ईवनिंग स्नैक्स में बनाएं वर्मीसेली चीज रोल

बारिश का मौसम प्रारम्भ हो चुका है और रिमझिम फुहारों के बीच कुछ चटपटा, तीखा नाश्ता खाने का मन करता है. बाहर के रेडीमेड नाश्ते को हर दिन नहीं खाया जा सकता क्योंकि इसे बनाने के लिए एक ही तेल को बार बार फ्राई करने के लिए उपयोग किया जाता है जो सेहत के लिए बिल्कुल भी अच्छा नहीं होता. घर पर हम परिवार के सदस्यों के स्वाद के अनुसार नाश्ते में परिवर्तन कर सकते हैं जो बाजार के नाश्ते में सम्भव नहीं होता.आज हम आपको वर्मीसेली अर्थात सेवइयों से एक ऐसा ही नाश्ता बनाना बता रहे हैं जो स्वादिष्ट होने के साथ साथ बहुत हैल्दी भी है और इसे आप बड़ी आसानी से घर में उपलब्ध सामग्री से बना भी सकतीं हैं, यदि आप फिटनेस फ्रीक हैं तो आप डीप फ्राई के स्थान पर इसे एयर फ्रायर या माइक्रोवेब में बेक भी कर सकते हैं. तो आइए देखते हैं कि इसे कैसे बनाया जाता है.

कितने लोगों के लिए 6

बनने में लगने वाला समय 30 मिनट
मील टाइप वेज

सामग्री

रोस्टेड वर्मीसेली 1 कप
ब्रेड क्रम्ब्स 1/2 कप
उबले आलू 2
बारीक कटी हरी मिर्च 4
बारीक कटा हरा धनिया 1 लच्छी
दरदरे कुटे मूंगफली दाना 1 टीस्पून
बारीक कटी शिमला मिर्च 1 टेबलस्पून
बारीक कटी गाजर 1 टेबलस्पून
बारीक कटा प्याज 1
बारीक कटा लहसुन 4 कली
नमक स्वादानुसार
लाल मिर्च पाउडर 1/4 टीस्पून
गरम मसाला 1/4 टीस्पून
अमचूर पाउडर 1/4 टीस्पून
चीज क्यूबस 4

तेल तलने के लिए

विधि

वर्मीसेली को हल्का सा रोस्ट कर लें ताकि नमी निकल जाए. अब इनमें 1 कप पानी डालकर ढक कर धीमी आंच पर पका लें. जब ठंडी हो जाएं तो इसमें चीज क्यूब्स को छोड़कर ब्रेड क्रम्ब्स, सभी कटी सब्जियां और मसाले अच्छी तरह मिला दें. चीज क्यूबस के किस कर 4 लंबे लंबे रोल बना लें. अब तैयार मिश्रण को 4 भाग में डिवाइड कर लें. एक भाग को हथेली पर फैलाएं और उसमें चीज का रोल रखकर अच्छी तरह चारों तरफ से पैक कर दें. इसी तरह सारे रोल तैयार कर लें. अब इन रोल्स को गर्म तेल में मध्यम आंच पर सुनहरा होने तक तलकर बटर पेपर पर निकाल लें. गर्मागर्म रोल्स को टोमेटो सौस के साथ सर्व करें.

अपने अकेलेपन के जिम्मेदार कहीं आप खुद ही तो नहीं

करोड़ों की आबादी वाले शहर में जब कोई अकेला और तन्हा होता है. तो कई बार वह मानसिक तौर पर बीमारी का शिकार भी हो जाता है. क्योंकि अकेलेपन का एहसास, असुरक्षा की भावना को पैदा करता है. जिसकी वजह से कई बार आपके दिल में अंजाना सा डर भी पैदा हो जाता है. और आप मानसिक तौर पर बीमार हो जाते हैं. लेकिन क्या कभी आपने यह सोचने की कोशिश की ऐसी क्या वजह है जो आपको अकेलेपन का एहसास दिलाती है और आप भरी पूरी दुनिया में अपने आप को अकेला महसूस करते लगते हैं.

 

कई बार यह एहसास उस दौरान भी महसूस होता है जब आप बुढ़ापे की तरफ बढ़ रहे होते है रिटायरमेंट के चलते आपका रुतबा, आपकी अच्छी पेमेंट , और आपकी अति व्यस्त लाइफ पर पूर्णविराम लग जाता है. और एकदम से आप घर पर खाली बैठ जाते हैं. ऐसे वक्त में आपको हालात के चलते कई बार अकेलापन महसूस होने लगता है . उस दौरान आपको एहसास होता है की अपनी व्यस्त जिंदगी स्टेटस सिंबल, और एटीट्यूड के चलते ना तो आप ज्यादा दोस्त बना पाए और ना ही रिश्तेदारों से ज्यादा मेल मिला कर पाए. जिसके चलते आज जब आपके पास टाइम ही टाइम है तो आप अपने आप को अकेला महसूस कर रहे हैं.

बुढ़ापे में अकेलेपन का एहसास एक बार समझ में भी आता है. लेकिन आज के समय में जबकि इंटरनेट मोबाइल का ज़माना है जहा पर लोगों से बात करने या दोस्ती करने के बजाय मोबाइल इंटरनेट पर ढेर सारे मनोरंजन के साधन के चलते लोग अपनी ही दुनिया में जीने वाले लोग जब अकेलेपन का रोना रोते हैं तो बहुत आश्चर्य होता है ऐसे में यही लगता है की ऐसी क्या वजह है की सब कुछ होते हुए भी कई लोग अकेलापन महसूस करने की शिकायत करते हैं. ऐसे में एक सवाल मन में आता है की कही अपने अकेलेपन के जिम्मेदार आप खुद ही तो नहीं? ऐसी क्या वजह है जो आपको अकेला कर देती है? या ऐसा कौन सा रास्ता है जो आपके अकेलेपन को दूर करने के लिए कारगर सिद्ध हो सकता है? जानने की कोशिश करते है …

अपने स्टेटस का घमंड ,संकीर्ण दिमाग, जात-पात का भेदभाव, जैसे कई कारण आपको अकेलेपन की तरफ धकेलते हैं….

बचपन में हम अपने मां बाप भाई बहन परिवार और दोस्तों के बीच रहते हैं. उस दौरान हमारा मन खुला होता है और हम किसी से भी दोस्ती करने में हिचकिचाते नहीं, उस वक्त हमें सिर्फ एक अच्छा दोस्त चाहिए होता है जिससे हम अपने दिल की बात कर सके, या उसके साथ खेलते कुदते अपना समय बिता सके. स्कूल कॉलेज के दौरान हमें सिर्फ अच्छे दोस्त की जरूरत होती है फिर चाहे वह गरीब हो,किसी भी जाति का हो, उसका स्टेटस कुछ भी हो हमें से कोई फर्क नहीं पड़ता. उस दौरान हम दिल खोल के दोस्ती करते हैं. उसने हमारे कई सारे दोस्त होते हैं. भाई बहन ,कजिन, होते हैं जिनके साथ हम कुछ भी शेयर करने में हिचकिचाते नहीं. लेकिन बाद में जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं हमारा दिमाग छोटा होता जाता है. और हम दोस्ती करने से पहले कई सारी बातो को लेकर सोचते हैं . कई बार हमारी दोस्ती अपने फायदे के लिए ,अमीरी गरीबी, जात पात देख कर होती है . जो ज्यादा समय तक नहीं टिकती जिसके चलते कई सारे दोस्त होने के बावजूद हम अकेले रह जाते हैं. उस वक्त ऐसा कोई नहीं लगता जिससे हम अपने दिल की बात कर सके.

अकेलेपन की एक वजह और भी है और वह है अपने स्वार्थ के चलते संयुक्त परिवार में रहने के बजाय अकेले अपने पति बच्चो के साथ रहना. कई सारी लड़कियां सास ससुर नंनद देवर का टेंशन नहीं चाहती अकेले अपने पति के साथ रहना चाहती हैं. ऐसे हालत में जब अपने मन की बात शेयर करने के लिए कोई नहीं होता तब भी अकेलेपन का एहसास होता है। वहीं अगर संयुक्त परिवार में रहते हैं तो सबके साथ अगर अनबन लड़ाई झगड़ा होता है तो बुरे वक्त में सब साथ मिलकर तकलीफ को भगाने में भी मदद करते हैं. ऐसे में कभी अकेलेपन का एहसास नहीं होता. क्योंकि खुशी और गम दोनों ही समय परिवार के सभी लोग मौजूद होते हैं.

