

Chocolate Face Pack :चाहे बड़े हो या बच्चे, चौकलेट खाना हर किसी को पसंद होता है. खुशी के मौके किसी को चौकलेट गिफ्ट कर इसे सेलिब्रेट किया जाता है. मीठी और स्वादिष्ट चौकलेट हर किसी की फेवरेट होती है, लेकिन क्या आप जानते हैं, एंटीऔक्सीडेंट से भरपूर चौकलेट स्किन के लिए भी काफी फायदेमंद होती है. ऐसे में आज हम आपको इस आर्टिकल में चौकलेट से बने फेस पैक के बारे में बताएंगे, जिन्हें आप भी घर पर आसानी से बना सकती हैं.
इस फेस पैक को बनाने के लिए एक छोटा कटोरी में एक बड़ा चम्मच कोको पाउडर लें. इसमें 1 छोटा चम्मच शहद और 2 बड़ा चम्मच दही मिलाएं. चाहें तो इसमें 1 चम्मच ओटमील पाउडर भी मिला सकते हैं. इन सभी सामग्रियों को अच्छी तरह मिक्स करें. अब इस मिश्रण को अपने चेहरे पर लगाएं. लगभग इसे 15-20 मिनट तक लगा रहने दें. फिर नार्मल पानी से धो लें. जिन लोगों की ड्राई स्किन है, वो इस फेस पैक में एक टी स्पून जैतून या बादाम का तेल मिला सकते हैं.
अगर आप इस फेस पैक को बनाने के लिए कौफी बिन्स इस्तेमाल करते हैं, तो ये ज्यादा बेहतर होगा. एंटीऔक्सीडेंट से भरपूर ये कौफी बिन्स स्किन के लिए फायदेमंद होते हैं. इस छोटे बाउल में एक बड़ा चम्मच चम्मच कोको पाउडर डालें. इसके साथ दूध और कौफी पाउडर तब तक मिलाएं, जब तक ये गाढ़ा पेस्ट न हो जाएं. इस मिश्रण को चेहरे और गर्दन पर समान रूप से लगाएं, इसे करीब 30 मिनट के लिए छोड़ दें. फिर साफ पानी से धो लें और कौटन के कपड़े से थपथपाकर चेहरे को सूखा लें.
इसे पैक को बनाने के लिए एक छोटे बाउल में एक बड़ा चम्मच कोको पाउडर, शहद और 2 बड़े चम्मच ब्राउन शुगर मिलाएं. इसे गाढ़ा पेस्ट तैयार कर लें. अब इसे चेहरे पर लगाएं. लगभग 25-30 मिनट बाद चेहरे को पानी से धो लें. इससे आपके चेहरे की डेड स्किन हटने में मदद मिलेगी. फैस पैक में मौजूद शहद बैक्टीरिया हटाने में मदद करेंगे और स्किन सौफ्ट होगी.
चौकलेट और केले से बने ये फेसपैक स्किन को पोषण देने के साथ चेहरे की खूबसूरती बढ़ाता है. इसे तैयार करने के लिए एक बाउल में पके केले को मैश कर लें, इसमें कोका पाउडर मिक्स करें. अब इस मिश्रण को चेहरे पर लगाएं, लगभग 20 मिनट बाद गुनगुने पानी से चेहरे को धो लें. आप इस फेस पैक हफ्ते में दो बार इस्तेमाल कर सकते हैं.
बौलीवुड एक्ट्रैस खुशी कपूर ने फैशन शो Indian Couture में अपनी खूबसूरती से सबका दिल जीत लिया. उन्होंने पहली बार इस शो में रैंप वाक किया. ये फैशन शो दिल्ली में चल रहा है. इसमें फिल्मी हस्तियां अपने ग्लैमर अंदाज से जलवा बिखेर रहे हैं.
इंडिया काउचर वीक के छठें दिन खुशी कपूर और वेदांग रैना को गौरव गुप्ता के शोस्टौपर के तौर पर देखा गया. आपको बता दें कि लव बर्ड्स खुशी कपूर और वेदांग रैना की बौलीवुड गलियारों में चर्चे आम है, लेकिन दोनों ने कभी भी औफिशियली तौर पर अपने रिश्ते को एक्सेप्ट नहीं किया है. लेकिन जब दोनों शोस्टौपर बनकर रैंप पर उतरें, तो दोनों की कैमिस्ट्री ने सबका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया. इस फैशन शो के दौरान वोदोनों एकदूसरे से अपनी नजरें नहीं हटा पा रहे थे.
इस शो के लिए खुशी कपूर ने आफ व्हाइट कलर का फिशकट लहंगा कैरी किया था. वो बहुत ही खूबसूरत नजर आ रही थी. जब उन्होंने अपने बौयफ्रैंड वेदांग रैना के साथ किलर पोज दिया, तो फैंस इस जोड़ी की खूब वाहवाही की.
ब्लैक कलर की कास्मिक रेज लौन्ग जैकेट के साथ पैंट्स पहने थें. यह जैकेट बंदगला था, इसके आधे हिस्से पर सेक्विन सितारों से डिजाइन बना था. जिससे उनका आउटफिट चमक रहा था. स्टेज पर दोनों की कैमेस्ट्री देखते बन रही थी.
डिजाइनर गौरव गुप्ता के लिए खुशी और वेदांग शोस्टौपर बने थे. इस वीडियों में लहंगाचोली में खुशी का दिलकश अंदाज आप देख सकते हैं.एक्ट्रैस ने प्लंजिंग नेकलाइन वाले फुल स्लीव्स ब्लाउज कैरी किया था, इसके साथ फिशकट स्टाइल का लंहगा उनके लुक को कम्पलीट कर रहा था. ब्लाउज पर हैवी क्रिस्टल से डिजायइन किया गया है, जिसकी खूबसूरती देखते बन रही थी. लहंगे पर भी हैवी क्रिस्टल लगे हैं, जिससे इस आउटफिट में खुशी कपूर कमाल की लग रही थी.
अब एक्ट्रैस की ज्वेलरी की बात करते हैं, जो हार वह पहने नजर आ रही हैं, वह रूबी का हार है, इसकी आउटलाइन पत्तियों के डिजाइन की है. एक्ट्रैस सटल मेकअप में कमाल की दिख रही हैं. खुशी कपूर ने न्यूड बेस के साथ ब्राउनिश आईशैडो और न्यूड लिप्स जच रहा है. यूं कहे तो खुशी कपूर का यह लुक फैंस को दीवाना बनाने में सफल रहा है. सोशल मीडिया पर खुशी कपूर का रैंप वाक वाला वीडियो जमकर वायरल हो रहा है. लोगों से काफी अच्छा रिसपौन्स मिल रहा है.
जोया अख्तर की फिल्म आर्चीज में वेदांग रैना ने मुख्य कलाकार के तौर पर काम किया है. कुछ सालों पहले ये खबर आई थी कि श्वेता तिवारी की बेटी पलक तिवारी और वेदांग रैना एकदूसरे को डेट कर रहे हैं. वेदांग रैना की फैंस लिस्ट लड़कियों की संख्या ज्यादा है. वेदांग सिर्फ एक्टर ही नहीं बल्कि सिंगर और मौडल भी हैं. उन्होंने अपना करियर बतौर सिंगर शुरू किया था.
मानसून में जब बाहर पानी की रिमझिम बूंदे गिर रही होतीं हैं तो एक तरफ जहां भीषण गर्मी से त्रस्त आमजन को थोड़ी राहत मिलती है वहीं शाम होते ही कुछ चटपटा खाने को मन करने लगता है. पकौड़े, समोसे, कचौड़ी यूं तो खाने में बहुत टेस्टी लगते हैं परन्तु इन्हें डीप फ्राई करके बनाया जाता है इसलिए इन्हें बार बार खाना सेहतमंद नहीं होता. डीप फ्राइंग खाद्य पदार्थ अधिक मात्रा में खाने से शरीर में कोलेस्ट्रौल, मोटापा जैसी बीमारियां अपना घर बना लेतीं हैं इसलिए इन्हें अधिक मात्रा में खाने से बचना चाहिए. आज हम आपको एक ऐसी रेसिपी बनाना बता रहे हैं जिसे आप एक बूंद तेल में भी बहुत आसानी से बना सकते हैं तो आइए देखते हैं कि इसे कैसे बनाया जाता है.
