ब्लड प्रैशर कंट्रोल के लिए क्याक्या सावधानियां बरतनी चाहिए?

सवाल-

मैं 42 साल का हूं. कई साल से मार्केटिंग में हूं. हर वक्त सर पर टारगैट पूरा करने का स्ट्रैस बना रहता है. इधर पत्नी के बहुत कहने पर पिछले दिनों मैं ने घर पर ब्लड प्रैशर देखने वाला यंत्र ले लिया है. अक्सर तो रीडिंग नौर्मल आती है, पर कभीकभी ब्लड प्रैशर थोड़ा बढ़ा हुआ होता है. मैं ने सुना है कि ब्लड प्रैशर चैक करते समय कुछ नियमों का पालन करना भी जरूरी होता है. कृपया बताएं कि मुझे उस समय क्याक्या सावधानियां बरतनी चाहिए?

जवाब-

यह बात सच है कि ब्लड प्रैशर के अपने कुछ सरल नियम हैं, जिन पर ध्यान देना जरूरी है, वरना ब्लड प्रैशर गलत पढ़ा जा सकता है.

जांच से पहले आराम: चाहे घर पर हों या डाक्टर के पास, ब्लड प्रैशर की जांच करवाने से पहले कम से कम 5 मिनट के लिए आराम करें.

ब्लड प्रैशर यंत्र ठीक ऊंचाई पर रखें: ध्यान रखें कि आप की बांह और ब्लड प्रैशर मापक यंत्र उसी स्तर पर रखें जिस स्तर पर आप का दिल है.

कोला और कैफीन वर्जित: ब्लड प्रैशर जांच से 30 मिनट पहले चाय, कौफी, कोल्ड ड्रिंक पीना और धूम्रपान करना मना है.

सही ब्लड प्रैशर मापक यंत्र है जरूरी: ब्लड प्रैशर मापक यंत्र के बांह पर बांधे जाने वाले कफ की चौड़ाई बांह की मोटाई के मुताबिक होनी चाहिए. यदि बांह मोटी है तो साधारण कफ से ब्लड प्रैशर चैक करने पर रीडिंग बढ़ी हुई आती है जबकि बांह पतली और कफ चौड़ा है तो ब्लड प्रैशर कम आता है.

घरेलू ब्लड प्रैशर यंत्र ब्रैंडेड हों: घर पर जिस ब्लड प्रैशर मापक यंत्र का प्रयोग करें, उस की विश्वसनीयता डाक्टर द्वारा ली गई रीडिंग के आधार पर समयसमय पर अवश्य देख  लें.

सच यह भी है कि दिल की धड़कन की रफ्तार, सांस की गति और शरीर के दूसरे जैविक पैमानों के समान किसी भी व्यक्ति का ब्लड प्रैशर हर समय एकजैसा नहीं रहता. हम क्या कर रहे हैं, हमारी शारीरिक और मानसिक अवस्था कैसी है, जैसे बहुत से पहलुओं का उस पर सीधा प्रभाव पड़ता है.

अत: कभी इक्कीदुक्की रीडिंग के थोड़ा बिगड़ने से परेशान होने की जरूरत नहीं. लेकिन ब्लड प्रैशर अगर बढ़ जाएं तो उसे नजरअंदाज करना भी ठीक नहीं. ब्लड प्रैशर बढ़ने से शरीर के सभी प्रमुख अंगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है.

दिल की कोरोनरी धमनियों के संकुचित हो जाने से दिल का दौरा, मस्तिष्क में खून का दौरा बिगड़ने से स्ट्रोक (फालिज), गुरदों की धमनियों में दबाव बढ़ने से गुरदों का फेल्योर, आंखों में रेटिना में रक्तस्राव और शरीर की किसी भी धमनी पर ब्लड प्रैशर बढ़े रहने से भारी नुकसान हो सकता है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
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एक नई पहल: जब बुढ़ापे में हुई एक नए रिश्ते की शुरुआत

‘‘भाभी…जल्दी आओ,प्लीज,’’ मेघा की आवाज सुन कर मैं दौड़ी चली आई.

‘‘क्या बात है, मेघा?’’ मैं ने प्रश्न- सूचक दृष्टि उस की तरफ डाली तो मेघा ने अपनी दोनों हथेलियों के बीच मेरा सिर पकड़ कर सड़क की ओर घुमा दिया, ‘‘मेरी तरफ नहीं भाभी, पार्क की तरफ देखो…वहां सामने बैंच पर लैला बैठी हैं.’’

‘‘अच्छा, तो उन आंटी का नाम लैला है…तुम जानती हो उन्हें?’’

‘‘क्या भाभी आप…’’ मेघा चिढ़ते हुए पैर पटकने लगी, ‘‘मैं नहीं जानती उन्हें, पर वह रोज यहां इसी समय इसी बैंच पर आ कर बैठती हैं और अपने मजनू का इंतजार करती हैं. भाभी, मजनूं बस, आता ही होगा…वह देखो…वह आ गया…अब देखो न इन दोनों के चेहरों की रंगत…पैर कब्र में लटके हैं और आशिकी परवान चढ़ रही है…’’

मैं ने उसे बीच में ही टोकते हुए कहा, ‘‘इस उम्र के लोगों का ऐसा मजाक उड़ाना अच्छी बात नहीं, मेघा.’’

‘‘भाभी, इस उम्र के लोगों को भी तो ऐसा काम नहीं करना चाहिए…पता नहीं कहां से आते हैं और यहां छिपछिप कर मिलते हैं. शर्म आनी चाहिए इन लोगों को.’’

‘‘क्यों मेघा, शर्म क्यों आनी चाहिए? क्या हमतुम दूसरों से बातें नहीं करते हैं?’’

‘‘हमारे बीच वह चक्कर थोड़े ही होता है.’’

‘‘तुम्हें क्या पता कि इन के बीच क्या चक्कर है? क्या ये पार्क में बैठ कर अश्लील हरकतें करते हैं या आपस में लड़ाईझगड़ा करते हैं, मेरे हिसाब से तो यही 2 बातें हैं कि कोई तीसरा व्यक्तिउन का मजाक बनाए. फिर जब तुम उन्हें जानती ही नहीं हो तो उन के रिश्ते को कोई नाम क्यों देती हो.’’

‘‘रिश्ते को नाम कहां दिया है भाभी, मैं ने तो उन को नाम दिया है,’’ मेघा तुनक कर बोली, ‘‘मैं ने तो आप को यहां बुला कर ही गलती कर दी,’’ यह कहते हुए मेघा वहां से चल दी.

उस के जाने के बाद भी मैं कितनी देर यों ही बालकनी में बैठी उन दोनों बुजुर्गों को देखती रही और सोचती रही कि मांबाप अब समझदार हो गए हैं. लड़केलड़की की दोस्ती पर एतराज नहीं करते. समाज भी उन की दोस्ती को खुले दिल से स्वीकार रहा है, लेकिन 2 प्रौढ़ों की दोस्ती के लिए समाज आज भी वही है…उस की सोच आज भी वही है.

पार्क में बैठे अंकलआंटी को देख कर वर्षों पुरानी एक घटना मेरे मन में फिर से ताजा हो गई.

पुरानी दिल्ली की गलियों में मेरा बचपन बीता है. उस समय लड़के शाम को आमतौर पर गुल्लीडंडा या कबड्डी खेल लिया करते थे और लड़कियां छत पर स्टापू, रस्सी कूदना या कुछ बड़ी होने पर यों ही गप्पें मार लिया करती थीं. इस के साथसाथ गली में कौन आजा रहा है, किस का किस के साथ चक्कर है, किस ने किस को कब इशारा किया आदि की भी चर्चा होती रहती थी.

मैं भी अपनी सहेलियों के साथ शाम के वक्त छत पर खड़ी हो कर यह सब करती थी. एक दिन बात करतेकरते अचानक मेरी सहेली रेणु ने कहा, ‘देखदेख, वह चल दिए आरती के दादाजी…देख कैसे चबूतरे को पकड़- पकड़ कर जा रहे हैं.’

मैं ने पूछा, ‘कहां जा रहे हैं.’

‘अरे वहीं, देख सामने गुड्डन की दादी निकल आई हैं न अपने चबूतरे पर.’

और मैं ने देखा, दोनों बैठे मजे से बातें करने लगे. रेणु ने फिर कहा, ‘शर्म नहीं आती इन बुड्ढेबुढि़या को…पता है तुझे, सुबह और शाम ये दोनों ऐसे ही एकदूसरे के पास बैठे रहते हैं.’

‘तुझे कैसे पता? सुबह तू स्कूल नहीं जाती क्या…यही देखती रहती है?’

‘अरे नहीं, मम्मी बता रही थीं, और मम्मी ही क्या सारी गली के लोगों को पता है, बस नहीं पता है तो इन के घर वालों को.’

उस के बाद मैं ने भी यह बात नोट करनी शुरू कर दी थी.

कुनकुनी ठंड आ चुकी थी. रविवार का दिन था. मैं सिर धो कर छत पर धूप में बैठी थी. आदतन मेरी नजर उसी जगह पड़ गई. आरती के दादाजी अखबार पढ़ कर शायद गुड्डन की दादी को सुना रहे थे और दादी मूंगफली छीलछील कर उन्हें पकड़ा रही थीं. यह दृश्य मुझे इतना भाया कि मैं उसे हमेशा के लिए अपनी आंखों में भर लेना चाहती थी.

मुंडेर पर झुक कर अपनी ठुड्डी को हथेली का सहारा दिए मैं कितनी ही देर उन्हें देखती रही कि अचानक आरती दौड़ती हुई आई और अपने दादाजी से जाने क्या कहा और वह एकदम वहां से उठ कर चले गए. गुड्डन की दादी की निरीह आंखें और मौन जबान से निकले प्रश्नों का उत्तर देने के लिए भी उन्होंने वक्त जाया नहीं किया. ‘पता नहीं क्या हुआ होगा,’ सोचते- सोचते मैं भी छत पर बिछी दरी पर आ कर बैठ गई.

अभी पढ़ने के लिए अपनी किताब उठाई ही होगी कि गली में से बहुत जोरजोर से चिल्लाने की आवाज आने लगी. कुछ देर अनसुना करने के बाद भी जब आवाजें आनी बंद नहीं हुईं तो मैं खड़ी हो कर गली में देखने लगी.

देखा, गली में बहुत लोग खड़े हैं. औरतें और लड़कियां अपनेअपने छज्जों पर खड़ी हैं. शोर आरती के घर से आ रहा था. उस के पिताजी अपने पिताजी को बहुत जोरजोर से डांट रहे थे…‘शर्म नहीं आती इस उमर में औरतबाजी करते हुए…तुम्हें अपनी इज्जत का तो खयाल है नहीं, कम से कम मेरा तो सोचा होता…इस से तो अच्छा था कि जब मां मर गई थीं तभी दूसरी बिठा लेते…सारी गली हम पर थूथू कर रही है…अरे, रामचंदर ने तो अपनी मां को खुला छोड़ रखा है…पर तुम में अपनी अक्ल नहीं है क्या…खबरदार, जो आज के बाद गली में पैर रखा तो…’

जितनी चीखचीख कर ये बातें कही गई थीं उन से क्या उन के घर की बेइज्जती नहीं हुई पर यह कहने वाला और समझाने वाला आरती के पिताजी को कोई नहीं था. हां, ये आवाजें जैसे सब ने सुनीं वैसे ही सामने गुड्डन की दादी और उन के बाकी घर वालों ने भी सुनी होंगी.

कुछ देर बाद भीड़ छंट चुकी थी. उस दिन के बाद फिर कभी किसी ने दादी को चबूतरे पर बैठे नहीं देखा. बात सब के लिए आईगई हो चुकी थी.

अचानक एक रात को बहुत जोर से किसी के चीखने की आवाज आई. मेरी परीक्षा नजदीक थी इस कारण मैं देर तक जाग कर पढ़ाई कर रही थी. चीख सुन कर मैं डर गई. समय देखा, रात के डेढ़ बजे थे. कुछ देर बाद किसी के रोने की आवाज आई. खिड़की खोल कर बाहर झांका कि यह आवाज किस तरफ से आई है तो देखा आरती के घर के बाहर आज फिर लोग इकट्ठा होने शुरू हो गए हैं.

