Monsoon Special: ब्रेकफास्ट में बनाना चाहते हैं कुछ हैल्दी, तो ट्राई करें टेस्टी ओट्स रवा ढोकला

गुजरात की जितना अपने गाने और घूमने के लिए मशहूर है उतना ही वह अपने खाने के लिए भी फेमस है. आप चाहे देश के किसी भी हिस्से में रह रहें होंगे पर आपने ढोकले के बारे में तो सुना ही होगा. ढ़ोकला गुजरात की मेन डिशेज में से एक है. लेकिन क्या आपने कभी ओट्स रवा ढोकला ट्राय किया है. ये हेल्दी और टेस्टी है, जिसे आप ब्रैकफास्ट में फैमिली को खिला सकते हैं.

सामग्री

– 3/4 कप ओट्स

– 1/2 कप बारीक सूजी

– 1 कप दही

– 1/4 कप पानी

– 2 छोटे चम्मच अदरक व हरीमिर्च पेस्ट

– 1/4 कप गाजर कद्दूकस की

– 1 बड़ा चम्मच रिफाइंड औयल

– 1 सैशे ईनो

– थोड़ सा फ्रूट साल्ट

– नमक स्वादानुसार.

तड़के की सामग्री

– 1 बड़ा चम्मच रिफाइंड औयल

– 1 छोटा चम्मच राई

– 1 छोटा चम्मच जीरा

– 6-7 करीपत्ते

– 2 हरीमिर्चें लंबाई में चीरी गई

– थोड़ी सी धनियापत्ती कटी सजावट के लिए.

विधि

ओट्स को नौनस्टिक पैन में 1 मिनट उलटेंपलटें. आंच धीमी रहनी चाहिए. ठंडा कर के मिक्सी में पाउडर बना लें. ओट्स, सूजी और दही मिक्स कर 20 मिनट के लिए ढक कर रख दें. पुन: फेंटें. इस में गाजर, नमक, अदरक व हरीमिर्च पेस्ट, तेल और पानी मिलाएं. अच्छी तरह मिक्स कर लें. मिश्रण यदि गाढ़ा लगे तो थोड़ा पानी डाल लें. ढोकला बनाने वाले स्टीमर में 2 कप पानी डाल कर गरम करें. जिस बरतन में ढोकला बनाना है उसे चिकना करें. मिश्रण में ईनो, फ्रूट साल्ट मिला कर बरतन में पलटें. 10-15 मिनट में ढोकला बन जाएगा. ठंडा होने पर बरतन निकाल लें. मनचाहे टुकड़ों में काट लें. तड़का बना कर ढोकलों पर फैलाएं.

मरीचिका : मधु के साथ उस रात आखिर क्या हुआ

लेखक- नंदकिशोर बर्वे

मधु अस्पताल के प्राइवेट वार्ड में किसी अपराधी की तरह सिर झुकाए बुत बनी बैठी थी. पता ही नहीं चला कि वह कितनी देर से ऐसे ही बैठी थी. एकएक पल कईकई साल की तरह बीत रहा था. उसे रहरह कर पिछले कुछ महीनों की उथलपुथल भरी घटनाएं भुलाए नहीं भूल रही थीं.

मधु की नौकरी जब शहर की एक बड़ी कंपनी में लगी थी, तो घर में खुशी का माहौल था. लेकिन साथ ही मम्मीपापा को यह चिंता भी थी कि अपने शहर से दूर उस अनजान बड़े शहर में बेटी को कैसे भेजें? आखिर वह वहां कैसे रहेगी?

फिर उस ने ही मम्मीपापा का हौसला बढ़ाया था और कहा था कि शहर भेज रहे हैं या जंगल में? लाखों लोगों में आप की बेटी अकेले कैसे रहेगी? उस जैसी और भी बेटियां वहां होंगी या नहीं?

जब वे लोग शहर पहुंचे, तो मम्मीपापा उसे नौकरी जौइन करा कर और उस की ही जैसी 3 और लड़कियों के गु्रप में छोड़ कर घर लौट आए. थोड़े ही दिनों के बाद उन में से 2 लड़कियों के रहने का इंतजाम उन के साथियों ने कर दिया.

मधु और एक दूसरी लड़की, जिस का नाम प्रीति था, भी इसी कोशिश में लगी थीं कि रहने का कुछ ठीक से इंतजाम हो जाए, तो जिंदगी ढर्रे पर आ जाए.

एक दिन मधु और प्रीति कंपनी में कैंटीन से लौट रही थीं, तो स्मोकिंग जोन से एक लड़की ने मधु का नाम ले कर आवाज लगाई. वह ठिठक गई कि यहां कौन है, जो उसे नाम ले कर आवाज लगा रहा है?

मधु ने उधर देखा तो एक स्मार्ट सी दिखने वाली लड़की, जिस के हाथ में सिगरेट थी, उसे बुला रही थी. वे दोनों बिना कुछ सोचे उस के पास चली गईं.

‘‘मैं श्वेता हूं. सुना है कि तुम रहने की जगह देख रही हो? मेरे पास जगह है,’’ उस लड़की ने सिगरेट के धुएं का छल्ला छोड़ते हुए कहा.

‘‘हां, लेकिन आप…’’ मधु को कुछ सूझ नहीं रहा था कि वह क्या बोले.

‘‘ऐसी ही हूं मैं. कल मैं इसी समय इधर ही मिलूंगी. सोचो और फैसला लो,’’ उस लड़की ने सिगरेट का आखिरी कश जोर से खींचा और वहां से चली गई.

वे दोनों उसे देखती रह गईं. उन्होंने श्वेता के बारे में पता किया, तो पता चला कि वह खुली सोच वाली लड़की है, पर है दिल की साफ. साथ ही यह भी कि वह तलाकशुदा मातापिता की एकलौती औलाद है, इसीलिए इतनी बिंदास है. उस के पास अपना फ्लैट भी है, जिसे वह नए आने वालों से शेयर करती है.

मधु और प्रीति को तो जैसे मनचाही मुराद मिल गई. उन्होंने फ्लैट देखा और पसंद आने पर उस के साथ रहने लगीं.

एक दिन श्वेता की तबीयत ठीक नहीं थी, इसलिए वह उस दिन दफ्तर नहीं गई. जब शाम को मधु और प्रीति घर लौटीं, तो उन्होंने श्वेता के साथ एक लड़के को बैठे देखा.

श्वेता ने बताया कि वह लड़का उस का दूर का भाई है और अब उन के साथ ही रहेगा.

यह सुन कर मधु और प्रीति उस पर काफी नाराज हुईं, लेकिन श्वेता इस बात पर अड़ी रही कि वह उस के साथ ही रहेगा. उस ने तो यहां तक कह दिया कि वे चाहें तो अपने रहने का इंतजाम दूसरी जगह कर सकती हैं. यह सुन कर वे सन्न रह गईं.

इस के बाद मधु और प्रीति डरीसहमी उन के साथ रहने लगीं. उन्होंने देखा कि श्वेता का वह दूर का भाई कुछ दिन तो बालकनी में सोता था, लेकिन बाद में वह उस के बैडरूम में ही शिफ्ट हो गया.

जब उन्होंने एतराज किया, तो श्वेता बोली, ‘‘मेरा रिश्तेदार है और मेरा ही फ्लैट है. तुम्हें क्या दिक्कत है?’’

श्वेता का यह रूप देख कर मधु को उस से नफरत हो गई. वैसे, मधु के सीधेसहज स्वभाव के चलते श्वेता उस से उतनी नहीं खुली थी, लेकिन प्रीति से वह खुली हुई थी. वह उस को अपने दैहिक सुख के किस्से सुनाती रहती थी. कई बार मधु को भी यही सबकुछ दिखातीसुनाती, मधु थोड़ी असहज हो जाती.

एक दिन मधु प्रीति और श्वेता दोनों पर इन बातों के लिए खासा नाराज हुई. आखिर में किसी तरह प्रीति ने ही बात संभाली.

मधु ने उसी समय यह तय किया कि वह अब इन लोगों के साथ नहीं रहेगी. वह अगले दिन दफ्तर में पापा की तबीयत खराब होने का बहाना कर के अपने शहर चली गई थी.

घर के लोग मधु के तय समय से 15 दिन पहले ही अचानक आ जाने से खुश तो बहुत थे, पर समझ नहीं सके थे कि वह इतने दिन पहले कैसे आई थी. लेकिन उस ने उस समय घर वालों को यह नहीं बताया कि वह किस वजह से आई थी.

कुछ दिन वहां रुक कर मधु वापस आ गई. उस ने प्रीति को रेलवे स्टेशन से ही फोन लगाया. उस ने बताया, ‘तेरे जाने के बाद अगले दिन ही मैं भी अपने शहर चली गई थी, क्योंकि श्वेता और उस के भाई के साथ रहना मुझे बहुत भारी पड़ रहा था. मेरे घर वाले मुझे नौकरी पर नहीं जाने दे रहे हैं.’

यह सुन कर तो मधु के पैरों तले जमीन खिसक गई. उसे कुछ भी सूझ नहीं रहा था कि क्या करे, क्या न करे. एक मन कर रहा था कि ट्रेन में बैठ कर घर लौट जाए, लेकिन वह नहीं गई.

मधु ने असीम को फोन लगाया. वह उस के साथ दफ्तर में काम करता था. मधु ने रोंआसा होते हुए बात की, तो उस ने हिम्मत दी, फिर रेलवे स्टेशन आ गया.

असीम ने मधु को समझाबुझा कर श्वेता के फ्लैट पर रहने के लिए राजी किया. वह उसे वहां ले कर भी गया. श्वेता और उस का ‘भाई’, जिस का नाम कुणाल था, उन को देख कर हैरान रह गए. फिर सहज होते हुए श्वेता ने मधु को गले लगा लिया.

‘अरे वाह, तू भी. वैलडन,’  श्वेता ने असीम की ओर देख कर उसे एक आंख मारते हुए कहा.

‘‘तू जैसा समझ रही है, वैसा कुछ भी नहीं है,’’ मधु एकदम सकपका गई.

‘‘कोई बात नहीं यार. शुरू में थोड़ा अटपटा लगता है, फिर मजे ही मजे,’’ श्वेता बोली.

‘‘तू गलत समझ रही है,’’ मधु ने उसे फिर समझाने की कोशिश की, लेकिन उस ने उसे मुंह पर उंगली रख कर चुप रहने का इशारा किया और फ्रिज से कोल्डड्रिंक निकाल कर सब को देने लगी.

असीम कुछ समझ नहीं पा रहा था या समझ कर भी अनजान बन रहा था, कहना मुश्किल था. फिर बातों ही बातों में श्वेता ने अपने और कुणाल के बारे में सबकुछ बेबाकी से बताया. मधु की उम्मीद के उलट कुणाल ने उन सब को बड़ी सहजता से लिया. जब असीम वापस जाने लगा, तो उस ने कहा कि वह मधु के रहने का दूसरा इंतजाम करेगा और यह भी कि तब तक वह बारबार आता रहेगा. मधु किसी तरह मन मार कर वहीं रहने लगी.

‘हमारी कोई शादी नहीं हुई तो क्या फर्क पड़ता है, देखेंगे… जब जरूरत लगेगी, तब कर लेंगे. ऐसे रहने में क्या बुराई है?’

श्वेता अकसर मधु से बातें करते हुए कहती थी. मधु को कई बार यह भी लगता था कि वह सच ही तो कह रही है.

एक दिन मधु शाम को दफ्तर से घर लौटी, तो पाया कि श्वेता और कुणाल ब्लू फिल्म देख रहे थे.

मधु को लगा, जैसे वह उन दोनों का बैडरूम ही हो. उन के कपड़े यहांवहां बिखरे पड़े थे. शराब की बोतल मेज पर खुली रखी थी. वे दोनों उस फिल्म में पूरी तरह डूबे हुए थे.

अजीब सी आवाजों ने मधु को असहज कर दिया था. वह जल्दी से अपने कमरे की ओर बढ़ी, तो श्वेता ने उस से कहा, ‘‘हमारे साथ बैठो और जिंदगी का मजा लो.’’

मधु ने उसे अनसुना कर के खुद को कमरे में बंद कर लिया. फिर यह सिलसिला चलने लगा. असीम भी अकसर वहीं आ जाता था. मधु आखिर कब तक अपने को बचा पाती. उस पर भी उस माहौल का असर होने लगा था. अब वह भी यह सब देखनेसुनने में मजा लेने लगी थी.

एक शनिवार को असीम ने कहीं पिकनिक पर जाने का प्रोग्राम बनाया, तो मधु मना नहीं कर सकी. वह सारा दिन मजे और मस्ती में बीत गया.

रात होतेहोते बादल घिरने लगे. थोड़ी ही देर में तेज बारिश होने लगी और वे अपने शहर की ओर चल दिए.

मधु के मना करने के बावजूद असीम उसे घर तक छोड़ने आया था और आते ही सोफे पर पसर गया था. थोड़ी ही देर में उसे गहरी नींद आ गई थी.

मधु ने असीम को थोड़ी देर सोने दिया, फिर उसे जगा कर वहां से जाने को कहा.

इतने में टैलीविजन पर उन के फ्लैट के पास वाले मौल में बम धमाका होने की खबर आई. पुलिस हरकत में आती, तब तक वहां दंगा शुरू हो गया था.

श्वेता और कुणाल खुश हो रहे थे कि दंगा होने से कंपनी से छुट्टी मिलेगी और वे मजे करेंगे. असीम वहां से न जा पाने के चलते बेचैन था और मधु  उस से भी ज्यादा परेशान थी कि आखिर रात को वह कहां रुकेगा?

असीम ने जाने की कोशिश की और मधु ने उसे भेजने की, पर पुलिस ने शहर के हालात का हवाला दे कर उस की एक नहीं सुनी. उसे वहीं रुकना पड़ा.

मधु न जाने क्यों मन ही मन डर रही थी. श्वेता और कुणाल सोने चले गए थे. मधु ने असीम को चादरतकिया दे कर सोफे पर सोने को कहा, फिर वह भी सोने चली गई.

अचानक मधु की नींद खुली, तो देखा कि असीम उस के जिस्म से खेल रहा था. वह चीख पड़ी और जोर से चिल्लाई. असीम ने उसे चुप रहने को कहा और उस से जबरदस्ती करने लगा.

