पिता और बच्चे की बौंडिंग करना चाहते हैं स्ट्रौन्ग, तो ध्यान रखें ये बातें

नवजात के साथ मां जितना भावनात्मक लगाव बनाए रखती है, पिता भी इस के लिए उतना ही उत्सुक रहता है. दोनों के बीच एकमात्र यही अंतर रहता है कि पिता को इस तरह का लगाव रखने के लिए विशेष प्रयास करने पड़ते हैं, जबकि मां का अपने बच्चे से यह स्वाभाविक बन जाता है.

यदि आप भी पिता बनने का सुख पाने वाले हैं, तो हम आप को कुछ ऐसे टिप्स बता रहे हैं, जो इस दुनिया में कदम रखने वाले बच्चे के प्रति आप के गहरे लगाव को विकसित कर सकते हैं. हमारे समाज में लिंगभेद संबंधी दकियानूसी सोच के कारण पुरुष अधिक भावनात्मक रूप से पिता का सुख पाने से कतराते हैं.

मां से ही बच्चे की हर तरह की देखभाल की उम्मीद की जाती है. मां को ही बच्चे का हर काम करना पड़ता है. लेकिन अपने बच्चे के साथ आप जितना जुड़ेंगे और उस की प्रत्येक गतिविधि में हिस्सा लेंगे, बच्चे के प्रति आप का लगाव उतना ही बढ़ता जाएगा. लिहाजा, बच्चे का हर काम करने की कोशिश करें. नैपकिन धोने, डाइपर बदलने, दूध पिलाने, सुलाने से ले कर जहां तक हो सके उस के काम कर उस के साथ अधिक से अधिक समय बिताने की कोशिश करें.

गर्भधारण काल से ही खुद को व्यस्त रखें

गर्भधारण की प्रक्रिया के साथ सक्रियता से जुड़ते हुए पिता भी बच्चे के समग्र विकास में अहम भूमिका निभा सकता है. हर बार पत्नी के साथ डाक्टर के पास जाए. डाक्टर के निर्देशों को सुने और पत्नी को प्रतिदिन उन पर अमल करने में मदद करे. पत्नी को क्या खाना चाहिए तथा प्रतिदिन वह क्या कर रही है, उस पर नजर रखे. इस के अलावा सोनोग्राफी सैशन का नियमित रूप से पालन करे. गर्भ में पल रहे बच्चे के समुचित विकास की प्रक्रिया के साथ घनिष्ठता से जुड़ते हुए पिता भी बच्चे के जन्म के पहले से ही उस के साथ गहरा लगाव कायम कर सकता है.

जहां तक संभव हो बच्चे को संभालें

जब कभी अपने नवजात को अपनी बांहों में लेने का मौका मिले, उसे गंवाएं नहीं. बच्चे को सुलाना, लोरी सुनाना या बच्चे के तकलीफ में रहने के दौरान उसे सीने से लगाए रखना सिर्फ मां की ही जिम्मेदारी नहीं होती है. ये सभी काम करने में खुद पहल करें. अपने बच्चे के साथ जल्दी लगाव विकसित करने के लिए स्पर्श एक अनिवार्य उपाय माना जाता है. अपने बच्चे को आप जितना स्पर्श करेंगे, उसे गले लगाएंगे, गोद में उठाएंगे, बच्चे से आप की और आप से बच्चे की नजदीकी उतनी ही ज्यादा बढ़ती जाएगी.

डकार के लिए बच्चे को थामना

यह बच्चे के साथ लगाव बढ़ाने में विशेष रूप से मदद करता है और मां को भी मदद मिलती है क्योंकि भोजन के बाद मां और शिशु दोनों थक जाते हैं और थोड़ा आराम चाहते हैं. शिशु को कई बार डकार लेने में 10-15 मिनट का वक्त लग जाता है और मां को उस की डकार निकालने के लिए अपने कंधे पर रखना भी मुश्किल हो जाता है क्योंकि वह खुद दुग्धपान कराने के बाद थक जाती है. ऐसे में यदि पिता यह दायित्व संभाल ले और बच्चे को इस तरह से थामे रखे कि उसे डकार आ जाए, तो मां को भी थोड़ा आराम मिल जाता है और शिशु भी अपनी मुद्रा बदल कर आराम पा सकता है.

बच्चे को दिन में एक बार खिलाएं

पत्नी जब बच्चे को नियमितरूप से स्तनपान करा सकती है, तो आप भी उसे बांहों में रख कर बोतल का दूध क्यों नहीं पिला सकते? किसी मां या पिता के लिए अपने बच्चे को खिलाने और यह देख कर संतुष्ट होने से बड़ा कोई एहसास नहीं हो सकता कि भूख शांत होते ही वह निश्चिंत हो गया है. इस से आप को अपने बच्चे के और करीब आने में भी मदद मिलेगी.

बच्चे को नहलाएं

शुरुआती दौर में बच्चे को स्नान कराना महत्त्वपूर्ण होता है, जिस में बच्चा आनंद लेता है. अत: अपने बच्चे को किसी एक वक्त खुद नहलाना, उस के कपड़े धोना तय करें.

बच्चे से बातें करें

जब बच्चा अच्छे मूड में हो तो उस की आंखों में देखें और तब अपने दिल की बात उसे सुनाएं. कुछ लोगों में बच्चों से बातें करने की स्वाभाविक दक्षता होती है जबकि कुछ को इसे विकसित करने में वक्त लगता है. प्रतिदिन अपने बच्चे से बातें करें. धीरेधीरे वह आप की आवाज सुन कर प्रतिक्रिया भी देने लगेगा.

बच्चे के रोजमर्रा के काम निबटाएं

बच्चे के पालनपोषण की प्रक्रिया में आप खुद को जितना व्यस्त रखेंगे, आप का बच्चा और आप का एकदूसरे से लगाव उतना ही गहरा होता जाएगा. कुछ लोगों को डर लगता है कि बच्चे का कोई काम निबटाने में उन के हाथों कुछ गलत न हो जाए, लेकिन इस में घबराने की कोई बात नहीं है क्योंकि मां भी तो धीरेधीरे ही सब कुछ सीखती है. बच्चे का डाइपर बदलना, उस की उलटी साफ करना, उस के कपड़े, बदलना आदि काम सीखना सिर्फ मां की ही जिम्मेदारी नहीं है. बच्चे के साथ खुद को आप जितना अधिक जोड़ेंगे, उस के साथ आप का लगाव भी उतना ही गहरा होता जाएगा.

ऐक्टिंग के अलावा कहानियां भी लिखती हूं : परिवा प्रणति

परिवा प्रणति खूबसूरत और विनम्र अभिनेत्री के रूप में जानी जाती हैं. उन्होंने हिंदी फिल्मों और धारावाहिकों में काम किया है. ‘तु?ा को है सलाम जिंदगीं,’ ‘हमारी बेटियों का विवाह,’ ‘अरमानों का बलिदान,’ ‘हल्ला बोल,’ ‘हमारी बहन दीदी,’ ‘लौट आओ त्रिशा,’ ‘बड़ी दूर से आए हैं’ आदि कई धारावाहिकों में वे काम कर चुकी हैं. परिवा का जन्म बिहार के पटना शहर में हुआ था. उन के पिता वायु सेना अधिकारी हैं. पिता की जौब में बारबार स्थानांतरण होने की वजह से परिवा कई शहरों में रह चुकी हैं. उन की पढ़ाई दिल्ली में पूरी हुई है.

ऐक्टिंग के दौरान परिवा को ऐक्टर और वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर पुनीत सचदेवा से प्यार हुआ और फिर दोनों ने शादी कर ली. उन दोनों का एक बेटा रुशांक सिन्हा है. परिवा अपने खाली समय में पेंटिंग करना, लिखना और सूफी संगीत सुनना पसंद करती हैं. वे पशु प्रेमी हैं. उन्होंने कई बिल्लियां और कुत्ते पाल रखे हैं. इन दिनों परिवा सोनी सब पर चल रही शो ‘वागले की दुनिया’ में वंदना वागले की भूमिका निभा रही हैं, जिसे सभी पसंद कर रहे है.

रियल लाइफ में परिवा 1 बच्चे की मां हैं. काम के साथ परिवार को कैसे संभालती हैं, आइए जानते हैं:

मां की भावना को समझना हुआ आसान

‘वागले की दुनिया’ में परिवा मां की भूमिका निभा रही हैं और रियल लाइफ में मां होने की वजह से उन्हें एक मां की भावना अच्छी तरह से सम?ा में आती है. वे कहती हैं, वंदना वागले की भूमिका मेरे लिए एक आकर्षक भूमिका है. इस में मैं 2 बच्चों सखी और अपूर्वा की मां हूं. इन में बेटी सम?ादार है और बेटा थोड़ा शरारती है. देखा जाए, तो रियल लाइफ में भी बेटियां बेटों से थोड़ी अधिक सम?ादार होती हैं वैसा ही शो में दिखाया गया है.

रियल लाइफ में मेरा बेटा रुशांक सिन्हा 6 साल का है और बहुत शरारती भी है. असल में जब मैं मां बनी तो मां की भावनाओं को समझ सकी, जिस का फायदा मुझे शो में मिल रहा है. मुझे याद आता है, जब मैं काम कर रही थी तो मेरी मां रोज मुझ से बात किए बिना नहीं सोती थीं, लेकिन अब मैं मां की भावना को समझती हूं.’’

काम के साथ करें प्लानिंग

काम के साथ परिवार को संभालने के बारे में पूछने पर परिवा कहती हैं, ‘‘मैं ने हमेशा कोशिश की है कि बच्चे को पता चले कि मेरा काम करना जरूरी है, साथ ही उसे हमेशा कुछ नया सीखने के लिए प्रेरित करती हूं ताकि वह छोटी उम्र से ही कुछ सीखता रहे और व्यस्त रहे. धीरेधीरे मेरा बेटा अब काफी कुछ समझने लगा है कि मेरा काम पर जाना जरूरी है. इस के अलावा मेरे पति और एक हैल्पिंग हैंड है उस का खयाल रखते हैं. कई बार जरूरत पड़ने पर मेरे पेरैंट्स भी सहयोग करने आ जाते हैं. बच्चे को संभालने में पति का अधिक सहयोग रहता है.

‘‘मेरे पति भी हमेशा बेटे को कुछ नया सीखने को प्रेरित करते हैं. उसे अभी टेनिस सिखाने ले जाते हैं. बेटे का कुछ खाने का मन करे तो वे उसे बना कर दे देते हैं. हम दोनों आपस में मिल कर अपने समय के अनुसार बेटे की परवरिश कर रहे हैं. मेरे पति ऐक्टर के अलावा वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर भी है.’’

जरूरत से अधिक प्रोटैक्शन देना ठीक नहीं

अधिकतर बच्चे खाना खाने में पेरैंट्स को परेशान करते है. ऐसे में आप बच्चे को किस प्रकार खाना खिलाती है? पूछने पर पारिवा कहती हैं, ‘‘मैं ने हमेशा घर का खाना खिलाने की कोशिश की है, अगर वह सब्जियां नहीं खाता है तो उन्हें आटे में मिला देती हूं तब वह खा लेता है. अधिक परेशान करने पर नानानानी के पास भेज देती हूं. मेरे पिता फौज में थे इसलिए अनुसाशन बहुत कड़ा रहता है. इसलिए वहां जा कर सब खाने लगता है. मैं बेटे को ले कर अधिक प्रोटैक्टिव नहीं क्योंकि मैं उसे भोंदू बच्चा नहीं बनाना चाहती लेकिन उस की सुरक्षा पर पूरा ध्यान देती हूं और एक आत्मनिर्भर बच्चा बनाना चाहती हूं.

‘‘हम दोनों उस पर अपनी इच्छाओं को नहीं थोपते. उसे निर्णय लेने की आजादी देते हैं. मैं ने देखा है कि कई बार पेरैंट्स अपने बच्चे की गलती नहीं देखते, जो गलत होता है. हमें अपने बच्चे की गलती भी पता होनी चाहिए. मैं बचपन में बहुत सम?ादार बच्ची थी और सुरक्षित माहौल में बड़ी हुई हूं. आजकल के बच्चे जरूरत से अधिक सैसिटिव होते जा रहे हैं जो पहले नहीं था. मु?ा से हमेशा कहा गया कि हमें ‘नो’ सुनना भी आना चाहिए. मेरे पेरैंट्स ने कभी किसी प्रकार का दबाव नहीं डाला. जब मैं ने उन से ऐक्टिंग की बात कही तो उन्होंने मना नहीं किया बल्कि सहयोग दिया.’’

