सीरियल कुसुम फेम नोशीन अली सरदार की फिर से टीवी पर कर रही हैं वापसी, ‘वसुधा’में निभाएंगी ये खास किरदार

जी टीवी का नया फिक्शन शो ‘वसुधा’ दो ऐसी औरतों का दिलचस्प सफर लेकर आ रहा है, जो आग और पानी की तरह एक दूसरे से बिल्कुल अलग हैं! बालाजी टेली फिल्म एकता कपूर के अतिचर्चित शो कुसुम में महज 18 साल की उम्र से लीड रोल कुसुम का क़िरदार निभाने वाली नोशीन अली सरदार जिन्होंने इस शो से अच्छी खासी लोकप्रियता बटोर ली थी . वही नोशीन अब काफी समय बाद एक बार फिर जी टी वी के शो वसुधा से छोटे पर्दे पर वापसी कर रही हैं. इससे पहले नोशीन ने कुछ सीरियल और फिल्मे भी की हैं.

नोशीन पहली ऐसी टीवी अदाकारा थी जिन्होंने पाकिस्तानी फिल्म में भी काम किया है.. लेकिन अब जाकर वसुधा सीरियल के रूप में उनको मुख्य भूमिका वाला अपना पसंदीदा किरदार निभाने का मौका मिला है नोशीन इस सीरियल में दबंग बौस लेडी चंद्रिका सिंह चौहान के रोल में वापसी कर रही हैं जबकि प्रिया ठाकुर एक मासूम जज्बाती और प्यारी वसुधा सोलंकी के रूप में अपना पहला लीड रोल निभाने जा रही हैं.

जी टीवी के इस नए शो वसुधा की कहानी है ऐसी कहानी है जो इससे पहले भारतीय टेलीविजन पर कभी नहीं दिखाई गई . इस दिलचस्प कहानी में दो ऐसी औरतों का बड़ा अनोखा रिश्ता है, जिनकी दुनिया एक दूसरे से बिल्कुल अलग हैं. फिर दोनों के रास्ते आपस में टकराते हैं जिससे विचारों, आदतों और सामाजिक एवं आर्थिक पृष्ठभूमियों का भी टकराव होता है यह भारतीय टेलीविजन की किसी भी कहानी से बिल्कुल अलग है.

इस शो में नौशीन अली सरदार, चंद्रिका सिंह चौहान के दमदार रोल में नजर आएंगी, एक ऐसी महिला जिनकी लोग बहुत इज्जत भी करते हैं और जिनसे डरते भी हैं. अपने दम पर अपना वजूद बनाने वाली उदयपुर की चंद्रिका अपने खुद के बनाए सख्त नियमों के साथ अपने बिजनेस का साम्राज्य चलाती हैं.वो इंसाफ पसंद करती हैं और सही बात के हक में खड़ी रहती हैं. वो एक नेक महिला हैं लेकिन कभी किसी दबाव के आगे नहीं झुकतीं. चंद्रिका किसी भी तरह की नाफरमानी बर्दाश्त नहीं करतीं और ये चाहती हैं कि उनके बनाए अनुशासन और नियमों का सख्ती से पालन किया जाए, जिन्हें वो सफलता का आधार मानती हैं.वो जज़्बातों से ज्यादा नियमों को अहमियत देती हैं और बड़ी दबंग महिला हैं, जिन्होंने बहुत इज्जत कमाई है. दूसरी ओर, प्रिया ठाकुर, वसुधा के किरदार में अपना पहला लीड रोल निभाने जा रही हैं. वसुधा एक मासूम, बेपरवाह लड़की है जो शहरी जिंदगी की कठिनाइयों से अनजान है. एक विश्वास करने वाले दिल के साथ वो लोगों की अच्छाइयों में यकीन रखती है. और इसी यकीन के साथ वसुधा चंद्रिका को प्रभावित करने की कोशिश करती है जिससे वो अक्सर मुश्किल में पड़ जाती है, और इन दोनों अलगअलग इंसानों के बीच एक बड़ा दिलचस्प और जबरदस्त  समीकरण बनता है.

इन दोनों अलगअलग व्यक्तित्वों का आपसी टकराव इस कहानी को बेहद दिलचस्प बना देता है ये कहानी बताती है कि दो औरतें, जो आग और पानी जैसी मालूम होती हैं, और जिनमें कुछ भी एक जैसा नहीं है, किस तरह एक साथ आती हैं और बड़े हैरान कर देने वाले तरीकों से एक दूसरे की जिंदगी पर असर डालती हैं.

नौशीन अली सरदार ने कहा, ‘‘जब यह शो मेरे पास आया तो मुझे इस शो का कौन्सेप्ट उन सभी चीजों से अलग लगा, जो आमतौर पर टीवी पर दिखाए जाते हैं, इसलिए मैं इस रोल को इंकार न कर सकी जिसमें एक एक्टर के लिए अपनी रेंज दिखाने का जबर्दस्त स्कोप है. चंद्रिका सिंह चौहान का मेरा किरदार उन सभी किरदारों से अलग है जो मैंने अब तक निभाए हैं. वो ताकत की एक बेजोड़ मिसाल हैं, उसने अपने दम पर अपना वजूद बनाया है और एक अल्टीमेट बॉस लेडी है. मुझे उम्मीद है कि मेरे फैंस मुझे इस नए अवतार में पसंद करेंगे.”

वसुधा 16 सितंबर 2024 से ज़ी टीवी पर शुरू होने जा रहा है, जिसका प्रसारण हर सोमवार से शुक्रवार रात 10ः30 बजे होगा.

मलाइका अरोड़ा के पिता अनिल अरोड़ा ने छत से कूदकर दी जान, ‘बचपन में मां के साथ रहती थी ऐक्ट्रैस’

बौलीवुड गलियारे से एक दुखद खबर है. रिपोर्ट्स के अनुसार, मलाइका अरोड़ा के पिता अनिल अरोड़ा ने सुसाइड कर लिया है. यह घटना आज सुबह 9 बजे की बताई जा रही है. खबरों के अनुसार, मलाइका के पिता बांद्रा में अपने घर की 6ठी मंजिल से कूद कर आत्महत्या कर ली है. इस घटना के बाद मलाइका और उन के परिवार वाले सदमें में हैं.

क्यों किया सुसाइड

हालांकि अभी तक अनिल अरोड़ा के सुसाइड का कारण सामने नहीं आया है. इस दुख की घड़ी में बौलीवुड इंडस्ट्री के नामचीन लोग ऐक्ट्रैस के पिता के घर जा रहे हैं. वहीं, सोशल मीडिया पर मलाइका का वीडियो भी सामने आया है, जिस में ऐक्ट्रैस रोते हुए पिता के घर जाती हुई दिख रही हैं. मलाइका के अलावा बहन अमृता अरोड़ा भी नजर आईं.

अर्जुन कपूर भी दिखे

मलाइका अरोड़ा के ऐक्स बौयफ्रैंड अर्जुन कपूर भी इस दुख की घड़ी में वहां जाते हुए दिखे. ऐक्ट्रैस के ऐक्स ससुराल वाले भी उन के घर पहुंचे हैं। सलीम खान, अरबाज और सोहेल खान को भी मलाइका के घर देखा गया.

मलाइका अरोड़ा के पेरैंट्स का हो चुका था तलाक

एक इंटरव्यू के अनुसार, मलाइका अरोड़ा ने बताया है कि उन के मातापिता का तलाक हो चुका था जब वह महज 11 साल की थी. वे दोनों अलग रहते थे. मलाइका और अमृता अपनी मां जायस के साथ रहती थीं. रिपोर्ट के अनुसार, उन की मां मलयाली क्रिश्चन हैं और पिता पंजाबी हिंदू थे.

हालांकि कई लोग मलाइका की मां जायस के बारे में उन की तसवीरों के जरीए जानते होंगे, लेकिन उन के पिता अनिल अरोड़ा के बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं.

मलाइका का बचपन आसान नहीं था

उस इंटरव्यू में मलाइका ने यह भी जिक्र किया था,”मेरा बचपन बहुत अच्छा था, लेकिन यह आसान नहीं था.”

ऐक्ट्रैस ने कहा कि मेरे मातापिता के अलग होने से मुझे अपनी मां को एक नए और अलग नजरिए से देखने का मौका मिला.

उन्होंने आगे कहा, “मैं ने एक स्थिर कार्यनीति सीखी और पूरी तरह से स्वतंत्र बनने के लिए हर रोज वह सब करने के लिए उस महत्त्व को समझा. मैं अभी भी पूरी तरह से स्वतंत्र हूं। मैं अपनी स्वतंत्रता को महत्त्व देती हूं और अपनी शर्तों पर जीती हूं.

*फिल्म ‘हाउसफुल 5’ में मलाइका निभाएंगी खास रोल

मलाइका अरोड़ा के वर्कफ्रंट की बात करें तो ऐक्ट्रैस को आखिरी बार आयुष्मान खुराना और जयदीप अहलवत अभिनीत फिल्म एन ऐक्शन हीरो के गाने ‘आप जैसा कोई…’ में देखा गया था. वह ‘तेरा ही खयाल’ म्यूजिक वीडियो में भी नजर आई थीं.

खबरों के अनुसार, मलाइका अरोड़ा अपकमिंग मल्टीस्टारर ‘हाउसफुल 5’ में एक विशेष कैमियो भूमिका में भी दिखाई देंगी.

शादी बाद भी मेरे पति का अपनी ऐक्स गर्लफ्रैंड से संबंध है…

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

हाल ही में मेरी शादी हुई है. मेरे पति काफी सपोर्टिव हैं, लेकिन वे अपनी ऐक्स गर्लफ्रैंड से बात करते हैं और वह घर भी आती है. हालांकि मेरे हसबैंड कहते हैं कि अब वह सिर्फ मेरी दोस्त है और मेरा उस से कोई संबंध नहीं है, लेकिन जब वह घर आती है, तो मेरे हसबैंड सारा काम छोड़ कर उस से बातें करने लगते हैं और उन का ध्यान मेरे से ज्यादा ऐक्स गर्लफ्रैंड पर रहता है. वे उस के घर तक भी छोड़ने जाते हैं. मुझे लगता है कि मेरे हसबैंड मुझे धोखा दे रहे हैं। वे अभी भी अपने ऐक्स गर्लफ्रैंड से प्यार करते हैं और मुझ से शादी हो गई है तो जबरदस्ती मेरे साथ रहते हैं. मैं क्या करूं?

Distressed woman on couch indicating relationship tension or emotional crisis

जवाब

आप की समस्या बहुत ही उलझनभरी है. एक तरफ आप के पति ने शादी कर ली है, मगर फिर भी अपनी ऐक्स गर्लफ्रैंड से भी मिलते हैं. यहां तक कि वह आप के घर भी आती है.

आप ने यह भी बताया है कि आप के हसबैंड सपोर्टिव हैं. इस स्थिति में आप को बहुत समझदारी से काम लेना होगा.

सब से पहले आप अपने हसबैंड पर प्यार से हक जताएं और उन्हें यह एहसास दिलाएं कि आप उन से बेहद प्यार करती हैं. बातों ही बातों में हसबैंड को समझाएं कि शादी के बाद ऐक्स गर्लफ्रैंड से मिलनाजुलना सही नहीं है. इस से आपदोनों के वैवाहिक रिश्तों में खटास पैदा होगी.

आप अपने हसबैंड से यह भी कहें कि ऐक्स गर्लफ्रैंड को घर पर न बुलाएं. अगर यह बातें आप के हसबैंड मान लेते हैं, तो आप के रिश्ते के लिए ग्रीन सिग्नल है.

रिश्ते को इस तरह बनाएं रोमांटिक

कई बार समय की कमी के कारण कपल एकदूसरे के साथ क्वालिटी टाइम नहीं बिता पाते हैं, ऐसे में आप घर पर ही डिनर टेबल को अच्छे से डैकोरेट करें. बाहर से अपना मनपसंद खाना और्डर करें. आप का समय भी बचेगा. आप अपने पार्टनर को समयसमय पर एहसास दिलाएं कि आप उन के लिए बहुत खास हैं.  कई बार लोग रिश्ते में बोरियत फील करने लगते हैं. आजकल तो मोबाइल का जमाना है, आप मैसेज या वीडियो के जरीए अपने दिल की बात पार्टनर से कह सकते हैं। उन के लिए यह सरप्राइज भी होगा और रिश्ते में रोमांस बरकरार रहेगा.

शादी के बाद रिश्ते को और भी खास बनाने के लिए हैल्दी फ्लर्टिंग जरूर करना चाहिए. आप अपने पार्टनर के लुक, फैशन सेंस की तारीफ करें. ऐसा करने से आप के पार्टनर को गुड फील होगा और रिश्ते में नयापन बना रहेगा. लाइफ में रोमांस भरने के लिए साथ बैठ कर पोर्न मूवी देखें, इस से आप का सैक्सुअल लाइफ भी स्ट्रौंग होगा.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर पर 9650966493 भेजें. 

या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

कभी नीमनीम कभी शहदशहद : शिव से क्यों प्यार करने लगी अपर्णा

इतनी गरमी में अपर्णा को किचन में खाना पकाते देख शिव को अपनी पत्नी पर प्यार हो आया. वह पास पड़ा तौलिया उठा कर उस के चेहरे का पसीना पोंछने लगा तो अपर्णा मुसकरा उठी.

‘‘मुसकरा क्यों रही हो? देखो, गरमी कितनी है? मैं ने कहा था बाहर से ही खाना और्डर कर मंगवा लेंगे. लेकिन तुम सुनती कहां हो.

चलो, अब लाओ, सब्जी मैं काट देता हूं, तुम जा कर थोड़ी देर ऐसी में बैठो,’’ उस के हाथ से चाकू लेते हुए शिव बोला.

‘‘अरे नहीं, इस की कोई जरूरत नहीं है पति देव. मैं कर लूंगी,’’ शिव के हाथ से चाकू लेते हुए अपर्णा बोली, ‘‘आप दीदी को फोन लगा कर पूछिए वे लोग कब तक आएंगे. अच्छा, रहने दीजिए. मैं ही पूछ लेती हूं. आप एक काम करिए, वह हमारे घर के पास जो ‘राधे स्वीट्स’ की दुकान है न वहां से

1 किलोग्राम अंगूर रबड़ी ले आओ. ‘राधे स्वीट्स’ की मिठाई ताजा होती है. और हां बच्चों के लिए चौकलेट आइसक्रीम भी लेते आइएगा.’’

‘‘राधे स्वीट्स से मिठाई पर उस की दुकान की मिठाई तो उतनी अच्छी नहीं होती. एक काम करता हूं बाजार चला जाता हूं वहीं से मिठाई लेता आऊंगा मैं,’’ शिव ने कहा. लेकिन अपर्णा कहने लगी कि क्यों बेकार में उतनी दूर जा कर टाइम बेस्ट करना, जब यहीं घर के पास ही अच्छी मिठाई की दुकान है.

‘‘कोई अच्छी दुकान नहीं है उस की. पिछली बार याद नहीं, कितनी खराब मिठाई दी थी उस ने? फेंकनी पड़ी थी.’’

‘‘अब एक ही बात को कितनी बार रटते रहोगे तुम? मैं कह रही हूं न अच्छी मिठाई मिलती वहां,’’ अपर्णा थोड़ी इरिटेट हो गई.

‘‘अच्छा भई ठीक है. मैं वहीं से मिठाई ले आता हूं,’’ अपर्णा का मूड भांपते हुए शिव बोला. लेकिन उस का मन बाजार से जा कर मिठाई लाने का था, ‘‘और भी कुछ सामान मंगवाना है तो बोल दो वरना बाद में कहोगी यह रह गया वह

रह गया.’’

