मैंने परिवार को बिना बताए शादी कर ली है, जिसके कारण मैं परेशान हूं…

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं एक युवक से 1 साल 4 महीने से प्यार करती हूं. 2 महीने बात करने के बाद मैंने 6 अप्रैल, 2014 को उस से शादी कर ली. यह बात हम दोनों के परिवार वाले नहीं जानते. हम ने कोर्टमैरिज नहीं की. मैं अपना घर छोड़ कर 5 महीने से दिल्ली में जौब करके अकेली रहती हूं. वह युवक आर्मी में है और मुझ से बात करता रहता है. मैं अब 2 माह से गर्भवती हूं. मैं अकेली क्या करूं? वह अप्रैल में मेरे पास आया था. ऐसे में मैं अपने घर भी नहीं जा सकती.

जवाब

आप अपने परिवार वालों से बात करें. अपनी वास्तविकता से उन्हें अवगत करवाना जरूरी है. आप अपने पति से कहें कि वे अपने परिवार वालों से बात करें. आप दोनों की शादी हुई है, इस का आप के पास कानूनी सुबूत क्या है? आप जिस स्थिति में हैं इस में आप को भावनात्मक रूप से पति की, परिवार वालों की खास जरूरत है. आप अपने पति से खुल कर बात करें कि वे कब आएंगे? उन की अनुपस्थिति में आप स्थिति संभाल पाएं इस के लिए उन्हें विशेष प्रबंध करना होगा. ये सब आप जितनी जल्दी करें, उतना ही बेहतर होगा.

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जिंदगी के प्रति आप के नजरिए को बदल देती है प्रैगनैंसी

गर्भावस्था महिलाओं के लिए वह समय होता है जब वे शिशु की सुरक्षा के लिए अपने खानेपीने और स्वास्थ्य का हर संभव ध्यान रखती हैं. गर्भवती महिलाएं हमेशा खुश रहने और अपना ज्यादा से ज्यादा ध्यान रखने की कोशिश करती हैं.

कुछ महिलाओं के लिए गर्भावस्था तकलीफदेह हो सकती है जैसे उन्हें मौर्निंग सिकनैस, पैरों में सूजन, चक्कर और मितली आना आदि परेशानियां हो सकती हैं. मगर आमतौर पर गर्भावस्था हमेशा महिलाओं में सकारात्मक बदलाव ले कर आती है. इस से उन के शरीर और दिमाग दोनों में संपूर्ण रूप से सकारात्मक बदलाव आते हैं.

शरीर पर गर्भावस्था के सकारात्मक प्रभाव

– गर्भावस्था का अर्थ है कम मासिकस्राव, जिस से ऐस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरौन हारमोन का संपर्क सीमित हो जाता है. ये हारमोंस स्तन कैंसर के खतरे को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार होते हैं, क्योंकि ये कोशिकाओं की वृद्धि को प्रेरित करते हैं और महिलाओं के स्तन कैंसर के खतरे को बढ़ा सकते हैं. साथ ही गर्भावस्था और स्तनपान के दौरान ब्रैस्ट सैल्स में जिस तरह के बदलाव होते हैं, वे उन्हें कैंसर कोशिकाओं में बदलने के प्रति अधिक प्रतिरोधक बना देते हैं.

– गर्भावस्था के दौरान पेल्विक क्षेत्र में रक्तसंचार बढ़ जाता है, प्रसव और डिलिवरी से गुजरने के बाद महिलाओं को खुद में एक नई ताकत महसूस होती है.

दिमाग पर सकारात्मक प्रभाव

– बच्चा होने से औटोइम्यून डिसऔर्डस जैसे मल्टीपल स्केल्रोसिस के होने का खतरा कम हो जाता है.

– गर्भावस्था सकारात्मक व्यवहार ले कर आती है और महिला को मजबूत बनाती है. इस से जीवन में आने वाले बदलावों से लड़ने में आसानी हो जाती है, साथ ही नकारात्मक सोच व चिंता से भी बचाव होता है.

शिशु के जन्म के बाद सकारात्मक प्रभाव

– अधिकांश महिलाओं ने पाया है कि पहले बच्चे के जन्म के बाद उन की मासिकस्राव से जुड़ी तकलीफें काफी कम हो गई हैं.

– प्रसव के बाद अधिकांश महिलाओं के स्वास्थ्य में सकारात्मक बदलाव आते हैं और वे शराब, धूम्रपान जैसी बुरी लतें छोड़ देती हैं.

– एक मां अपने आसपास खुशियों का खजाना देख कर खुशी और उत्साह से भर जाती है. जब भी मां अपने बच्चे को गोद में लेती या उसे स्तनपान कराती है तो औक्सीटोसिन हारमोन इस गहरे रिश्ते को जोड़ने में अहम भूमिका निभाता है. यह बहुत ही ताकतवर होता है, जिस की वजह से कोई भी कुछ घंटों के लिए और कई बार कुछ दिनों के लिए भी चिंता को भूल सकता है.

– शिशु के जन्म के बाद त्वचा चमकदार और बाल चमकीले हो जाते हैं, साथ ही कीलमुंहासों की समस्या से भी मुक्ति मिल जाती है.

 

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जड़ें : आखिर क्यों रोई थी विनी

टेलीफोन की घंटी बहुत देर से बज रही थी. विनी बाथरूम में थी. वह बिना नहाए ही बाथरूम से निकली, रिसीवर को उठा कर जैसे ही उस ने कान पर ला कर ‘हैलो’ कहा, एक ऐसी आवाज उस के कानों में पड़ी जो बड़ी पहचानी सी थी परंतु फिर भी पहचान के घेरे में नहीं आ पा रही थी.

‘‘हैलो…कौन?’’ उस  ने बेसब्री से कहा.

‘‘विनी दीदी…नहीं पहचाना, नमस्ते…लगता है आप भूल गई हैं,’’ ये आवाज विनी को कई वर्ष पीछे धकेल कर ले गई.

‘‘अरे, राजू? कहां से बोल रहे हो भाई?’’ उस के मुख पर हर्षोल्लास पसर गया.

‘‘मैं अमेरिका से बोल रहा हूं…’’ आवाज खनक रही थी, ‘‘आप का आशीर्वाद है दीदी. इसीलिए यह सबकुछ हो सका. मैं ने यहां घर बना लिया है, दीदी. अपनेआप पर विश्वास नहीं होता. पता नहीं मैं यह सबकुछ कैसे कर पाया.’’

‘‘हम कहां कुछ करते हैं, राजू? हम तो माध्यम हैं न? हमें तो सिर्फ गुमान रहता है कि हम ने किया, हम करते हैं…’’ विनी आदत के अनुसार अपना फलसफा झाड़ना न भूली.

‘‘यही बातें सुनने को मेरा मन बेचैन रहता है, दीदी. यहां सबकुछ है, हर सुखसुविधा है पर वह बात नहीं जो वहां पर थी. और सब से बड़ी बात यहां विनी दीदी नहीं हैं…’’

‘‘अच्छा, अच्छा क्यों अपना बिल बढ़ा रहा है? मुंबई से तो कभी बात भी कर लेता था पर वहां जा कर तो भूल ही गया अपनी विनी दीदी को,’’ उस ने उलाहना दे कर बात बदलने का प्रयास किया.

‘‘नहीं, दीदी, भूलता तो आप को फोन कैसे करता. मेरी इच्छा थी कि पहले कुछ बन जाऊं तब आप को बताऊंगा कि मैं कुछ कर पाया. संस्कार तो आप से ही पाए हैं मैं ने. जड़ें मेरी वहां पर ही हैं, अपनी जड़ों से अलग हो कर कोई पेड़ पनप सकता है क्या? फिर मेरा बोधिवृक्ष तो आप हैं. मैं ने आप को पत्र लिखा है, दीदी.’’

‘‘पता नहीं क्याक्या बोल रहा है. चल, बच्चों को व बहू को मेरा प्यार देना, कभीकभी याद कर लिया करना अपनी विनी दीदी को…बाय…’’

विनी ने रिसीवर रख दिया. दरअसल, उस की भी आंखें भर आई थीं. वह धम्म से सोफे पर बैठ गई और अपने अतीत में विचरण करने लगी.

विनी जब विवाह कर के गुजरात आई थी तब राजू 8-10 वर्ष का था. धीरेधीरे राजू विनी के पास आने लगा. सामने नीचे वाले फ्लैट में ही वह रहता था. तनु को देखदेख कर बहुत खुश होता वह, कभी कहता कि कितना गोरा है, कितना सुंदर…वह उसे हर समय घुमाने के चक्कर में रहता. साल भर का होतेहोते तनु अपनी मां से अधिक राजू को पहचानने लगा था. विनी को भी बड़ी सुविधा होती.

राजू के परिवार में 4 भाई, 1 तलाकशुदा बहन व उस का बेटा और मातापिता थे. हर चीज उसे सब से कम व बची हुई ही मिलती. राजू के मन में एक ‘कांप्लेक्स’ आ गया था. एक बार राखी के दिन ऊपर आ गया. बोला, ‘दीदी, आप मुझे राखी बांधेंगी?’ विनी को उस का दीदी कहना बड़ा प्यारा लगता.

‘तुम्हारी तो बहन है न, राजू?’ विनी ने पूछा था.

‘हां, है न. पर मुझे राखी बंधवानी है. आप बांधेंगी न?’ वह राखी भी साथ ले कर आया था.

‘लाओ,’ विनी ने राखी उस के हाथ से ले कर उसे बांधी और टीका कर के उस के मुंह में मिठाई रख दी.

विनी उत्तर प्रदेश से गुजरात आई थी. वहां की प्रथा के अनुसार वह हर रक्षाबंधन को जवे, सेंवई बनाती. राजू ने दूध के जवे खाए तो उस का मन बागबाग हो गया. फिर वह हर वर्ष आ कर राखी बंधवाता और बड़ा सा कटोरा भर कर जवे खाता. विनी को न जाने क्यों उसे खाते देख कर एक अजीब तरह का सुख मिलता.

2-3 वर्ष बाद एक राखी के दिन राजू अचानक ही रोंआसा हो उठा था.

‘क्या बात है, राजू?’ विनी ने प्यार से पूछा.

‘कुछ नहीं, दीदी,’ आंसू आ कर उस की पलकों पर ठहर गए, ‘मैं आप को कुछ नहीं दे पाता हूं…’ कहतेकहते वह रो पड़ा.

‘बड़ा पागल है तू. क्या चाहिए मुझे. प्यार नहीं करता अपनी दीदी को?’

‘आप इतनी अच्छी क्यों हैं, दीदी? मुझे घर में चाय नहीं मिलती तो मैं आप के पास चला आता हूं, कुछ खाना

हो तो आप बना देती हैं, गरमगरम.

मेरी मां तो इतना कुछ नहीं करती

मेरे लिए.’

‘देख राजू, मां के पास कितना काम है करने के लिए. वह थक जाती हैं न. फिर तेरा मन जो कुछ खाने का होता है तू मेरे पास आता है, मैं बना देती हूं, क्या फर्क पड़ता है. मां तो बेटा मां ही होती है. तुम्हारी जड़ें उस में होती हैं. मां के लिए गलत कभी नहीं सोचना,’ कह कर विनी ने उस का माथा चूम लिया.

‘दीदी, मैं आप के लिए कुछ लाया हूं,’ एक दिन सहमते हुए उस ने रक्षाबंधन का तोहफा जेब से निकाल कर उस की हथेली पर रख दिया. यह एक छोटी सी सुंदर चांदी की डिबिया थी जिस पर एक सुंदर सी तसवीर बनी हुई थी.

‘ये कहां से लाया, राजू…’ विनी चौंकी, ‘मां की है न…बोल?’

‘हां.’

‘मां को पता है…?’

उस ने नहीं में सिर हिलाया.

‘गलत है न, बेटा. यह तो गलत काम हुआ. तू मुझे प्यार करता है न, वही तेरा गिफ्ट है. चल, मां की अलमारी में रख कर आ. रख देगा या मैं चलूं तेरे घर?’ विनी का माथा ठनकने लगा था.

‘नहीं दीदी, मैं रख दूंगा,’ उस ने धीरे से होंठ हिलाए.

‘पक्का?’

‘हां.’

राजू चला गया. पर उस के बाद जब भी वह आता विनी उसे अच्छीअच्छी बातें सिखाने का प्रयास करती.

उस ने पति से कह कर उन के व्यवसाय में उसे लगा दिया.

राजू ने काम के साथसाथ ही तकनीकी काम सीखना भी शुरू कर दिया था. उस के लिए आर्थिक सहायता भी विनी व उस के पति ने दी थी.

आज वह एक कुशल कारीगर बन अमेरिका पहुंच गया था. विनी को अच्छा लगना स्वाभाविक ही था. छोटे से छुईमुई के पौधे को मजबूत पेड़ के रूप में बढ़ते देख उसे बहुत खुशी हुई.

‘‘पोस्टमैन,’’ डाकिया ने डोरबेल का स्विच दबाते हुए जोर से कहा.

घंटी की आवाज से उस की तंद्रा भंग हुई और वह हड़बड़ाती हुई मेनगेट पर आई. डाकिए ने एक लिफाफा विनी को पकड़ाया और चलता बना.

आज 10-15 दिन बाद उसे राजू का पत्र मिला था. लिखा था :

स्नेहमयी, प्यारी दीदी,

चरण स्पर्श.

जीवन के जिस मोड़ पर आप से सहारा मिला उसे शब्दों में कैसे कहूं? आप लोगों की स्मृति सदा ही बनी रहती है. दीदी, यहां आ गया हूं क्योंकि इस संसार में जीने के लिए पूरे परिवार को धन की आवश्यकता होती है. आप से बहुत छोटा हूं परंतु अब तक जो भी अनुभव हुए उन के अनुसार लगा कि अगर ‘हैंड टू माउथ’ रहा तो कोई मुझे पूछेगा तक नहीं. नहीं जानता आप से किन जन्मों का संबंध है. पर दीदी, प्रार्थना करूंगा, आने वाले जन्मों में आप के पेट से जन्म लूं. आप मुझे अपना नाम दे सकें और दे सकें वे संस्कार जिन से मैं एक सही इनसान बन सकूं. यहां आ कर धन कमाना बहुत बड़ी सफलता नहीं है, दीदी, सफलता तब होगी जब मैं आप के दिए हुए नियम व संस्कारों को सहेज कर रख सकूंगा. आशीर्वाद दीजिए, दीदी. बच्चों को मेरा स्नेह व अंकल को सादर चरण स्पर्श…

आप का अपना, राजू.

विनी पत्र हाथ में पकड़े उस गुजराती बच्चे की भावनाओं को तोलती रह गई. उस की आंखों से अश्रुधारा बहने लगी मानो अपने छोटे भाई पर आशीषों की बरखा कर रही हो. उस का मन संतुष्टि एवं प्रसन्नता से भर उठा था. बहुत गहरी, मजबूत जड़ें थीं रिश्तों की.

हवा के पंख: मुग्धा समिधा से नराज क्यों हो गई

जब से मुग्धा का परीक्षा परिणाम आया था तब से न केवल नीलकांत परिवार में, बल्कि पूरे गांव में आनंद की लहर थी. नीलकांतजी की तो ऐसी दशा थी मानों कोई मुंह में लड्डू भर दे और फिर उन का स्वाद पूछे.

नीलकांतजी के तीनों बेटों और दोनों बेटियों में मुग्धा सब से अधिक प्रतिभाशाली थी. तीनों बेटे गिरतेपड़ते स्नातक बन पाए थे. उन की बड़ी हवेली में सब ने अपनी अलगअलग गृहस्थी जमा ली थी. खेतीबाड़ी और छोटेमोटे व्यवसाय के साथ ही गांव की राजनीति में भी उन की खासी रुचि थी.

मुग्धा की बड़ी बहन समिधा की भी पढ़ाईलिखाई में खास रुचि नहीं थी. गांव में केवल इंटर तक ही विद्यालय था. पर इंटर की परीक्षा में असफल होते ही उस ने घोषणा कर दी थी कि पढ़ाईलिखाई उस के बस की बात नहीं है.

वह तो पहले मौडल बने, फिर फिल्मी तारिका.नीलकांतजी यह सुनते ही चकरा गए थे. नयानगर जैसे छोटे से कसबे में रहने वाली समिधा के मुख से यह बात सुन कर वे हक्केबक्के रह गए थे. आननफानन घर के बड़े सदस्यों ने निर्णय लिया था कि शीघ्र ही समिधा के हाथ पीले कर के अपने कर्तव्य से मुक्ति पा ली जाए. विवाह के बाद वह मौडल बने या तारिका उन की बला से.

नीलकांतजी का दृढ़विश्वास था कि विवाह समिधा की आशाओंआकांक्षाओं को नियंत्रित करने में सशक्त अस्त्र साबित होगा.ऐसे में परिवार की सब से छोटी कन्या मुग्धा के राज्य भर में प्रथम आने का समाचार आया तो पहले तो किसी को विश्वास हीनहीं हुआ.

धमाकेदार समाचारों की खोज में भटकते एक खोजी पत्रकार को इस घटना में उभरते भारत की नई छवि दिखाई दी और उन्होंने मुग्धा का पताठिकाना और फोन नंबर खोज निकाला.फोन नीलकांतजी ने ही उठाया था. ‘‘मैं संतोष कुमार बोल रहा हूं.

आरोहण नामक समाचार चैनल से. क्या मुग्धा चौधरी का घर यही है?’’‘‘हां यही है मुग्धा का घर, पर तुम्हारा साहस कैसे हुआ मेरी बेटी को फोन करने का?

तुम जानते नहीं तुम किस से बात कर रहे हो?’’ नीलकांतजी क्रोधित स्वर में बोले.‘‘मैं सचमुच नहीं जानता. आप जब तक परिचय नहीं देंगे जानूंगा कैसे?’’‘‘मैं नीलकांत मुग्धा का बाप. मेरी बेटी का नाम फिर से तेरी जबान पर आया तो जबानखींच लूंगा.’’‘

‘आप पहले मेरी बात तो सुनिए… व्यर्थ ही आगबबूला हुए जा रहे हैं… आप की बेटी पूरे प्रांत में 10वीं कक्षा में प्रथम आई है. मैं उस का साक्षात्कार लेना चाहता हूं. बस, इतनी सी बात है.’’

