. ऊंचा कद, दुबलापतला शरीर और लंबीलंबी उंगलियां. बीच की मांग के साथ कस कर बंधे हुए बाल और आंखों में हलका सा काजल. सिर पर दुपट्टा. यह देख कर कोई भी अंदाजा नहीं लगा सकता कि लोअर मिडिल क्लास घरेलू औरत जैसी लगती कृष्णा ने 25 साल दिल्ली व एनसीआर के आर्ट स्टूडैंट्स के लिए न्यूड मौडलिंग की होगी.

सालों तक कृष्णा का एक ही रूटीन रहा. सुबह अंधेरा टूटने से पहले जाग कर घर के काम निबटाना, फिर नहाधो कर कालेज के लिए निकल जाना. कृष्णा मौडलिंग के शुरुआती दिनों को याद करती हैं, जब शर्म उन से ऐसे चिपकी थी, जैसे गरीबी से बीमारियां. ‘‘उत्तर प्रदेश से कमानेखाने के लिए पति दिल्ली आए, तो संगसंग मैं भी चल पड़ी. सोचा था, दिल्ली चकमक होगी, पैसे होंगे और घी से चुपड़ी रोटी खाने को मिलेगी, लेकिन हुआ एकदम अलग. यहां सरिता विहार के एक तंग कमरे को पति ने घर बता दिया. सटी हुई रसोई, जहां खिड़की खोलो तो गली वाले गुस्सा करें. ‘‘धुआंती रसोई में पटिए पर बैठ कर खाना पकाती, अकसर एक वक्त का. घी चुपड़ी रोटी के नाम पर घी का खाली कनस्तर भी नहीं जुट सका. पति की तनख्वाह इतनी कम कि पैर सिकोड़ कर भी खाने को न मिले.

तभी किसी जानने वाली ने कालेज जाने को कहा. ‘‘मैं लंबी थी. खूबसूरत थी. गांव में पलाबढ़ा मजबूत शरीर और खिलता हुआ उजला रंग. बताने वाली ने कहा कि तुम्हारी तसवीर बनाने के पैसे मिलेंगे. ‘‘कालेज पहुंची तो उन्होंने कपड़े उतारने को कह दिया. मैं भड़क गई. कपड़ेलत्ते नहीं उतारूंगी, बनाना हो ऐसे ही बनाओ. ‘‘तसवीर बनी, लेकिन पैसे बहुत थोड़े मिले. फिर बताया गया कि कपड़े उतारोगी तो 5 घंटे के 220 रुपए मिलेंगे. ये बहुत बड़ी रकम थी, लेकिन शर्म से बड़ी नहीं. कपड़ों समेत भी मौडलिंग करती तो शर्म आती कि अनजान लड़के मेरा बदन देख रहे हैं. ‘‘पहले हफ्ते कपड़े उतारने की कोशिश की, लेकिन हाथ जम गए. समझ ही नहीं पा रही थी कि इतने मर्दों के सामने कपड़े खोलूंगी कैसे? खोल भी लिया तो बैठूंगी कैसे?’’ कृष्णा की आवाज ठोस है, मानो वह वक्त उन की आवाज में भी जम गया हो.

‘‘2 हफ्ते बाद कमीज उतरी. इस के बाद कपड़े खुलते ही चले गए. बस आंखें बंद रहती थीं. बच्चे डांटते कि आंखें खोलिए तो खोलती, फिर मींच लेती. ‘‘किस्मकिस्म के पोज करने होते. कभी हाथों को एक तरफ मोड़ कर, कभी एक घुटने को ऊपर को उठा कर, तो कभी सीने पर एक हाथ रख कर मैं बैठी रहती.’’ लंबी बातचीत के बाद कृष्णा कुछ थक जाती हैं. वे बताती हैं, ‘‘बीते 5 सालों से डायबिटीज ने जकड़ रखा है. वक्त पर रोटी खानी होगी,’’ वे रसोई में खाना पकाते हुए मुझ से बातें कर रही हैं. ‘‘शुरू में मैं बहुत दुबली थी. लड़के तसवीर बनाते तो मर्द जैसी दिखती. धीरेधीरे शरीर भरा. न्यूड बैठती तो सब देखते रह जाते. कहते कि मौडल बहुत खूबसूरत है. इस की तसवीर अच्छी बनती है.

