डिलिवरी के बाद कैसे बचें कुपोषण से

बच्चे के जन्म के तुरंत बाद कुपोषण का बुरा असर मां और बच्चे दोनों पर पड़ता है. गर्भावस्था के दौरान और उस के बाद होने वाला कुपोषण बच्चे के लिए बेहद घातक हो सकता है. इसे रोकना बहुत जरूरी है.

गर्भावस्था के बाद कुपोषण के कारण

द्य स्तनपान इस का सब से पहला और मुख्य कारण है. बच्चे को दूध पिलाने वाली मां को रोजाना कम से कम 1000 कैलोरी ऊर्जा की जरूरत होती है. ज्यादातर महिलाएं या तो सही डाइट चार्ट के बारे में नहीं जानती हैं या फिर इस की अनदेखी करती है, जिस के कारण वे

डिहाइडे्रशन, विटामिन या मिनरल की कमी और कभीकभी खून की कमी यानी ऐनीमिया की शिकार हो जाती हैं. इसे पोस्ट नेटल मालनयूट्रिशन यानी बच्चे के जन्म के बाद होने वाला कुपोषण कहा जा सकता है.

स्तनपान कराने से मां को ज्यादा भूख लगती है और अकसर वह ऐसे खाद्यपदार्थ खाती है, जो पोषक एवं सेहतमंद नहीं होते. स्वाद में अच्छे लगने वाले खाद्यपदार्थों में विटामिन और मिनरल्स की कमी होती है, जिस के कारण मां कुपोषण से ग्रस्त हो जाती है.

बच्चे के जन्म से पहले और बाद में प्रीनेटल विटामिन का सेवन करना बहुत जरूरी है. प्रीनेटल विटामिन जैसे फौलिक ऐसिड पानी में घुल कर शरीर से बाहर निकलते रहते हैं, जिस के चलते अकसर बच्चे के जन्म के बाद महिलाएं फौलिक ऐसिड की कमी के कारण ऐनीमिया से ग्रस्त हो जाती हैं.

बच्चे के जन्म के बाद कुपोषण के कारण अकसर महिलाएं पोस्टपार्टम डिप्रैशन की भी शिकार हो जाती हैं. बच्चे को जन्म देने के बाद उन में भावनात्मक बदलाव आते हैं, जिस के कारण डिप्रैशन की समस्या हो सकती है. इस के कारण कई बार महिलाएं ठीक से खाना खाना बंद कर देती हैं और कुपोषण की शिकार हो जाती हैं.

गर्भावस्था के दौरान लगभग सभी महिलाओं का वजन बढ़ जाता है. कई बार वे वजन में कमी लाने के लिए ठीक से खाना खाना बंद कर देती हैं, और कुपोषण की शिकार हो जाती हैं. अत: गर्भावस्था के बाद वजन में धीरेधीरे कमी लाने की कोशिश करें ताकि अचानक कुपोषण की शिकार न हो जाएं बच्चे को जन्म देने के तुरंत बाद वे आसानी से 1 ही महीने में 4-5 पाउंड वजन कम कर सकती हैं. इसलिए जरूरत से ज्यादा डाइटिंग न करें.

बच्चे के जन्म के बाद अकसर महिलाएं ठीक से सो नहीं पातीं. अत: नींद पूरी न होने के कारण शरीर में पोषक पदार्थ अवशोषित नहीं होते, जिस के कारण वे कुपोषण का शिकार हो जाती हैं.

शिशु के लिए जोखिम

गर्भवती महिला में कुपोषण का बुरा असर उस के पेट में पल रहे बच्चे पर पड़ता है. ऐसे में बच्चे का विकास ठीक से नहीं हो पाता और जन्म के समय उस का वजन सामान्य से कम रह जाता है. गर्भावस्था के दौरान मां में कुपोषण, आईयूजीआर यानी इंट्रायूटरिन ग्रोथ रिस्ट्रिक्शन और जन्म के समय कम वजन का बुरा असर बच्चे पर पड़ता है जिस के कई बुरे असर हो सकते हैं जैसे- जन्मजात दोष, दिमाग को नुकसान, समय से पहले जन्म, कुछ अंगों का विकास न होना, बच्चे में न्यूरोलौजिकल, इंटेस्टाइनल, रेस्पीरेटरी या सर्कुलेटरी डिसऔर्डर. कुछ बच्चे पैदा होते ही नहीं रोते. इन में से 50 फीसदी मामलों का कारण आईयूजीआर होता है.

बच्चे के आने वाले जीवन पर असर

अगर गर्भावस्था के दौरान मां में पोषण की कमी हो तो बच्चे को अपने जीवन में इन बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है:

औस्टियोपोरोसिस, क्रोनिक किडनी फेल्योर, टाइप 2 डायबिटीज, मेलिटस, क्रोनिक औब्स्ट्रक्टिव लंग्स डिजीज, खून में लिपिड्स की मात्रा असामान्य होना, इंम्पेयर्ड ऐनर्जी होम्योस्टेसिस (जब शरीर अपनेआप में ऊर्जा के स्तर को विनियमित नहीं रख पाता), वे बच्चे जिन का वजन जन्म के समय सामान्य से कम होता है, उन का विकास ठीक से नहीं हो पाता.

गर्भावस्था से पहले, उस के दौरान और बाद में पोषण की कमी के परिणाम कुछ इस तरह हो सकते हैं. स्कूल में बच्चे की परफौर्मैंस अच्छी नहीं रहती, वह ठीक से पढ़ाई नहीं कर पाता, उस का विकास ठीक से नहीं होता, बच्चा शारीरिक रूप से कमजोर होता है और उस में ताकत की कमी होती है.

मां के लिए समस्याएं

अगर गर्भावस्था के दौरान महिलाओं में पोषण की कमी हो तो उन में मृत्यु दर की संभावना अधिक होती है. इस के अलावा बच्चे का समय से पहले पैदा होना, गर्भपात जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं. और भी कई समस्याएं हो सकती हैं जैसे संक्रमण, ऐनीमिया यानी खून की कमी, उत्पादकता में कमी, सुस्ती और कमजोरी, औस्टियोपोरोसिस.

कुपोषण को कैसे रोका जा सकता है

संतुलित आहार के सेवन से कुपोषण को रोका जा सकता है. महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान पर्याप्त मात्रा में फल, सब्जियों, पानी, फाइबर, प्रोटीन, वसा एवं कार्बोहाइड्रेट का सेवन करना चाहिए. वे महिलाएं जो गर्भधारण की योजना बना रही हैं, उन्हें प्रीनेटल विटामिन शुरू कर देने चाहिए. इस के अलावा सेहतमंद आहार लें और नियमित व्यायाम करें. गर्भावस्था के दौरान पोषक खाद्यपदार्थों का सेवन करें. बच्चे के जन्म के बाद भी विटामिनों का सेवन करें. इस से मां और बच्चा दोनों स्वस्थ रहेंगे.

पोषण संबंधी जरूरतें

आयरन: शरीर में हीमोग्लोबिन बनाने के लिए आयरन बहुत जरूरी है. हीमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं में पाया जाता है और पूरे शरीर में आक्सीजन पहुंचाता है. अगर शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं की कमी हो जाए तो शरीर के सभी अंगों तक आक्सीजन पर्याप्त मात्रा में नहीं पहुंच पाती. अगर महिला आयरन का सेवन ठीक से न करे तो धीरेधीरे हीमोग्लोबिन की कमी होने लगती है और वह ऐनीमिक हो जाती है. उस के शरीर में बीमारियों से लड़ने की ताकत नहीं रहती.

प्रीनेटल विटामिन: गर्भवती महिलाओं को प्रीनेटल विटामिन लेने की सलाह दी जाती है ताकि बच्चे को विटामिन और मिनरल्स पर्याप्त मात्रा में मिलते रहें. लेकिन कुछ मामलों में जन्म के बाद प्रीनेटल विटामिनों की जरूरत नहीं होती. इसलिए डाक्टर से पूछ लें कि आप को कितने समय तक विटामिन जारी रखने चाहिए.

ओमेगा 3 फैटी ऐसिड: बच्चे के जन्म के बाद खासतौर पर स्तनपान कराने वाली महिलाओं को अपने आहार में ओमेगा 3 फैटी ऐसिड का सेवन जरूर करना चाहिए. अलसी के बीज, सोया, अखरोट और कद्दू के बीजों में ओमेगा 3 फैटी ऐसिड पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है.

कैल्सियम: महिलाओं को जीवन की हर अवस्था में कैल्सियम की सही मात्रा की जरूरत होती है. इस के लिए डेयरी उत्पादों, गहरी हरी पत्तेदार सब्जियों, ब्रोकली, दूध एवं दूध से बनी चीजों, कैल्सियम फोर्टिफाइड खाद्यपदार्थों का सेवन करें.

बच्चे को जन्म देने के बाद महिलाओं के लिए विशेष सुझाव

सिर्फ कैलोरीज के सेवन से बचें: बच्चे के जन्म के बाद शुरुआती दिनों में महिलाएं बच्चे की देखभाल में बहुत ज्यादा व्यस्त हो जाती हैं. ऐसे में वे सेहतमंद आहार पर ध्यान नहीं दे पातीं और जानेअनजाने हाईकैलोरी भोजन खाती रहती हैं. इस दौरान गाजर, फलसब्जियां, लोफैट योगर्ट, उबला अंडा, लो फैट चीज, अंगूर, केला, किशमिश, मेवे का सेवन करना चाहिए.

बारबार थोड़ाथोड़ा खाएं: एक ही बार भरपेट खाने के बजाय, बारबार कम मात्रा में खाती रहें. इस से दिनभर ऊर्जा बनी रहेगी. भारी भोजन को पचाने के लिए ज्यादा ऊर्जा की जरूरत होती है. लेकिन इस समय मां की नींद पूरी नहीं हो पाती, जिस से भारी भोजन पचाना मुश्किल होता है, इसलिए हलका आहार लें ताकि शरीर में ऊर्जा का सही स्तर बना रहे और आप दिनभर थकान न महसूस करें.

डिहाइड्रेशन से बचें: बच्चे को जन्म देने के दौरान शरीर से तरल पदार्थ बहुत ज्यादा मात्रा में निकल जाते हैं, इसलिए इस दौरान हाइड्रेशन का खास ध्यान रखें. डिहाइड्रेशन से मां कमजोरी और थकान महसूस कर सकती है.

बच्चे के जन्म के बाद पोषण और वजन में कमी: बच्चे के जन्म के बाद अकसर महिलाएं एकदम अपना वजन कम करना चाहती हैं, जिस के कारण उचित आहार का सेवन नहीं करतीं. स्तनपान कराने से वजन खुद ही कम हो जाता है, बल्कि स्तनपान कराने वाली मां को रोजाना 300 अतिरिक्त कैलोरीज की जरूरत होती है. इसलिए डाक्टर की सलाह से व्यायाम करें और अतिरिक्त कैलोरीज के सेवन से बचें.

बच्चा न होने पर तनाव से गुजरते युवा

जब युवा पतिपत्नी अकेले रहते हैं और फिर उन के बच्चे नहीं होते तो वे  अस्पतालों के चक्कर लगाते हैं और तब बिना सासूमां के तानों के भी जीवन में तनाव रहता है. आज जीवन जीने के माने बदल गए हैं. युवा पतिपत्नी अपने अनुरूप स्वतंत्रतापूर्वक जीवन जीना पसंद करते हैं. मौजमस्ती और अपना अलग लाइफस्टाइल. न कोई पारिवारिक बंधन न कोई जिम्मेदारी और न ही किसी की दखलंदाजी. नौकरीपेशा जोड़े अपने परिवार से अलग अपनी दुनिया अपनी शर्तों पर बनाते हैं.

आजकल बच्चे जल्दी करने का चलन समाप्त हो गया है. शादी के बाद कुछ साल वे जिम्मेदारियों को ओढ़ना पसंद नहीं करते हैं. वे अपने कैरियर और मौजमस्ती में ऐसे उल?ाते हैं कि कई बार स्थितियों को नजरअंदाज करना उन के लिए हानिकारक भी सिद्ध होता है क्योंकि कैरियर के कारण बड़ी उम्र में शादी करना व बच्चे न होना हमारे आज के समय की बेहद गंभीर समस्या बन गई है. युवा जोड़ों का अकेले रहना व संतान न होना उन्हें तनाव से घेरने लगता है.

युवा जोड़ों के लिए इस तनाव से गुजरना बेहद चुनौतीपूर्ण होता है. इस का सीधा असर  पारिवारिक रिश्तों पर पड़ता है. पारिवारिक जिम्मेदारियों का नया अनुभव व तालमेल न बैठाना पतिपत्नी के रिश्तों में खटास पैदा कर रहा है.

संगीता व प्रवीण अपनी शादी के बाद अपने जीवन का खुल कर आनंद ले रहे थे. मौजमस्ती, ड्रिंक, लेट नाइट पार्टी करना उन के जीवन का हिस्सा था. कुछ समय बाद उन के दोस्तों के  बच्चे हुए तो उन का आपस में मिलना बंद हो गया.

दोस्त जब अपनी पारिवारिक जिंदगी में व्यस्त हो गए तब दोनों ने भी परिवार को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया. बेहद ऊर्जा के साथ उन्होंने कोशिश की लेकिन सफल नहीं हुए. कहते हैं न समय किसी के लिए नहीं रुकता. दोनों को एहसास हुआ कि देर न हो जाए. इसलिए आपसी सलाह कर के उन्होंने डाक्टर से कंसल्ट किया व अपना पूर्ण चैकअप कराया. डाक्टर ने दवा के साथ हिदायत व महीने के नियम बता कर उन की आशा बांध दी. दोनों सकारात्मक ऊर्जा से प्रयास करने लगे लेकिन कोशिशें नाकाम रहीं.

