Moral Story: पंछी बन कर उड़ जाने दो

Moral Story: कालेज में वार्षिक उत्सव की तैयारियां जोरशोर से चल रही थीं. कार्यक्रम के आयोजन का जिम्मा मेरा था. मैं वहां व्याख्याता के तौर पर कार्यरत थी. कालेज में एक छात्र था राज, बड़ा ही मेधावी, हर क्षेत्र में अव्वल. पढ़ाईलिखाई के अलावा खेलकूद और संगीत में भी विशेष रुचि थी उस की. तबला, हारमोनियम, माउथ और्गन सभी तो कितना अच्छा बजाता था वह. सुर को बखूबी समझता था. सो, मैं ने अपना कार्यभार कम करने हेतु उस से मदद मांगते हुए कहा, ‘‘राज, यदि तुम जूनियर ग्रुप को थोड़ा गाना तैयार करवा दोगे तो मेरी बड़ी मदद होगी.’’

‘‘जी मैम, जरूर सिखाऊंगा और मुझे बहुत अच्छा लगेगा. बहुत अच्छे से सिखाऊंगा.’’

‘‘मुझे पूरी उम्मीद थी कि तुम से मुझे यही जवाब मिलेगा,’’ मैं ने कहा.

वह जीजान से जुट गया था अपने काम में. उस जूनियर गु्रप में मेरी अपनी भांजी निशा भी थी. मैं उस की मौसी होते हुए भी उस की सहेली से बढ़ कर थी. वह मुझ से अपनी सारी बातें साझा किया करती थी.

एक दिन निशा मेरे घर आईर् और बोली, ‘‘मौसी, यदि आप गलत न समझें तो एक बात कहूं?’’

मैं ने कहा ‘‘हां, कहो.’’

वह कहने लगी, ‘‘मौसी, मालूम है राज और पद्मजा के बीच प्रेमप्रसंग शुरू हो गया है.’’

मैं ने कहा, ‘‘कब से चल रहा है?’’

वह कहने लगी, ‘‘जब से राज ने जूनियर गु्रप को वह गाना सिखाया तब से.’’

मैं ने कहा, ‘‘तुम से किस ने कहा यह सब? क्या पद्मजा ने बताया?’’

निशा कहने लगी, ‘‘नहीं मौसी, उस ने तो नहीं बताया लेकिन अब तो उन दोनों की आंखों में ही नजर आता है, और सारे कालेज को पता है.’’

मैं ने कहा, ‘‘चल, अब बातें न बना.’’

उस के बाद से मैं देखती कि कई बार राज व पद्मजा साथसाथ होते और सच पूछो तो मुझे उन की जोड़ी बहुत अच्छी लगती. अच्छी बात यह थी कि राज और पद्मजा ने इस प्रेमप्रसंग के चलते कभी कोई अभद्रता नहीं दिखाई थी. मैं तो देख रही थी कि दोनों ही अपनीअपनी पढ़ाई में और ज्यादा जुट गए थे.

फिर एक दिन निशा आई और कहने लगी, ‘‘मौसी, वैलेंटाइन डे पर मालूम है क्या हुआ?’’

मैं ने कहा, ‘‘तू फिर से राज और पद्मजा के बारे में तो कुछ नहीं बताने वाली?’’

निशा बोली, ‘‘वही तो, मौसी, हम ने वैलेंटाइन डे पार्टी रखी थी. उस में राज और पद्मजा भी थे. सब लोग डांस कर रहे थे और सभी दोस्तों ने उन से बालरूम डांस करने के लिए कहा. राज शरमा गया था जबकि पद्मजा कहने लगी, ‘मैं क्यों करूं इस के साथ डांस. इस ने तो अभी तक मुझ से प्यार का इजहार भी नहीं किया.’

‘‘फिर क्या था मौसी, सब कहने लगे, राज, कह डाल, राज, कह डाल. और राज पद्मजा की आंखों में आंखें डाल कर कहने लगा, ‘आई लव यू, पद्मजा.’ उस के बाद उस ने एक ही नहीं, 7 अलगअलग भाषाओं में अपने प्यार का इजहार किया.’’

जब निशा मुझे उन की बातें बताती तो उस के चेहरे पर अलग ही चमक होती थी. खैर, वह चमक वाजिब भी थी, उस की उम्र ही ऐसी थी.

और एक बार निशा बताने लगी, ‘‘मौसी, मालूम है, पद्मजा राज को बहुत प्रेरित करती रहती है पढ़ाई के लिए और प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए. आप को बताऊं, पद्मजा क्या कहती है उस से?’’

मैं ने कहा, ‘‘जब इतना बता दिया तो यह भी बता दे, वरना तेरा तो पेट दुख जाएगा न.’’ सच पूछो तो मैं स्वयं भी जानना चाहती थी कि दोनों के बीच चल क्या रहा है.

वह कहने लगी, ‘‘मौसी, पद्मजा ने कहा, ‘राज, तुम इस बार वादविवाद प्रतियोगिता में जरूर भाग लोगे. जीतोगे भी मेरे लिए.’ फिर मौसी, राज ने प्रतियोगिता में भाग लिया और जीत भी गया और उस के बाद दोनों साथ में घूमने गए और पता है मौसी, राज अवार्ड के पैसों से उसे शौपिंग भी करवा के लाया.

‘‘पता है क्या लिया पद्मजा ने? चूडि़यां. मौसी, वह दक्षिण भारत से है न, वहां लड़कियां चूडि़यां जरूर पहनती हैं. तो राज ने उसे चूडि़यां दिलवाई हैं.’’

और राज की यह बात मेरे दिल को बहुत छू गई थी. मैं सोच रही थी कितना निर्मल और सच्चा प्यार है दोनों का. दोनों शायद एकदूसरे को आगे बढ़ाने में बड़े प्रेरक थे. ऐसा चलते 2 साल बीत गए और फेयरवैल का दिन आ गया. सभी छात्रछात्राएं एकदूसरे से विदा ले रहे थे.

राज मेरे पास आया, कहने लगा, ‘‘मैम, आप से विदा चाहते हैं, आप ने इन वर्षों में इतना लिखाया, पढ़ाया, आप को बहुतबहुत धन्यवाद.’’ वैसे तो मैं राज की अध्यापिका थी किंतु उस से पहले एक इंसान भी तो थी, सो, मैं ने कहा, ‘‘राज, तुम जैसे छात्र बहुत कम होते हैं. तुम अब सौफ्टवेयर इंजीनियर बन गए हो. सदा आगे बढ़ो. एक दिल की बात कहूं?’’

राज बोला, ‘‘जी, कहिए, मैम.’’ मैं ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘तुम्हारी और पद्मजा की जोड़ी बहुत ही अच्छी है. मुझे शादी में बुलाना न भूलना.’’ राज मुंह नीचे किए मुसकरा कर बोला, ‘‘जी मैम, जरूर.’’ और फिर वह चला गया.

यह सब हुए पूरे 8 वर्ष बीत गए और मैं अपने पति के साथ मसूरी घूमने आई हुई थी. वहां मैं ने होर्डिंग्स पर राज की तसवीरें देखीं, पता लगा कि उस का एक स्टेजशो है. मैं ने अपने पति से कह कर शो के टिकट मंगवा लिए और पहुंच गई हौल में शो देखने.

जैसे ही राज स्टेज पर आया, हौल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. वह देखने में बहुत ही अच्छा लग रहा था. कुदरत ने उसे रंगरूप, कदकाठी तो दी ही थी, उस पर उस का आकर्षक व्यक्तित्व जैसे सोने पे सुहागा. उस के पहले गीत, ‘‘फिर वही शाम, वही गम, वही तनहाई है…’’ के साथ हौल में समां बंध गया था और जैसे ही शो खत्म हुआ, सभी लड़कियां उस का औटोग्राफ लेने पहुंच गईं. उन के साथ मैं भी स्टेज के पास जा पहुंची.

जैसे ही उस की नजर मुझ पर पड़ी, वह झट से पहचान गया और उसी अदब के साथ उस ने मुझे अभिवादन किया. अपने छात्र राज को इस मुकाम पर देख मेरी आंखों में खुशी के आंसू आ गए थे.

फिर राज और मैं कौफी पीने होटल के लाउंज में चले गए और सब से पहले मैं ने शिकायतभरे लहजे में कहा, ‘‘राज, बहुत नाराज हूं तुम से, तुम ने मुझे शादी में क्यों नहीं बुलाया? कहां है पद्मजा, कैसी है वह?’’

इतना सुनते ही राज की मुसकराती आंखों के किनारे नम हो गए थे. अपने आंसुओं को अपनी मुसकराहट के पीछे छिपाते हुए उस ने कहा, ‘‘मेरी शादी नहीं हुई, मैम, पद्मजा मेरी नहीं हो सकी. उस की शादी कहीं और हो गई है.’’

मुझ से रहा न गया तो पूछ बैठी, ‘‘क्यों नहीं हुई तुम्हारी दोनों की शादी.’’ वह कहने लगा, ‘‘मैम, मैं उत्तर भारत से हूं और वह दक्षिण भारतीय. हमारी जाति भी एक नहीं, इसीलिए.’’

‘‘लेकिन कौन आजकल जातपांत मानता है, राज?’’ मैं ने कहा, ‘‘और फिर तुम दोनों तो इतने पढ़ेलिखे हो.’’

राज ने कहा, ‘‘मैम, मेरे मातापिता इस रिश्ते को ले कर बहुत खुश थे. मेरी मां ने तो बहू लाने की पूरी तैयारी भी कर ली थी. लेकिन पद्मजा के मातापिता इस रिश्ते को ले कर खुश नहीं थे और उन्होंने इनकार कर दिया था. मैं पद्मजा के मातापिता से बात करने भी गया था. उन से बात करने पर वे कहने लगे, ‘देखो राज, तुम एक समझदार और नेक इंसान लगते हो. हमें तुम्हारे में कोई कमी नजर नहीं आती. लेकिन हम अगर अपनी बेटी पद्मजा की शादी तुम से कर दें तो हमारी बिरादरी में हमारी नाक कट जाएगी. और वैसे भी हम ने अपनी ही बिरादरी का दक्षिण भारतीय लड़का ढूंढ़ रखा है. इसीलिए अच्छा होगा कि अब तुम पद्मजा को भूल ही जाओ.’ मैं ने उन से इतना भी कहा कि ‘क्या पद्मजा मुझे भुला पाएगी?’ तो वे कहने लगे, ‘वह हमारी बेटी है, हम उसे समझा लेंगे.’

‘‘मैं ने पद्मजा की तरफ देखा, वह बहुत रो रही थी. उस ने मुझ से हाथ जोड़ कर माफी मांगते हुए कहा, ‘जाओ राज, मैं अपने मातापिता की मरजी के खिलाफ तुम से शादी नहीं कर सकती.’ मैं क्या करता, मैम. बस, तब से ही इस दुनिया से जैसे दिल भर गया. किंतु क्या करूं मेरे भी तो अपने मातापिता के प्रति कुछ फर्ज हैं, बस, इसीलिए जिंदा हूं. बहुत मुश्किल से संभाला है मैं ने अपनेआप को.’’

वह कहता जा रहा था और उस के आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे. उस का हाल सुन मेरी आंखों से भी आंसुओं की धारा बह चली थी.

राज का यह हाल देख मुझे बड़ा ही दुख हुआ. मैं मन ही मन सोच रही थी कि राज और पद्मजा का प्यार कोई कच्ची उम्र का प्यार नहीं था, न ही मात्र आकर्षण. दोनों ही परिपक्व थे. राज उस से शादी को ले कर सीरियस भी था. तभी तो वह पद्मजा के मातापिता से मिलने गया था. पद्मजा न जाने किस हाल में होगी.

खैर, मैं उस के लिए तो कुछ नहीं कह सकती. किंतु उस के मातापिता, क्यों उन्होंने अपनी बेटी से बढ़ कर जात, समाज, धर्म, प्रांत की चिंता की. यदि राज और पद्मजा 7 वर्ष एकसाथ एक ख्वाब को बुनते रहे तो क्या अपना परिवार नहीं बसा सकते थे. हम अपने बच्चों के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर देते हैं, उन्हीं बच्चों की खुशियों को क्यों जात, बिरादरी, समाज की भेंट चढ़ा देते हैं? क्यों हम यह नहीं समझते कि प्यार और आकर्षण में बहुत फर्क होता है? यह 16 वर्ष की उम्र वाला मात्र आकर्षण नहीं था, यह सच्चा प्यार था जो आज राज की आंखों से आंसू बन कर बह निकला था. हम क्यों नहीं समझते कि समाज के नियम इंसान ने ही बनाए हैं और वे उस के हित में होने चाहिए न कि जाति, धर्म, भाषा की आड़ में इंसानों के बीच दीवार खड़ी करने के लिए.

बहरहाल, अब हो भी क्या सकता था. लेकिन, मैं इतना तो जरूर कहना चाहूंगी कि जिस तरह राज और पद्मजा का प्यार अधूरा रह गया सिर्फ इंसानों के बनाए झूठे नियम, समाज के कारण, उस तरह किन्हीं 2 प्यार करने वालों को अब कभी जुदा न कीजिए.

मैं यह भी कहना चाहूंगी कि कभी देखा है पंछियोें को? वे किस तरह अपने बच्चों को उड़ना सिखा कर स्वतंत्र छोड़ देते हैं. ताकि वे खुले आसमान में अपने पंख पसार सकें. और कितना सुंदर होता है वह दृश्य जब खुले आसमान में बादलों के संग पंछी उन्मुक्त उड़ान भरते हैं. तो हम इंसान क्यों प्रकृति के नियमों को ठुकरा अपने नियम बना अपने ही बच्चों को मजबूर कर देते हैं राज व पद्मजा की तरह आंसुओं संग जीने को क्यों न हम तोड़ दें वे नियम जो आज के युग में सिर्फ ढकोसले मात्र हैं? क्यों न हम उड़ जाने दें अपने बच्चों को उन्मुक्त आकाश में पंछियों की तरह?

Moral Story

Hindi Romantic Story: प्यार दोबारा भी होता

 कहानी- आशा सर्राफ

Hindi Romantic Story: सागरशांत गहरी सोच में डूबा नजर आता. मगर आज किसी ने कंकड़ फेंक लहरों को हिला दिया था. ध्यान भंग था सागर का. कुछ ऐसा ही राजीव के साथ भी हो रहा था. हां, उस का दिल भी सागर की तरह था और इस दिल में सिर्फ एक मूर्ति बसी थी. किसी अन्य का खयाल दूरदूर तक न था. सिर्फ वह और संजना. दुनिया में रहते हुए भी दुनिया से बेखबर. वह बेहद प्यार करता था अपनी पत्नी को. संजना को देख कर उसे लगा था कि एक वही है जिसे वह ताउम्र प्यार कर सकता है.

कहने को तो अरेंज्ड मैरिज थी पर लगता जैसे कई जन्मों से एकदूसरे को जानते हैं. संजना को देख कर ही राजीव का दिल धड़का. दिल

भी अजीब है. हर चीज का संकेत पहले ही दे देता है.

