Hathras Stampede : अंधभक्ति में गंवाई जान दोषी कौन

सूरजपाल सिंह उर्फ नारायण साकार हरि भोले बाबा मूल रूप से कांशीराम नगर (कासगंज) में पटियाली तहसील के बहादुरनगर का निवासी है. पहलेपहल उत्तर प्रदेश पुलिस की नौकरी कर रहा था. बताया जाता है कि पुलिस की अभिसूचना इकाई (एलआइयू) में खुफिया सूचनाओं के इकट्ठे करने का काम किया करता था. अचानक सूरज पाल सिंह ने 1997 में पुलिस सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले लिया और धार्मिक प्रवचन करने लगे.

फिर आगे सूरजपाल से भोले बाबा बन गया और घर को आश्रम में तबदील कर टार्च (ज्ञान) बेचने वाला बन गया.

धर्म की दुकानदारी

लगभग हरएक धर्म के दुकानदार की शुरुआत ऐसे ही होती है। अब जब हाथरस में प्रवचन के बाद अनेक लोगों की मौत हो गई है, मुख्यमंत्री आदित्य नाथ योगी ने कड़ी काररवाई की बात कही है। देखना है यह कड़ी काररवाई क्या होगी?

तथ्य है कि लगभग ढाई लाख लोग सत्संग कार्यक्रम में पहुंचे थे और कोई भी इंतजाम सुरक्षा का नहीं किया गया था. सत्संगस्थल पर न ही ऐबुलेंस की व्यवस्था थी न कोई पुलिस की व्यवस्था और न ही अग्नि शमन और बेसिक चिकित्सा व्यवस्था थी. कथित बाबा पर कई यौन शोषण के मामले भी दायर हैं.

खामियां ही खामियां

उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के सिकंदराराऊ क्षेत्र में आयोजित कथित बाबा साकार विश्व हरि भोले बाबा के सत्संग में 2 जुलाई, 2024 दिन मंगलवार को भगदड़ मच गई, जिस में 121 लोगों की मौत की खबर है. इस में सैकड़ों घायल भी हो गए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों की मौत पर दुख जताते हुए पीड़ितों को हरसंभव मदद का आश्वासन दिया.

प्रधानमंत्री कार्यालय ने मृतकों के परिजनों के लिए ₹2-2 लाख रुपए और घायलों के लिए ₹50- 50 हजार की आर्थिक सहायता दिए जाने की घोषणा कर दी है. बस, अब क्या समझ लीजिए कि कुछ दिनों बाद हाथरस की यह घटना को लोग भूल जाएंगे और सरकार अपनी आंखें बंद कर लेगी।

हमारे देश के धर्म भीरु रूप ऐसे कठिन बाबाओं की परिक्रमा करते हुए मिल जाएंगे। आजकल देश में जिस तरह का माहौल है उस में लोगों की मौत इस तरह बड़ी आसानी से हो जाती है और शासनप्रशासन कुछ दिनों की सक्रियता दिखा कर फिर खामोश हो जाते हैं। ऐसे अनेक कांड हमारे यहां हुए हैं, होते रहते हैं उन में यह भी एक शामिल हो गया.

हादसा दर हादसा

2 जुलाई को हुआ बाबा के सत्संग में हादसा संपूर्ण व्यवस्था को कटघरे में खड़ा करता है. ऐसे हादसों में जल्दी से दोषी हाथ नहीं आता मगर हाथरस वाले कांड में उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ की सरकार चाहे तो ऐक्शन लेकर एक संदेश दे सकती है.

हाथरस में हुए हादसे के बाद एक बार फिर उन धार्मिक कार्यक्रमों स्थलों में हुए हादसों पर एक निगाह डालते हैं :

1 जनवरी 2022 : वैष्णो देवी मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ के कारण मची भगदड़ में कम से कम 12 लोगों की मौत हो गई और 1 दर्जन से अधिक घायल हो गए.

14 जुलाई, 2015 : आंध्र प्रदेश के राजमुंदरी में गोदावरी पुष्करलु के दौरान मची भगदड़ में कम से कम 22 तीर्थयात्री मारे गए, जिन में अधिकतर महिलाएं थीं और 20 अन्य घायल हो गए.

3 अक्तूबर, 2014 : पटना के गांधी मैदान में दशहरा उत्सव के दौरान रावण दहन के बाद मची भगदड़ में 32 लोगों की मौत हो गई.

18 जनवरी, 2014 : मुंबई के मालाबार हिल स्थित दाऊदी बोहरा धर्मगुरु सैयदना मोहम्मद बुरहानुद्दीन के आवास के बाहर भगदड़ मचने से 18 लोगों की मौत हो गई.

13 अक्तूबर, 2013 : मध्य प्रदेश के दतिया में रतनगढ़ हिंदू मंदिर के पास भगदड़ में 89 लोग मारे गए और 100 से अधिक घायल हुए.

10 फरवरी, 2013 : कुंभ मेले के दौरान इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर भगदड़ में 36 लोग मारे गए.

10 नवंबर 2012 : छठ पर्व
के दौरान पटना में एक घाट पर भगदड़ में 20 लोगों की मौत.

8 नवंबर, 2011 : हरिद्वार में गंगा नदी के तट पर हर की पौड़ी घाट पर भगदड़ में 22 लोगों की मौत.

14 जनवरी, 2011 : केरल के सबरीमाला मंदिर में भगदड़ में 106 तीर्थयात्री मारे गए। 100 से अधिक घायल हुए.

4 मार्च, 2010 : उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में राम जानकी मंदिर में भगदड़ मचने से 63 लोगों की मौत हो गई, क्योंकि लोग एक स्वयंभू बाबा से मुफ्त कपड़े और भोजन लेने के लिए एकत्र हुए थे.

30 सितंबर, 2008 : नवरात्रि उत्सव के दौरान राजस्थान के जोधपुर में पहाड़ी पर स्थित चामुंडा देवी मंदिर में भगदड़ मचने से 120 से अधिक लोग मारे गए और 200 घायल हो गए

3 अगस्त, 2006 : हिमाचल प्रदेश के नैना देवी मंदिर में भगदड़ में लगभग 150 श्रद्धालु मारे गए और 400 से अधिक घायल हुए.

26 जनवरी, 2005 : पश्चिमी महाराष्ट्र के सतारा जिले में वाई के निकट मंढेर देवी मंदिर में आयोजित धार्मिक मेले में लगभग 350 श्रद्धालुओं की मौत हो गई. 200 से अधिक घायल हो गए.

वजन कंट्रोल करने के लिए ब्रेकफास्ट में खाएं ये लो कैलोरी फूड्स

Breakfast Ideas For Weight Loss : आजकल बदलती लाइफस्टाइल और गलत खानपान की वजह से वजन बढ़ना आम समस्या है. वेट कंट्रोल करने के लिए लोग कई तरह की डाइट फौलो करते हैं. कुछ लोग तो ऐसे होते हैं कि वो वेट कंट्रोल करने के लिए सुबह का ब्रेकफास्ट स्किप कर देते हैं. इससे हेल्थ को काफी नुकसान होता है. वेट कंट्रोल करने के लिए डाइट में लो कैलोरी फूड्स शामिल करना जरूरी है. ऐसे में आज हम आपको ब्रेकफास्ट के लिए कुछ औप्शन बताएंगे, जिन्हें आप ट्राई कर सकते हैं. ये खाने में स्वादिष्ट होने के साथसाथ वेट मेंटेन करने में भी आपकी मदद करेंगे.

 

मूंग दाल का चीला

वेट लौस डाइट में मूंग दाल का चीला शामिल कर सकते हैं. आप इसे ब्रेकफास्ट के रूप में खा सकते हैं. इसमें कैलोरी की मात्रा कम होती है. यह टेस्टी होने के साथसाथ हेल्दी भी है. इसे बनाने में तेल की मात्रा काफी कम यूज होती है.

मूंग दाल को 3-4 घंटे के लिए भिगो दें. अब इसे मिक्सी में पेस्ट तैयार कर लें. फिर इस पेस्ट में बारीक कटी हरी मिर्च, प्याज हरा धनियां डालें, इसके बाद स्वादानुसार नमक मिक्स करें. इस मिश्रण को अच्छी तरह फेंट लें. अब नौनस्टिक तवा गर्म करें, एक छोटा चम्मच तेल डालें और इसे तवे पर अच्छी तरह फैला दें. अब मूंग दाल के पेस्ट को तवे पर डालें और इसे चम्मच की मदद से तवे पर गोलाकार फैला दें और दोनों साइड से सेंक लें.

उपमा

उपमा वजन कंट्रोल करने वालों के लिए अच्छा औप्शन है. इसे बनाने के लिए सब्जियों और रवा का इस्तेमाल किया जाता है. यह सुबह के ब्रेकफास्ट काफी हेल्दी माना जाता है.

इसे बनाने के लिए सबसे पहले प्याज, टमाटर, हरी मिर्च, गाजर, हरी धनिया को बारीक काट लें. अब एक कड़ाही में घी गर्म करें, जब ये पिघल जाए, तो इसमें रवा डालकर कुछ देर तक भून लें. भूने हुए रवे को प्लेट में निकाल लें. अब कड़ाही में तेल डालें और इसे गर्म करें, फिर थोड़ासा राई चटका लें. इसमें कटी हुई सब्जियों को डालकर भून लें, इसमें नमक भी मिक्स करें, एकदो कप पानी डालकर इन सब्जियों को पका लें, जब पानी उबलने लगे, तो भूनी हुई सूजी डालें दें, थोड़ासा नींबू का रस भी मिक्स करें. इसे करीब 2-3 मिनट तक पकाएं फिर गैस बंद कर दें.

पोहा

शायद ही कोई हो, जिसे पोहा खाना पसंद न हो. यह लो कैलोरी फूड है. इसे बनाना भी आसान है. लोग सुबह हल्का खाना पसंद करते हैं. इसके लिए आप पोहा फाटाफट तैयार कर सकते हैं.

इसे बनाने के लिए पोहे को पानी में 2-3 मिनट के लिए भिगो दें. इसके बाद पैन में तेल गर्म करें, अब इसमें बारीक कटी प्याज, टमाटर और हरी मिर्च डालें, थोड़ी देर भून लें. इसमें हल्दी पाउडर डालें. फिर इसमें पोहा डालें, इसे अच्छी तरह मिला लें. अब इसमें नमक मिक्स करें. बारीक कटी हरी धनिया ऊपर से डालें. नींबू का रस भी मिक्स करें. तैयार है पोहा.

आखिर क्यों होते हैं घुटने में दर्द, जानें इसके उपचार

घुटने में संवेदन यानी सैंसेशन महसूस कराने वाली नसें पीठ के निचले हिस्से से निकल कर आती हैं. कूल्हों, टांगों और टखनों को भी ये नसें ही सैंसेशन प्रदान करती हैं. ऐसे में किसी गहरी चोट का दर्द नसों से होता हुआ बाहरी हिस्से पर भी महसूस होता है, जिसे रैफर्ड पेन कहते हैं. घुटने का दर्द या तो सीधे घुटने से ही पैदा हो सकता है या फिर कूल्हे, टखने या पीठ के निचले हिस्से से रैफर हो कर भी आ सकता है. घुटने में दर्द के ये सभी स्रोत घुटने के जोड़ से ही संबंधित होते हैं.

तेज दर्द की वजह

घुटने में आचानक तेज दर्द फ्रैक्चर्स, स्नायुबंध यानी लिगामैंट के फटने या टूटने, कूल्हे की हड्डी खिसकने, घुटने या नीकैप के अपनी जगह से हट जाने की वजह से हो सकता है.

दर्द होने की वजहें

आर्थ्राइटिस: घुटने का आर्थ्राइटिस घुटने के जोड़ों में सूजन संबंधी एक तरह का विकार है, जो अकसर तकलीफदेह होता है. आर्थ्राइटिस के कई कारण हो सकते हैं. जैसे:

औस्टियोआर्थ्राइटिस: ये घुटने की नर्म हड्डी के डिजैनरेशन की वजह से होता है और इस की चरम अवस्था में हड्डियां एकदूसरे से टकरा कर घिसने लगती हैं.

लक्षण: इस में कोई भी काम करने के दौरान लगातार और स्थाई रूप से तेज दर्द होने लगता है. लगातार बैठने से नर्म हड्डियों में भी कठोरता आने का एहसास होता है.

उपचार: उपचार का मुख्य लक्ष्य दर्द को नियंत्रित करना होता है. इस के लिए दर्दनिवारक और ऐंटीइनफ्लैमेटरी दवा दी जाती है. गंभीर स्थिति में घुटने की ब्रेसिंग कराने या घुटने के जोड़ों को बदल कर सिंथैटिक जौइंट लगाने की सलाह दी जाती है.

रूमेटाइड आर्थ्राइटिस: यह पूरे शरीर से जुड़ी एक बीमारी है, जो शरीर के कई जोड़ों, खासतौर से घुटनों को प्रभावित करती है. इसे एक तरह की आनुवंशिक बीमारी माना जाता है.

लक्षण: इस में सुबह के वक्त घुटनों में जकड़न और सूजन के साथ तेज दर्द महसूस होता है और छूने पर घुटनों में गरमाहट भी महसूस हो सकती है.

