एक मुलाकात : अंधविश्वास के मकड़जाल में फंसी सपना के साथ क्या हुआ?

सपना से मेरी मुलाकात दिल्ली में कमानी औडिटोरियम में हुई थी. वह मेरे बगल वाली सीट पर बैठी नाटक देख रही थी. बातोंबातों में उस ने बताया कि उस के मामा थिएटर करते हैं और वह उन्हीं के आग्रह पर आई है. वह एमएससी कर रही थी. मैं ने भी अपना परिचय दिया. 3 घंटे के शो के दौरान हम दोनों कहीं से नहीं लगे कि पहली बार एकदूसरे से मिल रहे हैं. सपना तो इतनी बिंदास लगी कि बेहिचक उस ने मुझे अपना मोबाइल नंबर भी दे दिया.

एक सप्ताह गुजर गया. पढ़ाई में व्यस्तता के चलते मुझे सपना का खयाल ही नहीं आया. एक दिन अनायास मोबाइल से खेलते सपना का नंबर नाम के साथ आया, तो वह मेरे जेहन में तैर गई. मैं ने उत्सुकतावश सपना का नंबर मिलाया.

‘हैलो, सपना.’

‘हां, कौन?’

‘मैं सुमित.’

सपना ने अपनी याद्दाश्त पर जोर दिया तो उसे सहसा याद आया, ‘सुमित नाटक वाले.’

‘ऐसा मत कहो भई, मैं नाटक में अपना कैरियर बनाने वाला नहीं,’ मैं हंस कर बोला.

‘माफ करना, मेरे मुंह से ऐसे ही निकल गया,’ उसे अपनी गलती का एहसास हुआ.

‘ओकेओके,’ मैं ने टाला.

‘फोन करती, पर क्या करूं 15 दिन बाद फर्स्ट ईयर के पेपर हैं.’ उस के स्वर से लाचारी स्पष्ट झलक रही थी.

‘किस का फोन था?’ मां ने पूछा.

‘मेरे एक फ्रैंड सुमित का. पिछले हफ्ते मैं उस से मिली थी.’ सपना ने मां को याद दिलाया.

‘क्या करता है वह?’ मां ने पूछा.

‘यूपीपीसीएस की तैयारी कर रहा है दिल्ली में रह कर.’

‘दिल्ली क्या आईएएस के लिए आया था? इस का मतलब वह भी यूपी का होगा.’

‘हां,’ मैं ने जान छुड़ानी चाही.

एक महीने बाद सपना मुझे करोल बाग में खरीदारी करते दिखी. उस के साथ एक अधेड़ उम्र की महिला भी थीं. मां के अलावा और कौन हो सकता है? मैं कोई निर्णय लेता, सपना ने मुझे देख लिया.

‘सुमित,’ उस ने मुझे आवाज दी. मैं क्षणांश लज्जासंकोच से झिझक गया, लेकिन सपना की पहल से मुझे बल मिला. मैं उस के करीब आया.

‘मम्मी, यही है सुमित,’ सपना मुसकरा कर बोली.

मैं ने उन्हें नमस्कार किया.

‘कहां के रहने वाले हो,’ सपना की मां ने पूछा.

‘जौनपुर.’

‘ब्राह्मण हो?’

मैं ब्राह्मण था तो बुरा भी नहीं लगा, लेकिन अगर दूसरी जाति का होता तो? सोच कर अटपटा सा लगा. खैर, पुराने खयालातों की थीं, इसलिए मैं ने ज्यादा दिमाग नहीं खपाया. लोग दिल्ली रहें या अमेरिका, जातिगत बदलाव भले ही नई पीढ़ी अपना ले, मगर पुराने लोग अब भी उन्हीं संस्कारों से चिपके हैं. नई पीढ़ी को भी उसी सोच में ढालना चाहते हैं.

मैं ने उन के बारे में कुछ जानना नहीं चाहा. उलटे वही बताने लगीं, ‘हम गाजीपुर के ब्राह्मण हैं. सपना के पिता बैंक में चीफ मैनेजर हैं,’ सुन कर अच्छा भी लगा, बुरा भी. जाति की चर्चा किए बगैर भी अपना परिचय दिया जा सकता था.

हम 2 साल तक एकदूसरे से मिलते रहे. मैं ने मन बना लिया था कि व्यवस्थित होने के बाद शादी सपना से ही करूंगा. सपना ने भले ही खुल कर जाहिर न किया हो, लेकिन उस के मन को पढ़ना कोई मुश्किल काम न था.

मैं यूपीपीसीएस में चुन लिया गया. सपना ने एमएससी कर ली. यही अवसर था, जब सपना का हाथ मांगना मुझे मुनासिब लगा, क्योंकि एक हफ्ते बाद मुझे दिल्ली छोड़ देनी थी. सहारनपुर जौइनिंग के पहले किसी नतीजे पर पहुंचना चाहता था, ताकि अपने मातापिता को इस फैसले से अवगत करा सकूं. देर हुई तो पता चला कि उन्होंने कहीं और मेरी शादी तय कर दी, तो उन के दिल को ठेस पहुंचेगी. सपना को जब मैं ने अपनी सफलता की सूचना दी थी, तब उस ने अपने पिता से मिलने के लिए मुझे कहा था. मुझे तब समय नहीं मिला था, लेकिन आज मिला है.

मैं अपने कमरे में कपड़े बदल रहा था, तभी दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी.

‘कौन?’ मैं शर्ट पहनते हुए बोला.

‘सपना,’ मेरी खुशियों को मानो पर लग गए.

‘अंदर चली आओ,’ कमीज के बटन बंद करते हुए मैं बोला, ‘आज मैं तुम्हारे ही घर जा रहा हूं.’

सपना ने कोई जवाब नहीं दिया. मैं ने महसूस किया कि वह उदास थी. उस का चेहरा उतरा हुआ था. उस के हाथ में कुछ कार्ड्स थे. उस ने एक मेरी तरफ बढ़ाया.

‘यह क्या है?’ मैं उलटपुलट कर देखने लगा.

‘खोल कर पढ़ लो,’ सपना बुझे मन से बोली.

मुझे समझते देर न लगी कि यह सपना की शादी का कार्ड है. आज से 20 दिन बाद गाजीपुर में उस की शादी होने वाली है. मेरा दिल बैठ गया. किसी तरह साहस बटोर कर मैं ने पूछा, ‘एक बार मुझ से  पूछ तो लिया होता.’

‘क्या पूछती,’ वह फट पड़ी, ‘तुम मेरे कौन हो जो पूछूं.’ उस की आंखों के दोनों कोर भीगे हुए थे. मुझे सपना का अपने प्रति बेइंतहा मुहब्बत का प्रमाण मिल चुका था. फिर ऐसी कौन सी मजबूरी आ पड़ी, जिस के चलते सपना ने अपनी मुहब्बत का गला घोंटा.

‘मम्मीपापा तुम से शादी के लिए तैयार थे, परंतु…’ वह चुप हो गई. मेरी बेचैनी बढ़ने लगी. मैं सबकुछ जानना चाहता था.

‘बोलो, बोलो सपना, चुप क्यों हो गई. क्या कमी थी मुझ में, जो तुम्हारे मातापिता ने मुझे नापसंद कर दिया.’ मैं जज्बाती हो गया.

भरे कंठ से वह बोली, ‘जौनपुर में पापा की रिश्तेदारी है. उन्होंने ही तुम्हारे परिवार व खानदान का पता लगवाया.’

‘क्या पता चला?’

‘तुम अनाथालय से गोद लिए पुत्र हो, तुम्हारी जाति व खानदान का कुछ पता नहीं.’

‘हां, यह सत्य है कि मैं अपने मातापिता का दत्तक पुत्र हूं, मगर हूं तो एक इंसान.’

‘मेरे मातापिता मानने को तैयार नहीं.’

‘तुम क्या चाहती हो,’ मैं ने ‘तुम’ पर जोर दिया. सपना ने नजरें झुका लीं. मैं समझ गया कि सपना को जैसा मैं समझ रहा था, वह वैसी नहीं थी.

वह चली गई. पहली बार मुझे अपनेआप व उन मातापिता से नफरत हुई, जो मुझे पैदा कर के गटर में सड़ने के लिए छोड़ गए. गटर इसलिए कहूंगा कि मैं उस समाज का हिस्सा हूं जो अतीत में जीता है. भावावेश के चलते मेरा गला रुंध गया. चाह कर भी मैं रो न सका.

आहिस्ताआहिस्ता मैं सपना के दिए घाव से उबरने लगा. मेरी शादी हो गई. मेरी बीवी भले ही सुंदर नहीं थी तथापि उस ने कभी जाहिर नहीं होने दिया कि मेरे खून को ले कर उसे कोई मलाल है. उलटे मैं ने ही इस प्रसंग को छेड़ कर उस का मन टटोलना चाहा तो वह हंस कर कहती, ‘मैं सात जन्मों तक आप को ही चाहूंगी.’ मैं भावविभोर हो उसे अपने सीने से लगा लेता. सपना ने जहां मेरे आत्मबल को तोड़ा, वहीं मेरी बीवी मेरी संबल थी.

आज 18 नवंबर था. मन कुछ सोच कर सुबह से ही खिन्न था. इसी दिन सपना ने अपनी शादी का कार्ड मुझे दिया था. कितनी बेरहमी के साथ उस ने मेरे अरमानों का कत्ल किया था. मैं उस की बेवफाई आज भी नहीं भूला था, जबकि उस बात को लगभग 10 साल हो गए थे. औरत अपना पहला प्यार कभी नहीं भूलती और पुरुष अपनी पहली बेवफाई.

कोर्ट का समय शुरू हुआ. पुराने केसों की एक फाइल मेरे सामने पड़ी थी. गाजीपुर आए मुझे एक महीने से ऊपर हो गया. इस केस की यह पहली तारीख थी. मैं उसे पढ़ने लगा. सपना बनाम सुधीर पांडेय. तलाक का मुकदमा था, जिस में वादी सपना ने अपने पति पर शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना का आरोप लगा कर तलाक व भरणपोषण की मांग की थी.

सपना का नाम पढ़ कर मुझे शंका हुई. फिर सोचा, ‘होगी कोई सपना.’ तारीख पर दोनों मौजूद थे. मैं ने दोनों को अदालत में हाजिर होने का हुक्म दिया. मेरी शंका गलत साबित नहीं हुई. वह सपना ही थी. कैसी थी, कैसी हो गई. मेरा मन उदास हो गया. गुलाब की तरह खिले चेहरे को मानो बेरहमी से मसल दिया गया हो. उस ने मुझे पहचान लिया. इसलिए निगाहें नीची कर लीं. भावनाओं के उमड़ते ज्वार को मैं ने किसी तरह शांत किया.