सामग्री
उड़द या मूंग के पापड़ 6
पनीर 250 ग्राम
कटी शिमला मिर्च 1 कप
कटा प्याज 1
कटी हरी मिर्च 3
अदरक किसी 1 छोटी गांठ
किसी गाजर 1/2 कप
कटी बींस 1/4 कप
नमक स्वादानुसार
चिली फ्लैक्स 1/4 टीस्पून
जीरा 1/4 टीस्पून
अमचूर पाउडर 1/4 टीस्पून
काली मिर्च पाउडर 1/4 टीस्पून
शेजवान चटनी 1/2 टीस्पून
कश्मीरी लाल मिर्च 1/4 टीस्पून
बारीक कटी हरी धनिया 1 टीस्पून
तलने के लिए तेल 1 टीस्पून
विधि
एक नानस्टिक पैन में 1/2 टीस्पून तेल डालकर जीरा, प्याज, अदरक, हरी मिर्च को भूनकर सभी सब्जियां और नमक डालकर 5 मिनट तक ढककर पकाएं. अब सभी मसाले और पनीर को क्रम्बल करके डालें और अच्छी तरह चलाएं. 5 मिनट तक खोलकर पकाकर गैस बंद कर दें. हरा धनिया डालकर ठंडा होने दें. जब मिश्रण ठंडा हो जाये तो इस मिश्रण से 6 लंबे रोल बना लें. अब एक पापड़ को पानी में भिगोकर एक सूती कपड़े पर रखें. इस पापड़ के किनारे पर बीच में रोल को रखें, पहले दोनों किनारों को अंदर की तरफ फोल्ड करके पनीर के रोल को नीचे की तरफ लाते हुए फोल्ड करके रोल को पैक कर दें. इसी प्रकार सारे रोल्स तैयार कर लें. अब इन सभी रोल्स पर ब्रश से तेल लगा दें. मध्यम आंच पर दोनों तरफ से सुनहरा होने तक तलकर बटर पेपर पर निकाल लें. तैयार रोल्स को टोमेटो सास के साथ सर्व करें.
रिश्ते को निभाने के लिए प्यार जरूरी है या पैसे? कई लोग प्यार में अपनी सारी दौलत लुटा देते हैं तो कुछ लोग अपने प्यार को ही लूट लेते हैं. कई लोग मानते हैं कि जीवन में मजबूत रिश्तों के लिए प्यार जरूरी है जबकि सच यह है कि पैसे की वजह से कई सालों के रिश्ते टूट जाते हैं.
हाल ही में मिशिगन और टैक्सास यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने मिल कर रिश्ते निभाने के लिए प्यार या पैसा क्या ज्यादा जरूरी है इस विषय पर रिसर्च की. इस रिसर्च के अनुसार जो लोग पैसे को ज्यादा महत्त्व देते हैं यानी जो लोग अपनी कमाई पर फोकस रखते हैं वे रिश्तों को मजबूत नहीं बना पाते. ऐसे लोगों की अपने साथी से अच्छी बौंडिंग भी नहीं बन पाती. इस वजह से वे अपने पार्टनर से दूर हो जाते हैं.
इस स्टडी के लिए शोधकर्ताओं ने 434 ऐसे लोगों को शामिल किया जो शादीशुदा या रिलेशनशिप में थे और लंबे समय से एकदूसरे के साथ रह रहे थे. इस रिसर्च में इन जोड़ों से इस बारे में बात की गई कि ऐसी कौन सी बातें हैं जिन पर दोनों की नहीं बनती? ऐसा कबकब हुआ जब वे पार्टनर के साथ सहमत नहीं थे? इस स्टडी के लिए इन कपल्स को फाइनैंशियल सक्सैस के बारे में पढ़ने के लिए दिया गया.
शोध में यह बात सामने आई कि जो लोग पैसे पर ज्यादा ध्यान देते हैं वे अपने पार्टनर को कहीं न कहीं अनदेखा करते हैं यानी उन का फोकस साथी पर नहीं होता. इस वजह से दोनों में दूरी बन जाती है. दरअसल, जो लोग दिनभर पैसापैसा करते हैं वे अपने लाइफ पार्टनर से बात करते समय भी पैसे के हिसाबकिताब या सेविंग्स और इनवैस्टमैंट की ही बात उठाते हैं.
वैसे तो जिंदगी में पैसा भी जरूरी है लेकिन आप कमाते किस के लिए हैं? जब आप की जिंदगी में सुकून ही नहीं है, आप के पैसे की भूख मिटती नहीं है और इस आदत की वजह से आप का पार्टनर आप से चिढ़ने लगता है. आप दोनों में दूरी कब आ जाती है पता भी नहीं चलता. आप को पैसा चाहिए लेकिन आप के पार्टनर को आप का समय चाहिए. एक अच्छी जिंदगी के लिए आखिर कितना पैसा चाहिए होता है?
‘जिंदगी न मिलेगी दोबारा’ फिल्म में ऋतिक रोशन ऐसा ही एक किरदार निभाता है जिस में वह पैसों के लिए जी रहा है. उस का पार्टनर से रिश्ता टूट जाता है और तब कैटरीना उस की लाइफ में आती है. वह ऋतिक को पैसों के बजाय रिश्तों और सुकून के महत्त्व का एहसास दिलाती है.
पैसा या प्यार इस बारे में मिशिगन के असिस्टैंट प्रोफैसर और साइकोलौजिस्ट देबोराह ई वार्ड का कहना है कि आप का प्यार तब आप से दूर हो सकता है जब आप फाइनैंशियल सक्सैस को ही अपनी प्राथमिकता बना लेते हैं.
साधारण भाषा में कहा जाए तो जब प्यार से ज्यादा पैसे को अहमियत देते हैं तो रिश्ता तो वैसे ही टूट जाता है. कई बार देखने में आता है कि लोग पैसे के पीछे इतने पागल होते हैं कि अपने प्यार को ही छोड़ देते हैं.
कुछ लोग यह मानते हैं कि जो सुकून प्यार में है वह पैसे में कहां. आप पैसे से सबकुछ खरीद सकते हैं लेकिन प्यार नहीं. अगर आप का प्यार साथ है तो आप वह सब पा सकते हैं जो चाहते हैं. जबकि कुछ लोग यह मानते हैं कि जब पेट में भूख की आग लगती है तो इंसान सब से पहले प्यार को ही ठोकर मारता है. अगर जेब में पैसा हो तो आप की गर्लफ्रैंड बन सकती है. पैसे से कोई भी चीज खरीदी जा सकती है. वहीं कुछ लोग आज भी पैसे से ज्यादा प्यार और रिश्तों को तवज्जो देते हैं. दरअसल, कुछ लोग दिमाग से सोचते हैं तो कुछ दिल से.
हकीकत यही है कि प्यार जीवन में नई खुशियां ले कर आता है और जब आप दिल से रिश्ते निभाते हो तो जेब खाली हो या भरी इस का कोई फर्क नहीं पड़ता. प्यार से निभाए गए रिश्ते वर्षों बाद भी उतने ही जीवंत और मजबूत रहते हैं जबकि पैसों से खरीदे गए रिश्ते एक चोट से टूट जाते हैं.
2023 में आई विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म ‘12वीं फेल’ दरअसल गरीबी को मात दे कर आईपीएस अधिकारी बने मनोज कुमार शर्मा और आईआरएस अधिकारी श्रद्धा जोशी के प्यार और सफलता की कहानी है. इस फिल्म के बाद आईपीएस मनोज शर्मा और उन की पत्नी श्रद्धा जोशी की जोड़ी दुनियाभर में मशहूर हो गई. इन की प्रेम कहानी ऐसी ही है जिस में खाली जेब के बावजूद रिश्ते को बड़ी खूबसूरती से निभाया गया.
दरअसल, मनोज कुमार शर्मा और श्रद्धा जोशी के परिवारों की आर्थिक स्थिति में जमीनआसमान का फर्क था. मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के रहने वाले मनोज 12वीं क्लास में फेल हो गए थे लेकिन खुद पर भरोसा था. पढ़ाई के दौरान उन्हें जीवन में चल रहे कई संघर्षों से लड़ना पड़ा था. इन में सब से बड़ा संघर्ष था आर्थिक संकट. उस दौरान उन के सिर पर छत तक नहीं थी, जिस वजह से उन्हें भिखारियों के साथ भी सोना पड़ा था. मनोज शर्मा की स्थिति इतनी खराब थी कि उन्हें चाय की दुकान से ले कर आटा चक्की पर काम करना पड़ा था.
पैसे कमाने के लिए उन्होंने ग्वालियर में टैंपो चलाने से ले कर दिल्ली में लाइब्रेरी के चपरासी तक का काम किया. लाइब्रेरी में काम करते हुए मनोज ने कई मशहूर लेखकों की किताबें पढ़ीं और उन की लिखी बातों पर अमल किया.
इन की जिंदगी ऐसी फिल्म की तरह रही जिस में प्यार की भी अहम भूमिका थी.
दरअसल, मनोज अपनी ही क्लास की लड़की श्रद्धा पर दिल हार बैठे थे. उन के रास्ते पहली बार दिल्ली के मुखर्जी नगर में एक यूपीएससी कोचिंग सैंटर में मिले. मनोज शर्मा की स्थिति ऐसी थी कि वे मुश्किल से अपना गुजारा कर के दिल्ली में अपनी यूपीएससी की तैयारी के लिए रहते थे, जबकि श्रद्धा अल्मोड़ा के एक मध्यवर्गीय परिवार से आती थी.
मनोज शर्मा जानते थे कि श्रद्धा एक ‘टी लवर’ है. वह पहाड़ी इलाके की रहने वाली है और इसीलिए चाय में उस का दिल बस्ता है. अत: मनोज ने उस के लिए चाय बनानी सीखी और अकसर उस के लिए चाय बना कर उसे इंप्रैस करने की कोशिशें करते.