‘‘नहीं और कुछ नहीं मंगवाना. बस जो कहा है वह ले आओ,’’ बोल कर अपर्णा अपनी दीदी को फोन लगाने लगी. पता चला कि उन्हें आने में अभी घंटा भर तो लग जाएगा. ‘ठीक ही है चलो’ फोन रख बड़बड़ाते हुए वह किचन में चली गई. तब तक शिव मिठाई और आइसक्रीम ले कर आ गया तो अपर्णा ने उसे फ्रिज में रख दिया ताकि गरमी की वजह से वह खराब न हो जाए.

दरअसल, आज अपर्णा के घर खाने पर

उस की दीदी और जीजाजी आने वाले हैं.

इसलिए वह सुबह से ही किचन में बिजी है. अपर्णा की दीदी बैंगलुरु में रहती है. बच्चों की छुट्टियों में वह यहां अपने मायके आई हुई है. इसलिए शिव और अपर्णा ने आज उन्हें अपने घर खाने पर इन्वाइट किया और उन के लिए ही ये सारी तैयारियां हो रही हैं. अपर्णा का मायका यहीं दिल्ली में ही है. 75 साल के उस के पापा और 70 साल की उस की मां दिल्ली के आनंद विहार में 2 कमरों के घर में रहते हैं. अपर्णा का एक भाई भी है जो अपने परिवार के साथ कोलकाता में रहता है और साल में एक बार यहां अपने मांपापा से मिलने आता है लेकिन अकेले. अपर्णा का भाई रेलवे में गार्ड है. वहां ही उस ने एक बंगाली लड़की से शादी कर ली और फिर वहीं का हो कर रह गया.

अपर्णा का पति शिव सरकारी विभाग में ऊंची पोस्ट पर कार्यरत है. उसे औफिस की तरफ से ही रहने के लिए घर और गाड़ी सब मिला हुआ है. इन के 2 बच्चे हैं.

13 साल की बेटी रिनी और 8 साल का बेटा रुद्र. दोनों बच्चे दिल्ली में पढ़ते हैं. अभी अपर्णा के बच्चों का भी वेकेशन चल रहा है इसलिए दोनों बच्चे इस बात को ले कर खुश हैं कि उन के मौसीमौसा आने वाले हैं और उन के लिए ढेर सारे गिफ्ट्स भी ले कर आएंगे. अब बच्चे तो बच्चे ही हैं. लालहरी पन्नी में बंधा गिफ्ट्स देख कर खुशी से उछल पड़ते हैं.

मेहमानों के आने का टाइम हो चुका था. वैसे खाना भी तैयार ही था. अपर्णा ने सारा खाना अच्छे से डाइनिंगटेबल पर सजा दिया और सलाद काट कर फ्रिज में रख दिया. पूरा घर खाने की खुशबू से महक रहा था. घर में खाने की बहुत सारी प्लेटें हैं, पर शिव ने जिद पकड़ ली कि आज नए डिनर सैट में मेहमानों को खाना खिलाया जाए. आखिर उस ने इतना महंगा डिनर सैट खरीदा किसलिए है? सजा कर रखने के लिए तो नहीं?

शिव कहीं गुस्सा न हो जाए इसलिए अपर्णा ने वह नया डिनर सैट निकाल लिया. अपर्णा के मायके वालों के आने से शिव बहुत खुश था.

वैसे भी शिव को मेहमाननवाजी करना बहुत पसंद है. अपर्णा तो इस बात को ले कर बहुत खुश थी कि इतने दिनों बाद उस की दीदी से उस का मिलना होगा.

अपर्णा सुबह उठ कर पहले पूरे घर की डस्टिंग कर अच्छे से सब व्यवस्थित कर खाना पकाने में लग गई थी. मगर हाल में अभी भी इधर अखबार, उधर किताबें फैली हुई थीं. सोफा और कुशन भी अस्तव्यस्त थे. उस ने रिनी से कहा भी कि वह जरा सोफा, कुशन सही कर दे. किताबें, अखबार समेट कर उन्हें अलमारी में रख दे. मेहमान आएंगे तो क्या सोचेंगे. मगर उसे तो अपने मोबाइल से ही फुरसत नहीं है.

आज के बच्चों में मोबाइल फोन की ऐसी लत लग गई है कि पूछो मत. आलतूफालतू रील देख कर ‘हाहा’ करते रहते हैं. लेकिन यह नहीं सम  झते कि ये सब उन की शारीरिक और मानसिक सेहत पर कितना बुरा प्रभाव डाल रहा है. अब रुद्र को ही देख लो. कैसे छोटीछोटी

बातों पर चिड़ जाता है और रिनी मैडम को तो कुछ याद ही नहीं रहता. कुछ भी पूछो, जबाव आता है मु  झे नहीं पता. ये सब मोबाइल फोन का ही तो असर है.

खैर, अपर्णा   झटपट खुद ही हाल समेटने लगी. मन तो किया उस का रिनी को कस कर डांट लगाए और कहे कि जब देखो मोबाइल से चिपकी रहती हो. जरा मदद नहीं कर सकती मेरी? लेकिन यह सोच कर चुप रह गई कि

बेकार में शिव का पारा गरम हो जाएगा. शिव की आदत है छोटीछोटी बातों को ले कर चिल्लाने लगते हैं. पूरा घर सिर पर उठा लेते हैं जैसे न जाने क्या हो गया.

‘‘अरे, अब ये क्या करने लग गई तुम. रिनी कहां है? कहो उस से कर देगी,’’ अपर्णा को सोफा ठीक करते देख शिव बोला, ‘‘रुको, मैं बुलाता हूं उसे. रिनी… इधर आओ,’’ शिव ने जोर की दहाड़ लगाई, तो रिनी भागीभागी आई.

‘‘चलो, हौल अच्छे से ठीक कर दो और देखो फ्रिज में पानी की सारी बोतलें भरी हुई हैं या नहीं? और अपर्णा तुम जा कर जल्दी से तैयार हो जाओ. मेरा मतलब है कपड़े चेंज कर लो न. अच्छा नहीं लग रहा है.’’

‘‘अब इन कपड़ों में क्या खराबी है,’’ शिव की बातों से अपर्णा को चिड़ हो आई कि यह

पति है या उस की सास? जब देखो पीछे ही पड़ा रहता है.

‘‘अब सोचने क्या लग गई. जाओ न. आते ही होंगे वे लोग,’’ शिव ने फिर टोका.

‘‘अच्छा ठीक है,’’ कह कर अपर्णा कमरे में चली गई और शिव खाने की व्यवस्था देखने लगा कि सबकुछ ठीक तो है न. कभीकभी शिव का औरताना व्यवहार अपर्णा के मन में चिड़चिड़ाहट पैदा कर देता.

छुट्टी के दिन शिव पूरी किचन की तलाशी लेगा कि फ्रिज में बासी खाना तो नहीं पड़ा है? किचन में कोई चीज बरबाद तो नहीं हो रही है? आटा, दाल, तेल, मसाला वगैरह का डब्बा खोलखोल कर देखेगा कि कोई चीज कम तो नहीं हो गई है? मन करता है अपर्णा का कि कह दे कि जो काम तुम्हारा नहीं है उस में क्यों घुस रहे हो लेकिन वही लड़ाई  झगड़े के डर से कुछ बोलती नहीं है.

दरवाजे की घंटी बजी तो शिव ने ही दरवाजा खोला और आदर के साथ मेहमानों को घर के अंदर ले आया. तब तक अपर्णा सब के लिए गिलासों में ठंडा ले आई और सब के हाथ में गिलास पकड़ाते हुए वह भी अपना गिलास ले कर अपनी दीदी की बगल में बैठ गई. दोनों बहनें कितने दिनों बाद मिली थीं तो बातों का सिलसिला चल पड़ा.

उधर शिव और अपर्णा के जीजाजी भी यहांवहां की बातें करने लगें. बच्चे एक कमरे में बैठ कर टीवी का मजा ले रहे थे और बीच में आआ कर फ्रिज से कभी आइसक्रीम तो कभी ठंडा और आलू चिप्स ले कर चले जाते. बातों में लगी अपर्णा रिनी और रुद्र को इशारे से मना करती कि बस अब ज्यादा नहीं. खाना भी तो खाना है न? उस की दीदी उसे टोकती कि जाने दो न बच्चे हैं. ऐंजौय करने दो उन्हें. खूब हाहाहीही चल रही थी. घर का माहौल काफी खुशनुमा बना हुआ था. शिव ने इशारे से अपर्णा से कहा कि अब खाना लगा दो. भूख लगी होगी सब को.

सब लोगों ने खाना खाया. खाने के बाद अपर्णा सब के लिए अंगूर रबड़ी ले आई.

सब से पहले अंगूर रबड़ी का कटोरा शिव ने उठाया. लेकिन पहला चम्मच मुंह में डालते हुए उस का मूड खराब हो गया. उस ने अंगूर रबड़ी का कटोरा इतनी जोर से टेबल पर पटका कि छलक कर मिठाई टेबल पर फैल गई. अपर्णा ने सहमते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘पूछ रही हो क्या हुआ? तुम से कहा था

न जा कर बाजार से मिठाई ले आता हूं लेकिन नहीं, तुम्हें तो बस अपनी ही चलानी होती है. किसी की सुनती हो? लो अब तुम्हीं खाओ यह घटिया मिठाई,’’ मिठाई का पूरा डोंगा अपर्णा की तरफ बढ़ाते हुए शिव जोर से चीखते हुए कहने लगा कि यह औरत कभी मेरी बात नहीं सुनती. अनपढ़गंवार की तरह किसी की भी बातों में आ जाती है.

अपर्णा को जिस बात का डर था वही हुआ. उस ने मेहमानों के सामने ही अपना रंग दिखा दिया. शिव के अचानक से ऐसे व्यवहार से अपर्णा की दीदी और जीजाजी दोनों अवाक रह गए. बच्चे भी डर कर कमरे में भाग गए और अपर्णा को सम  झ नहीं आ रहा था अब वह क्या करे? कैसे संभाले बात को?

‘‘वह दीदी गलती मेरी ही है. शिव ने कहा था कि बाजार से मिठाई ले आते हैं लेकिन मैं ने ही…’’  दांत निपोरते हुए अपर्णा को सम  झ नहीं आ रहा था कि क्या बोले. किस तरह शिव को शांत कराए.

अपर्णा ने इशारे से शिव को कई बार सम  झाना चाहा कि मेहमान क्या सोचेंगे. चुप हो जाओ. मगर शिव कहां कुछ सुनने वाला था. उसे तो जब गुस्सा आता है, पूरा घर सिर पर उठा लेता है. यह भी नहीं सोचता कि सामने बैठे लोग क्या सोचेंगे. गुस्से पर तो उस का कंट्रोल ही नहीं रहता. लेकिन हां गरजते बादल की तरह वर्षा कर वह शांत भी हो जाता है. लेकिन ऐसी शांति किस काम की जो सब तहसनहस कर जाए. मेहमान सारे चले गए लेकिन अब अपर्णा का खून खौल रहा था.

गुस्सा शांत होते ही शिव को अपनी गलती का एहसास हुआ और उस के लिए उस ने अपर्णा से माफी भी मांगी लेकिन अपर्णा ने उस की बातों का कोई जवाब दिए बिना कमरे में जा कर अंदर से दरवाजा लगा लिया. अब गुस्सा तो आएगा ही न? इतनी गरमी में बेचारी सुबह से कितनी मेहनत कर रही थी और इस शिव ने उस की सारी मेहनत पर पानी फेर दिया. उस के मायके वालो के सामने उसे जलील कर दिया. क्या अच्छा किया उस ने?

शिव की आदत है राई का पहाड़ बनाने की. छोटीछोटी बातों पर वह चीखनेचिल्लाने लगता है कि ऐसा क्यों हुआ. वैसा क्यों नहीं हुआ. अब तो बच्चे भी सम  झने लगे हैं अपनी पापा की आदत को कि पता नहीं कब वे किस बात पर, कहां, किस के सामने चिल्ला पड़ेंगे. माना अपर्णा से गलती हुई लेकिन शिव को इतना बोलने की क्या जरूरत थी? बाद में भी तो वह अपर्णा पर गुस्सा निकाल सकता था?

अपर्णा ने क्याक्या नहीं सोच रखा था कि खाना खाने के बाद शाम को सब मिल कर पास ही जो वाटरफौल है, वहां जाएंगे. फिर ईको पार्क चलेंगे. अभी नया जो आइसक्रीम पार्लर खुला है, वहां जा कर आइसक्रीम खाएंगे. खूब मस्ती करेंगे लेकिन इस शिव ने सब गुड़गोबर कर के रख दिया. ऐसा उस ने कोई पहली बार नहीं किया है. पहले भी कई बार वह ऐसा कर चुका है जब लोगों के सामने अपर्णा को शर्मिंदा होना पड़ा है.

कुछ दिन की ही बात है जब अपर्णा शिव के साथ मौल में अपने लिए कपड़े खरीदने गई थी. वह भी शिव के जिद्द करने पर वरना तो वह औनलाइन ही सूटसाड़ी वगैरह खरीद कर पहनना पसंद करती है. इस से समय तो बचता ही है,

दाम भी रीजनेबल होता है. सब से अच्छी बात यह कि अगर आप को चीजें पसंद न आएं तो आप लौटा भी सकते हैं. पैसा तुरंत आप के अकाउंट में आ जाता है. लेकिन मौल में

10 चक्कर लगवाएंगे अगर कोई चीज लौटानी हो तो. लेकिन यह बात शिव को सम  झासम  झा कर वह थक चुकी थी.

मौल में उस ने अपने लिए एक कुरती पसंद कर जब उसे पहन कर वह शिव को दिखाने आई तो सब के सामने ही उस ने उसे   झाड़ दिया यह कह कर कि अपर्णा में कलर सैंस जरा भी नहीं है. गंवारों की तरह लालपीलाहरा रंग ही पसंद आता है इसे.

शिव की बात पर वहां खड़े सारे लोग अपर्णा को देखने लगे जैसे वह सच में गंवार महिला हो. उफ, कितना बुरा लगा था. उसे उस वक्त रोना आ रहा था जब चेंजिंग रूम के बाहर खड़ी दोनों लड़कियां उसे देख कर हंसने लगीं. शर्म के मारे अपर्णा कुछ बोल नहीं पाई पर उसी वक्त वह गुस्से में मौल से बाहर निकल आई और जा कर गाड़ी में बैठ गई.

वह भी तो पलट कर जवाब दे सकती थी कि शिव के काले रंग पर कोई कलर सूट नहीं करता पर वह उस की जैसी नहीं है. ‘दिमाग से पैदल इंसान’ अपर्णा ने दांत भींच लिए. गुस्से के मारे उस के तनबदन में आग लग रही थी. मन कर रहा था पैदल ही घर चली जाए. लेकिन बाहर वह कोई तमाशा खड़ा नहीं करना चाहती थी इसलिए पूरे रास्ते खिड़की से बाहर देखती रही और अपने आंसू पोंछती हुई सोचती रही कि आखिर शिव अपनेआप को सम  झता क्या है. पति है तो कुछ भी बोलेगा? क्या उस की कोई इज्जत नहीं है?