उपचार: इस के लिए भी दर्दनिवारक दवा, सूजन दूर करने वाली दवा और बीमारी को बढ़ने से रोकने वाली या जलन को कम कम करने के लिए इम्यून सिस्टम को प्रभावित करने वाली दवा दी जाती है. बायोलौजिक्स दवा का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.

क्रिस्टेलाइन आर्थ्राइटिस: यह अत्यधिक दर्द पैदा करने वाला आर्थ्राइटिस का एक ऐसा रूप है, जो घुटने या अन्य जोड़ों में बनने वाले क्रिस्टल्स की वजह से पैदा होता है. ये क्रिस्टल्स अवशोषण में किसी तरह की गड़बड़ी होने या कई तरह के प्राकृतिक पदार्थों जैसे यूरिक ऐसिड और कैल्सियम पाइरोफास्फेट आदि के मैटाबोलिज्म की वजह से बनते हैं.

लक्षण: घुटने के जोड़ों में सूजन साफतौर पर दिखने लगती है. इस के कारण घुटनों में तेज दर्द और गरमाहट या जलन सी महसूस होती है. ऐसा लगता है जैसे घुटनों ने बिलकुल काम करना बंद कर दिया है.

उपचार: इस के उपचार के तहत सूजन को रोकने वाली दवा दी जाती है, साथ ही क्रिस्टल्स के फौर्मेशन को रोकने के लिए कई तरह के कैमिकल्स के मैटाबौलिज्म को प्र्रभावित करने वाली दवा भी दी जा सकती है. शराब का सेवन न करने की सलाह दी जाती है. गठिया को बढ़ने से रोकने के लिए खानपान में भी गई तरह के बदलाव किए जाते हैं.

बर्साइटिस: इस में ट्रामा, इन्फैक्शन या क्रिस्टल्स जमा होने की वजह से घुटने के विभिन्न बर्साइज सूज जाते हैं.

लक्षण: इस में अचानक या लगातार आघात होने की वजह से घुटने में तेज दर्द के साथ सूजन भी बनी रहती है. बर्साइटिस के भी 3 अलगअलग रूप देखने को मिलते हैं.

प्रीपटेलर बर्साइटिस: यह एक तहह का कौमन बर्साइटिस है, जो आमतौर पर उन लोगों में ज्यादा होता है, जो घुटनों के बल ज्यादा काम करते हैं. यह अकसर घरों में काम करने वाली मेड या कारपेट बनाने वाले लोगों को होता है.

ऐनसेराइन बर्साइटिस: यह ज्यादातर मोटे और भारी वजन वाले लोगों को होता है. यह ऐथलीट्स और अन्य लोगों को भी प्रभावित कर सकता है.

उपचार: इस में ज्यादातर घरेलू उपचार और देखरेख पर जोर दिया जाता है. गंभीर स्थिति में समयसमय पर स्टेराइड के इंजैक्शन दे कर भी इस का उपचार किया जाता है.

इन्फैक्शियस आर्थ्राइटिस: घुटनों का यह संक्रमण गनोरिया नामक एक कौमन सैक्सुअली ट्रांसमिटेड डिसीज की वजह से होता है. यह बीमारी रोगप्रतिरोधक क्षमता को दबाती या कम करती है, जिस के चलते इस का असर घुटनों पर भी पड़ता है.

लक्षण: घुटनों में इन्फैक्शन के चलते तेज दर्द वाली सूजन होने लगती है. साथ ही जो लोग इस इन्फैक्शन से ग्रस्त होते हैं, वे अकसर बुखार आने या कंपकंपी महसूस होने की शिकायत भी करते हैं. अगर इन्फैक्शन ज्यादा गंभीर नहीं है, तो बुखार नहीं होता है.

उपचार: इस के उपचार के लिए गहन ऐंटीबायोटिक थेरैपी की जरूरत होती है, साथ ही जरूरत पड़ने पर इन्फैक्शन को बाहर निकालने के लिए सर्जरी भी की जा सकती है.

मानसून में परफैक्ट फिट के लिए किस तरह की होनी चाहिए लौंजरी

महिलाएं अकसर ट्रैंड के अनुसार ही लौंजरी का चुनाव करती हैं तो आइए जानते हैं क्या है ट्रैंडिंग लौंजरी फैशन और  मौनसून में किस तरह की लौंजरी रहेगी परफैक्ट फिट.

स्पोर्ट्स ब्रा

हैल्थ और फिटनैस को ध्यान में रखते हुए स्पोर्ट्स ब्रा का चलन और मांग इस के अस्तित्व में आने के साथ से लगातार बनी हुई है और यह ट्रैंड में भी बनी रहती है. खासकर युवा महिलाओं के बीच यह काफी फेमस है. यह न केवल कंफर्टेबल होती है बल्कि दिखने में भी बेहद स्टाइलिश होती है.

अलगअलग ब्रैंड अलगअलग डिजाइनर इनरवियर निकाल रहे हैं, जिन के चलते आजकल स्पोर्ट्स ब्रा एक फैशन ट्रैंड में तबदील हो गई है जो कंफर्ट के साथसाथ वूमन बौडी को स्टाइल भी देती है. ऐसे में लौंजरी के अपने कलैक्शन में स्पोर्ट्स ब्रा को जगह देना जरूरी हो जाता है.

ब्यूटीफुल लेस लुक

लेसेज लौंजरी कभी आउट औफ फैशन नहीं होती. बस उसे कलर, मूड और डिजाइन के अकौर्डिंग पहना जाता है. लेसेज की सब से बड़ी खासियत यह है कि इस की खूबसूरत बनावट न सिर्फ आप को नारीत्व का बेहतर एहसास कराती है बल्कि यह पहनने में भी काफी कंफर्टेबल होती है.

लेसेज किसी भी रंग में बेहतर दिखते हैं, लेकिन अगर चुनने की बात आए तो हलके या शुगरी पेस्टल कलर में आप इन्हें खरीद सकती हैं.

हौल्टर नैक ब्रा

21वीं सदी की महिलाएं बोल्ड फैशन को आजमाने से नहीं कतरातीं. ऐसे में आप के लौंजरी कलैक्शन में हौल्टर नैक ब्रा का होना एक जरूरत बन जाता है. यह कौटन, स्पैंडैक्स, पौलियामाइड, साटन, मैश, नैट, लेस और सिल्क जैसे कई फ्रैब्रिक्स में उपलब्ध हैं जिसे मौसम के अनुसार चुना जा सकता है.

शेपवियर

आजकल लौंजरी में शेपवियर को भी शामिल किया जाता है. शेपवियर लौंजरी आप के शरीर को शेप प्रदान करती है. आप अपनी शेप को संतुलित करने के लिए और ऊपर वैस्टर्न ड्रैस पहनने के लिए इन का रंग और डिजाइन के अकौर्डिंग इस्तेमाल कर सकती हैं. आजकल यह लगभग हर महिला के वार्डरोब का एक खास हिस्सा है. इसे खास मौकों के साथसाथ रोज किसी भी मौसम में पहना जा सकता है.

ब्रैलेट ब्रा

यह स्पोर्ट और ट्रैडिशन ब्रा का कौंबिनेशन होती है. इस का लुक सामने से स्पोर्ट और पीछे से स्ट्रैप वाला होता है जिस से यह बहुत ज्यादा सैक्सी और कंफर्टेबल लगती है. इसे अकसर ट्रांसपेरैंट रिवीलिंग या बैकलैस टौप और ड्रैसेज के नीचे पहना जाता है जिस से यह देखने में बेहद खूबसूरत लगती है.

बैकलैस ब्रा

पीछे का गला डीप या नैट का होने की स्थिति में बैकलैस ब्रा एक अच्छा विकल्प है और आप के पास यह भी होनी ही चाहिए. अधिकतर बैकलैस ब्रा की स्ट्रैप्स निकाली भी जा सकती हैं. इन की स्ट्रैप्स ट्रांसपेरैंट होती हैं जो आप को अनकंफर्टेबल नहीं होने देतीं. बाजार में उपलब्ध इन ट्रैंडिंग विकल्पों पर आप ध्यान दे सकती हैं.

रंगों का रखें खास ध्यान

मौनसून के मौसम में हम अकसर ऐसे रंगों की ओर आकर्षित होते हैं जो हमारे मूड को बेहतर बना सकते हैं. मौनसून उदास माना जाता है कहने का मतलब यह कि इस मौसम में दिमाग थोड़ा गंभीर हो जाता है. ऐसे में ऐसी लौंजरी का चयन करें जो आप का मूड ठीक रख सके.

खास कलर जैसे डेजी यलो, कोरल या औरेंज जैसे रंग खुशी और होपनैस से जुड़े हैं. आप इन्हें चुन सकती हैं. इन रंगों में लौंजरी पहनने से आप के दिन में एक खुशनुमा टच आ सकता है भले ही मौसम कैसा भी हो. पेस्टल और न्यूट्रल के नर्म, हलके शेड भी ट्राई किए जा सकते हैं.

पैटर्न भी हो सकते हैं खास

आजकल फ्लोरल प्रिंट काफी ट्रैंड में है और महिलाओं द्वारा पसंद भी किया जा रहा है. मौनसून जैसे रोमांटिक कहे जाने वाले मौसम में ये फ्लोरल प्रिंट उन के और उन के साथी दोनों के ही मूड को लाइटअप कर सकते हैं.

स्किन फ्रैंडली हो लौंजरी

इन दिनों आप कौटन और सेमी कौटन फैब्रिक लौंजरी का इस्तेमाल कर सकती हैं. यह नमी और गंध दोनों को रोकने में कामयाब होती है, साथ ही बहुत कंफर्टेबल भी होती है.

प्रकृति का नहीं होता है कोई धर्म

Writer-  एकता एस. दुबे 

हिंदू, मुसलिम, सिख, ईसाई, जैन सब धर्मों ने हमें बस बांटा है पर एक ऐसा धर्म है जिस ने कम से कम हम महिलाओं को तो एक धागे में पिरोया है और वह है ‘मासिकधर्म.’ महिला चाहे किसी भी धर्म की हो, मासिकधर्म में तकलीफ तो एकजैसी ही होती है. मासिकधर्म सभी को लगभग एकजैसी उम्र से शुरू और एकजैसी उम्र में बंद होता है, वहां वह न तो आप का धर्म पूछता है न ही जाति. और ऐसा हो भी क्यों न, मासिकधर्म इंसान ने तो बनाया नहीं है. वह तो प्रकृति ने बनाया है और प्रकृति का तो कोई धर्म नहीं होता.

पर हां हम इंसानों का जरूर होता है. तो भई हम ने इस मासिकधर्म में भी अपना धर्म घुसा दिया. कुछ भी हो हम इंसानों की टांग अड़ाने की आदत तो ऐसे जाएगी नहीं, फिर बात भले ही प्रकृति की क्यों न हो. तो हम ने अपने धर्मों के हिसाब से इस मासिकधर्म में क्या करना है और क्या नहीं, यह तय कर लिया.

मगर ‘धर्म’ और वह भी बिना भगवान का? न जी न. भगवान जो होते हैं, कहा जाता है वे समदर्शी होते हैं. मतलब सब को एकजैसा देखने वाले, बिना किसी भेदभाव के. तो अपने इस मासिकधर्म के भगवान भी हम ने ढूंढ़ लिए और यहां बात महिलाओं की हो रही है तो उन्हें स्त्रीलिंग बना दिया. उन का नाम हम ने रखा ‘माहवारी मैया.’ इन मैयाजी का आशीर्वाद हर स्त्री को मिलता है. गरीब हो या अमीर, काली हो या गोरी, नाटी हो या लंबी, कामकाजी हो या गृहिणी, बातूनी हो या चुप रहने वाली सभी प्रकार की महिलाओं को माहवारी मैया एक आंख से देखती हैं. कुछ जरूर छूट जाती हैं इस आशीर्वाद से लेकिन इस में भी प्रकृति की कोई अच्छी मंशा छिपी होती है.

मैयाजी के साक्षात दर्शन

एक दिन हमें मैयाजी के साक्षात दर्शन हो गए. हालांकि माहवारी हमें पहली बार नहीं आई थी पर माहवारी मैया के दर्शन पहली बार हुए थे. उन की छवि अलग ही थी. लाल रंग की साड़ी, माथे पर बड़ी सी लाल बिंदी, लाललाल चूडि़यां, 6 हाथ (एक में पैड, एक में टैंपन, एक में मैंसट्रुअल कप, एक में सी स्पंज, एक में पुराना कपड़ा और एक में कुछ नहीं. अरे एक हाथ तो छोड़ दो, मक्खी उड़ाने, खुजली करने या आशीर्वाद देने), कानों में लाल बालियां और गहरे लाल रंग का माहुर लगाए हमारे सामने खड़ी थीं. हम ने देखते ही उन को प्रणाम किया. जैसाकि जिन्हें भी माहवारी मैया दर्शन देती हैं, उन्हें हमेशा पूतोफलो का आशीर्वाद भी देती हैं. सो हमें भी यह आशीर्वाद मिल गया.

