अपनी अपकमिंग फिल्म ‘सावी : ए ब्लडी हाउसवाइफ’ को ले कर दिव्या काफी उत्साहित हैं। फिल्म की दिलचस्प कहानी को ले कर उन्होंने क्या कहा, जानिए खुद उन्हीं से.
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अपनी अपकमिंग फिल्म ‘सावी : ए ब्लडी हाउसवाइफ’ को ले कर दिव्या काफी उत्साहित हैं। फिल्म की दिलचस्प कहानी को ले कर उन्होंने क्या कहा, जानिए खुद उन्हीं से.
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क्या आप का पार्टनर भी हमेशा यही सोचता है कि वह जो बोल रहा सही बोल रहा है, हर बात में नुक्स निकालता है और सिर्फ खुद को ही खुश रखना चाहता है? तो उसे एनपीडी है.क्या है यह और कैसे दिलाएं इस से छुटकारा, जानिए ऐक्सपर्ट की राय…
अभिनेत्री विद्या बालन ने बताए स्ट्रौंग रिलेशनशिप के राज…
फि ल्म ‘परिणीता,’ ‘लगे रहो मुन्ना भाई,’ ‘द डर्टी पिक्चर,’ ‘कहानी’ आदि कई फिल्मों से अपने अभिनय का लोहा मनवा चुकीं अभिनेत्री विद्या बालन स्वभाव से हंसमुख, विनम्र और स्पष्टभाषी हैं. ‘लगे रहो मुन्ना भाई’ फिल्म के कैरियर का टर्निंग पौइंट था. उस के बाद से उन्हें पीछे मुड़ कर नहीं देखना पड़ा. उन्होंने बेहतरीन परफौर्मैंस के लिए कई अवार्ड जीते. 2014 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया. विद्या बालन आज भी निर्मातानिर्देशकों की पहली पसंद हैं.
अपनी कामयाबी से विद्या खुश हैं और मानती हैं कि एक अच्छी स्टोरी ही एक सफल फिल्म दे सकती है. विद्या तमिल, मलयालम, हिंदी और अंगरेजी अच्छी तरह से बोल लेती हैं. विद्या ने हर तरह की फिल्में की हैं और वे हर किरदार से प्रभावित होती हैं, लेकिन उन्हें ऐक्शन पसंद नहीं. उन्हें कौमेडी और ड्रामा वाली फिल्में करने में मजा आता है.
विद्या के कामयाब जीवन में उन की मां का बहुत बड़ा योगदान है. वे कहती हैं, ‘‘मां ने मु झे खुद के बारे में सोचना सिखाया. 2007-08 में जब मेरी मेरे ड्रैस और वजन को ले कर काफी आलोचना की जा रही थी तो मैं ने अभिनय छोड़ने का मन बना लिया था पर तब मां ने मु झे सम झाया था कि मेहनत करने पर वजन घट जाएगा. किसी के कहने पर मैं हार नहीं मान सकती और मैं ने उन की बात मानी और आज यहां पर पहुंची हूं.’’ विद्या की फिल्म ‘दो और दो प्यार’ रिलीज हो चुकी है, जिस में उन के काम को दर्शक सराह रहे हैं.
खूबसूरत और सौफ्ट लुक की धनी होने के बावजूद आप ने बहुत सारी फिल्मों में एक स्ट्रौंग लड़की की भूमिका निभाई है, फिर चाहे शेरनी हो या कहानी आप का लुक बहुत सिंपल होता है, इस की वजह? यह पूछने पर विद्या कहती हैं, ‘‘मु झे ऐसा कभी महसूस नहीं हुआ क्योंकि जब भी कोई औफर हुआ तो लगा कि इस पहलू पर मैं ने कभी कोई डिस्कवर, एक कलाकार के रूप में नहीं किया. जब मैं किसी चरित्र को करने जाती हूं तो मैं खुद के बारे में भी डिस्कवर करती हूं कि यह भूमिका तो मैं ने कभी नहीं निभाई जैसे फिल्म ‘जलसा’ में. हर एक कहानी में नया पहलू खोजने का मौका मिलता है. ऐसा कभी नहीं लगा कि निर्देशक ने मु झे सही मौका नहीं दिया. मैं ने अपनी ब्यूटी के साथ सजधज कर कोई फिल्म नहीं की है. उम्मीद है आगे कोई ऐसी फिल्म अवश्य कर लूंगी.’’
विद्या कहती हैं, ‘‘मैं ने 10 साल बाद फिर से रोमांटिक फिल्म की है. मु झे यह जोनर काफी समय बाद मिला है. आजकल रोमांटिक और लव स्टोरी वाली फिल्में बहुत कम बन रही हैं. लव स्टोरी अब नहीं बन रही है. आज के सारे कंटैंट से मैं बहुत फैडअप हो चुकी हूं. दर्शक के रूप में भी मैं ऐसी फिल्में नहीं देखना चाहती. आज की फिल्मों में मारधाड़, ऐक्शन, गोली चलना, इंटैंस सींस आदि सब हैं. ये सारी फिल्में मु झे पसंद नहीं. उसी दौरान मु झे यह फिल्म मिली, जिस में हंसनाहंसाना, रोमांटिक कौमेडी आदि है, जिसे मु झे करना पसंद आया.
‘‘इस फिल्म में ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के साथसाथ लवर्स भी एकदूसरे को धोखा दे रहे हैं और मैं ने ऐसा कभी पहले नहीं सुना था. बहुत ही अलग कहानी है. हालांकि ऐसी कहानी देखने में बहुत फनी लगती है, लेकिन जिस के जीवन में होता है, उस के लिए यह अच्छी बात नहीं होती. लोग ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर करते हैं, लेकिन देखा जाए तो बाहर के रिश्ते से जो रिश्ता आप के पास होता है, वही सब से अच्छा रिश्ता होता है.’’
विद्या बताती हैं, ‘‘मेरा अनुभव है कि पतिपत्नी के लिए एकदूसरे के साथ लगातार समय बिताना बहुत जरूरी होता है, एकदूसरे के जीवन में क्या चल रहा हैं उस की चर्चा आवश्यक होती है. भले ही आप साथसाथ खाना खाते हैं, मूवी देखते हैं या लौंग ड्राइव पर जाते हैं आदि करते रहते हैं पर अधिक से अधिक समय एकदूसरे के साथ बिताना जरूरी होता है और अपनी भावनाओं को सहीसही एकदूसरे से शेयर करना भी आवश्यक होता है.
‘‘मैं हमेशा ऐसा करती हूं क्योंकि मैं किसी बात को ढक कर नहीं रख सकती. जो मेरे मन में होता है उसे उसी रूप में कह देती हूं. मेरे पति सिद्धार्थ रौय कपूर भी इस में मेरा पूरा साथ देते हैं और मु झे पूरा समय देते हैं. इस से कपल्स को नई चीजों को ट्राई करने का मौका मिलता है.
‘‘अगर कोई किसी रिश्ते को टिकाना चाहता है तो उसे बनाए रखने के लिए काउंसलर की मदद लें, उस पर कुछ वर्क करें, लेकिन अगर आप उस रिश्ते से बाहर आना चाहते हैं तो अपना समय नष्ट न करें क्योंकि आप को दूसरा प्यार मिल सकता है और आप को खुश रहने का एक अच्छा मौका भी मिल सकता है.’’
आज की जैनरेशन किसी भी रिलेशनशिप को अलग नजरिए से देखती है, जिसे विद्या कन्फ्यूजिंग मानती है. वे कहती हैं, ‘‘मैं इस दौर में सिंगल नहीं हूं. जैसे आज के यूथ किसी सामान को औनलाइन और्डर कर मांगने पर ठीक न होने पर वापस कर देने में विश्वास रखते हैं वैसा ही वे किसी रिश्ते के साथ भी करते हैं. अगर ठीक नहीं है तो वापस कर कुछ नया ट्राई करना पसंद करते हैं. नई जैनरेशन के लिए बहुत कन्फ्यूजिंग समय है.’’
विद्या कहती हैं, ‘‘एक चीज जो मैं भी यहां कहने से परहेज नहीं करती, मैगजीन के हर कवर पर महिलाओं का सैक्सी फोटो लगा दिया जाता है, जिसे पुरुष मजे से देखते हैं. किसी पुरुष का भी सैक्सी फोटो लगाने से वे क्यों कतराते हैं, मु झे पता नहीं. महिलाओं को भी अपनी आंखें सेंकने के लिए कुछ ऐसी चीजें होनी चाहिए. मु झे रणवीर सिंह का सैक्सी कवर बहुत अच्छा लगा था, जिस पर मैं ने कमैंट्स भी किए थे. केवल महिलाओं को आब्जैक्टिफाई न कर पुरुषों को भी आब्जैक्टिफाई करने की जरूरत है.’’
विद्या ‘भूलभुलैया 3’ में फिर से मंजूलिका की भूमिका निभा रही हैं, उन की यह अलग तरीके की भूमिका है, जिसे ले कर वे काफी खुश हैं और उम्मीद है कि दर्शक इसे जरूर पसंद करेंगे.
घरेलू तरीके नहीं, बच्चे के लिए चुनें सही बेबी केयर प्रोडक्ट्स…
न्यू ली बौर्न बच्चों की देखभाल मांओं के लिए हमेशा ही उलझन का टापिक रहा है. रूरल इलाकों में जौइंट फैमिलियों के चलते ये परेशानियां थोड़ी कम होती हैं लेकिन शहरों में न्यूक्लियर परिवारों में जहां मांएं ही बच्चे की देखभाल के लिए जिम्मेदार होती हैं वहां यह परेशानी थोड़ी बढ़ जाती है. अरबन इलाकों में मांएं अपने न्यूबौर्न बेबी की देखभाल के लिए घरेलू उपचारों पर भरोसा नहीं करतीं, इस के बजाय वे बाजार में मौजूद सही बेबी केयर प्रोडक्टस का इस्तेमाल करती है.
नए पैदा हुए बच्चे को समयसमय पर मां का दूध पिलाना जरूरी होता है, लेकिन कभीकभी कुछ विशेष कारणों से ऐसा करना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में फीडिंग बोतल सब से मददगार साबित होती है. फीडिंग बोतल बच्चों के लिए सब से जरूरी समान में से एक है. इस का चुनाव करते समय हमेशा ध्यान रखें कि बोतल ब्रैंडेड हो और सौफ्ट हो. ब्रैंडेड होने का मतलब यह नहीं है कि कोई महंगी बोतल खरीदी जाए लेकिन आप के लिए उस की क्वालिटी का ध्यान रखना बेहद जरूरी है.