3 साल शादी को हो गए थे. कोई संतान नहीं हुई. फिर भी उसे कोई गम नहीं था. उस के लिए संजना ही संपूर्ण थी. कितने शहर दोनों घूमे. संजना के बगैर राजीव को अपना वजूद ही नजर नहीं आता. संजना के गर्भवती होने पर कितना खुश था वह… जैसे उस का संसार पूर्ण होने वाला है. मगर कुदरत को कुछ और ही मंजूर था. बेटी को जन्म देते समय अधिक रक्तस्राव के कारण संजना का निधन हो गया. उस की मौत ने उसे अंदर तक हिला दिया. घर की हर वस्तु पर

संजना की परछाईं नजर आती. परछाईं तो उस की स्वयं की बेटी थी. जब भी वह बेटी का चेहरा देखता दिल काबू में न रहता. दम घुटने लगा उस का. वह नहीं रह पाया. न ही बेटी को देख मोह हुआ. उस की मां ने कितना सम झाया पर वह नहीं माना. उस ने अपना ट्रांसफर बैंगलुरु से मुंबई करवा लिया.

मांपिताजी पोती के आने से खुश थे. जब भी वह बैंगलुरु जाता 1 दिन से अधिक न रुक पाता. उस शहर, उस घर में उस का दम घुटता. उसे लगता अगर वह यहां और रहा तो पागल हो जाएगा.

मुंबई में किराए पर फ्लैट ले कर अकेले रहने लगा. अब उस का दिल सूख चुका था. मौसम बदले, महीने बदले, वह यंत्रवत अपना कार्य करता. पर आज इस दिल में हलचल मची थी.

‘‘नहीं, यह नहीं हो सकता,’’ वह बुदबुदाने लगा.

दिल एक बार ही धड़कता है जो उस का धड़क चुका. फिर आज क्यों? क्यों ऐसी बेचैनी? क्या वह किसी के प्रति आकर्षित हो रहा है? नहीं, यह संजना के प्रति अन्याय होगा. पर दिल नहीं सुन रहा था. उस ने स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि कभी वह ऐसा महसूस करेगा. क्यों वह बेचैन हो रहा है? क्यों उसे चिंता हो रही है? एक पड़ोसी की दूसरे पड़ोसी की चिंता हो सकती है, यह स्वाभाविक है. इस से अधिक और कुछ नहीं. कुछ पलों के लिए  झटकता पर फिर उस का चेहरा सामने आने लगता.

6 महीने पहले राजीव के पड़ोस में एक औरत रहने आई थी. लड़की नहीं कह सकते,

क्योंकि 30 के ऊपर की लग रही थी. एक फ्लोर में 2 ही फ्लैट थे. घर में नैटवर्क सही न होने के कारण वह बाहर फोन से बातें कर रहा था. पड़ोस में वह औरत अपने सामान को ठीक से रखवा रही थी. हलकी सी नजर राजीव ने डाली थी उस पर इस के अलावा कुछ नहीं.

औफिस जातेआते प्राय: रोज ही टकरा जाते. लिफ्ट में अकेले साथ

जाते हुए कभीकभी राजीव को कुछ महसूस होता. यों तो हजारों के साथ लिफ्ट में आताजाता पर इस के होने से कुछ आकर्षण महसूस करता. शायद अकेले होने के कारण या फिर शरीर की अपनी जरूरत होने के कारण.

एक दिन लिफ्ट से निकलते वक्त उस औरत का पांव मुड़ गया. वह गिरने ही वाली थी कि राजीव ने उसे पकड़ लिया. बांह पकड़ उसे लिफ्ट के बाहर रखी कुरसी पर बैठा दिया.

‘‘क्या हुआ?’’ पूछते हुए उस ने पांव को हाथ लगा कर देखना चाहा पर उस औरत ने  झटके से पांव खींच लिया.

‘‘नहीं, ठीक है… थोड़ी देर में ठीक हो जाएगा,’’ कहते हुए उस ने पांव को आगेपीछे किया.

‘‘कुछ मदद चाहिए?’’ राजीव ने पूछा.

‘‘नहीं, धन्यवाद. संभाल लूंगी.’’

राजीव भी औफिस के लिए निकल गया. मगर उस की बांह पकड़ना… किसी के इतने करीब आना… उस का दिल धड़का गया.

2-3 दिन वह लंगड़ा कर ही चलती रही थी. अब हलकी सी मुसकराहट का आदानप्रदान होने लगा. कभीकभी 1-2 बातें भी होने लगीं. उस की मुसकराहट अब राजीव के दिल में जगह बनाने लगी थी.

2-3 दिन से वह दिखाई नहीं दे रही थी. यही बेचैनी उस के दिल में तूफान मचा रही थी. वह अपने ही घर में चहलकदमी करने लगा. कभी दरवाजा खोलता, तो कभी बंद करता. पता नहीं कौन है? क्या करती है? कुछ भी जानकारी नहीं थी. नजर आता तो सिर्फ उस का चेहरा.

तभी दरवाजे की घंटी बजी. उस ने दरवाजा खोला तो सामने कामवाली थी.

‘‘साहब, जरा मेम साहब को देखो न… बहुत बीमार हैं,’’ वह हड़बड़ाते हुए बोली.

राजीव घबराते हुए उस के पास पहुंचा. माथे पर हाथ रखा तो तप रहा था.

‘‘किसी को दिखाया?’’ चिंतित स्वर में राजीव ने पूछा.

उस ने हलके से न में सिर हिला दिया.

राजीव ने डाक्टर को फोन कर बुलाया और फिर उस के माथे पर पानी की पट्टियां लगाता रहा. कामवाली भी जा चुकी थी. डाक्टर ने आ कर दवा लिखी. दवा खाने से उस का बुखार कम होने लगा.

दूसरे दिन थोड़ा स्वस्थ देख राजीव ने पूछा, ‘‘आप के घर से किसी को बुलाना है तो कह दीजिए मैं कौल कर देता हूं?’’

उस ने न में हलके से सिर हिलाया.

‘‘कोई रिश्तेदार है यहां पर?’’

उस ने फिर न में सिर हिलाया.

उस के खानेपीने की, दवा देने की जिम्मेदारी राजीव ने खुद पर ले ली. वह काफी सकुचा रही थी पर स्वस्थ न होने के कारण कुछ बोल नहीं पाई.

2-3 दिन बाद स्वस्थ होने पर वह आभार प्रकट करने लगी, ‘‘माफ कीजिए, मेरे कारण आप को बहुत कष्ट हुआ.’’

‘‘माफी किस बात की? पड़ोसी ही पड़ोसी के काम आता है. आइए बैठिए,’’ अंदर आने का इशारा करते हुए राजीव बोला.

‘‘नहीं, आज नहीं. फिर कभी. अभी औफिस जाना है,’’ कह वह औफिस के लिए निकलने लगी.

‘‘रुकिए मैं भी आ रहा हूं,’’ कहते हुए राजीव ने भी अपना बैग उठा लिया.

वह मुसकराते हुए लिफ्ट का बटन दबाने लगी.

अब अकसर दोनों आतेजाते बातें करने लगे. कभीकभी डिनर भी साथ कर लेते. दोनों में दोस्ती हो गई. पर अभी भी वे एकदूसरे के निजी जीवन से अनजान थे.

घर से बाहर दूरदूर तक पहाड़ दिखाई देते थे. हरियाली भी खूब थी.

राजीव के दोस्त प्राय: कहते कि तुम कितनी अच्छी जगह रहते हो. पर राजीव को कभी महसूस ही नहीं होता था. उसे हरियाली कभी दिखाई ही नहीं दी. दिल सूना होने से सब सूना और बेजान ही दिखाई देता है. अब कुछ महीनों से यह हरियाली की  झलक दिखाई दे रही थी. बारिश ने आ कर और अधिक हराभरा कर दिया था.

एक शाम दोनों डिनर पर गए.

‘‘मैं अभी तक आप का नाम ही नहीं जान पाया,’’ कुरसी पर बैठते हुए राजीव ने कहा.

‘‘रोशनी,’’ मुसकराते हुए वह बोली.

‘‘अच्छा तो इसीलिए यह रैस्टोरैंट जगमगा रहा है,’’ जाने कितने महीनों बाद राजीव ने चुहलबाजी की थी.

‘‘जगमगाहट देख कर पेट नहीं भरेगा. कुछ और्डर कीजिए,’’ रोशनी मुसकराते हुए बोली.

राजीव ने खाने का और्डर किया.

‘‘मैं आप के बारे में कुछ नहीं जानता. मगर आप बताना चाहें तो मैं सुनना चाहूंगा,’’ राजीव खाना खाते हुए बोला.

रोशनी नजरें नीचे कर  झेंपने लगी.

‘‘ठीक है आप न बताना चाहें तो कोई बात नहीं.’’

‘‘नहीं ऐसी कोई बात नहीं. इतनी दोस्ती तो है कि मैं बता सकूं. बाहर बताती हूं,’’ नजरें अभी भी उस की  झुकी हुई थीं.

खाना खाने के बाद दोनों बाहर टहलने लगे. टहलतेटहलते स्वयं को संभाल रोशनी कहने लगी, ‘‘मैं एमबीए करने लगी. वह भी मु झ से प्यार करता था. हम दोनों लिवइन में रहने लगे. मेरे परिवार वालों ने बहुत सम झाया, डांटा भी पर मैं उस के बिना नहीं रह सकती थी. मम्मीपापा ने कहा शादी कर के साथ रहो. पर मैं नहीं मानी. मु झे लगता था जब प्यार करते हैं तो शादी जैसा बंधन क्यों और फिर उस वक्त हम शादी कर भी नहीं सकते थे. गुस्से में आ कर मेरे परिवार वालों ने रिश्ता तोड़ लिया. मु झे जौब मिल गई थी. उसे भी जौब मिल गई पर दूसरे शहर में.हम लोग कोशिश कर रहे थे कि एक ही शहर में मिल जाए.

‘‘तब तक कभी वह आ जाता, कभी मैं चली जाती. 1 साल बाद वह प्राय: आने में आनाकानी करने लगा. मैं ही कभीकभी चली जाती. वह प्राय: उखड़ाउखड़ा रहता. बहुत

जोर देने पर उस ने कहा कि अब उसे किसी और से प्यार हो गया है. क्या ऐसा हो सकता है?

प्यार तो एक बार ही होता है न? दिल एक बार ही धड़कता है न?’’ कहते हुए वह फफक पड़ी.

राजीव ने उसे बांह से पकड़ बैंच पर बैठाया.

‘‘नहीं, आप बताइए प्यार दोबारा हो सकता है?’’ उस ने रोते हुए जिज्ञासा भरी नजरों से राजीव की तरफ देखा.

राजीव की नजरें  झुक गईं.

‘‘मतलब? तब पहले वाला प्यार नहीं था. सिर्फ लगाव था?’’ राजीव को  झुकी नजरें देख रोशनी बोली.

‘‘नहीं वह भी प्यार था पर…’’

‘‘पर… बदल गया?’’

‘‘बदला नहीं हो सकता है फिर से…’’

बात बीच में छोड़ राजीव खामोश हो गया.

‘‘आप कहना क्या चाहते हैं? साफसाफ कहिए,’’ रोशनी के आंसू सूख चुके थे.

‘‘मैं भी यही सम झता था,’’ गहरी सांस छोड़ते हुए राजीव बोला, ‘‘प्यार एक बार ही होता है… दिल एक बार ही धड़कता है. मैं अपनी पत्नी को बेहद चाहता था पर बेटी होने के दौरान उस की मृत्यु हो गई. ऐसा लगता था उस के अलावा मेरा दिल अब किसी के लिए नहीं धड़केगा पर जब…’’ कहतेकहते अचानक चुप

हो गया.

‘‘पर जब क्या?’’ जिज्ञासाभरी नजरों से रोशनी ने राजीव की तरफ देखा.

राजीव ने नजरें घुमा लीं.

‘‘क्या कोई और मिल गई?’’ बड़ीबड़ी आंखों से घूरते हुए वह बोली.

राजीव ने एक गहरी नजर रोशनी पर डाली और फिर कहा, ‘‘चलो, चलते हैं.’’

‘‘नहीं पहले बात खत्म करो,’’ कह रोशनी ने राजीव का हाथ कस कर पकड़ लिया.

‘‘चलो चलते हैं.’’

‘‘नहीं पहले बताओ.’’

‘‘क्या बताऊं. हां… होने लगा प्यार तुम से,’’ राजीव ने उत्तेजित हो कर कहा. आंसू निकल आए थे उस की आंखों से.

‘‘नहीं, यह नहीं हो सकता,’’ रोशनी के हाथ ढीले पड़ गए.

‘‘यह जरूरी नहीं कि जो मैं महसूस करता हूं तुम भी करो. इस सब से हमारी दोस्ती पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा,’’ कहते हुए उस ने गाड़ी स्टार्ट की.

दूसरे दिन दोनों ने औपचारिक बातें कीं. स्वयं को संयत कर लिया था दोनों ने.

2 दिन के दौरे पर रोशनी दूसरे शहर गई थी.

मां की तबीयत खराब होने की खबर सुन राजीव भी बैंगलुरु चला गया. इस बार अपनी बेटी को देख वह मुसकरा उठा. जाने क्यों विरक्ति नहीं लग रही थी. दिल बहुत शांत था. संजना की यादें सता नहीं रही थीं, बल्कि यह एहसास दिला रही थीं कि उस ने जितना भी जीवन जीया प्यार से जीया. संजना वजूद नहीं एक हिस्सा लग रही थी, जिसे वह हमेशा बना कर रखेगा.

मां भी राजीव को देख आश्चर्यचकित थीं. उन्हें लगा जैसे पहले वाला राजीव उन्हें वापस मिल गया है. बेटे को प्रसन्न व शांत देख वे जल्द ही स्वस्थ हो गईं. पहली बार वह अपनी बेटी को बाहर घुमाने ले गया. जैसे बेटी से परिचय ही अभी हुआ हो. वहीं स्कूल में दाखिला भी करा दिया. 1 सप्ताह वहां रह वह मुंबई लौट आया.

सुबह जब राजीव नहा रहा था तब बारबार दरवाजे की घंटी बज रही थी.

‘‘कौन है जो इतनी बेचैनी से घंटी बजाए जा रहा है?’’ बाथ गाउन पहने वह बाहर निकला.

दरवाजा खोलते ही रोशनी तेजी से अंदर आ कर चीखने लगी, ‘‘कहां गए थे आप? बता कर भी नहीं गए? फोन नंबर भी नहीं दिया… आप को पता है मेरी क्या हालत हुई? मैं सोचसोच कर मरे जा रही थी… कहीं आप भी मु झे छोड़ कर तो नहीं चले गए? यों तो कहते हो प्यार करने लगा और ऐसे कोई परवाह ही नहीं,’’ और कहतेकहते वह रो पड़ी.

मुसकराते हुए राजीव ने रोशनी को बांहों में ले लिया. अब रोशनी को भी एहसास हो चुका था कि प्यार दोबारा भी होता है. ‘‘इस बार अपनी बेटी को देख वह मुसकरा उठा.

जाने क्यों विरक्ति नहीं लग रही थी. दिल बहुत शांत लग रहा था…’’

Hindi Romantic Story

Hindi Drama Story: संबल- विनोद को सही राह पर कैसे लायी उसकी पत्नी

Hindi Drama Story: अपने मैरिजहोम के स्वागतकक्ष में बैठी नमिता मुख्य रसोइए से शाम को होने वाले एक विवाह की दावत के बारे में बातचीत कर रही थी, तभी राहुल उस के कमरे में आया. नमिता को स्वागतकक्ष में देख कर एक बार को वह ठिठक सा गया, ‘‘अरे, नमिता, तुम यहां?’’ निगाहों में ही नहीं, उस के स्वर में भी आश्चर्य था.

