शादी में धर्म का दखल क्यों

यह धर्म ही है जिस की वजह से सदियों से न सिर्फ महिलाओं को गुलाम बना कर रखा जाता है, शादी जैसे पवित्र बंधन में भी धर्म की दखलंदाजी से विवाह खतरे में है. सवाल है, जब दो दिलों का मामला है, तो फिर धर्म का यहां क्या काम…

सुप्रीम कोर्ट ने अपने हाल के एक फैसले में हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के तहत इस बात पर जोर दिया कि हिंदू विवाह को वैध बनाने के लिए इसे उचित संस्कारों और समारोहों के साथ किया जाना चाहिए जैसे कि सप्तपदी (पवित्र अग्नि के चारों ओर 7 फेरे) आदि. विवादों के मामले में इन समारोहों का प्रमाण आवश्यक है.

जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस औगस्टीन जार्ज मसीह की खंडपीठ ने कहा कि जहां हिंदू विवाह लागू संस्कारों या सप्तपदी जैसे समारोहों के अनुसार नहीं किया जाता है तो विवाह को हिंदू विवाह नहीं माना जाएगा. दूसरे शब्दों में अधिनियम के तहत वैध विवाह के लिए अपेक्षित समारोहों का पालन किया जाना चाहिए और कोई मुद्दा या विवाद उत्पन्न होने पर उक्त समारोह के प्रदर्शन का प्रमाण होना चाहिए. जब तक कि पक्षकारों ने ऐसा समारोह नहीं किया हो अधिनियम की धारा 7 के अनुसार कोई हिंदू विवाह नहीं होगा और केवल प्रमाणपत्र जारी किया जाएगा.

हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 8 के तहत हिंदू विवाह का रजिस्ट्रेशन विवाह के सबूत की सुविधा प्रदान करता है लेकिन यह वैधता प्रदान नहीं करता. यदि धारा 7 के अनुसार कोई विवाह नहीं हुआ तो रजिस्ट्रेशन विवाह को वैधता प्रदान नहीं करेगा.

कोर्ट ने एक पत्नी द्वारा अपने खिलाफ तलाक की काररवाई को स्थानांतरित करने की मांग वाली याचिका पर फैसला सुनाते हुए ये टिप्पणियां कीं. मामले की सुनवाई के दौरान पति और पत्नी यह घोषणा करने के लिए संयुक्त आवेदन दायर करने पर सहमत हुए कि उन की शादी वैध नहीं है.

क्या कहता है कानून

सुप्रीम कोर्ट के अनुसार विवाह ‘गीत और नृत्य’ और ‘शराब पीने और खाने’ का आयोजन नहीं है या अनुचित दबाव द्वारा दहेज और उपहारों की मांग करने और आदानप्रदान करने का अवसर नहीं है जिस से आपराधिक काररवाई की शुरुआत हो सकती है. विवाह कोई व्यावसायिक लेनदेन भी नहीं है. विवाह पवित्र है क्योंकि यह 2 व्यक्तियों को आजीवन, गरिमापूर्ण, समान, सहमतिपूर्ण और स्वस्थ मिलन प्रदान करता है.

इसे ऐसी घटना माना जाता है जो व्यक्ति को मोक्ष प्रदान करती है खासकर जब अनुष्ठान और समारोह आयोजित किए जाते हैं.

हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 7 के तहत पारंपरिक संस्कारों और समारोहों का ईमानदारी से आचरण और भागीदारी सभी विवाहित जोड़ों और समारोह की अध्यक्षता करने वाले पुजारियों द्वारा सुनिश्चित की जानी चाहिए. जाहिर है हमारे देश के सब से बड़े कोर्ट ने भी विवाह में धर्म और पुजारियों की भूमिका विवाहों में एक बार और थोप दी, जबकि हम जानते हैं कि धर्मों ने हजारों सालों में क्याक्या किया है.

धर्म का दखल

धर्म ने करोड़ों नरनारियों का गरम रक्त पीया है, हजारों कुल बालाओं को जिंदा जलाया है. धर्म के कारण ही धर्मपुत्र युधिष्ठिर ने जुआ खेला, राज्य हारा, भाइयों और स्त्री को दांव पर लगा कर गुलाम बनाया, धर्म के ही कारण द्रौपदी को 5 आदमियों की पत्नी बनना पड़ा. धर्म के कारण अर्जुन और भीम के सामने द्रौपदी पर अत्याचार किये गए और वे योद्धा मुरदे की भांति बैठे देखते रहे. धर्म के कारण भीष्म पितामह और गुरु द्रोण ने पांडवों के साथ कौरवों के पक्ष में युद्ध किया, धर्म के कारण अर्जुन ने भाइयों और संबंधियों के खून से धरती को रंगा.

धर्म के कारण भीष्म आजन्म कुंआरे रहे और राम ने राज्य त्याग वनवास लिया, धर्म के कारण राम ने सीता को त्यागा, शूद्र तपस्वी को मारा और विभीषण को राज्य दिया.

धर्म ही के कारण राजा हरिशचंद्र राजपाट छोड़ भंगी के नौकर हुए, धर्म के कारण राजपूतों ने सिर कटाए, उन की स्त्रियों ने अपने स्वर्ण शरीर भस्म किए, खून की नदी बही. धर्म के कारण ही सिखों ने मुगल काल में अंग कटवाए, बच्चों को दीवार में चुनवाया, धर्म ही के कारण लाखों ईसाई रोमन कैथोलिकों के भीषण अत्याचार की भेंट हुए, धर्म ही के कारण मुसलमानों ने पूरी पृथ्वी को रौंद डाला और मनुष्य के गरम खून में तलवार रंगी. धर्म ही के लिए ईसाइयों ने प्राणों का विसर्जन किया.

धर्म के लिए घरों में विधवाएं चुपचाप आंसू पी कर जीती रही हैं. अछूत कीड़ेमकोड़े बने हुए हैं, जबकि पाखंडी और घमंडी ब्राह्मण और हर धर्म के दुकानदार सर्वश्रेष्ठ बने हुए हैं. धर्म के कारण ही पेशेवर पाखंडी पुजारी भी लाखों स्त्रीपुरुषों से पैरों को पुजाते हैं. धर्म के कारण ही आज हिंदू, मुसलमान, यहूदी और ईसाई एकदूसरे के जानी दुश्मन बने हुए हैं.

यह कैसा धर्म

सारी दुनिया में हजारों वर्ष से प्रमुख बना यह धर्म मनुष्य को शांति से रहने नहीं देता है, आजाद नहीं होने देता है. दरअसल, इस ने हमारे दिमाग को गुलाम बना लिया है. जो मनुष्य धर्म के जिस रंग में रंगा गया फिर उस के विरुद्ध नहीं सोच सकता. तभी तो अछूत को लगता है कि औरों का मैला ढोना ही उस का धर्म है, ब्राह्मण सोचता है सब से श्रेष्ठ होना ही उस का धर्म है, मुसलमान सम?ाता है कि काफिर को कतल करना ही धर्म है. विधवा सम?ाती है मरे हुए पति के नाम पर सब के अत्याचार सहना ही उस का धर्म है. धर्म के नाम पर पापपुण्य, अच्छा बुरा जो कुछ मनुष्य को सम?ा दिया गया है मनुष्य वैसा ही करने को विवश महसूस करता है.

इसी धर्म को शादीविवाह के अनुबंध में सदियों से घुसाया गया है. हर धर्म कहता है कि धर्म के बिना की गई शादी का कोई मोल नहीं है यानी न चाहते हुए भी हर किसी को ये सारी रस्में निभानी होंगी. पढ़ेलिखे आधुनिक सोच वाले युवा जब जातपांत की परवाह न करते हुए लव मैरिज की हिम्मत करते हैं और कोर्ट में जा कर शादी कर लेते हैं तो इसे कानून ही वैध नहीं मान रहा यानी हर किसी को सभी धार्मिक रस्में निभानी होंगी. अगर पारंपरिक विधि धारा 7 के अंतर्गत करना जरूरी है तो उसी जाति में वर्ण व्यवस्था के अनुसार कुंडलियां देख कर ही शादी हो सकेगी और जो शादियां इन पंडितों के नियम के अनुसार नहीं होगी, सुप्रीम कोर्ट के अनुसार अवैध होंगी.

धर्म का दखल क्यों सोचने वाली बात है कि जब जिंदगी के छोटेबड़े बदलावों में धर्म नहीं घुसता तो शादी में क्यों घुसाया जाता है? कोई इंसान नए किराए के घर में रहने जाता है, घर के किसी बड़ेसामान की शौपिंग करने जाता है, नए कालेज में दाखिला लेता है या नई नौकरी जौइन करता है तो क्या हम पुजारी को बुला कर मंत्रोच्चारण करवाते हैं या धार्मिक रीतिरिवाज शुरू करते हैं? नहीं करते न? इस के बावजूद काम भलीभांति संपन्न होता है.

हम नए घर, नए कालेज या नई नौकरी में तरक्की करते हैं और आगे बढ़ते हैं. धर्म की गैरमौजूदगी से हमें कोई बड़ा घाटा तो नहीं होता न. फिर शादी तो केवल जीवन में 2 लोगों के साहचर्य के लिए एक अनुबंध है. इस तरह के अनुबंध में मात्र एक वचन और अगर आवश्यकता हो तो अनुबंध के पंजीकरण के एक प्रमाण की जरूरत है. अन्य रस्मोंरिवाजों की कहां आवश्यकता है? इस लिहाज से मानसिक श्रम, समय, पैसे, उत्साह और ऊर्जा की बरबादी क्यों?

औरतों को पुरुषों के अधीन बनाया है धर्म ने

दरअसल, धर्म के नाम पर पुरुषों को मरनेमारने को प्रेरित करने के लिए प्लैटर में रख कर औरतों को पुरुष के अधीन बना कर सौंपा गया. धर्म ने एक तरह से स्त्रियों को भी संपत्ति बना डाला. राजकाल में पुरुष योद्धा जब दूसरे राजाओं का खात्मा करते थे तो उन के राज्य की विधवा औरतों को अपने साथ जीत के उपहार की तरह उठा लाते थे. आज भी औरतें संपत्ति की तरह ट्रीट की जाती हैं. इन सब के पीछे सदियों से धर्म की साजिश रही है.

धर्म ने हमेशा से औरतों की शक्तियां छीन कर पुरुषों को सौंपीं और फिर उन पुरुषों ने मनमाने काम करवाए. पापपुण्य की परिभाषाएं गढ़ी गईं. दूसरी तरफ गुलाम सी बनी स्त्रियों को हर जगह नीचे दिखाए जाने की साजिश की गई ताकि वे विरोध में स्वर मुखर न कर सकें. खुद को हमेशा दासी ही मानें. हर धर्म में शादी की धार्मिक रस्मों में भी कितनी ही जगह उसे उस की औकात दिखाई जाती है.

शादी में होने वाला खर्च और रीतिरिवाज

अब जरा गौर करें कि शादी चाहे अरेंज्ड हो या लव इन रिवाजों और तैयारियों में कितने रुपए बरबाद होते हैं. शादी पर अधिक से अधिक खर्च करना क्या एक बड़ा आर्थिक नुकसान नहीं है?

‘लड़के वालों की जो मांग है उसे तो पूरा करना ही है,’ ‘यह दहेज नहीं, गिफ्ट है,’ ‘शादी करनी है तो रीतिरिवाज तो करने ही होंगे और इस में खर्चे तो होंगे ही,’ ‘यह धर्म का मामला है,’ ‘लड़की की शादी मतलब कन्यादान फिर लड़की किसी और की हो जाती है,’ शादियों के दौरान बोले जाने वाले जैसे कथन क्या बताते हैं?

शादी में होने वाले खर्च और उपहार की आड़ में दिए जाने वाले दहेज के आदानप्रदान को समाज ने खुद धर्म, जाति और पितृसत्तात्मक संरचना के आधार पर बनाया है. यह जिस तरह से बनाया गया है उस का संविधान में कहीं उल्लेख नहीं है बल्कि दहेज लेना और देना तो कानून की नजर में एक दंडनीय अपराध है. यह अनुच्छेद 14 के बराबरी के हक के खिलाफ है जिसे सुप्रीम कोर्ट ने नजरअंदाज कर दिया.

लेकिन हमारे समाज में आज भी कई धर्म और जातियों के लोग शादी के लिए इतना कर्ज लेते हैं जो उन के लिए चुका पाना मुश्किल होता है. लड़की के जन्म लेते ही शादी के लिए संपत्ति, दानपुण्य, दहेज जोड़ना मातापिता अपनी जिम्मेदारी सम?ाते हैं. कई परिवार अपनी जीवनभर की कमाई बेटियों की शादी के लिए बचा कर रखते हैं, साथ ही अधिक दहेज या उपहार न दे पाने की स्थिति में खुद को शर्मिंदा महसूस करते हैं.

शादी में होने वाले खर्च पर विचार करने की जरूरत है. शादी में होने वाला खर्च दीवाली के लिए खरीदे जाने वाले पटाखों जैसा ही है जिसे कुछ ही घंटों में जला दिया जाता है. बारबार बाजार जाना, सामान लाना, सब की पसंदनापसंद का ध्यान रखना, खाने की व्यवस्था देखना, बड़ी मात्रा में कागज के कार्ड प्रिंट करवाना, महंगे से महंगे कपड़े खरीदना और उन को बाद में बहुत कम या न के बराबर इस्तेमाल करना.

कानूनी रूप से पंजीकरण करें

इस के साथ ही शादियों से निकालने वाला कूड़ाकचरा जैसे प्लास्टिक की बोतलें, गिलास, थर्माकोल का बना सामान, बड़ी मात्रा में दूसरा यूज ऐंड थ्रो मैटीरियल, ये सब वेस्टेज औफ  मनी नहीं है क्या? शादी में होने वाले खर्च को धार्मिकसामाजिक प्रतिष्ठा से जोड़ दिया जाता है. अगर तार्किक रूप से सोचें तो क्या सच में हमें लोगों को यह बताने की जरूरत है कि किस ने घर की शादी में कितना खर्च किया या लड़के को क्याक्या मिला और लड़की को क्याक्या दिया गया? क्या सभी जोड़े धार्मिक रिवाजों से शादी करने के बाद आपस में खुश हैं?

अब यह भी मुमकिन नहीं है कि सहमति से शादी करने वाले 2 लोग धार्मिक अनुष्ठानों को खारिज कर बिना दहेज और उपहार के शादी के लिए सिर्फ कानूनी रूप से पंजीकरण करें.

यहां पर एक बात पर और ध्यान देने की जरूरत है कि शादी में दहेज या उपहार लड़की को दिया जाता है पर मिलता लड़के को है. अगर हम पितृसत्तात्मक नजरिए से देखें तो शादी में लड़की को दिया तो बहुत कुछ जाता है पर अधिकार उस का शायद ही किसा सामान पर होता है. जो कुछ भी है वह अपने घर से मिलता है और बाद में उस पर हक ससुराल वालों का हो जाता है. अधिकतर लोग लेनदेन से जुड़े रीतिरिवाजों को धर्म से जोड़ कर सही ठहराते हैं.

लड़की के जन्म के बाद ही उस की शादी के बारे में सोचना यह दर्शाता है कि लड़कियों की अपनी कोई इच्छा नहीं हो सकती न ही शादी के रीतिरिवाजों की संरचना में बदलाव को ले कर और न ही शादी करनी है या नहीं करनी है इस फैसले को ले कर. लड़की के जन्म के बाद 2 चरण ऐसे हैं जो समाज लड़कियों से बिना पूछे ही तय कर लेता है.

पहला चरण है लड़की की शादी होना और दूसरा चरण है उस का मां बनना. जबकि यह लड़की की पसंद और चुनाव है कि वह खुद शादी न करना चाहे या मां न बनना चाहे. यही नहीं शादी के दौरान और उस के बाद भी लड़कियों के साथ काफी असमानता का व्यवहार किया जाता है.