सब की आंखों में तारीफ रहती, अच्छा लगता था,’’ कृष्णा बताते हुए हंस रही थीं, आंखों में पुराने दिनों की चमक के साथ. मैं ने पूछा, ‘‘फिगर बनाए रखने के लिए कुछ करती भी थीं क्या?’’ उन्होंने बताया, ‘‘नहीं. मेहनत वाला शरीर है, आप ही आप बना हुआ. हां, बीच में तनिक मोटी हो गई थी, तो रोज पार्क में जाती और दौड़ लगाती, फिर पहले जैसे ‘शेप’ में आ गई.’’ कृष्णा जब रोटी बना रही थीं, तब मैं उन का रसोईघर देख रहा था. मुश्किल से दसेक बरतन. टेढ़ीपिचकी थाली और कटोरियां. महंगी चीजों के नाम पर एक थर्मस, जो उन्होंने ‘अमीरी’ के दिनों में खरीदा था. दीवारें इतनी नीची कि सिर टकराए. वे खुद झुक कर अंदर आतीजाती हैं. रसोईघर से जुड़ा हुआ ही ड्राइंगरूम है, यही बैडरूम भी है. 2 तख्त पड़े हैं, जिन पर उन समेत घर आए मेहमान भी सोते हैं. रोटी पक चुकी थीं. अब वे बात करने के लिए तैयार थीं. धीरेधीरे कहने लगीं, ‘‘पहली बार 2,200 रुपए कमा कर घर लाई, तो पति भड़क गए.

वे 1,500 रुपए कमाते थे. शक करने लगे कि मैं कुछ गलत करती हूं. मेरा कालेज जाना बंद हो गया. ‘‘फिर पूछतेपुछाते कालेज से एक सर आए. तब मोबाइल का जमाना नहीं था. वे बड़ी सी कार ले कर आए थे, जो गली के बाहर खड़ी थी. ‘‘सर मेरे पति को कालेज ले गए और मेरी पोट्रेट दिखाई. कहा कि फोटो बनवाने के पैसे मिलते हैं तुम्हारी पत्नी को. वह इतनी खूबसूरत जो है. ‘‘पति खुश हो गए. लौटते हुए छतरी ले कर आए. तब बारिश का मौसम था. हाथ में दे कर कहा था, ‘अब से रोज कालेज जाया कर.’ ‘‘सर ने पति को न्यूड के बारे में नहीं बताया था. सारी कपड़ों वाली तसवीरें ही दिखाई थीं.’’ ‘‘काम पर लौट तो गई, लेकिन यह सब आसान नहीं था. नंगे बदन होना. उस पर बुत की तरह बैठना. नस खिंच जाती. कभी मच्छर काटते तो कभी खुजली मचती, लेकिन हिलना मना था. छींक आए,

चाहे खांसी, सांस रोक कर चुप रहो. ‘‘महीना आने पर परेशानी बढ़ जाती. पेट में ऐंठन होती. एक जगह बैठने से दाग लगने का डर रहता, लेकिन कोई रास्ता नहीं था. ‘‘ठंड के दिनों में और भी बुरा हाल होता. मैं बगैर कपड़ों के बैठी रहती और चारों ओर सिर से पैर तक मोटे कपड़े पहने बच्चे मेरी तसवीर बनाते होते. बीचबीच में चायकौफी सुड़कते. मेरी कंपकंपी भी छूट जाए तो गुस्सा करते. पसली दर्द करती थी. एक दिन मैं रो पड़ी, तब जा कर कमरे में हीटर लगा. ‘‘एक फोटो के लिए 10 दिनों तक एक ही पोज में बैठना होता. हाथपैर सख्त हो जाते,’’ कृष्णा हाथों को छूते हुए याद करने लगीं, ‘‘नीले निशान बन जाते. कहींकहीं गांठ हो जाती. ब्रेक में बाथरूम जा कर शरीर को जोरजोर से हिलाती, जैसे बुत बने रहने की सारी कसर यहीं पूरी हो जाएगी. ‘‘5 साल पहले डायबिटीज निकली, लेकिन काम करती रही.

