क्या आपके भी हैं दोमुंहे बाल, तो जान लें इसके कारण

घने खूबसूरत बालों की चाहत सभी महिलाओं की होती हैं. बाल सुंदर और चमकदार हो तो चेहरे की खूबसूरती अपने आप बढ़ जाती हैं. लेकिन वहीं बाल कमजोर, रूखे और बेजान हो तो चेहरे का ग्लो भी कम हो जाता है और ऐसे में हेयर स्टाइल बनाने में भी दिक्कत होती हैं. बिजी लाइफस्टाइल के चलते हम अपने बालों की देखभाल नहीं कर पाते जिससे बालो से जुड़ी प्रौब्लम शुरू हो जाती हैं. बालों की समय-समय पर देखभाल करना बहुत जरूरी हैं. ऐसा न करने पर बाल बहुत कमजोर, रूखे और दोमुंहें हो जाते हैं.

क्या होते हैं दोमुंहें बाल के कारण

1. बालों की सही तरह से देखभाल न होना

आमतौर पर दोमुंहें बालों का कारण है बालों का सही तरह से देखभाल न करना हैं. दो मुंहें बाल बाल ज़्यादातर रुखें बालों में ज्यादा होते है. जब बालों से नमी गायब हो जाती है और रूखेपन की प्रौब्लम होने लगती है तो बाल दो मुंहें होने लगते हैं.

2. कटिंग या ट्रिमिंग न करवाना

बालों को समय-समय पर कटिंग और ट्रिमिंग करवाना चाहिए ऐसा न करने पर भी दोमुंहें बालो जैसी दिक्कत हो जाती हैं.

3. बालों को सही पोषण न मिलना

बालों को सही तरह से पोषण न मिलने के कारण भी दोमुंहें बाल होने लगते हैं.

4. डैंड्रफ भी है एक कारण

बालों में अधिक डेंड्रफ होने के कारण भी दोमुंहें बालो की समस्या हो जाती हैं.

5. बालों में कैमिकल का इस्तेमाल

बालों पर तरह-तरह का केमिकल, हेयरड्रायर का इस्तेमाल करना भी दोमुंहें बालों का कारण हैं.

6. मौसम में बदलाव का भी होता है असर

मौसम के बदलाव के कारण भी बाल खराब हो जाते हैं. ऐसे में बालो को तेज धूप- और प्रदूषण से प्रोटेक्ट न करने पर भी दोमुंहें बाल हो जाते हैं.

दोमुंहें बालो का ऐसे करें इलाज

दोमुंहें बालों की समस्या हमेशा के लिए नहीं होती, आप आसानी से इससे छुटकारा पा सकते हैं.

1. करवाएं हेयरकट या हेयरट्रिमिंग

2 महीने में हेयरकट या हेयरट्रिमिंग करवाने से दोमुंहें यानि स्पिलट एंड्स काफी हद तक दूर हो सकती हैं.

2. कैमिकल वाले शैम्पू का कम करें इस्तेमाल

बालों में केमिकलयुक्त शैंपू कम इस्तेमाल करने से भी इसमें फर्क पड़ता है. साथ ही हेयरड्राइर का भी इस्तेमाल कम से कम करें.

3. बालों की करें एक्स्ट्रा केयर

अगर बालों में कलर या रिबोंडिंग करवाया गया है तो ऐसे में बालों को एक्सट्रा केयर की जरूरत होती हैं. इन बालों को समय-समय पर हेयर स्पा देना जरूरी होता हैं, धूप से इन बालों को जरूर प्रोटेक्ट करें नहीं तो दोमुंहें बालों जैसी दिक्कत हो सकती हैं.

बंटी : क्या अंगरेजी मीडियम स्कूल दे पाया अच्छे संस्कार?

लेखक- सुरेंद्र कुमार

सुधा मायके गई है और शाम को जब वह वापस आएगी तो बंटी के स्कूल को ले कर फिर से उस के साथ चिकचिक होगी, सुधीर को इस बात की पूरी आशंका थी.

सुधा के मायके वाले अमीर थे. करोड़ों में फैला उन का कारोबार था. सुधा के सारे भतीजेभतीजियां महंगे अंगरेजी स्कूलों में पढ़ते थे और फर्राटे से अंगरेजी बोलते थे. सुधा की परेशानी की असली वजह यही थी. बंटी के स्कूल को ले कर वह अपनी दोनों भाभियों के सामने जैसे छोटी और हीन पड़ जाती थी. दूसरे शब्दों में कहें तो, कौंपलैक्स की शिकार हो जाती थी. बंटी का किसी छोटे स्कूल में पढ़ना जैसे सुधा के लिए अपमान की बात थी.

अपना ज्यादा वक्त किटी पार्टियों और ब्यूटीपार्लर में बिताने वाली सुधा की अमीर और फैशनपरस्त भाभियां सबकुछ जानते हुए बंटी के स्कूल को ले कर जानबूझ कर सवाल करतीं और अपनेपन व हमदर्दी की आड़ में बंटी के स्कूल को तुरंत बदल देने की सलाह भी देती थीं. सुधा की दुखती रग को दबाने में शायद उन्हें मजा आता था. इस मामले में सुधा को नादान ही कहा जा सकता था. भाभियों की असली मंशा को वह समझ नहीं पाती थी.

मायके से आ कर बंटी के स्कूल को ले कर हमेशा बिफर जाती थी सुधा और इस बार भी ऐसा ही होने वाला था. जैसी सुधीर को आशंका थी, वैसा हुआ भी.

इस बार सुधा के बिफरने का अंदाज पहले से कहीं अधिक उग्र था. अब की बार बंटी के मामले में जैसे वह कुछ ठान कर ही आई थी.

आते ही उस ने ऐलान कर दिया, ‘‘बस, बहुत हो चुका, मैं कल ही बंटी को किसी अच्छे से अंगरेजी स्कूल में दाखिला दिलवा दूंगी. इस निकम्मे से देसी स्कूल में वह कुछ नहीं सीख सकेगा, सिवा गंदी गालियों के.’’

‘‘लेकिन मैं ने तो कभी उस के मुंह से गंदी गाली निकलती हुई नहीं सुनी. हां, सुबह स्कूल जाते हुए वह हम दोनों के पांवों को जरूर छूता है. यह एक अच्छी चीज है और ऐसा करना बंटी ने जरूर उस स्कूल में ही सीखा होगा जिस को अकसर तुम निकम्मा और देसी कहती हो,’’ मुसकराते हुए सुधीर ने कहा.

‘‘मैं तुम्हारे साथ किसी बेकार की बहस में नहीं पड़ना चाहती. कल से बंटी किसी दूसरे अंगरेजी स्कूल में ही जाएगा. तुम नहीं जानते बंटी के कारण ही मुझ को कितने कड़वे घूंट पीने पड़ते हैं. भैया के बच्चों की तरह बंटी में आत्मविश्वास ही नहीं है. हर समय मेरी गोद में ही दुबके रहना चाहता है. कहीं भी नहीं ठहर पाता बंटी उन के सामने.’’

‘‘मगर इन सारी बातों का इलाज स्कूल बदलने से ही हो जाएगा क्या?’’ सुधीर ने पूछा.

‘‘जरूर होगा. भैया के बच्चों में आत्मविश्वास और हाजिरजवाबी केवल उन के स्कूल की वजह से ही है. वे किसी भी सवाल पर न तो बंटी की तरह झेंपते हैं और न ही घबराते हैं. उन की मौजूदगी में तो बंटी के मुंह से बात तक नहीं निकलती. नीरू भाभी तो कुछ नहीं कहतीं, लेकिन आरती भाभी की आदत को तो तुम जानते ही हो, वे कोई न कोई ऐसी बात कहने से बाज नहीं आतीं, जो तनबदन में आग लगा दे. एक ही तो बेटा है हमारा. फिर हमारे पास कमी किस चीज की है? हम भी तो बंटी को किसी अच्छे स्कूल में पढ़ा सकते हैं?’’

‘‘बंटी अपनी पढ़ाई में तो ठीक ही है सिवा इस के कि वह फर्राटे से अंगरेजी नहीं बोल सकता. फिर वह अभी काफी छोटा है. इस समय उस का स्कूल बदलना ठीक नहीं होगा,’’ सुधीर ने उस को समझाना चाहा.

‘‘नहीं, इस बार मैं तुम्हारी एक भी नहीं सुनूंगी. कल से बंटी किसी दूसरे स्कूल में ही जाएगा,’’ सुधा का स्वर निर्णायक था.

सुधा ने जैसा कहा वैसा किया भी. स्कूल का रिकशा आया तो उस ने बंटी को स्कूल नहीं भेजा.

इस के बाद सुधा ने मायके फोन किया और अपनी भाभियों से उन स्कूलों की लिस्ट मांगी जिन में से किसी एक में बंटी का दाखिला करवाने के बाद वह अपनी हीनभावना से मुक्त हो सकती थी.

दोनों भाभियों ने कई महंगे अंगरेजी स्कूलों के नाम सुधा को सुझाए.

भाभियों द्वारा सुझाए गए स्कूलों में से किसी एक को चुनने के लिए जब सुधा ने सुधीर से सलाह मांगी तो उस ने कहा, ‘‘अब इस के बारे में भी तुम अपनी किसी भाभी से ही पूछ लो तो बेहतर रहेगा, क्योंकि मुझ को इन सारे स्कूलों के बारे में कोई ज्यादा जानकारी नहीं.’’

इस पर सुधा का मुंह बन गया. वह बोली, ‘‘तुम से तो बात करना ही बेकार है. मेरे मायके वालों की किसी भी बात से तो तुम्हें वैसे ही चिढ़ है.’’

पत्नी की इस पुरानी शिकायत पर सुधीर के पास मुसकराने के अलावा कोई रास्ता नहीं था.

हर बात में मायके का राग अलापना कुछ औरतों के स्वभाव में शामिल होता है और सुधा उन्हीं में से एक थी.

सुधीर के दफ्तर जाने से पहले ही सुधा बंटी को ले कर उसे अंगरेजी स्कूल में दाखिला करवाने के अभियान पर निकल पड़ी.

सुधीर ने उस से पैसों के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘मेरे पास हैं. कल रमेश भैया ने भी काफी रुपए दे दिए थे. मैं ने लेने से इनकार भी किया था मगर वे

नहीं माने.’’

‘‘हां, बंटी के अंगरेजी स्कूल में दाखिले का सवाल था, तुम भी इनकार कैसे करतीं,’’ सुधीर ने व्यंग्यपूर्वक कहा.

‘‘मैं जानती थी, तुम कोई ताना मारने से बाज नहीं आओगे,’’ मुंह बनाती हुई सुधा ने कहा और बंटी को ले कर बाहर निकल गई.

शाम को सुधीर जब दफ्तर से वापस आया तो सुधा के चेहरे पर रौनक थी.

उस के चेहरे की रौनक से स्पष्ट था कि बंटी का ऐडमिशन किसी अंगरेजी स्कूल में हो गया था. जैसे कोई बड़ा किला फतह कर लिया हो, कुछ ऐसी ही हालत थी सुधा की.

सुधीर के कुछ पूछने से पहले ही वह खुद बंटी के ऐडमिशन में पेश आई मुश्किलों की सारी कहानी उसे बताने लगी. कहानी के अंत में बंटी को ऐडमिशन का सारा श्रेय अपने भाई को देना नहीं भूली, सुधा.

‘‘रमेश भैया की सिफारिश नहीं होती तो बंटी को बिना डोनेशन के कभी भी ऐडमिशन नहीं मिलता.’’

‘‘चलो, जैसे भी है बंटी को अंगरेजी स्कूल में ऐडमिशन मिल गया. अब कम से कम उस के कारण अपनी भाभियों के सामने तुम्हारी नाक नीची नहीं होगी,’’ चुटकी लेते हुए सुधीर ने कहा. सुधा का मुंह बन गया.

अपनी मम्मी और पापा की बातों से एकदम उदासीन बंटी अपने नए वाले स्कूल की किताबों को उलटपलट कर देख रहा था. वह परेशान सा नजर आ रहा था.

अगर स्कूल महंगा और बड़ा था तो उस की किताबें भी वैसी ही महंगी और कठिन थीं. बंटी इसलिए परेशान था क्योंकि नए स्कूल की किताबों में से उस के पल्ले कुछ भी नहीं पड़ रहा था. नए स्कूल की किताबों में जो कुछ था वह पहले वाले स्कूल की किताबों में नहीं था.

शिक्षा के क्षेत्र में जो अजीब चलन चल पड़ा उस का शिकार बंटी जैसे मासूम बच्चे ही बनते हैं.

किसी स्कूल के स्टैंडर्ड का मानदंड इन दिनों भारीभरकम डोनेशन, ऊंची फीस और कठिन सिलेबस बन चुका. जितनी बड़ीबड़ी और कठिन शब्दावली की किताबें उतना ही नामी स्कूल.

नए स्कूल में से जो किताबें बंटी को मिलीं वे खूबसूरत और आकर्षक थीं. चिकने पृष्ठों वाली किताबों के अंदर जानवरों, पक्षियों, वाहनों, नदी और पहाड़ों के सुंदर व रंगबिरंगे चित्र थे. ये चित्र बंटी को खूब भाए थे. लेकिन किताबों में मौजूद अंगरेजी की पोएम्स समझना बंटी के लिए मुश्किल था. कमोवेश शब्दों के अर्थ भी बदल गए थे. जैसे पहले वाले स्कूल की किताबों में बंटी ‘ए फौर एप्पल’ पढ़ता आ रहा था, मगर नए स्कूल की किताबों में ‘ए फौर एलिगेटर’ बन गया था. ‘सी फौर कैट’, नए स्कूल में ‘सी फौर क्राउन’ हो गया था.

स्कूल बदलते समय बंटी के मन की किसी ने नहीं जानी थी. उस की मरजी किसी ने नहीं पूछी थी. यों?भी सोसाइटी में बड़ों की नाक के मामले में मासूमों की भावनाएं कोई माने नहीं रखतीं.

यह साफ था कि नए स्कूल में अपर केजी में पढ़ने वाले बंटी की सारी पढ़ाई भी नए सिरे से ही शुरू होने वाली थी.

उधर बंटी का स्कूल बदल कर सुधा ने बैठेबिठाए अपने लिए परेशानी मोल ले ली थी.

बंटी का पहला स्कूल घर के काफी पास था, उस पर उस को स्कूल ले जाने के लिए रिकशा घर के दरवाजे तक आता था. बंटी को स्कूल भेजने के लिए सुधा काफी आराम से उठती थी. अगर बंटी ने नाश्ता न किया हो और स्कूल की रिकशा आ जाए तो सुधा के कहने पर रिकशा वाला दोचार मिनट रुक भी जाता था.

लेकिन स्कूल को बदलने से सारी बात ही दूसरी हो गई थी. बंटी के नए स्कूल की बस चौराहे तक आती थी जोकि घर से बहुत दूर नहीं तो ज्यादा पास भी नहीं था बंटी को साथ ले और उस का भारीभरकम स्कूल बैग उठा कर पैदल चौराहे तक पहुंचने में सुधा को कम से कम 15-20 मिनट तो लग ही जाते थे. नए स्कूल की बस किसी के लिए 1 मिनट भी नहीं रुकती थी इसलिए उस के आने के समय से काफी पहले ही चौराहे पर जा कर खड़े होना पड़ता था.

यही हालत बंटी के स्कूल से आने के समय होती थी. कड़कती धूप में बस के आने के समय से 10-15 मिनट पहले ही सुधा को चौराहे पर खड़े हो उस की राह देखनी पड़ती थी.

बंटी को स्कूल की बस में चढ़ाने और उतारने के चक्कर में सुधा हांफ जाती थी. कभीकभी खीज भी उठती थी. लेकिन अपनी खीज को वह जाहिर नहीं कर पाती थी.

करती भी कैसे, सारी मुसीबत उस की अपनी ही तो मोल ली हुई थी. केवल एक ही खयाल उस को काफी राहत और संतोष देने वाला था और वह था कि बंटी के कारण अब कम से कम अपनी नखरैल भाभियों के सामने उस की स्थिति कमजोर नहीं पड़ेगी.

एक और समस्या भी बंटी के स्कूल बदलने से सुधा के सामने आ खड़ी हुई थी. बंटी के नए स्कूल की किताबें सुधा के पल्ले नहीं पड़ रही थीं. ऐसे में उस को होमवर्क करवाना सुधा के बस की बात नहीं थी. बंटी के लिए ट्यूशन का इंतजाम करना भी अब जरूरी हो गया था.

इधर बंटी के दिल और दिमाग की हालत क्या थी, किसी को भी इसे जानने की फुरसत न थी.

सुबह सुधा गहरी नींद से उसे जगा देती और फिर जल्दीजल्दी उस को स्कूल के लिए तैयार करती.

बंटी को तैयार करते वक्त सुधा का ध्यान उस की तरफ कम और दीवार पर लटक रही घड़ी की तरफ ज्यादा रहता. उसे डर रहता कि कहीं स्कूल की बस निकल न जाए इसलिए वह बंटी को लगभग घसीटते हुए चौराहे तक ले जाती.

बस में स्कूल जाना बंटी के लिए नया और मजेदार अनुभव था. नए स्कूल की साफसुथरी और शानदार इमारत में प्रवेश भी बंटी के लिए रोमांचपूर्ण अनुभव था. बाकी चीजों के मामले में पहले वाले स्कूल से नया स्कूल बंटी के लिए कुछ अच्छा और कुछ बुरा था.

नए स्कूल में आ कर शुरूशुरू में तो बंटी को ऐसा लगा था जैसे वह किसी एकदम बेगानी दुनिया में आ गया हो. वह बहुत घबराया हुआ था. अपनेआप में ही सिमटा चला जा रहा था. क्लास में बाकी बच्चे उस की इस हालत पर हंसते थे.

नए स्कूल की मैम बंटी को बहुत पसंद आईं. उन का बोलचाल का ढंग भी अच्छा था. पहले वाले स्कूल की मैडम की तरह पढ़ाते समय वे तेज आवाज में बच्चों पर चिल्लाती नहीं थीं. एक बच्चे ने जब अपना सबक ठीक से नहीं सुनाया तो मैम ने बस उस के कान को हलके से खींच दिया था. पहले वाले स्कूल की मैडम तो ऐसे बच्चों को फौरन अपनी टेबल के पास मुर्गा बना देतीं या उन की पीठ अथवा हाथों पर स्केल से जोरजोर से मारती थीं.

बड़ी अच्छी चीजें देखी बंटी ने नए स्कूल में, पर कुछ चीजें बहुत बुरी भी लगीं उस को.

नए स्कूल में बच्चे बड़ी गंदीगंदी हरकतें करते थे. वे गालियां भी निकालते थे, जो अभी बंटी की समझ में नहीं आती थीं, क्योंकि उन के द्वारा दी जाने वाली अधिकांश गालियां अंगरेजी में होती थीं. अपनी उम्र से कहीं बड़ीबड़ी बातें करते थे नए स्कूल के बच्चे.