एक दिन उन्होंने अपने दिल की बात उस के सामने रख दी. उन्होंने उस से इस बात का वादा किया कि अगर वह उन का प्रेम प्रस्ताव स्वीकार कर लेती है और उन का साथ देती है तो वे पूरी दुनिया पलट देंगे. श्रद्धा जोशी ने आईपीएस मनोज शर्मा से न तो उन की हैसियत देख कर प्यार किया था और न ही उन का चेहरा देख कर. उन्हें मनोज शर्मा के गुणों से, उन की ईमानदारी से और उन के जनून से प्यार था. बाद में मनोज ने खूब मेहनत की और अपनी कही हर बात को सच कर दिखाया. यूपीएससी ऐग्जाम क्लीयर करने के बाद मनोज कुमार शर्मा 2005 बैच के महाराष्ट्र कैडर से आईपीएस बने.
मनोज और श्रद्धा की लव स्टोरी में कई बाधाएं थीं लेकिन उन सब के बावजूद इन दोनों ने कभी एकदूसरे का साथ नहीं छोड़ा जिस का परिणाम यह था कि दोनों के परिवार उन के रिश्ते के लिए मान गए और ये दोनों शादी के अटूट बंधन में बंध गए.
इस तरह यह एक छोटी सी प्रेम कहानी है जिस में नायक के पास पैसों का अभाव है फिर भी दिल से किए गए अपने छोटेछोटे प्रयासों के सहारे वह अपना प्यार उम्रभर के लिए पा लेता है. इसीलिए कहते हैं रिश्ता निभाने के लिए पैसे नहीं सच्ची भावना की जरूरत होती है.
प्यार क्या है? कुछ खूबसूरत पल साथ बिताना, किसी के लिए जबरदस्त आकर्षण महसूस करना, किसी पर पूरा भरोसा करना, उस का साथ देना, किसी भी हालत में उस का हाथ न छोड़ना, किसी को खुद से ज्यादा अहमियत देना, उस के साथ पूरी उम्र गुजारने के सपने देखना, उसे तकलीफ में देख कर दर्द महसूस करना, उसे हर मुसीबत से बचाना और उसे अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाना इन्हीं एहसासों को तो प्यार कहते हैं.
प्यार एक ऐसा एहसास है जिस से हर परिस्थिति में इंसान को सुकून पहुंचता है. प्यार में डूबे इंसान के लिए इस दुनिया में अगर कुछ हसीन और दिलचस्प होता है तो वह है सिर्फ उस का महबूब. इस की कैफियत ही ऐसी है जो हर किसी को दीवाना बना देती है. जब प्यार की ताकत आप के साथ है तो जमाने की परवाह या पैसों की कमी भी कोई खलल नहीं डाल पाती.
फिल्मी दुनिया में भी ऐसे कई सितारे हैं जिन्होंने जाति, धर्म या दौलत से परे हो कर बस रिश्ता निभाया. बौलीवुड के शाहरुख खान भी उन्हीं में से एक हैं. शाहरुख खान और गौरी खान की जोड़ी बौलीवुड इंडस्ट्री में सब से सफल जोडि़यों में एक है. उन्होंने अपने रिश्ते को निभाने के लिए कोई कोरकसर नहीं छोड़ी जबकि उस समय उन के पास इतनी दौलत भी नहीं थी. गौरी को अपनी जिंदगी में लाने के लिए शाहरुख को खूब पापड़ बेलने पड़े. शाहरुख ने गौरी से उस समय शादी की थी जब वे बौलीवुड इंडस्ट्री में नए आए थे और यहां अपने पांव जमाने के लिए संघर्ष कर रहे थे.
शाहरुख की फिल्म ‘ओम शांति ओम’ का एक डायलौग है कि अगर किसी चीज को पूरी शिद्दत के साथ चाहो तो पूरी कायनात आप को उस से मिलाने की कोशिश में लग जाती है. यही बात शाहरुख के निजी जीवन में भी लागू होती है. गौरी को अपना बनाने के लिए शाहरुख ने पूरी शिद्दत से कोशिश की थी. जब शाहरुख खान गौरी के प्यार में पड़े थे तो उन की उम्र 18 साल थी और गौरी की उम्र 14 साल थी.
बात 1984 की है जब दिल्ली के पंचशील नगर के एक क्लब में पार्टी चल रही थी, जिस में शाहरुख की नजर गौरी पर पड़ी. उस के बाद वे उन्हें बस देखते ही रह गए, गौरी को देखते ही पहली नजर में शाहरुख को प्यार हो गया. बाद में शाहरुख गौरी का फोन नंबर पाने में सफल हुए और दोनों के बीच बातचीत शुरू हुई.
दोनों एकदूसरे के करीब आने लगे. साथ में समय बिताना उन्हें अच्छा लगने लगा. उन्होंने लौंग ड्राइव पर भी जाना शुरू कर दिया. एक दिन शाहरुख ने गौरी को प्रपोज भी कर दिया. उस समय शाहरुख के पास न तो ज्यादा काम था और न ही पैसा. कहा जाता है कि शाहरुख ने अपनी शादी के वक्त जो शूट पहना था उसे उन्होंने अपनी फिल्म ‘राजू बन गया जैंटलमैन’ के सैट से भाड़े पर लिया था. शाहरुख ने एक इंटरव्यू में बताया था कि शादी के वक्त वे काफी गरीब थे. गौरी भी मिडल क्लास फैमिली से आती थीं. हर किसी की तरह उन्होंने भी गौरी से कई वादे किए और कहा कि शादी के बाद मैं उन्हें पैरिस घुमाने के लिए ले जाऊंगा और ऐफिल टावर दिखाऊंगा. लेकिन उस समय शाहरुख के पास उन्हें घुमाने के लिए इतने पैसे नहीं थे कि वे टिकट खरीद पाते. मगर जज्बात जरूर सच्चे थे. यही सचाई गौरी को पसंद थी.
जब दोनों एकदूसरे के प्यार में पड़े तब गौरी शाहरुख के फिल्मी कैरियर को ले कर थोड़ा असमंजस की स्थिति में थीं. साथ ही उन्हें शाहरुख पर भरोसा भी था कि वे सफलता की ऊंचाइयों पर जरूर पहुंचेंगे. शादी से पहले उन के रिश्ते को कई उतारचढ़ाव का भी सामना करना पड़ा लेकिन इस से उन के प्यार पर कोई असर नहीं पड़ा. दोनों का प्यार आज तक कम नहीं हुआ.
प्यार ऐसा ही होता है. प्यार की भाषा आंखों से पढ़ी जाती है, दिल की बढ़ती धड़कनों से महसूस की जाती है और अपनेपन के स्पर्श से इस की सचाई का विश्वास दिलाया जाता है. जबान या पैसों की जरूरत ही नहीं होती. जज्बात सीधा दिल तक पहुंचते हैं. प्यार का एहसास दिलाने के लिए इंसान का बहुत धनी होना जरूरी नहीं. कम पैसों में भी इस की गरमाहट महसूस हो जाती है.
जरूरी नहीं कि मैक्डोनाल्ड या कैफे कैफिटेरिया में बैठ कर 2-3 सौ की कौफी ही पी जाए. गली के कौर्नर में लगी रेहड़ी से 5-10 रुपए की चाय पीते हुए भी आंखों से वही प्यार बरसता है और भीगे मौसम में अपने प्रिय के साथ गरम चाय की चुसकियों में भी वही आनंद आता है. अगर आप अपने घर में हैं और आप का साथी अपने हाथों से गरम चाय और पकौड़े बना कर लाए तो उस में जो प्यार भरा स्वाद होगा वह बड़े से बड़े रैस्टोरैंट में हजारों खर्च कर के भी नहीं मिल सकता.
प्यार के लिए पैसे नहीं जज्बात अहम हैं. आप किसी के लिए क्या फील करते हैं, उस का कितना साथ देते हैं, उसे कैसे प्रोटैक्ट करते हैं, उसे कितना खुश रखते हैं, उस की छोटीबड़ी खुशियों की कितनी परवाह करते हैं, उस के बारे में कितना सोचते हैं. बस प्यार जताने का तरीका मालूम होना चाहिए.
चाय हो या कौफी अगर बिल आप दे रहे हैं, घर हो या होस्टल उन के लिए आप नाश्ता बना कर ला रहे हैं, भीड़ हो या तनहाई आप उन्हें सब से अलग महसूस करा रहे हैं, अमीर हों या गरीब आप अपना सबकुछ उन को देने को तैयार हैं, रात हो या दिन आप हर समय उन के लिए मौजूद हैं और जमाना हां कहे या न कहे आप उन के साथ ही जीने की तमन्ना रखते हैं तो फिर किसी को और क्या चाहिए? प्यार तो बस इन्हीं छोटीछोटी बातों में ?ालकता है.
जरा कल्पना कीजिए किसी छोटे से रिकशे या औटो में आप दोनों एकदूसरे का हाथ थामे बैठे बातें करने में मशगूल अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ रहे हों वह ज्यादा रोमांटिक है या फिर एक बड़ी सी गाड़ी में वह आगे और आप पीछे की सीट पर मोबाइल की स्क्रीन स्क्रौल कर रही हों वह रोमांटिक है? जाहिर है प्यार हो तो कोई भी सस्ता से सस्ता वाहन और कोई भी पथरीला रास्ता खूबसूरत हो जाता है. मगर इस के बिना केवल मन में सूनापन और आपस में बेगानापन ही आता है. भले ही आप के पास कितनी बड़ी गाड़ी क्यों न हो.
