Weight Loss Tips : बिना एक्सरसाइज और डाइटिंग के आसानी से कम करें वजन

वजन कम करने के लिए लोग क्या क्या नहीं करते. एक्सर्साइज और डाइटिंग के लिए नए नए पैंतरों को आजमाते हैं. पर बहुत कम लोग ही होते हैं कि उन्हें इस परेशानी से निजात मिलती है. इस खबर में हम आपको बताएंगे कि अपनी जीवनशैली में कुछ बदलाव कर आप कैसे अपना वजन कम कर सकती हैं. तो आइए जानें उन टिप्स के बारे में.

1. खूब करें फलों और सब्जियों का सेवन

सेहतमंद रहने के लिए जरूरी है कि आप ताजे और हरे साग, सब्जियों और फलों का सेवन करें. फ्रूट चाट के मुकाबले ताजे फलों का सेवन अधिक फायदेमंद होता है. इससे शरीर को भरपूर मात्रा में फाइबर मिलता है, जिससे डाइजेशन बेहतर बनता है.

2. समय पर सोएं

ज्यादातर कामकाजी लोग अपने नींद को लेकर गंभीर नहीं होते. पर पूरी नींद ना लेने से आपकी सेहत बुरी तरह से प्रभावित होती है. अगर आप स्वस्थ रहना चाहती हैं तो जरूरी है कि आप पूरी नींद लें.

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3. चिप्स या तले हुए खाद्य पदार्थों से रहें दूर

जिस तरह की हमारी जीवनशैली हो गई है हम तले हुए चीजों की ओर तेजी से बढ़ने लगे हैं. अपने काम के बीच हम चिप्स जैसी चीजों को खाते रहते हैं जो हमारी सेहत के लिए काफी हानिकारक होता है. आपको बता दें कि सभी पैकेट वाली चीजों में प्रिजर्वेटिव पाए जाते हैं, जो सेहत को नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ वजन भी बढ़ाते हैं.

4. नाश्ता कभी ना करें स्किप

नाश्ता दिनभर का सबसे जरूरी आहार है. अगर आप वजन कम करना चाहती हैं तो जरूरी है कि आप नाश्ता कभी ना छोड़ें. जो लोग नाश्ता नहीं करते, दूसरे वक्त में अधिक खाना खाते हैं. इस चक्कर में आपका वजन बढ़ जाता है.

5. खूब पीएं पानी

वजन कम करने के लिए जरूरी है कि आप अधिक पानी का सेवन करें. अगर आप सौफ्ट ड्रिंक की शौकीन हैं तो ये आपके लिए परेशानी की बात हो सकती है. कोल्ड ड्रिंक्स में कैलोरीज की मात्रा बहुत अधिक होती है, जो तेजी से वजन बढ़ाती हैं. वजन कम करने के लिए सॉफ्ट ड्रिंक्स की जगह ज्यादा से ज्यादा पानी का सेवन करें.

कुछ कहना था तुम से : 10 साल बाद सौरव को क्यों आई वैदेही की याद?

वैदेही का मन बहुत अशांत हो उठा था. अचानक 10 साल बाद सौरव का ईमेल पढ़ बहुत बेचैनी महसूस कर रही थी. वह न चाहते हुए भी सौरव के बारे में सोचने को मजबूर हो गई कि क्यों मुझे बिना कुछ कहे छोड़ गया था? कहता था कि तुम्हारे लिए चांदतारे तो नहीं ला सकता पर अपनी जान दे सकता है पर वह भी नहीं कर सकता, क्योंकि मेरी जान तुम में बसी है. वैदेही हंस कर कहती थी कि कितने झूठे हो तुम… डरपोक कहीं के. आज भी इस बात को सोच कर वैदेही के चेहरे पर हलकी सी मुसकान आ गई थी पर दूसरे ही क्षण गुस्से के भाव से पूरा चेहरा लाल हो गया था. फिर वही सवाल कि क्यों वह मुझे छोड़ गया था? आज क्यों याद कर मुझे ईमेल किया है?

वैदेही ने मेल खोल पढ़ा. सौरव ने केवल

2 लाइनें लिखी थीं, ‘‘आई एम कमिंग टू सिंगापुर टुमारो, प्लीज कम ऐंड सी मी… विल अपडेट यू द टाइम. गिव मी योर नंबर विल कौल यू.’’

यह पढ़ बेचैन थी. सोच रही थी कि नंबर दे या नहीं. क्या इतने सालों बाद मिलना ठीक रहेगा? इन 10 सालों में क्यों कभी उस ने मुझ से मिलने या बात करने की कोशिश नहीं की? कभी मेरा हालचाल भी नहीं पूछा. मैं मर गई हूं या जिंदा हूं… कुछ भी तो जानने की कोशिश नहीं की. फिर क्यों वापस आया है? सवाल तो कई थे पर जवाब एक भी नहीं था.

जाने क्या सोच कर अपना नंबर लिख भेजा. फिर आराम से कुरसी पर बैठ कर सौरव से हुई पहली मुलाकात के बारे में सोचने लगी…

10 साल पहले ‘फोरम द शौपिंग मौल’ के सामने और्चर्ड रोड पर एक ऐक्सीडैंट में वैदेही सड़क पर पड़ी थी. कोई कार से टक्कर मार गया था. ट्रैफिक जाम हो गया था. कोई मदद के लिए सामने नहीं आ रहा था. किसी सिंगापोरियन ने हैल्पलाइन में फोन कर सूचना दे दी थी कि फलां रोड पर ऐक्सीडैंट हो गया है, ऐंबुलैंस नीडेड.

वैदेही के पैरों से खून तेजी से बह रहा था. वह रोड पर हैल्प… हैल्प चिल्ला रही थी, पर कोई मदद के लिए आगे नहीं आ रहा था. उसी ट्रैफिक जाम में सौरव भी फंसा था. न जाने क्या सोच वह मदद के लिए आगे आया और फिर वैदेही को अपनी ब्रैंड न्यू स्पोर्ट्स कार में हौस्पिटल ले गया.

वैदेही हलकी बेहोशी में थी. सौरव का उसे अपनी गोद में उठा कर कार तक ले जाना ही याद था. उस के बाद तो वह पूरी बेहोश हो गई थी. पर आज भी उस की वह लैमन यलो टीशर्ट उसे अच्छी तरह याद थी. वैदेही की मदद करने के ऐवज में उसे कितने ही चक्कर पुलिस के काटने पड़े थे. विदेश के अपने पचड़े हैं. कोई किसी

की मदद नहीं करता खासकर प्रवासियों की. फिर भी एक भारतीय होने का फर्ज निभाया था. यही बात तो दिल को छू गई थी उस की. कुछ अजीब और पागल सा था. जब जो उस के मन में आता था कर लिया करता था. 4 घंटे बाद जब वैदेही होश में आई थी तब भी वह उस के सिरहाने ही बैठा था. ऐक्सीडैंट में वैदेही की एक टांग में फ्रैक्चर हो गया था, मोबाइल भी टूट गया था. सौरव उस के होश में आने का इंतजार कर रहा था ताकि उस से किसी अपने का नंबर ले इन्फौर्म कर सके.

होश में आने पर वैदेही ने ही उसे अच्छी तरह पहली बार देखा था. देखने में कुछ खास तो नहीं था पर फिर भी कुछ तो अलग बात थी.

कुछ सवाल करती उस से पहले ही उस ने कहा, ‘‘अच्छा हुआ आप होश में आ गईं वरना तो आप के साथ मुझे भी हौस्पिटल में रात काटनी पड़ती. खैर, आई एम सौरव.’’

सौरव के तेवर देख वैदेही ने उसे थैंक्यू

नहीं कहा.

वैदेही से उस ने परिवार के किसी मैंबर का नंबर मांगा. मां का फोन नंबर देने पर सौरव ने अपने फोन से उन का नंबर मिला कर उन्हें वैदेही के विषय में सारी जानकारी दे दी. फिर हौस्पिटल से चला गया. न बाय बोला न कुछ. अत: वैदेही ने मन ही मन उस का नाम खड़ूस रख दिया.

उस मुलाकात के बाद तो मिलने की उम्मीद भी नहीं थी. न उस ने वैदेही का नंबर लिया था न ही वैदेही ने उस का. उस के जाते ही वैदेही की मां और बाबा हौस्पिटल आ पहुंचे थे. वैदेही ने मां और बाबा को ऐक्सीडैंट का सारा ब्योरा दिया और बताया कैसे सौरव ने उस की मदद की.

2 दिन हौस्पिटल में ही बीते थे.

ऐसी तो पहली मुलाकात थी वैदेही और सौरव की. कितनी अजीब सी… वैदेही सोचसोच मुसकरा रही थी. सोच तो रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी. सौरव के ईमेल ने वैदेही के पुराने सारे मीठे और दर्द भरे पलों को हरा कर दिया था.

ऐक्सीडैंट के बाद पंद्रह दिन का बैडरेस्ट लेने को कहा गया

था. नईनई नौकरी भी जौइन की थी तब वैदेही ने. घर पहुंच वैदेही ने सोचा औफिस में इन्फौर्म कर दे. मोबाइल खोज रही थी तभी याद आया मोबाइल तो हौस्पिटल में सौरव के हाथ में था और शायद अफरातफरी में उस ने उसे लौटाया नहीं था. पर इन्फौर्म तो कर ही सकता था. उफ, सारे कौंटैक्ट नंबर्स भी गए. वैदेही चिल्ला उठी थी. तब अचानक याद आया कि उस ने अपने फोन से मां को फोन किया था. मां के मोबाइल में कौल्स चैक की तो नंबर मिल गया.

तुरंत नंबर मिला अपना इंट्रोडक्शन देते हुए उस ने सौरव से मोबाइल लौटाने का आग्रह किया. तब सौरव ने तपाक से कहा, ‘‘फ्री में नहीं लौटाऊंगा. खाना खिलाना होगा… कल शाम तुम्हारे घर आऊंगा… एड्रैस बताओ.’’

वैदेही के तो होश ही उड़ गए. मन में सोचने लगी कैसा अजीब प्राणी है यह. पर मोबाइल तो चाहिए ही था. अत: एड्रैस दे दिया.

अगले दिन शाम को महाराज हाजिर भी हो गए थे. सारे घर वालों को सैल्फ इंट्रोडक्शन भी दे दिया और ऐसे घुलमिल गया जैसे सालों से हम सब से जानपहचान हो. वैदेही ये सब देख हैरान भी थी और कहीं न कहीं एक अजीब सी फीलिंग भी हो रही थी. बहुत मिलनसार स्वभाव था. मां, बाबा और वैदेही की छोटी बहन तो उस की तारीफ करते नहीं थक रहे थे. थकते भी क्यों उस का स्वभाव, हावभाव सब कितना अलग और प्रभावपूर्ण था. वैदेही उस के साथ बहती चली जा रही थी.

वह सिंगापुर में अकेला रहता था. एक कार डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी में मैनेजर था. तभी आए दिन उसे नई कार का टैस्ट ड्राइव करने का मौका मिलता रहता था. जिस दिन उस ने वैदेही की मदद की थी उस दिन भी न्यू स्पोर्ट्स कार की टैस्ट ड्राइव पर था. उस के मातापिता इंडिया में रहते थे.

इस दौरान अच्छी दोस्ती हो गई थी. रोज आनाजाना होने लगा था. वैदेही के परिवार के सभी लोग उसे पसंद करते थे. धीरेधीरे उस ने वैदेही के दिल में खास जगह बना ली. उस के साथ जब होती थी तो लगता था ये पल यहीं थम जाएं. वैदेही को भी यह एहसास हो चला था कि सौरव के दिल में भी उस के लिए खास फीलिंग्स हैं. मगर अभी तक उस ने वैदेही से अपनी फीलिंग्स कही नहीं थीं.

15 दिन बाद वैदेही ने औफिस जौइन कर लिया. सौरव और वैदेही का औफिस और्चर्ड रोड पर ही था. सौरव अकसर वैदेही को औफिस से घर छोड़ने आता था. फ्रैक्चर होने की वजह से

6 महीने केयर करनी ही थी. वैदेही को उस का लिफ्ट देना अच्छा लगता था.

आज भी वैदेही को याद है सौरव ने उसे

2 महीने के बाद उस के 22वें बर्थडे पर प्रपोज किया था. औसतन लोग अपनी प्रेमिका को गुलदस्ता या चौकलेट अथवा रिंग के साथ प्रपोज करते हैं, पर उस ने वैदेही के हाथों में एक कार का छोटा सा मौडल रखते हुए कहा कि क्या तुम अपनी पूरी जिंदगी का सफर मेरे साथ तय करना चाहोगी? कितना पागलपन और दीवानगी थी उस की बातों में. वैदेही उसे समझने में असमर्थ थी. यह कहतेकहते सौरव उस के बिलकुल नजदीक आ गया और वैदेही का चेहरा अपने हाथों में थामते हुए उस के होंठों को अपने होंठों से छूते हुए दोनों की सांसें एक हो चली थीं. वैदेही का दिल जोर से धड़क रहा था. खुद को संभालते हुए वह सौरव से अलग हुई. दोनों के बीच एक अजीब मीठी सी मुसकराहट ने अपनी जगह बना ली थी.

कुछ देर तो वैदेही वहीं बुत की तरह खड़ी रही थी. जब उस ने वैदेही का उत्तर जानने की उत्सुकता जताई तो वैदेही ने कहा था कि अगले दिन ‘गार्डन बाय द वे’ में मिलेंगे. वहीं वह अपना जवाब उसे देगी.

उस रात वैदेही एक पल भी नहीं सोई थी. कई विषयों पर सोच रही थी जैसे

कैरियर, आगे की पढ़ाई और न जाने कितने खयाल. नींद आती भी कैसे, मन में बवंडर जो उठा था. तब वैदेही मात्र 22 साल की ही तो थी और इतनी जल्दी शादी भी नहीं करना चाहती थी. सौरव भी केवल 25 वर्ष का था. पर वैदेही उसे यह बताना भी चाहती थी कि उस से बेइंतहा मुहब्बत हो गई है और जिंदगी का पूरा सफर उस के साथ ही बिताना चाहती है. बस कुछ समय चाहिए था उसे. पर यह बात वैदेही के मन में ही रह गई थी. कभी इसे बोल नहीं पाई.

