आलू की सब्जी और पूरी खाने के हैं शौकीन, तो घर पर इस आसान तरीके से करें तैयार

दोस्तों हम चाहे जितने भी स्वादिष्ट भोजन घर या रेस्टोरेंट में खा लें पर जब भंडारे के खाने की बात आती है तो ये सब फीके पड़ जाते है. वैसे तो आलू की बहुत सी रेस्पी बनती हैं , लेकिन भंडारे वाले आलू की सब्जी की बात ही कुछ और है , भंडारे वाली आलू की रसेदार सब्जी बेहद ही स्वादिष्ट होती है.इस सब्‍जी की सबसे ख़ास बात तो यह है की इसमें न तो लहसुन और न ही प्‍याज का इस्‍तेमाल किया जाता है. मगर फिर भी यह काफी टेस्‍टी लगती है।

इस सब्जी को बनाने में बिल्‍कुल भी समय नहीं लगता इसलिये आप इसे ऑफिस में लंच के तौर पर बना कर ले जा सकती हैं.

यह सब्‍जी पूड़ी, रोटी या फिर चावल के साथ सर्व की जा सकती है.इस सब्जी की महक इतनी अच्छी होती है कि भूख न होते हुये भी खाने का मन करने लगता है।

दोस्तों इस स्वाद को आप घर में लाने की काफी कोशिश करते हैं, लेकिन सफल नहीं हो पाते हैं.तो चलिए जानते है की भंडारे वाली आलू की सब्जी कैसे बनाये.

हमें चाहिए-

उबले आलू -400 ग्राम
तेल या घी -3 बड़ा चम्मच
टमाटर -1 कप कटा हुआ
अदरक -1 इंच कटी हुई
हरी मिर्च -2 से 3
हींग-1/2 छोटा चम्मच
जीरा -1 चम्मच
अमचूर पाउडर-1 छोटी चम्मच
धनिया पाउडर -2 टी स्पून
सौंफ पाउडर-1 छोटा चम्मच
हल्दी पाउडर-1/2 छोटा चम्मच
कश्मीरी लाल मिर्च पाउडर -2 चम्मच
गरम मसाला पाउडर-1/2 छोटा चम्मच
तेज़ पत्ता- 1
नमक स्वादानुसार

बनाने का तरीका-
• 1-सबसे पहले कढाई में तेल गर्म करें . तेल गरम होने के बाद उसमें हींग और जीरा डालें और कुछ सेकंड के लिए उन्हें चटकने दें।अब उसमे तेज़ पत्ता डाले.
• 2-अब उसमे हल्दी पाउडर ,धनिया पाउडर, कश्मीरी लाल मिर्च पाउडर और सौंफ पाउडर डाले फिर हल्का सा चलाने के बाद उसमे कटे हुए टमाटर डाल दें.याद रखें मसाला जलना नहीं चाहिए.आप चाहे तो टमाटर का पेस्ट बना कर भी डाल सकते है.
• 3- अब इसे तब तक पकाएं जब तक कि तेल किनारों से अलग न हो जाए।
• 4-अब उबले हुए आलुओं को हाथ से फोड़ कर कढाई में डाल दे.याद रखें आलू को काटना नहीं है .
• 5-अब ऊपर से गरम मसाला डाल दे और इनको अच्छे से कलछी से चला लें.
• 6-2 कप पानी, अमचूर पाउडर और नमक डालें.3-4 मिनट तक पकाएं.आवश्यकता हो तो और पानी डालें.ग्रेवी पतली होनी चाहिए।
• 7-सब्‍जी को अच्‍छी तरह से पकाएं और जब ग्रेवी गाढ़ी हो जाए तब गैस बंद कर दें।याद रखें किसी भी सब्जी को जितना पकाएंगे उसका स्वाद उतना ही अच्छा आयेगा.
• 8- अब धनिया डाल कर गार्निश करें.

दोस्तों ये तो थी आलू की भंडारे वाले आलू की सब्जी.पर अगर इसके साथ भंडारे वाली पूरी भी खाने को मिल जाये तो खाने का मज़ा दुगना हो जायेगा.
दोस्तों वैसे तो भंडारे वाली पूरी को दो बार तेल में छानते है जिससे वो खाने में कुरकुरी हो . पर दोस्तों ज्यादा तेल में छानने से वो बहुत oily हो जाती है.
तो चलिए हम बताते है आपको की बिना ज्यादा तेल इस्तेमाल किये भंडारे जैसी कुरकुरी पूरी कैसे बनाये?

हमें चाहिए-

गेंहू का आटा-2 बड़े कप
रवा या सूजी-1/2 बड़े कप
रिफाइंड -2 छोटे चम्मच

बनाने का तरीका-

• 1-सबसे पहले एक बाउल में आटे और सूजी को डाल कर मिला लें .अब उसमे मोयन के लिए रिफाइंड डालें.
• 2-अब आटे को अच्छे से गूंथ लें.याद रखें आटा थोड़ा कड़ा ही गूथें इससे पूरियां अच्छी बनेंगी.
• 3-अब आटे की बराबर-बराबर लोइयां काट कर रख ले.
• 4-अब पूरी को बेल लें.आप चाहे तो पूरी को पतला या हल्का सा मोटा भी बेल सकती है .
• 5-अब कढाई में रिफाइंड गर्म करें .अब उसमे बिली हुई पूरी को डाल दे.
• 6-दोस्तों एक चीज़ का ध्यान रखियेगा की पूरी को ज्यादा तेज़ या ज्यादा धीमी आंच पर नहीं सेकना है .
• 7-इसको माध्यम आंच पर लाल होने तक सकें.
• 8-तैयार है भंडारे जैसी पूरी .इसको भंडारे वाली आलू की सब्जी के साथ खाए.

फर्ज: नजमा ने अपना फर्ज कैसे निभाया?

जयपुर के सिटी अस्पताल में उस्मान का इलाज चलते 15 दिनों से भी ज्यादा हो गए थे लेकिन उस की तबीयत में सुधार नहीं हो रहा था.

आईसीयू वार्ड के सामने परेशान सरफराज लगातार इधर से उधर चक्कर लगा रहे थे. बेचैनी में कभी डाक्टरों से अपने बेटे की जिंदगी की भीख मांगते तो कभी फर्श पर बैठ कर फूटफूट कर रोने लग जाते.

उधर, अस्पताल के एक कोने में खड़ी उस्मान की मां फरजाना भी बेटे की सलामती के लिए नर्सों की खुशामद कर रही थी. तभी आईसीयू वार्ड से डाक्टर बाहर निकले तो सरफराज उन के पीछेपीछे दौड़े और उन के पैर पकड़ कर गिड़गिड़ाते हुए कहने लगे, ‘‘डाक्टर साहब, मेरे उस्मान को बचा लो. कुछ भी करो. उस के इलाज में कमी नहीं होनी चाहिए.’’

डाक्टर ने उन्हें उठा कर तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘देखिए अंकल, हम आप के बेटे को बचाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. उस की हालत अभी भी गंभीर बनी हुई है. औपरेशन और दवाओं को मिला कर कुल 5 लाख रुपए का खर्चा आएगा.’’

‘‘कैसे भी हो, आप मेरे बेटे को बचा लो, डाक्टर साहब. मैं 1-2 दिनों में पैसों का इंतजाम करता हूं,’’ सरफराज ने हाथ जोड़ कर कहा.

काफी भागदौड़ के बाद भी जब सरफराज से सिर्फ 2 लाख रुपयों का ही इंतजाम हो सका तो निराश हो कर उस ने बेटी नजमा को मदद के लिए दिल्ली फोन मिलाया. उधर से फोन पर दामाद अनवर की आवाज आई.

‘‘हैलो अब्बू, क्या हुआ, कैसे फोन किया?’’

‘‘बेटा अनवर, उस्मान की हालत ज्यादा ही खराब है. उस के औपरेशन और इलाज के लिए 5 लाख रुपयों की जरूरत थी. हम से 2 लाख रुपयों का ही इंतजाम हो सका. बेटा…’’ और सरफराज का गला भर आया.

इस के पहले कि उन की बात पूरी होती, उधर से अनवर ने कहा, ‘‘अब्बू, आप बिलकुल फिक्र न करें. मैं तो आ नहीं पाऊंगा, लेकिन नजमा कल सुबह पैसे ले कर आप के पास पहुंच जाएगी.’’

दूसरे दिन नजमा पैसे ले कर जयपुर पहुंच गई. आखिरकार सफल औपरेशन के बाद डाक्टरों ने उस्मान कोे बचा लिया. धीरेधीरे 10 साल गुजर गए. इस बीच सरफराज ने गांव की कुछ जमीन बेच कर उस्मान को इंजीनियरिंग की पढ़ाई करवाई और मुंबई एअरपोर्ट पर उस की नौकरी लग गई. उस ने अपने साथ काम करने वाली लड़की रेणु से शादी भी कर ली और ससुराल में ही रहने लगा.

इस के बाद उस्मान का मांबाप से मिलने आना बंद हो गया. कई बार वे बीमार हुए. उसे खबर भी दी, फिर भी वह नहीं आया. ईद, बकरीद तक पर भी वह फोन पर भी मुबारकबाद नहीं देता

एक दिन सुबह टैलीफोन की घंटी बजी. सरफराज ने फोन उठाया उधर से उस्मान बोल रहा था, ‘‘हैलो अब्बा, कैसे हैं आप सब लोग? अब्बा, मुझे एक परेशानी आ गई है. मुझे 10 लाख रुपयों की सख्त जरूरत है. मैं 1-2 दिनों में पैसे लेने आ जाता हूं.’’

‘‘बेटा, तेरे औपरेशन के वक्त नजमा से उधार लिए 3 लाख रुपए चुकाने ही मुश्किल हो रहा है. ऐसे में मुझ से 10 लाख रुपयों का इंतजाम नहीं हो सकेगा. मैं मजबूर हूं बेटा,’’ सरफराज ने कहा.

इस के आगे सरफराज कुछ बोलते, उस्मान गुस्से से भड़क उठा, ‘‘अब्बा, मुझे आप से यही उम्मीद थी. मुझे पता था कि आप यही कहोगे. आप ने जिंदगी में मेरे लिए किया ही क्या है?’’ और उस ने फोन काट दिया.

अपने बेटे की ऐसी बातें सुन कर सरफराज को गहरा सदमा लगा. वे गुमसुम रहने लगे. घर में पड़े बड़बड़ाते रहते.

एक दिन अचानक शाम को सीने में दर्द के बाद वे लड़खड़ा कर गिर पड़े तो बीवी फरजाना ने उन्हें पलंग पर लिटा दिया. कुछ देर बाद आए डाक्टर ने जांच की और कहा, ‘‘चाचाजी की तबीयत ज्यादा खराब है, उन्हें बड़े अस्पताल ले जाना पड़ेगा.’’डाक्टर साहब की बात सुन कर घबराई फरजाना ने बेटे उस्मान को फोन कर बीमार बाप से मिलने आने की अपील करते हुए आखिरी वक्त होने की दुहाई भी दी.

जवाब में उधर से फोन पर उस्मान ने अम्मी से काफी भलाबुरा कहा. गुस्से में भरे उस्मान ने यह तक कह दिया, ‘‘आप लोगों से अब मेरा कोई रिश्ता नहीं है. आइंदा मुझे फोन भी मत करना.’’

यह सुन कर फरजाना पसीने से लथपथ हो गई. वो चकरा कर जमीन पर बैठ गई. कुछ देर बाद अपनेआप को संभाल कर उस ने नजमा को दिल्ली फोन किया, ‘‘हैलो नजमा, बेटी, तेरे अब्बा की तबीयत बहुत खराब है. तू अनवर से इजाजत ले कर कुछ दिनों के लिए यहां आ जा. तेरे अब्बा तुझे बारबार याद कर रहे हैं.’’

नजमा ने उधर से फौरन जवाब दिया, ‘‘अम्मी आप बिलकुल मत घबराना. मैं आज ही शाम तक अनवर के साथ आप के पास पहुंच जाऊंगी.’’

शाम होतेहोते नजमा और अनवर जब  घर पर पहुंचे तो खानदान के लोग सरफराज के पलंग के आसपास बैठे थे. नजमा भाग कर अब्बा से लिपट गई. दोनों बापबेटी बड़ी देर तक रोते रहे. ‘‘देखो अब्बा, मैं आ गई हूं. आप अब मेरे साथ दिल्ली चलोगे. वहां हम आप को बढि़या इलाज करवाएंगे. आप बहुत जल्दी ठीक हो जाओगे,’’ नजमा ने रोतेरोते कहा.

आंखें खोलने की कोशिश करते सरफराज बड़ी देर तक नजमा के सिर पर हाथ फेरते रहे. आंखों से टपकते आंसुओं को पोंछ कर बुझी आवाज में उन्होंने कहा, ‘‘नजमा बेटी, अब मैं कहीं नहीं जाऊंगा. अब तू जो आ गई है. मुझे सुकून से मौत आ जाएगी.’’ ‘‘ऐसा मत बोलो, अब्बा. आप को कुछ नहीं होगा,’’ यह कह कर नजमा ने अब्बा का सिर अपनी गोद में रख लिया. अम्मी को बुला कर उस ने कह दिया, ‘‘अम्मी आप ने खूब खिदमत कर ली. अब मुझे अपना फर्ज अदा करने दो.’’ उस के बाद तो नजमा ने अब्बा सरफराज की खिदमत में दिनरात एक कर दिए. टाइम पर दवा, चाय, नाश्ता, खाना, नहलाना और घंटों तक पैर दबाते रहना, सारी रात पलंग पर बैठ कर जागना उस का रोजाना का काम हो गया.

कई बार सरफराज ने नजमा से ये सब करने से मना भी किया पर नजमा यही कहती, ‘‘अब्बा, आप ने हमारे लिए क्या नहीं किया. आप भी हमें अपने हाथों से खिलाते, नहलाते, स्कूल ले जाते, कंधों पर बैठा कर घुमाते थे. सबकुछ तो किया. अब मेरा फर्ज अदा करने का वक्त है. मुझे मत रोको, अब्बा.’’

बेटी की बात सुन कर सरफराज चुप हो गए. इधर, सरफराज की हालत दिनपरदिन गिरती चली गई. उन का खानापीना तक बंद हो गया.