भावनात्मक जुड़ाव: भावनात्मक जुड़ाव बनाना एक नई भाषा सीखने जैसा है जिसे आप दिल की भाषा भी कह सकते हैं. एक मजबूत रिश्ते में पार्टनर एकदूसरे के साथ भावनात्मक रूप से जुड़े होते हैं. वे खुद को और ज्यादा सुरक्षित मानने लगते हैं जहां प्रत्येक व्यक्ति अपनी भावनाओं को खुल कर व्यक्त कर सकता है और इस बात पर उसे भरोसा होता है कि सामने वाला उसे सम?ोगा और स्वीकार करेगा. यह भावनात्मक जुड़ाव रिश्ते को पोषित करता है.
रिश्ते में विश्वास: 2 इंसान जब आपस में मिलते हैं तो उन के बीच विश्वास ही ऐसी डोर होती है जो उन को आपस में जोड़े रखती है. इसी से रिश्ते में भरोसा कायम होता है और यह एहसास होता है कि हालात कैसे भी हों सामने वाला बदलेगा नहीं. इस का संबंध पैसों से नहीं बल्कि केवल व्यक्ति की फितरत से होता है. ऐसे कितने ही अच्छे से अच्छे पैसे वाले लोग हैं जो रिश्तों में विश्वास कायम नहीं रख सके और उन्हें तलाक की त्रासदी से गुजरना पड़ा. सुपर स्टार ऋतिक को ही लीजिए कहीं न कहीं उन के और सुजैन के रिश्ते में विश्वास की ही कमी थी जो उन्हें अलग होना पड़ा.
आपसी समझ: परिस्थिति कैसी भी हो आप को अपने पार्टनर को सम?ाना पड़ेगा. उस के व्यवहार में कोई बदलाव आया है तो उस की कोई वजह होगी. वह आप से कुछ नहीं कह रहा है मगर कोई बात उस के मन में हो सकती है. उसे कोई परेशानी है तो आप ही अपनी सम?ा से उस का निदान खोज सकते हैं. जो इंसान दिल से रिश्ते निभाते हैं वे पार्टनर के कहने से पहले उस की दिल की बातें सम?ा लेते हैं.
कंप्रोमाइज करने का जज्बा: रिश्ते तभी जिंदगीभर चलते हैं जब पार्टनर एकदूसरे के लिए कंप्रोमाइज करने से हिचकते नहीं. कई मौके ऐसे आते हैं जब आप को सम?ाते करने होते हैं. मसलन, प्रैगनैंसी के समय और उस के बाद पत्नी जौब छोड़ती है या छुट्टी लेती है. उस समय पति भी कंप्रोमाइज करते हुए 2-3 महीने की छुट्टी ले सकते हैं ताकि पत्नी को जौब न छोड़नी पड़े. इसी तरह अगर किसी पार्टनर का रिश्तेदार बीमार है तो दूसरे को इस दरम्यान सम?ाते करने चाहिए. पार्टनर के साथ सही रिश्ता बनाए रखने के लिए उस की पसंदनापसंद के अनुसार खुद को ढालना भी सम?ाता ही है.
हर हालत में मुहब्बत: जिंदगी में कब क्या हो इस का भरोसा नहीं होता. पार्टनर बीमार हो जाए, चोट लगने से चेहरा खराब हो जाए, उसकी नौकरी छूट जाए या कोई और समस्या आ जाए तो ऐसे में पार्टनर के साथ हिम्मत से खड़े रहने और साथ निभाने को प्यार कहते हैं. हालात कुछ भी हों मुहब्बत कम न हो. तभी पार्टनर भी आप के साथ उम्रभर के मजबूत रिश्ते से बंध जाएगा. बुरे दिनों में दिया गया यह साथ अच्छे दिनों में रिश्ते को अधिक सुकून और कौन्फिडैंस देता है.
दूरी से भी प्यार में कमी नहीं: कई दफा जौब के सिलसिले में पार्टनर्स के बीच दूरी आ जाती है. यह भी संभव है कि उन्हें अलगअलग शहरों में रहना पड़े. ऐसे में भी प्यार की कशिश कम न हो इस के लिए लगातार संपर्क में रहना और बेवफाई का विचार भी दिल में नहीं आने देना चाहिए क्योंकि आप दूर हों या पास कोई बात छिपती नहीं है.आजकल वैसे भी फोन और व्हाट्सऐप की दुनिया में कनैक्टेड रहना बहुत आसान है.
एक जनून जरूरी: प्यार जनून का ही दूसरा नाम है. इसलिए रिश्ते निभाने हैं तो अपनी चाहत को जनून में तबदील करें और पार्टनर की खातिर किसी से भी लड़ने को तैयार रहें. हमेशा अपने रिश्ते में जोश को जगाए रखने की जरूरत है. दीर्घकालिक रिश्ते ऐसे ही नहीं बन जाते. इस के लिए जनून, उत्साह और समर्पण की आवश्यकता होती है.
एक ही मंजिल हो: जब 2 लोग जीवन में एक ही चीज चाहते हैं यानी उन के जीने का मकसद और मंजिल समान होती है तो रिश्ते निभाने आसान हो जाते हैं. उन की सोच और चाहतें समान होती हैं.
सवाल
मैं 23 साल की छात्रा हूं और कालेज में पढ़ती हूं. मौनसून के मौसम में मैं अकसर बीमार हो जाती हूं. इस से मेरी पढ़ाई प्रभावित होती है. इस दौरान मुझे अपना स्वास्थ्य ठीक रखने के लिए क्या करना चाहिए?
जवाब
मौनसून का मौसम अपने साथ कई तरह के कीटाणु ले कर आता है. बारिश के महीनों में फ्लू जैसे वायुजनित संक्रमण, टायफाइड जैसे भोजन जनित संक्रमण और डेंगू और मलेरिया जैसी मच्छर जनित बीमारियों की घटनाएं बढ़ जाती हैं. अगर आप की रोगप्रतिरोधक क्षमता मजबूत है तो आप इन संक्रमणों से लड़ सकती हैं और बारबार बीमार होने से बच सकती हैं. स्वस्थ आहार, नियमित व्यायाम और पर्याप्त नींद आप की रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करते हैं. कई बार हमारा आहार अकेले सभी आवश्यक पोषक तत्त्व को प्रदान नहीं करता है, इसलिए हमें अपने आहार में उच्च गुणवत्ता वाले मल्टीविटामिन पूरक शामिल करने की आवश्यकता होती है. ये किसी भी पोषण संबंधी कमी को दूर करने और आप की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में मदद करते हैं. विटामिन सी, डी और जिंक जैसे विटामिनों वाले सप्लिमैंट्स खासकर रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करते हैं. मौनसून के मौसम में संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए बारबार हाथ धोना, उबला हुआ या फिल्टर किया हुआ पानी पीना और आसपास साफसफाई भी रखना आवश्यक है.
बारिश का मौसम पूरे शबाब पर था. पार्थ और पूर्वा स्कूल के लिए निकलने वाले थे. मां ने चेतावनी दी, ‘‘बारिश का मौसम है, स्कूल संभल कर जाना. पूरी रात जम कर बारिश हुई है. अगर बारिश ज्यादा हुई तो स्कूल में ही रुक जाना. हमेशा की तरह अकेले मत आना. मैं तुम्हें लेने आऊंगी.’’
‘‘अच्छा, मां, हम सावधानी बरतेंगे,’’ पार्थ और पूर्वा बोले. दोनों ने मां को अलविदा कहा. वे स्कूल जाने लगे.
शाम के 6 बजने वाले थे. स्कूल की छुट्टी का समय हो चुका था. पार्थ और पूर्वा ग्राउंड फ्लोर पर मिले. तेज हवा चलने लगी. अचानक तूफान आया और तेज बारिश होने लगी.
पार्थ और पूर्वा ने अपनेअपने रेनकोट पहने और छतरियां खोलीं, जो हवा में कभी दाएं तो कभी बाएं करने लगीं.
पूर्वा दीदी, बहुत तेज बारिश हो रही है. तूफान भी बहुत तेजी से आया है. पेड़ हिल रहे हैं. स्कूल परिसर में पहले ही इतना पानी भर गया है. हम अब घर कैसे जाएंगे?’’ चिंतित पार्थ ने पूछा.
‘‘हमें मां ने कहा था कि बारिश आई तो वे हमें स्कूल लेने आएंगी, लेकिन यहां भी हम सुरक्षित नहीं हैं. यहां बहुत पानी जमा हो रहा है, हमारी क्लास जल्दी भर जाएगी. बिजली भी चमक रही है. मुझे इस से डर लगता है. पेड़ भी गिर सकते हैं,’’ पूर्वा रोने लगी.
अचानक पार्थ को याद आया, ‘‘मेरी कक्षा का आर्य स्कूल के सामने वाली बिल्डिंग में ही रहता है, लेकिन हम उस के घर में नहीं ठहर सकते?’’
‘‘लेकिन क्यों?’’ पूर्वा ने पूछा.
