मेरी खातिर : मातापिता के झगड़े से अनिका की जिंदगी पर असर

कहानी- मेहर गुप्ता

‘‘निक्कीतुम जानती हो कि कंपनी के प्रति मेरी कुछ जिम्मेदारियां हैं. मैं छोटेछोटे कामों के लिए बारबार बौस के सामने छुट्टी के लिए मिन्नतें नहीं कर सकता हूं. जरूरी नहीं कि मैं हर जगह तुम्हारे साथ चलूं. तुम अकेली भी जा सकती हो न. तुम्हें गाड़ी और ड्राइवर दे रखा है… और क्या चाहती हो तुम मुझ से?’’

‘‘चाहती? मैं तुम्हारी व्यस्त जिंदगी में से थोड़ा सा समय और तुम्हारे दिल के कोने में अपने लिए थोड़ी सी जगह चाहती हूं.’’

‘‘बस शुरू हो गया तुम्हारा दर्शनशास्त्र… निकिता तुम बात को कहां से कहां ले जाती हो.’’

‘‘अनिकेत, जब तुम्हारे परिवार में कोई प्रसंग होता है तो तुम्हारे पास आसानी से समय निकल जाता है पर जब भी बात मेरे मायके

जाने की होती है तो तुम्हारे पास बहाना हाजिर होता है.’’

‘‘मैं बहाना नहीं बना रहा हूं… मैं किसी भी तरह समय निकाल कर भी तेरे घर वालों के हर सुखदुख में शामिल होता हूं. फिर भी तेरी शिकायतें कभी खत्म नहीं होती हैं.’’

‘‘बहुत बड़ा एहसान किया है तुम ने इस नाचीज पर,’’ मम्मी के व्यंग्य पापा के क्रोध की अग्निज्वाला को भड़काने का काम करते थे.

‘‘तुम से बात करना ही बेकार है, इडियट.’’

‘‘उफ… फिर शुरू हो गए ये दोनों.’’

‘‘मम्मा व्हाट द हैल इज दिस? आप लोग सुबहशाम कुछ देखते नहीं… बस शुरू हो जाते हैं,’’ आंखें मलते हुए अनिका ने मम्मी से कहा.

‘‘हां, तू भी मुझे ही बोल… सब की बस मुझ पर ही चलती है.’’

पापा अंदर से दरवाजा बंद कर चुके थे, इसलिए मुझे मम्मी पर ही अपना रोष डालना पड़ा था.

अनिका अपना मूड अच्छा करने के लिए कौफी बना, अपने कमरे की खिड़की के पास जा खड़ी हो गई. उस के कमरे की खिड़की सामने सड़क की ओर खुलती थी, सड़क के दोनों तरफ  वृक्षों की कतारें थीं, जिन पर रात में हुई बारिश की बूंदें अटकी थीं मानो ये रात में हुई बारिश की चुगली कर रही हों. अनिका उन वृक्षों के हिलते पत्तों को, उन पर बसेरा करते पंछियों को, उन पत्तियों और शाखाओं से छन कर आती धूप की उन किरणों को छोटी आंखें कर देखने पर बनते इंद्रधनुष के छल्लों को घंटों निहारती रहती. उसे वक्त का पता ही नहीं चलता था. उस ने घड़ी की तरफ देखा 7 बज गए थे. वह फटाफटा नहाधो कर स्कूल के लिए तैयार हो गई. कमरे से बाहर निकलते ही सोफे पर बैठे चाय पीते पापा ने ‘‘गुड मौर्निंग’’ कहा.

‘‘गुड मौर्निंग… गुड तो आप लोग मेरी मौर्निंग कर ही चुके हैं. सब के घर में सुबह की शुरुआत शांति से होती पर हमारे घर में टशन और टैंशन से…’’ उस ने व्यंग्यात्मक लहजे में अपनी भौंहें चढ़ाते हुए कहा.

‘‘चलिए बाय मम्मी, बाय पापा. मुझे स्कूल के लिए देर हो रही है.’’

‘‘पर बेटे नाश्ता तो करती जाओ,’’ मम्मी डाइनिंग टेबल पर नाश्ता लगाते हुए बोली.

‘‘सुबह की इतनी सुहानी शुरुआत से मेरा पेट भर गया है,’’ और वह चली गई.

अनिका जानती थी अब उन लोगों के

बीच इस बात को ले कर फिर से बहस छिड़

गई होगी कि सुबह की झड़प का कुसूरवार

कौन है. दोनों एकदूसरे को दोषी ठहराने पर तुल गए होंगे.

शाम को अनिका देर से घर लौटी. घर जाने से बेहतर उसे लाइब्रेरी में बैठ कर

पढ़ना अच्छा लगा. वैसे भी वह उम्र के साथ बहुत एकांतप्रिय और अंतर्मुखी बनती जा रही थी. घर में तो अकेली थी ही बाहर भी वह ज्यादा मित्र बनाना नहीं सीख पाई.

‘‘मम्मी मेरा कोई छोटा भाईबहन क्यों नहीं है? मेरे सिवा मेरे सब फ्रैंड्स के भाईबहन हैं और वे लोग कितनी मस्ती करती हैं… एक मैं ही हूं… बिलकुल अकेली,’’ अनगिनत बार वह मम्मी से शिकायत कर अपने मन की बात कह चुकी थी.

‘‘मैं हूं न तेरी बैस्ट फ्रैंड,’’ हर बार मम्मी यह कह कर अनिका को चुप करा देतीं. अनिका अपने तनाव को कम करने और बहते आंसुओं को छिपाने के लिए घंटों खिड़की के पास खड़ी हो कर शून्य को निहारती रहती.

घर में मम्मीपापा उस का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. दरवाजे की घंटी बजते ही दोनों उस के पास आ गए.

‘‘आज आने में बहुत देर कर दी… फोन भी नहीं उठा रही थी… कितनी टैंशन हो गई थी हमें,’’ कह मम्मी उस का बैग कंधे से उतार कर उस के लिए पानी लेने चली गई.

‘‘हमारी इन छोटीमोटी लड़ाइयों की

सजा तुम स्वयं को क्यों देती हो,’’ ?पापा ने उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘किस के मम्मीपापा ऐसे होंगे, जिन के बीच अनबन न रहती हो.’’

‘‘पापा, इसे हम साधारण अनबन का नाम तो नहीं दे सकते. ऐसा लगता है जैसे आप दोनों रिश्तों का बोझ ढो रहे हो. मैं ने भी दादू, दादी, मां, चाची, चाचू, बूआ, फूफाजी को देखा है पर ऐसा अनोखा प्रेम तो किसी के बीच नहीं देखा है,’’ अनिका के कटाक्ष ने पापा को निरुत्तर कर दिया था.

‘‘बेटे ऐसा भी तो हो सकता है कि तुम अतिसंवेदनशील हो?’’

पापा के प्रश्न का उत्तर देने के बजाय उस ने पापा से पूछा, ‘‘पापा, मम्मी से शादी आप ने दादू के दबाव में आ कर की थी क्या?’’

पापा को 20 साल पहले की अपनी पेशी याद आ गई जब पापा, बड़े पापा और घर के अन्य सब बड़े लोगों ने उन के पैतृक गांव के एक खानदानी परिवार की सुशील और पढ़ीलिखी कन्या अर्थात् निकिता से विवाह के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था. घर वालों ने उन का पीछा तब तक नहीं छोड़ा था जब तक उन्होंने शादी के लिए हां नहीं कह दी थी.

पापा ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘नहीं बेटे ऐसी कोई बात नहीं है… 19-20 की जोड़ी थी पर ठीक है. आधी जिंदगी निकल गई है आधी और कट ही जाएगी.’’

‘‘वाह पापा बिलकुल सही कहा आपने… 19-20 की जोड़ी है… आप उन्नीस है और मम्मा बीस… क्यों पापा सही कहा न मैं ने?’’

‘‘मम्मी की चमची,’’ कह पापा प्यार से उस का गाल थपथपा कर उठ गए.

उस दिन उस के जन्मदिन का जश्न मना कर सभी देर से घर लौटे थे. अनिका बेहद

खुश थी. वह 1-1 पल जी लेना चाहती थी.

‘‘मम्मा, आज मैं आप दोनों के बीच में सोऊंगी,’’ कहते हुए वह अपनी चादर और तकिया उन के कमरे में ले आई. वह अपनी जिंदगी में ऐसे पलों का ही तो इंतजार करती थी. उस की उम्र की अन्य लड़कियों का दिल नए मोबाइल, स्टाइलिश कपड़े और बौयफ्रैंड्स के लिए मचलता था, जबकि अनकि को खुशी के ऐसे क्षणों की ही तलाश रहती थी जब उस के मम्मीपापा के बीच तकरार न हो.

पापा हाथ में रिमोट लिए अधलेटे से टीवी पर न्यूज देख रहे थे. मम्मी रसोई में तीनों के लिए कौफी बना रही थी.

तभी फोन की घंटी बजने लगी. अमेरिका

से बूआ का वीडियोकौल थी. हमारे लिए दिन

का आखिरी पहर था, जबकि बूआ के लिए

दिन की शुरुआत थी उन्होंने अपनी प्यारी

भतीजी को जन्मदिन की शुभकामनाएं देने के

लिए फोन किया था. बोली, ‘‘हैप्पी बर्थडे माई डार्लिंग,’’

मैं ने और पापा ने कुछ औपचारिक बातों के बाद फोन मम्मी की तरफ कर दिया.

‘‘हैलो कृष्णा दीदी,’’ कह कुछ देर बात कर मम्मी ने फोन रख दिया.

‘‘दीदी ने कानों में कितने सुंदर सौलिटेयर पहन रखे थे न, दीदी की बहुत मौज है.’’

‘‘दीदी पढ़ीलिखी, आधुनिक महिला है. एक मल्टीनैशनल कंपनी में उच्च पद पर कार्यरत है. खुद कमाती है और ऐश करती है.’’

जब भी बूआ यानी पापा की बड़ी बहन की बात आती थी पापा बहुत उत्साहित हो जाते थे. बहुत फक्र था उन्हें अपनी बहन पर.

‘‘आप मुझे ताना मार रहे हैं.’’

‘‘ताना नहीं मार रहा, कह रहा हूं.’’

‘‘पर आप के बोलने का तरीका तो ऐसा

ही है. मैं ने भी तो अनिका और आप के लिए अपनी नौकरी छोड़ अपना कैरियर दांव पर

लगाया न.’’

‘‘तुम अपनी टुच्ची नौकरी की तुलना दीदी की बिजनैस ऐडमिनिस्ट्रेशन की जौब से कर रही हो?’’ कहां गंगू तेली, कहां राजा भोज.

मम्मी कालेज के समय से पहले एक स्कूल में और बाद में कालेज में हिंदी पढ़ाती थीं. वे पापा के इस व्यंग्य से तिलमिला गईं.

‘‘बहुत गर्व है न तुम्हें अपनी दीदी और खुद पर… हम लोगों ने आप को किसी धोखे में नहीं रखा था. बायोडेटा पर साफ लिखा था पोस्टग्रैजुएशन विद हिंदी मीडियम. हम लोग नहीं आए थे आप लोगों के घर रिश्ता मांगने… आप के पिताजी ही आए थे हमारे खानदान की आनबान देख कर हमारी चौखट पर नाक रगड़ने…’’

‘‘निकिता, जुबान को लगाम दो वरना…’’

‘‘पहली बार अनिका ने पापा का ऐसा रौद्र रूप देखा था. इस से पहले पापा ने मम्मी पर कभी हाथ नहीं उठाया था.’’

‘‘पापा, आप मम्मी पर हाथ नहीं उठा सकते हैं. आप भी बाज नहीं आएंगे… मम्मी का दिल दुखाना जरूरी था?’’

‘‘तू भी अपनी मम्मी का पक्ष लेगी. तेरी मम्मी ठीक तरह से 2 शब्द इंग्लिश के नहीं

बोल पाती.’’

‘‘पापा, आप मम्मी की एक ही कमी को कब तक भुनाते रहोगे, मम्मी में बहुत से ऐसे गुण भी हैं जो मेरी किसी फ्रैंड की मम्मी में नहीं हैं.’’

क्षणभर में अनिका की खुशी काफूर हो गई. वह भरी आंखों के साथ उलटे पैर अपने कमरे में लौट गई.

पापा ने औक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से एमबीए किया था जबकि मम्मी ने सूरत के लोकल कालेज से एमए. शायद दोनों का बौद्धिक स्तर दोनों के बीच तालमेल नहीं बैठने देता था.

अनिका ने एक बात और समझी थी पापा के गुस्से के साथ मम्मी के नाम में प्रत्ययों की संख्या और सर्वनाम भी बदलते जाते थे. वैसे पापा अकसर मम्मी को निक्कु बुलाते थे. गुस्से के बढ़ने के साथसाथ मम्मी का नाम निक्की से होता हुआ निकिता, तुम से तू और उस में ‘इडियट’ और ‘डफर’ जैसे विशेषणों का समावेश भी हो जाता था. अपने बचपन के अनुभवों से पापा द्वारा मम्मी को पुकारे गए नाम से ही अनिका पापा का मूड भांप जाती थी.

इस साल मार्च महीने से ही सूरज ने अपनी प्रचंडता दिखानी शुरू कर दी थी. ऐग्जाम

की सरगर्मी ने मौसम की तपिश को और बढ़ा दिया था. वह भी दिनरात एक कर पूरे जोश के साथ अपनी 12वीं कक्षा की बोर्ड की परीक्षा में जुटी हुई थी. सुबह घर से निकलती, स्कूल कोचिंग पूरा करते हुए शाम

8 बजे तक पहुंच पाती. मम्मीपापा के साथ बिलकुल समय नहीं बिता पा रही थी. इतवार के दिन उस की नींद थोड़ी जल्दी खुल गई थी. वह सीधे हौल की तरफ गई तो नजर डाइनिंग टेबल पर रखे थर्मामीटर की

तरफ गई.

‘‘मम्मा यह थर्मामीटर क्यों निकला है?’’ उस ने चिंतित स्वर में पूछा.

‘‘तेरे पापा को कल से तेज बुखार है. पूरी रात खांसते रहे. मुझे जरा देर को भी नींद नहीं लग पाई.’’

‘‘एकदम से गला इतना कैसे खराब हो गया? डाक्टर को दिखाया?’’

‘‘बच्चे थोड़े हैं जो हाथ पकड़ कर डाक्टर के पास ले जाऊं,’’ मम्मी के स्वर में झुंझलाहट थी.

‘‘मम्मा आप भी हद करती हैं… पापा को तेज बुखार है और आप… मानती हूं आप सारी रात परेशान हुईं. पर अपनी बात को रखने का भी एक समय होता है.’’