ऐक्टिंग नहीं थी इत्तफाक

परिवा कहती हैं, ‘‘मुझे बचपन में बहुत कुछ बनना होता था, हर 2 महीने में मेरी इच्छा बदलती थी, फिर पता चला कि एक ऐक्टर बहुत कुछ ऐक्टिंग के जरीए बन सकता है. फिर मैं ने इस क्षेत्र में आने का मन बनाया. मैं ऐक्टिंग को बहुत ऐंजौय करती हूं.’’

जर्नी से हूं खुश

परिवा कहती हैं, ‘‘मैं अपनी जर्नी से बहुत खुश हूं. जितना चाहा उस से कहीं अधिक मु?ो मिला है. ऐक्टिंग के अलावा मैं कहानियां भी लिखती हूं. एक किताब लिखने की इच्छा है.

बौडी शेमिंग बना बड़ा सिरदर्द : डौली सिंह

एक पतलीदुबली सांवली सी लड़की जब बौलीवुड की एक्ट्रैस के साथ काम करती है तो जरूर उस में कोई न कोई बात तो होती ही है. हम बात कर रहे हैं एक्ट्रैस, फैशन व्लौगर और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर डौली सिंह की. जिस ने ‘थैंक यू फौर कमिंग’ से बौलीवुड में डैब्यू किया था. उस की यहां तक पहुंचने की जर्नी आसान नहीं रही है, क्योंकि उसे अकसर बौडी शेमिंग का सामना करना पड़ा है. इस का जिक्र उस ने कुछ महीने पहले ही अपने इंस्टाग्राम पर किया है.

 

15 मई, 2024 को डौली ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक लंबीचौड़ी पोस्ट शेयर की और बताया कि कैसे उसे अपने वजन को ले कर शर्मिंदा होना पड़ता है. पोस्ट के कैप्शन में डौली ने लिखा, ‘‘मु?ो आशा है कि मैं किसी के लिए सेफ प्लेस हूं’’ वहीं बात करें उस के नोट की तो उस ने अपने नोट में लिखा, ‘‘हर किसी की तरह मेरा वजन भी बढ़ताघटता रहता है, लेकिन मैं आसानी से अपना वजन कम कर लेती हूं, जो वापस बढ़ना मुश्किल होता है. पिछले कुछ महीनों में बढ़ती उम्र और स्ट्रैस की वजह से मेरा वजन कम हुआ है, लेकिन मु?ो इस की कोई चिंता नहीं थी, क्योंकि मु?ो पता है कि अपनी हैल्दी डाइट और वर्क आउट से मैं दोबारा वजन बढ़ा लूंगी. मु?ो यकीन है कि लोगों के पास मेरे वजन के बारे में कहने के लिए बहुतकुछ होगा, साथ ही वे मु?ो विश्वास दिलाने की कोशिश करेंगे कि मैं ने अपनी चमक खो दी है और मैं अपना ध्यान नहीं रखती हूं.’’

डौली ने अपने इस नोट में अपने बचपन के बौडी शेमिंग के भयानक और भावनात्मक अनुभव का भी जिक्र किया है. उस ने बताया कि 13 साल की उम्र में अपने वजन को ले कर उसे बौडी शेमिंग का दर्द ?ोलना पड़ा. उस ने कहा कि भले ही 30 की उम्र में लोगों के कमैंट्स का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, लेकिन 13 साल की उम्र में उसे इस तरह की बातों से चोट पहुंचती थी. डौली सिंह ने आगे बताते हुए कहा, ‘‘शुक्र है, इंस्टाग्राम पर मेरे दर्शक मुझे स्वीकार कर रहे हैं. मु?ो अब उतनी ट्रोलिंग नहीं मिलती जितनी पहले मिलती थी. लेकिन, अगर आप का वजन कम हुआ है या बढ़ा है तो आप को दूसरों को बताने की जरूरत नहीं है.’’

इतनी नैगेटिव बातों के बाद डौली ने इस नोट में अपने हैप्पी प्लेस का भी जिक्र किया है और बताया है कि लोगों को भी बिना वजन के बढ़नेघटने की चिंता किए बगैर कंफर्टेबल महसूस करने की जरूरत है.

डौली सिंह काफी क्रिएटिव भी है. उस का ह्यूमर काबिल ए तारीफ है. यही वजह है कि उस के कौमेडी वीडियोज दर्शकों को काफी ज्यादा पसंद आते हैं. वह सोशल मीडिया पर अपने फनी किरदारों के लिए हमेशा ही छाई रहती है. जैसे ही वह कोई कौमेडी वीडियो अपने सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर पोस्ट करती है वैसे ही उस के व्यूज लाखों में आ जाते हैं.

सोशल मीडिया पर डौली के कुछ फनी कैरेक्टर हैं जो लोगों के बीच काफी पौपुलर हैं- गुड्डी भाभी, राजू की मम्मी,  श्री, साउथ दिल्ली बहू जैसे अलगअलग किरदारों   में वह कंटैंट क्रिएट करती है.

कैसे की शुरुआत?

23 सितंबर, 1993 को जन्मी डौली उत्तराखंड के नैनीताल से है. उस ने अपनी पढ़ाई दिल्ली विश्वविद्यालय और नैशनल इंस्टिट्यूट औफ फैशन टैक्नोलौजी से पूरी की है. इस के बाद उस ने ‘स्श्चद्बद्यद्य ह्लद्धद्ग ह्यड्डह्यह्य’ के साथ व्लौगिंग स्टार्ट की. इस के अलावा वह ‘द्बष्ठद्ब1ड्ड’ की पौपुलर कंटैंट डेवलपर भी है.

इस के अलावा, सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफौर्म्स जैसे यूट्यूब और इंस्टाग्राम पर काफी एक्टिव रहती है. इंस्टाग्राम पर उसे 1.4 मिलियन लोग फौलो करते हैं और यूट्यूब पर उस के 6 लाख के करीब सब्सक्राइबर्स हैं.

डौली जिस तेजी से बौलीवुड इंडस्ट्री और सोशल मीडिया में अपनी जगह बना रही है उस से यह कहा जा सकता है कि उस ने बौडी शेमिंग की नैगेटिव अवधारणा को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया और वह इस से उभरने में कामयाब रही है.

बौडी शेमिंग से हो सकती है यह परेशानी

वैसे इस बात से बिलकुल भी इनकार नहीं किया जा सकता कि बौडी शेमिंग एक सीरियस मुद्दा है, जो किसी की भी मैंटल हैल्थ को खराब कर सकता है. कभीकभी इस तरह की चीजें लोगों के डिप्रैशन का कारण तक बन जाती हैं और डिप्रैशन हैल्थ के लिए कितना बुरा है यह तो सभी जानते हैं. इस के अलावा भी बौडी शेमिंग का हमारी हैल्थ पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.

बौडी शेमिंग की मार झेल रहा इंसान अकेलापन महसूस कर सकता है, उसे अंदर ही अंदर घुटन महसूस हो सकती है, वह शर्मिंदगी और इन्फिरीओरिटी कौम्प्लैक्स महसूस कर सकता है, लगातार बौडी शेमिंग से वह स्ट्रैस या डिप्रैशन का शिकार हो सकता है, वह खुद को फ्रैंड्स और फैमिली से अलग करना शुरू कर देता है. उसे पैनिक अटैक आने के चांसेस होते हैं.

लड़कियां हैं बड़ा शिकार

कुछ महीनों पहले हुमा कुरैशी और सोनाक्षी सिन्हा की एक फिल्म आई थी, जिस का नाम था ‘डबल एक्स एल.’ इस फिल्म में बहुत अच्छे से यह दिखाया गया था कि, कैसे लड़कियों को कदमकदम पर बौडी शेमिंग का शिकार होना पड़ता है.

बौडी शेमिंग एक बड़ा मुद्दा रहा है. बौडी शेमिंग का शिकार लड़कों के मुकाबले ज्यादा लड़कियां होती हैं. इन्हें अकसर अलगअलग नामों जैसे काली, नाटी, मोटी से पुकारा जाता है. कई रिसर्च में भी यह बात सामने आई है कि लड़कों की तुलना में लड़कियों को अपने वजन के आधार पर अधिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है और इस वजह से उन के साथ ज्यादा छेड़छाड़ की जाती है.

क्या कहता है सर्वे

एक बौडी शेमिंग के सर्वे में कई चौंका देने वाले तथ्य सामने आए. जैसे 84 प्रतिशत महिलाओं के अनुसार, पुरुषों की तुलना में महिलाओं की बौडी शेमिंग ज्यादा होती है. 90प्रतिशत महिलाओं ने माना कि बौडी शेमिंग एक आम व्यवहार है. 47.5 प्रतिशत महिलाओं को स्कूल और वर्कप्लेस पर बौडी शेमिंग का सामना करना पड़ा. 32.5 प्रतिशत  महिलाओं ने कहा कि दोस्त उन के वजन, शेप, रंग और बालों पर नैगेटिव कमैंट करते हैं. 3 प्रतिशत महिलाओं का मानना था कि आत्मविश्वास के लिए अच्छा दिखना जरूरी है.

चाहे कोई कुछ भी कहे, हमेशा खुद से प्यार करें. चाहे आप का रंग, रूप, हाइट कैसी भी हो, खुद को वैसे ही स्वीकारें. किसी की बातों को खुद पर हावी न होने दें. न ही अपनी तुलना कभी किसी से करें. वहीं आप का फ्रैंड सर्कल कैसा है इस का प्रभाव भी आप की मैंटल हैल्थ पर पड़ता है. इसलिए हमेशा ऐसे लोगों से दोस्ती करें जो आप के टैलेंट से आप को आंकें न कि आप की बौडी से, क्योंकि दोस्तों के द्वारा बौडी शेमिंग करना ज्यादा अखरता है.

सुंदर माझे घर: दीपेश ने कैसे दी पत्नी को श्रद्धांजलि

नीरा को प्रकृति से अत्यंत प्रेम था. यही कारण था कि जब दीपेश ने मकान बनाने का निर्णय लिया तो उस ने साफ शब्दों में कह दिया कि वह फ्लैट नहीं, अपना स्वतंत्र घर चाहती है जिसे वह अपनी इच्छानुसार, वास्तुशास्त्र के नियमों के मुताबिक, बनवा सके. उस में छोटा सा बगीचा हो, तरहतरह के फूल हों. यदि संभव हो तो फल और सब्जियां भी लगाई जा सकें.

यद्यपि दीपेश को वास्तुशास्त्र में विश्वास नहीं था किंतु नीरा का वास्तुशास्त्र में घोर विश्वास था. उस का कहना था कि यदि इस में कोई सचाई न होती तो क्यों बड़ेबड़े लोग अपने घर और दफ्तर को बनवाने में वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन करते या कमी होने पर अच्छेभले घर में तोड़फोड़ कराते.

अपने कथन की सत्यता सिद्ध करने के लिए नीरा ने विभिन्न अखबारों की कतरनें ला कर उस के सामने रख दी थीं तथा इसी के साथ वास्तुशास्त्र पर लिखी एक पुस्तक को पढ़ कर सुनाने लगी. उस में लिखा था कि भारत में स्थित तिरुपति बालाजी का मंदिर शतप्रतिशत वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन करते हुए बनाया गया है. तभी उसे इतनी प्रसिद्धि मिली है तथा चढ़ावे के द्वारा वहां जितनी आय होती है उतनी शायद किसी अन्य मंदिर में नहीं होती.

हमारा संपूर्ण ब्रह्मांड पंचतत्त्वों से बना है. जल, वायु, पृथ्वी, अग्नि तथा आकाश के द्वारा हमारा शरीर कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन तथा चरबी जैसे आंतरिक शक्तिवर्धक तत्त्व तथा गरमी, प्रकाश, वायु तथा ध्वनि द्वारा बाहरी शक्ति प्राप्त करता है परंतु जब इन तत्त्वों की समरसता बाधायुक्त हो जाए तो हमारी शक्तियां क्षीण हो जाती हैं. मन की शांति भंग होने के कारण खिंचाव, तनाव तथा अस्वस्थता बढ़ जाती है. तब हमें अपनी आंतरिक और बाहरी शक्तियों को एकाग्र हो कर निर्देशित करना पड़ता है ताकि इन में संतुलन स्थापित हो कर शरीर में स्वस्थता तथा प्रसन्नता और सफलता प्राप्त हो. इन 5 तत्त्वों का संतुलन ही वास्तुशास्त्र है.

दीपेश ने देखा कि नीरा एक पैराग्राफ कहीं से पढ़ रही थी तथा दूसरा कहीं से. जगहजगह उस ने निशान लगा रखे थे. वह आगे और पढ़ना चाह रही थी कि उन्होंने यह कह कर उसे रोक दिया कि घर तुम्हारा है, जैसे चाहे बनवाओ. लेकिन खुद घर बनवाने में काफी परिश्रम एवं धन की जरूरत होगी जबकि उतना ही बड़ा फ्लैट किसी अच्छी कालोनी में उतने ही पैसों में मिल जाएगा.

