वर्किंग महिलाओं के लिए बैस्ट हैं ये ब्यूटी टूल्स, बिना किसी झंझट के पाएं ग्लोइंग स्किन

चेहरे की खूबसूरती बरकरार रखने के लिए लोग न जाने क्याक्या उपाय अपनाते हैं. घरेलू नुस्खों से लेकर ब्यूटी प्रोडक्ट्स तक अपनी स्किन केयर रूटीन में शामिल करते हैं. हर किसी के स्किन का टाइप अलगअलग होता है, तो जरूरी नहीं है कि हर ब्यूटी प्रोडक्ट या होममेड पैक उनके चेहरे पर सूट ही करें.

इन दिनों स्किन की देखभाल के लिए मार्केट में ब्यूटी प्रोडक्ट्स के अलावा कई ब्यूटी टूल्स भी मौजूद हैं, जिनका इस्तेमाल कर आप अट्रैक्टिव दिख सकती हैं. ये वर्किग महिलाओं के बैस्ट औप्शन हैं, कई बार समय की कमी के कारण आप अपनी स्किन का सही तरीके से ख्याल नहीं रख पाती हैं, ऐसे में घर पर ही इन टूल्स की मदद से कम मेहनत और कम समय में चेहरे की खोई हुई चमक को वापस पा सकती हैं. आइए जानते हैं इन ब्यूटी टूल्स के बारे में…

चेहरे को डी-पफ करने के टूल्स

जेड रोलर– आपने सोशल मीडिया पर इस ब्यूटी टूल को जरूर देखा होगा कि ये त्वचा को कैसे हैल्दी रखते हैं, कई सेलेब्स भी जेड रोलर का इस्तेमाल करते हैं. यह चेहरे की सूजन, झुर्रियां, फाइन लाइन्स और पफीनेस को कम करता है.

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अमेजन पर जेड रोलर की कीमत 200 रुपये है, इसपर कुछ छूट भी आपको मिल सकती है.
इस टूल को रखने के लिए निर्देश भी दिए गए हैं, अमेजन के अनुसार, कहीं भी, कभी भी इस्तेमाल किया जा सकता है: यह एंटी-एजिंग फेशियल जेड रोलर हल्का और ले जाने में आसान है. बेहतर परिणामों के लिए, इसे उपयोग करने से पहले रेफ्रिजरेटर में रखें, चेहरे के लिए एक शिकन रोलर त्वचा को चिकनी बना देगा और आंखों के आसपास झुर्रियों को खत्म कर देगा.

क्या होता है जेड रोलर

यह आपके चेहरे और गर्दन की मालिश करने का एक टूल है. जब यह स्किन को टच करता है, तो इससे त्वचा को आराम मिलता है. जेड रोलर्स आपके चेहरे का ब्लड सर्कुलेशन बढ़ाते हैं. जिससे स्किन चमकदार होती है. इसके इस्तेमाल से स्किन पर कोई दुष्प्रभाव भी नहीं होता.

जेड रोलर के उपयोग करने का तरीका

सबसे पहले अपने चेहरे को साफ करें, जो आप आमतौर पर ब्यूटी प्रोडक्ट्स लगाते हैं, उसे चेहरे और गर्दन पर लगाएं, इसके बाद आप अपनी गर्दन पर रोलर का उपयोग करके शुरू कर सकते हैं. रोलर को आगेपीछे घुमाने से बचें, इसका उपयोग ऊपर की दिशा में करें. इस टूल से जालाइन से कान तक, माथे से हैयरलाइन और जबड़े से चीकबोन तक रोल करें.

लाइम्स सक्शन हेड स्किन क्लीनर

यह ब्यूटी टूल चेहरे की सफाई करने के काम आता है. इसके उपयोग से चेहरे के ब्लैकहेड्स भी कम हो सकते हैं. अगर आप कम मेहनत में ब्लैकहेड्स से छुटकारा पाना चाहते हैं, तो यह टूल आपके लिए मददगार साबित हो सकता है. अगर आप रेडियंस स्किन पाना चाहती हैं, तो इस ब्यूटी टूल से मदद ले सकती हैं.

A nose with small black heads against a neutral background skin problem theme

आप इस लाइम्स सक्शन हेड स्किन क्लीनर को मार्केट या औनलाइन भी और्डर कर सकती हैं. औनलाइन इसकी कीमत 900 रुपये है. यह ब्लैकहेड वैक्यूम प्रभावी रूप से आपके नाक ब्लैकहेड्स, मुंहासे, डेड स्किन, ग्रीस और मेकअप अवशेष, झुर्रियां और त्वचा को कस सकता है.

हेड स्किन क्लीनर का उपयोग करने का तरीका

इस टूल के दिशानिर्देश के अनुसार इसका उपयोग करते समय ब्लैकहेड रिमूवर को एक ही स्थान पर बहुत लंबे समय तक न रखें. अगर आप अपनी स्किन पर कुछ नया एक्सपेरिमेंट करना चाहती हैं, तो इस टूल को जरूर ट्राई करें.

जुरेनी आइस रोलर

कोल्ड मसाज थेरेपी काफी ट्रैंड में है. जो लड़कियां अपने चेहरे पर बर्फ लगाती हैं, वो इस रोलर का इस्तेमाल कर सकती हैं. इस रोलर में कूल ब्लैड्स होते हैं जिनके इस्तेमाल से आपके चेहरे पर मौजूद सूजन और झुर्रियां कम हो सकती है. इस ब्यूटी टूल से आप घर बैठे आसानी से कोल्ड मसाज थैरेपी का आनंद ले सकती हैं. इस आइस रोलर के इस्तेमाल से स्किन स्मूथ और ग्लोइंग हो सकती है.

अगर आप औनलाइन आर्डर करती हैं, तो इसकी कमीत करीब 300 रुपये बताया गया है, लेकिन आपको इस पे डिस्काउंट पर मिल सकता है. मिली जानकारी के अनुसार, आइस रोलर फेस मसाजर का काम करता है, जो चेहरे और आंखों की सूजन को कम करने में मददगार है. आप टोनर लगाने के बाद सुबह इसका उपयोग कर सकती हैं.

कैसे इस टूल का उपयोग करें

जुरेनी आइस जेल रोलर हेड को साफ करें, फिर इसे हर समय फ्रिज में रखें. आप रोजाना सुबह या रात में सोने से पहले पहले इसका उपयोग कर सकते हैं। इसे अपने चेहरे पर ऊपर की ओर स्ट्रोक के साथ रोल करें, उस हिस्से पर ध्यान केंद्रित करें जिसे आप कोल्ड मसाज देना चाहते हैं, इसे 5-10 मिनट के लिए उपयोग करें.

Raksha Bandhan 2024 : समय चक्र- अकेलेपन की पीड़ा क्यों झेल रहे थे बिल्लू भैया?

शिमला अब केवल 5 किलोमीटर दूर था…य-पि पहाड़ी घुमाव- दार रास्ते की चढ़ाई पर बस की गति बेहद धीमी हो गई थी…फिर भी मेरा मन कल्पनाओं की उड़ान भरता जाने कितना आगे उड़ा जा रहा था. कैसे लगते होंगे बिल्लू भैया? जो घर हमेशा रिश्तेदारों से भरा रहता था…उस में अब केवल 2 लोग रहते हैं…अब वह कितना सूना व वीरान लगता होगा, इस की कल्पना करना भी मेरे लिए बेहद पीड़ादायक था. अब लग रहा था कि क्यों यहां आई और जब घर को देखूंगी तो कैसे सह पाऊंगी? जैसे इतने वर्ष कटे, कुछ और कट जाते.

कभी सोचा भी न था कि ‘अपने घर’ और ‘अपनों’ से इतने वर्षों बाद मिलना होगा. ऐसा नहीं था कि घर की याद नहीं आती थी, कैसे न आती? बचपन की यादों से अपना दामन कौन छुड़ा पाया है? परंतु परिस्थितियां ही तो हैं, जो ऐसा करने पर मजबूर करती हैं कि हम उस बेहतरीन समय को भुलाने में ही सुकून महसूस करते हैं. अगर बिल्लू भैया का पत्र न आया होता तो मैं शायद ही कभी शिमला आने के लिए अपने कदम बढ़ाती.

4 दिन पहले मेरी ओर एक पत्र बढ़ाते हुए मेरे पति ने कहा, ‘‘तुम्हारे बिल्लू भैया इतने भावुक व कमजोर दिल के कैसे हो गए? मैं ने तो इन के बारे में कुछ और ही सुना था…’’

पत्र में लिखी पंक्तियां पढ़ते ही मेरी आंखों में आंसू आ गए, गला भर आया. लिखा था, ‘छोटी, तुम लोग कैसे हो? मौका लगे तो इधर आने का प्रोग्राम बनाना, बड़ा अकेलापन लगता है…पूरा घर सन्नाटे में डूबा रहता है, तेरी भाभी भी मायूस दिखती है, टकटकी लगा कर राह निहारती रहती है कि क्या पता कहीं से कोई आ जाए…’

समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे आज बिल्लू भैया जैसा इनसान एक निरीह प्राणी की तरह आने का निमंत्रण दे रहा है और वह भी ‘अकेलेपन’ का वास्ता दे कर. यादों पर जमी परत पिघलनी शुरू हुई. वह भी बिल्लू भैया के प्रयास से क्योंकि यदि देखा जाए तो यह परत भी उन्हीं के कारण जमानी पड़ी थी.

बचपन में बिल्लू भैया जाड़ों के दिनों में अकसर पानी पर जमी पाले की परत पर हाकी मार कर पानी निकालते और हम सब ठंड की परवा किए बिना ही उस पानी को एकदूसरे पर उछालने का ‘खेल’ खेलते.

एक बार बिल्लू भैया, बड़े गर्व से हम को अपनी उपलब्धि बता ही रहे थे कि अचानक उन से बड़े कन्नू भैया ने उन का कान जोर से उमेठ कर डांट लगाई…

‘अच्छा, तो ये तू है, जो मेरी हाकी का सत्यानाश कर रहा है…मैं भी कहूं कि रोज मैच खेल कर मैं अपनी हाकी साफ कर के रखता हूं और वह फिर इतनी गंदी कैसे हो जाती है.’

और बिल्लू भैया भी अपमान व दर्द चुपचाप सह कर, बिना आंसू बहाए कन्नू भैया को घूरते रहे पर ‘सौरी’ नहीं कहा. बचपन से ही वे रोना या अपना दर्द दूसरे से कहना अच्छा नहीं समझते थे, कभीकभी तो वे नाटकीय अंदाज में कहते थे, ‘आई हेट टियर्स…’

दूसरों से निवेदन करना जो इनसान अपनी हेठी समझता हो आज वह इस तरह…इस स्थिति में.

कितना अच्छा समय था. जब हम छोटे थे और एकता के धागे से बंधा कुल मिला कर लगभग 20 सदस्यों का हमारा संयुक्त परिवार था, जिस में दादी, एक विधवा व निसंतान चचेरी बूआ, हमारे पिता, उन से बड़े 3 भाई, सब के परिवार, हम 10 भाईबहन जोकि अपनीअपनी उम्र के भाईबहनों के साथ दोस्त की तरह रहते थे. सगे या चचेरे का कोई भाव नहीं, ताऊजी की दुकान थी…जहां पर ग्राहक को सामान से ज्यादा ताऊजी की ईमानदारी पर विश्वास था.

मेरे पिता, ताऊजी के साथ दुकान पर काम करते थे और उन के अन्य 2 भाइयों में से एक स्थानीय डिगरी कालेज में तथा एक आयकर विभाग में क्लर्क के पद पर थे जोकि निसंतान थे. कन्नू व बिल्लू भैया ताऊजी के बेटे थे. उस के बाद नन्हू व सोनू भैया थे. हम 3 बहनें, 1 भाई थे. अध्यापन का कार्य करने वाले ताऊजी के 2 बच्चे अभी छोटे थे क्योंकि वे उन की शादी के लगभग 10 साल बाद हुए थे. आयकर विभाग वाले ताऊजी निसंतान थे.

