Monsoon Hair Care : मानसून में क्यों बढ़ जाता है Hair Fall, जानें कैसे करें बचाव

Monsoon Hair Care : मानसून आते ही चारों तरफ हरियाली छा जाती है, लेकिन इस मौसम में लड़कियों को बाल टूटने की समस्या ज्यादा होती है. हालांकि आजकल बदलती लाइफस्टाइल और गलत खानपान की वजह से हेयर फौल आम समस्या है, लेकिन नार्मल दिनों के मुकाबले मानसून में बालों के टूटने की फ्रीक्वेंसी ज्यादा बढ़ जाती है.

 

लेकिन क्या आप जानते हैं, मानसून के दौरान हेयर फौल की समस्या क्यों बढ़ जाती है? अगर नहीं, तो आज हम आपको बताएंगे बरसात के दिनों में क्यों बढ़ जाता है हेयर फौल?

एक्सपर्ट्स के मुताबिक एक दिन में 100 बालों की झड़ना आम है. चूंकि महिलाओं के बाल लंबे होते हैं, हेयर फौल महिलाओं में बिल्कुल कौमन है, लेकिन बारिश के दिनों में यह समस्या इसलिए बढ़ जाती है, क्योंकि इस मौसम में ह्यूमिडिटी ज्यादा होती है.

मानसून में हवा में अधिक नमी होने के कारण चिपचिपा सा बना रहता है. ऐसे में आप बालों की सही से देखभाल नहीं करते हैं, तो बाल टूटने की समस्या बढ़ जाती है. स्कैल्प में खुजली और रूखापन जैसी प्रौब्लम भी होती है. मानसून में कई बार यह समस्या इतना बढ़ जाती है कि स्कैल्प में सूजन या दर्द भी होने लगता है. हेयर फौल के अलावा संक्रमण का खतरा भी बढ़ जाता है.

बारिश के दिनों में हेयर फौल की समस्या से कैसे बचें

  • बरसात के मौसम में कम से कम हफ्ते में दो बार गुनगुने तेल से स्कैल्प की मसाज करें, इससे ब्लड सर्कुलेशन बढ़ेगा. जिससे बाल हेल्दी और शाइनी होंगे.
  • आजकल अक्सर महिलाएं बालों को सुखाने के लिए हेयर ड्रायर का इस्तेमाल करती हैं, लेकिन बाल टूटने  की समस्या बढ़ती है. नेचुरल तरीके बालों को सुखाने की कोशिश करें, सौफ्ट तौलिए से बालों को सुखा सकती हैं.
  • भींगे बालों में कंघी न करें. अगर आप ऐसा करती हैं, तो बाल टूटने की समस्या और बढ़ेगी. बालों को सूखने के बाद ही कंघी करें.
  • बारिश के मौसम में सप्ताह में दो-तीन बार जरूर हेयर वाश करें. कंडीशनर का भी यूज करना जरूरी होता है.

भारत की इस मशहूर लेखिका को ब्रिटेन के चर्चित ‘पेन पिंटर अवार्ड’ से किया जाएगा सम्मानित

अपने बेबाक अंदाज, क्रांतिकारी विचारों, लेखों और मुखर आवाज के लिए जानी जाने वाली भारत की मशहूर अंग्रेजी लेखिका और समाजसेविका अरुंधति रॉय को ब्रिटेन के पेन पिंटर पुरस्कार 2024 से सम्मानित करने की घोषणा की गई है.

इस अवॉर्ड के लिए तीन जजों की एक जूरी ने अरुंधति रॉय को चुना है. जूरी में इंग्लिश पेन की अध्यक्ष रुथ बॉर्थविक, ब्रिटिश एक्टर खालिद अब्दल्ला और ब्रिटिश लेखक और संगीतकार रोजर रॉबिनसन शामिल थे.

आपको बता दें पेन पिंटर पुरस्कार की शुरुआत 2009 में हुई थी. और ये नोबेल पुरस्कार विजेता नाटककार हैरोल्ड पिंटर की याद में स्थापित उन लेखकों को दिया जाता है जिनकी “असाधारण साहित्यिक योग्यता” होती है और जो दुनिया पर “निडरता” से नजर रखते हैं.

इस साल ये पुरस्कार भारत की मशहूर अंग्रेजी लेखिका और समाजसेविका अरुंधति रॉय को दिया जाएगा. उन्हें यह पुरस्कार 10 अक्टूबर को ब्रिटिश लाइब्रेरी में आयोज्य समारोह में प्रदान किया जाएगा. इस मौके पर वह एक संबोधन भी देंगी.

ये अवॉर्ड अरुंधति को ऐसे समय दिया जा रहा है. जब हाल ही में दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने उनके खिलाफ गै़रकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम यानी यूएपीए के तहत मुकदमा चलाए जाने की अनुमति दे दी है. ये केस 14 साल पुराने एक भाषण को लेकर उन पर दर्ज किया गया था.

अरुंधति राय ने लेखन के अलावा नर्मदा बचाओ आंदोलन समेत भारत के दूसरे जनांदोलनों में भी हिस्सा लिया. हाल ही में उनकी पुस्तक “द डॉक्टर एंड द सेंट: द अंबेडकर-गांधी डिबेट” चर्चा में है, जिसका हिन्दी अनुवाद प्रोफेसर रतनलाल ने “एक था डॉक्टर एक था सन्त” के नाम से किया है.

अरुधंति रॉय ने अपने करियर की शुरुआत अभिनय से की. मैसी साहब फिल्म में उन्होंने प्रमुख भूमिका निभाई. इसके अलावा कई फिल्मों के लिए पटकथाएं भी लिखीं. जिनमें In Which Annie Gives It Those Ones (1989), Electric Moon (1992) को बहुत सराहना मिली. जब उन्हें 1997 में उपन्यास गॉड ऑफ स्माल थिंग्स के लिये बुकर पुरस्कार मिला तो साहित्य जगत का ध्यान उनकी ओर गया.

पेन पिंटर पुरस्कार’ से माइकल रोसेन, मैलोरी ब्लैकमैन, मार्गरेट एटवुड, सलमान रुश्दी, टॉम स्टॉपर्ड और कैरोल एन डफी जैसे लेखकों को भी सम्मानित किया जा चुका है.

क्या आपका भी है छोटा बेडरूम, तो बड़ा दिखाने के लिए फौल करें ये टिप्स

राधा और विवेक की शादी को एक साल हो गया था. अब चूंकि विवेक की जौब दिल्ली से मुंबई लग गई थी, इसलिए उन दोनों ने वहां शिफ्ट होने का प्लान बनाया.

मुंबई में रहने की समस्या थी, लेकिन विवेक ने पहले से ही सोच रखा था कि वह अपनी सेविंग्स से वहां फ्लैट खरीद लेगा. दोनों ने कई हाउसिंग सोसाइटी में घर देखे और आखिर में एक वन बैडरूम फ्लैट पसंद आ ही गया. उस फ्लैट में एक छोटी सी दिक्कत यह थी कि उस का बैडरूम छोटा था, पर हर परिवार की तरह उन दोनों ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया.

ऐसा अमूमन होता है कि हम अपने घर के आकार से समझौता कर लेते हैं, लेकिन एक बात पर ध्यान नहीं देते हैं कि अगर थोड़ा सा दिमाग लगाया जाए तो रूम का साइज बढ़ाए बिना भी उसे कुछ टिप्स अपनाते हुए बड़े जैसा दिखाया जा सकता है.

इस बारे में जब न्यू आर्क स्टुडियो, नोएडा की प्रिंसिपल आर्किटैक्ट नेहा चोपड़ा से बात की गई तो उन्होंने बताया, “छोटे बैडरूम में भी किसी शाही अंदाज में रहा जा सकता है. भले ही आप का बैडरूम किसी शू बौक्स सा छोटा और तंग लगता हो, पर थोड़ा सा दिमाग लगा कर उस में खुलापन लाया जा सकता है. इस में बैडरूम में रखा बैड, अलमारी, दीवारों का रंग और सजावट का बहुत बड़ा और खास रोल होता है.”

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नेहा चोपड़ा ने इस विषय पर आगे बताया, “सब से पहले बैडरूम में बेतरतीब रखी चीजों को ढंग से रखने की कला आनी चाहिए. हमें अपनी लाई हर उस चीज से बड़ा लगाव होता है, जो शायद कुछ समय के बाद हमारे किसी काम की भी नहीं होती है. कड़ा मन कर के उन्हें छांटिए और हटा दीजिए. कपड़ों को हमेशा अलमारी में तह कर के रखें और जूतोंचप्पलों को करीने से शू रैक या वार्डरौब में उन की जगह पर ही रखें.

“छोटे बैडरूम में दीवारों को स्टोरेज के लिए ज्यादा इस्तेमाल करना चाहिए. इस के लिए फ्लोर टू सीलिंग या वाल टू वाल फिटेड यूनिट, जो दीवारों के रंग की ही हों, का इस्तेमाल करना चाहिए. इन्हीं यूनिट में आप फोटोग्राफ, किताबें, सजाने के दूसरे सामान भी रख सकते हैं. इन्हीं यूनिट में कोई फोल्डेड डैस्क भी बनवाया जा सकता है, जिसे इस्तेमाल करने के बाद फोल्ड कर दिया जाए.”

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बैडरूम में बैड की बड़ी अहमियत होती है पर यही सब से ज्यादा जगह भी घेरता है. इस समस्या का हल नेहा चोपड़ा ने कुछ इस तरह बताया, “आजकल ऐसे बैड बनने लगे हैं जो वाल कैबिनेट की तरह दिनभर दीवार पर सैट हो जाते हैं और जरूरत पड़ने पर रात में काम आ जाते हैं. ऐसे में दिन में आप उस रूम को किसी दूसरे काम के लिए आसानी से इस्तेमाल कर सकते हैं.”

बैडरूम में आईना भी बहुत जरूरी होता, पर यह कतई जरूरी नहीं है कि बड़े तामझाम वाला ड्रैसिंग टेबल लिया जाए. नेहा चोपड़ा ने आइडिया दिया, “दीवार पर ही एक बड़ा आईना लगाया जा सकता है. थोड़ा बड़ा और चौड़ा मिरर कमरे का आकार बढ़ा देने का आभास कराता है.

“अलमारी के साथसाथ आप उसमें अपने टैलीविजन की जगह भी बनवा देंगे तो जगह भी बचेगी और अलमारी खूबसूरत भी लगेगी.

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“इस के अलावा बैडरूम भले ही छोटा हो, लेकिन अगर उस में भरपूर सनलाइट आती है तो वह बड़े जैसा ही दिखता है. अगर आप का बैड खिड़की के पास है तो वह खूबसूरत तो लगता ही है, कमरे को भी बड़ा सा फील कराता है.

“बैडरूम को बड़ा दिखाने के लिए दीवारों का रंग भी हलका रखना चाहिए. सफेद रंग में रोशनी सब से ज्यादा फैलती है, इसलिए दीवारों पर पेंट कराने से पहले कलर स्कीम का ध्यान रखना चाहिए.”

ये कुछ टिप्स हैं, जो आप की सब से पसंदीदा जगह बैडरूम को देखते ही देखते छोटे से बड़ा बना देते हैं, बिना कोई तोड़फोड़ किए.

ये 5 Exercises जो आपके पैर के मसल्स को बनाएंगी मजबूत

हम अपने पैरों को अक्सर नजरअंदाज कर देते है और सोचते है कि हमारे शरीर के इस हिस्से पर किसी का ध्यान नहीं जाएगा. परंतु पैर हमारे शरीर का सब से महत्वपूर्ण हिस्सा होते है क्योंकि वर्क आउट से लेकर हमारे शरीर का सारा वजन उठाने का काम पैर ही करते हैं. इसलिए हम अपने पैरो का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए.

कई बार हमें पैरो में दर्द की शिकायत होती है क्योंकि हमारी पैरो कि मसल्स कमजोर हो जाती है. हम ये 5 एक्सरसाइज कर के अपने पैरो की मसल्स को मजबूत बना सकते हैं. तो आईए जानते है कोन सी है वो एक्सरसाइज जिन्हें कर के आप अपने पैरो को मजबूत बना सकते हैं.

1. स्टैंडिंग कॉफ स्ट्रेच ओन वॉल :

इस एक्सरसाइज को करने के लिए आपको अपना एक पैर पीछे ले जाए ताकि उसमें खींचाव महसूस हो. अपनी एड़ियों को जमीन पर टिका कर रखें और पंजे को आगे की तरफ ही रखें. अपने दोनो हाथों को दीवार पर रखें और अपने आगे वाले घुटने को थोड़ा मोड़ें और दीवार को धक्का दें. ध्यान रखें कि आपका पिछला पैर थोड़ा सा भी न मुड़े. इस से आपको अपने बैक काफ में खींचाव महसूस होगा. इस स्ट्रैचिंग को 10 मिनट तक होल्ड करे और हर दिन इस एक्सरसाइज को 5 बार करें.

2. स्टैंडिंग सोलियस स्ट्रैचिंग :

अपने दोनो हाथों को दीवार पर लगाएं और अपने पैरों को दीवार से आधा मीटर दूर रखें. अपनी एक टांग को दूसरी के पीछे रखें. अब धीरे धीरे अपने दोनो घुटनों को तब तक मोड़ें जब तक आप को अपने पिछले पैर की पिंडली में खींचाव महसूस न होने लगे. इस स्ट्रेच को लगभग 10 सेकंड तक बनाए रखें और रोजाना इस एक्सरसाइज को 5 बार दोहराएं.

3. प्लांटर फ्लेक्शन विद इलास्टिक :

इस एक्सरसाइज को करने के लिए आप नीचे धरती में एक टांग स्ट्रैच कर लें व दूसरी लेग को मोड़ ले. अपनी स्ट्रैच लेग के तले पर एक इलास्टिक रखे और उस इलास्टिक के दोनो कोनो को हाथ से पकड़ लें. अब इलास्टिक को खींचे ताकि आपके पैर के तलवे में खिचन महसूस हो. ध्यान रखे की स्ट्रैच लेग को न मोड़ें. 20 सेकंड तक इस स्ट्रैचिंग को होल्ड करे. हर रोज 5 बार इस एक्सरसाइज को करे.