अगले दिन वैदेही ठीक शाम 5 बजे ‘गार्डन बाय द वे’ में पहुंच गई. वहां पहुंच कर उस ने सौरव को फोन मिलाया तो फोन औफ आ रहा था. उस का इंतजार करने वह वहीं बैठ गई. आधे घंटे बाद फिर फोन मिलाया तब भी फोन औफ ही आ रहा था. वैदेही परेशान हो उठी. पर फिर सोचा कहीं औफिस में कोई जरूरी मीटिंग में न फंस गया हो. वहीं उस का इंतजार करती रही. इंतजार करतेकरते रात के 8 बजे गए, पर वह नहीं आया और उस के बाद उस का फोन भी कभी औन नहीं मिला.

2 साल तक वैदेही उस का इंतजार करती रही पर कभी उस ने उसे एक बार भी फोन नहीं किया. 2 साल बाद मांबाबा की मरजी से आदित्य से वैदेही की शादी हो गई. आदित्य औडिटिंग कंपनी चलाता था. उस के मातापिता सिंगापुर में उस के साथ ही रहते थे.

शादी के बाद कितने साल लगे थे वैदेही को सौरव को भूलने में पर पूरी तरह भूल नहीं पाई थी. कहीं न कहीं किसी मोड़ पर उसे सौरव की याद आ ही जाती थी. आज अचानक क्यों आया है और क्या चाहता है?

वैदेही की सोच की कड़ी को अचानक फोन की घंटी ने तोड़ा. एक अनजान नंबर था. दिल की धड़कनें तेज हो चली थीं. वैदेही को लग रहा था हो न हो सौरव का ही होगा. एक आवेग सा महसूस कर रही थी. कौल रिसीव करते हुए हैलो कहा तो दूसरी ओर सौरव ही था. उस ने अपनी भारी आवाज में ‘हैलो इज दैट वैदेही?’ इतने सालों के बाद भी सौरव की आवाज वैदेही के कानों से होते हुए पूरे शरीर को झंकृत कर रही थी.

स्वयं को संभालते हुए वैदेही ने कहा, ‘‘यस दिस इज वैदेही,’’ न पहचानने का नाटक करते हुए कहा, ‘‘मे आई नो हू इज टौकिंग?’’

सौरव ने अपने अंदाज में कहा, ‘‘यार, तुम मुझे कैसे भूल सकती हो? मैं सौरव…’’

‘‘ओह,’’ वैदेही ने कहा.

‘‘क्या कल तुम मुझ से मरीना वे सैंड्स होटल के रूफ टौप रैस्टोरैंट पर मिलने आ सकती  हो? शाम 5 बजे.’’

कुछ सोचते हुए वैदेही ने कहा, ‘‘हां, तुम से मिलना तो है ही. कल शाम को आ जाऊंगी,’’ कह फोन काट दिया.

अगर ज्यादा बात करती तो उस का रोष सौरव को फोन पर ही सहना पड़ता. वैदेही के दिमाग में कितनी हलचल थी, इस का अंदाजा लगाना मुश्किल था. यह सौरव के लिए उस का प्यार था या नफरत? मिलने का उत्साह था या असमंजसता? एक मिलाजुला भावों का मिश्रण जिस की तीव्रता सिर्फ वैदेही ही महसूस कर सकती थी.

अगले दिन सौरव से मिलने जाने के लिए जब वैदेही तैयार हो रही थी, तभी आदित्य कमरे में आया. वैदेही से पूछा, ‘‘कहां जा रही हो?’’

वैदेही ने कहा, ‘‘सौरव सिंगापुर आया है. वह मुझ से मिलना चाहता है,’’ कह वैदेही चुप हो गई. फिर कुछ सोच आदित्य से पूछा, ‘‘जाऊं या नहीं?’’

आदित्य ने जवाब में कहा, ‘‘हां, जाओ. मिल आओ. डिनर पर मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा,’’ कह वह कमरे से चला गया.

आदित्य ने सौरव के विषय में काफी कुछ सुन रखा था. वह यह जानता था कि सौरव को वैदेही के परिवार वाले बहुत पसंद करते थे… कैसे उस ने वैदेही की मदद की थी. आदित्य खुले विचारों वाला इनसान था.

हलके जामुनी रंग की ड्रैस में वैदेही बहुत खूबसूरत लग रही थी. बालों को

ब्लो ड्राई कर बिलकुल सीधा किया था. सौरव को वैदेही के सीधे बाल बहुत पसंद थे. वैदेही हूबहू वैसे ही तैयार हुई जैसे सौरव को पसंद थी. वैदेही यह समझने में असमर्थ थी कि आखिर वह सौरव की पसंद से क्यों तैयार हुई थी? कभीकभी यह समझना मुश्किल हो जाता है कि आखिर किसी के होने का हमारे जीवन में इतना असर क्यों आ जाता है. वैदेही भी एक असमंजसता से गुजर रही थी. स्वयं को रोकना चाहती थी पर कदम थे कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे.

वैदेही ठीक 5 बजे मरीना बाय सैंड्स के रूफ टौप रैस्टोरैंट में पहुंची. सौरव वहां पहले से इंतजार कर रहा था. वैदेही को देखते ही वह चेयर से खड़ा हो वैदेही की तरफ बढ़ा और उसे गले लगते हुए बोला, ‘‘सो नाइस टू सी यू आफ्टर ए डिकेड. यू आर लुकिंग गौर्जियस.’’

वैदेही अब भी गहरी सोच में डूबी थी. फिर एक हलकी मुसकान के साथ उस ने कहा, ‘‘थैंक्स फार द कौंप्लीमैंट. आई एम सरप्राइज टु सी यू ऐक्चुअली.’’

सौरव भांप गया था वैदेही के कहने का तात्पर्य. उस ने कहा, ‘‘क्या तुम ने अब तक मुझे माफ नहीं किया? मैं जानता हूं तुम से वादा कर के मैं आ न सका. तुम नहीं जानतीं मेरे साथ क्या हुआ था?’’

वैदेही ने कहा, ‘‘10 साल कोई कम तो नहीं होते… माफ कैसे करूं तुम्हें? आज मैं जानना चाहती हूं क्या हुआ था तुम्हारे साथ?’’

सौरव ने कहा, ‘‘तुम्हें याद ही होगा, तुम ने मुझे पार्क में मिलने के लिए बुलाया था. उसी दिन हमारी कंपनी के बौस को पुलिस पकड़ ले गई थी, स्मगलिंग के सिलसिले में. टौप लैवल मैनेजर को भी रिमांड में रखा गया था. हमारे फोन, अकाउंट सब सीज कर दिए गए थे. हालांकि 3 दिन लगातार पूछताछ के बाद, महीनों तक हमें जेल में बंद कर दिया था. 2 साल तक केस चलता रहा. जब तक केस चला बेगुनाहों को भी जेल की रोटियां तोड़नी पड़ीं. आखिर जो लोग बेगुनाह थे उन्हें तुरंत डिपोर्ट कर दिया गया और जिन्हें डिपोर्ट किया गया था उन में मैं भी था. पुलिस की रिमांड में वे दिन कैसे बीते क्या बताऊं तुम्हें…

‘‘आज भी सोचता हूं तो रूह कांप जाती है. किस मुंह से तुम्हारे सामने आता? इसलिए जब मैं इंडिया (मुंबई) पहुंचा तो न मेरे पास कोई मोबाइल था और न ही कौंटैक्ट नंबर्स. मुंबई पहुंचने पर पता चला मां बहुत सीरियस हैं और हौस्पिटलाइज हैं. मेरा मोबाइल औफ होने की वजह से मुझ तक खबर पहुंचाना मुश्किल था. ये सारी चीजें आपस में इतनी उलझी हुई थीं कि उन्हें सुलझाने का वक्त ही नहीं मिला और तो और मां ने मेरी शादी भी तय कर रखी थी. उन्हें उस वक्त कैसे बताता कि मैं अपनी जिंदगी सिंगापुर ही छोड़ आया हूं. उस वक्त मैं ने चुप रहना ही ठीक समझा था.

‘‘और फिर जिंदगी की आपाधापी में उलझता ही चला गया. पर तुम हमेशा याद आती रहीं. हमेशा सोचता था कि तुम क्या सोचती होगी मेरे बारे में, इसलिए तुम से मिल कर तुम्हें सब बताना चाहता था. काश, मैं इतनी हिम्मत पहले दिखा पाता. उस दिन जब हम मिलने वाले थे तब तुम मुझ से कुछ कहना चाहती थीं न… आज बता दो क्या कहना चाहती थीं.’’

वैदेही को यह जान कर इस बात की तसल्ली हुई कि सौरव ने उसे धोखा नहीं दिया. कुदरत ने हमारे रास्ते तय करने थे. फिर बोली, ‘‘वह जो मैं तुम से कहना चाहती उन बातों का अब कोई औचित्य नहीं,’’ वैदेही ने अपने जज्बातों को अपने अंदर ही दफनाने का फैसला कर लिया था.

थोड़ी चुप्पी के बाद एक मुसकराहट के साथ वैदेही ने कहा, ‘‘लैट्स और्डर सम कौफी.’’

मानसून में घूमने के लिए बेस्ट हैं ये जगहें

मानसून का मौसम चिलचिलाती गर्मी से राहत दिलाता है. इस मौसम में कुछ लोगों को घूमनाफिरना काफी पसंद होता है . मानसून में कुछ जगहों की खूबसूरती इतनी बढ़ जाती है कि वहां का माहौल देखने लायक होता है. अगर आप भी इस मौसम में कहीं घूमने का प्लान बना रहे हैं, तो आपको कुछ शानदार जगहों के बारे में बताएंगे.

कोडईकनाल

कोडईकनाल को हिल स्टेशनों की राजकुमारी कहा जाता है. इसे कप्लस का फेवरिट डेस्टिनेशन भी माना जाता है. आप इस बारिश के मौसम में घूमने का प्लान बना रहे हैं, तो कोडईकनाल जरूर घूमने जाएं. जुलाई में इस जगह की खूबसूरती देखते बनती है.

अलेप्पी

केरल में मौजूद अलेप्पी जुलाई के मौसम में काफी खूबसूरत हो जाती है. यह बारिश प्रेमियों के लिए शानदार जगह है. यहां भी आप मानसून का आनंद ले सकते हैं.

कूर्ग

कर्नाटक के इस खूबसूरत हिल स्टेशन का नजारा मानसून में कुछ अलग ही होता है. यहां की खूबसूरती पर्यटकों का मन मोह लेती है. यह अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है.

गंगटोक

सिक्किम की राजधानी गंगटोक बेहद खूबसूरत जगह है. जुलाई में बारिश के कारण यहां का इलाका हराभरा और खूबसूरत हो जाता है. यहां त्सोमो झील नाथुला दर्रा सहित कई जगहें हैं.

गोवा

घूमने के लिए गोवा काफी पौपुलर जगह है. जुलाई के महीने में बारिश के कारण यहां की खूबसूरती और बढ़ जाती है. यहां के बीच और झरनों का नजारा मानसून में काफी खास होता है.

लद्दाख

मानसून में घूमने के लिए घूमने के लिए लद्दाख को सबसे अच्छी जगहों में गिना जाता है. यहां ऊंची चोटियों और झीलों के शानदार नजारे देखने को मिलते हैं.

नैनीताल

​बारिश के बाद नैनीताल की खूबसूरती देखने लायक होती है. बारिश के मौसम में यहां घूमने के लिए पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है. यह भी मानसून में घूमने के लिए बेस्ट जगह है.

प्लेटलेट्स काउंट हो गया है कम, तो बढ़ाने के लिए खाएं ये चीजें

बारिश का मौसम काफी सुहाना होता है. यह गर्मी से राहत दिलाता है, लेकिन कई बीमारियों को अपने साथ लेकर आता है. इस मौसम में लोग जल्दी डेंगू की चपेट में आ जाते हैं. इसमें शुरुआती लक्षण वायरल बुखार जैसे होते हैं. डेंगू के मरीज की प्लेटलेट्स काउंट तेजी से डाउन होते हैं. जिससे बहुत कमजोरी महसूस होती है. आप प्लेटलेट्स काउंट्स बढ़ाने के लिए डाइट में कुछ चीजों को शामिल कर सकते हैं.

 

प्रोटीन युक्त चीजें

शरीर को स्वस्थ रखने के लिए प्रोटीन काफी जरूरी है. प्लेटलेट काउंट बढ़ाने के लिए चिकन, मछली और बीन्स जैसे प्रोटीन युक्त चीजों को डाइट में शामिल करें.

हाइड्रेटेड रहें

शरीर को हाइड्रेटेड रखना काफी जरूरी है. इससे डेंगू के लक्षण को कम किया जा सकता है. इसके लिए पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं.

आंवला

आंवला प्लेटलेट्स बढ़ाने में काफी मददगार साबित हो सकता है. इसे खाने से इम्युनिटी बूस्ट होती है. आंवला को डाइट में कई तरीकों से शामिल कर सकते हैं. इसके लिए आप आंवला का मुरब्बा, जूस या आंवला पाउडर का सेवन कर सकते हैं.

हरी पत्तेदार सब्जियां

प्लेटलेट्स काउंट बढ़ाने में हरी पत्तेदार सब्जियां बहुत ही कारगर साबित होती हैं, इसके लिए पालक, केल या अन्य पत्तेदार सब्जियां खा सकती हैं. इन सब्जियों में फोलेट और विटामिन के जैसे पोषक तत्व भी पाए जाते हैं.

गिलोय

प्लेटलेट्स बढ़ाने के लिए गिलोय काफी फायदेमंद है. बाजार में गिलोय के टेबलेट्स भी उपलब्ध हैं. इसके सेवन से शरीर में प्लेटलेट्स तेजी से बढ़ेंगे.

पपीते के पत्ते का अर्क

स्टडीज के अनुसार, पपीते के पत्ते का अर्क प्लेटलेट्स काउंट बढ़ाने में मदद करते हैं. आप इन पत्तों का जूस पी सकते हैं. इसमें मौजूद एंजाइम शरीर में जाकर प्लेटलेट काउंट बढ़ाते हैं. पपीते के पत्तों का जूस बनाने के लिए सबसे पहले पत्तों को धोएं, फिर इसे मिक्सी में पीस लें. इसके बाद छानकर रस को अलग कर लें.

कहीं बारिश आपकी शादी का मजा किरकिरा न कर दे, तो ध्यान रखें ये जरूरी बातें

मानसून के साथ ही शादियों की भी शुरुआत हो चुकी है. इस मौसम में  बारिश शादी के काम को बिगाड़ देती है. फिर वह चाहे घर की सजावट की हो या फिर दुल्हन के संवरने की बात हो. अगर आपकी भी शादी इस मौसम में है. आपको समझ न आ रहा है कि इस मौसम में क्या करें जिससे वह सबसे सुंदर दिखे, तो हम ऐसे टिप्स के बारे में बता रहें है. जिससे आप आसानी से इस समस्या से निजात पा सकते हैं.

