प्यार एक एहसास

पिता की 13वीं से लौटी ही थी सीमा. 15 दिन के लंबे अंतराल के बाद उस ने लैपटौप खोल कर फेसबुक को लौग इन किया. फ्रैंड रिक्वैस्ट पर क्लिक करते ही जो नाम उभर कर आया उसे देख कर बुरी तरह चौंक गई.

‘‘अरे, यह तो शैलेश है,’’ उस के मुंह से बेसाख्ता निकल गया. समय के इतने लंबे अंतराल ने उस की याद पर धूल की मोटी चादर बिछा दी थी. लैपटौप के सामने बैठेबैठे ही सीमा की आंखों के आगे शैलेश के साथ बिताए दिन परतदरपरत खुलते चले गए.

दोनों ही दिल्ली के एक कालेज में स्नातक की पढ़ाई कर रहे थे. शैलेश पढ़ने में अव्वल था. वह बहुत अच्छा गायक भी था. कालेज के हर सांस्कृतिक कार्यक्रम में वह बढ़चढ़ कर भाग लेता था. सीमा की आवाज भी बहुत अच्छी थी. दोनों कई बार डुएट भी गाते थे, इसलिए अकसर दोनों का कक्षा के बाहर मिलना हो जाता था.

एक बार सीमा को बुखार आ गया. वह 10 दिन कालेज नहीं आई तो शैलेश पता पूछता हुआ उस के घर उस का हालचाल पूछने आ गया. परीक्षा बहुत करीब थी, इसलिए उस को अपने नोट्स दे कर उस की परीक्षा की तैयारी करने में मदद की. सीमा ने पाया कि वह एक बहुत अच्छा इनसान भी है. धीरेधीरे उन की नजदीकियां बढ़ने लगीं. कालेज में खाली

समय में दोनों साथसाथ दिखाई देने लगे. दोनों को ही एकदूसरे का साथ अच्छा लगने लगा था. 1 भी दिन नहीं मिलते तो बेचैन हो जाते. दोनों के हावभाव से आपस में मूक प्रेमनिवेदन हो चुका था. इस की कालेज में भी चर्चा होने लगी.

यह किशोरवय उम्र ही ऐसी है, जब कोई प्रशंसनीय दृष्टि से निहारते हुए अपनी मूक भाषा में प्रेमनिवेदन करता है, तो दिल में अवर्णनीय मीठा सा एहसास होता है, जिस से चेहरे पर एक अलग सा नूर झलकने लगता है. सारी दुनिया बड़ी खूबसूरत लगने लगती है. चिलचिलाती गरमी की दुपहरी में भी पेड़ के नीचे बैठ कर उस से बातें करना चांदनी रात का एहसास देता है.

लोग उन्हें अजीब नजरों से देख रहे हैं, इस की ओर से भी वे बेपरवाह होते हैं. जब खुली आंखों से भविष्य के सपने तो बुनते हैं, लेकिन पूरे होने या न होने की चिंता नहीं होती. एकदूसरे की पसंदनापसंद का बहुत ध्यान रखा जाता है. बारिश के मौसम में भीग कर गुनगुनाते हुए नाचने का मन करता है. दोनों की यह स्थिति थी.

पढ़ाई पूरी होते ही शैलेश अपने घर बनारस चला गया, यह वादा कर के कि वह बराबर उस से पत्र द्वारा संपर्क में रहेगा. साल भर पत्रों का आदानप्रदान चला, फिर उस के पत्र आने बंद हो गए. सीमा ने कई पत्र डाले, लेकिन उत्तर नहीं आया. उस जमाने में न तो मोबाइल थे न ही इंटरनैट. धीरेधीरे सीमा ने परिस्थितियों से समझौता कर लिया और कर भी क्या सकती थी?

सीमा पढ़ीलिखी थी तथा आधुनिक परिवार से थी. शुरू से ही उस की आदत रही थी कि वह किसी भी रिश्ते में एकतरफा चाहत कभी नहीं रखती. जब कभी उसे एहसास होता कि उस का किसी के जीवन में अस्तित्व नहीं रह गया है तो स्वयं भी उस को अपने दिल से निकाल देती थी. इसी कारण धीरेधीरे उस के मनमस्तिष्क से  शैलेश निकलता चला गया. सिर्फ उस का नाम उस के जेहन में रह गया था. जब भी ‘वह’ नाम सुनती तो एक धुंधला सा चेहरा उस की आंखों के सामने तैर जाता था, इस से अधिक और कुछ नहीं.

समय निर्बाध गति से बीतता गया. उस का विवाह हो गया और 2 प्यारेप्यारे बच्चों की मां भी बन गई. पति सुनील अच्छा था, लेकिन उस से मानसिक सुख उसे कभी नहीं मिला. वह अपने व्यापार में इतना व्यस्त रहता कि सीमा के लिए उस के पास समय ही नहीं था. वह पैसे से ही उसे खुश रखना चाहता था.

15 साल के अंतराल पर फेसबुक पर शैलेश से संपर्क होने पर सीमा के मन में उथलपुथल मच गई और अंत में वर्तमान परिस्थितियां देखते हुए रिक्वैस्ट ऐक्सैप्ट न करने में ही भलाई लगी.

अभी इस बात को 4 दिन ही बीते होंगे कि  उस का मैसेज आ गया. किसी ने सच ही कहा है कि कोई अगर किसी को शिद्दत से चाहे तो सारी कायनात उन्हें मिलाने की साजिश करने लगती है और ऐसा ही हुआ. इस बार वह अपने को रोक नहीं पाई. मन में उस के बारे में जानने की उत्सुकता जागी. मैसेज का सिलसिला चलने लगा, जिस से पता लगा कि वह पुणे में अपने परिवार के साथ रहता है. फिर मोबाइल नंबरों का आदानप्रदान हुआ.

इस के बाद प्राय: बात होने लगी. उन का मूक प्रेम मुखर हो उठा था. पहली बार शैलेश की आवाज फोन पर सुन कर कि कैसी हो नवयौवना सी उस के दिल की स्थिति हो गई थी. उस का कंठ भावातिरेक से अवरुद्ध हो गया था.

उस ने सकुचाते हुए कहा, ‘‘अच्छी हूं. तुम्हें मैं अभी तक याद हूं?’’

‘‘मैं भूला ही कब था,’’ जब उस ने प्रत्युत्तर में कहा तो, उस के दिल की धड़कनें बढ़ गईं.

उस ने पूछा, ‘‘फिर पत्र लिखना क्यों छोड़ दिया?’’

‘‘तुम्हारा एक पत्र मां के हाथ लग गया था, तो उन्होंने भविष्य में

तुम्हारामेरा संपर्क में रहने का दरवाजा ही बंद कर दिया और मुझे अपना वास्ता दे दिया था. उन का इकलौता बेटा था, क्या करता.’’

उस ने सीमा से कभी भविष्य में साथ रहने का वादा तो किया नहीं था, इसलिए वह शिकायत भी करती तो क्या करती. एक ऐसा व्यक्ति जिस ने अपने प्रेम को भाषा के द्वारा कभी अभिव्यक्त नहीं किया था, उस का उसे शब्दों का जामा पहनाना उस के लिए किसी सुखद सपने का वास्तविकता में परिणत होने से कम नहीं था. यदि वह उस से बात नहीं करती तो इतनी मोहक बातों से वंचित रह जाती.

समय का अंतराल परिस्थितियां बदल देता है, शारीरिक परिवर्तन करता है, लेकिन मन अछूता ही रह जाता है. कहते हैं हर इनसान के अंदर बचपना होता है, जो किसी भी उम्र में उचित समय देख कर बाहर आ जाता है.

उन की बातें दोस्ती की परिधि में तो कतई नहीं थीं. हां मर्यादा का भी उल्लंघन कभी नहीं किया. शैलेश की बातें उसे बहुत रोमांचित करती थीं. बातों से लगा ही नहीं कि वे इतने सालों बाद मिले हैं. फोन से बातें करते हुए उन्होंने उन पुराने दिनों को याद कर के भरपूर जीया. कुछ शैलेश ने याद दिलाईं जो वह भूल गई थी, कुछ उस ने याद दिलाई. ऐसे लग रहा था जैसेकि वे उन दिनों को दोबारा जी रहे हैं.

15 सालों में किस के साथ क्या हुआ वह भी शेयर किया. आरंभ में इस तरह बात करना उसे अटपटा अवश्य लगता था, संस्कारगत थोड़ा अपराधबोध भी होता था और यह सोच कर भी परेशान होती थी कि इस तरह कितने दिन रिश्ता निभेगा.

इसी ऊहापोह में 5-6 महीने बीत गए. दोनों ही चाहते थे कि यह रिश्ता बोझ न बन जाए. यह तो निश्चित हो गया था कि आग लगी थी दोनों तरफ बराबर. पहले यह आग तपिश देती थी, लेकिन धीरेधीरे यही आग मन को ठंडक तथा सुकून देने लगी. उन की रस भरी बातें उन दोनों के ही मन को गुदगुदा जाती थीं.

एक बार शैलेश ने एक गाने की लाइन बोली, ‘‘तुम होतीं तो ऐसा होता, तुम यह कहतीं…’’

उस की बात काटते हुए सीमा बोली, ‘‘और तुम होते तो कैसा होता…’’

कभी सीमा चुटकी लेती, ‘‘चलो भाग चलते हैं…’’

शैलेश कहता, ‘‘भाग कर जाएंगे कहां?’’

एक दिन शैलेश ने सीमा को बताया कि औफिस के काम से वह बहुत जल्दी दिल्ली आने वाला है. आएगा तो वह उस से और उस के परिवार से अवश्य मिलेगा. यह सुन कर उस का मनमयूर नाच उठा. फिर कड़वी सचाई से रूबरू होते ही सोच में पड़ गई कि अब सीमा किसी और की हो चुकी है.

क्या इस स्थिति में उस का शैलेश से मिलना उचित होगा? फिर अपने सवाल का उत्तर देते हुए बुदबुदाई कि ऊंह, तो क्या हुआ? समय बहुत बदल गया है, एक दोस्त की तरह मिलने में बुराई ही क्या है… सुनील की परवाह तो मैं तब करूं जब वह भी मेरी परवाह करता हो. खुश रहने के लिए मुझ भी तो कोई सहारा चाहिए. देखूं तो सही इतने सालों में उस में कितना बदलाव आया है. अब वह शैलेश के आने की सूचना की प्रतीक्षा करने लगी थी.’’

अंत में वह दिन भी आ पहुंचा, जिस का वह बेसब्री से इंतजार कर रही थी. सुनील बिजनैस टूअर पर गया हुआ था. दोनों बच्चे स्कूल गए हुए थे. उन्होंने कनाट प्लेस के कौफी हाउस में मिलने का समय निश्चित किया. वह शैलेश से अकेले घर में मिल कर कोई भी मौका ऐसा नहीं आने देना चाहती थी कि बाद में उसे आत्मग्लानि हो.

उसे लग रहा था कि इतने दिन बाद उस को देख कर कहीं वह भावनाओं में बह कर कोई गलत कदम न उठा ले, जिस की उस के संस्कार उसे आज्ञा नहीं देते थे. शैलेश को देख कर उसे लगा ही नहीं कि वह उस से इतने लंबे अंतराल के बाद मिल रही है. वह बिलकुल नहीं बदला था. बस थोड़ी सी बालों में सफेदी झलक रही थी. आज भी वह उसे बहुत अपना सा लग रहा था. बातों का सिलसिला इतना लंबा चला कि खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था.

इधरउधर की बातें करते हुए जब शैलेश ने सीमा से कहा कि उसे अपने वैवाहिक जीवन से कोई शिकायत नहीं है, लेकिन उस की जगह कोई नहीं ले सकता तो उसे अपनेआप पर बहुत गर्व हुआ.

अचानक शैलेश को कुछ याद आया. उस ने पूछा, ‘‘अरे हां, तुम्हारे गाने के शौक का क्या हाल है?’’

बात बीच में काटते हुए सीमा ने उत्तर दिया, ‘‘क्या हाल होगा. मुझे समय ही नहीं मिलता. सुनील तो बिजनैस टूअर पर रहते हैं और न ही उन को इस सब का शौक है.’’

‘‘अरे, उन को शौक नहीं है तो क्या हुआ, तुम इतनी आश्रित क्यों हो उन पर? कोशिश और लगन से क्या नहीं हो सकता? बच्चों के स्कूल जाने के बाद समय तो निकाला जा सकता है.’’

सीमा को लगा काश, सुनील भी उस को इसी तरह प्रोत्साहित करता. उस ने तो कभी उस की आवाज की प्रशंसा भी नहीं की. खैर, देर आए दुरुस्त आए. उस ने मन ही मन निश्चय किया कि वह अपनी इस कला को लोगों के सामने उजागर करेगी.

उस को चुप देख कर शैलेश ने कहा, ‘‘चलो, हम दोनों मिल कर एक अलबम तैयार करते हैं. सहकर्मियों की तरह तो मिल सकते हैं न. इस विषय पर फोन पर बात करेंगे.’’

सीमा को लगा उस के अकेलेपन की समस्या का हल मिल गया. दिल से वह शैलेश के सामने नतमस्तक हो गई थी.

