शादी से पहले मैं फिजिकल रिलेशनशिप के बारे में जानना चाहता हूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं 23 साल का हूं. कुछ ही महीने में मेरी शादी होने वाली है. मैं जानना चाहता हूं कि फोरप्ले क्या होता है?

जवाब

सेक्स करने से पहले बीवी को जोश में लाने की कोशिश ही फोरप्ले कहलाता है. इस के तहत बीवी के होंठों, उभारों व खास अंगों को चूमा जाता है. यही काम बीवी भी कर सकती है, पति को जोश में लाने के लिए. इस से बाद में सैक्स करने से और भी ज्यादा मजा आता है.

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सैक्स से पहले छेड़छाड़ है बेहद जरूरी

प्रिया का कहना है कि उस का पति जिस्मानी रिश्ता बनाते समय बिलकुल भी छेड़छाड़ नहीं करता और न ही प्यार भरी बातें करता है. उसे तो बस अपनी तसल्ली से मतलब होता है. जब तन की आग बुझ जाती है, तो निढाल हो कर चुपचाप सो जाता है. वह बिन पानी की मछली की तरह तड़पती ही रह जाती है.

कुछ इसी तरह राजेंद्र का कहना है, ‘‘जिस्मानी रिश्ता कायम करते वक्त मेरी पत्नी बिलकुल सुस्त पड़ जाती है. वह न तो इनकार करती है और न ही प्यार में पूरी तरह हिस्सेदार बनती है. न ही छेड़छाड़ होती है और न ही रूठनामनाना. नतीजतन, सैक्स में कोई मजा ही नहीं आता.’’

इसी तरह सरिता की भी शिकायत है कि उस का पति उस के कहने पर जिस्मानी रिश्ता तो कायम करता है, पर वह सुख नहीं दे पाता, जो चरम सीमा पर पहुंचाता हो. हालांकि वह अपनी मंजिल पर पहुंच जाता है, फिर भी सरिता को ऐसा लगता है, मानो वह अपनी मंजिल पर पहुंच कर भी नहीं पहुंची. सैक्स के दौरान वह इतनी जल्दबाजी करता है, मानो कोई ट्रेन पकड़नी हो. उसे यह भी खयाल नहीं रहता कि सोते समय और भी कई राहों से गुजरना पड़ता है. मसलन छेड़छाड़, चुंबन, सहलाना वगैरह. नतीजतन, सरिता सुख भोग कर भी प्यासी ही रह जाती है.

मनोज की हालत तो सब से अलग  है. उस का कहना है, ‘‘मेरी पत्नी इतनी शरमीली है कि जिस्मानी रिश्ता ही नहीं बनाने देती. अगर मैं उस के संग जबरदस्ती करता हूं, तो वह नाराज हो जाती है. छेड़छाड़ करता हूं, तो तुनक जाती?है, मानो मैं कोई पराया मर्द हूं. समझाने पर वह कहती है कि अभी नहीं, इस के लिए तो सारी जिंदगी पड़ी हुई है.’’

इसी तरह और भी अनगिनत पतिपत्नी हैं, जो एकदूसरे की दिली चाहत को बिलकुल नहीं समझते और न ही समझने की कोशिश करते हैं. ऐसा नहीं होना चाहिए, क्योंकि शादीशुदा जिंदगी कच्चे धागे की तरह होती है. इस में जरा सी खरोंच लग जाए, तो वह पलभर में टूट सकती है.

पतिपत्नी में छेड़छाड़ तो बहुत जरूरी है, इस के बिना तो जिंदगी में कोई रस ही नहीं, इसलिए यह जरूरी है कि पति की छेड़छाड़ का जवाब पत्नी पूरे जोश से दे और पत्नी की छेड़छाड़ का जवाब पति भी दोगुने मजे से दे. इस से जिंदगी में हमेशा नएपन का एहसास होता है.

अगर जिस्मानी रिश्ता कायम करने के दौरान या किसी दूसरे समय पर भी पति अपनी पत्नी को सहलाए और उस के जवाब में पत्नी पूरे जोश के साथ प्यार से पति के गालों को चूमते हुए अपने दांत गड़ा दे, तो उस मजे की कोई सीमा नहीं होती. पति तुरंत सैक्स सुख के सागर में डूबनेउतराने लगता है.

इसी तरह पत्नी भी अगर जिस्मानी रिश्ता कायम करने से पहले या उस दौरान पति से छेड़छाड़ करते हुए उस के अंगों को सहला दे, तो कुदरती बात है कि पति जोश से भर उठेगा और उस के जोश की सीमा भी बढ़ जाएगी.

कभीकभी यह सवाल भी उठता है कि क्या जिस्मानी रिश्ता सिर्फ सैक्स सुख के लिए कायम किया जाता है? क्या दिमागी सुकून से उस का कोई लेनादेना नहीं होता? क्या जिस्मानी रिश्ते के दौरान छेड़छाड़ करना जरूरी है? क्या छेड़छाड़ सैक्स सुख में बढ़ोतरी करती है? क्या छेड़छाड़ से पतिपत्नी को सच्चा सुख मिलता है?

इसी तरह और भी कई सवाल हैं, जो पतिपत्नी को बेचैन किए रहते हैं. जवाब यह है कि जिस्मानी रिश्तों के दौरान छेड़छाड़ व कुछ रोमांटिक बातें बहुत जरूरी हैं. इस के बिना तो सैक्स सुख का मजा बिलकुल अधूरा है. जिस्मानी रिश्ता सिर्फ सैक्स सुख के लिए ही नहीं, बल्कि दिमागी सुकून के लिए भी किया जाता है.

कुछ पति ऐसे होते हैं, जो पत्नी की मरजी की बिलकुल भी परवाह नहीं करते, जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए. पत्नी की चाहत का भी पूरा खयाल रखना चाहिए, नहीं तो आप की पत्नी जिंदगीभर तड़पती ही रह जाएगी.

कुछ औरतें बिलकुल ही सुस्त होती हैं. वे पति को अपना जिस्म सौंप कर फर्ज अदायगी कर लेती हैं. उन्हें यह भी एहसास नहीं होता कि इस तरह वे अपने पति को अपने से दूर कर रही हैं.

कुछ पति जिस्मानी रिश्ता तो कायम करते हैं और जल्दबाजी में अपनी मंजिल पर पहुंच भी जाते हैं, परंतु उन्हें इतना भी पता नहीं होता कि इस के पहले भी और कई काम होते हैं, जो उन के मजे को कई गुना बढ़ा सकते हैं.

कुछ औरतें शरमीली होती हैं. वे जिस्मानी रिश्तों से दूर तो होती ही हैं, छेड़छाड़ को भी बुरा मानती हैं.

अब आप ही बताइए कि ऐसे हालात में क्या पत्नी पति से और पति पत्नी से खुश रह सकता है?

नहीं न… तो फिर ऐसे हालात ही क्यों पैदा किए जाएं, जिन से पतिपत्नी एकदूसरे से नाखुश रहें?

इसलिए प्यार के सुनहरे पलों को छेड़छाड़, हंसीखुशी व रोमांटिक बातों में बिताइए, ताकि आने वाला कल आप के लिए और ज्यादा मजेदार बन जाए.

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जहर: बहुओं को समझाने के लिए सास ने कौनसा रास्ता अपनाया

कविता की जेठानी मीना 1 सप्ताह के लिए मायके रहने को गई तो उसे विदा करने के लिए सास कमरे से बाहर ही नहीं निकली.

‘‘मुझे तो बहुत डर लग रहा है, भाभीजी. आप का साथ और सहारा नहीं होगा, तो कैसे बचाऊंगी मैं इन से अपनी जान?’’ सिर्फ 4 महीने पहले इस घर में बहू बन कर आई कविता की आंखों में डर और चिंता के भाव साफ नजर आ रहे थे.

‘‘वे चुभने या बेइज्जत करने वाली कोई भी बात कहें, तुम उस पर ध्यान न दे कर चुप ही रहना, कविता, झगड़ा कर के तुम उन से कभी जीत नहीं सकोगी,’’ मीना ने उसे प्यार से समझया.

‘‘भाभी, अगर सामने वाला तुम्हारी बेइज्जती करता ही चला जाए, तो कोई कब तक चुप रहेगा?’’

‘‘उस स्थिति में तुम वह करना जो मैं करती हूं. जब तंग आ कर तुम जवाब देने को मजबूर हो जाओ, तो गुस्से से पागल हो इतनी जोर से चिल्लाने का अभिनय करना की सासूजी की सिट्टीपिट्टी गुम हो जाए. उन्हें चुप करने का यही तरीका है कि उन से ज्यादा जोर से गुर्राओ. अगर उन के सामने रोनेधोने की गलती करोगी तो वे तुम पर पूरी तरह हावी हो जाएंगी, कविता,’’ अपनी देवरानी को ऐसी कई सलाहें दे कर मीना अपने बेटे के साथ स्कूटर में बैठ कर बसअड्डा चली गई.

कविता अंदर आ कर दोपहर के भोजन की तैयारी करने रसोई में घुसी ही थी कि उस की सास आरती वहीं पहुंच गईं.

‘‘उफ, इस मीना जैसी बददिमाग और लड़ाकी बहू किसी दुश्मन को भी न मिले. अब सप्ताह भर तो चैन से कटेगा,’’ कह आरती ने अपनी छोटी बहू से बातें करनी शुरू कर दीं.

आरती लगातार मीना की बुराइयां करती रहीं. बहुत सी पुरानी घटनाओं की यादों को दोहराते हुए उन्होंने उस के खिलाफ  जहर उगलना जारी रखा.

कविता ने जब चुप रह कर वार्त्तालाप में कोई हिस्सा नहीं लिया तो आरती नाराज हो कर बोल पड़ीं, ‘‘अब तू क्यों गूंगी हो गई है, बहू? मुंह फुला कर घूमने वाले लोग मुझे जरा भी अच्छे नहीं लगते हैं.’’

‘‘आप बोल कर अपना मन हलका कर लो, मम्मी. मेरे मन में भाभी के लिए कोई शिकायत है ही नहीं, तो मैं क्या बोलूं?’’ कविता का यह जवाब सुन कर आरती चिढ़ उठी थीं.

आरती वैसे कविता के घर वालों को कुछ ज्यादा भाव देती थीं. उस के मातापिता की जाति उन से ऊंची भी थी और वे सब इंग्लिश मीडियम के पढ़े थे जबकि अरुण और उस का बड़ा भाई हिंदी मीडियम स्कूल से था. फिर भी कविता और उस के घर वाले आरती को पूरा सम्मान देते थे. आरती को एहसास था कि जरा सी जाति ऊंची हुई नहीं या बच्चे अंगरेजी मीडियम में गए नहीं उन की नाक ऊंची हो जाती है.

आटा गूंधने का काम बीच में रोक कर वे उसे तीखी आवाज में सुनाने लगीं, ‘‘अपनी जेठानी के नक्शे कदम पर चल कर इस घर की सुख शांति को और ज्यादा बिगाड़ने में सहयोग मत दो, बहू. अगर बड़ी की इज्जत नहीं करोगी तो तुम भी कभी सुखी नहीं रह पाओगी.’’

अपनी जेठानी की नसीहत को याद कर कविता ने कोई प्रतिक्रिया जाहिर

करना मुनासिब नहीं समझ और सब्जी काटने

के काम में लग गई. अकेली ही बोलते हुए

आरती आजकल की बहुओं को देर तक भलाबुरा कहती रहीं.

‘भाभी होती तो 1 मिनट में इन्हें दोगुना ज्यादा बातें सुना कर चुप कर देती. पूरे 7 दिन मैं अकेली कैसे झेलूंगी इन्हें?’ ऐसे विचारों में उलझ कविता चुप रह कर अपना खून फूंकती रही.

कविता ने जब तक आलूगोभी की सब्जी तैयार करी, तब तक आरती ने परांठे सेंक डाले. उस ने अपनी सास के साथ खाना न खाने के

लिए भूख न होने का बहाना बनाया, पर आरती

ने बड़े हक से दोनों का खाना इकट्ठा परोस

लिया था.

खाना खाते हुए आरती ने कविता के मायके वालों को वार्त्तालाप का विषय बनाया. वे उन के बारे में हलकीफुलकी बातें कर रही थीं. थोड़ी ही देर में कविता अपनी नाराजगी भुला उन के साथ खुल कर हंसनेबोलने लगी.

भोजन समाप्त कर वह आराम करने के लिए अपने कमरे में आ कर लेट गईं. आंख लगने से पहले एक बात सोच कर उस के होंठों पर व्यंग्य भरी मुसकान उभरी थी कि मुझे अपनी तरफ करने को वे आज कितना मीठा बोल रही थीं. लेकिन उन की सारी चालाकी बेकार जाएगी क्योंकि असल में तो उन के मन में अपनी दोनों बहुओं के लिए इज्जत और प्यार है ही नहीं.

शाम को आरती ने कविता के लिए स्वीगी से गरम समोसे और चाय मंगवाई. आरती ने अपने मोबाइल पर सब एप डाउनलोड कर रखे थे और बेटे के कार्ड से कनैक्ट थे. इसलिए पेमैंट की कोई दिक्कत तो थी नहीं. चाय पीते हुए जब उन्होंने अपनी बड़ी बहू के खिलाफ उस के कान भरने की कोशिश जारी रखी, तो कविता का मन अंदर से खिन्न सा बना रहा.

कुछ देर बाद आरती ने अपनी बेटी और दामाद के बारे में बोलना शुरू किया, ‘‘आजकल मनोज ज्यादा पीने लगा है और पी कर अंजु से झगड़ा भी बहुत करता है. मैं सोच रही हूं कि परसो उन्हें डिनर पर बुला लूं. अरुण और तुम से मनोज की अच्छी पटती है. तुम दोनों उसे समझना कि वह शराब कम पीया करे,’’ अपनी बेटी के बारे में बात करते हुए तेजतर्रार आरती असहाय और दुखी सी नजर आ रही थीं.

‘जितनी फिक्र इन्हें अपनी बेटी की है, उतनी अपनी बहुओं की क्यों नहीं करतीं? तेज मां की तेज बेटी दुख तो पाएगी ही,’ ऐसी बातें सोचते हुए कविता ने अपनेआप को जब ज्यादा खुश महसूस नहीं किया, तो मन ही मन उसे हैरानी हुई.

‘‘अंजु दीदी अगर अपना गुस्सा कुछ कम कर लें, तो जीजाजी के ऊपर बदलने के लिए दबाव बनाना आसान हो जाएगा, मम्मी,’’ कविता के मुंह से निकले इस वाक्य के साथ सासबहू के बीच अंजु के घरपरिवार की सुखशांति को ले कर लंबा वार्त्तालाप शुरू हो गया.