असमानता के बीज बोती रस्में

हिंदू धर्म में पारंपरिक शादी के रीतिरिवाज में एक रस्म होती है पैर पूजने की जिस में लड़की के मातापिता दूल्हे के पैर छूते हैं. कहते हैं कि विवाहित पतिपत्नी को गौरी शंकर का रूप माना जाता है इसलिए लड़की के मातापिता बेटीदामाद के पैर छूते हैं.

अब सवाल यह है कि अगर सच में वे ईश्वर का रूप हैं तो लड़की के मातापिता ही क्यों पैर छूते हैं हर किसी को उन के पैर छूने चाहिए. लड़के के मातापिता को भी पैर छूने चाहिए. क्या लड़के के घर वालों को भी ईश्वर के आशीर्वाद की जरूरत सिर्फ इसलिए नहीं होती क्योंकि वे लड़के के मातापिता हैं?

पितृसत्ता की देन है दहेज प्रथा

दहेज व्यापार तब शुरू होता है जब 2 परिवार शादी के लिए राजी हो जाते हैं. दुलहन का परिवार दूल्हे के परिवार को न सिर्फ पैसे बल्कि उपहार और तोहफे भी देता है. क्षमता न होने के बावजूद लड़के वालों की डिमांड पूरी करने के लिए उधार ले कर या घर बेच कर भी दहेज की रकम इकट्ठी करता है. दहेज जैसे रिवाज समाज में चलने वाली पितृसत्तात्मक यानी धर्मसत्तात्मक व्यवस्था को दिखाते हैं क्योंकि पितृसत्तात्मक समाज यकीनन धर्म की देन है.

लगन के नाम पर शादी से 2 दिन पहले दुलहन का परिवार दूल्हे के परिवार को भारी मात्रा में धन, आभूषण, फर्नीचर, उपकरण, कपड़े आदि देता है. सामान को उस के घर तक पहुंचाने की जिम्मेदारी और खर्च तक लड़की का परिवार ही करता है. इसे हमारे समाज में असली दहेज माना जाता है क्योंकि इस दिन सब से ज्यादा पैसे और सामान का लेनदेन होता है.

साथ ही यह बहुत ही दिखावटी आदानप्रदान होता है. फिर शादी के दिन लड़की के परिवार वाले लड़के के परिवार के ज्यादातर रिश्तेदारों को पैसे के साथ कपड़े भी देते हैं. इस रस्म को समाज में लेनदेन कहा जाता है. लेकिन यह लड़की के परिवार के लिए केवल देन ही देन है न कि लेन.

शादी के दिन भी लड़की का परिवार हर रिश्तेदार के लिए खाने की उत्तम व्यवस्था करता है. भोजन, टैंट, साजसज्जा, रोशनी, लेनदेन (लेनादेना), रस्म, डीजे, ड्रोन, फूल आदि पर बहुत मोटा पैसा खर्च किया जाता है. इन सभी के कारण मुख्य रूप से दुलहन के पिता और भाई पर अत्यधिक आर्थिक दबाव होता है. अधिकतर समय वे अपनी संपत्ति को गिरवी रख या बेच कर शादी के लिए कर्ज लेते हैं. कभीकभी अत्यधिक कर्ज चुकाने में असमर्थ होने के कारण आत्महत्या से मौत के मामले भी सामने आते हैं.

रीतिरिवाज के नाम पर खर्चा

एक शादी में यह रीतिरिवाज के नाम पर मोटा खर्चा इस बात की कोई गारंटी नहीं देता है कि यह शादी का रिश्ता पूरी तरह से चलेगा. कभी अकाल मृत्यु हो जाती है तो कभीकभी तलाक बहुत जल्दी हो जाता है. भले ही तलाक न हो पर दहेज की मांग कई बार शादी के बाद भी चलती रहती है.

पैर धोना

तमाम जगहों पर आज भी शादी के दौरान दूल्हे और बरातियों के पैर धोने की प्रथा है. यह प्रथा एक पक्ष को बड़ा एक को छोटा बनाती है. दरअसल, पहले के समय में लोग दूर से बरात ले कर पैदल आते थे. तब उन के पैर गंदे हो जाते थे. इसलिए उन के पैर धुलाए जाते थे जिस ने आज एक धार्मिक कुरीति का रूप ले लिया है. आज इसे सम्मान से जोड़ा जाता है.

हमारे समाज में दुलहन पक्ष को छोटा सम?ा जाता है जोकि शादी के दौरान धार्मिक गतिविधियां निभाते समय ज्यादा उजागर होता है. वास्तव में शादी दोनों पक्षों के बीच का संबंध होता है और संबंध का अर्थ है बराबरी का बंधन यानी किसी भी पक्ष को छोटा या बड़ा मानना गलत है. मगर धर्म हमेशा औरत को छोटा महसूस कराता है.

कन्यादान

हम सामान्य तौर पर वस्तुओं को ही दान करते हैं जिन के लिए हमें भावनात्मक जुड़ाव नहीं होता. यही वजह है कि जब एक लड़की का कन्यादान किया जाता है तो उसे महसूस होता है जैसे वह कोई इंसान नहीं बल्कि वस्तु है जिसे आज दान किया जा रहा है मानो उस का कोई वजूद नहीं है. उस की भावनाओं का कोई मोल नहीं है.

मातापिता के लिए उन की बेटी सदैव बेटी ही रहती है उसे कभी पराया नहीं किया जा सकता. फिर ऐसे रिवाज का क्या औचित्य? लड़के को दान क्यों नहीं किया जाता केवल लड़की को ही क्यों? दरअसल, इस के पीछे भी धर्म का यही मकसद है कि स्त्री का कोई वजूद न माना जाए. उसे चीज की तरह सम?ा जाए. क्या सुप्रीम कोर्ट चाहता है कि इस परंपरा को जिंदा रखा जाए? अगर ऐसा है तो यह संविधान औरत विरोधी माना जाएगा. शादी में ऐसे धार्मिक रिवाज हमारी संकीर्ण सोच को और पुख्ता करते हैं.

सुहाग की निशानियां

शादी के बाद महिलाओं पर धार्मिक रिवाज के नाम पर एक और प्रथा थोपी जाती है. शादीशुदा की पहचान के रूप में उसे मांग भरनी होता है. इसी तरह चूड़ी, पायल, बिछुए, मंगलसूत्र आदि पहनना महिलाओं के लिए तमाम सुहाग की निशानियां हैं जिन्हें महिला न पहने तो ताने सुनने को मिल जाते हैं, जबकि पुरुषों के लिए ऐसा कुछ भी नहीं है. अगर महिला को यह सब पहनना पसंद है तब कोई बात नहीं लेकिन इसे ले कर धार्मिक और सामाजिक दबाव थोपी हुई प्रथा का रूप दे देता है.

देश के प्रधानमंत्री ने भी अपने चुनावी भाषण में मंगलसूत्र का जिक्र करते हुए खौफ दिखाया कि विपक्ष कहीं मांबहनों के गले का मंगलसूत्र न छीन ले. मगर यहां सवाल यह उठता है कि महिलाएं मंगलसूत्र पहने ही क्यों? क्या पुरुष मंगलसूत्र पहनते हैं? अगर नहीं तो स्त्रियों पर यह पाबंदी क्यों? मंगलसूत्र तो एक तरह से उस पट्टे जैसा हो जाता है जिसे हम अपने पालतुओं के गले में बांधते हैं ताकि उन्हें अपने हिसाब से चला सकें.

औरतों के गले का दुपट्टा भी एक तरह से उस पट्टे जैसा ही है जिसे खींचते ही महिला का दम घुटने लगे. औरतों को इस तरह जंजीरों में बांध कर रखने का औचित्य क्या है? जैसे पुरुष का अपना वजूद है वैसे ही स्त्री का भी है. वह भी अपनी तरह से अपनी जिंदगी की मालिक है. मगर इसे स्वीकारने में हमें डर क्यों लगता है? कहीं न कहीं धर्म ने हमारी सोच ही कुंठित कर रखी है.

आसान नहीं ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर

विवाहेत्तर संबंध किस तरह आप की खुशहाल जिंदगी पर ग्रहण लगा सकता है, क्या जानना नहीं चाहेंगे…

खा  ने की टेबल पर बैठा जयंत पाल कहीं खोया हुआ था. वह कुछ खा भी नहीं रहा था. तभी उस की वाइफ अपूर्वा ने उसे टोकते हुए कहा, ‘‘आप कहां खोए हुए हैं?’’ ‘‘कहीं नहीं,’’ कहते हुए जयंत ने अपूर्वा की बात को टाल दिया.

असल में जयंत रिया के बारे में सोच रहा था. रिया जयंत की गर्लफ्रैंड है. वह 2 सालों से उस के साथ रिलेशनशिप में है. जयंत को हाल ही में बिजनैस में घाटा हुआ है. अब वह सोच रहा है कि वह अपनी शादी और रिलेशनशिप दोनों को कैसे मैनेज करेगा. रिया पूरी तरह से जयंत पर निर्भर है. वह अपनी कमाई का एक भी पैसा अपने ऊपर खर्च नहीं करती है. लेकिन बिजनैस में हुए घाटे की वजह से जयंत अब रिया का खर्चा नहीं उठा पा रहा है. उस ने सोचा कि वह रिया से बात करेगा लेकिन इस का कोई फायदा नहीं हुआ क्योंकि वह सोचती है कि औरतों की सभी जरूरतों का ध्यान मर्दों को रखना चाहिए.

रिया की ऐसी सोच ने जयंत को परेशान कर दिया है. अब वह रिया से रिश्ता तोड़ना चाहता है. लेकिन प्रौब्लम यह है कि रिया इस के लिए भी तैयार नहीं है. जयंत बड़ी दुविधा में है कि इस समस्या का छुटकारा कैसे होगा.

न व्यावहारिक न किफायती

ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर न तो व्यावहारिक है न ही किफायती. यह अपने साथ कई खर्चे और प्रौब्लम ले कर आता है. ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर कई तरह के होते हैं. जिन लोगों के पार्टनर इमोशनल नहीं होते, ऐसे लोग अपनी मैरिज से बाहर इमोशन ढूंढ़ते हैं. ये लोग एक ऐसे पार्टनर की खोज में निकलते हैं जिस से ये इमोशनली जुड़ सकें. इस तरह के अफेयर को इमोशनल अफेयर कहते हैं.

जो लोग अपनी मैरिड लाइफ से बोर हो चुके होते हैं और अपनी लाइफ में एक स्पार्क चाहते हैं. ऐसे लोग वन नाइट स्टैंड का कौन्सैप्ट अपनाते हैं. इस के अलावा लोग कुछ सैक्स ऐडिक्ट अफेयर भी करते हैं. ऐसा अफेयर वे लोग करते हैं जो सैक्स ऐडिक्ट होते हैं. ऐसे लोगों के लिए सैक्स ही सबकुछ होता है. कुछ लोग लव ऐडिक्ट अफेयर भी करते हैं. ऐसा अफेयर वे लोग करते हैं जो लव ऐडिक्ट होते हैं. इन के लिए लव बहुत इंपौर्टैंट होता है.

सुमित जाटव की शादी को 2 साल हो गए हैं. लेकिन वह अपनी पुरानी गर्लफ्रैंड प्रिया को नहीं भूल पाया है. वह अपनी वाइफ और गर्लफ्रैंड दोनों के साथ रिलेशन रखना चाहता है लेकिन प्रौब्लम यह है कि वह अपनी वाइफ के साथ दिल्ली में रहता है और उस की गर्लफ्रैंड बैंगलुरु में जौब करती है. उस के लिए दोनों रिलेशन को मैनेज करना मुश्किल हो गया है.

वह कहता है कि बारबार बैंगलुरु जाने से उस की बीवी को उस पर शक होने लगा है. अपना ऐक्सपीरियंस बताते हुए वह ऐक्स्ट्रा मैरिड अफेयर से दूर रहने की सलाह देता है. उस का मानना है कि 2 रिलेशन एकसाथ चलना आसान नहीं है और इसे ऐंजौय करने के लिए आप के पास बहुत सारा पैसा होना चाहिए.

आसान नहीं छिपाना

शादीशुदा होते हुए अफेयर रखना आसान नहीं है क्योंकि आप अपनी मैरिड लाइफ से छिप कर यह अफेयर कर रहे हैं. ऐसे में कभी भी आप का भांड़ा फूट सकता है. उस वक्त आप इसे कैसे संभालेंगे यह आप को सोचना होगा.

वाणी प्रिया कहती है, ‘‘ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर निभाना आसान नहीं है क्योंकि यह बहुत जोखिम भरा है. साथ ही साथ यह बहुत खर्चीला भी है. इस से न केवल आप की मैरिड लाइफ खतरे में पड़ सकती है बल्कि यह आप का डिवोर्स भी करवा सकता है. लेकिन अगर आप मैरिज और अफेयर दोनों का खर्चा उठा सकते हैं तो बेशक आप ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर रख सकते हैं. अगर आप की मैरिड लाइफ का चार्म खत्म हो गया है तो अपने पार्टनर से इस बारे में खुल कर बात करें.’’

राहुल प्रजापति की गर्लफ्रैंड इशिता 3 महीने की प्रैगनैंट है. अब वह उसे शादी के लिए फोर्स कर रही है. लेकिन राहुल पहले से ही शादीशुदा है. ऐसे में वह अपनी पत्नी को डिवोर्स दिए बिना इशिता से शादी नहीं कर सकता. लेकिन इशिता लगातार उस पर शादी का दबाव बना रही है. राहुल अब उस घड़ी को कोस रहा है. जब उस ने ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर किया था.

जेब पर भारी

जब अर्जुन रामपाल और उन की पत्नी मेहर जेसिया का डिवोर्स नहीं हुआ था उस से पहले ही अर्जुन लिव इन रिलेशनशिप में था. इसी बीच उन की गर्लफ्रैंड प्रैगनैंट हो गई. इस के बाद उन्होंने मेहर को डिवोर्स दे दिया. आज वे अपनी लिव इन पार्टनर से बिना शादी ही अपना रिश्ता निभा रहे हैं. ऐसा वे इसलिए कर पाए क्योंकि वे अमीर हैं लेकिन अगर आप अमीर नहीं हैं तो ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर आप की जेब पर भारी पड़ेगा.

‘ग्लीडन’ एप्प भारत में 2017 में आया. इस के 30% यूजर्स भारतीय हैं. इस डेटिंग ऐप की पहुंच न सिर्फ मुंबई, बैंगलुरु, दिल्ली, कोलकाता जैसे बड़े शहरों तक है बल्कि मेरठ, भोपाल, पटना जैसे शहरों के लोग भी इसे यूज कर रहे हैं. ऐप पर जहां पुरुष 24 से 30 साल की महिलाओं को, वहीं महिलाएं 31 से 40 साल की उम्र वाले पुरुषों को तलाशती हैं. डेटिंग एप ग्लीडन ने रिसर्च में पाया कि 53% इंडियन वूमन अपने पति के अलावा किसी अन्य पुरुष के साथ इंटिमेट रिलेशन में हैं, जबकि ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर रखने वाले पुरुषों की संख्या 43% हैं.

क्या कहते हैं आंकड़े

आंकड़े बताते हैं कि महिलाओं की तुलना में पुरुषों के ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर ज्यादा होते हैं. आंकड़ों से पता चलता है कि महिलाओं की संख्या 12% और पुरुषों की संख्या 28% है. सर्वे में 77% वूमन ने माना कि उन की मैरिड लाइफ बेजान होने की वजह से उन्होंने ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर किया. 72% वूमन को एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर करने का कोई पछतावा नहीं है.

इस के अलावा 10 में से 7 वूमन ने माना कि उन के हसबैंड घर के कामों में उन का हाथ नहीं बंटाते. इस की वजह से उन्होंने ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर किया. 10 में से 4 वूमन ने माना कि अननोन लोगों के साथ फ्लर्ट करने से हसबैंड के साथ उन की इंटीमेसी बेहतर हुई है.

जिन महिलाओं के पति दूसरे शहर में जौब करते हैं या ज्यादा समय तक घर से दूर रहते हैं. उन की पत्नियां ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर की ओर जल्दी आकर्षित होती हैं. इसलिए यह जरूरी है कि दूर होते हुए भी अपने रिश्ते में प्यार बनाए रखें.

