खूबसूरत नाखून पाएं नेल एक्सटेंशन और नेल आर्ट से

ब्यूटी एक्सपर्ट: भारती तनेजा

नाखून किसी भी व्यक्ति की सुंदरता और व्यक्तित्व का महत्त्वपूर्ण हिस्सा होते हैं. लेकिन जब एक नाखून टूट जाता है तो अकसर हमें अपने सारे नाखून काटने पड़ते हैं ताकि वे समान दिखें. ऐसे में नेल ऐक्सटेंशन बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. नेल ऐक्सटेंशन न केवल आप के नाखूनों को लंबा और सुंदर बनाते हैं बल्कि विशेष अवसरों जैसेकि शादी या पार्टी के समय भी आप के लुक का आकर्षण बढ़ाते हैं.
लंबे और आकर्षक नाखून विशेष अवसरों पर बहुत अच्छे दिखते हैं और नेल ऐक्सटेंशन इस काम को बेहद आसानी से कर देते हैं.
 *नेल ऐक्सटेंशन के प्रकार*
नेल ऐक्सटेंशन के कई विकल्प उपलब्ध हैं जिन में से ऐक्रिलिक नेल्स और जेल नेल्स सब से लोकप्रिय हैं. इस के अलावा आप फेक नेल्स के औप्शन पर भी जा सकते हैं.
ऐक्रिलिक नेल्स पाउडर और लिक्विड मोनोमर के मिश्रण से बनते हैं जो हवा में सख्त होते हैं और बहुत मजबूत होते हैं. दूसरी तरफ जैल नेल्स एक प्रकार का जैल पदार्थ होते हैं जो यूवी या एलईडी लाइट के माध्यम से क्योर होते हैं और एक नैचुरल लुक प्रदान करते हैं.
अगर आप जल्दबाजी में हैं और तुरंत सुंदर नाखून चाहते हैं तो फेक नेल्स का उपयोग कर सकते हैं. फेक नेल्स को अपने नाखूनों पर चिपकाना बहुत आसान होता है और वे तुरंत आप के नाखूनों को एक नया लुक देते हैं.
अगर शेप्स की बात करें तो फ्रेंच नेल्स भी एक क्लासिक और ऐलीगेंट विकल्प हैं. फ्रेंच नेल्स में नाखूनों के टिप्स को सफेद रखा जाता है जबकि बाकी नाखून को नैचुरल या पिंकिश शेड में रंगा जाता है. यह स्टाइल हर अवसर के लिए उपयुक्त होता है और हर प्रकार के आउटफिट के साथ अच्छा लगता है. इस के अलावा अन्य नाखून कटिंग स्टाइल्स जैसे स्क्वायर, ओवल, स्टिलेटो और कौफिन शेप भी लोकप्रिय हैं. ये विभिन्न शैलियां आप के नाखूनों को एक अनोखा और स्टाइलिश लुक देती हैं.

*नवीनतम तकनीकें*

नेल आर्ट के क्षेत्र में भी कई नवीनतम तकनीकें उपलब्ध हैं. स्टैंपिंग, फ्री हैंड डिजाइन, थ्रीडी नेल आर्ट, ओंब्रे नेल्स, और मैट फिनिश जैसी तकनीकें आप के नाखूनों को एक विशिष्ट और आकर्षक रूप देती हैं. स्टैंपिंग में विशेष स्टैंप और प्लेट्स का उपयोग कर के नाखूनों पर डिजाइन बनाए जाते हैं जबकि फ्री हैंड डिजाइन में नेल आर्टिस्ट फ्री हैंड पेंटिंग के माध्यम से नाखूनों पर डिजाइन बनाते हैं. थ्रीडी नेल आर्ट में नाखूनों पर थ्रीडी औब्जेक्ट्स जैसे स्टोंस, बीड्स और फ्लौवर्स का उपयोग किया जाता है जिस से नाखूनों पर एक अनोखा और रियल लुक आता है. इस के अलावा सिल्क नेल्स एक और नवीनतम तकनीक है जिस में नाखूनों को मजबूत और प्राकृतिक दिखाने के लिए सिल्क रैप्स का उपयोग किया जाता है.
डिफरैंट ओकेजन के अनुसार भी नेल आर्ट का चुनाव किया जाता है. जैसे क्रिसमस पर विशेषरूप से क्रिसमस थीम वाले डिज़ाइन, वैलेंटाइन डे पर दिल के आकार के डिजाइन और अन्य त्योहारों पर उन के अनुसार विशेष नेल आर्ट की जाती है. यह आप के नाखूनों को विशेष अवसरों पर और भी आकर्षक बनाता है और आप की थीम के साथ मेल खाता है.

 *नाखूनों की देखभाल*

नाखूनों की देखभाल भी बहुत महत्त्वपूर्ण है ताकि वे स्वस्थ और मजबूत बने रहें. नाखूनों को नियमित रूप से साफ रखें, उन्हें मोइस्चराइज करें, संतुलित आहार लें और समयसमय पर ट्रिमिंग करें. घरेलू कार्य करते समय या रसायनों के संपर्क में आने पर दस्ताने पहनें ताकि नाखूनों को नुकसान से बचाया जा सके.
नाखूनों को सुंदर बनाने के लिए फ्रेंच नेल्स हों या फेक नेल्स, सही नेल ऐक्सटेंशन और नेल आर्ट के माध्यम से आप अपने नाखूनों को एक नया और आकर्षक लुक दे सकती हैं.

घोंसले के पंछी: क्या मिल पाए आदित्य और ऋचा

आदित्य गुमसुम से खड़े थे. पत्नी की बात पर उन्हें विश्वास नहीं हुआ. वे शब्दों पर जोर देते हुए बोले, ‘‘क्या तुम सच कह रही हो ऋचा?’’

‘‘पहले मुझे विश्वास नहीं था लेकिन मैं एक नारी हूं, जिस उम्र से अंकिता गुजर रही है उस उम्र से मैं भी गुजर चुकी हूं. उस के रंगढंग देख कर मैं समझ गई हूं कि दाल में कुछ काला है.’’

आदित्य की आंखों में एक सवाल था, ‘वह कैसे?’

ऋचा उन की आंखों की भाषा समझ गई. बोली, ‘‘सुबह घर से जल्दी निकलती है, शाम को देर से घर आती है. पूछने पर बताया कि टाइपिंग क्लास जौइन कर ली है. इस की उसे जरूरत नहीं है. उस ने इस बारे में हम से पूछा भी नहीं था. घर में भी अकेले रहना पसंद करती है, गुमसुम सी रहती है. जब देखो, अपना मोबाइल लिए कमरे में बंद रहती है.’’

‘‘उस से बात की?’’

‘‘अभी नहीं, पहले आप को बताना उचित समझा. लड़की का मामला है. जल्दबाजी में मामला बिगड़ सकता है. एक लड़का हम खो चुके हैं, अब लड़की को खो देने का मतलब है पूरे संसार को खो देना.’’

आदित्य विचारों के समुद्र में गोता लगाने लगे. यह कैसी हवा चली है. बच्चे अपने मांबाप के साए से दूर होते जा रहे हैं. वयस्क होते ही प्यार की डगर पर चल पड़ते हैं, फिर मांबाप की मरजी के बगैर शादी कर लेते हैं. जैसे चिडि़या का बच्चा पंख निकलते ही अपने जन्मदाता से दूर चला जाता है, अपने घोंसले में कभी लौट कर नहीं आता, उसी प्रकार आज की पीढ़ी के लड़के तथा लड़कियां युवा होने से पहले ही प्यार के संसार में डूब जाते हैं. अपनी मरजी से शादी करते हैं और अपना घर बसा कर मांबाप से दूर चले जाते हैं.

आदित्य और ऋचा के एकलौते पुत्र ने भी यही किया था. आज वे दोनों अपने बेटे से दूर थे और बेटा उन की खोजखबर नहीं लेता था. इस में गलती किस की थी? आदित्य की, उन की पत्नी की या उन के बेटे की कहना मुश्किल था.

आदित्य ने पहले ध्यान नहीं दिया था, इस के बारे में सोचा तक नहीं था परंतु आज जब उन की एकलौती बेटी भी किसी के प्यार में रंग चुकी है, किसी के सपनों में खोई है, तो वे विगत और आगत का विश्लेषण करने पर विवश हैं.

प्रतीक एम.बी.ए. कर चुका था. बेंगलूरु की एक बड़ी कंपनी में मैनेजर था. एम.बी.ए. करते समय ही उस का एक लड़की से प्रेम हुआ था. तब तक उस ने घर में बताया नहीं था. नौकरी मिलते ही मांबाप को अपने प्रेम से अवगत कराया. आदित्य और ऋचा को अच्छा नहीं लगा. वह उन का एकलौता बेटा था. उन के अपने सपने थे. हालांकि वे आधुनिक थे, नए जमाने के चलन से भी वाकिफ थे परंतु भारतीय मानसिकता बड़ी जटिल होती है.

हम पढ़लिख कर आधुनिक बनने का ढोंग करते हैं, नए जमाने की हर चीज अपना लेते हैं, परंतु हमारी मानसिकता कभी नहीं बदलती. हमारे बच्चे किसी के प्रेम में पड़ें, वे प्रेमविवाह करना चाहें, हम इसे बरदाश्त नहीं कर पाते. अपनी जवानी में हम भी वही करते हैं या करना चाहते हैं परंतु हमारे बच्चे जब वही सब करने लगते हैं, तो सहन नहीं कर पाते हैं. उस का विरोध करते हैं.

प्रतीक उन का एकलौता बेटा था. वे धूमधाम से उस की शादी करना चाहते थे. वे उसे कामधेनु गाय समझते थे. उस की शादी में अच्छा दहेज मिलता. इसी उम्मीद में अपने एक रिश्तेदार से उस की शादी की बात भी कर रखी थी. मामला एक तरह से पक्का था. मांबाप यहीं पर गलती कर जाते हैं. अपने जवान बच्चों के बारे में अपनी मरजी से निर्णय ले लेते हैं. उन को इस से अवगत नहीं कराते. बच्चों की भावनाओं का उन्हें खयाल नहीं रहता. वे अपने बच्चों को एक जड़ वस्तु समझते हैं, जो बिना चूंचपड़ किए उन की हर बात मान लेंगे. परंतु जब बच्चे समझदार हो जाते हैं तब वे अपने जीवन के बारे में वे खुद निर्णय लेना पसंद करते हैं. वे अपना जीवन अपने तौर पर जीना चाहते हैं.

जब प्रतीक ने अपने प्यार के बारे में उन्हें बताया तो उन के कान खड़े हुए. चौंकना लाजिमी था. बेटे पर वे अपना अधिकार समझते थे. आदित्य और ऋचा ने पहले एकदूसरे की तरफ देखा, फिर प्रतीक की तरफ. वह एक हफ्ते की छुट्टी ले कर आया था. मांबाप से अपनी शादी के बारे में बात करने के लिए. प्रेम उस ने अवश्य किया था परंतु वह उन की सहमति से शादी करना चाहता था. अगर वे मान जाते तो ठीक था, अगर नहीं तब भी उस ने तय कर रखा था कि अपनी पसंद की लड़की से ही शादी करेगा. जिस को प्यार किया था, उसे धोखा नहीं देगा. मांबाप माने या न मानें.

ऋचा ने ही बात का सिरा पकड़ा था, ‘‘परंतु बेटे, हम ने तो तुम्हारी शादी के बारे में कुछ और ही सोच रखा है.’’

‘‘अब वह बेकार है. मैं ने अपनी पसंद की लड़की देख ली है. वह मेरे अनुरूप है.

हम दोनों ने एकसाथ एम.बी.ए. किया था. अब साथ ही नौकरी भी कर रहे हैं, साथ ही जीवन व्यतीत करेंगे.’’

‘‘परंतु हमारे सपने…’’ ऋचा ने प्रतिवाद करने की कोशिश की परंतु प्रतीक की दृढ़ता के सामने वह कमजोर पड़ गईं. ऋचा की आवाज में कोई दम नहीं था. उसे लगा, वह हार जाएगी.

‘‘मम्मी, आप समझने की कोशिश कीजिए. बच्चे ही मांबाप का सपना होते हैं. अगर मैं खुश हूं तो आप के सपने साकार हो जाएंगे, वरना सब बेकार है.’’

‘‘बेकार तो वैसे भी सब कुछ हो चुका है. मैं बंसलजी को क्या मुंह दिखाऊंगा?’’ आदित्य ने पहली बार मुंह खोला, ‘‘उन के साथसाथ सारे नातेरिश्तेदार हैं. वे भी अलगथलग पड़ जाएंगे.’’

‘‘कोई किसी से अलग नहीं होता. आप धूमधाम से शादी आयोजित करें. रिश्तेदार 2 दिन बातें बनाएंगे, फिर भूल जाएंगे. प्रेमविवाह अब असामान्य नहीं रहे,’’ प्रतीक ने बहुत धैर्य से अपनी बात कही.

‘‘बेटे, तुम नहीं समझोगे. हम वैश्य हैं और हमारे समाज ने इस मामले में आधुनिकता की चादर नहीं ओढ़ी है. कितने लोग तुम्हारे लिए भागदौड़ कर रहे हैं. अपनी बेटी का विवाह तुम्हारे साथ करना चाहते हैं. जिस दिन पता चलेगा कि तुम ने गैर जाति की लड़की से शादी कर ली है, वे हमें समाज से बहिष्कृत कर देंगे. तुम्हारी छोटी बहन की शादी में तमाम अड़चनें आएंगी.’’

