त्यौहारी सीजन में घर पर इस्टेंटे बनाएं मिठाइयां, ये हैं आसान टिप्स

बारिश के प्रारंभ होते ही त्योहारों का सीजन प्रारंभ हो जाता है. भारतीय संस्कृति में त्योहार और मिठाइयों का बहुत गहरा नाता है, बिना मिठाइयों के त्यौहार कैसा परन्तु आज की युवा पीढ़ी जो कामकाजी है उसके लिए घर में मिठाइयां  बनाना किसी मुसीबत से कम नहीं होता क्योंकि इन्हें बनाने में काफ़ी समय लगता है. ऑफ़िस और घर के प्रैशर के कारण उनके लिए इतना समय निकालना काफी मुश्किल होता है. आज हम आपको 10 इंस्टेंट मिठाइयां बनाने के टिप्स बता रहे हैं, जिन्हें आप केवल 5 मिनट में बना सकती हैं. और इस तरह आप भी घर पर ही मिठाइयां बना सकतीं हैं. एक बार वीकेंड पर बनाकर आप फ्रिज में रखकर इन्हें 10 दिन तक प्रयोग कर सकतीं हैं-

1-1 कप दूध में 2 कप नारियल बुरादा और ¼ कप शकर डालकर मिश्रण के सूखने तक लगातार चलाते हुए तेज आंच पर पकायें. तैयार मिश्रण में इलायची पाउडर डालकर चिकनाई लगी ट्रे में बर्फी जमायें. ऊपर से मेवा और चाँदी के वर्क से सजायें. ठंडा होने पर मनचाहे आकार में बर्फी के पीस काटें.

2-बेसन के लड्डू बनाने में बेसन भूनने में बहुत समय लगता है. 5 मिनट में बेसन के लड्डू बनाने के लिए 2 कप बिना छिलके के भुने चने को मिक्सी में ग्राइंड करके पाउडर बना लें अब इसमें 1 कप गुड़ पाउडर, इलायची पाउडर और मेवा डालकर इंस्टेंट लड्डू बना लें.

3-ब्रेड स्लाइस के किनारे काटकर बटर लगाकर नानस्टिक तवे पर दोनों तरफ़ सुनहरा होने तक सेंक लें. अब प्रत्येक स्लाइस पर मिल्क मेड की पतली परत लगाकर मेवा से गार्निश करें. फ्रिज में रखकर सर्व करें.
4-1/4 कप मूंग की धुली दाल को आधे घंटे के लिए भिगो दें. आधे घंटे बाद पानी छलनी से छान दें और दाल को आधा टीस्पून घी में सुनहरा होने तक भून लें. भुनी दाल को प्रेशर कुकर में 1 लीटर दूध, 1 कप मिल्क पाउडर, ¼ कप शकर, केसर के धागे के साथ डालें और धीमी आंच पर 4 सीटियाँ ले लें. बारीक कटी मेवा डालकर इंस्टेंट मूंग खीर मेहमानों को सर्व करें.

5-2 कप मखानों को माइक्रोवेब में क्रिस्पी होने तक रोस्ट कर लें. ¼ कप गुड़ को धीमी आंच पर मेल्ट करें. जब गुड़ से बुलबुले उठने लगें तो गैस बंद करके मखाने डालकर अच्छी तरह चलायें. अब इन्हें माइक्रोवेब सेफ कंटेनर में रखकर मेहमानों को सर्व करें.

6-रोस्टेड बादाम और काजू को मेल्ट की हुई चौकलेट में डिप करके सिल्वर फायल पर रखें. ठंडा होने पर एयरटाइट जार में रखकर प्रयोग करें.

7-2 कप किसा पनीर, 1 कप मिल्क पाउडर, आधा कप शकर, 1 कप दूध को एक नानस्टिक पैन में अच्छी तरह मिक्स करें. अब इसे गैस पर रखें और लगातार चलाते हुए मिश्रण के गाढ़ा होने तक पकायें. लगभग 5 मिनट के बाद मिश्रण पैन के किनारे छोड़ने लगेगा. अब इस मिश्रण को चिकनाई लगी ट्रे में जमायें. ठंडा होने पर मनचाहे पीसेज में काटकर सर्व करें.

8-1 कप पिसे खजूर को एक नानस्टिक पैन में डालकर गर्म करें अब इसमें 1 कप रोस्टेड बारीक कटी मेवा और ½ कप किसा नारियल डालकर अच्छी तरह चलायें. ठंडा होने पर छोटे छोटे रोल बनाकर फ्रिज में रखें और आवश्यकतानुसार प्रयोग करें.

9-1 कप भुने चने के पाउडर को नानस्टिक पैन में डालें, आधा कप मलाई डालकर 2-3 मिनट तक चलायें. ¼ कप शकर मिलाकर 2-3 मिनट तक भूनें जैसे ही मिश्रण पैन के बीच में इकट्ठा होने लगे तो ट्रे में जमा दें. ऊपर से कटी मेवा से गार्निश करें. हल्की ठंडी में ही मनचाहे पीसेज में काट लें. काँच के जार में भरकर प्रयोग करें.

10-1/2 कप सूजी को पैन में 2-3 मिनट तक रोस्ट कर लें. अब इसमें 1 कप दूध, आधा कप मिल्क मेड और 1 टेबलस्पून घी डालकर अच्छी तरह चलायें. जब मिश्रण गाढ़ा होने लगे तो इलायची पाउडर और कटी मेवा डालकर स्वादिष्ट हल्वा तैयार कर लें.

कहीं तकिया तो नहीं है बीमारी का कारण ?

आप में से कुछ लोगों को तब तक नींद नहीं आती होगी जब तक आपको तकिया न मिले. क्या आपको तकिया लेने का जितना शौक है उतना ही उसके रखरखाव का भी है. अगर नहीं, तो इस वजह से आपका यह शौक आपको धीरे-धीरे बीमार कर देगा.

पूरे दिन की भागदौड़ के बाद आपको सुकून की नींद की आवश्यकता तो होगी ही. ऐसे में आरामदायक और मुलायम तकिया आपके लिए सोने में सोने पर सुहागे से कम नहीं होता. हम आपको बता देना चाहते हैं कि आपकी तकिये का सही रखरखाव न होने के कारण यह बीमारी का जरिया भी बन जाता है.

बैक्‍टीरियल संक्रमण का खतरा

आपको भले ही आपके पुराने तकिये से लगाव हो और इसके बिना आपको नींद नहीं आती हो पर क्‍या आप ये बात जानते हैं कि आपको चैन और सुकून की नींद देने वाला ये तकिया बैक्‍टीरिया का घर भी बन जाता है. आपके पुराने तकिये में काफी बैक्टीरिया और धूल हो जाती है. घर के अंदर आने वाली धूल-मिट्टी तकिये पर जम जाती है.

अगर आपके घर में कोई पालतू जानवर है तो उनके जरिये भी आपके तकिये पर बैक्‍टीरिया आ जाते हैं. ये बैक्‍टीरियाज आपकी सांस के जरिये आपके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और अस्‍थमा जैसी श्‍वसन संबंधी बीमारी का कारण बनते हैं. इसके अलावा इनके कारण आपको एलर्जी भी हो सकती है.

दर्द का कारण

पुराने तकिये का अधिक समय तक प्रयोग करने से गर्दन और पीठ में दर्द हो सकता है. चूंकि हमें सोते वक्‍त थोड़े सहारे की जरूरत होती है और अगर तकिये से सही तरीके से सहारा न मिले तो रीढ़ की ह‍ड्डी पर दबाव पड़ता है और इसके कारण गर्दन या कमर में भी दर्द होने लगता है.

तकिये की जांच कैसे करें

अगर आपका तकिया पुराना हो चुका है और उसका प्रयोग अब नहीं हो सकता है तो पहले उसकी जांच कर लें. यह देख लें कि तकिये में कितनी गंदगी जमी हुई है. इसके अलावा आपको सोते वक्त इससे परेशानी तो नहीं होती, यानि आपकी रात करवट बदलते हुए तो नहीं बीत जाती और सुबह उठने पर अगर आपको गर्दन में अकड़न, पीठ, टखनों या घुटनों में दर्द महसूस हो तो समझ जाइये कि अब तकिये को बदल देने की जरूरत है.

तकिया कैसा होना चाहिए

बाजार में कई तरह के तकिये मिलते हैं, उनमें से आपके लिए सबसे बेहतर तकिये का चुनाव करना आपके लिए मुश्किल तो हो सकता है, तो ऐसे में एक बेहतर और आरामदेह तकिये की खरीद में हम आपकी मदद कर सकते हैं..

1. पालिएस्‍टर सबसे मशहूर और सस्‍ता होता है, क्‍लस्‍टर युक्‍त इन तकियों को आप वॉशिंग मशीन में धो सकते हैं. इनको दो साल में बदल दीजिए.

2. लैटैक्स तकिये बहुत आरामदायक होते हैं, इनको तो आप 10-15 साल तक प्रयोग कर सकते हैं.

3. मेमोरी फोम तकिये भी बहुत ही आरामदेह होते हैं, क्‍योंकि ये लेटने पर सिर और गर्दन की शेप खुद ही बना लेते हैं. गर्भवती महिलाओं को इन तकियों का ही प्रयोग करने की सलाह दी जाती है.

4. पानी वाले तकिये में पानी के पाउच जैसा सपोर्ट होता है, ये तकिये नर्म होते हैं और हाइपो-ऐलर्जिक भी होते हैं, हां पर ये थोड़ा आरामदेह नहीं होते हैं.

इन बातों का रखें विशेष ध्‍यान :

अगर आप तकिया को लंबे समय तक इस्तेमाल करना चाहते हैं तो आपको कुछ बातों को ध्‍यान में रखना चाहिए..

1. अगर आपके बाल गीले हों तो तकिये पर न लेटें, क्‍योंकि गीली और गंदी जगह पर बैक्टीरिया जल्‍दी और ज्‍यादा पनपते हैं.

2. तकिये के साथ-साथ इसके कवर का भी ध्‍यान रखें. तकिये का कवर ऐसा हो जिससे धूल-मिट्टी अंदर तक न पहुंचे. अगर मुमकिन हो सके तो अपने बेडरूम में डी-ह्यूमिडफायर लाकर रख लें.

3. इन सुझावों और उपायों को ध्‍यान में रखेंगे तो आपकी नींद के बीच में आपका तकिया नहीं आयेगा. आपको चैन की नींद भी आएगी और आप हमेशा स्वस्थ्य रहेंगे.

शादी को 3 साल हो गए हैं पर अभी तक कंसीव नहीं कर पाई हूं?

अगर आप भी अपनी समस्या भेजना चाहते हैं, तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें..

सवाल

मैं 26 वर्षीय विवाहिता हूं. शादी को 3 साल हो गए हैं पर अभी तक कंसीव नहीं कर पाई हूं. इस के लिए अब मैं सैक्स के दौरान नीचे तकिया भी रखती हूं और पति से कहती हूं कि स्खलित होने के बाद वे देर तक उसी अवस्था में रहें. फिर भी कंसीव नहीं कर पा रही जबकि मेरे पीरियड्स रैग्युलर हैं और हम नियमित रूप से सैक्स भी करते हैं. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

सैक्स के दौरान इजैक्युलेशन के समय पुरुष के अंग से काफी तीव्र वेग से स्पर्म निकलते हैं और गहराई तक पहुंचते हैं. जो स्पर्म स्ट्रौंग नहीं होते वे वैजाइना से बाहर भी निकल जाते हैं, मगर इस से गर्भधारण प्रक्रिया में कोई फर्क नहीं पड़ता. यह एक आम प्रक्रिया है और इस से घबराने की भी जरूरत नहीं है.