4. रेजिस्ट इन्वर्शन :

इस को करने के लिए पहले आप को अपने दोनो पैरो को एक दूसरे के ऊपर क्रॉस करना होगा. अफेक्टेड पैर को नीचे रखें. नीचे वाले पैर पर एक बैंड लपेट लें और इस बैंड की एक डोरी को अपने एक हाथ से पकड़ व दूसरी को दूसरी पैर से बांध दें . अब इस पैर को ऊपर व एक बार बैंड से बाहर लाने को कोशिश करें. इस से आपको पैर में खींचाव महसूस होगा इस एक्सरसाइज को रोजाना 20 बार करें.

5. सिंगल लेग स्टांस :

इस एक्सरसाइज को करने के लिए पहले आपको सीधा खड़ा होना है. ध्यान रखे की आपके दोनो पैर एक दूसरे के बहुत करीब हो और आप के हाथ आपकी कमर के पास हो. अब आप को अपना सारा वजन एक ही पैर के सहारे उठाना है. इसलिए अपने एक पैर को 90 डिग्री के एंगल पर मोड़ ले. इस 30 सेकंड तक करे. इसके बाद ऐसा ही दूसरे पैर के साथ भी करें.

वर्चुअल मीटिंग के लिए तैयार होने के लिए मेरा मेकअप कैसा होना चाहिए?

सवाल-

कोरोना के कारण लौकडाउन में मेरे औफिस की मीटिंग्स भी अब वर्चुअल होने लगी हैं. भले ही मैं घर पर रह कर काम कर ही हूं, लेकिन उस दौरान भी मेरा प्रेजैंटेबल होना बेहद जरूरी है क्योंकि वर्चुअल मीटिंग के दौरान मुझे अपने सीनियर्स व बौस के साथ कनैक्ट होना पड़ता है. अत: वर्चुअल मीटिंग के लिए तैयार होने के लिए मेरा मेकअप कैसा होना चाहिए?

जवाब-

औनलाइन मीटिंग के लिए आप बेसिक मेकअप कर सकती हैं, जिस में बेस बनाने के लिए लाइटवेट फाउंडेशन या सीसी क्रीम का इस्तेमाल किया जा सकता है. इस तरह का मेकअप ओवर नहीं लगता और ग्लो भी लाता है. वर्चुअल मीटिंग मेकअप के लिए स्पार्कल आईशैडो या ब्राइट ब्लश को यूज करने के बदले नो मेकअप लुक को अपनाएं. इस के लिए आप अपनी ब्रो को फिल करें और मसकारा नीचे और ऊपर की आईलैशेज पर अच्छी तरह लगाएं. लाइट पिंक या न्यूड लिपस्टिक में से कोई एक लगा सकती हैं व हलका सा ब्लशर लगाना काफी है. इस दौरान आप अपनी आंखों के नीचे के घेरों व ब्लेमिश को छिपाने के लिए कंसीलर का इस्तेमाल कर सकती हैं. कैमरे के सामने ब्लैक लाइनर काफी डार्क नजर आ सकता है, इसलिए ब्लैक आईलाइनर को ब्राउन या ग्रे के साथ स्विच करें. आईलाइनर की तरह ही आईशैडो व लिप शेड्स को भी लाइट ही रखें तो अच्छा. वर्चुअल मीटिंग में प्रेजैंटेबल दिखने के लिए सिर्फ मेकअप पर ही नहीं, बल्कि आप को लाइटिंग पर भी फोकस करना चाहिए. इसलिए वर्चुअल मीटिंग के लिए आप घर के ऐसे कोने का चयन करें, जहां पर नैचुरल लाइट अधिक आती हो. इस से आप का फेस खुदबखुद ब्राइटन नजर आएगा.

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केवल फिल्म इंडस्ट्री ही नहीं, बल्कि हर क्षेत्र की महिलाओं को खूबसूरत दिखना होता है. लेकिन इस बीच देशविदेश में लागू लौकडाउन की वजह से बहुत से लोगों को जमीनी हकीकत यानी रियल लुक पर ले आया है.

जाहिर है, इस दौरान न आप मेकअप आर्टिस्ट से मेकअप करवा सकती हैं और न ही खुद को ग्रूम करने के लिए किसी ब्यूटीपार्लर में जा सकती हैं. ऐसे में अब कईयों का रियल लुक नजर आने लगा है.

अपनी मंजिल : अमिता पर मातापिता के अलगाव का कैसे पड़ा असर?

अमिता दौड़ती सी जब प्लेटफार्म पर पहुंची तो गाड़ी चलने को तैयार थी. बिना कुछ सोचे जो डब्बा सामने आया उसी में वह घुस गई. अमिता को अभी तक रेल यात्रा करने का कोई अनुभव नहीं था. डब्बे के अंदर की दुर्गंध से उसे मतली आ गई. भीड़ को देखते ही उस के होश उड़ गए.

‘‘आप को कहां जाना है?’’ एक काले कोट वाले व्यक्ति ने उस से पूछा.

चौंक उठी अमिता. काले कोट वाला व्यक्ति रेलवे का टीटीई था जो अमिता को घबराया देख कर उतरतेउतरते रुक गया था. अब वह बुरी तरह घबरा गई. रात का समय और उसे पता नहीं जाएगी कहां? उसे तो यह तक नहीं पता था कि यह गाड़ी जा कहां रही है? वह स्तब्ध सी खड़ी रही. उसे डर लगा कि बिना टिकट के अपराध में यह उसे पुलिस के हाथों न सौंप दे.

‘‘बेटी, यह जनरल बोगी है. इस में तुम क्यों चढ़ गईं?’’ टीटीई ने सहानुभूति से कहा.

‘‘समय नहीं था अंकल, जाना जरूरी था तो मैं बिना सोचेसमझे ही…यह डब्बा सामने था सो चढ़ गई.’’

‘‘समझा, इंटरव्यू देने के लिए जा रही हो?’’

‘‘इंटरव्यू?’’ अमिता को लगा कि यह शब्द इस समय उस के लिए डूबते को तिनके का सहारा के समान है.

‘‘अंकल, जाना जरूरी था, गाड़ी न छूट जाए इसलिए…’’

‘‘गाड़ी छूटने में अभी 10 मिनट का समय है.’’

टीटीई के साथ नीचे उतर कर अमिता ने पहले जोरजोर से सांस ली.

‘‘रिजर्वेशन है?’’

‘रिजर्वेशन?’ मन ही मन अमिता घबराई. यह कैसे कराया जाता है, उसे यही नहीं मालूम तो क्या बताए. पहले कभी रेल का सफर किया ही नहीं. छुट्टी होते ही पापा गाड़ी ले कर आते और दिल्ली ले आते. छुट्टी के बाद अपनी गाड़ी से पापा उसे फिर देहरादून होस्टल पहुंचा आते. जब मम्मी थीं तब वह उन के साथ मसूरी भी जाती तो अपनी ही कार से और पापा 2-4 दिन में घूमघाम कर दिल्ली लौट जाते. मम्मी के बाद पापा अकेले ही कार से उसे लेने आते और छुट्टियां खत्म होने के बाद फिर छोड़ आते. रेल के चक्कर में कभी पड़ी ही नहीं.

12 साल हो गए, मम्मी का आना बंद हो गया, क्योंकि मम्मीपापा दोनों तलाक ले कर अलग हो गए हैं. कोर्ट ने आर्थिक सामर्थ्य का ध्यान रखते हुए उस की कस्टडी पापा को सौंप दी. वैसे मां ने भी उस को साथ रखने का कोई आग्रह नहीं किया. मां के भेजे ग्रीटिंग कार्ड्स व पत्रों से ही उसे पता चला कि उन्होंने शादी कर ली है और अब कानपुर में हैं.

आज 12 साल से उस का जीवन एकदम होस्टल का है क्योंकि गरमी की लंबी छुट्टियों में स्कूल की ओर से कैंप की व्यवस्था की जाती है. वह वहीं चली जाती. उसे अच्छा भी लगता क्योंकि दोस्तों के साथ अमिता खूब मौजमस्ती करती. पापा तो 1-2 महीने में आ कर उस से मिल जाते पर मम्मी नहीं. मां के अलग होने के बाद घर का आकर्षण भी नहीं रहा तो कोई समस्या भी नहीं हुई. पर इस बार कुछ अलग सा हो गया.

‘‘क्या हुआ मैडम, रिजर्वेशन नहीं है क्या?’’ यह सुनते ही अमिता अपने खयालों से जागी.

‘‘जी, अंकल इतनी जल्दी थी कि…’’

‘‘क्या कोई इंटरव्यू है?’’

‘‘जी…जी अंकल.’’

‘‘मेरा भतीजा भी गया है,’’ वह टिकट चैकर बोला, ‘‘टाटा कंपनी में उसे इंटरव्यू देना है पर वह तो सुबह की गाड़ी से निकल गया था. तुम को भी उसी से जाना चाहिए था. नई जगह थोड़ा समय मिले तो अच्छा है, पर यह भी ठीक है. इंटरव्यू तो परसों है. जनरल बोगी में तुम नहीं जा पाओगी. सेकंड एसी में 2-3 बर्थ खाली हैं. चलो, वहां तुम को बर्थ दे देता हूं.’’

साफसुथरे ठंडे और भीड़रहित डब्बे में आ कर अमिता ने चैन की सांस ली. नीचे की एक बर्थ दिखा कर टिकट चैकर ने कहा, ‘‘यह 23 नंबर की बर्थ तुम्हारी है. मैं इस का टिकट बना रहा हूं.’’

पैसे ले कर उस ने टिकट बना दिया. 4 बर्थों के कूपे में अपनी बर्थ पर वह फैल कर बैठ गई. तब अमिता के मन को भारी सुकून मिला था.

अपनी बर्थ पर कंबल, चादर, तौलिया, तकिया रखा देख उस ने बिस्तर ठीक किया. भूख लगी तो कूपे के दरवाजे पर खड़ी हो कर वैंडर का इंतजार करने लगी. तभी हाथ में बालटी लिए एक वैंडर उधर से निकला तो उस ने एक पानी की बोतल और एक कोल्डडिं्रक खरीदी और बर्थ पर बैठ कर पीने लगी. वैंडर ने ही उसे बताया था कि यह ट्रेन टाटा नगर जा रही है.

आरामदेह बर्थ मिल गई तो अमिता सोचने लगी कि कौन कहता है संसार में निस्वार्थ सेवा, परोपकार, दया, सहानुभूति समाप्त हो गई है? भले ही कम हो गई हो पर इन अच्छी भावनाओं ने अभी दम नहीं तोड़ा है और इसलिए आज भी प्रकृति हरीभरी है, सुंदर है और मनुष्यों पर स्नेह बरसाती है. यदि सभी स्वार्थी, चालाक और गंदे सोच के लोग होते तो धरती पर यह खूबसूरत संसार समाप्त हो जाता.

अमिता कोल्डडिं्रक पी कर लेट गई और चादर ओढ़ कर आंखें बंद कर लीं. इस एक सप्ताह में उस के साथ जो घटित हुआ उस पर विचार करने लगी.

इस बार भी कैंप की पूरी व्यवस्था रांची के जंगलों में थी. कुछ समय ‘हुंडरू’ जलप्रपात के पास और शेष समय ‘सारांडा’ में रहना था. स्कूल की छुट्टियां होने से पहले ही पैसे जमा हो गए थे. उस ने भी अपना बैग लगा लिया था. गरमी की छुट्टियों का मजा लेने को कई छात्र तैयार थे कि अचानक कार्यक्रम निरस्त कर दिया गया, क्योंकि वहां माओवादियों का उपद्रव शुरू हो गया था और वे तमाम टे्रनों को अपना निशाना बना रहे थे. ऐसे में किसी भी पर्यटन पार्टी को सरकार ने जंगल में जाने की इजाजत नहीं दी. अब वह क्या करती. होस्टल बंद हो चुका था और ज्यादातर छात्र अपनेअपने घर जा चुके थे. जो छात्र कैंप में नहीं थे, वे तो पहले ही अपनेअपने घरों को जा चुके थे और अब कैंप वाले भी जा रहे थे.

अमिता ने सोचा दिल्ली पास में ही तो है. देहरादून से हर वक्त बस, टैक्सियां दिल्ली के लिए मिल जाती हैं. इसलिए वह अपनेआप घर जा कर पापा को सरप्राइज देगी. पापा भी यह देख कर खुश होंगे कि बेटी बड़ी व समझदार हो गई है. अब अकेले भी आजा सकती है और फिर पापा भी तो अकेले हैं. इस बार जा कर उन की खूब सेवा करेगी, अच्छीअच्छी चीजें बना कर खिलाएगी. उन को ले कर घूमने जाएगी. उन के लिए अपनी पसंद के अच्छेअच्छे कपड़े सिलवाएगी.

संयोग से सहारनपुर आ कर उस की बस खराब हो गई और ठीक होने में 2 घंटे लग गए. अमिता घर पहुंची तो रात के साढ़े 9 बजे थे. उस ने घंटी बजाई और पुलकित मन से सोच रही थी कि पापा उसे देख कर खुशी में उछल पड़ेंगे. परीक्षा का नतीजा आने में अभी 1 महीना पड़ा है. तब तक मस्ती ही मस्ती.

दरवाजा पापा ने ही खोला. उस ने सोचा था कि पापा उसे देखते ही खुश हो जाएंगे लेकिन उन्हें सहमा हुआ देख कर वह चिंतित हो गई.

‘तू…? तेरा कैंप?’ भौचक पापा ने पूछा.

बैग फेंक कर वह अपने पापा से लिपट गई. पर पापा की प्रतिक्रिया से उसे झटका लगा. चेहरा सफेद पड़ गया था.

‘तू इस तरह अचानक क्यों चली आई?’

अमिता को लगा मानो उस के पापा अंदर ही अंदर उस के आने से कांप रहे हों. उस ने चौंक कर अपना मुंह उठाया और पापा को देखा तो वे उसे कहीं से भी बीमार नहीं लगे. सिल्क के गाउन में वे जंच रहे थे, चेहरे पर स्वस्थ होने की आभा के साथ किसी बात की उलझन थी. अमिता ने बाहर से ही ड्राइंगरूम में नजर दौड़ाई तो वह सजाधजा था. तो क्या उस के घर आने से पापा नाराज हो गए? पर क्यों? वे तो उसे बहुत प्यार करते हैं.