‘‘उस का भी प्रेमविवाह कर देना,’’ प्रतीक ने सहजता से कह दिया. परंतु आदित्य और ऋचा के लिए यह सब इतना सहज नहीं था.

‘‘बेटे, एक बार तुम अपने निर्णय पर पुनर्विचार करो. शायद तुम्हारा निश्चय डगमगा जाए. हम उस से सुंदर लड़की तुम्हारे लिए ढूंढ़ कर लाएंगे.’’

ये भी पढ़ें- बेईमानी का नतीजा: क्या हुआ बाप और बेटे के साथप्रतीक हंसा, ‘‘मम्मी, यह मेरा आज का फैसला नहीं है. पिछले 3 सालों से हम दोनों का यही फैसला है. अब यह बदलने वाला नहीं. आप अपने बारे में बताएं. आप हमारी शादी करवाएंगे या हम स्वयं कर लें.’’

किसी ने प्रतीक की बात का जवाब नहीं दिया. वे अचंभित, भौचक और ठगे से बैठे थे. वे सभ्य समाज के लोग थे. लड़ाईझगड़ा कर नहीं सकते थे. बातों के माध्यम से मामले को सुलझाने की कोशिश की परंतु वे दोनों न तो प्रतीक को मना पाए, न प्रतीक के निर्णय से सहमत हो पाए. प्रतीक अगले दिन बेंगलूरु चला गया. बाद में पता चला, उस ने न्यायालय के माध्यम से अपनी प्रेमिका से शादी कर ली थी.

वे दोनों जानते थे कि प्रतीक ने भले अपनी मरजी से शादी की थी. परंतु वह उन के मन से दूर नहीं हुआ था. बस उन का अपना हठ था. उस हठ के चलते अभी तक बेटे से संपर्क नहीं किया था. बेटे ने पहले एकदो बार फोन किया था. आदित्य और ऋचा ने उस से बात की थी, हालचाल भी पूछा परंतु उस को दिल्ली आने के लिए कभी नहीं कहा. फिर बेटे ने उन को फोन करना बंद कर दिया.

अब शायद वह हठ टूटने वाला था. अंकिता के साथ वह पहले वाली गलती नहीं दोहराना चाहते थे.

आदित्य ने शांत भाव से कहा, ‘‘ऋचा, हमें बहुत समझदारी से काम लेना होगा. लड़की का मामला है. प्रेम के मामले में लड़कियां बहुत नासमझी और भावुकता से काम लेती हैं. अगर उन्हें लगता है कि मांबाप उन के प्रेम का विरोध कर रहे हैं, तो बहुत गलत कदम उठा लेती हैं. या तो वे घर से भाग जाती हैं या आत्महत्या कर लेती हैं. हमें ध्यान रखना है कि अंकिता ऐसा कोई कदम न उठा ले.’’

ऋचा बेचैन हो गई, ‘‘क्या करें हम?’’

‘‘कुछ करने की आवश्यकता नहीं है, बस उस से बात करो. उस की सारी बातें ध्यान से सुनो. उस के मन को समझने का प्रयास करो. शायद हम उस की मदद कर सकें. अगर वह समझ गई तो बहकने से बच जाएगी. उस के पैर गलत रास्ते पर नहीं पड़ेंगे. ये रास्ते बहुत चिकने होते हैं. फिसलने में देर नहीं लगती.’’

‘‘ठीक है,’’ ऋचा ने आश्वस्त हो कर कहा.

ऋचा ने देर नहीं की. जल्दी ही मौका निकाला. अंकिता से बात की. वह अपने कमरे में थी. ऋचा ने कमरे में घुसते ही पूछा, ‘‘बेटा, क्या कर रही हो?’’

अंकिता हड़बड़ा कर खड़ी हो गई. वह बिस्तर पर लेटी मोबाइल पर किसी से बातें कर रही थी. अंकिता के चेहरे के भाव बता रहे थे, जैसे वह चोरी करते हुए पकड़ी गई थी. ऋचा सब समझ गई, परंतु उस ने धैर्य से कहा, ‘‘बेटा, तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है?’’

अंकिता बी.ए. के दूसरे साल में थी.

‘‘ठीकठाक चल रही है,’’ अंकिता ने अपने को संभालते हुए कहा. उस की आंखें फर्श की तरफ थीं.

वह मां की तरफ देखने का साहस नहीं जुटा पा रही थी.

अंकिता जिन मनोभावों से गुजर रही थी, ऋचा समझ सकती थी. उस ने बेटी को पलंग पर बैठाते हुए कहा, ‘‘बैठो और मेरी बात ध्यान से सुनो.’’

वह भी बेटी के साथ पलंग पर एक किनारे बैठ गई. उसे लग रहा था किसी लागलपेट की जरूरत नहीं, मुझे सीधे मुद्दे पर आना होगा.

अंकिता का हृदय तेजी से धड़क रहा था. पता नहीं क्या होने वाला था? मम्मी क्या कहेंगी उस से? उस की कुछ समझ में नहीं आ रहा था परंतु उस के मन में अपराधबोध था. मम्मी ने उसे फोन करते हुए देख लिया था.

ऋचा ने सीधे वार किया, ‘‘बेटी, मैं तुम्हारी मनोदशा समझ रही हूं. मैं तुम्हारी मां हूं. इस उम्र में सब को प्रेम होता है,’’ प्रेम शब्द पर ऋचा ने अधिक जोर दिया, ‘‘तुम्हारे साथ कुछ नया नहीं हो रहा है. परंतु बेटी, इस उम्र में लड़कियां अकसर बहक जाती हैं. लड़के उन को बरगला कर, झूठे सपनों की दुनिया में ले जा कर उन की इज्जत से खिलवाड़ करते हैं. बाद में लड़कियों के पास बदनामी के सिवा कुछ नहीं बचता. वे बदनामी का दाग ले कर जीती हैं और मन ही मन घुलती रहती हैं.’’

अंकिता का दिल और जोर से धड़क उठा.

‘‘बेटी, अगर तुम्हारे साथ ऐसा कुछ हो रहा है, तो हमें बताओ. हम नहीं चाहते तुम्हारे कदम गलत रास्ते पर पड़ें. तुम नासमझी में कुछ ऐसा न कर बैठो, जो तुम्हारी बदनामी का सबब बने. अभी तुम्हारी पढ़ाई की उम्र है लेकिन यदि तुम्हारे साथ प्रेम जैसा कोई चक्कर है, तो हम शादी के बारे में भी सोच सकते हैं. तुम खुल कर बताओ, क्या वह लड़का तुम्हारे साथ शादी करना चाहता है? वह तुम को ले कर गंभीर है या बस खिलवाड़ करना चाहता है.’’

अंकिता सोचने लगी पर उस के मन में दुविधा और शंका के बादल मंडरा रहे थे.

बताए या न बताए. मम्मी उस के मन की बात जान गई हैं. कहां तक छिपाएगी? नहीं बताएगी तो उस पर प्रतिबंध लगेंगे. उस ने आगे आने वाली मुसीबतों के बारे में सोचा. उसे लगा कि मां जब इतने प्यार और सहानुभूति से पूछ रही हैं, तो उन को सब कुछ बता देना ही उचित होगा.

अंकिता खुल गई और धीरेधीरे उस ने मम्मी को सारी बातें बता दीं. गनीमत थी कि अभी तक अंकिता ने अपना कौमार्य बचा कर रखा था. लड़के ने कोशिश बहुत की थी, परंतु वह उस के साथ होटल जाने को तैयार नहीं हुई. डर गई थी, इसलिए बच गई. मम्मी ने इतमीनान की गहरी सांस ली और बेटी को सांत्वना दी कि वह सब कुछ ठीक कर देंगी. अगर लड़का तथा उस के घर वाले राजी हुए तो इसी साल उस की शादी कर देंगे.

अंकिता ने बताया था कि वह अपने साथ पढ़ने वाले एक लड़के के साथ प्यार करती है. उस के घरपरिवार के बारे में वह बहुत कम जानती है. वे दोनों बस प्यार के सुनहरे सपने देख रहे हैं. बिना पंखों के हवा में उड़ रहे थे. भविष्य के बारे में अनजान थे. प्रेम की परिणति क्या होगी, इस के बारे में सोचा तक नहीं था. वे बस एकदूसरे के प्रति आसक्त थे. यह शारीरिक आकर्षण था, जिस के कारण लड़कियां अवांछित विपदाओं का शिकार होती हैं.

ऋचा ने आदित्य को सब कुछ बताया. मामला सचमुच गंभीर था. अंकिता अभी नासमझ थी. उस के विचारों में परिपक्वता नहीं थी. उस की उम्र अभी 20 साल थी. वह लड़का भी इतनी ही उम्र का होगा. दोनों का कोई भविष्य नहीं था. वे दोनों बरबादी की तरफ बढ़ रहे थे. उन्हें संभालना होगा.

स्थिति गंभीर थी. ऋचा और आदित्य का चिंतित होना स्वाभाविक था. परंतु ऋचा और आदित्य को कुछ नहीं करना पड़ा. मामला अपनेआप सुलझ गया. संयोग उन का साथ दे रहा था. समय रहते अंकिता को अक्ल आ गई थी. उस की मम्मी की बातों का उस पर ठीक असर हुआ था.

ये भी पढ़ें- सनक: नृपेंद्रनाथ को हुआ गलती का एहसासअंकिता ने जब शिवम को बताया कि उस की मम्मी को उस के प्रेम के बारे में सब पता चल गया है तो वह घबरा गया.

‘‘इस में घबराने की क्या बात है? मम्मी ने तुम्हारे डैडी का फोन नंबर व पता मांगा है. वह तुम्हारे घर वालों से हमारी शादी की बात करना चाहती हैं.’’

‘‘अरे मर गए, क्या तुम्हारे पापा को भी पता है?’’ उस के माथे पर पसीने की बूंदें छलक आईं.

‘‘जरूर पता होगा. मम्मी ने बताया होगा उन को. परंतु तुम इतना परेशान क्यों हो रहे हो? हम एकदूसरे से प्रेम करते हैं, शादी करने में क्या हरज है? कभी न कभी करते ही, कल के बजाय आज सही,’’ अंकिता बहुत धैर्य से यह सब कह रही थी.

‘‘अरे, तुम नहीं समझतीं. यह कोई शादी की उम्र है. मेरे डैडी जूतों से मेरी खोपड़ी गंजी कर देंगे. शादी तो दूर की बात है,’’ वह हाथ मलते हुए बोला.

‘‘अच्छा,’’ अंकिता की अक्ल ठिकाने आ रही थी. वह समझने का प्रयास कर रही थी. बोली, ‘‘तुम मुझ से प्रेम कर सकते हो तो शादी क्यों नहीं. प्रेम मांबाप से पूछ कर तो किया नहीं था. अगर वे हमारी शादी के लिए तैयार नहीं होते, तो शादी भी उन से बिना पूछे कर लो. आखिर हम बालिग हैं.’’

‘‘क्या बकवास कर रही हो, शादी कैसे कर सकते हैं?’’ वह झल्ला कर बोला, ‘‘अभी तो हम पढ़ रहे हैं. मांबाप से पूछे बगैर हम इतना बड़ा कदम कैसे उठा सकते हैं?’’

‘‘अच्छा, मांबाप से पूछे बगैर तुम जवान कुंआरी लड़की को बरगला सकते हो. उस को झूठे प्रेमजाल में फंसा सकते हो. शादी का झांसा दे कर उस की इज्जत लूट सकते हो. यह सब करने के लिए तुम बालिग हो परंतु शादी करने के लिए नहीं,’’ वह रोंआसी हो गई.

उसे मम्मी की बातें याद आ गईं. सच कहा था उन्होंने कि इस उम्र में लड़कियां अकसर बहक जाती हैं. लड़के उन को बरगला कर, झूठे सपनों की दुनिया में ले जा कर उन की इज्जत से खिलवाड़ करते हैं. शिवम भी तो उस के साथ यही कर रहा था. समय रहते उस की मम्मी ने उसे सचेत कर दिया था. वह बच गई. अगर थोड़ी देर होती तो एक न एक दिन शिवम उस की इज्जत जरूर लूट लेता. कहां तक अपने को बचाती. वह तो उस के लिए पागल थी.

शिवम इधरउधर ताक रहा था. अंकिता ने एक प्रयास और किया, ‘‘तुम अपने घर का पता और फोन नंबर दो. तुम्हारे मम्मीडैडी से पूछ तो लें कि वे इस रिश्ते के लिए राजी हैं या नहीं.’’

‘‘क्या शादीशादी की रट लगा रखी है,’’ वह दांत पीस कर बोला, ‘‘हम कालेज में पढ़ने के लिए आए हैं, शादी करने के लिए नहीं.’’

‘‘नहीं, प्यार करने के लिए…’’ अंकिता ने उस की नकल की. वह भी दांत पीस कर बोली, ‘‘तो चलो, नाचेगाएं और खुशियां मनाएं,’’ अब उस की आवाज में तल्खी आ गई थी, ‘‘कमीने कहीं के, तुम्हारे जैसे लड़कों की वजह से ही न जाने कितनी लड़कियां अपनी इज्जत बरबाद करती हैं. मैं ही

बेवकूफ थी, जो तुम्हारे फंदे में फंस गई. थू है तुम पर.. भाड़ में जाओ. सब कुछ खत्म हो गया. अब कभी मेरे सामने मत पड़ना. गैरत हो तो अपना काला मुंह ले कर मेरे सामने से चले जाओ.’’

