क्या मेकअप से मुहांसों की प्रौब्लम होती है?

सवाल-

मैं 19 साल की युवती हूं. पिछले 2-3 सालों से मेरे चेहरे पर कभीकभी मुंहासे हो जाते हैं. नानी कहती हैं कि मुंहासे खून की अशुद्धि से होते हैं. क्या यह बात सच है? वे मुझे खानेपीने को ले कर भी टोकती रहती हैं. क्या आप यह स्पष्ट कर सकते हैं कि किन चीजों को खाने से मुंहासे होने का डर रहता है? वे मुझे चेहरे पर कौस्मैटिक्स लगाने से भी मना करती हैं. क्या सौंदर्यप्रसाधन सचमुच मुंहासों को बढ़ावा देते हैं?

जवाब-

कीलमुंहासे खून की अशुद्धि से नहीं, बल्कि त्वचा के भीतर छिपी सिबेशियस ग्रंथियों के फूलने से होते हैं. किशोर उम्र में जब शरीर में सैक्स हारमोन बनने शुरू होते हैं तो हारमोन की प्रेरणा से ही सिबेशियस ग्रंथियां बड़ी मात्रा में सीबम बनाने लगती हैं. उस समय अगर सिबेशियस ग्रंथि से सीबम की ठीक से निकासी नहीं होती है, तो यह ग्रंथि फूल जाती है और छोटीछोटी फुंसियों में बदल जाती है.

खानेपीने की बहुत सी चीजें मुंहासों को बिगाड़ने का अवगुण रखने के लिए बदनाम हैं. इन में तली हुई चीजें, चाटपकौड़ी और चौकलेट को सब से बुरा माना जाता है. पर इस सोच के पीछे कोई ठोस वैज्ञानिक आधार नहीं है. हां, किसी एक चीज के साथ अगर मुंहासे बारबार बढ़ते नजर आएं, तो उस चीज से परहेज करें. जहां तक मुंहासों और सौंदर्यप्रसाधनों के बीच संबंध होने की बात है, तो यह किसी सीमा तक सच है. त्वचा पर तैलीय सौंदर्यप्रसाधन, फाउंडेशन क्रीम, मौइश्चराइजिंग क्रीम, लोशन और तेल लगाने से रोमछिद्र बंद होने और मुंहासों के बढ़ने का पूरा रिस्क रहता है. अत: इन से परहेज बरतने में ही भलाई है. पर अगर आप कैलेमिन लोशन, पाउडर, ब्लशर, आईशैडो, आईलाइनर, मसकारा और लिपस्टिक लगाना चाहें, तो इन में कोई नुकसान नहीं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

कभी अलविदा न कहना: क्या बच पाया वरुण

वरुण के बदन में इतनी जोर का दर्द हो रहा था कि उस का जी कर रहा था कि वह चीखे, पर वह चिल्लाता कैसे. वह था भारतीय सेना का फौजी अफसर. अगर वह चिल्लाएगा, तो उस के जवान उस के बारे में क्या सोचेंगे कि यह कैसा अफसर है, जो चंद गोलियों की मार नहीं सह सकता.

वरुण की आंखों के सामने उस की पूरी जिंदगी धीरेधीरे खुलने लगी. उसे अपना बचपन याद आने लगा. उस के 5वें जन्मदिन पर उसे फौजी वरदी भेंट में मिली थी, जिसे पहन कर वह आगेपीछे मार्च करता था और सेना में अफसर बनने के सपने देखता था.

‘पापा, मैं बड़ा हो कर फौज में भरती होऊंगा,’ जब वह ऐसा कहता, तो उस के पापा अपने बेटे की इस मासूमियत पर मुसकराते, लेकिन कहते कुछ नहीं थे.

वरुण के पापा एक बड़े कारोबारी थे. उन का इरादा था कि वरुण कालेज खत्म करने के बाद उन्हीं के साथ मिल कर खुद एक मशहूर कारोबारी बने. उन्होंने सोच रखा था कि वे वरुण को फौज में तो किसी हालत में नहीं जाने देंगे.

अचानक वरुण के बचपन की यादों में किसी ने बाधा डाली. उस के कंधे पर एक नाजुक सा हाथ आया और उस के साथ किसी की सिसकियां गूंज उठीं. तभी एक मधुर सी आवाज आई, ‘मेजर वरुण…’ और फिर एक सिसकी सुनाई दी. फिर सुनने में आया, ‘मेजर वरुण…’

वरुण ने सिर घुमा कर देखा कि एक हसीन लड़की उस के पास खड़ी थी. उस के हाथ में एक खूबसूरत सा लाल गुलाब भी था.

‘वाह हुजूर, अब आप मुझे पहचान नहीं रहे हैं…’

वरुण को हैरानी हुई. उस ने सोचा, ‘कमाल है यार, मैं फौजी अफसर हूं और यह जानते हुए भी यह मुझे बहलाफुसला कर अपने चुंगल में फंसाने के लिए मुझ से जानपहचान बनाना चाह रही है. मैं इस से बात नहीं करूंगा. अपना समय बरबाद नहीं होने दूंगा,’ और उस ने अपना सिर घुमा लिया.

वरुण की जिंदगी की कहानी फिर उस की आंखों के सामने से गुजरने लगी. जब वह सीनियर स्कूल में पहुंचा, तो एनसीसी में भरती हो गया. वह फौज में जाने की पूरी तैयारी कर रहा था.

स्कूल खत्म होने के बाद वरुण के पापा ने उसे कालेज भेजा. कालेज तो उसी शहर में था, पर उन्होंने वरुण का होस्टल में रहने का बंदोबस्त किया. वह इसलिए कि वरुण के पापा का खयाल था कि होस्टल में रह कर उन का बेटा खुद अपने पैरों पर खड़ा होना सीखेगा.

उस जमाने में मोबाइल फोन तो थे नहीं, इसलिए वरुण हफ्ते में एक बार घर पर फोन कर सकता था, अपना हालचाल बताने और घर की खबर लेने के लिए.

उस के पापा उस से हमेशा कहते, ‘बेटे, याद रखो कि कालेज खत्म करने के बाद तुम कारोबार में मेरा हाथ बंटाओगे. आखिर एक दिन यह सारा कारोबार तुम्हारा ही होगा.’

वरुण को अपनी आंखों के सामने फौजी अफसर बनने का सपना टूटता सा दिखने लगा. वह हिम्मत हारने लगा. फिर एक दिन अचानक एक अनोखी घटना घटी, जिस से उस की जिंदगी का मकसद ही बदल गया.

वरुण के होस्टल का वार्डन ईसाई था. उस के पिता फौज के एक रिटायर्ड कर्नल थे, जो पत्नी की मौत के चलते अपने बेटे के साथ रहते थे. एक दिन 90 साल की उम्र में उन की मौत हो गई.

वार्डन होस्टल के लड़कों की अच्छी देखभाल करता था. इस वजह से होस्टल के सारे लड़कों ने तय किया कि वे सब वार्डन के पिता की अंत्येष्टि में शामिल होंगे.

जब लड़के कब्रिस्तान पहुंचे, तो उन्होंने एक अजीब नजारा देखा. वार्डन के पिता का शव कफन के अंदर था, पर कफन के दोनों तरफ गोल छेद काटे गए थे, जिन में से उन के हाथ बाहर लटक रहे थे.

एक लड़के ने पास खड़े उन के एक रिश्तेदार से पूछा कि ऐसा क्यों किया गया है. जवाब मिला, ‘यह उन की मरजी थी और उन की वसीयत में भी लिखा था कि उन को इस हालत में दफनाया जाए. लोग देखें कि वे इस दुनिया में खाली हाथ आए थे और खाली हाथ जा रहे हैं.’ वरुण यह जवाब सुन कर हैरान हो गया. उस ने सोचा कि अगर खाली हाथ ही जाना है, तो क्या फर्क पड़ेगा कि वह अपने मन की मुराद पूरी कर के फौजी अफसर की तनख्वाह कमाए, बनिस्बत कि अपने पिता के साथ करोड़ों रुपए का मालिक बने. उस ने पक्का इरादा किया कि वह फौजी अफसर ही बनेगा.

वरुण जानता था कि उस के पापा उसे कभी अपनी रजामंदी से फौज में जाने नहीं देंगे. काफी सोचविचार के बाद वरुण ने अपने पिता को राजी कराने के लिए एक तरकीब निकाली.

एक दिन जब देर शाम वरुण के पापा घर लौटे और उस के कमरे में गए, तो उन्होंने उस की टेबल पर एक चिट्ठी पाई. लिखा था: ‘पापा, मैं घर छोड़ कर अपनी प्रमिका के साथ जा रहा हूं. वैसे तो उम्र में वह मुझ से 10 साल बड़ी है, पर इतनी बूढ़ी लगती नहीं है. वह पेट से भी है, क्योंकि उस के एक दोस्त ने शादी का वादा कर के उसे धोखा दिया.

‘हम दोनों किसी मंदिर में शादी कर लेंगे और कहीं दूर जा कर रहेंगे. जब एक साल के बाद हम वापस आएंगे, तो आप अपनी पोती या पोते का स्वागत करने के लिए एक बड़ी पार्टी जरूर दीजिएगा.

‘आप का आज्ञाकारी बेटा,

‘वरुण.’

वरुण को पीछे पता चला कि उस की चिट्ठी पढ़ने के बाद उस के पापा की आंखों के सामने अंधेरा सा छाने लगा. तब तक उस के कमरे में उस की मां आ गईं.

‘वरुण कहां है?’ मां ने पूछा, तो वरुण के पापा की आवाज बड़ी मुश्किल से उन के गले से निकली. ‘पता नहीं…’

वरुण की मां ने कहा, ‘तकरीबन एक घंटे पहले उस ने कहा था कि वह बाहर जा रहा है और शायद देर से लौटेगा. पर बात क्या है? आप की तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही है.’

वरुण के पापा ने बिना कुछ बोले जमीन पर गिरी चिट्ठी की ओर इशारा किया. उस की मां ने चिट्ठी उठाई और पढ़ने लगीं.

‘मेरे प्यारे पापा,

‘जो इस चिट्ठी के पिछली तरफ लिखा है, वह सरासर झूठ है. मेरी कोई प्रेमिका नहीं है और न ही मैं किसी के साथ आप से दूर जा रहा हूं. मैं अपने दोस्त मनोहर के घर पर हूं. हम देर रात तक टैलीविजन पर क्रिकेट मैच देखेंगे और फिर मैं वहीं सो जाऊंगा.

‘मैं ने मनोहर के मम्मीपापा को बताया है कि मुझे उन के यहां रात बिताने में कोई दिक्कत नहीं है. मैं आप लोगों से कल सुबह मिलूंगा.

‘मैं ने जो पिछली तरफ लिखा है, वह तो इसलिए, ताकि आप को महसूस हो कि मेरा फौज में जाना बेहतर होगा, इस से पहले कि मैं कोई गड़बड़ी वाला काम कर लूं.’ वरुण के पापा ने ठंडी सांस भरी और मन ही मन में बोले, ‘तू जीत गया मेरे बेटे, मैं हार गया.’

वरुण ने यूपीएससी का इम्तिहान आसानी से पास किया. सिलैक्शन बोर्ड के इंटरव्यू में भी उस के अच्छे नंबर आए. फिर देहरादून की मिलिटरी एकेडमी में उस ने 2 साल की तालीम पाई. उस के बाद उस के बचपन का सपना पूरा हुआ और वह फौजी अफसर बन गया.

कुछ साल बाद कारगिल की लड़ाई छिड़ी. वरुण की पलटन दूसरे फौजी बेड़ों के साथ वहां पहुंची. वरुण उस समय छुट्टी पर था… उस की छुट्टियां कैंसिल हो गईं. वह लौट कर अपनी पलटन में आ गया. वरुण ने अपनी कंपनी के साथ दुश्मन पर धावा बोला. भारतीय अफसरों की परंपरा के मुताबिक, वरुण अपने सिपाहियों के आगे था. दुश्मन ने अपनी मशीनगनें चलानी शुरू कीं. वरुण को कई गोलियां लगीं और वह गिर गया…

फिर वही सिसकियों वाली आवाज वरुण के कानों में गूंज उठी, ‘वरुण, मैं आप का इंतजार कब तक करती रहूंगी? आप मुझे क्यों नहीं पहचान रहे हैं?’

वह लड़की घूम कर वरुण के सामने आ कर खड़ी हो गई. वरुण की सहने की ताकत खत्म हो गई.

‘हे सुंदरी….’ वरुण की आवाज में रोब भरा था, ‘मैं जानता नहीं कि तुम कौन हो और तुम्हारी मंशा क्या है. पर अगर तुम एक मिनट में यहां से दफा नहीं हुईं, तो मैं…’

‘आप मुझे कैसे भूल गए हैं? आप ने खुद मुझ से मिलने के लिए कदम उठाया था.’

वरुण ने सोचा, ‘अरे, एक बार मिलने पर क्या तुम्हें कोई अपना दिल दे सकता है,’ पर वह चुप रहा.

इस से पहले कि वह अपनी निगाहें सुंदरी से हटा लेता, वह फिर बोली, ‘अरे फौजी साहब, आप के पापा ने आप के मेजर बनने की खुशी में पार्टी दी थी. आप के दोस्त तो उस में आए ही, पर उन से बहुत ज्यादा आप के मम्मीपापा के ढेरों दोस्त आए हुए थे.

‘मेरे पापा आप के पापा के खास दोस्तों में हैं. वे मुझे भी साथ ले गए थे.

‘आप के पापा ने मेरे मम्मीपापा से आप को मिलवाया था. मैं भी उन के साथ थी. आप ने मुझे देखा और मुझे देखते ही रह गए. बाद में मुझे लगा कि आप की आंखें मेरा पीछा कर रही हैं. मुझे बड़ा अजीब लगा.’

वह कुछ देर चुप रही. वरुण उसे एकटक देखता ही रहा. ‘मैं ने देखा कि बहुत से लोग आप को फूलों के गुलदस्ते भेंट कर रहे थे. मैं दूर जा कर एक कोने में दुबक कर बैठ गई. जब आप शायद फारिग हुए होंगे, तो आप मुझे ढूंढ़ते हुए आए. मेरे सामने झुक कर एक लाल गुलाब आप ने मुझे भेंट किया.’

वरुण के मन में एक परदा सा उठा और उसे लगा कि वह लड़की सच ही कह रही थी. तभी उसे आगे की बातेंयाद आईं. उस की मम्मी ठीक उसी समय वहां पहुंच गईं. उन्होंने शायद सारा नजारा देख लिया था, इसलिए उन्होंने मुसकराते हुए वरुण की पीठ थपथपाई. वे काफी खुश लग रही थीं. वे शायद उस के पापा के पास चली गईं और उन्हें सारी बातें बता दी होंगी.

तभी वरुण के माइक पर सभी लोगों से कहा, ‘आज की पार्टी मेरे बेटे वरुण के मेजर बनने की खुशी में है,’ उन्होंने वरुण की ओर देख कर उसे बुलाया. जब वरुण स्टेज पर पहुंच गया, तब वे माइक पर आगे बोले, ‘और इस मौके पर उसे मैं एक भेंट देने जा रहा हूं.’