‘आप श्रम की चिंता मत करो. वह सब मैं कर लूंगी. हां, धन का प्रबंध अवश्य आप को करना है. वैसे, मैं बजट के अंदर ही काम पूरा कराने का प्रयत्न करूंगी, फिर यह भी कोई जरूरी नहीं है कि एकसाथ ही पूरा काम हो, बाद में भी सुविधानुसार दूसरे काम करवाए जा सकते हैं. अब आप ही बताओ, भला फ्लैट में इन सब नियमों का पालन कैसे हो सकता है. सो, मैं छोटा ही सही, लेकिन स्वतंत्र मकान चाहती हूं,’ दीपेश की सहमति पा कर वह गद्गद स्वर में कह उठी थी.

दीपेश ने नीरा की इच्छानुसार प्लौट खरीदा तथा मुहूर्त देख कर मकान बनाने का काम शुरू करवा दिया. मकान का डिजाइन नीरा ने वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन करते हुए अपनी वास्तुकार मित्र से बनवाया था. प्लौट छोटा था, इसलिए सब की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए डुप्लैक्स मकान का निर्माण करवाने की योजना थी. निरीक्षण के लिए उस के साथ कभीकभी दीपेश भी आ जाते थे.

तभी एक दिन सूर्य को डूबते देख कर नीरा भावविभोर हो कर कह उठी थी, ‘लोग तो सूर्यास्त देखने पता नहीं कहांकहां जाते हैं. देखो, कितना मनोहारी दृश्य है. हम यहां एक बरामदा अवश्य निकलवाएंगे जिस से चाय की चुस्कियों के साथ प्रकृति के इस मनोहारी स्वरूप का भी आनंद ले सकें.’

उस समय दीपेश को भी नीरा का स्वतंत्र बंगले का सु झाव अच्छा लगा था.नीरा की सालभर की मेहनत के बाद जब मकान बन कर तैयार हुआ तब सब बेहद खुश थे, खासतौर से, नितिन और रीना. उन को अलगअलग कमरे मिल रहे थे. कहां पर अपना पलंग रखेंगे, कहां उन की पढ़ने की मेज रखी जाएगी, सामान शिफ्ट करने से पहले ही उन की योजना बन गई थी.

अलग से पूजाघर,  दक्षिणपूर्व की ओर रसोईघर तथा अपना बैडरूम दक्षिण दिशा में बनवाया था क्योंकि उस के अनुसार पूर्व दिशा की ओर मुंह कर के पूजा करने में मन को शांति मिलती है. वहीं, उस ओर मुंह कर के खाना बनाने से रसोई में स्वाद बढ़ता है तथा दक्षिण दिशा घर के मालिक के लिए उपयुक्त है क्योंकि इस में रहने वाले का पूरे घर में वर्चस्व रहता है. एक बार फिर मुहूर्त देख कर गृहप्रवेश कर लिया गया था.

सब अतिथियों के विदा होने के बाद रात्रि को सोने से पहले दीपेश ने नीरा का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा था, ‘आज मैं बहुत खुश हूं. तुम्हारी अथक मेहनत के कारण हमारा अपने घर का सपना साकार हो पाया है.’

‘अभी तो सिर्फ ईंटगारे से निर्मित घर ही बना है. अभी मु झे इसे वास्तव में घर बनाना है जिसे देख कर मैं गर्व से कह सकूं, ‘सुंदर मा झे घर,’ मेरा सुंदर घर. जहां प्यार, विश्वास और अपनत्व की सरिता बहती हो, जहां घर का प्रत्येक प्राणी सिर्फ रात बिताने या खाना खाने न आए बल्कि प्यार के अटूट बंधन में बंधा वह शीघ्र काम समाप्त कर के इस घर की छत की छाया के नीचे अपनों के बीच बैठ कर सुकून के पल ढूंढ़े,’ नीरा ने उस की ओर प्यारभरी नजरों से देखते हुए कहा था.

नीरा ने ईंटगारे की बनी उस इमारत को सचमुच घर में बदल दिया. उस के हाथ की बनाई पेंटिंग्स ने घर में उचित स्थानों पर जगह ले ली थी. दीवार के रंग से मेल खाते परदे, वौल हैंगिंग्स, लैंप आदि न केवल घर की मालकिन की रुचि का परिचय दे रहे थे, घर की शोभा को दोगुना भी कर रहे थे.

नीरा ने न केवल ड्राइंगरूम बल्कि बैडरूम और रसोईघर को भी सामान्य साजसामान की सहायता व अपनी कल्पनाशीलता से आधुनिक रूप दे दिया था, साथ ही, आगे बगीचे में उस ने गुलाब, गुलदाऊदी, गेंदा और रजनीगंधा आदि फूलों के पेड़ व घर के पीछे कुछ फलों के पेड़ और मौसमी सब्जियां भी लगाई थीं. अपने लगाए पेड़पौधों की देखभाल वह नवजात शिशु के समान करती थी. कब किसे कितनी खाद और पानी की जरूरत है, यह जानने के लिए उस ने बागबानी से संबंधित एक पुस्तक भी खरीद ली थी.

दीपेश कभीकभी घर सजानेसंवारने में पत्नी की मेहनत और लगन देख कर हैरान रह जाता था. एक बार वह साड़ी खरीदने के लिए मना कर देती थी लेकिन यदि उसे कोई सजावटी या घर के लिए उपयोगी सामान पसंद आ जाता तो वह उसे खरीदे बिना नहीं रह सकती थी.

नीरा की ‘मा झे सुंदर घर’ की कल्पना साकार हो उठी थी. धीरेधीरे एक वर्ष पूरा होने जा रहा था. वह इस अवसर को कुछ नए अंदाज से मनाना चाहती थी. इसीलिए घर में एक साधारण पार्टी का आयोजन किया गया था. घर को गुब्बारों और रंगबिरंगी पट्टियों से सजाया गया था. काम की हड़बड़ी में ऊपर के कमरे से नीचे उतरते समय नीरा का पैर साड़ी में उल झ गया और वह नीचे गिर गई. सिर में चोट आई थी लेकिन उस ने ध्यान नहीं दिया और पार्टी का मजा किरकिरा न हो जाए, यह सोच कर चुपचाप दर्द को  झेलती रही.

‘आज मैं बहुत थक गई हूं. अब सोना चाहती हूं,’ पार्टी समाप्त होने पर नीरा ने थके स्वर में दीपेश से कहा था.

‘अब आलतूफालतू काम करोगी तो थकोगी ही. भला इतना सब ताम झाम करने की क्या जरूरत थी?’ दीपेश ने सहज स्वर में कहा था. ऊपरी चोट के अभाव के कारण दीपेश ने नीरा के गिरने की घटना को गंभीरता से नहीं लिया था.

जब नीरा सुबह अपने समय पर नहीं उठी तब दीपेश को चिंता हुई. जा कर देखा तो पाया कि वह बेसुध पड़ी थी, चेहरे पर अजीब से भाव थे जैसे रातभर दर्द से तड़पती रही हो. दीपेश ने फौरन डाक्टर को बुला कर दिखाया. डाक्टर ने उसे शीघ्र ही अस्पताल में भरती कराने की सलाह देते हुए कहा कि गिरने के कारण सिर में अंदरूनी चोट आई है. ‘सिर की चोट को कभी भी हलके रूप में नहीं लेना चाहिए. कभीकभी साधारण चोट भी जानलेवा हो जाती है.’

डाक्टर की बात सच साबित हुई. लगभग 5 दिन जिंदगी और मौत के साए में  झूलने के बाद नीरा चिरनिद्रा में सो गई. सभी सगेसंबंधी, अड़ोसीपड़ोसी इस अप्रत्याशित मौत का समाचार सुन कर हक्कबक्के रह गए.

नीरा का अंतिम संस्कार करने के बाद दीपेश ने घर में प्रवेश किया तो उस के कुशल हाथों से सजासंवरा घर उसे मुंह चिढ़ाता प्रतीत हुआ. उस के लगाए पेड़पौधे कुछ ही दिनों में सूख गए थे. दीपेश सम झ नहीं पा रहा था कि वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन करने के बाद भी घर वीरान क्यों हो गया? उन के जीवन में तूफान क्यों आया? उस समय वह नितिन और रीना को अपनी गोद में छिपा कर खूब रोया. तब नन्ही रीना उस के आंसू पोंछती हुई बोली थी, ‘डैडी, ममा नहीं हैं तो क्या हुआ, उन की यादें तो हैं.’’

दीपेश ने बच्चों का मन रखने के लिए आंसू पोंछ डाले थे. लेकिन नीरा का चेहरा उन के हृदय पर ऐसा जम गया था कि उस को निकाल पाना उस के लिए संभव ही नहीं था. वह घर कैसा जहां खुशियां न हों, प्यार न हो, स्वप्न न हों.

दीपेश के मांपिताजी नहीं थे, सो, नीरा की मां ने आ कर उन की बिखरती गृहस्थी को फिर से समेटने का प्रयत्न किया था.

एक दिन सवेरे दीपेश का मन टटोलने के लिए मांजी ने कहा, ‘बेटा, जाने वाले के साथ जाया तो नहीं जा सकता, फिर से घर बसा लो. बच्चों को मां व तुम्हें पत्नी मिल जाएगी. आखिर मैं कब तक साथ रहूंगी.’

‘पापा, आप नई मां ले आइए. हम उन के साथ रहेंगे,’ नन्हे नितिन, जो नानी की बात सुन रहा था, ने भोलेपन से कहा और उस की बात का समर्थन रीना ने भी कर दिया.

दीपेश सोच नहीं पा रहे थे कि बच्चे अपने मन से कह रहे हैं या मांजी ने उन के नन्हे मन में नई मां की चाह भर दी है. वह जानता था कि नीरा की यादों को वह अपने हृदय से कभी हटा नहीं सकता. फिर क्यों दूसरा विवाह कर वह उस लड़की के साथ अन्याय करे जो उस के साथ तरहतरह के स्वप्न संजोए इस घर में प्रवेश करेगी.

2 महीने बाद जाते हुए जब मांजी ने दोबारा दीपेश के सामने अपना सु झाव रखा तो वह एकाएक मना न कर सका. शायद इस की वजह यह थी कि रीना को अपनी नानी के साथ काम करते देख कर उस का मन बेहद आहत हो जाता था. कुछ ही दिनों में रीना बेहद बड़ी लगने लगी थी. उस की चंचलता कहीं खो गईर् थी. यही हाल नितिन का भी था. जो नितिन अपनी मां को इधरउधर दौड़ाए बिना खाना नहीं खाता था वही अब जो भी मिलता, बिना नानुकुर के खा लेता था.

बच्चों का परिवर्तित स्वभाव दीपेश को मन ही मन खाए जा रहा था. सो, मांजी के प्रस्ताव पर जब उन्होंने अपने मन की चिंता बताई तो वे बोली थीं, ‘बेटा, यह सच है कि तुम नीरा को भूल नहीं पाओगे. नीरा तुम्हारी पत्नी थी तो मेरी बेटी भी थी. जाने वाले के साथ जाया तो नहीं जा सकता और न किसी के जाने से जीवन ही समाप्त हो जाता.’

दीपेश को मौन पा कर मांजी फिर बोलीं, ‘तुम कहो तो नंदिता से तुम्हारी बात चलाऊं. तुम तो जानते ही हो, नंदिता नीरा की मौसेरी बहन है. उस के पति का देहांत एक कार दुर्घटना में हो गया था. वह भी तुम्हारे समान ही अकेली है तथा स्त्री होने के साथसाथ एक बेटी अर्चना की मां होने के नाते वह तुम से भी ज्यादा मजबूर और बेसहारा है.’

मांजी की इच्छानुसार दीपेश ने घर बसा लिया था लेकिन फिर भी न जाने क्यों जिस घर पर कभी नीरा का एकाधिकार था उसी घर पर नंदिता का अधिकार होना वह सह नहीं पा रहा था.

नंदिता ने दीपेश को तो स्वीकार कर लिया लेकिन बच्चों को स्वीकार नहीं कर पा रही थी. वैसे, दीपेश भी क्या उस समय अर्चना को पिता का प्यार दे पाए थे. घर में एक अजीब सा असमंजस, अविश्वास की स्थिति पैदा हो गई थी. वह अपनी बच्ची को ले कर ज्यादा ही भावुक हो उठती थी.

