रागरागिनी: क्या रागिनी अधेड़ उम्र के अनुराग से अपना प्रेम राग छेड़ पाई?

आज सुबह से ही बारिश ने शहर को आ घेरा है. उमड़घुमड़ कर आते बादलों ने आकाश की नीली स्वच्छंदता को अपनी तरह श्यामल बना लिया है. लेकिन अगर ये बूंदें जिद्दी हैं तो रागिनी भी कम नहीं. रहरह कर बरसती इन बूंदों के कारण रागिनी का प्रण नहीं हारने वाला.

ग्रीन टी पीने के पश्चात रागिनी ट्रैक सूट और स्पोर्ट शूज में तैयार खड़ी है कि बारिश थमे और वह निकल पड़े अपनी मौर्निंग जौग के लिए.

कमर तक लहराते अपने केशों को उस ने हाई पोनी टेल में बांध लिया. एक बार जब वह कुछ ठान लेती है, तो फिर उसे डिगाना लगभग असंभव ही समझो.

पिछले कुछ समय से अपने काल सैंटर के बिजनेस को जमाने में रातदिन एक करने के कारण न तो उसे सोने का होश रहा और न ही खाने का. इसी कारण उस का वजन भी थोड़ा बढ़ गया. उसे जितना लगाव अपने बिजनेस से है, उतना ही अपनी परफेक्ट फिगर से भी. इसलिए उस ने मौर्निंग जौग शुरू कर दी, और कुछ ही समय में असर भी दिखने लगा.

लंबी छरहरी काया और श्वेतवर्ण बेंगनी ट्रैक सूट में उस का चेहरा और भी निखर रहा था. उस ने अपनी कार निकाली और चल पड़ी पास के जौगर्स पार्क की ओर.

यों तो रागिनी के परिवार की गिनती उस के शहर के संभ्रांत परिवारों में होती है. मगर उस का अपने पैरों पर खड़े होने का सपना इतना उग्र रहा कि उस ने केवल अपने दम पर एक बिजनेस खड़ा करने का बीड़ा उठाया. तभी तो एमबीए करते ही कोई नौकरी जौइन करने की जगह उस ने अपने आंत्रिप्रिन्यौर प्रोग्राम का लाभ उठाते हुए बिजनेस शुरू किया. बैंक से लोन लिया और एक काल सैंटर डालने का मन बनाया. उस का शहर इस के लिए उतना उचित नहीं था, जितना ये महानगर.

जब उस ने यहां अकेले रह कर काल सैंटर का बिजनेस करने का निर्णय अपने परिवार से साझा किया, तो मां ने भी साथ आने की जिद की.

“आप साथ रहोगी तो हर समय खाना खाया, आराम कर ले, आज संडे है, आज क्यों काम कर रही है, कितने बजे घर लौटेगी, और न जाने क्याक्या रटती रहोगी. इसलिए अच्छा यही रहेगा कि शुरू में मैं अकेले ही अपना काम सेट करूं,” उस ने भी हठ कर लिया. घर वालों को आखिर झुकना ही पड़ा.

इस महानगर में रहने के लिए उस ने एक वन बेडरूम का स्टूडियो अपार्टमेंट किराए पर ले लिया. हर दो हफ्तों में एकलौता बड़ा भाई आ कर उस का हालचाल देख जाता है और हर महीने वो भी घर हो आती है. इस व्यवस्था से घर वाले भी खुश हैं और वह भी.

पार्क के बाहर कार खड़ी कर के रागिनी ने आउटर बाउंडरी का एक चक्कर लगा कर वार्मअप किया, और फिर धीरेधीरे दौड़ना आरंभ कर दिया.

आज पार्क के जौगिंग ट्रैक पर भी कीचड़ हो रहा था. बारिश के कारण रागिनी संभल कर दौड़ने लगी. मगर इन बूंदों ने भी मानो आज उसे टक्कर देने का मन बना रखा था, फिर उतरने लगीं नभ से.

भीगने से बचने के लिए रागिनी ने अपनी स्पीड बढ़ाई और कुछ दूर स्थित एक शेल्टर के नीचे पहुंचने के लिए जैसे ही मुड़ी, उस का पैर भी मुड़ गया. शायद मोच आ गई.

“उई…” दर्द के मारे वह चीख पड़ी. अपने पांव के टखने को दबाते हुए उसे वहीं बैठना पड़ा. असहनीय पीड़ा ने उसे आ दबोचा. आसपास नजर दौड़ाई, किंतु आज के मौसम के कारण शायद कोई भी पार्क में नहीं आया था. अब वह कैसे उठेगी, कैसे पहुंचेगी अपने घर. वह सोच ही रही थी कि अचानक उसे एक मर्दाना स्वर सुनाई पड़ा, “कहां रहती हैं आप?”

आंसुओं से धुंधली उस की दृष्टि के कारण वह उस शख्स की शक्ल साफ नहीं देख पाई. वह कुछ कहने का प्रयास कर रही थी कि उस शख्स ने उसे अपनी बलिष्ठ बाजुओं में भर कर उठा लिया.

“मेरी कार पार्क के गेट पर खड़ी है. मैं पास ही में रहती हूं,” रागिनी इतना ही कह पाई.

रिमझिम होती बरसात, हर ओर हरियाली, सुहावना मौसम, शीतल ठंडी बयार और किसी की बांहों के घेरे में वह खुद – उसे लगने लगा जैसे मिल्स एंड बूंस के एक रोमांटिक उपन्यास का पन्ना फड़फड़ाता हुआ यहां आ गया हो. इतने दर्द में भी उस के अधरों पर स्मित की लकीर खिंच गई.

उस ने रागिनी को कार की साइड सीट पर बैठा दिया और स्वयं ड्राइव कर के चल दिया.

“आप को पहले नहीं देखा इस पार्क में,” उस शख्स ने बातचीत की शुरुआत की.

रागिनी ने देखा कि ये परिपक्व उम्र का आदमी है – साल्टपेपर बाल, कसा हुआ क्लीन शेव चेहरा, सुतवा नाक, अनुपम देहयष्टि, लुभावनी रंगत पर गंभीर मुख मुद्रा. बैठे हुए भी उस के लंबे कद का अंदाजा हो रहा था.

“अभी कुछ ही दिनों से मैं ने यहां आना आरंभ किया है. आप भी आसपास रहते हैं क्या?” रागिनी बोली. वह उस की भारी मर्दानी आवाज की कायल हुई जा रही थी.

“जी, मैं यहीं पास में सेल्फ फाइनेंस फ्लैट में रहता हूं. अभीअभी रिटायर हुआ हूं. अब तक काफी बचत की. उसी के सहारे अब जिंदगी की सेकंड इनिंग खेलने की तैयारी है,” उस के हंसते ही मोती सी दंतपंक्ति झलकी.

“उफ्फ, कौन कह सकता है कि ये रिटायर्ड हैं. इन का इतना टोंड बौडी, आकर्षक व्यक्तित्व, मनमोहक हंसी, और ये कातिलाना आवाज,” रागिनी सोचने पर विवश होने लगी.

“बस, पास ही है मेरा घर,” वह बोली. पार्क के इतना समीप घर लेने पर उसे कोफ्त होने लगी.

किंतु घर ले जाने की जगह पहले वे रागिनी को निकटतम अस्पताल ले चले, “पहले आप को अस्पताल में डाक्टर को दिखा लेते हैं.”

उन्होंने रागिनी को फिर अपनी भुजाओं में उठाया और बिना हांफे उसे अंदर तक ले गए. वहां कागजी कार्यवाही कर के उन्होंने डाक्टर से बात की और रागिनी का चेकअप करवाया. उस की जांच कर के बताया गया कि पैर की हड्डी चटक गई है. 4 हफ्ते के लिए प्लास्टर लगवाना होगा. सुन कर रागिनी कुछ उदास हो उठी.

“आप के परिवार वाले कहां रहते हैं? बताइए, मैं बुलवा लेता हूं,” उसे चिंताग्रस्त देख वे बोले.

“वे सब दूसरे शहर में रहते हैं. यहां मैं अकेली हूं.”

“मैं हूं आप के साथ, आप बिलकुल चिंता मत कीजिए,” कहते हुए वे रागिनी को ले कर उस के घर छोड़ने चल पड़े.

घर में प्रवेश करते ही एक थ्री सीटर सोफा और एक सैंटर टेबल रखी थी. टेबल पर कुछ बिजनेस मैगजीन और सोफे पर कुछ कपड़े बेतरतीब पड़े थे.

घर की हालत देख रागिनी झेंप गई, “माफ कीजिएगा, घर थोड़ा अस्तव्यस्त है. वो मैं सुबहसुबह जल्दी में निकली तो…”

सोफे पर रागिनी को बिठा कर वे चलने को हुए कि रागिनी ने रोक लिया, “ऐसे नहीं… चाय तो चलेगी. मौसम की भी यही डिमांड है आज.”

“पर, आप की हालत तो अभी उठने लायक नहीं है,” उन्होंने कहा.

“डोंट वरी, मैं पूरा रेस्ट करूंगी. रही चाय की बात… तो वह तो आप भी बना सकते हैं. बना सकते हैं न?” रागिनी की इस बात पर उस के साथसाथ वे भी हंस पड़े.

रागिनी ने किचन का रास्ता दिखा दिया और उन्होंने चाय बनाना शुरू किया. दोनों ने चाय पी और एकदूसरे का नाम जाना. चाय पी कर वे लौटने लगे.

“फिर आएंगे न आप?” रागिनी के स्वर में थोड़ी व्याकुलता घुल गई.

“बिलकुल, जल्दी आऊंगा आप का हालचाल पूछने.”

“मुझे सुबह 7 बजे चाय पीने की आदत है,” जीभ काटते हुए रागिनी बोल पड़ी.

“हाहाहा…” अनुराग की उन्मुक्त हंसी से रागिनी का घर गुंजायमान हो उठा. “जैसी आप की मरजी. कल सुबह पौने 7 बजे हाजिर हो जाऊंगा.”

अनुराग से मिल कर रागिनी जैसे खिल उठी. आज उस का मन शारीरिक पीड़ा होने के बाद भी प्रफुल्लित हो रहा था. ऐसा क्या था आज की मुलाकात में जिस ने उस के अंदर एक उजास भर दिया. उस का चेहरा गुलाबी आभा से दमकने लगा. पैर के दर्द को भुला कर वह गुनगुनाने लगी, “मैं रंग शरबतों का, तू मीठे घाट का पानी, मुझ से खुद में घोल दे तो मेरे यार बात बन जानी…”

अगली सुबह जब तक अनुराग आए, रागिनी नहाधो कर अपने गीले केश लहराती किचन के पास आरामकुरसी डाल कर बैठ चुकी थी. उस का एक मन अनुराग के आकर्षण में बंधा प्रतीक्षारत अवश्य था, परंतु दूसरा मन उन के निजी जीवन में उपस्थित लोगों के प्रति चिंताग्रस्त था. उन का अपना परिवार भी तो होगा, यही विचार रागिनी के उफनते उत्साह पर ठंडे पानी के छींटे का काम कर रहा था.

“तो आप अर्ली राइजर हैं,” उसे एकदम फ्रेश देख कर अनुराग बोले.

“बस, आप का इंतजार कर रही थी, इसलिए आज जल्दी नींद खुल गई,” रागिनी की आंखों में अलग सा आकर्षण उतर आया. उस की भावोद्वेलित दृष्टि देख अनुराग कुछ विचलित हो गए. आगे बात न करते हुए वे चाय बनाने लगे.