मेरे पिताजी भी घर से बाहर निकल चुके थे…कुछ लोग हमारे घर के बाहर चबूतरे पर बैठे धीरेधीरे बोल रहे थे, ‘बहुत बुरा हुआ यार, महेश को समझाना पड़ेगा, मुंह अंधेरे ही अपने पिताजी की अर्थी ले चले, नहीं तो उस के पिताजी ने जो पंखे से लटक कर आत्महत्या की है, यह बात सारे महल्ले में फैल जाएगी और पुलिस केस बन जाएगा. महेश बेचारा बिन मौत मारा जाएगा.’

मैं सुन कर सन्न रह गई. दादाजी ने आत्महत्या कर ली…सब लोग उस दिन की बात भूल गए पर दादाजी नहीं भूल पाए. कैसे भूल पाते, उस दिन उन का आत्मसम्मान उन के बेटे ने मार दिया था. आज उन की आत्महत्या पर कैसे फूटफूट कर रो रहा है.

एक कर्कश सी आवाज तभी मेरे कानों में पड़ी और मेरी तंद्रा भंग हुई. मानो मैं नींद से जागी थी. किसी ने दरवाजे की घंटी बजाई थी. मैं ने कितनी बार अपने पति को कहा है कि इस बेल की आवाज मुझे बिलकुल पसंद नहीं है और जब कोई इसे देर तक बजाता है तो मन करता है बेल उखाड़ कर फेंक दूं.

गुस्से से दरवाजा खोलने गई. बेटी कोचिंग कर के वापस आई थी.

‘‘मिट्ठी, कितनी बार कहा है न कि एक बार बेल बजा कर छोड़ दिया करो. मैं बहरी नहीं हूं. एक बार में ही सुन लेती हूं.’’

‘‘ममा, मैं 10 मिनट से दरवाजे पर खड़ी हूं, पर आप ने घंटी नहीं सुनी और आप जरा अपना फोन देखिए, कितनी मिस काल मैं ने दरवाजे पर खडे़खडे़ दी हैं, आप ने फोन नहीं उठाया और अपने ही किए फोन की घंटी मैं दरवाजे के बाहर खड़ीखड़ी सुनती रही, क्या सो गई थीं आप?’’

अगले दिन बेटी के कोचिंग जाने के बाद मैं ताला लगा कर पार्क की ओर चल दी और अपने बैठने के लिए मैं ने वही बैंच चुनी जिस पर आंटी अकेली बैठी थीं. पसीना पोंछ कर मैं ने उन की ओर देखा तो वह पूछ बैठीं, ‘‘पहली बार सैर करने आई हो शायद.’’

मैं ने ‘हां’ में गर्दन हिला दी.

‘‘2-4 दिन ऐसे ही थकान लगेगी, पसीना आएगा, फिर आदत पड़ जाएगी,’’ आंटी मानो मेरी थकान भरी सांसों को थामने की कोशिश कर रही थीं.

मैं ने भी बात को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से पूछा, ‘‘आप रोज आती हैं?’’

‘‘हां बेटी,’’ उन का छोटा सा उत्तर सुन कर मैं ने कहा, ‘‘मैं तो बहुत कोशिश करती हूं पर आंटी समय नहीं मिलता. आप कैसे नियमित रूप से आ जाती हैं.’’

‘‘तुम्हें समय नहीं मिलता और मेरे पास समय की कमी नहीं,’’ कहते हुए आंटी खिलखिला पड़ीं. तब तक मैं दोबारा सैर करने के लिए तैयार हो चुकी थी. मैं जैसे ही उठी, देखा सामने से अंकल आ रहे थे. यह सोच कर मैं वहां से चल दी कि आज के लिए इतना ही काफी है.

अब मेरा यह नियम ही हो गया था. रोज की मुलाकात व बातचीत में यह पता चला कि आंटी यानी मिसेज सुमेधा कंसल सरकारी स्कूल की रिटायर्ड प्रिंसिपल हैं. बच्चे अपनीअपनी गृहस्थी में मगन हैं. एक दिन मैं ने पूछा भी था, ‘‘आंटी, जब आप प्रिंसिपल रह चुकी हैं तो आप अपने नातीपोतों को पढ़ा सकती हैं, आप के समय का सदुपयोग भी हो जाएगा.’’

एक फीकी सी हंसी के साथ आंटी बोलीं, ‘‘बेटी दूसरे शहर में रहती है. बेटे के भी एक ही बेटा है और वह देहरादून में पढ़ता है. होस्टल में रहता है. बेटा और बहू दोनों ही मुझे हर सुखसुविधा देते हैं, मानसम्मान भी रखते हैं लेकिन अपने- अपने कैरियर की ऊंचाइयां पाने में व्यस्त हैं. घर पर मैं बस, अकेली…’’

‘‘तो आंटी कोई सोशल सर्विस या अन्य कोई ऐसा काम जो आप को रुचिकर लगे, क्यों नहीं करतीं?’’

‘‘मैं जैसी सोशल सर्विस करना चाहती हूं वह बच्चों को पसंद नहीं है और ऊंची शानशौकत वाली सोशल सर्विस मैं कर नहीं सकती. हां, मुझे कविता और कहानियां लिखना रुचिकर लगता है और वह मैं लिखती हूं. लेकिन यह शाम का समय घर में अकेले नहीं बीतता…कोई तो बात करने के लिए चाहिए…नहीं तो हम बोलना ही भूल जाएंगे और हमारी भाषा समाप्त हो जाएगी. हां, अगर तुम्हारे अंकलजी होते तो…’’

‘‘अभी अंकलजी आप को लेने नहीं आएंगे क्या?’’ मैं ने अनजान बनते हुए पूछा.

‘‘नहीं बेटा, जिन्हें तुम रोज मेरे साथ बात करते देखती हो वह भी मेरी ही तरह अकेले हैं. मेरे पति तो 20 वर्ष पहले ही गुजर चुके हैं. उन के जाने के बाद भी अकेलापन था लेकिन वह वक्त तो बच्चों को पालने और नौकरी करने में जैसेतैसे बीत गया और शर्माजी, जो अभी आने ही वाले होंगे, वह भी अपनी जीवन संगिनी को 7-8 वर्ष पहले खो चुके हैं.

‘‘शर्माजी तो मुझ से ज्यादा अकेले हैं. मेरी बहू जूही मेरे बहुत करीब है, फिर फोन पर हर तीसरे दिन बेटी से भी बात हो जाती है लेकिन वह तो मर्द हैं न, बहुओं से ज्यादा घुलमिल नहीं पाते, बेटों के पास फुर्सत नहीं है. ऐसा नहीं कि बहूबेटे उन का खयाल नहीं रखते लेकिन आज सब अपने में व्यस्त हैं. नौकरीपेशा बहुएं 24 घंटे तो हाथ बांधे नहीं खड़ी रह सकतीं न और नौकरीपेशा ही क्यों, घर में रहने वाली बहुएं भी ऐसा कहां कर सकती हैं…यद्यपि इनसान ऐसा करना चाहता है लेकिन वक्त है कि वह हम सब को अपनी उंगली पर नचाता रहता है.

‘‘जैसे बच्चे, बच्चों की संगत में, जवान, जवानों के साथ, ऐसे ही हम बूढे़ बूढ़ों की संगत में खुश रहते हैं. बच्चों के साथ कभी हमें बच्चा बनना पड़ता है, अच्छा लगता है, लेकिन मन की बात तो किसी हमउम्र से ही शेयर की जा सकती है. बस, शर्माजी हैं, आते हैं…साझा दुख साझा सुख…कुछ इधर की कुछ उधर की…और फिर अगले दिन मिलने की उम्मीद में पूरे 24 घंटे बीत जाते हैं.’’

तभी सामने से शर्माजी आते दिखाई दिए. मैं उठ कर चलने लगी. आज सुमेधाजी ने मुझे रोक लिया.

‘‘इन से मिलिए. ये हैं, मिसेज मालिनी अग्रवाल, यहीं सामने के फ्लैट में रहती हैं और बेटा, ये हैं मि. शर्मा… रिटायर्ड अंडर सेके्रटरी.’’ हम दोनों में नमस्ते का आदानप्रदान हुआ और मैं वहां से चल दी.

‘इन से मिलिए. ये हैं, मिसेज मालिनी अग्रवाल, यहीं सामने के फ्लैट में रहती हैं और बेटा, ये हैं मि. शर्मा…रिटायर्ड अंडर सेके्रटरी.’’

हम दोनों में नमस्ते का आदानप्रदान हुआ और मैं वहां से चल दी.

उसी शाम मुझे अपने ससुर की बीमारी का पता चला और मैं लखनऊ चली गई. पूरे 7 दिन वहां लग गए. वापस आई तो थकान के कारण मेरा पार्क में जाने का मन नहीं हुआ सो मैं बालकनी में ही खड़ी हो गई. देखा, आज बैंच पर सुमेधा आंटी नहीं हैं. और शर्माजी को पार्क के गेट के बाहर जाते देखा. इस का मतलब आज आंटी आई ही नहीं…एक अनजाना सा भय मन में आया और मैं भाग कर नीचे उतर आई और सड़क तक पहुंच चुके शर्माजी को आवाज दे दी.

शर्माजी से पता चला कि आंटी की तबीयत ठीक नहीं है.

‘‘अंकल, उन के घर का पता…फोन नंबर…कुछ है आप के पास?’’

‘‘हां, बेटा है तो लेकिन…चलो, तुम तो फोन कर ही सकती हो. बात कर के मुझे भी बताना.’’

मैं ने फोन कर के सुमेधा आंटी से मिलने की इच्छा जाहिर की. अगली सुबह घर के कामों से फ्री हो कर मैं उन का पता ढूंढ़ते हुए उन के घर पहुंच गई. आंटी का घर बहुत ही खूबसूरती से सजा हुआ था. अभी मैं उन का हालचाल पूछ ही रही थी कि अंदर से एक महिला निकली.

‘‘जूही, इन से मिलो, यह मालिनी अग्रवाल हैं और बेटा, ये मेरी बहू जूही है.’’

जूही ने मुसकरा कर ‘हैलो’ कहा और मेरे लिए चायनाश्ता रख कर चलने लगी तो बोली, ‘‘अच्छा ममा, चलती हूं, 3 बजे मीटिंग है, उस की तैयारी करनी है. रात के लिए मैं ने मीना को बोल दिया है. आप को जो खाना हो बनवा लीजिएगा. प्लीज ममा, रेस्ट ही कीजिएगा,’’ और मुझे अभिवादन कर के वह चल दी.

जितनी देर मैं वहां बैठी, आंटी उतनी देर शर्मा अंकल के बारे में ही पूछती रहीं कि वे कैसे हैं…उन्हें कह देना मेरी चिंता न करें…मैं ठीक हो जाऊंगी. फिर अंत में हिचकते हुए बोलीं, ‘‘बेटा, मेरी ओर से तुम शर्माजी से सौरी बोल देना.’’

मैं ने प्रश्नसूचक दृष्टि से आंटी की ओर देखा तो बोलीं, ‘‘3-4 दिन से रोज शर्माजी का फोन मेरा हालचाल जानने के लिए आ रहा था, लेकिन कल जूही ने कुछ तीखातीखा सुना दिया…असल में जूही नहीं चाहती कि मैं पार्क में जाऊं. उसे डर है कि थकान से मेरी तबीयत बिगड़ जाएगी और उधर शर्माजी इतने दिनों से अकेले…उन से कहना कि अब बुखार नहीं है, कमजोरी दूर होते ही मैं पार्क आऊंगी.’’

‘‘आंटी, शर्मा अंकल को यहीं ले आऊं क्या?’’

‘‘क्या तुम ला सकोगी? अच्छा है, मैं बिस्तर में पडे़पडे़ ऊब गई हूं,’’ आंटी की आंखों में आई चमक मुझ से छिपी न रह सकी. यही चमक मैं ने शाम को शर्माजी की आंखों में महसूस की, जब मैं ने उन्हें अगले दिन आंटी के घर चलने के लिए कहा.

अब सुमेधा आंटी ने दोबारा पार्क में आना शुरू कर दिया था. एक शाम जब आंटी पार्क में बैठी थीं, मैं ने उन के घर फोन किया. इरादा था कि नौकरानी से जूही के आफिस का फोन नंबर या उस का मोबाइल नंबर ले लूंगी, कुछ खास बात करनी थी.

