इन खराब आदतों के कारण होती है मुंहासों की समस्या, आज ही करें बदलाव

खूबसूरत दिखना न सिर्फ खुशी देता है, बल्कि आत्मविश्वास बढ़ा कर आप को दुनिया का सामना करना भी सिखाता है. मगर आज के समय में बढ़ते प्रदूषण, खानपान की गलत आदतों, बढ़ते तनाव आदि की वजह से त्वचा सब से ज्यादा प्रभावित होती है. यही नहीं देर रात तक जागने और जीवनशैली से जुड़ी दूसरी कई गलत आदतें भी त्वचा को बेजान बनाने के साथसाथ मुंहासों का भी शिकार बना देती हैं. आइए, जानें कुछ आदतों के बारे में जो मुंहासों की वजह बनती हैं.

1. बार-बार चेहरे को छूना:

हमारे हाथ दिनभर में हजारों बैक्टीरिया के संपर्क में आते हैं. जरूरी नहीं कि हम हाथों को बारबार धोएं. ऐसे में जाने-अनजाने कई दफा अपने गंदे हाथों से चेहरे को छूते रहते हैं. इस तरह हम चेहरे की त्वचा तक बैक्टीरिया, धूल और गंदगी पहुंचाने का काम करते हैं, जो मुंहासों का कारण बनता है.

2. गलत तरीके से स्क्रब करना:

आप सोचती हैं कि चेहरे पर बार-बार स्क्रब कर या त्वचा को तौलिए से पोंछ कर आप अपने रोमछिद्रों को गहराई से साफ कर रही हैं. मगर वास्तविकता कुछ और ही होती है. ऐसा कर के आप त्वचा को नुकसान पहुंचाती हैं. कोमलता से सप्ताह में 1 बार स्क्रब करना पर्याप्त है.

3. गंदे मेकअप ब्रश का प्रयोग:

कई दफा आलस के चलते हम अपने मेकअप ब्रश को बिना धोए उस का बार-बार इस्तेमाल करते हैं. हमें लगता है कि इस का प्रयोेग हमारे सिवा कोई और तो कर नहीं रहा है. मगर यह एक बड़ी भूल है. ब्रश में जमी धूल और बचा रह गया मेकअप उस के रेशों में फंस जाता है और दोबारा प्रयोग करने पर यह मुंहासों और त्वचा संक्रमण की वजह बनता है.

4. एक्सरसाइज के बाद स्नान न करना:

ऐक्सरसाइज करने पर शरीर से पसीना निकलता है. बाहरी प्रदूषण, धूलमिट्टी पसीने के साथ मिल कर मुंहासे पैदा करते हैं. अत: वर्कआउट के बाद नहाएं जरूर.

5. पूरी नींद न लेना:

पर्याप्त नींद न लेने से शारीरिक और मानसिक स्ट्रैस लैवल बढ़ जाता है. इस का सीधा असर त्वचा पर पड़ता है. इसलिए स्वस्थ त्वचा और मुंहासों से छुटकारा चाहिए तो पूरी नींद लेना न भूलें.

6. मुंहासों को दबाना या नोचना:

मुंहासों के साथ किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इस से त्वचा में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है. इस की वजह से मुंहासे चेहरे पर गहरे दागधब्बे भी छोड़ जाते हैं.

7. सन ऐक्स्पोजर:

तेज धूप में ज्यादा समय तक रहने से भी मुंहासों की समस्या होती है. तेज धूप न सिर्फ टैनिंग की समस्या पैदा करती है, बल्कि इस से स्किन भी ज्यादा ड्राई हो जाती है. इस से त्वचा में औयल बढ़ता है और मुंहासे ज्यादा होने लगते हैं. अत: तेज धूप में निकलने से पहले चेहरे को हमेशा कवर कर लें या फिर सनस्क्रीन लगा कर ही निकलें.

8. तनावग्रस्त रहना:

जिन्हें मुंहासों की समस्या हो उन के लिए तनाव लेना हानिकारक साबित हो सकता है, क्योंकि तनाव से मुंहासे और ज्यादा बढ़ते हैं. तनाव से बचने के लिए हर स्थिति में प्रसन्न रहना सीखना होगा. आप जितना ज्यादा खुश रहेंगी उतनी ही ज्यादा मुंहासों से दूर रहेंगी.

9. गलत खानपान:

मुंहासों की एक वजह खानपान की गलत आदत भी है. मुंहासों से बचने के लिए पौष्टिक भोजन करें. जंक फूड से बचें. फाइबरयुक्त आहार लें. वसायुक्त और तैलीय भोजन से परहेज करें. इमली, आलू, मिर्च, बैगन, कच्चा प्याज, मूली, कौफी, चाय आदि का सेवन कम से कम करें. शराब न पीएं, ग्रीन टी का सेवन करें. हर्बल फेस वाश का प्रयोग करें.

10. कम पानी पीना:

दिन में कम से कम 8-10 गिलास पानी जरूर पीएं. इस से डाइजैस्टिव सिस्टम सही रहता है, जिस से त्वचा चमकदार और बेदाग बनी रहती है. हरी सब्जियां ज्यादा लें.

रीवा की लीना : समाज की रोकटोक और बेड़ियों से रीवा और लीना आजाद हो पाई ?

डलास (टैक्सास) में लीना से रीवा की दोस्ती बड़ी अजीबोगरीब ढंग से हुई थी. मार्च महीने के शुरुआती दिन थे. ठंड की वापसी हो रही थी. प्रकृति ने इंद्रधनुषी फूलों की चुनरी ओढ़ ली थी. घर से थोड़ी दूर पर झील के किनारे बने लोहे की बैंच पर बैठ कर धूप तापने के साथ चारों ओर प्रकृति की फैली हुई अनुपम सुंदरता को रीवा अपलक निहारा करती थी. उस दिन धूप खिली हुई थी और उस का आनंद लेने को झील के किनारे के लिए दोपहर में ही निकल गई.

सड़क किनारे ही एक दक्षिण अफ्रीकी जोड़े को खुलेआम कसे आलिंगन में बंधे प्रेमालाप करते देख कर वह शरमाती, सकुचाती चौराहे की ओर तेजी से आगे बढ़ कर सड़क पार करने लगी थी कि न जाने कहां से आ कर दो बांहों ने उसे पीछे की ओर खींच लिया था.

तेजी से एक गाड़ी उस के पास से निकल गई. तब जा कर उसे एहसास हुआ कि सड़क पार करने की जल्दबाजी में नियमानुसार वह चारों दिशाओं की ओर देखना ही भूल गई थी. डर से आंखें ही मुंद गई थीं. आंखें खोलीं तो उस ने स्वयं को परी सी सुंदर, गोरीचिट्टी, कोमल सी महिला की बांहों में पाया, जो बड़े प्यार से उस के कंधों को थपथपा रही थी. अगर समय पर उस महिला ने उसे पीछे नहीं खींचा होता तो रक्त में डूबा उस का शरीर सड़क पर क्षतविक्षत हो कर पड़ा होता.

सोच कर ही वह कांप उठी और भावावेश में आ कर अपनी ही हमउम्र उस महिला से चिपक गई. अपनी दुबलीपतली बांहों में ही रीवा को लिए सड़क के किनारे बने बैंच पर ले जा कर उसे बैठाते हुए उस की कलाइयों को सहलाती रही.

‘‘ओके?’’ रीवा से उस ने बड़ी बेसब्री से पूछा तो उस ने अपने आंचल में अपना चेहरा छिपा लिया और रो पड़ी. मन का सारा डर आंसुओं में बह गया तो रीवा इंग्लिश में न जाने कितनी देर तक धन्यवाद देती रही लेकिन प्रत्युत्तर में वह मुसकराती ही रही. अपनी ओर इशारा करते हुए उस ने अपना परिचय दिया. ‘लीना, मैक्सिको.’ फिर अपने सिर को हिलाते हुए राज को बताया, ‘इंग्लिश नो’, अपनी 2 उंगलियों को उठा कर उस ने रीवा को कुछ बताने की कोशिश की, जिस का मतलब रीवा ने यही निकाला कि शायद वह 2 साल पहले ही मैक्सिको से टैक्सास आई थी. जो भी हो, इतने छोटे पल में ही रीवा लीना की हो गई थी.

लीना भी शायद बहुत खुश थी. अपनी भाषा में इशारों के साथ लगातार कुछ न कुछ बोले जा रही थी. कभी उसे अपनी दुबलीपतली बांहों में बांधती, तो कभी उस के उड़ते बालों को ठीक करती. उस शब्दहीन लाड़दुलार में रीवा को बड़ा ही आनंद आ रहा था. भाषा के अलग होने के बावजूद उन के हृदय प्यार की अनजानी सी डोर से बंध रहे थे. इतनी बड़ी दुर्घटना के बाद रीवा के पैरों में चलने की शक्ति ही कहां थी, वह तो लीना के पैरों से ही चल रही थी.

कुछ दूर चलने के बाद लीना ने एक घर की ओर उंगली से इंगित करते हुए कहा, हाउस और रीवा का हाथ पकड़ कर उस घर की ओर बढ़ गई. फिर तो रीवा न कोई प्रतिरोध कर सकी और न कोई प्रतिवाद. उस के साथ चल पड़ी. अपने घर ले जा कर लीना ने स्नैक्स के साथ कौफी पिलाई और बड़ी देर तक खुश हो कर अपनी भाषा में कुछकुछ बताती रही.

मंत्रमुग्ध हुई रीवा भी उस की बातों को ऐसे सुन रही थी मानो वह कुछ समझ रही हो. बड़े प्यार से अपनी बेटियों, दामादों एवं

3 नातिनों की तसवीरें अश्रुपूरित नेत्रों से उसे दिखाती भी जा रही थी और धाराप्रवाह बोलती भी जा रही थी. बीचबीच में एकाध शब्द इंग्लिश के होते थे जो अनजान भाषा की अंधेरी गलियारों में बिजली की तरह चमक कर राज को धैर्य बंधा जाते थे.

बच्चों को याद कर लीना के तनमन से अपार खुशियों के सागर छलक रहे थे. कैसा अजीब इत्तफाक था कि एकदूसरे की भाषा से अनजान, कहीं 2 सुदूर देश की महिलाओं की एक सी कहानी थी, एकसमान दर्द थे तो ममता ए दास्तान भी एक सी थी. बस, अंतर इतना था कि वे अपनी बेटियों के देश में रहती थी और जब चाहा मिल लेती थी या बेटियां भी अपने परिवार के साथ हमेशा आतीजाती रहती थीं.

रीवा ने भी अमेरिका में रह रही अपनी तीनों बेटियों, दामादों एवं अपनी 2 नातिनों के बारे में इशारों से ही बताया तो वह खुशी के प्रवाह में बह कर उस के गले ही लग गई. लीना ने अपने पति से रीवा को मिलवाया. रीवा को ऐसा लगा कि लीना अपने पति से अब तक की सारी बातें कह चुकी थी. सुखदुख की सरिता में डूबतेउतरते कितना वक्त पलक झपकते ही बीत गया. इशारों में ही रीवा ने घर जाने की इच्छा जताई तो वह उसे साथ लिए निकल गई.

झील का चक्कर लगाते हुए लीना रीवा को उस के घर तक छोड़ आई. बेटी से इस घटना की चर्चा नहीं करने के लिए रास्ते में ही रीवा लीना को समझा चुकी थी. रीवा की बेटी स्मिता भी लीना से मिल कर बहुत खुश हुई. जहां पर हर उम्र को नाम से ही संबोधित किया जाता है वहीं पर लीना पलभर में स्मिता की आंटी बन गई. लीना भी इस नए रिश्ते से अभिभूत हो उठी.