अब क्योंकि हम पहली बार मैया से मिल रहे थे तो मन में कुछ कुतूहल के कीड़े कुलांचें मार रहे थे. एक तो कुलबुलाते हुए जीभ तक आ गया. एक सवाल बन कर बाहर निकला तो हम मैया से पूछ बैठे, ‘‘आप के 4 हाथों में ये आधुनिक अस्त्रशस्त्र हैं पर एक हाथ में यह पुराना कपड़ा क्यों है?’’

मैयाजी मुसकराईं और फिर बोलीं, ‘‘बिटिया, मेरी लाल, एक हाथ में पुराना कपड़ा इसलिए है क्योंकि तुम लोगों ने एकदूसरे की तरफ मदद का हाथ नहीं बढ़ाया. नहीं सम?ा न? तो सुनो. जिन के पास ‘लक्ष्मी मैया’ के आशीर्वाद की सप्लाई अच्छी होती है वे तो आधुनिक अस्त्रशस्त्र प्रयोग कर लेते हैं पर जिन के पास उन का आशीर्वाद नहीं होता वे लोग तो यही इस्तेमाल करते हैं और यदि इन लोगों की तरफ तुम लोगों ने मदद का हाथ बढ़ाया होता तो मेरे हाथ में पुराना कपड़ा न होता. मेरा यह हाथ भी दूसरे काम करने के लिए मुक्त होता.’’

कुतूहल का कीड़ा

लो जी, प्रश्न का उत्तर मिला ही था कि कुतूहल का दूसरा कीड़ा जो न जाने कितने सालों से मन में पल रहा था सब को धक्का लगाते बाहर आया और दूसरा प्रश्न निकला, ‘‘मैया, आप पैदा होने से ले कर आखिरी सांस तक साथ क्यों नहीं रहतीं? क्यों लड़कपन में दर्शन दे कर अधेड़पन में लुप्त हो जाती हो?’’

मैयाजी ने खिलखिलाते हुए कहा, ‘‘धीरे बोलो, धरती मैया रुष्ट हो जाएंगी.’’

हम ने पूछा, ‘‘कैसे?’’

मैया ने कहा, ‘‘इस के 2 कारण हैं. पहला तो यह कि तुम इंसानों का भरोसा नहीं तुम लोग 8 साल की बच्ची हो या 80 साल की बुजुर्ग, सब को गर्भवती कर सकते हो. कम से कम इसी बहाने जनसंख्या नियंत्रण के साथ उन मासूमों का स्वास्थ्य भी सुरक्षित है और दूसरा यह कि कम लोग होने से तुम्हारे द्वारा इस्तेमाल किए पैड से कचरा तो कम होगा. जनसंख्या और कचरा दोनों ही बढ़े तो धरती मैया रुष्ट हो जाती हैं.’’

बहुत देर बातचीत के बाद मैयाजी हम से और घुलमिल गईं. वैसे भी हमें अपनी लाल और बिटिया तो पहले ही बोल चुकीं थीं वो. तो हम लोगों के बीच औपचारिकता वाली दीवार नहीं रह गई थी.

तो उन्होंने हम से कहा, ‘‘बिटिया, बात करतेकरते बहुत देर हो गई. भूख लग रही है कुछ बना दो हमारे लिए.’’

क्योंकि बचपन से ही हम देखते आए थे कि माहवारी होने पर यह मत छुओ, वह मत छुओ, रसोई में मत जाओ, अपने हाथ से निकाल कर मत खाओ वगैरहवगैरह. ये सब हम से कहा जाता था. सो हम ने मैयाजी से कहा, ‘‘हम से कोई गलती हो गई है तो बोल दो, पर हमारी परीक्षा क्यों ले रही हैं? आप को तो पता है हमें माहवारी है, फिर हम रसोई में कैसे जाएं.

मैयाजी परिहास करने बैठी थीं शायद, तो उन्होंने कहा, ‘‘ठीक वैसे ही जैसे बाकी के दिनों में जाती हो. तुम्हें कोई दर्द या परेशानी हो तो तुम आराम करो, मैं बना कर तुम्हें भी खिलाती हूं.’’

माहवारी मैया के खुद के मुंह से ऐसे शब्द सुन कर ऐसा लग रहा था कि हम ने अनुभव की मजबूत इमारत, भुरभुरी नींव पर बना दी हो और थोड़ी ही देर में वह इमारत चरमरा कर गिर पड़ी.

‘‘नहीं हमें कोई दर्द तो नहीं है, पर…’’

बात पते की हम बस इतना ही कह पाए थे कि मैयाजी ने टोकते हुए कहा, ‘‘अरे तुम इंसान ही एक प्राणी तो हो नहीं जिसे माहवारी होती है. कभी देखा है चमगादड़ को दूसरे चमगादड़ से कहते कि मेरे पास नहीं आना क्योंकि तुम्हें माहवारी है या एक बंदरिया को कोने में खड़े इंतजार करते दूसरे बंदरबंदरिया को जो उस के लिए खाना ले कर आएं और उसे दें.’’

दबी आवाज में हम ने कहा, ‘‘लेकिन… वह… चीजें छूने से…’’

हमारी बात पूरी भी न हो पाई थी कि मैयाजी ने फिर टोकते हुए कहा, ‘‘अच्छा तो मु?ो एक बात बताओ, बैंक में काम करने वाली महिला जिसे माहवारी है, से कोई पैसे लेता है तो पैसे खराब हो जाते हैं या छूत वाले कीटाणु एक इंसान से दूसरे इंसान तक बिना टिकट यात्रा करते हैं या फिर 500 रुपए 100 रुपए में बदल जाते हैं या वह शिक्षिका जिसे माहवारी है पुस्तक पढ़ाने को उठाती है तो उस पुस्तक के अक्षर उस के छूने से या उस के प्रभामंडल में आ कर गलत शिक्षा तो नहीं देते? सोचो, एक नर्स जब इंजैक्शन लगाने वाली होती है तो क्या मरीज उस से पूछती है कि सिस्टर आप को माहवारी चल रही है क्या? वह क्या है न, घर में मैं माहवारी होने पर अपनी बहू के हाथ का पानी भी नहीं पीती. अरे जब बाहर माहवारी के छूत के कीटाणु जीरो होते हैं तो घर में आने पर मल्टीप्लाय कैसे हो जाते हैं?’’

आज हमें लग रहा था माहवारी मैया फुरसत में थीं और हमारे सारे कुतूहल के कीड़ों को पटकपटक कर मारने के इरादे से आई थीं. शायद हमारे मन की कुलबुलाहट उन्हें बाहर तक दिखाई दे रही थी.

तभी अपनी बात को आगे बड़ाते हुए उन्होंने कहा, ‘‘कोई बाल बुद्धि इस छूतअछूत के जाल में फंस जाए और बुजुर्गों से या खुद उन स्त्रियों से उन के अछूत होने का कारण पूछ बैठे तो बड़ों द्वारा जो तर्क दिए जाते हैं उन्हें सुन कर सरस्वती मैया हमारे पास आ कर फूटफूट कर रोती हैं कि बताओ माहवारी मु?ा से ऐसी क्या भूल हो गई इन को शिक्षा देने में जो आज मु?ो यह सुनना पड़ रहा है? देखो तो ये छोटे बच्चों को कैसेकैसे तर्क दे रहे हैं. बेटा आंगन में खड़ी थी तो कौआ छू कर चला गया.

पवित्र क्या अपवित्र क्या

बाकी पंछी तो रोज गंगा के पानी से नहाते हैं, जिन के छूने से तुम्हें कुछ नहीं होता. पर एक बेचारा कौआ ही है जो सालों से नहीं नहाता और जिस के छूने पर तुम्हें पवित्र होने में चार दिन लग जाते हैं.

कौए ने मेरे ऊपर बीट कर दी आज. अब कौआ इतना अक्लमंद और पढ़ालिखा है तो करें भी क्या. वह हर महीने कैलेंडर ले कर जो बैठता है कि किस महिला के ऊपर बीट किए 1 महीना हो गया. अब उसे उस महिला पर अगली बीट कब करनी है. इन की बातों से ऐसा लगता है जैसे बाकायदा कौओं की एक कमेटी बनी हुई है जो इस की ऐक्सेल शीट बनाती है. और कुछ दिन ऐसे ही चला तो कौआ प्रजाति भी मनुष्यों के ऊपर मानहानि का केस दर्ज कर देगी कि इन मनुष्यों द्वारा हमें बदनाम किया जा रहा है.

अरे सुबह घूमने गई थी तो कोई मुआ सड़क किनारे ही मल विसर्जित कर गया और मेरा पैर उस पर पड़ गया.

उफ, यह तो बड़ा बुरा हुआ बेचारी के साथ. अरे इन बहानों के लिए यदि भगवानजी ने बुद्धि दी है तो उसी के नीचे 2 आंखें भी तो दी हैं और ऐसा तर्क देने वाले अपने घर में बच्चों का मल साफ करते हैं तब भी 4 दिन ‘टच मी नौट’ खेलते हैं क्या?

मेरी तबीयत ठीक नहीं है. सिरदर्द कर रहा है. इन के सिरदर्द का भी हर महीने सरदर्द करता है कि अब एक महीने होने वाले हैं चलो फिर से सिरदर्द करें.

और इन रंगबिरंगे जवाब देने वाली महिलाओं के पीछे समाज का (और इस समाज में सिर्फ पुरुष ही नहीं महिलाएं भी आती हैं) काला सच छिपा होता है. ऐसे लोग, माहवारी एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, उसे अकेले में तो स्वीकार करते हैं और माहवारी में इस्तेमाल करने के लिए पैड्स भी बनाते हैं, पर उन का नाम ‘व्हिस्पर’ भी रखते हैं. मतलब इस्तेमाल तो करो पर खुल कर चर्चा मत करो.

‘‘मैयाजी आप को ‘व्हिस्पर’ का अर्थ भी पता है?’’ मैयाजी को धड़ल्ले से अंगरेजी शब्दों का प्रयोग करते देख हम ने अचंभित हो कर पूछा.

मैयाजी ने हमारा कान खींचते हुए कहा, ‘‘अरे तुम्हीं लोगों की वजह से हम कुछ शब्द सीख पाए हैं. अब देखो न माहवारी से कुछ के लिए हम ‘पीरियड्स’ हो गए हैं तो कुछ के लिए ‘मेंसस.’ अब तो कई लोग हम को ‘पी’ या ‘एम’ भी बोलने लगे हैं. कुछ लोगों को तो ‘पीरियड्स’ बोलने में भी शर्म आती है तो वे लोग हाथ के अंगूठे को नीचे दिखा कर इशारे में कहते हैं ‘डाउन’ हो गए. अब न जाने हमें और कितना ‘डाउन फील’ कराएंगे.’’

माहवारी और गुस्सा

मैयाजी 6 में से 5 हाथ में अस्त्रशस्त्र पकड़े कब से हम से बतिया रही थीं, तो फिर एक कीड़ा बाहर निकला पर इस बार वह कीड़ा सहानुभूति का था और हम ने मैयाजी से पूछा, ‘‘मैयाजी इतनी देर से आप भूखी खड़ीखड़ी ये सब अस्त्रशस्त्र उठाए हमें सम?ा रही हैं, आप को गुस्सा नहीं आ रहा?’’

मैयाजी ने कहा, ‘‘अरे माहवारी और गुस्से का साथ तो हमेशा से है. पर हमें भूखप्यास से या ये सब पकड़ने से गुस्सा नहीं आता. हमें तब गुस्सा आता है जब लोगों को यह तो सम?ा में आता है कि माहवारी से फलांफलां चिड़चिड़ी हो जाती हैं, पर उन्हें उन के हाल पर छोड़ते नहीं हैं बल्कि उन्हें और छेड़ते हैं और कुछ लोग तो ऐसे होते हैं जो जूनजुलाई में घर में बंधे कुत्ते का ज्यादा भूंकना तो सम?ा जाते हैं पर घर की महिलाओं का हर महीने कुछ दिन का गुस्सा करना सम?ा नहीं पाते.

और कुछ अति आधुनिक लोग बिलकुल इस के विपरीत होते हैं जो बस तैयार खड़े रहते हैं कि कब कोई महिला गुस्सा करे और इस का सारा ठीकरा ‘लगता है इस के पीरियड्स आने वाले हैं’ बोल कर हम पर फोड़ दें. और वैसे भी शरीर में बदलाव और दिमाग का उतारचढ़ाव, दोनों पक्के दोस्त हैं, ये बात लोग क्यों नहीं सम?ाते?’’

हम ने मैयाजी से बातें करतेकरते उपमा बनाया और उन को परोसते हुए आखिरी कुतूहल के कीड़े को भी बाहर निकाल दिया और उन से पूछा, ‘‘मैया जब माहवारी से इतनी सारी परेशानियां आती हैं एक औरत के जीवन में तो आप ने माहवारी बनाई ही क्यों?’’

मैयाजी ने चेहरे पर हलकी मुसकान लाते हुए कहा, ‘‘अच्छा चलो मैं इस प्रश्न का उत्तर तुम्हें दूंगी पर पहले

मु?ो बताओ बीज को पौधा बनाने के लिए क्या चाहिए?’’