‘‘यह इतनी सी बात नहीं है महोदय. हमारे परिवार की कन्या टीवी चैनल पर साक्षात्कार देती नहीं घूमती और जहां तक प्रांत में प्रथम आने का प्रश्न है तो आप को अवश्य कोई गलतफहमी हुई है. हमारे परिवार के बच्चों के तो पास होने के लाले पड़े रहते हैं…

हमारे परिवार के किसी बच्चे की आज तक प्रथम श्रेणी नहीं आई, तो प्रांत में प्रथम आने की तो बहुत दूर की बात है. ठीक से पता लगाइए प्रांत में प्रथम आने वाली मुग्धा कोई और होगी,’’ नीलकांतजी ने फोन का रिसीवर रखते हुए कहा.‘‘न जाने कहां से चले आते हैं ऐसे मूर्ख,’’ वे बुदबुदाए थे.

फिर कुछ सोचते हुए उन्होंने मुग्धा को पुकारा, ‘‘मुग्धा… मुग्धा…’’‘‘क्या है पापा?’’‘‘तुम्हारे पेपर कैसे हुए थे बेटी?’’‘‘अच्छे हुए थे. पर आप 2 माह बाद यह प्रश्न क्यों पूछ रहे हैं?’’‘‘पास तो हो जाओगी न तुम?’’‘‘आप को मेरे पास होने में भी संशय है? पापा मेरी प्रथम श्रेणी आएगी,’’ मुग्धा आत्मविश्वास भरे स्वर में बोली थी.

‘कहीं सच में प्रांत में प्रथम तो नहीं आ गई यह लड़की? उन्होंने मन ही मन सोचा पर मुग्धा को बताने से पहले वे स्वयं इस समाचार की परख कर लेना चाहते थे.’ तैयार हो कर वे बाहर निकलते उस से पहले ही मुख्यद्वार पर शोर उभरा.

खिड़की से झांक कर देखा तो मुग्धा के विद्यालय के प्रधानाचार्य व अन्य अध्यापक मुग्धा के सहपाठियों के हुजूम के साथ खड़े थे.‘‘नीलकांत बाबू, कमाल हो गया… मुग्धा मेधावी छात्रा है. अच्छे नंबरों से पास होगी, इस की आशा तो हम सब को थी, पर प्रांत में प्रथम आएगी, यह तो सपने में भी नहीं सोचा था,’’

प्रधानाचार्य कमलकांतजी नीलकांतजी को देखते ही उन के गले लगते हुए बोले.‘‘मुग्धा जैसी छात्रा का 11वीं कक्षा में हमारे ही विद्यालय में आना गौरव की बात होगी. पर हम इतने स्वार्थी नहीं हैं. इस छोटे से कसबे में उस की प्रतिभा दब कर रह जाएगी.

उस का दाखिला किसी बड़े शहर में किसी जानेमाने कालेज में करवाने से उस की प्रतिभा में और निखार आएगा. मेरी बात मानिए, मुग्धा असाधारण प्रतिभा की धनी है. सही वातावरण में ही उस की प्रतिभा फूलफल सकेगी.’’जातेजाते कमलकांतजी कुछ ऐसा कहगए, जिस ने नीलकांतजी को सोचने पर विवश कर दिया.

बधाई देने वालों का सिलसिला कुछ थमा तो मुग्धा के भविष्य पर गंभीरतापूर्वक विचार किया जाने लगा. किसी भी निर्णय से पहले भलीभांति विचार कर बहुमत से किसी उल  झन को सुल  झाना नीलकांत परिवार की परंपरा थी. पर घर की कन्या का घर छोड़ कर छात्रावास में रहना अनहोनी सी बात थी.

परिवार के कुछ सदस्य इस के समर्थन में थे तो कुछ विरोध में.‘‘प्रदेश में प्रथम आ कर कौन सा तीर मार लिया? आखिर तो चूल्हाचौका ही संभालना है… यह आवश्यक तो नहीं कि प्रधानाचार्य जैसाकहें हम वैसा ही करें,’’ मुग्धा के बडे़ भाई रमाकांत विशेष अंदाज में बोले तो उन से छोटे दोनों भाइयों ने भी उन के समर्थन में अपने हाथ उठा दिए.‘‘लो सुन लो इन की बात… इन मूर्खों को तो यह भी नहीं पता कि आजकल महिलाएं चूल्हेचौके के संग और भी बहुत कुछ संभाल रही हैं… वैसे यह चूल्हाचौका न संभाले तो भूखे मर जाएं तुम सब,’’ सोमा दादी ने अपने तीनों पोतों को फटकार लगाई.‘‘दादीजी, आप ने मुग्धा को सिर चढ़ा रखा है. तभी तो किसी की नहीं सुनती,’’ रमाकांत ने दादी को उकसाया.‘‘आज तो मुग्धा के 7 खून भी माफ हैं.

उस ने जो कर दिखाया है, वह आज तक गांव में भी कोई नहीं कर सका… मेरा सपना तो मेरी मुग्धा ही पूरा करेगी,’’ सोमा दादी एकाएक भावुक हो उठीं.‘‘आप का सपना?’’ समवेत स्वर में पूछा गया प्रश्न देर तक हवा के पंखों पर तैरता रहा.‘‘हां मेरा सपना. 8वीं कक्षा में अपने स्कूल में प्रथम आई थी मैं. पर सब ने घेरघार कर शादी कर दी मेरी…

पूरा जीवन गृहस्थी के कोल्हू को खींचने में बीत गया. मैं मुग्धा के साथ ऐसा नहीं होने दूंगी,’’ सोमा दादी ने अपना दुखड़ा सुनाया तो सब एकदूसरे का मुंह ताकने लगे. सोमा दादी कभी 8वीं में पूरे स्कूल में प्रथम आई थीं, यह तो उन सब को पता ही न था.

‘‘मां, हम न तो मुग्धा की पढ़ाई छुड़वा रहे हैं, न ही उस की शादी कर रहे हैं. प्रश्न यह है कि आगे की पढ़ाई वह कहां करेगी. स्थानीय कालेज में या किसी बड़े शहर में? नीलकांतजी सोमा दादी को भूतकाल से वर्तमान में खींच ले आए.’’‘‘इस बात पर बहस करने से पहले मुग्धासे तो पूछ लो कि वह क्या चाहती है… हैकहां मुग्धा?’’‘‘अपने सहपाठियों के साथ चली गई है.

थोड़ी देर में आएगी,’’ मुग्धा की मां निर्मला बोलीं.दादी की बात सुन कर निर्मला देवी के घाव भी ताजा हो गए थे. अंतर केवल इतना था कि उन का इंटर करते ही विवाह कर दिया गया था. उन की भी उच्च शिक्षा प्राप्त करने की इच्छा मन की मन में ही रह गई थी.

‘‘मुग्धा कुछ भी चाहे पर मैं तो अपने मन की बात कह देता हूं. मुग्धा का यहीं दाखिला करवा दो. लड़कियों को अधिक आजादी देना ठीक नहीं है,’’ रमाकांत ने साफ कहा.‘‘अभी तो मैं बैठा हूं… मुग्धा के लिए क्या भला है और क्या बुरा, इस का निर्णय मैं करूंगा,’’ नीलकांतजी ने घोषणा की.

‘‘हम तो पहले ही जानते थे… इस घर में हमारी सुनता ही कौन है,’’ रमाकांत ने बुरा सा मुंह बनाया.मगर मुग्धा की गैरमौजूदगी में कोई निर्णय नहीं लिया जा सका.मुग्धा के राज्य में प्रथम आने का समाचार सुनते ही समिधा अपने परिवार सहित आ धमकी थी.

अब वह भी परिवार में चल रही बहस का हिस्सा बन गई थी.‘‘मेरा सपना तो अधूरा रह गया पर, मैं मुग्धा का सपना टूटने नहीं दूंगी,’’ समिधा ने घोषणा की.‘‘तेरा कौन सा सपना टूट गया?’’ सोमा दादी ने व्यंग्य किया.‘‘हांहां, आप को तो केवल मुग्धा की चिंता है. मेरे बारे में तो किसी ने कभी सोचा ही नहीं. मैं फिल्म तारिका बनना चाहती थी. मेरे जैसा सुंदर तो कोई पूरे कसबे में नहीं था.

‘‘मु  झे आप से यही आशा थी पापा. इस पुरुषप्रधान समाज में मेरे जैसी अबला अपनी आकांक्षाओं का गला घोटने के अतिरिक्त और कर भी क्या सकती है,’’ समिधा बोली.‘‘हम यहां मुग्धा के भविष्य का निर्णय करने के लिए बैठे हैं इसलिए नहीं कि सब अपना रोना ले कर बैठ जाएं,’’

सेमा दादी ने समिधा को डपटा.‘‘तो करिए न मुग्धा के भविष्य का निर्णय. मैं ने कब मना किया है. अपने कसबे से बाहर भेजना है तो छात्रावास में ही रखना पड़ेगा. पर पापा कहते हैं कि हमारा परिवार अपनी बेटियों को छात्रावास में नहीं भेजता. तो अब एक ही मार्ग शेष रह जाता है कि मुग्धा को मेरे पास भेज दीजिए. वहीं रह कर आगे की पढ़ाई कर लेगी मुग्धा…

आजकल जमाना बड़ा खराब है. छात्रावास में रह कर तो युवतियां हाथ से निकल जाती हैं. हमारे साथ रहेगी मुग्धा तो हम उस पर नजर रख सकेंगे. मुग्धा के जीजाजी की भी यही राय है.’’‘‘समिधा ठीक कहती है. मुग्धा बड़ी बहन के पास रह कर उस के नियंत्रण में रहेगी,’’ सोमा दादी ने भी समिधा के प्रस्ताव पर स्वीकृति की मुहर लगा दी.‘‘मुग्धा की पढ़ाई और खानेपीने, रहनेआदि का जो भी खर्च आएगा हम देंगे,’’ नीलकांतजी ने कहा.‘‘पापा, यह कह कर तो आप ने मु  झे बिलकुल ही पराया कर दिया.

मुग्धा क्या मेरी कुछ नहीं लगती? बस एक विनती है… मुग्धा को ठीक से सम  झाबु  झा दीजिएगा. उस का स्वभाव इतना कड़वा हो गया है कि मु  झ से तो वह सीधे मुंह बात ही नहीं करती. मेरे पास रहेगी तो मेरे नियंत्रण में रहना पड़ेगा.

मैं नहीं चाहती कि बाद में सब मु  झे दोषी ठहराएं,’’ समिधा ने बड़ी बहन होने का रोब गांठा.शायद यह वादविवाद और कुछ देर चलता, पर तभी मुग्धा को घर में घुसते देख सब का ध्यान उस पर ही केंद्रित हो गया.‘‘आओ मुग्धा, कहां चली गई थीं तुम? यहां हम तुम्हारे भविष्य के संबंध में विचारविमर्श कर रहे थे,’’ सोमा दादी बोलीं.‘‘मेरे भविष्य की चिंता आप लोग न ही करें तो अच्छा है.’’‘‘लो और सुनो, हम नहीं तो कौन तुम्हारी चिंता करेगा?’’ रमाकांत ने प्रश्न किया.‘‘आप सब को मेरे भविष्य की इतनी चिंता है, तो बताओ क्या निर्णय लिया आप सब ने?’’ मुग्धा व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली.‘‘हम सब ने एकमत से निर्णय लिया है कि आगे की पढ़ाई तुम अपनी बड़ी बहन समिधा के साथ रह कर करोगी.’’‘‘अच्छा, क्या मैं जान सकती हूं कि यह प्रस्ताव किस का था?’’ मुग्धा ने पूछा.‘‘तेरी बहन समिधा का.

पर हम सब ने विचारविमर्श कर के तुम्हें वहां भेजने का निर्णय किया है.’’‘‘क्यों दीदी, जब आप ने मु  झे अपने पास आ कर रहने का आमंत्रण दे ही दिया है तो वह बात भी कह ही डालो, जिसे किसी से न कहने का आप ने वादा लिया था,’’ मुग्धा के स्वर की कड़वाहट ने सभी को चौंका दिया.‘‘कौन सी बात? मैं भला तुम्हें किसी भी बात को गुप्त रखने के लिए तुम से वादा क्योंलेने लगी?’’‘‘तुम न सही, पूज्य जीजाजी तो बता ही सकते हैं… मां और पापा को भी तो पता लगे कि उन की बेटी ने क्या कुछ सहा है… वह तड़प, वह संताप, बिना किसी कारण अपनों द्वारा ही छले जाने का कलंक ढोते कितनी रातें मैं ने सिसकियां लेले कर गुजारी हैं,’’ हर शब्द के साथ मुग्धा के स्वर का तीखापन बढ़ता ही जा रहा था.

किसी के मुंह से कोई बोल नहीं फूटा. अंतत: समिधा के पति राजीव ने ही मौन तोड़ा, ‘‘सुन लिया? हो गई तसल्ली? तुम्हारी बहन तुम्हारे पति पर   झूठे आरोप लगाए जा रही है और सब तमाशा देख रहे हैं. अब मैं यहां एक पल भी नहीं रह सकता. तुम्हें रुकना है तो रुको…’’‘‘रुको, मैं भी चलती हूं… जिस घर में मेरे पति का अपमान हुआ हो, उस घर का तो मैं एक घूंट पानी भी नहीं पी सकती,’’ समिधा भी पीछेपीछे चली गई.मुग्धा अब भी सिसक रही थी.

उस की मां निर्मला देवी उसे अंदर कमरे में ले गईं.3 वर्ष पहले छुट्टियों में मुग्धा समिधा के पास रहने गई थी. पर वहां से लौटी तो उस का हाल देख कर निर्मला चकित रह गई थीं. संशय के सर्प ने उन के मन में सिर उठाया था. पर लाख पूछने पर भी मुग्धा ने उन्हें कुछ नहीं बताया था. उन के हर प्रश्न के उत्तर में वह आंखों में हिंसक चमक लिए मूर्ति बनी बैठी रहती थी. पर आज मुग्धा का व्यवहार देख कर वे सिहर उठीं.‘‘मेरे लाख पूछने पर भी तुम ने कुछ नहीं बताया था. फिर आज सब के सामने ऐसा व्यवहार करते तुम्हें शर्म नहीं आई?’’ एकांत पाते ही फुफकार उठीं थीं निर्मला.

‘‘आई थी मां, बहुत शर्म आई थी, स्वयं से घृणा हो गई थी मु  झे. आत्महत्या करने का मन होता था. रात भर रोती रही थी मैं.’’‘‘तुम मु  झे तो बता सकती थीं न?’’‘‘समिधा दीदी ने मु  झ से वचन ले रखा था. फिर भी मैं आप को सब बता देती यदि मु  झे आप से जरा सी भी सहानुभूति की आशा होती… आप को सब पता भी लगता तो क्या करतीं आप? अब भी आप को दुख इस बात का है कि मैं ने सब के सामने राजीव जीजाजी पर आक्षेप लगाया. मेरे घाव पर मरहम लगाने की नहीं सोची आप ने.’’‘‘अरी मूर्ख, तू तो इतना भी नहीं सम  झती कि अंतत: बदनामी तेरी ही होगी. राजीव तो साफ बच निकलेगा.

बेचारी समिधा तो अपना घर और तेरा मानसम्मान दोनों ही बचाना चाहती थी.’’‘‘मैं ने भी यही सोचा था. पर आज जब आप सब ने मेरे वहां जा कर रहने का निर्णय सुनाया तो मैं स्वयं को रोक नहीं सकी. स्वयं को किताबकापियों के हवाले करना ही एकमात्र रास्ता बचा था मेरे सामने.

उस का फल भी मिला मु  झे. मेरा आत्मविश्वास इतना बढ़ गया है कि मेरी व्यथा गौण हो गई. तभी तो सब के सामने राजीव जीजाजी की करतूत का परदाफाश कर सकी मैं… दोष उन का है तो मैं सजा क्यों भुगतूं?’’ मुग्धा बिफर उठी थी.

‘‘मु झे तु झ पर गर्व है बेटी. केवल इसलिए नहीं कि तुम राज्य में प्रथम आई हो, बल्कि इसलिए कि तुम ने अन्याय के विरुद्ध लड़ने का साहस दिखाया है.’’तभी मांबेटी का वार्त्तालाप सुन रहे, पीछे खड़े नीलकांतजी ने मुग्धा के सिर पर आशीर्वाद की मुद्रा में हाथ रखते हुए उसे गले से लगा लिया.

‘‘हमारे परिवार में जो अब तक नहीं हुआ वह अब होगा… मुग्धा छात्रावास में रह कर अपनी आगे की पढ़ाई करेगी,’’ नीलकांतजी ने घोषणा की तो सोमा दादी और निर्मला देवी भाववभोर हो उठीं. उन्हें लगा कि वर्षों पहले का उन का सपना मुग्धा के रूप में साकार होने लगा है.

मलयालम फिल्म इंडस्ट्री पर जस्टिस हेमा कमेटी की रिपोर्ट औरतों को लेकर क्या कहती है

लंबी जद्दोजेहद के बाद 19 अगस्त को ‘मौलीवुड’ के नाम से मशहूर मलयालम सिनेमा उद्योग यानि मौलीवुड के अंदर महिलाओं की स्थिति का आकलन करने के लिए बनाई गई 3 सदस्यीय जस्टिस हेमा कमेटी की रिपोर्ट के जारी होते ही हंगामा मच गया.

गोदी मीडिया के सुर में सुर मिलाते हुए प्रिंट मीडिया व तमाम यूट्यूबरों ने भी इस रिपोर्ट को ‘हिला देने वाली रपट’,‘आंखें खोल देने वाली रिपोर्ट’ ,‘चौंकाने वाली रपट’ जैसे विश्लेषणों के साथ इसे सनसनीखेज बना कर आम लोगों तक पंहुचाया जा रहा है. हर न्यूज चैनल को अपनी टीआरपी बढ़ाने की चिंता है, तो अखबार को अखबार की बिक्री की चिंता है. समाज सुधार या किसी फिल्म इंडस्ट्री में व्याप्त बुराई से उस का कोई सरोकार नही है. हर चैनल व अखबार सिर्फ ‘नारी यौन शोषण’ की ही चर्चा कर रहा है जबकि हेमा रिपोर्ट में 17 मुद्दे उठाए गए हैं, जिन में से यौन शोषण भी एक मुद्दा है.