समय के साथ रीवा और लीना की दोस्ती से झील ही नहीं, डलास का चप्पाचप्पा भर उठा. एकदूसरे का हाथ थामे इंग्लिश के एकआध शब्दों के सहारे वे दोनों दुनियाजहान की बातें घंटों किया करते थे.

घर में जो भी व्यंजन रीवा बनाती, लीना के लिए ले जाना नहीं भूलती. लीना भी उस के लिए ड्राईफू्रट लाना कभी नहीं भूली. दोनों हाथ में हाथ डाले झील की मछलियों एवं कछुओं को निहारा करती थीं. लीना उन्हें हमेशा ब्रैड के टुकड़े खिलाया करती थी. सफेद हंस और कबूतरों की तरह पंक्षियों के समूह का आनंद भी वे दोनों खूब उठाती थीं.

उसी झील के किनारे न जाने कितने भारतीय समुदाय के लोग आते थे जिन के पास हायहैलो कहने के सिवा कुछ नहीं रहता था.

किसीकिसी घर के बाहर केले और अमरूद से भरे पेड़ बड़े मनमोहक होते थे. हाथ बढ़ा कर रीवा उन्हें छूने की कोशिश करती तो हंस कर नोनो कहती हुई लीना उस की बांहों को थाम लेती थी.

लीना के साथ जा कर रीवा ग्रौसरी शौपिंग वगैरह कर लिया करती थी. फूड मार्ट में जा कर अपनी पसंद के फल और सब्जियां ले आती थी. लाइब्रेरी से भी किताबें लाने और लौटाने के लिए रीवा को अब सप्ताहांत की राह नहीं देखनी पड़ती थी. जब चाहा लीना के साथ निकल गई. हर रविवार को लीना रीवा को डलास के किसी न किसी दर्शनीय स्थल पर अवश्य ही ले जाती थी जहां पर वे दोनों खूब ही मस्ती किया करती थीं.

हाईलैंड पार्क में कभी वे दोनों मूर्तियों से सजे बड़ेबड़े महलों को निहारा करती थीं तो कभी दिन में ही बिजली की लडि़यों से सजे अरबपतियों के घरों को देख कर बच्चों की तरह किलकारियां भरती थीं. जीवंत मूर्तियों से लिपट कर न जाने उन्होंने एकदूसरे की कितनी तसवीरें ली होंगी.

पीले कमल से भरी हुई झील भी 10 साल की महिलाओं की बालसुलभ लीलाओं को देख कर बिहस रही होती थी. झील के किनारे बड़े से पार्क में जीवंत मूर्तियों पर रीवा मोहित हो उठी थी. लकड़ी का पुल पार कर के उस पार जाना, भूरे काले पत्थरों से बने छोटेबड़े भालुओं के साथ वे इस तरह खेलती थीं मानो दोनों का बचपन ही लौट आया हो.

स्विमिंग पूल एवं रंगबिरंगे फूलों से सजे कितने घरों के अंदर लीना रीवा को ले गई थी, जहां की सुघड़ सजावट देख कर रीवा मुग्ध हो गई थी. रीवा तो घर के लिए भी खाना पैक कर के ले जाती थी. इंडियन, अमेरिकन, मैक्सिकन, अफ्रीका आदि समुदाय के लोग बिना किसी भेदभाव के खाने का लुत्फ उठाते थे.

लीना के साथ रीवा ने ट्रेन में सैर कर के खूब आनंद उठाया था. भारी ट्रैफिक होने के बावजूद लीना रीवा को उस स्थान पर ले गई जहां अमेरिकन प्रैसिडैंट जौन कैनेडी की हत्या हुई थी. उस लाइब्रेरी में भी ले गई जहां पर उन की हत्या के षड्यंत्र रचे गए थे.

ऐेसे तो इन सारे स्थलों पर अनेक बार रीवा आ चुकी थी पर लीना के साथ आना उत्साह व उमंग से भर देता था. इंडियन स्टोर के पास ही लीना का मैक्सिकन रैस्तरां था. जहां खाने वालों की कतार शाम से पहले ही लग जाती थी. जब भी रीवा उधर आती, लीना चीपोटल पैक कर के देना नहीं भूलती थी.

मैक्सिकन रैस्तरां में रीवा ने जितना चीपोटल नहीं खाया होगा उतने चाट, पकौड़े, समोसे, जलेबी लीना ने इंडियन रैस्तरां में खाए थे. ऐसा कोई स्टारबक्स नहीं होगा जहां उन दोनों ने कौफी का आनंद नहीं उठाया. डलास का शायद ही ऐसा कोई दर्शनीय स्थल होगा जहां के नजारों का आनंद उन दोनों ने नहीं लिया था.

मौल्स में वे जीभर कर चहलकदमी किया करती थीं. नए साल के आगमन के उपलक्ष्य में मौल के अंदर ही टैक्सास का सब से बड़ा क्रिसमस ट्री सजाया गया था. जिस के चारों और बिछे हुए स्नो पर सभी स्कीइंग कर रहे थे. रीवा और लीना बच्चों की तरह किलस कर यह सब देख रही थीं.

कैसी अनोखी दास्तान थी कि कुछ शब्दों के सहारे लीना और रीवा ने दोस्ती का एक लंबा समय जी लिया. जहां भी शब्दों पर अटकती थीं, इशारों से काम चला लेती थीं.

समय का पखेरू पंख लगा कर उड़ गया. हफ्ताभर बाद ही रीवा को इंडिया लौटना था. लीना के दुख का ठिकाना नहीं था. उस की नाजुक कलाइयों को थाम कर रीवा ने जीभर कर आंसू बहाए, उस में अपनी बेटियों से बिछुड़ने की असहनीय वेदना भी थी. लौटने के एक दिन पहले रीवा और लीना उसी झील के किनारे हाथों में हाथ दिए घंटाभर बैठी रहीं. दोनों के बीच पसरा हुआ मौन तब कितना मुखर हो उठा था. ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उस की अनंत प्रतिध्वनियां उन दोनों से टकरा कर चारों ओर बिखर रही हों.

दोनों के नेत्रों से अश्रुधारा प्रवाहित हो रही थी. शब्द थे ही नहीं कि जिन्हें उच्चारित कर के दोस्ती के जलधार को बांध सकें. प्रेमप्रीत की शब्दहीन सरिता बहती रही. समय के इतने लंबे प्रवाह में उन्हें कभी भी एकदूसरे की भाषा नहीं जानने के कारण कोई असुविधा हुई हो, ऐसा कभी नहीं लगा. एकदूसरे की आंखों में झांक कर ही वे सबकुछ जान लिया करती थीं. दोस्ती की अजीब पर अतिसुंदर दास्तान थी. कभी रूठनेमनाने के अवसर ही नहीं आए. हंसी से खिले रहे.

एकदूसरे से विदा लेने का वक्त आ गया था. लीना ने अपने पर्स से सफेद धवल शौल निकाल कर रीवा को उठाते हुए गले में डाला, तो रीवा ने भी अपनी कलाइयों से रंगबिरंगी चूडि़यों को निकाल लीना की गोरी कलाइयों में पहना दिया जिसे पहन कर वह निहाल हो उठी थी. मूक मित्रता के बीच उपहारों के आदानप्रदान देख कर निश्चय ही डलास की वह मूक मगर चंचल झील रो पड़ी होगी.

भीगी पलकों एवं हृदय में एकदूसरे के लिए बेशुमार शुभकामनाओं को लिए हुए दोनों ने एकदूसरे से विदाई तो ली पर अलविदा नहीं कहा.

हेयर ग्रोथ सेगमेंट में सोलफ्लावर भारत में अग्रणी : नताशा तुली, सीईओ, सोलफ्लावर

सोलफ्लावर कंपनी की सह संस्थापिका और सीईओ नताशा तुली एक जाना माना नाम है जिन्होंने ब्रेन हेमरेज जैसी समस्या से जूझने के बावजूद अपने काम पर फोकस किया और आज वह एक ऐसे मुकाम पर हैं जहां उन की कंपनी के हेयर और स्किन केयर प्रोडक्ट्स लोगों में काफी पौपुलर है. उन्होंने 2001 में सोलफ्लावर की स्थापना की थी. वह बताती हैं कि उस समय विदेशी प्रोडक्ट्स काफी पौपुलर थे मगर नेचुरल चीजों का उपयोग कम होता था. तब उन्होंने सोचा कि हमारे देश में जब इतनी नेचुरल चीजें हैं जो तरह-तरह के फायदे दे सकती हैं तो क्यों ना उस नौलेज का उपयोग करते हुए एक ऐसे नेचुरल हेयर ग्रोथ ब्रांड की शुरुआत की जाए जो बिना केमिकल का प्रयोग किए लोगों की समस्याओं का समाधान कर सके. नताशा तुली की जिंदगी और उनकी कंपनी के बारे में जानने के लिए हमने कुछ सवाल किये;

ब्यूटी प्रोडक्ट्स बनाने के लिए आप ने जानकारी कहां से ली? –

हमारे पास खुद की लैब है, साइंटिस्ट, डर्मेटोलौजिस्ट, केमिस्ट और टेक्नीशियन है जो हमारे साथ काम करते हैं. इसके अलावा मैंने दादी से और फैमिली से भी बहुत कुछ सीखा. मुझे इस फील्ड में रुचि थी. मेरी पढ़ाई भी कुछ ऐसी ही थी इसलिए मुझे सहूलियत हुई. कंपनी का पूरा सेटअप तैयार करने में 6 महीने तक का समय लग गया था. फ्लिपकार्ट, अमेजान, नायका, फार्मेसी आदि में हमारे प्रोडक्ट्स की बिक्री होती है. औनलाइन हमारे वेबसाइट soulflower.in के द्वारा भी आप प्रोडक्ट्स खरीद सकते हैं.

आपकी कंपनी के सबसे ज्यादा कामयाब प्रोडक्ट क्या है?

रोजमेरी एसेंशियल औइल हमारा सब से कामयाब प्रोडक्ट है. इसके अलावा हेयर ग्रोथ ऑइल्स, हैंडमेड सोप्स, एसेंशियल औइल्स वगैरह हमारे खास प्रोडक्ट्स हैं. हमारे प्रोडक्ट्स प्रेगनेंट महिलाएं, पोस्ट प्रेगनेंसी वाली महिलाएं और कैंसर पेशेंट वगैरह ज्यादा यूज करते हैं क्योंकि ये केमिकल फ्री प्रोडक्ट्स हैं. इंडिया में वैसे भी 36% लोगों को बाल झड़ने की समस्या का सामना करना पड़ता है जिसमें हमारे प्रोडक्ट्स बेहतर रिजल्ट देते हैं.

महिलाओं को ब्यूटी प्रोडक्ट लेते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

ब्यूटी प्रोडक्ट लेने से पहले रिसर्च करना चाहिए और लेबल जरूर पढ़ना चाहिए कि ब्रांड कैसा है, कहां बिक रहा है. रिव्यूज पढ़ने चाहिए और जानकारी लेनी चाहिए कि उस प्रोडक्ट में केमिकल्स है या नहीं और कोई साइड इफेक्ट तो नहीं.