नंदिता को लगता था, उस की बेटी को कोई प्यार नहीं करता है. घर में अशांति, अविश्वास, तनाव और खिंचाव देख कर बस एक बात उन के दिमाग को मथती रहती थी कि वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन कर बनाया यह घर प्रेम, ममता और अपनत्व का स्रोत क्यों नहीं बन पाया? आंतरिक और बाहरी शक्तियों में समरसता स्थापित क्यों नहीं हो पा रही है? क्यों उन की शक्तियां क्षीण हो रही हैं? उन में क्या कमी है? अपनी आंतरिक और बाहरी शक्तियों को निर्देशित कर उन में संतुलन स्थापित कर क्यों वे न स्वयं खुद रह पा रहे हैं और न दूसरों को खुश रख पा रहे हैं?

नई मां की अपने प्रति बेरुखी देख कर रीना और नितिन अपने में सिमट गए थे. लेकिन बड़ी होती अर्चना ने दिलों की दूरी को पाट दिया था. वह मां के बजाय रीना के हाथ से खाना खाना चाहती, उसी के साथसाथ सोना चाहती, उसी के साथ खेलना चाहती. रीना और नितिन की आंखों में अपने लिए प्यार और सम्मान देख कर नंदिता में भी परिवर्तन आने लगा था. बच्चों के निर्मल स्वभाव ने उस का दिल जीत लिया था या अर्चना को रीना और नितिन के साथ सहज, स्वाभाविक रूप में खेलता देख उस के मन का डर समाप्त हो गया था.

एक बार दीपेश को लगा था कि उन  के घर पर छाई दुखों की छाया हटने लगी है. रीना कालेज में आ गई थी तथा नितिन और अर्चना भी अपनीअपनी कक्षा में प्रथम आ रहे थे. तभी एक दिन नंदिता ऐसी सोई कि फिर उठ ही न सकी. पहले 2 बच्चे थे, अब 3 बच्चों की जिम्मेदारी थी. लेकिन फर्क इतना था कि पहले बच्चे छोटे थे, अब बड़े हो गए थे और अपनी देखभाल स्वयं कर सकते थे व अपना बुराभला सोच और सम झ सकते थे.

रीना ने घर का बोझ उठा लिया. अब दीपेश भी रीना के साथ रसोई तथा अन्य कामों में हाथ बंटाते तथा नितिन और अर्चना को भी अपनाअपना काम करने के लिए प्रेरित करते. घर की गाड़ी एक बार चल निकली थी, लेकिन इस बार के आघात ने उन्हें इतना एहसास करा दिया था कि दुखसुख के बीच में हिम्मत न हारना ही व्यक्ति की सब से बड़ी जीत है. वक्त किसी के लिए नहीं रुकता. जो वक्त के साथ चलता है वही जीवन के संग्राम में विजयी होता है.

इस एहसास और भावना ने दीपेश के अंदर के अवसाद को समाप्त कर दिया था. अब वे औफिस के बाद का सारा समय बच्चों के साथ बिताते या नीरा द्वारा बनाए बगीचे की साजसंभाल करते तथा उस से बचे समय में अपनी भावनाओं को कोरे कागज पर उकेरते. कभी वे गीत बन कर प्रकट होतीं तो कभी कहानी बन कर.

शीघ्र ही उन की रचनाएं प्रतिष्ठित पत्रपत्रिकाओं में स्थान पाने लगी थीं. उन के जीवन को राह मिल गई थी. समय पर बच्चों के विवाह हो गए और वे अपनेअपने घरसंसार में रम गए. उन की लेखनी में अब परिपक्वता आ गई थी.

पेंट करवाने के लिए एक दिन दीपेश ने अपने कमरे की अलमारी खोली, तो कपड़े में लिपटी एक डायरी मिली. डायरी नीरा की थी. वे उसे खोल कर पढ़ने का लोभ छोड़ नहीं पाए. जैसेजैसे डायरी पढ़ते गए, नीरा का एक अलग ही स्वरूप उन के सामने आया था, एक कवयित्री का रूप. पूरी डायरी कविताओं से भरी पड़ी थी. एक कविता- ‘सुंदर मा झे घर’ की पंक्तियां थीं…

क्षितिज के उस पार की

सुखद सलोनी दुनिया को

लाना चाहती हूं…

एक सुंदर घर

बसाना चाहती हूं,

जहां तुम हो

जहां मैं हूं…

कविता लिखने की तिथि देखी तो विवाह की तिथि से एक माह बाद की थी. दीपेश ने पूरी डायरी पढ़ ली तथा उसी समय नीरा की कविताओं का संकलन करवाने का निश्चय कर लिया. एक महीने के अधिक परिश्रम के बाद दीपेश ने नीरा की चुनी हुई कविताओं को संकलित कर पुस्तक के रूप में प्रकाशित करवाने के लिए प्रकाशक को दे दी थीं.

अचानक बज उठी फोन की घंटी ने उन की विचार तंद्रा को भंग किया. नितिन का फोन था, ‘‘पापा, आप कैसे हैं? अपनी दवाइयां ठीक से लेते रहिएगा. आप हमारे पास आ जाइए. आप के अकेले रहने से हमें चिंता रहती है.’’

‘‘बेटा, मैं ठीक हूं. तुम चिंता मत किया करो. वैसे भी, मैं तुम से दूर कहां हूं जब भी इच्छा होगी, मैं आ जाऊंगा.’’

बच्चों की चिंता जायज थी. लेकिन वे इस घर को कैसे छोड़ कर जा सकते हैं जिस की एकएक वस्तु में खट्टीमीठी यादें दफन हैं, साथ गुजारे पलों का लेखाजोखा है. एकदो बार बच्चों के आग्रह पर दीपेश उन के साथ गए भी लेकिन कुछ दिनों बाद ही उन के बरामदे से दिखते अनोखे सूर्यास्त की सुखदसलोनी लालिमा का आकर्षण उन्हें इस घर में खींच लाता था. वह उन की प्रेरणास्रोत थी. उसी से उन्होंने जीवनदर्शन पाया था कि जीवन भले ही समाप्त हो रहा हो लेकिन आस कभी नहीं खोनी चाहिए क्योंकि प्रत्येक अवसान के बाद सुबह होती है और इसी सत्य पर इन की कितनी ही रचनाओं का जन्म यहीं इसी कुरसी पर बैठेबैठे हुआ था.

वह अंदर जाने के लिए मुड़े ही थे कि स्कूटर की आवाज ने उन्हें रोक लिया. प्रकाशक के आदमी ने उन के हाथ में पांडुलिपि देते हुए मुखपृष्ठ के लिए कुछ चित्र दिखाए. एक चित्र पर उन की आंखें ठहर गईं. घर के दरवाजे से निकलती औरत और नीचे कलात्मक अक्षरों में लिखा हुआ था… ‘सुंदर मा झे घर’.

चित्र को देख कर दीपेश को एकाएक लगा, मानो नीरा ही घर के दरवाजे पर उस के स्वागत के लिए खड़ी है. वह नीरा नहीं, बल्कि उस की कल्पना का ही मूर्तरूप था. दीपेश ने बिना किसी और चित्र को देखे उस चित्र के लिए अपनी स्वीकृति दे दी.

दीपेश जानते थे कि आने वाले कुछ दिन उस के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण होंगे. पांडुलिपि का अध्ययन कर प्रकाशक को देना था. किसी विशिष्ट व्यक्ति से मिल कर विमोचन के लिए तारीख को साकार करने का उन का यह छोटा सा प्रयास भर ही तो था. शायद अपनी अर्धांगिनी को श्रद्धांजलि देने का इस से अच्छा सार्थक रूप और भला क्या हो सकता था.

जानें क्या है इनरवियर का हैल्थ कनैक्शन

कुछ साल पहले एक जापानी रिसर्चर की रिपोर्ट में कहा गया है कि तंग और अनफिटब्रा स्तनों की त्वचा पर प्रैशर डालती है, जिस से हारमोन में मैलाटोनिन बढ़ जाता है और ब्रैस्ट कैंसर होने का खतरा मंडराने लगता है. एशियन इंस्टिट्यूट औफ मैडिकल साइंस की सीनियर गाइनोकोलौजिस्ट

डाक्टर पूजा ठुकराल के अनुसार अनफिट ब्रा ब्रैस्ट पर क्रोनिक प्रैशर बनाती है, जिस से ब्रैस्ट में दर्द रहने की समस्या हो जाती है.

इसी तरह गलत पैंटी के चुनाव से भी बहुत सी स्वास्थ्य संबंधी बीमारियां घेर लेती हैं. फिर भी महिलाएं इनरवियर को हमेशा फैशन से जोड़ कर देखती हैं न कि स्वास्थ्य से. सही फिटिंग और फैब्रिक के इनरवियर का महिलाओं की हैल्थ से गहरा संबंध है.

डाक्टर पूजा ठुकराल कहती हैं, ‘‘वर्तमान समय में फैशन के लिहाज से इनरवियर की सैकड़ों वैराइटीज बाजार में उपलब्ध हैं. महिलाएं अलगअलग ड्रैस के साथ अलगअलग फिटिंग और पैटर्न की ब्रा और पैंटी पहनती हैं. लेकिन ऐसा सिर्फ कुछ देर या विशेष अवसर पर ही किया जाए तो ठीक है. यदि रोजाना सिर्फ फैशन को महत्त्व दे कर डिजाइनर और अनफिट इनरवियर पहने जाएं तो गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं.’’

सही स्पोर्ट की जरूरत

अधिकतर महिलाएं सोचती हैं कि कपड़े से बने इनरवियर का शरीर पर भला क्या गलत प्रभाव पड़ता होगा. लेकिन ये ऐसे प्रभाव होते हैं, जो समय रहते भले न दिखते हों, मगर लौंग टर्म में इन के परिणाम जरूर अपना रंग दिखाते हैं.

विशेषज्ञों के अनुसार इनरवियर चुनते समय उस के सही साइज पर जरूर ध्यान देना चाहिए. खासतौर पर ब्रा चुनते वक्त फिटिंग पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है. इस का मुख्य कारण यह है कि स्तनों में हड्डियां नहीं होतीं, बल्कि बहुत ही महीन टिशूज होते हैं.

यदि सही माप की ब्रा न पहनी जाए तो वे टूट सकते हैं. डाक्टर पूजा ठुकराल कहती हैं, ‘‘ब्रैस्ट फाइबर, टिशू, ग्लैंडयुलर टिशू और फैट से बनी होती है. इसे सही सपोर्ट की जरूरत होती है, जो ब्रा से ही मिलती है. इसलिए ऐसी ब्रा चुनें, जो ब्रैस्ट को सही सपोर्ट दे सके.’’

टाइट फिटिंग है खतरे की घंटी

एक शोध में सामने आया है कि ज्यादातर महिलाएं ब्रा और पैंटी को टाइट फिट बनाने के लिए उस में सिलाई या सेफ्टीपिन का इस्तेमाल करती हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि पहनतेपहनते इनरवियर लूज पड़ जाते हैं. इन्हें फिटिंग का बनाने के चक्कर में महिलाएं इस तरह के जुगाड़ करती हैं. लेकिन वैज्ञानिक तौर पर इस से इनरवियर की फिटिंग सही नहीं, बल्कि खराब हो जाती है.

डाक्टर पूजा ठुकराल कहती हैं, ‘‘टाइट फिटिंग की ब्रा पहनने से गले, कंधों और पीठ में दर्द होने लगता है. साथ ही मांसपेशियों में खिंचाव और अकड़न की भी समस्या हो जाती है. इसी तरह टाइट पैंटी से पेट में दर्द होने लगता है. पैंटी की टाइट लास्टिक से त्वचा पर प्रैशर पौइंट्स बन जाते हैं और उन में दर्द रहता है.’’

पोस्चर बिगाड़ देता है गलत इनरवियर

अधिकतर महिलाएं जो गलत माप की ब्रा पहनती हैं उन की पीठ आगे की ओर झुकी होती है. ऐसा होने की मुख्य वजह होती है पीठ के ऊपरी भाग का लचीलापन कम हो जाना. कई बार टाइट ब्रा पहनते रहने से पीठ के ऊपरी भाग में कसाव के कारण फैट भी जमा हो जाता है और त्वचा में टायर बनने लगते हैं. साथ ही ब्रा बैंड के अत्यधिक टाइट होने पर सांस संबंधी दिक्कतें भी पैदा हो जाती हैं.

इन के अतिरिक्त ज्यादा टाइट पैंटी भी कई तरह की समस्याएं पैदा करती है. ज्यादातर महिलाओं की कमर के हिस्से पर फैट जमा होता है या हिप्स का निचला भाग उभरा हुआ होता है. इस की वजह भी टाइट पैंटी होती है.

एक रिसर्च के मुताबिक आजकल थौंग्स पैंटी का फैशन है. अधिकतर महिलाएं थौंग्स केवल इसलिए पहनती हैं, क्योंकि ट्राउजर या ड्रैस पहनने पर इन की कटलाइन आउटफिट्स के ऊपर उभरी हुई नहीं दिखती. लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार थौंग्स टाइट फिटिंग की होती हैं और अधिकतर नायलोन फैब्रिक में आती हैं. इन्हें ज्यादा देर पहनने पर त्वचा का हवा से संपर्क खत्म हो जाता है, जिस से यूरीनरी टै्रक्ट इन्फैक्शन और वैजाइनल बैक्टीरियल इन्फैक्शन होने का खतरा रहता है.