‘पापा, होस्टल बंद हो गया. सारी लड़कियां अपनेअपने घरों को चली गईं. मैं अकेली वहां कैसे रहती? मैस भी बंद था. खाती क्या?’

‘वह तुम्हारा कैंप? पैसे तो जमा कर आया था.’

‘इस बार कैंप रद्द हो गया. जहां जाना था वहां माओवादी उपद्रव मचा रहे हैं.’

‘शिल्पा के घर जा सकती थी. कई बार पहले भी गई हो.’

शिल्पा उस की क्लासमेट के साथ ही रूममेट भी है और गढ़वाल के एक जमींदार की बेटी है.

‘पापा, उस के चले जाने के बाद कैंप रद्द हुआ.’

उस के पापा ने अभी तक उसे अंदर आने को नहीं कहा था. बैग ले कर वह दरवाजे के बाहर ही खड़ी थी. वह खुद ही बैग घसीट कर अंदर चली आई. उसे आज पापा का व्यवहार बड़ा रहस्यमय लग रहा था.

‘बेटी, यहां आने से पहले मुझ से एक बार पूछ तो लेती.’

अमिता ने आश्चर्य के साथ पापा को देखा. क्या बात है? खुश होने की जगह पापा नाराज लग रहे हैं.

‘जब मुझे अपने ही घर आना था तो फोन कर के आप को क्या बताती? आप की बात मैं समझ नहीं पा रही. पापा, क्या मेरे आने से आप खुश नहीं हैं?’

पापा असहाय से बोल उठे, ‘ना…ना… खुश हूं…मैं अगर बाहर होता तो…? इसलिए फोन की बात कही थी.’

पापा दरवाजा बंद कर के अंदर आए. अमिता उन के गले से लग कर बोली, ‘पापा, अब मैं रोज अपने हाथों से खाना बना कर आप को खिलाऊंगी.’

‘क्यों जी, खाना खाने क्यों नहीं आ रहे? बंटी सो जाएगा,’ यह कहते हुए एक युवती परदा हटा कर अंदर पैर रखते ही चौंक कर खड़ी हो गई. लगभग 35 साल की सुंदर महिला, साजशृंगार से और भी सुंदर लग रही थी. भड़कीली मैक्सी पहने थी. पापा जल्दी से हट कर अलग खड़े हो गए.

‘दिव्या, यह…यह मेरी बेटी अमिता है.’

‘बेटी? और इतनी बड़ी? पर तुम ने तो कभी अपनी इस बेटी के बारे में मुझे नहीं बताया.’

पापा हकलाते हुए बोले, ‘बताता…पर मुझे मौका नहीं मिला. यह होस्टल में रहती है. इस साल बीए की परीक्षा दी है.’

‘तो क्या अब इसे अपने साथ रहने को बुला लिया?’

उस महिला के शब्दों से घृणा टपक रही थी. अमिता ने अपने पैरों के नीचे से धरती हिलती हुई अनुभव की.

‘नहीं…नहीं. यह यहां कैसे रहेगी?’

पापा के चेहरे पर भय, घबराहट देख अमिता को उन पर दया आई. अब तक वह अपने पापा को बहुत बहादुर पुरुष समझा करती थी. पर दिव्या नाम की इस औरत के सामने पापा को मिमियाते देख अमिता को अंदर से भारी कष्ट हो रहा था. उस ने अपना बैग उठाया और दिव्या की तरफ बढ़ कर बोली, ‘सुनिए, मैं इन की बेटी अमिता हूं. पापा ने मुझे साथ रहने के लिए नहीं बुलाया. छुट्टियां थीं तो मैं ही उन को बिना बताए चली आई. असल में मुझे पता नहीं था कि यहां आप मेरी मां के रूप में आ चुकी हैं. आप परेशान न हों, मैं अभी चली जाती हूं.’

पापा छटपटा उठे. मुझे ले कर उन के मन की पीड़ा चेहरे पर झलक आई. बोले, ‘इतनी रात में तू कहां जाएगी. चल, मैं किसी होटल में तुझे छोड़ कर आता हूं.’

‘पापा, आप जा कर खाना खाइए. मैं जाती हूं. गुडनाइट.’

गेट से बाहर निकलते ही खाली आटो मिल गया, जिसे पकड़ कर वह बस अड्डे आ गई जहां से उस ने कानपुर जाने की बस पकड़ ली.

कानपुर तक का टिकट बनवा कर कोच की आरामदायक बर्थ पर बैठी तो अमिता को सोचने का समय मिला कि आगे उसे करना क्या है? उचित क्या है?

अमिता को आज वह दिन याद आ रहा है जब उस ने पापा का हाथ पकड़ कर देहरादून के बोर्डिंग स्कूल में कदम रखा था. फिर पापा जब होस्टल में उसे छोड़ लौटने लगे तो वह कितना रोई थी. उन के हर उठते कदम के साथ उसे आशा होती कि वह दौड़ कर लौट आएंगे और उसे गोद में उठा कर अपने साथ वापस ले जाएंगे. मम्मी भी आएंगी और उसे अपने सीने से लगा लेंगी. पर उन दोनों में से कोई नहीं आया और बढ़ते समय के साथ 6 साल की वह बालिका अब 20 साल की नवयौवना बन गई. मम्मी नहीं आईं पर अब वही उन के पास जा रही है. पता नहीं वहां उस के लिए कैसे हालात प्रतीक्षा कर रहे हैं.

मां साल में 2 बार कार्ड भेजती थीं. इसलिए अमिता को उन का पता पूरी तरह याद था. घर खोजने में उसे कठिनाई नहीं हुई. आटो वाले ने आवासविकास कालोनी के ठीक 52 नंबर घर के सामने ले जा कर आटो रोका. मां का एमआईजी घर ठीकठाक है. सामने छोटा सा लौन भी है. दरवाजे पर चमेली की बेल और पतली सी क्यारी में मौसमी फूल. गेट खोल अंदर पैर रखते ही अमिता के मन में पहला सवाल आया कि क्या मम्मी उसे पहचान पाएंगी? 6 साल की बेटी की कहीं कोई भी झलक क्या इस 20 वर्ष की युवती के शरीर में बची है. पापा तो 1-2 महीनों में मिल भी आते थे. उसे धीरेधीरे बढ़ते भी देखा है पर मम्मी ने तो इन 12 सालों में उसे देखा ही नहीं. अब उस की समझ में बात आई कि अपनी बेटी से मिलने के लिए पापा को औफिस के काम का बहाना क्यों बनाना पड़ता था.

उस दिन पापा का हाथ पकड़े एक नन्ही बच्ची फ्राक में सुबक रही थी और आज जींसटौप में वही बच्ची जवान हो कर खड़ी है. मां पहचानेंगी कैसे? वह गेट से बरामदे की सीढि़यों तक आई तभी दरवाजे का परदा हटा कर एक महिला बाहर आई. 12 वर्ष हो गए फिर भी अमिता को पहचानने में देर न लगी. अनजाने में ही उस के मुंह से निकल पड़ा, ‘‘म…मम्मी…’’

मां, संसार का सब से निकटतम रिश्ता जिस के शरीर को निचोड़ कर ही उस का यह शरीर बना है.

उस का मन कर रहा था कि मां से लिपट जाए. सुनीता नहीं पहचान पाईं. सहम कर खड़ी हो गई.

‘‘आप?’’

आंसू रोक अमिता रुंधे गले से बोली, ‘‘मम्मा, मैं…मैं…बिट्टू हूं.’’

अपने सामने अपनी प्रतिमूर्ति को देख कर सुनीता सिहर उठीं. फिर दोनों बांहों में भर कर उसे चूमा, ‘‘बिट्टू…मेरी बच्ची… मेरी गुडि़या…मेरी अमिता.’’

अमिता के सामने एक पल में सारा संसार सुनहरा हो गया. मां कभी बच्चे से दूर नहीं जा सकती. पापा ने बहुत कुछ किया पर मां संसार में सर्वश्रेष्ठ आश्रय है.

‘इतने दिनों के बाद मेरी याद आई तुझे?’ उन्होंने फिर चूमा उसे.

‘चल…अंदर चल.’

‘बैठ, मैं चाय बनाती हूं.’

बैग को कंधे से उतार कर नीचे रखा और सोफे पर बैठी. घर में पता नहीं कौनकौन हैं? वे लोग उस का आना पता नहीं किसकिस रूप में लेंगे. मम्मी अपनी हैं पर बाकी से तो कोई रिश्ता नहीं, तभी अमिता चौंकी. अंदर कर्कश आवाज में कोई गरजा.

‘8 बज गए, चाय बनी कि नहीं.’

‘बनाती हूं, बिट्टू आई है न इसलिए देर हो गई.’

‘कौन है यह बिट्टू? सुबह किसी के घर आने का यह समय है क्या?’

‘धीरे बोलो, वह सुन लेगी. मेरी बेटी है अमिता,’ मां के स्वर में लाचारी और घबराहट थी.

‘तुम्हारी बेटी, वह होस्टल वाली न. मेरे घर में यह सब नहीं चलेगा. जाने के लिए कह दो.’

‘अरे, मुझ से मिलने आई होगी. 2-4 दिन रहेगी फिर चली जाएगी पर तुम पहले से हल्ला मत करो.’

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मां के शब्दों में अजीब सी याचना और विनती थी. आंखों के सामने उजली सुबह स्याह हो गई. ये उस को नहीं रखेंगे तो अब क्या करेगी? पापा होटल में रख रहे थे वह फिर भी अच्छा था. किसी की दया का पात्र तो नहीं बनती.

परीक्षाफल आने में अभी पूरा एक महीना पड़ा है. उस के बाद ही तो वह कहीं नौकरी तलाश कर सकती है पर तब तक का समय? होस्टल खुला होता तो लौट जाती. वहीं कोई छोटामोटा काम देख लेती पर कानपुर तो नई और अनजान जगह है. कौन नौकरी देगा?

तभी सुनीता ट्रे में रख कर चाय ले आईं. पीछेपीछे एक गैंडे जैसा आदमी चाय पीता हुआ लुंगी और बनियान में आ गया. लाललाल आंखें, मोटे लटके होंठ, डीलडौल मजदूरों जैसा, भद्दा हावभाव. उस की आंखों के सामने सौम्य, भद्र व्यक्तित्व वाले उस के पापा आ गए. मम्मी की रुचि इतनी विकृत हो गई है. छि:.

‘चाय ले, ये सतीशजी हैं मेरे पति.’

मन ही मन अमिता ने सोचा यह आदमी तो पापा के चपरासी के समान भी नहीं है. उस ने बिना कुछ बोले चाय ले ली. गैंडे जैसे व्यक्ति ने स्वर को कोमल करते हुए कहा, ‘अरे, तुम मेरी बेटी जैसी हो. हमारे पास ही रहोगी.’

सुनीता का चेहरा खुशी से खिल उठा.

‘यही तो मैं कह रही थी. तेरे 2 छोटे भाई भी हैं. अच्छा लगेगा तुझे यहां.’

अमिता उस व्यक्ति की आंखों में लालच और भूख देख सिहर उठी. बिना सोचेसमझे वह कहां आ गई. मम्मी खुशी से फूली नहीं समा रहीं.

‘चाय समाप्त कर, चल तेरा कमरा दिखा दूं. साथ में ही बाथरूम है. नहाधो कर फ्रैश हो ले. मैं नाश्ता बनाती हूं. भूख लगी होगी.’

सुनीता बेटी को उस के कमरे में छोड़ आईं. मां के बाहर जाते ही उस ने अंदर से कुंडी लगा ली. उस की छठी इंद्री उसे सावधान कर रही थी कि वह यहां पर सुरक्षित नहीं है. उस का मन पापा का संरक्षण पाने के लिए रो उठा.

नहाधो कर अमिता बाहर आई तो 2 कालेकलूटे, मोटे से लड़के डाइनिंग टेबल पर स्कूल ड्रैस में बैठे थे. अमिता को दोनों एकदम जंगली लगे. सतीश नाश्ता कर रहा था. उसे फिर ललचाई नजरों से देख कर बेटों से बोला, ‘बच्चो, यह तुम्हारी दीदी है. अब हमारे साथ ही रहेगी और तुम लोग इस से पढ़ोगे,’ फिर पत्नी से बोला, ‘सुनो सुनीता, आज से ही टीचर की छुट्टी कर देना.’

‘टीचर की छुट्टी क्यों?’

‘अब इन बच्चों को यह पढ़ाएगी. 500 रुपए महीने के बचेंगे तो इस का कुछ तो खर्चा निकलेगा.’

अमिता ने सिर झुका लिया. सुनीता लज्जित हो गईं.

 

अमिता ने इस से पहले इतने भद्दे ढंग से बात करते किसी को नहीं देखा था और मम्मी यह सब झेल रही हैं. जबकि यही मम्मी पापा का जरा सा गरम मिजाज नहीं झेल सकीं और इस मूर्ख के आगे नाच रही हैं. उन की जरा सी जिद पर चिढ़ जाती थीं और अब इन दोनों जंगली बच्चों को झेल रही हैं और चेहरे पर शिकन तक नहीं है. यही मम्मी हैं कि आज सतीश को खुश करने में कैसे जीजान से लगी हैं जबकि पापा की नाक में दम कर रखा था.

एक खटारा सी मारुति में दोनों बेटों को ले कर सतीश चला गया. बच्चों को स्कूल छोड़ खुद काम पर चला जाएगा. लंच में आते समय ले आएगा. सुनीता ने फिर 2 कप चाय का पानी चढ़ा दिया.

अमिता को अब मां से बात करना भी अच्छा नहीं लग रहा था. इस समय वह अपने भविष्य को ले कर चिंतित थी.

‘तू तो लंबी छुट्टी में कैंप में जाती थी… इस बार क्या हुआ?’

‘कैंप रद्द हो गया. जहां जाना था वहां माओवादी उपद्रव मचा रहे हैं.’

‘पापा के पास नहीं गई थी?’

अमिता को लगा कि हर समय सही बात कहना भी मूर्खता है. इसलिए वह बोली, ‘नहीं, अभी नहीं गई.’