उस दिन शाम को अंकिता जल्दी घर पहुंच गई. बहुत दिनों बाद ऐसा हुआ था. ऋचा और आदित्य ने भेदभरी नजरों से एकदूसरे की तरफ देखा. अंकिता चुपचाप अपने कमरे में चली गई थी. आदित्य ने ऋचा को इशारा किया. वह पीछेपीछे अंकिता के कमरे में पहुंची. आदित्य भी बाहर आ कर खड़े हो गए थे.

‘‘आज बहुत जल्दी आ गईं बेटी,’’ ऋचा अंकिता से पूछ रही थी.

‘‘हां मम्मी, आज मैं अपने मन का बोझ उतार कर आई हूं. बहुत हलका महसूस कर रही हूं,’’ फिर उस ने एकएक बात मम्मी को बता दी.

मम्मी ने उसे गले से लगा लिया. उसे पुचकारते हुए बोलीं, ‘‘बेटी, मुझे तुम पर गर्व है. तुम्हारी जैसी बेटी हर मांबाप को मिले.’’

‘‘मम्मी यह सब आप की समझदारी की वजह से हुआ है. समय रहते आप ने

मुझे संभाल लिया. मैं आप की बात समझ गई और पतन के गर्त में जाने से बच गई. आप थोड़ा सी देर और करतीं तो मेरी बरबादी हो चुकी होती. मैं आप से वादा करती हूं कि मन लगा कर पढ़ाई करूंगी. आप की नसीहत और मार्गदर्शन से एक अच्छी बेटी बन कर दिखाऊंगी.’’

‘‘हां बेटी, तुम्हारे सिवा हमारा और कौन है? तुम चली जातीं तो हमारे जीवन में क्या बचता?’’

‘‘मम्मी, ऐसा क्यों कह रही हैं? मैं आप के साथ हूं और भैयाभाभी भी तो हैं.’’

ऋचा ने अफसोस से कहा, ‘‘वे अब हमारे कहां रहे? हम ने एकदूसरे को नहीं समझा और वे हम से दूर हो गए.’’

‘‘ऐसा नहीं है मम्मी, वे पहले भी हमारे थे और आज भी हमारे हैं.’’

‘‘ये क्या कह रही हो तुम?’’

‘‘मम्मी, मैं आप को राज की बात बताती हूं. भैया और भाभी से मैं रोज बात करती हूं. भाभी खुद फोन करती हैं. मैं ने उन्हें देखा नहीं है परंतु वे बातें बहुत प्यारी करती हैं. वे हम सब को देखना चाहती हैं. भैया तो एक दिन भी बिना मुझ से बात किए नहीं रह सकते. वे और भाभी यहां आना चाहते हैं लेकिन डैडी से डरते हैं, इसीलिए नहीं आते. मम्मी, आप एक बार…सिर्फ एक बार उन से कह दो कि आप ने उन्हें माफ किया, वे दौड़ते हुए आएंगे.’’

‘‘सच…’’ ऋचा ने उसे अपने सीने से लगा लिया, ‘‘बेटी, आज तू ने मुझे दोगुनी खुशी दी है,’’ वह खुशी से विह्वल हुई जा रही थी.

‘‘हां, मम्मी, आप उन्हें फोन तो करो,’’ अंकिता चहक रही थी, ‘‘मैं भाभी से मिलना चाहती हूं.’’

‘‘अभी करती हूं. पहले उन को बता दूं. सुन कर वे भी खुशी से पागल हो जाएंगे. हम लोगों ने न जाने कितनी बार उन को बुलाने के बारे में सोचा. बस हठधर्मिता में पड़े रहे. बेटे के सामने झुकना नहीं चाहते थे परंतु आज हम बेटे के लिए और उस की खुशी के लिए छोटे बन जाएंगे. उसे फोन करेंगे.’’

वह बाहर जाने के लिए मुड़ी. कमरे के बाहर खड़े आदित्य अपनी आंखों से आंसू पोंछ रहे थे. आज उन्हें खोई हुई खुशी मिल रही थी. बेटी भी वापस अंधेरी गलियों में भटकने से बच गई थी. वह सहीसलामत घर लौट आई थी. बेटा भी मिल गया था. आज उन की हठधर्मिता टूट गई थी. उन्हें अपनी गलती का एहसास हो चुका था.

ऋचा ने आदित्य को बाहर खड़े देखा. वे समझ गईं कि अब कुछ कहने की जरूरत नहीं थी. वे सब सुन चुके थे. उन के पास जा कर भरे गले से बोली, ‘‘चलिए, बेटे को फोन कर दें और बहू के स्वागत की तैयारी

करें. आज हमें दोगुनी खुशी मिल रही है.

ऐसा लग रहा है, जैसे घोंसले के पंछी वापस आ गए हैं. अब हमारा आशियाना वीरान

नहीं रहेगा.’’

‘‘हां, ऋचा,’’ आदित्य ने उसे बांहों के घेरे में लेते हुए कहा, ‘‘घोंसले के पंछी घोंसले में ही रहते हैं, डाल पर नहीं. प्रतीक को वापस आना ही था. हमारी बगिया के फूल यों ही हंसतेमुसकराते रहें. उन की सुगंध चारों ओर फैले और वे अपनी महक से सब के जीवन को गुलजार कर दे.

 

ये कैसा प्यार: क्या राहुल के सर से उतरा प्यार का भूत

‘‘अ ब आप का बेटा खतरे से बाहर है,’’ डाक्टर ने कहा, ‘‘4-5 घंटे और आब्जर्वेशन में रखने के बाद उसे वार्ड में शिफ्ट कर देंगे. हां, ये कुछ दवाइयां हैं… एक्स्ट्रा आ गई हैं…इन्हें आप वापस कर सकते हैं.’’

24 घंटे के बाद डाक्टर की यह बात सुन कर मन को राहत सी मिली, वरना आई.सी.यू. के सामने चहलकदमी करते हुए किसी अनहोनी की आशंका से मैं और पत्नी दोनों ही परेशान थे. मैं ने दवाइयां उठाईं और अस्पताल के ही मेडिकल स्टोर में उन्हें वापस करने के लिए चल पड़ा.

दवाइयां वापस कर मैं जैसे ही मेडिकल स्टोर से बाहर निकला, एक अपरिचित सज्जन अपने एक साथी के साथ मिल गए और मुझे देखते ही बोले, ‘‘अब आप के बेटे की तबीयत कैसी है?’’

‘‘अब ठीक है, खतरे से बाहर है,’’ मैं ने कहा.

‘‘चलिए, यह तो बहुत अच्छी खबर है, वरना कल आप लोगों की परेशानी देखते नहीं बन रही थी. जवान बेटे की ऐसी दशा तो किसी दुश्मन की भी न हो.’’

यह सुन कर उन के दोस्त बोले, ‘‘क्या हुआ था बेटे को?’’

मैं ने इस विषय को टालने के लिए उस अपरिचित से ही प्रश्न कर दिया, ‘‘आप का यहां कौन भरती है?’’

‘‘बेटी है, आज सुबह ही उसे बेटा पैदा हुआ है.’’

‘‘बधाई हो,’’ कह कर मैं चल पड़ा.

अभी मैं कुछ ही कदम आगे चला था कि देखा मेडिकल स्टोर वाले ने मुझे 400 रुपए अधिक दे दिए हैं. उस ने शायद जल्दी में 500 के नोट को 100 का नोट समझ लिया था.

मैं उस के रुपए वापस लौटाने के लिए मुड़ा और पुन: मेडिकल स्टोर पर आ गया. वहां वे दोनों मेरी मौजूदगी से अनजान मेरे बेटे के बारे में बातें कर रहे थे.

‘‘क्या हुआ था उन के बेटे को?’’

‘‘अरे, नींद की गोलियां खा ली थीं. कुछ प्यारव्यार का चक्कर था. कल बिलकुल मरणासन्न हालत में उसे अस्पताल लाया गया था.’’

‘‘भैया, इस में तो मांबाप की गलती रहती है. नए जमाने के बच्चे हैं…जहां कहें शादी कर दो, अब मैं ने तो अपने सभी बच्चों की उन की इच्छा के अनुसार शादियां कर दीं. जिद करता तो इन्हीं की तरह भुगतता.’’

शायद उन की चर्चा कुछ और देर तक चलती पर उन दोनों में से किसी एक को मेरी मौजूदगी का एहसास हो गया और वे चुप हो गए. मैं ने भी ज्यादा मिले पैसे मेडिकल स्टोर वाले को लौटाए और वहां से चल पड़ा पर मन अजीब सा कसैला हो गया. संतान के पीछे मांबाप को जो न सुनना पडे़ कम है. ये लोग मांबाप की गलती बता रहे हैं, हमें रूढि़वादी बता रहे हैं, पर इन्हें क्या पता कि मैं ने खुद अंतर्जातीय विवाह किया था.

मेरी पत्नी बंगाली है और मैं हिंदू कायस्थ. समाज और नातेरिश्तेदारों ने घोर विरोध किया तो रजिस्ट्रार आफिस में शादी कर के कुछ दिन घर वालों से अलग रहना पड़ा, फिर सबकुछ सामान्य हो गया. बच्चों से भी मैं ने हमेशा यही कहा कि तुम जहां कहोगे वहां मैं तुम्हारी शादी कर दूंगा, फिर भी मुझे रूढि़वादी पिता की संज्ञा दी जा रही है.

मेरा बेटा प्यार में असफल हो कर नींद की गोलियां खा कर आत्म- हत्या करने जा रहा था. आज के बच्चे यह कदम उठाते हुए न तो आगा- पीछा सोचते हैं और न मातापिता का ही उन्हें खयाल रहता है. हर काम में जल्दबाजी, प्यार करने में जल्दबाजी, प्यार में असफल होने पर जान देने की जल्दबाजी.

हमारे कुलदीपक ने 3 बार प्यार किया और हर बार इतनी गंभीरता से कि असफल होने पर तीनों ही बार जान देने की कोशिश की. पहला प्यार इसे तब हुआ था जब यह 11वीं में पढ़ता था. हुआ यों कि इस के गणित के अध्यापक की पत्नी की मृत्यु हो गई. तब उस अध्यापक ने प्रिंसिपल से अनुरोध कर के अपनी बेटी का सुरक्षा की दृष्टि से उसी कालिज में एडमिशन करवा लिया जिस में वह पढ़ाते थे, ताकि बेटी आंखों के सामने बनी रहे.

वह कालिज लड़कों का था. अकेली लड़की होने के नाते वह कालिज में पढ़ने वाले सभी लड़कों का केंद्रबिंदु थी, पर मेरा बेटा उस में कुछ अधिक ही दिलचस्पी लेने लगा.

वह लड़की मेरे बेटे पर आकर्षित थी कि नहीं यह तो वही जाने, पर मेरा बेटा अपने दिल का हाल लिखलिख कर उसे देने लगा और उसी में एक दिन वह पकड़ा भी गया. बात लड़की के पिता तक पहुंची…फिर प्रिंसिपल तक. मुझे बुलाया गया. सोचिए, कैसी शर्मनाक स्थिति रही होगी.

प्रिंसिपल ने चेतावनी देते हुए मुझ से कहा, ‘आप का बेटा पढ़ाई में अच्छा है और मैं नहीं चाहता कि एक होनहार छात्र का भविष्य बरबाद हो, अत: इसे समझा दीजिए कि भविष्य में ऐसी गलती न करे.’

घर आ कर मैं ने बेटे को डांटते हुए कहा, ‘मैं ने तुम्हें कालिज में पढ़ने  के लिए भेजा था कि प्यार करने के लिए? आज तुम ने अपनी हरकतों से मेरा सिर नीचा कर दिया.’

‘प्यार करने से किसी का सिर नीचा नहीं होता,’ बेटे का जवाब था, ‘मैं उस के साथ हर हाल में खुश रह लूंगा और जरूरत पड़ी तो उस के लिए समाज, आप लोगों को, यहां तक कि अपने जीवन का भी त्याग कर सकता हूं.’

मैं ने कहा, ‘बेटा, माना कि तुम उस के लिए सबकुछ कर सकते हो, पर क्या लड़की भी तुम से प्यार करती है?’

‘हां, करती है,’ बेटे का जवाब था.

मैं ने कहा, ‘ठीक है. चलो, उस के घर चलते हैं. अगर वह भी तुम से प्यार करती होगी तो मैं उस के पिता को मना कर तुम दोनों की मंगनी कर दूंगा, पर शर्त यह रहेगी कि तुम दोनों अपनी पढ़ाई पूरी करोगे तभी शादी होगी.’

बेटे की इच्छा रखने के लिए मैं लड़की के घर गया और उस के पिता को समझाने की कोशिश की तो वह बडे़ असहाय से दिखे, पर मान गए कि  अगर बच्चों की यही इच्छा है तो आप जैसा कहते हैं कर लेंगे.

लेकिन जब उन की बेटी को बुला कर यही बात पूछी गई तो वह क्रोध में तमतमा उठी, ‘किस ने कहा कि मैं इस से प्यार करती हूं… अपनी कल्पना से कैसे इस ने यह सोच लिया. आप लोग कृपा कर के मेरे घर से चले जाइए, वैसे ही व्यर्थ में मेरी काफी बदनामी हो चुकी है.’

मैं अपमानित हो कर बेटे को साथ ले कर वहां से चला आया और घर आते ही गुस्से में मैं ने उसे कस कर एक थप्पड़ मारा और बोला, ‘ऐसी औलाद से तो बेऔलाद होना ही भला है.’