जूही देखने में जितनी आकर्षक थी, फोन पर उस की आवाज भी उतनी ही लुभाने वाली लगी. जब मैं ने उसे अपनी उस दिन वाली मुलाकात याद दिलाई और उस से मिलने के लिए वक्त मांगा तो वह हैरान अवश्य हुई लेकिन फौरन ही मुझे अगले दिन लंच टाइम में अपने आफिस आने को कह दिया.

‘‘जूहीजी, आप मुझे सिर्फ एक मुलाकात भर जानती हैं लेकिन मैं ने आप के बारे में आप की सास से काफी तारीफ सुनी है. सच कहूं, जितना मैं ने सोचा था, आप को उस से बढ़ कर पाया है…नहीं…नहीं…यह मैं आप के सामने होने के कारण नहीं कह रही हूं. मैं ने ऐसा महसूस किया है इसीलिए मैं आज आप से कुछ कहने की हिम्मत जुटा पाई हूं.’’

जूही की हलकी सी मुसकान ने मेरे हौसले को हवा दे दी और मैं ने धीरेधीरे सुमेधा आंटी और शर्माजी की दोस्ती के बारे में उसे विस्तार से बता दिया. साथ ही मैं ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि आज तक सुमेधा आंटी और शर्माजी से मैं ने व्यक्तिगत तौर पर इस बारे में कोई चर्चा नहीं की है, यह सबकुछ मैं ने स्वयं महसूस किया है.

मैं ने नोट किया कि जूही बहुत गंभीरता से मेरी बातों को सुन रही है. बात को आगे बढ़ाते हुए मैं ने कहा, ‘‘देखिए, जूहीजी, आप भी औरत हैं और मैं भी, सोच कर देखिए…सुमेधाजी के मन का खालीपन…आप उन्हें सबकुछ दे रही हैं, जो एक बहू होने के नाते दे सकती हैं…शायद उस से भी ज्यादा लेकिन आज उन के मन ने एक बार फिर वसंत पाने की कामना की है. क्या आप दे सकती हैं?’’

कुछ पल हम दोनों के बीच ऐसे ही मौन में बीत गए. फिर जूही ने ही बात शुरू की, ‘‘ममा, जानती हैं कि आप यहां…’’

‘‘जी नहीं,’’ मैं ने बीच में बात काट कर कहा, ‘‘इस बारे में कभी भी आंटी के साथ मेरी कोई बात नहीं हुई.’’

‘‘मालिनीजी, एक बात मैं आप से और पूछना चाहती हूं,’’ जूही ने मेरी ओर देख कर कहा, ‘‘आप ने यह बात मुझ से क्यों की, अजय से, मेरा मतलब मेरे हसबैंड से क्यों नहीं की…आफ्टरआल, वह बेटे हैं उन के.’’

‘‘जूहीजी, आप तो जानती हैं, बच्चों के लिए मां क्या होती है, वह भी बेटे के लिए…वह उसे देवी का दर्जा देते हैं…अपनी मां के बारे में इस विषय पर बात करना कोई भी बेटा कभी गवारा नहीं करता. मां की ‘पर पुरुष से दोस्ती’ बेटे के लिए डंक होती है. बहुत ही कठिन होता है उन्हें यह समझाना.

‘‘आप चूंकि उन की पत्नी हैं, आप समझ जाएंगी तो केवल आप ही हैं जो अपने पति को अपने तरीके से समझा पाएंगी. मैं ठहरी बाहर की, मेरा इतना हक नहीं है…आप मेरी हमउम्र हैं, और जैसा मैं ने आंटी से जाना कि खुली विचारधारा की हैं और फिर इस सब के ऊपर आप उन की बहू हैं.’’

‘‘लेकिन शर्माजी अपनी पहली पत्नी को भूल तो नहीं पाए होंगे. ऐसी हालत में मम्मीजी को वह सबकुछ मिल पाएगा?’’

‘‘जूहीजी, आप की इस बात से मुझे आंतरिक खुशी हो रही है कि आप अपनी सास के लिए कितनी चिंतित हैं लेकिन आप भूल रही हैं कि आंटी भी तो अभी तक अपने पति को नहीं भूली हैं. ये भूलने वाली बातें होती भी नहीं हैं…जब तक सांस है, यही यादें तो अपनी होती हैं. ये यादें 2 युवाओं के बीच तो दरार पैदा कर सकती हैं परंतु बुजुर्ग लोग तो अपनीअपनी यादों को भी एकदूसरे से बांट कर ही सुख का अनुभव कर लेते हैं.’’

‘‘लेकिन  शर्माजी के घर वाले…’’ जूही अपने सारे संशय मुझ से बांट रही थी जो सुमेधाजी से उस की आत्मीयता को उजागर कर रहे थे.

अब तक मैं जूही के साथ एक दोस्त की तरह काफी खुल चुकी थी, ‘‘जो काम बच्चों के लिए मांबाप करते हैं, वही काम बच्चों को आज उन के लिए करना होगा, यानी आप पहले अपने पति को मनाएं फिर रिश्ता ले कर शर्माजी के बेटेबहुओं से मिलें…हो सकता है पहली बार में वे लोग मान जाएं…हो सकता है न भी मानें. स्वाभाविक है उन्हें शाक तो लगेगा ही…आप को कोशिश करनी होगी…आखिर आप की ‘ममा’ की खुशियों का सवाल है.’’

एक सप्ताह तक मैं जूही के फोन का इंतजार करती रही. धीरेधीरे इंतजार करना छोड़ दिया. मैं ने पार्क जाना भी छोड़ दिया…पता नहीं सुमेधा आंटी या अंकल का क्या रिएक्शन हो. शायद बात नहीं बनी होगी. पार्क में सैर करने जाने का उद्देश्य ही दम तोड़ चुका था. मन में एक टीस सी थी जिस का इलाज मेरे पास नहीं था. अपनी तरफ से जो मैं कर सकती थी किया, अब इस से ज्यादा मेरे हाथ में नहीं था.

एक दोपहर, बेटी के स्कूल से आने का समय हो रहा था. टेलीविजन देख कर समय पास कर रही थी कि फोन की घंटी बज उठी.

‘‘क्या मालिनीजी से बात हो सकती है?’’ उधर से आवाज आई.

‘‘जी, बोल रही हूं,’’ मैं ने दिमाग पर जोर डालते हुए आवाज पहचानने की कोशिश की पर नाकाम रही, ‘‘आप कौन?’’ आखिर मुझे पूछना ही पड़ा.

‘‘देखिए, मैं सुमेधाजी का बेटा अजय बोल रहा हूं. आप मेरी पत्नी से क्याक्या कह कर गई थीं…मैं और मेरी ममा आप से एक बार मिलना चाहते हैं…क्या आप शाम को हमारे घर आ सकेंगी?’’

अजय की तल्खी भरी आवाज सुन कर एक बार को मैं सकपका गई, फिर जैसेतैसे हिम्मत कर के कहा, ‘‘देखिए, यह आप के घर का मसला है…’’

बीच में ही बात काट कर वह बोला, ‘‘जब जूही से आप बात करने आई थीं तब आप को नहीं पता था कि यह हमारे घर का मसला है. खैर, आप यह बताइए कि आप आएंगी या मैं जूही और ममा के साथ आप के घर आ जाऊं? पार्क के सामने वाले फ्लैट में आप का नाम ले कर पूछ लेंगे…तो घर का पता चल ही जाएगा.’’

मैं ने सोचा अगर कहीं ये लोग सचमुच घर आ गए तो बेवजह का यहां तमाशा बन जाएगा. मेरे पति मुझे दस बातें सुनाएंगे. उन से तो मुझे इस मामले में किसी सहयोग की उम्मीद नहीं थी. अब क्या करूं.

‘‘अच्छा, ठीक है…मैं आ जाऊंगी…कितने बजे आना है?’’ हार कर मैं ने पूछ ही लिया.

‘‘7 बजे तक आप आ जाइए.’’

मैं ने अपने पति को इस बारे में बताया तो था लेकिन विस्तार से नहीं. शाम 5 बजे मैं ने पति को फोन किया, ‘‘मुझे सुमेधा आंटी के घर जाना है.’’

‘‘अभी खत्म नहीं हुई तुम्हारी सुमेधा आंटी की कहानी,’’ पति बोले, ‘‘खैर, कितने बजे जाना है?’’

‘‘7 बजे, आतेआते थोड़ी देर हो जाएगी.’’

रास्ते भर मेरे दिमाग में उथलपुथल मची हुई थी. मन में तरहतरह के सवाल उठ रहे थे…अगर उन्होंने मुझे ऐसा कहा तो मैं यह कहूंगी…वह कहूंगी पर क्या मैं ने उन लोगों को गलत समझा…क्या वे ऐसा नहीं चाहते थे…नहीं चाहते होंगे तभी आंटी भी मुझ से बात करना चाहती हैं…

दरवाजा जूही ने खोला था. ‘हैलो’ कर के मुझे सोफे पर बैठा कर वह अंदर चली गई.

उस के पति ने बाहर आते ही नमस्ते का जवाब दे कर बैठते ही बिना किसी भूमिका के बात शुरू कर दी, ‘‘दिखने में तो आप ठीकठाक लगती हैं, लेकिन लगता है समाज सेविका बनने का शौक रखती हैं. समाजसेवा के लिए आप को सब से पहले हमारा ही घर मिला था?’’

मैं डर गई. मौन रही, लेकिन फिर पता नहीं कहां से मुझ में बोलने की हिम्मत आ गई, ‘‘मि. अजय, इस में समाजसेवा की बात नहीं है. मुझे जो महसूस हुआ मैं ने वह कहा और मेरे दिल ने जो कहा मैं ने वही किया. जब दो प्यार करने वाले लड़कालड़की को उन के मांबाप एक बंधन में खुशीखुशी बांध देते हैं तो बच्चे अपने मांबाप के प्यार को एक होते क्यों नहीं देख पाते? समाज क्यों इसे असामाजिक मानता है? क्या बड़ी उम्र में प्यार नहीं हो सकता? और हो जाए तो कोई क्या करे? प्यार करना क्या पाप है…नहीं…प्यार किसी भी उम्र में पाप नहीं है…वैसे भी इस उम्र का प्यार तो बिलकुल निश्छल और सात्विक होता है, इस में वासना नहीं, स्नेह होता है…शुद्ध स्नेह…

‘‘इतने अनुभवी 2 लोग दूसरे की भावनाओं को समझते हुए संभोग के लिए नहीं, सहयोग के लिए मिलन की इच्छा रखते हैं. इस में क्या गलत है, अगर हम उन की इच्छाओं को समझते हुए उन के मिलन के साक्षी बनें. बच्चों की हर इच्छा पूरी करना यदि मांबाप का फर्ज है तो क्या बच्चों का कोई फर्ज नहीं है? क्या बच्चे हमेशा स्वार्थी ही रहेंगे…बाकी आप की मां हैं, आप जानें और वह…मुझे तो उन से एक अनजाना सा स्नेह हो गया है, एक अजीब सा रिश्ता बन गया है, उसी के नाते मैं ने उन के दिल की बात समझ ली थी…शायद मैं अपनी हद से आगे बढ़ गई थी…’’

इतना कह कर मैं वहां से चलने को तत्पर हुई तभी अंदर से तालियों की गड़गड़ाहट सुनाई दी. सामने कमरे के दरवाजे से 3 दंपती तालियां बजाते हुए ड्राइंगरूम में प्रवेश कर रहे थे. सभी के चेहरे पर हंसी थी. अब तक जूही और अजय भी उन में शामिल हो गए थे. मैं समझ नहीं पाई कि माजरा क्या है. तभी उन के पीछे 3-4 छोटेछोटे हाथों का सहारा ले कर सुमेधा आंटी और शर्मा अंकल चले आ रहे थे.

जूही ने मेरे पास आ कर मेरा सब से परिचय करवाया, ‘‘ये शर्मा अंकल के दोनों बेटेबहुएं और ये मेरी प्यारी सी ननद और उन के पति हैं और वह जो तुम देख रही हो न नन्हे शैतान, जो ‘ममा’ के साथ खडे़ हैं, वे शर्मा अंकल के दोनों पोते और पोती हैं और अंकल के साथ मेरी ननद का बेटा और मेरा बेटा है. बच्चों ने कितनी जल्दी अपने नए दादादादी और नानानानी को स्वीकार कर लिया. ये तो हम बडे़ ही हैं जो हर काम में देर करते हैं.

