महेंद्र को कामयाब इंसान बनाने के लिए सुरंजन ने ऐसा क्या किया कि सब उस की वाहवाही करने लगे...सुरंजना के सामने स्क्रीन पर महेंद्र का परीक्षा परिणाम था और उस की आंखें उस पर लिखे अंकों पर केंद्रित थीं. महेंद्र फेल होतेहोते बचा था. अधिकांश विषयों में उत्तीर्णांक से 1-2 नंबर ही ज्यादा थे और गनीमत थी कि किसी भी विषय में रैड निशान नहीं लगा था. सुरंजना सोच रही थी, सदा ही प्रथम श्रेणी में आने वाला मेधावी युवक क्योंकर इस सीमा तक असफल हो गया? सीनियर सैकंडरी परीक्षा में पूरे पश्चिम बंगाल में महेंद्र को 10वां स्थान मिला था. इस के पश्चात कोलकाता विश्वविद्यालय के बीकौम औनर्स के इम्तिहान में उस का प्रथम श्रेणी में द्वितीय स्थान था और उसे स्कोलरशिप मिली थी. स्कूल में भी वह हर कक्षा में सदा प्रथम आता रहा था. फिर इस बार चार्टर्ड अकाउंटैंट की इंटरमीडिएट परीक्षा में वह एकदम इतना नीचे क्योंकर आ सका? उस के जीवन के इर्दगिर्द मौजूद वर्तमान परिस्थितियों में क्या पहले की परिस्थितियों की अपेक्षा कोई मौलिक परिवर्तन हुआ है?

सुरंजना का हृदय कांप उठा. इस बार की सीए इंटर परीक्षा के करीब 6 मास पूर्व महेंद्र की उस के साथ मैरिज होना निश्चय ही महेंद्र के लिए एक बेसिक चेंज परिवर्तन ही तो है. इस के साथ ही सुरंजना को याद आने लगे वे अनगिनत कमैंट, जो महेंद्र के मित्रों ने विवाह के अवसर पर उस को लक्ष्य कर के महेंद्र से कहे थे.

महेंद्र से उस का परिचय कालेज में उस समय हुआ था, जब वह बीकौम के अंतिम वर्ष में थी. लाइब्रेरी में किताबें देने के लिए 2 क्लर्क थे. महेंद्र और वह 2 विपरीत दिशाओं से लाइब्रेरी में आए थे और उन क्लर्कों के पास जा कर एक ही लेखक की अकाउंटैंसी की पुस्तक की मांग कर रहे थे. संयोग से उस समय उस किताब की एक ही प्रति मौजूद थी. दोनों ही क्लर्क एकदूसरे को देख कर मुसकराए थे और फिर उन में से एक ने जो कुछ ज्यादा ही मजाकिया स्वभाव का था, कहा, ‘‘काश, आप दोनों एक होते तो आज इस तरह की विकट समस्या से बखूबी काम चला लेते. आप दोनों ही बताइए, अब मैं क्या करूं?’’

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