‘‘सर, पिछले 4 साल से यह केस चल रहा है. मेरी मुवक्किल तलाक के साथ भरणपोषण की मांग कर रही है.’’

दोनों पक्षों के वकीलों की दलीलें सुनने के बाद लंच के दौरान मैं ने सपना को अपने केबिन में बुलाया. वह आना नहीं चाह रही थी, फिर भी आई.

‘‘सपना, क्या तुम सचमुच तलाक चाहती हो?’’ उस की निगाहें झुकी हुई थीं. मैं ने पुन: अपना वाक्य दोहराया. कायदेकानून से हट कर मेरी हमेशा कोशिश रही कि ऐसे मामलों में दोनों पक्षों को समझाबुझा कर एक किया जाए, क्योंकि तलाक का सब से बुरा प्रभाव बच्चों पर पड़ता है. वकीलों का क्या? वे आपस में मिल जाते हैं तथा बिलावजह मुकदमों को लंबित कर के अपनी रोजीरोटी कमाते हैं.

मुवक्किल समझता है कि ये हमारी तरफ से लड़ रहे हैं, जबकि वे सिर्फ अपने पेट के लिए लड़ रहे होते हैं. सपना ने जब अपनी निगाहें ऊपर कीं, तो मैं ने देखा कि उस की आंखें आंसुओं से लबरेज थीं.

‘‘वह मेरे चरित्र पर शक करता था. किसी से बात नहीं करने देता था. मेरे पैरों में बेडि़यां बांध कर औफिस जाता, तभी खोलता जब उस की शारीरिक डिमांड होती. इनकार करने पर मारतापीटता,’’ सपना एक सांस में बोली.

यह सुन कर मेरा खून खौल गया. आदमी था कि हैवान, ‘‘तुम ने पुलिस में रिपोर्ट नहीं लिखवाई?’’

‘‘लिखवाती तब न जब उस के चंगुल से छूटती.’’

‘‘फिर कैसे छूटीं?’’

‘‘भाई आया था. उसी ने देखा, जोरजबरदस्ती की. पुलिस की धमकी दी, तब कहीं जा कर छूटी.’’

‘‘कितने साल उस के साथ रहीं?’’

‘‘सिर्फ 6 महीने. 3 साल मायके में रही, सोचा सुधर जाएगा. सुधरना तो दूर उस ने मेरी खोजखबर तक नहीं ली. उस की हैवानियत को ले कर पहले भी मैं भयभीत थी. मम्मीपापा को डर था कि वह मुझे मार डालेगा, इसलिए सुसराल नहीं भेजा.’’

‘‘उसे किसी मनोचिकित्सक को नहीं दिखाया?’’

‘‘मेरे चाहने से क्या होता? वैसे भी जन्मजात दोष को कोई भी दूर नहीं कर सकता.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘वह शुरू से ही शक्की प्रवृत्ति का था. उस पर मेरी खूबसूरती ने कोढ़ में खाज का काम किया. एकाध बार मैं ने उस के दोस्तों से हंस कर बात क्या कर ली, मानो उस पर बज्रपात हो गया. तभी से किसी न किसी बहाने मुझे टौर्चर करने लगा.’’

मैं कुछ सोच कर बोला, ‘‘तो अब तलाक ले कर रहोगी.’’ वह कुछ बोली नहीं. सिर नीचा कर लिया उस ने. मैं ने उसे सोचने व जवाब देने का मौका दिया.

‘‘अब इस के अलावा कोई चारा नहीं,’’ उस का स्वर अपेक्षाकृत धीमा था.

मैं ने उस की आंखों में वेदना के उमड़ते बादलों को देखा. उस दर्द, पीड़ा का एहसास किया जो प्राय: हर उस स्त्री को होती है. जो न चाहते हुए भी तलाक के लिए मजबूर होती है. जिंदगी जुआ है. यहां चाहने से कुछ नहीं मिलता. कभी मैं सपना की जगह था, आज सपना मेरी जगह है. मैं ने तो अपने को संभाल लिया. क्या सपना खुद को संभाल पाएगी? एक उसांस के साथ सपना को मैं ने बाहर जाने के लिए कहा.

मैं ने सपना के पति को भी बुलाया. देखने में वह सामान्य पुरुष लगा, परंतु जिस तरीके से उस ने सपना के चरित्र पर अनर्गल आरोप लगाए उस से मेरा मन खिन्न हो गया. अंतत: जब वह सपना के साथ सामंजस्य बिठा कर  रहने के लिए राजी नहीं हुआ तो मुझे यही लगा कि दोनों अलग हो जाएं. सिर्फ बच्चे के भरणपोषण को ले कर मामला अटका हुआ था.

मैं ने सपना से पूछा, ‘‘तुम्हें हर माह रुपए चाहिए या एकमुश्त रकम ले कर अलग होना चाहती हो,’’ सपना ने हर माह की हामी भरी.

मैं ने कहा, ‘‘हर माह रुपए आएंगे भी, नहीं भी आएंगे. नहीं  आएंगे तो तुम्हें अदालत की शरण लेनी पड़ेगी. यह हमेशा का लफड़ा है. बेहतर यही होगा कि एकमुश्त रकम ले कर अलग हो जाओ और अपने पैरों पर खड़ी हो जाओ. तुम्हारी पारिवारिक पृष्ठभूमि संपन्न है. बेहतर है ऐसे आदमी से छुट्टी पाओ.’’ यह मेरी निजी राय थी.

5 लाख रुपए पर मामला निबट गया. अब दोनों के रास्ते अलग थे. सपना के मांबाप मेरी केबिन में आए. आभार व्यक्त करने के लिए उन के पास शब्द नहीं थे. उन के चेहरे से पश्चात्ताप की लकीरें स्पष्ट झलक रही थीं. मैं भी गमगीन था. सपना से अब पता नहीं कब भेंट होगी. उस के भविष्य को ले कर भी मैं उदिग्न था. न चाह कर भी कुछ कहने से खुद को रोक नहीं पाया, ‘‘सपना, तुम ने शादी करने से इसलिए इनकार कर दिया था कि मेरी जाति, खानदान का अतापता नहीं था. मैं अपने तथाकथित मातापिता का गोद लिया पुत्र था, पर जिस के मातापिता व खानदान का पता था उसे क्यों छोड़ दिया,’’ सब निरुत्तर थे.

सपना के पिता मेरा हाथ अपने हाथों में ले कर भरे गले से बोले, ‘‘बेटा, मैं ने इंसान को पहचानने में गलती की, इसी का दंड भुगत रहा हूं. मुझे माफ कर दो,’’ उन की आंखों से अविरल अश्रुधार फूट पड़ी.

एक बेटी की पीड़ा का सहज अनुमान लगाया जा सकता था उस बाप के आंसुओं से, जिस ने बड़े लाड़प्यार से पालपोस कर उसे बड़ा किया था, पर अंधविश्वास को क्या कहें, इंसान यहीं हार जाता है. पंडेपुजारियों का विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता. सपना मेरी आंखों से ओझल हो गई और छोड़ गई एक सवाल, क्या उस के जीवन में भी सुबह होगी?

रेप दिखावे का प्रदर्शन क्यों ? ‘बेकार है न्याय की उम्मीद’

बलात्कार समाज का एक वह घिनौना सच है जो हमारे समाज में पौराणिक, ऐतिहासिक काल से ले कर आधुनिक काल तक फलफूल रहा है. जहां एक ओर बलात्कार जैसे जघन्य अपराध से बच्ची से ले कर जवान और बूढ़ी औरत तक शोषित हो कर शारीरिक और मानसिक पीड़ा सह कर घायल और छलनी हो जाती है, वहीं दूसरी ओर जानवररूपी आदमी किसी लड़की का बलात्कार करने को ले कर या तो इसे मर्दानगी का नाम देते हैं या फिर शारीरिक भूख को शांत करने की हवस.

असल में तो आदमी के रूप में छिपे ऐसे भेड़िए को जानवर कहना भी गलत होगा क्योंकि ऐसा घिनौना काम जानवर भी नहीं करते. ज्यादातर देखा गया है कि जानवर छोटे बच्चे पर वार नही करते. लेकिन इंसान के रूप में जानवर से भी बदतर बलात्कारी छोटी बच्चियों तक का बलात्कार करने से भी बाज नहीं आते.

बेकार है न्याय की उम्मीद

बलात्कार नामक यह दीमक सिर्फ समाज में ही नहीं, घरघर में घुसा हुआ है। कभी करीबी रिश्तेदार के रूप में तो कभी गुंडेमवाली या भ्रष्ट नेता या भ्रष्ट पुलिस अधिकारी के रूप में. कई बार गैंगरैप करने वाले गुनहगार सजा नहीं पा पाते क्योंकि बलात्कारी का कनैक्शन किसी बड़े नेता, अभिनेता या बड़े पुलिस अधिकारियों तक होता है. ऐसे में अपराधी को सजा मिलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जाता है क्योंकि बलात्कार पीड़ित लड़की या औरत कानूनी तौर पर अगर गुनहगार को सजा दिलाना भी चाहे तो कोर्ट का फैसला आने तक उस को सालों रुकना पड़ता है और हर डेट पर सब के सामने उसी बलात्कार की चर्चा बारबार होने के तहत बेइज्जत और शर्मिंदगी झेलनी पड़ती है.

गौरतलब है कि अगर कोई लड़की बलात्कार के दौरान मर जाती है तो उस को शहिद का दरजा दे दिया जाता है. उस के लिए कैंडल जलाई जाती है, मोरचा निकाला जाता है. उस को बहादुर लड़की होने तक का खिताब दिया जाता है. वहीं दूसरी और अगर कोई लड़की बलात्कार के बाद जीवित रह जाती है तो उसे पूरी तरह गुनहगार माना जाता है और उसे समाज में और खुद उस के ही घरपरिवार में गुनहगार की नजरों से देखा जाता है. न तो ऐसी लड़की की शादी हो पाती है और न ही कोई उस को कोई सच्चे मन से स्वीकार करता है. यह बहुत दुख की बात है लेकिन कड़वा सच भी है.

अछूत नहीं होती पीङिता

हर साल कोई न कोई बड़ा हादसा किसी मासूम लड़की के दर्दनाक बलात्कार से जुड़ा लोगों के सामने आता है. उस के बाद जम कर विरोध होता है, मोमबत्ती ले कर कई सारी लड़कियां कैंडल मार्च करती हैं, न्यूज चैनल वाले टीआरपी बढ़ाने के लिए और सोशल मीडिया अपने फौलोवर्स बढ़ाने के लिए ज्यादा से ज्यादा इस खबर को चलाते हैं. कुछ समय बात सब कुछ फिर से वैसे ही शांत हो जाता है. सिर्फ रोते हैं तो उस लड़की के घर वाले, जिस लड़की का बलात्कार कर के पूरी तरह प्रताड़ित कर के उस मासूम लड़की को मौत के घाट उतार दिया जाता है. फिर कुछ महीनों या सालों बाद फिर से ऐसा ही एक और बलात्कार से संबंधित कांड चर्चा में आता है जैसेकि हाल ही में कोलकाता में एक डाक्टर को बलात्कार कर के बुरी तरह मार डाला गया.