अकेलेपन की एक वजह लाइफ में एडजस्ट ना करना भी है…

जब हमें जिंदगी में कुछ पाने की चाह होती है, हमारे सपने होते हैं, तो हम किसी भी हाल में एडजेस्ट करने के लिए तैयार रहते हैं. मुंबई शहर में कई सारे युवा अपना करियर बनाने आते हैं उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए बड़े-बड़े शहरों में जाते हैं ताकि वह वहां पर अपना सपना पूरा कर सके और इसके लिए वह किसी भी हद तक एडजस्ट करने को तैयार रहते हैं. अगर मुंबई शहर की बात करें तो यहां पर अपना खुद का मकान किराए पर लेकर रहना बहुत ही मुश्किल होता है लिहाजा बाहर के शहरों से आई लड़कियां और लड़के एक कमरे में चार-चार लोग शेयरिंग करके रहते हैं. ऐसे में कौन किस जाति का है या कौन अमीर या गरीब है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. क्योंकि हर कोई बराबर किराया शेयर करता है . ऐसे में साथ रहने वाले मांसाहार है या शाकाहारी, कौन सी जाति के हैं इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. क्योंकि रहने के लिए घर मिल जाना ही बड़ी बात है. कई बार तो कई लोग पैसा बचाने के चक्कर में वडा पाव खाकर भी अपना गुजारा करते हैं. उस वक्त खाना हाइजीनिक है कि नहीं यह भी परवाह नहीं करते. क्योंकि इतने बड़े शहर में अकेले आते हैं इसलिए उनको सच्चे दोस्त की सख्त जरूरत रहती है. ऐसे में जो भी उनको अपना शुभचिंतक और साफ दिल का दिखाई देता है उससे दोस्ती कर लेते हैं. क्योंकि अकेलेपन से अच्छा है किसी दोस्त के साथ ही दिल की बात शेयर करें.

फिल्म इंडस्ट्री के कई दिग्गज लोगों ने जैसे दीपिका पादुकोण कार्तिक आर्यन सिद्धार्थ मल्होत्रा नवाजुद्दीन सिद्दीकी पंकज त्रिपाठी, कंगना रानाउत ने अकेलेपन और तकलीफ को झेलते हुए कड़े संघर्ष के साथ सफलता हासिल की है. जहां कंगना ने अपने संघर्ष के दिनों में वडा पाव खाकर पूरा दिन निकालने की बात कही है तो वही सिद्धार्थ मल्होत्रा, कार्तिक आर्यन,पंकज त्रिपाठी, मनोज बाजपेई आदि कलाकारों ने एक रूम में कई लोगों के साथ रहकर गरीबी से जूझते हुए अकेलेपन को काटते हुए संघर्ष के बाद सफलता पाने की बात बताई है. अच्छे वक्त में अच्छे दोस्तों की वजह से जो आज भी उनसे मिलने आते हैं कभी भी अकेलेपन का एहसास नहीं हुआ. फिल्मों में काम पाने के लिए छोटे शहरों से आए स्ट्रगलर तो एक कमरे में ८ लोग भी रहते है . सार्वजनिक बाथरूम का इस्तेमाल करके और रास्ते का वड़ा पाव सैंडविच खाकर फिल्मों में काम पाने के लिए कड़ा संघर्ष करते हैं. लेकिन ऐसे नाजुक वक्त में अच्छे दोस्त बनाकर वह अपने अकेलेपन को जरूर दूर कर लेते हैं.

इससे यही निष्कर्ष निकलता है कि अगर आप जिंदगी में अकेलेपन के एहसास से बचना चाहते है तो जमीन से जुड़ कर लाइफ में हर हाल में एडजस्ट करने की आदत डाल कर खुले दिल के साथ लोगों को अपनाना होगा . तभी आप अकेलेपन के एहसास से हमेशा के लिए छुटकारा पा सकेंगे.

पिंपल्स के दाग दूर करने का कोई उपाय बताएं?

सवाल-

मेरी उम्र 18 साल है. मैं जब भी पिंपल्स के दाग दूर करने के लिए मसूर की दाल का उबटन लगाती हूं तो फिर से कोई न कोई पिंपल निकल आता है. पिंपल्स और उन के दाग दूर करने का कोई उपाय बताएं?

जवाब-

आप की प्रौब्लम से लगता है कि आप की स्किन अति संवेदनशील है तभी बारबार आप के चेहरे पर दाने निकल आते हैं. आप उबटन का प्रयोग न करें. अकसर उबटन सूखने के बाद उसे मल कर छुड़ाने से स्किन के जिस भाग में नमी और तेल की जरूरत होती है, वहां से वे निकल जाते हैं. इसलिए प्र्रभावित स्थान पर नीम व तुलसी की पत्तियों का पैक लगाएं. आप चाहें तो ताजा पत्तियों को पीस कर घर पर भी यह पैक तैयार कर सकती हैं. ऐलोवेरायुक्त क्रीम का इस्तेमाल भी फायदेमंद साबित होगा. इस से मुंहासे कम होंगे और धीरेधीरे उन के दाग भी दूर हो जाएंगे.

आज की भागदौड़ भरी और व्यस्त जीवनशैली का विपरीत असर चेहरे की स्किन पर पड़ता है, जिससे स्किन संबंधी समस्याएं होने लगती हैं. इन समस्याओं में पिंपल्स का होना सबसे आम है और इससे निपटने के लिए हम कई उपाय भी करते हैं.

अक्सर हम इस बात को नजरअंदाज कर देते हैं कि किस तरह हमारा फेशियल क्लेन्जर पिंपल्स से छुटकारा दिलाने के बजाय और भी नुक्सान पहुंचा रहा है. साधारण टॉयलेट सोप पिंपल्स के लिए नुक्सानदायक होने के साथ-साथ उन्हें बढ़ा भी सकता है.

सोप पिंपल्स से निपटने के लिए सही उपाय क्यों नहीं हैं?

यदि चेहरे पर पिंपल्स हैं, तो ऐसे में साबुन का इस्तेमाल करना पिंपल्स के लिए हानिकारक साबित हो सकता है. चेहरे की स्किन शरीर की बाकी स्किन की तुलना में ज्यादा संवेदनशील होती है. साबुन चेहरे के पीएच स्तर को प्रभावित करता है, जिससे स्किन रूखी नजर आने लगती है. चेहरा जब ज्यादा ड्राई हो जाता है, तब यह तेल ग्रंथियों को सक्रिय कर देता है. ऐसे में पिंपल्स पैदा करने वाले बैक्टीरिया स्किन पर पनपने लगते हैं और पिंपल्स की समस्या भी बढ़ने लगती है.

ऐसे में हमें चाहिए एक ऐसा सोप-फ्री फेशियल क्लेन्जर जिसमें ऐसे तत्त्व हों जो पिंपल्स से छुटकारा दिला सकें. हिमालया प्यूरीफाइंग नीम फेसवाश पूरी तरह सोप-फ्री है इसलिए पिंपल्स पर हार्श नहीं होता.

हिमालया प्यूरीफाइंग नीम फेसवाश सोप फ्री फेसवाश है. यह स्किन की गंदगी को साफ करने के साथ-साथ आपके चेहरे को पिंपल्स से भी मुक्त करता है. इसमें नीम और हल्दी जैसे प्राकृतिक गुण होते हैं जो चेहरे की स्किन पर पिंपल्स के कारण पनपने वाले बैक्टीरिया से लड़ने का काम करते हैं और इस तरह पिंपल्स की समस्या से छुटकारा दिलाने में यह फेसवाश सहायक है. तो साफ-सुथरी और पिंपल फ्री स्किन पाने के लिए सोप फ्री फेसवाश अपनाने का यही है सही समय.

अपराध : क्या नीलकंठ को हुआ गलती का एहसास

एंबुलैंस का सायरन बज रहा था. लोग घबरा कर इधरउधर भाग रहे थे. छुट्टी का दिन होने से अस्पताल का आपातकालीन सेवा विभाग ही खुला था, शोरशराबे से डाक्टर नीलकंठ की तंद्रा भंग हो गई.

घड़ी पर निगाह डाली, रात के 10 बज कर 20 मिनट हो रहे थे. उसे ऐलिस के लिए चिंता हो रही थी और उस पर क्रोध भी आ रहा था. 9 बजे वह उस के लिए कौफी बना कर लाती थी. वैसे, उस ने फोन पर बताया था कि वह 1-2 घंटे देर से आएगी.

‘‘सर,’’ वार्ड बौय ने आ कर कहा, ‘‘एक गंभीर केस है, औपरेशन थिएटर में पहुंचा दिया है.’’

‘‘आदमी है या औरत?’’ नीलकंठ ने खड़े होते हुए पूछा.

‘‘औरत है,’’ वार्ड बौय ने उत्तर दिया, ‘‘कहते हैं कि आत्महत्या का मामला है.’’

‘‘पुलिस को बुलाना होगा,’’ नीलकंठ ने पूछा, ‘‘साथ में कौन है?’’

‘‘2-3 पड़ोसी हैं.’’

‘‘ठीक है,’’ औपरेशन की तैयारी करने को कहो. मैं आ रहा हूं. और हां, सिस्टर ऐलिस आई हैं?’’

‘‘जी, अभीअभी आई हैं. उस घायल औरत के साथ ही ओटी में हैं,’’ वार्ड बौय ने जाते हुए कहा.