दिन महीनों में बीते व महीने साल में. अस्पताल के शुरू हुए चक्कर खत्म नहीं हुए. शहर के बैस्ट डाक्टर से मिले. दूसरे शहर में भी आईवीएफ तकनीक से प्रयास किया लेकिन सफलता हासिल नहीं हुई.

नियमित सैक्स से दोनों को सैक्स के प्रति ऊब होने लगी. बच्चा न होने का मानसिक तनाव बढ़ने लगा जिस का असर यह हुआ कि दोनों का एकदूसरे पर शिकायतों और आरोपों का दौर शुरू हो गया. कितने भी थके हों बात घूमफिर कर बच्चे पर ही अटक गई.

बच्चा न होने पर तनाव बढ़ने लगा जो किसी न किसी रूप में एकदूसरे पर तानों के रूप में बाहर आने लगा. दोनों को खीज हो रही थी. घर में स्वस्थ वातावरण की जगह माहौल बो?िल हो गया. सामान्य बात भी बच्चे पर आ कर रुक जाती. लोग क्या कहेंगे, समाज हमें बां?ा कहेगा. संगीता के मन में मां न बनने का दर्द इतना बढ़ गया कि उसे दोष प्रवीण में ही नजर आने लगा. मन में नकारात्मकता बढ़ने लगी. वह यूट्यूब, गूगल पर बच्चे होने के उपाय ढूंढ़ने लगी. प्रवीण को विरक्ति होने लगी.

अंत में थक कर प्रवीण ने संगीता से कहा कि अब बस करो मैं रोजरोज की किचकिच से थक गया हूं. कितने ताने देती हो? पैसा भी खूब खर्च हो रहा है. मैं भी तो तुम्हारे साथ वही दर्द ?ोल रहा हूं. तुम्हें घर वाले भी ताने नहीं मारते हैं फिर भी तुम ने जीवन में कितना क्लेश भर लिया है.

दबाव दोस्तों, रिश्तेदारों का सामाजिक दबाव एक बड़ी समस्या है क्योंकि हर सर्कल में अभी भी बच्चों का होना सामान्य माना जाता है. यहां तक कि परिवार और दोस्त भी इस विषय पर तनाव डाल सकते हैं. सामाजिक डर या बातों से अपने रिश्ते को तनाव में डालना उचित नहीं है.

राहुल और नेहा अपने परिवार से दूर दूसरे शहर दिल्ली में रहते हैं. शादी के 6 साल होने के बाद भी उन का कोई इशू नहीं हुआ. फिर घर वालों व दोस्तों ने उन्हें बच्चे के लिए छेड़ना शुरू कर दिया कि परिवार आगे बढ़ाओ. यहां तक कि पड़ोसी भी जब मिलते हंस कर यही कहते.

नेहा हंस कर बात को टालने लगी. एक बार उस की दोस्त ने इस बारे में उस से कहा, ‘‘उम्र बढ़ जाएगी तो इशू में प्रौब्लम आ सकती है.’’

तब उस ने बताया कि राहुल को बच्चे पसंद नहीं हैं, इसलिए मैं पड़ोसी के बच्चों के साथ खेल कर ऐंजौय कर लेती हूं.

अब परिवार वालों ने भी बोलना छोड़ दिया लेकिन उन की दिनचर्या में नीरसता आने लगी. बच्चे की चाहत मन में कुलबुलाने लगी, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. उन्होंने बेबी प्लान करने के लिए डाक्टर से बात की. लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. जीवन में तनाव बढ़ने लगा व स्वास्थ बिगड़ने लगा.

बच्चे की चाहत में बढ़ते मानसिक तनाव से चेहरे की रौनक गायब हो गई. डाक्टर की दिनचर्या के अनुसार उन्हें कंसीव के लिए कुछ विशेष दिन प्रयास करना था. लेकिन राहुल थकने लगा. रोजरोज वही बातें व काम. मन से थकी नेहा को उबकाई होने लगी. आपस में ही आरोपों और तानों के दौर शुरू हो गए. दोनों हीनभावना से ग्रस्त होने लगे कि उन्हें शारीरिक दोष है. पंडित व अंधविश्वास का नया अध्याय उन की जिंदगी में पसरने लगा. मां बनना हर लड़की का स्वप्न होता है. यह खूबसूरत रिश्ता है.

लोगों की बातों से बचने के लिए दोनों ने सामाजिक जीवन जीना ही बंद कर दिया. सब से दूर वे अपने तनाव व निराशा से लड़ने लगे. अच्छे से रहना छूट गया, सजनासंवरना तो दूर चेहरे पर गहन चिंता के भाव उन्हें खुद से विरक्त करने लगा.

आर्थिक प्रैशर व संबंधों का दबाव बच्चे पालने में आर्थिक दबाव भी होता है. शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और अन्य आर्थिक जिम्मेदारियों के लिए पैसे का अभाव एक तनाव स्रोत बन सकता है.

अनु व मयंक दोनों मुंबई में रहते हैं. दोनों प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते हैं. दोनों की पगार ठीक है लेकिन महानगरों के खर्चे भी कम नहीं होते. ऐसे में बच्चा करना उन के ऊपर आर्थिक समस्या को बढ़ा सकता है. घर वाले भी साथ नहीं रहते हैं. पहले वे बच्चे के लिए प्रयास नहीं कर रहे थे और जब करना शुरू किया तब तक बहुत देर हो चुकी थी.

बच्चे न होने पर संबंधों में तनाव भी हो सकता है और यह समस्या पतिपत्नी के बीच खटास का कारण भी बन सकती है. उन्होंने अपने दोस्तों से मिलना बंद कर दिया. मन से सुकून गायब हो गया और डिप्रैशन होने लगा.

आज 50त्न युवा जोड़े इस समस्या से जू?ा रहे हैं. इस का कारण देर से शादी होना व असंतुलित लाइफस्टाइल ही है. आजकल की जीवनशैली ही इन्फर्टिलिटी का सब से बड़ा कारण है

डाक्टर हर्षा का कहना है कि यह तनाव  ही जीवन में हर समस्या की जड़ है. यदि तनमन से स्वस्थ रहेंगे तो हैप्पी हारमोन रिलीज होंगे जो 4 और × क्रोमोसोम मिलन में सहायक सिद्ध होते हैं. तनाव से प्रजनन क्षमता में कमी आती है. इस से महिलाओं में ऐंडोमिट्रिओसिस हो सकता है, जो प्रजनन में बाधा का कारण बनता है.

तनाव से शरीर के अन्य और्गन भी प्रभावित होते हैं. पर्याप्त नींद लेना भी बहुत जरूरी है. नींद के अभाव से शरीर में थकान होती है. वहीं पुरुषों में नींद की कमी से शुक्राणुओं की संख्या भी कम होती है. तीव्र तनाव हारमोंस को बाधित करता है. तनाव हमारे शरीर में कार्टिसोल को बढ़ाता है जिस से कई बीमारियां हो सकती हैं.

इस तनाव से निबटने के लिए सकारात्मक कदम उठाना जरूरी है. युवा जोड़ों को इस बात का खास खयाल रखना चाहिए. हो सकता है बच्चे न होने का मुख्य कारण तनाव ही हो.

जरूरी नहीं कि हर जोड़े को बच्चे होते हैं. हमारे पास ऐसे कई उदाहरण हैं. जानेमाने सैलिब्रिटीज भी इस समस्या से गुजर चुके हैं फिर भी उन्होंने अपना जीवन सकारात्मक तरीके से जीया है.

सितारे व सफल जोड़े जिन्हें बच्चे नहीं हुए या किसी कारण से उन्होंने बच्चे नहीं किए. कहते हैं यदि शादी के बाद बच्चे नहीं हुए तो रिश्तों में दरार आ जाती है. लेकिन बौलीवुड में कई सैलिब्रिटीज जोड़े ऐसे हैं, जिन के खुद के बच्चे नहीं हैं या फिर उन्होंने बच्चा चाहा ही नहीं. बच्चे के नहीं होने के बावजूद इन की जिंदगी एकदूसरे के प्रति प्यार, सम्मान और हमेशा साथ निभाने की चाहत से भरी हुई है.

दिलीप कुमार और सायराबानो जिन्होंने मिल कर अपनी जिंदगी की इस स्थिति का सामना किया है. इसी तरह जावेद अख्तर और शबाना आजमी जिन के खुद के बच्चे नहीं हैं लेकिन फिर भी उन के जीवन में कोई खालीपन नहीं है. हालांकि जावेद अख्तर को उन की पहली पत्नी हिना ईरानी से 2 बच्चे हुए. अनुपम खेर और किरण खेर अपनी पहली असफल शादी के बाद मिले. लेकिन इन्हें बच्चा नहीं हुआ. मीना कुमारी और कमल अमरोही, साधनाआरके नैयर, मधुबालाकिशोर कुमार, आशा भोसले व आर डी वर्मन ऐसे कई नामचीन नाम हैं जिन्होंने या तो बच्चे नहीं किए या किसी कारण से उन के बच्चे नहीं हुए. कहने का तात्पर्य यह है कि बिना बच्चों के भी इन की जिंदगी में खालीपन नहीं आया,  अपितु जीवन को समर्पित भाव से जीया है. कई ऐसे सितारे हैं जिन्होंने बच्चा गोद लिया और जीवन की दिशा बदल दी.

तनाव कैसे ?ोलें

सम?ों और बातचीत करें:  सब से पहले पतिपत्नी की इस समस्या को सम?ाने का प्रयास करें व एकदूसरे के भावनाओं का खयाल रखते हुए खुल कर बात करें. बातचीत करते समय ध्यान रखें कि इस ही टौपिक पर बात न की जाए एकदूसरे के साथ क्वालिटी समय भी बिताएं. बाहर घूमने जाएं लोगों से मिलें. ऐसे काम करें जिन से आप को खुशी मिलती हो. हंसतेमुसकराते रहें जिस से सेहत पर अच्छा असर होगा. हंसनामुसकराना आप की सेहत पर सकारात्मक असर डालता है.

हैल्थ का ध्यान रखें: यदि तनाव से मुक्त नहीं हो पा रहे हैं तो डाक्टर से मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी सहायता ले सकते हैं. खानपान व समय का विशेष ध्यान रखें. अच्छा खानपान और अच्छी सोच आप को तनाव से बाहर ले आएगी.

आपसी समर्थन व सहायता: अपने परिवार और दोस्तों से सहायता लेना भी मददगार हो सकता है. अपने परिवार के बड़े लोगों का अनुभव भी आप के काम आ सकता है जिस से आप तनावमुक्त हो सकते हैं. परिवार व दोस्तों का साथ आप में सकारात्मकता ला सकता है. हीनभावना से ग्रस्त न हों. यदि आप अपने शहर से बहुत दूर रहते हैं तो फोन पर ही अपने घर के बच्चों से बातचीत करने की कोशिश करें. बच्चों का साथ तनाव से मुक्त करता है.

आपसी रोमांटिक जीवन: बच्चों के बिना भी सुखमय और संतोषपूर्ण जीवन जी सकते हैं. एकदूसरे के साथ अच्छा समय व्यतीत करें, बाहर घूमने जाएं, अच्छी किताबें पढ़ें जिस से मन सकारात्मक होगा. बच्चा नहीं है तो आपसी रिश्ता खराब न होने दें. पतिपत्नी को एकदूसरे के साथ समय बिताने का अधिक समय मिलता है.

स्वास्थ्य की देखभाल: स्वास्थ्य का ध्यान रखना भी महत्त्वपूर्ण है. ध्यान करने और सांस को नियंत्रित करने से तनाव का एहसास कम हो जाता है और बेतुके खयाल आना बंद हो जाते हैं. इस से रक्तचाप भी घटता है. योग व मैडिटेशन करें. खानपान का विशेष ध्यान रखें. वाइन का जहर अपने जीवन में न घोलें. तनाव से बचने के लिए ड्रग का सहारा न लें. डाक्टर से सलाह ले कर अपने स्वास्थ्य संबंधित सु?ावों का पालन करें. ऐसे लोगों से ज्यादा मिलेजुलें जिन के बच्चे नहीं हैं.

यदि आप के आसपास बच्चे हैं या ऐसा कोई क्लब है तो आप उसे जौइन कर सकते हैं क्योंकि बच्चों के साथ तनाव दूर होता है. अपने करीबी दोस्तों या पड़ोसियों के साथ मधुर संबंध रखें, मेलजोल बढ़ाएं.

मेरे घुटनों में बहुत तेज दर्द और जकड़न होती है, क्या करूं?

सवाल

मैं 38 वर्षीय आईटी प्रोफैशनल हूं. जब मैं औफिस में बैठती हूं तब भी मेरे घुटनों में बहुत तेज दर्द और जकड़न होती है. मुझे जिम जाने और वर्कआउट करने का समय कभीकभी ही मिल पाता है. मैं ने घुटनों के दर्द के लक्षणों की खोज की तो पाया कि घुटनों का आर्थ्राइटिस 30 वर्ष की प्रारंभिक अवस्था और 40 वर्ष की उम्र में आम समस्या है. क्या आप घुटनों के आर्थ्राइटिस को दूर रखने में जीवनशैली में बदलाव की जरूरत पर और ज्यादा विस्तार से प्रकाश डाल सकते हैं? वे बेसिक चीजें कौन सी हैं, जिनसे मैं अपने घुटनों को दुरुस्त रख सकता हूं और दर्द की समस्या से छुटकारा पा सकता हूं?