‘‘क्यों? क्या मैं यहां नहीं हो सकती?’’ हंसते हुए नमिता ने गरमजोशी से राहुल का स्वागत किया और बगल में पड़ी कुरसी की तरफ बैठने का संकेत कर रसोइए से अपनी बात जारी रखी, फिर उसे एक सूची पकड़ा कर बोली, ‘‘इस सूची के मुताबिक दावत की हर चीज तैयार रखें. खाना लगभग 9 बजे होना है. कोई शिकायत नहीं सुनूंगी मैं.’’

‘‘जी मैडम,’’ रसोइए ने सिर झुका कर कहा और सूची ले वहां से चला गया.

‘‘यह क्या लफड़ा है भई?’’ राहुल ने अचरज से पूछा.

‘‘कोई खास नहीं,’’ नमिता मुसकराई. वही पुरानी मारक मुसकान, जिस का राहुल कभी दीवाना था.

‘‘अपनी शादी तो सफल नहीं हो सकी राहुल, पर दूसरों की शादियों का सफल आयोजन करने लगी हूं,’’ कह कर खुल कर हंसी नमिता. हंसते समय उसी तरह उस के गालों में पड़ने वाले गड्ढे और वैसे ही खिलखिलाने के साथ उस की छलक उठने वाली चमकदार पनीली आंखें. कुछ भी तो नहीं बदला है नमिता में.

‘‘आजकल कहां हैं महाशय?’’ राहुल को पता था, नमिता का पति एक गैरजिम्मेदार व भगोड़ा किस्म का व्यक्ति निकला. जिस ने शादी के बाद जीवन की किसी भी जिम्मेदारी को ठीक से कभी निभाने की कोशिश नहीं की.

‘‘किसी तरह बिगड़ैल बैल को गाड़ी के जुए के नीचे रखने में सफल हो गई हूं राहुल,’’ वह सगर्व बोली, ‘‘आजकल हमारे इस मैरिजहोम का बाहरी काम वही देखते हैं. आदतों में भी कुछ बदलाव आए हैं. आशा है, अब सब ठीक हो जाएगा.’’

‘‘लेकिन इतना आलीशान मैरिजहोम तुम ने बना कैसे डाला?’’ राहुल चकित स्वर में बोला, ‘‘कोई बैंक लूटा क्या तुम लोगों ने?’’

‘‘दिल में अगर कुछ करने का हौसला हो तो पैसे लगाने वालों की कमी नहीं है राहुल,’’ नमिता बोली, ‘‘मैं जिस कंपनी में काम करती थी, उस के मालिक खन्ना साहब पैसे वाले आदमी हैं. शहर में एक अच्छे मैरिजहोम की जरूरत सब महसूस कर रहे थे, पर कोईर् आगे बढ़ने का साहस नहीं कर रहा था. मैं ने खन्ना साहब से इस संबंध में अपना प्रस्ताव रखते हुए बात की तो वे गंभीर हो गए. वे बोले, ‘अगर तुम उस का इंतजाम कर सकती हो और सारा कुछ अपनी देखरेख में चला सकती हो तो बताओ.’

‘‘मैं ने हिम्मत जुटाई और उन्होंने पैसा लगाया. साहस का संबल यह रहा कि मैरिजहोम शहर की नाक बन गया है. अब हर अच्छी शादी का इंतजाम हम करते हैं. हर अच्छी दावत हमारे यहां से होती है. और आप आश्चर्य करेंगे कि हमारे पति महाशय को अब सिर उठाने की फुरसत नहीं मिलती. रातदिन इस के प्रबंधन में जुटे रहते हैं. खुश भी हैं और संतुष्ट भी.’’

‘‘यानी आजाद पंछी को अपने पिंजड़े में कैद कर लिया तुम ने,’’ राहुल मुसकराया, ‘‘चलो, अच्छा हुआ, वरना मैं परेशान रहता था तुम्हें ले कर कि तुम शादी कर के खुश नहीं रह सकीं.’’

‘‘एक बार को तो सबकुछ उजड़ ही गया था राहुल. लगने लगा था कि सब बिखर गया. जीवन बेकार हो गया. शादी असफल हो जाएगी. विनोद सचमुच ऐसे इंसान नहीं हैं जो घर बसा कर रहने में विश्वास रखते हों. वे यायावर, घुमक्कड़ किस्म के व्यक्ति हैं, आज यहां तो कल वहां. आज यह नौकरी तो कल वह, आज इस शहर में तो कल उस शहर में. दरदर की ठोकरें खाना उन की प्रवृत्ति और आदत में शुमार था राहुल. यह मैं ही जानती हूं कि कैसे उन्हें सही रास्ते पर लाई और अब खुश हूं कि वे मुझे पूरा सहयोग कर रहे हैं और इस काम में रुचि ले रहे हैं. काम चल निकला है और हमें खासी आमदनी होने लगी है.’’

‘‘यह करिश्मा किस का मानूं? तुम्हारा या विनोद का?’’ राहुल ने नमिता की आंखों में अपने पुराने दिन खोजने चाहे, जिन की कोई छाया तक उसे नहीं मिली. कितनी बदल गई है नमिता, कितना आत्मविश्वास छलक रहा है अब उस में.

नमिता के मातापिता नमिता का रिश्ता राहुल से करना चाहते थे. राहुल नमिता को पसंद भी बहुत करता था. जाति की बाधा भी नहीं थी. विश्वविद्यालय में वह नमिता के लिए रोज चक्कर लगाता था. नमिता तब इंग्लिश में एमए कर रही थी और राहुल उसी शहर में आयुर्वेदिक कालेज में बीएएमएस कर रहा था. करना तो हर युवक की तरह वह एमबीबीएस ही चाहता था, पर कई बार परीक्षा में बैठने के बाद भी उस में सफल नहीं हुआ तो जिस में प्रवेश मिल गया, वही पढ़ने लगा था. ऐलोपैथिक डाक्टर न सही, आयुर्वेदिक ही सही. डाक्टर तो बन ही रहा था. नमिता के मातापिता चाहते थे, नमिता जैसी नकचढ़ी लड़की अगर राहुल को पसंद कर ले तो उन के सिर का भार कम हो. पर नमिता ने इनकार कर दिया. उस के इनकार से राहुल को चोट भी पहुंची, लेकिन वह जोरजबरदस्ती किसी लड़की से शादी कैसे कर सकता था?

एक दिन राहुल ने पूछा था, ‘मैं

जानना चाहता हूं कि तुम ने मुझे

क्यों अस्वीकार किया नमिता? मुझ में क्या कमी या खराबी देखी तुम ने.’

‘कोई खराबी या कमी नहीं है राहुल तुम में. सच पूछो तो तुम मेरे एक अच्छे दोस्त हो जिस से मिल कर मुझे वाकई हमेशा अच्छा लगता है, खुशी होती है. पर राहुल, बुरा मत मानना, मैं किसी और से प्यार करती हूं.’

सुन कर जैसे राहुल आसमान से गिरा हो, ‘कौन है वह खुशनसीब?’

‘विनोद,’ नमिता बोली, ‘तुम जानते हो उसे. कई बार मेरे साथ तुम्हारी उस से मुलाकात हुई है. वह मेरा सहपाठी है.’

देर तक गुमसुम बना रहा था राहुल, फिर किसी तरह बोला था, ‘तुम अपने फैसले पर फिर विचार करो नमिता. मैं विनोद की आलोचना किसी जलन से नहीं कर रहा. सच कहूं तो मुझे वह एक बेहद गैरजिम्मेदार किस्म का युवक लगता है. मैं नहीं समझ पा रहा कि तुम ने उसे कैसे और क्यों अपने लिए पसंद किया. हो सकता है, उस की कोई बात या गुण तुम्हें अच्छा लगा हो, पर…’

‘अपनाअपना दृष्टिकोण है राहुल’, नमिता बोली थी, ‘मुझे उस का यह बिखरा, बेढंगा व्यक्तित्व ही बेहद पसंद आया है. वह लकीर का फकीर नहीं है. बंध कर किसी एक विचार और बात पर टिकता नहीं है, यह उस का गुण भी है और अवगुण भी. वह जैसा भी है, वैसा ही मुझे पसंद है राहुल.’

‘तुम्हारे घर वाले राजी हैं, विनोद के लिए?’ राहुल ने दूसरा दांव फेंका.

नमिता बोली, ‘राजी नहीं हैं, पर मैं ने तय कर लिया है. शादी करूंगी तो विनोद से ही, वरना आजीवन कुंआरी रहूंगी,’ उस के दृढ़ निश्चय ने राहुल को एकदम निराश कर दिया था. उस के बाद वह नमिता से कभी नहीं मिला. सिर्फ इधरउधर से उस के बारे में सुनता रहा कि नमिता विनोद से शादी कर खुश नहीं रह सकी.

‘‘खैर, मेरी छोड़ो राहुल, अपनी बताओ कुछ,’’ नमिता ने पूछा, ‘‘आज अचानक यहां इस शहर में कैसे?’’

‘‘जिस बरात की दावत का यहां इंतजाम है, उस का मैं बराती हूं नमिता. कार्ड में यहां का पता था और संपर्क में तुम्हारा नाम. तो तुम से मिलने चला आया. और सचमुच तुम्हें यहां पा कर बहुत आश्चर्य हुआ मुझे.’’

‘‘चलो, ऊपर की मंजिल पर अपने कमरे में ले चलूं तुम्हें,’’ कह कर नमिता उठ खड़ी हुई. अपने सहायक से बोली, ‘‘विनोद साहब आएं तो कहना कि सूची में लिखे सलाद का इंतजाम वे अपनी देखरेख में खुद कराएं.’’

‘‘जी मैडम,’’ सहायक ने उठ कर कहा तो राहुल को लगा कि नमिता की अपने काम पर पूरी पकड़ है और वह सचमुच मैरिजहोम की एक कुशल संचालिका है.

नमिता का कमरा तरतीब से सजा था. राहुल दीवान पर आराम से बैठ गया. नमिता ने घंटी बजा कर ठंडा पेय मंगाया, ‘‘अब अपनी सुनाओ राहुल, शादी की? बच्चे हैं?’’ नमिता की टटोलती नजरों से बचने का प्रयास करता रहा राहुल. चेहरे पर कुछ देर पहले की हंसी अब गायब हो गई थी. वह अचकचा उठा था. कुछ सोच नहीं पा रहा था, कैसे कहे और क्या कहे.

संकोच देख कर नमिता ने उस की तरफ गौर से ताका, ‘‘क्या बात है राहुल? मुझे लग रहा है तुम किसी कशमकश से गुजर रहे हो.’’

‘‘ठीक पकड़ा तुम ने नमिता,’’ वह खिसिया सा गया, ‘‘एक कसबाईर् शहर में सरकारी अस्पताल में नौकरी कर रहा हूं. पत्नी मुझ से खुश नहीं है. उसे लगता है, उस के साथ धोखा हुआ है. जैसा डाक्टर वह समझ रही थी, मैं वैसा डाक्टर नहीं निकला. उस की कल्पना थी कि मेरे पास कार होगी, बंगला होगा, नौकरचाकर होंगे. शहर में नाम होगा, मरीजों की लाइन लगी होगी, हर कोई इज्जत देगा. पर उस की उम्मीदों पर उस वक्त पानी फिर गया, जब उस ने जाना कि मैं आयुर्वेदिक डाक्टर हूं और सरकारी अस्पताल में मुझे मरीज तभी दिखाता है, जब कोई और डाक्टर वहां उसे नहीं मिलता. मरीज को मुझ पर विश्वास भी नहीं होता.

‘‘तनख्वाह जरूर दूसरे डाक्टरों जितनी ही मिलती है, पर न वह भाव है, न वह सम्मान. अस्पताल की नर्सें और कर्मचारी तक मुझे डाक्टर नहीं गिनते, न मेरी कोई बात सुनते हैं. साथी डाक्टर मुझे अपने साथ नहीं बैठाते. अपनी पार्टियों में मुझे नहीं बुलाते. एक प्रकार से अछूत माना जाता हूं मैं उन के बीच. उन की बीवियां मेरी बीवी को इज्जत नहीं देतीं. उस के मुंह पर कह देती हैं, ‘वह भी कोई डाक्टर है? चूरनचटनी से इलाज करता है. क्या देख कर तुम्हारे मांबाप ने उस से शादी कर दी.’’’

‘‘अरे,’’ नमिता को दुख सा हुआ, ‘‘तब तो तुम्हारी पत्नी सचमुच अपमानित महसूस करती होगी.’’

‘‘हां,’’ राहुल बोला, ‘‘उस अपमान के एहसास ने ही उस के दिल में मेरे प्रति नफरत पैदा करा दी नमिता. उसे मेरी सूरत से नफरत हो गई. मैं उस की आंखों में एकदम नकारा और बेकार आदमी हो गया. बिना मुझ से पूछे उस ने गर्भपात करवा लिया. अपने मायके में कह दिया, ‘ऐसे वाहियात आदमी का बच्चा मैं अपने पेट में नहीं पाल सकती.’’’

‘‘अरे, बड़ी बददिमाग औरत है वह,’’ नमिता बोली, ‘‘कहीं ऐसे जिया जाता है अपने पति के साथ?’’

‘‘2 साल वह मायके में ही रही. बारबार बुलाने पर भी नहीं आई. आखिर मैं ही गया अपनी नाक नीची कर के उसे लेने, उस के मातापिता से बात की. पूछा, मेरा क्या कुसूर है? जैसा डाक्टर हूं, वह शादी से पहले उन्हें बता दिया था. उन लोगों ने अपनी लड़की को शादी से पहले ही क्यों नहीं बता दिया? उसे अंधेरे में क्यों रखा? उस की आंखों में इतने बड़े सपने क्यों दिए कि वह जीवन की इस कठोर सचाई से आंखें नहीं मिला सकी?’’

‘‘मांबाप ने तुम्हारा पक्ष नहीं लिया?’’ नमिता ने पूछा.

‘‘कोई मांबाप नहीं चाहता कि उन की लड़की का बसा हुआ घर उजड़े. उन लोगों ने भी लड़की को बहुत समझाया, ‘शादीब्याह हंसीखेल नहीं है. जीवन का प्रश्न है. निर्वाह करना चाहिए. जीवन में ऊंचनीच, अच्छाबुरा कहां नहीं होता? कोई ऐसे लड़झगड़ कर अपने घर से भाग आती है?’’’

‘‘फिर कुछ समझी वह?’’ नमिता ने पूछा.

‘‘हां,’’ राहुल बोला, ‘‘लेकिन उस ने साथ चलने के लिए एक शर्त रखी.’’

‘‘ओह, शादी न हुई एक शर्तनामा हो गया,’’ हंस दी नमिता.

‘‘लेकिन मैं ने उस की वह शर्त तुरंत मान ली,’’ राहुल बोला, ‘‘उस ने कहा, ‘मैं अपना तबादला किसी ऐसे छोटे कसबे में करवा लूं जहां मुख्य डाक्टर मैं ही होऊं और कसबे वाले मुझे सचमुच डाक्टर मानें.’’’ राहुल कुछ चुप रह कर संतुष्ट स्वर में बोला, ‘‘अब जिस कसबे में हूं, वहां वह मेरे साथ खुश है. हालांकि वहां हर वक्त बिजली नहीं मिलती. अस्पताल में साधनों की कमी है. दवाएं अकसर नहीं होतीं. पर कसबे के दुकानदार दवाएं रखते हैं और मैं जिन दवाओं को परचे पर लिख देता हूं, उन्हें मंगाने की कोशिश करते हैं, जिस से मरीज ठीक होते हैं और मेरे प्रति लोगों का विश्वास जमने लगा है.