राहत की सांस लेते हुए नीलकंठ ने कहा, ‘‘तब तो ठीक है.’’

वह जल्दी से ओटी की ओर चल पड़ा. दरअसल, मन में ऐलिस से मिलने की जल्दी थी, घायल की ओर ध्यान कम ही था.

ऐलिस को देखते ही वह बोला, ‘‘इतनी देर कहां लगा दी? मैं तो चिंता में पड़ गया था.’’

‘‘सर, जल्दी कीजिए,’’ ऐलिस ने उत्तर दिया, ‘‘मरीज की हालत बहुत खराब है. और…’’

‘‘और क्या?’’ नीलकंठ ने एप्रन पहनते हुए पूछा, ‘‘सारी तैयारी कर दी है न?’’

‘‘जी, सब तैयार है,’’ ऐलिस ने गंभीरता से कहा, ‘‘घायल औरत और कोई नहीं, आप की पत्नी सुरमा है.’’

‘‘सुरमा,’’ वह लगभग चीख उठा.

सुबह ही नीलकंठ का सुरमा से खूब झगड़ा हुआ था. झगड़े का कारण ऐलिस थी. नीलकंठ और ऐलिस का प्रणय प्रसंग उन के विवाहित जीवन में विष घोल रहा था. सुबह सुरमा बहुत अधिक तनाव में थी, क्योंकि नीलकंठ के कोट पर 2-4 सुनहरे बाल चमक रहे थे और रूमाल पर लिपस्टिक का रंग लगा था. सुरमा को पूरा विश्वास था कि ये दोनों चिह्न ऐलिस के ही हैं. कुछ कहने को रह ही क्या गया था? पूरी कहानी परदे पर चलती फिल्म की तरह साफ थी.

झुंझला कर क्रोध से पैर पटकता हुआ नीलकंठ बाहर निकल गया.

जातेजाते सुरमा के चीखते शब्द कानों में पड़े, ‘आज तुम मेरा मरा मुंह देखोगे.’

ऐसी धमकियां सुरमा कई बार दे

चुकी थी. एक बार नीलकंठ ने

उसे ताना भी दिया था, ‘जानेमन, जीना जितना आसान है, मरना उतना ही मुश्किल है. मरने के लिए बहुत बड़ा दिल और हिम्मत चाहिए.’

‘मर कर भी दिखा दूंगी,’ सुरमा ने तड़प कर कहा था, ‘तुम्हारी तरह नाटकबाज नहीं हूं.’

‘देख लूंगा, देख लूंगा,’ नीलकंठ ने विषैली मुसकराहट के साथ कहा था, ‘वह शुभ घड़ी आने तो दो.’

आखिर सुरमा ने अपनी धमकी को हकीकत में बदल दिया था. उन का घर 5वीं मंजिल पर था. वह बालकनी से नीचे कूद पड़ी थी. इतनी ऊंचाई से गिर कर बचना बहुत मुश्किल था. नीचे हरीहरी घास का लौन था. उस दिन घास की कटाई हो रही थी. सो, कटी घास के ढेर लगे थे. सुरमा उसी एक ढेर पर जा कर गिरी. उस समय मरी तो नहीं, पर चोट बहुत गहरी आई थी.

शोर मचते ही कुछ लोग जमा हो गए, उन्होंने सुरमा को पहचाना और यही ठीक समझा कि उसे नीलकंठ के पास उसी के अस्पताल में पहुंचा दिया जाए.

काफी खून बह चुका था. नब्ज बड़ी मुश्किल से पकड़ में आ रही थी. शरीर का रंग फीका पड़ रहा था. नीलकंठ के मन में कई प्रश्न उठ रहे थे, ‘सुरमा से पीछा छुड़ाने का बहुत अच्छा अवसर है. इस के साथ जीवन काटना बहुत दूभर हो रहा है. हमेशा की किटकिट से परेशान हो चुका हूं. एक डाक्टर को समझना हर औरत के वश की बात नहीं, कितना तनावपूर्ण जीवन होता है. अगर चंद पल किसी के साथ मन बहला लिया तो क्या हुआ? पत्नी को इतना तो समझना ही चाहिए कि हर पेशे का अपनाअपना अंदाज होता है.’

सहसा चलतेचलते नीलकंठ रुक गया.

‘‘क्या हुआ, सर?’’ ऐलिस ने चिंतित स्वर में पूछा, ‘‘आप की तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘मैं यह औपरेशन नहीं कर सकता,’’ नीलकंठ ने लड़खड़ाते स्वर में कहा, ‘‘कोई डाक्टर अपनी पत्नी या सगेसंबंधी का औपरेशन नहीं करता, क्योंकि वह उन से भावनात्मक रूप से जुड़ा होता है. उस के हाथ कांपने लगते हैं.’’

‘‘यह आप क्या कह रहे हैं?’’ ऐलिस ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘जल्दी से डाक्टर जतिन को बुला लो,’’ नीलकंठ ने वापस मुड़ते हुए कहा. वह सोच रहा था कि औपरेशन में जितनी देर लगेगी, उतनी जल्दी ही सुरमा इस दुनिया से दूर चली जाएगी.

‘‘यह कैसे हो सकता है?’’ ऐलिस ने तनिक ऊंचे स्वर में कहा, ‘‘डाक्टर जतिन को आतेआते एक घंटा तो लगेगा ही. लेकिन इतना समय कहां है? मैं मानती हूं कि आप के लिए पत्नी को इस दशा में देखना बड़ा कठिन होगा और औपरेशन करना उस से भी अधिक मुश्किल, पर यह तो आपातस्थिति है.’’

‘‘नहीं,’’ नीलकंठ ने कहा, ‘‘यह डाक्टरी नियमों के विरुद्ध होगा और यह बात तुम अच्छी तरह जानती हो.’’

‘‘ठीक है, कम से कम आप कुछ देखभाल तो करें,’’ ऐलिस ने कहा, ‘‘मैं अभी डाक्टर जतिन को संदेश भेजती हूं.’’

डाक्टर नीलकंठ जब ओटी में घुसा तो आंखों के सामने अंधेरा छा रहा था, कितने ही उद्गार मन में उठते और फिर बादलों की तरह गायब हो जाते थे.

सामने सुरमा का खून से लथपथ शरीर पड़ा था, जिस से कभी उस ने प्यार किया था. वे क्षण कितने मधुर थे. इस समय सुरमा की आंखें बंद थीं, एकदम बेहोश और दीनदुनिया से बेखबर. इतना बड़ा कदम उठाने से पहले उस के मन में कितना तूफान उठा होगा? एक क्षण अपराधभावना से नीलकंठ का हृदय कांप उठा, जैसे कोई अदृश्य शक्ति उस के शरीर को झंझोड़ रही हो.

नीलकंठ ने कांपते हाथों से सुरमा के बदन से खून साफ किया. उस का सिर फट गया था. वह कितने ही ऐसे घायल व्यक्ति देख चुका था, पर कभी मन इतना विचलित नहीं हुआ था. वह सोचने लगा, क्या सुरमा की जान बचा सकना उस के वश में है?

लेकिन डाक्टर जतिन के आने से पहले ही सुरमा मर चुकी थी. नीलकंठ सूनी आंखों से उसे देख रहा था, वह जड़वत खड़ा था.

जतिन ने शव की परीक्षा की और धीरे से नीलकंठ के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘मुझे दुख है, सुरमा अब इस दुनिया में नहीं है. ऐलिस, नीलकंठ को केबिन में ले जाओ, इसे कौफी की जरूरत है.’’

ऐलिस ने आहिस्ता से नीलकंठ का हाथ पकड़ा और लगभग खींचते हुए ओटी से बाहर ले गई. कमरे में ले जा कर उसे कुरसी पर बैठाया.

‘‘सर, मुझे दुख है,’’ ऐलिस ने आहत स्वर में कहा, ‘‘सुरमा के ऐसे अंत की मैं ने कभी स्वप्न में भी कल्पना नहीं की थी. मैं अपने को कभी माफ नहीं कर सकूंगी.’’

नीलकंठ ने गहरी सांस ले कर कहा, ‘‘तुम्हारा कोई दोष नहीं, कुसूर मेरा है.’’

नीलकंठ आंखें बंद किए सोच रहा था, ‘शायद सुरमा को बचा पाना मेरे वश से बाहर था, पर कोशिश तो कर ही सकता था. लेकिन मैं टालता रहा, क्योंकि सुरमा से छुटकारा पाने का यह सुनहरा अवसर था. मैं कलह से मुक्ति पाना चाहता था. अब शायद ऐलिस मेरे और करीब आ जाएगी.’

ऐलिस सामने कौफी का प्याला लिए खड़ी थी. वह आकर्षक लग रही थी.