शहरों में बैडशीट, सोफा बच्चों के कपडे़ ज्यादा गंदे न हों इस के लिए बच्चों को डायपर्स पहना दिए जाते हैं. एक डायपर 3-4 घंटे तक बच्चे द्वारा पहना जाता है. न्यूबौर्न दिन में कई बार सूसूपौटी करता है. ऐसे में पूरे दिन में एक बेबी के लिए 6-7 डायपर्स की जरूरत होती है. ऐसे में ऐसे डायपर्स का चुनाव करें जो बच्चे के लिए अनकंफर्टेबल न हों. उन्हें चुभें नहीं और न ही लिक्विड को सोखने में नाकामयाब हों. सौफ्ट मैटीरियल क्वालिटी के डायपर्स बेहतर होते हैं.
न्यूबौर्न बेबी की स्किन बहुत ही सैंसिटिव होती है, अकसर हलकी सी लापरवाही और खराब बेबी केयर प्रोडक्टस का इस्तेमाल उन्हें ऐलर्जी या रैशेज कर देता है. न्यूबौर्न के लिए डाई फ्री, फ्रैगरैंस फ्री और मैडिकली टैस्टेड प्रोडक्ट्स ही खरीदें. प्रोडक्ट्स खरीदते समय लेबल अच्छे से पढें़. इस में तेल, लोशन, साबुन वगैरह सामिल है.
सही से चुनाव न कर पाने पर बेबी को नुकसान भी हो सकते है जैसे बेबी के लिए क्रीम चुनते वक्त इनग्रीडिऐंट्स जरूर चैक कर लें. बेबी के के लिए ज्यादातर एक्सपर्ट्स फ्रूटी क्रीम लेने की सलाह देते हैं क्योंकि इस में हार्ड कैमीकल्स की मात्रा कम होती है और यह स्किन मौइस्चर के लिए अच्छी होती है.
बेबी के लिए सोप चुनते समय भी कुछ चीजों का ध्यान रखना होता है. सब से पहले इस बात को गांठ बांध लें कि कोई भी शैंपू या सोप नैचुरल नहीं होता है, हर साबुन में कई तरीके के कैमिकल्स मिलाए जाते हैं. न्यूबौर्न बेबी की स्किन मुलायम होती है इसलिए ऐसे सोप का इस्तेमाल करे जिस में हार्श कैमिकल न हो. अधिकतर आईएसओ सर्टीफाइड प्रोडक्ट ही लें.
ऐसा बेबी पाउडर चुनें जिस की खुशबू ज्यादा तेज न हो. अगर पाउडर में ज्यादा कैमिकल होंगे या खुशबू तेज होगी तो खुजली या रैशेज हो सकते हैं. पाउडर का इस्तेमाल करने के बाद बेबी की स्किन पर रैडनैस हो तो उस पाउडर को इस्तेमाल न करें और डाक्टर की सलाह लें. रैडनैस का इलाज करें. नहलाने के बाद शरीर सूखने दें उस के बाद पाउडर लगाएं.
इस का भी सेम ही रीजन है, औयल में ऐसे हार्श कैमिकल्स न हों जिन से बेबी की स्कैल्पा पर दाने या खुजली हो. बेबी के लिए नारियल तेल, सरसों के तेल या बादाम के तेल का इस्तेमाल बेहतर माना जाता है. मसाज करने के लिए भी आप इन तेलों में से ही किसी का चुनाव कर सकते हैं.
बेबी को लपेटने के लिए टौवेल जैसे मुलायम कपड़े की भी जरूरत पडती है. गर्भ से बाहर आए बेबी को आसपास के तापमान के अनुसार ढलने में थोड़ा वक्त लगता है इसलिए शुरुआती दिनों में उसे साफ और सौफ्ट तौलिए में अच्छी तरह लपेट कर रखने की जरूरत होती है. सही तरह से लपेटने से बेबी को आराम मिलता है और वह रोता भी नहीं है.
बेबी का तापमान वक्त पर नापने के लिए एक डिजिटल थर्मामीटर होना बहुत जरूरी हो जाता है. बाहर तापमान के बदलने के कारण अकसर बच्चों के शरीर के तापमान में भी बदलाव आता रहता है, जिस से शुरुआती दिनों में बच्चों को बुखार, जुकाम होने की संभावना बहुत ज्यादा हो जाती है. इसलिए उन का तापमान चैक करते रहना जरूरी हो जाता है. बच्चे का तापमान बढ़ने पर उसे तुरंत डाक्टर को दिखाएं.
कुत्तों को घरों और शहरों से दूर रखना जरूरी क्यों है, एक बार जानिए जरूर…
कें द्र सरकार के पशुपालन मंत्रालय ने 13 मार्च को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में खतरनाक नस्ल के रूप में चिह्नित किए गए कुत्तों जिन में पिटबुल टेरियर, साउथ रसियन शेफर्ड और अमेरिकन बुलडौग समेत 23 खतरनाक नस्ल के कुत्तों के आयात, प्रजनन और बिक्री पर प्रतिबंध लगाने का निर्देश जारी किया था. केंद्र ने राज्यों को खत लिख कर कहा था कि लोकल प्रशासन इन डौग्स की बिक्री और ब्रीडिंग के लिए लाइसैंस न जारी करे. इन ब्रीड्स के जो डौग्स पाले जा रहे हैं उन्हें स्टरलाइज कर दिया जाए ताकि आगे ब्रीडिंग को रोका जा सके. केंद्र सरकार के अनुसार इन कुत्तों की वजह से पशु कल्याण संस्थाएं और आम लोग परेशान होते हैं.
हालांकि कर्नाटक हाई कोर्ट ने इस बैन से इनकार किया और कहा कि इस तरह का सर्कुलर जारी करने से सरकार को पहले पालतू जानवरों के मालिकों और संबंधित संगठनों से परामर्श किया जाना चाहिए था और अगर ये पालतू जानवर किसी को नुकसान पहुंचाते हैं तो उस के लिए मालिक जिम्मेदार हैं.
राज्य और केंद्र सरकार के बीच इस मतभेद पर जाने के बजाय हम इस मुद्दे पर जरा गहराई से विचार करते हैं. देखा जाए तो केंद्र सरकार के इस फैसले की वजह हाल ही में बढ़ रहे डौग अटैक्स के मामले हैं.
11 मार्च, 2024 को उत्तर प्रदेश के अमरोहा में एक पिटबुल ने 2 साल के बच्चे पर हमला कर उसे घायल कर दिया.
अक्तूबर, 2023 को हरियाणा के हिसार में पिटबुल ने एक युवती पर हमला कर दिया. युवती को पेट, पैर और शरीर के अन्य हिस्सों पर काटा. युवती जमीन पर गिर गई तो पिटबुल ने उस के बाल मुंह में पकड़ कर उसे घसीटा. पड़ोस के लोगों ने मुश्किल से युवती की जान बचाई.
जुलाई, 2023 में हरियाणा के हिसार में एक महिला को पिटबुल ने काट लिया. कुत्ते ने 5 मिनट तक महिला की टांग को अपने जबड़े में जकड़े रखा. 2 व्यक्तियों ने बड़ी मशक्कत के बाद उसे छुड़ाया और कुत्ते को काबू किया.
जुलाई, 2023 में ही उत्तर प्रदेश के गोंडा में एक गांव में पिटबुल ने अपने मालिक पर ही हमला कर दिया. हमले में मालिक गंभीर रूप से घायल हो गया. उन्होंने कहा कि मु?ो नहीं पता था कि मेरा ही पाला हुआ कुत्ता मेरे ऊपर हमला कर देगा.
इस तरह की घटनाएं हम अपने आसपास आए दिन देखते रहते हैं. हम में से ज्यादातर लोग कभी न कभी कुत्तों के आक्रमण के शिकार हो चुके होंगे. जो मजबूत होते हैं या जिन्हें कुत्तों से बचने की ट्रिक मालूम होते हैं वे किसी तरह बच जाते हैं. मगर छोटे बच्चे और महिलाएं अकसर उन की पकड़ में आ जाते हैं और घायल हो जाते हैं. कई बार गंभीर चोटें लग जाती हैं. कुत्ते के काटने के बाद मोटे इंजैक्शन लगवाने तो जरूरी हो ही जाता है.
जाहिर है कुत्तों का घरों में, गलियों में या सोसाइटी में होना हमारे लिए सेफ नहीं है. दरअसल, कुत्तों के मूड का हमें पता नहीं चल सकता.
कभी वे प्यार करने और खेलने के मूड में होते हैं और कभी बिलकुल खूंख्वार रूप इख्तियार कर लेते हैं. अपने मालिक या मालिक के बच्चों को भी नहीं बख्शते. उन के नुकीले दांतों की चपेट में आ कर संभलना किसी के लिए भी मुश्किल हो जाता है. जब कुत्ते गु्रप में होते हैं तो स्थिति और भी भयंकर हो जाती है.
इंटरनैट पर भले ही आप को ऐसे पोस्ट और वीडियो भरे मिलेंगे कि कुत्ता पालना किस तरह से एक खूबसूरत अनुभव है और यह आप के जीवन में खुशियां लाएगा. कैसे कुत्ते आप के सुखदुख के साथी होते हैं और घर में छोटे बच्चे हैं तो उन के साथ खेलने के लिए सब से प्यारे खिलौने बन सकते हैं. कुत्ते का प्यार से पास आना, पूंछ हिलाना और गोद में आ जाना, सोफे पर आप की बगल में लेटना, दरवाजे पर उत्साहपूर्वक स्वागत करना और प्यार से देखना, अपनी हरकतों से सब को हंसाना ये सब बातें आप को अच्छी लग सकती हैं.
मगर कुत्तों को इस तरह देख कर या उन के बारे में दिलचस्प किस्से सुन कर यदि आप कुत्ता पालने का फैसला लेते हैं तो याद रखिए हो सकता है आप को बाद में बहुत पछताना पड़े. दिनभर कुत्तों को अपने साथ रखना और उस की तामीरदारी करने की मुसीबतें उस के द्वारा दी जाने वाली खुशियों या प्यार के मुकाबले काफी ज्यादा होती हैं.
सीधे शब्दों में कहें तो घर पर कुत्ता पालना एक फुलटाइम जौब है. आप को उसे समय पर खाना खिलाना होगा, उसे हर दिन व्यायाम कराना होगा, उसे पौटी ट्रेनिंग देनी होगी, उसे अपने साथ बातचीत करना सिखाना होगा, उसे अपने घर और अपने लोगों के साथ एडजस्ट करना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि वह आप के आसपास के लोगों के लिए परेशानी न बने.
आप को उस की स्वच्छता और स्वास्थ्य का ध्यान रखना होगा, वैक्सीनेशन लगवाने होंगे और उस के लिए हर समय मौजूद रहना होगा. यह सब काम बहुत बड़ी जिम्मेदारी है. कुत्ता कोई खिलौना नहीं है. वह एक सांस लेने वाला, महसूस करने वाला प्राणी है और उस की खुशी पूरी तरह से आप पर निर्भर होती है.