इधर शिव को अपनी बात पर बहुत पछतावा हो रहा था कि सब के सामने उसे अपर्णा से ऐसे बात नहीं करनी चाहिए थी, ‘‘अपर्णा, सुनो न, मेरे कहने का वह मतलब नहीं था. मैं तो बस यह कह रहा था कि तुम पर…’’ शिव ने सफाई देनी चाही पर अपर्णा उस की बात सुने बिना बालकनी में चली गई. शिव उस के पीछेपीछे गया पर उस ने जोर से दरवाजा लगा लिया यह कहते हुए कि अगर उस ने ज्यादा परेशान किया तो वह यह घर छोड़ कर कहीं चली जाएगी.

उस दिन के बाद आज फिर उस ने मेहमानों के सामने अपनी मूर्खता का प्रदर्शन दे दिया. अरे, क्या सोच रहे होंगे वे लोग उस के बारे में यह भी नहीं सोचा शिव ने. ऐसे तो घर में वह बहुत केयरिंग और लविंग पति बन कर घूमता है. घर के कामों में भी वह अपर्णा की मदद कर दिया करता है, पत्नी व बच्चों को बाहर घुमाने और होटल में खिलाने का भी वह शौकीन है, मगर कभीकभी पता नहीं उसे क्या हो जाता है. अपनेआप को बहुत महान, ज्ञानवान सम  झने लगता और अपर्णा को मूर्खगंवार. लोगों के सामने डांट कर कहीं वह यह तो साबित नहीं करना चाहता कि वह मर्द है और अपर्णा औरत.

अपर्णा की दीदी का फोन आया लेकिन उस ने उस का फोन नहीं उठाया क्योंकि उस का मूड पूरी तरह से खराब हो चुका था, सो वह कमरे की लाइट औफ कर के सो गई.

खाना तो सुबह का ही कितना सारा बचा हुआ था तो बनाना तो कुछ था नहीं और अपर्णा की भूख वैसे भी मर चुकी थी. दोनों बच्चे भी अपने कमरे में एकदम शांत, चुपचाप बैठे थे. डर के मारे दोनों मोबाइल भी नहीं चला रहे थे कि पापा डांटेंगे.

इधर शिव अकेले हौल में सोफे पर अधलेटा न जाने क्या सोच रहा था. यही सोच रहा होगा कि बेकार में ही उस ने अपर्णा का मूड खराब कर दिया. बेचारी सुबह से कितनी मेहनत कर रही थी और जरा सी बात के लिए उस ने सब के सामने उसे क्या कुछ नहीं सुना दिया. शिव के मन ने उसे धिक्कारा.

अब अपर्णा के सामने जाने की तो शिव की हिम्मत नहीं थी इसलिए उस ने बच्चों के कमरे में   झांक कर देखा. रिनी लेटी हुई थी और रुद्र कुरसी पर बैठा खिड़की से बाहर   झांक रहा था. अपर्णा के कमरे में जब   झांक कर देखा तो वह उधर मुंह किए सोई हुई थी. शिव को पता

है वह सोई नहीं है. शायद रो रही होगी या कुछ सोच रही होगी. यही कि शिव कितना बुरा इंसान है. ‘हां, बहुत बुरा हूं मैं. बेकार में मैं ने अपनी बीवी का मूड खराब कर दिया,’ अपने मन में सोच शिव अपर्णा का मूड ठीक करने का उपाय सोचने लगा.

‘‘रिनी, बेटा, जरा 1 कप चाय बनाओ तो,’’ अपर्णा के कमरे की तरफ मुंह कर के शिव बोला ताकि वह सुन सके कि शिव को चाय पीनी है. लेकिन डाइरैक्ट अपर्णा से बोलने की उस की हिम्मत नहीं पड़ रही थी इसलिए बेटी को आवाज लगाई, ‘‘बेटा, चाय में जरा चीनी डाल देना, लगता है शुगर कम हो गई. सिर में दर्द हो रहा है मेरे,’’ यह बात भी उस ने अपर्णा को सुना कर कही ताकि वह दौड़ी चली आए और पूछे कि क्या हुआ. सिरदर्द क्यों कर रहा है तुम्हारा? तबीयत तो ठीक है तुम्हारी? लेकिना ऐसा कुछ नहीं हुआ क्योंकि अपर्णा को सब पता था कि शिव सिर्फ नाटक कर रहा है.

इधर शिव मन ही मन छटपटा रहा था अपर्णा से बात करने के लिए. वह उस से माफी मांगने के लिए भी तैयार था. आज अपर्णा का गुस्सा 7वें आसमान पर था.

अपर्णा ने फोन कर रिनी को चुपके से सम  झा दिया कि वह और रुद्र खाना खा लें. उसे उठाने न आएं. इधर शिव इस बात से परेशान हो रहा था कि अपर्णा अब तक भूखी है. वैसे भूख तो उसे भी लगी थी. मगर अकेले खाने की उस की आदत नहीं है. शिव खुद को ही कोसे जा रहा था कि उस ने ऐसा क्यों किया. रिनी से कहा कि वह जा कर मम्मी को खाने के लिए उठाए पर रिनी कहने लगी कि मम्मी बहुत गुस्से में हैं इसलिए वह उठाने नहीं जाएगी.

अब शिव क्या करे सम  झ नहीं आ रहा था उसे. उसे पता है अपर्णा को जल्दी गुस्सा नहीं आता. लेकिन जब आता है, फिर वह किसी के बाप की नहीं सुनती. लेकिन शिव इस के एकदम उलट है. जितनी जल्दी उसे गुस्सा आता है उतनी जल्दी भाग भी जाता है. उस की एक खूबी यह भी है कि भले ही वह अपर्णा से कितना भी लड़  झगड़ ले पर कभी उस से बात बंद नहीं करता. लेकिन अपर्णा कईकई दिनों तक शिव से बात नहीं करती. शिव का कहना होता है कि भले ही उस की गलती के लिए अपर्णा और कुछ भी करे पर बात बंद न करे. उसे जिंदगी वीरान लगने लगती है अपर्णा के बिना.

बहुत प्यार करता है वह अपनी पत्नी से. मगर उस का अपने गुस्से पर ही कंट्रोल नहीं रहता तो क्या करे बेचारा. खैर, अब जो है सो है. गलती हुई शिव से. मगर अब वह उस बात को पकड़े बैठा तो नहीं रह सकता न और कई बार माफी तो मांगी न उसने अपर्णा से? अब क्या करे जान दे दे अपनी? अपने मन में सोच शिव ने अपना माथा   झटका और अपने रोज की दिनचर्या में लग गया.

मगर अपर्णा के दिमाग में अब भी वही सब बातें चल रही थीं कि शिव ने ऐसा क्यों किया? उस की दीदी, जीजाजी क्या सोचा रहे होंगे उन के बारे में वगैरहवगैरह.

यह बात बिलकुल सही है कि पुरुषों के मुकाबले औरतें ज्यादा टैंशन लेती हैं. ऐसा क्यों हुआ? वैसा क्यों नहीं हुआ, जैसी बातें उन के दिलोदिमाग से जल्दी गायब नहीं होतीं. बारबार उन्हीं बातों में उल  झी रहती हैं, जबकि पुरुष फाइट या फ्लाइट यानी लड़ो या फिर भाग जाओ पर यकीन रखते हैं. अब शिव में इतनी हिम्मत तो थी नहीं कि अपर्णा से लड़ पाता. इसलिए वह दूसरे कमरे में जा कर सो गया ताकि उसे देख कर अपर्णा का गुस्सा और न भड़क जाए. मगर अपर्णा बारबार कभी किचन में बरतन पटक कर, कभी फोन पर किसी से गुस्से में बात कर के या कभी बच्चों को डांट कर यह दर्शाने की कोशिश कर रही थी कि वह उस बात के लिए शिव को माफ नहीं  करेगी.

अर्पणा की मां का फोन आया तो मन तो किया उस का शिव की खूब बुराई

करे और कहे कि कैसे इंसान के साथ उन्होंने उसे बांध दिया लेकिन क्या फायदा क्योंकि उस की मां तो अपने दामाद का ही पक्ष लेंगी. घड़ी में देखा तो रात के 11 बच रहे थे. गुस्सा आया अपर्णा को कि ऐसे तो तुरंत 11-12 बज जाता है और आज घड़ी भी जैसी ठहर गई है. नींद भी नहीं आ रही थी उसे, सो उठ कर उस ने बच्चों के कमरे में   झांक कर देखा. दोनों गहरी नींद में सो रहे थे. जब शिव के कमरे में   झांक कर देखा तो फोन देखतेदेखते चश्मा पहने ही वह सो गया. मन किया अपर्णा का उस का चश्मा उतार कर टेबल पर रख दे, मगर उस का गुस्सा अभी भी उस के सिर पर सवार था.

भूख के मारे पेट में वैसे ही जलन हो रही थी. किचन में गई भी, मगर उस का गुस्सा उस की भूख से ज्यादा तेज था. सो एक गिलास पानी पी कर वह कमरे में आ कर सोने की कोशिश करने लगी. मगर नींद भी नहीं आ रही थी उसे. ‘देखो, कैसे आराम से खापी कर सो गया. कोई चिंता है मेरी? एक बार पूछने तक नहीं आया खाने के लिए’ बैड पर लेटीलेटी अपर्णा बड़बड़ाए जा रही थी. गुस्से में तो थी ही, भूख के मारे और तिलमिला रही थी.

अब शिव ने माफी तो मांगी न तुम से?

फिर इतना क्या गुस्सा दिखा रही हो? हां, माना कि उसे मेहमानों के सामने तुम से इस तरह से बात नहीं करनी चाहिए थी और उस की छोटीछोटी बातों पर एकदम से चीखनेचिल्लाने लगना तुम्हें जरा भी पसंद नहीं. लेकिन उस की कुछ अच्छी आदतें भी तो हैं न? उन्हें भूल गई तुम? अभी पिछले महीने ही जब तुम्हारे पापा को हार्ट अटैक आया था, तब कैसे अपना सारा कामकाज छोड़ कर शिव उन की सेवा में लग गया था.

पैसे से ले कर क्या कुछ नहीं किया उस ने तुम्हारे पापा के लिए? रातरातभर जाग कर उस ने तुम्हारे पापा की सेवा की थी, तब जा कर वे अस्पताल से ठीक हो कर घर आ पाए थे और आज भी जब भी उन्हें कोई जरूरत पड़ती है शिव एक पैर पर खड़ा रहता है उन की सेवा में.

हर 3 महीने पर वह तुम्हारे मांपापा को शुगरबीपी चैक कराने ले कर जाता है. डाक्टर

को दिखाता है. कितना भी बिजी क्यों न हो लेकिन उन से यह पूछना नहीं भूलता कि उन्होंने समय पर दवाई ली या नहीं वे रोज सुबह वाक

पर जाते हैं या नहीं? कौन करता है इतना.

बोलो न? दामाद हो कर वह बेटे जैसा कर रहा है, कम है क्या? अरे, किसीकिसी इंसान की आदत होती है छोटीछोटी बातों पर गुस्सा करने की. इस का मतलब वह बुरा इंसान नहीं हो गया.

शिव थोड़ा सख्त और गुस्सैल मिजाज

का है, मानता हूं मैं पर इंसान वह कितना अच्छा है, यह भूल गईं तुम? और यह भूल गईं कि

कैसे तुम्हारे मांपापा के जन्मदिन पर सब से

पहले बधाई शिव ही देता है उन्हें? उन के जन्मदिन पर हंगामेदार पार्टी रखता है. और यह

भी भूल गई जब तुम औफिस से थकीहारी घर आती हो कैसे वह तुम्हें प्यार से निहारता है?

तुम्हें तो अपने पति पर निछावर होना चाहिए? अपर्णा के दिल से आवाज आई तो वह हड़बड़ा कर उठ बैठी.

‘हां, यह बात कैसे भूल गई मैं कि शिव

ने मेरे पापा के लिए क्या कुछ नहीं किया?

अगर उस दिन शिव न होते तो जाने क्या अनर्थ

हो जाता. उस ने रातदिन एक कर के मेरे पापा

की जान बचाई. यहां तक कि अस्पताल में उस

ने पापा के पैर भी दबाए. नर्स ने उसे पापा के

पर दबाते देख कर कहा भी था कि कैसा श्रवण बेटा पाया है पापा ने. लेकिन जब उस नर्स को पता चला कि शिव उन के बेटे नहीं दामाद है, तो वह हैरत से शिव को देखने लगी थी.

मैं भले भूल जाऊं पर शिव रोज एक बार मांपापा का हालचाल लेना नहीं भूलता है. कभी शिव ने मु  झ पर किसी बात की बंदिशें नहीं लगाईं. मु  झे जो मन किया करने दिया और मैं उस की एक छोटी सी बात पर इतना नाराज हो गई कि उस से बात करना छोड़ दिया. ‘ओह, मैं भी न. बहुत बुरी हूं’ अपने मन में सोच अपर्णा खुद को ही कोसने लगी.

खिड़की से   झांक कर देखा तो बाहर जोर की बारिश हो रही थी. चिंता हो आई उसे कि कल शिव को औफिस के काम से 2 दिन के लिए दूसरे शहर जाना है. ‘बेचारा, कितनी मेहनत करता है अपने बीवीबच्चों के लिए. हमारी हर सुखसुविधा का ध्यान रखता है और मैं उस की एक छोटी सी बात का तिल का ताड़ बना देती हूं’ अपर्णा अपने मन गिलटी महसूस करने लगी.

‘कभी नीमनीम कभी शहदशहद पिया मोरे पिया मोरे पिया…’ मन में गुनगुनाती हुई अपर्णा मुसकरा उठी. उस का सारा गुस्साकाफूर हो चुका था. देखा तो शिव उधर मुंह कर सोए हुए था. वह भी जा कर उस के बगल में

लेट गई. शिव ने चेहरा घुमा कर देखा और मुसकराते हुए अपर्णा को अपनी बांहों में कैद कर लिया. अपर्णा भी मुसकरा कर सुकून से अपनी आंखें बंद कर लीं.

यह सफर बहुत है कठिन मगर…

पति के आने की प्रतीक्षा करती हुई युवती जितनी व्यग्र होती है उतनी ही सुंदर भी दिखती है. माहिरा का हाल भी कुछ ऐसा ही था.

आज माहिरा के चेहरे पर चमक दोगुनी हो चली थी. वह बारबार दर्पण निहारती अपनी पलकों को बारबार ?ापकाते हुए थोड़ा शरमाती और अपनी साड़ी के पल्लू को संवारने का उपक्रम करती. माहिरा की सुडौल और गोरी बांहें सुनहरे रंग के स्लीवलैस ब्लाउज में उसे और भी निखार प्रदान कर रही थीं. आज तो मानो उस का रूप ही सुनहरा हो चला था.

माहिरा ने अपने माथे पर एक लंबी सी तिलक के आकार वाली बिंदी लगा रखी थी जो कबीर की पसंदीदा बिंदी थी.

माहिरा बारबार अपनेआप को दर्पण में निहारते हुए गुनगुना रही थी, ‘सजना है मुझे सजना के लिए… मैं तो सज गई रे सजना के लिए.’

हां, माहिरा की खुशी का कारण था कि आज उस के पति मेजर कबीर पूरे 1 महीने के बाद घर वापस आ रहे थे और अब कबीर कुछ दिन माहिरा के साथ ही बिताएंगे.

कबीर और माहिरा की शादी 2 साल पहले हुई थी. कबीर भारतीय सेना में मेजर थे और माहिरा शादी से पहले एक आईटी कंपनी में काम करती थी पर शादी के बाद माहिरा जौब छोड़ कर हाउसवाइफ बन गई. उस का कहना था कि पति के एक अच्छी नौकरी में होते हुए उसे किसी प्राइवेट जौब को करने की आवश्यकता नहीं है. उस के इस निर्णय में कबीर ने कोई दखलंदाजी नहीं करी. माहिरा के घर में उस के साथ ससुर थे पर कबीर और माहिरा उन के साथ कम ही रह पा रहे थे क्योंकि कबीर की पोस्टिंग अलगअलग जगहों पर होती थी.