जवाब

मैं आप को डाक्टर से सलाह लेने और घुटनों का उचित इलाज कराने की सलाह दूंगा. इंटरनैट पर देख कर खुद अपना इलाज करने से आप को गलत जानकारी मिल सकती है और आप की हालत बिगड़ सकती है. अपने घुटनों को स्वस्थ रखने के लिए आप को जिम में जाने और बहुत ज्यादा देर तक नहीं बैठना है और समयसमय पर ब्रेक ले कर हलकाफुलका व्यायाम करना है.

किसी भी तरह का हलका व्यायाम जैसे 30 मिनट तक चलने और एस्केलेटर की जगह सीढि़यों से आनेजाने से आप को घुटनों के दर्द से काफी आराम मिल सकता है. सब से ज्यादा महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अगर आप का वजन ज्यादा है तो यह आप के घुटनों का मजबूत रखने में सब से बड़ी रुकावट है.

मुक्ति: जया ने आखिर अपनी जिंदगी में क्या भुगता

अचानक जया की नींद टूटी और वह हड़बड़ा कर उठी. घड़ी का अलार्म शायद बजबज कर थक चुका था. आज तो सोती रह गई वह. साढ़े 6 बज रहे थे. सुबह का आधा समय तो यों ही हाथ से निकल गया था.

वह उठी और तेजी से गेट की ओर चल पड़ी. दूध का पैकेट जाने कितनी देर से वैसे ही पड़ा था. अखबार भी अनाथों की तरह उसे अपने समीप बुला रहा था.

उस का दिल धक से रह गया. यानी आज भी गंगा नहीं आएगी. आ जाती तो अब तक एक प्याली गरम चाय की उसे नसीब हो गई होती और वह अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो जाती. उसे अपनी काम वाली बाई गंगा पर बहुत जोर से खीज हो आई. अब तक वह कई बार गंगा को हिदायत दे चुकी थी कि छुट्टी करनी हो तो पहले बता दे. कम से कम इस तरह की हबड़तबड़ तो नहीं रहेगी.

वह झट से किचन में गई और चाय का पानी रख कर बच्चों को उठाने लगी. दिमाग में खयाल आया कि हर कोई थोड़ाथोड़ा अपना काम निबटाएगा तब जा कर सब को समय पर स्कूल व दफ्तर जाने को मिलेगा.

नल खोला तो पाया कि पानी लो प्रेशर में दम तोड़ रहा?था. उस ने मन ही मन हिसाब लगाया तो टंकी को पूरा भरे 7 दिन हो गए थे. अब इस जल्दी के समय में टैंकर को भी बुलाना होगा.  उस ने झंझोड़ते हुए पति गणेश को जगाया, ‘‘अब उठो भी, यह चाय पकड़ो और जरा मेरी मदद कर दो. आज गंगा नहीं आएगी. बच्चों को तैयार कर दो जल्दी से. उन की बस आती ही होगी.’’

पति गणेश उठे और उठते ही नित्य कर्मों से निबटने चले गए तो पीछे से जया ने आवाज दी, ‘‘और हां, टैंकर के लिए भी जरा फोन कर दो. इधर पानी खत्म हुआ जा रहा है.’’

‘‘तुम्हीं कर दो न. कितनी देर लगती है. आज मुझे आफिस जल्दी जाना है,’’ वह झुंझलाए.

‘‘जैसे मुझे तो कहीं जाना ही नहीं है,’’ उस का रोमरोम गुस्से से भर गया. पति के साथ पत्नी भले ही दफ्तर जाए तब भी सब घरेलू काम उसी की झोली में आ गिरेंगे. पुरुष तो बेचारा थकहार कर दफ्तर से लौटता है. औरतें तो आफिस में काम ही नहीं करतीं सिवा स्वेटर बुनने के. यही तो जब  तब उलाहना देते हैं गणेश.

कितनी बार जया मिन्नतें कर चुकी थी कि बच्चों के गृहकार्य में मदद कर दीजिए पर पति टस से मस नहीं होते थे, ऊपर से कहते, ‘‘जया यार, हम से यह सब नहीं होता. तुम मल्टी टास्किंग कर लेती हो, मैं नहीं,’’ और वह फिर बासी खबरों को पढ़ने में मशगूल हो जाते.

मनमसोस कर रह जाती जया. गणेश ने उस की शिकायतों को कुछ इस तरह लेना शुरू कर दिया?था जैसे कोई धार्मिक प्रवचन हों. ऊपर से उलटी पट्टी पढ़ाता था उन का पड़ोसी नाथन जो गणेश से भी दो कदम आगे था. दोनों की बातचीत सुन कर तो जया का खून ही खौल उठता था.

‘‘अरे, यार, जैसे दफ्तर में बौस की डांट नहीं सुनते हो, वैसे ही बीवी की भी सुन लिया करो. यह भी तो यार एक व्यावसायिक संकट ही है,’’ और दोनों के ठहाके से पूरा गलियारा गूंज उठा?था.

जया के तनबदन में आग लग आई थी. क्या बीवीबच्चों के साथ रहना भी महज कामकाज लगता?था इन मर्दों को. तब औरतों को तो न जाने दिन में कितनी बार ऐसा ही प्रतीत होना चाहिए. घर संभालो, बच्चों को देखो, पति की फरमाइशों को पूरा करो, खटो दिनरात अरे, आक्यूपेशन तो महिलाओं के लिए है. बेचारी शिकायत भी नहीं करतीं.

जैसेतैसे 4 दिन इसी तरह गुजर गए. गंगा अब तक नहीं लौटी थी. वह पूछताछ करने ही वाली थी कि रानी ने कालबेल बजाते हुए घर में प्रवेश किया.

‘‘बीबीजी, गंगा ने आप को खबर करने के लिए मुझ से कहा था,’’ रानी बोली, ‘‘वह कुछ दिन अभी और नहीं आ पाएगी. उस की तबीयत बहुत खराब है.’’

रानी से गंगा का हाल सुना तो जया उद्वेलित हो उठी.  यह कैसी जिंदगी थी बेचारी गंगा की. शराबी पति घर की जिम्मेदारियां संभालना तो दूर, निरंतर खटती गंगा को जानवरों की तरह पीटता रहता और मार खाखा कर वह अधमरी सी हो गई थी.

‘‘छोड़ क्यों नहीं देती गंगा उसे. यह भी कोई जिंदगी है?’’ जया बोली.

माथे पर ढेर सारी सलवटें ले कर हाथ का काम छोड़ कर रानी ने एकबारगी जया को देखा और कहने लगी, ‘‘छोड़ कर जाएगी कहां वह बीबीजी? कम से कम कहने के लिए तो एक पति है न उस के पास. उसे भी अलग कर दे तो कौन करेगा रखवाली उस की? आप नहीं जानतीं मेमसाहब, हम लोग टिन की चादरों से बनी छतों के नीचे झुग्गियों में रहते हैं. हमारे पति हैं तो हम बुरी नजर से बचे हुए हैं. गले में मंगलसूत्र पड़ा हो तो पराए मर्द ज्यादा ताकझांक नहीं करते.’’

अजीब विडंबना थी. क्या सचमुच गरीब औरतों के पति सिर्फ एक सुरक्षा कवच भर ?हैं. विवाह के क्या अब यही माने रह गए? शायद हां, अब तो औरतें भी इस बंधन को महज एक व्यवसाय जैसा ही महसूस करने लगी हैं.

गंगा की हालत ने जया को विचलित कर दिया था. कितनी समझदार व सीधी है गंगा. उसे चुपचाप काम करते हुए, कुशलतापूर्वक कार्यों को अंजाम देते हुए जया ने पाया था. यही वजह थी कि उस की लगातार छुट्टियों के बाद भी उसे छोड़ने का खयाल वह नहीं कर पाई.

रानी लगातार बोले जा रही थी. उस की बातों से साफ झलक रहा?था कि गंगा की यह गाथा उस के पासपड़ोस वालों के लिए चिरपरिचित थी. इसीलिए तो उन्हें बिलकुल अचरज नहीं हो रहा था गंगा की हालत पर.

जया के मन में अचानक यह विचार कौंध आया कि क्या वह स्वयं अपने पति को गंगा की परिस्थितियों में छोड़ पाती? कोई जवाब न सूझा.

‘‘यार, एक कप चाय तो दे दो,’’ पति ने आवाज दी तो उस का खून खौल उठा.

जनाब देख रहे हैं कि अकेली घर के कामों से जूझ रही हूं फिर भी फरमाइश पर फरमाइश करे जा रहे हैं. यह समझ में नहीं आता कि अपनी फरमाइश थोड़ी कम कर लें.

जया का मन रहरह कर विद्रोह कर रहा था. उसे लगा कि अब तक जिम्मेदारियों के निर्वाह में शायद वही सब से अधिक योगदान दिए जा रही थी. गणेश तो मासिक आय ला कर बस उस के हाथ में धर देता और निजात पा जाता. दफ्तर जाते हुए वह रास्ते भर इन्हीं घटनाक्रमों पर विचार करती रही. उसे लग रहा था कि स्त्री जाति के साथ इतना अन्याय शायद ही किसी और देश में होता हो.

दोपहर को जब वह लंच के लिए उठने लगी तो फोन की घंटी बज उठी. दूसरी ओर सहेली पद्मा थी. वह भी गंगा के काम पर न आने से परेशान थी. जैसेतैसे संक्षेप में जया ने उसे गंगा की समस्या बयान की तो पद्मा तैश में आ गई, ‘‘उस राक्षस को तो जिंदा गाड़ देना चाहिए. मैं तो कहती हूं कि हम उसे पुलिस में पकड़वा देते हैं. बेचारी गंगा को कुछ दिन तो राहत मिलेगी. उस से भी अच्छा होगा यदि हम उसे तलाक दिलवा कर छुड़वा लें. गंगा के लिए हम सबकुछ सोच लेंगे. एक टेलरिंग यूनिट खोल देंगे,’’ पद्मा फोन पर लगातार बोले जा रही थी.

पद्मा के पति ने नौकरी से स्वैच्छिक अवकाश प्राप्त कर लिया था और घर से ही ‘कंसलटेंसी’ का काम कर रहे थे. न तो पद्मा को काम वाली का अभाव इतनी बुरी तरह खलता था, न ही उसे इस बात की चिंता?थी कि सिंक में पड़े बर्तनों को कौन साफ करेगा. पति घर के काम में पद्मा का पूरापूरा हाथ बंटाते थे. वह भी निश्चिंत हो अपने दफ्तर के काम में लगी रहती. वह आला दर्जे की पत्रकार थी. बढि़या बंगला, ऐशोआराम और फिर बैठेबिठाए घर में एक अदद पति मैनसर्वेंट हो तो भला पद्मा को कौन सी दिक्कत होगी.

वह कहते हैं न कि जब आदमी का पेट भरा हो तो वह दूसरे की भूख के बारे में भी सोच सकता?है. तभी तो वह इतने चाव से गंगा को अलग करवाने की योजना बना रही थी.

पद्मा अपनी ही रौ में सुझाव पर सुझाव दिए जा रही थी. महिला क्लब की एक खास सदस्य होने के नाते वह ऐसे तमाम रास्ते जया को बताए जा रही थी जिस से गंगा का उद्धार हो सके.

जया अचंभित थी. मात्र 4 घंटों के अंतराल में उसे इस विषय पर दो अलगअलग प्रतिक्रियाएं मिली थीं. कहां तो पद्मा तलाक की बात कर रही?थी और उधर सुबह ही रानी के मुंह से उस ने सुना था कि गंगा अपने ‘सुरक्षाकवच’ की तिलांजलि देने को कतई तैयार नहीं होगी. स्वयं गंगा का इस बारे में क्या कहना होगा, इस के बारे में वह कोई फैसला नहीं कर पाई.

जब जया ने अपना शक जाहिर किया तो पद्मा बिफर उठी, ‘‘क्या तुम ऐसे दमघोंटू बंधन में रह पाओगी? छोड़ नहीं दोगी अपने पति को?’’

जया बस, सोचती रह गई. हां, इतना जरूर तय था कि पद्मा को एक ताजातरीन स्टोरी अवश्य मिल गई थी.

महिला क्लब के सभी सदस्यों को पद्मा का सुझाव कुछ ज्यादा ही भा गया सिवा एकदो को छोड़ कर, जिन्हें इस योजना में खामियां नजर आ रही थीं. जया ने ज्यादातर के चेहरों पर एक अजब उत्सुकता देखी. आखिर कोई भी क्यों ऐसा मौका गंवाएगा, जिस में जनता की वाहवाही लूटने का भरपूर मसाला हो.

प्रस्ताव शतप्रतिशत मतों से पारित हो गया. तय हुआ कि महिला क्लब की ओर से पद्मा व जया गंगा के घर जाएंगी व उसे समझाबुझा कर राजी करेंगी.

गंगा अब तक काम पर नहीं लौटी थी. रानी आ तो रही?थी, पर उस का आना महज भरपाई भर था. जया को घर का सारा काम स्वयं ही करना पड़ रहा था. आज तो उस की तबीयत ही नहीं कर रही थी कि वह घर का काम करे. उस ने निश्चय किया कि वह दफ्तर से छुट्टी लेगी. थोड़ा आराम करेगी व पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार पद्मा को साथ ले कर गंगा के घर जाएगी, उस का हालचाल पूछने. यह बात उस ने पति को नहीं बताई. इस डर से कि कहीं गणेश उसे 2-3 बाहर के काम भी न बता दें.

रानी से बातों ही बातों में उस ने गंगा के घर का पता पूछ लिया. जब से महिला मंडली की बैठक हुई थी, रानी तो मानो सभी मैडमों से नाराज थी, ‘‘आप पढ़ीलिखी औरतों का तो दिमाग चल गया है. अरे, क्या एक औरत अपने बसेबसाए घर व पति को छोड़ सकती है? और वैसे भी क्या आप लोग उस के आदमी को कोई सजा दे रहे हो? अरे, वह तो मजे से दूसरी ले आएगा और गंगा रह जाएगी बेघर और बेआसरा.’’