एक दिन दोपहर के वक्त नजमा अब्बा का सिर गोद में ले कर चम्मच से पानी पिला रही थी. तभी घर के बाहर कार के रुकने की आवाज सुनाई दी.

कुछ देर बाद उस्मान एक वकील को साथ ले कर अंदर आया. उस के हाथ में टाइप किए हुए कुछ कागजात थे. अचानक बरसों बाद बिना इत्तला दिए उस को घर आया देख कर सभी खुश हो रहे थे. दरवाजे से घुसते ही वह लपक कर सरफराज के नजदीक जा कर आवाज देने लगा, ‘‘अब्बा, उठो, आंखे खोलो, इन कागजात पर दस्तखत करना है. उठो, उठो,’’ यह कह कर उस ने हाथ पकड़ कर उन्हें पैन देना चाहा.

नजमा ने रोक कर पूछा, ‘‘भाईजान, ये कैसे कागजात हैं?’’

लेकिन वह किसी की बिना सुने अब्बा को आवाजें देता रहा. सरफराज ने आंखें खोलीं. उस्मान की तरफ एक नजर देखा. और अचानक उन के हाथ में दिए कागजात और पैन नीचे गिर पड़े. उन का हाथ बेदम हो कर लटक गया. यह देख नजमा चिल्लाई, ‘‘अब्बा, अब्बा, हमें अकेला छोड़ कर मत जाओ.’’ और घर में कुहराम ?मच गया. नजमा बोली, ‘‘भाईजान जो मकान आप अपने नाम कराना चाहते थे वह तो 10 साल पहले अब्बू ने आप के नाम कर दिया था. आप अब फिक्र न करो.’’

ये सब देख कर उस्मान ने फुरती से अब्बा के बिना दस्तखत रह गए कागजात उठाए और वकील के साथ बिना पीछे देखे बाहर निकल गया. फरजाना, नजमा और अनवर भाग कर पीछेपीछे आए लेकिन तब तक कार रवाना हो गई. तीनों दरवाजे में खड़े कार की पीछे उड़ी धूल के गुबार में चकाचौंधभरी शहरी मतलबपरस्त दुनिया की आंधी में फर्ज और रिश्तों की मजबूत दीवार को भरभरा कर गिरते हुए देखते रह गए.

प्रयास: क्या श्रेया अपने गर्भपात होने का असली कारण जान पाई?

छतपर लगे सितारे चमक रहे थे. असली नहीं, बस दिखाने भर को ही थे. जिस वजह से लगाए गए थे वह तो… खैर, जीवन ठहर नहीं जाता कुछ होने न होने से.

बगल में पार्थ शांति से सो रहे थे. उन के दिमाग में कोई परेशान करने वाली बात नहीं थी शायद. मेरी जिंदगी में भी कुछ खास परेशानी नहीं थी. पर बेवजह सोचने की आदत थी मुझे. मेरे लिए रात बिताना बहुत मुश्किल होता था. इस नीरवता में मैं अपने विचारों को कभी रोक नहीं पाती थी. पार्थ तो शायद जानते भी नहीं थे कि मेरी हर रात आंखों में ही गुजरती है.

मैं शादी से पहले भी ऐसी ही थी. हर बात की गहराई में जाने का एक जनून सा रहता था. पर अब तो उस जनून ने एक आदत का रूप ले लिया था. इसीलिए हर कोई मुझ से कम ही बात करना पसंद करता था. पार्थ भी. जाने कब किस बात का क्या मतलब निकाल बैठूं. वैसे, बुरे नहीं थे पार्थ. बस हम दोनों बहुत ही अलग किस्म के इनसान थे. पार्थ को हर काम सलीके से करना पसंद था जबकि मैं हर काम में कुछ न कुछ नया ढूंढ़ने की कोशिश करती.

उस पहली मुलाकात में ही मैं जान गई थी कि हम दोनों में काफी असमानता है.

‘‘तुम्हें नहीं लगता कि हम घर पर मिलते तो ज्यादा अच्छा रहता?’’ पार्थ असहजता से इधरउधर देखते हुए बोले.

‘‘मुझे लगा तुम मुझ से कहीं अकेले मिलना पसंद करोगे. घर पर सब के सामने शायद हिचक होगी तुम्हें,’’ मैं ने बेफिक्री से कहा.

‘‘तुम? तुम मुझे ‘तुम’ क्यों कह रही हो?’’ पार्थ का स्वर थोड़ा ऊंचा हो गया.

मैं ने इस ओर ज्यादा ध्यान न दे कर एक बार फिर बेफिक्री से कहा, ‘‘तुम भी तो मुझे ‘तुम’ कह रहे हो?’’

उस दिन पार्थ के चेहरे का रंग तो बदला था, लेकिन उन्होंने आगे कुछ नहीं कहा. मैं भी अपने महिलावादी विचारों में चूर अपने हिसाब से उचित उत्तर दे कर संतुष्ट हो गई.

फेरों के वक्त जब पंडित ने मुझ से कहा कि कभी अकेले जंगल वीराने में नहीं जाओगी, तब इन्होंने हंस कर कहा, ‘‘अकेले तो वैसे भी कहीं नहीं जाने दूंगा.’’

यह सुन कर सभी खिलखिला उठे. मैं ने भी इसे प्यार भरा मजाक समझ कर हंसी में उड़ा दिया. उस वक्त नहीं जानती थी कि वह सिर्फ एक मजाक नहीं था. उस के पीछे पार्थ के मन में गहराई तक बैठी सोच थी. इस जमाने में भी वे औरतों को खुद से कमतर समझते थे.

शादी के बाद हनीमून मना कर जब लौटी तो खुद को हवा में उड़ता पाती थी. लेकिन इस नशे को काफूर होने में ज्यादा वक्त नहीं लगा. रविवार की एक खुशनुमा सुबह जब मैं ने पार्थ से फिर से नौकरी जौइन करने के बारे में पूछा तो उन के रूखे जवाब ने मुझे एक और झटका दे दिया.

‘‘क्या जरूरत है नौकरी करने की? मैं तो कमा ही रहा हूं.’’

पार्थ के इस उत्तर को सुन कर मेरी आंखों के सामने पुरानी फिल्मों के खड़ूस पतियों की तसवीरें आ गईं. फिर बोली, ‘‘लेकिन शादी से पहले भी तो मैं नौकरी करती ही थी?’’

‘‘शादी से पहले तुम्हारा खर्च तुम्हारे घर वालों को भारी पड़ता होगा. अब तुम मेरी जिम्मेदारी हो. जैसी मेरी मरजी होगी वैसा तुम्हें रखूंगा. इस बारे में मुझे कोई राय नहीं चाहिए,’’ इन्होंने मुझ पर पैनी नजर डालते हुए कहा.

अपने परिवार पर की गई टिप्पणी तीर की तरह चुभी मुझे. अत: फुफकार उठी, ‘‘मैं नौकरी खर्चा निकालने के लिए नहीं, बल्कि अपनी खुशी के लिए करती थी और अब भी करूंगी. मैं भी देखती हूं मुझे कौन रोकता है,’’ इतना कह कर मैं वहां से जाने लगी.

तभी पीछे से पार्थ का ठंडा स्वर सुनाई दिया, ‘‘ठीक है, करो नौकरी, लेकिन फिर मुझ से एक भी पैसे की उम्मीद मत रखना.’’

एक पल को मेरे पैर वहीं ठिठक गए, लेकिन मैं स्वाभिमानी थी, इसलिए बिना उत्तर दिए कमरे से निकल गई.

अब तक काफी कुछ बदल चुका था हमारे बीच. पार्थ को तो खैर वैसे भी कुछ मतलब नहीं था मुझ से और अब मैं ने भी दिमाग पर जोर डालना काफी हद तक छोड़ दिया था. दोनों अपनेअपने काम में व्यस्त रहते. शाम को थकहार कर खाना खा कर अपनेअपने लैपटौप में खोए रहते. कभीकभी जब पार्थ को अपनी शारीरिक जरूरत पूरा करने का ध्यान आता तो मशीनी तरीके से मैं भी साथ दे देती. उन्हें मेरी रुचि अरुचि से कोई फर्क नहीं पड़ता.

अब तो लड़ने का भी मन नहीं करता था. पहले की तरह अब हमारा झगड़ा कईकई दिनों तक नहीं चलता था, बल्कि कुछ ही मिनटों में खत्म हो जाता. उस का अंत करने में अकसर मैं ही आगे रहती. मुझे अब पार्थ से बहस करने का कोई औचित्य नजर नहीं आता था. इस का मतलब यह नहीं था कि मैं ने पार्थ के सत्तावादी रवैऐ से हार मान ली थी. उस की हर बात का जवाब देने में अब मुझे आनंद आने लगा था.

उस दिन पार्थ की बहन रितिका के बेटे की बर्थडे पार्टी थी. उन्होंने मुझे शाम को जल्दी घर आने को कहा. वे अपनी बात पूरी कर पाते, उस से पहले ही मैं ने सपाट स्वर में उत्तर दिया, ‘‘मुझे औफिस में देर तक काम है, तुम चले जाना.’’

‘‘अरे, पर मैं अकेले कैसे जाऊंगा? वहां लोग क्या कहेंगे?’’ वे परेशान हो कर बोले.

‘‘वही जो हर बार मेरे अकेले जाने पर मेरे घर वाले कहते हैं,’’ कह कर मैं जोर से दरवाजा बंद कर औफिस के लिए निकल पड़ी.

आंखों में आंसू थे, पर इन के कारण मैं पार्थ के सामने कमजोर नहीं पड़ना चाहती थी. उन्हें कभी एहसास नहीं होता था कि वे क्या गलत कर जाते हैं. उन्हें इस तरह वक्त बेवक्त सुना कर मुझे लगता था कि शायद उन्हें समझा पाऊं कि उन के व्यवहार में क्या कमी है. लेकिन बेरुखी का जवाब बेरुखी से देना, फासला ही बढ़ाता है. कभीकभी लगता कि पार्थ को प्यार से समझाऊं. कई बार कोशिश भी की, लेकिन रिश्ते में मिठास बनाए रखने का प्रयास दोनों ओर से होता है.

एक मौका मिला था मुझे सब कुछ ठीक करने का. तभी आंखें भर आईं. पलक मूंद कर पार्थ के साथ बिताए उन खूबसूरत पलों को फिर से याद करने लगी…

‘‘पा…पार्थ…’’ मैं ने लड़खड़ाते हुए उन्हें पुकारा.

‘‘हां, बोलो.’’

‘‘पार्थ, मुझे तुम से बहुत जरूरी बात करनी है.’’

‘‘हां, बोलो. मैं सुन रहा हूं,’’ वे अब भी अपने लैपटौप में खोए थे.

‘‘पार्थ… मैं…,’’ मेरे मुंह से मारे घबराहट के कुछ निकल ही नहीं रहा था कि पता नहीं पार्थ क्या प्रतिक्रिया देंगे.

‘‘बोलो भी श्रेया क्या बात है?’’ आखिरकार उन्होंने लैपटौप से अपनी नजरें हटा कर मेरी तरफ देखा.

‘‘पार्थ मैं मां बनने वाली हूं,’’ मैं ने पार्थ से नजरें चुराते हुए कहा.

‘‘सच?’’ उन्होंने झटके से लैपटौप को हटाते हुए खुशी से कहा.

मैं ने उन की तरफ देखा. पार्थ के चेहरे पर इतनी खुशी मैं ने कभी नहीं देखी थी.

उन्होंने मुझे अपनी बांहों में भरते हुए कहा, ‘‘हमारे लिए यह सब से बड़ी खुशी की बात है, श्रेया. इस बात पर तो मिठाई होनी चाहिए भई,’’ और फिर मेरा माथा चूम लिया. उस रात काफी वक्त के बाद अपने रिश्ते की गरमाहट मुझे महसूस हुई. उस रात पार्थ कुछ अलग थे, रोजाना की तरह रूखे नहीं थे.

मुझे तो लगा था कि पार्थ यह खबर सुन कर खुश नहीं होंगे. हर दूसरे दिन वे पैसे की तंगी का रोना रोते थे, जबकि हम दोनों की जरूरत से ज्यादा पैसा ही घर में आ रहा था. उन की इस परेशानी का कारण मुझे समझ नहीं आता था. उस पर घर में नए सदस्य के आने की बात मुझे उन्हें और अधिक परेशान करने वाली लगी. लेकिन पार्थ की प्रतिक्रिया से मैं खुश थी, बहुत खुश.

ऐसा लगता था कि पार्थ बदल गए हैं. रोज मेरे लिए नएनए उपहार लाते. चैकअप के लिए डाक्टर के पास ले जाते, मेरे खानेपीने का वे खुद खयाल रखते. औफिस के लिए लेट हो जाना भी उन्हें नहीं अखरता. मुझे नाश्ता करा कर दवा दे कर ही औफिस निकलते थे. अकसर मेरी और अपनी मां से मेरी सेहत को ले कर सलाह लेते.

मेरे लिए यह सब नया था, सुखद भी. पार्थ ऐसे भी हो सकते हैं, मैं ने कभी सोचा नहीं था. उन का उत्साह देख कर मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहता.

‘‘मुझे तुम्हारी तरह एक प्यारी सी लड़की चाहिए,’’ एक रात पार्थ ने मेरे बालों में उंगलियां घुमाते हुए कहा.

‘‘लेकिन मुझे तो लड़का चाहिए ताकि ससुराल में पति का रोब न झेलना पड़े,’’ मैं ने उन्हें छेड़ते हुए कहा.

‘‘अच्छा… और अगर वह घरजमाई बन बैठा तो?’’ पार्थ के इतना कहते ही हम दोनों खिलखिला कर हंस पड़े.

‘‘मजाक तक ठीक है पार्थ, लेकिन मांजी तो बेटा ही चाहेंगी न?’’ मैं ने थोड़ी गंभीरता से पूछा.

‘‘तुम मां की चिंता न करो. उन्होंने ही तो मुझ से कहा है कि उन्हें पोती ही चाहिए.’’

दरअसल, मांजी अपने स्वामी के आदेशों का पालन कर रही थीं. स्वामी का कहना था कि लड़की होने से पार्थ को तरक्की मिलेगी. इस स्वामी के पास 1-2 बार मांजी मुझे भी ले कर गई थीं. मुझे तो वह हर बाबा की तरह ढोंगी ही लगा. उस का ध्यान भगवान में कम, अपनी शिष्याओं में ज्यादा लगा रहता था. वहां का माहौल भी मुझे कुछ अजीब लगा. लेकिन मांजी की आस्था को देखते हुए मैं ने कुछ नहीं कहा.

