अकेली लड़कियों के लिए भी मुंबई शहर है सुरक्षा से भरपूर..

मुंबई शहर एक ऐसा शहर है जहां हिंदुस्तान के कोनेकोने से कई लोग अपनी तकदीर आजमाने आते हैं. एक अच्छी जिंदगी का सपना लेकर जहां ढेर सारा पैसा, नौकरी, लग्जरियस लाइफ, के साथ सुकून की जिंदगी जीने का पूरा मौका मिले. मुंबई शहर भी ऐसे ही कई लोगों का हाथ फैला कर स्वागत करती है. यहां पर सिर्फ लड़के ही नहीं बल्कि लड़कियां भी उज्जवल भविष्य का सपना लेकर मुंबई शहर में अपनी पढ़ाई पूरी करने या अच्छी नौकरी पाने के उद्देश्य से आती है. लेकिन उनके पीछे उनके घर वालों को खासतौर पर मातापिता भाई को गहरी चिंता सताती है कि उनकी बेटी या बहन इतने बड़े शहर में सुरक्षित है कि नहीं. अगर बाकी शहरों की बात करें जैसे की भारत की राजधानी दिल्ली, या बाकी शहर, लड़कियों के लिए सुरक्षित नहीं है. रात के 10:00 बजे के बाद या यूं कहे रात के 8:00 के बाद लड़कियां अपने आवास स्थान से निकलने में घबराती हैं क्योंकि बाकी शहरों में लड़कियों की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है. रास्ते चलते कभी भी कोई भी बड़ा कांड हो सकता है. लिहाजा लड़कियां रात को 8 बजे के बाद अकेली नहीं निकलती.

लेकिन मुंबई शहर लड़कियों के लिए सुरक्षित है यहां पर काम करने वाली लड़कियां देर रात भी आवागमन कर सकती हैं जिसके लिए उनके पास बहुत सारी सहूलियत भी होती हैं ऐसे में कहना गलत ना होगा कि मुंबई शहर में लड़कियों का अकेले रहना पूरी तरह सुरक्षित है. बड़ीबड़ी डिग्रियां ना होने पर भी वह नौकरी कर के पैसे कमा सकती हैं. यहां पर रहने के लिए घर जरूर बहुत छोटे होते हैं लेकिन फिर भी कई सारी सहूलियतों के चलते हर किसी को सर छुपाने का ठिकाना जरुर मिल जाता है. खानेपीने की व्यवस्था में भी कई सारी सुविधाएं हैं. जिसके चलते ऐसा कहा जाता है की मुंबई शहर भूखा उठाती जरूर है लेकिन भूखा सुलाती नहीं है आइए जानते हैं यह सब कैसे संभव है ? ऐसा क्या है इस जादूनगरी में जहां दिन-ब-दिन पैसा कमाने के लिए आने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है? पेश है इसी सिलसिले पर एक नजर…

लड़कियों के लिए सुरक्षित आवास स्थान….

एक समय था जब सिर्फ लड़के शिक्षा या नौकरी के लिए अपने घर से बाहर दूसरे शहरों में जाते थे. लेकिन आज लड़कियां जो लड़कों से किसी भी तरह कम नहीं है. वह भी अपना भविष्य संवारने के लिए अपने घर से दूर दूसरे शहर में शिक्षा या नौकरी के लिए आती है. मुंबई शहर में हर दिन कई लड़कियां नौकरी या शिक्षा के सिलसिले में प्रवेश करती हैं और यहां आकर सबसे पहले वह रहने का बंदोबस्त करना चाहती है. ऐसी लड़कियों के लिए मुंबई शहर में उनके बजट के हिसाब से घर मिलना कोई मुश्किल नहीं है. बस यह आप पर निर्भर करता है कि आपका बजट कितना है. मुंबई में एस्टेट एजेंट आपको 5000 से लेकर 50000 या लाख रुपए तक किराए पर फ्लैट दिलाने की तैयारी रखते हैं. जैसे की 5000 में आपको लड़कियों के पेइंग गेस्ट में सोने की व्यवस्था के लिए एक बेड मिलेगा. ऐसी पेइंग गेस्ट मे आप सिर्फ रह सकते हैं लेकिन खाना बनाना या बाकी काम नहीं कर सकते. बाकी अगर आपका बजट ज्यादा है तो आपको बाकी फैसेलिटीज के साथ भी पेइंग गेस्ट में जगह मिलती है लेकिन पर बेड वाले पेइंग गेस्ट में खाना बनाना या बाकी काम नहीं कर सकते. ऐसे में कई लड़कियां एक दूसरा तरीका अपनाती है जिसमें तीन चार या पांच लड़कियां मिलकर एक पूरा फ्लैट किराए पर ले लेती है और किराए के साथ बाकी चीज जैसे राशन इलेक्ट्रिक बिल गैस आदि खर्चे को भी आपस में बाट लेती हैं. जिसके चलते उन्हें एक घर जैसी व्यवस्था मिल जाती है जहां वह अपने मन के मुताबिक रह सकती है.

गौरतलब है मुंबई में रहने की व्यवस्था ज्यादा आबादी के चलते आसान नही है . इसलिए कई बार तो लड़केलड़कियां मिलकर भी एक फ्लैट शेयर कर लेते हैं. जो आपस में एक दूसरे को अच्छे से जानते हैं. जैसे की कहावत है , जितना गुड उतना मीठा , वैसे ही आपका जितना बड़ा बजट होगा. आपको उतना ही आलीशान फ्लैट किराए पर मिल सकता है. लेकिन इतना जरूर है की आपको हर बजट में आवास स्थान की व्यवस्था जरूर हो जाएगी.

मुंबई में लड़कियों के लिए रात बे रात भी यात्रा आवागमन पूरी तरह सुरक्षित…

मुंबई शहर के लिए कहां जाता है की मुंबई शहर कभी सोता नहीं. यह बात काफी हद तक सच है क्योंकि जहां रिक्शा,लोकल बस सर्विस ,टैक्सी, प्राइवेट टैक्सी, जहां 24 घंटे चलती रहती है वही लंबी दूरी यात्रा तय करने वाली लोकल ट्रेन रात में सिर्फ 2 घंटे के लिए बंद होती है. जिसकी वजह से ज्यादातर मुंबई की सड़के पब्लिक से भरी होती है. क्योंकि यहां पर काम के सिलसिले में लोगों को कभी भी ट्रैवलिंग करनी पड़ती है इसलिए 24 घंटे यात्रा की सारी सुविधाएं उपलब्ध होती हैं. यहां तक की देर रात लड़कियां भी काम के सिलसिले में जो की नाइट शिफ्ट में काम करती हैं उनके लिए भी यात्रा मुश्किल नहीं है. ज्यादातर लड़कियां अपने औफिस द्वारा बुक की गई उबर या ओला टैक्सी में ही ट्रैवल करती है और उन लड़कियों के घर पहुंचने तक औफिस वालों की जिम्मेदारी होती है कि वह उन पर नजर रखें. इसके अलावा पुलिस द्वारा दिए गए कई एप जिसमें सुरक्षा के लिए मोबाइल नंबर दिए जाते हैं , वह ज्यादातर नाइट मे ट्रैवल करने वाली लड़कियों के पास मौजूद होते हैं . ऐसे में जरा भी खतरा होने पर पुलिस मौका ए वारदात पर पहुंच जाती है. हालांकि ऐसा कम ही होता है .क्योंकि रात में पुलिस अलर्ट रहती है और रास्तो में ,बस और ट्रेनों में पुलिस घूमती रहती है. यह सारी बातें ड्राइवर को भी पता होती है इसीलिए लड़कियां सतर्कता के चलते रात में भी आराम से यात्रा कर पाती हैं. जो बाकी शहरों में देखने को नहीं मिलता.

मुंबई में लड़कियों के लिए नौकरी पाने के कई रास्ते…

आज के ताजा हालात के चलते सिर्फ लड़के ही नहीं बल्कि लड़कियां भी अपनी काबिलियत के हिसाब से पैसा कमाने के लिए मेहनत मशक्कत करती रहती हैं. अपनी कला और हुनर के जरिए कई सारी लड़कियों मुंबई में पैसा कमा रही है. कोई बड़ीबड़ी डिग्रियों के साथ कारपोरेट वर्ल्ड से जुड़ा है. तो कोई अपनी कला के जरिए जैसे फैशन डिजाइनिंग हो, इंटीरियर डेकोरेशन या मॉडलर किचन से जुड़ी नौकरी हो. या ग्लैमर वर्ल्ड से जुड़ा काम ही क्यों ना हो. आजकल हर जगह पर काम करने वाली लड़कियों की लोगों को जरूरत है. इसके लिए आपको naukri.com जैसे कई वेबसाइट या उस प्रोफेशन से जुड़े एच आर डिपार्टमेंट में अपना प्रोफाइल या बायोडाटा देकर सही नौकरी पा सकते हैं. ग्लैमर वर्ड से जुड़े लोगों को ऑडिशन के जरिए फिल्म और टीवी में काम मिलना आसान हो जाता है. गौरतलब है यहां पर फिल्म टीवी में एक्स्ट्रा का काम करने वाले लड़के लड़कियों को हजार से दो हजार प्रतिदिन मिल जाता है. इसके अलावा जो लड़कियां बिल्कुल भी पढ़ी-लिखी नहीं है उनको मुंबई शहर में नौकरी पेशा लोगों के घर , घर काम और बच्चा और घर संभालने का काम भी मिल जाता है. जिसके लिए उनको 15000 से 25000 तक तनख्वाह मिल जाती है. ऐसी नौकरी के लिए भी कई वेबसाइट है. और कुछ लोग तो डायरेक्टली भी नौकर या नौकरानी रखते हैं. और उसके लिए अच्छा खासा पैसा भी देते हैं.

कहने का तात्पर्य यह है की अगर आप में मेहनत करने की लगन है. और आपके पास कोई कला या हुनर या उचित शिक्षा है. तो ऐसी लड़कियां मुंबई शहर में आकर अपना जीवन पुरी सुरक्षा के साथ शान से जी सकती हैं.

क्या आपका पार्टनर भी आपके घरवालों से मिलने में कतराता है?

जब एक लड़कालड़की शादी के गठबंधन में बंधते हैं, तो उनके इस नए रिश्ते के साथ बंधती है एक दूसरे प्रति कई उम्मीदें. उम्मीदें एक दूसरे का साथ निभाने की, परिवार वालों को मान सम्मान देने की. क्योंकि शादी का अर्थ सिर्फ जीवनसाथी से ही रिश्ता होना नहीं बल्कि दो परिवारों का मिलन होता है. जिस तरह लड़के को लगता है कि उसका पार्टनर उसके परिवार को अपना परिवार समझे और सभी के साथ प्यार से मिलजुल कर रहें, उसी तरह लड़की की भी ख्वाहिश होती है कि उसका जीवनसाथी उसके मायके वालों को मान सम्मान दे उनके सुखदुख में साथ निभाए.

लेकिन अक्सर देखा जाता है कि लड़कालड़की के परिवार वालों के साथ मिलना तक पसंद नहीं करता. और उसके बाद भी वह चाहता हैं कि उसकी पत्नी अपने सास ससुर को मांबाप का दर्जा दे. इस तरह का व्यवहार कई बार तलाक तक का कारण बन जाता है इसलिए जरूरी है समय रहते परिस्थितियों को सुधारे.चलिए जानते हैं उन कारणों के बारे में जिनकी वजह से आपका पार्टनर आपके मायकेवालों से दूरी बनाए रखना पसंद करते हैं व किस तरह आप ऐसी चुनौतीपूर्ण परिस्थिति को सुधार सकती हैं.

कारण

  • लड़की का बातबात पर अपने मायके वालो का ज़िक्र करना लड़के में असुरक्षितता की भावना को उत्पन्न करता है.
  • पति का व्यवहार यदि पत्नी के लिए अच्छा ना हो तो पति को डर रहता है कि उसकी पत्नी बातों को अपने मायके में ना बोल दे. इसीलिए उनकी कोशिश होती है कि ससुराल से दूरी बनाए रखना ही बेहतर है.
  • यदि इतिहास में परिवार के किसी भी सदस्य को ससुरालपक्ष से धोखा मिला हो तो भी डिसरिस्पेक्ट की भावना आ जाती है.

क्या करें

  • एक दूसरे के परिवारों के प्रति गलतफहमियों को दूर करें.
  • जिसके लिए शांतिपूर्वक बात करना जरूरी है.
  • पति को समय दें ना कि हमेशा मायके वालों से फोन पर बात करती रहें.
  • मायके की छवि को हमेशा सकरात्मक रूप से बनाएं रखें.
  • पति को एहसास दिलाएं कि आपका उनके साथ मायके आना आपके परिवार में सभी को खुशी देता है.

Friendship Day Special : हर उम्र में दोस्त जरूरी होता है, बिग बी और डैनी की दोस्ती है मिसाल

दोस्ती का रिश्ता हर रिश्ते से बड़ा होता है क्योंकि यह रिश्ता दिल से जुड़ा होता है.. कहते हैं दिल जो भी कहेगा मानेंगे दुनिया में हमारा दिल ही तो है, ऐसे ही दोस्ती का रिश्ता भी ऐसा रिश्ता होता है जिसमें कोई दिखावा नहीं होता सिर्फ दिल खोल कर बातें होती है, प्यार भरी गालियां होती है, ढेर सारी मस्ती मजाक होता है. यही वजह है कि कुछ दोस्तों का मानना है कि अगर दोस्तों के सामने दिल खोल दिया होता, तो डौक्टर के पास दिल के इलाज के लिए औजारों से दिल ना खोलना पड़ता.