मधु किसी कातर चिडि़या की तरह तड़पती ही रह गई और असीम एक कामयाब शिकारी जैसा लग रहा था.

मधु चिल्लाते हुए ड्राइंगरूम में और उस के बाद उस ने श्वेता के बैडरूम का दरवाजा जोर से बजाया.

श्वेता और कुणाल तकरीबन अधनंगे से बाहर आए. वह उन्हें देख कर असहज हो गई और सबकुछ बताया.

‘‘तुम जरा सी बात के लिए इतना चीख रही हो?’’ श्वेता बोली, फिर उस ने कुणाल के कंधे पर सिर रखा और बोली, ‘‘चलो, अपना अधूरा काम पूरा करते हैं.’’

वे दोनों अपने बैडरूम में चले गए.

मधु नीचे फर्श पर बैठी रो रही थी. वहां कोई नहीं था, जिस पर वह भरोसा करती और जो उसे दिलासा देता. फिर वह अपनेआप को किसी तरह संभालने की कोशिश कर रही थी कि उस ने  अपने माथे पर किसी का हाथ महसूस किया. देखा तो असीम था. उस ने उस का हाथ झटक दिया और उसे बेतहाशा पीटने लगी.

असीम उस की मार सहता हुआ थोड़ी देर तक खड़ा रहा. मधु थकहार कर निढाल हो कर बैठ गई.

‘‘लो, पानी पी लो,’’ असीम पानी का गिलास लिए खड़ा था.

मधु ने जोर से झटक कर गिलास फेंक दिया.

‘‘लो, पानी पी लो,’’ असीम फिर से गिलास में पानी भर कर लाया था.

मधु ने जलती आंखों से उसे देखा, तो एक पल के लिए वह सहम गया. फिर उस ने मधु के मुंह से गिलास

लगा दिया.

मधु ने पानी पी कर उस से पूछा, ‘‘तुम ने ऐसा क्यों किया?’’

असीम ने उसे बड़े प्यार से समझाते हुए कहा, ‘‘क्या मुझ से शादी करोगी?’’

‘‘मुझे नहीं करनी किसी फरेबी से शादी. मैं पुलिस के पास जा रही हूं.’’

मधु हिम्मत कर के उठी.

‘‘शौक से जाओ,’’ कह कर असीम ने फ्लैट का दरवाजा खोल दिया.

मधु बिल्डिंग के बाहर आई. उसे देख कर दरबान चिल्लाया, ‘‘मेम साहब, अंदर जाइए. पुलिस को देखते ही गोली मार देने का आदेश है.’’

तब मधु को उस से पता चला कि शहर के हालात कितने खराब हो गए थे. वह थकहार कर वापस आ गई.

मधु कुछ दिनों तक गुमसुम रही, लेकिन श्वेता के कहने पर वह असीम के साथ लिवइन रिलेशन में रहने लगी.

मधु ने एक दिन पूछा, तो पता चला कि श्वेता पेट से है और कुणाल, जो कल तक दिनरात शादी की बात करता था, शादी से मुकर रहा था.

जब श्वेता उस से शादी के लिए बारबार कहने लगी, तो वह उसे मारनेपीटने लगा.

यह देख कर मधु दौड़ी और उस ने कुणाल को रोका. उस ने उन दोनों को समझाने की कोशिश की, पर वे अपनीअपनी बात पर अड़े हुए थे.

जब श्वेता कुणाल पर ज्यादा दबाव डालने लगी, तो वह शादी करने से एकदम मुकर गया और कभी शादी न करने की बात कह कर वहां से चला गया.

मधु और श्वेता उसे रोकती रह गईं. श्वेता किसी घायल पक्षी की तरह तड़पती रह गई. मधु को उस की यह हालत देख कर दया भी आई और गुस्सा भी.

श्वेता की इस अनचाही खबर के कुछ दिन बाद ही मधु को भी यह एहसास हुआ कि वह भी पेट से है. तब उस के पैरों तले जमीन खिसक गई. उस ने असीम से यह ‘खुशखबरी’ कही, तो उस ने लापरवाही से कहा, ‘‘ठीक है, देखते हैं कि क्या हो सकता है.’’

‘‘मतलब? हम जल्दी ही शादी कर लेते हैं,’’ मधु ने खुशी से कहा.

‘‘अभी हम शादी कैसे कर सकते हैं? अभी तो मेरा प्रोजैक्ट चल रहा है. वह पूरा होने में एकाध साल लगेगा, उस के बाद देखा जाएगा,’’ असीम बोला.

‘‘फिर हमारा बच्चा?’’ मधु ने पूछा.

‘‘हमारा नहीं तुम्हारा. वह तुम्हारा सिरदर्द है, मेरा नहीं,’’ असीम बेशर्मी से बोला, तो मधु उस के बदले रूप को देखती रह गई.

मधु जब असीम से शादी करने के लिए बारबार कहने लगी, तो एक दिन वह भाग गया. पता करने पर

मालूम हुआ कि वह तो कंपनी के एक प्रोजैक्ट के सिलसिले में विदेश जा चुका है. साथ ही, यह भी कि उस का विदेश जाने का तो पहले से ही प्रोग्राम तय था, लेकिन उस ने मधु को इस बारे में हवा तक नहीं लगने दी.

मधु हाथ मलती रह गई. अब वह और श्वेता एक ही दुख की दुखियारी थीं. श्वेता और मधु ने बारीबारी से बच्चा गिराने का फैसला लिया. डाक्टर ने भी भरपूर फायदा उठाया और उन से मोटी रकम ऐंठी.

आज श्वेता की बच्चा गिराने की बारी थी और मधु उस की देखभाल के लिए साथ आई थी. कल को उसे भी तो इसी दौर से गुजरना है.

अचानक दरवाजे पर हुई हलचल ने मधु का ध्यान तोड़ा. नर्सिंग स्टाफ श्वेता को बेसुध हाल में बिस्तर पर लिटा गया.

मधु खुद को श्वेता की जगह रख कर ठगी सी बैठी थी. उन्होंने जिस सुख को अपनी जिंदगी मान लिया था, वह मरीचिका की तरह सिर्फ छलावा साबित हुआ था.

आर्टिफिशियल ज्वैलरी पहनने से स्किन पर दाने हो जाते हैं, क्या करूं?

सवाल-

  मैं 22 साल की हूं. मेरी परेशानी यह है कि मैं जब भी आर्टिफिशियल ज्वैलरी पहनती हूं, तो मेरी स्किन पर दाने पड़े जाते हैं. मुझे इन से बचने के लिए क्या करना चाहिए?

जवाब-

आर्टिफिशियल ज्वैलरी पहनने से पहले स्किन सेफ्टी क्रीम का प्रयोग करें. इस के अलावा ज्वैलरी को उतारने के बाद जहां-जहां ज्वैलरी का स्पर्श हुआ है उस जगह को डेटोल से धोएं. इस से आप परेशानी से बच सकती हैं.

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हर शादी या पार्टी में आपके लुक पर चार-चांद लगाती है ज्वैलरी. साथ ही आपके लुक को भी कम्पलीट करती है. वहीं मौनसून में भी आप किसी पार्टी या शादी का हिस्सा बनते होंगे. पर क्या आप अपनी ज्वैलरी का ख्याल रखते है. गरमियों में ज्वैलरी का ख्याल रखना आसान है लेकिन जब बाद मौनसून की आती है तो ज्वैलरी पर का ख्याल रखना जरूरी हो जाता है. मौनसून में नमी से ज्वैलरी का ख्याल न रखने से वह खराब हो सकती हैं, इसीलिए आज हम आपको कुछ टिप्स बताएंगे जिससे आपकी ज्वैलरी मौनसून में भी चमकती रहेगी.

1. ज्‍वैलरी को क्लीन रखना है जरूरी  

ज्वैलरी की चमक को बनाए रखने के लिए उसे अच्‍छी तरह से साफ करके और सुखाकर रखें. गले का हार हो, अंगूठी, ब्रेसलेट, ईयर रिंग या फिर कोई भी ज्वैलरी आइटम हो, आपको उसे किसी क्रीम, लोशन, परफ्यूम और आयल या पानी से साफ करके ही रखना चाहिए. ज्वैलरी को पहनने से पहले उस पर क्रीम या परफ्यूम लगाना ना भूलें. सभी ज्वैलरी को अलग-अलग बॉक्‍स में रखें ताकि उनका रंग एक-दूसरे की वजह से खराब ना हो. आप चाहें तो एक बड़े से बॉक्‍स में अलग-अलग ज्वैलरी के छोटे बाक्‍स भी रख सकती हैं.

2. ध्‍यान से रखें ज्‍वैलरी

अपनी फैशन ज्वैलरी को किसी सुरक्षित जगह पर ही रखें. गले के हार को उसके हूक्‍स में डालकर रखें और कोई भी ज्वैलरी एक-दूसरे के साथ चिपके ना. कोई भी कीमती ज्वैलरी तो बिलकुल भी एक-दूसरे से स्‍पर्श नहीं करनी चाहिए वरना उस पर जंग लग सकती है.

नन्हा सा मन: कैसे बदल गई पिंकी की हंसतीखेलती दुनिया

लेखिका- डा. अनिता श्रीवास्तव

पिंकी के स्कूल की छुट्टी है पर उस की मम्मी को अपने औफिस जाना है. पिंकी उदास है. वह घर में अकेली शारदा के साथ नहीं रहना चाहती और न ही वह मम्मी के औफिस जाना चाहती है. वहां औफिस में मम्मी उसे एक कुरसी पर बिठा देती हैं और कहती हैं, ‘तू ड्राइंग का कुछ काम कर ले या अपनी किताबें पढ़ ले, शैतानी मत करना.’ फिर उस की मम्मी औफिस के काम में लग जाती हैं और वह बोर होती है.

अपनी छुट्टी वाले दिन पिंकी अपने मम्मीपापा के साथ पूरा समय बिताना चाहती है. पर दोनों अपनाअपना लंचबौक्स उठा कर औफिस चल देते हैं. हां, इतवार के दिन या कोईर् ऐसी छुट्टी जिस में उस के मम्मी व पापा का भी औफिस बंद होता है, तब जरूर उसे अच्छा लगता है. इधर 3 वर्षों से वह देख रही है कि मम्मी और पापा रोज किसी न किसी बात को ले कर ?ागड़ते हैं.

3 साल पहले छुट्टी वाले दिन पिंकी मम्मीपापा के साथ बाहर घूमने जाती थी, कभी पार्क, कभी पिक्चर, कभी रैस्टोरैंट, कभी बाजार. इस तरह उन दोनों के साथ वह खूब खुश रहती थी. तब वह जैसे पंख लगा कर उड़ती थी. वह स्कूल में अपनी सहेलियों को बताती थी कि उस के मम्मीपापा दुनिया के सब से अच्छे मम्मीपापा हैं. वह स्कूल में खूब इतराइतरा कर चलती थी.

अब वह मम्मीपापा के झगड़े देख कर मन ही मन घुटती रहती है. पता नहीं दोनों को हो क्या गया है. पहली बार जब उस ने उन दोनों को तेजतेज झगड़ते देखा था तो वह सहम गईर् थी, भयभीत हो उठी थी. उस का नन्हा सा मन चीखचीख कर रोने को करता था.

‘आज तुम्हारी छुट्टी है पिंकी, घर पर ठीक से रहना. शारदा आंटी को तंग मत करना,’ उस की मम्मी उसे हिदायत दे कर औफिस के लिए चली जाती हैं. बाद में पापा भी जल्दीजल्दी आते हैं और उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए उसे ‘बाय’ कहते हुए वे भी चले जाते हैं. घर में वह और शारदा आंटी रह जाती हैं. शारदा आंटी घर के काम में लग जाती हैं. काम करने के बाद वे टीवी खोल कर बैठ जाती हैं. पिंकी के नाश्ते व खाने का पूरा खयाल रखती हैं शारदा आंटी. जब वह बहुत छोटी थी तब से ही शारदा आंटी उस की देखभाल के लिए आती थीं. पिंकी को नाश्ते में तथा खाने में क्या पसंद है, क्या नहीं, यह शारदा आंटी अच्छी तरह जानती थीं, इसीलिए पिंकी शारदा आंटी से खुश रहती थी. अब रोजरोज मम्मीपापा को झगड़ते देख वह अब खुश रहना ही भूल गई है.

स्कूल में पहले वह अपनी सहेलियों के साथ खेलती थी, अब अलग अकेले बैठना उसे ज्यादा अच्छा लगता है. एक दिन अपनी फ्रैंड निशा से उस ने पूछा था, ‘निशा, अलादीन के चिराग वाली बात तूने सुनी है?’

‘हां कुछकुछ,’ निशा बोली थी.

‘क्या वह चिराग मुझे मिल सकता है?’

‘क्यों, तू उस का क्या करेगी?’ निशा ने पूछा था.

‘उस चिराग को घिसूंगी, फिर उस में से जिन्न निकलेगा. फिर मैं उस से जो चाहूंगी, मांग लूंगी,’ पिंकी बोली.

‘अब वह चिराग तो पता नहीं कहां होगा, तुझे जो चाहिए, मम्मी पापा से मांग ले. मैं तो यही करती हूं.’

पिंकी चुप रही. वह उसे कैसे बताए कि अपने लिए नहीं, मम्मीपापा के लिए कुछ मांगना चाहती है. मम्मीपापा का यह रोज का ? झगड़ा उसे पागल बना देगा. एक बार उस की इंग्लिश की टीचर ने भी उसे खूब डांटा था, ‘मैं देख रही हूं तुम पहले जैसी होशियार पिंकी नहीं रही, तुम्हारा तो पढ़ाई में मन ही नहीं लगता.’

पिछले साल का रिजल्ट देख कर टीचर पापामम्मी पर नाराज हुए थे, ‘तुम पिंकी पर जरा भी ध्यान नहीं देतीं, देखो, इस बार इस के कितने कम नंबर आए हैं.’

‘हां, अगर अच्छे नंबर आए तो सेहरा आप के सिर कि बेटी किस की है. अगर कम नंबर आए तो मैं ध्यान नहीं देती. मैं पूछती हूं आप का क्या फर्ज है? पर पहले आप को फुरसत तो मिले अपनी सैक्रेटरी खुशबू से.’

‘पिंकी की पढ़ाई में यह खुशबू कहां से आ गई?’ पापा चिल्लाए.