घर के हर छोटेबड़े काम से पहले स्वामी से पूछना इस घर की रीत थी. अब जब स्वामी ने कह दिया कि घर में बेटी ही आनी चाहिए, मांबेटा दोनों दोहराते रहते. मांजी मेरी डिलिवरी के 3 महीने पहले ही आ गई थीं. उन्हें ज्यादा तकलीफ न हो, इसलिए मैं कुछ दिनों के लिए मायके जाने की सोच रही थी पर पार्थ ने मना कर दिया.

‘‘तुम्हारे बिना मैं कैसे रहूंगा श्रेया?’’ उन्होंने कहा.

अब मुझे मांबेटे के व्यवहार पर कुछ शक सा होने लगा. मेरा यह शक कुछ ही दिन बाद सही भी साबित हुआ.

‘‘ये सितारे किसलिए पार्थ?’’ पूरा 1 घंटा मुझे इंतजार कराने के बाद यह सरप्राइज दिया था पार्थ ने.

‘‘श्रुति के लिए और किस के लिए जान,’’ श्रुति नाम पसंद किया था पार्थ ने हमारी होने वाली बेटी के लिए.

‘‘और श्रुति की जगह प्रयास हुआ तो?’’ मैं ने फिर चुटकी लेते हुए कहा.

‘‘हो ही नहीं सकता. स्वामी ने कहा है तो बेटी ही होगी,’’ मैं ने उन की बात सुन कर अविश्वास से सिर हिलाया, ‘‘और हां स्वामी से याद आया कि कल हम सब को उस के आश्रम जाना है. उस ने तुम्हें अपना आशीर्वाद देने बुलाया है,’’ उन्होंने कहा.

मैं चुपचाप लेट गई. मेरे लिए इस हालत में सफर करना बहुत मुश्किल था. स्वामी का आश्रम घर से 50 किलोमीटर दूर था और इतनी देर तक कार में बैठे रहना मेरे बस का नहीं था. पार्थ और उन की मां से बहस करना बेकार था. मेरी कोई भी दलील उन के आगे नहीं चलने वाली थी.

अगले दिन सुबह 9 बजे हम आश्रम पहुंच गए. ऐसा लग रहा था जैसे किसी जश्न की तैयारी थी.

‘‘स्वामी ने आज हमारे लिए खास पूजा की तैयारी की है,’’ मांजी ने बताया.

कुछ ही देर में हवनपूजा शुरू हो गई. इतनी तड़कभड़क मुझे नौटंकी लग रही थी. पता नहीं पार्थ से कितने पैसे ठगे होंगे इस ढोंगी ने. पार्थ तो समझदार हैं न. लेकिन नहीं, जो मां ने कह दिया वह काम आंखें मूंद कर करते जाना है.

पूजा खत्म होने के बाद स्वामी ने सभी को चरणामृत और प्रसाद दिया. उस के बाद उस के प्रवचन शुरू हो गए. उन बोझिल प्रवचनों से मुझे नींद आने लगी.

मैं पार्थ को जब यह बताने लगी तो मांजी बीच में ही बोल पड़ीं, ‘‘नींद आ रही है तो यहीं आराम कर लो न, बहुत शांति है यहां.’’

‘‘नहीं मांजी, मैं घर जा कर आराम कर लूंगी,’’ मैं ने संकोच से कहा.

‘‘अरे, ऐसे वक्त में सेहत के साथ कोई समझौता नहीं करना चाहिए. मैं अभी स्वामी से कह कर इंतजाम करवाती हूं.’’

5 मिनट में ही स्वामी की 2 शिष्याएं मुझे विश्रामकक्ष की ओर ले चलीं. कमरे में बिलकुल अंधेरा था. बिस्तर पर लेटते ही कब नींद आ गई पता ही नहीं चला. जब नींद खुली तो सिर भारी लग रहा था. कमरे में मेरे अलावा और कोई नहीं था. मैं ने हलके से आवाज दे कर पार्थ को बुलाया. शायद वे कमरे के बाहर ही खड़े थे, आवाज सुनते ही आ गए.

अभी हम आश्रम से कुछ ही मीटर की दूरी पर आए थे कि मेरे पेट में जोर का दर्द उठा. मुझे बेचैनी हो रही थी. पार्थ के चेहरे पर जहां परेशानी थी, वहीं मांजी मुझे धैर्य बंधाने की कोशिश कर रही थीं. मुझे खुद से ज्यादा अपने बच्चे की चिंता हो रही थी.

कब अस्पताल पहुंचे, उस के बाद क्या हुआ, मुझे कुछ याद नहीं. जब होश आया तो खुद को अस्पताल के बिस्तर पर पाया.

शाम को मांजी मुझ से मिलने आईं. लेकिन मेरी नजरें पार्थ को ढूंढ़ रही थीं.

‘‘वह किसी काम में फंस गया है. कल सुबह आएगा तुम से मिलने,’’ मांजी ने झिझकते हुए कहा.

 

मगर पार्थ अगली सुबह नहीं आए. अब तक मैं यह तो जान ही चुकी थी कि मैं अपना बच्चा खो चुकी हूं. लेकिन उस का कारण नहीं समझ पा रही थी. न तो मैं शारीरिक रूप से कमजोर थी और न ही कोई मानसिक परेशानी थी मुझे. कोई चोट भी नहीं पहुंची थी. फिर वह क्या चीज थी जिस ने मुझ से मेरा बच्चा छीन लिया?

2 दिन बाद पार्थ मुझ से मिलने आए. न जाने क्यों मुझ से नजरें चुरा रहे थे. पिछले कुछ महीनों का दुलारस्नेह सब गायब था. मांजी के व्यवहार में भी एक अजीब सी झिझक मुझे हर पल महसूस हो रही थी.

खैर, मुझे अस्पताल से छुट्टी मिलने के कुछ ही दिन बाद मांजी चली गईं, लेकिन मेरे और पार्थ के बीच की खामोशी गायब होने का नाम ही नहीं ले रही थी. शायद मुझ से ज्यादा पार्थ उस बच्चे को ले कर उत्साहित थे. कई बार मैं ने बात करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने कभी अपनी नाराजगी को ले कर मुंह नहीं खोला.

उस दिन से ले कर आज तक कुछ नहीं बदला था. एक ही घर में हम 2 अजनबियों की तरह रह रहे थे. अब न तो पार्थ का गुस्सैल रूप दिखता था और न ही स्नेहिल. अजीब से कवच में छिप गए थे पार्थ.

अचानक आई तेज खांसी ने मेरी विचारशृंखला को तोड़ दिया. पानी पीने के लिए उठी तो छाती में दर्द महसूस हुआ. ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने जकड़ लिया हो. पानी पीपी कर जैसेतैसे रात काटी. सुबह उठी, तब भी बदन में हरारत हो रही थी. बिस्तर पर पड़े रहने से और बीमार पड़ूंगी, यह सोच कर उठ खड़ी हुई. पार्थ के लिए नाश्ता बनाते वक्त भी मैं खांस रही थी.

‘‘तुम्हें काफी दिनों से खांसी है. पूरी रात खांसती रहती हो,’’ नाश्ते की टेबल पर पार्थ ने कहा.

‘‘उन की आवाज सुन कर मैं लगभग चौंक पड़ी. पिछले कुछ दिनों से उन की आवाज ही भूल चुकी थी मैं.’’

‘‘बस मामूली सी है, ठीक हो जाएगी,’’ मैं ने हलकी मुसकान के साथ कहा.

‘‘कितनी थकी हुई लग रही हो तुम? कितनी रातों से नहीं सोई हो?’’ पार्थ ने माथा छू कर कहा, ‘‘अरे, तुम तो बुखार से तप रही हो. चलो, अभी डाक्टर के पास चलते हैं.’’

‘‘लेकिन पार्थ…’’ मैं ने कुछ बोलने की कोशिश की, लेकिन पार्थ नाश्ता बीच में ही छोड़ कर खड़े हो चुके थे.

गाड़ी चलाते वक्त पार्थ के चेहरे पर फिर से वही परेशानी. मेरे लिए चिंता दिख रही थी. मेरा बीमार शरीर भी उन की इस फिक्र को महसूस कर आनंदित हो उठा.

जांच के बाद डाक्टर ने कई टैस्ट लिख दिए. इधर पार्थ मेरे लिए इधरउधर भागदौड़ कर रहे थे, उधर मैं उन की इस भागदौड़ पर निहाल हुए जा रही थी. सूई के नाम से ही घबराने वाली मैं ब्लड टैस्ट के वक्त जरा भी नहीं कसमसाई. मैं तो पूरा वक्त बस पार्थ को निहारती रही थी.

मेरी रिपोर्ट अगले दिन आनी थी. पार्थ मुझे ले कर घर आ गए. औफिस में फोन कर के 3 दिन की छुट्टी ले ली. मेरे औफिस में भी मेरे बीमार होने की सूचना दे दी.

‘‘कितने दिन औफिस नहीं जाओगे पार्थ? मैं घर का काम तो कर ही सकती हूं,’’ पार्थ को चाय बनाते हुए देख मैं सोफे से उठने लगी.

‘‘चुपचाप लेटी रहो. मुझे पता है मैं क्या कर रहा हूं,’’ उन्होंने मुझे झिड़कते हुए कहा.

‘‘अच्छा बाबा… मुझे काम मत करने दो… मांजी को बुला लो,’’ मैं ने सुझाव दिया.

कुछ देर तक पार्थ ने अपनी नजरें नहीं उठाईं. फिर दबे स्वर में कहा, ‘‘नहीं, मां को बेवजह परेशान करने का कोई मतलब नहीं है. मैं बाई का इंतजाम करता हूं.’’

‘‘बाई? पार्थ ठीक तो है?’’ मैं ने सोचा.

एक बार जब मैं ने झाड़ूपोंछे के लिए बाई का जिक्र किया था तो पार्थ भड़क उठे थे, ‘‘बाइयां घर का काम बिगाड़ती हैं. आज तक तो तुम्हें घर का काम करने में कोई परेशानी नहीं हुई थी. अब अचानक क्या दिक्कत आ गई?’’

‘‘पार्थ, तुम्हें पता है न मुझे सर्वाइकल पेन रहता है. दर्द के कारण रात भर सो नहीं पाती,’’ मैं ने जिद की.

‘‘देखो श्रेया, अभी हमारे पास इतने पैसे नहीं हैं कि घर में बाई लगा सकें,’’ उन्होंने अपना रुख नर्म करते हुए कहा.

मगर मैं ने पूरी प्लानिंग कर रखी थी. अत: बोली, ‘‘अरे, उस की तनख्वाह मैं अपने पैसों से दे दूंगी.’’

मेरी बात सुनते ही पार्थ का पारा चढ़ गया. बोले, ‘‘अच्छा, अब तुम मुझे अपने पैसों का रोब दिखाओगी?’’

‘‘नहीं पार्थ, ऐसा नहीं है,’’ मैं ने सकपकाते हुए कहा.

‘‘इस घर में कोई बाई नहीं आएगी. अगर जरूरत पड़ी तो मां को बुला लेंगे,’’ उन्होंने करवट लेते हुए कहा.

आज वही पार्थ मांजी को बुलाने के बजाय बाई रखने पर जोर दे रहे थे. पिछले कुछ दिनों से पार्थ सिर्फ मुझ से ही नहीं मांजी से भी कटने लगे थे. अब तो मांजी का फोन आने पर भी संक्षिप्त बात ही करते थे.

कहां, क्या गड़बड़ थी मुझे समझ नहीं आ रहा था. अपना बच्चा खोने के कारण मुझे कुसूरवार मान कर रूखा व्यवहार करना समझ आता था, लेकिन मांजी से उन की नाराजगी को मैं समझ नहीं पा रही थी.

अगली सुबह अस्पताल जाने से पहले ही मांजी का फोन आ गया. पार्थ बाथरूम में थे तो मैं ने ही फोन उठाया.

‘‘हैलो, हां श्रेया कैसी हो बेटा?’’ मेरी आवाज सुनते ही मांजी ने पूछा.

‘‘ठीक हूं मांजी. आप कैसी हैं?’’ मैं ने पूछा.

‘‘बस बाबा की कृपा है बेटा. पार्थ से बात कराना जरा.’’

तभी पार्थ बाथरूम से निकल आए, तो मैं ने मोबाइल उन के हाथ में थमा दिया. उन की बातचीत से तो नहीं, लेकिन इन के स्वर की उलझन से मुझे कुछ अंदेशा हुआ, ‘‘क्या हुआ? मांजी किसी परेशानी में हैं क्या?’’ पार्थ के फोन काटने के बाद मैं ने पूछा.

‘‘अरे, उन्हें कहां कोई परेशानी हो सकती है. उन की रक्षा के लिए तो दुनिया भर के बाबा हैं न,’’ उन्होंने कड़वाहट से उत्तर दिया.

‘‘वह उन की आस्था है पार्थ. इस में इतना नाराज होने की क्या बात है? उन का यह विश्वास तो सालों से है और जहां तक मैं जानती हूं अब तक तुम्हें इस बात से कोई परेशानी नहीं थी. अब अचानक क्या हुआ?’’ मैं ने शांत स्वर में पूछा.

‘‘ऐसी आस्था किस काम की है श्रेया जो किसी की जान ले ले,’’ उन्होंने नम स्वर में कहा.

मैं अचकचा गई, ‘‘जान? मांजी किसी की जान थोड़े ही लेंगी पार्थ. तुम भी न.’’

‘‘मां नहीं, लेकिन उन की आस्था एक जान ले चुकी है,’’ पार्थ का स्वर गंभीर था. वे सीधे मेरी आंखों में देख रहे थे. उन आंखों का दर्द मुझे आज नजर आ रहा था. मैं चुप थी. नहीं चाहती थी कि कई महीनों से जो मेरे दिमाग में चल रहा है वह सच बन कर मेरे सामने आए.