‘‘मुझे भी अब लगता है कि पत्नी की शर्त मान कर मैं ने शायद ठीक ही किया. बड़े शहर में जहां एक से एक कुशल और विशेषज्ञ डाक्टर मौजूद हों, वहां मुझ जैसे आयुर्वेदिक डाक्टर को कौन पूछेगा भला? वहां कोई क्यों मुझे सम्मान देगा, महत्त्व देगा? पर गांवकसबों में जहां विशेषज्ञ क्या, किसी तरह का डाक्टर नहीं होता, वहां लोग मुझे सम्मान देते हैं. मुझ में भी आत्मविश्वास आया है नमिता.’’

कर्मचारी शीतल पेय रख गया और दोनों पीने लगे थे. इस बीच नमिता का पति विनोद भी वहां आया था. नमिता ने परिचय कराया तो विनोद हंस दिया, ‘‘तुम तो ऐसे परिचय करा रही हो जैसे हम पहली बार मिल रहे हों.’’

कुछ औपचारिक बातों के बाद वह काम से चला गया. राहुल को लगा कि विनोद अब पहले जैसा अस्तव्यस्त और बेढंगा व्यक्तित्व वाला व्यक्ति नहीं रहा. वह काफी चुस्तदुरुस्त और व्यस्त सा लगा. राहुल मुसकरा दिया, ‘‘तुम ने तो विनोद की काया पलट दी नमिता.’’

‘‘मैरिजहोम में हम हर नए जोड़े से खिलखिलाती जिंदगी की इच्छा रखते हैं. इसलिए क्या एक औरत समझदारी से काम ले कर अपनी खुद की जिंदगी को खुशियों से नहीं भर सकती राहुल?’’

‘‘जरूर भर सकती है, अगर वह पति की संबल बन जाए,’’ राहुल मुसकराया, ‘‘मुझे खुशी है कि तुम ने विनोद को संभाल लिया नमिता.’’

‘‘पहले बच्चे का गर्भपात करवाने के बाद तुम्हारी पत्नी ने दूसरे बच्चे का मन बनाया या नहीं?’’ नमिता ने पूछा.

‘‘सालभर की एक बच्ची है नमिता,’’ राहुल झेंपा, ‘‘पत्नी अब मेरे साथ खुश रहती है. कसबे की औरतों में उस का सम्मान है. हर जगह उस को बुलाया जाता है और वह आतीजाती है. शायद दूसरों से जब हम अपनी तुलना करने लगते हैं तो हमारे अभाव हमें टीसने लगते हैं नमिता.

‘‘हमारी कमियां हमें आत्महीनता के दलदल में धंसाने लगती हैं. ऊंट अगर पहाड़ की तलहटी में आ कर अपनी ऊंचाई नापना चाहेगा तो अपने पर पछताएगा ही. पर जब वही ऊंट रेगिस्तान के बियाबान में अकेला होगा तो सब से ज्यादा महत्त्वपूर्ण साधन होगा, और सब से ऊंचा भी. यह रहस्य हम लोग कसबे में पहुंच कर समझ पाए. मैं भी ऐसा कोई अवसर नहीं चूकता, जहां मैं अपनी पत्नी को खुश कर सकूं. वह सचमुच अब प्रसन्न रहने लगी है नमिता.’’

पता नहीं किन नजरों से ताकती रही नमिता राहुल को. राहुल भी उसे ताकता रहा. पता नहीं. किस का लिखा वाक्य राहुल को उस वक्त याद आता रहा. औरतें मर्दों से ज्यादा बुद्धिमान होती हैं. हालांकि वे जानती कम हैं, पर जीवन की समझ उन में ज्यादा होती है. यह समझ ही तो है जो आज भी भारतीय परिवारों को बल और संबल प्रदान किए हुए है, जिस से आदमी अपने कद से ज्यादा ऊंचा उठा रहता है और आत्महीनता के दलदल में धंसने से बचा रहता है. औरतें ही तो हैं जो विनोद जैसे बेढंगे व्यक्ति को भी ढंग के आदमी में बदल देती हैं.

Hindi Drama Story

Big Boss 19: शो में सलमान खान ने सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर्स पर कसा तंज

Big Boss 19: हाल ही में बिग बौस का प्रीमियर हुआ जिसमें कई सारे छोटे पर्दे के कलाकार और सोशल मीडिया के इंफ्लुएंसर ने शिरकत की, इस दौरान सोशल मीडिया पर मिलियंस में व्यू पाने वाले इंफ्लुएंसर छोटे पर्दे के कलाकारों पर भारी पड़ते नजर आए.

सोशल मीडिया पर अलगअलग तरह का कंटेंट देने वाले इंफ्लुएंसर जो सिर्फ व्यूवर्स को रिझाने के लिए हर तरह का कंटेंट देने को तैयार रहते है, जिसमें बिकनी से लेकर अंग प्रदर्शन तक हर तरह का कंटेंट प्रस्तुत करने वाले इंफ्लुएंसर से लेकर खूबसूरत लड़कियों द्वारा नाचगाकर या अश्लीलता परोस कर ब्लौग बनाने वाली लड़कियां आज कल सोशल मीडिया की आन बान और शान है, इस बात से सलमान खान जो ग्लैमर वर्ल्ड से सालों से जुड़े हुए है अच्छी तरह वाकिफ है.

इसी बात का मजा लेते हुए जब एक प्रतियोगी प्रनित मोरे जो कि स्टैंडअप कमेडियन है उन्होंने सलमान खान के सामने कहा मेरे उतने फौलोअर्स नहीं है जितने कि बिग बौस 19 में बाकी इन्फ्लुएंसर्स के हैं, तो सलमान ने पास ही खड़ी अन्य प्रतियोगी जो भोजपुरी एक्ट्रेस और इंफ्लुएंसर घाघरा चोली पहन कर खड़ी थी, जिनके एक भोजपुरी ठुमके वाले गाने पर 400 से 500 मिलियन पार हो जाते है.

इसी नीलम गिरी की तरफ सलमान ने इशारा करते हुए स्टैंडअप कमेडियन प्रनित से कहा तुम भी घाघरा चोली पहन के नाचो तो तुम्हारे भी मिलियन व्यूवर्स हो जाएंगे, जिसे सुनकर वहां मौजूद सभी हंसने लगे. गौरतलब है इन डायरेक्टली सलमान खान ने बिग बौस में आए इनफ्लुएंसर्स को लेकर बड़ी तानाकशी कर दी.

Big Boss 19

International Dog Day: बौलीवुड सेलिब्रिटीज और उनके प्यारे डौग्स

International Dog Day: आज है इंटरनेशनल डौग डे. यानी हमारे चार पैरों वाले साथी, जो हमारे हर दिन को खास बनाते हैं. तो आइए आज का दिन पूरी तरह से उन्हीं को समर्पित करते हैं ढेर सारे प्यार, ज्यादा से ज्यादा गले लगाकर और स्वादिष्ट ट्रीट्स के साथ. इसमें दो राय नहीं है कि कुत्तों में जादू होता है, उनकी हिलती हुई पूंछ, चमकती आंखें और बिना शर्त का प्यार हमें हर दिन याद दिलाता है कि हम उनके चुने हुए इंसान हैं. बस कुछ घंटे उनके साथ बिताने से ही दुनिया कोमल लगने लगती है और हमारी बसारी थकान मिट जाती है.

बौलीवुड सितारे भी अपने पालतू दोस्तों से उतना ही प्यार करते हैं. सोशल मीडिया पर कभी उनकी प्यारी झलकियां साझा करके, तो कभी इमोशनल नोट लिखकर, ये स्टार्स अपने पेट पेरेंट होने पर गर्व करते हैं. तो आइए नजर डालते हैं कुछ सेलेब्स और उनके डौगीज के प्यारे रिश्तों पर.

प्रियंका चोपड़ा

ग्लोबल आइकन और हमारी देसी गर्ल प्रियंका चोपड़ा एक डौटिंग डौग मॉम हैं. उनके पालतू डौग्स डायना और पांडा अक्सर उनके सोशल मीडिया पर दिखते हैं. इनके अपने अकाउंट्स भी हैं! प्रियंका का अपने फर बेबीज के लिए प्यार हर तस्वीर और पोस्ट में झलकता है.

जान्हवी कपूर

जान्हवी कपूर सच्ची एनिमल लवर हैं. हाल ही में उन्होंने स्ट्रे डौग्स के समर्थन में आवाज उठाई, जब कोर्ट ने उन्हें सड़कों से हटाने का आदेश दिया. जान्हवी के दिल छू लेने वाले शब्द “वे इस ठंडी और बेरहम शहर में गर्माहट हैं” – पूरे देश के दिलों को छू गए.

कार्तिक आर्यन

मिलिए कार्तिक आर्यन के कतोरी से, जो हैं इंटरनेट के फेवरेट सेलेब्रिटी डौग! कार्तिक और कतोरी की जोड़ी सोशल मीडिया पर छाई रहती है. चाहे आलसी सुबहें हों या मजेदार प्रमोशन्स, कतोरी हमेशा कार्तिक के साथ नजर आती है और सबका दिल जीत लेती है.

शालिनी पांडे

एक्ट्रेस शालिनी पांडे भी डौग मौम हैं और एनिमल राइट्स की बड़ी समर्थक हैं. उनका हिमाचली रेस्क्यू डौग बीर उनके दिल के बहुत करीब है.शालिनी का मानना है कि जानवरों के प्रति दया सिर्फ प्यार नहीं बल्कि इंसाफ और करुणा की बात है.

ईशा गुप्ता

ईशा गुप्ता हमेशा अपने कुत्तों के लिए प्यार जताती रही हैं. अपने दिवंगत पेट नवाब से लेकर मौजूदा फर बेबी पिहू तक, उनकी इंस्टाग्राम प्रोफाइल प्यारे पलों से भरी रहती है. वे अक्सर स्ट्रे डॉग्स को अपनाने और उनकी देखभाल के लिए भी आवाज उठाती हैं.

वरुण धवन

वरुण धवन और उनके डौग जौय की दोस्ती बेहद प्यारी है. दोनों की फोटोज और वीडियोज देखकर फैंस दीवाने हो जाते हैं. वरुण के लिए जौय सिर्फ एक पालतू नहीं, बल्कि उनके परिवार का हिस्सा है और इंटरनेट भी यही मानता है!

पुलकित सम्राट

पुलकित सम्राट और उनका स्टाइलिश पालतू ड्रोगो बौलीवुड की सबसे पसंदीदा जोड़ियों में से एक हैं. पुलकित के सोशल मीडिया पर अक्सर उनकी मस्तीभरी तस्वीरें और दिल छू लेने वाले पल देखने को मिलते हैं. मानना पड़ेगा ड्रोगो खुद में एक स्टार है.

कृति खरबंदा

कृति खरबंदा भी डौग लवर हैं. खासकर पुलकित सम्राट के हस्की ड्रोगो के लिए उनका प्यार सोशल मीडिया पर साफ झलकता है. वे ड्रोगो की बर्थडे सेलिब्रेशन, स्पेशल केक बेक करना और उनकी प्यारी तस्वीरें साझा करना कभी नहीं भूलतीं.

इस इंटरनेशनल डौग डे पर हम सिर्फ हिलती हुई पूंछों का ही नहीं, बल्कि उस बेशर्त प्यार और दोस्ती का जश्न मना रहे हैं जो हमारे प्यारे डौगीज हमें देते हैं. उनकी शरारतों से लेकर उनकी मासूम गले लगने तक, वे हमें सिखाते हैं कि असली खुशी सबसे प्यारे और सच्चे रिश्तों में छिपी होती है.

International Dog Day

Relationship Tips: पति की स्मार्ट कलीग से पहली मुलाकात

Relationship Tips: रीना अकसर चिढ़ सी जाती जब आकाश उस के सामने अपनी कलीग का जिक्र करता. कई बार तो वह आकाश से कह ही देती,”आखिर क्या बला है यह आप की कलीग, जिस के गुण आप सारा दिन गाते रहते हो? इतनी ही अच्छी है तो मिलवाते क्यों नहीं? आखिर हम भी तो देखें.”

आकाश ने झट से जवाब दिया,”ठीक है, संडे शाम की चाय हमारे साथ ही पीएगी वह. तब तुम खुद उस की स्मार्टनैस देख लेना.”

“अच्छा जी, देखना तो पड़ेगा…” हलकी तिरछी मुसकान के साथ रीना की जासूसी आत्मा जाग उठी और संडे का इंतजार जारी रहा.

जरूरी है संयम

दरअसल, ऐसा अवसर जीवन में अकसर कभी न कभी आ ही जाता है, जहां आप के आत्मविश्वास, भावनाएं और रिश्तों की गहराई सभी की एकसाथ परीक्षा होती है. ऐसे समय में संयम और शिष्टाचार बनाए रखना जरूरी है, साथ ही भीतरी तुलनात्मक विचारों से दूरी बनानी चाहिए.

पहली मुलाकात के समय दिल की धड़कन का तेज होना स्वाभाविक है, क्योंकि एक भय रहता है कि कहीं हमारी छवि सामने वाले के सामने खराब न हो. साथ ही यह भी संशय रहता है कि सामने वाला व्यक्ति मिलनसार होगा या नहीं.

ऐसी स्थिति में 2 भावनाएं जन्म लेती हैं- एक डर की और एक सहजता की. यह पूरी तरह हम पर निर्भर करता है कि हम किसे अपनाते हैं.

सकारात्मक छवि

पति की कलीग अगर व्यवहार में नम्र, मिलनसार और प्रोफैशनल हो तो एक सकारात्मक छवि बनती है. वहीं, यदि वह अत्यधिक आत्मविश्वासी या दिखावे में डूबी लगे तो पत्नी के मन में असुरक्षा या खीझ की भावना भी आ सकती है. तब उस के मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर मेरे पति को यह इतनी क्यों पसंद है.

क्योंकि यह मुलाकात कोई साधारण घटना नहीं होती, बल्कि यह दांपत्य रिश्ते और आत्मसम्मान की भी परीक्षा बन कर सामने आती है.

एक समझदार जीवनसाथी और पत्नी होने के नाते जरूरी है कि ऐसे समय में स्वयं पर भरोसा रखा जाए. हर व्यक्ति की अपनी पहचान और आकर्षण होता है. पति का रिश्ता कलीग से केवल पेशेवर दायरे तक ही सीमित है और पत्नी का आत्मविश्वास ही उसे इस स्थिति में सहज और मजबूत बनाए रखता है. यदि मन में कुछ सवाल खड़े हों, तो उन्हें सहजता और विश्वास के साथ पति के सामने रखना चाहिए.

इस पहली मुलाकात से एक सीख यह भी मिलती है कि रिश्तों में पारदर्शिता और विश्वास बहुत जरूरी है.