उस रात सोने से पहले कविता को शादी के बाद गुजरे 4 महीनों में पहली बार यह एहसास हुआ कि उस की कठोर और निर्दयी नजर आने वाली सास अपनी बेटी के दुख में दुखी हो कर आंसू भी बहा सकती हैं. उस शाम पहली बार उस ने खुद को अपनी सास के काफी नजदीक भी महसूस किया.

सासबहू के संबंधों में अगले दिन से लगातार सुधार होने लगा. अपने पति, जेठ और ससुर को औफिस भेजने के बाद कविता ने आराम से अपनी सास के साथ बैठ कर नाश्ता किया. एक के बजाय दोनों ने 2 बार चाय पीने का लुत्फ  उठाया. फिर कपड़े धोने की मशीन लगाने का काम दोनों ने इकट्ठे किया.

दोपहर के खाने में आरती ने अपनी बहू को गोभी के परांठे बनाने सिखाए. खाना दोनों ने सीरियल देखते हुए खाया.

खाना खाने के बाद कविता सोफे पर और आरती तख्त पर आराम करने को ड्राइंगरूम में ही लेट गईं. दोनों में से किसी का भी मन अपने कमरे में जा कर बंद होने को नहीं था.

शाम को दोनों सब्जी खरीदने साथसाथ रिलायंस फ्रैश गईं. आरती ने अच्छी और सस्ती सब्जियां खरीदने की कला सिखाते हुए लंबा सा लैक्चर उसे दिया, पर कविता को उन की बातें उस शाम बुरी नहीं लगीं.

उस रात सासबहू को घुलमिल कर बातें करते देख कविता के पति अरुण ने उसे छेड़ा भी, ‘‘मां ने तुम्हें ऐसा क्या लालच दिया है जो इतना मीठा बोलने लगी हो तुम उन से? यह चमत्कार कैसे संभव हो रहा है, मैडम?’’

‘‘इस में कोई चमत्कार वाली बात नहीं है, जनाब. मुझे अपनी तरफ करने को आप की माताजी मुंह में गुड़ रख कर मुझ से बोल रही हैं… मीना भाभी को अलगथलग कर देने के लिए उन की तरफ से यह सारा नाटक चल रहा है,’’ कविता ने शरारती अंदाज में मुसकराते हुए अरुण को जानकारी दी.

‘‘किसी भी बहाने सही, पर इस घर में सुखशांति का माहौल तो बना. तुम तीनों के रोज शाम को सूजे मुंह देख कर दिमाग भन्ना जाया करता था.’’

‘‘भाभी के लौटने पर स्थिति फिर बदल जाएगी, सरकार. सासबहू को प्यार से आपस में हंसतेबोलते देखने का मजा बस कुछ दिनों तक

ही और ले सकते हैं आप इस घर में,’’ अपने

इस मजाक पर कविता खुद ही ठहाका मार कर हंसी तो अरुण बुरा सा मुंह बना कर बस जरा

सा मुसकराया.

अगले दिन शाम को अंजु और मनोज के साथ सब का समय बड़ा अच्छा गुजरा. आरती अपनी छोटी बहू की तारीफ करने का कोई मौका नहीं चूकी थीं. ननदभाभी पहली बार खुल कर खूब हंसीबोलीं. मांबेटी दोनों ने कविता का काम में पूरा हाथ बंटाया.

अगले दिन आरती ने कविता के साथ एक सहेली की तरह गपशप करी. उन्होंने अपनी सास के बारे में बहुत सी कहानियां उसे सुनाईं.

‘‘अपनी सास के सामने मैं जोर से सांस भी नहीं ले सकती थी, बहू. सुबह 4 बजे उठ कर हाथ से नल से बीसियों बालटी पानी भरना पड़ता था. फिर नहाधो कर पूरे 8 आदमियों का नाश्ता और खाना बनाना होता है. घर का काम देर रात को खत्म होता. तारीफ के शब्द सुनने की बात तो दूर रही, घर के छोटेबड़े मुझ पर हाथ उठाने से भी परहेज नहीं करते थे,’’ वे लोग तब हाल ही में गांव से कसबे में आए थे और आरती की सास यानी अरुण के दादादादी रीतिरिवाज मानो संदूक में पैक कर ले आए हों. आरती को एडजस्ट करने में बहुत समय लगा था. आरती ये बाते इस अंदाज में सुना रही थीं मानो अपने ससुराल वालों की बढ़ाई कर रही हों.

कविता ने भी शादी से पहले अपनी जिंदगी में घटी कई दिलचस्प घटनाएं उन्हें सुनाईं. इस में कोई शक नहीं कि सास और बहू इस 1 सप्ताह में एकदूसरे के काफी करीब आ गई थीं.

मीना की वापसी होने से 1 दिन पहले आरती ने कविता को अकेले में अपने

पास बैठा कर बड़े प्यार से समझया, ‘‘तुम स्वभाव की अच्छी और समझदार औरत हो, बहू बस, तुम मीना के बहकावे में आना बंद कर दो. उस की शह पर जब तुम मुझ से बहस और झगड़ा करती हो, तो मेरा मन बड़ा दुखता है. उस की तरह अगर तुम ने भी मेरी बेइज्जती करने की आदत डाल ली, तब मेरी जिंदगी तो नर्क बन जाएगी.’’

‘‘मम्मी, आप प्लीज आंसू मत बहाओ. उन के लौटने पर हम सब मिल कर कोशिश करेंगे कि घर का माहौल हंसीखुशी से भरा रहे,’’ अपनी सास को ऐसा दिलासा देते हुए कविता की आंखों में भी आंसू भर आए.

उस रात कविता को जल्दी से नींद नहीं आई. कुछ सवाल लगातार उस के मन में चक्कर काटे जा रहे थे.

‘नजदीक से जानने का मौका मिला तो मेरी सास दिल की वैसी बुरी जरा भी नहीं निकलीं जैसी मैं उन्हें अब तक समझती आई थी. मीना भाभी तो पहले दिन से मेरे हित और खुशियों का ध्यान रख रही हैं. जब इन दोनों के दिल में कोमल भावनाएं मौजूद हैं, तो इन के आपसी संबंध इतने ज्यादा खराब क्यों हैं? मेरे दिल में सासुजी को ले कर जो गुस्सा, नफरत और डर बैठा था वह सप्ताह भर में किन कारणों से गायब हो गया है? घर में बना सुखशांति का माहौल क्या मीना भाभी के लौट आने पर बरकरार नहीं रखा जा सकता है?’ ऐसे सवालों के सही उत्तर पाने के लिए कविता ने देर रात तक माथापच्ची करी.

अगले दिन रविवार की सुबह मीना अपने बेटे के साथ

सुबह 10 बजे के करीब घर लौटी और घंटे भर बाद ही आरती और उन के बीच तेज लड़ाई हो गई.

मीना की कमर में सफर के दौरान झटका लग जाने से दर्द हो रहा था. वह काम में लगने के बजाय जब अपने कमरे में जा कर लेट गई, तो आरती ने उसे बहुत सारी जलीकटी बातें सुना दीं.

जब ससुर और जेठ ने अपनीअपनी पत्नी को ऊंची आवाज में बहुत जोर से डांटा, तब कहीं जा कर घर में शांति कायम हुई.

आरती ने रसोई में आ कर कविता से मीना की बुराई करनी शुरू कर दी, ‘‘बहू, देखा कितनी लंबी जबान है इस की. मैं ने इसे घर से अलग करने का फैसला कर लिया है.’’

कविता ने कोई प्रतिक्रिया दर्शाने के बजाय उन से सहज स्वर में पूछा, ‘‘मम्मी, आज अरहर की दाल बना लें?’’

‘‘देख लेना एक दिन टैंशन के कारण मेरे दिमाग की कोई नस जरूर फट जाएगी.’’

‘‘आप इस पतीले में दाल निकालो, तब तक मैं दही जमा देती हूं.’’

आरती ने एक बार को तो उसे गुस्से से घूरा, पर फिर कड़वे शब्द मुंह से निकाले बिना डब्बे से दाल निकालने के काम में लग गईं.

शायद नाराज हो जाने के कारण उन्होंने अपनी छोटी बहू से फिर कोई बात नहीं करी.

कविता जब कुछ देर बाद चाय का कप ले कर मीना के कमरे में गई, तो उस ने आरती के खिलाफ  जहर उगलना शुरू कर दिया, ‘‘पता

नहीं कब इस खूंखार औरत से हमारा पीछा छूटेगा. मुझे एक वक्त का खाना खाना मंजूर है, पर मैं अब इस घर में नहीं बल्कि किराए के मकान में रहूंगी.’’

‘‘अब गुस्सा थूक कर यह बताओ कि आप मेरे लिए क्या लाई हो?’’ कविता ने वार्त्तालाप का विषय बदल दिया.

‘‘इन्हें बहुत घमंड है अपनी धनदौलत का, पर मुझे इन से 1 फूटी कौड़ी भी नहीं चाहिए.’’

‘‘आप कहीं घूमने भी गईं या सारा समय घर पर ही रहीं?’’

‘‘अभी मुझ से कुछ मत पूछ, कविता. तुम्हारे पास दर्द की कोई गोली पड़ी हो तो देना. शाम को मेरे साथ डाक्टर के यहां चलोगी?’’

‘‘जरूर चलूंगी, भाभी. आप चाय पीना शुरू करो, मैं आप के लिए गोली ले कर आती हूं.’’

कविता को मीना ने अजीब सी नजरों से देखा. उन्हें अपनी देवरानी बदली सी लग रही थी. वह उस में आए बदलाव को समझ कर कुछ कह पाती, उस से पहले ही कविता कमरे से बाहर चली गई.

आरती और मीना ने बहुत कोशिश करी, पर कविता के मुंह से किसी की तरफदारी करते हुए 1 शब्द भी नहीं निकला. इस कारण वे दोनों ही शाम तक यह सोच कर उस से नाराज रहीं कि वह ‘हां में हां’ न मिला कर दूसरी पार्टी की तरफ हो गई है.

आरती और मीना के बीच उस दिन कई बार झड़प हुई, पर कविता का मन जरा से भी तनाव का शिकार नहीं बना. पहले की तरह न उसे सिरदर्द ने सताया, न भूख और नींद पर बुरा असर पड़ा.

शाम को मीना भी काम में हाथ बटाने के लिए रसोई में आ गई. वह और आरती दोनों ही उसे संबोधित करते हुए बातें कर रही थीं. एक ही अनुपस्थिति में जब दूसरी उस की बुराई करना शुरू करती, तो कविता फौरन ही बात को किसी और दिशा में मोड़ देती.

उस के इस बदले व्यवहार की बदौलत रसोई में आरती और मीना के बीच टकराव की

स्थिति विस्फोटक नहीं होने पाई. कुछ देर बाद तो वे दोनों आपस में सीधे बात भी करने लगीं, तो उन की नजरों से छिप कर कविता प्रसन्न भाव से मुसकरा उठी.

पिछली रात देर तक जाग कर वह जिस निष्कर्ष पर पहुंची थी, उस पर उस ने आज का नतीजा देख कर सही होने का ठप्पा लगा दिया.

‘आपसी झगड़े बहुत कम देर चलते हैं, पर उन की चर्चा कितनी भी लंबी खींची जा सकती है. हर वक्त ऐसी चर्चा करते रहने से मन में उन की यादों की जड़ें मजबूत होती जाती हैं. इस कारण मन में दूसरे व्यक्ति के लिए झगड़ा समाप्त होने के बाद भी बहुत देर तक वैरभाव बना रहता है और नया झगड़ा शुरू होने की संभावना भी बढ़ जाती है.

‘इस तरह की चर्चा करने में कहने और सुनने वाले को रस तो आता है, पर यह रस आपसी संबंधों के लिए जहरीला साबित होता है. जब भी मेरे सामने ऐसी चर्चा शुरू होगी, मैं फौरन कोई और बात आरंभ कर दिया करूंगी. मेरे ऐसे व्यवहार के लिए मुझे कोई भला कहे या बुरा, मुझे परवाह नहीं.’ ऐसा फैसला कर के कविता देर रात को सोई और आज अपने मन को प्रसन्न व हलकीफुलकी अवस्था में पा कर वह अपने फैसले पर उस के सही होने की मुहर पूरे विश्वास के साथ लगा सकती थी.

खाली हाथ : जातिवाद के चलते जब प्रेमी अनुरोध पहुंचा पागलखाने

आगरापूरी दुनिया में ‘ताजमहल के शहर’ के नाम से मशहूर है. इसी शहर में स्थित है मानसिक रोगियों के उपचार के लिए मानसिक स्वास्थ्य संस्थान एवं चिकित्सालय. इस संस्थान को कई भारतीय हिंदी फिल्मों में प्रमुखता से दिखाया गया है, हालांकि सच्चाई यह है कि न जाने कितनी भयानक और दुखद कहानियां दफन हैं इस की दीवारों में. आरोही को इस संस्थान में आए 2 महीने ही हुए थे. वह मनोचिकित्सक थी. इस के पहले वह कई निजी अस्पतालों में काम कर चुकी थी. अपनी काबिलीयत और मेहनत के बल पर उस का चयन सरकारी अस्पताल में हो गया था. उस से ज्यादा उस का परिवार इस बात से बहुत खुश था. वैसे भी भारत में आज भी खासकर मध्य वर्ग में सरकारी नौकरी को सफलता का सर्टिफिकेट माना जाता है. आरोही अपना खुद का नर्सिंगहोम खोलना चाहती थी. इस के लिए सरकारी संस्थान का अनुभव होना फायदेमंद रहता है. इसी वजह से वह अपनी मोटी सैलरी वाली नौकरी छोड़ कर यहां आ गई थी.

वैसे आरोही के घर से दूर आने की एक वजह और भी थी. वह विवाह नहीं करना चाहती थी और यह बात उस का परिवार समझने को तैयार नहीं था. यहां आने के बाद भी रोज उस की मां लड़कों की नई लिस्ट सुनाने के लिए फोन कर देती थीं. जब आरोही विवाह करना चाहती थी तब तो जातबिरादरी की दीवार खड़ी कर दी गई थी और अब जब उस ने जीवन के 35 वसंत देख लिए और उस के छोटे भाई ने विधर्मी लड़की से विवाह कर लिया तो वही लोग उसे किसी से भी विवाह कर लेने की आजादी दे रहे हैं. समय के साथ लोगों की प्राथमिकता भी बदल जाती है. आरोही उन्हें कैसे समझाती कि-

‘सूखे फूलों से खुशबू नहीं आती, किताबों में बंद याद बन रह जाते हैं’ या ‘नींद खुलने पर सपने भी भाप बन उड़ जाते हैं.’

‘‘मैडम,’’

‘‘अरे लता, आओ.’’

‘‘आप कुछ कर रही हैं तो मैं बाद में आ जाती हूं.’’

आरोही ने तुरंत अपनी डायरी बंद कर दी और बोली, ‘‘नहींनहीं कुछ नहीं. तुम बताओ क्या बात है?’’