40 साल की रानी को हाईसोसाइटी की इन औरतों पर निहायत ही क्रोध आ रहा था.

टिन के उस जंगल में गंगा का घर खोजना तो सचमुच कुछ ऐसा ही था जैसे भूसे के ढेर में सूई ढूंढ़ना. बेतरतीब झोंपड़े, इधरउधर भागते बच्चों की टोलियां, उन्हें झिड़कती हुई माताओं को पार कर के उस के छोटे से एक कमरे वाले घर को तलाशने में ही पद्मा व जया की हालत खराब हो गई.

गंगा को उस ने अपनी खोली के एक अंधेरे कोने में दुबका हुआ पाया. चेहरे पर खरोंच यह बता रहे थे कि इस बार मरम्मत कुछ ज्यादा ही अच्छी तरह से हुई थी. जया उस की खस्ता हालत को देख कर अचंभित तो थी ही, उस के जर्जर शरीर को देख कर उसे गहरा दुख भी हुआ.

उन्हें देख कर गंगा जल्दी से उठने लगी तो जया ने उसे हाथ बढ़ा कर रोक दिया.

‘‘बैठी रहो, गंगा,’’ उस ने आत्मीयता से कहा, ‘‘वैसे ही तुम्हारी हालत काफी नाजुक लग रही है.’’

1 मिनट का असाधारण मौन छा गया और फिर गंगा उन के लिए चाय बनाने उठी. लाख मना करने पर भी मानी नहीं.

चाय की चुसकियां लेते हुए जया व पद्मा ने बाहर कुछ आहट सुनी. पदचाप बाहर की ओर से आ रही थी. गंगा फुरती से उठी और 1 मिनट बाद लौटी, ‘‘मेरे पति हैं,’’ उस ने धीमी आवाज में कहा.

पद्मा तो मानो इसी घड़ी की प्रतीक्षा में थी. वह तुरंत उठी व पल्लू खोंसते हुए तेजी से बाहर की ओर रुख करने लगी. गंगा ने हाथ बढ़ा कर उसे रोक लिया और दयनीय स्वर में बोली, ‘‘उसे कुछ मत कहना, बीबीजी.’’

जया ने महसूस किया कि गंगा का पति नशे की हालत में ऊलजुलूल बड़बड़ा रहा?था. 1 मिनट बाद चारपाई पर उस के ढेर होने की आवाज आई.

‘‘लगता है सो गया,’’ गंगा मुसकरा कर बोली, ‘‘अब 3-4 घंटे बेसुध पड़ा रहे तो मैं अपना बचाखुचा काम भी समेट लूं.’’

जया को उस बेचारी पर तरस आया कि इस हालत में भी वह घर संभालने में लगी हुई थी और उस का पति आराम से चारपाई तोड़ रहा था. जया को लगा कि वह और पद्मा गंगा के दैनिक कार्यों में बाधा उत्पन्न कर रही हैं. लौटने के उद्देश्य से उस ने गंगा की ओर देखा, ‘‘गंगा, अपना खयाल रखना, बता देना कब लौटोगी.’’

जया ने पद्मा की ओर कनखियों से इशारा किया.

पद्मा तो जैसे भरी बैठी थी, ‘‘रुक भी जाओ, भूल गईं, किसलिए आए?थे यहां,’’ दांत भींचते हुए उस ने जया के हाथ से अपना हाथ छुड़ाया व गंगा की ओर मुखातिब हुई.

गंगा के चेहरे पर उस समय भाव कुछ ऐसे थे जैसे उसे अंदेशा हो गया था कि आगे क्या होगा. रानी ने शायद उसे पहले ही आगाह कर दिया था.

जया कहने लगी, ‘‘फिर कभी, आज नहीं.’’

दरअसल, वह यह नहीं समझ पा रही थी कि क्या यह सही वक्त था गंगा से तलाक के विषय में बात करने का. उस की कमजोर हालत जया को सोचने पर मजबूर कर रही थी.

‘‘नहीं, आज ही. मुझे क्यों रोक रही हो तुम,’’ पद्मा क्रोधित स्वर में जया से बोली, फिर वह गंगा से मुखातिब हुई, ‘‘देखो गंगा, अब और इस हालत से जूझते रहने का फायदा नहीं. क्या तुम्हें नहीं लग रहा कि तुम एक फटेहाल जिंदगी जी रही हो? क्या मिल रहा?है तुम्हें अपने पति से सिवा मारपीट व गालीगलौज के? तुम ने कभी सोचा नहीं कि उस आदमी को छोड़ कर तुम ज्यादा सुखी रहोगी? अपनी जिंदगी के बारे में भी सोचो कुछ.’’

पद्मा की उद्वेग के मारे सांस फूल रही थी और वह लगातार गंगा को प्रेरित करती रही कि ऐसा निरीह जीवन जीने की उसे कोई आवश्यकता नहीं थी.

गंगा शांति से उन की बात सुन रही थी. पद्मा का रोष थोड़ा ठंडा हुआ, ‘‘देखो गंगा, अगर तुम चाहो तो हम तुम्हारे जीवनयापन के लिए कुछ न कुछ इंतजाम कर ही लेंगे. तुम्हारे लिए एक छोटी सी टेलरिंग यूनिट खोल देंगे. तुम निश्चय तो करो.’’

‘‘मैं ने सब सुना?है बीबीजी. रानी तो रोज आ कर आप लोगों की बातें बताती ही रहती है. पर नहीं. मुझे इन चीजों की जरूरत नहीं.

‘‘बिलकुल भी नहीं,’’ पद्मा ने आपत्ति उठाने के लिए मुंह बस खोला ही था कि बाहर से तेज अस्पष्ट आवाजें सुनाई देने लगीं.

इस से पहले कि जया और पद्मा कुछ समझतीं कि माजरा क्या है, गंगा बाहर भाग चुकी थी. उस के हाथ में 2 बड़ी बालटियां थीं. बाहर से लोगों की आवाजें दस्तक दे रही थीं, ‘‘टैंकर आ गया, टैंकर आ गया.’’

महानगर निगम के पानी का टैंकर पहुंच गया था. लोगों की अपार भीड़ एकत्र हो रही थी. जया व पद्मा बाहर आ कर नजारा देखने लगीं. यह समस्या तो इस शहर में कमज्यादा सभी तबकों की थी. आदमी सांस लेना भूल जाए पर टैंकर की आहट को नजरअंदाज कभी न कर पाए.

महिलाओं व पुरुषों की भीड़ गुत्थमगुत्था हो रही थी. टैंकर के सामने घड़ों, बरतनों, बालटियों की बेतरतीब कतारें लग गई थीं. जया की आंखें उस भीड़ में गंगा को ढूंढ़ने लगीं. उस ने पाया कि गंगा अपनी बीमारी को लगभग भूल कर लोगों से उलझ कर 2 बालटी पानी भर लाई?थी. घर के अहाते तक आतेआते उस का शरीर पसीने से भीग चुका था. माथे पर कुमकुम का निशान भीग कर अर्धकार हो गया था. जयाचंद्रा ने सहारा देने के उद्देश्य से उस से एक बालटी लेने की कोशिश की.

‘‘नहीं, नहीं, बीबीजी. मैं संभाल लूंगी,’’ उस ने जया का हाथ छुड़ाया और पति की ओर इंगित करने लगी, ‘‘यह निखट्टू भी तो है. अभी जगाती हूं इसे,’’ यह कहते हुए गंगा ने अपने दांत भींचे व अंदर की ओर भागी. लौटी तो उस के हाथों में 2 बालटियां और थीं. दोनों बालटियां उस ने आंगन के कोने में रखीं, कमर कस कर पति की चारपाई के करीब जा खड़ी हुई. जया डर रही थी कि जगाने पर वह निर्दयी गंगा के साथ न जाने कैसा सलूक करेगा. अलसाया सा, आधी नींद में वह बड़बड़ा रहा था.

और फिर वह अचंभा हुआ जिस की जया को कतई उम्मीद नहीं थी. गंगा ने चारपाई पर बेहोश पड़े पति को एक जोरदार लात मारी. मार के सदमे से वह हड़बड़ा कर उठ बैठा. आंखें मींचता हुआ वह जायजा लेने लगा कि गाज कहां से गिरी.

‘‘उठ रे, शराबी,’’ गंगा ने दहाड़ मारी, ‘‘अभी नींद पूरी नहीं हुई या दूं मैं एक और लात.’’

वह आदमी धोती संभालता हुआ उठ खड़ा हुआ. 2 आगंतुक महिलाओं के सामने पिटने का एहसास जब हुआ तो बहुत देर हो चुकी थी. गंगा एक और लात जमाने के लिए तैयार खड़ी थी. लड़खड़ाए हुए पति के हाथ में उस ने बालटियां थमाईं और फरमान जारी किया, ‘‘जा, भर ला पानी, कमबख्त.’’

वह डगमगाता हुआ जब डोलने लगा तो गंगा ने 2 तमाचे और जड़ दिए, ‘‘अब जाता है कि…’’ और इसी के साथ दोचार मोटीमोटी गालियां भी पति के हिस्से में आ गईं.

जया व पद्मा अवाक् खड़ी थीं. उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि अभी जिस महिषासुरमर्दिनी को उन्होंने देखा था यह वही छुईमुई सी गंगा थी, जिसे वे चुपचाप घर का काम निबटाते हुए देखा करती थीं. यह कैसा अनोखा रूप था उस का. मुंह खुला का खुला रह गया. होश आया तो पाया कि गंगा आसपास कहीं नहीं थी. वह फिर उसी रेले में शामिल हो गई थी. जीजान से अन्य महिलाओं से लड़ती हुई अपने हिस्से के जल को बालटियों में भरते हुए. महिलाएं एकदूसरे पर हावी हो रही थीं और उन की कर्कश आवाजों से वातावरण गूंज रहा था.

वे दोनों तब तक सन्न खड़ी रहीं जब तक गंगा घर में दोबारा आ नहीं गई. उन की फटी नजरों को भांपते हुए गंगा ने एक शर्मीली मुसकान बिखेरी.

‘‘गंगा, यह तुम थीं?’’ आवाज पद्मा के हलक से पहले निकली.

जया भी मुग्ध भाव से उसे देखे जा रही थी.

‘‘हां, बीबीजी, यह सब तो चलता रहता है. इसे मैं दोचार जमाऊंगी नहीं तो कैसे चलेगा. वह मुझ पर हाथ उठाता?है तो मैं भी उसे पीटने में कोई कसर नहीं छोड़ती,’’ वह कुछ ऐसे बोल रही थी जैसे किसी शैतान बच्चे को राह पर लाने का नुस्खा समझा रही हो, ‘‘जब मैं चाहती हूं तब कमान अपने हाथ में ले लेती हूं,’’ झांसी की रानी जैसे भाव थे उस के चेहरे पर, ‘‘मैं जानती हूं बीबीजी, आप सब लोग हमारा?भला चाहती हैं. पर मुझे नहीं चाहिए यह तलाकवलाक. जरूरत नहीं है मुझे. मैं अपने तरीकों से इसे ‘लाइन’ पर ले आती हूं,’’ वह मुसकराती हुई बोली, ‘‘कभीकभी कड़वी दवा पिला ही देती हूं मैं इसे. मिमियाता हुआ वापस आ जाता है बकरी की तरह. और किस के पास जाएगा. आना तो शाम को इसी घर में है न? जब होश आता है तो गलती का एहसास भी हो जाता है इसे. पता है इसे कि मेरे बगैर इस का गुजारा नहीं.’’

गंगा ने शायद अपने पति पर पूरा अनुसंधान कर रखा था. अब मानो वह उन्हें उस की रिपोर्ट पढ़ा रही हो. जया को लगा वाकई जीवन की बागडोर गंगा ने कुछ अपने तरीके से संभाली हुई थी. शायद उन से बेहतर प्रचारक थी वह नारी मुक्ति की. शायद प्रचार करने की आवश्यकता भी नहीं थी गंगा को. उस के तरीके बेहद सरल व प्रायोगिक थे. उस ने देखा गंगा एकदम सहज भाव से बतियाए जा रही थी. उसे इस बात की कोई चिंता नहीं थी कि उस के इस रवैये पर अन्य लोगों की क्या प्रतिक्रिया रहेगी. इस बीच कब गंगा का पति शरमाता हुआ लौटा व एक सेट बरतन और ले गया पानी भर लाने के लिए, इस की उन्हें सुध न रही.

जया व पद्मा अचंभित हालत में अपने वाहन की ओर बढ़ रही थीं. एक अजब खामोशी छाई हुई थी दोनों के बीच में. जाहिर था, दोनों ही गंगा व उस के पति के बारे में सोच रही थीं. जया को लगा कि शायद उन का क्लब वाला प्रस्ताव बेहद बेतुका था. कनखियों से उस ने पद्मा की ओर देखा जो कुछ ऐसी ही उधेड़बुन में लिप्त थी.

भारतीय परिवारों में एक अनोखा ही समीकरण था पतिपत्नी के बीच में. कभी किसी का पलड़ा भारी रहा तो कभी किसी का. क्या यही वजह नहीं थी पद्मा व उस के पति ने आपसी सामंजस्य से अपनी जिम्मेदारियों को आपस में बदल लिया था. सब लोग अपनी आपसी उलझनों का कुछ अपने तरीके से ही हल ढूंढ़ लेते हैं. गंगा ने भी शायद कुछ ऐसा ही कर लिया था.