मेरी खामोशी भांप कर पार्थ ने कहना शुरू किया, ‘‘हमारे बच्चे का गिरना कोई हादसा नहीं था श्रेया. वह मांजी की अंधी आस्था का नतीजा था. मैं भी अपनी मां के मोह में अंधा हो कर वही करता रहा जो वे कहती थीं. उस दिन जब हम स्वामी के आश्रम गए थे तो तुम्हें बेहोश करने के लिए तुम्हारे प्रसाद में कुछ मिलाया गया था ताकि जब तुम्हारे पेट में पल रहे बच्चे के लिंग की जांच हो तो तुम्हें पता न चले.

‘‘मां और मैं स्वामी के पास बैठे थे. वहां क्या हो रहा था, उस की मुझे भनक तक नहीं थी. थोड़ी देर बाद स्वामी ने मां से कुछ सामान मंगाने को कहा. मैं सामान लेने बाहर चला गया, जब तक वापस आया, तुम होश में आ चुकी थीं. उस के बाद क्या हुआ, तुम जानती हो,’’ पार्थ का चेहरा आंसुओं से भीग गया था.

‘‘लेकिन पार्थ इस में मांजी कहां दोषी हैं? तुम केवल अंदाज के आधार पर उन पर आरोप कैसे लगा सकते हो?’’ मैंने उन का चेहरा अपने हाथों में लेते हुए पूछा. मेरा दिल अब भी मांजी को दोषी मानने को तैयार नहीं था.

पार्थ खुद को संयमित कर के फिर बोलने लगे, ‘‘यह मेरा अंदाजा नहीं है श्रेया. जिस शाम तुम अस्पताल में दाखिल हुईं, मैं ने मां को स्वामी को धन्यवाद देते हुए सुना. उन का कहना था कि स्वामी की कृपा से हमारे परिवार के सिर से काला साया हट गया.

‘‘मैं ने मां से इस बारे में खूब बहस की. मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि मां हमारे बच्चे के साथ ऐसा कर सकती हैं.’’

अब पार्थ मुझ से नजरें नहीं मिला पा रहे थे. मेरी आंखें जल रही थीं. ऐसा लग रहा था जैसे मेरे अंदर सब कुछ टूट गया हो. लड़खड़ाती हुई आवाज में मैं ने पूछा, ‘‘लेकिन क्यों पार्थ? सब कुछ तो उन की मरजी से हो रहा था? क्या स्वामी के मुताबिक मेरे पेट में लड़की नहीं थी?’’

पार्थ मुझे नि:शब्द ताकते रहे. फिर अपनी आंखें बंद कर के बोलने लगे, ‘‘वह लड़की ही थी श्रेया. वह हमारी श्रुति थी. हम ने उसे गंवा दिया. एक बेवकूफी की वजह से वह हम से बहुत दूर चली गई,’’ पार्थ अब फूटफूट कर रो रहे थे. इतने दिनों में जो दर्द उन्होंने अपने सीने में दबा रखा था वह अब आंसुओं के जरीए निकल रहा था.

‘‘पर मांजी तो लड़की ही चाहती थीं न और स्वामी ने भी यही कहा था?’’ मैं अब भी असमंजस में थी.

‘‘मां कभी लड़की नहीं चाहती थीं श्रेया. तुम सही थीं, उन्होंने हमेशा एक लड़का ही चाहा था. जब से स्वामी ने हमारे लिए लड़की होने की बात कही थी, तब से वे परेशान रहती थीं. वे अकसर स्वामी के पास अपनी परेशानी ले कर जाने लगीं. स्वामी मां की इस कमजोरी को भांप गया था. उस ने पैसे ऐंठने के लिए मां से कह दिया कि अचानक ग्रहों की स्थिति बदल गई है. इस खतरे को सिर्फ और सिर्फ एक लड़के का जन्म ही दूर कर सकता है.

‘‘उस ने मां से एक अनुष्ठान कराने को कहा ताकि हमारे परिवार में लड़के का जन्म सुनिश्चित हो सके. मां को तो जैसे मन मांगी मुराद मिल गई. उन्होंने मुझे इस बात की कानोंकान खबर न होने दी.

‘‘पूजा वाले दिन जब मैं आश्रम से बाहर गया तो स्वामी और उस के शिष्यों ने तुम्हारे भ्रूण की जांच की तो पता चला कि वह लड़की थी. अब स्वामी को अपने ढोंग के साम्राज्य पर खतरा मंडराता प्रतीत हुआ. तब उस ने मां से कहा कि ग्रहों ने अपनी चाल बदल ली है. अब अगर बच्चा नहीं गिराया गया तो परिवार को बरबाद होने से कोई नहीं रोक सकता. मां ने अनहोनी के डर से हामी भर दी. एक ही पल में हम ने अपना सब कुछ गंवा दिया,’’ पार्थ ने अपना चेहरा अपने हाथों में छिपा लिया.

मैं तो जैसे जड़ हो गई. वे एक मां हो कर ऐसा कैसे कर सकती थीं? उस बच्चे में उन का भी खून था. वे उस का कत्ल कैसे कर सकती थीं और वह ढोंगी बाबा सिर्फ पैसों के लिए किसी मासूम की जान ले लेगा?

‘‘मां तुम्हें अब भी उस ढोंगी बाबा के पास चलने को कह रही थीं?’’ मैं ने अविश्वास से पूछा.

‘‘नहीं, अब उन्होंने कोई और चमत्कारी बाबा ढूंढ़ लिया है, जिस के प्रसाद मात्र के सेवन से सारी परेशानियों से मुक्ति मिल जाती है.’’

‘‘तो क्या मांजी की आंखों से स्वामी की अंधी भक्ति का परदा हट गया?’’ मैं ने पूछा.

पार्थ गंभीर हो गए, ‘‘नहीं, उन्हें मजबूरन उस ढोंगी की भक्ति त्यागनी पड़ी. वह ढोंगी स्वामी अब जेल में है. जिस रात मुझे उस की असलियत पता चली, मैं धड़धड़ाता हुआ पुलिस के पास जा पहुंचा. अपने बच्चे के को मैं इतनी आसानी से नहीं छोड़ने वाला था. अगली सुबह पुलिस ने आश्रम पर छापा मारा तो लाखों रुपयों के साथसाथ सोनोग्राफी मशीन भी मिली. उसे और उस के साथियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. उस ढोंगी को उस के अपराध की सजा दिलाने में व्यस्त होने के कारण ही कुछ दिन मैं तुम से मिलने अस्पताल नहीं आ पाया था.’’

‘‘उफ, पार्थ,’’ कह कर मैं उन से लिपट गई. अब तक रोकी हुई आंसुओं की धारा अविरल बह निकली. पार्थ का स्पर्श मेरे अंदर भरे दुख को बाहर निकाल रहा था.

‘‘आप इतने वक्त से मुझ से नजरें क्यों चुराते फिर रहे थे?’’ मैं ने थोड़ी देर बाद सामान्य हो कर पूछा.

‘‘मुझे तुम से नजरें मिलाने में शर्म महसूस हो रही थी. जो कुछ भी हुआ उस में मेरी भी गलती थी. पढ़ालिखा होने के बावजूद मैं मां के बेतुके आदेशों का आंख मूंद पालन करता रहा. मुझे अपनेआप को सजा देनी ही थी.’’

उन के स्वर में बेबसी साफ झलक रही थी. मैं ने और कुछ नहीं कहा, बस अपना सिर पार्थ के सीने पर टिका दिया.

शाम के वक्त हम अस्पताल से रिपोर्ट ले कर लौट रहे थे. मुझे टीबी थी. डाक्टर ने समय पर दवा और अच्छे खानपान की पूरी हिदायत दी थी. कार में एक बार फिर चुप्पी थी. पार्थ और मैं दोनों ही अपनी उलझन छिपाने की कोशिश कर रहे थे.

तभी पार्थ के फोन की घंटी बजी. मां का फोन था. पार्थ ने कार रोक कर फोन स्पीकर पर कर दिया.

मांजी बिना किसी भूमिका के बोलने लगीं, ‘‘मैं यह क्या सुन रही हूं पार्थ? श्रेया को टीबी है?’’

अस्पताल में रितिका का फोन आने पर पार्थ ने उसे अपनी परेशानी बताई थी. शायद उसी से मां को मेरी बीमारी के बारे में पता चला था.

‘‘पहले अपशकुनी बच्चा और अब टीबी… मैं ने तुम से कहा था न कि यह लड़की हमारे परिवार के लिए परेशानियां खड़ी कर देगी.’’

पार्थ का चेहरा सख्त हो गया. बोला, ‘‘मां, श्रेया को मेरे लिए आप ने ही ढूंढ़ा था. तब तो आप को उस में कोई ऐब नजर नहीं आया था. इस दुनिया का कोई भी बच्चा अपने मांबाप के लिए अपशकुनी नहीं हो सकता.’’

मांजी का स्वर थोड़ा नर्म पड़ गया, ‘‘पर बेटा, श्रेया की बीमारी… मैं तो कहती हूं कि उसे एक बार बाबाजी का प्रसाद खिला लाते हैं. सब ठीक हो जाएगा.’’

पार्थ गुस्से में कुछ कहने ही वाले थे, लेकिन मैं ने हलके से उन का हाथ दबा दिया. अत: थोड़े शांत स्वर में बोले, ‘‘अब मैं अपनी श्रेया को किसी ढोंगी बाबा के पास नहीं ले जाने वाला और बेहतर यही होगा कि आप भी इन सब चक्करों से दूर रहो. श्रेया को यह बीमारी उस की शारीरिक कमजोरी के कारण हुई है. इतने वक्त तक वह मेरी उपेक्षा का शिकार रही है. वह आज तक एक बेहतर पत्नी साबित होती आई है, लेकिन मैं ही हर पल उसे नकारता रहा. अब मुझे अपना पति फर्ज निभाना है. उस का अच्छी तरह खयाल रख कर उसे जल्द से जल्द ठीक करना है.’’

मांजी फोन काट चुकी थीं. पार्थ और मैं न जाने कितनी देर तक एकदूसरे को निहारते रहे.

घर लौटते वक्त पार्थ का बारबार प्यार भरी नजरों से मुझे देखना मुझ में नई ऊर्जा का संचार कर रहा था. हमारी जिंदगी में न तो श्रुति आ सकी और न ही प्रयास, लेकिन हमारे रिश्ते में मिठास भरने के प्रयासों की श्रुति शीघ्र ही होगी, इस का आभास मुझे हो रहा था.

जब भी मैं अपनी पत्नी से सैक्स करने के लिए कहता हूं, तो लड़ाई होने लगती है…

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मेरी उम्र 40 साल है मेरी पत्नी 35 साल की है. हमारे शादी को 10 साल हो गए हैं, दो बच्चे भी है. मेरी पत्नी वर्किंग है. घर के कामों के लिए एक हाउस हेल्पर भी रखा है. मेरी नाइट शिफ्ट है, तो दिन में मैं बच्चों को देख लेता हूं और शाम तक मेरी पत्नी घर आ जाती है, फिर वो बच्चों को संभालती है.

वर्किंग डेज में हम पति पत्नी को फुरसत के दो पल बिताने को भी समय नहीं होता है. लेकिन छुट्टी के दिन हम पूरा एंजौय करते हैं और बच्चों के साथ बाहर घूमने भी जाते हैं, लेकिन जब भी मैं पत्नी से सेक्स करने के लिए कहता हूं, तो वो मना करने लगती है और बात इतनी बढ़ जाती है कि हमारे बीच लड़ाई भी होने लगती है. मुझे ऐसा लगता है कि वह झगड़ालु और जिद्दी होते जा रही है. मैं क्या करूं?

जवाब

शादी के 10 साल बाद और बच्चे होने के बाद भी आपको अपनी पत्नी से शिकायत है. आपकी बातों से लगता है कि आप उनकी स्वभाव को नहीं समझ पाए हैं. कई बार काम की ज्यादा प्रैशर के कारण महिलाएं चिड़चिड़ी स्वभाव की हो जाती है. देखिए आपने बताया कि आपकी वाइफ वर्किंग है, तो उन्हें औफिस के काम का प्रैशर रहता होगा और बच्चों को भी देखना.. ऐसे में उन्हें काम बहुत करना पड़ता होगा. इस कारण भी सैक्स से मन हटने लगता है.

आप पतिपत्नी सैक्स के लिए लड़ने के बजाय अपने रिश्ते में नयापन लाने की कोशिश करें. दरअसल, बच्चे होने के बाद महिलाओं पर ढेर सारी जिम्मेदारियां आ जाती हैं, जिससे उन्हें सेक्स लाइफ बोरिंग लगने लगती है. बेहतर है कि आप अपनी पत्नी को पहले की तरह कहीं रोमांटिक डेट पर ले जाएं. उनकी मनोदशा की समझने की कोशिश करें. समझदारी से काम लें. प्यार से किसी का भी दिल जीता जा सकता है और आपको अपनी पत्नी के पसंद और नापसंद के बारे में अच्छी तरह पता होगा.

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बजट में है इन ब्रांड्स के लिपस्टिक शेड्स, होठों पर लगाने से अपने ही चेहरे से नहीं हटेगी नजर

अगर आप को मेकअप करना पसंद है, तो आप ने मेकअप कीट में लिपस्टिक के कई शेड्स रखी होंगी. आप ने एक से ज्यादा ब्रैंड्स के लिपस्टिक भी अपने होंठों पर अप्लाई किया होगा. यह सब से कौमन कौस्मेटिक है, जिसे हर लड़की अपने पर्स में जरूर रखती है.

होंठों पर लिपस्टिक लगाने से चेहरे की चमक बढ़ जाती है. चेहरे की खूबसूरती बढ़ाने के लिए लिपस्टिक इस्तेमाल करना सब से आसान तरीका है, लेकिन कई बार लिपस्टिक का चुनाव करना भी एक बड़ी परेशानी होती है. ऐसे में हम यहां लिपस्टिक के कुछ ब्रैंड्स के बेहतरीन शेड्स के बारे में बताएंगे, जो आप के स्किनटोन के ऊपर सही मेल खा सकते हैं :

मैट लिपस्टिक

इस लिपस्टिक की खासियत होती है कि यह लंबे समय तक आप के होंठों पर टिक सकती है. अगर आप दिनभर के लिए कहीं बाहर जा रही हैं, तो होंठों पर ये लिपस्टिक अप्लाई कर सकती हैं. हालांकि इस का इस्तेमाल करने से पहले कुछ मिनटों तक होंठों को हाइड्रेट करें, इस के बाद ही मैट लिपस्टिक लगाएं.