अगर पति का स्पर्म काउंट सही है, आप का पीरियड्स रैग्युलर है तो संभव है कि आप के कंसीव न कर पाने के पीछे कोई और मैडिकल वजह हो. यह वजह आप में या फिर आप के पति दोनों में से किसी में भी हो सकती है. अच्छा यही होगा कि आप किसी स्त्रीरोग विशेषज्ञा से सलाह लें और फर्टिलिटी के बारे में बात करें. तभी आप जल्दी कंसीव कर पाएंगी.

जब कोई भी जोड़ा (कपल) इनफर्टिलिटी (बांझपन) की वजह से बच्चा नहीं पैदा कर पाता है तो उनके लिए यह बहुत ही दुःख की बात होती है. बच्चा न पैदा कर पाने की वजह से जोड़ों को कई सारी भावनाओं और बांझपन के कलंक को झेलना पड़ता है. इससे सबसे ज्यादा महिलाएं प्रभावित होती हैं.

इनफर्टिलिटी का डायग्नोसिस और ट्रीटमेंट मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से चुनौतीपूर्ण होता है.  इनफर्टिलिटी ट्रीटमेंट के सफल होने का दर कई सारे कारणों पर निर्भर करता है. जिसमे प्रभावित जोड़ों की उम्र, इनफर्टिलिटी होने का कारण के साथ-साथ इसके लिए किस तरह का इलाज किया जा सकता है, यह सभी कारण भी शामिल होते है.

 

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बुझते दिए की लौ

अपने वीरान से फ्लैट से निकल कर मैं समय काटने के लिए सामने पार्क में चला गया. जिंदगी जीने और काटने में बड़ा अंतर होता है. पार्क के 2 चक्कर लगाने के बाद मैं दूर एकांत में पड़ी बैंच पर बैठ गया. यह मेरा लगभग रोज का कार्यक्रम होता है और अंधेरा होने तक यहीं पड़ा रहता हूं.

बाग के पास कुछ नया बन रहा था. वहां की पहली सीढ़ी अभी ताजा थी इसलिए उस को लांघ कर सीधे दूसरी सीढ़ी पर पहुंचने में लोगों को बहुत परेशानी हो रही थी. मैं लोगों की असुविधा को देखते हुए हाथ बढ़ा कर उन्हें ऊपर खींचता रहा. बडे़बूढ़ों का पांव कांपता देख मैं पूरी ताकत से उन्हें ऊपर खींच रहा था पर बेहद आहिस्ता से.

‘हाथ दीजिए,’ कह कर मैं लगातार उस औरत को आगे आने को कहता और वह हर बार हिचकिचा कर सीढि़यों की बगल में खड़ी हो जाती. हलके भूरे रंग के सूट के ऊपर सफेद चुन्नी से उस ने अपना सिर ढांप रखा था. मैं ने फिर से आग्रह किया, ‘‘हाथ दीजिए, अब तो अधेरा भी शुरू होने वाला है.’’

उस ने धीरे से मुझे अपना हाथ पकड़ाया. मैं ने जैसे ही उस के हाथ को स्पर्श किया उस के कोमल स्पर्श ने मुझे भीतर तक हिला दिया. इसी प्रक्रिया में उसे सहारा देते समय उस की चुन्नी सिर से ढलक कर कंधे पर आ गई. उस ने मुझे देखते ही कहा, ‘‘तब तुम कहां थे जब मैं ने इन हाथों का सहारा मांगा था?’’

‘‘तुम नूपुर हो न,’’ मैं ने हैरान हो कर पूछा.

‘‘शुक्र है, तुम्हारे होंठों पर मेरा नाम तो है,’’ कहतेकहते उस की आंखों में पानी आ गया और वह सीढि़यों से हट कर एक कोने में चली गई. मैं भी उस के पीछेपीछे वहां आ गया. वह बोली, ‘‘मैं ने परसों तुम को पार्क में देखा तो इन आंखों को सहज विश्वास ही नहीं हुआ कि वह तुम हो…कैसे हो?’’

‘‘ठीक ही हूं,’’ मैं ने बुझे मन से कहा और उस का पता जानने के लिए अधीर हो कर पूछा, ‘‘यहां कहां रहती हो?’’

‘‘सेक्टर 18 में. मेरे बडे़ भाई वहीं रहते हैं. जब मन बहुत उदास हो जाता है तो यहां आ जाती हूं.’’

मैं उस के चेहरे को देखता रहा. उस के बाल समय से पहले सफेदी पर थे. पर उस की सफेद चुन्नी और सूनी मांग देख कर मैं सहम सा गया. कुछ भी पूछने की हिम्मत नहीं जुटा सका. दोनों के बीच में एक गहरा सा सन्नाटा पसर गया था. भाव व्यक्त करने के लिए शब्दों का अभाव लगने लगा. वर्षों की चुप्पी के बाद भी शब्दों को तलाशने में बहुत समय लग गया. खामोशी को तोड़ते हुए मैं ने ही कहा, ‘‘चलो, दूर पार्क में चल कर बैठते हैं.’’

एक आज्ञाकारी बालक की तरह वह मेरे साथ चल दी थी. हमारे बीच का गहरा सन्नाटा मौन था. उस के बारे में सबकुछ जानने के लिए मैं बेहद उतावला हो रहा था पर बातें शुरू करने का सिरा पकड़ में नहीं आ रहा था.

मरकरी लाइट के पोल के पास नीचे हरी घास में हम दोनों ही एकदूसरे की मूक सहमति से बैठ गए. ठीक वैसे ही जैसे बचपन में बैठा करते थे. उस के  शरीर से छू कर आने वाली ठंडी हवा मुझे भीतर तक सुखद एहसास दे रही थी.

‘‘और कौनकौन है यहां तुम्हारे साथ?’’ मैं ने डूबते हुए दिल से पूछा.

‘‘कोई नहीं. बस मैं, भैयाभाभी और उन की एक 8 साल की बेटी. और तुम्हारे साथ कौन है?’’

‘‘बस, मैं ही हूं,’’ मेरा स्वर उदास हो गया.

बातोंबातों में उस ने बताया कि शादी के 10 साल बाद ही उस के पति एक सड़क दुर्घटना में चल बसे थे. एक बेटी है जो वनस्थली में पढ़ती है और वहीं होस्टल में रहती है. संयुक्त परिवार होने के नाते सबकुछ वैसा चला जो नहीं चलना चाहिए था. उस घर में रहना और ताने सहना उस की मजबूरी बन चुकी थी. पति के गुजर जाने के बाद कुछ दिन तो सहानुभूति में कट गए, बस उस के बाद सब ने अपनेअपने कर्तव्यों से इतिश्री मान ली.

पिछले साल बेटी के होस्टल जाने के बाद थोड़ी राहत सी महसूस की पर मन बहुत ही उदास और अकेला हो गया. जिंदगी की लड़ाइयां कितनी भयंकर होती हैं, मन बहुत उदास होता है तो कुछ दिनों के लिए यहां चली आती हूं. सच, बहुत कुछ सहा है मैं ने.’’ इतना कह कर वह बिलखती रही और मैं पाषण बना चुपचाप उस का रुदन सुनता रहा. मेरे मन में इस इच्छा ने बारबार जन्म लिया कि किसी न किसी बहाने उसे स्पर्श करूं, उस को सीने से लगाऊं, उस के लंबे केशों को सहला कर उसे चुप करा दूं पर शुरू से ही संकोची स्वभाव का होने के कारण कुछ भी न कर पाया.

मेरी आंखें भर आईं. मैं मुंह दूसरी तरफ कर के सुबकने लगा. एक लंबी ठंडी सांस ले कर मैं ने कहा, ‘‘पता नहीं यह संयोग है कि तुम्हें एक बार फिर से  देखने की हसरत पूरी हो गई.’’

बातों का क्रम बदलते हुए उस ने अपनी आंखों को पोंछा और बोली, ‘‘तुम ने अपने बारे में तो कुछ बताया ही नहीं.’’

‘‘मेरे पास तुम्हारे जैसा बताने लायक तो कुछ नहीं है,’’ मैं ने कहा तो गहरे उद्वेग के साथ कही गई मेरी बातों में छिपी वेदना को उस ने महसूस किया और मेरा हाथ जोर से दबा कर सबकुछ कह कर मन हलका करने का संकेत दिया.

‘‘अपने से कहीं ऊंचे स्तर के परिवार में मेरा विवाह हो गया. पत्नी के स्वछंद एवं स्वतंत्र होने की जिद ने मुझे डंस लिया. अत्यधिक धनसंपदा ने भी इस को मुझ से दूर ही रखा. बातबात पर झगड़ कर मायके जाना और मायके वालों का मेरी पत्नी पर वरदहस्त, कुल मिला कर हमारी बीच की दूरियां बढ़ाता ही रहा. वह चाहती थी कि मैं घरजमाई बन कर हर ऐशोआराम की वस्तु का उपभोग करूं मगर मेरे जमीर को यह मंजूर नहीं था. 1-2 बार मेरे मातापिता उसे मनानेसमझाने भी गए पर उन्हें तुच्छ एवं असभ्य कह कर उस ने बेइज्जत किया. फिर मैं वहां नहीं गया.

‘‘मेरे जुड़वां बेटाबेटी हैं, उसी के पास रहते हैं. जब कभी मेरा मन बच्चों से मिलने को चाहता है मैं उन्हें कहीं बाहर बुला कर मिल लेता हूं. उन के मन में मेरे प्रति न प्यार है न नफरत. जब से मेरे ससुरजी का देहांत हुआ है, उस ने दोनों बच्चों को होस्टल में भेज दिया है. पत्नी के मन में आज भी मेरे प्रति नफरत कूटकूट कर भरी है. सारा जीवन बस, यों ही बीत गया.

‘‘जीवन कैसा भी बीते, पर उसे छोड़ने का मन ही नहीं करता. धीरेधीरे यह दर्द मेरे जीवन का हिस्सा बन गया है, फिर तो अकेले ही जिंदगी जीने की जंग शुरू हो गई जो आज तक चल रही है. मैं पिछले 3 सालों से इसी शहर में हूं, और पास ही के एक बैंक में मैनेजर हूं. बस, यही है मेरी कहानी.’’

हम दोनों ही अतीत की यादों में खो गए. जिंदगी की किताब के पन्ने पलटते रहे एवं एकएक पड़ाव जांचते रहे. यही भटकाव कभीकभी आदमी के भविष्य की दिशा तय कर देता है. रात काफी घिर चुकी थी. बड़े बेमन से हम ने एकदूसरे से विदा ली.

नूपुर से मिलने के बाद मेरा दिल बहुत बेचैन हो गया था. खाना खाने का मन नहीं था इसलिए महरी को दरवाजे से ही वापस भेज दिया. मैं चाय का गिलास लिए ड्राइंगरूम में बैठ गया. सहसा स्मृति कलश से पुन: एक स्मृति उभर कर मुझे कई बरस पीछे ले गई. मेरे विचारों के तार कब अतीत से जुड़ गए पता ही न चला.

उस छोटे से शहर में कालोनी के कोने वाले मकान में वे लोग नएनए आए थे. मां प्रतिदिन सवेरे टहलने जातीं तो नूपुर की मां का भी वही नित्यकर्म था. हम अपनीअपनी मां के साथ पार्क में आते और जब तक मां टहलतीं पार्क में एक तरफ बैठ कर बातें करते रहते. हमउम्र होने के कारण हमारी आपस में बहुत बनने लगी. खेलतेखेलते कब जवान हो कर एकदूसरे के करीब आ गए पता ही न चला.

दिन बीतते गए. हमारी खुशियों का कोई अंत नहीं था. मगर एक दिन सूर्योदय होने से पहले ही सूर्यास्त हो गया. उस के पिताजी को दिल का दौरा पड़ा और वे सदा के लिए संसार से कूच कर गए. इस तरह एक दिन उस परिवार पर कहर टूट पड़ा.