गाड़ी में जब पद्मा निश्चल सी बैठी रह गई तो जया से रहा न गया. उस ने एकाएक पद्मा के हाथ से ‘डिक्टाफोन’ छीना, ‘‘देवियो और सज्जनो, क्या आप जानते हैं कि गंगा और हम में क्या अंतर है? वह अपने पति को लात मार सकती है पर हम नहीं.’’

और फिर दोनों महिलाओं के ठहाके गूंजने लगे.

ड्राइवर उन्हें कुछ ऐसे देखने लगा जैसे वे दोनों पागल हो गई हों.

दादी आप की तो मौज है

लेखिका- बिमला गुप्ता

एकदिन मिनी मेरे पास बैठ कर होमवर्क कर रही थी. अचानक कहने लगी, ‘‘दादी, आप को कितनी मौज है न?’’

‘‘क्यों किस बात की मौज है?’’ मैं ने जानना चाहा.

‘‘आप को तो कोई काम नहीं करना पड़ता है न,’’ उस का उत्तर था.

‘‘क्यों? मैं तुम्हारे लिए मैगी बनाती हूं, सूप बनाती हूं, हरी चटनी बनाती हूं, तुम्हारा फोन चार्ज करती हूं. कितने काम तो करती हूं?’’

तुम्हें कौन सा काम करना पड़ता है?’’ मैं ने हंस कर पूछा.

‘‘क्या बताऊं दादी… मु  झे तो बस काम

ही काम हैं?’’ उस ने बड़े ही दुखी स्वर में

उत्तर दिया.

‘‘क्या काम है, पता तो चले?’’ मैं ने पूछा.

‘‘क्लास अटैंड करो, होमवर्क करो, कभी टैस्ट की तैयारी करो, कभी कोई प्रोजैक्ट तैयार करो… दादी आप को पता है, बच्चों को कितने काम होते हैं,’’ वह धाराप्रवाह बोलती जा रही थी, जैसे किसी ने उस की दुखती रग पर हाथ रख दिया हो.

‘‘उस पर ये औनलाइन क्लासें. बस

लैपटौप के सामने बैठे रहो बुत बन कर. जरा सा

इधरउधर देखो तो मैम चिल्लाने लगती हैं. चिल्लाती भी इतनी जोर से हैं कि घर पर भी सब को पता चल जाता है, सोनम तुम ने होमवर्क क्यों नहीं किया?

‘‘राहुल तुम्हारी राइटिंग बहुत गंदी है.

महक तुम्हारा ध्यान किधर है? बस डांटती ही जाती हैं, आज मिनी पूरी तरह विद्रोह पर उतर आई थी. मैं चुपचाप उस की बातें सुन रही थी. फिर मैं ने हंस कर पूछा, ‘‘क्या स्कूल में मैम

नहीं डांटती?’’ .

‘‘दादी, कैसी बात कर रही हो? वह भी डांटती हैं… मैडमों का तो काम ही डांटना है.’’

‘‘फिर?’’ मेरा प्रश्न था.

‘‘दादी, आप सम  झ नहीं रही हो?’’ उस ने बड़े भोलेपन से उत्तर दिया.

‘‘क्या नहीं सम  झ रही हूं? तू कुछ बताएगी तो पता चलेगा.’’

‘‘रुको, मैं आप को सम  झाती हूं. स्कूल में भी मैम डांटती हैं, पर हम लोगों को बुरा नहीं लगता है, ‘‘क्योंकि डांट तो सब को पड़ती है. इसलिए क्लास में सब बराबर होते हैं.

कभीकभी तो पनिशमैंट भी मिलता है, पर किसी को पता तो नहीं चलता? यहां तो अपने ही

फ्रैंड्स के पेरैंट्स तक को पता चल जाता है. सब के सामने इन्सल्ट हो जाती है न?’’ वह गंभीरतापूर्वक बोली.

‘‘हां बात तो तेरी ठीक है. हमें स्कूल में मैम से डांट पड़ी है… घर पर तो किसी को पता नहीं चलना चाहिए,’’ मैं ने मन ही मन मुसकराते हुए उस की बात का समर्थन किया.

समर्थन पा कर वह बहुत खुश हुई. शायद बचपन से ही हमारे मन में यह भावना घर कर जाती है कि हमारी गलतियों का किसी को पता नहीं चलना चाहिए.

अब वह पूरी तरह अपनी

रौ में आ चुकी थी. मु  झे अपना राजदान बनाते हुए बोली,

‘‘दादी, मैं आप को एक बहुत

ही मजेदार बात बताऊं? आप किसी को बताएंगी तो नहीं?’’

उस ने पूछा. वह आश्वस्त होना चाहती थी.

‘‘नहीं, मैं किसी को नहीं बताऊंगी. तू बेफिक्र हो कर बता.’’

मेरा उत्तर सुन कर वह बोली,

‘‘जब किसी बच्चे पर मैम

नाराज होती हैं, तो सारे बच्चे नीचे मुंह

कर के या मुंह पर हाथ रख कर हंसने

लगते हैं.’’

‘‘मैम नाराज नहीं होती.’’

‘‘मैम को पता ही नहीं चलता है.’’

‘‘और वह बच्चा?’’

‘‘बच्चों को क्या फर्क पड़ता है. रोज किसी न किसी पर मैम गुस्सा होती ही हैं.’’

यह सुन कर मु  झे हंसी आ गई. सच ही है, ‘हमाम में सब नंगे.’

‘‘एक और मजेदार बात बताऊं दादी?’’ अब वह बहुत खुश लग रही थी.

‘‘हांहां जरूर.’’

‘‘जब मैम ब्लैकबोर्ड पर लिखती हैं न तो क्लास की तरफ उनकी पीठ होती है तब हम लोग बहुत मस्ती करते हैं. कुछ लड़के तो अपनी सीट छोड़ कर उधम मचाने लगते हैं और जैसे

ही मैम मुड़ती हैं सब अपनीअपनी सीट पर चुपचाप बैठ जाते हैं. मैम को कुछ पता ही नहीं चलता. हम लोग स्कूल में बहुत मजे करते हैं.

घर पर तो मैं बोर हो जाती हूं,’’ उस ने निराश हो कर कहा.

‘‘बस सारा दिन घर में बैठे रहो. इस कोरोना ने तो पागल कर दिया है.

‘‘उस पर सुबहसुबह जब अच्छी नींद आती है तो मम्मा जबरदस्ती उठा देती हैं. दोपहर को जब मु  झे नींद नहीं आती तो कहती हैं अब थोड़ी देर सो जाओ.’’

‘‘पहले भी तो ऐसा ही होता था,’’ मैं

ने कहा.

‘‘दादी आप सम  झ नहीं रही हो. पहले मैं स्कूल जाती थी, इसलिए थक जाती थी. अब दिन में सो जाती हूं तो रात को नींद नहीं आती है, पर सुबहसुबह उठना पड़ता है न? और ये पापा बारबार कहते हैं बुक रीडिंग कर लो… मु  झे परेशान कर के रख दिया है सब ने,’’ उस ने दुखी स्वर में कहा.

फिर कुछ देर कुछ सोचने के बाद मु  झ से पूछने लगी, ‘‘दादी, मैं कब बड़ी

होऊंगी?’’

मिनी का प्रश्न सुन कर मैं हैरत से उस की ओर देखने लगी. मन सोच में डूब गया. अकसर बचपन में हम जल्दी बड़े होना चाहते हैं, पर

बड़े होने पर दुनियादारी में फंस कर हमारी

बचपन की निश्चिंतता, निश्छलता, भोलापन सब पता नहीं कहां गायब हो जाते हैं. उम्र बढ़ने के साथ ही जिम्मेदारियों के बो  झ तले दबते ही चले जाते हैं.

धीरेधीरे जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हुए हम स्वयं शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक रूप से कमजोर हो जाते हैं. दूसरों का बो  झ उठातेउठाते हम स्वयं सब पर बो  झ बन जाते हैं. फिर याद आती हैं उस उम्र की बातें जो लौट कर कभी नहीं आती है.

मगर मिनी को क्या पता है कि उम्र के इस पड़ाव तक पहुंचने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ता है… वह तो बस जल्दी से जल्दी उस उम्र में पहुंचना चाहती है.

सोच: मिसेज सान्याल और मिसेज अविनाश दूर क्यों भागते थे अपने बेटेबहू से?

हर व्यक्ति के सोचने का तरीका अलग होता है. जरूरी नहीं कि एक व्यक्ति जिस तरह सोचता हो, दूसरा भी उसी तरह सोचे. इसी तरह यह भी जरूरी नहीं कि एक व्यक्ति की सोच को दूसरा पसंद करे. हां, सार्थक सोच से जीवन की धारा जरूर बदल जाती है जहां एक स्थिरता मिलती है, मन को सुकून मिलता है. यह बात मैं ने उस दिन अच्छी तरह से जानी जिस दिन मैं श्रीमती सान्याल के घर किटी पार्टी में गई थी. उस एक दिन के बाद मेरी सोच कब बदली यह खयाल कर मैं अतीत में खो सी गई.

दरवाजे पर उन की नई बहू मानसी ने हम सब का स्वागत किया. मिसेज सान्याल एकएक कर जैसेजैसे हम सभी सदस्याओं का परिचय, अपनी नई बहू से करवाती जा रही थीं वह चरण स्पर्श कर के सब से आशीर्वाद लेती जा रही थी. मानसी जैसे ही मेरे चरण छूने को आगे बढ़ी मैं ने प्यार से उसे यह कह कर रोक दिया, ‘बस कर बेटी, थक जाएगी.’

‘क्यों थक जाएगी?’ श्रीमती सान्याल बोलीं, ‘जितना झुकेगी उतनी ही इस की झोली आशीर्वाद के वजनों से भरती जाएगी.’

श्रीमती सान्याल तंबोला की टिकटें बांटने लगीं तो मानसी सब से पैसे जमा कर रही थी. खेल के बीच में मानसी रसोई में गई और थोड़ी देर में सब के लिए गरम सूप और आलू के चिप्स ले कर आई, फिर बारीबारी से सब को देने लगी.

तंबोला का खेल खत्म हुआ. खाने की मेज स्वादिष्ठ पकवानों से सजा दी गई. मानसी चौके में गरम पूरियां सेंक रही थी और श्रीमती सान्याल सब को परोसती जा रही थीं. दहीबड़े का स्वाद चखते समय औरतें कभी सास बनीं सान्याल की प्रशंसा करतीं तो कभी बहू मानसी की.

थोड़ी देर बाद हम सब महिलाओं ने श्रीमती सान्याल से विदा ली और अपनेअपने घर की ओर चल दीं.

घर लौट कर मेरे दिमाग पर काफी देर तक सान्याल परिवार का चित्र अंकित रहा. सासबहू के बीच न किसी प्रकार का तनाव था न मनमुटाव. प्यार, सम्मान और अपनत्व की डोर से दोनों बंधी थीं. हो सकता है यह सब दिखावा हो. मेरे मन से पुरजोर स्वर उभरा, ब्याह के अभी कुछ ही दिन तो हुए हैं टकराहट और कड़वाहट तो बाद में ही पैदा होती हैं, और तभी अलगअलग रहने की बात सोची जाती है. इसीलिए क्यों न ब्याह होते ही बेटेबहू को अलग घर में रहने दिया जाए.

श्रीमती सान्याल मेरी बहुत नजदीकी दोस्त हैं. पढ़ीलिखी शिष्ट महिला हैं. मिस्टर सान्याल मेरे पति अविनाश के ही दफ्तर में काम करते हैं. उन का बेटा विभू और मेरा राहुल, हमउम्र हैं. दोनों ने एक साथ ही एम.बी.ए. किया था. अब दोनों अलगअलग बहु- राष्ट्रीय कंपनी में नौकरी कर रहे हैं.

श्रीमती सान्याल शुरू से ही संयुक्त परिवार की पक्षधर थीं. विभू के विवाह से पहले ही वह जब तब बेटेबहू को अपने साथ रखने की बात कहती रही थीं. लेकिन मेरी सोच उन से अलग थी. पास- पड़ोस, मित्र, परिजनों के अनुभव सुन कर यही सोचती कि कौन पड़े इन झमेलों में.

मैं ने एक बार श्रीमती सान्याल से कहा था, हर घर तो कुरुक्षेत्र का मैदान बना हुआ है. सौहार्द, प्रेम, घनिष्ठता, अपनापन दिखाई ही नहीं देता. परिवारों में, सास बहू की बुराई करती है, बहू सास के दुखड़े रोती है.

इस पर वह बोली थीं, ‘घर में रौनक भी तो रहती है.’ तब मैं ने अपना पक्ष रखा था, ‘समझौता बच्चों से ही नहीं, उन के विचारों से करना पड़ता है.’

‘शुरू में सासबहू का रिश्ता तल्खी भरा होता है किंतु एकदूसरे की प्रतिद्वंद्वी न बन कर एकदूसरे के अस्तित्व को प्यार से स्वीकारा जाए और यह समझा जाए कि रहना तो साथसाथ ही है, तो सब ठीक रहता है.’’

ब्याह से पहले ही मैं ने राहुल को 3 कमरे का एक फ्लैट खरीदने की सलाह दी पर अविनाश चाहते थे कि बेटेबहू हमारे साथ ही रहें. उन्होंने मुझे समझाते हुए कहा भी था कि राधिका नौकरी करती है. दोनों सुबह जाएंगे, रात को लौटेंगे. कितनी देर मिलेंगे जो विचारों में टकराहट होगी.

‘विचारों के टकराव के लिए थोड़ा सा समय ही काफी होता है,’ मैं अड़ जाती, ‘समझौता और समर्पण मुझे ही तो करना पड़ेगा. बहूबेटा, प्रेम के हिंडोले में झूमते हुए दफ्तर जाएं और मैं उन के नाजनखरे उठाऊं?’

