पिंजरे वाली मुनिया

Writer- Usha Rani

मरा हुआ मन भी कभीकभी कुलबुलाने लगता है. आखिर मन ही तो है, सो पति के आने पर उन्होंने हिम्मत कर ही डाली.

‘‘आज चलिए ‘मन मंदिर’ में चल कर परिणीता देख आते हैं. नई ऐक्ट्रेस का लाजवाब काम है. अच्छी ‘रीमेक’ है. मैं ने टिकट मंगवा लिया है.’’

‘‘टिकट मंगवा लिया? यह तुम्हारा अच्छाखासा ठहरा हुआ दिमाग अचानक छलांगें क्यों लगाने लगता है? पता है न कि पिक्चर हाल की भीड़भाड़ में मेरा दम घुटता है. मंगा लो सीडी, देख लो. इतना बड़ा ‘प्लाज्मा स्क्रीन’ वाला टीवी किस लिए लिया है? हाल के परदे से कम है क्या? तुम भी न तरंग, अपने ‘मिडिल क्लास टेस्ट’ से ऊपर ही नहीं उठ पातीं.’’

वह चुप हो गईं. पति से बहस करना, उन की किसी बात को काटना तो उन्होंने सीखा ही नहीं है. बात चाहे कितनी भी कष्टकारी हो, वह चुप ही लगा जाती हैं. वैसे यह भी सही है कि जितनी सुखसुविधा, आराम का, मनोरंजन का हर साधन यहां उपलब्ध है, इस की तो वह कभी कल्पना कर ही नहीं सकती थीं.

वह स्वयं से कई बार पूछती हैं कि इतना सबकुछ पा कर भी वह प्रसन्न क्यों नहीं? तब उन का अंतर्मन चीत्कार कर उठता है.

‘तरंग, क्या जीवन जीने के लिए, खुश रहने के लिए शारीरिक सुख- सुविधाएं ही पर्याप्त हैं? क्या इनसान केवल एक शरीर है? तो फिर मनुष्य और पशुपक्षी में क्या अंतर हुआ? तुम तो स्वच्छंद विचरती चिडि़या से भी बदतर हो. पिंजरे वाली मुनिया में और तुम में अंतर क्या है? तुम भी तो अपना मुंह तभी खोलती हो जब कहा जाए. ठीक वही बोलती हो जो सिखाया गया हो, न एक शब्द कम, न एक शब्द अधिक.’

और अपने अंतर्मन की इस आवाज को सुन कर उन का मन हाहाकार कर उठा. लेकिन घर आने वाला हर मेहमान, रिश्तेदार उन की तारीफ करते नहीं थकता कि तरंग अपनी बातों में शहद घोल देती हैं, सब का मन मोह लेती हैं.’’

वह सोचने लगीं कि सब का मन वह मोह लेती है, तो कोई कभी उन का मन मोहने की कोशिश क्यों नहीं करता?

एक साधारण मध्यवर्गीय परिवार की असाधारण लड़की. तीखे नाकनक्श, गोरा रंग, लंबा छरहरा शरीर. पढ़ने में जहीन, क्लास में हमेशा फर्स्ट. कभी पापा की सीमित आय में उसे सेंध नहीं लगानी पड़ी. फेलोशिप, स्कालरशिप, बुकग्रांट, बचपन से खुशमिजाज, हमेशा गुनगुनाती, लहराती, बलखाती लड़की को दादी कहतीं, ‘यह लड़की आखिर है क्या? कभी इसे रोते नहीं देखा, चोट लग जाए तो भी खिलखिला कर हंसना, दूसरों को हंसाना. इस का नाम तो तरंग होना चाहिए.’

और पापा ने सचमुच उन का नाम विजया से बदल कर तरंग कर दिया. वह ऐसी ही थीं. पूरी गंभीरता से पढ़ाई करते हुए गाने गुनगुनाना. चलतीं तो लगता दौड़ रही हैं, सीढि़यां उतरतीं तो लगता छलांगें लगा रही हैं. स्कूलकालिज में सब कहते, ‘तुम्हारा नाम बड़ा सोच कर रखा गया है. हमेशा तुम तरंग में ही रहती हो.’

और उस दिन उन की ननद कह रही थीं, ‘समझ में नहीं आता भाभी, आप का नाम आप के स्वभाव से एकदम उलटा क्यों रखा अंकलआंटी ने? आप इतनी शांत, दबीदबी और नाम तरंग.’

क्या कहतीं वह? कैसे कहतीं कि यहां, इस घर में आ कर तरंग ने हिलोरें लेना बंद कर दिया है.

बी.काम. के पहले साल में वह बहुत बीमार हो गई थीं. सब के मुंह यह सोच कर लटक गए थे कि तरंग का क्या हाल होगा, लेकिन वह सामान्य थीं बल्कि उन्होंने पापा को धीरज बंधाया, ‘पापा, क्या हो गया? यह सब तो चलता रहता है. मेरे पास 2 वर्ष हैं अभी तो, आप देखिएगा, गोल्ड मेडल मैं ही लूंगी.’

पापा आत्मविश्वास से ओतप्रोत उस नन्हे से चेहरे को निहारते ही रह गए थे. उन की बेटी थी ही अलग. उन्हें गर्व था उन पर. ड्रामा, डांस सब में आगे और पढ़ाई तो उन की मिल्कीयत, कालिज की शान थीं, प्रिंसिपल की जान थीं वह.

आई.आई.एम. कोलकाता के सालाना जलसे में स्टेज पर उर्वशी बनी तरंग सीधी सिद्धांत के दिल में उतर गईं. सारा अतापता ले कर सिद्धांत घर लौटे और रट लगा दी कि जीवनसंगिनी बनाएंगे तो उसी को.

मां ने समझाया, ‘देख बेटा, इतने साधारण परिवार की लड़की भला हमारे ऊंचे खानदान में कहां निभेगी? इन लोगों में ठहराव नहीं होता.’

जवाब जीभ पर था. ‘सब हो जाता है मां. आएगी तो हमारे तौरतरीकों में रम जाएगी. तेज लड़की है, बुद्धिमती है, सब सीख जाएगी.’

‘यह भी एक चिंता की ही बात है बेटा. इतनी पढ़ीलिखी, इतनी लायक है तो महत्त्वाकांक्षिणी भी होगी. आगे बढ़ने की, कुछ करने की ललक होगी. कहां टिक पाएगी हमारे घर में?’ पापा ने दबाव डालना चाहा.

‘पापा, आप भी…जब उसे घर बैठे सारा कुछ मिलेगा, हर सुखसुविधा उस के कदमों में होगी तो वह रानीमहारानी की गद्दी छोड़ कर भला चेरी बनने बाहर क्यों जाएगी?’

हर तर्क का जवाब हाजिर कर के सिद्धांत ने सब का मुंह ही बंद नहीं किया, उन्हें समझा भी दिया.

तरंग ब्याह कर आ गईं. तरंग के घर वालों की तो जैसे लाटरी खुल गई. भला कभी सपने में सोच सकते थे, बेटी के लिए ऐसा घर जुटाना तो दूर की बात थी. घर बैठे मांग कर ले गए लड़की.

तरंग भी बहुत खुश थी. सिद्धांत कद में उस के बराबर और जरा गोलमटोल हैं तो क्या हुआ. इतने बड़े ‘बिजनेस हाउस’ की वह अब मालकिन बन गई थीं.

मेहमानों के जाने, लोगों का आतिथ्य ग्रहण करने और मधुयामिनी से लौटते 2 महीने निकल गए. ऐसे खुशगवार दिन तो इसी तरह पंख लगा कर उड़ते हैं. माउंट टिटलस पर बर्फ के गोले एकदूसरे पर मारतेमरवाते स्विट्जरलैंड की सैर, तो कभी रोशनी से जगमगाते सुनहरे ‘एफिल टावर’ को निहारता पेरिस का कू्रज. वेनिस के जलपथ में अठखेलियां करते वे दोनों कब एकदूसरे के दिलों में ही नहीं शरीर में भी समा गए, पता ही नहीं चला. वे दो बदन एक जान बन चुके थे. ऐसे में कोई छोटीमोटी बात चुभी भी तो तरंग ने उसे गुलाब का कांटा समझ कर झटक दिया.

उस दिन पेरिस का मशहूर ‘लीडो शो’ देखने के लिए तरंग अपनी वह सुनहरी बेल वाली काली साड़ी ‘मैचिंग ज्वेलरी’ के साथ पहन कर इठलाती निकली तो सिद्धांत ने एकदम टोक दिया, ‘बदलो जा कर, यह क्या पहन लिया है? वह आसमानी रंग वाली शिफान पहनो, मोती वाले सेट के साथ.’

चुपचाप उन्होंने अपने वस्त्र बदल तो लिए थे पर कुछ समझ में नहीं आया कि इस में क्या बुराई थी. लेकिन उन सुनहरे पलों में वह कटुता नहीं लाना चाहती थीं. इसलिए चुप रहीं.

अब उस दिन कोकाकोलाके एम.डी. के यहां जाने के लिए उन्होंने बड़े शौक से मोतियोंके बारीक झालर वाली ड्रेस निकाल कर रखी थी, मोतियों के ही इटेलियन सेट के साथ. बाथरूम से बाहर निकलीं तो देखा सिद्धांत बड़े ध्यान से उस ड्रेस को देख रहे थे. खुश हो कर वह बोलीं, ‘अच्छी है न यह डे्रस?’

‘अच्छी है? मुझे तो यह समझ में नहीं आता कि तुम हमेशा यह मनहूस रंग लादने को क्यों तैयार रहती हो?’ सिद्धांत की आवाज में बेहद खीज थी.

चुपचाप तरंग ने गुलाबी सिल्क पहन ली, लेकिन अपनी छलछलाई आंखों को छिपाने के लिए उन्हें दोबारा बाथरूम में घुसना पड़ा था. उस के बाद उन्होंने सभी काले कपड़े अपने वार्डरोब से निकाल ही दिए. कभीकभी उन्हें अपने होने का जैसे एहसास ही नहीं होता. जब उन की अपनी कोई इच्छा ही नहीं तो उन का तो पूरा का पूरा अस्तित्व ही निषेधात्मक हो गया न? कितने सपने थे आंखों में, कितनी योजनाएं थीं मन में. विवाह के बाद तो उन योजनाओं ने और भी वृहद् रूप धर लिया था. इतने बड़े व्यवसाय का स्वामित्व तो सारी की सारी पढ़ाई को सार्थक कर देगा. पर हुआ क्या?

मन में उमंग और तरंग लिए मुसकरा कर जब उन्होंने सिद्धांत से कहा था, ‘अब बहुत हो चुकी मौजमस्ती, आफिस में मेरा केबिन तैयार करवा दीजिए. कल से ही मैं शुरू करती हूं. महीना तो काम समझने में ही लग जाएगा.’

सिद्धांत अवाक् उन का मुंह देखने लगे.

‘क्या हुआ? ऐसे क्या देख रहे हैं आप?’

‘तुम आफिस जाओगी? पागल हो गई हो क्या? हमारे खानदान की औरतें आफिस में?’

‘अरे, तो क्या इतनी मेहनत से अर्जित एम.बी.ए. की डिगरी बरबाद करूं घर बैठ कर? बोल क्या रहे हैं आप?’ वह सचमुच हैरान थीं.

‘हां, डिगरी ली, बहुत मेहनत की, ठीक है. पढ़ीलिखी हो, घर के बच्चों को पढ़ाओ, अखबार पढ़ो, पत्रिकाएं पढ़ो, टीवी देखो,’ इतना बोल कर सिद्धांत उठ कर चल दिए.

तरंग को काटो तो खून नहीं. मम्मीपापा की दी हुई सीख और पारिवारिक संस्कारों ने उन की जबान पर ताला जड़ दिया था. छटपटाहट में कई रातें आंखों में ही कट गईं. पर करें तो क्या करें? सोने का पिंजरा तोड़ने की तो हिम्मत है नहीं. और जैसा होता है, धीरेधीरे रमतेरमते वह उसी वातावरण की आदी हो गईं.

विद्रोह का सुर तो कभी नहीं उठा था पर अब भावना भी लुप्त हो गई. दिनमहीने इसी तरह बीतते गए. 4 साल में प्यारी सी पुलक और गुड्डा सा श्रीष तनमन को लहरा गए. अधूरे जीवन में संपूर्णता आ गई. पूरा दिन बच्चों में बीतने लगा. उन का पढ़नापढ़ाना और उसी में व्यस्त तरंग को देख सिद्धांत ने भी चैन की सांस ली. वरना तरंग का मूक विद्रोह और सूनी अपलक दृष्टि को झेलना कभीकभी सिद्धांत के लिए कठिन हो जाता.