क्या आप अपनी एनर्जी सोशल सर्विस में भी लगाती हैं?

हम दिन में 300 कुत्तों को रोजाना खाना खिलाते हैं. हमारे एक प्रोडक्ट को खरीदने पर एक जानवर को खाना खिलाया जाता है. हम अधिक से अधिक महिलाओं को काम देने की कोशिश करते हैं.

सैक्स लाइफ को बर्बाद कर सकता है बढ़ता वजन

लोग स्लिमट्रीम  दिखने के लिए न जाने क्याक्या उपाय अपनाते हैं, लेकिन गलत खानपान और बदलती लाइफस्टाइल के कारण लोग तेजी से मोटापे के शिकार हो रहे हैं. शरीर में जमे फैट्स के कारण कई गंभीर बीमारियां होती हैं, इसके अलावा मोटापा सैक्स लाइफ को भी प्रभावित करता है. जी हां, जो लोग ओवरवेट हैं, उनकी सैक्स लाइफ बेहतर नहीं हो पाती.

Medium shot people relaxing together

पुरुष हो या महिला मोटापा दोनों के सैक्स करने के दौरान परेशान कर सकता है. कई रिसर्च में भी यह बात सामने आई है कि मोटापा सैक्सुअल लाइफ को इफैक्ट कर सकता है. आइए जानें कि इससे सैक्सुअल लाइफ कैसे प्रभावित होती है.

सैक्स को मोटापा कैसे करता है प्रभावित

जिन लोगों को मोटापे की समस्या होती है, उनका सैक्सुअल डिजायर कम हो सकता है. इसका सबसे बड़ा कारण है, टेस्टोस्टेरोन का कम स्तर होना, जो सैक्सुअल फंक्शन पर असर डालता है. किसी व्यक्ती का वजन सामान्य से ज्यादा होता है, तो शरीर में ग्लोब्यूलिन का स्तर बढ़ जाता है. यह सैक्स हार्मोन को प्रभावित करता है. इससे व्यक्ती में कामेच्छा घटने लगती है.

संबंध बनाने में होती है परेशानी

वजन बढ़ने के कारण महिलाओं में भी कोलेस्ट्राल और इंसुलिन का बिगड़ता स्तर ब्लड वेसल्स में ब्लाकेज पैदा कर देता है. जिसकी वजह से योनि तक रक्त प्रवाह धीमा हो जाता है. जिससे सैक्स के दौरान महिलाएं एंजौय नहीं कर पाती और संबंध बनाने में समस्या होती है.

पोजीशन ट्राई करने में समस्या

आमतौर पर कपल्स सैक्स का आनंद लेने के लिए तरहतरह के पोजिशन ट्राई करते हैं. लेकिन दोनों या दोनों में से किसी एक का वजन अधिक हो, तो ऐसा कर पाना मुश्किल होता है. पार्टनर के बेहद करीब जाने के लिए स्ट्रौंग रिलेशनशिप बनाने के लिए सैक्सुअल लाइफ का बेहतर होना बहुत जरूरी है, लेकिन कई बार असहज महसूस होने पर भी दूसरे को खुश करने में कोई कसर नहीं छोड़ते भले ही आपको चरम सुख की प्रप्ति नहीं हो पाती.

इंटिमेसी के दौरान जल्दी थक जाना

जिन लोगों को मोटापे की समस्या है, वो इंटेमेसी के दौरान जल्दी थक सकते हैं. जिससे सैक्स ड्राइव के दौरान संतुष्ट नहीं हो पाते हैं. कई बार इंटरनल इंजरी का भी खतरा हो सकता है.

तनाव की समस्या

मोटापे के कारण शारीरिक परेशानियां तो होती ही हैं, साथ ही मैंटल हैल्थ भी प्रभावित होता है. कई लोगों की शिकायत होती है कि उस का पति या पत्नी सेक्स के लिए इच्छुक नहीं होते, हमेशा कटेकटे रहते हैं. ऐसे कपल्स का जीवन तनाव भरा रहता है

कैसी होती है अमेरिका में बेघरों की जिंदगी

चारों तरफ साफसुथरा, चमचमाती कारें, सुंदर वातावरण, पेङपौधों से भरी सड़कें, बड़ीबड़ी शीशे की खिड़की वाले बिल्डिंग्स का शहर पोर्टलेंड जो ओरेगान में स्थित है, इस की खूबसूरती देखते ही बनती है.

इस शहर में होमलेस यानि बेघरों की संख्या बहुत अधिक है. जहां कहीं भी आप जाते है, ऐसे बेघर लोग देखने को मिल जाते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि अमेरिका में बेघर लोग कैसे रहते हैं? क्या वे भारत की तरह ही सड़क किनारे, स्टेशन, प्लेटफौर्म या सबवे के किनारे गंदी हालात में सोते रहते हैं? भारत में ऐसे लोगों की संख्या काफी ज्यादा है, जिन के पास रहने को घर नहीं है और वे बेघर हैं.

वैसे यह स्थिति अमेरिका में भी है और अमेरिका में भी बेघर लोग हैं, जिन के पास रहने को घर नहीं है. मगर क्या आप जानते हैं कि अमेरिका में जिन लोगों के पास घर नहीं है, वे लोग कहां रहते हैं? क्या वहां उन के लिए कोई अलग व्यवस्था की जाती है या फिर वे ऐसे ही भारत की तरह यहांवहां गंदगी में रहते हैं?

तो फिर जानिए कि अमेरिका में बेघर लोगों की संख्या क्यों बढ़ रही है और ये कैसे रहते हैं :

अमेरिका में होमलेस की शुरुआत

1640 के दशक में अमेरिकी उपनिवेशों में बेघर होने के शुरुआती मामले दर्ज किए गए. वर्ष 1670 के दशक में न्यू इंगलैंड में ‘किंग फिलिप्स वार’ के दौरान
अंगरेजी उपनिवेशवादी और मूल निवासी बेघर हो गए, जो यहां बसने वाले अंगरेजों को बाहर निकालने के लिए स्वदेशी लोगों द्वारा किया गया अंतिम बड़ा प्रयास था.

गृहयुद्ध के कुछ कम होने के बाद ही होमलेस लोगों पर सब का ध्यान गया और बेघरपन पहली बार 1870 के दशक में एक राष्ट्रीय मुद्दा बन गया,  जिस का प्रभाव आज भी देखने को मिलता है. इस के अलावा राष्ट्रीय रेल प्रणाली के निर्माण, शहरीकरण, औद्योगिकीकरण और गतिशीलता की सुविधा के कारण नौकरियों की तलाश में ‘रेल की सवारी’ करने वाले आवारा लोगों का उदय हुआ. इतना ही नहीं 1870 के दशक में पहली बार संयुक्त राज्य अमेरिका में ‘बेघर’शब्द का इस्तेमाल किया गया, जिस का मतलब था काम की तलाश में देशभर में घूमने वाले घुमक्कड़, आवारा लोगों का वर्णन करना, जो इस देश का उभरता हुआ एक नैतिक संकट था.

आज बेघर होने की खास वजह

रिसर्च बताती है कि बेघरों में अधिकतर अमेरिका के मूल निवासी होते हैं. इन में कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो शुरू से बेघर नहीं होते, लेकिन कभी वे अच्छा कमाते और घरों में रहते थे. किसी कारणवश काम छूट जाने की वजह से वे घर का किराया भर नहीं पाते और सड़क पर आ जाते। ऐसे में गरीबी और किफायती
आवास की कमी 2 प्रमुख कारक यहां मुख्य हैं और ये सामाजिक चुनौतियां हैं.

इस के अलावा रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इलाज में मुश्किल मनोरोग संबंधी समस्याएं और मादक द्रव्यों के सेवन से होने वाले विकार भी अकसर दीर्घकालिक बेघर होने का कारण बनते हैं.

है बड़ा संकट

दरअसल, अमेरिका में आवासहीन लोगों का गहरा संकट है. इस संकट में वे लोग आते हैं, जिन के पास न तो रहने के लिए घर है और न ही सिर छिपाने के लिए कोई स्थायी जगह. अगर ऐसे लोगों की संख्या की बात करें, तो अमेरिका में इन लोगों की संख्या लाखों में है.

रिपोर्ट्स के अनुसार, अमेरिका में बेघर लोगों की कुल संख्या 2 लाख 26 हजार है. इन में अधिकतर लोग अकेले ही रहते हैं और उन की संख्या 2 लाख 9 हजार के करीब है. वहीं, करीब 17 हजार लोग ऐसे हैं, जो पूरे परिवार के साथ हैं. इस का मतलब है वे परिवार के साथ रहते हैं और पूरे परिवार के पास रहने की जगह नहीं है. अब सवाल यह है कि आखिर इतने लाखों लोग अमेरिका में रहते किस तरह से हैं.

कोरोना महामारी के बाद से ऐसे लोगों की संख्या में इजाफा हुआ है और अब बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जिन के पास रहने के लिए कोई ठिकाना नहीं है. वर्ष 2023 में, न्यूयार्क में देश की सब से बड़ी बेघर आबादी रही, जो तकरीबन 88,025 रही, इस के बाद लास ऐंजल्स 71,320, सियाटेल 14,149, सेंडि यागो 10,264, मैट्रोपौलिटन डेनवर 10,054 औकलैंड 9,759, सैन फ्रांसिस्को 7,582 आदि हैं, जिन में कैलिफोर्निया में इन होमलेस की संख्या के साथसाथ उन की दशा भी गंभीर है.

यूनाइटेड हाउजिंग ऐंड अर्बन डेवलपमैंट ने भी माना है कि बढ़ते किराए ने अमेरिकियों के लिए असाधारण रूप से चुनौतीपूर्ण स्थिति पैदा कर दी है और इस से बेघरों की संख्या में वृद्धि हुई है.

मिलती हैं सभी सुविधाएं

सरकार की तरफ से कई संस्थाएं होती हैं, जो बेघरों के रहने और खाने की व्यवस्था करती है. इन्हें सरकार नियुक्त करती है, इन में काम करने वाले अधिकतर युवा होते हैं.

एक संस्था में काम करने वाले स्मिथ कहते है कि उन्हें इस तरह के काम पसंद है, क्योंकि बेघरों के लिए काम करने पर उन्हें सरकारी नौकरी मिलने में आसानी होती है, साथ ही कुछ पैसे भी उन्हें मिल जाते हैं. स्मिथ आगे कहते हैं कि बेघरों को रहने के लिए अच्छा स्थान मिल जाता है. जहां उन्हे बेसिक फैसिलिटी के साथसाथ पर्मानैंट शेल्टर, भोजन, मैडिकल की व्यवस्था, कचरे की साफसफाई की पूरी व्यवस्था होती है. इन्हें भरपेट खाना खिलाने वाली भी कई संस्थाएं हैं, जिन की जिम्मेदारी उन्हें अच्छा और पौष्टिक
भोजन देने की होती है.