क्या आप मानसून में शादी करने का सपना संजोए हैं, लेकिन आपको डर है कि बारिश आपकी शादी का मजा किरकिरा न कर दे? तो इसके लिए पहले से ही पूरी तैयारी कर लें.

ऐसा करें:

– अपने प्री वेडिंग समारोह को शानदार बनाने के लिए डांस पार्टी का आयोजन करें.

– बारिश में बैठने की व्यवस्था करना मुश्किल हो जाता है, इसके लिए बीन बैग सीटिंग उपयुक्त है.

– सजावट के लिए नियोन्स, फूलों वाले ड्रेप्स और रिबन का प्रयोग करें.

– मानसून में शादी करने जा रहे हैं, तो अपने निमंत्रण पत्रों से लेकर उपहारों आदि में भी मानसून थीम का प्रयोग करें.

– बारिश के मौसम में आपको ताजगी भरे रंग पहनने चाहिए. इस मौसम के लिए पीच, सुनहरा, गुलाबी, लाल रंग उपयुक्त हैं.

– आपके दोस्तों को बारिश के दौरान अपने सेलफोन और अन्य चीजें रखने में असुविधा न हो, इसके लिए वॉटरप्रूफ बैग्स का इंतजाम करें.

– अगर आप शादी का आयोजन बैंक्वेट में नहीं कर रहे, तो बारिश से बचने का इंतजाम करना जरूरी है.

न करें:

– मेकअप में हल्के फाउंडेशन का प्रयोग करें.

– फूलों से सज्जा न करें. इनके स्थान पर पैराशूट मैटिरियल के गजेबो, फूलों के पिंट्र वाले ड्रेप्स और नकली फूलों का प्रयोग करें.

– बारिश के मौसम में हील्स का प्रयोग न करें. इसके स्थान पर फूलों वाली मोजरियों का प्रयोग करें.

– मेहंदी के लिए भारी फूलों वाले आभूषणों के स्थान पर टियारा या गोटे के आभूषणों का प्रयोग करें.

रोशनी : आखिर बच्चा गोद लेने से क्यों इंकार करता था नवल

स्नान कर के दीप्ति शृंगारमेज की ओर जा ही रही थी कि अपने नकल को पलंग पर औंधे लेटे देख कर चकित सी रह गई क्योंकि इतनी जल्दी वे क्लीनिक से कभी नहीं आते थे. फिर आज तो औपरेशन का दिन था. ऐसे दिन तो वे दोपहर ढलने के बाद ही आ पाते थे. इसीलिए पलंग के पास जा कर दीप्ति ने साश्चर्य पूछा, ‘‘क्या बात है, आज इतनी जल्दी निबट गए?’’

डाक्टर नवल ने कोई उत्तर नहीं दिया. वे पूर्ववत औंधे लेटे रहे. दीप्ति ने देखा कि उन्होंने जूते भी नहीं उतार हैं, कपड़े भी नहीं बदले हैं, क्लीनिक से आते ही शायद लेट गए हैं. इसीलिए यह सोच कर उस का माथा ठनका, कोई औपरेशन बिगड़ क्या? इन का स्वास्थ्य तो नहीं बिगड़ गया?

चिंतित स्वर में दीप्ति ने फिर पूछा, ‘‘क्या बात है तबीयत खराब हो गई क्या?’’

डाक्टर नवल ने औंधे लेटेलेटे ही जैसे बड़ी कठिनाई से उत्तर दिया, ‘‘नहीं.’’

‘‘औपरेशन बिगड़ गया क्या?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘तो फिर क्या बात है?’’

डाक्टर नवल ने कोई उत्तर नहीं दिया. दीप्ति तौलिए से बालों को सुखाती हुई पति के पास बैठ गई. उन्हें हौले से छूते हुए उस ने फिर पूछा, ‘‘बोलो न, क्या बात है? इस तरह मुंह लटकाए क्यों पड़े हो?’’

डाक्टर नवल ने दोनों हाथों से अपना मुंह ढकते हुए कहा, ‘‘दीप्ति, मु?ो कुछ देर अभी अकेला छोड़ दो. मेहरबानी कर के जाओ यहां से.’’

दीप्ति का आश्चर्य और बढ़ गया. पिछले

3 सालों के वैवाहिक जीवन में ऐसा अवसर कभी नहीं आया था. डाक्टर नवल उस की भावनाओं का हमेशा खयाल रखते थे. उस से कभी ऊंचे स्वर में नहीं बोलते थे. वह कभी गलती पर होती थी, तब भी वे उस बात की उपेक्षा सी कर जाते थे.

कभीकभी तो उदारतापूर्वक वे उसे अपनी गलती मान लेते थे. हमेशा पत्नी को प्रसन्न रखने की चेष्टा करते रहते थे. आज वे ही उसे कमरे से बाहर जाने को कह रहे थे.

 

और सब से बड़ी बात तो यह थी कि नवल दीप्ति को दीप्ति कह कर संबोधित

किया था. ऐसा आमतौर पर कभी नहीं होता था. उन्होंने उस का नाम पंडितजी रख छोड़ा था. संस्कृत की प्राध्यापिका होने के कारण वे प्रथम परिचय के बाद से ही उसे पंडितजी कह कर संबोधित करने लगे थे. यह संबोधन विवाह के बाद भी कायम रहा था. उठतेबैठते वे पंडितजी… पंडितजी की धूम मचाया करते थे. क्लीनिक से या और कहीं से भी घर आते ही पुकार उठते थे, ‘‘पंडितजी.’’

किंतु आज तो नवल चोरों की तरह घर में आ कर सो गए थे. पंडितजी को एक बार भी नहीं पुकारा था और अब अपराधियों की तरह  दोनों हाथों से मुंह ढक कर अकेला छोड़ देने को कह रह थे. उस समय भी उन के मुंह से ‘पंडितजी’ संबोधन नहीं निकला था. दीप्ति कहा था उन्होंने.

दीप्ति को लगा, जरूर कोई न कोई गंभीर बात है. इसीलिए दीप्ति बजाय बाहर जाने के पति से सट कर बैठती हुई बोली, ‘‘पहले यह बताओ बात क्या है? मैं तभी जाऊंगी.’’

डाक्टर नवल ने दीवार की ओर मुंह करते हुए कहा, ‘‘वही बताने की स्थिति में मैं अभी नहीं हूं. मु?ो जरा संभल जाने दो. फिर सब बताऊंगा. बताना ही होगा. बताए बिना काम भी कैसे चलेगा? इसीलिए दीप्ति मेहरबानी कर के चली जाओ.’’

दीप्ति भीतर तक कांप उठी. उसे विश्वास हो गया कि जरूर कोई न कोई गंभीर बात है.डाक्टर नवल का स्वर, लहजा सभी कुछ इस क्षण असामान्य था.

असमंजस की मुद्रा में कुछ देर बैठी रहने के बाद दीप्ति जाने को उठ खड़ी हुई. किंतु वह द्वार के बाहर ही पहुंची थी कि डाक्टर नवल का भर्राया सा स्वर उसे सुनाई पड़ा, ‘‘दीप्ति.’’

दीप्ति ने ठिठकते हुए कहा, ‘‘जी.’’

‘‘चली आओ. यों नियति से अब आंख चुराने से क्या फायदा. जो हो चुका है, वह तो अब बदला नहीं जा सकता.’’

दीप्ति को जैसे काठ मार गया. उस की ऊपर की सांस जैसे ऊपर और नीचे की नीचे ही रह गई. उसे ऐसा लगा जैसे कोई भयानक विपत्ति गाज की तरह उस के सिर पर मंडरा रही है.

डाक्टर नवल ने उसे फिर पुकारा, ‘‘बुरा मान गईं क्या? इस अशोभनीय व्यवहार के लिए मु?ो माफ करो, पंडितजी.’’

दीप्ति दौड़ी सी भीतर आई और कंपित स्वर में बोली, ‘‘नहीं… नहीं, ऐसी कोई बात नहीं हुई. तुम्हारी परेशानी क्या है, तुम बस यही बताओ?’’

डाक्टर नवल आलथीपालथी मार कर बिस्तर पर बैठ गए थे. तौलिए से बाल सुखाती दीप्ति को एकटक देखने लगे. उन की इस दृष्टि से दीप्ति के तन में फुरहरी सी दौड़ गई. उस के गालों पर लाली की ?ांई सी उभर आई. उस ने नजरें चुराते हुए कहा, ‘‘ऐसे क्यों देख रहे हो?’’

डाक्टर नवल ने आह भरते हुए कहा, ‘‘नजर भर के इस रूप को देख लेने दो. यह  तौलिया परे फेंक दो, पंडितजी. अपने गजगज लंबे बालों को फैला दो. सावन की छटा छा जाने दो.’’

दीप्ति ने तौलिया हैंगर पर टांग दिया और गरदन को ?ाटका दे कर बालों को फैला दिया. डाक्टर नवल आंखें फाड़फाड़ कर उसे अभी भी घूरे जा रहे थे.

डाक्टर नवल की यह मुग्ध दृष्टि दीप्ति को अच्छी लग रही थी, किंतु इस विशेष परिस्थिति के कारण उसे यह दृष्टि स्वाभाविक प्रतीत नहीं हो रही थी. इसीलिए उस ने पति के पास बैठते हुए कहा, ‘‘आज मु?ो इस तरह क्यों घूर रहे हो?’’

डाक्टर नवल ने दीप्ति को बांहों में भरते हुए कहा, ‘‘तुम्हें कैसे सम?ाऊं, पंडितजी?’’

‘‘इस में क्या कठिनाई है?’’

‘‘बड़ी भारी कठिनाई है.’’

‘‘आज तुम अजीबअजीब सी बातें कर रहे हो. पहेलियां बु?ा रहे हो. साफसाफ कहो न बात क्या है?’’

‘‘बड़ी भारी बात है, पंडितजी.’’

‘‘बड़ी भारी बात है?’’

‘‘हां.’’

‘‘आखिर पता तो लगे बात क्या है?’’

डाक्टर नवल फिर चुप हो गए. बारबार पूछे जाने पर वे भर्राए स्वर में बोले, ‘‘कैसे कहूं?’’

दीप्ति को आश्चर्य हुआ. डाक्टर नवल इतने भावुक कभी नहीं होते थे. इसीलिए उस ने किंचित ?ां?ाला कर कहा, ‘‘किसी भी तरह कहो तो सही. मैं तो आशंका में ही मरी जा रही हूं.’’

अपने विशाल सीने पर दीप्ति को सटाते हुए डाक्टर नवल बोले, ‘‘मालूम नहीं, सुनने पर तुम्हारा क्या हाल होगा.’’

‘‘जो होगा, वह देखा जाएगा, तुम कह डालो.’’

 

दीप्ति की आंखों में आंखें डालते हुए डाक्टर नवल ने बड़े भावुक स्वर में कहा,

‘‘पंडितजी, तुम्हारे इस रूपसौंदर्य का क्या होगा?’’

दीप्ति चौंकी. उस ने और अधिक ?ां?ालाते हुए पूछा, ‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि तुम… तुम…’’

‘‘रुक क्यों गए? कहो न?’’

‘‘तुम अब किसी और से शादी कर लो.’’

पति की बांहों की कैद से एक ?ाटके में ही अलग हो कर तीखी नजर डालते हुए दीप्ति ने कंपित स्वर में कहा, ‘‘कैसी बातें कर रहे हो आज? नशे में हो क्या?’’

डाक्टर नवल ने अविचलित स्वर में कहा, ‘‘नहीं, पूरे होशोहवास में हूं.’’

‘‘तो फिर ऐसी बहकीबहकी बातें क्यों कर रहे हो?’’

‘‘ये बहकीबहकी बातें नहीं हैं.’’

‘‘तो फिर ऐसी बेहूदा बात तुम्हारे मुंह से कैसे निकली?’’

‘‘बड़ी मजबूरी में निकली है. इसी बात को कहने के लिए ही मैं कब से अपनेआप को जैसे धकेल रहा था.’’

किसी जलते कोयले पर जैसे पैर रखा गया हो, इस तरह दीप्ति चौंक उठी. उस ने पति के दोनों कंधे पकड़ कर पूछा, ‘‘एकाएक ऐसी कौन सी मजबूरी आ गई?’’

आंखें चुराते हुए डाक्टर नवल ने कहा, ‘‘एकाएक ही आई है, मेरी पंडितजी, आसमान से जैसे बिजली सी गिरी है.’’

दीप्ति ने लगभग चीखते से स्वर में कहा, ‘‘फिर पहेलियां बु?ाने लगे. साफसाप कहो न, कौन सी बिजली गिरी है?’’

 

डाक्टर नवल ने 1-1 शब्द को कैसे चबाते हुए कहा, ‘‘तुम्हारी गोद हरी

करने लायक मैं अब नहीं रहा. कान खोल कर सुन लो, मैं अब किसी संतान को जन्म देने लायक नहीं रहा.’’

‘‘क्यों नहीं रहे?’’

‘‘ऐसी दुर्घटना हो गई है.’’

‘‘दुर्घटना. कैसी दुर्घटना?’’

‘‘तुम्हें कैसे सम?ाऊं, मेरी पंडित. यह बात तुम्हारी सम?ा से बाहर की है. हमारे डाक्टरी उसूलों की लीला है यह.’’

‘‘फिर भी मु?ो सम?ाओ न?’’

‘‘सम?ाने को और रहा ही क्या है. कुदरत ने मेरी लापरवाही की मु?ो कठोर सजा दी है. तुम बस इतना ही सम?ा लो.’’

‘‘नहीं, मु?ो सारी बात विस्तार से सम?ाओ.’’

‘‘मैं आज भी रोज की तरह औपरेशन में रेडियो धर्मी रेडियम का उपयोग कर रहा था…’’

‘‘फिर क्या हुआ?’’

‘‘जाने कैसे एक पिन मेरे ऐप्रन में रह गई और मेरे शरीर से स्पर्श हो गई. उसी का यह गंभीर परिणाम हुआ. मैं सैक्स की दृष्टि से बेकार हो गया हूं. बाप बनने की मु?ा में अब क्षमता ही नहीं रही है. इसीलिए मैं ने तुम्हारे सामने यह प्रस्ताव…’’

डाक्टर नवल के मुंह पर हाथ रखते हुए दीप्ति बोली, ‘‘यह अशुभ बात दोबारा मत कहो.’’