*शरीर सुन्न हो जाता. घर लौटती तो बाम लगाती और पूरीपूरी रात रोती. सुबह नहाधो कर फिर निकल +जाती… गरीबी हम से क्याक्या करवा गई.’’ ‘‘इतने साल इस पेशे में रहीं, कभी कुछ गलत नहीं हुआ?’’ मैं ने तकरीबन सहमते हुए ही पूछा, लेकिन मजबूत कलेजे वाली कृष्णा के लिए यह सवाल बड़ा नहीं था. ‘‘हुआ न. एक बार मुझे किसी सर ने फोन किया कि क्लास में आना है. मैं ने हां कर दी. शक हुआ ही नहीं. तय की हुई जगह पहुंची तो सर का फोन आया. तहकीकात करने लगे और पूछा कि तुम मौडलिंग के अलावा कुछ और भी करती हो क्या? मैं ने कहा कि हां, घर पर सीतीपिरोती हूं. ‘‘सर ने दोबारा पूछा कि नहीं, और कुछ जैसे सैक्स करती हो?’’ मैं शांत ही रही और कहा कि सर, मैं यह सब नहीं जानती. ‘‘फोन पर सर की आवाज आई कि जैसे दोस्ती. तुम दोस्ती करती हो? मैं ने कहा कि मैं दोस्ती नहीं, मौडलिंग करने आई हूं सर. करवाना हो तो करवाओ, वरना मैं जा रही हूं. ‘‘फिर मैं लौट आई.

पति को इस बारे में नहीं बताया. वो शक करते, जबकि मेरा ईमान सच्चा है. ‘‘कहीं से फोन आता तो भरोसे पर ही चली जाती. खतरा तो था, लेकिन उस से ज्यादा इज्जत मिली,’’ लंबीलंबी उंगलियों से बनेबनाए बालों को दोबारा संवारते हुए कृष्णा याद करते हुए बोलीं, ‘‘पहलेपहल जब कपड़े उतारने के बाद रोती तो कालेज के बच्चे समझाते थे कि तुम रोओ मत. सोचो कि तुम हमारी किताब हो. तुम्हें देख कर हम सीख रहे हैं. ‘‘मेरी उम्र के या मुझ से भी बड़े बच्चे मेरे पांव छूते थे. अच्छा लगता था. फिर सोचने लगी कि बदन ही तो है. एक दिन मिट्टी में मिल जाएगा. अभी बच्चों के काम तो आ रहा है. ‘‘भले ही कम पढ़ीलिखी हूं, लेकिन मैं खुद को विद्या समझने लगी. इसी बदन ने कालेज जाने का मौका दिया, जो मुझ जैसी के लिए आसान नहीं था.’’ पूरी बातचीत के दौरान कृष्णा स्टूडैंट्स को बच्चे कहती रहीं.

उन के ड्राइंगरूम में 2 पोट्रेट भी हैं, जो इन्हीं बच्चों ने गिफ्ट किए थे. वे हर आनेजाने वाले को गर्व से अपनी तसवीरें दिखातीं और बतातीं कि वे यही काम करती हैं. ‘‘क्या लोग जानते हैं कि आप न्यूड मौडलिंग करती रहीं?’’ ‘‘नहीं. वैसे घर पर तो अब सब जानते हैं कि कालेज में कपड़े खोल कर बैठना पड़ता था, लेकिन गांव में कोई नहीं जानता. अगर पता लग जाए तो सोचेंगे कि मैं ‘ब्लू फिल्म’ में काम करती हूं. थूथू करेंगे. बिरादरी से निकाल देंगे, सो अलग. हम ने उन्हें नहीं बताया.’’ बीते एकाध साल से कृष्णा कालेज नहीं जा रहीं. डायबिटीज के बाद पत्थर बन कर बैठना मुश्किल हो चुका है. मौडलिंग के दिनों का उन का काला पर्स धूल खा रहा है. सिंगार की एक छोटी सी पिटारी है, जिस में ऐक्सपायरी डेट पार कर चुकी रैड लिपस्टिक है, काजल है और बिंदी की पत्तियां हैं. बीते दिनों की हूक उठने पर कृष्णा प्लास्टिक की इस पिटारी को खोलती और आईने में देखते हुए सिंगार करती हैं.