समय के साथ घर में परिवर्तन आने शुरू हुए, दादी व बूआ की मौत एक के बाद एक कर हो गई. घर के लड़के शहर छोड़ कर बाहर जाने लगे. कोई डाक्टरी की पढ़ाई के लिए, तो कोई नौकरी के लिए. मेरी भी बड़ी बहनों की शादी हो चुकी थी. बिल्लू भैया की भी नागपुर में एक दवा की कंपनी में नौकरी लग गई, जब वे भी चले गए तब अचानक एक दिन ताऊजी पापा से बोले, ‘छोटे, अच्छा हुआ कि सभी अपने पैरों पर खड़े हो रहे हैं, मैं चाहता भी नहीं था कि आने वाले समय में नई पीढ़ी यहां बसे. हम ने तो निभा लिया पर ये बच्चे हमारी तरह साथ नहीं रह सकते. बड़ी मुश्किल से परिवार जुड़ता है और उस में किसी एक का योगदान नहीं होता बल्कि सभी का धैर्य, निस्वार्थ त्याग, स्नेह व समर्पण मिला कर ही एकतारूपी मजबूत धागे की डोर सब को जोड़ पाती है, वर्षों लग जाते हैं…यह सब होने में.’

वैसे तो दूसरे लोग भी घर से गए थे पर ताऊजी ने यह बात बिल्लू भैया के जाने के बाद ही क्यों कही? यह विचार मेरे मन में कौंधा और उस का उत्तर मुझे मात्र 6 महीने बाद ही मिल गया. वह भी एक तीव्र प्रहार के रूप में. ऐसी चोट मिली कि आज तक उस की कसक अंदर तक पीड़ा पहुंचा देती है.

बात यह हुई कि मात्र 6 महीने बाद ही बिल्लू भैया नौकरी छोड़ कर घर वापस आ गए.

‘मैं भी दुकान संभाल लूंगा क्योंकि मुझे लगता है कि बुढ़ापे में आप लोग अकेले रह जाएंगे, आप लोगों की देखभाल के लिए भी तो कोई चाहिए,’ कहते हुए जब बिल्लू भैया ने अपना सामान अंदर रखना शुरू किया तो घर के सभी सदस्य बहुत खुश हुए किंतु ताऊजी अपने चेहरे पर निर्लिप्त भाव लिए अपना कार्य करते रहे.

मुझे जीवन की कड़वी सचाइयों का इतना अनुभव न था अन्यथा मैं भी समझ जाती कि यह चेहरा केवल निर्लिप्तता लिए हुए नहीं है बल्कि इस के पीछे आने वाले तूफान के कदमों की आहट पहचानने की चिंता व्याप्त है और यही सत्य था. तूफान ही तो था, जिस का प्रभाव आज तक महसूस होता रहा. धमाका उस दिन महसूस हुआ जब मैं अलसाई सी अपने बिस्तर पर आंखें मूंदे पड़ी थी कि एक तेज आवाज मेरे कानों में पड़ी :

‘चाचाजी, कभीकभी मुझे लगता है कि आप अपने फायदे के लिए हमारे पिताजी के साथ रह रहे हैं. आप को अपनी बेटियों की शादी के लिए पैसा चाहिए न इसीलिए…’ यह क्या, मैं ने आंखें खोल कर देखा तो अपने पापा के सामने बिल्लू भैया को खड़ा देखा…

‘यह क्या कह रहे हो? हमारे बीच में ऐसी भावना होती तो हम इतने वर्षों तक कभी साथ न रह पाते. संयुक्त परिवार है हमारा, जहां हमारेतुम्हारे की कोई जगह नहीं. इतनी छोटी बात तुम्हारे दिमाग में आई कैसे?’ पापा लगभग चिल्लाते हुए बोले.

पापा की एक आवाज पर थर्राने वाले बिल्लू भैया की आज इतनी हिम्मत हो गई कि उम्र का लिहाज ही भूल गए थे. मैं सिहर कर चुपचाप पड़ी सोने का नाटक करने लगी पर ताऊजी के उस वाक्य का अर्थ मेरी समझ में आ गया था. नई पीढ़ी का रंग सामने आ रहा था. पिता होने के नाते वे अपने बेटे की नीयत जानते थे और अपने संयुक्त परिवार को हृदय से प्यार करने वाले ताऊजी इस की एकता को हर खतरे से बचाना चाहते थे.

हतप्रभ से मेरे पापा ने जब यह बात मेरे ताऊजी से कही तो वे केवल एक ही वाक्य बोल पाए, ‘शतरंज की बाजी में, दूसरे के मजबूत मोहरे पर ही सब से पहले वार किया जाता है. वही हो रहा है. तुम मुझ पर विश्वास रखोगे तो कुछ नहीं बिगड़ेगा.’

कही हुई बात इतनी कड़वी थी कि उस की कड़वाहट धीरेधीरे घर के वातावरण में घुलने लगी…उस का प्रभाव धीरेधीरे अन्य लोगों पर भी दिखने लगा और एक अदृश्य सी सीमारेखा में सभी परिवार सिमटने लगे. एक ताऊजी कालेज के वार्डन बन कर वहीं होस्टल में बने सरकारी घर में चले गए. दूसरे भी मन की शांति के लिए घर के पीछे बने 2 कमरों में रहने लगे. अपमान से बचने के लिए उन्होंने रसोई भी अलग कर ली. अलगाव की सीमारेखा को मिटाने वाले सशक्त हाथ भी उम्र के साथ धीरेधीरे अशक्त होते चले गए. ताऊजी को लकवा मार गया और पापा भी अपने सबल सहारे को कमजोर पा कर परिस्थितियों के आगे झुकने को मजबूर हो गए, परंतु अंत समय तक उन्होंने ताऊजी का साथ न छोड़ा.

अब घर बिल्लू भैया व उन की पत्नी के इशारे पर चलने लगा, समय आने पर मेरी भी शादी हो गई और मैं शिमला के अपने इस प्यारे से घर को भूल ही गई. ताऊजी, ताईजी, पापा का इंतकाल हो गया. मां मेरे भाई के पास आ गईं. अब मेरे लिए उस घर में बचपन की यादों के सिवा कुछ न था.

समय का चक्र अविरल गति से घूम रहा था…और आज बिल्लू भैया भी उम्र के उसी पड़ाव पर खड़े थे, जिस पड़ाव पर कभी मेरे पापा अपमानित हुए थे, पर उन्होंने ऐसा पत्र क्यों लिखा? क्या कारण होगा?

अचानक कानों में पति के स्वर पड़े तो मेरी तंद्रा भंग हुई थी.

‘‘तुम शिमला क्यों नहीं चली जातीं, तुम्हारा घूमना भी हो जाएगा और उन का अकेलापन भी दूर होगा…चाहे थोड़े दिनों के लिए ही सही,’’ अचानक अपने पति की बातें सुन कर मैं ने सोचा कि मुझे जाना चाहिए…और मैं तैयारी करने लग गई थी.शिमला पहुंचते ही, मैं अपनी थकान भूल गई. तेज चाल से अपने मायके की ओर बढ़ते हुए मुझे याद ही नहीं रहा कि दिल्ली में रोज मुझे अपने घुटनों के दर्द की दवा खानी पड़ती है. कौलबेल पर हाथ रखते ही, बिल्लू भैया की आवाज सुनाई पड़ी, मानो वे मेरे आने के इंतजार में दरवाजे के पीछे ही खड़े थे…

‘‘छोटी, तू आ गई…बहुत अच्छा किया.’’ मुझे ऐसा लगा मानो ताऊजी सामने खड़े हों. ‘‘तेरी भाभी तो तेरे लिए पकवान बनाने में व्यस्त है…’’ तब तक भाभीजी भी डगमग चाल से चल कर मुझ से लिपट गईं. सच कहूं तो उन के प्यार में आज भी वह आकर्षण नहीं था, जो किसी ‘अपने’ में होता है. आज हम सब को अपने पास बुलाना उन की मजबूरी थी. अकेलेपन के अंधेरे से बाहर निकलने का एक प्रयास मात्र था…उस में अपनापन कहां से आएगा.

‘‘चलचल, अंदर चल,’’ बिल्लू भैया मेरा सामान अंदर रखने लगे, घर में घुसते ही मेरी आंखें भर आईं. यों तो चारों ओर सुंदरसुंदर फर्नीचर व सामान सजा हुआ था. पर सबकुछ निर्जीव सा लगा. काश, बिल्लू भैया व भाभीजी समझ पाते कि रौनक इनसानों से होती है, कीमती सामान से नहीं.

घर से हमारे बचपन की यादें मिट चुकी थीं. आज मां के हाथ के बने आलू की खुशबू, मात्र कल्पना में महसूस हो रही थी. मकान की शक्ल बदल चुकी थी… दुकान से मिसरी, गुड़, किशमिश गायब थी. बिल्लू भैया भी तो वे बिल्लू भैया कहां थे?

‘‘कितना बदल गया सबकुछ…’’ मेरे मुंह से अचानक ही निकल गया.

‘‘सच कहती है तू…वाकई सब बदल गया, देख न, तनय, जिसे बच्चे की तरह गोद में खिलाया था…आज मुझ से कितनी ऊंची आवाज में बात करने लगा,’’ बिल्लू भैया के मन का गुबार मौका मिलते ही बाहर आ गया.

‘‘तनय, कन्नु भैया का बेटा… क्यों, क्या हो गया?’’

‘‘कहता है, मैं जायदाद पर अपना अधिकार जमाने के लिए, नौकरी छोड़ कर यहां आया था,’’ बता भला, मैं ऐसा क्यों करने लगा. जानता है न कि मैं कमजोर हो गया हूं तो जो चाहे कह जाता है, अपना हिस्सा मांग रहा है… कौन सा हिस्सा दूं और लोग भी तो हैं,’’ कहतेकहते बिल्लू भैया हांफने लगे, ‘‘बंटवारे का चक्कर होगा तो मैं और तेरी भाभी कहां जाएंगे.’’

विनी (भैया की बेटी) भी अमेरिका में बस गई थी. असुरक्षा व भय का भाव भैया की आवाज में साफ झलक रहा था.

मेरे कदम जम गए… कानों में दोनों आवाजें गूजने लगीं… एक जो मेरे पापा से कही गई थी और दूसरी आज ये बिल्लू भैया की. कितनी समानता है. न्याय मिलने में सालों तो लगे पर मिला. शायद इसीलिए परिस्थितियों ने बिल्लू भैया से मुझे ही चिट्ठी लिखवाई, क्योंकि उस दिन अपने पापा को मिलने वाली प्रत्यक्ष पीड़ा की प्रत्यक्षदर्शी गवाह मैं ही थी. इसीलिए आज न्याय प्राप्त होने की शांति भी मैं ही महसूस कर सकती थी.

आंखें बंद कर मन ही मन मैं ने ऊपर वाले को धन्यवाद दिया. आज बिल्लू भैया को इस स्थिति में देख कर मुझे अपार दुख हो रहा था… बचपन के सखा थे वे हमारे.

‘‘भैया, हम आप के साथ हैं. हमारे होते हुए आप अकेले नहीं हैं. मैं वादा करती हूं कि तीजत्योहारों पर और इस के अलावा भी जब मौका लगेगा हम एकदूसरे से मिलते रहेंगे,’’ मैं ने अपनी आवाज को सामान्य करते हुए कहा क्योंकि मैं किसी भी हालत में अपने हृदय के भाव भैया पर जाहिर नहीं करना चाहती थी. मेरे इतने ही शब्दों ने भैया को राहत सी दे दी थी…उन के चेहरे से अब तनाव की रेखाएं कम होने लगी थीं.

आखिर मेरे चलने का दिन आ गया. पूरे घर का चक्कर लगा कर एक बार फिर अपने मन की उदासी को दूर करने का प्रयास किया पर प्रयास व्यर्थ ही गया. बस स्टैंड पर भैया की आंखों में आंसू देख कर मेरे सब्र का बांध टूट गया क्योंकि ये आंसू सचाई लिए हुए थे. पश्चात्ताप था उन में, पर अब खाइयां इतनी गहरी थीं कि उन को पाटने में वर्षों लग जाते… ताऊजी की सहेजी गई अमानत अब पहले जैसा रूप कैसे ले सकती थी.

बस चल पड़ी और भैया भी लौट गए. मन में एक टीस सी उठी कि काश, यदि बिल्लू भैया जैसे लोग कोई भी ‘दांव’ लगाने से पहले समय के चक्र की अविरल गति का एहसास कर लें तो वे कभी भी ऐसे दांव लगाने की हिम्मत न करें…

यह अटल सत्य है कि यही चक्र एक दिन उन्हें भी उसी स्थिति पर खड़ा करेगा जिस पर उन्होंने दूसरे व्यक्ति को कमजोर समझ कर खड़ा किया है. इस तथ्य को भुलाने वाले बिल्लू भैया आज दोहरी पीड़ा झेल रहे थे…निजी व पश्चात्ताप की.

Raksha Bandhan 2024 : चमत्कार- क्या बड़ा भाई रतन करवा पाया मोहिनी की शादी?