“तो तय रहा कि अगले एक महीने तक आप यों ही रोज मेरे लिए चाय बनाएंगे,” रागिनी कह तो गई, पर सामने से कोई प्रतिक्रिया न आने पर संशय से घिर गई, “आप के घर वाले… आई मीन… आप की वाइफ और बच्चे… कहीं उन्हें बुरा तो नहीं लगा आप का मेरे घर इतनी सुबह आना.”

कुछ क्षण मौन रहने के पश्चात अनुराग कहने लगे, “मेरे कोई बच्चा नहीं है. एक अदद बीवी थी, पर उस से तलाक हुए एक अरसा बीत चुका है. मैं यहां अकेला रहता हूं.”

“तो फिर कोई दिक्कत नहीं. आज से मौर्निंग टी हम दोनों साथ में पिएंगे. यही पक्का रहा…?” कहते हुए उस ने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया. अनुराग ने भी खुश हो कर उस से हाथ मिला लिया.

“आप की जेनेरेशन की यही बात मुझे बेहद पसंद है – नई चीजें, नए आयाम करने में आप लोग घबराते नहीं हैं. एक हम थे – बस लकीर के फकीर बने रहे ताउम्र,” रागिनी के बिजनेस के बारे में जान कर अनुराग बोले.

“चलिए, आप की जेनेरेशन का एक गाना सुनाती हूं,” कहते हुए रागिनी ने यूट्यूब पर एक गाना लगा दिया, “मैं तेरी, तू मेरा, दुनिया से क्या लेना…” उस का विचार था कि संगीत वातावरण को और भी रूमानी और खुशनुमा बनाता है.

“ये भी मेरे जमाने का गाना नहीं है,” कह कर अनुराग हंस पड़े, “अपने जमाने का गाना मैं सुनाता हूं,” और वे गाने लगे, “जीवन से भरी तेरी आंखें, मजबूर करें जीने के लिए…”

उन की मदहोश करने वाली आवाज में किशोर कुमार का ये अमर गीत जादू करने लगा. सभवतः रागिनी की नजरों में उठतेगिरते भावों को पढ़ने में अनुराग सक्षम थे. उन्होंने अपनी बात गीत के जरीए रागिनी तक पहुंचा दी. गीत के बोलों ने पूरे समां को रंगीन कर दिया. आज की सुबह का नशा रागिनी पर शाम तक बना रहा.

अगले दिन सवेरे जब अनुराग आए तो देखा, रागिनी का बड़ा भाई आया हुआ है. उस के प्लास्टर की बात सुन कर वह उस की खैरखबर लेने आ पहुंचा.

“ये हैं मेरे भैया… और ये हैं अनुरागजी, मेरे दोस्त,” रागिनी ने दोनों का परिचय करवाया.

“अंकलजी, अच्छा हुआ कि आप पास में रहते हैं. आप जैसे बुजुर्ग की छत्रछाया में रागू को छोड़ने में हमें भी इस की चिंता नहीं रहेगी,” भाई ने बोला, तो रागिनी का मुंह बन गया.

“अनुरागजी, बैठिए न. आज चाय बनाने की जिम्मेदारी मेरे भैया की. आप बस मेरे साथ चाय का लुत्फ उठाइए,” उस ने फौरन बीच में बोला.

अनुराग रागिनी की बात का मर्म समझ गए शायद, तभी तो मंदमंद मुसकराहट के साथ उस के पास ही बैठ गए.

चाय पीने के बाद इधरउधर की बातें कर रागिनी के भैया ने कहा, “अंकलजी, कल मैं लौट जाऊंगा. प्लीज, रागू का ध्यान रखिएगा.”

“क्या बारबार अनुरागजी को अंकलजी बोल रहे हो, भैया,” इस बार रागिनी से चुप नहीं रहा गया. उस के दिल का हाल भैया की समझ से परे था, सो बड़े शहरों के चोंचले समझ कर चुप रह गए.

प्लास्टर बंधे 2 हफ्ते बीत चुके थे. अनुराग हर सुबह रागिनी के घर आते, चाय बनाते, कभीकभी नाश्ता भी, और दोनों एक अच्छा समय साथ बिताते.

अनुराग की मदद से रागिनी अपने कई काम निबटा लेती. दोनों का सामीप्य काफी बढ़ गया था. दोनों एकदूसरे के गुणोंअवगुणों से वाकिफ होने लगे थे. एक रिश्ते को सुदृढ़ बनाने के लिए ये आवश्यक हो जाता है कि एकदूसरे की खूबियां और कमियां पहचानी जाएं और पूरक बन कर एकदूजे की दुर्बलताओं की पूर्ति की जाए. जिन कामों में रागिनी अक्षम थी जैसे अच्छा खाना पकाना, उसे अनुराग सिखाते. और जिन कामों में अनुराग पीछे थे जैसे आर्थिक संबलता के काम उन में वे रागिनी से सलाह लेने लगे थे. दोनों को एकदूसरे पर विश्वास होने लगा था.

प्लास्टर लगा होने के कारण रागिनी अपने काल सैंटर नहीं जा पा रही थी. बिजनेस पर इस का प्रभाव पड़ने लगा.

रागिनी की परेशानी अनुराग के अनुभव भरे जीवन के तजरबों ने दूर कर दी. बिना किसी नियुक्तिपत्र या वेतन के अनुराग ने रागिनी के काल सैंटर जाना आरंभ कर दिया. अब वे प्रतिदिन तकरीबन 5-6 घंटों के लिए उस के औफिस जाने लगे. मालिक के आने से मातहतों की उत्पादकता में फर्क आना वाजिब है. काल सैंटर का बिजनेस पहले से भी बेहतर चलने लगा.

“आप के अनुभव मेरे बहुत काम आ रहे हैं. इस के लिए आप को ट्रीट दूंगी,” रागिनी अपनी बैलेंस शीट देख कर उत्साहित थी.

“क्या ट्रीट दोगी? मुझे कोई भजन की सीडी दे देना.”

“व्हाट? भजन… मेरे पापा भी भजन नहीं सुनते हैं. खैर, वो आप से उम्र में छोटे भी तो हैं,” कह कर रागिनी ने कुटिलता से मुसकरा कर अनुराग की ओर देखा. फिर पेट पकड़ कर वह हंसते हुए कहने लगी, “आप की लेग पुलिंग करने में बड़ा मजा आता है. पर अगर आप सीरियस हैं तो मैं आप को बिग बैंग थ्योरी पर एक वीडियो शेयर करूंगी, ताकि आप की सारी गलतफहमी दूर हो जाए कि ये दुनिया कैसे बनी.” “मैं मजाक कर रहा हूं. जानता हूं कि दुनिया कैसे बनी. मैं तो बस तुम्हें अपनी उम्र याद दिलाना चाह रहा था,” अनुराग अब भी गंभीर थे. शायद मन में उठती भावनाओं को स्वीकारना उन के लिए कठिन हो रहा था. परंतु रागिनी की इस रिश्ते को ले कर सहजता, सुलभता और स्पष्टता उन्हें अकसर चकित कर देती.

एक दिन रागिनी ने अनुराग को अपने घर लंच पर न्योता दिया, “हर बार आप के हाथ का इंडियन खाना खाते हैं. आज मेरा हाथ का लेबनीज क्विजीन ट्राई कीजिए. वीडियो देख कर सीखा है मैं ने.”

“तुम खाना पकाओगी?” अनुराग ने रागिनी की खिंचाई की.

“मैं तो पका लूंगी, पर तुम को पच जाएगा कि नहीं, ये नहीं कह सकती,” आज रागिनी अनुराग को ‘आप’ संबोधन से ‘तुम’ पर ले आई. समीप आने के पायदान पर एक और सीढ़ी चढ़ते हुए.

“क्यों नहीं पचेगा? मुझे बुड्ढा समझा है?” अनुराग ने ठिठोली में आंखें तरेरीं. “अर्ज किया है – उम्र का बढ़ना तो दस्तूरेजहां है, महसूस न करें तो बढ़ती कहां है.”

“वाह… वाह… तो शायरी का भी शौक रखते हैं जनाब. आई मीन, माई ओल्ड मैन,” हंसते हुए रागिनी कम शब्दों में काफी कुछ कह गई.

“चलो, तुम कहती हो तो मान लेता हूं. हो सकता है कि मैं सच में बूढ़ा हो गया हूं. तुम्हारे बड़े भैया तो मुझे अंकलजी पुकारते हैं.”

“ऊंह… उन का तो दिमाग खराब है. तुम्हें पता है उन की एक गर्लफ्रेंड है – फिरंगी. फेसबुक पर मुलाकात हुई. फिर भैया उस से मिलने उस के देश हंगरी भी गए. पता चला, उसे भैया पर तभी विश्वास हुआ जब भैया ने प्रत्यक्ष रूप से उसे विश्वास दिलाया कि वे उस से प्यार करते हैं. इस का कारण – वह प्यार में 2 बार धोखा खा चुकी है. एक फिरंगी लड़की प्यार में धोखा खाए, इस का मतलब समझते हो न? उन के यहां शादी बाद में होती है, बच्चे पहले. तो फिर हुई न वो 2 बार शादीशुदा… लेकिन, मेरी फैमिली को कोई एतराज नहीं है. मुझे भी नहीं है. पर यही आजादी मुझे अपनी जिंदगी में भी चाहिए. मैं समाज का दोगलापन नहीं सह सकती. मैं हिपोक्रेट नहीं हूं. जो मुझे पसंद आएगा, उसे मेरे परिवार को भी पसंद करना पड़ेगा. उस समय कोई अगरमगर नहीं चलने दूंगी,” रागिनी बेसाख्ता कहती चली गई. अपने विचार प्रकट करने में वह निडर और बेबाक थी. अनुराग इशारा समझ चुके थे.

“वो क्या कहती है तुम्हारी जेनेरेशन… इस बात पर तुम्हें हग करने को जी चाह रहा है,” अनुराग ने माहौल को हलका बनाते हुए कहा.

“ऐज यू प्लीज,” कहते हुए रागिनी ने अनुराग को गले लगा लिया. स्पर्श में अजीब शक्ति होती है, उसे शब्दों की आवश्यकता नहीं रहती. आलिंगनबद्ध होते ही दोनों एकदूसरे की धड़कन सुनने के साथसाथ, एकदूसरे का भोवोद्वेलन भी समझ गए. बात आगे बढ़ती, इस से पहले अनुराग ने रागिनी को स्वयं से दूर कर दिया.

“दिन में सपने देख रही हो?” अनुराग ने पूछ लिया.

“दिन में सपने देखने को प्लानिंग कहते हैं… और, मैं अपनी लाइफ की हीरो हूं, इसलिए इस के सपने भी मैं ही डिसाइड करूंगी,” रागिनी का अपने दिल पर काबू नहीं था. उस की चाहतों की टोह लेते हुए अनुराग को वहां से चले जाने में ही समझदारी लगने लगी.

अगले दिन जब अनुराग आए तो रागिनी के घर का नक्शा बदला हुआ था. लिविंग रूम के बीचोंबीच रखी सैंटर टेबल पर लाल गुलाबों का बड़ा सा गुलदस्ता सजा था. आसपास लाल रिबन से बने हुए ‘बो’ रखे थे. सोफे के ऊपर वाली दीवार पर एक कोने से दूसरे कोने तक एक डोरी में रागिनी की तसवीरें टंगी हुई थीं, जिन में वह बेहद खूबसूरत लग रही थी.