‘तू ने कब से अपने पापा को नहीं देखा?’

‘क्या मतलब, हर दूसरेतीसरे महीने हम मिलते हैं.’

यह सब जान कर सुनीता बुझ सी गईं.

‘अच्छा, मैं सोच रही थी कि बहुत दिनों से…’

‘होस्टल का खर्चा भी कम नहीं. पापा ने कभी हाथ नहीं खींचा,’ बेटी को अपलक देखती हुई सुनीता कुछ पल को रुक कर बोलीं, ‘अब तो तू अपने पापा के साथ रह सकती है?’

अमिता ने सीधे मां की आंखों में देखा और पूछ बैठी, ‘क्यों?’

सुनीता की नजरें झुक गईं. उन्होंने मुंह नीचा कर मेज से धूल हटाते हुए कहा, ‘मेरा मतलब…अब पढ़ाई तो पूरी हो गई, तुम्हारे लिए रिश्ता देखना चाहिए.’

अमिता के मन में कई बातें कहने की इच्छा हुई कि तुम तो बच्ची को एक झटके में छोड़ कर चली आई थीं. 12 साल में पलट कर भी नहीं देखा. अब बेटी के रिश्ते की चिंता होने लगी? पर अपने को संभाला. इस समय उस के पैरों के नीचे जमीन नहीं है. आगे के लिए बैठ कर सोचने के लिए एक आश्रय तो चाहिए. अत: वह चुप ही रही. इस के बाद सुनीता ने बातचीत चालू रखने का प्रयास तो किया पर सफल नहीं हो पाईं. बेटी उठ कर अपने कमरे में चली गई.

ठीक 2 बजे सतीश अपनी खटारा गाड़ी में दोनों बच्चों को ले कर वापस आया. अमिता को फिर अपने पापा की याद आई. वह सारा दोष पापा को नहीं देती है. ढलती उम्र में स्त्री अकेली रह लेती है पर आदमी के लिए रहना कठिन है. वह कुछ सीमा तक असहाय हो जाता है. पापा का दोष इतना भर है कि अपनी पत्नी से बेटी की बात छिपाई और बेटी से अपने विवाह की वरना पापा ने पैसों से कभी हाथ नहीं खींचा.

मैं ने 100 रुपए मांगे तो पापा ने 500 दिए. साल में कई बार मिलते रहे. मेरी पढ़ाई की व्यवस्था में कोई कमी नहीं होने दी. उन का व्यवहार अति शालीन है. उन के उठने, बैठने, बोलने में शिक्षा और कुलीनता साफ झलकती है. इस उम्र में भी वे अति सुदर्शन हैं. एक अच्छे परिवार की उन में छाप है और यह भौंडा सा व्यक्ति..छि:…छि:. मां की रुचि के प्रति अमिता को फिर से घृणा होने लगी.

उसे पूरा विश्वास है कि यह व्यक्ति व्यसनी, व्यभिचारी और असभ्य है. किसी अच्छे परिवार का भी नहीं है. उस व्यक्ति का सभ्यता, शालीनता से परिचय ही नहीं है. पहले मजदूर होगा, अब सुपरवाइजर बन गया है. इस आदमी के हावभाव देख कर तो यही लगता है कि यह आदमी मां की पिटाई भी करता होगा जबकि पापा ने कभी मां पर हाथ नहीं उठाया बल्कि मम्मी ही गुस्से में घर में तोड़फोड़ करती थीं. अब इस के सामने सहमीसिमटी रहती हैं. अब इस समय अमिता को मां की हालत पर रत्तीभर भी तरस नहीं आया. जो जैसा करेगा उस को वैसा झेलना पड़ेगा.

रात को सोने से पहले अमिता ने कमरे का दरवाजा अच्छी तरह चैक कर लिया. उसे मां के घर में बहुत ही असुरक्षा का एहसास हो रहा था. मां का व्यवहार भी अजीब सा लग रहा था.

उस ने रात खाने से पहले टैलीविजन खोलना चाहा तो मां ने सिहर कर उस का हाथ पकड़ा और बोलीं, ‘सतीशजी को टैलीविजन का शोर एकदम पसंद नहीं. इसलिए जब तक वे घर में रहते हैं हम टैलीविजन नहीं चलाते. असल में फैक्टरी के शोर में दिनभर काम करतेकरते वे थक जाते हैं.’

अमिता तुरंत समझ गई कि टैलीविजन चलाने के लिए इस घर में सतीश की आज्ञा चाहिए. मन में विराग का सैलाब उमड़ रहा था. यहां आना उस के जीवन की सब से बड़ी भूल है. अब सहीसलामत यहां से निकल सके तो अपने जीवन को धन्य समझेगी, पर वह जाएगी कहां? उसे याद आया कि इसी मां के धारावाहिकों के चक्कर में पापा का मैच छूट जाता था पर मम्मी टैलीविजन के सामने जमी रहती थीं.

इंसान हालात को देख कर अपने को बदलता है, पर इतना? यह समझौता है या पिटाई का आतंक? पूरे दिन मां यही समझाने का प्रयास करती रहीं कि सतीश बहुत अच्छे इंसान हैं. ऊपर से जरा कड़क तो हैं पर अंदर से एकदम मक्खन हैं. उस को चाहिए कि उन से जरा खुल कर मिलेजुले तभी संपर्क बनेगा.

अमिता के मन में आया कि कहे मुझे न तो यहां रहना है और न ही अपने को इस परिवार से जोड़ना है. तो फिर क्यों इस के लिए खुशामद करूं.

रात को पता नहीं कैसे चूक हो गई कि खाना खा कर अपने कमरे में आ कर अमिता को कुंडी लगाने का ध्यान नहीं रहा. बाथरूम से निकल कर बिस्तर पर बैठ क्रीम का डब्बा अभी खोला भी नहीं था कि सतीश दरवाजा धकेल कर कमरे में आ गया. अमिता को अपनी गलती पर भारी पछतावा हुआ. इतनी बड़ी भूल कैसे हो गई पर अब तो भूल हो ही गई थी. उस ने सख्ती से पूछा, ‘कुछ चाहिए था क्या?’

गंदे ढंग से वह हंसा और बोला, ‘बहुत कुछ,’ इतना कह कर वह सीधे बिस्तर पर आ कर बैठ गया, ‘अरे, भई, जब से तुम आई हो हमारा ठीक से परिचय ही नहीं हो पाया. अब समय मिला है तो सोचा जरा बातचीत ही कर लें.’

अमिता को खतरे की घंटी सुनाई दी. दोनों बेटे सोने गए हैं. मम्मी रसोई समेट रही हैं सो उन के इधर आने की संभावना नहीं है. उस के पैरों तले धरती हिल रही है. वह अमिता के नजदीक खिसक आया और उस के हाथ उसे दबोचने को उठे. अमिता की बुद्धि ने उस का साथ नहीं छोड़ा. उस ने यह जान लिया था कि इस घर में चीखना बेकार है. मम्मी दौड़ तो आएंगी पर साथ सतीश का ही देंगी. अमिता को जरा भी आश्चर्य नहीं होगा अगर मम्मी उस के सामने यह समझाने का प्रयास करेंगी कि यह तो प्यार है, उसे बुरा नहीं मानना चाहिए.

सतीश की बांहों का कसाव बढ़ रहा था. वैसे भी उस में मजदूर लोगों जैसी शक्ति है. पर शायद सतीश को यह पता नहीं था कि जिसे मुरगी समझ कर वह दबोचने की कोशिश में है, वह लड़की अभीअभी ब्लैकबैल्ट ले कर आई है. हर दिन कैंप से पहले 10 दिन की ट्रेनिंग खुद के बचाव के लिए होती थी.

अमिता का हाथ उठा और सतीश पल में दीवार से जा टकराया. अमिता उठी, सतीश के उठने से पहले ही उस के पैर  पूरे ताकत से सतीश के शरीर पर बरसने लगे. वह निशब्द थी पर सतीश जान बचाने को चीखने लगा. सुनीता दौड़ कर आईं. वह किसी प्रकार लड़खड़ाता खड़ा ही हुआ था कि अमिता के हाथ के एक भरपूर वार से वह फिर लुढ़क गया.

‘थैंक्यू पापा,’ अमिता के मुंह से अनायास निकला. पैसे की परवा न कर के आप ने मुझे एक अच्छे कालेज में शिक्षा दिलवाई नहीं तो मैं आज अपने को नहीं बचा पाती.’

सुनीता रोतेरोते हाथ जोड़ने लगीं, ‘बस कर बिट्टू. माफ कर दे. इन के मुंह से खून आ रहा है.’

‘मम्मी, ऐसे कुत्तों को जीना ही नहीं चाहिए,’ दांत पीस कर उस ने कहा.

‘बेटी, मेरे 2 छोटेछोटे बच्चे हैं. माफ कर दे.’

मौका देख सतीश कमरे से भाग गया. सुनीता ने अमिता का हाथ पकड़ कर उसे समझाने का प्रयास किया तो अमिता गरजी, ‘रुको, मुझे छूने की कोशिश मत करना. मेरे पापा का जीना तुम ने मुश्किल कर दिया था. अच्छा हुआ तलाक हो गया क्योंकि तुम उस सुख भरी जगह में रहने के लायक ही नहीं थीं. नाली का कीड़ा नाली में ही रहना चाहता है. आज से मैं तुम्हारे साथ अपने जन्म का रिश्ता तोड़ती हूं.’

‘बिट्टू… मेरी बात तो सुन.’

‘मुझे अब आप की कोई बात नहीं सुननी. मुझे तो अपने शरीर से घिन आ रही है कि तुम्हारे शरीर से मेरा जन्म हुआ है. तुम वास्तव में एक गिरी औरत हो और तुम्हारी जगह यही है.’

दिमाग में ज्वालामुखी फट रहा था. उस ने जल्दीजल्दी सामान समेट बैग में डाला. जो छूट गया वह छूट गया. घर से निकल पड़ी और टैक्सी पकड़ कर सीधे स्टेशन पहुंची. वह इतनी जल्दी और हड़बड़ी में थी कि उस ने यह भी नहीं देखा कि कौन सी गाड़ी है. कहां जा रही है. वह तो भला हो कोच कंडक्टर का जो इस कोच में उसे जगह दे दी.

रात भर अमिता बड़ी चैन की नींद सोई. जब आंख खुली तब धूप निकल आई थी. ब्रश, तौलिया ले वह टायलेट गई. फ्रेश हो कर लौटी. बाल भी संवार लिए थे. ऊपर की दोनों सीट खाली थीं. सामने एक वयोवृद्ध जोड़ा बैठा था. पति समाचारपत्र पढ़ रहे हैं और पत्नी कोई धार्मिक पुस्तक.

अमिता ने बिस्तर समेट कर ऊपर डाल दिया फिर सीट उठा कर आराम से बैठी. खिड़की का परदा हटा कर बाहर देखा तो खेतखलिहान, बागबगीचे यहां तक कि मिट्टी का रंग तक बदला हुआ था. यह अमिता के लिए नई बात नहीं क्योंकि हर साल वह दूरदूर कैंप में जाती थी, आसाम से जैसलमेर तक और कश्मीर से कन्याकुमारी तक का बदलता रंगढंग उस ने देखा है. राजस्थान  की मिट्टी से मेघालय की तुलना नहीं तो ‘गोआ’ से ‘चंडीगढ़’ की तुलना नहीं.

चाय वाले को बुला कर अमिता ने चाय ली और धीरेधीरे पीने लगी. आराम- दायक बिस्तर और ठंडक से अच्छी नींद आई थी तो शरीर की थकान काफी कम हो गई थी. सामने बैठे वृद्ध दंपती के संपूर्ण व्यक्तित्व से संपन्नता और आभिजात्यपन झलक रहा था. देखने से ही पता चला रहा था कि वे खानदानी अमीर परिवार से हैं. महिला 60 के आसपास होंगी तो पति 65 को छूते.

बुजुर्ग दंपती दोनों से ध्यान हटा तो अमिता के मन में अपनी चिंता ने घर कर लिया. ‘टाटानगर’, हां यहीं तक का टिकट है. उसे वहीं तक जाना पड़ेगा. पर रेलगाड़ी के डब्बे से स्टेशन पर लिखा नाम ही उस ने देखा है बाकी शहर से वह एकदम अनजान है. असल में इधर के जंगलों में 2 बार कैंप लगा था इसलिए वह स्टेशन का नाम जानती है. वहां के स्टेशन पर उतर कर वह कहां जाएगी, क्या करेगी, कुछ पता नहीं. अकेली लड़की हो कर होटल में रहे यह उचित नहीं और इतने पैसे भी नहीं कि महीना भर होटल में रह सके.

पापा से कहेगी तो वे तुरंत पैसे भेज देंगे और एक बार भी नहीं पूछेंगे कि इतने पैसों का क्या करेगी? इतना विश्वास तो पापा के ऊपर अब भी है. पर यह उस का भविष्य नहीं है और न ही समस्या का समाधान. उसे अपने बारे में कुछ तो ठोस सोचना ही पड़ेगा. जब तक पापा के विवाह की बात पता नहीं थी तब तक बात और थी. निसंकोच पैसे मांगती पर अब उन की असलियत को जान लेने के बाद वह भला किस मुंह से पैसे मांगे.

वहां टिस्को और टेल्को में लोग लिए जा रहे हैं पर क्या नौकरी है, कैसी नौकरी है? कुछ भी तो उसे पता नहीं फिर कितने दिन पहले आवेदन लिया गया है, यह भी तो वह नहीं जानती.

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इस शहर का नाम जमशेदपुर है. इस इलाके की धरती के नीचे खनिजों का अपार भंडार है. दूरदर्शी जमशेदजी टाटा ने यह देख कर ही यहां अपना प्लांट लगाया था. बस, इतनी ही जानकारी उसे इस जगह के बारे में है और कुछ नहीं. अब एक ही रास्ता हो सकता है कि उलटे पैर वह दिल्ली लौट जाए. वहां दिल्ली में जानपहचान के कई मित्र हैं, कोई कुछ तो जुगाड़ कर ही देगा. ज्यादा न हो सका तो एक छत और भरपेट खाने का हिसाब बन ही जाएगा. थोड़ा समय लगे तो कोई बात नहीं है. वहां पापा हैं, वे भी कुछ उपाय करेंगे ही. बेटी को सड़क पर तो नहीं छोड़ेंगे. उस ने मन बना लिया कि वह उलटे पैर दिल्ली लौट जाएगी.