‘‘216 नंबर बहुत देर से रो रहा है. किसी की भी बात नहीं सुन रहा. आज सिस्टर तबस्सुम भी छुट्टी पर हैं इसलिए…’’

‘‘216 नंबर… यह कैसा नाम है?’’

‘‘वह… मेरा मतलब है बैड नंबर 216.’’

‘‘अच्छा… चलो देखती हूं.’’

चलतेचलते ही आरोही ने जानकारी के लिए पूछ लिया, ‘‘कौन है?’’

‘‘एक प्रोफैसर हैं. बहुत ही प्यारी कविताएं सुनाते हैं. बातें भी कविताओं में ही करते हैं. वैसे तो बहुत शांत हैं, परेशान भी ज्यादा नहीं करते हैं, पर कभीकभी ऐसे ही रोने लगते हैं.’’

‘‘सुनने में तो बहुत इंटरैस्टिंग कैरेक्टर लग रहे हैं.’’

कमरे में दाखिल होते ही आरोही ने देखा कोई 35-40 वर्ष का पुरुष बिस्तर पर अधलेटा रोए जा रहा था.

‘‘सुनो तुम…’’

‘‘आप रुकिए मैडम, मैं बोलती हूं…’’

‘‘हां ठीक है… तुम बोलो.’’

‘‘अनुरोध… रोना बंद करो. देखो मैडम तुम से मिलने आई हैं.’’

इस नाम के उच्चारण मात्र से आरोही परेशान हो गई थी. मगर जब वह पलटा तो सफेद काली और घनी दाढ़ी के बीच भी आरोही ने अनुरोध को पहचान लिया. उस की आंखों के सामने अंधेरा छा गया और वह चेतनाशून्य हो कर वहीं गिर गई. होश आने पर वह अपने क्वार्टर में थी. उस के आसपास हौस्पिटल का स्टाफ खड़ा था. सीनियर डाक्टर भी थे.

‘‘तुम्हें क्या हो गया था आरोही?’’ डाक्टर रमा ने पूछा.

‘‘अब कैसा फील कर रही हो?’’ डाक्टर सुधीर के स्वर में भी चिंता झलक रही थी.

‘‘हां मैडम, मैं तो डर ही गई थी… आप को बेहोश होता देख वह पेशैंट भी अचानक चुप हो गया था.’’

‘‘मुझे माफ करना लता और आप सब भी, मेरी वजह से परेशान हो गए…’’

‘‘डोंट बी सिली आरोही. तुम अब

आराम करो हम सब बाद में आते हैं,’’ डाक्टर सुधीर बोले.

‘‘जी मैडम, और किसी चीज की जरूरत हो तो आप फोन कर देना.’’

उन के जाने बाद आरोही ने जितना सोने की कोशिश की उतना ही वह समय उस के सामने जीवंत हो गया, जब आरोही और अनुरोध साथ थे. आरोही और अनुरोध बचपन से साथ थे. स्कूल से कालेज का सफर दोनों ने साथ तय किया था. कालेज में भी उन का विषय एक था- मनोविज्ञान. इस दौरान उन्हें कब एकदूसरे से प्रेम हो गया, यह वे स्वयं नहीं समझ पाए थे. घंटों बैठ कर भविष्य के सपने देखा करते थे. देशविदेश पर चर्चा करते थे. समाज की कुरीतियों को जड़ से मिटाने की बात करते थे. मगर जब स्वयं के लिए लड़ने का समय आया, सामाजिक आडंबर के सामने उन का प्यार हार गया. एक दलित जाति का युवक ब्राह्मण की बेटी से विवाह का सपना भी कैसे देख सकता था. अपने प्रेम के लिए लड़ नहीं पाए थे दोनों और अलग हो गए थे.

आरोही ने तो विवाह नहीं किया, परंतु 4-5 साल के बाद अनुरोध के विवाह की खबर उस ने सुनी थी. उस विवाह की चर्चा भी खूब चली थी उस के घर में. सब ने चाहा था कि आरोही को भी शादी के लिए राजी कर लिया जाए, परंतु वे सफल नहीं हो पाए थे. आज इतने सालों बाद अनुरोध को इस रूप में देख कर स्तब्ध रह गई थी वह. अगले दिन सुबह ही वह दोबारा अनुरोध से मिलने उस के कमरे में गई.

आज अनुरोध शांत था और कुछ लिख भी रहा था. हौस्पिटल की तरफ से उस की इच्छा का सम्मान करते हुए उसे लिखने के लिए कागज और कलम दे दी गई थी. आज उस के चेहरे से दाढ़ी भी गायब थी और बाल भी छोटे हो गए थे.

‘‘अनु,’’ आरोही ने जानबूझ कर उसे उस नाम से पुकारा जिस नाम से उसे बुलाया करती थी. उसे लगा शायद अनुरोध उसे पहचान ले.

उस ने एक नजर उठा कर आरोही को देखा और फिर वापस अपने काम में लग गया. पलभर को उन की नजरें मिली अवश्य थीं पर उन नजरों में अपने लिए अपरिचित भाव देख कर तड़प गई थी आरोही, मगर उस ने दोबारा कोशिश की, ‘‘क्या लिख रहे हो तुम?’’

उस की तरफ बिना देखे ही वह बोला-

‘सपने टूट जाते हैं, तुम सपनों में आया न करो, मुझे भूल जाओ और मुझे भी याद आया न करो.’

अनुरोध की दयनीय दशा और उस की अपरिचित नजरों को और नहीं झेल पाई आरोही और थोड़ा चैक करने के बाद कमरे से बाहर निकल गई. मगर वह स्वयं को संभाल नहीं पाई और बाहर आते ही रो पड़ी. अचानक पीछे से किसी ने उस के कंधे पर हाथ रखा, ‘‘आप अनुरोध को जानती हैं मैडम?’’

पीछे पलटने पर आरोही ने पहली बार देखा सिस्टर तबस्सुम को, जिन के बारे में वह पहले सुन चुकी थी. वे इकलौती थीं जिन की बात अनुरोध मानता भी था और उन से ढेर सारी बातें भी करता था. कई सालों से वह सिस्टर तबस्सुम से काफी हिलमिल गया था.

‘‘मैं… मैं और अनुरोध…’’

‘‘शायद आप वही परी हैं जिस का इंतजार यह पगला पिछले कई सालों से कर रहा है. पिछले कई सालों में आज पहली बार मुसकराते हुए देखा मैं ने अनुरोध को. चलिए मैडम आप के कैबिन में चल कर बात करते हैं.’’

दोनों कैबिन में आ गईं. तबस्सुम का अनुरोध के प्रति अनुराग आरोही देख पा रही थी.

‘‘अनुरोध… ऐसा नहीं था. उस की ऐसी हालत कैसे हुई? क्या आप को कुछ पता है?’’ सिर हिला कर सिस्टर ने अनुरोध की दारुण कहानी शुरू की…

‘‘अनुरोध का चयन मेरठ के कालेज में मनोविज्ञान के व्याख्याता के पद पर हुआ था. इसी दौरान वह एक शादी में हिस्सा लेने मोदी नगर गया था, परंतु उसे यह नहीं पता था कि वह शादी स्वयं उसी की थी.

‘‘उस के मातापिता ने उस के लगातार मना करने से तंग आ कर उस का विवाह उस की जानकारी के बिना ही तय कर दिया था. शादी में बहुत कम लोगों को ही बुलाया गया था. मोदी नगर पहुंचने पर उस के पास विवाह करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था. अपने मातापिता के किए की सजा वह एक मासूम लड़की को नहीं दे सकता था और उस का विवाह विनोदिनी से हो गया.

‘‘विवाह के कुछ महीनों बाद ही विनोदिनी ने पढ़ाई के प्रति अपने लगाव को अनुरोध के सामने व्यक्त किया. अनुरोध सदा से स्त्री शिक्षा तथा स्त्री सशक्तीकरण का प्रबल समर्थक रहा था. खासकर उस के समुदाय में तो स्त्री शिक्षा की स्थिति काफी दयनीय थी. इसीलिए जब उस ने अपनी पत्नी के शिक्षा के प्रति लगाव को देखा तो अभिभूत हो गया.

‘‘विनोदिनी कुशाग्रबुद्धि तो नहीं थी, परंतु परिश्रमी अवश्य थी और उस की इच्छाशक्ति भी प्रबल थी. उस के मातापिता बहू की पढ़ाई के पक्षधर नहीं थे. विनोदिनी के मातापिता भी उसे आगे नहीं पढ़ाना चाहते थे, परंतु सब के खिलाफ जा कर अनुरोध ने उस का दाखिला अपने ही कालेज के इतिहास विभाग में करा दिया. विनोदिनी को हर तरह का सहयोग दे रहा था अनुरोध.

‘‘शादी के 1 साल बाद ही अनुरोध की मां ने विनोदिनी पर बच्चे के लिए दबाव डालना शुरू कर दिया, परंतु यहां भी अनुरोध अपनी पत्नी के साथ खड़ा रहा. जब तक विनोदिनी की ग्रैजुएशन पूरी नहीं हुई, उन्होंने बच्चे के बारे में सोचा तक नहीं.

‘‘विनोदिनी प्रथम श्रेणी में पास हुई और उस के बाद उस ने पीसीएस में बैठने की अपनी इच्छा अनुरोध को बताई. उसे भला क्या ऐतराज हो सकता था. अनुरोध ने उस का दाखिला शहर के एक बड़े कोचिंग सैंटर में करा दिया. घर वालों का दबाव बहुत ज्यादा बढ़ गया था. पहले 2 प्रयास में सफल नहीं हो पाई थी विनोदिनी.

‘‘मगर अनुरोध उसे सदा प्रोत्साहित करता रहता. इसी दौरान विनोदिनी 1 बेटे की मां भी बन गई. परंतु बच्चे को दूध पिलाने के अलावा बच्चे के सारे काम अनुरोध स्वयं करता था. घर के काम और जब वह कालेज जाता था तब बच्चे को संभालने के लिए उस ने एक आया रख ली थी. कभीकभी उस की मां भी गांव से आ जाती थीं. बेटे के इस फैसले से सहमत तो वे भी नहीं थीं, परंतु पोते से उन्हें बहुत लगाव था.

‘‘चौथे प्रयास के दौरान तो विनोदिनी को जमीन पर पैर तक रखने नहीं दिया था अनुरोध ने. अनुरोध की तपस्या विफल नहीं हुई थी. विनोदिनी का चयन पीसीएस में डीएसपी के पद पर हो गया था. वह ट्रेनिंग के लिए मुरादाबाद चली गई. उस समय उन का बेटा अमन मात्र 4 साल का था.

‘‘अनरोध ने आर्थिक और मानसिक दोनों तरह से अपना सहयोग विनोदिनी को दिया. लोगों की बातों से न स्वयं आहत हुआ और न अपनी पत्नी को होने दिया. उस ने विनोदिनी के लिए वह किया जो उस के स्वयं के मातापिता नहीं कर पाए. सही मानों में फैमिनिस्ट था अनुरोध. स्त्रीपुरुष के समान अधिकारों का प्रबल समर्थक.

‘‘जब विनोदिनी की पहली पोस्टिंग अलीगढ़ हुई तो लगा कि उस की समस्याओं का अंत हुआ. अब दोनों साथ रह कर अपने जीवनपथ पर आगे बढ़ेंगे, परंतु वह अंत नहीं आरंभ था अनुरोध की अंतहीन पीड़ा का.

‘‘विनोदिनी के जाने के बाद अनुरोध अपना तबादला अलीगढ़ कराने में लग गया. अमन को भी वह अपने साथ ही ले गई थी. अनुरोध को भी यही सही लगा था कि बच्चा अब कुछ दिन मां के साथ रहे और फिर उस का तबादला भी 6 महीने में अलीगढ़ होने ही वाला था. सबकुछ तय कर रखा था उस ने परंतु नियति ने कुछ और ही तय कर रखा था उस के लिए.

‘‘विनोदिनी का व्यवहार समय के साथ बदलता चला गया. पद के घमंड में अब वह अनुरोध का अपमान भी करने लग गई थी. उस ने तो मेरठ आना बंद ही कर दिया था, इसलिए अनुरोध को अपने बेटे से मिलने अलीगढ़ जाना पड़ता था. विनोदिनी के कटु व्यवहार का तो वह सामना कर लेता था, परंतु इस बात ने उसे विचलित कर दिया था कि उन के बीच के झगड़े का विपरीत असर उन के बेटे पर हो रहा था.

अब वह शीघ्र ही मेरठ छोड़ना चाहता था. डेढ़ साल बीत गया था, पर उस का तबादला नहीं हो पा रहा था.

‘‘‘प्रिंसिपल साहब, आखिर यह हो क्या रहा है? 6 महीनों में आने वाली मेरी पोस्टिंग, डेढ़ साल में नहीं आई. आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?’

‘‘‘अनुरोध तुम्हें तो पता है सरकारी काम में देर हो ही जाती है.’

‘‘‘जी सर… पर इतनी देर नहीं. मुझे तो ऐसा लगता है जैसे आप जानबूझ कर ऐसा नहीं होने दे रहे?’

‘‘‘अनुरोध…’

‘‘‘आप मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं सर? क्या हमारा रिश्ता आज का है?’

‘‘‘अनुरोध… कोई है जो जानबूझ कर तुम्हारी पोस्टिंग रोक रहा है.’

‘‘‘कौन?’

‘‘‘तुम्हें तो मैं बहुत समझदार समझता था, जानबूझ कर कब तक आंखें बंद रखोगे?’

‘‘‘क्या मतलब?’

‘‘‘गिरिराज सिंह और विनोदिनी…’

‘‘‘प्रिंसिपल साहब…’ चीख पड़ा अनुरोध.

‘‘अनुरोध के कंधे पर हाथ रख कर प्रिंसिपल साहब बोले,…

‘बेटा, विश्वास करना अच्छी बात है, परंतु अंधविश्वास मूर्खता है. अपनी नींद से जागो.’

‘‘विनोदिनी के बारे में ऐसी बातें अनुरोध ने पहली बार नहीं सुनी थीं, परंतु वह ऐसी सुनीसुनाई बातों पर यकीन नहीं करता था. उसे लगता था कि विनोदिनी बददिमाग, बदतमीज और घमंडी हो सकती है परंतु चरित्रहीन नहीं.

‘‘2 महीने की छुट्टी ले कर जिस दिन वह अलीगढ़ पहुंचा, घर पर ताला लगा था. वहां पर तैनात सिपाही से पता चला कि मैडम नैनीताल घूमने गई हैं. मगर विनोदिनी ने अनुरोध को इस बारे में कुछ नहीं बताया था.

‘‘7 दिन बाद लौटी थी विनोदिनी परंतु अकेले नहीं, उस के साथ गिरिराज सिंह भी था.

‘‘‘कैसा रहा आप का टूर मैडम?’