‘‘मोहिनी दीदी पधार रही हैं,’’ रतन, जो दूसरी मंजिल की बालकनी में मोहिनी के लिए पलकपांवडे़ बिछाए बैठा था, एकाएक नाटकीय स्वर में चीखा और एकसाथ 3-3 सीढि़यां कूदता हुआ सीधा सड़क पर आ गया.

उस के ऐलान के साथ ही सुबह से इंतजार कर रहे घर और आसपड़ोस के लोग रमन के यहां जमा होने लगे.

‘‘एक बार अपनी आंखों से बिटिया को देख लें तो चैन आ जाए,’’ श्यामा दादी ने सिर का पल्ला संवारा और इधरउधर देखते हुए अपनी बहू सपना को पुकारा.

‘‘क्या है, अम्मां?’’ मोहिनी की मां सपना लपक कर आई थीं.

‘‘होना क्या है आंटी, दादी को सिर के पल्ले की चिंता है. क्या मजाल जो अपने स्थान से जरा सा भी खिसक जाए,’’ आपस में बतियाती खिलखिलाती मोहिनी की सहेलियों, ऋचा और रीमा ने व्यंग्य किया था.

‘‘आग लगे मुए नए जमाने को. शर्म नहीं आती अपनी पोशाक देख कर? न गला, न बांहें, न पल्ला, न दुपट्टा और चली हैं दादी की हंसी उड़ाने,’’ ऋचा और रीमा को आंखों से ही घुड़क दिया. वे दोनों चुपचाप दूसरे कमरे में चली गईं.

लगभग 2 साल पहले सपना ने अपने पति रामेश्वर बाबू को एक दुर्घटना में गंवा दिया था. श्यामा दादी ने अपना बेटा खोया था और परिवार ने अपना कर्णधार. दर्द की इस सांझी विरासत ने परिवार को एक सूत्र में बांध दिया था.

‘‘चायनाश्ते का पूरा प्रबंध है या नहीं? पहली बार ससुराल से लौट रही है हमारी मोहिनी. और हां, बेटी की नजर उतारने का प्रबंध जरूर कर लेना,’’ दादी ने लाड़ जताते हुए कहा था.

‘‘सब प्रबंध है, अम्मां. आप तो सचमुच हाथपैर फुला देती हैं. नजर आदि कोरा अंधविश्वास है. पंडितों की साजिश है,’’ सपना अनचाहे ही झल्ला गई थी.

‘‘बुरा मानने जैसा तो कुछ कहा नहीं मैं ने. क्या करूं, जबान है, फिसल जाती है. नहीं तो मैं कौन होती हूं टांग अड़ाने वाली?’’ श्यामा दादी सदा की तरह भावुक हो उठी थीं.

‘‘अब तुम दोनों झगड़ने मत लगना. शुक्र मनाओ कि सबकुछ शांति से निबट गया नहीं तो न जाने क्या होता?’’ मोहिनी के बड़े भाई रमन ने बीचबचाव किया तो उस की मां सपना और दादी श्यामा तो चुप हो गईं पर उस के मन में बवंडर सा उठने लगा. क्या होता यदि मोहिनी के विवाह के दिन ऊंट दूसरी करवट बैठ जाता? वह तो अपनी सुधबुध ही खो बैठा था. उस की यादों में तो आज भी सबकुछ वैसा ही ताजा था.

‘भैया, ओ भैया. कहां हो तुम?’ रतन इतनी तीव्रता से दौड़ता हुआ घर में घुसा था कि सभी भौचक्के रह गए थे. वह आंगन में पड़ी कुरसी पर निढाल हो कर गिरा था और हांफने लगा था.

‘क्या हुआ?’ बाल संवारती हुई अम्मां कंघी हाथ में लिए दौड़ी आई थीं. रमन दहेज के सामान को करीने से संदूक में लगवा रहा था. उस ने रतन के स्वर को सुन कर भी अनसुना कर दिया था.

शादी का घर मेहमानों से भरा हुआ था. सभी जयमाला की रस्म के लिए सजसंवर रहे थे. सपना और रतन के बीच होने वाली बातचीत को सुनने के लिए सभी बेचैन हो उठे थे. पर रतन के मुख से कुछ निकले तब न. उस की आंखों से अनवरत आंसू बहे जा रहे थे.

‘अरे, कुछ तो बोल, हुआ क्या? किसी ने पीटा है क्या? हाय राम, इस की कनपटी से तो खून बह रहा है,’ सपना घबरा कर खून रोकने का प्रयत्न करने लगी थीं. सभी मेहमान आंगन में आ खड़े हुए थे.

श्यामा दादी दौड़ कर पानी ले आई थीं. घाव धो कर मरहमपट्टी की. रतन को पानी पिलाया तो उस की जान में जान आई.

‘मेरी छोड़ो, अम्मां, रमन भैया को बुलाओ…वहां मैरिज हाल में मारपीट हो गई है. नशे में धुत बराती अनापशनाप बक रहे थे.’’

सपना रमन को बुलातीं उस से पहले ही रतन के प्रलाप को सुन कर रमन दौड़ा आया था. रतन ने विस्तार से सब बताया तो वह दंग रह गया था. वह तेजी से मैरिज हाल की ओर लपका था उस के मित्र प्रभाकर, सुनील और अनिल भी उस के साथ थे.

रमन मैरिज हाल पहुंचा तो वहां कोहराम मचा हुआ था. करीने से सजी कुरसियांमेजें उलटी पड़ी थीं. आधी से अधिक कुरसियां टूटी पड़ी थीं.

‘यह सब क्या है? यहां हुआ क्या है, नरेंद्र?’ उस ने अपने चचेरे भाई से पूछा था.

‘बराती महिलाओं का स्वागत करने घराती महिलाओं की टोली आई थी. नशे में धुत कुछ बरातियों ने न केवल महिलाओं से छेड़छाड़ की बल्कि बदतमीजी पर भी उतर आए,’ नरेंद्र ने रमन को वस्तुस्थिति से अवगत कराया था.

रमन यह सब सुन कर भौचक खड़ा रह गया था. क्या करे क्या नहीं…कुछ समझ नहीं पा रहा था.

‘पर बराती गए कहां?’ रमन रोंआसा हो उठा था. कुछ देर में स्वयं को संभाला था उस ने.

‘जाएंगे कहां? बात अधिक न बढ़ जाए इस डर से हम ने उन्हें सामने के दोनों कमरों में बंद कर के ताला लगा दिया,’ नरेंद्र ने क्षमायाचनापूर्ण स्वर में बोल कर नजरें झुका ली थीं.

‘यह क्या कर दिया तुम ने. क्या तुम नहीं जानते कि मैं ने कितनी कठिनाई से पाईपाई जोड़ कर मोहिनी के विवाह का प्रबंध किया था. तुम लोग क्या जानो कि पिता के साए के बिना जीवन बिताना कितना कठिन होता है,’ रमन प्रलाप करते हुए फूटफूट कर रो पड़ा था.

‘स्वयं को संभालो, रमन. मैं क्या मोहिनी का शत्रु हूं? तुम ने यहां का दृश्य देखा होता तो ऐसा नहीं कहते. तुम्हें हर तरफ फैला खून नजर नहीं आता? यदि हम करते इन्हें बंद न तो न जाने कितने लोग अपनी जान से हाथ धो बैठते,’ नरेंद्र, उस के मित्र प्रभाकर, सुनील और अनिल भी उसे समझाबुझा कर शांत करने का प्रयत्न करने लगे थे.

किसी प्रकार साहस जुटा कर रमन उन कमरों की ओर गया जिन में बराती बंद थे. उसे देखते ही कुछ बराती मुक्के हवा में लहराने लगे थे.

‘तुम लोगों का साहस कैसे हुआ हमें इस तरह कमरों में बंद करने का,’ कहता हुआ एक बराती दौड़ कर खिड़की तक आया और गालियों की बौछार करने लगा. एक अन्य बराती ने दूसरी खिड़की से गोलियों की झड़ी लगा दी. रमन और उस के साथी लेट न गए होते तो शायद 1-2 की जान चली जाती.

दूल्हा ‘राजीव’ पगड़ी आदि निकाल ठगा सा बैठा था.

‘समझ क्या रखा है? एकएक को हथकडि़यां न लगवा दीं तो मेरा नाम सुरेंद्रनाथ नहीं,’ वर के पिता मुट्ठियां हवा में लहराते हुए धमकी दे रहे थे.

चंद्रा गार्डन नामक इस मैरिज हाल में घटी घटना का समाचार जंगल की आग की तरह फैल गया था. समस्त मित्र व संबंधी घटनास्थल पर पहुंच कर विचारविमर्श कर रहे थे.

चंद्रा गार्डन से कुछ ही दूरी पर जानेमाने वकील और शहर के मेयर रामबाबू रहते थे. रमन के मित्र सुनील के वे दूर के संबंधी थे. उसे कुछ न सूझा तो वह अनिल और प्रभाकर के साथ उन के घर जा पहुंचा.

रामबाबू ने साथ चलने में थोड़ी नानुकुर की तो तीनों ने उन के पैर पकड़ लिए. हार कर उन को उन के साथ आना ही पड़ा.

रामबाबू ने खिड़की से ही वार्त्तालाप करने का प्रयत्न किया पर वरपक्ष का कोई व्यक्ति बात करने को तैयार नहीं था. वे हर बात का उत्तर गालियों और धमकियों से दे रहे थे.

रामबाबू ने प्रस्ताव रखा कि यदि वरपक्ष शांति बनाए रखने को तैयार हो तो वह कमरे के ताले खुलवा देंगे पर लाख प्रयत्न करने पर भी उन्हें कोई आश्वासन नहीं मिला. साथ ही सब को गोलियों से भून कर रख देने की धमकी भी मिली.

इसी ऊहापोह में शादी के फूल मुरझाने लगे. बड़े परिश्रम और मनोयोग से बनाया गया भोजन यों ही पड़ापड़ा खराब होने लगा.

‘जयमाला’ के लिए सजधज कर बैठी मोहिनी की आंखें पथरा गईं. कुछ देर पहले तक सुनहरे भविष्य के सपनों में डूबी मोहिनी को वही सपने दंश देने लगे थे.

काफी प्रतीक्षा के बाद वह भलीभांति समझ गई कि दुर्भाग्य ने उस का और उस के परिवार का साथ अभी तक नहीं छोड़ा है. मन हुआ कि गले में फांसी का फंदा लगा कर लटक जाए, पर रमन का विचार मन में आते ही सब भूल गई. किस तरह कठिन परिश्रम कर के रमन भैया ने पिता के बाद कर्णधार बन कर परिवार की नैया पार लगाई थी. वह पहले ही इस अप्रत्याशित परिस्थिति से जूझ रहा था और एक घाव दे कर वह उसे दुख देने की बात सोच भी नहीं सकती थी.

उधर काफी देर होहल्ला करने के बाद बराती शांत हो गए थे. बरात में आए बच्चे भूखप्यास से रोबिलख रहे थे. बरातियों ने भी इस अजीबोगरीब स्थिति की कल्पना तक नहीं की थी.

अत: जब मेयर रामबाबू ने फिर से कमरों के ताले खोलने का प्रस्ताव रखा, बशर्ते कि बराती शांति बनाए रखें तो वरपक्ष ने तुरंत स्वीकार कर लिया.

अब तक अधिकतर बरातियों का नशा उतर चुका था. पर रस्सी जलने पर भी ऐंठन नहीं गई थी. वर के पिता सुरेंद्रनाथ तथा अन्य संबंधियों ने बरात के वापस जाने का ऐलान कर दिया. रामबाबू भी कच्ची गोलियां नहीं खेले थे. उन के इशारा करते ही कालोनी के युवकों ने बरातियों को चारों ओर से घेर लिया था.

‘देखिए श्रीमान, मोहिनी केवल एक परिवार की नहीं सारी कालोनी की बेटी है. जो हुआ गलत हुआ पर उस में बरातियों का दोष भी कम नहीं था,’ रामबाबू ने बात सुलझानी चाही थी.

‘चलिए, मान लिया कि दोचार बरातियों ने नशे में हुड़दंग मचाया था तो क्या आप हम सब को सूली पर चढ़ा देंगे?’ वरपक्ष का एक वयोवद्ध व्यक्ति आपा खो बैठा था.

‘आप इसे केवल हुड़दंग कह रहे हैं? गोलियां चली हैं यहां. न जाने कितने घरातियों को चोटें आई हैं. आप के सम्मान की बात सोच कर ही कोई थानापुलिस के चक्कर में नहीं पड़ा,’ रमन के चाचाजी ने रामबाबू की हां में हां मिलाई थी.