मैं ने सोच कर कहा, ‘‘धरती और पानी. दोनों में से कोई भी एक नहीं होगा तो पौधा नहीं बन पाएगा.’’

‘‘बस अब यह सम?ा लो मनुष्य प्रजाति को आगे बढ़ाने के लिए बीज जहां अंकुरित होते हैं वह धरती मैं हूं. तुम ही बताओ मेरे बिना मनुष्य का अस्तित्व कैसे संभव है? पर मु?ो एक शिकायत है, इसे कविता के माध्यम से सुनो-

(मैयाजी गुनगुनाते हुए)

धरतीधरती बीज जो

वो पौधा बन पाए,

मैं भी धरती बीज को

तुम सब मेरे जाए.

मेरे धरने से मैं क्यों

हूं अछूत बन जाती,

गर्भ वही है उस का भी

पर धरती, मां कहलाती.’’

इतना कहतेकहते मैयाजी का गला रुंध गया और उन की आंखों से 2 मोती टपक पड़े.

हम ने भी उन का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘मैया आप क्यों रो रही हैं? चुप हो जाओ मैयाजी.’’

तभी 2 हाथ ?ां?ाड़ते हुए मु?ो उठाते हैं और मु?ो आवाज सुनाई देती है, ‘‘उठ, कब से उठा रही हूं तु?ो. यह मु?ो कब से मैया बोलने लगी तू. और यह नींद में क्या बड़बड़ा रही है? धरतीधरती बीज जो… और यहां सोफे में क्यों सो रही है, जा अपने कमरे में?’’

हम ने आंख मलते हुए देखा सामने मां थीं.

‘‘मैयाजी कहां चली गईं मां?’’ हम ने घबरा कर पूछा.

‘‘मैया? किस की मैया?’’ मां के मुख पर प्रश्नवाचक चिह्न अद्भुत रस में भीगा हुआ साफ दिखाई दे रहा था. दूसरे ही पल वे वात्सल्य रस में बदल गया और मां ने फिर पूछा, ‘‘तेरी तबीयत तो ठीक है न? पानी पीएगी, रुक पानी ले कर आती हूं.’’

स्वप्नलोक से यथार्थलोक में आने में हमें थोड़ा समय लगा. जब अच्छे से आंख खुल गई तो हम ने मां से कहा, ‘‘नहीं मां हम ले कर आते हैं न.’’

मां ने लगभग हाथ पकड़ कर रोकते हुए कहा, ‘‘अरे रुक, तू भूल गई क्या कि तु?ो माहवारी है? रसोई में कैसे जाएगी?’’

‘‘ठीक वैसे ही जैसे बाकी के दिनों में जाते हैं. अब नींद से जाग गए मां हम,’’ चेहरे पर अलग मुसकान लिए धरती, धरती बीज जो… गुनगुनगुनाते हुए हमारे कदम रसोई की तरफ बढ़ रहे थे.                       –

डिलिवरी के बाद कैसे बचें कुपोषण से

बच्चे के जन्म के तुरंत बाद कुपोषण का बुरा असर मां और बच्चे दोनों पर पड़ता है. गर्भावस्था के दौरान और उस के बाद होने वाला कुपोषण बच्चे के लिए बेहद घातक हो सकता है. इसे रोकना बहुत जरूरी है.

गर्भावस्था के बाद कुपोषण के कारण

द्य स्तनपान इस का सब से पहला और मुख्य कारण है. बच्चे को दूध पिलाने वाली मां को रोजाना कम से कम 1000 कैलोरी ऊर्जा की जरूरत होती है. ज्यादातर महिलाएं या तो सही डाइट चार्ट के बारे में नहीं जानती हैं या फिर इस की अनदेखी करती है, जिस के कारण वे

डिहाइडे्रशन, विटामिन या मिनरल की कमी और कभीकभी खून की कमी यानी ऐनीमिया की शिकार हो जाती हैं. इसे पोस्ट नेटल मालनयूट्रिशन यानी बच्चे के जन्म के बाद होने वाला कुपोषण कहा जा सकता है.

स्तनपान कराने से मां को ज्यादा भूख लगती है और अकसर वह ऐसे खाद्यपदार्थ खाती है, जो पोषक एवं सेहतमंद नहीं होते. स्वाद में अच्छे लगने वाले खाद्यपदार्थों में विटामिन और मिनरल्स की कमी होती है, जिस के कारण मां कुपोषण से ग्रस्त हो जाती है.

बच्चे के जन्म से पहले और बाद में प्रीनेटल विटामिन का सेवन करना बहुत जरूरी है. प्रीनेटल विटामिन जैसे फौलिक ऐसिड पानी में घुल कर शरीर से बाहर निकलते रहते हैं, जिस के चलते अकसर बच्चे के जन्म के बाद महिलाएं फौलिक ऐसिड की कमी के कारण ऐनीमिया से ग्रस्त हो जाती हैं.

बच्चे के जन्म के बाद कुपोषण के कारण अकसर महिलाएं पोस्टपार्टम डिप्रैशन की भी शिकार हो जाती हैं. बच्चे को जन्म देने के बाद उन में भावनात्मक बदलाव आते हैं, जिस के कारण डिप्रैशन की समस्या हो सकती है. इस के कारण कई बार महिलाएं ठीक से खाना खाना बंद कर देती हैं और कुपोषण की शिकार हो जाती हैं.

गर्भावस्था के दौरान लगभग सभी महिलाओं का वजन बढ़ जाता है. कई बार वे वजन में कमी लाने के लिए ठीक से खाना खाना बंद कर देती हैं, और कुपोषण की शिकार हो जाती हैं. अत: गर्भावस्था के बाद वजन में धीरेधीरे कमी लाने की कोशिश करें ताकि अचानक कुपोषण की शिकार न हो जाएं बच्चे को जन्म देने के तुरंत बाद वे आसानी से 1 ही महीने में 4-5 पाउंड वजन कम कर सकती हैं. इसलिए जरूरत से ज्यादा डाइटिंग न करें.

बच्चे के जन्म के बाद अकसर महिलाएं ठीक से सो नहीं पातीं. अत: नींद पूरी न होने के कारण शरीर में पोषक पदार्थ अवशोषित नहीं होते, जिस के कारण वे कुपोषण का शिकार हो जाती हैं.

शिशु के लिए जोखिम

गर्भवती महिला में कुपोषण का बुरा असर उस के पेट में पल रहे बच्चे पर पड़ता है. ऐसे में बच्चे का विकास ठीक से नहीं हो पाता और जन्म के समय उस का वजन सामान्य से कम रह जाता है. गर्भावस्था के दौरान मां में कुपोषण, आईयूजीआर यानी इंट्रायूटरिन ग्रोथ रिस्ट्रिक्शन और जन्म के समय कम वजन का बुरा असर बच्चे पर पड़ता है जिस के कई बुरे असर हो सकते हैं जैसे- जन्मजात दोष, दिमाग को नुकसान, समय से पहले जन्म, कुछ अंगों का विकास न होना, बच्चे में न्यूरोलौजिकल, इंटेस्टाइनल, रेस्पीरेटरी या सर्कुलेटरी डिसऔर्डर. कुछ बच्चे पैदा होते ही नहीं रोते. इन में से 50 फीसदी मामलों का कारण आईयूजीआर होता है.

बच्चे के आने वाले जीवन पर असर

अगर गर्भावस्था के दौरान मां में पोषण की कमी हो तो बच्चे को अपने जीवन में इन बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है:

औस्टियोपोरोसिस, क्रोनिक किडनी फेल्योर, टाइप 2 डायबिटीज, मेलिटस, क्रोनिक औब्स्ट्रक्टिव लंग्स डिजीज, खून में लिपिड्स की मात्रा असामान्य होना, इंम्पेयर्ड ऐनर्जी होम्योस्टेसिस (जब शरीर अपनेआप में ऊर्जा के स्तर को विनियमित नहीं रख पाता), वे बच्चे जिन का वजन जन्म के समय सामान्य से कम होता है, उन का विकास ठीक से नहीं हो पाता.

गर्भावस्था से पहले, उस के दौरान और बाद में पोषण की कमी के परिणाम कुछ इस तरह हो सकते हैं. स्कूल में बच्चे की परफौर्मैंस अच्छी नहीं रहती, वह ठीक से पढ़ाई नहीं कर पाता, उस का विकास ठीक से नहीं होता, बच्चा शारीरिक रूप से कमजोर होता है और उस में ताकत की कमी होती है.

मां के लिए समस्याएं

अगर गर्भावस्था के दौरान महिलाओं में पोषण की कमी हो तो उन में मृत्यु दर की संभावना अधिक होती है. इस के अलावा बच्चे का समय से पहले पैदा होना, गर्भपात जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं. और भी कई समस्याएं हो सकती हैं जैसे संक्रमण, ऐनीमिया यानी खून की कमी, उत्पादकता में कमी, सुस्ती और कमजोरी, औस्टियोपोरोसिस.

कुपोषण को कैसे रोका जा सकता है

संतुलित आहार के सेवन से कुपोषण को रोका जा सकता है. महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान पर्याप्त मात्रा में फल, सब्जियों, पानी, फाइबर, प्रोटीन, वसा एवं कार्बोहाइड्रेट का सेवन करना चाहिए. वे महिलाएं जो गर्भधारण की योजना बना रही हैं, उन्हें प्रीनेटल विटामिन शुरू कर देने चाहिए. इस के अलावा सेहतमंद आहार लें और नियमित व्यायाम करें. गर्भावस्था के दौरान पोषक खाद्यपदार्थों का सेवन करें. बच्चे के जन्म के बाद भी विटामिनों का सेवन करें. इस से मां और बच्चा दोनों स्वस्थ रहेंगे.

पोषण संबंधी जरूरतें

आयरन: शरीर में हीमोग्लोबिन बनाने के लिए आयरन बहुत जरूरी है. हीमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं में पाया जाता है और पूरे शरीर में आक्सीजन पहुंचाता है. अगर शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं की कमी हो जाए तो शरीर के सभी अंगों तक आक्सीजन पर्याप्त मात्रा में नहीं पहुंच पाती. अगर महिला आयरन का सेवन ठीक से न करे तो धीरेधीरे हीमोग्लोबिन की कमी होने लगती है और वह ऐनीमिक हो जाती है. उस के शरीर में बीमारियों से लड़ने की ताकत नहीं रहती.

प्रीनेटल विटामिन: गर्भवती महिलाओं को प्रीनेटल विटामिन लेने की सलाह दी जाती है ताकि बच्चे को विटामिन और मिनरल्स पर्याप्त मात्रा में मिलते रहें. लेकिन कुछ मामलों में जन्म के बाद प्रीनेटल विटामिनों की जरूरत नहीं होती. इसलिए डाक्टर से पूछ लें कि आप को कितने समय तक विटामिन जारी रखने चाहिए.

ओमेगा 3 फैटी ऐसिड: बच्चे के जन्म के बाद खासतौर पर स्तनपान कराने वाली महिलाओं को अपने आहार में ओमेगा 3 फैटी ऐसिड का सेवन जरूर करना चाहिए. अलसी के बीज, सोया, अखरोट और कद्दू के बीजों में ओमेगा 3 फैटी ऐसिड पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है.

कैल्सियम: महिलाओं को जीवन की हर अवस्था में कैल्सियम की सही मात्रा की जरूरत होती है. इस के लिए डेयरी उत्पादों, गहरी हरी पत्तेदार सब्जियों, ब्रोकली, दूध एवं दूध से बनी चीजों, कैल्सियम फोर्टिफाइड खाद्यपदार्थों का सेवन करें.

बच्चे को जन्म देने के बाद महिलाओं के लिए विशेष सुझाव

सिर्फ कैलोरीज के सेवन से बचें: बच्चे के जन्म के बाद शुरुआती दिनों में महिलाएं बच्चे की देखभाल में बहुत ज्यादा व्यस्त हो जाती हैं. ऐसे में वे सेहतमंद आहार पर ध्यान नहीं दे पातीं और जानेअनजाने हाईकैलोरी भोजन खाती रहती हैं. इस दौरान गाजर, फलसब्जियां, लोफैट योगर्ट, उबला अंडा, लो फैट चीज, अंगूर, केला, किशमिश, मेवे का सेवन करना चाहिए.

बारबार थोड़ाथोड़ा खाएं: एक ही बार भरपेट खाने के बजाय, बारबार कम मात्रा में खाती रहें. इस से दिनभर ऊर्जा बनी रहेगी. भारी भोजन को पचाने के लिए ज्यादा ऊर्जा की जरूरत होती है. लेकिन इस समय मां की नींद पूरी नहीं हो पाती, जिस से भारी भोजन पचाना मुश्किल होता है, इसलिए हलका आहार लें ताकि शरीर में ऊर्जा का सही स्तर बना रहे और आप दिनभर थकान न महसूस करें.

डिहाइड्रेशन से बचें: बच्चे को जन्म देने के दौरान शरीर से तरल पदार्थ बहुत ज्यादा मात्रा में निकल जाते हैं, इसलिए इस दौरान हाइड्रेशन का खास ध्यान रखें. डिहाइड्रेशन से मां कमजोरी और थकान महसूस कर सकती है.