Relationship Tips

Naked Flying के दीवाने हो रहे युवा, जानिए क्या है यह

Naked Flying: आजकल युवाओं के बीच नेकेड फ्लाइंग खूब पौपुलर हो रहा है. मगर इस के शाब्दिक अर्थ पर न जाएं, क्योंकि कोई भी बिना कपड़े के कहीं जा नहीं सकता. दरअसल, यह एक ट्रैवल ट्रेंड है, जिस का मतलब है बिना ज्यादा सामान के यात्रा करना, न्यूनतम सामानों के साथ यात्रा या हलके वजन की यात्रा के समान साथ ले जाना होता है, जहां यात्री केवल वही चीजें ले कर जाते हैं, जो उन के लिए बेहद जरूरी हैं, जैसेकि एक छोटा बैग या जेब में रखने लायक सामान. इस का मकसद है यात्रा को तनावमुक्त और आरामदायक बनाना, साथ ही समय और पैसे भी बचाना.

आज दुन‍ियाभर के ज्‍यादातर लोगों को घूमने का शौक होता है. घूमने से मन को शांति म‍िलती है. घूमने से न केवल नई जगहों को देखने, उन की संस्‍कृत‍ि जानने और मौजमस्ती करने का मौका मिलता है, बल्कि यह आप की लाइफ को कई तरह से बेहतर बना सकता है. ट्रैवल‍िंग करने से मैंटल और फ‍िज‍िकल हैल्‍थ दुरुस्‍त रहता है.

बिना झंझट ट्रैवल‍िंग

इस प्रकार की यात्रा में कपड़े पैक करने से ले कर खानेपीने का समान रखने जैसी कई चीजें शाम‍िल होती हैं, जो किसी भी यात्रा को आसान और मजेदार बनाती है. नेकेड फ्लाइंग में कोई व्यक्ति ब‍िना क‍िसी झंझट में पड़ कर भी ट्रैवल कर सकता है. यह ब‍िना सामान और हैवी लगेज के ट्रैवल करने की कला है. इस में आप बस ऐसी चीजों को ले जा सकते हैं, जो पौकेट में आसानी से फ‍िट हो जाएं. जैसे मोबाइल, चार्जर, वालेट. इस से आप पैसे भी बचा सकते हैं.

कुछ लोगों की आदत होती है क‍ि वे कहीं भी जाते हैं, तो भारीभरकम लगेज ले कर जाते हैं. इस से उन्‍हें ऐक्‍सट्रा चार्ज भी देने पड़ते हैं.

समय की बचत

ऐसा कई बार देखा गया है कि एअरपोर्ट पर व्यक्ति निर्धारित वजन से अधिक सामान ले कर जाते हैं और वहां पर वे ऐक्स्ट्रा वजन के लिए पैसे देने से भी कतराते हैं और वहां के कर्मचारी से बहस करते रहते है. वहीं फ्लाइंग नेकेड के जर‍ीए ट्रैवलर्स अपना समय भी बचा सकते हैं. ऐसा इसल‍िए क्‍योंकि जब आप के पास कोई सामान नहीं होगा, तो चेकइन में न समय बरबाद होगा, न ही सामान खोने का डर रहेगा.

फ्री फ्लोइंग ट्रैवल

अब आप के मन में यह सवाल उठ रहा होगा क‍ि बिना ज्यादा कपड़ों, फुटव‍ियर और टौयलेट्रीज के कैसे ट्रैवल किया जा सकता है? तो हम आप को बता दें क‍ि घूमने के इस ट्रेंड को वही लोग फौलो कर रहे हैं, जो कम सामानों के साथ ट्रैवल कर सकते हैं. इस का मकसद स‍िर्फ आरामदायक और फ्री फ्लोइंग ट्रैवल को बढ़ाना है.

अगर आप इस तरह की ट्रैवल‍िंग करना चाहते हैं, तो आप को कुछ खास चीजों का ध्यान रखना जरूरी होता है.

करें स्मार्ट पैकिंग

ऐसे फ्लाइंग करते वक्त वास्तव में जरूरी चीजें ही साथ रखें. आप ऐसे कपड़े पैक करें, जो बैगपैक में आ सकें और कई तरह से इस्तेमाल हो सकें. स्मार्ट टौयलेट्रीज रख लें,

मल्टीपरपज सामान चुनने की कोशिश करें.

टेक्नोलौजी का कम से कम इस्तेमाल करें, जैसे सिर्फ मोबाइल, पावर बैंक और हेडफोन ही पैक करें,

लैपटौप या कैमरा ले जाने से बचें.

डिजिटल बोर्डिंग पास और ई-डौक्यूमैंट्स फोन में रखें, इस से आप को हार्ड कापी रखने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

पासपोर्ट, वीजा और फ्लाइट टिकट की स्कैन कापी मोबाइल में सेव करें.

नेकेड फ्लाइंग के फायदे

  • इस से ट्रैवल करना आसान होता है.
  • एअरपोर्ट पर चेकइन करने में आसानी होती है.
  • इस में आप को हैवी लगेज के ल‍िए ऐक्‍सट्रा पे करने की भी जरूरत नहीं होती है.
  • फ्लाइट मिस होने की टैंशन भी कम हो जाती है.
  • होटल या घूमनेफ‍िरने के दौरान सामान चोरी होने का डर भी नहीं रहता है.
  • कंफर्ट और फ्रीडम के साथ ट्रैवल‍िंग किया जा सकता हैं. सामान पैक करने और चेकइन करने की चिंता नहीं होती.
  • समय की बचत होती है, मसलन चेकइन और सामान लेने में लगने वाला समय बचता है.
  • अतिरिक्त सामान शुल्क से बचा जा सकता है, जिस से पैसे की भी बचत होती है.
  • बिना भारी सामान के यात्रा करना आसान और आरामदायक होता है.

इस प्रकार नेकेड फ्लाइंग एक ऐसा तरीका है, जिस से आप बिना किसी परेशानी के यात्रा कर सकते हैं और अपनी यात्रा का भरपूर आनंद ले सकते हैं.

Naked Flying

Body Polishing: ऐसे पाएं खिलीखिली त्वचा

Body Polishing: आज की व्यस्त जीवनशैली में हम अकसर अपनी देखभाल को नजरअंदाज कर देते हैं और अपनी सेहत से ज्यादा बाकी सब चीजों को प्राथमिकता देने लगते हैं. अपने लिए थोड़ा समय निकालने और खुद का ध्यान रखना बहुत जरूरी है और इस से बहुत बड़ा बदलाव आप के जीवन में आ सकता है, खासकर जब बात त्वचा की देखभाल की हो.

बौडी पौलिशिंग त्वचा की देखभाल करने का एक आसान और असरदार तरीका है. यह त्वचा को ऐक्सफोलिएट, रिजुवेनेट और चमकदार बनाता है. स्वस्थ और चमकदार त्वचा के लिए बौडी पौलिशिंग क्यों ज़रूरी है और आप इसे अपनी दिनचर्या में कैसे आसानी से शामिल कर सकते हैं, आइए जानते हैं :

बौडी पौलिशिंग है क्या

बौडी पौलिशिंग एक तरह का स्किन ट्रीटमैंट है, जिस में शरीर की त्वचा को ऐक्सफोलिएट (मृत त्वचा कोशिकाओं को हटाना) और मोइस्चराइजर (नमी देना) शामिल होता है, जिस से त्वचा चमकदार और स्वस्थ दिखती है.

बौडी पौलिशिंग के प्रोसेस

बौडी पौलिशिंग से त्वचा पर होने वाले असर निम्न हैं :

  • बौडी पौलिशिंग में सब से महत्त्वपूर्ण हिस्सा ऐक्सफोलिएशन का होता है, जिस में त्वचा की मृत कोशिकाओं को हटाया जाना होता है.
  • इस में त्वचा के प्रकार के अनुसार सही स्क्रब का चुनाव करना जरूरी होता है, ताकि त्वचा पर किसी प्रकार की एलर्जी न हो.
  • नरम हाथों के प्रयोग से इस प्रोसेस को किया जाना चाहिए, क्योंकि ऐक्सफोलिएशन करते समय बहुत ज्यादा दबाव बदन पर डालना सही नहीं होता, हलके हाथों से स्क्रब करना आवश्यक होता है.
  • स्क्रब को हटाने के लिए गुनगुने पानी का इस्तेमाल करना पड़ता है, अधिक गरम पानी त्वचा के लिए नुकसानदायक होता है.
  • ऐक्सफोलिएशन के बाद त्वचा को मोइस्चराइजर करना जरूरी है, ताकि त्वचा की नमी बनी रहे.
  • बौडी पौलिशिंग के बाद धूप में निकलने से बचना चाहिए या फिर सनस्क्रीन का प्रयोग करें.
  • बौडी पौलिशिंग को नियमित रूप से करना आवश्यक होता है, लेकिन बहुत ज्यादा न करें, महीने में 1 या 2 दिन करना काफी होता है, ताकि त्वचा को नुकसान न पहुंचे.

बौडी पौलिशिंग खुद कैसे करें

  • बौडी पौलिशिंग करने से पहले गुनगुने पानी से नहा लें.
  • इस के बाद अपने पूरे बौडी में स्क्रब लगा कर उसे 15 से 20 मिनट के लिए वैसे ही छोड़ दें.
  • अब अपनी हथेली में हलका सा पानी लगा कर शरीर को रगड़ें. ध्यान रहे कि रगड़ने के दौरान ज्यादा जोर न लगाएं, इस से त्वचा छिल सकती है.
  • फिर साफ पानी से बौडी को साफ कर लें.
  • इस के बाद अपने पूरे शरीर में त्वचा के अनुसार पैक लगाएं और 15 मिनट के लिए उसे छोड़ दें.
  • पैक जब सूख जाए तो उसे मुलायम गिले सूती कपड़े से पोंछ लें.
  • इस के बाद अंत में एसेंशियल औयल से बौडी की मसाज करें.

बौडी पौलिशिंग के फायदे

समय के साथ हमारी त्वचा पर मृत कोशिकाएं जमा हो जाती हैं, जिस से त्वचा बेजान और असमान बनावट वाली दिखने लगती है. बौडी पौलिशिंग त्वचा को धीरे से ऐक्सफोलिएट करती है, जिस से यह चिकनी और चमकदार बनती है. मृत कोशिकाओं को हटा कर यह त्वचा की रंगत निखारती है.

बौडी पौलिशिंग के दौरान इस्तेमाल की जाने वाली मालिश की तकनीक ब्लड सरकुलेशन को बढ़ाती है, जो त्वचा तक ज्यादा औक्सीजन और पोषक तत्त्व पहुंचाने में मदद करती है. बेहतर रक्तसंचार स्वस्थ त्वचा को बढ़ावा देता है और स्किन को प्राकृतिक चमक देता है.

अगर त्वचा से अशुद्धियां और गंदगी हटाना चाहते हैं, तो बौडी पौलिशिंग ही सब से अच्छा विकल्प है. यह गहरी सफाई प्रक्रिया त्वचा को गहराई से साफ करने में मदद करती है. इस के अलावा यह त्वचा की गंदगी की वजह से बंद रोमछिद्रों और विभिन्न त्वचा संबंधी समस्याओं को दूर करता है, जिस से यह सुनिश्चित होता है कि आप की त्वचा स्वस्थ और तरोताजा बनी रहे. इतना ही नहीं, यह त्वचा को कोमल और मुलायम बनाती है.

बौडी पॉलिशिंग त्वचा को ऐक्सफोलिएट कर के उसे स्किन केयर उत्पादों को ज्यादा प्रभावी ढंग से अवशोषित करने के लिए तैयार करती है. इस का मतलब है कि लोशन, तेल और सीरम त्वचा में गहराई तक पहुंचते है, जिस से उन का अधिकतम लाभ होगा और आप की त्वचा हाइड्रेटेड रहेगी। इस से स्किन की रंगत एकसमान हो जाती है.

बौडी पौलिशिंग न केवल त्वचा के लिए अच्छी है, बल्कि बेहद सुकून देने वाली भी होती है. हलकी मालिश स्ट्रैस और तनाव को दूर करने में मदद करती है, जिस से यह लंबे दिन के बाद आराम करने का एक बेहतरीन तरीका बन जाता है.

खुद की देखभाल के लिए समय निकालना मानसिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी है और बौडी पौलिशिंग आप को खुद पर ध्यान केंद्रित करने का एक बेहतरीन अवसर प्रदान करती है. इस से शरीर को आराम मिलता है और थकान दूर होती है. रक्तसंचार में सुधार होता है.

बौडी पौलिशिंग किट

आजकल मार्केट में बौडी पौलिशिंग किट मिलते हैं, जिसे आप औनलाइन या बाहर जा कर खरीद सकती हैं और उस में दिए गए निर्देश के अनुसार उस का प्रयोग कर सकती हैं. इस में आमतौर पर बौडी स्क्रब, बौडी बटर या मोइस्चराइजर और बौडी औयल या सीरम शामिल होते हैं. कुछ किट में ऐक्सफोलिएटिंग दस्ताने या लूफा भी शामिल हो सकते हैं, जिसे आप आसानी से प्रयोग कर सकती हैं.

इस प्रकार बौडी पौलिशिंग घर पर या बाहर, दोनों जगह की जा सकती है, लेकिन इस के लिए हमेशा कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है. हालांकि घर पर बौडी पौलिशिंग करना एक किफायती और सुविधाजनक विकल्प है, लेकिन अगर आप की त्वचा संवेदनशील है या आप को कोई त्वचा संबंधी समस्या है, तो पेशेवर की सलाह लेना बेहतर होगा. पार्लर, वैलनेस सेंटर, स्पा आदि स्थानों में बौडी पौलिशिंग कराने से आप को एक अनुभवी त्वचा विशेषज्ञ की देखरेख में बेहतर परिणाम मिल सकते हैं.

Body Polishing

Emotional Story: भावनाओं के साथी- जानकी को किसका मिला साथ

Emotional Story: जानकी को आज सुबह से ही कुछ अच्छा नहीं लग रहा था. सिरदर्द और बदनदर्द के साथ ही कुछ हरारत सी महसूस हो रही थी. उन्होंने सोचा कि शायद काम की थकान की वजह से ऐसा होगा. सारे काम निबटातेनिबटाते दोपहर हो गई. उन्हें कुछ खाने का मन नहीं कर रहा था, फिर भी उन्होंने थोड़ा सा दलिया बना लिया. खा कर वे कुछ देर आराम करने के लिए बिस्तर पर लेट गईं. सिरदर्द कम होने का नाम नहीं ले रहा था. उन्होंने माथे पर थोड़ा सा बाम मला और आंखें मूंद कर बिस्तर पर लेटी रहीं.

आज उन्हें अपने पति शरद की बेहद याद आ रही थी. सचमुच शरद उन का कितना खयाल रखते थे. थोड़ा सा भी सिरदर्द होने पर वे जानकी का सिर दबाने लगते. अपने हाथों से इलायची वाली चाय बना कर पिलाते. उन के पति कितने अधिक संवेदनशील थे. सोचतेसोचते जानकी की आंखों से आंसू टपक पड़े. आंसू जब गालों पर लुढ़के तो उन्हें आभास हुआ कि तन का ताप कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है. उन्होंने थर्मामीटर लगा कर देखा तो पारा 103 डिगरी तक पहुंच गया था. जैसेतैसे वे हिम्मत जुटा कर उठीं और स्वयं ही ठंडे पानी की पट्टी माथे पर रखने लगीं. उन्होंने सोचा कि अब ज्यादा देर करना ठीक नहीं रहेगा. रात हो गई है. अच्छा यही होगा कि वे कल सुबह अस्पताल चली जाएं.