इधर बंटी को महंगे और बढि़या स्कूल में दाखिल करवाने के बाद गर्व से इतरा रही सुधा को उस दिन फिर अपमान का सामना करना पड़ा जब उस के घर बच्चों समेत आई भाभियों की मौजूदगी में बंटी और उन के बच्चों में झगड़ा हो गया और इस झगड़े में बंटी के मुख से ठेठ पंजाबी जबान में मांबहन वाली गाली निकल गई. गुस्से से सुधा ने बंटी के गाल पर एक जोर का चांटा रसीद कर दिया.

सुधा के लिए शर्म की बात थी कि बढि़या अंगरेजी स्कूल में जाने के बाद भी बंटी की जबान से घटिया गाली निकली थी.

ऐसे मौके पर भी बड़ी भाभी आरती कटाक्ष करने से नहीं चूकी थीं, ‘‘जाने दो दीदी, इतना गुस्सा क्यों करती हो? शुरू से ही इस को किसी अच्छे स्कूल में पढ़ाया होता तो यह ऐसी गालियां नहीं सीखता. नए स्कूल के माहौल का असर होने में थोड़ा समय तो लगता ही है. इसलिए बुरी आदतें भी जाने में कुछ वक्त तो लगेगा ही. आखिर कौआ एकदम से हंस की चाल तो नहीं चल पड़ेगा.’’

सुधा कुछ बोली नहीं, मगर उस का चेहरा अपमान से लाल हो गया.

यह देख दोनों भाभियां कुटिलता से मुसकरा दीं. सुधा को नीचा दिखलाने का कोई मौका वे कभी नहीं छोड़ती थीं.

शाम को दोनों भाभियां बच्चों को ले कर चली गईं, मगर सुधा के मन में अपमान की कड़वाहट छोड़ गईं.

तिलमिलाई सुधा अपने दिल की सारी भड़ास एक बार फिर से बंटी पर निकालना चाहती थी मगर सुधीर ने उस को ऐसा करने से रोक दिया.

बंटी की वजह से सुधा को एक बार फिर नीचा देखना पड़ा था. भाभी की बातें नश्तर बन कर उसे काटे जा रही थीं.

सुधीर उस को शांत करने की लगातार कोशिश करता रहा. सहमा हुआ बंटी रात को भूखा ही सो गया.

बंटी के भूखे सो जाने से सुधा के अंदर की ममता जागी. शायद अपने व्यवहार के लिए उस को पश्चात्ताप भी हुआ था. सुधा बंटी को जगा कर कुछ खिलाना चाहती थी मगर सुधीर ने उसे मना कर दिया.

नए अंगरेजी स्कूल का असर 4-5 महीने में बंटी में साफ नजर आने लगा था. रोजमर्रा की छोटीमोटी बातों के लिए बंटी अंगरेजी के शब्दों का इस्तेमाल करने लगा था. सुबह उठते ही ‘गुडमौर्निंग पापा, गुडमौर्निंग ममा’ और रात को सोते वक्त ‘गुडनाइट पापा, गुडनाइट ममा’ कहना बंटी की दिनचर्या का हिस्सा बन गया था. अंडे को अब वह ‘एग’ कहता था और सेब को ‘एप्पल’.

यह देख सुधा फूली नहीं समाती. उस के दिमाग में न जाने कैसे यह बात बैठ गई कि अंगरेजी में बात करने वाले बच्चों के कारण ही सोसाइटी में मांबाप की शान बनती है.

बदलाव तो बंटी में आ रहा था मगर यह केवल अंगरेजी के चंद शब्द बोलने तक ही सीमित नहीं था. बंटी के व्यवहार में आक्रामकता और उद्दंडता भी आ रही थी. किसी बात के लिए टोके जाना बंटी को अच्छा नहीं लगता था.

सुधा उस की हर चीज केवल इसलिए बरदाश्त कर रही थी क्योंकि वह अंगरेजी स्कूल के रंग में रंग रहा था. उस की जबान से अब कोई हलके किस्म की पंजाबी गाली नहीं निकलती थी. लेकिन इस का मतलब यह नहीं था कि बंटी गाली देना ही भूल गया था. यह बात अलग थी कि अब उस की दी हुई गाली सुधा की समझ में नहीं आती थी, क्योंकि अब वह अंगरेजी में ऐसी गालियां निकालना सीख गया जिस का मतलब समझना उस के लिए मुश्किल था.

गालियों का मतलब बंटी भी शायद नहीं समझता था, लेकिन उस को इतना जरूर मालूम होता था कि जो उस के मुख से निकल रहा है वह गाली है.

एक दिन जब रिमोट हाथ में ले कर बंटी टैलीविजन के चैनल से छेड़छाड़ कर रहा था तो सुधा ने उसे टोका और कहा, ‘‘बहुत हो गया बंटी, अब टैलीविजन बंद करो और अपना होमवर्क करो,’’ लेकिन बंटी ने उस की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और कार्टून चैनल देखता रहा.

सुधा ने अपनी बात दोहराई, लेकिन बंटी पर कोई असर नहीं हुआ.

दूसरी बार भी जब बंटी ने बात को अनसुना किया तो सुधा को गुस्सा आ गया. उस ने बंटी के हाथ से रिमोट छीना और चिल्ला कर बोली, ‘‘मैं क्या कह रही हूं, सुनाई नहीं दे रहा क्या?’’

सुधा का रिमोट छीनना और चिल्लाना बंटी को रास नहीं आया. उस के नथुने फूलने लगे और वह गुस्से से सुधा को घूरते हुए जोर से चीखा, ‘‘शटअप, यू ब्लडी बास्टर्ड.’’

अंगरेजी में दी गई बंटी की गाली के मतलब सुधा नहीं समझी थी इसलिए उस का तमाचा बंटी के गाल पर नहीं पड़ा. वह असहाय और बेबस नजरों से सुधीर को देखने लगी.

पत्नी की हालत पर गुस्से की बजाय सुधीर को तरस आता. वह पत्नी को यह नहीं बताना चाहता था कि बंटी की अंगरेजी में दी गई गाली पंजाबी में दी गई उस गाली से बेहतर नहीं थी जिस की वजह से उस ने एक दिन बंटी के गाल पर तमाचा मारा था.

सच्ची श्रद्धांजलि : दूसरी शादी के पीछे क्या थी विधवा निर्मला की वजह?

सुबह-सुबह फोन की घंटी बजी. मुझे चिढ़ हुई कि रविवार के दिन भी चैन से सोने को नहीं मिला. फोन उठाया तो नीता बूआ की आवाज आई, ‘‘रिया बेटा, शाम तक आ जाओ. तुम्हारे पापा और निर्मला की शादी है.’’

मुझे बहुत तेज गुस्सा आ गया. लगभग चीखते हुए बोली, ‘‘नीता बूआ, आप को मेरे साथ इतना भद्दा मजाक नहीं करना चाहिए.’’

वे तुरंत बोलीं, ‘‘बेटा, मैं मजाक नहीं कर रही हूं, बल्कि तुम्हें खबर दे रही हूं.’’

मैं ने फोन काट दिया. मुझ में पापा की शादी के संबंध में बातचीत करने का सामर्थ्य नहीं था. बूआ का 2 बार और फोन आया किंतु मैं ने काट दिया. मेरी चीख सुन राजेश भी जाग गए तथा मुझ से बारबार पूछने लगे कि किस का फोन था, क्या बात हुई, मैं इतना परेशान क्यों हूं वगैरहवगैरह. मैं तो अपनी ही रौ में बोले जा रही थी, ‘आदमी इतना भी मक्कार हो सकता है. अपनी जान से प्यारी पत्नी के देहांत के ढाई माह के अंदर ही उस की प्यारी सखी से शादी रचा ले, इस का मतलब तो यही है कि मम्मी के साथ उन के पति और उन की सखी ने षड्यंत्र रचा है.’

पापा दूसरी शादी कर रहे हैं, यह सुन कर मैं हतप्रभ थी. रोऊं या हंसूं, चीखूं या चिल्लाऊं, करूं तो क्या करूं, पापा की शादी की खबर गले में फांस की तरह अटकी हुई थी. मम्मी को गुजरे अभी सिर्फ ढाई माह हुए हैं, उन की मृत्यु के शोक से तो मन उबर नहीं पा रहा है. रातदिन मम्मी की तसवीर आंखों के सामने छाई रहती है. घर, औफिस सभी जगह काम मशीनी ढंग से करती रहती हूं, पर दिलोदिमाग पर मम्मी ही छाई रहती हैं. अपने मन को स्वयं ही समझाती रहती हूं. मम्मी तो इस दुनिया से चली गईं, अब लौट कर आएंगी भी नहीं. जिंदगी तो किसी के जाने से रुकती नहीं. मैं खुद भी कितनी खुश हूं कि मेरी मम्मी मुझे सैटल कर, गृहस्थी बसा कर गई हैं. कितने ऐसे अभागे हैं इस संसार में जिन की मम्मी  उन के बचपन में ही गुजर जाती हैं, फिर भी वे अपना जीवन चलाते हैं.

मम्मी के साथसाथ इन दिनों पापा भी बहुत याद आते, मन बहुत भावुक हो आता पापा को याद कर. मन में विचार आता कि मैं तो अपनी गृहस्थी, औफिस और अपनी प्यारी गुडि़या रिंकू में व्यस्त होने के बावजूद मम्मी को भुला नहीं पाती हूं, बेचारे पापा का क्या हाल होता होगा? वे अपना समय मम्मी के बिना किस तरह बिताते होंगे? 30 वर्षों का सुखी विवाहित जीवन दोनों ने एकसाथ बिताया था. मम्मी के साथ साए की तरह रहते थे. उन की दिनचर्या मम्मी के इर्दगिर्द ही घूमती रहती थी.

मम्मी की मृत्यु के बाद 4 दिन और पापा के साथ रह कर मैं वापस लखनऊ आ गई थी. मैं ने पापा को लखनऊ अपने साथ लाने की बहुत जिद की, पापा को अकेला छोड़ना मुझे नागवार लग रहा था. पापा 2 साल पहले रिटायर्ड हो चुके थे. मेरा सोचना था कि मम्मी के बिना वे अकेले यहां क्या करेंगे.

पापा मेरे साथ आने के लिए एकदम तैयार नहीं हुए. उन का तर्क था, ‘यह घर मैं ने और हेमा ने बड़े प्यार से बनवाया है, सजायासंवारा है. इस घर के हर कोने में मुझे हेमा नजर आती है. उस की यादों के सहारे मैं बाकी जिंदगी गुजार लूंगा. फिर तुम लोग हो ही, जब फुरसत मिले, मिलने चले आना या मुझे जरूरत लगेगी तो मैं बुला लूंगा. 4-5 घंटे का ही तो रास्ता है.’

मैं ने कहा, ‘ठीक है पापा, किंतु मेरी तसल्ली के लिए कुछ दिनों के लिए चलिए.’

पापा तैयार नहीं ही हुए. मैं सपरिवार लखनऊ लौट आई. अपनी गृहस्थी में रमने की लाख कोशिशों के बावजूद पूरे समय मम्मीपापा पर ध्यान लगा रहता. पापा से रोज फोन से बात कर लेती, पापा ठीक से हैं, यह जान कर मन को कुछ तसल्ली होती.

आज अचानक नीता बूआ से पापा की शादी की खबर मिलना, मेरे जीवन में झंझावात से कम न था. मेरी दशा पागलों जैसी हो रही थी. मन में बारबार यही खयाल आता कि बूआ ने कहीं मजाक ही किया हो, यह खबर सही न हो.

निर्मला आंटी और मम्मी कालेज के दिनों से ही अच्छी सहेलियां थीं और शादी के बाद भी दोनों अच्छी सहेलियां बनी रहीं. निर्मला आंटी आगरा में रहती थीं. उन के पति बेहद स्मार्ट और हैंडसम थे व अच्छे ओहदे पर कार्यरत थे, लेकिन शादी के 2 साल बाद ही एक ऐक्सीडैंट में उन का देहांत हो गया. निर्मला आंटी को उन के पति के औफिस में काम पर रख लिया गया. लेकिन उन के ससुराल वालों ने उन्हें ‘अभागी’ मान उन से संबंध तोड़ लिया. उन की सास बहुत कड़े स्वभाव की थीं. उन्होंने साफ कह दिया कि बेटे से ही बहू है, जब बेटा ही नहीं रहा तो बहू कैसी?

निर्मला आंटी एकदम अकेली हो गई थीं, लेकिन मम्मी ने उन्हें टूटने नहीं दिया. मम्मी और निर्मला आंटी में बहुत प्रेम था. मम्मी उन्हें प्रेम से निम्मो कहती थीं तथा आंटी मम्मी को हेमू कह कर पुकारती थीं. मम्मी अब हर मौके पर निर्मला आंटी को अपने घर बुला लेती थीं. मम्मी अकसर आंटी से कहतीं, ‘निम्मो, फिर से शादी कर ले, अकेले जिंदगी पहाड़ जैसी लगेगी, मन की कहनेसुनने को तो कोई होना चाहिए.’ निर्मला आंटी हमेशा ‘न’ कर देतीं, कहतीं, ‘हेमू, यदि मेरे जीवन में उन का साथ होना होता तो उन का देहांत क्यों होता? यदि मेरे जीवन में अकेला, सूनापन है तो वही सही.’ मम्मी फिर भी कहतीं, ‘निम्मो, भविष्य की तो सोच, हर दिन एक से नहीं होते, कोई सहारा चाहिए होता है.’ निर्मला आंटी कहतीं, ‘हेमू, तू और तेरा परिवार है न, इतना अपनापन तुम लोगों से मिलता है, उस सहारे जिंदगी काट लूंगी.’  मम्मी के बहुत समझाने पर भी निर्मला आंटी दूसरी शादी के लिए तैयार न होतीं.

एक बार उन्होंने मम्मी से सख्ती से कह भी दिया था, ‘देख हेमू, यदि तू मुझे आइंदा पुनर्विवाह के लिए बोलेगी तो मैं तेरे पास आना छोड़ दूंगी,’ उन्होंने बहुत भावुक हो कर कहा था, ‘रमेश के साथ गुजरे 2 सालों पर मेरी पूरी जिंदगी कुरबान है हेमू.’ मम्मी ने आंटी को गले से लगाते हुए कहा था, ‘निम्मो, मैं आइंदा तुझ से विवाह के लिए नहीं बोलूंगी, मुझे हेमेश की कसम.’

पापा निर्मला आंटी को ‘साली साहिबा’ कह कर पुकारते थे. मम्मी को यदि पापा की मरजी के खिलाफ पापा से काम करवाना होता तो वे निर्मला आंटी के माध्यम से ही पापा को कहलवाती थीं तथा पापा यह कहते हुए कि साली साहिबा, आप की बात टालने की हिम्मत तो मुझ में नहीं है, काम कर देते थे.

बड़ा प्यारा रिश्ता था पापा और निर्मला आंटी का. दोनों के रिश्तों में शुद्ध लगाव के अलावा ऐसा कुछ भी नजर नहीं आता था जिसे आपत्तिजनक कहा जा सके. वे दोनों कभी भी अकेले में मिलते हुए या बातें करते हुए भी नजर नहीं आते थे. दोनों के रिश्तों की धुरी तो मम्मी ही नजर आती थी. फिर दोनों ने शादी कैसे कर ली और क्यों कर ली. दोनों इतने समय से मम्मी को छल रहे थे. इस गुत्थी को मैं किसी भी तरह सुलझा नहीं पा रही थी.

मम्मी और निर्मला आंटी रंगरूप, स्वभाव में बहुत मेल खाती थीं. पहली नजर में तो वे जुड़वां बहनें ही नजर आती थीं. मम्मी के कैंसर का पता अंतिम स्थिति में चल पाया. पापा ने मम्मी के इलाज और सेवा में रातदिन एक कर दिए.

मैं ने उन्हें छिपछिप कर रोते हुए देखा था. मम्मी की हालत की खबर निर्मला आंटी को भी दे दी गई. वे खबर मिलते ही मम्मी के पास पहुंच गईं. आते ही मम्मी की सेवा में लग गईं. कितना प्यार करती थीं मम्मी को वे, कभीकभी उन की बुदबुदाहट मुझे सुनाई भी पड़ी थी, ‘यह क्या हो गया? मेरी हेमू को कुछ नहीं होना चाहिए, उसे बचा लो, मुझे उठा लो, उस के सारे कष्ट मुझे दे दो.’

फिर वही सवाल दिमाग को मथने लगता कि कैसे दोनों ने शादी कर ली? इस का मतलब तो यही है कि दोनों मम्मा के सामने नाटक कर रहे थे.

मैं रातदिन पापा और आंटी की शादी की गुत्थी में उलझी रहती, एक सेकंड भी मेरा मन इस उलझन से निकल नहीं पाता था. नतीजतन, इस का असर मेरे स्वास्थ्य पर पड़ना ही था, सो पड़ गया. राजेश ने मुझे डाक्टर को दिखाया. सारी जांचपड़ताल के बाद डाक्टर का दोटूक निर्णय यही था कि सब रिपोर्ट नौर्मल हैं, ये बहुत टैंशन में हैं, इतना टैंशन इन को काफी नुकसान पहुंचा सकता है. इन्हें खुश रहने की ही आवश्यकता है. राजेश ने मुझे बड़े प्यार से समझाया, ‘‘रिया, जो होना था सो हो गया, मम्मी चली गई हैं, तुम्हारे लाख चिंता करने से भी वापस नहीं आएंगी. सो, मन को दुखी मत करो.’’

मैं ने कहा, ‘‘राजेश, मम्मी को गुजरे ढाई माह हो रहे हैं, मैं ने उस दुख को सहज ले लिया है. मैं क्या करूं, पापा और आंटी ने शादी कर मम्मी के साथ विश्वासघात किया है, यह मुझ से बरदाश्त नहीं हो रहा है.’’

राजेश बहुत संयत हो कर बोले, ‘‘यों अपने को जलाने से तो कोई फायदा नहीं है. मुझे ऐसा लगता है, जरूर कोई कारण होगा जो उन लोगों ने ऐसा कदम उठाया है, दोनों ही बहुत सुलझे हुए और समझदार इंसान हैं.’’

मैं ने कहा, ‘‘राजेश, क्या कारण हो सकता है, दोनों सब की आंखों में धूल झोंक कर प्रेम किया करते होंगे. अभी तक दोनों नाटक ही कर रहे थे, बल्कि मुझे तो पूरा विश्वास है कि दोनों मम्मी की मृत्यु का इंतजार ही करते होंगे. उन्हें अपने रास्ते का कांटा ही समझते रहे होंगे.’’

राजेश ने थोड़ा सख्ती से मुझ से कहा, ‘‘रिया, हम भी बच्चे नहीं हैं. हमारी आंखों पर पट्टी नहीं बंधी हुई है जो हमारी आंखों के सामने प्रेमलीला खेली जाए और वह हमें दिखाई भी न दे.’’