संदूक पर रखा यह बौक्स वे मुझे भी दिखाती हैं. लौटते हुए वे कहती हैं, ‘‘फोन तो बहुतेरे आते हैं, लेकिन मैं जाऊं कैसे… डायबिटीज है तो बिना हिले बैठ नहीं सकती. तिस पर गले के आपरेशन ने चेहरा बिगाड़ दिया. बदन पर अब मांस भी नहीं. न्यूड बैठती तो बच्चे मुझे सब से खूबसूरत मौडल पुकारते. अब मैं वह कृष्णा नहीं रही. बस, तसवीरें ही बाकी हैं.’’

हमारी भागीदारी: क्या बेटी नेहा अपने अधिकारों को जान पाई?

सामान के बैगों से लदीफदी नेहा जब बाजार से घर लौटी तो पसीने से लथपथ हो रही थी. उसे पसीने से लथपथ देख कर उस की मां नीति दौड़ कर उस के पास गईं और उस के हाथ से बैग लेते हुए कहा,” एकसाथ इतना सारा सामान लाने की जरूरत क्या थी? देखो तो कैसी पसीनेपसीने हो रही हो.”

” अरे मां, बाजार में आज बहुत ही अच्छा सामान दिखाई दे रहा था और मेरे पास में पैसे भी थे, तो मैं ने सोचा कि क्यों ना एकसाथ पूरा सामान खरीद लिया जाए… बारबार बाजार जानाआना भी नहीं पड़ेगा.”

“बाजार में तो हमेशा ही अच्छाअच्छा सामान दिखता है. आज ऐसा नया क्या था?”

“आज कुछ नहीं था, पर 4 दिन बाद तो है ना,” नेहा ने मुसकराते हुए कहा.

“अच्छा, जरा बताओ तो 4 दिन बाद क्या है, जो मुझे नहीं पता. मुझे भी तो पता चले कि 4 दिन बाद है क्या?”

“4 दिन बाद दीवाली है मां, इसीलिए तो बाजार सामानों से भरा पड़ा है और दुकानों पर बहुत भीड़ लगी है.”

“तब तो तुम बिना देखेपरखे ही सामान उठा लाई होगी?” नीति ने नेहा से कहा.

“मां, आप भी ना कैसी बातें करती हैं? अब इतनी भीड़ में एकएक सामान देख कर लेना संभव है क्या? और फिर दुकानदार को भी अपनी साख की चिंता होती है. वह हमें खराब सामान क्यों देगा भला?”

“चलो ठीक है. बाथरूम में जा कर हाथपैर धो लो, फिर खाना लगाती हूं,” नीति ने बात खत्म करने के लिए विषय ही बदल दिया.

खाना खा कर नेहा तो अपने कमरे में जा कर गाना सुनने लगी और नीति सामान के पैकेट खोलखोल कर देखने लगी.

उन्होंने सब से पहले कपड़े के पैकेट खोलने शुरू किए. कपड़े के प्रिंट और रंग बड़े ही सुंदर लग रहे थे.

नीति ने सलवारसूट का कपड़ा खोल कर फर्श पर बिछा दिया और उसे किस डिजाइन का बनवाएगी, सोचने लगी. अचानक उस की निगाह एक जगह जा कर रुक गई. उसे लगा जैसे वहां का कपड़ा थोड़ा झीना सा है. कपड़ा हाथ में उठा कर देखा तो सही में कपड़ा झीना था और 1-2 धुलाई में ही फट जाता.

नीति नेहा के कमरे में जा कर बोली,” कैसा कपड़ा उठा कर ले आई हो? क्या वहां पूरा खोल कर नहीं देखा था?”

“मां, वहां इतनी भीड़ थी कि दुकानदार संभाल नहीं पा रहा था. सभी लोग अपनेअपने कपड़े खोलखोल कर देखने लगते, तो कितनी परेशानी होती. यही तो सोचना पड़ता है ना.”