बच्चे के जन्म के बाद पोषण और वजन में कमी: बच्चे के जन्म के बाद अकसर महिलाएं एकदम अपना वजन कम करना चाहती हैं, जिस के कारण उचित आहार का सेवन नहीं करतीं. स्तनपान कराने से वजन खुद ही कम हो जाता है, बल्कि स्तनपान कराने वाली मां को रोजाना 300 अतिरिक्त कैलोरीज की जरूरत होती है. इसलिए डाक्टर की सलाह से व्यायाम करें और अतिरिक्त कैलोरीज के सेवन से बचें.

बच्चा न होने पर तनाव से गुजरते युवा

जब युवा पतिपत्नी अकेले रहते हैं और फिर उन के बच्चे नहीं होते तो वे  अस्पतालों के चक्कर लगाते हैं और तब बिना सासूमां के तानों के भी जीवन में तनाव रहता है. आज जीवन जीने के माने बदल गए हैं. युवा पतिपत्नी अपने अनुरूप स्वतंत्रतापूर्वक जीवन जीना पसंद करते हैं. मौजमस्ती और अपना अलग लाइफस्टाइल. न कोई पारिवारिक बंधन न कोई जिम्मेदारी और न ही किसी की दखलंदाजी. नौकरीपेशा जोड़े अपने परिवार से अलग अपनी दुनिया अपनी शर्तों पर बनाते हैं.

आजकल बच्चे जल्दी करने का चलन समाप्त हो गया है. शादी के बाद कुछ साल वे जिम्मेदारियों को ओढ़ना पसंद नहीं करते हैं. वे अपने कैरियर और मौजमस्ती में ऐसे उल?ाते हैं कि कई बार स्थितियों को नजरअंदाज करना उन के लिए हानिकारक भी सिद्ध होता है क्योंकि कैरियर के कारण बड़ी उम्र में शादी करना व बच्चे न होना हमारे आज के समय की बेहद गंभीर समस्या बन गई है. युवा जोड़ों का अकेले रहना व संतान न होना उन्हें तनाव से घेरने लगता है.

युवा जोड़ों के लिए इस तनाव से गुजरना बेहद चुनौतीपूर्ण होता है. इस का सीधा असर  पारिवारिक रिश्तों पर पड़ता है. पारिवारिक जिम्मेदारियों का नया अनुभव व तालमेल न बैठाना पतिपत्नी के रिश्तों में खटास पैदा कर रहा है.

संगीता व प्रवीण अपनी शादी के बाद अपने जीवन का खुल कर आनंद ले रहे थे. मौजमस्ती, ड्रिंक, लेट नाइट पार्टी करना उन के जीवन का हिस्सा था. कुछ समय बाद उन के दोस्तों के  बच्चे हुए तो उन का आपस में मिलना बंद हो गया.

दोस्त जब अपनी पारिवारिक जिंदगी में व्यस्त हो गए तब दोनों ने भी परिवार को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया. बेहद ऊर्जा के साथ उन्होंने कोशिश की लेकिन सफल नहीं हुए. कहते हैं न समय किसी के लिए नहीं रुकता. दोनों को एहसास हुआ कि देर न हो जाए. इसलिए आपसी सलाह कर के उन्होंने डाक्टर से कंसल्ट किया व अपना पूर्ण चैकअप कराया. डाक्टर ने दवा के साथ हिदायत व महीने के नियम बता कर उन की आशा बांध दी. दोनों सकारात्मक ऊर्जा से प्रयास करने लगे लेकिन कोशिशें नाकाम रहीं.

दिन महीनों में बीते व महीने साल में. अस्पताल के शुरू हुए चक्कर खत्म नहीं हुए. शहर के बैस्ट डाक्टर से मिले. दूसरे शहर में भी आईवीएफ तकनीक से प्रयास किया लेकिन सफलता हासिल नहीं हुई.

नियमित सैक्स से दोनों को सैक्स के प्रति ऊब होने लगी. बच्चा न होने का मानसिक तनाव बढ़ने लगा जिस का असर यह हुआ कि दोनों का एकदूसरे पर शिकायतों और आरोपों का दौर शुरू हो गया. कितने भी थके हों बात घूमफिर कर बच्चे पर ही अटक गई.

बच्चा न होने पर तनाव बढ़ने लगा जो किसी न किसी रूप में एकदूसरे पर तानों के रूप में बाहर आने लगा. दोनों को खीज हो रही थी. घर में स्वस्थ वातावरण की जगह माहौल बो?िल हो गया. सामान्य बात भी बच्चे पर आ कर रुक जाती. लोग क्या कहेंगे, समाज हमें बां?ा कहेगा. संगीता के मन में मां न बनने का दर्द इतना बढ़ गया कि उसे दोष प्रवीण में ही नजर आने लगा. मन में नकारात्मकता बढ़ने लगी. वह यूट्यूब, गूगल पर बच्चे होने के उपाय ढूंढ़ने लगी. प्रवीण को विरक्ति होने लगी.

अंत में थक कर प्रवीण ने संगीता से कहा कि अब बस करो मैं रोजरोज की किचकिच से थक गया हूं. कितने ताने देती हो? पैसा भी खूब खर्च हो रहा है. मैं भी तो तुम्हारे साथ वही दर्द ?ोल रहा हूं. तुम्हें घर वाले भी ताने नहीं मारते हैं फिर भी तुम ने जीवन में कितना क्लेश भर लिया है.

दबाव दोस्तों, रिश्तेदारों का सामाजिक दबाव एक बड़ी समस्या है क्योंकि हर सर्कल में अभी भी बच्चों का होना सामान्य माना जाता है. यहां तक कि परिवार और दोस्त भी इस विषय पर तनाव डाल सकते हैं. सामाजिक डर या बातों से अपने रिश्ते को तनाव में डालना उचित नहीं है.

राहुल और नेहा अपने परिवार से दूर दूसरे शहर दिल्ली में रहते हैं. शादी के 6 साल होने के बाद भी उन का कोई इशू नहीं हुआ. फिर घर वालों व दोस्तों ने उन्हें बच्चे के लिए छेड़ना शुरू कर दिया कि परिवार आगे बढ़ाओ. यहां तक कि पड़ोसी भी जब मिलते हंस कर यही कहते.

नेहा हंस कर बात को टालने लगी. एक बार उस की दोस्त ने इस बारे में उस से कहा, ‘‘उम्र बढ़ जाएगी तो इशू में प्रौब्लम आ सकती है.’’

तब उस ने बताया कि राहुल को बच्चे पसंद नहीं हैं, इसलिए मैं पड़ोसी के बच्चों के साथ खेल कर ऐंजौय कर लेती हूं.

अब परिवार वालों ने भी बोलना छोड़ दिया लेकिन उन की दिनचर्या में नीरसता आने लगी. बच्चे की चाहत मन में कुलबुलाने लगी, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. उन्होंने बेबी प्लान करने के लिए डाक्टर से बात की. लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. जीवन में तनाव बढ़ने लगा व स्वास्थ बिगड़ने लगा.

बच्चे की चाहत में बढ़ते मानसिक तनाव से चेहरे की रौनक गायब हो गई. डाक्टर की दिनचर्या के अनुसार उन्हें कंसीव के लिए कुछ विशेष दिन प्रयास करना था. लेकिन राहुल थकने लगा. रोजरोज वही बातें व काम. मन से थकी नेहा को उबकाई होने लगी. आपस में ही आरोपों और तानों के दौर शुरू हो गए. दोनों हीनभावना से ग्रस्त होने लगे कि उन्हें शारीरिक दोष है. पंडित व अंधविश्वास का नया अध्याय उन की जिंदगी में पसरने लगा. मां बनना हर लड़की का स्वप्न होता है. यह खूबसूरत रिश्ता है.

लोगों की बातों से बचने के लिए दोनों ने सामाजिक जीवन जीना ही बंद कर दिया. सब से दूर वे अपने तनाव व निराशा से लड़ने लगे. अच्छे से रहना छूट गया, सजनासंवरना तो दूर चेहरे पर गहन चिंता के भाव उन्हें खुद से विरक्त करने लगा.

आर्थिक प्रैशर व संबंधों का दबाव बच्चे पालने में आर्थिक दबाव भी होता है. शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और अन्य आर्थिक जिम्मेदारियों के लिए पैसे का अभाव एक तनाव स्रोत बन सकता है.

अनु व मयंक दोनों मुंबई में रहते हैं. दोनों प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते हैं. दोनों की पगार ठीक है लेकिन महानगरों के खर्चे भी कम नहीं होते. ऐसे में बच्चा करना उन के ऊपर आर्थिक समस्या को बढ़ा सकता है. घर वाले भी साथ नहीं रहते हैं. पहले वे बच्चे के लिए प्रयास नहीं कर रहे थे और जब करना शुरू किया तब तक बहुत देर हो चुकी थी.

बच्चे न होने पर संबंधों में तनाव भी हो सकता है और यह समस्या पतिपत्नी के बीच खटास का कारण भी बन सकती है. उन्होंने अपने दोस्तों से मिलना बंद कर दिया. मन से सुकून गायब हो गया और डिप्रैशन होने लगा.

आज 50त्न युवा जोड़े इस समस्या से जू?ा रहे हैं. इस का कारण देर से शादी होना व असंतुलित लाइफस्टाइल ही है. आजकल की जीवनशैली ही इन्फर्टिलिटी का सब से बड़ा कारण है

डाक्टर हर्षा का कहना है कि यह तनाव  ही जीवन में हर समस्या की जड़ है. यदि तनमन से स्वस्थ रहेंगे तो हैप्पी हारमोन रिलीज होंगे जो 4 और × क्रोमोसोम मिलन में सहायक सिद्ध होते हैं. तनाव से प्रजनन क्षमता में कमी आती है. इस से महिलाओं में ऐंडोमिट्रिओसिस हो सकता है, जो प्रजनन में बाधा का कारण बनता है.

तनाव से शरीर के अन्य और्गन भी प्रभावित होते हैं. पर्याप्त नींद लेना भी बहुत जरूरी है. नींद के अभाव से शरीर में थकान होती है. वहीं पुरुषों में नींद की कमी से शुक्राणुओं की संख्या भी कम होती है. तीव्र तनाव हारमोंस को बाधित करता है. तनाव हमारे शरीर में कार्टिसोल को बढ़ाता है जिस से कई बीमारियां हो सकती हैं.

इस तनाव से निबटने के लिए सकारात्मक कदम उठाना जरूरी है. युवा जोड़ों को इस बात का खास खयाल रखना चाहिए. हो सकता है बच्चे न होने का मुख्य कारण तनाव ही हो.

जरूरी नहीं कि हर जोड़े को बच्चे होते हैं. हमारे पास ऐसे कई उदाहरण हैं. जानेमाने सैलिब्रिटीज भी इस समस्या से गुजर चुके हैं फिर भी उन्होंने अपना जीवन सकारात्मक तरीके से जीया है.

सितारे व सफल जोड़े जिन्हें बच्चे नहीं हुए या किसी कारण से उन्होंने बच्चे नहीं किए. कहते हैं यदि शादी के बाद बच्चे नहीं हुए तो रिश्तों में दरार आ जाती है. लेकिन बौलीवुड में कई सैलिब्रिटीज जोड़े ऐसे हैं, जिन के खुद के बच्चे नहीं हैं या फिर उन्होंने बच्चा चाहा ही नहीं. बच्चे के नहीं होने के बावजूद इन की जिंदगी एकदूसरे के प्रति प्यार, सम्मान और हमेशा साथ निभाने की चाहत से भरी हुई है.

दिलीप कुमार और सायराबानो जिन्होंने मिल कर अपनी जिंदगी की इस स्थिति का सामना किया है. इसी तरह जावेद अख्तर और शबाना आजमी जिन के खुद के बच्चे नहीं हैं लेकिन फिर भी उन के जीवन में कोई खालीपन नहीं है. हालांकि जावेद अख्तर को उन की पहली पत्नी हिना ईरानी से 2 बच्चे हुए. अनुपम खेर और किरण खेर अपनी पहली असफल शादी के बाद मिले. लेकिन इन्हें बच्चा नहीं हुआ. मीना कुमारी और कमल अमरोही, साधनाआरके नैयर, मधुबालाकिशोर कुमार, आशा भोसले व आर डी वर्मन ऐसे कई नामचीन नाम हैं जिन्होंने या तो बच्चे नहीं किए या किसी कारण से उन के बच्चे नहीं हुए. कहने का तात्पर्य यह है कि बिना बच्चों के भी इन की जिंदगी में खालीपन नहीं आया,  अपितु जीवन को समर्पित भाव से जीया है. कई ऐसे सितारे हैं जिन्होंने बच्चा गोद लिया और जीवन की दिशा बदल दी.

तनाव कैसे ?ोलें

सम?ों और बातचीत करें:  सब से पहले पतिपत्नी की इस समस्या को सम?ाने का प्रयास करें व एकदूसरे के भावनाओं का खयाल रखते हुए खुल कर बात करें. बातचीत करते समय ध्यान रखें कि इस ही टौपिक पर बात न की जाए एकदूसरे के साथ क्वालिटी समय भी बिताएं. बाहर घूमने जाएं लोगों से मिलें. ऐसे काम करें जिन से आप को खुशी मिलती हो. हंसतेमुसकराते रहें जिस से सेहत पर अच्छा असर होगा. हंसनामुसकराना आप की सेहत पर सकारात्मक असर डालता है.