जिंदगी में एक सच्चा दोस्त आपकी हजारों तकलीफों को दूर कर सकता है. इसीलिए कहते हैं हर उम्र में दोस्त जरूरी होता है. खास तौर पर 40-50 साल की उम्र में जब अपने ही घर के सदस्य अपनी अपनी जिंदगी में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि उनको हमारे साथ बात करने का टाइम ही नहीं मिलता उस दौरान खासतौर पर उन दोस्तों की याद आती है जिनके साथ हम कई घंटे तक दिल की बातें शेयर किया करते थे. हम बोलते बोलते थक जाते थे लेकिन वह पूरे मजे के साथ हमारी बातें सुनते सुनते नहीं थकते थे. हालाकि बचपन से जवानी तक के लंबे सफर में हमारे बहुत दोस्त होते हैं . लेकिन जैसेजैसे वक्त गुजरता है हर कोई अपनी जिंदगी में व्यस्त हो जाता है और वह सारे पुराने दोस्त भी कहीं गुम हो जाते हैं. ऐसे में बहुत जरूरी है कि हम नए दोस्त बनाए या पुराने दोस्तों को संपर्क करें और अपनी जिंदगी में फिर से एक बार वही बचपन वाली मौज मस्ती धमाल हसी खुशी, बिना दिखावे वाला अपनापन वापस लाकर अपनी लाइफ को मजेदार बना सके. फिल्म इंडस्ट्री में भी कई पुराने और नए एक्टरों की दोस्ती आज भी बरकरार है. हमारे ये स्टार्स चाहे अपनी जिंदगी में ढेर सारी नाम और शोहरत पा रहे हो लेकिन मौज मस्ती पार्टीशार्टी अपने खास दोस्तों के साथ ही करते हैं. अपने इन खास दोस्तों के साथ वह अपनी हर बात शेयर करते हैं. किस तरह के दोस्त ज्यादा मजेदार और प्यारे होते हैं? वक्त के साथसाथ दोस्ती में भी कैसा बदलाव आता है? कलाकारों की जिंदगी में दोस्तों दोस्ती कितनी महत्वपूर्ण है? पेश है इसी सिलसिले पर एक नज़र…..

जिंदगी के सफर में जब मिलते हैं विभिन्न तरह के दोस्त….

जिंदगी के सफर में हमारी जिंदगी में कई तरह के दोस्त शामिल होते हैं क्योंकि वह हमारे लिए उतने ही महत्वपूर्ण होते हैं जितना की चाय में चीनी और खाने में नमक. शायद आप यकीन ना करें लेकिन दोस्तों में भी कई तरह की वैरायटी देखने को मिलती है. जैसे बचपन के दोस्त, औफिस और स्कूल कौलेज के दोस्त, मजाकिया दोस्त, अच्छे सलाहकार दोस्त, दिखावा और जलन करने वाले दोस्त, जो आपसे प्यार तो करते हैं लेकिन ईर्ष्या भी करते हैं, और मौका पड़ने पर दिखावा भी, वैसे तो जिंदगी में हर दोस्त जरूरी होता है लेकिन प्राथमिकता हम उस दोस्त को देते हैं जो मजाक करके गंभीर माहौल को भी खुशनुमा बना देता है. और जो आपका सबसे बड़ा शुभचिंतक सलाहकार दोस्त होता है जिससे आप अपनी शर्मनाक बातें शेयर करने में भी कतराते नहीं. क्योंकि वह आपको जज नहीं करता बल्कि हर तरह से मदद करने की कोशिश करता है क्योंकि ऐसा दोस्त आपको सबसे ज्यादा प्यार करता है. ऐसे दोस्त बहुत मुश्किल से मिलते हैं लेकिन सबसे करीबी भी होते हैं.

अच्छे और पक्के वाले दोस्त होने के बावजूद कई बार आप उनसे खुलकर बातें नहीं कर पाते…
वैसे तो हमारी दोस्ती बचपन से ही शुरू हो जाती है जब हम छोटे होते हैं और स्कूल में होते हैं उसे वक्त बचपन के दोस्त जवानी तक भी हमारे दिल दिमाग में बसे होते हैं. लेकिन यही दोस्त जब आपको कई सालों बाद मिलते हैं तो आप उनसे दिल की बातें नहीं कर पाते क्योंकि कई सालों की दूरी होने की वजह से का उनसे बात करने का कनेक्शन कम हो जाता है. जिस वजह से आप उनसे चाहते हुए भी दिल की बात नहीं कर पाते. ऐसे ही कुछ दोस्त ऐसे भी होते हैं जो औफिस में ,कौलेज में, किटी पार्टी में मिल जाते हैं उनसे आपकी अच्छी दोस्ती भी हो जाती है लेकिन यह दोस्त खाली मौज मस्ती के लिए ही सीमित रहते हैं इन पर आप ट्रस्ट करके हर बात शेयर नहीं करते.

भाजपा और मोदी भक्तों के चलते दोस्तों के बीच भी दरार पैदा हो गई है….

इतने वर्षों में पहली बार ऐसा हुआ है कि किसी राजनीतिक पार्टी के चलते दोस्तों में मन मुटाव यहां तक की मारपीट तक की नौबत आ गई हो. आज के समय में दो पक्के दोस्त अगर दो अलग पार्टी को फेवर करते हैं, जिसमें से एक भाजपा का है और दूसरा कांग्रेस का तो पक्की दोस्ती होने के बावजूद दोस्तों में मतभेद पैदा हो रहे हैं अंधभक्त का यह आलम है कि अगर कोई दोस्त भाजपा के खिलाफ बोलता है तो दूसरा अंधभक्त दोस्त अपने दोस्त को पीटने तक को तैयार हो जाता है. लिहाजा मजाक में यहां तक कहा जाता है की अंध भक्तों के लिए कंग्रौजुलेशन भी कांग्रेस का प्रचार है. भाजपा और अंध भक्तों के चलते आज दोस्ती में भी दरार आ रही है .ये सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चल रहा है. अमेरिका यूएसए में डाइनिंग टेबल पर दो दोस्तों के बीच राजनीतिक मतभेद के चलते लड़ाइयां हो रही है.

बौलीवुड एक्टरों की प्रसिद्ध जग जाहिर दोस्ती.. बौलीवुड एक्टरों में दोस्ती का गुण कूटकूट कर भरा है जिसके चलते बौलीवुड एक्टर्स की दोस्ती दोस्ती की मिसाल मानी जाती है. जैसे कि बौलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन के सबसे खास दोस्त स्वर्गीय अमजद खान और डैनी रहे हैं. डैनी के साथ अमिताभ की दोस्ती आज भी बरकरार है. इसी तरह शाहरुख खान सलमान खान की दोस्ती किसी से छुपी नहीं. सलमान खान के अनुसार वह शाहरुख खान के दिल की बात बिना शाहरूख के कहे भी समझ जाते हैं इन दोनों के बीच एकदम पक्की वाली दोस्ती है. इसी तरह सलमान खान के कई ऐसे दोस्त हैं जो संघर्ष के दिनों से उनके साथ बने हुए हैं. जैसे कुमार गौरव, मोहनीश बहल, संजय दत्त, सुनील शेट्टी, अनिल कपूर , डेविड धवन, साजिद नाडियाडवाला, सलमान के आल टाइम फेवरेट फ्रेंड्स है, इसके अलावा सलमान कैटरीना कैफ को अपनी सबसे अच्छी दोस्त मानते हैं. इसी तरह शाहरुख खान के करण जौहर और फराह खान अच्छे दोस्त हैं. अनन्या पांडे की बेस्ट फ्रैंड शाहरुख की बेटी सुहाना खान है. कैटरीना कैफ और अनुष्का शर्मा की गहरी दोस्ती है. अजय देवगन और तब्बू की दोस्ती जग जाहिर है जो उनके कौलेज के समय से बरकरार है. बैडमिंटन प्लेयर सानिया मिर्जा और फराह खान की दोस्ती सालों से चली आ रही है. इसके अलावा बौलीवुड में कुछ एक्टर दोस्तों के साथ ग्रुप बना कर मौज मस्ती करते रहते हैं. जेसै पुरानी एक्ट्रैस हेलेन, आशा पारेख, वहीदा रहमान, की सालों से दोस्ती बरकरार है. इसी तरह करीना कपूर, अमृता अरोड़ा , करिश्मा कपूर और मलाइका अरोड़ा आदि दोस्तों का गर्ल गैंग ग्रुप है, जो हमेशा साथ मिलकर पार्टी पिकनिक करते रहते हैं.

ऐसे में कहना गलत ना होगा कि हम चाहे कितना ही नाम शोहरत पैसा कमा ले लेकिन जो मजा दोस्तों के साथ आता है वह लाखों करोड़ों के महलों में भी नहीं आता. लिहाजा जिस तरह जीने के लिए सांस लेना जरूरी है इस तरह जिंदगी जीने के लिए मौजमस्ती के पल और अपने दिल की बात खाने के लिए एक अच्छा दोस्त होना भी बहुत जरूरी है. इसीलिए तो कहते हैं की हर एक दोस्त जरूरी होता है.

मैं अहिल्या नहीं नंदिनी हूं

‘आखिर मेरा दोष क्या है जो मैं अपमान की पीड़ा से गुजर रही हूं? नाते रिश्तेदार, पास-पड़ोस यहां तक कि मेरा पति भी मुझे दोषी समझ रहा है. कहता है वह मुझ से शादी कर के पछता रहा है और लोग कहते हैं मुझे अपनी मर्यादा में रहना चाहिए था. पासपड़ोस की औरतें मुझे देखते ही बोल पड़ती हैं कि मुझ जैसी चरित्रहीन औरत का तो मुंह भी देखना पाप है. जो मेरी पक्की सहेलियां थीं वे भी मुझे रिश्ता तोड़ चुकी हैं. लेकिन मेरा दोष क्या है? यही सवाल मैं बारबार पूछती हूं सब से. मैं तो अपनी मर्यादा में ही थी. क्यों समाज के लोगों ने मुझे ही धर्मकर्म के कामों से दूर कर दिया यह बोल कर कि हिंदू धर्म में ऐसी औरत का कोई स्थान नहीं?’ अपने ही खयालों में खोई नंदिनी को यह भी भान नहीं रहा कि पीछे से गाड़ी वाला हौर्न पर हौर्न बजाए जा रहा है.

‘‘ओ बहनजी, मरना है क्या’’ जब उस अजनबी ने यह कहा तो वह चौंक कर पलटी.

‘‘बहनजी? नहींनहीं मैं किसी की कोई बहनवहन नहीं हूं,’’ बोल कर नंदिनी सरपट भागी और वह इंसान उसे देखता रह गया, फिर अपने कंधे उचका कर यह बोल कर आगे बढ़ गया कि लगता है कोई पागल औरत है.

घर आ कर नंदिनी दीवार की ओट से

लग कर बैठ गई. जरा सुस्ताने के बाद उस ने

पूरे घर को बड़े गौर से निहारा. सबकुछ तो वैसे ही था. सोफा, पलंग, टेबलकुरसी, अलमारी,

सब अपनीअपनी जगह व्यवस्थित रखे हुए.

मगर नंदिनी की ही जिंदगी क्यों इतनी अव्यवस्थित हो गई? क्यों उसे आज अपना ही घर पराया सा लगने लगा था? जो पति अकसर यह कहा करता था कि वह उस से बहुत प्यार करता है वही आज क्यों उस का चेहरा भी नहीं देखना चाहता?

जिन माता-पिता की वह संस्कारी बेटी थी, क्यों उन्होंने भी उस का बहिष्कार कर

दिया? ये सारे सवाल नंदिनी के दिल को मथे जा रहे थे. आखिर किस से कहे वह अपने दिल का दर्द और कहां जाए? मन कर रहा था उस का कि जोरजोर से चीखेचिल्लाए और कहे दुनिया वालों से कि उस की कोई गलती नहीं है.

अरे, उस ने तो इस इंसान को अपना भाई समझा था. लेकिन उस के मन में नंदिनी के लिए खोट था वह उसे कहां पता था.

‘‘दीदी’’, हिचकते हुए नंदिनी ने अपनी बड़ी बहन को फोन लगाया, ‘‘क्या आप भी मुझे ही गलत समझ रही हैं? आप को भी यही लगता है कि मैं ही उस इंसान पर गलत नजर रखती थी? नहीं दीदी ऐसी बात नहीं, बल्कि झूठा वह इंसान है, पर यह बात मैं कैसे समझाऊं सब को? मन तो कर रहा है कि मैं कहीं भाग जाऊं या फिर मर जाऊं ताकि इस जिंदगी से छुटकारा मिले,’’ कह कर नंदिनी सिसक पड़ी.

‘‘मरने या कहीं भाग जाने से क्या होगा नंदिनी? लोग तो तब भी वही कहेंगे न और मैं गुस्सा तुम से इस बात पर नहीं हूं कि तुम गलत हो. भरोसा है मुझे तुम पर, लेकिन गुस्सा मुझे

इस बात पर आ रहा है कि क्यों तुम ने उस

इंसान को माफ कर दिया? क्यों नहीं उस के खिलाफ थाने में रिपोर्ट लिखाई, जिस ने तुम्हें कहीं का नहीं छोड़ा? तुम ने उसे अपना भाई

माना था न? रिश्तों की आड़ में पहले तो उस ने तुम्हारी आबरू लूटी और फिर उसी रिश्ते की दुहाई दे कर बच निकला और तुम ने भी तरस

खा कर उसे माफ कर दिया? क्यों, आखिर

क्यों नंदिनी?’’

‘‘उस के बच्चों की सोच कर दीदी, उस की पत्नी मेरे कदमों में गिर गिड़गिड़ाने लगी, बोली कि अगर उस का पति जेल चला जाएगा, तो वह मर जाएगी और फिर उस के बच्चे सड़क पर भीख मांगेंगे. दया आ गई मुझे उस के बच्चों पर दीदी और कुछ नहीं, सोचा उस के कर्मों की सजा उस के भोेलेभाले बच्चों को क्यों मिले.’’