‘‘तू भी अपने पापा की ही तरफदारी करेगी न…’’

मेरी हालत भी पेंडुलम की तरह थी… कभी मेरी संवेदनाएं मम्मी की तरफ और कभी मम्मी से हट कर बिलकुल पापा की तरफ हो जाती थी. प्रकृति पूरा साल अपने मौसम बदलती पर हमारे घर में बारहों मास एक ही मौसम रहता था कलह और तनाव का. मैं उन दोनों के बीच की वह डोर थी जिस के सहारे उन के रिश्ते की गाड़ी डगमग करती खिंच रही थी.

उस दिन मेरा अंतिम पेपर था. मैं बहुत हलका महसूस कर रही थी. मैं अपने अच्छे परिणाम को ले कर आश्वस्त थी. आज बहुत दिनों बाद हम तीनों इकट्ठे डिनर टेबल पर थे. मम्मी ने आज सबकुछ मेरी पसंद का बनाया था.

‘‘मम्मीपापा, मैं आप दोनों से कुछ कहना चाहती हूं.’’ आज अनिका की भावभंगिता कुछ गंभीरता लिए थी, जिस के मम्मीपापा अभ्यस्त नहीं थे.

‘‘बोलो बेटे… कुछ परेशान सी लग रही हो?’’ वे दोनों एकसाथ बोल चिंतित निगाहों से उसे देखने लगे.

उस ने बहुत आहिस्ता से कहना शुरू किया जैसे कोई बहुत बड़ा रहस्य उजागर करने जा रही हो, ‘‘पापा, मैं आगे की पढ़ाई सूरत में नहीं, बल्कि अहमदाबाद से करना चाहती हूं.’’

‘‘ये कैसी बातें कर रही हो बेटा… तुम्हें तो सूरत के एनआईटी कालेज में आसानी से एडमिशन मिल जाएगा.’’

‘‘मिल तो जाएगा पापा, पर सूरत के कालेजों की रेटिंग काफी नीचे है.’’

‘‘बेटे, यह तुम्हारा ही फैसला था न कि ग्रैजुएशन सूरत से ही कर पोस्टग्रैजुएशन विदेश से कर लोगी, तुम्हारे अचानक बदले इस फैसले का कारण क्या हम जान सकते हैं?’’ पापा के माथे पर तनाव की रेखाएं साफ झलक रही थी.

घर में अनजानी खामोशी पसर गई. यह खामोशी उस खामोशी से बिलकुल अलग थी जो मम्मीपापा की बहस के बाद घर में पसर जाती थी…बस आ रही थी तो घड़ी की टिकटिक की आवाज.

अपनी जान से प्यारे अपने मम्मीपापा को उदास देख अनिका के गले से रोटी

कैसे उतर सकती थी. वह एक रोटी खा कर वाशबेसिन पर पर हाथ धोने लगी. मुंह धोने के बहाने नल से निकलते पानी के साथ उस के आंसू भी धुल गए. वह नैपकिन से अपना मुंह पोंछ रही थी तो सामने लगे आइने में उस ने देखा मम्मीपापा की निगाहें उस पर ही टिकी हैं जिन में बेबस सी अनुनय है.

‘‘आज मुझे महसूस हो रहा है कि सच में जमाना बहुत फौरवर्ड हो गया है… आखिर हमारी बेटी भी इस जमाने के तौरतरीकों बहाव में खुद को बहने से नहीं रोक पाई,’’ पापा के रुंधे स्वर

में कहा.

‘‘ये सब आप के लाडप्यार का नतीजा है, और सुनाओ उसे अपने हौस्टल लाइफ के किस्से चटखारे ले कर… तुम तो चाहते ही थे न कि तुम्हारी बेटी तुम्हारी तरह स्मार्ट बने. तो चली हमारी बेटी आजाद पंछी बन जमाने के साथ

ताल मिलाने. उस ने एक बार भी हमारे बारे में नहीं सोचा.’’

‘‘पापामम्मी के बीच चल रही बातचीत

के कुछ अंश अनिका के कानों में भी पड़ गए

थे. मम्मी ने रोरो कर अपनी आंखें सुजा ली थीं, नाक लाल हो गई थी. पर क्या किया जा

सकता था, आखिर यह उस की पूरी जिंदगी

का सवाल था.’’

आज अनिका स्कूल गई थी. उस ने अपने सारे कागजात निकलवा कर उन की फोटोकौपी बनवानी थी. वहां जा कर उसे ध्यान आया वह अपनी 10वीं और 11वीं कक्षा की मार्कशीट्स घर पर ही भूल गई है. उस ने तुरंत मम्मी को फोन लगाया, ‘‘मम्मा, मेरी अलमारी में दाहिनी तरफ की दराज में आप को लाल रंग की एक फाइल दिखेगी, उस में से प्लीज मेरी 10वीं और 11वीं की मार्कशीट्स के फोटो भेज दो.’’

फोटो भेजने के बाद उस फाइल के नीचे दबी एक गुलाबी डायरी पर लिखे सुंदर शब्दों ने मम्मी का ध्यान अपनी ओर खींचा-

‘‘की थी कोशिश, पलभर में काफूर उन लमहों को पकड़ लेने की जो पलभर पहले हमारे घर के आंगन में बिखरे पड़े थे.’’

शायद मेरे चले जाने के बाद उन दोनों का अकेलापन उन्हें एकदूसरे के करीब ले आए. इसीलिए तो अपने दिल पर पत्थर रख उसे इतना कठोर फैसला लेना पड़ा था. पेज पर तारीख 15 जून अंकित थी यानी अनिका का जन्मदिन.

मम्मी के मस्तिष्क में उस रात हुई कलह के चित्र सजीव हो गए. एक मां हो कर मैं अपनी बच्ची की तकलीफ को नहीं समझ पाई. अपने अहम की तुष्टि के लिए वक्तबेवक्त वाक्युद्ध पर उतर जाते थे बिना यह सोचे कि उस बच्ची के दिल पर क्या गुजरती होगी.

उन की नजर एक अन्य पेज पर गई,

‘‘मुझे आज रात रोतेरोते नींद लग गई और मैं

सोने से पहले बाथरूम जाना भूल गई और मेरा बिस्तर गीला हो गया. अब मैं मम्मा को क्या जवाब दूंगी.’’

पढ़कर निकिता अवाक रह गई थी. जगहजगह पर उस के आंसुओं ने शब्दों की स्याही को फैला दिया था, जो उस के कोमल मन की पीड़ा के गवाह थे. जिस उम्र में बच्चे नर्सरी राइम्ज पढ़ते हैं उस उम्र में उन की बच्ची की ये संवेदनशीलता और जिस किशोरवय में लड़कियां रोमांटिक काव्य में रुचि रखती हैं उस उम्र में

यह गंभीरता. आज अगर यह डायरी उन के

हाथ नहीं लगी होती तो वे तो अपनी बेटी के फैसले के पीछे का कठोर सच कभी जान ही

नहीं पातीं.

‘‘आप आज अनिका के घर पहुंचने से पहले घर आ जाना, मुझे आप से बहुत जरूरी बात करनी है,’’ मम्मी ने तुरंत पापा को फोन मिलाया.

‘‘निक्की, मुझे ध्यान है नया फ्रिज खरीदना है पर मेरे पास अभी उस से भी महत्त्वपूर्ण काम है… और फिलहाल सब से जरूरी है अनिका का कालेज में एडमिशन.’’

‘‘और मैं कहूं बात उस के बारे में ही है.’’

‘‘मम्मी के इस संयमित लहजे के पापा आदी नहीं थे. अत: उन की अधीरता जायज थी,’’

‘‘सब ठीक तो है न?’’

‘‘आप घर आ जाइए, फिर शांति से बैठ कर बात करते हैं.’’

‘‘पहेलियां मत बुझाओ, साफसाफ क्यों नहीं कहती हो, जब बात अनिका से जुड़ी थी तो पापा कोई ढील नहीं छोड़ना चाहते थे. अत: काम छोड़ तुरंत घर के लिए निकल गए.’’

‘‘देखिए यह अनिका की डायरी.’’

पापा जैसेजैसे पन्ने पलटते गए, अनिका के दिल में घुटी भावनाएं परतदरपरत खुलने लगीं और पापा की आंखें अविरल बहने लगीं. मम्मी भी पहली बार पत्थर को पिघलते देख रही थी.

‘‘कितना गलत सोच रहे थे हम अपनी बेटी के बारे में इस तरह दुखी कर के तो हम उसे घर से हरगिज नहीं जाने दे सकते,’’ उन्होंने अपना फोन निकाल अनिका को मैसेज भेज दिया.

‘‘कोशिश को तेरी जाया न होने देंगे, उस कली को मुरझाने न देंगे,

जो 17 साल पहले हमारे आंगन में खिली थी.’’

‘‘शैतान का नाम लिया और शैतान हाजिर… वाह पापा आप का यह कवि रूप तो पहली बार दिखा,’’ कहती हुई अनिका घर में घुसी और मम्मीपापा को गले लगा लिया.

‘‘हमें माफ कर दे बेटा.’’

‘‘अरे, माफी तो आप लोगों से मुझे मांगनी चाहिए, मैं ने आप लोगों को बुद्धू जो बनाया.’’

‘‘मतलब?’’ मम्मीपापा आश्चर्य के साथ बोले.

‘‘मतलब यह कि घी जब सीधी उंगली से नहीं निकलता है तो उंगली टेढ़ी करनी पड़ती है. इतनी आसानी से आप लोगों का पीछा थोड़े छोड़ने वाली हूं. हां, बस यह अफसोस है कि

मुझे अपनी डायरी आप लोगों से शेयर करनी पड़ी. पर कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता

है न?’’

‘‘अच्छा तो यह बाहर जा कर पढ़ने का फैसला सिर्फ नाटक था…’’

‘‘सौरी मम्मीपापा आप लोगों को करीब लाने का मुझे बस यही तरीका सूझा,’’ अनिका अपने कान पकड़ते हुए बोली.

‘‘नहीं बेटे, कान तुम्हें नहीं, हमें पकड़ने चाहिए.’’

‘‘हां, और मुझे इस ऐतिहासिक पल को कैमरे में कैद कर लेना चाहिए,’’ कह वह तीनों की सैल्फी लेने लगी.

शौर्टकट : नसरीन ने सफलता पाने के लिए कौनसा रास्ता अपनाया?

उफ फिर एक नया ग्रुप. लगता है सारी दुनिया सिर्फ व्हाट्सऐप में ही सिमट गई है. कालेज जाने से पहले अपने मोबाइल में व्हाट्सऐप मैसेज चैक करते समय नसरीन ने खुद को एक नए व्हाट्सऐप ग्रुप सितारे जमीं पर से जुड़ा पाया.

यह व्हाट्सऐप का शौक भी धीरेधीरे लत बनता जा रहा है. न देखो तो कई महत्त्वपूर्ण सूचनाओं और जानकारी से वंचित रह जाते हैं और देखने बैठ जाओ तो वक्त कब बीत जाता है, पता ही नहीं चलता. किसीकिसी ग्रुप में तो एक ही दिन में सैकड़ों मैसेज आ जाते हैं. बेचारा मोबाइल हैंग हो जाता है. आधे से ज्यादा तो मुफ्त का ज्ञान बांटने वाले कौपीपेस्ट ही होते हैं और बचे हुए आधों में भी ज्यादातर तो गुडमौर्निंग, गुड ईवनिंग या गुड नाइट जैसे बेमतलब के होते. लेदे कर कोई एकाध मैसेज ही दिन भर में काम का होता है. बच्चे का नैपी जैसे हो गया है मोबाइल. चाहे कुछ हो या न हो बारबार चैक करने की आदत सी हो गई है. नसरीन सोचतेसोचते सरसरी निगाहों से सारे मैसेज देख रही थी. कुछ पढ़ती और फिर डिलीट कर देती. कालेज जाने से पहले रात भर के आए सभी मैसेज चैक करना उस की आदत में शुमार है.

देखें तो क्या है इस नए ग्रुप में? ऐडमिन कौन है? कौनकौन जुड़ा है इस में? क्या कोई ऐसा भी है जिसे मैं जानती हूं? नसरीन ने नए ग्रुप के गु्रप इन्फो पर टैब किया. इस ग्रुप में फिलहाल 107 लोग जुड़े थे. स्क्रोल करतेकरते उस की उंगलियां एक नाम पर जा कर ठहर गईं. राजन? ग्रुप ऐडमिन को पहचानते ही नसरीन उछल पड़ी.

अरे, ये तो फेस औफ द ईयर कौंटैस्ट के आयोजक हैं. इस का मतलब मेरा प्रोफाइल फर्स्ट लैवल पर सलैक्ट हो गया है. नसरीन के अरमानों को छोटेछोटे पंख उग आए.

नसरीन जयपुर में रहने वाले मध्यवर्गीय मुसलिम परिवार की साधारण युवती है. मगर उस की महत्त्वाकांक्षा उसे असाधारण बनाती है. 5 फुट 5 इंच लंबी, आकर्षक नैननक्श और छरहरी काया की मालकिन नसरीन के सपने बहुत ऊंचे हैं और अपने सपनों को पूरा करने के लिए वह किसी भी हद तक जाने का जनून रखती है. जिंदगी को अपनी शर्तों पर जीने वाली नसरीन को समाज के रूढिवादी रवैए ने बागी बना दिया. उस का सपना मौडल बनने का है. मगर सब से बड़ी बाधा उस का खुद का परिवार बना हुआ है. उस के भाई को उस का फैशनेबल कपड़े पहनना फूटी आंख नहीं सुहाता और मां भी जितनी जल्दी हो सके अपने भाई के बेटे से उस का निकाह कराना चाहतीं. मगर इस सब से बेखबर नसरीन अपनी ही दुनिया में खोई रहती है. उस की जिंदगी में फिलहाल शादी और बच्चों के लिए कोई जगह नहीं है. उस की हमउम्र सहेलियां उस से ईर्ष्या करती हैं. मगर मन ही मन उस की तरह जीना भी चाहती हैं.

महल्ले के बड़ेबुजुर्गों और मौलाना साहब तक उस के अब्बा हुजूर को हिदायत दे चुके हैं कि बेटी को हिजाब में रखें और कुरान की तालीम दें, क्योंकि उसे देख कर समाज की बाकी लड़कियां भी बिगड़ रही हैं. लेकिन अब्बा को जमाने से ज्यादा अपनी बेटी की खुशी प्यारी थी, इसलिए उन्होंने उसे सब की निगाहों से दूर फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करने दिल्ली भेज दिया.

एक दिन कालेज के नोटिस बोर्ड पर राजन की कंपनी द्वारा आयोजित फेस औफ द ईयर कौंटैस्ट का विज्ञापन देखा, तो उसे आशा की एक किरण नजर आई. हालांकि दिल्ली में आए दिन इस तरह के आयोजन होते रहते हैं, मगर राजन की कंपनी द्वारा चुने गए मौडल देश भर में अलग पहचान रखते हैं. विज्ञप्ति के अनुसार विभिन्न चरणों से होते हुए प्रतियोगिता का फाइनल राउंड मुंबई में होना था तथा विजेता मौडल को क्व10 लाख नकद इनाम राशि के साथसाथ 1 साल का मौडलिंग कौंट्रैक्ट साइन करना था. यह जानते हुए भी कि फिल्मों की तरह इस क्षेत्र में भी गौड फादर का होना जरूरी है, नसरीन ने इस प्रतियोगिता के लिए अपनी ऐंट्री भेज दी. उस का सोचना था कि वह यह कौंटैस्ट जीत गई तो आगे का रास्ता खुल जाएगा.