शेल्टर फौर द अर्बन होमलेस की गाइडलाइंस के अनुसार, सोशल सिक्युरिटी, फूड, शिक्षा, हेल्थ केयर और उनके बच्चों के लिए शिक्षा आदि का उन्हें हक मिलता है और ये उन्हें दिया जाता है, लेकिन कुछ समस्या इन के साथ होती है, जिन्हें संभालना आज मुश्किल हो रहा है, क्योंकि चीजों के दाम आसमान छू रहे हैं और नौकरियां कम हैं। अगर नौकरी मिलती भी है तो सैलरी कम है, इतनी महंगाई में पेट भरना मुश्किल हो जाता है।

नशे के आदी

वहां रहने वाले मानते हैं कि ये होमलेस अधिकतर नशे के शिकार होते हैं, दिनभर उन्हें हाथ में कार्ड बोर्ड पर लिखा ‘एनी वन केन हैल्प मी’ या ‘लौस्ट माई जौब’ के द्वारा जो भी पैसे मिलते हैं, उन्हें वे ड्रग्स लेने में खर्च कर डालते हैं, जिस से कई बार वे आक्रामक हो उठते हैं, जिस का डर आम इंसान को होता है. अगर उन्हें भूख लगती है, तो डस्टबिन में फेंके गए भोजन को उठा कर पेट भर लेते हैं. कई बार ये लोग एक पुरानी वाद्ययंत्र ले कर गाना गाते और बजाते हैं, जिस से भी उन्हें कुछ पैसे मिलते हैं.

होमलेस और एचआईवी या एड्स महामारी

1980 के दशक में बेघर लोगों की संख्या में वृद्धि करने वाला एक और प्रमुख कारक एचआईवी/एड्स महामारी थी. कुलहेन और सहकर्मियों (वर्ष 2001) ने फिलाडेल्फिया शहर से डेटा प्रस्तुत किया, जो दर्शाता है कि 2 स्थितियां, एड्स और बेघर होना, अकसर एकसाथ होती हैं (कुलहेन एट अल, 2001, पृष्ठ 515).

आश्रय उपयोगकर्ता जो पुरुष थे, मादक द्रव्यों के सेवन करने वाले थे और जिन्हें गंभीर मानसिक बीमारी डाइग्नोसिस की गई थी, उन में अकसर जोखिम भरे व्यवहार जैसे कि इंट्रावेनस दवा के उपयोग के लिए सुइयों को साझा करने के कारण कईयों में एड्स की बीमारी डाइग्नोसिस की गई (कुलहेन एट अल.म, 2001).

लेखकों ने यह भी नोट किया कि फिलाडेल्फिया आश्रय उपयोगकर्ताओं में सामान्य आबादी की तुलना में एड्स होने का जोखिम 9 गुना अधिक थी.

मानसिक बीमारी

बदबूदार कपड़ों के साथ ये यहांवहां घूमने वाले पुरुष और महिला मानसिक बीमारी के भी शिकार होते हैं, इन की ये आबादी पूरे दिन कहीं सड़कों के किनारे, बसों या ट्रेनों की प्लेटफौर्म या लाईब्रेरी आदि जगहों पर बिताते हैं, जिस की वजह से ये सड़कों या आसपास की गलियों को गंदा भी करते हैं, लेकिन इन्हें कोई कुछ नहीं कह सकता, क्योंकि यहां हर किसी को जीने की स्वतंत्रता है.

इस प्रकार देखा जाए, तो भले ही ये लोग बेघर हों, लेकिन इन की जिंदगी मुंबई की धारावी चाल में रहने वाले की जिंदगी से काफी बेहतर है, जहां उन की बुनियादी जरूरतों को ध्यान में रखा जाता है.

Hina Khan ने शेयर किया हैल्थ अपडेट, फैंस से की ये रिक्वैस्ट

पौपुलर टीवी सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ से अक्षरा के रूप में अपनी खास पहचान बनाने वाली ऐक्ट्रैस हिना खान आजकल अपनी हेल्थ को लेकर चर्चा में है. हाल ही में उन्होंने हेल्थ को लेकर सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर किया है, जो वायरल हो रहा है.

कैंसर की जंग

हिना खान ने लेटेस्ट वीडियो में अपनी कैंसर से चल रही जंग के बारे में खुलकर बात की है. उन्होंने बताया
कि वो पांचवी कीमोथेरेपी पूरी कर चुकी है, लेकिन उनकी जंग अभी खत्म नहीं हुई है, क्योंकि अभी 3 और कीमोथेरेपी बाकी है. ऐसे में अब उनके आने वाले दिन और भी ज्यादा कठिन होने वाले हैं.अगर सबकुछ ठीक रहा तो वो कैंसर को मात दे देंगी.

फैंस के साथ शेयर किए हेल्थ अपडेट्स

आपको बता दे जून में हिना खान ने इंस्टाग्राम पोस्ट के जरिए अपनी हेल्थ के बारे में बताया था कि वह ब्रैस्ट कैंसर से जूझ रही हैं. अब तक उन्होंने अपनी बीमारी से लेकर इलाज तक, सारे अपडेट्स अपने फैंस के साथ शेयर किए हैं. ऐसे में एक बार फिर उन्होंने वीडियो के जरिए अपना हाल बयां किया कि उनकी 3 कीमोथेरेपी बची हुई है. इस दौरान उन्हें बहुत दर्द से गुजरना पड़ता है. ऐसे में वो सोशल मीडिया से दूर हो जाती हैं. जब हिना कुछ ठीक होती हैं तो वह फैंस को अपना हाल बताने सोशल मीडिया के जरिए आ जाती है. इसलिए वो अपना हाल बता रही है. उन्होंने कहा, कुछ दिन अच्छे होते हैं जैसे कि आज का दिन अच्छा है. मैं अच्छा महसूस कर रही हूं, बेहतर महसूस कर रही हूं और सब ठीक है.

पहले भी किया हाल बयां

इससे पहले भी हिना खान अपनी हेल्थ के कई वीडियो शेयर कर चुकी हैं जिसमें उन्होंने बताया कि
कैंसर की बीमारी में बाल झड़ जाते हैं, इसलिए उन्होंने अपने बालों को पहले ही हटा दिया और अब वो विग लगाती हैं. उन्होंने कहा जब बाल गिरते हैं, तब खुद को मेंटली संभालना बहुत मुश्किल हो जाता है, अब धीरे-धीरे सामान्य होने की कोशिश चल रही है.

फैंस से किया रिक्वैस्ट

हिना ने कहा कि आप सब दुआ करते रहें. यह एक दौर है. यह बीत जाएगा, गुजरना ही चाहिए. मैं बिल्कुल ठीक हो जाऊंगी. मुझे भगवान पर पूरा भरोसा है और मैं लड़ रही हूं.

फ्रैंड्स और कोस्टार के कमेंट्स

हिना खान के हेल्थ अपडेट की पोस्ट पर उनके कई फ्रेंड्स और कोस्टार्स ने कमेंट किया है.
एक्ट्रेस रश्मि देसाई ने कमेंट करते हुए लिखा कि तुम्हारे पिता का आशीर्वाद तुम्हारे साथ है और तुम एक मजबूत योद्धा हो. तुम बहुत प्यारी लग रही हो. यह दिन भी गुजर जाएगा, मैं हर रोज प्रार्थना करती हूं और तुमसे प्यार करती हूं.

रुबीना दिलैक ने लिखा, लौट्स औफ लव

वही ऐक्ट्रैस आरती सिंह ने लिखा कि आप हमारी प्रार्थनाओं में हैं. हर कोई प्रार्थना कर रहा है. आप भगवान के पसंदीदा बच्चे हैं. इसके अलावा ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ सीरियल में उनकी मां का रोल निभा चुकी लता ने भी उन पर प्यार बरसाया. हिना के फैंस भी उनकी हेल्थ को लेकर परेशान हैं और उनके लिए दिल से दुआ कर रहे हैं कि वो जल्दी स्वस्थ हो.

क्या फिर से मां बनने वाली हैं करीना कपूर खान? ऐक्ट्रैस ने दिया ये मजेदार जवाब

बौलीवुड हीरोइन को इतना फिट एंड फाइन रहना पड़ता है कि अगर उनके फिगर में जरा सा भी फर्क आ जाए तो वो सबको दिखने लगता है. उनका थोड़ा सा भी निकला हुआ पेट कई सारी अफवाहें को जन्म दे देता है. ऐसा ही कुछ हाल बौलीवुड दीवा करीना कपूर खान के साथ हो गया. हाल ही में करीना कपूर कई जगह पर दिखाई दी जहां पर फोटोस के दौरान उनका बेबी बंप दिखाई दिया .

इसके बाद कई लोगों ने यह अंदाजा लगा लिया कि करीना कपूर खान तीसरी बार प्रेग्नेंट है. इस खबर के चलते करीना बुरी तरह ट्रोल होने लगी और सोशल मीडिया पर लोग उनको तरहतरह की राय भी देने लगे.

लेकिन करीना कपूर खान ने ना सिर्फ सोशल मीडिया पर आकर बल्कि हाल ही में उनकी जल्दी ही रिलीज होने वाली फिल्म बकिंघम मर्डर्स के ट्रेलर लौन्च में आकर अपने गर्भवती होने की खबर को पूरी तरह खारिज कर दिया.

करीना के अनुसार वो गर्भवती नहीं है , बल्कि उनका पेट फास्ट फूड , वाइन और पास्ता ज्यादा खाने की वजह से बाहर आ गया है. करीना कपूर ने मजाकिया अंदाज में कहा अरे यार हम लोग भले ही एक्ट्रैस है . लेकिन हमें भी कभीकभी अपनी पसंद का खाने का हक है. ऐसे में अगर थोड़ा पेट बाहर आ जाता है तो इसका मतलब प्रेग्नेंट होना ही नहीं होता.

वर्क फ्रंट की बात करें तो निर्मात्री और एक्ट्रेस करीना कपूर खान जासूसी फिल्म बंकिमघम मर्डरस लेकर आ रही है. जो हिंदी और इंग्लिश दो भाषाओं में बनी है. और 13 सितंबर 2024 को रिलीज होने जा रही है . इस फिल्म में अपने रफ ऐंड टफ रोल को लेकर करीना बेहद खुश भी है.

बौयफ्रैंड से अब बात करने का मन नहीं करता, किसी दूसरे लड़के को पसंद करने लगी हूं…

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं कौलेज गोइंग गर्ल हूं, मेरा एक बौयफ्रैंड है, हम स्कूल टाइम से एक साथ है. यों कहें तो 7 सालों का हमारा रिलेशनशिप है. लेकिन कुछ दिनों से कौलेज में एक लड़का मुझे पसंद आने लगा है. मैं उससे बात भी करती हूं , ज्यादा समय उसी के साथ बिताती हूं. बौयफ्रैंड से अब बात करने का मन नहीं करता है. समझ नहीं आ रहा इस सिचुएशन को कैसे हैंडिल करूं?

Young couple together walking in an autumn park

जवाब

देखिए जैसा कि आप कह रही हैं कि आप पहले से ही एक लड़के के साथ रिलेशनशिप में है. जो सात साल पुराना है और आप ये भी बता रही हैं कि कौलेज में एक लड़का अभी आपको पसंद भी आ रहा है. इस उम्र में ये समस्या आम है. दरअसल, इस उम्र में इनफैचुएशन भी होता है.

Couple in a summer park. People with vintage bicycle. Girl in a hat.

क्या है इनफैचुएशन

कई बार लोग इनफैचुएशन को लोग प्यार समझने की भुल कर देते हैं. आइए जानते हैं प्यार और इनफैचुएशन में क्या फर्क है? रिलेशनशिप एक्सपर्ट्स के अनुसार किसी व्यक्ती के मन में किसी दूसरे व्यक्ती के लिए इनफैचुएशन या लगाव की भावना होती है, तो उसके लिए दिमाग में बनने वाला कैमिकल जिम्मेदार होता है.