बस, पिंकी के मम्मीपापा में लड़ाई शुरू हो गई. उस दिन उस ने जाना था कि खुशबू आंटी को ले कर दोनों झगड़ते हैं. वह समझ नहीं पाई थी कि खुशबू आंटी से मम्मी क्यों चिढ़ती हैं. एक दो बार वे घर आ चुकी हैं. खुशबू आंटी तो उसे बहुत सुंदर, बहुत अच्छी लगी थीं, गोरी चिट्टी, कटे हुए बाल, खूब अच्छी हाइट. और पहली बार जब वे आई थीं तो उस के लिए खूब बड़ी चौकलेट ले कर आई थीं. मम्मी पता नहीं खुशबू आंटी को ले कर पापा से क्यों झगड़ा करती हैं.

पिंकी के पापा औफिस से देर से आने लगे थे. जब मम्मी ने पूछा तो कहा, ‘ओवरटाइम कर रहा हूं, औफिस में काम बहुत है.’ एक दिन पिंकी की मम्मी ने खूब शोर मचाया. वे चिल्लाचिल्ला कर कह रही थीं, ‘कार में खुशबू को बिठा कर घुमाते हो, उस के साथ शौपिंग करते हो और यहां कहते हो कि ओवरटाइम कर रहा हूं.’

‘हांहां, मैं ओवरटाइम ही कर रहा हूं. घर के लिए सारा दिन कोल्हू के बैल की तरह काम करता हूं और तुम ने खुशबू को ले कर मेरा जीना हराम कर दिया है. अरे, एक ही औफिस में हैं, तो क्या आपस में बात भी नहीं करेंगे,’ पिंकी के पापा ने हल्ला कर कहा था.

‘उसे कार में घुमाना, शौपिंग कराना, रैस्टोरैंट में चाय पीना ये भी औफिस के काम हैं?’

उन दोनों में से कोई चुप होने का नाम नहीं ले रहा था. दोनों का झगड़ा चरमसीमा पर पहुंच गया था और गुस्से में पापा ने मम्मी पर हाथ उठा दिया था. मम्मी खूब रोई थीं और पिंकी सहमीसहमी एक कोने में दुबकी पड़ी थी. उस का मन कर रहा था वह जोरजोर से चीखे, चिल्लाए, सारा सामान उठा कर इधरउधर फेंके, लेकिन वह कुछ नहीं कर सकी थी. आखिर इस झगड़े का अंत क्या होगा, क्या मम्मीपापा एकदूसरे से अलग हो जाएंगे, फिर उस का क्या होगा. वह खुद को बेहद असहाय और असुरक्षित महसूस करने लगी थी.

उस दिन वह आधी रात एक बुरा सपना देख कर अचानक उठ गई और जोरजोर से रोने लगी थी. उस के मम्मीपापा घबरा उठे. दोनों उसे चुप कराने में लग गए थे. उस की मम्मी पिंकी की यह हालत देख कर खुद भी रोने लगी थीं, ‘चुप हो जा मेरी बच्ची. तू बता तो, क्या हुआ? क्या कोई सपना देख रही थी?’ पिंकी की रोतेरोते घिग्घी बंध गई थी. मम्मी ने उसे अपने सीने से कस कर चिपटा लिया था. पापा खामोश थे, उस की पीठ सहला रहे थे.

पिंकी को पापा का इस तरह सहलाना अच्छा लग रहा था. चूंकि मम्मी ने उसे छाती से चिपका लिया था, इसलिए पिंकी थोड़ा आश्वस्त हो गई थी. इस घटना के बाद पिंकी के मम्मीपापा पिंकी पर विशेष ध्यान देने लगे थे. पर पिंकी जानती थी कि ये दुलार कुछ दिनों का है, फिर तो वही रोज की खिचखिच. उस का नन्हा मन जाने क्या सोचा करता. वह सोचती कि माना खुशबू आंटी बहुत सुंदर हैं, लेकिन उस की मम्मी से सुंदर तो पूरी दुनिया में कोई नहीं है. उस को अपने पापा भी बहुत अच्छे लगते हैं. इसीलिए जब दोनों झगड़ते समय अलग हो जाने की बात करते हैं तो उस का दिल धक हो जाता है. वह किस के पास रहेगी? उसे तो दोनों चाहिए, मम्मी भी, पापा भी.

पिंकी ने मम्मी को अकसर चुपकेचुपके रोते देखा है. वह मम्मी को चुप कराना चाहती है, वह मम्मी को दिलासा देना चाहती है, ‘मम्मी, रो मत, मैं थोड़ी बड़ी हो जाऊं, फिर पापा को डांट लगाऊंगी और पापा से साफसाफ कह दूंगी कि खुशबू आंटी भले ही देखने में सुंदर हों पर उसे एक आंख नहीं सुहातीं. अब वह खुशबू आंटी से कभी चौकलेट भी नहीं लेगी. और हां, यदि पापा उन से बोले तो मैं उन से कुट्टी कर लूंगी.’ पर वह अपनी मम्मी से कुछ नहीं कह पाती. जब उस की मम्मी रोती हैं तो उस का मन मम्मी से लिपट कर खुद भी रोने का करता है. वह अपने नन्हे हाथों से मम्मी के बहते आंसुओं को पोंछना चाहती है, वह मम्मी के लिए वह सबकुछ करना चाहती है जिस से मम्मी खुश रहें. पर वह अपने पापा को नहीं छोड़ सकती, उसे पापा भी अच्छे लगते हैं.

थोड़े दिनों तक सब ठीक रहा. फिर वही झगड़ा शुरू हो गया. पिंकी सोचती, ‘उफ, ये मम्मीपापा तो कभी नहीं सुधरेंगे, हमेशा झगड़ा करते रहेंगे. वह इस घर को छोड़ कर कहीं दूर चली जाएगी. तब पता चलेगा दोनों को कि पिंकी भी कुछ है. अभी तो उस की कोई कद्र ही नहीं है.’

वह सामने के घर में रहने वाला भोलू घर छोड़ कर चला गया था तब उस के मम्मीपापा जगहजगह ढूंढ़ते फिर रहे थे. वह भी ऐसा करेगी, पर वह जाएगी कहां? जब वह छोटी थी तो शारदा आंटी बताती थीं कि बच्चों को कभी एकदम अकेले घर से बाहर नहीं जाना चाहिए. बाहर बच्चों को पकड़ने वाले बाबा घूमते रहते हैं जो बच्चों को झोले में डाल कर ले जाते हैं, उन के हाथपांव काट कर भीख मंगवाते हैं. ना बाबा ना, वह घर छोड़ कर नहीं जाएगी. फिर वह क्या करे?

पिंकी अब गुमसुम रहने लगी थी. वह किसी से बात नहीं करती थी. अब वह मम्मी व पापा से किसी खिलौने की भी मांग नहीं करती. हां, कभीकभी उस का मन करता है तो वह अकेली बैठी खूब रोती है. वह अब सामान्य बच्चों की तरह व्यवहार नहीं करती. स्कूल में किसी की कौपी फाड़ देती, किसी का बस्ता पटक देती. उस की क्लासटीचर ने उस की मम्मी को फोन कर के उस की शिकायत की थी.

एक दिन उस ने अपने सारे खिलौने तोड़ दिए थे. तब मम्मी ने उसे खूब डांटा था, ‘न पढ़ने में मन लगता है तेरा और न ही खेलने में. शारदा बता रही थी कि तुम उस का कहना भी नहीं मानतीं. स्कूल में  भी उत्पात मचा रखा है. मैं पूछती हूं, आखिर तुम्हें हो क्या गया है?’

वह कुछ नहीं बोली. बस, एकटक नीचे जमीन की ओर देख रही थी. उसे अब सपने भी ऐसे आते कि मम्मीपापा आपस में लड़ रहे हैं. वह किसी गहरी खाई में गिर गई है और बचाओबचाओ चिल्ला रही है. पर मम्मीपापा में से कोईर् उसे बचाने नहीं आता और वह सपने में भी खुद को बेहद उदास, मजबूर पाती. वह किसी को समझ नहीं सकती, न मम्मी को, न पापा को.

वह अपनी मम्मी से यह नहीं कह सकती कि खुशबू आंटी को ले कर पापा से मत झगड़ा किया करो. क्या हुआ अगर पापा ने उन्हें कार में बिठा लिया या उन्हें शौपिंग करा दी. और न ही वह पापा से कह सकती है कि जब मम्मी को बुरा लगता है तो खुशबू आंटी को घुमाने क्यों ले जाते हो. वह जानती है कि वह कुछ भी कहेगी तो उस की बात कोई नहीं सुनेगा. उलटे, उस को दोचार थप्पड़ जरूर पड़ जाएंगे. मम्मी अकसर कहती हैं कि बड़ों की बातों में अपनी टांग मत अड़ाया करो.

पिंकी के मन में भय बैठता जा रहा था. वह भयावह यंत्रणा झेल रही थी. धीरेधीरे पिंकी का स्वास्थ्य गिरने लगा. वह अकसर बीमार रहने लगी. मम्मी और पापा दोनों उसे डाक्टर के पास ले गए. डाक्टर ने खूब सारे टैस्ट किए जिन की रिपोर्ट नौर्मल निकली. डाक्टर ने उस से कई सवाल पूछे, पर पिंकी एकदम चुप रही. उन्होंने कुछ दवाइयां लिख दीं, फिर पापा से बोले, ‘लगता है इसे किसी बात की टैंशन है या किसी बात से डरी हुई है. आप इसे किसी अच्छे मनोचिकित्सक को दिखाएं जिस से इस की परेशानी का पता चल सके.’

पिंकी को उस के मम्मीपापा दूसरे डाक्टर के पास ले गए. करीब एक सप्ताह तक वे पिंकी को मनोचिकित्सक के पास ले जाते रहे. वे डाक्टर आंटी बहुत अच्छी थीं, उस से खूब बातें करती थीं. शुरूशुरू में तो पिंकी ने गुस्से में उन का हाथ झटक दिया था, उन की मेज पर रखा गिलास भी तोड़ दिया था. पर वे कुछ नहीं बोलीं, जरा भी नाराज नहीं हुईं. वे डाक्टर आंटी उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरतीं, उसे दुलार करतीं और उस के गालों पर किस्सी दे कर उसे चौकलेट देतीं. फिर कहतीं, ‘बेटा, अपने मन की बात बताओ. तुम बताओगी नहीं, तो मैं कैसे तुम्हारी परेशानी दूर कर पाऊंगी?’ उन्होंने पिंकी को आश्वासन दिया कि वे उस की परेशानी दूर कर देंगी. नन्हा सा मन आश्वस्त हो कर सबकुछ बोल उठा. रोतेरोते पिंकी ने डाक्टर आंटी को बता दिया कि वह मम्मीपापा दोनों के बिना नहीं रह सकती. जब मम्मीपापा लड़ते हैं तो वह बहुत भयभीत हो उठती है, एक डर उस के दिल में घर कर लेता है जिस से वह उबर नहीं पाती. उस का दिल मम्मीपापा दोनों के लिए धड़कता है. दोनों के बिना वह जी नहीं सकती. उस दिन वह खूब रोई थी और डाक्टर आंटी ने उसे अपने सीने से चिपका कर खूब प्यार किया था.

बाहर आ कर उन्होंने पिंकी के मम्मीपापा को खूब फटकारा था. आप दोनों के झगड़ों ने बच्ची को असामान्य बना दिया है. अगर बच्ची को खुश देखना चाहते हैं तो आपस के झगड़े बंद करें, उसे अच्छा माहौल दें, वरना बच्ची मानसिक रूप से अस्वस्थ होती चली जाएगी और आप अपनी बच्ची की बीमारी के जिम्मेदार खुद होंगे.

उस दिन पिंकी ने सोचा था कि आज उस ने डाक्टर आंटी को जो कुछ बताया है, उस बात को ले कर घर जा कर उसे मम्मी और पापा दोनों खूब डांटेंगे, खूब चिल्लाएंगे. वह डरी हुई थी, सहमी हुई थी. पर उस के मम्मीपापा ने उसे एक शब्द नहीं कहा. डाक्टर आंटी के फटकारने का एक फायदा तो हुआ कि उस के मम्मी और पापा दोनों बिलकुल नहीं झगड़े, लेकिन आपस में बोलते भी नहीं थे.

उस ने जो सारे खिलौने तोड़ दिए थे, उन की जगह उस के पापा नए खिलौने ले आए थे. मम्मी उस का बहुत ध्यान रखने लगी थीं. रोज रात उसे अपने से चिपका कर थपकी दे कर सुलातीं. पापा भी उस पर जबतब अपना दुलार बरसाते. पर पिंकी भयभीत और सहमीसहमी रहती. वह कभीकभी खूब रोती. तब उस के मम्मीपापा दोनों उसे चुप कराने की हर कोशिश करते.

एक रात पिंकी को हलकी सी नींद आईर् थी कि पापा की आवाज सुनाई दी. वे मम्मी से भर्राए स्वर में कह रहे थे, ‘तुम मुझे माफ कर दो. मैं भटक गया था. भूल गया था कि मेरा घर, मेरी गृहस्थी है और एक प्यारी सी बच्ची भी है. पिंकी की यह हालत मुझ से देखी नहीं जाती. इस का जिम्मेदार मैं हूं, सिर्फ मैं.’ पापा यह कह कर रोने लगे थे. उस ने पहली बार अपने पापा को रोते हुए देखा था. उस की मम्मी एकदम पिघल गईं, ‘आप रोइए मत, अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है. पिंकी भी हम दोनों के प्यार से ठीक हो जाएगी. अपने ?ागड़े में हम ने इस पर जरा भी ध्यान नहीं दिया.’

थोड़ी देर वातावरण में गहरी चुप्पी छाई रही. फिर मम्मी बोलीं, ‘अपनी नौकरी के चक्कर में मैं ने आप पर भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया. औफिस का काम भी घर ले आती थी. आप एकदम अकेले पड़ गए थे, इसीलिए खुशबू…’ इस  से आगे उन के शब्द गले में ही अटक कर रह गए थे.

‘नहींनहीं, मैं ही गलत था. अब मैं पिंकी की कसम खा कर कहता हूं कि मैं खुशबू से कोई संबंध नहीं रखूंगा. मेरी पिंकी एकदम अच्छी हो जाए और तुम खुश रहो, इस के अलावा मुझे कुछ नहीं चाहिए.’ पापा धीरेधीरे मम्मी के बालों में उंगलियां फेर रहे थे और मम्मी की सिसकियां वातावरण में गूंज रही थीं.