वहीं अगर पुरुषों की बात करें तो कई बार पत्नी के प्रैगनैंट होने पर पति के ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के चांस बढ़ जाते हैं. इस के अलावा पत्नी से सैक्सुअल डिजायर पूरी न होने की वजह से भी पति अकसर ऐसा कदम उठाते हैं.

वजह क्या है

दिल्ली की रहने वाली अदिति यादव (बदला हुआ नाम) के लिए प्रौब्लम तब खड़ी हुई जब मयंक को पता चला कि अदिति का ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर है. उस ने इस के पीछे की वजह जाननी चाही तो उसे पता चला कि वह अदिति को उतना वक्त नहीं दे पाता जितना कि वह चाहती है. वह कहता है कि ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के कई कारण हो सकते हैं. जरूरी है कि आप उन कारणों को पहचानें और उन पर काम करें.

झारखंड महिला हैल्पलाइन 181 ‘अभयम’ ने कुछ आंकड़े पेश किए. इन आंकड़ों से हर घंटे एक ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर से जुड़ा केस रिकौर्ड किया गया. 2018 से 2022 में हैल्पलाइन पर आने वाली शिकायतें बढ़ने लगीं. जहां 2018 में 3,837 शिकायतें आईं थीं. वहीं 2022 में 9,382 तक पहुंच गईं. इन आंकड़ों से यह पता चलता है कि बीते 5 सालों में ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर ढाई गुना बढ़े हैं.

ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर करने की लोगों के पास अपनी कई वजहें होती हैं. लेकिन फिजिकल नीड, इमोशनल अटैचमैंट न होना, डोमैस्टिक वायलैंस, कम्युनिकेशन गैप अटैंशन की कमी, अकेलापन, बच्चे की रिस्पौंसिबिलिटी,

 

सैक्सुअल नीड न पूरी होना, कम एज में शादी होना, थौट्स न मिलना, लाइफ की प्रायौरिटी अलगअलग होना, कौमन इंटरैस्ट का न होना, रिलेशन में स्पार्क न होना, अट्रैक्शन की कमी होना, बैड पर खराब परफौर्मैंस होना, कैरियर अचीवमैंट जैसी तमाम  वजहों से पार्टनर एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर की तरफ बढ़ते हैं. लेकिन इन सब में सब से कौमन ‘फिजिकल नीड’ है.

कपिल वर्मा कहते हैं, ‘‘अगर किसी महिला के हसबैंड को पता चलता है कि उस की वाइफ का कहीं अफेयर चल रहा है तो बेहतर यही होगा कि वह इसे इग्नोर करे और उन कारणों को खोजे जिन की वजह से उस की पत्नी को ऐक्स्ट्रा मैरिड की जरूरत पड़ी. इस के अलावा वह अपनी मैरिड लाइफ पर वर्क करे.’’

क्या कहता है कानून

आईपीसी की धारा 497 के तहत अगर कोई मैरिड मैन किसी मैरिड वूमन के कंसल्ट से फिजिकल रिलेशन बनाता है तो उस वूमन का हसबैंड एडल्टरी के नाम पर उस पुरुष के खिलाफ केस दर्ज करा सकता है. लेकिन अपनी वाइफ के खिलाफ कोई काररवाई नहीं कर सकता न ही ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर करने वाले मैन की वाइफ इस दूसरी महिला के खिलाफ कोई काररवाई कर सकती है.

भारतीय दंड संहिता की धारा 497 महिला की गरिमा के अधिकार का उल्लंघन करती है. यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है. धारा 497 मनमानी है क्योंकि स्त्री पर पुरुष की कानूनी संप्रभुता गलत है. वाइफ हसबैंड की प्रौपर्टी नहीं है.

ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर न सिर्फ पैसे खर्च कराता है बल्कि इसे ज्यादा दिनों तक छिपाया भी नहीं जा सकता. अफेयर की बात पता चलते ही पार्टनर आप का जीना दुर्भर कर देता है. ऐसे में अगर आप डिवोर्स के बारे में सोचते हैं तो यह इतना आसान नहीं होगा क्योंकि हमारे देश में डिवोर्स लेना आसान नहीं है. डिवोर्स होने के बाद आप को फाइनैंशियल क्राइसेस से गुजरना पड़ सकता है. अगर आप अमीर हैं तो ठीक है नहीं तो कई तरह की प्रौब्लम्स आप को झेलनी पड़ सकती हैं.

प्रेगनैंसी में इस तरह रखें अपनी त्वचा का ख्याल

भले ही आप की ड्रैसिंग टेबल मेकअप के सामान से भरी हुई हो, लेकिन प्रैगनैंट होते ही आप के शरीर की तरह आप की स्किन में भी कई तरह के बदलाव आने शुरू हो जाते हैं. ऐसे में हारमोंस का संतुलन बिगड़ने की वजह से स्किन में नमी कम होने के साथ-साथ स्किन ज्यादा सैंसिटिव भी होने लगती है.

इसलिए अब न तो आप पहले की तरह अपने रूटीन को फौलो कर पाती हैं और न ही स्किन केयर रूटीन को. अब आप को जरूरत होती है अपने स्किन केयर रूटीन में उन ब्यूटी प्रोडक्ट्स को शामिल करने की, जो प्रैगनैंसी में आप के व आप के बच्चे के लिए सही व सेफ हों.

आइए, जानते हैं कि प्रैगनैंसी के दौरान किस तरह के कौस्मैटिक प्रोडक्ट्स से दूरी बनानी है और किन प्रोडक्ट्स को अपने स्किन केयर रूटीन में शामिल कर सकती हैं:

रैटिनोल: अच्छी त्वचा, प्रजनन संबंधी व आंखों की अच्छी हैल्थ के लिए विटामिन ए बहुत ही आवश्यक तत्त्व माना जाता है. लेकिन जब हम इसे लेते हैं या फिर स्किन के जरीए अवशोषित करते हैं तो हमारा शरीर इसे रैटिनोल में बदल देता है. बहुत सारे ऐंटीएजिंग स्किन केयर प्रोडक्ट्स में रैटिनौइड्स होते हैं, जो एक तरह का रैटिनोल होता है, जिस में ऐक्ने व   झुर्रियों से लड़ने की क्षमता होती है. रैटिनौइड्स डैड स्किन को ऐक्सफौलिएट कर के तेजी से कोलेजन के निर्माण में मदद करता है.

लेकिन ओवर द काउंटर मैडिसिंस की तुलना में प्रैसक्राइब्ड मैडिसिन में काफी ज्यादा मात्रा में रैटिनौइड्स होते हैं. लेकिन जब जरूरत से ज्यादा इन का इस्तेमाल किया जाता है तो ये बच्चे में कई समस्याओं का कारण बन सकते हैं. इसलिए इन का इस्तेमाल प्रैगनैंसी के दौरान स्किन केयर प्रोडक्ट्स में करने से बचना चाहिए.

सैलिसिलिक ऐसिड: ज्यादा मात्रा में सैलिसिलिक ऐसिड में एस्पिरिन की तुलना में ऐंटीइन्फ्लैमेटरी प्रौपर्टीज होती हैं, जो आमतौर पर हमेशा ऐक्ने को ठीक करने के लिए इस्तेमाल की जाती हैं. इसलिए डाक्टर के बिना पूछे सैलिसिलिक ऐसिड युक्त क्रीम्स का इस्तेमाल प्रैगनैंसी के दौरान न करें क्योंकि अकसर डाक्टर जरूरत पड़ने पर 2% से कम वाले सैलिसिलिक ऐसिड का इस्तेमाल करने की ही सलाह देते हैं. अत: अगर आप ज्यादा मात्रा में इस का इस्तेमाल करती हैं तो यह नुकसान ही पहुंचाने का काम करेगा.

सनस्क्रीन: सनस्क्रीन में सब से ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला अल्ट्रावायलेट फिल्टर औक्सीबेंजोन व इस के विभिन प्रकार हैं. हालांकि यह स्किन को प्रोटैक्ट करने का काम करता है. लेकिन औक्सीबेंजोन स्वास्थ्य व पर्यावरण के लिए सही नहीं माना जाता क्योंकि यह एक ऐंडोक्राइन डिसरूपटर है. इसलिए यह आशंका रहती है कि प्रैगनैंसी के दौरान यह हारमोंस का संतुलन बिगाड़ने के साथसाथ मां व बच्चे दोनों को नुकसान पहुंचा सकता है.

हेयर डाई: हेयर कलर्स में अमोनिया और पैरौक्साइड होता है जो स्कैल्प के जरीए शरीर में जा कर जलन, ऐलर्जी व कई अन्य नकारात्मक प्रभाव डालने का काम करता है.

अब जानते हैं अल्टरनेटिव  सेफ स्किन केयर इनग्रीडिऐंट्स के बारे में:

हाइपरपिगमैंटेशन: अगर आप प्रैगनैंसी के दौरान ऐक्ने व स्किन पिगमैंटेशन की समस्या से परेशान हैं, तो रैटिनौइड बेस्ड कौस्मैटिक्स की जगह, जिस में ग्लाइकोलिक ऐसिड इन्ग्रीडिएंट हो, उस का इस्तेमाल करें क्योंकि यह हैल्दी स्किन सैल्स को प्रमोट कर के आप के प्रैगनैंसी के ग्लो को भी बनाए रखने का काम करता है.

ऐंटीएजिंग: विटामिन सी जिस तरह से आप की इम्यूनिटी को बूस्ट करने का काम करता है, उसी तरह से विटामिन सी जैसा ऐंटीऔक्सीडैंट कोलेजन को बनाए रखने व स्किन को फ्री रैडिकल्स से बचाए रखने का भी काम करता है. इसी के साथ आप प्रैगनैंसी के दौरान अन्य ऐंटीऔक्सीडैंट्स जैसे विटामिन ई, विटामिन के, विटामिन बी-3 व ग्रीन टी का भी इस्तेमाल कर सकती हैं.

ड्राई स्किन ऐंड स्ट्रैच मार्क्स: इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि प्रैगनैंसी के दौरान शरीर पर काफी दबाव व भार पड़ता है और गर्भ में पल रहे शिशु को किसी भी समय पानी की जरूरत होती है, तो वह आप से ही इसकी पूर्ति करता है. इस से स्किन ड्राई हो जाती है. रूखी त्वचा इस का व हारमोंस के असंतुलन का ही परिणाम है. ऐसे में अगर आप स्ट्रैच मार्क्स से बचना चाहती हैं तो आप को इस बात का ध्यान रखना होगा कि आप की स्किन ड्राई न हो.

इस के लिए आप स्वीट आमंड औयल, सीसम या ओलिव औयल का इस्तेमाल कर सकती हैं. आप लैवेंडर औयल, रोज औयल, जैसमिन औयल का भी बिना डरे इस्तेमाल कर के ड्राई स्किन व स्ट्रैच मार्क्स की समस्या से छुटकारा पा सकती हैं.

सन प्रोटैक्शन: स्किन को धूप से बचाना बहुत जरूरी होता है. अगर आप की स्किन धूप से बची रहेगी तो स्किन कैंसर के साथसाथ   झुर्रियों का खतरा भी काफी हद तक कम हो जाएगा. ऐसे में आप प्रैगनैंसी के दौरान नैचुरल सनस्क्रीन के तौर पर रसभरी सीड औयल का इस्तेमाल कर सकती हैं. प्रैगनैंसी के दौरान कैमिकल वाले सनस्क्रीन की जगह मिनरल बेस्ड सनस्क्रीन का ही इस्तेमाल करें.

डिलिवरी के बाद कैसे पाएं परफैक्ट फिगर

पोस्ट डिलिवरी अपने पुराने फिगर को वापस पाने के लिए इन तरीकों पर गौर जरूर करें…

डिलिवरी के बाद पहले वाली शेप में आने के लिए महिला को बहुत मेहनत करनी पड़ती है. डिलिवरी के 3 से 6 महीने बाद महिला व्यायाम कर सकती है, लेकिन जब तक वह बच्चे को दूध पिला रही हो तब तकउसे वेट लिफ्टिंग और पुशअप्स नहीं करने चाहिए. उसे किसी भी तरह की डाइटिंग या व्यायाम शुरू करने से पहले डाक्टर से जरूर सलाह लेनी चाहिए.

ब्रैस्ट फीडिंग: बच्चे को दूध पिलाने से वजन आसानी से कम होता है, क्योंकि शरीर में दूध बनने के दौरान कैलोरीज बर्न हो जाती हैं. यही कारण है कि वे महिलाएं जो बच्चे को दूध पिलाती हैं, उन का वजन जल्दी कम होता है.

पानी पीना: अगर आप अपनी पतली कमर फिर से वापस देखना चाहती हैं तो रोजाना कम से कम 3 लिटर पानी पीएं. पानी पीने से शरीर के टौक्ंिसस बाहर निकल जाते हैं और शरीर में फ्लूइड बैलेंस बना रहता है. इस के अलावा पानी पीने से शरीर का अतिरिक्त फैट भी निकल जाता है.

 

नीबू का रस और शहद: रोज सुबह खाली पेट इसे पीएं. इस से शरीर के टौक्सिंस निकल जाते हैं और फैट भी बर्न होता है. हर बार खाना खाने से पहले भी इस का सेवन कर सकती हैं. ऐसा करने से पाचन ठीक रहेगा और फैट जल्दी बर्न होगा.

 

ग्रीन टी: ग्रीन टी में ऐसे बहुत सारे अवयव होते हैं जो फैट बर्निंग की प्रक्रिया को तेज करते हैं. इस में मौजूद मुख्य तत्व ऐंटीऔक्सीडैंट होता है, जो मैटाबोलिज्म को तेज करता है. इसलिए दूध और चीनी वाली चाय के बजाय ग्रीन टी बेहतर विकल्प है. यह न केवल सेहतमंद है, बल्कि वजन पर नियंत्रण रखने में भी मदद करती है.

 

लोअर एब्डौमिनल स्लाइड: यह व्यायाम बच्चे के जन्म के बाद नई मां के लिए अच्छा है. खासतौर पर अगर बच्चे का जन्म सीसैक्शन से हुआ हो, क्योंकि सर्जरी के बाद पेट के निचले हिस्से की पेशियों पर असर पड़ता है. यह व्यायाम उन्हीं पेशियों पर काम करता है. पीठ के बल लेट जाएं, पैर जमीन पर फैला दें, बाजुएं साइड में सीधी रखें और हथेलियां नीचे की ओर हों. अपनी पेट की पेशियों को सिकोड़ते हुए दाईं टांग को बाहर की ओर स्लाइड करें. फिर सीधा कर यही प्रक्रिया बाईं टांग से दोहराएं. दोनों टांगों से इसे 5 बार दोहराएं.

सेहतमंद खाद्यपदार्थ हैल्दी फूड: ज्यादा कैलोरी वाले खाद्यपदार्थों का सेवन भी न करें जैसे कैंडी, चौकलेट व बेक की गई चीजें जैसे कुकीज, केक, फास्ट फूड तथा तला हुआ भोजन जैसे फ्राइज और चिकन नगेट्स. प्रोसैस्ड फूड में सब से ज्यादा कैलोरीज और चीनी होती है, जो वजन बढ़ाती है. ऐसे भोजन में उचित पोषक पदार्थों की कमी होती है. इन के बजाय सेहतमंद विकल्प चुनें जैसे मौसमी फल, सलाद, घर में बना सूप और फलों का रस आदि.

इन घरेलू उपायों के अलावा भरपूर मात्रा में सब्जियों और फलों का सेवन करने से पेट की चरबी कम होती है. अगर आप बच्चे को दूध पिला रही हैं, तो आप को रोजाना 1800 से 2,200 कैलोरीज का सेवन करना चाहिए ताकि आप के बच्चे को उचित पोषण मिले. अगर आप स्तनपान नहीं करा रही हैं तो आप को कम से कम 1200 कैलोरीज का सेवन करना चाहिए. रोजाना 3 बार कम कैलोरी युक्त खाद्यपदार्थों का सेवन करें. इस के लिए आप को प्रोसैस्ड फूड के बजाय प्राकृतिक खाद्यपदार्थ चुनने चाहिए.