उस रोज की शाम हर रोज की तरह नहीं हुई. जब तक मैं कालिज से आया उन का सामान ट्रक में लादा जा चुका था, पता चला वे लोग पूना अपने घर जा रहे हैं, मैं नूपुर से मिल भी नहीं सका. उस से मिलने की हसरत बस, मन में सिमट कर रह गई. न तोप चली न तलवार, न सूई चली न नश्तर पर हृदय पर ऐसा गहरा आघात लगा कि मैं ठीक से संभल न पाया.

मेरे तो प्राण ही निकल गए. वह साल बेहद उदासी में बीता. मैं पार्क में बैठ कर पुरानी यादों को दोहराता रहता. मेरे पास उस का अब कोई संपर्क सूत्र भी नहीं था.

एम. काम. करने के बाद मेरी बैंक में नियुक्ति हो गई तो मुझे देहरादून जाना पड़ा. बातों का सिलसिला इस के बाद जा कर थम गया. लेकिन उस की यादें मेरे मन में बनी रहीं.

एक बार दीवाली पर घर आया तो मां ने यों ही दिल के तार छेड़ दिए, ‘तुझे याद है. हमारे पड़ोस में वर्माजी रहते थे, वही जिन की बेटी नूपुर के साथ तू अकसर खेला करता था.’

‘हां,’ मेरा दिल धक से कर गया, ‘कहां है वह?’

‘पिछले दिनों उस की मां का फोन आया था. अपनी बेटी के रिश्ते की बात करने लगीं.’

‘तो क्या कहा आप ने?’ मैं ने उत्सुकता से सांसें थाम कर पूछा.

‘मैं भला क्या कहती. जब भी तुझ से रिश्ते की बात करती, तू टाल जाता था. मुझे लगा तेरे मन में कोई है और जब समय आएगा तू खुद ही बता देगा.’

‘नहीं, मां, मेरे मन में ऐसा कुछ भी नहीं था, न है,’ मैं ने सारा संकोच त्याग कर मां से मनुहार की, ‘चाहो तो एक बार फिर से बात कर के देख लो.’

और जब तक मां ने बात की, बहुत देर हो चुकी थी. मां ने रोंआसी सी हो कर बताया कि नूपुर की शादी तेरे साथ करने को उन का बड़ा मन था और नूपुर की भी रजामंदी थी पर समय से मैं कुछ जवाब न दे सकी तो वह उदास हो गईं. अब तो नूपुर की सगाई भी हो चुकी है.

मेरा दिल भारी हो गया और अगले दिन ही मैं वापस देहरादून चला गया. उस जैसा फिर मन को कोई प्यारा न लगा. मैं ने उस का अस्तित्व ही भुला देना चाहा पर भूलने के लिए भी मुझे हमेशा याद रखना पड़ा कि मुझे उसे भूलना है जो सहज न हो सका.

आज इतने सालों के बाद सारी बातों की पुनरावृत्ति ने मुझे झकझोर कर रख दिया. मैं ने धीरे से आंखें मूंद लीं पर फिर भी आंसू का एक कतरा न जाने कहां से निकल कर मेरे गालों पर आ गया.

अगले दिन सुबह घूमने के लिए मैं बाहर जाने लगा तो दरवाजे पर नूपुर को देख कर रुक गया. हैरानगी से पूछा, ‘‘नूपुर, तुम?’’

‘‘घूमने जा रहे हो, चाय नहीं पिलाओगे, देखूं तो अकेले कैसे रह लेते हो.’’

उस के शब्दों के इस आक्रमण से मैं  सकपका सा गया परंतु उस के साथ रहने का कोई मौका भी गंवाना नहीं चाहता था सो बोला, ‘‘चलो, आज सैर रहने देता हूं.’’

‘‘नहीं, तुम जाओ, तब तक मैं चाय तैयार करती हूं,’’ अपने होंठों पर चिर- परिचित मुसकान के साथ नूपुर बोली, ‘‘नित्यकर्म नहीं छूटना चाहिए, चाहे शरीर छूट जाए,’’ उस ने यह उसी अंदाज में कहा जैसे पार्क का चौकीदार टहलने वालों से कहा करता था. हम दोनों बीती बातों को याद कर हंस पड़े.

वह मेरे साथ ही घर के अंदर आ गई. दिन पखेरू की तरह उड़ने लगे. जिंदगी ने खुद ही खुशनुमा वारदात की शुरुआत कर दी. हमारा मिलनाजुलना लगातार जारी रहा और निरंतर एकदूसरे को सहारा देते रहे. उस ने भी अपनी छुट्टियां बढ़वा लीं.

उस दिन दोपहर से ही मेरा मन बहुत बेचैन और क्षुब्ध था. शाम होतेहोते उस ने वह बात बता दी जो मैं पहले से ही जानता था. मेरे पास आते ही साड़ी के पल्लू को उंगलियों पर इस तरह लपेट रही थी जैसे कोई महत्त्वपूर्ण बात कहने की भूमिका सोच रही हो.

‘‘मेरे स्कूल की छुट्टियां समाप्त होने जा रही हैं, कल वापस चली जाऊंगी.’’ यह सुन कर मुझे काठ मार गया. मैं तड़प उठा. बेहद धीमी आवाज में डूबते हुए दिल से पूछा, ‘‘फिर कब लौटोगी, क्या फैसला किया है?’’

‘‘कुछ फैसले हिसाब लगा कर नहीं किए जाते, जिंदगी खुद ही कर देती है.’’

‘‘फिर भी,’’ मैं उस के मुंह से सुनना चाहता था.

‘‘मैं नहीं जानती,’’ वह रोंआसी सी हो गई, फिर स्वयं को नियंत्रित कर लड़खड़ाते शब्दों में पूछा, ‘‘तुम…’’

‘‘मेरा क्या है…जब तक मन चाहा रह लूंगा. फिर ढलते सूरज का क्या पता कब अस्त हो जाए.’’

‘‘ऐसा क्यों कहते हो,’’ कहते हुए नूपुर ने मेरे कंधे पर सिर टिका दिया. मेरी सिसकियां रुलाई में फूट पड़ीं. प्रेम का एहसास इतना गहरा होता है, मैं ने कभी सोचा भी न था. हम एकदूसरे के बाहुपाश में बंध गए.

आखिर वह मनहूस घड़ी आ ही गई. मैं उसे स्टेशन तक छोड़ने गया. गाड़ी के जाने तक मैं भागदौड़ कर उस के लिए पानी और फलों का इंतजाम करता रहा. बड़े भारी मन से मैं ने उसे विदा किया. मुझे लगा, लगातार मेरे शरीर का एक हिस्सा कटता जा रहा है पर मुझे तो अपने हिस्से की पीड़ा भोगनी थी, उसे अपने हिस्से की.

नूपुर क्या गई मेरा सारा सुखचैन ही चला गया. मुझे सबकुछ वीराना सा लगने लगा. बरसों तक जो बात सीने में छिपी थी वह फिर से पपड़ी पड़े घाव को कुरेद गई. वह न मिलती तो अच्छा था. मैं जल्द से जल्द घर पहुंचना चाहता था ताकि रास्ते में मुझे कोई रोता हुआ न देख ले.

नूपुर की यादों ने पुन: मुझे तोड़ कर रख दिया. उस के बिना कुछ भी करने को मन नहीं करता. जब मन ज्यादा बेचैन होने लगता तो उसे लंबेलंबे पत्र लिखता और फाड़ कर फेंक देता.

इस उम्र में जब मैं जिंदगी को समेटने में व्यस्त था, नूपुर के प्रति इतनी चाहत बनी रहेगी, यह पहले पता होता तो उस से कभी न मिलता. घंटे दिनों में बदल गए, दिन हफ्तों में और हफ्ते महीनों में. हमारे बीच निरंतर संपर्क बना रहा. फोन की हर घंटी पर मैं दिल की धड़कन में तेजी महसूस करता.

मेरा वीआरएस (रिटायरमेंट) स्वीकृत हो गया. मैं ने शहर से दूर पहाड़ी पर बनी कालोनी में एक फ्लैट ले लिया और जब नूपुर को इस बारे में बताया तो वह बहुत खुश हुई. पूछा, ‘‘कब तक कब्जा मिलेगा?’’

‘‘वह सब तो मिल चुका है. बस, गृहप्रवेश बाकी है.’’

‘‘अच्छा, कब कर रहे हो गृह- प्रवेश?’’

‘‘जब तुम आ जाओ. मेरा इस दुनिया में और है ही कौन? 14 मार्च ठीक रहेगी.’’

‘‘समझ गई, तुम्हारे जन्मदिन वाले दिन. इस से अच्छा और कोई दिन हो भी नहीं सकता है. मैं कोशिश करूंगी पर मेरा इंतजार मत करना.’’

14 मार्च के दिन सुबह से ही मैं ने घर धुलवा कर 2 गेंदे की मालाएं दरवाजे पर लटका दी थीं और मौली में आम के पत्ते बांध कर ऊपर तोरण बांध दिया. मुझे मां के कहे शब्द अचानक याद आ गए. वह कहा करती थीं, ‘‘बाहर दरवाजे पर आम के पत्ते मौली में गूंथ कर जरूर बांधना क्योंकि आम हमेशा हराभरा रहता है.’’

आम के पत्ते बांधने के बाद मेरी गृहस्थी कितनी हरीभरी रही इस को देखने के लिए आज मां मेरे बीच नहीं थीं. उन के बारे में सोच कर मेरी आंखें भर आईं.

मैं मिठाई की दुकान से एक डब्बा काजू की कतली और नमकीन ले आया. दोनों ही नूपुर को बहुत पसंद थे. मुझे आशा ही नहीं विश्वास भी था कि नूपुर यहां पहुंचने का हरसंभव प्रयत्न करेगी.

मुझे नूपुर का ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा. वह सीधी मेरे फ्लैट पर आ गई. उस के साथ उस की बेटी भी थी. एकदम वैसी ही जैसे नूपुर को मैं ने बचपन में देखा था. मुझे देख कर उस का चेहरा खिल उठा तो मन में आया कि उसे सीने से लगा लूं. आज मेरे बच्चे भी इतने ही  बड़े होंगे. रुंधे गले से मैं इतना ही कह पाया, ‘‘काश, आज मेरे बच्चे भी होते.’’

‘‘यह भी तो तुम्हारी ही बच्ची है, फिर भी अपने बच्चों को देखना चाहते हो तो सामने देखो,’’ उस ने मेरे कंधों का सहारा ले कर सामने टैक्सी की तरफ इशारा किया, ‘‘मैं इन्हें होस्टल से ले कर आई हूं. मैं जानती थी कि पत्नी के मरने के बाद तुम इन की कमी महसूस करोगे.’’

‘‘क्या वह नहीं रही?’’ मैं चौंक गया.

‘‘उन्हें गुजरे तो 6 माह हो गए हैं. उन्होंने जानबूझ कर तुम को नहीं बताया,’’ फिर मुझे एक तरफ ले जा कर बोली, ‘‘इन बच्चों के मन में तुम्हारे प्रति यह कह कर जहर भर दिया गया है कि तुम उन की अंत्येष्टि में भी नहीं आए. बड़ी मुश्किलों और आश्वासनों के साथ इन को यहां लाई हूं.’’

मुझे अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था. मैं झट से नूपुर को साथ ले कर टैक्सी के पास गया और कस कर बच्चों से लिपट गया.

थोड़ी देर साथ रहने के बाद नूपुर वापस जाने लगी तो मेरा मन टूटने लगा. किस अधिकार से उसे रोकूं. फिर भी भरे कंठ से बोला, ‘‘रुक जाओ, नूपुर. मुझे इस तरह अकेला छोड़ कर मत जाओ.’’

वह खामोश असहजता को छिपाने का असफल प्रयत्न करती रही. उस की चुप्पी मुझे निराश कर गई. एक दीर्घ ठंडी सांस ले कर मैं ने पूछा, ‘‘नूपुर, क्या मेरा कोई अधिकार है तुम पर?’’