वह कई बार संकल्प करती हैं कि जिस तरह उन के सपने चकनाचूर हुए, सारी कामनाएं राख हो गईं, ऐसा पुलक के साथ नहीं होने देंगी. पर विद्रोह की चिनगारी भड़कने से पहले ही राख हो जाती है. विदाई के समय दी गई मम्मी की नसीहत एकदम याद जो आ जाती है :

‘बेटी, तू हमेशा अपनी इच्छा की मालिक रही है. अपनी तरंग में कभी किसी को कुछ नहीं समझा तू ने. पर ससुराल में संभल कर रहना. हर बात को काटना, अपनी मरजी चलाना यह सब यहीं छोड़ जा. वैसे भी वे बड़े लोग हैं, उन का रखरखाव और तरह का है. तेरी किसी भी हरकत से उन की प्रतिष्ठा पर आंच नहीं आने पाए. जैसा वे कहें वैसा ही करना, जो वे चाहें वही चाहना, जितना वे सोचें उतना ही सोचना.’

और तरंग मम्मी की बात मान कर पिंजरे वाली मुनिया बन गईं. कितनी विचित्र होती हैं न इन भारतीय संस्कारी परिवारों की कन्याएं. पिता के घर से विदा होते समय हाथ से पीछे की ओर धान उछालती हुई अपनी प्रकृति, आदतें, प्रवृत्तियां सबकुछ छोड़ आती हैं. इसीलिए उन्हें दुहिता कहते हैं शायद. लेकिन एक जगह दिक्कत आ गई कि वह अपनी भावनाओं को, अपनी सोच को, ससुराली सांचे में नहीं ढाल पाईं. करतींकहतीं उन के मन की पर सोचतींमहसूसतीं उन से अलग. इसी अंतराल ने उन्हें अकसर झिंझोड़ा है, निचोड़ा है.

दिनों को महीनों में और महीनों को सालों में बदलने में भला देर कब लगती है? पुलक ने 12वीं कर ली है. एकदम मां जैसी वह भी बहुत जहीन है. उस ने जे.ई.ई. की स्क्रीनिंग पार कर ली है. सिद्धांत तो उस के प्रतियोगिता में बैठने के ही पक्ष में नहीं थे, तरंग ने ही जैसेतैसे मना लिया था. अब बारी आई है ‘मेन्स’ में बैठने की. पुलक ने अपने स्तर से भरपूर तैयारी की है और तरंग ने पूरी जान लगा दी है. फिजिक्स, केमिस्ट्री, मैथ्स को नए सिरे से रात भर जाग कर पढ़ा है तरंग ने. बेटी कहीं अटकी और समाधान ले कर मां तैयार. सिद्धांत सब देख रहे हैं और उन के पागलपन पर हंस रहे हैं.

घर के सभी लोगों ने कह दिया कि ‘मेन्स’ में बैठने की कोई जरूरत नहीं. जिस दर जाना नहीं वहां का पता क्या पूछना? लेकिन पुलक ने हार नहीं मानी. उस ने पापा से लाड़ लगाया, ‘पापा, मुझे सिर्फ जरा अपनी क्षमता मापने दीजिए. कौन सा मैं आ जाऊंगी? मैं ने तो कोचिंग वगैरह भी नहीं ली है, न ‘पोस्टल’ न ‘रेगुलर’. मेरी क्लास के बच्चों ने तो 2-2 कोचिंग ली हैं. दिल्ली जा कर टेस्ट दिए हैं, क्लासें की हैं. मैं जानती हूं पापा, आना मुश्किल ही नहीं, असंभव है. मैं तो बस, अपने आप को आजमाने के लिए बैठना चाहती हूं. प्लीज, पापा, प्लीज.’

और सिद्धांत पसीज गए. उन्होंने सोचा, आना तो है नहीं, करने दो पागलपन. बोले, ‘चल, कर ले शौक पूरा. तू भी क्या याद करेगी अपने पापा को.’

हंसती खिलखिलाती पुलक ‘मेन्स’ में बैठ गई. और यह क्या? शायद निषेध संघर्ष करने की क्षमता में एकदम वृद्धि कर देता है. व्यक्ति को अधिक गहनता से उत्साहित करता है. पुलक की तो रैंक भी 400 की आ गई है. आराम से दिल्ली में प्रवेश मिल जाएगा. ऐसा तो सचमुच न पुलक ने सोचा था और न ही तरंग ने. अब? मांबेटी दोनों ऐसी सकते में हैं जैसे कोई अपराध कर डाला हो. पुलक की इतनी बड़ी उपलब्धि इस परिवार के घिसेपिटे विचारों या पता नहीं झूठी मानमर्यादा के कारण एक पाप बन गई है. दूसरे परिवारों में तो बच्चे के 3-4 हजार रैंक लाने पर भी उस की पीठ ठोंकी जा रही होगी, जश्न मनाया जा रहा होगा. बेचारी पुलक का हफ्ता इसी उलझन में निकल गया कि बताए तो कैसे बताए?

तरंग भी हैरान हैं. वह मौके की तलाश में हैं कि यह खुशखबरी कैसे दें, कब दें. बात तो सचमुच हैरानी की है. दुनिया कहां से कहां छलांग लगा रही है. करनाल जैसे छोटे से शहर की कल्पना चावला ऐसी ऊंचाइयां छू सकती है तो उसी भारत के महानगर कोलकाता का यह परिवार इतना दकियानूसी? आज भी परिवार की मानमर्यादा के नाम पर पत्नी का, कन्या का ऐसा मानसिक शोषण? असल में पारिवारिक संस्कारों और परंपराओं का बरगद जब अपनी जड़ें फैला लेता है तो उसे उखाड़ फेंकना प्राय: असंभव हो जाता है. वही यहां भी हो रहा है.

‘काउंसलिंग’ की तारीख नजदीक आती जा रही है. घर में तूफान आया हुआ है, पुलक सब को मनाने की कोशिश में लगी हुई है लेकिन वे टस से मस होने को तैयार नहीं हैं. लड़की को इंजीनियर बनाने के लिए होस्टल भेज कर पढ़ाना कोई तुक नहीं है.

‘लड़की को इंजीनियर बना कर करना क्या है? नौकरी करानी है? साल 2 साल में शादी कर के अपना घर बसाएगी,’ दादाजी का तर्क है.

‘बेटा, इतनी ऊंची पढ़ाई करना, लड़के वाले सपने देखना कोई बुद्धिमानी नहीं. अब देख, तेरी मां ने भी तो आई.आई.एम. से एम.बी.ए. किया. क्या फायदा हुआ? एक सीट बरबाद हुई न? कोई लड़का आता, उस पर नौकरी करता तो सही इस्तेमाल होता उस सीट का. तू तो बी.एससी. कर के कालिज जाने का शौक पूरा कर ले,’ सिद्धांत ने बड़े प्यार से पुलक का सिर सहलाया.

तरंग ने सब सुना. उन्हें लगा, जैसे आरे से चीर कर रख दिया सिद्धांत के तर्क ने. खुद चोर ही लुटे हुए से प्रश्न कर रहा था. विवाह के 22 साल बीत चुके हैं. आज तक कभी उन्होंने सिद्धांत की कोई बात काटी नहीं है. तर्कवितर्क नहीं किया है. आज भी चुप लगा गईं. सहसा यादों की डोर थामे वह 24 साल पहले के अतीत में पहुंच गईं. आई.आई.एम. से तरंग के प्रवेश का कार्ड आने के बाद पापा परेशान थे.

‘क्या करूं कल्पना, कुछ समझ नहीं पा रहा हूं. लड़की के रास्ते की रुकावट बनना नहीं चाहता और उस पर उसे चलाने का साधन जुटाने की राह नहीं दिख रही. शान से सिर ऊंचा हो रहा है और शर्म से डूब मरने को मन कर रहा है,’ पापा सचमुच परेशान थे.

‘अरे, तो सोच क्या रहे हैं? भेजिए उसे.’

‘हां, भेजूं तो. पर होस्टल का खर्च उठाने की औकात कहां है हमारी?’

‘ओह, यह समस्या है? वह प्रबंध मैं ने कर लिया है. शकुंतला चाची की लड़की सुहासिनी कोलकाता में है. पिछले साल ही अभिराम का तबादला हुआ है. मेरी बात हो गई है सुहास से.’

‘लेकिन इतना बड़ा एहसान… बात एकदो दिन की नहीं पूरे 2 साल की है.’

‘हां, वह भी बात हो गई है मेरी. बड़ी मुश्किल से मानी. 1 हजार रुपया महीना हम किट्टू के नाम जमा करते रहेंगे.’

‘किट्टू?’

‘अरे, भई, उस की छोटी बेटी. बस, बाकी तरंग समझदार है. मौसी पर बोझ नहीं, सहारा ही बनेगी.’

बहुत बड़ा बोझ उतरा था पापा के सिर से, वरना वह तो पी.एफ. पर लोन लेने की सोच रहे थे. बेटी के उज्ज्वल भविष्य को अंधकार में बदलने की तो वह सोच ही नहीं सकते थे. एक वह पिता थे और एक यह सिद्धांत हैं. बेचारी पुलक आज्ञाकारिणी है, उन की तरह जिद्दी नहीं है. वह अपने पापा की आंखों में आंखें डाल कर कभी बहस नहीं करेगी. बस, मम्मी का आंचल पकड़ कर रो सकती है या घायल हिरणी की तरह कातर दृष्टि उन पर टिका सकती है.

अचानक तरंग को लगा कि वह अपने और पुलक के पापा की तुलना कर रही है, तो दोनों की मम्मियों की क्यों नहीं? उस की अनपढ़ मम्मी ने उपाय निकाला था और वह स्वयं इतनी शिक्षित हो कर भी असहाय हैं, मूक हैं, क्यों? कहीं उन की अपनी कमजोरी ही तो बेटी की सजा नहीं बन रही. उन की बेजबानी ने बेटी को लाचार बना दिया है. कुछ निश्चय किया उन्होंने और रात में सिद्धांत से बात कर डाली.

‘सिद्धांत, आप ने पुलक को मेरा उदाहरण दिया. पर जमाना अब बदल गया है. आज लड़कियां लड़कों की तरह अलगअलग क्षेत्रों में सक्रिय हैं और फिर जरूरी तो नहीं कि सब के विचार आप लोगों की ही तरह हों. समय के साथ विचारों में भी परिवर्तन आता है. हो सकता है उस की डिगरी मेरी तरह बरबाद न हो और डिगरी तो एक पूंजी है, जो मौका पड़ने पर सहारा बन सकती है. आप क्यों अपनी बेटी के पंख कतरने पर तुले हैं?’

जलती आंखों से देखा सिद्धांत ने, कि इस मुंह में जबान कैसे आ गई? फिर तुरंत मुसकरा पड़े. तीखे स्वर में बोले, ‘आ गया आंधी का झोंका तुम पर भी. ‘वुमेन इमैन्सिपेशन’? बेटी है न? तो सुनो, तुम्हारे बाप ने तुम्हें इसलिए पढ़ा दिया, क्योंकि उन्हें अपनी हैसियत का पता था. पढ़लिख कर नौकरी करेगी, अफसर बनेगी. उन्हें पता था कि वह किसी ऊंचे घराने में बेटी ब्याहने की हैसियत नहीं रखते. पर मुझे पता है कि मेरी औकात है अपनी बेटी को ऐसे ऊंचे खानदान में देने की, जहां वह बिना दरदर की खाक छाने राज करेगी. यह तो तुम्हारी किस्मत ने जोर मारा और तुम मुझे पसंद आ गईं, वरना इतने नीचे गिर कर भला हम लड़की उठाते? अब इस विषय में कोई बात नहीं होगी. दिस चैप्टर इस क्लोज्ड. बारबार एक ही बात दोहराना मुझे बिलकुल पसंद नहीं,’ और वह करवट बदल कर सो गए. तरंग की वह रात आंखों में कटी.

तीसरे दिन जिम से लौटने पर सिद्धांत बाहर टैक्सी खड़ी देख हैरान रह गए. पूछने ही वाले थे कि कमरे से तरंग को निकलते देखा. काले रंग की बालूचरी साड़ी में लिपटी उन की कोमल काया थोड़ी कठोर लग रही थी. हैरान होने की आज उन की बारी थी.

‘कहां जा रही हो? सुनीता के यहां, लेकिन इतनी सुबह?’

तरंग अपनी बचपन की सहेली सुनीता के यहां कभीकभी चली जाती हैं. वह सीधी आगे बढ़ कर सिद्धांत से मुखातिब हुईं.

‘नहीं, सुनीता के यहां नहीं. साढ़े 9 वाली फ्लाइट से दिल्ली जा रही हूं. किस लिए, यह आप समझ ही गए होंगे. वहां मैं रमण अरोड़ा के घर रुकूंगी. यह रहा उन का पता.’