नैचुरल ब्रेकफास्ट चुनें जैसे ओट्स, दलिया या अंडों के सफेद हिस्से से बना आमलेट. दोपहर के भोजन में साबूत अनाज की चपाती, बेक्ड चिकन या कौटेज चीज, हरा सलाद और फल खाएं. रात के भोजन की बात करें तो आप की आधी प्लेट फलों और सब्ज्यों से भरी होनी चाहिए. एक चौथाई प्लेट में प्रोटीन और एकचौथाई प्लेट में साबूत अनाज होना चाहिए. सेहतमंद आहार के साथसाथ नियमित व्यायाम करना भी बहुत जरूरी है.

तेज चलें: खाना खाने के बाद 15 से 20 मिनट तेज चलें. इस से पेट की चरबी कम होगी. ऐसा जरूरत से ज्यादा न करें. बच्चे को स्ट्रौलर में लिटा कर सैर कर सकती हैं. यह व्यायाम शुरू करने का सब से अच्छा तरीका है.

पैल्विक टिल्ट: अपनी पेट की पेशियों को सिकोड़ें. इन का इस्तेमाल करते हुए अपने कूल्हों को आगे की ओर मोड़ें. ऐसा आप लेट कर, बैठ कर या खड़े हो कर कर सकती हैं. इसे रोजाना जितनी बार हो सके करें.

नौकासन: नौकासान के कई फायदे हैं. इस से पेट की पेशियां टोन हो जाती हैं, पाचन में सुधार आता है तथा रीढ़ की हड्डी और कूल्हे भी मजबूत होते हैं.

टांगों को उठाएं: अपनी टांगों को 30 डिग्री, 45 डिग्री और 60 डिग्री पर उठाएं. हर अवस्था में 5 सैकंड्स के लिए रुकें. इस से पेट की पेशियां मजबूत होती हैं.

उस्थासन: उस्थासन के कई फायदे हैं. इस से कूल्हों की चरबी कम होती है, कूल्हों और कंधों में खिंचाव आता है.

मौडीफाइड कोबरा: अपनी हथेलियों को फर्श पर टिकाएं. कंधे और कुहनियां अपनी पसलियों के साथ टिके हों. अपने सिर और गर्दन को ऊपर उठाएं, इतना भी नहीं कि पीठ पर खिंचाव पड़ने लगे. अब ऐब्स को अंदर की ओर ऐसे खींचें जैसे आप अपने पेल्विस को फर्श से उठाने की कोशिश कर रही हों.

अन्य तरीके

पोस्टपार्टम सपोर्ट बैल्ट: यह बैल्ट पेट की पेशियों को टाइट करती है. इस से आप का पोस्चर ठीक रहता है, साथ ही पीठ के दर्द में भी आराम मिलता है.

बैली रैप इस्तेमाल करें: बैली रैप या मैटरनिटी बैल्ट आप की ऐब्स को टक कर देती है, जिस से आप के यूट्रस और पेट का हिस्सा अपनी सामान्य शेप में आने लगता है. यह पेट की चरबी कम करने का सब से पुराना तरीका है. इस से पीठ के दर्द में भी आराम मिलता है.

फुल बौडी मसाज करवाएं: मसाज शरीर के लिए बेहद फायदेमंद होती है. इस से आप बिना जिम गए बिना पसीना बहाए वजन कम कर सकती हैं. इस तरह से मसाज करवाएं कि आप के पेट की चरबी पर असर हो. इससे फैट शरीर में बराबर फैल जाएगा, मैटाबोलिज्म में सुधार होगा और आप को चरबी से छुटकारा मिलेगा.

फिल्मों से

फिल्मी जगत से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां और बातें …

ईशा ने समझदारी दिखाई

ईशा गुप्ता ने हाल ही में खुलासा किया कि उन्होंने 2017 में ही अपने एग्स को फ्रिज करवा दिया था. उन का फोकस अपनी लाइफ और अपने कैरियर पर था. इस के काफी सालों बाद उन्होंने स्पैनिश बिजनैसमैन मैनुअल से शादी की. यह एक समझदारी वाला काम था. आजकल की कैरियर पर फोकस करने वाली लड़कियों को भी इस तकनीक का फायदा उठाना चाहिए. हां, शायद दकियानूसी समाज इसे सही न समझे लेकिन इस से आप को क्या? आप का आप की लाइफ पर पूरा अधिकार है कि उसे जो शेप देना है दीजिए.

आशुतोष को काम मिलने की उम्मीद

फिल्मों के साथसाथ ओटीटी पर भी अपनी पकड़ बना लें, ऐसे कलाकार इंडस्ट्री में कम ही हैं और आशुतोष राणा उन्हीं चुनिंदा कलाकारों में से हैं. ओटीटी पर ‘खाकी’, ‘रणनीति’ और ‘अरण्यक’ जैसी सीरीजों में अपनी दमदार अदाकारी दिखाने वाले आशुतोष इस दौर को अपने जैसे कलाकारों के लिए बेहतरीन दौर मानते हैं. उन्हें आशा है कि अभी उन्हें और भी बहुत काम मिलेगा. आप को हर किरदार में आप के फैंस भी देखना चाहते हैं, आशुतोष.

 अलिया की पेरैंटिंग

राहा के जन्म के बाद आलिया कभीकभी ही फिल्मी पार्टियों या इवैंट्स में दिखती हैं. उन का ज्यादा समय राहा की देखभाल में जाता है. यानी आलिया पूरी तरह से एक जिम्मेदार मां की भूमिका निभा रही हैं जोकि सही भी है. राहा को ले कर जब पैप्स ने उन से सवाल किया तो उन का कहना था कि मैं राहा को आत्मनिर्भर बनाऊंगी और कोशिश करूंगी कि वह कोई न कोई म्यूजिकल इंस्ट्रूमैंट प्ले करना सीखने के साथसाथ स्पोर्ट्स में भी आगे बढ़े. आलिया ने यह भी कहा कि मैं ने काम के लिए काफी कम उम्र में ही घर से बाहर निकलना शुरू कर दिया था और मैं राहा के साथ ऐसा नहीं होने देना चाहती. वाह आलिया, क्या खूब पेरैंटिंग है.

दिशा ने तो ठान लिया

जिस ने भी दिशा पटानी का मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग वाला वीडियो देखा उस का मुंह खुला का खुला रह गया. दिशा के मूव्स देखने लायक थे. फिगर से तो वे पहले ही दर्शकों को अपना दीवाना बना चुकी हैं लेकिन मार्शल आर्टिस्ट होने के बाद उन्हें छप्पन छुरी कहना गलत नहीं होगा. दिशा फिल्म ‘योद्धा’ के बाद अब बिग बजट फिल्म ‘कल्कि’ में दिखाई देंगी. वाह दिशा, आप ने तो कमाल कर दिया.

सिनेमा का चुनावी बुखार

जिस रफ्तार में आर्टिकल 370 और बालाकोट एअर स्ट्राइक पर फिल्में और सीरीज बन कर पिछले कुछ दिनों में परोसी गई हैं, उस से यह अंदाजा लगाना आसान है कि सिनेमा पर भी चुनावी बुखार चढ़ा हुआ है. कुछ लोग तो इन्हें सरकार का प्रायोजित कार्यक्रम भी बता रहे हैं. दर्शक इन से कुछ खास प्रभावित दिख नहीं रहे. हाल ही में आई सीरीज ‘रणनीति’ को कुछ खास रेटिंग मिली नहीं. दर्शकों के लिए शायद यह सिर्फ टाइमपास बन कर रह गई. न ही इस में कोई संदेश था और न ही कोई नही कहानी. आशुतोष राणा और जिम्मी शेरगिल के कंधों पर ही पूरी सीरीज की जिम्मेदारी थी.

तुझे मिर्ची लगी तो मैं क्या करूं

कुछ दिनों पहले सैफीना को पैप्स ने अपने कैमरों में कैद किया. अचानक दोनों ने एकदूसरे को किस किया और फिर यह तसवीर सोशल मीडिया पर वायरल हो गई. संस्कारी समाज के ठेकेदारों को तो आग लग गई कि यह कोई तरीका है, क्या इन के पास बैडरूम नहीं वगैरह. वे अपनी मस्ती में चूर थे, उन्हें ट्रोल्स का रत्तीभर फर्क नहीं था. इस पर इन ठेकेदारों को मिर्ची लग गई लेकिन सैफीना ने अपने हावभाव से उन्हें जता दिया कि तुझे मिर्ची लगी तो मैं क्या करूं.

चंदू बनेगा चैंपियन

कार्तिक की पिछली फिल्में ‘शहजादा’ और ‘सत्य पे्रम की कथा’ कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाई थीं. अब उन्हें निर्देशक कबीर खान का साथ मिला है और वे जल्द ही ‘चंदू चैंपियन’ फिल्म में एक पैरालिंपिक गोल्ड मैडलिस्ट का किरदार निभाते नजर आएंगे. खबरची गली से खबर है कि यह फिल्म पैरालिंपिक गोल्ड मैडलिस्ट मुरलीकांत पेटकर की लाइफ पर आधारित है. पिछली कुछ रियल लाइफ बेस्ड फिल्मों का हाल अच्छा नहीं रहा तो अब देखना है कि यह चंदू बौक्स औफिस का चैंपियन बनेगा या नहीं.          द्य

  हीरामंडी से निकला हीरा

सोनाक्षी सिन्हा का कैरियर अंतिम सांसें गिन ही रहा था कि संजय लीला की सीरीज ‘हीरामंडी’ में उन्हें काम मिल गया. फरीदन और रेहाना के किरदार में सोनाक्षी ने जान डाल दी. किरदार थोड़ा ग्रे शेड में है लेकिन सोना पर जम रहा है. शायद इस के बाद दूसरे निर्देशकों की नजर भी उन पर पड़े और उन के कैरियर की गाड़ी फिर चल पड़े.

 

मेरी स्किन मुझे हमेशा ड्राई लगती है मगर जैसे ही कोई क्रीम या तेल लगाती हूं तो मेरा रंग काला हो जाता है

सवाल

मेरी स्किन मुझे हमेशा ड्राई लगती है मगर जैसे ही मैं कोई क्रीम या तेल लगाती हूं तो मेरा रंग काला हो जाता है. मुझे समझ नहीं आता कि मैं ऐसा क्या लगाऊं जिस से मेरा रंग भी काला न हो और ड्राइनैस भी खत्म हो जाए?

जवाब

आप की स्किन असल में डिहाइड्रेटेड है यानी तेल तो है मगर आप की स्किन में पानी की कमी होती है. ऐसे में आप को कोई भी क्रीम या तेल लगाने के बजाय मौइस्चराइजर का इस्तेमाल करना चाहिए. घर में भी आप कुछ चीज इस्तेमाल कर के अपनी स्किन को मौइस्चराइज कर सकती हैं. इस के लिए आप 2 स्टाबेरी मैश कर उस में थोड़ी सी मलाई मिलाएं. इस पैक को अपने फेस पर लगा कर आधा घंटा इंतजार करें और फिर कुनकुने पानी से धो लें. यह एक बहुत अच्छे मौइस्चराइजर का काम करेगा. स्ट्राबेरी में विटामिन सी व ओमेगा 3 फैटी ऐसिड्स होते हैं जो आप की स्किन को मौइस्चराइज करेंगे. आप चाहें तो 1 चम्मचशहद और एक चम्मच मलाई को मिला कर हर रोज रात को स्किन पर मसाज कर लें. इस से भी आपकी स्किन सौफ्ट हो जाएगी. फिर भी फर्क न पड़े तो किसी अच्छे ब्यूटी क्लीनिक में जा कर
आयनाइजेशन ट्रीटमैंट करा सकती हैं. इस से पानी को संभाल कर रखने वाले आयन को स्किन के अंदर
अब्जौर्ब कर दिया जाता है, जिस से आप की स्किन पानी को संभाल कर रखना शुरू कर देती है यानी
मौइस्चराइज हो जाती है और आप की स्किन पर डिहाइड्रेशन का कोई साइन दिखाई नहीं देगा.

 

कहीं आप भी तो नहीं करते ऐसा गुस्सा

कहीं आप किसी और का गुस्सा किसी और पर तो नहीं उतारते? जानिए, इसके साइड इफैक्ट्स…

गुस्सा करना कोई अच्छी बात नहीं है. लेकिन कई बार परिस्थितियां ऐसी होती हैं कि न चाहते हुए भी हम अपने गुस्से पर काबू नहीं कर पाते. ऐसी स्थिति में अगर हमें गुस्से का घूंट पीना पड़े तो किस तरह अपने अंदर की कड़वाहट को निकाल सकते हैं. आइए, जानते हैं:

आज मीरा औफिस से घर आई तो उस का मूड कुछ उखड़ा हुआ था. जैसे ही वह घर आई तो उस के बेटे रोहन ने रोज की तरह पूछा कि मम्मी क्या मैं खेलने जाऊं? तब मीरा ने गुस्से में आ कर कहा कोई जरूरत नहीं है. चुपचाप बैठ कर अपना होमवर्क करो, जब देखो तब बस खेलनाखेलना की रट लगाए रहते हो वैगरहवैगरह.

तब रोहन अपनी मम्मी को गुस्से में देख कर चुप हो गया और सोचने लगा आज मम्मी को आखिर क्या हुआ? बिना बात मेरे ऊपर गुस्सा कर रही हैं. मैं ने तो कोई गलती भी नहीं की.

ऐसा ही कुछ यदि आप के घर भी होता है तो यह लेख आप के लिए ही है ताकि आप जान सकें कि बिना वजह अपना गुस्सा किसी और पर उतारना क्या ठीक है और इस का क्या असर पड़ता है?

किसी भी बात पर जब हमें बहुत तेज गुस्सा आ रहा होता है तब हम अपने मन की सारी भड़ास या गुस्सा उस इंसान पर निकाल देना चाहते हैं जिस के कारण हमारा मूड खराब हुआ होता है. लेकिन जब स्थिति हमारी पहुंच से बाहर होती है तो गुस्सा हमें अंदर ही अंदर परेशान करता रहता है.

ऐसी स्थिति में इस घुटन से बचने के लिए यदि आप इन बातों को अपनाएंगे तो हो सकता है आप अपना गुस्सा बेवजह दूसरों पर नहीं उतारेंगे बल्कि अपने गुस्से के ऊपर काबू रख पाएंगे.

ध्यान कहीं और ले जाएं

किसी दिन जब आप की औफिस या घर पर या किसी दोस्त से कोई बहस या लड़ाई आदि हो जाए या कोई ऐसी बात हो जो आप को मंजूर नहीं या किसी के व्यवहार से आप आहत हो गए हों और तब अपनी बात को रख पाना संभव न हो तो मन ही मन परेशान रहने के बजाय थोड़ी देर चुपचाप बैठ जाएं और अपने ध्यान को कहीं और शिफ्ट या फोकस करने की कोशिश करें इस के लिए आप किचन में जा कर काम करने लगें या अपनी पसंद का कोई गाना या म्यूजिक सुन लें या अपनी पसंद का कोई भी काम चुन ले, कहीं घुमने चले जाएं ताकि आप पुरानी बात को भूल जाएं और अपने गुस्से को शांत कर सकें और उस पर नियंत्रण पा सकें क्योंकि जब हम गुस्से में होते हैं तो हमारा फोकस दूसरे कामों पर भी नहीं बन पाता है.

इसलिए जरूरी होता है कि हम अपने मन को हलका करें. आप चाहें तो इस के लिए मैडिटेशन की मदद भी ले सकती हैं.

मन को करें हलका

जितना बोलना है और जैसा बोलना है. सब बोल डालिए कुल मिला कर भड़ास निकाल लीजिए. घर पर, बच्चों पर या किसी और पर गुस्सा न उतारें. आप का ऐसा करना आप के अच्छे व्यवहार का परिचायक नहीं है तो आप बिना किसी बात के दूसरों से दूर हो जाएंगे क्योंकि तब लोग आप के बारे में यह सोच बना लेंगे कि यह तो हर समय बिना बात के गुस्सा करता रहता या रहती है.