दूसरी बात हेमा रिपोर्ट में ऐसी क्या अनूठी बात कही गई है जिस से हम सभी अपरिचित हैं? ‘मौलीवुड’ के नाम पर हेमा रिपोर्ट में दर्ज तथा कथित ‘आंखें खोल देनेे वाली’ बुराइयां सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्वभर में हर क्षेत्र में व्याप्त है. फिर चाहे वह कारपोरेट जगत हो, शिक्षा जगत हो, न्यूज चैनल्स हों या इंटरटेनमैंट चैनल्स, ओटीटी प्लैटफार्म हो या राजनीतिक पार्टियां ही क्यों न हों, पर हमारी आदत है कि हम अपने घर के अंदर की सफाई करने की बनिस्बत दूसरों की बुराइयां गिनाने में आत्म आनंद की अनुभूति करते हैं.

‘हेमा रिपोर्ट’ के आने और उस पर गौर करने पर एक बात स्पष्ट रूप से उभर कर आती है कि यह सारा खेल राजनीतिक है और इस का असली मकसद औरतों को घर की चारदीवारी के अंदर कैद करने के साथ ही पूरे भारतीय सिनेमा को नष्ट करने का प्रयास मात्र है.

हेमा रिपोर्ट आने के बाद केरला जा कर जिस तरह से भाजपा अध्यक्ष व केंद्रीय मंत्री ने केरला सरकार पर निशाना साधा है और फिर केरला प्रदेश कांग्रेस की एक कार्यकर्ता ने जिस तरह से अपनी पार्टी के पदाधिकारी पर आरोप लगाया, उस के बाद उस का कांग्रेस दल से निष्कासन भी बहुत कुछ कहता है. यों बुराई हर जगह है और इस बुराई की मूल जड़ पितृसत्तात्मक सोच ही है. पर इसे मिटाने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाए जा रहे हैं बल्कि समाज को ही खत्म करने के प्रयास किए जा रहे हैं.

2014 के बाद की केंद्र सरकार ने पुरुष मानसिकता को बदलने की बजाय सामाजिक स्ट्क्चर को बदलने पर ही अपना पूरा जोर लगा रखा है जबकि जरुरत है कि समाज के अंदर व्याप्त बुराइयों को खत्म करने की दिषा में कदम उठाए जाएं. देष के हर पुरुष व महिला की मानसिकता को बदलने के प्रयास किए जाएं, पर ऐसा कुछ नहीं हो रहा है.

तीसरी बात, सिनेमा का इतिहास 111 वर्ष पुराना है. मगर 2014 के बाद जिस तरह से भारतीय सिनेमाजगत की गतिविधियां रही हैं, वह भी अपनेआप ही काफी कुछ कह जाती है. हेमा कमेटी की रिपोर्ट पिछले 5 साल से दबा कर रखी गई थी, पर 2024 में उस वक्त ‘ओमन इन सिनेमा कलेक्टिव’ यानी कि डब्ल्यूसीसी के दबाव व अदालत के हस्तक्षेप के बाद जारी की गई, वह भी कई सवाल उठाती है.

2024 में हिंदी, गुजराती, मराठी, तेलुगु, तमिल किसी भी भाषा की कोई फिल्म सफलता दर्ज नहीं करा पाई है जबकि मलयालम भाषा की ‘मंजुममेल ब्वौय’,‘अवेशम’ और ‘प्रेमालु’ इन 3 फिल्मों ने सफलता दर्ज कराने के साथ ही पूरे विश्व में हजार करोड़ से अधिक की कमाई भी की. इसी के चलते मई माह से ही बौलीवुड में एक खास राजनीतिक दल से जुड़ा वर्ग बौलीवुड को दक्षिण भारतीय सिनेमा नुकसान पहुंचा रहा है, यह बात जोरशोर से फैला रहा था.

हेमा कमेटी का गठन कब व क्यों हुआ था

केरल राज्य में मलयालम सिनेमा में महिलाएं शोषण व बुनियादी सुविधाओं के अभाव को ले कर दबे स्वर में आवाज उठाती रही हैं, पर शासनप्रशासन किसी के भी कानों में जूं नहीं रेंग रही थी. तो वहीं मलयालम फिल्म आर्टिस्ट एसोसिएशन ‘एएएमएमए’ यानि कि ‘अम्मां’ अति शक्तिशाली संगठन है, इस में कोई दोराय नहीं। वहां की बाकी एसोसिएशन भी उस के खिलाफ जाने का साहस नहीं उठा पा रही थीं. 2017 में एक प्रतिभाशाली अभिनेत्री को बीच सड़क रोक कर उसी की कार में उस के साथ रेप किया गया और उस का वीडियो भी बनाया गया. इस कांड में अभिनेता दिलीप सहित 10 लोग शामिल थे. दिलीप ‘आर्टिस्ट एसोसिएशन’ की कार्यकारिणी में थे. यह मामला अदालत पहुंचा, तो दिलीप ने एसोसिएशन से खुद को अलग कर लिया. इस बीच उस अभिनेत्री की मौत हो गई. 3 माह बाद अदालत से दिलीप को जमानत मिल गई. यह मामला अभी भी अदालत में विचाराधीन है पर अदालत से जमानत मिलते ही मलयालम फिल्म आर्टिस्ट एसोसिएशन, ‘अम्मां’ से जुड़ीं महिला कलाकारों के विरोध के बावजूद दिलीप को फिर से आर्टिस्ट एसोसिएशन की कार्यकारिणी से जोड़ लिया गया. इस से दिलीप की ताकत का एहसास किया जा सकता है.

एसोसिएशन की कार्यकारिणी में भी कुछ अभिनेत्रियां हैं, मगर सब पुरुष कलाकारों के निर्णय को ही सर्वमान्य करती रहती हैं. इस से नाराज हो कर अभिनेत्री पार्वती ने इस एसोसिएशन से अपनेआप को अलग कर लिया और पार्वती ने फिल्म ऐडिटर बीना पौल व अभिनेत्री रेवती आशा व अन्य महिलाओं के साथ मिल कर 2017 में ‘वूमन इन सिनेमा कलैक्टिव’ (डब्ल्यूसीसी) का गठन किया, जहां कोई भी महिला निडर हो कर अपनी आपबीती सुना सकती थीं. फिर ‘वूमन इन सिनेमा कलैक्टिव ’ की तरफ से सरकार पर दबाव बनाया गया. तब सरकार ने जस्टिस हेमा के नेतृत्व में 3 सदस्यीय कमेटी का गठन कर उसे मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में महिलाओं की स्थिति पर रपट देने के लिए कहा गया था. जस्टिस के हेमा की कमेटी में अनुभवी दक्षिण भारतीय अभिनेत्री शारदा और पूर्व नौकरशाह केबी शामिल थे. इस के अलावा अभिनेत्री वत्सला कुमारी सलाहकार थीं.

अभिनेत्री पार्वती मलयालम सिनेमा के अलावा तमिल, कन्नड़ व ‘करीब करीब सिंगल’ व ‘कड़क सिंह’ जैसी हिंदी फिल्मों में भी नजर आ चुकी हैं.

हेमा रिपोर्ट कब और कैसे सार्वजनिक की गई

जस्टिस हेमा की कमेटी ने 2017 से 2019 के बीच अपनी पहचान उजागर किए बिना ‘मौलीवुड’ में हर विभाग में कार्यरत पुरुषों और महिलाओं से औन कैमरा साक्षात्कार लिया था. सदस्यों ने महिलाओं की कामकाजी स्थितियों को देखने के लिए 2019 की फिल्म ‘लूसिफेर’ के सैट का भी दौरा किया. इस कमेटी ने भारतीय प्रतिनिधि फिल्म के रूप में औस्कर के लिए नामित फिल्म ‘2018’ के हीरो तोविनो थौमस से भी बात की थी. फिर इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट 2019 में सरकार को सौंप दी थी, जिसे सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल कर चुप्पी साध ली थी. लेकिन कुछ लोगों ने आरटीआई दाखिल कर सरकार पर ऐसा दबाव बनाया कि अंततः केरला सरकार ने जस्टिस हेमा कमेटी की 235 पन्नों की रपट 19 अगस्त, 2024 को जगजाहिर कर दी. पर बाद में इस में से 2 पन्ने हटा कर सिर्फ 233 पन्ने कर दिए गए जबकि हेमा कमेटी ने 315 पन्नों की रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी.

2024 में ‘डब्लू सीसी’ के अदालत जाने पर अदालत ने कुछ पन्ने हटा कर रिपोर्ट को सार्वजनिक करने का आदेश दिया था. पर सरकार ने उस से अधिक पन्ने हटा दिए.

दरअसल, यह नहीं भूलना चाहिए कि केरल सरकार व वहां के फिल्म कलाकारों के बीच गहरे संबंध हैं. कुछ कलाकार व निर्देशक शासक दल के एमएलए भी हैं.

क्या कहती है हेमा रिपोर्ट

आसमान रहस्यों से भरा है, टिमटिमाते सितारों और खूबसूरत चांद के साथ. लेकिन वैज्ञानिक जांच से पता चला कि तारे टिमटिमाते नहीं हैं, न ही चंद्रमा सुंदर दिखता है. हेमा रिपोर्ट की शुरुआत यहीं से होती है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि तुम जो देखते हो उस पर भरोसा मत करो। यहां तक कि नमक भी चीनी जैसा दिखता है.’

233 पन्नों की इस रपट में कई चौंकाने वाले तथ्य शामिल हैं. इस रपट में कहा गया है कि कई महिलाओं ने सिनेमा में जो अनुभव झेले हैं, वह वास्तव में चौंकाने वाले और इतने गंभीर हैं कि उन्होंने उन विवरणों का खुलासा परिवार के करीबी सदस्यों से भी नहीं किया. रिपोर्ट के अनुसार, मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में 10-15 पुरुषों का एक अनाम संगठन है, जोकि पूरे फिल्म उद्योग को नियंत्रित करता है. यह बात भी सामने आई है कि इन पुरुषों के राजनेताओें से भी गहरे संबंध हैं. मजेदार बात यह है कि पुरुषों का यह समूह इतना ताकतवर है कि इसी के इशारे पर ‘केरला उच्च न्यायालय’ की एकल पीठ के समक्ष अभिनेत्री रंजिनी ने इस रिपोर्ट को जारी करने पर रोक लगाने की मांग की थी, जिसे अदालत ने ठुकरा दिया और रिपोर्ट सार्वजनिक हो गई.

रिपोर्ट में कहा गया है कि फिल्म का ‘प्रोडक्शन कंट्रोलर फिल्म की मुख्य भूमिका वाली अभिनेत्री/ सहायक अभिनेत्री को संकेत देते हैं कि उन्हें समायोजन (यौन संबंध बनाने) के लिए या मुख्य भूमिका में निर्देशक/ निर्माता/ अभिनेता को खुश करने के लिए तैयार रहना चाहिए.

नए लोगों की तो छोड़िए, मौलीवुड से जुड़े अनुभवी कलाकारों को भी इस शक्तिषाली पुरुष समूह का कोपभाजन बनना पड़ा. हेमा कमेटी की इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि एक अनुभवी प्रतिभाशाली कलाकार को ‘मौलीवुड’ के माफिया गैंग ने फिल्म तो छोड़िए, टीवी सीरियल में भी अभिनय नहीं करने दिया. यानि माफिया को चुनौती देने के कारण एक प्रतिभाशाली अनुभवी अभिनेता को मौलीवुड में समर्थन नहीं मिला. मौलीवुड से जुड़े सूत्र इस वाकेआ को दिवंगत थिलाकन से जोड़ कर देख रहे हैं, जिन्होंने 200 से अधिक मलयालम फिल्मों में काम किया था और अपने मैथड ऐक्टिंग के लिए मशहूर थे. 2012 में 77 वर्ष की आयु में उन का निधन हुआ था.

हेमा कमेटी की यह रिपोर्ट ‘मलयालम फिल्म इंडस्ट्री’ में जोंक की तरह औरतों का खून चूसने वाली ‘कास्टिंग काउच संस्कृति के अस्तित्व पर भी प्रकाश डालती है, जहां महिलाओं पर फिल्मों में भूमिका सुरक्षित करने के लिए अपने नैतिक चरित्र से समझौता करने का दबाव डाला जाता है. कुछ मामलों में यदि महिलाएं पुरुषप्रधान सत्ता संरचना की मांगों से सहमत होती हैं तो उन्हें सहयोगी कलाकार जैसे कोड नाम दिए जाते हैं. रिपोर्ट में उन महिलाओं की दुखद कहानियां शामिल हैं जिन का पुरुष सहकर्मियों द्वारा यौन उत्पीड़न किया गया था और वह प्रतिशोध के डर से घटनाओं की रिपोर्ट करने से बहुत डरती थीं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्पीड़न शुरू से ही शुरू हो जाता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि भूमिका की तलाश में फिल्म इंडस्ट्री में किसी के भी पास जाने वाली महिला को मौके के लिए ‘समायोजन’ और ‘समझौता’ करने के लिए कहा जाता है. कुछ लोगों की राय में मौलीवुड में सभी सफल महिलाएं इस तरह के समझौते कर चुकी हैं. यह धारणा किसी और ने नहीं बल्कि इंडस्ट्री के ही लोगों ने बनाई है, ताकि नए लोगों को सैक्स की मांग के सामने आत्मसमर्पण करने के लिए राजी किया जा सके.

जस्टिस के हेमा की समिति ने जब महिलाओं के साक्षात्कार लिए तो यह बात सामने आई कि ‘मौलीवुड’ में अधिकांश पुरुषों के बीच यह आम धारणा है कि फिल्म के अंदर यानि कि सिनेमा के परदे पर अंतरंग दृश्यों में अभिनय करने की इच्छुक महिलाएं सैट के बाहर भी ऐसा करने को तैयार रहती हैं। समिति का कहना है कि सुबूतों (वीडियो क्लिप, औडियो संदेश, व्हाट्सऐप संदेश आदि सहित) के गहन विश्लेषण के बाद वह आश्वस्त है कि महिलाओं को उद्योग के भीतर ‘प्रसिद्ध’ लोगों से भी उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है.

महिला पेशेवरों के उत्पीड़न के विभिन्न तरीकों को सूचीबद्ध करते हुए रिपोर्ट कहती है, “यदि माफिया किसी अभिनेत्री से नाखुश है, तो वह शूटिंग सैट पर अंतरंग दृश्यों के शौट्स को दोहरा कर उन्हें मानसिक रूप से परेशान करते हैं. शिकायत के बाद एक निर्देशक ने एक अभिनेत्री को 17 बार लिपलौक सीन दोहराने के लिए कहा. जब फिल्म रिलीज हुई थी, तो शौट्स का इस्तेमाल नहीं किया गया था. यहां तक कि शूटिंग के बाद भी जब महिलाएं अपने होटल के कमरे में जाती हैं, तो कई लोग उन के दरवाजे खटखटाते हैं.”

साक्षात्कार के दौरान समिति से इन महिलाओं ने यह भी बताया कि आउटडोर में शूटिंग के दौरान ज्यादातर होटलों में जहां उन्हें ठहराया जाता है वहां पर सिनेमा में काम करने वाले पुरुषों द्वारा उन के दरवाजे लगातार खटखटाए जाते हैं। इन पुरुषों में से ज्यादातर नशे में होते हैं. कई मौकों पर महिलाओं को लगा कि दरवाजा गिर जाएगा और पुरुष बलपूर्वक कमरे में प्रवेश कर जाएंगे.

इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अकसर 1-2 लोग महिलाओं को कपड़े बदलने में मदद करने के लिए कपड़ा पकड़ लेते हैं. महिला के मासिकधर्म के दौरान यह स्थिति और भी गंभीर हो जाती है. समिति ने अपनी रिपोर्ट आगे लिखा है कि कई महिलाएं पानी पीने से बचती हैं और पेशाब रोकती हैं, जिस:के परिणामस्वरूप संक्रमण और असुविधा होती है. आउटडोर शूटिंग का जिक्र करते हुए आरोप लगाया गया है कि काम आधी रात को समाप्त होने के बावजूद जूनियर कलाकारों को रेलवे या बस स्टेशन तक सुरक्षित यात्रा सुनिश्चित करने के लिए कोई व्यवस्था नहीं की जाती है.

हेमा कमेटी का सुझाव

इस समिति ने एक न्यायाधिकरण के गठन की सिफारिश की है, जिस में एक सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश, अधिमानतः एक महिला, किसी भी व्यक्ति को निरीक्षण, पूछताछ और किसी भी जांच से संबंधित तथ्य की रिपोर्ट करने के लिए नियुक्त करने के लिए अधिकृत हो. यदि ट्रिब्यूनल गठित होता है, तो वह इस पर विचार करेगा कि क्या विवाद या शिकायत को पहले समझौते, परामर्श या सुलह द्वारा हल किया जा सकता है या क्या यह स्थिति के अनुसार उचित समझी जाने वाली अन्य काररवाई की गारंटी देता है. इस समित ने ट्रिब्यूनल के समक्ष सभी काररवाई को ‘औन कैमरा’ करने की सिफारिश की है. इस के अलावा जांच का सामना करने वाले किसी भी व्यक्ति को निवारण के लिए किसी अन्य मंच पर जाने पर कोई रोक नहीं होनी चाहिए. इस में कहा गया है कि न्यायाधिकरण को आपराधिक मुकदमा चलाने की शक्तियों के बिना, एक सिविल अदालत के रूप में माना जाए.