तमाशबीन लोग

इस पर भी काफी समय से होहल्ला हो रहा है लेकिन सजा अभी तक किसी को नहीं हुई है. ऐसे में यह कहना भी गलत न होगा कि हमारे देश का कानून खासतौर पर बलात्कार जैसे जघन्य अपराध को ले कर उतना कड़क नहीं जितना की अन्य देशों में बलात्कार के अपराध को ले कर सख्त कानून बने हुए हैं. शायद यही वजह है कि बच्ची हो या जवान, बलात्कारी बिना किसी डर के औरत की इज्जत तारतार कर देता है क्योंकि उसे अंजाम की परवाह नहीं होता और कानून पर पूरा भरोसा होता है कि वह इस अपराध से बच ही जाएगा.

ऐसे में सवाल यह उठता है कि बलात्कार जैसी घातक घटना किसी के साथ भी हो सकती है तो क्या ऐसे में क्या ऐसा कुछ संभव है कि बलात्कार होने से पहले ही लड़कियां सचेत हो जाएं और अलर्ट हो सकें ताकि बलात्कार होने से पहले ही इस से बचा जा सके.

बलात्कार जैसे जघन्य अपराध से बचा जा सकता है थोड़ी सतर्कता बरती जाए :

किसी लड़की का बलात्कार होना एक बुरी घटना है, लेकिन इस से बचने का उपाय ढूंढ़ना एक लड़की के लिए सतर्क होना, साहसी होना और दिमागी तौर पर मजबूत होने का संकेत दर्शाता है. आदमी भले ही शारीरिक तौर पर मजबूत होता है लेकिन औरत उस से कहीं ज्यादा दिमागी तौर पर मजबूत होती है. तभी तो वह अकेली पूरा घर सारे मर्दों को संभालने की ताकत और बतौर नेता सारे देश को संभालने की ताकत रखती है.

कहने का तात्पर्य यह है कि आने वाली मुसीबत जिस के बारे में हमें पता नहीं है उस से बचा नहीं जा सकता लेकिन अगर पहले से ही हम दिमागी तौर पर सतर्क और निडर रहें, ऐसी जगह जाने से बचें या ऐसे लोगों से दूरी बनाएं जिस से हमें खतरा हो तो इस मुसीबत को टाला भी जा सकता है.

ऐसे बचाएं खुद को

जैसेकि सड़क पर चलते समय ऐक्सीडेंट होने के डर से हम किनारे चलते हैं, उसी तरह हमें ऐसी जगह जाने से बचना चाहिए जहां हमारी इज्जत और जान को खतरा हो. और अगर ऐसी जगह जा रहे हैं तो बेकार की निडरता न दिखाते हुए किसी को साथ ले कर जाएं.

बौलीवुड हीरोइन तापसी पन्नू ने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि वे दिल्ली की बसों में ट्रैवल करते वक्त अपने साथ एक पिन या सुई रखती थीं और उस भीड़ में अगर कोई उन्हें गलत टच करने की कोशिश करता था तो वह चुपके से वह पिन या सुई चुभा देती थीं. कहने का मतलब यह है कि बाहर ट्रैवल करने वाली अकेली लड़कियों को अपने साथ कोई तेज औजार जैसेकि सुई, पिन, छोटा चाकू आखों में डालने वाला स्प्रे, अगर ये सब नहीं ले सकते तो मिर्चपाउडर अपने पास रखना चाहिए ताकि मुश्किल वक्त में इन का इतेमाल किया जा सके.

जो डर गया वह…

इस से भी ज्यादा जरूरी है आप का बेधड़क हो कर उन गलत हालातों का सामना करना जिस में आप फंस चुकी हैं, क्योंकि बहुत सालों पहले फिल्म ‘शोले’ में गब्बर सिंह ने कहा था कि जो डर गया समझो वह मर गया…’

यह एक साधारण सा डायलौग है लेकिन इस के माने बहुत मजबूत हैं. मुश्किल वक्त में अगर आप हिम्मत से काम लेती हैं, दिमाग का इस्तेमाल कर के बचने की कोशिश करती हैं तो तो आप रेप जैसे मुश्किल दौर से भी निकल सकती हैं.

बौलीवुड में कई ऐसी फिल्में बनी हैं जिस में एक अकेली लड़की को चार गुंडों से बलात्कार होने से बचते हुए दिखाया गया है। ऐसे वक्त पर लड़कियों ने शेरनी की तरह दहाड़ कर और उन पर वार कर के न सिर्फ उन को मारा है बल्कि अपनेआप को बचाया भी है।

फिल्म ‘इन कार’ में एक लड़की जो 4 क्रिमिनल द्वारा किडनैप हो जाती है और बलात्कार के लिए सुनसान जगह पर ले जाई जाती है, वहां पर भी वह अपने दिमाग का इस्तेमाल कर के बहादुरी के साथ न सिर्फ गुंडों का खात्मा करती है बल्कि अपनेआप को बचा भी लेती है.

डर नहीं सामना करें

ऐसी ही कई फिल्में हैं जैसे ‘मिर्च मसाला’, ‘दामिनी’, ‘पिंक’ आदि। श्रीदेवी की आखिरी फिल्म ‘मोम,’ फिल्म ‘बैंडिट क्वीन’, ‘मिर्च मसाला’ आदि जिन में लड़कियों को बलात्कारियों के सामने निर्बल हो कर डरने के बजाय उन का सामना करते दिखाया गया है.

असल जिंदगी में भी अगर कोई लड़की रेप होने के बजाय सामने वाले को मारने या सजा देने की ताकत रखती है तो उस का कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता. मुंबई, दिल्ली जैसे महानगरों में कई लड़कियां अकेली रहती हैं और खुद की सुरक्षा के लिए पूरी तरह सतर्क भी रहती हैं ताकि उन के साथ कोई बुरी घटना न हो. अगर किसी गलत इंसान के चंगुल में फंसने के बाद डर के मारे आप कुछ भी न कर पाएं तो उस इंसान से बचने के लिए इतना जोर से चिल्लाएं कि उस बलात्कारी के कान के परदे ही फट जाएं या आप की आवाज सुन कर कोई आप को बचाने आ जाए.

अगर फिर भी बुरे से बुरे हालातों के चलते आप का रेप हो जाता है और आप अपनेआप को संभालने की स्थिति में नहीं हैं तो यह बात आप सिर्फ उन को बताएं जो विश्वास के लायक है और आप को न्याय दिलाने का दमखम रखता है.

बेकार का बवाल

अपने साथ हुए बलात्कार का बवाल न करें क्योंकि लोग सिर्फ तमाशबीन होते हैं. उन को आप के दर्द का एहसास नही होगा बल्कि अपने साथ हुए रेपकांड को सब को बताने के बाद आप ही बदनाम होंगी, बलात्कारी को कोई फर्क नही पड़ेगा। इसलिए ऐसे शैतानों से निबटने के लिए और उसे सजा दिलाने के लिए उचित कदम उठाएं. इस के अलावा आजकल पुलिस की मदद के भी कई सारे हैल्पलाइन नंबर हैं, उसे अपने मोबाइल में सेव कर के रखे.

गौरतलब है कि खासतौर पर औरतों का सिक्स सेंस अर्थात छठी इंद्री पावरफुल होती है जो आने वाली मुसीबत से बचने की आप को चेतावनी देती है.

इस बात में कोई दोराय नहीं है कि जो इस बुरी स्थिति से गुजरता है वही इस दर्द का एहसास कर सकता है. लेकिन किसी के साथ भी ऐसी जघन्य अपराध न हो इसलिए इस से बचने के लिए सतर्कता, निडरता और चतुराई होना बहुत जरूरी है.

सरकार ने गोद कानून को सरल बनाने के बजाय बना दिया है इसे बेहद जटिल

नवजातों की खरीदी के मामले के उजागर होने पर किसी को कोई आश्चर्र्य नहीं होना चाहिए. एक बेहद सामान्य, आमतौर पर नैतिक, मानवीय जरूरत के कानूनों के अंतर्गत अवैध घोषित कर के इसे कालाबाजारी में धकेल दिया गया है. जिन लोगों के बच्चे नहीं होते वे किसी न किसी को गोद लेना चाहते हैं और चूंकि अब रिश्तेदारों में गोद देने वाले बचे नहीं हैं, किसी दूरदराज इलाके के बच्चे को गोद लेना ही अकेला तरीका बचा है.

सरकारों ने गोद लेने की प्रक्रिया को बेहद जटिल बना दिया है. मानव तस्करी रोकने और बच्चों से भीख मंगवाने, उन्हें फैक्टरियों में स्लेव लेबर की तरह रखने, उन से प्रौस्टीट्यूशन करने से बचने के नाम पर जो कानून बनाए गए हैं वे ऐसे हैं कि कानूनी बच्चा पाना मुश्किल हो गया है. एक नवजात को खरीद लेना और फिर उसे नकली दस्तावेजों के सहारे अपना घोषित कर देना बेहद आसान है और व्यावहारिक भी. इसे अनैतिक भी नहीं कहा जा सकता है क्योंकि चाहे बच्चा खरीदा गया हो या खुद का जन्म दिया गया हो, उस पर पैसा बराबर का लगता है और एक बार अपने घर आ जाए तो अपना ही हो जाता है.

बच्चा अपना विधि विवाह से हुआ हो, यह समाज की देन है वरना कोई भी अपना उसी तरह हो जाता है जैसे एक पति या पत्नी बिना खून के रिश्ते से अपने हो जाते हैं. समाज ने पतिपत्नी को एकदूसरे का साथी समझ लिया है इसलिए जीवन आसान हो गया है वरना 2 अनजान जनों के रिश्तों का कोई ठीक आधार नहीं है. जब तक शरीर की चाहत हो या एकदूसरे से लेनादेना हो बात दूसरी वरना कैसी शादी, कैसा अपनापन? जो संबंध पतिपत्नी में एक लगाव के कारण पनपता है वह गोद लिए बच्चा चाहे खरीदा हो, चाहे रिश्तेदार का मंत्रशंत्र पढ़ कर लिया हो सब बराबर है. एक बार घर में एक शिशु आ जाए वह अपना हो जाता है.

आदिवासी बच्चों की खरीदी हो रही है इस बात को सैंसेशन बना कर हजारों उन जोड़ों को निराश किया जा रहा है जिन्हें उम्मीद थी कि वे कहीं से बच्चा ला कर उसे अपना कह सकेंगे चाहे उस का रंग, चालढाल, शारीरिक बनावट भिन्न ही क्यों न हो.