‘‘मालिनी, आज से मेरी एक नहीं दो ननदें हैं,’’ जूही भावुक हो कर बोली, ‘‘उस दिन तुम्हारी बातों ने मुझ पर गहरा असर डाला, लेकिन सब को तैयार करने में मुझे इतने दिन लग गए. शायद तुम्हारी तरह सच्ची भावना की कमी थी या फिर एक ही मुलाकात में अपनी बात समझा पाने की कला का अभाव…खैर, अंत भला तो सब भला.’’

मैं बहुत खुश थी. तभी जूही मेरे हाथ में 2 अंगूठियां दे कर बोली, ‘‘मालिनी दी, यह शुभ काम आप के ही हाथों अच्छा लगेगा.’’

मैं हतप्रभ सी अंगूठियां हाथ में ले कर अंकलआंटी की ओर बढ़ चली. मैं स्वयं को रोक नहीं पाई. मैं दोनों के गले लग गई…उन दोनों के स्नेहिल हाथ मेरे सिर पर आशीर्वाद दे रहे थे.

कीमती चीज: पैसों के लालच में सौतेले पिता ने क्या काम किया

‘‘मैडम,क्या मैं अंदर आ सकता हूं?’’ अभिनव ने दरवाजे के बाहर से आवाज दी.

‘‘बताइए क्या काम है?’’  अंदर से आवाज आई.

‘‘जी मैं एक सेल्समैन हूं. हाउसवाइफ्स के लिए एक अनोखा औफर ले कर आया हूं,’’ अभिनव ने अंदर झांकते हुए कहा.

सुनैना अपने बाल समेटती कमरे में से बाहर निकली. उस समय वह नाईटी में थी. गोरे रंग और आकर्षक नैननक्स वाली सुनैना की खूबसूरती किसी को भी मोह सकती थी. उस की बड़ीबड़ी आंखों में कुतूहल साफ नजर आ रहा था. अभिनव से नजरें मिलते ही दोनों कुछ पल के लिए एकदूसरे को देखते रह गए. खुद को सेल्समैन बताने वाला अभिनव अच्छी कदकाठी का सभ्रांत युवक था.

‘‘आइए बैठिए न,’’ सुनैना ने उस से बैठने का आग्रह किया और फिर खुद भी पास ही बैठ गई.

‘‘कहिए क्या बात है?’’ सुनैना ने पूछा.

‘‘जी मैं हाउसवाइफ्स के लिए एक औफर ले कर आया हूं.’’

‘‘कैसा औफर?’’ सुनैना ने मुसकराते हुए पूछा.

‘‘दरअसल, मेरे पास किचन एंप्लायंसिस की एक लंबी रेंज है. आप को पसंद आए तो औनलाइन भी और्डर कर सकती हैं. मिक्सर ग्राइंडर जूसर की एक रेंज साथ

भी लाया हूं. फौर ए ट्रायल आप इस का प्रयोग कर के देखें. इस के साथ ही एक प्रैस बिलकुल फ्री है. हमारे पास दूसरी किसी भी कंपनी के मुकाबले कम कीमत में बैस्ट औफर्स हैं. हमारे ये प्रोडक्ट्स दूसरों से अलग हैं. मैं इन की खासीयतें 1-1 कर बताता हूं.’’

सुनैना एकटक अभिनव की तरफ देखती हुई बोली, ‘‘इन बेजुबान, बेजबान चीजों में भला क्या खासीयत हो सकती है? मुझे तो आप के बोलने के अंदाज में खासीयत लग रही है.’’

अभिनव एकदम से शरमा गया. फिर हंसता हुआ बोला, ‘‘मैडम, आप भी ऐसी बातें कर इस नाचीज की कीमत बढ़ा रही हैं.’’

‘‘मैं कीमत कहां बढ़ा रही? जिंदगी में किसी भी चीज की कीमत बढ़ाई या घटाई नहीं जा सकती. हर इंसान के लिए एक ही चीज की कीमत अलगअलग होती है. मेरे पति की नजर में ऐसी चीजें ही कीमती हैं, जो लोगों के आगे उन की शान को बढ़ाती हैं, मगर मेरे लिए ऐसी चीजें कीमती हैं, जो किसी की आंखों में मुसकान सजाती हैं.’’

अभिनव बिलकुल गंभीर हो कर बोला, ‘‘कितनी खूबसूरत सोच है आप की. काश, हर इंसान ऐसे ही सोचता. बुरा न मानें तो एक बात कहूं मैडम, आप दूसरी महिलाओं से बहुत अलग हैं.’’

‘‘मैं भी एक बात कहना चाहती हूं अभिनवजी. मुझे अपने लिए मैडम सुनना बिलकुल पसंद नहीं. आप मुझे सुनैना कह सकते हैं. मेरा नाम सुनैना है.’’

‘‘यथा नाम तथा गुण. सुनैना यानी सुंदर आंखें. वाकई आप की आंखें  बेहद खूबसूरत हैं सुनैनाजी,’’ सुनैना की आंखों में झंकते हुए अभिनव ने कहा.

सुनैना कुछ सोचती हुई बोली, ‘‘पता नहीं मुझे क्यों लग रहा है जैसे आप सेल्समैन हो ही नहीं सकते. आप कुछ और ही हो.’’

अभिनव ने खुद को संभाला और जल्दी से सेल्समैन की टोन में बोला, ‘‘नो मैम मैं सेल्समैन ही हूं. हमारी कंपनी ने कुछ नए प्रोडक्ट्स लौंच किए हैं, उन से आप का परिचय करा दूं. यकीनन आप को हमारे प्रोडक्ट्स पसंद आएंगे और आप इन्हें जरूर खरीदेंगी. मैम क्या मैं डैमो दे सकता हूं?’’

‘‘औफकोर्स औफ डैमो दिखा सकते हो, मगर मैं घर में अकेली हूं. आप को किचन में कैसे ले जाऊं?’’ सुनैना ने मजबूरी बताई.

‘‘छोडि़ए फिर आप ऐसे ही फील कीजिए… यह प्रोडक्ट कितना अच्छा है,’’ कहते हुए अभिनव ने मशीन सुनैना को थमाई तो दोनों के हाथ एकदूसरे से स्पर्श हो गए.

सुनैना ने उस की तरफ देखते हुए हौले से कहा, ‘‘फील तो मैं कर रही हूं.’’

अभिनव एकदम से असहज हो उठा और कहने लगा, ‘‘प्लीज, एक गिलास पानी मिलेगा?’’

‘‘बिलकुल,’’ कह सुनैना अंदर गई और पानी ले आई.

पानी पीते हुए अभिनव बोला, ‘‘बुरा न मानें तो एक बात कहूं, आप के पति और आप का कोई मैच नहीं. स्वभाव के साथ आप दोनों की उम्र में भी बहुत अंतर है.’’

‘‘मैं जानती हूं पर क्या मैं पूछ सकती हूं कि आप मेरे पति को कैसे जानते हैं?’’

‘‘मैं नहीं जानता … आप ने बताया था न… ’’ अभिनव हकलाते हुए बोला.

‘‘अच्छा मैं चाय भी बना लाती हूं. आप थक गए होंगे.’’

‘‘धन्यवाद.’’

सुनैना 2 कप चाय बना कर ले आई. दोनों बैठ कर चाय पीने लगे. दोनों अजनबी थे, मगर एकदूसरे के लिए अलग तरह का आकर्षण महसूस कर रहे थे. कहीं न कहीं अभिनव सुनैना का दर्द महसूस कर रहा था. सुनैना भी समझ रही थी कि यह कोई साधारण सेल्समैन नहीं.

‘‘मेरे पति केवल पैसों से प्यार करते हैं,’’ सुनैना ने खामोशी तोड़ते हुए कहा.

‘‘जी हां पैसों के लिए वे किसी की जिंदगी से भी खेल सकते हैं,’’ अभिनव बोल पड़ा.

सुनैना ने फिर से उस की तरफ सवालिया नजरों से देखा.

अभिनव ने सामने टंगी सुनैना और उस के पति के फोटो को देखते हुए कहा, ‘‘वे आप से प्यार नहीं करते?’’

‘‘नहीं उन के लिए जज्बातों की कोई कीमत नहीं. मगर मैं आप से ये सब क्यों कह रही हूं?’’

‘‘क्योंकि मेरे अंदर आप को एक दोस्त नजर आया है. यकीन मानिए मुझे जज्बातों की बहुत ज्यादा कद्र है. यदि आप ने वाकई मुझे अपना दोस्त माना तो मैं आप के लिए बहुत कुछ कर सकता हूं. पर यदि आप को मुझ पर जरा सा भी शक है तो मैं अभी अपना सारा सामान ले कर निकल जाऊंगा.’’

‘‘मुझे आप पर कोई शक नहीं, उलटा शक तो मुझे अपने पति पर है. जरूर उन्होंने आप के साथ कुछ गलत किया होगा, जिस का बदला लेने आप यहां आए हैं,’’ सुनैना ने अभिनव पर नजरें जमाते हुए कहा.

सुनैना के मुंह से बदला शब्द सुनते ही अभिनव चौंक  गया, ‘‘मगर यह बात आप को कैसे पता चली?’’

‘‘मैं पानी लेने गई तब और जब चाय बना रही थी तब, आप की आंखें घर में कुछ ढूंढ़ रही थीं. आप मेरे पति के स्वभाव के बारे में भी जानते हैं. यही नहीं मेरे पति की तसवीर आप ने जिस नफरत से देखी उस से भी स्पष्ट था कि आप का उन से पहले ही सामना हो चुका है. एक सवाल यह भी है कि हमारे इस मुहल्ले में आज तक तो कोई सेल्समैन आया नहीं, फिर आज आप कैसे आ गए और वह भी बीच के सारे घरों को छोड़ कर सीधा मेरे घर आ कर बैल बजाई. इन्हीं सब बातों पर गौर कर मैं ने यह निष्कर्ष निकाला कि जरूर आप के मन में कोई बात है.’’

‘‘आप तो सच में काफी ब्रिलियंट हैं. मेरे बिना कुछ बोले भी आप ने हर बात पर नजर रखी. फिर तो आप को यह भी एहसास हो गया होगा कि आप के लिए मेरी क्या फीलिंग है?’’ अभिनव की आंखों में प्यार झलक उठा.

‘‘हां एहसास तो हो गया है कि आप मुझे पसंद करने लगे हैं. मेरा स्पर्श आप को विचलित कर रहा है. हमारे बीच आकर्षण का एक सेतु बनता जा रहा है. मैं थोड़ी भी कमजोर पड़ी तो हमारे बीच कुछ भी हो सकता है.’’

अभिनव ने अचानक बढ़ कर सुनैना को बांहों में भर लिया. सुनैना ने भी कोई प्रतिरोध नहीं किया. दोनों को एकदूसरे के मन की थाह मिल चुकी थी. कुछ देर इस खूबसूरत पल का आनंद लेने के बाद सुनैना अलग हो गई और अभिनव को बैठने का इशारा किया.

‘‘दिल का सौदा करने से पहले जरूरी है कि मुझे यह पता चले कि आप कौन हैं, कहां से आए हैं और क्या चाहते हैं?’’ सुनैना ने कहा.

‘‘कहानी लंबी है. शुरुआत से बतानी होगी.’’

‘‘मुझे भी कोई हड़बड़ी नहीं है. आप बताइए,’’ सुनैना ने इत्मीनान से कहा.

‘‘ऐक्चुअली मैं एक साधारण मध्यवर्गीय परिवार का इकलौता कमाऊ बेटा हूं. मैं ने एमबीए किया हुआ है और एक कंपनी में जौब करता था. इस बीच हमारी कंपनी में घोटाला हुआ, जिस में करोड़ों की रकम चोरी की गई. आप के पति हमारी कंपनी में काफी सीनियर पद पर हैं. घोटाला उन्होंने किया और नाम मेरा लगा दिया. मेरे खिलाफ गवाही दे कर मुझे चोरी और धोखाधड़ी के मामले में फंसा दिया. मुझे जेल भेज दिया गया.

‘‘आप ही बताइए किसी घर के कमाऊ बेटे के साथ ऐसा किया जाए तो मांबाप  पर क्या बीतेगी. किसी तरह मैं ने अपनी बेगुनाही का सुबूत दे कर खुद को जेल से बाहर निकाला. जेल जाते समय मैं ने प्रण किया था कि दिनदहाड़े आप के पति के घर में घुस कर उन की सब से कीमती चीज चुरा कर ले जाऊंगा.’’

‘‘ओके तो आप चोरी के मकसद से आए हैं,’’  हलके से मुसकराते हुए सुनैना ने कहा.