‘‘‘उसे देख कर दोनों न चौंके न ही शर्मिंदा हुए. बड़ी बेशर्मी से वह आदमी सामने रखे सोफे पर ऐसे बैठ गया जैसे यह उस का ही घर हो.’

‘‘‘तुम कब आए?’

‘‘विनोदिनी की बात अनसुनी कर अनुरोध गिरिराज सिंह से बोला, ‘मुझे अपनी पत्नी से कुछ बात करनी है. आप इसी वक्त यहां से चले जाएं.’

‘‘‘यह कहीं नहीं जाएगा…’

‘‘‘विनोदिनी चुप रहो…’

‘‘मगर उस दिन गिरिराज सिंह नहीं अनुरोध निकाला गया था उस घर से. विनोदिनी ने हाथ तक उठाया था उस पर.

‘‘गिरिराज और विनोदिनी को लगा था कि इस के बाद अनुरोध दोबारा उन के रिश्ते पर आवाज उठाने की गलती नहीं करेगा, परंतु वे गलत थे.

‘‘टूटा जरूर था अनुरोध पर हारा नहीं था. वह जान गया था कि अब इस रिश्ते

में बचाने जैसा कुछ नहीं था. उसे अब केवल अपने अमन की चिंता थी. इसलिए वह कोर्ट में तलाक के साथ अमन की कस्टडी की अर्जी भी दायर करने वाला था. इस बात का पता लगते ही विनोदिनी ने पूरा प्रयास किया कि वह ऐसा न करे. उन के लाख डरानेधमकाने पर भी अनुरोध पीछे नहीं हटा था. एक नेता और अधिकारी का नाम होने के कारण मीडिया भी इस खबर को प्रमुखता से दिखाने वाली है. इस बात का ज्ञान उन दोनों को था.

‘‘गिरिराज सिंह को अपनी कुरसी और विनोदिनी को अपनी नौकरी की चिंता सताने लगी थी. इसीलिए कोर्ट के बाहर समझौता करने के लिए विनोदिनी ने उसे अपने घर बुलाया.

‘‘जब अनुरोध वहां पहुंचा घर का दरवाजा खुला था. घर के बाहर भी कोई नजर नहीं आ रहा था. जब बैल बजाने पर भी कोई नहीं आया तो उस ने विनोदिनी का नाम ले कर पुकारा. थोड़ी देर बाद अंदर से एक पुरुष की आवाज आई, ‘इधर चले आइए अनुरोध बाबू.’

‘‘अनुरोध ने अंदर का दरवाजा खोला तो वहां का नजारा देख कर वह हैरान रह गया. बिस्तर पर विनोदिनी और गिरिराज अर्धनग्न लेटे थे. उसे देख कर भी दोनों ने उठने की कोशिश तक नहीं की.

‘‘‘क्या मुझे अपनी रासलीला देखने बुलाया है आप लोगों ने?’

‘‘‘नहींजी… हा… हा… हा… आप को तो एक फिल्म में काम देने बुलाया है.’

‘‘‘क्या मतलब?’

‘‘‘हर बात जानने की जल्दी रहती है तुम्हें… आज भी नहीं बदले तुम,’ विनोदिनी ने कहा.

‘‘‘मतलब समझाओ भई प्रोफैसर साहब को.’’

‘‘इस से पहले कि अनुरोध कुछ समझ पाता उस के सिर पर किसी ने तेज हथियार से वार किया. जब उसे होश आया उस ने स्वयं को इसी बिस्तर पर निर्वस्त्र पाया. सामने पुलिस खड़ी थी और नीचे जमीन पर विनोदिनी बैठी रो रही थी.

‘‘कोर्ट में यह साबित करना मुश्किल नहीं हुआ कि विनोदिनी के साथ जबरदस्ती हुई है. इतना ही नहीं यह भी साबित किया गया कि अनुरोध एक सैक्सहोलिक है और उस का बेटा तक उस के साथ सुरक्षित नहीं है, क्योंकि अपनी इस भूख के लिए वह किसी भी हद तक जा सकता है. विनोदिनी के शरीर पर मारपीट के निशान भी पाए गए. अनुरोध के मोबाइल पर कई लड़कियों के साथ आपत्तिजनक फोटो भी पाए गए.

‘‘उस पर घरेलू हिंसा व महिलाओं के संरक्षण अधिनियम कानून के अनुसार केस दर्ज किया गया. उस पर बलात्कार का भी मुकदमा दर्ज किया गया. मीडिया ने भी अनुरोध को एक व्यभिचारी पुरुष की तरह दिखाया. सोशल नैटवर्किंग साइट पर तो बाकायदा एक अभियान चला कर उस के लिए फांसी की सजा की मांग की गई. कोर्ट परिसर में कई बार उस के मातापिता के साथ बदसुलूकी भी की गई.

‘‘अनुरोध के मातापिता का महल्ले वालों ने जीना मुश्किल कर दिया था. जिस दिन कोर्ट ने अनुरोध के खिलाफ फैसला सुनाया उस के काफी पहले से उस की मानसिक हालत खराब होनी शुरू हो चुकी थी. लगातार हो रहे मानसिक उत्पीड़न के साथ जेल में हो रहे शारीरिक उत्पीड़न ने उस की यह दशा कर दी थी. फैसला आने के 10 दिन बाद ही अनुरोध के मातापिता ने आत्महत्या कर ली और अनुरोध को यहां भेज दिया गया. एक आदर्शवादी होनहार लड़के और उस के खुशहाल परिवार का ऐसा अंत…’’

कुछ देर की खामोशी के बाद तबस्सुम फिर बोलीं, ‘‘मैडम, मैं मानती हूं कि घरेलू हिंसा का सामना कई महिलाओं को करना पड़ता है. इसीलिए स्त्रियों की रक्षा हेतु इस कानून का गठन किया गया था.

‘‘परंतु घरेलू हिंसा से पीडि़त पुरुषों का क्या? उन पर उन की स्त्रियों द्वारा की गई मानसिक और शारीरिक हिंसा का क्या?

‘‘अगर पुरुष हाथ उठाए तो वह गलत… नामर्द, परंतु जब स्त्री हाथ उठाए तो क्या? हिंसा कोई भी करे, पुरुष अथवा स्त्री, पति अथवा पत्नी, कानून की नजरों में दोनों समान होने चाहिए. जिस तरह पुरुष द्वारा स्त्री पर हाथ उठाना गलत है उसी प्रकार स्त्री द्वारा पुरुष पर हाथ उठाना भी गलत होना चाहिए. परंतु हमारा समाज तुरंत बिना पूरी बात जाने पुरुष को कठघरे में खड़ा कर देता है.

‘‘ताकतवार कानून स्त्री की सुरक्षा के लिए बनाए गए परंतु आजकल विनोदिनी जैसी कई स्त्रियां इस कानून का प्रयोग कर के अपना स्वार्थ सिद्ध करने लगी हैं.

‘‘वैसे तो कानून से निष्पक्ष रहने की उम्मीद की जाती है, परंतु इस तरह के केस में ऐसा हो नहीं पाता. वैसे भी कानून तथ्यों पर आधारित होता है और आजकल पैसा और रसूख के बल पर तथ्यों को तोड़ना और अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना आम बात हो गई है. जिस के पास पैसा और ताकत है कानून भी उस के साथ है.

‘‘हां, सही कह रही हैं आप तबस्सुम. अनुरोध जैसे मर्द फैमिनिज्म का सच्चा अर्थ जानते हैं. वे जानते हैं कि स्त्री और पुरुष दोनों एकसमान है. न कोई बड़ा, न कोई छोटा. इसलिए गलत करने पर सजा भी एकसमान होनी चाहिए.

‘‘मगर विनोदिनी जैसी कुछ स्त्रियां नारीवाद का गलत चेहरा प्रस्तुत कर रही हैं,’’ लता के अचानक आ जाने से दोनों की बातचीत पर विराम लग गया.

‘‘माफ कीजिएगा वह बैड नंबर 216 को खाना देना था.’’

‘‘अरे हां… तुम चलो मैं आती हूं. चलती हूं मैडम अनुरोध को खाना खिलाने का समय हो गया है.’’

‘‘मैं भी चलती हूं…’’

जब वे दोनों वहां पहुंचीं तो देखा अनुरोध अपने दोनों हाथों को बड़े ध्यान से निहार रहा  था. आरोही उस के पास जा कर बैठ गई. फिर पूछा, ‘‘क्या देख रहे हो? प्लीज कुछ तो बोलो.’’

कुछ नहीं बोला अनुरोध. उस की तरफ देखा तक नहीं.

सिस्टर तबस्सुम अनुरोध के सिर पर हाथ रख कर बोलीं, ‘‘बोलो बेटा, बताओ… तुम चिंता न करो कुदरत ने चाहा तो अब सब ठीक हो जाएगा.’’

इस बार वह उन की तरफ पलटा और फिर अपनी खाली हथेलियों को उन की तरफ फैलाते हुए बोला-

‘ऐ प्यार को मानने वालो, इजहार करना हमें भी सिखाओ. बंद करें हथेली या खोल लें इसे, खो गई हमारी छाया से हमें भी मिलवाओ…

तलाक की खबरों पर आरती सिंह ने दिया रिएक्शन, ‘नईनई शादी हुई है भला मैं तलाक क्यों लूंगी’

प्रसिद्ध एक्टर गोविंदा की भाजी और प्रसिद्ध कौमेडियन कृष्णा अभिषेक की बहन आरती सिंह की शादी 4 महीने पहले 25 अप्रैल 2024 को बिजनेसमैन दीपक चौहान के साथ संपन्न हुई थी. दीपक एक बेटी के बाप और तलाकशुदा है . जिन्होंने बहुत ही धूमधाम से आरती सिंह के साथ विवाह रचाया. इस शादी में मामा गोविंद सहित कई सारी फिल्मी हस्तियां मौजूद थी. आरती सिंह खुद अपनी शादी से बेहद खुश भी थी. जिसके चलते सोशल मीडिया पर आरती सिंह ने अपनी शादी और हनीमून की फोटो भी शेयर की.

लेकिन अचानक सोशल मीडिया पर खबरें फैलने लगी कि वह अपनी शादी से खुश नहीं है और तलाक लेने की योजना बना रही है. इस खबर से जहां बौलीवुड में सनसनी फैल गई वही खुद आरती सिंह अपनी ही तलाक की खबर सुनकर दुखी और अचंभित हो गई. आरती सिंह के अनुसार मैं अपनी शादी से बहुत खुश हूं. कोई तलाक का इरादा नहीं है. पता नहीं कौन इस तरह की ऊलजलूल खबरें फैला रहा है. जो सुनकर मुझे बहुत दुख हुआ है. मेरी अभी नईनई शादी हुई है. भला मैं तलाक क्यों लूंगी.

यह सब कहकर आरती ने अपनी तलाक की खबर को पूरी तरह अफवाह बताया है इस खबर को फैलाने वाले को बुरा भी कहा है. गौरतलब है कि आरती सिंह की मां बचपन में ही मर गई थी और उनको मां की फ्रेंड ने आरती को पालपोस कर बड़ा किया है. आरती की शादी भी बड़ी उम्र में हुई है. इसी वजह से तलाक की खबर ने आरती सिंह को विचलित कर दिया . सोशल मीडिया पर आकर इस खबर का खंडन करने पर भी मजबूर कर दिया.

कंंगना रनौत को मिली जान से मारने की धमकी, सिख समाज ने किया ‘इमरजेंसी’ का जबरदस्त विरोध

बौलीवुड अभिनेत्री और भाजपा सांसद कंगना रनौत हमेशा अपने दिए गए बयानों के तहत चर्चा में रहती हैं. जिसके चलते बीजेपी सांसद बनने के बावजूद कंगना को अपने बे सिर पैर के कमेंट की वजह से एयरपोर्ट पर महिला अधिकारी द्वारा थप्पड़ खाने तक की नौबत आ गई . इतना ही नहीं उनका ट्विटर अकाउंट बंद कर दिया गया. कंगना के हिसाब से देश को आजादी 2014 में मिली है. और देश की सबसे ईमानदार नेता भी वो खुद ही है . इतनी सारी महान बातों के बावजूद कंगना इलेक्शन भी जीत गई. और सांसद भी बन गई.

ऐसे में आज के समय में देश की जनता किस मूड में है बताने की जरूरत नहीं. कंगना की बेबाक बयान बाजी और फिल्म इंडस्ट्री से लेकर संसद भवन तक उनके खतरनाक कमेंट जैसे राहुल गांधी गांजा लेते हैं इसलिए उनका इलाज की जरूरत है. और किसानों को लेकर भद्दे कमेंट आदि के चलते हाल ही में जब इंदिरा गांधी पर बनी उनकी फिल्म इमरजेंसी की रिलीज डेट सामने आई तो इस फिल्म की रिलीज को लेकर विवाद शुरू हो गया.

यह विवाद सिख समुदाय द्वारा शुरू हुआ है. सिख समुदाय ने सेंसर से अपील की है इमरजेंसी फिल्म को सर्टिफिकेट ना दे. क्योंकि उनका आरोप है कि कंगना ने इमरजेंसी फिल्म के नाम पर सिख समुदाय को बदनाम करने की कोशिश की है. क्योंकि इंदिरा गांधी कांग्रेस पार्टी की नेता थी और कंगना इमरजेंसी में इंदिरा गांधी की भूमिका निभा रही हैं जबकि खुद व भाजपा की नेता है लिहाजा कांग्रेस और सिख समुदाय को डर है कि वह अपनी फिल्म के जरिए कांग्रेस की सिख समुदाय की छवि खराब करने का इरादा रखती हैं. गौरतलब है इंदिरा गांधी की मौत कुछ सिखों की वजह से ही हुई थी इसलिए फिल्म इमरजेंसी में भी सिखों को आड़े हाथों लिया गया है. और उनकी छवि खराब करने की कोशिश भी की गई है.

जिसके चलते कंगना को जान से मारने तक की धमकी तक मिली है. कंगना की बकवास सौरी बिंदास बयान बाजी और टिप्पणी की वजह से भाजपा के लोग भी परेशान हैं, और उन्हें आए दिन चेतावनी भी देते रहते हैं. लेकिन बावजूद इसके कंगना की कोई ना कोई टिप्पणी विवादों में घिर ही जाती है और अब तो पूरी की पूरी फिल्म आर रही है . ऐसे में सभी का घबराना वाजिब है. अब देखना यह है कंगना की इमरजेंसी क्या रंग लाती है और ढेर सारे विवादों को जन्म देती है या बौक्स औफिस पर सफलता के झंडे गाड़ती है.

ग्लैमर वर्ल्ड की सचाई दिखाती है उर्फी जावेद का यह शो ‘फौलो कर लो यार’

उर्फी जावेद अक्सर सुर्खियों में छाई रहती हैं. खासकर जब वह अजीबोगरीब ड्रैसेज में सोशल मीडिया पर फोटोज शेयर करती हैं, तो उन्हें ट्रोलिंग का सामना करना पड़ता है. सोशल मीडिया पर उनकी फैन फौलोइंग ज्यादा है, लेकिन उनमें ट्रोलर्स की संख्या अधिक हैं.