उन्होंने सिद्धांत के हाथ में कार्ड पकड़ा दिया. तब तक पुलक हाथ में अटैची पकड़े अपने कमरे से बाहर आ चुकी थी. सिद्धांत तो इस कदर अकबका गए कि बोल ही बंद हो गए.

मांजी बाहर ही खड़ी थीं, उन्होंने चुप्पी तोड़ी, ‘लेकिन जा ही रही हो तो मौसी के घर रुक जातीं. गैरों के घर इस तरह…’

‘नहीं मम्मीजी, मौसी के घर रुकने में परिवार की बदनामी होगी. अकेली जा रही हूं न बेटी के साथ. क्या बहाना बनाऊंगी? और फिर कौन गैर, कौन अपना…’

सब के मुंह पर ताले लग गए. तरंग ने मांबाबूजी के पैर छुए. एक हाथ में पोर्टफोलियो और दूसरे से पुलक का हाथ पकड़ सीधे निकल गईं. मुड़ कर देखा तक नहीं.

अपनी सारी महत्त्वाकांक्षाएं, अरमान, मानसम्मान के पंखों को कतर कर पिंजरे में सिमटी वह मुनिया अपनी नन्ही चुनमुन के नए उगते पंखों को फैलाने से पहले ही कटते नहीं देख सकी और चल दी.

कहीं आप भी तो नहीं करती मेकअप करते समय ये 9 गलतियां

हम सब मेकअप तो करते हैं पर कई बार मेकअप करते समय हम कई सामान्‍य गल्तियां कर देते हैं जो हमारी सुंदरता में धब्‍बा बन जाती है. आइए मेकअप की कुछ गल्तियों को जानते हैं ताकि इन्‍हें करने से बचा जा सकें और आप परफेक्‍ट एंड ब्‍यूटीफुल दिख सकें.

1. सोने से पहले मेकअप न हटाना

कई बार आप अच्‍छा सा मेकअप करती हैं, पार्टी एंजाय करती हैं लेकिन उस मेकअप को चेहरे से नहीं उतारती हैं, जिससे आपका चेहरा खराब हो सकता है. रात को सोते समय मेकअप रिमूवर या बेबी औयल से मेकअप निकालना कतई न भूलें. इससे आपके चेहरे पर दानें या मुहांसे बिल्‍कुल नहीं होगें.

2. मेकअप ब्रश का इस्‍तेमाल

मेकअप को हाथों से पोतने की बजाय उसे मेकअप ब्रश से करें, तो ज्‍यादा अच्‍छा होगा. लेकिन इस ब्रशों को साफ भी रखना चाहिए. इन ब्रश को बेबी शैम्‍पू में डालकर धो दें, इससे इनकी शाइन नहीं जाएगी और सौफ्टनेस भी बरकरार रहेगी, अगर ये ब्रश खराब हो गए तो आपका मेकअप भी खराब हो जाएगा.

3. आंखों का मेकअप गलत तरीके से निकालना

कई महिलाएं, अपनी आंखों के मेकअप को निकालने के लिए उन्‍हे रगड़ डालती हैं, ऐसा कतई न करें. आंखें, नाजुक होती हैं उन्‍हे रगड़े नहीं बल्कि हल्‍के हाथों से कौटन में आईमेकअप रिमूवर से मेकअप छुड़ाने का प्रयास करें.

4. हर दिन वाटरप्रुफ मस्‍कारा लगाना

वाटरप्रुफ मस्‍कारा, हमेशा लगाना आपकी पलकों को नुकसान पहुंचा सकता है, इसलिए ऐसा करने से बचें. ऐसा करने से पलकें ड्राई हो जाती हैं और उनमें शाइन भी नहीं रह जाती है. अगर आपको मस्‍कारा लगाने का शौक है तो रेगुलर मस्‍कारा लगाएं, इससे आपकी पलकें हमेशा स्‍वस्‍थ रहेगी.

5. पूरे चेहरे पर ब्रौन्‍जर लगाना

महिलाओं को अपने चेहरे पर ब्रौन्‍जर लगाना बहुत पसंद होता है, और वो उसे पूरे चेहरे पर लगा लेती हैं. ऐसा कतई न करें, वरना आप खुद की स्‍कीन को चौपट कर रही हैं. इसे हल्‍का सा ही लगाएं और हल्‍का सा स्‍ट्रोक नाक वाले हिस्‍से पर दें. पूरे चेहरे पर न पोतें.

6. बहुत सारा फाउंडेशन चिपड़ लेना

कुछ औरतों को लगता है कि फाउंडेशन से उनके चेहरे में शाइन आ जाती है. ऐसा हरगिज नहीं है, फाउंडेशन आपके चेहरे पर इंस्‍टेन्‍ट ग्‍लो ला देता है लेकिन अगर उसे उचित मात्रा में लगाया जाएं. बहुत ज्‍यादा न लगाएं.

7. गलत ढंग से लिप लाइनर लगाना

कुछ फीमेल को लाइनर लगाना सही से नहीं आता है. लाइनर लिप को शेप देने के लिए लगाया जाता है न कि उसे लिपि‍स्‍टक की तरह इस्‍तेमाल करने के लिए. लिप लाइनर को होंठो के आकार में बाहरी आउटलाइन करके लगाएं. इसके बाद ही लिपिस्‍टक लगाएं.

8. सालों तक मेकअप प्रोडक्‍ट रखना

अगर खाने पीने के सामान की एक्‍सपायरी डेट हो सकती है तो मेकअप प्रोडक्‍ट भी खराब हो ही सकते हैं, इतनी सीधी सी बात उन लोगों की समझ में क्‍यों नहीं आती है जो सालों तक एक ही तरीके के प्रोडक्‍ट को संजों कर रखते हैं, ताकि वह उन्‍हे थोड़ा इस्‍तेमाल करके दिखाने के लिए रखे रहें.

9. बौडी को मौइश्‍चर न करना

अच्‍छी तरह चेहरा टिप-टौप कर लिया, हाथ पैरों में क्रीम लगा ली. लेकिन आपने अपनी बौडी को कभी मौइश्‍च नहीं किया. इससे आपकी त्‍वचा में रूखापन आ सकता है. अपनी बौडी की स्‍कीन को हाईड्रेट रखने के लिए हौट शावर लें, प्रदूषण से बचें और एवोकेडो औयल से मसाज करें.

मेरी वाइफ मुझे टाइम नहीं देती है, क्या करूं?

सवाल-

मैं 55 वर्षीय पुरुष हूं, मेरी पत्नी सुषमा मुझ से उम्र में 3 साल बड़ी है.  हमारी लवमैरिज हुई थी. शादी के इतने साल बहुत खुशी से बीते, परंतु अब पत्नी अपना सारा समय बच्चों व पोतेपोतियों को देती है. रात को भी पोतेपोतियों के कमरे में सोती है. मैं उसे कुछ बोलता हूं तो लड़ पड़ती है. मुझे कुछ सुझाव दीजिए.

जवाब-

इस उम्र में अकसर ऐसा होता ही है. व्यक्ति का रुझान अपने जीवनसाथी से हट कर अपने पोतेपोतियों की तरफ बढ़ जाता है. इस स्थिति में तो यही हो सकता है कि आप अपनी पत्नी से अपने दिल की बात कहें. यदि वह लड़ने लगे तो आप भी लड़ें और अपनी व्यथा उस से कहें. हर पल को जीने की कोशिश करिए. वह पोतेपोतियों के साथ अधिक रहती है तो आप भी उस तरफ बढि़ए. वह कहानियां सुनाए तो आप भी सुनिए और सुनाइए. जिंदगी आखिर ऐसे ही तो चलती है. सुबह साथ टहलने जाइए, गपशप करिए, बच्चे घर पर न हों तो दूरियों को नजदिकियों में बदलिए.

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कुछ दिनों से आलोक कुछ बदलेबदले से नजर आ रहे हैं. वे पहले से ज्यादा खुश रहने लगे हैं. आजकल उन की सक्रियता देख कर युवक दंग रह जाते हैं. असल में उन के घर में एक नन्ही सी खुशी आई है. वे पिता बन गए हैं. 52 साल की उम्र में एक बार फिर पिता बनने का एहसास उन को हर पल रोमांचित किए रखता है. इस खुशी को चारचांद लगाती हैं उन की 38 वर्षीय पत्नी सुदर्शना. सुदर्शना की हालांकि यह पहली संतान है लेकिन आलोक की यह तीसरी है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Summer Special: मिनटों में बनाएं ये 7 हैल्दी समर ड्रिंक्स, जानें आसान रेसिपी

आजकल बाजार में विभिन्न प्रकार के सौफ्ट ड्रिंक्स, कोल्ड ड्रिंक्स मौजूद हैं, जिन्हें पी कर गले को तर किया जा सकता है. ये बाजारू ड्रिंक्स थोड़ी देर के लिए ही राहत देते हैं और सेहत के लिए भी अच्छे नहीं होते. घर में बने ड्रिंक्स का कोई जवाब नहीं. थोड़ी सी मेहनत और पहले से भी थोड़ी तैयारी से झटपट गरमी से राहत देने वाले ड्रिंक्स बन सकते हैं. यदि इन में हर्बल चीजें डाल दें तो कहने ही क्या. यहां 7 ड्रिंक्स की बात कर रहे हैं जिन के मुश्किल से 10 मिनट में 5-6 गिलास तैयार हो जाएंगे.

तरबूज का शरबत: तरबूज में विटामिन सी, विटामिन ए, मैग्नीशियम, पोटैशियम जैसे लाभकारी तत्त्व पाए जाते हैं. यह शरीर में पानी की कमी को पूरा करता है.

तरबूज का जूस निकालने के लिए आसान तरीका है कि तरबूज के टुकड़ों को एक जार में डालें और हलके से हैंड ब्लैंडर चला दें. फिर छान लें ताकि बीज अलग हो जाएं. इस जूस में स्वादानुसार शुगर सिरप, कालानमक, कालीमिर्च, पुदीनापत्ती और नीबू का रस डालें. क्रश्ड लैमन आइस के साथ सर्व करें.

तरबूज के जूस का दालचीनी के साथ शरबत बनाएं. बीजरहित 500 ग्राम तरबूज के टुकड़ों में एक चौथाई चम्मच दालचीनी पाउडर, स्वादानुसार शुगर सिरप, नीबू का रस डाल कर चर्न करें. क्रश्ड आइस और पुदीनापत्ती से सजा कर सर्व करें.

कुकुंबर मिंट जूस: कुकुंबर मिंट जूस बनाने के लिए 2 मीडियम आकार के खीरे छील कर छोटे क्यूब्स में काट लें. एक मिक्सी जार में खीरे के टुकड़े, 1 नीबू का रस, थोड़ी सी पुदीनापत्ती, काला नमक, सादा नमक और 1 बड़ा चम्मच शुगर सिरप डाल कर मिक्सी में चर्न करें.

1 कप ठंडा पानी डाल कर पुन: चलाएं. फिर छान लें. क्रश्ड आइस पुदीने वाली डालें. नीबू का स्लाइस लगा कर सर्व करें.

नोट: खीरे की जगह 4 ककड़ी का भी प्रयोग कर सकती हैं.

सत्तू वाली छाछ: दही में थोड़ा पानी डाल कर चर्न करने से लस्सी बनती है. इस में आप कोई भी फल डाल कर जैसे अंगूरी लस्सी, आम की लस्सी, संतरे वाली लस्सी, कलाकंद वाली लस्सी बना सकते हैं. यदि जीरा व नमक आदि डाल कर बनाएं तो नमकीन लस्सी बन जाती है.

पुदीने वाली छाछ, सत्तू वाली नमकीन छाछ. मसाला छाछ आदि बना सकती हैं. छाछ और लस्सी दोनों ही पेट की जलन, ऐसिडिटी को भी दूर करती हैं और इन के सेवन से वजन भी नहीं बढ़ता है.

सत्तू वाली छाछ बनाना बहुत आसान है. बस 4 गिलास ठंडी छाछ ले कर उस में 4 चम्मच सत्तू, 1 बड़ा चम्मच शुगर सिरप, 2 छोटे चम्मच नीबू का रस, थोड़ी सी पुदीनापत्ती और काला व सफेद नमक डाल कर मिक्स करे लें. क्रश्ड आइस डाल कर सर्व करें.

कोकोनट कूलर: फ्रैश नारियल न हो तो नारियल पानी के कैन भी बाजार में उपलब्ध होते हैं. इस के पानी में पुदीनापत्ती, हरीमिर्च, लैमन, थोड़ा सा शुगर सिरप, चाटमसाला डाल कर चर्न कर सर्व करें.