रात के करीब 12 बजे होंगे, जब बेटे ने जा कर अपनी मां को जगाया और बोला, ‘मां, मैं मरना नहीं चाहता हूं. मुझे बचा लो.’

उस की मां ने नींद से जग कर देखा तो बेटे ने अपने हाथ की नस काटी हुई थी और उस से तेजी से खून बह रहा था. पत्नी ने रोतेरोते मुझे जगाया. हम लोग तुरंत उसे ले कर नर्सिंग होम गए. वहां पता चला कि हाथ की नस कटी नहीं थी. खैर, मरहम पट्टी कर के उसे घर भेज दिया गया.

पत्नी का सारा गुस्सा मुझ पर फूट पड़ा, ‘जवान बेटे को ऐसे मारते हैं क्या? आज उसे सही में कुछ हो जाता तो हम लोग क्या करते?’

खैर, अब हम दोनों बेटे के साथ साए की तरह बने रहते. मनोचिकित्सक को भी दिखाया. किसी तरह उस ने परीक्षा दी और 12वीं में 62 प्रतिशत अंक प्राप्त किए. अब समय आया इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा की कोचिंग का. प्यार का भूत सिर पर से उतर चुका था. बेटा सामान्य हो गया था. पढ़ाई में मन लगा रहा था. हम लोग भी खुश थे कि इंजीनियरिंग में प्रवेश परीक्षाओं के पेपर ठीकठाक हो गए थे. तभी मेरे सुपुत्र दूसरा प्यार कर बैठे. हुआ यों कि पड़ोस में एक पुलिस के सब- इंस्पेक्टर ट्रांसफर हो कर किराएदार के रूप में रहने को आ गए. उन की 10वीं में पढ़ने वाली बेटी से कब मेरे बेटे के नयन मिल गए हमें पता नहीं चला.

कुल 3 हफ्ते के प्यार में बात यहां तक बढ़ गई कि एक दिन दोनों ने घर से भागने का प्लान बना लिया, क्योंकि लड़की को देखने के लिए दूसरे दिन कुछ लोग आने वाले थे, पर उन का भागने का प्लान असफल रहा और वे पकड़े गए. लड़की के पिता ने बेटी की तो लानत- मलामत की ही दोचार पुलिसिया हाथ मेरे कुलदीपक को भी जड़ दिए और पकड़ कर मेरे पास ले आए.

‘समझा लीजिए अपने बेटे को. अगर अब यह मेरे घर के आसपास भी दिखा तो समझ लीजिए…बिना जुर्म के ही इसे ऐसा अंदर करूंगा कि इस की जिंदगी चौपट हो कर रह जाएगी.’

मैं कुछ बोला तो नहीं पर उसे बड़ी हिकारत की दृष्टि से देखा. वह भी चुपचाप नजरें झुकाए अपने कमरे में चला गया.

रात को बेटी और दामाद अचानक आ गए. उन लोगों ने हमें सरप्राइज देने के लिए कोई सूचना न दी थी. थोड़ी देर तक इधरउधर की बातों के बाद मेरी बेटी बोली, ‘पापा, राहुल कहां है…सो गया क्या?’

राहुल की मां बोली, ‘शायद, अपने कमरे में बैठा पढ़ रहा होगा. जा कर बुला लाती हूं.’

‘रहने दो मां, मैं ही जा रही हूं उसे बुलाने,’ बेटी ने कहा.

ऊपर जा कर जब उस ने उस के कमरे का दरवाजा धकेला तो वह खुल गया और राहुल अचकचा कर बोला, ‘दीदी, तुम कैसे अंदर आ गईं, सिटकनी तो बंद थी.’

बेटी ने बिना कुछ बोले राहुल के गाल पर कस कर चांटा मारा और राहुल को स्टूल से नीचे उतार कर रोने लगी. दरअसल, राहुल कमरा बंद कर पंखे से लटक कर अपनी जान देने जा रहा था.

‘मुझे मर जाने दो, दीदी. मेरी वजह से पापा को बारबार शर्मिंदगी उठानी पड़ती है.’

‘तुम्हारे मरने से क्या उन का सिर गर्व से ऊंचा उठ जाएगा. अरे, अपना व्यवहार बदलो और जीवन में कुछ बन कर दिखाओ ताकि उन का सिर वास्तव में गर्व से ऊंचा हो सके.’

प्रवेश परीक्षाएं अच्छी हुई थीं.

इंजीनियरिंग कालिज में राहुल को प्रवेश मिल गया क्योंकि अच्छे नंबरों से उस ने परीक्षाएं पास की थीं. मित्रमंडली का समूह, जिन में लड़केलड़कियां सभी थे, अच्छा था. हम लोग निश्ंिचत हो चले थे. वह खुद भी जबतब अपने प्रेमप्रसंगों की खिल्ली उड़ाता था.

इंजीनियरिंग का तीसरा वर्ष शुरू होते ही उस मित्रमंडली में से एक लड़की से राहुल की अधिक मित्रता हो गई. वे दोनों अब अकसर ग्रुप के बाहर अकेले भी देखे जाते. मैं एकआध बार इन की पढ़ाई को ले कर सशंकित भी हुआ, पर लड़की बहुत प्यारी थी. वह हमेशा पढ़ाई और कैरियर की ही बात करती, साथ ही साथ मेरे बेटे को भी प्रोत्साहित करती और जबतब वे दोनों विदेश साथ जाने की बात करते थे.

विदेश जाने के लिए दोनों ने साथ मेहनत की, साथ परीक्षा दी, पर लड़की क्वालीफाई कर गई और राहुल नहीं कर सका. लड़की को 3 साल की पढ़ाई के लिए विदेश जाने की खबर से राहुल बहुत टूट गया. हालांकि लड़की ने उसे बहुत समझाया कि कोई बात नहीं, अगली बार क्वालीफाई कर लेना.

धीरेधीरे लड़की के विदेश जाने का समय नजदीक आने लगा और राहुल को उसे खोने का भय सताने लगा. वह बारबार उस से विवाह की जिद करने लगा. लड़की ने कहा, ‘देखो, राहुल, हम लोगों में बात हुई थी कि शादी हम पढ़ाई के बाद करेंगे, तो इस प्रकार हड़बड़ा कर शादी करने से क्या फायदा? 3 साल बीतते समय थोड़ी न लगेगा.’

राहुल जब उसे न समझा सका तो हम लोगों से कहने लगा कि विधि के पापा से बोलिए न. शादी नहीं तो उस के जाने के पहले मंगनी ही कर दें.

बच्चों के पीछे तो मातापिता को सबकुछ करना पड़ता है. मैं विधि के घर गया और उस के मातापिता से बात की तो वे बोले, ‘हम लोग तो खुद यही चाहते हैं.’

यह सुन कर विधि बोली, ‘पर मैं तो नहीं चाहती हूं…क्यों आप लोग मंगेतर या पत्नी का ठप्पा लगा कर मुझे भेजना चाहते हैं या आप लोगों को और राहुल को मुझ पर विश्वास नहीं है? और अगर ऐसा है तो मैं कहती हूं कि यह संबंध अभी ही खत्म हो जाने चाहिए, क्योंकि वास्तव में 3 साल की अवधि बहुत होती है. उस के बाद घटनाक्रम किस प्रकार बदले कोई कह नहीं सकता. क्या पता मेरी विदेश में नौकरी ही लग जाए और मैं वापस आ ही न सकूं. इसलिए मैं सब बंधनों से मुक्त रहना चाहती हूं.’

मैं और पत्नी अपना सा मुंह ले कर लौट आए. भारी मन से सारी बातें राहुल को बताईं…साथ में यह भी कहा कि वह ठीक कहती है. तुम लोगों का प्यार सच्चा होगा तो तुम लोग जरूर मिलोगे.

‘मैं सब समझ रहा हूं,’ राहुल बोला, ‘जब से उस के विदेश जाने की खबर आई है वह मुझे अपने से कमतर समझने लगी है. जाने दो, मैं कोई उस के पीछे मरा जाता हूं. बहुत लड़कियां मिलेंगी मुझे.’

परसों रात को विधि का प्लेन गया और परसों ही रात को राहुल ने नींद की गोलियां खा लीं. मैं और राहुल की मां एक शादी में गए हुए थे. कल शाम को लौट कर आए तो बेटे की यह हालत देखी. तुरंत अस्पताल ले कर आए. तभी कानों में शब्द सुनाई पड़े, ‘‘पापा, चाय पी लीजिए.’’

सामने देखा तो बेटी चाय का कप लिए खड़ी थी. मैं ने उस के हाथों से कप ले लिया.

बेटी बोली, ‘‘पापा, क्या सोच रहे हैं. राहुल अब ठीक है. इतना सोचेंगे तो खुद बीमार पड़ जाएंगे.’’

मैं ने चाय की चुस्की ली तो विचारों ने फिर पलटा खाया. यह कोई सिर्फ मेरे बेटे की ही बात नहीं है. आज की युवा पीढ़ी हो ही ऐसी गई है. हर कुछ जल्दी पाने की ललक और न पाने पर हताशा. समाचारपत्र उठा कर देखो तो ऐसी ही खबरों से पटा रहता है. प्यार शब्द भी इन लोगों के लिए एक मजाक बन कर रह गया है. अभी हमारे एक हिंदू परिचित हैं. उन की बेटी ने मुसलमान से शादी कर ली. दोनों ही पक्षों में काफी विरोध हुआ. अंतर्जातीय विवाह तो फिर भी पचने लगे हैं पर अंतर्धर्मीय नहीं. मैं ने अपने परिचित को समझाया.

‘जब बच्चों ने विवाह कर ही लिया है तब आप क्यों फालतू में सोचसोच कर हलकान हो रहे हैं. खुशीखुशी आशीर्वाद दे दीजिए.’

एक साल में उन के यहां बेटा भी पैदा हो गया. पर नाम को ले कर दोनों पतिपत्नी में जो तकरार शुरू हुई तो तलाक पर आ कर खत्म हुई. बात सिर्फ इतनी थी कि पिता बेटे का नाम अमन रखना चाहता था और मां शांतनु. दोनों के मातापिता ने समझाया…दोनों शब्दों का अर्थ एक होता है, चाहे जो नाम रखो, पर वे लोग न समझ पाए और आजकल बच्चा किस के पास रहे इस को ले कर दोनों के बीच मुकदमा चल रहा है.

‘‘नानू, नानू, यह आयुषी है,’’ मेरा 6 वर्षीय नाती एक प्यारी सी गोलमटोल लड़की से मेरा परिचय कराते हुए कहता है.

मैं अपने विचारों की दुनिया से बाहर आ कर थोड़ा सहज हो कर पूछता हूं, ‘‘आप की फ्रेंड है?’’

‘‘नो नानू, गर्लफे्रंड,’’ मेरा नाती कहता है.

मैं कहना चाहता हूं कि गर्लफ्रेंड के माने जानते हो? पर देखता हूं कि गर्लफ्रेंड कह कर परिचय देने पर उस बच्ची के गाल आरक्त हो उठे हैं और मैं खुद ही इस भूलभुलैया में फंस कर चुप रह जाता हूं.

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दुस्वप्न: कैसा था संविधा का ससुराल

संविधा ने घर में प्रवेश किया तो उस का दिल तेजी से धड़क रहा था. वह काफी तेजतेज चली थी, इसलिए उस की सांसें भी काफी तेज चल रही थीं. दम फूल रहा था उस का. राजेश के घर आने का समय हो गया था, पर संयोग से वह अभी आया नहीं था. अच्छा ही हुआ, जो अभी नहीं आया था. शायद कहीं जाम में फंस गया होगा. घर पहुंच कर वह सीधे बाथरूम में गई. हाथपैर और मुंह धो कर बैडरूम में जा कर जल्दी से कपड़े बदले.

राजेश के आने का समय हो गया था, इसलिए रसोई में जा कर गैस धीमी कर के चाय का पानी चढ़ा दिया. चाय बनने में अभी समय था, इसलिए वह बालकनी में आ कर खड़ी हो गई.सामने सड़क पर भाग रही कारों और बसों के बीच से लोग सड़क पार कर रहे थे. बरसाती बादलों से घिरी शाम ने आकाश को चमकीले रंगों से सजा दिया था.

सामने गुलमोहर के पेड़ से एक चिड़िया उड़ी और ऊंचाई पर उड़ रहे पंछियों की कतार में शामिल हो गई. पंछियों के पंख थे, इसलिए वे असीम और अनंत आकाश में विचरण कर सकते थे.वह सोचने लगी कि उन में मादाएं भी होंगी. उस के मन में एक सवाल उठा और उसी के साथ उस के चेहरे पर मुसकान नाच उठी, ‘अरे पागल ये तो पक्षी हैं, इन में नर और मादा क्या? वह तो मनुष्य है, वह भी औरत.

सभी अवतारों में श्रेष्ठ माना जाने वाला मानव अवतार उसे मिला है. सोचनेविचारने के लिए बुद्धि मिली है. सुखदुख, स्नेह, माया, ममता और क्रोध का अनुभव करने के लिए उस के पास दिल है. कोमल और संवेदनशील हृदय है, मजबूत कमनीय काया है, पर कैसी विडंबना है कि मनुष्य योनि में जन्म लेने के बावजूद देह नारी की है. इसलिए उस पर तमाम बंधन हैं.