मैं ने मायूस हो कर कहा, ‘‘राजेश, मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूं? किस के आगे रोऊं, चीखूं, चिल्लाऊं. जी में आता है उन दोनों से खूब झगड़ूं कि आप लोगों की नीयत में ही खोट था जो मम्मी चल बसीं और अब दोनों शादी रचा रहे हैं.’’

राजेश ने मेरे हाथ को अपने हाथों में ले कर बहुत ही संयत ढंग से कहा, ‘‘रिया, मेरी बात ध्यान से सुनो. 4 दिनों बाद रिंकू की गरमी की छुट्टियां शुरू हो रही हैं. हम भी छुट्टी ले कर पापा के पास चलते हैं.’’

मैं ने झट से कहा, ‘‘राजेश, उन्हें तो हम कबाब में हड्डी की तरह लगेंगे. वे दोनों तो हनीमून के मूड में होंगे. अब निर्मला आंटी मेरी आंटी नहीं, बल्कि मेरी सौतेली मां बन बैठी हैं, न जाने कैसा व्यवहार करें,’’ मैं ने बात और विस्तार से समझाने के लिए राजेश से कहा, ‘‘अब तो पापा पर भी भरोसा नहीं रहा. कहीं वे हम लोगों का अपमान न कर बैठें? मेरी तो छोड़ो, तुम्हारे अपमान को मैं बरदाश्त न कर पाऊंगी.’’

राजेश ने मेरे कंधों पर हाथ रखते हुए बड़े धैर्य से जवाब दिया, ‘‘यदि नहीं मिलना चाहेंगे या हमारा अपमान करेंगे, हम तुरंत लौट आएंगे और फिर दोबारा उन के पास नहीं जाएंगे. हम यही समझ लेंगे कि मम्मी तो अब इस दुनिया में नहीं हैं और पापा से अब हमारा कोई संबंध नहीं है.’’

मैं चुपचाप राजेश की बातें सुन रही थी.

‘‘तुम्हें मुझ से वादा करना होगा कि तुम उस के बाद पापा की चिंता करना छोड़ दोगी,’’ उन्होंने बड़े प्यार से कहा, ‘‘मुझ से मेरी बीवी उदास और बुझीबुझी देखी नहीं जाती इसलिए एक बार तो यह रिस्क लेना ही होगा. एक बार चल कर देखना ही होगा.’’

हम जब पापा के पास पहुंचे उस समय सुबह के लगभग 8 बज रहे थे. पापा बागबानी में लगे हुए थे. हमें देखते ही गेट तक आए और बोले, ‘‘अरे, तुम लोग बिना खबर दिए आए, खबर करते तो मैं स्टेशन आ जाता.’’

राजेश ने धीरे से मुझ से कहा, ‘‘रिया, गुस्से को जब्त रखना और अपनी तरफ से कुछ भी अपमानजनक नहीं करना,’’ राजेश ने टैक्सी से निकलते हुए कहा, ‘‘अचानक ही प्रोग्राम बन गया इसलिए चले आए,’’ मैं अपने क्रोध को किसी तरह रोकने की कोशिश कर रही थी, फिर भी मुंह से निकल ही गया, ‘‘हमें लगा, आप को फुरसत कहां होगी, फिर हमें लाने की आप को अनुमति मिले न मिले.’’

पापा कुछ भी न बोले. हमें अंदर लिवा लाए और बोले, ‘‘निम्मो, देखो कौन आया है?’’

पापा के मुंह से निम्मो सुन मैं अंदर ही अंदर तिलमिला गई. निर्मला आंटी तुरंत हाथ पोंछती हुई हमारे पास आ गईं, शायद किचन में थीं. आते ही बोलीं, ‘‘अरे बेटी रिया, कैसी हो? राजेश, रिंकू तुम सभी को देख कर बहुत खुशी हो रही है,’’ फिर रिंकू को दुलारते हुए बोलीं, ‘‘तुम लोग फ्रैश हो लो, मैं नाश्ते की तैयारी करती हूं. हम सभी साथ ही नाश्ता करेंगे.’’

मैं ने कुछ भी नहीं कहा. अपना मायका आज मुझे अपना सा लग ही नहीं रहा था. चुपचाप हम ने थोड़ाथोड़ा नाश्ता कर लिया. निर्मला आंटी ने राजेश के पसंद के आलू के परांठे बनाए थे तथा रिंकू की पसंद की गाढ़ी सेंवइयां भी बनाई थीं.

पापा का बैडरूम वैसा ही था जैसा मम्मी के समय रहता था. घर की साजसज्जा भी वैसी ही थी, जैसी मम्मी के समय रहती थी. परदे, चादरें सब मम्मी की पसंद के ही लगे हुए थे. बैडरूम में मम्मी की बड़ी सी तसवीर लगी हुई, उस पर सुंदर सी माला पड़ी हुई थी. मुझे मायके आए हुए 2 दिन हो चुके थे. निर्मला आंटी से मैं ने कोई बात नहीं की थी. पापा से भी कुछ खास बात नहीं हुई थी. शाम को पापा रिंकू को ले कर घूमने निकले थे, मैं और राजेश टैरेस पर गुमसुम बैठे हुए थे, तभी निर्मला आंटी आईं और मेरे हाथ में एक कागज थमाते हुए बोलीं, ‘‘बेटी रिया, इसे पढ़ लो. मैं खाना बनाने जा रही हूं. क्या खाना पसंद करोगी, बता देतीं तो अच्छा रहता.’’

मैं ने बेरुखी से कहा, ‘‘जो आप की इच्छा, हम लोगों को खास भूख नहीं है.’’

वे चली गईं. तब मैं ने कटाक्ष करते हुए राजेश से कहा, ‘‘खाना हमारी पसंद से बनेगा और शादी के समय हमारी पसंद कहां गई थी? हुंह, बात बनाना भी कोई इन से सीखे. कितनी बेशर्मी से नाटक जारी है,’’ कहते हुए मैं ने बेमन से कागज खोला, यह तो मम्मी का पत्र था :

प्यारी प्यारी निम्मो,

आज मैं तुझ से अपनी हेमेश की कसम तोड़ने की इजाजत लेते हुए पुनर्विवाह की बात कर रही हूं. आशा करती हूं, मेरी अंतिम इच्छा पूरी करने से ‘न’ नहीं करेगी. मेरी तो विदाई की वेला आ गई है. तुझ से, हेमेश से, बेटी रिया, राजेश, रिंकू सभी से इच्छा न होते हुए भी विदा तो मुझे होना ही पड़ेगा.

एक दिन मैं ने हेमेश और डाक्टर की बातें सुन ली थीं. मुझे अपनी बीमारी का हाल मिल गया था. मैं अच्छी तरह समझ चुकी थी कि मैं चंद दिनों की मेहमान हूं. मैं ने सब से नजर बचा कर यह पत्र लिखा क्योंकि अपनी अंतिम इच्छा बताना जरूरी था. मन की बात तुम लोगों को बताए बिना भी तो मेरी आत्मा को शांति न मिल सकेगी.

मेरे बाद हेमेश एकदम अकेले हो जाएंगे. तू भी अब रिटायर होने वाली है. मेरे हेमेश को अपना लेना. दोनों एकदूसरे का सहारा बन जाना. हेमेश को तो जानती ही है, अपनी सेहत के प्रति कितने लापरवाह रहते हैं, तू रहेगी तो उन्हें वक्त पर हर चीज मिलेगी. प्यारी निम्मो, हेमेश की साली साहिबा से बीवी साहिबा बन जाना.

रिया बेटी मेरे जाने से बहुत दुखी होगी. फिर धीरेधीरे रियाराजेश अपनी जिंदगी, अपनी गृहस्थी में मन लगा लेंगे. उन की आंटी से उन की मम्मी बन जाना. मेरी बेटी का मायका पूर्ववत बना रहेगा.

थक गई हूं, अब लिखा नहीं जा रहा है. बोल देती हूं, तुम दोनों की शादी ही तुम दोनों की तरफ से मेरे लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी.

तेरी,

हेमू

पत्र पढ़ कर मेरी आंखों से आंसू गिरने लगे. राजेश ने भी मेरे साथ ही पत्र पढ़ लिया था. उन्होंने मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया और बोले, ‘‘चलो, सारी गलतफहमियां दूर हो गईं. चल कर देखें मम्मी क्या कर रही हैं?’’

हम लोग किचन में गए. देखा, निर्मला आंटी खाना बनाने में व्यस्त थीं. पापा भी किचन में ही थे. वे सलाद काट रहे थे. मैं निर्मला आंटी के पास गई तथा बोली, ‘‘क्या बना रही हैं, मम्मी?’’

निर्मला आंटी की आंखें डबडबा आईं. उन्होंने प्यार से मेरा हाथ अपने हाथों में ले लिया फिर धीरे से कहा, ‘‘हेमेश और मेरा शादी करने का एकदम मन नहीं था. हम ने कभी एकदूसरे को इस नजर से देखा ही नहीं था लेकिन हेमू की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए शादी करनी पड़ी. मंदिर में तुम्हारे बूआ, फूफा की उपस्थिति में हम ने एकदूसरे को माला पहनाई, हेमेश ने मेरी सूनी मांग में सिंदूर भर दिया, हो गई शादी. तुम्हारी नीता बूआ ने मिठाई खिला हमारा मुंह मीठा कराया.’’

मैं चुपचाप उन्हें देखे जा रही थी.

उन्होंने आगे कहा, ‘‘तुम्हें बताने की हिम्मत मुझ में और हेमेश में न थी.

तुम्हें बताने की जिम्मेदारी नीता ने ली, उस ने तुम्हें सारी बातें बताने की कोशिश की, लेकिन तुम ने उस के फोन काट दिए, बात नहीं सुनी उस की. वैसे बेटा, तुम ने भी वही किया जो एक बेटी अपनी मम्मी को खोने के बाद इस तरह की खबर सुन कर करेगी, हमें तुम से…’’

मैं ने बीच में ही निर्मला आंटी की बात काटते हुए कहा, ‘‘आप लोगों से माफी मांगने लायक तो नहीं हूं, लेकिन फिर भी हो सके तो मुझे माफ कर दीजिए. सौरी मम्मी, सौरी पापा.’’

मम्मीपापा दोनों ने आगे बढ़ कर मुझे गले से लगा लिया. मैं ने देखा राजेश, रिंकू को गोद में लिए पूरी तरह संतुष्ट नजर आ रहे थे. वे भी मुझ से नजर मिलते ही मुसकरा दिए. इस दौरान एक विचार दिल और दिमाग को लगातार मथ रहा था कि दो उदास और तन्हा प्राणियों को एक कर जीने का मौका देना क्या हमारा कर्तव्य नहीं बनता है? इस विचार के आते ही मम्मी के प्रति श्रद्धा से सिर झुक गया.

स्वाद बढ़ाने के साथ सेहत भी बनाते हैं मसाले, जानें इसके ढेरों फायदे

योंतो मसालों को खाने में तरहतरह के स्वाद जगाने के लिए जाना जाता है, मगर भारत में इन का इस्तेमाल दवा के रूप में किया जाता है. कालीमिर्च, जायफर, हलदी, अजवाइन और जीरा का दवा के रूप में इस्तेमाल तो घरों में आम बात है. जहां मसालों के पाउडर से नए स्वादिष्ठ व्यंजन बनते हैं वहीं खड़े मसालों से बने खाने का स्वाद ही जुदा होता है.
आइए, जानें मसालों की सेहत वाली खूबियों के बारे में:

1. दालचीनी

सदियों से दालचीनी न सिर्फ इस की खुशबू के कारण खाने में इस्तेमाल की जाती है, बल्कि इस के ऐंटीऔक्सीडैंट गुण भी इसे बेहद गुणकारी बनाते हैं. ये फ्रीरैडिकल्स से लड़ने में सक्षम होने के कारण कैंसर, आर्थ्राइटिस से बचाने के साथसाथ जवां रखने का भी काम करती है, साथ ही फिट भी बनाए रखती है.

रखे फिट: आप को यह जान कर हैरानी होगी कि दालचीनी हाई फैट डाइट के असर को कम करने का काम करती है, जिस से आप वजन को नियंत्रित कर पाते हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार, दालचीनी के रोजाना सेवन से शरीर में फैट मोलीक्यूल्स की संख्या कम होती है.

स्किन को बनाए दाग फ्री: चेहरे पर मुंहासे किसे पसंद होते हैं. ये न सिर्फ सुंदरता में कमी लाते हैं, बल्कि कौंफिडैंस को भी कम करते हैं. ऐसे में दालचीनी में ऐंटीबैक्टीरियल गुण होने के कारण ये मुंहासों के लिए जिम्मेदार बैक्टीरिया को कम करने का काम करते हैं.

हेयर ग्रोथ में सहायक: पौष्टिक डाइट न लेने की वजह से हेयरफौल की समस्या का सामना करना पड़ता है. ऐसे में दालचीनी स्कैल्प के सर्कुलेशन को इंप्रूव कर हेयर ग्रोथ को बढ़ाने का काम करती है.

2. लौंग

यूएसडीए नैशनल न्यूट्रीऐंट डाटाबेस के अनुसार, लौंग में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, ऐनर्जी, विटामिंस व डाइटरी फाइबर होते हैं जो सेहत के लिए काफी फायदेमंद रहते हैं. लौंग में ऐंटीबैक्टीरियल प्रौपर्टी होती है जो पाचनतंत्र को सुधारने व चेहरे की चमक बनाए रखने का काम करती है.

दांत दर्द में राहत: लौंग न सिर्फ दांत दर्द में राहत पहुंचाने का काम करती है, बल्कि मुंह की बदबू को भी दूर करती है, जिस से आप फ्रैश फील करती हैं.

दे दागधब्बों रहित त्वचा: रोजाना लौंग खाने से यह ब्लड साफ करने के साथसाथ शरीर की गंदगी को बाहर निकाल कर आप को स्मूद व दागधब्बों रहित त्वचा भी देती है.

रोके ऐजिंग: ऐजिंग होने पर आप के स्किन सैल्स अपना कार्य करने में सक्षम नहीं हो पाते, जिस से चेहरे पर झुर्रियां नजर आने लगती हैं. लौंग में ऐंटीऔक्सीडैंट गुण होने के कारण यह झुर्रियों को होने से रोक आप को लंबे समय तक यंग दिखाने का काम करती है.

बचाए स्किन इन्फैक्शन से: लौंग में ऐंटीऐलर्जिक, ऐंटीसैप्टिक गुण होते हैं जो इन्फैक्शन से बचाते हैं. लौंग घावों को भरने और फंगल इन्फैक्शन से स्किन को बचाने का भी काम करती है, साथ ही बालों के वौल्यूम को भी इंप्रूव करती है.

3. इलायची

छोटी इलायची सब्जियों व स्वीट्स बगैरा में डाली जाती हैं. यह सिर्फ टेस्ट ही नहीं बढ़ाती, बल्कि शरीर को डिटौक्सीफाई करने के साथसाथ वजन कम करने, डिप्रैशन से लड़ने और इम्युनिटी बढ़ाने में भी कारगर है. इस में आयरन, फाइबर, कैल्सियम, पोटैशियम, मैग्नीशियम, विटामिन ए, सी व जिंक भी भरपूर मात्रा में होते हैं. साथ ही इस में पाए जाने वाले पाइनीन, सबनीन, लिनलूल जैसे औयल हैल्थ के लिए काफी फायदेमंद होते हैं, क्योंकि इन में ऐंटीऔक्सीडैंट गुण होने के कारण ये पाचनतंत्र को सुधारने के साथसाथ मैटाबोलिज्म को प्रेरित करने का भी काम करते हैं.

डिटौक्सिफिकैशन का काम करे: अगर शरीर से विषैले पदार्थ बाहर नहीं निकलते तो ऐजिंग, किडनी स्टोन, यूरिक ऐसिड के इकट्ठा होने की समस्या हो जाती है. ऐसे में इलायची के लगातार सेवन से शरीर से विषैले पदार्थ बाहर निकल जाते हैं और हम फिट रहते हैं.

बैड ब्रीद से दिलाए छुटकारा: अगर आप 10-15 दिन लगातार छोटी इलायची का सेवन करें तो आप को बैड ब्रीथ की समस्या से छुटकारा मिल जाएगा और आप का पाचनतंत्र भी
सही रहेगा.

4. कालीमिर्च

कालीमिर्च में पीपेरीन होता है, जो शरीर में वसा के संचय को रोकता है. 2013 में ‘फूड कैमिस्ट्री’ में प्रकाशित एक स्टडी के अनुसार, पीपेरीन एचईआर 2 जीन की गतिविधि को कम करने का काम करता है, जो ब्रैस्ट कैंसर सैल्स को बढ़ाता है. साथ ही इस में फाइबर की मौजूदगी पेट को लंबे समय तक फुल रखने का काम करती है. रोजाना कालीमिर्च खाने से शरीर में विटामिन की पूर्ति हो जाती है, साथ ही इस में मैग्नीशियम और कौपर जैसे मिनरल्स की मौजूदगी हैल्दी मैटाबोलिज्म में सहायक होती है.

वजन कम करने में सहायक: एक स्टडी के अनुसार, कालीमिर्च में पीपेरीन नामक तत्त्व फैट सैल्स से लड़ने का काम करता है, जिस से आप बहुत आसानी से वजन कंट्रोल कर पाते हैं.

ऐंटीऔक्सीडैंट प्रौपर्टी: इस में ऐंटीऔक्सीडैंट प्रौपर्टी होती है, जो शरीर की इम्युनिटी को बढ़ा कर हमें बीमारियों से बचाती है, जिस से हम जल्दीजल्दी बीमार नहीं होते.
नैशनल इंस्टिट्यूट औफ न्यूट्रीशन के अनुसार कालीमिर्च में बाकी चीजों की तुलना में ज्यादा ऐंटीऔक्सीडैंट होते हैं. साथ ही इस में सब से ज्यादा फिनोलिक कंटैंट होता है, जो कैंसर से बचाने का काम करता है.

फर्टिलिटी को सुधारे: यह पुरुष फर्टिलिटी को सुधारने का काम करती है. साथ ही महिलाओं में भी सैक्स क्षमता को बढ़ाती है. यह स्पर्म काउंट को बढ़ाने में सहायक है.

ऐक्सफौलिएट योर स्किन: अगर स्किन पर डैड सैल्स जमा हो जाते हैं तो वह डल दिखने लगती है. ऐसे में आप घर में मौजूद कालीमिर्च को क्रश कर के उस में दही मिला कर स्क्रब की तरह यूज करें तो मिनटों में साफ त्वचा पा सकती हैं. साथ ही यह ब्लड सर्कुलेशन बढ़ाने के साथसाथ स्किन को जरूरी न्यूट्रीऐंट्स पहुंचाने का भी काम करती है.

5. जीरा
हाल ही में हुए अध्ययनों में साबित हुआ है कि जीरा पाचनतंत्र को सुधारने, पेट इन्फैक्शन को ठीक करने और वजन कम करने में कारगर है. तभी तो खाने में जीरा डालना कोई नहीं भूलता, क्योंकि इस में सेहत का राज जो छिपा है.