अधिकतर विशेषज्ञ ब्रीफ्स या फिर बौयशौर्ट्स पहनने की सलाह देते हैं. फिर भी थौंग्स ही आप की पहली पसंद है, तो कोशिश करें कि कौटन फैब्रिक की थौंग्स ही पहनें.

एक स्टडी के मुताबिक मनुष्य के मल में मिलने वाले ई कोली बैक्टीरिया थौंग्स के माध्यम से योनि में चले जाते हैं. यदि ये गर्भाशय में चले जाएं तो महिला पेल्विक इनफ्लैमेटरी डिजीज की चपेट में आ सकती है और यदि मूत्राशय में इन बैक्टीरिया का प्रवेश हो जाए तो मूत्राशय संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है.

फैब्रिक और रंग का भी रखें ध्यान

बदलते ट्रैंड के साथ इनरवियर भी फैशन का हिस्सा बन चुके हैं. अब ये कई तरह के फैब्रिक और रंगों में आने लगे हैं. महिलाओं में अपने इनरवियर को फ्लौंट करने का क्रेज भी बखूबी देखा जा सकता है. इसलिए इनरवियर

भी बहुत स्टाइलिश और डिजाइनर बनाए जाने लगे हैं. इनरवियर की खूबसूरती में कोई कमी न रहे इस के लिए मैन्युफैक्चर्स इस बात का ध्यान नहीं रखते कि कौन सा फैब्रिक त्वचा के सीधे संपर्क में आने पर क्या प्रभाव छोड़ेगा जबकि नायलोन, सिंथैटिक और लाइक्रा जैसे फैब्रिक के बने इनरवियर त्वचा और हवा के बीच संपर्क में रुकावट उत्पन्न करते हैं.

विशेषज्ञों के अनुसार चाहे ब्रा हो या पैंटी, हमेशा कौटन फैब्रिक की ही पहननी चाहिए. यदि नायलोन, लायक्रा या सिंथैटिक फैब्रिक के इनरवियर हों, तो ऐसे इनरवियर में कौटन की लाइनिंग जरूर होनी चाहिए. इस से त्वचा को औक्सीजन मिलती रहती है.

इसी तरह आजकल तरहतरह के रंग फैशन में आ गए हैं. पहले इन रंगों का इस्तेमाल आउटफिट्स में ही होता था, लेकिन अब इनरवियर भी हर रंग में मौजूद हैं. यदि बेसिक कलर वाले इनरवियर आप की पसंद नहीं हैं, तो आप को यह देखना होगा कि कहीं आप के इनरवियर से रंग निकल कर आप की त्वचा पर तो नहीं लग रहा. यदि ऐसा हो रहा है, तो सावधान हो जाएं, क्योंकि रंग कैमिकल्स से बनते हैं, जिस से उन के त्वचा पर लगने से संक्रमण का खतरा रहता है. इसलिए अच्छे ब्रैंड के इनरवियर ही खरीदें.

गलत ब्रा के गलत परिणाम

– यदि ब्रा की स्ट्रैप से आप के कंधों पर लाल रंग के निशान या रैशेज हो रहे हैं, तो तुरंत अपनी ब्रा बदलें, क्योंकि इस से फंगल इन्फैक्शन का डर है.

– यदि ब्रा सही फिटिंग की नहीं है, तो आप की बैक और गले की मांसपेशियों पर इस का असर पड़ेगा. कभीकभी अधिक टाइट ब्रा ब्लड सर्कुलेशन को भी प्रभावित करती है. इस से सिर में दर्द होने लगता है.

– यदि आप गलत फिटिंग की ब्रा पहनती हैं तो इस से सीने के पास की मांसपेशियां और रिब सिकुड़ जाती हैं, जिस से सांस लेने में कठिनाई महसूस होती है.

– आप ने कभी सोचा है कि एक गलत फिटिंग वाली ब्रा आप को चिड़चिड़ा बना सकती है और अपच की समस्या पैदा कर सकती है? दरअसल, गलत ब्रा पहनने से पेट के मध्य में प्रैशर बनता है, जिस से पाचन संबंधी दिक्कतें हो जाती हैं.

– क्या आप अकसर हाथ में दर्द या सूई लगने जैसी झुंझलाहट महसूस करती हैं? यदि हां, तो यह आप द्वारा गलत साइज की ब्रा पहनने का नतीजा है. एक अध्ययन से पता चलता है कि गलत ब्रा पहनने से पैक्टोरल मसल्स में कंप्रैशन आ जाता है, जिस से हाथ की नसों में दर्द होने लगता है.

गिनीपिग: सभ्रांत चेहरे के पीछे की क्या शख्सीयत थी?

40 वर्ष में ही राजी के बाल काफी सफेद हो गए थे. वह पार्लर जाती, बाल डाई करवा कर आ जाती. पार्लर वाली के लिए वह एक मोटी आसामी थी. राजी हर समय सुंदर दिखना चाहती थी. वह क्या उस का पति अनिरुद्ध और दोनों बेटियां भी तो यही चाहती थीं.

कौरपोरेट वर्ल्ड की जानीपहचानी हस्ती अनिरुद्ध कपूर का जब राजी से विवाह हुआ तब राजी रज्जो हुआ करती थी. मालूम नहीं अनिरुद्ध की मां को रज्जो में ऐसा क्या दिखा था. जयपुर में एक विवाह समारोह में उसे देख कर उन्होंने राजी को अनिरुद्ध के लिए अपने मन में बसा लिया. रज्जो विवाह कराने वाले पंडित शिवप्रसाद की बेटी थी. 12वीं पास रज्जो यों तो बहुत सलीके वाली थी, परंतु एमबीए अनिरुद्ध के लिए कहीं से भी फिट नहीं थी.

विवाह संपन्न होने के बाद अनिरुद्ध की मां ने पंडितजी के सामने अपने बेटे की शादी का प्रस्ताव रख दिया.  पंडितजी के लिए यह प्रस्ताव उन के भोजन के थाल में परोसा हुआ ऐसा लड्डू था जो न निगलते बन रहा था न ही उगलते. वे असमंजस में थे. कहां वे ब्राह्मण और कहां लड़का पंजाबी. कहां लड़के का इतना बड़ा धनाढ्य और आधुनिक परिवार, कहां वे इतने गरीब. दोनों परिवारों में कोई मेल नहीं, जमीनआसमान का अंतर. वे समझ नहीं पा रहे थे कि इस रिश्ते को स्वीकारें या नकारें.

पंडित शिवप्रसाद ने दबी जबान में पूछा, ‘बहनजी, लड़का…’

पंडितजी अभी अपनी बात पूरी नहीं कर पाए थे कि श्रीमती कपूर ने उन्हें बताया कि लड़का किसी सेमिनार में विदेश गया हुआ है.  श्रीमती कपूर के साथ उन के पति श्रीदेश कपूर और अनिरुद्ध के दोनों छोेटे भाई भी इस विवाह समारोह में जयपुर आए थे.  पंडितजी असमंजस में थे.  ‘मैं समझ सकती हूं पंडितजी कि आप हमारे पंजाबी परिवार में अपनी बेटी को भेजने में झिझक रहे हैं. पर अब इन सब बातों में कुछ नहीं रखा है. मुझे ही देख लीजिए, मैं कायस्थ परिवार से हूं और कपूर साहब पंजाबी…तो क्या आप की बेटी हमारे पंजाबी परिवार की बहू नहीं बन सकती?’

पंडितजी मध्यमवर्गीय अवश्य थे परंतु खुले विचारों के थे. उन्होंने श्रीमती कपूर से कहा, ‘बहनजी, मुझे 1-2 दिन का समय दे दें. मैं घर में सलाह कर लूं.’  ‘ठीक है पंडितजी, हम आप का जवाब सुन कर ही दिल्ली वापस जाएंगे,’ श्रीमती कपूर ने कहा.

अगले ही दिन सुषमाजी को उस शादी वाले घर के यजमान के साथ अपने घर आया देख पंडितजी पसोपेश में पड़ गए.

‘पंडितजी, आप सोच लीजिए, इतना अच्छा घरवर जरा मुश्किल ही है मिलना.’

‘जी, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है…’ फिर कुछ झिझक कर बोले, ‘वर को भी हम ने नहीं देखा है…इधर हमारी पुत्री भी अभी पढ़ाई करना चाहती है…’ पंडितजी असमंजस में घिरे रहे.

‘जहां तक पढ़ाई का सवाल है, हमारा लड़का तो खुद ही एमबीए है. चाहेगी तो, जरूर आगे पढ़ लेगी…जहां तक लड़के को देखने का सवाल है तो वह 15 दिन में आ जाएगा, देख लीजिएगा. हमें आप की बेटी की खूबसूरती और सादगी भा गई है पंडितजी. हमें और किसी चीज की इच्छा नहीं है सिवा सुंदर लड़की के,’ सुषमाजी ने अपनी अमीरी का एहसास करवाया.  बात इस पर आ कर ठहर गई कि अनिरुद्ध के विदेश से लौट कर आते ही वे उसे ले कर जयपुर आ जाएंगी.

कपूर परिवार दिल्ली लौट गया तो शास्त्रीजी ने चैन की सांस ली और फिर अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गए. रज्जो को इस वर्ष बीए में प्रवेश भी दिलवाना था, उसे अच्छे कपड़ों की जरूरत होगी. पत्नी से वे इन्हीं बातों पर चर्चा करते रहते.  किसी न किसी प्रकार पंडित शिवप्रसाद ने इस मध्यमवर्गीय लोगों के महल्ले में घर तो बना लिया था परंतु वे इसे थोड़ा सजानासंवारना चाहते थे. बेटी के ब्याह के लिए अच्छे रिश्ते की चाहत हर मातापिता को होती ही है. वे भी अपना ‘स्टेटस’ बनाना चाहते थे.  सुषमा कपूर को जयपुर से दिल्ली गए हुए अब लगभग 1 महीना हो गया था. पंडितजी के लिए भी वे एक सपना सी हो गई थीं. पर अचानक एक दिन वह सपना हकीकत में बदल गया जब एक बड़ी सी सफेद गाड़ी से लकदक करती सुषमाजी उतरीं. उन के साथ एक सुदर्शन युवक भी था. बेचारे पंडितजी का मुंह खुला का खुला रह गया. दोनों हाथ जोड़ कर नमस्कार करते हुए उन्होंने सुषमाजी और उस युवक को बैठक में बैठाया.

‘और…पंडितजी कैसे हैं? ये हैं हमारे बड़े बेटे अनिरुद्ध.’  अनिरुद्ध ने बड़ी शालीनता से हाथ जोड़ कर उन्हें नमस्ते किया.  पंडितजी अनिरुद्ध की शालीनता से गद्गद हो गए.

सुषमाजी ने पर्स से निकाल कर अनिरुद्ध की जन्मपत्री पंडितजी को पकड़ाई, ‘आप तो सोच रहे होंगे कि अब हम आएंगे ही नहीं, पर अनिरुद्ध ही विदेश से देर से आया. मैं ने सोचा कि इसे साथ ले कर आना ही ठीक रहेगा…’  पंडितजी के मस्तिष्क पर फिर से दबाव सा पड़ने लगा.

‘अनिरुद्ध बाबू, मेरी बेटी सिर्फ 12वीं पास है, परंतु उसे पढ़ने का बहुत शौक है. इसी वर्ष उसे बीए में प्रवेश लेना है.’

‘हमारे यहां पढ़ाई के लिए कोई रोकटोक नहीं है. आप की बेटी जितना पढ़ना चाहे पढ़ सकती है,’ अनिरुद्ध ने कहा.

‘यानी बेटा भी तैयार है,’ पंडितजी का मन फिर से डांवांडोल होने लगा, ‘जरूर कहीं कुछ गड़बड़ होगी,’ उन्होंने सोचा. इस सोचविचार के बीच लड़की, लड़के की देखादेखी भी हो गई, जन्मपत्री भी मिल गई और पसोपेश में ही शादी भी तय हो गई. पंडितजी अब भी अजीब सी ऊहापोह में ही पडे़ हुए थे.

‘अब, जब सबकुछ तय हो गया है तब क्यों आप डांवांडोल हो रहे हैं?’ पंडिताइन बारबार पंडितजी को समझातीं.

‘पंडितजी, ग्रह इतने अच्छे मिल रहे हैं फिर क्यों बिना बात ही परेशान रहते हैं?’ उन के मित्र उन्हें समझाते.