‘‘ऐसा शरीर में कोई कोना नहीं जहां तुम्हारा अधिकार न हो,’’ वह मेरी आंखों में झांकते हुए बोली थी. उस के शब्द मेरे दिल की गहराइयों में उतर गए. जैसे इस छोटे से वाक्य में जीवन का सारा निचोड़ समाया हो. फिर डबडबाई आंखों से बोली, ‘‘तुम क्या चाहते हो?’’

‘‘मैं तुम्हें चाहता हूं, नूपुर. क्या अब हम सब साथसाथ नहीं रह सकते?’’

‘‘तुम ने ऐसी वस्तु मांगी है जो पहले से ही तुम्हारी थी,’’ वह सिसकने लगी. शायद वह भी मुझ से सहारा चाहती थी.

मैं ने एक बार बच्चों की तरफ देखा. मेरे मन के भावों को पढ़ते हुए नूपुर बोली, ‘‘अब ये बच्चे इतने नादान नहीं हैं. मैं ने उन्हें अपने और तुम्हारे बारे में सबकुछ साफसाफ बता दिया है. कल पूरी रात बच्चे मेरे साथ थे. ये सबकुछ समझते हैं.’’

मैं ने दूर से बच्चों की तरफ देखा. तीनों बच्चे आंखों से इस रिश्ते को स्वीकार कर रहे थे. समय कब, कौन सी करवट बदले कोई नहीं जानता. इस नए बंधन की झुरझुरी हमारे मन के भीतर तक फैल गई.

911 : लव मैरिज क्यों बनीं जी का जंजाल

लेखक – श्री प्रकाश

रात के 2 बजे थे. हलकीहलकी ठंड पड़ रही थी. दशहरा और दिवाली की छुट्टियां खत्म हो गई थीं. धनबाद स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर 2 पर बहुत भीड़ थी. इस में ज्यादातर विद्यार्थियों की भीड़ थी, जो त्योहार में दिल्ली से धनबाद आए थे. धनबाद, बोकारो और आसपास के बच्चे प्लस टू के बाद आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली पढ़ने जाते हैं. इस एरिया में अच्छे कालेज न होने से बच्चे अपने उज्ज्वल भविष्य के लिए स्कूल के बाद दिल्ली जाना चाहते हैं. दिल्ली में कोचिंग की भी अच्छी सुविधा है. वहां वे इंजीनियरिंग, मैडिकल आदि की कोचिंग भी लेते हैं. कुछ तो टेंथ बोर्ड के बाद ही दिल्ली चले जाते हैं. वे वापस दिल्ली लौट रहे थे.

वे सभी कालका मेल के आने का इंतजार कर रहे थे. अनेकों के पास रिजर्वेशन नहीं था. वे वेटिंग टिकट ले कर किसी भी थ्री टियर में चढ़ने वाले थे. जिस के पास रिजर्वेशन होता, उसी की बर्थ पर 4 या 5 जने किसी तरह एडजस्ट कर दिल्ली पहुंचते. इस तरह के सफर की उन्हें आदत थी. अकसर सभी छुट्टियों के बाद यही नजारा होता. कुछ अमीरजादे तत्काल या एजेंट से ब्लैक में टिकट लेते, तो कुछ एसी कोच में जाते. पर ज्यादातर बच्चे थ्री टियर कोच में जाते थे और सब के लिए रिजर्वेशन मुमकिन नहीं था.

रात के 11 बज रहे थे. अभी भी ट्रेन आने में एक घंटा रह गया था. ट्रेन कुछ लेट थी. रोहित कंधों पर बैकपैक लिए चहलकदमी कर रहा था. उस की निगाहें किसी जानपहचान वाले को तलाश रही थीं, जिस के पास रिजर्व टिकट हो. उस की नजर मनोज पर पड़ी, तो उस ने पूछा, “तुम्हारी बर्थ है क्या?“

“नहीं यार, पर अपने महल्ले वाली सुनीता को जानता है न? S-7 कोच में उस का रिजर्वेशन है. वो देख… आ रही है अपने पापा के साथ.”

प्लेटफार्म पर वे बेटी के साथ खड़े थे. मनोज ने उन से कहा, “अंकल नमस्ते. आप वापस जा सकते हैं. हम लोग हैं न. सुनीता को कोई दिक्कत नहीं होने देंगे.”

तभी अनाउंस हुआ, “कालका मेल अपने निश्चित समय से 45 मिनट की देरी से चल रही है. यात्रियों की असुविधा के लिए हमें खेद है.”

सुनीता ने कहा, “हां पापा, आप जाइए. अभी हमारे पड़ोस की मनीषा भी आ रही होगी. उस की बर्थ भी हमारे ही कोच में है. और भी जानपहचान के फ्रैंड्स हैं. आप परेशान न हों. घर लौट जाइए. हम लोग मैनेज कर लेंगे.”

सुनीता के पापा लौट गए. थोड़ी देर में मनीषा भी आ गई. रोहित, मनोज, सुनीता और मनीषा चारों एक ही कालोनी में रहते थे, पर अलगअलग सैक्टर में. दोनों लड़के इंजीनियरिंग सेकंड ईयर में थे और लड़कियां ग्रेजुएशन कर रही थीं. इन में सुनीता ही सब से ज्यादा धनी परिवार से थी. रोहित और मनोज दोनों के पिता कोल इंडिया में क्लर्क थे. मनीषा के पिता कोल इंडिया में ही लेबर अफसर और सुनीता के पिता ठेकेदार थे. देश के अनेक भागों में कोयला भेजते थे.

रोहित बोला, “मेरे और मनोज के पास रिजर्व टिकट नहीं हैं. तुम लोग मदद करना. तुम दोनों एक बर्थ पर हो लेना और दूसरी बर्थ पर हम दोनों रहेंगे. अगर कोस्ट शेयर करना हुआ तो वो भी शेयर कर लेंगे.”

सुनीता ने कहा, “क्या बेवकूफों जैसी बात कर रहे हो? ऐसा क्या पहली बार हुआ है? इस के पहले भी तुम लोग हमारी बर्थ पर गए हो. क्या हम ने पैसा लिया है कभी? फिर ऐसी बात न करना. मगर, इस बार हम दोनों को लेडीज कोटे से बर्थ मिली है.“

मनीषा बोली, “हां, S-7 में बर्थ नंबर 1 से 8 तक लेडीज कोटा है. हम तो शेयर कर लेंगे, पर बाकी औरतों ने कहीं शोर मचाया तब क्या करोगे? “

मनोज बोला, “हम लोग पहले भी ये सिचुएशन झेल चुके हैं. इस को हम पर छोड़ दो, हैंडल कर लेंगे.”

ट्रेन आने पर सभी कोच में जा बैठे. लेडीज कोटे में एक बुजुर्ग महिला भी थी. उस ने कहा, “तुम दोनों लड़के यहां नहीं बैठ सकते हो.”

सुनीता ने कहा, “आंटी, आप तो इधर की ही लगती हैं. आप को पता होगा इस पीरियड में यहां से दिल्ली स्टूडेंट्स जाते हैं और इतनी भीड़ में हमें एडजस्ट करना पड़ता है.”

“अच्छा ठीक है, चुपचाप बैठो. तुम लोग न खुद सोते हो और न औरों को सोने देते हो.”

थोड़ी देर में टीटी आया. टिकट चेक करने के बाद उस ने लड़कों से कुछ कड़ी आवाज में कहा, “तुम लोग यहां नहीं बैठ सकते हो. एक तो वेटिंग की टिकट और ऊपर से लेडीज कोटा में आ बैठो हो. अगले स्टेशन गोमो में तुम लोग उतर जाना.”

मनोज बोला, “शायद आप हमें नहीं जानते. आप का बेटा भी अगले साल दिल्ली जाएगा पढ़ने. उस की ऐसी रैगिंग करूंगा कि वह रोते हुए वापस इसी ट्रेन से धनबाद आएगा. बाकी आप की मरजी.”

टीटी ने कहा, “तुम लोग तो गजब ही हो. जो चाहे करो, पर मैं तो मुगलसराय में उतर जाऊंगा. उस के बाद तुम जानो.”

“आगे भी हम देख लेंगे. पर, आप अपने रिलीवर को भी हमें तंग न करने को कह देते तो अच्छा होता.”

सुबह के 7 बजे ट्रेन मुगलसराय पहुंची. वहां ट्रेन कुछ देर रुकती है. रोहित और मनोज दोनों प्लेटफार्म पर उतर कर टी स्टाल पर सिगरेट पी रहे थे. उन्हें देख सुनीता और मनीषा भी उतर गईं. सुनीता ने मनीषा से कहा, “चल, 1-2 फूंक हम भी मार लेते हैं.”

दोनों उन के निकटआईं. सुनीता बोली, “क्या अकेलेअकेले पी रहे हो?“

“आओ, तुम भी पीओ,” मनोज ने कहा और चाय वाले से 2 कप चाय ले कर उन की ओर बढ़ा दिया.

सुनीता बोली, “और सिगरेट? “

मनोज ने अपना सिगरेट बढ़ाते हुए कहा, “लो, दो कश तुम भी ले लो. अगर मनीषा को भी चाहिए तो…?“

“नहीं, मुझे नहीं चाहिए” मनीषा बोली.

सुनीता ने कहा, “मैं शेयर नहीं करूंगी. मुझे अलग से नया सिगरेट दो.”

मनोज ने उसे सिगरेट जला कर दिया. दोतीन कश लेने के बाद सुनीता ने सिगरेट फेंक कर उसे सैंडल से बुझा दिया.

यह देख कर मनोज बोला, “तुम्हें पीते देख कर यह नहीं लगा कि तुम पहली बार पी रही हो. फिर तुम ने नाहक ही मेरा सिगरेट बरबाद कर दिया.”

“पैसे चाहिए सिगरेट के?“

“तुम से बहस करना बेकार है.”

खैर, सभी वापस ट्रेन में जा बैठे. रात के करीब 9 बजे ट्रेन दिल्ली पहुंची. चारों एक टैक्सी में बैठे. मनीषा और सुनीता को उन के होस्टल में छोड़ मनोज और रोहित अपने होस्टल पहुंचे. चारों एक ही शहर और कालोनी के रहने वाले थे, इसलिए छुट्टियों में ट्रेन में आनाजाना अकसर साथ होता था.

मनोज और रोहित के ब्रांच अलग थे. मनीषा और सुनीता के कॉम्बिनेशन एक ही थे, इसलिए उन में कुछ दोस्ती थी. सुनीता नेचर से ज्यादा फ्रैंक और डोमिनेटिंग थी. किसी से अनचाहा एनकाउंटर होने से या कोई मनीषा को तंग करता तो वह मनीषा को प्रोटेक्ट किया करती थी. मनीषा अंतर्मुखी थी.

इसी तरह ये चारों कभी ट्रेन में मिलते, तो कभी किसी मौल या मल्टीप्लेक्स में तो देर तक आपस में बातें करते.

मनोज और मनीषा के स्वभाव में अंतर था, फिर भी दोनों एकदूसरे के करीब आए.

रोहित और मनोज दोनों ने बीटैक पूरा किया और मनीषा और सुनीता ने पीजी. मनोज ने नोएडा में नौकरी ज्वाइन किया.

मनोज और मनीषा ने मातापिता की मरजी के विरुद्ध कोर्ट मैरेज किया. रोहित और सुनीता उन की शादी में आए थे.