पुलिस सूचना पा कर आ गई थी. औपचारिक रूप से पूछताछ की गई. यह स्पष्ट था कि दुर्घटना के पीछे पतिपत्नी के बिगड़ते संबंध थे, परंतु नीलकंठ का इस दुर्घटना में कोईर् हाथ नहीं था. नैतिक जिम्मेदारी रही हो, पर कानूनी निगाह से वह निर्दोष था. पोस्टमार्टम के बाद शव नीलकंठ को सौंप दिया गया. दोनों ओर के रिश्तेदार सांत्वना देने और घर संभालने आ गए थे. दाहसंस्कार के बाद सब के चले जाने पर एक सूनापन सा छा गया.

नीलकंठ को सामान्य होने में सहायता दी तो केवल ऐलिस ने. अस्पताल में ड्यूटी के समय तो वह उस की देखभाल करती ही थी, पर समय पा कर अपनी छोटी बहन अनीषा के साथ उस के घर भी चली जाती थी. चाय, नाश्ता, भोजन, जैसा भी समय हो, अपने हाथों से बना कर देती थी. धीरेधीरे नीलकंठ के जीवन में शून्य का स्थान एक प्रश्न ने ले लिया.

कई महीनों के बाद नीलकंठ ने एक दिन ऐलिस से कहा, ‘‘मैं तुम्हारे जैसी पत्नी ही पाना चाहता था. तुम मुझे पहले क्यों नहीं मिलीं. यह सोच कर कभीकभी आश्चर्य होता है.’’

‘‘सर,’’ ऐलिस बोली, ‘‘सर.’’

नीलकंठ ने टोकते हुए कहा, ‘‘मैं ने कितनी बार कहा है कि मुझे ‘सर’ मत कहा करो. अब तो हम दोनों अच्छे दोस्त हैं. यह औपचारिकता मुझे अच्छी नहीं लगती.’’

‘‘क्या करूं,’’ ऐलिस हंस पड़ी, ‘‘सर, आदत सी पड़ गई है, वैसे कोशिश करूंगी.’’

‘‘तुम मुझे नील कहा करो,’’ उस ने ऐलिस की आंखों में झांकते हुए कहा, ‘‘मुझे अच्छा लगेगा.’’

ऐलिस हंस पड़ी, ‘‘कोशिश करूंगी, वैसे है जरा मुश्किल.’’

‘‘कोई मुश्किल नहीं,’’ नीलकंठ हंसा, ‘‘आखिर मैं भी तो तुम्हें ऐलिस कह कर बुलाता हूं.’’

‘‘आप की बात और है,’’ ऐलिस ने कहा, ‘‘आप किसी भी संबंध से मुझे मेरे नाम से पुकार सकते हैं.’’

‘‘तो फिर किस संबंध से तुम मेरा नाम ले कर मुझे बुलाओगी?’’ नीलकंठ के स्वर में शरारत थी.

‘‘पता नहीं,’’ ऐलिस ने निगाहें फेर लीं.

‘‘तुम जानती हो, मेरे मन में तुम्हारे लिए क्या भावना है,’’ नीलकंठ ने कहा, ‘‘मैं चाहता हूं कि तुम मेरे सूने जीवन में बहार बन कर प्रवेश करो.’’

‘‘यह तो अभी मुमकिन नहीं,’’ ऐलिस ने छत की ओर देखा.

‘‘अभी नहीं तो कोई बात नहीं,’’ नीलकंठ ने कहा, ‘‘पर वादा तो कर सकती हो?’’ नीलकंठ को विश्वास था कि ऐलिस इनकार नहीं करेगी, शक की कोई गुंजाइश नहीं थी.

‘‘यह कहना भी मुश्किल है,’’ ऐलिस ने मेज पर पड़े चम्मच से खेलते हुए कहा.

‘‘क्यों?’’ नीलकंठ ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘आखिर हम अच्छे दोस्त हैं?’’

‘‘बस, दोस्त ही बने रहें तो अच्छा है,’’ ऐलिस ने कहा.

‘‘क्या मतलब?’’ नीलकंठ ने खड़े होते हुए पूछा, ‘‘तुम कहना क्या चाहती हो?’’

‘‘यही कि अगर शादी कर ली तो इस बात की क्या गारंटी है,’’ ऐलिस ने एकएक शब्द तोलते हुए कहा, ‘‘कि मेरा भी वही हश्र नहीं होगा, जो सुरमा का हुआ? आखिर दुर्घटना तो सभी के साथ घट सकती है?’’

यह सुनते ही नीलकंठ को मानो सांप सूंघ गया. उस ने कुछ कहना चाहा, पर जबान पर मानो ताला पड़ गया था. ऐलिस ने साथ देने से इनकार जो कर दिया था.

विदाई: नीरज ने कविता के आखिरी दिनों में क्या किया

नीरज 3 महीने की टे्रनिंग के लिए दिल्ली से मुंबई गया था पर उसे 2 माह बाद ही वापस दिल्ली लौटना पड़ा था.

‘‘कविता की तबीयत बहुत खराब है. डा. विनिता कहती हैं कि उसे स्तन कैंसर है. तुम फौरन यहां आओ,’’ टेलीफोन पर अपने पिता से पिछली शाम हुए इस वार्त्तालाप पर नीरज को विश्वास नहीं हो रहा था.

कविता और उस की शादी हुए अभी 6 महीने भी पूरे नहीं हुए थे. सिर्फ 25-26 साल की कम उम्र में कैंसर कैसे हो गया? इस सवाल से जूझते हुए नीरज का सिर दर्द से फटने लगा था.

एअरपोर्ट से घर न जा कर नीरज सीधे डा. विनिता से मिलने पहुंचा. इस समय उस का दिल भय और चिंता से बैठा जा रहा था.

डा. विनिता ने जो बताया उसे सुन कर नीरज की आंखों से आंसू झरने लगे.

‘‘तुम्हें तो पता ही है कि कविता गर्भवती थी. उसे जिस तरह का स्तन कैंसर हुआ है, उस का गर्भ धारण करने से गहरा रिश्ता है. इस तरह का कैंसर कविता की उम्र वाली स्त्रियों को हो जाता है,’’ डा. विनिता ने गंभीर लहजे में उसे जानकारी दी.

‘‘अब उस का क्या इलाज करेंगे आप लोग?’’ अपने आंसू पोंछ कर नीरज ने कांपते स्वर में पूछा.

बेचैनी से पहलू बदलने के बाद डा. विनिता ने जवाब दिया, ‘‘नीरज, कविता का कैंसर बहुत तेजी से फैलने वाला कैंसर है. वह मेरे पास पहुंची भी देर से थी. दवाइयों और रेडियोथेरैपी से मैं उस के कैंसर के और ज्यादा फैलने की गति को ही कम कर सकती हूं, पर उसे कैंसरमुक्त करना अब संभव नहीं है.’’

‘‘यह आप क्या कह रही हैं? मेरी कविता क्या बचेगी नहीं?’’ नीरज रोंआसा हो कर बोला.

‘‘वह कुछ हफ्तों या महीनों से ज्यादा हमारे साथ नहीं रहेगी. अपनी प्यार भरी देखभाल व सेवा से तुम्हें उस के बाकी बचे दिनों को ज्यादा से ज्यादा सुखद और आरामदायक बनाने की कोशिश करनी होगी. कविता को ले कर तुम्हारे घर वालों का आपस में झगड़ना उसे बहुत दुख देगा.’’

‘‘यह लोग आपस में किस बात पर झगड़े, डाक्टर?’’ नीरज चौंका और फिर ज्यादा दुखी नजर आने लगा.

‘‘कैंसर की काली छाया ने तुम्हारे परिवार में सभी को विचलित कर दिया है. कविता इस समय अपने मायके में है. वहां पहुंचते ही तुम्हें दोनों परिवारों के बीच टकराव के कारण समझ में आ जाएंगे. तुम्हें तो इस वक्त बेहद समझदारी से काम लेना है. मेरी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं,’’ नीरज की पीठ अपनेपन से थपथपा कर डा. विनिता ने उसे विदा किया.

ससुराल में कविता से मुलाकात करने से पहले नीरज को अपने सासससुर व साले के कड़वे, तीखे और अपमानित करने वाले शब्दों को सुनना पड़ा.

‘‘कैंसर की बीमारी से पीडि़त अपनी बेटी को मैं ने धोखे से तुम्हारे साथ बांध दिया, तुम्हारे मातापिता के इस घटिया आरोप ने मुझे बुरी तरह आहत किया है. नीरज, मैं तुम लोगों से अब कोई संबंध नहीं रखना चाहता हूं,’’ गुस्से में उस के ससुर ने अपना फैसला सुनाया.

‘‘इस कठिन समय में उन की मूर्खतापूर्ण बातों को आप दिल से मत लगाइए,’’ थकेहारे अंदाज में नीरज ने अपने ससुर से प्रार्थना की.

‘‘इस कठिन समय को गुजारने के लिए तुम सब हमें अकेले छोड़ने की कृपा करो. बस,’’ उस के साले ने नाटकीय अंदाज में अपने हाथ जोड़े.

‘‘तुम भूल रहे हो कि कविता मेरी पत्नी है.’’