‘मेरी समझ में तो कुछ आ नहीं रहा है. कैसे सब कुछ होता जा रहा है,’ पंडितजी अनमने से कहते.

महीने भर में ही विवाह भी संपन्न हो गया और उन की लाडली रज्जो अपनी ससुराल पहुंच गई. पंडितजी ने तो तब बेटी का घर देखा जब वे उसे लेने दिल्ली गए. क्या घर था. उन की आंखें चुंधिया गईं. दरबान से ले कर ड्राइवर, महाराज, अन्य कामों के लिए कई नौकरचाकर.  कुछ देर बेटी के घर में रुकने के बाद वे उसे ले कर जयपुर रवाना हो गए. लेकिन उन की चिंता का अभी अंत नहीं हुआ था. रास्तेभर वे सोचते रहे, ‘नहीं… कुछ तो कमी होगी वरना…’  ड्राइवर के सामने कुछ पूछ नहीं सकते थे अत: बेटी से रास्तेभर इधरउधर की बातें ही करते रहे.  घर पहुंचते ही रज्जो की मां उसे घेर कर बैठ गईं, ‘तू खुश तो है न?’ मां ने उसे सीने से लगा लिया.

‘हां मां, मैं बहुत खुश हूं. सभी लोग बहुत अच्छे हैं.’  बेटी खुश है जान कर पंडिताइन की आंखें खुशी से छलछला आईं.

‘लेकिन हम लोग मुंबई चले जाएंगे,’ रज्जो ने अचानक यह भेद खोला तो पंडितजी चिंतित हो उठे.

‘क्यों? मुंबई क्यों?’ पंडितजी उठ कर चारपाई पर बैठ गए.

‘इन की नौकरी मुंबई में ही है न?’ रज्जो ने बताया.

एक और राज खुला था. पंडितजी तो अब तक यही सोच रहे थे कि अनिरुद्ध दिल्ली में ही नौकरी कर रहे हैं. इतनी दूर…मुंबई में…उन का दिल फिर घबराहट से भर उठा.

अगले दिन अनिरुद्ध रज्जो को लेने जयपुर पहुंच गए थे. उस दिन पंडितजी ने खुल कर दामाद से बात की और आंखों में आंसू भर कर प्रार्थना की, ‘बेटे, हम जानते हैं कि हमारी बेटी आप के घर के योग्य नहीं है, परंतु अब तो जो होना था हो चुका है. अब उस का ध्यान आप को ही रखना है,’ पंडितजी ने दामाद के सामने दोनों हाथ जोड़ दिए थे. उन की पत्नी भी हाथ जोड़े खड़ी थीं.

‘यह क्या कर रहे हैं आप मुंबु…’ अनिरुद्ध के मुंह से मुंबु सुन कर पंडितजी चौंक उठे.

‘मुझे राजी ने सब बता दिया है. मांजी और बाबूजी को मिला कर ही उस ने यह नया शब्द बनाया है ‘मुंबु’ यानी मां और बाबूजी. आप मेरे लिए भी मुंबु ही हुए न…’

पंडितजी व उन की पत्नी की आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी. क्या राजकुमार सा दामाद है, सुंदर और सुशील. ‘मैं जानता हूं मातापिता को अपनी बेटी की बहुत चिंता रहती है. पर आप चिंता न करें. मुझे अपनी मां को यह प्रूव कर के दिखाना है कि मैं कैसे पत्थर तराशने की कला में माहिर हूं?’

‘मतलब…?’

‘मैं ने ही मौम से कहा था कि वे मेरे लिए कोई साधारण घर की लड़की ढूंढ़ें. मैं उन्हें दिखाऊंगा कि उसे तराश कर कैसे हीरा बनाया जाता है,’ अनिरुद्ध ने फिर से मुसकरा कर पंडितजी को बताया.

‘मतलब? मेरी बेटी आप के लिए महज एक परीक्षण की चीज…मात्र ‘गिनीपिग’?’ पंडितजी को चक्कर से आने लगे, ‘अगर परीक्षण सफल न हुआ तो…?’

‘आप चिंता क्यों करते हैं मुंबु, मेरी ये दूसरी मां हैं. इन्होंने मुझे बहुत प्यार से पाला है पर हर बार ये मुझ से ऐक्सपैरिमैंट करवाती रही हैं और मैं हमेशा उन के टैस्ट में पास होता रहा हूं.’

‘ऐक्सपैरिमैंट…टैस्ट…पास…? क्या मैं ने अपनी रज्जो को प्रयोग की भट्ठी में झोंक दिया है?’ पंडितजी के मुंह से अनायास ही निकल गया.

‘नहीं, बिलकुल नहीं,’ अनिरुद्ध को कितना विश्वास था स्वयं पर और रज्जो पर भी.  खैर, वह समय तो बीत चुका था जब पंडितजी की स्थिति कोई निर्णय लेने की होती. अब तो परीक्षण का परिणाम देखने के लिए ही उन्हें समय की सूली पर लटकते रहना था.

अनिरुद्ध अपनी राजी और पंडितजी की रज्जो को ले कर मुंबई चले गए थे. अनिरुद्ध ने ससुरजी के यहां एक टेलीफोन भी लगवा दिया था, जिस से वे अपनी प्यारी बिटिया की स्थिति जानते रहें. साल भर तक केवल फोन पर ही मुंबु से रज्जो की बात होती रही. साल भर बाद अनिरुद्ध स्वयं अपनी पत्नी को ले कर जब जयपुर आए तो रज्जो को देख कर मुंबु की आंखें फटी की फटी रह गईं. वह अब उन की रज्जो नहीं रह गई थी. अनिरुद्ध की पत्नी राजी और फिर राज हो गई थी.

बेटी को देख कर पंडितजी फूले नहीं समा रहे थे. उन्होंने आसपास के सभी लोगों को बेटी, दामाद से मिलने के लिए बुलवा दिया था. आखिर, अनिरुद्ध को कहना ही पड़ा, ‘मुंबु, मैं और राज आप से एक दिन के लिए मिलने आए हैं. कल हमें दिल्ली भी जाना है. मौम मेरे ‘ऐक्सपैरिमैंट’ को ठोकबजा कर देखना चाहती हैं. आप बातें कीजिए. इतने लोेगों को बुला कर तो…’ वे और कुछ कहतेकहते चुप रह गया थे. शायद रज्जो ने पति को इशारा किया था. पंडितजी की हसरत ही रह गई कि वे महल्ले के लोगों को जोड़ कर कुछ कथाकीर्तन करते.

अगले दिन सुबह अनिरुद्ध अपनी खूबसूरत, मौडर्न, फर्राटेदार अंगरेजी बोलने वाली पत्नी को ले कर दिल्ली रवाना हो गया था. लंबी सांस भरते ‘मुंबु’ ने सोचा था कि चलो बेटी खुश तो है. समय अपनी गति से चलता रहा. इस बीच रज्जो के 2 बेटियां हो चुकी थीं.

लगभग हर वर्ष अनिरुद्ध पत्नी को दोनों बेटियों सहित 2-4 दिन के लिए नाना के यहां भेज देते. अनिरुद्ध की बेटियां कहां नानानानी का लाड़प्यार पा सकी थीं. वे तो बस आतीं और जब तक ना…ना उन के मुंह से निकलता तब तक तो उन के जाने का दिन आ जाता. कुछ वर्ष इसी तरह बीत गए. रज्जो से दूर रहने का गम और अकेलापन पंडित पंडिताइन को खाए जा रहा था. 10 वर्ष के अंदर ही वे चल बसे और वह घर सदा के लिए बंद हो गया. रज्जो ने उस पर अपने हाथों से ही मोटा ताला लटकाया था. उस दिन वह कितना फूटफूट कर रोई थी. धीरेधीरे रज्जो की बेटियां भी बड़ी हो चली थीं. फिर उन की शादियां भी हो गईं. एक बेटी सिंगापुर और दूसरी दुबई में सैटल हो गई थी. एक एमबीए और दूसरी मैडिकल औफिसर. दामाद भी इतने भले कि सासससुर का ध्यान अपने मातापिता से भी अधिक रखते.

20 वर्ष मुंबई में रह कर अनिरुद्ध और रज्जो भी सिंगापुर चले गए थे. दिल्ली में अब मातापिता भी नहीं रहे थे. भाई अपनीअपनी गृहस्थी में व्यस्त थे. सब कुछ बहुत अच्छा मिला रज्जो को लेकिन न जाने क्यों वह उम्र के इस पड़ाव पर आ कर कुछ बेचैन सी रहने लगी थी. कभी महसूस करती कि उस का पूरा जीवन ऐसे ही तो बीता है, जैसा अनिरुद्ध ने चाहा था या ‘ऐक्सपैरिमैंट’ किया था. उस ने अपने हिसाब से, अपनी सोच से कुछ किया क्या…? अनिरुद्ध के हिसाब से हाथों में हाथ डाल कर पार्टियां, डांस, पिकनिक और न जाने क्याक्या, सिर्फ शोे बिजनैस. उस का अपना क्या रहा…? कहां रही वह सीधीसादी, साधारण से महल्ले की रज्जो?

सिंगापुर में वह अनमनी सी रहने लगी थी. दिन भर मुंह सी कर बैठी रहती. आकाश को निहारा करती. कारण समझ में नहीं आ रहा था. बेटियों से सलाह कर के अनिरुद्ध भारत वापस आ गए. मुंबई में एक फ्लैट पहले से ही खरीद रखा था. यहां भी वे अपनी जौब में व्यस्त रहते थे अनिरुद्ध, परंतु रज्जो अपनी यादों की पुरानी गलियों में भटकती रहती. एकदम तन्हा, नितांत अकेली. हर 15 दिन में ब्यूटीपार्लर जा कर खुद को सजानेसंवारने वाली रज्जो एक बार कई दिनों के लिए बीमार पड़ गई. शायद वह अकेलापन महसूस कर रही थी. इस से भी अधिक उस के मस्तिष्क में ‘मुंबु’ की असमय मृत्यु मंडराती रहती. उस के पास इतना कुछ है तब भी वह इतनी उदास रहती. उसे ‘मुंबु’ और उन का घर याद आता रहता. एक दिन नौकरानी ने ब्यूटीशियन को घर पर ही रज्जो का फेशियल   करने के लिए बुला लिया. शायद साहब के आदेश पर, परंतु रज्जो ने उसे वापस भेज दिया. कई दिनों से उस की मनोदशा अजीब सी थी. अनिरुद्ध ने छोटी बेटी रोज को सिंगापुर से रज्जो की देखभाल के लिए बुला लिया था. उस के 2 छोटे बच्चे थे जिन्हें उस के पति आया की मदद से संभाल लेते थे. अत: वह मातापिता के पास बीचबीच में आ जाती थी. रज्जो सोचती कि वह बेटी को अपनी सेवा के लिए बुला लेती है पर वह स्वयं किस दिन अपने मातापिता की जरूरत में काम आ सकी थी? अंदर ही अंदर रज्जो को घुन लगने लगा था. शीशे के सामने खड़ी हो कर अपने सफेद बालों को देख कर अचानक ही वह सोचने लगी कि किसी राजा ने केवल एक बाल सफेद देख कर राजपाट त्यागने का फैसला ले लिया था. उस का तो न जाने कब से सारा सिर ही सफेद है. हर बार डाई करवा कर स्वयं को जवान सिद्ध करने की होड़ में ही लगी रही है. बाकी कभी कुछ नहीं किया. बस, केवल ‘ऐक्सपैरिमैंट’ यानी ‘गिनीपिग’ भर बनी रही ताउम्र.

अकसर आंसू ढुलक कर उस के गालों पर बहने लगते. छोटी बेटी रोज इस बार मां को देख कर सहम गई थी. जब रोते हुए देखा तो बोली, ‘‘क्या हुआ, मौम…? आर यू आल राइट..?’’ सुबकियों के बीच रज्जो ने सिर हिलाया कि वह ठीक है.

‘‘फिर आप रो क्यों रही हैं?’’

रात में भी मां को करवटें बदलते देख कर रोज कुछ परेशान सी हो उठी थी. अचानक वह उठ बैठी और मां को बांहों में भर लिया, ‘‘आई वांट टू विजिट माय होमटाउन…आय वांट टू मीट पीपल हू वर अराउंड मी…’’ सुबकते हुए रज्जो ने अपनी खूबसूरत बेटी रोज के कंधे पर अपना सिर रख दिया और जोर से बिलख उठी.

‘‘तुम जानती हो राज, कितने साल हो गए हैं तुम्हें वहां गए? तुम से किसी का कौंटैक्ट भी नहीं है शायद…फिर…?’’ अनिरुद्ध उस की बात सुन कर बौखला उठे थे.