दिल्ली लौट जाने का फैसला कर लिया तो उसे कुछ चैन पड़ा. मन भी शांत हो गया. चैन से फैल कर वह बैठ गई.

‘‘बेटी, कहां जाओगी?’’

वह चौंकी, मानो चेतना लौटी, ‘‘जी, टाटानगर.’’

उस के शांत, सौम्य उत्तर से वे दोनों बुजुर्ग पतिपत्नी बहुत प्रभावित हुए. अमिता को ऐसा ही लगा. उन्होंने बात आगे बढ़ानी चाही.

‘‘टाटानगर में कहां रहती हो?’’

अब अमिता को थोड़ा सतर्क हो कर बोलना पड़ा, ‘‘जी, पहले कभी नहीं आई. एक इंटरव्यू है कल.’’

इस बार सज्जन बोले, ‘‘हांहां, टाटा कंपनी में काफी लोग लिए जा रहे हैं. तुम नई हो, कहां रुकोगी?’’

‘‘यहां किसी अच्छे होटल या गैस्ट हाउस का पता है आप के पास?’’

बुजुर्ग सज्जन ने थोड़ा सोचा, फिर बोले, ‘‘बेटी, होटल तो इस शहर में बहुत हैं. अच्छे भी हैं पर तुम अकेली लड़की, सुंदर हो, कम उम्र है. तुम्हारा होटल में रहना ठीक होगा क्या? समय अच्छा नहीं है.’’

वृद्ध महिला ने समर्थन किया, ‘‘नहीं बेटे, एकदम अकेले होटल में रात बिताना…ठीक नहीं होगा.’’

‘‘पर मांजी, मेरी तो यहां कोई जानपहचान भी नहीं है, क्या करूं?’’

‘‘एक काम करो, तुम हमारे घर चलो.’’

‘‘आप के घर?’’

‘‘संकोच की कोई बात नहीं. घर में बस हम 2 बुजुर्ग ही रहते हैं और काम करने वाले. तुम को कोई परेशानी नहीं होगी. कल तुम को इंटरव्यू के लिए हमारा ड्राइवर ले जाएगा.’’

अमिता असमंजस में पड़ गई. देखने में तो पतिपत्नी दोनों ही बहुत सज्जन और अच्छे घर के लगते हैं. परिपक्व आयु के भी हैं. मुख पर निरीह सरलता भी है पर जो झटका खा कर यहां तक वह पहुंची है उस के बाद एकदम किसी पर भरोसा करना मूर्खता के अलावा और कुछ नहीं. आजकल लड़कियों को फंसा कर बेचने का रैकेट भी सक्रिय है. ऐसे में…? पर उस का सिर तो पहले ही ओखली में फंस चुका है, मूसल की मार पड़े तो पड़ने दो.

अमिता ने निर्णय लिया कि वह इन के घर ही जाएगी. नौकरी तो करनी ही है. ये लोग हावभाव से यहां के खानदानी रईस लगते हैं. अगर इन लोगों का संपर्क प्रभावशाली लोगों से हुआ तो ये कह कर उस की नौकरी भी लगवा सकते हैं. टाटा कंपनी में नौकरी मिल गई तो चांदी ही चांदी. सुना है टाटा की नौकरी शाही नौकरी है.

‘‘आप…लोगों…को…कष्ट…’’

बुजुर्ग महिला हंसी और बोली, ‘‘बेटी, पहले घर तो चलो फिर हमारे कष्ट के लिए सोचना. हां, तुम को संकोच न हो इसलिए बता दूं कि हमारे 3 बेटाबेटी हैं. तीनों का विवाह हो गया है. तीनों के बच्चे स्कूलकालेजों में पढ़ रहे हैं और तीनों पूरी तरह अमेरिका और आस्ट्रेलिया में स्थायी रूप से बसे हैं. यहां हम दोनों और पुराने नौकरचाकर ही हैं.’’

अमिता का मन यह सुन कर भर आया. अपनों ने भटकने के लिए आधी रात रास्ते पर छोड़ दिया. एक बार उस की सुरक्षा की बात तक नहीं सोची और ये? जीवन में पहली बार देखा, कोई रिश्ता नहीं फिर भी वे उस की सुरक्षा के लिए कितने चिंतित हैं.

‘‘ठीक है अम्मा, आप के साथ ही चलती हूं,’’ अम्मा शब्द का संबोधन सुन वे बुजुर्ग महिला गद्गद हो उठीं.

‘‘जीती रहो बेटी, मेरी बड़ी पोती तुम्हारे बराबर ही होगी. तुम मुझे अम्मा ही कहा करो. मातापिता ने बड़े अच्छे संस्कार दिए हैं.’’

 

इस बार वास्तव में अमिता को हंसी आ गई. मातापिता, उन का अपना-अपना परिवार, उन के संस्कार लेने योग्य हैं या नहीं, वह नहीं जानती. कम से कम अमिता ने तो उन से कुछ नहीं लिया. यह जो अच्छाई है उस के अंदर, चाहे उसे संस्कार ही समझें, यह सबकुछ उस ने पाया है एक अच्छे परिवेश में, अच्छी संस्था की शिक्षा और अनुशासन से, और इस के लिए वह मन ही मन पिता के प्रति कृतज्ञ है.

उन्होंने दोबारा अपना घर बसा लिया है पर उस के प्रति उन का जो दायित्व और कर्तव्य है, उस से एक कदम भी पीछे नहीं हटे जबकि उस की सगी मां कूड़े की तरह उस को फेंक गईं. उस के बाद एक बार भी पलट कर नहीं देखा कि वह मर गई या जीवित है.

उस का ध्यान भंग हुआ. वे महिला कह रही थीं, ‘‘आजकल देख रही हूं कि बच्चे कितने उद्दंड हैं. छोटेबड़े का लिहाज नहीं करते. शर्म नाम की कोई चीज उन में नहीं है पर करें क्या? झेलना पड़ता है. तुम तो बेटी बहुत ही सभ्य और शालीन हो.’’

‘‘मैं होस्टल में ही बड़ी हुई हूं. वहां बहुत ही अनुशासन था.’’

‘‘तभी, अच्छी शिक्षा पाई है, बेटी.’’

अमिता ने सोचा नहीं था कि इन बुजुर्ग दंपती का घर इतना बड़ा होगा. वह उन का भव्य मकान देख कर चकित रह गई. यह तो एकदम महल जैसा है. कई बीघों में फैला बागबगीचा, लौन और फौआरा, छोटा सा ताल और उस में घूमते बड़ेबड़े सफेद बतखों के जोड़े.

अम्मा हंसी और बोलीं, ‘‘3 साल पहले छोटा बेटा अमेरिका से आया था. 6 साल का पोता गांव का घर देखने गया था, वहां से बतखों का जोड़ा लाया था. देखो न बेटी, 3 साल में उन का परिवार कितना बड़ा हो गया है. सोच रही हूं कि 2 जोड़ों को रख कर बाकी गांव भेज दूंगी. वहां हमारी बहुत बड़ी झील है. उस में मछली पालन भी होता है.’’

‘‘यहां से आप का गांव कितनी दूर है?’’

‘‘बहुत दूर नहीं, यही कोई 40 किलोमीटर होगा. अब तो सड़क अच्छी बन गई है तो वहां जाने में समय कम लगता है.’’

‘‘आप लोग वहां नहीं जाते हैं?’’ अमिता ने पूछा.

‘‘जाना तो पड़ता ही है जब फसल बिकती है, बागों का व झील का ठेका उठता है. 2-4 दिन रह कर हम फिर चले आते हैं. वहां तो इस से बड़ा दोमंजिला घर है,’’ गहरी सांस ली उन्होंने, ‘‘सब वक्त का खेल है. सोचा था कि बच्चे यहां शहर में रहेंगे और हम दोनों गांव में. बच्चे गांव आएंगे, हम भी यहां आतेजाते रहेंगे पर सोचा कहां पूरा होता है.’’

अमिता समझ गई कि अनजाने में उस ने अम्मा की दुखती रग पर हाथ रख दिया है. जल्दी से उस ने बात पलटी, ‘‘आते तो हैं सब आप के पास?’’

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‘‘हां, आते हैं, साथ ले जाने की जिद भी करते हैं पर हम ने साफ कह दिया है, हम अपनी माटी को छोड़ कर कहीं नहीं जाएंगे. तुम्हारी इच्छा हो तो तुम आओ. वे आते हैं पर उन के पास समय बहुत कम है.’’

इस बुजुर्ग दंपती के घर नौकर- नौकरानियों की फौज है और सभी इन दोनों की सेवाटहल अपने सगों जैसा करते हैं. इतने लोगों की जरूरत है ही नहीं पर अम्मा ने ही कहा, ‘‘कहां जाएंगे ये बेचारे. यहां दो समय का खाना तो मिल जाता है. हमारा भी समय इन के साथ कट जाता है. बच्चे कभीकभार आते हैं तो ये उन को हाथोंहाथ रखते हैं. मुझे देखना भी नहीं पड़ता.’’

फिर कुछ सोच कर अम्मा बोलीं, ‘‘बेटी, अभी तक तुम ने अपना नाम नहीं बताया.’’

‘‘जी, मेरा नाम अमिता है.’’

‘‘सुंदर नाम है. पर घर का और कोई छोटा नाम?’’

अमिता के आंसू आ गए. आज तक इतने अपनेपन से किसी ने उस से बात नहीं की. असल में इंसान को किसी भी चीज का मूल्य तब पता चलता है जब वह उस से खो जाती है.

‘‘जी है… बिट्टू.’’

‘‘यही अच्छा है. मैं तुम्हें बिट्टू ही कहूंगी.’’

अमिता मन ही मन हंस पड़ी. ऐसा लग रहा है जैसे इन्होंने समझा है कि वह जीवन भर के लिए उन के पास रहने आई है. वह उठ कर कमरे में आ गई. उस का कमरा, बाथरूम और बरामदा इतना बड़ा है कि दिल्ली में एक कमरे का फ्लैट बन जाएगा.

अमिता को अब समय मिला कि वह अपने लिए कुछ सोचे पर कोई दिशा उस को नहीं मिल रही. उलझन में रहते हुए भी एक निर्णय तो उस ने लिया कि इन लोगों को वह अपनी पूरी सचाई बता देगी और पापा को फोन कर के अपने बारे में खबर देगी. कुछ भी हो उन का सहयोग नहीं होता तो अब तक उस का अस्तित्व ही मिट जाता, मां तो उसे कूड़े की तरह फेंक अपने सुख को खोजने चली गई थीं.

खाने की विशाल मेज पर बस 3 जने बैठ घर की बनी कचौरियों के साथसाथ चाय पी रहे थे. बाबूजी ने कहा, ‘‘मेरे पिता थोड़े एकांतप्रिय थे. हमारा खेत, शहर से कटा हुआ था तो उन्होंने यहां अपनी हवेली बनवा ली पर अब तो शहर फैलतेफैलते यहां तक चला आया है.’’

इसी तरह की छिटपुट बातों के बीच चाय समाप्त हुई.

दोपहर में खाना खाने के बाद अमिता अपने बिस्तर पर लेट कर सोचने लगी कि यहां इस सज्जन दंपती के संरक्षण में वह पूरी तरह सुरक्षित है. जीवन में इतनी स्नेहममता भी उस को कभी नहीं मिली पर यह ठौरठिकाना भी कितने दिन का, यह पता नहीं. अब तक तो उस ने होस्टल का जीवन काटा है. सामान्य जीवन में अभीअभी पैर रख जिन परिस्थितियों का सामना उसे करना पड़ा वह बहुत ही भयानक है.

एक घर में प्रवेश ही नहीं मिला. दूसरे घर में प्रवेश का इतना बड़ा मूल्य मांगा गया कि उस की आत्मा ही कांप उठी. मां संसार में सब से ज्यादा अपनी और अच्छी साथी होती है. यहां तो मां ने ही उसे ठोकरें खाने को मजबूर कर दिया. पापा फिर भी उस के लिए सोचते हैं पर विवश हैं कुछ कर नहीं पाते. फिर भी पूरी आर्थिक सहायता उन्होंने ही दी है. उन से संबंध न तो तोड़ सकती है और न ही तोड़ेगी.

अमिता सोना चाहती थी पर नींद नहीं आई. एक तो दोपहर में उसे सोने की आदत नहीं थी दूसरी बात कि मन विक्षिप्त है, कुछ समझ नहीं पा रही थी कि अगला कदम कहां रखेगी. यह घर, ये लोग बहुत अच्छे लग रहे हैं, इंसानियत से जो विश्वास उठ गया था इन को देख वह विश्वास फिर से लौट रहा है पर यहां भी वह कब तक टिकेगी. उस की पूरी कहानी सुनने के बाद ये उस को आश्रय देंगे या नहीं यह नहीं समझ पा रही. वैसे तो इन के घर कई आश्रित हैं पर उन में और अमिता में जमीनआसमान का अंतर है.

फै्रश हो कर कमरे से बाहर आते ही देखा कि बरामदे में दोनों पतिपत्नी बैठे हैं. उसे देख हंस दीं अम्मा, ‘‘आओ बेटी, चाय आ रही है. मैं संतो को तुम्हारे पास भेज ही रही थी. बैठो.’’

बेंत की कुरसियां वहां पड़ी थीं. अमिता भी एक कुरसी खींच कर बैठ गई. चाय आ गई. इस बार भी अमिता ने चाय बना कर उन को दी. बाबूजी ने प्याला उठाया और बोले, ‘‘कल तुम्हारा इंटरव्यू है. कितने बजे है?’’

यह सुनते ही अमिता का प्याला छलक गया.

‘‘असल में टेल्को का दफ्तर यहां से दूर है. थोड़ा जल्दी निकलना. मैं ड्राइवर को बोल दूंगा, कल जल्दी आ कर गाड़ी तैयार रखे.’’

अब और नहीं, इन को सचाई बतानी ही पड़ेगी. इतनी चालाकी उस के अंदर नहीं है कि इतनी बड़ी बात छिपा ले. मन और मस्तिष्क पर अपराधबोध का दबाव बढ़ता जा रहा था.