कुत्ते को पालने में असंख्य चुनौतियां आती हैं. आप की दिनचर्या बदल जाती है. आप को सुबह कब जागना है, कब बाहर निकलना है, कब ट्रैवलिंग के लिए जाना है या नहीं और आप दोस्तों के साथ घूम सकते हैं या नहीं यह सब आप के कुत्ते द्वारा नियंत्रित किया जाएगा.
यदि आप अपने जीवन में इस तरह के भारी बदलाव के लिए तैयार नहीं हैं तो कुत्ता आप के लिए नहीं है. अगर आप अकेले रहते हैं और अकसर यात्रा करते हैं. ऐसे में जब उसे घर पर अकेले छोड़ देंगे तो वह तनावग्रस्त और उदास हो सकता है. इसलिए यदि आप बहुत यात्रा करते हैं और आप के घर में ऐसा कोई नहीं है जो आप के पीछे कुत्ते की देखभाल करे तो इसे पालने का विचार दिमाग में कतई न लाएं.
इसी तरह यदि आप 9 से 5 की नौकरी करते हैं तो भी इस जिम्मेदारी को बेवजह अपने कंधों पर न डालें. ऐसे कई जोड़े हैं जिन में किसी एक ने या तो घर से काम करने का विकल्प चुना है या अंशकालिक नौकरी के लिए सम?ाता किया है.
कुत्ता अत्यधिक भावुक प्राणी होता है. वह प्यार और आप के साथ की सब से ज्यादा चाहत रखता है. अगर आप उस के बिना घर से बाहर निकलते हैं तो उसे इस से नफरत होती है. बहुत से कुत्ते तब तक खाना नहीं खाते या पानी भी नहीं पीते जब तक उन के मालिक काम से वापस नहीं आ जाते. ऐसे कुत्ते भी होते हैं जो घंटों घर में अकेले रहने के कारण सुस्त और उदास हो जाते हैं. अगर आप कुत्ते को बेचैन देखते हैं तो उसे तुरंत सैर पर ले जाना होगा, उसे रोज नहलाना होगा, उस के साथ खेलने में समय बिताना होगा.
कुत्ता एक निश्चित दिनचर्या के साथ जीता है. उस के हर काम का समय होता है. उसे अपना भोजन हर दिन सुबह 8 बजे और रात 8 बजे मिलता है तो उसे इसी समय खाने की आदत पड़ेगी. चाहे जो भी हो उसे सुबह 6 बजे और शाम 5.30 बजे टहलने के लिए ले जाना होगा.
वीकैंड हो, सार्वजनिक छुट्टियां हों या आप बीमार हों उसे टहलाने के लिए ले कर जाना ही पड़ेगा. भले ही आप सुबह 3 बजे घर वापस आए हों पर आप को अपने कुत्ते को टहलाने के लिए 6 बजे उठना ही होगा.
कभीकभी ऐसा समय आता है जब ससुराल वाले या दादादादी, बच्चे या जीवनसाथी सोचता है कि घर में उस के मुकाबले कुत्ते को प्राथमिकता दी जाती है. ऐसे में ?ागड़े होते हैं और तब कुत्ते को घर से बाहर निकाल दिया जाता है.
परित्याग से कुत्ते के मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर खतरा हो सकता है. घर के उन सदस्यों को भी अवसाद हो सकता है जो कुत्ते से जुड़ गए हैं. इसलिए इस स्थिति से बचना सब से अच्छा है.
कुत्ते गरमी का सामना नहीं कर पाते. हीट स्ट्रोक कुत्तों की मृत्यु के सब से आम कारणों में से एक है. यदि आप सुबह उठने वाले व्यक्ति नहीं हैं. आप सुबह 8 या 9 बजे उठते हैं और सुबह की चिलचिलाती गरमी में अपने कुत्ते को टहलाने के लिए ले जाते हैं तो कुत्ता आप के लिए नहीं है.
कुत्ता किसी भी समय और कहीं भी पेशाब या शौच कर सकता है. उस पर हर समय नजर रखने और ध्यान की आवश्यकता होती है. जब घर से बाहर कहीं भी जाने की बात आती है तो आप को पहले उस के बारे में सोचना पड़ता है. आप हर जगह उसे नहीं ले जा सकते. उस की वजह से आप को जल्दी घर लौटना पड़ता है.
कुत्ता न हो तो आप जब चाहे यात्रा पर निकल सकते हैं. बिना ज्यादा सोचेसम?ो फ्लाइट बुक कर सकते हैं, सामान पैक कर सकते हैं और एअरपोर्ट के लिए निकल सकते हैं. मगर घर में कुत्ता हो तो पहले उस की व्यवस्था पर विचार करने की आवश्यकता होती है. उसे किसी के पास छोड़ना पड़ता है या फिर साथ ले जा रहे हैं तो उस का खर्च अलग से होता है. कुत्ते के अनुकूल आवास ढूंढ़ना भी अकसर अधिक कठिन और महंगा होता है.
एक और नैगेटिव बात यह है कि जब किसी स्वास्थ्य समस्या या पशुचिकित्सक बिल की बात आती है तो कुत्ता पालना आसानी से महंगा पड़ सकता है. जब तक वह युवा और स्वस्थ है तब तक भले ही कोई बड़ा खर्च नहीं होता लेकिन जैसेजैसे वह बड़ा होगा खर्चे बढ़ते जाएंगे.
भोजन, दवाएं, उपचार, पट्टा, प्रशिक्षण, बीमा, टीके, नियमित रक्त परीक्षण, पंजीकरण, देखभाल, बिस्तर जैसे बहुत से खर्चे कुत्तों पर होते हैं. एक पिल्ला पालना महंगा है. यदि आप अगले 10 से 15 वर्षों या उस से भी अधिक समय तक ऐसे खर्चे वहन कर सकते हैं तो ही कुत्ता पालने के बारे में सोचें.
यदि वह बुखार, हिप डिस्प्लेसिया, केनेल खांसी, खाद्य विषाक्तता या कैंसर आदि से बीमार पड़ता है तो आप को उस की अतिरिक्त देखभाल करनी होगी. उस की उलटी, पौटी और पेशाब साफ करने और इलाज पर पैसा खर्च करने के लिए तैयार रहें.
अकसर घर में मौजूद बच्चे कुत्तों से ज्यादा जुड़ाव महसूस करते हैं. वे ज्यादातर समय एकदूसरे के साथ ही बिताते हैं. ऐसे में उन का कनैक्शन गहरा होता जाता है. घर के अन्य सदस्य भी कहीं न कहीं भावनात्मक रूप से जुड़ जाते हैं. मगर ध्यान रखें कुत्ते अधिक लंबी उम्र नहीं जीते. सामान्यतया 10-12 साल में उन की मौत हो जाती है. तब घर के सदस्य खासकर बच्चे गहरा अवसाद महसूस करते हैं. किसी अपने के जाने पर जो गम का एहसास होता है वही एहसास कुत्ते के मरने पर भी होता है. उस का साथ तो बहुत जल्दी छूट ही जाना है फिर उसे परिवार के सदस्य की हैसियत से रखने की जरूरत क्या है. हमें उस से एक दूरी रखनी चाहिए.
अगर आप को लगता है कि कुत्ता आप या आप के घर की सुरक्षा करेगा तो इस मुगालते में न रहें. चोरउचक्के जो आप के घर चोरी करने आते हैं वे कुत्ते को आप से कहीं अधिक सम?ाते हैं. उन्हें पता होता है कि कुत्ते को मांस के लोथड़ों में लपेट कर क्या खिलाया जाए कि वह गहरी नींद सो जाए और आराम से चोरी को अंजाम दिया जा सके. आप को ही कुत्ते की सुरक्षा की चिंता करनी होगी. आप ही उस की देखभाल में दिनरात एक करेंगे मगर जब आप को उस की जरूरत होगी तो वह कहीं गायब मिलेगा. उस के आसरे रहने की सोच आप को ले डूबेगी.
वैसे भी कुत्ता जानवर है. उसे इंसानी नियमकायदों में नहीं बांधा जा सकता. उस की अपनी दुनिया है. बेहतर होगा कि उसे उस की दुनिया में रहने दिया जाए. जबरन बंदी बना कर अपने साथ रहने को विवश न करें.
वैसे भी कुत्ते मूलरूप से जंगलों में रहने के आदी होते हैं. उन्हें बांध कर घर में रखना और इंसानों के साथ रहने के कायदे सिखाना आसान नहीं. वे जंगल में अपनेमूल रूप में आराम से रह सकते हैं तो फिर उन्हें घर में या गलियों में रख कर खतरा मोल लेने की जरूरत क्या है? इसलिए न केवल खूंख्वार कुत्ते बल्कि आम कुत्तों को भी रिहायशी इलाकों से दूर रखना चाहिए क्योंकि कुत्ता कोई भी हो उन का स्वभाव समान ही होता है. अपने घर या सोसाइटी में कुत्ता पालने या उसे खाना खिलाने से बचना चाहिए. कुत्ते की अपनी दुनिया होती है. उसे उसी दुनिया में छोड़ देना चाहिए.
अच्छा तो यह होगा कि हर तरह के काटने वाले पशु शहरों में बैन हों. वैसे भी हम बहुत मतलबी तंगदिल और बेरहम लोग हैं. हम अपनी औरतों तक को जराजरा सी बात पर छोड़ते रहे हैं, कुत्ते की तो बात ही क्या है.
हर साल लाखों भारतीय देश की नागरिकता छोड़ विदेशों की नागरिकता ले रहे हैं. वजह जान कर चौंक जाएंगे आप
भारत में सीएए यानी सिटिजिनशिप अमैंडमैंट एक्ट लागू होने के साथ नागरिकता मुद्दा की चर्चा जोरों पर है. सीएए के माध्यम से भारत 3 पड़ोसी देशों के गैरमुसलिम धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिकता देगा. लेकिन एक सच यह भी है कि जहां भारत एक तरफ पड़ोसी देशों के लोगों को नागरिकता देने जा रहा है वहीं हर वर्ष लाखों भारतीय अपनी नागरिकता छोड़ विदेश की नागरिकता अपना रहे हैं.
हाल ही में केंद्रीय गृहमंत्रालय ने संसद में बताया कि 2021 में करीब 1.63 लाख भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ दी. 2020 में लगभग 85 हजार 256 लोगों ने नागरिकता छोड़ी. 2019 में 1.4 लाख भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ी. 2015 से 2021 तक यानी 7 साल का आंकड़ा देखें तो 9.24 लाख भारतीय देश छोड़ कर परदेशी हो गए.
21 दिसंबर, 2023 को 303 यात्रियों, जिन में अधिकतर भारतीय थे, को ले जा रही एक चार्टर उड़ान को इस संदेह में फ्रांस में रोक दिया गया कि विमान में सवार सभी लोग मानव तस्करी के शिकार थे. यह उड़ान संयुक्त अरब अमीरात से मध्य अमेरिकी देश निकारागुआ जा रही थी. पुलिस अधिकारियों ने बताया कि उस विमान में 66 यात्री गुजरात से थे और बाकी पंजाब से. इन यात्रियों में शामिल 11 नाबालिग भी थे.