कुछ सोचतेसोचते उन्होंने अपने बेटे नकुल को फोन लगाया. उधर से आवाज आई, ‘‘हैलो मम्मी, आप ने कैसे याद किया? सब ठीक तो है न?’’

‘‘बेटे, मुझे काफी तेज बुखार है. यदि तुम आ सको तो किसी अच्छे अस्पताल में भरती करा दो. मेरी तो हिम्मत ही नहीं हो रही,’’ जानकी ने कांपती आवाज में कहा.

‘‘मम्मी, मेरी तो कल बहुत जरूरी मीटिंग है. कुछ बड़े अफसर आने वाले हैं. मैं लतिका को ही भेज देता पर नवल की भी तबीयत ठीक नहीं है,’’ नकुल ने अपनी लाचारी प्रकट की, ‘‘आप नीला को फोन कर के क्यों नहीं बुला लेतीं. उस के यहां तो उस की सास भी है. वह 1-2 दिन घर संभाल लेगी. प्लीज मम्मी, बुरा मत मानिएगा, मेरी मजबूरी समझने की कोशिश कीजिएगा.’’

जानकी ने बेटी नीला को फोन लगाया तो प्रत्युत्तर में नीला ने जवाब दिया, ‘‘मम्मी, मेरा वश चलता तो मैं तुरंत आप के पास आ जाती पर इस दीवाली पर मेरी ननद अमेरिका से आने वाली है, वह भी 3 सालों बाद. मुझे काफी तैयारी व खरीदारी करनी है. यदि कुछ कमी रह गई तो मेरी सास को बुरा लगेगा. आप नकुल भैया को बुला लीजिए. मेरी कल ही उन से बात हुई थी. कल शनिवार है, वे वीकएंड में पिकनिक मनाने जा रहे हैं. पिकनिक का प्रोग्राम तो फिर कभी भी बन सकता है.’’

जानकी बेटी की बात सुन कर अवाक् रह गईं. कितनी मायाचारी की थी उन के पुत्र ने अपनी जन्मदात्री से पर उन्होंने जाहिर में कुछ भी नहीं कहा. उन्होंने अब कल सुबह होते ही ऐंबुलैंस बुला कर अकेले ही अस्पताल जाने का निर्णय लिया. उन की महरी रधिया सुबह जल्दी ही आ जाती थी. उस की मदद से जानकी ने कुछ आवश्यक वस्तुएं रख कर बैग तैयार किया और अस्पताल चली गईं.

वे बुखार से कांप रही थीं. उन्हें कुछ जरूरी फौर्म भरवाने के बाद तुरंत भरती कर लिया गया. बुखार 104 डिगरी तक पहुंच गया था. डाक्टर ने बुखार कम करने के लिए इंजैक्शन लगाया व कुछ गोलियां भी खाने को दीं. पर बुखार उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था. उन के खून की जांच करने के लिए नमूना लिया गया. रिपोर्ट आने पर पता चला कि उन्हें डेंगू है. उन की प्लेटलेट्स काउंट कम हो रही थीं. अब डेंगू का इलाज शुरू किया गया.

डाक्टर ने जानकी से कहा, ‘‘आप अकेली हैं. अच्छा यही होगा कि जब तक आप बिलकुल ठीक नहीं हो जातीं, अस्पताल में ही रहिए.’’

2 दिन बाद एक बुजुर्ग सज्जन ने नर्स के साथ उन के कमरे में प्रवेश किया. उन के हाथ में फूलों का बुके व कुछ फल थे. जानकी ने उन्हें पहचानने की कोशिश की. दिमाग पर जोर डालने पर उन्हें याद आया कि उक्त सज्जन को उन्होंने सवेरे घूमते समय पार्क में देखा था. वे अकसर रोज ही मिल जाया करते थे पर उन दोनों में कभी कोई बात नहीं हुई थी.

तभी उन सज्जन ने अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘मैं हूं नवीन गुप्ता. आप की कालोनी में ही रहता हूं. रधिया मेरे यहां भी काम करती है. उसी से आप की तबीयत के बारे में पता चला और यह भी कि आप बिलकुल अकेली हैं. इसलिए आप को देखने चला आया.’’

जानकी ने फलों की तरफ देख कर कमजोर आवाज में कहा, ‘‘इन की क्या जरूरत थी?’’

‘‘अरे भाई, आप को ही तो इस की जरूरत है, तभी तो आप जल्दी स्वस्थ हो कर घर लौट पाएंगी,’’ कहने के साथ ही नवीनजी मुसकराते हुए फल काटने लगे.

जानकी को बहुत संकोच हो रहा था पर वे चुप रहीं.

अब तो रोज ही नवीनजी उन्हें देखने अस्पताल आ जाते. साथ में फल लाना न भूलते. उन का खुशमिजाज स्वभाव जानकी को अंदर ही अंदर छू रहा था.

करीब 8 दिनों बाद उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिली. शाम तक वे घर वापस आ गईं. वे अभी रात के खाने के बारे में सोच ही रही थीं कि तभी नवीनजी डब्बा ले कर आ गए.

जानकी सकुचाते हुए बोलीं, ‘‘आप ने नाहक तकलीफ की. मैं थोड़ी खिचड़ी खुद ही बना लेती.’’

नवीनजी ने खाने का डब्बा खोलते हुए जवाब दिया, ‘‘अरे जानकीजी, वही तो मैं लाया हूं, लौकी की खिचड़ी. आप खा कर बताइएगा कि कैसी बनी? वैसे एक राज की बात बताऊं, खिचड़ी बनाना मेरी पत्नी ने मुझे सिखाया था. वह रसोई के काम में बड़ी पारंगत थी. वह खिचड़ी जैसी साधारण चीज को भी एक नायाब व्यंजन में बदल देती थी,’’ कहने के साथ ही वे कुछ उदास से हो गए. इस दुनिया से जा चुकी पत्नी की याद उन्हें ताजा हो आई.

जीवनसाथी के बिछोह का दुख वे जानती थीं. उन्होंने नवीनजी के दर्द को महसूस किया व तुरंत प्रसंग बदलते हुए पूछा, ‘‘नवीनजी, आप के कितने बच्चे हैं और कहां पर हैं?’’

‘‘मेरे 2 बेटे हैं व दोनों अमेरिका में ही सैटल हैं,’’ उन्होंने संक्षिप्त सा उत्तर दिया फिर उठते हुए बोले, ‘‘अब आप आराम कीजिए, मैं चलता हूं.’’

जानकी को लगा कि उन्होंने नवीनजी की कोई दुखती रग को छू लिया है. वे अपने बेटों के बारे में ज्यादा कुछ नहीं बताना चाहते.

अब तो अकसर नवीनजी जानकी के यहां आने लगे. वे लोग कभी देश के वर्तमान हालत पर, कभी समाज की समस्याओं पर और कभी टीवी सीरियलों के बारे में चर्चा करते पर अपनेअपने परिवार के बारे में दोनों ने कभी कोई बात नहीं की.

एक दिन नवीनजी और जानकी एक पारिवारिक धारावाहिक के विषय में बात कर रहे थे जिस में एक स्त्री के पत्नी व मां के उज्ज्वल चरित्र को प्रस्तुत किया गया था. नवीनजी अचानक भावुक हो उठे. वे आर्द्र स्वर में बोले, ‘‘मेरी पत्नी केसर भी एक आदर्श पत्नी और मां थी. अपने पति व बच्चों का सुख ही उस के जीवन की सर्वोच्च प्राथमिकता थी. अपने बच्चों की एक खुशी के लिए अपनी हजारों खुशियां न्योछावर कर देती थी. उस के प्रेम को व्यवहार की तुला का बिलकुल भी ज्ञान नहीं था. दोनों बेटे पढ़ाई में बहुत ही मेधावी थे.

‘‘दोनों ने ही कंप्यूटर में बीई किया और एक सौफ्टवेयर कंपनी में जौब करने लगे. केसर के मन में बहू लाने के बड़े अरमान थे. वह अपने बेटों के लिए अपने ही जैसी, गुणों से युक्त बहू लाना चाहती थी. पर बड़े बेटे ने अपने ही साथ काम करने वाली एक ऐसी विजातीय लड़की से प्रेमविवाह कर लिया जो मेरी पत्नी के मापदंडों के अनुरूप नहीं थी. उसे बहुत दुख हुआ. रोई भी. फिर धीरेधीरे समय के मलहम ने उस के घाव भरने शुरू कर दिए.

‘‘कुछ समय बाद छोटा बेटा भी कंपनी की तरफ से अमेरिका चला गया. जाते वक्त उस ने अपनी मां से कहा कि वह उस के लिए अपनी मनपसंद लड़की खोज कर रखे. 1 साल बाद जब वह भारत लौटेगा तो शादी करेगा.

‘‘पर वह अमेरिका के माहौल में इतना रचाबसा कि वहां ही स्थायी रूप से रहने का निर्णय ले लिया और वहां की नागरिकता प्राप्त करने के लिए एक अमेरिकी लड़की से विवाह कर लिया.

‘‘केसर के सारे अरमान धूलधूसरित हो गए. वह बिलकुल खामोश रही और एकदम जड़वत हो गई. बस, अकेले ही अंदर ही अंदर वेदना के आसव को पीती रही. नतीजा यह हुआ कि वह बीमार पड़ गई और फिर एक दिन मुझे अपनी यादों के सहारे छोड़ कर इस संसार से विदा हो गई.’’

यह कहतेकहते नवीनजी की आवाज भर्रा गई. जानकी की आंखों की कोर भी गीली होने लगी. वे भीगे कंठ से बोलीं, ‘‘न जाने क्यों बच्चे अपने मांबाप के सपनों की समाधि पर ही अपने प्रेम का महल बनाना चाहते हैं?’’ फिर वे रसोईघर की तरफ मुड़ते हुए बोलीं, ‘‘मैं अभी आप के लिए मसाले वाली चाय बना कर लाती हूं. मूंग की दाल सुबह ही भिगो कर रखी थी. आप मेरे हाथ के बने चीले खा कर बताइएगा कि केसरजी के हाथों जैसा स्वाद है या नहीं.’’

नवीनजी के उदास मुख पर मुसकान की क्षीण रेखा उभर आई.

थोड़ी ही देर में जानकी गरमगरम चाय व चीले ले कर आ गईं. चाय का एक घूंट पीते ही नवीनजी बोले, ‘‘चाय तो बहुत लाजवाब बनी है, सचमुच मजा आ गया. कौनकौन से मसाले डाले हैं आप ने इस में. मुझे भी बनाना सिखाइएगा.’’

जानकी ने उत्तर दिया, ‘‘दरअसल, यह चाय मेरे पति शरदजी को बेहद पसंद थी. मैं खुद अपने हाथों से कूट कर यह मसाला तैयार करती थी. बाजार का रेडीमेड मसाला उन्हें पसंद नहीं आता था.’’

अपने पति का जिक्र करतेकरते जानकी की भावनाओं की सरिता बहने लगी. वे भावातिरेक हो कर बोलीं, ‘‘शरदजी और मुझ में आपसी समझ बहुत अच्छी थी. प्रतिकूल परिस्थितियों में सदैव उन्होंने मुझे संबल प्रदान किया. हम ने अपने दांपत्यरूपी वस्त्र को प्यार व विश्वास के सूईधागे से सिला था. पर नियति को हमारा यह सुख रास नहीं आया और मात्र 35 वर्ष की आयु में उन का निधन हो गया. तब नकुल 7 वर्ष का और नीला 5 वर्ष की थी. मैं ने अपने बच्चों को पिता का अभाव कभी नहीं खलने दिया. उन्हें लाड़प्यार करते समय मैं उन की मां थी व उन्हें अनुशासित करते समय एक पिता की भूमिका निभाती थी.

‘‘नकुल एक बैंक में अधिकारी है. उस की पत्नी लतिका एक कालेज में लैक्चरर है. नीला के पति विवेकजी इंजीनियर हैं. वे लोग भी इसी शहर में ही हैं. उन की एक बेटी भी है.

‘‘सेवानिवृत्त होने के बाद मैं फ्री थी. इसलिए जब कभी जरूरत पड़ती, नकुल और नीला मुझे बुलाते थे. पर बाद में काम निकल जाने के बाद उन दोनों के व्यवहार से मुझे स्वार्थ की गंध आने लगती थी. मैं मन को समझा कर तसल्ली देती थी कि यह मेरा कोरा भ्रम है पर सचाई तो कभी न कभी प्रकट हो ही जाती है.

‘‘बात उस समय की है जब लतिका दोबारा गर्भवती थी. तब मुझे उन लोगों के यहां कुछ माह रुकना पड़ा था. एक दिन नकुल मुझ से लाड़भरे स्वर में बोला, ‘मम्मी, आप के हाथ का बना मूंग की दाल का हलवा खाए बहुत दिन हो गए. लतिका को तो बनाना ही नहीं आता.’

‘‘मैं ने उत्साहित हो कर अगले ही दिन पीठी को धीमीधीमी आंच पर भून कर बड़े ही मनोयोग से हलवा तैयार किया. भले ही रात को हाथदर्द से परेशान रही. अब तो नकुल खाने में नित नई फरमाइशें करता और मैं पुत्रप्रेम में रोज ही सुस्वादु व्यंजन तैयार करती. बेटेबहू तारीफों की झड़ी लगा देते. पर मुझे पता नहीं था मेरे बेटेबहू प्रशंसा का शहद चटाचटा कर मेरा देहदोहन कर रहे हैं. एक दिन रात को मैं दही जमाना भूल गई. अचानक मेरी नींद खुली तो मुझे याद आया और मैं किचन की तरफ जाने लगी तो बहू की आवाज मेरे कानों में पड़ी, ‘सुनो जी, यदि मम्मी हमेशा के लिए यहीं रह जाएं तो कितना अच्छा रहे. मुझे कालेज से लौटने पर बढि़या गरमगरम खाना तैयार मिलेगा. कभी दावत देनी हो तो होटल से खाना नहीं मंगाना पड़ेगा और बच्चों की भी देखभाल होती रहेगी.’

‘‘‘बात तो तुम्हारी बिलकुल ठीक है पर 2 कमरों के इस छोटे से फ्लैट में असुविधा होगी,’ नकुल ने राय प्रकट की.

‘‘बहू ने बड़ी ही चालाकीभरे स्वर में जवाब दिया, ‘इस का उपाय भी मैं ने सोच लिया है. यदि मम्मीजी विदिशा का घर बेच दें और आप बैंक से कुछ लोन ले लें तो 3 कमरों का हम खुद का फ्लैट खरीद सकते हैं.’’

‘‘नकुल ने मुसकराते हुए कहा, ‘तुम्हारे दिमाग की तो दाद देनी पड़ेगी. मैं उचित मौका देख कर मम्मी से बात करूंगा.’

‘‘बेटेबहू का स्वार्थ मेरे सामने बेपरदा हो चुका था. मैं सोचने लगी कि अधन होने के बाद कहीं मैं अनिकेतन भी न हो जाऊं. बस, 2 दिन बाद ही मैं विदिशा लौट आई. नीला का भी कमोबेश यही हाल था. उस की भी गिद्ध दृष्टि मेरे मकान पर थी.