राजन फैशन जगत में जाना माना नाम है. उस की रंगीनमिजाजी के किस्से अकसर सुनाई देते हैं. फिर भी उस के लिए मौडलिंग करना किसी भी नवोदित का सपना होता है. आज खुद इस ग्रुप में राजन के साथ जुड़ कर नसरीन को यों लगा मानो उस की लौटरी लग गई. आज आसमान मुट्ठी में कैद हुआ सा लग रहा था. उसे अचानक नीरस और उबाऊ व्हाट्सऐप अच्छा लगने लगा.

‘सब कुछ सिस्टेमैटिक तरीके से करना होगा.’ सोचते हुए मिशन की प्लानिंग के हिसाब से सब से पहले नसरीन ने व्हाट्सऐप प्रोफाइल की डीपी पर लगी अपनी पुरानी तसवीर हटा कर सैक्सी तसवीर लगाई. फिर राजन को पर्सनल चैट बौक्स में मैसेज भेज कर थैंक्स कहा. राजन ने जवाब में दोनों हाथ नमस्कार की मुद्रा में जुड़े हुए 2 स्माइली प्रतीक भेजे. यह नसरीन की राजन के साथ पहली चैट थी.

एक दिन नसरीन ने अपने कुछ फोटो राजन के इनबौक्स में भेजे तथा तुरंत ही सौरी का मैसेज भेजते हुए लिखा, ‘‘माफ कीजिएगा, गलती से सैंड हो गए.’’

‘‘इट्स ओके. बट यू आर लुकिंग वैरी सैक्सी,’’ राजन ने लिखा.

‘‘सर, मैं इस वक्त दुनिया की सब से खुशहाल लड़की हूं, क्योंकि मैं आप जैसे किंग मेकर से सीधे रूबरू हूं.’’

‘‘मैं तो एक अदना सा कला का सेवक हूं.’’

‘‘हीरा अपना मोल खुद नहीं आंक सकता.’’

‘‘आप नाहक मुझे चने के झाड़ पर चढ़ा रही हैं.’’

‘‘जो सच है वही कह रही हूं…’’

राजन ने 2 हाथ जुड़े हुए धन्यवाद की मुद्रा में भेजे.

‘‘ओके सर बाय. कल मिलते हैं,’’ और 2 स्माइली के साथ नसरीन ने चैट बंद कर दी.

2 दिन बाद प्रतियोगिता का पहला राउंड था. नसरीन ने राजन को लिखा, ‘‘सर, यह मेरा पहला चांस है, क्या हमारा साथ बना रहेगा?’’

‘‘यह तो वक्त तय करेगा या फिर खुद तुम,’’ कह कर राजन ने जैसे उसे एक हिंट दिया.

नसरीन उस का इशारा कुछकुछ समझ गई. फिर ‘मैं यह कौंटैस्ट हर कीमत पर जीतना चाहूंगी,’ लिख कर नसरीन ने उसे हरी झंडी दे दी.

पहले राउंड में देश भर से चुनी गईं 60 मौडलों में से दूसरे राउंड के लिए  20 युवतियों का चयन किया गया. नसरीन भी उन में से एक थी. राजन ने उसे बधाई देने के लिए अपने कैबिन में बुलाया. आज उस की राजन से प्रत्यक्ष मुलाकात हुई. राजन जितना फोटो में दिखाई देता था उस से कहीं ज्यादा आकर्षक और हैंडसम था. अपने कैबिन में उस ने नसरीन के गाल थपथपाते हुए कहा, ‘‘बेबी, हाऊ आर यू फीलिंग नाऊ?’’

‘‘यह राउंड क्वालिफाई करने के बाद या फिर आप से मिलने के बाद?’’ नसरीन ने शरारत से पूछा.

‘‘स्मार्ट गर्ल.’’

‘‘अब आगे क्या होगा?’’

‘‘कहा तो है कि यह तुम पर डिपैंड करता है,’’ राजन ने उस की खुली पीठ को हलके से छूते हुए कहा.

‘‘वह तो है, मगर अब कंपीटिशन और भी टफ होने वाला है,’’ नसरीन ने राजन की हरकत का कोई विरोध न करते हुए कहा.

‘‘बेबी, तुम एक काम करो, नैक्स्ट राउंड में अभी 10 दिन का टाइम है. तुम रोनित शेट्टी से पर्सनैलिटी ग्रूमिंग की क्लासेज ले लो. मैं उसे फोन कर देता हूं,’’ राजन ने उस के चेहरे पर आई लटों को हटाते हुए कहा.

‘‘सो नाइस औफ यू… थैंक्स,’’ कह नसरीन ने उस के हाथ से रोनित का कार्ड ले लिया.

10 दिन बाद प्रतियोगिता के सैकंड राउंड में नसरीन सहित 10 मौडलों का चयन किया गया. अब आखिरी राउंड में विजेता का चयन किया जाना था. प्रतियोगिता का फाइनल मुंबई में होना था. निर्णायक मंडल में राजन सहित एक प्रसिद्ध टीवी ऐक्ट्रैस और एक प्रसिद्ध पुरुष मौडल था.

नसरीन भी सभी प्रतिभागियों के साथ मुंबई पहुंच गई. प्रतिभागियों के रुकने की अलग व्यवस्था की गई थी और बाकी टीम की अलग. राजन ने नसरीन को मैसेज कर के अपने रूम में बुलाया.

‘‘तो बेबी, क्या सोचा तुम ने?’’

‘‘इस में सोचना क्या? यह तो एक डील है… तुम मुझे खुश कर दो, मैं तुम्हें कर दूंगी,’’ नसरीन ने बेबाकी से कहा.

‘‘तो ठीक है, रात को डील पर मुहर लगा देते हैं.’’

‘‘आज नहीं कल रिजल्ट के बाद.’’

‘‘मुझ पर भरोसा नहीं?’’

‘‘भरोसा तो है, मगर मेरे पास भी तो सैलिब्रेट करने का कोई बहाना होना चाहिए न?’’ नसरीन ने उसे अपने से अलग करते हुए कहा.

‘‘ऐज यू विश… औल द बैस्ट,’’ कहते हुए राजन ने उसे बिदा किया.

अगले दिन विभिन्न चरणों की औपचारिकता से गुजरते हुए अंतिम निर्णय के आधार पर नसरीन को फेस औफ द ईयर चुना गया. तालियों की गड़गड़ाहट के बीच पिछले वर्ष की विजेता ने अपना क्राउन उसे पहनाया तो नसरीन की आंखें खुशी के मारे छलक उठीं. उस ने राजन की तरफ कृतज्ञता से देखा तो राजन ने एक आंख दबा कर उसे उस का वादा याद दिलाया. नसरीन मुसकरा दी.

आज की रात अपनी देह का मखमली कालीन बिछा कर नसरीन ने अपनी मंजिल को पाने के लिए शौर्टकट की पहली सीढ़ी पर पांव रखा. एक गरम कतरा उस की पलकों की कोर को नम करता हुए धीरे से तकिए में समा गया.

खिताब जीतने के बाद पहली बार नसरीन अपने शहर आई. पर रेलवे स्टेशन पर कट्टर समाज के लोगों ने उस के भाई की अगुआई में उसे काले झंडे दिखाए, मुर्दाबाद के नारे लगाए और उसे ट्रेन से उतरने नहीं दिया. भीड़ में सब से पीछे खड़े उस के अब्बा उसे डबडबाई आंखों से निहार रहे थे. नसरीन उन्हें देख कर सिर्फ हाथ ही हिला सकी और ट्रेन चल पड़ी. इस विरोध के बाद उस ने फिर कभी जयपुर का रुख नहीं किया.

देखते ही देखते विज्ञापन की दुनिया में नसरीन छा गई. लेकिन शौर्टकट सीढि़यां चढ़तेचढ़ते काफी ऊपर आ गई नसरीन के लिए मंजिल अभी भी दूर थी. उस की ख्वाहिश इंटरनैशनल लैवल तक जाने की थी और सिर्फ राजन के पंखों के सहारे इतनी ऊंची उड़ान भरना संभव नहीं था. उसे अब और भी सशक्त पंखों की तलाश थी, जो उस की उड़ान को 7वें आसमान तक ले जा सके.

एक दिन उसे पता चला कि फैशन जगत के बेताज बादशाह समीर खान को अपने इंटरनैशनल प्रोजैक्ट के लिए फ्रैश चेहरा चाहिए. उस ने समीर खान से अपौइंटमैंट लिया और उस के औफिस पहुंच गई. इधरउधर की बातों के बाद सीधे मुद्दे पर आते हुए समीर ने कहा, ‘‘देखो बेबी, यह एक बीच सूट है और बीच सूट कैसा होता है, आई होप तुम जानती होंगी.’’

‘‘यू डौंट वरी. जैसा आप चाहोगे हो जाएगा,’’ नसरीन ने उसे आश्वस्त किया.

‘‘ठीक है, नैक्स्ट वीक औडिशन है, लेकिन उस से पहले हम देखना चाहेंगे कि यह जिस्म बीच सूट लायक है भी या नहीं,’’ समीर ने कहा.

नसरीन उस का इशारा समझ रही थी. अत: उस ने कहा, ‘‘पहले औडिशन ले कर ट्रेलर देख लीजिए. कोई संभावना दिखे तो पूरी पिक्चर भी देख लेना.’’

‘‘वाह, ब्यूटी विद ब्रेन,’’ कहते हुए समीर ने उस के गाल थपथपाए.

नसरीन का चयन इस प्रोजैक्ट के लिए हो गया. 1 महीने बाद उसे समीर की टीम के साथ सूट के लिए विदेश जाना था. अब राजन से उस का संपर्क कुछ कम होने लगा था.

आज राजन ने उसे डिनर के लिए इनवाइट किया था. नसरीन जानती थी कि वह रात की गई सुबह ही वापस आएगी. कुछ भी हो, मगर राजन के लिए उस के दिल में एक सौफ्ट कौर्नर था.

‘‘समीर के साथ जा रही हो?’’

‘‘हूं.’’

‘‘मुझे भूल जाओगी?’’

‘‘यह मैं ने कब कहा?’’

‘‘तुम उसे जानती ही कितना हो… एक नंबर का लड़कीखोर है.’’

‘‘तुम्हें भी कहां जानती थी?’’

‘‘शायद तुम्हें उड़ने के लिए अब आकाश छोटा पड़ने लगा?’’

‘‘तुम्हें कहीं मुझ से प्यार तो नहीं होने लगा?’’ नसरीन ने माहौल को हलकाफुलका करने के लिए हंसते हुए कहा.

‘‘अगर मैं हां कहूं तो?’’ राजन ने उस की आंखों में झांका.

‘‘तुम ऐसा नहीं कहोगे.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘क्योंकि फैशन की इस दुनिया में प्यार नहीं होता. वैसे भी तुम्हारी कंपनी फेस औफ द ईयर कौंटैस्ट फिर से आयोजित करने वाली है. फिर एक नया चेहरा चुना जाएगा, जो तुम्हारी कंपनी और तुम्हारे बिस्तर की शोभा बढ़ाएगा. फिर से तुम साल भर के लिए बिजी हो जाओगे. मैं ने पिछले वर्ष की मौडल के चेहरे पर एक पीड़ा देखी थी जब वह मुझे क्राउन पहना रही थी. वह पीड़ा मैं अपनी आंखों में नहीं आने देना चाहती,’’ नसरीन ने बहुत ही साफगोई से कहा.

राजन उसे अवाक देख रहा था. उस ने अपनी जिंदगी में आज तक इतनी पारदर्शी सोच वाली लड़की नहीं देखी थी.

नसरीन ने आगे कहा, ‘‘मेरी मंजिल अभी बहुत दूर है राजन. तुम जैसे न जाने कितने छोटेछोटे पड़ाव आएंगे. मैं वहां कुछ देर सुस्ता तो सकती हूं, मगर रुक नहीं सकती.’’

रात को सैलिब्रेट करने का राजन का सारा उत्साह ठंडा पड़ गया. उस ने नसरीन से कहा, ‘‘चलो, तुम्हें गाड़ी तक छोड़ दूं.’’

‘‘ओके, बाय बेबी… 2 दिन बाद मेरी फ्लाइट है. देखते हैं अगला पड़ाव कहां होता है,’’ कहते हुए नसरीन ने आत्मविश्वास के साथ गाड़ी स्टार्ट कर दी.

राजन उसे आंखों से ओझल होने तकदेखता रहा.

मैं अपने जिम ट्रेनर से प्यार करने लगी हूं, लेकिन उसे कैसे प्रपौज करूं?

सवाल

मैं 20 साल की लड़की हूं, कुछ महीनों से मैं ओवरवेट हो गई थी. इसलिए मैं जिम जाने लगी. वहां ट्रेनर मुझे एक्सरसाइज करवाते हैं और डाइट चार्ट भी दिया है, जिसे मैं रेगुलर फौलो करती हूं. अब मेरा वेट कम होने लगा है, जिससे मेरे लुक में भी थोड़ा बदलाव आया है और मैं कौन्फिडेंट महसूस करती हूं.

जिम में एक नया ट्रेनर आया है, हालांकि वो मुझे एक्सरसाइज के बारे में नहीं बताता है, वो दूसरी लड़के और लड़कियों को बताता है. वह बहुत ही हैंडसम है. मुझे सबसे अच्छी उसकी आंखें लगती हैं, उसकी आवाज भी काफी अच्छी है. वह मैच्योर भी लगता है, ज्यादा लड़कियां उससे ही एक्सरसाइज के बारे में पूछती हैं. मैं भी उससे बात करने के बहाने ढूंढ़ती हूं पर उसके सामने जाने से कतराती हूं, वो तो मुझे देखता भी नहीं है.