अनुराग की नजर कभी किसी फोटो पर अटक जाती तो कभी दूसरी पर. हर तसवीर में एक से एक पोज में रागिनी की मनमोहक छटा सारे कक्ष को दीप्तिमान कर रही थी. आज कमरे के परदे खींच कर हलका अंधियारा किया हुआ था, जिन में दीवारों पर सजी फेयरी लाइट्स जगमगा रही थीं. पार्श्व में संगीत की धुन बज रही थी. शायद कोई रोमांटिक गीत का इंसट्रूमेंटल म्यूजिक चलाया हुआ था.

अनुराग अचकचा गए. आज ये घर कल से बिलकुल भिन्न था. “रागिनी,” उन्होंने पुकारा.

पिंडली तक की गुलाबी नाइटी में रागिनी अंदर से आई. उस के रक्ताभ कपोल, अधरों पर फैली मुसकान, आंखों में छाई मदहोशी, और खुले हुए गेसू – एक पल को अनुराग का दिल धक्क से रह गया. लगा जैसे वो उम्र के तीस वर्ष पीछे खिंचते चले गए हों. उन की नजर में भी एक शरारत उभर आई. नेह बंधन की कच्ची डोर ने दोनों को पहले से ही कस कर पकड़ना शुरू कर दिया था. आज के माहौल से आंदोलित हुई भावनाएं तभी थमीं, जब शरमोहया के सारे परदे खुल गए. आज जो गुजरा, उस के बारे में अनुराग ने सोचा न था. परंतु जो भी हुआ, दोनों को आनंदित कर गया.

अंगड़ाई लेते हुए रागिनी के मुंह से अस्फुट शब्द निकले, “आज सारे जोड़ खुले गए… कहीं कोई अड़चन नहीं बची.”

उसे प्रसन्न देख अनुराग भी प्रफुल्लित हो गए, “जानती हो रागिनी,” उस के बालों में उंगली फिराते हुए उन्होंने कहा, “मेरी शादी बहुत कड़वी रही. बहुत घुटन थी उस में. ऐसा तो नहीं हो सकता न कि हम सांस भी न लें और जिंदा भी रहें. खैर, मैं भी पता नहीं क्या बात ले बैठा… इस समय, तुम से… न जाने क्यों?”

“मुझे अच्छा लगा यह जान कर कि तुम ने मेरे समक्ष अपने दिल की परत खोली. प्रेम केवल अच्छी बातें, सुख और कामना नहीं. प्रेम में मन का कसेलापन भी शामिल होता है. प्रेम में हम दुखतकलीफें न बांट सकें तो फिर ये तकल्लुफ हुआ, प्यार नहीं,” रागिनी अनुराग के और निकट आ कर संतुष्ट हुई.

बाहर टिपटिप गिरती बूंदें एक राग सुनाने लगीं. कमरे के अंदर आती पवन चंपई गंध लिए थी. आज की खामोशी में एक संगीत लहरा रहा था. प्यार उम्र नहीं देखता, समर्पण चाहता है.

इस प्रकरण के बाद रागिनी और अनुराग के बीच एक अटूट रिश्ता बन गया. अब उन्हें बातों की आवश्यकता नहीं पड़ती. आंखों से संपर्क साधना सीख लिया था उन के रिश्ते ने. दोनों के बीच एक लहर प्रवाहित होती जो मौन में भी सबकुछ कह जाती. मन के सभी संशय मीठे अनुनाद में बदल चुके थे. यही तो सच्चा और अकूत प्रेम है.

जब रागिनी का प्लास्टर उतरा, तब वह पहली बार अनुराग के घर गई.

“तो यहां रहते हैं आप?” बिना किसी तसवीर या चित्रकारी के नीरस दीवारें, बेसिक सा सामान, पुराने बरतन, पुराना फर्नीचर. घर में कुछ भी आकर्षक नहीं था. लेकिन रागिनी चुप रही. हर किसी का जीने का अपना एक ढंग होता है. उस पर आक्रमण किसी को नहीं भाता. जो कुछ बदलाव लाएगी, वो धीरेधीरे.

“अपने फोटो एलबम दिखाइए,” रागिनी की डिमांड पर अनुराग कुछ एलबम ले आए. उन में अनुराग के बचपन की, जवानी की तसवीरें देख रागिनी हंसती रही.

“पहले मेरे बाल काफी काले थे,” अपने खिचड़ी बालों की वजह से सकुचाते हुए अनुराग बोले, “क्या फिर कलर कर लूं इन्हें?”

“नहीं, आप साल्ट एंड पेपर बालों में ही जंचते हैं. ये तो आजकल का फैशन है. मैच्यौर्ड लुक, यू सी,” रागिनी ने कहा. फिर मौके का फायदा उठाते हुए वह कहने लगी, “अगर कुछ चेंज करना ही है तो इस घर में थोड़े बदलाव कर दूं? यदि आप कहें?”

“मेरा सबकुछ तुम्हारा ही तो है. जो चाहो करो,” अनुराग से अनुमति पा कर रागिनी हर्षित हो उठी.

“ठीक है, तो कल से ही काम चालू,” कह कर रागिनी खिलखिला पड़ी.

अब रागिनी अकसर अनुराग के घर आती, और वो उस के. दोनों एकदूसरे के हो चुके थे – तन से भी, मन से भी और काम से भी. एक खुशहाल साथ बसर करते दोनों को कुछ हफ्ते बीत चुके थे कि एक दिन अनुराग कहने लगे, “ऐसे कब तक चलेगा, रागिनी? मेरा मतलब है कि बिना शादी किए हम यों ही…”

“क्यों, आप को कोई परेशानी है इस अरेंजमेंट से?”

“नहीं, मुझे गलत मत समझो रागिनी, तुम्हारे आने से मेरे मुरदा जीवन में जैसे प्राण आने लगे हैं. इस बेजान मकान को एक घर की सूरत मिलने लगी है. तुम ने इस की शक्ल बदल कर मुझ पर बड़ा एहसान किया है. पर तुम एक जवान लड़की हो, क्या तुम्हारे परिवार वाले मुझे स्वीकारेंगे?” अनुराग ने अपने मन में उठती शंकाओं के पट खोल दिए.

“शादी किसी रिश्ते को शक्ति व सामर्थ्य देने का ढंग है, बस. जब हम दोनों एकदूसरे के हो चुके हैं, तो फिर हमें किसी बाहरी ठप्पे की जरूरत नहीं है. हम जैसे हैं, खुश हैं.

“रही बात समाज की, तो समाज हम से ही बनता है. हमारी नीयत में जब खोट नहीं तो हम किसी से क्यों डरें?”

रागिनी के विचार सच में आज की पीढ़ी की बेबाक सोच प्रस्तुत कर रहे थे. जबकि अनुराग के विचार अपनी पीढ़ी के ‘लोग क्या कहेंगे’ की परिपाटी दर्शा रहे थे. यही तो फर्क है दोनों में. मगर जब सोच लिया कि साथ निभाना है तो फिर घबराना कैसा? मुश्किलों का आना तो पार्ट औफ लाइफ है. उन में से हंस कर बाहर आना, यही आर्ट औफ लाइफ है.

 

 

 

तजरबा: कैसे जाल में फंस कर रह गई रेणु

अगले मुलाकाती का नाम देखते ही ऋषिराज चौंक पड़ा. ‘डा. धवल पनंग.’ इस से पहले कि वह अपनी सेक्रेटरी सीपा से कुछ पूछता, उस ने आगंतुक के आने की सूचना दे दी. सीपा के सामने वह गाली तो दे नहीं सकता था फिर भी कहे बिना न रह सका, ‘‘तू अपना नर्सिंग होम छोड़ कर मेरे आफिस में क्या कर रहा है?’’

‘‘मास्टर डिटेक्टिव ऋषिराज से मुलाकात का इंतजार. भाई, क्लाइंट हूं आप का, बाकायदा फीस भर कर समय लिया…’’

‘‘मगर क्यों? घर पर नहीं आ सकता था?’’ ऋषि ने बात काटी.

‘‘जैसे मरीज के रोग का इलाज डाक्टर नर्सिंग होम में करते हैं वैसे ही मैं समझता हूं कि जासूस समस्या का सही समाधान अपने आफिस में करते होंगे,’’ धवल बोला.

‘‘वह तो है पर तू अपनी समस्या बता?’’

‘‘पिछले सप्ताह की बात है. एक दिन नर्सिंग होम में मोबाइल पर बात करते वक्त रेणु ने घबराए स्वर में कहा था, ‘कहा न मैं आऊंगी, फिर बारबार फोन क्यों…हां, जितना भी हो सकेगा करूंगी.’ रेणु के मायके वाले अपनी हर छोटीबड़ी घरेलू समस्या में रेणु को जरूर उलझाते हैं. सो यह सोच कर कि वहीं से फोन होगा, मैं ने कुछ नहीं पूछा. फिर मैं ने गौर किया कि रेणु काफी कोशिश कर के भी अपनी घबराहट छिपा नहीं पा रही है और अपने कुछ खास मरीज भी उस ने अपनी सहायक डा. सुरेखा के सिपुर्द कर दिए.

‘‘भले ही एकसाथ काम करते हैं, मगर मैं और रेणु अपनीअपनी गाड़ी से जाते हैं ताकि जिसे जब फुरसत मिले वह बच्चों को देखने घर आ जाए. उस दिन रेणु ने कहा कि उस का गाड़ी चलाने का मन नहीं है सो वह मेरे साथ चलेगी. मैं ने कहा कि शौक से चले, मगर वापस कैसे आएगी क्योंकि मुझे तो एक आपरेशन करने जल्दी आना है तो उस ने कहा कि सुरेखा से पिकअप करने को कह दिया है. रास्ते में मैं ने उस से पूछा कि किस का फोन था तो उस के चेहरे पर ऐसे डर के भाव आए जैसे कोई खून करते हुए वह रंगेहाथों पकड़ी गई हो.

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‘‘वह सकपका कर बोली, ‘यहां तो सारे दिन ही फोन आते रहते हैं, आप किस की बात कर रहे हो?’ मैं चाह कर भी नहीं कह सका कि जिसे सुन कर तुम्हारा हाल बेहाल हो गया है, लेकिन ऋषि, घर पहुंचने पर रेणु के बाथरूम जाते ही मैं ने उस के मोबाइल में वह नंबर ढूंढ़ लिया. वह रेणु के मायके वालों का नंबर नहीं था…’’

‘‘नंबर बता, अभी नामपता मंगवा देता हूं,’’ ऋषि ने बात काटी.

‘‘तेरा खयाल है, मैं नंबर पता लगवाने तेरे पास आया हूं?’’ धवल सूखी सी हंसी हंसा. फिर कहने लगा, ‘‘खैर, अगली सुबह मैं तो जल्दी निकल गया और आपरेशन से फुरसत मिलने पर जब बाहर आया तो देखा कि रेणु आज नर्सिंग होम आई ही नहीं है. घर पर फोन किया तो पता चला कि मैडम वहां भी नहीं है और गाड़ी नर्सिंग होम में खड़ी है. उस के मोबाइल पर फोन किया तो बोली कि किसी जरूरी काम से सिविल लाइन आई थी, अब ट्रैफिक में फंसी हुई हूं. सिविल लाइन में मेरी ससुराल है सो सोचा कि मायके की परदादारी रखना चाह रही है तो रखे.