समित ने यह सिफारिश भी की है कि यदि कोई व्यक्ति महिलाओं को परेशान करता है, बुनियादी सुविधाओं से इनकार करता है, अभद्र टिप्पणियां करता है, शूटिंग के दौरान ड्रग्स या शराब का सेवन करता है या उद्योग से महिलाओं पर ‘प्रतिबंध’ लगाता है तो न्यायाधिकरण को उस पर जुरमाना लगाने या उसे प्रतिबंधित करने का अधिकार दिया जाना चाहिए.

हेमा कमेटी की रिपोर्ट के बाद तेज हुई आरोपप्रत्यारोप के साथ राजनीतिक हलचलें

हेमा रिपोर्ट सार्वजनिक होेते ही ‘डब्लूसीसी’ के सदस्यों ने खुशी जाहिर की. उस के बाद 1992, 2006, 2009 और 2012 की पीड़िता महिलाओं ने फेसबुक पर कुछ कलाकारों व निर्देशकों पर प्रत्याड़ित करने के आरोप लगाया.

कोलकाता के एक पुरुष कलाकार ने भी एक मलयालम निर्देषक पर यौन शोषण का आरोप लगाया। जिन पर आरोप लगे उन्होंने जब कानूनी काररवाई करने की धमकी दी, तो अब कुछ पीड़िताओं ने पुलिस में जा कर एफआईआर भी करवा दी. परिणामतया अब केरला सरकार ने एक एसआई टी भी गठित कर दी. अब हर दिन नए नए खुलासे हो रहे हैं. अफसोस, यह आरोप अब सिर्फ वही लगा रही है जिन का कैरियर खत्म हो चुका है. बाकी की खामोशी अपनेआप बहुत कुछ संकेत देती है. इन पर यह आरोप भी लग रहे हैं कि ये लोग ‘विक्टिम कार्ड’ खेल रही हैं.

हेमा रिपोर्ट आने के बाद मलयालम इंडस्ट्री में खामोशी छाई रही. ‘अम्मा’ के अध्यक्ष मोहनलाल भी चुप रहे. पर मामला बढ़ने पर उन्होंने म ‘अम्मा’ को भंग करते हुए कहा,‘‘जो कुछ हुआ, उस की जिम्मेदारी मलयालम फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े हर शख्स को लेनी पड़ेगी.’’

अभिनेता ममूटी ने कहा,‘‘ सिनेमा जिंदा रहना चाहिए. सिनेमा को खत्म करने का प्रयास नहीं होना चाहिए. मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में ‘नो पावर ग्रुप’.

उधर, हेमा कमेटी को इंटरव्यू देने वाले तथा औस्कर में भारतीय प्रतिनिधि वाली फिल्म ‘2018’ के नायक / अभिनेता टोविनो थौमस कहते हैं,‘‘मैं ने खुद हेमा कमेटी के सामने सारे तथ्य रखे थे, पर जिस तरह से यह बातें सामने आई हैं, वह पूरी तरह से मलयालम सिनेमा को बरबाद करने वाला कांड ही है.’’

मलयालम अभिनेता जयसूर्या और सिद्दिकी तथा निर्देशक रंजीत ने अपने उपर लगाए गए आरोपों पर कहा कि वे कानूनी काररवाई करेंगे.

जयसूर्या के समर्थन में उतरी नायला उषा

अपने कैरियर में कई सुपरहिट फिल्मों का हिस्सा रहीं अभिनेत्री नायला उषा ने एक एक विदेशी अखबार संग बात करते हुए दावा किया कि उन्हें मलयालम सिनेमा में किसी बुरे अनुभव का सामना नहीं करना पड़ा. पर उन्होंने इस बात से इनकार नही किया कुछ लोगों को औडिशन के दौरान समायोजन करने के लिए कहा गया होगा. उन के अनुसार, जब अभिनेत्री मिल रही भूमिका से इतर भूमिका पाने का प्रयास करती है, तब शायद उस के सामने समझौता करने का प्रस्ताव आया होगा. उन के अनुसार, लोगों को हेमा समिति की रिपोर्ट के निष्कर्षो से स्तब्ध नहीं होना चाहिए.

उन्होंने कहा,‘‘मैं ने तमाम विशेषाधिकारों का आनंद लिया है, लेकिन मैं उन लोगों के साथ खड़ी हूं जिन के पास यह विशेषाधिकार नहीं है. मेरे किसी भी सह कलाकार ने ऐसे अनुभवों का सामना करने के बारे में कभी शिकायत नहीं की।’’

नायला को अपनी पहली फिल्म रिलीज होने से पहले दूसरी फिल्म जयसूर्या स्टारर ‘पुण्यलन अगरबत्ती’ मिल गई.

नायला कहती हैं,‘‘जयसूर्या के साथ अभिनय करने का अनुभव अच्छा रहा. वह मेरे करीबी दोस्त हैं और कहा कि वे इतने करीब हैं कि वह किसी भी समय उसे फोन कर सकती है और उस से मदद मांग सकती है. उन के खिलाफ आरोप ने मुझे सचमुच झकझोर दिया. उस के बाद मैं ने उन से बात नहीं की. जब मैं कहती हूं कि मैं हैरान थी, तो इस का मतलब यह नहीं है कि मुझे उस महिला पर भरोसा नहीं है या मैं जयसूर्या का समर्थन करती हूं.’’

हेमा कमेटी में नया कुछ नहीं

अब सवाल उठता है कि जिस हेमा कमेटी को ले कर सनसनी फैलाने का काम हमारे न्यूज चैनल्स कर रहे हैं, ऐंकर यह बता सकते हैं कि हेमा कमेटी की रिपोर्ट में ऐसा नया क्या है, जिस की भनक उन्हें नहीं थी या उन्हें यह एहसास नहीं है कि यह सब हर क्षेत्र में हो रहा है. सच यह है कि पूरे विश्व में हर क्षेत्र में यह सारी बुराइयां मौजूद हैं. कम से कम हौलीवुड सहित विश्व की हर फिल्म इंडस्ट्री कास्टिंग काउच का शिकार है और इस पर कोई रोक नहीं लगा पा रहा है. इस की मूल वजह यह है कि इस बुराई की मूल जड़ पुरुष मानसिकता और पितृसत्तात्मक सोच है.

इस बात की तस्दीक तो डौक्यूमेंट्री फिल्म ‘‘मफ्राम द शैडोज’ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता निर्देशक मरियम चंडी मीनाचेटी, जोकि मूलतया केरल की रहने वाली हैं, भी करती हेैं जोकि सिनेमा में महिलाओं की वर्किंग कंडीशन पर अपनी नई डौक्यूमेंट्री के लिए स्पेन, हौलीवुड व भारतीय फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े कई लोगों से इंटरव्यू ले चुकी हैं और अभी कुछ और लोगाें से वह बात करने वाली हैं.

केरला की मलयालम महिलाओं की छवि

मगर मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में कास्टिंग काउच के नाम पर इस कदर यह सब हो रहा है, उस से थोड़ा सा आश्चर्य जरूर है. कुछ समय पहले प्रदर्षित फिल्म ‘एनीमल’ में ‘अल्फा मेल’ की बात की गई है, पर हम बता दें कि केरला की मलयालम औरतों के बारे में माना जाता है कि वह ‘अल्फा वूमंस’, ‘उच्च शिक्षित, सषक्त, ताकतवर, हर चुनौती का जवाब देने में समर्थ होती हैं. ऐसे में तमाम लोग पुरुष सत्तात्मक स्पेस और फेमीनिज्म को जनरलाइज करने को उचित नहीं मानते.

क्या यह सिनेमा को खत्म करने की राजनीतिक साजिश है

कुछ लोग ‘हेमा रिपोर्ट’ को ले कर मचे हंगामे को ‘राजनीतिक कुचक्र’ भी मान रहे हैं. वास्तव में 2014 में केंद्र की सरकार बदलने के साथ ही इस सरकार का जो रवैया सिनेमा के प्रति रहा, वह बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करता है. सच यह है कि सिनेमा एक सशक्त माध्यम है. सिनेमा के माध्यम से जो विचार, जो बात कही जाती है, उस का असर आम जनता पर काफी तेजी से होता है.

2014 के बाद केंद्र सरकार ने इस माध्यम का उपयोग अपने ऐजेंडे को सफल बनाने के लिए करने की दिशा में कदम उठाए. प्रधानमंत्री 2-3 बार मुंबई आ कर किसी न किसी बहाने बौलीवुड के प्रतिनिधियों से मिले. 1-2 बौलीवुड के प्रतिनिधिमंडल को चार्टर प्लेन से दिल्ली बुला कर मिले. सेंसर बोर्ड में भी बदलाव किए गए. सिनेमा के विकास के लिए चली आ रही 5 संस्थाओं का एक में ही विलय कर कुछ पर कतरने का प्रयास किया गया. अंततः बौलीवुड व कुछ दूसरी फिल्म इंडस्ट्रीज में एक खास राजनैतिक दल को लाभ पहुंचाने वाले ऐजेंडे के साथ सिनेमा बनने लगा. कुछ फिल्मकारों ने इसे हिंदुत्व या राष्ट्रवादी सिनेमा की संज्ञा दी. कुछ फिल्मकारों ने अपने सिनेमा को प्रोपेगैंडा सिनेमा कहने वालों को थप्पड़ मारने की भी धमकी दी. पर अफसोस बौलीवुड में ऐजेंडे व प्रोपेगैंडा वाले सिनेमा को दर्शकों ने नकार दिया जबकि मलयालम सिनेमा अपने हिसाब से कम्यूनिस्ट विचारधारा के अनुकूल और न ही ऐजेंडेे के नाम पर फूहड़, घटिया या मनोरंजनहीन सिनेमा ही बन रहा था.

मलयालम सिनेमा बेहतर बनता रहा.परिणामतया 2024 में भी उस ने कमाल की सफलता दर्ज की. दूसरी बात सब से पहले ‘मीटू’ का मामला 2017 में ही बौलीवुड में उठा. कई लोग सामने आए और जम कर यौन शोषण के आरोप लगाए. फिर मलयालम फिल्म इंडस्ट्री मे मामला उठा और ‘हेमा कमेटी’ का गठन हुआ.

2019 में तेलंगाना राज्य में भी यही मुद्दा उठा और तेलंगाना राज्य ने भी एक कमेटी गठित की. यह अलग बात है कि अब तक तेलंगाना सरकार ने इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया है. तेलुगु फिल्म इंडस्ट्री में चर्चा है कि तेलुगु फिल्म इंडस्ट्री में कुछ लोग भाजपा व आरएसएस के इशारे पर काम करते हैं. वहां चर्चा रही है कि राजामौली निर्देशित फिल्म ‘आरआरआर’ को एक आरआरएस नेता की सिफारिश पर दोबारा फिल्माया गया था और इस फिल्म का प्रचार करने के लिए निर्देशक एसएस राजामौली व अभिनेता प्रभास गुजरात, दिल्ली व वाराणसी गए थे तथा गंगा नदी में नाव की सवारी भी की थी.

ध्यान देने योग्य बात यह है कि उस वक्त महाराष्ट, केरला और तेलंगाना में भाजपा की सरकारें नहीं थीं. वर्तमान समय में महाराष्ट्र में भाजपा समर्थित सरकार है, पर तेलंगाना और केरला में भाजपा विरोधी सरकारें हैं.

केरला में ‘डब्लू सीसी’ संगठन जुड़े लोगों पर भी सरकार विरोधी होने के आरोप लगे हैं. 2024 में लोकसभा चुनाव के बाद डब्ल्यूसीसी हमलावर हो गई और अदालत तक पहुंच गई.आरटीआई दाखिल कर दी गई. परिणामतया केरला सरकार को ‘हेमा रिपोर्ट’ के कुछ पन्ने हटा कर जारी करना पड़ा.

उधर तेलुगू इंडस्ट्री से जुड़े लोग अब अभिनेत्री सामंथ रूथ प्रभू, नंदिनी रेड्डी व गायक चिन्मयी रेया तेलंगाना सरकार पर भी कमेटी की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की मांग कर रहे हैं जबकि महाराष्ट्र यानि कि बौलीवुड में ‘मीटू’ की बातें सरकार बदलने के साथ ही खत्म हो गई थीं और जिन पर ‘मीटू’ के तहत आरोप लगे थे, वे सब पुनः काम कर रहे हैं. पर आरोप लगाने वालों को काम नहीं मिल रहा है.

इस पूरे घटनाक्रम के आधार पर कहा जा रहा है कि यह सारा खेल राजनीतिक है.

क्या होना चाहिए

नारी शोषण किस जगह नहीं हो रहा है. पर इस का यह अर्थ नहीं है कि ‘मलयालम फिल्म इंडस्ट्री’ पर हेमा कमेटी की रिपोर्ट को नजरंदाज कर दिया जाए. जी नहीं, यौन शोषण या किसी भी रूप में देश की एक भी औरत को प्रताड़ित नहीं किया जाना चाहिए. हर नारी को जीवन की हर सुविधाएं पाने का हक है. मगर जरूरत इस बात की है कि आरोपप्रत्यारोप लगाने की बजाय फिल्म इंडस्ट्री सहित हर क्षेत्र के कई लोगों को अपने घर के अंदर सफाई करने की जरूरत है.

पितृसत्तात्मक सोच को बदलने की जरुरत है. पुरुष मानसिकता को बदलने की जरूरत है.शतो वहीं नारी स्वतंत्रता व नारी उत्थान के नाम पर शराब व सिगरेट पीने वाली औरतों को भी सोचना होगा कि कहीं वे नशे की हालत में खुद पर काबू न रख कर कुछ गलत पुरुषों के बहकावे में आ कर शोषण का षिकार तो नहीं हो रही हैं.

हेमा रिपोर्ट आने के बाद जिस तरह से बातें की जा रही हैं, उसे सुन कर तो यही निष्कर्ष निकलता है कि देश की औरतों को घर की चारदीवारी में बंद कर दिया जाना चाहिए. कुछ समय पहले प्रदर्शित व 2024 की सफलतम हिंदी फिल्म ‘स्त्री 2’ में भी डर के आतंक के साए में औरतों को आधुनिकता से दूर रहने व उन्हें घर की चारदीवारी में कैद रहने का ही संदेश दिया गया है. हमें यहां याद रखना चाहिए कि शासकदल के समर्थक दिनेश वीजन और उद्योगपति मुकेश अंबानी की कंपनियों ने ही फिल्म ‘स्त्री 2’ का निर्माण किया है.

अब 6 सितंबर से ओटीटी प्लेटफौर्म ‘अमेजान प्राइम’ पर स्ट्रीम हो रही वैब सीरीज ‘काल मी बे’ में भी एक उद्योगपति,जोकि टेलीकौम इंडस्ट्रीज से जुड़ा है और राजनैतिक पहुंच रखता है, द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म अभिनेत्री के साथ शारीरिक संबंध बनाने के लिए किस तरह ब्लैकमेल करता है, उसकी कहानी है.

तो जो लोग नारी को घर की चारदीवारी में कैद करने के मकसद से हर घटनाक्रम को प्रसारित कर रहे हैं, हम उनके खिलाफ हैं. हम चाहते हैं कि हर घर इस तरह के शोषण के खिलाफ घर के अंदर ही सफाई अभियान चलाए. देखिए, क्या हम सभी इस बात से सहमत नहीं हैं कि हमारे आसपास गरीब हो या मध्यवर्गीय हो या उच्च मध्यवर्गीय परिवार हो, हर दूसरे तीसरे दिन किसी न किसी महिला का यौन शोषण होता है और उस शोषित महिला के परिवार के सदस्य ही उसे हमेशा के लिए जबान बंद रखने का दबाव नहीं बनाते. क्योंकि सभी को अपनी सामाजिक मानमर्यादा भंग होने का का डर सताता है. सिर्फ आम इंसान ही नही बल्कि अति उच्च और ताकतवर परिवारों में भी यही होता है.

नोबल पुरस्कार विजेता कनाडियन लेखक की मजबूरी या…

कनाडा की मशहूर लेखिका ऐलिस मूनरो को 2013 में उन की लघु कहानियों के लिए साहित्य का नोबल पुरस्कार मिला था. कनाडा बहुत बड़ा देश नहीं है. इसलिए वहां हर बात सभी को जल्द पता चल जाती है. पहले पति की मौत के बाद ऐलिस मुनरो ने गेराल्ड फ्रेमलिन के साथ दूसरी शादी की थी. गेराल्ड ने ऐलिस मुनरो के पहले पति की बेटी एंडरिया रौबिन स्कीनर का उस वक्त रेप किया था, जब वह सिर्फ 9 वर्ष की थी. अब वह 18 साल की है मगर ऐलिस ने अपनी बेटी का मुंह बंद करा दिया था.

युवा होने पर एक कहानी के माध्यम से बेटी ने इस सच को उजागर किया था पर उसे दबा दिया गया. जब ऐलिस मुनरो को नोबल पुरस्कार मिला, तब भी उन की बेटी ने यह आरोप लगाया था, पर तब इसे दबा दिया गया कि पुरस्कार मिलने से उसे जलन हुई.

13 मई, 2024 को ऐलिस मुनरो की मौत हो गई. तब एक बार फिर उन की बेटी ने यह आरोप लगाने के साथ ही मुकदमा भी कर दिया है. ऐलिस मुनरो खुद ताकतवर थीं. पूरे विश्व में उन का नाम था. फिर भी उन्होंने अपनी बेटी को यौन शोषण के खिलाफ जबान बंद रखने पर मजबूर किया.

ऐसे में यह उम्मीद करना कि फिल्म इंडस्ट्री में कैरियर बनाने की चाह रखने वाली लड़कियां व औरतें यौन शोषण या बुनियादी सुविधाओं से दूर रखे जाने पर चुप रहने को मजबूर न हुई हों, यह कहना गलत है. कुछ लोग आरोप लगा रहे हैं कि 1992 या 2006 में यौन शोषित पीड़िताओं द्वारा अब आवाज उठाने पर सवाल उठाने वालों के पास क्या इस सवाल का जवाब है कि इन पीड़िताओं को तब या अब न्याय मिल पाएगा? जी नहीं, न्याय मिलना मुश्किल है. पर हम चाहते हैं कि इस की आड़ में किसी भी औरत को घर पर कैद रहने के लिए मजबूर न किया जाए. पर एक बात यह भी है कि हर नारी को भी अपनी कुछ सीमाएं तय करनी होंगी और खुद को इतना टैलेंटेड बनाना होगा कि कोई उन के सामने अवैध मांग रखने का साहस न कर सके.