“ठीक है. वहां नहीं देख पाई चलो कोई बात नहीं. अब जा कर उसे यह कपड़ा दिखा लाओ और बदल कर ले आओ. अगर यह कपड़ा ना हो, तो पैसे वापस ले आना.”

नीति की बात सुन कर नेहा झुंझला कर बोली, “आप भी न मां, पीछे ही पड़ जाती हैंं. अभी थोड़ी देर पहले ही तो लौटी हूं बाजार से, अब फिर से जाऊं? रख दीजिए कपड़ा, बाद में देख लेंगे.”

“तुम्हारा बाद में देख लेंगे कभी आता भी है? 3 महीने पहले तुम 12 कप खरीद कर लाई थींं, उन में से 2 कप टूटे हुए थे. अभी तक वैसे ही पड़े हैं. लाख बार कहा है तुम से कि या तो दुकान पर ही चीज को अच्छी तरह से देख लिया करो और या फिर जब घर में आ कर देखो और खराब चीज निकले तो दुकानदार से जा कर बोलना बहुत जरूरी होता है. जाओ और बोलो, उसे बताओ कि तुम ने अच्छी चीज नहीं दी है.”

“ठीक है मां, मैं बाद में जा कर बदल लाऊंगी,” कह कर नेहा मन ही मन बुदबुदाई,”अच्छी मुसीबत है. अब मैं कभी कुछ खरीदूंगी ही नहीं.”

नेहा के पीछेपीछे आ रही मां नीति ने जब उस की बात सुनी, तो उन्हें बहुत गुस्सा आया. उन्होंने गुस्से में नेहा से कहा, “एक तो ठीक से काम नहीं करना और समझाने पर भड़क कर कभी न काम करने की बात करना, यही सीखा है तुम ने.”

“मां, अब दो कपड़ों के लिए मैं बाजार जाऊंगी और फिर वहां से आऊंगी भी तो टैक्सी वाले को कपड़ों से ज्यादा पैसा देना पड़ेगा. यह भी समझ में आता है आप को?”

“नहीं आता समझ… और मुझे समझने की जरूरत भी नहीं है, क्योंकि मैं तो दुकान पर ही सारी चीजें ठीक से देख कर रुपएपैसे का मोलभाव कर तब खरीदती हूं.

“तुम्हारी तरह बिना देखे नहीं उठा लाती और अगर कभी ना भी देख पाऊं तो वापस जा कर दुकानदार को दिखाती हूं और खराब चीज बदलती हूं या पैसे वापस लेती हूं.”

“मां, क्या फर्क पड़ता है एक या दो चीजें खराब निकलने से. अब दुकानदार भी कितना चैक करेगा?”

“कितना चैक करेगा का क्या मतलब है? अरे, उस का काम है ग्राहकों को अच्छा सामान देना. सब तुम्हारी तरह नहीं होते हैं, जो ऐसे ही छोड़ दें. इस तरह तो उस की इतनी बदनामी हो जाएगी कि कोई उस की दुकान पर पैर भी नहीं रखेगा.”

“नहीं मां, ऐसा कुछ नहीं होगा. उस की दुकानदारी ऐसे ही चलती रहेगी, आप देखना.”

“क्यों नहीं चलेगी? जब तेरे जैसे ग्राहक होंगे, लेकिन इस का असर क्या पड़ेगा, यह सोचा है. धीरेधीरे सारे दुकानदार चोरी करना सीखेंगे, खराब सामान बेचेंगे और अपनी गलती भी नहीं मानेंगे.

“आज जो बेईमानी है, भ्रष्टाचार का माहौल बना है ना, इस के जिम्मेदार हम ही तो हैं,” नीति ने गुस्से में कहा.

” कैसे? हम कैसे हैं उस के जिम्मेदार? बताइए ना…”

“तो सुनो, हम गलत काम को प्रोत्साहित करते हैं जैसे तुम बाजार गई हो और कोई सामान खरीद कर ले आए. घर आ कर जब सामान को खोल कर देखा तो सामान खराब निकला. तुम ने उस को उठा कर एक ओर पटका. दूसरा सामान खरीद लिया. अब दुकानदार को कैसे पता चलेगा कि सामान खराब है?