‘‘अच्छा, और तुम्हारे बच्चे का क्या, जो

तुम से दूर चला गया? चलो

मान भी गए कि तुम ने उस के बच्चों का सोच कर कुछ नहीं कहा और न ही पुलिस में रपट लिखाई, लेकिन उस ने क्या किया तुम्हारे साथ? तुम्हें बदनाम कर खुद साफ बच निकला. पता भी है तुम्हें कि लोग तुम्हें ले कर क्याक्या बातें बना रहे हैं? कौन पिताभाई या पति यह बात सहन कर पाएगा भला? तुम्हारी सहेली रमा, सब से कहती फिर रही है कि भाईभाई कह कर तुम ने उस के पति को फंसाने की कोशिश की. मेरी तो समझ में नहीं आ रहा है कि तुम क्यों कर रही हो ये सब?’’ ‘‘तुम कोई अहिल्या नहीं, जो दोषी न होते हुए भी पत्थर की शिला बन जाओ और कलंकिनी कहलाओ और इंतजार करो किसी राम के आने का जो तुम्हें तार सके. तुम आज की नारी हो नंदिनी आज की. भूल गई उस लड़के को, जो कालेज की हर लड़की को परेशान करता था और जब एक दिन उस ने मुझ पर हाथ डालने की कोशिश की, तो कैसे तुम उसे घसीटते हुए प्रिंसिपल के पास ले गई थी.

प्रिंसिपल को उस लड़के को कालेज से निकालना पड़ा था. जब उस लड़के के घमंडी पैसे वाले बाप ने तुम्हें धमकाने की कोशिश की, तब भी तुम नहीं डरी और न ही अपने शब्द वापस लिए थे. तो फिर आज कैसे तुम चुप रह गई नंदिनी? छल और बलपूर्वक जिस रावण ने तुम्हें छला उस का ध्वंस तुम्हें ही करना होगा. लोगों का क्या है. वे तो जो सुनेंगे वही दोहराएंगे. लेकिन तुम्हें यह साबित करना होगा कि तुम सही हो गलत वह इंसान है.’’

अपनी बहन की कही 1-1 बात नंदिनी को सही लग रही थी. पर वह साबित

कैसे करे कि वह सही है? कोसने लगी वह उस दिन को जब पहली बार वह रूपेश और रमा से मिली थी.

विकास और रूपेश दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे और इसी वजह से नंदिनी और रमा भी अच्छी सहेलियां बन चुकी थीं. रूपेश नंदिनी को भाभी कह कर बुलाता था और नंदिनी उसे रूपेश भैया कह कर संबोधित करती थी. कहीं न कहीं रूपेश में उसे अपने भाई का अक्स दिखाई देता जो अब इस दुनिया में नही रहा.

जब भी रूपेश नंदिनी के घर आता वह उस के लिए वही सब करती, जो कभी अपने भाई के लिए किया करती थी. लेकिन रमा को ये सब अच्छा नहीं लगता. उसे लगता कि वह जानबूझ कर रूपेश के सामने अच्छा बनने की कोशिश करती है, दिखाती है कि वह उस से बेहतर है. कह भी देता कभी रूपेश कि सीखो कुछ नंदिनी भाभी से. चिढ़ उठती वह उस की बातों से, पर कुछ बोलती नहीं.

नंदिनी की सुंदरता, उस के गुण और जवानी को देख रमा जल उठती क्योंकि वह बेडौल औरत थी. इतनी थुलथुल कि जब चलती, तो उस का पूरा शरीर हिलता. कितना चाहा उस ने कि नंदिनी की तरह बन जाए, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. वह जानती थी कि नंदिनी उस से हर मामले में 20 है और इसी बात से वह उस से जलती थी पर दिखाती नहीं थी.

दोनों के घर पासपास होने के कारण

अकसर वे एकदूसरे के घर आतेजाते रहते थे. नंदिनी के हाथों का बनाया खाना खा कर रूपेश बोले बिना नहीं रह पाता कि उस के हाथों में तो जादू है. कहता अगर रमा को भी वह कुछ बनाना सिखा दे, तो उस पर कृपा होगी, क्योंकि रोजरोज एक ही तरह का खाना खाखा कर वह ऊब जाता है. उस की बातों पर नंदिनी और विकास हंस पड़ते. लेकिन रमा चिढ़ उठती और कहती कि अब वह उस के लिए कभी खाना नहीं बनाएगी.

दोनों परिवारों के बीच इतनी मित्रता हो गई थी कि अकसर वे साथ घूमने निकल जाते. छुट्टी वाले दिन भी साथ फिल्म देखने जाते या फिर लौंग ड्राइव पर. कभी रमा अपने मायके जाती तो नंदिनी रूपेश के खानेपीने का ध्यान रखती और जब कभी नंदिनी कहीं चली जाती तो रमा विकास के खानेपीने का ध्यान रखती थी.

उस रोज भी यही हुआ था. रमा अपने भाई की शादी में गई थी, इसलिए रूपेश के खानेपीने की जिम्मेदारी नंदिनी पर ही थी. विकास भी औफिस के काम से शहर से बाहर गया था. कामवाली भी उस दिन नहीं आई थी. नंदिनी खाना पकाने के साथसाथ कपड़े भी धो रही थी. इसी बीच रूपेश आ गया, ‘‘भाभी,’’ उस ने हमेशा की तरह बाहर से ही आवाज लगाई.

‘‘अरे, भैया आ जाओ दरवाजा खुला ही है,’’ कह कर वह अपना काम करती रही.

रूपेश हमेशा की तरह सोफे पर बैठ गया और फिर टेबल पर पड़ा अखबार उठा कर पढ़ने लगा. तभी उस की नजर नंदिनी पर पड़ी, तो वह भौचक्का रह गया. भीगी सफेद साड़ी में नंदिनी का पूरा बदन साफ दिखाई दे रहा था और जब वह कपड़े सुखाने डालने के लिए अपने हाथ ऊपर उठाती तो उस का सुडौल वक्षस्थल का उभार और अधिक उभर आता. रूपेश अपलक देखे जा रहा था. उस के उरोज की सुडौलता देख कर उस का मन बेचैन हो उठा और उस ने अपनी नजर फेर ली, पर फिर बारबार उस की नजर वहीं जा कर टिक जाती.

‘‘भैया, चाय बनाऊं क्या?’’ कह कर नंदिनी ने जब अपनी साड़ी का पल्लू कमर में खोसा तो उस का गोरागोरा पूरा पेट दिखने लगा.

नंदिनी के मादक संगमरमरी जिस्म को देख रूपेश का पूरा शरीर थरथराने लगा. उसकी आंखें चौंधिया गईं और उत्तेजना की लहर पूरे जिस्म में फैल गई. आज से पहले नंदिनी को उस ने इस प्रकार कभी नहीं देखा था. नंदिनी को इस अवस्था में देख उस का अंगअंग फड़कने लगा और बेचैन रूपेश ने क्षण भर में ही एक फैसला ले लिया. नंदिनी कुछ समझ पाती उस

से पहले ही उस ने उसे अपनी बांहों में भींच लिया और फिर अपने जलते होंठ उस के अधरों पर रख दिए और जोरजोर से उस के होंठों को चूसने लगा.

नंदिनी कुछ बोल नहीं पा रही थी. अवाक सी आंखें फाड़े उसे एकटक देखे जा रही थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि जिसे वह भाईर् मानती आई है आज वह उस के साथ क्या करने की कोशिश कर रहा है, क्योंकि रूपेश की सरलता और सहजता देख कभी उसे ऐसा नहीं लगा था कि उस के अंदर इतना यौन आक्रमण भरा हुआ है.

रूपेश का यह रूप देख नंदिनी सिहर उठी. भरसक अपनेआप को उस से छुड़ाने का प्रयास करने लगी, पर सब बेकार था. वह अभी भी नंदिनी के होठों को चूसे जा रहा था. उस का एक हाथ नंदिनी के स्तनों पर गया. जैसे ही उस ने नंदिनी के स्तन को जोर से दबाया वह चीख के साथ बेहोश हो गई और फिर जब होश आया तब तक अनहोनी हो चुकी थी.

अपनी करनी पर माफी मांग रूपेश तो वहां से भाग निकला, लेकिन वह रात नंदिनी के लिए अमावस्या की काली रात बन गई. कैसे उस ने पूरी रात खुद में सिमट कर बिताई, वही जानती. मुंह से कोई शब्द नहीं निकल पा रहा था. बस आंखों के रास्ते आंसुओं का दरिया बहे जा रहा था. समझ में नहीं आ रहा था कि किस से कहे और कैसे? जब विकास को इस बात का पता चला तो सहानभूति दिखाने के बजाय वह उसे ही भलाबुरा कहने लगा कि जरूर दोनों का पहले से ही नाजायज रिश्ता रहा होगा और अब जब उसे पता चल गया तो वह रोनेधोने का नाटक कर रही है.

विकास और नंदिनी के घर वाले रूपेश के खिलाफ पुलिस में बलात्कार का केस दर्ज कराने घर से निकल ही रहे थे कि तभी ऐन वक्त पर वहां रमा पहुंच गई और नंदिनी के पैरों में गिर कर गिड़गिड़ाते हुए अपने पति के जीवन की भीख मांगने लगी, अपने छोटेछोटे बच्चों की दुहाई देने

लगी. रूपेश भी नंदिनी के पैरों में लोट गया. कहने लगा कि चाहे नंदिनी उसे जो भी सजा दे दे, पर पुलिस में न जाए. वरना वह मर जाएगा. अपनी बेइज्जती बरदाश्त नहीं कर पाएगा.

दोनों पति पत्नी की दशा देख नंदिनी का दिल पसीज गया. कहने लगी कि उस के साथ जो होना था सो तो हो गया, अब क्यों इतनी जिंदगियां बरबाद हों? यह सुन कर तो सब का पारा गरम हो गया. विकास तो कहने लगा कि जरूर नंदिनी और रूपेश का नाजायज रिश्ता है और इसीलिए उस ने अपना फैसला बदल दिया.

नंदिनी के मां-पापा भी गुस्से से यह बोल कर निकल गए कि अब नंदिनी से उन का कोई वास्ता नहीं है, सोच लेंगे कि उन की 1 ही बेटी है. कितना समझया नंदिनी ने सब को कि ऐसी कोई बात नहीं है और इस से क्या हो जाएगा, उलटे उस की भी बदनामी होगी सब जगह, पर किसी ने उस की बात नहीं सुनी और उसे ही दोषी मान कर वहां से चले गए.

मगर नंदिनी गलत थी, क्योंकि कुछ महीने बाद ही रमा और रूपेश ने यह बात फैलानी शुरू कर दी कि नंदिनी अच्छी औरत नहीं है. दूसरे मर्दों को फंसा कर अपनी हवस पूरी करना उस की आदत है. रूपेश को भी उस ने अपने जाल में फंसा रखा था और मौका मिलते ही उसे अपनी हवस का शिकार बना डाला और फिर रोनेधोने का नाटक करने लगी.

यह सुन कर पासपड़ोस की औरतों ने अपनेअपने मुंह पर हाथ रख लिया और ‘हायहाय’ करने लगीं. जो महल्ले की औरतें नंदिनी से रोज बातें करती थीं, अब उसे देख कर मुंह फेरने लगीं और तरहतरह की बातें बनाने लगीं. रूपेश को ले कर विकास ने भी उस पर गंदेगंदे इलजाम लगाए, कहा कि अगर वह सही थी तो क्यों नहीं उस के खिलाफ पुलिस में मामला दर्ज करवाया?

दुनिया की तो वह सुन ही रही थी पर जब उस का पति भी इस तरह उस पर इलजाम लगाने लगा, तो वह टूट गई. विकास की बातों ने उस का कलेजा छलनी कर दिया, ‘‘पहले तो मुझे शंका थी, पर अब वह यकीन में बदल गई. तुम जितनी सतीसावित्री दिखती हो उतनी हो नहीं. मेरी पीठ पीछे मेरे ही दोस्त के साथ… छि: और नाम क्या दे दिया इस रिश्ते को, भाईबहन का रिश्ता ताकि लोगों

को लगे कि यह तो बड़ा ही पवित्र रिश्ता है. है न? धूल झोंक रह थी मेरे आंखों में?

‘‘अरे, जो लोग मुझे टोकने तक की हिम्मत नहीं करते थे, आज वही लोग मेरी आंखों में आंखें मिला कर बात करने की जुर्रत करते हैं सिर्फ तुम्हारी वजह से. नहीं रहना अब मुझे इस घर में,’’ कह कर विकास घर से निकल गया और साथ में बच्चों को भी यह कह कर ले गया कि उस के साथ रह कर उन के भी संस्कार खराब हो जाएंगे. आज नंदिनी के साथ कोई नहीं था सिवा बदनामी के.

बड़ी हिम्मत कर एक रोज उस ने अपने मांबाप को फोन लगाया, पर उन्होंने फोन नहीं उठाया. जब विकास को फोन लगाया तो पहले तो उस ने फोन काटना चाहा, लेकिन फिर कहने लगा, ‘‘क्या यही सफाई देना चाहती हो कि तुम सही हो और लोग जो बोल रहे हैं वह गलत? तो साबित करो न, करो न साबित कि तुम सही हो और वह इंसान गलत. साबित करो कि छल से उस ने तुम्हारी इज्जत पर हाथ डाला.

‘‘माफ कर दूंगा मैं तुम्हें, लेकिन तुम ऐसा नहीं करोगी नंदिनी, पता है मुझे. इसलिए आज के बाद तुम मुझे कभी फोन मत करना,’’ कह कर विकास ने फोन पटक दिया. नंदिनी कुछ देर तक अवाक सी खड़ी रह गईर्.