कबीर की पोस्टिंग जब शहरी इलाकों में होती थी तब माहिरा कबीर के साथ ही रहती थी पर कभीकभी कबीर को फ्रंट पर अर्थात आतंकियों से निबटने के लिए या पड़ोसी देश की सेना से टक्कर लेने के लिए जाना होता था, तब माहिरा को निकटवर्ती शहर के किराए के मकान में रहना पड़ता था.

जब से माहिरा को कबीर का साथ मिला है तब से उस ने काफी भारत घूम लिया है और हर जगह उस ने ढेर सारे पुरुष और महिला मित्र बनाए है, आजकल सोशल मीडिया का एक फायदा यह भी है कि कोई अजनबी एक बार दोस्त बन जाए तो वह जीवनभर सोशल मीडिया पर आप से किसी न किसी रूप में जुड़ा रह सकता है.

माहिरा के तमाम दोस्त भी उस से चैटिंग और वीडियो कौल करते रहते थे. कबीर को माहिरा के दूसरों के प्रति इस बहुत ही दोस्ताना व्यवहार से शिकायत नहीं हुई बल्कि वे माहिरा के इतने सारे दोस्त होने पर खुशी भी दिखाते थे.

‘‘मेरे पीछे तुम्हें टाइम पास करने के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती होगी. तुम्हारे इतने सारे दोस्त जो हैं,’’ कबीर चुटकी लेते हुए कहते तो माहिरा बस मुसकरा देती. माहिरा कबीर की घनी और चौड़ी मूंछों को थोड़ा छोटा करने को कहती तो कबीर बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहते कि भला वे अपनी मूंछ छोटी कैसे कर सकते हैं क्योंकि ये मूंछें ही तो एक फौजी की आनबान और शान होती हैं.

माहिरा भी रोमांटिक होते हुए कबीर को बताती कि ये मूंछें उसे इसलिए नहीं पसंद हैं क्योंकि ये माहिरा के चेहरे पर गुदगुदी करती हैं. माहिरा की यह बात सुनते ही कबीर माहिरा को गोद में उठा लेते और उस के चेहरे पर अपनी घनी मूंछों को स्पर्श कराने लगते जिस से माहिरा रोमांचित हो कर अपनी आंखें बंद कर लेती.

माहिरा के आंखें बंद करने के अंदाज पर कबीर तंज कसते हुए कहते, ‘‘तुम औरतों में यही बुराई है कि कभी भी बिस्तर पर ऐक्टिव रोल नहीं प्ले करतीं. अरे भई हम पतिपत्नी हैं

और हमारे बीच सहजता से संबंध बनने चाहिए. कभी तो तुम भी अपना पहलू बदलो या हमेशा बेचारा मर्द ही ऊपर आ कर सारी जिम्मेदारी निबटाता रहे.’’

कबीर की यह बात सुन कर माहिरा शरमा जाती और कहती कि अपने पति की छाती पर सवार हो कर काम सुख लेना उसे अच्छा नहीं लगता और वैसे भी इस तरह प्रेम संबंध बनाने की उस की आदत भी नहीं है.

‘‘प्रैक्टिस मेक्स ए वूमन परफैक्ट मेरी जान… थोड़ा जिमविम जाओ अपने को लचीला बनाओ फिर देखो तुम भी बिस्तर पर कमाल करने लगोगी,’’ कह कर बड़ी चतुराई से कबीर ने अपने शरीर को माहिरा के शरीर के नीचे कर लिया और माहिरा को अपने सीने पर लिटा लिया. माहिरा इस तरह प्रेम संबंध बनाने के प्रयास में धीरेधीरे गति पकड़ने लगी.

इस बार तो कबीर के पीछे माहिरा ने एक जिम जौइन कर लिया था जहां उस ने अपने शरीर को लचीला बनाने के लिए ढेर सारी ऐक्सरसाइज करी और अब उस का बदन पहले से अधिक लचीला और सुडौल हो गया है. इस बार वह कबीर को बिस्तर पर उन के ही स्टाइल में खूब प्यार करेगी. माहिरा यह सब सोच कर रोमांचित हो जाती थी. कमरे में इस समय उस का साथी आईना ही था जिस में वह बारबार अपने को निहार रही थी. अब उसे बेसब्री से कबीर के फोन आने की प्रतीक्षा थी.

कबीर ने कहा था कि वे चलने से पहले फोन करेंगे पर अभी तक तो कोई फोन नहीं आया था. ऊहापोह में थी माहिरा पर तभी उस का मोबाइल बजा. शायद कबीर का फोन ही होगा, मुसकराते हुए माहिरा ने मोबाइल देखा. एक अनजाना नंबर था.

‘‘हैलो,’’ माहिरा ने धीरे से कहा.

उधर से जो स्वर गूंजा, उसे माहिरा कभी याद नहीं रखना चाहेगी क्योंकि उस अजनबी स्वर ने दुख जताते हुए उसे मोबाइल पर कबीर के एक आतंकी हमले में मारे जाने की खबर दी थी.

कबीर शहीद हो चुके थे. अब वे कभी वापस नहीं आएंगे और माहिरा का यह इंतजार कभी खत्म नहीं होगा. एक पल में माहिरा की दुनिया लुट चुकी थी.

माहिरा की आंखों से आंसू लगातार बह रहे थे. उस के सीने में अपार दुख भरा था और आंखों में उन दिनों की स्मृतियां घूम गई थीं जो दिन उस ने कबीर के साथ बिताए थे पर अब कुछ नहीं हो सकता था. वह एक विधवा थी. समाज और सरकार ने भले ही एक शहीद की विधवा को  वीर नारी कह कर सम्मानित किया पर इन शब्दों से भला क्या होने वाला था? माहिरा अकेली थी क्योंकि उस का जीवनसाथी कबीर वहां जा चुका था जहां से कोई वापस नहीं आता.

माहिरा के जीवन में एक ऐसा जख्म जन्म

ले चुका था जिसे सरकार के द्वारा दिया गया

कोई भी सम्मान और कोई भी पुरस्कार राशि

भर नहीं सकती थी और इसीलिए माहिरा को

तब भी अधिक खुशी नहीं हुई जब सरकार ने शहीद कबीर को कीर्ति चक्र प्रदान करने की घोषणा करी और एक नियत तारीख पर माहिरा को कीर्ति चक्र लेने दिल्ली राष्ट्रपति भवन जाना था.

कबीर के मातापिता लखनऊ के गोमतीनगर इलाके में अपने निजी मकान में रहते थे और माहिरा को उन के साथ रह पाने का अधिक समय नहीं मिल पाया था पर जितना भी समय उस ने अपने सासससुर के साथ बिताया उन दिनों की स्मृतियां मधुर नहीं थीं. उस के सासससुर बेहद दकियानूसी और टोकाटोकी करने वाले थे और माहिरा अपने बहुत प्रयासों के बाद भी उन की पसंदीदा बहू नहीं बन पाई थी.

अभी तक उन्होंने माहिरा की खोजखबर नहीं ली थी पर अपने बेटे के शहीद हो जाने के बाद से वे माहिरा के पास ही आ गए थे और कीर्ति चक्र का सम्मान लेने माहिरा के साथ ही गए थे. बातबात में अपने बेटे के लिए उन के द्वारा किए गए त्याग की बातें करने लगते, मीडिया को कई इंटरव्यू में नौस्टैल्जिक होते हुए उन लोगों ने कबीर के बचपन की बहुत सी बातें बताईं और यह भी बताया कि कबीर को आर्मी की नौकरी दिलाने के लिए उन लोगों ने कितना पैसा लगाया और खुद भी कितना त्याग किया है.

सरकार ने माहिरा को वीर नारी का दर्जा देने के साथसाथ लखनऊ कैंट के आर्मी स्कूल में शिक्षिका की नौकरी औफर करी जिसे माहिरा ने कुछ सोचनेसम?ाने के बाद स्वीकार कर लिया.

घाव भरने के लिए समय से बड़ी कोई औषधि नहीं होती है. जब तक कबीर थे तब तक तो माहिरा ने नौकरी नहीं करी थी पर अब वह एक वर्किंग कामकाजी महिला थी और बिना जीवनसाथी के जीवन जीने का प्रयास कर रही थी.

माहिरा अपनी आंखों में कबीर का एक सपना ले कर जी रही थी. कबीर चाहते थे कि वे एक ऐसा स्कूल खोलें जहां पर गरीब और पिछड़ी जाति के लोग पढ़ाई के साथसाथ आर्मी की भरती के लिए अपनेआप को मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार कर सकें. माहिरा जानती थी कि यह कठिन होगा पर फिर भी कठिनाई को जीतना ही तो जीवन है.

कबीर को गुजरे लगभग 8 महीने हो चुके थे और आज कबीर का जन्मदिन था. माहिरा ने आज स्कूल से छुट्टी ले ली थी और कबीर की पसंद के पकवान बनाने के बाद माहिरा ने हलके गुलाबी रंग की साड़ी के ऊपर सफेद रंग का स्लीवलैस ब्लाउज पहना तो उस के सासससुर की आंखें तन गईं. भले ही माहिरा सादे लिबास में थी पर उन्हें एक विधवा का इस तरह से स्लीवलैस ब्लाउज पहनना नहीं भा रहा था.

माहिरा ने कबीर की तसवीर के सामने खड़े हो कर आंखें बंद कीं और कबीर को याद किया. अभी वह मन ही मन कबीर को याद कर ही रही थी कि कौलबैल की आवाज ने माहिरा का ध्यान भटका दिया. आंखों की नम कोरों को पोंछते हुए माहिरा ने दरवाजा खोला. सामने लोकेश खड़ा था. लोकेश भी माहिरा के साथ कैंट स्कूल में स्पोर्ट्स टीचर था.

माहिरा ने बैठने का इशारा किया और किचन में चाय बनाने चली गई. माहिरा और कबीर के बीच थोड़ीबहुत बातें हुईं. चाय पी कर लोकेश वापस चला गया. उस के यहां आने का मकसद आज के दिन माहिरा को मानसिक संबल प्रदान करना था.

‘‘बहू, बुरा मत मानना पर एक विधवा को शालीनता से अपना चरित्र संभाल कर रखना चाहिए,’’ सास का स्वर कठोर था.

माहिरा ने जवाब देना ठीक नहीं सम?ा तो सास ने दोबारा तंज कसते हुए माहिरा को अपनी वेशभूषा एक विधवा की तरह रखने का उपदेश दे डाला.

माहिरा ने उत्तर में बहुत कुछ कह देना चाहा पर चुप ही रही. उसे अपने निजी जीवन में सासससुर का दखल देना ठीक नहीं लग रहा था.

2-3 दिन बीतने के बाद जो कुछ माहिरा की सास ने उस से कहा उस बात ने तो माहिरा को कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया था. हुआ यों था कि बारिश तेज हो रही थी और माहिरा को लोकेश की बाइक से उतरते हुए सास ने देखा और इसी बात पर अपनी दकियानूसी सोच का परिचय देते हुए माहिरा को पतिव्रता स्त्री के रहनसहन के ढंग बताने लगी.

‘‘अरे हमारे लड़के के शहीद हो जाने का दुख तो पहले से हमारे बुढ़ापे पर भारी था उस पर यह सब देखना पड़ेगा यह तो हम ने सोचा भी न था.’’

उन की बातें सुन कर माहिरा का मन छलनी हो गया. आएदिन और बातबात पर अपने लड़के और स्वयं के त्याग का रोना रोने वाले सासससुर अब माहिरा को अखरने लगे थे. वह विधवा हो गई है तो क्या? विधवा हो जाने में माहिरा का भला क्या दोष है? पति को खोने के बाद क्या वह भी जीना छोड़ दे? वह ये सारी बातें सोच कर परेशान हो चली थी.

सासससुर निरंतर यह जताने में लगे हुए थे कि बहू विधवा हो गई है पर उन लोगों ने तो अपना बेटा खोया है इसलिए उन का दुख बहू के दुख से बड़ा है और बेटे को मिले सम्मान और कीर्ति चक्र पर तो माहिरा से अधिक अधिकार उन लोगों का है. कीर्ति चक्र को माहिरा की सास हमेशा अपने हाथ में ही लिए रहती थी.

माहिरा पूरे निस्स्वार्थ भाव से सासससुर का ध्यान रख रही थी. वह सुबह 5 बजे उठ कर नाश्ता बना कर रखती. ससुर को डायबिटीज थी अत: उन के लिए दलिया बनाती और स्कूल से लौटने के बाद लंच में क्या बनाना है उस की तैयारी भी कर के जाती ताकि बाद में उसे कम मेहनत करनी पड़े. सास भी लंच बन जाने का इंतजार ही करते मिलती थी. खाना बनाने और घर के किसी काम में सास का कोई सहयोग नहीं मिलता था.

मगर आज तो माहिरा पूरे 6 बजे जागी और नहाधो कर सिर्फ ब्रैड खा कर स्कूल चली गई. जाते समय सासूमां से लंच बना कर रखने के लिए कह गई और हो सकता है कि उसे आने में देर हो जाए इसलिए सासूमां से डिनर की तैयारी भी कर के रख लेने को कह गई.

अभी तक तो सासससुर माहिरा के फ्लैट में मुफ्त की रोटियां तोड़ रहे थे पर आज थोड़ा सा ही काम कह दिए जाने पर तिलमिला गए.

जब माहिरा वापस आई तो उस ने देखा कि उस की सास ने घर का कोई काम नहीं निबटाया है. उस के माथे पर सिकुड़न तो आई पर उस ने शांत स्वर में सास से सवाल किया तो सास ने सिर दर्द का बहाना बना दिया. बेचारी माहिरा को ही खानेपीने का प्रबंध करना पड़ा. सासससुर आराम से खाना खा अपने कमरे में सोने चले गए .

अगले दिन भी माहिरा ने जाते समय सामान की एक लंबी लिस्ट अपने ससुर को पकड़ाते हुए कहा कि सोसायटी की शौप में सामान नही मिल रहा है इसलिए वे चौक बाजार जा कर सारा सामान ले आए. माहिरा ने सामान लाने के लिए पैसे भी ससुर को दे दिए और स्कूल चली गई.

माहिरा जब स्कूल से थकी हुई आई तब देखा कि ससुर टीवी के सामने बैठे हुए किसी बाबा को कपाल भाति करते हुए देख रहे हैं और बगल वाले शर्माजी से अपने बेटे की शहादत और बेटे के लिए खुद किए गए त्याग के बारे में बातें कर रहे हैं. ससुर की बातों में बेटे की शहादत का गर्व तो था ही पर उस में वे अपने योगदान का उल्लेख करना भी नहीं भूल रहे थे.

माहिरा ने देखा कि सामान का थैला खाली ही रखा हुआ है. वह सम?ा गई कि ससुर मार्केट नहीं गए. उस ने निराशाभरे स्वर में पूछा तो जवाब मिला कि गए थे पर दुकान ही बंद थी. ससुर के इस जवाब पर माहिरा खीज गई थी पर प्रत्यक्ष में कुछ कह न सकी.