‘‘नवीनजी, मैं काफी अर्थाभाव से गुजर रही हूं. मैं ने बच्चों को पढ़ाया. नीला की शादी की. यह मकान मेरे पति ने बड़े ही चाव से बनवाया था. तब जमीन सस्ती थी. जब उन की मृत्यु हुई, मकान का कुछ काम बाकी था. मैं ने आर्थिक कठिनाइयों से गुजरते हुए जैसेतैसे इस को पूरा किया. अभी बीमार हुई तो काफी खर्च हो गया. मैं सोचती हूं कि कुछ ट्यूशंस ही कर लूं. मैं एक स्कूल में हायर सैकंडरी क्लास की कैमिस्ट्री की शिक्षिका थी.’’

नवीनजी ने जानकी की बात का समर्थन करते हुए कहा, ‘‘आप शुरू से ही शिक्षण व्यवसाय से जुड़ी हैं इसलिए इस से बेहतर विकल्प और कुछ नहीं हो सकता,’’ फिर कुछ सोचते हुए बोले, ‘‘क्यों न हम एक कोचिंग सैंटर खोल लें. मैं एक कालेज में गणित का प्रोफैसर था. मेरे एक मित्र हैं किशोर शर्मा. वे उसी कालेज में फिजिक्स के प्रोफैसर थे. वे मेरे पड़ोसी भी हैं. उन की भी रुचि इस में है. हम लोगों के समय का सदुपयोग हो जाएगा और आप को सहयोग. हां, हम इस का नाम रखेंगे, जानकी कोचिंग सैंटर क्योंकि इस में हम तीनों का नाम समाहित होगा.’’

जानकी उत्साह से भर गई और बोलीं, ‘‘2-3 विद्यालयों के पिं्रसिपल से मेरी पहचान है. मैं कल ही उन से मिलूंगी और विद्यालयों के नोटिसबोर्डों पर विज्ञापन लगवा दूंगी.’’

किशोरजी भी सहर्ष तैयार हो गए और जल्दी ही उन लोगों की सोच ने साकार रूप ले लिया. अब तो नवीनजी रोज ही जानकी के यहां आनेजाने लगे. कभी कुछ प्लानिंग तो कभी कुछ विचारविमर्श के लिए. वे काफी देर वहां रुकते. वैसे भी कोचिंग क्लासेज जानकी के घर में ही लगती थीं.

किशोरजी क्लास ले कर घर चले जाते क्योंकि उन की पत्नी घर में अकेली थीं. रोजरोज के सान्निध्य से उन लोगों के दिलों में आकर्षण के अंकुर फूटने लगे. वर्षों से सोई हुई कामनाएं करवट लेने लगीं व हृदय के बंद कपाटों पर दस्तक देने लगीं. जज्बातों के ज्वार उफनने लगे. आखिर उन्होंने एक ही जीवननौका पर सवार हो कर हमसफर बनने का निर्णय ले लिया.

ऐसी बातें भी भला कहीं छिपती हैं. महल्ले वाले पीठ पीछे जानकी और नवीनजी का मजाक उड़ाते व खूब रस लेले कर उलटीसीधी बातें करते. फिर ऐसी खबरों के तो पंख होते हैं. उड़तेउड़ते ये खबर नकुल और नीला के कानों में भी पड़ी. एक दिन वे दोनों गुस्से से दनदनाते हुए आए और जानकी के ऊपर बरस पड़े, ‘‘मम्मी, हम लोग क्या सुन रहे हैं? आप को इस उम्र में ब्याह रचाने की क्या सूझी? हमारी तो नाक ही कट जाएगी. क्या आप ने कभी सोचा है कि हमारा समाज व रिश्तेदार क्या कहेंगे?’’

जानकी ने तनिक भी विचलित न होते हुए पलटवार करते हुए उत्तर दिया, ‘‘और तुम लोगों ने कभी सोचा है कि मैं भी हाड़मांस से बनी, संवेदनाओं से भरी जीतीजागती स्त्री हूं. मेरी भी शिराओं में स्पंदन होता है. जिंदगी की मधुर धुनों के बीच क्या तुम लोगों ने कभी सोचा है कि अकेलेपन का सन्नाटा कितना चुभता है? बेटे, बुढ़ापा तो उस वृक्ष की भांति होता है जो भले ही ऊपर से हरा न दिखाई दे पर उस के तने में नमी विद्यमान रहती है. यदि उस की जड़ों को प्यार के पानी से सींचा जाए तो उस में भी अरमानों की कलियां चटख सकती हैं.

‘‘जब तुम्हारे पापा ने इस संसार से विदा ली, मैं ने जीवन के सिर्फ 30 वसंत ही देखे थे. मुझे लगा कि अचानक ही मेरे जीवन में पतझड़ का मौसम आ गया हो तथा मेरे जीवन के सारे रंग ही बदरंग हो गए हों. मैं ने तुम लोगों के सुखों के लिए अपनी सारी आकांक्षाओं की आहुति दे दी. पर जवान होने पर तुम लोगों की आंखों पर स्वार्थ की इतनी गहरी धुंध छाई जिस में कर्तव्य और दायित्व जैसे शब्द धुंधले हो गए. जब मेरी तबीयत खराब हुई और मैं ने तुम लोगों को बुलाया तो तुम दोनों ने बहाने गढ़ कर अपनेअपने पल्लू झाड़ लिए.

‘‘ऐसे आड़े वक्त और तकलीफ में नवीनजी एक हमदर्द इंसान के रूप में मेरे सामने आए. उन्होंने मेरा मनोबल बढ़ा कर मुझे मानसिक सहारा दिया. वे मेरे दुखदर्द के ही नहीं, भावनाओं के भी साथी बने. अब मैं उन्हें अपने जीवनसाथी के रूप में स्वीकार कर एक नए जीवन की शुरुआत करने जा रही हूं.’’

नकुल और नीला को आत्मग्लानि का बोध हुआ. वे पछतावेभरे स्वर में बोले, ‘‘मम्मी, आज आप ने हमारी आंखें खोल कर हमें अपनी गलतियों का एहसास कराया है और जीवन के एक बहुत बड़े सत्य से भी साक्षात्कार करवाया है. मां का हृदय बहुत विशाल होता है. हमारी भूलों के लिए आप हमें क्षमा कर दीजिए. आप के जीवन में हमेशा खुशियों के गुलाब महकते रहें, ऐसी हम लोगों की मंगल कामना है.’’

अपनी संतानों की ये बातें सुन कर जानकी की खुशी दोगुनी हो गई.

लेखिका- उर्मिला फुसकेले

Emotional Story

Motivational Story: वापस- महेंद्र को कामयाब बनाने में सुरंजना ने क्या किया

Motivational Story: महेंद्र को कामयाब इंसान बनाने के लिए सुरंजन ने ऐसा क्या किया कि सब उस की वाहवाही करने लगे…सुरंजना के सामने स्क्रीन पर महेंद्र का परीक्षा परिणाम था और उस की आंखें उस पर लिखे अंकों पर केंद्रित थीं. महेंद्र फेल होतेहोते बचा था. अधिकांश विषयों में उत्तीर्णांक से 1-2 नंबर ही ज्यादा थे और गनीमत थी कि किसी भी विषय में रैड निशान नहीं लगा था. सुरंजना सोच रही थी, सदा ही प्रथम श्रेणी में आने वाला मेधावी युवक क्योंकर इस सीमा तक असफल हो गया? सीनियर सैकंडरी परीक्षा में पूरे पश्चिम बंगाल में महेंद्र को 10वां स्थान मिला था.

इस के पश्चात कोलकाता विश्वविद्यालय के बीकौम औनर्स के इम्तिहान में उस का प्रथम श्रेणी में द्वितीय स्थान था और उसे स्कोलरशिप मिली थी. स्कूल में भी वह हर कक्षा में सदा प्रथम आता रहा था. फिर इस बार चार्टर्ड अकाउंटैंट की इंटरमीडिएट परीक्षा में वह एकदम इतना नीचे क्योंकर आ सका? उस के जीवन के इर्दगिर्द मौजूद वर्तमान परिस्थितियों में क्या पहले की परिस्थितियों की अपेक्षा कोई मौलिक परिवर्तन हुआ है?

सुरंजना का हृदय कांप उठा. इस बार की सीए इंटर परीक्षा के करीब 6 मास पूर्व महेंद्र की उस के साथ मैरिज होना निश्चय ही महेंद्र के लिए एक बेसिक चेंज परिवर्तन ही तो है. इस के साथ ही सुरंजना को याद आने लगे वे अनगिनत कमैंट, जो महेंद्र के मित्रों ने विवाह के अवसर पर उस को लक्ष्य कर के महेंद्र से कहे थे.

महेंद्र से उस का परिचय कालेज में उस समय हुआ था, जब वह बीकौम के अंतिम वर्ष में थी. लाइब्रेरी में किताबें देने के लिए 2 क्लर्क थे. महेंद्र और वह 2 विपरीत दिशाओं से लाइब्रेरी में आए थे और उन क्लर्कों के पास जा कर एक ही लेखक की अकाउंटैंसी की पुस्तक की मांग कर रहे थे. संयोग से उस समय उस किताब की एक ही प्रति मौजूद थी. दोनों ही क्लर्क एकदूसरे को देख कर मुसकराए थे और फिर उन में से एक ने जो कुछ ज्यादा ही मजाकिया स्वभाव का था, कहा, ‘‘काश, आप दोनों एक होते तो आज इस तरह की विकट समस्या से बखूबी काम चला लेते. आप दोनों ही बताइए, अब मैं क्या करूं?’’

उस की बात सुन कर एकबारगी तो सुरंजना शर्म से लाल हो उठी थी और उस से कुछ कहते नहीं बना था. पर महेंद्र ने तुरंत बात को संभाल लिया, ‘‘ठीक है सर, कम से कम इस किताब के लिए तो हम आप के ‘काश’ को टैंपरेरली वास्तविकता में बदल ही सकते हैं. आप किताब मेरे नाम से जारी कर दें. हम दोनों सा?ो में एक ही किताब से बखूबी काम चला लेंगे.’’

फिर किताब और उसे साथ लिए महेंद्र मैदान के दूसरे छोर की बैंच पर आ कर बैठा था. महेंद्र के व्यक्तित्व से तो वह बहुत पहले से प्रभावित थी, उस दिन की ‘घटना’ के बाद परिचय और भी घनिष्ठ हो गया और यह परिचय धीरेधीरे कब और किस तरह प्यार के लहलहाते पौधे में परिवर्तित हो गया, दोनों में से कोई भी तो नहीं जान सका था.

महेंद्र का अधिकांश समय अध्ययन में ही बीतता और अपनी इसी व्यस्तता के क्षणों में से वह कुछ समय निकाल प्रतिदिन उसे ले कर ?ाल के उस पार चला जाता. वहां किसी ?ाड़ी के पीछे दोनों एकदूसरे की आंखों में ?ांकते हुए किसी और ही दुनिया में खो जाते. भावी जीवन के तानेबाने बुने जाते. महेंद्र यदाकदा उन्माद में भर कर उसे अपनी बांहों में समेट कर उस के होंठों पर अपने प्यार की मुहर अंकित कर देता और तब वह भी अपना मुंह उस की छाती में छिपा कर एक अजीब सिहरन से भर उठती थी. पर दूसरे ही क्षण ज्यों ही उसे मर्यादा का बोध होता, वह छिटक कर महेंद्र के आगोश से परे हट जाती.

उस दिन वातावरण में शाम का धुंधलका उतर आया था. ?ाल के किनारे एक घनी ?ाड़ी की ओट में महेंद्र उस की गोद में सिर रखे लेटा हुआ था और वह उस के बालों में उंगलियां फिराते हुए ‘आप की नजरों ने सम?ा प्यार के काबिल मु?ो…’ गीत गुनगुना रही थी. उस की आवा बहुत सुरीली थी. गीत समाप्त होतेहोते महेंद्र ने रोमांच से अभिभूत हो अपनी दोनों बांहें उस की गरदन की ओर फैला कर उसे नीचे की ओर ?ाका लिया और अपने तप्त अधरों को उस के ललाट की चमकती बिंदी पर धर दिया.

‘‘राजी, अब यह दूरी और नहीं सही जाती. अपने और मेरे बीच यह कैसी लक्ष्मण रेखा बनाए हुए हो? क्या तुम्हें मु?ा पर विश्वास नहीं?’’ महेंद्र फुसफुसाया. बांहें उस की कमर के इर्दगिर्द और भी कस गई थीं.

‘‘उफ, मिक्की तुम भी कैसीकैसी बातें सोचते रहते हो. मु?ो तुम पर अपनेआप से भी ज्यादा विश्वास है. पर इस सैपरेशन का भी अपना महत्त्व है.  डरती हूं कि कहीं मेरा संसर्ग, मेरा प्यार तुम्हें  अपने एक पथ से डिस्टै्रक्ट न कर दे,’’ हिचकिचाते हुए उस ने अपने मन का भय महेंद्र के सामने प्रकट कर ही दिया.

‘‘मैं सम?ा नहीं, तुम आखिर क्या कहना चाहती हो?’’

‘‘मिक्की, पहले कभी सुना था कि नारी की कमनीय काया और

मांसल सौंदर्य के प्रति पुरुष इस कदर आसक्त हो जाता है कि वह अपने कर्तव्य के प्रति भी उदासीन हो जाता है. बस, डर रही हूं कि कहीं उस तथाकथित लक्ष्मण रेखा के पार जा कर तुम भी अपने अध्ययन के प्रति उदासीन न हो जाओ. 1 माह बाद ही बीकौम की फाइनल परीक्षा है और अगले 6 महीनों के बाद ही तुम्हें सीए की इंटर परीक्षा मेें भी बैठना है. कहीं मेरा प्यार ऐग्जाम में अच्छी रेंज प्राप्त करने की तुम्हारी परंपरा पर कुठाराघात न कर दे.’’

‘‘खूब… हमारी राजी दूर की कौड़ी लाने में कितनी माहिर है, आज पता चला. अगर तुम्हारे इस संशय को एक नियम के रूप में मान लिया जाए तो भी निवेदन करना चाहूंगा कि हरेक नियम के कुछ ठोस अपवाद भी होते हैं. फिर मुख्य बात है, आत्मविश्वास. तुम्हारा संसर्ग मु?ो हम की ओर फोकस होने की प्रेरणा देगा न कि हम से डिस्ट्रैक्ट होने का आघात.’’

फिर बीकौम की परीक्षाएं समाप्त होते ही दोनों विवाह सूत्र में बंध गए. दोनों के मांबाप ने थोड़ा विरोध किया पर चूंकि दोनों कोलकाला में होस्टल में रहते थे, मांबाप को मालूम था कि उन्हें रोकने से कोई लाभ न होगा. उन्होंने खासी धूमधाम से शादी कर दी. दोनों के मांबाप साधारण आय वाले थे पर गरीब न थे. विवाह की वेदी पर से उठने के बाद ज्यों ही उन्हें एकांत मिला, महेंद्र के कुछ अंतरंग मित्रों ने उन दोनों को घेर लिया.

‘‘भई, अब अपना मिक्की गया काम से. एक होनहार छात्र की प्रतिभा की सम?ा लो कि आज हत्या हो गई,’’ एक मित्र आंखें नचाते

हुए बोला.

‘‘ठीक ही तो कह रहा है अविनाश, भाभी जैसी रूपसी की देह का स्वाद चख चुकने के बाद भला मिक्की का अध्ययन की ओर मन लगेगा?’’