Woman working out with dumbbells side view

वह दोतीन दिनों तक जिम नहीं आया, मैं एकदम घबरा गई थी कि वह क्यों नहीं आ रहा, रिसेप्शन पर भी मैंने पता किया, मुझे पता चला कि वह अपने होमटाउन गया है. मैं केवल उसे ही याद कर रही थी, मुझे अहसास हो गया कि मैं उससे प्यार करने लगी हूं. अब वह जिम भी आने लगा है, लेकिन मैंने उससे कभी बात नहीं की. मैं उससे प्रपौज करना चाहती हूं, लेकिन समझ नहीं आ रहा कैसे करूं? अगर उसने गुस्से में कुछ कह दिया तो मैं क्या करूंगी…

जवाब

देखिए ये उम्र ही ऐसी है, इस उम्र में बहकना लाजिमी है. किसी से प्यार करना, किसी का घंटों तक इंतजार करना, डेट पर जाना जीवन के खास पल हैं. आपने बताया कि आप उस लड़के को प्यार करने लगी है, लेकिन कभी बात भी नहीं की. सबसे अच्छी बात है कि आपके लिए वो अजनबी नहीं है, वो आपका जिम ट्रेनर है. आप उसे रोजाना देखती भी हैं, तो ज्यादा इंतजार मत करें उससे अपने दिल की बात कहने में…
जैसा कि आपने बताया कि आपकी लुक अच्छी होती जा रही है. मार्केट में लड़कियों के लिए एक से बढ़कर एक जिम वेयर मिलने लगे हैं. आप यही वेयर कर के जिम जाएं. इससे आप ज्यादा स्मार्ट दिखेंगी.

Young adult doing indoor sport at the gym

आप जिस ट्रेनर से प्यार करने लगी है, उससे पहले बात करने की कोशिश करें. तभी आप अपने दिल की बात बताने में कम्फर्ट रहेंगी. बातचीत की शुरूआत डाइट या एक्सरसाइज के बारे में ही पूछते हुए कर सकती है.

Couple holding hands on valentines evening in a restaurant

आप उसे दोस्ती करें, फ्रेंडशिप डे आने वाला है, आप इस मौके पर कोई गिफ्ट भी दे सकती हैं. आप उससे बाहर मिलने के लिए कहें, उसे डेट पर ले जाएं, जहां आप उसे आसानी से प्रपौज कर सकती हैं. आप उसे वहां प्यार भरा टच भी करें. बेझिझक रोमांटिक मूड में अपने दिल की बात कहें. आप ये मत सोचें कि आपको वो मना कर देगा. कई बार लोग यही सोचकर किसी को प्रपौज करने से पीछे हट जाते हैं. लेकिन जब आप किसी से प्यार करते हैं, तो उससे जरूर कहना चाहिए.

पौलिटिक्स से क्यों निराश होते हैं युवा, जबकि राजनीति भी है कैरियर औप्शन !

यूथ और पौलिटिक्स , ये दोनों शब्द सुनने में बहुत अच्छे लगते हैं. लेकिन यंग जनरेशन हमेशा से पौलिटिक्स के खिलाफ रही हैं. युवाओं को लगता है कि राजनीति क्राइम का काम है. कुछ युवाओं को तो ये भी लगता है कि जिन्हें कोई काम नहीं होता वो राजनीति में रूचि रखते हैं. युवाओं के मन में पौलिटिक्स को लेकर गलत धारण बनी है, जिससे उनका और देश का नुकसान होता है.

कई युवाओं का मानना है कि नेताएं सिर्फ चापलूसी करते हैं, वो सिर्फ वोटबैंक बढ़ाने के लिए जनता का इस्तेमाल करते हैं.

लेकिन जब युवा ही पौलिटिक्स के खिलाफ हैं, तो देश क्या ही विकास करेगा ? हालांकि ‘भारत को युवाओं का देश कहा जाता है.’ रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में भारत सबसे ज्यादा युवा आबादी वाला देश है. यूएनडीपी के आंकड़े बताते हैं कि विश्व में 121 करोड़ युवा हैं, जिनमें सबसे ज्यादा 21 प्रतिशत भारतीय युवा हैं, लेकिन ये युवा राजनीति में कहीं भी दिखाई नहीं देते..

Young Asian Indian college students reading books, studying on laptop, preparing for exam or working on group project while sitting on grass, staircase or steps of college campus

आज मैंने अपने आसापस के युवाओं से बात की और पौलिटिक्स के बारे में वो क्या सोचते हैं, ये मैंने जानने की कोशिश की. मैंने 23 साल के कौशिक से पूछा कि पैलिटिक्स में इंटरेस्ट है? मेरा यह सवाल सुनकर पहले उसने मुंह बनाया, फिर उसने ये जवाब दिया कि मुझे अच्छा नहीं लगता, राजनिती में सिर्फ बेकार की बातें होती है. पौलिटिक्स में रूचि न रखने का एक और कारण उसने बताया कि उसके फैमिली में पौलिटिक्स से कोई नहीं जुड़ा है.

तो वहीं कुछ युवाओं ने पैलिटिक्स में हिस्सा न लेने के कुछ और कारण बताए. एक ने कहा राजनीति में हमारे काम की कोई चीज नहीं होती है, तो इसके बारे में दिमाग लगाने का कोई मतलब नहीं है. कुछ यंग जनरेशन को ये भी लगता है कि राजनिती में सिक्का जमाना हो, तो इसके लिए बहुत पैसे होने चाहिए. कई युवा राजनीति में आते भी हैं, तो आंदोलन, धार्मिक उन्माद, हिंसा फैलाते हैं और इन्हीं कामों को वो पौलिटिक्स समझ लेते हैं.

राजनीति में युवाओं को लाने के लिए उन्हें मार्गदर्शन की जरूरत है. राजनीति को कीचड़ समझने वाले युवाओं के लिए एक ऐसी मुहिम चलानी चाहिए, जिसमें उन्हें गाइड किया जा सके कि पौलिटिक्स में भाग लेना और एक्टिव रहना देश का भविष्य बदल सकता है.

लोकतंत्र में चुनाव एक बड़ा पर्व है. भारत में वोट देने की न्यूनतम आयु 18 साल है. एक आंकड़े के अनुसार इस साल लोकसभा चुनाव में कुल मतदाता आबादी का लगभग 13 प्रतिशत युवा वर्ग था. आज हम इस आर्टिकल में कुछ मुद्दों पर चर्चा करेंगे जिसमें ये बताएंगे कि क्यों युवाओं के लिए पौलिटिक्स में भाग लेना जरूरी है?

Group of workers organizing protest

पौलिटिक्स भी एक कैरियर है

युवा राजनीति में भी अपना कैरियर बना सकते हैं. पौलिटिक्स में युवाओं के लिए अच्छी संभावनाएं हो सकती हैं. अगर कोई यूथ कहता भी है कि राजनीति में कैरियर बनाना चाहता हूं, तो इसे बेकार कहकर चुप करा देते हैं, लेकिन सवाल यह है कि मेडिकल, इंजीनियरिंग, टीचिंग जैसे क्षेत्र में कैरियर बनाया जा सकता है, तो राजनीति में क्यों नहीं? लेकिन सच यह है कि अगर इरादे नेक हैं, तो राजनीति में कैरियर बनाकर देश की व्यवस्था को सुधारा जा सकता है.

पौलिटिक्स ही सबकुछ करती है तय

साल 2016 में जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष के रूप में 29 साल (2016 में) के कन्हैया कुमार को देशद्रोह के आोरप में गिरफ्तार किया गया था. इस बेबाक युवा ने तिहाड़ जेल में रहते हुए एक किताब लिखा था, जिसका नाम ‘बिहार से तिहाड़ तक’ है. इसमें कन्हैया ने कई युवा भारतीयों के संघर्षों और आकांक्षाओं के बारे में बताया. उन्होंने अपने बारे में भी कई सारी बातें लिखी और बताया कि जब उन्हें देश के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्दायल जेएनयू में छात्र संघ का अध्यक्ष बनाया गया, तो कन्हैया ये मानने लगे कि जब राजनीति आपके जीवन में सब कुछ तय करती है, तो तय करें कि आपकी राजनीति क्या होनी चाहिए… उनकी राजनीति करियर की शुरूआत छात्र संघ से शुरु हुई थी. कन्हैया कुमार कांग्रेस पार्टी के नेता हैं.

एक महीने पहले ही लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद लोजपा (रामविलास) के मुखिया और सांसद चिराग पासवान लगातार सुर्खियों में छाए हैं. उन्होंने बौलीवुड में भी काम किया है, लेकिन अब वो राजनीति में आ चुके हैं. 2014 में पहली बार लोकसभा सदस्य के रूप में चिराग पासवान चुने गए थे.

टीएससी सांसद महुआ मोइत्रा ने भी युवावस्था से ही राजनीति में अपना कैरियर बनाया. साल 2009 में महुआ की राजनीति यात्रा की शुरूआत कांग्रेस पार्टी से हुई. वह राहुल गांधी की ‘आम आदमी के सिपाही’ परियोजना की वह एक मुख्य सदस्य थी लेकिन वह कांग्रेस के साथ ज्यादा दिनों तक नहीं रहीं और फिर वो तृणमूल कांग्रेस में आ गईं. अपने तेज तर्रार और ओजस्वी भाषण के लिए महुआ मोइत्रा प्रसिद्ध हैं.

बूढ़े चला रहे हैं देश

युवा भारत के पास बू़ढ़े नेता हैं, जो देश चला रहे हैं. देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिनकी उम्र 73 साल है . हालांकि बूढ़े नेताओं को लेकर कांग्रेस पार्टी में चर्चा भी हुई थी. इस पार्टी के नेता जनार्दन द्विवेदी का कहना था कि 70 साल से अधिक उम्र के नेताओं को सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लेना चाहिए. उन्हें सलाहकार की भूमिका निभानी चाहिए. उन्होंने ये भी कहा था कि पौलिटिक्स में रहने वालों के लिए भी अन्य प्रोफेशनल्स की तरह उम्र की सीमा होनी चाहिए. महत्वपूर्ण पदों के लिए कम उम्र के लोग उपयुक्त होते हैं. तो राजनेता राहुल गांधी का विश्वास युवा नेताओं पर ज्यादा होता है. वो अक्सर युवाओं के लिए आवाज भी उठाते हैं.

भारतीय राजनीति में देखा गया है कि महत्वपूर्ण पदों पर बूढ़े नेता ही हावी होते रहे हैं. कई राजनीतिक नेता जो शारीरिक रूप से भी अक्षम रहते थे, उन्हें महत्वपूर्ण पद दे दिया जाता था. इसका एक उदाहरण आपको बताते हैं, 86 वर्ष की उम्र में सीस राम ओला को मंत्री बनाया गया. वह महज छह महीने ही इस पद पर रह पाए और उनका निधन हो गया. कहने का मतलब साफ है कि ज्यादा उम्र के नेताओं को मंत्री या कोई महत्वपूर्ण पद देना कोई समझदारी का काम नहीं है.

किसे चुनें बौयफ्रैंड या कैरियर

स्कूलों में पहले जहां दोस्तियां शुरू होती थीं, आजकल रिलेशनशिप शुरू हो जाती है. क्रश वगैरह तो पुरानी बातें हो गई हैं. स्कूल हो या कालेज, रिलेशनशिप आजकल पहले से भी ज्यादा कौमन हैं.

अकसर टीनऐज बच्चे रिलेशनशिप के चक्कर में अपना स्कूल का कीमती वक्त जाया कर रहे होते हैं. लेकिन इस से उन की पढ़ाई कितनी प्रभावित होती है इस का उन्हें अंदाजा भी नहीं रहता.

हालफिलहाल इंस्टाग्राम पर एक रील वायरल हो रही थी जिस में 2 लङकियां और 1 लङका स्कूल के बाद किसी गली में शादी का ड्रामा रचा रहे थे. स्टूडैंट की उमर लगभग 16-17 साल रही होगी. लङका लङकी की मांग में सिंदूर भरे जा रहा था और लडकी खुश हुए जा रही थी. न जाने स्कूलों में बच्चे किस तरफ जा रहे हैं. अपना कीमती वक्त इन हरकतों में बरबाद करना उन्हें कहां ले जाएगा.

लड़कियों के लिए

लड़कियों के लिए यह जान लेना जरूरी है कि बौयफ्रैंड रखना कोई बुरी बात नहीं लेकिन उस के क्या साइड इफैक्ट्स हो सकते हैं टीनऐज बच्चों को यह समझाया जाना बेहद जरूरी है, जो शायद उन के मातापिता नहीं कर कर पा रहे हैं.

आइए, जानते हैं इस के साइडइफैक्ट्स :

सब से पहला साइडइफैक्ट तो यही है कि लड़कियां अपनी पढ़ाई को पूरा समय नहीं दे पातीं. बौयफ्रैंड है तो उसे भी समय देना पङ़ेगा और ऐसे में उस का वह समय जो पढ़ाई में इस्तेमाल हो सकता है बौयफ्रैंड को पैंपर करने में निकल जाता है.

भारतीय घरों में लड़कियों के पास कितना ही समय होता है यह सब जानते ही हैं. पढ़ाई के साथसाथ उन्हें घर के कामकाज भी करने पडते हैं और अगर छोटे बहनभाई हैं तो उन्हें संभालना भी पड़ता है. ऐसे में लङकियां अपनी और अपनी पढ़ाई के लिए वक्त कम निकाल पाती हैं.

मौजमस्ती होगी खत्म, सुननी पड़ेगी उस की ही

एक व्यक्ति के साथ स्कूल का सारा समय निकालना पडेगा. ऐसे में आप नए दोस्त बनाने से रह जाएंगे. आप मौजमस्ती नहीं कर पाएंगे. सोचिए कि क्या आप का बौयफ्रैंड आप को दूसरों से बात करने देगा? घर में पापामम्मी और स्कूल में बौयफ्रैंड आप का ताऊ बन कर आप की गतिविधियों पर नजर रखेगा. आप कहां जा रही हैं, किस से बात कर रही हैं, किस के साथ बैठ रहीं है, सबकुछ उसे ध्यान में रख कर करना होगा. उस के लिए होमवर्क भी करना पङ सकता है.

गर्ल स्टूडैंट्स के लिए यह कितना अजीब है कि वे अपने पूरी स्टूडैंट लाइफ में एक ही व्यक्ति के साथ बंधे रहती हैं. छात्रजीवन दोस्ती, समझदारीपूर्ण मौजमस्ती, ध्यान केंद्रित करने, देने और लेने और ढेर सारी अच्छी विचारशील यादों को हमेशा के लिए समेटने का समय होता है, जिन्हें आप लंबे समय तक अपने साथ रख सकती हैं.

यदि आप एक ही व्यक्ति के साथ बंधे रहते हैं, मसलन बाहर जाना, मिलनाजुलना, खानापीना, फिल्म देखना और मीठीमीठी बातें करना, तो क्या आप वास्तव में एक छात्र के रूप में जीवन के उस बड़े हिस्से को खो नहीं देंगी?

क्या आप के लिए इस के अलावा दोस्तों के साथ पढ़ाई करना ज्यादा मजेदार नहीं होगा? आखिर दोस्ती रोमांटिक रिश्ते में बैठने से ज्यादा मजेदार नहीं है जिस में आप का मानसिक विकास भी होता है, नकि आप की सोच सीमित हो जाती है.