इस से पता चलता है कि पंजाब और गुजरात के गरीब गांवों के रहने वाले ये यात्री अवैध रूप से अमेरिका या कनाडा में प्रवेश करने के उद्देश्य से निकारागुआ जा रहे थे. ‘डंकी विमान’ को वापस भारत भेजे जाने के कुछ सप्ताह बाद गुजरात पुलिस ने निकारागुआ सीमा के माध्यम से भारतीयों को अमेरिका में अवैध रूप से स्थानांतरित करने में शामिल 14 एजेंटों पर मामला दर्ज किया. इन में से अधिकांश एजेंट गुजरात के ही थे, जबकि कुछ अन्य दिल्ली, मुंबई और दुबई से थे.
एक जांच से पता चला कि उन एजेंटों ने यात्रियों से 60 लाख से 80 लाख रुपए अवैध रूप से अमेरिका में प्रवेश कराने के लिए थे. एजेंटों ने यात्रियों को निर्देश दिया था कि वे खुद को खालिस्तानी के रूप में पहचानें और अगर पुलिस उन्हें सीमा पर पकड़ती है तो वे अमेरिका में शरण लें.
सूत्रों से यह भी पता चला कि उस विमान में सवार जितने भी गुजराती थे वे गुजरात लौट कर नहीं आना चाहते थे. वे इस बात पर अड़े थे कि वे यहां से निकारागुआ ही जाएंगे, जबकि लगभग 12 यात्री फ्रांस में शरण मांग रहे थे.
हमारा भारत देश कभी सोने की चिडि़या कहलाता था. पूरे विश्व में यहां की कला, संस्कृति, शिक्षा, व्यापार, शासन व्यवस्था आदि को ससम्मान स्वीकार किया जाता था. भारत की उन्नत अर्थव्यवस्था और संपन्नता की चर्चा पूरी दुनिया में होती थी. विश्व के कोनेकोने से व्यापारी यहां आते थे. आज उसी भारत के लाखों भारतीय देश छोड़ कर विदेश का रुख कर रहे हैं, तो आखिर क्यों?
एक आंकड़े के अनुसार, नौकरी, रोजगार, अकूत पैसा, बेहतर जीवन आदि की लालसा में हर वर्ष लाखों भारतीय अपना देश छोड़ कर विदेश का रुख कर रहे हैं. 2020 के बाद से तो अमेरिका में भारतीयों के अघोषित प्रवसन में आश्चर्यजनक वृद्धि देखी गई है. विशेषज्ञों का कहना है कि इस के कारणों में भारत में आर्थिक अवसरों की कमी, अल्पसंख्यकों का धार्मिक और राजनीतिक उत्पीड़न और अमेरिका में कानूनी आव्रजन चैनलों की कमी शामिल है.
बता दें कि भारत छोड़ कर जाने वाले लोगों की पहली पसंद अमेरिका है, दूसरी कनाडा. इस के अलावा आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, इटली, न्यूजीलैंड, सिंगापुर, जरमनी, नीदरलैंड और स्वीडन आदि देशों में भी जा कर लोग बस रहे हैं और यह आंकड़ा सालदरसाल बढ़ता ही जा रहा है. वैसे हरेक व्यक्ति के लिए देश छोड़ कर विदेश में बसने के अलगअलग कारण हो सकते हैं. लेकिन सवाल यह उठता है कि इतनी बड़ी संख्या में भारतीयों के देश छोड़ने की मुख्य वजह क्या हो सकती है?
मनीषा बदला हुआ नाम 2003 में नौकरी के सिलसिले में अमेरिका गई तो वहीं की हो कर रह गई. वह कहती है कि उस की बेटी भी वहीं पैदा हुई, फिर उस ने ग्रीन कार्ड के लिए आवेदन किया और वहां की नागरिकता भी मिल गई. यहां की जिंदगी बहुत आसान है. स्टैंडर्ड औफ लिविंग बहुत अच्छा है. बच्चों की पढ़ाई अच्छे से हो जाती है. यहां मौके भी भारत से बेहतर हैं. इस के अलावा काम का माहौल बहुत अच्छा है. आप जितना काम करते हैं उसी हिसाब से पैसे मिलते हैं. अगर भारत को अपनी नागरिकता छोड़ने की दर या ब्रेन ड्रेन पर काबू करना है तो उसे कई कदम उठाने होंगे. इन में बेहतर सुविधा, नए मौके से ले कर दोहरी नागरिकता पर विचार करना जरूरी है.
वहीं कनाडा में रहने वाले एक भारतीय शख्स का कहना है कि उस ने यहीं से अपनी पढ़ाई पूरी की और अब यहीं जौब कर रहा है. वह भारतीय नागरिकता छोड़ने के लिए तैयार है. उस का कहना है कि यहां काम करने का अच्छा माहौल है. यहां काम घंटे के हिसाब से निर्धारित हैं और वर्क प्लेस पर नियमकानून का पालन होता है जबकि भारत में नियमों का इतने अच्छे तरीके से पालन नहीं होता है. इसलिए वह भारत नहीं जाना चाहेगा.
2017 की एक घटना पर गौर करें तो करीब 30 की संख्या में भारतीय, अमेरिका के लिए डेरेन गैप से गुजर रहे थे. थकावट, भूख, जंगली जानवरों, जहरीले कीड़ेमकोड़ों की चुनौतियों की परवाह न कर के वे किसी भी तरह अमेरिका में बस दाखिल हो जाना चाहते थे. जब उन्हें प्यास लगती थी तब अपनी टीशर्ट को निचोड़ कर बारिश के पानी में भिगो कर पी लेते थे. जब थकावट ज्यादा होती तो जंगल में कहीं बैठ या लेट जाते. भूख तेज लगती तो दिल को सम?ाते कि कोई बात नहीं, अब तो मंजिल पास ही है, बस थोड़ा और आगे जाना है.
यह कहानी सिर्फ 30 लोगों की नहीं है बल्कि सैकड़ों भारतीयों की है जो विदेश जाने की चाहत में अपनी जान दांव पर लगा कर कैसे भी रास्ते पर निकल पड़ते हैं.
शाहरुख खान की फिल्म ‘डंकी रूट’ अपनाने वालों पर आधारित है. ‘डंकी रूट’ असल में वह होता है, जिस में कोई भी व्यक्ति एक से दूसरे देश में अवैध तरीके से जा सकता है.
विदेश जाने की चाह करीबकरीब हर भारतीय की होती है. खासतौर से पश्चिमी देश (अमेरिका, कनाडा, यूके) अपनी चमक से भारतीयों को आकर्षित करते हैं. युवाओं में विदेश जाने की सब से बड़ी वजह बेहतर रोजगार के अवसर, ज्यादा कमाई की चाह है. लेकिन इन देशों के नियमकानून बेहद कड़े होते हैं और उस की वजह से सीमित संख्या में ही भारतीय कानूनी तौर से वहां जा पाते हैं. अब चूंकि जो युवा कानूनी तौर पर विदेश नहीं जा पाते हैं तो वे अवैध तरीका अपनाते हैं, जिसे ‘डंकी रूट’ फ्लाइट के नाम से जाना जाता है. ‘डंकी रूट’ एक पंजाबी टर्म है जिस का अर्थ है कि कूंद, फांद कर एक जगह से दूसरी जगह जाना. ‘डंकी रूट’ से भेजने के एवज में एजेंट लोगों से लाखों रुपए चार्ज करते हैं.
अमेरिकी कस्टम ऐंड बौर्डर पैट्रोल के मुताबिक, 2018 में मैक्सिको के रास्ते अवैध तरीके से अमेरिका घुसने की कोशिश में करीब 9000 भारतीय लोग पकड़े गए थे. 2017 के मुकाबले यह संख्या करीब 3 गुना ज्यादा थी.
अमेरिका की आईबीआई कंसल्टैंट्स फर्म में अप्रवासन विशेषज्ञ और रिसर्च कौर्डिनेटर कायेतलिनयेल्स का कहना है कि ज्यादातर भारतीय लैटिन अमेरिका जाते हैं. वे ब्राजील के रास्ते मैक्सिको पहुंचते हैं क्योंकि यहां वीजा के कानून कमजोर हैं. यहां से ये लोग उत्तर की तरफ हाईवे के रास्ते से बढ़ना शुरू करते हैं और कोलंबिया और मध्य अमेरिकी से होते हुए अमेरिका सीमा पर पहुंचते हैं.
येल्स का कहना है कि इन में ज्यादातर अप्रवासी आमतौर पर आर्थिक मौके की तलाश में या फिर अपने परिवार के सदस्यों के साथ रहने के लिए यहां आते हैं. पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों से आने वाले कई अप्रवासियों का कहना है कि वे धार्मिक उत्पीड़न से बचने के लिए यहां आते हैं जबकि कुछ लोग राजनीति दमन की बात करते हैं.
कैलिफोर्निया के फ्रेंसो में अप्रवास मामलों के वकील दीपक आहलुवालिया ने मीडिया को बताया कि भारत के राजनीति असंतुष्ट, अल्पसंख्यक और समलैंगिक समुदाय के लोग दूसरे देशों में शरण पाने की सब से ज्यादा कोशिश करते हैं.
यहां एक सवाल यह भी है कि आखिर पंजाब और हरियाणा के लोग अमेरिका और कनाडा क्यों जाना चाहते हैं? तो इस के लिए हमें 20वीं सदी की तरफ नजर डालनी होगी. 20वीं सदी की शुरुआत में पंजाब के करीब हर परिवार से लोग अमेरिका, कनाडा और यूके गए. वहां उन लोगों ने कड़ी मेहनत कर अपनी संपत्ति बनाई. वे लोग वहां से भारत, अपने परिवार को भी पैसे भेजते थे जिस की वजह से उन के गांवघर की आर्थिक स्थिति भी अच्छी होने लगी थी और यही सब देख कर युवाओं का विदेशों के प्रति आकर्षण बढ़ा और फिर कैसे भी कर के वहां जाने की होड़ लग गई. युवाओं के मनोस्थिति को सम?ा कर एजेंट्स के लिए कम मेहनत में ज्यादा पैसे कमाने का अच्छा मौका मिल गया.
विदेश जाने की चाह के बारे में युवाओं का कहना है कि अपने यहां धूलधक्कड़ फांकने से बेहतर है कि किसी भी तरह अमेरिका, कनाडा चले जाएं. सिर्फ युवा ही क्यों करोड़पति लोग भी विदेशों में सैटल होने की चाह रखते हैं.