दोनों लोगों को रिश्ते की शुरूआत में अपने पार्टनर में कोई गलती नजर नहीं आती है. कई बार लगता है कि उसके लिए दिल में प्यार है उस वजह से वो ऐसा महसूस कर रहा है, लेकिन ऐसा नहीं होता. कई बार बाहरी खूबसूरती के कारण इंसान अट्रैक्ट हो जाता है. ऐसी भावना इनफैचुएशन कहा जाता है. प्यार एक बहुत ही खूबसूरत अहसास है, इसमें प्यार के अलावा केयरिंग, एकदूसरे की सुखदुख में शामिल होना, हर कदम पर साथ देना… प्यार की कोई ठोस परिभाषा नहीं है. लोग अपने प्यार के लिए बहुत कुछ करते हैं.

आपका तो बचपन का प्यार है, आप उस लड़के को अच्छे से जानती होंगी. अगर आपकी बौन्डिग उसके साथ बनती है, तो किसी दूसरे अजनबी लड़के पर भरोसा करना सही नहीं है.

जब कपल के बीच बढ़ जाएं दूरियां

कम्युनिकेशन से रिलेशन को स्ट्रांग बनाने में मदद मिलती है. इसलिए अपने पार्टनर के साथ खुलकर बातचीत करें. एक दूसरे की ज़रूरतें और परेशानियों को सुनें और उनका साथ दें. रिलेशिप के लिए फिजिकल अफेक्शन बेहद जरूरी होता है. अपने पार्टनर के साथ कडल्स करें और उन्हें इंपौर्टेंट होने का एहसास दिलाएं. यह चीजें आपके रोमांस को अच्छा रखने में मदद करती है.

अपने पार्टनर को एहसास दिलाते रहे कि आप उनसे कितना प्यार करते हैं इसके लिए आप उन्हें बोलकर, लेटर लिखकर या गिफ्ट्स के माध्यम से भी बता सकती हैं.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर पर 9650966493 भेजें. 

या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

प्रेम का निजी स्वाद : महिमा की जिंदगी में क्यों थी प्यार की कमी

प्रेम… कहनेसुनने और देखनेपढ़ने में यह जितना आसान शब्द है, समझने में उतना ही कठिन. कठिन से भी एक कदम आगे कहूं तो यह कि यह समझ से परे की शै है. इसे तो केवल महसूस किया जा सकता है.

दुनिया का यह शायद पहला शब्द होगा जिस के एहसास से मूक पशुपक्षी और पेड़पौधे तक वाकिफ हैं. बावजूद इस के, इस की कोई तय परिभाषा नहीं है. अब ऐसे एहसास को अजूबा न कहें तो क्या कहें?

बड़ा ढीठ होता है यह प्रेम. न उम्र देखे न जाति. न सामाजिक स्तर न शक्लसूरत. न शिक्षा न पेशा. बस, हो गया तो हो गया. क्या कीजिएगा. तन पर तो वश चल सकता है, उस पर बंधन भी लगाया जा सकता है लेकिन मन को लगाम कैसे लगे? सात घोड़ों पर सवार हो कर दिलबर के चौबारे पहुंच जाए, तो फिर मलते रहिए अपनी हथेलियां.

महिमा भी आजकल इसी तरह बेबसी में अपनी हथेलियां मसलती रहती है. जबजब वतन उस के सामने आता है, वह तड़प उठती है. एक निगाह अपने पति कमल की तरफ डालती और दूसरी वतन पर जा कर टिक जाती है.

ऐसा नहीं है कि कमल से उसे कोई शिकायत रही थी. एक अच्छे पति होने के तमाम गुण कमल में मौजूद हैं. न होते तो क्या पापा अपने जिगर का टुकड़ा उसे सौंपते? लेकिन क्या भौतिक संपन्नता ही एक आधार होता है संतुष्टि का? मन की संतुष्टि कोई माने नहीं रखती? अवश्य रखती है, तभी तो बाहर से सातों सुखों की मालकिन दिखने वाली महिमा भीतर से कितनी याचक थी.

महिमा कभीकभी बहुत सोचती है प्रेम के विषय में. यदि वतन उस की जिंदगी में न आता तो वह कभी इस अलौकिक एहसास से परिचित ही न हो पाती. अधिकांश लोगों की तरह वह भी इस के सतही रूप को ही सार्थक मानती रहती. लेकिन वतन उस की जिंदगी में आया कहां था? वह तो लाया गया था. या कहिए कि धकेला गया था उस की तनहाइयों में.

कमल को जब लगने लगा कि अपनी व्यस्तता के चलते वह पत्नी को उस के मन की खुशी नहीं दे पा रहा है तो उस ने यह काम वतन के हवाले कर दिया. ठीक वैसे ही जैसे अपराधबोध से ग्रस्त मातापिता समय की कमी पूरी करने के लिए बच्चे को खिलौनों की खेप थमा देते हैं.

हालांकि महिमा ने अकेलेपन की कभी कोई शिकायत नहीं की थी लेकिन कमल को दिनभर उस का घर में रह कर पति का इंतजार करना ग्लानि से भर रहा था. किट्टी पार्टी, शौपिंग और सैरसपाटा महिमा की फितरत नहीं थी. फिल्में और साहित्य भी उसे बांध नहीं पाता था. ऐसे में कमल ने उसे पुराने शौक जीवित करने का सुझाव दिया. प्रस्ताव महिमा को भी जंच गया और अगले ही रविवार तरुण सपनों में खुद को संगीत की भावी मल्लिका समझने वाली महिमा ने बालकनी के एक कोने को अपनी राजधानी बना लिया. संगीत से जुड़े कुछ चित्र दीवार की शोभा बढ़ाने लगे. गमलों में लगी लताएं रेलिंग पर झूलने लगीं. ताजा फूल गुलदस्ते में सजने लगे. कुल मिला कर बालकनी का वह कोना एक महफ़िल की तरह सज गया.

महिमा ने रियाज करना शुरू कर दिया. पहलेपहल यह मद्धिम स्वर में खुद को सुनाने भर जितना ही रहा. फिर जब कुछकुछ सुर नियंत्रण में आने लगे तो एक माइक और स्पीकर की व्यवस्था भी हो गई. कॅरिओके पर गाने के लिए कुछ धुनों को मोबाइल में सहेजा गया. महिमा का दोपहर के बाद वाला समय अब बालकनी में गुजरने लगा.

कला चाहे कोई भी हो, कभी भी किसी को संपूर्णरूप से प्राप्त नहीं होती. यह तो निरंतर अभ्यास का खेल है और अभ्यास बिना गुरु के मार्गदर्शन के संभव नहीं. तभी तो कहा गया है कि गुरु बिना ज्ञान नहीं. ऐसा ही कुछ यहां भी हुआ. महिमा कुछ दिनों तो अपनेआप को बहलाती रही लेकिन फिर उसे महसूस होने लगा मानो मन के भाव रीतने लगे हैं. सुरों में एक ठंडापन सा आने लगा है. बहुत प्रयासों के बाद भी जब यह शिथिलता नहीं टूटी तो उस ने अपने रियाज को विश्राम दे दिया. जहां से चले थे, वापस वहीं पहुंच गए. महिमा फिर से ऊबने लगी.

और तब, उस की एकरसता तोड़ने के लिए कमल ने उसे वतन से मिलाया. संगीतगुरु वतन शहर में एक संगीत स्कूल चलाता है. समयसमय पर उस के विद्यार्थी स्टेज पर भी अपनी कला का प्रदर्शन करते रहते हैं. कंधे तक लंबे बालों को एक पोनी में बांधे वतन सिल्क के कुरते और सूती धोती में बेहद आकर्षक लग रहा था.

‘कौन पहनता है आजकल यह पहनावा.’ महिमा उसे देखते ही सम्मोहित सी हो गई और मन में उस के यह विचार आया. युवा जोश से भरपूर, संभावनाओं से लबरेज वतन स्वयं को संगीत का विद्यार्थी कहता था. नवाचार करना उस की फितरत, चुनौतियां लेना उस की आदत, नवीनता का झरना अनवरत उस के भीतर फूटता रहता. एक ही गीत पर अनेक कोणों से संगीत बनाने वाला वतन आते ही धूलभरे गुबार की तरह महिमा के सुरों को अपनी आगोश में लेता चला गया. महिमा तिनके की तरह उड़ने लगी.

वतन ने संगीत के 8वें सुर की तरह उस के जीवन में प्रवेश किया. महिमा की जिंदगी सुरीली हो गई. रंगों का एक वलय हर समय उसे घेरे रहता. वतन के साथ ने उस की सोच को भी नए आयाम दिए. उस ने महिमा को एहसास करवाया कि मात्र सुर-ताल के साथ गाना ही संगीत नहीं है. संगीत अपनेआप में संपूर्ण शास्त्र है.

कॅरिओके पर अभ्यास करने वाली महिमा जब वाद्ययंत्रों की सोहबत में गाने लगी तो उसे अपनी आवाज पर यकीन ही न हुआ. जब उस ने अपनी पहली रिकौर्डिंग सुनी तब उसे एहसास हुआ कि वह कितने मधुर कंठ की स्वामिनी है. पहली बार उसे अपनी आवाज से प्यार हुआ.

सुगम संगीत से ले कर शास्त्रीय संगीत तक और लोकगीतों से ले कर ग़ज़ल तक, सभीकुछ वतन इतने अच्छे से निभाता था कि महिमा के पांव हौलेहौले जमीन पर थपकी देने लगते और उस की आंखें खुद ही मुंदने लगतीं. महिमा आनंद के सागर में डूबनेउतरने लगती. उन पलों में वह ब्रह्मांड में सुदूर स्थित किसी आकाशगंगा में विचरण कर रही होती.

‘यदि संगीत को पूरी तरह से जीना है तो कम से कम किसी एक वाद्ययंत्र से दोस्ती करनी पड़ेगी. इस से सुरों पर आप की पकड़ बढती है,’ एक दिन वतन ने उस से यह कहा तो महिमा ने गिटार बजाना सीखने की मंशा जाहिर की. उस की बात सुन कर वतन मुसकरा दिया. वह खुद भी यही बजाता है.

कला की दुनिया बड़ी विचित्र होती है. यह तिलिस्म की तरह होती है. यह आप को अपने भीतर आने के लिए आमंत्रित करती है, उकसाती है, सम्मोहित करती है. यह कांटें से बांध कर खींच भी लेती है. जो इस में समा गया वह बाहर आने का रास्ता खोजना ही नहीं चाहता. महिमा भी वतन की कलाई थामे बस बहे चली जा रही थी.

गिटार पर नृत्य करती वतन की उंगलियां महिमा के दिल के तारों को भी झंकृत करने लगीं. कोई समझ ही न सका कि कब प्रेम के रेशमी धागों की गुच्छियां उलझने लगीं.

सीखना कभी भी आसान नहीं होता. चूंकि मन हमेशा आसान को अपनाने पर ही सहमत होता है, इसलिए वह सीखने की प्रक्रिया में अवरोह उत्पन्न करने लगता है और इस के कारण अकसर सीखने की प्रक्रिया बीच में ही छोड़ देने का मन बनने लगता है.