‘‘पिछले महीने जब स्कूल ग्राउंड में हम फुटबौल मैच खेल रहे थे, तब उस ने मुझे मैच के दौरान धक्का दिया था, जब मैं गोल करने वाला था और चीटिंग कर के मैच जीता था. तब मैच के बाद हम बहुत झगड़े. अब हम एकदूसरे से बात नहीं करते हैं,’’ उस खराब समय को याद करते हुए पार्थ ने कहा.
‘‘लेकिन अभी हम उस बारे में नहीं सोच सकते. हमारा इस समय किसी सुरक्षित जगह पर जाना जरूरी है. हमें जल्दी से उस के घर जाना चाहिए,’’ मौसम से डरते हुए पूर्वा ने कहा.
‘‘वह तीसरी मंजिल पर रहता है, चलो, हम दोनों चलते हैं,’’ पार्थ और पूर्वा दोनों आर्य के घर पहुंचे.
पूर्वा दीदी ने आर्य के घर का दरवाजा खटखटाया. आर्य की मां ने दरवाजा खोला. पूर्वा दीदी आर्य की मां से बोली, ‘‘आंटी, हम दोनों आर्य के स्कूल में पढ़ते हैं. मेरा भाई पार्थ आर्य की कक्षा में ही है और उस का सहपाठी है. हमारा घर बहुत दूर है. क्या हम बारिश रुकने तक आप के घर में ठहर सकते हैं?’’
आर्य की मां ने उन का स्वागत किया और आर्य को बुलाया. पार्थ और पूर्वा आर्य के घर पर आ कर बैठ गए. पूर्वा ने चुप्पी तोड़ी और कहा, ‘‘आंटी, आप मां को फोन कर के बता सकती हैं कि हम आप के घर में सुरक्षित हैं, उन का नंबर ये है.’’
आर्य की मम्मी ने पूर्वा की मम्मी को फोन कर के सारी हकीकत बताई. मां से बात करने के बाद आंटी ने कहा, ‘‘बारिश और तूफान रुकने के बाद तुम्हारी मां हमारे घर तुम दोनों को लेने आएंगी, लेकिन आर्य, तुम पार्थ से बात क्यों नहीं कर रहे हो? वह तुम्हारी कक्षा में पढ़ता है न?’’ दोनों में से किसी ने भी कुछ नहीं कहा.
मां की बातें सुन कर पूर्वा ने आर्य और पार्थ में हुए झगड़े के बारे में बताया.
‘‘आर्य, तुम ने पार्थ को गिरा कर फुटबौल मैच जीता है,’’ उन्होंने पूछा.
आर्य शर्म से नीचे देखने लगा. वह जानता था कि उस ने गलत किया.
मां की बातें सुन कर आर्य ने पार्थ से कहा, ‘‘सौरी पार्थ, हम दोनों फिर से दोस्त हैं.’’
‘‘मैं भी तुम्हें सौरी कहता हूं. चलो, आज से मैं तुम्हारा दोस्त हूं,’’ पार्थ ने कहा.
आर्य की मां उन दोनों में फिर से दोस्ती को देख कर खुश थीं.
रात के 9 बजने को आए. बारिश थोड़ी रुक गई थी. पार्थ, आर्य और पूर्वा रात का खाना खाने लगे. कुछ ही देर में उन की मां भी वहां पहुंच गईं.
उन्होंने उन्हें खाते हुए देखा और कहा, ‘‘आर्य की मां, बच्चों की देखभाल के लिए मैं आप की आभारी हूं, आप ने बच्चों को सहारा दिया.’’
तब आर्य की मां बोलीं, ‘‘कोई बात नहीं, वास्तव में मौसम काफी खराब हो गया था. अच्छी बात यह है कि आर्य और पार्थ फिर से दोस्त बन गए हैं.’’
पार्थ की मां उलझन में थीं और बोलीं, ‘‘तुम्हारा मतलब मैं कुछ समझी नहीं,’’ आर्य की मां ने उन्हें सारी बातें समझाईं.
पार्थ की मां ने जवाब दिया, ‘‘ इस स्थिति को हल करने के लिए धन्यवाद,’’ बच्चों ने खाना खत्म किया और दोबारा उन्हें धन्यवाद दिया.
अगले दिन स्कूल में आर्य और पार्थ एकसाथ बैठने लगे. वह एकसाथ टिफिन भी खाते थे और खेलते भी थे. इस बारिश की घटना से आर्य और पार्थ को एक नई सीख मिली थी.
लेखक- पूनम (कतरियार)
मंजू और श्याम की शादी को 4 साल हो गए थे. जैसा नाम, वैसा रूप. लंबीचौड़ी कदकाठी, पक्के रंग का श्याम पुलिस महकमे की रोबदार नौकरी के चलते मंजू के मातापिता व परिवार को एक नजर में पसंद आ गया. इस तरह वह सुंदर, सुशील व शालीन मंजू का पति बन गया. आम भारतीय पत्नियों की तरह मंजू भी दिल की गहराई से श्याम से प्यार करती थी.
शादी के शुरुआती दिन कपूर की तरह उड़ गए. तकरीबन 2 साल गुजर गए, लेकिन मंजू की गोद हरी न हुई. अब तो घर-परिवार के लोग इशारों-इशारों में पूछने भी लगे. मंजू खुद भी चिंतित रहने लगी, पर श्याम बेफिक्र था.
मंजू ने जब कभी बात छेड़ी भी तो श्याम हंसी में टाल गया. एक दिन तो हद हो गई. उस ने बड़ी बेरहमी से कहा, ‘‘कहां बच्चे के झमेले में डालना चाहती हो? जिंदगी में ऐश करने दो.’’
मंजू को बुरा तो बहुत लगा, पर श्याम के कड़े तेवर देख वह डर गई और चुप हो गई.
शुरू से ही मंजू ने देखा कि श्याम के दफ्तर आनेजाने का कोई तय समय नहीं था. कभीकभी तो वह दूसरे दिन ही घर आता था. खैर, पुलिस की नौकरी में तो यह सब लगा रहता है. पर इधर कुछ अजीब बात हुई. एक दिन श्याम के बैग से ढेर सारी चौकलेट गिरीं. यह देख मंजू हैरान रह गई.
जब मंजू ने श्याम से पूछा तो पहले तो वह गुस्सा हो गया, फिर थोड़ा शांत होते ही बात बदल दी, ‘‘तुम्हारे लिए ही तो लाया हूं.’’
‘लेकिन मुझे तो चौकलेट पसंद ही नहीं हैं और फिर इतनी सारी…’ मन ही मन मंजू ने सोचा. कहीं श्याम गुस्सा न हो जाए, इस डर से वह कुछ नहीं बोली.
डोरबैल बजने से मंजू की नींद
टूटी. रात के ढाई बज रहे थे. नशे में धुत्त श्याम घर आया था. आते ही वह बिस्तर पर लुढ़क गया. शराब की बदबू पूरे घर में फैल गई. मंजू की नींद उचट गई. श्याम के मोबाइल फोन पर लगातार मैसेज आ रहे थे.
‘चलो, मैसेज की टोन औफ कर दूं,’ यह सोचते हुए मंजू ने हाथ में मोबाइल फोन लिया ही था कि उस की नजर एक मैसेज पर पड़ी. कोई तसवीर लग रही थी. उस ने मैसेज खोल लिया. किसी गरीब जवान होती लड़की की तसवीर थी. तसवीर के नीचे ‘40,000’ लिखा था.
मंजू का सिर भन्ना गया. वह खुद को रोक नहीं पाई, उस ने सारे मैसेज पढ़ डाले. जिस पति और उस की नौकरी को ले कर वह इतनी समर्पित थी, वह इतना गिरा हुआ निकला. वह अनाथालय की बच्चियों की दलाली करता था.
मंजू खुद को लुटा सा महसूस कर रही थी. उस का पति बड़ेबड़े नेताओं और अनाथालय संचालकों के साथ मिल कर गांवदेहात की गरीब बच्चियों को टौफीचौकलेट दे कर या फिर डराधमका कर शहर के अनाथालय में भरती कराता था और सैक्स रैकेट चलाता था.
प्रेम में अंधी मंजू पति के ऐब को नजरअंदाज करती रही. काश, उसी दिन चौकलेट वाली बात की तह में जाती, शराब पीने पर सवाल उठाती, उस के देरसवेर घर आने पर पूछताछ करती. नहीं, अब नहीं. अब वह अपनी गलती सुधारेगी.
रोजमर्रा की तरह जब श्याम नाश्ता कर के दफ्तर के लिए तैयार होने लगा, तो मंजू ने बात छेड़ी. पहले तो श्याम हैरान रह गया, फिर दरिंदे की तरह मंजू पर उबल पड़ा, ‘‘तुम ने मेरे मैसेज को पढ़ा क्यों? अब तुम सब
जान चुकी हो तो अपना मुंह बंद रखना. जैसा चल रहा है चलने दो, वरना तेरी छोटी बहन के साथ भी कुछ गंदा हो सकता है.’’
मंजू को पीटने के बाद धमकी दे कर श्याम घर से निकल गया.
डर, दर्द और बेइज्जती से मंजू बुरी तरह कांप रही थी. सिर से खून बह रहा था. चेहरा बुरी तरह सूजा हुआ था.