हजारों भारतीय करोड़पति हर साल विदेशों में जा कर सैटल हो जाते हैं. एचएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक, 2023 में करीब 6 से 8 हजार हाई नैटवर्थ इंडिविजुअल्स देश छोड़ कर जाने का अनुमान था. कोरोनाकाल में बहुत सारे बड़े उद्योगपति देश छोड़ कर कनाडा, अमेरिका, यूके जैसे देशों में जा कर बस गए. धन कुबेर के देश छोड़ने की एक बड़ी वजह कोरोना को बताया गया. सुपर रिच भारतीयों का ठिकाना कनाडा, अमेरिका और आस्ट्रेलिया बनता जा रहा है.
क्या ऐसा इंडिया में बढ़ती दरों के टैक्स के कारण हो रहा है? क्या इन देशों में टैक्स की दरें भारत की अपेक्षा कम हैं?
दुनियाभर के तमाम देशों के टैक्स स्लैब चैक करने पर पता चलता है कि भारतीय अमीरों के देश छोड़ कर परदेश में जा कर बसने के पीछे का कारण टैक्स दरों में इजाफा होना ही है. एक सर्वे के मुताबिक, व्यापारी वर्ग का मानना है कि भारत में उन्हें अपने व्यापार या कारोबार की सुरक्षा की चिंता है. यह असुरक्षा देश में विभिन्न करों और नियमों में आएदिन होने वाले बदलाव के कारण भी है. इसी असुरक्षा के कारण उद्योगपतियों को देश छोड़ने का निर्णय लेना पड़ रहा है. यदि भारत में उन्हें उन के व्यापार के प्रति सुरक्षा की गारंटी मिल जाए तो शायद यह पायलन इतनी बड़ी संख्या में न हो.
शिक्षा के क्षेत्र में देश में मूलभूत जरूरतों का कमजोर होना भी देश से हो रहे ‘ब्रेन ड्रोन’ का एक कारण है. देश के होनहार युवा तमाम कोशिशों के बावजूद देश में आरक्षण या अन्य वजहों के चलते अपने हुनर को निखार नहीं पाते हैं.
एक तरफ जहां भारत दूसरे देशों को टक्कर देने के होड़ में लगा है, वहीं यहां के युवाओं को भारत से अधिक संभावनाएं दूसरे देशों में दिख रही हैं. भारत में बेरोजगारी का आलम यह है कि देश छोड़ कर विदेश जाना चाहने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है. युवाओं में हताशा देखी जा रही है और सरकार की नीतियां नाकाम साबित हो रही हैं.
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की शिक्षा व्यवस्था पलायन का एक बड़ा कारण है. भारत की शिक्षा व्यवस्था अभी इतनी अच्छी नहीं है, जितनी कि उन देशों में, जहां भारतीय जाना पसंद करते हैं. अमेरिका में भारतीय छात्रों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. पढ़ाई के लिए विदेश जाने वाले छात्रों में से करीब 70-80त्न युवा वापस अपने देश यानी भारत नहीं लौट कर आते हैं. कैरियर और अच्छे भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए वे विदेश में बस जाना बेहतर सम?ाते हैं.
हमारे देश के नागरिक खुशीखुशी अपनी नागरिकता छोड़ विदेशी नागरिकता अपना रहे हैं. लेकिन एक वक्त ऐसा था, जब दुनियाभर से लोग भारत आते थे. 7वीं शताब्दी में चीन से हेनसांग का भारत आना हो, 11वीं शताब्दी में अलबरूनी का भारत आना हो या फिर 14वीं शताब्दी में इब्न बतूता का आगमन हो. हमारे देश की विरासत ऐसी रही है कि दुनियाभर से लोग यहां आते थे. लेकिन आज इस के उलट यहां के लोग विदेशों में बसने की ख्वाहिश रखने लगे हैं.
एक सर्वे में यह बात पता चली है कि भारत में रहने वाले लोग जैसेजैसे अमीर बनते जाते हैं, भारत को ले कर उन का प्यार कम होता जाता है और जब लोग करोड़पति, अरबपति बन जाते हैं तो भारत छोड़ विदेश में जा कर बस जाते हैं.
भारत जहां विश्वगुरु बनने के कगार पर है, वहीं भारतीय युवाओं का दूसरे देशों में पलायन अच्छे संकेत नहीं लगते.
गुजरात विश्वविद्यालय में बोल्ट वाले समाजशास्त्री गौरांग जैन कहते हैं कि विदेश भागने की होड़ बहुत तेज है. यहां के लोग किसी भी तरह से अमेरिका पहुंचने के लिए कितना भी नक्द पैसा खर्च करने को तैयार होते हैं. वो कहते हैं कि एक बार जब वे अपने लक्ष्य तक पहुंच जाते हैं तो वहां उन के समुदाय से उन्हें भारी समर्थन मिलता है.
एचऐंडपी के अनुसार, भारत छोड़ने के ट्रैंड को कोविड 19 ने और ज्यादा बढ़ा दिया है और अमीर भारतीयों के अंदर खुद को ‘जीवन और संपत्ति को ग्लोबलाइज’ करने की प्रवृति में भारी इजाफा हुआ है.
कनाडा में भारतीय मूल के रिएल स्टेट दिग्गज और मैगनेट और मेनस्ट्रीट इक्विडी कौर्प के सीईओ बाब ढिल्लो भारत से प्रवास की तीसरी लहर के रूप में देखते हैं. उन का कहना है कि करीब 100 साल पहले पंजाब के गरीब और किसानों ने पश्चिम देशों की तरफ रुख किया था और उस के बाद भारतीय प्रोफैशनल्स में भारत छोड़ने की होड़ सी लग गई और अब भारत के अमीरों और युवाओं में देश छोड़ने की रेस लगी हुई है.
हेनली ग्लोबल सिटिजन रिपोर्ट कहती है कि भारत में पुरानी पीढ़ी के उद्योगपति देश में ही जमे हुए हैं जबकि आज की नई पीढ़ी के उभरते बिजनैसमैन अपने कारोबार का विदेश में प्रसार करने के लिए आतुर हैं. वे देश की सीमाओं से बाहर जाने से नहीं हिचक रहे हैं. ये उद्यमी ऐसे देशों में अपने पैसे का निवेश करना चाहते हैं जहां उन्हें ज्यादा से ज्यादा फायदा मिल सके. यही वजह है कि भारतीयों की पसंदीदा जगहों में अमेरिका, यूरोप के देश, दुबई और सिंगापुर है. भारतीय मानते हैं कि वहां का लीगल सिस्टम मजबूत है. अपने बेहतर भविष्य के लिए भारतीय बड़ी संख्या में नागरिक बाउंड्री के बाहर जा रहे हैं.
वैसे मेहुल चौकसी जैसे कुछ हाई प्रोफाइल मामले भी हैं जिस में लोग कानून ऐक्शन के डर से देश से बाहर भाग रहे हैं.
ईवाई इंडिया के नैशनल लीडर टैक्स सुधीर कपाडि़या ने इकोनोमिक टाइम्स को बताया कि अमीर भारतीयों का लगातार दूसरे देशों में जाना या किसी दूसरे देश में निवास करना भारत के लिए चिंता का विषय हो सकता है क्योंकि भारत का लक्षय 5 ट्रिलियन डौलर की अर्थव्यवस्था तक पहुंचने का है.
अमीरों के देश से बाहर निकलने की वजह से भारत को टैक्स कलैक्शन के मोरचे पर भी नुकसान होता है. कई कारोबारी खासकर वे जो इनवैस्टमैंट कंपनियों को संभालते हैं या फिर इंटरनैशनल बिजनैस में शामिल हैं, उन की आगे की योजना भारत से बाहर निकलने की है. वे अभी सिर्फ टैक्स के दायरे में आने से बचते हैं.
डेलायट इंडिया की पार्टनर सरस्वती कस्तूरीरंगन ने इकोनोमिक टाइम्स को बताया कि यूएई और सिंगापुर जैसे देशों में कई भारतीय अपना आशियाना बना रहे हैं तो इसलिए कि भारत में टैक्स की ऊंची दरें हैं.
ऐक्सपर्ट मान कर चल रहे हैं कि 2031 तक देश में करोड़पतियों की संख्या में 80 फीसदी तेजी आएगी. देश में टैक्नोलौजी, हैल्थकेयर समेत कई सेवाओं में बूम देखा जा सकता है.
चूंकि भारत में दोहरी नागरिकता की छूट नहीं है ऐसे में जिन भारतीयों को विदेश में बसना होता है उन्हें अपना भारतीय पासपोर्ट जमा कराना होता है. विदेश में बसे और वहां की नागरिकता ले चुके भारतीय लोगों के लिए एक खास तरह की सुविधा का नाम है ओसीआई कार्ड ओसीआई का यानी ओवरसीज सिटिजन औफ इंडिया. ओसीआई कार्ड ले कर विदेश से भारतीय स्वदेश आ सकते हैं और उन्हें वीजा की जरूरत नहीं पड़ेगी.
बहरहाल, इन सभी समस्याओं का समाधान एक ही है कि सरकार को इस का हल ढूंढ़ना चाहिए कि आखिर क्यों भारतीय दूसरे देशों की ओर पलायन कर रहे हैं? हमारे देश की प्रतिभाएं बाहर चली जाएंगी तो फिर हमारे देश का विकास किस तरह होगा? इसलिए सरकार को देश की खासकर युवाओं को उचित अवसर और रोजगार, अच्छी शिक्षा व्यवस्था उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए ताकि हमारे देश के लोग बाहर का रुख न कर सकें.
अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं देना, नागरिकों को भय रहित माहौल देना और उन के अच्छे जीवन और अच्छे भविष्य के लिए ज्यादा से ज्यादा सुविधाएं देना हरेक सरकार की जिम्मेदारी बनती है. देश के नागरिकों को भी अपने कर्तव्य नहीं भूलने चाहिए. थोड़े से स्वार्थ के लिए अपने देश से मुंह मोड़ना सही नहीं है. भारत को समृद्ध बनाने के लिए सरकार के साथसाथ देश के नागरिकों को भी सोचना होगा कि हम अपनी प्रतिभा और पैसे का इस्तेमाल अपने देश की तरक्की के लिए करें न कि दूसरे देश के लिए.
वैसे अमेरिका जैसे बड़े देश में अब भारतीय सुरक्षित नहीं रहे. वहां भारतीय मूल के लोगों के खिलाफ नफरती हिंसा की घटनाएं बढ़ रही हैं. इस शुरू नए वर्ष में अब तक 5 भारतीय हिंसा के शिकार हो चुके हैं. ताजा घटना वाशिंगटन शहर की है, जहां एक संदिग्ध अमेरिकी नागरिक ने भारतीय मूल के एक व्यक्ति पर हमला किया, जिस से उस के सिर पर चोट आई और तमाम प्रयासों के बाद भी उसे बचाया न जा सका.