आयरन का अच्छा स्रोत: जीरा आयरन का अच्छा स्रोत है. 1 छोटे चम्मच जीरे में 1.4 एमजी आयरन होता है, जो शरीर में आयरन की कमी को पूरा करने का काम करता है. इसलिए हर सब्जी व दाल में जीरे का इस्तेमाल करना न भूलें.

वजन घटाए: क्लीनिकली प्रैक्टिस की कौंप्लिमैंटरी थेरैपीज में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार अधिक वजन से ग्रस्त महिलाओं के शरीर की संरचना पर जीरा बहुत ही सकारात्मक प्रभाव डालता है. यह शरीर में चरबी व कोलैस्ट्रौल कम कर के बारबार मन में खाने की इच्छा को जाग्रत करने से रोकता है, जिस से वजन घटाने में मदद मिलती है.

स्मरणशक्ति बढ़ाए: इस में ऐंटीऔक्सीडैंट और ऐंटी इनफ्लैमैटरी गुण स्मरणशक्ति बढ़ाने का काम करते हैं.

6. जायफल

चुटकीभर जायफल न केवल डिशेज के स्वाद को बढ़ा देता है, बल्कि स्वास्थ्य के लिहाज से भी काफी लाभकारी होता है.

अच्छी नींद में मददगार: आज की भागदौड़ भरी व स्ट्रैसफुल लाइफ के कारण हम चैन की नींद नहीं सो पाते हैं, जिस से तनाव में रहने के कारण धीरेधीरे डिप्रैशन की गिरफ्त में आ जाते हैं. ऐसे में जायफल अच्छी नींद लाने में मददगार है. रात को सोने से आधा घंटा पहले हलके गरम दूध में चुटकीभर जायफल डाल कर पीएं. इस से आप को काफी रिलैक्स फील होगा.

स्किन प्रौब्लम्स से दिलाए छुटकारा: आज बढ़ते प्रदूषण, गलत कौस्मैटिक प्रोडक्ट्स के इस्तेमाल व हारमोनल बदलाव की वजह से ऐक्ने, झुर्रियां जैसी समस्याएं खड़ी हो जाती हैं. ऐसी स्थिति में जायफल में ऐंटीसैप्टिक और ऐंटी इनफ्लैमेटरी गुण स्किन क्लींजिंग का काम करते हैं.

रखे बीमारियों से दूर: जायफल इम्यून सिस्टम को भी स्ट्रौंग बनाने का काम करता है. इस में विटामिंस, मिनरल्स की मौजूदगी आप की ओवरऔल हैल्थ को सुधारने का काम करती है.

कोलैस्ट्रौल कम करे: जब शरीर में कोलैस्ट्रोल का लैवल बढ़ने लगता है तो उस से हार्ट अटैक, किडनी प्रौब्लम्स खड़ी हो जाती हैं, जो जानलेवा भी साबत हो सकती हैं. ऐसे में जायफल में मौजूद ऐथेनोलिक ऐक्सट्रैक्ट कोलैस्ट्रोल को कम करने में मददगार होता है.

ब्रेन फंक्शन को सुधारे: जायफल में मौजूद माइरिस्टिसिन नामक तत्त्व होता है. यह उस ऐंजाइम की क्रिया को रोकता है, जो अल्जाइमर रोग के लिए जिम्मेदार होता है. यह आप के मस्तिष्क को भी उत्तेजित करने का काम करता है, जिस से आप की याद्दाश्त में सुधार होने के साथसाथ तनाव भी कम होता है.

7. कच्ची हलदी

हलदी हर किचन में मिल जाएगी. यह न सिर्फ डिशेज में पीला कलर लाने का काम करती है, बल्कि इस के ऐंटीऔक्सीडैंट, ऐंटीवायरल, ऐंटीबैक्टीरियल व ऐंटीफंगल गुण हलदी के महत्त्व को कई गुणा बढ़ा देते हैं.

स्किन हैल्थ के लिए अच्छी: सदियों से कच्ची हलदी शादियों में उबटन में प्रयोग हो रही है, क्योंकि यह मिनटों में चेहरे की गंदगी को हटा कर उसे ग्लोइंग बनाने का काम करती है, साथ ही अगर स्किन पर किसी भी तरह का विकार होता है तो उस से भी राहत मिलती है.

ऐंटीसैप्टिक का काम करे: बुखार होने पर, शरीर पर कट लगने की स्थिति में थोड़ी सी कच्ची हलदी को दूध में मिला कर पीने से झट से राहत मिलती है. इस में करक्यूमिन की मौजूदगी बेहतरीन ऐंटीसैप्टिक का काम करती है.

ब्लड प्यूरीफायर: कई अध्ययनों में यह साबित हो चुका है कि कच्ची हलदी ब्लड को प्यूरीफाई कर विषैले तत्त्वों को शरीर से बाहर निकालने का काम करती है.
मेथी
मेथी को मिरैकल स्पाइस औफ हैल्थ के नाम से भी जाना जाता है. कढ़ी और कद्दू जैसी रैसिपीज का स्वाद बढ़ाने वाली मेथी सेहत और सुंदरता के लिए भी काफी गुणकारी है.

पाचन सुधारे: मेथी के नियमित सेवन से बौवेल सिस्टम सुचारू रूप से काम करता है. इस में ऐंटीऔक्सिडैंट और फाइबर की भरपूर मात्रा होती है जिस से शरीर से टौक्सिन बाहर निकालने में मदद मिलती है.

पीरिएड्स में ऐंठन से आराम: माहवारी के दौरान पानी में भिगो कर रखे हुए मेथी दाने चबाने से ऐंठन में राहत मिलती है. मूड स्विंग की समस्या में भी मेथी राहत पहुंचाती है.

सुधारे किडनी फंक्शन: मेथी दानों में पौलीफिनोलिक फ्लैवोनौइड्स पाए जाते हैं जो किडनी फंक्शन को सही रखने में मददगार हैं.

8. तेजपत्ता

रोमन युग में कुकिंग और ट्रीटमैंट में तेजपत्ते का इस्तेमाल काफी प्रचलन में था.
भारत में तेजपत्ता कुकिंग का एक अहम हिस्सा है. सही मायने में तेजपत्ता सेहत वाले गुणों की
खान है.

सांस संबंधी समस्याओं में राहत: एक मैडिकल रिसर्च रिपोर्ट के अुनसार तेजपत्ता ऐंटीबैक्टीरियल गुणों से भरपूर है. इस का प्रयोग सांस संबंधी समस्याओं में राहत पहुंचाता है.

तनाव करे कम: लिनालूल वैसे तो बैसिल और थाइम में पाया जाता है, मगर यह तेजपत्ते में भी पाया जाता है. यह स्ट्रैस हारमोन को संतुलित कर तनाव बढ़ने से रोकता है.
सेहत के लिए गुणकारी इन मसालों को अपने खाने में शामिल करें और टैस्ट के साथसाथ फिटनैस का भी आनंद उठाएं.

प्यार की खातिर : क्या हुआ समुद्र किनारे बैठी रश्मि के साथ?

हमेशा की तरह इस बार भी जब रोहिणी और कार्तिक के बीच जम कर बहस हुई, तो कार्तिक झगड़ा समाप्त करने की गरज से अपने कमरे में जा कर लैपटौप में व्यस्त हो गया.

रोहिणी उत्तेजित सी कुछ देर कमरे में टहलती रही. फिर एकाएक बाहर चल दी.

गेट से निकल ही रही थी कि वाचमैन दौड़ता हुआ आया और बोला, ‘‘कहीं जाना है मेमसाब? टैक्सी बुला दूं?’’

‘‘नहीं, मैं पास ही जा रही हूं. 10 मिनट में लौट आऊंगी.’’

रात के 10 बज रहे थे, पर कोलाबा की सड़कों पर अभी भी काफी गहमागहमी थी. दुकानें अभी भी खुली हुई थीं और लोग खरीदारी कर रहे थे. रेस्तरां और हलवाईर् की दुकानों के आसपास भी भीड़ थी.

रोहिणी के मन में खलबली मची हुई थी. आजकल जब भी उस की पति के साथ बहस होती, तो बात कार्तिक के परिवार पर ही आ कर थमती. कार्तिक अपने मातापिता का एकलौता बेटा था. अपनी मां की आंखों का तारा, उन का बेहद दुलारा. उस की 3 बड़ी बहनें थीं, जो उसे बेहद प्यार करती थीं और उसे हाथोंहाथ लेती थीं.

रोहिणी को इस बात से कोई परेशानी नहीं थी, पर कभीकभी उसे लगता था कि उस का पति अभी भी बच्चा बना हुआ है. वह एक कदम भी अपनी मरजी से नहीं उठा सकता है. रोज जब तक दिन में एकाध बार वह अपनी मां व बहनों से बात नहीं कर लेता उसे चैन नहीं पड़ता था.

जब भी इस बात को ले कर रोहिणी भुनभुनाती तो कार्तिक कहता, ‘‘पिताजी के देहांत के बाद उन की खोजखबर लेने वाला मैं अकेला ही तो हूं. मेरे पैदा होने के बाद से मां बीमार रहतीं… मेरी तीनों बहनों ने ही मेरी परवरिश की है. मेरे पिता के देहांत के बाद मेरी मां ने मुझे बड़ी मुश्किल से पाला है. मैं उन का ऋण कभी नहीं चुका सकता.’’

ऐसी दलीलों से रोहिणी चुप हो जाती थी. पर उसे यह बात समझ में न आती थी कि बच्चों को पालपोस कर बड़ा करना हर मातापिता का फर्ज होता है, तो इस में एहसान की बात कहां से आ गई? पर वह जानती थी कि कार्तिक से बहस करना बेकार था. वैसे उसे अपने पति से और कोई शिकायत नहीं थी. वह उस से बेहद प्यार करता था. वह एक भला इनसान था और उस के प्रति संवेदशील था. उसे कोफ्त केवल इस बात से होती कि उसे अपने पति का प्यार उस के घर वालों से साझा करना पड़ता है.

जब उस की शादी हुई तो कार्तिक ने उस से कहा था, ‘‘जानेमन, तुम्हें पूरा अधिकार है कि तुम अपना घर जैसे चाहे सजाओ, जिस तरह चाहे चलाओ. मैं ने अपने को भी तुम्हारे हवाले किया. मेरी तुम से केवल एक ही गुजारिश है कि चूंकि मैं अपने परिवार से बेहद जुड़ा हुआ हूं इसलिए चाहता हूं तुम भी उन से मेलजोल रखो, उन का आदरसम्मान करो. मैं अपनी मां की आंखों में आंसू नहीं देख सकता और अपनी बहनों को भी किसी भी कीमत पर दुख नहीं पहुंचाना चाहता.’’

उसे याद आया कि अपने हनीमून पर जब वे सिंगापुर गए थे, तो उन्होंने खूब मौजमस्ती की थी.

एक दिन जब वे बाजार से हो कर गुजर रहे थे, तो कार्तिक एक जौहरी की दुकान के सामने ठिठक गया. बोला, ‘‘चलो जरा इस दुकान में चलते हैं.’’

वह मन ही मन पुलकित हुई कि क्या कार्तिक उसे कोई गहना खरीद कर देने वाला है.

उन्होंने दुकान में रखे काफी गहने देख डाले. फिर कार्तिक ने एक हार उठा कर कहा, ‘‘यह हार तुम्हें कैसा लगता है?’’

‘‘अरे, यह तो बहुत ही खूबसूरत है,’’ खुशी से बोली.

‘‘तुम्हें पसंद है तो ले लो. हमारे हनीमून की एक यादगार भेंट’’

‘‘ओह कार्तिक, तुम कितने अच्छे हो. लेकिन इतनी महंगी…?’’

‘‘कीमत की तुम फिक्र न करो और हां सुनो 1-1 गहना अपनी तीनों बहनों के लिए भी ले लेते हैं. यहां से लौटेंगे तो वे सब मुझ से किसी भेंट की अपेक्षा करेंगी.’’

सुन कर रोहिणी मन ही मन कुढ़ गई पर कुछ बोली नहीं.

‘‘और मांजी के लिए?’’ उस ने पूछा.

‘‘उन के लिए एक शाल ले लेते हैं.’’

वे घर सामान से लदेफदे लौटे. उस के बाद भी हर तीजत्योहार पर अपने परिवार के लिए तोहफे भेजता. जब भी विदेश जाता, तो उस के पास भानजेभानजियों की मनचाही वस्तुओं की लिस्ट पहले पहुंच जाती. अपने परिवार वालों के लिए उन के कहने की देर होती कि वह उन की फरमाइश तुरंत पूरी कर देता.

रोहिणी को इस पर कोई आपत्ति न थी. कार्तिक एक आईटी कंपनी में कार्यरत था और अच्छा कमा रहा था. उसे पूरा हक था कि वह अपनी कमाई जैसे चाहे, जिस पर चाहे, खर्च करे. पर उसे यह बात बुरी तरह अखरती थी कि कार्तिक के जिस कीमती समय को वह अपने लिए सुरक्षित रखना चाहती उसे भी वह बिना हिचक अपने परिवार को समर्पित कर देता. रोहिणी को अपने पति का प्यार उस के घर वालों के साथ बांटना बहुत नागवार गुजरता.

अब आज ही की बात ले लो. उन की शादी की सालगिरह थी. वह कब से सोच रही थी कि इस बार एक शानदार जगह जा कर ठाट से छुट्टियां मनाएंगे पर सब गुड़ गोबर हो गया. जब से उस की 2-4 किट्टी पार्टी वाली सहेलियां इटली हो कर आई थीं वे लगातार उस जगह की तारीफ के पुल बांध रही थीं कि उन्होंने वहां कितना लुत्फ उठाया. सुनसुन कर उस के कान पक गए थे. उस की 1-2 सहेलियों के पति जो अरबपति थे, वे उन की दौलत दोनों हाथों से लुटातीं थीं और नित नईर् साडि़यों और गहनों की नुमाइश करती थीं. इस से रोहिणी जलभुन जाती थी.

बड़ी मुश्किल से उस ने अपने पति को राजी कर लिया था कि इस बार वे भी विदेश जा कर दिल खोल कर पैसा खर्च करेंगे, खूब मौजमस्ती करेंगे.

उस ने मन ही मन कल्पना की थी कि जब वह फ्रैंच शिफौन की साड़ी में लिपटी, महंगे फौरेन सैंट की खुशबू बिखेरती, हाथ में चौकलेट का डब्बा लिए किट्टी पार्टी में पहुंचेगी तो सब उसे देख कर ईर्ष्या से जल मरेंगी पर ऊपरी मन से उस की खूब तारीफ करेंगी.

मगर आज रात खाने के बाद जब उस ने यह बात उठाई तो कार्तिक बोला, ‘‘इस बार तो विदेश जाना जरा मुश्किल होगा.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘इसलिए कि बड़ी दीदी शकुंतला की बेटी रीना की शादी पक्की हो गई है. मैं ने तुम्हें बताया तो था… आज ही सुबह उन का फोन आया कि इसी महीने सगाई की रस्म है और हमारा वहां पहुंचना बहुत जरूरी है. आखिर मैं एकलौता मामा हूं न… भानजी की शादी में मेरी प्रमुख भूमिका रहेगी.’’

‘‘आप के घर में तो हमेशा कुछ न कुछ लगा रहता है,’’ वह मुंह बना कर बोली, ‘‘कभी किसी का जन्मदिन है, तो कभी किसी का मुंडन तो कभी कुछ और.’’

‘‘अरे जन्मदिन तो हर साल आता है. उस की इतनी अहमियत नहीं… पर शादीब्याह तो रोजरोज नहीं होते न? दीदी ने बहुत आग्रह किया है कि हम जरूर आएं. वे कोई भी बहाना सुनने को तैयार नहीं हैं.’’

‘‘मैं पूछती हूं कि क्या हम कभी अपनी मरजी से नहीं जी सकते?’’

‘‘डार्लिंग, इतना क्यों बिगड़ती हो… हम शादी की सालगिरह मनाने अगले साल भी तो जा सकते हैं… अभी से तय कर लो कि कहां जाना है और कितने दिनों के लिए जाना है… मैं सारी प्लानिंग तुम्हीं पर छोड़ता हूं.’’

‘‘जी हां, बड़ी मेहरबानी आप की… हम सारा प्लान बना लेंगे और फिर आप के घर वालों का एक फोन आएगा और सब कुछ कैंसल.’’

‘‘यह हमेशा थोड़े न होता है?’’

‘‘यह हमेशा होता है… हर बार होता है. हमारी अपनी कोई जिंदगी ही नहीं है.’’

‘‘तुम बेकार में नाराज हो रही हो… क्या मैं ने कभी तुम्हें किसी चीज से वंचित रखा है? हमेशा तुम्हारी इच्छा पूरी की है. तुम्हारे सारे नाजनखरे सहर्ष उठाता हूं.’’

‘‘इस में कौन सी बड़ी बात है…. यह तो हर पति करता है, बशर्ते वह अपनी पत्नी से प्यार करता हो.’’

‘‘तो तुम्हारा खयाल है कि मैं तुम्हें प्यार नहीं करता?’’ कार्तिक रोहिणी की आंखों में झांक कर मुसकराया.

‘‘लगता तो ऐसा ही है.’’

‘‘रोहिणी, यह तुम ज्यादती कर रही हो. जानती हो मेरा तुम्हारे प्रति प्रेम देख कर मेरे यारदोस्त मुझे बीवी का गुलाम कह कर चिढ़ाते हैं.’’

‘‘अच्छा? वे ऐसा क्यों कहते हैं भला, जब मेरी हर बात काटी जाती है… मेरा हर प्रस्ताव ठुकराया जाता है. हां, अगर कोई तुम्हें मां के पल्लू से बंधा लल्लू या बहनों का पिछलग्गू कहे तो मैं मान सकती हूं.’’

कार्तिक खिलखिला कर हंस पड़ा, ‘‘तुम्हारा भी जवाब नहीं.’’

कार्तिक ने टीवी औन कर लिया. रोहिणी थोड़ी देर बड़बड़ाती रही. वह इस मसले को कल पर नहीं छोड़ना चाहती थी. अभी कोई फैसला कर लेना चाहती थी. अत: बोली, ‘‘तो क्या तय किया तुम ने?’’

‘‘किस बारे में?’’

‘‘यह लो घंटे भर से मैं क्या बकबक किए जा रही हूं… हम इस टूअर पर जा रहे हैं या नहीं?’’

‘‘कह तो दिया भई कि इस बार जरा मुश्किल हैं. तुम तो जानती हो कि मुझे साल में सिर्फ 2 हफ्ते की छुट्टी मिलती है. शादी में जाना जरूरी है… पर अगले साल इटली अवश्य…’’

‘‘जी नहीं, मुझे तुम इन खोखले वादों से नहीं टाल सकते.’’

‘‘पर अगले साल भी इटली उसी जगह बना रहेगा और हम दोनों भी.’’