उन्होंने एक हाथ बढ़ा कर वरुण का हाथ थामा और दूसरे हाथ से अपने दोस्त राम कुमार की बेटी का हाथ पकड़ा और बोले, ‘वरुण को हमारी भेंट है… भेंट है उस की होने वाली दुलहन विनीता, जो मेरे दोस्त राम कुमार की बेटी है.’

उन्होंने वरुण को विनीता का हाथ थमा दिया. सारा माहौल खुशी की लहरों और तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. विनीता शरमा कर अपना हाथ वरुण के हाथ से छुड़ाने की कोशिश करने लगी. वरुण ने हाथ नहीं छोड़ा और विनीता के कान के पास कहा, ‘सगाई में मैं तुम्हारे लिए एक अंगूठी देख लूंगा. अभी मेरी छुट्टी के 45 दिन बाकी हैं.’

अफसोस, लड़ाई छिड़ने के चलते वरुण की छुट्टियां कैंसिल हो गईं…

फौजी डाक्टर ने वरुण के शरीर की पूरी जांचपड़ताल की. उस के पास ही वरुण के कमांडिंग अफसर खड़े थे, जिन के चेहरे पर भारी आशंका छाई हुई थी.

‘‘मुबारक हो सर,’’ डाक्टर ने उन को संबोधित कर के कहा, ‘‘आप के मेजर को 4 गोलियां लगी हैं, पर कोई भी जानलेवा नहीं है. खून काफी बह चुका है, पर वे जिंदा हैं. आप के ये अफसर बड़े मजबूत हैं. मैं इन्हें जल्द ही अस्पताल पहुंचा दूंगा. मुझे पक्का यकीन है कि चंद हफ्तों में ये बिलकुल ठीक हो जाएंगे.’’

‘‘मुझे भी यही लग रहा है,’’ वरुण के कमांडिंग अफसर ने जवाब दिया.

बंद खिड़कियां: क्या हुआ था रश्मि के साथ

वैशिकीकी आज विदाई थी. बड़ी धूमधाम से बेटी की हर छोटीबड़ी ख्वाहिश का ध्यान रखते हुए वैशिकी के मम्मीपापा बेटी की विदाई की तैयारी कर रहे थे. पूरे रीतिरिवाजों के साथ वैशिकी अपने मायके से विदा हो गई.

आज ससुराल में वैशिकी का पहला दिन था. चारों तरफ धूम मची हुई थी. सभी लोग खुश दिखाई दे रहे थे. चारों तरफ गहमागहमी का माहौल था.

वैशिकी अपनी जेठानी, ननदों, चाची इत्यादि की हंसीठिठोली के बीच लाल पड़ रही थी. जैसे ही वंशूक कमरे में आया, पल्लवी चाची उस का कान खींचते हुए बोलीं, ‘‘शैतान कहीं का, रुका नहीं जा रहा तु झ से… पूरी उम्रभर का साथ है तुम दोनों का… अभी तो थोड़ा सब्र करो.’’

वैशिकी ने देखा सब लोग हंसीठिठोली कर रहे थे परंतु वंशूक की मां यानी वैशिकी की सास रश्मि के चेहरे पर एक निर्लिप्त भाव थे. महंगे कपड़े और गहनों से लदीफदी होने के बावजूद वह बेहद अजीब सी लग रही थी. वैशिकी और वंशूक का आलीशान रिसैप्शन हुआ था. कुंदन के सैट और मोतिया रंग के जड़ाऊ काम के लहंगे में वैशिकी जितनी खूबसूरत लग रही थी और वहीं क्रीम रंग की शेरवानी में लाल दुपट्टे के साथ वंशूक भी बहुत सौम्य और प्यारा लग रहा था.

अगले दिन दोपहर तक पूरा घर खाली हो गया. सभी रिश्तेदार वापस जा चुके थे. अब घर में बस रह गए वंशूक की बड़ी बहन सुजाता और वंशूक के पापा अमित तथा मां रश्मि. अगले दिन वैशिकी को पगफेरे के लिए जाना था. वह साड़ी का चुनाव कर रही थी कि तभी उसे लगा कि क्यों न सास से पूछ ले, फिर हाथों में साड़ी ले कर वह रश्मि के पास चली गई. बोली, ‘‘मम्मीजी, यह बताइए पीली और नारंगी में से कौन सी साड़ी पहनूं कल?’’

रश्मि बोली, ‘‘बेटा, जो अच्छी लगे उसे पहन लो… वैसे यह नारंगी रंग तुम पर खूब फबेगा.’’

तभी अमित ठहाके मारते हुए बोले, ‘‘रही न तुम गंवार की गंवार… यह चुभता हुआ रंग सर्दियों में अच्छा लगता है न कि मई के महीने में.’’

रश्मि एकदम चुप हो गई तो अमित फिर बोले, ‘‘वैशिकी बेटा, तुम अपनी सुजाता दीदी से पूछ लो.’’

वैशिकी को अपने ससुर का अपनी सास के प्रति व्यवहार बहुत अजीब सा लगा, साथ ही साथ उस के मन में यह डर भी समा गया कि क्या होगा अगर वंशूक का व्यवहार भी ऐसा ही हुआ तो? आखिर बेटा अपने पिता से ही तो सीखता है.

अगले दिन पगफेरे की रस्म के लिए वैशिकी पीले रंग की शिफौन की साड़ी पहन कर जाने को तैयार हो गई. रश्मि ने सुबह उठ कर नाश्ते में आलू के परांठे और मूंग की दाल का हलवा बनाया था.

सुजाता बोली, ‘‘मम्मी, आप तो हम सब को मोटा कर के ही मानेंगी.’’

वंशूक भी कटाक्ष करते हुए बोला, ‘‘मम्मी, कितनी बार कहा है कि कुछ डाइट फूड बनाना भी सीख लो.’’

अमित बोले, ‘‘कहां से सीखेगी तुम्हारी मम्मी? इसे तो खुद अपनी कमर को कमरा बनाने से फुरसत नहीं है.’’

सभी हंस पड़े, लेकिन तभी वैशिकी बोल उठी, ‘‘भई किसी को अच्छा लगे या न लगे

मु झे तो ऐसा लजीज नाश्ता पहली बार मिला है.’’

वैशिकी की बात सुन कर रश्मि का चेहरा खिल उठा. पगफेरे के बाद वैशिकी और वंशूक 15 दिनों के लिए हनीमून पर चले गए. हनीमून पर भी वैशिकी ने महसूस किया कि वंशूक के घर से या तो उस की दीदी या फिर पापा ही फोन करते. जब वंशूक और वैशिकी हनीमून से वापस आए तो वंशूक की दीदी सुजाता अपनी ससुराल जा चुकी थी. वैशिकी शाम को अपने साथ लाए उपहारों को रश्मि और अमित को दिखाने लगी.

वैशिकी अमित के लिए टीशर्ट और रश्मि के लिए धूप का चश्मा लाई थी. रश्मि का उपहार देख कर अमित बोले, ‘‘वैशिकी बेटा यह क्या ले आई हो तुम अपनी मम्मी के लिए? तुम्हारी मम्मी ने यह कभी नहीं लगाया… यह तो शहर में इतने सालों तक रहते हुए भी अभी तक नहीं बदल पाई है… अब क्या लगाएगी…’’

वैशिकी बोली, ‘‘अरे पापा तो अब लगा लेंगी, मैं बहुत मन से लाई हूं.’’

अगले दिन अमित और वंशूक दफ्तर चले गए, वैशिकी की अभी 7 दिन की छुट्टियां बची थीं. उस ने  िझ झकते हुए रसोई में कदम रखा तो देखा कि रश्मि बेसन के लड्डू बनाने में व्यस्त थी. वैशिकी को देख कर मुसकरा कर बोली, ‘‘बेटा, तुम्हें बेसन के लड्डू पसंद हैं न वही बना रही हूं.’’

वैशिकी ने एक लड्डू उठा कर खाते हुए कहा, ‘‘मम्मी, आप के हाथों में बहुत स्वाद है.  झूठ नहीं बोल रही हूं.’’

रश्मि उदास सी हो कर बोली, ‘‘बेटा पिछले 30 सालों से खाना बना रही हूं… यह भी अच्छा नहीं बना पाऊंगी तो क्या फायदा?’’

वैशिकी बोली, ‘‘मम्मी, नहीं सच कह रही हूं, आप बहुत अच्छा खाना बनाती हैं. हरकोई इतना अच्छा खाना नहीं बना सकता है.’’

वैशिकी सोच में पड़ गई कि सास घर के हर काम में बहुत सुघड़ हैं, पर न जाने क्यों अपने खुद के रखरखाव को ले कर बहुत उदासीन हैं.

जब शाम होने लगी तो रश्मि अमित और वंशूक के लिए

पोहा बनाने लगी. इतनी देर में वैशिकी तैयार हो कर आ गई. रश्मि को देख कर बोली, ‘‘मम्मी, जब तक मैं चाय बना रही हूं, आप भी तैयार हो जाइए.’’

‘‘वह भला क्यों?’’ रश्मि ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘वैशिकी रश्मि को एक नया सूट देते हुए बोली, ‘‘पापा आप को फ्रैशफ्रैश देखेंगे, तो खिल उठेंगे.’’

मगर अमित और वंशूक दफ्तर से वापस आए तो चाय की गरमगरम चुसिकयों के साथ वंशूक वैशिकी को अपने दफ्तर के नए प्रोजैक्ट के बारे में बता रहा था.

अमित ने एक सरसरी नजर रश्मि पर डाली और व्यंग्य करते हुए बोले, ‘‘काश, मैं भी किसी से दफ्तर के तनाव को डिस्कस कर सकता? केवल पोहा ही तनाव को कम नहीं कर सकता है.’’

रश्मि आंसुओं को पीते हुए कमरे में चली गई. वैशिकी का दिया हुआ सूट जो उस ने पहना था, उसे बदलते हुए सोच रही थी कि अमित ने उसे कब पत्नी का सम्मान दिया है. हर समय उसे गंवार बोलबोल कर ऐसे कर दिया है कि कभीकभी तो उसे अपनी पोस्ट ग्रैजुएशन की डिगरी पर शक होने लगता है.

रात को सोने के बिस्तर पर वैशिकी से नहीं रहा गया तो वह वंशूक से बोल उठी, ‘‘पापा क्यों मम्मी को हर समय ताने देते रहते हैं?’’

वंशूक बोला, ‘‘अरे पापा इतने  स्मार्ट हैं और मम्मी एकदम गंवार लगती हैं, इसलिए पापा ऐसे बोलते हैं,’’ फिर वैशिकी को बांहों में लेते हुए बोला, ‘‘हरकोई मेरी तरह नहीं होता है कि उसे सुंदर और स्मार्ट पत्नी मिले.’’

अगले दिन बापबेटे के औफिस जाने के बाद वैशिकी और रश्मि दोनों घर पर अकेली थीं तो वैशिकी रश्मि से बोली, ‘‘मम्मी, अगर आप बुरा न मानें तो एक बात कहूं? आप पापा की हर बात क्यों सुनती हैं?’’

रश्मि बोली, ‘‘बेटा, क्योंकि मैं तुम्हारी तरह न स्मार्ट हूं, न ही सुंदर और न ही अपने पैरों पर खड़ी हूं.’’

वैशिकी आंखें बड़ी करते हुए बोली, ‘‘उफ, आप के पास कितने तीखे नैननक्श हैं… इतनी वैल मैंटेन्ड है, बस एक प्यारी सी मुसकान की कमी है.’’

रश्मि बोली, ‘‘अरे बेटा मजाक मत करो… मेरी सास, ननद, जेठानी और यहां तक कि बच्चे भी मु झे गंवार ही मानते हैं और फिर तुम्हारे पापा का और मेरा कोई जोड़ नहीं है.’’

वैशिकी बोली, ‘‘मम्मी, क्योंकि आप ऐसा सोचती हैं… जैसा आप अपने बारे में सोचेंगी दूसरे लोग भी वैसा ही सोचेंगे.’’

रात में वैशिकी ने खाने की टेबल पर अमित से कहा, ‘‘पापा, मम्मी इतना अच्छा खाना बनाती हैं… क्यों न हम कोई छोटामोटा बिजनैस सैटअप कर लें.’’

अमित बेचारगी से बोले, ‘‘बेटा, प्रेजैंटेशन का जमाना है… रश्मि जैसा खाना तो हरकोई बना लेता है… कौन करेगा मार्केटिंग और बाकी सब काम, तुम्हारी मम्मी तो बाहर वालों के सामने दो शब्द भी नहीं बोल सकती हैं… पूरी उम्र कुछ नहीं किया तो अब 51 वर्ष की उम्र में क्या करेंगी?’’

कोई भी कुछ नहीं बोल सका. सभी खाना खा कर सोने चले गए. रश्मि रसोई समेटने लगी.

अगले दिन रश्मि किचन में व्यस्त थी तो वैशिकी ने पूरी रूपरेखा तैयार कर ली थी. उस ने ‘रश्मि की रसोई’ नामक एक यूट्यूब चैनल खोल दिया, फिर बोली, ‘‘मम्मीजी, आप जो भी बनाती हैं बस मैं उस का वीडियो बना कर डालूंगी…’’

‘‘धीरेधीरे जैसेजैसे आप के सब्सक्राइबर बढ़ेंगे, वैसेवैसे लोगों को आप के नाम के बारे में पता चलेगा और फिर आप की आमदनी भी आरंभ हो जाएगी.’’

रश्मि घबरा कर बोली, ‘‘वैशिकी बेटा, मु झ से ये सब नहीं हो पाएगा.’’

‘‘मगर फिर वैशिकी के बहुत जोर देने पर रश्मि तैयार हो गई, लेकिन कभी कुछ न करने की लोगों की बातें दिमाग में घूम रही थीं,’’ जिस की वजह से घबराहट में रश्मि से पूरी सेव भाजी की सब्जी जल गई, तो रश्मि बोली, ‘‘देखा, वैशिकी, मैं ने कहा था न कि मैं गंवार हूं. मैं कुछ नहीं कर सकती हूं.’’

मगर वैशिकी पर तो जैसे जनून सवार था. शाम को बोली, ‘‘मम्मी, आप एक काम करें, पहले आप खूब अच्छी तरह से तैयार हो जाइए, फिर कोई छोटामोटा नाश्ता बनाइए. हम उसी से शुरू करते हैं.’’

इस बार वैशिकी ने रश्मि के द्वारा आटे का हलवा बनाने का वीडियो बना कर डाल दिया. वैशिकी ने उस वीडियो को अपने दफ्तर और दोस्तों के ग्रुप में शेयर कर दिया. शाम होने तक रश्मि के वीडियो को बहुत सारे व्यूज और काफी कमैंट भी मिल गए.

एक आदमी का यह कमैंट था, ‘‘भई, बीवी हो तो ऐसी सुंदर, सुशील और पाककला में निपुण.’’

वैशिकी ने कहा, ‘‘मम्मी, देखो आप की तो फैन फौलोइंग भी आरंभ हो गई है.’’