‘सही तो कह रहे हैं विकास और मैं कौन सा रिश्ता निशा रही हूं और किस के साथ? जब उस ने ही रिश्ते की लाज नहीं रखी तो फिर मैं क्यों दुनिया के सामने जलील हुई जा रही हूं?’ परिवार से रुसवाई, समाज में जगहंसाई और

पति से विरह के अलावा मिला ही क्या मुझे? आज भी अपने पति के प्रति मेरी पूरी निष्ठा है. लेकिन छलपूर्वक मेरी निष्ठा को भ्रष्ट कर दिया उस दरिंदे ने. मेरा तनमन छलनी कर दिया उस ने, तो फिर क्यों मैं उस हैवान को बचाने की सोच रही हूं?

सही कहा था दीदी ने मैं कोई अहिल्या नहीं जो बिना दोष के ही शिला बन कर सदियों तक दुख भोगूं और इंतजार करूं किसी राम के आने का. मैं नंदिनी हूं नंदिनी जो गलत के खिलाफ हमेशा आवाज उठाती आई है, तो फिर आज जब मुझ पर आन पड़ी तो कैसे चुप रह गई मैं? नहीं, मैं चुप नहीं रहूंगी. बताऊंगी सब को कि उस दरिंदे ने कैसे मेरे तनमन को छलनी किया. कोमल हूं कमजोर नहीं, मन ही मन सोच कर नंदिनी ने अपनी दीदी को फोन लगाया.

नंदिनी के जीजाजी के एक दोस्त का भाई वकील था, पहले दोनों बहनें उन के पास गईं और फिर सारी बात बताई. सारी बात जानने के बाद वकील साहब कहने लगे, अगर यह फैसला रेप के तुरंत बाद लिया गया होता, तो नंदिनी का केस मजबूत होता, लेकिन सुबूतों के अभाव की वजह से अब यह केस बहुत वीक हो गया है, मुश्किल है केस जीत पाना. शायद पुलिस भी अब एफआईआर न लिखे.’’

‘‘पर वकील साहब, कोई तो रास्ता होगा न? ऐसे कैसे कुछ नहीं हो सकता? नंदिनी की दीदी बोली.

‘‘हो सकता है, अगर गुनहगार खुद ही अपना गुनाह कबूल कर ले तो,’’ वकील ने कहा.

‘‘पर वह ऐसा क्यों करेगा?’’ वकील की बातों से नंदिनी सकते में आ गई, क्योंकि उस के सामने एक बड़ी चुनौती आ खड़ी हुई थी. लेकिन उसे उस इंसान को सजा दिलवानी ही है, पर कैसे यह सोचसोच कर वह परेशान हो उठी. घर आ कर भी नंदिनी चिंता में डूबी रही. बारबार वकील की कही यह बात कि सुबूत न होने की वजह से उस का केस बहुत वीक है उस का दिमाग झझकोर देती. वह न चैन से सो पा रही थी और न ही बैठ. परेशान थी कि कैसे वह रूपेश के खिलाफ सुबूत जुटाए और कैसे उसे जल्द से जल्द सजा दिलवाए. पर कैसे? यही बात उसे समझ में नहीं आ रही थी. तभी अचानक उस के दिमाग में एक बात कौंधी और तुरंत उस ने अपनी दीदी को फोन लगा कर सारा मामला समझा दिया.

‘‘पर नंदिनी, यह काम इतना आसान नहीं

है बहन,’’ चिंतातुर उस की दीदी ने कहा. उसे लगा कि कहीं नंदिनी किसी मुसीबत में न फंस जाए.

‘‘जानती हूं दीदी, पर मुश्किल भी नहीं, मुझे हर हाल में उसे सजा दिलवानी है, तो यह रिस्क उठाना ही पड़ेगा अब. कैसे छोड़ दूं उस इंसान

को मैं दीदी, जिस ने मेरी इज्जत और आत्मसम्मान को क्षतविक्षत कर दिया. उस के कारण ही मेरा पति, बच्चा मुझ से दूर हो गए,’’ कह वह उठ खड़ी हुई.

‘‘आप यहां?’’ अचानक नंदिनी को अपने सामने देख रूपेश चौंका.

‘‘घबराइए नहीं भा… सौरी, अब तो मैं आप को भैया नहीं बुला सकती न. वैसे हम कहीं बैठ कर बातें करें?’’ कह कर नंदिनी उसे पास की ही एक कौफी शौप में ले गई. वहां उस का हाथ पकड़ कर कहने लगी, ‘‘रूपेश, आप उस बात को ले किर गिल्टी फील मत कीजिए और सच तो यह है कि मैं भी आप को चाहने लगी थी. सच कहती हूं, जलन होती थी मुझे उस मोटी रमा से जब वह आप के करीब होती.

‘‘भैया तो मैं आप को इसलिए बुलाती थी ताकि विकास और रमा बेफिक्र रहें, उन्हें शंका न हो हमारे रिश्ते पर. जानते हैं जानबूझ कर मैं ने उस रोज अपनी बाई को छुट्टी दे दी थी. लगा विकास भी बाहर गए हुए हैं तो इस से अच्छा मौका और क्या हो सकता है.’’

‘‘जैसा प्लान बना रखा था मैं ने ठीक वैसा ही किया. पारदर्शी साड़ी पहनी.

दरवाजा पहले से खुला रखना भी मेरे प्लान में शामिल था रूपेश. अगर आप न हरकत करते उस दिन तो मैं ही आप के आगोश में आ जाती. खैर, बातें तो बहुत हो गईर्ं, पर अब क्या सोचा है?’’ उस की आंखों में झांकते हुए नंदिनी बोली, ‘‘कभी विकास और रमा को हमारे रिश्ते के बारे में पता न चले यह ध्यान मैं ने हमेशा रखा,’’ कह कर रूपेश को चूम लिया और जता दिया कि वह उस से क्या चाहती है.

पहले तो रूपेश को थोड़ा अजीब लगा, लेकिन फिर नंदिनी की साफसाफ बातों से उसे पता चल गया कि वह भी उसी राह की राही है जिस का वह.

फिर तय हुआ कल दोनों एक होटल में मिलेंगे, जो शहर से दूर है.

‘‘क्या बहाना बनाया आप ने रमा से?’’ रूपेश की बांहों में समाते हुए नंदिनी ने पूछा. ‘‘यही कि औफिस के काम से दूसरे शहर जा रहा हूं और तुम ने क्या बहाना बनाया?’’

‘‘मैं क्या बहाना बनाऊंगी, विकास मेरे साथ रहते ही नहीं अब,’’ अदा से नंदिनी ने कहा, ‘‘कब का छोड़ कर चला गया वह मुझे. अच्छा ही हुआ. वैसे भी वह मुझे जरा भी पसंद नहीं था,’’ कह कर नंदिनी ने रुपेश को चूम लिया.

पक्षी को जाल में फंसाने के लिए दाना तो डालना ही पड़ता है न, सो नंदिनी वही कर रही थी. पैग नंदिनी ने ही बनाया और अब तक 3-4 पैग हो चुके थे. नशा भी चढ़ने लगा था धीरे-धीरे.

‘‘अच्छा रूपेश, सचसच बताना, क्या तुम भी मुझे पसंद करते थे?’’ बात पहले उस ने ही छेड़ी.

‘‘सच कहूं नंदिनी,’’ नशे में वह सब सहीसही बकने लगा, ‘‘जब तुम्हें

पहली बार देखा था न तभी मुझे कुछकुछ होने लगा था. लगा था कि विकास कितना खुशहाल है जो तुम जैसी सुंदर पत्नी मिली और मुझे मोटी थुलथुल… जलन होती थी मुझे विकास से. जब भी मैं तुम्हें देखता था मेरी लार टपकने लगती थी. लगता कैसे मैं तुम्हें अपनी बांहों में भर लूं और फिर गोद में उठा कर कमरे में ले जाऊं और फिर… लेकिन जब तुम मुझे भैया कह कर बुलाती थी न, तो मेरा सारा जोश ठंडा पड़ जाता. ‘‘मौका ढूंढ़ता था तुम्हारे करीब आने का और उस दिन मुझे वह मौका मिल ही गया.

‘‘तुम्हारे गोरेगोरे बदन को देख उस दिन मैं पागल हो गया. लगा अगर तभी तुम्हें न पा लूं तो फिर कभी ऐसा मौका नहीं मिलेगा. सच में मजा आ गया था उस दिन तो,’’ एक बड़ा घूंट भरते हुए वह बोला, ‘‘जो मजा तुम में है न नंदिनी वैसा कभी रमा के साथ महसूस नहीं किया मैं ने. वैसे तुम चुप क्यों हो गई नंदिनी, बोलो कुछ…’’

जैसे ही उस ने ये शब्द कहे, कमरे की लाइट औन हो गई. सामने पुलिस को देख

रूपेश की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. फिर जब नंदिनी के व्यंग्य से मुसकराते चेहरे को देखा,

तो समझ गया कि ये सब उसे फंसाने की साजिश थी अब वह पूरी तरह इन के चंगुल में फंस

चुका है.

फिर भी सफाई देने से बाज नहीं आया, कहने लगा, ‘‘इंस्पैक्टर साहब, म… म… मेरा कोई दोष नहीं है… इस ने मुझे यहां बुलाया था तो मैं आ गया.’’

‘‘हां, मैं ने ही तुम्हें यहां बुलाया था पर क्यों वह भी सुन लो’’, कह कर नंदिनी ने अपना सारा प्लान उसे बता दिया.

एक न चली रूपेश की, क्योंकि सारी सचाई अब पुलिस के सामने थी, सुबूत के साथ, जो नंदिनी ने अपने फोन में रिकौर्ड कर लिया था. पुलिस के डर से रूपेश ने अपना सारा गुनाह कबूल कर लिया. नंदिनी से जबरन बलात्कार और उसे बदनाम करने के जुर्म में कोर्ट ने रूपेश को 10 साल की सजा सुनाई.

गलत न होने के बाद भी नंदिनी को दुनिया के सामने जलील होना पड़ा, अपने पति बच्चों से दूर रहना पड़ा. सोच भी नहीं सकती थी वह कि जिस इंसान को उस ने दिल से भाई माना, वह उस के लिए इतनी गंदी सोच रखता था. रूपेश की सजा पर जहां नंदिनी ने सुकून की सांस ली वहीं विकास और उस के मायके वाले बहुत खुश थे.

अगर नंदिनी ने यह कदम न उठाया होता आज तो वह दरिंदा फिर किसी और नंदिनी को अपनी हवस का शिकार बना देता और फिर उसे ही दुनिया के सामने बदनाम कर खुद बच निकलता. रूपेश को उस के कर्मों की सजा मिल चुकी थी और नंदिनी को सुकून.

मीठे में बनाएं मखाने की खीर, बहुत आसान है ये रेसिपी

मखाने प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट से भरपूर होते हैं. और मखाने की खीर बड़ी मजेदार होती है, और बच्चों को बेहद पसंद आती है. तो इस वाकेंड आप बनाएं मखाने की खीर.

सामग्री

दूध – 1 लीटर

मखाने – 1 कप

घी – 1 छोटा चम्मच

चिरौंजी – 1 छोटा चम्मच

काजू – 1 बड़ा चम्मच

बादाम – 10

हरी इलायची – 4

चीनी – ¼ कप

विधि

काजू, बादाम और पिस्ता को महीन-महीन कतर लीजिए. हरी इलायची का बाहरी छिलका निकालें और दानों को दरदरा कूट लें. मखाने को महीन-महीन काट लें या फिर मिक्सी में दरदरा पीस लें.

एक भारी तली के बर्तन में घी गरम करिए और उसमें मखाने को 1 मिनट के लिए भून लीजिए. अब दूध डालिए और अच्छे से मखाने को दूध में मिलाइए.

पहले उबाल के बाद आंच को धीमा कर दीजिए और मखाने को दूध में तब तक पकने दीजिए, जब तक कि मखाने पूरी तरह से गल जाएं और दूध में मिल जाएं.

इस प्रक्रिया में तकरीबन 40 मिनट लगते हैं. 5-7 मिनट के अंतराल पर दूध को अच्छे से चलाइए जिससे कि वो तली में लगने ना पाए.

अब कटे हुए मेवे और शक्कर को दूध में अच्छे से मिलाकर एक और मिनट के लिए पकाएं. आंच को बंद कर दें. कुटी हुई इलायची मिलाएं.

अब खीर को ठंडा होने दीजिए. स्वादिष्ट खीर तैयार है परोसने के लिए.

चक्रव्यूह भेदन : वान्या क्यों सोचती थी कि उसकी नौकरी से घर में बरकत थी

जून का महीना था. सुबह के साढ़े 8 ही बजे थे, परंतु धूप शरीर को चुभने लगी थी. दिल्ली महानगर की सड़कों पर भीड़ का सिलसिला जैसे उमड़ता ही चला आ रहा था. बसें, मोटरें, तिपहिए, स्कूटर सब एकदूसरे के पीछे भागे चले जा रहे थे. आंखों पर काला चश्मा चढ़ाए वान्या तेज कदमों से चली आ रही थी. उसे घर से निकलने में देर हो गई थी. वह मन ही मन आशंकित थी कि कहीं उस की बस न निकल जाए. ‘अब तो मुझे यह बस किसी भी तरह नहीं मिल सकती,’ अपनी आंखों के सामने से गुजरती हुई बस को देख कर वान्या ने एक लंबी सांस खींची. अचानक लाल बत्ती जल उठी और वान्या की बस सड़क की क्रौसिंग पर जा कर रुक गई.