चिया सीड्स के साथ भी बना सकते हैं. चिया सीड्स सेहत के लिए वैसे ही बहुत अच्छे होते हैं.

कोकोनट चिया सीड्स कूलर बनाने के लिए

1 कप नारियल पानी में 1 बड़ा चम्मच चिया सीड्स डाल कर चम्मच से चलाते रहें ताकि चिया सीड्स फूलने पर इकट्ठे न हों. इस में नीबू का रस, 2 कप नारियल पानी व जलजीरा पाउडर डालें. लैमन क्यूब्स को क्रश कर के मिलाएं. ठंडाठंडा सर्व करें.

आम पना: पके आम तो सब को अच्छे लगते हैं पर कच्चे आम भी कम नहीं. इन का सिर्फ अचार ही नहीं डाला जाता, ये गरमी से भी बचाव करते हैं. आम को उबाल कर छील लें फिर पीस कर चाशनी में मिलाएं, ठंडा पानी मिला कर सर्व करें.

इस का जलजीरा भी बहुत अच्छा लगता है. जलजीरा बनाने के लिए कच्चे या उबले आम में पुदीनापत्ती, अदरक, कालानमक, सफेद नमक, शुगर सिरप और जलजीरा पाउडर डाल कर मिक्सी में चर्न करें. छान कर क्रश्ड आइस क्यूब्स व बूंदी डाल कर सर्व करें.

खरबूजा शरबत: खरबूजे में 95 प्रतिशत पानी होता है. इस में भरपूर मात्रा में फाइबर होता है. शरीर में पानी की कमी को दूर करने के लिए खरबूजे का सेवन बेहतर विकल्प है. खरबूजे को ठंडे दूध के साथ मिला कर शेक बनाएं. यह बहुत ही तरावट देता है.

खरबूजे में खस का शरबत और थोड़ा दूध डाल कर चर्न करें. बढि़या शेक तैयार हो जाता मिनटों में.

बेल का शरबत: बेल ऐनर्जी बूस्टर है. इस का शरबत घर पर बनाना आसान है. इस के गूदे से बीजों को अलग कर गूदे में थोड़ी चीनी और नीबू का रस डाल कर चर्न कर के फ्रिज में रखें. 3-4 दिन आराम से चलेगा. बस ठंडा पानी और थोड़ा शुगर सिरप डाल कर पीएं.

लगभग 250 ग्राम पके बेल के पल्प में 500 ग्राम चीनी, 1 छोटा चम्मच नीबू का रस डाल कर चर्न कर छान लें. जब भी पीना हो सिर्फ 2 हिस्सा बेल लें व 2 हिस्सा ठंडा पानी मिला कर चर्न कर पुदीनापत्ती से सजा कर सर्व करें.

पहले से करें तैयारी

पहले से ड्रिंक्स बनाने की तैयारी के लिए शुगर सिरप बनाएं. एक बार बनाएं और 15-20 दिन की छुट्टी. शुगर सिरप 2 तरह के बना कर रखें. एक नौर्मल शुगर का व दूसरा ब्राउन शुगर का.

2 कप चीनी में 3/4 कप पानी डाल कर मीडियम आंच पर पकाएं. जब चीनी घुल जाए व उबलने लगे तब 2 मिनट और पकाएं. इस में 1 चम्मच नीबू का रस डाल कर आंच बंद कर दें. इस से चाशनी की गंदगी अलग हो जाएगी व चाशनी में क्रिस्टल नहीं बनेंगे. ठंडा कर के और छान कर कांच की बोतल में भर कर रख लें. इसी तरह ब्राउन शुगर का सिरप तैयार करें.

औरेंज जूस, मैंगो प्यूरी, लैमन जूस आदि में थोड़ी सी चाशनी, नीबू का रस व पुदीनापत्ती डाल कर आइसक्यूब ट्रे में जमा दें. फिर जिप वाले पाउच में भर कर रख लें. किसी भी जूस में ये आइसक्यूब्स क्रश कर के डालें. इस के अलावा जीरा पाउडर, कालीमिर्च पाउडर, चाटमसाला, काला नमक, खस सिरप आदि जरूर रखें. दही, खीरा, तरबूज, बेल, नीबू आदि तो गरमियों में घर पर होने ही चाहिए.

मार्मिक बदला: रौनक से कौनसा बदला लेना चाहती थी रागिनी

अखिलभारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के वार्षिक सम्मेलन में कई विषयों पर संगोष्ठियां हो रही थीं. एक शाम ऐसी ही एक संगोष्ठी के समाप्त होने पर कुछ डाक्टर उसी विषय पर बात करते हुए परिसर में बने अतिथिगृह में अपनेअपने कमरे की ओर जा रहे थे.

‘‘डा. रंजन ने ठीक कहा है कि सब बीमारियों की जड़ मिलावट और कुपोषण है,’’ एक डाक्टर कह रहा था, ‘‘जिस के चलते आधुनिक चिकित्सा कोई चमत्कार नहीं दिखा सकती.’’

‘‘सही कह रहे हैं डा. सतीश. ये दोनों चीजें जीवन का विनाश कर सकती हैं. मिलावटखोरों को मानवता का दुश्मन घोषित कर देना चाहिए.’’

‘‘मिलावटखोर ही नहीं आतंकवादी भी मानवता के दुश्मन हैं डा. चंद्रा. कितने ही खुशहाल घरों को पलभर में उजाड़ कर रख देते हैं, लेकिन आज तक उन पर ही कोई रोक नहीं लग सकी तो मिलावटखोरों पर कहां लगेगी? आज रोज कुपोषण की रोकथाम के लिए अनेक छोटेबड़े क्लब पांच सितारा होटलों में मिलते हैं  झुग्गी झोंपडि़यों में रहने वाले बच्चों को कितना दूध दिया जाए इस पर विचारविमर्श करने को…’’

‘‘आप ठीक कहते हैं डा. कबीर हम सिर्फ विचारविमर्श और बातें ही कर सकते हैं. इस से पहले की हम बातों में उल झ जाएं और डाइनिंगरूम में बैठने की जगह भी न मिले, चलिए अपनेअपने कमरे में जाने से पहले खाना खा लें,’’ डा. चंद्रा ने कहा.

सब लोग डाइनिंगरूम में चले गए. खाना खा कर जब सब बाहर निकले तो डा. चंद्रा ने कहा, ‘‘मैं तो फैमिली के लिए शौपिंग करने जा रहा हूं, आप लोग चलेंगे?’’

‘‘अभी से कमरे में बैठ कर भी क्या करेंगे, चलिए शौपिंग ही करते हैं. आप भी चलिए न डा. रौनक,’’ डा. कबीर ने बेमन से खड़े व्यक्ति की ओर देख कर कहा.

‘‘धन्यवाद डा. कबीर, लेकिन मु झे किसी चीज की जरूरत नहीं है.’’

‘‘हम अपनी जरूरत के लिए नहीं फैमिली के लिए शौपिंग करने जा रहे हैं.’’

‘‘लेकिन मेरी फैमिली भी नहीं है,’’ डा. रौनक का स्वर संयत होते हुए भी भीगा सा लग रहा था.

‘‘यानी आप घरगृहस्थी के चक्कर में नहीं पड़े हैं.’’

‘‘ऐसा तो नहीं है डा. चंद्रा,’’ डा. रौनक ने उसांस ले कर कहा, ‘‘जैसाकि कुछ देर पहले डा. कबीर ने कहा था कि आतंकवादी पलभर में एक खुशहाल परिवार को उजाड़ देते हैं. मेरी जिंदगी की खुशियां भी आतंकवाद की आंधी उड़ा ले गई. खैर छोडि़ए, ये सब. आप लोग चलिए, देर कर दी तो मार्केट बंद हो जाएगी,’’ किसी को कुछ कहने का मौका दिए बगैर डा. रौनक तेजी से अपने कमरे की ओर बढ़ गए.

‘‘मु झे यह आतंकवाद वाली बात करनी ही नहीं चाहिए थी. इसे सुनने के बाद ही डा. रौनक एकदम गुमसुम हो गए थे, खाना भी ठीक से नहीं खाया,’’ डा. कबीर बोले.

‘‘आप को मालूम थोड़े ही था कि डा. रौनक आतंकवाद के शिकार हैं,’’ डा. चंद्रा ने कहा.

‘‘हरेक शै के अच्छेबुरे पहलु होते हैं. डा. रौनक आतंकवाद का शिकार हैं और मेरे एक मित्र डा. भुपिंदर सिंह आतंकवाद के बैनिफिशियरी,’’ डा. सतीश ने कहा, ‘‘भुपिंदर की माताजी एक समाजसेविका हैं. उन्होंने आतंकवाद की शिकार एक युवती से उस की शादी करवा दी और भुपिंदर शादी के बाद बेहद खुश हैं.’’

‘‘अरे वाह, पहली बार सुना कि कोई समाजसेविका किसी हालात की मारी को अपनी बहू बना ले और बेटा भी मान जाए.’’

‘‘हम ने भी ऐसा पहली बार ही सुना और देखा था. असल में भुपिंदर की माताजी बहुत ही कड़क और अनुशासनप्रिय हैं और भुपिंदर ने सोचा था कि सुख से जीना है तो शादी मां की पसंद की लड़की से ही करनी होगी, चाहे अच्छी हो या बुरी. लेकिन मां ने तो उसे एक नायाब हीरा थमा दिया है…’’

‘‘यानी लड़की सुंदर और पढ़ीलिखी है?’’ कबीर ने बात काटी.

‘‘डाक्टर है और बेहद खूबसूरत. व्यस्त गाइनौकोलौजिस्ट होने के बावजूद सासूमां की समाजसेवा में समय लगाती है सो वे उस से बहुत खुश रहती हैं और भुपिंदर के घरसंसार में सुखशांति,’’ डा. चंद्रा ने बताया.

‘‘आप लोग जाइए शौपिंग के लिए, मैं डाक्टर रौनक के साथ कुछ समय बिताना चाहूंगा. उन की दुखती रग छेड़ने के बाद उन का ध्यान बंटाना तो बनता है,’’ डा. कबीर ने कहा.

डा. रौनक उन्हें गैस्टहाउस के लौन में ही टहलते हुए मिल गए, उन्होंने धीरे से उन के कंधे पर हाथ रख दिया.

‘‘अरे, आप डा. कबीर?’’ डा. रौनक ने चौंक कर कहा, ‘‘आप तो शौपिंग के लिए गए थे?’’

‘‘मगर यहां परदेश में आप को अकेले उदास छोड़ना अच्छा नहीं लगा सो लौट आया, शौपिंग कल कर लेंगे.’’

‘‘मेरे लिए इतना सोचने के लिए बहुतबहुत धन्यवाद कबीर भाई,’’ डा. रौनक नम्रता से बोले, ‘‘मेरी उदासी तो मेरी परछाईं है, देशपरदेश की साथिन उस के लिए आप अपना प्रोग्राम खराब मत करिए.’’

‘‘काहे का प्रोग्राम यार,’’ डा. कबीर भी अनौपचारिक हो गए, ‘‘हर जगह हर चीज मिलती है, लेकिन चाहे 2 रोज को भी अपने शहर से दूर जाओ फैमिली के लिए वापसी में कुछ ले कर आने का रिवाज बन गया है. बस इसीलिए भाई लोग बाजार चले गए हैं.’’

‘‘आप बिलकुल ठीक कह रहे हैं, बहुत पुराना रिवाज है यह. पापा जब भी दौरे पर जाते थे तो मां और बहनें अटकलें लगाने लगती थीं कि वे क्याक्या ले कर आएंगे.’’

‘‘और आप की पत्नी?’’

‘‘कह नहीं सकता, क्योंकि उस समय तो मेरी शादी ही नहीं हुई थी और शादी के बाद रागिनी को छोड़ कर कहीं जाना ही नहीं हुआ. बहुत ही कम समय मिला उस के साथ रहने को,’’ डा. रौनक ने गहरी सांस ले कर कहा.

‘‘उफ, आई एम सो सौरी,’’ डा. कबीर का स्वर भीग गया, ‘‘वैसे हुआ कैसे ये सब?’’

‘‘डाक्टर बनते ही पहली पोस्टिंग जम्मू के एक सीमावर्ती गांव में हुई थी. जगह सुंदर थी, खानेपीने की दिक्कत भी नहीं थी, लेकिन अकेलापन बहुत था और उसे ही बांटने के लिए मैं ने रागिनी से शादी कर ली. बहुत मजे में गुजर रही थी जिंदगी.