बुजुर्गाना अंदाज में मुसकराते हुए डाक्टर नवल ने कहा, ‘‘पंडितजी, यह समय थोथे आदर्शवाद का नहीं है. जीवन के क्रूर यथार्थ ने हमें जहां ला कर पटका है उस से आंखें मिलाओ. भावुकता से काम नहीं चलेगा. तुम्हारे सामने पहाड़ सी जिंदगी पड़ी है. उसे थोथी भावुकता में बरबाद मत करो. इस रूपसौंदर्य का…’’

दीप्ति ने पति का मुंह बंद करते हुए रोआंसे स्वर में कहा, ‘‘तुम इस हादसे के बाद भी जीवित तो रहोगे न? तुम्हारी जिंदगी को तो कोई खतरा नहीं है न?’’

‘‘नहीं, फिलहाल ऐसा कोईर् खतरा इस हादसे से नहीं हुआ है. इस हादसे ने तो बस मेरे पौरुष को ही ?ालसा दिया है.’’

‘‘बस तो फिर कोई चिंता की बात नहीं है. मैं तुम्हारे ?ालसे हुए पौरुष के साथ ही जीवन व्यतीत कर लूंगी.’’

‘‘नहीं, यह नहीं होगा. मैं तुम्हें थोथे आदर्शवाद की बलिवेदी पर बलिदान नहीं होने दूंगा, भावुकता में बहने नहीं दूंगा. मैं तुम्हें तलाक दे दूंगा.’’

‘‘क्यों दे दोगे?’’

‘‘क्योकि मातृत्व के बिना नारीत्व अपूर्ण होता है.’’

‘‘जिन्हें कोई संतान नहीं होती वे भी तो इस अपूर्णता के बावजूद…’’

‘‘वह उन की विवशता होती है.’’

‘‘यह भी एक विवशता ही है.’’

‘‘नहीं, खुली आंख से मक्खी निगलना विवशता नहीं है. यह तो अपने हाथों से अपने

पैरों पर कुल्हाड़ी मारना है. अपने हाथों से

अपने अरमानों का गला घोटना है. यह सरासर बेवकूफी है.’’

‘‘जरा मेरी भी तो सुनो.’’

‘‘नहीं, मैं कुछ नहीं सुनूंगा. जब कुदरत ने हमें ऐसे मोड़ पर ला खड़ा किया है जहां से आगे साथसाथ चलना मुमकिन नहीं है…’’

‘‘क्यों मुमकिन नहीं है? मुमकिन है. जरा ठंडे दिमाग से सोचो.’’

‘‘मैं ने खूब सोच लिया है. अब तो बस कुदरत का फैसला मंजूर कर लेना चाहिए. हमें हंसते हुए एकदूसरे को अलविदा कह देना चाहिए.’’

दीप्ति ने कानों में उगली देते हुए कहा, ‘‘नहीं, यह नहीं होगा. हमारा प्यार भी कोई चीज है या नहीं?’’

‘‘है तभी तो यह फैसला करने में जैसे मेरी जान पर आ रही है पर मैं अपने स्वार्थ के लिए तुम्हारे जीवन का बलिदान नहीं होने दूंगा. वैसे प्यार के लिए ही मैं यह अंतिम निर्णय ले रहा हूं. मैं नहीं तो कम से कम तुम तो सुखी रहो.’’

‘‘तुम से अलग रह कर मैं सुखी नहीं रह सकती हूं?’’

‘‘ये सब फालतू की बातें हैं. लाश के साथ रहने में क्या सुख है?’’

‘‘सैक्सुअली न्यूट्रल होने से तुम लाश कैसे हो गए? बाप बनने के अयोग्य होना और नामर्द होना अलगअलग बात है. पिता बनने की तुम में क्षमता नहीं रही. मगर यौन क्षमता तो है. मैं इसी पर संतोष कर लूंगी.’’

‘‘पर मैं संतोष नहीं कर पाऊंगा. संतान को मैं वैवाहिक जीवन की अनिवार्यता मानता हूं.’’

‘‘संतान… संतान बस एक ही बात रटे जा रहे हो. संतान की तुम्हें ऐसी ही भूख है तो हम किसी को गोद ले लेंगे. सरोगेसी से कुछ करा लेंगे.’’

‘‘पराए आखिर पराए ही होते हैं. अपने खून की बात ही दूसरी होती है.’’

‘‘तुम डाक्टर हो कर कैसी दकियानूसी बातें कर रहे हो? मैं पचासों ऐसे उदाहरण अपने आसपास से तुम्हें बतला सकती हूं जब अपने खून ने बेगानों से भी बदतर सुलूक अपने मांबाप से किया और जिन्हें तुम पराए कह रह हो, ऐसे गोद आए बच्चों ने अपने खून से भी अच्छा सुलूक किया है, कहो तो गिनवाऊं?’’

डाक्टर नवल टुकुरटुकुर देखते रहे. वे कुछ नहीं बोल पाए. उन के ठीक पड़ोस में ही गोद आए बच्चों ने खुद की संतान से अधिक सुख अपने इन गोद लेने वाले मांबाप को दिया था. नाक के सामने के इस सत्य ने उन्हें अवाक कर दिया. दीप्ति के संकेत को वे सम?ा गए थे.

 

तभी दीप्ति ने फैसला सा सुनाते हुए कहा, ‘‘कान खोल कर सुन लो मैं इस घर से

नहीं जाऊंगी. तुम मु?ो धक्के दे कर निकालोगे तब भी नहीं. मैं तुम्हारे साथ ही जीवन बिताऊंगी. ऐसी मूर्खतापूर्ण बात मेरे सामने अब कभी मत कहना. उठो, हाथमुंह धो लो. मैं चाय ला रही हूं.’’

छोटे बच्चे की तरह बिना कोई नानुकर

किए डाक्टर नवल उठ खड़े हुए. हाथमुंह धो कर आईने के सामने खड़े हो कर वे बाल संवारने लगे.

चाय की ट्रे ले कर दीप्ति आई तो वे उस का चेहरा देखने लगे.

दीप्ति ने लजाते हुए पूछा, ‘‘क्या देख रहे हो?’’

डाक्टर नवल ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘फरिश्ते के चेहरे की कल्पना कर रहा हूं.’’

चाय की ट्रे को मेज पर रखते हुए दीप्ति ने इठलाते हुए कहा, ‘‘ओह, तुम्हारी कल्पना भी इतनी उड़ान भरने लगी?’’

‘‘पंडितजी की संगत का असर है.’’

‘‘अच्छाजी, पर अब ये जूतेकपड़े तो उतारो.’’

‘‘नहीं, मैं चाय पी कर फिर से औपरेशन थिएटर जाऊंगा. रहे हुए औपरेशन करूंगा. मेरे आसपास का अंधेरा छंट गया. अब तो चारों तरफ मु?ो रोशनी ही रोशनी नजर आ रही है.’’

दीप्ति पुलकित हो उठी. चाय समाप्त कर के डाक्टर नवल जब जाने लगे तो उस ने इसी पुलक में कहा, ‘‘जल्दी लौटना. मैं तुम्हें संस्कृत में कामशास्त्र पढ़ाऊंगी.’’

काश : अभिनय और उसकी पत्नी के बीच क्यों बढ़ रही थी दूरियां

Writer- भावना ठाकर ‘भावु’

आज हलकीहलकी बारिश और खुशनुमा मौसम ने अभिनय के मिजाज को रोमांटिक बना दिया. अभिनय ने अपनी पत्नी संगीता की कमर में हाथ डालते हुए ‘टिपटिप बरसा पानी, पानी ने आग लगाई…’ गाना गुनगुनाते थोड़ा रोमांस करना चाहा.

मगर ‘‘हटिए भी… जब देखो आप को बस रोमांस ही सू?ाता है,’’ कह कर नीरस और ठंडे मिजाज वाली संगीता ने अभिनय का हाथ ?ाटक कर उसे खुद से अलग कर दिया. अभिनय आहत होते चुपचाप बैडरूम में चला गया और म्यूजिक सिस्टम पर गुलाम अली खान साहब की गजलें सुनते व्हिस्की का पैग बनाने लगा. एक पैग पीने के पश्चात अभिनय ने आंखें बंद कर लीं और गजल सुनने लगा…

‘‘चुपकेचुपके रातदिन आंसू बहाना याद है, हम को अब तक आशिकी का वो जमाना याद है…’’

गुलाम अली साहब की गहरी आवाज में गजल चल रही हो तो कोई नीरस इंसान ही होगा जिसे जवानी के मस्ती भरे दिन और इश्क का रंगीन जमाना याद न आए. अभिनय को भी वह जमाना याद आ गया जब शीतल के साथ पहली बार लिव इन रिलेशनशिप में रहने लगा था. भरपूर जवानी थी, जोश था और पहलेपहले इश्क का सुरूर था ऊपर से बैंगलुरु की हवाओं में गजब का खुमार था.

अभिनय का मन अतीत की गलियों में आवाजाही करने लगा कि शीतल के साथ बिताया हुआ हर लमहा मु?ो रोमांटिक बना देता था. कहां संगीता ठंडे चूल्हे सी जब प्यार करने जाता हूं तब हटिए कह कर पूरे मूड का सत्यानाश कर देती है. कहां अपने नाम से विपरित मिजाज रखने वाली लबालब उड़ते शोले जैसी शीतल, जो अभिनय के हलके स्पर्श पर धुआंधार बरस पड़ती थी. जब दोनों एकदूसरे में खो जाते थे तो शीतल के अंगअंग में इतना नशा होता था कि उस नशे में मैं पूरी तरह डूब जाता था. शीतल बालों में उंगलियां घुमाती थी और मैं नींद की आगोश में सो जाता था. उस के साथ समय बिताने में हर पल मु?ो एक नया अनुभव होता था और हर बार नया आकर्षण.

शीतल अभिनय का प्यार पा कर कहती, ‘‘अभि, तुम से मु?ो बहुत संतुष्टि मिलती है. ऐसा लगता है जैसे मैं ने स्वर्ग का सुख पा लिया हो. कभी मेरा साथ मत छोड़ना. तुम्हारे बिना मैं जी नहीं पाऊंगी.’’

अभिनय की आंखें भर आईं. सोचने लगा कि शीतल से अलग हो कर अकेला रह कर मैं ने 1-1 पल उसे ही याद कर कर के जीया है. क्या शीतल भी मु?ो याद करती होगी?

अभिनय के खयालों की जंजीरों को तोड़ते पीछे से संगीता ने अनमने लहजे में पूछा, ‘‘खाना लगा दूं या बाद में खाएंगे? मु?ो नींद आ रही है. बाद में खाना है तो खुद परोस लेना,’’ और अभिनय का जवाब सुने बिना ही संगीता सोने के लिए चली गई.

इसी बात से जुड़ा कोई वाकेआ अभिनय को याद आ गया. ‘मु?ो भूल नहीं जाना’ कहने पर शीतल का अपनी कसम दे कर अपने हाथों से खाना खिलाना याद आते ही अभिनय अतीत की गलियों में पहुंच गया…

आईटी इंजीनियरिंग पास करते ही अभिनय को बैंगलुरु में एक अमेरिकन कंपनी में अच्छी जौब मिल गई. एक साल अच्छे से बीत गया. घर से मांपापा बारबार फोन पर जोर डाल कर कहते कि अभि अब तो तू सैटल हो गया है शादी के लिए हां कर दे तो लड़कियां देखना शुरू करें लेकिन अभिनय को फिलहाल बैचलर लाइफ ऐंजौय करनी थी तो हर बार बहाना बना कर टाल देता.

एक दिन कंपनी में शीतल नाम की नई लड़की ने जौइन किया. देखने में हीरोइन की टक्कर की. गोरा रंग, छरहरा बदन, कर्ली हेयर, बादामी आंखें किसी भी लड़के को घायल करने वाले सारी भावभंगिमाओं की मालकिन शीतल

को पाने के सपने औफिस के सारे लड़के देखने लगे. शीतल की नजर में आने के लिए हरकोई पापड़ बेलने लगा. मगर शीतल किसी को भाव नहीं देती. एक अभिनय ऐसा था जो अपने काम से मतलब रखता. उस की शीतल को पाने में

कोई दिलचस्पी नहीं थी. अभिनय शीतल को रिझाने के लिए न कोई हथकंडा अपनाता न बगैर काम के बात करता और अभिनय का यही ऐटिट्यूड शीतल को घायल कर गया.

देखने में अभिनय भी बांका जवान था. 6 फुट लंबा, हलका

डार्क रंग, घुंघराले बाल और फ्रैंच कट दाढ़ी में कहर ढाता कामदेव का रूप

लगता था. शीतल जैसी तेजतर्रार लड़की के

जेहन में बस गया. हर छोटीबड़ी बात के लिए अभिनय की सलाह लेने शीतल जानबू?ा कर

पहुंच जाती.

आहिस्ताआहिस्ता 2 जवां दिल एकदूसरे से आकर्षित होते करीब आने लगे. अब तो औफिस के बाद अभिनय और शीतल कभी मूवी देखने, कभी पिकनिक, कभी शौपिंग तो कभी डिनर के लिए निकल जाते. बैंगलुरु की हर फेमश जगह दोनों प्रेमियों के मिलन की गवाह बन गई.

एक दिन शीतल ने कहा, ‘‘अभि, मु?ो

2 दिन में पीजी छोड़ना होगा क्योंकि जहां में

रहती हूं वह बिल्डिंग रिडैवलपमैंट में जा रही है इसलिए रूम खाली करवा रहे हैं. अब इतने शौर्ट टाइम में कैसे मैनेज होगा. क्या तुम कुछ कर सकते हो?’’

अभिनय ने कहा, ‘‘बुरा न मानो तो एक

बात कहूं?’’

शीतल ने कहा, ‘‘यार… येह औपचरिकता मत करो सीधा बोल दो इतना हक तो मैं तुम्हें दे चुकी हूं.’’

अभिनय ने शीतल का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘जब दोनों एक ही मंजिल के मुसाफिर हैं तो क्यों न एक छत के नीचे रैन बसेरा करें. मैं जिस फ्लैट में रहता हूं वह काफी बड़ा है. आ जाओ अपना सारा सामान ले कर मेरे घर में. आजकल हरकोई लिव इन रिलेशनशिप में रहता है. इस से एक बात और भी होगी कि हम दोनों को एकदूसरे को अच्छे से जानने का मौका भी मिल जाएगा और कंपनी भी बनी रहेगी. पर अगर तुम चाहो तो.’’

शीतल खुशी से उछलते हुए बोली, ‘‘अरे नेकी और पूछपूछ, मैं कल ही बोरियाबिस्तर उठा कर आ रही हूं तुम्हारी सियासत पर कब्जा करने.’’