एक अहम सवाल यह है कि सरकारें इस तरह के मामले में भी बहुत संजीदा नजर नहीं आती. 2019 में जब हैदराबाद मे तेलुगु फिल्म इंडस्ट्री की अदाकारा रेड्डी ने जुबिली हिल्स में फिल्म चेंबर्स के सामने न्याय की मांग करते हुए अर्धनग्न हो कर धरना दिया था, तब वहां की सरकार ने एक कमेटी गठित कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ ली थी. इस वजह से भी पुरुषों में निडरता बढ़ती है.

पश्चिम बंगाल से सबक लेने की जरूरत

हम बारबार यही कह रहे हैं कि हर फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े हर पुरुष की सोच व उन की मानसिकता को बदलने के साथ ही खुद ही अपने घर की सफाई करने पर ध्यान देना होगा. पश्चिम बंगाल की बंगला फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ी महिलाओं ने इस तरह का कदम उठा रखा है. कान्स फिल्म फैस्टिवल में ‘पिर्रे अन्नीयाक्स अवार्ड’ से सम्मानित कैमरामैन मधुरा पालित के अलावा 50 औरतें, जिन में अभिनेत्री अपर्णा सेन, स्वास्तिका मुखर्जी, निर्देशक, लेखक व अन्य विभाग की 50 महिलाओं ने मिल कर ‘फोरम फार स्क्रीन ओमन’ का गठन कर रखा है जहां हर समस्या को सुन कर उस का निरकारण करने का प्रयास किया जाता है.

यह संगठन लंबे समय से केंद्र सरकार से ‘सेक्सुअल हरेसमैंट ऐक्ट 2013’ में बदलाव के साथ ही हर पीड़िता को चौबिसों घंटे हेल्पलाइन उपलब्ध कराने की भी मांग कर रखी है, जिस पर सरकार ने चुप्पी साध रखी है.

इतना ही नही पश्चिम बंगाल के फिल्मकारों की मदद के लिए ‘बिट चित्र कलेक्टिव’ का गठन किया गया, जिस में फिलहाल 100 महिलाएं सदस्य हैं. यह संगठन फिल्म निर्माण से ले कर हर तरह की समस्या के वक्त मदद करता है.

भारती सिंह करती थी पार्टीड्रिंक, 7 हफ्ते तक अपनी प्रैग्नेंसी से थी बेखबर

कौमेडियन भारती आज किसी पहचान की मोहताज नहीं है. वो देशभर में अपनी प्रतिभा की बदौलत प्रसिद्ध हैं. किसी रोते हुए को भी कैसे हंसाना है, ये टैलेंट कोई भारती से सिखे. कौमेडी करने के अलावा जब वो किसी रियलिटी शो को होस्ट भी करती हैं, तो मेजबानी करने का भी अंदाज काफी अलग होता है और उस कार्यक्रम में बैठे लोग ठहाके लगाने लगते हैं.

 

मोटापा को करियर के बीच नहीं आने दिया

हालांकि भारती सिंह को बौडी शेमिंग का भी सामना करना पड़ा है. उनकी वजन के कारण कई बार ट्रोलिंग का सामना किया है, लेकिन उन्होंने कभी भी खुद को निराश नहीं होने दिया और एंटेरटैनमेंट की दुनिया में अपनी छवि बनाने के लिए बहुत मेहनत की. लोग उनके मोटापे को लेकर भददे कमैंट्स करते थे. वो अपनी टैलेंट के जरिए लोगों को हंसाती थी और लोग उनका मजाक बनाते थे. खैर भारती सिंह ने इन सभी बातों को अपने करियर के बीच नहीं आने दिया.

शादी के बाद भारती हुई ट्रोल

एक इंटरव्यू के अनुसार, जब उन्होंने हर्ष लिंबाचिया से साल 2017 में शादी की, तो लोगों ने कई बुरे कमेंट्स किए थे. हर्ष और भारती एकदूसरे से प्यार करते थे और जब शादी करने का फैसला किया तो लोग उन्हें ट्रोल करने लगे थे और कई घटिया कमेंट्स भी किए थे. लोगों ने हर्ष के चश्मे को लेकर कहा गया कि भारती इसे तोड़ देगी. भारती का कहना है कि भले वो और उनके पति लोगों के कमेंट्स पर ध्यान न दें, लेकिन इस तरह की बातें उन्हें तकलीफ देती हैं.

क्या मोटी लड़की की जिंदगी नहीं होती ?

भारती ने कहा कि लोगों की यह धारणा है कि मोटी लड़की को शादी के लिए मोटा लड़का ही मिलना चाहिए. कौमेडियन ने ये भी कहा था कि मैं मोटी हूं, लेकिन मेरी जिंदगी है, मैं किसी से भी शादी करूं. हालांकि कई बार भारती सिंह इस बात को एक्सैप्ट भी करती है कि वो मोटी हैं, यह बात वो जानती हैं, लेकिन लोग फिर भी उनका मजाक उड़ाना बंद नहीं करते.

मोटी, गेंडी, हाथी जैसे शब्द सुनने को मिले

कौमेडियन भारती सिंह ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उन्हें मोटी, गेंडी, हाथी जैसे कई भद्दे शब्द सुनने को मिले हैं. भारती ने इस बारे में कहा था कि मैं तो हलवाई की बेटी नहीं हूं, यहां तक कि मैं मिडिल क्लास भी नहीं हूं, मैं एक गरिब परिवार की बेटी हूं, जैसा खाना मिला है, खाकर मोटी हो गई हूं, तो क्या करूं?

7 हफ्ते तक भारती नहीं जानती थी अपनी प्रैग्नेंसी

हाल ही में भारती सिंह का एक इंटरव्यू सामने आया है, जिसमें उन्होंने बताया है कि कौमेडियन को 7 हफ्ते तक नहीं पता था कि वह मां बनने वाली हैं. कौमेडियन ने कहा कि जब हम पार्टी कर रहे थे औ मैंने देखा कि वहां एक प्रैग्नेंसी स्ट्रिप पड़ी हुई थी. मैंने चेक करने के बारे में सोचा, मैंने सुबह टेस्ट किया और फिर सो गई. कुछ समय बाद उस पर दो पिंक लाइन देखी और अपने पति को दिखाई. उसे यकीन नहीं हुआ.

फिर भारती ने आगे बताया कि मैं डौक्टर के पास गई और ब्लड टेस्ट करवाया. मुझे पता चला कि मैं 7 हफ्ते की प्रैग्नेंट हूं. मैंने कहा कि मैं ड्रिंक कर रही हूं, तो डौक्टर ने कहा कि सबकुछ बंद करना पड़ेगा.

प्रैग्नेंसी के नौ महीनों तक किया काम

भारती सिंह कई बार खुलासा कर चुकी हैं कि हर्ष यानी उनके पति ने उन 9 महीनों के दौरान काम करने के लिए इंस्पायर किया. भारती ने कहा, अगर प्रेग्नेंसी के दौरान आपका पति यह कहता है कि अगर बच्चे को कुछ हुआ तो यह तुम्हारी ज़िम्मेदारी होगी, तो एक महिला अपना सारा काम छोड़कर घर पर बैठ जाती है, लेकिन अगर वह कहता है, चिंता मत करो कुछ नहीं होगा तुम काम पर जाओ, तो आपको पौजिटिव एनर्जी मिलती है. लाइफ में अच्छा पार्टनर और अच्छा दोस्त मिलना बहुत जरूरी है.

चालबाज शुभी: बेटियों के लिए क्या जायदाद हासिल कर पाई शुभी

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

“अब जाने दो मुझे… रातभर प्यार करने के बाद भी तुम्हारा मन नहीं भरा क्या?” शुभी ने नखरे दिखाते हुए कहा, तो विजय अरोड़ा ने उस का हाथ पकड़ कर फिर से उसे बिस्तर पर गिरा दिया और उस के ऊपर लेट कर पतले और रसीले अधरों का रसपान करने लगा.

“देखो… मैं तो मांस का शौकीन हूं… फिर चाहे वह मेरी खाने की प्लेट में हो या मेरे बिस्तर पर,” विजय अरोड़ा शुभी के सीने के बीच अपने चेहरे को रगड़ने लगा, दोनों ही एकसाथ शारीरिक सुख पाने की चाह में होड़ लगाने लगे और कुछ देर बाद एकदूसरे से हांफते हुए अलग हो गए.

विजय और शुभी की 18 और 20 साल की 2 बेटियां थीं, तो दूसरी तरफ विजय के बड़े भाई अजय अरोड़ा के एक बेटा था, जिस की उम्र 22 साल की थी.

अरोड़ा बंधुओं के पिता रामचंद अरोड़ा चाहते थे कि जो बिजनैस उन्होंने इतनी मेहनत से खड़ा किया है, उस का बंटवारा न करना पड़े, इसलिए वे हमेशा दोनों भाइयों को एकसाथ रहने और काम करने की सलाह देते थे, पर छोटी बहू शुभी को हमेशा लगता रहता था कि पिताजी के दिल में बड़े भाई और भाभी के लिए अधिक स्नेह है, क्योंकि उन के एक बेटा है और उस के सिर्फ बेटियां.

शुभी को यही लगता था कि वे निश्चित रूप से अपनी वसीयत में दौलत का एक बड़ा हिस्सा उस के जेठ के नाम कर जाएंगे.

‘‘भाई साहब देखिए… विजय तो कामधंधे में कोई सक्रियता नहीं दिखाते हैं, पर मुझे अपनी बेटियों को तो आगे बढ़ाना ही है, इसलिए मैं चाहती हूं कि आप मेरी बेटियों को भी अपने बिजनैस में हिस्सा दें और काम के गुर सिखाते रहें,‘‘ शुभी ने अपने जेठ अजय अरोड़ा से कहा.

इस पर अजय ने कहा, ‘‘पर शुभी, बेटियों को तो शादी कर के दूसरे घर जाना होता है… ऐसे में उन्हें अपने बिजनैस के बारे में बताने से क्या फायदा… आखिर इस पूरे बिजनैस को तो मेरे बेटे नरेश को ही संभालना है… हां, तुम्हें अपनी बेटियों को पढ़ानेलिखाने के लिए जितने पैसे की जरूरत हो, उतने पैसे ले सकती हो.”

शुभी को तो अपने जेठ की नीयत पर पहले से ही शक था और आज उन से बात कर के वह यह जान चुकी थी कि इस पूरी दौलत पर उस के जेठ अजय अरोड़ा और उन के बेटे नरेश का ही वर्चस्व रहने वाला है और इस अरोड़ा ग्रुप का मालिक नरेश को ही बनाया जाना तय है.

शुभी दिनरात इसी उधेड़बुन में रहती कि किस तरह से पूरी दौलत और बिजनैस में बराबरी का हिस्सा लिया जाए, पर ये सब इतना आसान नहीं होने वाला था, बस एक तरीका था कि किसी तरह से नरेश को रास्ते से हटा दिया जाए तभी कुछ हो सकता है, पर एक औरत के लिए किसी को अपने रास्ते से हटा पाना बिलकुल भी आसान नहीं था.

‘मुझे अपनी लड़कियों के भविष्य के लिए कुछ भी करना पड़े मैं करूंगी, चाहे मुझे किसी भी हद तक जाना पड़े,‘ कुछ सोचते हुए शुभी बुदबुदा उठी.

शुभी की जेठानी निम्मी किचन में थी और अपनी नौकरानी को सही काम करने की ताकीद कर रही थी.

“क्या दीदी… सारा दिन आप ही काम करती रहती हो… कभी आराम भी किया करो… ये लो, मैं ने आप के लिए बादाम का शरबत बनाया है. इसे पीने से आप के बदन को ताकत मिल जाएगी,” शुभी ने अपनी जेठानी को बादाम का शरबत पिला दिया. शरबत पीने के कुछ देर बाद ही निम्मी को कुछ उलझन सी होने लगी.

“सुन शुभी… मेरी तबीयत कुछ ठीक सी नहीं लग रही है. जरा तू किचन संभाल ले,” ये कह कर निम्मी आराम करने चली गई.

उस रात अजय अरोड़ा जब अपने बेटे नरेश के साथ काम से लौटे और निम्मी के बारे में पूछा, तो शुभी ने बताया कि उन की तबीयत खराब है, इसलिए वे आराम कर रही हैं. ऐसा कह कर शुभी ने ही उन लोगों को खाना परोसा, जिसे खा कर वे दोनों अपनेअपने कमरों में चले गए.

निम्मी और उस का बेटा अलगअलग कमरे में सोते थे, जबकि अजय अरोड़ा दूसरे कमरे में, क्योंकि उन को देर रात तक काम करने की आदत थी.

कुछ देर बाद शुभी दूध का गिलास ले कर अपने जेठ अजय अरोड़ा के कमरे में गई और उन के हाथ में गिलास देते समय उस ने बड़ी चतुराई से अपनी साड़ी का पल्लू कुछ इस अंदाज में गिरा दिया कि उस के सीने की गोरीगोरी गोलाइयां ब्लाउज से बाहर आने को बेताब हो उठीं. सहसा ही अजय अरोड़ा की नजरें उस के सीने के अंदर ही घुसती चली गईं.

जेठ अजय अरोड़ा को अपनी ओर इस तरह घूरते देख जल्दी से शुभी अपने पल्लू को सही करने लगी और मुसकराते हुए कमरे से बाहर चली आई.

अजय अरोड़ा ने पूछा, तो प्रतिउत्तर में शुभी जोरों से रोने लगी.

“मैं तो आप को एक नेक इनसान समझती थी, पर मुझे क्या पता था कि आप भी और मर्दों की तरह ही निकलेंगे,” शुभी ने सुबकते हुए कहा.

“आखिर बात क्या है? कुछ तो बताओ,” परेशान हो उठे थे अजय अरोड़ा.

इस के जवाब में शुभी ने अपने मुंह से एक शब्द भी नहीं निकाला, बल्कि अपने मोबाइल की स्क्रीन को औन कर के अजय अरोड़ा की तरफ बढ़ा दिया.

अजय ने मोबाइल की स्क्रीन पर देखा, तो मोबाइल पर कुछ तसवीरें थीं, जिस में शुभी के जिस्म का ऊपरी हिस्सा पूरी तरह से नग्न था और अजय अरोड़ा उस के ऊपर लेटे हुए थे. एक नहीं, बल्कि कई तसवीरें थीं इन दोनों की, जो ये बताने के लिए काफी थीं कि कल रात उन दोनों के बीच जिस्मानी संबंध बने थे.

“पर, ये सब मैं ने नहीं किया…” अजय अरोड़ा ने कहा.

“आप सारे मर्दों का यही तरीका रहता है… कल जब मैं दूध का गिलास ले कर आई, तो आप नशे में लग रहे थे और आप ने मुझे बिस्तर पर गिरा दिया और मेरे साथ गलत काम किया… गलती मेरी ही है, आखिर मैं ने आप की आंखों में वासना के कीड़ों को क्यों नहीं पहचान लिया?” रोते हुए शुभी ने कहा.

“पर, भला ये तसवीरें तुम ने क्या सोच कर खींचीं?” माथा ठनक उठा था अजय अरोड़ा का.

“अगर, मैं ये तसवीरें नहीं लेती, तो भला आप क्यों मानते कि आप ने मेरे साथ गलत किया है,” शुभी का सवाल अचूक था और सारे सुबूत सामने थे, इसलिए अजय अरोड़ा का मन भी इन सब बातों को मानने के लिए मजबूर था, क्योंकि बचपन में उन्हें नींद में चलने की बीमारी थी, जो कि काफी समय बीतने के बाद ही सही हो सकी थी.

“चलो, अब जो भी हुआ, उसे भूल जाओ… मैं अपने किए पर बहुत शर्मिंदा हूं…पर, ये बात किसी से न कहना… मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ता हूं,” अजय अरोड़ा ने कहा.

अजय अरोड़ा रात में 2 बजे तक काम किया करते थे, पर आज पता नहीं क्या हुआ कि उन की पलकें भारी होने लगीं और उन्हें जल्दी नींद आ गई. वे अपना लैपटौप सिरहाने रख कर सो गए.

अगली सुबह जब अजय अरोड़ा की आंखें खुलीं, तो उन्होंने अपने पास बैठी हुई शुभी को देखा. उसे अपने बिस्तर पर बैठा देख अजय अरोड़ा चौंक पड़े और पूछ बैठे, “क्या बात है शुभी, तुम इतनी सुबहसुबह मेरे कमरे में… और वो भी मेरे बिस्तर पर क्या कर रही हो?”

“नहीं, आप मुझ से बड़े हैं. मेरे सामने हाथ मत जोड़िए… हां, अगर मेरे लिए कुछ करना ही चाहते हैं, तो मेरी बेटियों को अपने बेटे नरेश के साथ जायदाद में बराबर की हिस्सेदारी दिलवा दीजिए,” शुभी ने कहा.

शुभी की बात सुन कर अजय अरोड़ा को ये समझते देर नहीं लगी कि वो बुरी तरह से उस के बिछाए जाल में फंस गए हैं, पर अब उन के पास उस की बात मानने के अलावा और कोई चारा भी नहीं था, इसलिए वे शुभी की बात मानने पर राजी हो गए और उन्होंने जायदाद और अरोड़ा ग्रुप के वित्तीय मामलों मे नरेश के साथसाथ शुभी की बड़ी बेटी को भी शामिल कर लिया.

“देखो… मैं अभी सिर्फ तुम्हारी बड़ी बेटी को ही कंपनी में शामिल कर सकता हूं, क्योंकि कंपनी के और भी शेयरहोल्डर हैं, उन्हें भी मुझे जवाब देना है…

‘‘अगर चाहो तो मैं तुम्हारी छोटी बेटी को अपने दूसरे प्रोजैक्ट का इंचार्ज बना सकता हूं… पर, उस के लिए उसे कोलकाता जाना होगा,” अजय अरोड़ा ने कहा.