अगली सुबह रश्मि खुद ही तैयार हो गई थी. आज की वीडियो में वह

कल से अधिक कौन्फिडैंट थी. रश्मि के अपनी बहू वैशिकी के साथ दिन पलक  झपकते ही बीत रहे थे. इन दिनों में रश्मि ने फिर से हंसना, मुसकराना और अपने ऊपर विश्वास करना सीख लिया था.

वैशिकी छुट्टियों के बाद अगले दिन दफ्तर जाने की तैयारी में जुटी थी. रश्मि उस के कमरे में आ कर बोली, ‘‘बेटा, अब वह चैनल का क्या होगा?’’

वैशिकी बोली, ‘‘मम्मी, हम लोग रोज शाम को एक वीडियो करेंगे… और मैं आप को सिखा भी दूंगी कि कैसे बिना किसी की मदद के आप अपना वीडियो खुद बना सकती हैं.’’

वैशिकी के प्यार और सम्मान के कारण रश्मि अब फिर से अपने खुद के करीब आ गई थी. अब हर समय एक मुसकान उस के होंठों पर थिरकती रहती थी. धीरेधीरे वैशिकी की मदद से रश्मि ने औनलाइन और्डर भी लेने शुरू कर दिए थे.

आज रश्मि को अपनी मेहनत का पहला चैक मिला था क्व10 हजार का. रकम चाहे बहुत बड़ी न हो पर उस से निकलने वाले हौसले को रश्मि अपने शब्दों में बयां नहीं कर पा रही थी. जो अब तक लोगों की नजरों में फूहड़, गंवार आदि थी, यहां तक कि अमितजी खुद अपनी पत्नी के इस बदले हुए रूप पर चकित थे.

वंशूक बोला, ‘‘मम्मी, बहू ने तो आप की काया पलट कर दी.’’

वैशिकी बोली, ‘‘नहीं, हुनर तो पहले से ही था मम्मी में, बस उन हौसलों को उड़ान देनी थी.’’

रश्मि को सब की बातें सुन कर ऐसा लगा कि बहुत दिनों से अपनी जिंदगी की बंद पड़ी खिड़कियां खुल गई हैं और एक नई रैसिपी की खुशबू उन खुली खिड़कियों से आ रहे हवा के  झोंकों के साथ उस के मन को महका गई हो.

घोंसले का तिनका: क्या टोनी के मन में जागा देश प्रेम

7 बज चुके थे. मिशैल के आने में अभी 1 घंटा बचा था. मैं ने अपनी मनपसंद कौफी बनाई और जूते उतार कर आराम से सोफे पर लेट गया. मैं ने टेलीविजन चलाया और एक के बाद एक कई चैनल बदले पर मेरी पसंद का कोई भी प्रोग्राम नहीं आ रहा था. परेशान हो टीवी बंद कर अखबार पढ़ने लगा. यह मेरा रोज का कार्यक्रम था. मिशैल के आने के बाद ही हम खाने का प्रोग्राम बनाते थे. जब कभी उसे अस्पताल से देर हो जाती, मैं चिप्स और जूस पी कर सो जाता. मैं यहां एक मल्टीस्टोर में सेल्समैन था और मिशैल सिटी अस्पताल में नर्स.

दरवाजा खुलने के साथ ही मेरी तंद्रा टूटी. मिशैल ने अपना पर्स दरवाजे के पास बने काउंटर पर रखा और मेरे पास पीछे से गले में बांहें डाल कर बोली, ‘‘बहुत थके हुए लग रहे हो.’’

‘‘हां,’’ मैं ने अंगड़ाई लेते हुए कहा, ‘‘वीकएंड के कारण सारा दिन व्यस्त रहा,’’ फिर उस की तरफ प्यार से देखते हुए पूछा, ‘‘तुम कैसी हो?’’

‘‘ठीक हूं. मैं भी अपने लिए कौफी बना कर लाती हूं,’’ कह कर वह किचन में जातेजाते पूछने लगी, ‘‘मेरे कौफी बींस लाए हो या आज भी भूल गए.’’

‘‘ओह मिशैल, आई एम रियली सौरी. मैं आज भी भूल गया. स्टोर बंद होने के समय मुझे बहुत काम होता है. फूड डिपार्टमेंट में जा नहीं सका.’’

3 दिन से लगातार मिशैल के कहने के बावजूद मैं उस की कौफी नहीं ला सका था. मैं ने उसी समय उठ कर जूते पहने और कहा, ‘‘मैं अभी सामने की दुकान से ला देता हूं, वह तो खुली होगी.’’

‘‘ओह नो, टोनी. मैं आज भी तुम्हारी कौफी से गुजारा कर लूंगी. मुझे तो तुम इसीलिए अच्छे लगते हो कि फौरन अपनी गलती मान लेते हो. थके होने के बावजूद तुम अभी भी वहां जाने को तैयार हो. आई लव यू, टोनी. तुम्हारी जगह कोई यहां का लड़का होता तो बस, इसी बात पर युद्ध छिड़ जाता.’’

मैं ऐसे हजारों प्रशंसा के वाक्य पहले भी मिशैल से अपने लिए सुन चुका था. 5 साल पहले मैं अपने एक दोस्त के साथ जरमनी आया था और बस, यहीं का हो कर रह गया. भारत में वह जब भी मेरे घर आता, उस का व्यवहार और रहनसहन देख कर मैं बहुत प्रभावित होता था. उस का बातचीत का तरीका, उस का अंदाज, उस के कपड़े, उस के मुंह से निकले वाक्य और शब्द एकएक कर मुझ पर अमिट छाप छोड़ते गए. मुझ से कम पढ़ालिखा होने के बावजूद वह इतने अच्छे ढंग से जीवन जी रहा है और मैं पढ़ाई खत्म होने के 3 साल बाद भी जीवन की शुरुआत के लिए जूझ रहा था. मैं अपने परिवार की भावनाओं की कोई परवा न करते हुए उसी के साथ यहां आ गया था.

पहले तो मैं यहां की चकाचौंध और नियमित सी जिंदगी से बेहद प्रभावित हुआ. यहां की साफसुथरी सड़कें, मैट्रो, मल्टीस्टोर, शौपिंग मौल, ऊंचीऊंची इमारतों के साथसाथ समय की प्रतिबद्धता से मैं भारत की तुलना करता तो यहीं का पलड़ा भारी पाता. जैसेजैसे मैं यहां के जीवन की गहराई में उतरता गया, लगा जिंदगी वैसी नहीं है जैसी मैं समझता था.

एक भारतीय औपचारिक समारोह में मेरी मुलाकत मिशैल से हो गई और उस दिन को अब मैं अपने जीवन का सब से बेहतरीन दिन मानता हूं. चूंकि मिशैल के साथ काम करने वाली कई नर्सें एशियाई मूल की थीं इसलिए उसे इन समारोहों में जाने की उत्सुकता होती थी. उसे पेइंग गेस्ट की जरूरत थी और मुझे घर की. हम दोनों की जरूरतें पूरी होती थीं इसलिए दोनों के बीच एक अलिखित समझौता हो गया.

मिशैल बहुत सुंदर तो नहीं थी पर उसे बदसूरत भी नहीं कहा जा सकता था. धीरेधीरे हम एकदूसरे के इतने करीब आ गए कि अब एकदूसरे के पर्याय बन गए हैं. मेरी नीरस जिंदगी में बहार आने लगी है.

मिशैल जब भी मुझ से भारत की संस्कृति, सभ्यता और भारतीयों की वफादारी की बात करती है तो मैं चुप हो जाता हूं. मैं कैसे बताता कि जो कुछ उस ने सुना है, भारत वैसा नहीं है. वहां की तंग और गंदी गलियां, गरीबी, पिछड़ापन और बेरोजगारी से भाग कर ही तो मैं यहां आया हूं. उसे कैसे बताता कि भ्रष्टाचार, घूसखोरी और बिजलीपानी का अभाव कैसे वहां के आमजन को तिलतिल कर जीने को मजबूर करता है. इन बातों को बताने का मतलब था कि उस के मन में भारत के प्रति जो सम्मान था वह शायद न रहता और शायद वह मुझ से भी नफरत करने  लग जाती. चूंकि मैं इतना सक्षम नहीं था कि अलग रह सकूं इसलिए कई बार उस की गलत बातों का भी समर्थन करना पड़ता था.

‘‘जानते हो, टोनी,’’ मिशैल कौफी का घूंट भरते हुए बोली, ‘‘इस बार हैनोवर इंटरनेशनल फेयर में तुम्हारे भारत को जरमन सरकार ने अतिथि देश चुना है और यहां के अखबार, न्यूज चैनलों में इस समाचार को बहुत बढ़ाचढ़ा कर बताया जा रहा है. जगहजगह भारत के झंडे लगे हुए हैं.’’

‘‘भारत यहां का अतिथि देश होगा?’’ मैं ने जानबूझ कर अनजान बनने की कोशिश की.

‘‘और क्या? देखा नहीं तुम ने…मैं एक बार तो जरूर जाऊंगी, शायद कोई सामान पसंद आ जाए.’’

‘‘मिशैल, भारतीय तो यहां से सामान खरीद कर भारत ले जाते हैं और तुम वहां का सामान…न कोई क्वालिटी होगी न वैराइटी,’’ मैं ने मुंह बनाया.

‘‘कोई बात नहीं,’’ कह कर उस ने कौफी का आखिरी घूंट भरा और मेरे गले में अपनी बांहें डाल कर बोली, ‘‘टोनी, तुम भी चलो न, वस्तुओं को समझने में आसानी होगी.’’

फेयर के पहले दिन सुबहसुबह ही मिशैल तैयार हो गई. मैं ने सोचा था कि उस को वहां छोड़ कर कोई बहाना कर के वहां से चला जाऊंगा. पर मैं ने जैसे ही मेन गेट पर गाड़ी रोकी, गेट पर ही भारत के विशालकाय झंडे, कई विशिष्ट व्यक्तियों की टीम, भारतीय टेलीविजन चैनलों की कतार और नेवी का पूरा बैंड देख कर मैं दंग रह गया. कुल मिला कर ऐसा लगा जैसे सारा भारत सिमट कर वहीं आ गया हो.

मैं ने उत्सुकतावश गाड़ी पार्किंग में खड़ी की तो मिशैल भाग कर वहां पहुंच गई. मेरे वहां पहुंचते ही बोली, ‘‘देखो, कैसा सजा रखा है गेट को.’’

मैं ने उत्सुकता से वहां खड़े एक भारतीय से पूछा, ‘‘यहां क्या हो रहा है?’’

‘‘यहां तो हम केवल प्रधानमंत्रीजी के स्वागत के लिए खड़े हैं. बाकी का सारा कार्यक्रम तो भीतर हमारे हाल नं. 6 में होगा.’’

‘‘भारत के प्रधानमंत्री यहां आ रहे हैं?’’ मैं ने उत्सुकतावश मिशैल से पूछा.

‘‘मैं ने कहा था न कि भारत अतिथि देश है पर लगता है यहां हम लोग ही अतिथि हो गए हैं. जानते हो टोनी, उन के स्वागत के लिए यहां के चांसलर स्वयं आ रहे हैं.’’

थोड़ी देर में वंदेमातरम की धुन चारों तरफ गूंजने लगी. प्रधानमंत्रीजी के पीछेपीछे हम लोग भी हाल नं. 6 में आ गए, जहां भारतीय मंडप को दुलहन की तरह सजाया हुआ था.

प्रधानमंत्रीजी के वहां पहुंचते ही भारतीय तिरंगा फहराने लगा और राष्ट्रीय गीत के साथसाथ सभी लोग सीधे खड़े हो गए, जैसा कि कभी मैं ने अपने स्कूल में देखा था. टोनी आज भारतीय होने पर गर्व महसूस कर रहा था. उसे भीतर तक एक झुरझुरी सी महसूस हुई कि क्या यही वह भारत था जिसे मैं कई बरस पहले छोड़ आया था. आज यदि जरमनी के लोगों ने इसे अतिथि देश स्वीकार किया है तो जरूर अपने देश में कोई बात होगी. मुझे पहली बार महसूस हुआ कि अपना देश और उस के लोग किस कदर अपने लगते हैं.

समारोह के समाप्त होते ही एक विशेष कक्ष में प्रधानमंत्री चले गए और बाकी लोग भारतीय सामान को देखने में व्यस्त हो गए. थोड़ी देर में प्रधानमंत्रीजी अपने मंत्रिमंडल एवं विदेश विभाग के लोगों के साथ भारतीय निर्यातकों से मिलने चले गए. उधर हाल में अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम होेते रहे. एक कोने में भारतीय टी एवं कौफी बोर्ड के स्टालों पर भी काफी भीड़ थी.

मैं ने मिशैल से कहा, ‘‘चलो, तुम्हें भारतीय कौफी पिलवाता हूं.’’

‘‘नहीं, पहले यहां कठपुतलियों का यह नाच देख लें. मुझे बहुत अच्छा लग रहा है.’’

अगले दिन मेरा मन पुन: विचलित हो उठा. मैं ने मिशैल से कहा तो वह भी वहां जाने को तैयार हो गई.

मैं एकएक कर के भारतीय सामान के स्टालों को देख रहा था. भारत की क्राकरी, हस्तनिर्मित सामान, गृहसज्जा का सामान, दरियां और कारपेट तथा हैंडीक्राफ्ट की गुणवत्ता और नक्काशी देख कर दंग रह गया. मैं जिस स्टोर में काम करता था वहां ऐसा कुछ भी सामान नहीं था. मैं एक भारतीय स्टैंड के पास बने बैंच पर कौफी ले कर सुस्ताने को बैठ गया. पास ही बैठे किसी कंपनी के कुछ लोग आपस में जरमन भाषा में बात कर रहे थे कि भारत का सामान कितना अच्छा और आधुनिक तरीकों से बना हुआ है. वे कल्पना भी नहीं कर पा रहे थे कि यह सब भारत में ही बना हुआ है और एशिया के बाकी देशों की तुलना में भारत कहीं अधिक तरक्की कर चुका है. मुझे यह सब सुन कर अच्छा लग रहा था.

उन्होंने मेरी तरफ देख कर पूछा, ‘‘आप को क्या लगता है कि क्या सचमुच माल भी ऐसा ही होगा जैसा सैंपल दिखा रहे हैं?’’

‘‘मैं क्या जानूं, मैं तो कई वर्षों से यहीं रहता हूं,’’ मैं ने अपना सा मुंह बनाया.

मिशैल ने मेरी तरफ ऐसे देखा जैसे मैं ने कोई गलत बात कह दी हो. वह धीरे से मुझ से कहने लगी, ‘‘तुम्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए था. क्या तुम्हें अपने देश से कोई प्रेम नहीं रहा?’’

मैं उस की बातों का अर्थ ढूंढ़ने का प्रयास करता रहा. शायद वह ठीक ही कह रही थी. हाल में दूर हो रहे सांस्कृतिक कार्यक्रमों में राजस्थानी लोकगीत की धुन के साथसाथ मिशैल के पांव भी थिरकने लगे. वह वहां से उठ कर चली गई.

मैं थोड़ी देर आराम करने के बाद भारतीय सामान से सजे स्टैंड की तरफ चला गया. मेरे हैंडीक्राफ्ट के स्टैंड पर पहुंचते ही एक व्यक्ति उठ कर खड़ा हो गया और बोला,  ‘‘मे आई हैल्प यू?’’