ब्रैकअप हुआ तो होगी दिक्कत

स्टूडैंट माइंड मैच्योर होने की तरफ बढ़ रहा होता है. प्यूबर्टी इसी समय टीनऐजर्स को हीट करती है. ऐसे मे आप इमोशनली वीक होती हैं. पीरियड्स से ले कर शरीर के अलगअलग भागों में आते बदलाव आप को परेशान कर रहे होते हैं. ऐसे में अगर आप की आप के बौयफ्रैंड से ब्रेकअप हो जाता है तो आप मानसिक रूप से कमजोर हो जाती हैं, जिस से आप की पढ़ाई जोकि लाइफ का सब से जरूरी पहलू है पर असर पड़ता है. आप का पढ़ाई पर से मन हट जाता है और आप क्योंकि सारा वक्त बौयफ्रैंड को ही देती आई हैं तो जाहिर सी बात है आप के ज्यादा अच्छे दोस्त भी नहीं बन पाए होते तो आप अपनी दिक्कतें भी उन के साथ शेयर नहीं कर पाती हैं.

मानसिक विकास में बौयफ्रैंड हो सकता है बाधक

अकसर देखा गया है कि बौयफ्रैंड चाहे किसी भी ऐज में हो वह आप को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं. वे चाहते हैं कि जिस तरह का लाइफस्टाल वे कैरी करते हैं आप भी करें, चाहे वह बुरा ही क्यों न हो.

क्लासेज बंक करना, स्कूल के बाद समय बरबाद करना, पढ़ाई में ज्यादा समय न देने जैसी चीजों के लिए अकसर बौफ्रैंड्स आप को फोर्स करते हैं जिस से आप के सोचने और चीजों को समझने की क्षमता प्रभावित होती है.

आप का ध्यान सिर्फ उसी की कही बातों पर होता है, जोकि खुद विकास की प्रक्रिया से गुजर रहा होता है और जिस की खुद की बुद्धि का विकास अभी होना बाकी है.

इसलिए टीनऐज लङकियों के लिए यह जरूरी हो जाता है कि वह अपने शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक विकास पर ध्यान दें नकि बौयफ्रैंड की बातों में अपना कीमती स्टूडैंट लाइफ जोकि दोबारा वापस नहीं मिलेगी को बरबाद करें.

बौयफ्रैंड तो आप को जिंदगी के हर मोड़ पर मिल जाएंगे पर यह वक्त नहीं. और फिर कौन कब तक साथ देगा इस का कोई जवाब नहीं है। हो सकता है कि स्कूल के बाद आप दोनों के ही रास्ते अलग हो जाएं.

रोमरोम महका देंगे वर्ल्ड के ये बेहद luxirious परफ्यूम्स 

जब कभी भी हम मार्केट में परफ्यूम खरीदने जाते हैं तो उस की खुशबू के साथसाथ हम उस की कीमत भी जरूर देखते हैं. जब वह परफ्यूम हमारे बजट में होता है और हमें उस की खुशबू पसंद आती है तभी हम उसे खरीदते हैं. लेकिन क्या आप को पता है कि मार्केट में कुछ ऐसे परफ्यूम भी मौजूद हैं जिन की ना सिर्फ खुशबू मदहोश करने वाली है बल्कि कीमत इतनी है एक आप एक लग्जरी कार खरीद लें. आप को जानकर हैरानी होगी कि इन की कीमत लाखोंकरोड़ों में है.

ये परफ्यूम कौनसे है, आखिर इन की कीमत इतनी ज्यादा क्यों हैं, आइए जानते हैं…

1. शुमुख परफ्यूम

महंगे परफ्यूम की लिस्ट में सबसे पहले नंबर आता है दुबई के शुमुख परफ्यूम का. इस परफ्यूम की कीमत लगभग 10 करोड़ रुपए है. गिनीज वर्ल्ड रिकौर्ड के मुताबिक, ये परफ्यूम स्किन को ये 12 घंटे और कपड़ों को 30 दिन तक महकाने की क्षमता रखता है. नबील परफ्यूम्स ग्रुप के चेयरमैन असगर एडम अली ने डिजाइन किया है. इस परफ्यूम की एक खास बात यह कि इस पर हीरे लगे है और यह बाकी परफ्यूम की बोतल पर लगे हीरों में से सबसे ज्यादा है.

2. डीकेएनवाई गोल्डन डीलिसियस

दूसरे नंबर पर है गोल्डन डीलिसियस. इस परफ्यूम को डीकेएनवाई कंपनी ने बनाया था. ताकि इस से मिले पैसों को दान में दिया जा सके. इसे बनाने में 1500 घंटे लगे थे. इस की बोतल में 2,909 कीमती पत्थर, 2,700 सफेद हीरे, 183 पीले नीलम और 7.18 कैरेट का श्रीलंकन बिना तराशा हुआ हीरा लगा था. इस के 50 एमएल की एक बोतल की मार्केट में कीमत 10 लाख डालर है. वहीं अगर इसे भारतीय रुपये में बताएं तो ये करीब 8 करोड़ रुपये से ज्यादा की बोतल है.

3. ले मोंडे सुर मेसुर परफ्यूम

ये परफ्यूम कोई छोटी डिब्बी में नहीं बल्कि ये 5 किलो की बोतल में बनाया गया था. जिसे बाद में एक गुमनाम व्यक्ति को बेच दिया गया. इस परफ्यूम के डिब्बे को विशेष तौर पर डिजाइन किया गया था, जिस में 2 किलो सोना इस्तेमाल हुआ था. इस के अलावा इसपर 1 हजार हीरे भी जड़े गए थे. इस
परफ्यूम को बनाने में 35 लोगों को 1 साल तक काम करना होगा. तब जाकर ये परफ्यूम तैयार होगा. ये परफ्यूम खुशबू के साथसाथ लग्जरी फीलिंग भी देता है.

4. क्लाइव क्रिश्चियन पासेंट गार्डेंट

इसी लिस्ट में तीसरे नंबर पर है क्लाइव क्रिश्चियन का नंबर 1 पासेंट गार्डेंट. इस परफ्यूम के एक एमएल की कीमत 76 सौ डौलर है. इस परफ्यूम की एक बोतल 2 लाख 28 हजार डौलर की आती है. भारतीय रुपयों में ये करीब 2 करोड़ से ज्यादा होगा.

5. ओपेरा प्रिमा परफ्यूम

चौथे नंबर पर है ओपेरा प्रिमा परफ्यूम. इस परफ्यूम को बुलगारी कंपनी बनाती है. इस परफ्यूम की एक बोतल 2 लाख 35 हजार डौलर में बिकती है. कहते हैं कि इस परफ्यूम को अगर आपने लगा लिया तो हफ्तों तक इसकी खुशबू बरकरार रहती है. भारतीय रुपयों में इसकी कीमत 2 करोड़ के पार है.

6. गियानी विवे सुलेमान परफ्यूम VI

68 लाख रुपये की कीमत वाले इस परफ्यूम का इस्तेमाल पौपस्टार माइकल जैक्सन न किया था. इसे गुलाब, चमेली और कुछ पुरानी सामग्रियों से मिलकर बनाया जाता है. इस की बोतल की बात करे तो उस का डिजाइन लौक की तरह बनाया गया है जिस में गोल्ड, रूबी और हीरे से जड़ी हुई चाबी का डिजाइन बना हुआ है.

7. जे डोर एल ओर प्रेस्टीज

जे डोर एल ओर प्रेस्टीज परफ्यूम भी लग्जरी परफ्यूम की लिस्ट में शामिल है. इस परफ्यूम्स को डियोर बनाता है. इस की एक बोतल की कीमत 75 हजार डौलर है. वहीं भारतीय रुपयों में ये करीब 62 लाख रुपये है. इस की कीमत को देखकर तो यही कहा जा सकता है कि महकना कीमती है.

8. पाको रबैन लक्स एडिशन परफ्यूम

पाको रबैन लक्स एडिशन परफ्यूम को स्पैनिश फैशन डिजाइनर पाको रबान ने तैयार किया था. इस की बिक्री से उन्होंने खूब नाम और दौलत कमाई. बात इस की कीमत की करे तो मार्केट में इस परफ्यूम की कीमत करीब 43 लाख रुपये है. इस परफ्यूम के बौक्स और बोतल को सोने से सजाया जाता है. इस की बोतल में हीरा भी जड़ा है. इस की खुशबू जबरदस्त है.

9. क्लाइव क्रिश्चियन नंबर 1 इंपीरियल मैजेस्टी

9.8 लाख रुपये के इस परफ्यूम को दुनिया की बेस्ट परफ्यूम बनाने वाली कंपनियों में से एक क्लाइव क्रिश्चियन ने बनाया है. वही परफ्यूम बनाने के लिए फेमस डिजाइनर रोजा डोव ने इसे डिजाइन किया है. इसे बैकारेट क्रिस्टल बोतला में पैक किया जाता है. इसे 18 कैरेट के सोने और 5 कैरेट के सफेद हीरे से सजाया जाता है.

10. बैकारेट लेस लार्मेस सैक्री डे थेब्स

इस परफ्यूम को सेंट बनाने के लिए मशहूर कंपनी बैकारेट ने बनाया है. इस कंपनी की शुरुआत 1764 में हुई थी. करीब 5.2 लाख रुपये के इस परफ्यूम की मार्केट में खूब वैल्यू है. इस परफ्यूम की बोतल पिरामिड शेप की होती है जिसे क्रिस्टल से बनाया जाता है.

11. चैनल ग्रैंड एक्सट्रैट

चैनल ग्रैंड एक्सट्रैट नाम के इस परफ्यूम को N°5 कंपनी ने बनाया गया है. ये एक लिमिटेड एडिशन परफ्यूम है जिस की सुगंध खुशबू हमेशा बने रहने का दावा करती है. 3.2 लाख रुपये के इस परफ्यूम को एक शाही बोतल में भरकर बेचा जाता है जिसे एक बड़े हीरे की शेप दी जाती है.

12. क्लाइव क्रिश्चियन नं.1

क्लाइव क्रिश्चियन नं.1 नाम के इस परफ्यूम को 2001 में दुनिया के सामने पेश किया गया था. ये यूनिसैक्स परफ्यूम है. यानि इसे महिला और पुरुष दोनों के लिए बनाया गया है. मार्केट में यह परफ्यूम करीब 1.6 लाख रुपये में उपलब्ध है. वही इस परफ्यूम की क्रिस्टल बोतल गर्दन को 24 कैरेट गोल्ड में मढ़वाया जाता है.

इन परफ्यूम्स और उन की कीमत को जानकर इतना तो तय है कि इन्हें बेहद अमीर व्यक्ति ही खरीद सकते हैं. करोड़ों की कीमत वाले इन परफ्यूम्स का इस्तेमाल देश विदेश में अमीर खानदान के व्यक्ति कर रहे हैं और बेहतरीन लग्जरी लाइफ का लुफ्त उठा रहे हैं.

मौनसून में ट्रैवल के दौरान इस तरह रखें अपनी त्वचा का ख्याल

मौनसून का मतलब है गरम चाय और कुरकुरे पकौड़े. हमें बारिश में भीगना और अपनी त्वचा पर ठंडी बूंदों का आनंद लेना पसंद है. इस समय हम वास्तव में यह नहीं सोचते कि बारिश के दौरान त्वचा की अच्छी देखभाल कितनी महत्त्वपूर्ण है. इस मौसम में हवा, वातावरण और जल संसाधनों में संक्रमण की संभावना होती है जो हमारे जीवन की बुनियादी आवश्यकताएं हैं. त्वचा और बालों को भी असुरक्षित नहीं छोड़ा जा सकता.

मौनसून के दौरान यात्रा करते समय त्वचा की देखभाल बेहद महत्त्वपूर्ण है. बारिश में भीगना और हरियाली का आनंद लेना अच्छा लगता है लेकिन इस मौसम में त्वचा की विशेष देखभाल करना न भूलें. हमेशा एक हलका और प्रभावी फेसवाश, ऐक्सफौलिएटिंग स्क्रब, सनस्क्रीन, फेस पैक और टी ट्री औयल अपने साथ रखें. ये प्रोडक्ट्स आप की त्वचा को साफ, हाइड्रेटेड और संक्रमण मुक्त रखेंगे जिस से आप बेफिक्र हो कर मौनसून का पूरा मजा ले सकेंगे.

अपनी त्वचा को करें डीप क्लीन

अपनी त्वचा को साफ और गंदगी मुक्त रखना महत्त्वपूर्ण है. क्या आप ने अरोमा मैजिक ग्रेपफ्रूट फेसवाश और अरोमा मैजिक व्हाइट टी और कैमोमाइल फेसवाश ट्राई किया है? ये मौनसून में त्वचा के लिए परफैक्ट पार्टनर हैं. ये न केवल आप की त्वचा को साफ करते हैं बल्कि उसे हाइड्रेटेड और पोषित भी रखते हैं.

ब्लौसम कोचर अरोमा मैजिक के ऐसैंशियल औयल्स युक्त फेसवाश आप की त्वचा को साफ और स्वस्थ बनाए रखने में हैल्प करते हैं. आप अपनी त्वचा और आवश्यकता के अनुसार अवेलेबल फेसवाश में से चुनाव कर सकती हैं. सुबह और शाम को अरोमा मैजिक की विशेष फेशवाश रेंज से अपनी त्वचा को साफ करें.

ऐसैंशियल औयल्स, प्राकृतिक फलों और सब्जियों के अर्क से बने अरोमा मैजिक फेसवाश आप की त्वचा को सांस लेने और चमकने देते हैं. आप की त्वचा को साफ और ताजा दिखाने के अलावा ये आप को घर से बाहर निकलते समय आत्मविश्वास और ऊर्जा भी प्रदान करते हैं.

त्वचा को सांस लेने दें

ब्यूटी रूटीन में स्क्रबिंग का महत्त्वपूर्ण स्थान है. यह त्वचा को ऐक्सफौलिएट करने में मदद करता है जो कई त्वचा समस्याओं को रोक सकता है. स्क्रबिंग त्वचा को साफ दिखाता है क्योंकि यह डैड स्किन सैल्स, गंदगी और अशुद्धियों को हटाता है. अरोमा मैजिक के स्क्रब आजमाएं जो ऐसैंशियल औयल्स और प्राकृतिक उत्पादों से युक्त होते हैं. ये आप की त्वचा की गुणवत्ता में सुधार करते हैं और आप को अंदर से बाहर तक खूबसूरत बनाते हैं.

ऐक्सफौलिएशन त्वचा से डैड स्किन सैल्स को हटाने और क्लोज्ड पोर्स को खोलने की सर्वोत्तम प्रक्रिया है. यह त्वचा को सांस लेने और लंबे समय तक ग्लोइंग रखने में मदद करता है. अरोमा मैजिक कौफी बीन स्क्रब आप के ट्रैवल के समय स्किन को ऐक्सफौलिएट करने का बेहतरीन सहारा है. यह त्वचा की गहराई से सफाई करता है और परिसंचरण में सुधार करता है.