“बिलकुल जाएगी… कोलकाता तो क्या वह भारत के किसी भी हिस्से में जाएगी… बस, मुझे पैसा और पावर चाहिए… मैं आज ही उसे तैयारी करने को कहती हूं.”

अपनी इस कूटनीतिक जीत पर मन ही मन बहुत खुश हो रही थी शुभी और इसी जीत को सेलिब्रेट करने के लिए ‘बरिस्ता‘ कौफीहाउस में जा पहुंची, जहां उस के सामने वाली कुरसी पर बैठा हुआ शख्स उसे ऊपर से नीचे तक निहारे जा रहा था.

“अब तो तुम बहुत खुश होगी… आखिर अरोड़ा ग्रुप में बराबरी का हिस्सा मिल ही गया तुम्हें,” वो घनी दाढ़ी वाले शख्स ने कहा, जिस का नाम रौबिन था,

“मिला नहीं है, बल्कि छीना है मैं ने… पर, असली खुशी तो मुझे उस दिन मिलेगी, जब मैं उस नरेश के बच्चे को एमडी की कुरसी से हटवा दूंगी,” नफरत भरे लहजे में शुभी बोल रही थी.

“और उस के लिए अगर तुम्हें मेरी कोई भी जरूरत पड़े तो बंदा हाजिर है… पर, उस की कीमत देनी होगी,‘‘ रौबिन ने शरारती लहजे में कहा.

“बोलो, क्या कीमत लोगे?”

“बस, जिस तरह की तसवीरों में तुम अजय अरोड़ा के साथ नजर आ रही हो, वैसी ही जिस्मानी हालत में मेरे साथ एक रात गुजार लो.”

“बस… इतनी सी बात… अरे, तुम्हारे लिए मैं ने मना ही कब किया है,” शुभी की बातें सुन कर रौबिन अपने हाथ से शुभी के हाथ को सहलाने लगा.

रौबिन और शुभी की जानपहचान कालेज के समय से थी और इतना ही नहीं, दोनों एकदूसरे से प्यार भी करते थे और शुभी की शादी हो जाने के बाद भी दोनों ने इस रिश्ते को बनाए रखा.

शुभी और रौबिन के प्यार का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता था कि आज भी अपनी खुशी को बांटने के लिए शुभी अपने पति के पास न हो कर रौबिन के पास ही आई थी.

कभी रौबिन से इश्क करने वाली शुभी को आज भी इस बात से कतई परहेज नहीं था कि आज रौबिन एक छोटामोटा ड्रग पेडलर बन चुका था, जो कि पैसा कमाने के लिए अफीम और अन्य नशीले पदार्थों की खरीदफरोख्त किया करता था और कई बार हवालात की हवा भी खा चुका था.

भले ही शुभी की लड़कियों को बिजनैस में शामिल कर लिया गया था और वे दोनों बिजनैस की बारीकियां सीख रही थीं, पर शुभी को हमेशा ही ये डर खाए जाता था कि हो न हो, नरेश को ही इस जायदाद का असली वारिस घोषित किया जाएगा और वो तो ऐसा बिलकुल नहीं चाहती थी, पर उस के पास अभी कोई और चारा नहीं था, इसलिए शुभी अपने अगले वार के लिए सही वक्त का इंतजार कर रही थी.

और वो सही वक्त कुछ महीनों बाद आ ही गया, जब नरेश की शादी तय करा दी गई और बड़ी धूमधाम से उस की शादी हो गई, विजय और अजय अरोड़ा के साथ में कितना नाची थी शुभी? उस की खुशी देख कर जान पड़ता था कि जैसे उस के सगे बेटे की शादी हो, पूरे शहर में नरेश की शादी की भव्यता की चर्चा कई दिन तक होती रही.

घर के मेहमान भी जा चुके थे और आज नरेश और उस की पत्नी बबिता अपना हनीमून मनाने के लिए स्विट्जरलैंड के लिए जाने वाले थे. सुबह से ही शुभी सारी तैयारियां करवा रही थी. मन में खुशियों का सागर हिलोरे ले रहा था नरेश और बबिता के, इसलिए फ्लाइट के समय से पहले ही नरेश एयरपोर्ट पहुंच जाना चाहता था. उस ने अपना सारा सामान एक जगह इकट्ठा कर लिया और अपनी पत्नी बबिता की प्रतीक्षा करने लगा. शुभी के साथ नरेश को अपनी पत्नी आती दिखाई दी तो नरेश ने राहत की सांस ली.

“ये लो… इसे समयसमय पर खाते रहना… तुम्हें अभी ताकत की बहुत जरूरत पड़ेगी,” शुभी ने नरेश के हाथ में एक थैली पकड़ाते हुए कहा, “पर, चाची इस में है क्या?”

“अरे, इसे खोल कर यहां मत देखो… ये तुम्हारे लिए ताकत वाले लड्डू हैं… हनीमून के लिए खास बनाए हैं,” शुभी रहस्मयी ढंग से मुसकराते हुए बोली, तो फिर उस की बात को मन ही मन भांप कर उस के आगे नरेश कुछ बोल नहीं सका और चुपचाप अपने बैग में वह थैली रख ली.

नवयुगल एयरपोर्ट पर पहुंच चुका था. दोनों ने एकदूसरे का हाथ पकड़े हुए एयरपोर्ट में एंट्री ली. नरेश ने नजरें उठाईं, तो सामने ही एक कस्टम विभाग का बड़ा अधिकारी अपनी सजीली सी विभागीय यूनीफौर्म पहने हुए खड़ा था, जो कि इन दोनों की तरफ देखते हुए मुसकराते हुए आगे आया, “नमस्ते भाभीजी… आप दोनों की यात्रा शुभ हो.”

“अरे, इन से मिलो ये मेरा दोस्त है रचित. और रचित, ये हैं बबिता मेरी पत्नी,” हंसते हुए नरेश ने कहा.

नरेश और बबिता के साथ में एक बड़े कस्टम अधिकारी के होने के कारण उन दोनों को फ्लाइट तक पहुंचने में कोई परेशानी नहीं हुई और कुछ ही देर बाद उन की फ्लाइट टेक औफ कर चुकी थी.

तकरीबन 8-9 घंटे की उड़ान के बाद वे दोनों स्विट्जरलैंड के हवाईअड्डे पर थे, जहां यात्रियों का सामान चैक किया जा रहा था. नरेश और बबिता भी शांत भाव और प्रसन्न मुद्रा में सारी कार्यवाही देख रहे थे और अपने एयरपोर्ट से निकलने का इंतजार कर रहे थे, ताकि अपने हनीमून की खुशियों का मजा ले सकें.“आप दोनों को हमारे साथ चलना होगा,” नरेश से एक कस्टम के अधिकारी ने आ कर अंगरेजी में कहा.

“क्या हुआ… क्या बात है?” नरेश ने भी अंगरेजी में ही पूछा.

“जी, दरअसल बात यह है कि हमें आप के ब्रीफकेस में ड्रग्स मिली है. बहुत अफसोस है कि हमें आप को पुलिस के हवाले करना पड़ेगा,” कस्टम अफसर ने वह थैली दिखाते हुए कहा, जिस में शुभी ने ताकत वाले लड्डू रखे थे.

नरेश और बबिता को अपने कानों पर भरोसा ही नहीं हुआ, जो उन्होंने अभीअभी सुना था.

“पर, इस में तो मेरी चाची ने ताकत के लड्डू रखे  थे, जरूर आप को कोई गलतफहमी हुई है,” नरेश कह रहा था.

“यहां पर आ कर पकड़े जाने के बाद सभी यही कहते हैं मिस्टर नरेश, पर हमारे यहां कानून है कि आप अपनी गिरफ्तारी की खबर अपने घर पर इस फोन के द्वारा दे सकतें हैं… ये लीजिए अपना कंट्री कोड डायल कर के अपने घर फोन मिला लीजिए.”

इस के बाद नरेश ने फोन मिला कर अपने साथ हुए हादसे के बारे में अपने मांबाप को बताया कि किस तरह से उस थैली में ड्रग्स भेजा गया था और नरेश ने उन्हें यह भी बताया कि यहां पर ड्रग्स संबंधी कानून बहुत कड़े हैं, इसलिए उन्हें कम से कम 10-12 साल जेल में ही रहना होगा.

पुलिस ने नरेश और बबिता के हाथों में हथकड़ी पहना दी थी. उन लोगों को अब भी समझ नहीं आ रहा था कि ये सब कैसे और क्यों हुआ है? पर भारत में बैठी हुई शुभी को बखूबी समझ में आ रहा था, क्योंकि ये पूरी चाल उस ने ही तो रौबिन के साथ मिल कर रची थी, जिस से सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.

एक ही झटके में शुभी ने नरेश और उस की पत्नी बबिता को जेल भिजवा दिया था. एकलौते बेटे की गिरफ्तारी और शुभी की नीचता की बात जान कर अजय अरोड़ा चीख पड़े थे, “मुझे तुझ से ऐसी उम्मीद नहीं थी… मैं ने तेरी हर बात मानी, फिर भी तेरी पैसे की हवस पूरी नहीं हुई… आखिरकार तू ने मेरे बेटेबहू को मुझ से छीन ही लिया.”

“जो हुआ उस में मेरी कोई गलती नहीं है… नरेश के पास से ड्रग्स निकली है, इस का साफ सा मतलब है कि वह ड्रग्स लेता था और अब बचने के लिए वह मुझ पर इलजाम लगा रहा है,” शुभी बड़े आराम से जवाब दे रही थी.

शुभी से अभी जब अजय अरोड़ा की बहस हो ही रही थी कि उन के सीने में तेज दर्द उठा. वे अपना सीना पकड़ कर वहीं बैठ गए और फिर कभी उठ न सके. उन का देहांत हो चुका था.

अब कंपनी की एमडी शुभी की बेटी थी और पूरे बिजनैस पर उन का एकाधिकार था, पर अपनी मां के द्वारा किए गए इस काम से वह जरा भी खुश नहीं थी, इसलिए वह अपने दादी और बाबा के साथ सबकुछ छोड़ कर कहीं चली गई और शुभी के नाम एक पत्र छोड़ गई, जिस में लिखा था:

“मां… आप पैसे और सत्ता के लालच में इतना गिर जाओगी, ऐसा मैं ने कभी नहीं सोचा था… आप को पैसा चाहिए था, जो आज आप को मिल गया है… कंपनी के कागज और चेकबुक्स दराज में रखी हैं. आप अपने पैसों के साथ खुश रहो… मुझे और मेरे दादीबाबा को ढूंढ़ने की कोशिश मत करना.”

पैसे और सत्ता के लालच में अंधी हो कर शुभी ने नरेश के खिलाफ इतनी कठोर साजिश को अंजाम दिया, जिस से उस के जीवन की सारी खुशियां तहसनहस हो गई थीं.

नरेश और बबिता इस घटना से स्तब्ध थे. उन्हें ये बात ही नहीं समझ में आ रही थी कि अगर ये काम चाची ने जानबूझ कर किया है, तो क्यों किया है. वजह चाहे जो भी रही हो, पर वे दोनों जेल में थे.

नरेश और बबिता को हनीमून तो छोड़ो, पर अब साथ रहना भी नसीब नहीं हो रहा था. सलाखों के पीछे बारबार नरेश यही बुदबुदा रहा था… ये कैसा हनीमून???

एक मुलाकात: क्या नेहा की बात समझ पाया अनुराग

लेखक- निर्मला सिंह

नेहा ने होटल की बालकनी में कुरसी पर बैठ अभी चाय का पहला घूंट भरा ही था कि उस की आंखें खुली की खुली रह गईं. बगल वाले कमरे की बालकनी में एक पुरुष रेलिंग पकडे़ हुए खड़ा था जो पीछे से देखने में बिलकुल अनुराग जैसा लग रहा था. वही 5 फुट 8 इंच लंबाई, छरहरा गठा बदन.

नेहा सोचने लगी, ‘अनुराग कैसे हो सकता है. उस का यहां क्या काम होगा?’ विचारों के इस झंझावात को झटक कर नेहा शांत सड़क के उस पार झील में तैरती नावों को देखने लगी. दूसरे पल नेहा ने देखा कि झील की ओर देखना बंद कर वह व्यक्ति पलटा और कमरे में जाने के लिए जैसे ही मुड़ा कि नेहा को देख कर ठिठक गया और अब गौर से उसे देखने लगा.

‘‘अरे, अनुराग, तुम यहां कैसे?’’ नेहा के मुंह से अचानक ही बोल फूट पड़े और आंखें अनुराग पर जमी रहीं. अनुराग भी भौचक था, उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि उस की नेहा इतने सालों बाद उसे इस तरह मिलेगी. वह भी उस शहर में जहां उन के जीवन में प्रथम पे्रम का अंकुर फूटा था.

दोनों अपनीअपनी बालकनी में खड़े अपलक एकदूसरे को देखते रहे. आंखों में आश्चर्य, दिल में अचानक मिलने का आनंद और खुशी, उस पर नैनीताल की ठंडी और मस्त हवा दोनों को ही अजीब सी चेतनता व स्फूर्ति से सराबोर कर रही थी.

अनुराग ने नेहा के प्रश्न का उत्तर मुसकराते हुए दिया, ‘‘अरे, यही बात तो मैं तुम से पूछ रहा हूं कि तुम 30 साल बाद अचानक नैनीताल में कैसे दिख रही हो?’’

उस समय दोनों एकदूसरे से मिल कर 30 साल के लंबे अंतराल को कुछ पल में ही पाट लेना चाहते थे. अत: अनुराग अपने कमरे के पीछे से ही नेहा के कमरे में चले आए. अनुराग को इस तरह अपने पास आता देख नेहा के दिल में खुशी की लहरें उठने लगीं. लंबेलंबे कदमों से चलते हुए नेहा अनुराग को बड़े सम्मान के साथ अपनी बालकनी में ले आई.

‘‘नेहा, इतने सालों बाद भी तुम वैसी ही सुंदर लग रही हो,’’ अनुराग उस के चेहरे को गौर से देखते हुए बोले, ‘‘सच, तुम बिलकुल भी नहीं बदली हो. हां, चेहरे पर थोड़ी परिपक्वता जरूर आ गई है और कुछ बाल सफेद हो गए हैं, बस.’’

‘‘अनुराग, मेरे पति आकाश भी यही कहते हैं. सुनो, तुम भी तो वैसे ही स्मार्ट और डायनैमिक लग रहे हो. लगता है, कोई बड़े अफसर बन गए हो.’’

‘‘नेहा, तुम ने ठीक ही पहचाना. मैं लखनऊ  में डी.आई.जी. के पद पर कार्यरत हूं. हलद्वानी किसी काम से आया था तो सोचा नैनीताल घूम लूं, पर यह बताओ कि तुम्हारा नैनीताल कैसे आना हुआ?’’

‘‘मैं यहां एक डिगरी कालिज में प्रैक्टिकल परीक्षा लेने आई हूं. वैसे मैं बरेली में हूं और वहां के एक डिगरी कालिज में रसायन शास्त्र की प्रोफेसर हूं. पति साथ नहीं आए तो मुझे अकेले आना पड़ा. अभी तक तो मेरा रुकने का इरादा नहीं था पर अब तुम मिले हो तो अपना कार्यक्रम तो बदलना ही पडे़गा. वैसे अनुराग, तुम्हारा क्या प्रोग्राम है?’’

अनुराग ने हंसते हुए कहा, ‘‘नेहा, जिंदगी में सब कार्यक्रम धरे के धरे रह जाते हैं, वक्त जो चाहता है वही होता है. हम दोनों ने उस समय अपने जीवन के कितने कार्र्यक्रम बनाए थे पर आज देखो, एक भी हकीकत में नहीं बदल सका… नेहा, मैं आज तक यह समझ नहीं सका कि तुम्हारे पापा अचानक तुम्हारी पढ़ाई बीच में ही छुड़वा कर बरेली क्यों ले गए? तुम ने बी.एससी. फाइनल भी यहां से नहीं किया?’’

नेहा कुछ गंभीर हो कर बोली, ‘‘अनुराग, मेरे पापा उस उम्र में  ही मुझ से जीवन का लक्ष्य निर्धारित करवाना चाहते थे. वह नहीं चाहते थे कि पढ़ाई की उम्र में मैं प्रेम के चक्कर में पड़ूं और शादी कर के बच्चे पालने की मशीन बन जाऊं. बस, इसी कारण पापा मुझे बरेली ले गए और एम.एससी. करवाया, पीएच.डी. करवाई फिर शादी की. मेरे पति बरेली कालिज में ही गणित के विभागाध्यक्ष हैं.’’

‘‘नेहा, कितने बच्चे हैं तुम्हारे?’’

‘‘2 बेटे हैं. बड़ा बेटा इंगलैंड में डाक्टर है और वहीं अपने परिवार के साथ रहता है. दूसरा अमेरिका में इंजीनियर है. अब तो हम दोनों पतिपत्नी अकेले ही रहते हैं, पढ़ते हैं, पढ़ाते है.’’

‘‘अनुराग, अब तक मैं अपने बारे में ही बताए जा रही हूं, तुम भी अपने बारे में कुछ बताओ.’’

‘‘नेहा, तुम्हारी तरह ही मेरा भी पारिवारिक जीवन है. मेरे भी 2 बच्चे हैं. एक लड़का आई.ए.एस. अधिकारी है और दूसरा दिल्ली में एम्स में डाक्टर है. अब तो मैं और मेरी पत्नी अंशिका ही घर में रहते हैं.’’

इतना कह कर अनुराग गौर से नेहा को देखने लगा.

‘‘ऐसे क्या देख रहे हो अनुराग?’’ नेहा बोली, ‘‘अब सबकुछ समय की धारा के साथ बह गया है. जो प्रेम सत्य था, वही मन की कोठरी में संजो कर रखा है और उस पर ताला लगा लिया है.’’

‘‘नेहा…सच, तुम से अलग हो कर वर्षों तक मेरे अंतर्मन में उथलपुथल होती रही थी लेकिन धीरेधीरे मैं ने प्रेम को समझा जो ज्ञान है, निरपेक्ष है और स्वयं में निर्भर नहीं है.’’