Maybelline सैंसेशनल लिक्विड मैट लिपस्टिक

यह लौंग लास्टिंग मैट लिपस्टिक है। इसे अप्लाई करना भी आसान है। यह आप के होकठों को परफैक्ट लुक देगा. इस प्रोडक्ट को अप्लाई करने का सब से बड़ा फायदा है कि यह आप के होंठों को हाइड्रेटेड रखेगा.

इस की कीमत करीब ₹300 है। आप इसे औनलाइन भी और्डर कर सकती हैं. इस की रेटिंग 4 स्टार है.

Max Factor Colour Elixir वैलवेट मैट लिपस्टिक

यह लिपस्टिक होंठों को क्रीमी टैक्सचर देता है. इसे लगाने से आप के होंठ नहीं सूखेंगे. होंठों के मखमली मौइस्चराइजिंग के लिए यह मैट लिपस्टिक बेहतर औप्शन है. इस की कीमत ₹800 है.

Praush Beauty Plush मैट लिपस्टिक – Wine O’ Clock

Praush की मैट लिपस्टिक हर स्किनटोन पर सूट करती है. यह होंठों पर लंबे समय तक टिका रहता है और आप के होंठों को हाइड्रैटेड फिनिशिंग देगा. यह आप को वाइन कलर में मिल जाएगा, जो आजकल ट्रैंड में है. इस लिपस्टिक की कीमथ ₹630 है.

क्रीमी लिपस्टिक

यह मैट लिपस्टिक की तुलना में होंठों को अधिक देर तक मौइश्‍चराइज रखता है. यह लौंग लास्टिंग भी है. अगर आप गरमी के मौसम में इस लिपस्टिक का इस्तेमाल करती हैं, तो इसे फ्रिज में रख सकती हैं.

Faces Canada वैटलेस क्रीमी लिपस्टिक

इस में आप को लिपस्टिक के कई तरह के शेड्स मिल जाएंगे और हर स्किन टाइप के लिए यह उपलब्ध है. यह आप के होंठों को क्रीमी टैक्सचर देगा.

आमतौर पर Faces Canada वैटलेस क्रीम विटामिन ई से भरपूर होता है. यह होंठों को मलाईदार, चिकनी और चमकदार बनावट देता है. यह शीया बटर, जोजोबा तेल और बादाम के तेल से बनाया जाता है. इस लिपस्टिक की कीमत ₹200 है.

Daily Life Forever52 सैंसेशनल लिप (क्रीमी कारमेल -010)

यह स्मजप्रूफ लिपस्टिक है। यह वाटरप्रूफ भी है. इस की खुशबू भी काफी अच्छी है. यह हाइड्रैटिंग और लंबे समय तक चलने वाली क्रीमी कारमेल लिपस्टिक है. इस की भी रेटिंग 4 स्टार है और कीमत ₹400 है.

ग्लौसी लिपस्टिक

ग्लौसी लिपस्टिक होंठों को शाइनी लुक देता है. अगर आप के होंठ सूखते हैं, तो ग्लौसी लिपस्टिक बेहतर औप्शन है. इस से आप के होंठों को सेमी शीयर लुक मिलता है. ग्लौसी लिपस्टिक लेने के लिए आप इन ब्रैंड्स को चूज कर सकती हैं :

डीप पिंक शेड ग्लौसी लिपस्टिक
यह आप के होठों की ब्राइटनैस को बढ़ाता है। इस से आप को मखमली एहसास होगा और यह लंबे समय तक होंठों पर टिका भी रहेगा. इस की कीमत ₹300 है।

GREY ON Glossy लिपस्टिक 87 बैंगनी पिंक (गुलाबी)

यह लिपस्टिक हर स्किनटाइप के लिए उपलब्ध है. इसे होंठों पर लगाना भी आसान है और ज्यादा देर तक टिका भी रहेगा. इसे होंठों पर अप्लाई करने से स्मूद टच मिलेगा. यह आप को ₹200 में मिल जाएगा.

SUGAR Cosmetics पार्टनर इन शाइन ट्रांसफरप्रूफ ग्लौसी लिपस्टिक

यह हाई ग्लौसी लिपस्टिक है. इस में आप को लाल, जुराब और गुलाबी जैसे कई शेड्स मिल जाएंगे. अगर आप बोल्ड या ब्राइट कलर चूज करना चाहती हैं, तो इस में आप को ये शेड्स मिल जाएंगे. यह ग्लौसी लिपस्टिक 24 घंटे होंठों पर टिके रहने का दावा करता है. इस ग्लौसी लिपस्टिक की कीमत ₹700 है.

#कीमतों में बदलाव बाजार के अनुसार संभव हो सकता है.

सुख की गारंटी

एकदिन काफी लंबे समय बाद अनु ने महक को फोन किया और बोली, ‘‘महक, जब तुम दिल्ली आना तो मुझ से मिलने जरूर आना.

‘‘हां, मिलते हैं, कितना लंबा समय गुजर गया है. मुलाकात ही नहीं हुई है हमारी.’’

कुछ ही दिनों बाद मैं अकेली ही दिल्ली जा रही थी. अनु से बात करने के बाद पुरानी यादें, पुराने दिन याद आने लगे. मैं ने तय किया कि कुछ समय पुराने मित्रों से मिल कर उन

पलों को फिर से जिया जाए. दोस्तों के साथ बिताए पल, यादें जीवन की नीरसता को कुछ कम करते हैं.

शादी के बाद जीवन बहुत बदल गया व बचपन के दिन, यादें व बहत कुछ पीछे छूट गया था. मन पर जमी हुई समय की धूल साफ होने लगी…

कितने सुहाने दिन थे. न किसी बात की चिंता न फिक्र. दोस्तों के साथ हंसीठिठोली और भविष्य के सतरंगी सपने लिए, बचपन की मासूम पलों को पीछे छोड़ कर हम भी समय की घुड़दौड़ में शामिल हो गए थे. अनु और मैं ने अपने जीवन के सुखदुख एकसाथ साझा किए थे. उस से मिलने के लिए दिल बेकरार था.

मैं दिल्ली पहुंचने का इंतजार कर रही थी. दिल्ली पहुंचते ही मैं ने सब से पहले अनु को फोन किया. वह स्कूल में पढ़ाती है. नौकरी में समय निकालना भी मुश्किल भरा काम है.

‘‘अनु मैं आ गई हूं… बताओ कब मिलोगी तुम? तुम घर ही आ जाओ, आराम से बैठेंगे. सब से मिलना भी हो जाएगा…’’

‘‘नहीं यार, घर पर नहीं मिलेंगे, न तुम्हारे घर न ही मेरे घर. शाम को 3 बजे मिलते हैं. मैं स्कूल समाप्त होने के बाद सीधे वहीं आती हूं, कौफी हाउस, अपने वही पुराने रैस्टोरैंट में…

‘‘ठीक है शाम को मिलते हैं.’’

आज दिल में न जाने क्यों अजीब सी

बैचेनी हो रही थी. इतने वर्षों में हम मशीनी जीवन जीते संवादहीन हो गए थे. अपने लिए जीना भूल गए थे. जीवन एक परिधि में सिमट गया था. एक भूलभुलैया जहां खुद को भूलने

की कवायत शुरू हो गई थी. जीवन सिर्फ ससुराल, पति व बच्चों में सिमट कर रह गया था. सब को खुश रखने की कवायत में मैं खुद को भूल बैठी थी. लेकिन यह परम सत्य है कि सब को खुश रखना नामुमकिन सा होता है.

दुनिया गोल है, कहते हैं न एक न एक दिन चक्र पूरा हो ही जाता है. इसी चक्र में आज बिछड़े साथी मिल रहे थे. घर से बाहर औपचारिकताओं से परे. अपने लिए हम अपनी आजादी को तलाशने का प्रयत्न करते हैं. अपने लिए पलों को एक सुख की अनुभूति होती है.

मैं समझ गई कि आज हमारे बीच कहनेसुनने के लिए बहुत कुछ होगा. सालों से मौन की यह दीवार अब ढलने वाली है.

नियत समय पर मैं वहां पहुंच गई. शीघ्र ही अनु भी आ गई. वही प्यारी सी मुसकान, चेहरे पर गंभीरता के भाव, पर हां शरीर थोड़ा सा भर गया था, लेकिन आवाज में वही खनक थी. आंखें पहले की तरह प्रश्नों को तलाशती हुई नजर आईं, जैसे पहले सपनों को तलाशती थीं.

समय ने अपने अनुभव की लकीरें चेहरे पर खींच दी थीं. वह देखते ही गले मिली तो मौन की जमी हुई बर्फ स्वत: ही पिघलने लगी…

‘‘कैसी हो अनु, कितने वर्षों बाद तुम्हें देखा है, यार तुम तो बिलकुल भी नहीं बदलीं…’’

‘‘कहां यार, मोटी हो गई हूं… तुम बताओ कैसी हो? तुम्हारी जिंदगी तो मजे में गुजर रही है, तुम जीवन में कितनी सफल हो गई हो… चलो आराम से बैठते हैं…’’

आज वर्षों बाद भी हमें संवादहीनता का एहसास नहीं हुआ… बात जैसे वहीं से शुरू हो गई, जहां खत्म हुई थी. अब हम रैस्टोरैंट में अपने लिए कोना तलाश रहे थे, जहां हमारे संवादों में किसी की दखलंदाजी न हो. इंसानी फितरत होती है कि वह भीड़ में भी अपना कोना तलाश लेता है. कोना जहां आप सब से दुबक कर बैठे हों, जैसे कि आसपास बैठी 4 निगाहें भी उस अदृश्य दीवार को भेद न सकें. वैसे यह सब मन का भ्रमजाल ही है.

आखिरकार हमें कोना मिल ही गया. रैस्टोरैंट के ऊपरी भाग में

कोने की खाली मेज जैसे हमारा ही इंतजार कर रही थी. यह कोना दिल को सुकून दे रहा था. चायनाश्ते का और्डर देने के बाद अनु सीधे मुद्दे पर आ गई. बोली, ‘‘और सुनाओ कैसी हो, जीवन में बहुत कुछ हासिल कर लिया है. आज इतना बड़ा मकाम, पति, बच्चे सब मनमाफिक मिल गए तुम्हें. मुझे बहुत खुशी है…’’

यह सुनते ही महक की आंखों में दर्द की लहर चुपके से आ कर गुजर गई व पलकों के कोर कुछ नम से हो गए. पर मुसकान का बनावटीपन कायम रखने की चेष्टा में चेहरे के मिश्रित हावभाव कुछ अनकही कहानी बयां कर रहे थे.

‘‘बस अनु सब ठीक है. अपने अकेलेपन से लड़ते हुए सफर को तय कर रही हूं, जीवन में बहुत उतारचढ़ाव देखें हैं. तुम तो खुश हो न? नौकरी करती हो, अच्छा काम कर रही हो, अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जी रही हो… सबकुछ अपनी पसंद का मिला है और क्या

सुख चाहिए? मैं तो बस यों ही समय काटने के लिए लिखनेपढ़ने लगी, ‘‘मैं ने बात को घुमा कर उस का हाल जानने की कोशिश करनी चाही.

‘‘मैं भी बढि़या हूं. जीवन कट रहा है. मैं पहले भी अकेली थी, आज भी अकेली हूं. हम साथ जरूर हैं पर कितनी अलग राहें हैं जैसे नदी के 2 किनारे…

‘‘यथार्थ की पथरीली जमीन बहुत कठोर है. पर जीना पड़ता है… इसलिए मैं ने खुद को काम में डुबो दिया है…’’

‘‘क्या हुआ, ऐसे क्यों बोल रही हो? तुम दोनों के बीच कुछ हुआ है क्या?’’

‘‘नहीं यार, पूरा जीवन बीत जाए तो भी हम एकदूसरे को समझ नहीं सकेंगे. कितने वैचारिक मतभेद हैं, शादी का चार्म, प्रेम पता नहीं कहां 1 साल में ही खत्म हो गया. अब पछतावा होता है. सच है, इंसान प्यार में अंधा हो जाता है.’’

‘‘हां, सही कहा, सब एक ही नाव पर सवार होते हैं पर परिवार के लिए जीना पड़ता है.’’

‘‘हां, तुम्हारी बात सही है, पर यह समझौते अंतहीन होते हैं, जिन्हें निभाने में जिंदगी का ही अंत हो जाता है. तुम्हें तो शायद कुदरत से यह सब मिला है पर मैं ने तो अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मारी है. प्रेमविवाह जो किया है.

‘‘सब ने मना किया था कि यह शादी मत करो, पर आज समझ में आया कि मेरा फैसला गलत था. यार, विनय का व्यवहार समझ से परे है. रिश्ता टूटने की कगार पर है. उस के पास मेरे लिए समय ही नहीं है या फिर वह देना नहीं चाहता… याद नहीं कब दो पल सुकून से बैठे हों. हर बात में अलगाव वाली स्थिति होती है.’’

‘‘अनु, सब को मनचाहा जीवनसाथी नहीं मिलता. जिंदगी उतनी आसान नहीं होती, जितना हम सोचते हैं. सुख अपरिभाषित है. रिश्ते निभाना इतना भी आसान नहीं है. हर रिश्ता आप से समय व त्याग मांगता है. पति के लिए जैसे पत्नी उन की संपत्ति होती है जिस पर जितनी चाहे मरजी चला लो. हम पहले मातापिता की मरजी से जीते थे, अब पति की मरजी से जीते हैं. शादी समझौते का दूसरा नाम ही है, हां कभीकभी मुझे भी गुस्सा आता है तो मां से शिकायत करना सीख लिया है. अब दुख नहीं होता. तुम भी हौंसला रखो, सब ठीक हो जाएगा.’’

‘‘नहीं महक, अब उम्मीद बाकी नहीं है. शादी करो तो मुश्किल, न करो तो भी मुश्किल. सब को शादी ही अंतिम पड़ाव क्यों लगता है? मैं ने भी समझौता कर लिया है कि रोनेधोने से समस्या हल नहीं होती.

‘‘अनु, तुम्हारे पास तो पाक कला का हुनर है उसे और निखारो. अपने शौक पूरे करो. एक ही बिंदु पर खड़ी रहोगे तो घुटन होने लगेगी.