संविधा के मन के पंछी के पंख पैदा होते ही काट दिए गए थे, जिस से वह इच्छानुसार ऊंचाई पर न उड़ सके. उस की बुद्धि को इस तरह गढ़ा गया था कि वह स्वतंत्र रूप से सोच न सके. उस के मन को इस तरह कुचल दिया गया था कि वह सदैव दूसरों के अधीन रहे, दूसरों के वश में रहे. इसी में उस की भलाई थी. यही उस का धर्म और कर्तव्य था. इसी में उस का सुख भी था और सुरक्षा भी.

शादी के 3 दशक बीत चुके थे. लगभग आधी उम्र बीत चुकी थी उस की. इस के बावजूद अभी भी उस का दिल धड़कता था, मन में डर था. देखा जाए तो वह अभी भी एक तरह से हिरनी की तरह घबराई रहती थी. राजेश औफिस से घर आ गया होगा तो…? तो गुस्से से लालपीला चेहरा देखना होगा, कटाक्ष भरे शब्द सुनने पड़ेंगे.

‘मैं घर आऊं तो मेरी पत्नी को घर में हाजिर होना चाहिए’, ‘इतने सालों में तुम्हें यह भी पता नहीं चला’, ‘तुम्हारा ऐसा कौन सा जरूरी काम था, जो तुम समय पर घर नहीं आ सकीं?’ जैसे शब्द संविधा पहले से सुनती आई थी.

वह कहीं बाहर गई हो, किसी सहेली या रिश्तेदार के यहां गई हो, घर के किसी काम से गई हो, अगर उसे आने में थोड़ी देर हो गई तो क्या बिगड़ गया? राजेश को जस का तस सुनाने का मन होता. शब्द भी होंठों पर आते, पर उस का मिजाज और क्रोध से लालपीला चेहरा देख कर वे शब्द संविधा के गले में अटक कर रह जाते. जब तक हो सकता था, वह घर में ही रहती थी.

एक समय था, जब संविधा को संगीत का शौक था. कंठ भी मधुर था और हलक भी अच्छी थी. विवाह के बाद भी वह संगीत का अभ्यास चालू रखना चाहती थी. घर के काम करते हुए वह गीत गुनगुनाती रहती थी. यह एक तरह से उस की आदत सी बन गई थी. पर जल्दी ही उसे अपनी इस आदत को सुधारना पड़ा, क्योंकि यह उस की सास को अच्छा नहीं लगता था.

सासूमां ने कहा था, ‘‘अच्छे घर की बहूबेटियों को यह शोभा नहीं देता.’’बस तब से शौक धरा का धरा रह गया. फिर तो एकएक कर के 3 बच्चों की परवरिश करने तथा एक बड़े परिवार में घरपरिवार के तमाम कामों को निबटाने में दिन बीतने लगे. कितनी बरसातें और बसंत ऋतुएं आईं और गईं, संविधा की जिंदगी घर में ही बीतने लगी.

‘संविधा तुुम्हें यह करना है, तुम्हें यह नहीं करना है’, ‘आज शादी में चलना है, तैयार हो जाओ’, ‘तुम्हारे पिताजी की तबीयत खराब है, 3-4 दिन के लिए मायके जा कर उन्हें देख आओ. 5वें दिन वापस आ जाना, इस से ज्यादा रुकने की जरूरत नहीं है’ जैसे वाक्य वह हमेशा सुनती आई है.

घर में कोई मेहमान आया हो या कोई तीजत्योहार या कोई भी मौका हो, उसे क्या बनाना है, यह कह दिया जाता. क्या करना है, कोई यह उस से कहता और बिना कुछ सोचेविचारे वह हर काम करती रहती.ससुराल वाले उस का बखान करते. सासससुर कहते, ‘‘बहू बड़ी मेहनती है, घर की लक्ष्मी है.’’

पति राजेश को भी उस का शांत, आज्ञाकारी, लड़ाईझगड़ा न करने वाला स्वभाव अनुकूल लगता था. पति खुशीखुशी तीजत्योहार पर उस के लिए कोई न कोई उपहार खरीद लाता, पर इस में भी उस की पसंद न पूछी जाती. संविधा का संसार इसी तरह सालों से चला आ रहा था.

किसी से सवाल करने या किसी की बात का जवाब देने की उस की आदत नहीं थी. राजेश के गुस्से से वह बहुत डरती थी. उसे नाराज करने की वह हिम्मत नहीं कर पाती थी.

बच्चे अब बड़े हो गए थे. पर अभी भी उस के मन की, इच्छा की, विचारों की, पसंदनापसंद की घर में कोई कीमत नहीं थी. इसलिए इधर वह जब रोजाना शाम को पार्क में, पड़ोस में, सहेलियों के यहां और महिलाओं के समूह की बैठकों में जाने लगी तो राजेश को ही नहीं, बेटी और बहुओं को भी हैरानी हुई.

आखिर एक दिन शाम को खाते समय बेटे ने कह ही दिया, ‘‘मम्मी, आजकल आप रोजाना शाम को कहीं न कहीं जाती हैं. आप तो एकदम से मौडर्न हो गई हैं.’’उस समय संविधा कुछ नहीं बोली. अगले दिन वह जाने की तैयारी कर रही थी, तभी बहू ने कहा, ‘‘मम्मी, आज आप बाहर न जाएं तो ठीक है. आप बच्चे को संभाल लें, मुझे बाहर जाना है.’’

‘‘आज तो मुझे बहुत जरूरी काम है, इसलिए मैं घर में नहीं रुक सकती,’’ संविधा ने कहा.उस दिन संविधा को कोई भी जरूरी काम नहीं था. लेकिन उस ने तो मन ही मन तय कर लिया था कि अब उस से कोई भी काम बिना उस की मरजी के नहीं करवा सकता. उस का समय अब उस के लिए है. कोई भी काम अब वह अपनी इच्छानुसार करेगी. वह किसी का भी काम उस की इच्छानुसार नहीं करेगी. कोई भी अब उसकी मरजी के खिलाफ अपना काम नहीं करवा सकता, क्योंकि उस की भी अपनी इच्छाएं हैं. अब वह किसी के हाथ से चलने वाली कठपुतली बन कर नहीं रहेगी.

इसलिए जब उस रात सोते समय राजेश ने कहा, ‘‘संविधा टिकट आ गए हैं, तैयारी कर लो. इस शनिवार की रात हम काशी चल रहे हैं. तुम्हें भी साथ चलना है. उधर से ही प्रयागराज और अयोध्या घूम लेंगे.’’तब संविधा ने पूरी दृढ़ता के साथ कहा, ‘‘मैं आप के साथ नहीं जाऊंगी. मेरी बहन अणिमा की तबीयत खराब है. मैं उस से मिलने जाऊंगी. आप को काशी, प्रयागराज और अयोध्या जाना है, आप अकेले ही घूम आइए.’’

‘‘पर मैं तो तुम्हारे साथ जाना चाहता था, उस का क्या होगा?’’ राजेश ने झल्ला कर कहा.‘‘आप जाइए न, मैं कहां आप को रोक रही हूं,’’ संविधा ने शांति से कहा.‘‘इधर से तुम्हें हो क्या गया है? जब जहां मन होता है चली जाती हो, आज मुझ से जबान लड़ा रही हो. अचानक तुम्हारे अंदर इतनी हिम्मत कहां से आ गई? मैं ऐसा नहीं होने दूंगा. तुम्हें मेरे साथ काशी चलना ही होगा,’’ राजेश ने चिल्ला कर कहा.

गुस्से से उस का चेहरा लालपीला हो गया था. संविधा जैसे कुछ सुन ही नहीं रही थी. वह एकदम निर्विकार भाव से बैठी थी. थोड़ी देर में राजेश कुछ शांत हुआ. संविधा का यह रूप इस से पहले उस ने पहले कभी नहीं देखा था. हमेशा उस के अनुकूल, शांत, गंभीर, आज्ञाकारी, उस की मरजी के हिसाब से चलने वाली पत्नी को आज क्या हो गया है? संविधा का यह नया रूप देख कर वह हैरान था.

अपनी आवाज में नरमी लाते हुए राजेश ने कहा, ‘‘संविधा, तुम्हें क्या चाहिए? तुम्हें आज यह क्या हो गया है? मुझ से कोई गलती हो गई है क्या? तुम कहो तो…’’ राजेश ने संविधा को समझाने की कोशिश की.

‘‘गलती आप की नहीं मेरी है. मैं ने ही इतने सालों तक गलती की है, जिसे अब सुधारना चाहती हूं. मेरा समग्र अस्तित्व अब तक दूसरों की मुट्ठी में बंद रहा. अब मुझे उस से बाहर आना है. मुझे आजादी चाहिए. अब मैं मुक्त हवा में सांस लेना चाहती हूं. इस गुलामी से बेचैन रहती हूं.’’

‘‘मैं कुछ समझा नहीं,‘‘ राजेश ने कहा, ‘‘तुम्हें दुख क्यों है? घर है, बच्चे हैं, पैसा है, मैं हूं,’’ संविधा के करीब आते हुए राजेश ने बात पूरी की.‘‘छोटी थी तो मांबाप की मुट्ठी में रहना पड़ा. उन्होंने जैसा कहा, वैसा करना पड़ा. जो खिलाया, वह खाया. जो पहनने को दिया, वह पहना. इस तरह नहीं करना, उस तरह नहीं करना, यहां नहीं जाना, वहां नहीं जाना. किस से बात करनी है और किस से नहीं करनी है, यह सब मांबाप तय करते रहे. हमेशा यही सब सुनती रही. शब्दों के भाव एक ही रहे, मात्र कहने वाले बदल गए. कपड़े सिलाते समय मां कहती कि लंबाई ज्यादा ही रखना, ज्यादा खुले गले का मत बनवाना. सहेली के घर से आने में जरा देर हो जाती, फोन पर फोन आने लगते, मम्मीपापा दोनों चिल्लाने लगते.

“इंटर पास किया, कालेज गई, कालेज का 1 ही साल पूरा हुआ था कि मेरी शादी की चिंता सताने लगी. पड़ोस में रहने वाला रवि हमारे कालेज में साथ ही पढ़ता था. वह मेरे घर के सामने से ही कालेज आताजाता था.”एक दिन मैं ने उसे घर बुला कर बातें क्या कर लीं, बुआ ने मेरी मां से कहा कि भाभी, संविधा अब बड़ी हो गई है, इस के लिए कोई अच्छा सा घर और वर ढूंढ़ लो. उस के बाद क्या हुआ, आप को पता ही है. उन्होंने मेरे लिए घर और वर ढूंढ़ लिया. उन की इच्छा के अनुसार यही मेरे लिए ठीक था.’’

एक गहरी सांस ले कर संविधा ने आगे कहा, ‘‘ऐसा नहीं था कि मैं ने शादी के लिए रोका नहीं. मैं ने पापा से एक बार नहीं कई बार कहा कि मुझे मेरी पढ़ाई पूरी कर लेने दो, पर पापा कहां माने. उहोंने कहा कि बेटा, तुम्हें कहां नौकरी करनी है… जितनी पढ़ाई की है, उसी में अच्छा लङका मिल गया है. अब आगे पढ़ने की क्या जरूरत है? हम जो कर रहे हैं, तेरी भलाई के लिए ही कर रहे है.”

पल भर चुप रहने के बाद संविधा ने आगे कहा, ‘‘जब मैं इस घर में आई, तब मेरी उम्र 18 साल थी. तब से मैं यही सुन रही हूं, ‘संविधा ऐसा करो, वैसा करो.’ आप ही नहीं, बच्चे भी यही मानते हैं कि मुझे उन की मरजी के अनुसार जीना है. अब मैं अपना जीवन, अपना मन, अपने अस्तित्व को किसी अन्य की मुट्ठी में नहीं रहने देना चाहती. अब मुझे मुक्ति चाहिए. अब मैं अपनी इच्छा के अनुसार जीना चाहती हूं. मुझे मेरा अपना अस्तित्व चाहिए.’’

‘‘संविधा, मैं ने तुम से प्रेम किया है. तुम्हें हर सुखसुविधा देने की हमेशा कोशिश की है.’’‘‘हां राजेश, तुम ने प्यार किया है, पर अपनी दृष्टि से. आप ने अच्छे कपड़ेगहने दिए, पर वे सब आप की पसंद के थे. मुझे क्या चाहिए, मुझे क्या अच्छा लगता है, यह आप ने कभी नहीं सोचा. आप ने शायद इस की जरूरत ही नहीं महसूस की.’’

‘‘इस घर में तुम्हें क्या तकलीफ है?’’ हैरानी से राजेश ने पूछा, ‘‘तुम यह सब क्या कह रही हो, मेरी समझ में नहीं आ रहा.’’

‘‘मेरा दुख आप की समझ में नहीं आएगा,’’ संविधा ने दृढ़ता से कहा, ‘‘घर के इस सुनहरे पिंजरे में अब मुझे घबराहट यानी घुटन सी होने लगी है. मेरा प्राण, मेरी समग्र चेतना बंधक है. आप सब की मुट्ठी खोल कर अब मैं उड़ जाना चाहती हूं. मेरा मन, मेरी आत्मा, मेरा शरीर अब मुझे वापस चाहिए.’’

शादी के बाद आज पहली बार संविधा इतना कुछ कह रही थी, ‘‘हजारों साल पहले अयोध्या के राजमहल में रहने वाली उर्मिला से उस के पति लक्ष्मण या परिवार के किसी अन्य सदस्य ने वनवास जाते समय पूछा था कि उस की क्या इच्छा है? किसी ने उस की अनुमति लेने की जरूरत महसूस की थी? तब उर्मिला ने 14 साल कैसे बिताए होंगे, आज भी कोई इस बारे में नहीं विचार करता. उसी महल में सीता महारानी थीं. उन्हें राजमहल से निकाल कर वन में छोड़ आया गया जबकि वह गर्भवती थीं. क्या सीता की अनुमति ली गई थी या बताया गया था कि उन्हें राजमहल से निकाला जा रहा है?