“मान लो, उसे पता भी है, पर फिर भी वह जानबूझ कर खराब सामान बेच रहा हो तो… जब जिस का पैसा बरबाद हो गया, उसे चिंता नहीं है तो दुकानदार को क्या और कैसे दोष दे सकते हैं?”

“मां, सभी दुकानदार तो ऐसा नहीं करते हैं न.”

“अभी नहीं करते तो करने लगेंगे. यही तो चिंता की बात है. इस तरह तो उन का चरित्र ही खराब हो जाएगा. हम हमेशा दूसरों को दोष देते हैं, पर अपनी गलती नहीं मानते.”

“अच्छा मां, अगर दुकानदार न माने तो…?”

“हां, कभीकभी दुकानदार अड़ जाता है. बहुत सालों पहले एक बार मैं परदे का कपड़ा खरीदने गई. कपड़ा पसंद आने पर मैं ने 20 मीटर कपड़ा खरीद लिया. घर आ कर कपड़ा अलमारी में रख दिया. 2 दिन बाद मैं ने जब परदे काटने शुरू किए, तो बीच के कपड़े में चूहे के काटने से छेद बने हुए थे. मैं उसी समय कपड़ा ले कर बाजार गई और दुकानदार को कपड़ा दिखाया. उस ने कपड़ा देखा और कहा, “हमारी दुकान में चूहे नहीं हैं. आप के घर पर चूहे होंगे और उन्होंने कपड़ा काटा होगा… मैं कुछ नहीं कर सकता.”

“मैं ने कहा, “चूहे मेरे घर में भी नहीं हैं. कोई बात नहीं, अभी पता चल जाएगा. आप पूरा थान मंगवा दीजिए. अगर वह ठीक होगा, तो मैं मान जाऊंगी.”

नौकर थान ले कर आया. जब थान खोला गया, तो उस में भी जगहजगह चूहे के काटने से छेद बने थे.

“अब तो दुकानदार क्या कहता, उस ने चुपचाप हमारे पूरे पैसे लौटा दिए.

“अगर मैं कपड़ा वापस करने नहीं जाती, तो दुकानदार अच्छा कपड़ा दिखा कर खराब कपड़ा लोगों को देता जाता. अगर सभी लोग यह ध्यान रखें, तो वे खराब सामान लेंगे ही नहीं, तो दुकानदार भी खराब सामान नहीं बेच पाएगा.

“हम अफसरों और नेताओं को गाली देते हैं, पर यह नहीं सोचते कि जब तक हम बरदाश्त करते रहेंगे, तब तक सामने वाला हमें धोखा देता रहेगा. जिस दिन हम धोखा खाना बंद कर देंगे, धोखा देने वाले का विरोध करेंगे, गलत को गलत और सही को सही सिद्ध करेंगे, उसी दिन से लोग गलत करने से पहले सौ बार सोचेंगे अपनी साख बचाने के लिए. बेईमानी करना छोड़ देंगे और तब ईमानदारी की प्रथा चल पड़ेगी,” इतना कहतेकहते नीति हांफने लगी.

मां को हांफता देख कर नेहा दौड़ कर पानी लाई और बोली, “मां, आप बिलकुल सही कह रही हैं. हमें मतलब उपभोक्ताओं को जागरूक बनना बेहद जरूरी है. जब तक हम अपने अधिकारों के प्रति ध्यान नहीं देंगे, तब तक हमें धोखा मिलता रहेगा.”

“ठीक है बेटी, अब इस बात का खुद भी ध्यान रखना और दूसरों को भी समझाना.”

“जी… मैं अभी वापस दुकान पर जा कर दुकानदार से कपड़ा बदल कर लाती हूं,” इतना कह कर नेहा बाजार चली गई, तो नीति ने चैन की सांस ली.