एक साल बाद दोनों अमेरिका चले गए. मनोज अपने जौब वीजा H 1 B पर गया था और मनीषा उस की आश्रित H 4 वीजा पर. कुछ दिनों बाद मनीषा को भी EAD मिला, जिस से वह भी नौकरी कर सकती थी. उस ने भी नौकरी ज्वाइन की. उन्हें 2 बेटियां थीं. मनीषा का काम वर्क फ्राम होम होता था. यह उस के लिए एक वरदान था, वह अपनी बेटियों का भी ध्यान रख सकती थी. उन दिनों रोहित और मनोज और सुनीता और मनीषा के बीच रेगुलर संपर्क बना रहा, विशेषकर मनीषा और सुनीता के बीच.

इधर रोहित और सुनीता दोनों ने पुणे में नौकरी ज्वाइन किया. कुछ महीने बाद दोनों की शादी हुई. इस शादी में उन के मातापिता की सहमति थी. कुछ दिनों के बाद रोहित और सुनीता कनाडा चले गए. यहां भी मनीषा और सुनीता के बीच अच्छा संपर्क बना रहा.

इधर कुछ समय से मनीषा और मनोज के रिश्ते में कुछ खटास आने लगी थी. मनोज रोज रात को शराब पीता और मनीषा को भी पीने को कहता. पर मनीषा ने उस के लाख कहने के बावजूद शराब को होठों से नहीं लगाया. इस के चलते मनोज उस से बहुत नाराज रहता. कभीकभी वह गालीगलौज पर भी उतर आता. धीरेधीरे उन के बीच कड़वाहट बढ़ती गई, पर मनीषा ने अपना दुख सुनीता के सामने जाहिर नहीं किया.

एक बार तो मनोज ने मनीषा पर हाथ तक उठा दिया था. इसी तरह लड़तेझगड़ते करीब 10 साल गुजर गए.

एक बार जब मनीषा और सुनीता वीडियो चैट कर रही थीं, उसी बीच मनोज ने कालबेल बजाया. मनीषा को दरवाजा खोलने में कुछ वक्त लगा. उस ने फोन हाथ में लिए दरवाजा खोला. दरवाजा खुलते ही मनोज उस पर गरज पड़ा, “बिच, तुम को डोर खोलने में इतना टाइम क्यों लगा?“

मनीषा ने झट से फोन काट दिया. पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी और सुनीता को मामला समझने में देर नहीं लगी.

सुनीता के मन में अपनी सहेली के लिए चिंता हुई. कुछ दिनों बाद वह खुद मनीषा से मिलने अमेरिका आई. वह दो दिनों तक रही. इस बीच मनीषा और मनोज में बातचीत हां, नहीं या यस, नो तक सिमट कर रह गई थी.

जब मनोज औफिस गया था और बच्चे स्कूल, तब सुनीता ने मनीषा से पूछा, “मनोज आजकल कुछ नाराज दिख रहा है. कुछ खास बात है तो मुझे बताओ.“

“नहीं, कुछ ख़ास नहीं. कल से ही हम दोनों एकदूसरे से नाराज हैं और बातचीत करीब बंद है. फिर अपने ही एकदो दिन में ठीक हो जाएगा.“

“आर यू श्योर ? तुम कहो तो मैं मनोज से कुछ बात करूं? “

“नहींनहीं, इस की जरूरत नहीं है. कहीं ऐसा न हो बात और बिगड़ जाए. मैं मैनेज कर लूंगी.“

“ओके. फिर भी देखना, जरूरत पड़ने पर मैं या रोहित अगर तुम्हारे कुछ काम आ सके तो बहुत खुशी होगी हमें.“

सुनीता कनाडा लौट आई. उस ने रोहित को मनोज और मनीषा के बारे में बताया. सुनीता बोली, “मैं मनीषा को बहुत पहले से और अच्छी तरह जानती हूं. वह अंतर्मुखी है, अपने मन की बात जल्द किसी को नहीं बताती है. रोहित क्या हमें उस की मदद नहीं करनी चाहिए.“

“जरूर करनी चाहिए बशर्ते वह मदद मांगे. मियांबीवी के बीच में यों ही दखल देना ठीक नहीं है. फिलहाल लेट अस वेट एंड वाच.“

कुछ दिनों बाद सुनीता ने मनीषा को फोन किया. फोन उस की बेटी ने उठाया. सुनीता को बेटी की आवाज सुनाई पड़ी, “मम्मा, सुनीता आंटी का फोन है. क्या बोलूं ?”

‘बोल दे, मम्मा अभी सो रही है.“

सुनीता ने फोन काट दिया. उसे दाल में कुछ काला लगा. एक तो यह उस के सोने का टाइम नहीं था और दूसरे मनीषा की आवाज रोआंसी थी. उस ने समझ लिया कि जरूर आज फिर मनीषा के साथ कुछ बुरा घटा होगा.

रोहित कभी मनोज को फोन करता, तो रोहित महसूस करता कि उसे बातचीत करने में कोई दिलचस्पी नहीं है. थोड़ी देर इधरउधर की बात कर मनोज कहता, ‘और सब ठीक है, बाद में बात करते हैं,’ पर मनोज कभी काल नहीं करता था, बल्कि रोहित ही 10 – 15 दिनों में एक बार हालचाल पूछ लेता.

कुछ दिनों बाद एक बार सुनीता ने मनीषा को फोन कर पूछा, “कैसी हो मनीषा? तुम तो खुद कभी फोन करती नहीं हो.“

“क्या कहूं…? बस जीना एक मजबूरी हो गई है, इसलिए जिए जा रही हूं.“

“ऐसा क्यों बोल रही हो? अभी तुम्हारी उम्र ही क्या हुई है? अभी आगे बहुत लंबी जिंदगी पड़ी है. सुखदुख तो आतेजाते रहते हैं.“

“दुख हो तो झेल लूं, पर मेरा जीवन नासूर बन गया है सुनीता,“ मनीषा ने कहा.

“ऐसी कोई बात नहीं. आजकल हर ज़ख्म का इलाज है. तू बोल तो सही.“

मनीषा को कुछ देर खामोश देख कर सुनीता बोली, “तुम चुप क्यों हो गई हो? जब तक बोलोगी नहीं, मुझे तेरी तकलीफ का कैसे पता चलेगा. वैसे, मुझे कुछ अहसास है कि मनोज तुम्हें जरूरत से ज्यादा तंग करता है.“

मनीषा ने सिसकते हुए कहा, “2-2 बेटियां हैं, उन के लिए जीना मेरी मजबूरी है. पहले बात सिर्फ गालीगलौज तक रहती थी, अब तो अकसर बेटियों के सामने हाथ भी उठा देता है. वह भी बिना वजह.“

“आखिर वह चाहता क्या है? “

“तू तो जानती है, मेरा जौब वर्क फ्रॉम होम होता है. मुझे घर से बाहर ज्यादा जाने की जरूरत नहीं पड़ती है. मुझे ज्यादा तामझाम पसंद नहीं है.“

“तो इस से क्या हुआ?“

“मनोज को चाहिए कि मैं भी जींसशॉर्ट्स पहनूं, स्विमिंग सूट पहन कर स्विम करूं, उस के और उस के दोस्तों के साथ शराब पीऊं और डांस करूं. मुझ से यह सब नहीं होगा. उस के साथ कहीं पार्टी में जाती हूं, तो मैं अपने इंडियन ड्रेस में होती हूं.“

“इस में गलत क्या है, इस के लिए कोई तुम्हें फोर्स नहीं कर सकता है.“

“यह सब किताबों की बात है, प्रैक्टिकल लाइफ में नहीं. अब मनोज को साथ काम करने वाली शादीशुदा क्रिश्चियन औरत अमांडा मिल गई है, जो उस की मनपसंद है. कभी वह घर आती है तो उस के सामने भी मेरा अपमान करता है.“

“तो तुम बरदाश्त क्यों करती हो?“

“नहीं करूं तो रोज मार खाऊं? “

“तुम अमेरिका में रह कर ऐसी बात करती हो? एक काल 911 को कर, उस की सारी हेकड़ी निकल जाएगी.“

“नहीं, मुझ से नहीं होगा.“

“तो तू मर घुटघुट के,“ बोल कर सुनीता ने गुस्से में फोन काट दिया.

इस के कुछ ही दिनों के बाद सुनीता और रोहित अमेरिका गए. वे दोनों दूसरे शहर में होटल में रुके थे. सुनीता ने मनीषा को फोन किया. मनीषा का फोन बेडरूम में था. उस की बड़ी बेटी वहीं थी. उस ने कहा, “वन मिनट, मैं मम्मा को देती हूं.“

फोन वीडियो काल था. बेटी फोन लिए लिविंग रूम में आई, जहां मनोज और अमांडा शराब पी कर म्यूजिक पर डांस कर रहे थे. मनीषा मनोज को अमांडा को घर से बाहर निकालने के लिए बोल रही थी. इस पर मनोज मनीषा को गालियां दे रहा था और बोल रहा था, “यह नहीं जाएगी. तुझे जाना होगा,“ बोल कर वह मनीषा को घसीटने लगा. अमांडा भी उस का साथ दे रही थी. मनीषा को दरवाजे के बाहर निकाल कर मनोज ने दरवाजा बंद कर दिया. उधर सुनीता यह सब देख रही थी और रिकौर्ड कर रही थी.

सुनीता को यह सब सहन नहीं हुआ. उस ने फोन काट दिया और तुरंत 911 पर काल कर पूरी बात बता दी. कुछ ही मिनटों के अंदर मनीषा के घर पुलिस पहुंच गई, “यहां मनीषा कौन है?“

“मैं ही हूं. क्या बात है?“

“हमें सुनीता ने फोन कर आप की मदद करने के लिए कहा है. वैसे, सुनीता ने वीडियो क्लिप भी भेजी है. आप अपना स्टेटमेंट रिकौर्ड करवा दें. मनोज कौन है?“

“वे मेरे पति हैं और अंदर हैं.“

पुलिस के बेल दबाने पर मनोज ने दरवाजा खोला, तो उसे देख कर हक्काबक्का रह गया. पुलिस ने कहा, “आप को मेरे साथ थाने चलना होगा.“

मनोज को पुलिस ले गई. सुनीता ने फोन पर मैसेज भेजा था, “तुम दोनों बेटियों के साथ कनाडा आ जाओ. वहां से अपनी नई जिंदगी की शुरुआत करना.“

कितने तरह के होते हैं फेस सीरम, क्या इसे चेहरे पर लगाने के कोई नुकसान नहीं है ?

स्किन को हैल्दी रखने के लिए इसका केयर करना बहुत जरूरी है. अगर आप डेली स्किन रोटीन फौलो करती हैं, तो आपकी स्किन बेजान नहीं होगी. क्लींजिंग, टोनिंग और स्किन मौइश्चराइजिंग सभी करते हैं, लेकिन क्या आप फेस सीरम के बारे में जानते हैं, ये स्किन के लिए काफी फायदेमंद होता है. ऐसे में आज आपको फेस सीरम क्या और ये कितने तरह के होते हैं, ये सभी जानकारी आपको इस आर्टिकल में देंगे.

क्या है फेस सीरम

फेस सीरम बहुत ही लाइट होता है. यह वाटर बेस्ड होता है. जिसके कारण स्किन इसे तुरंत ही एब्जार्ब कर लेता है. जो लड़कियां नियमित रूप से चेहरे पर फेस सीरम लगाती हैं, उनकी त्वचा में कसाव, चमक और नमी ज्यादा दिखाई देती है. फेस सीरम लगाने से त्वचा जवां दिखती है.

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कई तरह के होते हैं फेस सीरम

एंटी एजिंग फेस सीरम

फेस सीरम के इस्तेमाल से उम्र बढ़ने के लक्षणों को रोका जा सकता है. इस तरह से फेस सीरम स्किन के दागधब्बों को कम करने में मदद करते हैं. ये चेहरे की महीन रेखाओं और झुर्रियों को भी दूर करते हैं. जिससे त्वचा टाइट रहती है.