दूसरे दिन संडे था तो दोनों ने मिलकर

सारा सामान सेट कर लिया. दोनों खुश थे. शुरुआत में साथसाथ रहते हुए दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. अभिनय शीतल की हर जरूरत पर जान छिड़कता था. अब तो औफिस भी साथसाथ आनाजाना होता. दोनों एकदूसरे का साथ पा कर बेहद खुश थे. दोनों ने अपने आने वाले भविष्य तक की प्लानिंग बना ली. कितना समय लिव इन में रहेंगे, कब शादी करेंगे और कब फैमिली प्लानिंग होगी सब फिक्स हो गया. दोनों को लगने लगा कि अपनीअपनी तलाश पूरी हो गई. जीवनसाथी के रूप में जैसी कल्पना की थी वैसा ही पार्टनर मिल गया. मानसिक तौर पर दोनों ने एकदूसरे को भावी पतिपत्नी के रूप में भी स्वीकार कर लिया. अब दोनों बिंदास एकदूसरे पर हक जताते प्यार करने लगे.

रोज औफिस से आने के बाद शीतल

कौफी बनाती और दोनों बालकनी में बैठ कर आराम से लुत्फ उठाते. आहिस्ताआहिस्ता

2 बिस्तर सिंगल में तबदील हो गए. शीतल की मुसकान पर फिदा होते अभिनय शीतल को कमर से पकड़ कर अपनी ओर खींचता और अपने अंगारे जैसे लब शीतल के लबों पर रख देता. उस स्पर्श की कशिश से उन्मादित हो शीतल जंगली बिल्ली की तरह अभिनय पर प्रेमिल हमला करते लिपट जाती और फिर दोनों एकदूसरे पर मेघ जैसे बरस जाते.

शीतल अभिनय के घुंघराले बालों में उंगलियों को घुमाते अभिनय का चेहरा चूम

लेती उस पर अभिनय शीतल को बांसुरी सा उठा कर तन से लगा लेता. यों दोनों ने प्रिकौशंस के साथ कई बार शारीरिक संबंध की सारी हदें पार कर लीं.

मगर कहते हैं न कि ‘दूर से पर्वत सुहाने’  कभीकभार मिलना हमेशा लुभाता है लेकिन साथ रह कर जब एकदूसरे की कमियां और खूबियां पता चलती है तब असल में प्रेम की सही परख होती है. किसी भी चीज में तुष्टिगुण का नियम लागू होता ही है. इंसान को जो आनंद खाने का पहला निवाला देता है वह तीसरा, चौथा या

10वां नहीं देता. शुरुआत में अभिनय और

शीतल को लगता था कि कुदरत ने दोनों को एकदूसरे के लिए ही बनाया है लेकिन जब जिम्मेदारियां बांटने और घर चलाने की बात

आती है वहां प्यार का वाष्पीकरण हो जाता है. अभिनय और शीतल के रिश्ते में जीवन की जरूरी चीजों पर पैसे खर्च करने से ले कर घर को साफसुथरा रखने जैसी हर छोटीबड़ी बात पर तूतू, मैंमैं होने लगी. कल तक दोनों को अकेले अपनी मनमरजी से जीने की आदत थी और आज एकदूसरे की पसंदनापसंद और तौरतरीकों से सम?ाता करने की नौबत आ गई.

अभिनय टिपीकल बैचलर लाइफ जीने का आदी था इसलिए अपनी चीजें जैसे कपड़े, जूते, टौवेल, लैपटौप लगभग सारी चीजें इधरउधर

फैला कर कहीं भी रख देता. पहलेपहल तो

शीतल खुद प्यार से सब बरदाश्त करते सहज लेती और अभिनय को सुधारने की कोशिश करती. लेकिन जब ये सब रोज का हो गया तो चिड़ने लगी और बहस करतेकरते दोनों के बीच छोटेमोटे ?ागड़े भी होने लगे. उस से विपरीत शीतल को अपनी सारी चीजें सुव्यवस्थित और सहेज कर रखने की आदत थी. उसे हर काम में परफैक्शन चाहिए होता जिस की वजह से दोनों में कभीकभी तनाव पैदा हो जाता.

जैसेतैसे दोनों एकदूसरे के साथ एडजस्ट करते जीने की कोशिश कर रहे थे. ऐसे में चुनाव नजदीक आ रहे थे तो एक दिन कौनसी पार्टी देश के लिए सही है और कौन देश के लिए हानिकर उस पर चर्चा करते दोनों के बीच जंग छिड़ गई. दोनों ही पढ़ेलिखे अपने विचार का समर्थन करते अपनी दलीलों पर डटे रहे. नतीजन वैचारिक असमानता का सब से मजबूत पहलू दोनों के सामने आ गया. दोनों में से कोई भी समाधान के मूड में नहीं था. शीतल का कहना था कि कांग्रेस पार्टी में छोटी उम्र के पढ़ेलिखे नेता आजकल की टैक्नोलौजी को सम?ाते देश को नई दिशा देने में सक्षम हैं. वहां अभिनय का कहना था भाजपा पार्टी के उम्रदराज, शक्तिशाली और अनुभवी नेता ही देश की बागडोर संभालने में काबिल हैं. दोनों एकदूसरे पर अपनी चुनी सरकार को वोट देने के लिए दबाव तक डालने लगे.

तभी इस वाकयुद्ध को अलग ही मोड़ देते हुए शीतल ने कहा, ‘‘देखो अभिनय मैं कोई 18वीं सदी की लड़की नहीं जो मर्द की बातों को पत्थर की लकीर सम?ा कर सिरआंखों पर चढ़ाती रहूंगी और न हर सहीगलत बात में तुम्हारी हां में हां मिलाती रहूंगी. मैं 21वीं सदी की लड़की हूं मेरे अपने स्वतंत्र विचार हैं, अपना अस्तित्व है, अपनी मरजी है. मु?ो दबाने की कोशिश हरगिज मत करना… तुम अपनी सोच अपने पास रखो. मैं

24 साल की बालिग लड़की हूं. संविधान ने मु?ो सरकार चुनने का अधिकार दिया है, तो जाहिर सी बात है मैं अपनी मरजी से देशहित में फैसला ले कर ही अपने नेता को वोट दूंगी. और सुनो, मैं किस की प्रेमिका या बीवी बन सकती हूं गुलाम कतई नहीं. अभी भी सोच लो. मैं अपने रहनसहन में कोई बदलाव नहीं करूंगी, इन्फैक्ट तुम्हें कुछेक मामलों में सुधरना होगा तभी हम भविष्य में साथ रह पाएंगे.’’

शीतल की बातों से अभिनय भड़क गया और ताव में आ कर उस ने भी

बोल दिया, ‘‘सुधरना होगा? मैं किसी के भी लिए अपनेआप को नहीं बदलूंगा ओके और तुम भी सुन लो, मैं भी तुम्हारे जैसी अकड़ू लड़की के साथ जिंदगी नहीं बिता सकता. दुनिया में लड़कियों की कमी नहीं. मु?ो सम?ाने वाली

और मेरे विचारों के साथ तालमेल बैठाने वाली मु?ो भी मिल जाएगी. हर बात पर टोकाटोकी

और बहस करने वाली लड़की के साथ मैं पूरी जिंदगी नहीं बीता सकता. तुम चाहो तो इस रिलेशनशिप से आजाद हो सकती हो. 1 हफ्ते

का समय देता हूं अपना इंतजाम कहीं और

कर लेना.’’

अभिनय का फैसला सुन कर शीतल के दिमाग का पारा चढ़ गया. अभिनय का कौलर पकड़ते शीतल दहाड़ उठी क्या मतलब है तुम्हारा? अभिनय तुम रिश्ते को गुड्डेगुड्डियों

का रोल सम?ाते हो क्या? सुनो अभिनय मैं ने

मन के साथ अपना तन भी तुम्हें सौंपा है और

वह भी एक भरोसे के साथ, तुम तो रिश्ता

तोड़ने पर उतर आए. मेरे तन के साथ खेलते हुए तो मैं परी लगती हूं. आज इतनी सी बात पर छोड़ने पर उतारू हो गए? तुम किसी लड़की के भरोसे के लायक ही नहीं. मानसिक तौर पर नपुंसक हो नपुंसक.’’

नपुंसक शब्द सुनते ही अभिनय को अपने वजूद पर किसी ने तेज धार वाली शमशीर से प्रहार किया हो ऐसा महसूस हुआ. अत: उस ने अपनाआपा खोते हुए शीतल के गाल पर जोर से थप्पड़ जड़ दिया, ‘‘बदतमीज लड़की मैं तुम्हारे तन से खेला हूं तो सैटिस्फाइड तुम भी हुई हो सम?ा और जो होता था हम दोनों की मरजी से होता था, कोई बलात्कार नहीं किया मैं ने.’’

अभिनय ने जो तमाचा मारा वह शीतल के मन पर लगा था. अत: वह यह घरेलू हिंसा कैसे सह लेती. पास ही टेबल पर पड़ा फ्लौवर वाज उठा कर अभिनय के सिर पर दे मारा और यू बिच मु?ा पर हाथ उठाने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई कहते शीतल ने एक पल भी अभिनय के साथ रहना मुनासिब नहीं सम?ा. उसी पल अपना सामान ले कर अपनी फ्रैंड रूही के घर चली गई.

यों एकदूसरे को बेइंतहा प्यार करने वाले 2 प्रेमियों का प्यारा सा रिश्ता तूतू, मैंमैं से आगे बढ़ते हुए असमान विचारधारा की बलि चढ़ गया.

अभिनय को अपनी गलती का एहसास और पश्चात्ताप होने लगा.

आज संगीता के रूखे व्यवहार को कड़वे घूंट की तरह पी जाने वाला अभिनय शीतल के सख्त व्यवहार पर बिफर पड़ता था क्योंकि शीतल पत्नी नहीं प्रेमिका थी जिस का अभिनय पर कोई कानूनी हक तो था नहीं. आज अभिनय सोच रहा है जब संगीता ऐसा व्यवहार करती है तो मन मार कर सह लेता हूं क्योंकि वह बीवी है, न उगल सकता हूं. न निगल सकता हूं इसलिए एक अनमना रिश्ता भी ढो रहा हूं. अगर शीतल की बातों को सम?ा कर, उस के विचारों का सम्मान करते हुए रिश्ते को एक मौका दिया होता तो शायद जिंदगी कुछ और होती. प्यार तो दोनों के बीच बेशुमार था, बस अपनेअपने अहं और स्वतंत्र विचारधारा का सामने वाले की विचारधारा के साथ तालमेल नहीं बैठा पाने की वजह से दोनों ने रिश्ते का गला घोट दिया.

हर रिश्ता स्वतंत्रता चाहता है. सब की अपनी सोच और जिंदगी जीने का तरीका होता है.

क्यों मैं ने शीतल को सम?ा नहीं और शीतल ने क्यों मु?ो अपने सांचे में ढालने की कोशिश की? अगर शीतल अपनी जिंदगी अपने तौरतरीके से जीना चाहती थी तो क्या गलत था और मैं भी अपनी कुछ आदतें बदल लेता तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ता? क्या एकदूसरे को स्पेस दे कर अपनेअपने स्वतंत्र विचारों का पालन करते

जिंदगी नहीं काट सकते थे? सैकड़ों कपल्स असमान विचारधारा के बावजूद एकदूसरे को आजादी देते हुए जिंदगी आसानी से काट लेते हैं. यहां तक कि आपस में बगैर प्रेम के कई जोड़े मांबाप भी बन जाते हैं. फिर मैं और शीतल छोटेछोटे मुद्दों को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाते क्यों अलग हो गए?

इंसान का स्वभाव ही इंसान का दुश्मन

होता है या शायद वह उम्र ही ऐसी होती है जो ऐसी बातों को सम?ाने के लिए छोटी पड़ती है. आज जब सारी बातें, सारी गलती सम?ा में आ रही है तब चिडि़या चुग गई खेल वाली गत है. काश, मैं ने और शीतल ने उस वक्त सम?ादारी दिखाई होती तो आज यों पश्चात्ताप की आग में जलना नहीं पड़ता.

‘‘वक्त करता जो वफा आप हमारे होते,’’ गुनगुनाते हुए अभिनय नम आंखों से खिड़की

के पास जा कर दूर आकाश में ताकने लगा

जैसे सैकड़ों सितारों के बीच किसी अपने को ढूंढ़ रहा हो.

लिव इन की तड़प : सुमन को सबक सिखाने के लिए रवि ने कौनसा कदम उठाया

Writer- कुमसुम वर्मा

सुमन अपनी बादामी आंखों में मोटेमोटे मोतियों से आंसू लिए मु?ो अपनी दर्दभरी दास्तान सुना रही थी. उस समय उस के सांवलेसलोने मुखड़े पर निराशा एवं उदासी की स्याही फैली हुई थी.

सुमन का रवि के साथ लंबे समय से अफेयर चल रहा था. 6 महीने से वे लिव इन में एक रूम में ही रह रहे थे. दोस्तों को यह बात पता थी पर दोनों के मातापिता को नहीं. घर में चहलपहल होती थी. लेकिन उस रोज घर में एकांत कोना तलाश कर वहां बैठ कर वह किसी गहरे सोच में डूबी थी.

कभी सुमन अपने पार्टनर की मधुर कल्पनाओं में डूबी हुई होती तो कभी उस के होंठ उस के जोक्स पर मुसकराहट से फैल जाते, कभी रात के पैशन का सोच कर चेहरा लाज के मारे गुलनार हो जाता और वह अपना सांवला मुखड़ा हथेलियों में छिपा लेती. तभी उस की फ्रैंड ने उस के कंधे पर हाथ रखा.

सुमन की कल्पनाओं का महल टूट गया. उस के पास मधुरी खड़ी थी. आसमानी रंग की अमेरिकन जौर्जेट की औफशोल्डर ड्रैस पहने थी. गालों पर रूज, आंखों में तिरछा काजल और पतलेपतले नाजुक होंठों पर लिपस्टिक लगा रखी थी. वह अपनी शरारतपूर्ण नजरों से उस की तरफ देख कर बोली, ‘‘क्या सोच रही थी? क्या काम है जो तूने मु?ो यहां बुलाया?’’

‘‘कुछ नहीं.’’

‘‘मु?ा से छिपाने की कोशिश कर रही हो? ओ मेरी जान, हमें भी तो बताओ अपने मन की बात?’’

‘‘कहा न कुछ भी नहीं.’’

‘‘मुंह से कह रही हो कुछ भी नहीं लेकिन मन में शायद किसी याद का दीपक जल रहा है. क्या तुम्हारा पार्टनर शहर से बाहर गया हुआ है?