यह त्वचा को फ्रैश और यूथफुल दिखने में मदद करता है. यह कौफी बीन स्क्रब त्वचा की टैनिंग भी रिमूव करने में मदद करता है. इस के साथसाथ ब्लौसम कोचर अरोमा मैजिक मिनरल ग्लो स्क्रब और पेपरमिंट ऐक्सफोल जैल भी 2 बेहतरीन ऐक्सफौलिएटर्स हैं.

सन प्रोटैक्शन स्किप न करें

गरमियों का मतलब है बहुत सारा बाहर समय बिताना. सूर्य से बचाव के सब से प्रभावी तरीकों में से एक है सनस्क्रीन का उपयोग. अपनी त्वचा को सूर्य की सामान्य हानियों से बचाने के लिए उच्च सन प्रोटैक्शन फैक्टर (एसपीएफ) वाले बेहतर सनस्क्रीन लोशन का चयन करना महत्त्वपूर्ण है. सनस्क्रीन त्वचा को नर्म, चिकनी और दृढ़ बनाता है.

अरोमा मैजिक की सनस्क्रीन रेंज नौन ग्रीसी, त्वचा के अनुकूल और हलकी है. अगर सूरज नहीं चमक रहा है और बाहर बादल छाए हुए हैं तो हमेशा सनस्क्रीन लगाना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि सूर्य की हानिकारक किरणें बादलों के माध्यम से प्रवेश कर सकती हैं. अरोमा मैजिक ऐलोवेरा सनस्क्रीन जैल एसपीएफ 20 प्राप्त करें. जैल फौर्मूला आप के और सूर्य के बीच एक भौतिक अवरोध पैदा करता है. ऐलोवेरा के अर्क हाइड्रेट, शुद्ध करते हैं और स्मार्ट सन प्रोटैक्शन प्रदान करते हैं.

त्वचा को डिटौक्सीफाई करें

ट्रैवल करते समय स्किन डिटौक्सीफिकेशन भी एक महत्त्वपूर्ण कदम है.

डिटौक्सीफिकेशन मौनसून सैशन का एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण हिस्सा है. जब आप अरोमा मैजिक डिटौक्सीफाइंग मिनरल पैक का उपयोग करती हैं तो आप गलत नहीं हो सकती. स्किन को साफ और हैल्दी रखने योग्य इनग्रीडिऐंट्स और ऐसैंशियल औयल्स का प्राकृतिक संयोजन अशुद्धियों को अवशोषित करने और टायर्ड त्वचा की मरम्मत में मदद करता है. यह फेसपैक आप की स्किन को डीप क्लीन और रिजूविनेट करने में सहायता करता है.

अपने हाथपैरों को खुश करें

जैसे हमारा चेहरा महत्त्वपूर्ण है वैसे ही हमारे हाथ और पैर भी हमारे लिए महत्त्वपूर्ण हैं. सौंदर्य देखभाल के मामले में हाथ और पैर शरीर के सब से उपेक्षित हिस्से होते हैं. ये दोनों हमारे शरीर के सब से अधिक काम करने वाले और थकने वाले हिस्से हैं और इन्हें अच्छी तरह से सुरक्षा की आवश्यकता होती है. बारिश में भीगना अद्भुत लगता है. यह पानी, कीचड़, बैक्टीरिया, फंगस और संक्रमण का भी समय है.

पैरों को हमेशा साफ रखना बहुत जरूरी है. सब से महत्त्वपूर्ण पैरों की देखभाल युक्तियों में से एक है अपने पैरों को हलके साबुन और कुनकुने पानी में 2-3 बूंदें टी ट्री तेल की डाल कर उस में डुबोना. इस से गंदगी हटाने और पैरों को साफ रखने में मदद मिलती है.

अपने पैरों को गंदगी और संक्रमण से मुक्त रखने के लिए ढके हुए वाटरपू्रफ जूते पहनने की कोशिश करें. ब्लौसम कोचर अरोमा मैजिक हैंड क्रीम और फुट क्रीम आप के हाथपैरों को मौइस्चराइज्ड और खूबसूरत बनाए रखने में सहायक होती है.

ब्लौसम कोचर          

दिमाग को रखना चाहते हैं दुरुस्त, तो अपनाएं ये कुदरती तरीके

डा. भारत खुशालानी 

प्रकृति और प्राकृतिक उपचार हमारे दिमाग को खुश और स्वस्थ रखने में जादुई भूमिका निभा सकते हैं. क्या आप ने कभी सोचा है कि बाहर समय बिताने या कुछ विशेष प्रकार के खाद्यपदार्थ खाने से आप कैसे बेहतर महसूस कर सकते हैं? यही प्राकृतिक चिकित्सा है. प्रकृति की शक्ति का उपयोग कर के हमारे मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल करने का एक शानदार तरीका.

प्राकृतिक चिकित्सा क्या है

प्राकृतिक चिकित्सा एक विशेष प्रकार की स्वास्थ्य देखभाल है जो प्राकृतिक उपचारों का उपयोग कर के हमारे शरीर को स्वयं ठीक करने में मदद करने पर केंद्रित है. प्राकृतिक चिकित्सक या प्रकृति चिकित्सक में अच्छे स्वास्थ्य की कुंजी हमारे शरीर, दिमाग और हमारे आसपास की प्राकृतिक दुनिया के संतुलन में निहित है. इस में हम स्वस्थ और खुश रहने में मदद करने के लिए पौधों, खाद्यपदार्थों और बाहरी गतिविधियों जैसी चीजों का उपयोग करते हैं.

मानसिक स्वास्थ्य को समझना

कभीकभी हम उदास, चिंतित या तनावग्रस्त महसूस करते हैं, जोकि पूरी तरह से सामान्य बात है. कुछ चिंता या तनाव होना ठीक भी है. अलगअलग भावनाएं होना सामान्य बात है. लेकिन जैसे सर्दी होने पर हम दवा लेते हैं वैसे ही कुछ चीजें हैं जिन्हें हम अपने मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल के लिए भी कर सकते हैं.

प्रकृति की उपचार शक्तियां

प्रकृति और प्राकृतिक चिकित्सा की मदद से अपने दिमाग को हम स्वस्थ कैसे महसूस करा सकते हैं, इस के कई तरीके हैं.

ताजा हवा और धूप

क्या आप ने कभी महसूस किया है कि ताजा हवा में गहरी सांस लेना कितना अच्छा लगता है? ऐसा इसलिए है क्योंकि ताजा हवा हमारे दिमाग के लिए एक पोषक तत्त्व की तरह काम करती है. जब हम बाहर समय बिताते हैं तो हमारे दिमाग को अधिक औक्सीजन मिलती है, जो भोजन की तरह है. इस के अलावा सूरज की गरम किरणें हमें विटामिन डी देती हैं, एक विशेष विटामिन जो हमारे दिमाग को सब से अच्छा काम करने में मदद करता है. जब आप थोड़ा उदास महसूस करें तो बाहर धूप में जरूर जाएं.

रंगबिरंगा भोजन

हम जो खाते हैं वह भी हम कैसा महसूस करते हैं, इस में एक बड़ी भूमिका निभाता है. प्राकृतिक चिकित्सा हमें रंगीन खाद्यपदार्थों का चयन करना सिखाती है जो हमारी स्वाद कलियों और हमारे दिमाग को उल्लास की स्थिति में पहुंचा देते हैं. जामुन, गाजर और पत्तेदार सब्जियां जैसे खाद्यपदार्थ विटामिन और पोषक तत्त्वों से भरपूर होते हैं जो हमारे दिमाग को स्फूर्त रहने में मदद करते हैं. इसलिए अपने दिमाग और शरीर को मजबूत रखने के लिए हर दिन विभिन्न प्रकार का रंगीन भोजन खाना जिंदादिली का एहसास कराता है.

हर्बल हीरो

प्राकृतिक चिकित्सा में बेहतर महसूस करने में मदद के लिए पौधों का उपयोग किया जाता है जैसे हम अपने शरीर के लिए फल और सब्जियां खाते हैं, वैसे ही कुछ विशेष पौधे भी हैं जो हमारे मूड को बढ़ावा दे सकते हैं और हमारे दिमाग को शांत कर सकते हैं. लैवेंडर, जिसे हम ‘धूप’ के नाम से भी जानते हैं कि खुशबू अद्भुत होती है और यह न केवल चिकित्सा के तौर पर बल्कि दिमाग को आराम देने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है.

चेतना

प्राकृतिक चिकित्सा हमें सचेतनता का अभ्यास करने के लिए प्रोत्साहित करती है, जो हमारे दिमाग को विश्राम देने जैसा है. सचेतना वर्तमान क्षण पर ध्यान देने के बारे में है जैसे अपने पसंदीदा नाश्ते के स्वाद का आनंद लेना या अपनी त्वचा पर सूरज की गरमी को महसूस करना. जब हम ध्यानपूर्ण क्षणों के लिए समय निकालते हैं तो हमारा दिमाग शांत और केंद्रित हो जाता है, किसी भी चीज से निबटने के लिए तैयार हो जाता है.

प्रकृति का वाद्य

क्या आप ने कभी प्रकृति की आवाजें सुनी हैं? पक्षियों का गाना, पत्तों की सरसराहट और ?ारने का कोमल प्रवाह यह एक सुंदर गीत की तरह है जो हमारे मन को सुकून देता है. प्राकृतिक चिकित्सा हमें प्रकृति के इन वाद्यों से जुड़ने के लिए आमंत्रित करती है, चाहे वह जंगल में टहलना हो, कलकल बहती नदी के पास बैठना हो या बस अपने पिछवाड़े में पत्तों की सरसराहट का आनंद लेना हो. ये ध्वनियां हमारे मन को शांति और खुशी का एहसास कराने का एक जादुई तरीका हैं.

पृथ्वी का क्रीड़ास्थल

प्रकृति एक विशाल खेल के मैदान की तरह है जो हमारे लिए ही बनाया गया है. दौड़ना, कूदना और बाहर खेलना केवल मनोरंजक गतिविधियां ही नहीं हैं ये हमारे मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी बहुत अच्छे हैं. प्राकृतिक चिकित्सा हमें बाहरी गतिविधियों का आनंद लेने के लिए प्रोत्साहित करती हैं क्योंकि वे हमारे शरीर को एंडोर्फिन नामक खुशनुमा रसायनों को छोड़ने में मदद करते हैं.

चाहे आप बाहर कोई खेल खेल रहे हों, साइकिल चला रहे हों या दोस्तों के साथ टहल रहे हों, आप न केवल आनंद ले रहे हैं बल्कि अपने मस्तिष्क को भी आनंद से भर रहे हैं.

जल

पानी पीना हमारे शरीर के लिए आवश्यक है और यह हमारे दिमाग के लिए भी बेहद महत्त्वपूर्ण है. प्राकृतिक चिकित्सा हमें हाइड्रेटेड रहना सिखाती है क्योंकि पानी हमारे दिमाग को स्पष्ट रूप से सोचने और ध्यान केंद्रित रखने में मदद करता है. पानी की एक औषधि के रूप में कल्पना करें जो हमारे दिमाग को मजबूत और कठिन कार्यों के लिए तैयार रखती है. इसलिए अपने दिमाग को तरोताजा और खुश रखने के लिए प्रकृति के पेय पानी को पर्याप्त मात्रा में पीना न भूलें.

हंसी

प्राकृतिक चिकित्सा का मानना है कि हंसी हमारे दिमाग के लिए एक शक्तिशाली औषधि है. क्या आप ने कभी हंसी योग के बारे में सुना है? यह हमारे मूड को बेहतर बनाने और तनाव को कम करने के लिए हंसी और हलके व्यायामों को संयोजित करने का एक मजेदार तरीका है. हंसी योग सिर्फ चुटकुले सुनाने के बारे में नहीं है यह साधारण चीजों में खुशी खोजने और एकसाथ हंसने के बारे में है.

अपने दोस्तों या परिवार को इकट्ठा कर अच्छी तरह से हंसी सा?ा करने का प्रयास करना चाहिए ताकि सकारात्मक ऊर्जा को मन में खुशी भरने का मौका मिले.

बागबानी

क्या आप ने कभी एक बीज बोया है और उसे एक सुंदर फूल या स्वादिष्ठ सब्जी में विकसित होते देखा है? बागबानी हमारे मन के लिए खुशी का एक जादुई बगीचा बनाने जैसा है. प्राकृतिक चिकित्सा मिट्टी खोद कर, बीज बो कर और प्रकृति को खिलते हुए देख कर पृथ्वी से जुड़ना है. जब हम पौधों की देखभाल करते हैं तो हम अपने मन का भी खयाल रखते हैं, जिम्मेदारी की भावना, धैर्य और किसी खूबसूरत चीज को विकसित होते देखने की खुशी को बढ़ावा देते हैं.

डिजिटल डिटौक्स

आज की दुनिया में हम स्क्रीन फोन, टैबलेट और कंप्यूटर के साथ बहुत सारा समय बिताते हैं. हालांकि तकनीक अद्भुत है लेकिन ब्रेक लेना और अपने दिमाग को डिजिटल डिटौक्स देना भी महत्त्वपूर्ण है. प्राकृतिक चिकित्सा सु?ाव देती है कि स्क्रीन के साथ बहुत अधिक समय बिताने से कभीकभी हमारा दिमाग थका हुआ या तनावग्रस्त महसूस कर सकता है. ऐसे में एक विशेष साहसिक कार्य की योजना बनाएं जहां आप स्क्रीन बंद कर दें, बाहर जाएं और वास्तविक दुनिया के आश्चर्यों का पता लगाएं. आप का मन आप को ब्रेक के लिए धन्यवाद देगा.

प्राकृतिक चिकित्सा की दुनिया में, जब हमारे दिमाग को स्वस्थ और खुश रखने की बात आती है तो प्रकृति हमारी सब से अच्छी दोस्त है. ये सभी उपाय ऐसे उपकरण हैं जिन का उपयोग हम अपने मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल के लिए कर सकते हैं. याद रखें, जैसे हम अपने शरीर की देखभाल करते हैं, वैसे ही अपने दिमाग की देखभाल करना भी महत्त्वपूर्ण है. प्राकृतिक चिकित्सा के चमत्कारों और प्रकृति द्वारा प्रदान किए गए उपहारों को अपना कर हम अपने लिए खुशी का रास्ता बना सकते हैं.

अनोखा प्रेमी : क्या हो पाई संध्या की शादी

पटना सुपर बाजार की सीढि़यां उतरते हुए संध्या ने रूपाली को देखा तो चौंक पड़ी. एक मिनट के लिए संध्या गुस्से से लालपीली हो गई. रूपाली ने पास आ कर कहा, ‘‘अरे, संध्याजी, आप कैसी हैं?’’
संध्या खामोश रही तो रूपाली ने आगे कहा, ‘‘मैं जानती हूं, आप मुझ से बहुत नाराज होंगी. इस में आप की कोई गलती नहीं है. आप की जगह कोई भी होता, तो मुझे गलत ही समझता.’’