पिंकी मन ही मन कह रही थी, ‘मम्मी मत रो, देखो न, पापा अपनी गलती मान रहे हैं. पापा, आप दुनिया के सब से अच्छे पापा हो, आई लव यू पापा. और मम्मी आप भी बहुत अच्छी हैं. मैं आप को भी बहुत प्यार करती हूं, आई लव यू मौम.’

पिंकी की आंखें भर आई थीं पर ये खुशी के आंसू थे. अब उसे किसी अलादीन के चिराग की जरूरत नहीं थी. उस के नन्हे से मन में दुनिया की सारी खुशियां सिमट कर समाहित हो गई थीं. आज उस का मन खेलना चाहता है. दौड़ना चाहता है, और इन सब से बढ़ कर दूर बहुत दूर आकाश में उड़ना चाहता है.

Stree 2 में हौट एंड सैक्सी आइटम नंबर से कहर बरपा रही हैं तमन्ना भाटिया, देखें Video

साउथ की खूबसूरत हौट एंड सैक्सी एक्ट्रेस तमन्ना भाटिया एक बार फिर अपने हौट एंड सेक्सी अंदाज में अदाओं के जलवे बिखरते हुए जिओ स्टूडियो और दिनेश विजन की हौरर कौमेडी फिल्म स्त्री 2 में आइटम नंबर ‘आज की रात’ लेकर आईं है .इस आइटम नंबर में तमन्ना भाटिया के साथ राजकुमार राव और पंकज त्रिपाठी भी ठुमके लगाते नजर आ रहे हैं . ‘आज की रात’ यूट्यूब पर काफी तहलका मचा रहा है.

हौरर कौमेडी फिल्म स्त्री की अपार लोकप्रियता के बाद अब स्त्री 2 भी 15 अगस्त को प्रदर्शित हो रही है. संगीतकार सचिन जिगर के अनुसार तमन्ना भाटिया के आइटम नंबर को भी उतना ही पसंद किया जाएगा जितना की हौरर कौमेडी फिल्म स्त्री फिल्म के आइटम नंबर कमरिया.. और मिलेगी मिलेगी… गानों को दर्शकों द्वारा पसंद किया गया था.

 

स्त्री 2 में तमन्ना भाटिया के आइटम नंबर आज की रात को गायिका मधुबनती बागची ने अपनी खूबसूरत आवाज़ से सवारा है. और इसका कोरियोग्राफ विजय गांगुली ने किया है. हौरर फ़िल्म स्त्री के संगीतकार सचिन जिगर जिन्होंने स्त्री 2 का भी संगीत दिया है उनको पूरा यकीन है की तमन्ना भाटिया पर फिल्माया ‘आज की रात’ उतना ही लोकप्रिय होगा जितना कि स्त्री के सभी गाने लोकप्रिय हुए थे.

तमन्ना भाटिया जो अपने आइटम डांस नंबर के लिए पहले से प्रसिद्ध है उनका इससे पहले भी फ़िल्म जेलर का आइटम नंबर ऊऊ कावाला और तूतक तूतक कोकका-मक्का बोहत हिट हुआ है .

मेरे पति की गर्लफ्रैंड है, क्या मेरा उनके साथ रहना सही है?

सवाल

मेरी शादी को 10 साल हो गए हैं, हमारा एक बेटा भी है. मेरे पति कार्पोरेट फील्ड में है, वह सुबह 10 बजे निकलते हैं और रात में 11 बजे वापस आते हैं. उनके पास हमारे लिए समय ही नहीं रहता. वो कहते हैं कि मैं बहुत थक गया हूं और खाना खाकर सो जाते हैं. फिर सुबह औफिस चले जाते हैं.

एक दिन मेरे बेटे ने उनका फोन ले लिया और गेम देखने लगा, गलती से उसने Whatsapp खोल लिया था. इसके लिए मेरे पति ने बेटे को बहुत डांटा हालांकि अभी वह 4 साल का है, तो वह मैसेज भी नहीं पढ़ सकता, लेकिन फिर भी पति ने बहुत फटकार लगाई. मुझे बुरा लगा मैं अपने बच्चे को कमरे में लेकर चली गई. हालांकि बाद में उन्होंने सौरी बोला.

Romantic couple out together at the ferris wheel in the park

मैं एक दिन सोच रही थी, जो पति मुझसे और बच्चे से इतना प्यार करता था उसमें कुछ दिनों से क्यों बदलाव आ रहे हैं. फिर मैंने सोचा कि काम के प्रेशर की वजह से पति का बिहेव बदलता जा रहा है. अब तो वह हर रविवार को बाहर जाने लगे थे. उन्होंने बताया था कि औफिस के काम की वजह से उन्हें रविवार को छुट्टी नहीं मिल रही है. मैं बहुत ही अकेला महसूस करने लगी थी फिर सोचती थी कि अच्छी लाइफ के लिए पैसे भी जरूरी है, कोई बात नहीं मेरे पति मुझे टाइम नहीं दे रहे हैं, लेकिन उस दिन मेरा शक सच में बदल गया.

जब वो फोन पर किसी लड़की से बात कर रहे थे और उससे ये कह रहे थे कि मुझे फोन मत करना मैं अपने बीवी और बच्चे के साथ हूं, तो मैं सन्न रह गई और मुझे पता चल गया कि मेरे पति को कोई गर्लफ्रेंड है. उस दिन मैं चुप रही, लेकिन दो दिन बाद फिर मैंने उन्हें उस लड़की से बात करते हुए सुन लिया. उस दिन मैंने उनसे कहा, आपके लाइफ में कोई लड़की है, मैं ये सच जानती हूं. वो सरप्राइज हो गए और उन्होंने सफाई देने के लिए न जाने कितने झूठ बोल दिए. हालांकि मैं इन चीजों से थक चुकी थी, मैं कमरे में आकर सो गई. अब मेरे पति और मेरे बीच सिर्फ काम के लिए बात होती है. समझ नहीं आ रहा मैं क्या करूं?

Closeup of an Indian couple sitting down looking scared and worried while on a phone call

जवाब

देखिए आपने बताया कि आपका एक बेटा भी है. कई मामलों में देखा गया है कि बच्चे होने के बाद जब पति का एक्सट्रा मैरिटल अफेयर होता है, तो पत्नियां सिर्फ बच्चे की भविष्य के लिए चुप हो जाती है और पति अपनी मनमानी करता है.

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बेहतर है कि पहले आप अपने पति को समझाएं कि हमारा एक बेटा भी है, जब वो बड़ा होगा और उसे अपने पापा की सच्चाई पता चलेगी तो उस पर क्या असर पड़ेगा. आप उन्हें एहसास कराएं कि पहले आपदोनों एकदूसरे से कितना प्यार करते थे. कैसे आपदोनों पहली बार मिले थे. प्यार की बातों से उन्हें रिझाएं. आप मौडर्न ड्रैसेज भी पहनें.  अगर वो फिर पहले की तरह अपना रिश्ता कायम रखने की कोशिश करते हैं और आपसे अपनी गलती की माफी मांगते हैं, तो आप अपने रिश्ते को एक मौका जरूर दें.

लेकिन अगर आपके पति में कोई सुधार नहीं होता है, तो भलाई इसी में है कि आप उनसे अलग हो जाए, रही बात बच्चे को पढ़ाने और खर्च की तो आप खुद इंडिपेंडेंट बनें और बेटा सिर्फ आपका नहीं है, उसके पढ़ाई का खर्च आप अपने पति से भी लें. ऐसे पतियों को सबक जरूर सिखाना चाहिए. जो शादी के बाहर रिश्ते रखते हैं घर में आकर अच्छे पति होने का दिखावा करते हैं.

तो जिंदगी सुखी रहेगी

हाल ही में देश के एक हाई कोर्ट ने एक दुखी पति के डाइवोर्स के केस में फैसला देते हुए कहा कि जो पत्नी पति को सैक्स सुख देने से इनकार करे तो यह हिंदू विवाह कानून 1955 के अंतर्गत क्रूअल्टी माना जाएगा. पतिपत्नी का संबंध सैक्स सुख पर टिका है. यह फैसला कुछ अजीब लगता है चूंकि हर स्त्री को सैक्स सुख देने और पाने का हक तो विवाह से बाहर भी है जैसे हर पुरुष को.

सैक्स और बच्चे पैदा करने को विवाह का अकेला पर्पज मानने की गलती असलीयत में हम पर हमारे धर्र्मों और उन से जुड़ी मान्यताओं और संस्कारों की देन है. हर धर्म ने औरतों को यही आदेश दिया है कि वे विवाह करें और फिर पति की गुलामी कर के उसे सैक्स सुख और बच्चों की गारंटी दें और यही बात इस हाई कोर्ट ने कही है.

विवाह के कानूनी बंधन का मूल पर्पज चाहे जो भी रहा हो, आज कानूनों की भरमार इस तरह की है कि पतिपत्नी संबंध एक व्यक्ति और उस की अपने देश की नागरिकता के अधिकार जैसा हो गया है. जैसे देश का अकेला कर्तव्य नागरिक को बसने की इजाजत देने से कहीं अधिक उस की सुरक्षा, उस की नौकरी की गारंटी, उस की शिक्षा की औपर्च्यूनिटी, उस की हैल्थ केयर, उस के आनेजाने के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाना हो गया है, वैसे ही विवाह पति और पत्नी को एकदूसरे से संबंधित ही नहीं समाज से संबंधित भी बहुत से अधिकार देता है.

यह धार्मिक कौंट्रैक्ट नहीं रह गया है, यह अब एक कानूनी कौंट्रैक्ट बन गया है जिसे अब दुनिया में शायद कहीं भी वह धर्म वाला तोड़ नहीं सकता जिस ने विवाह कराया. इसलामिक देशों में भी तलाक की डिक्री के लिए किसी कोर्ट के दरवाजे पर जाना पड़ता है.

शादी सैक्स करने का लाइसैंस नहीं है. यह साथ रहने और एकदूसरे को रिप्रेजैंट करने का राइट भी देती है. एक साथी की मृत्यु या किसी कारण अपंग होने पर उस के सारे अधिकार उस के विवाहित साथी को स्वत: मिल जाते हैं. विवाह को सैक्स का मूल मानना इस दृष्टि से गलत ही नहीं भयंकर भूल भी है और करोड़ों औरतें इस भुलावे में रहती हैं कि उन्हें सैक्स सुख तो देना ही होगा.

बहुत सी औरतें जो किसी भी कारण यह सुख नहीं दे पातीं जिन में बीमारी, मोटापा, दूर रहने की आवश्यकता, पति की बेमतलब की मांगें आदि को पूरा नहीं कर पातीं तो बेकार में गिल्ट फील करती हैं. शादी का अर्थ साथ रहना है जो किसी भी और तरीके से ज्यादा जरूरी है. शादी का मतलब एक ऐक्सक्लूसिव सैक्स पार्टनर पाना नहीं है जीवन के 23 घंटे से ज्यादा एकदूसरे का साथ और एकदूसरे पर डिपैंडैंस है.

बहुत सी शादियां सैक्स में चीटिंग पर टूटती हैं. यह बिलकुल गलत है. सैक्स जीवन का छोटा सा अंग है और पति या पत्नी का विवाह के बाहर का सैक्स शादी के करार को तोड़ने के लिए नहीं होना चाहिए. हर धर्म ने मर्दों को तो वैसे भी हक दिया है कि वे कहीं भी मुंह मारते रहें पर अगर पत्नी शरीर की मांग या कुछ समय की चाहत के लिए किसी से संबंध बना ले तो उसे छिनाल, कुलटा और न जाने क्याक्या कहा जाता है. यह समाज का एकतरफा मतलबी रवैया है. दुनिया के हर देश के हर शहर में रैड लाइट एरिया है जिस से वही समाज जो पत्नियों को सिर्फ एक मर्द के साथ संबंध बनाने की शर्त रखता है, वहां पेशेवर लड़कियां जमा करता है, उन को जबरन प्रौस्टीच्यूशन में धकेला जाता है ताकि उन पतिव्रता पत्नियों के पति सैक्स सुख खरीद कर भोग सकें.

जो पैसे सैक्स बेचने के प्रोफैशनल को मिलते हैं, उतने पत्नियों को भी नहीं मिलते. घर, गाड़ी, घूमनाफिरना, बंगला तो असल में पति अपने लिए बनाते हैं, पत्नी के लिए नहीं. समाज ने शादी और सैक्स की एक ऐसी तरकीब बना रखी है, जिस से औरतों को सैक्स तो परोसना होता है पर बदले में वे रैड लाइट की लड़कियों की तरह सुखी भी नहीं हैं, इंडिपैंडैंट भी नहीं हैं.

मैरिज इंस्टिट्यूशन एक अच्छा तरीका है जो लोगों को स्टैबिलिटी देता है, जीने का पर्पज देता है, अपना साथ निभाने वाला कोई परमानैंट जना देता है. लेकिन जब यह एकतरफा सुख का सोर्स बन चुका हो तो उस पर सवाल उठाने चाहिए. सदियों से राजाओं ने धर्म के कहने पर इसे जबरन औरतों पर थोपा है. आदमियों ने औरतों का जम कर फायदा उठाया है. नामर्द पुरुष भी ठाट से एक औरत छोड़ कर दूसरी के पास जाते रहे हैं और पौराणिक कहानियां उन किस्सों से भरी हैं जिन में शादी बचाने के लिए बेचारी पत्नी ने पति की जगह दूसरे से सैक्स किया.

धर्म ने इस पर मुहर लगा डाली. कई ऐसी संतानों को यूज भी किया क्योंकि वहां कोई मतलब सिद्ध हो रहा था. यह मतलब पुरुष का था. विवाहित पुरुषों ने शादी के बाहर हुए सैक्स संबंधों से हुए बच्चों और उन की मांओं का कभी खयाल नहीं रखा. न पौराणिक पुरुषों ने (शकुंतला की कथा जिस में मेनका और विश्वामित्र की संतान को कण्व ऋषि के आश्रम में छोड़ दिया गया) न ऐतिहासिक पुरुषों ने, न आज के मौडर्न शिक्षित मर्दों ने.