“मेरे साथ भी वैसा ही हुआ है. मुझे मात्र पत्नी या मां के रूप में देखा गया. पर अब मैं मात्र एक पत्नी या मां के रूप में ही नहीं, एक जीतेजागते, जिस के अंदर एक धड़कने वाला दिल है, उस इंसान के रूप में जीना चाहती हूं. अब मैं किसी की मुट्ठी में बंद नहीं रहना चाहती.’’‘‘तो अब इस उम्र में घरपरिवार छोड़ कर कहां जाओगी?’’ राजेश ने पूछा.

‘‘अब आप को इस की चिंता करने की जरूरत नहीं है. इस उम्र में किसी के साथ भागूंगी तो है नहीं. मुझे तो सेवा ही करनी है. अब तक गुलाम बन कर करती रही, जहां अपने मन से कुछ नहीं कर सकती थी. पर अब स्वतंत्र हो कर सेवा करना चाहती हूं.

“मेरी सहेली सुमन को तो तुम जानते ही हो, पिछले साल उन के पति की मौत हो गई थी. उन की अपनी कोई औलाद नहीं थी, इसलिए उन की करोड़ों की जायदाद पर उन के रिश्तेदारों की नजरें गड़ गईं. जल्दी ही उन की समझ में आ गया कि उन के रिश्तेदारों को उन से नहीं, उन की करोड़ो की जायदाद से प्यार है. इसलिए उन्होंने किसी को साथ रखने के बजाय ट्रस्ट बना कर अपनी उस विशाल कोठी में वृद्धाश्रम के साथसाथ अनाथाश्रम खोल दिया.

‘‘उन का अपना खर्च तो मिलने वाली पेंशन से ही चल जाता था, वद्धों एवं अनाथ बच्चों के खर्च के लिए उन्होंने उसी कोठी में डे चाइल्ड केयर सैंटर भी खेल दिया. वृद्धाश्रम, अनाथाश्रम और चाइल्ड केयर सैंटर एकसाथ खोलने में उन का मकसद यह था कि जहां बच्चों को दादादादी का प्यार मिलता रहेगा, वहीं आश्रम में रहने वाले वृद्ध कभी खुद को अकेला नहीं महसूस करेंगे. उन का समय बच्चों के साथ आराम से कट जाएगा, साथ ही उन्हें नातीपोतों की कमी नहीं खलेगी,’’ इतना कह कर संविधा पल भर के लिए रुकी.

राजेश की नजरें संविधा के ही चेहरे पर टिकी थीं. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक संविधा एकदम से कैसे बदल गई. संविधा ने डाइनिंग टेबल पर रखे जग से गिलास में पानी लिया और पूरा गिलास खाली कर के आगे बोली, ‘‘दिन में नौकरी करने वाले कपल को अपने बच्चों की बड़ी चिंता रहती है. पर सुमन के डे चाइल्ड केयर सैंटर में अपना बच्चा छोड़ कर वे निश्चिंत हो जाते हैं, क्योंकि वहां उन की देखभाल के लिए दादादादी जो होते हैं. इस के अलावा सुमन की उस कोठी में बच्चों को खेलने के निए बड़ा सा लौन तो है ही, उन्होंने बच्चों के लिए तरहतरह के आधुनिक खिलौनों की भी व्यवस्था कर रखी है. दिन में बच्चों को दिया जाने वाली खाना भी शुद्ध और पौष्टिक होता है. इसलिए उन के डे चाइल्ड केयर सैंटर में बच्चों की संख्या काफी है. जिस से उन्हें वृद्धाश्रम और अनाथाश्रम चलाने में जरा भी दिक्कत नहीं होती. आज सुबह मैं वहीं गई थी. वहां मुझे बहुत अच्छा लगा. इसलिए अब मैं वहीं जा कर सुमन के साथ उन बूढ़ों की और बच्चों की सेवा करना चाहती हूं, उन्हें प्यार देना चाहती हूं, जिन का अपना कोई नहीं है.’’

राजेश संविधा की बातें ध्यान से सुन रहा था. उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि वह जो सुन रहा है, वह सब कहने वाली उस की पत्नी संविधा है. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब सच है या दुस्वप्न.

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अगर आपको भी बिना वजह चक्कर आते हैं तो ना करें इग्नोर

कई बार महिलाएं, शरीर में होने वाले छोटे-मोटे बदलाव और स्वास्थ्य परेशानियों को नजर अंदाज कर देती हैं. लेकिन स्वास्थ्य की यह परेशानियां आगे चलकर गंभीर समस्या का रूप भी ले सकती हैं. इसलिए महिलाओं को इन बातों को गंभीरता से लेते हुए, जल्द से जल्द उपचार के बारे में सोचना चाहिए. हम बता रहे हैं, ऐसे ही कुछ लक्षणों के बारे में जिनके प्रति सतर्क रहना बेहद आवश्यक है.

1. चक्कर आना – अगर आपको बगैर किसी शारीरिक श्रम या अन्य कारण के चक्कर आ रहे हैं, या आपका सिर घूमने लगता है, तो इसे नजरअंदाज बिल्कुल भी  न करें. इस तरह से चक्कर आना, दिल की बीमारी की ओर इशारा करता है. केवल यही नहीं बल्कि इसके और भी कुछ कारण हो सकते हैं, जैसे साइनस या कान में किसी तरह की परेशानी होना.

2. वजन कम होना – बगैर डाइटिंग या वर्कआउट के अगर आपका वजन अचानक कम होता जा रहा है, तो इसके प्रति लापरवाही बिल्कुल न करें और कारण जानें. बिना डायटिंग के वजन 5 किलो से भी कम हो तो यह यह पैंक्रियाज, पेट, ग्रासनली या फिर फेफड़ों के कैंसर की ओर इशारा करता है.

3. आंखों की समस्या – यदि आप महसूस करें कि बिना किसी दर्द के अचानक आपकी आंखों की शक्ति कम हो रही है, तो यह स्ट्रोक का लक्षण भी हो सकता है. दरअसल पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में यह खतरा अधिक होता है और यह खतरा 35 से 50 की उम्र की महिलाओं में भी होता है.

4. असामान्य मासिकधर्म – मासिक धर्म के समय सामान्य से अधि‍क रक्तस्त्राव होना फाइब्रॉइड या गर्भाशय का ट्यूमर भी हो सकता है. इसके कारण एनीमिया, थकान, गर्भ ठहरने में परेशानी और कई परेशानियां आ सकती हैं.

5 दस्त – खाने-पीने में गड़बड़ी होने से पेट खराब हो सकता है, लेकिन अक्सर रात के वक्त आपको दस्त लगाने जैसा महसूस होता हो, तो चिकित्सक को जरूर दिखाएं क्योंकि यह आंतों में सूजन या संक्रमण हो सकता है.

Summer Special: नाश्ते में बनाएं ग्रिल्ड वैजिटेबल सैंडविच

नाश्ते में अगर आप फटाफट बनने वाली रेसिपी की तलाश कर रहे हैं तो ग्रिल्ड वैजिटेबल सैंडविच आपके लिए हैल्दी और आसान रेसिपी है. ग्रिल्ड वैजिटेबल सैंडविच बनाने के लिए पढ़ें ये रेसिपी…

सामग्री

– 8-10 ब्राउन ब्रैडस्लाइस

-1 मध्यम आकार का आलू उबला और गोलाई में कटा हुआ

– 1 छोटा खीरा पतला कटा हुआ

– 1 छोटा प्याज पतला कटा हुआ

– 1 छोटा टमाटर पतला कटा हुआ

– जरूरतानुसार मक्खन

– थोड़ा सा चाटमसाला

– थोड़ा सा भुने जीरे का पाउडर

– नमक व कालीमिर्च स्वादानुसार

– थोड़ी सी टोमैटो कैचअप सर्व करने के लिए

– 1 कप धनियापत्ती कटी हुई

– 1-2 कलियां लहसुन कटा हुआ

– 1 हरीमिर्च कटी हुई

– स्वादानुसार नीबू का रस

– 1/2 छोटा चम्मच जीरा पाउडर

विधि

सभी ब्रैडस्लाइस में मक्खन लगा लें. अब आलू के कुछ टुकड़े ब्रैडस्लाइस पर रखें और ऊपर से जीरा पाउडर और चाटमसाला डालें. अब 2-3 टुकड़े खीरे के रखें. फिर प्याज और टमाटर को खीरे पर रखें. ऊपर से जीरा पाउडर डालें. अब सैंडविच को दूसरे ब्रैडस्लाइस से कवर करें और ऊपर से थोड़ा मक्खन लगाएं. अब तैयार सैंडविच को ग्रिल होने के लिए हैवल्स ग्रिल सैंडविच मेकर में रख कर

2-3 मिनट तक सुनहरा होने तक ग्रिल करें. ग्रिल होने के बाद गरमगरम सैंडविच को टोमैटो कैचअप के साथ परोसें.

एक बार फिर: क्या हुआ था स्नेहा के साथ

कहानी- नफीस वारसी

इस मल्टीनैशनल कंपनी पर यह दूसरा कहर ढाया है. इस से पूर्व भी एक बार यह कंपनी अस्तव्यस्त हो चुकी है. उस समय कंपनी की एक खूबसूरत कर्मचारी स्नेहा ने अपने बौस पर आरोप लगाया था कि वे कई वर्षों से उस का यौनशोषण करते आ रहे हैं. उस की बोटीबोटी नोचते आ रहे हैं और यह सब महज शादी का लालच दे कर होता रहा है और अब वे शादी से मुकर रहे हैं. उस का इतना भर कहना था कि सबकुछ सुलग उठा था, धूधू कर के.

ऐसा नहीं था कि स्नेहा केवल खूबसूरत ही थी, योग्य नहीं. उस ने बीटैक और एमटैक की डिगरियां ले रखी थीं. वह अपने कार्य में पूर्ण दक्ष थी. वह बहुत ही शोख, खुशमिजाज और बेबाक भी थी. उस ने अपने आकर्षक व्यक्तित्व और भरसक प्रयासों से कंपनी को देश ही में नहीं, बल्कि विदेशों में भी उपलब्धियां अर्जित कराई थीं.

इस प्रकार वह स्वयं भी प्रगति करती गईर् थी. एक के बाद एक प्रमोशन पाती गई थी और उस का पैकेज भी दिनोंदिन मोटा होता जा रहा था. वह बहुत खुश थी. हरदम चहचहाती रहती थी. चेहरे पर रौनक छाई रहती. उस के व्यक्तित्व के आगे अच्छेअच्छे टिक नहीं पाते थे. परंतु अचानक वह बहुत उदास रहने लगी थी. इतनी उदास कि उस से अब छोटेछोटे टारगेट भी अचीव नहीं होते थे.

इसी डिप्रैशन में उस ने यह कदम उठाया था. वह कभी यह कदम न उठाती, लेकिन एक स्त्री सबकुछ बरदाश्त कर सकती है पर अपने प्यार को साझा करना हरगिज नहीं.

जी हां, उस की कंपनी में वैसे तो तमाम सुंदर बालाएं थीं, परंतु हाल ही में एक नई भरती हुई थी. यह उच्च शिक्षित एवं प्रशिक्षित नवयुवती निहायत सुंदर व आकर्षक थी. उस ने सौंदर्य और आकर्षण में स्नेहा को पीछे छोड़ दिया था.

इसी सौंदर्य और आकर्षण के कारण वह अपने बौस की प्रिय हो गईर् थी. बौस दिनरात उसे आगेपीछे लगाए रहते थे. स्नेहा यह सब देख कुढ़ रही थी. पलपल उस का खून झुलस रहा था.

आखिरकार उस ने आपत्ति की, ‘सर, यह सब ठीक नहीं है.’

‘क्या ठीक नहीं है?’ बौस ने मुसकरा कर पूछा.

‘आप अपने वादेइरादे भूल बैठे हैं.’

‘कौन से वादेइरादे?’

‘मुझ से शादी के?’

‘नौनसैंस, पागल हो गई हो तुम. मैं ने तुम से ऐसा वादा कब किया? आजकल तुम बहुत बहकीबहकी बातें कर रही हो.’

‘मैं बहक गई हूं या आप? दिनरात उस बिच के साथ रंगरेलियां मनाते रहते हैं…’

बौस ने हिम्मत से काम लिया. अपना तेवर बदला, ‘देखो स्नेहा, मैं तुम से आज भी उतनी ही मोहब्बत करता हूं जितनी कि कल करता था. इतनी छोटीछोटी बातों पर ध्यान मत दो. तुम कहां से कहां पहुंच गई हो. इतना अच्छा पैकेज मिल रहा है तुम्हें.’

‘आज मैं जो कुछ भी हूं, अपनी मेहनत से हूं.’

‘यही तो कह रहा हूं मैं. स्नेहा, तुम समझने की कोशिश तो करो. मैं किस से मिल रहा हूं, क्या कर रहा हूं, क्या नहीं, इस पर ध्यान मत दो. जो कुछ भी मैं करता हूं वह सब कंपनी की भलाई के लिए करता हूं. तुम्हारे मानसम्मान और प्रगति में कोई बाधा आए तो मुझ से शिकायत करो. खुद लाइफ को एंजौय करो और दूसरों को भी करने दो.’