संध्या फिर भी चुप रही. उसे लग रहा था कि रूपाली सिर्फ बेशरम ही नहीं, बल्कि अव्वल नंबर की चापलूस भी है. रूपाली ने समझाते हुए आगे कहा, ‘‘संध्याजी, मेरे मन में कई बार यह खयाल आया कि आप से मिलूं और सबकुछ आप को सचसच बता दूं. मगर सुधांशुजी ने मुझे कसम दे कर रोक दिया था.’’

सुधांशु का नाम सुनते ही संध्या के तनबदन में आग लग गई. वही सुधांशु, जिस ने संध्या से प्रेम का नाटक कर के उस की भावनाओं से खेला था और बेवफाई कर के चला गया था. संध्या के जीवन के पिछले पन्ने अचानक फड़फड़ा कर खुलने लगे. वह गुस्से से लालपीली हुई जा रही थी. रूपाली, संध्या का हाथ पकड़ कर नीचे रैस्तरां में ले गई, ‘‘आइए, कौफी पीते हैं, और बातें भी करेंगे.’ न चाहते हुए भी संध्या रूपाली के साथ चल दी.

रूपाली ने कौफी का और्डर दिया. संध्या अपने अतीत में खो गई. लगभग 10 साल पहले की बात है. पटना शहर उन दिनों आज जैसा आधुनिक नहीं था. शिव प्रसाद सक्सेना का परिवार एक मध्यवर्गीय परिवार था. वे पटना हाईस्कूल में मास्टर थे. 2 बेटियां, संध्या और मीनू, बस, यही छोटा सा परिवार था. संध्या के बीए पास करते ही मां ने उस की शादी की जिद पकड़ ली. उस की जन्मकुंडली की दर्जनों कापियां करा कर उन पर हलदी छिड़क कर तैयार कर ली गईं. एक तरफ पापा ने अपने मित्रों में अच्छे लड़के की तलाश शुरू कर दी तो दूसरी ओर मां ने टीपन की कापी हर बूआ, मामी और चाचियों में बांट दी.

दिन बीतते रहे पर कहीं भी विवाह तय नहीं हो पा रहा था. मां को परेशान देख कर एक दिन जौनपुर वाली बूआ ने साफसाफ कह दिया, ‘देखो, छोटी भाभी, मैं ने तो संध्या के लिए जौनपुर में सारी कोशिशें कर के देख लीं पर जो भी सुनता है कि रंग थोड़ा दबा है, बस, नाकभौं सिकोड़ लेता है.’

‘अरे दीदी, रंग थोड़ा दबा है तो क्या हुआ, कोई मेरी संध्या में खोट तो निकाल दे,’ मां बोल उठीं.
‘हम जानते नहीं हैं क्या, छोटी भाभी? पर जब ये लोग लड़के वाले बन जाते हैं, तब न जाने कौन सा चश्मा लगा के 13 खोट और 26 कमियां निकालने लगते हैं.’ मां और बूआ का अपनाअपना राग दिनभर चलता रहता था

इस के बाद तो हर साल, लगन आते ही मां मीनू से टीपन उतरवाने और उस पर हलदी छिड़क कर आदानप्रदान करने में लग जातीं और लगन समाप्त होते ही निराश हो कर बैठ जातीं. अगले साल जब फिर से नया टीपन तैयार होता तब उस में संध्या की उम्र एक साल बढ़ा दी जाती.

कहीं भी शादी तय नहीं हो पा रही थी. दिन बीतते गए, संध्या में एक हीनभावना घर करने लगी. हर बार लड़की दिखाने की रस्म के बाद वह मानसिक और शारीरिक दोनों रूप में मलिन हो जाती. उसे गुस्सा भी आता और ग्लानि भी होती. पापा के ललाट की शिकन और मां की चिंता उसे अपने दुख से कहीं ज्यादा बेचैन करती थी.

सिलसिला सालदरसाल चलता रहा. धीरेधीरे संध्या में एक परिवर्तन आने लगा. वह हर अपमान और अस्वीकृति के लिए अभ्यस्त हो चुकी थी. मगर मांबाप को उदास देखती, तो आहत हो उठती थी.
आखिर एक दिन मां को उदास बैठे देख कर संध्या बोली, ‘मां, मैं ने फैसला कर लिया है कि शादी नहीं करूंगी. तुम लोग मीनू की शादी कर दो.’

‘तो क्या जीवनभर कुंआरी ही बैठी रहोगी?’ मां ने डांटा.

‘तो क्या हुआ, मां, कितनी ही लड़कियां कुंआरी बैठी हैं. मैं बिन ब्याही रह गई तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा. देखो, स्मिता दीदी ने भी तो शादी नहीं की है, क्या हो गया उन्हें, मौज से रह रही हैं.’

‘हमारे खानदान की लड़कियां कुंआरी नहीं रहतीं,’ इतना कह कर मां गुस्से में पैर पटकती हुई चली गईं.
5 वर्ष बीत गए. संध्या ने एमए कर लिया और मगध महिला कालेज में लैक्चरर की नौकरी भी मिल गई. अपने कालेज और पढ़ाने में ही वह अपने को व्यस्त रखती थी. संध्या अकसर सोचा करती, यह कैसी विडंबना है कुदरत की कि रूपआकर्षण न होने की वजह से उस के साथसाथ पूरे परिवार को पीडि़त होना पड़ रहा है. वह कुदरत को अपने प्रति हुई नाइंसाफी के लिए बहुत कोसती थी. वह सोचती कि आखिर उस का कुसूर क्या है. शादी के समय लड़की के गुणों को रूप के आवरण में लपेट कर न जाने कहां फेंक दिया जाता है.

एक दिन पापा ने जब मनोहर बाबू से रिश्ते की बात चलाई तो मां सुनते ही आगबबूला हो गईं, ‘आप सठिया तो नहीं गए हैं. मनोहर अपनी संध्या से 14 साल बड़ा है. आप लड़का ढूंढ़ने चले हैं या बूढ़ा बैल.’

पापा ने मनोहर बाबू की नौकरी, अच्छा घराना, और भी कई चीजों का वास्ता दे कर मां को समझाना चाहा, मगर मां टस से मस नहीं हुईं.

एक दिन संध्या जब कालेज से घर लौटी तो उस ने देखा, बरामदे में कोई पुरुष बैठा मम्मीपापा के साथ बड़े अपनेपन से बातें कर रहा था. वह उसे पहचान पाने में विवश थी. तभी पापा ने परिचय कराते हुए कहा, ‘मेरी बड़ी बेटी संध्या. यहीं मगध महिला कालेज में लेक्चरर है, और आप हैं, शोभा के देवर, सुधांशु.’
संध्या ने देखा, बड़े ही सलीके से खड़े हो कर उस ने हाथ जोड़े. उत्तर में संध्या ने नमस्ते किया. फिर वह अंदर चली गई.

सुधांशु अकसर संध्या के घर आनेजाने लगा. बातचीत करने में माहिर सुधांशु बहुत जल्दी ही घर के सभी सदस्यों का प्यारा बन गया. पापा से राजनीति पर बहस होती, तो मां से धार्मिक वार्त्तालाप. मीनू को चिढ़ाता भी तो बहुत आत्मीयता से. मीनू भी हर विषय में सुधांशु की सलाह जरूरी समझती थी. कई बार मम्मीपापा उसे झिड़क भी देते थे, जिसे सुधांशु हंस कर टाल देता.

सुधांशु स्वभाव से एक आजाद खयाल का व्यक्ति था. वह साहित्य, दर्शन, विज्ञान या प्रेम संबंधों पर जब संध्या से चर्चा करता तब उस की बुद्धिमत्ता की बरबस ही सराहना करने को उस का जी चाहता था. उस की आवाज में एक प्रवाह था, जो किसी को भी अपने साथ बहा कर ले जाने में सक्षम था

सुधांशु, संध्या के कुंठित जीवन में हवा के ताजा झोंके की तरह आया. संध्या को धीरेधीरे सुधांशु का साथ अच्छा लगने लगा. अब तक संध्या ने अपने को दबा कर, मन मार कर जीने की कला सीख ली थी. मगर अब सुधांशु का अस्तित्व उस के मनोभावों पर हावी होने लगा था. और संध्या अपनी भावनाओं पर से अंकुश खोने लगी थी. अंजाम सोच कर वह भय से कांप उठती थी, क्योंकि प्रेम की राहें इतनी संकरी होती हैं कि इन से वापस लौट कर आने की गुंजाइश नहीं होती.

नारी को एक प्राकृतिक उपहार प्राप्त है कि वह पुरुष के मन की बात बगैर कहे ही जान लेती है. इसीलिए संध्या को सुधांशु का झुकाव भांपने में देर नहीं लगी. आखिर एक दिन इन अप्रत्यक्ष भावनाओं को शब्द भी मिल गए, सुधांशु ने अपने प्रेम का इजहार कर दिया. प्रतीक्षारत संध्या का रोमरोम पुलकित हो उठा.
संध्या में उल्लेखनीय परिवर्तन आने लगा. अपने हृदय के जिस कोने को वह अब तक टटोलने से डरती थी, उसे अब उड़ेलउड़ेल कर निकालने को इच्छुक हो उठी थी. संध्या हमेशा सुधांशु की ही यादों में खोई रहती. हमेशा खामोश, नीरस रहने वाली संध्या अब गुनगुनाती, मुसकराती देखी जाने लगी.

संध्या ने एक दिन मां को सबकुछ बता दिया. मां को तो सुधांशु पसंद था ही, वह खुश हो गईं. पापा भी उसे पसंद करते थे. आखिर एक दिन पापा ने सुधांशु से उस के पिताजी का पता मांग लिया. वे वहां जा कर शादी की बात करना चाहते थे. सुधांशु ने बताया कि अगले महीने ही उस के पिताजी पटना आ रहे हैं, यहीं बात कर लीजिएगा.

3 महीने बीत गए, सुधांशु के पिताजी नहीं आए. सुधांशु ने भी धीरेधीरे आनाजाना बहुत कम कर दिया. एक सप्ताह तक सुधांशु संध्या से नहीं मिला तो वह सीधे उस के औफिस जा पहुंची. वहां पता चला कि आजकल वह छुट्टी पर है. संध्या सीधे सुधांशु के घर जा पहुंची और दरवाजा खटखटाया. सुधांशु ने ही दरवाजा खोला, ‘अरे, संध्या, तुम. आओ, अंदर आओ.’

‘यह क्या मजाक है, सुधांशु, तुम एक सप्ताह से मिले भी नहीं, और…’ संध्या गुस्से में कुछ और कहती कि उस ने सामने बालकनी में एक लड़की को देखा, तो अचानक चुप हो गई.

सुधांशु ने चौंकते हुए कहा, ‘अरे, मैं परिचय कराना तो भूल ही गया. आप संध्याजी हैं, मेरी फैमिली फ्रैंड, और आप हैं, रूपाली मेरी गर्लफ्रैंड.’
इस से पहले कि संध्या कुछ पूछती, सुधांशु ने थोड़ा झेंपते हुए कहा, ‘बहुत जल्दी ही रूपाली मिसेज रूपाली बनने वाली हैं. अरे, रूपाली, संध्या को चाय नहीं पिलाओगी.’

संध्या को मानो काटो तो खून नहीं. उसे यह सब अजीब लग रहा था. उस का मन करता कि सुधांशु को झकझोर कर पूछे कि आखिर यह सब क्या कह रहे हो.
रूपाली रसोई में गई तो संध्या ने आंखों में गुस्सा जताते हुए कहा, ‘सुधांशु, प्लीज, मजाक की भी कोई सीमा होती है. यह क्या कि जो मुंह में आया बक दिया.’

‘यह मजाक नहीं, सच है संध्या, कि हम दोनों शादी करने वाले हैं,’ सुधांशु ने बेहिचक कहा. संध्या को लगा मानो वह फफक कर रो पड़ेगी. वह झटके से उठी और बाहर चली गई.

वह कैसे घर पहुंची, उसे होश भी नहीं था. घर पहुंच कर देखा तो सामने मां बैठी थीं. वह अपनेआप को रोकतेरोकते भी मां से लिपट गई और फफक कर रो पड़ी. मां ने भी कुछ नहीं पूछा. वह जानती थी कि रोने से मन हलका होता है.
इस घटना से संध्या को बहुत बड़ा आघात लगा. वह इस बेवफाई की वजह जानना चाहती थी. पर उस का अहं उसे पूछने की इजाजत नहीं दे रहा था. संध्या एक समझदार लड़की थी, इसीलिए सप्ताहभर में ही उस ने अपनेआप को संभाल लिया. वह फिर से शांत और खामोश रहने लगी थी. धीरेधीरे सुधांशु के प्रति उस की नफरत बढ़ती गई. उधर सुधांशु ने भी अपना तबादला रांची करवा लिया और संध्या से दूर चला गया.

इस समूची घटना से पूरे परिवार में सब से ज्यादा आहत संध्या के पापा थे. ऐसा लगता था जैसे मौत ने जिंदगी को परास्त कर उन्हें काफी पीछे ढकेल दिया है. मीनू भी इन दिनों संध्या का कुछ ज्यादा ही खयाल करने लगी थी. मां की डांट न जाने कहां गायब हो गई थी. संध्या को लग रहा था कि वह आजकल सहानुभूति की पात्र बन चुकी है. यह एहसास उसे सुधांशु की बेवफाई से कहीं ज्यादा ही आहत करता था.

एक दिन संध्या ने पापा से मनोहर बाबू के साथ रिश्ते की स्वीकृति दे दी.
संध्या की शादी हो गई. मनोहर बाबू के साथ एडजस्ट होने में संध्या को तनिक भी परेशानी महसूस नहीं हुई. संध्या ने पूरे परिवार का दिल जीत लिया.
आज शादी को 4 साल बीत गए हैं, मगर संध्या को पता है कि उस के लिए जीवन मात्र एक नाटक का मंच बन कर रह गया है. संध्या एक पत्नी, एक बहू, एक प्रोफैसर और एक मां बन कर तो जी रही थी, मगर सुधांशु के उस अमानवीय तिरस्कार से इतनी आहत हुई थी कि उसे पुरुष शब्द से ही नफरत हो गई थी. यही वजह थी कि वह मनोहर बाबू के प्रति आज तक भी पूरी तरह समर्पित नहीं हो पाई है.

बैरे ने कौफी ला कर मेज पर रखी, तब अचानक ही संध्या की तंद्रा टूटी. इस से पहले कि वह रूपाली से कुछ पूछती, एक पुरुष की आवाज पीछे से आई, ‘‘ओह, रूपाली, तुम यहां बैठी हो, और मैं ने सारा सुपर मार्केट छान मारा.’’
‘‘ये मेरे पति हैं, विक्रम,’’ रूपाली ने परिचय कराया, ‘‘और यह मेरी मित्र संध्या.’’

‘‘हेलो,’’ बड़े सलीके से अभिवादन करता हुआ विक्रम बोला, ‘‘अच्छा आप लोग बैठो, मैं सामान की पैकिंग करवा कर आता हूं,’’ और सामने वाली दुकान पर चला गया.