‘‘एक बात बताओ कि एक आदमी किसी के सुख का पैमाना कैसे हो सकता है? अरैंज्ड मैरिज में पगपग पर असहमति होती है, यहां पर हर रिश्ता आग की दहलीज पर खड़ा होता है, हर कोई आप से संतुष्ट नहीं होता.’’

‘‘महक बात जो तुम्हारी सही है पर विवाह में कोई एक व्यक्ति, किसी दूसरे के जीने का मापदंड कैसे तय कर सकता है? समय बदल गया है, कानून में भी दंड का प्रावधान है. हमें अपने अधिकारों के लिए सजग रहना चाहिए. कब तक अपनी इच्छाओं का गला घोटें… यहां तो भावनाओं का भी रेप हो जाता है, जहां बिना अपनी मरजी के आप वेदना से गुजरते रहो और कोई इस की परवाह भी न करे.’’

‘‘अनु, जब विवाह किया है तो निभाना भी पड़ेगा. क्या हमें मातापिता, बच्चे,

पड़ोसी हमेशा मनचाहे ही मिलते हैं? क्या सब जगह आप तालमेल नहीं बैठाते? तो फिर पतिपत्नी के रिश्ते में वैचारिक मतभेद होना लाजिमी है. हाथ की सारी उंगलियां भी एकसमान नहीं होतीं, तो

2 लोग कैसे समान हो सकते हैं?

‘‘इन मैरिज रेप इज इनविजिबल, सो रिलैक्स ऐंड ऐंजौय. मुंह फुला कर रहने में कोई मजा नहीं है. दोनों पक्षों को थोड़ाथोड़ा झुकना पड़ता है. किसी ने कहा है न कि यह आग का दरिया है और डूब कर जाना है, तो विवाह में धूप व छांव के मोड़ मिलते रहते हैं.’’

‘‘हां, महक तुम शायद सही हो. कितना सहज सोचती हो. अब मुझे भी लगता है कि हमें फिर से एकदूसरे को मौका देना चाहिए. धूपछांव तो आतीजाती रहती है…’’

‘‘अनु देख यार, जब हम किसी को उस की कमी के साथ स्वीकार करते हैं तो पीड़ा का एहसास नहीं होता. सकारात्मक सोच कर अब आगे बढ़, परिवार को पूर्ण करो, यही जीवन है…’’

विषय किसी उत्कर्षनिष्कर्ष तक पहुंचता कि तभी वेटर आ गया और दोनों चुप हो गईं.

‘‘मैडम, आप को कुछ चाहिए?’’ कहने के साथ ही मेज पर रखे खाली कपप्लेटें समेटने लगा. उस के हावभाव से लग रहा था कि खाली बैठे ग्राहक जल्दी से अपनी जगह छोड़ें.

‘‘हम ने बातोंबातों में पहले ही चाय के कप पी कर खाली कर दिए.’’

‘‘हां, 2 कप कौफी के साथ बिल ले कर आना,’’ अनु ने कहा.

‘‘अनु, समय का भान नहीं हुआ कि 2 घंटे कैसे बीत गए. सच में गरमगरम कौफी की जरूरत महसूस हो रही है.’’

मन में यही भाव था कि काश वक्त हमारे लिए ठहर जाए. पर ऐसा होता नहीं है.

वर्षों बाद मिलीं सहेलियों के लिए बातों का बाजार खत्म करना भी मुश्किल भरा काम है. गरमगरम कौफी हलक में उतरने के बाद मस्तिष्क को राहत महसूस हो रही थी. मन की भड़ास विषय की गरमी, कौफी की गरम चुसकियों के साथ विलिन होने लगी. बातों का रूख बदल गया.

आज दोनों शांत मन से अदृश्य उदासी व पीड़ा के बंधन को मुक्त कर के चुपचाप यहीं छोड़ रही थीं.

मन में कड़वाहट का बीज जैसे मरने लगा. महक घर जाते हुए सोच रही थी कि प्रेमविवाह में भी मतभेद हो सकते हैं तो अरैंज्ड मैरिज में पगपग पर इम्तिहान है. एकदूसरे को समझने में जीवन गुजर जाता है. हर दिन नया होता है. जब आशा नहीं रखेंगे तो वेदना नामक शराब से स्वत: मुक्ति मिल जाएगी.

अनु से बात कर के मैं यह सोचने पर मजबूर हो गई थी कि हर शादीशुदा कपल परेशानी से गुजरता है. शादी के कुछ दिनों बाद जब प्यार का खुमार उतर जाता है तो धरातल की उबड़खाबड़ जमीन उन्हें चैन की नींद सोने नहीं देती है. फिर वहीं से शुरू हो जाता है आरोपप्रत्यारोपों का दौर. क्यों हम अपने हर सुखदुख की गारंटी अपने साथी को समझते हैं? हर पल मजाक उड़ाना व उन में खोट निकालना प्यार की परिभाषा को बदल देता है. जरा सा नजरिया बदलने की देर है.

सामाजिक बधन को क्यों हंस कर जिया जाए. पलों को गुनगुनाया जाए? एक पुरुष या एक स्त्री किसी के सुख की गारंटी कैसे बन सकते हैं? हां, सुख तलाश सकते हैं और बंधन निभाने में ही समझदारी है.

आज मैं ने भी अपने मन में जीवनसाथी के प्रति पल रही कसक को वहीं छोड़

दिया, तो मन का मौसम सुहाना लगने लगा. घर वापसी सुखद थी. शादी का बंधन मजबूरी नहीं प्यार का बंधन बन सकता है, बस सोच बदलने की देर है.

कुछ दिनों बाद अनु का फोन आया, ‘‘शुक्रिया महक, तुम्हारे कारण मेरा जीवन अब महकने लगा है. हम दोनों ने नई शुरुआत कर दी है. अब मेरे आंगन में बेला के फूल महक रहे हैं. सुख की गारंटी एकदूसरे के पास है.’’ दोनों खिलखिला कर हंसने लगीं.

सिर्फ दीपिका पादुकोण ही नहीं ये बौलीवुड स्टार्स भी हो चुके हैं डिप्रेशन के शिकार

आज की फास्ट लाइफ स्टाइल में डिप्रेशन एक कौमन प्रौब्लम बन चुकी है. आम से लेकर खास हर कोई कभी ना कभी इस प्रौब्लम से गुजर चुका है. फिर चाहे वो फिल्म और टीवी इंडस्ट्री के कुछ नामी सितारें ही क्यूं ना हो. जिन्होंने न सिर्फ डिप्रेशन से जूझने में बल्कि इससे निपटने के बारे में खुलकर बात भी की है. जहां कुछ सेलेब्स ने डिप्रेशन की जंग जीत गए तो कुछ ने जिंदगी की जंग हार दी. आइए जानते हैं कि आखिर डिप्रेशन क्यूं होता है? इसके कारण, लक्षण क्या हैं? इससे कैसे दूर रह सकते हैं और कौनकौन से सेलिब्रिटी इसकी चपेट में आ चुके थे.

 

डिप्रेशन के शिकार रह चुके हैं ये सेलिब्रिटीज

सबसे पहले बात करते हैं मिस्टर पेरफेकेशनिस्ट आमिर खान की, जिन्होंने हाल ही में एक कौमेडी शो के दौरान बताया कि वो पिछले दो ढाई साल डिप्रेशन में थे. वहीं बौलीवुड के किंग खान भी इस खतरनाक बीमारी से सामना कर चुके हैं. जब उन्हें कंधे की चोट के दर्द की वजह से डिप्रेशन हुआ था. सुशांत सिंह राजपूत क्रिनिकल डिप्रेशन से गुजर रहे थे, जिसके चलते उन्होंने सुसाइड कर लिया था. इसके अलावा निर्माता करण जौहर भी डिप्रेशन से डेढ़ साल का संघर्ष करते रहें. सिर्फ इतना ही नहीं बौलीवुड एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण,अनुष्का शर्मा, दंगल गर्ल एक्ट्रेस जायरा वसीम, फेमस एक्ट्रेस आलिया भट्ट की बहन शाहीन भट्ट, सिंगर नेहा कक्कड़ , छोटे पर्दे की एक्ट्रेस और मौडल शमा सिकंदर, रश्मि देसाई डिप्रेशन का दर्द झेल चुकी हैं.

किसी को भी हो सकता है डिप्रेशन

डिप्रेशन के बारे में मैरिंगो एशिया हौस्पिटल्स फरीदाबाद की एचओडी-साइकोलौजी डा. जया सुकुल का कहना है कि डिप्रेशन या कोई भी मानसिक दिक्कत आपके पैसे या जेब को देखकर नहीं आती है. ये किसी को भी हो सकता है. यह बात अलग है कि हर वर्ग के इंसान को डिप्रेशन अलग तरीके से परेशान करता है. अमीर आदमी का ज्यादा पता चलता है क्योंकि वह डिप्रेशन के चलते काम से छुट्टी ले सकता है. मगर गरीब आदमी के पास कोई चाइस नहीं होती है, उसे अपना काम पूरा करना पड़ता है. गरीब आदमी के पास कोई बहुत ज्यादा इकोनोमिक या सोशल सपोर्ट नहीं होता है लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि उन्हें डिप्रेशन नहीं होता है. बस उनका दिखने में अलग होता है जैसे बिना किसी कारण बीमारियां होना, बारबार बीमार पड़ना और इम्यून सिस्टम खराब होना-उनकी फिजिकल हेल्थ बहुत ज्यादा बिगड़ जाती है.

डिप्रेशन के कारण

डा. जया सुकुल कहती हैं कि डिप्रेशन में जाने के कई कारण हो सकते हैं. ऐसा भी हो सकता है दो लोग जिनकी समान हिस्ट्री, समान एक्सपीरियंस रहे हों, उनमें से एक को डिप्रेशन हो जाए दूसरे को नहीं. आपके जेनेटिक्स, आपके स्वभाव, आपके आसपास का वातावरण, आपकी मौजूदा स्थिति आपकी सिचुएशन को कैसे प्रभावित करती हैं, ये सब अलग-अलग कारण हैं.

डिप्रेशन के लक्षण और प्रकार

डिप्रेशन मुख्यत: दो तरह से देखा जा सकता है- फंक्शनल और क्लीनिकल डिप्रेशन. जिन लोगों की मानसिक स्थिति डिप्रेशन की वजह से बहुत ज्यादा खराब हो जाती है उनको डिप्रेशन और मेंटल हेल्थ इशू की वजह से शारीरिक दिक्कत आनी शुरू हो जाती हैं.

एंग्जाइटी और डिप्रेशन में फर्क

एंग्जायटी और डिप्रेशन दो बहुत अलग बीमारी हैं और उनके इलाज भी बहुत अलग दवाओं से किए जाते हैं. एंग्जायटी एक तरह की बेसब्रता या घबराहट होती है. डिप्रेशन उदासी का एक क्लीनिकल वर्जन होता है, जहाँ पर आपकी मानसिक और शारीरिक सेहत दोनों खराब होती हैं. कई बार लोगों को एंग्जायटी और डिप्रेशन साथ में हो जाता है मगर वे समान बीमारी नहीं होती.

ठीक होने में कितना समय

डिप्रेशन से परेशान व्यक्ति कब तक ठीक हो सकता है ये इस बात पर निर्भर करता है कि डिप्रेशन उसके अंदर कितना गहरा बैठा हुआ है. कुछ लोगों को 14-15 हफ्ते लगते हैं. कुछ लोगों को कई बार साल भी लग जाते हैं.

डिप्रेशन में क्या करें

डौक्टर का कहना है कि ठीक होने का समय जो काम आप करते हैं उससे भी जुड़ा होता है. अगर आप ठीक से इलाज करा रहे हैं, सही डौक्टर से मिल रहे हैं, जो आपको डौक्टर बता रहे हैं-उसे ठीक से कर रहे हैं, डौक्टर द्वारा बताई दवा ठीक समय पर नियमित रूप से ले रहे हैं. तो जल्दी ठीक हो जाते हैं. डौक्टर की बात मानना, डौक्टर को दिखाना, शर्म न करना, सोशल सपोर्ट इकट्ठा करना कुछ ऐसी चीजें हैं जो आप खुद से कर सकते हैं. लाइफस्टाइल को हेल्दी रखना भी बहुत जरूरी है.

डिप्रेशन बारबार होता है-

अधिकतर मामलों में अगर डिप्रेशन का ठीक से इलाज किया जाए, मरीज सारी ही चीजों में साइकोलॉजिस्ट और साइकेट्रिस्ट दोनों को फौलो करे. अगर उसकी लाइफ में वो हालात दोबारा से पैदा न हों तो डिप्रेशन नहीं होता. कई बार लोग उसी हालात को अच्छे ट्रीटमेंट के बाद ठीक से संभाल पाते हैं. 90 प्रतिशत जनता को लाइफ में एक बार डिप्रेशन जरूर होता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उन्हें बार-बार होगा.

किस उम्र में डिप्रेशन के चांस ज्यादा-

डिप्रेशन की समस्या उम्र देखकर नहीं आती है. यह 11-14 वर्ष और 23-27 की उम्र के ग्रुप के लोगों में ज्यादा देखने को मिलता है.

खरीदी हुई दुल्हन: क्या मंजू को मिल पाया अनिल का प्यार

38 साल के अनिल का दिल अपने कमरे में जाते समय 25 साल के युवा सा धड़क रहा था. आने वाले लमहों की कल्पना ही उस की सांसों को बेकाबू किए दे रही थी, शरीर में झुरझुरी सी पैदा कर रही थी. आज उस की सुहागरात है. इस रात को उस ने सपनों में इतनी बार जिया है कि इस के हकीकत में बदलने को ले कर उसे विश्वास ही नहीं हो रहा.

बेशक वह मंजू को पैसे दे कर ब्याह कर लाया है, तो क्या हुआ? है तो उस की पत्नी ही. और फिर दुनिया में ऐसी कौन सी शादी होती होगी जिस में पैसे नहीं लगते. किसी में कम तो किसी में थोड़े ज्यादा. 10 साल पहले जब छोटी बहन वंदना की शादी हुई थी तब पिताजी ने उस की ससुराल वालों को दहेज में क्या कुछ नहीं दिया था. नकदी, गहने, गाड़ी सभी कुछ तो था. तो क्या इसे किसी ने वंदना के लिए दूल्हा खरीदना कहा था. नहीं न. फिर वह क्यों मंजू को ले कर इतना सोच रहा था. कहने दो जिसे जो कहना था. मुझे तो आज रात सिर्फ अपने सपनों को हकीकत में बदलते देखना है. दुनिया का वह वर्जित फल चखना है जिसे खा कर इंसान बौरा जाता है. मन में फूटते लड्डुओं का स्वाद लेते हुए अनिल ने सुहागरात के लिए सजाए हुए अपने कमरे में प्रवेश किया.