वान्या भाग कर बस में चढ़ गई और धक्कामुक्की करती हुई अपने लिए थोड़ी सी जगह बनाने लगी. उस ने इधरउधर दृष्टि दौड़ाई. बस की सारी सीटें भर चुकी थीं. कहींकहीं 2 की सीट पर 3 लोग बैठे थे. कोई और उपाय न देख कर वह भी बस में खड़े अन्य यात्रियों की कतार में खड़ी हो गई. बस में बैठे पुरुषों में से किसी ने भी उठ कर उसे सीट देने की सहानुभूति न जताई. वान्या सोचने लगी, ‘ठीक ही तो है, जब महिलाओं ने घर से निकल कर बाहर की दुनिया में कदम रखा है, तो उन्हें अब अपनी सुकुमारता भी छोड़नी ही होगी.’

हरी बत्ती जल चुकी थी और बस ने क्रौसिंग पार कर के गति पकड़ ली थी. ‘उफ, इतनी गरमी और ऊपर से यह भीड़,’ वान्या पर्स से टिकट के पैसे निकालते हुए बुदबुदाई. वह अपनेआप को संभाल भी नहीं पाई थी कि बस अचानक एक ओर मुड़ी. बस के मुड़ने के साथ ही वान्या सामने की सीट पर बैठे पुरुष यात्रियों के ऊपर जा गिरी. किसी तरह उस ने पर्स से पैसे निकाल कर टिकट खरीदा और बस की छत में लगे पाइप को मजबूती से पकड़ कर खड़ी हो गई.

पड़ोसिन ने एक दिन व्यंग्य कसा था, ‘नौकरी करने में कितना आनंद है, प्रतिदिन अच्छीअच्छी साडि़यां पहनना और सुबहसुबह बनसंवर कर सैर को चल देना.’ ‘उन्हें तो मेरा सिर्फ बननासंवरना ही नजर आता है. बसों में भीड़ के बीच इस तरह पिचके रहना और घंटों हाथ ऊपर कर के खड़े रहना नजर ही नहीं आता. उस पर सारा दिन शिशु सदन में पड़े बच्चों की चिंता अलग से रहती है,’ वान्या अपने विचारों में खोई हुई थी कि अचानक उस ने अपने ऊपर कुछ भार सा महसूस किया. पलट कर देखा तो एक महाशय भीड़ का फायदा उठा कर अनावश्यक रूप से उस के ऊपर झुके जा रहे थे.

‘‘जरा सीधे खड़े रहिए,’’ वान्या खिसियाते हुए बोली.

बस ने गति पकड़ ली थी और इस के साथ ही वान्या के मन की परतें भी उघड़ने लगीं… 

आज तो कपड़े धो कर सूखने के लिए डालना ही भूल गई. सारे कपड़ों में सिलवटें पड़ गई होंगी और शाम को जा कर उन्हें फिर से पानी में निकालना पड़ेगा. सुबहसुबह काम का इतना तूफान मचा होता है कि कुछ होश ही नहीं रहता. बिस्तर से उठते ही सब से पहले पानी का झमेला. इसी बीच पति की चाय की फरमाइश. नौकरीपेशा महिलाओं की जिम्मेदारियां तो दोहरी हो गईं, परंतु पुरुषों की जिम्म्ेदारियां वहीं की वहीं रह गईं. शायद पुरुष यह सोचते हैं कि जब औरत में इतनी सामर्थ्य है कि वह घर का कामकाज संभालने के साथ बाहर का भी कर सकती है तो क्यों न उस के सामर्थ्य का सदुपयोग किया जाए.’

‘वान्या, जरा बाहर देखना, शायद समाचारपत्र आ गया होगा,’ अक्षत ने बिस्तर में लेटेलेटे ही आवाज दी थी. सोनू और लवी अभी सो कर नहीं उठे थे. सो उसे ही समाचारपत्र लाने के लिए बाहर भागना पड़ा था. वह चाय का घूंट भी नहीं ले पाई थी कि उस की कामवाली आ गई थी. फिर तो सारे काम छोड़ कर वह मायारानी की सहायिका बन कर उस के पीछेपीछे घूमती रही. मायारानी को बरतन धोने हैं तो पानी गरम कर के वह दे, उसे झाड़ू मारनी है तो सोफा, टेबल वह खिसकाए. माया की बच्ची रोए तो उसे भी चुप कराए. फिर मायारानी का काम समाप्त होने पर उसे चाय बना कर पिलाए. उसे दफ्तर के लिए देर माया के कारण ही हुई थी.

वान्या चिल्लाती रही, ‘माया, जल्दी, चाय पी ले, मुझे दफ्तर को देर हो रही है.’ पर वह बालकनी में बैठी अपनी 2 वर्षीया बेटी कमली को खिलाने में लगी थी.

‘तू यहां क्या कर रही है माया, अभी कमरे में पोंछा लगाना बाकी है.’आवाज सुनते ही वह हड़बड़ा कर उठी थी और पोंछा लगाने के लिए चल पड़ी थी. वान्या सोनू के टिफिन में सैंडविच डाल कर लवी की शिशु सदन की टोकरी तैयार करने लगी थी. दूध की बोतल, बदलने के लिए फ्रौक, बिस्कुट, फल आदि सबकुछ उस ने ध्यान से टोकरी में रख दिया था. अब सिर्फ लवी को दलिया खिलाना बाकी था. उस ने अक्षत को आवाज दी, ‘सुनो जी, जरा लवी को दलिया खिला देना, मैं सोनू की कमीज में बटन टांक रही हूं.’

‘वान्या, तुम मुझे प्रतिदिन दफ्तर के लिए देर कराती हो. अभी मुझे स्वयं भी तैयार होना है, सोनू को बस तक छोड़ना है.’ शिशु सदन का नाम सुनते ही वान्या की 3 वर्षीया बेटी लवी बिफर पड़ी थी, ‘मैं नहीं जाऊंगी वहां.’ लवी का यह रोनाधोना और फिर उसे मनाना उस का प्रतिदिन का काम था. 10-15 मिनट का समय तो इसी में निकल जाता था. वान्या लवी के आंसू पोंछ कर उसे पुचकारने लगी थी.

‘मैं तो कहता हूं वान्या, तुम यह नौकरी छोड़ दो. मेरा वेतन अब इतना तो हो ही चुका है कि मैं तुम्हारी नौकरी के बिना भी घर का खर्च चला सकता हूं,’ अक्षत ने गुसलखाने में जातेजाते कहा था. शायद अपनी लाड़ली बेटी को रोता हुआ देख कर उस का हृदय द्रवित हो उठा था. ‘तुम्हारी यह बेटी जरा सा रोई नहीं कि तुम तुरंत मेरी नौकरी छुड़वाने के बारे में सोचने लगते हो. याद नहीं तुम्हें, कितनी मुश्किलों से मिली है मुझे यह नौकरी,’ वान्या अक्षत को बीते दिनों की याद दिलाना चाहती थी.

अक्षत को कार्यालय के लिए देर हो रही थी. वह नहाने के लिए गुसलखाने की ओर चला गया और वान्या सोचती रही, ‘कितने पापड़ बेले हैं इस नौकरी को पाने के लिए और आज चार पैसे घर में लाने लगी हूं तभी तो थोड़ा सलीके से रह पा रहे हैं. इस नौकरी के पहले तो न उन के पास ढंग के कपड़ेलत्ते होते थे और न ही कोई कीमती सामान. उसे तो सिर्फ 2-4 साडि़यों में ही गुजारा करना पड़ता था. बेचारे सोनू के पास तो केवल 2 ही स्वेटर हुआ करते थे. अक्षत के पास स्कूटर तो क्या साइकिल भी नहीं हुआ करती थी. बस स्टौप तक पहुंचने के लिए उन्हें काफी दूर तक पैदल चलना पड़ता था. उन दिनों प्रतिदिन रिकशे का भाड़ा भी तो देने की सामर्थ्य नहीं थी उन में. एक बच्चे को भी वह पूरा पौष्टिक आहार नहीं दे पाती थी.

‘नहींनहीं, कभी नहीं छोड़ूंगी मैं यह नौकरी,’ वान्या सोचतेसोचते मुखर हो उठी थी.

डै्रसिंग टेबल के सामने खड़ा अक्षत उसे तिरछी नजरों से देख रहा था. शायद वह वान्या की मनोस्थिति को समझने की कोशिश कर रहा था. वान्या सोनू को नाश्ते के लिए आवाज लगा कर उस का बैग स्कूटर पर रखने लगी थी. अक्षत ने स्कूटर स्टार्ट किया तो उस ने स्कूटर के पीछे बैठे सोनू के सिर पर प्यार से हाथ फेरा. 10 वर्षीय सोनू समय से पहले ही इतना गंभीर हो गया था. वान्या को ऐसा लगता, जैसे वह अपराधिनी है, उस ने ही अपने बच्चों से उन का बचपन छीन लेने का अपराध किया है. वह खयालों में खोई हुई दूर तक जाते हुए अक्षत के स्कूटर को देखती रही. अचानक उसे ध्यान आया, अभी तो कमरे में फैला सारा सामान समेटना है. वह भाग कर ऊपर आई. उस ने एक दृष्टि पूरे कमरे में दौड़ाई. बिस्तर पर गीला तौलिया पड़ा था. उस ने तौलिए को निचोड़ कर बालकनी में फैला दिया. वान्या ने बिजली की गति से भागभाग कर सामान समेटना शुरू किया. सभी वस्तुओं को यथास्थान रखने में उसे कम से कम 10 चक्कर लगाने पड़े. नाश्ते का निवाला निगलतेनिगलते उसे ध्यान आया, ‘कहीं मायारानी गुसलखाने की बालटी खाली तो नहीं कर गई.’

वान्या ने स्नानघर में जा कर देखा तो बालटी सचमुच ही खाली पड़ी थी. अब तो पानी भी जा चुका था. वह गुस्सा पी कर रह गई. अभी उसे तैयार भी होना था. घड़ी की सूइयों पर नजर गई तो हड़बड़ा कर अलमारी में से साड़ी निकालने लगी. लवी को शिशु सदन में छोड़ते समय वान्या का मन बहुत विचलित हो गया था. उस की सोच जारी थी, ‘आखिर क्या दे पा रही है वह अपने बच्चों को इस नौकरी से? इस उम्र में जब उन्हें उस के प्यार की जरूरत है, तो वह उन्हें छोड़ कर दफ्तर चली जाती है और शाम को जब थकीहारी लौटती है तो उन्हें दुलारने, पुचकारने का उस के पास समय नहीं होता. आखिर इस नौकरी से उसे मिलता ही क्या है? सुबह से शाम तक की भागदौड़ जीवन स्तर बढ़ाने की होड़ और इस होड़ में कुछ भी तो नहीं बचा पाती वह अपनी आमदनी का.

‘जब वह नौकरी नहीं करती थी तो उस का काम 4-5 साडि़यों में ही चल जाता था, लेकिन कार्यालय के लिए अब 15-20 साडि़यां भी कम पड़ती हैं. वर्ष में 2-3 जोड़ी चप्पलें घिस ही जाती हैं. ऊपर से पाउडर, क्रीम, लिपस्टिक का खर्चा अलग से. पतिपत्नी दोनों कमाऊ हों तो ससुराल वाले भी कुछ ज्यादा ही अपेक्षा करते हैं. वह तो बस सुखसुविधा के साधन जुटाने की मशीन बन कर रह गई है और दिनरात पिस रही है, इसी चक्की में. पारिवारिक स्नेह और प्यार की जगह अब टीवी और स्टीरियो ने ले ली है. किसी को एकदूसरे से बात करने तक की फुरसत नहीं है.

‘उफ, नहीं करूंगी मैं ऐसी नौकरी,’ वान्या के होंठों से कुछ अस्फुट स्वर निकल पड़े. आसपास की सवारियों ने उसे चौंक कर देखा, तो उस की विचारतंद्रा रुकी. अब उस की आंखें बस की खिड़की से कहीं दूर कुछ तलाश रही थीं.

उसे फैसला करने में 4-5 दिन लगे. साथ काम करने वाली महिलाओं ने विरोध किया, ‘‘क्या मियां की पैर की जूती बन कर रहेगी?’’

चटकमटक वीना ने कहा, ‘‘लीना का पति रोज उस से झगड़ता था. उस ने पिछले 3 साल से अलग मकान ले रखा है.’’

‘‘हमारे पास इतनी दौलत कहां कि नौकरी छोड़ सकें,’’ यह सरोज का कहना था. कांतिहीन चेहरे वाली सरोज घर और दफ्तर के बीच पिस रही थी. वान्या को दोनों की सलाह में स्वार्थ नजर आया. फिर भी उस ने जी कड़ा कर के त्यागपत्र दे दिया. 2-4 दिन घर पर बेफिक्री से बीते. ढेरों काम थे, रसोई सड़ी हुई थी. पहले घर में डब्बाबंद सामान ही खाया जाता था, अब वह खुद बनाने लगी. बेटी भी अब संयत होने लगी. 7-8 दिन बाद अक्षत बोला, ‘‘मैं 4 दिनों के लिए टूर पर जा रहा हूं. तुम्हें दिक्कत तो न होगी?’’

‘लो बोलो, घर बैठी नहीं कि पति के पर निकलने लगे,’ वान्या ने सोचा. फिर विवाद न खड़ा करने की नीयत से बोली, ‘‘दिक्कत क्यों होगी, आप निश्चिंत हो कर जाइए.’’ अक्षत के बिना 4 दिन काफी लगने लगे. पहले वह टूर पर जाना टाल देता था कि वान्या को दिक्कत होगी. वह घर का जो छोटामोटा काम कर देता था, वह कौन करेगा… 

4 दिन बाद जब अक्षत लौटा तो बहुत खिलाखिला था, बोला, ‘‘मेरे अधिकारी भी साथ थे. मेरे काम से बहुत खुश थे. वहीं मेरी तरक्की भी कर दी और यह लो 5 हजार रुपए बोनस भी दिया है.’’