‘‘देखिए मैं आया तो चोरी के मकसद से ही था, मगर अब आप से मिल कर ऐसा कुछ करने की इच्छा नहीं हो रही.’’

‘‘अगर आप चोरी के मकसद से आए थे तो ठीक है न. मैं कहती हूं आप को जो भी चीज कीमती लग रही है उसे ले जाइए. मैं आप को तिजोरी और अलमारी की चाभी देती हूँ. देखिए आप के साथ नाइंसाफी हुई है तो उस का बदला जरूर लीजिए. मैं जानती हूं आप सच कह रहे हैं. मेरे पति ऐसे ही हैं. वे केवल अपना लाभ देखते हैं भले किसी की जान ही क्यों न चली जाए. ये लीजिए चाबियां.’’

‘‘नहीं ऐसा मत कीजिए. आप के पति नाराज हो जाएंगे. फिर वे आप के साथ कुछ भी कर सकते हैं,’’ अभिनव ने हिचकिचाते हुए कहा.

‘‘वे खुश ही कब रहते हैं, जो आज नाराज हो जाएंगे. यह कोई बड़ी बात नहीं है. वैसे भी मैं ने उन्हें छोड़ने का मन बना लिया है. किसी भी दिन उन्हें छोड़ कर चली जाऊंगी. इसलिए आप मेरी चिंता न करें,’’ कह सुनैना ने तिजोरी और अलमारी खोल दी. तिजोरी में गहने और अलमारी में रुपयों की गड्डियां रखी थीं, मगर अभिनव ने उन की तरफ देखा भी नहीं.

‘‘माना पहले तिकड़म लगा कर मैं आप के घर चोरी करने वाला था, मगर अब आप से मुलाकात के बाद मैं ऐसा सोच भी नहीं सकता… बिलकुल भी नहीं.’’

‘‘मैं ने कहा न आप मेरी चिंता बिलकु  न करें. यकीन मानिए पहली दफा मैं उस शख्स का साथ देना चाहती हूं, जिस का मकसद चोरी करना है, वह भी मेरे घर में. प्लीज डौंट हैजिटेट.’’

‘‘नहीं अब नहीं. मैं ने आप को दोस्त मान लिया है. एक दोस्त के घर चोरी कैसे कर सकता हूं?’’

‘‘पर मैं एक दोस्त के मकसद के आड़े भी कैसे आ सकती हूं? मैं कह रही हूं न अपना बदला पूरा करो.’’

‘‘ठीक है मुझे सोचने का समय दीजिए.’’

‘‘चोर बैठ कर सोचते नहीं, कर गुजरते हैं. कहीं तुम्हें यह डर तो नहीं लग रहा कि मैं तुम्हें पकड़वा सकती हूं, पुलिस बुला सकती हूं?’’  सुनैना ने पूछा.

‘‘पता नहीं क्यों पर यह डर बिलकुल नहीं है. अगर आप ने ऐसा कुछ किया भी तो मैं खुशीखुशी फिर से जेल जाने को तैयार हूं,’’ यह बात कहते हुए अभिनव सुनैना के करीब आ गया था. सुनैना ने उस की तरफ कातिलाना नजरों से देखा तो अभिनव ने फुसफुसा कर कहा,’’  ऐ हुस्न वाले, तू कत्ल भी कर दे तो कोई गम नहीं.’’

सुनैना भी शोख नजरों से देखती हुई बोली, ‘‘कमाल करते हो तुम भी. चुराने आए थे सामान और दिल चुरा कर ले गए.’’

‘‘ऐ हंसी तेरे दिल से कीमती कुछ और दिखा ही नहीं. तेरी इनायत है, जो इस नाचीज को नगीना मिल गया,’’  अभिनव ने उसी लहजे में जवाब दिया.

इस तरह शायराना अंदाज में बातें करतेकरते कब दोनों एकदूसरे के करीब  आ गए, पता ही नहीं चला. सुनैना, जिसे आज तक पति का प्यार नहीं मिला था, एक अनजान शख्स के लिए तड़प उठी थी तो वहीं अभिनव भी कहां जानता था कि जिस के घर चोरी करने और बदला लेने जा रहा है वहां अपने दिल का सौदा कर आएगा.

सुनैना ने बताया, ‘‘मेरी शादी एक धोखा थी. मेरे सौतेले पिता ने मुझे इन के कजिन का फोटो दिखाया था और कहा था कि मैं उस के साथ एक खुशहाल जिंदगी जीऊंगी, पर मुझे क्या पता था कि मेरी जिंदगी का सौदा किया गया है.

मेरे सौतेले पिता ने चंद रुपयों की खातिर मुझे अपने से दोगुनी उम्र के व्यक्ति के हाथ बेच दिया था. ये विधुर थे. पहली पत्नी ऐक्सीडैंट में मर गई थी. मेरे साथ इन का रिश्ता पहले दिन से ही मालिक और दासी का रहा है न कि पतिपत्नी का.

मायके में सौतेले पिता के सिवा अब कोई नहीं. यहां भी इन के सिवा सिर्फ नौकरचाकर हैं. अपना दर्द किस से कहती. इसलिए परिस्थितियों से समझौता कर लिया, पर तुम से मिल कर ऐसा लग रहा है जैसे मेरे जीवन में खुशियों के गुल फिर से खिलने वाले हैं. मुझे एक नई जिंदगी मिल गई है.’’

‘‘मैं ने भी प्यार के नाम पर केवल धोखे खाए हैं. इसलिए अब तक शादी नहीं की. अब समझ आता है कि इन सब के पीछे वजह क्या थी. दरअसल, तुम्हारे साथ मेरी कहानी जो पूरी होनी थी.’’

दोनों देर तक एकदूसरे से प्यार भरी बातें करते रहे. फिर अचानक सुनैना को  होश आया तो घबरा कर बोली, ‘‘देखो अब तुम्हारे पास ज्यादा समय नहीं है. वे आते होंगे, इसलिए जल्दी से फैसला करो कि तुम्हें यहां से क्या ले जाना है.’’

‘‘यदि मैं कहूं कि मुझे तुम्हें ले जाना है तो तुम्हारा जवाब क्या होगा?’’ हिम्मत कर के अभिनव ने अपने दिल की बात कह दी.

‘‘मेरा जवाब…’’ कहतेकहते सुनैना चुप हो गई. ‘‘बताओ सुनैना तुम्हारा जवाब क्या होगा?’’  बेचैन हो कर अभिनव ने पूछा.

‘‘मेरा जवाब यही होगा कि मैं खुद इस सोने के पिंजरे में रह कर थक चुकी हूं. अब एक परिंदे की भांति खुल कर उड़ान भरना चाहती हूं. मैं अनुमति देती हूँ,  तुम मुझे  मेरे घर से चुरा कर ले चलो. मैं तैयार हूं अभिनव.’’

‘‘तो ठीक है मैं तुम्हें यानी इस घर की सब से कीमती चीज को चुरा कर ले जा रहा हूं. मेरा बदला इतना खूबसूरत रुख ले कर पूरा होगा यह तो मैं ने सोचा भी नहीं था,’’ और फिर दोनों ने एकदूसरे का हाथ थामा और एक नई जिंदगी की शुरुआत के लिए निकल पड़े.

भूलकर भी न करें पैरों मे हो रहे जलन को नजरअंदाज

पैरों में जलन की समस्या को आमतौर पर अधिकतर लोग नजरअंदाज करते हैं. उसे गंभीरता से नहीं लेते और सोचते हैं कि अपनेआप ठीक हो जाएगी. लेकिन जानकारों का मानना है कि इस में लापरवाही बरतना ठीक नहीं है. यह समस्या शरीर के बाकी हिस्सों में भी परेशानी पैदा कर सकती है.

रोजमर्रा की जिंदगी में कई बार हमें आने वाली बीमारी के बारे में कतई एहसास नहीं हो पाता और वह बीमारी विकराल रूप धारण कर लेती है जिस की वजह से घातक नतीजे भुगतने पड़ते हैं. ऐसी ही एक समस्या है पैरों में जलन. पैरों में जलन का मुख्य कारण है शरीर में विटामिन बी, फोलिक एसिड या कैल्शियम की कमी होना.

यह परेशानी न केवल एक खास आयुवर्ग के लोगों में होती है बल्कि यह किसी को भी अपना का शिकार बना सकती है.

क्या हैं कारण

पैरों में जलन हलकी, तेज और गंभीर हो सकती है. अकसर यह जलन तंत्रिकातंत्र में गड़बड़ी या शिथिलता के कारण होती है.

न्यूरोपैथी बीमारी भी पैरों की जलन का कारण हो सकती है, क्योंकि न्यूरोपैथी का असर सभी नसों पर पड़ता है. इसलिए यह मुख्य रूप से सभी अंगों और तंत्रों को प्रभावित कर सकती है. इस में पैरों में जलन, दर्द और चुभन काफी संवेदनशील तरीके से महसूस होती है.

विटामिन बी12 तंत्रिकातंत्र सहित हमारे शरीर के कई कार्यों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

पैरों में जलन हाईब्लडप्रैशर के कारण भी हो सकती है. हाईब्लडप्रैशर के कारण ब्लड सर्कुलेशन में भी परेशानी होती है. इस से त्वचा के रंग में बदलाव, पैरों की पल्सरेट और हाथपावों के तापमान में कमी रहती है, जिस से पैरों में जलन महसूस होती है.

किडनी संबंधी बीमारी होने पर भी पैरों में जलन होना मुमकिन है.

पैरों में जलन का प्रमुख कारण डायबिटीज होता है. इन लोगों में इस बीमारी के निदान के लिए किसी अतिरिक्त परीक्षण की जरूरत नहीं होती. और डाक्टर तुरंत इस पर नियंत्रण कर लेता है.

थायरायड हार्मोन का लैवल कम होने से भी पैरों में जलन की समस्या होती है.

दवाओं का दुष्प्रभाव, एचआईवी की दवाएं लेने और कीमोथेरैपी से भी पैरों में जलन हो सकती है.

जांच अवश्य कराएं

इलैक्ट्रोमायोग्राफी :  ईएमजी टैस्ट के लिए मांसपेशियों में सूई डाली जाती है और इस की क्रियाओं के आधार पर रिपोर्ट तैयार की जाती है.

लैबोरेटरी टैस्ट :  पैरों में जलन के कारणों का पता लगाने के लिए लैबोरेटरी में ब्लड, यूरिन और रीढ़ का लिक्विड टैस्ट किया जाता है.

नर्व बायोप्सी :  गंभीर परिस्थितियों में इस टैस्ट को भी किया जाता है. इस में डाक्टर शरीर से नर्व टिशू का एक टुकड़ा निकाल कर माइक्रोस्कोप से उस की जांच करते हैं.

घरेलू उपचार

पैरों की जलन से तुरंत राहत देने में सेंधा नमक कारगर है. मैग्नीशियम सल्फेट से बना सेंधा नमक सूजन और दर्द को कम करने में मददगार साबित होता है. इस के लिए एक टब कुनकुने पानी में आधा कप सेंधा नमक मिला कर पैरों को 10 से 15 मिनट तक उस में डुबो कर रखें. इस उपाय को कुछ समय तक नियमित करते रहें. सेंधा नमक के पानी का इस्तेमाल डायबिटीज, हाईब्लडप्रैशर या हार्ट डिजीज वालों के लिए सही नहीं है. इस के इस्तेमाल से पहले अपने डाक्टर से सलाह अवश्य लें.

सिरका भी पैरों की जलन से आराम दिलाता है. एक गिलास गरम पानी में 2 चम्मच कच्चा व अनफिल्टर्र्ड सिरका मिला कर पिएं. ऐसा करने से पैरों की जलन दूर हो जाएगी.

इस बीमारी के दौरान शाकाहारी लोगों को अपने खानपान का खास ध्यान रखना चाहिए. दूध, दही, पनीर, चीज, मक्खन, सोया मिल्क या टोफू का उन्हें नियमित सेवन करना चाहिए. जबकि मांसाहारियों को अंडे, मछली, रैडमीट, चिकन और सी फूड से विटामिन बी12 भरपूर मात्रा में मिलता है.

लौकी को काट कर उस का गूदा पैरों के तलवों पर मलने से भी जलन दूर होती है.

पैरों में जलन होने पर करेले के पत्तों के रस की मालिश करने से भी लाभ होता है.