‘‘नो थैंक्स, मैं तो बस, यों ही,’’ मैं हिंदी में बोलने लगा.

‘‘कोई बात नहीं, भीतर आ जाइए और आराम से देखिए,’’ वह मुसकरा कर हिंदी में बोला.

तब तक पास के दूसरे स्टैंड से एक सरदारजी आ कर उस व्यक्ति से पूछने लगे, ‘‘यार, खाने का यहां क्या इंतजाम है?’’

‘‘पता नहीं सिंह साहब, लगता है यहां कोई इंडियन रेस्तरां नहीं है. शायद यहीं की सख्त बै्रड और हाट डाग खाने पड़ेंगे और पीने के लिए काली कौफी.’’

जिस के स्टैंड पर मैं खड़ा था वह मेरी तरफ देख कर बोले, ‘‘सर, आप तो यहीं रहते हैं. कोई भारतीय रेस्तरां है यहां? ’’

‘‘भारतीय रेस्तरां तो कई हैं, पर यहां कुछ दे पाएंगे…यह पूछना पड़ेगा,’’ मैं ने अपनत्व की भावना से कहा.

मैं ने एक रेस्तरां में फोन कर के उस से पूछा. पहले तो वह यहां तक पहुंचाने में आनाकानी करता रहा. फिर जब मैं ने उसे जरमन भाषा में थोड़ा सख्ती से डांट कर और इन की मजबूरी तथा कई लोगों के बारे में बताया तो वह तैयार हो गया. देखते ही देखते कई लोगों ने उसे आर्डर दे दिया. सब लोग मुझे बेहद आत्मीयता से धन्यवाद देने लगे कि मेरे कारण उन्हें यहां खाना तो नसीब होगा.

अगले 3 दिन मैं लगातार यहां आता रहा. मैं अब उन में अपनापन महसूस कर रहा था. मैं जरमन भाषा अच्छी तरह जानता हूं यह जान कर अकसर मुझे कई लोगों के लिए द्विभाषिए का काम करना पड़ता. कई तो मुझ से यहां के दर्शनीय स्थलों के बारे में पूछते तो कई यहां की मैट्रो के बारे में. मैं ने उन को कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां दीं, जिस से पहले दिन ही उन के लिए सफर आसान हो गया.

आखिरी दिन मैं उन सब से विदा लेने गया. हाल में विदाई पार्टी चल रही थी. सभी ने मुझे उस में शामिल होने की प्रार्थना की. हम ने आपस में अपने फोन नंबर दिए, कइयों ने मुझे अपने हिसाब से गिफ्ट दिए. भारतीय मेला प्राधिकरण के अधिकारियों ने मुझे मेरे सहयोग के लिए सराहा और भविष्य में इस प्रकार के आयोजनों में समर्थन देने को कहा. मिशैल मेरे साथ थी जो इन सब बातों को बड़े ध्यान से देख रही थी.

अगले कई दिन तक मैं निरंतर अपनों की याद में खोया रहा. मन का एक कोना लगातार मुझे कोसता रहा, न चाहते हुए भी रहरह कर यह विचार आता रहा कि किस तरह अपने मातापिता से झूठ बोल कर विदेश चला आया. उस समय यह भी नहीं सोचा कि मेरे पीछे उन्होंने कैसे यह सब सहा होगा.

एक दिन मिशैल और मैं टेलीविजन पर कोई भारतीय प्रोग्राम देख रहे थे. कौफी की चुस्कियों के साथसाथ वह बोली, ‘‘तुम्हें याद है टोनी, उस दिन इंडियन कौफी बोर्ड की कौफी पी थी. सचमुच बहुत ही अच्छी थी. सबकुछ मुझे बहुत अच्छा लगा और वह कठपुतलियों का नाच भी…कभीकभी मेरा मन करता है कुछ दिन के लिए भारत चली जाऊं. सुना है कला और संस्कृति में भारत ही विश्व की राजधानी है.’’

‘‘क्या करोगी वहां जा कर. जैसा भारत तुम्हें यहां लगा असल में ऐसा है नहीं. यहां की सुविधाओं और समय की पाबंदियों के सामने तुम वहां एक दिन भी नहीं रह सकतीं,’’ मैं ने कहा.

‘‘पर मैं जाना जरूर चाहूंगी. तुम वहां नहीं जाना चाहते क्या? क्या तुम्हारा मन नहीं करता कि तुम अपने देश जाओ?’’

‘‘मन तो करता है पर तुम मेरी मजबूरी नहीं समझ सकोगी,’’ मैं ने बड़े बेमन से कहा.

‘‘चलो, अपने लोगों से तुम न मिलना चाहो तो न सही पर हम कहीं और तो घूम ही सकते हैं.’’

मैं चुप रहा. मैं नहीं जानता कि मेरे भीतर क्या चल रहा है. दरअसल, जिन हालात में मैं यहां आया था उन का सामना करने का मुझ में साहस नहीं था.

सबकुछ जानते हुए भी मैं ने अपनेआप को आने वाले समय पर छोड़ दिया और मिशैल के साथ भारत रवाना हो गया.

हमारा प्रोग्राम 3 दिन दिल्ली रुकने के बाद आगरा, जयपुर और हरिद्वार होते हुए वापस जाने का तय हो गया था. मिशैल के मन में जो कुछ देखने का था वह इसी प्रोग्राम से पूरा हो जाता था.

जैसे ही मैं एअरपोर्ट से बाहर निकला कि एक वातानुकूलित बस लुधियाना होते हुए अमृतसर के लिए तैयार खड़ी थी. मेरा मन कुछ क्षण के लिए विचलित सा हो गया और थोड़ा कसैला भी. मेरा अतीत इन शहरों के आसपास गुजरा था. इन 5 वर्षों में भारत में कितना बदलाव आ गया था. आज सबकुछ ठीक होता तो सीधा अपने घर चला जाता. मैं ने बड़े बेमन से एक टैक्सी की और मिशैल को साथ ले कर सीधा पहाड़गंज के एक होटल में चला गया. इस होटल की बुकिंग भी मिशैल ने की थी.

मैं जिन वस्तुओं और कारणों से भागता था, मिशैल को वही पसंद आने लगे. यहां के भीड़भाड़ वाले इलाके, दुकानों में जा कर मोलभाव करना, लोगों का तेजतेज बोलना, अपने अहं के लिए लड़ पड़ना और टै्रफिक की अनियमितताएं. हरिद्वार और ऋषिकेश में गंगा के तट पर बैठना, मंदिरों में जा कर घंटियां बजाना उस के लिए एक सपनों की दुनिया में जाने जैसा था.

जैसेजैसे हमारे जाने के दिन करीब आते गए मेरा मन विचलित होने लगा. एक बार घर चला जाता तो अच्छा होता. हर सांस के साथ ऐसा लगता कि कुछ सांसें अपने घर के लिए भी तैर रही हैं. अतीत छाया की तरह भरमाता रहा. पर मैं ने ऐसा कोई दरवाजा खुला नहीं छोड़ा था जहां से प्रवेश कर सकूं. अपने सारे रास्ते स्वयं ही बंद कर के विदेश आया था. विदेश आने के लिए मैं इतना हद दर्जे तक गिर गया था कि बाबूजी के मना करने के बावजूद उन की अलमारी से फसल के सारे पैसे, बहन के विवाह के लिए बनाए गहने तक मैं ने नहीं छोड़े थे. तब मन में यही विश्वास था कि जैसे ही कुछ कमा लूंगा, उन्हें पैसे भेज दूंगा. उन के सारे गिलेशिक वे भी दूर हो जाएंगे और मैं भी ठीक से सैटल हो जाऊंगा. पर ऐसा हो न सका और धीरेधीरे अपने संबंधों और कर्तव्यों से इतिश्री मान ली.

शाम को मैं मिशैल के साथ करोल बाग घूम रहा था. सामने एक दंपती एक बच्चे को गोद में उठाए और दूसरे का हाथ पकड़ कर सड़क पार कर रहे थे. मिशैल ने उन की तरफ इशारा कर के मुझ से कहा, ‘‘टोनी, उन को देखो, कैसे खुशीखुशी बच्चों के साथ घूम रहे हैं,’’ फिर मेरी तरफ कनखियों से देख कर बोली, ‘‘कभी हम भी ऐसे होंगे क्या?’’

किसी और समय पर वह यह बात करती तो मैं उसे बांहों में कस कर भींच लेता और उसे चूम लेता पर इस समय शायद मैं बेगानी नजरों से उसे देखते हुए बोला, ‘‘शायद कभी नहीं.’’

‘‘ठीक भी है. बड़े जतन से उन के मातापिता उन्हें बड़ा कर रहे हैं और जब बडे़ हो जाएंगे तो पूछेंगे भी नहीं कि उन के मातापिता कैसे हैं…क्या कर रहे हैं… कभी उन को हमारी याद आती है या…’’ कहतेकहते मिशैल का गला भर गया.

मैं उस के कहने का इशारा समझ गया था, ‘‘तुम कहना क्या चाहती हो?’’ मेरी आवाज भारी थी.

‘‘कुछ नहीं, डार्लिंग. मैं ने तो यों ही कह दिया था. मेरी बातों का गलत अर्थ मत लगाओ,’’ कह कर उस ने मेरी तरफ बड़ी संजीदगी से देखा और फिर हम वापस अपने होटल चले आए.

उस पूरी रात नींद पलकों पर टहल कर चली गई थी. सूरज की पहली किरणों के साथ मैं उठा और 2 कौफी का आर्डर दिया. मिशैल मेरी अलसाई आंखों को देखते हुए बोली, ‘‘रात भर नींद नहीं आई क्या. चलो, अब कौफी के साथसाथ तुम भी तैयार हो जाओ. नीचे बे्रकफास्ट तैयार हो गया होगा,’’ इतना कह कर वह बाथरूम चली गई.

दरवाजे की घंटी बजी. मैं ने मिशैल को बाथरूम में ही रहने को कहा क्योंकि वह ऐसी अवस्था में नहीं थी  कि किसी के सामने जा सके.

दरवाजा खोलते ही मैं ने एक दंपती को देखा तो देखता ही रह गया. 5 साल पहले मैं ने जिस बहन को देखा था वह इतनी बड़ी हो गई होगी, मैं ने सोचा भी न था. साथ में एक पुरुष और मांग में सिंदूर की रेखा को देख कर मैं समझ गया कि उस की शादी हो चुकी है. मेरे कदम वहीं रुक गए और शब्द गले में ही अटक कर रह गए. वह तेजी से मेरी तरफ आई और मुझ से लिपट गई…बिना कुछ कहे.

मैं उसे यों ही लिपटाए पता नहीं कितनी देर तक खड़ा रहा. मिशैल ने मुझे संकेत किया और हम सब भीतर आ गए.

‘‘भैया, आप को मेरी जरा भी याद नहीं आई. कभी सोचा भी नहीं कि आप की छोटी कैसी है…कहां है…आप के सिवा और कौन था मेरा,’’ यह कह कर वह सुबकने लगी.

मेरे सारे शब्द बर्फ बन चुके थे. मेरे भीतर का कठोर मन और देर तक न रह सका और बड़े यत्न से दबाया गया रुदन फूट कर सामने आ गया. भरे गले से मैं ने पूछा, ‘‘पर तुम यहां कैसे?’’

‘‘मिशैल के कारण. उन्होंने ही यहां का पता बताया था,’’ छोटी सुबकियां लेती हुई बोली.

तब तक मिशैल भी मेरे पास आ चुकी थी. वह कहने लगी, ‘‘टोनी, सच बात यह है कि तुम्हारे एक दोस्त से ही मैं ने तुम्हारे घर का पता लिया था. मैं सोचती रही कि शायद तुम एक बार अपने घर जरूर जाओगे. मैं तुम्हारे भीतर का दर्द भी समझती थी और बाहर का भी. तुम ने कभी भी अपने मन की पीड़ा और वेदना को किसी से नहीं बांटा, मेरे से भी नहीं. मैं कहती तो शायद तुम्हें बुरा लगता और तुम्हारे स्वाभिमान को ठेस पहुंचती. मुझ से कोई गलती हो गई हो तो माफ कर देना पर अपनों से इस तरह नाराज नहीं होना चाहिए.’’

‘‘मां कैसी हैं?’’ मैं ने पूछा.

‘‘मां तो रही नहीं…तुम्हें बताते भी तो कहां?’’ कहतेकहते छोटी की आंखें नम हो गईं.

‘‘कब और कैसे?’’

‘‘एक साल पहले. हर पल तुम्हारा इंतजार करती रहती थीं. मां तुम्हारे गम में बुरी तरह टूट चुकी थीं. दिन में सौ बार जीतीं सौ बार मरतीं. वह शायद कुछ और साल जीवित भी रहतीं पर उन में जीने की इच्छा ही मर चुकी थी और आखिरी पलों में तो मेरी गोद में तुम्हारा ही नाम ले कर दरवाजे पर टकटकी बांधे देखती रहीं और जब वह मरीं तो आंखें खुली ही रहीं.’’

यह सब सुनना और सहना मेरे लिए इतना कष्टप्रद था कि मैं खड़ा भी नहीं हो पा रहा था. मैं दीवार का सहारा ले कर बैठ गया. मां की भोली आकृति मेरी आंखों के सामने तैरने लगी. मुझे एकएक कर के वे क्षण याद आते रहे जब मां मुझे स्कूल के लिए तैयार कर के भेजती थीं, जब मैं पास होता तो महल्ले भर में मिठाइयां बांटती फिरतीं, जब होलीदीवाली होती तो बाजार चल कर नए कपड़े सिलवातीं, जब नौकरी न मिली तो मुझे सांत्वना देतीं, जब राखी और भैया दूज का टीका होता तो इन त्योहारों का महत्त्व समझातीं और वह मां आज नहीं थीं.

‘‘उन के पार्थिव शरीर के अंतिम दर्शन भी शायद मेरी तकदीर में नहीं थे,’’ कह कर मैं फूटफूट कर रोने लगा. छोटी ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर मुझे इस अपमान और संवेदना से निकालने का प्रयत्न किया.

छोटी ने ही मेरे पूछने पर मुझे बताया था कि मेरे घर से निकलने के अगले दिन ही पता लग चुका था कि मैं विदेश के लिए रवाना हो चुका हूं. शुरू के कुछ दिन तो वह मुझे कोसने में लगे रहे पर बाद में सबकुछ सहज होने लगा. छोटी ही उन दिनों मां को सांत्वना देती रहती और कई बार झूठ ही कह देती कि मेरा फोन आया है और मैं कुशलता से हूं.

छोटी का पति उस की ही पसंद का था. दूसरी जाति का होने के बावजूद मांबाबूजी ने चुपचाप उसे शादी की सहमति दे दी. मेरे विदेश जाने में मेरी बातों का समर्थन न देने का अंजाम तो वे देख ही चुके थे.

अपने पति के साथ छोटी ने मुझे ढूंढ़ने की कोशिश भी की थी पर सब पुराने संपर्क टूट चुके थे. अब अचानक मिशैल के पत्र से वह खुश हो गई और बाबूजी को बताए बिना यहां तक आ पहुंची थी.