‘तो आप हमें धमकी दे रहे हैं?’ वर के पिता पूछ बैठे थे.

‘धमकी क्यों देने लगे भला हम? हम तो केवल यह समझाना चाह रहे हैं कि आप बरात लौटा ले गए तो आप की कीर्ति तो बढ़ने से रही. जो लोग आप को उकसा रहे हैं, पीठ पीछे खिल्ली उड़ाएंगे.’

‘अजी छोडि़ए, इन सब बातों में क्या रखा है. अब तो विवाह का आनंद भी समाप्त हो गया और इच्छा भी,’ लड़के के पिता सुरेंद्रनाथ बोले थे.

‘आप हां तो कहिए, विवाह तो कभी भी हो सकता है,’ रामबाबू ने पुन: समझाया था.

काफी नानुकुर के बाद वरपक्ष ने विवाह के लिए सहमति दी थी.

‘इन के तैयार होने से क्या होता है. मैं तो तैयार नहीं हूं. यहां जो कुछ हुआ उस का बदला तो ये लोग मेरी बहन से ही लेंगे. आप ही कहिए कि उस की सुरक्षा की गारंटी कौन देगा. माना हमारे सिर पर पिता का साया नहीं है पर हम इतने गएगुजरे भी नहीं हैं कि सबकुछ देखसमझ कर भी बहन को कुएं में झोंक दें,’ तभी रमन ने अपनी दोटूक बात कह कर सभी को चौंका दिया था और फूटफूट कर रोने लगा था.

कुछ क्षणों के लिए सभी स्तब्ध रह गए थे. रामबाबू से भी कुछ कहते नहीं बना था. पर तभी अप्रत्याशित सा कुछ घटित हो गया था. भावी वर राजीव स्वयं उठ कर रमन को सांत्वना देने लगा था, ‘मैं आप को आश्वासन देता हूं कि आप की बहन मोहिनी विवाह के बाद पूर्णतया सुरक्षित रहेगी. विवाह के बाद वह आप की बहन ही नहीं मेरी पत्नी भी होगी और उसे हमारे परिवार में वही सम्मान मिलेगा जो उसे मिलना चाहिए.’

‘ले, सुन ले रमन, अब तो आंसू पोंछ डाल. इस से बड़ी गारंटी और कोई क्या देगा,’ रामबाबू बोले थे.

धीरेधीरे असमंजस के काले मेघ छंटने लगे थे. नगाड़े बज उठे थे. बैंड वाले अपनी ही धुन पर थिरक रहे थे. रमन पुन: बरातियों के स्वागतसत्कार मेें जुट गया था.

रमन न जाने और कितनी देर अपने दिवास्वप्न में डूबा रहता कि तभी मोहिनी ने अपने दोनों हाथों से उस के नेत्र मूंद दिए थे.

‘‘बूझो तो जानें,’’ वह अपने चिरपरिचित अंदाज में बोली थी.

रमन ने उसे गले से लगा लिया. सारा घर मेहमानों से भर गया था. सभी मोहिनी की एक झलक पाना चाहते थे.

मोहिनी भी सभी से मिल कर अपनी प्रसन्नता व्यक्त कर रही थी. तभी रामबाबू ने वहां पहुंच कर सब के आनंद को दोगुना कर दिया था. रमन कृतज्ञतावश उन के चरणों में झुक गया था.

‘‘काकाजी उस दिन आप ने बीचबचाव न किया होता तो न जाने क्या होता,’’ वह रुंधे गले से बोला था.

‘‘लो और सुनो, बीचबचाव कैसे न करते. मोहिनी क्या हमारी कुछ नहीं लगती. वैसे भी यह हमारे साथ ही दो परिवार के सम्मान का भी प्रश्न था,’’ रामबाबू मुसकराए फिर

राजीव से बोले, ‘‘एक बात की बड़ी उत्सुकता है हम सभी को कि वे लोग थे कौन जिन्होंने इतना उत्पात मचाया था? मुझे तो ऐसा लगा कि बरात में 3-4 युवक जानबूझ कर आग को हवा दे रहे थे.’’

‘‘आप ने ठीक समझा, चाचाजी,’’ राजीव बोला, ‘‘वे चारों हमारे दूर के संबंधी हैं. संपत्ति को ले कर हमारे दादाजी से उन का विवाद हो गया था. वह मुकदमा हम जीत गए, तब से उन्होंने मानो हमें नीचा दिखाने की ठान ली है. सामने तो बड़ा मीठा व्यवहार करते हैं पर पीठ पीछे छुरा भोंकते हैं,’’ राजीव ने स्पष्ट किया.

‘‘देखा, रमन, मैं न कहता था. वे तो विवाह रुकवाने के इरादे से ही बरात में आए थे, पर उस दिन राजीव, तुम ने जिस साहस और सयानेपन का परिचय दिया, मैं तो तुम्हारा कायल हो गया. मोहिनी बेटी के रूप में हीरा मिला है तुम्हें. संभाल कर रखना इसे,’’ रामबाबू ने राजीव की प्रशंसा के पुल बांध दिए थे.

राजीव और मोहिनी की निगाहें एक क्षण को मिली थीं. नजरों में बहते अथाह प्रेम के सागर को देख कर ही रमन तृप्त हो गया था, ‘‘आप ठीक कहते हैं, काका. ऐसे संबंधी बड़े भाग्य से मिलते हैं.’’

वह आश्वस्त था कि मोहिनी का भविष्य उस ने सक्षम हाथों में सौंपा था.

अगर तुम साथ दो : क्या चारू अपने पति को सुधार पाई ?

Writer : रीशा गुप्ता

चारू अस्पताल के कमरे में बैड पर दुलहन बनी लेटी थी. उस के सिर पर लाल चुनरी सजी हुई थी. इस बीमारी में भी उस का चेहरा इस वक्त चांद सा दमक रहा था. शायद यह मिहिर का प्यार ही था जिस का तेज उस के चेहरे पर चमक बन बिखरा हुआ था. औक्सीजन सिलैंडर… तमाम तरह की मशीनें उस कमरे में उस के बिस्तर के चारों ओर थीं और साथ में थे मिहिर… चारू के मम्मीपापा, मिहिर के घर वाले, उस के दोस्त, डाक्टर्स, नर्स और पंडितजी. कुछ मंत्र और पूजा के बाद पंडितजी ने मिहिर से चारू की मांग में सिंदूर भरने को कहा. मिहिर जिस का हाथ चारू के हाथ में था उस ने उसी हाथ से सिंदूर की डब्बी अपने हाथ में ली और उस में से सिंदूर अपनी उंगली में ले चारू की मांग में भर दिया. चारू की आंखें खुशी से छलछला आईं… आंसुओं का तूफान पूरे वेग के साथ उस की आंखों से उतर उस के तकिए को भिगोने लगा. मिहिर ने चारू के माथे पर एक चुंबन अंकित किया और उस के आंसू पोंछने लगा.

भावनाओं का एक ज्वार इस वक्त दोनों अपने अंदर समेटे थे जिसे बांधना दोनों के लिए मुश्किल हो रहा था. खुद मिहिर की आंखें इस वक्त भर आई थीं पर उस ने खुद पर काबू कर रखा था. कमरे में मौजूद हर शख्स की आंखें भीगी हुई थीं.

मिहिर ने चारू के हाथों को एक बार फिर से अपने हाथों में लिया और बोला, ‘‘वादा करो तुम हिम्मत नहीं हारोगी… मैं यही तुम्हारा इंतजार करूंगा… एक सुनहरा भविष्य हम दोनों का इंतजार कर रहा है. तुम जानती हो मैं तुम्हारे बिना जी नहीं पाऊंगा. तुम्हें वापस आना ही होगा मेरे लिए, अपने मिहिर के लिए.’’

चारू ने मिहिर से वादा किया और कस कर उस के गले लग गई. इस वक्त शब्दों से ज्यादा दोनों को एकदूसरे के एहसासों की जरूरत थी जिन्हें वे सिर्फ और सिर्फ महसूस करना चाहते थे. मिहिर देर तक चारू की पीठ सहलाता रहा.

इधर चारू के पापा ने वहां मौजूद सभी लोगों का मुंह मीठा कराया. डाक्टर ने मिहिर से कुछ पेपर्स पर हस्ताक्षर करवाए जोकि औपरेशन से पहले की काररवाई थी. चूंकि मिहिर अब चारू का पति था इसलिए इस औपरेशन की मंजूरी, हर संभावना की जिम्मेदारी उस ने खुद के ऊपर ली. डाक्टर ने मिहिर को बताया कि अब चारू के औपरेशन का समय हो रहा है. मिहिर ने वहां मौजूद सभी से हाथ जोड़ कुछ देर के लिए दोनों को अकेला छोड़ने को कहा. सब के जाने के बाद मिहिर ने चारू के चेहरे को अपने दोनों हाथों में भर लिया और बोला, ‘‘चारू, तुम्हारा मिहिर यही तुम्हारा इंतजार करेगा…. तुम्हें मेरे लिए वापस आना है… अपने मन में कोई शंका मत रखना… तुम मु?ो हर रूप में स्वीकार हो… मैं ने तुम्हारे शरीर से नहीं तुम्हारी रूह से प्यार किया है.’’

मिहिर की बातों से चारू को अपने पहले पति नीलेश की याद आ गई जिस ने सिर्फ उस के जिस्म से प्यार किया. रूह तक तो कभी पहुंच ही नहीं पाया. यह सोच उस का मन आज भी कसैला हो गया. नर्स कमरे में आ चुकी थी चारू को नर्स ने स्ट्रेचर पर लिटाया और औपरेशन थिएटर की ओर बढ़ गए. चारू के हाथों में मिहिर का हाथ अब भी था. औपरेशनरूम के बाहर मिहिर ने चारू को कस कर गले लगाया तो चारू ने मिहिर से कहा, ‘‘मिहिर, बहुत डर लग रहा है मु?ो… वापस आना है तुम्हारे लिए… आऊंगी न वापस?’’

मिहिर उस के कानों में फुसफुसाते हुए बोला, ‘‘बिलकुल आओगी चारू. मु?ो हमारे प्यार पर यकीन है… हमारा प्यार कमजोर नहीं हमारी ताकत है और इसी ताकत के भरोसे तुम जीत कर आओगी.’’

नर्स चारू को अंदर ले गई औपरेशनरूम का दरवाजा बंद होने लगा. चारू और मिहिर जब तक संभव था एकदूसरे को देखते रहे.

दरवाजा बंद होते ही मिहिर बेचैनी से इधरउधर टहलने लगा. चारू के लिए उस की फिक्र उस के चेहरे पर साफ देखी जा सकती थी.

तभी चारू के पापा उस के पास आए और मिहिर के कंधे पर हाथ रख कर बोले, ‘‘बेटा औपरेशन लंबा चलेगा तुम थोड़ा आराम कर लो.’’

मिहिर बोला, ‘‘आप ठीक कह रहे हैं पापा… मैं चारू के कमरे में जा रहा हूं… कुछ देर अकेले रहना चाहता हूं,’’ और मिहिर थके कदमों से चारू के कमरे की ओर बढ़ गया.

कमरे में चारों ओर फूल बिखरे हुए थे जो कुछ देर पहले के ही थे जब मिहिर ने चारू को हमेशाहमेशा के लिए अपनी जीवनसंगिनी बनाया था. कितने ताजा थे वे फूल बिलकुल उन दोनों के प्यार की तरह.

मिहिर चारू के बिस्तर के पास रखी कुरसी पर बैठ गया. चारू की लाल चुनर अभी भी मिहिर के हाथों में ही थी जो चारू ने उसे औपरेशन थिएटर के बाहर दी थी और कहा था कि जब वह औपरेशन थिएटर से बाहर आए तो उसे अपने हाथों से वह चुनर ओढ़ाए. 2 बूंद आंसू निकल कर मिहिर के गालों पर छलक आए. बहुत देर से खुद को संभाल रखा था उस ने पर अब मुश्किल हो रहा था.