हाइड्रैटिंग सीरम

जैसेजैसे उम्र बढ़ती है, त्वचा का कोलेजन धीमा हो जाता है. ऐसे में स्किन डिहाइड्रेटेडऔर सुस्त दिखने लगती है. हाइड्रैटिंग सीरम के इस्तेमाल से त्वचा जवां और ताजा नजर आती है. इस सीरम में हयालूरोनिक एसिड होता है, जो स्किन में पानी को रोके रखता है.

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विटामिन-सी फेस साीरम

विटामिन-सी फेस साीरम स्किन की नमी को बढ़ावा देता है. इसे चेहरे पर लगाने से बढ़ती उम्र के निशानों को हल्का किया जा सकता है. यह कोलेजन और इलास्टिन को बढ़ाता है और चेहरे के रंग को सामान करता है.

एंटी-एजिंग नाइट सीरम

उम्र बढ़ने के साथ तो चेहरे पर झुर्रियां नजर आती ही है, कई लोगों को कम उम्र में ही झुर्रियों की समस्या का सामना करना पड़ता है. ये सीरम चेहरे की गंदगी को पूरी तरह से निकाल देते हैं. यह सीरम उम्र बढ़ने के संकेतों से लड़ता है और त्वचा को हाइड्रैटेड रखता है.

चेहरे पर कब लगाएं सीरम

हर किसी की त्वचा अलग होती है, लिहाजा किसी भी प्रोडक्ट इफैक्ट देखने के लिए कम से कम 1 हफ्ते का समय देना पड़ता है. जिससे स्किन पर इफैक्ट या साइड इफैक्ट देखने को मिलता है.

रोजाना चेहरे और गर्दन पर दो बार सीरम लगाया जा सकता है. एक बार सुबह चेहरा साफ करने के बाद सीरम लगा सकते हैं. इसके बाद चेहरे पर मौइश्चराइजर जरूर लगाएं. दूसरी बार रात में सोने से पहले चेहरे पर सीरम अप्लाई करें. चेहरे पर सीरम लगाते समय रगड़ें नहीं, इसे हल्के हाथों से चेहरे पर अप्लाई करें.

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चेहरे पर सीरम लगाने के फायदे

  • चेहरे का ग्लो बढ़ता है, इसके लिए विटामिन-सी सीरम बैस्ट है.
  • सीरम चेहरे की कसावट को बनाए रखता है.
  • जिन लोगों को मुंहासे की समस्या है, उन्हें सीरम जरूर लगाना चाहिए.
  • यह स्किन को रिपेयर करने का काम करता है.

सीरम लगाने के नुकसान भी हैं

स्किन एक्सपर्ट के अनुसार, स्किन टाइप के अनुसार ही फेस सीरम का इस्तेमाल करना चाहिए. इसमें विटामिन-सी, रेटिनौल और कई तत्व पाए जाते हैं. जिन लोगों की स्किन सेंसिटिव होती है, उन्हें रोजाना चेहरे पर सीरम नहीं लगाना चाहिए, इससे जलन, खुजली या रैशेज की समस्या हो सकती है.

ऋतिक रोशन ने अपनी बहन के लिए शेयर किया ये खास पोस्ट

भाईबहन का रिश्ता प्यार और सम्मान से भरा होता है .जो जीवन के हर मोड़ पर दोनों के बीच गहरा बंधन बनाए रखता है. एक दूसरे की खुशियों में खुश होना और दुख के पलों में साथ खड़े रहने का अपना अलग ही आनंद है. ऐसा ही रिश्ता बौलीवुड के हैंडसम और, फिटनेस फ्रीक एक्टर ऋतिक रोशन और उनकी कजिन सिस्टर पश्मीना रोशन का है. दोनों के रिश्ते में आपसी सम्मान और प्रशंसा की झलक मिलती है, जिसमें ऋतिक अपनी यंगर कजिन सिस्टर के लिए एक गाड फादर की भूमिका निभाते हैं.

सोशल मीडिया बना जरिया

आपको बता दे बौलीवुड के फेमस एक्टर ऋतिक रोशन इस समय अपनी कजिन सिस्टर पश्मीना रोशन की सक्सेस को एंजौय कर रहे हैं, पश्मीना ने हाल ही में फिल्म “इश्क विश्क रिबाउंड” से धमाकेदार एंट्री की है. पश्मीना को उनके रोल के लिए खूब वाहीवाही मिल रही है. इस बात से पश्मीना के भाई ऋतिक बहुत प्राउड फील कर खुश हो रहे है अपनी खुशी को जाहिर करने से खुद को रोक नही पाएं उन्होंने सोशल मीडिया के जरिए बहन की तारीफ करते हुए इमोशनल मैसेज लिखा वो मैसेज क्या है आइये बताते हैं-

इमोशनल मैसेज

आपको बता दें इंस्टाग्राम पर ऋतिक ने पश्मीना के साथ एक फोटो पोस्ट की और उनके हुनर की तारीफ करते हुए एक दिल की गहराइयों से मैसेज लिखा. ऋतिक ने लिखा, “असली आप को जानना और आपको बड़े पर्दे पर पूरी तरह से किरदार में डूबे हुए देखना मेरे लिए एक रहस्योद्घाटन और किसी खुशी के अनुभव से कम नहीं है, पाश.मेरा विश्वास करो, तुम्हारी क्षमता आसमान छू रही है और तुम इसे बहुत जल्द ही प्रकट कर दोगे, ठीक वैसे ही जैसे तुमने अपना पहला इश्क विश्क प्रकट किया था. तुम्हारी मौजूदगी में कुछ बेहद खास है.एक बार जब तुम इसे महसूस कर लोगे, तो तुम जान जाओगे कि इसका उपयोग कैसे करना है, इसकी रक्षा कैसे करनी है, इसका पोषण कैसे करना है. चलते रहो, पाश! अजेय रहो! मुझे तुम पर बहुत गर्व है.लव यू ❤️ डुग्गू भैया.”

रिश्ते में आपसी सम्मान और प्रशंसा की झलक

ऋतिक और पश्मीना के बीच बहुत ही करीबी रिश्ता है, अक्सर वे अपने-अपने सफर में एक-दूसरे का साथ देते हुए देखे जाते हैं बौलीवुड में स्टेबिलिस्ट (Established) एक्टर होने की वजह से ऋतिक हमेशा पश्मीना के लिए एक गाइडिंग फोर्स (guiding force) रहे हैं. उनके रिश्ते में आपसी सम्मान और प्रशंसा की झलक मिलती है, जिसमें ऋतिक अपनी यंगर कजिन सिस्टर के लिए एक गाड फादर की भूमिका निभाते हैं.

ऋतिक की ये पोस्ट स्ट्रौंग फैमिली रिलेशनशिप और उनकी अचीवमेंट्स पर प्राउड करने का प्रमाण है. वहीं दूसरी तरफ एक्टर ऋतिक रोशन की पर्सनल लाइफ को लेकर गॉसिप हो रही है कि एक्टर का उनकी गर्ल फ्रैंड सबा आजाद से ब्रेकअप हो गया है.

मैं अपने प्रोफैसर से प्यार करने लगी हूं, लेकिन वो मुझसे 20 साल बड़े हैं…

अगर आप भी अपनी समस्या भेजना चाहते हैं, तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें..

सवाल

मेरी उम्र 20 साल है, मैं बी-टेक की स्टूडेंट हूं. कुछ ही दिनों पहले मैंने दिल्ली के एक फेमस कौलेज में एडमिशन लिया है. यहां एक से बढ़कर एक लड़केलड़कियां आते हैं. यहां पर ढेर सारी सुविधाएं हैं. मेरे कोर्स कोअर्डिनेटर बहुत अच्छे हैं. वो काफी सपोर्टिव हैं. वो Personality Development की क्लास भी लेते हैं. मेरे प्रोफैसर बहुत ही हैंडसम हैं.

वो कई लड़कियों के क्रश हैं. हालांकि वो कामभर ही किसी से बात करते हैं. मैं भी उन्हें पसंद करने लगी हूं, मैं तो अपने दिल की बात भी उनसे कहना चाहती हूं, लेकिन वो उम्र में मुझसे 20 साल बड़े हैं.
उनका बर्थडे आने वाला है, मैं सोच रही हूं कि उनका बर्थडे सेलिब्रेट करूं, कौलेज के सारे लड़केलड़कियों को इनवाइट करूं और सबके सामने उनसे अपने प्यार का इजहार करूं. इससे अच्छा मौका मुझे नहीं मिल सकता, आप सलाह दें, क्या ऐसा करना सही होगा ?

Stylish indian man with bindi on forehead and glasses wear on gray suit posed outdoor

जवाब

प्यार उम्र की सीमा नहीं देखता है. वैसे भी आजकल आजकल पार्टनर के बीच उम्र का अंतर ज्यादा होने लगा है. ऐसे कई सेलेब्स हैं, जिनकी पार्टनर से उनकी उम्र ज्यादा है. इससे फर्क नहीं पड़ता कि जिससे आप पसंद करते हैं, अगर उसकी उम्र आपकी उम्र से ज्यादा है तो…

लेकिन सबके सामने अपने प्रोफेशर को प्रोपौज करना गलत होगा.आपने दिन सही चुना है, बेशक आप उनका बर्थडे सेलिब्रैट करें, लेकिन अपने दिल की बात उनसे अकेले में कहें. अगर आप सबके सामने उनसे इजहार करती हैं, तो हो सकता है, उन्हें बुरा लगे, क्योंकि वो एक बड़े पोस्ट पर हैं और वो भी प्रोफैसर के पद पर कार्यरत हैं.

लेकिन जब आप किसी बड़े उम्र के आदमी से अपने प्रेम का इजहार करना चाहते हैं, तो उससे ठोड़ा मैच्योरिटी के साथ बिहेव करना होगा. आप बर्थडे के दिन उन्हें गिफ्ट देने के बहाने उनके पास जाएं और अपने प्यार का इजहार करें. ये मत सोचें कि वो गुस्सा करेंगे या आपसे बात नहीं करेंगे. पर हां आप ये बात अपने फ्रैंड्स से डिस्कस न करें.

Young couple together in an autumn park

जब हो जाए बड़े उम्र के आदमी से प्यार

कपल्स के बीच उम्र ज्यादा हो या कम, इससे फर्क नहीं पड़ता, लेकिन समाज में बहुत कुछ सुनने को मिलता है. लेकिन जब दो लोग आपसी सहमति से किसी रिश्ते को अपनाते हैं, तो दुनिया क्या कहती है, इससे मतलब नहीं रखना चाहिए. अगर आपका साथी आपसे अपना अनुभव साझा करता है, तो उसे ध्यान से सुनना चाहिए न कि ये सोचना चाहिए की पार्टनर बड़ा है, इसलिए ज्ञान दे रहा है.

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बदल गया जीने का नजरिया: क्या दूर हुआ मीना के घर का क्लेश

सुरेश भी अकसर बिना किसी बात के उस से चिड़चिड़ा कर बोल पड़ता था. कभीकभार तो मीना के ऊपर उस का इतना गुस्सा फूटता कि अगर चाय का कप हाथ में होता तो उसे दीवार पर दे मारता. ऐसे ही कभी खाने की थाली उठा कर फेंक देता. इस तरह गुस्से में जो सामान हाथ लगता, वह उसे उठा कर फेंकना शुरू कर देता. इस से आएदिन घर में कोई न कोई नुकसान तो होता ही, साथ ही घर का माहौल भी खराब होता.

ऐसे में मीना को सब से ज्यादा फिक्र अपने 2 मासूम बच्चों की होती. वह अकसर सोचती कि इन सब बातों का इन मासूमों पर क्या असर होगा? यही सब सोच कर वह अंदर ही अंदर घुटते हुए चुपचाप सबकुछ सहन करती रहती.

मीना अपनेआप पर हमेशा कंट्रोल रखती कि घर में झगड़ा न बढ़े, पर ऐसा कम ही हो पाता था. आजकल सुरेश भी औफिस से ज्यादा लेट आने लगा था.