‘‘मैं ‘मुंबु’ का  घर खोल कर देखना चाहता हूं.’’

‘‘करोगी क्या वहां जा कर…कौन पहचानेगा तुम्हें?’’

‘‘अनि, प्लीज, मैं मुंबु का घर खोलना चाहती हूं, सहन में बनी हुई तुलसी की क्यारी को छूना चाहती हूं… मुझे पता है कृष्णा बहनजी, इंदु मौसी, सरोज मौसी मुझे देख कर खुश होंगी. बस…जस्ट वंस…मेरा बचपन मुझे पुकार रहा है…मेरा घर मुझे पुकार रहा है.’’

‘‘वहां कौन रहा होगा…  तुम जानती हो क्या?’’ उन की राज में रज्जो प्रवेश कर रही थी. कितनी मुश्किल से उस मिट्टी की गंध शरीर से मलमल कर छुड़ाई थी उस ने. अब फिर से 60 वर्ष की उम्र में उन की पत्नी उस गंध को लपेटने के लिए व्याकुल हो उठी थी.

‘‘कौन जाएगा तुम्हारे साथ. यह बेचारी अपना घर, बच्चे, जौब सबकुछ छोड़ कर तुम्हारे लिए आई है.’’

रोज के मन में मां के प्रति कुछ पिघलने लगा, ‘‘ओके डैड…आय विल टेक हर विद मी जस्ट फौर टू डेज औनली…’’ उसे वापस भी तो जाना था.  रज्जो रोज के साथ मुंबु के शहर जयपुर आ गई. स्टेशन से घर तक का सफर रिकशे में बमुश्किल से कटा. वह जल्दी अपने मुंबु के घर पहुंचना चाहती थी. रास्ते भर वह उन सड़कों और गलियारों को बच्चों की तरह खुश हो कर निहारती जा रही थी.

रज्जो तो मानो अपने बचपन की सैर करने लगी थी. बीमारी से कमजोर हुई रज्जो में मानो किसी ने फूंक कर ताजी हवा का झोंका भर दिया था.  मां के पर्स से चाबी निकाल कर रोज ने जैसे ही दरवाजे के ताले से जूझना शुरू किया, ऊपर से कच्ची मिट्टी भरभरा कर उस के खूबसूरत चेहरे पर फैल गई. हाथों से चेहरे को झाड़ते हुए उस ने खीझ कर मां की ओर देखा. ‘‘मौम, कांट वी हैव समवन टू क्लीन द डोर. ओ…माय गुडनैस.’’

धीरेधीरे आसपास के दरवाजे खुलने लगे. औरतें फुसफुसाती हुई उन की ओर बढ़ीं. रोज ने पैंट में से रुमाल निकाल कर मुंह पर फैली मिट्टी को साफ करने की बेकार सी कोशिश की.

‘‘कौन हो?’’ लाठी पकड़े एक बुजुर्ग महिला चश्मे में से झांकने का प्रयास कर रही थी.

रज्जो की आंखों में चमक भर आई.

‘‘लाखी चाची,’’ उस ने आंसुओं से चेहरा तर कर लिया और झुकी कमर वाली महिला के गले लग कर सुबकने लगी, ‘‘रज्जो हूं चाची, आप की रज्जो… पहचाना नहीं?’’

अंदर से चाची की किसी बहू ने एक खाट ला कर सड़क के किनारे डाल दी थी. घूंघट के भीतर से बहुएं पैंट पहनी हुई सुंदरी को निहार रही थीं.

‘‘जरूर कोई मेम है…’’ एक ने फुसफुस कर के दूसरी के कान में कहा.

रोज उन के पास चली आई, ‘‘नमस्ते, मैं इन की बेटी… कोई सर्वेंट मिल जाएगा यहां? ताला भी नहीं खुल रहा है. उसे भी खोलना होगा.’’

घूंघट वाली बहुओं में से एक ने घर में बरतन मांजती हुई महरी को आवाज दे कर बाहर बुला लिया.

‘‘आप इसे चाबी दे दीजिए, यह खोल देगी.’’

महरी ने उस के हाथ से चाबी ले ली और ताले में चाबी घुमाने लगी तो कुंडा टूट कर उस के हाथ में आ गया.

‘‘महरी को वहीं छोड़ रोज उस ओर बढ़ गई जहां रज्जो खाट पर बैठी बुजुर्ग महिला से बातें कर रही थी.

रोज के लिए यह माहौल कुतूहल भरा था.

‘‘तेरी 2 बेटी हैं न रज्जी?’’ बूढ़ी औरत उसे अच्छी प्रकार देखना चाहती थी. वह अपने चेहरे को ऊपरनीचे करने लगी थी.

‘‘बहुत कम दिखाई देता है बेटी. देखो, अब तो हमारी उमर का कोई एकाध ही बचा होगा. सभी साथ छोड़ गए. अच्छा किया तू आ गई…तेरे से मिलना हो गया.’’

रोज के सामने चाय का  प्याला आ गया था और दोनों बहुएं उस की कुरसी के इर्दगिर्द खड़ी हो गई थीं.

‘‘ले बेटी, समोसा फोड़ ले.’’

रोज को हंसी आने को हुई पर उस ने कंट्रोल कर लिया. समोसा कुतरते हुए उस ने ‘मुंबु’ के मकान के बाहरी हिस्से में उगे पीपल के छोटेछोटे पौधों पर नजर गढ़ा दी.

‘‘हर साल काट देते हैं हम जी… पर ये हर साल उग आते हैं,’’ घूंघट वाली एक बहू ने उस की दृष्टि भांप ली थी.

‘मुंबु’ के घर में अब भी जीवन है वह सोचने लगी. लेकिन रात में इस घर में तो रहा नहीं जा सकता. जयपुर तो इतना बड़ा शहर है, अच्छेअच्छे होटल हैं. वह मौम को वहां रहने के लिए मना लेगी.

‘‘बेटा, मैं जिन से मिलने आई थी, उन में से तो कोई भी नहीं रहा.’’

रोज ने मां का कंधा दबा कर उन्हें सांत्वना देने का प्रयास किया.

‘‘इट्स औल राइट मौम. जिंदगी ऐसे ही चलती है,’’ फिर थोड़ा रुक कर रोज आगे कहती है, ‘‘मौम, अंदर चलेंगी? आप का तुलसी का चौरा…’’

‘‘हां, और कोई तो मिला नहीं…’’ राजी दुखी थी.

‘‘चलिए, अंदर देखते हैं,’’ रोज उस का ध्यान बटाना चाहती थी.

‘‘हां,’’ कह कर रज्जो ने हाथ में पकड़ा हुआ चाय का प्याला मेज पर रखा और उठ खड़ी हुई. उस के साथ लाखी चाची भी अपना डंडा उठा कर उस के घर की ओर बढ़ चलीं. उन के पीछेपीछे दोनों घूंघट वाली बहुएं भी.

रोज आगे बढ़ कर सहन पार कर गई थी. पीछेपीछे राजी आ रही थी. तुलसी का अधटूटा चौरा सहन में मृत्युशैया पर पड़े बूढ़े की तरह मानो किसी की प्रतीक्षा कर रहा था. रज्जो ने सिंहद्वार में प्रवेश किया ही था कि ऊपर से अधटूटी लटकी हुई बल्ली उस के सिर पर गिरी और वह वहीं पसर गई. लाखी चाची को बहुओं ने पीछे खींच लिया था. जोरदार आवाज सुन कर रोज ने पीछे मुड़ कर देखा. ‘‘मौम…’’ वह चिल्लाई.

पर…मौम की आवाज शांत हो गई थी…हमेशाहमेशा के लिए. उस की आंखें उलट चुकी थीं और प्रतीक्षारत तुलसी के टूटे हुए चौरे पर अटक गई थीं. ‘राज कपूर’ की फिर से रज्जो बनने की हसरत पूरी हो गई थी. समय ने उसे कहांकहां घुमाफिरा कर, उस के साथ न जाने कितने प्रयोग कर के रज्जो को फिर से उसी धूल में मिला दिया था जिस से निकल कर वह ताउम्र समय के साथ आंखमिचौनी करती रही थी. अब वह गिनीपिग नहीं रही थी. अब उस पर कोई ऐक्सपैरिमैंट नहीं कर सकता था.

ब्यूटी और ग्लैमरस में है अंतर, कैसे दिखें ग्लैमरस

अकांक्षा और मीनाक्षी पक्की सहेलियां थीं. उनकी दोस्ती बचपन से थी. अब तो वो दोनों कौलेज की पढ़ाई भी साथ करती थी. उनकी दोस्ती के काफी चर्चे थे, वे दोनों देखने में भी बेहद सुंदर थीं, लेकिन मीनाक्षी की तुलना में अकांक्षा ज्यादा अट्रैक्टिव नजर आती थी. यूों कहे तो वो ग्लैमरस दिखती थी, हालांकि इससे मीनाक्षी को कोई दिक्कत नहीं थी, लेकिन जब कौलेज में लड़के या लड़कियां मीनाक्षी के लुक की तारीफ करते थे तो अकांक्षा को ईर्ष्या होती थी.

कहाने का मतलब सुंदर तो दोनों सहेलियां थी पर मीनाक्षी का लुक स्टनिंग था. इन दोनों में ग्लैमरस और ब्यूटी का फर्क था. जी हां आपने आसपास ऐसी कई लड़कियों को देखा होगा, जो देखने में ठीकठाक होती हैं, लेकिन वे खुद के लुक पर ध्यान नहीं देती यानी हेयरस्टाइल, ड्रैसिंग सेंस, मेकअप आदि जैसी कई चीजें को फौलो नहीं करती है, तो उनके लुक के तरफ कोई ध्यान नहीं देता, तो वहीं कुछ लड़कियां की नैचुरल ब्यूटी नहीं होती है, लेकिन अगर वो ग्लैमरस दिखने के लिए अपने लुक पर ध्यान देती हैं, ड्रैसेज हो या मेकअप हो, तो ये सारी चीजें अपनाने से वो स्टनिंग नजर आती हैं.

कहा जाता है कि simple living High Thinking… ये बात सही है, लेकिन कई बार लुक की वजह से भी लोगों का मजाक बनाया जाता है. अगर आप किसी से मिलते हैं या कहीं भी जाते हैं, तो लोग सबसे पहले आपके लुक को नोटिस करते हैं.

खासकर लड़कियों के अपनी लुक पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए. आपका हेयरस्टाइल, आंखों का मेकअप, लिपस्टिक, फुटवियर और भी ऐसी कई चीजें हैं, जिन्हें आप कैरी कर अपने लुक को बेहतर बना सकती हैं.

कौलेज, औफिस, पार्टी, डेटिंग चाहें आप कहीं भी जा रही हो, अगर आपने लुक की कोई तारीफ करता है, तो खुद में एक अलग ही कौन्फिडेंस आता है. इससे आपके चेहरे पर एक अलग ही मुस्कुराहट आ जाती है. ग्लैमर लुक से काम करने की एनर्जी बढ़ जाती है.

ग्लैमरस दिखने के लिए थोड़ा सा वक्त और कुछ चीजों की जरूरत है, तो क्यों न हम लड़कियां अपने लिए इनका इस्तेमाल करें. कई लड़कियां ऐसी होती है कि जो औफिस या कौलेज जाते समय ही तैयार होती हैं. आप घर पर भी या कहीं घूमने के लिए भी जाएं तो ग्लैमरस दिखने में क्या ही प्रौब्लम है, बस आप खुद के लुक पर काम करने के लिए अपने बिजी शेड्यूल अपने लिए वक्त निकाल लें.

ग्लैमरस लुक के लिए फौलो करें ये टिप्स

कई बार लड़कियों को लगता है कि ग्लैमरस दिखने के लिए ज्यादा पैसे खर्च करने की जरूरत है, लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. आप कम पैसे खर्च कर के भी ग्लैमर दिख सकती हैं. बस इसके लिए थोड़ा फैशन सेंस होना जरूरी है. आइए जानते हैं कैसे?

आउटफिट

मौसम के हिसाब से आपको अपनी आउटफिट का चुनाव करना चाहिए. ट्रैंड में जो ड्रैसेज हो आप उन्हें कैरी कर सकते हैं, लेकिन आप पहले ट्राई जरूर कर लें अगर आप पर वो ड्रैस जचता है, तभी पहनें.

मेकअप

कई बार जरूरत से ज्यादा चेहरे का मेकअप आपके लुक को खराब कर देता है, ऐसे में आई मेकअप पर ज्यादा फोकस करें. जो आपके स्किन पर फेस क्रीम या कोई अन्य प्रोडक्ट सूट करते हैं, तो उसे चेहरे पर अप्लाई करें, इसके अलावा अपने ड्रैस के अनुसार या स्किन के अनुसार लिपस्टिक अप्लाई करें. आजकल न्यूड मेकअप ट्रैंड में है, तो आप इसे भी फौलो कर सकती हैं.