दुनियाभर में लोकतंत्र की दुहाई देने वाले अमेरिका की हकीकत यह है कि वह भारत जैसे देशों से वहां पढ़ने, रोजगार के लिए गए या फिर कारोबार कर रहे, बस गए लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर पा रहा है. नस्ली हिंसा पर काबू पाना आज भी उस के लिए चुनौती है. अगर अमेरिकी सरकार ने जल्दी इस समस्या का कोई समाधान नहीं निकाला तो न केवल उसे कुशल भारतीयों के योगदान से वंचित होना पड़ेगा बल्कि भारी आर्थिक नुकसान भी ?ोलना पड़ेगा.
आजकल कॉपर पेप्टाइड थ्रैड लिफ्ट फेशियल काफी ट्रैंड में है. प्लीज मुझे बताएं कि यह क्यों अच्छा है और इस का क्या फायदा होता है?
करने में मदद कर सकता है. कौपर पेप्टाइड एक छोटा प्रोटीन होता है जिस में कौपर धातु समाहित होती
है और यह रिंकल्स को कम करने में सहायक हो सकता है. फेशियल किट्स में थ्रैड्स अकसर फेस
लिफ्टिंग या स्किन टाइटनिंग के लिए डिजाइन किए जाते हैं. इन थ्रैड्स का उपयोग त्वचा के कमजोर
भागों को रीजनरेट कर के फेस लिफ्टिंग के लिए किया जा सकता है.मेरी स्किन मु?ो हमेशा ड्राई लगती
है मगर जैसे ही मैं कोई क्रीम या तेल लगाती हूं तो मेरा रंग काला हो जाता है. मु?ो सम?ा नहीं आता
कि मैं ऐसा क्या लगाऊं जिस से मेरा रंग भी काला न हो और ड्राइनैस भी खत्म हो जाए?आप की स्किन
असल में डिहाइड्रेटेड है यानी तेल तो है मगर आप की स्किन में पानी की कमी होती है. ऐसे में आप को
कोई भी क्रीम या तेल लगाने के बजाय मौइस्चराइजर का इस्तेमाल करना चाहिए. घर में भी आप कुछ
चीज इस्तेमाल कर के अपनी स्किन को मौइस्चराइज कर सकती हैं. इस के लिए आप 2 स्टाबेरी मैश
कर उस में थोड़ी सी मलाई मिलाएं. इस पैक को अपने फेस पर लगा कर आधा घंटा इंतजार करें और
फिर कुनकुने पानी से धो लें. यह एक बहुत अच्छे मौइस्चराइजर का काम करेगा. स्ट्राबेरी में विटामिन
सी व ओमेगा 3 फैटी ऐसिड्स होते हैं जो आप की स्किन को मौइस्चराइज करेंगे. आप चाहें तो 1 चम्मच
शहद और एक चम्मच मलाई को मिला कर हर रोज रात को स्किन पर मसाज कर लें. इस से भी आप
की स्किन सौफ्ट हो जाएगी. फिर भी फर्क न पड़े तो किसी अच्छे ब्यूटी क्लीनिक में जा कर
आयनाइजेशन ट्रीटमैंट करा सकती हैं. इस से पानी को संभाल कर रखने वाले आयन को स्किन के अंदर
अब्जौर्ब कर दिया जाता है, जिस से आप की स्किन पानी को संभाल कर रखना शुरू कर देती है यानी
मौइस्चराइज हो जाती है और आप की स्किन पर डिहाइड्रेशन का कोई साइन दिखाई नहीं देगा.
अभिनेत्री ऋचा चड्ढा इन दिनो वेब सीरीज हीरामंडी में अपने किरदार लज्जो की भूमिका को लेकर सुर्खियों में हैं. उनके इस किरदार को दर्शकों ने काफी पसंद किया है और उनके अभिनय की खूब तारीफ भी हो रही है, जिससे ऋचा बहुत खुश है.अभिनेत्री मनीषा कोइराला के साथ अभिनय के अनुभव को शेयर करती हुई ऋचा कहती है कि मनीषा कोइराला अपने जमाने की प्रसिध्द हिरोइन है, उनके साथ काम करना मेरे लिए बहुत सौभाग्य की बात है, उनका काम बहुत अच्छा है. मैँ उनके हर दृश्य को देखकर चौक जाती थी. सेट पर हर किसी को बहुत ही शांत और फोकस्ड रहना पड़ता था, क्योंकि संजय लीला भंसाली एक स्ट्रिक्ट डायरेक्टर है और मुझे उनके साथ काम करने में बहुत मजा आया.
उनके निजी जीवन की बात करें तो 4 अक्टूबर 2022 को ऋचा चड्ढा ने अभिनेता अली फजल से शादी की है. ऋचा और अली लंबे समय से रिलेशनशिप में थे, लेकिन बाद में दोनों ने शादी की. इसी साल फरवरी में ऋचा ने अपनी प्रेग्नेंसी की अनाउंसमेंट सोशल मीडिया पर किया है. अब एक्ट्रेस काम से दूर होकर सिर्फ अपनी प्रेग्नेंसी के दौर को एन्जॉय कर रही है.
फिल्म ‘ओये लकी, लकी ओय’ से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाली स्पष्टभाषी और साहसी ऋचा ने बहुत कम समय में अपनी एक अलग पहचान बनायी है.पंजाब के अमृतसर में जन्मी और दिल्ली में पली बड़ी हुई ऋचा के कैरियर की टर्निंग पॉइंट गैंग्स ऑफ़ वासेपुर रही, जिसमें उन्होंने एक अधेड़ उम्र की महिला की भूमिका निभाई थी. इस फिल्म से उसे बहुत तारीफे मिली और उनकी जर्नी चल पड़ी.
ऋचा को बचपन से ही अभिनय की इच्छा थी और उसने इसकी शुरुआत मॉडलिंग से की. जिसे उसने मुंबई आने के बाद शुरू कर दिया था. बाद में वह अभिनय की ट्रेनिंग लेने के लिए थियेटर की ओर मुड़ी और कई नाटकों में अभिनय किया. उन्होंने अपनी जर्नी और प्रेग्नेंसी के बारें में बात की, पेश है कुछ खास अंश.
ऋचा और अली काफी दिनों से एक दूसरे को जानते थे, इसलिए उनको शादी के बाद भी सामंजस्य बिठाना मुश्किल नहीं था. वह कहती है कि हम दोनों पहले अच्छे दोस्त है बाद में पति – पत्नी बने है, एक दूसरे को हम बहुत सहयोग देते है, इससे सामंजस्य बिठाने में कोई समस्या नहीं होती. इसके अलावा हम दोनों साथ -साथ काम कर सकते है, ग्रो कर सकते है और एक दूसरे की मदद भी कर सकते है, ऐसा एक ही फील्ड से होने और दोस्त होने की वजह से ही हो सकता है. इतना ही नहीं अली मेरे लिए ड्रेसेज की शॉपिंग भी करते है और मेरी पसंद को समझते है. अभी तो मैँ प्रेग्नेंट हूँ तो और अधिक मेरा ध्यान रख रहे है, उनकी कोशिश रहती है कि मेरे आसपास शांति रहे. वे हाउस हेल्प से लेकर परिवार सभी के लिए बहुत ही केयरिंग स्वभाव के है. सभी को सम्मान करते है.
ऋचा और अली के प्रोडक्शन हाउस में भी कई अच्छी और अलग तरीके की फिल्में बनाने के बारें में दोनों ने सोचा है. ऋचा का कहना है कि मैँ एक म्यूजिकल कमर्शियल फिल्मइस साल रिलीज करनेवाली हूँ, जिसमें कई अच्छे – अच्छे गाने है. हम दोनों को अलग तरह की कहानी कहने में अच्छा लगता है.
आउट्साइडर होने के बावजूद ऋचा ने अच्छा काम किया है और वह जानती है कि एक आउट्साइडर को काम मिलना बहुत मुश्किल होता है, अपने प्रोडक्शन हाउस में नए और आउट्साइडर को काम देने को लेकर सवाल पूछने परऋचा कहती है किस्टोरी की डिमांड के आधार पर मैँ फिल्में बनाना चाहती हूँ. निर्माता के रूप में मेरी पहली फिल्म में मैंने ऑडिशन के द्वारा ही आर्टिस्ट लिए है. कमर्शियल फिल्मों में आने के लिए मुझे खुद को बहुत ग्रूमिंग करनी पड़ी थी, क्योंकि मैं एक साधारण लड़की थी और थिएटर बैकग्राउंड से आई थी. मैं फिल्म ‘गैंग्स ऑफ़ वासेपुर’ को सबकुछ मानती हूँ जो मुझे यहाँ तक ले आयी. ओये लकी लकी ओय के बाद मैंने कुछ दिनों के लिए फिल्मों में काम करना छोड़ दिया था और थिएटर करने चली गयी थी,लेकिन कभी वित्तीय रूप से उसपर ध्यान नहीं दिया था कि पैसे के लिए फिल्मों में सफल होना जरुरी है. मैंने उस समय कई विज्ञापनों में भी काम किया. ‘गैंग्स ऑफ़ वासेपुर’ के बाद मैंने पूरी तरह से फिल्मों को अपनाया है.
ऋचा आगे कहती है कि मैँ भी शुरू में ऑडिशन के द्वारा ही इंडस्ट्री में आई थी, मुझे इसकी वैल्यू पता है और लोग कैसे धीरे – धीरे ग्रो करते है, वह भी काफी निर्देशकों के साथ काम कर सीख चुकी हूँ. प्रतिभा तो मैँ हमेशा ही ढूँढूँगी, लेकिन अगर कोई प्रोजेक्ट बड़ा है और किसी बड़े आर्टिस्ट की जरूरत है, तो उन्हें भी मैँ अप्रोच अवश्य करूंगी. जैसा कि निर्देशक संजय लीला भंसाली ने हीरामंडी में अभिनेत्री मनीषा कोइराला को लिया, क्योंकि वह काफी दिनों तक काम न करने पर भी उस चरित्र में फिट थी और उन्होंने अच्छा काम किया. ऐसा सभी निर्माता, निर्देशक को करना पड़ता है.
डिलीवरी के बाद आज की एक्ट्रेस आधिकतर जल्दी काम पर लौट आ रही है, आपकी इच्छा क्या है? मेरे लिए अभी ये बताना मुश्किल है, लेकिन अगर सबकुछ ठीक रहा तो मैँ अवश्य काम पर जल्दी लौटूँगी, क्योंकि इसमें सबसे जरूरी होता है, सपोर्ट सिस्टम का सही होना, जिसमें परिवार और आसपास के सभी के सहयोग होने पर जल्दी काम पर लौटना संभव होता है.
ऋचा कहती है कि आज हर चीज पर राजनीति हो रही है. गानों,फिल्मों,गीतों, नाम पर,पेड़ पक्षी आदि सभी पर किसी न किसी रूप में राजनीति किया जा रहा है. राजनीति ने किसी चीज को छोड़ा नहीं है. आजकल लोग बातचीत करने की कोई गुंजाईश नहीं रखते. हर कोई अपनी बात कहकर उसे ही सही प्रूव करने की कोशिश में लगा हुआ है,लेकिन इसे सुलझाने का एक तरीका भी है और इससे हमारे देश की नेताओं को समझना होगा,जिन्हें वोट देकर जनता अपनाप्रतिनिधि बनाती है. आप मालिक नहीं, ‘पब्लिक सर्वेंट’ है और किसी भी समस्या को सुलझाना ही आपका काम है.