थोड़ी देर बाद अक्षत फिर बोला, ‘‘अधिकारी कह रहे थे कि पहले घरेलू कठिनाइयों के कारण ही वे मुझे जिम्मेदारियां देने से कतरा रहे थे. वे नहीं चाहते थे कि बाहर जाने के कारण घर में विवाद हो.’’ वान्या सन्न रह गई. वह तो सोचती थी कि उस की नौकरी से घर में बरकत थी, पर यह तो उलटा था. उसे अपने निर्णय पर गर्व हो आया. उस ने सोचा कि नौकरी नहीं तो क्या, वह भी तो अक्षत की कमाई में हिस्सा देती ही है.

बांझ : राधा को बाबा ने कैसे मां बनाया

लेखक- ज्ञान ज्योति

रोज की तरह आज की सुबह भी सास की गाली और ताने से ही शुरू हुई. राधा रोजरोज के झगड़े से तंग आ चुकी थी, लेकिन वह और कर भी क्या सकती थी? उसे तो सुनना था. वह चुपचाप सासससुर और पड़ोसियों के ताने सुनती और रोती.

राधा की शादी राजेश के साथ 6 साल पहले हुई थी. इन 6 सालों में जिन लोगों की शादी हुई थी, वे 1-2 बच्चे के मांबाप बन गए थे. लेकिन राधा अभी तक मां नहीं बन पाई थी. इस के चलते उसे बांझ जैसी उपाधि मिल गई थी.

राह चलती औरतें भी राधा को तरहतरह के ताने देतीं और बांझ कह कर चिढ़ातीं. राधा को यह सब बहुत खराब लगता, लेकिन वह किसकिस का मुंह बंद करती, आखिर वे लोग भी तो ठीक ही कहते हैं.

राधा सोचती, ‘मैं क्या करूं? अपना इलाज तो करा रही हूं. डाक्टर ने लगातार इलाज कराने को कहा है, जो मैं कर रही हूं. लेकिन जो मेरे वश में नहीं है, उसे मैं कैसे कर सकती हूं?’ एक दिन पड़ोस का एक बच्चा खेलतेखेलते राधा के घर आ गया. बच्चे को देख राधा ने उसे अपनी गोद में बिठा लिया और उसे प्यार से चूमने लगी.

जब सास ने राधा को दूसरे के बच्चे को चूमते हुए देखा, तो वह बिफर पड़ी. वह उस की गोद से बच्चे को छीनते हुए बोली, ‘‘कलमुंही, बच्चा पैदा करने की तो ताकत है नहीं, दूसरों के बच्चों से अपना मन बहलाती है.

‘‘अरी, तू क्यों डालती है अपना मनहूस साया दूसरों के बच्चे पर…?

‘‘तू तो उस बंजर जमीन की तरह है, जहां फसल तो दूर घास भी उगना पसंद नहीं करती.’’

जब राधा से सास की बातें नहीं सुनी गईं, तो वह अपने कमरे में जा कर अंदर से दरवाजा बंद कर रोने लगी. रात को राजेश के आने पर राधा ने रोते हुए सारी बात उसे बता दी और बोली, ‘‘मैं बड़ी अभागिन हूं. मैं किसी की इच्छा पूरी नहीं कर सकती, ऊपर से मुझ पर बांझ होने का धब्बा भी लग चुका है.’’

राधा की बातें सुन कर राजेश ने कहा, ‘‘तुम मां की बातों का बुरा मत मानो. उन्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए. हर मांबाप की इच्छा होती है कि उन के परिवार को आगे बढ़ाने वाला उन के रहते हुए ही आ जाए. तुम से यह इच्छा पूरी नहीं होते देख कर मां तुम से उलटीसीधी बातें बोलती हैं. तुम चिंता मत करो, तुम्हारा इलाज चल रहा है. तुम जरूर मां बनोगी.’’

राधा बोली, ‘‘मेरी एक सहेली थी, वह भी बहुत दिनों बाद मां बनी थी. मां बनने में देर होते देख कर जब उस ने अपना इलाज कराया, तो जांच में उस में कोई कमी नहीं पाई गई. कमी उस के पति में थी. जब उस के पति ने इलाज कराया, तभी वह मां बन सकी.

‘‘हो सकता है, उसी की तरह आप में भी कोई कमी हो. इसलिए मैं चाहती हूं कि आप भी एक बार अपना इलाज करा लेते.’’

राधा की बात सुन कर राजेश भड़क उठा, ‘‘मुझ में भला क्या कमी हो सकती है? मैं तो बिलकुल ठीक हूं. मुझ में कोई कमी नहीं है.

‘‘मेरी चिंता छोड़ो, तुम अपना अच्छी तरह इलाज कराओ.’’

‘‘मैं मानती हूं कि आप में कोई कमी नहीं है, लेकिन तसल्ली की खातिर…’’ राधा ने सलाह देने के खयाल से ऐसा कहा, लेकिन राजेश ने उस की बात को बीच में ही काट दिया, ‘‘नहीं राधा, तसल्ली वगैरह कुछ नहीं. मैं ने कहा न कि मुझ में कोई कमी नहीं है,’’ राजेश ने उसे डांट दिया.

पति के भड़के मिजाज को देख राधा ने चुप रहना ही उचित समझा. शहर के बड़े से बड़े डाक्टर से उस का इलाज हुआ, फिर भी उस की कोख सूनी ही रही. डाक्टर ने जांच के दौरान उस में कोई कमी नहीं पाई.

‘‘देखो राधा, रिपोर्ट देखने के बाद तुम में कोई कमी नजर नहीं आती. शायद तुम्हारे पति में कोई कमी होगी. तुम एक बार उसे भी इलाज कराने की सलाह दो,’’ डाक्टर ने उसे समझाया.

अब राधा को पूरा भरोसा हो गया था कि उस में कोई कमी नहीं है. मां बनने के लिए कमी उस के पति में ही है, लेकिन उसे कौन समझाए. उसे राजेश के गुस्से से भी डर लगता था.

एक दिन किसी ने राधा की सास को बताया कि पास ही गांव के मंदिर में एक बाबा रहते हैं, जिस की दुआ से हर किसी का दुख दूर हो जाता है. सास ने यह बात अपने बेटे राजेश को बता दी और राधा को बाबा के पास भेजने को कहा. रात को राजेश ने राधा से कहा, ‘‘कल तुम मंदिर चली जाना.’’

‘‘ठीक है, मैं चली जाऊंगी, लेकिन मैं डाक्टर के पास गई थी. डाक्टर ने मुझ में कोई कमी नहीं बताई. इसलिए मैं चाहती हूं कि आप भी एक बार अपना…’’ डरतेडरते राधा कह रही थी, लेकिन राजेश ने उस की बात को अनसुना कर दिया.

‘‘राधा, मैं कहीं नहीं जाऊंगा. तुम कल मंदिर में बाबा के पास चली जाना,’’ ऐसा कह कर राजेश सो गया.

राधा ने भी अपने माथे पर लगा बांझपन का धब्बा मिटाने के लिए बाबा के पास जा कर उन से दुआ लेने की सोच ली. दूसरे दिन सवेरे नहाधो कर वह बाबा के पास चली गई. मंदिर में लगी भीड़ को देख कर उसे भरोसा हो गया कि वह भी बाबा की दुआ पा कर मां बन सकती है.

राधा बाबा के पैरों पर गिर पड़ी और कहने लगी, ‘‘बाबा, मेरा दुख दूर करें. मैं 6 साल से बच्चे का मुंह देखने के लिए तड़प रही हूं.’’

‘‘उठो बेटी, निराश मत हो. तुम्हें औलाद का सुख जरूर मिलेगा.

‘‘लेकिन, इस के लिए तुम्हें माहवारी होने के बाद यहां 4 दिनों तक रह कर लगातार पूजा करनी होगी.’’

‘‘ठीक है बाबा, मैं जरूर आऊंगी.’’ राधा खुशी से घर गई. घर आ कर उस ने सारी बातें अपने पति को बताईं.

‘‘मैं कहता था न कि जो काम दवा नहीं कर सकती, कभीकभी दुआ से हो जाती है. बाबा की दुआ पा कर अब तुम जरूर मां बनोगी, ऐसा मुझे भरोसा है. तुम ठीक समय पर बाबा के पास चली जाना,’’ राजेश ने खुश होते हुए कहा. राधा अब बेसब्री से माहवारी होने का इंतजार करने लगी. कुछ दिन बाद उसे माहवारी हो गई.

माहवारी पूरी होने के बाद राधा फिर बाबा के पास गई. उसे देखते ही बाबा ने कहा, ‘‘बेटी, जैसा कि मैं ने तुम्हें पहले भी कहा था कि यहीं रह कर 4 दिनों तक लगातार पूजा करनी पड़ेगी, तभी तुम मां बन सकोगी.’’

‘‘जी बाबा, मैं रहने के लिए तैयार हूं,’’ राधा ने कहा.

‘‘ठीक है, अभी तुम अंदर चली जाओ. रात से तुम्हारे लिए पूजा करनी शुरू करूंगा,’’ अपनी चाल को कामयाब होते देख बाबा मन ही मन खुश होते हुए बोला.

रात को बाबा ने राधा से कहा, ‘‘बेटी, इस पूजा के दौरान कोई भी देवता खुश हो कर तुम्हें औलाद दे सकता है. इस के लिए तुम्हें सबकुछ चुपचाप सहन करना पड़ेगा, नहीं तो तुम कभी मां नहीं बन पाओगी.’’

‘‘जी बाबा, मैं सबकुछ करने को तैयार हूं. बस, मुझे औलाद हो जानी चाहिए.’’

राधा के इतना कहने के बाद बाबा उसे एक कोठरी में ले गए, जहां हवनकुंड बना हुआ था. उस में आग जल रही थी. बाबा ने उसे वहीं पर बिठा दिया और वह भी बैठ कर जाप करने लगा.

कुछ देर तक जाप करने के बाद बाबा ने कहा, ‘‘राधा, देवता मुझ में समा चुके हैं. वह तुम्हें औलाद का सुख देना चाहते हैं, इसलिए तुम चुपचाप अपने बदन के सारे कपड़े उतार दो और औलाद पाने के लिए मेरे पास आ जाओ. वह तुम्हें दुआ देना चाहते हैं.’’

राधा ने यह सोच कर कि बाबा में देवता समा चुके हैं और देवता जो भी करते हैं, गलत नहीं करते, इसलिए उस ने अपने बदन के सारे कपड़े उतार दिए. बाबा उस के अंगों से खेलने लगा और उसे दुआ देने के नाम पर उस की इज्जत पर डाका डाल दिया. 4 दिनों तक लगातार बाबा ने इस पूजा के बहाने राधा से जिस्मानी संबंध बनाए. 5वें दिन बाबा ने कहा, ‘‘राधा बेटी, हमारी दुआ कबूल हो गई. पूजा भी पूरी हो गई. अब तुम जरूर मां बनोगी. तुम घर जा सकती हो.’’

बाबा की दुआ ले कर वह खुशीखुशी घर लौट आई. 9 महीने बाद राधा मां बन गई. उसे बाबा की दुआ लग गई थी. उस के माथे से बांझपन का धब्बा मिट चुका था. घर के सारे लोग बहुत खुश थे. राजेश को अब पूरा यकीन हो गया था कि उस में भी बाप बनने की ताकत है, लेकिन सचाई से सभी अनजान थे.

सयाना इश्क: क्यों अच्छा लाइफ पार्टनर नहीं बन सकता संजय

इक्कीस वर्षीया पीहू ने जब कहा, ”मम्मी, प्लीज, डिस्टर्ब न करना, जरा एक कौल है,” तो नंदिता को हंसी आ गई. खूब जानती है वह ऐसी कौल्स. वह भी तो गुजरी है उम्र के इस पड़ाव से.

”हां, ठीक है,” इतना ही कह कर नंदिता ने पास में रखी पत्रिका उठा ली. पर मन आज अपनी इकलौती बेटी पीहू में अटका था.

पीहू सीए कर रही है. उस की इसी में रुचि थी तो उस ने और उस के पति विनय ने बेटी को अपना कैरियर चुनने की पूरी छूट दी थी. मुंबई में ही एसी बस से वह कालेज आयाजाया करती थी. पीहू और नंदिता की आपस की बौन्डिंग कमाल की थी. पीहू के कई लड़के, जो स्कूल से उस के दोस्त थे, के घर आनेजाने में कोई पाबंदी या मनाही नहीं रही. अब तक कभी ऐसा नहीं हुआ था कि नंदिता को यह लगा हो कि पीहू की किसी विशेष लड़के में कोई खास रुचि है. उलटा, लड़कों के जाने के बाद नंदिता ही पीहू को छेड़ती, ‘पीहू, इन में से कौन तुम्हें सब से ज्यादा अच्छा लगता है?’

पीहू अपनी बड़ी बड़ी खूबसूरत आंखों से मां को घूरती और फिर हंस देती, ‘आप क्यों पूछ रही हैं, मुझे पता है. जासूसी करने की कोई जरूरत नहीं. इन में से कोई मुझे अलग से वैसे पसंद नहीं है जैसे आप सोच रही हैं.’

नंदिता हंस पड़ती और बेटी के गाल पर किस कर देती.

इधर 6 महीनों से पीहू में अगर कोई बदलाव आता तो यह कैसे संभव होता कि उस की दोस्त जैसी मां नंदिता से छिपा रहता. नंदिता ने नोट किया था कि अब पीहू घर आने के बाद अपने फोन से चिपकी रहती है. कहीं भी फोन इधरउधर नहीं रखती है. पहले उस का फोन कहीं भी पड़ा रहता था. वह अपने काम करते हुए कभी फोन नहीं देखती थी. अब तो मम्मी, पापा से बात करते हुए भी वह अकसर फोन चैक करती रहती. हां, यह नया बदलाव था.