अविनाश चुप हो जाते थे.

फ्लैट के लिए कुछ पैसा अविनाश ने दिया बाकी बैंक से फाइनेंस करवा लिया गया. राधिका के दहेज में मिले फर्नीचर से उन का घर सज गया. बाकी सामान खरीद कर हम ने उन्हें उपहार में दे दिया. कुल मिला कर राहुल की गृहस्थी सज गई. सप्ताहांत पर वे हमारे पास आ जाते या हम उन के पास चले जाते थे.

मैं इस बात से बेहद खुश थी कि मेरी आजादी में किसी प्रकार का खलल नहीं पड़ा था. अविनाश सुबह दफ्तर जाते, शाम को लौटते. थोड़ा आराम करते, फिर हम दोनों पतिपत्नी क्लब चले जाते थे. वह बैडमिंटन खेलते या टेनिस और मैं अकसर महिलाओं के साथ गप्पगोष्ठी में व्यस्त रहती या फिर ताश खेलती. इस सब के बाद जो भी समय मेरे पास बचता उस में मैं बागबानी करती.

पिछले कुछ दिनों से श्रीमती सान्याल दिखाई नहीं दी थीं. क्लब में भी मिस्टर सान्याल अकेले ही आते थे. एक दिन पूछ बैठी तो हंस कर बोले, ‘आजकल घर में ही रौनक रहती है. आप क्यों नहीं मिल आतीं?’

अच्छा लगा था मिस्टर सान्याल का प्रस्ताव. एक दिन बिना पूर्व सूचना के मैं उन के घर चली गई. वह बेहद अपनेपन से मिलीं. उन के चेहरे पर प्रसन्नता के भाव तिर आए. कुछ समय शिकवेशिकायतों में बीत गया. फिर मैं ने उलाहना सा दिया, ‘काफी दिनों से दिखाई नहीं दीं, इसीलिए चली आई. कहां रहती हो आजकल?’

मैं सोच रही थी कि इतना सुनते ही श्रीमती सान्याल पानी से भरे पात्र सी छलक उठेंगी, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. वह सहज भाव में बोलीं, ‘विभू के विवाह से पहले मैं घर में बहुत बोर होती थी इसीलिए घर से बाहर निकल जाती थी या फिर किसी को बुला लेती थी. अब दिन का समय घर के छोटेबड़े काम निबटाने में ही निकल जाता है. शाम का समय तो बेटे और बहू के साथ कैसे बीत जाता है, पता ही नहीं चलता.’

संतुष्ट, संतप्त, मिसेज सान्याल मेरे हाथ में एक पत्रिका थमा कर खुद रसोई में चाय बनाने के लिए चली गईं.

चाय की चुस्की लेते हुए मैं ने फिर कुरेदा, ‘काफी दुबली हो गई हो. लगता है, काम का बोझ बढ़ गया है.’

‘आजकल मानसी मुझे अपने साथ जिम ले जाती है’, और ठठा कर वह हंस दीं, ‘उसे स्मार्ट सास चाहिए,’ फिर थोड़े गंभीर स्वर में बोलीं, ‘इस उम्र में वजन कम रहे तो इनसान कई बीमारियों से बच जाता है. देखो, कैसी स्वस्थ, चुस्तदुरुस्त लग रही हूं?’

कुछ देर तक गपशप का सिलसिला चलता रहा फिर मैं ने उन से विदा ली और घर लौट आई.

लगभग एक हफ्ते बाद फोन की घंटी बजी. श्रीमती सान्याल थीं दूसरी तरफ. हैरानपरेशान सी वह बोलीं, ‘मानसी का उलटियां कर के बुरा हाल हो रहा है. समझ में नहीं आता क्या करूं?’

‘क्या फूड पायजनिंग हो गई है?’

‘अरे नहीं, खुशखबरी है. मैं दादी बनने वाली हूं. मैं ने तो यह पूछने के लिए तुम्हें फोन किया था कि तुम ने ऐसे समय में अपनी बहू की देखभाल कैसे की थी, वह सब बता और जो भूल गई हो उसे याद करने की कोशिश कर. तब तक मैं अपनी कुछ और सहेलियों को फोन कर लेती हूं.’

अति उत्साहित, अति उत्तेजित श्रीमती सान्याल की बात सुन कर मैं सोच में पड़ गई. ब्याह के एक बरस बाद राधिका गर्भवती हुई थी. शुरू के 2-3 महीने उस की तबीयत काफी खराब रही थी. उलटियां, चक्कर फिर वजन भी घटने लगा था. लेडी डाक्टर ने उसे पूरी तरह आराम करने की सलाह दी थी.

राधिका और राहुल मुझे बारबार बुलाते रहे. एक दिन तो राहुल दरवाजे पर ही आ कर खड़ा हो गया और अपनी कार में मेरा बैग भी ले जा कर रख लिया. अविनाश की भी इच्छा थी कि मैं राहुल के साथ चली जाऊं. पर मेरी इच्छा वहां जाने की नहीं थी. उन्होंने मुझे समझाते हुए यह भी कहा कि अगर तुम राहुल के घर नहीं जाना चाहती हो तो उन्हें यहीं बुला लो.

सभी ने इतना जोर दिया तो मैं ने भी मन बना लिया था. सोचा, कुछ दिन तो रह कर देखें. शायद अच्छा लगे.

अगली सुबह अखबार में एक खबर पढ़ी, ‘कृष्णा नगर में एक बहू ने आत्म- हत्या कर ली. बहू को प्रताडि़त करने के अपराध में सास गिरफ्तार.’

‘तौबातौबा’ मैं ने अपने दोनों कानों को हाथ लगाया. मुंह से स्वत: ही निकल गया कि आज के जमाने में जितना हो सके बहूबेटे से दूरी बना कर रखनी चाहिए.

मां के प्राण, बेटे में अटकते जरूर हैं, मोह- ममता में मन फंसता भी है. आखिर हमारे ही रक्तमांस का तो अंश होता है हमारा बेटा. लेकिन वह भी तो बहू के आंचल से बंधा होता है. मां और पत्नी के बीच बेचारा घुन की तरह पिसता चला जाता है. मां तो अपनी ममता की छांव तले बहूबेटे के गुणदोष ढक भी लेगी लेकिन बहू तो सरेआम परिवार की इज्जत नीलाम करने में देर नहीं करती. किसी ने सही कहा है, ‘मां से बड़ा रक्षक नहीं, पत्नी से बड़ा तक्षक नहीं.’

मैं गर्वोन्नत हो अपनी समझदारी पर इतरा उठी. यही सही है, न हम बच्चों की जिंदगी में हस्तक्षेप करें न वह हमारी जिंदगी में दखल दें. राधिका बेड रेस्ट पर थी. उस ने अपनी मां को बुला लिया तो मैं ने चैन की सांस ली थी. ऐसा लगा, जैसे मैं कटघरे में जाने से बच गई हूं.

प्रसव के समय भी मजबूरन जाना पड़ा था, क्योंकि राधिका के पीहर में कोई महिला नहीं थी, सिर्फ मां थी, उन्हें भी अपनी बहू की डिलीवरी पर अमेरिका जाना पड़ रहा था.

3 माह का समय मैं ने कैसे काटा, यह मैं ही जानती हूं. नवजात शिशु और घर के छोटेबड़े दायित्व निभातेनिभाते मेरे पसीने छूटने लगे. इतने काम की आदत भी तो नहीं थी. राधिका की आया से जैसा बन पड़ता सब को पका कर खिला देती. रात में भी शुभम रोता तो आया ही चुप कराती थी.

3 माह का प्रसूति अवकाश समाप्त हुआ. राधिका को काम पर जाना था. बेटेबहू दोनों ने हमारे साथ रहने की इच्छा जाहिर की थी.

अविनाश भी 3 माह के शिशु को आया की निगरानी में छोड़ कर जाने के पक्ष में नहीं थे, लेकिन मेरी नकारात्मक सोच फिर से आड़े आ गई. मन अडि़यल घोड़े की तरह एक बार फिर पिछले पैरों पर खड़ा हो गया था. मन को यही लगता था कि बहू के आते ही इस घर की कमान मेरे हाथ से सरक कर उस के हाथ में चली जाएगी.

राधिका ने शुभम को अपने ही दफ्तर में स्थित क्रेच में छोड़ कर अपना कार्यभार संभाल लिया. लंच में या बीचबीच में जब भी उसे समय मिलता वह क्रेच में जा कर शुभम की देखभाल कर आती थी. शाम को दोनों पतिपत्नी उसे साथ ले कर ही वापस लौटते थे. दुख, तकलीफ या बीमारी की अवस्था में राधिका और राहुल बारीबारी से अवकाश ले लिया करते थे. मुश्किलें काफी थीं लेकिन विदेशों में भी तो बच्चे ऐसे ही पलते हैं, यही सोच कर मैं मस्त हो जाती थी.

मिसेज सान्याल अकसर मुझे अपने घर बुला लेती थीं. मैं जब भी उन के घर जाती, कभी वह मशीन पर सिलाई कर रही होतीं या फिर सोंठहरीरे का सामान तैयार कर रही होतीं. मानसी का चेहरा खुशी से भरा होता था.

एक दिन उन्होंने, कई छोटेछोटे रंगबिरंगे फ्राक दिखाए और बोलीं, ‘बेटी होगी तो यह रंग फबेगा उस पर, बेटा होगा तो यह रंग अच्छा लगेगा.’

मैं उन के चेहरे पर उभरते भावों को पढ़ने का प्रयास करती. न कोई डर, न भय, न ही दुश्ंिचता, न बेचैनी. उम्मीद की डोर से बंधी मिसेज सान्याल के मन में कुछ करने की तमन्ना थी, प्रतिपल.

एक दिन सुबह ही मिस्टर सान्याल का फोन आया. बोले, ‘‘मानसी को लेबर पेन शुरू हो गया है और उसे अस्पताल ले कर जा रहे हैं. मिसेज सान्याल थोड़ा अकेलापन महसूस कर रही हैं, अगर आप अस्पताल चल सकें तो…’’

मैं तुरंत तैयार हो कर उन के साथ चल दी. मानसी दर्द से छटपटा रही थी और मिसेज सान्याल उसे धीरज बंधाती जा रही थीं. कभी उस की टांगें दबातीं तो कभी माथे पर छलक आए पसीने को पोंछतीं, उस का हौसला बढ़ातीं.

कुछ ही देर में मानसी को लेबररूम में भेज दिया गया तो मिसेज सान्याल की निगाहें दरवाजे पर ही अटकी थीं. वह लेबररूम में आनेजाने वाले हर डाक्टर, हर नर्स से मानसी के बारे में पूछतीं. मिसेज सान्याल मुझे बेहद असहाय दिख रही थीं.

मानसी ने बेटी को जन्म दिया. सब कुछ ठीकठाक रहा तो मैं घर चली आई पर पहली बार कुछ चुभन सी महसूस हुई. खालीपन का अहसास हुआ था. अविनाश दफ्तर चले गए थे. रिटायरमेंट के बाद उन्हें दोबारा एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी मिल गई थी. मेरा मन कहीं भी नहीं लगता था. घर बैठती तो कमरे के भीतर भांयभांय करती दीवारें, बाहर का पसरा हुआ सन्नाटा चैन कहां लेने देता था. तबीयत गिरीगिरी सी रहने लगी. स्वभाव चिड़चिड़ा हो गया. मन में हूक सी उठती कि मिसेज सान्याल की तरह मुझे भी तो यही सुख मिला था. संस्कारी बेटा, आज्ञाकारी बहू. मैं ने ही अपने हाथों से सबकुछ गंवा दिया.

डाक्टर ने मुझे पूरी तरह आराम की सलाह दी थी. राहुल और राधिका मुझे कई डाक्टरों के पास ले गए. कई तरह के टेस्ट हुए पर जब तक रोग का पता नहीं चलता तो इलाज कैसे संभव होता? बच्चों के घर आ जाने से अविनाश भी निश्ंिचत हो गए थे.

राधिका ने दफ्तर से छुट्टी ले ली थी. चौके की पूरी बागडोर अब बहू के हाथ में थी. सप्ताह भर का मेन्यू उस ने तैयार कर लिया था. केवल अपनी स्वीकृति की मुहर मुझे लगानी पड़ती थी. मैं यह देख कर हैरान थी कि शादी के बाद राधिका कभी भी मेरे साथ नहीं रही फिर भी उसे इस घर के हर सदस्य की पसंद, नापसंद का ध्यान रहता था.

राहुल दफ्तर जाता जरूर था लेकिन जल्दी ही वापस लौट आता था.

शुभम अपनी तोतली आवाज से मेरा मन लगाए रखता था. घर में हर तरफ रौनक थी. रस्सियों पर छोटेछोटे, रंगबिरंगे कपड़े सूखते थे. रसोई से मसाले की सुगंध आती थी. अविनाश और मैं उन पकवानों का स्वाद चखते थे जिन्हें बरसों पहले मैं खाना तो क्या पकाना तक भूल चुकी थी.

कुछ समय बाद मैं पूरी तरह से स्वस्थ हो गई. मिसेज सान्याल हर शाम मुझ से मिलने आती थीं. कई बार तो बहू के साथ ही आ जाती थीं. अब उन पर, नन्ही लक्ष्मी को भी पालने का अतिरिक्त कार्यभार आ गया था. वह पहले से काफी दुबली हो गई थीं, लेकिन शारीरिक व मानसिक रूप से पूर्णत: स्वस्थ दिखती थीं.

एक शाम श्रीमती सान्याल अकेली ही आईं तो मैं ने कुरेदा, ‘अब तक घर- गृहस्थी संभालती थीं, अब बच्ची की परवरिश भी करोगी?’