हलदी में भरपूर मात्रा में पाए जाने वाला करक्यूमिन पूरे शरीर में ब्लड सर्कुलेशन में सुधार करता है. हलदी में मौजूद एंटीइनफ्लेमेटरी गुण पैरों की जलन और दर्द को दूर करने में मददगार साबित होता है. हल्दी को दूध के साथ भी ले सकते हैं.

डार्क सर्कल ने चुरा लिया है चेहरे की खूबसूरती, तो अपनाएं होममेड तरीके

आजकल के बिजी लाइफस्टाइल में आप आऱाम नहीं कर पाते औऱ न ही आपकी नींद पूरी होती है. जिसकी वजह से कई प्रौब्लम शुरू हो जाती हैं, जिनमें डार्क सर्कल भी एक बड़ी प्रौब्लम है. नींद की कमी आपकी स्किन को सुस्त और पीला बना देती है. जिससे आंखों के नीचे काले घेरे हो जाते हैं, जो हमारे डेली लाइफस्टाइल को इफेक्ट करता है. ऐसा लगने लगता है कि आप बहुत बीमार हैं. पर आज हम आपको इस खबर के जरिए बताएंगे कि घर पर ही आंखों के नीचे डार्क सर्कल को नेचुरल टिप्स से कैसे कम करें …

1. बादाम औयल

ये नेचुरल इन्ग्रीनएंट है, जो आपकी आंखों के चारों ओर की स्किन को फायदा पहुंचाता है, बादाम औयल काले घेरे को हल्का करने में मदद करता है.

ऐसे करें इस्तेमाल

-अपने काले घेरों पर बादाम औयल लगाएं और स्किन पर धीरे-धीरे मालिश करें.

-तेल को रात भर लगा रहने दें.

-अगली सुबह इसे ठंडे पानी से धो लें।

-इसे हर दिन दोहराएं जब तक आपके काले घेरे दूर न हो जाएं.

2. खीरा

उन हौलीवुड फिल्मों को याद करें जब महिलाओं को अपनी आंखों पर खीरे के स्लाइस के साथ एक स्पा में आराम करते देखा जाता है. स्किन को हल्का करके खीरा पूरी तरह डार्क सर्कल को कम करता है.

ऐसे करें इस्तेमाल

-एक ताजा खीरे को मोटी स्लाइस में काटें और इसे लगभग 30 मिनट तक ठंडा करें।

-लगभग 10 मिनट के लिए काले घेरे पर स्लाइस रखें.

-आंखों को पानी से अच्छी तरह से धो लें.

-इसे हफ्ते में दो बार दोहराएं.

3. कच्चा आलू

आलू में नेचुरल ब्लीचिंग एजेंट होते हैं जो काले घेरे को हल्का करने में मदद करने के साथ-साथ आपकी आंखों के पफीनेस (puffiness) को कम करता है.

ऐसे करें इस्तेमाल

-रस निकालने के लिए ठंडा आलू को पीस लें.

-एक कौटन बौल को रस में भिगोएँ और इसे अपनी आंखों पर रखें.

-देख लें कि रस पूरी तरह से डार्क सर्कल को कवर करता हो.

-रस को लगभग 15 मिनट तक लगाए रखें और ठंडे पानी से आंखों को अच्छी तरह से धोएं.

– इसे 2 – 3 हफ्ते तक एक या दो बार रोजाना दोहराएं.

4. गुलाब जल

हर घर में मम्मी हमेशा बच्चों को सलाह देती है कि आंखे धोते वक्त गुलाब जल का इस्तेमाल जरूर करें. यह न केवल स्किन को फिर से लाइव करता है, बल्कि डार्क सर्कल को कम करता है, बल्कि थकी हुई आंखों पर अच्छा असर डालता है. इसके लाइट कसैले गुणों (mild astringent properties) के कारण, यह स्किन टोनर के रूप में भी अच्छा काम करता है.

ऐसे करें इस्तेमाल

-कौटन आई पैड्स को गुलाब जल में कुछ मिनटों के लिए भिगोएं.

-भीगे हुए आई पैड को अपनी पलकों पर रखें.

-उन्हें लगभग 15 मिनट के लिए छोड़ दें.

-2-3 हफ्ते रोजाना इसे अपनाएं.

5. टमाटर

फल-सब्जी की तरह इस्तेमाल होने वाला टमाटर, नेचुरल रूप से पावरफुल ब्लीचिंग गुण होते हैं, जो स्किन को लाइट करता है.

ऐसे करें इस्तेमाल

-एक चम्मच टमाटर के रस में डेढ़ चम्मच नींबू का रस मिलाएं.

-डार्क सर्कल पर इसे 10 मिनट तक लगाएं.

-इसे ठंडे पानी से अच्छी तरह से धो दें.

-2 – 3 हफ्ते में इसे दिन में दो बार लगाएं.

Women Rights In India : ये कानूनी अधिकार जो हर भारतीय महिला को होना चाहिए पता

आज के समय में महिलाएं किसी भी मामले में पुरुषों से कम नहीं है, लेकिन समाज में कुछ लोगों की सोच महिलाओं को लेकर नहीं बदली है. देश के ऐसे कई जगह हैं, जहां महिलाओं को घर से बाहर निकलने पर भी पाबंदी है, शिक्षा तो बहुत दूर की बात है.

भारतीय संविधान में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को ज्यादा अधिकार दिए गए हैं, लेकिन जानकारी के अभाव में महिलाएं अपनी हक के लिए नहीं लड़ पाती हैं और उनकी जिंदगी बोझ बन जाती है. इस आर्टिकल में हम आपको कुछ अधिकारों के बारे में बात करेंगे, जो हर महिला के लिए जरूरी है.

United Front Women Empowering Communities

रात में गिरफ्तार न होने का अधिकार

हर महिला को ये बात पता होना चाहिए कि दोषी होने के बाद भी सूरज डूबने के बाद और सूर्योदय से पहले उसे गिरफ्तार नहीं किया जा सकता. कानून यह भी है कि पुलिस आरोपी महिला से पूछताछ महिला कांस्टेबल और परिवार के सदस्यों या दोस्तों की मौजूदगी में ही कर सकती है.

निःशुल्क कानूनी सहायता का अधिकार

अगर किसी महिला के साथ रेप हुआ है, तो उसे मुफ्त कानूनी मदद पाने का पूरा अधिकार है. SHO के लिए जरूरी है कि Legal Services Authority को वकील की व्यवस्था करने के लिए सूचित करें ताकि मुश्किल समय में महिलाओं को कानूनी सहायता और प्रतिनिधित्व प्राप्त हो.

Young activists taking action

घरेलू हिंसा

अगर कोई महिला के साथ आर्थिक, फिजिकली, इमोशनल ब्लैकमेल या अन्य कोई भी Harassment करता है, तो उसके खिलाफ शिकायत दर्ज की जा सकती है. अपराधी जेल भी भेजा जा सकता है. इसलिए महिलाओं को डोमेस्टिक वॉयलेंस के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए. घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा के लिए साल 2005 में कानून बनाए गए. इसके आधार पर हर महिला को डोमेस्टिक वायलेंस के खिलाफ शिकायत दर्ज करने का हक है.

women empowerment activists strong women defending rights on international woman day

सेक्सुअल हैरेसमेंट

महिलाएं जिन स्थानों पर काम करती हैं. वहां पर अगर कोई व्यक्ती छेड़छाड़ करता है. चाहे अश्लील टिप्पणी करना, सीटी बजाना या देखकर गाने गाना… इस तरह की कोई भी गलत हरकत करता है, तो आपको उसके खिलाफ शिकायत करने का कानूनी हक है.

पीछा करने के खिलाफ शिकायत दर्ज करना

अगर कोई व्यक्ती को बारबार पर्सनल बातचीत या फोन के जरिए महिलाओं का पीछा करता है, तो उसे कानूनी रूप से सजा मिल सकती है. आईपीसी की धारा 354डी उन व्यक्तियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने का अधिकार देती है जो बारबार किसी महिला का पीछा करते हैं. यह प्रावधान महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करता है.

लेडीज ! अच्छी फिटिंग वाली ब्रा पहनने के हैं नुकसान भी

किसी भी महिला के लिए शेप में बौडी होना खूबसूरती की निशानी माना जाता है और इसके लिए इनरवियर काफी मायने रखते हैं. इन्हीं में शामिल है ब्रा, जो महिलाओं के लिए बहुत ही जरूरी अडंरगारमेंट्स है. हालांकि इसे पहनना किसी टास्क से कम नहीं है. दिनभर टाइट ब्रा पहनने का दर्द सिर्फ एक महिला ही समझ सकती है.

कुछ ऐसी महिलाएं होती हैं, जिन्हें ब्रा पहनना बिलकुल भी पसंद नहीं होता है, तो वहीं कई महिलाएं बिना ब्रा के कौन्फिडेंट महसूस नहीं करती हैं. हेल्थ के लिहाज से ब्रा को लेकर एक्सपर्ट की अलगअलग राय है.
तो आइए जानते हैं ब्रा पहनने और न पहनने के फायदे और नुकसान.

Portrait of a beautiful woman in denim shorts and lingerie isolated on gray

ब्रा पहनने के नुकसान

संक्रमण

आप अकेली नहीं है, जो आपको ब्रा पहनने पर खीझ महसूस होती है. ब्रा आपकी स्किन को रगड़ते हैं और ज्यादा पसीना भी निकलता है. इससे जलन और सूजन महसूस होता है. कई बार टाइट ब्रा पहनना संक्रमण का भी कारण बनता है.

Workout at home

कंधे और पीठदर्द का कारण

टाइट ब्रा पहनना महिलाओं के लिए पिठदर्द और कंधेदर्द का कारण भी बन सकता है. यह प्रौब्लम हैवी ब्रेस्ट साइज महिलाओं में आम है.

Types of woman bras . Flat female figure in bra.Nude, pastel A4 vector illustration lingerie poster.

छाती में दर्द

अगर आप पूरे दिन टाइट ब्रा पहनकर रहती हैं, तो आपको ब्रेस्ट पेन हो सकता है. इसलिए ब्रा पहनते समय साइज का ध्यान जरूर रखें.

Woman sitting with strong chest pain and hands touching her chest while having trouble at home Heart attack or heart failure symptom

ब्लड सर्कुलेशन होता है प्रभावित

पूरे दिन ब्रा पहनने से ब्लड सर्कुलेशन प्रभावित होता है. दरअसल वहां की स्किन सांस नहीं ले पाती है, ऐसे में यह समस्या होना लाजिमी है. 24 घंटे ब्रा पहनने के कारण ब्रेस्ट टिशू डैमेज होने का खतरा हो सकता है.

ब्रा पहनने के फायदे

  • जिन महिलाओं की ब्रेस्ट हेवी होती है, उन्हें ब्रा वियर करना जरूरी माना जाता है. अगर आपके ब्रेस्ट का साइज ज्यादा बड़ा है, तो इसके कारण गर्दन में दर्द हो सकता है, क्योंकि इसका गर्दन पर स्ट्रेन पड़ता है.
  • ब्रा न पहनने से महिलाओं के बौडी पौश्चर पर भी असर पड़ता है.
  • अगर आप बिना ब्रा पहने एक्सरसाइज करना चाहती हैं, तो इससे आपके ब्रेस्ट में प्रौब्लम होगी. ऐसे में आप स्पोर्ट्स ब्रा पहनें, यह आपके लिए बेहतर होगा.

कब ब्रा पहनना है जरूरी

  • हर समय ब्रा पहनकर रहना जरूरी नहीं है. हालांकि यह पूरी तरह से महिला के शरीर पर निर्भर करता है.
  • फिजिकल वर्क करते समय ब्रेस्ट को सपोर्ट की जरूरत होती है. इस समय ब्रा जरूर पहनें.
  • अगर आप कोई स्टाइलिश या फिटिंग ड्रेस पहन रही हैं, तो आप अपनी बौडी शेप के लिए ब्रा पहनकर रहें.
  • अगर ब्रेस्ट में तकलीफ है, तो काटन की ब्रा कैरी करें.