‘‘यार लगता है मुकेश को मु?ा से बोरियत होने लगी है. वह अब उखड़ाउखड़ा रहता है.’’

‘‘क्यों?’’ माधुरी आश्चर्यभरी निगाहों से घूरती हुई बोली, ‘‘हां कई कपल्स में कुछ महीनों के बाद बोरियत सी छा जाती है.’’

‘‘ अच्छा, कुछ काम की बातें बताने आई हूं तुम्हें. अगर तुम मेरी बताई राह पर चलोगी तो हो सकता है तुम्हारा पार्टनर राजकुमार तुम्हारे आगेपीछे फिरे, तुम्हारी हर बात माने. अगर मेरी बात नहीं मानी तो मरजी से लिव इन में रहने के बाद भी तुम्हें सारा जीवन पार्टनर की दासी बन कर व्यतीत करना पड़ेगा.’’

‘‘पहेलियां मत बु?ाओ, सचसच बताओ, क्या कहना चाहती हो?’’

‘‘एक मिनट ठहरो,’’ कहते हुए मधु ने उठ कर एक ऐसी टेबल देखी जहां चारों ओर कोई नहीं था और वहां जा कर बैठ गई.

 

सुमन विचित्र सी निगाहों से मधु की तरफ देख रही थी. मधु ने कहना शुरू

किया, ‘‘यदि आरंभ में ही लड़की अपने पार्टनर को अपने बस में कर ले, बातबात में नखरे

दिखाए तो पार्टनर उस के चरणों का दास बन जाता है और सदा उस की उंगलियों पर नाचता रहता है. लेकिन अगर लड़की शुरू में ही अपने पार्टनर से दब जाए, अपने भीतर हीनभावना महसूस करे तो पार्टनर उस पर छा जाता है और लड़की पार्टनर की दासी बन कर रह जाती है. लिव इन में आपसी सम?ौते के बावजूद मेल ईगो हावी रहता है.’’

‘‘मगर मैं ने तो सम?ा था कि लिव इन में दोनों एकदूसरे के साथी होते हैं, लड़की हमदर्द होती है.’’

‘‘पुरुषों का लिखा हुआ कहीं मोटीवेशनल मैसेज इंस्टाग्राम पर पढ़ा होगा, जो लड़कियों के मन में इन्फीरियौरिटी जगाने के लिए लिखते हैं. तुम केवल मेरी बात याद रखो,’’ मधु गहरी सांस ले कर बोली, ‘‘सैक्स ऐक्साइटेड आदमी में ही नहीं, औरत में भी होती है. फर्क केवल इतना होता है कि आदमी किसी युवा सुंदर फीमेल

शरीर को देख कर शीघ्र ही ऐक्साइट हो जाता है, किंतु औरत में ऐक्साइटमैंट जाग्रत होने में समय लगता है. इतना ही नहीं वह अपनी लिबिडो को काबू में भी कर सकती है और यही वह गुण है जिस के आधार पर वह पार्टनर को अपना

दीवाना और गुलाम बना लेती है. तुम दोनों ने लिव इन का फैसला चाहे कई बार रातें साथ गुजारने के बाद किया हो पर लड़कों का जेनेटिक गुण जाता नहीं है.’’

‘‘देखो मधु, अपनी भावनाओं पर काबू पाना और पति को दास बनाना मेरे बस का काम नहीं,’’ सुमन ने एक ही सांस में कह दिया.

मधु ने सुमनकी आंखों में देखते हुए कहा, ‘‘अगर तुम संयम से काम लो तो अवश्य ही

तुम्हें सफलता मिल सकती है. जानती हो जिस लड़की का शरीर पार्टनर को आसानी से मिल जाता है उस का मेल पार्टनर अपनी पार्टनर के लिए पागल नहीं होता. पार्टनर को अगर तरसने, तड़पने के बाद लड़की का जिस्म मिलता है तो वह उस की कद्र करता है. किंतु जो लड़की हलका सा इशारा पा कर स्वयं को पार्टनर के पहलू में डाल देती है उस लड़की के प्रेम में न तो वह बंधा रहता है, न ही वह उस की परवाह करता है. इस के विपरीत वह अपनी सुंदर पार्टनर को छोड़ कर साधारण शक्लसूरत की लड़कियों पर भी डोरे डालता फिरता है क्योंकि फीमेल पार्टनर का बदन उसे जब चाहे सहज ही प्राप्त हो जाता है. इसलिए उसे अपनी पार्टनर में उस रस का एहसास नहीं होता.

‘‘सुमन, अगर तुम चाहती हो कि तुम्हारा पार्टनर केवल तुम्हारा रहे तो तुम्हें पार्टनर को नखरे दिखाने होंगे, उसे थोड़ा तरसाना होगा. मेरी बन्नो, तुम नहीं जानती कि जो लड़की जितने अधिक नखरे दिखाती है, लड़के उतना ही अधिक उस के आगेपीछे घूमते हैं. अब तुम खुद ही सोच लो कि तुम्हें क्या चाहिए स्वयं पार्टनर के इशारों पर नाचने वाली रहना या पार्टनर को अपना गुलाम बना कर रखना?’’

‘‘लेकिन बौयफ्रैंड अगर इन बातों से विमुख हो जाए तो?’’

‘‘ऐसा नहीं होता,’’ मधु ने कहा, ‘‘अब मेरे ही पति को देख ले न, मैं जब जी चाहे मायके आ कर बैठ जाती हूं और वह मेरे बगैर नहीं रह सकता. दौड़ता हुआ चला आता है मु?ा से मिलने. सुमन, तुम नारी हो कर भी स्त्री के सौंदर्य से अनभिज्ञ हो. जानती हो, पुरुष को रि?ाने और ?ाकाने के लिए ही कुदरत ने स्त्री को एक ऐसा खूबसूरत शरीर दिया है जिसे पाने की लालसा में आदमी सबकुछ नहीं, फिर भी बहुत कुछ कर सकता है. इसलिए तुम्हें अपने शरीर का सही इस्तेमाल करना होगा.’’

‘‘सही इस्तेमाल से तुम्हारा क्या मतलब है? हमारे सैक्स संबंध तो महीनों से हैं और दोनों फैशनेट रहते हैं,’’ सुमन ने प्रश्नसूचक नजरों से उस की तरफ देख कर पूछा.

मधु ने उस की ओर विचित्र सी निगाहों से देखा, फिर बोली, ‘‘अब क्या सारी बातें खोल कर सम?ानी पड़ेंगी? अपने दिमाग से भी तो काम लो न. कुछ पढ़ा भी है या सिर्फ सोशल मीडिया का ज्ञान बघार रही है.’’

मधु के जाने के बाद सुमन उस की बातों को सम?ाने का यत्न करने लगी. उस के मस्तिष्क में कई बातें बारबार गूंजने लगीं.

सुमन मधु की बातों पर जितना अधिक विचार करती वह उस के दिल में उतनी ही अधिकाधिक उतरती चली जातीं. धीरेधीरे उसे इस बात का एहसास होने लगा कि मधु ने जो कुछ भी कहा है वह सही है. यही एक ऐसा तरीका है जिसे अपना कर वह अपने बौयफ्रैंड को अपनी मुट्ठी में कर सकती.

1 सप्ताह इन्हीं विचारों में गुजर गया. दोनों साथ रहने का नाटक सा करते रहे. उन के बीच गरमाहट कम हो गई थी. उस के बाद वे 2 सप्ताह के लिए दोस्तों के साथ लंबे टूर पर निकले और वे दिन सुखपूर्वक गुजर गए.

एक दिन सुमन मधु का मैसेज मिला, जिस में उस ने अपनी उन्हीं बातों का जिक्र किया था. परिणामतया उस के दिमाग में मधु की वे बातें फिर घूमने लगीं और उस ने उसी दिन से मधु के बताए तरीकों पर अमल करने का निश्चय कर लिया.

शाम के 7 बज रहे थे. सुमन पहले फ्लैट

में आ चुकी थी. रवि के दफ्तर से लौटने का समय हो रहा था. वह ड्रैसिंगटेबल के सामने

खड़ी हो कर मेकअप करने लगी. सहसा रवि ने भीतर आ कर पीछे से उसे अपनी बांहों में भर लिया. वह तड़प उठी. उस ने रवि की पकड़ से निकलने का यत्न किया, मगर सफल न हो

सकी. इस पर वह तड़प कर बोलीं, ‘‘यह क्या बदतमीजी है?’’

रवि हंस कर बोला, ‘‘इसी बदतमीजी का तो दूसरा नाम प्यार है. आज तुम बीवी की तरह मेकअप क्यों कर रही हो.’’

‘‘तुम्हारी ये बातें मु?ो पसंद नहीं.’’

‘‘वाह, जवाब नहीं तुम्हारे नखरे का,’’ रवि मुसकरा कर बोला.

‘‘मु?ो तंग मत करो वरना…’’

‘‘वरना क्या? खैर, मैं बैठ कर तुम्हारी वेट करता हूं. देखूं तो सही तुम एक पत्नी की तरह कैसी लगोगी,’’ रवि ने एक गहरी सांस लेते हुए सुमन को छोड़ दिया.

 

रात गहराने लगी थी. रवि खिड़की के पास खड़ा न जाने क्या सोच रहा था. वह

बिस्तर पर जा कर लेट गई थीं. एकाएक रात को रवि ने उसे जगाया.

सुमन तड़प कर उठी. फिर क्रोध भरी नजरों से रवि की तरफ देख कर बोली, ‘‘कमाल के हो तुम. सोने भी नहीं देते.’’

‘‘सुमन,’’ रवि प्यारभरे स्वर में बोला, ‘‘आज मेरा मन बहुत बेताब हुआ जा रहा है.’’

‘‘लेकिन आज मेरा मन नहीं है. कल कर…’’

‘‘लेकिन मेरा मन तो है तुम भी तो तैयार

हो रही थीं… किस के लिए?’’ कहते हुए उस

ने उस का हाथ थाम लिया और फिर उसे चूम

भी लिया.

सुमन ने एक  ?ाटके से हाथ छुड़ा लिया और तमतमाए स्वर में बोली, ‘‘अगर ज्यादा तंग करोगे तो मैं बालकनी में जा कर सो जाऊंगी. आज तुम ने मेरा मूड औफ कर दिया है.’’

‘‘सुमन,’’ रवि एकाएक गंभीर हो गया.

‘‘हर रोज वही काम करना अब मु?ो अच्छा नहीं लगता. 1 साल हो गया उसी रूटीन को दोहराते हुए.’’

‘‘आखिर क्यों?’’ रवि ने तड़प कर पूछा.

‘‘हर बात की कोई हद होती है. तुम्हारी रोजरोज की इन हरकतों से मु?ो बोरियत महसूस होने लगी है,’’ सुमन ने प्रत्युत्तर में कहा.

‘‘लेकिन मु?ो तो बोरियत महसूस नहीं होती, उलटे अच्छा लगता है,’’ रवि ने बनावटी गंभीरता से कहा, ‘‘प्लीज, सुमन, मान जाओ.’’

‘‘तुम्हें तो बस अपनी चिंता है मेरी कोई परवाह नहीं,’’ वह कठोर स्वर में बोल गई.

अब रवि ने अधिक बोलना उचित नहीं सम?ा. वह केवल हौले से इतना ही बोल पाया, ‘‘ठीक है, सो जाओ,’’ कह कर उस ने करवट बदली और आंखें बंद किए निढाल सा पड़ा रहा.

 

उस दिन के बाद से सुमन ने रवि को तरसाना, तड़पाना शुरू कर दिया. ऐसा तो पहले

कभी नहीं हुआ था. रवि अविवाहित युवक की तरह मन मसोस कर रहने लगा. हां, कभीकभार वह रवि को आत्मसमर्पण कर देती परंतु रवि की व्यग्रता और बेसब्री बढ़ती रहे, इस विचार से वह अब ज्यादा नखरे दिखाने लगी थी. लिव इन में एकदूसरे का कौऔपरेशन जरूरी था पर सुमन के दिमाग में न जाने कौन सा कीड़ा घुस गया था.

एक रात रवि ने सुमन को मनाने का खूब यत्न किया, मगर उस ने तो मानो न मानने का प्रण कद रखा था. जब वह बिलकुल नहीं मानी तो रवि क्रोधित हो उठा और तनिक कठोर स्वर में बोला, ‘‘ज्यादा नखरे करना अच्छी बात नहीं है सुमन. मैं नखरे ढीले करना भी जानता हूं.’’

‘‘अच्छा,’’ सुमन व्यंग्य भरी हंसी होंठों पर ला कर बोली, ‘‘अब तक कितनी लड़कियों

के नखरे ढीले करने का खिताब हासिल किया है?’’

‘‘इस मामले में तुम पहली लड़की साबित होगी.’’

‘‘अच्छा,’’ कहते हुए उस ने कंबल और तकिया बगल में दबाया और बालकनी में जा कर दरवाजा बंद कर लिया. रवि बुत बना दरवाजे को कुछ पल तक घूरता रहा.

उन को साथ रहते हुए 6 महीने ही हुए, किंतु इस दरमियान सुमन ने रवि को कई बार तरसाया. एक दिन तो सुमन ने उस के दिल पर गहरा आघात पहुंचाया. लिव इन में रहना एक आपसी सम?ौता है पर इसे भी तोड़ना आसान नहीं है. रवि को अब एक घर, एक छत, एक बिस्तर की आदत हो चुकी थी. वह इस सम?ौते को बेवकूफी में तोड़ना नहीं चाहता था.

इस घटना को हुए 1 माह बीत गया मगर इस दौरान रवि में जो परिवर्तन आया उसे देख

कर सुमन के दिल में अब घबराहट सी होने लगी कि माधुरी गलत तो नहीं कह रही. वह खुद से पूछने लगी. वह उखड़ीउखड़ी सी रहने लगी थी. रवि की लापरवाही देख कर उस का दिल डूबने लगा था.

अब रवि का व्यवहार बदल गया था. उस का उत्साह न जाने कहां खो गया था. सुमन के प्रति उस की आंखों में चाहत का जो अथाह सागर रहता था, वह सूखने लगा था. अब वह कभी उस से प्यार जताने का प्रयत्न न करता. सदैव खामोश और गंभीर रहने लगा था. उस के होंठों की हंसी को जैसे किसी ने सदा के लिए नोच कर फेंक दिया था. ऐसे पतिपत्नी की तरह रह रहे थे जिन्हें जबरन गले बांध दिया हो.