श्याम का भयावह चेहरा अभी भी मंजू के दिलोदिमाग पर छाया हुआ था. बारबार उसे अपनी छोटी बहन अंजू का खयाल आ रहा था जो दूसरे शहर के होस्टल में रह कर पढ़ाई कर रही थी.
गरमी और उमस से भरी वह रात भारी थी. बिजली भी कब से गायब थी. इनवर्टर की बैटरी भी जवाब देने लगी थी. इन बाहरी समस्याओं से ज्यादा मंजू अपने भीतर की उथलपुथल से बेचैन थी. क्या करे? औरतों की पहली प्राथमिकता घर की शांति होती है. घर की सुखशांति के लिए चुप रहना ही बेहतर होगा. जैसा चल रहा है, चलने दो… नहीं, दिल इस बात के लिए राजी नहीं था. जिंदगी में ऐसा बुरा दिन आएगा, सोचा न था. कहां तो औलाद की तड़प थी और अब पति से ही नफरत हो रही थी. अभी तक जालिम घर भी नहीं आया, फोन तक नहीं किया. जरूरत भी क्या है?
‘केयरिंग हसबैंड’ का मुलम्मा उतर चुका था. उस की कलई खुल चुकी थी. नहीं आए, वही अच्छा. कहीं फिर पीटा तो? एक बार फिर डर व दर्द से वह बिलबिला उठी. तभी बिजली आ गई. पंखाकूलर चलने लगे तो मंजू को थोड़ी राहत मिली. वह निढाल सी पड़ी सो गई.
सुबह जब नींद खुली तो मंजू का मन एकदम शांत था. एक बार फिर पिछले 24 घंटे के घटनाक्रम पर ध्यान गया. लगा कि अब तक वह जिस श्याम को जानती थी, जिस के प्यार को खो देने से डरती थी, वह तो कभी जिंदगी में था ही नहीं. वह एक शातिर अपराधी निकला, जो उसे और सारे समाज को वरदी की आड़ में धोखा दे रहा था.
एक नई हिम्मत के साथ मंजू ने अपना मोबाइल फोन उठाया. सामने ही श्याम का मैसेज था, ‘घर आने में मुझे 2-3 दिन लग जाएंगे.’
मंजू का मन नफरत से भर गया. वह मोबाइल फोन पर गूगल सर्च करने लगी. थोड़ी ही देर के बाद मंजू फोन पर कह रही थी, ‘‘हैलो, महिला आयोग…’’
लेखक- ज्योत्स्ना प्रवाह
स्त्रियां अधिक यथार्थवादी होती हैं. जमीन व आसमान के संबंध में सब के विचार भिन्नभिन्न होते हैं परंतु इस संदर्भ में पुरुषों के और स्त्रियों के विचार में बड़ा अंतर होता है. जब कुछ नहीं सूझता तो किसी सशक्त और धैर्य देने वाले विचार को पाने के लिए पुरुष नीले आकाश की ओर देखता है, परंतु ऐसे समय में स्त्रियां सिर झुका कर धरती की ओर देखती हैं, विचारों में यह मूल अंतर है. पुरुष सदैव अव्यक्त की ओर, स्त्री सदैव व्यक्त की ओर आकर्षित होती है. पुरुष का आदर्श है आकाश, स्त्री का धरती. शायद इला को भी यथार्थ का बोध हो गया था. जीवन में जब जीवन को देखने या जीवन को समझने के लिए कुछ भी न बचा हो और जीवन की सांसें चल रही हों, ऐसे व्यक्ति की वेदना कितनी असह्य होगी, महज यह अनुमान लगाया जा सकता है. शायद इसीलिए उस ने आग और इलाज कराने से साफ मना कर दिया था. कैंसर की आखिरी स्टेज थी.
‘‘नहीं, अब और नहीं, मुझे यहीं घर पर तुम सब के बीच चैन से मरने दो. इतनी तकलीफें झेल कर अब मैं इस शरीर की और छीछालेदर नहीं कराना चाहती,’’ इला ने अपना निर्णय सुना दिया. जिद्दी तो वह थी ही, मेरी तो वैसे भी उस के सामने कभी नहीं चली. अब तो शिबू की भी उस ने नहीं सुनी. ‘‘नहीं बेटा, अब मुझे इसी घर में अपने बिस्तर पर ही पड़ा रहने दो. जीवन जैसेतैसे कट गया, अब आराम से मरने दो बेटा. सब सुख देख लिया, नातीपोता, तुम सब का पारिवारिक सुख…बस, अब तो यही इच्छा है कि सब भरापूरा देखतेदेखते आंखें मूंद लूं,’’ इला ने शिबू का गाल सहलाते हुए कहा और मुसकरा दी. कहीं कोई शिकायत, कोई क्षोभ नहीं. पूर्णत्वबोध भरे आनंदित क्षण को नापा नहीं जा सकता. वह परमाणु सा हो कर भी अनंत विस्तारवान है. पूरी तरह संतुष्टि और पारदर्शिता झलक रही थी उस के कथन में. मौत सिरहाने खड़ी हो तो इंसान बहुत उदार दिलवाला हो जाता है क्या? क्या चलाचली की बेला में वह सब को माफ करता जाता है? पता नहीं. शिखा भी पिछले एक हफ्ते से मां को मनाने की बहुत कोशिश करती रही, फिर हार कर वापस पति व बच्चों के पास कानपुर लौट गई. शिबू की छुट्टियां खत्म हो रही थीं. आंखों में आंसू लिए वह भी मां का माथा चूम कर वापस जाने लगा.
‘‘बस बेटा, पापा का फोन जाए तो फौरन आ जाना. मैं तुम्हारे और पापा के कंधों पर ही श्मशान जाना चाहती हूं.’’ एअरपोर्ट के रास्ते में शिबू बेहद खामोश रहा. उस की आंखें बारबार भर आती थीं. वह मां का दुलारा था. शिखा से 5 साल छोटा. मां की जरूरत से ज्यादा देखभाल और लाड़प्यार ने उसे बेहद नाजुक और भावनात्मक रूप से कमजोर बना दिया था. शिखा जितनी मुखर और आत्मविश्वासी थी वह उतना ही दब्बू और मासूम था. जब भी इला से कोई बात मनवानी होती थी, तो मैं शिबू को ही हथियार बनाता. वह कहीं न कहीं इस बात से भी आहत था कि मां ने उस की भी बात नहीं मानी या शायद मां के दूर होने का गम उसे ज्यादा साल रहा था.
आजकल के बच्चे काफी संवेदनशील हो चुके हैं, इस सामान्य सोच से मैं भी इत्तफाक रखता था. हमारी पीढ़ी ज्यादा भावुक थी लेकिन अपने बच्चों को देख कर लगता है कि शायद मैं गलत हूं. ऐसा नहीं कि उम्र के साथ परिपक्व हो कर भी मैं पक्का घाघ हो गया हूं. जब अम्मा खत्म हुई थीं तो शायद मैं भी शिबू की ही उम्र का रहा होऊंगा. मैं तो उन की मृत्यु के 2 दिन बाद ही घर पहुंच पाया था. घर में बाबूजी व बड़े भैया ने सब संभाल लिया था. दोनों बहनें भी पहुंच गई थीं. सिर्फ मैं ही अम्मा को कंधा न दे सका. पर इतने संवेदनशील मुद्दे को भी मैं ने बहुत सहज और सामान्य रूप से लिया. बस, रात में ट्रेन की बर्थ पर लेटे हुए अम्मा के साथ बिताए तमाम पल छनछन कर दिमाग में घुमड़ते रहे. आंखें छलछला जाती थीं, इस से ज्यादा कुछ नहीं. फिर भी आज बच्चों की अपनी मां के प्रति इतनी तड़प और दर्द देख कर मैं अपनी प्रतिक्रियाओं को अपने तरीके से सही ठहरा कर लेता हूं. असल में अम्मा के 4 बच्चों में से मेरे हिस्से में उन के प्यार व परवरिश का चौथा हिस्सा ही तो आया होगा. इसी अनुपात में मेरा भी उन के प्रति प्यार व परवा का अनुपात एकचौथाई रहा होगा, और क्या. लगभग एक हफ्ते से मैं शिबू को बराबर देख रहा था. वह पूरे समय इला के आसपास ही बना रहता था. यही तो इला जीवनभर चाहती रही थी. शिबू की पत्नी सीमा जब सालभर के बच्चे से परेशान हो कर उस की गोद में उसे डालना चाहती तो वह खीझ उठता, ‘प्लीज सीमा, इसे अभी संभालो, मां को दवा देनी है, उन की कीमो की रिपोर्ट पर डाक्टर से बात करनी है.’