आदिवासियों में अभी भी बच्चे हो रहे हैं क्योंकि उन्हें न बर्थ कंट्रोल की तरकीबें मालूम हैं, न जरूरत है. उन के लिए बच्चे होना बेहद प्राकृतिक क्रिया है. उसे किसी को दे कर पैसे मिल जाएं तो अच्छा है वरना वे तो किसी को भी दे देंगे. देशभर में घरों में काम करने वाली लाखों लड़कियां आदिवासी क्षेत्रों से ही आती हैं जिन के जाने पर किसी को दुख नहीं होता.

जरूरत इस बात की है कि गोद कानून बेहद सरल हो चाहे उस के नुकसान हों. कठिन करने से ह्यूमन टै्रफिकिंग ज्यादा हो रही है. तलाकों के कारण ठुकराए गए बच्चे आसानी से दलालों के हाथ पड़ जाते हैं. बिनब्याही मांओं के बच्चे कूड़े में फेंके जा रहे हैं. उन्हें कोईर् अपना लेगा, अपना बना लेगा, यह उम्मीद रहे तो बहुत से बच्चे कई ट्रैजिडियों से बच सकते हैं.

सरकारी बालगृह यातना घर हैं, यह दुनियाभर में दिख रहा है. छोटी लड़कियां रेप की शिकार होती हैं, लड़के गुदा मैथुन के. यह जगजाहिर है. सिर्फ कानूनों के कारण जिन्हें बच्चे चाहिए वे तरसते रहते हैं, जिन्हें जरूरत नहीं है वे उन्हें सरकारी पैसा ले कर पालने का सरकारी काम कर मौज उड़ाते हैं. बीच में बच्चे मुहरे बने हुए हैं.

गोद कानून सरल हो, यही बच्चों के अवैध व्यापार पर नियंत्रण की गारंटी है. पर ऐसा नहीं होगा क्योंकि नेता और उन पर बैठे अफसर और उन्हीं में शामिल एनजीओ चलाने वाले सब बच्चों के बहाने मोटी कमाई कर रहे हैं. जब बच्चे सोने का नहीं तो चांदी का ही सही, नोटों का ही सही, अंडे देने वाली मुरगियां हों तो उन्हें गोद दे कर क्यों हाथ से निकल जाने दिया जाए?

अगर बच्चे पैदा होते ही दे दिए जाएं तो वे बहुत सी बीमारियों से भी बचें, कुपोषण से भी बचें, मारपीट से बचें. गोद लेने वाले को छोटे बच्चों से जो प्यार होता है उस का तो कोई मुकाबला ही नहीं. उसे व्यापार बनने से बचाइए. एक बार का लेनदेन हो जाना और छुट्टी. फिर शिशु नए मांबाप का अपना, अपना दुलारा.

चमकदमक और पार्टीबाजी में फंसी सारा अली खान, ‘काश फिल्मी कैरियर भी होता खूबसूरत ‘

अनंत अंबानी और राधिका मर्चेंट की शादी में स्टार किड्स का जमावड़ा लगा हुआ था. इन्हीं में एक थी सैफ अली खान की बेटी सारा अली खान, जो शादी में ब्लश पिंक, गोल्डन और ग्रीन कलर को हाईलाइट करता अनारगोटा लहंगा पहन कर आई थीं. हालांकि वे इस लहंगे में बेहद खूबसूरत लग रही थीं लेकिन काश, उन का फिल्मी कैरियर भी कुछ खूबसूरत होता.

पटौदी खानदान की यह बिटिया आजकल सिर्फ पार्टियों की शोभा बढ़ा रही हैं. 2018 में अपने कैरियर की शुरुआत करने वाली सारा बौलीवुड के मशहूर स्टार किड्स की कैटेगरी में शामिल हैं. इस का उन्हें कई जगह फायदा भी मिला. इस के बावजूद वे फिल्म इंडस्ट्री में वह नाम नहीं कमा पाईं जिस की उन से उम्मीद लगाई गई थी.

सारा अली खान का फिल्मी सफर शुरू हुआ साल 2018 से, जब वे ‘केदारनाथ’ मूवी में दिखीं और उस के बाद ‘सिंबा’ मूवी में नजर आईं. उस के 2 साल बाद उन की ‘लव आजकल’ और फिर ‘कुली नंबर 1’ रिलीज हुईं. साल 2021 में उन की मूवी आई- ‘अतरंगी रे’, जिस में वे धनुष और अक्षय कुमार जैसे स्टार्स के साथ दिखीं. 2023 में वे ‘गैस लाइट’, ‘जरा हटके जरा बचके’ में दिखीं. इस साल वे ‘मर्डर मुबारक’ और ‘ऐ वतन मेरे वतन’ में दिख चुकी हैं. बहुत जल्द उन की ‘मैट्रो इन दिनों’, ‘स्काइ फौर्स’ और ‘ईगल’ आने वाली हैं.

लेकिन उन के फिल्मी कैरियर पर नजर डालें तो 6 साल के कैरियर में सारा ने 10 फिल्में की हैं. उन की इन फिल्मों में कोई भी ऐसा रोल नहीं है जिसे सिनेमाघर से बाहर निकल कर याद रखा जा सके. रही बात उन की ऐक्ंिटग की तो वह ‘लव आजकल 2’ और ‘कुली नंबर 1’ में साफ देखी जा सकती हैं. इस फिल्म में उन की ऐक्ंिटग नहीं ओवरऐक्ंिटग दिखी, जिस की वजह से ट्रोलर्स ने उन की जम कर खिंचाई भी की.

रोहित शेट्टी से मांगा रोल

फिल्म ‘केदारनाथ’ करने के बाद सारा के पास कोई फिल्म नहीं थी. इसी चाहत में वे रोहित शेट्टी के पास गईं. इस का खुलासा एक टीवी शो के दौरान हुआ. कुछ वर्षों पहले कपिल शर्मा के शो में रोहित शेट्टी ने खुलासा किया था कि ‘सिंबा’ फिल्म में सारा को कैसे कास्ट किया गया था. रोहित शेट्टी ने कहा, ‘‘वह मेरे पास आई और ‘सिंबा’ में रोल के लिए विनती करने लगी. यह सुन कर मैं रोने लगा. कल्पना कीजिए, सैफ अली खान और अमृता सिंह की बेटी मु  झ से रोल के लिए विनती कर रही है.’’

रोहित शेट्टी से रोल मांगने पर साफ जाहिर है कि सारा को यह मूवी अपने टैलेंट के दम पर नहीं, बल्कि स्टार की बेटी होने की वजह से मिली. विडंबना देखिए कि सारा के फिल्मी कैरियर की एकमात्र यही वह फिल्म है जो सुपरहिट रही. हालांकि सारा इस फिल्म में सिर्फ एक शोपीस थीं. इस फिल्म के चलने का एक कारण यह भी था कि उस समय रणवीर सिंह अच्छा चल रहे थे. वहीं इस फिल्म को ‘सिंघम’ से जोड़ कर देखा जा रहा था.

ट्रोलर्स के निशाने पर

स्टारकिड्स तो ट्रोलर्स के हमेशा फेवरेट होते हैं. फिर चाहे वह आलिया भट्ट हों या फिर किंग खान की लाड़ली सुहाना खान. हर किसी को ट्रोलिंग का शिकार होना पड़ा है. ऐसे में सैफ अली खान की बेटी कहां बचने वाली हैं.

सारा की जैसे ही कोई फिल्म रिलीज होने वाली होती है, वे मंदिर पहुंच जाती हैं. अपने स्किल्स पर मेहनत करने की जगह भगवान के सामने हाथ जोड़ना उन की कमजोरी ही दिखाती है. इस के अलावा वे पैपराजी को खुद ही शूट पर बुला कर कहती हैं, ‘‘अरे, आप यहां कैसे आ गए. आप को यहां किस ने बुलाया.’’ जबकि, उन पर यह इल्जाम लगते आए हैं कि वे खुद ही पैपराजी को इस की जानकारी देती हैं. सारा पीआर से बनी ऐक्ट्रैस हैं.

काम कम, चर्चाओं में ज्यादा

ट्रोलर्स का यह भी कहना है कि जिस भी फिल्म में सारा आती हैं, उस के को-स्टार के साथ उन का नाम जुड़ने लगता है. इस का एक उदाहरण ‘लव आजकल’ की शूटिंग के दौरान कार्तिक आर्यन के साथ उन का नाम जुड़ना है. वहीं मीडिया रिपोर्टों के हिसाब से फिल्मों में आने से पहले वे वीर पहाडि़या, जो कि बौलीवुड ऐक्ट्रैस जाह्नवी कपूर के रूमर्ड बौयफ्रैंड शिखर पहाडि़या के भाई हैं, को लंबे समय तक डेट कर चुकी हैं. इस के बाद उन का नाम क्रिकेटर शुभमन गिल के साथ जोड़ा गया. हालांकि उन्होंने इन बातों को कभी स्वीकारा नहीं. ‘केदारनाथ’ फिल्म के बाद सुशांत सिंह राजपूत के साथ भी उन का नाम जोड़ा जा चुका है.

किसी जमाने के पावर कपल कहे जाने वाले ऐक्टर सैफ अली खान और ऐक्ट्रैस अमृता सिंह की बेटी सारा अली खान सोशल मीडिया पर अपने फैशन स्टाइल और टूर के लिए जानी जाती रही हैं, लेकिन पिछले साल एनसीबी (नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो) ने ड्रग्स के मामले में उन से पूछताछ की थी. यह पूछताछ अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु से जुड़ी थी. सारा ने सुशांत के साथ फिल्म ‘केदारनाथ’ में काम किया था.

आज के दौर में किसी की भी पौपुलैरिटी का अंदाजा उस के सोशल मीडिया के फौलोअर्स से चल जाता है. सोशल मीडिया पर सारा अकसर अपने वैकेशन की पिक्चर व वीडियो डालती रहती हैं.

सारा के इंस्टाग्राम पर 43 मिलियन फौलोअर्स हैं. वह अपनी फिल्मों से ज्यादा अपने कौंन्फिडैंस व ह्यूमर के लिए सुर्खियों में रहती हैं. यंगस्टर्स उन से काफी इंप्रैस हैं. हालांकि ये फौलोअर्स उन के स्टारकिड्स और स्टाइल स्टेटमैंट की वजह से हैं, न कि उन के ऐक्ंिटग कैरियर की वजह से क्योंकि ऐक्ंिटग तो उन की कुछ खास है ही नहीं. फिल्में भी उन्हें पटौदी खानदान या बड़े घर की बेटी के नाम पर ही मिलती हैं.