आंख बंद करते ही मिहिर 7 साल पहले की यादों में चला गया. किसी चलचित्र की भांति चारू की जिंदगी का वह भयानक अतीत उस की आंखों के आगे मंडराने लगा…

चारू और मिहिर दोनों कालेज में साथ पढ़ते थे. मिहिर शुरू से चारू को पसंद करता था पर चारू शायद कभी उस के प्यार को सम?ा नहीं पाई. उस ने हमेशा मिहिर को सिर्फ एक दोस्त सम?ा. चारू का कालेज अभी खत्म भी नहीं हुआ कि उस का एक बहुत ही रईस खानदान से रिश्ता आया. चारू ने थोड़ी नानुकुर भी की पर उस के मम्मीपापा ने इतना अच्छा रिश्ता हाथ से न जाने का दबाव बनाया और चारू को हां कहनी पड़ी. वैसे भी मध्यवर्गीय परिवार में अपनी पसंद, मरजी की जगह कम ही होती है. इधर मिहिर के अरमां दिल के दिल में रह गए. उस ने अपने प्यार का इजहार करने की हिम्मत कभी की ही नहीं.

हालांकि एक दफा सगाई के बाद जब चारू की सहेली ने चारू को मिहिर के दिल की बात बताई तो चारू बोली, ‘‘काश एक बार तो कहते मिहिर,’’ और वह काश बस उस दिन उस के दिल में एक कसक बन दफन हो गया.

पहली रात से ही चारू के सामने उस के पति नीलेश की हरकतें आ गईं वह सुहाग सेज पर नख से शिख तक तैयार हो कर अपनी भावी दुनिया के सपनों में खोई हुई बैठी थी… सोचसोच कर उस का तनमन रोमांचित हो रहा, गाल शर्म से लाल हो रहे थे पर नीलेश बहुत देर तक नहीं आया. अब तो नींद से उस की आंखें बोली होने लगीं.

तभी उस की ननद उस के कमरे में आई, ‘‘अरे भाभी कब तक ऐसे ही बैठे रहोगी? भाई का कुछ पता नहीं. आप सो जाओ. सुबह भी जल्दी उठना है. मुंह दिखाई की रस्म है.’’

नीलेश का अभी तक न आना और अपनी ननद के ऐसे रूखे बरताव से एक पल में उस के सारे सपने चकनाचूर हो गए. जल्द ही उसे मालूम चल गया जब अमीर मांबाप का लाडला उन के हाथ से निकल गया तो उसे सुधारने के लिए चारू के रूप में बली चढ़ाई गई इसी आस में कि शायद शादी के बाद सुधर जाए.

चारू को याद ??नहीं कभी नीलेश ने उसे प्यार से देखा हो, उस से 2 घड़ी बैठ कर बात करी हो. उसे तो अपने आवारा दोस्तों और उन की गंदी सोहबत से ही फुरसत नहीं थी.

रात नीलेश बहुत पी कर आता और अपनी जरूरत के हिसाब से चारू के शरीर को भोगता. इन पलों में ही सही चारू को उस के पास आने का मौका मिलता. वह सोचती एक दिन अपने प्यार से वह नीलेश को बदल देगी.

अचानक एक दिन नीलेश के मुंह से निकल गया, ‘‘माहिका आई लव यू, मैं सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा हूं.’’

चारू जो अब तक नीलेश का साथ दे रही, सुनते ही उस का शरीर बिलकुल ढीला पढ़ गया. वह सम?ा गई कि वह नीलेश की बांहों में जरूर है, पर उस के मन में नहीं.

सुबह जब नीलेश को होश आया तो चारू ने उस से माहिका के लिए पूछ लिया. नीलेश ने भी सब बता दिया कि उस से शादी तो उस की मजबूरी थी, उस की जिंदगी में जो भी है बस माहिका है और उस की जगह कभी कोई नहीं ले सकता. वह तो घर वाले उस की पसंद के खिलाफ थे, इसलिए जल्दबाजी में तुम मेरे गले पड़ गई और फिर नीलेश कमरे से बाहर चला गया.

चारू धम्म से पलंग पर बैठ गई. आंसू कब उस की आंखों के बाहर निकल गए उसे पता ही नहीं चला. उस को लगा था शायद उस के प्यार से नीलेश सुधर जाए पर नीलेश आज उस की उस बची आस को भी तोड़ गया.

चारू मन मान कर सबकुछ सहन कर रही थी. उस दिन के बाद तो वह एक मशीन की तरह बन गई. दिन में घर वालों की जरूरत, रात को नीलेश की. सच जीतीजागती लाश बन गई, जिस में न कोई उम्मीद, न उमंग न उत्साह.

कुछ दिन से चारू की तबीयत सही नहीं रह रही थी. 1-2 बार तो चक्कर खा कर गिर गई पर उस घर में कभी चारू को गंभीरता से नहीं लिया तो उस की तबीयत को कौन लेता. आखिर जब एक दिन चारू की तबीयत ज्यादा ही खराब हुई तो डाक्टर को दिखाया. जांच में पता चला उसे ब्रैस्ट कैंसर है. ससुराल वालों को वैसे ही उस से कोई लगाव नहीं था. उस की बीमारी की बात से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा और एक दिन उसे बो?ा सम?ा उस के पीहर छोड़ आए और कहा, ‘‘इस के इलाज में जितना पैसा लगेगा हम लगाएंगे पर तब तक इसे अपने पास ही रखिएगा.’’

चारू को लगा जैसे वह इंसान नहीं कोई सामान है जिस की जब तक जरूरत थी नीलेश और उस के घर वालों ने भोगा पर अब जब वह सामान किसी काम का नहीं तो उसे उठा कर बाहर फेंक दिया. उसे खुद से घिन आने लगी. आखिर उस ने एक कठोर फैसला लिया और अपने पापा को तलाक के पेपर मंगाने को कहा. चारू के मम्मीपापा ने उसे बहुत सम?ाया पर चारू ने कहा, ‘‘यह फैसला उस ने बहुत सोचसम?ा कर लिया है. अगर तलाक नहीं हुआ तो वह अपना इलाज भी नहीं करवाएगी.’’

हार कर जब चारू के पापा ने नीलेश को तलाक के पेपर्स भिजवाए तो उसे कोई आपत्ति ही नहीं थी. वह तो कब से इस बंधन से छुटकारा पाना चाहता था और आखिरकार आपसी सहमति से जल्द ही दोनों का तलाक हो गया.

इधर चारू जितनी अपनी बीमारी से नहीं टूटी उस से कहीं अधिक नीलेश और उस के घर वालों के बरताव से टूट गई. उस की जैसे जीने की इच्छा ही खत्म हो गई. डाक्टर्स ने साफ कहा कि हम इलाज तो करेंगे पर सहयोग तो चारू को ही करना होगा. उसे अपने अंदर इच्छाशक्ति जगानी होगी वरना कोई इलाज काम नहीं करेगा.

चारू के मम्मीपापा अपनी बेटी की हालत देख अंदर ही अंदर घुले जा रहे थे. पर चारू तो जैसे बस अब मौत को ही गले लगाना चाहती थी. एक दिन चारू की मां ने उस की सब से अच्छी सहेली शैलजा को फोन किया और उसे सब बताया. अगले दिन शैलजा और उस के 2 दोस्त उस से मिलने आए, चारू अपने खयालों में खोई थी कि हैलो चारू कैसी हो? इतने दिन बाद जानीपहचानी आवाज सुन चारू ने आंख उठा कर देखा. उस के सामने शैलजा, विनीता और मिहिर खड़े थे. उन चारों की कालेज में चौकड़ी थी. सब उन की दोस्ती से चिढ़ते भी थे और मिसाल भी देते थे. चारों एकदूसरे के हर सुखदुख में हाजिर.

एक बार तो अपने सामने उन तीनों को देख उस की आंखों में चमक आ गई पर फिर उस ने मुंह फेर लिया.

शैलजा चारू के पलंग के पास आ कर बैठ गई. चारू के मम्मीपापा बोले, ‘‘तुम लोग बात करो हम बाहर बैठे हैं.’’

‘‘चारू हम चारों इतने दिन बाद इकट्ठे हुए, बात नहीं करेगी… तेरे साथ इतना कुछ हो गया और हमें बताना जरूरी नहीं सम?ा… हम सब तु?ो कितने फोन और मैसेज करते पर तूने तो हमारे फोन उठाना बंद कर दिया, धीरेधीरे हम भी अपनी पढ़ाई में व्यस्त हो गए.’’

‘‘शैलजा बोले जा रही थी कि चारू की आंखों से आंसू बह रहे थे. आसुंओं से उस का तकिया पूरा भीग चुका था. फिर वह अचानक शैलजा के गले लग गई, ‘‘शालू मैं क्या करती, पता नहीं कुदरत मु?ो किन पापों की सजा दे रही है… क्या बताती तुम सब को… मेरे पास बताने को भी कुछ नहीं बचा.’’

उस दिन चारू खूब रोई, उस के दोस्तों ने भी उसे रोने दिया. उस दिन के बाद अब रोज उस के दोस्त उस से मिलने आने लगे, चारू भी अब कुछ बातें करने लगी, थोड़ा खुश रहने लगी, पर कई बार उस की बातों से लगता जैसे उस के अंदर जीने की इच्छा बिलकुल नहीं बची.

एक दिन मिहिर अकेला आया, शैलजा और विनीता को कुछ काम था. मिहिर को अपने सामने  देख चारू के चेहरे पर मुसकान आ गई, ‘‘कैसे हो मिहिर? आजकल बड़े चुपचुप रहते हो? कालेज में तो कितना बोलते थे और शादी कब कर रहे हो?’’

एकाएक पता नहीं क्यों मिहिर अकेले चारू का सामना नहीं कर पा रहा था. उस का गला भर आया. उस ने अपनी आंखें फेर लीं. चारू ने मिहिर के हाथ पर अपना हाथ रखा, ‘‘मैं जानती थी मिहिर तुम मु?ो पसंद करते थे पर मैं ने तुम्हारे लिए ऐसा कभी नहीं सोचा था, मैं सिर्फ तुम्हें दोस्त मानती थी.’’

मिहिर चारू की तरफ मुंह कर के बोला, ‘‘पसंद करता था नहीं चारू आज भी पसंद करता हूं, मैं तुम्हें चाहता हूं, मेरे दिल में तुम्हारे सिवा कोई नहीं है.’’

चारू के चेहरे पर एक फीकी मुसकान आ गई, ‘‘अब मु?ो पा कर क्या करोगे मिहिर, मेरे पास तुम्हें देने को कुछ नहीं, मैं तो खुद खुश नहीं तो तुम्हें क्या खुश रखूंगी.’’

‘‘क्यों नहीं चारू अब भी कुछ नहीं बिगड़ा, मैं आज भी तुम्हें उतना ही प्यार करता हूं, तुम से शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘पागल हो तुम, सबकुछ जानबू?ा कर कैसे ऐसा बोल सकते हो, कहीं तुम मु?ा पर दया तो नहीं कर रहे?’’ चारू चिल्ला कर बोली. उस की आंखें गुस्से से लाल थीं. कुछ देर कमरे में सन्नाटा रहा. जब चारू थोड़ा सामान्य हुई तो मिहिर से बोली, ‘‘मिहिर, मु?ो उस शीशे के सामने ले चलो.’’

मिहिर के सहारे वह धीरे से बैड से उतरी, ‘‘देखा मिहिर क्या हालत हो गई, बिना सहारे के उठ भी नहीं सकती,’’ चारू के स्वर में बहुत दर्द था.

मिहिर उसे शीशे के सामने ले आया.

‘‘देखो मिहिर मेरी हालत देखो, मेरे बाल देखो, धीरेधीरे जितने बचे हैं वे भी ?ाड़ जाएंगे, मैं खुद शीशा देखना पसंद नहीं करती, तुम्हारी जिंदगी कैसे बरबाद कर दूं और जानते हो न मेरे औपरेशन के बाद तो… मेरे शरीर का एक हिस्सा मु?ा से काट दिया जाएगा. मैं कैसे तुम्हारी जिंदगी बरबाद कर सकती हूं.’’

मिहिर ने उसे पास रखे सोफे पर बैठाया और खुद उस के पास जमीन पर बैठ गया. उस का हाथ अपने हाथ में ले बोला, ‘‘चारू यह जीवन है, यहां पत?ाड़ आता है तो वसंत भी आएगा, बस तुम हां कर दो मैं तुम्हारे जीवन में वसंत ले कर आऊंगा और हां मैं तुम पर कोई दया नहीं कर रहा बल्कि अपने को खुशहाल सम?ांगा और हां मैं ने तुम्हारे जिस्म से नहीं तुम से, तुम्हारी रूह से प्यार किया. अगर शादी के बाद कुछ होता तो? और अगर मेरे साथ कुछ ऐसा हो तो क्या तुम मु?ो छोड़ दोगी?’’ चारू ने मिहिर के मुंह पर हाथ रख दिया.