हाल ही में उर्फी जावेद का नया रियलिटी शो ‘फौलो कर लो यार’ अमेजन प्राइम वीडियो पर स्ट्रीम हुआ है. इस सीरीज में उर्फी के रियल लाइफ को दिखाया जा रहा है. बताया जा रहा है कि यह शो बिना किसी फिल्टर का बनाया गया है. इस सीरीज में उर्फी के अलावा उनकी बहनें भी स्क्रीन पर नजर आ रही हैं. यह रियलिटी शो नौ एपिसोड का है. हर एपिसोड 30 मिनट का है. इस शो से आप बोर नहीं होंगे. यह शो दर्शकों को अंतिम एपिसोड तक बांधे रखता है.

uorfi javed

उर्फी की असली कहानी

यह सीरिज इसलिए भी खास है, क्योंकि इसमें उर्फी के हर विवाद, स्ट्रगल और उनकी कहानी को भी बयां करता है. उर्फी के इस सीरिज में आपको बहनों की जबरदस्त नोंकझोंक देखने को मिलेगी. इस सीरीज एक फेमस डायलौग है ‘ आप मुझे इग्नोर नहीं कर सकते, फौलो कर लो यार’.

फेमस होने के बाद सेलिब्रिटी का स्ट्रगल खत्म हो जाता है?

इस सीरीज में फैमिली ड्रामा, पापराजी के दर्शन से लेकर ट्रायल शो सभी जरूरी चीजें दिखाए गाए हैं. यह सीरीज एक आम लड़की की है, जिसका बचपन आम भी नहीं था. वह कैसे एक इंटरनेट सेंसेशन बनी. क्या फेमस होने के बाद उर्फी का स्ट्रगल खत्म हो गया ?

इस सीरीज में सेलेब्स के कई सरी सच्ची चीजों को दिखाया गया है. कैसे सेलेब्रिटी पैप्स को खुद बुलाते हैं और पूछते हैं कि आपको कैसे पता चला. यों कहे तो ये सीरीज ईमानदारी से दिखाया गया है. कैसे उर्फी खुद पैप्स से पहले पहुंचकर उनका इंतजार करती है. वह बेझिझक बोलती है, जाह्नवी और नोरा के जैसे बट्स चाहती है और उनकी तरह उसेे डांस भी करना है.

जब सेलिब्रिटी भी आम लोगों की तरह लाइन में खड़े होते हैं

जहां सेलेब्स को रिस्पैक्ट नहीं मिलती है, इस बात को छिपाया जाता है, जबकि उर्फी इस बात को दिखाती है कि उन्हें भी आम इन्फ्लूएंसर की तरह लाइन में लगकर एक फौरेन स्टार के साथ तस्वीर खिंचवानी पड़ी. उर्फी का यह सीरीज ग्लैमर वर्ल्ड के कई तरह के सच्चाई से रूबरू करवाता है. स्टार्स के असली जीवन की क्या सच्चाई है, ये किसी को नहीं पता है. वो सच कभी बाहर ही नहीं आता. स्टार्स को लेकर सिर्फ गौसिप होता है, कयास लगाए जाते हैं, सुर्खियों में छाए रहते हैं, टीवी या अखबारों के हैडलाइंस बन कर रह जाते हैं. उर्फी ने इस सच्चाई को इस सीरीज में बहुत ही सलीके से दिखाया है. यह शो आपको हंसाने में भी कामयाब होगी.

सोशल मीडिया पर उर्फी का कितना मजाक उड़ाया जाता है, ट्रोल किया जाता है, खुलेआम गालियां दी जाती है. लेकिन, कोई भी चीज उन्हें डाउन नहीं कर सकती है. वह उन आउटफिट्स को कैरी करती हैं, जो लोगों का ध्यान उनकी तरफ खिंचती हैं.

लाइमलाइट में आने के लिए खुद ही पैप्स को बुलाते हैं

यह सीरीज सेलिब्रिटी के असली लाइफस्टाइल को दर्शाती है. कैसे कोई सेलिब्रिटी खुद को मेंटेन रखने के लिए खर्च करते हैं. लाइमलाइट में आन के लिए कैसे पैप्स को बुलाते हैं. अपनी पीआर कंपनी हायर करते हैं. अपनी पौपुलरिटी के लिए खानेपीने से लेकर रहने तक कितने कितने पैसे बहाते हैं. इस सीरीज में उर्फी ने बोल्ड तरीके से इस सच्चाई को दिखाया है.

उर्फी जावेद ने सर्जरी पर करोड़ों रुपये किए खर्च

उर्फी ने सुंदर दिखने के लिए कौस्मेटिक सर्जरी का सहारा लिया है. उन्होंने लिप फीलर भी करवाया है, यहां तक की नकली दांत भी लगवाए हैं. इन सर्जरी में वह करोड़ों रुपए का खर्च कर चुकी हैं. ये सारी चीजें इस सीरीज में दिखाई गई है. वह ब्रैस्ट फीलर भी करवाना चाहती है. हालांकि उनकी बहनें मना करती है, लेकिन वह एक्सपर्ट से राय लेने भी जाती है.

क्यों देखना चाहिए यह सीरीज

कुल मिलाकर ये कह सकते हैं कि परदे के पीछे स्टार्स की असली जीवन की क्या कहानी होती है, वो जितना स्टाइलिश दिखते हैं, उन्हें कैसे पब्लिसिटी मिलती है, इन सबके लिए एक्टर्स को क्याक्या करना पड़ता है. उर्फी के इस सीरिज में देख सकते हैं. यह सीरिज सेलिब्रेटी के असली जीवन को दिखा रही है.

डिलीवरी के बाद मेरे ब्रैस्ट बेडौल होते जा रहे हैं… सही शेप में लाने के लिए क्या करूंं ?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं 26 साल की हूं, मेरा 6 महीने का एक बेटा है, तो उसे ब्रैस्टफीडिंग कराती हूं, ऐसे में ब्रा पहनना छोड़ दिया है. मुझे लग रहा है कि मेरे स्तन बेडौल होते जा रहे हैं, ब्रा पहनती भी हूं, तो कसने लगता है. ब्रा नहीं पहनने से कहीं स्तन बहुत ज्यादा तो नहीं बढ़ जाएगा. समझ नहीं आ रहा क्या करूं? आप ही इसके लिए कोई उपाय बताएं जिससे मेरा फिगर ठीक हो जाए…

The Sleeping Baby on Blanket

जवाब

जब कोई महिला पहली बार मां बनती है, तो उसके बौडी में कई तरह के बदलाव आते हैं. महिलाओं की ब्रैस्ट की शेप भी बदल जाती है. नई मां को ब्रैस्टफीडिंग भी करानी होती है, जिससे ब्रैस्ट ढीली और लटकी हुई दिखती है. आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है, हम आपको कुछ टिप्स बताएंगे जिसे आप अपनाकर ब्रैस्ट को शेप में ला सकती हैं.

आपको ब्रा पहनने से समस्या होती है, लेकिन आप सही ब्रा का चुनाव करें, आजकल मार्केट में कई तरह के ब्रा मिलते हैं, जिससे आपको खिंचाव महसूस नहीं होगा. आप कम्फर्टेबल फील करेंगी. आपके ब्रैस्ट को सपोर्ट भी मिलेगा. आप इसके लिए हल्की पैडेड टीशर्ट ब्रा का औप्शन चुन सकती हैं. सौफ्ट कपड़े की ब्रा पहनें, जिससे आपको स्मूथ फील होगा. जिससे आप पूरे दिन आराम से रह सकती हैं. इसके अलावा ब्रैस्टफीडिंग करवाने के दौरान आपका पोस्चर बदलता होगा. उस दौरान अपना पोस्चर ठीक रखें. आगे की ओर झुके नहीं.

मालिश करें

ब्रैस्ट की मालिश करने से शेप में लाया जा सकता है. इससे बेहतर ब्लड सर्कुलेशन होता है. ब्रैस्ट की मालिश करने से इसे शेप में लाने में मदद मिल सकती है. इसके लिए आप बादाम का तेल या औलिव आयल का इस्तेमाल कर सकती हैं.

एक्सरसाइज करें

ब्रैस्ट को शेप में लाने के लिए एक्सरसाइज काफी मददगार साबित हो सकती है. इसका कोई साइड इफैक्ट भी नहीं है. इसके लिए आप पुश अप्स, चैस्ट प्रैस कर सकती हैं, लेकिन हल्की एक्सरसाइज ही करें.

डिलीवरी होने के बाद क्यों बढ़ जाता है ब्रैस्ट का साइज

बच्चे के जन्म होने के बाद स्तन पहले से बड़े हो सकते हैं, क्योंकि आपके एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन का स्तर बहुत ही कम हो जाता है. प्रोलैक्टिन जो एक तरह का हार्मोन है, यह ब्रैस्ट में दूध बनाने का काम करता है. ब्रैस्ट में दूध आने की वजह से इसके शेप में बदलाव आता है. हालांकि जब बच्चा दूध पीना छोड़ देता है, तो फिर से ब्रैस्ट नार्मल शेप में आने लगते हैं.

डाइट का ख्याल रखें

बैस्टफीडिंग डाइट अलग होती है. आप किसी एक्सपर्ट का सलाह लेकर इसे फौलो करें. आप अपनी डाइट में विटामिन-बी और विटामिन-ई से भरपूर चीजें खा सकती हैं. ज्यादा फैटी चीजें न खाएं.

डिलीवरी के बाद  हो सकती हैं ये समस्याएं

डिलीवरी के बाद शरीर में कई तरह की समस्याएं होती हैं. ड्राई स्किन, स्किनपैच, हेयर फाल जैसी समस्या होती है. बौडी में हार्मोनल चेंज के कारण ये बदलाव होते हैं. कई बार ब्रैस्ट में दर्द भी होने लगता है. ये खासकर उन महिलाओं में होता है, जो पहली बार मां बनती है. हालांकि कुछ हफ्तों या महीनों में ठीक हो जाता है. लेकिन जब ये परेशानी बढ़ जाए तो एक्सपर्ट से सलाह लेनी चाहिए.

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संबल: विनोद को सही राह पर कैसे लायी उसकी पत्नी

अपने मैरिजहोम के स्वागतकक्ष में बैठी नमिता मुख्य रसोइए से शाम को होने वाले एक विवाह की दावत के बारे में बातचीत कर रही थी, तभी राहुल उस के कमरे में आया. नमिता को स्वागतकक्ष में देख कर एक बार को वह ठिठक सा गया, ‘‘अरे, नमिता, तुम यहां?’’ निगाहों में ही नहीं, उस के स्वर में भी आश्चर्य था.

‘‘क्यों? क्या मैं यहां नहीं हो सकती?’’ हंसते हुए नमिता ने गरमजोशी से राहुल का स्वागत किया और बगल में पड़ी कुरसी की तरफ बैठने का संकेत कर रसोइए से अपनी बात जारी रखी, फिर उसे एक सूची पकड़ा कर बोली, ‘‘इस सूची के मुताबिक दावत की हर चीज तैयार रखें. खाना लगभग 9 बजे होना है. कोई शिकायत नहीं सुनूंगी मैं.’’

‘‘जी मैडम,’’ रसोइए ने सिर झुका कर कहा और सूची ले वहां से चला गया.

‘‘यह क्या लफड़ा है भई?’’ राहुल ने अचरज से पूछा.

‘‘कोई खास नहीं,’’ नमिता मुसकराई. वही पुरानी मारक मुसकान, जिस का राहुल कभी दीवाना था.

‘‘अपनी शादी तो सफल नहीं हो सकी राहुल, पर दूसरों की शादियों का सफल आयोजन करने लगी हूं,’’ कह कर खुल कर हंसी नमिता. हंसते समय उसी तरह उस के गालों में पड़ने वाले गड्ढे और वैसे ही खिलखिलाने के साथ उस की छलक उठने वाली चमकदार पनीली आंखें. कुछ भी तो नहीं बदला है नमिता में.

‘‘आजकल कहां हैं महाशय?’’ राहुल को पता था, नमिता का पति एक गैरजिम्मेदार व भगोड़ा किस्म का व्यक्ति निकला. जिस ने शादी के बाद जीवन की किसी भी जिम्मेदारी को ठीक से कभी निभाने की कोशिश नहीं की.

‘‘किसी तरह बिगड़ैल बैल को गाड़ी के जुए के नीचे रखने में सफल हो गई हूं राहुल,’’ वह सगर्व बोली, ‘‘आजकल हमारे इस मैरिजहोम का बाहरी काम वही देखते हैं. आदतों में भी कुछ बदलाव आए हैं. आशा है, अब सब ठीक हो जाएगा.’’

‘‘लेकिन इतना आलीशान मैरिजहोम तुम ने बना कैसे डाला?’’ राहुल चकित स्वर में बोला, ‘‘कोई बैंक लूटा क्या तुम लोगों ने?’’

‘‘दिल में अगर कुछ करने का हौसला हो तो पैसे लगाने वालों की कमी नहीं है राहुल,’’ नमिता बोली, ‘‘मैं जिस कंपनी में काम करती थी, उस के मालिक खन्ना साहब पैसे वाले आदमी हैं. शहर में एक अच्छे मैरिजहोम की जरूरत सब महसूस कर रहे थे, पर कोईर् आगे बढ़ने का साहस नहीं कर रहा था. मैं ने खन्ना साहब से इस संबंध में अपना प्रस्ताव रखते हुए बात की तो वे गंभीर हो गए. वे बोले, ‘अगर तुम उस का इंतजाम कर सकती हो और सारा कुछ अपनी देखरेख में चला सकती हो तो बताओ.’

‘‘मैं ने हिम्मत जुटाई और उन्होंने पैसा लगाया. साहस का संबल यह रहा कि मैरिजहोम शहर की नाक बन गया है. अब हर अच्छी शादी का इंतजाम हम करते हैं. हर अच्छी दावत हमारे यहां से होती है. और आप आश्चर्य करेंगे कि हमारे पति महाशय को अब सिर उठाने की फुरसत नहीं मिलती. रातदिन इस के प्रबंधन में जुटे रहते हैं. खुश भी हैं और संतुष्ट भी.’’

‘‘यानी आजाद पंछी को अपने पिंजड़े में कैद कर लिया तुम ने,’’ राहुल मुसकराया, ‘‘चलो, अच्छा हुआ, वरना मैं परेशान रहता था तुम्हें ले कर कि तुम शादी कर के खुश नहीं रह सकीं.’’