‘‘एक रात घंटी बजने पर जब मैं ने दरवाजा खोला तो मुंहसिर लपेटे 6-7 लोग

एकदम अंदर घुस आए. उन में से एक बुरी तरह जख्मी था. उन की वेशभूषा से ही मैं सम झ गया कि वे सब सीमापार के घुसपैठिए हैं. एक ने मु झ पर बंदूक तान कर कहा कि मैं उन के जख्मी साथी का इलाज करूं. उसे देखने के बाद मैं ने कहा कि उस के जख्म बहुत गहरे हैं और इलाज की दवाइयां मेरे पास नहीं हैं. मेरे पास तो तुरंत खून रोकने के लिए बांधने को पट्टी भी नहीं थी.

‘‘बीवी का दुपट्टा फाड़ कर बांधा और अपनी मोटरसाइकिल पर जा कर तुरंत जरूरी दवाइयां लाने को तैयार हो गया.

‘‘रागिनी जो गले से दुपट्टा खींचे जाने पर तिलमिलाई हुई थी चिल्ला कर बोली कि ये कहीं नहीं जाएंगे.’’

‘‘इस का तो बाप भी जाएगा और तेरी तो मैं अभी ऐसी की तैसी करता हूं,’’ दांत किटकिटाता एक बंदूकधारी रागिनी की ओर लपका.

‘‘इसे मारना नहीं हिरासत में रखना है असलम, तभी तो यह डाक्टर दवाइयां ले कर जल्दी से लौटेगा,’’ दूसरे बंदूकधारी ने उसे रोका.

‘‘ठीक कहते हो उस्ताद, तब तक इस औरत से हम खिदमत करवाते हैं. भूखे हैं कब से. चल, डाक्टर फौरन इलाज का सामान ले कर आ और देख पुलिसवुलिस को बुलाने की हिमाकत करी तो तेरी बीवी जिंदा नहीं बचेगी.’’

‘‘मेरे जिंदा रहने की फिक्र मत करना रौनक…’’ रागिनी चिल्लाई.

यही उस की गलती थी. घुसपैठिए सर्तक

हो गए और उन्होंने अपने एक साथी अकरम

को मेरे कपड़े पहना कर मेरी कमर में पिस्तौल सटा कर मेरे पीछे मोटरसाइकिल पर बैठा दिया. इस बीच रागिनी चिल्लाती रही कि मेरी परवाह मत करना.

‘‘उस के चिल्लाने से शायद मेरी हिम्मत बढ़ी और दवा की दुकान पर कई लोगों को देखते ही मैं चिल्ला पड़ा कि यह आतंकवादी है मु झे इस से बचाओ.’’

इस से पहले कि अकरम कुछ कर पाता कुछ लोगों ने उसे दबोच कर उस की पिस्तौल छीन ली. उस के बाद पुलिस और फिर मिलिटरी ने हमारे घर को घेर लिया. घर में चारों तरफ खिड़कियां थी जिन से घुसपैठिए गोलियां दाग कर किसी को घर के पास नहीं फटकने दे रहे थे और घर के करीब न कोईर् दूसरा घर था और न ही कोई पेड़, जिस पर चढ़ कर सिपाही छत पर पहुंच सकते.

‘‘रागिनी ने जिद कर के यह घर लिया ही इसलिए था कि ताक झांक का डर न होने से हम उन्मुक्त हो कर जीया करेंगे. कई घंटों तक अंदर से गोलाबारी बंद होने यानी घुसपैठियों के असले के खत्म होने का इंतजार करने के बाद हार कर हैलिकौप्टर के जरीए कमांडो छत पर उतारे गए. सब घुसपैठियों ने खुद को गोली मार दी.

‘‘रागिनी रसोई के फर्श पर बेसुध पड़ी थी. थोड़े से उपचार के बाद वह ठीक हो गई. उस ने बताया कि पहले तो घुसपैठिए उस से लगातार चाय, खाना बनवाते रहे, लेकिन मकान की घेराबंदी के बाद उन्होंने उस पर लातघूसें बरसाने शुरू कर दिए कि इसी के उकसाने पर डाक्टर पुलिस ले कर आया है. उस का कहना था कि इस के अलावा उन्होंने उस के साथ कुछ गलत नहीं किया. मु झे उस का यह कहना बिलकुल अविश्वसनीय लगा. इतनी खूबसूरत अकेली जवान औरत को कौन ऐसे ही छोड़ेगा और यह कहने के बाद कि यह हमारी खिदमत करेगी, हम भूखे हैं.

‘‘रागिनी का कहना था कि असलम का मतलब सिर्फ खाना बनवाने

और खाने से था. टीवी पर खबर देख कर मेरे और रागिनी के परिवार के लोग भी आ गए थे. रागिनी के घर वालों का तो पता नहीं, लेकिन मैं और मेरे घर वाले रागिनी की बात को मानने को तैयार नहीं थे कि रागिनी का बलात्कार नहीं हुआ है. जब रागिनी के मम्मीपापा जाने लगे तो रागिनी भी उन के साथ जाने को तैयार हो गई. मैं ने भी उसे रोकने की कोशिश नहीं की.’’

‘‘उस के बाद तो संपर्क किया होगा?’’ डा. कबीर ने पूछा.

‘‘डा. रौनक खिसिया गए कि उसी ने संपर्क किया था यह बताने को कि वह मां बनने वाली है… मैं ने छूटते ही कहा कि फिर तो पक्का हो गया कि उस के साथ बलात्कार हुआ था, क्योंकि मेरा बच्चा होने का तो सवाल ही नहीं उठता. मैं तो बेहद एहतियात बरतता था. सुन कर उस ने फोन रख दिया. उस के बाद आपसी सम झौते से हमारा तलाक हो गया. इसी बीच मु झे एमडी में दाखिला मिल गया और मैं ने खुद को पढ़ाई और फिर काम में  झोंक दिया.’’

‘‘रागिनी का हालचाल मालूम नहीं किया?’’

डा. रौनक ने इनकार में सिर हिलाया.

‘‘जिस गांव जाना नहीं उस की राह क्यों पूछता और पूछता भी किस से? एमडी करने वैल्लोर गया था, फिर वहीं से स्पैशलाइजेशन करने विभिन्न देशों में घूमता रहा सो किसी ऐसे से संपर्क ही नहीं रहा जो रागिनी के संपर्क में हो.’’

‘‘घर वालों ने शादी के लिए नहीं कहा?’’

‘‘पहली शादी के लिए ही जल्दी मचाते हैं सब लोग जो मैं ने खुद ही जल्दी मचा कर करवा ली थी. एमडी करने के दौरान ही मम्मीपापा चल बसे थे. रिश्तेदारों को दूसरी शादी करवाने का उत्साह नहीं होता और अपने को तो अकेले रहने की आदत पड़ चुकी है. बहुत देर हो गई है डा. कबीर, कमरे में चल कर आराम करना चाहिए शुभ रात्रि,’’ कह कर डा. रौनक ने हाथ मिलाया और अपने कमरे की ओर बढ़ गए.

डा. कबीर को उन का रवैया बहुत गलत लगा और उन की सहानुभूति अवहेलना में बदल गई. अगले रोज सिवा औपचारिक अभिवादन के उन्होंने डा. रौनक से कोई बात नहीं की. सम्मेलन खत्म होने के बाद सब अपनेअपने शहर लौट गए. प्राय सालभर बाद डा. कबीर को अपने भतीजे आलोक की शादी में अमृतसर जाना पड़ा. वहां शादी से पहले एक समारोह में उन के भाई ने उन्हें अपने पड़ोसी डा. भुपिंदर सिंह से मिलवाया. डा. कबीर को नाम कुछ जानापहचाना सा लगा. इस से पहले कि वे कुछ सोच पाते, उन की भतीजी ने डा. भुपिंदर सिंह से पूछा, ‘‘और सब नहीं आए अंकल?’’

‘‘सासबहू तो अपनी समाजसेवा से लौटने के बाद ही आएंगी, रूपिंदर टैनिस खेल कर आ गया है अभी कपड़े बदल कर आता होगा.’’

सासबहू और समाजसेवा… तार जुड़ते से लगे… डा. सतीश के दोस्त

भुपिंदर सिंह ही लगते हैं आतंकवाद के बैनिफिशियरी डा. कबीर दिलचस्पी से उन के पास ही बैठ गए. औपचारिक बातचीत खत्म भी नहीं हुई थी कि एक किशोर को देख कर डा. कबीर को जैसे करंट छू गया. हूबहू डा. रौनक की फोटोकौपी.

‘‘मेरा बेटा रूपिंदर, टैनिस की अंडर नाइनटीन प्रतियोगिता में भाग लेने की तैयारी कर रहा है,’’ डा भुपिंदर सिंह ने गर्व से बताया.

‘‘आई सी. और कितने बच्चे हैं आप के?’’

‘‘बस यही है जी, सवा लाख के बराबर एक. असल में इस के जन्म के बाद मम्मी ने इस की मां को अपनी अधूरी पढ़ाई पूरी करने में लगा दिया. एमबीबीएस तो कर ही चुकी थी, एमडी करने में व्यस्त हो गई और फिर स्पैशलाइजेशन के लिए हम दोनों ही विदेश चले गए और इन्हीं व्यस्तताओं के चलते रूपिंदर को भाईबहन दिलवाने का समय निकल गया.’’

हालांकि डा. रौनक ने यह नहीं बताया था कि उन की पत्नी भी डाक्टर थी. डा. कबीर को यकीन था कि वह रागिनी है और यह यकीन कुछ ही देर में पक्का हो गया जब किसी फैशन मैगजीन में छपी महिला की तसवीर से डा. भुपिंदर सिंह ने उन का परिचय करवाया, ‘‘मेरी पत्नी रागिनी और रागिनी ये आलोक के चाचा डा. कबीर पाल हैं.’’

रागिनी ने शालीनता से हाथ जोड़े और कहा, ‘‘आलोक के चाचा होने के नाते आप का हमारे घर आना भी बनता है भाई साहब, जाने से पहले आप जरूर आइएगा.’’

‘‘जी, जरूर. पत्नी यहीं कहीं होगी भाभीजी के आसपास, उन से मिलने पर सब तय कर लीजिएगा,’’ डा. कबीर ने विनम्रता से कहा और मन ही मन सोचा कि आप से तो मु झे अकेले में मिलना ही है… पिछले वर्र्ष सुनी एकतरफा कहानी का दूसरा पहलू जानने को.

पड़ोस में रहने वाली डाक्टर रागिनी कहां काम करती हैं यह पता लगाना मुश्किल नहीं था और यह भी कि किस समय वे अपेक्षाकृत कम व्यस्त होती हैं.

शादी के अगले रोज लंच के बाद डा. कबीर रागिनी के हस्पताल पहुंच गए. रागिनी लंच के बाद अपनी कुरसी पर ही सुस्ता रही थी. डा. कबीर को देख कर चौंकना स्वाभाविक था. डा. कबीर ने बगैर किसी भूमिका के बताया कि कैसे पिछले वर्ष एक मैडिकल कौन्फ्रैंस में उन की मुलाकात डा. रौनक से हुई थी और उन्होंने अपने को आतंकवाद का शिकार बताया था. उस के बाद डा. सतीश ने अपने एक दोस्त के बारे में बताया, जो आंतकवाद की शिकार युवती से शादी कर के बहुत खुश था.

‘‘डा. रौनक की कहानी सुन कर मु झे लगा कि वे आतंकवाद के शिकार नहीं अपने वहम और पूर्वाग्रहों के शिकार हैं,’’ डा. कबीर ने कहा, ‘‘यहां आने पर रूपिंदर को देख कर मैं सम झ गया कि आतंकवाद के जिस बैनिफिशियरी का जिक्र डा. सतीश कर रहे थे वे आप के पति ही हैं. बस, जिज्ञासावश डा. रौनक से सुनी कहानी का दूसरा पहलू सुनने चला आया हूं. अगर आप को बुरा लगा हो तो धृष्टता के लिए क्षमा मांग कर चला जाता हूं.’’

‘‘अरे नहीं भाई साहब, आप पहले व्यक्ति हैं, जिन्होंने मु झ से बगैर मिले रौनक को गलत कहा है सो अब तो आप न भी चाहें तो भी मैं आप को अपनी कहानी सुनाऊंगी ही,’’ रागिनी हंसी.

‘‘एलकेजी से एमबीबीएस तक का सफर मैं ने और रौनक ने साथ ही तय किया था, जाहिर है ंिंजदगी का सफर भी साथ ही तय करना था, लेकिन एमडी करने के बाद जब तक एमडी में दखिला नहीं मिलता तब तक तो नौकरी करनी ही थी. मु झे संयोग से अपने शहर में ही नौकरी मिल गई, लेकिन रौनक को जम्मू के एक सीमावर्ती गांव में हालांकि उस गांव में मेरे लिए कोई काम नहीं था फिर भी रौनक के अकेलेपन के रोने से द्रवित हो कर मैं ने मम्मीपापा को शादी के लिए मना लिया. उस रात जो हुआ वह अप्रत्याशित था, लेकिन उस से भी ज्यादा अप्रत्याशित था रौनक का व्यवहार.