करें अनदेखी

कभी ऐसा होता है जब आप अपने दोस्तों संग या औफिस अथवा परिवार में कुछ समय बिता रहे हों तब कोई आप के ऊपर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से तानेबाजी कर रहा हो या आप की बात को नाकारे जा रहा हो तब उस का ऐसा करना आप के तनाव को बढ़ा देता है. मगर यह कोई जरूरी नहीं कि हरकोई आप के मुताबिक ही बात करे. ऐसे में छोटीछोटी बातों की अनदेखी जरूरी है ताकि गुस्से से बच सकें.

करें संवाद

यदि आप किसी की बात से आहत हो जाएं तो उस से आपस में बातचीत कर अपने गुस्से को शांत या ठंडा कर लें ताकि यदि कोई गलतफहमी हो गई हो तो उसे दूर किया जा सके? सामने वाले के तर्क को सम?ा जा सके. इस के लिए आपस में संवाद या बातचीत होना आवश्यक है.

करें आकलन

कई बार हम छोटीछोटी बातों को ले कर गुस्सा करने लगते हैं. हमारा ऐसा बरताव असुरक्षा की भावना भर देता है. ऐसे में किसी भी बात पर अपनी प्रतिक्रिया देने के बजाय सामने वाले की बात को सम?ाने का प्रयास करें.

माफ करना सीखें

कभीकभी किसी का व्यवहार या अपशब्द हमें इतना विचलित कर देते हैं कि हम उस से बात करने या किसी भी तरह का व्यवहार रखना पसंद नहीं करते और जब उस इंसान से आप का आमना-सामना होता है तब हम फिर से गुस्से से भर जाते हैं ऐसे में ऐसे लोगों को माफ कर देने की आदत डालना ही बेहतर होता है ताकि गुस्से को वहीं खत्म किया जा सके, रिश्तों की कड़वाहट को खत्म किया जा सके.       –

मेरा पति सिर्फ मेरा है: अनुषा ने कैसे ठिकाने लगाई पति की प्रेमिका की अक्ल?

सुबह के 6 बज गए थे. अनुषा नहाधो कर तैयार हो गई. ससुराल में उस का पहला दिन जो था, वरना घर में मजाल क्या कि वह कभी 8 बजे सुबह से पहले उठी हो.

विदाई के समय मां ने समझाया था,”बेटी, लड़कियां कितनी भी पढ़लिख जाएं उन्हें अपने संस्कार और पत्नी धर्म कभी नहीं भूलना चाहिए. सुबह जल्दी उठ कर सिर पर पल्लू रख कर रोजाना सासससुर का आशीर्वाद लेना. कभी भी पति का साथ न छोड़ना. कैसी भी परिस्थिति आ जाए धैर्य न खोना और मुंह से कभी कटु वचन न कहना.”

“जैसी आप की आज्ञा माताश्री…”

जिस अंदाज में अनुषा ने कहा था उसे सुन कर विदाई के क्षणों में भी मां के चेहरे पर हंसी आ गई थी.

अनुषा ड्रैसिंग टेबल के आगे बैठी थी. बीती रात की रौनक उस के चेहरे पर लाली बन कर बिखरी हुई थी. भीगी जुल्फें संवारते हुए प्यार भरी नजरों से उस ने बेसुध भुवन की तरफ देखा.

भुवन से वैसे तो उस की अरैंज्ड मैरिज हुई थी. मगर सगाई और शादी के बीच के समय में वे कई दफा मिले थे. इसी दरमियान उस के दिल में भुवन के लिए प्यार उमड़ पड़ा था. तभी तो शादी के समय उसे महसूस ही नहीं हुआ कि वह अरैंज्ड मैरिज कर किसी अजनबी को जीवनसाथी बना रही है. उसे लग रहा था जैसे लव मैरिज कर अपने प्रियतम के घर जा रही है.

बाल संवार कर और सिर पर पल्लू रख कर अनुषा सीढ़ियों से नीचे उतर आई. सासससुर बैठक रूम में सोफे पर बैठे अखबार पढ़ते हुए चाय की चुसकियों का आनंद ले रहे थे. अनुषा ने उन को अभिवादन किया और किचन में घुस गई. उस ने अपने हाथों से सुबह का नाश्ता तैयार कर खिलाया तो ससुर ने आशीष स्वरूप उसे हजार के 5 नोट दिए. सास ने अपने गले से सोने की चेन निकाल कर दी. तब तक भुवन भी तैयार हो कर नीचे आ चुका था.

भुवन ने अनुषा को बताया था कि अभी औफिस में कुछ जरूरी मीटिंग्स हैं इसलिए 2-3 दिन मीटिंग्स और दूसरे काम निबटा कर अगले सप्ताह दोनों हनीमून के लिए निकलेंगे. इस के लिए भुवन ने 10 दिनों की छुट्टी भी ले रखी थी.

भुवन का औफिस टाइम 10 बजे का था. औफिस ज्यादा दूर भी नहीं था और जाना भी अपनी गाड़ी से ही था. फिर भी भुवन ठीक 9 बजे घर से निकल गया तो अनुषा को कुछ अजीब लगा. मगर फिर सामान्य हो कर वह खाने की तैयारी में जुट गई.

तब तक कामवाली भी आ गई थी. अनुषा को ऊपर से नीचे तक तारीफ भरी नजरों से देखने के बाद धीरे से बोली,” शायद अब भुवन भैया उस नागिन के चंगुल से बच जाएंगे.”

“यह क्या कह रही हो तुम?”  कामवाली की बात पर आश्चर्य और गुस्से में अनुषा ने कहा.

वह मुसकराती हुई बोली,” बस बहुरानी कुछ ही दिनों में आप को मेरी बात का मतलब समझ आ जाएगा. 2-3 दिन इंतजार कर लो,” कह कर वह काम में लग गई.

फिर अनुषा की तारीफ करती हुई बोली,” वैसे बहुरानी बड़ी खूबसूरत हो तुम.”

अनुषा ने उस की बात अनसुनी कर दी. उस के दिमाग में तो नागिन शब्द  घूम रहा था. उसे नागिन का मतलब समझ नहीं आ रहा था.

पूरे दिन अनुषा भुवन के फोन का इंतजार करती रही. दोपहर में भुवन का फोन आया. दोनों ने आधे घंटे प्यार भरी बातें कीं. शाम में भुवन को आने में देर हुई तो अनुषा ने सास से पूछा.

सास ने निश्चिंतता भरे स्वर में कहा,”आ रहा होगा. थोड़ा औफिस के दोस्तों में बिजी होगा.”

8 बजे के करीब भुवन घर लौटा. साथ में एक महिला भी थी. लंबी, छरहरी, नजाकत और अदाओं से लबरेज व्यक्तित्व वाली उस महिला ने स्लीवलैस वनपीस ड्रैस पहन रखी थी. होंठों पर गहरी लिपस्टिक और हाई हील्स में वह किसी मौडल से कम नहीं लग रही थी. अनुषा को भरपूर निगाहों से देखने के बाद भुवन की ओर मुखातिब हुई और हंस कर बोली,” गुड चौइस. तो यह है आप की बैटर हाफ. अच्छा है.”

बिना किसी के कहे ही वह सोफे पर पसर गई. सास जल्दी से 2 गिलास शरबत ले आई. शरबत पीते हुए उस ने शरबती आवाज में कहा,” भुवन जिस दिल में मैं हूं उसे किसी और को किराए पर तो नहीं दे दोगे?”

उस महिला के मुंह से ऐसी बेतुकी बात सुन कर अनुषा की भंवें चढ़ गईं. उस ने प्रश्नवाचक नजरों से भुवन की ओर देखा और फिर सास की तरफ देखा.

सास ने नजरें नीचे कर लीं और भुवन ने बेशर्मी से हंसते हुए कहा,” यार टीना तुम्हारी मजाक करने की आदत नहीं गई.”

“मजाक कौन कर रहा है? मैं तो हकीकत बयान कर रही हूं. वैसे अनुषा तुम से मिल कर अच्छा लगा. आगे भी मुलाकातें होती रहेंगी हमारी. आखिर मैं भुवन की दोस्त जो हूं. तुम्हारी भी दोस्त हुई न. बैटर हाफ जो हो तुम उस की.”

वह बारबार बैटर हाफ शब्द पर जोर दे रही थी. अनुषा उस का मतलब अच्छी तरह समझ रही थी. टीना ने फिर से अदाएं बिखेरते हुए कहा,”आज की रात तो नींद नहीं, चैन नहीं, है न भुवन”

5 -10 मिनट रुक कर वह जाने के लिए खड़ी हो गई. भुवन उसे घर छोड़ने चला गया. अनुषा ने सास से सवाल किया,” यह कौन है मांजी जो भुवन पर इतना अधिकार दिखा रही है?”

“देखो बेटा, अब तुम भुवन की पत्नी हो इसलिए इतना तो तुम्हें जानने का हक है ही कि वह कौन थी? दरअसल, बेटा तुम्हें उस को भुवन की जिंदगी में स्वीकार करना पड़ेगा. हमारी मजबूरी है बेटा. हम सब को भी उसे स्वीकार करना पड़ा है बेटे.”

“पर क्यों सासूमां ? क्या भुवन का उस के साथ कोई रिश्ता है?”

“ऐसा कोई रिश्ता तो नहीं बहू पर बस यह जान लो कि उस के बहुत से एहसान हैं हमारे ऊपर. वैसे तो वह उस की बौस है मगर भुवन को इस मुकाम तक पहुंचाने में काफी मदद की है उस ने. अपने पावर का उपयोग कर भुवन को काफी अच्छा ओहदा दिया है. बस भुवन पसंद है उसे और कुछ नहीं.”

“इतना कम है क्या सासूमां ?”वह तो पत्नी की तरह हक दिखाती है भुवन पर.”

बहु कभीकभी हमें जिंदगी में समझौते करने पड़ते हैं. 1-2 बार भुवन ने जौब छोड़ने की भी कोशिश की. मगर उस ने आत्महत्या की धमकी दे डाली. भुवन के प्रति आकर्षित है इसलिए उस को अपने औफिस से निकलने भी नहीं देती.”
तब तक ससुरजी उसे समझाने आ गए, “सच कहूं बहू तो उस ने काफी कुछ किया है हमारे लिए. मेरे हार्ट की सर्जरी कराने में भी पानी की तरह पैसे बहाए. इन सब के बदले भुवन का थोड़ा वक्त ही तो लेती है. सुबह भुवन 1 घंटे जल्दी चला जाता है ताकि उस के साथ समय बिता सके और रात में थोड़ा अधिक रुक जाता है. बस, इतनी ही डिमांड है उस की.”

“यदि टीना को भुवन इतना ही पसंद था तो उसी से शादी क्यों नहीं करा दिया आप लोगों ने? मेरी जिंदगी क्यों खराब की?”

“बेटा टीना शादीशुदा है. उस की शादी भुवन से हो ही नहीं सकती.”

शादी के दूसरे दिन ही अपनी जिंदगी में आए इस कड़वे अध्याय को पढ़ कर अनुषा विचलित हो गई थी. सोचा मां को हर बात बता दे और सब कुछ छोड़ कर मायके चली जाए. मगर फिर मां की कही बातें याद आ गईं कि हमेशा धैर्य बनाए रखना.

आधे घंटे में भुवन वापस लौट आया. खापी कर और बरतन निबटा कर जब अनुषा अपने कमरे में पहुंची तो देखा भुवन टीना से बातें कर रहा है. अनुषा को देखते ही उस ने फोन काट दिया और अनुषा को बांहों में भरने लगा. अनुषा छिटक कर अलग हो गई और उलाहने भरे स्वर में बोली,” मेरी सौतन से बातें कर रहे थे?”

भुवन हंस पड़ा,”अरे यार सौतन नहीं है वह. बस मुझ पर मरती है और मैं भी उस के साथ थोड़ाबहुत हुकअप कर लेता हूं. बस और क्या. खूबसूरत है साथ चलती है तो अपना भी स्टैंडर्ड बढ़ जाता है. ”

बेशर्मी से बोलते हुए भुवन सहसा ही सीरियस हो गया,” देखो अनुषा, जीवनसाथी तो तुम ही हो मेरी. मेरे जीवन का हर रास्ता लौट कर तुम्हारे पास ही आएगा.”

‘वह तो ठीक है भुवन मगर ऐसा कब तक चलेगा? इस टीना को तुम में इतनी दिलचस्पी क्यों है ? कहीं न कहीं तुम भी उसे भाव देते होगे तभी तो उसे आगे बढ़ने का मौका मिलता है.”

“देखो यार, मेरा तो एक ही फंडा है, थोड़ी खुशी मुझे मिल जाती है और थोड़ी उसे. इस में गलत क्या हैऔफिस में मेरा पोजीशन बढ़ाती है और मैं उसे थोड़ा प्यार दे देता हूं. बस, इस से ज्यादा और कुछ नहीं. दिल में तो केवल तुम ही हो न…” कह कर भुवन ने लाइटें बंद कर दीं और न चाहते हुए भी अनुषा को समर्पण करना पड़ा.

समय इसी तरह निकलने लगा. लगभग रोजाना ही टीना घर आ धमकती.

वह जब भी आती भुवन के साथ फ्लर्ट करती, अदाएं बिखेरती और अनुषा पर व्यंग कसती.

एक दिन भुवन के बालों को अपनी उंगली में घुमाते हुए शोख आवाज में बोली,” एक राज बताऊं अनुषा, तुम्हारे काम आएगा. ”
अनुषा ने कोई जवाब नहीं दिया.

मगर टीना ने बोलना जारी रखा,” पता है, भुवन कब खुद पर काबू नहीं रख पाता?”

“कब?” भुवन ने टोका तो हंसते हुए टीना बोली, “जब कोई लड़की हलके गुलाबी रंग की नाइटी पहन कर उस के करीब जाए. फिर तो भुवन का खुद पर भी वश नहीं चलता.”

सुन कर भुवन सकपका गया और टीना हंसती हुई बोली, “वैसे अनुषा, एक बात और बताऊं,” भुवन के बिलकुल करीब पहुंचते हुए टीना ने कहा तो अनुषा का चेहरा गुस्से से लाल हो उठा.

अनुषा को और भी ज्यादा जलाती हुई टीना बोलने लगी,” काले टीशर्ट और ग्रे जींस में तुम्हारा पति इतना हैंडसम लगता है कि बस फिर दुनिया का कोई भी पुरुष तुम्हारे पति के आगे पानी भरे. ”

अनुषा ने कोई जवाब नहीं दिया मगर टीना ने अपने फ्लर्टी अंदाज में बोलना जारी रखा,” जानते हो भुवन, तुम्हारी कौन सी अदा और कौन सी चीज मुझे अपनी तरफ खींचती है?”

अनुषा का गुस्सा देख भुवन टीना के पास से उठ कर दूर खड़ा हो गया तो नजाकत के साथ उस के करीब से गुजरती हुई टीना बोली,” यह तुम्हारा सब जान कर भी अंजान बने रहने की अदा. तोबा दिल का सुकून छिन जाता है जब तुम्हारी निगाहों में अपनी मोहब्बत देखती हूं. चलो अब चलती हूं मैं वरना कोई गुस्ताखी न हो जाए मुझ से…”

इस तरह की बेशर्मियां टीना अकसर करती.

हनीमून पर जाने से 2 दिन पहले की बात है. उस दिन रविवार था. भुवन सुबह से ही अपने कंप्यूटर पर कुछ काम कर रहा था. अनुषा दोपहर के खाने की तैयारियों में लगी थी. तभी दरवाजे पर दस्तक हुई तो अनुषा ने जा कर दरवाजा खोला. सामने टीना खड़ी थी. खुले बाल, स्लीवलैस बौडीहगिंग टौप और जींस के साथ डार्क रैड लिपस्टिक में उसे देख कर अनुषा का चेहरा बन गया.

टीना नकली हंसी बिखेरती अंदर घुस आई और पूछा,” नई दुलहन आप के श्रीमान जी कहां हैं?

“वे अपने कमरे में काम कर रहे हैं.”

“ओके मैं मिल कर आती हूं.”