क्या होता है AI मौडल्स ब्यूटी कौन्टेस्ट, भारत की जरा शातावरी ने टौप 10 में बनाई जगह

आज तक हम मिस यूनिवर्स, मिस वर्ल्ड, मिस एशिया जैसी मौडल के बारे में सुनते आए हैं हम 10 वर्ष पूर्व की भी सोचे तो हमारे जहन में भी नहीं आया होगा कि कभी हम इस तरह का ब्यूटी कांटेस्ट भी देख पाएंगे. जिस की हमने कभी कल्पना भी नहीं की थी.लेकिन हाल ही में एक ऐसा कांटेस्ट हुआ जिसे देख हम हैरान तो होंगे ही साथ ही इस बात की खुशी भी होंगी कि हमने अपने जीवन में कल्पना से परे का कुछ देखा. जी हां हम बात कर रहे हैं AI मिस वर्ल्ड कांटेस्ट की.

खिताब विजेता

AI मिस वर्ल्ड कांटेस्ट में अलगअलग देशों की 1500 खूबसूरत AI मौडल्स ने हिस्सा लिया.जिसमे मोरक्को की मौडल केन्जा लाइली (Kenza Layli) ने खिताब अपने नाम किया है. लाइली के इंस्टाग्राम पर 1 लाख से ज्यादा लोग फौलोवर हैं. यह मौडल हिजाब पहनती है. खूबसूरत इतनी की देखने वाले की नजर हीं ना हटे. मौडल 7 अलगअलग भाषाओं में अपने फौलोअर्स से जुड़ी है. लाइली ने स्पीच में कहा कि वह महिलाओं के उत्थान, पर्यावरण बचाने और पौजिटिव रोबोट कल्चर के बारे में जागरूकता के लिए काम करेंगी. इस प्रतियोगिता में पहले नंबर पर मोरक्को की मौडल केन्जा लाइली रही दूसरे 9 नंबर पर फ्रांस की लालिना वालिना रहीं और पुर्तगाल की आलिविया तीसरे स्थान पर रहीं. भारत की एआई मौडल जरा शातावरी ने टौप 10 में जगह बनाई. लाइली के क्रिएटर को 11 लाख रुपए की इनाम राशि भी दी गई.

कैसे आंका

इस ब्यूटी कौन्टेस्ट का आयोजन एक एआई प्लेटफौर्म Fanvue की ओर से किया गया जिसमे रियल मौडल्स नहीं, बल्कि एआई से बनाई गई मौडल्स ने हिस्सा लिया .यह एक औनलाइन कौन्टेस्ट है, इसमें मौडल्स का चयन भी औनलाइन माध्यम से ही किया गया. इस प्रतियोगियों को उनके लुक, औनलाइन ताकत और उनको बनाने में इस्तेमाल की गई तकनीकी कौशल के आधार पर आंका गया है. AI कांटेस्ट में Miss AI का ताज जीतने के लिए दुनियाभर के डिजिटल क्रिएटर्स ने अपनी मिस AI का दुनिया के सामने डेब्यू कराया. दुनियाभर से 1500 से अधिक AI मौडल्स ने भाग लिया, जिसमें 10 मौडल्स को शॉर्टलिस्ट किया गया. फैनव्यू द्वारा आयोजित इस अभूतपूर्व प्रतियोगिता ने सौंदर्य, प्रौद्योगिकी और सामाजिक प्रभाव के मिश्रण का प्रदर्शन करके वैश्विक ध्यान आकर्षित किया. सबसे बेहतरीन एआई मौडल का चयन करने वाले पैनल में एआई एक्सपर्ट भी शामिल थे. इस प्रतियोगिता की खास बात ये रही कि इसके जज में दो इंसान और 2 एआई जेनरेटेड मौडल्स भी थीं.

समझौते और स्वार्थ पर टिकी है फिल्म वालों की शादी…

फिल्म इंडस्ट्री जो पतिव्रता पत्नी, प्यार के लिए जान देने वाली प्रेमिका या प्रेमी जैसी प्रेम गाथा जहां फिल्मों में दिखाते हैं वही असल जिंदगी में इनका प्यार चाइना के माल की तरह होता है. चले तो चांद तक और ना चले तो शाम तक, जिसके चलते असल जिंदगी में कलाकारों की शादी की कोई गारंटी नहीं है. जिसका भुगतान, ज्यादातर पत्तियों को गुजारा भत्ता के रूप में करोड़ों रुपए देकर चुकाना पड़ता है फिर भले पत्नी कमाऊ ही क्यों ना हो.

चाहे फिर वह रितिक रोशन सुजैन खान हो, या अरबाज खान और मलाइका अरोड़ा हो. ऐसे में सवाल यह उठता है कि आज के समय में बेवफाई के क्या मायने हैं? पति का किसी दूसरी औरत के साथ हम बिस्तर होना? या पत्नी को छोड़कर किसी दूसरी औरत के साथ ज्यादा समय बिताना या शादीशुदा होते हुए पहली पत्नी के सारे हक को छीनकर दूसरी पत्नी की झोली में डाल देना? और पहली पत्नी को पैर की जूती मानकर उसका तिरस्कार करना? अगर ऐसा नहीं है.

Medium shot couple crisis

पति अगर पहली पत्नी को पूरा खर्चा दे रहा है पूरा सम्मान दे रहा है और फिर दूसरी पत्नी को भी अपने साथ रखता है तो क्या यह बेवफाई नहीं है? क्योंकि यह कई सालों से चला आ रहा है कि एक राजा अपने महल में कई रानियां रखता था यहां तक की शाहजहां जिन्होंने मुमताज के लिए ताजमहल बनाया था उनकी भी 14 रानियां थी. जिसमे मुमताज 13 वी पत्नी थी और मुमताज की मौत के बाद शाहजहा १४ वी शादी भी की थी. उस दौरान की पौराणिक कथाएं हो या ऐतिहासिक कहानी इन सभी में एक राजा की कई सारी रानियां होती थी. अगर आज की बात करें तो फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े भी कई लोग ऐसे हैं जिन्होंने दो शादियां की है जैसे के सलमान के पिता सलीम खान, धर्मेंद्र, सैफ अली खान, और हाल ही में अरमान मलिक जो बिग बौस ओटीटी में दो बीवियों को लेकर बड़े गर्व के साथ पधारे है इन सभी ने एक से ज्यादा शादियां की है.

अरमान मलिक जो दो बीवियों के साथ रहते हैं उन्होंने अपनी सफल शादी का राज बताया कि उन्होंने अपनी पूरी प्रौपर्टी दोनों बीवियों के नाम कर दी है. इसी के चलते अरमान मलिक की दो पत्नियों सौतन की तरह नहीं बल्कि दो बहनों की तरह साथ रहती हैं. इन सभी ने दो या दो से ज्यादा शादियां की है. इनमें से कई की पत्नियां तो एक साथ भी रह रही है. और जिन फिल्म वालो ने दूसरी शादी नही की वो अनैतिक संबंध के साथ दूसरी औरत के साथ बिना शादी किए रह रहे हैं. तो क्या यह बेवफाई नहीं है?

प्यार और शादी के मामले में फिल्म वालों का दोगलापन….

बहुत पहले एक गाना आया था यार दिलदार तुझे कैसा चाहिए प्यार चाहिए कि पैसा चाहिए…. अगर इस गाने पर गौर किया जाए तो इसमें शादी के समझौते वाले रिश्ते की सच्चाई छुपी है और वफादारी और बेवफाई की परिभाषा भी छिपी है अर्थात अगर पति-पत्नी को सारी सहूलियतों के साथ पैसे और प्रौपर्टी दे कर दूसरी पत्नी को भी साथ रखता है, तो वह बेवफा नहीं है. लेकिन अगर वही पति पहली पत्नी का तिरस्कार करके उसका हक मार कर दूसरी पत्नी के साथ उसको सब कुछ देकर उसके साथ जीवन बिताता है तो वह बेवफा है. क्योंकि एक सच यह भी है कि सिर्फ प्यार के साथ जीवन नहीं चलता और अगर पैसा है तो एक आदमी की एक बीबी क्या चार बीवी भी हो तो किसी को किसी से कोई फर्क नहीं पड़ेगा.ये शादी के रिश्ते में दोगलापन नहीं है तो और क्या है .

मैन्सप्लेनिंग सहें नहीं आवाज उठाएं

सिंपल भाषा में मैन्सप्लेनिंग किसी पुरुष द्वारा यह दिखाना है कि वह मर्द है और इसलिए सामने वाली महिला से बेहतर जानकारी रखता है. मैन्सप्लेनिंग का अनुभव हम सभी अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में आए दिन करते हैं. यह अंगरेजी के 2 शब्द मैन और ऐक्सप्लेनिंग (सम?ाना) से मिल कर बना है.

उदाहरण के लिए औफिस में जब आप किसी राजनीतिक, आर्थिक या सामाजिक मुद्दे पर अपनी राय रखती हैं या किसी प्रेजैंटेशन पर अपने विचार सुनाने लगती हैं तभी सामने  बैठा पुरुष सहकर्मी कह उठता है कि रुको आप की यह बात उतनी क्लीयर नहीं. मैं ठीक से सम?ाता हूं. यानी उसे यह लगता है कि चूंकि वह एक मर्द है और आप औरत तो जाहिर तौर पर वह आप से बेहतर जानकारी रखता है.

कई दफा औफिस में आप के सुपरवाइजर भी आप की बात को ठीक से सुने बगैर ही कह देते हैं कि आप के आइडियाज पुराने हैं. यानी एक महिला की बात या राय को दरकिनार कर खुद को सही और बेहतर साबित करने की कोशिश मैन्सप्लेनिंग है. इसी तरह जब साथ बैठा पुरुष आप की बात बीच में काट कर तेज आवाज में अपनी बात कहने या आप पर अपने विचार थोपने लगे तो यह मैन्सप्लेनिंग है.

ऐसा सिर्फ कार्यालयों में ही नहीं बल्कि घरों में भी होता है. ज्यादातर घरों में पति, बौयफ्रैंड या भाई अपनी बात ऊपर रखते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि वे सब जानते हैं जबकि औरतों को कुछ भी सही से पता नहीं होता.

हर तरह के मुद्दों पर पुरुषों की बिलकुल सटीक राय हो यह जरूरी नहीं. हर विषय पर हर पुरुष को गहराई से पता हो यह भी जरूरी नहीं खासतौर पर बात जब महिलाओं की जिंदगी और उन के अनुभवों के बारे में हो. मगर अकसर पुरुष उन मुद्दों पर भी महिलाओं को नहीं बोलने देते हैं या उन्हें टोकते हैं और उन की बात को अनसुना करते हैं. कई दफा वे उन की आलोचना भी करते हैं. यही मैन्सप्लेनिंग है जिसे किसी भी महिला को स्वीकारना नहीं चाहिए.

कई ऐसे भी पुरुष होते हैं जो अपने सामने बैठी महिला के पास अधिक जानकारी है यह महसूस कर घबरा जाते हैं, असुरक्षित महसूस करने लगते हैं. उन का मेल ईगो हावी होने लगता है और इसलिए अपने इस ईगो की खातिर वे मैन्सप्लेनिंग का सहारा लेते हैं.

क्या है मैन्सप्लेनिंग

मैन्सप्लेनिंग एक पुरुषवादी समाज की वास्तविकता है. यह पारंपरिक रूप से पुरुषों द्वारा खुद को श्रेष्ठ मानना और बात करते समय महिलाओं को कमतर आंकने का तरीका है. मरिमय ऐंड वैबस्टर डिक्शनरी के अनुसार, किसी महिला को किसी बात को इस तरह से सम?ाना कि मानो उसे उस विषय के बारे में कोई जानकारी ही नहीं है, मैन्सप्लेनिंग कहलाता है.

कल्पना कीजिए कि आप किसी मीटिंग में हैं और आप का पुरुष सहकर्मी आप को बीच में रोकता है, आप की बात को काटता है और आप को सम?ाने लगता है कि वह आप से ज्यादा जानता है, वह आप को रोकते हुए खुद बोलना शुरू कर देता है. ऐसे में आप पर क्या बीतेगी? ठीक इसी तरह अकसर औफिस की मीटिंगों में पुरुष सहकर्मियों से तो इनपुट लिए जाते हैं लेकिन महिला सहकर्मियों की किसी भी जानकारी को नजरअंदाज कर दिया जाता है.

इस दौरान अकसर महिला कर्मचारियों को सुनने को मिलता है कि मैं आप को बाद में सम?ाऊंगा. आप को कुछ नहीं पता. यह थोड़ा कठिन मुद्दा है इसलिए मु?ो सम?ाने दीजिए. महिलाओं पर इस का क्या असर पड़ेगा? जाहिर है पुरुषों का इस तरह का व्यवहार स्त्री के आत्मसम्मान को चोट पहुंचाता है.