‘‘मगर परसों शाम जब रेणु एक डिलीवरी केस में व्यस्त थी, मैं बच्चों को ले कर डिजनी वर्ल्ड चला गया. वहां जिस बैंक में हमारा खाता है उस के मैनेजर भी सपरिवार घूम रहे थे. उन्होंने मजाक में पूछा कि क्या डाक्टर साहिबा अभी भी खरीदारी में व्यस्त हैं, कल उन्होंने खरीदारी करने के लिए 1 लाख रुपए निकलवाए थे.

‘‘मैं यह सुन कर स्तब्ध रह गया. रेणु जो घरखर्च के लिए भी मुझ से पूछ कर पैसे निकलवाती थी, चुपचाप 1 लाख रुपए निकलवा ले, यकीन नहीं आया. अभी इस उलझन से उबर नहीं पाया था कि मेरी छोटी साली और साला मिल गए. वह हमारे घर गए थे, पता चलने पर कि हम यहां हैं, वह भी यहीं आ गए. बच्चों को उन के मामा को सौंप कर मैं साली के साथ बैठ गया और पूछा कि घर में ऐसी क्या परेशानी है जिसे फोन पर सुनते ही रेणु भी परेशान हो जाती है.

‘‘सुनते ही मीनू चौंक पड़ी. बोली, ‘क्या कह रहे हैं, जीजाजी? दीदी को घर पर आए 15 रोज से ज्यादा हो गए हैं और पिछले 4-5 रोज से उन्होंने फोन भी नहीं किया. तभी तो मां ने हमें उन का हालचाल जानने को भेजा है क्योंकि हमें फोन करने को तो जीजी ने मना कर रखा है.’

‘‘अब चौंकने की मेरी बारी थी, ‘रेणु ने कब से तुम्हें फोन करने को मना किया हुआ है?’

‘‘‘हमेशा से बहुत ही जरूरी काम होने पर हम उन्हें फोन करते हैं, फुरसत मिलने पर वह खुद ही रोज सब से बात कर लेती हैं, कभीकभी तो दिन में 2 बार भी. सो 4-5 रोज से फोन न आने पर सब को चिंता हो रही है.’

‘‘‘चिंता की कोई बात नहीं है, रेणु आजकल थोड़ी व्यस्त है,’ अपनी चिंता को दरकिनार करते हुए मैं ने मीनू की चिंता दूर की. वह अनजान फोन नंबर जो मैं ने अपने मोबाइल में नोट कर लिया था, दिखा कर मीनू से पूछा कि यह किस का नंबर है?

‘‘‘यह तो अपने पड़ोसी डा. शिवमोहन चाचा का नंबर है. छोटीमोटी बीमारी में हम उन्हीं के पास जाते हैं. समझ में आ गया जीजाजी, इस नंबर से फोन आने पर जीजी क्यों परेशान हुई थीं और क्यों काम छोड़ कर उन से मिलने गई थीं. डा. चाचा का एक डाक्टर बेटा रतन मोहन है. भोपाल के सरकारी अस्पताल में पोस्टमार्टम करता था. एक गलत रिपोर्ट देने के सिलसिले में नौकरी से निलंबित कर दिया गया सो यहां आ गया है. चाचाजी जीजी के पीछे पड़े होंगे कि उसे अपने नर्सिंग होम में रख लें और जीजी परेशान होंगी कि पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर का नर्सिंग होम में क्या काम?’

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‘‘मैं ने जब मीनू से पूछा कि रतन की उम्र क्या है? तो वह बताने लगी कि वह मेडिकल कालिज में रेणु दीदी से 2 साल सीनियर था. पहले उस का घर में बेहद आनाजाना था लेकिन फिर मां ने मुर्दे चीरने वाले रतन के घर में आनेजाने पर रोक लगा दी.

‘‘मैं बुरी तरह आहत हो गया. साफ जाहिर था कि रेणु ने वह 1 लाख रुपए रतन को पुरानी दोस्ती की खातिर दिए थे. जब किसी अपने से किसी गैर के लिए धोखा मिले तो बहुत तकलीफ होती है, ऋषि. खैर, जब मैं बच्चों के साथ घर पहुंचा तो रेणु आ चुकी थी. बच्चों से यह सुन कर कि उन्हें डिजनी वर्ल्ड में बड़ा मजा आया, रेणु के चेहरे पर अजीब से राहत और संतुष्टि के भाव उभरे और मैं ने उसे बुदबुदाते हुए सुना, ‘चलो, यह तसल्ली तो हुई कि मेरे जाने के बाद धवल बच्चों को बहला लेंगे.’ उस की यह बात सुनते ही मैं स्तब्ध रह गया. ऋषि, रेणु मुझे छोड़ने की सोच रही है.’’

‘‘तू ने भाभी से इस बुदबुदाने का मतलब नहीं पूछा?’’ ऋषि ने धवल से पूछा.

‘‘नहीं, ऋषि, मैं उस से अभी कुछ भी पूछना नहीं चाहता. तू मुझे रेणु और रतन के सही संबंधों के बारे में जो भी पता लगा कर दे सकता है, दे. उस के बाद मैं सोचूंगा कि क्या करना है. कितना समय लगेगा यह सब पता लगाने में?’’

‘‘अगर रतन के कालिज का नाम, किस साल से किस साल तक उस ने पढ़ाई की और उस के अन्य सहपाठियों के नाम का पता चल जाए तो 2-3 रोज में गड़े मुर्दे उखड़ जाएंगे और फिलहाल क्या हो रहा है, यह जानने के लिए भाभी और रतन की गतिविधियों पर पहरा बैठा देता हूं. रतन का अतापता मालूम है?’’

धवल को जो भी मालूम था वह ऋषि को बता कर थके कदमों से लौट आया. उस का खयाल था कि ऋषि 2-3 रोज से पहले क्या फोन करेगा लेकिन ऋषि ने उसी शाम फोन किया.

‘‘धवल, या तो अभी मेरे आफिस में आजा या फिर रात में खाने के बाद मेरे घर पर आ जाना.’’

‘‘अभी आया,’’ कह कर धवल ने फोन रख दिया. काम में दिल नहीं लग रहा था सो उस ने कल से ही नए मरीजों को समय देने से मना किया हुआ था.

ऋषि रिपोर्ट ले कर बैठा हुआ था. ‘‘रेणु और रतन मोहन में आज कोई संपर्क नहीं हुआ है,’’ ऋषि ने बताया, ‘‘पुराने सहपाठियों को कभी रेणु और रतन का रिश्ता आपत्तिजनक नहीं लगा. पड़ोसियों और पारिवारिक जानपहचान वालों में जैसा व्यवहार होता है वैसा ही था. रेणु अपनी और अपने सहपाठियों की समस्याएं ले कर रतन के पास जाया करती थी. वह कोई बहुत काबिल डाक्टर नहीं था, लेकिन सीनियर होने के नाते सुझाव तो दे ही देता था.

‘‘रतन जिस अस्पताल में काम कर रहा था वहीं रेणु और उस के साथ की कुछ लड़कियों ने इंटर्नशिप की थी और तब रतन ने उन सब की बहुत मदद की. उसी दौरान रेणु के साथ इंटर्नशिप कर रही एक लड़की डाक्टर रैचेल का अचानक हार्ट फेल हो गया. रेणु सहेली की मौत के बाद ज्यादा सहमी सी लगने लगी और रतन को देखते ही और ज्यादा सहम जाती थी. इंटर्नशिप खत्म होते ही रेणु तुझ से शादी कर के विदेश चली गई. जब तुम लोग विदेश से लौटे तब तक रतन कहीं और नौकरी पर जा चुका था. अच्छा, यह बता धवल, जब तुम लोग लंदन में थे तो रतन के साथ संपर्क थे भाभी के?’’

‘‘मुझे तो रतन के अस्तित्व के बारे में अभी पता चला है, रहा सवाल लंदन का तो उस जमाने में ई-मेल और एसएमएस जैसी सुविधाएं तो थीं नहीं और चिट्ठी लिखने की रेणु को फुरसत नहीं थी.’’

‘‘अब तक जो सूत्र हाथ लगे हैं उन से तो नहीं लगता कि भाभी और रतन में प्रेम या अनैतिक संबंध हैं. हां, ब्लैकमेल का मामला हो सकता है लेकिन किस बिना पर इस का पता लगवा रहा हूं.’’

‘‘रैचेल की मौत से कुछ संबंध हो सकता है?’’

‘‘खैर, मैं रैचेल की मौत की सही वजह पता लगाता हूं. तू यह पता कर सकता है कि रतन अभी तक कुंआरा क्यों है?’’

धवल कुछ देर सोचता रहा फिर बोला, ‘‘मैं बच्चों को नानी से मिलवाने ले जाता हूं और फिर किसी तरह रतन का जिक्र चला कर उस के बारे में मालूम करूंगा.’’

धवल की उम्मीद के मुताबिक उस की सास ने उसे बच्चों के साथ अकेला देख कर पूछा, ‘‘रेणु आजकल इतनी व्यस्त कैसे हो गई?’’

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‘‘कुछ तो रोज ही 1-2 डिलीवरी के मामले आ जाते हैं, मां. दूसरे, जब से उसे डा. रतन मोहन ने फोन किया है वह न जाने क्या सोचती रहती है.’’

‘‘उस कफन फाड़ रतन की इतनी हिम्मत कि रेणु को फोन करे?’’ मां चिल्लाईं, ‘‘मीनू, लगा तो फोन अपने बाबूजी को, पूछती हूं उन से कि उन्होंने रेणु का नंबर रतन को दिया क्यों?’’

‘‘बाबूजी से जवाबतलब करने से क्या फायदा, मां,’’ मीनू ने कहा, ‘‘अब तो आप डा. रतन मोहन को बुला कर फटकारिए कि आइंदा जीजी को परेशान न करे.’’

‘‘मैं मुंह नहीं लगती उस मरघट के ठेकेदार के. तेरे बाबूजी के आते ही उन से फोन करवाऊंगी.’’

‘‘अरे, नहीं मां, इस सब की कोई जरूरत नहीं है. मगर यह रतन है कौन और रेणु से क्या चाहता है?’’ धवल ने पूछा.

जो कुछ मां ने बताया, वह वही था जो मीनू बता चुकी थी.

धवल के यह पूछने पर कि रतन के बीवीबच्चे कहां हैं? मां ने मुंह बिचका कर कहा, ‘‘उस आलसी निखट्टू से शादी कौन करेगा? किसी तरह लेदे कर डाक्टरी तो बाप ने पास करवा दी लेकिन बेटे ने मरीज देखने की सिरदर्दी से बचने के लिए पोस्टमार्टम करना आसान समझा. बगैर मेहनत के काम में इतना पैसा तो मिलने से रहा कि कोई अपनी बेटी का हाथ थमा दे.’’

‘‘खैर, ऐसी बात तो नहीं है, मांजी, सरकारी डाक्टर को भी अच्छी तनख्वाह मिलती है. हो सकता है वह खुद ही शादी न करना चाहता हो. क्या नाम था रेणु की उस सहेली का, जिस की मौत हो गई थी?’’ धवल ने कुरेदा.