घर का माहौल विषादपूर्ण था. माहिरा अब विडो थी. अभी उस का पूरा जीवन शेष था जिसे वह अच्छे और शांतिपूर्ण ढंग से जीने का पूरा प्रयास कर रही थी पर सासससुर का अपने बेटे के लिए दिनरात रोनाकल्पना और उस की शहादत पर अपना अधिकार दिखाना, माहिरा की सैलरी में भी उन का अपना हिस्सा मिलने की उम्मीद रखना तो ठीक न था.

पिछले कुछ दिनों से सासससुर की टोकाटाकी कुछ ज्यादा ही बढ़ गई थी पर उस दिन तो मामला बिगड़ ही गया जब माहिरा लोकेश के साथ उस की बाइक पर फिर बैठ कर आई. हालांकि लोकेश अंदर नहीं आया पर सास ने माहिरा को डांटते हुए कहा, ‘‘मना करने के बाद भी इस आदमी की बाइक पर लिफ्ट ले कर आती हो… एक विधवा को ये चरित्र शोभा नहीं देता और फिर लोग क्या कहेंगे?’’

इस से आगे भी सास बहुत कुछ कहना चाह रही थी पर आज माहिरा ने सासससुर को आइना दिखाना ही ठीक सम?ा. बोली, ‘‘मु?ो लोग क्या कहेंगे और क्या नहीं, इस की चिंता आप लोग मत करो. मैं कबीर की विधवा हूं और मरते दम तक कोई गलत कदम नहीं उठाने वाली मुझे आप लोगों से मानसिक शांति मिलने की आशा थी पर आप लोग तो शांति छीनने में ही लगे हो,’’ माहिरा की आंखें नम हो चली थीं.

उस ने बोलना जारी रखा और आगे कहा, ‘‘आप लोग कबीर के मांबाप हैं यानी मेरे भी मांबाप के समान ही हैं और मैं आप लोगों के मानसम्मान में कोई कमी नहीं रख रही थी पर आप लोग निरंतर मेरी कमियां ही निकालने में लगे हुए हैं. आप ने अपना बेटा खोया है तो मैं ने भी अपना पति खोया है. हमारे दोनों के दुख में कोई तुलना नहीं करी जा सकती पर आप लोग कहीं न कहीं अपने दुख को बड़ा बता कर महान बन जाना चाहते हैं… चलिए ठीक है आप ही महान बन जाइए पर महानता और बड़ापन सिर्फ बातों से नहीं आता. जब भी मैं ने आप लोगों से घर के काम में सहयोग की अपेक्षा करी आप लोगों ने कोई न कोई बहाना बनाया. और तो और मेरे चरित्र को भी खराब बताने की चेष्टा करी. लोकेश मेरा सहकर्मी है इस से ज्यादा कुछ नहीं पर आप लोगों की सोच को मैं क्या कहूं? पर इतना तो निश्चित है कि हम लोग एकसाथ नहीं रह सकते. आप दोनों बेशक इस फ्लैट में रहिए मैं कहीं और कमरा देख लेती हूं. हां महीने की एक तारीख को आप लोगों के पास पूरा खर्चा भेज दिया करूंगी,’’ कह कर माहिरा अपने कमरे में चली गई और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.

सासससुर सन्नाटे में ही बैठे रह गए. शाम को करीब 7 बजे माहिरा अपने कमरे से बाहर निकली तो उसे सासससुर कहीं दिखाई नहीं दिए. उन का सामान भी गायब था. माहिरा ने देखा कि टेबल पर एक परचा रखा हुआ था. उस ने ?ापट कर उसे उठाया और सरसरी निगाह से पढ़ने लगी. लिखा हुआ था- बहू तुम्हें सम?ाने में शायद हम से कुछ गलती हुई जो तुम्हारे चरित्र पर सवाल उठाया और तुम्हारे रहनसहन में टोकाटाकी करी. ऐसा शायद हमारेतुम्हारे बीच का जैनरेशन गैप होने के कारण हुआ.

तुम्हारी दोस्तों से होने वाली वीडियो कौल्स में कुछ गलत नहीं, बेटे को खोने के दुख में हम ज्यादा ही स्वार्थी और आत्मकेंद्रित हो गए थे. तुम एक वीर की विधवा हो और तुम्हारे दुख की तुलना संसार के किसी भी दुख से नहीं करी जा सकती. हमें खेद है कि हम ने तुम्हें मानसिक रूप से परेशान किया. हम चाहते हैं कि स्कूल खोलने का कबीर का सपना तुम पूरा कर सको और अब हम अपने मकान में वापस जा रहे हैं. हां हम यदाकदा और खासतौर से कबीर के जन्मदिन पर वापस तुम से मिलने जरूर आएंगे. आशा है तुम भी एक शहीद के मातापिता का दुख सम?ागी.

माहिरा यह पढ़ कर सोफे पर बैठ गई. उस ने पलकें उठाई और दीवार पर लगी कबीर की तसवीर की ओर देखा, तस्वीर पर कबीर को मिला हुआ कीर्ति चक्र अपनी पूरी शानोशौकत के साथ चमक और दमक रहा था. माहिरा ने महसूस किया कि कबीर की तसवीर मुसकरा उठी है और माहिरा से कह रही है कि यह सफर बहुत है कठिन मगर न उदास हो मेरे हमसफर.’’

घर में बनाएं कोरिएंडर चिल्ली स्पिनिच फ्रिटर्स, ट्राई करें ये रेसिपी

शाम के समय बच्चों को भूख लगती है, बच्चे ही नहीं हम सभी बड़ो को भी शाम को कुछ खाने की भूख होती है. ऐसे में हाउसवाइफ परेशान रहती हैं आखिर क्या बनाएं, तो चिंता छोड़िए.. घर में कोरिएंडर चिल्ली स्पिनिच फ्रिटर्स, कौसकौस और रैटाटौइल.

  1. कोरिएंडर चिल्ली स्पिनिच फ्रिटर्स

सामग्री

  1. 300 ग्राम पालक कटा
  2. 3/4 कप चने का आटा
  3. 1/3 कप चावल का आटा
  4. 1/2 काप योगहर्ट
  5. 4 बड़े चम्मच धनिया का पेस्ट
  6. 2 बड़े चम्मच हरीमिर्च का पेस्ट
  7. 1 छोटा चम्मच हलदी पाउडर
  8. 1 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर
  9. 1 छोटा चम्मच अजवाइन
  10. तलने के लिए औयल
  11. नमक स्वादानुसार.

विधि

एक मिक्सिंग बाउल में औयल को छोड़ कर बाकी सारी सामग्री डाल कर अच्छी तरह मिलाएं. फिर इस में थोड़ा पानी डाल कर इस का गाढ़ा बैटर तैयार करें. अब एक कड़ाही को मीडियम आंच पर रख कर औयल गरम करें. जब औयल गरम हो जाए तब उस में से 2 छोटे चम्मच औयल ले कर उसे बैटर पर डाल कर अच्छी तरह फेंटें. फिर बैटर से छोटेछोटे पकौड़े बनाते हुए उन्हें सुनहरा होने तक फ्राई करें. फिर टिशू पेपर पर निकालें. अब तैयार फ्रिटर्स को मनपसंद की चटनी के साथ सर्व करें.

2. कौसकौस

सामग्री

  1.  200 ग्राम इंस्टैंट कौसकौस
  2. 200 ग्राम पानी
  3. 50 ग्राम बटर
  4. 1 बड़ा चम्मच ऐक्स्ट्रा वर्जिन औलिव औयल
  5.   नमक स्वादानुसार.

 विधि

एक पैन में पानी को नमक और बटर के साथ उबालें. जब पानी उबल जाए तब इस में कौसकौस डाल कर अच्छी तरह चलाएं और फिर आंच से उतार लें. ढक कर 5 निमट के लिए रख दें. सर्व करने से पहले ऊपर से औलिव औयल की कुछ बूंदें डालें और अच्छी तरह चलाएं ताकि गांठें न पड़ें.

3. रैटाटौइल

सामग्री

  1. 150 ग्राम टमाटर
  2. 75 ग्राम प्याज कटा
  3. 100 ग्राम जुकीनी ग्रीन
  4. 120 ग्राम हरी, लाल और पीली शिमलामिर्च
  5. 120 ग्राम बैगन
  6. 50 ग्राम टमाटर
  7. 10 ग्राम बेसिल
  8. 25 ग्राम लहसुन
  9. थोड़ा सा सफेद मिर्च पाउडर
  10. नमक स्वादानुसार.

विधि

एक पैन को मीडियम आंच पर रख कर औयल गरम करें. फिर इस में प्याज और शिमलामिर्च डाल कर 2-3 मिनट तक पकाएं. फिर इसे एक बाउल में निकाल कर एक तरफ रख दें. फिर पैन में कटे बैगन डाल कर मीडियम आंच पर 2 मिनट तक पकाएं. अब दोबारा से इस में प्याज और शिमलामिर्च को डाल कर इस में टमाटर का पेस्ट मिला कर अच्छी तरह चलाएं. अब इस में थाइम और टोमैटो डालें. फिर आंच को हलका कर के ढक कर 15 मिनट तक पकाएं. बीचबीच में चलाना न भूलें. फिर इस में बेसिल और लहसुन डालें. आखिर में नमक और सफेद मिर्च पाउडर डाल कर गरमगरम सर्व करें

एड्स और सैक्सुअल लाइफ से जुड़े खतरों के बारे में बताएं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

हम पतिपत्नी दोनों को मुखमैथुन करने में बहुत आनंद आता है. इस के अलावा हम अपने कुछ पारिवारिक मित्रों के साथ सामूहिक सैक्स भी करते हैं. यह क्रम काफी समय से चला आ रहा है. मैं ने सुना है कि एक से अधिक पुरुषों के साथ सैक्स संबंध बनाने से एड्स होने का खतरा होता है. क्या यह सच है? और मुखमैथुन से कोई स्वास्थ्य संबंधी हानि तो नहीं होती?

जवाब

1 से अधिक पुरुषों के साथ शारीरिक संबंध रखना यौन रोग को तब आमंत्रण देगा जब उन में से किसी एक को यौन रोग होगा. असुरक्षित यौन संबंधों से एड्स जैसी भयावह बीमारी की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता. पर यदि सब नियमित जांच करा रहे हैं, तो कुछ न होगा. सामूहिक सैक्स से भले ही अभी आप लोग आनंदित हो रहे हों पर हां, भविष्य में आप का यह शौक मानसिक रूप से आप को भारी पड़ सकता है. अत: समझदारी से काम लें. जहां तक मुखमैथुन की बात है, यदि आप यौनांगों की स्वच्छता के प्रति जागरूक हैं, तो इस से स्वास्थ्य संबंधी कोई हानि नहीं होगी.

ये भी पढ़ें- 

टीबी बैक्टीरिया से होने वाली बीमारी है जो हवा के जरिये एक इंसान से दूसरे में फैलती है और इसका बैक्टीरिया शरीर के जिस भी हिस्से में फैलता वहां के टिश्यू को पूरी तरह नष्ट कर देता है. समय पर इलाज कराने से बैक्टीरिया को फैलने से रोका जा सकता है और टीबी से बचा जा सकता है. एचआईवी पॉजिटिव लोगों में बार-बार टीबी होने की संभावना अधिक होती है. एड्स रोगियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने के कारण उनका शरीर टीबी के बैक्टीरिया के वार को नहीं सह पाता है, जिस कारण वो टीबी से ग्रसित हो जाते हैं.

टीबी मायकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस नामक बैक्टीरिया से होता है. यह बैक्टीरिया हवा के द्वारा श्वासनली में प्रवेश करता है. टीबी के फैलने के कई अन्य कारण भी हैं जैसे कि छिंकना, खांसना, खुले में थूकना. आम तौर पर यह बीमारी फेफड़ों से शुरू होती है. यह बैक्टीरिया फेफड़ों के टिश्यू को नष्ट कर देता है. सही वक्त पर इलाज कराने से टीबी से निजात पाया जा सकता है.

एचआईवी पॉजिटिव लोगों के लिए टीबी ज्यादा खतरनाक है. अगर किसी एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति को एक बार टीबी हो जाता है, तो ठीक होने के बाद भी बार बार टीबी होने का खतरा रहता है.

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या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

बौडी शेप के अनुसार करें साड़ी का चुनाव, दिखेंगी सबसे खूबसूरत

एक महिला की खूबसूरती साड़ी में ही निखर कर आती है. साड़ी एक शालीन पहनावा है जो आप की शारीरिक कमियों को ढकने के साथसाथ आप के आकर्षण को भी सहज रूप से बढ़ाती है. औफिस की पार्टी हो या फिर कोई पारिवारिक कार्यक्रम, रिश्तेदारों से मिलना हो या शादी समारोह में जाना हो, साड़ी हर मौके पर परफैक्ट लुक देती है. आम महिलाओं से ले कर फिल्मी हस्तियों तक में साड़ी का क्रेज है.

महिलाएं साड़ी पहनना तो पसंद करती हैं, लेकिन उन्हें यह पता नहीं होता कि उन के शरीर के शेप व टाइप के मुताबिक किस तरह की साड़ी उन पर परफैक्ट लगेगी. अकसर महिलाएं खुद भी महसूस करती हैं कि उन के ऊपर कुछ खास फैब्रिक या कलर की साडि़यां अधिक सूट करती हैं जबकि किसीकिसी साड़ी में वे अधिक मोटी या कम हाइट की दिखती हैं. ऐसे में साड़ी खरीदने से पहले आप को यह पता होना चाहिए कि आप के शरीर की बनावट के मुताबिक किस तरह की साड़ी आप को परफैक्ट लुक देगी.

आइए, जानते हैं कैसे करें अपनी बौडी शेप के अनुसार सही साड़ी का चुनाव:

पियर शेप बौडी

भारतीय महिलाओं की बौडी शेप जनरली पियर शेप ही होती है. पियर शेप यानी जिन महिलाओं के शरीर का निचला हिस्सा हैवी और ऊपर का पतला होता है, साथ ही उन की कमर कर्वी होती है. पियर शेप बौडी पर शिफौन या जौर्जेट की साडि़यां खूबसूरत लगती हैं. ये आप के बौडी कवर्स को अच्छे से हाईलाइट करती हैं. इस तरह की बौडी टाइप वाली महिलाओं को बोल्ड कलर और बोल्ड बौर्डर वाली साडि़यां का चयन करना चाहिए. पियर बौडी शेप की लड़कियों के ऊपर औफशोल्डर टौप बहुत फबते हैं. आप साड़ी को अपने पसंदीदा औफशोल्डर टौप के साथ पेयर कर के पहन सकती हैं. इस से आप अधिक आकर्षक लगेंगी.

ऐप्पल शेप बौडी

वे महिलाएं जिन के सीने से पेट और हिप का एरिया ज्यादा भारी होता है उन्हें ऐप्पल शेप कहते हैं. ऐसी महिलाओं को टमी फैट को छिपाने के लिए सिल्क फैब्रिक की साडि़यां पहननी चाहिए. जौर्जेट और शिफौन की साडि़यां भी पहन सकती हैं. इन्हें नैट की साडि़यां पहनने से बचना चाहिए क्योंकि नैट की साडि़यां बैली फैट को अधिक हाईलाइट करती हैं.

जीरो साइज फिगर यानी पतली लड़कियों के लिए

अधिक पतली लड़कियों को साड़ी के फैब्रिक का चयन सोचसम झ कर करना चाहिए. स्किनी बौडी टाइप वाली ऐसी लड़कियां कौटन, ब्रोकेड, सिल्क या औरगेंजा साडि़यों का चयन कर सकती हैं. ये साडि़यां उन की फिगर को अधिक आकर्षक लुक देती हैं और दुबलेपन को ढकती हैं. हैवी ऐंब्रौयडरी वाली ट्रैडिशनल साडि़यां जैसे बनारसी, कांजीवरम आदि भी इन पर फबेंगी. पतली होने के साथ ही अगर आप लंबी भी हैं तो हैवी बौर्डर वर्क वाली साडि़यां पहनें.