जब भी मीना लेट आने की वजह पूछती तो उस का वही रटारटाया जवाब मिलता, ‘‘औफिस में बहुत काम था, इसलिए आने में देरी हो गई.’’

एक दिन मीना की सहेली सोनिया उस से मिलने आई. तब मीना का मूड बहुत खराब था. सोनिया के सामने वह झूठमूठ की मुसकराहट ले आई थी, इस के बावजूद सोनिया ने मीना के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफसाफ पढ़ ली थीं.

मीना ने सोनिया को कुछ भी नहीं बताया और अपनेआप को उस के सामने सामान्य बनाए रखने की कोशिश करती रही थी. कभी उस का मन कहता कि वह सोनिया को अपनी समस्या बता दे, लेकिन फिर उस का मन कहता कि घर की बात बाहर नहीं जानी चाहिए. हो सकता है, सोनिया उस की समस्या सुन कर खिल्ली उड़ाए या फिर इधरउधर कहती फिरे.

अगले दिन जब मीना बस से कहीं जा रही थी कि तभी उस की नजर उस बस में चिपके एक इश्तिहार पर अटक गई. उस इश्तिहार में किसी बाबा द्वारा हर समस्या जैसे सौतन से छुटकारा, गृहक्लेश, व्यापार में घाटे से उबरने का उपाय, कोई ऊपरी चक्कर, प्रेमविवाह, किसी को वश में करने का हल गारंटी के साथ दिया गया था.

बाबा का इश्तिहार पढ़ते ही मीना के मन में अपने गृहक्लेश से छुटकारा पाने की उम्मीद जाग गई थी. उस ने जल्दी से अपना मोबाइल फोन निकाला और बाबा के उस इश्तिहार में दिया गया एक नंबर सेव कर लिया.

घर पहुंचते ही मीना ने बाबा को फोन किया और फिर उस ने अपनी सारी समस्याएं उन के सामने उड़ेल कर रख दीं.

दूसरी तरफ से बाबा की जगह उन का कोई चेला बात कर रहा था. उस ने कहा कि आप दरबार में आ जाइए, सब ठीक हो जाएगा. उस ने यह भी कहा कि बाबा के दरबार से कोई भी निराश नहीं लौटता है. उस ने उसी समय मीना को एक अपौइंटमैंट नंबर भी दे दिया था. मीना अब बिलकुल भी देर नहीं करना चाहती थी. वह सुरेश को पहले जैसा खुश देखना चाहती थी.

जब दूसरे दिन मीना बाबा के पास पहुंची और अपनी सारी समस्याएं उन्हें बताईं, तब बाबा ने बुदबुदाते हुए कहा, ‘‘आप के पति पर किसी ने कुछ करवा दिया है.’’

मीना हैरान होते हुए बाबा से पूछ बैठी, ‘‘पर, किस ने क्या करवा दिया है? हमारी तो किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं है… बाबाजी, ठीकठीक बताइए… क्या बात है?’’

इस पर बाबा दोबारा बोले, ‘‘आप के पति का किसी पराई औरत के साथ चक्कर है और उस औरत ने ही शर्तिया आप के पति पर कुछ करवाया है. आप के पति को उस से छुटकारा पाना होगा.’’

बाबा की बातों से मीना के मन में अचानक सुरेश की चिड़चिड़ाहट की वजह समझ आ गई.

मीना बोली, ‘‘बाबाजी, आप ही कोई उपाय बताएं… ठीक तो हो जाएंगे न

मेरे पति?’’

मीना की उलझन के जवाब में बाबा ने कहा, ‘‘ठीक तो हो जाएंगे, लेकिन इस के लिए पूजा करानी होगी और उस के बाद मैं एक तावीज बना कर दूंगा. वह तावीज रात को पानी में भिगो कर रखना होगा और अगली सुबह मरीज को बिना बताए चाय में वह पानी मिला कर

मरीज को पिलाना होगा. यह सब तकरीबन 2 महीने तक करना होगा.

‘‘मैं एक भभूत भी दूंगा जिसे उस औरत को खिलाना होगा, जिस ने आप के पति को अपने वश में कर रखा है.’’

बाबा की बातों से मीना का दिल बैठ गया था. उस ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि सुरेश उस के साथ बेवफाई कर सकता है.

इसी बीच बाबा ने एक कागज पर उर्दू में कुछ लिख कर उस का तावीज बना कर भभूत के साथ मीना को दिया और कहा, ‘‘मरीज को बिना बताए ही तावीज का पानी उसे पिलाना है और यह भभूत उस औरत को खिलानी है. अगर उस औरत को एक बार भी भभूत खिला दी गई तो वह हमेशा के लिए तेरे पति को छोड़ कर चली जाएगी.’’

मीना ये सब बातें बड़े ध्यान से सुन रही थी. वह सुरेश को फिर से पहले की तरह वापस पाना चाहती थी. उसे बाबा पर पूरा भरोसा था कि वे उस के पति को एकदम ठीक कर देंगे.

उस रात मीना बिस्तर पर करवटें बदलती रही. उस की नींद छूमंतर

हो चुकी थी. उस को बारबार यही खयाल आता, ‘कहीं उस औरत के चक्कर में सुरेश ने मुझे छोड़ दिया तो मैं क्या करूंगी? कैसे रह पाऊंगी उस के बगैर?’

यह सब सोचसोच कर उस का दिल बैठा जा रहा था. फिर वह अपनेआप को मन ही मन मजबूत करती और सोचती कि वह भी हार नहीं मानने वाली.

इस के बाद मीना यह सोचने लग गई कि तावीज का पानी तो वह सुरेश को पिला देगी, पर उस औरत को ढूंढ़ कर उसे भभूत कैसे खिलाएगी? वह तो उस औरत को जानती तक नहीं है. यह काम उसे बहुत मुश्किल लग रहा था.

सुबह उठते ही मीना ने सब से पहले सुरेश के लिए चाय बनाई और उस में तावीज वाला पानी डाल दिया.

इस के बाद मीना सोफे पर पसर गई. बैठेबैठे वह फिर सोचने लगी कि उस औरत को कैसे ढूंढ़े, जबकि उस ने तो आज तक ऐसी किसी औरत की कल्पना तक नहीं की है?

मीना ने आज जानबूझ कर सुरेश का लंच बौक्स उस के बैग में नहीं रखा था, जिस से लंच बौक्स देने का बहाना बना कर वह उस के औफिस जा सके और उस की जासूसी कर सके.

सुरेश के औफिस जाने के बाद मीना भी उस के औफिस के लिए निकल पड़ी.

औफिस में जा कर मीना सब से पहले चपरासी से मिली और घुमाफिरा कर सुरेश के बारे में पूछने लगी.

चपरासी ने बताया, ‘‘सुरेश सर तो बहुत भले इनसान हैं. वे और उन की सैक्रेटरी रीता पूरे समय काम में लगे रहते हैं.’’

जब मीना ने चपरासी से सुरेश से मिलवाने को कहा, तब उस ने मीना को अंदर जाने से रोकते हुए कहा, ‘‘अभी सर और रीता मैडम कुछ जरूरी काम कर रहे हैं. आप कुछ देर बाद मिलने जाइएगा.’’

मीना को दाल में काला नजर आने लगा. अब तो उस का पूरा शक सैक्रेटरी रीता पर ही जाने लगा. उसे रीता पर गुस्सा भी आ रहा था लेकिन अपने गुस्से पर काबू करते हुए वह कुछ देर के लिए रुक गई.

कुछ देर बाद जब सैक्रेटरी रीता बाहर निकली तब मीना उसे बेमन से ‘हाय’ करते हुए सुरेश के केबिन में घुस गई.

वापसी में जब मीना दोबारा रीता से मिली तो उस ने कुछ दिनों बाद अपने छोटे बेटे के जन्मदिन पर रीता को भी न्योता दे डाला.

जब रीता उस के घर आई तो मीना ने उस के खाने में भभूत मिला दी. इस काम को कामयाबी से अंजाम दे कर मीना बहुत खुश थी.

अगली शाम को जब सुरेश दफ्तर

से लौटा तो एकदम शांत था, वह रोज की तरह आते ही न चीखाचिल्लाया

और न ही मीना से कोई चुभने वाली बात की. मीना बहुत खुश थी कि बाबा के तावीज ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है. उस रात सुरेश ने मीना से बहुत सी प्यार भरी बातें की थीं और उसे अपनी बांहों में भी भर लिया था.

मीना मन ही मन बाबा का शुक्रिया अदा करने लगी. वह यही सोच रही थी कि अब कुछ दिन बाद सुरेश को उस कुलटा औरत से छुटकारा मिल जाएगा और उन की जिंदगी फिर से खुशहाल हो जाएगी.

सुरेश के स्वभाव में दिनोंदिन और भी बदलाव आता चला गया. अब उस ने बच्चों के साथ खेलना और समय देना भी शुरू कर दिया था. मीना यह सब देख कर मन ही मन बहुत खुश होती. उसे बाबा द्वारा बताए गए उपाय किसी चमत्कार से कम नहीं लगे थे.

अब मीना बाबा के पास जा कर उन का शुक्रिया अदा करना चाहती थी. कुछ दिनों बाद ही वह बाबा के लिए मिठाई और फल ले कर उन के आश्रम पहुंच गई.

जब बाबा को इस बात का पता चला तो वे बहुत खुश हुए और उन्होंने मीना से कहा, ‘‘बेटी, तुम्हारे पति को अभी कुछ और दिनों तक तावीज का पानी पिलाना पड़ेगा, वरना कुछ दिन में इस का असर खत्म हो जाएगा और वह फिर से पहले जैसा हो जाएगा.’’

मीना यह बात सुन कर अंदर तक सहम गई. उस ने बाबा के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा, ‘‘बाबा, आप जो कहेंगे, मैं वहीं करूंगी और जब तक कहेंगे तब तक करती रहूंगी, चाहे मुझे इस के लिए कितने ही रुपए क्यों न खर्च करने पड़ें.’’

इस पर बाबा ने उसे भरोसा देते हुए कहा, ‘‘चिंता मत कर, सब ठीक हो जाएगा. मेरे यहां से कभी कोई निराश हो कर नहीं गया है.’’

बाबा की बातें सुन कर मीना ने राहत की सांस ली. बाबा कागज के एक पुरजे पर उर्दू में कुछ मंत्र लिख कर तावीज बनाने में लगे थे कि तभी मीना के पति सुरेश का औफिस से फोन आ गया, ‘क्या कर रही हो? जरा गोलू से बात कराना.’

मीना थोड़ा हड़बड़ा कर बोली, ‘‘कुछ नहीं.’’मीना को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह सुरेश से क्या कहे कि वह कहां है और इस समय वह उस की गोलू से बात नहीं करा सकती. इसी बीच उस की नजर दीवार पर टंगे जीवन अस्पताल के कलैंडर पर पड़ी तो उस ने झट से कह दिया, ‘‘मैं अस्पताल में हूं. गोलू को घर छोड़ कर आई हूं.’’

सुरेश ने घबरा कर पूछा, ‘‘कौन से अस्पताल में?’’

मीना फिर हड़बड़ा कर कलैंडर में देखते हुए बोली, ‘‘जीवन अस्पताल.’’

मीना का इतना कहना था कि सुरेश का फोन कट गया.

थोड़ी देर बाद मीना बाबा के यहां से वापस लौट रही थी कि रास्ते में जीवन अस्पताल के सामने सुरेश को अपना स्कूटर लिए खड़ा देख वह बहुत ज्यादा घबरा गई.

उसे देख कर सुरेश एक ही सांस में कह गया, ‘‘तुम यहां कैसे? क्या हुआ मीना तुम्हें? सब ठीक तो है न?’’