‘‘अनुराग, तुम ठीक कह रहे हो,’’ नेहा बोली, ‘‘कभी भी सच्चे प्रेम में कोई लोभ, मोह और प्रतिदान नहीं होता है. यही कारण है कि हमारा सच्चा प्रेम मरा नहीं. आज भी हम एकदूसरे को चाहते हैं लेकिन देह के आकर्षण से मुक्त हो कर.’’

अनुराग कमरे में घुसते बादलों को पहले तो देखता रहा फिर उन्हें अपनी मुट्ठी में बंद करने लगा. यह देख नेहा हंस पड़ी और बोली, ‘‘यह क्या कर रहे हो बच्चों की तरह?’’

‘‘नेहा, तुम्हारी हंसी में आज भी वह खनक बरकरार है जो मुझे कभी जीने की पे्ररणा देती थी और जिस के बलबूते पर मैं आज तक हर मुश्किल जीतता रहा हूं.’’

नेहा थोड़ी देर तक शांत रही, फिर बेबाकी से बोल पड़ी, ‘‘अनुराग, इतनी तारीफ ठीक नहीं और वह भी पराई स्त्री की. चलो, कुछ और बात करो.’’

‘‘नेहा, एक कप चाय और पियोगी.’’

‘‘हां, चल जाएगी.’’

अनुराग ने कमरे से फोन किया तो कुछ ही देर में चाय आ गई. चाय के साथ खाने के लिए नेहा ने अपने साथ लाई हुई मठरियां निकालीं और दोनों खाने लगे. कुछ देर बाद बातों का सिलसिला बंद करते हुए अनुराग बोले, ‘‘अच्छा, चलो अब फ्लैट पर चलें.’’

नेहा तैयार हो कर जैसे ही बाहर निकली, कमरे में ताला लगाते हुए अनुराग उस की ओर अपलक देखने लगा. नेहा ने टोका, ‘‘अनुराग, गलत बात…मुझे घूर कर देखने की जरूरत नहीं है, फटाफट ताला लगाइए और चलिए.’’

उस ने ताला लगाया और फ्लैट की ओर चल दिया.

बातें करतेकरते दोनों तल्लीताल पार कर फ्लैट पर आ गए और उस ओर बढ़ गए जिधर झील के किनारे रेलिंग बनी हुई थी. दोनों रेलिंग के पास खड़े हो कर झील को देखते रहे.

कतार में तैर रही बतखों की ओर इशारा करते हुए अनुराग ने कहा, ‘‘देखो…देखो, नेहा, तुम ने भी कभी इसी तरह तैरते हुए बतखों को दाना डाला था जैसे ये लड़कियां डाल रही हैं और तब ठीक ऐसे ही तुम्हारे पास भी बतखें आ रही थीं, लेकिन तुम ने शायद उन को पकड़ने की कोशिश की थी…’’

‘‘हां अनुराग, ज्यों ही मैं बतख पकड़ने के लिए झुकी थी कि अचानक झील में गिर गई और तुम ने अपनी जान की परवा न कर मुझे बचा लिया था. तुम बहुत बहादुर हो अनुराग. तुम ने मुझे नया जीवन दिया और मैं तुम्हें बिना बताए ही नैनीताल छोड़ कर चली गई, इस का मुझे आज तक दुख है.’’

‘‘चलो, तुम्हें सबकुछ याद तो है,’’ अनुराग बोला, ‘‘इतने वर्षों से मैं तो यही सोच रहा था कि तुम ने जीवन की किताब से मेरा पन्ना ही फाड़ दिया है.’’

‘‘अनुराग, मेरे जीवन की हर सांस में तुम्हारी खुशबू है. कैसे भूल सकती हूं तुम्हें? हां, कर्तव्य कर्म के घेरे में जीवन इतना बंध जाता है कि चाहते हुए भी अतीत को किसी खिड़की से नहीं झांका जा सकता,’’  एक लंबी सांस लेते हुए नेहा बोली.

‘‘खैर, छोड़ो पुरानी बातों को, जख्म कुरेदने से रिसते ही रहते हैं और मैं ने  जख्मों पर वक्त का मरहम लगा लिया है,’’ अनुराग की गंभीर बातें सुन कर नेहा भी गंभीर हो गई.

‘यह अनुराग कुछ भी भूला नहीं है,’ नेहा मन में सोचने लगी, पुरुष हो कर भी इतना भावुक है. मुझे इसे समझाना पड़ेगा, इस के मन में बंधी गांठों को खोलना पडे़गा.’

नेहा पत्थर की बैंच पर बैठी कुछ समय के लिए शांत, मौन, बुत सी हो गई तो अनुराग ने छेड़ते हुए कहा, ‘‘क्या मेरी बातें बुरी लगीं? तुम तो बेहद गंभीर हो गईं. मैं ने तो ऐसे ही कह दिया था नेहा. सौरी.’’

‘‘अनुराग, यौवनावस्था एक चंचल, तेज गति से बहने वाली नदी की तरह होती है. इस दौर में लड़केलड़कियों में गलतसही की परख कम होती है. अत: प्रेम के पागलपन में अंधे हो कर कई बार दोनों ऐसे गलत कदम उठा लेते हैं जिन्हें हमारा समाज अनुचित मानता है. और यह तो तुम जानते ही हो कि हम भी पढ़ाईलिखाई छोड़ कर

हर शनिवाररविवार खूब घूमतेफिरते थे. नैनीताल का वह कौन सा स्थान है जहां हम नहीं घूमे थे. यही नहीं जिस उद्देश्य के लिए हम मातापिता से दूर थे, वह भी भूल गए थे. यदि हम अलग न हुए होते तो यह सच है कि न तुम कुछ बन पाते और न मैं कुछ बन पाती,’’ कहते हुए नेहा के चेहरे पर अनुभवों के चिह्न अंकित हो गए.

‘‘हां, नेहा तुम बिलकुल ठीक कह रही हो. यदि कच्ची उम्र में हम ने शादी कर ली होती तो तुम बच्चे पालती रहतीं और मैं कहीं क्लर्क बन गया होता,’’ कह कर अनुराग उठ खड़ा हुआ.

नेहा भी उठ गई और दोनों फ्लैट से सड़क की ओर आ गए जो तल्लीताल की ओर जाती है. चारों ओर पहाडि़यां ही पहाडि़यां और बीच में झील किसी सजी हुई थाल सी लग रही थी.

नेहा और अनुराग के बीच कुछ पल के लिए बातों का सिलसिला थम गया था. दोनों चुपचाप चलते रहे. खामोशी को तोड़ते हुए अनुराग बोला, ‘‘अरे, नेहा, मैं तो यह पूछना भूल ही गया कि खाना तुम किस होटल में खाओगी?’’

‘‘भूल गए, मैं हमेशा एंबेसी होटल में ही खाती थी,’’ नेहा बोली.

अपनेअपने परिवार की बातें करते हुए दोनों चल रहे थे. जब दोनों होटल के सामने पहुंचे तो अनुराग नेहा का हाथ पकड़ कर सीढि़यां चढ़ने लगा.

‘‘यह क्या कर रहे हो, अनुराग. मैं स्वयं ही सीढि़यां चढ़ जाऊंगी. प्लीज, मेरा हाथ छोड़ दो, यह सब अब अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘सौरी,’’ कह कर अनुराग ने हाथ छोड़ दिया.

दोनों एक मेज पर आमनेसामने बैठ गए तो बैरा पानी के गिलास और मीनू रख गया.

खाने का आर्डर अनुराग ने ही दिया. खाना देख कर नेहा मुसकरा पड़ी और बोली, ‘‘अरे, तुम्हें तो याद है कि मैं क्या पसंद करती हूं, वही सब मंगाया है जो हम 25 साल पहले इसी तरह इसी होटल में बैठ कर खाते थे,’’ हंसती हुई नेहा बोली, ‘‘और इसी होटल में हमारा प्रेम पकड़ा गया था. खाना खाते समय ही पापा ने हमें देख लिया था. हो सकता है आज भी न जाने किस विद्यार्थी की आंखें हम लोगों को देख रही हों. तभी तो तुम्हारा हाथ पकड़ना मुझे अच्छा नहीं लगा. देखो, मैं एक प्रोफेसर हूं, मुझे अपना एक आदर्श रूप विद्यार्थियों के सामने पेश करना पड़ता है क्योंकि बातें अफवाहों का रूप ले लेती हैं और जीवन भर की सचरित्रता की तसवीर भद्दी हो जाती है.’’

मुसकरा कर अनुराग बोला, ‘‘तुम ठीक कहती हो नेहा, छोटीछोटी बातों का ध्यान रखना जरूरी है.’’

‘‘हां, अनुराग, हम जीवन में सुख तभी प्राप्त कर सकते हैं जब सच्चे प्यार, त्याग और विश्वास को आंचल में समेटे रखें, छोटीछोटी बातों पर सावधानी बरतें. अब देखो न, मेरे पति मुझे अपने से भी ज्यादा प्यार करते हैं क्योंकि मेरा अतीत और वर्तमान दोनों उन के सामने खुली किताब है. मैं ने शाम को ही आकाश को फोन पर सबकुछ बता दिया और वह निश्ंिचत हो गए वरना बहुत घबरा रहे थे.’’

बातों के साथसाथ खाने का सिलसिला खत्म हुआ तो अनुराग बैरे को बिल दे कर बाहर आ गए.

अनुराग और नेहा चुपचाप होटल की ओर चल रहे थे, लेकिन नेहा के दिमाग में उस समय भी कई सुंदर विचार फुदक रहे थे.  वह चौंकी तब जब अनुराग ने कहा, ‘‘अरे, होटल आ गया नेहा, तुम आगे कहां जा रही हो?’’

‘‘ओह, वैरी सौरी. मैं तो आगे ही बढ़ गई थी.’’

‘‘कुछ न कुछ सोच रही होगी शायद…’’

‘‘हां, एक नई कहानी का प्लाट दिमाग में घूम रहा था. दूसरे, नैनीताल की रात कितनी सुंदर होती है यह भी सोच रही थी.’’

‘‘अच्छा है, तुम अपने को व्यस्त रखती हो. साहित्य सृजन रचनात्मक क्रिया है, इस में सार्थकता और उद्देश्य के साथसाथ लक्ष्य भी होता है…’’ होटल की सीढि़यां चढ़ते हुए अनुराग बोला. बात को बीच में ही काटते हुए नेहा बोली, ‘‘यह सब लिखने की प्रेरणा आकाश देते हैं.’’

नेहा अपने कमरे का दरवाजा खोल कर अंदर जाने लगी तो अनुराग ने पूछा, ‘‘क्या अभी से सो जाओगी? अभी तो 11 बजे हैं?’’

‘‘नहीं अनुराग, कल के लिए कुछ पढ़ना है. वैसे भी आज बातें बहुत कर लीं. अच्छी रही हम लोगों की मुलाकात, ओ. के. गुड नाइट, अनुराग.’’

और एक मीठी मुलाकात की महक बसाए दोनों अपनेअपने कमरों में चले गए.

नेहा अपने कमरे में पढ़ने में लीन हो गई लेकिन अनुराग एक बेचैनी सी महसूस कर रहा था कि वह जिस नेहा को एक असहाय, कमजोर नारी समझ रहा था वह आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता की जीतीजागती प्रतिरूप है. एक वह है जो अपनी पत्नी में हमेशा नेहा का रूप देखने का प्रयास करता रहा. सदैव उद्वेलित, अव्यवस्थित रहा. काश, वह भी समझ लेता कि परिस्थितियों के साथ समझौते का नाम ही जीवन है. नेहा ने ठीक ही कहा था, ‘अनुराग, हमें किसी भी भावना का, किसी भी विचार का दमन नहीं करना चाहिए, वरन कुछ परिस्थितियों को अपने अनुकूल और कुछ स्वयं को उन के अनुकूल करना चाहिए तभी हमारे साथ रहने वाले सभी सुखी रहते हैं.’

एड़ियां फटने के क्या हैं कारण, इन तरीकों से रखें ख्याल

लेखिका-सोनिया राणा

बदलते मौसम में हम अपने चेहरे और हाथों की स्किन का तो खूब खयाल रखते हैं, लेकिन अकसर यह भूल जाते हैं कि हमारी पर्सनैलिटी में जितनी इंपौर्टैंस चेहरे और हाथों की खूबसूरती की है उतने ही अहम हमारे पैर भी हैं, जिन पर मौसम की मार सब से पहले पड़ती है, लेकिन हम उन्हीं को अपनी टेक केयर लिस्ट में सब से आखिर में रखते हैं. नतीजा यह होता है कि हमारी एडि़यां फट जाती हैं, पैर बेजान नजर आने लगते हैं.

 

आप अपने पैरों का खयाल कैसे रख सकती हैं और ऐसी कौन सी चीजें हैं, जो आप के पैरों में फिर से जान डाल देंगी, यही बताने के लिए हम यह लेख आप के लिए ले कर आए हैं.

एडि़या फटने के कारण

एडि़या फटने की सब से आम वजह है मौसम का बदलना, साथ ही मौसम के अनुरूप पैरों को सही तरीके से मौइस्चराइज न करना और जब मौसम शुष्क हो जाता है तो यह परेशानी और बढ़ जाती है.

देखा जाए तो अधिकतर महिलाएं फटी एडि़यों से परेशान होती हैं, क्योंकि काम करते समय अकसर उन के पैर धूलमिट्टी का ज्यादा सामना करते हैं इस के साथ ही इन कारणों की वजह से भी एडि़यां फटती हैं:

– लंबे समय तक खड़े रहना

– नंगे पैर चलना

– खुली एडि़यों वाले सैंडल पहनना

– गरम पानी में देर तक नहाना

– कैमिकल बेस्ड साबुन का  इस्तेमाल करना – सही नाप के जूते न पहनना.

बदलते मौसम के कारण वातावरण में नमी कम होना फटी एडि़यों की आम वजह है. साथ ही बढ़ती उम्र में भी एडि़यों का फटना आम बात है. ऐसे में कई बार एडि़यां दरारों के साथ रूखी हो जाती हैं. कई मामलों में उन दरारों से खून भी रिसना शुरू हो जाता है, जो काफी दर्दनाक होता है.

कैसे रखें पैरों का खयाल

अपने पैरों की खूबसूरती को बनाए रखने के लिए जरूरी है कि जैसे आप अपने चेहरे पर डैड स्किन हटा कर उसे मौइस्चराइज रखती हैं

ठीक वैसे ही अपने पैरों को भी प्लूमिक स्टोन से रगड़ कर एडि़यों से डैड स्किन को हटाना चाहिए.

उस के बाद पैरों को अच्छी तरह थिक क्रीम बेस्ड फौर्मूला, बाम या नारियल के तेल से अच्छी तरह मौइस्चराइज करना चाहिए.

इस तरीके से आप अपनी एडि़यों को फटने से बचा सकती हैं, लेकिन अगर आप की एडि़यों में दरारें आ चुकी हों और उन में दर्द या खून रिसने लगा हो तो आप को उस के लिए डाक्टर से सलाह ले कर उस का उपचार कराना चाहिए, क्योंकि डायबिटीज, हाइपोथायराइडिज्म, एटौपिक डर्मैटाइटिस समेत ऐसी कई बीमारियां हैं, जिन के कारण एडि़यां फट जाती हैं.

पैट्रोलियम जैली, ग्लिसरीन और लेनोलिन युक्त क्रीम से मिलेगी राहत. अगर आप फटी एडि़यों से परेशान हैं तो ऐसी फुट क्रीम का इस्तेमाल करें, जिस में पैट्रोलियम जैली, ग्लिसरीन और लेनोलिन, कैलेंडुला, चमेली के फूल और कोकम बटर के इस्तेमाल किया गया हो. इस से आप को फटी एडि़यों से राहत मिलेगी और इस के नियमित इस्तेमाल से आप भविष्य में भी इस परेशानी से बची रहेंगी.

कहीं मेरा बौयफ्रेंड मुझे धोखा तो नहीं दे रहा, कैसे पता करूं ?

सवाल-

मैं एक समस्या को ले कर काफी तनावग्रस्त हूं. मैं 4 वर्षों से एक लड़के से प्यार करती हूं. हम दोनों इस रिश्ते को ले कर काफी गंभीर थे. पर 2 महीनों से वह किसी और लड़की से बात करता है. मेरे सामने उस का फोन आने पर फोन काट देता है. मैं ने जब उस से इस बाबत पूछा तो उस ने यह कह कर टाल दिया कि बस सामान्य सी दोस्ती है और कुछ नहीं. मेरा शक इसलिए गहरा रहा है, क्योंकि रात 2-2 बजे तक उस का फोन बिजी जाता है. कृपया बताएं कि कैसे सचाई का पता लगाऊं कि उस के दिल में क्या है?

जवाब-

यदि आप के प्रेमी का व्यवहार आप के साथ सामान्य है अर्थात उस में कोई बदलाव नहीं आया है और वह आप को भरपूर समय देता है, आप की परवाह करता है तो आप को अपने प्रेमी की बात का यकीन करना चाहिए कि उक्त लड़की से उस की दोस्ती भर है. पर यदि आप को उस के व्यवहार में कुछ अंतर दिखता है, वह आप से कन्नी काटने लगा है तो आप को उस से खुल कर बात कर लेनी चाहिए.

उस की मंशा जान कर ही आप कोई निर्णय कर पाएंगी कि दोस्ती बनाए रखनी है या इस रिश्ते को यहीं विराम लगाना है. जो भी निर्णय करें सोचसमझ कर करें. जल्दबाजी न करें.

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 अगर आप का साथी लगातार फोन पर है, कभी कोने में, कभी दूसरे कमरे में जा कर चैटिंग करने लगता है, भले आप को उस पर कितना ही विश्वास हो, आप को उस की कुछ हरकतें तो खटक ही जाती हैं, आप को अलर्ट हो भी जाना चाहिए अगर इन में से कुछ बातों पर आप का ध्यान जाए.