‘‘रौनक के जाते ही घुसपैठियों ने मु झे चाय और फिर दालचावल बनाने को कहा. वे लोग खाना खा ही रहे थे कि पुलिस आ गई और खाना छोड़ कर उन्होंने खिड़कियों पर मोरचा संभाल लिया और आतेजाते मु झ पर लातघूसों की बौछार करते रहे. उन्हें इतना समय ही कहां मिला कि मेरे साथ कुछ करते, इस का सुबूत अधखाया खाना और चाय के जूठे बरतन थे.

‘‘उसी रौनक ने जिस ने यह कह कर शादी की थी कि वह मेरे बिना जीने की

कल्पना भी नहीं कर सकता, मु झ पर और सुबूतों पर यकीन करने से इनकार कर दिया. एक डाक्टर होने के नाते क्या रौनक को मालूम नहीं है कि कोई भी गर्भनिरोधक उपाय शतप्रतिशत सुरक्षित नहीं होता. खैर, सब के सम झाने के बावजूद मैं ने गर्भपात नहीं करवाया.

‘‘उस हालत में न तो नौकरी कर सकती थी न ही पढ़ाई, मगर खाली घर बैठना भी नहीं चाहती थी सो मैं ने समय काटने के लिए एक एनजीओ जौइन कर लिया. वहां की संचालिका स्नेहदीप कौर ने मु झे अपने पुत्र के लिए पसंद कर लिया और पुत्र ने भी यह कह कर किसी का भी बच्चा होने दो, कहलाएगा तो यह मेरा बच्चा ही और मैं इसे इतना अच्छा इनसान बनाऊंगा. मु झे शादी के लिए मना लिया. संयोग से रूपिंदर पासपड़ोस में भी सभी का चहेता है.

‘‘वैसे तो मैं रौनक को भूल चुकी हूं और मन ही मन उन घुसपैठियों का भी धन्यवाद करती हूं, जिन के कारण मु झे भुपिंदर जैसे पति और स्नेहदीप जैसी सास मिलीं, जिन के सहयोग से मैं आज एक जानीमानी गाइनौकोलौजिस्ट हूं, मगर अभी भी यदाकदा रौनक का व्यवहार याद कर के तिलमिला जाती हूं और उस से बदला लेने को जी चाहता है. आप के पास रौनक का पता है?’’

‘‘संपर्क तो नहीं रखा उस से, लेकिन यह तो जानता ही हूं कि कहां काम करता है. मिलना चाहेंगी उस से?’’

‘‘कदापि नहीं. बस उस से मूक बदला लेने को रूपिंदर की तसवीर भेजना चाहूंगी यह सिद्ध करने को कि न तो गर्भनिरोधक उपायों पर विश्वास करना चाहिए और न ही बचपन के प्यार पर जो करने की भूल मैं ने करी थी.’’

डा. कबीर ने चुपचाप एक कागज पर डा. रौनक का पता लिख दिया.

मेरा संसार: अतीत और वर्तमान के अंतर्द्वंद्व में उलझे व्यक्ति की कहानी

प्यार की किश्ती में सवार मैं समझ नहीं पा रहा था कि मेरा साहिल कौन है, रचना या ज्योति? एक तरफ रचना जो सिर्फ अपने बारे में सोचती थी. दूसरी ओर ज्योति, जिस की दुनिया मुझ तक और मेरी बेटी तक सीमित थी.

आज पूरा एक साल गुजर गया. आज के दिन ही उस से मेरी बातें बंद हुई थीं. उन 2 लोगों की बातें बंद हुई थीं, जो बगैर बात किए एक दिन भी नहीं रह पाते थे. कारण सिर्फ यही था कि किसी ऐसी बात पर वह नाराज हुई जिस का आभास मुझे आज तक नहीं लग पाया. मैं पिछले साल की उस तारीख से ले कर आज तक इसी खोजबीन में लगा रहा कि आखिर ऐसा क्या घट गया कि जान छिड़कने वाली मुझ से अब बात करना भी पसंद नहीं करती?

कभीकभी तो मुझे यह भी लगता है कि शायद वह इसी बहाने मुझ से दूर रहना चाहती हो. वैसे भी उस की दुनिया अलग है और मेरी दुनिया अलग. मैं उस की दुनिया की तरह कभी ढल नहीं पाया. सीधासादा मेरा परिवेश है, किसी तरह का कोई मुखौटा पहन कर बनावटी जीवन जीना मुझे कभी नहीं आया. सच को हमेशा सच की तरह पेश किया और जीवन के यथार्थ को ठीक उसी तरह उकेरा, जिस तरह वह होता है.

यही बात उसे पसंद नहीं आती थी और यही मुझ से गलती हो जाती. वह चाहती है दिल बहलाने वाली बातें, उस के मन की तरह की जाने वाली हरकतें, चाहे वे झूठी ही क्यों न हों, चाहे जीवन के सत्य से वह कोसों दूर हों. यहीं मैं मात खा जाता रहा हूं. मैं अपने स्वभाव के आगे नतमस्तक हूं तो वह अपने स्वभाव को बदलना नहीं चाहती. विरोधाभास की यह रेखा हमारे प्रेम संबंधों में हमेशा आड़े आती रही है और पिछले वर्ष उस ने ऐसी दरार डाल दी कि अब सिर्फ यादें हैं और इंतजार है कि उस का कोई समाचार आ जाए.

जीवन को जीने और उस के धर्म को निभाने की मेरी प्रकृति है अत: उस की यादों को समेटे अपने जैविक व्यवहार में लीन हूं, फिर भी हृदय का एक कोना अपनी रिक्तता का आभास हमेशा देता रहता है. तभी तो फोन पर आने वाली हर काल ऐसी लगती हैं मानो उस ने ही फोन किया हो. यही नहीं हर एसएमएस की टोन मेरे दिल की धड़कन बढ़ा देती हैं, किंतु जब भी देखता हूं मोबाइल पर उस का नाम नहीं मिलता.

मेरी इस बेचैनी और बेबसी का रत्तीभर भी उसे ज्ञान नहीं होगा, यह मैं जानता हूं क्योंकि हर व्यक्ति सिर्फ अपने बारे में सोचता है और अपनी तरह के विचारों से अपना वातावरण तैयार करता है व उसी की तरह जीने की इच्छा रखता है. मेरे लिए मेरी सोच और मेरा व्यवहार ठीक है तो उस के लिए उस की सोच और उस का व्यवहार उत्तम है. यही एक कारण है हर संबंधों के बीच खाई पैदा करने का. दूरियां उसे समझने नहीं देतीं और मन में व्यर्थ विचारों की ऐसी पोटली बांध देती है जिस में व्यक्ति का कोरा प्रेममय हृदय भी मन मसोस कर पड़ा रह जाता है.

जहां जिद होती है, अहम होता है, गुस्सा होता है. ऐसे में बेचारा प्रेम नितांत अकेला सिर्फ इंतजार की आग में झुलसता रहता है, जिस की तपन का एहसास भी किसी को नहीं हो पाता. मेरी स्थिति ठीक इसी प्रकार है. इन 365 दिनों में एक दिन भी ऐसा नहीं गया जब उस की याद न आई हो, उस के फोन का इंतजार न किया हो. रोज उस से बात करने के लिए मैं अपने फोन के बटन दबाता हूं किंतु फिर नंबर को यह सोच कर डिलीट कर देता हूं कि जब मेरी बातें ही उसे दुख पहुंचाती हैं तो क्यों उस से बातों का सिलसिला दोबारा प्रारंभ करूं?

हालांकि मन उस से संपर्क करने को उतावला है. बावजूद उस के व्यवहार ने मेरी तमाम प्रेमशक्ति को संकुचित कर रख दिया है. मन सोचता है, आज जैसी भी वह है, कम से कम अपनी दुनिया में व्यस्त तो है, क्योंकि व्यस्त नहीं होती तो उस की जिद इतने दिन तक तो स्थिर नहीं रहती कि मुझ से वह कोई नाता ही न रखे. संभव है मेरी तरह वह भी सोचती हो, किंतु मुझे लगता है यदि वह मुझ जैसा सोचती तो शायद यह दिन कभी देखने में ही नहीं आता, क्योंकि मेरी सोच हमेशा लचीली रही है, तरल रही है, हर पात्र में ढलने जैसी रही है, पर अफसोस वह आज तक समझ नहीं पाई.

मई का सूरज आग उगल रहा है. इस सूनी दोपहर में मैं आज घर पर ही हूं. एक कमरा, एक किचन का छोटा सा घर और इस में मैं, मेरी बीवी और एक बच्ची. छोटा घर, छोटा परिवार. किंतु काम इतने कि हम तीनों एक समय मिलबैठ कर आराम से कभी बातें नहीं कर पाते. रोमी की तो शिकायत रहती है कि पापा का घर तो उन का आफिस है. मैं भी क्या करूं? कभी समझ नहीं पाया. चूंकि रोमी के स्कूल की छुट्टियां हैं तो उस की मां ज्योति उसे ले कर अपने मायके चली गई है.

पिछले कुछ वर्षों से ज्योति अपनी मां से मिलने नहीं जा पाई थी. मैं अकेला हूं. यदि गंभीरता से सोच कर देखूं तो लगता है कि वाकई मैं बहुत अकेला हूं, घर में सब के रहने और बाहर भीड़ में रहने के बावजूद. किंतु निरंतर व्यस्त रहने में उस अकेलेपन का भाव उपजता ही नहीं. बस, महसूस होता है तमाम उलझनों, समस्याओं को झेलते रहने और उस के समाधान में जुटे रहने की क्रियाओं के बीच, क्योंकि जिम्मेदारियों के साथ बाहरी दुनिया से लड़ना, हारना, जीतना मुझे ही तो है.

गरमी से राहत पाने का इकलौता साधन कूलर खराब हो चुका है जिसे ठीक करना है, अखबार की रद्दी बेचनी है, दूध वाले का हिसाब करना है, ज्योति कह कर गई थी. रोमी का रिजल्ट भी लाना है और इन सब से भारी काम खाना बनाना है, और बर्तन भी मांजना है. घर की सफाई पिछले 2 दिनों से नहीं हुई है तो मकडि़यों ने भी अपने जाले बुनने का काम शुरू कर दिया है.

उफ…बहुत सा काम है…, ज्योति रोज कैसे सबकुछ करती होगी और यदि एक दिन भी वह आराम से बैठती है तो मेरी आवाज बुलंद हो जाती है…मानो मैं सफाईपसंद इनसान हूं…कैसा पड़ा है घर? चिल्ला उठता हूं.

ज्योति न केवल घर संभालती है, बल्कि रोमी के साथसाथ मुझे भी संभालती है. यह मैं आज महसूस कर रहा हूं, जब अलमारी में तमाम कपडे़ बगैर धुले ठुसे पडे़ हैं. रोज सोचता हूं, पानी आएगा तो धो डालूंगा. मगर आलस…पानी भी कहां भर पाता हूं, अकेला हूं तो सिर्फ एक घड़ा पीने का पानी और हाथपैर, नहाधो लेने के लिए एक बालटी पानी काफी है.

ज्योति आएगी तभी सलीकेदार होगी जिंदगी, यही लगता है. तब तक फक्कड़ की तरह… मजबूरी जो होती है. सचमुच ज्योति कितना सारा काम करती है, बावजूद उस के चेहरे पर कोई शिकन तक नहीं देखी. यहां तक कि कभी उस ने मुझ से शिकायत भी नहीं की. ऊपर से जब मैं दफ्तर से लौटता हूं तो थका हुआ मान कर मेरे पैर दबाने लगती है. मानो दफ्तर जा कर मैं कोई नाहर मार कर लौटता हूं. दफ्तर और घर के दरम्यान मेरे ज्यादा घंटे दफ्तर में गुजरते हैं. न ज्योति का खयाल रख पाता हूं, न रोमी का. दायित्वों के नाम पर महज पैसा कमा कर देने के कुछ और तो करता ही नहीं.

फोन की घंटी घनघनाई तो मेरा ध्यान भंग हुआ.

‘‘हैलो…? हां ज्योति…कैसी हो?…रोमी कैसी है?…मैं…मैं तो ठीक हूं…बस बैठा तुम्हारे बारे में ही सोच रहा था. अकेले मन नहीं लगता यार…’’

कुछ देर बात करने के बाद जब ज्योति ने फोन रखा तो फिर मेरा दिमाग दौड़ने लगा. ज्योति को सिर्फ मेरी चिंता है जबकि मैं उसे ले कर कभी इतना गंभीर नहीं हो पाया. कितना प्रेम करती है वह मुझ से…सच तो यह है कि प्रेम शरणागति का पर्याय है. बस देते रहना उस का धर्म है.