शादी का मतलब सैक्स की जगह एकदूसरे का पूरक बनना है. हमें ऐसा पार्टनर बनना है जो हर दुखसुख में साथ है, जिस के साथ लाइफ लाइफ है, जिस के बिना वैक्यूम है. यह करार टूटे पर सैक्स के अलावा दूसरे कारणों से. एक के घर छोड़ जाने पर टूटे. एक या दोनों के मिजाज अलग हो जाने पर टूटे. अलग सोच और टैंपरामैंट वाले हो जाने पर टूटे. घर के पैसे को कहीं और बरबाद करने पर टूटे. इनलाज के दखल पर टूटे पर सैक्स उस का कोई कारण न हो.

जिस से शादी की है उसे अपना सा बनाना हरेक की ड्यूटी है, एकदूसरे में मिल जाने की कला आनी जरूरी है. शादी 2 अलग जनों का एक छत के नीचे एक बिस्तर पर सोना नहीं है, एकदूसरे के लिए जीनामरना है, यह आसानी से सीखा जा सकता है. मिलिटरी में यह सिखाया जाता है. 2-4 महीनों बाद ही मोरचे पर दुश्मन की गोलियों की परवाह किए बिना साथी को बचाने के लिए जान दांव पर लगाने वाले सैकड़ों मामले सैनिक रैजिमैंटों के इतिहासों में लिखे गए हैं. जब कुछ समय के लिए साथ रहने वाले एकदूसरे के लिए जान की परवाह नहीं करते, एक  रोटी के 2 टुकड़े कर के खाते हैं, एक खंदक में साथसाथ बमों की धड़धड़हाटों के बीच दूसरे की रक्षा व अलिखित वादे के कारण नींद पूरी कर सकते हैं, तो प्रेम कर के शादी करने वाले एकदूसरे जैसे क्यों नहीं हो सकते?

शादी में लेनादेना नहीं, देनादेना सीखिए, जिंदगी सुखी होगी. एकदूसरे पर मालिकाना हक नहीं मानिए. दोनों एक और एक ग्यारह होंगे. साथ हंसना सीखें, हंसी घंटों नहीं बरसों रहेगी. एकदूसरे के दुख का पूरा सा झीदार बनिए. दुख कम भी होगा, दुख से लड़ने की ताकत भी आएगी. एकदूसरे को स्पेस दें. इंडीपैंडैंस दें ताकि  दोनों की पर्सनैलिटी को पूरा बढ़ने का मौका मिले. आंधीतूफान में 2 मजबूत बड़े पेड़ एकदूसरे को ज्यादा प्रोटैक्शन देते हैं. पत्नी एक लता सी लिपटी रहेगी तो आंधी उसे उड़ा ले जाएगी, बारिश उसे बहा ले जाएगा, तेज धूप उसे जला डालेगी. धर्म की नहीं, समाज की नहीं, दिल की नहीं, तर्क और बुद्धि की सुनें.

नुमाइश : क्यों नहीं शादी करना चाहता था संजय

सुबह 10 बजे के करीब मीना बूआ हमारे घर आईं और आते ही जबरदस्त खलबली सी मचा दी. उन के साथ उन की सहेली सरला अपनी बेटी कविता और बेटे संजय को लाईर् थी.

‘‘मुकेश और कांता कहां है?’’ मीना बूआ ने मेरे मौमडैड के बारे में सवाल किया.

‘‘वो दोनों तो सुबहसुबह ताऊजी के यहां चले गए,’’ मैं ने जवाब दिया.

‘‘क्यों?’’

‘‘किसी जरूरी काम से ताऊजी ने फोन कर के बुलाया था.’’

‘‘अंजलि कहां है?’’ बूआ ने मेरी छोटी बहन के बारे में पूछा.

‘‘नहा रही है.’’

‘‘तू तो नहा ली है न, रेणु?’’

‘‘हां, बूआ, लेकिन यह तो बताओ कि मामला क्या है? क्यों इतनी परेशान सी लग रही हैं?’’ मैं ने धीमे स्वर में प्रश्न पूछा.

बूआ ने ऊंची आवाज में जवाब दिया, ‘‘मेरी इस सहेली सरला की बेटी को देखने के लिए कुछ लोग 12 बजे यहां आ रहे हैं. सारा कार्यक्रम बड़ी जल्दबाजी में तय हुआ है. तेरी मां तो घर में है नहीं. अब सारी तैयारी तुम्हें और अंजलि को ही करनी है. सब से पहले इस ड्राइंगरूम को ठीक कर लो.’’

‘‘बूआ, पहले से खबर कर दी होती…’’

‘‘रेणु, इस मामले में कुसूरवार हम हैं. यह कार्यक्रम अचानक बना. मेरे घर में रिपेयर का काम चल रहा है. मीना के घर इस की ससुराल से मेहमान आए हुए हैं. इसलिए यहां देखनादिखाना करना पड़ रहा है. आशा है यों तकलीफ देने का तुम बुरा नहीं मानोगी,’’ सरलाजी इन शब्दों ने मेरे मन में उठी खीज व चिड़ के भावों को जड़ से ही मिटा दिया.

‘‘तकलीफ वाली कोई बात नहीं है आंटी. आप फिक्र न करें. सब काम अच्छी तरह से निबट जाएगा,’’ मैं ने मुसकराते हुए जवाब दिया और अपनी मां की भूमिका अदा करते हुए काम में जुटने को कमर कस ली.

मां की अलमारी से निकाल कर बैठक में पड़े सोफे  के साथसाथ दोनों डबल बैड की चादरें भी बदल डालीं. घर में आने वालों मेहमान किसी भी कमरे में जा सकते थे.

अंजलि तब तक नहा कर आ गई थी तो बाथरूम भी साफ कर दिया. वह मेकअप करने की ऐक्सपर्ट है. उस के जिम्मे कविता को सजानेसंवारने का काम आया.

‘‘अंजलि, मेकअप हलका रखोगी या ज्यादा?’’ संजय ने सवाल पूछा.

अंजलि के जवाब देने से पहले ही मैं बोल पड़ी, अंजलि, हलका मेकअप ही करना, नहीं तो कविता की नैचुरल ब्यूटी दब सी जाएगी.’’

‘‘मगर रेणु अकसर तो यह माना जाता है कि मेकअप ब्यूटी को निखारता है. फिर तुम ब्यूटी दब जाने की बात कैसे कह रही हो?’’ संजय ने उत्सुकता दर्शाई.

मु?ो अनजान लड़कों से एकदम खुल कर बातें करने में बड़ी हिचक होती है. फिर भी मैं ने हिम्मत कर के  जवाब दिया, ‘‘मेरा मानना है कि ज्यादा मेकअप उन्हीं लड़कियों को करना चाहिए जो अपने को डल मानती हों. असली ब्यूटी को मेकअप की जरूरत नहीं होती. वह उसे बदल या बिगाड़ कर देखने वालों की नजरों से छिपा लेता है और मेरी सम?ा से ऐसा करने का कोई फायदा नहीं.’’

‘‘मैं बिलकुल सहमत हूं आप से, रेणु. कविता का मेकअप हलका ही रखना, अंजलि,’’ संजय की इस सहमति ने मेरा दिल खुश कर दिया पर अंजलि बुरा सा मुंह बनाने के बाद कविता को हमारे कमरे में ले गई.

अंजलि मु?ा से कहीं ज्यादा सुंदर है. वह अपने को काफी सजासंवार कर रखने की शौकीन भी है. मैं उस के बिलकुल उलट हूं. तड़कभड़क मु?ो पसंद नहीं. कपड़े मैं वैसे ही पहनती हूं जो कंफर्टेबल हों और भीड़ में चाहे मु?ो लोगों की नजरों का केंद्र बनाएं.

करीब 15 मिनट में ड्राइंगरूम की शक्ल बदल दी मैं ने. बिखरा सामान करीने से लगा दिया. परफ्यूम भी छिड़क दिया. संजय ने मेरा इस काम में साथ दिया. बूआ मेहमानों के लिए पिज्जा, स्प्रिंग रोल और्डर कर आई थीं, वह डिलिवर भी हो गया था. वे अपनी सहेली के साथ आने वाले मेहमानों के बारे में पूछताछ करने में मग्न थीं.

मैं ने रात के कपड़े पहन रखे थे. जरा ढंग के कपड़े बदलने को मैं अपने कमरे में आ गई.

‘‘रेणु, मु?ो अजीब सी घबराहट हो रही है,’’ कविता की आंखों में मैं ने बेचैनी के भाव साफ पढ़े. आज के जमाने में यह देखादेखी कुछ अजीब लगती है.

‘‘दीदी इस मामले में तेरी कोई हैल्प नहीं कर सकती है, कविता,’’ अंजलि ने कहा.

‘‘लड़कियों को यों सजासंवार कर अनजान आदमियों के सामने उन की नुमाइश करना है ही बेहूदा काम,’’ मैं अपने अनुभवों को याद कर के तैश में आ गई, ‘‘कोई भी साधारण लड़की बिना डरे, घबराए ऐसी स्थिति में नहीं रह सकती. उस की असली पर्सनैलिटी बिलकुल खो जाती है और तब लड़के उसे रिजैक्ट कर एक नया टीसने वाला जख्म सदा के लिए उस लड़की के दिलोदिमाग पर लगा जाते हैं.’’

‘‘रेणु दीदी, इस मामले में लड़़की कर भी क्या सकती है?’’ कविता ने सहानुभूतिपूर्ण स्वर में पूछा.

‘‘वाह प्रेमविवाह कर सकती है,’’ अंजलि ठहाका मार कर हंसी, ‘‘तब यह देखनेदिखाने का चक्कर बचता ही नहीं, बहनो.’’

‘‘अंजलि, तुम तो वाकई बहुत मस्त और निडर लड़की हो,’’ कविता ने मेरी छोटी बहन की प्रशंसा करी.

‘‘इस की पर्सनैलिटी बिलकुल ही अलग है. इसे कभी देखने के लिए कोई आया भी तो यह बिलकुल डरेघबराएगी नहीं. अरे, पिछली बार जो लोग मु?ो देखने आए थे वे मु?ो भूल इस का रिश्ता ही मांगने लगे. आज इसे हम ड्राइंगरूम में उन लोगों के सामने जाने ही नहीं देंगे,’’ मैं ने वैसे सारी बात मजाकिया लहजे में कही, पर कहीं न कहीं मेरा मन शिकायत व गुस्से के भावों को भी महसूस कर रहा था उस घटना को याद कर के.

अचानक उन दोनों से बातें करना मु?ो अरुचिकर लगने लगा तो मैं अपने कपड़े उठा कर बाथरूम में घुस गई.

मु?ो मौमडैड ने 2 बार लड़के व उस के परिवार वालों को दिखाया था. मेरे लिए दोनों ही अनुभव बड़े खराब रहे थे.

पहली बार जबरदस्त घबराहट व डर का शिकार हो मैं  उन लोगों के सामने बिलकुल गुमसुम हो गई थी. किसी भी सवाल के जवाब में ‘हां’ या ‘न’ बड़ी कठिनाई से कह पाई थी. हाथपैर ठंडे पड़ गए थे और पूरे शरीर में उस नुमाइश के दौरान कंपकंपाहट बनी रही थी. लड़के से अकेले में बात कर के भी खुल नहीं पाई थी. पूरी जिंदगी का फैसला 15 मिनट में, यह सोच ही घबराहट पैदा कर रही थी.

उन लोगों ने मु?ो पसंद नहीं किया और ऐसे ही जवाब की हमें उम्मीद थी क्योंकि उस दिन वाकई मैं ने खुद को दयनीय हालत में सब के सामने पेश किया था.

दूसरी बार हिम्मत कर के मैं कुछ बोली. उन लोगों के सवालों के सम?ादारी से जवाब दिए. मेरा हौसला बढ़ाने को अंजलि मेरे साथ बैठी थी. उसे जरा भी डर नहीं लगा था और उस ने सारी बात को काफी संभाला.

लोगों के कमीनेपन का भी कोई हिसाब नहीं. वहां से जवाब आया कि बेटे को छोटी बहन पसंद आई है. गुस्से से भरे मम्मीपापा ने उन्हें जवाब देना भी जरूरी नहीं सम?ा पर इस घटना ने मेरा दिल बिलकुल खट्टा कर दिया था.

‘‘अब जो भी मु?ो देखने आएगा मैं बिलकुल साधारण, सहज अंदाज में उन से मिलूंगी. भविष्य में अपनी नुमाइश कराना मु?ो कतई स्वीकार नहीं है,’’ मेरी इस घोषणा का विरोध घर में वैसे किसी ने नहीं किया पर मम्मीपापा बेहद तनावग्रस्त नजर आने लगे थे. मेरा अपना ऐसा सर्कल नहीं था जिस में कोई लड़का हो. ज्यादातर सहेलियों की शादियां हो चुकी थीं.

कविता की मनोदशा में बखूबी सम?ा सकती थी. इसीलिए कपड़े बदलने

के बाद मैं कुछ देर उस के पास बैठी. बोली, ‘‘उन लोगों की ‘हां’ या ‘न’ की टैंशन तुम मत लो कविता. इस मुलाकात को इंपौर्टैंट मानो ही मत. अगर शांत रह सकी तो तुम्हारी असली पर्सनैलिटी सब के दिलों को निश्चय ही प्रभावित करने में सक्षम है. लड़़का तुम्हें जरूर पसंद कर लेगा…’’ इस अंदाज में उस का हौसला बढ़ाने के बाद मैं ड्राइंगरूम में चली आई.

वहां मुझे अलग तरह की मुसीबत की जानकारी मिली.

‘‘रेणु, उन लोगों का फोन आया है. वे लंच यहीं करेंगे. पहले ऐसा कार्यक्रम नहीं था. बाजार का खाना खाने से उन लोगों ने इनकार कर दिया है. अब क्या होगा?’’ सरला आंटी बड़ी परेशान नजर आ रही थीं.

‘‘कब तक पहुंचेंगे वे लोग?’’

‘‘करीब 1 बजे तक लगभग 2 घंटे बाद.’’

‘‘इतनी देर में तो लंच तैयार हो ही जाएगा, आंटी. मु?ो बाजार जाना पड़ेगा.’’

‘‘चलो, मैं चलती हूं तुम्हारे साथ,’’ वे फौरन उठ खड़ी हुईं. वे खुद कार चला कर ले गईं. बाजार से जरूरी सब्जियां, फल व पनीर ले कर हम घर लौट आए.