‘‘रैचेल. उस से रतन का क्या लेनादेना? उस आलसी को लड़कियों में कभी कोई दिलचस्पी नहीं रही. उसे तो दिन भर लेट कर टीवी देखने या उपन्यास पढ़ने का शौक है. सरकारी नौकरी में भी दुर्घटना की रिपोर्ट पर हार्ट फेल लिख दिया. वह किसी नेता के बेटे की लाश थी. उन का मुआवजा मारा गया सो उन्होंने उस की छुट्टी करवा दी,’’ मां ने कहा, ‘‘रेणु भी इसीलिए परेशान होगी कि इसे क्या काम दे.’’

सास से यह कह कर कि वह बच्चों को खाने के बाद घर छोड़ आएं और इसी बहाने रेणु से भी मिल लें, धवल ऋषि के घर आया. इस से पहले कि उस से सब सुन कर ऋषि कोई प्रतिक्रिया जाहिर करता, एक फोन आ गया.

‘‘रेणु भाभी पर नजर रख रही लड़की का फोन था. भाभी इस समय एडवोकेट कादिरी के चैंबर में हैं,’’ ऋषि ने फोन सुनने के बाद बताया, ‘‘घबरा मत यार, कादिरी तलाक के नहीं फौजदारी के मुकदमे का वकील है.’’

‘‘यह तो और भी घबराने की बात है. रेणु किस गुनाह में फंसी हुई है?’’

‘‘यह अगर तू खुद भाभी से पूछे तो बेहतर रहेगा. यह तो पक्का है कि वह तेरे से बेवफाई नहीं कर रही हैं सो वह जिस परेशानी में हैं उस में से उन्हें निकालना तेरा फर्ज है. अगर समस्या सुलझाने में कहीं भी मेरी जरूरत हो तो बताना.’’

जब धवल घर पहुंचा तो रेणु अपने मातापिता के साथ बैठी अनमने ढंग से बात कर रही थी. कुछ देर के बाद वे लोग उठ खड़े हुए और उस के पिता ने चलतेचलते कहा, ‘‘तू बेफिक्र रह बेटी, मैं रतन को आश्वासन दे देता हूं कि मैं उस की नौकरी लगवा दूंगा, वह तुझे परेशान न करे.’’

रेणु चुप रही मगर उस के चेहरे पर अविश्वास की मुसकान थी. सासससुर के जाते ही धवल ने मौका लपका.

‘‘यह डा. रतन मोहन है कौन, रेणु, जो सभी उस के लिए इतने परेशान हैं?’’

पहले तो रेणु सकपकाई फिर संभल कर बोली, ‘‘बाबूजी के करीबी दोस्त का बेटा है.’’

‘‘तब तो मेरा साला हुआ न, उसे तो अपने यहां काम मिलना ही चाहिए. भई, बाबूजी को फोन कर देता हूं कि उसे कल ही भेज दें, मरीज की केस हिस्ट्री नोट करने के लिए मुंहमांगी तनख्वाह पर रख लूंगा. बाबूजी का मोबाइल नंबर बोलो?’’

‘‘रहने दो, धवल. रतन को नौकरी नहीं चाहिए,’’ रेणु थके स्वर में बोली.

‘‘तो फिर क्या चाहिए?’’ धवल ने लपक कर रेणु को बांहों में भर लिया. धवल के स्पर्श की ऊष्मा से रेणु पिघल कर फूटफूट कर रोने लगी. धवल पहले तो चुपचाप उस की पीठ सहलाता रहा, फिर धीरे से बोला, ‘‘बताओ न, रेणु, रतन क्यों परेशान कर रहा है तुम्हें, क्या चाहिए उसे?’’

‘‘मेरी जान.’’

‘‘वह किस खुशी में, भई?’’

‘‘मेरी बेवकूफी की.’’

‘‘ऐसी कैसी बेवकूफी जिस की भरपाई जान दे कर हो? अगर तुम को मुझ पर भरोसा है तो मुझे सबकुछ खुल कर बताओ.’’

‘‘कैसी बात करते हो, धवल. तुम पर नहीं तो और किस पर भरोसा करूंगी? तुम्हें बेकार में परेशान नहीं करना चाहती थी सो अब तक चुप थी पर अब सहन नहीं होता,’’ रेणु ने सुबकते हुए कहा, ‘‘मैं ने गांधी अस्पताल में इंटर्नशिप की थी और उन दिनों रतन की नियुक्ति भी उसी अस्पताल में थी.

‘‘एक रोज मैं और मेरी सहेली रैचेल रतन के कमरे में बैठे हुए आपस में बात कर रहे थे कि नींद की गोलियों में कौन से ब्रांड की गोली सब से असरदायक होती है. रतन ने कहा कि किसी भी ब्रांड की गोली खाने से पहले अगर 1-2 घूंट ह्विस्की पी लो तो गोली जबरदस्त असर करती है. मेरे पूछने पर कि उसे कैसे मालूम, रतन ने कहा कि उस ने किसी उपन्यास में पढ़ा है और रासायनिक तथ्यों को देखते हुए बात ठीक भी हो सकती है.

‘‘रैचेल ने कहा कि अनिंद्रा की बीमारी से पीडि़त लोगों के लिए तो यह नुस्खा बहुत कारगर सिद्ध हो सकता है लेकिन बगैर आजमाए तो किसी को बताना नहीं चाहिए. मुझे पता था कि रैचेल के घर में शराब का कोई परहेज नहीं है और ज्यादा थके होने पर रैचेल भी 1-2 घूंट लगा लेती है. मैं ने उस से कहा कि वह खुद पर ही यह फार्मूला आजमा के देख ले. भरपूर नींद सो लेगी तो अगले दिन तरोताजा हो जाएगी. रैचेल बोली कि ह्विस्की की तो कोई समस्या नहीं है लेकिन नींद की गोली बगैर डाक्टर के नुस्खे के नहीं मिलती, रतन अगर नुस्खा लिख दे तो वह तजरबा करने को तैयार है.

‘‘रतन ने कहा कि नुस्खे की क्या जरूरत है. रेणु की नाइट ड्यूटी आजकल आरथोपीडिक वार्ड में है, जहां आमतौर पर सब को ही गोली दे कर सुलाना पड़ता है. सो इस से कह, यह किसी मरीज के नाम पर तुम्हें भी एक गोली ला देगी. उस रात बहुत से मरीजों के लिए एक ही ब्रांड की गोली लिखी गई थी सो नर्स स्टोर से पूरी शीशी ले आई. आधी रात को सब की नजर बचा कर मैं ने वह शीशी अपने पर्स में रख ली और मौका मिलते ही रैचेल को दे दी.

‘‘अगले दिन हमारी छुट्टी थी. रात के 10 बजे के करीब रैचेल के पिता का फोन आया कि बहुत पुकारने पर भी रैचेल जब रात का खाना खाने नहीं आई तो उन्होंने उस के कमरे में जा कर देखा कि वह एकदम बेसुध पड़ी है. मैं ने उन्हें रैचेल को फौरन अस्पताल लाने को कहा और आश्वासन दिया कि मैं भी वहां पहुंच रही हूं. संयोग से रतन की उस रात नाइट ड्यूटी थी, मैं ने तुरंत उसे फोन पर सब बता कर कहा कि मुझे लगता है कि रैचेल ने तजरबा कर लिया. मैं ने उसे वार्ड से चुरा कर नींद की गोलियों की शीशी दी थी.

‘‘रतन बोला कि वह तो उसे मालूम है. आधी शीशी नींद की गोलियां गायब होने से वार्ड में काफी शोर मचा हुआ था, जिसे सुनते ही वह समझ गया था कि यह किस का काम है. खैर, चिंता की कोई बात नहीं, उसे बता दिया है सो वह सब संभाल लेगा और उस ने संभाला भी. अस्पताल पहुंचने से पहले ही रैचेल की मौत हो चुकी थी. रतन ने मौत की वजह मैसिव हार्ट अटैक बता कर किसी और डाक्टर के आने से पहले आननफानन में पोस्टमार्टम कर बौडी रैचेल के घर वालों को दे दी.

‘‘अगले रोज उस ने मुझे अकेले में बताया कि उस ने मुझे बचा लिया है. रैचेल ने काफी मात्रा में नींद की गोलियां खाई थीं. पलंग के पास पड़ी नींद की गोलियों की खाली शीशी भी उस के बाप को मिल गई थी, मगर रतन के समझाने पर कि आत्महत्या का पुलिस केस बनने पर उन की बहुत बदनामी होगी, उन्होंने चुपचाप रैचेल का जल्दी से अंतिम संस्कार कर दिया. यही नहीं जच्चाबच्चा वार्ड जहां रैचेल की ड्यूटी थी, वहां भी एक नर्स ने मुझे अचानक वार्ड में आ कर हंसते हुए रैचेल को कुछ पकड़ाते हुए देखा था. रतन ने उसे भी डांट कर चुप करा दिया कि सब के सामने हंसते हुए च्युंगम दी जाती है चुराई हुई नींद की गोलियों की शीशी नहीं.

‘‘मेरे आभार प्रकट करने पर रतन ने कहा कि खाली धन्यवाद कहने से काम नहीं चलेगा. जब वह किसी परेशानी में होगा तो वह जो कहेगा मुझे उस के लिए करना पड़ेगा. हामी भरने के सिवा कोई चारा भी नहीं था. उस के बाद से मैं रतन से डरने लगी थी, हालांकि उस ने दोबारा वह विषय कभी नहीं छेड़ा.

‘‘कुछ अरसे के बाद रैचेल की गोलियां खाने की वजह भी समझ में आ गई. डा. राममूर्ति ने एक रोज बताया कि वह और रैचेल एकदूसरे से प्यार करते थे और जल्दी ही शादी करने वाले थे लेकिन उस के घर वालों ने उस की शादी कहीं और तय कर दी थी.

राममूर्ति ने रैचेल को आश्वासन दिया था कि छुट्टी मिलते ही चेन्नई जा कर अपने घर वालों को सब बता कर वह रिश्ता खत्म कर देगा, लेकिन काफी कोशिश के बाद भी उसे छुट्टी नहीं मिल रही थी और रैचेल इसे उस की टालमटोल समझ कर काफी बेचैन थी. शायद इसी वजह से उस का हार्ट फेल हो गया. यह जान कर मेरे मन से एक बोझ उतर गया कि रैचेल की जान मेरे मजाक के कारण नहीं गई. वह आत्महत्या करने का फैसला कर चुकी थी. फिर मैं तुम से शादी कर के लंदन चली गई. वापस आने पर भी रतन से कभी मुलाकात नहीं हुई.

‘‘अब अचानक इतने साल बाद उस ने मुझे ब्लैकमेल करना शुरू किया है कि रैचेल की सही पोस्टमार्टम रिपोर्ट और विसरा वगैरा उस के पास सुरक्षित है, जिस के बल पर वह मुझे कभी भी सलाखों के पीछे भेज सकता है. अपना मुंह बंद रखने की कीमत उस ने 1 लाख रुपए मांगी थी जो मैं ने चुपचाप उसे दे दी. आसानी से मिले पैसे ने उस की भूख और भी बढ़ा दी. उस ने मुझे कहा कि मैं और भी मेहनत कर के पैसे कमाऊं क्योंकि अब वह अपनी नहीं मेरी कमाई पर जीएगा…’’

‘‘जुर्म के सुबूत छिपाने वाला जुर्म करने वाले जितना ही अपराधी होता है सो रतन तुम्हें फंसाने की कोशिश में खुद भी पकड़ा जाएगा,’’ धवल ने रेणु की बात काटी.