‘‘बाबूजी,’’ अमिता बोली, ‘‘मुझे आप दोनों से कुछ कहना है.’’

‘‘हां…हां. कहो.’’

‘‘अम्मा, मैं ने आप से झूठ बोला है. मेरा यहां कोई इंटरव्यू नहीं है.’’

बुजुर्ग पतिपत्नी चौंके.

‘‘तो…फिर…? इतनी जल्दी क्या थी गाड़ी पकड़ने की.’’

‘‘मैं उस जीवन से भाग रही थी जहां मेरे सम्मान को भी दांव पर लगा दिया गया था.’’

‘‘किस ने लगाया?’’

‘‘मेरी सगी मां ने.’’

‘‘बेटी, हम कुछ समझ नहीं पा रहे हैं.’’

बचपन से ले कर आज तक की पूरी कहानी अमिता ने उन्हें सुनाई. वे दोनों स्तब्ध हो उस की आपबीती सुन रहे थे. अम्मा के आंसू बह रहे थे. उन्होंने उठ कर उसे अपनी गोद में खींचा.

‘‘इतनी सी उम्र में बेटी तू ने कितना सहा है. पर तू चिंता मत कर. शायद हमारा साथ तुम को मिलना था इसलिए नियति ने हमें उस गाड़ी और उसी डब्बे में भेज दिया. कितनी पढ़ी हो?’’

‘‘बीए फाइनल की परीक्षा दी है. अभी परीक्षाफल नहीं आया है. पास होने के बाद जहां भी नौकरी मिलेगी मैं चली जाऊंगी.’’

बाबूजी ने कहा, ‘‘तुम कहीं नहीं जाओगी. काम की कमी नहीं है यहां. मैं ही तुम्हारी नौकरी का प्रबंध कर दूंगा. हर लड़की को स्वावलंबी बनना चाहिए. पर तुम रहोगी हमारे ही साथ. देखो बेटी, तुम्हारी उम्र बहुत कम है. ऐसे में बड़ों का संरक्षण बहुत जरूरी है. दूसरी बात, हम दोनों भी बहुत अकेले हैं. अपने बच्चे तो बहुत दूर चले गए हैं. मातापिता की खोजखबर भी नहीं लेते. ऐसे में जवान बच्चे का संरक्षण हम को भी चाहिए. यहां इतने काम करने वाले तो हैं पर अपना कोई रहे तो हम को बहुत बल मिलेगा. आराम से रहो तुम.’’

‘‘आप की आज्ञा सिरआंखों पर.’’

‘‘इतना कुछ है,’’ आंसू पोंछ कर अम्मा ने कहा, ‘‘मुझे नएनए व्यंजन बनाने का शौक है, पर खाएगा कौन? तुम रहोगी तो मेरा भी मन लगा रहेगा. चलो, 2-4 दिन में तुम को अपने गांव घुमा कर लाती हूं.’’

बाबूजी हंसे फिर बोले, ‘‘बेटी, तुम को जो भी चाहिए वह बेहिचक हो कर बता देना.’’

अमिता को संकोच तो हुआ फिर भी वह बोली, ‘‘सोच रही थी एक मोबाइल खरीद लूं क्योंकि मेरा जो मोबाइल था वह कानपुर में ही छूट गया.’’

‘‘अरे, आज ही मंगवा कर देती हूं,’’ अम्मा बोलीं, ‘‘कोई जरूरी फोन करना हो तो घर के फोन से कर लो.’’

दूसरे दिन नाश्ते के बाद खुले मन से अमिता अम्मा के साथ बात कर रही थी. बाबूजी के पास व्यापार के सिलसिले में कुछ लोग आए थे.

अम्मा ने कहा, ‘‘आज का समाज इतना स्वार्थी, विकृत, आधुनिक, उद्दंड और असहिष्णु हो गया है कि अपने सारे कर्तव्य, उचितअनुचित और कोमल भावनाओं तक को नजरअंदाज कर बैठा है. तभी तो देखो न, 3 बच्चों के मातापिता हम कितने अकेले पड़े हुए हैं.’’

अमिता ने अम्मा के मन की पीड़ा को समझा. वह अपनी पीढ़ी को बचाने के लिए बोली, ‘‘क्या करें अम्मा, इस देश में काम की कितनी कमी है.’’

‘‘क्यों नहीं कमी होगी. तुम्हीं बताओ, यहां किसी को अपने आनेजाने की रोकटोक, कोई सख्ती कुछ नहीं. पड़ोसी देश इस धरती के सब से बड़े अभिशाप बने हुए हैं. जैसे ही वहां थोड़ी असुविधा हुई सीधे यहां चले आते हैं. फिर भी जिन की रोजीरोटी का प्रश्न है वे देश छोड़ कर चले जाएं तो देश का उपकार हो. कुछ परिवार संपन्नता का मुंह भी देखें पर जिन की यहां जरूरत है वे जब देश छोड़, गांव छोड़, असहाय मातापिता को छोड़ चले जाते हैं तो हमारे लिए दुख की बात तो है ही, देश के लिए भी हानिकारक है. सामर्थ्य रहते भी उन के वृद्ध मातापिता इतने दुखी और हतोत्साहित हो जाते हैं कि उन में कुछ अच्छा, कुछ कल्याणकारी करने की इच्छा ही खत्म हो जाती है.’’

अम्मा का हर शब्द अमिता के मन की गहराई में उतर रहा था. अम्मा की सोच कितनी उन्नत है, उन्होंने गांव का जीवन, गरीबी, लोगों का दुखदर्द अपनी आंखों से देखा, मन से अनुभव किया है, पर चाहते हुए भी अपना हाथ नहीं बढ़ा पातीं. साहस भी नहीं कर पा रहीं क्योंकि उन को भी मजबूत हाथों के सहारे की जरूरत है और पीछे से साधने वाला कोई नहीं. जब तक 2 मजबूत, जवान हाथों का सहारा न हो वे कैसे किसी कल्याणकारी योजना में अपना हाथ डालें. फिर समय ऐसा है कि सचाई भी चिराग ले कर खोजे नहीं मिलती है. अमिता सोचने लगी.

मोबाइल मिलने के बाद अमिता ने शिल्पा, जो उस की घनिष्ठ सहेली थी, को सारी बातें बता कर अनुरोध किया कि रिजल्ट आते ही वह तुरंत सूचना दे. शिल्पा उस के लिए चिंतित हो गई.

‘‘वह तो तू न भी कहती तब भी मैं खबर देती. पर यह बता, अब तू क्या करेगी? नौकरी तो करेगी ही, उस के लिए बेहतर होगा दिल्ली आ जा.’’

‘‘मन इतना विक्षिप्त है कि अभी उधर लौटने की इच्छा नहीं है. रिजल्ट आ जाए तब भविष्य के लिए कुछ सोचूंगी.’’

‘‘ठीक है पर अपने पापा से तू एक बार बात तो कर ले.’’

‘‘पापा से बात की थी. उन्होंने कहा कि मेरी जैसी इच्छा है मैं वही कर सकती हूं. 10 हजार रुपए भी भेज दिए हैं. मुझे उन से कोई शिकायत नहीं है.’’

‘‘चल, तू अच्छे लोगों के साथ सुरक्षित रह रही है, यह मेरे लिए बहुत बड़ी राहत की बात है. फोन करती रहना. मैं भी करूंगी.’’

एक दिन अम्मा, बाबूजी को गांव जाना पड़ा. ‘‘झील में पली मछलियों का ठेका उठने वाला है,’’ अम्मा ने बताया, ‘‘साथ में अगली बार जो मछली का बीज पड़ेगा उस की भी व्यवस्था अभी से करनी होगी.’’

40 किलोमीटर का रास्ता वे देखते ही देखते डेढ़ घंटे में पार कर आए. परिसर में आ कर गाड़ी रुकते ही अमिता की आंखें फटी की फटी रह गईं. इस में तो जमशेदपुर की 2 हवेली बन जाएंगी. अमिता ने मन ही मन सोचा.

कुछ घंटों में उस की समझ में आ गया कि ये लोग कितने संपन्न हैं. दुख हुआ इन के बच्चों की सोच पर कि वे यहां इतना कुछ छोड़ गए हैं और पराए देश में जा कर चाकरी बजा रहे हैं. अपनी शक्ति और बुद्धि दोनों को विदेशों में जा कर कौडि़यों के मोल बेच रहे हैं.

यहां अपने बुजुर्ग मातापिता के साथ रह कर देश की समृद्धि में हाथ बंटा सकते थे. कितने असहायों को जीने के रास्ते पर ला सकते थे, कितनों को गरीबी रेखा से खींच कर ऊपर उठा सकते थे. पर…

अचानक अमिता के मन में आया कि बाबूजी और अम्मा अभी शरीर से स्वस्थ हैं. बस, थोड़े अकेलापन और डिप्रैशन की लपेट में आ रहे हैं. उन का जीवन भी तो एक तरह से निरर्थक सा हो गया है. उसे जनकल्याण में समर्पित कर के सार्थक बनाया जा सकता है. अरे, नौकरी ही क्यों? करने के लिए कितना कुछ पड़ा है. उस ने फैसला कर लिया कि इन लोगों से बात करेगी.

अमिता का प्रस्ताव सुन दोनों बुजुर्ग सोचने लगे. अम्मा ने कहा, ‘‘बेटी, तुम्हारी योजना बहुत सुंदर है. देश व समाज का उपकार भी होगा पर बेटी हम डरते हैं. तुम्हारी उम्र अभी कम है. आज न सही पर कल तुम शादी कर के अपने घर चली जाओगी, तब हम दोनों बुजुर्ग लोग क्या करेंगे? कैसे संभालेंगे इतना कुछ.’’

बाबूजी ने कहा, ‘‘हम एक काम करते हैं. तुम्हारी योजना में थोड़ा काटछांट करते हैं. यहां अनाथ और वृद्धों की सेवा हो. उस के साथ तुम ने यह जो महिला कल्याण और लघुउद्योग निशुल्क शिक्षा केंद्र की योजना बनाई है, उसे अभी रहने दो.’’

‘‘नहीं बाबूजी,’’ अमिता बोली, ‘‘हमारा असली काम तो यही है. कहीं मार खाती तो कहीं विदेशों में बिकती असहाय लड़कियों को बचा कर उन को स्वावलंबी बना कर उन्हें उन के पैरों पर खड़ा करना जिस से घर या बाहर कोई आंख उठा कर उन्हें देख न सके और गरीबी से जूझ कर कोई दम न तोड़ दे. अनाथ और वृद्धों की सेवा सहारा तो हो ही जाएगी.’’

अम्मा हंसी और बोलीं, ‘‘उस दिन ट्रेन में तुझे डरीसहमी एक लड़की के रूप में देखा था, आज तुझ में इतनी शक्ति कहां से आ गई?’’

बाबूजी ने मेरा सिर हिलाया और बोले, ‘‘उस दिन अग्नि परीक्षा में तप कर ही तो यह शुद्ध सोना बनी है. इस की सोच बदली, मनोबल बढ़ा और बुद्धि ने जीवन का नया दरवाजा खोला.’’

अमिता भी अब इन लोगों से सहज हो गई थी. पुरानी पीढ़ी से नई पीढ़ी के मतभेद, सोच में अंतर के झगड़े तो मिटने वाले नहीं हैं. वे चलते रहेंगे. उस से किसी पीढ़ी के जीवन में कोई अंतर नहीं आना चाहिए. नया खून अपने को नहीं बदलेगा, पुराना खून बेवजह मानसिक, शारीरिक कष्ट सहतेसहते उन लोगों का रास्ता देखते हुए फोन का इंतजार न करते हुए उन के कुशल समाचार लेने की प्रतीक्षा न कर के अपने जीवन को अपने ढंग से जीए. सामर्थ्य के अनुसार उन लोगों की दुख- परेशानी को कम करे. देश समाज का भला हो और अपना मन भी खुशी, उत्साह में भराभरा रहे. एकएक पैसा जोड़ कर उन लोगों के लिए जमा करने की मानसिकता समाप्त हो, वह भी उन के लिए जिन्हें उन की, उन के प्यार व ममता की  और न ही उन के जमा किए पैसों की जरूरत है.

दोनों ही अमिता की बातों से मोहित हो गए.

‘‘तुम्हारी सोच कितनी अच्छी है, बेटी.’’

‘‘समय, हालात, मार बहुत कुछ सिखा देता है बाबूजी. अभी कुछ दिन पहले तक मैं कुछ सोचती ही नहीं थी. मैं आप लोगों से मिली, जानपहचान के बाद जा कर सोच ने जन्म लिया. अम्मा, आप डरो नहीं, मैं आप लोगों को छोड़ कर कहीं नहीं जा रही.’’

‘‘तेरी शादी तो मैं जरूर करूंगी.’’

‘‘करिए पर शर्त यही रहेगी कि मैं यहां से कहीं नहीं जाऊंगी.’’

‘‘ठीक है, उसे ही हम यहां रख लेंगे.’’

इस के साथ ही वातावरण में खुशी की लहर दौड़ गई.

Monsoon Special : मानसून में दिखना है खूबसूरत, तो ट्राई करें ये 8 ब्यूटी टिप्स

मौनसून के मौसम में स्किन में संक्रमण, चेहरे की स्किन का फटना, शरीर पर चकत्ते पड़ना, पैरों या नाखूनों पर फंगस होना आदि प्रौब्लम्स का सामना करना पड़ता है. पेश हैं, इन सब प्रौब्लम्स से बचने के उपाय:

1. मौनसून में स्किन एलर्जी से बचें

स्किन की एलर्जी शांत करने के लिए क्लींजिंग, टोनिंग और फिर मौइस्चराइजिंग जरूरी है. बालों को घुंघराले होने और सूखेपन से बचाने के लिए उन्हें पौष्टिकता प्रदान करना आवश्यक है.