“आप बैठिए मैं बुला कर लाती हूं.”

अनुषा के इस कथन पर टीना ठहाके मार कर हंसती हुई बोली,” आंटी, सुना आप ने? आप की बहू तो मुझ से औपचारिकताएं निभा रही है. उसे पता ही नहीं कि मैं इस घर में किसी भी कमरे में किसी भी समय जा सकती हूं,” कहते हुए वह भुवन के कमरे की तरफ बढ़ गई.

अनुषा ने सवालिया नजरों से सास की तरफ देखा तो सास ने नजरें नीची कर लीं. टीना ने भुवन के कमरे में जा कर दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. करीब 1 घंटे बाद उस ने दरवाजा खोला. उतनी देर अनुषा के सीने में आग आग जलती रही. उसी समय जा कर उस ने हनीमून के टिकट फाड़ डाले. रात तक अपना कमरा बंद कर रोती रही.

सास ने उसे समझाते हुए कहा,” देख बहू, पुरुषों द्वारा 2 स्त्रियों के साथ संबंध बना कर रखना कोई नई बात तो है नहीं. सदियों से ऐसी बातें चली आ रही है. यहां तक कि देवीदेवता भी इस से विमुख नहीं. कृष्ण का ही उदाहरण ले जिन की 16 हजार रानियां थीं. रानी रुक्मणी के साथसाथ राधा से भी उन के संबंध थे. पांडु और राजा दशरथ की 3-3 पत्नियां थीं तो इंद्र ने भी अहिल्या के साथ…”

“मांजी आप प्लीज अपनी दलीलें मुझे मत दीजिए. मुझे मेरे दर्द के साथ अकेला रहने दीजिए. एक बात बताइए मांजी, आप को इस में कुछ भी गलत नहीं लग रहा? अगर ऐसा है और यह घर टूटता है तो आप इस का इल्जाम मुझ पर मत लगाइएगा ”

आगे पढ़ें- रोती हुई अनुषा बाथरोती हुई अनुषा बाथरूम में जा कर मुंह धोने लगी तो सास ने दबी आवाज मे कहा,” मैं समझती हूं तुम्हारा दर्द. देखो मैं एक बाबा को जानती हूं. बहुत पहुंचे हुए हैं. वे भभूत दे देंगे या कोई उपाय बता देंगे. सब ठीक हो जाएगा. तुम चलो कल मेरे साथ.”

अनुषा को बाबाओं और पंडितों पर कोई विश्वास नहीं था. मगर सास समझाबुझा कर जबरन उसे बाबा के पास ले गई. शहर से दूर वीराने में उस बाबा का आश्रम काफी लंबाचौड़ा था. आंगन में भक्तों की भीड़ बैठी हुई थी. बाबा की आंखें अनुषा को शराब जैसी जहरीली लग रही थी. उस पर बारबार बाबा का भक्तों पर झाड़ू फिराना फिर अजीब सी आवाजें निकालना. अनुषा को बहुत कोफ्त हो रही थी. उसे समझ नहीं आ रहा था कि टीना को उस की जिंदगी से दूर करने में भला बाबा की क्या भूमिका हो सकती है? इस के लिए तो उसे ही कुछ सोचना होगा. वह चुपचाप बैठ कर आगे का प्लान अपने दिमाग में बनाने लगी.

इधर कुछ समय में उस का नंबर आ गया. बाबा ने वासना पूरित नजरों से उस की तरफ देखा और फिर उस के हाथों को पकड़ कर पास बैठने का इशारा किया. अनुषा को यह छुअन बहुत घिनौनी लगी. वह मुंह बना कर बैठी रही. सास ने समस्या बताई. बाबा ने झाड़ू से उस की समस्या झाड़ देने का उपक्रम किया.

फिर बाबा ने उपाय बताते हुए कहा, “बच्ची तुम्हें 18 दिन केवल एक वक्त खा कर रहना होगा और वह भी नमकीन नहीं बल्कि केवल मीठा. इस के साथ ही 18 दिन का गुप्त अनुष्ठान भी चलेगा. काली बाड़ी के पास वाले मंदिर में रोजाना 11बजे मैं एक पूजा करवाउंगा. इस में करीब ₹90,000 का खर्च आएगा.”

“जी बाबा जी जैसा आप कहें,” सास ने हाथ जोड़ कर कहा.

अनुषा उस वक्त तो चुप रही मगर घर आते ही बिफर पड़ी,” मांजी, मुझे ऐसे उलजलूल उपायों पर विश्वास नहीं. मैं कुछ नहीं करने वाली. अब मैं अपने कमरे में जा रही हूं ताकि कोई बेहतर ढूंढ़ सकूं.”

अनुषा का गुस्सा देख कर सास चुप रह गईं. इधर अनुषा देर रात तक सोचती रही. वह इतनी जल्दी अपनी परिस्थितियों से हार मानने को तैयार नहीं थी. उस ने काफी सोचविचार किया और फिर उसे रास्ता नजर आ ही गया.

अनुषा ने पहले टीना के बारे में अच्छे से खोजखबर ली ताकि उस की कमजोर नस पकड़ सके. सारी जानकारियां एकत्र की. जल्द ही उसे पता लग गया कि टीना का पति रैडीमेड कपड़ों का व्यापारी है और पास के मार्केट में उस की काफी बड़ी शौप भी है. बस फिर क्या था अनुषा ने अपनी योजना के हिसाब से चलना शुरू किया.

सब से पहले एक ड्रैस खरीदने के बहाने वह उस दुकान में गई. दुकान का मालिक यानी टीना का पति विराज करीब 40 साल का एक सीधासादा सा आदमी था, जिस के सिर पर बाल काफी कम थे. वैसे पर्सनैलिटी अच्छी थी. अनुषा ने बातों ही बातों में बता दिया कि वह भी विराज के शहर की है. फिर क्या था विराज उस पर अधिक ध्यान देने लगा.

अनुषा ने एक महंगा सूट खरीदा और घर चली आई. 2-3 दिन बाद वह फिर उसी दुकान में पहुंची और कुछ कपड़े खरीद लिए. विराज ने उस के लिए स्पैशल चाय मंगवाई तो अनुषा भी बैठ कर उस से ढेर सारी बातें करने लगी. धीरेधीरे उस ने यह भी बता दिया कि उस का पति भुवन टीना के औफिस में काम करता है. विराज टीना और भुवन के रिश्ते के बारे में पहले से जानता था. इसलिए अनुषा से और भी ज्यादा जुङाव महसूस करने लगा.

अनुषा अब अकसर विराज की शॉप पर जाने लगी और उसे देर तक बातें भी करती. जल्द ही विराज से उस की दोस्ती इतनी गहरी हो गई कि विराज ने उसे घर आने को भी आमंत्रित कर दिया.

अगले ही दिन अनुषा टीना की गैरमौजूदगी में विराज और टीना के घर पहुंच गई. विराज ने उस की काफी आवभगत की और दोनों ने दोस्त की तरह साथ समय व्यतीत किया. चलते समय अनुषा ने जानबूझ कर टीना के बैड पर कोने में अपना हेयर पिन रख दिया. रात में जब टीना ने वह हेयर पिन देखा तो बौखला गई और विराज से सवाल करने लगी. विराज ने किसी तरह बात को टाल दिया.

मगर 2 दिन बाद ही अनुषा फिर विराज के घर पहुंच गई. इस बार वह बाथरूम में अपना दुपट्टा लटका आई थी.

टीना ने जब लैडीज दुपट्टा बाथरूम में देखा तो आपे से बाहर हो गई और विराज पर उंगली उठाने लगी,” यह दुपट्टा किस का है विराज, बताओ किस के साथ रंगरेलियां मना रहे थे तुम?”

“पागल मत बनो टीना. मैं तुम्हारी तरह किसी के साथ रंगरेलियां नहीं मनाता,” विराज का गुस्सा भी फूट पड़ा.

“तुम्हारी तरह? क्या कहना चाहते हो तुम? भूलो मत मेरे पिता के पैसों पर पल रहे हो. मुझ को धोखा देने की बात सोचना भी मत.”

“देखो टीना मैं मानता हूं एक महिला से मेरी दोस्ती हुई है. अनुषा नाम है उस का. मगर वह घर पर सिर्फ चाय पीने आई थी. यकीन जानो हमारे बीच ऐसा कुछ नहीं है जिसे तुम रंगरेलियां मनाना कह सको. ”

अब टीना थोड़ी सावधान हो गई थी. उसे महसूस होने लगा था कि बदला लेने के लिए अनुषा उस के पति पर डोरे डाल रही है. टीना ने अब भुवन के घर आनाजाना कम कर दिया मगर उस के साथ वक्त बिताना नहीं छोड़ा.

इधर अनुषा फिर से विराज के घर पहुंची. इस बार वह विराज के लिए खूबसूरत सा गिफ्ट ले कर आई थी. यह एक खूबसूरत कविताओं का संग्रह था. विराज को कविताओं का बहुत शौक था. 2-3 घंटे दोनों कविताओं पर चर्चा करते रहे. इस बीच योजनानुसार अनुषा ने अपनी इस्तेमाल की हुई एक सैनिटरी नैपकिन टीना के बाथरूम के डस्टबिन में डाल दिया. फिर विराज से इजाजत ले कर वह घर लौट आई.

अनुषा को अंदेशा हो गया था कि आज रात या कल सुबह टीना कोई न कोई ड्रामा जरूर करेगी. हुआ भी यही. सुबहसुबह टीना अनुषा के घर धमक आई.

वह बाहर से ही चिल्लाती आ रही थी,” मेरे पति पर डोरे डाले तो अच्छा नहीं होगा अनुषा. मेरा पति सिर्फ मेरा है.”

हंसती हुई अनुषा किचन से बाहर निकली और बोल पड़ी,” मान लो मैं तुम्हारे पति पर डोरे डाल रही हूं. तो अब बताओ क्या करोगी तुम? मेरे पति पर डोरे डालोगी? वह तो तुम पहले ही कर चुकी हो. आगे बताओ और क्या करोगी?”

अनुषा का सवाल सुन कर वह बिफर पड़ी. चीखती हुई बोली,” खबरदार अनुषा मेरे पति की तरफ आंख उठा कर भी मत देखना. वरना तुम्हारे पति को नौकरी से निकाल दूंगी.”

“तो निकाल दो न टीना. मैं भी यही चाहती हूं कि वह तुम्हारे चंगुल से आजाद हो जाए. हंसी आती है तुम पर. मेरे पति के साथ गलत रिश्ता रखने में तुम्हें कोई दिक्कत नहीं. मगर तुम्हारे पति की और कोई देख भी ले तो तुम्हें समस्या हो जाती है. कैसी औरत हो तुम जो औरत का दर्द ही नहीं समझ सकतीं? दर्द तुम नहीं सह सकतीं वह दूसरों को क्यों देती हो?”

दूर खड़ा भुवन दोनों की बातें सुन रहा था. उस की आंखें खुल गई थीं. मन ही मन अनुषा की तारीफ कर रहा था. कितनी सचाई से उस ने गलत के खिलाफ आवाज उठाई थी.

अब तक टीना भी सब के आगे अपना मजाक बनता देख संभल चुकी थी. अनुषा की बातों का असर हुआ था या फिर खुद पर जब बीती तो उस जलन के एहसास ने टीना को सोचने पर विवश कर दिया था. उस के पास कोई जवाब नहीं था.

घर लौटते समय वह फैसला कर चुकी थी कि आज के बाद भुवन पर वह अपना कोई हक नहीं रखेगी.रूम में जा कर मुंह धोने लगी तो…

शक: क्या केतकी की कम हुई सुगना के लिए जलन

रोज  इसी समय वह काम से लौटती थी. उस के चारों बच्चे वहीं खेलते हुए मिलते थे. उसे ध्यान आया कि हो सकता है कि उस का पति मंगल आज बच्चों को उस की मां के घर छोड़ कर काम पर चला गया हो. वह कराहते हुए उठी और अपनेआप को घसीटते हुए मां के  घर की ओर चल पड़ी, जो उस के घर से मात्र एक फर्लांग की दूरी पर था. वहां पहुंच कर उस ने पाया कि मां अभी तक काम से नहीं लौटी थीं. उन के घर में भी ताला लगा हुआ था. निराश हो कर वह वापस लौटी और घर के सामने जमीन पर बैठ कर पति और बच्चों का इंतजार करने लगी.

वह रोज सवेरे 4 बजे सो कर उठती. घर का कामकाज निबटा कर पति व बच्चों के लिए दालभात पका कर काम पर निकल जाती थी. पति व बच्चे देर से सो कर उठते थे. मंगल बच्चों को खिलापिला कर उन्हें खेलता छोड़ कर काम पर निकल जाता. जब वह दोपहर में लौट कर आती तो उस के बच्चे घर के सामने गली के बच्चों के साथ खेलते मिलते. आज पहला मौका था कि सुगना को घर बंद मिला और बच्चे नहीं मिले. आसपास पूछताछ करने पर पता चला कि किसी ने भी मंगल व बच्चों को नहीं देखा था. ऐसा लगता था कि मंगल बच्चों को ले कर भोर होते ही कहीं चला गया था. सुगना को बाहर बैठेबैठे 2 घंटे हो गए थे. वह धीरेधीरे सुबकने लगी. आसपास औरतों व बच्चों की भीड़ जमा हो गई.

उस की पड़ोसिन केतकी, ईर्ष्यावश उस से बात नहीं करती थी पर सुगना की दयनीय स्थिति देख कर केतकी  को भी उस पर दया आ गई. उस ने उसे अपने घर के अंदर आ कर कुछ खा लेने व आराम करने को कहा पर सुगना नहीं मानी. उस ने रोतेरोते कहा कि जब तक वह मंगल व बच्चों को नहीं देख लेगी तब तक न तो वहां से कहीं जाएगी और न ही कुछ खाएगी.

केतकी का पति, बसंत अकसर सुगना को निहारा करता था, जिस के कारण वह मन ही मन उस से जलती थी और उस से बात नहीं करती थी. बसंत ही नहीं, बस्ती के सभी पुरुषों की नजरों का केंद्रबिंदु थी सुगना. वह 6 धनी परिवारों में मालिश का काम करती थी. उन घरों की मालकिनों को कुछ काम नहीं था. खाली बैठेबैठे उन के बदन में दर्द होता रहता. सुगना उन के हाथपैरों में मालिश करती. साथ ही, इधरउधर की बातें नमकमिर्च लगा कर सुना कर उन का मनोरंजन करती.

ये रईस स्त्रियां प्रसन्न हो कर सुगना को अपनी उतरी हुई पुराने फैशन की साडि़यां दे देतीं. सुगना जब जार्जेट, रेशम, शिफान, टसर व नायलोन की साडि़यां पहन कर निकलती तो बस्ती की स्त्रियों के सीनों पर सांप लोट जाते और पुरुष आहें भरने लगते. सभी उसे पाना चाहते, उस से बातें करने को लालायित रहते.

शाम घिरने लगी थी. धीरेधीरे बस्ती के पुरुष काम से लौैटने लगे थे. आते ही सभी मंगल और बच्चों की खोज में लग गए. वास्तव में उन्हें खोजने से ज्यादा उन की दिलचस्पी सुगना की कृपादृष्टि पाने में थी.

जब मंगल व बच्चों का कहीं पता नहीं चला तो सब ने सोचा कि शायद वह पास वाले गांव में अपने मातापिता के पास चला गया होगा. इस विचार के आते ही बस्ती के दारूभट्टी के नौजवान मालिक केवल सिंह ने सुगना की सहायता के लिए अपनेआप को पेश कर दिया. बस्ती के सभी पुरुषों के पास वाहन के नाम पर पुरानी घिसीपिटी साइकिलें ही थीं. केवल सिंह ही ऐसा रईस था जिस के पास एक पुरानी खटारा फटफटी थी.

केवल सिंह ने अपनी फटफटी पर एक और नौजवान को बैठाया और मंगल का पता लगाने पास वाले गांव में चला गया. केवल सिंह का सुगना के घर खूब आनाजाना था. मंगल जब दारू पी कर उस की दुकान में लुढ़क जाता तो वह उसे अपनी गाड़ी में लाद कर घर छोड़ने आता. हर रात ऐसा ही होता.