‘‘बाबूजी कैसे हैं?’’ मैं ने बड़ी धीमी और सहमी आवाज में पूछा.

‘‘ठीक हैं. बस, जी रहे हैं. मां के मरने के बाद मैं ने कई बार अपने साथ रहने को कहा था पर शायद वह बेटी के घर रहने के खिलाफ थे.’’

इस से पहले कि मैं कुछ कहता, मिशैल बोली, ‘‘टोनी, यह देश तो तुम्हारे लिए पराया हो गया है पर मांबाप तो तुम्हारे अपने हैं. तुम अपने फादर को मिल लोगे तो उन्हें भी अच्छा लगेगा और तुम्हारे बेचैन मन को शांति मिलेगी…फिर न जाने तुम्हारा आना कब हो,’’  उस के स्वर की आर्द्रता ने मुझे छू लिया.

मिशैल ठीक ही कह रही थी. मेरे पास समय बहुत कम था. मैं बिना कोई समय गंवाए उन से मिलने चला गया.

बाबूजी को देखते ही मेरी रुलाई फूट पड़ी. पर वह ठहरे हुए पानी की तरह एकदम शांत थे. पहले वाली मुसकराहट उन के चेहरे पर अब नहीं थी. उन्होंने अपनी बूढ़ी पनीली आंखों से मुझे देखा तो मैं टूटी टहनी की तरह उन की गोद में जा गिरा और उन के कदमों में अपना सिर सटा दिया. बोला, ‘‘मुझे माफ कर दीजिए बाबूजी. मां की असामयिक मौत का मैं ही जिम्मेदार हूं.’’

मैं ने नजर उठा कर घर के चारों तरफ देखा. एकदम रहस्यमय वातावरण व्याप्त था. बीता समय बारबार याद आता रहा. बाबूजी ने मुझे उठा कर सीने से लगा लिया. आज पहली बार महसूस हुआ कि शांति तो अपनी जड़ों से मिल कर ही मिलती है. मैं उन्हें साथ ले जाने की जिद करता रहा पर वह तो जैसे वहां से कहीं जाना ही नहीं चाहते थे.

‘‘तू आ गया है बस, अब तेरी मां को भी शांति मिल जाएगी,’’ कह कर वह भीतर मेरे साथ अपने कमरे में आ गए और मां की तसवीर के पीछे से लाल कपड़ों में बंधी मां की अस्थियों को मुझे दे कर कहने लगे, ‘‘देख, मैं ने कितना संभाल कर रखा है तेरी मां को. जातेजाते कुरुक्षेत्र में प्रवाहित कर देना. बस, यही छोटी सी तेरी मां की इच्छा थी,’’ बाबूजी की सरल बातें मेरे अंतर्मन को छू गईं.

मां की अस्थियां हाथ में आते ही मेरे हाथ कांपने लगे. मां कितनी छोटी हो चुकी थीं. मैं ने उन्हें कस कर सीने में भींच लिया, ‘‘मुझे माफ कर दो, मां.’’

2 दिन बाद ही मैं, छोटी, उस के पति और पापा के साथ दिल्ली एअरपोर्र्ट रवाना हुआ. मिशैल बड़ी ही भावुक हो कर सब से विदा ले रही थी. भाषा न जानते हुए भी उस में अपनी भावनाओं को जाहिर करने की अभूतपूर्व क्षमता थी. बिछुड़ते समय वह बोली, ‘‘आप सब लोग एक बार हमारे पास जरूर आएं. मेरा आप के साथ कोई रिश्ता तो नहीं है पर मेरी मां कहती थीं कि कुछ रिश्ते इन सब से कहीं ऊपर होते हैं जिन्हें हम समझ नहीं सकते.’’

‘‘अब कब आओगे, भैया?’’ छोटी के पूछने पर मेरी आंखों में आंसू उमड़ आए. मैं कोई भी उत्तर न दे सका और तेजी से भीतर आ गया. उस का सवाल अनुत्तरित ही रहा. मैं ने भीतर आते ही मिशैल से भरे हृदय से कहा, ‘‘मिशैल, आज तुम न होतीं तो शायद मैं…’’

सच तो यह था कि मेरा पूरा शरीर ही मर चुका था. मैं फूटफूट कर रोने लगा. मिशैल ने फिर से मेरे कंधे पर हाथ रख कर मुझे पास ही बिठा दिया और बड़े दार्शनिक स्वर में बोली, ‘‘सच, दुनिया तो यही है जो तुम्हारा तिलतिल कर इंतजार करती रही और करती रहेगी, और तुम अपनी ही झूठी दुनिया में खोए रहना चाहते हो. तुम यहां से जाना चाहते हो तो जाओ पर कितनी भी ऊंचाइयां छू लो जब भी नीचे देखोगे स्वयं को अकेला ही पाओगे.

‘‘मेरी मानो तो अपनी दुनिया में लौट जाओ. चले जाओ…अब भी वक्त है…लौट जाओ टोनी, अपनी दुनिया में.’’

मिशैल ने बड़ा ही मासूम सा अनुरोध किया. मेरे सोए हुए जख्म भीतर से रिसने लगे. मेरे सोचने के सभी रास्ते थोड़ी दूर जा कर बंद हो जाते थे. मैं ने इशारे से उस से सहमति जतलाई.

मैं उस से कस कर लिपट गया और वह भी मुझ से चिपक गई.

‘‘बहुत याद आओगे तुम मुझे,’’ कह कर वह रोने लगी, ‘‘पर मुझे भूल जाना, पता नहीं मैं पुन: तुम्हें देख भी पाऊंगी या नहीं,’’ कह कर वह तेज कदमों से जहाज की ओर चली गई.

आज सोचता हूं और सोचता ही रह जाता हूं कि वह कौन थी…अपना सर्वस्व मुझे दे कर, मुझे रास्ता दिखा कर वह न जाने अब वहां कैसे रह रही होगी.

इन 6 टिप्स से बनाएं नाखूनों को खूबसूरत

आज के दौर में सभी फैशन के साथ चलने के लिए हर उपाय करते है. चाहें वह ड्रेस की हो या फिर मेकअप की. हर किसी की चाहत होती है कि वह सबसे अलग दिखे. इसके लिए वह क्या नहीं करते हैं. घंटो पार्लर में समय बीताना. जिससे वह खूबसूरत हो जाएं.

आप जानते है कि अगर आपको नेचुरल तरीके से खूबसूरती न मिले तो बाहर की खूबसूरती ज्यादा देर नहीं टिकती है. चेहरे के साथ-सथ हम अपने नाखूनों में भी अधिक ध्यान देते है. जिससे कि वह भी खूबसूरत और मजबूत रहे, लेकिन कई कारणों के कारण वह ज्यादा टिक नहीं पाते है. या तो वह फट जाते है या फिर टूट जाते है. जिसके कारण आप आर्टिफिशियल नाखूनों का सहारा लेते है. जो कि आपके स्किन के लिए काफी नुकसानदायक होते है.

आमतौर में पैरों की उंगलियों के नाखून के मुकाबले हाथ की उंगलियों के नाखून जल्दी बढ़ते हैं. अगर आपके नाखूनों में किसी तरह की समस्या है, तो वे बढ़ नहीं पाते. इसका मुख्य कारण ठीक ढंग से खाना नहीं खाना, पोषक तत्वों, विटामिन्स की कमी के कारण हो सकता है.

अगर आप चाहते हैं कि आपके नाखून भी खूबसूरत, मजबूत और चमकदार हो तो आप किचन में मौजूद कुछ चीजें ये काम कर सकती है. जो कि बिना ज्यादा जेब ढीली किए हो जाएगा. तो फिर देर किस बात की. ट्राई करें ये घरेलू उपाय और पाएं खूबसूरत, मजबूत, चमकदार नाखून.

1. नींबू

यह विटामिन सी के गुणों से भरपूर होता है. यह आपके नाखूनों के लिए काफी फायदेमंद है. इसके इस्तेमाल से आपके नाखूनों की लंबाई बढने के साथ-साथ चमक और मजबूती आती है. इसे इस्तेमाल करने के लिए एक बाउल में एक चम्मच नींबू का रस, कुछ बूंदे जैतून के तेल में अच्छी तरह मिलाकर नाखूनों की मालिश करें. फिर इसे दस मिनट तक नाखूनों पर अच्छी तरह से मलते रहें. इसके बाद साफ पानी से धो लें. आप चाहें तो नींबू को स्लाइड्स में काटकर नाखूनों पर मल सकती हैं.

2. संतरे

इसके जूस में भी विटामिन सी भरपूर मात्रा में पाया जाता है. इसको इस्तेमाल करने के लिए थोड़े सा संतरे का जूस लेकर उसमें अपने नाखूनों को दस से पंद्रह मिनट तक डुबोएं रहें. इसके बाद हल्के गुनगुने पानी से धो कर उस पर मॉस्चराइजर लगा लें. अगर आप चाहते है कि आपके नाखून खूबसूरत हो तो इसका इस्तेमाल रोज करें.

3. जैतून का तेल

जैतून के तेल में कई ऐसे तत्व पाएं जाते है जो कि आपके नखूनों के लिए काफी फायदेमंद है. इसके लिए रात को सोते समय हाथ तथा पैरों के नाखूनों पर जैतून के तेल की मालिश पांच मिनट तक करें. और दूसरे दिन साफ पानी से धो लें. इसके अलावा आप चाहें तो 15-20 मिनट के लिए अपने नाखूनों को जैतून के तेल में डूबो कर रखें. इससे शरीर में खून के संचार बढ़ता है. जोकि आपके लिए फायदेमंद है.

4. टमाटर

टमाटर हमारी सेहत के साथ-साथ सौंदर्य के लिए काफी फायदेमंद है. इसमें भरपूर मात्रा में विटामिन ए और सी पाया जाता है. जोकि आपके नाखूनों के लिए फाय़देमंद है. इसके लिए टमाटर के रस को थोड़े से जैतून का तेल मिलाकर कम से कम 15 मिनट के लिए अपने नाखूनों को डूबाकर रखें. इससे आपके नाखूनों को लम्बा और मोटा बनाता है. इसका मुख्य कारण इसमें पाया जाने वाला बायोटिन नामक तत्व है.

5. नारियल तेल

नारियल तेल का इस्तेमाल हम कई तरह से करते हैं. यह हमारे सेहत के साथ-साथ सौंदर्य के लिए भी लाभकारी है. इससे आप अपने नाखूनों को मजबूत, चमकदार और लंबे बना सकते है. इसके लिए नारियल तेल को हल्का गुनगुना करके रोजाना रात को सोने से पहले हाथ और पैरों के नाखूनों पर मालिश करें. वहीं इसके मालिश से नाखून चमकदार और लम्बे होते हैं.

6. अलसी का तेल

अगर आप चाहते है कि आप लम्बें नाखून हो, तो इसके लिए अलसी का तेल इस्तेमाल कर सकते है. इसमें भरपूर मात्रा में प्रोटीन और जिंक की मात्रा के साथ विटामिन बी, पोटैशियम, मैग्नेशियम और लैक्थिन पाया जाता है जो नाखूनों को बढ़ाने में मदद करता है. इसके लिए अपने नाखूनों पर एक मिनट तक के लिए मलते रहें. फिर साफ पानी से धो लें. रोजाना दिन में कम से कम एक बार इसका इस्तामल करें.

महिलाओं को होने वाले 5 सामान्‍य स्‍त्री रोग, हो सकते हैं चिंता का कारण

लगभग हर महिला अपने जीवनकाल में किसी न किसी स्त्रीरोग समस्याओं से पीड़ित रहती हैं. इनमें कुछ मामले हल्के और उपचार योग्य हो सकते हैं, तो वहीं कुछ गंभीर हो सकते हैं और जटिलताओं को जन्म दे सकते हैं.

डॉ तनवीर औजला, सीनियर कंसल्टेंट ऑब्स्टेट्रिशन और गाइनेकोलॉजिस्ट, मदरहुड हॉस्पिटल, नोएडा.

कहना है- वैसे तो अनियमित माहवारी या मासिक धर्म में होने वाली तकलीफ कुछ ऐसी आम समस्याएं होती हैं, जो महिलाओं को प्रभावित करती हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि इसे हल्के में लिया जाए.

5 ऐसे स्त्री रोग है जो कि चिंता का कारण होने चाहिए.

1. ओवेरियन सिस्ट

ओवेरियन सिस्ट तरल पदार्थ से भरी एक थैली होती है जो अंडाशय पर और उसके आसपास विकसित होती है, ये विभिन्न आकार की हो सकती है और यह ट्यूमर हो भी सकता है और नहीं भी. कई महिलाएं इन सिस्ट की उपस्थिति को महसूस किए बिना भी स्वस्थ जीवन जीती हैं. इसकी काफी संभावना होती है कि ये अपने आप ही घुल जाएं, यदि नहीं, तो आपका डॉक्टर उन्हें खत्म करने में मदद करने के लिये ओरल कॉन्ट्रासेप्टिव गोलियां लिख सकते हैं. वैसे भी, समय-समय पर उन पर नजर रखना जरूरी है.

2. एंडोमेट्रियोसिस

एंडोमेट्रियोसिस तब होता है जब गर्भाशय की परत के समान ऊतक गर्भाशय की दीवारों के बाहर बढ़ने लगता है. ऊतक आमतौर पर एंडोमेट्रियल ऊतक की तरह सूज जाता है और उससे खून बहता है,  लेकिन खून और अपशिष्ट उत्तक के बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं होता. हालांकि, यह कैंसर नहीं है, यह जख्म और स्राव पैदा कर सकता है और फैलोपियन ट्यूब को अवरुद्ध कर सकता है. इससे सिस्ट हो सकते हैं जो रक्त के अवरोध का कारण बन सकता है. इसके लक्षणों में दर्द, असामान्य रक्तस्राव शामिल हो सकते हैं और गर्भधारण में परेशानी पैदा हो सकती है.

3. पीसीओएस या पॉलिसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम

पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) एक ऐसी स्थिति है जो एक महिला के शरीर में हॉर्मोनल स्तर को प्रभावित करती है. शरीर में पुरुष हॉर्मोन की मात्रा एंड्रोजन की वृद्धि हो सकती है. इस समस्या वाली महिला में लंबे समय तक या कम मासिक धर्म हो सकता है और अंडाशय पर कई फोलिकल्स दिखाई दे सकते हैं, जो अंडे रिलीज करने में बाधा उत्पन्न कर सकते हैं. पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं को पेट पर चर्बी, मुंहासे, बालों का असामान्य विकास, मासिक धर्म की असामान्यता का अनुभव हो सकता है या बांझपन की समस्या का सामना करना पड़ सकता है.

4. यूरीनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन (यूटीआई)

हर आयु वर्ग में यह सबसे आम स्त्रीरोगों में से एक है. आमतौर पर यह योनि या मलद्वार में बैक्टीरिया की मौजूदगी की वजह से होता है, जोकि मूत्रमार्ग और मूत्राशय तक पहुंच जाता है और कई मामलों में किडनी तक भी. इसके कई कारण हो सकते हैं, लेकिन यह प्रेग्नेंसी, इंटरकोर्स या डायबिटीज की वजह से हो सकता है. इसके लक्षणों में पेशाब करने के दौरान जलन महसूस होना, पेट में मरोड़, पीड़ादायक सेक्स और बार-बार पेशाब का आना शामिल है.