मैं बड़ी चुस्ती से खाना बनाने के काम में लग गई. शिमलामिर्च पनीर की सब्जी के साथसाथ मैं ने मिक्स बैजिटेबल भी बनानी थी. बूंदी का रायता, सलाद और मीठे में फू्रट कस्टर्ड बनाना था. गरमगरम पूरियां उसी समय तैयार करनी थीं. ये सब जल्दी बन जाने वाली चीजें थीं.

बूआ ने थोड़ाबहुत मेरा काम में हाथ बंटाया. सरला आंटी भी कुछ करना चाहती थीं, पर मेहमान होने के नाते मैं ने उन्हें काम नहीं करने दिया. सलाद काटने का काम अंजलि बड़ी सुंदरता से करती थी. आंटी और उस ने यही काम पूरा किया. पूरियों का आटा बूआ ने गूंदा. फ्रूट कस्टर्ड बनाने का काम संजय ने मेरे मार्गदर्शन में किया. एक समय तो ऐसा भी था कि हम सभी रसोई में एकसाथ मेहमानों के लंच की तैयारी में जुटे थे. कविता कुछ नहीं कर रही थी, पर थी वह भी रसोई में ही.

1 बजने तक पूरियों को छोड़ कर सारा खाना तैयार हो गया. सरला आंटी ने मेरा माथा चूम कर मु?ो धन्यवाद दिया.

‘‘आंटी, काम मैं ने अकेली ने नहीं किया है. हम सभी को यों फटाफट खाना तैयार करने का श्रेय जाता है,’’ मैं ने शरमा कर सब के साथ अपनी खुशी बांटने का प्रयास किया.

‘‘मेरे विशेष प्रयास की खास सराहना होनी चाहिए क्योंकि जिंदगी में पहली बार मैं ने कस्टर्ड बनाया है,’’ संजय की इस बात पर हम सब हंस पड़े.

‘‘अब नईनई चीजे सीखते रहिएगा. कल को जब आप की शादी हो जाएगी तो आप की पत्नी को सराहना करने के खूब मौके मिलेंगे,’’ अंजलि के यों छेड़ने पर लगा सम्मिलित ठहाका पहले से ज्यादा तेज था.

‘‘मैं ने जिसे ढूंढ़ा है, वह गृहकार्यों में बहुत कुशल है, अंजलि. इसलिए मु?ो कुछ सीखने की जरूरत नहीं है.’’

‘‘तो आप ने अपने लिए लड़की ढूंढ़ रखी है?’’

‘‘बिलकुल ढूंढ़ रखी है.’’

‘‘तसवीर है उस की आप के पर्स में?’’

‘‘तुम्हें उसे देखना है?’’

‘‘हां.’’

‘‘मिलवा दूंगा उस से जल्द ही.’’

‘‘कुछ तो बताइए उस के बारे में,’’ अंजलि संजय के पीछे ही पड़ गई.

‘‘मैं बताती हूं,’’ सरला आंटी ने बीच में कहा, ‘‘वह बड़ी भोली, प्यारी और सम?ादार है, शिक्षित है, सलीकेवान है और मेरे घर की जिम्मेदारियां बड़ी कुशलता से निभाएगी, इस का मु?ो विश्वास है.’’

‘‘आंटी, पहले कविता की शादी करोगी या संजय की?’’

‘‘संजय की.’’

‘‘हमें जरूर बरात में ले चलिएगा,’’ अंजलि की इस फरमाइश को सुन कर बूआ, आंटी, संजय और कविता पर हंसी का अजीब सा दौरा पड़ गया और हम दोनों बहनें इन का मुंह उल?ान भरे अंदाज में ताकती रह गईं.

संजय के मोबाइल की घंटी बज उठी. वह फोन सुनने रसोई से बाहर चला गया. वह 5 मिनट बाद लौटा और परेशान स्वर में बोला, ‘‘वे लोग लंच पर नहीं बल्कि शाम को चाय पर आएंगे. सारे दिन के लिए परेशान कर दिया और खाना बनाने की मेहनत बेकार गई सो अलग.’’

‘‘मेहनत क्यों बेकार गई?’’ मैं ने मुसकरा कर कहा, ‘‘हम सब जम कर खाएंगे. अब लड़के वालों के नखरे ऐसे ही होते हैं. उन लोगों से सम?ादारी की उम्मीद रखना नासम?ा ही है.’’

‘‘रेणु, सब लड़के वाले एकजैसे नहीं होते. संजय के लिए कड़वे अनुभवों की कहानी मीना ने मु?ो सुनाई है. वे लोग बेवकूफ और अंधे रहे होंगे जो तुम जैसे हीरे को गलत ढंग से परख गए. तुम जिस घर में बहू बन कर जाओगी, उस की इज्जत में 4 चांद लग जाएंगे,’’ सरला आंटी ने मेरे सिर पर आशीर्वाद भरा हाथ रख दिया.

‘‘आंटी, उन को मैं कोई दोष नहीं देती. आप लड़कियों की नुमाइश की प्रथा को प्रोत्साहन देंगे तो लड़के वाले लड़की को वस्तु सम?ोंगे ही और उसी घर से रिश्ता जोड़ेंगे जहां से फायदा होगा. लड़की के व्यक्तित्व को, उस के मनोभावों को गहराई से सम?ाने की रूचि और सुविधा ऐसी नुमाइशों में नहीं होती है,’’ अपनी बात कह कर मैं पानी पीने को फ्रिज की तरफ चल पड़ी क्योंकि मु?ो लगा कि मेरी पलकें नम हो चली हैं.

कुछ देर बाद हम सब ने मिल कर डाइनिंगटेबल पर खाना खाना शुरू किया. मेरी बनाई सब्जियों की सब ने बड़ी तारीफ करी.

अपने बनाए कस्टर्ड की संजय ने हम सब से जबरदस्ती खूब प्रशंसा कराई. वह 1 घंटा बड़े हंसतेहंसाते बीता.

हम ने भोजन समाप्त किया ही था कि मौमडैड ताऊजी के यहां से लौट आए. मेहमानों से बातें करने की जिम्मेदारी अब उन दोनों की हो गई. मन ही मन बड़ी राहत महसूस करते हुए मैं रसोई समेटने के काम में लग गई.

बाद में कौफी बना कर अंजलि ने सब को पिलाई. मैं कमरे में जा कर कुछ देर आराम करने को लेट गई.

करीब डेढ़ घंटे बाद मु?ो बूआ फिर ड्राइंगरूम में ले गईं. यह देख कर कि सरला आंटी, संजय और कविता विदा लेने को तैयार खडे़ थे, मैं जोर से चौंक पड़ी, ‘‘वे लोग आ नहीं रहे है क्या?’’ मैं ने हैरान स्वर में सरला आंटी से पूछा.

‘‘नहीं. उन का फोन आ गया है कि लड़की उन्हें पसंद है… रिश्ता स्वीकार कर लिया है उन्होंने,’’ आंटी ने मुसकराते हुए जवाब दिया.

‘‘अच्छा. यह तो खुशी की बात है, आंटी. मुबारक हो,’’ मैं ने कहा.

‘‘तुम्हें भी… तुम सब को भी रेणु,’’ आंटी ने मेरे कंधों पर प्यार से हाथ रख दिए.

‘‘हमें क्यों?’’ मैं ने अचरज भरे स्वर में पूछा.

‘‘इस रिश्ते के होने में तुम ने बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है.’’

‘‘खाना तैयार करना कोई बड़ा काम नहीं

है आंटी.’’

‘‘मेरी नजरों में है. तुम ने खाना ही नहीं तैयार किया, घर को सजाया. बाजार से खरीदारी कराई और बिना माथे पर शिकन डाले बड़ी कुशलता से सारा उत्तरदायित्व निभाया. मेरे मन को भा गई तुम तो.’’

‘‘थैंक यू, आंटी,’’ अपनी इतनी तारीफ सुन कर मैं लजा उठी थी.

‘‘अब तुम इनकार मत कर देना नहीं तो मेरा दिल टूट जाएगा… हम सब का दिल टूट जाएगा.’’

‘‘किस इंकार की बात कर रही हैं आप?’’ मैं ने उल?ान भरे स्वर में पूछा.

जवाब में आंटी ने मेरा माथा प्यार से चूमा और सब ने जोरदार तालियां बजाईं.

तभी संजय सामने आ खड़ा हुआ. फिर घुटनों के बल बैठ गया. मैं हैरान सी देख रही थी कि क्या हो रहा है. उस ने इत्मीनान से जेब से मखमली डिब्बी निकाली और उसे खोला. उस में हीरे की अंगूठी थी, ‘‘रेणु विल यू मैरी मी?’’ यह बोल कर वह मेरी आंखों में ?ांकने लगा. पहले तो मैं घबराई कि यह क्या नाटक है पर फिर सम?ा आने लगा.

मैं बोली, ‘‘यस आई विल मैरी यू इफ यू टेक मी एज ए पार्टनर ऐंड नौट एज ए मेड.’’

इस पर सब ने मेरी हाजिर जवाबी पर तालियां बजाईं.

बाद में पता चला कि यह सब नाटक मौमडैड और बूआ की प्लानिंग थी जो संजय के लिए लड़की ढूंढ़ रहे थे. संजय एमबीए कर के एमएनसी में काम कर रहा है, यह वह बातोंबातों में दिनभर बताता रहा था. सब से बड़ी बात यह थी कि लंच के बाद उस ने जबरदस्ती किचन में घुस कर बरतन साफ कर डाले थे जबकि अंजलि उसे टोकती रह गई. यह सारी प्लानिंग उस मुई कविता की है. संजय को कोई लड़की पसंद नहीं आ रही थी तो कविता ने मेरे बारे में उसे बताया था.

अब रात का खाना बाहर से आया. न मैं और न संजय किचन में घुसे. हम तो छत पर सब से अलग फ्यूचर प्लानिंग कर रहे थे न.

जिस दिन स्त्री औकात पर आ गई तो…

‘‘रूही उठो बेटा वरना लेट हो जाओगी. अभी तो तुम्हें पैकिंग भी करनी है.

रात को पैकिंग क्यों नहीं की? मु?ो भी आज औफिस जल्दी जाना है वरना मैं तुम्हारी हैल्प कर देती. जल्दी से उठो.

‘‘ब्रेकफास्ट बना कर रख जाऊंगी खा लेना और समय से निकलना. मु?ो नहीं लगता आज तुम पहला लैक्चर अटैंड कर पाओ. और हां तुम्हारा साथ ले जाने का सामान भी मैं पैक कर रही हूं. आज का खाना तो घर का ही खा लेना. आज होस्टल से मत खाना. कम से कम एक दिन तो घर का खाना खाया जाएगा,’’ इस तरह बोलतेबोलते पूजा ?ाटपट किचन का काम भी निबटा रही थी और साथ में खुद का औफिस का बैग भी रैडी कर रही थी.

मगर जब थोड़ी देर तक पूजा ने देखा कि न तो रूही ने कोई जवाब दिया और न ही अभी उस ने बिस्तर छोड़ा.

‘‘ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ. रूही तो एक आवाज पर ही उठ जाती है, आज क्यों नहीं उठ रही? देखूं तो कहीं तबीयत तो खराब नहीं इस की. आजकल वायरल भी तो बहुत फैला हुआ है,’’ ऐसा खुद से ही बड़बड़ाते हुए वह रूही के कमरे की तरफ चल दी.

रूही को हाथ लगाते हुए कहा, ‘‘क्या हुआ बेटा तबीयत तो ठीक है? आज उठा क्यों नहीं मेरा बच्चा?’’

जब पूजा ने प्यार से रूही का गाल थपथपाया तो रूही उठ कर उस के गले लग कर सुबकने लगी, ‘‘मम्मा, मु?ो नहीं जाना उस कालेज, मैं यहीं आप के पास रह कर पत्राचार पढ़ लूंगी या फिर इसी शहर के कालेज में ही पढ़ लूंगी. मु?ो नहीं जाना आप से दूर.’’

पूजा ने उसे प्यार से चुप कराया, ‘‘रूही मेरा बच्चा इस में रोने वाली क्या बात है. अच्छा एक बात सचसच बताओ, तुम्हें मु?ा से दूर नहीं जाना या कोई और बात है?’’

‘‘नहीं मम्मा मु?ो आप से दूर नहीं जाना बस इसीलिए.’’

मगर जिस तरह रूही कहते हुए नजरें चुरा रही थी उस से पूजा का माथा ठनका कि अवश्य कोई बात है जिसे रूही शायद बताना नहीं चाहती.

आज औफिस में बहुत जरूरी मीटिंग थी इसलिए पूजा का औफिस जाना भी जरूरी था. इसलिए उस ने उसे ज्यादा कुछ न कहते हुए शाम को आ कर बात करने के लिए कह कर औफिस के लिए चली गई. पर पूजा को औफिस में भी चैन कहां. उस का किसी काम में मन ही नहीं लग रहा था. मीटिंग में भी उस ने खास इंटरैस्ट नहीं लिया, बस चुपचाप सब के व्यूज सुनती रही क्योंकि उस का ध्यान तो रूही में था कि ऐसा क्या हो गया जो वह कालेज नहीं जाना चाहती.

पूजा अपने कैबिन में गुमसुम सी बैठी थी कि चपरासी ने आ कर कहा, ‘‘बौस ने बुलाया है.’’

पूजा चुपचाप उठ कर बौस के कैबिन की तरफ चल दी.

‘‘मैं आई कम इन सर?’’

‘‘पूजा, यस, यस, औफकोर्स कम इन.’’

पूजा अंदर आ कर, ‘‘यस सर.’’

‘‘आओ पूजा बैठो,’’ कुरसी की तरफ इशारा करते हुए सर ने कहा और पूजा के बैठने के बाद उसे टेबल पर रखा पानी का गिलास दिया, ‘‘लो पहले पानी पीयो और रिलैक्स हो जाओ, फिर आराम से बात करते हैं.’’

पूजा ने आराम से कुरसी पर बैठ कर पानी पी पिया.

‘‘अब बताओ पूजा क्या बात है? आज तक मैं ने तुम्हें इतना परेशान कभी नहीं देखा, जबकि मैं तुम्हें 8-10 सालों से जानता हूं. जब से मैं ट्रांसफर हो कर इस ब्रांच में आया हूं तुम्हें बहादुर, निडर और साहसी देखा है. कभी न घबराने, हार न मानने या न ही डगमगाने वाली हो तुम. आज पहली बार मु?ो तुम्हारे माथे पर शिकन की लकीरें नजर आई हैं. ऐसा क्या हो गया है, किसी ने कुछ कहा तो बताओ?’’