‘‘और तुम्हारा परिवार भी तो वैसे ही सहीसलामत ही रहेगा.’’

‘‘तुम कभीकभी बड़ी बचकानी बातें करती हो.’’

‘‘हां, मैं तो हूं ही बेवकूफ, सिरफिरी, अदूरदर्शी…  सारी बुराइयां मुझ में कूटकूट कर भरी हैं.’’

‘‘तुम से इस विषय में बात करना बेकार है… अभी तुम्हारा दिमाग जरा गरम है. कल

सुबह ठंडे दिमाग से इस बारे में बात करेंगे.

मैं जरा दफ्तर का जरूरी काम निबटा कर आता हूं,’’ कह कार्तिक अपने औफिसरूम में चला गया.

रोहिणी अपनी बात न मनवा पाई तो गुस्से से बिफर गई. कुछ देर वह क्रोध में भरी बैठी रही. फिर सहसा उठ कर बाहर की ओर चल दी.

कोलाबा के बाजार में अभी भी काफी चहलपहल थी. रीगल सिनेमा के पास पहुंची तो देखा कि वहां भी भीड़ है. उस ने सोचा कि टिकट खरीद कर रात का शो देख ले. 2 घंटे आराम से बीत जाएंगे. पर फिर यह सोच कर कि इस बीच अगर कार्तिक ने उसे घर में न पाया तो वह परेशान हो जाएगा. उसे पागलों की तरह ढूंढ़ेगा. इधरउधर फोन घुमाएगा, अपना इरादा बदल दिया. फिर वह गेट वे औफ इंडिया की तरफ मुड़ गई.

यहां लोग समुद्र के किनारे बैठे ठंडी हवा का लुत्फ उठा रहे थे. रोहिणी भी वहां मुंडेर पर बैठ गईर् और अपनी नजरें समुद्र के पार क्षितिज पर गड़ा दीं.

समुद्र के बीच 2-3 समुद्री जहाज लंगर डाले थे. उन की बत्तियां पानी में झिलमिला रही थीं. रोहिणी ने हसरत भरी नजरों से समुद्र की गहराइयों में झांका. बस इस अथाह जल में समाने की देर है, उस ने सोचा. एक ही पल में उस के प्राणों का अंत हो जाएगा.

उस ने मन की आंखों से देखा कार्तिक उस के निष्प्राण शरीर से लिपट कर बिलख रहा है कि हाय प्रिये, मैं ने क्यों तुम्हारी बात न मानी. मैं जानता न था कि तुम इतनी सी बात पर मुझ से रूठ जाओगी और मुझे हमेशा के लिए छोड़ कर चली जाओगी.

पर नहीं, वह क्यों अपनी जान दे. उस ने अभी दुनिया में देखा ही क्या है और उस के ऊपर कौन सा गमों का पहाड़ टूट पड़ा है, जो वह अपनी जान देने की सोचे. ठीक है पति से थोड़ी खटपट हुई है. यह तो हर शादीशुदा स्त्री के जीवन का हिस्सा है. कभी खुशी तो कभी गम. और सच पूछा जाए तो उस के जीवन में खुशियां ज्यादा हैं गम न के बराबर.

वह आज जरा उत्तेजित है, विचलित है, क्योंकि उस की मनमानी नहीं हुई है. कभीकभी उस का पति किसी बात पर अड़ जाता है तो टस से मस नहीं होता और उसे मजबूरन उस के आगे हार माननी पड़ती है. उस की शादी को 4 साल हो गए और अभी तक वह समझ न पाई कि वह अपने पति से कैसे पेश आए.

खयालों में डूबी रोहिणी को समय का भान ही न हुआ. अचानक उस ने चौंक कर देखा कि उस के आसपास की भीड़ अब छंट चुकी थी. खोमचे वाले, आइसक्रीम वाले अपना सामान समेट कर चल दिए थे. हां, ताज होटल के सामने अभी भी काफी रौनक थी. लोग आ जा रहे थे. मुख्यद्वार पर संतरी मुस्तैद था.

एक और बात रोहिणी ने नोट की. समुद्र के किनारे की सड़क पर अब कुछ स्त्रियां भड़कीले व तंग कपड़े पहने चहलकदमी कर रही हैं. उन्हें देख कर साफ लगता है कि वे स्ट्रीट वाकर्स हैं यानी रात की रानियां.

हर थोड़ी देर में लोग गाडि़यों में आते. किसी एक स्त्री के पास गाड़ी रोकते, मोलतोल करते और वह स्त्री गाड़ी में बैठ कर फुर्र हो जाती. यह सब देख कर रोहिणी को बड़ी हंसी आई.

सहसा एक गाड़ी उस के पास आ कर रुकी. उस में 3-4 युवक सवार थे, जो कालेज के छात्र लग रहे थे.

‘‘हाय ब्यूटीफुल,’’ एक युवक ने कार की खिड़की में से सिर निकाल कर उसे आवाज दी, ‘‘अकेली बैठी क्या कर रही हो? हमारे साथ आओ… कुछ मौजमस्ती करेंगे, घूमेंगेफिरेंगे.’’

रोहिणी दंग रह गई कि क्या ये पाजी लड़के उसे एक वेश्या समझ बैठे हैं? हद हो गई. क्या इन्हें एक भले घर की स्त्री और एक वेश्या में फर्क नहीं दिखाई देता? अब यहां इतनी रात गए यों अकेले बैठे रहना ठीक नहीं. उसे अब घर चल देना चाहिए.

रोहिणी तेजी से घर का रूख किया. कार उस के पास से सर्र से निकल गई. पर कुछ ही देर बाद वही कार लौट कर फिर उस के पास आ कर रुकी.

‘‘आओ न डियर. होटल में बियर पीएंगे. तुम्हें चाइनीज खाना पसंद है? हम तुम्हें नौनकिंग रेस्तरां में खाना खिलाएंगे. उस के बाद डांस करेंगे. हम तुम्हारा भरपूर मनोरंजन करेंगे,’’ एक लड़के ने खिड़की से सिर निकाल कर कहा.

‘‘आप को गलतफहमी हुई है,’’ वह संयत स्वर में बोली, ‘‘मैं एक हाउसवाइफ हूं. अपने घर जा रही हूं.’’

‘‘तो चलो न हम आप को आप के घर छोड़ देते हैं. कहां रहती हैं आप?’’ वे लड़के कार धीरेधीरे चलाते हुए उस का पीछा करते रहे और लगातार उस से बातें करते रहे. जाहिर था कि वे कंगाल थे. वे बिना पैसा खर्च किए उस की सोहबत का आनंद उठाना चाहते थे.

रोहिणी अपनी राह चलती रही. सहसा गाड़ी उस के पास आ कर झटके से रुकी. एक लड़का गाड़ी से उतरा और उस के पास आ कर बोला, ‘‘आखिर इतनी जिद क्यों कर रही हो स्वीटी?’’ हम तुम्हें सुपर टाइम देंगे… आई प्रौमिस. चलो गाड़ी में बैठो और वह रोहिणी से हाथापाई करने लगा.

‘‘मुझे हाथ मत लगाना नहीं तो मैं शोर मचा पुलिस बुला लूंगी,’’ उस ने कड़क आवाज में कहा.

अचानक एक और कार उस के पास आ कर रुकी. उस का हौर्न जोर से बज उठा. रोहिणी ने चौंक कर देखा तो कार्तिक अपनी कार में बैठा उसे आवाजें लगा रहा था, ‘‘रोहिणी जल्दी आओ गाड़ी में बैठो.’’

रोहिणी अपना हाथ छुड़ा दौड़ कर गाड़ी में बैठ गई.

‘‘इतनी रात को यह तुम्हें क्या सूझी?’’ कार्तिक ने उसे लताड़ा, ‘‘यह क्या घर से अकेले बाहर निकलने का समय है?’’ रोहिणी तुम्हें कब अक्ल आएगी? देखा नहीं कैसेकैसे गुंडेमवाली रात को सड़कों पर घूमते शिकार की ताक में रहते हैं… मेरी नजर तुम पर पड़ गई वरना जानती हो क्या हो जाता?’’

‘‘क्या हो जाता?’’

‘‘अरे वे लोफर तुम्हें गाड़ी में बैठा कर अगवा कर ले जाते.’’

‘‘अगवा करना क्या इतना आसान है?’’ हर समय पुलिस की गाड़ी गश्त लगाती रहती है.

‘‘हां, लेकिन पुलिस के आने से पहले ही अगर वे गुंडे तुम्हें ले उड़ते तो तुम समझ सकती हो फिर वे तुम्हारा क्या हश्र करते? तुम्हें रेप कर के अधमरी हालत में कहीं झाडि़यों में फेंक कर चलते बनते. रोहिणी तुम रोज अखबार में इस तरह की घटनाओं के बारे में पढ़ती हो, टीवी पर देखती हो. फिर भी तुम ने ऐसा खतरा मोल लिया. तुम्हारी अक्ल क्या घास चरने चली गई?’’

‘‘ये सब वे कैसे कर पाते?’’ रोहिणी ने प्रतिवाद किया, ‘‘मैं जोर से चिल्लाती तो भीड़ इकट्ठी हो जाती, पुलिस पहुंच जाती.’’

‘‘ये सब कहने की बातें हैं. इस सुनसान सड़क पर तुम्हारे शोर मचाने से पहले ही बहुत कुछ घट जाता. वे तुम्हें मिनटों में गायब कर देते और फिर तुम्हारा अतापता भी न मिलता. मत भूलो कि वे 4 थे तुम अकेली. तुम उन से मुकाबला कैसे कर पातीं. इस तरह की हठधर्मिता की वजह से ही आए दिन औरतों के साथ हादसे होते रहते हैं. इतनी रात को अकेले घर से निकलना, अनजान लोगों से लिफ्ट लेना, गैरों के साथ टैक्सी शेयर करना ये सब सरासर नादानी है.’’

रोहिणी ने चुप्पी साध ली. घर पहुंच कर कार्तिक ने उसे अपनी बांहों में समेट लिया, ‘‘डार्लिंग एक वादा करो कि अब से जब भी तुम मुझ से खफा होगी तो बेशक मुझे जो चाह कर लेना पर इस तरह का पागलपन नहीं करोगी,’’ कह उस ने इटली जाने के लिए होटल की बुकिंग और प्लेन के टिकट रोहिणी को थमा दिए.

‘‘यह क्या? तुम तो कह रहे थे कि इस साल जाना नहीं हो सकता.’’

‘‘हां, कहा तो था, पर मैं अपनी प्रिये का कहना कैसे टाल सकता हूं?’’

‘‘प्रोग्राम कैंसल कर दो.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘अरे भाई, शकुंतला दीदी की बेटी की शादी जो हो रही है… हमें वहां जाना पड़ेगा न.’’

‘‘दीदी से शादी में न आने का कोई बहाना बना दूंगा.’’

‘‘जी हां, और फिर सब से डांट सुनोगे. तुम तो आसानी से छूट जाओगे पर सब मुझे ही परेशान करेंगे कि रोहिणी अपने ससुराल वालों से अलगथलग रहती है और अपने पति को भी अपने चंगुल में कर रखा है. उसे अपने परिवार से दूर कर देना चाहती है.’’

‘‘हद हो गई रोहिणी. चित भी तुम्हारी और पट भी तुम्हारी. तुम से मैं कभी पार नहीं पा सकता.’’

‘‘सो तो है,’’ रोहिणी ने विजयी भाव से कहा.

उड़ान: उम्र के आखिरी दौर में अरुणा ने जब तोड़ी सारी मर्यादा

घर्रघर्र की आवाज करती बस कच्ची सड़क पर बढ़ती जा रही थी. उस में बैठी अरुणा हिचकोले खाती बाहर का दृश्य एकटक देख रही थी. नारियल के पेड़ों के झुंड, कौफी के बागान, अमराइयां, सुपारी के पेड़, लहलहाते धान के खेत, चारों तरफ हरियाली और प्रकृति का नैसर्गिक सौंदर्य देख कर अरुणा की आंखें भर आईं.

बचपन में यही सफर वह बैलगाड़ी में तय करती थी. उस के गांव तिरुपुर में तब बस और मोटरें नहीं चलती थीं. आसपास के गांवों तक लोग बैलगाड़ी में ही आयाजाया करते थे.

अरुणा की आंखें शून्य में जा टंगीं. वह अतीत की यादों में खो गई.

वह अभी 16 साल की थी कि उस के मातापिता ने उस का ब्याह तय कर दिया. उस ने बहुत नानुकुर की पर उस की एक न चली. उस का मन आगे पढ़ने का था पर पिता बोले, ‘आगे पढ़ कर क्या करना है, वही चूल्हाचक्की न. बस, बहुत हो गया.’

इस बात की जानकारी जब उस के चाचा गोविंद को हुई तो वे शहर से दौड़े चले आए.

‘अन्ना, यह क्या करते हो? इतनी छोटी उम्र में बेटी की शादी?’

‘अरे, मेरा बस चलता तो इसे छुटपन में ही ब्याह देता,’ कृष्णस्वामी बोले, ‘लड़की रजस्वला हो उस से पहले उस का विवाह होना कल्याणकारी होता है. ऐसे ही विवाह को  ‘गौरी कल्याणम’ कहा जाता है और इसे बहुत श्रेष्ठ माना जाता है.’

‘लेकिन आजकल ये सब कौन करता है. अरुणा को आगे पढ़ने दीजिए.’

‘देखो गोविंद, बेटी को आगे पढ़ाने का मतलब है उसे शहर भेजना, क्योंकि हमारे गांव में कालेज तो है नहीं.’

‘इसे मेरे पास बेंगलुरु भेज दीजिए.’

‘नहीं, तुम्हारा अपना परिवार है.

तुम उस को देखो. अरुणा मेरी जिम्मेदारी है. उस के लिए अच्छा घरवर ढूंढ़ लिया है. और फिर अरुणा ठिकाने से लगेगी तभी न उस की छोटी बहनों के लिए रास्ता खुलेगा.’

शादी के 1 वर्ष बाद ही अरुणा के पति की एक ट्रेन दुर्घटना में मृत्यु हो गई. उस के ससुराल वालों का तो उस पर कहर ही टूट पड़ा, ‘अरे, कैसी सत्यानाशी, कुलक्षणी लड़की निकली यह जो आते ही हमारे बेटे को खा गई. हमें नहीं चाहिए यह मनहूस कुलनाशिनी,’ ससुराल में उस का जीना दूभर कर दिया गया.

पिता उसे ससुराल से घर ले आए.

‘तू फिक्र न कर मेरी बच्ची,’ उन्होंने उसे दिलासा दिया था, ‘जब तक

मांबाप का साया तेरे सिर पर है, तुझे किसी प्रकार की चिंता करने की आवश्यकता नहीं. हम हैं न तेरी सरपरस्ती के लिए.’

‘हां अक्का,’ छोटे भाई राघव ने आश्वासन दिया, ‘मैं और केशव भी हैं जो आजन्म तुम्हें संभालेंगे.’

लेकिन क्या इन खोखले शब्दों से उस के आंसू थमने वाले थे? मांबाप का संरक्षण था, पर साथ ही बंदिशें भी थीं. उसे अपना भविष्य अंधकारमय नजर आता था.

पिता कृष्णस्वामी के धर्मगुरु स्वामी अनंताचार्य घर आए. पूरा घर हाथ जोड़े उन के स्वागत में लग गया.

‘यजमान, तुम्हारी बेटी के बारे में सुना, बड़ा दुख हुआ. पर होनी को कौन टाल सकता है. अब तुम लोगों को चाहिए कि बिटिया को धैर्य बंधाओ. पिछले जन्म के कर्मों की सजा इस जन्म में मिल रही है. इस जन्म में नेमधरम से रहेगी तभी अगला जन्म संवरेगा. हां, तो बिटिया के केशकर्तन कब करवा रहे हो?’

कृष्णस्वामी भारी सोच में पड़ गए. बेटी का उदास चेहरा, सूना माथा और  गला देख कर ही उन का कलेजा मुंह को आता था. उस के केश उतारे जाने की कल्पना से वे थर्रा गए.

अरुणा ने सुना तो वह बिलखबिलख कर रोने लगी, ‘पिताजी, मेरे केश मत उतरवाओ. मैं यह सह नहीं पाऊंगी.’

उस के लिए यही क्या कम था कि भरी जवानी में वैधव्य दुख भोग रही थी. पति के मरते ही उस की चूडि़यां तोड़ दी गई थीं. मंगलसूत्र गले से उतार लिया गया था. उसे सादे कपड़े पहनने के लिए बाध्य कर दिया गया था. माथे से सुहाग का चिह्न पोंछ दिया गया था सौंदर्य प्रसाधन, आमोदप्रमोद सब वर्जित हो गए. जब उस की सखीसहेलियां शादीब्याह में बनठन कर अठखेलियां करतीं तो वह उपेक्षित सी घर में मुंह लपेट कर पड़ी रहती.

उस के गोविंद चाचा जब शहर से गांव आए तो देखा कि सारा घर शोक में डूबा हुआ था.

‘यह क्या अन्ना, हमारे धर्मशास्त्रों में लिखा है कि जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता बसते हैं. लेकिन तुम्हारे घर की स्त्रियों की दयनीय दशा देखी नहीं जाती. एक तरफ भाभी रो रही हैं. बेटी अलग अपने गम में घुलती जा रही है और तुम हो कि उन की ओर से बिलकुल उदासीन हो.’

‘मैं क्या करूं गोविंद, मुझे तो कुछ सूझता नहीं है,’ कृष्णस्वामी ने बुझे हुए स्वर में कहा.

‘तुम अब अरुणा को मेरे जिम्मे छोड़ दो. मैं उसे शहर ले जाऊंगा. उसे कालेज में भरती कराऊंगा. बिटिया वहीं पढ़ाई करेगी.’

‘लेकिन…’

‘अब लेकिनवेकिन नहीं. मैं तुम्हारी एक न सुनूंगा.’

मांबाप ने भारी मन से अरुणा को विदा किया. सौ हिदायतें दीं. घर में थी तो बात और थी. वे उस के ऊपर कड़ा नियंत्रण रखते. पगपग पर टोकाटाकी करते. जवान लड़की के कहीं कदम बहक न जाएं, इस बात का उन्हें हमेशा डर लगा रहता.

अरुणा के चाचा उसे बेंगलुरु ले कर चले गए. उसे कालेज में दाखिला दिला दिया.

इस दौरान एक दिन अरुणा की मुलाकात श्रीकांत से हुई. वह पास के कालेज में पढ़ता था. सुदर्शन और मेधावी था. लड़कियां उस के पीछे दीवानी थीं. पर उस ने सब को छोड़ अरुणा को चुना था. वे चोरीछिपे मिलने लगे.

एक दिन श्रीकांत बोला, ‘तुम ने उडुपी कृष्णभवन का मसाला डोसा खाया है कभी?’

‘नहीं.’

‘चलो, आज चलते हैं.’