सुमन अब बारबार यही सोचती कि अगर रवि एक बार भी उसे कहेगा तो वह आत्मसमर्पण कर देगी लेकिन रवि ने तो अब उस की उपेक्षा करनी आरंभ कर दी थी. जो कभी उस की हर इच्छा को मानने को तैयार रहता था, अब वह उस की बातों को अनसुना कर जाता था. घर के सारे काम वह मशीन की तरह करता. खर्च का अपना हिस्सा टेबल पर रख जाता. अब तो हिसाब भी मांगना बंद कर दिया था. बौक्स में कम पैसे से रहते तो वह बैंक से निकाल कर दे देता था. दोनों के पास शेयरिंग क्रैडिट कार्ड था और वह आधे शेयर से ज्यादा पैसे ट्रांसफर कर रहा था.

सुमन अब अपनी उपेक्षा सहन नहीं कर पा रही थी. वह रवि की नजरों में फिर पहले जैसा महत्त्व प्राप्त करना चाहती थी. पर कभी उसे स्वयं अपने व्यवहार पर खेद होता और कभी रवि के व्यवहार से मन कचोटने लगता. पिछले कुछ दिनों से वह रवि के कपड़ों पर विशेष ध्यान देने लगी थी. कभी उसे रवि के सूट पर लंबे रेशमी बाल मिलते, कभी लिपस्टिक का कोई हलका सा दाग और कभी ऐसे सैंट की खुशबू जिसे रवि इस्तेमाल नहीं करता था.

 

यह सब देखते हुए भी सुमन रवि से कुछ पूछने का साहस नहीं जुटा सकी. वह

जानती थी कि उस का रवि पर पत्नी सा हक तो है नहीं और गर्लफ्रैंड का रोल वह अदा नहीं कर रही तो पूछे क्या? जब भी कुछ बात करना चाहती रवि का गंभीर एवं कठोर चेहरा देख कर उस का कंठ शुष्क पड़ जाता. वह केवल कुछ क्षण प्रश्नसूचक दृष्टि से उसे निहारती रहती. समय से औफिस जाती. अब देर से लौटती क्योंकि उस ने कुछ ऐक्स्ट्रा ड्यूटी ले ली थीं. उस की प्रमोशन भी हो गई थी.

रवि कभीकभार सुमन की आंखों में ?ांकता जरूर पर उस में छिपी समर्पण की भावना को ताड़ न सका वह. वस्तुत: उस ने सुमन की भावनाओं को सम?ाने का कभी प्रयास ही नहीं किया.

एक दिन सुमन जल्दी औफिस से आ गई. व्याकुल नजरों से बारबार डोरकी तरफ देखने लगी. वह लैपटौप पर काम करते हुए रवि की प्रतीक्षा कर रही थी. सहसा मोबाइल का अलार्म बजा. उस ने परेशान नजरों से घड़ी की तरफ देखा. रात के 11 बज चुके थे. उस का दिल घबराने लगा. वह पुन: उदास नजरों से खिड़की के बाहर देखने लगी. बिजली के खंभों की टिमटिमाती रोशनी को छोड़ कर सर्वत्र अंधकार छाया हुआ था. इस बिल्डिंग में 9 बजे के बाद चहलपहल वैसे ही कम हो जाती थी.

एकाएक लिफ्ट के दरवाजे की आवाज हुई तो वह दौड़ती हुई आगे बढ़ी और दरवाजा खोल कर उस का इंतजार करने लगी. कुछ क्षण बाद जैसे ही रवि ने घर में प्रवेश किया, वह अपनी नशीली आंखों से रवि की आंखों में ?ांकते हुए खास अंदाज में बोली, ‘‘ रवि, आज बहुत देर लगा दी तुम ने?’’

रवि ने उस के प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दिया और कोट उतार कर सोफे पर बैठ गया.

सुमन अपनी उपेक्षा देख कर तिलमिला उठी. फिर भी उस ने संयम से काम लिया. दरवाजा बंद कर के वह रवि के पास आई और उस के जूतों के फीते खोलते हुए बोली, ‘‘आप के लिए खाना गरम कर दूं? आज मैक्सिक्न मंगाया था. बेक्ड पोटैटो खुद भी बनाए हैं.’’

‘‘मु?ो भूख नहीं है,’’ रवि शुष्क स्वर में बोला.

रवि के निकट आने पर सुमन को लगा रवि शराब पी कर आया है. मगर वह कुछ कहने की हिम्मत न कर सकी. रवि ने जूते उतार कर रैक में रखे ही थे कि सुमन बोली, ‘‘तुम्हारा कोट अलमारी में टांग दूं?’’

‘‘तुम्हारे लिए इतना ही काफी है,’’ रवि ने उपेक्षा से कहा और फिर स्वयं दूसरे कमरे में जा कर उस ने कपड़े उतारे और नाइट सूट पहन कर बिस्तर पर लेट गया.

सुमन रवि के समीप पहुंच कर बोली, ‘‘पिछले दिनों से तुम कुछ खिंचेखिंचे से नजर आ रहे हो?’’

‘‘मु?ो नींद आ रही है. प्लीज, मु?ो सोने दो,’’ कह कर रवि ने दूसरी तरफ करवट बदल ली.

‘‘लगता है, तुम मु?ा से अभी तक नाराज हो शायद इसीलिए मु?ा से दूरदूर रहने लगे हो?’’

‘‘दूरी बनी रहे तो ही अच्छा है.’’

‘‘लेकिन क्यों?’’ सुमन ने तड़प कर पूछा.

‘‘क्योंकि रोजरोज की उन्हीं बातों से बोरियत महसूस होने लगती है,’’ रवि ने जवाब दिया.

‘‘ऐसी भी क्या नाराजगी?’’ सुमन ने कहा, फिर रविका हाथ पकड़ कर अपने दिल पर रखते हुए बोली, ‘‘देखो तो यह दिल कितना तड़प रहा है.’’

रवि ने एक ?ाटके के साथ अपना हाथ खींच लिया और बोला, ‘‘कमाल की लड़की हो गई तम, मु?ो सोने भी नहीं देती.’’

 

सुमन के दिल को एक धक्का सा लगा. उस का दिल भर आया. आंखों में आंसू

छलक आए. वह अपने आंसुओं को रोकने की कोशिश करती हुई कुछ पल तक रवि की तरफ देखती रही, फिर अपना चेहरा हथेलियां में छिपा कर फफक कर रो पड़ी. लेकिन रवि पर इस का कोई असर नहीं हुआ. वह कंबल और तकिया उठा कर बैठक में चला गया.

अगले दिन सुमन ने रवि से कहा, ‘‘मैं मां के पास जाना चाहती हूं.’’

‘‘ठीक है. मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ दूगा,’’ रवि ने इतनी सहजता से कहा जैसे उसे जुदाई का तनिक भी दुख न हो.

सुमन गुस्से में आ कर पिता के घर चली आई, वह वहां रोज रवि के फोन का इंतजार करती. उसे विश्वास था कि एक न एक दिन

रवि उसे लेने जरूर आएगा परंतु 2 माह बीत

जाने पर भी रवि लेने नहीं आया. दोनों में

छिटपुट काम की बात होती थी. सुमन लगातार औफिस जा रही थी. उस के दोस्तों को यही लगा था कि सुमन कुछ दिन मां के पास गुजारना चाहती है.

मांबाप को जब पता चला कि  सुमन रवि

के साथ रह रही है तो उन्होंने बहुत सम?ाया

पर ये दोनों अपनी जिद पर अड़े थे कि वे अभी शादी के बंधन में बंधना नहीं चाहते. सुमन

अपने मांबाप की इकलौती संतान थी और पढ़ीलिखी थी इसलिए मांबाप को उस के भविष्य की चिंता नहीं थी. मातापिता दोनों के अपने कैरियर थे इसलिए उन्होंने यंग एडल्ट्स को अपने फैसले करते देखा था और चाहेअनचाहे उसे इजाजत दे दी थी. वह इस बार से पहले भी

कई 8-8, 10-10 दिनों के लिए पेरैंट्स के पास रहने आती थी और रवि भी पेरैंट्स से हिलमिल गया था.

उन्हें अंदाजा भी नहीं था कि उन की बेटी ने किस बहकावे में आ कर रवि को टैस्ट करना शुरू कर दिया है. वह आई तो उन्होंने उसे सामान्य सम?ा क्योंकि वह रोज पहले की तरह औफिस चली जाती थी और शाम को आ कर मां के साथ गप्पें लगाती थी.

एक दिन सुमन को ही ?ाकना पड़ा, अपनी हार माननी पड़ी. वह स्वयं रवि के घर चली गई.

इतने दिनों की जुदाई के बावजूद रवि ने उस में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. उसे रवि के पास लौटे 2 दिन बीत चुके थे लेकिन रवि में

कोई अंतर नजर नहीं आ रहा था. वह बेहद परेशान हो उठी. उसे अब इस बात का एहसास होने लगा था कि उन की बसीबसाई जोड़ी किसी भी समय उजड़ सकती है. लिव इन में यह सुविधा तो है कि जब चाहो अपना सामान ले

कर चलते बनो पर जब एक साथी के साथ रहने की आदत पड़ जाए तो बात ब्रेकअप की कठिन होती है.

तीसरे दिन अपने दफ्तर में सुमन विचार में डूबी थी. आखिर उस ने फैसला किया कि वह रवि से क्लीयर बात करेगी, उस से अपने बिहेवियर के लिए सौरी बोलेगी. उस रात वह

8 बजे घर आ गई. रात 10 बजे कार की

आवाज के कुछ क्षण बाद ही दरवाजे की घंटी बजी. उस ने जैसे ही डोर खोला तो देखा रवि के साथ 24-25 वर्ष की छरहरे बदन की एक युवती थी. वह निर्लज्जता से मुसकराती हुई उस की ओर देख रही थी. अपने हावभाव से वह कोई कौलगर्ल लगी.

सुमन की आंखों में खून उतर आया. उस का चेहरा क्रोधावेश में लाल पड़ गया. वह

क्रोधित स्वर में बोली, ‘‘तुम्हें शर्म नहीं आती? गर्लफ्रैंड के घर में रहते किसी वेश्या को घर में लाते हुए…’’

‘‘चुप रहो, तुम्हें मेरे निजी मामले में दखल देने की कोई जरूरत नहीं,’’ रवि गुस्से से बोला, ‘‘यह घर मेरा भी है. मैं यहां कुछ भी कर सकता हूं. शुक्र करो कि मैं ने घर छोड़ा नहीं है, अगर तुम अपना भला चाहती हो तो खामोश रहो.’’

रवि के ये शब्द कानों में उतर कर उस के दिल को घायल कर गए. आंखें आंसुओं से डबडबा गईं. उस ने थरथराती, रोंआसी आवाज में कहा, ‘‘छोटी सी गलती की इतनी बड़ी सजा मत दो. मु?ो माफ कर दो.’’

‘‘माफ और तुम जैसी लड़की को, जिस

ने अपने बौयफ्रैंड को सिवा तड़प के कुछ न दिया हो?’’ वह दांत किटकिटा कर बोला, ‘‘मैं तुम्हें क्षमा नहीं कर सकता,’’ कह कर उस ने आगे बढ़ने की कोशिश की परंतु वह उस के पैरों को पकड़ती हुई बोली, ‘‘आप जो कहेंगे, मैं वही करूंगी, लेकिन मु?ो…’’

सुमन अपनी बात पूरी तरह कह भी नहीं पाई थी कि रवि की आंखों में घृणा के गहरे बादल सिमट आए. वह चिल्ला उठा, ‘‘तुम नफरत के काबिल हो, माफी के नहीं. जाने दो मु?ो.’’

‘‘नहीं, मैं मर जाऊंगी, पर इस घर में कौलगर्ल को अपने बैड पर सजने नहीं दूंगी.’’

 

‘‘हट जाओ वरना…’’ रवि गरज उठा और अपने हाथों से उसे दूर धकेल कर

तेज कदमों से उस युवती को ले कर बैडरूम में चला गया.

2 घंटे बाद जब वह लड़की कमरे से निकली तो साफ लग रहा था कि उस ने न तो कपड़े उतारे, न ही दोबारा मेकअप किया. ऐसा साफ था कि वह बस बैठी रही.

सुमन का मन भर आया कि वे लिव इन में रह रहे पर न जाने क्यों वह रवि पर अधिकार जमाने लगी. उसे सबक सिखाने के लिए ही रवि ने यह सब किया.

वह लड़की जातेजाते बोल गई कि हर अपने इंपोटैंट बौयफ्रैंड को छोड़ दे. मेरे साथ चल, रोज मजा कराऊंगी. कमाई भी होगी.

सुमन ने बैडरूम का दरवाजा खोला और रवि को बांहों में भर कर उस पर चुंबनों की बौछार कर दी.

कुछ देर तो रवि अकड़ा खड़ा रहा पर फिर पिघल गया. अगली सुबह जब वे उठे तो 10 बजे चुके थे. उन्हें औफिस के लिए देर हो गई थी पर किसे परवाह थी.

मशीन : खुद को क्यों नौकरानी समझती थी निशा

Writer- कुलदीप कौर बांगा ‘गोगी’

ट्रिन… ट्रिन… अलार्म की आवाज के साथ ही निशा की आंख खुल गई. यह कोई आज की बात नहीं, रोज ही तो उसे इस आवाज के साथ उठना पड़ता है. फिर यह तो उठने के लिए बहाना मात्र है. रातभर में न जाने कितनी बार वह बत्ती जला कर समय देखती है.

रात्रि की सुखद नीरवता एवं शांति को भंग करते प्रात:कालीन वेला में इस का बजना आज उसे कुछ ज्यादा ही अखर गया. उस ने अलार्म का बटन दबा कर उसे शांत कर दिया.

निशा रोज ही उठ कर मशीन की तरह घर के कामों में लग जाती है, पर न जाने क्यों आज उस  का मन कर रहा है कि वह पड़ी रहे. ‘ओह, सिर कितना भारी हो रहा है,’ सोचते हुए उस ने रजाई को कस कर और अपने इर्दगिर्द लपेट लिया. ‘आज शायद ठंड कुछ ज्यादा ही है,’ उस ने सोचा.

‘आखिर यों कब तक चलेगा,’ वह सोचने लगी. अब और खींच पाना उस के बस का नहीं है पर क्या वह नौकरी छोड़ दे? तब घर की गाड़ी कैसे चलेगी?

कैसी विडंबना है. जिस नौकरी को पाने के लिए वह रोरो कर सिर फोड़ लेती थी, जिसे पाने के लिए उस ने जमीनआसमान एक कर दिया था आज वही नौकरी कर पाना उस के बस का नहीं रहा है.