दरअसल, हमारे पितृसत्तात्मक समाज में किसी महिला को होने वाले ऐसे अनुभव आम हैं. उसे अपने जीवन में कदमकदम पर इस तरह की स्थितियों का सामना करना पड़ता है. खासतौर पर कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ साथी पुरुष कर्मी अकसर ऐसा करते हैं. जबकि घर में तो अपने ही करीबी रिश्तेदार भी ऐसा बरताव करने से नहीं हिचकते. इस तरह के व्यवहार की वजह से महिलाओं के आत्मसम्मान के साथसाथ कैरियर पर भी असर पड़ता है.

महिलाओं के कैरियर पर बुरा असर

फार्चून में प्रकाशित रिपोर्ट में एक स्टडी के माध्यम से कहा गया है कि शौर्ट टर्म के लिए मैन्सप्लेनिंग महिला कर्मचारियों को अपमानित महसूस कराती है. लेकिन अगर लंबे वक्त तक इस के असर की बात करें तो इस का असर महिलाओं के कैरियर पर पड़ता है.

पुरुषों द्वारा महिला को बीच में सिर्फ इसलिए टोकना क्योंकि वह एक महिला है, काफी अपमानजनक होता है. कैलिफोनिंया यूनिवर्सिटी सांता बारबरा के एक अध्ययन में पाया गया कि एक मिक्स्ड जैंडर कनवरसेशन में 48 में से 47 व्यवधानों में पुरुषों द्वारा महिलाओं की बातचीत को बाधित करना शामिल होता है.

एक अन्य शोध में सामने आया कि पुरुषों द्वारा एक महिला की तुलना में 3 गुना अधिक बाधा डालने की संभावना होती है. इसी शोध से पता चला कि पुरुषों द्वारा अकसर मीटिंग्स में महिलाओं पर हावी हो कर, और आक्रामक हो कर बात करने की फितरत होती है जिस से कमरे में बाकी सभी लोग चुप हो जाते हैं.

कार्यस्थल पर महिलाओं को मैन्सप्लेनिंग के साथसाथ हैपीटिंग (जब कोई पुरुष किसी विचार को दोहराता है जो पहले महिला ने सु?ाया हो) जैसी समस्या का भी सामना करना पड़ता है. इस तरह के नकारात्मक व्यवहार को खत्म करने का प्रयास बहुत जरूरी है वरना लंबे समय तक ऐसा व्यवहार महिलाओं के कैरियर को प्रभावित करता है. मैन्सप्लेनिंग जैंडर स्टीरियोटाइप को वर्कप्लेस पर बनाए रखता है जिस का महिला कर्मचारियों पर कई तरह से असर पड़ता है.

मिशीगन स्टेट यूनिवर्सिटी, कोलरार्डो स्टेट यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों द्वारा इस विषय पर अध्ययन किया गया है कि यह व्यवहार वर्कप्लेस में महिलाओं के काम को कई स्तर पर प्रभावित करता है.  इस तरह का लगातार व्यवहार महिलाओं को सैल्फ इवैल्यूएशन पर केंद्रित कर देता है. उन्हें लगने लगता है कि वे सच में कम योग्य हैं. वे इस वजह से प्रतिस्पर्धा और पैसा कमाने में पीछे छूट जाती हैं.

इस प्रकार के व्यवहार के पीछे वजह चाहे जो भी हो पुरुषों को यह सम?ाना बहुत ही जरूरी है कि हर मुद्दे और बात की सम?ा उन्हें हो यह जरूरी नहीं होता. उन्हें महिला को बोलने का मौका देना सीखना होगा, उन्हें अपने आसपास बैठी महिलाओं की बातों को बिना टोके सुनना सीखना होगा. उन्हें यह भी स्वीकारना होगा कि जिंदगी सिर्फ उन्हीं के अनुभवों से परिभाषित नहीं होती.

इस सोच का आधार पितृसत्ता और धर्म है

ऐसा नहीं है कि प्रत्येक पुरुष मैन्सप्लेनिंग करता है या फिर वह ऐसा जानबू?ा कर करता है. परंपरागत तौर पर पुरुष को बेहतर मानने वाले व्यवहार की वजह से और इस तरह के माहौल में रहने की वजह से छोटे लड़कों में ही इस तरह की प्रवृत्ति समाज द्वारा विकसित कर दी जाती है. पुरुषों के इस तरह के व्यवहार के पीछे कई सारी वजहें होती हैं.

बचपन से घरों में पुरुषों को ऊपर रखा जाता है. उन की हर बात को तवज्जो दी जाती है और अकसर उन्हें यह एहसास दिलाया जाता है कि घर की महिलाओं के आगे वे सुप्रीम हैं. चाहें अच्छे खाने की बात हो या अच्छी पढ़ाई की, ज्यादातर घरों में लड़के को ही वरीयता दी जाती है.

इस वजह से उन के अंदर मेल ईगो घर जमाने लगता है जो युवा होतेहोते उन के दिलोदिमाग पर गहरी जड़ें जमा लेता है. यही वजह है कि अधिकतर वे ये मान कर चलते हैं कि चूंकि सामने एक महिला है इसलिए वह हर बात में कमतर है. उसे कुछ नहीं पता और इसलिए बगैर मांगे सलाह देने लग जाते हैं.

पितृसत्तात्मक सोच कहीं न कहीं धर्म से कनैक्टेड है. ज्यादातर धर्मग्रंथों में पुरुषों को ही सुप्रीम दर्जा दिया गया है. औरतों को उन की दासी की तरह ट्रीट किया जाता है. धर्म के द्वारा औरतों को पुरुषों के अधीन करना भी एक तरह की साजिश है. वह पुरुषों को औरतों का मालिक बना कर उन्हें लड़ने के लिए उकसाता है और यह दिखाता है कि पुरुष की गैरमौजूदगी में धर्म की वजह से औरतें सुरक्षित रहेंगी.

पुरुष जब आपस में लड़ते हैं तो उन्हें प्रलोभन के रूप में स्त्री सौंपी जाती है. इस तरह यह दुष्चक्र चलता रहता है जिस का नतीजा यह होता है कि पुरुष औरतों को अहमियत नहीं देते और उन्हें अपने बराबर का नहीं मानते.

कैसे बचें इस समस्या से

सब से पहले महिलाओं का खुद के लिए खड़ा होना जरूरी महिलाओं को ऐसा होने पर उसी समय तुरंत बोलने की जरूरत है. जिस तरह कुछ समय पहले एक बार अमेरिका की उप राष्ट्रपति कमला हेरिस ने पूर्व राष्ट्रपति पेंस को तुंरत मौके पर बोल कर किया था. सीनेटर कमला हैरिस ने कहा कि मिस्टर उपराष्ट्रपति मैं बोल रही हूं. जब उपराष्ट्रपति पेंस ने उन से बात करना जारी रखा तो उन्होंने मुसकराते हुए एक बार फिर दोहराया कि मैं बोल रही हूं.

दरअसल, वैसी स्थिति में तुरंत बोलने पर सामने वाले को अपने गलत व्यवहार के बारे में पता चलता है. उसे खुद के व्यवहार को महसूस करने में मदद मिलती है.

खुद के लिए खड़ा होने से आप का आत्मविश्वास बढ़ाता है. साथ ही यह संदेशों औरों तक भी जाता है कि आप खुद का सम्मान करते हैं और अनुचित हस्तक्षेप या खराब व्यवहार स्वीकार नहीं करेंगे. इस के विपरीत तुरंत न बोलने से दूसरे व्यक्ति को यह पता ही नहीं चलता है कि उस का व्यवहार अपमानजनक है और वह इसे कभी बदलने के बारे में सोचेगा ही नहीं.

बोलना है जरूरी

आप को ऐसे व्यवहार के सामने कभी चुप नहीं बैठना चाहिए. अपनी बात कहते रहें और पुरुषों को चुनौती देते रहें. जब भी ऐसा लगे कि औफिस में आप का स्पेस किसी पुरुष कलीग के द्वारा खत्म किया जा रहा है तो वहां बोलना बहुत जरूरी है. अकसर महिलाएं सबकुछ जानने के बावजूद कुछ बोलना नहीं चाहती हैं और इस वजह से स्थिति खराब हो जाती है. आप जब तक अपने लिए बोलेंगी नहीं आप की आवाज को सुनने के लिए कोई तैयार ही नहीं होगा.

आत्मविश्वास बनाए रखें. जब हम किसी विषय पर काम कर रहे होते हैं तो हम उस के अनेक पहलुओं को जानते हैं. आप अपनी जानकारी जब तक सब के सामने नहीं रखेंगी तब तक आप की क्षमता का पता लोगों को खासकर बौस को कैसे चलेगा?

अपनी बात जारी रखें

वर्कप्लेस में मैन्सप्लेनिंग एक सामान्य व्यवहार है इसलिए जब भी आप औफिस में इस का सामना करती हैं तो विनम्रता से हस्तक्षेप करते हुए कहें कि मैं इस विषय से परिचित हूं या मैं अपनी बात रखने के बाद आप का दृष्टिकोण जानना चाहूंगी.

औफिस में महिलाएं खुद से अपनी बातों को रखने की कोशिश करें और जो स्पेस उन्हें मिली है उसे यूज करें क्योंकि पुरुषों की बनाई दुनिया में अपना स्पेस क्लेम करना बहुत आवश्यक है. अगर आप की बात दब गई है तो आप उसे दोबारा बता कर सामने रखें. आप के प्रयास से ही चीजें बदलेंगी.

महिलाएं एकदूसरे को मदद करें

शोध से पता चलता है कि महिलाएं बैठकों में केवल 25त्न समय ही बोलती हैं जबकि पुरुष शेष 75त्न समय बोलते हैं. पुरुष न केवल विचारों को अधिक सा?ा करते हैं बल्कि वे अन्य पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अधिक बार बाधित भी करते हैं. अगर महिलाएं एकदूसरे की मदद करते हुए एकसाथ मिल कर काम करना शुरू करें और एकदूसरे की सपोर्ट करें तो वे अधिक समय तक अपनी बात रख सकेंगी. यह रणनीति महिलाओं को ऊपर उठाने के साथसाथ अपने स्वयं के बिंदुओं को साबित करने में भी मदद कर सकती है.

जब मैनस्प्लेन किया जा रहा हो या बात की जा रही हो तो महिलाएं किसी अन्य महिला की ओर रीडाइरैक्ट कर सकती हैं. उदाहरण के तौर पर वे मीटिंग में खुद के बाद बोलने के लिए किसी महिला को आमंत्रित करें. अगर कोई पुरुष सहकर्मी बीच में बोल रहा है तो उसे रुकने को कहें. यह मीटिंग में खुद की आवाज को अधिक समय तक रखने का एक तरीका है.

कौल आउट

फोर्ब्स में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार ज्यादातर समय पुरुषों को एहसास नहीं होता है कि वे ऐसा कर रहे हैं और उन के व्यवहार को कौल आउट करने से सम?ा बढ़ती है. आप साफतौर पर सामने वाले से कहें कि इस तरह उन का बीच में बोलना ऐटिकेट के खिलाफ है और आप को समस्या हो रही है. तब दूसरों का धयान भी आप पर जाएगा और पुरुषों को अपनी गलती का एहसास होगा.

मैन्सप्लेनिंग से महिलाओं को कमतर आंका जाता है. मैन्सप्लेनिंग का कार्य यह मानता है कि महिलाओं के पास वह ज्ञान या सम?ा नहीं है जो व्याख्या करने वाले के पास है. अकसर मामला इस के विपरीत होता है. मैन्सप्लेनिंग से महिला कर्मचारियों को यह महसूस हो सकता है कि उन्हें महत्त्व नहीं दिया जा रहा, उन्हें कमतर आंका जा रहा है और वे अक्षम हैं.

इन भावनाओं से उत्पादकता में कमी आ सकती है और उन में अपनेपन की भावना कम हो सकती है, जिस के कारण कुछ महिलाएं अपनी कंपनी को छोड़ कर ऐसी जगहों की तलाश में चली जाती हैं जहां उन्हें अधिक मूल्यवान और सराहनीय महसूस हो. विविधता प्रशिक्षण कार्यक्रमों में कर्मचारियों विशेष रूप से पुरुष कर्मचारियों को मैन्सप्लेनिंग और इसे कैसे रोका जा सकता है, के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिए.

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