हेयरस्टाइल

कई लड़कियों के बाल लंबे होते हैं, तो कुछ लड़कियों के शौर्ट हेयर… तो आप अपने बालों के लेंथ के हिसाब से हेयरस्टाइल अपना सकती हैं.

फुटवियर

ड्रैस के हिसाब से फुटवियर का चुनाव करें. शौर्ट ड्रैस के साथ हल्की जूतियां या कम हिल्स के सैंडल कैरी कर सकती हैं.

जैकी श्राफ ने विद्या बालन को दिया ये खास गिफ्ट, एक्ट्रैस को आया बेहद पसंद

फिल्मों से ज्यादा अपनी रील कंटेंट से इंटरनेट पर सुर्खियां बटोरने वाली बौलीवुड की फेमस एक्ट्रेस विद्या बालन इंडस्ट्री में उन नामो में से है जो सोशल मीडिया पर बहुत एक्टिव है और एक से बढ़ कर एक रील्स पोस्ट कर अपने फैंस को हंसाती रहती हैं. लेकिन इस बार विद्या ने कूल गिफ्ट की क्लिप पोस्ट की है जो उन्हें एक्टर जैकी श्रॉफ ने भेंट की है. आइए जानते हैं वो कूल गिफ्ट क्या है.

कूल गिफ्ट

विद्या बालन ने इंस्टाग्राम स्टोरी पर एक क्लिप पोस्ट की है. जिसमें वह अपनी कार की पिछली सीट पर बैठी हुई हैं. वीडियो में उन्होंने फ्लावर्स के को-आर्ड्स पहने हैं और गले में पौधों का हार पहना हुआ है, जो उन्हें बौलीवुड एक्टर जैकी श्राफ ने गिफ्ट में दिया है.
गिफ्ट में एक पौधे से बना लौकेट है, जिसे विद्या ने पहना हुआ है और वह लाइफ स्टाइल में स्वस्थ पर्यावरण के महत्व और लाभों को शेयर कर रही हैं.

हेल्दी लाइफ स्टाइल

इस “कूल” गिफ्टिंग आइडिया के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा: “यह एक पौधा है जो मुझे जैकी श्राफ ने दिया है। भिडू। मुझे लगता है कि वह बहुत कूल हैं. यह मुझे ऑक्सीजन प्रदान कर रहा है तो एक लंबी सांस लो और तरोताजा महसूस करो. लेकिन वास्तव में, यह एक अच्छा विचार है. मुझे यह पसंद है.”जैकी श्रॉफ से मिले पर्यावरण अनुकूल उपहार को दिखाया और कहा कि यह “बहुत कूल” है.

जैकी श्राफ का इको फ्रेंडली गिफ्ट

आपको बता दें बौलीवुड एक्टर जैकी श्राफ पर्यावरण के बड़े समर्थक है और इसका बहुत ख्याल रखने के लिए जाने जाते हैं साथ ही कई मौकों पर वे प्रकृति के कल्याण को बढ़ावा देते हुए दिखाई पड़ते है और अक्सर दूसरों को यह गिफ्ट देने के लिए जाने जाते है. हाल ही में उन्होंने ये गिफ्ट विद्या बालन को दिया.
फिल्मों की बात करें तो विद्या आखिरी बार शीर्षा गुहा द्वारा निर्देशित रोमांटिक कौमेडी ‘दो और दो प्यार’ में नजर आई थीं. इसमें प्रतीक गांधी, इलियाना डिक्रूज़ और सेंधिल राममूर्ति नजर आए. अब विद्या बालन भूल भुलैया 3 में ओजी मंजुलिका के रूप में नजर आएंगी. ये फिल्म दिवाली पर सिनेमाघरों में रिलीज होगी.
सोशल मीडिया पर विद्या बालन ने एक वीडियो शेयर किया है जिसमें वह जैकी श्राफ द्वारा उन्हें दिए गए पर्यावरण के अनुकूल तोहफे को दिखा रही हैं. जैकी श्राफ द्वारा दिए गए गिफ्ट में एक पौधे से बना लॉकेट है, जिसे विद्या ने पहना हुआ है और वह लाइफ स्टाइल में स्वस्थ पर्यावरण के महत्व और लाभों को शेयर कर रही हैं.

सलीम खान और जावेद अख्तर की जोड़ी पर बनी डाक्यूमेंट्री एंग्री यंग मैन आज होगी रिलीज, जानें कुछ खास बातें

सलीम जावेद पर बनी डाक्यूमेंट्री सीरीज़ चर्चा में है. जो की प्राइम वीडियो पर 20 अगस्त को रिलीज हो रही है. सलीम जावेद फिल्म इंडस्ट्री का एक ऐसा नाम है जिन्होंने कहानीकारों की इज्जत में इजाफा किया है. उनकी साझेदारी हमेशा सर्वश्रेष्ठ लेकर आई है एंग्री यंग मैन सीरीज उनकी रचनात्मक प्रतिभा और भारतीय सिनेमा पर विशाल प्रभाव को प्रस्तुत करती है. सलीम खान और जावेद अख्तर की जोड़ी जो सलीम जावेद के नाम से जानी जाती है इस जोड़ी ने 1970 के दशक में हिंदी सिनेमा में क्रांति ला दी थी और बतौर कहानीकार एक के बाद एक कई सारी हिट फिल्में दी थी. जैसे शोले, जंजीर, दीवार, यादों की बारात डौन सहित 15 -16 हिट फिल्में दी है. लेकिन उसके बाद इस जोडी ने 1987 में आख़िरी फ़िल्म मिस्टर इंडिया दी थी जो ब्लौकबस्टर साबित हुई थी .
इस फिल्म के बाद दोनों अलग हो गए . गौरतलब है जो ताकत एक साथ जुड़कर काम करने में है वह अलग होकर करने में नहीं है जिसके चलते सलीम जावेद के अलग होने के बाद जब उन्होंने स्वतंत्र रूप से लिखना शुरू किया तो उनके लेखन में वह बात नजर नहीं आई जो 70 के दशक में जोड़ी के साथ लिखने में दिखती थी.
नम्रता राव निर्देशित 3 एपिसोड की यह डाक्यूमेंट्री सलीम जावेद के इसी जुड़ाव अलगाव और बतौर जोड़ी बेहतरीन सफर को दर्शाती है. एंग्री यंग मैन की प्रेस कांफ्रेंस के दौरान मिडिया के सामने उपस्थित सलीम जावेद ने वादा किया है कि वह एक बार फिर से एक साथ फिल्म लिखेंगे साथ ही मजाक के तौर पर सलीम जावेद ने यह भी कह दिया कि पहले भी हम ज्यादा पैसा लेते थे और आज भी कम पैसे नहीं लेंगे.

सलीम जावेद के लेखन की खासियत….

सलीम जावेद जोड़ी की फिल्मों की सफलता की सबसे बड़ी वजह यह थी कि वह अपनी कहानी के जरिए
 समाज के उन पहलुओं को उजागर किया जो हिंदू समाज में निचले स्तर पर औऱ पिछड़े हुए माने जाते थे. जिन्हें अपशगुन, अछूत और गरीब कहकर समाज द्वारा दूतकारा जाता था . जैसे की फिल्म शोले में ठाकुर की विधवा बहू जो कि जया बच्चन बनी थी.  जिस विधवा की शादी  ठाकुर एक ऐसे इंसान जय से करवाने के लिए राजी हो जाते है जो हर तरह से ठाकुर के मुकाबले कमतर है. जैसे वह गुंडा हैं, गरीब है, और अनाथ है . इसी तरह सलीम जावेद की कहानी में भगवान से ज्यादा फिल्म का हीरो हाइलाइट होता है. शोले में ठाकुर भगवान के पास जाने के बजाय दो गुंडो को गब्बर सिंह को मारने के लिए बुलाता है. इसी तरह फिल्मों में शादियां और भगवान के बजाय प्रेम विवाह और इंसानी ताकत को ज्यादा महत्व दिया गया है. जब कि उन दिनों बन रही फिल्मो में ज्यादातर रीति रिवाज, भगवान ,मंदिर, शादी,को ज्यादा  दिखाया जाता था. लेकिन सलीम जावेद की फिल्मों में हीरो भगवान को भी चुनौती देता नजर आता था. जैसे अमिताभ बच्चन फ़िल्म दीवार में शिव के मंदिर में जाकर शिव भगवान को चुनौती देते नजर आए यह कहकर .. खुश तो बात होगे तुम… जो मैं तुम्हारे पास आया…
गौरतलब है सलीम जावेद की जोड़ी ने अपनी कहानी के जरिये अपने हीरो को एंग्री यंग मैन के  रूप में प्रस्तुत किया. उनके द्वारा लिखे हुए डायलौग आज भी सभी की जुबान पर हैं जैसे.. आज भी मैं फेक हुए पैसे नहीं उठाता, मां तुम साइन करोगी या नहीं, बसंती इन कुत्तों के सामने मत नाचना, कितने आदमी थे, अरे ओ कालिया ,फ़िल्म जंजीर का डायलॉग जब तक बैठने को ना कहा जाए खड़े रहो… आदि. जावेद ने अपनी कहानी के जरिए ना सिर्फ रिश्तो की अहमियत समझाई  बल्कि समाज की कूनीतियो पर भी सवाल उठाया. और समाज के पिछड़े हुए लोगों को अपनी फिल्मों के जरिए सम्मान भी दिलाया उनकी हर फिल्म में जिंदगी को लेकर कोई ना कोई सीख होती थी जिसकी वजह से दर्शक उनकी फिल्मों की तरफ आकर्षित होते थे.
एंग्री मैन यंग मैन डाक्यूमैंट्री के जरिए उनकी इन्हीं प्रभावशाली शैली को और इस जोड़ी के खूबसूरत सफर को दर्शाने की कोशिश की गई है.

अक्षय कुमार बेटे को सोशल मीडिया पर लोगों ने कहा गे, भड़के एक्टर और दिया ये रिएक्शन

खिलाड़ी अक्षय कुमार उन हीरोज में से एक हैं जो सारे खान हीरोज को अकेले टक्कर देने की ताकत रखते हैं. फिल्मों में कई तरह के अतरंग किरदार निभाने वाले अक्षय कुमार किसी न किसी बात को लेकर चर्चा में बने रहते हैं. जेसे की कनाडा का पासपोर्ट होने की वजह से अक्षय कुमार की नागरिकता पर कई बार सवाल उठाए गए जिसको लेकर अक्षय बहुत आहत भी हुए कभी अपनी लगातार फ्लौप फिल्मों को लेकर चर्चा में रहे तो कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इंटरव्यू के दौरान बचकाना सवाल जैसे कि आम चूस के खाते हैं या काट को लेकर चर्चा में रहे.

 

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लेकिन फिलहाल अक्षय कुमार तमतमाए हुए हैं.  क्योंकि इस बार अक्षय अपने बेटे आरव को लेकर चर्चा में है. हाल ही में सोशल मीडिया में कुछ लोगों ने यह खबर फैला दी कि अक्षय कुमार के बेटे आरव कुमार गै हैं. क्योंकि आरव की चाल लड़कियों की तरह है और इसके अलावा खबरों के अनुसार पिछले दिनों आरव की एक फोटो वायरल हुई जिसमें आरव एक आदमी को लिप किस करते हुए नजर आ रहे हैं. इसके अलावा आरव मिडिया से खास दूरी बनाए रखते हैं और एयरपोर्ट पर भी मीडिया से नजरे बचा कर छिपते छुपाते आवागमन करते नजर आते हैं. इन्ही सब खबरों के बाद सोशल मीडिया में आरव की गे होने की खबर वायरल होने लगी .
अक्षय कुमार को जब अपने बेटे को लेकर इस वायरल खबर का पता चला तो उन्होंने सोशल मीडिया पर खुद आकर इस खबर को पूरी तरह खारिज करते हुए कहा है मेरा बेटा कोई गै नहीं है. अक्षय के अनुसार इस खबर ने मुझे बहुत आहत किया है इसलिए अगर मुझसे गुस्से में कोई गलत बात निकल जाए तो माफ करना, लेकिन इस तरह की खबर सुनने के बाद मुझे बहुत गुस्सा आया है.
अक्षय ने अपने बेटे के लिए सफाई देते हुए कहा आरव को फिल्मों में कोई दिलचस्पी नहीं है इसलिए वह मीडिया से दूर रहता है. उसे भविष्य में फैशन डिजाइनर बनना है इसलिए वह लंदन में ही फैशन डिजाइनर की पढ़ाई कर रहा है, क्योंकि वह स्वभाव से शर्मिला है इसलिए उसको सबके सामने लाइमलाइट में आना पसंद नहीं है.
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