उसे मंगल से कोई लगाव नहीं था, बल्कि सुगना को आंख भर देखने तथा नशे में बेहोश मंगल की सेवा करने के बहाने सुगना के पास बैठने और उस से देर रात तक बतियाने का मौका पाने के लिए वह ऐसा करता था. मंगल का जब नशा टूटता तो वह आधी रात को सुगना को जगा कर खाना मांगता. जरा भी नानुकुर या देर होने पर वह सुगना को बुरी तरह पीटता. रात के सन्नाटे में सुगना की दर्दभरी चीखें महल्ले वाले सुनते पर क्या करते, पतिपत्नी का मामला था.

धुंधलका गहरा होने लगा था. केवल सिंह लौट आया था. मंगल सिंह अपने बच्चों के साथ अपने गांव भी नहीं गया था. इतना बड़ा ताला लगा कर आखिर गया कहां वह?  सब इस गुत्थी को सुलझाने में लगे हुए थे कि तभी किसी को घर के अंदर से बच्चों की दबीदबी सिसकियां सुनाई दीं. सब के कान खड़े हो गए. तुरंत 2 हट्टकट्टे नौजवानों ने दरवाजा तोड़ डाला.

अंदर का मंजर दिल दहलाने वाला था. मंगल का शरीर छत की मोटी बल्ली से लटका हुआ था. गले में बंधी थी सुगना की नाइलोन की साड़ी. वह मर चुका था. चारों बच्चे डरे हुए, सुबक रहे थे. देखते ही सुगना पछाड़ खा कर जमीन पर गिर कर बेहोश हो गई. स्त्रियों ने उस के ऊपर पानी डाला. होश में आते ही वह बच्चों से लिपट कर दहाड़ मार कर रोने लगी.

भीड़ में से ही किसी ने पुलिस को शिकायत कर दी. पुलिस ने आते ही जांचपड़ताल शुरू कर दी. ऐसा लगता था कि शराब के नशे में मंगल ने आत्महत्या कर ली थी. कमरे की एकमात्र खिड़की अंदर से बंद थी. बस्ती वाले मंगल की बुरी आदतों से परेशान तो थे ही. सभी ने उस के विरोध में बयान दिया. किसी पर भी शक की सुई नहीं घूम रही थी. पुलिस ने निष्कर्ष निकाला कि मंगल ने बाहर से ताला लगाया तथा खिड़की से कूद कर अंदर आ गया. अंदर से दरवाजा बंद कर के उस ने आत्महत्या कर ली. उस ने बच्चों को भी मारने की कोशिश की थी. पतीली में बचेखुचे दालभात की जांच से पता चला कि उस में अफीम मिलाई गई थी. मात्रा कम होने के कारण बच्चे बच गए थे.

आत्महत्या का कारण किसी को समझ में नहीं आ रहा था. एक नशेड़ी इतने ठंडे दिमाग से योजनाबद्ध काम करेगा यह बात पुलिस के गले नहीं उतर रही थी. बच्चे कुछ भी बताने में असमर्थ थे. कई दिन तक गहन पूछताछ और जांचपड़ताल के बाद भी पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला. सभी के बयान समान थे और केवल मंगल की ओर इशारा करते थे. पुलिस ने भी इस गरीब बस्ती के एक नशेड़ी की मौत के मामले में ज्यादा  सिर खपाने की जरूरत नहीं समझी और आत्महत्या का मामला दर्ज कर तुरंत फाइल बंद कर दी.

मिसेज दिवाकर के यहां सुगना काम करती थी. उन्हें घर के अन्य नौकरों से मंगल की मौत के बारे में पता चला तो उन्हें शराब की भट्ठी के मालिक केवल सिंह पर शक हुआ, क्योंकि वही ऐसा व्यक्ति था जिस का सुगना के यहां अधिक आनाजाना था. वह उस में जरूरत से ज्यादा रुचि भी लेता था. पर उन्होंने इस मामले में अपनी टांग अड़ाना उचित नहीं समझा.

मंगल की मौत को 1 माह ही बीता था कि केवल सिंह ने सुगना को चूडि़यां पहना कर अपनी पत्नी बना लिया. एक दिन की अनुपस्थिति के बाद सुगना सजीसंवरी, नई चूडि़यां खनकाती काम पर आई तथा मिसेज दिवाकर को अपने विवाह की सूचना दी. सुनते ही मिसेज दिवाकर भड़क गईं और बोलीं, ‘‘हाय मरी, तुझे तो रोज रात की मारपीट से मुक्ति मिल गई थी. फिर से क्यों जा पड़ी नरक में उसी मुए के साथ, जिस ने तेरे मंगल को मारा?’’

अनजाने में उन के मुख से उन के अंदर का दबा हुआ शक उजागर हो गया, पर अविचलित सुगना बोली, ‘‘अपने आदमी की मार भी कोई मार होती है. इस से बस्ती में इज्जत बढ़ती है. रही शादी की बात, तो महल्ले के सब बदमाशों से बचने के लिए किसी एक का हाथ थामना अच्छा है. आप क्या जानो, एक औरत का अकेले रहना कितना मुश्किल होता है. बिना आदमी के बस्ती के मनचले दारू पी कर मेरा दरवाजा पीटते थे. रात को सोने नहीं देते थे.’’

मिसेज दिवाकर को कुछ अटपटा सा लगा कि केवल सिंह पर उन के द्वारा लगाए हत्या के इल्जाम को सुन कर भी कोई प्रतिक्रिया उस ने व्यक्त नहीं की थी.

एक वर्ष बीत गया था. सुगना के पांव भारी थे. जच्चगी के लिए अस्पताल जाने से पहले उस ने अपनी छोटी बहन फागुन को घर व बच्चों की देखभाल के लिए बुलवा लिया. जब वह अस्पताल से नवजात बेटे के साथ घर लौटी तो उसे यह देख कर जबरदस्त धक्का पहुंचा कि उस के पति केवल सिंह ने उस की अनुपस्थिति में उस की बहन को चूडि़यां पहना कर अपनी पत्नी बना लिया है.

क्रोधित हो सुगना ने फागुन को बालों से पकड़ कर घसीटा और खदेड़ कर बाहर निकाल दिया. केवल सिंह के ऊपर फागुन का जबरदस्त नशा चढ़ा हुआ था. उसे अपनी नईनवेली पत्नी का अपमान सहन नहीं हुआ. उस ने कोने में  पड़ी हुई  कुल्हाड़ी उठा कर सुगना की टांग पर दे मारी. कुल्हाड़ी मांस फाड़ कर हड्डी के अंदर तक धंस गई. सुगना बेहोश हो कर गिर पड़ी. टांग से बहते खून की धार तथा रोते हुए नवजात शिशु को देख केवल सिंह के मन में पश्चाताप होने लगा. शोरगुल सुन सब पड़ोसी इकट्ठे हो गए. जिस अस्पताल से सुगना थोड़ी देर पहले वापस आई थी फिर वहीं दोबारा भरती हो गई.

केवल सिंह बड़ी लगन से तब तक उस की सेवा करता रहा जब तक वह पूरी तरह स्वस्थ व समर्थ नहीं हो गई. सुगना उस की सेवा से खुश कम थी और दुखी ज्यादा थी क्योंकि केवल सिंह ने फागुन को घर से नहीं निकाला था.

बेचारी दुखी सुगना क्या करती. उस ने अपनी पूरी आशाएं अपने नवजात बेटे पर टिका दी थीं. उस ने निश्चय किया कि वह बेटे को सेना में भरती कराएगी. जब वह लड़ाई में मारा जाएगा तो उसे सरकार लाखों रुपया देगी और उन रुपयों से वह अपनी मालकिनों की तरह ऐशोआराम से रहेगी. इसलिए उस ने अपने बेटे का नाम कारगिल रख दिया.

सुगना की विचित्र निष्ठुर कामना सुन कर मिसेज दिवाकर के रोंगटे खड़े हो गए. बड़ा ही क्रूर लगा उन्हें नवजात शिशु को बड़ा कर उस की मौत की कल्पना करना और अपने ऐशोआराम के लिए उसे भुनाना.

थोड़े ही दिन बीते थे कि एक दिन केवल सिंह अपनी नई  पत्नी फागुन के साथ हमेशा के लिए कहीं चला गया. साथ में ले गया अपना नन्हा पुत्र कारगिल. सुगना का धनपति बनने का सपना धरा रह गया. 2 बार ब्याही सुगना फिर से अकेली रह गई थी.

वर्षा के दिन थे. सुगना की टांग का घाव भर गया था, पर दर्द की टीस अब भी उठती थी. पति और उस की सगी बहन ने मिल कर जो छल उस के साथ किया था उस ने उसे अंदर से भी घायल कर दिया था. एक दिन वर्षा में भीगती सुगना जब मिसेज दिवाकर के यहां पहुंची तो उसे तेज बुखार था. अपनी साइकिल बाहर खड़े उन के ड्राइवर को थमा बड़ी मुश्किल से वह बरामदे तक पहुंची ही थी कि गिर कर बेहोश हो गई. जब वह होश में आई तो मिसेज दिवाकर ने अपने ड्राइवर से उस को कार में ले जा कर डाक्टर गर्ग से दवा दिलवा कर घर छोड़ आने को कहा.

आगे की सीट पर बैठी सुगना का सिर निढाल हो कर ड्राइवर गोपी के कंधे पर लुढ़क गया तो उस ने उसे हटाया नहीं. उसे बड़ा भला सा लग रहा था.

डाक्टर से दवा दिलवा कर गोपी उस को घर पहुंचाने गया. वहां उस को सहारा दे कर अंदर तक ले गया. इस के बाद भी उस का मन नहीं माना. वह उसे देखने उस के घर बराबर जाता तथा यथासंभव उस की सहायता करता. 3 दिन के बुखार में गोपी और सुगना बहुत करीब आ गए थे. चौथे ही दिन गोपी ने सुगना के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा. सुगना सहर्ष तैयार हो गई. गोपी ने उसे चूडि़यां पहना कर अपनी पत्नी बना लिया.

मिसेज दिवाकर को सुगना का पुनर्विवाह तनिक भी नहीं भाया. वह गुस्से से चीखीं, ‘‘कुदरत तुझे बारबार खराब  पुरुषों से मुक्ति दिलाती है, फिर चैन से अकेले क्यों नहीं रहती? अपनी मां के साथ रहने में तुझे क्या तकलीफ है?’’

सुगना बड़ी सहजता से बोली, ‘‘अकेली औरत जात को कोई तो रखवाला चाहिए.’’

मिसेज दिवाकर ने सुगना की समस्या से अपने को अलग रखने की ठान ली.

एक दिन मिसेज दिवाकर ने सुगना से धुले कपड़ों का गट्ठर इस्तरी वाले के ठेले तक अपनी साइकिल पर रख कर पहुंचाने को कहा. गट्ठर बड़ा होने के कारण साइकिल के कैरियर पर ठीक से नहीं बैठ रहा था. यह देख कर मिसेज दिवाकर बोलीं, ‘‘सुगना, तुझे ठीक से गांठ बांधनी भी नहीं आती. कपड़े बाहर निकल रहे हैं.’’

‘‘मांजी, चिंता मत कीजिए. गांठ लगानी मुझे खूब आती है. मंगल के लिए कैसी मजबूत गांठ लगाई थी मैं ने,’’ अकस्मात सुगना के मुंह से निकला.

ऐसा कहते हुए उस ने आंखें ऊपर उठाईं. उस की आंखों में शैतानी चमक देख कर मिसेज दिवाकर सहम उठीं. अंदर दबा हुआ शक उभर कर ऊपर आ गया था. उन्होंने सोचा, ‘तो मेरा शक सही था. मंगल ने आत्महत्या नहीं की थी. सुगना ने ही उसे मारा था.’

स्तब्ध मिसेज दिवाकर अपना सिर दोनों हाथों में थाम कर सोफे पर धम्म से बैठ गईं.

‘सुगना, हत्यारिन मेरे घर में, और मुझे पता ही नहीं चला.’ सोचसोच कर वह हैरान व परेशान थीं.

उन के शरीर में भय से सिहरन दौड़ गई. अब इतने अरसे बाद किस से कहें और किस से शिकायत करें. अपराधी को अपने दुष्कर्म की सजा मिलनी ही चाहिए. पर उन के पास कोई सुबूत भी नहीं था. था केवल शक. कौन सुनेगा उन के शक को? अगर सुगना को सजा दिलवा भी दी तो उस के बच्चों का क्या होगा? सोचते सोचते उन के सिर में दर्द होने लगा.

और सुगना, अनजाने में अपना अपराध प्रकट कर बैठी थी. अपने अपराध के प्रकटीकरण से बेखबर मिसेज दिवाकर के हृदय की हलचल से अनभिज्ञ बढ़ी चली जा रही थी अपने गंतव्य की ओर.

ये भी पढ़ें- का से कहूं: क्यों मजबूर थी सुकन्या

अजब मृत्यु: क्या हुआ था रमा के साथ

कितनी अजीब बात है न कि किसी की मौत की खबर लोगों में उस के प्रति कुछ तो संवेदना, दया के भाव जगाती है लेकिन जगत नारायण की मौत ने मानो सब को राहत की सांस दे दी थी. अजब मृत्यु थी उस की. पांडवपुरी कालोनी के रैजिडैंस वैलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष 75 वर्षीय सदानंद दुबेजी नहीं रहे. अचानक दिल का दौरा पड़ने से 2 दिन पहले निधन हो गया. सदा की तरह इस बार भी आयोजित शांतिसभा में पूरी कालोनी जुटी थी. दुबेजी की भलमनसाहत से सभी लोग परिचित थे. सभी एकएक कर के स्टेज पर आते और उन की फोटो पर फूलमाला चढ़ा कर उन के गुणगान में दो शब्द व्यक्त कर रहे थे.

कार्यक्रम समाप्त हुआ, तो सभी चलने को खड़े हुए कि तभी चौकीदार गोपी ने भागते हुए आ कर यह खबर दी कि बी नाइंटी सेवन फ्लैट वाले जगत नारायण 4 बजे नहीं रहे. सभी कदम ठिठक गए. भीड़ में सरगर्मी के साथ सभी चेहरों पर एक राहत की चमक आ गई. ‘‘अरे नहीं, वो नल्ला?’’ ‘‘सच में? क्या बात कर रहे हो.’’ ‘‘ऐसा क्या?’’ सभी तरहतरह से सवाल कर समाचार की प्रामाणिकता पर सत्य की मुहर लगवाना चाह रहे थे. लोगों के चेहरों पर संतोष छलक रहा था. ‘‘हांहां, सही में साब, वहीं से तो लौट रहा हूं. सुबह भाभीजी ने कहा तो भैयाजी लोगों के साथ क्रियाकर्म में गया. सब अभी लौटे हैं, उस ने अपनी चश्मदीद गवाही का पक्का प्रूफ दे दिया.

‘‘चलो, अच्छा हुआ. फांस कटी सब की.’’ ‘‘कालोनी की बला टली समझो.’’ ‘‘अपने परिवार वालों की भी नाक में दम कर रखा था कम्बख्त ने, ऐसा कोई आदमी होता है भला?’’ ‘‘तभी उस के परिवार का कोई दिख नहीं रहा यहां, वरना कोई न कोई तो जरूर आता. मानवधर्म और सुखदुख निभाने में उस के घर वाले कभी न चूकते.’’ सभी जगत नारायण से दुखी हृदय आज बेधड़क हो बोल उठे थे. वरना जगत जैसे लड़ाके के सामने कोई हिम्मत न जुटा पाता. अपने खिलाफ कुछ सुन भर लेता, तो खाट ही खड़ी कर देता सब की, उस की पत्नी नम्रता के लाख कहने पर भी वह किसी के मरने के बाद की शोकसभा आदि में कभी नहीं गया. नम्रता और उस के 3 बच्चे जगत से बिलकुल अलग थे. पास ही में अपने परिवार के साथ रहने वाली जगत की जुड़वां बहन कंचन अपने भाई से बिलकुल उलट थी.