वाकई इला है बहुत अच्छी. वह अकसर फूलती भी रहती, ‘मैं तो राजरानी हूं. राजयोग ले कर जन्मी हूं.’ मैं उस के बचकानेपन पर हंसता. अगर मैं उस की दबंगई और दादागीरी इतनी शराफत और शालीनता से बरदाश्त न करता तो उस का राजयोग जाता पानी भरने. जैसे वही एक प्रज्ञावती है, बाकी सारी दुनिया तो घास खाती है. ठीक है कि घरपरिवार और बच्चों की जिम्मेदारी उस ने बहुत ईमानदारी और मेहनत से निभाई है, ससुराल में भी सब से अच्छा व्यवहार रखा लेकिन इन सब के पीछे यदि मेरा मौरल सपोर्ट न होता तो क्या कुछ खाक कर पाती वह? मौरल सपोर्ट शायद उपयुक्त शब्द नहीं है. फिर भी अगर मैं हमेशा उस की तानाशाही के आगे समर्पण न करता रहता और दूसरे पतियों की तरह उस पर हुक्म गांठता, उसे सताता तो निकल गई होती उस की सारी हेकड़ी. लगभग 45 वर्ष के वैवाहिक जीवन में ऐसे कई मौके आए जब वह महीनों बिसूरती रही, ‘मेरा तो भविष्य बरबाद हो गया जो तुम्हारे पल्ले बांध दी गई, कभी विचार नहीं मिले, कोई सुख नहीं मिला, बच्चों की खातिर घर में पड़ी हूं वरना कब का जहर खा लेती.’ बीच में तो वह 3-4 बार महीनों के लिए गहरे अवसाद में जा चुकी है. हालांकि इधर जब से उस ने कीमोथैरेपी न कराने का निश्चय कर लिया था, और आराम से घर पर रह कर मृत्यु का स्वागत करना तय किया था, तब से वह मुझे बेहद फिट दिखाई दे रही थी. उस की की धाकड़ काया जरूर सिकुड़ के बच्चों जैसी हो गई थी लेकिन उस के दिमाग और जबान में उतनी ही तेजी थी. उस की याददाश्त तो वैसे भी गजब की थी, इस समय वह कुछ ज्यादा ही अतीतजीवी हो गई थी. उम्र और समय की भारीभरकम शिलाओं को ढकेलती अपनी यादों के तहखाने में से वह न जाने कौनकौन सी तसवीरें निकाल कर अकसर बच्चों को दिखलाने लगती थी.
उस की नींद बहुत कम हो गई थी, उस के सिर पर हाथ रखा तो उस ने झट से पलकें खोल दीं. दोनों कोरों से दो बूंद आंसू छलक पड़े.
‘‘शिबू के लिए काजू की बरफी खरीदी थी?’’
‘‘हां भई, मठरियां भी रखवा दी थीं.’’ मैं ने उस का सिर सहलाते हुए कहा तो वह आश्वस्त हो गई.
‘‘नर्स के आने में अभी काफी समय है न?’’ उस की नजरें मुझ पर ठहरी थीं.
‘‘हां, क्यों? कोई जरूरत हो तो मुझे बताओ, मैं हूं न.’’
‘‘नहीं, जरूरत नहीं है. बस, जरा दरवाजा बंद कर के तुम मेरे सिरहाने आ कर बैठो,’’ उस ने मेरा हाथ अपने सिर पर रख लिया, ‘‘मरने वाले के सिर पर हाथ रख कर झूठ नहीं बोलते. सच बताओ, रानी भाभी से तुम्हारे संबंध कहां तक थे?’’ मुझे करंट लगा. सिर से हाथ खींच लिया. सोते हुए ज्वालामुखी में प्रवेश करने से पहले उस के ताप को नापने और उस की विनाशक शक्ति का अंदाज लगाने की सही प्रतिभा हर किसी में नहीं होती, ‘‘पागल हो गई हो क्या? अब इस समय तुम्हें ये सब क्या सूझ रहा है?’’
‘‘जब नाखून बढ़ जाते हैं तो नाखून ही काटे जाते हैं, उंगलियां नहीं. सो, अगर रिश्ते में दरार आए तो दरार को मिटाओ, न कि रिश्ते को. यही सोच कर चुप थी अभी तक, पर अब सच जानना चाहती हूं. सूझ तो बरसों से रहा है बल्कि सुलग रहा है, लेकिन अभी तक मैं ने खुद को भ्रम का हवाला दे कर बहलाए रखा. बस, अब जातेजाते सच जानना चाहती हूं.’’
‘‘जब अभी तक बहलाया है तो थोड़े दिन और बहलाओ. वहां ऊपर पहुंच कर सब सचझूठ का हिसाब कर लेना,’’ मैं ने छत की तरफ उंगली दिखा कर कहा. मेरी खीज का उस पर कोई असर नहीं था.
‘‘और वह विभा, जिसे तुम ने कथित रूप से घर के नीचे वाले कमरे में शरण दी थी, उस से क्या तुम्हारा देह का भी रिश्ता था?’’
‘‘छि:, तुम सठिया गई हो क्या? ये क्या अनापशनाप बक रही हो? कोई जरूरत हो तो बताओ वरना मैं चला.’’ मैं उन आंखों का सामना नहीं करना चाहता था. क्षोभ और अपमान से तिलमिला कर मैं अपने कमरे में आ गया. शिबू ने जातेजाते कहा था, मां को एक पल के लिए भी अकेला मत छोडि़एगा. ऐसा नहीं है कि ये सब बातें मैं ने पहली बार उस की जबान से सुनी हैं, पहले भी ऐसा सुना है. मुझे लगा था कि वह अब सब भूलभाल गई होगी. इतने लंबे अंतराल में बेहद संजीदगी से घरगृहस्थी के प्रति समर्पित इला ने कभी इशारे से भी कुछ जाहिर नहीं किया. हद हो गई, ऐसी बीमारी और तकलीफ में भी खुराफाती दिमाग कितना तेज काम कर रहा था. मेरे मन के सघन आकाश से विगत जीवन की स्मृतियों की वर्षा अनेक धाराओं में होने लगी. कभीकभी तो ये ऐसी मूसलाधार होती हैं कि उस के निरंतर आघातों से मेरा शरीर कहीं छलनीछलनी न हो जाए, ऐसा संदेह मुझ को होने लगता है. परंतु मन विचित्र होता है, उसे जितना बांधने का प्रयत्न किया जाए वह उतना ही स्वच्छंद होता जाता है. जो वक्त बीत गया वह मुंह से निकले हुए शब्द की तरह कभी लौट कर वापस नहीं आता लेकिन उस की स्मृतियां मन पर ज्यों की त्यों अंकित रह जाती हैं.
रानी भाभी की नाजोअदा का जादू मेरे ही सिर चढ़ा था. 17-18 की अल्हड़ और नाजुक उम्र में मैं उन के रूप का गुलाम बन गया था. भैया की अनुपस्थिति में भाभी के दिल लगाए रखने का जिम्मा मेरा था. बड़े घर की लड़की के लिए इस घर में एक मैं ही था जिस से वे अपने दिल का हाल कहतीं. भाभी थीं त्रियाचरित्र की खूब मंजी खिलाड़ी, अम्मा तो कई बार भाभी पर खूब नाराज भी हुई थीं, मुझे भी कस कर लताड़ा तो मैं भी अपराधबोध से भर उठा था. कालेज में ऐडमिशन लेने के बाद तो मैं पक्का ढीठ हो गया. अकसर भाभी के साथ रिश्ते का फायदा उठाते हुए पिक्चर और घूमना चलता रहा. इला जब ब्याह कर घर आई तो पासपड़ोस की तमाम महिलाओं ने उसे गुपचुप कुछ खबरदार कर दिया था. साधारण रूपरंग वाली इला भाभी के भड़कीले सौंदर्य पर भड़की थी या सुनीसुनाई बातों पर, काफी दिन तो मुझे अपनी कैफियत देते ही बीते, फिर वह आश्चर्यजनक रूप से बड़ी आसानी से आश्वस्त हो गई थी. वह अपने वैवाहिक जीवन का शुभारंभ बड़ी सकारात्मक सोच के साथ करना चाहती थी या कोई और वजह थी, पता नहीं.
भाभी जब भी घर आतीं तो इला एकदम चौकन्नी रहती. उम्र की ढलान पर पहुंच रही भाभी के लटकेझटके अभी भी एकदम यौवन जैसे ही थे. रंभाउर्वशी के जींस ले कर अवतरित हुई थीं वे या उन के तलवों में साक्षात पद्मिनी के लक्षण थे, पता नहीं? उन की मत्स्यगंधा देह में एक ऐसा नशा था जो किसी भी योगी का तप भंग कर सकता था. फिर मैं तो कुछ ज्यादा ही अदना सा इंसान था. दूसरे दिन नर्स के जाते ही वह फिर आहऊह कर के बैठने की कोशिश करने लगी. मैं ने तकिया पीछे लगा दिया.
‘‘कोई तुम्हारी पसंद की सीडी लगा दूं? अच्छा लगेगा,’’ मैं सीडी निकालने लगा.
‘‘रहने दो, अब तो कुछ दिनों के बाद सब अच्छा और शांति ही शांति है, परम शांति. तुम यहां आओ, मेरे पास आ कर बैठो,’’ वह फिर से मुझे कठघरे में खड़ा होने का शाही फरमान सुना रही थी.
‘‘ठीक है, मैं यहीं बैठा हूं. बोलो, कुछ चाहिए?’’
‘‘हां, सचसच बताओ, जब तुम विभा को दुखियारी समझ कर घर ले कर आए थे और नीचे बेसमैंट में उस के रहनेखाने की व्यवस्था की थी, उस से तुम्हारा संबंध कब बन गया था और कहां तक था?’’