‘‘यह बात मैं ने रतन से कही थी तब वह बोला, ‘कह दूंगा कि तुम्हारे रूपजाल में फंस कर मेरी बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी लेकिन अब विवेक जागा है तो मैं आत्मसमर्पण करना चाहता हूं. मुझे थोड़ीबहुत सजा हो जाएगी, तुम शायद सुबूतों के अभाव में बरी भी हो जाओ लेकिन यह सोचो कि तुम्हारी कितनी बदनामी होगी, तुम्हारे नर्सिंग होम की ख्याति और पति की प्रतिष्ठा पर कितना बुरा असर पड़ेगा?’

‘‘उस की दलील में दम था, फिर भी मैं ने एक जानेमाने वकील से सलाह ली तो उन्होंने भी यही कहा कि सजा तो मुझे नहीं होने देंगे लेकिन बदनामी और उस से होने वाली हानि से नहीं बचा सकते. अब तुम ही बताओ, धवल, मैं क्या करूं?’’ रेणु ने पस्त मन से पूछा.

‘‘अब तुम्हें कुछ करने या परेशान होने की जरूरत नहीं है. जो भी करना है, अब मैं सोचसमझ कर करूंगा. फिलहाल तो चलो, आराम किया जाए,’’ धवल ने रेणु को बांहों में भर कर पलंग पर लिटा दिया.

अगले रोज धवल ऋषि से मिला.

‘‘भाभी को कह कि यह टेप रिकार्डर हरदम अपने पास रखें और जब भी रतन का फोन आए, इसे आन कर दें, ताकि वह जो भी कहे इस में रिकार्ड हो जाए,’’ ऋषि ने सब सुन कर एक छोटी सी डिबिया धवल को पकड़ाई, ‘‘फिर रतन को देने के लिए जो भी पैसा बैंक से निकाले उन नोटों के नंबर वहां दर्ज करवा दे जिन की बुनियाद पर हम पुलिसकर्मी बन कर उसे ब्लैकमेल के जुर्म में गिरफ्तार करने का नाटक कर के उसे इतना डराएंगे कि वह फिर कभी भाभी के सामने आने की हिम्मत नहीं करेगा. उस के पकड़े जाने पर उस के डाक्टर बाप की इज्जत या प्रेक्टिस की साख पर असर नहीं पड़ेगा?’’

‘‘यह तो मैं ने सोचा ही नहीं था. रेणु के तजरबे के सुझाव ने खुद रेणु को फंसा दिया था पर लगता है तुम्हारा रतन को डराने का तजरबा सफल रहेगा.’’

‘‘होना भी चाहिए, यार. भाभी अपने गलत सुझाव के लिए काफी आर्थिक और मानसिक यातना भुगत चुकी हैं.’’

 

 

डीप फ्रीजर काम बनाएं आसान

घर व बाहर की जिम्मेदारियों के साथ खुद के लिए समय बचाना चाहती हैं, तो जरा डीप फ्रीजर के फायदे को भी जान लीजिए…

आज की भागदौड़ वाली जिंदगी में हम सभी लाइफ को आसान बनाने वाली चीजों की खोज में लगे रहते हैं. शहरों में अधिकांश दंपत्ति कामकाजी होते हैं, जो सुबह जा कर शाम को घर वापस आते हैं। शाम को वापस आने के बाद थकान के कारण वे इस तरह के फूड की तलाश में रहते हैं जो इंस्टैंट और रैडी टु ईट हो.
आजकल अधिकांश लोग खाद्य वस्तुओं को संग्रहित करने के लिए सामान्य से बड़े फ्रिज अथवा डीप फ्रीजर खरीदने को प्राथमिकता देने लगे हैं ताकि इस में वीकेंड पर काफी मात्रा में खाद्यपदार्थों को स्टोर कर के सप्ताहभर तक प्रयोग किया जा सके.
छोटे एकल परिवार जहां सामान्य से बड़े फ्रिज को खरीदना पसंद करते हैं, वहीं अधिक सदस्यों वाले परिवार डीप फ्रीजर को खरीदना पसंद कर रहे हैं.
आजकल बाजार में ट्रिपल डोर, डबल डोर और अलमारी जैसे चौड़ेचौड़े फ्रिजों की भरमार है क्योंकि बड़े फ्रिज का डीप फ्रीजर भी बड़े आकार का होता है. फ्रिज में जहां डीप फ्रीजर के साथसाथ सब्ज़ियों, फलों, दूध और रोज के बचे खाद्यपदार्थों को रखने के लिए भी स्पेस होता है, वहीं डीप फ्रीजर का उपयोग आइसक्रीम, दूध, ठंडे पेय, रैडी टू ईट खाद्यपदार्थों को लंबे समय तक प्रिजर्व करने के लिए किया जाता है.
आमतौर पर घरों में फ्रिज के ही डीप फ्रीजर का उपयोग किया जाता है। हां, बड़े और छोटे साइज के डीप फ्रीजर का प्रयोग व्यवसायिक उपयोग के लिए किया जाता है.
आज हम आप को कुछ ऐसे टिप्स बता रहे हैं, जिस से आप अपने घर के डीप फ्रीजर का बेहतर तरीके से इस्तेमाल कर पाएंगे :
• डीप फ्रीजर चाहे आप के घर के फ्रिज का हो या फिर अलग से, दोनों का ही उपयोग मुख्य रूप से आइसक्रीम, मलाई और सीजनल सब्जियों को स्टोर करने के लिए किया जाता है.
• नीबू, इमली और आम जब सीजन में सस्ते होते हैं तब आप इन का जूस और पल्प निकाल कर क्यूब्स में जमा कर रख दीजिए। इस से एक तो आप का काम काफी आसान हो जाता है, दूसरे आप बाजार के ऐसेंस वाले खाद्यपदार्थ खाने से भी बच जाते हैं. इन के क्यूब्स को आप जिप लौक बैग में भर कर 6 माह तक बहुत आराम से उपयोग कर सकती हैं.
• मटर, कौर्न, सहजन की फली का गूदा आदि को भी आप जिप लौक बैग में भर कर सालभर के लिए स्टोर कर सकती हैं.
• आइस्क्रीम को जमाया भी फ्रिज में ही जाता है और रैडीमेड आइसक्रीम को जस का तस यानी जमा हुआ ही रखने के लिए भी फ्रिज में ही रखा जाता है. आइसक्रीम चाहे घर की जमी हो या बाजार की, 15 दिनों से अधिक नहीं रखनी चाहिए. 15 दिनों के बाद इस का स्वाद बिगड़ जाता है और अजीब सी गंध आनी शुरू हो जाती है.
• हरे धनिए की चटनी या फिर इमली की लाल चटनी को भी आप क्यूब्स में जमा कर 14-15 दिनों तक प्रयोग कर सकतीं हैं. इसे अधिक मात्रा में जमा कर आइस ट्रे में जमा दीजिए और फिर इन क्यूब्स को जिप लौक बैग में रख दीजिए। जब प्रयोग करना हो तो आधे टीस्पून पानी में 2 क्यूब मिला कर गरम कर के प्रयोग कीजिए.
• स्प्रिंग रोल, परांठे, स्माइली, रोटी, बाटी आदि को भी आप 1 माह तक अपने डीप फ्रीजर में एअरटाइट बैग या डब्बे में स्टोर कर सकतीं हैं.
• मोजरेला चीज, पनीर आदि को भी बाजार से ला कर फ्रीजर में रखें। इसे आप पैक्ड तो 1 माह तक रख सकती हैं, पर एक बार खुल जाने के बाद इसे 2 से 3 दिनों के अंदर प्रयोग कर लें अन्यथा यह सूखने लग जाता है.
*रखें इन बातों का ध्यान*
• कुछ घरों में महिलाएं ढेरों पीसे मसाले, मेवे और विभिन्न दालों आदि को फ्रिज के डीप फ्रीजर में रख देती हैं जबकि इन्हें डीप फ्रीजर में तो क्या फ्रिज में भी रखने की आवश्यकता नहीं होती। इन्हें आप किसी भी एअरटाइट जार में रख कर किचन के किसी भी सूखे स्थान पर रख सकती हैं. इस से आप को अपने डीप फ्रीजर में जरूरी खाद्य वस्तुओं को रखने के लिए काफी स्पेस मिल जाता है.
• सिंगल डीप फ्रीजर में चूंकि फ्रिज नहीं होता तो इस में काफी स्पेस होता है। इसलिए इस में सामान को खुला रखने की अपेक्षा जिप लौक बैग्स, छोटीछोटी बास्केट और कंटेनर्स में भर कर रखें और उन पर लेवल लगाएं ताकि प्रयोग करने में आसानी रहे.
• अपने फ्रिज के डीप फ्रीजर में भी खाद्य वस्तुओं को व्यवस्थित तरीके से रखें ताकि आप अधिक से अधिक स्पेस का उपयोग कर पाएं.
• आजकल तो नई तकनीक के फ्रिज आते हैं, जिन में डीप फ्रीजर में औटोमेटिक डिफ्रौस्टिंग की सुविधा होती है, पर यदि आप के फ्रिज में यह सुविधा नहीं है तो आप रात को सोने से पहले डिफ्रौस्टिंग का स्विच दबा दें ताकि डीप फ्रीजर में जमी अतिरिक्त बर्फ पिघल कर निकल जाए और डीप फ्रीजर में अपना काम अच्छी तरह कर पाए.
• माह में एक बार अपने डीप फ्रीजर की सफाई जरूर करें ताकि अतिरिक्त और अनुपयोगी सामान को हटाया जा सके.
• डीप फ्रीजर को बारबार न खोलें क्योंकि इस से उस की कार्यक्षमता पर विपरित प्रभाव पड़ता है.
• डीप फ्रीजर में जमी बर्फ को हटाने के लिए कभी भी चाकू, चिमटा या पेचकस का प्रयोग करने के स्थान पर इसे डिफ्रौस्ट करें ताकि बर्फ पिघल कर निकल जाए.
• डीप फ्रीजर में संरक्षित की गईं  खाद्य वस्तुओं को लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए आवश्यक है कि फ्रिज लगातार बिना किसी अवरोध के चलता रहे.

क्या है ब्रेन स्ट्रोक, जानें इससे बचने के उपाय

पक्षाघात यानी ब्रेन स्ट्रोक दिमाग के किसी भाग में ब्लड सप्लाई बाधित होने या कम होने से होता है. दिमाग में औक्सीजन और पोषक तत्त्वों की कमी से ब्लड वैसेल्स यानी रक्त वाहिकाओं के बीच ब्लड क्लोटिंग की वजह से उस की क्रियाएं बाधित होने लगती है, इस कारण दिमाग की पेशियां नष्ट होने लगती है जिस से दिमाग अपना नियंत्रण खो देता है, जिसे स्ट्रोक सा पक्षाघात कहते हैं. यदि इस का इलाज समय पर नहीं कराया जाए तो दिमाग हमेशा के लिए डैमेज हो सकता है. व्यक्ति की मौत भी हो सकती है.

आज विश्व में करीब 80 मिलियन लोग स्ट्रोक से ग्रस्त हैं, 50 मिलियन से ज्यादा लोग स्थाई तौर पर विकलांग हो चुके हैं. ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ के अनुसार 25% ब्रेन स्ट्रोक के मरीजों की उम्र 40 वर्ष है. इस बात को ध्यान में रखते हुए हर साल 29 अक्तूबर को ‘वर्ल्ड स्ट्रोक डे’ मनाया जाता है, जिस का उद्देश्य स्ट्रोक की रोकथाम, उपचार और सहयोग के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाना है.