महिमा को भी गिटार सीखना दिखने में जितना आसान लग रहा था, हकीकत में उस के तारों को अपने वश में करना उतना ही कठिन था. बारबार असफल होती महिमा ने भी प्रारंभिक अभ्यास के बाद गिटार सीखने के अपने इरादे से पांव पीछे खींच लिए. लेकिन वतन अपने कमजोर विद्यार्थियों का साथ आसानी से छोड़ने वालों में न था. जब भी महिमा ढीली पड़ती, वतन इतनी सुरीली धुन छेड़ देता कि महिमा दोगुने जोश से भर उठती और अपनी उंगलियों को वतन के हवाले कर देती.

वतन जब उसे किसी युगल गीत का अभ्यास करवाता तो महिमा को लगता मानो वही इस गीत की नायिका है और वतन उस के लिए ही यह गीत गा रहा है. स्टेज पर दोनों की प्रस्तुति इतनी जीवंत होती कि देखनेसुनने वाले किसी और ही दुनिया में पहुंच जाते.

अब महिमा गिटार को साधने लगी थी. अभ्यास के लिए वतन उसे कोई नई धुन बनाने को कहता, तो महिमा सबकुछ भूल कर, बस, दिनरात उसी में खोई रहती. घर में हर समय स्वरलहरियां तैरने लगीं. कमल भी उसे खुश देख कर खुश था.

महिमा सुबह से ही दोपहर होने की प्रतीक्षा करने लगती. कमल को औफिस के लिए विदा करने के बाद वह गिटार ले कर अपने अभ्यास में जुट जाती. जैसे ही घड़ी 3 बजाती, महिमा अपना स्कूटर उठाती और वतन के संगीत स्कूल के लिए चल देती. वहां पहुंचने के बाद उसे वापसी का होश ही न रहता. घर आने के बाद कमल उसे फोन करता तब भी वह बेमन से ही लौटती.

‘काश, वतन और मैं एकदूसरे में खोए, बस, गाते ही रहें. वह गिटार बजाता रहे और मैं उस के लिए गाती रहूं.’ ऐसे खयाल कई बार उसे बेचैन कर देते थे. वह अपनी सीमाएं जानती थी. लेकिन मन कहां किसी सीमा को मानता है. वह तो, बस, प्रिय का साथ पा कर हवा हो जाता है.

‘कल एक सरप्राइज पार्टी है. एक खास मेहमान से आप सब को मिलवाना है.’ उस दिन वतन ने क्लास खत्म होने पर यह घोषणा की तो सब इस सरप्राइज का कयास लगाने लगे. महिमा हैरान थी कि इतना नजदीक होने के बाद भी वह वतन के सरप्राइज से अनजान कैसे है. घर पहुंचने के बाद भी उस का मन वहीं वतन के इर्दगिर्द ही भटक रहा था.

“क्या सरप्राइज हो सकता है?” महिमा ने कमल से पूछा.

“हो सकता है उस की शादी तय हो गई हो. अपनी मंगेतर से मिलवाना चाह रहा हो,” कमल ने हंसते हुए अपना मत जाहिर किया. सुनते ही महिमा तड़प उठी. दर्द की लहर कहीं भीतर तक चीर गई. अनायास एक अनजानीअनदेखी लड़की से उसे ईर्ष्या होने लगी. रात बहुत बेचैनी में कटी. उसे करवटें बदलते देख कर कमल भी परेशान हो गया. दूसरे दिन जब महिमा संगीत स्कूल से वापस लौटी तो बेहद खिन्न थी.

“क्या हुआ? कुछ परेशान हो? क्या सरप्राइज था?” जैसे कई सवाल कमल ने एकसाथ पूछे तो महिमा झल्ला गई.

“बहुत काली जबान है आप की. वतन अपनी मंगेतर को ही सब से मिलाने लाया था. अगले महीने उस की शादी है,” कहतेकहते उस की रुलाई लगभग फूट ही पड़ी थी. आंसू रोकने के प्रयास में उस का चेहरा टेढ़ामेढ़ा होने लगा तो वह बाथरूम में चली गई. कमल अकबकाया सा उसे देख रहा था. वह महिमा की रुलाई के कारण को कुछकुछ समझने का प्रयास कर रहा था लेकिन वह तय नहीं कर पा रहा था कि उसे आखिर करना क्या चाहिए.

स्त्रीमन अभेद्य दुर्ग सरीखा होता है. युक्ति लगा कर उस में प्रवेश पाना लगभग नामुमकिन है. लेकिन हां, अगर द्वार पर लटके ताले की चाबी किसी तरह प्राप्त हो जाए तो फिर इस की भीतरी तह तक सुगमता से पहुंचा जा सकता है. कमल को शायद अभी तक यह चाबी नहीं मिली थी.

अगले कुछ दिनों तक महिमा की क्लासेज बंद रहने वाली थीं. वतन अपनी शादी के सिलसिले में छुट्टी ले कर गया था. उस के बाद वह हनीमून पर जाने वाला था. महिमा की चिड़चिड़ाहट चरम पर थी. न ठीक से खापी रही थी न ही कमल की तरफ उस का ध्यान था. कितनी ही बार कमल ने उस का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की लेकिन महिमा के होंठों पर मुसकान नहीं ला सका. एकदो बार तो गिटार के तार छेड़ने की कोशिश भी की लेकिन महिमा ने इतनी बेदर्दी से उस के हाथ से गिटार छीना कि वह सकते में आ गया.

बीमारी यदि शरीर की हो तो दिखाई देती है, मन के रोग तो अदृश्य होते हैं. ये घुन की तरह व्यक्ति को खोखला कर देते हैं. महिमा की बीमारी जानते हुए भी कमल इलाज करने में असमर्थ था. वतन का प्यार कोई वस्तु तो थी नहीं जिसे बाजार खरीदा जा सके. दोतरफा होता, तब भी कमल किसी तरह अपने दिल पर पत्थर रख लेता. लेकिन यहां तो वतन को खबर ही नहीं है कि कोई उस के प्यार में लुटा जा रहा है.

कमल महिमा की बढ़ती दीवानगी को ले कर बहुत चिंतित था. उस ने तय किया कि वह कुछ दिनों के लिए महिमा को उस की मां के पास छोड़ आएगा. शायद जगह बदलने से ही कुछ सकारात्मक असर पड़े. बेटीदामाद को एकसाथ देखते ही मां खिल गईं. कमल सास के पांवों में झुका तो मां के मुंह से सहस्रों आशीष बह निकले.

एक दिन ठहरने के बाद कमल वापस चला गया. जातेजाते उस का उदास चेहरा मां की आंखों में तसवीर सा बस गया था. मां ने अकेले में महिमा को बहुत कुरेदा लेकिन उन के हाथ कुछ भी नहीं लगा. महिमा का उड़ाउड़ा रंग उन्हें खतरे के प्रति आगाह कर रहा था. मां महिमा के आसपास बनी रहने लगीं.

दाइयों से भी कभी पेट छिपे हैं भला? दोचार दिनों में ही मां ताड़ गईं कि मामला प्रेम का है. ऐसा प्रेम जिसे न स्वीकार करते बन रहा है और न परित्याग. लेकिन भविष्य को अनिश्चित भी तो नहीं छोड़ा जा सकता न? एक दिन जब महिमा बालकनी के कोने में कोई उदास धुन गुनगुना रही थी, मां उस के पीछे आ कर खड़ी हो गईं.

“बहुत अपसैट लग रही हो. कोई परेशानी है, तो मुझे बताओ. मां हूं तुम्हारी, तुम्हारी बेहतरी ही सोचूंगी,” मां ने महिमा के कंधे पर हाथ रख कर कहा. उन के अचानक स्पर्श से महिमा चौंक गई.

“नहीं, कुछ भी तो नहीं. यों ही, बस, जरा दिल उदास है,” महिमा ने यह कह कर उन का हाथ परे हटा दिया. मां उस के सामने आ खड़ी हुईं. उन्होंने महिमा का चेहरा अपनी हथेलियों में भर लिया और एकटक उस की आंखों में देखने लगीं. महिमा ने अपनी आंखें नीची कर लीं.

“कहते हैं कि गोद वाले बच्चे को छोड़ कर पेट वाले से आशा नहीं रखनी चाहिए. यानी, जो हासिल है उसे ही सहेज लेना चाहिए बजाय इस के कि जो हासिल नहीं, उस के पीछे भागा जाए,” मां ने धीरे से कहा. महिमा की आंखें डबडबा आईं. वह मां के सीने से लग गई. टपटप कर उन का आंचल भिगोने लगी. मां ने उसे रोकने का प्रयास नहीं किया.

कुछ देर रो लेने के बाद जब महिमा ने अपना चेहरा ऊपर उठाया तो बहुत शांत लग रही थी. शायद उस ने मन ही मन कोई निर्णय ले लिया था. मां ने उस का कंधा थपथपा दिया.

“कमल को फोन कर के आने को कह दे. अकेला परेशान हो रहा होगा,” मां ने उस के हाथ में मोबाइल थमाते हुए कहा. अगले ही दिन कमल आ गया. कमल को देखते ही महिमा लहक कर उस के सीने से लग गई. कमल फिर से हैरान था.

‘यह लड़की है या पहेली.’ कमल उस के चेहरे को पढ़ने की कोशिश करने लगा लेकिन असफल रहा.

इधर महिमा समझ गई थी कि कुछ यादों को यदि दिल में दफन कर लिया जाए तो वे धरोहर बन जाती हैं. वतन की मोहब्बत को पाने के लिए कमल के प्रेम का त्याग करना किसी भी स्तर पर समझदारी नहीं कही जा सकती वह भी तब, जब वतन को इस प्रेम का आभास तक न हो. और वैसे भी, प्रेम कहां यह कहता है कि पाना ही उस का पर्याय है. यह तो वह फूल है जो सूखने के बाद भी अपनी महक बिखेरता रहता है.

“हम कल ही अपने घर चलेंगे,” महिमा ने कहा. कमल ने उसे अपनी बांहों के घेरे में ले लिया.

महिमा मन ही मन वतन की आभारी है. वह उस की जिंदगी में न आता तो प्रेम के वास्तविक स्वरूप से उस का परिचय कैसे होता? कैसे वह इस का स्वाद चख पाती. वह स्वाद, जिस का वर्णन तो सब करते हैं लेकिन बता कोई नहीं पाता. असल स्वाद तो वही महसूस कर पाता है जिस ने इसे चखा हो.

हरेक के लिए प्रेम का स्वाद नितांत निजी होता है और उस का स्वरूप भी.

बदलते रंग: क्या संजना जरमनी में अपने पति के पास लौट सकी?

‘‘जया…’’

आवाज सुनते ही वह चौंकी थी. यहां मौल के इस भीड़ भरे वातावरण में किस ने आवाज दी. पीछे मुड़ कर देखा, ‘‘अरे वीणा तू…’’

अपनी पुरानी सहेली वीणा को देख कर सुखद आश्चर्य भी हुआ था.

‘‘तू कब आई बेंगलुरु से और यहां…’’

‘‘अरे, मैं तो पिछले 6 महीनों से यही हूं. यहां बेटे के पास आई हूं. बीच में सुना कि तेरी बेटी संजना की शादी तय हो गई है, मुझे उषा ने बताया था, पर कुछ ऐसे काम आ गए कि मिलना हो नहीं पाया.

“उषा ने तो तेरा नंबर भी दिया था, पर वह भी कहीं खो गया. नहीं तो मैं फोन पर ही तुझे बधाई दे ही देती…’’

‘‘अरे, यह सब तो ठीक है, पर अब बैठ कर कहीं बातें करते हैं, मेरी तो शापिंग भी अब पूरी हो गई है और थक भी गई हूं,’’ कहते हुए जया उसे कौफी शौप की तरफ ले गई.