वहीं अगर आप पतली होने के अलावा छोटे कद की हैं तो पतले बौर्डर की साडि़यों का चयन कर सकती हैं. याद रखें बोल्ड प्रिंट्स की साडि़यां आप पर नहीं जंचेंगी.

प्लस साइज बौडी शेप यानी मोटी महिलाएं

जिन महिलाओं का वजन ज्यादा होता है यानी जिन की बौडी टाइप प्लस साइज की होती है उन्हें शिफौन, साटन, लिनेन और सिल्क फैब्रिक की साडि़यां पहननी चाहिए. ये उन के मोटे शरीर को बैलेंस्ड लुक देती हैं. मोटी लड़कियों को कौटन या औरगेंजा फैब्रिक की साडि़यां पहनने से बचना चाहिए. इस तरह की साडि़यां शरीर को अधिक फूला हुआ दिखाती हैं. मोटी महिलाओं को बहुत ज्यादा पारदर्शी साडि़यां पहनने से भी बचना चाहिए.

बहुत ज्यादा हाई व लो नैक वाले ब्लाउज पहनने से ही बचें क्योंकि इस से शरीर का ऊपर वाला हिस्सा हैवी नजर आता है. स्लीवलैस ब्लाउज पहनने से परहेज करें, इस से आप ज्यादा मोटी नजर आएंगी. आप केप स्लीव ट्राई कर सकती हैं. प्लस साइज वाली महिलाओं को डार्क कलर की साडि़यां पहननी चाहिए.

परफैक्ट फिगर वाली यंगस्टर्स

कम उम्र की लड़कियों को वैसी साडि़यां पहननी चाहिए जो आसानी से पहनी जा सकें. वे शिफौन, जौर्जेट, नैट फैब्रिक की लाइट वेट साडि़यां चुन सकती हैं. उन पर कैंडी कलर्स, जैसे- ब्राइट पिंक, औरेंज, ग्रीन, यलो आदि अच्छे लगते हैं. यंगस्टर्स साड़ी के साथ बूस्टियर, हौल्टर ब्लाउज, शर्ट, जैकेट, क्रौप टौप, बैल्ट, ट्राउजर, प्रिंटेड पेटीकोट आदि ट्राई कर सकती हैं. मगर इन्हें हैवी वर्क वाली या बहुत ज्यादा प्रिंटेड साडि़यां नहीं पहननी चाहिए वरना वे मैच्योर नजर आएंगी.

40+ की मैच्योर महिलाएं

इस उम्र में बहुत ज्यादा ऐक्सपैरिमैंट करने से बचना चाहिए. फ्लोरल प्रिंट, हैंडलूम आदि आप के लिए बैस्ट चौइस हैं. शादी, किटी पार्टी जैसे मौकों पर बनारसी, चंदेरी जैसी ऐलिगैंट साडि़यां पहननी चाहिए. इस उम्र में सिंपल ब्लाउज पहनने चाहिए. साड़ी के साथ डैलिकेट और क्लासी ज्वैलरी पहनें.

छोटी हाइट वाली महिलाएं

इन्हें शार्प कौंट्रास्ट से बचना चाहिए. उदाहरण के लिए रैड के साथ ग्रीन के बजाय पिंक का कौंबिनेशन चुनें. बड़े और बोल्ड प्रिंट या हैवी ऐंब्रौयडरी वाली साडि़यां न पहनें. इस से हाइट कम नजर आएगी.

पीछे मुड़ कर : आखिर विद्या ने अपने इतने अच्छे पति को क्यों ठुकराया

शाम को 7 बजते ही दफ्तर के सारे मुलाजिम बाहर की ओर चल पड़े. अभिनव भी अपनी सीट से उठा और ओवरसीयर के कमरे के पास जा कर खड़ा हो गया.

‘‘क्या हुआ अभिनव तुम गए नहीं? क्या आज भी ओवरटाइम का इरादा है?’’

‘‘हां बड़े साहब, आप तो जानते ही हैं विद्या की ट्यूशन की फीस देनी है फिर उन की किताबे, कापियों का खर्च, पूरे 15-20 हजार का खर्च हर महीने होता है. इतनी सी तनख्वाह में कैसे गुजारा हो सकता है, ओवरटाइम नहीं करूंगा तो भूखे मरना पड़ेगा.’’

जवाब में ओवरसीयर बाबू मुसकरा दिए, ‘‘यह तो हरजाना है अभिनव बाबू एक पढ़ीलिखी लड़की से शादी रचाने का और उस पर उसे और आगे पढ़ाने का.’’

‘‘हरजाना नहीं है बाबू, यह मेरा फर्ज है. विद्याजी में हुनर है, बुद्धि है, प्रतिभा है. मैं तो सिर्फ एक जरीयामात्र हूं उन के ज्ञान को उभार

कर लोगों तक लाने का और फिर जब वे जीवन में कुछ बन जाएंगी तो नाम तो मेरा भी ऊंचा

होगा न.’’

‘‘हां वह तो है आने वाले कल को सजाने के लिए जो तुम अपना आज दांव पर लगा रहे

हो उस की मिसाल बड़ी मुश्किल से ही मिलेगी मगर ऐसे सपने भी नहीं देखने चाहिए जो तुम

से तुम्हारी नींद ही चुरा लें. कभीकभी इंसान को अपने बारे में भी सोचना चाहिए जो तुम नहीं कर रहे.’’

‘‘मेरी सोच विद्याजी से शुरू हो कर वहीं पर खत्म हो जाती है सर, मुझे हर हाल मे विद्याजी को वहां तक पहुंचाना है जहां की वे हकदार हैं. शादी के बंधन ने उन्हें एक क्षण के लिए बांध जरूर दिया था मगर मेरे होते उन्हें अपनी मंजिल तक पहुंचने से कोई नहीं रोक सकता.’’

9 बजे पारी खत्म कर के अभिनव बाजार में कुछ छोटीबड़ी खरीदारी करते हुए घर पहुंच गया. दरवाजे को हलके से खोल कर उस ने सुनिश्चित किया कि विद्या अपनी पढ़ाई में मशगूल थीं. फौरन हाथमुंह धो कर वह रसोई में घुस गया. खाना बना कर उस ने परोसा और विद्या को खाने के स्थान पर आने के लिए आवाज दी.

‘‘बहुत थक गई होगी न आज, सारा दिन किताबों में सिर खपाना, कभी पढ़पढ़ कर लिखना कभी लिखलिख कर पढ़ना. मेरी तो समझ से ही दूर की बात है.’’

‘‘हां थक तो गई, अभी नोट्स बनाने हैं फिर सुबह सर को दिखाने हैं. तुम भी तो थक गए होंगे न, सारा दिन मेहनत करते हो मेरे लिए.’’

‘‘तुम ने इतना सोच लिया मेरे बारे में मेरे लिए इतना ही बहुत है. अब तुम आराम से अंदर जा कर पढ़ो. मैं कूलर में पानी भर देता हूं और दूध का गिलास भी सिरहाने रख देता हूं. रात को कुछ चाहिए तो आवाज दे देना.’’

‘‘तुम भी अंदर सो सकते हो, बाहर गरमी…’’

‘‘बाहर मौसम बहुत खुशनुमा है और मेम साहब जब तक आप कुछ बन नहीं जातीं मेरे लिए बाहर और अंदर के मौसम में कोई अंतर नहीं है.’’

घर के आंगन में चारपाई लगा कर हाथ में अखबार से हवा करते हुए अभिनव लेट गया. पास की चारपाई पर पड़ोस में रहने वाले शुभेंदु दादा भी आ कर पसर गए. फिर अभिनव से पूछा, ‘‘अगर आप बुरा न मानो तो एक बात पूछूं? मुझे तो मेरी बीवी घर से निकाल देती है मगर आप क्यों बाहर आ कर सोते हैं?’’

अभिनव मुसकरा दिया, ‘‘आप रोज मुझसे यह सवाल करते हैं और रोज मैं आप को यही जवाब देता हूं,’’ बाहर नीले आकाश के नीचे, तारों की छांव में सपने साफ दिखते हैं, दूर तक फैला  खुशी का साम्राज्य, हंसी की ?ाल उस पर खुशी की नैया और उस नाव में मैं और विद्याजी आगे बढ़ते ही जा रहे हैं. पीछे मुड़ कर देखने का भी समय नहीं होता. बहुत मजा आता है दादा ऐसे सपनों में जीने का इसलिए मै बाहर सोता हूं.’’

‘‘कुछ समझ में नहीं आ रहा. मैं भी तो बाहर सोता हूं मुझे ऐसे सपने क्यों नहीं आते? अच्छा एक और जिज्ञासा थी, कई बार आप से पूछा भी मगर आप टाल गए, वादा कीजिए कि आज नहीं टालेंगे,’’ दादा ने कहा.

‘‘पूछिए दादा, अपना सवाल फिर से दोहरा दीजिए.’’

‘‘आप अपनी पत्नी के लिए इतना कुछ क्यों करते हैं? सुबह से रात तक उन की छोटीबड़ी हर जरूरत का ध्यान रखना, खुद तकलीफ में रह कर उन्हें आराम से रखना, कोल्हू के बैल की तरह जुटे रहना, ऐसा करने की कोई खास वजह लगती है?

‘‘वजह कोई नहीं बस यह एक तरह का पश्चात्ताप है दादा.’’

‘‘पश्चात्ताप,’’ दादा की उत्कंठा बढ़ती जा रही थी.

‘‘हां दादा. मेरा एक ?ाट, मेरा एक फरेब जिस ने मुझे विद्या की नजरों में गिरा दिया था. उसी का प्रायश्चित्त है यह. बात उन दिनों की है जब हमारी शादी की बात चल रही थी. मैं ने विद्या को पहली बार देखा तो बस देखता ही रह गया. लगा मानो वक्त थम कर विद्या पर ही अटक गया हो. मुझे अपनी जिंदगी की मंजिल सामने नजर आ गई थी. बात आगे बढ़ी तो पता चला कि विद्या पढ़नेलिखने में बहुत होशियार है और उसे एक पढ़ालिखा वर चाहिए. कहां उस की चाहत और कहां मैं जिस ने स्कूल की शिक्षा भी पूरी नहीं की थी. मैं परेशान हो कर इधरउधर घूमताफिरता  रहता था कि किसी ने झूठ की राह पर चलने की सलाह दी और फिर मानो होनी ने भी झूठ में मेरा साथ दिया. मैं एक दिन पास के ही एक बैंक में किसी काम से गया था कि बाहर मुझे विद्या नजर आई तो मैं ने कहा कि आप यहां विद्याजी, बहुत ही सुखद संयोग है. मैं ने विद्या से वहां इस तरह से मिलने की कभी अपेक्षा नहीं की थी.

‘‘विद्या संकुचाते हुए बोली कि तो आप इस बैंक में काम करते हैं… मां बता रही थीं कि शायद आप किसी बैंक में अफसर हैं लेकिन आप यहां हैं इस की मुझे जानकारी नहीं थी.

‘‘मैं ऐसे किसी प्रश्न के लिए तैयार न था लेकिन साथ ही मैं विद्या का साथ एक पल के लिए भी नहीं खोना चाह रहा था. मुझे सूझ ही नहीं रहा था कि मैं क्या उत्तर दूं. बस पता नहीं क्या दिमाग में आया कि मैं बोल पड़ा कि हां मैं इसी बैंक में काम करता हूं. आजकल मेरी पोस्टिंग पास के एक गांव में है. आप तो जानती ही होंगी कि हम बैंक वालों के 2-3 साल किसी गांव की शाखा में गुजारने जरूरी होते हैं.’’

‘‘मैं जानती हूं. आप कितने पढे़लिखे हैं, स्मार्ट हैं फिर भी आप ने मुझे पसंद किया.’’

‘‘आप तो मुझे शर्मिंदा कर रही हैं,’’ मैं ने जवाब दिया.

कुछ क्षण रुक कर विद्या बोली, ‘‘हमारी लगभग चट मंगनी पट ब्याह वाली तरह

शादी हो रही है. एकदूसरे को सम?ाने का, परखने का समय भी नहीं है इसलिए इतनी जल्दी आप से इस विषय पर बात कर रही हूं, मैं चाहूंती तो किसी के जरीए आप को यह संदेश पहुंचवा सकती थी मगर मैं सीधे बात करने में यकीन करती हूं. आप से एक वादा चाहिए था. अगर इजाजत हो तो कहूं?’’

‘‘हां कहिए न. निस्संकोच हो कर कहिए.’’

‘‘मैं आगे पढ़ना चाहती हूं, बहुत बड़ी डाक्टर बनना चाहती हूं, दूर तक उड़ना चाहती हूं. क्या आप मु?ो इस का मौका देंगे? आप मेरे पर तो नहीं कतरेंगे?’’

‘‘नहींनहीं विद्याजी. इस में सोचविचार, नानुकुर का कोई प्रश्न ही नहीं है और फिर डाक्टर बन कर आप न सिर्फ अपने परिवार का नाम रोशन करेंगी बल्कि समाज सेवा भी कर सकती हैं,’’ मैं ने सहज भाव से जवाब दिया.

विद्या खुशी से फूली न समाई, ‘‘मेरी इंग्लिश थोड़ी कमजोर है. छोटे शहर

से हूं न, आप तो इतने बड़े कालेज से एमबीए हैं, तो क्या मैं आशा करूं कि इंग्लिश तो आप मुझे पढ़ा ही देंगे? बाकी मैं संभाल लूंगी.’’

‘‘क्यों नहीं विद्याजी,’’ मैं ने यंत्रवत ढंग से थूक निगलते हुए जवाब दिया.

‘‘फिर क्या हुआ,’’ दादा की आंखों से जैसे नींद उड़ चुकी थी.

‘‘शादी की रात को ही मेरा भांड़ा फूट गया जब मेरे कुछ दोस्तों ने बातोंबातों में मेरी सचाई बयां कर दी. उन्होंने बता दिया कि मैं ने तो स्कूल के सारे कमरे भी नहीं देखे थे. सुन कर विद्या बिफर गई कि इतना बड़ा फरेब, धोखा और झूठ के बारे में उस ने सोचा ही नहीं था. उस ने मुझे बहुत जलील किया. मेरे पास उस को देने के लिए कोई जवाब न था सिवा इस के कि मैं उस से बेइंतहा प्यार करता हूं और यह झूठ मुझे एकमात्र हथियार जरीया नजर आया जो मुझे उस तक पहुंचा सकता था.

‘‘इस के आगे की कहानी मैं समझ गया अभिनवजी. आप ने उसे आगे पढ़ाने का अपना वादा पूरा करने की ठानी और अपना दिनरात एक कर दिया. विद्या को भी मन मार कर इसी में संतोष करना पड़ा, उस के पास इस से बेहतर कोई विकल्प भी नहीं था.’’

सुबह उठते ही अभिनव ने चाय बनाई और अखबार ले कर विद्या के कमरे में दाखिल हो गया, ‘‘तुम्हारे लिए चाय और अखबार दोनों जरूरी हैं. चाय फुरती के लिए और अखबार चुस्ती के लिए, अखबार में देशविदेश की खबरें तुम्हें चुस्त रखेंगी. आगे बढ़ने के नएनए रास्ते सुझाएंगी.’’