मुंबई के अपैक्स सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटल के वरिष्ठ मस्तिष्क रोग स्पैशलिस्ट एवं न्यूरोलौजिस्ट डा. मोहिनीश भटजीवाले बताते हैं कि दुनियाभर में ब्रेन स्ट्रोक को मौत का तीसरा बड़ा कारण माना जा रहा है. केवल भारत में हर 1 मिनट में 6 लोगों की मौत हो रही है, क्योंकि यहां ब्रेन स्ट्रोक जैसी मैडिकल इमरजैंसी की स्थिति में इस के लक्षणों, कारणों, रोकथाम और तत्काल उपायों के प्रति जनजागरूकता का बहुत अभाव है जबकि ब्रेन स्ट्रोक के मरीजों को तत्काल उपचार से उन के अच्छे होने के चांसेस 50 से 70% तक बढ़ जाते हैं.

प्रमुख कारण

डा. भटजीवाले के अनुसार, आज की भागदौड़ की जिंदगी में मानसिक तनाव, लाइफस्टाइल, स्मोकिंग, ड्रिंकिंग, हाई ब्लडप्रैशर, डायबिटीज, मोटापा इत्यादि ब्रेन स्ट्रोक के लिए जिम्मेदार हैं. इन के अलावा आरामदायक या लगातार बैठ कर काम करने की शैली भी दिमाग और हृदय संबंधित बीमारियों को न्योता दे रही है. इन्हीं कारणों के चलते युवाओं में यह बीमारी तेजी से फैल रही है.

इन सभी कारणों के अलावा जो 80% लोगों को नहीं पता है वह है वातावरण और मौसम में असामान्य परिवर्तन, जो हमारी स्किन और ब्रेन को विपरीत ढंग से प्रभावित कर रहे हैं. इस के परिणाम आने वाले दिनों में घातक सिद्ध हो सकते हैं. इस के लिए पेड़ों की कटाई मुख्यतौर से जिम्मेदार है.’’

डा. सिद्धार्थ खारकर, न्यूरोलौजिस्ट, वक्हार्ड्ट हौस्पिटल, मीरा रोड के अनुसार, ‘‘ब्रेन स्ट्रोक को आमतौर पर नजरअंदाज किया जाता है, जबकि हर 6 में से 1 व्यक्ति जिंदगी में कभी न कभी इस की चपेट में आता ही है. सर्दियों के मौसम में इस की आशंका और अधिक बढ़ जाती है. हार्ट अटैक, कैंसर और डायबिटीज जैसी बीमारियों को जितनी गंभीरता से लिया जाता है उतनी गंभीरता से ब्रेन स्ट्रोक को नहीं लिया जा रहा है. टाइप-2 डायबिटीज के मरीजों में इस का खतरा ज्यादा रहता है. हाई ब्लड प्रैशर और हाइपरटैंशन के मरीज इस की चपेट में जल्दी आ जाते हैं. गर्भनिरोधक गोलियों के सेवन और कोलैस्ट्रौल का बढ़ता स्तर भी ब्रेन स्ट्रोक को निमंत्रण देता है.’’

ब्रेन स्ट्रोक के लक्षण

पूरे शरीर में दिमाग का काम बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण होता है. ऐसे में यदि शरीर की अन्य बीमारियों को नजरअंदाज किया गया तो ये हमारे दिमाग को विपरीत ढंग से प्रभावित करती हैं. ब्रेन स्ट्रोक के संकेत के तौर पर मुंह, हाथ व पैर का टेड़ा होना, चक्कर आना, सिरदर्द, आंखों से धुंधला दिखाई देना, बोलने और चलने में समस्या, पीठ दर्द इत्यादि प्रमुख लक्षण होते हैं. स्ट्रोक नौनब्लीडिंग व ब्लीडिंग दोनों तरह का होता है जिस में दिमाग की नसों में सूजन हो जाती है या फिर नसें फट जाती हैं.

स्ट्रोक के प्रकार के अनुसार इलाज

डा. भटजीवाले के अनुसार ब्रेन स्ट्रोक में तत्काल चिकित्सा बहुत जरूरी है. यह उपचार स्ट्रोक शुरू होने के 3-4 घंटों के अंदर किया जाए, तो दिमाग की क्षति और संभावित परेशानियों को कम किया जा सकता है. उदाहरण के तौर पर 3 घंटे के अंदर क्लोट बस्टिंग दवा देनी जरूरी होती है. इस के बाद डाक्टर द्वारा पूरी जांच यानी सीटीस्कैन, एमआरआई इत्यादि करने के बाद स्ट्रोक का इलाज शुरू किया जाता है, जिस का उद्देश्य दिमाग की क्षति को रोकना होता है.

यदि स्ट्रोक दिमाग में ब्लड सप्लाई बाधित होने के कारण हुआ है तो उस के उपचार निम्नलिखित हैं:

  • नौनब्लीडिंग ब्रेन स्ट्रोक होने के 3 घंटों के अंदर क्लोट बस्टिंग ड्रग का इंजैक्शन दिया जाना बहुत जरूरी होता है, साथ ही ब्लड को पतला करने की दवा भी दी जाती है ताकि ब्लड न जमे. इस के अलावा सर्जरी भी की जाती है, जिस में गरदन की संकुचित ब्लड वैसेल्स को खोला जाता है.
  • यदि ब्लीडिंग के कारण ब्रेन स्ट्रोक हुआ हो तो ऐसी दवा दी जाती है जो नौर्मल ब्लड क्लोटिंग को बनाए रखने में मदद करती है. दिमाग से ब्लड को हटाने या दबाव कम करने के लिए सर्जरी की जाती है. टूटी ब्लड वैसेल्स रिपेयर करने के लिए सर्जरी की जाती है. ब्लीडिंग को रोकने के लिए क्वाइल यानी तार का इस्तेमाल किया जाता है. दिमाग में सूजन होने से बचने या रोकने के लिए दवा दी जाती है. इस के अलावा दिमाग के खाली हिस्से में ट्यूब डाल कर दबाव कम करने का प्रयास किया जाता है.

अफेसिया होने का खतरा

स्ट्रोक के बाद मरीज में शारीरिक और मानसिक अक्षमता होने की आशंका अधिक होती है, जो स्ट्रोक से प्रभावित हिस्से और आकार पर निर्भर करती है. नैशनल अफेसिया ऐसोसिएशन की रिपोर्ट के अनुसार, 25 से 40% ब्रेन स्ट्रोक के मरीज अफेसिया की चपेट में आ जाते हैं. यह एक ऐसी स्थिति है जो मरीज के बोलने, लिखने और व्यक्त करने की क्षमता को प्रभावित करती है, जिसे ‘लैंग्वेज डिसऔर्डर’ भी कहा जाता है. यह बीमारी ब्रेन ट्यूमर, ब्रेन इन्फैक्शन, अल्जाइमर इत्यादि के कारण होती है. कई मामलों में अफेसिया को ऐपिलैप्सी व अन्य न्यूरोलौजिकल डिसऔर्डर के संकेत के तौर पर भी देखा जाता है.

रिहैबिलिटेशन होता है सहायक

ब्रेन स्ट्रोक के कारण हुई क्षति को दूर करने में रिहैबिलिटेशन यानी पुनरुद्धार बहुत हद तक मदद करता है. रिहैबिलिटेशन से बहुत से मरीजों का स्वास्थ्य बेहतर हो जाता है. हालांकि कुछ पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाते हैं. डैड स्किन सैल्स, नर्व सैल्स को ठीक या प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता है, लेकिन मनुष्य का दिमाग फ्लैक्सिबल होता है. इस में मरीज हानिरहित ब्रेन सैल्स का उपयोग कर काम करने के नए तरीकों को सीख सकता है. ऐसे मरीजों के जीवन को सही देखभाल, साथ और प्रोत्साहन के जरीए सार्थक बनाया जा सकता है.

मेरे आईब्रोज बनाने वाली ब्यूटाशिन ने उसे बहुत ही पतला कर दिया था क्या करू

सवाल

मेरे आईब्रोज बनाने वाली ब्यूटीशियन ने 1 साल पहले मेरी आईब्रोज को बहुत ही पतला कर दिया था. एक आईब्रोज पतली और एक मोटी भी है. समझा नहीं आ रहा क्या करूं क्योंकि अब आईब्रोज में बाल भी नहीं आ रहे. प्लीज हैल्प कीजिए?

जवाब

जब आईब्रोज में बाल आने बंद हो जाएं तो उन को उगाया नहीं जा सकता. इस के लिए आप परमानैंट मेकअप का सहारा ले सकती हैं. इस मेकअप से दोनों आईब्रोज को एक शेप में किया जा सकता है. इस से कुछ ही मिनट में आप की आईब्रोज बहुत ही खूबसूरत बन जाएंगी. यह बहुत ही सेफ तकनीक है क्योंकि इस में उपयोग होने वाला मैटीरियल इंपोर्टेड होता है और सरकार द्वारा पास होता है. बस ध्यान रखने की जरूरत है कि करने वाला बहुत एक्सपर्ट होना चाहिए वरना आप की आर्ब्रोज हमेशा के लिए खराब भी हो सकती हैं. यह भी ध्यान रखें कि जहां भी आप परमानैंट आईब्रोज बनवाएं वहां हाइजीन का खास ध्यान रखा जाता हो. आप की नीडल भी नई होनी चाहिए ताकि किसी से इन्फैक्शन का खतरा न हो. कलर भी ध्यान से चूज कीजिए जोकि आप के बालों से या आप की आईब्रोज के साथ मैच करें.

गर्मियों में ट्राई करें ये स्पेशल स्नैक्स ऐंड ड्रिंक्स

शाम के स्नैक्स और ड्रिंक्स बनाने के लिए कुछ स्पेशल रेसिपीज करें ट्राई…

 

खील के पकौड़े

सामग्री

2 कप खील

1/4 कप बेसन

2 बड़े चम्मच अरारोट

2 छोटे चम्मच हरीमिर्च बारीक कटी

1 बड़ा चम्मच धनियापत्ती बारीक कटी

1/2 छोटा चम्मच अमचूर पाउडर

1/4 छोटा चम्मच कालीमिर्च कुटी

1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

1/4 छोटा चम्मच काला नमक

1/2 छोटा चम्मच सौंफ

तलने के लिए सुमन कच्चीघानी मस्टर्ड औयल

सादा नमक स्वादानुसार.

विधि

तेल को छोड़ कर बाकी सारी सामग्री एक बाउल में डाल कर अच्छी तरह मिलाएं. आवश्यकतानुसार इतना पानी मिलाएं कि बेसन और मसाले खीलों पर अच्छी तरह लिपट जाएं. तेज आंच पर कड़ाही में तेल गरम करें. खीलों के मिश्रण का 1-1 छोटा चम्मच पकोड़ों की तरह गरम तेल में डाल कर आंच धीमी कर लें. सुनहरा होने तक पकौड़े तल कर हरी चटनी के साथ गरमगरम सर्व करें.