‘‘नहीं सर ऐसी कोई बात नहीं, किसी ने कुछ नहीं कहा, बस रूही को ले कर थोड़ा सा परेशान थी.’’

‘‘क्यों क्या हुआ रूही को? वह तो बहुत सम?ादार बच्ची है. 2-4 बार तुम्हारे साथ आई तो उस से बातचीत करने पर मैं ने महसूस किया कि वह तुम्हारी तरह बहुत हिम्मत वाली है. कोई परेशानी है तो तुम मु?ा से बे?ि?ाक शेयर कर सकती हो.’’

 

‘‘सर, आप को याद है जब रूही ने 12वीं कक्षा पास की थी, तब वह

मैकेनिकल इंजीनियरिंग करना चाहती थी और वह भी पीयूसे कहती थी मम्मा यहां जगाधरी जैसे छोटे शहर में नहीं पढ़ना मु?ो. मु?ो तो बड़ी यूनिवर्सिटी में पढ़ना है बल्कि यहां तक भी कहा था कि वह कुछ न कुछ कर के अपना खर्चा भी स्वयं निकालेगी. तब आप से मैं ने सलाह ली तो आप ने भी यही कहा था कि उसे भेज दूं, वहां आगे बढ़ने का स्कोप है.’’

‘‘हांहां मु?ो अच्छे से याद है. तुम घबरा रही थी कि वह तुम्हारे बिना रह नहीं पाएगी.’’

‘‘जी सर और उस ने एक साल बड़े अच्छे से निकाला. वह खुद कहती थी मम्मा अगर मैं ऐसा सोचूंगी तो मैं रह नहीं पाऊंगी. मु?ो अकेले रहना सीखना होगा. तभी तो मैं आप का बेटा बन कर आप का सहारा बन पाऊंगी. आज वही रूही कालेज न जाने के लिए रो रही है. उस ने मु?ा से कहा तो यही है कि वह मु?ा से दूर नहीं रहना चाहती. लेकिन मेरा मन कह रहा है कि यह बात नहीं है कुछ और बात है जिसे वह मु?ो बता नहीं पा रही.’’

‘‘पूजा तुम चिंता मत करो, मीटिंग हमारी सक्सैस रही. उम्मीद है टैंडर हमें ही मिलेगा. इस का फैसला तो अगले हफ्ते होगा. अब कोई खास काम नहीं है, तुम ऐसा करो अब घर चली जाओ और रूही के साथ 2 दिन बिताओ और प्यार से उस से पूछो कि क्या बात है. वह अवश्य तुम्हें बताएगी. बस उसे थोड़ा वक्त देना.’’

‘‘जी सर, धन्यवाद सर आप ने हर कदम पर मेरा मार्गदर्शन किया है. मैं अभी चली जाती हूं घर और कल तक मैं उस के साथ ही रहूंगी ताकि वह अपने मन की बात तसल्ली से मु?ो बताए.’’

पूजा ने घर आ कर रूही से सामान्य तरीके से बातचीत की. खाना खा कर दोनों मांबेटी टीवी चला कर बैठ गईं.

‘‘रूही क्या कहती है शाम को मूवी चलें? सुना है बहुत अच्छी मूवी है.’’ रूही ने चुपचाप सिर हिला दिया.

पूजा ने औनलाइन टिकट बुक कर लिए. शाम को दोनों मांबेटी मूवी देखने गईं. वहीं पर बर्गर और कौफी ले ली. घर आ कर खाने की इच्छा ही नहीं हुई.

‘‘रूही कुछ खाना है क्या? कहो तो बना दूं?’’

‘‘अरे नहीं मम्मा मेरा तो पेट फट जाएगा आज. एक तो मूवी में इतनी कौमेडी कि

हंसहंस कर पेट में बल पड़ गए उस पर इतना हैवी बर्गर था. लगता है बर्गर वाले ने इस मूवी को देखने वालों के लिए स्पैशल बर्गर बनाया था. वह मजा आ गया. जितना आज हंसे इतना तो कभी नहीं हंसे.’’

‘‘हां यह तो है और मेरी आंखों के सामने तो बारबार वही सीन आ रहा है जब दूल्हे का मामा गधे को…’’ आगे वह बात ही पूरी न कर सकी और दोनों खूब हंसी.

थोड़ी देर बाद रूही जब बिलकुल अच्छे से मां से बातें करने लगी तब…

‘‘रूही, बेटा अब खुल कर बता मु?ो. तु?ो वहां कालेज में क्या प्रौब्लम है? क्यों तू वहां से पढ़ाई बीच में छोड़ना चाहती है?’’

‘‘मम्मा मैं ने आप को लास्ट टाइम बताया था न कि अतुल सर क्लास में मु?ा से ही अधिकतर सवाल पूछते हैं और अच्छे से पढ़ने और सम?ाने पर मैं सारे जवाब सही देती हूं और वे हर वक्त क्लास में मेरा ही उदाहरण देते हैं कि रूही को देखो ट्यूशन ग्रुप भी पढ़ाती है और खुद भी पढ़ती है, तुम सब से बैस्ट स्टूडैंट है वह. तुम्हें रूही से कुछ सीखना चाहिए.

‘‘अब वे किसी न किसी बहाने मु?ो छूने लगते हैं. जैसे मैं ने किसी सवाल का जवाब दिया तो मेरे पास आ कर शाबाश रूही कहते हुए मेरी पीठ पर हाथ फिराते हैं, कभी मु?ो गले से लगाने की कोशिश करते हैं. 1-2 बार तो मु?ो औफिस में बिना वजह बुला कर अपने साथ लिपटा लिया और बोले कि तुम बहुत अच्छी लगती हो. तुम मेरी फेवरेट स्टूडैंट हो. मैं बड़ी मुश्किल से खुद को छुड़ा कर बाहर आई और संयोग से और लैक्चरार भी वहां आ गए.

‘‘और मम्मा उन्हें क्लास में ऐसा करते देख कर 3-4 लड़के भी कभीकभी मु?ो बहाने से टच करते हुए कहते हैं कि रूही तो सर की बैस्ट स्टूडैंट है. कीप इट अप रूही. ऐसा कहते हुए मेरी पीठ पर या गाल पर हाथ फिराते हैं.’’

पूजा सम?ा गई कि रूही के भोलेपन और अकेलेपन का सब नाजायज फायदा उठाने की फिराक में हैं. अब न तो पूजा नौकरी छोड़ कर रूही के साथ रह सकती थी और न ही रूही को इतनी अच्छी यूनिवर्सिटी छोड़ कर यहां छोटे से कसबे में ला सकती थी. रूही के सिवा और है भी तो कोई नहीं कैसे करे, किसे रूही की निगरानी के लिए उस के पास भेजे. फिर उस ने सोचा ये सब तो रूही को अकेले ही हैंडल करना होगा.

‘‘रूही आज तुम्हें मैं एक कहानी सुनाती हूं,’’ और पूजा ने रूही को अपनी गोद में लिटाया और कहानी सुनाने लगी:

‘‘एक लड़की थी भोलीभाली सी. उसे एक कालेज में एक लड़के से प्यार हो गया. लड़की पंजाबी और लड़का पंडित. लड़की के मातापिता को कोई एतराज नहीं था. वे नए ख्यालात के लोग थे लेकिन लड़के के मातापिता को एतराज था इस शादी से. लेकिन आखिर इकलौता बेटा जिस की जान उस पंजाबी लड़की में है, अगर वही न रहा तो क्या करेंगे इस जिद्द और जीवन का. इसलिए शादी की रजामंदी तो दे दी लेकिन उसे अपनी पत्नी को ले कर अलग रहने को कह दिया.

दोनों की शादी हो गई. दोनों अलग घर में रहने लगे. 1 साल बाद उन की एक प्यारी सी गुडि़या जैसी बेटी पैदा हुई. जब गुडि़या 3 साल की हो गई तब उन्होंने सोचा कि अब उस के लिए एक भाई लाना चाहिए. इस फैसले को लिए अभी एक ही दिन हुआ था कि लड़के का औफिस लौटते हुए ऐक्सीडैंट हो गया. ऐक्सीडैंट भी इतनी बुरी तरह कि औन द स्पौट ही लड़के की मृत्यु हो गई.

एक तो लड़के के मातापिता पहले से उसे पसंद नहीं करते थे अब तो बेटे की मौत का जिम्मेदार भी उसे ही ठहराने लगे. वह लड़की अकेली सहमी सी, छोटी सी बच्ची गोद में, पति की मृत्यु हो गई और सासससुर पहले से ही उसे नापसंद करते और अब तो बेटे की मौत भी उस के सिर मढ़ दी. दिनरात आंसू बहाती रहती. घर खर्च इत्यादि मातापिता देने लगे. गुडि़या को स्कूल में दाखिला भी दिलाना था. मातापिता ने करा दिया. लेकिन वह हर वक्त डरीसहमी, छुईमुई सी रहती. लेकिन उसी की कालोनी में उसी की हमउम्र उस की एक सहेली बन गई थी. किरण नाम था उस का. वह एक स्कूल में टीचर थी. उस ने उस लड़की को सम?ाया, ‘‘सुन तु इस तरह अगर दुनिया से डरेगी तो यह दुनिया तु?ो और डराएगी, तु?ो जीने नहीं देगी यह दुनियां और फिर सोचो इस छोटी सी जान का कौन है? इस की मां भी तुम हो और पिता भी तुम. तुम्हें इसे पढ़ानालिखाना है. इसे तुम्हीं तो पालोगी और आज अभी तुम्हारे भाई की शादी नहीं हुई कल को जब तेरे भाई की शादी हो गई तब? तू पढ़ीलिखी है अपने पैरों पर खड़ी हो कर दुनियां को दिखाओ, किरण ने उस लड़की को मोटिवेट किया, उसे हिम्मत बंधाई. उस के सारे सर्टिफिकेट निकालवाए. 1-2 जगह उस का सीवी बना कर भेजा. किरण के हौंसला देने पर उस लड़की ने सोचा कि बात तो सही है. यदि मैं ऐसे ही रही तो मेरी गुडि़या का क्या होगा? कब तक मैं दूसरों के सहारे जीऊंगी.

और वह खुद ही अपना सीवी ले कर चल पड़ी जमाने की पथरीली राहों पर. अच्छी पढ़ीलिखी होने पर नौकरी तो अच्छी मिल गई मगर हरकोई उस की काबिलियत से पहले उस के जिस्म का मुआयना करता. कब तक सहती वह. बेशक पति की मृत्यु के बाद उस ने बहुत सी मुश्किलों का सामना किया लेकिन उस ने अब सहना छोड़ दिया क्योंकि अब वह चंडी बन चुकी थी. जब भी कोई गलत हाथ उस की तरफ बढ़ता तोड़ देती उस हाथ को. जब भी कोई गंदी नजर उस की ओर उठती आंखें निकाल लेती उस की वह. सब को मुंहतोड़ जवाब देना सीख लिया. उस की हिम्मत, हौसले के आगे औफिस हो या घरबाहर कोई भी उसे छू नहीं सकता.

आज उस लड़की की हरकोई इज्जत करता है क्योंकि उस ने इस मतलबपरस्त दुनिया में जीना सीख लिया है. जब तक किसी दूसरे के सहारे जीओगे तब तक जिंदगी जिंदगी नहीं बल्कि भीख होगी. अगर इज्जत से जीना है तो बैसाखियों को छोड़ कर खुद के पैरों पर खड़ा होना होगा.

‘‘बस मम्मा मैं सब सम?ा गई और यह भी जान गई कि यह कहानी किस की है. अब आप देखना आप की बेटी कुछ बन कर ही आएगी वहां से. मैं अभी अपना सामान पैक करती हूं. कल सुबह मु?ो कालेज जाना है.’’

अगले दिन अतुल सर ने रूही को क्लास में प्यार से अपने साथ चिपकाते हुए

कहा, ‘‘रूही डियर कहां रह गई थी? कल क्लास में क्यों नहीं आई? तुम्हारे बिना तो हमारा मन ही नहीं लगा कल.’’ सर के ऐसा करते और कहते ही पूरी क्लास हंसने लगी.

‘‘चटाक,’’ यह क्या इतनी जोर से आवाज और पूरी क्लास में सन्नाटा छा गया. रूही का जोरदार हाथ सर के गाल पर पड़ा था. सब लड़कियां क्लास में खड़ी हो कर तालियां बजा रही थीं. लड़के शर्म और घबराहट से सिर नीचा किए बैठे थे और अतुल सर महोदय गाल पर हाथ रखे चुपचाप क्लास से बाहर चले गए.

इधर पूजा सोचने लगी किसी औरत को बेसहारा देख कर हरकोई सहारा देने के बहाने उस के शरीर का सौदा क्यों करता है? क्या स्त्री की इतनी ही औकात है?

नहीं दोस्त स्त्री की औकात इतनी नहीं. स्त्री अपनी औकात दिखाती नहीं इसलिए पुरुष की नजर में उस की कोई औकात नहीं वरना जिस दिन स्त्री अपनी औकात पर आ गई तो पूरी सृष्टि को तहसनहस भी कर सकती है स्त्री. इसलिए हमेशा स्त्री का सम्मान करें.

सोलमेट : आखिर क्या हुआ था संवित के साथ ?

‘‘सोलमेट्स किसे कहते हैं मम्मा?’’ संवित ने बड़े प्यार से पूछा.

‘‘सोलमेट्स आत्मिक साथी होते हैं जो सामने न हो कर भी  साथसाथ होते हैं पर मेरे लाल के मन में यह जिज्ञासा कैसे जाग गई?’’ मैं ने हमेशा की तरह उसे छेड़ा.

‘‘मैगजीन में पढ़ा था तो सोचा आप से पूछ लूं. आप का सोलमेट कौन है मम्मा?’’

‘‘तुम हो बेटे.’’

‘‘सच्ची?’’

‘‘हांहां.’’