‘‘आप जा कर अपने मातापिता से कह दें कि हमें उन से कैसी भी सहायता की जरूरत नहीं है. अपनी बहन का इलाज मैं अपना सबकुछ बेच कर भी कराऊंगा.’’

‘‘देखिए, आप लोगों ने आपस में एकदूसरे से झगड़ते हुए क्याक्या कहा, उस के लिए मैं जिम्मेदार नहीं हूं. मेरी गृहस्थी उजड़ने की कगार पर आ खड़ी हुई है. कविता से मिलने को मेरा दिल तड़प रहा है…उसे मेरी…मेरे सहारे की जरूरत है. प्लीज, उसे यहां बुलाइए,’’ नीरज की आंखों से आंसू बहने लगे.

नीरज के दुख ने उन के गुस्से के उफान पर पानी के छींटे मारने का काम किया. उस की सास पास आ कर स्नेह से उस के सिर पर हाथ फेरने लगीं.

अब उन सभी की आंखों में आंसू छलक उठे.

‘‘कविता की मौसी उसे अपने साथ ले कर गई हैं. वह रात तक लौटेंगी. तुम तब तक यहां आराम कर लो,’’ उस की सास ने बताया.

अपने हाथों से मुंह कई बार पोंछ कर नीरज ने मन के बोझिलपन को दूर करने की कोशिश की. फिर उठ कर बोला, ‘‘मैं अभी घर जाता हूं. रात को लौटूंगा. कविता से कहना कि मेरे साथ घर लौटने की तैयारी कर के रखे.’’

आटोरिकशा पकड़ कर नीरज घर पहुंचा. उस का मन बुझाबुझा सा था. अपने मातापिता के रूखे स्वभाव को वह अच्छी तरह जानता था इसलिए उन्हें समझाने की उस ने कोई कोशिश भी नहीं की.

कविता की जानलेवा बीमारी की चर्चा छिड़ते ही उस की मां ने गुस्से में अपने मन की बात कही, ‘‘तेरी ससुराल वालों ने हमें ठग कर अपनी सिरदर्दी हमारे सिर पर लाद दी है, नीरज. कविता के इलाज की भागदौड़ और उस की दिनरात की सेवा हम से नहीं होगी. अब उसे अपने मायके में ही रहने दे, बेटे.’’

‘‘तेरे सासससुर ने शादी में अच्छा दहेज देने का मुझे ताना दिया है. सुन, अपनी मां से कविता के सारे जेवर ले जा कर उन्हें दे देना,’’ नीरज के पिता भी तेज गुस्से का शिकार बने हुए थे.

नीरज की छोटी बहन वंदना ने जरूर उस के साथ कुछ देर बैठ कर अपनी आंखों से आंसू बहाए पर कविता को घर लाने की बात उस ने भी अपने मुंह से नहीं निकाली.

अपने कमरे में नीरज बिना कपड़े बदले औंधे मुंह बिस्तर पर गिर पड़ा. इस समय वह अपने को बेहद अकेला महसूस कर रहा था. अपने घर व ससुराल वालों के रूखे व झगड़ालू व्यवहार से उसे गहरी शिकायत थी.

उस के अपने घर वाले बीमार कविता को घर में रखना नहीं चाहते थे और ससुराल में रहने पर नीरज का अपना दिल नहीं लगता. वह कविता के साथ रह कर कैसे यह कठिन दिन गुजारे, इस समस्या का हल खोजने को उसे काफी माथापच्ची करनी पड़ी.

उस रात कविता से नीरज करीब 2 माह बाद मिला. उसे देख कर नीरज को मन ही मन जबरदस्त झटका लगा. उस की खूबसूरत पत्नी का रंगरूप मुरझा गया था.

नीरज कितनी लगन व प्रेम से कविता की देखभाल कर रहा है, यह किसी की नजरों से छिपा नहीं रहा. कविता के मातापिता व भाई हर किसी के सामने नीरज की प्रशंसा करते न थकते.

नीरज के अपने मातापिता को उस का व्यवहार समझ में नहीं आता. वे उस के फ्लैट से हमेशा चिंतित व परेशान से हो कर लौटते.

‘‘दुनिया छोड़ कर जल्दी जाने वाली कविता के साथ इतना मोह रखना ठीक नहीं है नीरज,’’ उस की मां, अकसर अकेले में उसे समझातीं, ‘‘तुम्हारी जिंदगी अभी आगे भी चलेगी, बेटे. कोई ऐसा तेज सदमा दिमाग में मत बैठा लेना कि अपने भविष्य के प्रति तुम्हारी कोई दिलचस्पी ही न रहे.’’

नीरज हमेशा हलकेफुलके अंदाज में उन्हें जवाब देता, ‘‘मां, कविता इतने कम समय के लिए हमारे साथ है कि हम उसे अपना मेहमान ही कहेंगे और मेहमान की विदाई तक उस की देखभाल, सेवा व आवभगत में कोई कमी न रहे, मेरी यही इच्छा है.’’

वक्त का पहिया अपनी धुरी पर निरंतर घूमता रहा. कविता की शारीरिक शक्ति घटती जा रही थी. नीरज ने अगर उस के होंठों पर मुसकान बनाए रखने को जी जान से ताकत न लगा रखी होती तो अपनी तेजी से करीब आ रही मौत का भय उस के वजूद को कब का तोड़ कर बिखेर देता.

एक दिन चाह कर भी वह घर से बाहर जाने की शक्ति अपने अंदर नहीं जुटा पाई. उस दिन उस की खामोशी में उदासी और निराशा का अंश बहुत ज्यादा बढ़ गया.

उस रात सोने से पहले कविता नीरज की छाती से लग कर सुबक उठी. नीरज उसे किसी भी प्रकार की तसल्ली देने में नाकाम रहा.

‘‘मुझे इस एक बात का सब से ज्यादा मलाल है कि हमारे प्रेम की निशानी के तौर पर मैं तुम्हें एक बेटा या बेटी नहीं दे पाई… मैं एक बहू की तरह से…एक पत्नी के रूप में असफल हो कर इस दुनिया से जा रही हूं…मेरी मौत क्या 2-3 साल बाद नहीं आ सकती थी?’’ कविता ने रोंआसी हो कर नीरज से सवाल पूछा.

‘‘कविता, फालतू की बातें सोच कर अपने मन को परेशान मत करो,’’ नीरज ने प्यार से उस की नाक पकड़ कर इधरउधर हिलाई, ‘‘मौत का सामना आगेपीछे हम सब को करना ही है. इस शरीर का खो जाना मौत का एक पहलू है. देखो, मौत की प्रक्रिया पूरी तब होती है जब दुनिया को छोड़ कर चले गए इनसान को याद करने वाला कोई न बचे. मैं इसी नजरिए से मौत को देखता हूं. और इसीलिए कहता हूं कि मेरी अंतिम सांस तक तुम्हारा अस्तित्व मेरे लिए कायम रहेगा…मेरे लिए तुम मेरी सांसों में रहोगी… मेरे साथ जिंदा रहोगी.’’

कविता ने उस की बातों को बड़े ध्यान से सुना था. अचानक वह सहज ढंग से मुसकराई और उस की आंखों में छाए उदासी के बादल छंट गए.

‘‘आप ने जो कहा है उसे मैं याद रखूंगी. मेरी कोशिश रहेगी कि बचे हुए हर पल को जी लूं… बची हुई जिंदगी का कोई पल मौत के बारे में सोचते हुए नष्ट न करूं. थैंक यू, सर,’’ नीरज के होंठों का चुंबन ले कर कविता ने बेहद संतुष्ट भाव से आंखें मूंद ली थीं.

आगामी दिनों में कविता का स्वास्थ्य तेजी से गिरा. उसे सांस लेने में कठिनाई होने लगी. शरीर सूख कर कांटा हो गया. खानापीना मुश्किल से पेट में जाता. शरीर में जगहजगह फैल चुके कैंसर की पीड़ा से कोई दवा जरा सी देर को भी मुक्ति नहीं दिला पाती.

अपनी जिंदगी के आखिरी 3 दिन उस ने अस्पताल के कैंसर वार्ड में गुजारे. नीरज की कोशिश रही कि वह वहां हर पल उस के साथ बना रहे.

‘‘मेरे जाने के बाद आप जल्दी ही शादी जरूर कर लेना,’’ अस्पताल पहुंचने के पहले दिन नीरज का हाथ अपने हाथों में ले कर कविता ने धीमी आवाज में उस से अपने दिल की बात कही.

‘‘मुझे मुसीबत में फंसाने वाली मांग मुझ से क्यों कर रही हो?’’ नीरज ने जानबूझ कर उसे छेड़ा.

‘‘तो क्या आप मुझे अपने लिए मुसीबत समझते रहे हो?’’ कविता ने नाराज होने का अभिनय किया.

‘‘बिलकुल नहीं,’’ नीरज ने प्यार से उस की आंखों में झांक कर कहा, ‘‘तुम तो सोने का दिल रखने वाली एक साहसी स्त्री हो. बहुत कुछ सीखा है मैं ने तुम से.’’