हमेशा सीखती हूं

27 साल की सारा ने कहा, ‘‘एक ऐक्ट्रैस के रूप में हम हर दिन बहुतकुछ सीखते हैं. मैं हमेशा कुछ न कुछ सीखने की कोशिश करती हूं. लेकिन मु  झे यह भी लगता है कि मैं ने कुछ गलतियां की हैं. मैं ने ऐसी फिल्में की हैं जिन्हें दर्शकों ने पसंद नहीं किया.’’

लेकिन सारा को एक स्टारकिड्स के तौर पर काम ढूंढ़ना नहीं पड़ा और न ही आउटसाइडर के तौर पर उन्हें स्ट्रगल करना पड़ा व न ही प्रोड्यूसर के दफ्तर के चक्कर लगाने पड़े.

करण अंकल का खेमा छोड़ें

बौलीवुड के करण जौहर का साथ पा कर अच्छेअच्छे हीरोहीरोइन के बच्चे इंडस्ट्री में एंट्री पा लेते हैं और फिर वे अपने टैलेंट से इस इंडस्ट्री में अपने पैर जमा लेते हैं. आलिया भट्ट और रणबीर कपूर इस की अच्छी मिसाल हैं. लेकिन ये इसीलिए चल पाए क्योंकि ये ऐक्ंिटग अच्छी करते हैं.

लेकिन सारा को यह बात सम  झने की जरूरत है कि बौलीवुड में अपने पैर जमाने के लिए खुद को प्रूव भी तो करना होता है. प्रोड्यूसर्स कब तक इस बात का लिहाज करेंगे कि कोई स्टारकिड है.

जाह्नवी कपूर, अनन्या पांडे, खुशी कपूर, नव्या नवेली नंदा, अहान खान, सुहाना खान, सारा अली खान ने इन का साथ पकड़ा हुआ है. ये न तो कुछ पढ़ते हैं, न सीखते हैं. हिंदी फिल्मों में काम करने वाले इन स्टारकिड्स को हिंदी ठीक से नहीं आती.

ये अगर कुछ पढ़ते भी हैं तो ऐसा कुछ पढ़ते हैं जो हवाहवाई है. कैरेक्टर में पकड़ ये इसीलिए नहीं बना पाते क्योंकि ये समाज को सम  झते ही नहीं. सारा का दायरा बस इन्हीं स्टारकिड्स के आसपास ही घूमता रहता है. जब तक वे इस दायरे को नहीं तोड़ेंगी तब तक सफल अभिनेत्री बनने का सपना दूर की बात है.

मैं एक लड़के से प्यार करती हूं, कैसे पता करूं कि वह मुझे पसंद करता है या नहीं ?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं कालेजगोइंग लड़की हूं. क्लास में हमारा अलग ग्रुप बन गया है. हम अच्छे दोस्त बन गए हैं. एकदूसरे के घर भी आनाजाना है. हम 5 लड़कियों और 8 लड़कों का ग्रुप है. उन 8 लड़कों में से एक लड़के को देख कर मु झे लगता है जैसे वह मुझसे दोस्ती से ज्यादा कुछ चाहता है. कई बार नहीं भी लगता. मैं बहुत कन्फ्यूज सी हो जाती हूं. क्या नोटिस करूं कि पता लगा सकूं कि वह मुझे पसंद करने लगा है? अब उस का तो पता नहीं लेकिन दिनोंदिन मेरा उस की ओर प्यार बढ़ता जा रहा है. प्लीज बताइए कैसे पता करूं कि वह भी मु झ से प्यार करता है?

जवाब

जब कोई आप से प्यार करता है तो मिलेजुले संकेत जरूर देता है. अकसर लड़के कुछ अजीब व्यवहार करने लगते हैं. जबान से कुछ नहीं बोलते जो लड़की के लिए भी औक्वर्ड हो जाता है. खैर, आप के केस में हम कुछ बातों पर आप को गौर करने के लिए सलाह देते हैं. जैसे देखें कि जब वह आप के आसपास होता है तो क्या बहुत मुसकराता है, यहां तक कि दूसरे लोगों से बात करते समय भी. इस का मतलब यह है कि आप को देख कर वह खुश हो जाता है जो उस के चेहरे पर दिखता है.

आप से बात करते समय वह आप की ओर  झुकेगा, जबकि अन्य आप से दूर रह कर बात करेंगे. आप की आंखों में आंखें डाल कर बात करेगा. जब भी मौका मिलेगा, आप को छूने की कोशिश करेगा. ऐसे में आप भी उसे छू कर उसे किलिंग अटैक दे सकती हैं. वह आप की पसंदनापसंद की परवा करेगा.

जब आप उस की तरफ देखती हैं और वह अपनी नजरें दूसरी तरफ कर ले तो सम झ जाइएगा कि वह आप को पसंद कर रहा है. एक बात और, वह आप को चिढ़ाने के लिए कुछ भी कह सकता है, ताकि आप की प्रतिक्रिया मिल सके. वह आप की नकल करेगा या आप का मजाक उड़ाएगा. ऐसा वह सिर्फ आप के साथ करता है, दूसरी लड़कियों के साथ नहीं तो आप उस के लिए खास हैं. वह ऐसा यह छिपाने के लिए करेगा कि उस के मन में आप के लिए फीलिंग्स हैं.

वह आप के कपड़ों, आप के बालों और आप के मेकअप पर ध्यान देता है. वह आप के परफ्यूम पर ध्यान देता है. अगर वह इन में से किसी भी चीज पर आप की तारीफ करता है तो सम झ जाइए, वह पूरी तरह से आप पर फिदा है. आमतौर पर लड़के सब से बुनियादी चीजों पर भी ध्यान नहीं देते हैं, इसलिए अगर वह आप पर नजर रख रहा है तो यह लव साइन है.

वह आप को औनलाइन देखता है, वह आप के फेसबुक पोस्ट को लाइक करता है, आप के ट्वीट को रीट्वीट करता है और आप की इंस्टा पिक्स पर कमैंट करता है, वह आप की तसवीरों पर अन्य लोगों की प्रतिक्रिया पर भी नजर रखता है तो साफ जाहिर है कि आप स्पैशल हैं उस के लिए. वह बिना किसी कारण आप को कौल करता है तो जाहिर है कि आप की आवाज सुनना उसे अच्छा महसूस कराता है. अब वह लड़का ऐसे सिग्नल दे रहा है तो डियर, मामला फिट है, हिट हो जाएगा.

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या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

कौर्पोरेट लुक के लिए मेकअप टिप्स, इस तरह दिखें कौन्फिडेंट

भारी या गहरा मेकअप न करें: औफिस में भारी या गहरा मेकअप सही नहीं होता. प्रोफेशनल लुक के लिए हल्का, नेचुरल दिखने वाला मेकअप ही चुनें.

गाढ़े या चमकीले रंग न पहनें: ऑफिस में चमकीले या बोल्ड रंग बहुत अच्छे नहीं लगते. कॉर्पोरेट लुक के लिए न्यूट्रल और प्राकृतिक रंगों के कपड़े पहनें और वैसा ही मेकअप लगाएं.

आईलाइनर या मस्कारा का ज्यादा इस्तेमाल न करें: थोड़ा सा आईलाइनर और मस्कारा आपकी आंखों को निखारने में मदद कर सकता है लेकिन बहुत ज्यादा लगाना अव्यवसायिक होता है. ज्यादा आईलाइनर और मस्कारा लगाने से आपकी आंखें हैवी और काली दिखाई देती हैं जिससे वे छोटी नजर आएंगी. यह आपकी आंखों की प्राकृतिक सुंदरता को कम कर सकता है.

बहुत ज्यादा परफ्यूम न लगाएं: कौर्पोरेट माहौल में बहुत ज्यादा परफ्यूम या कोलोन लगाना आपके आस-पास के लोगों के लिए परेशानी पैदा करने वाला हो सकता है. यह उन लोगों के लिए भी एक समस्या हो सकती है जिन्हें तेज गंध से एलर्जी या संवेदनशीलता हो सकती है. हल्की, कान के पीछे और गरदन जैसे पल्स पाइंट पर परफ्यूम लगाने से भी ज्यादा खुशबू नहीं आएगी.

कौर्पोरेट जौब में प्रोफेशनल और कौफिडेंट दिखना अत्यंत महत्वपूर्ण है. सही मेकअप आप के चेहरे को तरोताजा और तराशा हुआ दिखा सकता है, जिससे आप अधिक कॉन्फिडेंस से भरी हुई महसूस करती हैं. मेकअप आपके लुक को पूरा करता है और आपके व्यक्तित्व को निखारता है. विशेषकर तब जब आप महत्वपूर्ण मीटिंग्स या प्रेजेंटेशंस में भाग ले रही होती हैं. एक अच्छा मेकअप आपको और भी प्रभावी बनाता है. एक सुव्यवस्थित और खूबसूरत मेकअप यह दिखाता है कि आप अपनी भूमिका को गंभीरता से लेती हैं और हर स्थिति के लिए तैयार हैं.

कौर्पोरेट लुक के लिए मेकअप के स्टेप्स

सबसे पहले, अपनी स्किन को अच्छी तरह साफ करें, टोन करें और एक अच्छी क्वालिटी का मॉइस्चराइजर लगाएं. यह आपकी स्किन हाइड्रेटेड और तैयार करेगा.

अपने स्किन टोन से मेल खाता हुआ फाउंडेशन चुनें. इसे छोटे डॉट्स में चेहरे पर लगाएं और ब्लेंडिंग स्पॉन्ज या ब्रश का उपयोग करके अच्छी तरह ब्लेंड करें ताकि आपकी त्वचा एक समान और नैचुरल दिखे.

कंसीलर का प्रयोग आंखों के नीचे, नाक के किनारों और अन्य डार्क एरिया पर करें. यह आपके चेहरे के दाग-धब्बों और काले घेरे को छिपाने में मदद करेगा.

फाउंडेशन सेट करने के लिए हल्के हाथों से ट्रांसलूसेंट पाउडर या कम्पैक्ट पाउडर का प्रयोग करें. यह आपके चेहरे को एक मैट फिनिश देगा और मेकअप को लंबे समय तक टिकाए रखेगा, खासकर अगर आपकी त्वचा तैलीय है.

आंखों पर न्यूट्रल या हल्के रंगों का आईशैडो चुनें, जैसे ब्राउन, बेज या हल्का गुलाबी. आईशैडो को अपनी पलकों पर हल्के हाथों से या ब्रश से लगाएं. अगर आप थोड़ा डेफिनेशन चाहती हैं तो क्रीज पर हल्का डार्क शेड भी लगा सकती हैं.

आईलाइनर का प्रयोग करके अपनी आंखों को और उभारें. ब्लैक या ब्राउन आईलाइनर का पतला सा स्ट्रोक ज़रा ऊपर जाते हुए लगाएं ताकि आंखें बड़ी और खुली दिखें.