ज्योति अपने लिए कभी कुछ मांगती नहीं…उसे तो मैं, रोमी और हम से जुडे़ तमाम लोगों की फिक्र रहती है. वह कहती भी तो है कि यदि तुम सुखी हो तो मेरा जीवन सुखी है. मैं तुम्हारे सुख, प्रसन्नता के बीच कैसे रोड़ा बन सकती हूं? उफ, मैं ने कभी क्यों नहीं इतना गंभीर हो कर सोचा? आज मुझे ऐसा क्यों लग रहा है? इसलिए कि मैं अकेला हूं?

रचना…फिर उस की याद…लड़ाई… गुस्सा…स्वार्थ…सिर्फ स्वयं के बारे में सोचनाविचारना….बावजूद मैं उसे प्रेम करता हूं? यही एक सत्य है. वह मुझे समझ नहीं पाई. मेरे प्रेम को, मेरे त्याग को, मेरे विचारों को. कितना नजरअंदाज करता हूं रचना को ले कर अपने इस छोटे से परिवार को? …ज्योति को, रोमी को, अपनी जिंदगी को.

बिजली गुल हो गई तो पंखा चलतेचलते अचानक रुक गया. गरमी को भगाने और मुझे राहत देने के लिए जो पंखा इस तपन से संघर्ष कर रहा था वह भी हार कर थम गया. मैं समझता हूं, सुखी होने के लिए बिजली की तरह निरंतर प्रेम प्रवाहित होते रहना चाहिए, यदि कहीं व्यवधान होता है या प्रवाह रुकता है तो इसी तरह तपना पड़ता है, इंतजार करना होता है बिजली का, प्रेम प्रवाह का.

घड़ी पर निगाहें डालीं तो पता चला कि दिन के साढे़ 3 बज रहे हैं और मैं यहां इसी तरह पिछले 2 घंटों से बैठा हूं. आदमी के पास कोई काम नहीं होता है तो दिमाग चौकड़ी भर दौड़ता है. थमने का नाम ही नहीं लेता. कुछ चीजें ऐसी होती हैं जहां दिमाग केंद्रित हो कर रस लेने लगता है, चाहे वह सुख हो या दुख. अपनी तरह का अध्ययन होता है, किसी प्रसंग की चीरफाड़ होती है और निष्कर्ष निकालने की उधेड़बुन. किंतु निष्कर्ष कभी निकलता नहीं क्योंकि परिस्थितियां व्यक्ति को पुन: धरातल पर ला पटकती हैं और वर्तमान का नजारा उस कल्पना लोक को किनारे कर देता है. फिर जब भी उस विचार का कोना पकड़ सोचने की प्रक्रिया प्रारंभ होती है तो नईनई बातें, नएनए शोध होने लगते हैं. तब का निष्कर्ष बदल कर नया रूप धरने लगता है.

सोचा, डायरी लिखने बैठ जाऊं. डायरी निकाली तो रचना के लिखे कुछ पत्र उस में से गिरे. ये पत्र और आज का उस का व्यवहार, दोनों में जमीनआसमान का फर्क है. पत्रों में लिखी बातें, उन में दर्शाया गया प्रेम, उस के आज के व्यवहार से कतई मेल नहीं खाते. जिस प्रेम की बातें वह किया करती है, आज उसी के जरिए अपना सुख प्राप्त करने का यत्न करती है. उस के लिए पे्रेम के माने हैं कि मैं उस की हरेक बातों को स्वीकार करूं. जिस प्रकार वह सोचती है उसी प्रकार व्यवहार करूं, उस को हमेशा मानता रहूं, कभी दुख न पहुंचाऊं, यही उस का फंडा है.

अनियमित Periods का समय पर जरूरी है इलाज

देश में 33% महिलाएं अनियमित पीरियड्स की समस्या की शिकार हैं. कभी देरी से पीरियड तो कभी समय से पहले पीरियड्स का आ जाना उन के लिए परेशानी का कारण बना हुआ है, जिसके कारण उनके स्ट्रैस लेवल में भी काफी बढ़ोतरी देखने को मिलती है. आइए जानते हैं अनियमित पीरियड्स के लिए कौनकौन से कारण हैं जिम्मेदार:

स्ट्रैस बड़ा कारण: आज की भागतीदौड़ती जिंदगी, बढ़ती प्रतिस्पर्धा व अपने खानपान का सही से ध्यान नहीं रखने के कारण हमारे स्ट्रैस का लेवल बढ़ने के साथसाथ शरीर में हार्मोन्स का संतुलन बिगड़ने लगता है. जिसमें सबसे अहम हार्मोन्स हैं प्रोजेस्टोरोन, एस्ट्रोजन जिनकी वजह से पीरियड्स अनियमित हो जाते हैं. क्योंकि स्टै्रस से इनका स्तर गिरता है, जबकि प्रोजेस्टोरोन का बढ़ता स्तर ही पीरियड्स को रेगुलर करने का काम करता  है. इसी हार्मोन की वजह से यूटरस की लाइनिंग थिक होकर आपका यूटरस प्रैगनैंसी के लिए तैयार होता है. और इसमें गड़बड़ी बिलकुल ठीक नहीं है.

पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम: पीसीओडी ये नाम तो आपने सुना ही होगा. क्योंकि ये समस्या आजकल हर दूसरी महिला को है. इसकी वजह से न सिर्फ पीरियड्स अनियमित होते हैं बल्कि पीरियड्स के दौरान पेट के निचले हिस्से में असहनीय दर्द के साथ इनफर्टिलिटी की समस्या भी हो जाती है. यहां तक कि वजन में तेजी से बढ़ोतरी होने के साथसाथ चेहरे पर अनचाहे बाल उग आते हैं, जो कोन्फिडेन्स को भी कम करने का काम करते हैं.

फाइब्रोइड: ये अकसर यूटरस की लाइनिंग के बाहर या अंदर होता है. ये जरूरी नहीं कि हर फाइब्रोइड आगे चलकर  कैंसर ही बने, लेकिन अगर आपके पीरियड्स देरी से आते हैं, पीरियड्स के दौरान काफी दर्द महसूस हो, खून की भी कमी हो, सैक्स के दौरान या पीरियड्स आने से पहले निचले हिस्से में काफी दर्द हो तो तुरंत डाक्टर को दिखाएं, क्योंकि इसका कारण फाइब्रोइड हो सकता है. जिसे समय पर इलाज से कंट्रोल किया जा सकता है.

एंडोमेट्रिओसिस: यह एक ऐसी स्थिति है, जिसमें टिशू आमतौर पर गर्भाशय में नहीं बल्कि गर्भाशय से बाहर बढ़ते हैं. इसके कारण पीरियड्स के दौरान हैवी ब्लीडिंग, कमर दर्द, पेट के निचले हिस्से में दर्द होने के साथ पीरियड्स सर्किल सामान्य नहीं होता है. साथ ही समय पर इलाज नहीं होने पर ये बांझपन का भी कारण बन जाता है.

थाइरोइड की शिकायत: अधिकांश उन महिलाओं में पीरियड्स अनियमित होने  की शिकायत देखी गई है, जिन्हें थाइरोइड की शिकायत होती है. इस स्थिति में पीरियड्स समय पर नहीं होना, वजन में बढ़ोतरी की समस्या ज्यादा देखने को मिलती है.

ज्यादा वजन होना: ज्यादा वजन होने से हार्मोन्स में गड़बड़ी होने व इन्सुलिन के लेवल पर प्रभाव पड़ता है. यह पीरियड्स सर्किल को बिगाड़ने का काम करता है.

क्या है उपचार

– अगर आपका पीरियड्स सर्किल 2-3 महीने से गड़बड़ाया हुआ है तो डाक्टर होर्मोन्स संबंधित कुछ जरूरी टेस्ट करवाते हैं.

– फाइब्रोइड, सिस्ट का पता लगाने के लिए पेल्विक अल्ट्रासाउंड करवाया जाता है.

– एंडोमेट्रिल बायोप्सी के जरीए यूटरस की लाइनिंग से टिशू को लेकर अनियमित सेल्स व एंडोमेट्रिओसिस के बारे में पता लगाया जाता है.

– डाक्टर सारी रिपोर्ट्स व नतीजों के बाद जरूरत होने पर हार्मोनल थेरैपी, सर्जरी करवाने की सलाह, पीरियड्स रेगुलर करने वाली मेडिसिन्स देते हैं.

इन्हें अपनी डाइट में करें शामिल 

– पपीते में कैरोटीन नामक तत्त्व होता है, जो एस्ट्रोजन हार्मोन के लेवल को ठीक करके आपके पीरियड सर्किल को ठीक करने का काम करता  है.

– हलदी में एंटीइंफ्लेमेटरी प्रोपर्टीज होने के कारण ये हार्मोन्स को बैलेंस में करने के साथसाथ पीरियड्स के दर्द से भी राहत दिलवाने का काम करती है.

– चुकुंदर में फोलिक एसिड व आयरन होने के कारण ये हीमोग्लोबिन के लेवल को बढ़ाकर अनियमित पीरियड्स की प्रौब्लम को ठीक करता है.                  –

‘कटक की बेटी कटक की बहू’ का बुलंद नारा, इंडोवेस्टर्न इमेज ने सोफिया को बनाया उड़ीसा की पहली मुस्लिम महिला MLA


इंडियन पौलिटिक्स में सोफिया फिरदौस नाम कुछ नयानया सा है लेकिन हो सकता

है कुछ सालों बाद यह नाम एक बड़ी शक्ल अख्तियार कर ले.  सोफिया का सबसे
छोटा इंट्रोडक्शन है यह उड़ीसा की पहली मुस्लिम महिला विधायक हैं

लीक से हटकर करने की चाहत 


32 साल
की इस विधायक के चेहरे पर सदा सॉफ्ट सी स्माइल बिखरी रहती है लेकिन
कम उम्र में इन्होंने बड़ी उपलब्धि हासिल की है. सोफिया ने 2024 के उड़ीसा
विधानसभा चुनाव में बाराबती-कटक सीट से जीत हासिल की है. सोफिया फिरदौस को सलवार कुर्ता, साड़ी जैसे ट्रेडिशनल ड्रेस के साथसाथ मॉर्डन ड्रेसेज में भी देखा जाता है. इस वजह से उनकी इमेज प्रोग्रेसिव इंडियन मुस्लिम वुमन की है. बिजनेसमैन शेख मेराज उल हक के साथ इनकी शादी हुई है.  

 

क्वालिफिकेशन के मामले में भी आगे
सोफिया की कई क्वालिटीज में से एक हैं उनका एकेडमिक क्वालिफिकेशन. इनके
पास प्रबंधन और सिविल इंजीनियरिंग दोनों की डिग्रियां है. इन्होंने भुवनेश्वर के कलिंग इंस्टीट्यूट ऑफ इंडस्ट्रियल टेक्नोलौजी से सिविल इंजीनियरिंग करने के बाद बेंगलुरू के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट से एग्जीक्यूटिव जनरल मैनेजमेंट प्रोग्राम में डिप्लोमा भी किया. चुनाव लड़ने के पहले वह अपने पिता की कंपनी मेट्रो बिल्डर्स में बतौर डायरेक्टर काम कर रही थी. 

एक विवाद भी सोफिया के साथ
कटक में जन्मी सोफिया के पिता कांग्रेस के पूर्व विधायक मो. मोकिम हैं. साल 2024 मे सुप्रीम कोर्ट ने ओडिशा ग्रामीण आवास और विकास निगम ऋृण धोखाधड़ी के मामले में सोफिया के पिता मो. मोकिम  को दोषी ठहराया था  इसी वजह से उन्हें चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य माना गया. तब सोफिया ने रियल एस्टेट डेवलर के अपने कैरियर को विराम देकर पिता मो. मोकिम के कहने पर बारामती-कटक सीट से चुनावी रण में उतरने का फैसला किया. सोफिया ने बीजेपी के प्रत्याशी पूर्णा चंद्रा महापात्रा को 8001 मतों के अंतर से हराया. उड़ीसा में इस बार बीजेपी की लहर होने के बावजूद सोफिया की जीत बहुत मायने रखती है. 