‘‘तुम चौंक गईं न,’’ रूपाली ने मुसकराते हुए संध्या से कहा.
‘‘तो तुम्हें भी सुधांशु ने धोखा दे दिया? इतना गिरा हुआ इंसान निकला वह?’’
‘‘नहीं संध्या, सुधांशुजी बेहद नेक इंसान हैं. उस दिन तुम ने जो कुछ देखा वह सब नाटक था.’’

‘‘यह क्या कह रही हो, तुम?’’ संध्या लगभग चीख उठी थी.
रूपाली संध्या को हकीकत बयां करने लगी.

‘‘सुधांशु मुझे ट्यूशन पढ़ाया करता था. एक दिन सुधांशु को परेशान देख कर मैं ने कारण पूछा. पहले तो सुधांशु बात को टालता रहा, फिर उस ने तुम्हारे साथ घटी पूरी प्रेमकहानी मुझे सुनाई कि मेरी बड़ी बहन शोभा ने पटना आते वक्त उसे तुम्हारे बारे में काफीकुछ बता दिया था कि तुम हीनभावना की शिकार हो.

‘‘मनोविज्ञान का विद्यार्थी होने के नाते सुधांशु को यह समझने में तनिक भी देर नहीं लगी कि तुम्हारे इस हीनभावना से उबारने का क्या उपाय हो सकता है. पहले तो सुधांशु ने तुम्हारे मन में दबे हुए आत्मविश्वास को धीरेधीरे जगाया, जिस के लिए तुम से प्रेम का नाटक करना जरूरी था.’’

‘‘लेकिन इस नाटक का फायदा?’’ संध्या आगे जानने के लिए जिज्ञासु थी.
‘‘इसीलिए, कि तुम मनोहर बाबू से विवाह कर लो.’’

‘‘लेकिन तुम और सुधांशु भी तो शादी करने वाले थे. उस दिन सुधांशु ने कुछ ऐसा ही कहा था.’’

‘‘वह भी तो सुधांशु के नाटक का एक अंश था,’’ रूपाली ने कौफी का प्याला उठा कर एक घूंट भरते हुए आगे कहा, ‘‘संध्या, मैं भी तुम्हारी तरह उन की एक शिकार हूं, मैं रंजीत से प्रेम करती थी. रंजीत ने किसी और लड़की से शादी कर ली, तो मैं इतना आहत हुई कि अपना मानसिक संतुलन ही खो बैठी थी. डाक्टरों ने मुझे मानसिक आघात का पहला चरण बताया. उन्हीं दिनों पिताजी को सुधांशुजी मिल गए और मुझे सुधांशुजी ने अपनी चतुराई से उस कुंठा से बाहर निकाला और जिंदगी से प्रेम करना सिखाया. उन दिनों सुधांशु से मैं प्रभावित हो कर उन से प्रेम करने लगी थी. लेकिन उन्होंने तो बड़ी शालीनता से, बड़े प्यार से मुझे समझाया कि वे मुझ से शादी नहीं कर सकते हैं.’’

‘‘हां, लड़कियों के दिलों से खेलने वाले लोग भला शादी क्यों करने लगे?’’ संध्या बोल पड़ी.

‘‘नहीं संध्या, नहीं,’’ बीच में ही बात काट कर रूपाली ने कहा, ‘‘उन्होंने मुझे कसम दिलाई थी, पर अब मैं वह कसम तोड़ रही हूं. आज मैं सबकुछ तुम्हें बता दूंगी. सुधांशुजी को गलत मत समझो. उन्होंने कभी किसी से कोई फायदा नहीं उठाया है.

‘‘असल में सुधांशुजी इसलिए शादी नहीं करना चाहते, क्योंकि उन की जिंदगी, मौत के दरवाजे पर दस्तक दे रही है. सुधांशु को ब्लड कैंसर है.’’
मौन, खामोश संध्या की आंखों से आंसू, बूंद बन कर टपक पड़े. रूमाल से आंख पोंछती हुई संध्या ने भरे गले से पूछा, ‘‘अब वे कहां हैं?’’

‘‘पता नहीं, जाते वक्त मैं ने लाख पूछा, मगर वह मुसकरा कर टाल गए,’’ रूपाली ने एक पल रुक कर फिर कहा, ‘‘सुधांशुजी जहां भी होंगे, किसी न किसी रूपाली या संध्या के जीवन का आत्मविश्वास जगा रहे होंगे.’’

रूपाली तो चली गई, पर संध्या को लग रहा था कि अगर आज रूपाली नहीं मिलती तो जीवनभर सुधांशु के बारे में हीनभावनाएं ले कर जीती रहती. सुधांशु जैसे विरले ही होते हैं जो अपनी नेकनामी की बलि चढ़ा कर भी परोपकार करते रहते हैं.

संस्कार : आखिर मां संस्कारी बहू से क्या चाहती थी

लेखक- आशा जैन

नई मारुति दरवाजे के सामने आ कर खड़ी हो गई थी. शायद भैया के ससुराल वाले आए थे. बाबूजी चुपचाप दरवाजे की ओट में हाथ जोड़ कर खड़े हो गए और मां, जो पीछे आंगन में झाडू दे रही थीं, भाभी के आवाज लगाते ही हड़बड़ी में अस्तव्यस्त साड़ी में ही बाहर दौड़ी आईं.

आते ही भैया की छोटी साली ने रिंकू को गोद में भर लिया और अपने साथ लाए हुए कई कीमती खिलौने दे कर उसे बहलाने लगी. ड्राइंगरूम में भैया के सासससुर तथा भाभीभैया की गपशप आरंभ हो गई. भाभी ने मां को झटपट नाश्ता और चाय बनाने को कह दिया. मां ने मुझ से पूछ कर अपनी मैली साड़ी बदल डाली और रसोई में व्यस्त हो गईं. मां और बाबूजी के साथ ही ऐसा समय मुझे भी बड़ा कष्टकर प्रतीत होता था. इधर भैयाभाभी के हंसीठट्टे और उधर मां के ऊपर बढ़ता बोझ. यह वही मां थीं जो भैया की शादी से पूर्व कहा करती थीं, ‘‘इस घर में जल्दी से बहू आ जाए फिर तो मैं पलंग पर ही पानी मंगा कर पिऊंगी,’’ और बहू आने के बाद…कई बार पानी का गिलास भी बहू के हाथ में थमाना पड़ता था. जिस दिन भैया के ससुराल वाले आते थे, मां कपप्लेट धोने और बरतन मांजने का काम और भी फुरती से करने लगती थीं. घर के छोटेबड़े काम से ले कर बाजार से खरीदारी करने तक का सारा भार बाबूजी पर एकमुश्त टूट पड़ता था. कई बार यह सब देख कर मन भर आता था, क्योंकि उन लोगों के आते ही मांबाबूजी बहुत छोटे पड़ जाते थे. दरवाजे के बाहर बच्चों का शोरगुल सुन कर मैं ने बाहर झांक कर देखा.

कई मैलेकुचैले बच्चे चमचमाती कार के पास एकत्र हो गए थे. भैया थोड़ीथोड़ी देर बाद कमरे से बाहर निकल कर देख लेते थे और बच्चों को इस तरह डांटते खदेड़ते थे, मानो वे कोई आवारा पशु हों. भैया के सासससुर के मध्य रिंकू की पढ़ाई तथा संस्कारों के बारे में वाक्युद्ध छिड़ा हुआ था. रिंकू बाबूजी द्वारा स्थापित महल्ले के ही ‘शिशु विहार’ में पढ़ता था. किंतु भाभी और उन के पिताजी का इरादा रिंकू को किसी पब्लिक स्कूल में दाखिला दिलवाने का था. भाभी के पिताजी बोले, ‘‘इंगलिश स्कूल में पढ़ेगा तो संस्कार भी बदलेंगे, वरना यहां रह कर तो बच्चा खराब हो जाएगा.’’ इस से पहले भी रिंकू को पब्लिक स्कूल में भेजने की बात को ले कर कई बार भैयाभाभी आपस में उलझ पड़े थे. भैया खर्च के बोझ की बात करते थे तो भाभी घर के खर्चों में कटौती करने की बात कह देती थीं. वह हर बार तमक कर एक ही बात कहती थीं, ‘‘लोग पागल नहीं हैं जो अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों में पढ़ाते हैं. इन स्कूलों के बच्चे ही अच्छे पदों पर पहुंचते हैं.’’ भैया निरुत्तर रह जाते थे. बड़े उत्साह से भाभी ने स्कूल से फार्म मंगवाया था. रिंकू को किस प्रकार तैयारी करानी थी इस विषय में मुझे भी कई हिदायतें दी थीं. वह स्वयं सुबह जल्दी उठ रिंकू को पढ़ाने बैठ जाती थीं. उन्होंने कई बातें रिंकू को तोते की तरह रटा दी थीं. वह उठतेबैठते, सोतेजागते उस छोटे से बच्चे के मस्तिष्क में कई तरह की सामान्य ज्ञान की बातें भरती रहती थीं. अब मां और बाबूजी के साथ रिंकू का खेलना, घूमना, बातें करना, चहकना काफी कम हो गया था.

एक दिन वह मांबाबूजी के सामने ही महल्ले के बच्चों के साथ खेलने लगा. भाभी उबलती हुई आईं और तमक कर बाबूजी को भलाबुरा कहने लगीं, ‘‘आप रिंकू की जिंदगी को बरबाद कर के छोड़ेंगे. असभ्य, गंदे और निरक्षर बच्चों के साथ खेलेगा तो क्या सीखेगा.’’ और बाबूजी ने उसी समय दुलारते हुए रिंकू को अपनी गोद में भर लिया था. भाभी की बात सुन कर मेरे दिल में हलचल सी मच गई थी. ये अमीर लोग क्यों इतने भावनाशून्य होते हैं? भला बच्चों के बीच असमानता की खाई कैसी? बच्चा तो बच्चों के साथ ही खेलता है. एक मुरझाए हुए फूल से हम खुशबू की आशा कैसे कर सकते हैं. क्यों नहीं सोचतीं भाभी यह सबकुछ? एक बार उबलता दूध रिंकू के हाथ पर गिर गया था. वह दर्द से तड़प रहा था. सारा महल्ला परेशान हो कर एकत्र हो गया था, तरहतरह की दवाइयां, तरहतरह के सुझाव. बच्चे तो रिंकू को छोड़ कर जाने को ही तैयार नहीं थे. आश्चर्य तो तब हुआ जब भाभी के मुंह से उन बच्चों के प्रति वात्सल्य के दो बोल भी नहीं फूटे. वह उन की भावनाओं के साथ, उमड़ते हुए प्यार के साथ तालमेल ही नहीं बैठा पाई थीं. भाभी भी क्या करतीं? उन के स्वयं के संस्कार ही ऐसे बने थे. वह एक अमीर खानदान से ताल्लुक रखती थीं. पिता और भाइयों का लंबाचौड़ा व्यवसाय है. कालिज के जमाने से ही वह भैया पर लट्टू थीं. उन का प्यार दिनोंदिन बढ़ता गया. मध्यवर्गीय भैया ने कई बार अपनी परिस्थिति की यथार्थता का बोध कराया, लेकिन वह तो उन के प्यार में दीवानी हुई जा रही थीं.

समविषम, ऊंचनीच का विचार न कर के उन्होंने भैया को अपना जीवनसाथी स्वीकार ही लिया. जब इस घर में आने के बाद एक के बाद एक अभावों का खाता खुलने लगा तो वह एकाएक जैसे ढहने सी लगी थीं. उन्होंने ही ड्राइंगरूम की सजावट और संगीत की धुनों को पहचाना था. इनसानों के साथ जज्बाती रिश्तों को वह क्या जानें? वह अभावों की परिभाषा से बेखबर रिंकू को अपने भाइयों के बच्चों की तरह ढालना चाहती थीं. भैया की औकात, भैया की मजबूरी, भैया की हैसियत का अंदाजा क्योंकर उन्हें होता? कभीकभी ग्लानि तो भैया पर भी होती थी. वह कैसे भाभी के ही सांचे में ढल गए थे. क्या वह भाभी को अपने अनुरूप नहीं ढाल सकते थे? रिंकू टेस्ट में पास हो गया था. भाभी की खुशी का ठिकाना न रहा था. मानो उन की कोई मनमांगी मुराद पूरी हो गई थी. अब वह बड़ी खुशखुश नजर आने लगी थीं. जुलाई से रिंकू को स्कूल में भेजे जाने की तैयारी होने लगी थी. नए कपड़े बनवाए गए थे. जूते, टाई तथा अन्य कई जरूरत की वस्तुएं खरीदी गई थीं. अब तो भाभी रिंकू के साथ टूटीफूटी अंगरेजी में बातें भी करने लगी थीं. उसे शिष्टाचार सिखाने लगी थीं. भाभी रिंकू को जल्दी उठा देती थीं, ‘‘बेटा, देखा नहीं, तुम्हारे मामा के ऋतु, पिंकी कैसे अपने हाथ से काम करते हैं. तुम्हें भी काम स्वयं करना चाहिए. थोड़ा चुस्त बनो.’’ भाभी उस नन्ही जान को चुस्त बनना सिखा रही थीं, जिसे खुद चुस्त का अर्थ मालूम नहीं था.

मां और बाबूजी रिंकू से अलग होने की बात सोच कर अंदर ही अंदर विचलित हो रहे थे. आखिर रिंकू के जाने का निश्चित दिन आ गया था. स्कूल ड्रेस में रिंकू सचमुच बदल गया था. वह जाते समय मुझ से लिपट गया. मैं ने उसे बड़े प्यार से पुचकार कर समझाया, ‘‘तुम वहां रहने नहीं, पढ़ने जा रहे हो, वहां तुम्हारे जैसे बहुत से बच्चे होंगे. उन में से कई तुम्हारे दोस्त बन जाएंगे. उन के साथ पढ़ना, उन के साथ खेलना. तुम हर छुट्टी में घर आ जाओगे. फिर मांबाबूजी भी तुम से मिलने आते रहेंगे.’’ भाभी भी उसे समझाती रहीं, तरहतरह के प्रलोभन दे कर. मां और बाबूजी के कंठ से आवाज ही नहीं निकल रही थी. बस, वे बारबार रिंकू को चूम रहे थे.

रिंकू की विदाई का क्षण मुझे भी रुला गया. बोगनबेलिया के फूलों से ढके दरवाजे के पास से विदाई के समय हाथ हिलाता हुआ रिंकू…मां और बाबूजी के उठे हाथ तथा आंसुओं से भीगा चेहरा… उस खामोश वातावरण में एक आवाज उभरती रही थी. बोगनबेलिया के फूलों की पुरानी पंखडि़यां हवा के तेज झोंके से खरखर नीचे गिरने लगी थीं. उस के बाद उस में संस्कार के नए फूल खिलेंगे और अपनी महक बिखेरेंगे. द्य

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