‘संबंधों का माधुर्य दैनिक दिनचर्या की बातों में ही निहित होता है. घरपरिवार को सुचारु रूप से चलाने में ही तो एक औरत के जीवन की सार्थकता है,’ उन्होंने स्वाभाविक सरलता से कहा फिर शुभम के साथ खेलने लगीं.

राधिका पलंगों की चादरें बदल रही थी. सुबह बाई की मदद से उस ने पालक, मेथी काट कर, मटर छील कर, छोटेछोटे पौली बैग में भर दिए थे. प्याज, टमाटर का मसाला भून कर फ्रिज में रख दिया था. अगली सुबह वे दोनों वापस अपने घर लौट रहे थे.

इस एक माह के अंदर मैं ने खुद में आश्चर्यजनक बदलाव महसूस किया था. अपनेआप में एक प्रकार की अतिरिक्त ऊर्जा महसूस होती थी. तनावमुक्ति, संतोष, विश्राम और घरपरिवार के प्रति निष्ठावान बहू की सेवा ने मेरे अंदर क्रांतिकारी बदलाव ला दिया था.

‘मिसेज सान्याल मुझे समझा रही थीं, ‘देखो, हर तरफ शोर, उल्लास, नोकझोंक, गिलेशिकवे, प्यारसम्मान से दिनरात की अवधि छोटी हो जाती है. 4 बरतन जहां होते हैं, खटकते ही हैं पर इन सब से रौनक भी तो रहती है. अवसाद पास नहीं फटकता, मन रमा रहता है.’

पहली बार मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मेरी सोच बदल गई है और अब श्रीमती सान्याल की सोच से मिल रही है. सच तो यह था कि मुझे अपने बच्चों से न कोई गिला था न शिकवा, न बैर न दुराव. बस, एक दूरी थी जिसे मैं ने खुद स्थापित किया था.

आज बहू के प्रति मेरे चेहरे पर कृतज्ञता और आदर के भाव उभर आए हैं. हम दोनों के बीच स्थित दूरी कहीं एक खाई का रूप न ले ले. इस विचार से मैं अतीत के उभर आए विचारों को झटक उठ कर खड़ी हो गई. कुछ पाने के लिए अहम का त्याग करना पड़ता है. अधिकार और जिम्मेदारियां एक साथ ही चलती हैं, यह पहली बार जान पाई थी मैं.

राहुल और राधिका कार में सामान रख रहे थे. शुभम का स्वर, अनुगूंज, अंतस में और शोर मचाने लगा. राहुल, पत्नी के साथ मुझ से विदा लेने आया तो मेरा स्वर भीग गया. कदम लड़खड़ाने लगे. राधिका ने पकड़ कर मुझे सहारा दिया और पलंग पर लिटा दिया फिर मेरे माथे पर हाथ फेरते हुए बोली, ‘‘क्या हुआ मां?’’

‘‘मैं तुम लोगों को कहीं जाने नहीं दूंगी,’’ और बेटे का हाथ पकड़ कर मैं रो पड़ी.

‘‘पर मां…’’

‘‘कुछ कहने की जरूरत नहीं है. हम सब अब साथ ही रहेंगे.’’

मेरे बेटे और बहू को जैसे जीवन की अमूल्य निधि मिल गई और अविनाश को जीवन का सब से बड़ा सुख. मैं ने अपने हृदय के इर्दगिर्द उगे खरपतवार को समूल उखाड़ कर फेंक दिया था. शक, भय आशंका के बादल छंट चुके थे. बच्चों को अपने प्रति मेरे मनोभाव का पता चल गया था. सच, कुछ स्थानों पर जब अंतर्मन के भावों का मूक संप्रेषण मुखर हो उठता है तो शब्द मूल्यहीन हो जाते हैं.

Monsoon Health Tips : भूलकर भी बारिश के दिनों में न खाएं ये सब्जियां, हेल्थ को हो सकते हैं नुकसान

हेल्दी रहने के लिए मौसम के अनुसार खाने की सलाह दी जाती है. मानसून में बढ़ते नमी की वजह से इंफेक्शन फैलने का ज्यादा भय रहता है. ऐसे में खानपान से जुड़ी लापरवाही सेहत पर भारी पड़ सकती है.

 

जिन सब्जियों के बारे में आप जानते हैं कि वो विटामिन्स से भरपूर होती हैं, उन्हीं कुछ सब्जियों को बारिश के मौसम में न खाने की सलाह दी जाती है. आइए जानते हैं मानसून में किन सब्जियों को खाने से एवाइड करना चाहिए.

बैंगन

कई लोगों की फेवरेट सब्जी बैंगन होती है. मानसून के दौरान लोग बैंगन की तरहतरह की डिशेज बनाते हैं. इसका भुर्ता बहुत ही टेस्टी होता है, लेकिन क्या आप जानते हैं, बरसात में बैंगन नहीं खाने की सलाह दी जाती है. उमस भरे मौसम में बैंगन में कीडे़ लग जाते हैं. कहा जाता है कि इस मौसम में ज्यादा बैंगन खाने से स्किन प्रौब्लम या हेल्थ से जुड़ी समस्याएं भी हो सकती हैं.

हरी पत्तेदार सब्जियां

हरी पत्तेदार सब्जियां हेल्थ के लिए बहुत ही फायदेमंद मानी जाती है, लेकिन बारिश के दिनों में ये सब्जियां सेहत के लिए हानिकारक मानी जाती हैं. हरी पत्तेदार सब्ज़ियों में बैक्टीरिया पनपने का खतरा रहता है. चाहे आप इन सब्ज़ियों को कितना भी धो लें.

फूलगोभी

आलु और फुलगोभी की सब्जी हर किसी को पसंद होती है, लेकिन बारिश के मौसम में फूलगोभी न खाने की सलाह दी जाती है. इसमें ग्लूकोसाइनोलेट्स अधिक मात्रा में होते हैं, जो बारिश के मौसम में एलर्जी पैदा कर सकते हैं.

शिमला मिर्च

शिमला मिर्च देखने में बहुत ही अट्रैक्टिव होती है. इसे हर सब्जी की स्वाद बढ़ा देती है, लेकन मानसून में इसे खाने से बचना चाहिए. इसका यह कारण है कि इसमें मौजूद ग्लूकोसाइनोलेट्स आइसोथियोसाइनेट्स में बदल जाते हैं, जो आपके लिए समस्या पैदा कर सकते हैं.

मशरूम

मानसून में बढ़ते नमी के कारण मशरूम में कीड़े और बैक्टीरिया लगने का खतरा सबसे ज़्यादा होता है. भले ही आपको मशरूम पर पनपे बैक्टीरिया दिखाई न दें, लेकिन अगर आप बारिश के मौसम में इसे खाते हैं, तो पेट की समस्या हो सकती है, इसलिए, बारिश के मौसम में मशरूम से दूर रहना ही सबसे अच्छा है.

”डबल मैरिज, डबल खर्चा और डबल हेडेक”, दो बीवियां रखने वाले पति की होती है ये हालत

बिग बौस ओटीटी 3 में आए अरमान मलिक इन दिनों सुर्खियों में छाए हैं. चर्चे में रहने की वजह है दो शादियां, जी हां, अरमान अपनी दो बीवियों के साथ रहते हैं, पायल और कृतिका मलिक. बिग बौस ओटीटी  में भी ये अपने दोनों पत्नियों के साथ धमाल मचा रहे, लेकिन हाल ही में पायल को शो से आउट कर दिया गया है.

 

जैसा कि हर कोई जानता है कि यूट्यूबर अरमान मलिक और उनकी दोनों बीवियां साथ रहती हैं. इसके कारण उन्हें ट्रोलिंग का भी सामना करना पड़ता है, तो वहीं कुछ लोग उनकी तारीफ भी करते हैं. हालांकि सोशल मीडिया पर कहा जाता है कि अरमान ने शादी का मजाक बना रखा है और वह बहुविवाह को प्रमोट करते हैं.

हमारे समाज में जब कोई शादीशुदा पुरुष तब तक दूसरी शादी नहीं कर सकता, जब तक उसका डिवोर्स न हो जाए, हालांकि डिवोर्स के बाद भी कोई दूसरी शादी करता है, तो उसे कई तरह के कमेंट्स भी सुनने को मिलते हैं, लेकिन खबरों के अनुसार अरमान ने अपनी पहली पत्नी को बिना डिवोर्स दिए दूसरी शादी की है. सबसे दिलचस्प बात इनकी पहली पत्नी ने भी दूसरी शादी को अपनाया और ये तीनों हैप्पी लाइफ जीते हैं.

रील हो या रियल लाइफ कोई पुरुष पत्नी के रहते हुए दूसरी शादी करता है, तो उसका घर टूटता है, समाज में भी ताने सुनने पड़ते हैं. लेकिन सवाल ये है कि क्या दोदो बीवियां रखना आसान है ?

आए दिन ऐसी कई घटनाएं देखने या सुनने को मिलती है, जब शादीशुदा पुरुष किसी लड़की से प्यार कर बैठता है, तो उसे अपने रिश्तों को मैनेज करना कितना मुश्किल होता है. उसे अपनी गर्लफ्रेंड से मिलने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं, पत्नी से सौ झूठ बोलने पड़ते हैं.

अगर कोई दो शादियां भी कर ले, तो यह सफर आसान नहीं होता. बेशक कहा जा सकता है कि ”डबल मैरिज, डबल खर्चा और डबल हेडेक”…

बेचारा पति उसकी क्या हालत होती होगी, जिसकी दो बीवियां हैं, डबल ताने भी सुनने पड़ते होंगे….पति एक बीवी के साथ घूमने निकले, तो उसे दूसरी पत्नी से क्याक्या झूठ बोलने पड़ते होंगे, औफिस के काम से बाहर जा रहा हूं, बौस साथ में होगा, तो फोनकाल्स मत करना, रिप्लाई नहीं कर पाऊंगा, इम्पोर्टेंट मीटिंग है…. वगैरह, वगैरह….

जब फ्री हो जाऊंगा, तो मैं खुद वीडियो कॉल करूंगा, इतनी सफाई के साथ पति को झूठ बोलना पड़ता होगा… तो वहीं जिसके साथ पति घूमने जा रहा है, उससे भी कई झूठ बोलता होगा, पहली पत्नी का काल आ जाए, तो उसे इमरजेंसी काल बताकर, बाहर निकलकर बातें करना…. ऐसे झूठ बोलने पड़ते हैं, दो बीवीयों के पति को. उसके दिमाग की भी बैंड बज जाती होगी, जो एकसाथ दो पत्नियों को हैंडिल करते हैं,

पैसों का उतना ही खर्च दोनों पत्नियों पर, कभी पहली पत्नी की डिमांड पूरी करो, तो कभी दूसरी पत्नी का… अगर आदमी पैसों का हिसाब करने बैठे, तो होश ही उड़ जाएंगे…कुल मिलाकर कह सकते हैं कि दोदो बीवियां रखना दुनिया का सबसे कठिन काम है. हालांकि सैल्यूट है उन पुरुषों का जो दो या दो से ज्यादा पत्नियों को संभाल रहे हैं. लास्ट में उन्हें यही गाना याद आता होगा, ” शादी करके फंस गया यार, अच्छाखासा था कुंवारा…”

स्प्रे सनस्क्रीन को लेकर एक्सपर्ट ने दी ये सलाह, जानें कितना है सुरक्षित

डा. इप्शिता जौहरी, त्वचाविज्ञान और सौंदर्य सलाहकार, स्किनफिनिटी डर्मा

सूरज की तेज किरणें और वातावरण का अधिक तापमान आपकी त्वचा को प्रभावित कर सकता है. इसके कारण त्वचा में विभिन्न तरह की समस्याएं जैसे एलर्जी, डार्क स्पौट्स और पिगमेंटेशन आदि हो सकती हैं. सूरज की अल्ट्रावायलेट हानिकारक किरणों से त्वचा को बचाने और हेल्दी रखने के लिए ज्यादातर लोग सनस्क्रीन का प्रयोग करते हैं. सनस्क्रीन लोशन की ही तरह सनस्क्रीन स्प्रे का प्रयोग भी धूप की किरणों से बचाव के लिए किया जा रहा है लेकिन क्या सनस्क्रीन स्प्रे का प्रयोग करना सुरक्षित है? आइये इस लेख के माध्यम से समझते हैं कि सनस्क्रीन स्प्रे क्या है, त्वचा और चेहरे पर इसका प्रयोग करना सुरक्षित है या नहीं?

सनस्क्रीन लोशन और सनस्क्रीन स्प्रे में क्या अंतर है

आमतौर पर बात की जाए तो सनस्क्रीन लोशन की तरह ही सनस्क्रीन स्प्रे का प्रयोग भी सूरज की नुकसानदेय किरणों से बचाव के लिए किया जाता है. सनस्क्रीन स्प्रे में सनस्क्रीन लोशन की ही तरह एसपीएफ होता है, जिसकी मात्रा सनस्क्रीन लोशन के बराबर ही होती है. सनस्क्रीन लोशन और सनस्क्रीन स्प्रे में बस फर्क इतना है कि सनस्क्रीन स्प्रे को उपयोग करना बहुत आसान है. इसे प्रयोग करने के लिए सनस्क्रीन स्प्रे को सीधे त्वचा पर स्प्रे कर लिया जाता है जो कि लोगों को काफी आसान लगता है. आजकल की व्यस्त जीवन शैली और भाग दौड़ के बीच लोग इसका प्रयोग ट्रैवलिंग के दौरान भी कर रहे हैं. इसके अलावा सनस्क्रीन लोशन की ही तरह सनस्क्रीन स्प्रे त्वचा में सुरक्षात्मक बैरियर बनता है जो सूरज की अल्ट्रावायलेट किरणों को रिफ्लेक्ट या अवशोषित कर लेता है और त्वचा को सुरक्षा प्रदान करता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि सनस्क्रीन स्प्रे का प्रयोग किस प्रकार से आपके लिए नुकसानदायक हो सकता है ? जी हाँ इस बात को समझना जरूरी है कि सनस्क्रीन स्प्रे का प्रयोग त्वचा पर सीधे स्प्रे के रूप में किया जाता है जिससे यह कई लोगों के लिए या विशेष शारीरिक स्थितियों में कई समस्याओं का कारण भी बन सकता है.