‘नहीं बाबा, तुम्हारे साथ रेस्तरां गई और किसी ने देख लिया तो?’

‘देख ले, हमारी बला से. कोई हमारा क्या कर लेगा? हम दोनों तो शादी करने वाले हैं.’

‘शादी,’ उस का मुंह खुला का खुला रह गया, ‘श्रीकांत, यह तुम क्या कह रहे हो? क्या तुम जानते नहीं कि मैं विधवा हूं?’

‘जानता हूं. पर वह तुम्हारा गुजरा हुआ कल था. मैं तुम्हारा आने वाला कल हूं.’

उस के प्यार की भनक आखिर एक दिन घरवालों को लग ही गई. उस दिन घर में एक तूफान आ गया था.

‘विधवा का पुनर्विवाह,’ पिताजी गरजे थे, ‘असंभव. अरे पगली, तू उस देश में जन्मी है जहां स्त्रियां पति की चिता पर सहगमन करती थीं. हमारे वंश में न कभी ऐसा हुआ न कभी होगा. हम लोग ऐसेवैसे नहीं हैं. हम उच्च कोटि के ब्राह्मण हैं. मेरे दादा मैसूर महाराजा के राजपुरोहित थे. सभी काम नेमधरम से करते थे तब कहीं जा कर राजकाज संभालते थे. और तुझे मेरी मां की याद है?’

‘हां,’ उस ने अस्फुट स्वर में कहा.

अरुणा को अपनी दादी भलीभांति याद हैं. 20 साल की आयु में विधवा हुईं. घुटा हुआ सिर, एकवसना, एक जून खाना.

8 गज की तांत की साड़ी में अपना तन और सिर ढकतीं. हमेशा नेमधरम से रहतीं. वे सांध्य बेला में मंदिर जाना नहीं भूलतीं. एक दिन मंदिर में ही एक खंभे के सहारे बैठेबैठे, प्रवचन सुनते हुए उन के प्राणपखेरू उड़ गए थे.

लेकिन जैसे अरुणा का मन अंदर से चीख उठा था, ‘वह जमाना और था’. उसे इस बात का ज्ञान था कि वह आज के युग की नारी है, उस में सोचनेसमझने की शक्ति है, वह अपना भलाबुरा जानती है. वह नियति के आगे सिर कैसे झुका दे. वह कैसे एक अज्ञात मनुष्य के नाम की माला जपते हुए अपने बचेखुचे दिन गुजार दे.

माना कि वह पुरुष उस का पति था. अग्नि को साक्षी मान कर उस ने उस के साथ सात फेरे लिए थे. पर था तो वह उस के लिए एक अजनबी ही. यह जानते हुए कि यही विधि का विधान है, वह मन मार कर नहीं रह सकती. उस का मन विद्रोह करना चाहता है.

उसे अपने हिस्से की धूप चाहिए. उसे वे सभी खुशियां, वे सभी नेमतें चाहिए जिन पर उस का जन्मसिद्ध अधिकार हैं. उसे एक जीवनसाथी चाहिए, एक सहचर जिस के साथ वह अपना सुखदुख बांट सके. जिस पर अपना प्यार लुटा सके, जिस पर वह अपना अधिकार जमा सके, उसे चाहिए एक नीड़ जहां बच्चों का कलरव गूंजे.

वह यह सब अपने मातापिता से कहना चाहती थी. पर उस के मांबाप पुरातनपंथी थे, रूढि़वादी थे, संकीर्ण विचारों वाले परले सिरे के अंधविश्वासी थे. पिता उग्र स्वभाव के थे जिन के सामने उस की जबान न खुलती थी. मां पिता की हां में हां मिलातीं. वे उस की सुनने को तैयार ही न थे. श्रीकांत का उन्होंने जम कर विरोध किया.

‘देख अरुणा, हम तुझे बताए देते हैं, इस लड़के से ब्याह का विचार त्याग दे. हमारे जीतेजी यह मुमकिन नहीं. हमें बिरादरी से बाहर कर दिया जाएगा. जाने कहां का आवारा, लफंगा तुझे अपने जाल में फंसाना चाहता है. हम ठहरे ब्राह्मण, वह नीच जाति का. मैं कहे देता हूं, यदि तू ने उस छोकरे से ब्याह करने की जिद ठानी तो मैं अपने प्राण त्याग दूंगा. मैं अपनी बात का धनी हूं. इस से पहले कि कुल पर आंच आए या कोई हम पर उंगली उठाए, हम मर जाएंगे. मैं कुएं में छलांग लगा दूंगा या आमरण अनशन करूंगा.’

अरुणा सहम गई. मांबाप के प्रति विद्रोह करने की उस में हिम्मत न थी. उस ने श्रीकांत के प्रस्ताव को ठुकरा दिया.

स्वामी अनंताचार्य घर आए. उन्होंने अरुणा के बारे में सुना.

‘देख वत्स, इसीलिए मैं कहता था कि बिटिया के केश उतरवा दो. विधवाओं के लिए यह नियम मनुस्मृति में लिखा गया है. लेकिन उस वक्त तुम ने मेरी बात नहीं मानी. अब देख लिया न परिणाम? तुम्हारी बेटी का  रूप व घनी केशराशि देख कर ऋषिमुनियों के मन भी डोल जाएं, मनुष्य की बिसात ही क्या?’

उन्होंने अरुणा से कहा, ‘बेटी, अब ईश्वर में लौ लगाओ. रोज मंदिर जाओ. भगवत सेवा करो. वही मुक्तिमार्ग है.’

कुछ रोज तो वह मंदिर जाती रही पर सांसारिक मोहमाया न त्याग सकी. मंदिर में भी उस का मन भटकता रहता था. आंखें प्रतिमा पर टिकी रहतीं पर मन में श्रीकांत की छवि बसी थी. कानों में स्वामीजी के प्रवचन गूंजते और वह श्रीकांत के खयालों में खोई रहती.

समय सरकता रहा. उस के भाईबहन अपनेअपने परिवार को ले कर मगन थे. मातापिता का देहांत हो चुका था. अरुणा ने पढ़ाई पूरी कर के अपने ही कालेज में व्याख्याता की नौकरी कर ली थी. पठनपाठन में उस का मन लग गया था. किताबें ही उस की मित्र थीं. पर कभीकभी उस का एकाकी जीवन उसे सालता था.

बस अचानक एक झटके से रुकी और अरुणा वर्तमान में लौट आई. उस का गांव आ गया था. उस के भाई व भाभी ने उस का स्वागत किया.

‘‘आओ अक्का, अब तो वापस शहर नहीं जाओगी न?’’ राघव ने उस के हाथ से बैग लेते हुए कहा.

‘‘नहीं, नौकरी से रिटायर हो चुकी हूं. मैं काम करकर के थक गई थी. अब यहीं शांति से रहूंगी.’’

‘‘अच्छा किया, मुझे भी आप की मदद की जरूरत है,’’ नागमणि बोली, ‘‘आप तो जानती हैं कि श्रीधर की शादी तय हो गई है. उस की तैयारी करनी है. जया के भी पांव भारी हैं. वह भी जचकी के लिए आने वाली है. आप को ही सब करनाकराना है.’’

‘‘तुम सब कुछ मुझ पर छोड़ दो, भाभी. मैं संभाल लूंगी.’’

वह बड़े उत्साह से शादी की तैयारी में लग गई. वधू के लिए गहने गढ़वाना, मेहमानों के लिए पकवान बनाना, रंगोली सजाना आदि ढेरों काम थे.

बहू बिदा हो कर आई थी. घर में गांव की स्त्रियों का जमघट लगा हुआ था.

वरवधू द्वाराचार के लिए खड़े थे.

‘‘अरे भई, आरती कहां है? कोई तो आरती उतारो,’’ किसी ने गुहार लगाई.

अरुणा ने सुना तो थाल उठा कर दौड़ी.

नागमणि ने झटके से उस के हाथ से थाली छीन ली, ‘‘यह क्या कर रही हैं अक्का? आप को कुछ होश है कि नहीं? यह काम सुहागिनों का है. आप की तो छाया भी नववधू पर नहीं पड़नी चाहिए. अपशकुन होगा.’’

अरुणा पर घड़ों पानी पड़ गया. कुछ क्षणों के लिए वह भूल बैठी थी कि वह विधवा है. शुभ अवसरों पर उसे ओट में रहना चाहिए. उसे याद आया कि घर में जब भी पिता बाहर निकलते और वह उन के सामने पड़ जाती तो वे उलटे पैरों लौट आते और थोड़ी देर बैठ कर पानी पी कर फिर निकलते.

शहर में लोग इन बातों की परवा नहीं करते थे, पर गांव की बात और थी. यहां लोग अभी भी कुसंस्कारों में जकड़े हुए थे. लीक पीटते जा रहे थे.

कुछ दिनों बाद नागमणि ने फिर

उस के रहनसहन पर आपत्ति खड़ी कर दी.

‘‘अक्का, आप रसोईघर और पूजाघर में न जाया करें.’’

‘‘क्यों भला?’’

‘‘स्वामी अनंताचार्यजी कह रहे थे कि आप ने विधवा हो कर भी केशकर्तन नहीं कराए जो हमारे शास्त्रों के विरुद्ध है और आप को अशुद्ध माना जा रहा है.’’

अरुणा के हृदय पर भारी चोट लगी. इतने सालों बाद यह कैसी प्रताड़ना? अभी भी उस के आचार पर लोगों की निगाहें गड़ी हैं. जीवन के संध्याकाल में इस दौर से भी गुजरना होगा, यह उस ने सोचा न था. उसे अपने ही लोगों ने अछूत की तरह जीने पर मजबूर कर दिया था. पगपग पर लांछन, पगपग पर तिरस्कार.

आखिर एक दिन उस का मन इतना विरक्त हुआ कि उस ने तय कर लिया कि वह अपने केश उतरवा देगी.

घर में उत्सव जैसा माहौल था. नाई आया. आंगन में एक पीढ़े पर वह बैठी. नाई ने अपना उस्तरा तेज किया और उस के सिर पर फेरना शुरू किया. केशगुच्छ जमीन पर गिरते गए. नाई के जाने के बाद घर की बड़ीबूढि़यां आईं और बोलीं, ‘‘चलो बेटी, अब नहा लो.’’

अरुणा उठ खड़ी हुई. नहा कर उस ने एक कोरी रेशम की साड़ी पहनी जो विधवाओं का लिबास था. अब उस की दिनचर्या बिलकुल बदल गई थी. उस के हिस्से में आए जप, तप, पूजापाठ, व्रतउपवास और संयमी जीवन.

उस के गांव से कुछ स्त्रियां तीर्थयात्रा पर जा रही थीं. अरुणा भी उन के साथ हो ली.

घर लौटी तो हमेशा की तरह उस के भाई उसे बसस्टैंड पर लेने आए थे.

‘‘कहो अक्का, तुम्हारी यात्रा सुखद रही न?’’ केशव ने पूछा.

‘‘हां,’’ वह बताने लगी, ‘‘मैं ने चारों धाम के दर्शन कर लिए. मेरा जीवन सार्थक हो गया.’’

उस ने देखा राघव कुछ अनमना सा था.

‘‘क्या बात है राघव, तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘हां, अक्का.’’

नागमणि द्वार पर खड़ी उस का रास्ता देख रही थी.

‘‘भाभी, मैं तुम सब के लिए उपहार लाई हूं,’’ अरुणा बोली, ‘‘तुम्हारे और जया के लिए चंदेरी साडि़यां…’’

कहतेकहते उस की निगाह अंदर सहन में झूले पर बैठी जया पर पड़ी तो वह ठिठक गई.

‘‘अरे, यह क्या?’’ उस के मुंह से निकला.

जया का गला व माथा सूना था. सारे सुहाग के चिह्न नदारद. एक मैली सी साड़ी लपेटे वह शून्य में ताकती अनमनी सी बैठी थी.

‘‘भाभी,’’ अरुणा ने अस्फुट चीत्कार किया, ‘‘यह क्या देख रही हूं मैं? यह कब और कैसे हुआ?’’

नागमणि ने रोरो कर बताया कि जया का पति उसे मायके छोड़ने आया था. सुबह नदी में नहाने गया. हेमावती नदी में बाढ़ आई हुई थी. सुरेश तैरते हुए एक भंवर में फंस गया और तुरंत डूब गया.

‘‘ओह, इतना बड़ा हादसा हो गया और आप लोगों ने मुझे खबर तक न की.’’

‘‘यही नहीं,’’ नागमणि रो कर बोली, ‘‘पति की मृत्यु की खबर से जया को इतना गहरा सदमा लगा कि उसी शाम उसे प्रसव वेदना हुई और एक सतमासा बच्चा पैदा हुआ, वह भी मरा हुआ. इस दोहरे आघात से लड़की एकदम विक्षिप्त सी हो गई है. न किसी से बोलतीचालती है न ठीक से खातीपीती है. बस, दिनभर गुमसुम सी इस झूले पर बैठी रहती है.’’

‘‘लेकिन आप लोगों ने इस के गहने क्यों उतरवा दिए? यह तो बड़ी ज्यादती है.’’

‘‘हम ने नहीं, इस ने खुद उतार फेंके हैं. मुझे तो डर है कि यह कहीं दुख से पागल न हो जाए.’’

‘‘ओह,’’ अरुणा ने ठंडा निश्वास छोड़ा. इस भतीजी से उसे बहुत लगाव था. पलभर में उस का सुखी संसार उजड़ गया था.

कुछ दिन बाद बैठक में भाई राघव, भाभी नागमणि, भतीजे श्रीधर और भतीजी जया के साथ अरुणा बैठी हुई थी. अचानक भाई ने प्रसंग छेड़ा.

‘‘स्वामीजी ने कहा था कि जया मांगलिक है इसलिए उस का एक वटवृक्ष से गठबंधन करा कर बाद में उस का विवाह करना चाहिए. हम ने वह भी किया. फिर भी पता नहीं क्यों यह हादसा हो गया? स्वामीजी के अनुसार तो यदि एक नवग्रह जाप करा कर ग्रहशांति के लिए एक छोटा सा यज्ञ करा दिया गया होता तो यह अनर्थ न होता.’’

‘‘उन की छोड़ो, आगे की सोचो. अब जया के बारे में क्या इरादा है?’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘उसे यों मझधार में तो छोड़ा नहीं जा सकता. तुम लोग उस की दूसरी शादी क्यों नहीं कर देते?’’

‘‘दूसरी शादी?’’

नागमणि भौचक उस का मुंह ताकने लगी. उस के होंठ कांपे और आंखों से आंसू ढुलकने लगे, ‘‘अक्का, क्या यह संभव है?’’

‘‘क्यों नहीं.’’

‘‘लेकिन लोग क्या कहेंगे? समाज इस की अनुमति देगा?’’ राघव ने टोका.

‘‘राघव, तुम किस समाज की बात कर रहे हो? हम लोग भी तो समाज का अंग हैं और तुम तो गांव के मुखिया हो. सब के अगुआ हो. तुम्हें यह क्रांतिकारी कदम उठाना ही होगा. तुम्हें एक दृष्टांत कायम करना होगा. आखिर किसी को तो पहल करनी चाहिए तभी तो इन कुरीतियों का अंत होगा.’’

‘‘लेकिन बिरादरी वाले हमें जीने नहीं देंगे.’’

‘‘न सही, पर बेटी पहले है या बिरादरी? जरा सोचो, जया के पति की अकाल मृत्यु हुई है, पर तुम लोग जया को जीतेजी मार रहे हो. क्षति उस की हुई और सजा भी वही भुगते. यह कहां का न्याय है?’’

‘‘अक्का ठीक कह रही हैं,’’ केशव ने कहा.

‘‘लेकिन मेरा मन इस की गवाही नहीं देता. हमारे हिंदू धर्म में विधवा विवाह वर्जित है.’’

‘‘अन्य धर्मों में विधवा विवाह की छूट है. मुसलमानों और ईसाइयों में विधवा विवाह होते रहते हैं. पता नहीं, हम हिंदू ही नारी के प्रति इतने बर्बर क्यों हैं? पुरुष एक छोड़ दस शादियां कर सकता है. एक पत्नी के मरने पर दोबारा कुंआरी कन्या से विवाह कर सकता है. ये सारे कायदेकानून, सारे प्रतिबंध स्त्रियों के लिए ही हैं. क्यों न हों, ये नियम पुरुषों ने ही तो बनाए हैं. लेकिन अब सारे देश में बदलाव की लहर बह रही है.

‘‘स्त्रियों के हित में नित नए कानून बन रहे हैं. स्त्रियां अपने अधिकारों के प्रति सजग हैं. वे अन्याय के विरुद्ध आवाज उठा रही हैं, पर अफसोस, हमारा गांव वहीं का वहीं है. वही संकीर्ण मानसिकता, वही पिछड़ापन. कुप्रथाओं के मकड़जाल में फंसा, तंत्रमंत्र, छुआछूत, टोनाटोटका, झाड़फूंक और अंधविश्वासों से घिरा है हमारा ग्रामीण समाज. ऊपर से हमारे धर्म के ठेकेदार हमें धर्म की दुहाई दे कर तिगनी का नाच नचाते रहते हैं. मैं यह सब इसलिए कह रही हूं कि हमें जया को आजीवन रोने व कलपने के लिए नहीं छोड़ना चाहिए. उस का भविष्य संवारने के लिए कोई ठोस कदम उठाना चाहिए.’’

‘‘मैं अक्का से सहमत हूं,’’ केशव बोला, ‘‘हमें जया की दूसरी शादी कर देनी चाहिए. मेरी नजर में एक अति उत्तम लड़का है. वह सुलझे विचारों वाला है. उस की सोच नई है. मैं उस से बात करूंगा.’’

‘‘ठीक है, पर एक बात, जातपांत को ले कर कोई बंदिश नहीं होनी चाहिए. जया को इस माहौल से निकालो. उसे शहर भेजो. वहां के उन्मुक्त वातावरण में उसे सांस लेने दो. उस के पंख मत कतरो. उस पर अंकुश मत लगाओ. उसे उड़ान भरने दो. उसे स्वच्छंद विचरने दो. उस के  व्यक्तित्व को विकसित होने दो.’’

‘‘अक्का, तुम ने भी तो कम उम्र में अपने पति को गंवाया था. तुम ने भी तो सारी उम्र निष्ठा से वैधव्य धर्म का पालन किया.’’

‘‘राघव, उस समय मेरे सामने और कोई विकल्प नहीं था. मुझ में मातापिता के विरुद्ध जाने की हिम्मत नहीं थी. लेकिन यह जरूरी नहीं कि जया का हश्र मेरे जैसा हो. उस में और मुझ में एक पीढ़ी का फर्क है. हमारे समय में लड़कियों को पढ़ायालिखाया नहीं जाता था. उसे पहले पिता फिर पति और फिर पुत्र का आश्रित हो कर रहना पड़ता था. विधवा होना तो उस के लिए एक बड़ा अभिशाप था.