‘‘एक बार को तो सबकुछ उजड़ ही गया था राहुल. लगने लगा था कि सब बिखर गया. जीवन बेकार हो गया. शादी असफल हो जाएगी. विनोद सचमुच ऐसे इंसान नहीं हैं जो घर बसा कर रहने में विश्वास रखते हों. वे यायावर, घुमक्कड़ किस्म के व्यक्ति हैं, आज यहां तो कल वहां. आज यह नौकरी तो कल वह, आज इस शहर में तो कल उस शहर में. दरदर की ठोकरें खाना उन की प्रवृत्ति और आदत में शुमार था राहुल. यह मैं ही जानती हूं कि कैसे उन्हें सही रास्ते पर लाई और अब खुश हूं कि वे मुझे पूरा सहयोग कर रहे हैं और इस काम में रुचि ले रहे हैं. काम चल निकला है और हमें खासी आमदनी होने लगी है.’’

‘‘यह करिश्मा किस का मानूं? तुम्हारा या विनोद का?’’ राहुल ने नमिता की आंखों में अपने पुराने दिन खोजने चाहे, जिन की कोई छाया तक उसे नहीं मिली. कितनी बदल गई है नमिता, कितना आत्मविश्वास छलक रहा है अब उस में.

नमिता के मातापिता नमिता का रिश्ता राहुल से करना चाहते थे. राहुल नमिता को पसंद भी बहुत करता था. जाति की बाधा भी नहीं थी. विश्वविद्यालय में वह नमिता के लिए रोज चक्कर लगाता था. नमिता तब इंग्लिश में एमए कर रही थी और राहुल उसी शहर में आयुर्वेदिक कालेज में बीएएमएस कर रहा था. करना तो हर युवक की तरह वह एमबीबीएस ही चाहता था, पर कई बार परीक्षा में बैठने के बाद भी उस में सफल नहीं हुआ तो जिस में प्रवेश मिल गया, वही पढ़ने लगा था. ऐलोपैथिक डाक्टर न सही, आयुर्वेदिक ही सही. डाक्टर तो बन ही रहा था. नमिता के मातापिता चाहते थे, नमिता जैसी नकचढ़ी लड़की अगर राहुल को पसंद कर ले तो उन के सिर का भार कम हो. पर नमिता ने इनकार कर दिया. उस के इनकार से राहुल को चोट भी पहुंची, लेकिन वह जोरजबरदस्ती किसी लड़की से शादी कैसे कर सकता था?

एक दिन राहुल ने पूछा था, ‘मैं

जानना चाहता हूं कि तुम ने मुझे

क्यों अस्वीकार किया नमिता? मुझ में क्या कमी या खराबी देखी तुम ने.’

‘कोई खराबी या कमी नहीं है राहुल तुम में. सच पूछो तो तुम मेरे एक अच्छे दोस्त हो जिस से मिल कर मुझे वाकई हमेशा अच्छा लगता है, खुशी होती है. पर राहुल, बुरा मत मानना, मैं किसी और से प्यार करती हूं.’

सुन कर जैसे राहुल आसमान से गिरा हो, ‘कौन है वह खुशनसीब?’

‘विनोद,’ नमिता बोली, ‘तुम जानते हो उसे. कई बार मेरे साथ तुम्हारी उस से मुलाकात हुई है. वह मेरा सहपाठी है.’

देर तक गुमसुम बना रहा था राहुल, फिर किसी तरह बोला था, ‘तुम अपने फैसले पर फिर विचार करो नमिता. मैं विनोद की आलोचना किसी जलन से नहीं कर रहा. सच कहूं तो मुझे वह एक बेहद गैरजिम्मेदार किस्म का युवक लगता है. मैं नहीं समझ पा रहा कि तुम ने उसे कैसे और क्यों अपने लिए पसंद किया. हो सकता है, उस की कोई बात या गुण तुम्हें अच्छा लगा हो, पर…’

‘अपनाअपना दृष्टिकोण है राहुल’, नमिता बोली थी, ‘मुझे उस का यह बिखरा, बेढंगा व्यक्तित्व ही बेहद पसंद आया है. वह लकीर का फकीर नहीं है. बंध कर किसी एक विचार और बात पर टिकता नहीं है, यह उस का गुण भी है और अवगुण भी. वह जैसा भी है, वैसा ही मुझे पसंद है राहुल.’

‘तुम्हारे घर वाले राजी हैं, विनोद के लिए?’ राहुल ने दूसरा दांव फेंका.

नमिता बोली, ‘राजी नहीं हैं, पर मैं ने तय कर लिया है. शादी करूंगी तो विनोद से ही, वरना आजीवन कुंआरी रहूंगी,’ उस के दृढ़ निश्चय ने राहुल को एकदम निराश कर दिया था. उस के बाद वह नमिता से कभी नहीं मिला. सिर्फ इधरउधर से उस के बारे में सुनता रहा कि नमिता विनोद से शादी कर खुश नहीं रह सकी.

‘‘खैर, मेरी छोड़ो राहुल, अपनी बताओ कुछ,’’ नमिता ने पूछा, ‘‘आज अचानक यहां इस शहर में कैसे?’’

‘‘जिस बरात की दावत का यहां इंतजाम है, उस का मैं बराती हूं नमिता. कार्ड में यहां का पता था और संपर्क में तुम्हारा नाम. तो तुम से मिलने चला आया. और सचमुच तुम्हें यहां पा कर बहुत आश्चर्य हुआ मुझे.’’

‘‘चलो, ऊपर की मंजिल पर अपने कमरे में ले चलूं तुम्हें,’’ कह कर नमिता उठ खड़ी हुई. अपने सहायक से बोली, ‘‘विनोद साहब आएं तो कहना कि सूची में लिखे सलाद का इंतजाम वे अपनी देखरेख में खुद कराएं.’’

‘‘जी मैडम,’’ सहायक ने उठ कर कहा तो राहुल को लगा कि नमिता की अपने काम पर पूरी पकड़ है और वह सचमुच मैरिजहोम की एक कुशल संचालिका है.

नमिता का कमरा तरतीब से सजा था. राहुल दीवान पर आराम से बैठ गया. नमिता ने घंटी बजा कर ठंडा पेय मंगाया, ‘‘अब अपनी सुनाओ राहुल, शादी की? बच्चे हैं?’’ नमिता की टटोलती नजरों से बचने का प्रयास करता रहा राहुल. चेहरे पर कुछ देर पहले की हंसी अब गायब हो गई थी. वह अचकचा उठा था. कुछ सोच नहीं पा रहा था, कैसे कहे और क्या कहे.

संकोच देख कर नमिता ने उस की तरफ गौर से ताका, ‘‘क्या बात है राहुल? मुझे लग रहा है तुम किसी कशमकश से गुजर रहे हो.’’

‘‘ठीक पकड़ा तुम ने नमिता,’’ वह खिसिया सा गया, ‘‘एक कसबाईर् शहर में सरकारी अस्पताल में नौकरी कर रहा हूं. पत्नी मुझ से खुश नहीं है. उसे लगता है, उस के साथ धोखा हुआ है. जैसा डाक्टर वह समझ रही थी, मैं वैसा डाक्टर नहीं निकला. उस की कल्पना थी कि मेरे पास कार होगी, बंगला होगा, नौकरचाकर होंगे. शहर में नाम होगा, मरीजों की लाइन लगी होगी, हर कोई इज्जत देगा. पर उस की उम्मीदों पर उस वक्त पानी फिर गया, जब उस ने जाना कि मैं आयुर्वेदिक डाक्टर हूं और सरकारी अस्पताल में मुझे मरीज तभी दिखाता है, जब कोई और डाक्टर वहां उसे नहीं मिलता. मरीज को मुझ पर विश्वास भी नहीं होता.

‘‘तनख्वाह जरूर दूसरे डाक्टरों जितनी ही मिलती है, पर न वह भाव है, न वह सम्मान. अस्पताल की नर्सें और कर्मचारी तक मुझे डाक्टर नहीं गिनते, न मेरी कोई बात सुनते हैं. साथी डाक्टर मुझे अपने साथ नहीं बैठाते. अपनी पार्टियों में मुझे नहीं बुलाते. एक प्रकार से अछूत माना जाता हूं मैं उन के बीच. उन की बीवियां मेरी बीवी को इज्जत नहीं देतीं. उस के मुंह पर कह देती हैं, ‘वह भी कोई डाक्टर है? चूरनचटनी से इलाज करता है. क्या देख कर तुम्हारे मांबाप ने उस से शादी कर दी.’’’

‘‘अरे,’’ नमिता को दुख सा हुआ, ‘‘तब तो तुम्हारी पत्नी सचमुच अपमानित महसूस करती होगी.’’

‘‘हां,’’ राहुल बोला, ‘‘उस अपमान के एहसास ने ही उस के दिल में मेरे प्रति नफरत पैदा करा दी नमिता. उसे मेरी सूरत से नफरत हो गई. मैं उस की आंखों में एकदम नकारा और बेकार आदमी हो गया. बिना मुझ से पूछे उस ने गर्भपात करवा लिया. अपने मायके में कह दिया, ‘ऐसे वाहियात आदमी का बच्चा मैं अपने पेट में नहीं पाल सकती.’’’

‘‘अरे, बड़ी बददिमाग औरत है वह,’’ नमिता बोली, ‘‘कहीं ऐसे जिया जाता है अपने पति के साथ?’’

‘‘2 साल वह मायके में ही रही. बारबार बुलाने पर भी नहीं आई. आखिर मैं ही गया अपनी नाक नीची कर के उसे लेने, उस के मातापिता से बात की. पूछा, मेरा क्या कुसूर है? जैसा डाक्टर हूं, वह शादी से पहले उन्हें बता दिया था. उन लोगों ने अपनी लड़की को शादी से पहले ही क्यों नहीं बता दिया? उसे अंधेरे में क्यों रखा? उस की आंखों में इतने बड़े सपने क्यों दिए कि वह जीवन की इस कठोर सचाई से आंखें नहीं मिला सकी?’’

‘‘मांबाप ने तुम्हारा पक्ष नहीं लिया?’’ नमिता ने पूछा.

‘‘कोई मांबाप नहीं चाहता कि उन की लड़की का बसा हुआ घर उजड़े. उन लोगों ने भी लड़की को बहुत समझाया, ‘शादीब्याह हंसीखेल नहीं है. जीवन का प्रश्न है. निर्वाह करना चाहिए. जीवन में ऊंचनीच, अच्छाबुरा कहां नहीं होता? कोई ऐसे लड़झगड़ कर अपने घर से भाग आती है?’’’

‘‘फिर कुछ समझी वह?’’ नमिता ने पूछा.

‘‘हां,’’ राहुल बोला, ‘‘लेकिन उस ने साथ चलने के लिए एक शर्त रखी.’’

‘‘ओह, शादी न हुई एक शर्तनामा हो गया,’’ हंस दी नमिता.

‘‘लेकिन मैं ने उस की वह शर्त तुरंत मान ली,’’ राहुल बोला, ‘‘उस ने कहा, ‘मैं अपना तबादला किसी ऐसे छोटे कसबे में करवा लूं जहां मुख्य डाक्टर मैं ही होऊं और कसबे वाले मुझे सचमुच डाक्टर मानें.’’’ राहुल कुछ चुप रह कर संतुष्ट स्वर में बोला, ‘‘अब जिस कसबे में हूं, वहां वह मेरे साथ खुश है. हालांकि वहां हर वक्त बिजली नहीं मिलती. अस्पताल में साधनों की कमी है. दवाएं अकसर नहीं होतीं. पर कसबे के दुकानदार दवाएं रखते हैं और मैं जिन दवाओं को परचे पर लिख देता हूं, उन्हें मंगाने की कोशिश करते हैं, जिस से मरीज ठीक होते हैं और मेरे प्रति लोगों का विश्वास जमने लगा है.

‘‘मुझे भी अब लगता है कि पत्नी की शर्त मान कर मैं ने शायद ठीक ही किया. बड़े शहर में जहां एक से एक कुशल और विशेषज्ञ डाक्टर मौजूद हों, वहां मुझ जैसे आयुर्वेदिक डाक्टर को कौन पूछेगा भला? वहां कोई क्यों मुझे सम्मान देगा, महत्त्व देगा? पर गांवकसबों में जहां विशेषज्ञ क्या, किसी तरह का डाक्टर नहीं होता, वहां लोग मुझे सम्मान देते हैं. मुझ में भी आत्मविश्वास आया है नमिता.’’

कर्मचारी शीतल पेय रख गया और दोनों पीने लगे थे. इस बीच नमिता का पति विनोद भी वहां आया था. नमिता ने परिचय कराया तो विनोद हंस दिया, ‘‘तुम तो ऐसे परिचय करा रही हो जैसे हम पहली बार मिल रहे हों.’’

कुछ औपचारिक बातों के बाद वह काम से चला गया. राहुल को लगा कि विनोद अब पहले जैसा अस्तव्यस्त और बेढंगा व्यक्तित्व वाला व्यक्ति नहीं रहा. वह काफी चुस्तदुरुस्त और व्यस्त सा लगा. राहुल मुसकरा दिया, ‘‘तुम ने तो विनोद की काया पलट दी नमिता.’’

‘‘मैरिजहोम में हम हर नए जोड़े से खिलखिलाती जिंदगी की इच्छा रखते हैं. इसलिए क्या एक औरत समझदारी से काम ले कर अपनी खुद की जिंदगी को खुशियों से नहीं भर सकती राहुल?’’

‘‘जरूर भर सकती है, अगर वह पति की संबल बन जाए,’’ राहुल मुसकराया, ‘‘मुझे खुशी है कि तुम ने विनोद को संभाल लिया नमिता.’’

‘‘पहले बच्चे का गर्भपात करवाने के बाद तुम्हारी पत्नी ने दूसरे बच्चे का मन बनाया या नहीं?’’ नमिता ने पूछा.

‘‘सालभर की एक बच्ची है नमिता,’’ राहुल झेंपा, ‘‘पत्नी अब मेरे साथ खुश रहती है. कसबे की औरतों में उस का सम्मान है. हर जगह उस को बुलाया जाता है और वह आतीजाती है. शायद दूसरों से जब हम अपनी तुलना करने लगते हैं तो हमारे अभाव हमें टीसने लगते हैं नमिता.

‘‘हमारी कमियां हमें आत्महीनता के दलदल में धंसाने लगती हैं. ऊंट अगर पहाड़ की तलहटी में आ कर अपनी ऊंचाई नापना चाहेगा तो अपने पर पछताएगा ही. पर जब वही ऊंट रेगिस्तान के बियाबान में अकेला होगा तो सब से ज्यादा महत्त्वपूर्ण साधन होगा, और सब से ऊंचा भी. यह रहस्य हम लोग कसबे में पहुंच कर समझ पाए. मैं भी ऐसा कोई अवसर नहीं चूकता, जहां मैं अपनी पत्नी को खुश कर सकूं. वह सचमुच अब प्रसन्न रहने लगी है नमिता.’’