लौंग लैश मस्कारा लगाकर अपनी पलकें को उभारें. 2 कोट्स लगाएं ताकि पलकें लंबी और घनी दिखें.

आईब्रो पेंसिल या पाउडर का उपयोग करके अपनी ऑय ब्राउज को हल्के से भरें और उन्हें नेचुरल लुक दें. सुनिश्चित करें कि वे साफ और अच्छी तरह से आकार दी गई हों, क्योंकि अच्छी ऑय ब्राउज आपके चेहरे को फ्रेम करती हैं और आपको अधिक खूबसूरत लुक देती हैं.

हल्के गुलाबी या पीच रंग के ब्लश का इस्तेमाल करें. इसे गालों की हाई बोनस पर हल्के हाथों या ब्लशिंग ब्रश से लगाएं ताकि आपके चेहरे पर एक ताजगी भरा निखार आ सके. ब्लश को अच्छी तरह से ब्लेंड करें ताकि यह नेचुरल लगे.

हाइलाइटर का हल्का सा टच अपने चीकबोन्स, नाक के ब्रिज और माथे के बीच वाले हिस्से पर लगाएं. यह आपके चेहरे को एक हेल्दी और ग्लोइंग लुक देगा.

न्यूट्रल या हल्के पिंक शेड का लिपस्टिक या लिपग्लॉस चुनें. पहले लिप लाइनर से अपने होंठों की आउटलाइन बनाएं ताकि लिपस्टिक लंबे समय तक टिकी रहे और फैलने न पाए. फिर लिपस्टिक या लिपग्लॉस लगाएं ताकि आपके होंठ प्रोफेशनल और सॉफिस्टिकेटेड दिखें.

मेकअप को बनाए रखने के और देर तक सेट रखने के लिए मेकअप सेटिंग स्प्रे का इस्तेमाल करें. यह आपके मेकअप को पूरे दिन ताजा बनाए रखेगा और उसे फैलने से रोकेगा.

दिन में एक या दो बार टू वे केक या फिर कॉम्पैक्ट पाउडर का उपयोग करें ताकि चेहरे का अतिरिक्त तेल हटाया जा सके. यह आपके चेहरे को चमकदार और तेल रहित बनाए रखेगा.

औफिस के पर्स में दिनभर टच-अप के लिए कॉम्पैक्ट पाउडर या टू वे केक साथ रखें. यह आपके चेहरे को ताजा और मैट बनाए रखेगा.

अपने पर्स में लिप बाम या लिपस्टिक जरूर रखें जो लिप्स को फ्रेश और मॉइस्चराइज रखने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं.

मिनी परफ्यूम या बौडी मिस्ट का इस्तेमाल बौडी को फ्रेश और खुशबूदार महसूस करने के लिए साथ रखें.

पर्स में मिरर और कंघी अपने लुक को चेक और ठीक करने के लिए रखें.

मिनी मेकअप ब्रश भी फटाफट टचअप के लिए रख सकते हैं.

इस प्रकार सही मेकअप और कुछ आसान टिप्स से आप ऑफिस में हमेशा प्रोफेशनल, कॉन्फिडेंट और खूबसूरत दिख सकती हैं. कौर्पोरेट लुक के लिए मेकअप को सरल और सजीव रखें, ताकि आप हर दिन प्रभावी और आत्मविश्वास से भरी रहें.

-भारती तनेजा, सौंदर्य विशेषज्ञा 

प्यार उसका न हो सका

लेखक- किशन लाल शर्मा

‘‘कौन है?’’ दरवाजे पर कई बार दस्तक देने के बाद अंदर से आवाज आई पर अब भी दरवाजा नहीं खिड़की खुली थी.

‘‘मैं, नेहा. दरवाजा खोल,’’ नेहा बोली, ‘‘कब से दरवाजा खटखटा रही हूं.’’

‘‘सौरी,’’ प्रिया नींद से जाग कर उबासी लेते हुए बोली, ‘‘तू और कहीं कमरा तलाश ले.’’

‘‘कमरा तलाश लूं,’’ नेहा ने हैरानी से प्रिया की ओर देखा व बोली, ‘‘कमरा तो तुझे तलाशना है?’’

‘‘अब मुझे नहीं, कमरा तुझे तलाशना है,’’ प्रिया बोली.

‘‘क्यों?’’ नेहा ने पूछा.

‘‘मैं ने और कर्ण ने शादी कर ली है.’’

‘‘क्या?’’ नेहा ने आश्चर्य से प्रिया को देखा. उस के माथे की बिंदी और मांग में भरा सिंदूर इस बात के गवाह थे.

‘‘पतिपत्नी के बीच तेरा क्या काम?’’ और इतना कहने के साथ ही प्रिया ने खिड़की बंद कर ली.

नेहा खड़ीखड़ी कभी खिड़की को तो कभी दरवाजे को ताकती रह गई. प्रिया औैर कर्ण के बारे में सोचतेसोचते उस के अतीत के पन्ने खुलने लगे.

नेहा और कर्ण कानपुर में इंजीनियरिंग कालेज में साथसाथ पढ़ते थे. अंतिम वर्ष की परीक्षाएं चल रही थीं, तभी कालेज कैंपस में प्लेसमैंट के लिए कई कंपनियां आईं. मुंबई की एक कंपनी में नेहा और कर्ण का सलैक्शन हो गया. परीक्षा समाप्त होने के बाद दोनों मुंबई चले गए.

मुंबई में नेहा और कर्ण ने मिल कर एक फ्लैट किराए पर ले लिया और दोनों लिव इन रिलेशनशिप में रहने लगे. साथ रहतेरहते दोनों एकदूसरे के करीब आ गए.

एक रात जब कर्ण ने नेहा का हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींचा तो वह चौंकते हुए बोली, ‘कर्ण, क्या कर रहे हो?’

‘प्यार… लव…’

‘नहीं,’ नेहा बोली, ‘अभी हमारी शादी नहीं हुई है.’

‘क्या प्यार करने के लिए शादी करना जरूरी है?’

‘हां, हमारे यहां शादी के बाद ही पतिपत्नी को शारीरिक संबंध बनाने की इजाजत है.’

‘कैसी दकियानूसी बातें करती हो, नेहा. जब शादी के बाद हम सैक्स कर सकते हैं तो पहले क्यों नहीं,’ कर्ण बोला, ‘अगर तुम शादी को जरूरी समझती हो तो वह भी कर लेंगे.’

नेहा शिक्षित और खुले विचारों की थी, लेकिन सैक्स के मामले में उस का मानना था कि शादी के बाद ही शारीरिक संबंध बनाने चाहिए. लेकिन कर्ण ने अपने प्यार का विश्वास दिला कर शादी से पहले ही नेहा को समर्पण के लिए मजबूर कर दिया.सैक्स का स्वाद चखने के बाद नेहा को भी उस का चसका लग गया. रोज रात को समर्पण करने से तो वह इनकार नहीं करती थी, लेकिन सावधानी जरूर बरतने लगी थी.

शुरू में तो नेहा ने कर्ण से शादी के लिए कहा, लेकिन दिन गुजरने के साथ वह भी सोचने लगी थी कि औरतआदमी दोनों अगर साथ जीवन गुजारने को तैयार हों तो जरूरी नहीं कि समाज को दिखाने के लिए शादी के बंधन में बंधें. बिना शादी के भी वे पतिपत्नी बन कर रह सकते हैं.

नेहा को कर्ण के प्यार पर पूरा विश्वास था इसीलिए उस ने शादी का जिक्र तक करना छोड़ दिया था और उसे शादी का खयाल आता भी नहीं अगर उन के बीच प्रिया न आती.

प्रिया पिछले दिनों ही उन की कंपनी में नई नई आई थी. वह दिल्ली की रहने वाली थी. मुंबई में उस का कोई परिचित नहीं था. जब तक प्रिया को कहीं कमरा नहीं मिल जाता तब तक के लिए कर्ण और नेहा ने उसे अपने साथ फ्लैट में रहने की इजाजत दे दी.

प्रिया नेहा से ज्यादा सुंदर और तेजतर्रार थी. कर्ण प्रिया की सुंदरता और उस की मनमोहक बातों से इतना प्रभावित हुआ कि वह उस में कुछ ज्यादा ही रुचि लेने लगा.

जिस कर्ण को नेहा सब से ज्यादा सुंदर नजर आती थी, वही कर्ण अब प्रिया के पीछे घर में ही नहीं औफिस में भी लट्टू था.

नेहा ने कई बार कर्र्ण को रोका, लेकिन कर्ण ने उस की बातों पर ध्यान नहीं दिया. नेहा समझ गई कि अगर जल्दी कर्ण को शादी के बंधन में नहीं बांधा गया तो वह हाथ से निकल जाएगा.

नेहा शादी के बारे में अपनी मां से बात करने एक सप्ताह की छुट्टी ले कर कानपुर चली गई. उस ने मां से कुछ नहीं छिपाया. मां ने उसे डांटते हुए कहा, ‘देर मत कर, उस से शादी कर ले.’

लेकिन नेहा आ कर कर्ण से शादी करती उस से पहले ही प्रिया ने उसे अपना बना लिया था.

कर्ण पर विश्वास कर के नेहा शादी से पहले अपना सबकुछ कर्ण को समर्पित कर चुकी थी और समर्पण कर के वह बुरी तरह ठगी जा चुकी थी. अपना सबकुछ लुटा कर भी नेहा कर्ण को अपना नहीं बना पाई.

40 की उम्र के बाद फिट एंड हैल्दी रहने के लिए जरूर करवाएं ये टैस्ट

पुरुष हो या स्त्री सभी को अपने सेहत का ख्याल रखना चाहिए. पर देखा जाता है कि घर की जिम्मेदारियों में उलझ कर महिलाएं अपनी सेहत का ख्याल नहीं रख पाती. खास तौर पर जो महिलाएं 40 के पार की होती हैं, वो अपनी सेहत को ले कर काफी लापरवाह होती हैं. जबकि इसी दौरान जरूरी होता है कि आप अपने सेहत को ले कर ज्यादा सजग रहें. क्योंकि इस दौरान स्वास्थ्य की समस्याओं की संभावनाएं और ज्यादा बढ़ जाती हैं. स्वास्थ्य के बारे में पता लगाने के लिए आपको समय रहते कुछ टेस्ट करवा लेनी चाहिए. ये टेस्ट आपके शरीर को स्वस्थ और हेल्दी रखने में मदद करती हैं और यदि किसी प्रकार की कोई समस्या होती है तो उसकी जानकारी भी दे देती है.

1. बोन मिनरल डेंसिटी टेस्ट

40 के बाद महिलाओं को ये टेस्ट कराते ही रहना चाहिए क्योंकि ये बीमारी हार्मोन एस्ट्रोजेन के घटते स्तर के कारण होती है. हड्डियों के सुरक्षा में हार्मोन एस्ट्रोजेन की भूमिका अहम होती है. इसलिए इस टेस्ट को कराते रहना जरूरी है.