‘‘हां तो अब यहां बैठ कर इतमीनान से बातें कर सकते हैं.’’

‘‘वो तो मैं देख ही रही हूं. लगता है कि बेटी की शादी के बाद तू भी अब काफी रिलेक्स फील कर रही है,’’
वीणा के कहने पर जया को हंसी आ गई थी.

‘‘शायद तू ठीक ही कह रही है.’’

फिर कौफी की चुसकियों के साथ देर तक बातें चलती रही. कैसे दिल्ली में शादी का इंतजाम था, दोनों परिवार के लोग वहीं इकट्ठे हो गए थे. एक बड़ा रिसोर्ट बुक करा लिया गया था. अब संजना और सुकांत अपनी पसंद से शादी कर रहे थे तो जैसा उन्होंने चाहा, वैसा ही इंतजाम कर दिया था.

‘‘ठीक किया तू ने,’’ वीणा ने भी हां में हां मिलाई.

‘‘जया, मैं सोचती हूं कि अगर लड़का, लड़की अपनी पसंद से शादी कर लें तो हम लोग कितनी परेशानियों से बच जाते हैं. अब हमारी पीढ़ी के बाद कितना अंतर भी तो आ गया है. हमारी पीढ़ी में जब मातापिता सब कुछ तय करते थे, तब हमें पता भी नहीं होता था कि कैसी ससुराल होगी, पति का स्वभाव कैसा होगा, कैसे हम एडजस्ट करेंगे.
कितनी तरफ की आशंकाएं थीं, हमें भी और हमारे मातापिता को भी, पर अब बच्चे जब एकदूसरे को अच्छी तरह समझ कर शादी का निर्णय लेते हैं तो बच्चों के साथ मातापिता भी सुकून का अनुभव करते हैं.’’

जया ने भी तब एक संतोष की सांस लेते हुए कहा था,
‘‘तू ठीक कह रही है वीणा, मैं बहुतकुछ ऐसा ही अनुभव कर रही हूं.’’

देर तक गपशप कर के जब जया घर लौटी, तो उस के दिमाग में वीणा की कही बातें ही गूंज रही थीं.

लाया हुआ सामान करीने से जमाया, खाना तो सुबह ही बना लिया था तो अब कोई जल्दी नहीं थी. कुछ फल काट कर प्लेट ले कर वह बालकनी में आ गई. नीचे लौन में कालोनी के बच्चे खेल रहे थे.

सांझ का अंधेरा अब गहराने लगा था, पर सबकुछ देखते हुए भी जया अपने ही खयालों में खोई हुई थी.
सचमुच एक सकून मिला है उसे संजना की शादी के बाद. इंजीनियरिंग कर के जब वह एमबीए करने दिल्ली गई, तभी उस की मुलाकात सुकांत से हुई थी.
फोन पर 2-4 बार उस ने जिक्र भी किया था, फिर दिल्ली में सुकांत से मिलवाया.

‘‘मां, हम लोग शादी करना चाहते हैं,’’ सुन कर वह और पति राकेश दोनों ही चौंक गए थे.

राकेश ने फिर कहा भी था,
‘‘बेटा, यहां तो तुझे पढ़ाई के लिए भेजा है. शादी के बारे में बाद में सोचना.’’

‘‘नहीं पापा, बहुत सोच कर ही मैं और सुकांत इस निर्णय पर पहुंचे हैं और अब हम लोग मैच्युर हैं, अपने निर्णय ले सकते हैं.’’

‘‘ठीक है. पहले पढ़ाई करो मन लगा कर, फिर अगर पढ़ाई पूरी करने के बाद भी तुम लोगों का यही निर्णय रहा तो हमें कोई आपत्ति नहीं होगी. पर शादीब्याह का निर्णय जल्दबाजी में लेना ठीक नहीं है.’’

जया ने यह कह कर बात समाप्त कर दी थी. वैसे, सुकांत उसे भी ठीक ही लगा था. परिवार भी भला था. अब बच्चों की यही मरजी है तो यही सही.
फिर भी पूरे साल उसे यही लगता रहा कि संजना दिल्ली में होस्टल में अकेली रहती है. कहीं बीच में कोई गलत कदम न उठा ले, जल्दी उस की पढ़ाई पूरी हो तो शादी कर के हम भी निश्चिंत हों. अच्छे नंबरों से एमबीए की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी संजना ने. वैसे पढ़ाई में वह शुरू से ही अव्वल रही थी. यहां तो बस एक भटकाव की आशंका थी जया को.

फिर दोनों परिवारों ने मिल कर सारी योजना बनाई. संजना को यहां भी जौब औफर हो गए थे, पर सुकांत को इसी बीच जरमनी से एक बड़ा औफर मिला था. तय यह हुआ कि शादी के बाद संजना भी जरमनी जाएगी.

सोचते हुए जया अपने खयालों में इतनी खो गई थी कि अब याद आया फलों की प्लेट तो तब से स्टूल पर वैसी ही पड़ी है.

प्लेट उठाते ही मन फिर कहीं दौड़ गया था. शादी के बाद संजना बेहद खुश थी. दोनों की जोड़ी लग भी बहुत सुंदर रही थी. सिंगापुर घूमने गए, तो वहां से भी संजना ने ढेरों फोटो भेजे थे और मोबाइल पर सारी जगहों का वर्णन करती रहती.

‘‘अरे, तुम लोग आराम से अपना टाइम साथ बिताओ, बातें तो बाद में भी हो जाएंगी.’’

जया ने फोन पर हंस कर कहा भी था.

फिर हनीमून से आते ही उन लोगों की जरमनी जाने की तैयारी शुरू हो गई थी.

फ्रेंकफर्ट में एक छोटा सुंदर सा फ्लैट मिल गया था. सुकांत को बड़े विस्तार से मां सुनैना मेल करती कि कैसे पतिपत्नी घर सजाने में लगे हुए हैं. सुकांत घर के कामों में बहुत मदद करते हैं.

‘‘मां, अब तुम और पापा भी इधर आने का प्रोग्राम बनाओ.’’

‘‘हां… हां आएंगे, पहले तुम लोग तो अच्छी तरह सैट हो लो.’’

बेटी का बचपना अब तक गया नहीं है. जरा सी बात पर खुश और कुछ मन लायक नहीं हुआ तो नाराज भी तुरंत.

जया को सोचते ही फिर हंसी आ गई.

अरे मोबाइल पर मैसेज आ रहा है. हां संजना का ही तो है, ‘‘मां, तुझे मेल किया था.’’

‘अरे, मेल खोला कुछ घर के फोटो थे, फिर लंबी दिनचर्या का वर्णन था.

‘मां, सुकांत ने अब औफिस जौइन कर लिया है, मैं ने भी कई इंटरव्यू दिए हैं. पर, अब तक कोई जवाब नहीं आया है.

‘क्या मेरी लाइफ अब चौकेचूल्हे में ही सिमट कर रह जाएगी.’

‘ओफ्फो… यह लड़की भी…’’ जया के मुंह से निकला था. जरा भी धैर्य नहीं है. अब इंटरव्यू दिए हैं तो कुछ समय तो लगेगा ही. सुकांत अच्छा जौब कर तो रहा है, पर नहीं, यह नई पीढ़ी भी बस…

सोचते हुए जया फिर घर के कामों में लग गई थी. थोड़ा समझा कर ईमेल का जवाब भी भेज दिया था. फिर कुछ दिनों बाद सुकांत का भी मेल था, ‘मां, जरमनी में यहां की भाषा सीखना भी जरूरी होता है. मैं ने संजना को भी भाषा की क्लास जौइन करवा दी है.’’

‘चलो ठीक है, व्यस्त रहेगी तो कम सोचेगी…’ जया के मुंह से निकला.

पर उस दिन उस का फोन आने पर वह चौंक गई,
‘‘मां, मैं अगले हफ्ते इंडिया आ रही हूं.”

‘‘अरे… इतनी जल्दी? एकाएक कैसे? सब ठीक तो है, सुकांत भी आ रहे हैं क्या…?”

जया तो एकदम हड़बड़ा ही गई थी.

‘‘नहीं मां, मैं अकेली ही आ रही हूं, और तुम इतना घबरा क्यों रही हो? मेरा आना अच्छा नहीं लग रहा है क्या?”

‘नहीं बेटा, ऐसी बात नहीं है, तू आएगी तो अच्छा क्यों नहीं लगेगा… पर… और तेरी जौब का क्या हुआ?’

‘‘अब जब आऊंगी तब और बातें करेंगे,” कह कर बेटी ने फोन भी रख दिया था.

जया फिर उलझनों में घिरने लगी. ये लड़की भी बस पहेलियां ही बुझाती रहेगी. अब जब आएगी तब पता चलेगा कि एकाएक यहां आने का प्रोग्राम क्यों बन गया.

जया के लिए यह पूरा हफ्ता काटना मुश्किल हो रहा था. यह तो अच्छा था कि पति आजकल अपने कार्यभार के सिलसिले में लंबे टूर पर थे… नहीं तो और सवाल करते.

बेटी ने यह भी तो नहीं बताया कि कब कौन सी फ्लाइट से आ रही है. एयरपोर्ट पर किसी को भेजना तो नहीं है.

जया अपने ही प्रश्नजाल में उलझती जा रही थी.

उस दिन सुबहसुबह जब वह चाय बना रही थी, तब दरवाजे की घंटी बजी. दौड़ कर दरवाजा खोला…

‘मां,’ कहते हुए संजना उस से लिपट गई थी.

‘‘संजू कैसी है तू… अचानक इस तरह आ कर तो तू ने मुझे चौंका ही दिया.’’

‘‘वही तो मां, मैं ऐसी ही तो हूं. हमेशा आप को चौंकाती रहती हूं.’’

संजना ने फिर मजाक किया था.

‘‘चल, अब अंदर चल, मैं चाय ही बना रही थी.’’

सूटकेस और बैग उठा कर संजना अंदर आ गई.

‘अरे, घर तो आप ने काफी व्यवस्थित कर रखा है,’
अलमारी में सजे अपने और सुकांत के फोटोग्राफ पर नजर डाल कर उस ने फिर मां की ओर देखा था.

‘‘और बताओ मां, क्या खिला रही हो, मुझे तो जोरों की भूख लग रही है, फ्लाइट में भी कुछ नहीं खाया.’’

‘‘अब जो कहेगी वही बना दूंगी, पहले चाय तो पी,’’ कह कर जया चाय के साथ कुछ हलका नाश्ता ले आई थी.

चाय के साथ भी संजना ने बस अपनी फ्लाइट की और जरमनी के सामान्य जीवन के बातें कही थीं.

जया जानने को उत्सुक थी कि आखिरकार यह अचानक यहां आने का प्रोग्राम क्यों बन गया.
ठीक है, शायद अपनेआप ही बताए फिर भी उस की चिंता कम नहीं हो पा रही थी.

खाना खा कर फिर संजना गहरी नींद में सो भी गई थी.

जया ने चुपचाप उस के बिखरे सामान को व्यवस्थित किया. पता नहीं क्या सोच कर आई है यह लड़की. अगर कुछ ही दिनों के लिए आना था, तो इतने बड़े 2 सूटकेस और बड़ा सा बैग लाने की क्या जरूरत थी.