मैं दिल्ली में पली बड़ी हूँ ,लेकिन मैंने दिल्ली में कभी ऐसी हवा नहीं देखी, जो आज है, इतना पोल्यूशन और गर्मी बढ़ी है कि लोगो को सांस लेना भी मुश्किल हो रहा है, पर इसे सुलझाया नहीं जाता. आजकल न्यूज़ भी उन चीजो को कवर करती है जिसका दैनिक जीवन से कोई सरोकार नहीं होता,जैसे किसने किसको चांटा मारा, किसने किसको क्या कहा आदि ये सारी न्यूज़ लोगों को सही मुद्दे से बहकाने के काम आती है.सब जानते है कि असलियत क्या है. माहौल ऐसा बनाया जा रहा है कि कोई कुछ बोले, तो उसे डराया और धमकाया जाता है.कुछ को तो जान से भी मार दिया जाता है.ये सभी के लिए सोचने वाली बात है.
निक्की जानती थी कि वह अनवर की उपेक्षा करती रहती है. मगर इस से वह दूसरी शादी कर लेगा उसे उम्मीद भी नहीं थी. वह उस औरत से मिलना चाहती थी और जब मिली तो उस के पैरों तले जमीन खिसक गई…
‘‘अरे, तुम कब आए?’’ जब वह नीलो के घर से वापस आई तो साजिद को देख कर उस से पूछ बैठी.
‘‘आं…’’ उस की बात सुन कर साजिद कुछ इस तरह चौंक पड़ा जैसे उस ने उस की कोई चोरी पकड़ ली हो.
‘‘बस अभीअभी…’’
‘‘तुम इतने घबरा क्यों रहे हो?’’ वह उल?ान में पड़ गई, ‘‘बात क्या है?’’
‘‘नहीं, कुछ भी तो नहीं,’’ साजिद बोला.
‘‘तुम्हारे दूल्हा भाई मिले थे?’’ उस का माथा ठनका.
‘‘हां,’’ कह कर साजिद ने सिर ?ाका लिया.
‘‘क्या कहा?’’ उस ने पूछा तो साजिद कुछ देर मौन रहा, फिर धीरे से बोला, ‘‘कुछ नहीं.’’
‘‘सज्जो,’’ वह बोली, ‘‘लगता है, तुम मु?ा से कुछ छिपा रहे हो. बात क्या है? मु?ा से साफसाफ कहो न.’’
‘‘तुम सुन नहीं सकोगी, बाजी,’’ साजिद ने गंभीर स्वर में कहा तो उस का भी मन धड़क उठा और उसे विश्वास हो गया कि जरूर कहीं कुछ गड़बड़ है.
‘‘मु?ा से साफसाफ कहो, क्या बात हुई?’’ उस ने बड़ी मुश्किल से कहा.
‘‘दूल्हा भाई रास्ते में मिले थे,’’ साजिद बोला, ‘‘उन के साथ एक लड़की थी. उन्होंने बड़ी बेरुखी से बात की और कहा, जा कर अपनी बाजी से कह दो, अब मु?ो उस की कोई जरूरत नहीं है, मैं ने दूसरा निकाह कर लिया है. यह मेरी दूसरी बीवी है…’’
‘‘नहीं,’’ साजिद की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि वह चीख उठी और पागलों की तरह बड़बड़ाने लगी, ‘‘यह नहीं हो सकता, यह नहीं हो सकता.’’
‘‘यह सच है, बाजी,’’ साजिद भर्राए स्वर में बोला, ‘‘उन के साथ जो लड़की थी उस ने स्वयं यह स्वीकार किया और मु?ा से कहा कि अपनी बहन से कह दो कि वह भूल कर भी वापस आने का प्रयत्न न करे. कुछ दिनों बाद उसे तलाकनामा मिल जाएगा व सारे संबंध टूट जाएंगे और यह कह कर दोनों हंसने लगे.’’
उस की आंखों से आंसुओं की एक बाढ़ उमड़ पड़ी. उस का मन तो चाह रहा था कि वह फूटफूट कर रोए परंतु उस ने स्वयं पर संयम रखा क्योंकि वह सोचने लगी कि यह बात यदि अम्मी या अब्बा को मालूम हो गई तो कयामत आ जाएगी.
‘‘सुनो,’’ वह साजिद से बोली, ‘‘घर में इस बात का पता नहीं चलना चाहिए,’’ कहती हुई वह तेजी से अपने कमरे में आ गई. पलंग पर गिरते ही उस का मन भर आया और वह फूटफूट कर रोने लगी.
आंसू कुछ इस तेजी से बह रहे थे कि कुछ देर में ही तकिए का गिलाफ गीला हो गया. सिर दर्द से फटा जा रहा था. बस एक ही प्रश्न मस्तिष्क में नाच रहा था, ‘अनवर ने ऐसा क्यों किया, अनवर ने ऐसा क्यों किया?’
इस बारे में सोचती तो आंखों के सामने अनवर का अंतिम कौयस मैसेज बजने लग जाता, जो कुछ दिन पहले ही उसे मिला था.
व्हाट्सऐप मैसेज में अनवर ने कहा, ‘‘निक्की मैं अपनी गलती को स्वीकार कर चुका हूं और तुम से क्षमा भी मांग चुका हूं परंतु फिर भी तुम्हारा यह व्यवहार मेरी सम?ा में नहीं आ रहा है. मैं तुम्हें इतनी जिद्दी तो नहीं सम?ाता था और फिर इस जिद से लाभ भी क्या? मेरे समय से न आने को मेरी जिद न सम?ो. यह मेरी मजबूरी है. दफ्तर में इतना काम है कि 4-4 घंटे ज्यादा काम करना पड़ता है. जब 1 घंटे की छुट्टी लेना भी मुशकिल है तो तुम्हें लेने आने के लिए 2 दिन का समय निकालना तो असंभव ही है.
‘‘तुम जानती हो, मैं एक क्षण भी तुम्हारे बिना नहीं रह सकता. तुम्हारे बिना मेरे सारे काम अधूरे हैं. ये 6 महीने मैं ने किस तरह बिताए हैं, मैं ही जानता हूं. इसलिए अब तो मु?ा पर दया करो. यह जिद छोड़ो और चली आओ.
‘‘यदि तुम 2 दिन के भीतर नहीं आई तो सुन लो, मैं दूसरा निकाह कर लूंगा क्योंकि अब किसी साथी के बिना जीवन गुजारना दुश्वार हो गया है.’’
पत्र पढ़ कर उस का मन धड़क उठा. उस ने अपनी जिद तोड़ देने का
निर्णय ले लिया. परंतु फिर उसे लगा अनवर के पत्र में छलकपट छिपा है. उसे यह भी लगा कि जब वह लौट कर जाएगी तो अनवर उसे अपनी हार नहीं मानेगा बल्कि उस की हंसी उड़ाएगा और कहेगा कि आखिर आना ही पड़ा न? बहुत कहती थीं जब तक तुम नहीं आओगे, मैं नहीं आऊंगी और यही सोच कर उस ने जाने का विचार छोड़ दिया.
उसे अनवर के दूसरे विवाह की बात तो धमकी ही लगी थी. वह उसे इतना चाहता था कि उस से सारे संबंध तोड़ लेने की कल्पना भी नहीं कर सकता था. फिर भला दूसरा विवाह? यह तो असंभव था.
उसे सचमुच इस बात पर विश्वास नहीं हुआ कि अनवर ने दूसरा विवाह कर लिया है. कुछ सोच कर वह उठी, अपने आंसू पोंछे और साजिद को आवाज दी.
साजिद आया तो उस ने पूछा, ‘‘साजिद, कहीं उन्होंने तुम से मजाक तो नहीं किया है?’’
‘‘बाजी, पहले मैं ने भी यही सोचा था कि वे मजाक कर रहे होंगे, अपनी शंका दूर करने के लिए मैं ने छिप कर उन का पीछा किया. वे दोनों तुम्हारे घर गए और फिर रात में भी वह लड़की घर से बाहर नहीं आई.’’
साजिद की इस बात ने उसे भीतर से तोड़ डाला, ‘तो क्या सचमुच अनवर ने दूसरा विवाह कर लिया?’ वह सोचने लगी. फिर उस का ध्यान साजिद की ओर गया और वह उस से बोली, ‘‘अच्छा, अब तुम जाओ,’’ उस ने कहा तो साजिद चला गया.
साजिद के जाते ही उस की आंखों से फिर आंसू बहने लगे. उस का मन कहने लगा, ‘ऐसी स्थिति में अनवर दूसरा विवाह नहीं करता तो फिर क्या करता?’ सचमुच अनवर को एक सहारे की जरूरत थी. वही तो उस का सहारा थी. जब वही उस से दूर हो गई तो फिर वह क्या करता? खानेपीने का कष्ट… दफ्तर देखे या घर… वह थी तो पूरी तरह घर संभाल लेती थी. उस के अनवर के जीवन से निकल जाने से जो कमी पैदा हो गई थी, अनवर ने वह कमी दूसरा विवाह कर के पूरी कर ली है. तो फिर क्या अनवर की सारी बातें… वह प्यार सब ?ाठ था?’
विवाह की पहली रात अनवर ने उस से कहा था, ‘निक्की, मैं एक दफ्तर में एक साधारण से पद पर नियुक्त हूं. मेरा दुनिया में कोई नहीं है. मैं सिर्फ तुम्हें एक छोटा सा घर दे सकता हूं और वह छोटा सा घर यह है. मैं तुम्हें इस से अधिक और कुछ नहीं दे सकता.
वह अनवर की बात का क्या उत्तर दे, उस की सम?ा में नहीं आ रहा था. लज्जा से सिमटी वह सिर ?ाकाए बैठी रही और अनवर गुनगुनाने लगा …
‘‘सोना न चांदी न कोई महल जानेमन मैं तुम्हें दे सकूंगा, दे सका तो मैं तु?ो एक छोटा सा घर दूंगा जब शाम लौट आऊंगा हंसती हुई तू मिलेगी मिट जाएंगी सारी सोचें बांहों में जब तू खिलेगी छुट्टी का दिन जब होगा हम खूब घूमा करेंगे, दिनरात होंठों पर अपनी चाहतों के गुल खिलेंगे, बेचैन 2 दिल मिलेंगे गरमी में जा कर पहाड़ों पर हम गीत गाया करेंगे, सर्दी में छिप के लिहाफों में किस्से सुनाया करेंगे, रुत आएगी जब बहारों की फूलों की माला बुनेंगे, जा कर समंदर पर दोनों सपनों के मोती चुनेंगे, लहरों की पायल सुनेंगे, तनखा मैं जब ले कर आऊंगा तेरे ही हाथों में दूंगा, जब खर्च होंगे वे पैसे मैं तु?ा से ?ागड़ा करूंगा, फिर ऐसा होगा तू मु?ा से कुछ देर रूठी रहेगी, सोचेगी जब अपने दिल में तू मुसकराती बढ़ेगी आ कर गले से लगेगी.’’