2. ब्लड प्रेशर

स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है कि समय समय पर आप बल्ड प्रेशर नापते रहें. ब्लड प्रेशर संबंधी परेशानी उम्र के किसी पड़ाव पर हो सकती है. सही डाइट, एक्सरसाइज और मेडिकेशन की मदद से आप अपने बल्ड प्रेशर को नियंत्रित रख सकती हैं.

3. थायरायड टेस्ट

आजकल महिलाओं में थायरायड की शिकायत तेज हुई है.  इसके कारण उनमें वजन का बढ़ना या घटना, बालों का झड़ना, नाखून के टूटने की शिकायत होती है. इसका कारण थायरायड है. यह ग्रंथि हार्मोन टी 3, टी 4 और टीएसएच को गुप्त करता है और शरीर के चयापचय को नियंत्रित करने के लिए जिम्मेदार होता है. इसलिए हर 5 सालों में आपको ये टेस्ट कराते रहना चाहिए.

4. ब्लड शुगर

असंतुलित आहार के कारण ब्लड शुगर का खतरा काफी बढ़ जाता है. इसलिए जरूरी है कि 40 की उम्र के बाद ब्लड शुगर टेस्ट कराया जाए. इसे हर साल करनाना चाहिए ताकि आप अपने ब्लड में शुगर की मात्रा से हमेशा अपडेट रह सकें.

5. पेल्विक टेस्ट

महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर का खतरा काफी अधिक रहता है. इस लिए जरूरी है कि 40 की उम्र के बाद आप स्त्री रोग विषेशज्ञ के संपर्क में रहें.

6. लिपीड प्रोफाइल टेस्ट

ट्राइग्लिसराइड और बैड कोलेस्ट्रौन के स्तर की जांच के लिए ये टेस्ट जरूरी है. कोलेस्ट्रौल एक मोटा अणु है, जो उच्च स्तरों में उपस्थित होने से रक्त वाहिकाओं में जमा हो सकता है और आपके दिल, रक्त वाहिकाओं और मस्तिष्क के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है. इसलिए हर 6 महीने पर इसकी जांच जरूर करवाएं.

मान अभिमान : क्यों बहुओं से दूर हो गई थी रमा?

कहानी- वीना टहिल्यानी

अपने बच्चों की प्रशंसा पर कौन खुश नहीं होता. रमा भी इस का अपवाद न थी.ं अपनी दोनों बहुओं की बातें वह बढ़चढ़ कर लोगों को बतातीं. उन की बहुएं हैं ही अच्छी. जैसी सुंदर और सलोनी वैसी ही सुशील व विनम्र भी.

एक कानवेंट स्कूल की टीचर है तो दूसरी बैंक में अफसर. रमा के लिए बच्चे ही उन की दुनिया हैं. उन्हें जितनी बार वह देखतीं मन ही मन बलैया लेतीं. दोनों लड़कों के साथसाथ दोनों बहुओं का भी वह खूब ध्यान रखतीं. वह बहुओं को इस तरह रखतीं कि बाहर से आने वाला अनजान व्यक्ति देखे तो पता न चले कि ये लड़कियां हैं या बहुएं हैं.

सभी परंपराओं और प्रथाओं से परे घर के सभी दायित्व को वह खुद ही संभालतीं. बहुओं की सुविधा और आजादी में कभी हस्तक्षेप नहीं करतीं. लड़के तो लड़के मां के प्यार और प्रोत्साहन से पराए घर से आई लड़कियों ने भी प्रगति की.

मां का स्नेह, सीख, समझदारी और विश्वास मान्या और उर्मि के आचरण में साफ झलकता. देखते ही देखते अपने छोटे से सीमित दायरे में उन्हें यश भी मिला और नाम भी. कार्यालय और महल्ले में वे दोनों ही अच्छीखासी लोकप्रिय हो गईं. जिसे देखो वही अपने घर मान्या और उर्मि का उदाहरण देता कि भाई बहुएं हों तो बस, मान्या और उर्मि जैसी.

‘‘रमा, तू ने मान्या व उर्मि के रूप में 2 रतन पाए हैं वरना आजकल के जमाने में ऐसी लड़कियां मिलती ही कहां हैं और इसी के साथ कालोनी की महिलाओं का एकदूसरे का बहूपुराण शुरू हो जाता.

रमा को तुलना भली न लगती. उन्हें तो इस की उस की बुराई भी करनी नहीं आती पर अपनी बहुओं की बड़ाई उन्हें खूब सुहाती थी. वह खुशी से फूली न समातीं.

इधर कुछ समय से रमा की सोच बदल रही है. मान्या और उर्मि की यह हरदम की बड़ाई उन्हें कहीं न कहीं खटक रही है. अपने ही मन के भाव रमा को स्तब्ध सा कर देते हैं. वह लाख अपने को धिक्कारेफटकारे पर विचार हैं कि न चाहते हुए भी चले आते हैं.

‘मैं जो दिन भर खटती हूं, परिवार में सभी की सुखसुविधाओं का ध्यान रखती हूं. दोनों बहुओं की आजादी में बाधक नहीं बनती…उन पर घरपरिवार का दायित्व नहीं डालती…वो क्या कुछ भी नहीं…बहुओं को भी देखो…पूरी की पूरी प्रशंसा कैसे सहजता के साथ खुद ही ओढ़ लेती हैं…मां का कहीं कोई जिक्र तक नहीं करतीं. उन की इस सफलता में मेरा काम क्या कुछ भी नहीं?’

अपनी दोनों बहुओं के प्रति रमा का मन जब भी कड़वाता तो वह कठोर हो जातीं. बातबेबात डांटडपट देतीं तो वे हकबकाई सी हैरान रह जातीं.

मान्या और उर्मि का सहमापन रमा को कचोट जाता. अपने व्यवहार पर उन्हें पछतावा हो आता और जल्द ही सामान्य हो वह उन के प्रति पुन: उदार और ममतामयी हो उठतीं.

मांजी में आए इस बदलाव को देख कर मान्या और उर्मि असमंजस में पड़ जातीं पर काम की व्यस्तता के कारण वे इस समस्या पर विचार नहीं कर पाती थीं. फिर सोचतीं कि मां का क्या? पल में तोला पल में माशा. अभी डांट रही हैं तो अभी बहलाना भी शुरू कर देंगी.

क्रिसमस का त्योहार आने वाला था. ठंड खूब बढ़ गई थी. उस दिन सुबह रमा से बिस्तर छोड़ते ही नहीं बन रहा था. ऊपर से सिर में तेज दर्द हो रहा था. फिर भी मान्या का खयाल आते ही रमा हिम्मत कर उठ खड़ी हुईं.

किसी तरह अपने को घसीट कर रसोईघर में ले गईं और चुपचाप मान्या को दूध व दलिया दिया. रात की बची सब्जी माइक्रोवेव में गरम कर, 2 परांठे बना कर उस का लंच भी पैक कर दिया. मां का मूड बिगड़ा समझ कर मान्या ने बिना किसी नाजनखरे के नाश्ता किया. लंचबौक्स रख टाटाबाई कहती भागती हुई घर से निकल गई. 9 बजे तक उर्मि भी चली गई. सुयश और सुजय के जाने के बाद अंत में राघव भी चले गए थे.

10 बजे तक घर में सन्नाटा छा जाता है. पीछे एक आंधीअंधड़ छोड़ कर सभी चले जाते हैं. कहीं गीला तौलिया पलंग पर पड़ा है तो कहीं गंदे मोजे जमीन पर. कहीं रेडियो बज रहा है तो किसी के कमरे में टेलीविजन चल रहा है. किसी ने दूध अधपिया छोड़ दिया है तो किसी ने टोस्ट को बस, जरा कुतर कर ही धर दिया है, लो अब भुगतो, सहेजो और समेटो.

कभी आनंदअनुराग से किए जाने वाले काम अब रमा को बेमजा बोझ लगते. सास के जीतेजी उन के उपदेशों पर उस ने ध्यान न दिया…अब जा कर रमा उन की बातों का मर्म मान रही थीं.

‘बहू, तू तो अपनी बहुओं को बिगाड़ के ही दम लेगी…हर दम उन के आगेपीछे डोलती रहती है…हर बात उन के मन की करती है…अरी, ऐसा तो न कहीं देखा न सुना…डोर इतनी ढीली भी न छोड़…लगाम तनिक कस के रख.’

‘अम्मां, ये भी तो किसी के घर की बेटियां हैं. घोडि़यां तो नहीं कि उन की लगाम कसी जाए.’ सास से रमा ठिठोली करतीं तो वह बेचारी चुप हो जातीं.

तब मान्या और उर्मि उस का कितना मान करती थीं. हरदम मांमां करती आगे- पीछे लगी रहती थीं. अब तो सारी सुख- सुविधाओं का उन्होंने स्वभाव बना लिया है…न घर की परवा न मां से मतलब. एक के लिए उस की टीचरी और दूसरी के लिए उस की अफसरी ही सबकुछ है. घर का क्या? मां हैं, सुशीला है फिर काम भी कितना. पकाना, खाना, सहेजना, समेटना, धोना और पोंछना, बस. शरीर की कमजोरी ने रमा के अंतस को और भी उग्र बना दिया था.

सुशीला काम निबटा कर घर से निकली तो 2 बज चुके थे. रमा का शरीर टूट रहा था. बुखार सा लग रहा था. खाने का बिलकुल भी मन न था. उन्होंने मान्या की थाली परोस कर मेज पर ढक कर रख दी और खुद चटाई ले कर बरामदे की धूप में जा लेटीं.

बाहर के दरवाजे का खटका सुन रमा चौंकीं. रोज की तरह मान्या ढाई बजे आ गई थी.

‘‘अरे, मांजी…आप धूप सेंक रही हैं…’’ चहकती हुई मान्या अंदर अपने कमरे में चली गई और चाह कर भी रमा आंखें न खोल पाईं.

हाथमुंह धो कर मान्या वापस पलटी तो रमा अभी भी आंखें मूंदे पड़ी थीं.

‘मेज पर एक ही थाली?’ मान्या ने खुद से प्रश्न किया फिर सोचा, शायद मांजी खा कर लेटी हैं. थक गई होंगी बेचारी. दिन भर काम करती रहती हैं…

रमा को झुरझुरी सी लगी. वह धीरे से उठीं. चटाई लपेटी दरवाजा बंद किया और कांपती हुई अपनी रजाई में जा लेटीं.

उधर मान्या को खाने के साथ कुछ पढ़ने की आदत है. उस दिन भी वही हुआ. खाने के साथ वह पत्रिका की कहानी में उलझी रही तो उसे यह पता नहीं चला कि मांजी कब उठीं और जा कर अपने कमरे में लेट गईं. बड़ी देर बाद वह मेज पर से बरतन समेट कर जब रमा के पास पहुंची तो वह सो चुकी थीं.