5. फाइब्रॉयड्स

फाइब्रॉएड मस्क्यूलर ट्यूमर होते हैं जो एक महिला के गर्भाशय के अंदर बन सकते हैं जो शायद ही कभी कैंसरकारी होते हैं. वे आम तौर पर स्थान, शेप और साइज में भिन्न होते हैं. यह तब होता है जब हॉर्मोन या आनुवंशिकी परेशानी पैदा करती है, यह फाइब्रॉयड्स का कारण बन सकता है. इसकी वजह से भारी मासिक चक्र होता है, पेट के निचले हिस्से में दबाव महसूस होता है, साइकिल के बीच में रक्तस्राव होता है या यौन संबंध के दौरान दर्द महसूस होता है.

हालांकि, अपने स्त्री रोग विशेषज्ञ के पास समय पर जाना और अपने स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए इन समस्याओं को रोका जा सकता है.

शुभचिंतक: सविता के पति पर शक का क्या था अंजाम

राकेश से झगड़ कर सविता महीने भर से मायके में रह रही थी. उन के बीच सुलह कराने के लिए रेणु और संजीव ने उन दोनों को अपने घर बुलाया.

यह मुलाकात करीब 2 घंटे चली पर नतीजा कुछ न निकला.

‘‘अब साक्षी के साथ मेरा कोई संबंध नहीं है,’’ राकेश बोला, ‘‘अतीत के उस प्रेम को भुलाने के बाद ही मैं ने सविता से शादी की है. अब वह मेरी सिर्फ सहकर्मी है. उसे और मुझे ले कर सविता का शक बेबुनियाद है. हमारे विवाहित जीवन की सुरक्षा व सुखशांति के लिए यह नासमझी जबरदस्त खतरा पैदा कर रही है.’’

अपने पक्ष में ऐसी दलीलें दे कर राकेश बारबार सविता पर गुस्से से बरस पड़ता था.

‘‘मैं नहीं चाहती हूं कि ये दोनों एकदूसरे के सामने रहें,’’ फुफकारती हुई सविता बोली, ‘‘इन्हें किसी दूसरी जगह नौकरी करनी होगी. इन की उस के साथ ही नौकरी करने की जिद हमारी गृहस्थी के लिए खतरा पैदा कर रही है.’’

‘‘तुम्हारे बेबुनियाद शक को दूर करने के लिए मैं अपनी लगीलगाई यह अच्छी नौकरी कभी नहीं छोडूंगा.’’

‘‘जब तक तुम ऐसा नहीं करोगे, मैं तुम्हारे पास नहीं लौटूंगी.’’

दोनों की ऐसी जिद के चलते समझौता होना असंभव था. नाराज हो कर राकेश वापस चला गया.

‘‘हमारा तलाक होता हो तो हो जाए पर राकेश की जिंदगी में दूसरी औरत की मौजूदगी मुझे बिलकुल मंजूर नहीं है,’’ सविता ने कठोर लहजे में अपना फैसला सुनाया तो उस की सहेली रेणु का दिल कांप उठा था.

रेणु के पति संजीव ने सविता के पास जा कर उस का कंधा पकड़ हौसला बढ़ाने वाले अंदाज में कहा, ‘‘सविता, मैं तुम से पूरी तरह सहमत हूं. राकेश की नौकरी न छोड़ने की जिद यही साबित कर रही है कि दाल में कुछ काला है. तुम अभी सख्ती से काम लोगी तो कई भावी परेशानियों से बच जाओगी.’’

राकेश की इस सलाह को सुन कर सविता और रेणु दोनों ही चौंक पड़ीं. वह बिलकुल नए सुर में बोला था. अभी तक वह सविता को राकेश के पास लौट जाने की ही सलाह दिया करता था.

‘‘मैं अभी भी कहती हूं कि राकेश पर विश्वास कर के सविता को वापस उस के पास लौट जाना चाहिए. उसे उलटी सलाह दे कर आप बिलकुल गलत शह दे रहे हैं,’’  रेणु की आवाज में नाराजगी के भाव उभरे.

‘‘मेरी सलाह बिलकुल ठीक है. राकेश को अपनी पत्नी की भावनाओं को समझना चाहिए. यह यहां रहती रही तो जल्दी ही उस की अक्ल ठिकाने आ जाएगी.’’

संजीव को अपने पक्ष में बोलते देख सविता की आवाज में नई जान पड़ गई, ‘‘रेणु, तुम मेरी सब से अच्छी सहेली हो. कम से कम तुम्हें तो मेरी मनोदशा को समझ कर मेरा पक्ष लेना चाहिए. मुझे तो आज संजीव अपना ज्यादा बड़ा शुभचिंतक नजर आ रहा है.’’

‘‘लेकिन यह समझदारी की बात नहीं कर रहे हैं,’’ रेणु ने नाराजगी भरे अंदाज में उन दोनों को घूरा.

‘‘मेरा बताया रास्ता समझदारी भरा है या नहीं यह तो वक्त ही बताएगा रेणु. फिलहाल लंच कराओ क्योंकि भूख के मारे अब पेट का बुरा हाल हो रहा है,’’ संजीव ने प्यार से अपनी पत्नी रेणु का गाल थपथपाया, पर वह बिलकुल भी नहीं मुसकराई और नाराजगी दर्शाती रसोई की तरफ बढ़ गई.

आगामी दिनों में संजीव का सविता के प्रति व्यवहार पूरी तरह से बदल गया. इस बदलाव को देख रेणु हैरान भी होती और परेशान भी.

‘‘सविता, तुम जैसी सुंदर, स्मार्ट और आत्मनिर्भर युवती को अपमान भरी जिंदगी बिलकुल नहीं जीनी चाहिए…

‘‘तुम राकेश से हर मामले में इक्कीस हो, फिर तुम क्यों झुको और दबाव में आ कर गलत तरह का समझौता करो?

‘‘तुम जैसी गुणवान रूपसी को जीवनसंगिनी के रूप में पा कर राकेश को अपने भाग्य पर गर्व करना चाहिए. तुम्हें उस के हाथों किसी भी तरह का दुर्व्यवहार नहीं सहना है,’’ संजीव के मुंह से निकले ऐसे वाक्य सविता का मनोबल भी बढ़ाते और उस के मन की पीड़ा भी कम करते.

अगर रेणु सविता को बिना शर्त वापस लौटने की बात समझाने की कोशिश करती तो वह फौरन नाराज हो जाती.

धीरेधीरे सविता और संजीव एक हो गए और रेणु अलगथलग पड़ती चली गई. राकेश की चर्चा छिड़ती तो उस के शब्दों पर दोनों ही ध्यान नहीं देते. सविता संजीव को अपना सच्चा हितैषी बताती. अब रेणु के साथ अकसर उस का झगड़ा ही होता रहता था.

सविता के सामने ही संजीव अपनी पत्नी रेणु से कहता, ‘‘यह बेचारी कितनी दुखी और परेशान चल रही है. इस कठिन समय में इस का साथ हमें  देना ही होगा.

‘‘अपने दुखदर्द के दायरे से निकल कर जब यह कुछ खुश और शांत रहने लगेगी तब हम जो भी इसे समझाएंगे, वह इस के दिमाग में ज्यादा अच्छे ढंग

से घुसेगा. अभी हमें इस का मजबूत सहारा बनना है, न कि सब से बड़ा आलोचक.’’

संजीव, सविता का सब से बड़ा प्रशंसक बन गया. उस के हर कार्य की तारीफ करते उस की जबान न थकती. उसे खुश करने को वह उस के सुर में सुर मिला कर बोलता. उस के लतीफे  सुन सविता हंसतेहंसते दोहरी हो जाती. अपने रंगरूप की तारीफ सुन उस के गाल गुलाबी हो उठते.

‘‘तुम कहीं सविता पर लाइन तो नहीं मार रहे हो?’’ एक रात अपने शयनकक्ष में रेणु ने पति संजीव से यह सवाल पूछ ही लिया.

‘‘इस सवाल के पीछे क्या ईर्ष्या व असुरक्षा का भाव छिपा है, रेणु?’’ संजीव उस की आंखों में आंखें डाल कर मुसकराया.

‘‘अभी तो ऐसा कुछ नहीं हुआ है न?’’

‘‘जिस दिन मैं अपनी आंखों से कुछ गलत देख लूंगी उस दिन तुम दोनों की खैर नहीं,’’ रेणु ने नाटकीय अंदाज में आंखें तरेरीं.

संजीव ने हंसते हुए उसे छाती से लगाया और कहा, ‘‘पति की जिंदगी में दूसरी औरत के आने की कल्पना ऐसा सचमुच हो जाने की सचाई की तुलना में कहीं ज्यादा भय और चिंता को जन्म देती है डार्लिंग. मैं सविता का शुभचिंतक हूं, प्रेमी नहीं. तुम उलटीसीधी बातें न सोचा करो.’’

उस वक्त संजीव की बांहों के घेरे में कैद हो कर रेणु अपनी सारी चिंताएं भूल गई पर सविता व अपने पति की बढ़ती निकटता के कारण अगले दिन सुबह से वह फिर तनाव का शिकार हो गई थी.

संजीव का साथ सविता को बहुत भाने लगा था. वह लगभग रोज शाम को उन के घर चली आती या फिर संजीव आफिस से लौटते समय उस के घर रुक जाता. सविता के मातापिता व भैयाभाभी उसे भरपूर आदरसम्मान देते थे. उन सभी को लगता कि संजीव से प्रभावित सविता उस के समझाने से जल्दी ही राकेश के पास लौट जाएगी.

सविता ने एक शाम ड्राइंगरूम में सामने बैठे संजीव से कहा, ‘‘यू आर माई बेस्ट फ्रेंड. तुम्हारा सहारा न होता तो मैं तनाव के मारे पागल ही हो जाती. थैंक यू वेरी मच.’’

‘‘दोस्तों के बीच ऐसे ‘थैंक यू’ कानों को चुभते हैं, सविता. हमारी दोस्ती मेरे जीवन में भी खुशियों की महक भर रही है. तुम्हारे शानदार व्यक्तित्व से मैं भी बहुत प्रभावित हूं,’’ संजीव की आंखों में प्रशंसा के भाव उभरे.

‘‘तुम दिल के बहुत अच्छे हो, संजीव.’’

‘‘और तुम बहुत सुंदर हो, सविता.’’

संजीव ने उस की प्रशंसा आंखों में गहराई से झांकते हुए की थी. उस की भावुक आवाज सविता के बदन में अजीब सी सरसराहट दौड़ा गई. वह संजीव की आंखों से आंखें न मिला सकी और लजाते से अंदाज में उस ने अपनी नजरें झुका लीं.

संजीव अचानक उठा और उस के पास आ कर बोला, ‘‘मेरे होते हुए तुम किसी बात की चिंता न करना. मैं हर पल तुम्हारे साथ हूं. कल रविवार को नाश्ता हमारे साथ करना, बाय.’’

आगे जो हुआ वह सविता के लिए अप्रत्याशित था. संजीव ने बड़े भावुक अंदाज में उस का हाथ पकड़ कर चूम लिया था. संजीव की इस हरकत ने सविता की सोचनेसमझने की शक्ति हर ली. उस ने नजरें उठाईं तो संजीव की आंखों में उसे अपने लिए प्रेम के गहरे भाव नजर आए.

संजीव को सविता अपना अच्छा दोस्त और सब से बड़ा शुभचिंतक मानती थी. उस दोस्त ने अब प्रेमी बनने की दिशा में पहला कदम उस का हाथ चूम कर उठाया था.

संजीव की आंखों में देखते हुए सविता पहले शर्माए से अंदाज में मुसकराई और फिर अपनी नजरें झुका लीं. उस ने संजीव को अपना प्रेमी बनने की इजाजत इस मुसकान के रूप में दे दी थी.

बिना और कुछ कहे संजीव अपने घर चला गया था. उस रात सविता ढंग से सो नहीं पाई थी. सारी रात मन में संजीव व राकेश को ले कर उथलपुथल चलती रही थी. सुबह तक वह न राकेश के पास लौटने का निर्णय ले सकी और न ही संजीव से निकटता कम करने का.

मन में घबराहट व उत्तेजना के मिलेजुले भाव लिए वह अगले दिन सुबह संजीव और रेणु के घर पहुंच गई. मौका मिलते ही वह संजीव से खुल कर ढेर सारी बातें करने की इच्छुक थी. नएनए बने

प्रेम संबंध को निभाने के लिए बड़ी गोपनीयता व सतर्कता की जरूरत को वह रेखांकित करने के लिए आतुर थी.

‘‘रेणु नाराज हो कर मायके चली गई है,’’ घर में प्रवेश करते ही संजीव के मुंह से यह सुन कर सविता जोर से चौंक पड़ी थी.

‘‘क्यों नाराज हुई रेणु?’’ सविता ने धड़कते दिल से पूछा.

‘‘कल शाम तुम्हारा हाथ चूमने की खबर उस तक पहुंच गई.’’

‘‘वह कैसे?’’ घबराहट के मारे सविता का चेहरा पीला पड़ गया.

‘‘शायद तुम्हारी भाभी ने कुछ देखा और रेणु को खबर कर दी.’’

‘‘यह तो बहुत बुरा हुआ, संजीव. मैं रेणु का सामना कैसे करूंगी? वह मेरी बहुत अच्छी सहेली है,’’ सविता तड़प उठी.

सविता को सोफे पर बिठाने के बाद उस की बगल में बैठते हुए संजीव ने दुखी स्वर में कहा, ‘‘कल शाम जो घटा वह गलत था. मुझे अपनी भावनाओं को नियंत्रण में रखना चाहिए था.’’

‘‘दोस्ती को कलंकित कर दिया मैं ने,’’ सविता की आंखों से आंसू बहने लगे.

एक गहरी सांस छोड़ कर संजीव बोला, ‘‘रेणु से मैं बहुत प्यार करता हूं. फिर भी न जाने कैसे तुम ने मेरे दिल में जगह बना ली है…तुम से भी प्यार करने लगा हूं मैं…रेणु बहुत गुस्से में थी. मुझे समझ नहीं आ रहा है, अब क्या होगा?’’

‘‘हम से बड़ी भूल हो गई है,’’ सविता सुबक उठी.

‘‘ठीक कह रही हो तुम. तुम्हारे दुखदर्द को बांटतेबांटते मैं भावुक हो उठता था. तुम्हारा अकेलापन दूर करने की कोशिश मैं शुभचिंतक बन कर रहा था और अंतत: प्रेमी बन बैठा.’’

‘‘कुसूरवार मैं भी बराबर की हूं, संजीव. जो पे्रम अपने पति से मिलना चाहिए था, उसे अपने दोस्त से पाने की इच्छा ने मुझे गुमराह किया.’’