सुरेश के मुंह से इतना सुन कर और अपने लिए इतनी फिक्र देख कर मीना भावुक हो उठी. उस वक्त उसे सुरेश की आंखों में अपने लिए अपार प्यार व फिक्र नजर आ रही थी.

इस के बाद तो मीना से झूठ नहीं बोला गया और उस ने सारी बातें ज्यों की त्यों सुरेश को बता दीं.

मीना की सारी बातें सुनते ही सुरेश ने हंसते हुए उस के गाल पर एक

हलकी सी चपत लगाई और फिर गले लगा लिया.

सुरेश मीना के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोला, ‘‘तुम ने ऐसा कैसे समझ लिया. भला इतनी प्यारी पत्नी से कोई कैसे बेवफाई कर सकता है. लेकिन, तुम मुझे इतना ज्यादा प्यार करती हो कि मुझे पाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती हो, यह जान कर आज मुझे सचमुच बहुत अच्छा लग रहा है.

‘‘पर, तुम तो पढ़ीलिखी और इतनी समझदार हो कर भी इन बाबाओं के चक्कर में कैसे पड़ गईं, जबकि पहले तो तुम खुद बाबाओं के नाम से चिढ़ती थीं? अब तुम्हें क्या हो गया है?’’

सुरेश की बातों के जवाब में मीना एक लंबी सांस लेते हुए बोली, ‘‘लेकिन, कुछ भी हो… बाबा की वजह से

आप मुझे वापस मिले हो. अब मुझे पहले वाले सुरेश मिल गए हैं. अब मुझे और कुछ नहीं चाहिए.’’

सुरेश ने प्यार से मीना का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘अच्छा चलो… घर चल कर बाकी बातें करते हैं.’’

घर पहुंच कर सुरेश ने मीना की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘तुम्हें पता है न कि बाबाजी ने कोई चमत्कार नहीं किया. मैं बदला हूं सिर्फ और सिर्फ अपने दोस्त के साथ हुए एक हादसे के चलते. तुम बेकार ही यह समझ रही हो कि यह बाबा का चमत्कार है.’’

सुरेश की बातों पर मीना हैरान हो कर उसे घूरते हुए बोली, ‘‘हादसा… कैसा हादसा?’’

सुरेश ने उसे उदास मन से बताया, ‘‘मेरे एक दोस्त की पत्नी ने खुदकुशी कर ली थी और बच्चों को भी खाने में जहर दे दिया था.

‘‘जब मैं ने अपने दोस्त से पूछा कि यह सब कैसे हो गया तो उस ने बताया कि वह आजकल बहुत बिजी रहने

लगा था और काम के बोझ के चलते चिड़चिड़ा हो गया था. वह बातबात पर अपनी पत्नी पर गुस्सा होता रहता था और अकसर मारपीट पर भी उतर आता था.

‘‘पहले तो उस की पत्नी कभी उस से उलझ भी जाती थी, लेकिन कुछ दिन बाद उस ने उस से बात करना ही बंद कर दिया था और वह गुमसुम रहने लगी थी.

‘‘यह सब बताते हुए मेरा दोस्त फूटफूट कर रोने लगा था. उस ने अपने ही हाथों अपना परिवार स्वाहा कर दिया था.’’

सुरेश ने एक लंबी सांस लेते हुए आगे कहा, ‘‘अपने दोस्त की इस घटना ने मुझे अंदर तक हिला दिया था. उसी समय मैं ने सोच लिया था कि अब मैं भी अपने इस तरह के बरताव को बदल

कर ही दम लूंगा. इस तरह मेरा जीने का नजरिया ही बदल गया.’’

सुरेश की बातें सुन कर मीना बोली, ‘‘आप ने तो अपने जीने का नजरिया खुद बदला और मैं समझती रही कि यह सब बाबा का चमत्कार है और

इस सब के चलते मैं हजारों रुपए भी लुटा बैठी.’’

मीना के इस भोलेपन पर सुरेश ने हंसते हुए उसे अपनी बांहों में कस कर भर लिया.

राहुल बड़ा हो गया है: क्या मां समझ पाई

अमित से मैं अकसर इस बात पर उलझ पड़ती हूं कि राहुल अभी छोटा है. वह कभी हंस देते हैं, कभी झुंझला उठते हैं कि इतना छोटा भी नहीं है जितना तुम समझती हो.

अमित कहते हैं, ‘‘14 साल पूरे करने वाला है और तुम उसे छोटा ही कहती हो. मैं तो समझता हूं कि कल को उस के बच्चे भी हो जाएंगे तब भी राहुल तुम्हें छोटा ही लगेगा.’’

मैं इस तरह की बातें अनसुनी करती रहती हूं. बेटी मिनी, जो 16 की हुई है, वह भी अपने पापा के सुर में सुर मिलाए रखती है. वह भी यही कहती है, ‘‘छोटा है, हुंह, स्कूल में इस की मस्ती देखो तो आप को पता चलेगा कि यह कितना छोटा है.’’

मैं कहती हूं, ‘‘तो क्या हुआ, छोटा है तो मस्ती तो करेगा ही,’’ मतलब मेरे पास इन दोनों की हर बात का यही जवाब होता है कि राहुल अभी छोटा है. यह तो शुक्र है कि राहुल ने बहुत तेज दिमाग पाया है. कक्षा में हमेशा प्रथम स्थान प्राप्त करता है. खेलकूद में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेता है. जिस में भाग लेता है उसी में प्रथम स्थान प्राप्त करता है. यहीं पर अमित उस से बहुत खुश हो जाते हैं नहीं तो उसे मेरा छोटा कहना दोनों बापबेटी के लिए अच्छाखासा मनोरंजन का विषय रहता है. अब मैं क्या करूं, अगर वह मुझे छोटा लगता है. वैसे भी सुना है कि मां के लिए बच्चे हमेशा छोटे ही रहते हैं.

ठीक है, उस का कद मुझे पार कर गया है. मैं जो अच्छीखासी लंबी हूं, राहुल के कंधे पर आने लगी हूं. उस की हर समय खेलकूद की बातें, उस के चेहरे पर रहने वाली भोली सी मुसकराहट, बस, मुझे कुछ दिखाई नहीं देता, न घर में सब को पार करता उस का कद, न उस के होंठों के ऊपर हलकी सी उभरती मूंछों की कालिमा.

अभी एक हफ्ते पहले मैं ने राहुल का एक दूसरा ही रूप देखा जिसे देख कर मैं ने भी महसूस किया कि राहुल बड़ा हो गया है.

मेरी तबीयत अकसर ठीक नहीं रहती है. कभी कुछ, कभी कुछ, लगा ही रहता है. पिछले हफ्ते की बात है. एक दिन घर का सामान लेने बाजार जाना था. मेरी तबीयत सुबह से ही कुछ सुस्त थी. अमित टूर पर थे, मिनी की परीक्षाएं चल रही थीं. सामान जरूरी था, अत: राहुल और मैं शाम को 4 बजे के आसपास बाजार चले गए. यहां मुंबई में किसी भी दिन किसी भी समय कहीं भी चले जाइए भीड़ ही भीड़, लोग ही लोग. कोई कोना खाली नहीं दिखता.

मुंबई आए 7 साल होने को हैं लेकिन आज भी बाहर निकलती हूं तो हर तरफ भीड़ देख कर जी घबरा जाता है. साधारण हाउसवाइफ हूं, बाहर अकेले कम ही निकलती हूं.

खैर, उस दिन बाजार में सामान लेतेलेते एक जगह सिर बहुत भारी लगने लगा. अचानक ही मुझे तेज चक्कर आया और मैं पसीनेपसीने हो उठी. साथ ही पेट के अंदर कमर के पास तेज दर्द शुरू हो गया. राहुल मेरी हालत देख कर घबरा उठा. मैं ने उसे अपना पर्स व सामान थमाया और इतना ही कहा, ‘‘राहुल, तुरंत डाक्टर के पास चलो.’’

राहुल ने तुरंत आटो बुलाया और मुझे उस में बैठा कर मेरे फैमिली डाक्टर के नर्सिंग होम पहुंचा. रास्ते में मैं ने उसे मिनी को फोन कर के बताने को कहा. डाक्टर ने पहुंचते ही मेरा चेकअप किया और बताया, ‘‘ब्लडप्रेशर बहुत हाई है. मुझे कुछ टेस्ट करने हैं. दर्द के लिए इंजेक्शन दे रहा हूं, आज आप को यहां भरती होना पड़ेगा.’’

मैं यह सोच कर परेशान हो गई कि अमित शहर में नहीं हैं और परीक्षा की तैयारी में व्यस्त मिनी घर पर अकेली है.

मैं अपनी परेशान हालत में कुछ और सोचती इस से पहले ही राहुल बोल उठा, ‘‘अंकल, मम्मी आज यहीं रुक जाएंगी. मैं सब देख लूंगा,’’ आगे मुझ से बोला, ‘‘आप बिलकुल किसी बात की चिंता मत करो, मम्मी. मैं यहीं हूं, मैं हर बात का ध्यान रखूंगा.’’

दर्द से तड़पती मैं उस हाल में भी गर्वित हो उठी यह सोच कर कि मेरा छोटा सा बेटा कैसे मेरी देखभाल के लिए तैयार है. दर्द से मेरी जान निकल रही थी. शायद इंजेक्शन से थोड़ी देर में मुझे नींद भी आ गई. इस बीच राहुल ने मिनी को फोन कर के कुछ पैसे और मेरे लिए खाने को कुछ लाने के लिए कहा.

रात 8 बजे मेरी आंख खुली, तो देखा, दोनों बच्चे मेरे सामने चुपचाप उदास बैठे थे. मन हुआ उठ कर दोनों को अपने सीने से लगा लूं. दर्द खत्म हो चुका था, कमजोरी बहुत महसूस हो रही थी.

मैं बच्चों से बोली, ‘‘अब मैं ठीक हूं. तुम लोग अब घर चले जाओ, रात हो गई है.’’

मैं ने अपनी 2-3 सहेलियों के नाम ले कर कहा, ‘‘उन लोगों को बता दो, उन में से कोई एक यहां रुक जाएगा रात को.’’

मैं आगे कुछ और कहती, इस से पहले ही राहुल बोल उठा, ‘‘नहीं, मम्मी, जब मैं यहां हूं और किसी को बुलाने की जरूरत नहीं है. आप देखना, मैं आप का अच्छी तरह ध्यान रखूंगा. मिनी दीदी, आप जाओ, आप के पेपर हैं. मम्मी और मैं सुबह आ जाएंगे.’’

राहुल आगे बोला, ‘‘हां, एक बात और मम्मी, हम पापा को नहीं बताएंगे. वह टूर पर हैं, परेशान हो जाएंगे. वैसे भी 2 दिन बाद तो वह आ ही जाएंगे.’’

मैं अपने छोटे से बेटे का यह रूप देख कर हैरान थी. मिनी को हम ने समझा कर घर भेज दिया. वैसे भी वह एक समझदार लड़की है. राहुल ने अपने हाथों से मुझे थोड़ा खाना खिलाया और कुछ खुद भी खाया. मेरे राहुल ने कितनी देर से कुछ भी नहीं खाया था, सोच कर मैं लेटेलेटे दुखी सी हो गई.

कुछ दवाइयों का असर था शायद मैं फिर सो गई लेकिन रात को मैं ने जितनी बार आंखें खोलीं, राहुल को बराबर के बेड पर जागते ही पाया. सुबह मुझे पता चला कि किडनी में पथरी का दर्द था. खैर, उस का इलाज तो बाद में होना था. ब्लडप्रेशर सामान्य था.

अब मैं डाक्टर की हिदायतों के बाद घर जाने को तैयार थी. डाक्टर से दवाई समझता, सब बिल चुकाता, एक हाथ से मेरा हाथ, दूसरे में मेरा पर्स और बैग थामता राहुल आज मुझे सच में बड़ा लग रहा था.

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