अब तक उस ने जो फिल्मों और टीवी सीरियल्स में देखा था उस के ठीक विपरीत मंजू बड़े आराम से सुहागसेज पर बैठी थी. उस के शरीर पर शादी के जोड़े की जगह पारदर्शी नाइटी देख कर अनिल को अटपटा सा लगा क्योंकि उस का तो यह सोचसोच कर ही गला सूखे जा रहा था कि वह घूंघट उठा कर मंजू से बातों की शुरुआत कैसे करेगा. मगर यहां का माहौल देख कर तो लग रहा है जैसे कि मंजू तो उस से भी ज्यादा उतावली हो रही है.

अनिल सकुचाया सा बैड के एक कोने में बैठ गया. मंजू थोड़ी देर तो अनिल की पहल का इंतजार करती रही, फिर उसे झिझकते देख कर खुद ही उस के पास खिसक आई और उस के कंधे पर अपना सिर टिका दिया. यंत्रवत से अनिल के हाथ मंजू के इर्दगिर्द लिपट गए. मंजू ने अपनेआप को हलका सा धक्का दिया और वे दोनों ही बैड पर लुढ़क गए. मंजू ने अनिल के ऊपर झुकते हुए उस के होंठ चूमने शुरू कर दिए तो अनिल बावला सा हो उठा. उस के बाद तो अनिल को कुछ भी होश नहीं रहा. प्रकृति ने जैसे उसे सबकुछ एक ही लमहे में सिखा दिया.

मंजू ने उसे चरम तक पहुंचाने में पूरा सहयोग दिया था. अनिल का यह पहला अनुभव ऐसा था जैसे गूंगे को गुड़ का स्वाद, जिस के स्वाद को सिर्फ महसूस किया जा सकता है, बयान नहीं. एक ही रात में अनिल तो जैसे जोरू का गुलाम ही हो गया था. आज मंजू ने उसे वह तोहफा दिया था जिस के सामने सारी बादशाहत फीकी थी.

सुबह अनिल ने बेफिक्री से सोती हुई मंजू को नजरभर कर देखा. सबकुछ सामान्य ही था उस में. कदकाठी, रंगरूप और चेहरामोहरा सभी कुछ. मगर फिर भी रात जो खास बात हुई थी उसे याद कर के अनिल मन ही मन मुसकरा दिया और सोती हुई पत्नी को प्यार से चूमता हुआ कमरे से बाहर निकल गया.

मंजू जैसी भी थी, अनिल से तो इक्कीस ही थी. अनिल का गहरा सांवला रंग, मुटाया हुआ सा शरीर, कम पढ़ाईलिखाई सभीकुछ उस की शादी में रोड़ा बने हुए थे. अब तो सिर के बाल भी सफेद होने लगे थे. बहुत कोशिशों के बाद भी जब जानपहचान और अपनी बिरादरी में अनिल के रिश्ते की बात नहीं जमी तो उस की बढ़ती हुई उम्र को देखते हुए उस की बूआ ने उस की मां को सलाह दी कि अगर अपने समाज में बात नहीं बन रही है तो किसी गरीब घर की गैरबिरादरी की लड़की के बारे में सोचने में कोई बुराई नहीं है. और तो और, आजकल तो लोग पैसे दे कर भी दुलहन ला रहे हैं. बूआ की बात से सहमत होते हुए भी अनिल की मां ने एक बार उस की कुंडली मंदिर वाले पंडितजी को दिखाने की सोची.

पंडितजी ने कुंडली देख कर मुसकराते हुए कहा, ‘‘बहनजी, शादी का योग तो हर किसी की कुंडली में होता ही है. किसीकिसी की शादी जल्दी तो किसी की थोड़ी देर से, मगर समझदार लोग आजकल कुंडली के फेर में नहीं पड़ते. आप तो कोई ठीकठाक सी लड़की देख कर बच्चे का घर बसा दीजिए. चाहे कुंडली मिले या न मिले. बस, लड़की मिल जाए और शादी के बाद दोनों के दिल.’’

अनिल की मां को बात समझ में आ गई और उन्होंने अपने मिलने वालों व रिश्तेदारों के बीच में यह बात फैला दी कि उन्हें अनिल के लिए किसी भी जातबिरादरी की लड़की चलेगी. बस, लड़की संस्कारी और दिखने में थोड़ी ठीकठाक हो.

बात निकली है तो दूर तलक जाएगी. एक दिन अनिल की मां से मिलने एक व्यक्ति आया जो शादियां करवाने का काम करता था. उसी ने उन्हें मंजू के बारे में बताया और अनिल से उस की शादी करवाने के एवज में 20 हजार रुपए की मांग की. अनिल अपनी मां और बूआ के साथ मंजू से मिलने उस के घर गया. बेहद गरीब घर की लड़की मंजू अपने 5 भाईबहनों में तीसरे नंबर पर थी. उस से छोटा एक भाई और भाई से छोटी एक बहन रीना. मंजू की 2 बड़ी बहनें भी उस की ही तरह खरीदी गई थीं.

25 साल की युवा मंजू उम्र में अनिल से लगभग 12-13 साल छोटी थी. एक कमरे के छोटे से घर में इतने प्राणी कैसे रहते होंगे, यह सोच कर ही अनिल हैरान हो रहा था. उसे तो यह सोच कर हंसी आ रही थी कि कैसी परिस्थितियों में ये बच्चे पैदा हुए होंगे.

खैर, मंजू को देखने के बाद अनिल ने शादी के लिए हां कर दी. अब यह तय हुआ कि शादी का सारा खर्चा अनिल का परिवार ही उठाएगा और साथ ही, मंजू के परिवार को 2 लाख रुपए भी दिए जाएंगे ताकि उन का जीवनस्तर कुछ सुधर सके. 50 हजार रुपए एडवांस दे कर अनिल और मंजू की शादी का सौदा तय हुआ और जल्दी ही घर के 4 जने जा कर मंजू को ब्याह लाए. बिना किसी बरात और शोरशराबे के मंजू उस की पत्नी बन गई.

मंजू निम्नवर्गीय घर से आई थी, इसलिए अनिल के घर के ठाटबाट देख कर वह भौचक्की सी रह गई. बेशक उस का स्वागत किसी नववधू सा नहीं हुआ था मगर मंजू को इस का न तो कोई अफसोस था और न ही उस ने कभी इस तरह का कोई सपना देखा था. बल्कि वह तो इस घर में आ कर फूली नहीं समा रही थी. जितना खाना उस के मायके में दोनों वक्त बनता था उतना तो यहां एक वक्त के खाने में बच जाता है और कुत्तों को खिलाया जाता है. ऐसेऐसे फल और मिठाइयां उसे यहां देखने और खाने को मिल रहे थे जिन के उस ने सिर्फ नाम ही सुने थे, देखे और चखे कभी नहीं.

‘अगर मैं अनिल के दिल की रानी बन गई तो फिर घर की मालकिन बनने से मुझे कोई नहीं रोक सकता’, मंजू ने मन ही मन सोच लिया कि आखिरकार उसे घर की सत्ता पर कब्जा करना ही है.

‘सुना था कि पुरुष के दिल का रास्ता उस के पेट से हो कर जाता है. नहीं. पेट से हो कर नहीं, बल्कि उस की भूख की आनंददायी संतुष्टि से हो कर जाता है. फिर भूख चाहे पेट की हो, धन की हो या फिर शरीर की हो. यदि मैं अनिल की भूख को संतुष्ट रखूंगी तो वह निश्चित ही मेरे आगेपीछे घूमेगा. और फिर, तू मेरा राजा, मैं तेरी रानी, घर की महारानी’, यह सोचसोच कर मंजू खुद ही अपने दिमाग की दाद देने लगी.

‘बनो दिल की रानी’ अपने इस प्लान के मुताबिक, मंजू रोज दिन में 2 बार अनिल को ‘आई लव यू स्वीटू’ का मैसेज भेजने लगी. लंचटाइम में उसे फोन कर के याद दिलाती कि खाना टाइम पर खा लेना. वह शाम को सजधज कर अनिल को उस के इंतजार में खड़ी मिलती.

रात के खाने में भी वह अनिल को गरमागरम फुल्के अपने हाथ से बना कर ही खिलाती थी चाहे उसे घर आने में कितनी भी देर क्यों न हो जाए और खुद भी उस के साथ ही खाती थी. यानी हर तरह से अनिल को यह महसूस करवाती थी कि वह उस की जिंदगी में सब से विशेष व्यक्ति है. और हर रात वह अनिल को अपने क्रियाकलापों से खुश करने की पूरी कोशिश करती थी. उस ने कभी अनिल को मना नहीं किया बल्कि वह तो उसे प्यार करने को प्रोत्साहित करती थी. उम्र में छोटी होने के कारण अनिल उसे बच्ची ही समझता था और उस की हर नादानी को नजरअंदाज कर देता था.

कहने को तो अनिल अपने मांबाप का इकलौता बेटा था मगर कम पढ़ेलिखे होने और अतिसाधारण शक्लसूरत के कारण अकसर लोग उसे कोई खास तवज्जुह नहीं दिया करते थे. वहीं, उस की शादी भी नहीं हो रही थी. सो, अनिल हीनभावना का शिकार होने लगा था. मगर मंजू ने उसे यह एहसास दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी कि वह कितना काबिल और खास इंसान है बल्कि वह तो कहती थी कि अनिल ही उस की सारी दुनिया है.

मंजू के साथ और प्यार से अनिल का आत्मविश्वास भी बढ़ने लगा. मंजू को पा कर अनिल ऐसे खुश था जैसे किसी भूखे व्यक्ति को हर रोज भरपेट स्वादिष्ठ भोजन मिलने लगा हो.

एक दिन मंजू की मां का फोन आया. वे उस से मिलना चाह रही थीं. रात में मंजू ने अनिल की शर्ट के बटन खोलते हुए अदा से कहा, ‘‘मुझे कुछ रुपए चाहिए. मां ने मिलने के लिए बुलाया है. पहली बार जा रही हूं. अब इतने बड़े बिजनैसमैन की पत्नी हूं, खाली हाथ तो नहीं जा सकती न.’’

‘‘तो मां से ले लो न,’’ अनिल ने उसे पास खींचते हुए कहा.

‘‘मां से क्यों? मैं तो अपने हीरो से ही लूंगी. वह भी हक से,’’ कहते हुए मंजू ने अनिल के सीने पर अपना सिर टिका दिया.

‘‘कितने चाहिए? अभी ये रखो. और चाहिए तो कल दे दूंगा,’’ अनिल ने निहाल होते हुए उसे 20 हजार रुपए थमा दिए और फिर मंजू को बांहों में कसते हुए लाइट बंद कर दी.

मंजू 15 दिनों के लिए मायके गईर् थी. मगर 5 दिनों बाद ही अनिल को उस की याद सताने लगी. मंजू की शहदभरी बातें और मस्तीभरी शरारतें उसे रातभर सोने नहीं देतीं. उस ने अगले ही दिन मंजू का तत्काल का टिकट बनवा कर आने के लिए कह दिया. मंजू भी जैसे आने के लिए तैयार ही बैठी थी. उस के वापस आने के बाद अनिल की दीवानगी उस के लिए और भी बढ़ गई. अब मंजू हर महीने अनिल से

10-15 हजार रुपए ले कर अपने मायके भेजने लगी. मंजू ने अनिल से उस का एटीएम कार्ड नंबर और पिन आदि ले लिया. जिस की मदद से वह अपनी बहनों और भाई के लिए कपड़े, घरेलू सामान आदि भी औनलाइन और्डर कर के भेज देती. मंजू के प्यार का नशा अनिल के सिर चढ़ कर बोलने लगा था. ‘सैयां भए कोतवाल तो अब डर काहे का.’ घर में मंजू का ही हुक्म चलने लगा.

बेटे की इच्छा को देख अनिल की मां को न चाहते हुए भी तिजोरी की चाबियां बहू को देनी पड़ीं. सामाजिक लेनदेन आदि भी सबकुछ उसी की सहमति या अनुमति से होता था. अनिल की मां उसे कुछ नहीं कह पाती थीं क्योंकि मंजू ने उन्हें भी यह एहसास करवा दिया था कि उस ने अनिल से शादी कर के अनिल सहित उन के पूरे परिवार पर एहसान किया है.

‘‘सुनिए न, मेरी बड़ी इच्छा है कि मेरा नाम हर जगह आप के नाम के साथ जुड़ा हो,’’ एक दिन मंजू ने अनिल से बड़े ही अपनेपन से कहा.

‘‘अरे, इस में इच्छा की क्या बात है? वह तो जुड़ा ही है. देखो, तुम मेरी अर्धांगिनी हो यानी मेरा आधा हिस्सा. इस नाते मेरी हर चलअचल संपत्ति पर तुम्हारा आधा हक हुआ न,’’ अनिल ने प्यार से मंजू को समझाया.

‘‘वह तो ठीक है, मगर यह सब अगर कानूनी रूप से भी हो जाता तो कितना अच्छा होता. मगर उस में तो कई पेंच होंगे न. चलो, रहने दो. बिना मतलब आप परेशान हो जाएंगे,’’ मंजू ने बालों की लट को उंगलियों में लपेटते हुआ कहा.

‘‘मेरी जान, मेरे तन, मन और धन… सब की मालकिन हो तुम,’’ अनिल ने उसे बांहों में भरते हुए कहा और फिर एक दिन वकील और सीए को बुला कर अपने घरदुकान, बैंक अकाउंट व अन्य चलअचल प्रौपर्टी में मंजू को कानूनन अपना उत्तराधिकारी बना दिया.