हैल्थ का ध्यान रखें: यदि तनाव से मुक्त नहीं हो पा रहे हैं तो डाक्टर से मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी सहायता ले सकते हैं. खानपान व समय का विशेष ध्यान रखें. अच्छा खानपान और अच्छी सोच आप को तनाव से बाहर ले आएगी.

आपसी समर्थन व सहायता: अपने परिवार और दोस्तों से सहायता लेना भी मददगार हो सकता है. अपने परिवार के बड़े लोगों का अनुभव भी आप के काम आ सकता है जिस से आप तनावमुक्त हो सकते हैं. परिवार व दोस्तों का साथ आप में सकारात्मकता ला सकता है. हीनभावना से ग्रस्त न हों. यदि आप अपने शहर से बहुत दूर रहते हैं तो फोन पर ही अपने घर के बच्चों से बातचीत करने की कोशिश करें. बच्चों का साथ तनाव से मुक्त करता है.

आपसी रोमांटिक जीवन: बच्चों के बिना भी सुखमय और संतोषपूर्ण जीवन जी सकते हैं. एकदूसरे के साथ अच्छा समय व्यतीत करें, बाहर घूमने जाएं, अच्छी किताबें पढ़ें जिस से मन सकारात्मक होगा. बच्चा नहीं है तो आपसी रिश्ता खराब न होने दें. पतिपत्नी को एकदूसरे के साथ समय बिताने का अधिक समय मिलता है.

स्वास्थ्य की देखभाल: स्वास्थ्य का ध्यान रखना भी महत्त्वपूर्ण है. ध्यान करने और सांस को नियंत्रित करने से तनाव का एहसास कम हो जाता है और बेतुके खयाल आना बंद हो जाते हैं. इस से रक्तचाप भी घटता है. योग व मैडिटेशन करें. खानपान का विशेष ध्यान रखें. वाइन का जहर अपने जीवन में न घोलें. तनाव से बचने के लिए ड्रग का सहारा न लें. डाक्टर से सलाह ले कर अपने स्वास्थ्य संबंधित सु?ावों का पालन करें. ऐसे लोगों से ज्यादा मिलेजुलें जिन के बच्चे नहीं हैं.

यदि आप के आसपास बच्चे हैं या ऐसा कोई क्लब है तो आप उसे जौइन कर सकते हैं क्योंकि बच्चों के साथ तनाव दूर होता है. अपने करीबी दोस्तों या पड़ोसियों के साथ मधुर संबंध रखें, मेलजोल बढ़ाएं.

मेरे घुटनों में बहुत तेज दर्द और जकड़न होती है, क्या करूं?

सवाल

मैं 38 वर्षीय आईटी प्रोफैशनल हूं. जब मैं औफिस में बैठती हूं तब भी मेरे घुटनों में बहुत तेज दर्द और जकड़न होती है. मुझे जिम जाने और वर्कआउट करने का समय कभीकभी ही मिल पाता है. मैं ने घुटनों के दर्द के लक्षणों की खोज की तो पाया कि घुटनों का आर्थ्राइटिस 30 वर्ष की प्रारंभिक अवस्था और 40 वर्ष की उम्र में आम समस्या है. क्या आप घुटनों के आर्थ्राइटिस को दूर रखने में जीवनशैली में बदलाव की जरूरत पर और ज्यादा विस्तार से प्रकाश डाल सकते हैं? वे बेसिक चीजें कौन सी हैं, जिनसे मैं अपने घुटनों को दुरुस्त रख सकता हूं और दर्द की समस्या से छुटकारा पा सकता हूं?

जवाब

मैं आप को डाक्टर से सलाह लेने और घुटनों का उचित इलाज कराने की सलाह दूंगा. इंटरनैट पर देख कर खुद अपना इलाज करने से आप को गलत जानकारी मिल सकती है और आप की हालत बिगड़ सकती है. अपने घुटनों को स्वस्थ रखने के लिए आप को जिम में जाने और बहुत ज्यादा देर तक नहीं बैठना है और समयसमय पर ब्रेक ले कर हलकाफुलका व्यायाम करना है.

किसी भी तरह का हलका व्यायाम जैसे 30 मिनट तक चलने और एस्केलेटर की जगह सीढि़यों से आनेजाने से आप को घुटनों के दर्द से काफी आराम मिल सकता है. सब से ज्यादा महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अगर आप का वजन ज्यादा है तो यह आप के घुटनों का मजबूत रखने में सब से बड़ी रुकावट है.

मुक्ति: जया ने आखिर अपनी जिंदगी में क्या भुगता

अचानक जया की नींद टूटी और वह हड़बड़ा कर उठी. घड़ी का अलार्म शायद बजबज कर थक चुका था. आज तो सोती रह गई वह. साढ़े 6 बज रहे थे. सुबह का आधा समय तो यों ही हाथ से निकल गया था.

वह उठी और तेजी से गेट की ओर चल पड़ी. दूध का पैकेट जाने कितनी देर से वैसे ही पड़ा था. अखबार भी अनाथों की तरह उसे अपने समीप बुला रहा था.

उस का दिल धक से रह गया. यानी आज भी गंगा नहीं आएगी. आ जाती तो अब तक एक प्याली गरम चाय की उसे नसीब हो गई होती और वह अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो जाती. उसे अपनी काम वाली बाई गंगा पर बहुत जोर से खीज हो आई. अब तक वह कई बार गंगा को हिदायत दे चुकी थी कि छुट्टी करनी हो तो पहले बता दे. कम से कम इस तरह की हबड़तबड़ तो नहीं रहेगी.

वह झट से किचन में गई और चाय का पानी रख कर बच्चों को उठाने लगी. दिमाग में खयाल आया कि हर कोई थोड़ाथोड़ा अपना काम निबटाएगा तब जा कर सब को समय पर स्कूल व दफ्तर जाने को मिलेगा.

नल खोला तो पाया कि पानी लो प्रेशर में दम तोड़ रहा?था. उस ने मन ही मन हिसाब लगाया तो टंकी को पूरा भरे 7 दिन हो गए थे. अब इस जल्दी के समय में टैंकर को भी बुलाना होगा.  उस ने झंझोड़ते हुए पति गणेश को जगाया, ‘‘अब उठो भी, यह चाय पकड़ो और जरा मेरी मदद कर दो. आज गंगा नहीं आएगी. बच्चों को तैयार कर दो जल्दी से. उन की बस आती ही होगी.’’

पति गणेश उठे और उठते ही नित्य कर्मों से निबटने चले गए तो पीछे से जया ने आवाज दी, ‘‘और हां, टैंकर के लिए भी जरा फोन कर दो. इधर पानी खत्म हुआ जा रहा है.’’

‘‘तुम्हीं कर दो न. कितनी देर लगती है. आज मुझे आफिस जल्दी जाना है,’’ वह झुंझलाए.

‘‘जैसे मुझे तो कहीं जाना ही नहीं है,’’ उस का रोमरोम गुस्से से भर गया. पति के साथ पत्नी भले ही दफ्तर जाए तब भी सब घरेलू काम उसी की झोली में आ गिरेंगे. पुरुष तो बेचारा थकहार कर दफ्तर से लौटता है. औरतें तो आफिस में काम ही नहीं करतीं सिवा स्वेटर बुनने के. यही तो जब  तब उलाहना देते हैं गणेश.

कितनी बार जया मिन्नतें कर चुकी थी कि बच्चों के गृहकार्य में मदद कर दीजिए पर पति टस से मस नहीं होते थे, ऊपर से कहते, ‘‘जया यार, हम से यह सब नहीं होता. तुम मल्टी टास्किंग कर लेती हो, मैं नहीं,’’ और वह फिर बासी खबरों को पढ़ने में मशगूल हो जाते.

मनमसोस कर रह जाती जया. गणेश ने उस की शिकायतों को कुछ इस तरह लेना शुरू कर दिया?था जैसे कोई धार्मिक प्रवचन हों. ऊपर से उलटी पट्टी पढ़ाता था उन का पड़ोसी नाथन जो गणेश से भी दो कदम आगे था. दोनों की बातचीत सुन कर तो जया का खून ही खौल उठता था.

‘‘अरे, यार, जैसे दफ्तर में बौस की डांट नहीं सुनते हो, वैसे ही बीवी की भी सुन लिया करो. यह भी तो यार एक व्यावसायिक संकट ही है,’’ और दोनों के ठहाके से पूरा गलियारा गूंज उठा?था.

जया के तनबदन में आग लग आई थी. क्या बीवीबच्चों के साथ रहना भी महज कामकाज लगता?था इन मर्दों को. तब औरतों को तो न जाने दिन में कितनी बार ऐसा ही प्रतीत होना चाहिए. घर संभालो, बच्चों को देखो, पति की फरमाइशों को पूरा करो, खटो दिनरात अरे, आक्यूपेशन तो महिलाओं के लिए है. बेचारी शिकायत भी नहीं करतीं.

जैसेतैसे 4 दिन इसी तरह गुजर गए. गंगा अब तक नहीं लौटी थी. वह पूछताछ करने ही वाली थी कि रानी ने कालबेल बजाते हुए घर में प्रवेश किया.

‘‘बीबीजी, गंगा ने आप को खबर करने के लिए मुझ से कहा था,’’ रानी बोली, ‘‘वह कुछ दिन अभी और नहीं आ पाएगी. उस की तबीयत बहुत खराब है.’’

रानी से गंगा का हाल सुना तो जया उद्वेलित हो उठी.  यह कैसी जिंदगी थी बेचारी गंगा की. शराबी पति घर की जिम्मेदारियां संभालना तो दूर, निरंतर खटती गंगा को जानवरों की तरह पीटता रहता और मार खाखा कर वह अधमरी सी हो गई थी.

‘‘छोड़ क्यों नहीं देती गंगा उसे. यह भी कोई जिंदगी है?’’ जया बोली.

माथे पर ढेर सारी सलवटें ले कर हाथ का काम छोड़ कर रानी ने एकबारगी जया को देखा और कहने लगी, ‘‘छोड़ कर जाएगी कहां वह बीबीजी? कम से कम कहने के लिए तो एक पति है न उस के पास. उसे भी अलग कर दे तो कौन करेगा रखवाली उस की? आप नहीं जानतीं मेमसाहब, हम लोग टिन की चादरों से बनी छतों के नीचे झुग्गियों में रहते हैं. हमारे पति हैं तो हम बुरी नजर से बचे हुए हैं. गले में मंगलसूत्र पड़ा हो तो पराए मर्द ज्यादा ताकझांक नहीं करते.’’

अजीब विडंबना थी. क्या सचमुच गरीब औरतों के पति सिर्फ एक सुरक्षा कवच भर ?हैं. विवाह के क्या अब यही माने रह गए? शायद हां, अब तो औरतें भी इस बंधन को महज एक व्यवसाय जैसा ही महसूस करने लगी हैं.

गंगा की हालत ने जया को विचलित कर दिया था. कितनी समझदार व सीधी है गंगा. उसे चुपचाप काम करते हुए, कुशलतापूर्वक कार्यों को अंजाम देते हुए जया ने पाया था. यही वजह थी कि उस की लगातार छुट्टियों के बाद भी उसे छोड़ने का खयाल वह नहीं कर पाई.

रानी लगातार बोले जा रही थी. उस की बातों से साफ झलक रहा?था कि गंगा की यह गाथा उस के पासपड़ोस वालों के लिए चिरपरिचित थी. इसीलिए तो उन्हें बिलकुल अचरज नहीं हो रहा था गंगा की हालत पर.

जया के मन में अचानक यह विचार कौंध आया कि क्या वह स्वयं अपने पति को गंगा की परिस्थितियों में छोड़ पाती? कोई जवाब न सूझा.

‘‘यार, एक कप चाय तो दे दो,’’ पति ने आवाज दी तो उस का खून खौल उठा.

जनाब देख रहे हैं कि अकेली घर के कामों से जूझ रही हूं फिर भी फरमाइश पर फरमाइश करे जा रहे हैं. यह समझ में नहीं आता कि अपनी फरमाइश थोड़ी कम कर लें.

जया का मन रहरह कर विद्रोह कर रहा था. उसे लगा कि अब तक जिम्मेदारियों के निर्वाह में शायद वही सब से अधिक योगदान दिए जा रही थी. गणेश तो मासिक आय ला कर बस उस के हाथ में धर देता और निजात पा जाता. दफ्तर जाते हुए वह रास्ते भर इन्हीं घटनाक्रमों पर विचार करती रही. उसे लग रहा था कि स्त्री जाति के साथ इतना अन्याय शायद ही किसी और देश में होता हो.