पता नहीं किन नजरों से ताकती रही नमिता राहुल को. राहुल भी उसे ताकता रहा. पता नहीं. किस का लिखा वाक्य राहुल को उस वक्त याद आता रहा. औरतें मर्दों से ज्यादा बुद्धिमान होती हैं. हालांकि वे जानती कम हैं, पर जीवन की समझ उन में ज्यादा होती है. यह समझ ही तो है जो आज भी भारतीय परिवारों को बल और संबल प्रदान किए हुए है, जिस से आदमी अपने कद से ज्यादा ऊंचा उठा रहता है और आत्महीनता के दलदल में धंसने से बचा रहता है. औरतें ही तो हैं जो विनोद जैसे बेढंगे व्यक्ति को भी ढंग के आदमी में बदल देती हैं.

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कुछ लड़कियों को क्यों अच्छा लगता है सिंगल रहना ?

‘‘मम्मा, आज मेरा खाना मत बनाना. आरवी के यहां पार्टी है.’’

‘‘क्या उस की इंगेजमैंट है?

‘‘उफ मम्मा… वह यूएस जा रही है.’’

‘‘32 साल की हो गई है, शादी कब करेगी?’’

‘‘शादी जरूरी है क्या? वह कंपनी में मैनेजर की पोस्ट पर काम कर रही है. 20 लाख का पैकेज है. वहां जा कर उस का पैकेज और पोस्ट दोनों ही बढ़ जाएंगे. शादी कर के बस पति की इच्छा के अनुसार रहना, चाय बनाना, खाना बनाना, उन की पसंद के कपड़े पहनना आदिआदि. मैं भी इन सारे झंझटों में नहीं पड़ना चाहती. अकेले रहो अपनी आजादी से जो मन चाहे वह करो.’’

smiling girl man and flowers

रेवती नाराजगी के स्वर में बोली, ‘‘रिया तुम बहुत बोलने लगी हो. तुम भी इस साल 31 की हो गई हो, अपनी पसंद का कोई लड़का हो तो मुझे मिलवा दो,  मुझे ठीक लगेगा तो मैं तुम्हारी शादी उस सवे करा दूंगी.’’

‘‘शादी और मैं… माई फुट,’’ कह रिया बाहर निकलते हुए बोली,

‘‘मैं आप से कहना भूल गई थी कि मैं ने जौब चेंज कर के गूगल कंपनी जौइन कर ली है. मेरी सैटरडे को मुंबई की फ्लाइट है. मंडे  जौइनिंग है.’’

‘‘तुम ने पहले तो मुझे कुछ बताया नहीं?’’

‘‘सब बातें आप से बताना जरूरी है क्या?’’

रेवती मन में सोचने लगी कि यह नई पीढ़ी शादी से क्यों दूर भाग रही है. शायद यह हम लोगों की तरह पैसे के लिए पति पर निर्भर नहीं रहना चाहती. वह आत्मनिर्भर है, अपने कैरियर के प्रति प्रतिबद्ध है. अपनी जिंदगी अपनी तरह से जीना चाहती है.

ठीक भी है कम से कम इन्हें हम लोगों की तरह पैसे के लिए पति के सामने अपना हाथ तो नहीं फैलाना पड़ेगा और न ही सुनना पड़ेगा कि दिनभर करती ही क्या हो.

फिर भी शादी, परिवार और बच्चे तो समय से ही हो जाने चाहिए. लेकिन हम लोग इन के साथ जबरदस्ती भी तो नहीं कर सकते हैं.

आजकल समाज में एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक परिवर्तन देखने को मिल रहा है. युवा महिलाओं में शादी न करने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है. यह प्रवृत्ति कई सांस्कृतिक, आर्थिक और व्यक्तिगत कारणों से बढ़ रही है.

आर्थिक स्वतंत्रता: आज की युवा लड़कियां शिक्षित हैं. वे अपने कैरियर के प्रति सजग हैं और आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त कर रही हैं. वे उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही हैं और विभिन्न पेशेवर क्षेत्रों में सफलतापूर्वक अपना कैरियर बना रही हैं. आर्थिक स्वतंत्रता के कारण वे अपने जीवन के बारे में स्वतंत्र निर्णय लेने में सक्षम हो रही हैं, जिन में शादी न करने का निर्णय भी शामिल है.

पूर्वी की दीदी पायल ने लवमैरिज की थी लेकिन शक्की रोनित ने पायल को धोखा दे कर उस का सबकुछ छीन लिया साथ में बातबात पर पिटाई भी कर देता था. अंत में पै्रगनैंट पायल ने अपने पेरैंट्स के घर में शरण ली. यहां उस ने बीएड किया. अब नौकरी तलाश रही है. इसलिए पूर्वी के मन में शादी करने से ज्यादा पहले कैरियर और आर्थिक रूप से सुदृढ़ होना ही पहली प्राथमिकता है.

शिक्षा और कैरियर पर ध्यान: शिक्षा और कैरियर पर ध्यान केंद्रित करने के कारण कई महिलाएं शादी को प्राथमिकता नहीं दे रही हैं. वे अपने पेशेवर लक्ष्यों को हासिल करने और व्यक्तिगत विकास के लिए अपना समय और ऊर्जा खर्च करना चाहती हैं. इस के अतिरिक्त अपने कैरियर पर फोकस कर के अपना स्थायित्व पाने के बाद ही शादी के बारे में सोचने का निर्णय ले रही हैं.

इला के पापा समीर शर्मा यूनिवर्सिटी में फिजिक्स के हैड औफ द डिपार्टमैंट से रिटायर हुए थे. इला ने साइंटिस्ट बनने का सपना देखा है. इसलिए वह पहले पीएचडी करना चाहती है. उस के जीवन का फोकस अपने कैरियर पर है. वह कहती है कि शादी का क्या जब चाहे तब कर लो.

जो महिलाएं अपने कैरियर के बारे में सोचती हैं, अपनी लाइफ में कुछ करना चाहती हैं वे जल्दी किसी बंधन में नहीं बंधना चाहतीं. 30 की उम्र हो या ज्यादा, लड़कियां सिंगल हैं और अपने कैरियर पर ध्यान दे रही हैं. उन के अंदर आगे बढ़ने का जनून है जिस में उन की किसी के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं है. उन्हें अपनी लाइफ में पूरी आजादी चाहिए. शादी एक बंधन है, जहां हर पल एक जिम्मेदारी और टोकाटाकी मुंह उठाए खड़ी रहती है. इसलिए उन्हें पहले अपने जनून को पूरा करना है.

व्यक्तिगत स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता: आज की युवा महिलाएं व्यक्तिगत स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता को अधिक महत्त्व देती हैं. वे अपने जीवन के सभी निर्णय स्वयं लेना पसंद करती हैं और किसी भी प्रकार की सामाजिक बाधाओं या बंधनों से मुक्त रहना चाहती हैं. यही स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता की चाहत शादी से दूर रखती है.

आजकल युवा लड़कियों की सोच में काफी बदलाव दिखाई पड़ रहा है. वे अब किसी भी कीमत पर समझौता करने को तैयार नहीं हैं. उन्हें वह सब चाहिए जिस की वे हकदार हैं. भले ही इस के लिए उन्हें सालों इंतजार करना पड़े या फिर जिंदगीभर ही अकेला रहना पड़े. वैसे दिलचस्प बात यह है कि 30-35 या 40 की उम्र में भी सिंगल हैं और वे बहुत खुश भी हैं.

आजकल लड़कियों की सोच बदल गई है उन्हें खुश रहने और पूर्ण होने के लिए किसी साथी की आवश्यकता नहीं हैं. वे अपने कैरियर पर ध्यान देने, अपने शौक को पूरा करने और दोस्त बनाने पर ध्यान लगाती हैं. लड़कियों के मन में डर होने लगा है कि जैसा पार्टनर वे चाहती हैं वैसा पार्टनर मिलेगा या नहीं और यही डर उन्हें सिंगल रहने की ओर ले जाता है.

सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन: समाज में धीरेधीरे शादी की अवधारणा बदल रही है. अब समाज में शादी को जीवन की एक आवश्यक घटना के रूप में नहीं देखा जाता है. इस के स्थान पर व्यक्तिगत खुशी और संतुष्टि को अधिक महत्त्व दिया जा रहा है. यह सांस्कृतिक परिवर्तन युवा महिलाओं के अपने जीवन के बारे में नए दृष्टिकोण को अपनाने के लिए प्रेरित कर रहा है.

मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य: आज की युवा महिलाएं अब अपने मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य के प्रति अधिक जागरूक हो रही हैं. वे रिश्तों में बंधने से पहले खुद को समझने और अपनी भावनाओं को पहचानने का पहले प्रयास करती हैं. यदि उन्हें लगता है कि शादी उन के मानसिक या भावनात्मक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है तो वे इसे टालना ही उचित समझती हैं.

वैकल्पिक जीवनशैली: युवा महिलाएं अब वैकल्पिक जीवनशैली को अपनाना पसंद कर रही हैं, जिस में वे शादी के बिना भी खुशहाल और पूर्ण जीवन जी सकती हैं. वे अपने दोस्तों, परिवार और पेशेवर जीवन के माध्यम से संतोष और खुशी प्राप्त कर रही हैं. इस के अलावा वे समाज की पारंपरिक अपेक्षाओं से परे जा कर अपना जीवन जीना पसंद कर रही हैं.

30 की उम्र में डेटिंग करना: आजकल युवा लड़कियां 30 की उम्र में डेटिंग कर रही हैं. सिंगल रहने की वजह आजकल कई तरह के डेटिंग एप्स भी बन रहे हैं जहां बिना किसी कमिटमैंट के लोग एकदूसरे के साथ रहते हैं. ये लोग जिम्मेदारियों और किसी एक बंधन में बंध कर रहना नहीं चाहते हैं.

अपने लिए प्यार ढूंढ़ना: आजकल की पीढ़ी खुद से प्यार करती है. लड़कियां अब खुद अपनी खुशियों को पूरा करना जान गई हैं. लंबे समय तक सिंगल रहने से खुद को जानने, सम?ाने और प्यार करने का मौका मिलता है. दोस्त और परिवार उन का साथ देने के लिए काफी होते हैं. कई बार लंबे समय तक सिंगल रहने की वजह ब्रेकअप या प्यार में धोखा भी हो सकता है.

नैशनल स्टैटिस्टिक के आंकड़ों के अनुसार: यूके में अकेले रहने वालों की संख्या पहले की तुलना में तेजी से बढ़ी है. सर्वे के मुताबिक अमेरिका में 18 साल और उस से अधिक उम्र के 117.9 मिलियन एडल्ट हैं जो तलाकशुदा, विधवा या जिन्होंने शादी नहीं की है.

वर्ल्ड इकौनौमिक फोरम की स्टडी में बताया गया है कि आजकल लोग अकेला रहना ज्यादा पसंद कर रहे हैं. स्टडी के मुताबिक, जो लोग अपनी मरजी से अकेले रहना चाहते हैं. वे लाइफ को ज्यादा बेहतर तरीके से जीते हैं. नई स्टडी के अनुसार जो लोग अकेले रहते हैं वे अपने कैरियर में अपने दोस्तों से ज्यादा तरक्की करते हैं.

समय के साथ लोगों का नजरिया बदल रहा: हर किसी को अपनी जिंदगी को अपने तरीके से जीने का हक है परंतु हमारे पुरुषप्रधान समाज में महिलाओं को हमेशा पुरुषों की मरजी से चलना पड़ता है इसलिए हमारे समाज के अनुसार शादी का अर्थ ही सम?ाता है. जीवनभर सम?ाता करने से अच्छा अपने कैरियर और जनून के लक्ष्य को प्राप्त करो. अब समय के साथ समाज भी बदलने लगा है.

पहले महिलाओं को ले कर सारे फैसले घर के पुरुष लेते थे. आज को मौडर्न युग में सिंगल वूमन को ले कर लोगों का नजरिया थोड़ा बदला है. अब समाज उन्हें खुले तौर पर स्वीकार करने लगा है. आज की महिला शिक्षित है, वह अपने कैरियर के फैसले खुद लेती है. ऐसे में जब उसे अपने मन का या बराबरी का पार्टनर नहीं मिलता तो वह अकेले रहने का फैसला कर लेती है.

सच तो यह है कि जैसेजैसे लड़कियों का शिक्षा का स्तर बढ़ रहा है वैसेवैसे वे शादी से विमुख होती जा रही हैं. इस का मुख्य कारण है कि शादी के बाद लड़कियों की जिंदगी पूरी तरह से बदल जाती है. उन के पहनावे से ले कर उन की पसंद के खाने तक, हर चीज में ससुराल और पति की मरजी शामिल हो जाती है. इसलिए अच्छा है कि अकेले रह कर मनचाहे ढंग से लाइफ को ऐंजौय करो.

कुछ तो लोग कहेंगे इस की चिंता नहीं: आजकल लड़कियां समाज की चिंता छोड़ कर अपने दिल की बात सुनना और उसी को करना पसंद करती हैं जोकि सही भी है. अविवाहित युवतियों की गिनती पहले की अपेक्षा काफी बढ़ी है. अच्छी बात यह है कि इन सिंगल महिलाओं को अपने अकेलेपन से कोई शिकायत भी नहीं है. ये जिंदगी की रेस को अकेले ही जीतना पसंद कर रही हैं.

शादी और बच्चे वाली सोच समय के साथ बदल गई है. अब सिर्फ शादी और बच्चे पैदा करना ही महिला के लिए प्राथमिकता नहीं है. अब महिलाएं कैरियर, सामाजिक रुतबा और मन मुताबिक जिंदगी जीने लगी हैं. यही कारण है कि वे शादी के बंधन में नहीं बंधना चाहतीं.

साउथ फिल्म इंडस्ट्री की जानीमानी ऐक्ट्रैस प्राची अधिकारी कहती हैं कि बस यह जुमला है कि पत्नी और मां बने बिना औरत अधूरी. ये कतई जरूरी नहीं कि शादी खुशी की गारंटी हो. यदि ऐसा होता तो आएदिन तलाक या अलगाव क्यों होते. अपने अंदर के खालीपन को आप खुद ही भर सकते हैं, कोई दूसरा नहीं भर सकता. मैं अपने कैरियर और सभी शौक पूरे कर के बहुत खुश हूं.

एनजीओ की फाउंडर आराधना मुक्ति कहती हैं कि मुझे बचपन से स्टडीज, गेम्स और ट्रैवल बहुत पसंद था. शादी का कभी प्लान नहीं था. अपने कैरियर पर फोकस था. इस समय 42 की हूं और अपनी दुनिया में बहुत खुश हूं.

बनारस की नीति ने भी शादी नहीं की. वे एक सोशल वर्कर हैं. वे कहती हैं कि शादी न करने का मेरा पर्सनल फैसला है. घर वाले पहले शादी करने के लिए कहा करते थे, फिर एक समय के बाद सब ने कहना बंद कर दिया. अब घर वाले भी बेटी की पसंद को स्वीकार करने लगे हैं.