इधर एक बच्चे की मां बन कर जहां मंजू ने अनिल के खानदान को वारिस दे कर सदा के लिए उसे अपना कर्जदार बना लिया वहीं मां बनने के बाद मंजू के रूप और यौवन में आए निखार ने अनिल की रातों की नींद उड़ा दी. अनिल को अब अपनी ढलती उम्र का एहसास होने लगा था. वह यह महसूस करने लगा था कि अब उस में पहले वाली ऊर्जा नहीं रही और वह मंजू की शारीरिक जरूरतें पहले की तरह पूरी नहीं कर पाता. अपनी इस गिल्ट को दूर करने के लिए वह मंजू की हर भौतिक जरूरत पूरी करने की कोशिश में लगा रहता. अनिल आंख बंद कर के मंजू की हर बात मानने लगा था.

मंजू बेशक अनिल की प्रौपर्टी की मालकिन बन गई थी मगर उस ने भी अपने दिल का मालिक सिर्फ और सिर्फ अनिल को ही बनाया था. वह यह बात कभी नहीं भूल सकी थी कि जब उस के आसपड़ोस के लोेग उसे ‘खरीदी हुई दुलहन’ कह कर हिकारत से देखते थे तब यही अनिल कैसे उस की ढाल बन कर सामने खड़ा हो जाता था और उसे दुनिया की चुभती हुई निगाहों से बचा कर अपने दिल में छिपा लेता था. उस की सास ने उसे कभी अपने खानदान की बहू जैसा सम्मान नहीं दिया था मगर फिर भी अपनी स्थिति से आज वह खुश थी.

उस ने बहुत ही योजनानुसार अपने परिवार को गरीबी के दलदल से बाहर निकाल लिया था. मंजू ने मोमबत्ती की तरह खुद को जला कर अपने परिवार को रोशन कर दिया था. मंजू ने दुकान के काम में मदद करने के लिए अपने भाई को अपने पास बुला लिया. इसी बीच अनिल की मां चल बसीं, तो अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए मंजू ने अपने मांपापा और छोटी बहन रीना को भी अपने पास ही बुला लिया.

एक दिन वही दलाल अनिल के घर आया जिस ने मंजू से उस की शादी करवाई थी. रीना को देखते ही उस की मां से बोला, ‘‘क्या कीमत लगाओगे लड़की की? किसी को जरूरत हो तो बताना पड़ेगा न?’’

‘‘मेरी बहन किसी की खरीदी हुई दुलहन नहीं बनेगी,’’ मंजू ने फुंफकारते हुए कहा.

‘‘खरीदी हुई दुलहन, बड़ी जल्दी पर निकल आए. अपनी शादी का किस्सा भूल गई क्या?’’ दलाल ने मंजू पर ताना कसते हुए मुंह बनाया.

‘‘मेरी बात और थी. मैं तो बिना सहारे की बेल थी जिसे किसी न किसी पेड़ से लिपटना ही था. मगर रीना के साथ ऐसा नहीं है. देर आए दुरुस्त आए. कुदरत ने उसे अनिल के रूप मे सिर पर छत दे दी है और पांवों के नीचे जमीन भी. अभी मैं जिंदा हूं और अपनी बहन की शादी कैसे करनी है, यह हम खुद तय कर लेंगे. आप जा सकते हैं. लेकिन हां, अनिल को मेरी जिंदगी में लाने के लिए मैं सदा आप की कर्जदार रहूंगी, धन्यवाद,’’ मंजू ने दलाल से हाथ जोड़ते हुए आभार जताया. वहीं पीछे खड़ा अनिल मुसकरा रहा था. आज उस के दिल में मंजू के लिए प्यार के साथसाथ इज्जत भी बढ़ गई थी.

लड़की को भी है मसल्स दिखाने की जरूरत, ‘जो मरजी पहनो’

गैस करो कि यह फोटो कहां का है: यह पक्का है कि यह एआई की बनाया नहीं है. असल में यह है अमेरिका के व्हाइट हाउस जहां राष्ट्रपति रहते हैं और ये स्मार्ट इंडियन सी लगने वाली औरतें अमेरिका की मुसलिम महिला ऐसोसिएशन की हैं जो विदेश मंत्री सैक्रेटरी अंटोनी ब्लिंकेन से मिलने आईं. साउथ एशिया के देशों की औरतों को अभी भी साड़ी और सलवारकमीज में ही अपनी पहचान दिखती है. यह बैकवर्डनैस है या सुंदर दिखने की कोशिश, यह आप तय करें. यह पक्का है कि अगर चीनीजापानी डैलीगेशन होता तो वे वैस्टर्न ड्रैस में ही होतीं.

है हिम्मत तो पास आओ: ये मसल लड़की के हैं, किसी जिम गोइंग लड़के के नहीं. आजकल ऐसी थेरैपी आने वाली है कि जिन के मसल किसी बीमारी से कमजोर हो जाएं उन्हें भी सही ऐक्सरसाइज और प्रोटीन सप्लिमैंट दे कर मसल ऐसे हो जाएं कि सड़कछाप मजनूं दूर से ही भाग जाएं. हमारी तो सोच है कि एक साजिश के तौर पर लड़कियों को पट्टी पढ़ाई जाती है कि वे कमजोर और नाजुक दिखें कि कहीं वे पुरुषों को चैलेंज न करने लगें.

आगे की सोचें: जिम अब सिर्फ ऐक्सरसाइज के सैंटर नहीं रह गए हैं. जिस तरह पौपुलर हो गए हैं, वे कम्युनिटी क्लब से बनने लगे हैं और एक सैंटर ने अपने यहां डांस और कराटे क्लासेज भी लगानी शुरू कर दी हैं. जल्द ही उन में किट्टी पार्टियां भी होने लगें, बर्थडे मनाए जाने लगें और कोई शोक सभा भी और्गनाइज करा दें कि आओ और टू इन वन काम करते जाओ तो बड़ी बात नहीं. सनरेज जिम को ऐडवांस में बैस्ट विशेष की आगे की सोचें और वहां शादियां भी करा दें और तलाक भी. आखिर लोग अभी भी बहुत समय वहीं लगा रहे हैं.

जो मरजी पहनो: हलीमा अदेन ऐसीवैसी नहीं सुपर मौडल्स में गिनी जाती है और उस की शोहरत इतनी है कि एक इंडोनेशियाई कंपनी बटनस्कार्व्स ने उसे ब्रैंड ऐंडोर्स और मौडलिंग करने के लिए चुना है. स्कार्फ अच्छा फैशन स्टेटमैंट है पर हम कहेंगे कि इसे वर्कप्लेस में नहीं पहना जाए. वर्कप्लेस में ड्रैस एक सी और बिना ज्यादा तड़कभड़क वाली हो. हां, अगर काम शो बिजनैस का है तो जो मरजी है पहनो और चाहो तो कुछ भी न पहनो.

मान लेने में बुराई नहीं: अब अगर यह फैशन हौलीवुड से जुड़े किसी डिजाइनर का है तो मान लेने में कोई बुराई नहीं है कि कुछ खास ही होगा. निश निशे की डिजाइन की ड्रैसें न केवल स्टाइलिस्ट मानी जाती हैं और फैब्रिक से ले कर रंग तक की चिंता की जाती है, यह कंपनी का दावा है तो मान लेना ही अच्छा है. औनलाइन के जमाने में ग्राहक तो वैसे भी बस डेटा पीस बन कर रह गए हैं जिन्हें कहीं भी कुछ भी कह कर बेचा जा सकता है.

हम कमजोर नहीं: यह अमेरिका में गवर्नर के औरत होने का फायदा है जो भारत के चीफ मिनिस्टर की तरह का सा होता है कि उस ने औरतों की मांग पर एक कानून बना दिया जिस में डिजिटल हैरसमैंट को डोमैस्टिक वायलैंस के साथ जोड़ दिया है जो डाइवोर्स का कारण बन सकता है. अमेरिका में भी अगर एक पार्टनर डाइवोर्स न देना चाहे तो लंबी कानूनी देरी संभव है. अब व्हाट्सऐप, फेसबुक, इंस्टाग्राम पर अनापशनाप कहने पर भी डाइवोर्स की ग्राउंड ली जा सकती है.

मौड्यूलर किचन चाहते हैं बनवाना, तो फौलो करें ये टिप्स

Writer- रेणु लैसी 

प्राचीनकाल से ले कर वर्तमान तक रसोई का महत्त्व बना हुआ है. किचन ही घर में एक ऐसी जगह है जो परिवार के सभी लोगों को एकदूसरे से जोड़े रखती है. किचन में सिर्फ खाना ही नहीं बनता है बल्कि लोग खाने के साथसाथ अपने मन की बातें भी एकदूसरे से शेयर करते हैं. बीते कई सालों से लोगों ने किचन की डिजाइन में कई तरह के बदलाव लाना पसंद किया है. जैसेजैसे तकनीक में सुधार हुआ, किचन में सुविधाएं भी बेहतर होती गईं.

आजकल मौड्यूलर किचन लोगों की पहली पसंद बनती जा रही है. आप घर बनवा रहे हैं या पुराने घर का नवीकरण करवा रहे हैं तो आप निश्चित ही किचन को भी एक खूबसूरत और अनोखी डिजाइन में देखना पसंद करेंगे. आज हम आप को आधुनिक किचन की डिजाइन के बारे में कुछ महत्त्वपूर्ण बातें बताएंगे:

ओपन किचन या खुली रसोई: आजकल विदेशों की तरह भारत में ओपन किचन लोगों की पहली पसंद बनती जा रही हैं. लोग अब बंद कमरे जैसी किचन से बोर हो गए हैं. इसलिए वे ओपन किचन बनाने में दिलचस्पी रखते हैं. ओपन किचन में कोई दरवाजा नहीं होता. यह बिलकुल खुली हुई और हवादार होती है. चारों तरफ से रोशनी आती रहती है.

ताजा हवा आने से मन खुश रहता है. ओपन किचन अधिकांश हाल और डायनिंगरूम के साथ ही बनाई जाती है, जिस से आप लोगों से बातचीत करते हुए अपना काम कर सकते हैं. आप को बातचीत करने के लिए अपना काम नहीं रोकना पड़ता है. आजकल ओपन किचन की एक से बढ़ कर एक डिजाइनें मौजूद हैं. आप किसी भी इंटीरियर डिजाइनर की सहायता से ओपन किचन बनवा सकती हैं.

बस आप को ओपन किचन की साफसफाई का विशेष ध्यान रखना होगा क्योंकि खुली जगह में धूल के कण आसानी से वस्तुओं में दिखाई देने लगते हैं. इसलिए ओपन किचन को साफ और हमेशा व्यवस्थित रखें.

वाल किचन: छोटी जगह के लिए वाल किचन एक बेहतरीन औप्शन है. आजकल लोग एक दीवार वाली किचन ज्यादा बनवाना पसंद कर रहे हैं. आप रसोई के सामान को एक दीवार के साथ व्यवस्थित रख सकते हैं, जिस से सबकुछ आसानी से मिल जाता है. ढूंढ़ने में समय खराब नहीं होता है. यदि जगह छोटी है तो सामान को स्लाइडिंग दरवाजे के पीछे या कैबिनेट के भीतर रखा जा सकता है. आप एक के ऊपर दूसरा सामान रख सकते हैं, जिस से छोटी जगह का भी उपयोग आसानी से हो जाएगा.

एल शेप किचन: आजकल एल शेप के किचन भी बनवाई जा रही है. यह छोटी और बड़ी दोनों जगहों पर आसानी से बन जाती है. आप कम जगह में ज्यादा सामान को आसानी से स्टोरेज कर सकती हैं. खाना बनाने और भंडारण को अलग  2 भाग में बनाने के लिए आजकल एल की शेप के किचन ज्यादा बनाई जा रही है.

एक तरफ खुली जगह जहां आप खाना बना सकती हैं तो दूसरे भाग में आप सामान रख सकती हैं. अगर आप के पास छोटी किचन है तो एल शेप की किचन बना सकती हैं. यह छोटी किचन को भी बड़ा दिखाएगा. इस पर व्हाइट और ग्रे कलर का उपयोग कर सकती हैं. इस की साफसफाई आसानी से हो जाती है.

यू शेप किचन: आप के पास ज्यादा और बड़ी जगह है तो आप यू शेप की किचन बनाने का मन बना सकती हैं. बड़ी जगह पर यू शेप किचन बनाना काफी लोकप्रिय हो रहा है. यह आप को स्पेशियस स्टोरेज की सुविधा देगा. यू शेप की किचन में आप आसानी से सिंक, कुकटौप, ओवन और रैफ्रिजरेटर को स्टोर कर सकते हैं.

इस का सब से बड़ा फायदा यह है कि यू शेप की किचन में 2-3 लोग आराम से काम कर सकते हैं. आप का परिवार बड़ा है तो यू शेप की किचन बनवाना ही समझदारी है. व्हाइट, ग्रीन ऐंड उडेन फिनिश का टच इस की खूबसूरती बढ़ा देता है. आप चाहें तो और भी कलर का उपयोग कर सकती हैं और अपनी यू शेप किचन की खूबसूरती में चार चांद लगा सकती हैं.

पैरेलल किचन: आप के पास जगह की कमी है तो आप पैरेलल किचन बनवाना ही उचित रहेगा. यह कम जगह में भी आसानी से बन जाती है. अगर आप की किचन एक स्मौल गैलरी की शेप की है तो आप पैरेलल किचन बनाने का निर्णय ले सकती हैं और किचन को क्लासिक लुक दे सकती हैं.

यह देखने में खूबसूरत होने के साथसाथ आप को स्टोरेज की सुविधा भी अच्छी देती है. मगर पैरेलल किचन बहुत ही संकरी होती है. आप किचन में ज्यादा समय नहीं गुजार सकती हैं. लेकिन किचन छोटी होने से आप इस का रखरखाव आसानी से कर सकती हैं.

किचन विद ब्रेकफास्ट टेबल: किचन एल या यू किसी भी शेप में बनवाएं लेकिन ब्रेकफास्ट टेबल बनवाना लोगों की पहली पसंद बनता जा रहा है. यह आसानी से बन जाती है और आप खाना बनाने के साथसाथ टेबल पर खाना सर्व भी कर सकती हैं.

आप के समय की बचत भी होती है और आप के शरीर को भी आराम मिलता है क्योंकि आप को खाना सर्व करने के लिए भागदौड़ नहीं करनी पड़ती. यह मीडियम या बड़े आकार की किचन के लिए बहुत ही अच्छी डिजाइन है.

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