दोपहर को जब वह लंच के लिए उठने लगी तो फोन की घंटी बज उठी. दूसरी ओर सहेली पद्मा थी. वह भी गंगा के काम पर न आने से परेशान थी. जैसेतैसे संक्षेप में जया ने उसे गंगा की समस्या बयान की तो पद्मा तैश में आ गई, ‘‘उस राक्षस को तो जिंदा गाड़ देना चाहिए. मैं तो कहती हूं कि हम उसे पुलिस में पकड़वा देते हैं. बेचारी गंगा को कुछ दिन तो राहत मिलेगी. उस से भी अच्छा होगा यदि हम उसे तलाक दिलवा कर छुड़वा लें. गंगा के लिए हम सबकुछ सोच लेंगे. एक टेलरिंग यूनिट खोल देंगे,’’ पद्मा फोन पर लगातार बोले जा रही थी.

पद्मा के पति ने नौकरी से स्वैच्छिक अवकाश प्राप्त कर लिया था और घर से ही ‘कंसलटेंसी’ का काम कर रहे थे. न तो पद्मा को काम वाली का अभाव इतनी बुरी तरह खलता था, न ही उसे इस बात की चिंता?थी कि सिंक में पड़े बर्तनों को कौन साफ करेगा. पति घर के काम में पद्मा का पूरापूरा हाथ बंटाते थे. वह भी निश्चिंत हो अपने दफ्तर के काम में लगी रहती. वह आला दर्जे की पत्रकार थी. बढि़या बंगला, ऐशोआराम और फिर बैठेबिठाए घर में एक अदद पति मैनसर्वेंट हो तो भला पद्मा को कौन सी दिक्कत होगी.

वह कहते हैं न कि जब आदमी का पेट भरा हो तो वह दूसरे की भूख के बारे में भी सोच सकता?है. तभी तो वह इतने चाव से गंगा को अलग करवाने की योजना बना रही थी.

पद्मा अपनी ही रौ में सुझाव पर सुझाव दिए जा रही थी. महिला क्लब की एक खास सदस्य होने के नाते वह ऐसे तमाम रास्ते जया को बताए जा रही थी जिस से गंगा का उद्धार हो सके.

जया अचंभित थी. मात्र 4 घंटों के अंतराल में उसे इस विषय पर दो अलगअलग प्रतिक्रियाएं मिली थीं. कहां तो पद्मा तलाक की बात कर रही?थी और उधर सुबह ही रानी के मुंह से उस ने सुना था कि गंगा अपने ‘सुरक्षाकवच’ की तिलांजलि देने को कतई तैयार नहीं होगी. स्वयं गंगा का इस बारे में क्या कहना होगा, इस के बारे में वह कोई फैसला नहीं कर पाई.

जब जया ने अपना शक जाहिर किया तो पद्मा बिफर उठी, ‘‘क्या तुम ऐसे दमघोंटू बंधन में रह पाओगी? छोड़ नहीं दोगी अपने पति को?’’

जया बस, सोचती रह गई. हां, इतना जरूर तय था कि पद्मा को एक ताजातरीन स्टोरी अवश्य मिल गई थी.

महिला क्लब के सभी सदस्यों को पद्मा का सुझाव कुछ ज्यादा ही भा गया सिवा एकदो को छोड़ कर, जिन्हें इस योजना में खामियां नजर आ रही थीं. जया ने ज्यादातर के चेहरों पर एक अजब उत्सुकता देखी. आखिर कोई भी क्यों ऐसा मौका गंवाएगा, जिस में जनता की वाहवाही लूटने का भरपूर मसाला हो.

प्रस्ताव शतप्रतिशत मतों से पारित हो गया. तय हुआ कि महिला क्लब की ओर से पद्मा व जया गंगा के घर जाएंगी व उसे समझाबुझा कर राजी करेंगी.

गंगा अब तक काम पर नहीं लौटी थी. रानी आ तो रही?थी, पर उस का आना महज भरपाई भर था. जया को घर का सारा काम स्वयं ही करना पड़ रहा था. आज तो उस की तबीयत ही नहीं कर रही थी कि वह घर का काम करे. उस ने निश्चय किया कि वह दफ्तर से छुट्टी लेगी. थोड़ा आराम करेगी व पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार पद्मा को साथ ले कर गंगा के घर जाएगी, उस का हालचाल पूछने. यह बात उस ने पति को नहीं बताई. इस डर से कि कहीं गणेश उसे 2-3 बाहर के काम भी न बता दें.

रानी से बातों ही बातों में उस ने गंगा के घर का पता पूछ लिया. जब से महिला मंडली की बैठक हुई थी, रानी तो मानो सभी मैडमों से नाराज थी, ‘‘आप पढ़ीलिखी औरतों का तो दिमाग चल गया है. अरे, क्या एक औरत अपने बसेबसाए घर व पति को छोड़ सकती है? और वैसे भी क्या आप लोग उस के आदमी को कोई सजा दे रहे हो? अरे, वह तो मजे से दूसरी ले आएगा और गंगा रह जाएगी बेघर और बेआसरा.’’

40 साल की रानी को हाईसोसाइटी की इन औरतों पर निहायत ही क्रोध आ रहा था.

टिन के उस जंगल में गंगा का घर खोजना तो सचमुच कुछ ऐसा ही था जैसे भूसे के ढेर में सूई ढूंढ़ना. बेतरतीब झोंपड़े, इधरउधर भागते बच्चों की टोलियां, उन्हें झिड़कती हुई माताओं को पार कर के उस के छोटे से एक कमरे वाले घर को तलाशने में ही पद्मा व जया की हालत खराब हो गई.

गंगा को उस ने अपनी खोली के एक अंधेरे कोने में दुबका हुआ पाया. चेहरे पर खरोंच यह बता रहे थे कि इस बार मरम्मत कुछ ज्यादा ही अच्छी तरह से हुई थी. जया उस की खस्ता हालत को देख कर अचंभित तो थी ही, उस के जर्जर शरीर को देख कर उसे गहरा दुख भी हुआ.

उन्हें देख कर गंगा जल्दी से उठने लगी तो जया ने उसे हाथ बढ़ा कर रोक दिया.

‘‘बैठी रहो, गंगा,’’ उस ने आत्मीयता से कहा, ‘‘वैसे ही तुम्हारी हालत काफी नाजुक लग रही है.’’

1 मिनट का असाधारण मौन छा गया और फिर गंगा उन के लिए चाय बनाने उठी. लाख मना करने पर भी मानी नहीं.

चाय की चुसकियां लेते हुए जया व पद्मा ने बाहर कुछ आहट सुनी. पदचाप बाहर की ओर से आ रही थी. गंगा फुरती से उठी और 1 मिनट बाद लौटी, ‘‘मेरे पति हैं,’’ उस ने धीमी आवाज में कहा.

पद्मा तो मानो इसी घड़ी की प्रतीक्षा में थी. वह तुरंत उठी व पल्लू खोंसते हुए तेजी से बाहर की ओर रुख करने लगी. गंगा ने हाथ बढ़ा कर उसे रोक लिया और दयनीय स्वर में बोली, ‘‘उसे कुछ मत कहना, बीबीजी.’’

जया ने महसूस किया कि गंगा का पति नशे की हालत में ऊलजुलूल बड़बड़ा रहा?था. 1 मिनट बाद चारपाई पर उस के ढेर होने की आवाज आई.

‘‘लगता है सो गया,’’ गंगा मुसकरा कर बोली, ‘‘अब 3-4 घंटे बेसुध पड़ा रहे तो मैं अपना बचाखुचा काम भी समेट लूं.’’

जया को उस बेचारी पर तरस आया कि इस हालत में भी वह घर संभालने में लगी हुई थी और उस का पति आराम से चारपाई तोड़ रहा था. जया को लगा कि वह और पद्मा गंगा के दैनिक कार्यों में बाधा उत्पन्न कर रही हैं. लौटने के उद्देश्य से उस ने गंगा की ओर देखा, ‘‘गंगा, अपना खयाल रखना, बता देना कब लौटोगी.’’

जया ने पद्मा की ओर कनखियों से इशारा किया.

पद्मा तो जैसे भरी बैठी थी, ‘‘रुक भी जाओ, भूल गईं, किसलिए आए?थे यहां,’’ दांत भींचते हुए उस ने जया के हाथ से अपना हाथ छुड़ाया व गंगा की ओर मुखातिब हुई.

गंगा के चेहरे पर उस समय भाव कुछ ऐसे थे जैसे उसे अंदेशा हो गया था कि आगे क्या होगा. रानी ने शायद उसे पहले ही आगाह कर दिया था.

जया कहने लगी, ‘‘फिर कभी, आज नहीं.’’

दरअसल, वह यह नहीं समझ पा रही थी कि क्या यह सही वक्त था गंगा से तलाक के विषय में बात करने का. उस की कमजोर हालत जया को सोचने पर मजबूर कर रही थी.

‘‘नहीं, आज ही. मुझे क्यों रोक रही हो तुम,’’ पद्मा क्रोधित स्वर में जया से बोली, फिर वह गंगा से मुखातिब हुई, ‘‘देखो गंगा, अब और इस हालत से जूझते रहने का फायदा नहीं. क्या तुम्हें नहीं लग रहा कि तुम एक फटेहाल जिंदगी जी रही हो? क्या मिल रहा?है तुम्हें अपने पति से सिवा मारपीट व गालीगलौज के? तुम ने कभी सोचा नहीं कि उस आदमी को छोड़ कर तुम ज्यादा सुखी रहोगी? अपनी जिंदगी के बारे में भी सोचो कुछ.’’

पद्मा की उद्वेग के मारे सांस फूल रही थी और वह लगातार गंगा को प्रेरित करती रही कि ऐसा निरीह जीवन जीने की उसे कोई आवश्यकता नहीं थी.

गंगा शांति से उन की बात सुन रही थी. पद्मा का रोष थोड़ा ठंडा हुआ, ‘‘देखो गंगा, अगर तुम चाहो तो हम तुम्हारे जीवनयापन के लिए कुछ न कुछ इंतजाम कर ही लेंगे. तुम्हारे लिए एक छोटी सी टेलरिंग यूनिट खोल देंगे. तुम निश्चय तो करो.’’

‘‘मैं ने सब सुना?है बीबीजी. रानी तो रोज आ कर आप लोगों की बातें बताती ही रहती है. पर नहीं. मुझे इन चीजों की जरूरत नहीं.

‘‘बिलकुल भी नहीं,’’ पद्मा ने आपत्ति उठाने के लिए मुंह बस खोला ही था कि बाहर से तेज अस्पष्ट आवाजें सुनाई देने लगीं.

इस से पहले कि जया और पद्मा कुछ समझतीं कि माजरा क्या है, गंगा बाहर भाग चुकी थी. उस के हाथ में 2 बड़ी बालटियां थीं. बाहर से लोगों की आवाजें दस्तक दे रही थीं, ‘‘टैंकर आ गया, टैंकर आ गया.’’

महानगर निगम के पानी का टैंकर पहुंच गया था. लोगों की अपार भीड़ एकत्र हो रही थी. जया व पद्मा बाहर आ कर नजारा देखने लगीं. यह समस्या तो इस शहर में कमज्यादा सभी तबकों की थी. आदमी सांस लेना भूल जाए पर टैंकर की आहट को नजरअंदाज कभी न कर पाए.

महिलाओं व पुरुषों की भीड़ गुत्थमगुत्था हो रही थी. टैंकर के सामने घड़ों, बरतनों, बालटियों की बेतरतीब कतारें लग गई थीं. जया की आंखें उस भीड़ में गंगा को ढूंढ़ने लगीं. उस ने पाया कि गंगा अपनी बीमारी को लगभग भूल कर लोगों से उलझ कर 2 बालटी पानी भर लाई?थी. घर के अहाते तक आतेआते उस का शरीर पसीने से भीग चुका था. माथे पर कुमकुम का निशान भीग कर अर्धकार हो गया था. जयाचंद्रा ने सहारा देने के उद्देश्य से उस से एक बालटी लेने की कोशिश की.

‘‘नहीं, नहीं, बीबीजी. मैं संभाल लूंगी,’’ उस ने जया का हाथ छुड़ाया और पति की ओर इंगित करने लगी, ‘‘यह निखट्टू भी तो है. अभी जगाती हूं इसे,’’ यह कहते हुए गंगा ने अपने दांत भींचे व अंदर की ओर भागी. लौटी तो उस के हाथों में 2 बालटियां और थीं. दोनों बालटियां उस ने आंगन के कोने में रखीं, कमर कस कर पति की चारपाई के करीब जा खड़ी हुई. जया डर रही थी कि जगाने पर वह निर्दयी गंगा के साथ न जाने कैसा सलूक करेगा. अलसाया सा, आधी नींद में वह बड़बड़ा रहा था.

और फिर वह अचंभा हुआ जिस की जया को कतई उम्मीद नहीं थी. गंगा ने चारपाई पर बेहोश पड़े पति को एक जोरदार लात मारी. मार के सदमे से वह हड़बड़ा कर उठ बैठा. आंखें मींचता हुआ वह जायजा लेने लगा कि गाज कहां से गिरी.

‘‘उठ रे, शराबी,’’ गंगा ने दहाड़ मारी, ‘‘अभी नींद पूरी नहीं हुई या दूं मैं एक और लात.’’