परंतु स्नेहा नहीं मानी, उस ने स्पष्ट रूप से बौस से कह दिया, ‘मुझे कुछ नहीं पता. मैं बस यह चाहती हूं कि आप वर्षा को अपने करीब न आने दें.’

‘स्नेहा, मुझे अफसोस हो रहा है तुम्हारी समझ पर. तुम एक मौडर्न लेडी हो, अपने पैरों पर खड़ी हुई. यू शुड नौट पे योर अटैंशन टू दिस रबिश.’

‘तीन बार आप मुझे हिदायत दे चुके हैं कि मैं इन छोटीछोटी बातों पर ध्यान न दूं. पर मेरे लिए यह छोटी बात नहीं है. आप वर्षा को इतनी इंपोर्टैंस न दें. नहीं तो…’

‘नहीं तो क्या?’

‘नहीं तो मैं चीखचीख कर कहूंगी कि तुम पिछले कई वर्षों से मेरी बोटीबोटी नोचते रहे हो…’

बौस अपना धैर्य खो बैठे, ‘जाओ, जो करना चाहती हो करो. चीखो, चिल्लाओ, मीडिया को बुलाओ.’

और स्नेहा ने ऐसा ही किया. सुबह समाचारपत्रों के पन्ने स्नेहा के बौस की करतूतों से रंगे पड़े थे. टीवी चैनल्स मसाला लगालगा कर कवरेज को परोस रहे थे.

यह मामला बहुत आगे तक गया. कोर्टकचहरी से होता हुआ नारी संगठनों तक. इसी मध्य कुछ ऐसा घटित हुआ कि सभी सकते में आ गए. हुआ यह कि वर्षा का मर्डर हो गया. वर्षा का मर्डर क्यों हुआ? किस ने कराया? यह रहस्य, रहस्य ही रहा. हां, कानाफूसी होती रही कि वर्षा प्र्रैग्नैंट थी और यह बच्चा बौस का नहीं, कंपनी के मालिक का था.

इस सारे प्रकरण से उबरने में कंपनी को एड़ीचोटी एक करनी पड़ी. किसी तरह स्नेहा शांत हुई. स्नेहा के बौस का निलंबन तो पहले ही हो चुका था.

आखिरकार कंपनी ने राहत की सांस ली. उस ने एक नोटिफिकेशन जारी किया कि कंपनी में कार्यरत सारी लेडी कर्मचारी शालीन हो कर कंपनी में आया करें. जींसटौप जैसे अतिआधुनिक परिधान धारण कर के कदापि न आएं. बांहेंकटे जंपर, फ्रौक, ब्लाउज और पारदर्शी आस्तीनों वाले गारमैंट्स से परहेज करें. भड़काऊ मेकअप से बचें.

कंपनी के फरमान में जैंट्स कर्मचारियों के लिए भी हिदायतें थीं. उन्हें भी मौडर्न गारमैंट्स से गुरेज करने को कहा गया. जींसपैंट और टाइट टीशर्ट की मनाही की गई.

इन निर्देशों का पालन भी हुआ. लेडी कर्मचारी बड़ी शालीनता एवं शिष्टता से आनेजाने लगीं. जैंट्स भी सलीके से रहने लगे. सभी बड़ी तन्यमता से अपनेअपने काम को अंजाम देने लगे. परंतु फिर भी कर्मचारियों के मध्य पनप रहे प्रेमप्रंसगों की भनक ऊपर तक पहुंच गई.

एक बार फिर एक अद्भुत निर्णय लिया गया. वह यह कि धीरेधीरे कंपनी से लेडीज स्टाफ को हटाया जाने लगा. गुपचुप तरीके से एकदो कर के जबतब लेडीज कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाया जाने लगा. किसीकिसी को अन्यत्र शिफ्ट किया जाने लगा. कुछेक महिलाएं परिस्थितियां भांप कर स्वयं इधरउधर खिसकने लगीं.

दूसरी जानिब लड़कियों के स्थान पर कंपनी में लड़कों की नियुक्ति की जाने लगी. इस का एक सुखद परिणाम यह रहा कि इस कंपनी में तमाम बेरोजगार लड़कों की नियुक्ति हो गई. इस कंपनी की देखादेखी यही कदम अन्य मल्टीनैशनल कंपनियों ने भी उठाया. इस तरह देखते ही देखते नौजवान बेरोजगारों की संख्या कम होने लगी. उन्हें अच्छा इनसैंटिव मिलने लगा. बेरोजगारों के बेरौनक चेहरों पर रौनक आने लगी.

पहले आप इस कंपनी की किसी शाखा में जाते तो रिसैप्शन पर आप को मुसकराती, लुभाती, आप का स्वागत करती हुई युवतियां ही मिलतीं. उन के वुमन परफ्यूम और मेकअप से आप के रोमरोम में सिहरन पैदा हो जाती. आप नजर दौड़ाते तो आप को चारों तरफ लेडीज चेहरे ही नजर आते. कुछ कंप्यूटर और लैपटौप से चिपके, कुछेक इधरउधर आतेजाते, कुछ डीलिंग करते हुए.

परंतु अब मामला उलट था. अब आप का रिसैप्शन पर मुसकराते हुए नौजवानों से सामना होता. ऐसेऐसे नौजवान जिन्हें देख कर आप दंग रह जाते. कुछ हृष्टपुष्ट, कुछ सींकसलाई से. कुछेक के लंबेलंबे बाल बिलकुल लड़कियों जैसे और कुछेक के बहुत ही छोटेछोटे बेतरतीब खड़े हुए.

वे सब आप से बड़े प्यार से बात करते. कंपनी के प्रोडक्ट्स पर खुल कर बोलते. उन की विशेषताएं गिनाते और आप मजबूर हो जाते उन के प्रोडक्ट्स को खरीदने पर.

इन नौजवानों की अथक मेहनत और कौशल से अब यह कंपनी अपने पिछले गम भुला कर धीरेधीरे प्रगति के मार्ग पर अग्रसर थी. नौजवानों ने दिनरात एक कर के, सुबह 10 बजे से ले कर रात 10 बजे तक कंप्यूटर में घुसघुस कर योजनाएं बनाबना कर और हवाई जहाज से उड़ानें भरभर कर एक बार फिर से कंपनी में जान डाल दी थी. अब कंपनी का कारोबार आसमान छूने लगा था.

इसी मध्य एक बार फिर कंपनी को आघात लगा. कंपनी के एक नौजवान ने अपने बौस पर आरोप लगाया कि वे विगत 2 वर्षों से उस का यौनशोषण करते आ

रहे हैं.

उस कर्मचारी के बौस भी खुल कर सामने आ गए. कहने लगे, ‘‘हां, हम दोनों के मध्य ऐसा होता रहा है. परंतु यह सब हमारी परस्पर सहमति से होता रहा है.’’

उन्होंने उस कर्मचारी को बुला कर समझाया भी, ‘‘यह कैसी नादानी है?’’

‘‘नादानी, नादानी तो आप कर रहे हैं.’’

‘‘मैं?’’

‘‘हां, और कौन? आप अपने वादेइरादे भूल रहे हैं.’’

‘‘कैसे वादेइरादे?’’

‘‘मेरे साथ जीनेमरने के. मुझ से शादी करने के.’’

‘‘नौनसैंस, तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है.’’

‘‘दिमाग तो आप का खराब हो गया, जो आप मुझ से नहीं, एक छोकरी से शादी करने जा रहे हैं.’’

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अधिक सोचने की प्रौब्लम है तो खाएं लीची

कई बार देखा गया है कि अधिक सोचने की वजह से महिलाएं बीमार हो जाती हैं. किसी विषय पर बहुत देर तक उलझे रहने से उनकी निजी जिंदगी में परेशानियां आना शुरू हो जाती हैं…

लीची महिलाओं के माइंड, लीवर और हार्ट के लिए फायदेमंद है और यह प्रेगनेंसी के दौरान ब्लड प्रेशर को बनाए रखने में मदद करती है.

लीची लोअर ब्लड शुगर को मेटेंन करने में सहायक है और वजन को नियंत्रित रखने में भी मदद करती है. यह हमारे इम्यून सिस्टम को बनाए रखने में भी सहायक है.

लीची औक्सीडेटिव स्ट्रेस जो सोचने से अधिक होता है उसको  कम करने में भी मदद करती है. ऐसा कहा जाता है कि महिलाएं किसी भी विषय पर बहुत अधिक सोचने लगती हैं ऐसे में यह महिलाओं के लिए ये अधिक फायदेमंद है. यह फल कैंसर के पेशेंट की लिए भी लाभदायक है. इस फल में हाई लेवल के एंटीऔकेसीडेंट्स होते हैं जो क्रोनिक डिजीज से हमें बचाते हैं. इसमें हाई लेवल के पॉलीफिनोल्स होते हैं जो सूजन को कम करने में मददगार हैं. विटामिन सी से भरपूर फल लीची मौसमी बीमारियों से बचाने में भी गुणकारी है. यह वो फल है जो विटामिंस फाइबर और मिनरल्स से भरपूर होती है.

इन दिनों एक दिन में 9 से 10 लीची से अधिक नहीं खानी चाहिए वरना यह आपको नुकसान पहुंचा सकती है. अत्यधिक मात्रा में इसका सेवन नहीं करना चाहिए.

 

अनुसूया सेनगुप्ता बनी कांस फेस्टिवल में बेस्ट एक्ट्रेस का अवॉर्ड जीतने वाली पहली भारतीय महिला

अनुसूया सेनगुप्ता कांस फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट एक्ट्रेस का अवॉर्ड जीतने वाली पहली भारतीय महिला बन गई हैं. अनुसूया को यह अवॉर्ड फिल्म ‘शेमलेस’ के लिए दिया गया है. इस फिल्म में अनुसूया ने रेणुका का रोल निभाया है. जो एक पुलिस अधिकारी का कत्ल करके दिल्ली ब्रोदेल से भाग जाती है. अनुसूया ने अवॉर्ड जीतने के लिए ज्यूरी का आभार जताते हुए कहा है कि यह उनके लिए पर्सनल अचीवमेंट से बढ़कर है.

अगर आप भी अनुसूया सेनगुप्ता जैसा लुक चाहती हैं तो आप ये पांच एक्सेसरीज ट्राई करें. इन एक्सेसरीज में कॉकटेल रिंग, व्हाइट स्पेक्स, लौंग चेन और  ब्रेसलेट शामिल हैं.

इस फोटो में आप देख सकते कि अनुसूया ने पफ के साथ ब्रेडिंग स्टाइल कर हेयर स्टाइल किया है तो आप भी ये हेयरस्टाइल कॉपी कर सकती हैं.

अनुसूया ने यहां पर पॉकेट वाली मैक्सी ड्रेस पहनी हुई है आप भी इन्हें अपने वॉर्डरोब में शामिल कर सकती हैं और पा सकती हैं स्टाइलिश लुक.

यहां पर अनुसूया ने वेजेस हील फुटवियर पहनी हुई है आप भी इन्हें अपने फुटवियर कलेक्शन में शामिल कर सकते हैं जो आपको अनुसुया जैसी लुक देने में मदद करेगी.

प्यार का सागर: आखिर सागर पर क्यों बरस पड़े उसके घरवाले

लेखिका : मंजरी सक्सेना 

सड़क पर गाड़ी दौड़ाते हुए बैंक्वेट हौल में जगमग शादियों के पंडाल देख और म्यूजिक की धुन से मु?ो लगा जैसे मेरे कानों में किसी ने गरम सीसा उड़ेल दिया हो. जिन आवाजों से मैं पीछा छुड़ा कर उस दिन शहर के बाहर यहां आई थी, वे यहां भी जहर घोलने चली आईर् थीं. सड़क पर कितनी ही बरातें दिखी थीं जो बैंक्वेट हौल के सामने नाचों में जुटी थीं.

न मालूम कितनी बातें मेरे दिमाग में बिजली की तरह कौंध गईं और एकाएक जैसे मैं आकाश से धरती पर आ गिरी. सोचने लगी, मैं कहां पहुंच गईर् थी उन मधुर कल्पनाओं में जो कभी साकार नहीं होंगी. लेकिन फिर सोचने लगी कि तो क्या मुझे इन्हीं कल्पनाओं के सहारे जीना पड़ेगा क्योंकि मेरी जिंदगी में जो उदासी और दर्द आ गया उस क अंत नहीं. अब क्या मेरी बरात में ऐसी धूमधाम नहीं होगी? कितनी प्लानिंग की थी अपनी शादी की मैं ने भी और मेरे मांबाप ने भी. अब मैं खुद तो दुखी हूं ही, साथ में मांबाप, भाईबहन भी चिंतित हैं.

काश, शादी से पहले मेरे पैर की हड्डी न टूटी होती तो मेरी मधुर प्लानिंग यों जल कर राख न होती.

नगाड़ों की धुन अब पास आती जा रही थी और मैं फिर सोचने लगी थी कि 10 दिन बाद मेरी बरात आएगी भी या नहीं, मेरी डोली उठेगी या नहीं और दुलहनों की तरह मैं भी कभी लाल जोड़ा पहन सकूंगी या नहीं या सबकुछ महीनों के लिए खा जाएगा.