नंदिता पूरी तरह से समझ रही थी कि किसी लड़के से बात करती है पीहू और यह उन लड़कों में से नहीं है जो घर आते रहे हैं. पीहू के बचपन के दोस्त हैं क्योंकि पीहू बाकी सब से उस के पास बैठ कर भी फोन करती रहती पर यह जो नया फोन आता है, इस पर पीहू अलर्ट हो जाती है.

आजकल नंदिता को पीहू को औब्ज़र्व करने में बड़ा मजा आता. पीहू के कालेज जाने के बाद अगर नंदिता कभी उसे फोन करती तो वह हमेशा ही बहुत जल्दी में रख देती. विनय एक व्यस्त इंसान थे. नंदिता के मन में पीहू के साथ चल रहा यह खेल उस ने विनय को नहीं बताया था. कुछ बातें मां और बेटी की ही होती हैं, यह मानती थी नंदिता. नंदिता एक दिन जोर से हंस पड़ी जब उस ने देखा, पीहू नहाने जाते हुए भी फोन ले कर जा रही थी. नंदिता ने उसे छेड़ा, ‘अरे, फोन को भी नहलाने जा रही हो क्या? बाथरूम में भी फोन?’

पीहू झेंप गई, ‘मम्मी, गाने सुनूंगी.’

नंदिता को हंसी आ गई.

पीहू का फोन अकसर रात 9 बजे जरूर आता. उस समय पीहू अपने रूम में बिलकुल अकेली रहने की कोशिश करती. कभीकभी शरारत में यों ही नंदिता किसी काम से उस के रूम में जाती तो पीहू के अलर्ट चेहरे को देख मन ही मन नंदिता को खूब हंसी आती. मेरी बिटिया, तुम अभी इतनी सयानी नहीं हुई कि अपने चेहरे के बदलते रंग अपनी मां से छिपा लोगी. फोन किसी लड़के का ही है, यह बहुत क्लियर हो गया था क्योंकि पीहू के पास से निकलते हुए फोन से बाहर आती आवाज नंदिता को सुनाई दे गई तो शक की गुंजाइश थी ही नहीं.

एक दिन विनय भी औफिस की तैयारी कर रहे थे, पीहू के भी निकलने का टाइम था. उस ने जल्दीजल्दी में किचन में ही फोन चार्ज होने लगा दिया और नहाने चली गई. फोन बजा तो नंदिता ने नजर डाली और हंस पड़ी. नंबर ‘माय लव’ के नाम से सेव्ड था. फिर ‘माय लव’ की व्हाट्सऐप कौल भी आ गई. नंदिता मुसकरा रही थी. आज पकड़े गए, बच्चू, व्हाट्सऐप कौल पर लड़के की फोटो थी. नंदिता ने गौर से देखा, लड़का तो काफी स्मार्ट है, ठीक है पीहू की पसंद. इतने में भागती सी पीहू आई, तनावभरे स्वर में पूछा, ”मम्मी, मेरा फोन बजा क्या?”

”हां, बज तो रहा था.”

”किस का था?” पीहू ने चौकन्ने स्वर में पूछा. नंदिता समझ गई कि बेटी जानना चाह रही है कि मां को तो कुछ पता तो नहीं चला.

पीहू बेदिंग गाउन में खड़ी अब तक फोन चार्जर से निकाल चुकी थी. नंदिता ने अपनेआप को व्यस्त दिखाते हुए कहा, ”पता नहीं, टाइम नहीं था देखने का, रोटी बना रही थी. इस समय कुछ होश नहीं रहता मुझे फोनवोन देखने का.”

पीहू ने सामान्य होते हुए छेड़ा, ”हां, हां, पता है, आप इस समय 2 टिफ़िन और नाश्ता बना रही हैं, बहुत बिजी हैं,” और नंदिता को किस कर के किचन से निकल गई. विनय और पीहू के जाने के बाद नंदिता अपने खयालों में गुम हो गई, ठीक है, अगर पीहू के जीवन में कोई लड़का आया भी है तो इस में कोई बुराई वाली बात तो है नहीं. उम्र है प्यार की, प्यार होगा ही, कोई अच्छा लगेगा ही. आखिरकार मैं ने और विनय ने भी तो प्रेम विवाह किया था. आह, क्या दिन थे, सब नयानया लगता था. अगर कोई लड़का पीहू को पसंद है तो अच्छा है. इस उम्र में प्यार नहीं होगा तो कब होगा. रात को सोते समय उस की ख़ास स्माइल देख विनय ने पूछा, ”क्या बात है?”

”कुछ तो है, गेस करो.‘’

”तुम ही बताओ.‘’

”तुम्हारी बेटी को शायद प्यार हो गया है.‘’

विनय जोर से हंसे, ”इतनी खुश हो रही हो. उस ने खुद बताया है या अंदाजा लगाती घूम रही हो.‘’

”नहीं, उस ने तो नहीं बताया, मेरा अंदाजा है.”

”अच्छा, उस ने नहीं बताया?”

”नहीं.‘’

”तो फिर पहले उसे बताने दो.‘’

”नहीं, मैं सही सोच रही हूं.‘’

”देखते हैं.‘’

पर बात इतनी सरल रूप में भी सामने नहीं आई जैसे नंदिता और विनय ने सोचा था. एक संडे पीहू ने सुबह कहा, ”मम्मी, पापा, आज मेरा एक दोस्त घर आएगा.‘’

नंदिता और विनय ने एकदूसरे को देखा, नंदिता ने आंखों ही आंखों में जैसे विनय से कहा, देखा, मेरा अंदाजा!”

विनय मुसकराए, ”अच्छा, कौन है?”

”संजय, वह भी सीए कर रहा है. बस, में ही साथ आतेजाते दोस्ती हुई. मैं चाहती हूं आप दोनों उस से मिल लें.‘’

नंदिता मुसकराई, ”क्यों नहीं, जरूर मिलेंगे.”

इतने में पीहू का फोन बजा तो नंदिता ने कनखियों से देखा, ‘माय लव’ का ही फोन था. वह विनय को देख हंस दी, पीहू दूसरे रूम में फोन करने चली गई.

शाम को संजय आया. नंदिता तो पीहू के फोन में उस दिन किचन में ही इस ‘माय लव’ की फोटो देख चुकी थी. संजय जल्दी ही नंदिता और विनय से फ्री हो गया. नंदिता को वह काफी बातूनी लगा. विनय को ठीक ही लगा. बहुत देर वह बैठा रहा. उस ने अपनी फेमिली के बारे में कुछ इस तरह बताया, ”पापा ने जौब छोड़ कर अपना बिजनैस शुरू किया है. किसी जौब में बहुत देर तक नहीं टिक रहे थे. अब अपना काम शुरू कर दिया है तो यहां तो उन्हें टिकना ही पड़ेगा. मम्मी को किट्टी पार्टी से फुरसत नहीं मिलती, बड़ी बहन को बौयफ्रैंड्स से.’’

नंदिता और विनय इस बात पर एकदूसरे का मुंह देखने लगे. पर संजय जो भी था, मेहमान था, पीहू उसे कुर्बान हो जाने वाली नजरों से देखती रही थी. चायनाश्ते के साथ गपें चलती रहीं. संजय के जाने के बाद पीहू ने नंदिता के गले में बांहें डाल दीं, ”मम्मी, कैसा लगा संजय?”

”ठीक है.‘’

”मम्मी, मैं चाहती हूं आप एक बार उस के पेरैंट्स से भी जल्दी मिल लें.‘’

”क्यों?”

”मैं उस से शादी करना चाहती हूं.‘’

अब नंदिता को एक झटका लगा, ”अभी तो सीए फाइनल के एक्जाम्स बाकी हैं, बहुत मेहनत के दिन हैं ये तो. और अभी उम्र ही क्या है तुम्हारी.”

”ओह्ह, मम्मी, पढ़ाई तो हम साथ रह कर भी कर लेंगे. आप को तो पता ही है मैं अपने कैरियर को ले कर सीरियस हूं.‘’

”सीरियस हो तो बेटा, इस समय सिर्फ पढ़ाई के ही दिन हैं, अभी शादी के लिए रुका जा सकता है.‘’

”पर संजय अभी शादी करना चाहता है, और मैं भी. मम्मी, आप को पता है, लड़कियां उस के कूल ऐटिट्यूड की दीवानी हैं, सब जान देती हैं उस के बेफिक्र नेचर पर.’’

”चलो, अभी तुम कुछ पढ़ लो, फिर बात करते हैं,” किसी तरह अपने गुस्से पर कंट्रोल रखते हुए नंदिता कह कर किचन की तरफ चली गई.

अब तक विनय बिलकुल चुप थे. वे अल्पभाषी थे. अभी मांबेटी के बीच में बोलना उन्हें ठीक नहीं लगा. नंदिता पीहू से बात कर ही रही है, तो ठीक है. दोनों एकसाथ शुरू हो जाएंगे तो बात बिगड़ सकती है. यह सोच कर वे बस अभी तक सुन ही रहे थे. अब जब नंदिता किचन में और पीहू पैर पटकते अपने रूम में चली गई तो वे किचन में गए और कुछ बिना कहे बस अपना हाथ नंदिता के कंधे पर रख दिया. नंदिता इस मौन में छिपे हुए उन के मन के भाव भी समझ गई.

अब पीहू अलग ही मूड में रहती. कभी भी ज़िद करने लगती कि आप लोग संजय के पेरैंट्स से कब मिलोगे, जल्दी मिल कर हमारी शादी की बात करो. संजय भी कभी कभी घर आने लगा था. पीहू उस के आने पर खिलीखिली घूमती. अकेले में विनय ने नंदिता से कहा, ”हमें पीहू की पसंद पर कोई आपत्ति नहीं है, पर पहले पढ़ तो ले. सीए की फाइनल परीक्षा का टाइम है, इसे क्या हो गया है, कैसे पढ़ेगी, ध्यान इतना बंट गया है.”

विनय की चिंता जायज थी. नंदिता ने मन ही मन बहुतकुछ सोचा और एक दिन बहुत हलकेफुलके मूड में पीहू के पास जा कर लेट गई. पीहू भी अच्छे मूड में थी. नंदिता ने बात शुरू की, ”पीहू, हमें संजय पसंद है, पर तुम भी हमारी इकलौती बेटी हो और तुम आज तक अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे कर अपना कैरियर बनाने की बात करती रही हो जो हमें गर्व से भर देता था. संजय को पसंद करना, उस से शादी करने की इच्छा होना, इस में कुछ भी गलत नहीं.” फिर नंदिता ने अपने उसी ख़ास स्टाइल में मजाक करना शुरू किया जिस स्टाइल से मांबेटी अब तक बात करती आई थीं, ”तुम्हारी उम्र में प्यार नहीं होगा तो क्या हमारी उम्र में होगा. मेरी बेटी को प्यार फाइनली हो ही गया किसी से, इस बात को तो मैं एंजौए कर रही हूं पर पीहू, मेरी जान, इस हीरो को भी तो अपने पैरों पर खड़े हो जाने दो. अपने पापा से पैसे मांग मांग कर थोड़े ही तुम्हारे शौक पूरे करेगा और अभी तो उस के पापा ही सैट नहीं हुए,” नंदिता के यह कहने के ढंग पर पीहू को हंसी आ गई. नंदिता ने आगे कहा, ”देखो, हम संजय के पेरैंट्स से जल्दी ही जरूर मिलेंगे. तुम जहां कहोगी, हम तुम्हारी शादी कर देंगे. पर तुम्हें हमारी एक बात माननी पड़ेगी.‘’

पीहू इस बात पर चौकन्नी हुई तो नंदिता हंस दी. पीहू ने पूछा, ”कौन सी बात?”

”अभी सब तरफ से ध्यान हटा कर सीए की तैयारी में लगा दो, बैठ जाओ पढ़ने. फिर जो कहोगी, हो जाएगा. सीए करते ही शादी कर लेना, हम खुश ही होंगे.‘’

पीहू ने इस बात पर सहमति दे दी तो नंदिता ने चैन की सांस ली और विनय को भी यह बातचीत बताई तो उन की भी चिंता कम हुई. पीहू फिर सचमुच रातदिन पढ़ाई में जुट गई. वह हमेशा यही कहती थी कि वह एक ही बार में सीए क्लियर करने के लिए जीतोड़ मेहनत करेगी, बारबार वही चीज नहीं पढ़ती रहेगी. नंदिता ने सुना, पीहू फोन पर कह रही थी. नंदिता ने अंदाजा लगाया संजय से ही बात कर रही होगी, ”नहीं, अब एग्जाम्स के बाद ही मिलेंगे, बहुत मुश्किल है पहली बार में पास होना, बहुत मेहनत करेंगे.‘’

संजय ने क्या कहा, वह तो नंदिता कैसे सुनती, पर कान पीहू की बात की तरफ लगे थे जो कह रही थी, ”नहीं, नहीं, मैं इतना हलके में नहीं ले सकती पढ़ाई. मुझे पहली बार में ही पास होना है. तुम भी सब छोड़ कर पढ़ाई में ध्यान लगाओ.”

नंदिता जानती थी कि उस ने हमेशा पीहू को स्वस्थ माहौल दिया है. वह अपने पेरैंट्स से कुछ भी, कभी भी कह सकती थी. यह बात भी पीहू नंदिता को बताने आ गई, बोली, ”मुझे अभी बहुत गुस्सा आया संजय पर, कह रहा है कि सीए के एग्जाम्स तो कितने भी दे सकते हैं. फेल हो जाएंगें तो दोबारा दे देंगे.” और फिर अपने रूम में जा कर पढ़ने बैठ गई.