लड़की पैदा होने से मरने तक बेटी, बहू, पत्नी और मां के रूप में पहचानी जाती है परंतु नीति का कहना है कि हमें अब खुद की पहचान बनाने के लिए महिला आधारित सामाजिक मान्यताओं को तोड़ना जरूरी है.

पहले के दिनों में शादी लड़कियों के लिए पहली प्राथमिकता थी परंतु अब वह पर्सनल चौइस बन गई है. शादी लड़कियों पर एक तरह से रोकटोक ही है. ससुराल में कितनी भी छूट मिल जाए लेकिन दिमाग में रहता ही है कि वह घर की बहू है. लड़की होने के नाते हमें कंप्रोमाइज तो करना ही होता है. यदि पति साथ में है तो उस के साथ भी हर समय सामंजस्य बैठा कर ही रहना पड़ेगा.

अगर आप खुद कमा रहे हैं तो शादी नहीं करने का फैसला बहुत आसान हो जाता है.

दहेज और फाइवस्टार वाली दिखावे वाली शादियों को देख कर मन में शादी से अरुचि होती है. बढ़ते तलाक के मामलों के बारे में सुनसुन कर शादी के नाम से ही मन में डर पैदा होता है.

37 वर्षीय अनुपमा गर्ग कहती हैं कि यह कभी नहीं सोचा था कि शादी नहीं करूंगी लेकिन हमारा सामाजिक परिवेश ऐसा है कि आसानी से रिश्ते नहीं होते. अगर आप अपने कैरियर पर फोकस करना चाहते हैं या आप आगे पढ़ना

चाहते हैं, जौब करना चाहते हैं तो ससुराल वाले कहते हैं कि हमारे यहां की बहू जौब नहीं करती या फिर लोग कहेंगे कि आप नौकरी तो कर लें लेकिन घर भी आप को ही संभालना पड़ेगा. इन सब झंझटों में पड़ना ही क्यों. अकेले रहो और मौज करो.

सच तो यह है कि लोगों को यह पता ही नहीं कि शादी क्यों करनी है, कोई सामाजिक परंपरा निभा रहा है तो कोई पेरैंट्स के दबाव या खुशी के लिए शादी कर रहा है.

रिलेशनशिप ऐक्सपर्ट और मैरिज काउंसलर पीयूष भाटिया कहती हैं कि अब महिलाओं को जमाने की चिंता नहीं है. वैसे भी शादी हरेक के लिए पर्सनल मामला है. मगर हमारे समाज में लोगों को इस की बहुत ज्यादा चिंता रहती है कि पड़ोस की लड़की ने अब तक शादी क्यों नहीं की. 35 साल की महिला को अकेला रहते देख वे परेशान होते रहते हैं.

21वीं सदी की सिंगल महिला अब अपनी आजादी को ऐंजौय कर रही है. आज लड़कियां प्लेन चलाने से ले कर ट्रक और औटो सब चला रही हैं. वे गाड़ी में पंक्चर भी लगा रही हैं. उन्हें किसी भी काम के लिए किसी पर डिपैंड होने की जरूरत नहीं है.

 शादी के बाद बराबर जिम्मेदारी चाहती हैं महिलाएं

युवा लड़कियां इसलिए भी शादी से इनकार करती हैं क्योंकि शादी के बाद परिवार उन से बच्चे को जन्म देने के लिए उम्मीद करने लगता है. बच्चे के पालनपोषण करने में कैरियर प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगा. इस से उन की कार्यक्षमता में निश्चित रूप से कमी  आएगी, इस के अतिरिक्त कैरियर से ब्रेक भी लेना पड़ जाता है.

हमारे समाज में पुरुष को महिला से एक पायदान ऊपर समझ जाता है. ऐसे में महिलाओं से यह अपेक्षा की जाती है कि वे सम?ाता कर के अपना जीवन बिताएं. आज महिलाएं इस तरह से सम?ाता करने को तैयार नहीं हैं. जिस तरह से वे शिक्षित होती हैं, नएनए स्टारट्सअप के लिए दिनरात मेहनत करती हैं, अपना कैरियर औप्शन चुनती हैं, जिसे आज के समय में बनाए रखना आसान काम नहीं होता. ऐसी स्थिति में शादी को तिलांजलि दे कर आजादी से काम करना ही ठीक समझती हैं.

सिंगल रहने वाली नई पीढ़ी के ज्यादातर लोगों की पहली और सब से अहम दलील है कि उन्हें आजादी महसूस होती है. पार्टनर की चिखचिख और रोजरोज की मांगों से नजात रहती है. खुद पर फोकस्ड लाइफ सैलिब्रेट करनी है तो शादी से दूर रहो. सिंगल लाइफ की कई सकारात्मक बातों को पूरी दुनिया में सुनने, सम?ाने और अपनाने का चलन लगातार बढ़ता जा रहा है. इंटरनैट पर मौजूद पाडकास्ट ‘वेल  एनफ अलोन’ पर ऐसे कई सिंगल लोगों के इंटरव्यूज काफी चर्चित हो रहे हैं. उन का कहना है कि सिंगल होना आकर्षक होने के साथ संतुष्टि भरी लाइफ जीने का शानदार तरीका भी है.

यदि कभी अकेलापन महसूस हो तो सिर्फ अपने साथ रहना सीखें. मनपसंद संगीत सुनें, बाग में लगे पौधों में पानी डालने का अभ्यास डालें, तारों को निहारें, पार्क की बैंच पर बैठ कर अपने आसपास होने वाली गतिविधियों को ध्यानपूर्वक देखें. ऐसा करने से जहां मन को संतुष्टि मिलेगी वहीं अपने अकेलेपन से प्यार हो जाएगा. अपने अकेलेपन में आप मनपसंद बेहतर अवसर तलाश सकते हैं. अकेलेपन में मनमस्तिष्क सुल?ा और शांत रहता है. अपने तनावों को दूर करने के लिए मन में अच्छे विचार उत्पन्न होते हैं. गिबन का तो मानना है कि एकांत तो प्रतिभा की पाठशाला है. तो देर किस बात की आप भी अकेलेपन को ऐंजौय करें.

आजकल अकेलापन कोई मुसीबत नहीं है. अपने जीवन में पार्टनर की चिखचिख और सम?ातों से बचना है और अपने जनून को पूरा कर के मनचाही जिंदगी जीनी है तो अपने अकेलेपन में मस्त रह कर कुछ नया करते रहें.

टीनऐजर्स और पैरेंट्स के बीच होने लगे कम्यूनिकेशन गैप, तो बड़े काम के साबित होंगे ये टिप्स

मुझे याद है जब मैं करीब 15 साल की थी. 10वीं क्लास की पढ़ाई का प्रैशर और अपनी मनमानी न कर पाने का गुस्सा अलग ही अनुभवों की लिस्ट सी बनाता चला गया और युवा होतेहोते इस का अंदाजा भी नहीं लगा.

उन में से एक था बातबात पर गुस्सा हो कर मम्मीपापा से बात करना छोड़ देना. मम्मी कहीं जाने से मना कर देतीं तो कभी पापा अपनी पसंदीदा ड्रैस के लिए पैसे देने से मना कर देते. रोती और गुस्सा होती और कईकई दिन तक मम्मीपापा से बात नहीं करती.

Teenagers sitting together

अन्य टीनऐजर्स बच्चों की तरह मैं भी अपने पेरैंट्स से दिनभर की बातें करती थी जैसे दिनभर की थकान, स्कूल में मैडम की डांट तो क्लासमेट से हुई नोंकझोंक सबकुछ बताती थी, फिर धीरेधीरे सब छूटने लगा.

गुस्सा करना और बात न करना एक आदत सी बनता चला गया. शुरूशुरू में मम्मीपापा भी हंस कर टाल देते थे. मनाने की कोशिश करते, हंसाने की कोशिश भी करते. लेकिन मैं अपनी जिद्द पर अड़ी रहती, न बात करती और न ही उन की बातों का जवाब देती. फिर धीरेधीरे वह भी बंद हो गया. कम्यूनिकेशन गैप बढ़ता चला गया. आखिर वह भी कितना अपनेआप को एक ही चीज के लिए फोर्स करते.

खेलते हुए हम लोग गंभीर से हो गए, युवा होने तक ऐसा ही रहा और आज भी है. पेरैंट्स और टीनऐजर्स के बीच कम्यूनिकेशन गैप का बढ़ जाना ठीक नहीं है. बाद में यह आप को अलगथलग कर देता है. इसलिए पेरैंट्स के साथ अपना कम्यूनिकेशन बनाए रखना बेहद जरूरी हो जाता है.

आइए, जाने अपने और अपने पेरैंट्स के बीच कम्यूनिकेशन को कैसे ठीक रखा जा सकता है:

बातचीत के लिए रहें हमेशा औपन

टीनऐजर्स और पेरैंट्स दोनों ही के लिए यह जरूरी हो जाता है कि आप बातचीत के लिए हमेशा औपन रहें. एक बच्चे के तौर पर अपने मातापिता से बातचीत करते रहे. उन से उन के स्कूली जीवन, अनुभवों और शौक के बारे में पूछें और उन्हें अपने शौक भी बताएं. अगर नाराज हैं फिर भी पेरैंट्स की तरफ से की गई बातचीत की छोटी सी कोशिश को भी नजरअंदाज न करें. अपनी नाराजगी दिखाएं जरूर लेकिन उस पर अडे़ न रहें. परिस्थिति चाहे जैसी भी हो कोशिश यह होनी चाहिए कि किसी भी रिश्ते में बातचीत का सिलसिला टूटने न पाए. बातचीत का कम होना एक अनहैल्दी रिश्ते की निशानी है, चाहे वह कोई भी रिश्ता हो.

गलत शब्दों के चयन से बचें

अकसर टीनऐजर्स बडे इमैच्योर तरीके से गुस्से ही गुस्से में ऐसी कई बातें बोल देते हैं, जिन से पेरैंट्स को काफी ठेस लगती है. हो सकता है उन का गुस्सा भी बढ़ जाए और आप का भी फिर बात और बिगड़ जाए. ऐसे में टीनऐजर्स के लिए बेहतर होता है अपनी बात को सामने रखें और सही शब्दों के साथ उन्हें बताने की कोशिश करें. ध्यान रहे एक टीनऐजर के और एक संतान के तौर पर आप अपनी लिमिट क्रौस न करें जो बाद में जा कर कम्यूनिकेशन को बढ़ा दे. मम्मीपापा से बात करते समय शब्दों के चयन का खास ध्यान रखें.

परिस्थितियां समझने की कोशिश करें

कभी भी पेरैंट्स के साथ जल्दबीजी से काम न लें, पेशंस रखें क्योंकि पेरैंट्स और आप टीनऐजर्स के बीच एक बड़ा ऐज गैप होता है, जिस से पेरैंट्स को आप की जरूरतों और पसंद को समझने में वक्त लगता है. ऐसे में पेरैंट्स के साथ जल्दबाजी या जिद न करें. ऐसा करने से पेरैंट्स आप की बातों को गैरजरूरी समझ कर नजरअंदाज कर सकते हैं. पेरैंट्स के साथ पेशंस रखें. उन्हें अपनी जरूरों और पसंद के बारे में डीटेल में बताएं ताकि वे उन्हें अच्छे से समझ सकें.

बहस करने से बचें

अकसर बच्चे अपने मम्मीपापा की बातों से भड़क जाते हैं और बहस करने लगते हैं. वह बहस फिर जल्दी ही झगड़े में बदल जाती है. टीनऐजर्स को चाहिए कि वे ऐसा न करें बल्कि यदि आप के मम्मीपापा आप को किसी बात पर सलाह देते हैं या बातोंबातों में कुछ ऐसा बोल देते हैं जो आप को दिल पर लग जाता है तो उसे कहने का सही तरीका और समय ढूंढ़े. कई बार ऐसा करने से पहले ही आप के मम्मीपापा को अपनी गलती का एहसास हो जाता है. तो हमेशा बहस करने के बजाय शांति से उस पर बात करने की कोशिश करें. जरूरी नहीं हर बार आप सही हों और वे गलत या फिर आप गलत हों और वे सही.

उन के अनुभव के बारे में पूछें

अगर आप किसी परेशानी में फंस गए हैं या आप के जीवन में किसी तरह की उलझन है चीजों को ले कर, रिश्तों को ले कर तो बेहतर होगा कि आप अपने मातापिता से पूछें. वे हमेशा आप को कोई न कोई समाधान तो दे ही देंगे. उन का अनुभव आप को अपने जीवन को बेहतर करने में मदद करेगा और इस तरह आप के बीच में पनप रहे कम्यूनिकेशन गैप को कम करने में मदद मिलेगी. इस से एक खास बात यह रहेगी कि आप को जानने का मौका मिलेगा कि आप के पेरैंट्स ने आप तक पहुंचने में कितनी परेशानियों का समना किया हो. वैसे हर केस में ऐसा होना जरूरी नहीं पर अनुभव बांटना एक अच्छा ऐक्सपीरियंस है.

खुद को पेरैंट्स की जगह पर रखें

जब भी एक टीनऐजर्स के तौर पर आप को लग रहा है आप के मम्मीपापा आप के साथ कुछ गलत कर रहे हैं तो एक बार अपनेआप को उन की जगह पर रखने की कोशिश करें. अगर आप एक टीनऐजर्स के तौर पर अपने लिए बहस कर सकते हैं तो उन्हें समझने की कोशिश भी कर सकते हैं. कई बार मम्मीपापा अपनी परिस्थितियों के अनुसार ही आप की बातों का नजरअंदाज या फिर मना करते हैं. ये परिस्थितियां कई तरह की हो सकती हैं जैसे आर्थिक यानी पैसों की कमी, सामाजिक यानी आप की सुरक्षा और भविष्य से जुड़ी बातें. ऐसी कई बातें उन्हें आप की हर बात न मानने के लिए मजबूर करती हैं.

इन बातों का ध्यान रखें और कोशिश करें कि आप और आप के पेरैंट्स के बीच कम्यूनिकेशन गैप न पनपने पाए. हर मांबाप अपने बच्चों के लिए अपने से बेहतर भविष्य और वर्तमान की कामना ही नहीं करते बल्कि इन की कोशिशों में लगातार लगे रहते हैं. आप ने कई बार देखा होगा अपनी मम्मी को अपने लिए साड़ी नहीं आप के लिए ड्रैस लेते हुए अपने पापा को सेम जूतों में सालभर औफिस जाते हुए पर आप को आप की पसंद के जूते दिलवाते हुए. ऐसे में उन के साथ बातचीत बंद कर देना एक अविकसित दिमाग की निशानी से ज्यादा कुछ नहीं है. एक टीनऐजर्स और युवा के तौर पर ऐसा न होने दें और हमेशा बातचीत का सिलसिला जारी रखें भले नाराजगी लंबे समय तक चलती रहे.

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