निशा ने एक ठंडी आह भरी और न चाहते हुए भी वह उठी और स्नानघर में घुस गई. आज उस का मन बरबस ही बचपन की दहलीज पर जा पहुंचा. मां उसे जगाजगा कर थक जाती थी, तब कहीं बड़ी मुश्किल से वह उठती थी. तैयार होती नाश्ता करती और स्कूल चली जाती. घर वापस आने पर किसी न किसी सहेली के यहां का कार्यक्रम बन जाता था.

सर्दियों की दोपहरी में टांगें फैला कर 5-6 सखियां घंटों बैठी रहतीं. रेवड़ी, मूंगफली से भरी ट्रे कब खत्म हो जाती और चाय के कितने प्याले पीए जाते हंसीठिठोली के बीच पता ही न चलता. फिर कालेज में आने पर मुकेश की गजलें, गीत सुन कर मन जाने कहां भटक जाता और हाथ की सलाइयां रुक जातीं.

‘‘कहां खो गई निशा?’’ किरण चुटकी लेती और इस के साथ सब सखियों का सम्मिलित ठहाका गूंज उठता. पढ़ाई के बाद उस ने नौकरी शुरू कर ली थी और उसी की वजह से अमित से मिलना हुआ, प्रेम हुआ, फिर विवाह हो गया. अब 2 गुना काम करना पड़ रहा था.

कितना मन करता है उन आलमभरी दोपहरियों की तरह पड़े रहने का. धूप सेंके तो मानो बरसों हो गए हैं. अमित कम से कम रविवार को तो धूप सेंक लेते हैं, उसे तो उस दिन भी यह नसीब नहीं.

‘अरे, अमित को तो अभी तक जगाया ही नहीं, पारुल और स्मिता को भी स्कूल के लिए देर हो जाएगी,’ निशा ने सोचा और फिर तेजी से आंच पर कुकर चढ़ा कर अमित को जगाने चली गई.

अमित को जगा कर जैसे ही निशा पारुल को जगाने लगी वह

चौंक पड़ी, ‘‘अरे, इसे तो बुखार लग

रहा है.’’

‘‘क्या?’’ अमित भी घबरा सा गया. उस ने पारुल को छूआ और आहिस्ता से बोला, ‘‘आज तो तुम छुट्टी कर लो निशु.’’

‘‘छुट्टी कैसे करूं रोजरोज? अभी उस दिन जब छूट्टी ली थी तो पता है बौस ने क्या कहा था?’’

‘‘क्या?’’

‘‘यही कि महिलाओं को शादी और बच्चों के बाद नौकरी देने का मतलब है रोज की सिरदर्दी. आज यह काम तो कल वह काम. रहता हैं तो नौकरी करती ही क्यों हो.’’

उसे अचानक याद आए वे दिन जब उस की नौकरी लगी ही थी. तब तो वह छुट्टी ही नहीं लेती थी. उसे जरूरत ही नहीं पड़ती थी इस की. आराम से तैयार होना. रोज एक से एक बढि़या सूट या साड़ी पहनना और 4 इंच की हील वाले सैंडल पहन कर खटखट करते हुए निकल जाना. अब तो शादी और बच्चों के बाद किसी तरह उलटीसीधी साड़ी लपेटी और कभीकभी तो बस निकल जाने के डर से चप्पल बदलने का भी ध्यान नहीं रहता.

‘‘चलो, आज मैं छुट्टी ले लेता हूं. पारू

को डाक्टर के पास तो ले जाना ही पड़ेगा?’’ अमित ने कहा तो निशा थोड़ी सहज हो कर रसोई में चली गई. चाय के लिए पानी चढ़ाने लगी तो देखा गैस खत्म हो चुकी थी. वह रोंआसी सी हो गई. एक तो महरी सप्ताहभर के लिए बाहर गई हुई है, ऊपर से गैस खत्म- अगर उसे दफ्तर न जाना होता तो वह इत्मीनान से सारा काम कर लेती, पर अब?

8 बज चुके हैं और उसे सवा 9 बजे वाली बस पकड़नी है. क्यों ?ां?ाट मोल लिया, उस ने

नौकरी के बाद शादी करने का? कालेज के दिनों में कितनी छुट्टियां होती थीं. परीक्षाएं खत्म होने पर तो बस मजा ही आ जाता था. पढ़ाई की चिंता भी खत्म. गरमी की लंबी दोपहरियों में अपने कमरे के सारे परदे गिरा कर ठाट से ट्रांजिस्टर सुनती थी. एसी की ठंडी हवा कभी कोई पेंटिंग बनाती तो कभी खर्राटे लेते हुए शाम तक पड़ी रहती. शाम होते ही किरण, मधु, शशि सब पहुंच जाती थीं. फिर उन की सरपट भागती स्कूटियां होतीं और वे कभी फिल्म तो कभी किसी मौल में फूड कोर्ट में लंच.

‘‘निशा, तु?ो बांधने का

कोई खूंटा ढूंढ़ना ही पड़ेगा, यह नौकरी पूरा खूंटा नहीं है,’’ पड़ोस वाली रीता भाभी अकसर उसे

छेड़ा करतीं.

‘‘देखो भाभी, मैं तुम्हारी तरह खूंटे से यों ही बंधने की नहीं, नौकरी के साथ शादी करूंगी तो भी वह खूंटा नहीं देगी. आजादी कायम रहे. जो घरेलू ?ां?ाट मिलबांट कर पूरे हो जाएंगे अपने बस के नहीं,’’ और किसी नन्हे बच्चे की तरह भाभी को चिढ़ा कर भाग जाती थी वह.

‘‘क्या बात है निशा, चाय नहीं बनी अभी? भई, स्मित को स्कूल छोड़ने भी जाना है, उसे भी दूध दे दो,’’ कहतेकहते अमित रसोई में आ गए. इलैक्ट्रिक चूल्हे पर खाना धीमे पकता था. निशा के आंसू टपटप गिर रहे थे.

‘‘अरे, क्या गैस खत्म हो गई? तुम तो रो रही हो? निशा, तुम्हीं तो कहा करती हो, जहां संघर्ष खत्म हो जाता है वहां जिंदगी ठहर जाती है. पगली चलो उठो, मैं बरतन कर देता हूं,’’ अमित मुसकराते हुए बोले, पर उन की आवाज में खीज निशा से छिपी न रह सकी.

बच्चों की बीमारी, मेड की छुट्टियां, कभी अपनी तबीयत खराब तो कभी मेहमानों का आना यह  तो गृहस्थी में हमेशा ही चलता रहता है पर जाने क्यों कई दिनों से निशा बड़ी अनमनी सी हो गई है. शायद रोज ही इस भागदौड़ से वह अब थक सी गई है. रोज 5 बजे उठना, घर भर की सफाई करना, बच्चों को दूध, नाश्ता करा कर और लंच दे कर स्कूल भेजना. फिर अपना तथा अमित का नाश्ता व साथ ले जाने के लिए दोपहर का खाना तैयार करना, 9 बजने का पता ही नहीं चलता था और जब कभी महरी न आए तो बरतनों का ढेर भी उस के जिम्मे था. वह अकसर भाग कर ही बस पकड़ पाती थी. देर होने पर बौस की खा जाने वाली निगाहें, फाइलों का ढेर और दोपहरी में सुबह का बना ठंडा खाना. घर लौटतेलौटते 6 बज जाते. थकान से टूटता बदन और घिसटते कदम. दिनभर अकेले रहे बच्चों पर उसे डेर सा प्यार उमड़ आता और वह उन्हें प्यार करतेकरते खुद रो पड़ती.

एक रविवार आता तो अनेक ?ां?ाट रहते. पड़ोस में किसी के बच्चा हुआ है, बधाई देने जाना है. कोई रिश्तेदार अस्पताल में दाखिल है, उसे देखने जाना है. कहीं से शादी का कार्ड आया है, जाना तो पड़ेगा ही. किसकिस को अपनी परेशानी सुनाई जाए और फिर कपड़ों का ढेर तो रविवार के लिए निश्चित है ही. किसी का बटन टूटा है, तो किसी कमीज की सिलाई उधड़ी है. कभी दालों को धूप दिखानी है तो कभी अचार खराब होने के आसार नजर आ रहे हैं.

‘‘आप जाइए, दफ्तर,’’ निशा ने नाश्ते की प्लेट अमित को पकड़ाते हुए कहा, ‘‘मैं ही ले लूंगी छुट्टी, आज. मेरा सिर भी आज भारीभारी सा हो रहा है. और हां, आज खाना भी कैंटीन में ही खा लेना,’’ कहतेकहते वह कमरे में जा कर पलंग पर पड़ गई.

मन कर रहा था कि  2 घंटे चुपचाप पड़ी रहे तथा कुछ न सोचे पर आज वह स्वयं को बड़ा अशांत अनुभव कर रही थी. उसे शादी से पहले डायरी में लिखे वे शब्द याद आ रहे थे, हम

कोई भी कार्य उत्साह से शुरू करते हैं पर अंत भी उसी उत्साह से होगा या नहीं, कोई नहीं जानता. उस के अनुभव ने उसे आज सही साबित किया है. हो सकता है, आने वाला कल उसे गलत साबित कर दे पर आज यह एकदम सही है. अब डायरियां भी कहां रह गईं. मोबाइलों पर घिसेपिटे मैसेज आते. इस देवता को पूज लो उस देवी की मन्नत मान लो.

यही तो हुआ है उस के साथ. जब वह एमए कर चुकी थी तो नौकरी के लिए उत्सुक थी. चाहती थी एक क्षण भी न लगे और उसे नौकरी मिल जाए पर 2-3 साक्षात्कार दे कर ही वह नौकरी पा गई.

शादी के बाद वह सोचती थी कि 2 वेतनों से उस के दुखों का अंत हो जाएगा पर अब अकसर निशा सोचती, वह उस के दुखों का अंत नहीं बल्कि शुरुआत थी. कितना घृणित होता है पुरुषों का साथ?

अनिल को ही देखो. जब भी कोई फाइल लेने आएगा तो सिगरेट का धुआं जानबू?ा कर मुंह पर ही छोड़ेगा और रमेश तो जानबू?ा कर किसी मोबाइल के मैसेज के शीर्षक को भी इतनी जोर से पढ़ेगा कि वह सुन ले. अभी कल भी तो कुछ पढ़ रहा था. हां, याद आया, ‘‘युवतियों से छेड़छाड़ के लिए युवतियां दोषी हैं?’’

‘‘अरे वाह, क्या सही बात लिखी है लेखक ने,’’ कहते हुए कितनी भद्दी हंसी हंसा था वह.

उस के बदन पर निगाहें टिका कर सुरेश कितनी ही बार दिनेश से कह चुका है,

‘‘यार, कुछ औरतें तो 2 बच्चों की मां हो कर भी लड़की सी लगती हैं. पता नहीं क्या खाती हैं.’’

हुंह क्या खाक कंधा मिलाएं इन पुरुषों से. बड़ी इच्छा होती है अब तो कोई कह दे, निशू, नौकरी छोड़ दो. पर जब सब मना करते थे तो वह रोती थी, अब वह नहीं चाहती तो कोई मना नहीं करता. काश, अमित एक बार आग्रह कर दे कि निशू नौकरी छोड़ दो, अब तुम्हारी हालत मु?ा से देखी नहीं जाती.

हुंह, उसे अपने घर की हालत का पता नहीं. अमित के 25 हजार रुपए से क्या होता है. इन दोनों के 45 हजार रुपए से तो मुश्किल से गुजारा होता है. मकान का किराया, दूध का बिल, फल, सब्जी, कपड़े, मेहमान, बच्चों की प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाई, बीमारी आखिर किसकिस में कमी करेगी वह. देखा जाए तो कितना अच्छा लगता है यह सब, कितना सुकून मिलता है जब वह संघर्ष से अर्जित आय से घर चलाती है.

हर महीने कुछ न कुछ बचा कर जब वह कोई वस्तु खरीदती है तो इतनी खुशी मिलती है मानो सबकुछ मिल गया हो. ‘अगले महीने यह खरीदूंगी,’ की कल्पना ही कितनी सुखद होती है. बचत कर के कुछ न कुछ खरीदने का मजा भी कुछ और ही है. उसे अपने घर की हर वस्तु से संतोष की ?ालक और मेहनत की खुशबू आती है और फिर घर तो चलाना ही है. क्यों न खुशीखुशी से यह सब किया जाए.

हां, घर तो चलाना ही है. सहसा उसे याद आ जाता है कि आज मेड नहीं आएगी और

रसोई में रात के जूठे बरतनों का ढेर लगा है जबकि आधे तो अमित धो गया था. वह तेजी से उठ जाती है और मशीन की तरह घूमने लगती है. वह सोचती है कि मशीन बन जाना ही उस की नियति है.

पतले होंठ को मोटा करने के लिए उपाय बताएं

सवाल

मेरे होंठ बहुत पतले हैं जबकि मुझे मोटे होंठ पसंद हैं. मुझे इस के लिए क्या करना चाहिए?

जवाब

यदि आप की होंठ बहुत पतली हैं और आप चाहती हैं कि वे भरेभरे लगें तो आप एक अच्छा लिप लाइनर उपयोग कर के अपने होंठों को फूलर लुक दे सकती हैं. लिप लाइनर को होंठों के बाहरी किनारे पर इस्तेमाल करें और फिर उन के बीच में लिपस्टिक लगाएं. लिप ग्लौस का उपयोग करने से भी  होंठों का वौल्यूम बढ़ सकता है और वे फूलर दिख सकते हैं. आप लिप प्लंपर्स का उपयोग भी कर सकती हैं. लिप प्लंपर्स विशेष तरीके से डिजाइन किए गए होते हैं ताकि वे होंठों को फूलर और बड़ा दिखाएं.

कई बार होंठों पर ड्राई और डैड स्किन बन जाती है, जिस से वे और भी पतले लगते हैं. इसलिए नियमित रूप से लिप ऐक्सफौलिएटर का उपयोग करें ताकि आप होंठ स्वस्थ और फूलर दिखें. ये तरीके आप के होंठों को फूलर दिखाने में मदद कर सकते हैं. अगर आप को हमेशा के लिए होंठों को बड़ा करना है तो परमानैंट मेकअप से भी उन्हें बड़ा किया जा सकता है. इस में परमानैंट लिप लाइनर होंठों के बाहर बना दिया जाता है और उस में लिपस्टिक  फिल कर दी जाती है. इस से होंठ बड़े दिखाई देने लगते हैं जोकि करीब 15 साल तक रहते हैं.

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