‘‘झूठी तारीफ करना तो कोई आप से सीखे,’’ इन शब्दों को मुंह से निकालते समय कविता की खुशी देखते ही बनती थी.

कविता का सिर सहलाते हुए नीरज मन ही मन सोचता रहा, ‘मैं झूठ नहीं कह रहा हूं, कविता. तुम्हारी मौत को सामने खड़ी देख हमारी साथसाथ जीने की गुणवत्ता पूरी तरह बदल गई. हमारी जीवन ज्योति पूरी ताकत से जलने लगी… तुम्हारी ज्योति सदा के लिए बुझने से पहले अपनी पूरी गरिमा व शक्ति से जलना चाहती होगी…मेरी ज्योति तुम्हें खो देने से पहले तुम्हारे साथ बीतने वाले एकएक पल को पूरी तरह से रोशन करना चाहती है. जीने की सही कला…सही अंदाज सीखा है मैं ने तुम्हारे साथ पिछले कुछ हफ्तों में. तुम्हारे साथ की यादें मुझे आगे भी सही ढंग से जीने को सदा उत्साहित करती रहेंगी, यह मेरा वादा रहा तुम से…भविष्य में किसी अपने को विदाई देने के लिए नहीं, बल्कि हमसफर बन कर जिंदगी का भरपूर आनंद लेने के लिए मैं जिऊंगा क्योंकि जिंदगी के सफर का कोई भरोसा नहीं.’

जब 3 दिन बाद कविता ने आखिरी सांस ली तब नीरज का हाथ उस के हाथ में था. उस ने कठिनाई से आंखें खोल कर नीरज को प्रेम से निहारा. नीरज ने अपने हाथ पर उस का प्यार भरा दबाव साफ महसूस किया. नीरज ने झुक कर उस का माथा प्यार से चूम लिया.

कविता के होंठों पर छोटी सी प्यार भरी मुसकान उभरी. एक बार नीरज के हाथ को फिर प्यार से दबाने के बाद कविता ने बड़े संतोष व शांति भरे अंदाज में सदा के लिए अपनी आंखें मूंद लीं.

नीरज ने देखा कि इस क्षण उस के दिलोदिमाग पर किसी तरह का बोझ नहीं था. इस मेहमान को विदा कहने से पहले उस की सुखसुविधा व मन की शांति के लिए जो भी कर सकता था, उस ने खुशीखुशी व प्रेम से किया. तभी तो उस के मन में कोई टीस या कसक नहीं उठी.

विदाई के इन क्षणों में उस की आंखों से जो आंसुओं की धारा लगातार बह रही थी उस का उसे कतई एहसास नहीं था.

जानें क्या है प्रैग्नेंसी में आने वाली परेशानियां और उसके बचाव

लेखिका- सोनिया राणा 

मां बनना एक बेहद खूबसूरत एहसास है, जिसे शब्दों में पिरोना मुश्किल ही नहीं, बल्कि असंभव सा भी प्रतीत होता है. कोई महिला मां उस दिन नहीं बनती जब वह बच्चे को जन्म देती है, बल्कि उस का रिश्ता नन्ही सी जान से तभी बन जाता है जब उसे पता चलता है कि वह प्रैगनैंट है.

प्रैग्नेंसी के दौरान हालांकि सभी महिलाओं के अलगअलग अनुभव रहते हैं, लेकिन आज हम उन आम समस्याओं की बात करेंगे, जिन्हें जानना बेहद जरूरी है.

यों तो प्रैग्नेंसी के पूरे 9 महीने अपना खास खयाल रखना होता है, लेकिन शुरुआती  3 महीने खुद पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है. पहले ट्राइमैस्टर में चूंकि बच्चे के शरीर के अंग बनने शुरू होते हैं तो ऐसे में आप अपने शरीर में होने वाले बदलावों पर नजर रखें और अगर कुछ ठीक न लगे तो डाक्टर का परामर्श जरूर लें.

प्रैग्नेंसी के दौरान महिलाओं को काफी हारमोनल और शारीरिक बदलावों से गुजरना पड़ता है. मितली आना, चक्कर आना, स्पौटिंग, चिड़चिड़ापन, कब्ज, बदहजमी, पेट में दर्द, सिरदर्द, पैरों में सूजन आदि परेशानियोंसे हर गर्भवती महिला को गुजरना पड़ता है. आप कैसे इन समस्याओं से नजात पा सकती हैं, बता रही हैं गाइनोकोलौजिस्ट डा. विनिता पाठक:

शरीर में सूजन

शरीर में सूजन आ जाना भी प्रैग्नेंसी का एक सामान्य लक्षण है. विशेषज्ञों के अनुसार प्रैग्नेंसी में महिला का शरीर लगभग 50 फीसदी ज्यादा खून का निर्माण करता है. गर्भ में पल रहे बच्चे को भी मां के ही शरीर से पोषण मिलता है, जिस की वजह से मां का शरीर ज्यादा मात्रा में खून और फ्लूइड का निर्माण करता है.

हालांकि इस दौरान शरीर में सूजन आ जाना एक सामान्य बात है, लेकिन अगर सूजन बहुत अधिक है तो यह चिंता की बात हो सकती है. आम बोलचाल की भाषा में इसे ओएडेमा कहते हैं. इस दौरान हाथों, चेहरे और पैरों में सब से अधिक सूजन नजर आती है.

सूजन कम करने के लिए पैरों को कुनकुने पानी में नमक डाल कर कुछ देर के लिए डुबो कर रखें. रात को पैरों के नीचे तकिया लगाने से भी सूजन से राहत मिलेगी.

प्रैग्नेंसी की कब्ज न कर दे बवासीर

प्रैग्नेंसी में सही खानपान न लेने से कई महिलाएं कब्ज की समस्या से गुजरती हैं, जिस में आगे जा कर बवासीर होने का खतरा काफी अधिक रहता है. नियमित आहार न लेने से यह समस्या हो सकती है. इस से बचने के लिए जरूरी है कि आप अपने आहार में सेब, केला, नाशपाती, शकरकंद, गाजर, संतरा, कद्दू जैसी सब्जियों और फलों को शामिल करें.

मसालेदार भोजन से बिलकुल परहेज करें और ज्यादा से ज्यादा पानी पीएं.

गैस, बदहजमी और पेट दर्द की समस्या

प्रैग्नेंसी के दौरान गैस, भारीपन और पेट दर्द की समस्या भी आमतौर पर महिलाओं में देखी जाती है. इन से बचने के लिए सब से पहले अपने आहार से तली हुई चीजों को निकाल दें. मसालेदार खाना खाने से बचें और एक बार में बहुत अधिक भोजन भी न करें. गैस और बदहजमी की समस्या के उपचार के लिए एक गिलास कुनकुने पानी में आधे नीबू का रस मिला कर पीएं.

यूरिन इंन्फैक्शन बनता है परेशानी का सबब

प्रैग्नेंसी में यूरिन इन्फैक्शन हो जाने पर जरूरी है कि आप अधिक से अधिक पानी पीएं ताकि पेशाब के जरीए आप के शरीर से सभी प्रकार के हानिकारक तत्त्व बाहर निकल जाएं. इस के अलावा विटामिन सी से भरपूर फल और सब्जियां खाएं. दही या छाछ भी यूरिन इन्फैक्शन में बहुत लाभदायक होती है.

स्वस्थ प्रैगनैंसी के लिए तैयार करें डाइट चार्ट

शुरुआती 3 महीनों में प्रोटीन, कैल्सियम और आयरन से भरपूर चीजें ज्यादा खानी चाहिए. अपने खाने में दाल, पनीर, अंडा, नौनवेज, सोयाबीन, दूध, दही, पालक, गुड़, अनार, चना, पोहा, मुरमुरे शामिल करें, फल और हरी पत्तेदार सब्जियां भी खूब खाएं. चूंकि बच्चा फ्लूइड में ही रहता है, इसलिए शरीर में पानी की कमी बिलकुल नहीं होनी चाहिए. हर 2 घंटों में नियमित मात्रा में कुछ न कुछ जरूर खाती रहें.

ओमेगा युक्त हो आहार

बच्चे के मस्तिष्क, तंत्रिका प्रणाली और आंखों के विकास के लिए अपने आहार में ओमेगा-3 फैटी ऐसिड के सेवन को भी बढ़ाएं. बच्चे के दिमाग के विकास के लिए ओमेगा-3 और ओमेगा-6 बहुत जरूरी है. फिश, लिवर औयल, ड्राईफ्रूट्स, हरी पत्तेदार सब्जियों और सरसों के तेल में ये अच्छी मात्रा में मिलते हैं. आयरन और फौलिक ऐसिड की गोलियां खाना भी शुरू कर दें. इस से शरीर में खून की कमी नहीं होती है.