‘‘तुम ठीक कह रही हो, सविता,’’ संजीव सोचपूर्ण लहजे में बोला, ‘‘तुम अगर राकेश के साथ होतीं…उस के साथ प्रसन्न व सुखी होतीं, तो हमारे बीच अच्छी दोस्ती की सीमा कभी न टूटती. तुम्हारा अकेलापन, राकेश से बनी अनबन और मेरी सहानुभूति व तुम्हारा सहारा बनने की कोशिशें हमारे बीच अवैध प्रेम संबंध को जन्म देने का कारण बन गए. अब क्या होगा?’’

‘‘मुझे राकेश के पास लौट जाना चाहिए…अपनी सहेली के दिल पर लगे जख्म को भरने का यही एक रास्ता है, बाद में कभी मैं उस से माफी मांग लूंगी,’’ सविता ने कांपते स्वर में समस्या का हल सामने रखा.

‘‘तुम्हारा लौटना ही ठीक रहेगा, सविता, फिर मेरे दिमाग में एक और बात भी उठ रही है.’’

‘‘कौन सी बात?’’

‘‘यही कि तुम राकेश से दूर हो कर अगर मेरी सहानुभूति व ध्यान पा कर गुमराह हो सकती हो, तो आजकल राकेश भी तुम से दूर व अकेला रह रहा है. उस लड़की साक्षी के साथ उस का आज संबंध नहीं भी है, तो कल को वह ऐसी ही सहानुभूति व अपनापन तुम्हारे पति से जता कर उस के दिल में अवैध प्रेम संबंध का बीज क्या आसानी से नहीं बो सकेगी?’’

संजीव की अर्थपूर्ण नजरें सविता के दिल की गहराइयों तक उतर गईं. देखते ही देखते आंसुओं के बजाय उस की आंखों में तनाव व चिंता के भाव उभर आए.

‘‘यू आर वेरी राइट, संजीव,’’ सविता अचानक उत्तेजित सी नजर आने लगी, ‘‘राकेश से अलग रह कर मैं सचमुच भारी भूल कर रही हूं. खुद भी मुसीबत का शिकार बनी हूं और उधर राकेश को किसी साक्षी की तरफ धकेलने का इंतजाम भी नासमझी में खुद कर रही हूं. आई मस्ट गो बैक.’’

‘‘हां, तुम आज ही राकेश के पास लौट जाओ. मैं भी रेणु को मना कर वापस लाता हूं.’’

‘‘रेणु मुझे माफ कर देगी न?’’

‘‘जब मैं कहूंगा कि आज तुम ने मुझे यहां आ कर खूब डांटा, तो वह निश्चित ही तुम्हें कुसूरवार नहीं मानेगी. तुम दोनों की दोस्ती बनाए रखने को…एकदूसरे की इज्जत आंखों में बनाए रखने को मैं सारा कुसूर अपने ऊपर ले लूंगा.’’

‘‘थैंक यू, संजीव. मैं सामान पैक करने जाती हूं,’’ सविता झटके से उठ खड़ी हुई.

‘‘मेरी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं,’’ संजीव भावुक हो उठा.

‘‘तुम बहुत अच्छे दोस्त…बहुत अच्छे इनसान हो.’’

‘‘तुम भी, अपना और राकेश का ध्यान रखना. गुडबाय.’’

सविता ने हाथ हिला कर ‘गुडबाय’ कहा और दरवाजे की तरफ बढ़ गई.

उस के जाने के बाद दरवाजा बंद कर के संजीव ड्राइंगरूम में लौटा तो मुसकराती रेणु ने उस का स्वागत किया. वह अंदर वाले कमरे से निकल कर ड्राइंगरूम में आ गई थी.

‘‘तुम ने तो कमाल कर दिया. सविता तो राकेश के पास आज ही वापस जा रही है,’’ रेणु बहुत प्रसन्न नजर आ रही थी.

‘‘मुझे खुशी है कि मेरी योजना सफल रही. सविता को यह बात समझ में आ गई है कि जीवनसाथी से, उस की जिंदगी में दूसरी औरत की उपस्थिति के भय के कारण दूर रहना मूर्खतापूर्ण भी है और खतरनाक भी.’’

‘‘मैं फोन कर के राकेश को पूरे घटनाक्रम की सूचना दे देता हूं,’’ संजीव मुसकराता हुआ फोन की तरफ बढ़ा.

‘‘आप ने अपनी योजना की जानकारी मुझे आज सुबह से पहले क्यों नहीं दी?’’

‘‘तब तुम्हारी प्रतिक्रियाओं में बनावटीपन आ जाता, डार्ल्ंिग.’’

‘‘योजना समाप्त हुई, तो अब सविता को भुला तो दोगे न?’’

‘‘तुम अकेला छोड़ कर नहीं जाओगी तो उस का प्रेम मुझे कभी याद नहीं आएगा जानेमन,’’ उसे छेड़ कर संजीव जोर से हंसा तो रेणु ने पहले जीभ निकाल कर उसे चिढ़ाया और फिर उस की छाती से जा लगी.

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TV Favourite Jodi 2024: टीवी की ये जोड़ियां, जो अपनी औनस्क्रीन केमिस्ट्री से दर्शकों का जीत रही हैं दिल

TV Favourite Jodi 2024: टीवी सीरियल एंटेरटेनमेंट का फुल पैकेज है. इसकी पौपुलरिटी बौलीवुड से कम नहीं है. आपके आसपास या घर में ही ऐसे कई लोग मिल जाएंगे, जो अपने फेवरेट सीरियल का एक भी एपिसोड मिस नहीं करते. मेरी मम्मी रोजाना शाम 6 बजे से टीवी देखने बैठती हैं और अपनी फेवरेट सीरियल्स का हर एक एपिसोड देखती हैं.

 

टीवी की कई जोड़ियां दर्शकों के दिलों पर राज करती हैं. आपको मानव-अर्चना, अक्षरा-नैतिक, सुजल-कशिश की जोड़ियां तो जरूर याद होगी. लोग आज भी जोड़ियों के कारण ही इन सीरियल्स को देखना भी पसंद करते हैं. किसी भी सीरियल की कहानी को रियल लाइफ की घटनाओं से रिलेट कर दिखाया जाता है, जिससे ये कहानी दर्शकों के दिल को छू जाती है.

आज भी टीवी पर कई सुपरहिट सीरियल दिखाए जा रहे हैं. ‘झनक’, ‘अनुपमा’ और भी कई सीरियल टीआरपी लिस्ट में शामिल है. इनमें मौजूद जोड़ियां इन दिनों चर्चे में हैं, जो दर्शकों के फेवरेट बने हुए हैं. ऐसे में आज हम आपको कुछ जोड़ियों के बारे में बताएंगे जिनकी औनस्क्रीन केमिस्ट्री को लोग खूब पसंद कर रहे हैं.

अनुज अनुपमा

टीवी का पौपुलर सीरियल अनुपमा (रूपाली गांगुली) और अनुज (गौरव खन्ना) की जोड़ी पर्दे पर धमाल मचाती है. हालांकि सीरियल में दिखाया गया है कि तलाक के बाद अनुपमा ने अनुज से शादी की. अनुज-अनुपमा दोनों एकदूसरे को बहुत प्यार करते हैं, इनकी जोड़ी को देखकर लगता है कि रियल लाइफ में हर कपल को अनुज-अनुपमा की तरह होना चाहिए.

झनक अनिरुद्ध

‘झनक’ सीरियल में हिबा नवाब और क्रुशाल आहूजा की जोड़ी इन दिनों चर्चे में है. इस सीरियल में दिखाया गया है कि अनिरुद्ध (क्रुशाल आहूजा) झनक (हिबा नवाब) की शादी होती है, लेकिन दोनों इस शादी को नहीं मानते हैं. अनिरुद्ध झनक का बहुत ख्याल रखता है, लेकिन बाद में उसे एहसास होता है कि वह झनक से प्यार करने लगा है, झनक भी उससे प्यार करती है, लेकिन दोनों की राहें अलगअलग हैं. सीरियल में दोनों के बीच लड़ाईझगड़े भी दिखाए जाते हैं. टीवी पर इस जोड़ी को देखकर लगात है कि ये दोनों एकदूसरे के लिए बने हैं.

काव्या वनराज

‘अनुपमा’ में काव्या वनराज का निगेटिव रोल दिखाया गया है, लेकिन दोनों एकदूसरे से बहुत प्यार करते हैं. दोनों पहले से शादीशुदा है, लेकिन प्यार की खातिर वो दोनो अपनी पहली शादी तोड़ देते हैं. काव्या यानी मदालसा शर्मा रिल और रियल लाइफ में भी बेहद खूबसूरत हैं. वह अक्सर सोशल मीडिया पर अपनी फोटोज शेयर करती हैं. तो वहीं वनराज यानी सुधांशु पांडे भी काफी हैंडसम हैं, टीवी पर तो वो परफेक्ट पति नहीं है पर रियल लाइफ में परफेक्ट पति हैं और दो बच्चों के पिता हैं.

सवी ईशान

टीवी की चर्चित सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ का पहले सीजन को लोगों ने काफी पसंद किया. इस सीरियल का दूसरा सीजन भी दर्शकों का फेवरेट बना हुआ है. इस शो में सवी ईशान की केमिस्ट्री भी इतनी नैचुरल लगती है कि आप उनसे प्यार किए बिना नहीं रह पाएंगे. उनके बीच का नोकझोक भी आपका दिल जीत लेगा. ये दोनों इस सीरियल के लीड कैरेक्टर हैं.

सस्तेमहंगे सभी कीमतों में मिल रहे हैं Hair Extensions, दें बालों को मनचाहा लुक

आपके बाल आप की खूबसूरती बढ़ाने का बेहतरीन जरिया हैं. कई महिलाएं बालों को लेकर पजेसिव होती हैं और हेयरकट और बालों में कलर करवाने में डरती हैं . अगर आप भी ऐसे ही है या फिर किसी दूसरे रीज़न से आपके बालो की डेंसिटी कम हो गयी है तो हेयर एक्सटेंशन ट्राई कर सकती है . हेयर एक्सटेंशन्स को आप खुद भी लगा सकते हैं या फिर सैलून में भी लगवा सकती हैं.

कई रंगों में मिलते हैं एक्सटेंशन्स : नेचुरल ब्लैक , डार्क ब्राउन , मीडियम ब्राउन , लाइट ब्राउन , ब्लोंड , रेड , फाइन नेचुरल शेड्स (हाइलाइट्स और लोलाइट्स के साथ) के हेयर एक्सटेंशन आसानी से मिल जाते हैं .  ब्राइट कलर के हेयर एक्सटेंशन्स  जैसे ब्लू , ग्रीन  भी लड़कियों को खूब पसंद है.  हेयर एक्सटेंशन की डेंसिटी भी लाइट, मीडियम और थिक होती है .

कितनी तरह के होते हैं हेयर एक्सटेंशन
हेयर एक्सटेंशन्स कई तरह के होते हैं जैसे क्लिप-इन एक्सटेंशन्स, टेप-इन एक्सटेंशन्स और केरेटिन एक्सटेंशन्स. इन्हें आप टेम्पोरेरी या परमानेंट तौर पर अपने बालों में लगवा सकते हैं और ये आपको एक नया लुक देते हैं.आप हेयर एक्सटेंशन्स शादी, पार्टी, या छुट्टियों से पहले भी करवा सकते है ताकि आप की लुक में इंस्टेंट चेंज आ जाये .

क्लिप-इन एक्सटेंशन्स : ये बालों के लिए क्लिप्स के साथ आते हैं जो बालों में आसानी से लगाए जा सकते हैं और निकाले जा सकते हैं.

टेप-इन एक्सटेंशन्स : ये बालों के छोटे टेप्स के साथ आते हैं जो बालों में स्थायी रूप से लगाए जा सकते हैं.

केरेटिन एक्सटेंशन्स: ये बालों के धागों के साथ आते हैं जो बालों के अंत में गर्म विभाजित होते हैं.

सिंथेटिक एक्सटेंशन्स: ये बाल बनाने के लिए प्राकृतिक बालों के स्थान पर सिंथेटिक हेयर का उपयोग करते हैं.

कुछ एक्सटेंशन्स केवल कुछ हफ्तों तक टिकते हैं जबकि कुछ महीनों तक टिक सकते हैं. एक्सटेंशन्स की लाइफ उनके इस्तेमाल की तकनीक, देखभाल का तरीका, और आपके हेयर एक्सटेंशन्स के बालों पर निर्भर करता है .जैसे :
क्लिप-इन और टेप-इन एक्सटेंशन्स कुछ हफ्तों या महीनों के लिए डिज़ाइन किए गए होते हैं, इसके बाद न्हें इन्हें निकाला जा सकता है.
केरेटिन एक्सटेंशन्स आमतौर पर 2 से 6 महीनों तक टिकते हैं, लेकिन यह आपके बालों की तेजी से वृद्धि या अन्य कारणों पर भी निर्भर करता है.

हेयर एक्सटेंशन्स की देखभाल के टिप्स
उपयुक्त शैम्पू और कंडीशनर का चुनाव करें. सैलून या हेयर एक्सटेंशन कंपनी द्वारा सुझाए गए शैम्पू और मास्क का उपयोग करें.

कंडीशनर को सीधे एक्सटेंशन्स की जड़ों पर लगाएं और ध्यानपूर्वक धोएं.

उपयुक्त ब्रश और कम्ब का उपयोग करें. सॉफ्ट ब्रिसल्स वाला ब्रश और वुडन कॉन्ब का उपयोग करें और बालों को हल्के हाथों से सुलझाएं.

नींद के समय बाल बांधे. रात को सोते समय, बालों को एक पोनीटेल में बांधें ताकि उन्हें टेंगलिंग नहीं हो.

सैलून से नियमित जांच कराएं. उन्हें आपके एक्सटेंशन्स की जांच करने दें और नियमित रूप से उन्हें री-टाइट करवाएं या अन्य देखभाल की सलाह लें.

कीमत

हेयर एक्सटेंशन की कीमत विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है जैसे कि उपयोग किए गए हेयर, ब्रांड, और जगह जहाँ से आपने एक्सटेंशन्स करवाई है .कुछ सैलूनों और ब्रांड्स के अनुसार भिन्न हो सकती है.:

क्लिप-इन एक्सटेंशन्स की कीमत सामान्यतः ₹2000 से ₹8000 के बीच हो सकती है. अधिक प्रीमियम विकल्पों के लिए कीमतें ज़्यादा भी हो सकती हैं.

टेप-इन एक्सटेंशन्स की कीमत सामान्यतः ₹5000 से ₹15000 के बीच होती है.

केरेटिन एक्सटेंशन्स की कीमत सामान्यतः ₹7000 से ₹20000 तक हो सकती है.

कृपया ध्यान दें कि यह सिर्फ आम संदर्भ के रूप में दी गई जानकारी है और वास्तविक कीमतें आपके स्थान, सैलून या ब्रांड के आधार पर भिन्न हो सकती हैं. आपको अपने आवश्यकताओं और बजट के अनुसार विकल्पों को तैयार करने की आवश्यकता है.