मुझे दूसरे पहलू पर भी सोचना था. वैडिंग के लिए होटल बुक हो चुका था. लोगों ने टिकट भी खरीद लिए थे. इंतजाम तो सारे हो ही चुके हैं. हर सामान के लिए पहले से पैसा दिया जा चुका है जिस के लिए भैया को कितनी मशक्कत करनी पड़ी है और फिर सागर के बीचोंबीच हनीमून के लिए होटल के भी तो सारे इंतजाम कर लिए थे. शादीब्याह कोई गुडि़यों का खेल तो है नहीं कि उस का दिन टलता रहे. उन्होंने भी तो अब तक अपने रिश्तेदारों को आमंत्रित कर लिया था. आजकल लड़कों की शादियों पर भी सब खूब खर्च करते हैं. सागर ने बैचलर ट्रिप भी और्गेनाइज कर लिया था.

 

जिस दिन मेरी हड्डी टूटी थी, उस दिन की याद आते ही मैं कांप गई. हमेशा की तरह छत पर पढ़ रही थी. छत के शांत वातावरण में पढ़ना मु?ो बहुत अच्छा लगता था. कोई शोर, कोई चीखपुकार सुनाई नहीं देती थी. नीचे तो सड़क की आवाजें तथा फिल्मों के गाने आदि ध्यान को हटा देते थे. शहर के बीच में घर होने की वजह से मार्केट आने वाले रिश्तेदार और दोस्त घर भी चले आते, जिस से पढ़ाई में व्यवधान पड़ता था. उन के लिए चायनाश्ता तैयार करना पड़ता था या कभीकभी खाना भी बनाना पड़ता. इस से मु?ो बहुत परेशानी होती.

ऐग्जाम के दिनों में तो मम्मीपापा के रिश्तेदारों या अन्य लोगों का आना मुझे बहुत ही खराब लगता क्योंकि एक तो उन के आने से समय नष्ट होता, दूसरे वे यह पूछना कभी न भूलते कि अभी तक सरिता ने शादी का क्या इंतजाम किया है. सुन कर मेरे तनबदन में आग सुलग उठती.

इन सब झंझटों से मुक्ति पाने का मेरा एकमात्र स्थान छत थी. न मां मु?ो अपने सामने देखतीं और न कोई काम मुझसे कहतीं. जब मैं छत पर पढ़ रही होती तो काम के लिए मीता को ही पकड़ा जाता था वरना वह छोटी होने की वजह से बची रहती. शादी के लिए निश्चित तिथि के कुल 15 दिन बाद ही तो मेरी परीक्षा थी. डैस्टिनेशन मैरिज, सागर के भाई के विदेश से आने, हवाईजहाज के टिकटों के कारण तय हुआ था कि परीक्षा से पहले शादी होगी और परीक्षा के बाद हम हनीमून पर जाएंगे. शादी के बाद ठीक से पढ़ाई नहीं हो सकती थी इसलिए मैं अधिक से अधिक पढ़ाई कर लेना चाहती थी. यही सोच कर मैं छत के कोने में कुरसी कर निश्चिंतता से पढ़ रही थी कि बंदरों की कतार आती दिखी. बंदर तो हमेशा ही आते थे. उन से डर कर मैं नीचे उतर जाती थी, लेकिन उस दिन पता नहीं क्यों मैं यह सोच कर भागी कि कहीं बंदरों ने मु?ो नोच लिया और चेहरा विकृत हो गया तो क्या होगा. मैं जल्दी से नीचे भागी. फिर नीचे रखे गमले से टकरा कर एक चीख के साथ गिर पड़ी. फिर क्या हुआ, कुछ नहीं मालूम.

जब होश आया तो मां ने कहा, ‘‘यह क्या कर बैठी सरिता? अब क्या होगा?’’ मां का मतलब सम?ाते मु?ो देर नहीं लगी. पर उन से क्या कहती? क्या यह कि कहीं बंदर मेरा चेहरा न नोच लें इसीलिए मैं ने छलांग लागई थी और धोखे से गमले से टकरा कर गिर गई?

‘‘यह रोने का समय है क्या?’’ बड़े भैया चिल्लाए, ‘‘क्या पता हड्डी न टूटी हो सिर्फ मोच ही आ गई हो. चलो जल्दी अस्पताल चलो,’’ और उन्होंने मु?ो सहारा दे कर उठाया. मगर भैया की आंखों की भाषा मैं ने पढ़ ली थी. वे खुद भी तो इस बात से डरे हुए थे कि कहीं मेरे पैर की हड्डी न टूट गई हो. उन लोगों के चेहरे देख कर मैं अपना दर्द भूल सी गईर् थी. मेरा पैर सूज गया था इसलिए और मुश्किल थी.

‘अगर हड्डी टूट गई हो और ठीक से न जुड़ सकी तो? यदि कहीं हड्डी टूट कर उस में चुभ गई तो? कम से कम 3 महीने तक प्लास्टर ?ोलना पड़ेगा. हो सकता है औपरेशन करना पड़े. या रौड डले,’ यह विचार आते ही मैं कांप उठी.

‘‘बेवकूफ लड़की यह क्या कर बैठी?’’ जगदीश की आवाज मु?ो ?ाक?ोर गई. उन्होंने फिर कहा, ‘‘अब तेरी जगह क्या गीता को खड़ा करा जाएगा?’’ इस के साथ ही वे हंस पड़े, पर मेरा फक चेहरा देख कर शायद उन्हें अपनी गलती का आभास हुआ और वे गंभीर हो गए.

‘‘डाक्टर साहब, क्या ऐसा नहीं हो सकता कि प्लास्टर न चढ़ाया जाए?’’ मां ने पूछा. ‘‘अभी कुछ भी कहना मुश्किल है. ऐक्सरे रिपोर्ट के बाद ही कुछ कहा जा सकता है.’’ मां धीरेधीरे बड़बड़ा रही थीं.

‘‘मां, आप फिक्र क्यों करती हैं? शादी तो हो ही जाएगी. हां, सरिता को चलाने के  लिए व्हील चेयर और आंसू पोंछने के लिए किसी को साथ रखना पड़ेगा,’’ डाक्टर साहब ने शायद मु?ो हंसाना चाहा. पर मेरा मुंह शर्म तथा अपमान से लाल हो गया. का एक मीता को सामने देख कर मैं संभल गई, ‘‘क्या बात है मीतू?’’ ‘‘मैं कब से तुम्हें आवाज दे रही है. खाना तक लग गया है. सब लोग मेज पर तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं,’’ उस का स्वर ?ाल्लाया सा लगा.

मैं भारी कदमों से मीता के साथ डाइनिंगटेबल पर व्हीलचेयर में आ गई. खाने की मेज पर मां, पिताजी, भाभी, भैया सभी मेरे इंतजार में बैठे थे. मीता ने प्लेट में खाना परोस कर प्लेट मेरे सामने रखी तो मु?ो लगा मानो सभी लोग तरस खाईर् नजरों से मु?ो देख रहे हैं. अपने प्लास्टर चढ़े

पैर पर एक नजर डाल कर मैं चुपचाप खाने लगी थी. खाने के साथसाथ रुलाई भी छूट रही थी. कैसा अजीब वातावरण हो उठा था. पहले खाने की मेज पर बैठते ही पिताजी के कहकहे, भैया के चुटकुले, भाभी की चूडि़यों की खनखनाहट, मां की बनावटी ?ाल्लाहट से वातावरण खुशनुमा सा लगता था, लेकिन आज खाने से पहले हंसतेबोलने चेहरे मेज पर आते ही गुमसुम हो गए थे.

 

मैं सोच रही थी कि  घर में जो यह उदासी छा गई है, इस का कारण मैं ही तो हूं. मैं ने इसीलिए मां से कहा था कि मेरा खाना मेरे कमरे में पहुंचा दो, लेकिन वे तो रो पड़ीं. बोलीं, ‘‘तू अकेले कितना खाएगी, क्या मैं यह सम?ाती नहीं.’’ सुन कर मैं चुप हो गई. अचानक रात के 10 बजे

सागर आ गए. वे कार से आए थे. सामने देख कर मेरा खून बर्फ की तरह जम सा गया. हरकोई धड़कते दिल से अपनेअपने ढंग से अनुमान लगा रहा था. पिताजी ने सागर से कहा, ‘‘आप से

अनुरोध है कि शादी की तारीख कृपया न बदलें क्योंकि फिर बुकिंग न मिलने के कारण शादी अगले साल तक के लिए टल जाएगी. वैसे आप की जो इच्छा. आप की तसल्ली और विश्वास के लिए मैं सरिता का ऐक्सरे दे रहा हूं. कृपया बताएं क्या करें?’’ सागर ने आते ही मु?ो सब के सामने जोर से हग कर के सब को चौंका दिया. उस ने कहा, ‘‘सबकुछ वैसा ही होगा जैसा प्लान है, बस हनीमून कैंसिल. जब सरितता पूरी तरह ठीक होगी, तब देखेंगे,’’ सागर पूरी योजना सब को बता दी. उस ने साफ कह दिया कि शादी से पहले सरिता उस के मातापिता से नहीं मिलेगी क्योंकि न जाने वे क्या फैसले लें. शायद वे नहीं चाहेंगे कि उन की होने वाली बहू व्हीलचेयर पर शादी के मंडप में आए.

 

सागर ने हमारे 6 टिकट पहले करा दिए ताकि हम डैस्टिनेशन पर पहले पहुंच जाएं. मु?ो सोफे पर बैठा कर खूब तसवीरें ली गईं जिन में मेरे पैर छिपे हुए थे.

सब अपनेअपने कार्यक्रम के अनुसार डैस्टिनेशन होटल पहुंचे. सागर ने बहाना बना दिया कि प्री वैडिंग कार्यक्रमों में किसी कारण से मैं भाग नहीं ले पाऊंगी. सब मु?ा से कमरे में मिलने आते. मैं पलंग पर लेटेलेटे सब से मिलती. हम 6 यात्रियों में मम्मीपापा, मीता और भैया और भाभी के अलावा किसी को नहीं मालूम न था कि मेरे पैर की हड्डी टूटी है.

सागर के मातापिता भी आए. मु?ा से मिल कर गए. मैं डरी रही. सागर ने बड़ी बखूबी से मु?ो बैड पर लिटाए रखने के एक के बाद एक नए बहाने गढ़े. मेरे बिना कई रस्में हुईं और कईयों में मैं सब से पहले पहुंच कर बैठ जाती, बड़े से लंहगे में पैर छिपा कर और तभी उठती जब सब को सागर या मम्मीपापा किसी न किसी बहाने कहीं और ले जाते.

यह डैस्टिनेशन वैडिंग एक  बड़े होटल में हो रही थी जिस में सर्विस लिफ्ट से व्हीलचेयर पर चुपचाप इधर से उधर जाना संभव था. मेरा कमरा एकदम सर्विस लिफ्ट के बराबर या इसलिए कम को ही शक हुआ.

बरात निश्चित समय मैरिज होटल के एक सिरे से दूसरे सिरे तक पहुंची. बरात में जो लड़कियां आई थीं, उन में मु?ो न देख कर खुसुरफुसुर हो रही थी. भाभी मेरे हाथों में मेहंदी लगा रही थीं. तभी 7-8 लड़कियां मु?ा से मिलने चली आईं. लेकिन मैं तो बैट पर लेटी थी और नकली छींके मार रही थी इसलिए देखते ही वे उलटे पैरों लौट गईं. जब पहली जयमाला वाली रस्म होनी थी तो मैं शान से व्हीलचेयर पर आई. सारे घर में सन्नाटा सा छा गया कि अब मुसीबत बेधड़क आ गई. असली ड्रामा तब शुरू हुआ जब विवाह मंडप में आयोजन के लिए बुलाया गया. मेरी और सागर की जिद के कारण मीता ही मु?ो लाल लहंगे में ले कर विवाह मंच पर पहुंची. सब के मुंह खुले रह गए. हमारी ओर के बरातियों के भी और सागर के संबंधियों को भी. सागर के पिता बरसने लगे, ‘‘यह क्या तमाशा है. क्या हम अपाहिज लड़की से शादी करने वाले हैं?’’

मैं अपमान से तिलमिला उठी. पापा ने सारी बात सागर के पापा को बताई तो भी वे शांत नहीं हुए. सागर इस दौरान चुप खड़ा रहा. तभी मैं बोल पड़ी, ‘‘नहीं करनी है मु?ो शादी, मेरा पैर कोई कट नहीं गया है. क्या जरूरत है पापा को गिड़गिड़ाने की? क्यों पापा दया की भीख मांग रहे हैं किसी के आगे?’’ बोलतेबोलते मेरा सारा शरीर कांपने लगा. तभी किसी रिश्तेदार ने कहा कि सागर की शादी मीता से कर दो, काम हो जाएगा. सागर यह सुन कर भी चुप था. पिताजी ने तो हां भी कह दी. लेकिन तभी सागर का असली रूप सामने आया. बोला, ‘‘पापा मेरा विवाह सरिता से ही होगा और शादी का जो समय तय है उसी में सबकुछ होगा. मु?ोे हड्डी टूटने की बात पहले दिन से पता है. यह सब मेरी इच्छा और हमारे भविष्य के सुख के लिए है.’’

सागर के प्रति मेरी सहानुभूति उमड़ आई. सोचने लगी कि मेरे लिए वह कितनी मुसीबत ?ोल रहा है. कुछ का उत्साह निचुड़ गया था. वातावरण में एक अजीब सा सूनापन भर उठा. पर फिर पूरे जोशखरोश से शादी का हर काम पूरा हुआ. मैं व्हीलचेयर पर और सागर मेरे

साथ खड़ा सैकड़ों फोटो में हमारा प्यार जाहिर हो रहा था.

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