प्रैगनैंसी के दौरान मिर्गी, हाइपोथायरायड और थैलेसीमिया के लिए भी जांच कराई जाती है, अगर पेरैंट्स में से किसी में थैलेसीमिया के लक्षण हैं, तो बच्चे के भी इस से पीडि़त होने की आशंका 25% बढ़ जाती है. अगर जांच में बच्चा इन्फैक्टेड पाया जाता है, तो डाक्टर की सलाह ले कर अबौर्शन कराना ही बेहतर होता है.

  इन बातों का भी रखें खास खयाल

– भारी वजन न उठाएं.

– ज्यादा डांस न करें.

– सीढि़यों से न कूदें.

– ज्यादा हाई हील न पहनें.

– ज्यादा ड्राइविंग न करें.

– लंबी यात्रा से बचें.

– रस्सी न कूदें.

– कमर से झुकने के बजाय घुटने मोड़ कर बैठें.

शुरुआती 3 महीनों में इन से बचें

– कई बार महिलाएं डाक्टर की सलाह लिए बिना सर्दीखांसी या हलकी बीमारी होने पर दवा खाना शुरू कर देती हैं, जिस का गर्भनाल के माध्यम से बच्चे के खून में प्रवेश करने की आशंका रहती है. इसलिए पहले 3 महीनों में डाक्टर की सलाह के बिना कोई भी दवा न खाएं.

– इस दौरान कच्चा मांस, कच्चे अंडे और पनीर के सेवन से भी परहेज करें, क्योंकि इन में मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया आप के शिशु की सेहत को नुकसान पहुंचा सकती है.

– तनाव भी आप के गर्भ में पल रहे शिशु के लिए किसी बड़े खतरे से कम नहीं है. प्रैग्नेंसी की शुरुआत में कई कारणों के चलते कई महिलाएं तनाव में रहने लगती हैं, जिस का बच्चे की सेहत पर बुरा असर पड़ता है. इस के चलते कई बार गर्भपात भी हो जाता है, इसलिए प्रैग्नेंसी के दौरान जितना हो सके, खुश रहें.

– अच्छा म्यूजिक सुनें, अच्छी किताबें पढ़ें, खुद आप को व्यस्त रखें और डाक्टर की सलह के अनुसार एक्सरसाइज करें.

– प्रैग्नेंसी के दौरान डाइटिंग नहीं करनी चाहिए. इस से शरीर में आयरन, फौलिक ऐसिड, विटामिन, कई तरह के खनिजों और पोषक तत्त्वों की कमी हो जाती है.

– इस दौरान हौट टब और सोना बाथ का उपयोग भी न करें, क्योंकि इस से आप के शरीर का तापमान अचानक बढ़ सकता है, इस से शरीर में पानी की कमी हो सकती है, जो बच्चे के लिए जानलेवा साबित हो सकती है.

– प्रैगनैंसी के दौरान किसी खास चीज को खाने का दिल ज्यादा करने लगता है. ऐसे में किसी एक ही चीज को बारबार खाने के बजाय बाकी चीजों को भी खाने में शामिल करें.

– चाइनीज फूड खाने से आप को बचना चाहिए, क्योंकि उस में जरूरत से ज्यादा अजीनोमोटो होता है, जो आप के बच्चे की सेहत के लिए खतरनाक साबित होता है.

इंटिमेट हाइजीन के लिए फौलो करें ये टिप्स, नहीं होगा वजाइनल इंफेक्शन का खतरा

Intimate Hygiene Tips: बारिश के मौसम में गर्मी से राहत तो मिलती है, लेकिन यह मौसम कई सारी बीमारियां लेकर आता है.  इस मौसम में लोग इंफेक्शन के कारण परेशान रहते हैं. खासकर महिलाओं को वजाइना में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है.

 

कई बार इंटिमेट हाइजीन पर ध्यान न देने के कारण ज्यादा तकलीफ हो सकती है. ऐसे में हम आपको इस आर्टिकल में कुछ टिप्स बताएंगे, जिन्हें अपनाकर आप वजाइनल इंफेक्शन से बच सकती हैं.

भीगे कपड़े न पहनें

मानसून में गीले कपड़े इंफेक्शन का कारण बनते हैं. भींगे कपड़े पहनने से स्किन या प्राइवेट पार्ट में संक्रमण और रैशेज बढ़ने की संभावना ज्यादा होती है. गिले कपड़े से बहुत सारे बैक्टीरिया जन्म लेते हैं, जो इंफेक्शन का कारण हैं.

टाइट कपड़ें पहनना Avoid करें

मानसून में टाइट कपड़े पहनने से बचें. इस मौसम में जितना हो सके कम्फर्टेबल कपड़े पहनें. ज्यादा टाइट कपड़े पहनने से पसीना निकलता है. जिससे चकत्ते, वेजाइनल इन्फेक्शन, यूटीआई की प्रौब्लम महिलाओं को होती है. ऐसे में महिलाएं कोशिश करें कि कौटन का कपड़े पहनें, इससे कम्फर्टेबल महसूस करेंगी और प्राइवेट पार्ट के इंफेक्शन से बच सकती हैं.

मानसून में सेनेटरी पैड के बजाय मैन्स्ट्रुअल कप का करें इस्तेमाल

बारिश के मौसम में महिलाओं को वैजाइन इन्फेक्शन का खतरा बना रहता है. पीरियड्स के दौरान ये प्रौब्लम और बढ़ जाती है, ऐसे में आपको सेनेटरी पैड के बजाय मेन्स्ट्रूयल कप का इस्तेमाल करना चाहिए. क्योंकि इस मौसम में सेनेटरी पैड से नमी बढ़ सकती है, जिसके कारण रैशेज हो सकते हैं.

वजाइना की साफ सफाई पर ध्यान रखें

बारिश के मौसम में नमी बढ़ने से वजाइना का पीएच लेवल काफी कम होता है, जिससे महिलाओं में फंगल इन्फेक्शन का खतरा बढ़ जाता है. इसलिए वजाइना की हाइजीन बनाए रखें. इंफकेशन से बचने के लिए रोजाना कम से कम दो बार पानी से वजाइना को धोएं और साफ सूती के कपड़े से सूखा लें.

स्पाइसी खाना करें परहेज

बारिश के मौसम में हर कोई चटपटा और तीखा खाना पसंद करता है, लेकिन मसालेदार खाने से आपको कई समस्याएं हो सकती हैं. ज्यादा तीखा और मसालेदार खाने  से वजाइना के पीएच लेवल में कमी आती है और फंगल इन्फेक्शन बढ़ने लगता है. जिससे प्राइवेट पार्ट में खुजली और जलन की समस्या होती है.

सेक्स करने के बाद वजाइना साफ करें

सेक्स करने के बाद वजाइना को पानी से जरूर साफ करें और पेशाब करने की आदत डालें.

Monsoon Hair Care : मानसून में क्यों बढ़ जाता है Hair Fall, जानें कैसे करें बचाव

Monsoon Hair Care : मानसून आते ही चारों तरफ हरियाली छा जाती है, लेकिन इस मौसम में लड़कियों को बाल टूटने की समस्या ज्यादा होती है. हालांकि आजकल बदलती लाइफस्टाइल और गलत खानपान की वजह से हेयर फौल आम समस्या है, लेकिन नार्मल दिनों के मुकाबले मानसून में बालों के टूटने की फ्रीक्वेंसी ज्यादा बढ़ जाती है.

 

लेकिन क्या आप जानते हैं, मानसून के दौरान हेयर फौल की समस्या क्यों बढ़ जाती है? अगर नहीं, तो आज हम आपको बताएंगे बरसात के दिनों में क्यों बढ़ जाता है हेयर फौल?

एक्सपर्ट्स के मुताबिक एक दिन में 100 बालों की झड़ना आम है. चूंकि महिलाओं के बाल लंबे होते हैं, हेयर फौल महिलाओं में बिल्कुल कौमन है, लेकिन बारिश के दिनों में यह समस्या इसलिए बढ़ जाती है, क्योंकि इस मौसम में ह्यूमिडिटी ज्यादा होती है.

मानसून में हवा में अधिक नमी होने के कारण चिपचिपा सा बना रहता है. ऐसे में आप बालों की सही से देखभाल नहीं करते हैं, तो बाल टूटने की समस्या बढ़ जाती है. स्कैल्प में खुजली और रूखापन जैसी प्रौब्लम भी होती है. मानसून में कई बार यह समस्या इतना बढ़ जाती है कि स्कैल्प में सूजन या दर्द भी होने लगता है. हेयर फौल के अलावा संक्रमण का खतरा भी बढ़ जाता है.

बारिश के दिनों में हेयर फौल की समस्या से कैसे बचें

  • बरसात के मौसम में कम से कम हफ्ते में दो बार गुनगुने तेल से स्कैल्प की मसाज करें, इससे ब्लड सर्कुलेशन बढ़ेगा. जिससे बाल हेल्दी और शाइनी होंगे.
  • आजकल अक्सर महिलाएं बालों को सुखाने के लिए हेयर ड्रायर का इस्तेमाल करती हैं, लेकिन बाल टूटने  की समस्या बढ़ती है. नेचुरल तरीके बालों को सुखाने की कोशिश करें, सौफ्ट तौलिए से बालों को सुखा सकती हैं.
  • भींगे बालों में कंघी न करें. अगर आप ऐसा करती हैं, तो बाल टूटने की समस्या और बढ़ेगी. बालों को सूखने के बाद ही कंघी करें.
  • बारिश के मौसम में सप्ताह में दो-तीन बार जरूर हेयर वाश करें. कंडीशनर का भी यूज करना जरूरी होता है.