इतिहास का अनूठा
यह एक महज संयोग की बात है कि उड़ीसा की पहली महिला सीएम नंदनी सतपथी ने भी 1972 में बारामती कटक सीट से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंची थी. कटक की बेटी कटक की बहू को अपना चुनावी नारा बनानेवाली सोफिया ने अपनी जीत के बाद कहा कि वे  क्रिश्चियन स्कूल से पढ़ीलिखी हैं, चर्च जाती रही हैं, माइनोरिटी से होने के बाद खुद को इस समुदाय के सदस्य के तौर पर नहीं देखा 

दिल की सुनें या दिल की फिक्र करें महिलाएं

आज के समय में शराब की शौकीन महिलाओं की कमी नहीं है. पहले कुछ महिलाएं ही इस लत को अपनाती थीं मगर अब पुरुषों के कंधे से कन्धा मिला कर औरतें भी इस का मजा लेती हैं. कभी लेट नाईट पार्टी, कभी कुछ जीत जाने का जश्न, कभी अधिक काम का प्रेशर और कभी पुराने दोस्त से मिलने की ख़ुशी. कभी ब्रेकअप का दर्द तो कभी प्यार हासिल कर लेने की मस्ती. कहने का मतलब यह है कि आज औरतों के पास मदिरा गटकने के बहानों की कमी नहीं है. एक दो ड्रिंक्स में उन का दिल नहीं भरता तो बहुत से ड्रिंक्स ले कर होशोहवास खोने का मजा लेती हैं.

क्या कहता है रिसर्च

लेकिन वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार शराब यानी अल्कोहल का सेवन करना किसी भी व्यक्ति के लिए फायदेमंद नहीं होता है. अल्कोहल की एक बूंद भी सेहत के लिए खतरे पैदा कर सकती है. एक हालिया रिसर्च भी इसी बात का दावा कर चुकी है. अमेरिकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी (ACC) की एक स्टडी में पता चला है कि रोजाना शराब पीने वाली महिलाओं को अन्य की तुलना में हार्ट डिजीज का खतरा कई गुना ज्यादा होता है.

इस स्टडी के अनुसार जो महिलाएं प्रतिदिन ज्यादा शराब का सेवन करती हैं उनमें मध्यम मात्रा में शराब पीने वाली महिलाओं की तुलना में हार्ट डिजीज का खतरा 45% अधिक हो सकता है. जबकि ज्यादा शराब पीने वाले पुरुषों में मॉडरेट ड्रिंकिंग वाले पुरुषों की तुलना में हार्ट डिजीज का खतरा 22% अधिक होता है. इस अध्ययन से पता चलता है कि युवा से लेकर मध्यम आयु वर्ग की जो महिलाएं हर सप्ताह 8 या इस से ज्यादा अल्कोहल वाली ड्रिंक्स पीती हैं उनमें कोरोनरी हार्ट डिजीज का खतरा काफी अधिक था. खास बात यह रही कि स्टडी में महिलाओं में शराब और हृदय रोग के बीच मजबूत संबंध देखने को मिला.

शोधकर्ताओं ने इस रिसर्च में 430,000 से अधिक लोगों के डेटा का विश्लेषण किया जिसमें 243,000 पुरुष और 189,000 महिलाएं शामिल थीं. अध्ययन की शुरुआत में प्रतिभागियों की उम्र औसतन 44 वर्ष थी और उन्हें हृदय रोग नहीं था. यह अध्ययन 18 से 65 वर्ष के वयस्कों पर केंद्रित था और यह शराब व हृदय रोग के बीच संबंधों की जांच करने वाले अब तक के सबसे बड़े अध्ययनों में से एक है. महिलाओं में शराब पीने का ट्रेंड पिछले दशकों की तुलना में काफी बढ़ गया है. इसका खतरनाक असर उनकी सेहत पर देखने को मिल रहा है.

वैसे तो जब अत्यधिक शराब पीने की बात आती है तो अधिक शराब पीने वाले पुरुषों और महिलाओं दोनों में हृदय रोग का खतरा अधिक होता है. यह देखा गया है कि शराब से ब्लड प्रेशर बढ़ता है और मेटाबॉलिज्म में परिवर्तन होता है. लेकिन महिलाएं पुरुषों की तुलना में शराब को अलग तरह से प्रोसेस करती हैं.

शोध में पाया गया है कि युवा से लेकर मध्यम आयु वर्ग की महिलाएं जो एक दिन में एक से अधिक शराब पीती हैं उनमें कोरोनरी हृदय रोग विकसित होने की संभावना 29% से 45% अधिक होती है जो महिलाएं अत्यधिक शराब पीती हैं या दिन में तीन या अधिक बार शराब पीती हैं, उनमें कोरोनरी हृदय रोग विकसित होने की संभावना 68% अधिक होती है.

चूंकि महिलाएं और पुरुष शराब का चयापचय अलग अलग तरीके से करते हैं इसलिए महिलाओं को विशेष रूप से जोखिम होता है

कोरोनरी हृदय रोग तब होता है जब प्लाक नामक वसायुक्त पदार्थ हृदय को रक्त की आपूर्ति करने वाली धमनियों में जमा हो जाता है, जिससे रक्त प्रवाह बाधित होता है. यह स्थिति हृदय रोग का सबसे आम रूप है जो संयुक्त राज्य अमेरिका में पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए मृत्यु का प्रमुख कारण है .

दिल की सुनें या सेहत की सोचें

अब यहाँ सवाल यह उठता है की महिलाएं अपने दिल की सुनें या दिल की फ़िक्र करें. दिल कहता है जिंदगी जी ले और जमाने की परवाह न कर. आजादी के रास्तों पर चल और वह सब कुछ कर जो तेरा दिल करे. वाइन लेना भी तो आजादी की तरफ महिलाओं के बढ़ते क़दमों का ही एक तरीका है. अपने हिसाब से जीने और ज़माने को पीछे छोड़ जाने की जिद का एक नमूना. वह क्यों परवाह करें जमाने की. अपने शर्तों पर जीने की ख़ुशी ही अलग होती है. मदहोश हो कर सब कुछ भूल जाने का अंदाज ही अलग होता है. अब अगर दिल धोखा दे तो वे क्या करें? क्या सुरापान के बिना उन की जिंदगी बोरियत भरी और बोझिल नहीं हो जाएगी?

फॅमिली पार्टीज हो, ऑफिस पार्टीज या फिर कॉलेज पार्टीज, दोस्तों के साथ मस्ती करने का अंदाज हो या फिर बॉयफ्रेंड के साथ शानदार डेट, किटी पार्टी हो या बेस्टी की मैरिज पार्टी, आखिर शराब के बिना कहीं काम कहाँ चलता है ? यानी शराब को टाटा कह कर क्या वे फिर से अपनी बोरियत भरी जिंदगी के पहलू में समा जाएं या फिर 10 साल ज्यादा जीने का मोह छोड़ बस आज जीने का मजा लें ? शराब एक लिमिट में ले कर सेहत का भी ख़याल करें या फिर बस उन लम्हों में बहते चले जाएं , यह फैसला तो अब महिलाओं को खुद ही करना है. हमारा काम तो बस जानकारी से रूबरू कराना था.

इन लग्जरी बैग्स की कीमत जानकर हो जाएंगे हैरान

भारत के सब से बड़े बिजनेसमैन मुकेश अंबानी की होने वाली बहू राधिका मर्चेंट लग्जरी लाइफ जीती है. इस बात का पता उन के लाइफ स्टाइल से चलता है. राधिका वीरेन मर्चेंट की बेटी हैं, वही वीरेन मर्चेंट जो ‘एनकोर हेल्थकेयर’ के सीईओ हैं. राधिका ने एक पार्टी के दौरान व्हाइट कलर की फ्लोरल प्रिंटेड शर्ट ड्रैस पहनी थी और साथ में एक ब्लू कलर का हैंडबैग लिया था. साइज में छोटा सा ये बैग ‘हर्मीस बिर्किन’ ब्रांड का था, जिस की कीमत 16 लाख रुपये है. इस ब्लू बैग पर कोई डिजाइन नहीं था, लेकिन आगे की तरफ एक छोटा सा बकल था.

कहने का मतलब यह है कि इस 16 लाख के बैग का क्या मतलब अगर उस में कोई सामान ही न रख पाओ. लेकिन हां इन महंगे ब्रैडिड बैग से लाइफ स्टाइल का जरूर पता चलता है. तो आज हम आप को ऐसे ही कुछ महंगे बैग्स बताने जा रहे हैं जिन की मार्केट में कीमत लाखों करोडों में हैं. आइये इन्हें जानते हैं.

बोआरिनी मिलनेसि, परवा मेआ

बोआरिनी मिलनेसि के परवा मेआ को 2020 में दुनिया के सबसे महंगे बैग्स में गिना गया था. इस बैग को ओशन थीम पर बनाया गया है. यह बैग पानी के कई चेहरों को दर्शाते हुए रत्नों से सजा हुआ है. इस बैग की खूबी यह है कि इसे बनाने के लिए एलीगेटर की स्किन के साथसाथ पन्ने और हीरे का इस्तेमाल किया जाता है. इस पर्स की कीमत करीब 6 मिलियन डौलर यानि करीब 45 करोड़ रुपये है. यह बैग सर्टिफिकेशन के साथ दिए जाते हैं क्योंकि इन बैग्स की संख्या बहुत कम होती है.

मौवाद 1001 नाइट डायमंड बैग एंड पर्स

दिल के आकार का बना यह पर्स देखने में यूनिक और खूबसूरत है. यह साल 2011 में बहुत चर्चा में रहा था. इस पर्स को बनाने के लिए 18 कैरेट गोल्ड, 4,356 रंगहीन हीरे और 56 गुलाबी हीरे शामिल हैं. यह पर्स दुनिया के सबसे महंगे पर्स में से एक है. इस की कीमत की बात करें तो यह 3.8 मिलियन डौलर का है यानि इस की भारतीय कीमत करीब 31 करोड़ 16 लाख रुपए हैं.

हर्मिस बिरकिन बैग

बिरकिन के कलेक्शन का यह दूसरा बैग भी दुनिया के सबसे लग्जरी बैग में से एक है. इस पर्स को बनाने के लिए 2000 डायमंड्स और प्लेटिनम का इस्तेमाल किया गया है. इस बैग में हीरों से जड़ी स्ट्रैप है, जिसे निकालने के बाद यह क्लच का काम भी करता है. इस स्ट्रैप को नेकलेस या ब्रेसलेट की तरह भी पहना जा सकता है. इस पर्स की कीमत 2 मिलियन डौलर के करीब है, जिस का भारतीय मूल्य 15 करोड़ रुपये के आसपास आता है. इस पर्स को बनाने में करीब 2 साल का वक्त लगता है, इसलिए शुरूआत में इस के सिर्फ 12 पीस ही लौन्च किया गए थे.

निलौटिकस क्रोकोडाइल हिमालयन बिरकिन बैग

दुनिया के सबसे महंगे बैग्स में शुमार निलौटिकस क्रोकोडाइल हिमालयन बिरकिन बैग की कीमत 380,000 डौलर है, जिस का भारतीय मूल्य लगभग 3 करोड़ के आसपास है. यह बैग हिमालयन बेल्ट के पास पाई जाने वाली चीजों के मेल से बना है. यह इंटीरियर ग्रिस सेंड्रे शेवर लेदर से बना है, जिस में एक ज़िप पाकेट और एक स्लाइड पाकेट है. इस पर्स को बनाने के लिए गोल्ड और डायमंड का इस्तेमाल किया गया है, जो इस पर्स के लुक को और भी ब्यूटीफुल बनाता है.

ये तो हुई बात ब्रैंडिड बैग की लेकिन अगर बात की जाए इन के यूज की तो इन का यूज सिर्फ दिखावे के लिए है क्योंकि ये साइज में इतने छोटे होते हैं कि इन में कोई सामान नहीं आता है. लेकिन फिर भी इतनी ज्यादा कीमत होने के बावजूद इन्हें बड़ी मात्रा में खरीदा जाता है.

गहरी साजिश

असल में महिलाओं को ब्रैडिड बैग गिफ्ट करने के पीछे रुढ़िवादी पुरुषों की गहरी साजिश है. ये साजिश है उन पर अपना प्रभुत्व जमाने की. वे चाहते हैं कि महिलाएं बस घरों तक सीमित रहें, ताकि वे अपने अधिकारों से अवगत न हो, उन्हें ये न पता हो कि उन के मुंह में भी जबान है. वे बस दबी कुचली और सहमी रहे, जैसे कोई दास अपने मालिक के साथ रहता है. पुरुष महिलाओं के हाथों में महंगे बैग थमाकर उन के हाथों को बोझ से भरना चाहते हैं, वे चाहते हैं कि महिलाओं के हाथ हमेशा सामानों से भरे रहे ताकि वह अपने करियर के बारे में कुछ सोच न सकें और बस अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करती रहें.

लेकिन हम आप को वास्तविकता से अवगत कराना चाहते हैं. हमारा कहना ये है कि अगर आप ब्रैडिड बैग्स को स्टाइल सिंबल के तौर पर देखती है तो सही है. तब आप इन लग्जरी बैग्स के साथ जा सकती है लेकिन ध्यान रहे आप इसे अपने पैरों की बेड़ियां न बनने दें.

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