2. बालों की केयर भी है जरूरी

घर से बाहर जाने से पहले बालों पर एंटीपौल्यूशन स्प्रे का प्रयोग करें. स्किन को भी सुरक्षित रखना आवश्यक है, इसलिए सनस्क्रीन, एलोवेरा जैल और अन्य स्किन प्रोटैक्टर्स जो आप की स्किन पर सुरक्षात्मक परत बना कर स्किन संबंधी समस्याओं से बचाते हैं, का प्रयोग कर सकती हैं. ये स्किन प्रोटैक्टर्स आप की स्किन के रोमछिद्रों को 6-7 घंटों के लिए बंद कर देते हैं और प्रदूषण से होने वाले नुकसान को नियंत्रित करने में मदद करते हैं.

3. स्किन को रखें हाइड्रेट

स्किन को हाइड्रेटेड और रिजुविनेट रखने के लिए नियमित रूप से एक्सफौलिएशन और स्क्रबिंग करना तथा ग्लो पैक लगाना भी आवश्यक है. आप जब घर से बाहर निकलती हैं तो जहरीले प्रदूषकों का सामना करने के लिए घर में बने पैक का प्रयोग करना भी अच्छा रहता है.

4. बालों को रखें हैल्दी

मौनसून के मौसम में भीगने से बाल अनहैल्दी और गंदे हो जाते हैं, क्योंकि बारिश के पानी में अनेक प्रकार के कैमिकल्स और विषैले तत्त्व मिले होते हैं. एसे में अच्छे शैंपू और कंडीशनर का प्रयोग करें. ये बालों के सौफ्ट बनाए रखते हैं और उन की नमी को बाहर नहीं जाने देते. बालों की तेल से नियमित मालिश करना भी बेहद जरूरी है, क्योंकि बरसात के दौरान वातावरण में नमी की मात्रा काफी अधिक होती है, जो बालों की जड़ों को बंद कर देती है.

5. बालों की स्टीमिंग करें एसे

तेल लगाने के बाद भी बालों की स्टीमिंग और मास्किंग की जानी चाहिए. यदि आप घर पर ही मास्क तैयार करना चाहती हैं तो सब से अच्छा विकल्प है एवोकाडो के साथ केला, जैतून का तेल या आंवला, रीठा और शिकाकाई जैसी सामग्री का प्रयोग करना. नियमित अंतराल में बालों में कंघी करें.

6. इंफेक्शन से बचना है जरूरी

मौनसून के दौरान सिंथैटिक या टाइट कपड़े न पहनें. ढीले और सूती कपड़े पहनें वरना आप को स्किन इन्फैक्शन और चकत्ते पड़ने जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. सब से महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अपनी स्किन पर सभी कीटाणुनाशक उत्पादों जैसे साबुन, पाउडर, बौडी लोशन आदि का प्रयोग करें जो नमी और शरीर से पसीना आने के दौरान भी स्किन को सभी प्रकार के संक्रमणों से बचाने में मदद करते हैं.

7. औयली प्रौडक्ट्स से बचना है जरूरी

मुंहासों और चकत्तों को रोकने के लिए चेहरे को हमेशा साफ रखें. अधिक औयली मेकअप प्रोडक्ट्स का प्रयोग न करें. आप के मेकअप प्रोडक्ट्स पाउडर या मिनरल बेस्ड होने चाहिए जो स्किन के लिए फ्रैंडली होते हैं. इस के अलावा अच्छी गुणवत्ता वाले मेकअप उत्पादों का ही प्रयोग करें, क्योंकि आप की स्किन हाई टैंपरेचर और नमी के कारण जल्दी इन्फैक्शन का शिकार हो जाती है.

8. डाइट का भी रखें ख्याल

फास्ट फूड या अनहैल्दी खाना न खाएं. यदि आप फास्ट फूड खाना ही चाहती हैं या खाने को मजबूर हैं तो आप को यह तय करना चाहिए कि आप का खाना ताजा और गरम हो. पहले से पका खाना बिलकुल न खाएं. अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए प्रतिदिन 10-12 गिलास पानी जरूर पीएं ताकि शरीर में मौजूद विषैले पदार्थ पेशाब के द्वारा बाहर निकल सकें. शरीर को साफ रखें. इस के लिए सुबह और शाम दोनों समय स्नान करें.

-आशमीन मुंजाल, हेयर एंड मेकअप एक्सपर्ट, डाइरैक्टर स्टार सैलून एंड एकैडमी द

विश्वास की जड़ें : जब टूटा रमन और राधा का वैवाहिक रिश्ता

सुबह से ही घर में मिलने वालों का तांता लगा था. फोन की घंटी लगातार बज रही थी. लैंड लाइन नंबर और मोबाइल अटैंड करने के लिए भी एक चपरासी को काम पर लगाया गया था. वही फोन पर सब को जवाब दे रहा था कि साहब अभी बिजी हैं. जैसे ही फ्री होते हैं उन से बात करा दी जाएगी. फिर वह सब के नाम व नंबर नोट करते जा रहा था. कोई बहुत जिद करता कि बात करनी ही है तो वह साहब की ओर देखता, जो इशारे से मना कर देते.

आखिर वे इतने लोगों से घिरे थे कि उन के लिए उन के बीच से आ कर बात करना बेहद मुश्किल था. लोग उन्हें इस तरह घेरे बैठे और खड़े थे मानो वे किसी जंग की तैयारी में जुटे हों. सांत्वना को संवदेनशीलता के वाक्यों में पिरो कर हर कोई इस तरह उन के सामने अपनी बात इस तरह रखने को उत्सुक था मानो वे ही उन के सब से बड़े हितैषी हों.

‘‘बहुत दुख हुआ सुन कर.’’

‘‘बहुत बुरा हुआ इन के साथ.’’

‘‘सर, आप को तो हम बरसों से जानते हैं, आप ऐसे हैं ही नहीं. आप जैसा ईमानदार और सज्जन पुरुष ऐसी नीच हरकत कर ही नहीं  सकता है. फंसाया है उस ने आप को.’’

‘‘और नहीं तो क्या, रमन उमेश सर को कौन नहीं जानता. ऐसे डिपार्टमैंट में होने के बावजूद जहां बिना रिश्वत लिए एक कागज तक आगे नहीं सरकता, इन्होंने कभी रिश्वत नहीं ली. भ्रष्टाचार से कोसों दूर हैं और ऐसी गिरी हुई हरकत तो ये कर ही नहीं सकते.’’

‘‘सर, आप चिंता न करें हम आप पर कोई आंच नहीं आने देंगे.’’

‘‘एमसीडी इतना बड़ा महकमा है, कोई न कोई विवाद या आक्षेप तो यहां लगता ही रहता है.’’

आप इस बात को दिल पर न लीजिएगा सर. सीमा को कौन नहीं जानता कि वह किस टाइप की महिला है,’’ कुछ लोगों ने चुटकी ली.

भीड़ बढ़ने के साथसाथ लोगों की सहानुभूति धीरेधीरे फुसफुसाहटों में तबदील होने लगी थी. सहानुभूति व साथ देने का दावा करने वालों के चेहरों पर बिखरी अलग ही तरह की खुशी भी दिखाई दे रही थी.

कुटिलता उन की आंखों से साफ झलक रही थी मानो कह रही हो बहुत बोलता था हमें कि हम रिश्वत लेते हैं. तू तो उस से भी बड़े इलजाम में फंस गया. सस्पैंड होने के बाद क्या इज्जत रह जाती है, उस पर केस चलेगा वह अलग. फिर अगर दोष साबित हो गया तो बेचारा गया काम से. न घर का रहेगा न बाहर का.

रमनजी की पत्नी राधा सुबह से अपने कमरे से बाहर नहीं निकली थीं. जब से उन्हें अपने पति के सस्पैंड होने और उन पर लगे इलजाम के बारे में पता चला था, उन का रोरोकर बुरा हाल था. रमन ऐसा कर सकते हैं, उन्हें विश्वास तो नहीं हो रहा था, पर जो सच सब के सामने था, उसे नजरअंदाज करना भी उन के लिए मुश्किल था. एमसीडी में इतने बड़े अफसर उन के पति रमन ऐसी नीच हरकत कर सकते हैं, यह सोच कर ही वे कांप जातीं.

दोपहर तक घर पर आए लोग धीरेधीरे रमनजी से हाथ मिला कर खिसक लिए. संडे का दिन था, इसलिए सब घर पर मिलने चले आए थे. वरना बेकार ही लीव लेनी पड़ती या न आ पाने का बहाना बनाना पड़ता. बहुत से लोग मन ही मन इस बात से खुश थे. उन के विरोधी जो सदा उन की ईमानदारी से जलते थे, वे भी उन का साथ देने का वादा कर वहां से खिसक लिए. थके, परेशान और बेइज्जती के एहसास से घिरे रमन पर तो जैसे विपदा आ गई थी.

उन की बरसों की मेहनत इस तरह पानी में बह जाएगी, शर्म से उन का सिर झुका जा रहा था. बिना कोई गलती किए इतना अपमान सहना…फिर घरपरिवार, दोस्त नातेरिश्तेदारों के सवालों के जवाब देने…वे लड़खड़ाते कदमों से बैडरूम में गए.

उन्हें देखते ही राधा, जिन के मायके वाले उन्हें वहां मोरचा संभाले बैठाए थे,

कमरे से बाहर जाने लगीं तो रमन ने उन का हाथ पकड़ लिया.

‘‘मैं राधा से अकेले में बात करना चाहता हूं. आप से विनती है आप थोड़े समय के लिए बाहर चले जाएं,’’ रमन ने बहुत ही नम्रता से अपने ससुराल वालों से कहा.

‘‘मुझे आप से कोई बात नहीं करनी है,’’ राधा ने उन का हाथ झटकते हुए कहा, ‘‘अब भी कुछ बाकी बचा है कहनेसुनने को? मुझे कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा. अरे बच्चों का ही खयाल कर लेते. 45 साल की उम्र में 2 बच्चों के बाप हो कर ऐसी हरकत करते हुए आप को शर्म नहीं आई?’’ राधा की आंखों से फिर आंसू बहने लगे.

‘‘देखो, तुम खुद इतनी पढ़ीलिखी हो, जौब करती हो और फिर भी दांवपेच को समझ नहीं पा रही हो…मुझे फंसाया गया है… औरतों के लिए बने कानूनों का फायदा उठा रही है वह औरत. औरत किस तरह से आज मर्दों को झूठे आरोपों में फंसा रही हैं, यह बात तुम अच्छी तरह से जानती हो. उन की बात न मानो तो इलजाम लगाने में पीछे नहीं रहतीं. फिर तुम तो मुझे अच्छी तरह से जानती हो. क्या मैं ऐसा कर सकता हूं? तुम से कितना प्यार करता हूं, यह बताने की क्या अब भी जरूरत है? तुम मुझे समझोगी कम से कम मैं तुम से तो यह उम्मीद करता था.’’

‘‘यह सब होने के बाद क्या और क्यों समझूं मैं. तुम ही बताओ…क्यों करेगी कोई औरत ऐसा? आखिर उस की बदनामी भी तो होगी. वह भी शादीशुदा है. तुम पर बेवजह इतना बड़ा इलजाम क्यों लगाएगी? अगर गलत साबित हुई तो उसे नौकरी से हाथ धोना पड़ सकता है या वह सस्पैंड भी हो सकती है. यही नहीं उस का खुद का घर भी टूट सकता है. मुझे बेवकूफ बनाने की कोशिश मत करो. पता नहीं अब क्या होगा. पर तुम्हारे साथ रहने का तो अब सवाल ही नहीं है. मैं बच्चों को ले कर आज ही मायके चली जाऊंगी. मेरे बरसों के विश्वास को तुम ने कितनी आसानी से चकनाचूर कर दिया, रमन,’’ राधा गुस्से में फुफकारीं.

‘‘बच्चों जैसी बात मत करो. जो गलती मैं ने की ही नहीं है, उस की सजा मैं नहीं भुगतुंगा, इन्वैस्टीगेशन होगी तो सब सच सामने आ जाएगा. कब से तुम्हें समझाने की कोशिश कर रहा हूं कि मेरी मातहत सीमा बहुत ही कामचोर किस्म की महिला हैं. इसीलिए उन की प्रोमोशन नहीं होती. मेरे नाम से लोगों से रिश्वत लेती हैं. तुम्हें पता ही है एमसीडी ऐसा विभाग है, जो सब से भ्रष्ट माना जाता है. एक से एक निकम्मे लोग भी पैसे वाले बन कर घूम रहे हैं.

‘‘मैं ने कभी रिश्वत नहीं ली या किसी के दबाव में आ कर किसी की फाइल पास नहीं की, इसलिए मेरे न जाने कितने विरोधी बन गए हैं. बहुत दिनों से सीमा मुझे तरहतरह से परेशान कर रही थीं. जब मैं ने उन से कहा कि जो काम आप के अंतर्गत आता है उसे पहले बखूबी संभालना सीख लें, फिर प्रमोशन की बात सोचेंगे तो उन्होंने मुझे धमकी दी कि मुझे देख लेंगी. गुरुवार की शाम को वे मेरे कैबिन में आईं और फिर प्रमोशन करने की बात की.’’

‘‘जब मैं ने मना किया तो उन्होंने अपना ब्लाउज फाड़ डाला और चिल्लाने लगीं कि मैं ने उन के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की. मैं उन्हें मोलैस्ट कर रहा हूं. झूठे आंसू बहा कर उन्होंने लोगों को इकट्ठा कर लिया. तमाशा बना दिया मेरा. हमारा समाज ऐसा ही है कि पुरुष को ही हर गलती का जिम्मेदार माना जाता है. बस सच यही है. इन्वैस्टीगेशन होने दो, सब को पता चल जाएगा कि मैं निर्दोष हूं,’’ रमनजी बोलतेबोलते कांप रहे थे.

ऐसे वक्त में जब उन्हें अपनी पत्नी व परिवार की सब से ज्यादा जरूरत थी, वे ही उन्हें गलत समझ रहे थे. इस से ज्यादा परेशान व हताश करने वाली बात और क्या हो सकती थी. विश्वास की जड़ें अगर तेज हवाओं का सामना न कर पाएं और उखड़ जाएं तो रिश्ते कितने खोखले लगने लगते हैं. कहां कमी रह गई उन से… राधा और बच्चों के लिए हमेशा समर्पित रहे वे तो…

‘‘क्यों कहानी बना रहे हो. इतने बड़े अफसर हो कर एक औरत को ही बदनाम करने लगे. तुम्हें बदनाम कर के उसे क्या मिलेगा. उस की भी जगहंसाई होगी… मुझे विश्वास नहीं होता. इस से पहले क्या उस ने ऐसी हरकत किसी के साथ की है?’’ राधा तो रमन की बात सुनने को ही तैयार नहीं थीं.