भारत की इस मशहूर लेखिका को ब्रिटेन के चर्चित ‘पेन पिंटर अवार्ड’ से किया जाएगा सम्मानित

अपने बेबाक अंदाज, क्रांतिकारी विचारों, लेखों और मुखर आवाज के लिए जानी जाने वाली भारत की मशहूर अंग्रेजी लेखिका और समाजसेविका अरुंधति रॉय को ब्रिटेन के पेन पिंटर पुरस्कार 2024 से सम्मानित करने की घोषणा की गई है.

इस अवॉर्ड के लिए तीन जजों की एक जूरी ने अरुंधति रॉय को चुना है. जूरी में इंग्लिश पेन की अध्यक्ष रुथ बॉर्थविक, ब्रिटिश एक्टर खालिद अब्दल्ला और ब्रिटिश लेखक और संगीतकार रोजर रॉबिनसन शामिल थे.

आपको बता दें पेन पिंटर पुरस्कार की शुरुआत 2009 में हुई थी. और ये नोबेल पुरस्कार विजेता नाटककार हैरोल्ड पिंटर की याद में स्थापित उन लेखकों को दिया जाता है जिनकी “असाधारण साहित्यिक योग्यता” होती है और जो दुनिया पर “निडरता” से नजर रखते हैं.

इस साल ये पुरस्कार भारत की मशहूर अंग्रेजी लेखिका और समाजसेविका अरुंधति रॉय को दिया जाएगा. उन्हें यह पुरस्कार 10 अक्टूबर को ब्रिटिश लाइब्रेरी में आयोज्य समारोह में प्रदान किया जाएगा. इस मौके पर वह एक संबोधन भी देंगी.

ये अवॉर्ड अरुंधति को ऐसे समय दिया जा रहा है. जब हाल ही में दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने उनके खिलाफ गै़रकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम यानी यूएपीए के तहत मुकदमा चलाए जाने की अनुमति दे दी है. ये केस 14 साल पुराने एक भाषण को लेकर उन पर दर्ज किया गया था.

अरुंधति राय ने लेखन के अलावा नर्मदा बचाओ आंदोलन समेत भारत के दूसरे जनांदोलनों में भी हिस्सा लिया. हाल ही में उनकी पुस्तक “द डॉक्टर एंड द सेंट: द अंबेडकर-गांधी डिबेट” चर्चा में है, जिसका हिन्दी अनुवाद प्रोफेसर रतनलाल ने “एक था डॉक्टर एक था सन्त” के नाम से किया है.

अरुधंति रॉय ने अपने करियर की शुरुआत अभिनय से की. मैसी साहब फिल्म में उन्होंने प्रमुख भूमिका निभाई. इसके अलावा कई फिल्मों के लिए पटकथाएं भी लिखीं. जिनमें In Which Annie Gives It Those Ones (1989), Electric Moon (1992) को बहुत सराहना मिली. जब उन्हें 1997 में उपन्यास गॉड ऑफ स्माल थिंग्स के लिये बुकर पुरस्कार मिला तो साहित्य जगत का ध्यान उनकी ओर गया.

पेन पिंटर पुरस्कार’ से माइकल रोसेन, मैलोरी ब्लैकमैन, मार्गरेट एटवुड, सलमान रुश्दी, टॉम स्टॉपर्ड और कैरोल एन डफी जैसे लेखकों को भी सम्मानित किया जा चुका है.

क्या आपका भी है छोटा बेडरूम, तो बड़ा दिखाने के लिए फौल करें ये टिप्स

राधा और विवेक की शादी को एक साल हो गया था. अब चूंकि विवेक की जौब दिल्ली से मुंबई लग गई थी, इसलिए उन दोनों ने वहां शिफ्ट होने का प्लान बनाया.

मुंबई में रहने की समस्या थी, लेकिन विवेक ने पहले से ही सोच रखा था कि वह अपनी सेविंग्स से वहां फ्लैट खरीद लेगा. दोनों ने कई हाउसिंग सोसाइटी में घर देखे और आखिर में एक वन बैडरूम फ्लैट पसंद आ ही गया. उस फ्लैट में एक छोटी सी दिक्कत यह थी कि उस का बैडरूम छोटा था, पर हर परिवार की तरह उन दोनों ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया.

ऐसा अमूमन होता है कि हम अपने घर के आकार से समझौता कर लेते हैं, लेकिन एक बात पर ध्यान नहीं देते हैं कि अगर थोड़ा सा दिमाग लगाया जाए तो रूम का साइज बढ़ाए बिना भी उसे कुछ टिप्स अपनाते हुए बड़े जैसा दिखाया जा सकता है.

इस बारे में जब न्यू आर्क स्टुडियो, नोएडा की प्रिंसिपल आर्किटैक्ट नेहा चोपड़ा से बात की गई तो उन्होंने बताया, “छोटे बैडरूम में भी किसी शाही अंदाज में रहा जा सकता है. भले ही आप का बैडरूम किसी शू बौक्स सा छोटा और तंग लगता हो, पर थोड़ा सा दिमाग लगा कर उस में खुलापन लाया जा सकता है. इस में बैडरूम में रखा बैड, अलमारी, दीवारों का रंग और सजावट का बहुत बड़ा और खास रोल होता है.”

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नेहा चोपड़ा ने इस विषय पर आगे बताया, “सब से पहले बैडरूम में बेतरतीब रखी चीजों को ढंग से रखने की कला आनी चाहिए. हमें अपनी लाई हर उस चीज से बड़ा लगाव होता है, जो शायद कुछ समय के बाद हमारे किसी काम की भी नहीं होती है. कड़ा मन कर के उन्हें छांटिए और हटा दीजिए. कपड़ों को हमेशा अलमारी में तह कर के रखें और जूतोंचप्पलों को करीने से शू रैक या वार्डरौब में उन की जगह पर ही रखें.

“छोटे बैडरूम में दीवारों को स्टोरेज के लिए ज्यादा इस्तेमाल करना चाहिए. इस के लिए फ्लोर टू सीलिंग या वाल टू वाल फिटेड यूनिट, जो दीवारों के रंग की ही हों, का इस्तेमाल करना चाहिए. इन्हीं यूनिट में आप फोटोग्राफ, किताबें, सजाने के दूसरे सामान भी रख सकते हैं. इन्हीं यूनिट में कोई फोल्डेड डैस्क भी बनवाया जा सकता है, जिसे इस्तेमाल करने के बाद फोल्ड कर दिया जाए.”

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बैडरूम में बैड की बड़ी अहमियत होती है पर यही सब से ज्यादा जगह भी घेरता है. इस समस्या का हल नेहा चोपड़ा ने कुछ इस तरह बताया, “आजकल ऐसे बैड बनने लगे हैं जो वाल कैबिनेट की तरह दिनभर दीवार पर सैट हो जाते हैं और जरूरत पड़ने पर रात में काम आ जाते हैं. ऐसे में दिन में आप उस रूम को किसी दूसरे काम के लिए आसानी से इस्तेमाल कर सकते हैं.”

बैडरूम में आईना भी बहुत जरूरी होता, पर यह कतई जरूरी नहीं है कि बड़े तामझाम वाला ड्रैसिंग टेबल लिया जाए. नेहा चोपड़ा ने आइडिया दिया, “दीवार पर ही एक बड़ा आईना लगाया जा सकता है. थोड़ा बड़ा और चौड़ा मिरर कमरे का आकार बढ़ा देने का आभास कराता है.

“अलमारी के साथसाथ आप उसमें अपने टैलीविजन की जगह भी बनवा देंगे तो जगह भी बचेगी और अलमारी खूबसूरत भी लगेगी.

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“इस के अलावा बैडरूम भले ही छोटा हो, लेकिन अगर उस में भरपूर सनलाइट आती है तो वह बड़े जैसा ही दिखता है. अगर आप का बैड खिड़की के पास है तो वह खूबसूरत तो लगता ही है, कमरे को भी बड़ा सा फील कराता है.

“बैडरूम को बड़ा दिखाने के लिए दीवारों का रंग भी हलका रखना चाहिए. सफेद रंग में रोशनी सब से ज्यादा फैलती है, इसलिए दीवारों पर पेंट कराने से पहले कलर स्कीम का ध्यान रखना चाहिए.”

ये कुछ टिप्स हैं, जो आप की सब से पसंदीदा जगह बैडरूम को देखते ही देखते छोटे से बड़ा बना देते हैं, बिना कोई तोड़फोड़ किए.

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