अपनी इच्छाओं का दमन कर, रूखासूखा खा कर, मोटाझोटा पहन कर वह एक उपेक्षित की जिंदगी गुजारती थी. उसे मनहूस, कुलच्छिनी माना जाता था और उस की दशा जानवरों से भी बदतर होती थी. तुम तो जानते हो कि हमारी तमिल भाषा में ‘मुंडे’ यानी ‘विधवा’ गाली है. ‘मुंडेदे’ यानी विधवा की अवैध संतान भी एक गाली है. लेकिन अब हम विधवा के प्रति सदय हैं. हम में जागरूकता आई है. हम ने कई पुरानी कुप्रथाओं का त्याग किया है. एक समय था कि हमारे देश में सती का चलन था. बालविवाह और देवदासी की प्रथा थी. हमारे दक्षिण भारत के गांवों में नवजात बच्चियों को दूध के गागर में डुबो कर मार दिया जाता था. अब जमाना बदल रहा है. हमें जमाने के साथ चलना चाहिए. जया पढ़ीलिखी है, सबल है, सक्षम है. उसे स्वावलंबी बनने दो. उसे नया जीवनदान दो.’’

नागमणि अरुणा के पैरों पर गिर पड़ी, ‘‘अक्का, मुझे क्षमा कर दो. मैं ने आप को बहुत जलीकटी सुनाई है. आप को बहुत दुख पहुंचाया है.’’

‘‘वह सब भूल जाओ. अब हमारे सामने जया की ज्वलंत समस्या है. इस का समाधान ढूंढ़ना है. जिंदगी जीने के लिए है, घुटघुट कर मरने के लिए नहीं.’’

वह उठ कर जया की बगल में जा बैठी. उस की पीठ पर हाथ फेरते हुए उस ने कहा, ‘‘क्यों बिटिया, मैं ने ठीक कहा न?’’

जया के निस्पंद शरीर में तनिक हरकत हुई. उस ने सिर घुमा कर अरुणा को देखा और बिना कुछ बोल अपना सिर उस के कंधे पर टिका दिया.

मेरी साली हो गई है प्रेग्नेंट, क्या मैं उससे शादी कर लूं?

सवाल

मेरी उम्र 40 साल है और कुछ महीने पहले ही पापा बना हूं. मेरी पत्नी और बच्चे की देखभाल करने के लिए उसकी छोटी बहन आई है. वो हमारे परिवार का बहुत ख्याल रखती है. यहां तक कि मेरे कपड़े भी वही धोती है. एक दिन वह बहुत बीमार पड़ गई थी तो इस वजह से रातभर मुझे उसके पास सोना पड़ा. अगले दिन जब आंखें खुली तो वो मेरे बांहों में थी. हमदोनों को थोड़ा अजीब लगा, लेकिन बाद में दोनों जल्दी उठकर कमरे से बाहर निकल गए.

 

कुछ दिनों तक वो मेरे सामने आने से बचती रही, लेकिन एक दिन मौका देखकर मैं उसे बाहर लेकर गया था, उससे पूछा कि तुम मुझसे बात क्यों नहीं कर रही, उसने उस रात के बारे में बात की और फूटफूट कर रोने लगी. उसने कहा कि उससे बहुत बड़ी गलती हो गई, जब इस बारे में उसकी दीदी को पता चलेगा, तो उसके साथ क्या होगा.

Couple

मैंने उसे बहुत समझाने की कोशिश कि और कहा, उसकी दीदी को नहीं पता चलेगा, ये हमदोनों के बीच की बात है. उसे मेरा विश्वास कर लिया. अब हमदोनों बाहर भी मिलते हैं, होटल बुक कर मैं उसके साथ सेक्स भी करता हूं. हमदोनों एकदूसरे से बहुत प्यार करने लगे है, लेकिन वह प्रेग्नेंट हो गई है. वह शादी करने के लिए भी कह रही है, अब मुझे समझ नहीं आ रहा मैं क्या करूं?  जब इस बारे में बीवी को पता चलेगा तो मेरे घर में बहुत बड़ा तूफान आएगा. इस समस्या का कोई समाधान हो, तो कृपया बताएं.

Close up portrait on gay couple together

जवाब

देखिए आपकी समस्या बहुत उलझी हुई है. यह एक फैमिली मैटर जिसमें दो बहनों के बीच आप आ गए हैं. एक बहन को तो पता है, लेकिन दूसरी बहन को कुछ नहीं पता… आपको इस मामले में समझदारी से काम लेना चाहिए.

आप कह रहे हैं कि साली से प्रेम करते हैं और वह प्रेग्नेंट भी हो गई हैं. रही बात शादी की, तो आप बिना तलाक के दूसरी शादी नहीं कर सकते हैं. अगर आप सारी सच्चाई अपनी बीवी को बताते हैं, तो आपका रिश्ता टूटेगा ही साथ ही दो बहनें भी एकदूसरे की दुश्मन बन जाएंगी और आपको एक ही बहन को चुनना पड़ेगा.

Lovely ladies in good mood hugging on large balcony

इस सिचुएशन को सही करने का एक ही उपाय है कि आप अपनी साली को कान्ट्रासेप्टिव पिल्स खिला दें. अगर वह ये पिल्स लेने के लिए तैयार हो जाती है, तो यह बहुत अच्छी बात है, लेकिन तैयार नहीं होती है, तो उसे आराम से सारी चीजें समझाएं, अगर वो बच्चा रखती है, लाइफ में कितनी सारी परेशानी होगी.

अगर आप प्यार से समझाएंगे, तो वो आपकी बातें जरूर मानेगी, इससे आप तीनों की लाइफ सुधर जाएगी. आप अपनी साली को अपने साथ न रखें. उसे अपने कैरियर पर फोकस करने के लिए कहें. रही बात घर के कामों की, तो इसके लिए आप हाउस हेल्पर रख लें. इससे आपको और आपकी पत्नी दोनों को मदद मिलेगी.

Jasmin Bhasin की आंखें डैमेज हुई, कलर्ड कौस्ट्यूम लैंसेज लगाएं पर इन टिप्स को करें फौलो

टीवी एक्ट्रैस जैस्मीन भसीन की आंखों की कौर्निया लैंस लगाने की वजह से बुरी तरह डैमेज हो गई, कुछ दिन पहले उन्होंने अपनी फोटो पोस्ट की जिसमें उन की दोनों आंखों में पट्टी बंधी थी.  हाल ही में एक वीडियो जारी कर उन्होंने बताया कि अब वह रिकवर कर रही हैं.  लेकिन क्या जैस्मीन के केस  के आप डर गई हैं ?  क्या आप यह सोच रही हैं कि जैस्मीन के केस के बाद कौस्ट्यूम कौंटैक्ट लैंसेज का इस्तेमाल से बचना चाहिए. तो ऐसा नहीं? आप फैशनेबल हैं, स्टाइलिस्ट हैं और ट्रैंड को फौलो करने में यकीन रखती हैं, तो आंखों को और खूबसूरत बनाने के लिए लैंसेज लगाने में कोई हर्ज नहीं पर कुछ सावधानियां जरूरी है. एकएक कर इन कारणों को समझें –

इस में दो राय नहीं है कि कौस्मेटिक कौंटैक्ट लैंसेज की वजह से आंखों को बोल्ड स्टैटमेंट और आपकी पर्सनैलिटी को ड्रामैटिक लुक मिलता है. यह केवल आंखों के रंग को ही नहीं बदलता बल्कि फेस की ब्यूटी को बढ़ाता है. बस यह याद रखें कि डौक्टर से कंसल्ट करने के बाद ही खरीदें, इसे सही तरीके से इस्तेमाल करना जानें और इसे अच्छी तरह रखने के तरीके को सीखें .आंखों का डौक्टर यानी औप्थैलमोलौजिस्ट न केवल सही फिटिंग के लैंसेज लगाने का सजेशन देगा बल्कि यह बताएगा कि  कलर्ड कौंटैक्ट लैंसेज  कितने कंफर्टेबल होने चाहिए,  लुक के हिसाब से किस तरह के होने चाहिए और इस को आंखों के लिए किस तरह से सुरक्षित रखा जाना  चाहिए.

किन आंखों के लिए कैसे कौस्ट्यूम लैंसेज

आप लैंस लगाना चाहती हैं लेकिन अपने लुक को ज्यादा ड्रामेटिक बनाने की बजाय नैचुरल रखना चाहती हैं आपका कौम्पलेक्शन फेयर है, तो ग्रे या ग्रीन या फिर ब्लू का लाइट टिंट वाला लैंस चूज करें.   अगर चाहती है कि आपकी पर्सनैलिटी को महफिल में खड़े लोग तुरंत नोटिस करें, तो लाइट ब्राउन कलर परफैक्ट है. अगर आंखों का रंग गहरा है, तो हनी ब्राउन बैस्ट रहेगा. कई 

लड़कियां वायलैट आई लैंसेज की भी दीवानी है. इंडियन स्किन टोन के ब्राउन कलर सबसे परफैक्ट माने जा सकते हैं. कस्टमाइज्ड लैंसेज आमतौर पर सेमी ट्रांसलूसैंट होते हैं, यह आप के नैचुरल लुक को बनाए रखता है. ऐसा देखा गया है कि कस्टम टिंटैड कौंटैक्ट्स केवल कौस्मेटिक कारणों से नहीं पहने जाते हैं, प्रोफैशनल प्लेयर्स अपने प्रदर्शन को बेहतर करने के लिए कलर टिंट्स लैंस यूज करते हैं, इसे आसानी से इस तरह समझा जा सकता है हरे टिंट का लैंस एक टैनिस प्लेयर को कोर्ट पर गेंद को अधिक क्लियर देखने में मदद करता है . 

कहां सावधानी बरतनी है जरूरी 

आई स्पैशलिस्ट से आंखों को चेक कराने के बाद ही लेंस खरीदें. आप लेंस खरीद रही हैं आई शैडो नहीं. लैंस आपकी आंखों के सैंसेटिव हिस्से के संपर्क में रहता है इसलिए लापरवाही बरतने पर सीरियस प्रौब्लम हो सकती है, यहां तक कि आंखों की रौशनी पर भी बुरा असर पड़ सकता है. दूसरे कई देशों में तो गैर लाइसेंसी  वैंडर्स, ब्यूटी पार्लर, जनरल स्टोर्स में इसे बेचे जाने पर रोक लगा रखा है. इसे ब्यूटी प्रोडक्ट समझकर ओवर-द-काउंटर सजावटी कॉन्टैक्ट लेंस खरीदने की भूल नहीं करें. स्टडीज में यह भी पाया गया है कि ओवर-द-काउंटर टिंटेड कॉन्टैक्ट लेंस को कलर करने के लिए जिन कैमिकल्स में क्लोरीन और कुछ हार्मफुल चीजों का यूज किया जाता है. ये कैमिकल्स हमेशा के लिए आपके आंखों की रौशनी को नुकसान पहुंचा सकते हैं. 

  

बात आंखों की है इसलिए डौक्टर जरूरी है 

अमेरिकन अकेडमी औफ औप्थैलमोजी के अनुसार, कौस्ट्यूम कौन्टैक्ट लैंसेज के कुछ रिस्क भी होते हैंओवर द काउंटर खरीदे गए कौन्टैक्ट लैंसेज कई बार आंखों पर फिट नहीं होते हैं, इससे आंखों की लेयर घिस सकती है, उस में खरोंच लग सकती है, यह कौर्निया को स्क्रैच कर सकता है. इस वजह से ऐसा महसूस होता है कि आंखों में कुछ गिर गया है.  स्क्रैच के कारण आंखों में दर्द होता है, ये लाल हो जाती हैं.  आंखों से डिस्चार्ज भी हो सकता है.  कई बार यह भी पाया गया है कि कौर्निया घिसने की वजह से कौर्नियल अल्सर तक हो जाता है.  वैसे तो आईड्रौप से अल्सर ठीक हो जाता है लेकिन ठीक होने के बाद इसका निशान बना रह जाता है.  आंखों के डौक्टर यानी औप्थैलमोलौजिस्ट से सलाह लेना इसलिए भी जरूरी है कि  कुछ कैसेज में कौर्निया बहुत ज्यादा डैमेज्ड हो जाता है तो आंखों की रौशनी को ठीक करने के लिए कॉर्नियल ट्रांस्प्लांट करने की जरूरत पड़ जाती है. कई बार औप्थैलमोलौजिस्ट के परामर्श के बिना कौन्टैक्ट लेंस लेने की वजह से आंखों की प्रौब्लम इतनी बढ़ जाती है कि मोतियाबिंद या ग्लूकोमा जैसी डिसीस होने के चांसेज होते हैं.

कलर्ड कौंटैक्ट लैंसेज लगाने से पर्सनैलिटी को न्यू लुक मिलता है. यह रूटीन स्टाइलिंग में चेंज लाता है. वैडिंग फंक्शन्स, पार्टीज, फेस्टिवल्स जैसे मौकों पर आपकी खूबसूरती को निखारता है.  कलर कौंटैक्ट लैंसेज पावर के साथ भी आते हैं और बिना पावर वाले भी. यह पूरी तरह से आपकी जरूरत पर निर्भर करता है कि आप आंखों की रौशनी को ठीक करने के लिए कौंटैक्ट लैंस लेना चाहते हैं या ब्यूटी एक्सैसरीज के रूप में इस्तेमाल करने के लिए. 

कलर कौन्टैक्ट लगाने के पहले यह जान लें 

अपने लैंसेज को फ्रेंड्स के साथ शेयर नहीं करें, यह आपकी ड्रैस की तरह नहीं है जो शरीर के उपर पहनी जाती है, यह आंखों की स्किन को डायरैक्ट टच करती है . यह जरूरी नहीं कि आपका लैंस आपकी सहेली को भी फिट हो जाए.  इतना ही शेयरिंग से बैक्टीरियल इंफैक्शन का खतरा भी बना रहता है . पावर वाले कौंटैक्ट लैंसेज की तरह कलर्ड कौंटैक्ट लैंसेज की भी देखभाल जरूरी है, इसे ब्यूटी एक्सैसरीज समझ कर इसके केयर को नजरअंदाज न करें. इसे अच्छी तरह साफ करना, डिस-इंफैक्ट करना और सही तरीके से स्टोर करना जरूरी है. अपने डौक्टर के कहे अनुसार इसे कब बदलना चाहिए, इस बात का भी ख्याल रखें. आंखों में किसी तरह का इंफैक्शन हो, तो इसका यूज मत करें. अगर पहनने के बाद तकलीफ हो रही है, तो बिना देर किए डौक्टर से मिलें. 

कलर्ड लैंसेज से पर्सनैलिटी को ड्रैमेटिक लुक देने में कोई हर्ज नहीं है लेकिन सावधानियां जरूरी है. इसमें थोड़ी भी जैस्मीन की तरह आपकी आंखों को भी नुकसान पहुंचा सकती है. 

बहुत हुआ अब और नहीं

जब पुलिस की जीप एक ढाबे के आगे आ कर रुकी, तो अब्दुल रहीम चौंक गया. पिछले 20-22 सालों से वह इस ढाबे को चला रहा था, पर पुलिस कभी नहीं आई थी. सो, डर से वह सहम गया. उसे और हैरानी हुई, जब जीप से एक बड़ी पुलिस अफसर उतरीं. ‘शायद कहीं का रास्ता पूछ रही होंगी’, यह सोचते हुए अब्दुल रहीम अपनी कुरसी से उठ कर खड़ा हो गया कि साथ आए थानेदार ने पूछा, ‘‘अब्दुल रहीम आप का ही नाम है? हमारी साहब को आप से कुछ पूछताछ करनी है. वे किसी एकांत जगह बैठना चाहती हैं.’’

अब्दुल रहीम उन्हें ले कर ढाबे के कमरे की तरफ बढ़ गया. पुलिस अफसर की मंदमंद मुसकान ने उस की झिझक और डर दूर कर दिया था.

‘‘आइए मैडम, आप यहां बैठें. क्या मैं आप के लिए चाय मंगवाऊं?

‘‘मैडम, क्या आप नई सिटी एसपी कल्पना तो नहीं हैं? मैं ने अखबार में आप की तसवीर देखी थी…’’ अब्दुल रहीम ने उन्हें बिठाते हुए पूछा.

‘‘हां,’’ छोटा सा जवाब दे कर वे आसपास का मुआयना कर रही थीं. एक लंबी चुप्पी के बाद कल्पना ने अब्दुल रहीम से पूछा, ‘‘क्या आप को ठीक 10 साल पहले की वह होली याद है, जब एक 15 साला लड़की का बलात्कार आप के इस ढाबे के ठीक पीछे वाली दीवार के पास किया गया था? उसे चादर आप ने ही ओढ़ाई थी और गोद में उठा उस के घर पहुंचाया था?’’ अब चौंकने की बारी अब्दुल रहीम की थी. पसीने की एक लड़ी कनपटी से बहते हुए पीठ तक जा पहुंची. थोड़ी देर तक सिर झुकाए मानो विचारों में गुम रहने के बाद उस ने सिर ऊपर उठाया. उस की पलकें भीगी हुई थीं.

अब्दुल रहीम देर तक आसमान में घूरता रहा. मन सालों पहले पहुंच गया. होली की वह मनहूस दोपहर थी, सड़क पर रंग खेलने वाले कम हो चले थे. इक्कादुक्का मोटरसाइकिल पर लड़के शोर मचाते हुए आतेजाते दिख रहे थे. अब्दुल रहीम ने उस दिन भी ढाबा खोल रखा था. वैसे, ग्राहक न के बराबर आए थे. होली का दिन जो था. दोपहर होती देख अब्दुल रहीम ने भी ढाबा बंद कर घर जाने की सोची कि पिछवाड़े से आती आवाजों ने उसे ठिठकने पर मजबूर कर दिया. 4 लड़के नशे में चूर थे, पर… पर, यह क्या… वे एक लड़की को दबोचे हुए थे. छोटी बच्ची थी, शायद 14-15 साल की. अब्दुल रहीम उन चारों लड़कों को पहचानता था. सब निठल्ले और आवारा थे. एक पिछड़े वर्ग के नेता के साथ लगे थे और इसलिए उन्हें कोई कुछ नहीं कहता था. वे यहीं आसपास के थे. चारों छोटेमोटे जुर्म कर अंदरबाहर होते रहते थे. रहीम जोरशोर से चिल्लाया, पर लड़कों ने उस की कोई परवाह नहीं की, बल्कि एक लड़के ने ईंट का एक टुकड़ा ऐसा चलाया कि सीधे उस के सिर पर आ कर लगा और वह बेहोश हो गया.