अनवर गा रहा था और उस की आंखों में तरहतरह के सपने नाच रहे थे. अनवर ने अपने प्रेम, अपनत्व, सपनों, अभिलाषाओं की अभिव्यक्ति उस सुंदर से गीत द्वारा कर दी थी और वह गदगद हो उठी थी.
उस के बाद अनवर अकसर वह गीत गाता रहता था. उस गीत को सुन कर वह खो जाती थी और उस का मन चाहता था, अनवर इसी तरह वह गीत गाता रहे और वह सुनती रहे.
अनवर ने उसे सोनाचांदी या महल नहीं दिया था, एक छोटा सा घर दिया था और वे अपने उस छोटे से संसार में एकदूसरे के प्यार में खोए बहुत खुश थे.
छुट्टी के दिन दोनों खूब घूमते थे. कहीं दूसरे शहर चले जाते थे और एकांत में गुजरे वे क्षण उसे अपने जीवन के अनमोल क्षण प्रतीत होते थे. सचमुच अनवर सारा वेतन उस के हाथ में ला कर रख देता था और उसे सारा खर्च चला कर भी बहुत कुछ बचाना होता था. इस पर कभीकभी दोनों में प्यार भरी नोक?ोंक हो ही जाती थी.
दिन इसी तरह बीत रहे थे. एक दिन उस के अब्बा उस से मिलने आए. अब्बा 1-2 दिन उन के यहां रहे. एक दिन शाम अनवर दफ्तर से आया तो आते ही उस पर बरस पड़ा, ‘‘तुम्हारे अब्बा अपने आप को क्या सम?ाते हैं? उन्होंने मेरा अपमान किया है. अब वे एक क्षण भी यहां नहीं रह सकते…’’
‘‘मैं स्वयं यहां रहना नहीं चाहता हूं,’’ इस से पहले कि वह कुछ सम?ा पाती, अब्बा आ गए और बोले, ‘‘सचाई सामने आ गई तो धमकाने लगे हो. मैं तुम्हें ऐसा नहीं सम?ाता था. मेरी बेटी भोली है. वह तुम्हारी चालों को क्या सम?ो कि तुम उस के साथ क्या नाटक खेल रहे हो.’’
उस की तो सम?ा में ही कुछ नहीं आ रहा था परंतु अब्बा के मुंह से ऐसी
बातें सुन कर अनवर को क्रोध आ गया और उस ने कुछ ऐसी बातें कीं, जिन से उसे भी अपने अब्बा का अपमान अनुभव होने लगा.
स्वयं पर नियंत्रण रखते हुए उस ने वास्तविकता जानने का प्रयत्न किया तो अनवर ने बताया कि वह अपने दफ्तर में काम करने वाली एक लड़की रीता के साथ बैठा एक रेस्तरां में चाय पी रहा था कि उस के अब्बा आ गए और दोनों पर तरहतरह के आरोप लगा कर उसे अपमानित करने लगे.
अब्बा बताने लगे कि वे आरोप नहीं वास्तविकता थी. अनवर के रीता से संबंध हैं. वे उसी मुद्रा में बैठे बातें कर रहे थे.
वह सम?ा गई कि वास्तव में दोनों ने एकदूसरे को गलत सम?ा है परंतु दोनों अपनी गलती स्वीकार करने को तैयार नहीं.
उस ने अनवर को सम?ाया कि अब्बा पुराने विचारों के हैं. उन्हें यदि वह सम?ा देता कि ऐसी कोई बात नहीं है तो वे अपनी भूल सम?ा जाते परंतु उन्हें बजाय सम?ाने के उस ने ही विवाद बढ़ाया. गलती उस की ही है, इसलिए वह अब्बा से क्षमा मांग कर इस विवाद को यहीं समाप्त कर दे, वह स्वयं अब्बा को सब सम?ा देगी.
मगर वह नहीं माना. अब्बा तो एक क्षण भी रुकने को तैयार नहीं थे. अंत में उस ने भी अपना निर्णय सुना दिया कि यदि अनवर ने क्षमा नहीं मांगी तो वह इस घर में नहीं रहेगी.
इस पर अनवर ने कह दिया कि उसे उस की कोई आवश्यकता नहीं है और क्रोध में भरी वह अब्बा के साथ मायके चली आई.
कुछ दिन गुजरे तो अनवर को अपनी गलती का एहसास हुआ. उस ने उस से क्षमा मांगते हुए वापस आने के लिए फोन किया परंतु वह अपनी जिद पर अड़ गई. उस ने जवाब दिया कि जब तक अनवर स्वयं आ कर उसे नहीं ले जाएगा
और अब्बा से क्षमा नहीं मांगेगा, वह वापस नहीं आ सकती.
अनवर का एक ही उत्तर था कि उस में उस के अब्बा से नजर मिलाने की शक्ति नहीं है, अपने व्यवहार पर वह लज्जित है. इसलिए बात बन नहीं सकी.
जहां तक रीता का सवाल था, वह जानती थी कि अब्बा ने दोनों को गलत सम?ा है.
दोनों एक ही दफ्तर में काम करते हैं, इसलिए साथसाथ चाय पीने आ गए होंगे. पुराने विचारों वाले अब्बा उन के हंसीमजाक को कुछ और ही सम?ा बैठे. अनवर तो उस के सिवा किसी और की कल्पना भी नहीं कर सकता.
दूसरा मन कहता, ऐसा संभव भी है. उस की उपेक्षा के कारण अनवर ऐसा भी कर सकता है परंतु वह दूसरी स्त्री कौन हो सकती है, जिस से अनवर ने दूसरा विवाह किया?
वह रीता भी तो हो सकती है. उसे उत्तर मिल जाता. तभी उस के कानों में अनवर का गीत गूंजने लगता:
सोना न चांदी न कोई महल जानेमन मैं तु?ो दे सकूंगा…
अनवर ने उसे एक छोटा सा घर ही दिया था. फिर उसे क्यों छीन लिया? क्या अब वह कभी दफ्तर से आते अनवर का हंसते हुए इंतजार नहीं कर सकेगी? क्या वे कभी छुट्टियों के दिन कहीं घूम सकेंगे? क्या अनवर इस के बाद उस के हाथों में कभी वेतन के पैसे नहीं दे सकेगा? वह जितना भी इस बारे में सोचती, उस का और भी मन भर आता. उसे स्वयं से घृणा होने लगती. जो कुछ हुआ, उस के कारण ही हुआ. उस की जिद के कारण हुआ.
साजिद को एक काम के संबंध में उस के शहर जाना था. वह वहां हो कर आया था परंतु उसे पता नहीं था कि साजिद वहां से इतनी बुरी खबर लाएगा.
क्या किया जाए? वह सोच में पड़ गई. बहुत सोचने के बाद इसी निर्णय पर पहुंची कि वह स्वयं अनवर से जा कर इस संबंध में बात करेगी. आखिर उस ने क्यों दूसरा विवाह किया? उस में क्या कमी थी?
दूसरे दिन जब उस ने जाने की बात की तो अब्बा अजीब नजरों से उसे देखने लगे. उन्होंने उसे रोका नहीं. जब वह अपनी यात्रा कर रही थी तो मस्तिष्क में हजारों प्रश्न उत्पात मचा रहे थे. वह उन में कुछ ऐसी खोई हुई थी उसे अपने चारों ओर की जरा भी खबर नहीं थी.
शाम होने पर वह अपने पति के घर पहुंची. उस का खयाल था कि अनवर दफ्तर से वापस आ गया होगा और घर पर ही मिलेगा. ‘यदि वह उस की सौत के साथ कहीं घूमने चला गया होगा तो?’ जब यह प्रश्न मस्तिष्क में उभरा तो उस के मन को एक आघात सा लगा और वह बड़ी मुश्किल से अपनी आंखों में आंसू दबा सकी.
धड़कते दिल के साथ उस ने दरवाजा खटखटाया. दरवाजा खोलने वाली एक महिला ही थी. वह उसे ऊपर से नीचे तक देखती हुई बोली, ‘‘आखिर आप आ ही गईं परंतु अब कोई लाभ नहीं. अब तुम्हारा इस घर पर और अनवर पर कोई अधिकार नहीं है. अब इस की मालकिन अनवर की दूसरी बीवी है.’’
‘‘भाभी,’’ उस की बात सुन कर उस की आंखों में आंसू आ गए, ‘‘तुम भी ऐसा कह रही हो?’’
‘‘हां,’’ वह बोली, ‘‘अनवर, देखो मेरी सौत और तुम्हारी पहली बीवी आई हैं.’’
‘‘आया भाभी,’’ भीतर से आवाज आई और वह भी आ खड़ा हुआ.
दोनों ने एकदूसरे को देखा और फिर जोर से हंस पड़े.
उस की सम?ा में कुछ नहीं आया.
‘‘तो, भाभी, चाल सफल रही,’’ अनवर बोला, ‘‘साजिद सचमुच तुम्हें पहचान नहीं सका और उस ने हमारी बातों पर विश्वास करते हुए तुम्हें मेरी दूसरी पत्नी सम?ा और मुहतरमा को सब बता दिया. तभी तो वह दौड़ीदौड़ी आई.’’
यह सुनते ही उस के मस्तिष्क को एक ?ाटका लगा, दोनों हंसने लगे तो वह ?ोंप गई
और उस ने अपना सिर ?ाका लिया.
‘‘क्यों, निक्की,’’ भाभी बोली, ‘‘तुम ने यह कैसे सम?ा लिया कि अनवर तुम्हारे होते हुए किसी और से विवाह कर सकता है? मैं तुम से मिलने यहां आई तो अनवर ने सारी बातें बताईं. इसी बीच साजिद नजर आ गया और तुम्हें बुलाने के लिए हम ने यह चाल चली. वह नहीं जानता था कि मैं अनवर की भाभी हूं. मु?ो वह उस की दूसरी पत्नी ही सम?ा और तुम…’’ वह भी हंस पड़ी.
सचमुच साजिद भाभी को गलत सम?ा था. वह तो उस की देवरानी थी जो दूसरे शहर में रहती थी, जिसे साजिद पहचान नहीं सका. मगर साजिद की इस गलती के कारण उसे अपनी गलती सुधारने का अवसर मिल गया. उस ने अनवर की ओर देखा. साजिद की कितनी प्यारी गलती थी. वह चंचल दृष्टि से उसे देख रहा था जैसे गा रहा हो:
सोना न चांदी न कोई महल…