सनस्क्रीन स्प्रे के प्रयोग से होने वाले नुकसान

सनस्क्रीन स्प्रे का प्रयोग सनस्क्रीन लोशन की तुलना में कम प्रभावशाली होता है. जिससे आपकी त्वचा पर सुरक्षात्मक बैरियर कम शक्तिशाली होता है और आपकी त्वचा हानिकारक यूवी किरणों से नुकसान के लिए अधिक संवेदनशील हो जाती है. सनस्क्रीन स्प्रे की सुरक्षा इस बात पर निर्भर करती है कि आप इसे कैसे लगाते हैं. अगर आप हवादार इलाके में हैं, तो यह आसानी से उड़ सकता है और आपकी त्वचा पर लगने के बजाय हवा में रह सकता है. इसके अलावा, क्योंकि यह आमतौर पर जल्दी सूख जाता है और आपकी त्वचा पर इसे देखना मुश्किल हो जाता है, इसलिए आप यह नहीं जान पाएँगे कि आपने इसे कहाँ लगाया है.

सनस्क्रीन स्प्रे में मौजूद केमिकल को लेकर रहें सावधान

सनस्क्रीन लोशन की तरह ही सनस्क्रीन स्प्रे को बनाने के लिए भी कई तरह के केमिकल का प्रयोग किया जाता है. इसमें कई केमिकल त्वचा के साथ संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं. कुछ सनस्क्रीन में बेंजीन नामक एक संभावित कैंसर पैदा करने वाला रसायन होता है. स्प्रे सनस्क्रीन में इस रसायन की मौजूदगी विशेष रूप से आपके शरीर में समस्या पैदा कर सकती है. स्प्रे के माध्यम से इस केमिकल को अंदर लिया जा सकता है और त्वचा के माध्यम से भी अवशोषित किया जा सकता है जो कि शरीर में कैंसर जैसी बीमारी का कारण बन सकता है. इसके अलावा रासायनिक सनस्क्रीन स्प्रे के कई अन्य दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं और उनमें इस्तेमाल होने वाले कुछ केमिकल जैसे टेट्रासाइक्लिन, सल्फा ड्रग्स, फेनोथियाज़िन आदि के कारण कई जोखिम भी हो सकते हैं. इनमें कुछ रसायन ऐसे होते हैं जो त्वचा में जलन को बढ़ा सकते हैं और लालिमा, सूजन, जलन और खुजली आदि भी हो सकती है. अगर आपकी त्वचा पर मुंहासे हैं, तो सनस्क्रीन स्प्रे में मौजूद कुछ रसायन आपकी समस्या को और भी गंभीर कर सकते हैं. सनस्क्रीन स्प्रे के इस दुष्प्रभाव से छुटकारा पाने के लिए आपको नौन-कामेडोजेनिक और नौनऔयली सनस्क्रीन स्प्रे का चुनाव करना चाहिए. हालांकि क्रीम आधारित सनस्क्रीन में टाइटेनियम डाइऑक्साइड और जिंक ऑक्साइड जैसे खनिज सक्रिय तत्व त्वचा के लिए बहुत प्रभावी और सुरक्षित होते हैं. इसलिये अपने सनस्क्रीन स्प्रे को चुनते समय डाक्टर की सलाह पर अपनी स्किन टाइप के हिसाब से ही सनस्क्रीन स्प्रे चुनें और खरीदते समय उसमें प्रयोग किए गए केमिकल की जानकारी भी अवश्य देखें.

बच्चों के लिए नुकसानदेय हो सकता है स्प्रे सनस्क्रीन का प्रयोग

सनस्क्रीन स्प्रे का प्रयोग बच्चों के लिए नुकसान देय हो सकता है. दरअसलसन सनस्क्रीन स्प्रे को बनाने के लिए कई तरह के केमिकल का प्रयोग किया जाता है और बच्चे जब इसका प्रयोग स्प्रे के रूप में करते हैं तो स्प्रे के दौरान यही केमिकल बच्चों के मुंह और नाक में जा सकते हैं और उन्हें नुकसान पहुंच सकता है. ऐसे में सनस्क्रीन स्प्रे का सीधा प्रयोग बच्चों के लिए सही नहीं है. अगर आपको बच्चों पर सनस्क्रीन स्प्रे का प्रयोग करना ही है तो ऐसे में आप ध्यान रखें और पहले अपने हाथों पर स्प्रे कर लें फिर उनकी त्वचा पर अप्लाई कर दें.

सांस से जुड़ी समस्या वाले लोगों के लिए सही नहीं है सनस्क्रीन स्प्रे का प्रयोग

सनस्क्रीन स्प्रे के प्रयोग से ऐसे लोगों को बचाना चाहिए जिन्हें अस्थमा जैसी सांस से जुड़ी समस्या है. सनस्क्रीन स्प्रे को बनाने के लिए ऐरोसोल फार्मूले का इस्तेमाल किया जाता है और जब इसे त्वचा पर सीधे स्प्रे किया जाता है, तो यह सांस के साथ मिलकर शरीर के अंदर जा सकता है जिससे सांस से जुड़ी हुई समस्याएं बढ़ सकती हैं. ऐरोसोल प्रोपेलेंट बेंजीन जैसे कैंसर कारी तत्व के लिए भी जिम्मेदार होता है जो शरीर को नुकसान पहुंचाता है. इसलिए ऐसे लोग जिन्हें सांस से जुड़ी हुई कोई भी समस्या है उन्हें एरोसोल फार्मूले से बनाये जाने वाले सनस्क्रीन स्प्रे का प्रयोग नहीं करना चाहिए.

सनस्क्रीन लोशन की तुलना में सनस्क्रीन स्प्रे कम असरदार होते हैं

सनस्क्रीन लोशन की तुलना में सनस्क्रीन स्प्रे की सही मात्रा का पता नहीं चलता है. दरअसल सनस्क्रीन स्प्रे लिक्विड होते हैं जिन्हें स्प्रे करने के बाद त्वचा पर इनकी सही मात्रा नहीं पता चल पाती है. इसके साथ ही यह त्वचा के द्वारा जल्दी सोख लिए जाते हैं जिससे इनका सनस्क्रीन लोशन की तुलना में असर कम हो सकता हैं. इसके अलावा, लोशन ज़्यादा सुरक्षा प्रदान करते हैं क्योंकि आप यह जान सकते हैं कि आप अपनी त्वचा पर कितना लगा रहे हैं. औसतन, लोग स्प्रे से कम सनस्क्रीन प्राप्त करते हैं क्योंकि वे केवल कुछ सेकंड के लिए ही स्प्रे करते हैं. सनस्क्रीन लोशन की तुलना में सनस्क्रीन स्प्रे को इस्तेमाल करना तो आसान है, लेकिन कुछ परिस्थितियों में ये समस्या का कारण भी बन सकता है. अगर आप कुछ देरी के लिए ही बाहर जा रहे हैं, तो इसका इस्तेमाल करना फायदेमंद हो सकता है. कुल मिलाकर, आपके लिए सनस्क्रीन लोशन सबसे अच्छा उपाय है. स्प्रे की सलाह नहीं दी जाती है, लेकिन अगर आपके पास सिर्फ़ यही विकल्प है, तो अपने हाथों पर सनस्क्रीन स्प्रे करना न भूलें और फिर इसे अपनी त्वचा और चेहरे पर लगाएं. साथ ही यह भी सुनिश्चित करें कि स्प्रे आंखों या मुंह में न जाए. सनस्क्रीन स्प्रे कुछ लोगों के लिए ज्यादा नुकसानदायक हो सकता है, इसलिए कोई भी सनस्क्रीन स्प्रे इस्तेमाल करने से पहले अपने डॉक्टर से सलाह जरूर कर लें.

बढ़ रहा है सिंगलहुड का ट्रेंड, जानें इसके फायदे

“प्रांजल बेटा शादी की उम्र हो गई तुम्हारे मम्मी पापा परेशान हो रहे हैं, और तुम हो की शादी के लिए हां ही नहीं करते!”

प्रांजल के दादाजी ने प्रांजल से कहा तो प्रांजल ने जवाब दिया,” ओह दादू छोड़ो पुराने जमाने की बातें . मैं अपनी जिंदगी में खुश हूं . मुझे नहीं बंधना किसी भी बंधन में. घर , गृहस्थी ,परिवार ,बच्चे , क्या मिलता है इन सब के साथ बंध कर? मैं अपनी बेरोक टोक लाइफ जी रहा हूं. मैं ऐसे ही खुश हूं. इसलिए आप मेरी शादी की चिंता छोड़ दें और मम्मी पापा को भी समझा दें.”

प्रांजल के जवाब से उसके दादाजी शौक्ड रह गए. दरअसल, उनके समय में तो बालिग होते ही बच्चों की शादी कर दी जाती थी.

एक समय था जब लोग संयुक्त परिवार में रहते थे. धीरेधीरे एकल परिवारों का चलन बढ़ा और अब नया ट्रेंड है ‘सिंगलहुड’. जी हां, सिंगलहुड वो ट्रेंड है जो जेन जेड को पसंद आने लगा है. इतना ही नहीं अब आधुनिकता के घोड़े पर सवार युवाओं को अपनी मर्जी से अकेले रहना इतना भाने लगा है कि सिंगलहुड के ट्रेंड में दिनोंदिन वृद्धि भी हो रही है. हाल ही में हुए एक शोध में इसे लेकर कई बड़े खुलासे किए गए हैं.

जानिए क्या है सिंगल हुड

एक समय था जब माना जाता था कि जिंदगी में प्यार ही सबकुछ है. जिसकी जिंदगी में प्यार नहीं है, उसका जीवन अधूरा है. खासतौर पर टीनएजर्स और यंगस्टर्स के दिल में तो प्यार का सागर हिलोरे खाने लगता था. अपने प्यार के लिए वे सब कुछ करने को तैयार रहते थे. एक झलक पाने के लिए कई जतन किए जाते थे. लेकिन समय के साथसाथ अब इस फीलिंग में बदलाव आ गया है. जर्नल आफ पर्सनैलिटी एंड सोशल साइकोलौजी बुलेटिन में प्रकाशित एक शोध में रिश्तों को लेकर कई चौंका देने वाले खुलासे हुए हैं.जिसके अनुसार आज के किशोर अकेले अपने अंदाज से जीना पसंद करते हैं. वह अपनी खुशियों के लिए किसी दूसरे पर निर्भर नहीं रहना चाहते, बल्कि वे खुद अपने साथ ही खुश रहना चाहते हैं. यही है सिंगलहुड, जिससे आज के ​युवा काफी संतुष्ट हैं.

क्या कहता है शोध

इस शोध में कई पक्षों पर प्रकाश डाला गया है. जिसके अनुसार साल 2001 से 2003 में जन्मे किशोरों और दशकों पहले के किशोरों की सोच में सिंगलहुड को लेकर बड़ा अंतर है. शोधकर्ताओं के अनुसार साल 1991 से 1993 के मुकाबले साल 2001 से 2003 के किशोरों में सिंगलहुड करीब 3 प्रतिशत तक ज्यादा था. वहीं इसमें लगातार इजाफा हो रहा है. सालों पहले तक जिस सिंगलहुड को अकेलापन और दुख का कारण माना जाता है, आज के समय में वह लोगों के लिए संतुष्टि की राह मानी जा रही है.

सिंगलहुड बढ़ने के कारण

सिंगलहुड के बढ़ने के पीछे भी कई कारण हैं. शिक्षा, करियर, गोल्स और आजादी से जीने की चाहत ने सिंगलहुड को बढ़ावा दिया है. वहीं अब पेरेंट्स भी बच्चों को शादी के लिए पहले से मुकाबले कम प्रेशर करते हैं. क्योंकि शादी के लिए सामाजिक दबाव कम हुआ है. आज इंटरनेट के जमाने में लोगों की सोच तेजी से बदल रही है. युवकों के साथ ही युवतियां भी आत्मनिर्भर हैं, ऐसे में उन्हें भविष्य की चिंता नहीं सताती है. आज की युवा पीढ़ी आजादी के साथ जीना चाहती है. जिसके कारण रिश्तों को लेकर दृष्टिकोण बदल गया है.

आजाद खुशियां और आत्मनिर्भरता

शोध के अनुसार सिंगलहुड यानी अकेले रहने को भले ही एक समय दुख का कारण माना जाता था, लेकिन आज के समय यह खुशियों की परिभाषा है. शोध में शामिल 75 प्रतिशत युवाओं ने माना कि वह अकेले रहने से काफी खुश और संतुष्ट हैं. उन्हें न्यूरोटिसिजम जैसी समस्याएं कम है, उन्हें तनाव कम है, वे इमोशनली स्टेबल हैं और संयमित जीवन जी रहे हैं. वे कोई बंधन महसूस नहीं करते हैं, वे अपनी पसंद के अनुसार जीते हैं और सेफ महसूस करते हैं. इतना ही नहीं ये आम लोगों से कहीं ज्यादा कॉन्फिडेंस के साथ जीवन जी रहे हैं. हैरानी की बात ये है कि सिंगलहुड को पुरुषों की तुलना में महिलाएं ज्यादा पसंद कर रही हैं, जो सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन का संकेत है.

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