विद्या ने अखबार पर नजर डाली और

एक पन्ने पर छपी खबर देख कर ठिठक गई, ‘‘अभिनव दिल्ली में नीट, मेरा मतलब है

मैडिकल की पढ़ाई वालों का एक नया केंद्र खुला है. वहां पर समयसमय पर नोट्स बना कर दिए जाएंगे जो मु?ा जैसे प्रतियोगी परीक्षा वालों के लिए बहुत काम के होंगे, मगर…’’ विद्या बोलतेबोलते रुक गई.

‘‘हां तो दिक्कत क्या है. मैं ला कर दूंगा तुम्हें नोट्स…’’

‘‘रहने दो अभिनव, बहुत खर्च है इस में. लाख सवा लाख देना हमारे बस का नहीं.’’

अभिनव सोच में पड़ गया, अभी लैपटौप खरीदने के लिए दफ्तर से कर्ज लिया वह भी उतारना है, उस के अलावा पहले ही 2-3 लाख का लोन है. ओवरसीयर साहब चाह कर भी मदद नहीं कर पाएंगे. इसी उधेड़बुन में अभिनव कब दफ्तर पहुंच कर वापस बाहर आ गया उसे स्वयं भी पता नहीं चला. घर के लिए वापसी में स्टेशन का फाटक था.

अभिनव के कदम स्टेशन के प्लेटफौर्म की तरफ चल पड़े और एक बैंच पर जा कर रुक गए. मेरी तपस्या व्यर्थ जाएगी. क्या विद्या की पढ़ाई का रिजल्ट उस की मेहनत के अनुसार नहीं आएगा? क्या विद्या एक सफल और कामयाब डाक्टर नहीं बन पाएगी? अभिनव स्वयं से ही बातें कर रहा था कि एक स्पर्श ने उस की तंद्रा भंग कर दी. अभिनव उस अपरिचित को पहचानने का प्रयत्न कर रहा था.

‘‘पहचान लिया या बताना पड़ेगा?

निहाल याद है या भूल गया? तारानगर सरकारी विद्यालय.’’

अभिनव को दिमाग पर ज्यादा जोर देने

की जरूरत नहीं पड़ी. उठ कर गले लगते हुए बोला, ‘‘तुझे कैसे भूल सकता हूं भाई तेरी वजह से बहुत पिटा हूं मैं, पेड़ पर चढ़ कर आम तोड़ कर भाग जाता था और पिटता था मैं, मगर फिर मिल कर आम खाने का मजा भी कुछ और ही होता था. हम कौन सी कक्षा तक साथ थे. 7वीं तक तूने स्कूल छोड़ा और मु?ो निकाल दिया

गया. तब से इस स्टेशन ने मुझे आश्रय दिया. मुझे देख कर तुझे पता चल ही गया होगा कि मैं यहां कुली हूं.’’

अभिनव मुसकरा दिया. उस की शून्य आंखें उस की व्यथा बयां कर रही थीं.

‘‘तू यहां स्टेशन पर क्या कर रहा है? कोई आ रहा है या जा रहा है?’’

‘‘न कोई आ रहा है न ही कोई जा रहा है… जिंदगी ही थम सी गई है.’’

‘‘थोड़ी देर रुक, मैं इस ट्रेन से उतरे यात्रियों को टटोलता हूं, कोई ग्राहक आया तो ठीक वरना फौरन आता हूं.’’

थोड़ी ही देर में निहाल अभिनव के पास था, ‘‘आजकल हर सूटकेस में पहिए लगे होते हैं भाई. हजारों का टिकट खरीद कर आने वाले स्टेशन पर कुली को पैसे देने में हजार बार सोचते हैं. पता नहीं इन चलतेफिरते सूटकेसों का आविष्कार हम जैसों की मजदूरी पर लात मारने के लिए किस ने किया था? खैर, तू बता क्या हुआ तेरी जिंदगी में तारानगर कब और कैसे छोड़ कर यहां… बसा शादीवादी हुई या मेरी तरह कुंआरा है?’’

‘‘एक ही तो काम किया है मैं ने मेरे भाई, शादी की है या यों कहो कि मौसी ने मेरा घर बसाने के लिए मुझे मंडप में बैठा दिया और उधर तेरी भाभी का भी पुस्तकों से रिश्ता तोड़ कर मु?ा से करवा दिया,’’ अभिनव ने अपने जीवन के हर सफे को पढ़ कर सुन दिया.

‘‘कितना बड़ा काम किया है तूने अभिनव. भाभी की पढ़ाई की लौ को जलाए रखने के

लिए उन्हें डाक्टर बनाने के लिए स्वयं को भट्टी में झांक दिया.’’

‘‘इस में मेरा ही स्वार्थ है, एक दिन जब पढ़लिख कर वह लोगों का इलाज करेगी, औपरेशन कर के लोगों को ठीक करेगी, ऊंची कुरसी पर बैठेगी तो लोग कहेंगे कि देखो जो यह सफेद कोट पहन कर, बड़ी सी गाड़ी में बैठ कर जा रही है यह अभिनव की पत्नी है. मैं तो सारा कामकाज छोड़ कर या तो दिनरात आराम करूंगा या उस के आगेपीछे मंडराता रहूंगा, लोग कहेंगे कितना खुशहाल है अभिनव. जब ऐसी बातें मेरे कानों तक आएंगी तो उस समय मेरा चेहरा देखने लायक होगा, गर्व से फूल कर सीना दोगुना हो जाएगा,’’ कहतेकहते अभिनव की आंखों में चमक आ गई.

निहाल मुसकरा दिया, ‘‘मेरी कामना है कि ऐसा ही हो. फिलहाल तुम्हें और पैसे कमाने हैं तो मेरे पास तो उस के लिए एक ही उपाय है. रात को 11 बजे के बाद तू अगर स्टेशन आ सके तो मैं अपना कुली का बैज तु?ो दे सकता हूं. तू सामान बाहर तक छोड़ना और कई बार उन्हें होटल या गेस्टहाउस के बारे में भी बताना, वहां से अच्छा कमीशन मिल सकता है.’’

निहाल की सोच सही साबित हुई. अभिनव रोज रात को स्वयं को स्टेशन पर खपाता और अतिरिक्त कमाए पैसे से विद्या के लिए नोट्स वगैरह का इंतजाम करता. विद्या को मन मांगी मुराद मिल गई थी. उस की मेहनत ने और गति प्राप्त कर ली थी. धीरेधीरे उस के और उस की मंजिल के बीच का फासला कम होता जा रहा था.

उस रात जब अभिनव घर पहुंचा तो बाहर मौसी उस का इंतजार कर रही थी, ‘‘बहू से पता चला कि तू रोज रात को काम खत्म कर के कहीं बाहर चला जाता है. कहीं कोई नशावशा तो नहीं करता? कभी अपने स्वास्थ्य को भी देखा है, दिनबदिन बुझता जा रहा है. दादा ने बताया तू सुबह तड़के से देर रात तक…’’

‘‘नहीं मौसी बस दोस्तों के साथ बैठ कर थोड़ी गपशप कर लेता हूं, थकावट दूर हो जाती है,’’ अभिनव ने मौसी की बात काट कर अपनी कमीज बदलते हुए कहा.

‘‘1 मिनट अभि तेरे बदन पर यह लाल निशान? क्या करता है तू?’’

‘‘कुछ नहीं मौसी किसी कीड़ेमकोड़े ने काट लिया होगा. ठीक हो जाएगा.’’

‘‘यह तू क्या कर रहा है अभि बेटा, क्यों अपनेआप को दांव पर लगा रहा है? क्यों बहू की अभिलाषाओं को पाने के लिए स्वयं को चलतीफिरती लाश बना रहा है. ऐसा मत कर बेटा, वक्त के पलटने से इंसान भी पलट सकता है, मंजिल पर पहुंच कर पीछे मुड़ कर देखने वाले विरले ही होते हैं.’’

अभिनव मुसकरा दिया, ‘‘विद्या ऐसी नहीं

है मौसी, विद्या कुछ बन गई तो मेरे साथ तेरे

दिन भी फिर जाएंगे. तुझे भी अस्पताल में नर्स बनवा दूंगा.

‘‘तेरी ऐसी की तैसी, मुझे नर्स बनाएगा.

मैं तो घर पर बैठ कर राज करूंगी राज,’’ मौसी भी कम न थी. उस के पोपले मुंह से हंसी छलक रही थी.

आखिरकार वह दिन आ ही गया जब विद्या के अपनी मुराद मिल गई और अभिनव का स्वप्न पूर्ण हो गया. दोनों की ही मेहनत रंग लाई और विद्या अपने इम्तिहान में अच्छे अंकों से उतीर्ण हो गई. रिजल्ट आने के बाद उसे दूसरे शहर के मैडिकल कालेज मे दाखिले के लिए जाना पड़ा और दाखिले के पश्चात होस्टल में कमरा ले कर रहना पड़ा.

4 साल के लिए विद्या अभिनव की नजरों से दूर हो गई. दिनरात मेहनत कर के अभिनव विद्या की फीस, किताबकापियों और रहने के खर्च का बो?ा उठाता और हर माह नियत समय पर आवश्यकता से अधिक राशि बिना तकाजे के भेजता. लगातार पड़ते इस बो?ा से धीरेधीरे कब वह स्वयं पर बो?ा बन गया उसे पता ही नहीं चला.

विद्या का फोन कभी भूलेभटके ही आता, मगर महीने के अंतिम सप्ताह में अवश्य आता. शायद यह अभिनव के एक प्रकार का अनुस्मारक होता, अभिनव को विद्या के इस कौल का भी इंतजार रहता. चंद मिनटों की यह बातचीत अभिनव को प्रफुल्लित कर देती और उस में एक नई ऊर्जा का संचार कर देती.

एक दिन जब विद्या का फोन आया तो उस में अभिनव को विद्या के चिंतित होने का बोध हुआ, ‘‘क्या बात है आज डाक्टर साहिबा कुछ परेशान लग रही हैं? सब खैरीयत तो है?’’

‘‘कुछ नहीं बस यों ही, जरा काम का बोझ था,’’ विद्या ने छोटा सा जवाब दिया.

‘‘काम का बो?ा या कुछ और?’’ अभिनव ने आशंकित हो कर पूछा. उसे लग रहा था कि हो न हो बात कुछ और ही है.

‘‘यों ही. कुछ छात्रों को जापान सरकार ने जापान आने का निमंत्रण दिया है. उन छात्रों मे एक नाम मेरा भी है. वहां की रैडिएशन तकनीक के बारे में जानने का अच्छा अवसर है, लेकिन मैं ने मना कर दिया.’’

‘‘क्यों?’’ अभिनव ने हैरान हो कर फौरन पूछा.

विद्या एक पल के लिए खामोश हो गई फिर धीरे से बोली, ‘‘बिना मतलब के कम से कम डेढ़दो लाख का खर्च है हालांकि ज्यादातर खर्च जापान सरकार ही कर रही है, फिर भी इतना पैसा तो चाहिए ही होगा.’’

अभिनव खामोश हो गया, ‘‘मैं कोशिश करता हूं विद्या, कुछ न कुछ इंतजाम हो जाएगा.’’

अभिनव ने इधरउधर हाथपैर मारने शुरू कर दिए. अपने हर जानपहचान वाले से उस ने कुछ न कुछ उधार लिया हुआ था. लिहाजा, हर जगह से उसे टका सा जवाब मिला. थकहार के उस ने निहाल के पास पहुंच कर अपना रोना रोया.

‘‘इतने पैसे कहां से लाएगा अभि? चोरी करेगा, डाका डालेगा या अपनेआप को बेच देगा?’’ निहाल ने ?ाल्ला कर कहा.

‘‘अपनेआप को बेच दूंगा निहाल. खून का 1-1 कतरा दिलजिगर सब बेच दूंगा.’’

निहाल खामोश हो गया फिर हौले से फुसफुसाया, ‘‘ज्यादा तो पता नहीं लेकिन सुना है कई लोग अपनी एक किडनी बेच देते हैं. यहां के अस्पताल का एक कंपाउंडर मेरी जानपहचान का है, वही बता रहा था.’’

‘‘तू मु?ो उस के पास ले चल, मैं अपनी किडनी बेच दूंगा, विद्या की सफलता की राह में पैसा बीच में नहीं आना चाहिए.’’

निहाल अवाक हो कर अभिनव को ताक रहा था, ‘‘यह तू क्या कह रहा है. बात में से बात निकली तो मैं ने जिक्र कर दिया.’’

‘‘नहीं निहाल तूने तो मुझे पर बहुत बड़ा एहसान किया है. एक बार तू मुझे उस के पास

ले चल.’’

अभिनव के बारबार कहने से अनमने ढंग से निहाल अभिनव को अस्पताल ले गया.

‘‘यह बहुत ही रिस्की मामला है. पकड़े गए तो सब के सब जेल की हवा खाएंगे,’’ कंपाउंडर फुसफुसाते हुए बोला.

‘‘आप का एहसान होगा भाई. मुझे पैसों की सख्त जरूरत है,’’ अभिनव ने रोंआसे स्वर में कहा.

कंपाउंडर थोड़ी देर के लिए ओ?ाल हो गया. लौट कर आया तो हाथ में एक परची थी जिस पर कोई पता लिखा था, ‘‘मैं ने बात कर ली है, अगले शनिवार को तुम यहां चले जाओ. पूरी प्रक्रिया में हफ्ता 10 दिन तो लग ही जाएंगे.’’

‘‘हफ्ता 10 दिन,’’ अभिनव सोच में पड़ गया और बोला, ‘‘क्या कुछ पैसा मु?ो पहले मिल सकता है?’’

‘‘कोशिश कर के तुम्हें कुछ पैसा एडवांस दिला दूंगा, आखिर तुम निहाल के खास जानने वाले हो.’’

अभिनय के लिए आने वाले दिन उस के सब्र का इम्तिहान लेने वाले थे.

चंद ही दिनों के इंतजार के बाद निहाल ने उसे सूचना दी कि उन्हें पैसे मिल गए हैं और उसे ले कर वह अभिनव के दफ्तर ही आ रहा है. निहाल ने आते ही रुपयों का एक लिफाफा अभिनव के सामने रख दिया. अभिनव की आंखों में खुशी के आंसू थे. उस ने विद्या को फोन मिलाने के लिए उठाया ही था कि घंटी घनघना उठी. दूसरी ओर विद्या थी. उस की आवाज में एक अजीब सा उत्साह था, ‘‘अभिनव तुम तो इंतजाम कर नहीं पाए लिहाजा मैं ने अपने जापान जाने के खर्चे का इंतजाम खुद ही कर लिया, तुम बस मेरा पासपोर्ट जल्द से जल्द मुझे भेज दो.’’

‘‘मगर कैसे?’’ अभिनव जानना चाह रहा था.

‘‘मेरे टीम लीडर डाक्टर विश्वास ने मेरा सारा खर्च उठाने का फैसला किया है, वे मुझे बहुत पसंद करते हैं. न जाने उन का यह एहसान मैं कैसे चुकाऊंगी,’’ इस के पहले कि अभिनव कुछ और कहता या पूछता विद्या ने फोन काट दिया.

अभिनव ने लिफाफा निहाल के हाथों में थमा दिया, ‘‘अब इस की जरूरत नहीं, मेरी तपस्या पीछे रह गई. विद्या ने आगे बढ़ने का जरीया ढूंढ़ लिया.’’