ये 5 बौलीवुड स्टार्स बने थे टीचर, हिट हुई इनकी क्लास

आज हम 5 ऐसे बौलीवुड स्टार्स की बात करेंगे. जिन्होंने टीचर्स की भूमिका में अपनी अदाकारी से गहरी छाप छोड़ी हैं. ये टीचर्स न केवल वास्तविक जीवन में बल्कि फिल्मी दुनिया में भी प्रभावशाली होते हैं. आइए उन बौलीवुड स्टार्स के शानदार परफौर्मेंस पर एक नजर डालते हैं, जिन्होंने टीचर्स के रियल करेक्टर को पर्दे पर बड़ी ही खूबसूरती से निभाया है और खूब वाहीवाही भी बटोरी. सबसे पहले बात करेंगे बौलीवुड के फेमस स्टार आमिर खान की.

आमिर खान 

मिस्टर परफेक्शनिस्ट यानी आमिर खान ने फिल्म ‘तारे ज़मीन पर’ में पहली बार एक आर्ट टीचर की शानदार भूमिका निभाई. इस फिल्म में आमिर, राम शंकर निकुंभ, एक आर्ट टीचर की भूमिका में नजर आते हैं, जो एक छोटे बच्चे, इशान, को डिस्लेक्सिया से उबरने और उसकी रियल कैपेसिटी को अपनाने में हैल्प करते हैं. आमिर का सहानुभूतिपूर्ण प्रदर्शन (sympathetic display) एक अच्छे टीचर की ट्रांस्फोर्मेटिव पावर की दिल को छू लेने वाली याद दिलाता है.

राजकुमार राव

फिल्म ‘श्रीकांत’ में एक्टर राजकुमार राव ने श्रीकांत बोला का बेहतरीन किरदार निभाया है. कैसे एक नेत्रहीन बिजनेसमैन अपनी लाइफ में कई उतार-चढ़ाव देखता है और आगे बढ़ता है. उनकी इस जर्नी में जो कभी उनका साथ नहीं छोड़ती वह श्रीकांत की टीचर ही होती हैं. फिल्म में एक्टर की टीचर का किरदार ज्योतिका ने निभाया है. इस फिल्म में राजकुमार राव का बेहतरीन अभिनय लाजबाब है.

रानी मुखर्जी 

फिल्म ‘हिचकी’ में रानी मुखर्जी ने एक ऐसी टीचर की भूमिका निभाई है. जो टौरेट सिंड्रोम से पीड़ित होती है. ये फिल्म एक महिला की प्रेरणादायक कहानी बताती है,जो अपनी सबसे बड़ी चुनौती को अपनी सबसे बड़ी ताकत में बदल देती है. यह वह किरदार है जिसे हम सब अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाना चाहेंगे.

ऋतिक रोशन 

विकास बहल द्वारा निर्देशित फिल्म ‘सुपर 30’ बिहार के फेमस मथेमैटिशन आनंद कुमार के जीवन में घटी प्रमुख घटनाओं को पर आधारित है. जो एक व्यक्ति के संघर्ष और जीत को दर्शाती है. इस फिल्म में ऋतिक रोशन ने आनंद कुमार के रोल को पूरी ईमानदारी के साथ प्ले किया, जिसमें एक ऐसे टीचर की ऊंच-नीच को दिखाया गया है जो वंचित छात्रों (disadvantaged students) को सफल बनाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर देता है.

विद्या बालन 

बौलीवुड एक्ट्रेस विद्या बालन ने फिल्म ‘शकुंतला देवी’ में फेमस मथेमैटिशन के शानदार रोल में अपनी चमक बिखेरी. बेंगलुरु में जन्मी शंकुतला देवी सिर्फ देश ही नहीं बल्कि दुनियाभर में ह्यूमन कंप्यूटर के नाम से मशहूर थीं. यह फिल्म न केवल शकुंतला देवी की (intelligence) बुद्धिमत्ता को दिखाती है बल्कि उन्हें एक मां और एक महिला के रूप में भी मानवीय रूप में प्रस्तुत करती है. विद्या का शानदार प्रदर्शन इस जटिल किरदार को जीवंत कर देता है और यह भारत की सबसे प्रतिभाशाली शख्सियतों में से एक है.

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