‘गहरी नींद है…सोने दो…शाम को समझ लूंगी…’ सोचतेसोचते मान्या भी जा लेटी तो झपकी लग गई.

रोज का यही नियम था. दोपहर के खाने के बाद घंटा दो घंटा दोनों अपनेअपने कमरों में झपक लेतीं.

शाम की चाय बनाने के बाद ही रमा मान्या को जगातीं. सोचतीं बच्ची थकी है. जब तक चाय बनती है उसे सो लेने दिया जाए.

बहुत सारे लाड़ के बाद जाग कर मान्या चाय पीती स्कूल की कापियां जांचती और अगले दिन का पाठ तैयार करती.

इस बीच रमा रसोई में चली जातीं और रात का खाना बनातीं. जल्दीजल्दी सबकुछ निबटातीं ताकि शाम का कुछ समय अपने परिवार के साथ मिलबैठ कर गुजार सकें.

संगीत के शौकीन पति राघव आते ही टेपरिकार्ड चला देते तो घर चहकने लगता.

उर्मि को आते ही मांजी से लाड़ की ललक लगती. बैग रख कर वह वहीं सोफे पर पसर जाती.

सुजय एक विदेशी कंपनी में बड़ा अफसर था. रोज देर से घर आता और सुयश सदा का चुप्पा. जरा सी हायहेलो के बाद अखबार में मुंह दे कर बैठ जाता था. उर्मि उस से उलझती. टेलीविजन बंद कर घुमा लाने को मचलती. दोनों आपस में लड़तेझगड़ते. ऐसी खट्टीमीठी नोकझोंक के चलते घर भराभरा लगता और रमा अभिमान अनुराग से ओतप्रोत हो जातीं.

लगातार बजती दरवाजे की घंटी से मान्या अचकचा कर उठ बैठी. खूब अंधेरा घिर आया था.

दौड़ कर उस ने दरवाजा खोला तो सामने तमतमायी उर्मि खड़ी थी.

‘‘कितनी देर से घंटी बजा रही हूं. आप अभी तक सो रही थीं. मां, मां कहां हैं?’’ कह कर उर्मि के कमरे की ओर दौड़ी.

मांजी को कुछ खबर ही न थी. वह तो बुखार में तपी पड़ी थीं. डाक्टर आया, जांच के बाद दवा लिख कर समझा गया कि कैसे और कबकब लेनी है. घर सुनसान था और सभी गुमसुम.

मान्या का बुरा हाल था.

‘‘मैं तो समझी थी कि मांजी थक कर सोई हुई हैं…हाय, मुझे पता ही न चला कि उन्हें इतना तेज बुखार है.’’

‘‘इस में इतना परेशान होने की क्या बात है…बुखार ही तो है…1-2 दिन में ठीक हो जाएगा,’’ पापा ने मान्या को पुचकारा तो उस की आंखें भर आईं.

‘‘अरे, इस में रोने की कौन सी बात है,’’  राघव बिगड़ गए.

अगले दिन, दिनचढ़े रमा की आंख खुली तो राघव को छोड़ सभी अपनेअपने काम पर जा चुके थे.

घर में इधरउधर देख कर रमा अकुलाईं तो राघव उन बिन बोले भावों को तुरंत ताड़ गए.

‘‘मान्या तो जाना ही नहीं चाहती थी. मैं ने ही जबरदस्ती उसे स्कूल भेज दिया है. उर्मि को तो तुम जानती ही हो…इतनी बड़ी अफसरी तिस पर नईनई नौकरी… छुट्टी का तो सवाल ही नहीं…’’

‘‘हां…हां…क्यों नहीं…सभी काम जरूरी ठहरे. मेरा क्या…बीमार हूं तो ठीक भी हो जाऊंगी,’’ रमा ने ठंडी सांस छोड़ते हुए कहा था.

राघव ने बताया, ‘‘मान्या तुम्हारे लिए खिचड़ी बना कर गई है. और उर्मि ने सूप बना कर रख दिया है.’’

रमा ने बारीबारी से दोनों चीजें चख कर देखीं. खिचड़ी उसे फीकी लगी और सूप कसैला…

3 दिनों तक घर मशीन की तरह चलता रहा. राघव छुट्टी ले कर पत्नी की सेवा करते रहे. बाकी सब समय पर जाते, समय पर आते.

आ कर कुछ समय मां के साथ बिताते.

तीसरे दिन रमा का बुखार उतरा. दोपहर में खिचड़ी खा कर वह भी राघव के साथ बरामदे में धूप में जा बैठी.

राघव पेपर देखने लगे तो रमा ने भी पत्रिका उठा ली. ठीक तभी बाहर का दरवाजा खुलने का खटका हुआ. रमा ने मुड़ कर देखा तो मान्या थी. साथ में 2-3 उस के स्कूल की ही अध्यापिकाएं भी थीं.

‘‘अरे, मांजी, आप अच्छी हो गईं?’’ खुशी से मान्या ने आते ही उन्हें कुछ पकड़ाया और खुद अंदर चली गई.

‘‘अरे, यह क्या है?’’ रमा ने पैकेट को उलटपलट कर देखा.

‘‘आंटी, मान्या को बेस्ट टीचर का अवार्ड मिला है.’’

‘‘क्या? इनाम…अपनी मनु को?’’

‘‘जी, आंटी, छोटामोटा नहीं, यह रीजनल अवार्ड है.’’

रोमांचित रमा ने झटपट पैकेट खोला. अंदर गोल डब्बी में सोने का मैडल झिलमिला रहा था. प्रमाणपत्र के साथ 10 हजार रुपए का चेक भी था. मारे खुशी के रमा की आवाज ही गुम हो गई.

‘‘आंटी, देखो न, मान्या ने कोई ट्रीट तक नहीं दी. कहने लगी, पहले मां को दिखाऊंगी…अब देखो न कब से अंदर जा छिपी है.’’ खुशी के लमहों से निकल कर रमा ने मान्या को आवाज लगाई, ‘‘मनु, बेटा…आना तो जरा.’’

अपने लिए मनु का संबोधन सुन मान्या भला रुक सकती थी क्या? आते ही सहजता से उस ने अपनी सहेलियों का परिचय कराया, ‘‘मां, यह सौंदर्या है, यह नफीसा और यह अमरजीत. मां, ये आप से मिलने नहीं आप को देखने आई हैं. वह क्या है न मां, यह समझती हैं कि आप संसार का 8वां अजूबा हो…’’

‘‘यह क्या बात हुई भला?’’ रमा के माथे पर बल पड़ गए.

मान्या की सहेलियां कुछ सकपकाईं फिर सफाई देती हुई बोलीं, ‘‘आंटी, असल में मान्या आप की इतनी बातें करती है कि हम तो समझते थे कि आप ही मान्या की मां हैं. हमें तो आज तक पता ही न था कि आप इस की सास हैं.’’

‘‘अब तो पता चल गया न. अब लड्डू बांटो…’’ मान्या ने मुंह बनाया.

‘‘लड्डू तो अब मुझे बांटने होंगे,’’ रमा ने पति को आवाज लगाई, ‘‘अजी, जरा फोन तो लगाइए और इन सभी की मनपसंद कोई चीज जैसे पिज्जा, पेस्ट्री और आइसक्रीम मंगा लीजिए.’’

रमा ने मान से मैडल मान्या के गले में डाला और खुद अभिमान से इतराईं. मान्या लाज से लजाई. सभी ने तालियां बजाईं.

जालीदार बैकलेस ब्लाउज में Sonam Kapoor दिखीं बेहद स्टाइलिश, पार्टी के लिए ये लुक आप भी करें ट्राई

बौलीवुड की फैशन क्वीन सोनम कपूर अक्सर सुर्खियों में छायी रहती हैं. वह सोशल मीडिया पर आए दिन फोटोज शेयर करती रहती हैं. अब एक्ट्रैस ने अपनी बैस्ट फ्रैंड मसाबा गुप्ता के साथ कुछ खूबसूरत तस्वीरें शेयर की हैं.

मसाबा गुप्ता की बेबी शावर पार्टी में सोनम ग्लैमरस अंदाज

फैशन डिजाइनर मसाबा गुप्ता और सोनम बैस्ट फ्रैंड्स हैं. मसाबा जल्द ही मां बनने वाली हैं. ऐसे में सोनम ने मसाबा के लिए बेबी शावर पार्टी रखी थी. इस पार्टी को तस्वीरें एक्ट्रैस ने सोशल मीडिया पर फैंस के साथ शेयर किया है.

बैकलेस ब्लाउज में कहर ढा रही हैं सोनम कपूर

ये फोटोज जमकर वायरल हो रही हैं. तस्वीरों से पता चलता है कि इस फंक्शन में सोनम का स्टाइलिश लुक देखने को मिला था. एक्ट्रैस बैकलेस ब्लाउज में कमाल की लग रही हैं. उन्होंने ब्राउन साड़ी के साथ इस डिजाइनिंग ब्लाउज को कैरी किया है. इसे क्रोसिए के साथ बनाया गया है.

इस डिजाइनिंग ब्लाउज के पीछे एक डोरी भी लगी हुई है. जो काफी स्टाइलिश दिख रहा है. एक्ट्रैस ने अपना लुक ब्लाउज की मैचिंग के ज्वैलरी के साथ कंपलीट किया है. जो उनके लुक को चार चांद लगा रहा है. सोनम ने इस डिजाइनिंग ब्लाउज के साथ ब्राउन कलर की प्लेन साड़ी पहनी है. इस पर व्हाइट कलर का पतला सा लैस वाला बौर्डर भी बना है. जिससे साड़ी काफी अट्रैक्टिव लग रही है. एक तस्वीर में वो मसाबा गुप्ता के बेबी बंप पर हाथ रखे हुए नजर आ रही हैं.

सोनम ने अप्लाई किया सटल मेकअप

मेकअप की बात करे तो सोनम ने सटल मेकअप अप्लाई किया है. उनके कान के बड़ेबड़े झुमके उनके लुक को गौर्जियस बना रहे हैं. एक्ट्रैस का ये लुक फैंस को खूब पसंद आ रहा है. बेबी शावर पार्टी की तस्वीरें शेयर करते हुए सोनम ने इंस्टाग्राम पर लिखा है कि ”हर विवरण को प्यार से तैयार किया गया. जो मेरी ड्रीम टीम द्वारा स्टाइल किया गया.

सोनम के वर्कफ्रंट की बात करे तो वह फिल्मों से काफी दूर हैं. इन दिनों एक्ट्रैस अपनी फैमिली और फ्रैंड्स के साथ क्वालिटी टाइम बिता रही हैं.

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