‘‘नहीं मिहिर मैं ऐसा नहीं कर सकती. इतनी स्वार्थी नहीं हो सकती… मैं तो जीना ही नहीं चाहती… मु?ो मर जाने दो,’’ चारू अपने मुंह पर दोनों हाथ रख फूटफूट कर रोने लगी.

मिहिर ने चारू के चेहरे पर से उस के हाथों को हटा उस के आंसू पोंछे और बोला, ‘‘तुम्हें जीना होगा… मेरी खातिर जीना होगा, आज से तुम्हारी जिंदगी पर मेरा भी हक है, अपने लिए नहीं तो मेरे लिए जीना होगा, वादा करो मुझ से.’’

एकाएक चारू मिहिर की बांहों में समा गई, ‘‘मिहिर मैं जीना चाहती हूं, तुम्हारे लिए… अपने लिए. क्या मेरे जीवन में फिर से वसंत आ पाएगा?’’ इतने दिन बाद शायद मिहिर का प्यार उसे खुशी दे गया.

मिहिर उसे सीने से लगाए बोला, ‘‘क्यों नहीं आएगा, जरूर आएगा… बस अगर तुम साथ दो.’’

चारू ने अपना हाथ मिहिर के हाथ में दिया जैसे साथ देने का वादा कर रही हो.

चारू के मम्मीपापा, शैलजा और विनीता पीछे खड़े थे. सब की आंखों में आंसू थे पर आंखें कई अरमानों से सजी हुई थीं. मिहिर ने कहा कि वह चारू के औपरेशन से पहले ही उस से शादी करना चाहता है और चारू से वादा लिया कि हमारी शादी के उपहार में उसे सहीसलामत वापस आना है.

इधर मिहिर अभी अपने खयालों में ही था कि तभी चारू के पापा कमरे में आए. उन की आंखें आंसुओं से भरी थीं. मिहिर उन्हें अपने सामने देख किसी अनहोनी की आशंका से कांपने लगा. उस का शरीर बिलकुल सफेद पड़ गया मानो किसी ने उस के शरीर से सारा खून चूस लिया हो.

मिहिर के पापा उस के पास आ उसे गले लगाते हुए बोले, ‘‘मिहिर बेटा तुम्हारा प्यार… तुम्हारा विश्वास जीत गया… औपरेशन सफल हुआ… चारू को कुछ देर में बाहर ला रहे हैं.’’

मिहिर चारू के पापा के गले लग रोने लगा फिर रुंधे गले से बोला, ‘‘पापा, मेरी चारू… चुनर… मु?ो चारू को दुलहन बनाना है उसे यह चुनर,’’ और बात पूरी करने से पहले वह बाहर की ओर भागा. उस के हाथ में लाल चुनर थी. अपनी चारू को फिर से दुलहन के रूप में देखने को बेकरार था वह.

Dating App Scam : औनलाइन ढूंढ रहे हैं पार्टनर, तो हो जाएं सावधान!

डेटिंग ऐप्स सिंगल्स के लिए बिना ज्यादा मेहनत किए पार्टनर की तलाश कर रहे लोगों की तसवीरें उन के फोन की छोटी सी स्क्रीन पर ला देता है. इस के बाद सब उन की काबिलीयत पर निर्भर करता है कि वे उसे अपना पार्टनर बना पाते हैं या नहीं.

होता बस यह है कि आप को अपने फोन में डेटिंग ऐप्स डाउनलोड कर के उस में अपनी आईडी बनानी है. उस के बाद अपनी पसंदनापसंद लिखनी है यानी कि अपना इंट्रैस्ट लिखना है. इस के बाद ऐप्स आप को आप के इंट्रैस्ट के मुताबिक कई प्रोफाइल शो करेगा. उन में से आप को अपनी पसंद को चुन कर उस पर डबल टैप या राइट स्वाइप करना होगा. अगर दूसरी साइड से भी आप को वही प्रतिक्रिया मिल गई तो आप चैट शुरू कर सकते हैं. जानपहचान होने के बाद आप अपनी डेट फिक्स कर सकते हैं और अपनी डेटिंग पार्टनर के साथ अपनी डेट एंजौय कर सकते हैं.

अभी जो आप को बताया गया है वह है डेटिंग ऐप्स से अपने लिए पार्टनर ढूंढ़ने का सफर. लेकिन क्या कोई सोच सकता है कि पार्टनर ढूंढ़ने के इस सफर में आप के साथ ठगी भी हो सकती है. जी हां, हम बिल्कुल सही कह रहे हैं. हाल ही में कई ऐसे केस सामने आए हैं जिन में लोगों ने अपने साथ स्कैम होने की बात कही है. पिछले कई दिनों में अखबारों, ईन्यूजपेपर्स में इन स्कैम की खबरें आई हैं. कई सोशल मीडिया प्लेटफौर्म्स पर भी लोगों ने डेटिंग ऐप्स स्कैम से जुड़े अपने अनुभव साझा किए हैं.

रेडिट पर एक पीडि़त ने बताया कि ‘‘कैफे में कुछ कपल पटाखे जला रहे थे. मेरे साथ डेट पर आई लड़की ने जोर दे कर कहा कि हमें भी ऐसा करना चाहिए. मैं ने उसे शायद 100 बार नहीं कहा, लेकिन उस ने पटाखे मंगवाए और जलाए. मैं इस में शामिल नहीं हुआ. इस के बाद मेरी उस में रुचि खत्म हो गई. मैं ने बिल मांगा. मैं ने हिसाब लगाया था कि बिल 7-10 हजार रुपए होना चाहिए, लेकिन बिल 45 हजार रुपए का आया. मैं यह देख कर हैरान था क्योंकि बिल और्डर से कई गुना ज्यादा था. मैं समझ गया कि मेरे साथ ठगी हुई है. तब तक वह लड़की भी जा चुकी थी, इसलिए पूरा बिल मुझे अकेले ही भरना पड़ा.’’

मामले और भी

यह कोई एक केस नहीं है. रेडिट पर डेटिंग ऐप्स से की जा रही लूट को ले कर कई पोस्ट मौजूद हैं. इन में बताया गया है कि डेटिंग ऐप्स पर मिली महिलाओं के साथ डेट के दौरान उन्हें खाने के नाम पर बहुत ज्यादा बिल चुकाना पड़ा. उन के साथ धोखा किया गया.

ऐसा ही एक केस नई दिल्ली में भी देखा गया. डेटिंग ऐप्स स्कैम की बलि चढ़े नई दिल्ली के प्रशांत कुमार बताते हैं कि एक डेटिंग ऐप्स के जरिए वह रिया नाम की एक लड़की से जुड़े. दोनों ने डेट फिक्स की, लेकिन डेट की जगह रिया ने डिसाइड की. वहां जाने पर सबकुछ ठीक रहा लेकिन खानेपीने के कुछ देर बाद रिया ने कहा कि उस के घर में कुछ इमरजैंसी आ गई है, उसे जाना होगा. यह कह कर वह वहां से चली गई. जब बिल भरने की बारी आई तो 25 हजार रुपए का बिल देख कर लड़का हैरान रह गया. उस ने जैसेतैसे बिल भरा और घर आ गया. घर आ कर जब उस ने रिया को कौल या मैसेज किया तो नंबर स्विचऔफ मिला. उस की प्रोफाइल पर गया तो वहां वह ब्लौक था. वह सम?ा गया कि उस के साथ स्कैम हुआ है.

पार्टनर की तलाश

दरअसल होता यह है कि अकेलेपन से जू?ा रहे लोग डेटिंग ऐप्स पर एक साथी तलाश रहे होते हैं. वह साथी जिस के साथ वे समय बिता सकें, जिस की वाइब्स उन के साथ मैच हो सके. लेकिन इन लोगों को यह नहीं पता होता कि ठग उन्हें अपना शिकार बनाने की फिराक में हैं.

इन का पूरा एक गैंग होता है, जिस में डेट पर आई लड़कियां भी शामिल होती हैं. ये रैस्टोरैंट, क्लब, कैफे के ओनर और स्टाफ के साथ मिली होती हैं और इन का काम होता है पार्टनर की तलाश कर रहे लोगों यानी ‘मुर्गों’ को रैस्टोरैंट तक लाना, फिर खानापीना और लंबाचौड़ा बिल बनवाना. रहीसही कसर रैस्टोरैंट का स्टाफ कर देता है, जिस में वह और्डर की गई चीजों की मात्रा बढ़ा देता है जिस से बिल और बढ़ जाता है. जैसे ही डेट पर आया लड़का बिल पे करता है, यह गैंग अपने मकसद में कामयाब हो जाता है.

अभी हाल ही में दिल्ली में इन का एक पूरा गैंग पकड़ा गया है. पूर्वी दिल्ली के विकास मार्ग इलाके के ब्लैक मिरर कैफे को इस में लिप्त पाया गया है. हुआ यों था कि इस कैफे में एक शख्स वर्षा नाम की लड़की का जन्मदिन मनाने के लिए आया था. दोनों की मुलाकात डेटिंग ऐप टिंडर पर हुई थी. दोनों ने कैफे में कुछ स्नैक्स, 2 केक और 4 गिलास बिना अल्कोहल वाले ड्रिंक्स मंगाए थे. अचानक से वर्षा घर में इमरजैंसी की बात कह कर वहां से निकल गई. लेकिन जैसे ही शख्स ने अपना खाना खत्म किया और बिल मंगाया तो उस के होश उड़ गए. कैफे मालिक ने उसे 1.2 लाख रुपए का बिल थमा दिया. पीडि़त ने विरोध किया लेकिन उसे धमकाया गया और बंधक बना कर पैसे भरने के लिए मजबूर भी किया गया.

पीडि़त की शिकायत के बाद जांच करने पर पता चला कि डेटिंग ऐप के जरिए महिला कैफे के लोगों के साथ मिल कर ठगी का स्कैम चला रही थी. इस के बाद पुलिस ने ब्लैक मिरर कैफे के ओनर अक्षय पाहवा और अफसाना परवीन आयशा उर्फ नूर को गिरफ्तार किया. पूछताछ करने पर ठगी में शामिल आरोपी महिला ने बताया कि वह ब्लैक मिरर कैफे के अलावा लोगों को ठगने के लिए कई कैफे और रैस्तरां में ले जाती थी. उस ने कुछ कैफे के नाम भी लिए जिन में हाईपर, ग्रिल हाउस, एक्स ड्रीम, फोर क्वार्टर, बिग डैडी और एस्कोन किंग कैफे व रैस्तरां शामिल हैं. ये रैस्तरां और कैफे कड़कड़डूमा इलाके में हैं.

ठगी में साझेदारी

जांच में यह भी पाया गया कि इस पूरी ठगी में सब के हिस्से बंटे हुए थे. स्कैम करने वाली लड़की इस पूरी ठगी का 15 प्रतिशत लेती थी. वहीं 40 प्रतिशत कैफे का मालिक और 45 प्रतिशत मैनेजर व टेबल मैनेजर लेते थे.

पुलिस ने बताया कि यह स्कैम दिल्ली-एनसीआर, मुंबई, बेंगलुरु और हैदराबाद जैसे बड़े मैट्रो शहरों में फैला हुआ है. वहीं दिल्ली में यह स्कैम कितने बड़े पैमाने पर हो रहा है, इस बात का अंदाजा इस के अधिकार क्षेत्र से लगाया जा सकता है. इन क्षेत्रों में जीटीबी नगर, मुखर्जी नगर, राजौरी गार्डन, पंजाबी बाग, साकेत, महरौली, द्वारका और पीतमपुरा शामिल हैं.

इंटैलिजैंस फ्यूजन एंड स्ट्रैटेजिक औपरेशन यूनिट के डीएसपी हेमंत तिवारी ने पब्लिक को सलाह दी है कि ऐप पर अनजान लोगों पर बिना वैरिफाई किए भरोसा न करें. यह एक्सटौर्शन या चीटिंग की कैटेगरी में आता है. पहले लोग कौमन प्लेस पर मिलते थे, आजकल वर्चुअल स्पेस में मिलते हैं. इसी की आड़ में डेटिंग स्कैम शुरू हुआ है. लेकिन आप को इन स्कैम से बचना चाहिए और डेटिंग ऐप्स का इस्तेमाल करते समय अपनी आंखकान खुले रखने चाहिए.

दरअसल होता यह है कि लोग पब्लिक इमेज की वजह से पुलिस में शिकायत नहीं करते हैं जिस का ये स्कैम करने वाले फायदा उठा लेते हैं. लेकिन होना यह चाहिए कि जब कभी भी आप किसी ठगी का शिकार हों तो आप को तुरंत इस की शिकायत करनी चाहिए, जिस से आप स्कैम में लिप्त ठगों को पकड़वा सकें और बाकी लोगों को इन से बचा सकें.