फिर से बिछड़ने का समय आ गया था. लेकिन इस बार शरीर अलग हुए थे केवल, कभी न बिछड़ने वाला एक खूबसूरत एहसास हमेशा के लिए उस के पास रह गया था, जिस ने उस की जिंदगी को इंद्रधनुषी रंग दे कर नई दिशा दे दी थी. इस एहसास के सहारे कि वह इतने सालों बाद भी शैलेश की यादों में बसी है. वह शैलेश का सामीप्य हर समय महसूस करती थी. दूरी अब बेमानी हो गई थी.

एक कवि ने प्रेम की बहुत अच्छी परिभाषा देते हुए कहा है कि सिर्फ एहसास है यह रूह से महसूस करो. कहते हैं प्यार कभी दोस्ती में नहीं बदल सकता और यदि बदलता है तो उस से अच्छी दोस्ती नहीं हो सकती. इस दोस्ती का अलग ही आनंद है. सीमा को बहुत ही प्यारा दोस्त मिला.

शायद: क्या शगुन के माता-पिता उसकी भावनाएं जान पाए?

लेखिका- शशि उप्पल

शगुन स्कूल बस से उतर कर कुछ क्षण स्टाप पर खड़ा धूल उड़ाती बस को देखता रहा. जब वह आंखों से ओझल हो गई, तब घर की ओर मुड़ा. दरवाजे की चाबी उस के बैग में ही थी. ताला खोल कर वह अपने कमरे में चला गया. दीवार घड़ी में 3 बज रहे थे.

शगुन ने अनुमान लगाया कि मां लगभग ढाई घंटे बाद आ जाएंगी और पिता 3 घंटे बाद. हाथमुंह धो कर वह रसोईघर में चला गया. मां आलूमटर की सब्जी बना कर रख गई थीं. उसे भूख तो बहुत लग रही थी, परंतु अधिक खाया नहीं गया. बचा हुआ खाना उस ने कागज में लपेट कर घर के पिछवाड़े फेंक दिया. खाना पूरा न खाने पर मां और पिता नाराज हो जाते थे.

फिर शीघ्र ही शगुन कमरे में जा कर सोने का प्रयत्न करने लगा. जब नींद नहीं आई तो वह उठ कर गृहकार्य करने लगा. हिंदी, अंगरेजी का काम तो कर लिया परंतु गणित के प्रश्न उसे कठिन लगे, ‘शाम को पिताजी से समझ लूंगा,’ उस ने सोचा और खिलौने निकाल कर खेलने बैठ गया.

शालिनी दफ्तर से आ कर सीधी बेटे के कमरे में गई. शगुन खिलौनों के बीच सो रहा था. उस ने उसे प्यार से उठा कर बिस्तर पर लिटा दिया.

समीर जब 6 बजे लौटा तो देखा कि मांबेटा दोनों ही सो रहे हैं. उस ने हौले से शालिनी को हिलाया, ‘‘इस समय सो रही हो, तबीयत तो ठीक है न ’’

शालिनी अलसाए स्वर में बोली, ‘‘आज दफ्तर में काम बहुत था.’’

‘‘पर अब तो आराम कर लिया न. अब जल्दी से उठ कर तैयार हो जाओ. सुरेश ने 2 पास भिजवाए हैं…किसी अच्छे नाटक के हैं.’’

‘‘कौन सा नाटक है ’’ शालिनी आंखें मूंदे हुए बोली, ‘‘आज कहीं जाने की इच्छा नहीं हो रही है.’’

‘‘अरे, ऐसा अवसर बारबार नहीं मिलता. सुना है, बहुत बढि़या नाटक है. अब जल्दी करो, हमें 7 बजे तक वहां पहुंचना है.’’

‘‘और शगुन को कहां छोड़ें  रोजरोज शैलेशजी को तकलीफ देना अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘अरे भई, रोजरोज कहां  वैसे भी पड़ोसियों का कुछ तो लाभ होना चाहिए. मौका आने पर हम भी उन की सहायता कर देंगे,’’ समीर बोला.

जब शालिनी तैयार होने गई तो समीर शगुन के पास गया, ‘‘शगुन, उठो. यह क्या सोने का समय है ’’

शगुन में उठ कर बैठ गया. पिता को सामने पा कर उस के चेहरे पर मुसकराहट आ गई.

‘‘जल्दी से नाश्ता कर लो. मैं और तुम्हारी मां कहीं बाहर जा रहे हैं.’’

शगुन का चेहरा एकाएक बुझ गया. वह बोला, ‘‘पिताजी, मेरा गृहकार्य पूरा नहीं हुआ है. गणित के प्रश्न बहुत कठिन थे. आप…’’

‘‘आज मेरे पास बिलकुल समय नहीं है. कक्षा में क्यों नहीं ध्यान देता  ठीक है, शैलेशजी से पूछ लेना. अब जल्दी करो.’’

शगुन दूध पी कर शैलेशजी के घर चला गया. वह जानता था कि जब तक मां और पिताजी लौटेंगे, वह सो चुका होगा. सदा ऐसा ही होता था. शैलेशजी और उन की पत्नी टीवी देखते रहते थे और वह कुरसी पर बैठाबैठा ऊंघता रहता था. उन के बच्चे अलग कमरे में बैठ कर अपना काम करते रहते थे. आरंभ में उन्होंने शगुन से मित्रता करने की चेष्टा की थी परंतु जब शगुन ने ढंग से उन से बात तक न की तो उन्होंने भी उसे बुलाना बंद कर दिया था. अब भला वह बात करता भी तो कैसे  उसे यहां इस प्रकार आ कर बैठना अच्छा ही नहीं लगता था. जब वह शैलेशजी को अपने बच्चों के साथ खेलता देखता, उन्हें प्यार करते देखता तो उसे और भी गुस्सा आता.

शगुन अपनी गृहकार्य की कापी भी साथ लाया था, परंतु उस ने शैलेशजी से प्रश्न नहीं समझे और हमेशा की तरह कुरसी पर बैठाबैठा सो गया.

अगली सुबह जब वह उठा तो घर में सन्नाटा था. रविवार को उस के मातापिता आराम से ही उठते थे. वह चुपचाप जा कर बालकनी में बैठ कर कौमिक्स पढ़ने लगा. जब देर तक कोई नहीं उठा तो वह दरवाजा खटखटाने लगा.

‘‘क्यों सुबहसुबह परेशान कर रहे हो  जाओ, जा कर सो जाओ,’’ समीर झुंझलाते हुए बोला.

‘‘मां, भूख लगी है,’’ शगुन धीरे से बोला.

‘‘रसोई में से बिस्कुट ले लो. थोड़ी देर में नाश्ता बना दूंगी,’’ शालिनी ने उत्तर दिया.

शगुन चुपचाप जा कर अपने कमरे में बैठ गया. उस की कुछ भी खाने की इच्छा नहीं रह गई थी.

दोपहर के खाने के बाद समीर और शालिनी का किसी के यहां ताश खेलने का कार्यक्रम था, ‘‘वहां तुम्हारे मित्र नीरज और अंजलि भी होंगे,’’ शालिनी शगुन को तैयार करती हुई बोली.

‘‘मां, आज चिडि़याघर चलो न. आप ने पिछले सप्ताह भी वादा किया था,’’ शगुन मचलता हुआ बोला.

‘‘बेटा, आज वहां नहीं जा पाएंगे. गिरीशजी से कह रखा है. अगले रविवार अवश्य चिडि़याघर चलेंगे.’’

‘‘नहीं, आज ही,’’ शगुन हठ करने लगा, ‘‘पिछले रविवार भी आप ने वादा किया था. आप मुझ से झूठ बोलती हैं… मेरी बात भी नहीं मानतीं. मैं नहीं जाऊंगा गिरीश चाचा के यहां,’’ वह रोता हुआ बोला.

तभी समीर आ गया, ‘‘यह क्या रोना- धोना मचा रखा है. चुपचाप तैयार हो जा, चौथी कक्षा में आ गया है, पर आदतें अभी भी दूधपीते बच्चे जैसी हैं. जब देखो, रोता रहता है. इतने महंगे स्कूल में पढ़ा रहे हैं, बढि़या से बढि़या खिलौने ले कर देते हैं…’’

‘‘मैं गिरीश चाचा के घर नहीं जाऊंगा,’’ शगुन रोतेरोते बोला, ‘‘वहां नीरज, अंजलि मुझे मारते हैं. अपने साथ खेलाते भी नहीं. वे गंदे हैं. मेरे सारे खिलौने तोड़ देते हैं और अपने दिखाते तक नहीं. वे मूर्ख हैं. उन की मां भी मूर्ख हैं. वे भी मुझे ही डांटती हैं, अपने बच्चों को कुछ नहीं कहती हैं.’’

समीर ने खींच कर एक थप्पड़ शगुन के गाल पर जमाया, ‘‘बदतमीज, बड़ों के लिए ऐसा कहा जाता है. जितना लाड़प्यार दिखाते हैं उतना ही बिगड़ता जाता है. ठीक है, मत जा कहीं भी, बैठ चुपचाप घर पर. शालिनी, इसे कमरे में बंद कर के बाहर से ताला लगा दो. इसे बदतमीजी की सजा मिलनी ही चाहिए.’’

शालिनी लिपस्टिक लगा रही थी, बोली, ‘‘रहने दो न, बच्चा ही तो है. शगुन, अगले रविवार जहां कहोगे वहीं चलेंगे. अब जल्दी से पिताजी से माफी मांग लो.’’

शगुन कुछ क्षण पिता को घूरता रहा, फिर बोला, ‘‘नहीं मांगूंगा माफी. आप भी मूर्ख हैं, रोज मुझे मारती हैं.’’

समीर ने शगुन का कान उमेठा, ‘‘माफी मांगेगा या नहीं ’’

‘‘नहीं मांगूंगा,’’ वह चिल्लाया, ‘‘आप गंदे हैं. रोज मुझे शैलेश चाचा के घर छोड़ जाते हैं. कभी प्यार नहीं करते. चिडि़याघर भी नहीं ले जाते. नहीं मांगूंगा माफी…गंदे, थू…’’

समीर क्रोध में आपे से बाहर हो गया, ‘‘तुझे मैं ठीक करता हूं,’’ उस ने शगुन को कमरे में बंद कर के बाहर से ताला लगा दिया.

शगुन देर तक कमरे में सिसकता रहा. उस दिन से उस में एक अक्खड़पन आ गया. उस ने अपनी कोई भी इच्छा व्यक्त करनी बंद कर दी. जैसा मातापिता कहते, यंत्रवत कर लेता, पर जैसेजैसे बड़ा होता गया वह अंदर ही अंदर घुटने लगा. 10वीं कक्षा के बाद पिता के कहने से उसे विज्ञान के विषय लेने पड़े. पिता उसे डाक्टर बनाने पर तुले हुए थे. शगुन की इच्छाओं की किसे परवा थी और मां भी जो पिता कहते, उसे ही दोहरा देतीं.

एक दिन दफ्तर के लिए तैयार होती हुई शालिनी बोली, ‘‘शगुन का परीक्षाफल शायद आज घोषित होने वाला है…तुम जरा पता लगाना.’’

‘‘क्यों, क्या शगुन इतना भी नहीं कर सकता,’’ समीर नाश्ता करता हुआ बोला, ‘‘जब पढ़ाईलिखाई में रुचि ही नहीं ली तो परिणाम क्या होगा.’’

‘‘ओहो, वह तो मैं इसलिए कह रही थी ताकि कुछ जल्दी…’’ वह टिफिन बाक्स बंद करती हुई बोली.

‘‘तुम्हें जल्दी होगी जानने की…मुझे तो अभी से ही मालूम है, पर मैं फिर कहे देता हूं यदि यह मैडिकल में नहीं आया तो इस घर में इस के लिए कोई स्थान नहीं है.  जा कर करे कहीं चपरासीगीरी, मेरी बला से.’’

‘‘तुम भी हद करते हो. एक ही तो बेटा है, यदि दोचार होते तो…’’

‘‘मैं भी यही सोचता हूं. एक ही इतना सिरदर्द बना हुआ है. क्या नहीं दिया हम ने इसे  फिर भी कभी दो घड़ी पास बैठ कर बात नहीं करता. पता नहीं सारा समय कमरे में घुसा क्या करता रहता है ’’ एकाएक समीर उठ कर शगुन के कमरे में पहुंच गया.

शगुन अचानक पिता को सामने देख कर अचकचा गया. जल्दी से उस ने ब्रश तो छिपा लिया परंतु गीली पेंटिंग न छिपा सका. पेंटिंग को देखते ही समीर का पारा चढ़ गया. उस ने बिना एक नजर पेंटिंग पर डाले ही उस को फाड़ कर टुकड़ेटुकड़े कर दिया, ‘‘तो यह हो रही है मैडिकल की तैयारी. किसे बेवकूफ बना रहे हो, मुझे या स्वयं को  वहां महंगीमहंगी पुस्तकें पड़ी धूल चाट रही हैं और यह लाटसाहब बैठे चिडि़यातोते बनाने में समय गंवा रहे हैं. कुछ मालूम है, आज तुम्हारा नतीजा निकलने वाला है.’’

‘‘जी पिताजी. मनोज बता रहा था,’’ शगुन धीरे से बोला. उस की दृष्टि अब भी अपनी फटी हुई पेंटिंग पर थी.

‘‘मनोज के सिवा भी किसी को जानते हो क्या  जाने क्या करेगा आगे चल कर…’’ समीर बोलता चला जा रहा था.

शालिनी को दफ्तर के लिए देर हो रही थी. वह बोली, ‘‘शगुन, मुझे फोन अवश्य कर देना. तुम्हारा खाना रसोई में रखा है, खा लेना.’’

मातापिता के जाते ही शगुन एक बार फिर अकेला हो गया. बचपन से ही यह सिलसिला चला आ रहा था. स्कूल से आ कर खाली घर में प्रवेश करना, फिर मातापिता की प्रतीक्षा करना. उस के मित्र उन्हें पसंद नहीं आते थे. बचपन में वह जब भी किसी को घर बुलाता था तो मातापिता को यही शिकायत रहती थी कि घर गंदा कर जाते हैं. महंगे खिलौने खराब कर जाते हैं. अकेला कहीं वह आजा नहीं सकता था क्योंकि मातापिता को सदा किसी दुर्घटना का अंदेशा रहता था.

शगुन के कई मित्र स्कूटर, मोटर- साइकिल चलाने लगे थे, पर उस के पिता ने कड़ी मनाही कर रखी थी. बस जब देखो अपने घिसेपिटे संवाद दोहराते रहते थे, ‘हम तो 8 भाईबहन थे. पिताजी के पास इतने रुपए नहीं थे कि किसी को डाक्टर बना सकते. मेरी तो यह हसरत मन में ही रह गई, पर तेरे पास तो सबकुछ है,’ और मां सदा यही पूछती रहती थीं, ‘ट्यूटर चाहिए, पुस्तकें चाहिए, बोल क्या चाहिए ’

पर शगुन कभी नहीं बता पाया कि उसे क्या चाहिए. वह सोचता, ‘मातापिता जानते तो हैं कि मेरी रुचि कला में है, मैं सुंदरसुंदर चित्र बनाना चाहता हूं, रंगबिरंगे आकार कागज पर सजाना चाहता हूं. इस में इनाम जीतने पर भी डांट पड़ती है कि बेकार समय नष्ट कर रहा हूं. उन्होंने कभी मेरी कोई इच्छा पूरी नहीं की.’

तभी मनोज आ गया. शगुन उस से बोला, ‘‘यार, बहुत डर लग रहा है.’’

‘‘इस में डरने की क्या बात है. ‘फाइन आर्ट्स’ ही तो करना चाहता है न ’’

‘‘मेरे चाहने से क्या होता है,’’ शगुन कड़वाहट से बोला, ‘‘मेरे पिता को तो मानो मेरी इच्छाओं का गला घोंटने में मजा आता है.’’

मनोज उस को समझ नहीं पाता था. उसे अचरज होता था कि इतना सब होने पर भी शगुन उदास क्यों रहता है.

स्कूल पहुंचते ही दोनों ने नोटिस बोर्ड पर अपने अंक देखे. अपने 54 प्रतिशत अंक देख कर मनोज प्रसन्न हो गया, ‘‘चलो, पास हो गया, पर तू मुंह लटकाए क्यों खड़ा है, तेरे तो 65 प्रतिशत अंक हैं.’’

शगुन बिना कुछ बोले घर की ओर चल दिया. वह मातापिता पर होने वाली प्रतिक्रिया के विषय में सोच रहा था, ‘मां तो निराश हो कर रो लेंगी, परंतु पिताजी  वे तो पिछले 2 वर्षों से धमकियां दे रहे थे.’

उस ने मां को फोन किया. चुपचाप कमरे में जा कर बैठ गया. शगुन रेंगती हुई घड़ी की सूइयों को देख रहा था और सोच रहा था. जब 5 बज गए तो वह झट बिस्तर से उठा. उस ने अलमारी में से कुछ रुपए निकाले और घर से बाहर आ गया.

समीर जब दफ्तर से लौटा तो शालिनी पर बरसने लगा, ‘‘कहां है तुम्हारा लाड़ला  कितना समझाया था कि मेहनत कर ले…पर मैं तो केवल बकता हूं न.’’

शालिनी वैसे ही परेशान थी. बोली, ‘‘आज उस ने खाना भी नहीं खाया. कहां गया होगा. बिना बताए तो कहीं जाता ही नहीं है.’’

जब रात के 9 बजे तक भी शगुन नहीं लौटा तो मातापिता को चिंता होने लगी. 2-3 जगह फोन भी किए परंतु कुछ मालूम न हो सका. शगुन के कोई ऐसे खास मित्र भी नहीं थे, जहां इतनी रात तक बैठता.

11 बजे समीर पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा आया. शालिनी ने सब अस्पतालों में भी फोन कर के पूछ लिया. सारी रात दोनों बेटे की प्रतीक्षा में बैठे रहे. लेकिन शगुन का कुछ पता न चला. शालिनी की तो रोरो कर आंखें दुखने लगी थीं और समीर तो मानो 10 दिन में ही 10 वर्ष बूढ़ा हो गया था.

एक दिन शगुन की अध्यापिका शालिनी से मिलने आईं तो अपने साथ एक डायरी भी ले आईं, ‘‘एक बार शगुन ने मुझे यह डायरी भेंट में दी थी. इस में उस की कविताएं हैं. बहुत ही सुंदर भाव हैं. आप यह रख लीजिए, पढ़ कर आप के मन को शांति मिलेगी.’’

शालिनी ने डायरी ले ली परंतु वह यही सोचती रही, ‘शगुन कविताएं कब लिखता था  मुझ से तो कभी कुछ नहीं कहा.’

शाम को जब समीर आया तो शालिनी अधीरता से बोली, ‘‘समीर, क्या तुम जानते हो कि शगुन न केवल सुंदर चित्र बनाता था बल्कि बहुत सुंदर कविताएं भी लिखता था. हम अपने बेटे को बिलकुल नहीं जानते थे. हम उसे केवल एक रेस का घोड़ा मान कर प्रशिक्षित करते रहे, पर इस प्रयास में हम यह भूल गए कि उस की अपनी भी कुछ इच्छाएं हैं, भावनाएं हैं. हम अपने सपने उस पर थोपते रहे और वह मासूम निरंतर उन के बोझ तले दबता रहा.’’

समीर ने शालिनी से डायरी ले ली और बोला, ‘‘आज मैं मनोज से भी मिला था.’’

‘‘वह तो तुम्हें कतई नापसंद था,’’ शालिनी ने विस्मित हो कर कहा.

‘‘बड़ा प्यारा लड़का है,’’ समीर शालिनी की बात अनसुनी करता हुआ बोला, ‘‘उस से मिल कर ऐसा लगा, मानो शगुन लौट आया हो. शालिनी, शगुन मुझे जान से भी प्यारा है. यदि वह लौट कर नहीं आया तो मैं जी नहीं पाऊंगा,’’ समीर की आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी.

‘‘नहीं, समीर,’’ शालिनी दृढ़ता से बोली, ‘‘शगुन आत्महत्या नहीं कर सकता, जो इतने सुंदर चित्र बना सकता है, इतनी सुंदर कविताएं लिख सकता है, वह जीवन से मुंह नहीं मोड़ सकता.’’

‘‘हां, हम ने उसे समझने में जो भूल की, वह हमें उस की सजा देना चाहता है,’’ समीर भरे गले से बोला.

शालिनी शगुन की डायरी खोल कर एक कविता की पंक्तियां पढ़ कर सुनाने लगी,

‘खेल और खिलौने, आडंबर और अंबार हैं.

बांट लूं किसी के संग उस पल का इंतजार है.’

उस समय दोनों यही सोच रहे थे कि यदि शगुन की कोई बहन या भाई होता तो वह शायद स्वयं को इतना अकेला कभी भी महसूस न करता और तब शायद.

भावनाओं के साथी: जानकी को किसका मिला साथ

जानकी को आज सुबह से ही कुछ अच्छा नहीं लग रहा था. सिरदर्द और बदनदर्द के साथ ही कुछ हरारत सी महसूस हो रही थी. उन्होंने सोचा कि शायद काम की थकान की वजह से ऐसा होगा. सारे काम निबटातेनिबटाते दोपहर हो गई. उन्हें कुछ खाने का मन नहीं कर रहा था, फिर भी उन्होंने थोड़ा सा दलिया बना लिया. खा कर वे कुछ देर आराम करने के लिए बिस्तर पर लेट गईं. सिरदर्द कम होने का नाम नहीं ले रहा था. उन्होंने माथे पर थोड़ा सा बाम मला और आंखें मूंद कर बिस्तर पर लेटी रहीं.

आज उन्हें अपने पति शरद की बेहद याद आ रही थी. सचमुच शरद उन का कितना खयाल रखते थे. थोड़ा सा भी सिरदर्द होने पर वे जानकी का सिर दबाने लगते. अपने हाथों से इलायची वाली चाय बना कर पिलाते. उन के पति कितने अधिक संवेदनशील थे. सोचतेसोचते जानकी की आंखों से आंसू टपक पड़े. आंसू जब गालों पर लुढ़के तो उन्हें आभास हुआ कि तन का ताप कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है. उन्होंने थर्मामीटर लगा कर देखा तो पारा 103 डिगरी तक पहुंच गया था. जैसेतैसे वे हिम्मत जुटा कर उठीं और स्वयं ही ठंडे पानी की पट्टी माथे पर रखने लगीं. उन्होंने सोचा कि अब ज्यादा देर करना ठीक नहीं रहेगा. रात हो गई है. अच्छा यही होगा कि वे कल सुबह अस्पताल चली जाएं.

कुछ सोचतेसोचते उन्होंने अपने बेटे नकुल को फोन लगाया. उधर से आवाज आई, ‘‘हैलो मम्मी, आप ने कैसे याद किया? सब ठीक तो है न?’’

‘‘बेटे, मुझे काफी तेज बुखार है. यदि तुम आ सको तो किसी अच्छे अस्पताल में भरती करा दो. मेरी तो हिम्मत ही नहीं हो रही,’’ जानकी ने कांपती आवाज में कहा.

‘‘मम्मी, मेरी तो कल बहुत जरूरी मीटिंग है. कुछ बड़े अफसर आने वाले हैं. मैं लतिका को ही भेज देता पर नवल की भी तबीयत ठीक नहीं है,’’ नकुल ने अपनी लाचारी प्रकट की, ‘‘आप नीला को फोन कर के क्यों नहीं बुला लेतीं. उस के यहां तो उस की सास भी है. वह 1-2 दिन घर संभाल लेगी. प्लीज मम्मी, बुरा मत मानिएगा, मेरी मजबूरी समझने की कोशिश कीजिएगा.’’

जानकी ने बेटी नीला को फोन लगाया तो प्रत्युत्तर में नीला ने जवाब दिया, ‘‘मम्मी, मेरा वश चलता तो मैं तुरंत आप के पास आ जाती पर इस दीवाली पर मेरी ननद अमेरिका से आने वाली है, वह भी 3 सालों बाद. मुझे काफी तैयारी व खरीदारी करनी है. यदि कुछ कमी रह गई तो मेरी सास को बुरा लगेगा. आप नकुल भैया को बुला लीजिए. मेरी कल ही उन से बात हुई थी. कल शनिवार है, वे वीकएंड में पिकनिक मनाने जा रहे हैं. पिकनिक का प्रोग्राम तो फिर कभी भी बन सकता है.’’

जानकी बेटी की बात सुन कर अवाक् रह गईं. कितनी मायाचारी की थी उन के पुत्र ने अपनी जन्मदात्री से पर उन्होंने जाहिर में कुछ भी नहीं कहा. उन्होंने अब कल सुबह होते ही ऐंबुलैंस बुला कर अकेले ही अस्पताल जाने का निर्णय लिया. उन की महरी रधिया सुबह जल्दी ही आ जाती थी. उस की मदद से जानकी ने कुछ आवश्यक वस्तुएं रख कर बैग तैयार किया और अस्पताल चली गईं.

वे बुखार से कांप रही थीं. उन्हें कुछ जरूरी फौर्म भरवाने के बाद तुरंत भरती कर लिया गया. बुखार 104 डिगरी तक पहुंच गया था. डाक्टर ने बुखार कम करने के लिए इंजैक्शन लगाया व कुछ गोलियां भी खाने को दीं. पर बुखार उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था. उन के खून की जांच करने के लिए नमूना लिया गया. रिपोर्ट आने पर पता चला कि उन्हें डेंगू है. उन की प्लेटलेट्स काउंट कम हो रही थीं. अब डेंगू का इलाज शुरू किया गया.

डाक्टर ने जानकी से कहा, ‘‘आप अकेली हैं. अच्छा यही होगा कि जब तक आप बिलकुल ठीक नहीं हो जातीं, अस्पताल में ही रहिए.’’

2 दिन बाद एक बुजुर्ग सज्जन ने नर्स के साथ उन के कमरे में प्रवेश किया. उन के हाथ में फूलों का बुके व कुछ फल थे. जानकी ने उन्हें पहचानने की कोशिश की. दिमाग पर जोर डालने पर उन्हें याद आया कि उक्त सज्जन को उन्होंने सवेरे घूमते समय पार्क में देखा था. वे अकसर रोज ही मिल जाया करते थे पर उन दोनों में कभी कोई बात नहीं हुई थी.

तभी उन सज्जन ने अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘मैं हूं नवीन गुप्ता. आप की कालोनी में ही रहता हूं. रधिया मेरे यहां भी काम करती है. उसी से आप की तबीयत के बारे में पता चला और यह भी कि आप बिलकुल अकेली हैं. इसलिए आप को देखने चला आया.’’

जानकी ने फलों की तरफ देख कर कमजोर आवाज में कहा, ‘‘इन की क्या जरूरत थी?’’

‘‘अरे भाई, आप को ही तो इस की जरूरत है, तभी तो आप जल्दी स्वस्थ हो कर घर लौट पाएंगी,’’ कहने के साथ ही नवीनजी मुसकराते हुए फल काटने लगे.

जानकी को बहुत संकोच हो रहा था पर वे चुप रहीं.

अब तो रोज ही नवीनजी उन्हें देखने अस्पताल आ जाते. साथ में फल लाना न भूलते. उन का खुशमिजाज स्वभाव जानकी को अंदर ही अंदर छू रहा था.

करीब 8 दिनों बाद उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिली. शाम तक वे घर वापस आ गईं. वे अभी रात के खाने के बारे में सोच ही रही थीं कि तभी नवीनजी डब्बा ले कर आ गए.

जानकी सकुचाते हुए बोलीं, ‘‘आप ने नाहक तकलीफ की. मैं थोड़ी खिचड़ी खुद ही बना लेती.’’

नवीनजी ने खाने का डब्बा खोलते हुए जवाब दिया, ‘‘अरे जानकीजी, वही तो मैं लाया हूं, लौकी की खिचड़ी. आप खा कर बताइएगा कि कैसी बनी? वैसे एक राज की बात बताऊं, खिचड़ी बनाना मेरी पत्नी ने मुझे सिखाया था. वह रसोई के काम में बड़ी पारंगत थी. वह खिचड़ी जैसी साधारण चीज को भी एक नायाब व्यंजन में बदल देती थी,’’ कहने के साथ ही वे कुछ उदास से हो गए. इस दुनिया से जा चुकी पत्नी की याद उन्हें ताजा हो आई.

जीवनसाथी के बिछोह का दुख वे जानती थीं. उन्होंने नवीनजी के दर्द को महसूस किया व तुरंत प्रसंग बदलते हुए पूछा, ‘‘नवीनजी, आप के कितने बच्चे हैं और कहां पर हैं?’’

‘‘मेरे 2 बेटे हैं व दोनों अमेरिका में ही सैटल हैं,’’ उन्होंने संक्षिप्त सा उत्तर दिया फिर उठते हुए बोले, ‘‘अब आप आराम कीजिए, मैं चलता हूं.’’

जानकी को लगा कि उन्होंने नवीनजी की कोई दुखती रग को छू लिया है. वे अपने बेटों के बारे में ज्यादा कुछ नहीं बताना चाहते.

अब तो अकसर नवीनजी जानकी के यहां आने लगे. वे लोग कभी देश के वर्तमान हालत पर, कभी समाज की समस्याओं पर और कभी टीवी सीरियलों के बारे में चर्चा करते पर अपनेअपने परिवार के बारे में दोनों ने कभी कोई बात नहीं की.

एक दिन नवीनजी और जानकी एक पारिवारिक धारावाहिक के विषय में बात कर रहे थे जिस में एक स्त्री के पत्नी व मां के उज्ज्वल चरित्र को प्रस्तुत किया गया था. नवीनजी अचानक भावुक हो उठे. वे आर्द्र स्वर में बोले, ‘‘मेरी पत्नी केसर भी एक आदर्श पत्नी और मां थी. अपने पति व बच्चों का सुख ही उस के जीवन की सर्वोच्च प्राथमिकता थी. अपने बच्चों की एक खुशी के लिए अपनी हजारों खुशियां न्योछावर कर देती थी. उस के प्रेम को व्यवहार की तुला का बिलकुल भी ज्ञान नहीं था. दोनों बेटे पढ़ाई में बहुत ही मेधावी थे.

‘‘दोनों ने ही कंप्यूटर में बीई किया और एक सौफ्टवेयर कंपनी में जौब करने लगे. केसर के मन में बहू लाने के बड़े अरमान थे. वह अपने बेटों के लिए अपने ही जैसी, गुणों से युक्त बहू लाना चाहती थी. पर बड़े बेटे ने अपने ही साथ काम करने वाली एक ऐसी विजातीय लड़की से प्रेमविवाह कर लिया जो मेरी पत्नी के मापदंडों के अनुरूप नहीं थी. उसे बहुत दुख हुआ. रोई भी. फिर धीरेधीरे समय के मलहम ने उस के घाव भरने शुरू कर दिए.

‘‘कुछ समय बाद छोटा बेटा भी कंपनी की तरफ से अमेरिका चला गया. जाते वक्त उस ने अपनी मां से कहा कि वह उस के लिए अपनी मनपसंद लड़की खोज कर रखे. 1 साल बाद जब वह भारत लौटेगा तो शादी करेगा.

‘‘पर वह अमेरिका के माहौल में इतना रचाबसा कि वहां ही स्थायी रूप से रहने का निर्णय ले लिया और वहां की नागरिकता प्राप्त करने के लिए एक अमेरिकी लड़की से विवाह कर लिया.

‘‘केसर के सारे अरमान धूलधूसरित हो गए. वह बिलकुल खामोश रही और एकदम जड़वत हो गई. बस, अकेले ही अंदर ही अंदर वेदना के आसव को पीती रही. नतीजा यह हुआ कि वह बीमार पड़ गई और फिर एक दिन मुझे अपनी यादों के सहारे छोड़ कर इस संसार से विदा हो गई.’’

यह कहतेकहते नवीनजी की आवाज भर्रा गई. जानकी की आंखों की कोर भी गीली होने लगी. वे भीगे कंठ से बोलीं, ‘‘न जाने क्यों बच्चे अपने मांबाप के सपनों की समाधि पर ही अपने प्रेम का महल बनाना चाहते हैं?’’ फिर वे रसोईघर की तरफ मुड़ते हुए बोलीं, ‘‘मैं अभी आप के लिए मसाले वाली चाय बना कर लाती हूं. मूंग की दाल सुबह ही भिगो कर रखी थी. आप मेरे हाथ के बने चीले खा कर बताइएगा कि केसरजी के हाथों जैसा स्वाद है या नहीं.’’

नवीनजी के उदास मुख पर मुसकान की क्षीण रेखा उभर आई.

थोड़ी ही देर में जानकी गरमगरम चाय व चीले ले कर आ गईं. चाय का एक घूंट पीते ही नवीनजी बोले, ‘‘चाय तो बहुत लाजवाब बनी है, सचमुच मजा आ गया. कौनकौन से मसाले डाले हैं आप ने इस में. मुझे भी बनाना सिखाइएगा.’’

जानकी ने उत्तर दिया, ‘‘दरअसल, यह चाय मेरे पति शरदजी को बेहद पसंद थी. मैं खुद अपने हाथों से कूट कर यह मसाला तैयार करती थी. बाजार का रेडीमेड मसाला उन्हें पसंद नहीं आता था.’’

अपने पति का जिक्र करतेकरते जानकी की भावनाओं की सरिता बहने लगी. वे भावातिरेक हो कर बोलीं, ‘‘शरदजी और मुझ में आपसी समझ बहुत अच्छी थी. प्रतिकूल परिस्थितियों में सदैव उन्होंने मुझे संबल प्रदान किया. हम ने अपने दांपत्यरूपी वस्त्र को प्यार व विश्वास के सूईधागे से सिला था. पर नियति को हमारा यह सुख रास नहीं आया और मात्र 35 वर्ष की आयु में उन का निधन हो गया. तब नकुल 7 वर्ष का और नीला 5 वर्ष की थी. मैं ने अपने बच्चों को पिता का अभाव कभी नहीं खलने दिया. उन्हें लाड़प्यार करते समय मैं उन की मां थी व उन्हें अनुशासित करते समय एक पिता की भूमिका निभाती थी.

‘‘नकुल एक बैंक में अधिकारी है. उस की पत्नी लतिका एक कालेज में लैक्चरर है. नीला के पति विवेकजी इंजीनियर हैं. वे लोग भी इसी शहर में ही हैं. उन की एक बेटी भी है.

‘‘सेवानिवृत्त होने के बाद मैं फ्री थी. इसलिए जब कभी जरूरत पड़ती, नकुल और नीला मुझे बुलाते थे. पर बाद में काम निकल जाने के बाद उन दोनों के व्यवहार से मुझे स्वार्थ की गंध आने लगती थी. मैं मन को समझा कर तसल्ली देती थी कि यह मेरा कोरा भ्रम है पर सचाई तो कभी न कभी प्रकट हो ही जाती है.

‘‘बात उस समय की है जब लतिका दोबारा गर्भवती थी. तब मुझे उन लोगों के यहां कुछ माह रुकना पड़ा था. एक दिन नकुल मुझ से लाड़भरे स्वर में बोला, ‘मम्मी, आप के हाथ का बना मूंग की दाल का हलवा खाए बहुत दिन हो गए. लतिका को तो बनाना ही नहीं आता.’

‘‘मैं ने उत्साहित हो कर अगले ही दिन पीठी को धीमीधीमी आंच पर भून कर बड़े ही मनोयोग से हलवा तैयार किया. भले ही रात को हाथदर्द से परेशान रही. अब तो नकुल खाने में नित नई फरमाइशें करता और मैं पुत्रप्रेम में रोज ही सुस्वादु व्यंजन तैयार करती. बेटेबहू तारीफों की झड़ी लगा देते. पर मुझे पता नहीं था मेरे बेटेबहू प्रशंसा का शहद चटाचटा कर मेरा देहदोहन कर रहे हैं. एक दिन रात को मैं दही जमाना भूल गई. अचानक मेरी नींद खुली तो मुझे याद आया और मैं किचन की तरफ जाने लगी तो बहू की आवाज मेरे कानों में पड़ी, ‘सुनो जी, यदि मम्मी हमेशा के लिए यहीं रह जाएं तो कितना अच्छा रहे. मुझे कालेज से लौटने पर बढि़या गरमगरम खाना तैयार मिलेगा. कभी दावत देनी हो तो होटल से खाना नहीं मंगाना पड़ेगा और बच्चों की भी देखभाल होती रहेगी.’

‘‘‘बात तो तुम्हारी बिलकुल ठीक है पर 2 कमरों के इस छोटे से फ्लैट में असुविधा होगी,’ नकुल ने राय प्रकट की.

‘‘बहू ने बड़ी ही चालाकीभरे स्वर में जवाब दिया, ‘इस का उपाय भी मैं ने सोच लिया है. यदि मम्मीजी विदिशा का घर बेच दें और आप बैंक से कुछ लोन ले लें तो 3 कमरों का हम खुद का फ्लैट खरीद सकते हैं.’’

‘‘नकुल ने मुसकराते हुए कहा, ‘तुम्हारे दिमाग की तो दाद देनी पड़ेगी. मैं उचित मौका देख कर मम्मी से बात करूंगा.’

‘‘बेटेबहू का स्वार्थ मेरे सामने बेपरदा हो चुका था. मैं सोचने लगी कि अधन होने के बाद कहीं मैं अनिकेतन भी न हो जाऊं. बस, 2 दिन बाद ही मैं विदिशा लौट आई. नीला का भी कमोबेश यही हाल था. उस की भी गिद्ध दृष्टि मेरे मकान पर थी.

‘‘नवीनजी, मैं काफी अर्थाभाव से गुजर रही हूं. मैं ने बच्चों को पढ़ाया. नीला की शादी की. यह मकान मेरे पति ने बड़े ही चाव से बनवाया था. तब जमीन सस्ती थी. जब उन की मृत्यु हुई, मकान का कुछ काम बाकी था. मैं ने आर्थिक कठिनाइयों से गुजरते हुए जैसेतैसे इस को पूरा किया. अभी बीमार हुई तो काफी खर्च हो गया. मैं सोचती हूं कि कुछ ट्यूशंस ही कर लूं. मैं एक स्कूल में हायर सैकंडरी क्लास की कैमिस्ट्री की शिक्षिका थी.’’

नवीनजी ने जानकी की बात का समर्थन करते हुए कहा, ‘‘आप शुरू से ही शिक्षण व्यवसाय से जुड़ी हैं इसलिए इस से बेहतर विकल्प और कुछ नहीं हो सकता,’’ फिर कुछ सोचते हुए बोले, ‘‘क्यों न हम एक कोचिंग सैंटर खोल लें. मैं एक कालेज में गणित का प्रोफैसर था. मेरे एक मित्र हैं किशोर शर्मा. वे उसी कालेज में फिजिक्स के प्रोफैसर थे. वे मेरे पड़ोसी भी हैं. उन की भी रुचि इस में है. हम लोगों के समय का सदुपयोग हो जाएगा और आप को सहयोग. हां, हम इस का नाम रखेंगे, जानकी कोचिंग सैंटर क्योंकि इस में हम तीनों का नाम समाहित होगा.’’

जानकी उत्साह से भर गई और बोलीं, ‘‘2-3 विद्यालयों के पिं्रसिपल से मेरी पहचान है. मैं कल ही उन से मिलूंगी और विद्यालयों के नोटिसबोर्डों पर विज्ञापन लगवा दूंगी.’’

किशोरजी भी सहर्ष तैयार हो गए और जल्दी ही उन लोगों की सोच ने साकार रूप ले लिया. अब तो नवीनजी रोज ही जानकी के यहां आनेजाने लगे. कभी कुछ प्लानिंग तो कभी कुछ विचारविमर्श के लिए. वे काफी देर वहां रुकते. वैसे भी कोचिंग क्लासेज जानकी के घर में ही लगती थीं.

किशोरजी क्लास ले कर घर चले जाते क्योंकि उन की पत्नी घर में अकेली थीं. रोजरोज के सान्निध्य से उन लोगों के दिलों में आकर्षण के अंकुर फूटने लगे. वर्षों से सोई हुई कामनाएं करवट लेने लगीं व हृदय के बंद कपाटों पर दस्तक देने लगीं. जज्बातों के ज्वार उफनने लगे. आखिर उन्होंने एक ही जीवननौका पर सवार हो कर हमसफर बनने का निर्णय ले लिया.

ऐसी बातें भी भला कहीं छिपती हैं. महल्ले वाले पीठ पीछे जानकी और नवीनजी का मजाक उड़ाते व खूब रस लेले कर उलटीसीधी बातें करते. फिर ऐसी खबरों के तो पंख होते हैं. उड़तेउड़ते ये खबर नकुल और नीला के कानों में भी पड़ी. एक दिन वे दोनों गुस्से से दनदनाते हुए आए और जानकी के ऊपर बरस पड़े, ‘‘मम्मी, हम लोग क्या सुन रहे हैं? आप को इस उम्र में ब्याह रचाने की क्या सूझी? हमारी तो नाक ही कट जाएगी. क्या आप ने कभी सोचा है कि हमारा समाज व रिश्तेदार क्या कहेंगे?’’

जानकी ने तनिक भी विचलित न होते हुए पलटवार करते हुए उत्तर दिया, ‘‘और तुम लोगों ने कभी सोचा है कि मैं भी हाड़मांस से बनी, संवेदनाओं से भरी जीतीजागती स्त्री हूं. मेरी भी शिराओं में स्पंदन होता है. जिंदगी की मधुर धुनों के बीच क्या तुम लोगों ने कभी सोचा है कि अकेलेपन का सन्नाटा कितना चुभता है? बेटे, बुढ़ापा तो उस वृक्ष की भांति होता है जो भले ही ऊपर से हरा न दिखाई दे पर उस के तने में नमी विद्यमान रहती है. यदि उस की जड़ों को प्यार के पानी से सींचा जाए तो उस में भी अरमानों की कलियां चटख सकती हैं.

‘‘जब तुम्हारे पापा ने इस संसार से विदा ली, मैं ने जीवन के सिर्फ 30 वसंत ही देखे थे. मुझे लगा कि अचानक ही मेरे जीवन में पतझड़ का मौसम आ गया हो तथा मेरे जीवन के सारे रंग ही बदरंग हो गए हों. मैं ने तुम लोगों के सुखों के लिए अपनी सारी आकांक्षाओं की आहुति दे दी. पर जवान होने पर तुम लोगों की आंखों पर स्वार्थ की इतनी गहरी धुंध छाई जिस में कर्तव्य और दायित्व जैसे शब्द धुंधले हो गए. जब मेरी तबीयत खराब हुई और मैं ने तुम लोगों को बुलाया तो तुम दोनों ने बहाने गढ़ कर अपनेअपने पल्लू झाड़ लिए.

‘‘ऐसे आड़े वक्त और तकलीफ में नवीनजी एक हमदर्द इंसान के रूप में मेरे सामने आए. उन्होंने मेरा मनोबल बढ़ा कर मुझे मानसिक सहारा दिया. वे मेरे दुखदर्द के ही नहीं, भावनाओं के भी साथी बने. अब मैं उन्हें अपने जीवनसाथी के रूप में स्वीकार कर एक नए जीवन की शुरुआत करने जा रही हूं.’’

नकुल और नीला को आत्मग्लानि का बोध हुआ. वे पछतावेभरे स्वर में बोले, ‘‘मम्मी, आज आप ने हमारी आंखें खोल कर हमें अपनी गलतियों का एहसास कराया है और जीवन के एक बहुत बड़े सत्य से भी साक्षात्कार करवाया है. मां का हृदय बहुत विशाल होता है. हमारी भूलों के लिए आप हमें क्षमा कर दीजिए. आप के जीवन में हमेशा खुशियों के गुलाब महकते रहें, ऐसी हम लोगों की मंगल कामना है.’’

अपनी संतानों की ये बातें सुन कर जानकी की खुशी दोगुनी हो गई.

लेखिका- उर्मिला फुसकेले

ऐसे पाएं कूलर की उमस से छुटकारा

गरमी के दिनों कूलर का इस्तेमाल करते हैं, मगर गरमी से राहत नहीं मिलती तो जरा यह भी जान लीजिए…

मई के महीने में ही गरमी ने अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए. आएदिन तापमान में बढ़त देखने को मिल रही है. चिलचिलाती गरमी में अपना बचाव करना बेहद जरूरी है. गरमी से बचने के लिए जितना ज्यादा हो सके लोग घरों में ही रहना पसंद करते हैं।

जिन लोगों के पास एसी है उन के लिए इस गरमी को झेलना कोई ज्यादा मुश्किलभरा काम नहीं है, लेकिन जिन के पास एसी नहीं है वे कूलर से ही अपना गुजारा कर रहे हैं.

मगर क्या आप को मालूम है कि कूलर के इस्तेमाल से गरमी कम नहीं होती बल्कि उमस और ज्यादा बढ़ जाती है. गरमियों में कई बार ऐसा भी होता है कि उमस की वजह से सांस लेना मुश्किल हो जाता है.

आइए, आज हम आप को कुछ ऐसे तरीके बता रहे हैं जिन के जरीए कूलर से होने वाली उमस से छुटकारा पाया जा सकता है :

कूलर के लिए चुनें सही जगह

कमरे में कूलर रखने से उमस और सफोगेशन बढ़ जाती है. इन से बचने के लिए कूलर को कमरे के अंदर नहीं बल्कि खिड़की या दरवाजे के पास लगाएं. पर्याप्त वैंटिलेशन से ही आप गरमी में उमस की परेशानी से छुटकारा पा सकते हैं.

दरअसल, कूलर विज्ञान के वाष्पीकरण के सिद्धांत पर काम करता है, जिस का मतलब है कि जितनी ज्यादा गरम हवा अंदर आएगी उतनी ही जल्दी और तेजी से वाष्पीकरण होगा. इस का फायदा यह होगा कि इस से कमरे की हवा ठंडी हो जाएगी. इसलिए एअर कूलर को खिड़की के पास रखना सब से बेहतर जगह माना जाता है.

कमरे में रखें पर्याप्त वैंटिलेशन

अगर आप गरमी से बचने के लिए कूलर को अपने बैड के पास लगा कर सोते हैं और यह सोचते हैं कि इस से आप के बैड के आसपास का एरिया ठंडा रहेगा और आप सुकून भरी नींद ले पाएंगे, तो आप को गलतफहमी है. बंद कमरे में कूलर का इस्तेमाल ह्यूमिडिटी को बढ़ाता है.

इस से बचने के लिए आप घर की खिड़कियां खुली रखें. ऐसा करने से ह्यूमिडिटी बढ़ने का खतरा नहीं रहता.

कूलर में पानी भर कर रखें

अगर आप चाहते हैं कि रात को सोते समय आप पसीने से तरबतर न हों तो आप को कूलर के अंदर पानी भर कर रखना होगा ताकि रात को आप को बारबार उठना न पड़े. कूलर की ठंडी हवा का संबंध हवा और पानी पर निर्भर करता है. अगर आप चाहते हैं कि आप का कमरा गरमी के दिनों में भी ठंडा रहे तो आप कूलर में समयसमय पर पानी भरते रहें. याद रखें, कूलर में साफ पानी होगा तभी ठंडी हवा आएगी.

*बर्फ डालें*

अगर आप कूलर में पानी डालने के साथसाथ उस में कुछ बर्फ के टुकड़े डालेंगे तो कमरे की हवा बेहद ठंडी हो जाएगी. बाजार में ज्यादातर एअर कूलर अब आइस चैंबर के साथ आते हैं. इस तरह के कूलर में जैसे ही आप चैंबर में बर्फ डालेंगे वैसे ही कमरे का तापमान तेजी से कम होने लगेगा.

अगर आप का कूलर पुराना है तो आप उस में बर्फ के टुकड़े डाल सकते हैं. ऐसा करने से आप का कमरा कूलकूल हो जाएगा.

कूलर को फुलस्पीड पर चलाएं

बढ़ती गरमी की वजह से आप को कूलर को हाई स्पीड पर चलाना होगा और यह सही भी है क्योंकि कम स्पीड पर कूलर चलाने से कमरे में मौजूद उमस कम नहीं होगी जबकि हाई या फुलस्पीड पर कूलर चलाने से कमरे की उमस धीरेधीरे कम हो जाएगी.

अगर कमरे में ऐग्जौस्ट फैन लगा हुआ है तो कूलर के साथसाथ इसे भी चला दें. इस से कमरे की गरम हवा बाहर निकल जाएगी.

पंखा चलाकर उमस को भगाएं दूर

अगर कूलर कमरे के बाहर नहीं रखा गया है तो कमरे में कूलर होने की वजह से उमस बनी रहेगी. ऐसी स्थिति में कमरे में मौजूद पंखा जरूर चलाएं. साथ ही खिड़कियों को भी खोल दें. इस से कमरे में वैंटिलेशन की दिक्कत नहीं होगी.

इन तरीकों के अलावा आप कमरे को गीला कर के रखें। परदों को हलका गीला कर घर में पोंछा भी लगाएं। इस से कमरे में ठंडक बनी रहेगी.

एअर फ्रैशनर का इस्तेमाल करें

कमरे को खुशबूदार रखने के लिए एअर फ्रैशनर का भी इस्तेमाल करें। बाजार में गोदरेज, ओडोनील, एमबी प्लोर, सोलफ्रेश, एअर प्रो, लीया रूम आदि कई फ्रैशनर मौजूद हैं. इन के इस्तेमाल से आप को गरमी और उमस से राहत तो मिलेगी ही, घर भी महकामहका रहेगा।
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आईपीएल में केकेआर का जलवा शाहरुख हुए दीवाने

बौलीवुड में एक से बढ़ कर एक हिट फिल्म देने वाले शाहरुख खान की टीम केकेआर ने फाइनल मुकाबला जीत लिया है। उन्होंने पूरी टीम सहित न सिर्फ जश्न मनाया, पुराना पोज रिक्रिऐट करते भी दिखे…

आईपीएल के फाइनल मैच में शाहरुख खान की टीम कोलकाता नाइट राइडर्स (केकेआर) की शानदार जीत के बाद शाहरुख और गौरी ने ट्रौफी के साथ पोज किया. दोनों के चेहरों पर खुशी साफ झलक रही थी. टीम ने सनराइजर्स हैदराबाद को हरा कर ट्रौफी अपने नाम की.
शानदार जीत के बाद शाहरुख ने टीम के कप्तान गौतम गंभीर के माथे को चूम लिया. जीत के बाद शाहरुख पूरे परिवार के साथ ग्राउंड पर खुशियां मनाते नजर आए. सभी लोग जश्न मनाने के मूड में दिख रहे थे.

रिंकू भी छाए रहे

आप को बता दें कि आखिरी मैच चैन्नई के एम ए चिदंबरम स्टेडियम में खेला गया था. केकेआर की जीत के बाद पूरे ग्राउंड में चारों ओर शोर मचने लगा और तालियों की गड़गड़ाहट से ग्राउंड सराबोर हो गया.
केकेआर के सदस्य रिंकू सिंह भी काफी खुश नजर आए। ट्रौफी जीत कर उन्होंने कहा कि उन का आईपीएल की ट्रौफी जीतने का सपना पूरा हुआ अब वे वर्ल्ड कप जीतना चाहते हैं.
उन्होंने खुशी में ट्रौफी को हग कर लिया. आईपीएल में 7 सालों से रिंकू केकेआर के लिए खेल रहे हैं.

भावुक हुआ शाहरुख का परिवार

इस शानदार जीत के बाद शाहरुख ही नहीं, उन के परिवार का हर सदस्य भावुक हो गया. सुहाना ने पापा को गले लगा कर बधाई दी और इस दौरान सुहाना भी इमोशनल हो गई थीं. जीत के बाद सब लोग परिवार सहित शाहरुख के साथ ग्राउंड पर ही उतर आए और हर किसी के चेहरे पर खुशी साफसाफ झलक रही थी. हालांकि गंभीर 24 रन बना कर ही आउट हो गए.

तीसरी बार जीती ट्रौफी

दरअसल, शाहरुख की टीम केकेआर ने तीसरी बार ट्रौफी जीती है. केकेआर के बौलर मिचेल स्टार्क ने सब से पहले अभिषेक शर्मा को बोल्ड कर दिया जो मैच का एक रोमांचक मोड़ था.
हैदराबाद के कप्तान पैट कमिंस ने फाइनल मैच में में टौस जीत लिया था और पहले बैटिंग करने का फैसला लिया. पूरे सीजन में हैदराबाद की टीम के लिए उन की बैटिंग ताकत और कमजोरी रही. फाइनल में कमिंस का बैटिंग करने का निर्णय बेकार साबित हुआ और उन की स्ट्रैटेजी कामयाब नहीं हुई.

 

 

 

 

मां की मौत के बाद अंधविश्वासी हो गई थी: जाह्नवी कपूर

कम समय में ही अपनी खूबसूरती व अदाकारी से दर्शकों के दिलों पर राज करने वाली जाह्नवी कपूर से जानिए कुछ दिलचस्प बातें…

बौलीवुड में अंधविश्वास कोई नई बात नहीं है। निर्माता हों या निर्देशक या फिर ऐक्टरऐक्ट्रैस, फिल्म हिट हो, कैरियर चमके इस के लिए वे न सिर्फ मंदिरों में मत्था टेकते हैं, हवन व पूजापाठ के साथसाथ टोनेटोटके पर भी आंख मूंद कर विश्वास करते हैं।

अभी हाल ही में ऐक्ट्रैस जाह्नवी कपूर ने भी एक इंटरव्यू के दौरान माना कि वे अपनी मां श्रीदेवी की मौत के बाद अंधविश्वासी हो गई थीं और अंधविश्वासभरी बातों पर यकीन करने लगी थीं।

जब बदल गई सोच

जाह्नवी ने माना कि वे इन बातों पर विश्वास करने लगी थीं कि शुक्रवार को बाल नहीं काटने चाहिए, इस से लक्ष्मी घर में प्रवेश नहीं करती है. इस दिन काले रंग के कपड़े नहीं पहनने चाहिए वगैरा। मां की मौत के बाद जाह्नवी कुछ इस कदर परेशान हो गई थीं कि वे लोकपरलोक की बातों पर यकीन करने लगी थीं।
मीडिया से बातचीत में जाह्नवी ने बताया,”मेरी मां तिरुपति बालाजी में बहुत विश्वास करती थीं. वे नारायाणनारायण… का जाप भी  किया करती थीं. जब मां काम करती थीं तो अपने जन्मदिन के दिन आंध्र प्रदेश स्थित इसी मंदिर में जाया करती थीं. शादी के बाद हालांकि उन्होंने जाना बंद कर दिया लेकिन उन की मौत के बाद मैं अपनी मां के जन्मदिन पर वहां जाने लगी…”

 

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मां की याद में

जाह्नवी ने बताया कि मां के जाने के जब पहली बार वे इस मंदिर में गई थीं तो भावुक भी हो गई थीं. उन्होंने आगे बताया कि वे अब भी मां की मौत से उबर नहीं सकी हैं और हर समय उन्हें याद करती हैं.
उन्होंने बताया कि जब उन की पहली फिल्म ‘धड़क’ आई थी तो मां को गए ज्यादा समय नहीं हुआ था लेकिन वे अपने दुख को काम की आड़ में छिपा रही थीं.
अब जाह्नवी हमेशा मां की अच्छी बातों को याद करती हैं. आज भी जब जाह्नवी इंटरव्यू देती हैं तो हमेशा उन को अपनी मां की याद आती है।

 

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अपने जमाने की मशहूर अदाकारा थीं श्रीदेवी

एक समय जाह्नवी की मां श्रीदेवी भारतीय सिनेमा की मशहूर अदाकारा हुआ करती थीं। सुरीली आवाज, खूबसूरती और शानदार अभिनय ने उन्हें शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचा दिया था। श्रीदेवी फिल्म ‘मवाली’, ‘जस्टिस चौधरी’, ‘तोहफा’, ‘कर्मा’, ‘जांबाज’ जैसी हिट फिल्मों में खुद को एक प्रमुख स्टार के रूप में स्थापित कर लिया था।

जल्द ही फिल्म में नजर आएंगी जाह्नवी

यों वर्कफ्रंट की बात करें तो जाह्नवी जल्द ही फिल्म ‘मिस्टर ऐंड मिसेज माही’ में नजर आएंगी. इस फिल्म में उन के साथ ऐक्टर राजकुमार राव लीड रोल में हैं. फिल्म रोमांटिक जैनरेशन वाली है और इस का निर्देशन शरण शर्मा ने किया है.  इस फिल्म की घोषणा साल 2021 में की गई थी, जो 31 मई, 2024 को रिलीज हो सकती है.

Health Tips: बदल डालें खाने की आदतें

हम अपने काम में अपने आप को इतना व्यस्त कर लेते हैं कि हम अकसर अपनी सेहत से समझौता कर बैठते हैं और हैल्दी रहने के लिए जिम जा कर पसीना बहाते हैं, डाइटिंग करते हैं और सोचते हैं कि ये सब कर खुद को बीमारियों से बचा सकते हैं. लेकिन ऐसा नहीं है आप चुस्त हो या दुरूस्त हो कितने ही हैल्थ कौंशस क्यों न हो फिर भी दुनियाभर की बीमारियां आप को घेर ही लेती हैं इसलिए सिर्फ स्वस्थ आहार या व्यायाम ही काफी नहीं है बल्कि इन के साथसाथ हैल्दी ईटिंग हैबिट भी जरूरी हैं. क्योंकि हैल्दी ईटिंग हैबिट स्वस्थ जीवन जीने के लिए बहुत जरूरी है. फिर भी हम में से बहुत से लोग यह नहीं जानते हैं कि इन का क्या महत्व है या ये कौन सी आदते हैं, जिन्हें अपना कर वे स्वस्थ रह सकते हैं और अनचाही बीमारियों से अपने आप को दूर रख सकते हैं. अगर आप भी हैल्दी रहना चाहते हैं तो यह जानकारी आप ही के लिए है.

1. खानें पर दें ध्यान

आप जब भी खाना खाने बैठे तो इस बात पर ध्यान दें कि आप क्या खा रहें है और आप सब से अधिक क्या खाते हैं. क्या आप बहुत ज्यादा कैलोरी वाला खाना खाते हैं और फिर इस कैलोरी को बर्न नहीं कर पाते हैं. तब आप को शायद कुछ ऐसा खाना चाहिए जो कम वसा वाला हो और आप का शरीर उसे आसानी से पचा ले. साथ ही हल्का खाना खाएं और तलेभुने खाने से दूर रहें. सलाद खाने पर ज्यादा जोर दें. स्प्राउट्स खाएं. अपने लिए हैल्दी फूड का प्लान बनाएं. 

2. पर्याप्त प्रोटीन लें

प्रोटीन शरीर के लिए महत्वपूर्ण हैं और इसे आहार में निश्चित रूप से शामिल किया जाना चाहिए. ब्रोकोली, सोयाबीन, दाल और पालक कुछ प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ हैं. कम वसा वाले डेयरी उत्पाद भी प्रोटीन का अच्छा स्रोत हैं. वैसे तो आप के भोजन में लगभग

25% हिस्सा प्रोटीन होना ही चाहिए. लेकिन यदि आप प्रतिदिन व्यायाम करते हैं, तो 5% प्रोटीन बढ़ा दें.

3. खाना चबा कर खाएं

खाने को पचाने का सब से आसान तरीका है इसे चबा कर खाना. हम में से अधिकतर लोग खाने को जल्दी खाने के चक्कर में उसे सही ढंग से पचा नहीं पाते हैं. जिस वजह से आप का पाचनतंत्र थक जाता है. इसलिए खाने को कम से कम 30-35 बार चबाकर खाएं और इस हैल्दी ईटिंग हैबिग को जरूर अपनाएं.

4. हरी पत्तेदार सब्जियां चुनें

अपने आहार में हरी पत्तेदार सब्जियों को शामिल करें क्योंकि ये प्रोटीन, आयरन, कैल्सियम और फाइबर का अच्छा स्रोत हैं. हरी पत्तेदार सब्जियां तैयार करना आसान है और ये खाने में काफी स्वादिष्ट भी होती हैं. अपने खाने में हर तरह के रंग की सब्जी को शामिल करें और कोशिश करें कि दिन में कम से कम एक बार सभी छह अलगअलग प्रकार के स्वाद (मीठा, नमकीन, खट्टा, कड़वा, तीखा, कसैला) अपने खाने में शामिल होने चाहिए.

5. ओवरईटिंग से बचें

जब भूख लगें तभी खाएं बिना भूख का खाना नुकसानदायक होता है और जब भूख लगे तो इतना खाना खाना चाहिए कि लगे कि बस अब पेट भरने वाला है. क्योंकि जहां ओवरईटिंग हुई वहीं पर मामला गड़बड़ हो जाता है. हम से अधिकतर लोग खाना खाते वक्त फोन या टीवी में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि हमें इस बात का ख्याल भी नहीं रहता है कि हम भूख से अधिक खा चुके हैं. ऐसे में यदि आप केवल अपने भोजन पर ध्यान केंद्रित करेंगे तो आप केवल उतना ही खाएंगे जितना आप के शरीर को चाहिए. इसलिए, अगली बार जब भी आप खाने के लिए बैठें, तो रिमोट कंट्रोल और मोबाइल फोन को कुछ समय के लिए दूर ही रखें.

6. पाचन शक्ति बढ़ाएं

अगर आप को यह पता है कि क्या खाना चाहिए और कितना खाना आप के शरीर के लिए जरूरी है, तो आप की ये ईटिंग हैबिट आप की पाचन प्रक्त्रिया को बढ़ाने में मदद करती हैं. इस के अलावा आप कुछ ऐक्सरसाइज के जरिए भी इसे बढ़ा सकती हैं.

7. खाने में बदलाव जरूरी

बीमारियों से बचने के लिए अकसर लोग पौष्टिक आहार खाने की सलाह देते हैं, लेकिन शरीर में सभी पोषक तत्त्वों को पहुंचाने के लिए खाने को बदलबदल कर खाने की आदत को अपनाना जरूरी है. वैसे भी इस तरह से बदलबदल कर भोजन खाने से शरीर की जरूरतें भी पूरी हो जाती हैं और भोजन करने में स्वाद भी आता है.

8. नाश्ता करना न भूलें

आमतौर पर सुबह का समय बहुत व्यस्त होता है, जिस वजह से काम निपटाने के चक्कर में नाश्ता रह जाता है और खाने का समय हो जाता है. जबकि नाश्ता आप के लिए सब से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह शरीर को पूरे दिन के लिए तैयार करता है. इसलिए कोशिश करें कि जब भी आप घर से बाहर कदम रखें तो नाश्ता कर के ही जाएं. साथ ही अपने मील टाइम को फिक्स करें.

9. सफेद चीजों को करें नजरअंदाज

इन में चीनी, नमक, दूध, मैदा, चावल सभी आते हैं. कोशिश करें इन को कम खाएं. नमक में सेंधा नमक का प्रयोग करें और अगर आप चाय पीने के शौकीन हैं, तो 4 कप चाय पीते हैं, तो आप इसे घटा कर दिन में 3 बार पिएं जहां 1 चम्मच चीनी लेते हैं वहां आधा चम्मच चीनी डालें, इस से पहले की डाक्टर आप को ये सब बंद करने के लिए बोल दें तो आप खुद ही अपनी आदतों में बदलवा कर लें. वहीं सफेद चावल की जगह ब्राउल राइस खाएं. कोशिश करें मांड वाले चावल खाएं. मैदा से बनी चीज कम खाएं, इस के अलावा फुल क्रीम दूध की जगह डबल टोंड दूध पिएं.

10. ड्राइफ्रूट से न बढाएं दूरी

जिन लोगों को कोलेस्ट्रोल होता है वे अकसर सूखे मेवे खाने से डरते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इस में फैट होता है, जो उन के लिए नुकसानदायक हो सकता है, लेकिन ऐसा नहीं है बल्कि बादाम, अखरोट और पिस्ते में पाये जाने वाला फाइबर, ओमेगा-3 फैटी ऐसिड और विटामिंस बुरे कौलेस्ट्रौल को घटाता है और अच्छे कौलेस्ट्रौल को बढ़ाता है. इनमें मौजूद फाइबर आप को भूख नहीं लगने देते हैं. लेकिन एक बात का ध्यान रखें कि तलेभुने सूखे मेवे खाने से बचें.

11. कौलेस्ट्रौल है, तो खानें में इन्हें करें शुमार

यह कौलेस्ट्रौल एक गंभीर समस्या है, जो हृदय रोग के साथ कई गंभीर बीमारियों को जन्म देती है, लेकिन अगर खाने की सही आदतों को अपनाया जाएं, तो इसे कम किया जा सकता है.

12. पानी पीने का ध्यान रखें

पानी के माध्यम से शरीर को महत्वपूर्ण मात्रा में खनिज प्रात होते हैं और शरीर डीटौक्सिफाई होता है जिस से आप की त्वचा पर निखार आता है. हालांकि, भोजन के दौरान पानी पीने से बचें क्योंकि यह पाचन प्रक्रिया को धीमा कर देता है. इसलिए हमेशा कहा जाता है कि भोजन से 30 मिनट पहले या बाद में पानी पीना उचित है. लेकिन क्या आप को पता है कि सही तरीके से पानी पीना भी हैल्दी ईटिंग हैबिट में आता है. कोशिश करें कि सुबह उठते ही पानी पिएं क्योंकि सुबह की लार पाचन के लिए बेहद फायदेमंद मानी जाती है. सुबह पानी पीने से शरीर से विषैले पदार्थ बाहर निकल जाते हैं और आप विभिन्न रोगों से बच जाते हैं.

13. ये लहसुन बड़ा असरदार

लहसुन जहां खाने के स्वाद को बढ़ाता है, वहीं यह कई गुणों से भरपूर भी है. इस में कई एंजाइम्स पाए जाते हैं, जो कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद करते हैं. साथ ही यह हाई ब्लडप्रेशर को भी नियंत्रित करता है.

14. सुपर हैल्दी हैं ओट्स

ब्रेकफास्ट में ओट्स को खाना सब से अच्छा माना जाता है क्योंकि यह एक हैल्दी फूड है, जो आपको भी हैल्दी रखता है. इसमें मौजूद बीटा ग्लूकौन नामक गाड़ा चिपचिपा तत्व हमारी आंतों की सफाई करते हुए कब्ज की समस्या दूर करता है. इस की वजह से शरीर में बुरा कौलेस्ट्रौल नहीं बढता है. इसलिए ओट्स जरूर खाना चाहिए.

15. छोटे से नींबू के बड़े कमाल

एक छोटा सा नींबू जहां सलाद, चटनी व दाल का स्वाद बढ़ाता है तो वहीं नींबू में कुछ ऐसे घुलनशील फाइबर पाए जाते हैं, जो स्टमक (खाने की थैली) में ही बैड कौलेस्ट्रौल को रक्त प्रवाह में जाने से रोक देते हैं. ऐसे फलों में मौजूद विटमिन सी रक्तवाहिका नलियों की सफाई करता है. इस तरह बैड कौलेस्ट्रौल पाचन तंत्र के जरिए शरीर से बाहर निकल जाता है. खट्टे फलों में ऐसे एंजाइम्स पाए जाते हैं, जो मेटाबौलिज्म की प्रक्रिया तेज कर के कौलेस्ट्रौल घटाने में सहायक होते हैं.

Summer special:फैमिली के लिए बनाएं कैरी मकई ढोकला

अगर आप अपनी फैमिली के लिए कुछ टेस्टी, हेल्दी और नई डिश ट्राय करना चाहते हैं तो आज हम आपको ढोकले की खास रेसिपी बताएंगे. दरअसल आज हम आपको मक्के से बने हेल्दी ढ़ोकले की रेसिपी बताएंगे.

सामग्री ढोकले की

– 1/2 कप मकई का आटा

– 3/4 कप सूजी

– 2 बड़े चम्मच बेसन

– 1 कप कच्चे आम की प्यूरी

– 2 कप बटरमिल्क

– 1 बड़ा चम्मच अदरकलहसुन व हरीमिर्च का पेस्ट

– 11/2 छोटा चम्मच इनो फ्रूट साल्ट

– नमक स्वादानुसार.

सामग्री सीजनिंग की

– 2 बड़े चम्मच कुकिंग औयल

– 1 छोटा चम्मच सरसों के दाने

– 1/4 छोटा चम्मच हींग पाउडर.

सामग्री गार्निशिंग की

– 2 बड़े चम्मच नारियल कद्दूकस किया

– थोड़ी सी धनियापत्ती

– 1 कच्चा आम कद्दूकस किया.

बनाने का तरीका

कद्दूकस किए कच्चे आम को एक कप बटरमिल्क के साथ ब्लैंड कर रख दें. अब एक बाउल में मकई का आटा, अदरकलहसुन व हरीमिर्च का पेस्ट, सूजी, बेसन, नमक, मैंगो प्यूरी और बचा हुआ बटरमिल्क डाल कर अच्छे से चला कर 30 मिनट के लिए रख दें. 30 मिनट के बाद बैटर ज्यादा गाढ़ा लगे तो उस में थोड़ा और बटरमिल्क मिलाएं. अब आधा बड़ा चम्मच इनो एक चम्मच पानी के साथ बैटर में डालें. फिर ग्रीस किए पैन में बैटर को डाल कर तुरंत ही 15-20 मिनट के लिए स्टीम होने के लिए रख दें. जब स्टीम हो जाए तब एक पैन में औयल गरम कर हींग और सरसों डाल कर चटकाएं और स्टीम्ड ढोकले पर फैला दें. ढोकले चौकोर आकार में काट कर धनियापत्ती, कद्दूकस किए नारियल और कच्चे आम से गार्निश कर परोसें.

तेज धूप से स्किन को बचाएंगे ये 5 नेचुरल होममेड फेसपैक 

गर्मी का मौसम दस्तक दे चुका है. ऐसे में चेहरे को ग्लोइंग बनाए रखने के लिए त्वचा को सभी जरूरी पोषक तत्व मिलना बहुत जरूरी है क्योंकि गर्मियों में पसीने, धूल-मिट्टी व प्रदूषण के कारण स्किन डल हो जाती है.

वैसे तो लड़कियां इसके लिए महीने में 1 बार फैशियल या क्लीनअप लेती हैं लेकिन इसके मिलने वाला निखार कुछ समय तक ही रहता है. ऐसे में आज मैं  ब्यूटी एंड स्किनकेयर एक्सपर्ट प्रियंका गुप्ता आपको कुछ ऐसे घरेलू पैक के बारे में बताउंगी, जिससे ना सिर्फ चेहरा ग्लो करेगा बल्कि आप एक्ने, पिंपल्स जैसी समस्याओं से भी बचे रहेंगे.

1. कॉफी स्क्रब

2 टेबलस्पून कॉफी, 1 टेबलस्पून चीनी, 1/2 टेबलस्पून कोकोनट ऑयल, 1/2 टीस्पून दालचीनी पाउडर और 1 टेबलस्पून वनीला ऐसेंस को मिक्स करें. इससे स्क्रब की तरह 10-15 मिनट मसाज करें और फिर पानी से चेहरा साफ कर लें. हफ्ते में 2-3 बार इसका यूज करें. इससे डेड स्किन निकल जाएगी और चेहरे का ग्लो बरकरार रहेगा.

2. ऑरेंज पील ऑफ मास्क

संतरे में विटामिन-सी पाया जाता है, जो धूप के कारण हुई स्किन टैनिंग को ठीक करता है. थोड़े से दही, शहद और संतरे के रस को मिलाकर ऑरेंज पील ऑफ मास्क तैयार कर लीजिए. इसे हफ्ते में 1 बार जरुर लगाएं. इससे चेहरे पर ब्लीच जैसे ग्लो को आएगा.

3. आंखों के लिए टी-मास्क

अधिकतर गर्मियों में आंखों के नीचे काले धब्बे भी पड़ जाते हैं. इसके लिए आर्गेनिक टी बैग को गर्म पानी में डिप करके ठंडा कर लें. फिर इसे 10-15 मिनट फ्रिज में रखे और उसके बाद आंखों पर लगाएं. रोजाना ऐसा करने से डार्कसर्कल्स दूर हो जाएंगे.

4. खीरे से बनाए स्किन टोनर

खीरे में कूलिंग इफैक्ट्स होते है जो स्किन को तरोताजा रखने में मदद करते हैं. साथ ही इससे खुले व भद्दे बड़े पोर्स भी बंद हो जाते हैं. इसके लिए खीरे को रस को 15-20 मिनट चेहरे पर लगाएं और फिर ताजे पानी से धो लें.

5. अंडे का मास्क

एक अंडे में 1 से 2 चम्मच नींबू का रस मिलाकर उसे तब तक फैंटे जब तक वह गाढ़ा ना हो जाए. अब उस मास्क को अपने फेस पर 5 से 10 मिनट तक लगा रहने दें. इससे स्किन पोर्स गहराई से साफ होंगे और चेहरे पर ग्लो भी आएगा.

 

लंबी रेस का घोड़ा: अंबिका ने क्यों मांगी मां से माफी

‘‘हर्षजी, टीवी आप का ध्यान दर्द से हटाने के लिए चल रहा है पर मेरा ध्यान तो न बटाएं. आप को फिर से अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए यह कसरतें दवा से भी अधिक आवश्यक हैं,’’ डा. अनुराधा अनमने स्वर में बोलीं.

‘‘सौरी, अनुराधाजी, कसरतों की जरूरत मैं भली प्रकार समझता हूं. मैं तो आप को केवल यह बताना चाह रहा था कि कभी मैं भी मैराथन रनर था.’’

‘‘अच्छा तो फिक्र मत करें, आप एक बार फिर दौड़ेंगे,’’ डा. अनुराधा मुसकराई थीं.

‘‘क्यों मजाक करती हैं, डा. साहिबा, उठ कर खडे़ होने का साहस भी नहीं है मुझ में और आप मैराथन दौड़ने की बात करती हैं. आप मेरे बारे में ऐसा सोच भी कैसे सकती हैं,’’ हर्ष दर्द से कराहते हुए बोले.

‘‘मिस्टर हर्ष, कोई लक्ष्य सामने हो तो व्यक्ति बहुत जल्दी प्रगति करता है.’’

‘‘मेरे हाथों का हाल देखा है आप ने, कलाई से बेजान हो कर लटके हैं. अब तो मैं ने इन के ठीक होने की उम्मीद भी छोड़ दी है,’’ हर्ष ने एक मायूस दृष्टि अपने बेजान हाथों पर डाली.

‘‘जानती हूं मैं, आज आप छोटेछोटे कामों के लिए भी दूसरों पर निर्भर हैं पर पहले से आप की हालत में सुधार तो आया है, यह तो आप भी जानते हैं. छोटी दौड़ में हाथों का प्रयोग करने की तो आप को जरूरत नहीं होगी,’’ डा. अनुराधा इतना कह कर हर्ष को सोचता छोड़ चली गई.

‘‘क्या हुआ? कहां खोए हैं आप?’’ पत्नी टीना की आवाज से हर्ष की तंद्रा टूटी.

‘‘कहीं नहीं, टीना, अपनी यादों में खोया था. मेरे जैसे दीनहीन, अपाहिज के पास सोचने के अलावा

दूसरा विकल्प भी क्या है.

डा. अनुराधा ने कहा कि मैं भी अर्द्धमैराथन में भाग ले सकता हूं, जबकि मैं जानता हूं कि यह संभव नहीं,’’ हर्ष के स्वर में पीड़ा थी.

‘‘खबरदार, जो कभी स्वयं को दीनहीन और अपाहिज कहा तो. याद रखो, तुम्हें एक दिन पूरी तरह स्वस्थ होना ही होगा. वैसे भी डा. अनुराधा उन लोगों में से नहीं हैं जो केवल मरीज का मन रखने के लिए झूठे आश्वासन दें.’’

‘‘अच्छा छोड़ो यह सब और बताओ, बीमा एजेंट ने क्या कहा?’’ हर्ष ने टीना के चेहरे की गंभीरता को देख कर पूछा था.

‘‘वह कह रहा था, आप का व्यापार और उस में काम करने वाले कर्मचारी तो बीमा पालिसी के दायरे में आते हैं पर इस तरह असामाजिक तत्त्वों द्वारा किया गया हमला बीमा के दायरे में नहीं आता.’’

‘‘यानी बीमा से हमें फूटी कौड़ी भी नहीं मिलेगी?’’ हर्ष उत्तेजित हो उठे.

‘‘लगता तो ऐसा ही है हर्ष,’’ टीना बोली, ‘‘वैसे गलती हमारी ही है जो हम ने समय रहते मेडीक्लेम पालिसी नहीं ली.’’

‘‘मुझे क्या पता था कि मेरे साथ ऐसा भयंकर हादसा…’’ हर्ष का स्वर टूट गया.

‘‘छोड़ो, यह सब. आज की एक्सरसाइज पूरी हो गई हो तो घर चलें?’’ टीना ने बात टालते हुए कहा.

‘‘हां, डा. अनुराधा कह रही थीं कि आप अब एक दिन छोड़ कर आ सकते हैं, रोज आने की जरूरत नहीं.’’

टीना पहिए वाली कुरसी ले आई और उस की सहायता से हर्ष को कार में बैठाया फिर दूसरी ओर बैठ कर कार चलाने लगी. हर्ष पत्नी को सजल नेत्रों से कार चलाते देखता रहा.

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हर्ष ने अपने दोनों हाथों पर एक नजर डाली जो आज दैनिक जरूरत के काम भी पूरा करने के लायक नहीं थे. अब तो खाने और बटन लगाने से ले कर जूतों के फीते बांधने में भी दूसरों की सहायता लेनी पड़ती थी. कार चलाने का तो प्रश्न ही नहीं उठता था. ऐसे अपाहिज जीवन का भी भला कोई मतलब है और कुछ नहीं तो कम से कम अपनी जीवन- लीला समाप्त कर के वह अपने परिवार को मुक्ति तो दे ही सकता है.

दूसरे ही क्षण हर्ष चौंक गए कि यह क्या सोचने लगे वह. अपने परिवार को वह और दुख नहीं दे सकते.

‘‘क्या हुआ? बहुत दर्द है क्या?’’ टीना ने प्रश्न किया.

‘‘नहीं, आज दर्द कम है. मैं तो बस, यह सोच रहा हूं कि मेरे इलाज में ही 6 लाख से ऊपर खर्च हो गए हैं. जमा पूंजी तो इसी में चली गई अब बीमे की राशि मिलेगी नहीं तो काम कैसे चलेगा? फ्लैट की किस्त, बच्चों की पढ़ाई, कार की किस्त और सैकड़ों छोटेबडे़ खर्चे कैसे पूरे होंगे?’’

‘‘मैं शाम को ट्यूशन ले लिया करूंगी. कुछ न कुछ पैसों का सहारा हो ही जाएगा.’’

‘‘ट्यूशन कर के कितना कमा लोगी तुम?’’

‘‘फिर तुम ही कोई रास्ता दिखाओ,’’ टीना मुसकराई.

‘‘मेरे विचार से तो हमें अपना फ्लैट बेच देना चाहिए. जब मैं ठीक हो जाऊंगा तो फिर खरीद लेंगे,’’ हर्ष ने सुझाव दिया.

उत्तर में टीना ने बेबसी से उस पर एक नजर डाली. उस की नजरों में जाने क्या था जिस ने हर्ष को भीतर तक छलनी कर दिया. इसी के साथ बीते समय की कुछ घटनाएं सागर की लहरों की भांति उस के मानसपटल से टकराने लगी थीं.

‘क्यों भाई, तुम्हारा मीटर तो ठीकठाक है?’ उस दिन आटोरिकशा से उतरते हुए हर्ष ने मजाक के लहजे में कहा था.

‘कैसी बातें कर रहे हैं साहब. मीटर ठीक न होता तो मैं गाड़ी सड़क पर उतारता ही नहीं,’ चालक ने जवाब दिया.

हर्ष ने अपना बटुआ खोल कर 75 रुपए 50 पैसे निकाले. इस से पहले कि वह किराया चालक को  दे पाते, किसी ने उन की कमर पर खंजर सा कुछ भोंक दिया.

दर्द से तड़प कर वह पीछे की ओर पलटे कि दाएं हाथ और फिर बाएं हाथ पर भी वार हुआ. वह कराह उठे. दायां हाथ तो कलाई से इस तरह लटक गया जैसे किसी भी क्षण अलग हो कर गिर पडे़गा.

हर्ष छटपटा कर जमीन पर गिर पडे़ थे. धुंधलाई आंखों से उन्होंने 3 लोगों को दौड़ कर कुछ दूर खड़ी कार में बैठते देखा.

‘नंबर….नंबर नोट करो,’ असहनीय दर्द के बीच भी वह चिल्ला पडे़े. आटोचालक, जो अब तक भौचक खड़ा था, कार की ओर लपका. उस ने तेजी से दूर जाती कार का नंबर नोट कर लिया.

‘मेरा बैग,’ कटे हाथों से हर्ष ने कार की तरफ संकेत किया. पर वे जानते थे कि इस से उन्हें कुछ हासिल नहीं होगा.

‘चलिए, आप को पास के दवाखाने तक छोड़ दूं,’ चालक ने सहारा दे कर हर्ष को आटोरिकशा में बैठाया तो उन्होंने कृतज्ञतापूर्ण दृष्टि चालक पर डाली और पीछे की सीट पर ढेर हो गए.

दिव्या नर्सिंग होम के सामने आटो रिकशा रुका तो उस से बाहर निकलने के लिए हर्ष को पूरी शक्ति लगानी पड़ी. उन को डर लग रहा था कि कहीं उन का दायां हाथ शरीर से अलग ही न हो जाए. आखिर बाएं हाथ से उसे थाम कर वे नर्सिंग होम की सीढि़यां चढ़ गए थे.

‘क्या हुआ? कैसे हुआ यह सब?’ आपातकक्ष में डाक्टर के नेत्र उन्हें देखते ही विस्फारित हो गए थे.

‘गुंडों ने हमला किया…तलवार और चाकू से.’

‘तब तो पुलिस केस है. हम आप को हाथ तक नहीं लगा सकते. आप प्लीज, सरकारी अस्पताल जाइए.’

हर्ष उलटे पांव नर्सिंग होम से बाहर निकल आए और सरकारी अस्पताल तक छोड़ने की प्रार्थना करते हुए उन्होंने आतीजाती गाडि़यों से लिफ्ट मांगी पर किसी ने मदद नहीं की.

वह अपने को घसीटते हुए कुछ दूर चले पर इस अवस्था में सरकारी अस्पताल पहुंच पाना उन के लिए संभव नहीं था.

तभी एक पुलिस जीप उन के पास आ कर रुकी. उन्होंने सहायता के लिए प्रार्थना नहीं की क्योंकि जिस से आशा ही न हो उस से मदद की भीख मांगने से क्या लाभ?

‘क्या हुआ?’ जीप के अंदर से प्रश्न पूछा गया. उत्तर में हर्ष ने अपना बायां हाथ ऊपर उठा दिया.

दूसरे ही क्षण कुछ हाथों ने उठा कर उन्हें जीप में बैठा दिया. बेहोशी की हालत में भी उन्होंने टूटेफूटे शब्दों में अनुनय किया था, ‘मुझे अस्पताल ले चलो भैया…’

जीप में बैठे सिपाही गणेशी ने न केवल उन्हें सरकारी अस्पताल पहुंचाया बल्कि उन की जेब से ढूंढ़ कर कार्ड निकाला और उन के घर फोन भी किया.

‘आप हर्षजी की पत्नी बोल रही हैं क्या?’

गणेशी का स्वर सुन कर टीना के मुख से निकला, ‘देखिए, हर्षजी अभी घर नहीं लौटे हैं. आप कल सुबह फोन कीजिए.’

‘आप मेरी बात ध्यान से सुनिए. हर्षजी यहां उस्मानिया अस्पताल में भरती हैं. वे घायल हैं और यहां उन का इलाज चल रहा है. उन के पास न तो पैसे हैं और न कोई देखभाल करने वाला.’

‘क्या हुआ है उन्हें और उन के पैसे कहां गए?’ टीना बदहवास सी हो उठी थी. रिसीवर उस के हाथ से छूट गया. अपने को किसी तरह संभाल कर टीना लड़खड़ाते कदमों से पड़ोसी दवे के घर तक पहुंची तो वह तुरंत साथ चलने को तैयार हो गए. टीना ने घर में रखे पैसे पर्स में डाल लिए. मन किसी अनहोनी की आशंका से धड़क रहा था.

अस्पताल पहुंच कर हर्ष को ढूंढ़ने में टीना को अधिक समय नहीं लगा. घायल अवस्था में अस्पताल आने वाले वही एकमात्र व्यक्ति थे.

‘आप के पति की किसी से दुश्मनी है क्या?’ टीना को देखते ही गणेशी ने प्रश्न किया.

‘नहीं तो, वह बेचारे सीधेसादे इनसान हैं. मैं ने तो उन्हें कभी ऊंची आवाज में किसी से बात करते भी नहीं सुना,’ उत्तर दवे साहब ने दिया था.

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‘तो क्या बहुत रुपए थे उन के पास?’

‘नहीं, उन का अधिकतर लेनदेन तो बैंकों के माध्यम से होता है.’

‘तो फिर ऐसा क्यों हुआ इन के साथ…?’ गणेशी ने प्रश्न बीच में ही छोड़ दिया था.

‘पर हुआ क्या है आप बताएंगे…?’ टीना अपना आपा खो रही थी.

‘गुंडों ने आप के पति पर जानलेवा हमला किया है. वह अभी तक जीवित हैं आप के लिए यह एक अच्छी खबर है,’  गणेशी ने सीधे सपाट स्वर में कहा.

हर्ष की दशा देख कर टीना और दवे दंपती सकते में आ गए थे.

‘गुंडों ने तलवार और छुरों से हमला किया था. कमर में बहुत गहरा जख्म है. हाथों को भारी नुकसान पहुंचा है. दायां हाथ तो कलाई से लगभग अलग ही हो गया है. मांसपेशियां, रक्तवाहिनियां सब कट गई हैं, इन का तुरंत आपरेशन करना पडे़गा,’ चिकित्सक ने सूचना दी थी.

हर्ष के मातापिता कुछ ही दूरी पर रहते थे. पिता को 2-3 वर्ष पहले पक्षाघात हुआ था पर मां अंबिका समाचार मिलते ही दौड़ी आईं.

‘मां, हर्ष को दूसरे अस्पताल ले जाएंगे, वहां के डा. मनुज रक्तवाहिनियों के कुशल शल्य चिकित्सक हैं,’ टीना बोली.

आपरेशन 4 घंटों से भी अधिक समय तक चला. 5 दिनों के बाद ही हर्ष को अस्पताल से छुट्टी भी मिल गई थी. पट्टियां खुलने के बाद भी दोनों हाथ बेकार थे. छोटेमोटे कामों के लिए भी हर्ष दूसरों पर निर्भर हो गए.

कुछ ही दिनों में हर्ष के पैरों में इतनी ताकत आ गई कि वह बिना किसी सहारे के अस्पताल चले जाते थे. टीना के वेतन पर ही सारा परिवार निर्भर था अत: सुबह 10 से 3 बजे तक वह हर्ष के साथ नहीं रह पाती थी.

कार झटके से रुकी तो हर्ष वर्तमान में आ गया.

‘‘क्या बात है, ऐसी रोनी सूरत क्यों बना रखी है?’’ कार से उतरते टीना ने कहा, ‘‘क्या हुआ जो बीमे की राशि नहीं मिलेगी. कुछ ही दिनों में तुम पूरी तरह स्वस्थ हो जाओगे और अपना व्यापार संभाल लोगे.’’

हर्ष और टीना घर पहुंचे तो हर्ष की मां अंबिका वहां आई हुई थीं.

‘‘तुम्हारी पसंद का भोजन बनाया है आज. याद है न आज कौन सा दिन है?’’ टिफिन खोल कर स्वादिष्ठ भोजन मेज पर सजाते हुए मां अंबिका बोलीं, ‘‘हर्ष, आज मैं ने तेरी पसंद की मखाने की खीर और दाल की कचौडि़यां बनाई हैं.’’

हर्ष और टीना को याद आया कि वह अपने विवाह की वर्षगांठ तक भूल गए थे.

‘‘अच्छा, मैं चलूंगी, घर में तेरे पापा अकेले हैं,’’  खाने के बाद चलने के लिए तैयार अंबिका ने कहा, ‘‘सब ठीक है ना हर्ष. तुम्हारा इलाज ठीक से चल रहा है न?’’

‘‘हां, सब ठीक है मां,’’ हर्ष ने जवाब दिया.

‘‘फिर तुम्हारा चेहरा क्यों उतरा हुआ है?’’

‘‘मां, मैं जिस बीमे की रकम की उम्मीद लगाए बैठा था वह अब नहीं मिलेगी,’’  इस बार उत्तर टीना ने दिया.

‘‘तो क्या सोचा है तुम ने?’’ अंबिका ने पूछा.

‘‘सोचता हूं मां, यह फ्लैट बेच दूं. बाद में फिर खरीद लेंगे,’’  हर्ष ने कहा.

‘‘मैं कई दिनों से एक बात सोच रही थी,’’  अंबिका गंभीर स्वर में बोलीं, ‘‘क्यों न तुम सपरिवार हमारे पास रहने आ जाओ. अपने फ्लैट को किराए पर उठाओगे तो किस्तों की समस्या हल हो जाएगी.’’

एकाएक सन्नाटा पसर गया था.

‘‘क्या हुआ?’’ मौन अंबिका ने ही तोड़ा. हर्ष ने कुछ नहीं कहा पर टीना रो पड़ी थी.

‘‘हम इस योग्य कहां मां, जो आप के साथ रह सकें. याद है जब पापा पर लकवे का असर हुआ था तो हम आप को अकेला छोड़ कर यहां रहने चले आए थे. तब लगा था कि वहां रहने पर हमें दिनरात की कुंठा और निराशा का सामना करना पडे़गा,’’  हर्ष ने ग्लानि भरे स्वर में कहा.

‘‘बेटा, मैं यह नहीं कहूंगी कि उस वक्त मुझे बुरा नहीं लगा था. पर मुसीबत का सामना करने के लिए मैं ने खुद को पत्थर सा कठोर बना लिया था. तुम लोग आज भी मेरे परिवार का हिस्सा हो और आज फिर मेरे परिवार पर आफत आई है,’’  अंबिका सधे स्वर में बोलीं.

‘‘मां, हो सके तो मुझे क्षमा कर देना. जो कुछ हुआ उस के लिए हर्ष से अधिक मैं दोषी हूं,’’ यह कह कर टीना अपनी सास के चरणों में झुक गई.

‘‘नदी हमेशा ऊपर से नीचे की ओर बहती है बेटी. मातापिता कभी अपनी ममता का प्रतिदान नहीं चाहते. हम जितना अपनी संतान के लिए करते हैं मातापिता के लिए कहां कर पाते,’’ यह कहते हुए अंबिका ने टीना को गले से लगा लिया.

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‘‘आप जैसे मातापिता हों तो कोई भी औलाद बडे़ से बडे़ संकट से जूझ सकती है,’’  टीना बोली.

‘‘यह मत सोचना कि मेरा बेटा किसी से कम है. मैराथन का धावक रहा है मेरा बेटा. लंबी रेस का घोड़ा है यह,’’ अंबिका मुसकराईं.

‘‘अरे, हां, अच्छा याद दिलाया आप ने. शहर में अर्द्धमैराथन होने को है और हर्ष ने उस में भाग लेने का फैसला किया है,’’  टीना बोली.

‘‘सच? पर इस के लिए कडे़ अभ्यास की जरूरत होगी,’’ अंबिका ने कहा.

‘‘चिंता मत कीजिए दादी मां, हम दोनों भी पापा के साथ अभ्यास करेंगे,’’ कहते हुए ऋचा और ऋषि ने हाथ हवा में लहराए. आगे की बात उन सब की सम्मिलित हंसी में खो गई थी.

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