विद्या के विदेश जाते ही अभिनव का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा. दिनरात खांसखांस कर उस का बुरा हाल था और उस पर सीने में दर्द ने उस की रातों की नींद उड़ा दी थी. एक दिन जब बलगम में खून अत्यधिक मात्र में आ गया तो निहाल जबरदस्ती उसे सरकारी अस्पताल में डाक्टर को दिखाने ले गया. डाक्टरों ने सारी जांच कर के उस के हाथ में एक रुक्का पकड़ा दिया जिस पर बहुत कुछ लिखा था- मगर जो थोड़ा कुछ सम?ा आया उस के मुताबिक अभिनव को एक गंभीर संक्रामक बीमारी थी और उस के फेफड़े पूरी तरह से काम करना छोड़ चुके थे. डाक्टरों ने कई अन्य टैस्ट लिख कर दिए और घर पर अच्छे खानपान पर जोर डालने को कहा.

निहाल ने विद्या को सूचित करने की सलाह दी मगर अभिनव न माना. उस की पढ़ाई चल रही है. अभी विदेश में ट्रैनिंग कर के लौटी है. उस का ध्यान बांटना ठीक नहीं है. उसे अपनी मंजिल की तरफ बढ़ने दो. अभिनव के मना करने के बावजूद भी निहाल ने विद्या से संपर्क साध लिया और अपना परिचय दे कर अभिनव के बिगड़ते स्वास्थ्य के बारे में बताया.

विद्या ने कोई संवेदना या गंभीरता प्रकट नहीं की और इस स्थिति के लिए अभिनव पर ही दोष जड़ दिया, ‘‘जो इंसान अपना खयाल नहीं रखता, जीवनचर्या ठीक नहीं रखता उस का हश्र तो ऐसा ही होता है निहालजी, मैं फिलहाल तो अपनेआप में ही इतना व्यस्त हूं कि इन सब चीजों के लिए मेरे पास वक्त नहीं और न ही मैं अब तक डाक्टर बनी हूं जो आप को कोई इलाज बता सकूं. आप वहीं के सरकारी हस्पताल के डाक्टर की सलाह पर अमल कीजिए.’’

‘‘फिर भी मैं आप को डाक से रुक्का भेज रहा हूं, आप उसे अस्पताल में दिखवा दीजिएगा और दवाई वगैरह के बारे में राय भेज दीजिएगा.’’

‘‘ठीक है,’’ विद्या ने बात काटते हुए कहा.

‘‘विद्या ने क्या कहा निहाल? मुझे यकीन है कि तूने जरूर फोन किया होगा.’’

‘‘नहीं,’’ निहाल की मानो चोरी पकड़ी गई थी. निहाल थोड़ी देर के लिए खामोश हो गया, फिर बोला, ‘‘हां मैं ने किया था, मेरी बात हुई थी.’’

‘‘क्या कहा विद्या ने?’’

‘‘कहना क्या था बस बेचारी फूटफूट कर रो पड़ी. कहने लगी अब आप ही ध्यान रखिए अभिनव का और आप कहें तो मैं वापस आ जाऊं. मैं ने बिलकुल मना कर दिया. ठीक किया न?’’

आंसू की एक बूंद अभिनव की पलकों की छोर से बह निकली जिसे उस ने फौरन पोंछ दिया, ‘‘देखा निहाल इसे कहते हैं प्यार, दिल से दिल का रिश्ता, थोड़े ही दिनों की बात है विद्या मेरे पास होगी, हम अपनी जिंदगी की शुरुआत करेंगे, जो गुनाह मैं ने उस से ?ाठ बोल कर किया था उस का पश्चात्ताप पूरा होगा.’’

आखिरकार विद्या एक दिन अभिनव के सामने थी. अभिनव का स्वास्थ्य अत्यधिक खराब था मगर विद्या को देख उस की चेतना मानो सामान्य हो गई. होंठों पर एक मुसकान फैल गई और उस ने अपनी बांहें आगे कर दीं.

विद्या ठिठक गई, ‘‘अभिनव तुम्हें ऐक्टिव टीबी है जो संक्रामक है. मु?ो तुम्हारे पास नहीं आना चाहिए, अगर मुझे भी यह बीमारी हो गई तो बहुत बड़ा व्यवधान हो जाएगा. तुम ठीक हो जाओ फिर…’’

‘‘बिलकुल ठीक कह रही हो विद्या, मैं ठहरा अनपढ़ गंवार इतना इल्म होता तो मैं डाक्टर न बन जाता. जब तक मैं पूरी तरह से ठीक नहीं हो जाता तुम्हारे करीब नहीं आऊंगा.’’

विद्या ने संयत रहने का प्रयास करते हुए कहा, ‘‘ठीक है मैं चलती हूं.’’

उस दिन के बाद शायद ही विद्या कभी वापस आई, अभिनव की पथराई आंखें उस की राह तकती रहतीं. उस की सेहत धीरेधीरे उस की जिंदगी का साथ छोड़ रही थीं. निहाल और दादा उस की देखभाल करते. उड़तीउड़ती खबर भी आती कि विद्या और डाक्टर विश्वास एकदूसरे के करीब आ रहे हैं.

अभिनव मुसकरा कर इन खबरों को टाल देता, ‘‘निहाल, विद्या सिर्फ मेरी है, कामकाज के दौरान घनिष्ठता हो ही जाती है. इस का यह मतलब तो नहीं.’’ निहाल उसे तकता रहता.

एक सुबह अभिनव, निहाल और दादा घर के आंगन में बैठे हुए थे कि सामने विद्या आती नजर आई. विद्या को सामने देख कर अभिनव  की खुशी का ठिकाना न रहा. अभिनव को देख कर एक पल के लिए वह स्तब्ध रह गई. शरीर क्या था एक ढांचा था. एक क्षण के लिए सहानुभूति की लहर उस के तनबदन में दौड़ गई मगर अगले ही पल उस ने मानो स्वयं को संभाला.

अभिनव विद्या को देख कर यों प्रसन्न हुआ मानो किसी प्यासे को जल का स्रोत और भूखे को भोजन मिल गया हो, ‘‘आओ विद्या, मैं तुम्हें ही याद कर रहा था. कैसा चल रहा है?’’

‘‘ठीक ही चल रहा है अभिनव मगर तुम चाहो तो और भी अच्छा चल सकता है… मुझे जिंदगी का सही मकसद हासिल हो सकता है अगर तुम मेरा साथ दो तो.’’

‘‘मैं?’’ अभिनव हैरान था, ‘‘मैं भला तुम्हारे क्या काम आ सकता हूं? मेरे पास क्या है जो मैं तुम्हें दे पाऊं सिवा प्यार के.’’

‘‘अभिनव मैं झूठ और फरेब में विश्वास नहीं करती और न ही मैं पीछे मुड़ कर देखने में यकीन करती हूं. मेरा आज और मेरा आने वाला कल मेरे लिए महत्त्वपूर्ण है न कि बीता हुआ कल,’’ विद्या ने ?ाठ और फरेब पर जोर देते हुए कहा.

अभिनव ने एक मुसकराहट फेंकी, ‘‘विद्या मैं अनपढ़ और गंवार इंसान हूं तुम इस बात को अच्छी तरह से जानती हो. मुझसे पहेलियां न बुझाओ. साफसाफ कहो मैं तुम्हें निराश नहीं करूंगा.’’

‘‘तुम शायद मुझे खुदगर्ज और मतलबी सम?ागे, हो सकता है मुझसे नफरत

भी करने लग जाओ या मेरा जिक्र भी तुम्हें कुंठित कर दे, हो सकता है तुम मेरे किए को मेरा इंतकाम सम?ा, तुम्हारे दिए धोखे का बदला.’’

‘‘कैसी बात कर रही हो विद्या? मेरे धोखे में छिपा मेरा प्यार क्या तुम्हें अब तक नजर नहीं आया और फिर पतिपत्नी के रिश्ते में इंतकाम या प्रतिशोध के लिए कोई स्थान नहीं होता. याद रखना जिस रोज मु?ो तुम्हारे नाम से नफरत हो जाएगी, वह दिन मेरी जिंदगी का अंतिम दिन होगा. तुम नहीं जानती मैं तुम से कितना प्यार करता हूं.’’

विद्या ने एक फाइल आगे कर दी, ‘‘इसे पढ़ लेना.’’

‘‘अगर मैं पढ़ पाता तो आज तुम्हारे सामने गुनहगार की तरह खुद को खड़ा न पाता, तुम से नजर मिला कर बात करता, तुम्हीं बता दो क्या है यह और मुझे क्या करना है?’’

‘‘ये तलाक के कागजात हैं. मैं अपनी नई जिंदगी शुरू करना चाहती हूं डाक्टर विश्वास के साथ. मुझे तुम्हारी सहमति और हस्ताक्षर चाहिए.’’

अभिनव को काटो तो खून नहीं. बहुत कुछ कहना चाह रहा था मगर खामोश रहा. तन की  शक्ति तो क्षीण हो ही चुकी थी आज मन ने भी साथ छोड़ दिया.

‘‘क्या सोच रहे हो अभिनव? मत भूलो

कि हमारी शादी की इमारत झूठ की बुनियाद पर टिकी थी.’’

‘‘नहीं मैं तो सोच रहा था कि इतनी सी बात कहने में तुम्हें इतना संकोच क्यों हो रहा है?’’

विद्या यंत्रवत ढंग से बोली, ‘‘संकोच इसलिए क्योंकि मैं ने तुम्हारा इस्तेमाल किया है.’’

‘‘मैं ने तो प्यार किया है,’’ अभिनव ने स्फुटित स्वर के कहा.

‘‘तुम जरा भी अपराधबोध से मत जीना, मैं हस्ताक्षर कर दूंगा. तुम आजाद थी और आजाद रहोगी… तुम एक अच्छी कामयाब डाक्टर बन कर अपने डाक्टर पति के साथ अपनी जीवनयात्रा की नई शुरुआत करो. मेरा वजूद भी अपने दिलोदिमाग से निकाल देना. अपने अतीत को, मु?ो पूरी तरह से भूल जाना.’’

‘‘मेरा आदमी कल सुबह आ कर कागजात ले जाएगा.’’

‘‘एक गुजारिश है विद्या अगर मान सको तो.’’

विद्या ठिठक गई, ‘‘कहो.’’

‘‘कागजात लेने के लिए कल सुबह तुम स्वयं ही आना. किसी और को न भेजना. मेरी आखिरी इल्तजा जान कर फैसला करना,’’ अभिनव के हाथ स्वत: ही जुड़ गए थे.

‘‘ठीक है? मैं कल सुबह तुम से मिलती जाऊंगी,’’ विद्या के सिर पर से मानो मनो वजन उतर गया था. चैन की सांस लेते हुए वह लंबेलंबे डग भरते हुए घर और गली से बाहर निकल गई.

अगली सुबह जब विद्या अभिनव से मिलने पहुंची तो गली के मोड़ पर ही सामने से आते काफिले की वजह से उसे रुकना पड़ा. उस ने

गौर से देखा तो काफिले में निहाल को सब से आगे पाया. विद्या की गाड़ी को देख कर निहाल ठिठक गया और आगे बढ़ कर उस ने गाड़ी का शीशा खटखटाया.

विद्या ने शीशा नीचे किया और इस के पहले वह कुछ कहती या पूछती, निहाल ने कागज का एक पुलिंदा आगे कर दिया, ‘‘अभिनव ने आप के लिए यह भेंट दी है. आप न आतीं तो मैं देने आने ही वाला था.’’

विद्या ने हैरान हो कर कागज अपने हाथ में लिए और पन्ने पलटने लगी. पहले ही पृष्ठ पर उस की नजर ठिठक गई, उसे लिखे गए शब्दों पर विश्वास ही न हुआ. उस के पैरों तले मानो जमीन खिसक गई, कोने में बड़ेबड़े लफ्जों मे लिखा था, ‘‘जीतेजी तुम्हें स्वयं से अलग नहीं कर पाऊंगा. तुम्हारा अभिनव.’’

विद्या निहाल को कुछ पूछने के लिए गाड़ी से उतरी मगर निहाल कहीं भीड़ में ओझल हो गया था. हार कर वह गाड़ी में वापस बैठ गई. उस ने अपने ड्राइवर को किसी से बात करते हुए सुना, ‘‘कोई सिरफिरा था, किसी से बेइंतहा प्यार करता था, उसी की बेवफाई ने बेचारे की जान ले ली.’’

क्या आपकी भी है सैंसिटिव स्किन, तो इन तरीकों से करें देखभाल

क्या आपने भी कभी किसी एलर्जी की वजह से अपनी त्वचा पर किसी तरह के बदलाव का अनुभव किया है? जैसे कि त्वचा पर लाल-लाल चकत्तों का आना, खुजली या फिर नोंचने-खरोंचने की इच्छा. ये सभी स्किन सेंसेटिविटी यानि त्वचा संवेदनशीलता के संकेत हैं.

हालांकि ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्हें इस बात का नहीं पता होता कि उनकी त्वचा किस प्रकार की है? संवेदनशील या सामान्य. तो आइए, पहले जानते हैं कि वे कौन से संकेत हैं जो हमें हमारी त्वचा की संवेदनशीलता का आभास कराते हैं.

 

संवेदनशील त्वचा के प्रारंभिक संकेत :

1. थ्रेडिंग या वेक्सिंग के बाद त्वचा का रुखा हो जाना या फिर जलन और खुजली होना.

2. चेहरा धोने के बाद उसमें खिंचाव महसूस करना.

3. त्वचा अचानक ज्यादा लाल हो जाना और मुंहासे निकल आना.

4. मौसम के बदलाव का त्वचा पर जल्द असर दिखना.

5. बिना किसी बाहरी कारण के भी त्वचा में जलन होना या खुजली होना.

6. कुछ नहाने और कपड़े के साबुन भी ऐसे होते हैं जिनके प्रयोग से त्वचा में जलन होने लगती है

7. समय से पहले झुर्रियों का आ जाना.

तो इन वजहों से त्वचा होती है संवेदनशील :

1. गंदगी और प्रदूषण

2. कठोर पानी

3. अपर्याप्त साफ-सफाई

4. दूषित जीवन शैली

5. हार्मोन

6. तनाव

7. आहार और त्वचा में नमी की मात्रा

8. हानिकारक स्किन केयर उत्पाद

9. कपड़े और गहने

10. होम क्लीनिंग

इसके बाद तो आप समझ ही गए होंगे कि आपकी स्किन सेंसेटिव है या नहीं. अगर आपकी स्किन सेंसटिव है तो आपको ऐसे रखना होगा अपनी स्किन का ख्याल…

1. अपनी त्वचा के लिए परखकर ही कॉस्मेटिक का इस्तेमाल करें.

2. धूल-मिट्टी और केमिकल से त्वचा को बचा कर रखें.

3. ठंड में हमेशा मुलायम ऊन के स्वेटर पहने. सिन्थेटिक ऊन से स्किन में एलर्जी हो सकती है.

4. सौन्दर्य उत्पाद खरीदते समय लेबल को देख लें अगर वह संवेदनशील त्वचा के लिए है तभी ही खरीदें.

5. हर्बल और नेचुरल सौन्दर्य उत्पादों का इस्तेमाल करें.

6. धूप में निकलने से पहले चेहरे पर सनस्क्रीन क्रीम या लोशन लगा लें.

7. बालों में कंघी के लिए कड़े बालों वाले ब्रश का इस्तेमाल नहीं करें.

8. तेज परफ्यूम वाले साबुन या डिटरजेंट के प्रयोग से परहेज करें.

9. परफ्यूम या आफ्टर शेव लोशन खरीदते समय उसको अपनी त्वचा पर स्प्रे कर परख लें. अगर स्किन सेंसेटिव है तो स्किन में इचिंग हो सकती है.

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