नंदिता पीहू की हैल्थ का पूरा ध्यान रखती, देख रही थी, रातदिन पढ़ाई में लग चुकी है पीहू. संजय कभी घर आता तो भी उस से सीए के चैप्टर्स, बुक, पेपर्स की ही बात करती रहती. संजय इन बातों से बोर हो कर जल्दी ही जाने लगा. वह कहीं आइसक्रीम खाने की या ऐसे ही बाहर चलने की ज़िद करता तो कभी पीहू चली भी जाती तो जल्दी ही लौट आती. जैसेजैसे परीक्षा के दिन नजदीक आने लगे. वह बिलकुल किताबों में खोती गई. और सब के जीवन में वह ख़ुशी का दिन आ भी गया जब पीहू ने पहली बार में ही सीए पास कर लिया. संजय बुरी तरह फेल हुआ था. पीहू को उस पर गुस्सा आ रहा था, बोली, “मम्मी, देखा आप ने, अब भी उसे कुछ फर्क नहीं पड़ा, कह रहा है कि अगली बार देखेगा, नहीं तो अपना दूसरा कैरियर सोचेगा.”

नंदिता ने गंभीर बन कर कहा, ”देखो, हम बहुत खुश हैं, तुम ने मेरी बात मान कर पढ़ाई पर ध्यान दिया. अब हमारी बारी है तुम्हारी बात मानने की. बोलो, संजय के पेरैंट्स से मिलने हम कब उस के घर जाएं?”

”अभी रुको, मम्मी, अब तो प्रौपर जौब शुरू हो जाएगा मेरा उसी बिग फोर कंपनी में जहां मैं आर्टिकलशिप कर रही थी. अब औफिस जाने में अलग ही मजा आएगा. ओह्ह, मम्मी, मैं आप दोनों को बड़ी पार्टी देने वाली हूं.”

पीहू नंदिता और विनय से लिपट गई.

अगले कुछ दिन पीहू बहुत व्यस्त रही. अब जौब शुरू हो गया था. अच्छी सैलरी हाथ में आने की जो ख़ुशी थी, उस से चेहरे की चमक अलग ही दिखती. फोन पर ‘माय लव’ की जगह संजय नाम ने ले ली थी. संजय अब पीहू की छुट्टी के दिन ही आता. दोनों साथसाथ मूवी देखने भी जाते, खातेपीते, पर अब नंदिता को वह बेटी का ख़ास बौयफ्रैंड नहीं, एक अच्छा दोस्त ही लग रहा था. पीहू अब उस से शादी की बात कभी न करती. उलटा, ऐसे कहती, ”मम्मी, संजय बिलकुल सीरियस नहीं है अपने कैरियर में. मुझे तो लगता है इन की फेमिली बहुत ही लापरवाह है. कोई भी सैट ही नहीं होता. कोई भी कभी कुछ करता है, कभी कुछ. इन के घर जाओ तो सब अस्तव्यस्त दिखता है. मेरा तो मन ही घबरा जाता है. फौरन ही आने के लिए खड़ी हो जाती हूं.‘’

नंदिता सब सुन कर बहुतकुछ सोचने लगी. सीए के एग्जाम्स 6 महीने बाद फिर आए. संजय ने फिर पढ़ाई में कमी रखी, फिर फेल हुआ. पीहू को संजय पर बहुत गुस्सा आया, बोली, ”बहुत लापरवाह है, इस से नहीं होगा सीए. अब बोल रहा है, फिर 6 महीने में एग्जाम्स तो देगा पर बहुत ज्यादा मेहनत नहीं कर पाएगा.’’

नंदिता ने यों ही हलके से मूड में कहा, ”अब इसे शादी की जल्दी नहीं, पीहू?”

”है, अब भी बहुत ज़िद करता है, शादी कर लेते हैं, मैं पढ़ता रहूंगा बाद में.”

विनय ने पूछा, ”तुम क्या सोचती हो?”

”अभी मुझे समय चाहिए. पहले यह देख लूं कि यह अपनी लाइफ को ले कर कितना सीरियस है. बाकी तो बाद की बातें हैं.”

उस रात नंदिता को ख़ुशी के मारे नींद नहीं आ रही थी. पीहू तो बहुत समझदार है, प्यार भी किया है तो एकदम दीवानी बन कर नहीं घूमी, होशोहवास कायम रखे हुए, गलत फैसले के मूड में नहीं है पीहू. नंदिता को पीहू पर रहरह कर प्यार आ रहा था, सोच रही थी कि अच्छा है, आज का इश्क थोड़ा सयाना, प्रैक्टिकल हो गया है, थोड़ा अलर्ट हो गया है, यह जरूरी भी है.

पीहू रात में लेटीलेटी ठंडे दिमाग से सोच रही थी, संजय की बेफिक्री, उस के कूल नैचर पर फ़िदा हो कर ही उस के साथ जीवन में आगे नहीं बढ़ा जा सकता. संजय और उस का पूरा परिवार लापरवाह है. मैं ने पढ़ाई में बहुत मेहनत की है. इस प्यार मोहब्बत में कहीं अपना कोई नुकसान न कर के बैठ जाऊं. संजय अच्छा दोस्त हो सकता है पर लाइफपार्टनर तो बिलकुल भी नहीं.

और ऐसा भी नहीं है कि संजय उस से शादी न करने के मेरे फैसले से मजनू बन कर घूमता रहेगा. उसे लाइफ में बस टाइमपास से मतलब है, यह भी मैं समझ चुकी हूं. ऐसा भी नहीं है कि मैं कोई वादा तोड़ रही हूं और उसे धोखा दे रही हूं. वह खुद ही तो कहता है कि वह लाइफ में किसी भी बात को सीरियसली नहीं लेगा. फिर क्यों बंधा जाए ऐसे इंसान से. अब वह जमाना भी नहीं कि सिर्फ भावनाओं के सहारे भविष्य का कोई फैसला लिया जाए. मैं कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाऊंगी जिस से मुझे कभी बाद में पछताना पड़े. जल्दबाजी में फैसला ले कर रोज न जाने कितनी ही लड़कियां अपना नुकसान कर बैठती हैं. न, न, अब जब भी इश्क होगा, सयाना होगा, कोई बेवकूफी नहीं करेगा.

Friendship Day Special: दोस्ती कल भी थी, आज भी है और कल भी रहेगी

मार्क ट्वेन ने अपनी एक कविता ‘युद्ध भूमि में प्रार्थना’ में लिखते हैं भगवान से पहले युद्ध के समय दोस्त काम आते हैं और भगत सिंह समाजवादी दर्शन की विवेचना करते हुए कहते हैं, ‘किसी भी इज्म से, दर्शन से, बड़ा फलसफा है दोस्ती का.’ शायद यही वजह है कि चाहे दुनिया पहिए से राॅकेट युग में पहुंच गई हो; लेकिन दोस्ती की संवेदना में, दोस्ती की भावना में जरा भी फर्क नहीं आया.

समाज विज्ञान का इतिहास लिखने वाले समाजशास्त्री कहते हैं, ‘दुनिया का सबसे पहला रिश्ता दोस्ती का था.’ आदमी जब अपने आपको जानवरों से अलग किया तो उसे जिस नजदीकी रिश्ते के बोध ने जानवरों से अलग किया और बाद में आज तक के सफर का हमसफर बनाया वह बोध, दोस्ती का ही था. यह अलग बात है कि वह दोस्ती सहयोग और फायदे का सौदा थी. जब इंसान ने अपने को जानवरों से अलग किया तो उसके दिमाग में यह विचार आया कि आखिर वह कौन सा तरीका हो सकता है जिससे जानवरों से बचा जा सकता है और तब इस बात पर आकर दिमाग रुका कि अगर आदमी आपस में एकजुट होकर रहें तो जानवरों का सामना आसानी से किया जा सकता है. दोस्ती की यही बुनियाद थी जो बाद में विकसित होते-होते तमाम भावनात्मक एवं संवेदनात्मक सीढ़ियों को चढ़ते हुए आज यहां तक पहुंची है कि कुछ लोगों के लिए दोस्ती से बड़ा दुनिया में कोई रिश्ता नहीं है.

महान विचारक मार्क्स के बारे में एंगेल्स ने लिखा है कि उन्हें दो ही लोग विचलित कर सकते थे या तो उनकी पत्नी जेनी जो पत्नी से ज्यादा दोस्त थीं और खुद एंगेल्स जिनकी दोस्ती मार्क्स के साथ वैसी ही थी जैसे महाभारत में कर्ण और दुर्याेधन की दोस्ती. मजे की बात यह है कि दुनिया में जितना साहित्य रचा गया है, उसमें सबसे ज्यादा साहित्य दोस्ती पर ही है. चाहे दोस्त की महानता पर हो, दोस्त के त्याग पर हो या फिर दोस्ती के विश्वासघात पर. दुनिया के तमाम महानग्रंथ दोस्तों के त्याग और दोस्ती में हुए छल कपट के ही ब्यौरे हैं. होमर का ओडेसी, कृष्ण द्वैपायन वेद व्यास का महाभारत सबके सब दोस्ती की जय व विजय गाथाओं के ब्यौरे हैं.

समय बदलता है, सोच बदल जाती है और जरूरतें भी; लेकिन सामाजिक इतिहास इस बात की तस्दीक करता है कि समय बदलने के साथ न तो दोस्ती की जरूरत बदलती है और न ही दोस्ती का भाव. सवाल है दोस्ती इतना अजर-अमर रिश्ता क्यों हैं? इसके कई जवाब हैं. कुछ विज्ञान से, कुछ भावनाओं से. आइंस्टीन ने एक बार कहा था ‘अगर ईश्वर है (…और मैं समझता हूं भले ईश्वर वैसे ही न हो जैसे कि माना जा रहा है; लेकिन कुछ न कुछ तो है) तो इंसान के जैविक संरचना में दोस्ती का एक स्थाई भाव भी है. दरअसल यह दोस्ती का भाव ही है जिसने हमसे ईश्वर की रचना करवाई है.’

दोस्ती के बारे में भारत के सबसे क्रांतिकारी विचारक भगत सिंह कहते हैं, ‘यह कुछ न कुछ तो है जो दिलों में तूफान पैदा करती है. दोस्ती में पहाड़ों से कूद जाने का दिल करता है और हंसते-हंसते जान देने में जरा भी असहजता नहीं महसूस होती. इसलिए यह कुछ न कुछ तो है.’ कुछ समाजशास्त्रियों का 80 के दशक में विचार था जिसमें आल्विन टोएफलर (फ्यूचर शाक) प्रमुख थे जो मानते थे कि जैसे-जैसे तकनीक का विकास होगा दोस्ती का खात्मा हो जाएगा. दोस्ती की जरूरतें खत्म हो जाएंगी. मगर ऐसा नहीं हुआ और न ही कभी होगा. दोस्ती आज भी है, कल भी रहेगी और सदियों-सदियों यह नगमा गूंजेगा …सलामत रहे दोस्ताना हमारा.

निया शर्मा ने लगाईं ब्लैक लिपिस्टिक, यूजर्स ने किया ट्रोल

छोटे पर्दे की पौपुलर एक्ट्रैस निया शर्मा अपने बोल्ड स्टाइल की वजह से अक्सर सुर्खियों में रहती हैं, लेकिन इस बार वह अपनी काली लिपस्टिक की वजह से सोशल मीडिया पर खूब ट्रोल हो रही हैं. आपको बता दें पैपराजी विरल भयानी ने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो शेयर किया. जिसमे पिंक कलर के शरारा सूट के साथ निया ब्लैक लिपस्टिक लगाए हुए नजर आ रही हैं उनका ये रूप देखकर हर कोई आश्चर्यचकित है.

स्पाइडर वुमन लुक

इस वीडियो में निया स्पाइडर वुमेन कम हैलोवीन लुक में ज्यादा नजर आ रही हैं. निया ने स्पाइडर वुमन का लुक ट्राई किया. इसके लिए आंख के पास एक वेब जाली वाला डिजाइन बनाया और लिप्स पर ब्लैक लिपस्टिक लगाई. यूजर्स को उनका ये एक्सपेरिमेंट पसंद नहीं आया.

अजीबोगरीब कमैंट्स

निया के लुक पर लोगों ने अजीबोगरीब कमैंट्स किये. एक यूजर्स ने लिखा ‘बरसाती सांप लग रही है निया, किसी ने लिखा ‘काली लिपस्टिक लगाकर निकली इच्छाधारी नागिन’, एक ने लिखा, जरूर पेन की रीफिल चबा ली हीरोइन ने, एक ने कमेंट किया, ‘भाई हीरोइन है या चुड़ैल, एक ने लिखा, ‘अरे आज निया असली चेहरे के साथ शूटिंग करने आ गई’, किसी ने, लिखा, ‘ये कौनसा प्राणी है अब ? एक यूजर बोला, ‘मुझे नहीं पता कि मैं उससे नफरत क्यों करता हूं?’ एक कमेंट आया, ‘डायन लग रही है.’ कोई बोला, ‘निया के मेकअप आर्टिस्ट को कुछ भी मेहनत करने की जरूरत नहीं पड़ी क्योंकि ये उसका असली चेहरा है.’

निया का वर्कफ्रंट

निया ने छोटे पर्दे की दुनिया में खूब नाम कमाया है. ‘एक हजारों में मेरी बहना है’ से डेब्यू करने वाली निया अब कई बड़े प्रोजेक्ट का हिस्सा बन चुकी हैं. इन दिनों वह वह कलर्स पर ‘सुहागन चुड़ैल’ और ‘लाफ्टर शेफ’ नाम के शो में नजर आ रही हैं. लाफ्टर शेफ में निया कौमेडियन सुदेश लहरी के साथ खाना पकाती नजर आती हैं. वहीं ‘सुहागन चुड़ैल’ की एक्टिंग के लिए उन्हें पॉजिटिव रिस्पांस मिला.

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