वह अपने फोन से कौल्स और मैसेज डिलीट तो नहीं करता रहता? उस का फोन नए जैसा तो नहीं, न कोई मैसेज, न कौल की डिटेल्स, ये सब डिलीट करना चीटिंग का पावरफुल साइन है.

1. अकसर चीटिंग करने वाले पुरुष अपने अफेयर्स के नाम या नंबर को अलग तरह से रखते हैं.

2. क्या आप का साथी फोन पर बात करते हुए या चैटिंग करते हुए आप से एक दूरी तो नहीं रख रहा होता, आप उस की पार्टनर हैं, फैमिली या काम, किसी की भी बात आप से छिपाने की उसे जरूरत नहीं होने चाहिए.

3. आप से छिपाने का एक अच्छा रीजन भी हो सकता है, हो सकता है आप का साथी आप के लिए ही कोई सरप्राइज प्लान कर रहा हो, उस पर शक करने से पहले यह जरूर सुनिश्चित कर लें कि सच में क्या चल रहा है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

दबी हुई परतें : क्यों दीदी से मिलकर हैरान रह गई वह

हमारे संयुक्त परिवार में संजना दी सब से बड़ी थीं. बड़ी होने के साथ लीडरशिप की भावना उन में कूटकूट कर भरी थी. इसीलिए हम सब भाईबहन उन के आगेपीछे घूमते रहते थे और वे निर्देश देतीं कि अब क्या करना है. वे जो कह दें, वही हम सब के लिए एक आदर्श वाक्य होता था. सब से पहले उन्होंने साइकिल चलानी सीखी, फिर हम सब को एकएक कर के सिखाया. वैसे भी, चाहे खेल का मैदान हो या पढ़ाईलिखाई या स्कूल की अन्य गतिविधियां, दीदी सब में अव्वल ही रहती थीं. इसी वजह से हमेशा अपनी कक्षा की मौनीटर भी वही रहीं.

हां, घरेलू कामकाज जैसे खाना बनाना या सिलाईबुनाई में दीदी को जरा भी दिलचस्पी नहीं थी, इसीलिए उन की मां यानी मेरी ताईजी की डांट उन पर अकसर पड़ती रहती थी. पर इस डांटडपट का कोई असर उन पर होता नहीं था.

मुझ से तो 8-10 साल बड़ी थीं वे, इसीलिए मैं तो एक प्रकार से उन की चमची ही थी. मुझ से वे लाड़ भी बहुत करती थीं. कभीकभी तो मेरा होमवर्क तक कर देती थीं, कहतीं, ‘चल तू थक गई होगी रितु, तेरा क्लासवर्क मैं कर देती हूं, फिर तू भी खेलने चलना.’

बस, मैं तो निहाल हो जाती. इस बात की भी चिंता नहीं रहती कि स्कूल में टीचर, दीदी की हैंडराइटिंग देख कर मुझे डांटेगीं. पर उस उम्र में इतनी समझ भी कहां थी.

हंसतेखेलते हम भाईबहन बड़े हो रहे थे. दीदी तब कालेज में बीए कर रही थीं कि ताऊजी को उन के विवाह की फिक्र होने लगी. ताऊजी व दादाजी की इच्छा थी कि सही उम्र में विवाह हो जाना चाहिए. लड़कियों को अधिक पढ़ाने से क्या फायदा, फिर अभी इस उम्र में तो सब लड़कियां अच्छी लगती ही हैं, इसलिए लड़का भी आसानी से मिल जाएगा. वैसे, दीदी थी तो स्मार्ट पर रंग थोड़ा दबा होने की वजह से 2 जगहों से रिश्ते वापस हो चुके थे.

दीदी का मन अभी आगे पढ़ने का था. पर बड़ों के आगे उन की एक न चली. एक अच्छा वर देख कर दादाजी ने उन का संबंध तय कर ही दिया. सुनील जीजाजी अच्छी सरकारी नौकरी में थे. संपन्न परिवार था. बस, ताऊजी और दादाजी को और क्या चाहिए था.

दीदी बीए का इम्तिहान भी नहीं दे पाई थीं कि उन का विवाह हो गया. घर में पहली शादी थी तो खूब धूमधाम रही. गानाबजाना, दावतें सब चलीं और आखिरकार दीदी विदा हो गईं.

सब से अधिक दुख दीदी से बिछुड़ने का मुझे था. मैं जैसे एकदम अकेली हो गई थी. फिर कुछ दिनों बाद चाचा के बेटे रोहित को विदेश में स्कौलरशिप मिली थी बाहर जा कर पढ़ाई करने की, तो घर में एक बड़ा समारोह आयोजित किया गया. दीदी को भी ससुराल से लाने के लिए भैया को भेजा गया पर ससुराल वालों ने कह दिया कि ऐसे छोटेमोटे समारोह के लिए बहू को नहीं भेजेंगे और अभीअभी तो आई ही है.

हम लोग मायूस तो थे ही, ऊपर से भैया ने जो उन की ससुराल का वर्णन किया उस से और भी दुखी हो गए. अरे, हमारी संजना दी को ताऊजी ने पता नहीं कैसे घर में ब्याह दिया. हमारी दी जो फर्राटे से शहरभर में स्कूटर पर घूम आती थीं, वो वहां घूंघट में कैद हैं. इतना बड़ा घर, ढेर सारे लोग, मैं तो खुल कर दीदी से बात भी नहीं कर पाया.

अच्छा तो क्या सभी ससुरालें ऐसी ही होती हैं? मेरे सपनों को जैसे एक आघात लगा था. मैं तो सोच रही थी कि वहां ताईजी, मां जैसे डांटने वाले या टोकने वाले लोग तो होंगे नहीं, आराम से जीजाजी के साथ घूमतीफिरती होंगी. खूब मजे होंगे. मन हुआ कि जल्दी ही दीदी से मिलूं और पूछूं कि आप तो परदे, घूंघट सब के इतने खिलाफ थीं, इतने लैक्चर देती रहती थीं, अब क्या हुआ?

फिर कुछ ही दिनों बाद जीजाजी को किसी ट्रेनिंग के सिलसिले में महीनेभर के लिए बेंगलुरु जाना था तो दीदी जिद कर के मायके आ गई थीं.  मैं तो उन्हें देखते ही चौंक गई थी, इतनी दुबली और काली लगने लगी थीं.

मां ने तो कह भी दिया था, ‘अरे संजना बेटा, लड़कियां तो ससुराल जा कर अच्छी सेहत बना कर आती हैं. पर तुझे क्या हुआ?’ पर धीरेधीरे पता चला कि ससुराल वाले उन से खुश नहीं हैं. सास तो अकसर ताना देती रहती हैं कि पता नहीं कैसे मांबाप हैं इस के कि घर के कामकाज तक नहीं सिखाए, 4 लोगों का खाना तक नहीं बना सकती ये बहू, अब इस की पढ़ाई को क्या हम चाटें.

‘मां, मैं अब ससुराल नहीं जाऊंगी, मेरा वहां दम घुटता है. सास के साथ ये भी हरदम डांटते रहते हैं और मेरी कमियां निकालते हैं.’ एक दिन रोते हुए वे ताईजी से कह रही थीं तो मैं ने भी सुन लिया. पर ताईजी ने उलटा उन्हें ही डांटा. ‘पागल हो गई है क्या? ससुराल छोड़ कर यहां रहेगी, समाज में हमारी थूथू कराने आई है. अरे, हमें अभी अपनी और लड़कियां भी ब्याहनी है, कौन ब्याहेगा फिर रंजना और वंदना को, बता?’

इधर मां ने भी दीदी को समझाया, ‘देख बेटा, हम तो पहले ही कहते थे कि घर के कामकाज सीख ले. ससुराल में सब से पहले यही देखा जाता है. पर कोई बात नहीं, अभी कौन सी उम्र निकल गई है. अब सिखाए देते हैं. अच्छा खाना बनाएगी, सलीके से घर रखेगी तो सास भी खुश होगी और हमारे जमाईजी भी.’

दीदी के नानुकुर करने पर भी मां उन्हें जबरन चौके में ले जातीं और तरहतरह के व्यंजन, अचार आदि बनाने की शिक्षा देतीं. हम लोग सोचते ही रह जाते कि कब दीदी को समय मिलेगा और हम लोगों के साथ हंसेगी, खेलेंगी, बोलेंगी.

एक महीना कब निकल गया, मालूम ही नहीं पड़ा था. जीजाजी आ कर दीदी को विदा करा के ले गए. मैं फिर सोचती, पता नहीं हमारी दीदी के साथ ससुराल में कैसा सुलूक होता होगा. फिर पढ़ाई का बोझ दिनोंदिन बढ़ता गया और दीदी की यादें कुछ कम हो गईं.

2 वर्षों बाद भैया की शादी में दीदी और जीजाजी भी आए थे. पर अब दीदी का हुलिया ही बदल हुआ लगा. वैसे, सेहत पहले से बेहतर हो गई थी पर वे हर समय साड़ी में सिर ढके रहतीं?

‘‘दीदी, ये तुम्हारी ससुराल थोड़े ही है, जो चाहे, वह पहनो,’’ मुझ से रहा नहीं गया और कह दिया.

‘‘देख रितु, तेरे जीजाजी को जो पसंद है वही तो करना चाहिए न मुझे. अब अगर इन्हें पसंद है कि मैं साड़ी पहनूं, सिर ढक कर रहूं, तो वही सही.’’

‘‘अच्छा, इतनी आज्ञाकारिणी कब से हो गई हो?’’ मैं ने चिढ़ कर कहा.

‘‘होना पड़ता है बहना, घर की सुखशांति बनाए रखने के लिए अपनेआप को बदलना भी पड़ता है. ये सब बातें तुम तब समझोगी, जब तेरी शादी हो जाएगी,’’ कह कर दीदी ने बात बदल दी.

पर मैं देख रही थी कि दीदी हर समय जीजाजी के ही कामों में लगी रहतीं. उन के लिए अलग से चाय खुद बनातीं. खाना बनता तो गरम रोटी सिंकते ही पहले जीजाजी की थाली खुद ही लगा कर ले जातीं. कभी उन के लिए गरम नाश्ता बना रही होतीं तो कभी उन के कपड़े निकाल रही होतीं.

एक प्रकार से जैसे वे पति के प्रति पूर्ण समर्पित हो गई थीं. जीजाजी भी हर काम के लिए उन्हें ही आवाज देते.

‘‘संजू, मेरी फलां चीज कहां हैं, ये कहां है, वो कहां है.’’

मां, ताईजी तो बहुत खुश थीं कि हमारी संजना ने आखिरकार ससुराल में अपना स्थान बना ही लिया.

मैं अब अपनी पढ़ाई में व्यस्त हो गई थी. 2 वर्षों के लिए जिद कर के होस्टल में रहने चली गई थी. बीच में दीदी मायके आई होंगी पर मेरा उन से मिलना हो नहीं पाया.

एक बार फिर छुट्टियों में मैं उन की ससुराल जा कर ही उन से मिली थी. अब तो दीदी के दोनों जेठों ने अलग घर बना लिए थे. सास बड़े जेठ के पास रहती थीं. इतने बड़े घर में दीदी, जीजाजी और उन के दोनों बच्चे ही थे.

‘‘दीदी, अब तो आप आराम से अपने हिसाब से जी सकती हो और अपने शौक भी पूरे कर सकती हो,’’ मैं ने उन्हें इस बार भी हरदम सिर ढके देख कर कह ही दिया.

‘‘देख रितु, मैं अब अच्छी तरह समझ गई हूं कि अगर मुझे इस घर में शांति बनाए रखनी है तो मुझे तेरे जीजाजी के हिसाब से ही अपनेआप को ढालना होगा. तभी ये मुझे से खुश रह सकते हैं. ये एक परंपरागत परिवार से जुडे़ रहे हैं तो जाहिर है कि सोच भी उसी प्रकार की है.’’

यह सच भी था कि दीदी ने अपनेआप को जीजाजी की रुचि के अनुसार ढाल लिया था. वैसे, घर में काफी नौकरचाकर थे पर चूंकि जीजाजी किसी के हाथ का बना खाना खाते नहीं थे इसलिए दीदी स्वयं ही दोनों समय का खाना यहां तक कि नाश्ता तक  स्वयं बनातीं. और तो और, पूरा घर भी जीजाजी की रुचि के अनुसार ही सजा हुआ था. घर में ढेरों पुस्तकें, कई महापुरुषों के फोटो हर कमरे में थे. अब तो आसपास के लोग भी इस जोड़े को आदर्श जोड़े का नाम देने लगे थे.

शादी के बाद मैं पति के साथ अमेरिका चली गई. देश की धरती से दूर. साल 2 साल में कभी कुछ दिनों के लिए भारत आती तो भी दीदी से कभी 2-4 दिनों के लिए ही मिलना हुआ और कभी नहीं.

हां, यह अवश्य था कि अगर मैं कभी अपने पति सुभाष की कोई शिकायत मां से करती तो वे फौरन कहतीं, ‘अपनी संजना दीदी को देख, कैसे बदला है उस ने अपनेआप को. कैसे सुनीलजी लट्टू हैं उन पर. अरे, तुझे तो सारी सुविधाएं मिली हुई हैं, आजादी के माहौल में रह रही है, फिर भी शिकायतें.’

मैं सोचती कि भले ही मैं अमेरिका में हूं पर पुरुष मानसिकता जो भारत में है वही इन की अमेरिका में भी है. अब मैं कहां तक अपनेआप को बदलूं. आखिर इन्हें भी तो कुछ बदलना चाहिए.

बस, ऐसे ही खट्टीमीठी यादों के साथ जिंदगी चल रही थी. फिर अचानक ही दुखद समाचार मिला सुनील जीजाजी के निधन का. मैं तो हतप्रभ रह गई. दीदी की शक्ल जैसे मेरी आंखों के सामने से हट ही नहीं पा रही थी. कैसे संभाला होगा उन्होंने अपनेआप को. वे तो पूरी तरह से पति की अनुगामिनी बन चुकी थीं. भारत में होती तो अभी उन के पास पहुंच जाती. फिर किसी प्रकार 6 महीने बाद आने का प्रोग्राम बना. सोचा कि पहले कोलकाता जाऊंगी दीदी के पास. बाद में भोपाल अपनी ससुराल और फिर ग्वालियर अपने मायके.

दीदी को फोन पर मैं ने अपने आने की सूचना भी दे दी और कह भी दिया था कि आप चिंता न करें, मैं टैक्सी ले कर घर पहुंच जाऊंगी. अब अकेले आनेजाने का अच्छा अभ्यास है मुझे.

‘ठीक है रितु,’ दीदी ने कहा था.

पर रास्तेभर मैं यही सोचती रही कि दीदी का सामना कैसे करूंगी. सांत्वना के तो शब्द ही नहीं मिल रहे थे मुझे. वे तो इतनी अधिक पति के प्रति समर्पित रही हैं कि क्या उन के बिना जी पाएंगी. जितना मैं सोचती उतना ही मन बेचैन होता रहा था.

पर कोलकाता एयरपोर्ट पर पहुंच कर तो मैं चौंक ही गई. दीदी खड़ी थीं. सामने ड्राइवर हेमराज के साथ और उन का रूप इतना बदला हुआ था. कहां मैं कल्पना कर रही थी कि वे साड़ी से सिर ढके उदास सी मिलेंगी पर यहां तो आकर्षक सलवार सूट में थीं. बाल करीने से पीछे बंधे हुए थे. माथे पर छोटी सी बिंदी भी थी. उम्र से 10 साल छोटी लग रही थीं.

‘‘दीदी, आप? आप क्यों आईं, मैं पहुंच जाती.’’

मैं कह ही रही थी कि हेमराज ने टोक दिया, ‘‘अरे, ये तो अकेली आ रही थीं, कार चलाना जो सीख लिया है. मैं तो जिद कर के साथ आया कि लंबा रास्ता है और रात का टाइम है.’’

‘‘अच्छा.’’

मुझे तो लग रहा था कि जैसे मैं दीदी से पिछड़ गई हूं. इतने साल अमेरिका में रह कर भी मुझे अभी तक गाड़ी चलाने में झिझक होती है और दीदी हैं…लग भी कितनी स्मार्ट रही हैं. रास्तेभर वे हंसतीबोलती रहीं, यहां तक कि जीजाजी के बारे में कोई खास बात नहीं की उन्होंने. मैं ने ही 2-4 बार जिक्र किया तो टाल गई थीं.

घर पहुंच कर मैं ने देखा कि अब तो पूरा घर दीदी की रुचि के अनुसार ही सजा हुआ है. उन की पसंद की पुस्तकें सामने शीशे की अलमारी में नजर आ रही थीं. कई संस्थाओं के फोटो भी लगे हुए थे. पता चला कि अब चूंकि पर्याप्त समय था उन के पास, इसलिए अब कई सामाजिक संस्थाओं से भी वे जुड़ गई थीं और अपनी पसंद के कार्य कर रही थीं.

अब तो खाना बनाने के लिए भी एक अलग नौकर सूरज था उन के पास. सुबह ब्रैकफास्ट में भी पूरी टेबल सजी रहती. फलजूस और कोई गरम नाश्ता. लंच में भी पूरी डाइट रहती थी. भले ही उन का अकेले का खाना बना हो पर वे पूरी रुचि और सुघड़ता से ही सब कार्य करवाती थीं. ड्राइवर रोज शाम को आ जाता. अगर कहीं मिलने नहीं भी जाना हो, तो वे खुद ड्राइविंग करतीं लेकिन ड्राइवर साथ रहता.

तात्पर्य यह कि वे अपने सभी शौक पूरे कर रही थीं. फिर भी अकेलापन तो था ही, इसीलिए मैं ने कह ही दिया, ‘‘दीदी, यहां इतने बड़े मकान में, इस महानगर में अकेली रह रही हो, बेटे के पास जमशेदपुर…’’

‘‘नहीं रितु, अब कुछ साल मरजी से, अपनी खुशी के लिए. अभी तक तो सब के हिसाब से जीती रही, अब

कुछ साल तो जिऊं अपने लिए, सिर्फ अपने लिए.’’

मैं अवाक हो कर उन का मुंह ताक रही थी.

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