अगर वर्किंग पार्टनर हैं, तो ‘फूड औन क्लिक’ का औप्शन है सबसे बेहतर

लिवइन में यदि दोनों पार्टनर वर्किंग हैं तो जरूरत के समय औनलाइन फूड की सुविधा बेहतर औप्शन है. बस, एक क्लिक में खाना और स्वाद आप के पास.

लिवइन में रह रहे रिया और आरव बहुत दिनों बाद मिले थे. रिया ने कहा, ‘यार, बहुत दिन हो गए समोसे नहीं खाए, समोसे खाने का बहुत मन है. चल खाते हैं.’ ‘हां, मेरा भी मन है, चल मंगाते हैं.’ दोनों ने अपने लिए 2-2 समोसे और्डर किए. 80 रुपए में दोनों ने समोसे खाने का मजा लिया.

अब आप सोचिए, अगर रिया और रागिनी घर पर समोसे बनाने की सोचते तो सब से पहले उन्हें समोसे बनाने के लिए मैदा, आलू, मटर, मसाले, औयल और न जाने क्याक्या मंगाना पड़ता, जो कम से कम 300 रुपए का आता. फिर समोसे बनाने के लिए कम से कम 1-1.30 घंटे लगाने पड़ते और उस के बाद भी कोई गारंटी नहीं थी कि समोसे अच्छे बनते और समोसे बनाने में लगने वाली मेहनत के चलते दोनों थक जाते व अपनी मीटिंग को एंजौय न कर पाते.

वर्किंग लोगों के लिए

अगर ध्यान से देखा जाए तो पिछले कुछ सालों में देश में लोगों के खानेपीने की आदतों में बहुत बड़ा बदलाव आया है. अब लोग घर में खाना बनाने के बजाय बाहर से ज्यादा खाना मंगाने लगे हैं.

इस का बड़ा कारण यह भी है कि आज लोगों के पास वक्त की कमी है. लिवइन में यदि दोनों पार्टनर वर्किंग हैं तो उन के लिए औनलाइन फूड और्डर बेहतर औप्शन है.

इस के अलावा बहुत से यंगस्टर्स पढ़ाई के लिए दूसरे शहरों में जाते हैं. ऐसे में घरजैसा खाना पसंद करने वालों के लिए टिफिन सेवा एक बहुत बड़ी सुविधा है. दोपहर हो या रात का खाना, एक टिफिन की कीमत 100 रुपए तक ही होती है. मेन मैन्यू में दाल,  सब्जी, चावल, 4 रोटी और सलाद शामिल होता है जो घर पर बनाने की तुलना में काफी सुविधाजनक और सस्ता पड़ता है. कई बार फूड डिलिवरी एप्स कस्टमर्स को लुभाने के लिए भारी छूट और नए औफर्स भी देते हैं.

वैसे भी अगर 2 लोग ही फ्लैट में रह रहे हैं तो दालचावल या रोटीसब्जी के अलावा चाऊमिन, मोमोज, रोल, पिज्जा, मंचूरियन, बर्गर बनाना आसान नहीं होता. दरअसल इन में अलगअलग इंग्रीडिएंट्स डाले जाते हैं जो लिवइन में रहने वालों के पास होना मुश्किल ही होता है. ऊपर से कभीकभार खाए जाने वाले इन फूड आइटम्स को खुद बनाने के लिए इन के सामान पर पैसा खर्च करना नुकसान वाली ही बात है.

अच्छी बात यह है कि ऐसे कपल जो औनलाइन फूड मंगवा रहे हैं वे अपना बचा समय एकदूसरे के साथ क्वालिटी टाइम बिताने, रोमांस, एंटरटेनमैंट, अपनी हौबीज, अपनी पसंद की किताब पढ़ने, गार्डनिंग या म्यूजिक जैसी किसी एक्टिविटीज में इन्वैस्ट करने में कर सकते हैं.

कई बार अगर घर में कुछ फ्रैंड्स आ रहे हों, घर में कोई बहुत बड़ी पार्टी की जा रही हो जहां अधिक लोग आ रहे हों, खाना पकाने का समय न हो, तबीयत ठीक न हो, काम का प्रैशर हो तो किचन का स्ट्रैस लेने के बजाय औनलाइन फूड और्डर कर एंजौय करना चाहिए.

बढ़ती उम्र के कारण मेरे हाथों पर निशान दिखाई दे रहे हैं, मैं क्या करूं?

अगर आप भी अपनी समस्या भेजना चाहते हैं, तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें..

समाधान: ऐल्प्स ब्यूटी क्लीनिक की फाउंडर, डाइरैक्टर डा. भारती तनेजा द्वारा 

सवाल

मेरी उम्र 40 साल है और मैं पूरा दिन कंप्यूटर पर काम करती हूं जिस से मेरे हाथों पर बढ़ती उम्र के निशान स्पष्ट दिखते हैं. इन्हें दूर करने के लिए मैं क्या करूं?

जवाब

आप दूर करने के लिए नियमित रूप से हौट औयल मैनीक्योर करवा सकती हैं. इस का उपयोग न केवल ब्लड सर्कुलेशन को बढ़ाता है बल्कि जौइंट्स के लिए भी लाभकारी होता है. इस से स्किन की देखभाल भी होती है और नाखूनों को क्लीन लुक मिलता है. इसे घर पर भी आसानी से तैयार किया जा सकता है. एक बाउल में सनफ्लौवर औयल, कैस्टर औयल, आमंड औयल, विटामिन ई औइल, टी ट्री औयल और औलिव औयल को समान मात्रा में मिला कर मिक्स करें. इस मिश्रण को 30 सैकंड्स के लिए माइक्रोवेव में गरम करें. फिर इस में विटामिन ई के 2 कैप्सूल तोड़ कर डालें और मिक्स करें. अब इसे अपनी उंगलियों पर लगाएं और मालिश करें. फिर हाथों को धो लें और मौइस्चराइजर लगाएं. इस मैनीक्योर को हफ्ते में कम से कम 2 बार करें. नियमित उपयोग से आप को अंतर जरूर दिखेगा.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर पर 9650966493 भेजें.

Raksha Bandhan Special : आंखों की खूबसूरती बढ़ाएंगे ये आईलाइनर्स, फेस्टिव सीजन में जरूर करें ट्राई

मेकअप की दुनिया में आजकल विकल्प बहुत सारे है. पहले आपके पास सिर्फ पेंसिल और लिक्विड आईलाइनर का ही विकल्प होता था, लेकिन अब इनके अलावा भी कई और आईलाइनर्स जैसे जेल, फेल्टिप लाइनर आदि भी बाजार में उपलब्ध हैं. ये सभी लाइनर आपके अलग-अलग लुक्स को ध्यान में रखकर बनाये गए हैं .

मार्केट में मौजूद इन अलग-अलग तरह के आईलाइनर में से आप कौन सा चुनेंगी, अगर आप भी अपने लिए सबसे अच्छे आईलाइनर का चुनाव करना चाहती हैं तो इसमें हम आपकी मदद कर सकते हैं.

हम आपको बता रहे हैं कि किस लाइनर में क्या खास है, ताकि आप अपनी पसंद और इच्छा के अनुसार अपना आईलाइनर चुन सकें

1. पेंसिल आईलाइनर :

पेंसिल आईलाइनर वो काजल लाइनर है जिससे कि लगभग सभी ने काजल लगाना शुरू किया था. पेंसिल आपकी आँखों को नजाकत देता है. अगर आप इस मेकअप की दुनिया में एक दम नई हैं तो आपको इसी आईलाइनर का चुनाव करना चाहिए. अगर नुकीली काजल पेंसिल लगाने में आपको परेशानी होती है तो उसकी जगह पर आप गोल नोक वाली पेंसिल का चुनाव भी कर सकती हैं. ये आपकी आँखों में चुभेगी नहीं और लाइनर को आंखों में एक सामान आकार देगी.

2. लिक्विड :

अगर आप ‘कैट ऑय’ या ‘विंग’ लाइनर लगाने का शौक रखती हैं, तो लिक्विड लाइनर का चुनाव आपके लिए सबसे सही साबित होगा. हालांकि इसके ब्रश का सही तरीके से इस्तेमाल करने के लिए आपको थोड़ा अभ्यास और समय दोनों लगेगा, पर धीरे-धीरे आप इसमें माहिर हो जाऐंगी. मेकअप एक्पर्ट्स कहते हैं कि लिक्विड लाइनर से आपको आखों को एक तीखा आकार मिलता है और अगर ये आईलाइनर वाटरप्रूफ है तो पूरे दिन ये बना रहता है और इसका आकार नहीं बिगड़ता.

3. जेल :

यह आईलाइनर लिक्विड और पेंसिल लाइनर इन दोनों के मध्य का लाइनर है. इसमें एक छोटे से डिब्बे में काजल रखा होता है और साथ ही एक पतला सा ब्रश भी होता है. पेंसिल लाइनर से इसके प्रभाव में गहराई होती है. जेल आईलाइनर लगाना लिक्विड लाइनर लगाने से आसान होता है. इसमें आपको बस एक बात ध्यान रखनी होती है कि ये लाइनर तेलीय त्वचा वालों के लिए कई बार सही नहीं होता क्योंकि स्किन पर तेल के कारण लाइनर फ़ैल जाता है और फिर आपके चेहरे पर अच्छा नहीं लगता.

4. फेल्ट टिप :

फेल्ट टिप लाइनर देखने में किसी मार्कर पेन जैसा दिखता है. ये लाइनर आपकी पलकों के ऊपर लगाने में बहुत आसान होता है. अगर आपको बिलकुल परफेक्ट ‘विंग’ वाला लाइनर चाहिए तो आपको इसी लाइनर का प्रयोग करना चाहिए. ये लाइनर लगाने के बाद जल्दी सूख भी जाते हैं और इसी वजह से ये लिक्विड लाइनर से बेहतर होता है.

फेशियल हेयर हैं इन गंभीर बीमारियों के संकेत, जरूर करवाएं ये टेस्ट

महिलाओं में हलके और मुलायम फेशियल हेयर होना सामान्य बात हो सकती है, लेकिन जब बाल कड़े और मोटे होते हैं तो यह हारमोन असंतुलन का संकेत है, जिस के कारण कई जटिलताएं हो सकती हैं. इस समस्या को हिर्सुटिज्म के नाम से जाना जाता है.

महिलाओं में मध्य रेखा, ठोड़ी, स्तनों के बीच, जांघों के अंदरूनी भागों, पेट या पीठ पर बाल होना पुरुष हारमोन ऐंड्रोजन के अत्यधिक स्रावित होने का संकेत है, जो एड्रीनल्स द्वारा या फिर कुछ अंडाशय रोगों के कारण स्रावित होता है. इस प्रकार की स्थितियां अंडोत्सर्ग में रुकावट डाल कर प्रजनन क्षमता को कम कर देती हैं. पौलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) एक ऐसी ही स्थिति है, जो महिलाओं में बालों के अनचाहे विकास से संबंधित है. यह डायबिटीज व हृदयरोगों का प्रमुख खतरा भी है.

जार्जिया हैल्थ साइंसेस यूनिवर्सिटी में हुए शोध के अनुसार, पीसीओएस महिलाओं में हारमोन संबंधी गड़बड़ियों का एक प्रमुख कारण है और यह लगभग 10% महिलाओं को प्रभावित करता है.

हिर्सुटिज्म से पीड़ित 90% महिलाओं में पीसीओएस या इडियोपैथिक हिर्सुटिज्म की समस्या पाई गई है. अधिकतर मामलों में ऐस्ट्रोजन के स्राव में कमी और टेस्टोस्टेरौन के अत्यधिक उत्पादन के कारण यह किशोरावस्था के बाद धीरेधीरे विकसित होता है.

निम्न कारक ऐंड्रोजन को उच्च स्तर की ओर ले जाते हैं, जो हिर्सुटिज्म का कारण बनते हैं:

आनुवंशिक कारण: इस स्थिति का पारिवारिक इतिहास होने से खतरा अत्यधिक बढ़ जाता है. त्वचा की संवेदनशीलता एक और आनुवंशिक कारण है, जो टेस्टोस्टेरौन का स्तर कम होने पर भी कड़े और मोटे बालों के विकास का कारण बन जाता है.

पौलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम: जो महिलाएं पीसीओएस से ग्रस्त होती हैं, उन के चेहरे पर बालों का अत्यधिक विकास होता है और यह प्रजनन स्वास्थ्य में कमी का सब से प्रमुख कारण हो सकता है. पीसीओएस के कारण अंडाशय में कई छोटीछोटी गांठें बन जाती हैं. पुरुष हारमोन के अत्यधिक उत्पादन के कारण अनियमित अंडोत्सर्ग, मासिकचक्र से संबंधित गड़बड़ियां और मोटापे की समस्या हो जाती है.

अंडाशय का ट्यूमर: कुछ मामलों में ऐंड्रोजन के कारण होने वाला अंडाशय का ट्यूमर, हिर्सुटिज्म का कारण बन जाता है, जिस के कारण ट्यूमर तेजी से विकसित होने लगता है. इस स्थिति के कारण महिलाओं में पुरुषों के समान गुण विकसित होने लगते हैं जैसे आवाज में भारीपन आना. इस के अलावा योनि में क्लाइटोरिस का आकार बढ़ जाना.

एड्रीनल से संबंधित गड़बड़ियां: एड्रीनल ग्रंथियां, जो किडनी के ठीक ऊपर होती हैं, ऐंड्रोजन का निर्माण भी करती हैं. इन ग्रंथियों के ठीक प्रकार से काम न करने से हिर्सुटिज्म की समस्या हो जाती है.

महिलाओं में चेहरे के बालों का विकास उन की प्रजननतंत्र से संबंधित जटिलताओं जैसे पीसीओएस, कंजेनिटल एड्रीनल हाइपरप्लेसिया (सीएएच) आदि का संकेत होता है, जो गर्भावस्था को रोकने के सब से प्रमुख रिस्क फैक्टर्स में से एक होता है.

ऐसे में डाक्टर संबंधित जटिलताओं को सुनिश्चित करने के लिए निम्न मूल्यांकन करेगा:

स्थिति का पारिवारिक इतिहास

डाक्टर यह जांचेगा कि यौवन किस उम्र में प्रारंभ हुआ, बालों के विकास की दर क्या है (अचानक है या धीरेधीरे). दूसरे लक्षण जैसे अनियमित मासिकचक्र, स्तनों में ऊतकों की कमी, सैक्स करने की प्रबल इच्छा होना, वजन बढ़ना और डायबिटीज का इतिहास. इस बात की भी जांच की जाती है कि पेट में कोई पिंड तो विकसित नहीं हो रहा है.

कई सीरम मार्कर टैस्ट भी किए जाते हैं जैसे-

टेस्टोस्टेरौन: अगर इस का स्तर सामान्य से थोड़ा बढ़ जाता है, तो यह पीसीओएस या सीएएच का संकेत है. अगर इस के स्तर में परिवर्तन सामान्य से बहुत अधिक होता है, तो यह ओवेरियन ट्यूमर का संकेत हो सकता है.

प्रोजेस्टेरौन: यह टैस्ट मासिकचक्र के प्रारंभिक चरण में किया जाता है, सीएएच के संकेत के रूप में.

हारमोंस का उच्च स्तर पीसीओएस का संकेत देता है. अगर प्रोलैक्टिन हारमोन का स्तर बढ़ा होता है, तो यह इस बात का संकेत है कि मरीज हाइपरप्रोलैक्टीमिया से पीड़ित है.

सीरम टीएसएच: थायराइड को स्टिम्युलेट करने वाले हारमोन का स्तर कम होने से हाइपरथायरोडिज्म की समस्या हो जाती है, जो महिलाओं में प्रजनन संबंधी समस्याओं का कारण बनती है.

पैल्विक अल्ट्रासाउंड: यह जांच ओवेरियन नियोप्लाज्मा या पौलिसिस्टिक ओवरीज का पता लगाने के लिए की जाती है.

उपचार

मामूली हिर्सुटिज्म के अधिकतर मामलों में और कोई लक्षण दिखाई नहीं देते, इसलिए उपचार कराने की आवश्यकता नहीं होती है. हिर्सुटिज्म का उपचार बांझपन से संबंधित है. इस में प्रजनन स्वास्थ्य का उपचार करने को प्राथमिकता दी जाती है. इसीलिए उपचार उस समस्या पर केंद्रित होता है जो इस का कारण बनी है.

अगर कोई महिला गर्भधारण करना चाहती है, तो ऐंड्रोजन के स्तर को नियमित करने के लिए दवाएं दी जाती हैं, जिन का सेवन रोज करना होता है. ये टेस्टोस्टेरौन के स्तर को कम करने और प्रजनन क्षमता फिर से पहले जैसी करने में सहायता करती हैं.

-डा. सागरिका अग्रवाल

(गाइनोकोलौजिस्ट, इंदिरा आईवीएफ हौस्पिटल, नई दिल्ली)

15 प्रतिशत : उस डिस्काउंट ड्रैस की क्या थी कहानी

नया पर्स ले कर कालेज जाने के लिए बाहर निकल ही रही थी कि पड़ोस के कमरे की सरोज प्रिंटर के लिए एफोर साइज के कागज मांगने आ पहुंची. पर्स पर नजर पड़ी तो बोली, ‘‘रंग तो बड़ा अच्छा है. कितने का खरीदा?’’

‘‘क्व2,100 में. सस्ता है न?’’

‘‘सस्ता. चीप स्टो वैबसाइट पर बिलकुल यही पर्स 15-30% में नहीं 90% डिस्काउंट पर आप को दिलवा दूं. ये ईकौमर्स करते लोग तो महा ठग होते हैं. सही साइट की पहचान न हो तो मनमाने ढंग से लूटते हैं.’’

सुन कर दिल को बड़ा धक्का लगा. स्टाइल दिखाने के चक्कर में कुछ न कुछ रोज खरीदना ही पड़ता है और हमें तो फ्रैश बास्केट वाले बारहों महीने उल्लू बनाते हैं. गरमियों में सस्ती के दाम 20% बढ़ा कर 10% की छूट कर के देते हैं. रेन डिस्काउंट में कहते हैं एंड औफ रेन सीजन पर

4 सब्जियां 30% डिस्काउंट पर मिलेंगी पर 10 के दाम बढ़े होते हैं.

कजिन का विवाह पास आ रहा था. मुझे 2-3 हलकी ड्रैसों की आवश्यकता थी. रूममेट ने सु?ाव दिया कि साइटों से कंपेयर करना मेरे बस की बात नहीं. अत: मुझे कपड़ो ऐसी साइट से लेना चाहिए जहां एकदाम हो ताकि हेराफेरी की संभावना न रहे. पैराजान माल और दाम सही होते हैं. ब्लैक वैडनैसडे उन का हर वैडनैसडे होता है.

लौपटौप पर औफिस से छुट्टी ले कर रूमसैट के साथ मैं बैठ गई. साइट खुली तो दिखा 75% औफऔन सिलैक्टेड प्रोडक्ट्स.

हमें कुछ अटपटा सा लगा क्योंकि क्लिक करने पर कुछ नहीं हुआ. 75% मिस पर यही पता नहीं चल रहा था. कहीं कोई बटन नहीं दिखा. 1 मिनट के इंतजार के बाद एक पौप रूप स्क्रीन आई. क्लिक किया तो आगे बस एक जलेबी घूम रही थी.

5 मिनट बाद खीज हुई और लैपटौप बंद करना पड़ा. आधे घंटे बाद फिर उसी ईकौमर्स साइट पर पहुंचे तो वही हाल. मैं ने तो शौपिंग के लिए छुट्टी ली थी पर यहां एक ही प्रोडक्ट बारबार आ रहा था.

एक और ईकौमर्स साइट सेवकार्ट पर गए. वहां 60% डिस्काउंट का एक बौक्स हमें बुला रहा था. क्लिक किया तो लिखा था- औन परचेज औफ 10000 रुपीज और मेरा औन… कार्ड क्रैडिट कार्ड. अब यह कार्ड नहीं था मेरे पास इसलिए डील औफ ट्रैंड पर क्लिक किया. खूब सारी ड्रैसें थीं, दूसरे प्रोडक्ट्स भी. अगर एक बौक्स में 40% डिस्काउंट औन सिलैक्टेड आइटम्स. मन खुश हो गया. क्लिक किया तो स्क्रैच करने पर एक के बाद एक सही ही दिल्ली के लाजपत नगर में बिकने वाली ड्रैसें थीं. कुछ अच्छी लगीं तो उन के नीचे आउट औफ स्टौक लिखा था.

ईकौमर्स साइट वालों को गालियां देते हुए मैं ने और रूममेट ने लैपटौप बंद कर दिया. वैसे और भी कई साइटों पर एक ही अनुभव काफी था. ऐसा लग रहा था जैसे कंप्यूटर पर गेमिंग खेल रहे हों, शौपिंग नहीं कर रहे. जैसे कहीं भीख मांगने गए हों और दुत्कार मिली हो.

मगर ड्रैसों का क्या हो? मैं ने सुना था कि कुछ इन्फ्लुएंसर्स हैंडलों में छोटे ब्रैंड्स भी मिलते हैं. डंके की चोट पर बड़ी ईकौमर्स कंपनियों के कान काट लाती हैं. नैक्सूट रूम की रूममेट सरोज की पेपर, स्टैप्लर, कैरी बैग मांगने की आदत से सारा होस्टल चाहे परेशान हो पर उस की खरीदारी की कला की धाक सब पर जमी हुई है.

मैं ने उसे अपनी कठिनाई बताई तो उस ने कहा, ‘‘सोमवार को 4-5 इन्फ्लुएंसर्स डै्रस बाजार में बेहद सस्ती और बढि़या ड्रैसों की रील्स दिखाती हैं. कमैंट सैक्शन में लिंक भी होता हैं. सोमवार को औफिस के बाद मिलते हैं.’’

पहला सोमवार तो कट गया क्योंकि वह दर्शनीय थी. हरेक में चमचमाती ड्रैसें, बे… बौडी डै्रसें दिख रही थीं… अंबार लगे थे. हम एक इन्फ्लुएंसर्स पोस्ट के पास रुके. कुछ सुंदर डै्रसें पहन कर वे अदाएं दिखा रही थीं. उन में से एक पसंद आने पर मैं ने नीचे डिस्क्रिप्शन पढ़ी और होस्टल मेट ने कहा, ‘‘पहले उसे कार्ड में डाल लो. पता नहीं कहीं आउट औफ स्टौक न हो जाए.’’

मैं ने यही किया. ऐसा करते ही एक पौप अप स्क्रीन उभरी, ‘‘थैंक्स फौर योर पेशंस. नाऊ साइन अप एंड गैट ऐक्स्ट्रा 20% डिस्काउंट.’’

होस्टल मेट ने गर्व से देखा और कहा, ‘‘इस शौपिंग का यही तो राज हरेक को नहीं मालूम है.’’

‘‘उस पर कीमत तो सवा सौ है, क्या यह 50 में मिल जाएगी?’’

‘‘हो सकता है 50 में भी मिल जाए,’’ मेट ने कहा, ‘‘यह डील पर डिपैंड करता है. कई बार घंटों के लिए 80% की छूट होती है.’’

फिर भी वहां कई और चीजों पर ऐसे ही दाम लिखे दिख रहे थे.

मैं ने सोचा 125 की चीज खरीद है. 50 रुपए में, सिल्क की ड्रैस कहां मिलेगी. फिर भी वहां कई और चीजों पर ऐसे ही दाम लिखे दिख रहे थे.

ड्रैसों की बहार देखते हुए हम ने और ब्राउजिंग शुरू की. अब तो जो भी साइट खोलों किसी न किसी ड्रैस वाले का एड टपक पड़ रहा था. ड्रैसें शानदार, दशा बिलकुल सही पर हर जगह क्रैडिट कार्ड से एडवांस में भुगतान, सीओडी यानी कैश औन डिलिवरी की सुविधा नहीं. कुछ साइटें बिलकुल अनजान. एक कंप्यूटर ऐक्सपर्ट सहेली से पूछा तो उस ने कहा कि उस के अकाउंट अस या कौंटैक्ट अस पर जाओ और देखो अकाउंट अस में सैकड़ों शब्द. एक जगह लगा था क्लिक फौर टर्मस ऐंड कंडीशंस. उस पर क्लिक किया तो 20 पेज की छोटे टाइप में पीडीएफ फाइल. अंत में ओके करने को कहा. कहीं कोई सवालजवाब नहीं.

अंत में एक साइट पर 50% डिस्काउंट पर सहेली की सिफारिश पर एक ड्रैस खरीद ली. एक बार पहनी और उस के बाद से वह अलमारी की सब से नीचे की दराज में पड़ी हम पर रोज हंसती है.

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