सुनते ही खुश हो कर मेरे गले लग गया. उस के नजरों से ओ?ाल होते ही ‘सोलमेट’ शब्द कानों से टकराता हुआ सीधे दिल और दिमाग की सैर करता पुरानी यादों को जगाने लगा…

मैं अपने सोलमेट ‘आकाश’ को भला कैसे भूल सकती थी. हमारी दोस्ती की उम्र कुल 2 साल थी पर लगता था जैसे बरसों का नाता था. इस की शुरुआत तब हुई थी जब हमारे विभाग की ओर से 5 दिवसीय ट्रेनिंग के लिए हमें बिनसर भेजा गया था. अपने औफिस से नेहा और मैं चुने गए थे. दूसरे सैंटर से आकाश और अन्य 5 औफिसर भी थे जिन में दो उम्रदराज महिलाएं भी थीं. वहां के मौसम, हरियाली सब में एक अद्भुत सा रस था, शांति में भी मधुर संगीत था. सूर्योदय जल्दी हुआ करता. हम सवेरे उठ कर सैर पर निकलते. लौटने के बाद तैयार हो कर ट्रेनिंग क्लास के लिए जाते. नई जगह व नए माहौल का असर था कि हम सबों में एक बचपना सा जग गया था. चौक से निशाना लगाना. कागजी हवाईजहाज भी उड़ाना… 1-1 कर हम ने बचपन वाली सारी हरकतें दोहरा ली थीं.

ट्रेनिंग के बाद लंच होता और उस के बाद बस में सवार होते. आसपास की सभी देखने योग्य जगहों को कम समय में ही कवर करना था. बस में हम अंत्याक्षरी खेलते, बातें करते और सफर का पता ही नहीं लगता. घूमफिर कर लौटने में रात हो जाती और डिनर कर अपने कमरों में आ जाते. नजदीकी सारी खूबसूरत जगहों की सैर कर आए थे. अल्मोड़ा, कौशानी से तो आने का दिल ही नहीं कर रहा था.

इन रोमांचक 5 दिनों को शब्दों में बयां करना मुमकिन नहीं. अच्छा वक्त जल्दी बीत जाता है सो यह भी बीत गया. हम दिल्लीवासियों ने लौटते समय एक वादे के साथ विदा ली कि जहां तक हो सकेगा हम मिलते रहेंगे. वादे के अनुसार जब भी कोई बुक फेयर या ऐग्जीबिशन में जाना होता हम इकट्ठे जाते. मिलनाजुलना भी हो जाता और काम भी. इसी बीच हमारे परिवार वालों की भी दोस्ती हो गई थी. हमारे बच्चे भी हमउम्र थे. सभी को कंपनी मिल जाती थी. कई बार अपनी पत्नी के साथ आकाश हमारे घर भी आया था.

सबकुछ सहज चल रहा था कि एक दिन आकाश का एक मेल आया, ‘‘धरा… हम आज के बाद बात न करें तो बेहतर होगा.’’

‘‘यह क्या बेवकूफी है आकाश?’’ आंखें डबडबा गई थीं. गुस्सा भी आ रहा था. उस बेतुके मेल के बदले सवाल दाग दिया तो तुरंत ही फोन की घंटी बज उठी.

‘‘अरे, मजाक किया था. तारीख तो देख लेती. मैं तो बस इस तारीख (08.08.08)को यादगार बनाना चाहता था.’’

‘‘ऐसे कैसे? तुम ने तो डरा ही दिया था.’’

‘‘ओह तो मेरी बहादुर दोस्त डरती भी है?’’

‘‘तुम जैसे अच्छे दोस्त को खोना नहीं चाहती.’’

‘‘खोना तो मैं भी नहीं चाहता. खैर, छोड़ो वीकैंड पर पिकनिक के लिए चलें?’’

‘‘सारे दोस्तों से पूछ कर फोन करना.’’

मगर उस का कोई फोन नहीं आया. अगस्त के बाद सितंबर आया और एक लंबा सा मेल साथ लाया. ओह तो पहले वाला ट्रेलर था असली पिक्चर अब रिलीज हुई है. जाने क्याक्या लिख रखा था उस में. अभी आधा ही पढ़ा था कि भावनाओं का तूफान सा उमड़ा. अक्षर धुंधलाने लगे. औफिस में आंखें गीली कैसे करती? बमुश्किल खुद को संभाला और नयनों के कपाट बंद कर फिर उन्हीं दिनों की सैर करने लगी. ठीक से याद करने लगी. कुछ ऐसावैसा तो न घटा था? आखिर कोई तो बात हुई होगी? मेरी किस बात से उसे सिगनल मिला होगा. ध्यान आया कि आखिरी शाम एक पहाड़ी की चढ़ाई के वक्त हम अकेले थे.

‘‘मुझ से और न चढ़ा जाएगा आकाश.’’

‘‘कम औन धरा. तुम कर सकती हो.’’

‘‘ऊंची चढ़ाई है,’’ मैं ने घबराहट से उस की ओर देखा तो उस ने हाथ बढ़ा दिया. मैं ऊंचाई से इन वादियों को देखने का लोभ संवरण नहीं कर पा रही थी. मित्रता के उस आमंत्रण को सहर्ष स्वीकारती मंजिल की ओर बढ़ती चली गई. थोड़ी ही देर की मशक्कत के बाद हम चोटी पर थे. बाकी के साथियों ने हमारा साथ छोड़ नीचे ही डेरा डाल दिया था. उन में वे महिलाएं भी थीं जिन्हें घुटनों में दर्द की शिकायत थी. ऊपर आसमान और अगलबगल हरेहरे पेड़ों से आच्छादित पहाड़ ही पहाड़ नजर आ रहे थे. बड़ा ही मनोरम दृश्य था.

कुछ क्षणों के लिए यह भी भूल गई थी कि अपने पीछे पति व बेटे को छोड़ कर आई

हूं. ताजी हवा छूछू कर सिहरन जगा रही थी. प्रकृति के उस नरम स्पर्श ने मन को सहला दिया था. चेहरे पर एक विजयी मुसकान थी मानो किला फतह कर लिया हो. तापमान थोड़ा कम था जैसा अमूमन ऊंचाइयों पर होता है. आंखें बंद कर अपने अंदर उस खूबसूरती और शीतलता को आत्मसात कर जब आंखें खोलीं तो आकाश के नयनयुग्मों को खुद पर अटका पाया. फिर हंसते हुए ही टोका, ‘‘कहां खो गए?’’

‘‘कहां खो सकता हूं. यहां से सुरक्षित वापसी की चिंता हो रही है,’’ आकाश अनायास टोके जाने पर हड़बड़ा गया.

‘‘ऊपर जाने के लिए ही प्रयास की जरूरत है, नीचे तो गुरुत्वाकर्षण बल खींच लेगी हमें,’’ मेरे विज्ञान के ज्ञान पर उसे हंसी आ गई. दोनों के ठहाके वादियों से टकरा कर वापस आ रहे थे. सच, प्रकृति के उन अद्भुत नजारों की याद ने दिलोदिमाग को तरोताजा कर दिया. वापस मेल पढ़ने लगी.

‘‘डियर सोलमेट,

‘‘माफ करना अपनी मरजी से तुम्हें यह नाम दे रहा हूं. तुम दोस्त हो एक बहुत ही प्यारी दोस्त जिसे आजीवन सहेज कर रखना चाहता हूं पर मेरी विडंबना देखो कि तुम्हें अपने ही हाथों दूर कर रहा हूं. मु?ो पता है कि मैं तुम्हारे साथ गलत करने जा रहा हूं पर जब तक तुम मेरे मेल को पूरा न पढ़ लो, कृपया कोई राय न बनाना. याद है तुम्हें 2006 की अपने ट्रेनिंग के आखिरी दिन की वह पहाड़ी की चढ़ाई. कितना बोलती थी तुम. यहांवहां की, स्कूलकालेज की तमाम बातें और उस के बाद उस ऊंचाई पर जा कर तुम्हारा खामोश हो जाना मु?ो दुस्साहसी बना रहा था. मैं ही जानता हूं उस वक्त खुद को कैसे संभाल सका. सच कहूं तो तुम्हारी मासूमियत की ताकत ने ही मु?ो नियंत्रित किया. जी चाहता था कि वापस ही न लौटूं पर जैसा तुम ने कहा था कि गुरुत्वाकर्षण बल हम दोनों को वापस अपनी दुनिया में खींच कर ले आएगा, वही हुआ.

‘‘तुम वापसी के बाद अपनी दुनिया में मशगूल हो गई पर तुम्हारा एक हिस्सा मेरे साथ चला आया और जबतब मु?ो परेशान करने लगा. वादे के अनुसार हम मिलते रहे. तुम समान भाव से सभी मित्रों को बुलाती. मैं आने से खुद को न रोक पाता. तुम्हारे प्रति एक चाहत, एक ?ाकाव के साथ आता. वह चाहत मेरे अंदर बढ़ती ही जा रही थी. खुद को  सम?ाने की बहुत कोशिश की. अपनी पत्नी के साथ वक्त बिताना चाहा पर कुछ काम नहीं आया. तब जा कर मैं ने यह कठोर निर्णय लिया कि मेरे परिवार के हित के लिए मेरा तुम से कभी न मिलना ही श्रेयस्कर होगा.’’

मन बड़ा अजीब सा हो रहा था. हम दोनों 30 पार कर चुके थे. हंसतेखेलते परिवार व बच्चे होते हुए यह सब आखिर क्यों हुआ होगा? आंखें मूंद कर बहुत सोचा तो मन से यही जवाब आया. घर और जिम्मेदारियों से दूर खूबसूरत वादियों में बचपन जीते हुए, उन उन्मुक्त क्षणों में मन किशोर सा हो गया था. उसी हठ में कुछ चाह बैठा. चाहतों की उस मीठी दस्तक ने साथी का मन भरमा दिया होगा पर मु?ो ऐसा कुछ क्यों नहीं लगा था? शायद हम स्त्रियां संबंधों की सीमा रेखा में दक्ष आर्किटैक्ट इंजीनियर होती हैं जिन्हें अपनी हदों का भलीभांति भान होता है.

दुख, कोध,भावुकता और ठगे जाने का एहसास, सभी एकसाथ मन में घुमड़ रहे थे. पूरे

2 साल तक मन में रखा था उस ने. पहले कहता तो सम?ाती या सम?ाती पर उस ने तो अपने फैसले में शामिल होने का हक तक न दिया था. मैं घोर अचरज में थी कि जिस दोस्ती पर गर्व कर रही थी उस के टूटने का दूख कैसे मनाती. यह ऐसा दर्द था जिसे किसी से सा?ा भी नहीं कर सकती थी.

इसी बीच अगला मेल आया:

‘‘सुना था कि प्यार उम्र व सीमाओं के बंधन को नहीं मानता और अब सम?ा भी गया हूं. मैं खुद को सम?ाने का हर संभव प्रयास करता हुआ अब थक गया हूं. तुम सोच रही होगी कि अपनी पत्नी के साथ प्रेम विवाह होते हुए भी ऐसी कमजोर बातें क्यों कर रहा हूं. तो यहां एक और बात बताना चाहूंगा कि हमारे वैवाहिक संबंध मधुर होते हुए भी मानसिक तौर पर वैसा सामंजस्य नहीं बन सका जो तुम्हारे साथ उन 5 दिनों में बन गया. सच कहूं तो मु?ो भी नहीं पता कि मेरेतुम्हारे बीच क्या है. जब भी तुम से मिलता हूं, तुम्हारी बातों में खो सा जाता हूं. तुम और तुम्हारी निश्छल हंसी हमेशा मन को घेरे रहती है. तुम्हारी इजाजत के बगैर ही तुम से प्यार करने लगा हूं. एक ओर तुम्हारा निश्छल व्यक्तित्व और दूसरी ओर इन सब से अनजान अपनी पत्नी की ओर देखता हूं तो खुद को अपराधी पाता हूं. अपनी पत्नी और अपनी सोलमेट के बीच मैंने पत्नी को चुन लिया है. तुम से एक अनुरोध है कि मु?ा से संपर्क बनाने की कोशिश न करना. तुम्हारी आवाज कहीं मेरे निर्णय को डिगा न दे.’’

‘‘गलत है आकाश. हमारी इतनी प्यारी दोस्ती का ऐसा अंत? ऐसा क्यों किया आकाश? मु?ा से कह कर तो देखते? मैं तुम्हारा मन साफ कर देती. बात करने से राह निकल आती है. पर तुम ने तो कुछ कहा ही नहीं. दोस्त हो कर दोस्ती का हक छीन लिया. सोलमेट्स क्या होते हैं नहीं जानती. बस इतना जानती हूं कि अपने किसी फुतूर में तुम ने हमारी दोस्ती की बलि चढ़ा दी.’’

उस की एकतरफा सोच से तड़प कर मेल कर विरोध जताया पर उधर से कोई जवाब

नहीं आया. कुछ ही समय में मैं ने खुद को बखूबी संभाल लिया पर उस गुस्ताख को कैसे सम?ाती जिस ने स्वयं अपनी परेशानियां बढ़ाईं और समाधान भी कर लिया मानो मैं कोई बुत हूं. मेरी अपनी इच्छाओं का कोई वजूद नहीं. हालांकि मु?ा से कहता तो शायद मैं भी वही करती पर वह निर्णय एकतरफा न होता. उस में मेरी भी भागीदारी होती. हम एकदूसरे की राह को आसान करते. हम सोलमेट्स थे पर अपनी बातें कह नहीं सके. क्या इस खूबसूरत आत्मिक रिश्ते का यही हश्र होना था? मेरा सोलमेट अपने ही हाथों मेरी रूह को छलनी कर गया था और मैं अपने इस दुख का जिक्र तक नहीं कर सकी थी. मैं कतराकतरा टूट रही थी और वह भी टूट कर कहीं बिखर गया था.

खैर, अब इन बातों को भी सालों बीत गए. मेरा पुत्र अब सम?ादार किशोर हो चुका है पर आज भी जब किसी की सच्ची दोस्ती देखती हूं तो दोस्त याद आता है. सच कहूं तो आज भी इसी आस में बैठी हूं कि कभी तो उस के मन में घिर आए काले बादल किसी पहाड़ी से टकरा कर जरूर बरसेंगे. कहीं तो धरा और आकाश के बीच संवाद होगा जहां दोनों बोलबतिया कर मन हलका कर लेंगे. कभी तो मेरा संजीदा दोस्त, मेरी दोस्ती की कद्र कर पाएगा. उस दिन बीच के सारे फासले भुला कर खिलखिलाता हुआ वापस आएगा और सच्चा सोलमेट कहलाएगा.

 

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