वह आदमी धोती संभालता हुआ उठ खड़ा हुआ. 2 आगंतुक महिलाओं के सामने पिटने का एहसास जब हुआ तो बहुत देर हो चुकी थी. गंगा एक और लात जमाने के लिए तैयार खड़ी थी. लड़खड़ाए हुए पति के हाथ में उस ने बालटियां थमाईं और फरमान जारी किया, ‘‘जा, भर ला पानी, कमबख्त.’’

वह डगमगाता हुआ जब डोलने लगा तो गंगा ने 2 तमाचे और जड़ दिए, ‘‘अब जाता है कि…’’ और इसी के साथ दोचार मोटीमोटी गालियां भी पति के हिस्से में आ गईं.

जया व पद्मा अवाक् खड़ी थीं. उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि अभी जिस महिषासुरमर्दिनी को उन्होंने देखा था यह वही छुईमुई सी गंगा थी, जिसे वे चुपचाप घर का काम निबटाते हुए देखा करती थीं. यह कैसा अनोखा रूप था उस का. मुंह खुला का खुला रह गया. होश आया तो पाया कि गंगा आसपास कहीं नहीं थी. वह फिर उसी रेले में शामिल हो गई थी. जीजान से अन्य महिलाओं से लड़ती हुई अपने हिस्से के जल को बालटियों में भरते हुए. महिलाएं एकदूसरे पर हावी हो रही थीं और उन की कर्कश आवाजों से वातावरण गूंज रहा था.

वे दोनों तब तक सन्न खड़ी रहीं जब तक गंगा घर में दोबारा आ नहीं गई. उन की फटी नजरों को भांपते हुए गंगा ने एक शर्मीली मुसकान बिखेरी.

‘‘गंगा, यह तुम थीं?’’ आवाज पद्मा के हलक से पहले निकली.

जया भी मुग्ध भाव से उसे देखे जा रही थी.

‘‘हां, बीबीजी, यह सब तो चलता रहता है. इसे मैं दोचार जमाऊंगी नहीं तो कैसे चलेगा. वह मुझ पर हाथ उठाता?है तो मैं भी उसे पीटने में कोई कसर नहीं छोड़ती,’’ वह कुछ ऐसे बोल रही थी जैसे किसी शैतान बच्चे को राह पर लाने का नुस्खा समझा रही हो, ‘‘जब मैं चाहती हूं तब कमान अपने हाथ में ले लेती हूं,’’ झांसी की रानी जैसे भाव थे उस के चेहरे पर, ‘‘मैं जानती हूं बीबीजी, आप सब लोग हमारा?भला चाहती हैं. पर मुझे नहीं चाहिए यह तलाकवलाक. जरूरत नहीं है मुझे. मैं अपने तरीकों से इसे ‘लाइन’ पर ले आती हूं,’’ वह मुसकराती हुई बोली, ‘‘कभीकभी कड़वी दवा पिला ही देती हूं मैं इसे. मिमियाता हुआ वापस आ जाता है बकरी की तरह. और किस के पास जाएगा. आना तो शाम को इसी घर में है न? जब होश आता है तो गलती का एहसास भी हो जाता है इसे. पता है इसे कि मेरे बगैर इस का गुजारा नहीं.’’

गंगा ने शायद अपने पति पर पूरा अनुसंधान कर रखा था. अब मानो वह उन्हें उस की रिपोर्ट पढ़ा रही हो. जया को लगा वाकई जीवन की बागडोर गंगा ने कुछ अपने तरीके से संभाली हुई थी. शायद उन से बेहतर प्रचारक थी वह नारी मुक्ति की. शायद प्रचार करने की आवश्यकता भी नहीं थी गंगा को. उस के तरीके बेहद सरल व प्रायोगिक थे. उस ने देखा गंगा एकदम सहज भाव से बतियाए जा रही थी. उसे इस बात की कोई चिंता नहीं थी कि उस के इस रवैये पर अन्य लोगों की क्या प्रतिक्रिया रहेगी. इस बीच कब गंगा का पति शरमाता हुआ लौटा व एक सेट बरतन और ले गया पानी भर लाने के लिए, इस की उन्हें सुध न रही.

जया व पद्मा अचंभित हालत में अपने वाहन की ओर बढ़ रही थीं. एक अजब खामोशी छाई हुई थी दोनों के बीच में. जाहिर था, दोनों ही गंगा व उस के पति के बारे में सोच रही थीं. जया को लगा कि शायद उन का क्लब वाला प्रस्ताव बेहद बेतुका था. कनखियों से उस ने पद्मा की ओर देखा जो कुछ ऐसी ही उधेड़बुन में लिप्त थी.

भारतीय परिवारों में एक अनोखा ही समीकरण था पतिपत्नी के बीच में. कभी किसी का पलड़ा भारी रहा तो कभी किसी का. क्या यही वजह नहीं थी पद्मा व उस के पति ने आपसी सामंजस्य से अपनी जिम्मेदारियों को आपस में बदल लिया था. सब लोग अपनी आपसी उलझनों का कुछ अपने तरीके से ही हल ढूंढ़ लेते हैं. गंगा ने भी शायद कुछ ऐसा ही कर लिया था.

गाड़ी में जब पद्मा निश्चल सी बैठी रह गई तो जया से रहा न गया. उस ने एकाएक पद्मा के हाथ से ‘डिक्टाफोन’ छीना, ‘‘देवियो और सज्जनो, क्या आप जानते हैं कि गंगा और हम में क्या अंतर है? वह अपने पति को लात मार सकती है पर हम नहीं.’’

और फिर दोनों महिलाओं के ठहाके गूंजने लगे.

ड्राइवर उन्हें कुछ ऐसे देखने लगा जैसे वे दोनों पागल हो गई हों.

दादी आप की तो मौज है

लेखिका- बिमला गुप्ता

एकदिन मिनी मेरे पास बैठ कर होमवर्क कर रही थी. अचानक कहने लगी, ‘‘दादी, आप को कितनी मौज है न?’’

‘‘क्यों किस बात की मौज है?’’ मैं ने जानना चाहा.

‘‘आप को तो कोई काम नहीं करना पड़ता है न,’’ उस का उत्तर था.

‘‘क्यों? मैं तुम्हारे लिए मैगी बनाती हूं, सूप बनाती हूं, हरी चटनी बनाती हूं, तुम्हारा फोन चार्ज करती हूं. कितने काम तो करती हूं?’’

तुम्हें कौन सा काम करना पड़ता है?’’ मैं ने हंस कर पूछा.

‘‘क्या बताऊं दादी… मु  झे तो बस काम

ही काम हैं?’’ उस ने बड़े ही दुखी स्वर में

उत्तर दिया.

‘‘क्या काम है, पता तो चले?’’ मैं ने पूछा.

‘‘क्लास अटैंड करो, होमवर्क करो, कभी टैस्ट की तैयारी करो, कभी कोई प्रोजैक्ट तैयार करो… दादी आप को पता है, बच्चों को कितने काम होते हैं,’’ वह धाराप्रवाह बोलती जा रही थी, जैसे किसी ने उस की दुखती रग पर हाथ रख दिया हो.

‘‘उस पर ये औनलाइन क्लासें. बस

लैपटौप के सामने बैठे रहो बुत बन कर. जरा सा

इधरउधर देखो तो मैम चिल्लाने लगती हैं. चिल्लाती भी इतनी जोर से हैं कि घर पर भी सब को पता चल जाता है, सोनम तुम ने होमवर्क क्यों नहीं किया?

‘‘राहुल तुम्हारी राइटिंग बहुत गंदी है.

महक तुम्हारा ध्यान किधर है? बस डांटती ही जाती हैं, आज मिनी पूरी तरह विद्रोह पर उतर आई थी. मैं चुपचाप उस की बातें सुन रही थी. फिर मैं ने हंस कर पूछा, ‘‘क्या स्कूल में मैम

नहीं डांटती?’’ .

‘‘दादी, कैसी बात कर रही हो? वह भी डांटती हैं… मैडमों का तो काम ही डांटना है.’’

‘‘फिर?’’ मेरा प्रश्न था.

‘‘दादी, आप सम  झ नहीं रही हो?’’ उस ने बड़े भोलेपन से उत्तर दिया.

‘‘क्या नहीं सम  झ रही हूं? तू कुछ बताएगी तो पता चलेगा.’’

‘‘रुको, मैं आप को सम  झाती हूं. स्कूल में भी मैम डांटती हैं, पर हम लोगों को बुरा नहीं लगता है, ‘‘क्योंकि डांट तो सब को पड़ती है. इसलिए क्लास में सब बराबर होते हैं.

कभीकभी तो पनिशमैंट भी मिलता है, पर किसी को पता तो नहीं चलता? यहां तो अपने ही

फ्रैंड्स के पेरैंट्स तक को पता चल जाता है. सब के सामने इन्सल्ट हो जाती है न?’’ वह गंभीरतापूर्वक बोली.

‘‘हां बात तो तेरी ठीक है. हमें स्कूल में मैम से डांट पड़ी है… घर पर तो किसी को पता नहीं चलना चाहिए,’’ मैं ने मन ही मन मुसकराते हुए उस की बात का समर्थन किया.

समर्थन पा कर वह बहुत खुश हुई. शायद बचपन से ही हमारे मन में यह भावना घर कर जाती है कि हमारी गलतियों का किसी को पता नहीं चलना चाहिए.

अब वह पूरी तरह अपनी

रौ में आ चुकी थी. मु  झे अपना राजदान बनाते हुए बोली,

‘‘दादी, मैं आप को एक बहुत

ही मजेदार बात बताऊं? आप किसी को बताएंगी तो नहीं?’’

उस ने पूछा. वह आश्वस्त होना चाहती थी.

‘‘नहीं, मैं किसी को नहीं बताऊंगी. तू बेफिक्र हो कर बता.’’

मेरा उत्तर सुन कर वह बोली,

‘‘जब किसी बच्चे पर मैम

नाराज होती हैं, तो सारे बच्चे नीचे मुंह

कर के या मुंह पर हाथ रख कर हंसने

लगते हैं.’’

‘‘मैम नाराज नहीं होती.’’

‘‘मैम को पता ही नहीं चलता है.’’

‘‘और वह बच्चा?’’

‘‘बच्चों को क्या फर्क पड़ता है. रोज किसी न किसी पर मैम गुस्सा होती ही हैं.’’

यह सुन कर मु  झे हंसी आ गई. सच ही है, ‘हमाम में सब नंगे.’

‘‘एक और मजेदार बात बताऊं दादी?’’ अब वह बहुत खुश लग रही थी.

‘‘हांहां जरूर.’’

‘‘जब मैम ब्लैकबोर्ड पर लिखती हैं न तो क्लास की तरफ उनकी पीठ होती है तब हम लोग बहुत मस्ती करते हैं. कुछ लड़के तो अपनी सीट छोड़ कर उधम मचाने लगते हैं और जैसे

ही मैम मुड़ती हैं सब अपनीअपनी सीट पर चुपचाप बैठ जाते हैं. मैम को कुछ पता ही नहीं चलता. हम लोग स्कूल में बहुत मजे करते हैं.

घर पर तो मैं बोर हो जाती हूं,’’ उस ने निराश हो कर कहा.

‘‘बस सारा दिन घर में बैठे रहो. इस कोरोना ने तो पागल कर दिया है.

‘‘उस पर सुबहसुबह जब अच्छी नींद आती है तो मम्मा जबरदस्ती उठा देती हैं. दोपहर को जब मु  झे नींद नहीं आती तो कहती हैं अब थोड़ी देर सो जाओ.’’

‘‘पहले भी तो ऐसा ही होता था,’’ मैं

ने कहा.

‘‘दादी आप सम  झ नहीं रही हो. पहले मैं स्कूल जाती थी, इसलिए थक जाती थी. अब दिन में सो जाती हूं तो रात को नींद नहीं आती है, पर सुबहसुबह उठना पड़ता है न? और ये पापा बारबार कहते हैं बुक रीडिंग कर लो… मु  झे परेशान कर के रख दिया है सब ने,’’ उस ने दुखी स्वर में कहा.

फिर कुछ देर कुछ सोचने के बाद मु  झ से पूछने लगी, ‘‘दादी, मैं कब बड़ी

होऊंगी?’’

मिनी का प्रश्न सुन कर मैं हैरत से उस की ओर देखने लगी. मन सोच में डूब गया. अकसर बचपन में हम जल्दी बड़े होना चाहते हैं, पर

बड़े होने पर दुनियादारी में फंस कर हमारी

बचपन की निश्चिंतता, निश्छलता, भोलापन सब पता नहीं कहां गायब हो जाते हैं. उम्र बढ़ने के साथ ही जिम्मेदारियों के बो  झ तले दबते ही चले जाते हैं.

धीरेधीरे जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हुए हम स्वयं शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक रूप से कमजोर हो जाते हैं. दूसरों का बो  झ उठातेउठाते हम स्वयं सब पर बो  झ बन जाते हैं. फिर याद आती हैं उस उम्र की बातें जो लौट कर कभी नहीं आती है.

मगर मिनी को क्या पता है कि उम्र के इस पड़ाव तक पहुंचने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ता है… वह तो बस जल्दी से जल्दी उस उम्र में पहुंचना चाहती है.

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