‘‘फिर वही बात? आखिरी समय में इंसान बीती बातों को भूल जाता है और तुम.’’
‘‘मैं ने तो पूरी जिंदगी भुलाने में ही बिताई है,’’ वह आंखें बंद कर के हांफने लगी. फिर वह जैसे खुद से ही बात करने लगी थी, ‘‘समझौता. कितना मामूली शब्द है मगर कितना बड़ा तीर है जो जीवन को चुभ जाता है तो फांस का अनदेखा घाव सा टीसता है. अब थक चुकी हूं जीवन जीने से और जीवन जीने के समझौते से भी. जिन रिश्तों में सब से ज्यादा गहराई होती है वही रिश्ते मुझे सतही मिले. जिस तरह समुद्र की अथाह गहराई में तमाम रत्न छिपे होते हैं, साथ में कई जीवजंतु भी रहते हैं, उसी तरह मेरे भीतर भी भावनाओं के बेशकीमती मोती थे तो कुछ बुराइयों जैसे जीवजंतु भी. कोई ऐसा गोताखोर नहीं था जो उन जीवजंतुओं से लड़ता, बचताबचाता उन मोतियों को देखता, उन की कद्र करता. सब से गहरा रिश्ता मांबाप का होता है. मां अपने बच्चे के दिल की गहराइयों में उतर कर सब देख लेती है लेकिन मेरे पास में तो वह मां भी नहीं थी जो मुझे थोड़ा भी समझ पाती.
‘‘दूसरा रिश्ता पति का था, वह भी सतही. जब अपना दिल खोल कर तुम्हारे सामने रखना चाहती तो तुम भी नहीं समझते थे क्योंकि शायद तुम गहरे में उतरने से डरते थे क्योंकि मेरे दिल के आईने में तुम्हें अपना ही अक्स नजर आता जो तुम देखना नहीं चाहते थे और मुझे समझने में भूल करते रहे…’’
‘‘देखो, तुम्हारी सांस फूल रही है. तुम आराम करो, इला.’’
‘‘वह नवंबर का महीना था शायद, रात को मेरी नींद खुली तो तुम बिस्तर पर नहीं थे, सारे घर में तुम्हें देखा. नीचे से धीमीधीमी बात करने की आवाज सुनाई दी. मैं ने आवाज भी दी मगर तब फुसफुसाहट बंद हो गई. मैं वापस बैडरूम में आई तो तुम बिस्तर पर थे. मेरे पूछने पर तुम ने बहाना बनाया कि नीचे लाइट बंद करने गया था.’’ ‘‘अच्छा अब बहुत हो गया. तुम इतनी बीमार हो, इसीलिए मैं तुम्हें कुछ कहना नहीं चाहता. वैसे, कह तो मैं पूरी जिंदगी कुछ नहीं पाया. लेकिन प्लीज, अब तो मुझे बख्श दो,’’ खीज और बेबसी से मेरा गला भर आया. उस के अंतिम दिनों को ले कर मैं दुखी हूं और यह है कि न जाने कहांकहां के गड़े मुर्दे उखाड़ रही है. उस घटना को ले कर भी उस ने कम जांचपड़ताल नहीं की थी. विभा ने भी सफाई दी थी कि वह अपने नन्हे शिशु को दुलार रही थी लेकिन उस की किसी दलील का इला पर कोई असर नहीं हुआ. उसे निकाल बाहर किया, पता नहीं वह कैसे सच सूंघ लेती थी.
‘‘उस दिन मैं कपड़े धो रही थी, तुम मेरे पीछे बैठे थे और वह मुझ से छिपा कर तुम्हें कोई इशारा कर रही थी. और जब मैं ने उसे ध्यान से देखा तो वह वहां से खिसक ली थी. मैं ने पहली नजर में ही समझ लिया था कि यह औरत खूब खेलीखाई है, पचास बार तो पल्ला ढलकता है इस का, तुम को तो खैर दुनिया की कोई भी औरत अपने पल्लू में बांध सकती है. याद है, मैं ने तुम से पूछा भी था पर तुम ने कोई जवाब नहीं दिया था, बल्कि मुझे यकीन दिलाना चाहते थे कि वह तुम से डरती है, तुम्हारी इज्जत करती है.’’
तब शिखा ने टोका भी था, ‘मां, तुम्हारा ध्यान बस इन्हीं चीजों की तरफ जाता है, मुझे तो ऐसा कुछ भी नहीं दिखता.’
मां की इन ठेठ औरताना बातों से शिखा चिढ़ जाती थी, ‘कौन कहेगा कि मेरी मां इतने खुले विचारों वाली है, पढ़ीलिखी है?’ उन दिनों मेरे दफ्तर की सहकर्मी चित्रा को ले कर जब उस ने कोसना शुरू किया तो भी शिखा बहुत चिढ़ गई थी, ‘मेरे पापा हैं ही इतने डीसैंट और स्मार्ट कि कोई भी महिला उन से बात करना चाहेगी और कोई बात करेगा तो मुसकरा कर, चेहरे की तरफ देख कर ही करेगा न?’ बेटी ने मेरी तरफदारी तो की लेकिन उस के सामने इला की कोसने वाली बातें सुन कर मेरा खून खौलने लगा था. मुझे इला के सामने जाने से भी डर लगने लगा था. मन हुआ कि शिखा को एक बार फिर वापस बुला लूं, लेकिन उस की भी नौकरी, पति, बच्चे सब मैनेज करना कितना मुश्किल है. दोपहर में खाना खिला कर इला को लिटाया तो उस ने फिर मेरा हाथ थाम लिया, ‘‘तुम ने मुझे बताया नहीं. देखो, अब तो मेरा आखिरी समय आ गया है, अब तो मुझे धोखे में मत रखो, सचसच बता दो.’’
‘‘मेरी समझ में नहीं आ रहा है, पूरी जिंदगी बीत गई है. अब तक तो तुम ने इतनी जिरह नहीं की, इतना दबाव नहीं डाला मुझ पर, अब क्यों?’’
‘‘इसलिए कि मैं स्वयं को धोखे में रखना चाहती थी. अगर तुम ने दबाव में आ कर कभी स्वीकार कर लिया होता तो मुझे तुम से नफरत हो जाती. लेकिन मैं तुम्हें प्रेम करना चाहती थी, तुम्हें खोना नहीं चाहती थी. मैं तुम्हारे बच्चों की मां थी, तुम्हारे साथ अपनी पूरी जिंदगी बिताना चाहती थी. तुम्हारे गुस्से को, तुम्हारी अवहेलना को मैं ने अपने प्रेम का हिस्सा बना लिया था, इसीलिए मैं ने कभी सच जानने के लिए इतना दबाव नहीं डाला.
‘‘फिर यह भी समझ गई कि प्रेम यदि किसी से होता है तो सदा के लिए होता है, वरना नहीं होता. लेकिन अब तो मेरी सारी इच्छाएं पूरी हो गई हैं, कोई ख्वाहिश बाकी नहीं रही. फिर सीने पर धोखे का यह बोझ ले कर क्यों जाऊं? मरना है तो हलकी हो कर मरूं. तुम्हें मुक्त कर के जा रही हूं तो मुझे भी तो शांति मिलनी चाहिए न? अभी तो मैं तुम्हें माफ भी कर सकती हूं, जो शायद पहले बिलकुल न कर पाती.’’ ओफ्फ, राहत का एक लंबा गहरा उच्छ्वास…तो इन सब के लिए अब ये मुझे माफ कर सकती है. वह अकसर गर्व से कहती थी कि उस की छठी इंद्रिय बहुत शक्तिशाली है. खोजी कुत्ते की तरह वह अपराधी का पता लगा ही लेती है. लेकिन ढलती उम्र और बीमारी की वजह से उस ने अपनी छठी इंद्रिय को आस्था और विश्वास का एनेस्थिसिया दे कर बेहोश कर दिया था या कहीं बूढ़े शेर को घास खाते हुए देख लिया होगा. इसी से मैं आज बच गया
सच और विश्वास की रेशमी चादर में इत्मीनान से लिपटी जब वह अपने बच्चों की दुनिया में मां और नानी की भूमिका में आकंठ डूबी हुई थी, उन्हीं दिनों मेरी जिंदगी के कई राज ऐसे थे जिन के बारे में उसे कुछ भी पता नहीं. अब इस मुकाम पर मैं उस से कैसे कहता कि मुझे लगता है यह दुनिया 2 हिस्सों में बंटी हुई है. एक, त्याग की दुनिया है और दूसरी धोखे की. जितनी देर किसी में हिम्मत होती है वह धोखा दिए जाता है और धोखा खाए जाता है और जब हिम्मत चुक जाती है तो वह सबकुछ त्याग कर एक तरफ हट कर खड़ा हो जाता है. मिलता उस तरफ भी कुछ नहीं है, मिलता इस तरफ भी कुछ नहीं है. मेरी स्थिति ठीक उसी बरगद की तरह थी जो अपनी अनेक जड़ों से जमीन से जुड़ा रहता है, अपनी जगह अटल, अचल. कैसे कभीकभी एक अनाम रिश्ता इतना धारदार हो जाता है कि वह बरसों से पल रहे नामधारी रिश्ते को लहूलुहान कर जाता है. यह बात मेरी समझ से परे थी.