आंखें खुलीं तो अंधेरा हो चुका था. अचानक उसे बच्ची का ध्यान आया. उन लड़कों ने तो उस का ऐसा हाल किया था कि शायद गिद्ध भी शर्मिंदा हो जाएं. बच्ची शायद मर चुकी थी. अब्दुल रहीम दौड़ कर मेज पर ढका एक कपड़ा खींच लाया और उसे उस में लपेटा. पानी के छींटें मारमार कर कोशिश करने लगा कि शायद कहीं जिंदा हो. चेहरा साफ होते ही वह पहचान गया कि यह लड़की गली के आखिरी छोर पर रहती थी. उसे नाम तो मालूम नहीं था, पर घर का अंदाजा था. रोज ही तो वह अपनी सहेलियों के संग उस के ढाबे के सामने से स्कूल जाती थी. बच्ची की लाश को कपड़े में लपेटे अब्दुल रहीम उस के घर की तरफ बढ़ चला. रात गहरा गई थी. लोग होली खेल कर अपनेअपने घरों में घुस गए थे, पर वहां बच्ची के घर के आगे भीड़ जैसी दिख रही थी. शायद लोग खोज रहे होंगे कि उन की बेटी किधर गई.

अब्दुल रहीम के लिए एकएक कदम चलना भारी हो गया. वह दरवाजे तक पहुंचा कि उस से पहले लोग दौड़ते हुए उस की तरफ आ गए. कांपते हाथों से उस ने लाश को एक जोड़ी हाथों में थमाया और वहीं घुटनों के बल गिर पड़ा. वहां चीखपुकार मच गई.

‘मैं ने देखा है, किस ने किया है.

मैं गवाही दूंगा कि कौन थे वे लोग…’ रहीम कहता रहा, पर किसी ने भी उसे नहीं सुना. मेज पर हुई थपकी की आवाज से अब्दुल रहीम यादों से बाहर आया.

‘‘देखिए, उस केस को दाखिल करने का आर्डर आया है,’’ कल्पना ने बताया. ‘‘पर, इस बात को तो सालों बीत गए हैं मैडम. रिपोर्ट तक दर्ज नहीं हुई थी. उस बच्ची के मातापिता शायद उस के गम को बरदाश्त नहीं कर पाए थे और उन्होंने शहर छोड़ दिया था,’’ अब्दुल रहीम ने हैरानी से कहा. ‘‘मुझे बताया गया है कि आप उस वारदात के चश्मदीद गवाह थे. उस वक्त आप उन बलात्कारियों की पहचान करने के लिए तैयार भी थे,’’ कल्पना की इस बात को सुन कर अब्दुल रहीम उलझन में पड़ गया. ‘‘अगर आप उन्हें सजा दिलाना नहीं चाहते हैं, तो कोई कुछ नहीं कर सकता है. बस, उस बच्ची के साथ जो दरिंदगी हुई, उस से सिर्फ वह ही नहीं तबाह हुई, बल्कि उस के मातापिता की भी जिंदगी बदतर हो गई,’’ सिटी एसपी कल्पना ने समझाते हुए कहा.

‘‘2 चाय ले कर आना,’’ अब्दुल रहीम ने आवाज लगाई, ‘‘जीप में बैठे लोगों को भी चाय पिलाना.’’ चाय आ गई. अब्दुल रहीम पूरे वक्त सिर झुकाए चिंता में चाय सुड़कता रहा. ‘‘आप तो ऐसे परेशान हो रहे हैं, जैसे आप ने ही गुनाह किया हो. मेरा इरादा आप को तंग करने का बिलकुल नहीं था. बस, उस परिवार के लिए इंसाफ की उम्मीद है.’’ अब्दुल रहीम ने कहा, ‘‘हां मैडम, मैं ने अपनी आंखों से देखा था उस दिन. पर मैं उस बच्ची को बचा नहीं सका. इस का मलाल मुझे आज तक है. इस के लिए मैं खुद को भी गुनाहगार समझता हूं. ‘‘कई दिनों तक तो मैं अपने आपे में भी नहीं था. एक महीने बाद मैं फिर गया था उस के घर, पर ताला लटका हुआ था और पड़ोसियों को भी कुछ नहीं पता था.

‘‘जानती हैं मैडम, उस वक्त के अखबारों में इस खबर ने कोई जगह नहीं पाई थी. दलितों की बेटियों का तो अकसर उस तरह बलात्कार होता था, पर यह घर थोड़ा ठीकठाक था, क्योंकि लड़की के पिता सरकारी नौकरी में थे. और गुनाहगार हमेशा आजाद घूमते रहे. ‘‘मैं ने भी इस डर से किसी को यह बात बताई भी नहीं. इसी शहर में होंगे सब. उस वक्त सब 20 से 25 साल के थे. मुझे सब के बाप के नामपते मालूम हैं. मैं आप को उन सब के बारे में बताने के लिए तैयार हूं.’’ अब्दुल रहीम को लगा कि चश्मे के पीछे कल्पना मैडम की आंखें भी नम हो गई थीं.

‘‘उस वक्त भले ही गुनाहगार बच गए होंगे. लड़की के मातापिता ने बदनामी से बचने के लिए मामला दर्ज ही नहीं किया, पर आने वाले दिनों में उन चारों पापियों की करतूत फोटो समेत हर अखबार की सुर्खी बनने वाली है.

‘‘आप तैयार रहें, एक लंबी कानूनी जंग में आप एक अहम किरदार रहेंगे,’’ कहते हुए कल्पना मैडम उठ खड़ी हुईं और काउंटर पर चाय के पैसे रखते हुए जीप में बैठ कर चली गईं. ‘‘आज पहली बार किसी पुलिस वाले को चाय के पैसे देते देखा है,’’ छोटू टेबल साफ करते हुए कह रहा था और अब्दुल रहीम को लग रहा था कि सालों से सीने पर रखा बोझ कुछ हलका हो गया था. इस मुलाकात के बाद वक्त बहुत तेजी से बीता. वे चारों लड़के, जो अब अधेड़ हो चले थे, उन के खिलाफ शिकायत दर्ज हो गई. अब्दुल रहीम ने भी अपना बयान रेकौर्ड करा दिया. मीडिया वाले इस खबर के पीछे पड़ गए थे. पर उन के हाथ कुछ खास खबर लग नहीं पाई थी. अब्दुल रहीम को भी कई धमकी भरे फोन आने लगे थे. सो, उन्हें पूरी तरह पुलिस सिक्योरिटी में रखा जा रहा था. सब से बढ़ कर कल्पना मैडम खुद इस केस में दिलचस्पी ले रही थीं और हर पेशी के वक्त मौजूद रहती थीं.

कुछ उत्साही पत्रकारों ने उस परिवार के पड़ोसियों को खोज निकाला था, जिन्होंने बताया था कि होली के कुछ दिन बाद ही वे लोग चुपचाप बिना किसी से मिले कहीं चले गए थे, पर बात किसी से नहीं हो पाई थी. कोर्ट की तारीखें जल्दीजल्दी पड़ रही थीं, जैसे कोर्ट भी इस मामले को जल्दी अंजाम तक पहुंचाना चाहता था. ऐसी ही एक पेशी में अब्दुल रहीम ने सालभर बाद बच्ची के पिता को देखा था. मिलते ही दोनों की आंखें नम हो गईं. उस दिन कोर्ट खचाखच भरा हुआ था. बलात्कारियों का वकील खूब तैयारी के साथ आया हुआ मालूम दे रहा था. उस की दलीलों के आगे केस अपना रुख मोड़ने लगा था. सभी कानून की खामियों के सामने बेबस से दिखने लगे थे.

‘‘जनाब, सिर्फ एक अब्दुल रहीम की गवाही को ही कैसे सच माना जाए? मानता हूं कि बलात्कार हुआ होगा, पर क्या यह जरूरी है कि चारों ये ही थे? हो सकता है कि अब्दुल रहीम अपनी कोई पुरानी दुश्मनी का बदला ले रहे हों? क्या पता इन्होंने ही बलात्कार किया हो और फिर लाश पहुंचा दी हो?’’ धूर्त वकील ने ऐसा पासा फेंका कि मामला ही बदल गया. लंच की छुट्टी हो गई थी. उस के बाद फैसला आने की उम्मीद थी. चारों आरोपी मूंछों पर ताव देते हुए अपने वकील को गले लगा कर जश्न सा मना रहे थे. लच की छुट्टी के बाद जज साहब कुछ पहले ही आ कर सीट पर बैठ गए थे. उन के सख्त होते जा रहे हावभाव से माहौल भारी बनता जा रहा था.

‘‘क्या आप के पास कोई और गवाह है, जो इन चारों की पहचान कर सके,’’ जज साहब ने वकील से पूछा, तो वह बेचारा बगलें झांकने लगा. पीछे से कुछ लोग ‘हायहाय’ का नारा लगाने लगे. चारों आरोपियों के चेहरे दमकने लगे थे. तभी एक आवाज आई, ‘‘हां, मैं हूं. चश्मदीद ही नहीं भुक्तभोगी भी. मुझे अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाए.’’ सब की नजरें आवाज की दिशा की ओर हो गईं. जज साहब के ‘इजाजत है’ बोलने के साथ ही लोगों ने देखा कि उन की शहर की एसपी कल्पना कठघरे की ओर जा रही हैं. पूरे माहौल में सनसनी मच गई. ‘‘हां, मैं ही हूं वह लड़की, जिसे 10 साल पहले होली की दोपहर में इन चारों ने बड़ी ही बेरहमी से कुचला था, इस ने…

‘‘जी हां, इसी ने मुझे मेरे घर के आगे से उठा लिया था, जब मैं गेट के आगे कुत्ते को रोटी देने निकली थी. मेरे मुंह को इस ने अपनी हथेलियों से दबा दिया था और कार में डाल दिया था. ‘‘भीतर पहले से ये तीनों बैठे हुए थे. इन्होंने पास के एक ढाबे के पीछे वाली दीवार की तरफ कार रोक कर मुझे घसीटते हुए उतारा था. ‘‘इस ने मेरे दोनों हाथ पकड़े थे और इस ने मेरी जांघें. कपड़े इस ने फाड़े थे. सब से पहले इस ने मेरा बलात्कार किया था… फिर इस ने… मुझे सब के चेहरे याद हैं.’’ सिटी एसपी कल्पना बोले जा रही थीं. अपनी उंगलियों से इशारा करते हुए उन की करतूतों को उजागर करती जा रही थीं. कल्पना के पिता ने उठ कर 10 साल पुराने हुए मैडिकल जांच के कागजात कोर्ट को सौंपे, जिस में बलात्कार की पुष्टि थी. रिपोर्ट में साफ लिखा था कि कल्पना को जान से मारने की कोशिश की गई थी. कल्पना अभी कठघरे में ही थीं कि एक आरोपी की पत्नी अपनी बेटी को ले कर आई और सीधे अपने पति के मुंह पर तमाचा जड़ दिया.

दूसरे आरोपी की पत्नी उठ कर बाहर चली गई. वहीं एक आरोपी की बहन अपनी जगह खड़ी हो कर चिल्लाने लगी, ‘‘शर्म है… लानत है, एक भाई होते हुए तुम ने ऐसा कैसे किया था?’’ ‘‘जज साहब, मैं बिलकुल मरने की हालत में ही थी. होली की उसी रात मेरे पापा मुझे तुरंत अस्पताल ले कर गए थे, जहां मैं जिंदगी और मौत के बीच कई दिनों तक झूलती रही थी. मुझे दौरे आते थे. इन पापियों का चेहरा मुझे हर वक्त डराता रहता था.’’ अब केस आईने की तरह साफ था. अब्दुल रहीम की आंखों से आंसू बहे जा रहे थे. कल्पना उन के पास जा कर उन के कदमों में गिर पड़ी.

‘‘अगर आप न होते, तो शायद मैं जिंदा न रहती.’’ मीडिया वाले कल्पना से मिलने को उतावले थे. वे मुसकराते हुए उन की तरफ बढ़ गई. ‘‘अब्दुल रहीम ने जब आप को कपड़े में लपेटा था, तब मरा हुआ ही समझा था. मेज के उस कपड़े से पुलिस की वरदी तक के अपने सफर के बारे में कुछ बताएं?’’ एक पत्रकार ने पूछा, जो शायद सभी का सवाल था. ‘‘उस वारदात के बाद मेरे मातापिता बेहद दुखी थे और शर्मिंदा भी थे. शहर में वे कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहे थे. मेरे पिताजी ने अपना तबादला इलाहाबाद करवा लिया था. ‘‘सालों तक मैं घर से बाहर जाने से डरती रही थी. आगे की पढ़ाई मैं ने प्राइवेट की. मैं अपने मातापिता को हर दिन थोड़ाथोड़ा मरते देख रही थी.

‘‘उस दिन मैं ने सोचा था कि बहुत हुआ अब और नहीं. मैं भारतीय प्रशासनिक सेवा में जाने के लिए परीक्षा की तैयारी करने लगी. आरक्षण के कारण मुझे फायदा हुआ और मनचाही नौकरी मिल गई. मैं ने अपनी इच्छा से इस राज्य को चुना. फिर मौका मिला इस शहर में आने का. ‘‘बहुतकुछ हमारा यहीं रह गया था. शहर को हमारा कर्ज चुकाना था. हमारी इज्जत लौटानी थी.’’ ‘‘आप दूसरी लड़कियों और उन के मातापिता को क्या संदेश देना चाहेंगी?’’ किसी ने सवाल किया. ‘‘इस सोच को बदलने की सख्त जरूरत है कि बलात्कार की शिकार लड़की और उस के परिवार वाले शर्मिंदा हों. गुनाहगार चोर होता है, न कि जिस का सामान चोरी जाता है वह.

‘‘हां, जब तक बलात्कारियों को सजा नहीं होगी, तब तक उन के हौसले बुलंद रहेंगे. मेरे मातापिता ने गलती की थी, जो कुसूरवार को सजा दिलाने की जगह खुद सजा भुगतते रहे.’’ कल्पना बोल रही थीं, तभी उन की मां ने एक पुडि़या अबीर निकाला और उसे आसमान में उड़ा दिया. सालों पहले एक होली ने उन की जिंदगी को बेरंग कर दिया था, उसे फिर से जीने की इच्छा मानो जाग गई थी.

New Moms ब्रैस्ट फीडिंग के दौरान इस तरह रखें हाइजीन का ख्याल

नवजात का शरीर इंफैक्शंस से लड़ने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं होता. इस दौरान स्तनपान कराने वाली मांओं को अपनी और शिशु की साफसफाई का खास ध्यान रखना चाएि. यदि मांएं ब्रैस्ट की सफाई का सही ध्यान न रखें तो शिशु को पोषक ब्रैस्ट मिल्क के साथसाथ संक्रमण पैदा करने वाले बैक्टीरिया भी मिल सकते हैं. जानिए, स्तनपान कराने वाली मांओं के लिए कुछ खास टिप्स:

हैंड वाश

स्तनपान करने वाली मांओं के लिए तो ऐसा करना बेहद जरूरी है. दिन भर के काम निबटाते समय हाथ में बैक्टीरिया का रहना आम बात है.

ऐसे में उंगलियों व हथेलियों के गंदे व संक्रमित होने की संभावना अधिक रहती है. वैसे भी संक्रमित करने वाले जीवाणु व विषाणु इतने छोटे होते हैं कि दिखाई नहीं देते हैं और नवजात को दूध पिलाने के दौरान स्थानांतरित हो जाते हैं. इस से शिशु कई बीमारियों से ग्रस्त हो जाता है. इसलिए शिशु में बीमारियों को फैलने से रोकने के लिए मां का अपने हाथों को उचित तरीके से धोना बेहद आवश्यक है.

ब्रैस्ट क्लीनिंग

स्तनों व निपलों को साफ रखना भी जरूरी है, क्योंकि कपड़ों की वजह से निपलों पर पसीना जमने से वहां कीटाणु पनपते हैं, जो ब्रैस्ट फीडिंग के दौरान शिशु के पेट में पहुंच जाते हैं और फिर उसे नुकसान पहुंचाते हैं. इसलिए ध्यान रहे कि शिशु को स्तनपान कराने से पहले अपने स्तनों व निपलों को कुनकुने पानी में रुई या साफ कपड़ा भिगो कर उस से अच्छी तरह पोंछें. निपल की सूजन को कम करने के लिए आप दूध की 4-5 बूंदें निपल पर लगा कर सूखने दें. कई बार नवजात बच्चा दूध पीते वक्त दांतों से काट लेता है, जिस से जख्म बन जाता है और फिर दर्द होता है. इस दर्द को कम करने में भी मां का अपना दूध काफी मददगार साबित होता है.

शिशु के जन्म के बाद से ही मां के स्तनों के आकार में परिवर्तन आ जाता है. ऐसी स्थिति में टाइट ब्रा पहनने से बचना चाहिए, क्योंकि टाइट ब्रा पहनने के बहुत नुकसान होते हैं. एक तो शिशु को दूध पिलाने में दिक्कत होती है दूसरा स्तनों में दूध का जमाव बढ़ जाता है, जोकि बाद में गांठ का रूप ले लेता है.

निपल शील्ड को करें स्टेरलाइज

कई मांएं ब्रैस्ट फीड कराते समय निपल शील्ड का उपयोग करती हैं, जो दूध पिलाते वक्त उन के सामने आने वाली समस्याओं का अल्पकालीन समाधान है. इन निपल शील्ड को उपयोग करते समय इन की साफसफाई पर भी ध्यान देना जरूरी है. और इन्हें लगा कर दूध पिलाने से पहले इन्हें हर बार स्टेरलाइज कर लेना चाहिए ताकि शील्ड पर मौजूद कीटाणु हट जाएं और नवजात के पेट में न जा पाएं.

पहने नर्सिंग ब्रा

ब्रैस्ट फीडिंग कराने वाली मांएं रैग्युलर ब्रा की जगह नर्सिंग ब्रा पहनती हैं, जिस से शिशु को फीड कराना आसान रहता है, क्योंकि यह साधारण ब्रा के मुकाबले काफी आरामदायक व फ्लैक्सिबल होती है. कौटन से बनी इस ब्रा में जहां हवा पास होती रहती है वहीं इस में लगा इलास्टिक त्वचा को काफी सौफ्ट टच देता है. अगर आप अभी मां बनी हैं और बच्चे को ब्रैस्ट फीड कराती हैं, तो बौडी केयर की नर्सिंग ब्रा एक अच्छा विकल्प है. इस तरह की ब्रा में कप में निपल वाली जगह खोलने की सुविधा होती है और पीछे हुक भी अधिक लगे होते हैं, जिन्हें आप अपने हिसाब से लूज व टाइट कर सकती हैं. इस ब्रा की बनावट स्तनों  को पूरा सहारा देती है. लेकिन कई बार दूध पिलाते वक्त ब्रा पर दूध गिर जाने से वहां बैक्टीरिया पनप जाते हैं और वह गंदी भी हो जाती है. इसलिए नर्सिंग ब्रा को हर दिन बदलें.

स्तनपान के लिए आप जिन उपकरणों जैसेकि ब्रैस्ट पंप का उपयोग कर रही हैं, तो उस की साफसफाई भी जरूरी है. ब्रैस्ट पंप धोने के लिए रसोईर् या शिशु की बोतल धोने वाले ब्रश का प्रयोग भूल कर भी न करें. इसे साफ करने के लिए अलग साधन का प्रयोग करें.

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