‘‘स्कूल के जमाने से ले कर आज तक की सभी परीक्षाओं में निरंतर बढि़या परिणाम लाने वाले इस महेंद्र से हम लोगों ने कितनी उम्मीदें बांधी थीं. पूरा विश्वास था कि चार्टर्ड अकाउंटैंसी स्वर्णपदक जरूर प्राप्त करेगा पर अब पास हो जाए तो ही बहुत है.’’

‘‘पास होने की बात कहते हो? अरे, अब तो यह देखना है कि अध्ययन जारी भी रख पाता है या नहीं.’’

अविनाश की इस बात पर उस के सभी मित्र सम्मिलित रूप से उठे थे. उन के कटाक्ष सुन कर वह किसी अनजानी अपराधबोध की भावना से भर गई थी. महेंद्र अपने मित्रों के कटाक्षों को हलके रूप से ले रहा था. उस के चेहरे पर आत्मविश्वास की गहरी छाप विद्यमान थी और वह ओजपूर्ण स्वर में बोला, ‘‘दोस्तो, भविष्य की चिंता में वर्तमान को भी क्यों भुलाए दिए जा रहे हो? कम से कम जिंदगी की इस बेहतरीन उपलब्धि पर मित्र के नाते मु?ो बधाई तो दो.’’

शादी के बाद के 2-3 महीने तो पैशनेट नाइट्स के नशे में

देखते ही देखते गुजर गए. कभी कश्मीर की डल ?ाल पर तैरते शिकारे पर, कभी शिमला की वादियों में उड़नतश्तरी से उड़ते तोपटिब्बे पर तो कभी दार्जिलिंग की किसी ऊंची बर्फीली पहाड़ी पर स्कैटिंग करते हुए वे दिन किस तरह रोमांच और सिहरन भरी व्यस्तता में बीतते गए थे. इन सब से छुट्टी मिलती तो महेंद्र उसे आलिंगन में समेटे कमरे में पड़ा रहता. 1-2 बार दबी जबान से उस ने महेंद्र को उस की ऐग्जाम की जिम्मदारी से अवगत कराया, तो महेंद्र लापरवाही भरे अंदाज में बोला, ‘‘जानेमन, क्या बेवक्त की शहनाई ले कर बैठ जाती हो? बाबा, अपनी जिम्मेदारियों को तुम्हारा मिक्की खूब सम?ाता है.’’

मगर महेंद्र अपनी जिम्मेदारियों को सम?ा कहां सका था. जबजब वह उस से ऐग्जाम की तैयारियों के प्रति गंभीर हो जाने का आग्रह करती, महेंद्र या तो अगले दिन से ही अध्ययन की शुरुआत नए सिरे से करने की बात कह कर टाल देता अथवा नाराज हो जाने का अभिनय करते हुए कहा, ‘‘लगता है, हमारा प्यार सोडा वाटर की गैस की तरह साबित होगा. लगता है प्यार का उन्माद तुम्हारे मन से उतर चला है और तुम मु?ा से बोर होने लगी हो. लगता है…’’

इस से आगे वह उसे कहने ही नहीं देती थी और किसी पागल की तरह उस की छाती पर छोटेछोटे मुक्के बरसाती आर्द्र स्वर में कहती, ‘‘काश, मिक्की, तुम जान पाते कि राजी तुम्हारी अनुपस्थिति में किस तरह अधूरी हो जाती है, पर तुम्हारे मित्रों के वे कमैंट ?ाठे किस तरह साबित हो सकेंगे.’’

एक बार वह उसे एकांत देने के उद्देश्य से ही अपने मायके चली गई थी, पर महेंद्र

तो उस के चले जाने पर विक्षिप्त सा हो गया. उस के पास महेंद्र के मैसेज पर मैसेज आने लगे, जिन में वह अपने एकाकीपन और विक्षिप्तावस्था का वर्णन करते हुए अत्यंत करुण शब्दों में उस से वापस लौट आने का अनुरोध करता. वह दिन भर में 10-20 बार मैसेज भेजता. फिर कुछ दिनों के बाद महेंद्र स्वयं ही उस के मायके पहुंच गया और करीब एक सप्ताह वहां बिता कर उसे साथ ले कर ही लौटा.

सुरंजना की आंखें छलछला उठी थीं.

विवाह के बाद के पिछले 6 माह की घटनाओं

में रोमांच, सिहरन और टीसों का क्या खूब समन्वय था. स्क्रीन में देखते रिजल्ट पर से नजरें हटा कर वह बिस्तर पर लेट गई. महेंद्र किसी अबोध शिशु सा बेसुध नींद में पड़ा था. बाहर वातावरण की नीरवता यदाकदा किसी आवारा कुत्ते की भूंभूं से भंग हो उठती थी. सुरंजना के मस्तिष्क में निरंतर द्वंद्व चल रहा था कि क्या सचमुच नारी की मांसल देह और उस का मादक सौंदर्य एक कमिटेड और रिस्पौंसिबल व्यक्ति के लिए अभिशाप साबित होता है? महेंद्र के मित्रों के कमैंट क्या सचमुच सही साबित हो जाएंगे? विवाह के पहले की महेंद्र के अंतर की दृढ़ता और उस का कौन्फिडैंस विवाह के बाद कहां चला गया?

सुरंजना उठी. एक गिलास पानी पीया. इस तरह पराजय और कुंठा के एहसास को प्रश्रय देने से काम नहीं चलेगा. उस का मस्तिष्क तेजी से किसी योजना की रूपरेखा को संवारने में उल?ा हुआ था. इस कठिन समय में उस की अपनी स्टै्रंथ और सैल्फ कौन्फिडैंस क्या काम नहीं आएगा? अनायास रिजल्ट पर उस की नजर और मजबूत हो गई. एक ठोस निर्णय पर पहुंच जाने से उस के चेहरे पर संतोष और इतमीनाना की रेखा खिंच आई.

सुबह किसी के ?ाक?ोरने पर महेंद्र की नींद टूटी. सामने सुरंजना को भाप उड़ाते कौफी के प्याले लिए खड़े देख कर उस की आंखें विस्मय से फैल गईं, ‘‘तुम… इतनी सुबह?’’

‘‘हां, सुबह का समय स्टडी व ऐनालिसिस के लिए सब से ज्यादा उपयुक्त होता है न? कौफी लो, सारा आलस्य दूर हो जाएगा. फिर फटाफट तैयार हो कर अपने स्टडीरूम में पहुंचो, नाश्ता वहीं मिलेगा.’’

सचमुच कौफी पीने पर महेंद्र को ताजगी

का अनुभव हुआ. अपेक्षाकृत 2 घंटे पूर्व उठ

जाने से ?ां?ालाहट नहीं हुई. कुछ देर बाद वह तैयार हो कर अपने स्टडीरूम में पहुंचा. सारे स्टडीरूम की काया पलट हो चुकी थी. कलट्टर गायब था. बड़ी मेज पर एक फूलदान रखा था, जिस में ताजे गुलाबों का एक बड़ा सा गुलदस्ता महक रहा था. रैकों में किताबें करीने से सजा कर रखी गई थीं.

उसी समय सुरंजना नाश्ते की प्लेटें लिए कक्ष में आई. चेहरे पर ताजे खिले कमल की सी स्निग्धता थी. महेंद्र ने आगे बढ़ कर उसे हग कर लिया.

‘‘बस… बस… 6 बजने ही वाले हैं. 2 घंटे निरंतर कंस्ट्रेट हो कर पढ़ो. मन को जरा भी इधरउधर न भटकने देना.’’

न जाने कैसा जादू किया था सुरंजना के स्वरों ने. महेंद्र पूरी तरह एकाग्र हो कर पढ़ने

लग गया. ठीक 8 बजे द्वार पर आहट सुन कर महेंद्र की चेतना लौटी. देखा, सामने सुरंजना मुसकराती हुई खड़ी थी. उस के एक हाथ में चाय की प्याली थी और दूसरे में उस दिन का ताजा अखबार. सुरंजना ने अब अखबार लगवा लिया था ताकि महेंद्र मोबाइल से दूर रहने की आदत डाल ले.

‘‘जब तक तुम चाय की चुसकियां लोगे,

मैं तुम्हें आज की मुख्यमुख्य खबरें पढ़ कर

सुनाती हूं.’’

आधे घंटे बाद सुरंजना अध्ययन कक्ष से चली गई, पर इस आधे घंटे की

चुहलबाजी से महेंद्र को अपने अंदर एक नई स्फूर्ति और ताजगी का एहसास हुआ. उसे आश्चर्य हो रहा था, अभी कल तक सुरंजना को ले कर उस का मस्तिष्क सब समय जिस तरह के सैक्सुअल पैशन से भरा रहता था, आज उसे सुरंजना के सामने आते ही उस तरह के पैशन का बोध नहीं हुआ. वह दूने जोश से स्टडी में लग गया. इस का फल भी उसे मिला. पिछले कई माह से अधूरे पड़े नोट्स सब पूरे हो गए थे. कौस्ट ऐनालिसिस तथा बैलेंसशीट जैसे विषयों के कई अध्याय उसे सहज ही सम?ा आ गए थे. आज के अध्ययन से उस के चेहरे पर संतोष की रेखा खिंच आई थी. 12 बजे तक वह किताबों में तन्मय हो कर उल?ा रहा, जब तक कि सुरंजना उसे खाने की मेज पर न बुला ले गई.

‘‘अब 2 घंटे तक मैं तुम्हारे पास रहूंगी. सुन रहे हो न, मिक्की, मैं होऊंगी, तुम होंगे और हमारे बीच कोई भी नहीं होगा. मेहरबानी कर के मु?ो अपनी बांहों में छिपा लो.’’

महेंद्र स्वयं को रोक नहीं पाया. 3 बजे से पुन: अध्ययन कक्ष की दिनचर्या शुरू हुई. अब तक महेंद्र के चेहरे पर भी आत्मविश्वास गहरा उठा था. इसी बीच सुरंजना कौफी का प्याला लिए एक बार उस के पास आई. उस की क्षणिक उपस्थिति महेंद्र में एक नया साहस भर देती. सुरंजना ने अपने औफिस से सबैटिकल ले

लिया था. उस की बकाया छुट्टियां थीं. उन छुट्टियों में भी वह औफिस का काम कंप्यूटर पर करती रहती थी और कई बार तो महेंद्र को पढ़ता छोड़ कर औफिस भी हो आई थी. छुट्टी में भी उस काम के प्रति कमिटमैंट को देख कर सब खुश थे. उस की अनुपस्थिति किसी को खल नहीं  रही थी.

शाम को सुरंजना आग्रह कर के उसे ?ाल के पार ले गई. वहां ?ाड़ी के पीछे महेंद्र उस की गोद में सिर रख कर लेट गया. दोनों एकदूसरे की आंखों में ?ांकते रहे और दूर रेडियो पर ‘बांहों में तेरे मस्ती के घेरे, सांसों में तेरे खुशबू के डेरे…’ गीत की आवाज हवा में तैरती हुई कानों में रस घोलती रही.

रात में 8 बजे महेंद्र तरोताजा हो पुन: अध्ययन में जुट गया. सुरंजना रसोई का काम खत्म

कर के जब कक्ष में आई तो 11 बज रहे थे. महेंद्र अकाउंटैंसी की मोटीमोटी पुस्तकों में उल?ा हुआ था. उसे देख सुरंजना दबे पांव लौट गई और एक प्याला गरम कौफी बना लाई. उस के लौटने तक महेंद्र को ?ापकी आ गईर् थी.

‘‘मिक्की…’’ सुरंजना ने हलके से उसे आवाज दी, ‘‘बहुत थक गए हो, मिक्की चलो, अब समाप्त कर दो?’’

उनींदा सा महेंद्र मुसकराया और कौफी

का प्याला थामते हुए बोला, ‘‘सचमुच इस

समय मैं कौफी की ही इच्छा महसूस कर रहा

था. तुम जा कर सो जाओ. मैं कुछ देर और बैठूंगा, राजी.’’

‘‘तब मैं भी यही रहूंगी. इन अकाउटैंसी की पुस्तकों को रखो अब. वर्णनात्मक विषय जैसे लेखा परीक्षण वगैरह की कोई पुस्तक निकालो. मैं पढ़ूंगी, तुम सुनना. इस से पढ़ी हुई बातें मस्तिष्क में फिर से सजीव हो उठेंगी.’’

सुरंजना महेंद्र के मना करने पर भी 2 बजे तक अध्ययन कक्ष में रही. लेखा परीक्षण तथा तत्संबंधी कानून के 2-2 अध्याय उस ने पढ़े, महेंद्र तन्मय हो कर सुनता रहा.

समय तेजी से बीतता रहा. महेंद्र अब पूरे विश्वास, संयम और धैर्य के साथ एकाग्र हो कर पढ़ाई में लग गया था. सुरंजना अपनी योजना के अनुरूप व्यवस्थित ढंग से उसे प्रोत्साहन देती रही. शाम को ?ाल तक टहलने के लिए ले जाना, रात में अंतिम समय तक उस के पास अध्ययन कक्ष में रहना ये दोनों बातें सुरंजना सदैव जिद कर के करती रही.

परीक्षा से 1 सप्ताह पूर्व से ही महेंद्र

सबकुछ भूल कर बस अध्ययन कक्ष में ही कैद हो कर रह गया. सुरंजना अपनी बढ़ी हुई जिम्मेदारियों के प्रति पूरी तरह सचेत थी. अध्ययन कक्ष और रसोई के बीच यह किसी तितली की तरह उड़ती रहती. दोपहर को कुछ देर के लिए वह महेंद्र के मना करने पर भी उसे खींच कर सोने के कमरे में ले जाती.

कुछ देर का उस का संसर्ग महेंद्र पर किसी टौनिक सा असर करता और वह रात्रि को पूरे उत्साह के साथ अध्ययन में लग जाता. अध्ययन कक्ष में सुरंजना रात देर तक कभी किसी विषय के अध्याय विशेष को उसे पढ़ कर सुनाती, कभी उस की मेज के पीछे खड़ी हो कर उस के सिर को हलकेहलके सहलाती रहती या कभी यत्रतत्र बिखरी किताबें एवं नोट्स की कापियों को करीने से सजा कर रखती रहती. अंतिम दौर में, जब थकावट चरम सीमा पर पहुंच गई, महेंद्र को कभीकभी रात में अध्ययन कक्ष में ही गहरी ?ापकी आ जाती. सुरंजना तब वहीं कक्ष में ही बिस्तरा बिछा देती.

नियत समय पर परीक्षा हुई और परिणाम भी घोषित हुए. महेंद्र और सुरंजना का परिश्रम रंग लाया. महेंद्र ने प्रथम श्रेणी में प्राप्त हुई और उसे स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया था. नगर के सभी प्रमुख समाचारपत्रों में उस की तसवीर प्रकाशित की गई.

समाचारपत्र की उस प्रति को लिए महेंद्र खुशी से उन्मादित हो दौड़ता हुआ रसोई में आया. सुरंजना उस समय आटा गूंध रही थी. अखबार उस के हाथ में थमा कर विक्षिप्त सा हो महेंद्र ने उसे बांहों में भर लिया, ‘‘अब तक तुम केवल राजी ही थीं, पर अब से तुम मेरे लिए प्रेरणा भी हो.’’

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