‘‘बेशक न की हो, पर उन के चालचलन पर हर कोई उंगली उठाता है. कपड़े देखे हैं कैसे पहनती हैं. पल्लू हमेशा सरकता रहता है, लगता है जैसे मर्दों को लुभाने में लगी हुई है.’’

‘‘हद करते हो रमन… ऐसी सोच रखते हो एक औरत के बारे में छि:’’ राधा आगे कुछ कहतीं तभी कमरे में रमन के ससुराल वाले आ गए.

‘‘क्या सोच रही है राधा? अब भी इस आदमी के साथ रहना चाहती है. हर तरफ थूथू हो रही है. बच्चों पर इस बात का कितना बुरा असर पड़ेगा. स्कूल जाएंगे तो दूसरे बच्चे कितना मजाक उड़ाएंगे. चल हमारे साथ चल,’’ राधा के भाई ने गुस्से से कहा.

‘‘और क्या. तू चिंता मत कर. हम तेरे साथ हैं. फिर तू खुद कमाती है,’’ राधा की मां ने अपने दामाद की ओर घृणित नजरों से देखते हुए कहा, मानो उन का जुर्म जैसे साबित ही हो गया हो.

आज तक जो ससुराल वाले उन का गुणगान करते नहीं थकते थे, वे ही आज उन का तिरस्कार कर रहे थे. कौन कहता है औरत अबला है, समाज उसी का साथ देता है. उन्हें पुरुष की विडंबना पर अफसोस हुआ. बिना दोषी हुए भी पुरुष को कठघरे में खड़े होने को मजबूर होना पड़ता है.

‘‘पापाजी, आप ही समझाइए न इन्हें,’’ रमनजी ने बड़ी आशा भरी नजरों से अपने ससुर को देखते हुए कहा. वे जानते थे कि वे बहुत ही सुलझे हुए इनसान हैं और जल्दबाजी में कोई निर्णय नहीं लेते हैं.

‘‘हां बेटा, रमन की बात को समझो तो… इतने बरसों का साथ है… ऐसे अविश्वास करने से जिंदगी नहीं चलती. तुम्हें अपने पति पर भरोसा होना चाहिए.’’

‘‘अपनी बेटी का साथ देने के बजाय आप इस आदमी का साथ दे रहे हैं, जो दूसरी औरतों के साथ बदसलूकी करता है… उन की इज्जत पर हाथ डालता है… पता नहीं और क्याक्या करता हो और हमारी बेटी को न जाने कब से धोखा दे रहा हो. सादगी की आड़ में न जाने कितनी औरतों से संबंध बना चुका हो,’’ अपनी सास की बात सुन रमन हैरान रह गए.

‘‘मुझे आप से ऐसी उम्मीद नहीं थी मां. मुसीबत के वक्त अपने ही साथ देते हैं और जब राधा मुझ पर विश्वास ही नहीं करना चाहती तो मैं क्या कह सकता हूं. इतने लंबे वैवाहिक जीवन में भी अगर पतिपत्नी के बीच विश्वास की दीवारें पुख्ता न हों तो फिर साथ रहना ही बेमानी है.

‘‘अब मैं तुम्हें नहीं रोकूंगा. तुम मेरी तरफ से आजाद हो, पर यह घर हमेशा से तुम्हारा था और तुम्हारा ही रहेगा.’’

रमन की बात सुन पल भर को राधा को लगा कि शायद वही गलत है. सच में रमन जैसे प्यारे पति और स्नेहमयी पिता में किसी दूसरे की बात सुन कर दोष देखना क्या उचित होगा?

18 साल की शादीशुदा जिंदगी में कभी रमन ने उस का दिल नहीं दुखाया था, कभी भी किसी बात की कमी नहीं होने दी थी, तो फिर क्यों आज उस का विश्वास डगमगा रहा है… वे कुछ कहना ही चाहती थीं कि मां ने उन का हाथ पकड़ा और घसीटते हुए बाहर ले गईं. बच्चे हैरान और सहमे से खड़े सब की बातें सुन रहे थे.

‘‘मां, पापा की बात तो सुनो…’’  उन की 18 वर्ष की बेटी साक्षी की बात पूरी होने से पहले ही काट दी गई.

‘‘तू इन सब बातों से दूर रह. अभी बच्ची है…’’

नानी की फटकार सुन वह चुप हो गई. मां का पापा पर विश्वास न करना उसे

अखर रहा था. उस ने अपने भाई को देखा जो बुरी तरह से घबराया हुआ था. साक्षी ने उसे सीने से लगा लिया और फिर दूसरे कमरे में ले गई. बड़े भी कितने अजीब होते हैं. अपनों से ज्यादा परायों की बात पर भरोसा करते हैं. हो सकता है… नहीं उसे पक्का यकीन है कि उस के पापा को फंसाया गया है.

राधा और बच्चों के जाने के बाद रमन को घर काटने लगा था. इन्वैस्टिगेशन के दौरान सीमा बिना झिझके कहती कि रमन ने पहले भी उन के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की थी. यहां तक कि उन के सामने सैक्स संबंध बनाने का प्रस्ताव भी रखा था.

बहसों, दलीलों और रमन की ईमानदारी भी इसलिए उन्हें सच्चा साबित नहीं कर पा रही थी, क्योंकि कानून औरत का साथ देता है. खासकर तब जब बात उस के साथ छेड़छाड़ करने की हो.

रमन टूट रहे थे. परिवार का भी साथ नहीं था, दोस्तों और रिश्तेदारों ने भी किनारा कर लिया था.

उस दिन शाम को रमन अकेले निराश से घर में अंधेरे में गुम से बैठे थे. रोशनी उन की आंखों को अब चुभने लगी थी, इसलिए अंधेरे में ही बैठे रहते. खाली घर उन्हें डराने लगा था. प्यास सी महसूस हुई उन्हें पर उठने का मन नहीं किया. आदतन वे राधा को आवाज लगाने ही लगे थे कि रुक गए.

फिर अचानक अपने सामने राधा को खड़े देख चौंक गए. लाइट जलाते हुए वे बोलीं, ‘‘मुझे माफ कर दीजिए रमन. आप पर विश्वास न कर के मैं ने खुद को धोखा दिया है. पर अब मुझे सच पता चल चुका है,’’ और फिर रमन से लिपट गईं. ग्लानि उन के चेहरे से साफ झलक रही थी. जिस पति पर वे आज तक अभिमान करती आई थीं, उस पर शक करने का दुख उन की आंखों से बह रहा था.

‘‘पर अभी तो इन्वैस्टिगेशन पूरी भी नहीं हुई है, फिर…’’ रमन हैरान थे, पर राधा को देख उन्हें लगा था मानो आसमान पर बादलों का जो झुंड इतने दिनों से मंडरा रहा था और हर ओर कालिमा बिखेर रहा था, वह यकायक हट गया है. रोशनी अब उन की आंखों को चुभ नहीं रही थी.

सीमा के पति मुझ से मिलने आए थे. उन्होंने ही मुझे बताया कि सीमा के खिलाफ वह सार्वजनिक रूप से या इन्वैस्टिगेशन अफसर को तो बयान नहीं दे सकते, क्योंकि इस से उन का घर टूट जाएगा और चूंकि वे बीमार रहते हैं, इसलिए पूरी तरह से पत्नी पर ही निर्भर हैं. लेकिन वे माफी मांग रहे थे कि उन की पत्नी की वजह से हमें एकदूसरे से अलग होना पड़ा और आप को इतनी बदनामी सहनी पड़ी.

वह बोले कि सीमा बहुत महत्त्वाकांक्षी है और जानती है कि मैं लाचार हूं, इसलिए वह किसी भी हद तक जा सकती है. उसे पैसे की भूख है. वह बिना मेहनत के तरक्की की सीढि़यां चढ़ना चाहती है.

वह रमनजी से इसी बात से नाराज थी कि वे उस की प्रमोशन नहीं करते और साथ ही उस के रिश्वत लेने के खिलाफ रहते थे. रमन सर ने शायद उसे वार्निंग भी दी थी कि वे उस के खिलाफ ऐक्शन लेंगे, इसीलिए उस ने यह सब खेल खेला. मैं उस की तरफ से आप से माफी मांगता हूं और रिक्वैस्ट करता हूं कि आप रमन सर के पास लौट जाएं

‘‘मुझे भी माफ कर दीजिए रमन. हम साथ मिल कर इस मुसीबत से बाहर निकलने का रास्ता ढूंढ़ लेंगे. मैं यकीन दिलाती हूं कि अब कभी अपने बीच की विश्वास की जड़ों को उखड़ने नहीं दूंगी.’’

Monsoon Skin Care : मानसून में चिपचिपी स्किन छुटकारा पाने के लिए फौलो करें ये 5 टिप्स

Monsoon Skin Care : मानसून में गर्मी से राहत तो मिलती है, लेकिन स्किन प्रौब्लम बढ़ जाती है. इस मौसम में उमस बढ़ने के कारण कील-मुंहासे, पिंपल्स, चेहरे पर एक्स्ट्रा ऑयल की समस्या होने लगती है. बारिश के मौसम में स्किन केयर रूटीन में बदलाव कर इन समस्याओं से राहत पा सकते हैं.

 

गुनगुने पानी से धोएं चेहरा

बारिश के दिनों में कोशिश करें कि आप अपना चेहरा गुनगुने पानी से धोएं. इससे औयली स्किन की समस्या कम होती है. दरअसल मानसून में मुंहासे और पिंपल्स की प्रौब्लम बढ़ जाती है. रोजाना गुनगुने पानी से चेहरा धोने के बाद इन समस्याओं से निजात पा सकते हैं.

खूब सारा पानी पिएं

ग्लोइंग स्किन के लिए बौडी को हाइड्रेटेड करना जरूरी है. कई बार शरीर में पानी की कमी की वजह से चेहरा डल नजर आता है. चेहरे पर नेचुरल ग्लो के लिए खूब पानी पिएं.

स्किन को मॉइस्चराइज करें

चेहरे पर फाइन लाइन्स और झुर्रियां कम करने के लिए एक अच्छी क्वालिटी का मॉइस्चराइजर का इस्तेमाल करें.इससे रोजाना चेहरे पर मसाज करें.

चेहरे पर करें स्क्रब

स्किन को एक्सफोलिएट करने से ओपन पोर्स में जमी गंदगी दूर होती है. अगर आपके पास टाइम की कमी है, तो हफ्ते में एक बार चेहरे पर स्क्रब जरूर करें, इससे आपकी स्किन कील-मुंहासों से राहत पा सकती हैं.

सनस्क्रीन का करें इस्तेमाल

बरसात के दिनों में चेहरे पर सनस्क्रिन भी लगाना जरूरी है. कुछ लोग सोचते हैं कि इस मौसम में धूप नहीं निकल रहा है, तो सनस्क्रीन की क्या जरूरत है, पर ये गलती भूलकर भी न करें. मानसून में भी यूवी किरणें आपकी त्वचा के लिए हानिकारक होती है. आप बरसात के दिनों में वाटरप्रूफ सनस्क्रीन चेहरे पर लगा सकती हैं.

नीना गुप्ता का 65 की ऐज में 36 वाला बेबाक, बिंदास और झक्कास अंदाज, देखें Video

बिना किसी की परवाह किए अपनी लाइफ को अपने तरीके से जीने का जज्बा 60 प्लस की बेहतरीन एक्ट्रेस नीना गुप्ता को खूब आता है. वह अपने लुक को लेकर अक्सर एक्सपेरिमेंट करके अपने फैंस को हैरान कर देती हैं. नीना फैशन और बोल्डनेस के मामले में यंग एक्ट्रेसेस को भी पीछे छोड़ देती हैं. सोशल मीडिया पर उनका शानदार और बेबाक स्टाइल देखने को मिल जाता है.

हाल ही में नीना गुप्ता ने सोशल मीडिया पर अपना एक वीडियो शेयर किया जिसमे वो आखों में चश्मा लगाए, हाथों में यलो हैंड बैग लिए, White शार्ट पेंट और शर्ट के साथ वाइट शूज पहने नजर आ रही है. उनकी शार्ट पेंट इतनी छोटी है कि उनके पूरे पैर खुले दिखाई दे रहे हैं.

वीडियो में वह अपनी सुपरहिट वेब सीरीज पंचायत-3 के फेमस गाने ‘हे राजा जी’ पर मस्त झूमती हुई नजर आ रही हैं. नीना के इस रूप को देख कर उनके फैंस आश्चर्य चकित रह गए.

अपने इस वीडियो पर वो खूब ट्रोल हो रही हैं, लेकिन कुछ ने उनके इस रूप को पसंद भी किया है. कुछ फैंस दिल वाली इमोजी शेयर उनकी तारीफें कर रहे हैं. वहीं कुछ लोगों को कहना है कि इस उम्र में ऐसे कपड़े उन पर शोभा नहीं देते हैं.

एक यूजर ने लिखा- पैंट पहनना भूल गईं प्रधानजी! दूसरे यूजर ने लिखा- पैंट कहा है आपकी नीनाजी. एक दूसरे ने लिखा- ये अपनी जवानी के शौक बुढ़ापे में पूरी कर रही हैं. इसके अलावा एक यूजर ने पंचायत सीरीज को लेकर कमेंट किया है – देख रहा है विनोद…. पंचायत का रोड़ भले ही विकास की राह देख रहा हो लेकिन इधर प्रधाईन का पूरा विकास हो रहा है.

इसके पहले भी नीना गुप्ता ने इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक वीडियो शेयर किया था. जिसमें नीना वाइट कलर की औफ शोल्डर ड्रेस पहन कर एक पब में डांसर के साथ ताल से ताल मिलाते हुए बेली डांस करती नजर आयी थी. उन्होंने इस वीडियो के साथ कैप्शन में लिखा ‘Aur ab roop parivartan’. वीडियो को देख फैंस ने भी खूब कमेंट और तारीफ की थी.

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