फिर शाम को उस ने संजना को अपने पास बिठाते हुए पूछा, ‘‘हां, अब इतमीनान से बता, सब ठीक तो है न. अचानक इस तरह आने का प्रोग्राम कैसे बन गया. सुकांत तो आए नहीं,’’ सुनते ही संजना ने कुछ चिढ़ कर जवाब दिया, ‘‘मां, सुकांत क्यों आएंगे? उन का जौब है, ठाट से औफिस जा रहे हैं, बेकार तो मैं थी तो आ गई.’’

‘‘बेकार… तू क्यों बेकार होने लगी?’’

ज्यादा कुछ समझ नहीं पा रही थी वह.

‘‘क्यों…? मैं बेकार नहीं हो सकती, जब मुझे वहां जौब नहीं मिली तो बेकार तो हो ही जाऊंगी और बेकार वहां बैठ कर क्या करूंगी, इसलिए यहां आ गई. अब इंडिया में जौब देखूंगी.’’

यह सुन कर जया तो और चकरा गई.

‘‘यहां जौब… मतलब, तू यहां रहेगी और सुकांत जरमनी में.”

‘‘मां, अब अधिक सवाल मत करो. सुकांत को जहां रहना है, रहेंगे. बस मैं यहां रहूंगी. कल से कुछ कंपनियों से बात करती हूं. गलती की जो जल्दबाजी में चली गई. मुझे तो यहां इतने अच्छे औफर आ रहे थे.’’

‘‘बेटी, जौब ही तो सबकुछ नहीं है, तुम्हारी लाइफ, परिवार.’’

‘‘कैसा परिवार…?’’ संजना ने फिर टोक दिया था, ‘‘मां, मैं ने पहले ही सुकांत को बता दिया था कि मुझे कुकिंग और घर के कामों में कोई दिलचस्पी नहीं है, आखिर इतनी मेहनत से पढ़ाई की है तो कुछ काम तो करूंगी, तब सुकांत को भी सब ठीक लगा और अब… अब जरमनी जाते ही बदल गए.

“मैं सुबह, शाम खाना बनाऊं, घर व्यवस्थित करूं, सब काम करूं, क्यों… क्योंकि जौब तो मेरे पास है नहीं और सब करूं तब भी सुकांत की फटकार सुनूं, घर क्यों अस्तव्यस्त है, खाना बिलकुल बेस्वाद है, रोटियां कच्ची हैं, सब्जी जल गई है, यह ठीक नहीं, वो ठीक नहीं, आखिर यह सब सुनने के लिए तो मैं गई नहीं थी उन के साथ, न ही इसलिए शादी की.’’

संजना जैसे आवेश में थी. जया ने शांत करने का प्रयास किया. जया बोली, ‘‘बेटी, तुम दोनों ने सबकुछ देखसुन कर ही तो शादी का फैसला लिया था, तो अब इतनी जल्दी किसी निर्णय पर पहुंचना…’’

‘‘हां, फैसला लिया था. अपनी गलती को भी तो मैं ही सुधारूंगी. मैं ही ठीक करूंगी और कौन करेगा.’’

जया समझ नहीं पा रही थी कि क्या कह कर समझाए बेटी को. ठीक है, अभी आवेश में है, 2-4 दिन बाद बात करूंगी. सोच कर चुप रह गई थी.

2-4 दिन भी फिर ऐसे ही निकल गए थे, कंप्यूटर पर पता नहीं क्याक्या टटोलती रहती है यह लड़की, क्या जौब सर्च कर रही है, आजकल बात भी तो बहुत कम कर रही है.

‘‘सुकांत से बात की,’’
उस दिन जया ने पूछ ही लिया था.

‘‘क्यों…? मैं क्यों बात करूं…?’’ संजना का तीखा उत्तर.

‘‘अरे, अपने यहां पहुंचने की सूचना तो दे देती.’’

‘‘जब सामने वाले को जरूरत नहीं तो मैं क्या बात करूं…?’’

संजना का दोटूक उत्तर.

‘‘देख बेटा, उस दिन मैं ने तुझ से कुछ नहीं कहा था. पर अब सुन, शादीब्याह कोई गुड्डेगुड़ियों का खेल नहीं है और इस प्रकार लड़नेझगड़ने से दूरियां बढ़ती हैं, हमें थोड़ाबहुत एडजस्ट भी करना होता है, नहीं तो शादी टिकेगी कैसे?’’

‘‘न टिके, मुझे कोई परवाह नहीं. मैं क्यों एडजस्ट करूं, सुकांत का क्या कोई फर्ज नहीं बनता है, क्यों की फिर मुझ से शादी, कर लेते किसी घरेलू लड़की से जो उन का चूल्हाचौका संभालती, और मां, मुझे अब इस बारे में कोई बात करनी भी नहीं है,’’ कहती हुई संजना तेजी से उठ कर अपने कमरे में चली गई.

जया जड़ हो कर रह गई, तो क्या यह पति से अलग होने का मन बना कर आई है, अभी तो मुश्किल से 6 महीने भी नहीं हुई होंगे शादी के.

क्या करे, आजकल तो राकेश भी यहां नहीं हैं, नहीं तो वे ही समझाते अपनी बेटी को. पर अभी तो यह कुछ समझना भी नहीं चाह रही है.

क्या करे, क्या सुकांत से बात की जाए, पर बात क्या करे, पहले यह खुल कर तो बताए कि चाहती क्या है, क्यों अचानक इस प्रकार यहां आ गई.

जया का जैसे दिमाग काम ही नहीं कर रहा था.

बेटी खुद समझदार है, अपने निर्णय लेना जानती है, कोई फैसला उस पर थोपा भी तो नहीं जा सकता.

उस रात ठीक से सो भी नहीं पाई थी. रातभर लगता रहा कि कहीं कोई गलती उस से हो गई है, ठीक है बेटी की पढ़ाई पर ध्यान दिया, पर शायद जिंदगी के व्यावहारिक ज्ञान की शिक्षा वह नहीं दे पाई.

उसे अपने विवाह के शुरुआती दिन याद आ रहे थे. उस की शादी तो मातापिता की मरजी से हुई थी, ससुराल में ननदें, जो हर काम में नुक्स निकालती रहतीं, राकेश तो अपने काम के सिलसिले में अकसर बाहर ही रहते.

पर उसे अपनी मां की सीख याद थी, धीरेधीरे अपने व्यवहार से तुम सब का मन जीत लोगी.

और फिर हुआ भी यही था. सालभर के अंदर ही वह अपनी सास की चहेती बहू बन गई थी. ननदें भी अब लाड़ करने लगी थीं, पर यहां… यहां तो संजना और सुकांत पहले से ही आपस में अच्छी तरह परिचित थे. ससुराल का भी कोई दखल नहीं. फिर…

दूसरे दिन संजना ने ही फरमाइश की थी, ‘‘मां, कुछ अच्छा खाना बनाओ न, यह क्या रोज वही दालरोटी.’’

‘‘हां, आज कचौड़ी बना रही हूं, सुकांत को भी पसंद थी न…’’ जया के मुंह से निकल ही गया था.

‘‘मां, मेरी भी तो कोई पसंद हो सकती है या नहीं…’’
संजना का आक्षेप भरा स्वर…

‘‘नहीं बेटे, मेरा यह मतलब नहीं था, अच्छे खाने का सभी को शौक होता है तो सीख लेना चाहिए. फिर वहां विदेश में…”

“कोई बात नहीं, मैं कहां विदेश जा रही हूं…’’

संजना ने कह तो दिया था, पर जया देख रही थी कि वह ध्यान से कचौड़ी बनते देख रही है.

‘‘खाना बनाना कोई बहुत कठिन काम तो है नहीं. और तुम जैसी लड़कियां तो चटपट सब सीख सकती हैं.’’

जया ने उसे और उत्साहित करना चाहा था, पर संजना ने कोई जवाब नहीं दिया.
पर हफ्तेभर बाद ही जया को लगने लगा कि बेटी अब कुछ खोईखोई सी रहने लगी है. मोबाइल पर भी पता नहीं क्या टटोलती रहती है.

‘‘तू जौब की ज्यादा चिंता मत कर. पापा आ जाएं तो उन से बात करना. कुछ कंपनियों में उन की पहचान भी है.”

जया ने टटोलना चाहा था, पर संजना चुप थी. चेहरा भी सपाट था.

‘‘बेटी, सुकांत से मैं बात करूं?’’ कुछ झिझक के बाद जया के मुंह से निकला था.

‘‘मां, तुम क्यों बात करोगी…? जिसे बात करनी है, वह करेगा.’’

जया को पहली बार लगा कि बेटी के स्वर में कुछ दर्द है. वह चुप रह गई.

फिर उस दिन मोबाइल की घंटी बजी. संजना का फोन जया के पास ही पड़ा था,
‘सुकांत…’

‘‘संजना, सुकांत का फोन है, बात करना. और हां, स्पीकर पर डाल, मुझे भी बात करनी है.’’

जया के आदेश भरे स्वर को संजना टाल नहीं पाई थी.
जया उठ कर अपने कमरे में आ गई थी. आवाज यहां भी आ रही थी.

‘‘संजू बेबी, कितनी बार फोन किया, उठाती क्यों नहीं हो? अच्छा बाबा, मैं अब माफी मांगता हूं तुम से, अब कभी तुम्हारे काम में कोई मीनमेख नहीं निकालूंगा. अब तो गुस्सा थूक दो.’’

संजना ने भी धीरे से कुछ कहा था. फिर सुकांत की ही आवाज गूंजी, “हां, अब कभी तुम्हारी किसी और से तुलना भी नहीं करूंगा, अब तो खुश. अब जल्दी से लौट आओ, नहीं तो फिर मैं ही पहुंच जाऊंगा.

“और हां, सारी बातों के बीच में मैं यह तो कहना ही भूल गया कि तुम्हारे दो इंटरव्यू काल आए हुए हैं, 5 दिन के अंदर ही आ जाओ, टिकट मैं भेज रहा हूं, सुनो बेबी…’’
कुछ फुसफुसे से स्वर, संजना ने शायद फिर स्पीकर औफ कर दिया था.
पर जया सबकुछ समझ गई थी. आज इतने दिनों बाद उसे गहरी नींद आई थी.
सुबह भी शायद देर तक सोती रही थी, संजना की आवाज से ही नींद टूटी थी,
‘‘मां उठो, मैं ने चाय बना दी है, फिर आप को सुबह की सैर के लिए भी जाना है, मेरे आते ही आप की दिनचर्या बिगड़ गई है.’’

वह फिर संजना के प्रफुल्लित चेहरे को देख रही थी.

‘‘मां, अब 2-4 दिन में मुझे जरमनी जाना है, पर सोच रही हूं कि आप मुझे कुछ अच्छी डिशेज बनाना सिखा दो. वैसे, फोन पर भी मैं आप से पूछती रहूंगी,’’ कह कर संजना मां के पास ही बैठ गई थी.

‘‘और… और…इतनी जल्दी तेरी वापसी का प्रोग्राम…’’
जया ने मजाक किया था.

‘‘तो मैं ने कब कहा था कि मैं वापस जरमनी नहीं जाऊंगी. आखिर मेरा घर तो वहीं है, आप भी मां पता नहीं क्याक्या सोच लेती हो,’’ कहते हुए वह मां से लिपट गई थी.

और जया सोच रही थी कि यह आधुनिक पीढ़ी भी बस… सच अब तक तो वह इसे समझ ही नहीं पाई है…
पर एक संतोष भरी मुसकान जया के चेहरे पर भी थी.

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