अपने बालो की खूबसूरती बढ़ाएं हेयर एक्सटेंशन्स के साथ और हर पार्टी में चेंज करे अपनी लुक. हेयर ऐक्सटेंशन के जरिए किसी भी तरह की हेयरस्टाइल बनाई जा सकती है. साइड बन या मेसी ब्रेड्स भी बनाई जा सकती हैं. कई महिलाएं बालों में किसी पसंदीदा कलर से हाईलाइटिंग तो चाहती हैं लेकिन कलर नहीं लगवाना चाहतीं. ऐसे में एक्सटेंशन हेयर पर कलर लगा कर उन्हें हाइलाइटर की तरह लगाया जा सकता है. यह पूरी तरफ सेफ और आसान है एक्सटेंशन को खास तरह के न दिखने वाले क्लिप्स के जरीए भी लगाया जा सकता है. क्लिप्स को कभी भी निकाला जा सकता है.

भूल का अंत : जब बहन के कारण खतरे में पड़ी मीता की शादीशुदा जिंदगी

पूरे घर में हलचल मची हुई थी. कोई परदे बदल रहा था तो कोई नया गुलदस्ता सजा रहा था. अम्मा की आवाज रहरह कर पूरे घर में गूंज उठती, ‘‘किसी भी चीज पर धूल नहीं दिखनी चाहिए. बाजार से मिठाई आ गई या नहीं?’’

नित्या को यह हलचल, ये आवाजें बहुत भली लग रही थीं. फिर भी हृदय में विचित्र सी उथलपुथल थी. उस ने द्वार पर खड़े हो कर एक दृष्टि घर में हो रही सजावट पर डाली, और वह मीता को खोजने लगी. थोड़ी देर पहले तक तो उसी के साथ थी. उस की उंगलियों के नाखून सजाते हुए लगातार बोलती जा रही थी, ‘‘अब हाथ नहीं सजेंगे तो भला उन के सामने प्लेट बढ़ाती तुम्हारी उंगलियों पर ध्यान कैसे जाएगा जीजाजी का,’’ नित्या के दिमाग में पूरी घटना एकबारगी दौड़ गई.

मीता कैसे उसे चिढ़ाती हुई बोली, ‘‘क्या दहीबड़े बनाए हैं मैं ने. आने दो जरा, सजावट में इतनी लाल मिर्च डालूंगी कि ‘सीसी’ न कर उठें हमारे होने वाले जीजाजी तो कहना.’’

नित्या के मन में तो मीठीमीठी गुदगुदी हो रही थी पर ऊपर से क्रोध का दिखावा कर वह उसे डांटती भी जा रही थी, ‘‘चुप, मीतू, अभी वे कौन लगते हैं हम दोनों के?’’

‘‘हां भई, अभी कौन लगते हैं. अभी तो केवल देखनादिखाना हो रहा है.’’

फिर उस की हथेलियां छोड़ बोली, ‘‘तू भी दीदी, एकदम बोर है. वही पुराना जमाना लिए जी रही है. अपना तमाशा बनवाना,’’ यह कहने के साथ ही वह स्तब्ध सी हो उठी. नजरें झुकाए एकदम कमरे से बाहर निकल गई.

‘उफ, अब जाने कहां जा कर रो रही होगी, पगली,’ नित्या ने स्मृतियों को झटकते हुए सोचा तभी बड़ी ताई दनदनाती हुई उस के कमरे में आ गईं, ‘‘मीता कहां है?’’

‘‘पता नहीं,’’ उस ने कहा.

‘‘हूं…बता नहीं रहे तो ठीक है,’’ उन्होंने होंठ सिकोड़ कर कहा, ‘‘मैं ने तो सुबह ही छोटी को कह दिया था कि मीता को लड़के वालों के सामने न आने देना.’’

‘‘लेकिन ताई…’’ उस ने टोकना चाहा.

‘‘लेकिनवेकिन कुछ नहीं. उस के कारण तू कब तक भुगतती रहेगी?’’

नित्या का मन अवसाद से भर उठा. पता नहीं ताई की बात में कितना सत्य है? मीता की एक छोटी सी भूल क्या उस के साथसाथ पूरे घर के लिए भी दुखों का पहाड़ बन गई है?

नित्या की आंखों में मीता की मस्तमौला छवि घूम गई. बचपन से ही अलमस्त सी हिरणी की तरह कुलांचें भरती. झूठे आडंबरों के विरुद्ध ऊंचीऊंची आवाज में बहस करती. जीवन के प्रति सदा अलग दृष्टिकोण अपनाकर चलने की धुन ने ही शायद उस से वह भूल हो जाने दी, जिस का पछतावा उस के जीवन से सारी उमंगें ही छीन ले गया.

कुछ देर को सब भूलभाल कर यदि वह खुश होती भी है तो ताई या मां सरीखी महिलाएं उसे पुरानी बातें याद दिला कर फिर से दुख के सागर में डूब जाने को विवश कर देती हैं.

नित्या को तैयार कराने की जिम्मेदारी ताई की बड़ी बहू पर थी. इस बीच नित्या ने कई बार मीता के बारे में जानना चाहा पर उसे टाल दिया गया. वह समझ गई कि मां ने मीता को एकांत में बैठने का आदेश दे दिया होगा ताकि लड़के वालों के सामने वह न पड़ने पाए.

लड़के वाले आ चुके थे और गहमागहमी बढ़ गई थी. सब के चेहरों पर नित्या के पसंद किए जाने की चिंता से अधिक संभवत: मीता का डर व्याप्त था. कहीं इन लोगों को भी भनक न लग गई हो कि लड़की की छोटी बहन अपने प्रेमी के साथ घर से भाग गई थी. हां, यही शब्द तो सब दोहराते हैं.

कितना भोंडा सा लगता है यह सब. क्या उस समय कोई भी मीता के हृदय में झांकना चाहता है? क्या बीतती होगी उस के मन पर. कैसी कोमल उमंगों के साथ सारे आडंबरों को अंगूठा दिखाती हुई वह अपने प्रेमी के साथ ब्याह रचाने गई थी.

वह भी इसलिए विवश हुई थी क्योंकि घर के सारे सदस्य एक विजातीय के साथ उस का विवाह करने को तैयार नहीं थे. कैसे उस ने अपने अरमानों का खयाली सेहरा उस व्यक्ति के सिर बांधा होगा और आर्य समाज मंदिर में चंद लोगों के समक्ष विवाह किया होगा.

इधर, हर तरफ उस की खोज के बाद पुलिस तक बात पहुंच गई थी. जब वह अपने पति के साथ स्कूटर पर घर वालों से मिलने आ रही थी, तभी पुलिस की जीप उन के पीछे लग गई.

मीता जल्दी से सीधे घर पहुंचना चाह रही थी कि तभी अचानक तेज रफ्तार के कारण घटी दुर्घटना में वह अपने सारे सपनों, सारे अरमानों से हाथ धो बैठी थी.

मीता अपने पति के शव पर ढंग से रो भी न पाई थी कि उसे घर वाले जबरदस्ती पकड़ कर ले आए थे.

मीता के ससुर ने एक पत्र द्वारा अपनी बहू को घर ले जाने का अनुरोध भी किया था पर उस के मातापिता ने उस विवाह को मान्यता देने से ही इनकार कर दिया था.

कई माह तक मीता एकदम गुमसुम हो गई थी. तब चुपकेचुपके नित्या ही उसे समझाती थी. लेकिन घर के शेष सदस्य उसे इस सब से बाहर निकलने ही नहीं दे रहे थे. एक भूल की उसे इतनी कठोर सजा मिलेगी, यह तो उस ने सोचा भी नहीं था. वह अपने ही घर में एक कैदी बना दी गई थी.

पढ़ाई बंद हो गई. समाज की दृष्टि से छिपा कर उसे घर के कार्यों में लगा दिया गया. अभी उस की बड़ी बहन कुंआरी थी. यदि मीता पर कठोर अनुशासन न बैठाया जाता तो नित्या का जीवन भी अंधकारमय हो जाता. हालांकि तमाम सावधानियों के बाद भी नित्या के विवाह में निरंतर बाधाएं आ रही थीं. इसलिए अब लड़के वालों से मीता को छिपाया जाता था.

मेज पर कई प्रकार की मिठाइयां, नमकीन और मेवे सजाए जा रहे थे. ताई की बहू अतिथियों को शीतल पेय पेश कर रही थी.

ताई, मां व पिताजी लड़के वालों के सामने जम कर बैठ गए. मीता को रसोई में चाय बनाने में व्यस्त कर दिया गया था. थोड़ी ही देर में नित्या चाय की ट्रे ले कर भाभी के साथ बैठक में आई तो सब की दृष्टि उस की तरफ उठ गई. मां व पिताजी की आंखें अतिथियों की नजरों की टोह लेने में जुट गईं.

मेहमानों में लड़का, उस के मातापिता, विवाहित बहन व छोटा भाई भी था. सभी उत्सुकता से नित्या को देख रहे थे. मातापिता नित्या से उस की पढ़ाई आदि के बारे में प्रश्न कर रहे थे.

नित्या से अधिक उन के प्रश्नों का उत्तर ताई दे रही थीं. तभी अचानक जैसे धमाका हुआ. लड़के के पिता ने नित्या से कहा, ‘‘बेटी, हम ने सुना था कि तुम 2 बहनें हो. तुम्हारी छोटी बहन दिखाई नहीं दे रही.’’

नित्या ने घबरा कर मां व पिताजी को देखा. ताई सहित सभी के चेहरे का रंग उड़ गया.

पिताजी ने स्थिति को संभालने के लिए कहा, ‘‘जी हां, वह बहुत शरमीली है. रसोई में व्यस्त है.’’

‘‘वाह, बहुत अच्छी चाय बनी है,’’ लड़के के पिता ने कहा. शेष मेहमान मुसकरा कर उन का साथ दे रहे थे.

तभी लड़के की मां ने कहा, ‘‘बुलाइए न उसे भी, मिल तो लें.’’

पिताजी, मां तथा ताई आदि मन ही मन पिता को कोसने लगे कि आखिर वह घड़ी आ ही गई जिस का डर था. सब एकदूसरे का मुंह देख कर जैसे आंखों ही आंखों में पूछ रहे थे कि अब क्या करें.

‘‘जाओ बेटी, तुम बुला लाओ अपनी बहन को. आखिर अपने होने वाले जीजाजी से उसे भी तो मिलना चाहिए.’’

उन की इस बात पर घर वालों की आंखों में जहां यह संकेत पा कर चमक आ गई थी कि नित्या उन्हें पसंद आ गई है, वहीं आगे अब क्या होगा, यह सोच कर उन का सिर चकराने लगा.

ये लोग कुछ कहते, उस से पहले ही नित्या उठ कर अंदर चली गई. उस की आंखों में प्रसन्नता की लहर थी कि उसे पसंद कर लिया गया है. पीछे से ताई उठने लगीं तो लड़के की मां ने कहा, ‘‘आप बैठिए, वह ले आएगी.’’

ताई को मन मार कर बैठना पड़ा. नित्या ने मीता को पहले यह समाचार सुनाया कि उसे शायद पसंद कर लिया गया है. सुनते ही मीता की आंखों में प्रसन्नता के आंसू आ गए पर बाहर चलने के नाम पर उस के मन में भय की लहर दौड़ गई.

थोड़ी देर बाद लड़के की बहन जब भाभी के साथ वहीं आ गई तो मीता को बाहर जाना ही पड़ा.

मां और पिताजी के चेहरों का रंग बुरी तरह उड़ा हुआ था, जैसे सुख हाथ में आतेआते छीना जा रहा हो. मीता को उन लोगों ने अपने बीच में ही बैठा लिया.

लड़के की मां ने हंसते हुए कहा, ‘‘भई, छोटी बहनें तो सब से पहले बड़ी बहन के होने वाले पति को पसंद करने आती हैं. तुम तो अंदर ही छिपी बैठी थीं.’’

मीता ने मुसकरा कर गरदन झुका ली, लेकिन इस से पहले एक भयभीत दृष्टि मातापिता पर डाल ली.

वे लोग नित्या को छोड़ मीता से ही बातें करने लगे तो मां ने उन का ध्यान भंग करते हुए कहा, ‘‘आप लोग मेज तक चलें, नाश्ता ठंडा हो रहा है.’’

‘‘हांहां, वहां भी चलेंगे,’’ लड़के के पिता ने कहा, ‘‘लेकिन पहले अपने घर की सब से बड़ी बहू से कुछ बातें तो कर लें.’’

उन्होंने स्नेहपूर्वक मीता को देखा तो मां व पिताजी भय व आश्चर्य से एकदूसरे का मुख देखने लगे. सोचने लगे कि शायद इन लोगों ने नित्या की जगह मीता को पसंद कर लिया है.

तभी लड़के के पिता ने कहा, ‘‘आप लोग मेरी बात पर इतना परेशान न हों. हमें मालूम है कि आप की छोटी बेटी ने विवाह किया था. जिस घर की यह बहू है वह हमारे अभिन्न मित्र ही नहीं, सगे भाई से भी बढ़ कर हैं.’’

मीता की आंखों में सोया हुआ दर्द जाग उठा था. मातापिता की समझ में नहीं आ रहा था कि अब उन्हें क्या करना चाहिए.

तभी लड़के की मां ने कहा, ‘‘हम मानते हैं कि मीता ने कुछ जल्दबाजी की, पर एक भूल आप से भी हुई. अगर उस सत्य को आप स्वीकार कर लेते तो उस घर का इकलौता दीपक इस तरह बुझने से शायद बच जाता.’’

उन लोगों की आंखें नम थीं. लड़के के पिता बोले, ‘‘जो हुआ सो हुआ, अब हम अपनी बहू को पूरी मानमर्यादा से लेने आए हैं.’’

‘‘क्या मतलब?’’ अचानक नित्या के पिता ने चौंक कर कहा.

मीता के सिर पर हाथ फेरते हुए लड़के के पिता बोले, ‘‘बेटी, तुम्हारा खोया सुख तो वापस नहीं दे पाएंगे हम लेकिन दुख भी नहीं देंगे कभी. हमारा छोटा बेटा यदि तुम्हें पसंद हो तो हम दोनों बहनों को एक ही दिन विदा करवा कर ले जाएंगे.’’

मीता ने धीरेधीरे पलकें उठा कर उधर देखा. एक सलोना युवक मंदमंद मुसकरा रहा था. जैसे इतनी घुटन के बीच शीतल हवा का एक झोंका उस की राह में खुशियां बिखेरने को उत्सुक हो रहा हो.

मीता ने मातापिता की ओर देखा और दुख व संकोच से गरदन झुका ली. नहीं, अब कोई निर्णय वह स्वयं नहीं करेगी. मालूम नहीं, फिर कौन सी भूल कर बैठे.

लेकिन उस के मातापिता कदाचित अपनी सोच से बाहर निकल चुके थे. अनायास ही पिता ने उठ कर लड़के के पिता के दोनों हाथ थाम लिए, ‘‘हमें अपनी भूल का बहुत पछतावा है.’’

मां ने भी खुशी के आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘हम अपनी दोनों बेटियों का रिश्ता आज ही करने को तैयार हैं.’’

घर में अचानक ही चारों ओर खुशियां बिखर गई थीं. शगुन की रस्म से पहले साडि़यां पहनते हुए नित्या ने अचानक मीता के कान में कहा, ‘‘मीतू, तेरे ‘उस’ की प्लेट में कितनी मिर्च डालूं कि जन्मभर ‘सीसी’ करता रहे…?’’

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