अपने पति शील के साथ ऐसे मौके पर जरूर पहुंचती. ननदभाभी की एक ही कालोनी में रहते हुए भी, ऐसे ही कहीं बातें हो पातीं, क्योंकि जगत ने नम्रता को अपने घरवालों से बात करने पर भी पाबंदी लगा रखी थी. कहीं चोरीछिपे दोनों की मुलाकात देख लेता, तो दूर से ही दोनों को गालियां निकालना शुरू कर देता. पिछली बार हीरामल के निधन पर दोनों इकट्ठी हुई थीं. तभी लोगों को हीरामल का एकएक कर गुणगान करते देख नम्रता बोल उठी थी, ‘देख रही हो कंचन, भले आदमी को कितने लोग मरने के बाद भी याद करते हैं. तुम्हारे भैया तो तब भी उन्हें नहीं पूछते, उलटे गालियां ही निकालते हैं, इन के खयाल से तो इन के अलावा सारी दुनिया ही बदमाश है.’

‘नम्रता, भाई मत कहो. किसी से उस की बनी भी है आज तक? जब अम्माबाबूजी को नहीं छोड़ा. दोनों को जबान से मारमार कर हौस्पिटल पहुंचा दिया. खून के आंसू रोते थे वे दोनों, इस की वजह से. ‘शिव भैया और हम तीनों बहनें उस की शिकार हैं. समय की मारी तुम जाने कहां से पत्नी बन गई इस की. मैं तुम्हें पहले मिली होती तो तुम्हें इस से शादी के लिए मना ही कर देती. तुम्हारे सज्जन सीधेसादे पिता को इस ने धोखा दे कर तुम जैसी पढ़ीलिखी सिंपल लड़की से ब्याह रचा लिया, कि बस इसे ढोए जा रही हो आज तक. अरे कैंसर कोई पालता थोड़ी है, कटवा दिया जाता है. बच्चे भी कैसे निभा रहे हैं जंगली, घमंडी धोखेबाज बाप से. ‘क्या जिंदगी बना रखी है तुम सब की. कोई सोशललाइफ ही नहीं रहने दी तुम सब की. सब से लड़ाई ही कर डालता है. इस के संपर्क में आया कोई भी ऐसा नहीं होगा जिस से उस की तूतू मैंमैं न हुई हो. सब से पंगा लेना काम है इस का, फिर चाहे बच्चाबूढ़ाजवान कोई भी हो.

जब मरेगा तो कोई कंधा देने को आगे नहीं बढ़ेगा.’ सच ही तो था कामधाम कोई था नहीं उस के पास. फिर भी जाने किस अकड़ में रहता. सब से दोगुना पैसा वापस देने का झांसा दे कर टोपियां पहनाता रहता. वापस मांगने पर झगड़ा करता, मूल भी बड़ी मुश्किल से चुकाता. इसी से कोई भी उसे मुंह नहीं लगाना चाहता. पैसा जब तक कोई देता रहता तो दोस्त, वरना जानी दुश्मन. चाहे बहन की ससुराल का कोई हो, पड़ोसी, रिश्तेदार हो, पत्नी की जानपहचान का हो या बच्चों के फ्रैंड्स के पेरैंट्स. किसी से भी मांगने में उसे कोई झिझक न होती. यहां तक कि सब्जीवाले, प्रैसवाले, कालोनी के चौकीदार के आगे 10-20 रुपए के लिए भी उसे हाथ फैलाने में कोई शर्म न आती. बच्चे उस की हरकत से परेशान थे. नम्रता से कहते, ‘फार्म में पिता के व्यवसाय कालम में हमें यही डालना चाहिए लड़ना, झगड़ना टोपी पहनाना.’ ‘इन के कुहराम जिद और गालीगलौज से परेशान हो इन का झगड़ा सुलटाने चली जाती थी.

पर अब तो तय कर लिया, कोई इन्हें पीटे, तो भी नहीं जाऊंगी,’ नम्रता ने कहा. ‘बिलकुल ठीक, न इस के साथ जाने की जरूरत है न कोईर् पैसा देने की. झूठा एक नंबर का. गाता फिरता है कि कंपनी में इंजीनियर था, पैसा नहीं दिया उन लोगों ने तो उन की नौकरी को लात मार के चला आया. कहां का इंजीनियर, बड़ी मुश्किल से 12वीं पास की थी. अम्मा ने किसी तरह सिफारिश कर इसे कालेज में ऐडमिशन दिलाया था. 6 महीने में ही भाग छूटा वहां से, पर इस के सामने कौन कुछ कहे. सड़क पर ही लड़ने बैठ जाएगा. दिमाग का शातिर और गजब का आत्मविश्वासी. ‘देखदेख कर ठेकेदारी के गुर सीख गया. अपने को इंजीनियर बता कर ठेके पर काम हथिया लेता पर खुद की घपलेबाजी के चलते मेजर पेमेंट अटक जाती. फिर उन्हें गालियां बकता फिरता, ‘छोड़ूंगा नहीं सालों को, सीबीआई, कोर्ट, पुलिस सब में मेरी पहचान है. गौड कैन नौट बी चीटेड, उस का पसंदीदा डायलौग. पर सब से बड़ा चीटर तो वह खुद है. हम बहनें तो 10 सालों से इसे राखी तक नहीं बांधतीं, भैया दूज का टीका तो दूर की बात. तुम ने तो देखा ही है. ‘अरे उधर देखो नम्रता, वहां बैठा जगत कुछ खा रहा था. कोई मरे चाहे जिए, जन्म का भुक्खड़. फिर हमें साथ देख लिया तो हम दोनों की शामत. लड़ने ससुराल तक पहुंच जाएगा, नजरें बहुत तेज हैं शैतान की.

चलो बाय.’ कंचन कह कर चली गई थी. नम्रता और कंचन के इस वार्त्तालाप को अभी महीनाभर ही तो हुआ होगा कि कंचन के जगत के प्रति कहे हृदय उद्गार लोगों के मुख से सही में श्रद्धांजलि सुमन के रूप में निकल रहे थे. ‘‘हां भई, हां, सही खबर है. आज सुबह तड़के ही उस नामुराद, नामाकूल जगत ने आखिरी सांस छोड़ी. बड़ा बेवकूफ बनाया था उस ने सब को,’’ सिद्दीकी साहब ने यह कहा तो ललितजी मजे लेते हुए बोल उठे, ‘‘चलो अच्छा हुआ, बड़ा कहता फिरता था ब्रह्म मुहूर्त में पैदा हुआ हूं, कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता. ब्रह्म मुहूर्त ने ही उसे मार डाला.’’ ‘‘कलेजे विच ठंड पै गई, मैनु इत्ता दुखी कीता इत्ता कि पुच्छो न. साडे वास्ते तो वडी चंगी गल हैगी,’’ गुरमीत साहब मुसकरा पड़े. जगत के घर से तीसरे घर में रहने वाले मिस्टर गौरव हैरान थे, बताने लगे, ‘‘अरे, कल ही तो शाम को देखा था उसे, गालियां निकालते, लंगड़ाते हुए अपने गेट में घुस रहा था. आंखों के नीचे बड़े काले निशान देख कर लग रहा था कि फिर कहीं से पिट कर आया है. उस की हालत देख कर मुझे हंसी आ रही थी, लेकिन कैसे पूछे कोई, कौन मुंह लगे, सोच मैं अंदर हो लिया.’’ ‘‘समझ नहीं आ रहा परिवार वालों को शोक संवदेना दें या बधाई,’

’ गणेश मुसकराते हुए बोले थे. ‘‘अजब संयोग हुआ, कहां नम्रता बिटिया कालेज की लैक्चरार, इतनी पढ़ीलिखी, समझदार, एक संभ्रांत परिवार से और कहां यह स्वभाव से उद्दंड, गंवार. जगत लगता ही नहीं था उस का पति किसी भी ऐंगल से. बिटिया के मांबाप तो पहले ही इस गम में चल बसे.’’ ‘‘नम्रता बहन की वजह से तीनों बच्चे पढ़ाई के साथसाथ संस्कारों में भी अच्छे निकल गए. बेटी स्टेट बैंक में पीओ हो गई, बेटा आस्तिक आईएस में सलैक्ट हो कर ट्रेनिंग पर जा रहा है, छोटी बेटी आराध्या बीटेक के आखिरी साल में पहुंच गई है,’’ ललितजी बोले थे. ‘‘बगैर उचित सुखसुविधाओं के, उस के आएदिन कुहराम के बीच बच्चों की मेहनत, काबिलीयत और नम्रता भाभी की मेहनत का फल है. वरना उस ने तो अपनी तरफ से बच्चे को लफडि़या बनाने में कोई कसर न छोड़ी थी, पढ़ने नहीं देता उन को. कहता, इतना दिमाग खपाने की क्या जरूरत है, पैसे दे कर आराम से पास करा दूंगा,’’ गौरव ने टिप्पणी की. ‘‘वह तो कहो बापदादा का घर है, वरना तो जो कमाई बताता वह उस की लड़ाई के मारे हमेशा अटकी ही पड़ी रही.

परिवार को सड़क पर ही ले आता. बिटिया और बच्चों ने बड़ी ज्यादती बरदाश्त की इस की. अच्छा हुआ गया. बेचारों को चैन की सांस तो आएगी,’’ कह कर गणेश मुसकराए. ‘‘इसलिए, अब तय रहा शोकसंवेदना का कोई औचित्य नहीं. हम सब एकत्रित जरूर हैं लेकिन उस के प्रति अपनीअपनी भड़ास निकालने के लिए,’’ कह कर सोमनाथ मुसकराए थे. ‘‘अंकल, आप वहीं से बैठेबैठे कुछ बोलिए, जगत के पिता आप के अच्छे मित्रों में से थे,’’ सोमनाथ मिस्टर अखिलेश के पास अपना माइक ले आए थे. ‘‘अरे, जब वह छोटा था तब भी सब की नाक में दम कर रखा था उस ने. स्कूल, कालोनी में अकसर मारपिटाई कर के चला आता. टीचरों से भी पंगे लेता. कभी उन के बालों में च्यूइंगम तो कभी सीट पर उलटी कील ठोंक आता. उस से बेहद तंग आ कर पिता बद्री नारायण अपनी कच्ची गृहस्थी छोड़ कर चल बसे. पर 10-12 साल के जगत को कोई दर्द नहीं, उलटे सब से बोलता फिरता, ‘मर गए न, बड़ा टोकते थे खेलने से रोकेंगे और मना करें.’ एक साहित्यकार के बेटे ने जाने कहां से ये शब्द सीख लिए थे. ‘‘गुस्से के मारे उन की अंतिम विदाई में उन्हें अंतिम समय देखा तक नहीं और अंदर ही बैठा रहा, बाहर ही नहीं आया.

मां रमा रोतीपीटती ही रह गई थी. पहले मंदबुद्धि बड़े लड़के के बाद 2 लड़कियां, फिर जगत, 5वीं फिर एक लड़की. जगत के जन्म पर तो बड़ा जश्न मना. बड़ी उम्मीद थी उस से. पर जैसेजैसे बड़ा होता गया, कांटे की झाडि़यों सा सब को और दुखी करता गया.’’ अखिलेश अंकल बताए जा रहे थे. अखिलेश अंकल की बातें सुन कर कंचन बोल उठी, ‘‘आज मैं भी जरूर कुछ कहूंगी. अम्मा जब तक जिंदा थीं, आएदिन के अपने झगड़े से उन्हें परेशान कर रखा था उस ने. सब से लड़ताझगड़ता और मां बेचारी झगड़े सुलटाती माफी ही मांगती रहतीं. बाबूजी के दफ्तर में अम्मा को क्लर्क की नौकरी मिल गई थी. कम तनख्वाह से सारे बच्चों की परवरिश के साथ जगत की नितनई फरमाइशें करतीं लेकिन जब पूरी कर पाना संभव न हो पाता तो जगत उन की अचार की बरनी में थूक आता, आटे के कनस्तर में पानी, तो कभी प्रैस किए कपड़े फर्श पर और उन का चश्मा कड़ेदान में पड़े मिलते. ऊंची पढ़ीलिखी नम्रता से धोखे से शादी कर ली, बच्चे पढ़ाई में अच्छे निकल गए. वैसे वह तो सभी को अंगूठाछाप, दोटके का कह कर पंगे लेता रहता. उस के बच्चों पर दया आती,’’ अपनी बात कह कर कंचन ने माइक शील को दे दिया.

‘‘कुछ शब्द ऐसे रिश्तेदार को क्या कहूं. मेरे घर में तो घर, मेरी बहनों की ससुराल में भी पैसे मांगमांग कर डकार गया. कुछ पूछो तो कहता, ‘कैसे भूखेनंगे लोग हैं जराजरा से पैसों के लिए मरे जा रहे हैं. भिखारी कहीं के. चोरी का धंधा करते हो, सब को सीबीआई, क्राइम ब्रांच में पकड़वा दूंगा. बचोगे नहीं,’ उसी के अंदाज में कहने की कोशिश करते हुए शील ने कहा. उस के बाद कई लोगों ने मन का गुस्सा निकाला. सीधेसादे सुधीर साहब बोल उठे, ‘‘मुझ से पहले मेरा न्यूजपेपर उठा ले जाता. उस दिन पकड़ लिया, ‘क्या ताकझांक करता रहता है घर में?’ तो कहने लगा, ‘अपनी बीवी का थोबड़ा तुझ से तो देखा जाता नहीं, मैं क्या देखूंगा.’ ‘‘मैं पेपर उस के हाथों से छीनते हुए बोला, ‘अपना पेपर खरीद कर पढ़ा कर.’ तो कहता ‘मेरे पेपर में कोई दूसरी खबर छपेगी?’ मैं उसे देखता रह जाता.’’ कह कर वे हंस पड़े. अपनी भड़ास निकाल कर उन का दर्द कुछ कम हो चला था. ‘‘अजीब झक्की था जगत. मेरी बेटी की शादी में आया तो सड़क से भिखारियों की टोली को भी साथ ले आया. बरात आने को थी, प्लेटें सजासजा कर भिखारियों को देने लगा. मना किया तो हम पर ही चिल्लाने लगा, ‘8-10 प्लेटों में क्या भिखारी हो जाओगे.

आने दो बरातियों को, देखूं कौन रोकता है?’ ‘‘जी कर रहा था सुनाऊं उस को पर मौके की नजाकत समझ कर चुप रहना मुनासिब समझा.’’ उस दिन न कह पाने का मलाल आज खत्म हुआ था, जगत के फूफा रविकांत का और अपनी बात कह कर वह मुसकरा उठे थे. गंगाधर ने हंसते हुए अपनी घड़ी की ओर अचानक देखा और फिर बोले, ‘‘भाइयो और बहनो, शायद सब अब अपनेअपने मन को हलका महसूस कर रहे होंगे, हृदय को शांति मिल गई हो, तो सभा विसर्जित करते हैं.’’ सभी ने सहमति जाहिर की और एकएक कर खड़े होने लगे थे कि लगभग भागता हुआ चौकीदार गोपी आ गया. उस के पीछे दोतीन और आदमी थे. जिन के हाथों में चायपानी का सामान था. ‘‘सुनीता भाभीजी जो जगत के घर के बराबर में रहती हैं, ने सब के लिए चाय, नमकीन बिस्कुट व समोसे भिजवाए हैं. मुझे इस के लिए पैसे दे गई थीं कि समय से सब को जरूर पहुंचा देना. पर ताजा बनवाने व लाने में जरूर थोड़ी देर हो गई. सारा सामान माखन हलवाई से गरमागरम लाया हूं.’’ गोपी अपने बंदों के साथ सब को परोस कर साथियों संग खुद भी खाने लगा. ‘‘भई वाह, कमाल है, न बाहर किसी को न घर में किसी को अफसोस. उलटे राहत ही राहत सब ओर. ऐसी श्रद्धांजलि तो न पहले कभी देखी न सुनी हो.’’

सभी के चेहरों की मंदमंद हंसी धीरेधीरे ठहाकों में बदलने लगी थी.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें