Writer : रीशा गुप्ता
चारू अस्पताल के कमरे में बैड पर दुलहन बनी लेटी थी. उस के सिर पर लाल चुनरी सजी हुई थी. इस बीमारी में भी उस का चेहरा इस वक्त चांद सा दमक रहा था. शायद यह मिहिर का प्यार ही था जिस का तेज उस के चेहरे पर चमक बन बिखरा हुआ था. औक्सीजन सिलैंडर… तमाम तरह की मशीनें उस कमरे में उस के बिस्तर के चारों ओर थीं और साथ में थे मिहिर… चारू के मम्मीपापा, मिहिर के घर वाले, उस के दोस्त, डाक्टर्स, नर्स और पंडितजी. कुछ मंत्र और पूजा के बाद पंडितजी ने मिहिर से चारू की मांग में सिंदूर भरने को कहा. मिहिर जिस का हाथ चारू के हाथ में था उस ने उसी हाथ से सिंदूर की डब्बी अपने हाथ में ली और उस में से सिंदूर अपनी उंगली में ले चारू की मांग में भर दिया. चारू की आंखें खुशी से छलछला आईं… आंसुओं का तूफान पूरे वेग के साथ उस की आंखों से उतर उस के तकिए को भिगोने लगा. मिहिर ने चारू के माथे पर एक चुंबन अंकित किया और उस के आंसू पोंछने लगा.
भावनाओं का एक ज्वार इस वक्त दोनों अपने अंदर समेटे थे जिसे बांधना दोनों के लिए मुश्किल हो रहा था. खुद मिहिर की आंखें इस वक्त भर आई थीं पर उस ने खुद पर काबू कर रखा था. कमरे में मौजूद हर शख्स की आंखें भीगी हुई थीं.
मिहिर ने चारू के हाथों को एक बार फिर से अपने हाथों में लिया और बोला, ‘‘वादा करो तुम हिम्मत नहीं हारोगी… मैं यही तुम्हारा इंतजार करूंगा… एक सुनहरा भविष्य हम दोनों का इंतजार कर रहा है. तुम जानती हो मैं तुम्हारे बिना जी नहीं पाऊंगा. तुम्हें वापस आना ही होगा मेरे लिए, अपने मिहिर के लिए.’’
चारू ने मिहिर से वादा किया और कस कर उस के गले लग गई. इस वक्त शब्दों से ज्यादा दोनों को एकदूसरे के एहसासों की जरूरत थी जिन्हें वे सिर्फ और सिर्फ महसूस करना चाहते थे. मिहिर देर तक चारू की पीठ सहलाता रहा.
इधर चारू के पापा ने वहां मौजूद सभी लोगों का मुंह मीठा कराया. डाक्टर ने मिहिर से कुछ पेपर्स पर हस्ताक्षर करवाए जोकि औपरेशन से पहले की काररवाई थी. चूंकि मिहिर अब चारू का पति था इसलिए इस औपरेशन की मंजूरी, हर संभावना की जिम्मेदारी उस ने खुद के ऊपर ली. डाक्टर ने मिहिर को बताया कि अब चारू के औपरेशन का समय हो रहा है. मिहिर ने वहां मौजूद सभी से हाथ जोड़ कुछ देर के लिए दोनों को अकेला छोड़ने को कहा. सब के जाने के बाद मिहिर ने चारू के चेहरे को अपने दोनों हाथों में भर लिया और बोला, ‘‘चारू, तुम्हारा मिहिर यही तुम्हारा इंतजार करेगा…. तुम्हें मेरे लिए वापस आना है… अपने मन में कोई शंका मत रखना… तुम मु?ो हर रूप में स्वीकार हो… मैं ने तुम्हारे शरीर से नहीं तुम्हारी रूह से प्यार किया है.’’
मिहिर की बातों से चारू को अपने पहले पति नीलेश की याद आ गई जिस ने सिर्फ उस के जिस्म से प्यार किया. रूह तक तो कभी पहुंच ही नहीं पाया. यह सोच उस का मन आज भी कसैला हो गया. नर्स कमरे में आ चुकी थी चारू को नर्स ने स्ट्रेचर पर लिटाया और औपरेशन थिएटर की ओर बढ़ गए. चारू के हाथों में मिहिर का हाथ अब भी था. औपरेशनरूम के बाहर मिहिर ने चारू को कस कर गले लगाया तो चारू ने मिहिर से कहा, ‘‘मिहिर, बहुत डर लग रहा है मु?ो… वापस आना है तुम्हारे लिए… आऊंगी न वापस?’’
मिहिर उस के कानों में फुसफुसाते हुए बोला, ‘‘बिलकुल आओगी चारू. मु?ो हमारे प्यार पर यकीन है… हमारा प्यार कमजोर नहीं हमारी ताकत है और इसी ताकत के भरोसे तुम जीत कर आओगी.’’
नर्स चारू को अंदर ले गई औपरेशनरूम का दरवाजा बंद होने लगा. चारू और मिहिर जब तक संभव था एकदूसरे को देखते रहे.
दरवाजा बंद होते ही मिहिर बेचैनी से इधरउधर टहलने लगा. चारू के लिए उस की फिक्र उस के चेहरे पर साफ देखी जा सकती थी.
तभी चारू के पापा उस के पास आए और मिहिर के कंधे पर हाथ रख कर बोले, ‘‘बेटा औपरेशन लंबा चलेगा तुम थोड़ा आराम कर लो.’’
मिहिर बोला, ‘‘आप ठीक कह रहे हैं पापा… मैं चारू के कमरे में जा रहा हूं… कुछ देर अकेले रहना चाहता हूं,’’ और मिहिर थके कदमों से चारू के कमरे की ओर बढ़ गया.
कमरे में चारों ओर फूल बिखरे हुए थे जो कुछ देर पहले के ही थे जब मिहिर ने चारू को हमेशाहमेशा के लिए अपनी जीवनसंगिनी बनाया था. कितने ताजा थे वे फूल बिलकुल उन दोनों के प्यार की तरह.
मिहिर चारू के बिस्तर के पास रखी कुरसी पर बैठ गया. चारू की लाल चुनर अभी भी मिहिर के हाथों में ही थी जो चारू ने उसे औपरेशन थिएटर के बाहर दी थी और कहा था कि जब वह औपरेशन थिएटर से बाहर आए तो उसे अपने हाथों से वह चुनर ओढ़ाए. 2 बूंद आंसू निकल कर मिहिर के गालों पर छलक आए. बहुत देर से खुद को संभाल रखा था उस ने पर अब मुश्किल हो रहा था.
आंख बंद करते ही मिहिर 7 साल पहले की यादों में चला गया. किसी चलचित्र की भांति चारू की जिंदगी का वह भयानक अतीत उस की आंखों के आगे मंडराने लगा…
चारू और मिहिर दोनों कालेज में साथ पढ़ते थे. मिहिर शुरू से चारू को पसंद करता था पर चारू शायद कभी उस के प्यार को सम?ा नहीं पाई. उस ने हमेशा मिहिर को सिर्फ एक दोस्त सम?ा. चारू का कालेज अभी खत्म भी नहीं हुआ कि उस का एक बहुत ही रईस खानदान से रिश्ता आया. चारू ने थोड़ी नानुकुर भी की पर उस के मम्मीपापा ने इतना अच्छा रिश्ता हाथ से न जाने का दबाव बनाया और चारू को हां कहनी पड़ी. वैसे भी मध्यवर्गीय परिवार में अपनी पसंद, मरजी की जगह कम ही होती है. इधर मिहिर के अरमां दिल के दिल में रह गए. उस ने अपने प्यार का इजहार करने की हिम्मत कभी की ही नहीं.
हालांकि एक दफा सगाई के बाद जब चारू की सहेली ने चारू को मिहिर के दिल की बात बताई तो चारू बोली, ‘‘काश एक बार तो कहते मिहिर,’’ और वह काश बस उस दिन उस के दिल में एक कसक बन दफन हो गया.
पहली रात से ही चारू के सामने उस के पति नीलेश की हरकतें आ गईं वह सुहाग सेज पर नख से शिख तक तैयार हो कर अपनी भावी दुनिया के सपनों में खोई हुई बैठी थी… सोचसोच कर उस का तनमन रोमांचित हो रहा, गाल शर्म से लाल हो रहे थे पर नीलेश बहुत देर तक नहीं आया. अब तो नींद से उस की आंखें बोली होने लगीं.
तभी उस की ननद उस के कमरे में आई, ‘‘अरे भाभी कब तक ऐसे ही बैठे रहोगी? भाई का कुछ पता नहीं. आप सो जाओ. सुबह भी जल्दी उठना है. मुंह दिखाई की रस्म है.’’
नीलेश का अभी तक न आना और अपनी ननद के ऐसे रूखे बरताव से एक पल में उस के सारे सपने चकनाचूर हो गए. जल्द ही उसे मालूम चल गया जब अमीर मांबाप का लाडला उन के हाथ से निकल गया तो उसे सुधारने के लिए चारू के रूप में बली चढ़ाई गई इसी आस में कि शायद शादी के बाद सुधर जाए.
चारू को याद ??नहीं कभी नीलेश ने उसे प्यार से देखा हो, उस से 2 घड़ी बैठ कर बात करी हो. उसे तो अपने आवारा दोस्तों और उन की गंदी सोहबत से ही फुरसत नहीं थी.
रात नीलेश बहुत पी कर आता और अपनी जरूरत के हिसाब से चारू के शरीर को भोगता. इन पलों में ही सही चारू को उस के पास आने का मौका मिलता. वह सोचती एक दिन अपने प्यार से वह नीलेश को बदल देगी.
अचानक एक दिन नीलेश के मुंह से निकल गया, ‘‘माहिका आई लव यू, मैं सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा हूं.’’
चारू जो अब तक नीलेश का साथ दे रही, सुनते ही उस का शरीर बिलकुल ढीला पढ़ गया. वह सम?ा गई कि वह नीलेश की बांहों में जरूर है, पर उस के मन में नहीं.
सुबह जब नीलेश को होश आया तो चारू ने उस से माहिका के लिए पूछ लिया. नीलेश ने भी सब बता दिया कि उस से शादी तो उस की मजबूरी थी, उस की जिंदगी में जो भी है बस माहिका है और उस की जगह कभी कोई नहीं ले सकता. वह तो घर वाले उस की पसंद के खिलाफ थे, इसलिए जल्दबाजी में तुम मेरे गले पड़ गई और फिर नीलेश कमरे से बाहर चला गया.
चारू धम्म से पलंग पर बैठ गई. आंसू कब उस की आंखों के बाहर निकल गए उसे पता ही नहीं चला. उस को लगा था शायद उस के प्यार से नीलेश सुधर जाए पर नीलेश आज उस की उस बची आस को भी तोड़ गया.
चारू मन मान कर सबकुछ सहन कर रही थी. उस दिन के बाद तो वह एक मशीन की तरह बन गई. दिन में घर वालों की जरूरत, रात को नीलेश की. सच जीतीजागती लाश बन गई, जिस में न कोई उम्मीद, न उमंग न उत्साह.
कुछ दिन से चारू की तबीयत सही नहीं रह रही थी. 1-2 बार तो चक्कर खा कर गिर गई पर उस घर में कभी चारू को गंभीरता से नहीं लिया तो उस की तबीयत को कौन लेता. आखिर जब एक दिन चारू की तबीयत ज्यादा ही खराब हुई तो डाक्टर को दिखाया. जांच में पता चला उसे ब्रैस्ट कैंसर है. ससुराल वालों को वैसे ही उस से कोई लगाव नहीं था. उस की बीमारी की बात से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा और एक दिन उसे बो?ा सम?ा उस के पीहर छोड़ आए और कहा, ‘‘इस के इलाज में जितना पैसा लगेगा हम लगाएंगे पर तब तक इसे अपने पास ही रखिएगा.’’
चारू को लगा जैसे वह इंसान नहीं कोई सामान है जिस की जब तक जरूरत थी नीलेश और उस के घर वालों ने भोगा पर अब जब वह सामान किसी काम का नहीं तो उसे उठा कर बाहर फेंक दिया. उसे खुद से घिन आने लगी. आखिर उस ने एक कठोर फैसला लिया और अपने पापा को तलाक के पेपर मंगाने को कहा. चारू के मम्मीपापा ने उसे बहुत सम?ाया पर चारू ने कहा, ‘‘यह फैसला उस ने बहुत सोचसम?ा कर लिया है. अगर तलाक नहीं हुआ तो वह अपना इलाज भी नहीं करवाएगी.’’
हार कर जब चारू के पापा ने नीलेश को तलाक के पेपर्स भिजवाए तो उसे कोई आपत्ति ही नहीं थी. वह तो कब से इस बंधन से छुटकारा पाना चाहता था और आखिरकार आपसी सहमति से जल्द ही दोनों का तलाक हो गया.
इधर चारू जितनी अपनी बीमारी से नहीं टूटी उस से कहीं अधिक नीलेश और उस के घर वालों के बरताव से टूट गई. उस की जैसे जीने की इच्छा ही खत्म हो गई. डाक्टर्स ने साफ कहा कि हम इलाज तो करेंगे पर सहयोग तो चारू को ही करना होगा. उसे अपने अंदर इच्छाशक्ति जगानी होगी वरना कोई इलाज काम नहीं करेगा.
चारू के मम्मीपापा अपनी बेटी की हालत देख अंदर ही अंदर घुले जा रहे थे. पर चारू तो जैसे बस अब मौत को ही गले लगाना चाहती थी. एक दिन चारू की मां ने उस की सब से अच्छी सहेली शैलजा को फोन किया और उसे सब बताया. अगले दिन शैलजा और उस के 2 दोस्त उस से मिलने आए, चारू अपने खयालों में खोई थी कि हैलो चारू कैसी हो? इतने दिन बाद जानीपहचानी आवाज सुन चारू ने आंख उठा कर देखा. उस के सामने शैलजा, विनीता और मिहिर खड़े थे. उन चारों की कालेज में चौकड़ी थी. सब उन की दोस्ती से चिढ़ते भी थे और मिसाल भी देते थे. चारों एकदूसरे के हर सुखदुख में हाजिर.
एक बार तो अपने सामने उन तीनों को देख उस की आंखों में चमक आ गई पर फिर उस ने मुंह फेर लिया.
शैलजा चारू के पलंग के पास आ कर बैठ गई. चारू के मम्मीपापा बोले, ‘‘तुम लोग बात करो हम बाहर बैठे हैं.’’
‘‘चारू हम चारों इतने दिन बाद इकट्ठे हुए, बात नहीं करेगी… तेरे साथ इतना कुछ हो गया और हमें बताना जरूरी नहीं सम?ा… हम सब तु?ो कितने फोन और मैसेज करते पर तूने तो हमारे फोन उठाना बंद कर दिया, धीरेधीरे हम भी अपनी पढ़ाई में व्यस्त हो गए.’’
‘‘शैलजा बोले जा रही थी कि चारू की आंखों से आंसू बह रहे थे. आसुंओं से उस का तकिया पूरा भीग चुका था. फिर वह अचानक शैलजा के गले लग गई, ‘‘शालू मैं क्या करती, पता नहीं कुदरत मु?ो किन पापों की सजा दे रही है… क्या बताती तुम सब को… मेरे पास बताने को भी कुछ नहीं बचा.’’
उस दिन चारू खूब रोई, उस के दोस्तों ने भी उसे रोने दिया. उस दिन के बाद अब रोज उस के दोस्त उस से मिलने आने लगे, चारू भी अब कुछ बातें करने लगी, थोड़ा खुश रहने लगी, पर कई बार उस की बातों से लगता जैसे उस के अंदर जीने की इच्छा बिलकुल नहीं बची.
एक दिन मिहिर अकेला आया, शैलजा और विनीता को कुछ काम था. मिहिर को अपने सामने देख चारू के चेहरे पर मुसकान आ गई, ‘‘कैसे हो मिहिर? आजकल बड़े चुपचुप रहते हो? कालेज में तो कितना बोलते थे और शादी कब कर रहे हो?’’
एकाएक पता नहीं क्यों मिहिर अकेले चारू का सामना नहीं कर पा रहा था. उस का गला भर आया. उस ने अपनी आंखें फेर लीं. चारू ने मिहिर के हाथ पर अपना हाथ रखा, ‘‘मैं जानती थी मिहिर तुम मु?ो पसंद करते थे पर मैं ने तुम्हारे लिए ऐसा कभी नहीं सोचा था, मैं सिर्फ तुम्हें दोस्त मानती थी.’’
मिहिर चारू की तरफ मुंह कर के बोला, ‘‘पसंद करता था नहीं चारू आज भी पसंद करता हूं, मैं तुम्हें चाहता हूं, मेरे दिल में तुम्हारे सिवा कोई नहीं है.’’
चारू के चेहरे पर एक फीकी मुसकान आ गई, ‘‘अब मु?ो पा कर क्या करोगे मिहिर, मेरे पास तुम्हें देने को कुछ नहीं, मैं तो खुद खुश नहीं तो तुम्हें क्या खुश रखूंगी.’’
‘‘क्यों नहीं चारू अब भी कुछ नहीं बिगड़ा, मैं आज भी तुम्हें उतना ही प्यार करता हूं, तुम से शादी करना चाहता हूं.’’
‘‘पागल हो तुम, सबकुछ जानबू?ा कर कैसे ऐसा बोल सकते हो, कहीं तुम मु?ा पर दया तो नहीं कर रहे?’’ चारू चिल्ला कर बोली. उस की आंखें गुस्से से लाल थीं. कुछ देर कमरे में सन्नाटा रहा. जब चारू थोड़ा सामान्य हुई तो मिहिर से बोली, ‘‘मिहिर, मु?ो उस शीशे के सामने ले चलो.’’
मिहिर के सहारे वह धीरे से बैड से उतरी, ‘‘देखा मिहिर क्या हालत हो गई, बिना सहारे के उठ भी नहीं सकती,’’ चारू के स्वर में बहुत दर्द था.
मिहिर उसे शीशे के सामने ले आया.
‘‘देखो मिहिर मेरी हालत देखो, मेरे बाल देखो, धीरेधीरे जितने बचे हैं वे भी ?ाड़ जाएंगे, मैं खुद शीशा देखना पसंद नहीं करती, तुम्हारी जिंदगी कैसे बरबाद कर दूं और जानते हो न मेरे औपरेशन के बाद तो… मेरे शरीर का एक हिस्सा मु?ा से काट दिया जाएगा. मैं कैसे तुम्हारी जिंदगी बरबाद कर सकती हूं.’’
मिहिर ने उसे पास रखे सोफे पर बैठाया और खुद उस के पास जमीन पर बैठ गया. उस का हाथ अपने हाथ में ले बोला, ‘‘चारू यह जीवन है, यहां पत?ाड़ आता है तो वसंत भी आएगा, बस तुम हां कर दो मैं तुम्हारे जीवन में वसंत ले कर आऊंगा और हां मैं तुम पर कोई दया नहीं कर रहा बल्कि अपने को खुशहाल सम?ांगा और हां मैं ने तुम्हारे जिस्म से नहीं तुम से, तुम्हारी रूह से प्यार किया. अगर शादी के बाद कुछ होता तो? और अगर मेरे साथ कुछ ऐसा हो तो क्या तुम मु?ो छोड़ दोगी?’’ चारू ने मिहिर के मुंह पर हाथ रख दिया.
‘‘नहीं मिहिर मैं ऐसा नहीं कर सकती. इतनी स्वार्थी नहीं हो सकती… मैं तो जीना ही नहीं चाहती… मु?ो मर जाने दो,’’ चारू अपने मुंह पर दोनों हाथ रख फूटफूट कर रोने लगी.
मिहिर ने चारू के चेहरे पर से उस के हाथों को हटा उस के आंसू पोंछे और बोला, ‘‘तुम्हें जीना होगा… मेरी खातिर जीना होगा, आज से तुम्हारी जिंदगी पर मेरा भी हक है, अपने लिए नहीं तो मेरे लिए जीना होगा, वादा करो मुझ से.’’
एकाएक चारू मिहिर की बांहों में समा गई, ‘‘मिहिर मैं जीना चाहती हूं, तुम्हारे लिए… अपने लिए. क्या मेरे जीवन में फिर से वसंत आ पाएगा?’’ इतने दिन बाद शायद मिहिर का प्यार उसे खुशी दे गया.
मिहिर उसे सीने से लगाए बोला, ‘‘क्यों नहीं आएगा, जरूर आएगा… बस अगर तुम साथ दो.’’
चारू ने अपना हाथ मिहिर के हाथ में दिया जैसे साथ देने का वादा कर रही हो.
चारू के मम्मीपापा, शैलजा और विनीता पीछे खड़े थे. सब की आंखों में आंसू थे पर आंखें कई अरमानों से सजी हुई थीं. मिहिर ने कहा कि वह चारू के औपरेशन से पहले ही उस से शादी करना चाहता है और चारू से वादा लिया कि हमारी शादी के उपहार में उसे सहीसलामत वापस आना है.
इधर मिहिर अभी अपने खयालों में ही था कि तभी चारू के पापा कमरे में आए. उन की आंखें आंसुओं से भरी थीं. मिहिर उन्हें अपने सामने देख किसी अनहोनी की आशंका से कांपने लगा. उस का शरीर बिलकुल सफेद पड़ गया मानो किसी ने उस के शरीर से सारा खून चूस लिया हो.
मिहिर के पापा उस के पास आ उसे गले लगाते हुए बोले, ‘‘मिहिर बेटा तुम्हारा प्यार… तुम्हारा विश्वास जीत गया… औपरेशन सफल हुआ… चारू को कुछ देर में बाहर ला रहे हैं.’’
मिहिर चारू के पापा के गले लग रोने लगा फिर रुंधे गले से बोला, ‘‘पापा, मेरी चारू… चुनर… मु?ो चारू को दुलहन बनाना है उसे यह चुनर,’’ और बात पूरी करने से पहले वह बाहर की ओर भागा. उस के हाथ में लाल चुनर थी. अपनी चारू को फिर से दुलहन के रूप में देखने को बेकरार था वह.