  ऐप्पल हनी हौट ड्रिंक

सामग्री

2 सेब मीडियम साइज के

2 लौंग

1/2 इंच टुकड़ा दालचीनी

3 कप पानी

2 छोटे चम्मच ग्रीन टी लीफ

2 छोटे चम्मच शहद

2 फांकें नीबू

थोड़ी सी पुदीनापत्ती.

विधि

सेबों को छील कर छोटे टुकड़े कर लें. एक प्रैशरकुकर में 3 कप पानी, लौंग और दालचीनी डाल 1 सीटी आने तक पकाएं. मिश्रण छानें, पुन: उबालें व ग्रीन लीफ टी डालें. 2 कप में ड्रिंक डालें व प्रत्येक कप में 1-1 चम्मच शहद डाल दें. नीबू की फांकों से सजा पुदीनापत्ती ड्रिल??? में डाल कर सर्व करें.

आंवला हर्बल ड्रिंक

सामग्री

द्य 200 ग्राम आंवले

द्य 1/2 छोटा चम्मच जीरा पाउडर

द्य 1/4 छोटा चम्मच कालीमिर्च

द्य 1/2 छोटा चम्मच काला नमक

द्य 3 बड़े चम्मच शहद

द्य 1 बड़ा चम्मच चीनी

द्य थोड़ा ठंडा पानी

द्य थोड़ी सी बर्फ कुटी थोड़ी सी पुदीनापत्ती.

विधि

आंवलों की गुठलियां निकाल कर मिक्सी में बिना पानी डालें पीस लें. कपड़े से छानें. शहद और चीनी के साथ एक उबाल आने तक पकाएं. ठंडा होने पर पुदीनापत्ती कुचल कर व अन्य सामग्री मिलाएं. सर्विंग गिलास में 1/4 कप मिश्रण डाल ठंडा पानी डाल दें.

 फ्रैशफ्रूट सलाद

विद हनी

सामग्री

3 कप मिक्स्ड फ्रैश फू्रट्स (स्ट्राबेरी, किवी, केला, सेब आदि) कटे हुए

1/4 कप हैंग कर्ड

1 छोटा चम्मच नींबू को रस

बड़े चम्मच शहद

1/2 छोटा चम्मच दालचीनी पाउडर

छोटा चम्मच काला नमक

1/4 छोटा चम्मच कालीमिर्च चूर्ण

1 बड़ा चम्मच चौकलेट सौस.

विधि

कटे फलों पर नीबू का रस डाल कर मिक्स करें. हैंग कर्ड में शहद, दालचीनी पाउडर, काला नमक और कालीमिर्च चूर्ण मिला कर फलों पर डाल दें. सजावट के लिए थोड़ी सी चौकलेट सौस डालें.

 

   हनी चिली ढोकला

सामग्री

1 कप बेसन

2 बड़े चम्मच सूजी

1/4 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

1 बड़ा चम्मच अदरक व हरीमिर्च पेस्ट

1 बड़ा चम्मच शहद

1 बड़ा चम्मच रिफाइंड औयल

2 छोटे चम्मच नीबू का रस

1/2 छोटा चम्मच बेकिंग सोडा

नमक स्वादानुसार.

सामग्री तड़के के लिए

1 बड़ा चम्मच रिफाइंड औयल

1/2 छोटा चम्मच राई

3 मोटी हरीमिर्च छोटे टुकड़ों में कटी

4-5 करीपत्ते

1 बड़ा चम्मच शहद

2 छोटे चम्मच नीबू का रस

2 बड़े चम्मच ताजा नारियल कद्दूकस किया सजाने के लिए.

विधि

बेसन में बेकिंग सोडा डाल कर सभी सामग्री मिला लें. कुनकुने पानी से पकौड़े लायक गाढ़ा घोल तैयार करें. एक चिकनाई लगे कंटेनर में मिश्रण पलटें. भाप में तेज आंच पर 10 मिनट पकाएं, चाकू से चैक कर लें कि ढोकला कच्चा तो नहीं है. तेल गरम कर के उस में राई, करीपत्ते व हरीमिर्च का तड़का तैयार करें. उस में 1 कप पानी डालें. जब पानी उबलने लगे तब शहद और नीबू का रस डाल दें. आंच बंद करें और तड़के को ढोकले पर फैला दें. ढोकले के टुकड़े काट उन पर नारियल बुरक दें.

 

Summer Tips: जानें क्या है डार्क सर्कल्स हटाने के आसान तरीके

कहते हैं आंखें दिल का हाल बयां करती हैं, मगर आप शायद यह नहीं जानते कि आंखें सेहत का हाल भी सुनाती हैं. स्वस्थ चमकदार आंखों की तुलना में थकीथकी, डार्क सर्कल्स से घिरी आंखें आप की गलत जीवनशैली और खराब सेहत का संकेत देती हैं. साथ ही आप को उम्रदराज भी दिखाती हैं. मेकअप से डार्क सर्कल्स छिपाने की कितनी भी कोशिश की जाए ये छिपते नहीं हैं.

क्यों होते हैं डार्क सर्कल्स

डार्क सर्कल्स अस्तव्यस्त जीवनशैली, हारमोंस में परिवर्तन, आनुवंशिकता, तनाव आदि कई कारणों से हो सकते हैं.

थकान और तनाव: महिलाएं अपनी सेहत के प्रति लापरवाह होती हैं. पूरा दिन घर वालों की फरमाइशें पूरी करने में लगी रहती हैं. उन्हें अपने खानेपीने या आराम करने का होश नहीं रहता. औफिस जाने वाली महिलाओं पर काम का दोहरा बोझ होता है. इस तरह तनाव, शारीरिक थकावट और नींद की कमी उन की आंखों के नीचे काले घेरों के रूप में उभरने लगती है.

बीमारी: ऐनीमिया, किडनी रोग, टीबी, टाइफाइड जैसी कई बीमारियों में कमजोरी से आंखों के नीचे काले घेरे बन सकते हैं.

पानी की कमी: डिहाईड्रेशन की वजह से अकसर इस तरह की समस्या पैदा हो जाती है. कम पानी पीने से शरीर में ब्लड सर्कुलेशन सही ढंग से नहीं हो पाता, जिस से आंखों के नीचे की नसों को पूरा खून नहीं मिल पाता. नतीजतन डार्क सर्कल्स हो जाते हैं.

नशा: धूम्रपान, शराब, कैफीन या और किसी तरह का नशा करने की आदत भी डार्क सर्कल्स की वजह बन सकती है.

पिगमैंटेशन: तेज धूप में ज्यादा रहने से भी डार्क सर्कल्स पड़ जाते है.

मेकअप: आंखों के नीचे की त्वचा काफी पतली और सैंसिटिव होती है. गलत मेकअप प्रोडक्ट्स का प्रयोग डार्क सर्कल्स की वजह बन सकता है.

सोडियम और पोटैशियम की अधिकता: भोजन में इन की ज्यादा मात्रा से डार्क सर्कल्स हो सकते हैं. बींस, पीनट बटर, योगर्ट, दूध, टमाटर, संतरे, आलू वगैरह में पोटैशियम अधिक मात्रा में पाया जाता है. अधिक नमक की वजह से भी शरीर में सोडियम अधिक मात्रा में पहुंच जाता है.

ऐलर्जी पैदा करने वाले खाद्यपदार्थ: डार्क सर्कल्स किसी खास खाद्यपदार्थ के प्रति ऐलर्जिक रिएक्शंस या सैंसिटिविटी का नतीजा भी हो सकते हैं. चौकलेट, मटर, यीस्ट, खट्टे फल, चीनी आदि सामान्य ऐलर्जिक फूड्स हैं.

क्या है उपाय

संतुलित और पौष्टिक भोजन: कोशिश करें कि आप के भोजन में विटामिन और आयरनयुक्त खाद्यपदार्थ पर्याप्त मात्रा में हों जैसे हरी पत्तेदार सब्जियां, फलियां, मौसमी फल, मछली, अंडे आदि.

नींद: वैसे तो हर व्यक्ति के लिए नींद की जरूरत अलगअलग होती है, फिर भी औसतन एक युवा महिला को 6-7 घंटे की नींद जरूर लेनी चाहिए. कोशिश करें कि रोज रात में जल्दी सोएं और सुबह जल्दी उठें.

आंखों को तेज धूप से बचाएं: अपनी आंखों को अल्ट्रावायलेट किरणों के संपर्क में न आने दें. जब भी तेज धूप में निकलना हो काला चश्मा जरूर पहनें.

विटामिन सप्लिमैंट्स: विटामिन बी 12, बिटामिन ए, के, ई या डी, फौलिक एसिड आदि की कमी से भी डार्क सर्कल्स हो सकते हैं. इस के लिए डाक्टर की सलाह से मल्टीविटामिन और दूसरे सप्लिमैंट्स ले सकती हैं.

खूब पानी पीएं: दिनभर में 7-8 गिलास पानी जरूर पीएं. डिहाइड्रेशन से बचने के लिए जूस, सूप और दूसरे पौष्टिक पेयपदार्थ भी बीचबीच में लेती रहें.

दूध: दूध लैक्टिक एसिड, अमीनो एसिड, ऐंजाइम्स, प्रोटीन और दूसरे कई ऐंटीऔक्सीडैंट्स के गुणों से भरपूर होता है. अत: दिन में 2 बार दूध पीने की आदत डालें.

कंसीलर: एक अच्छी क्वालिटी का कंसीलर उपयोग में लाएं, जो त्वचा की टोन से मिलता हो. इस की सहायता से डार्क सर्कल्स कवर करें. फिर पाउडर बुरक कर इसे सैट कर लें.

स्किन पैच टैस्ट करें: जो उत्पाद त्वचा पर जलन पैदा करे या रैशज लाए, आंखों में दर्द या पानी आने की वजह बने उस का उपयोग तुरंत बंद कर दें.

नो ऐंट्री: आखिर निशांत से क्यों छुटकारा पाना चाहती थी ईशा

ईशा एक सुखमय वैवाहिक जीवन बिता रही थी. मगर तभी उस के जीवन में निशांत का आगमन हो गया, जो एक शातिर आदमी था. अब ईशा इस रिश्ते से छुटकारा पाना चाहती थी. क्या इतना आसान था…

‘‘तुम्हीं  मेरे हर पल में, तुम आज में तुम कल में.’’ ‘‘हे शोना, हे शोना,’’ एफएम पर चल रहे गाने के साथ गुनगुनाती ईशा अपने विवाहित जीवन में काफी प्रसन्न थी. कालेज पूरा होतेहोते उस की शादी हो गई. उस ने जैसे जीवनसाथी की कल्पना की, मयूर ठीक वैसा ही निकला. देखने में आकर्षक कहना ठीक होगा. वैसे ईशा के मुकाबले मयूर उन्नीस ही था किंतु वह जानती थी कि लड़कों की सूरत से ज्यादा सीरत परखना आवश्यक होता है. आखिर ताउम्र का साथ है. ईशा ने अपनी पूरी होशियारी दर्शाते हुए मयूर का चयन किया. ईशा जैसी खूबसूरत लड़की के लिए रिश्तों की कमी न थी. कई परिवार के जरीए आए तो कई मजनू जिंदगी में वैसे भी टकराए किंतु वह अपना जीवनसाथी उसी को चुनेगी जो उस के मानदंडों पर खरा उतरेगा.

मयूर अपनी शराफत, प्यार करने की काबिलियत और सचाई के कारण अव्वल आया.

2 वर्ष पूर्व जब मयूर एक कजिन की शादी में उस से टकराया तब उसे पहली नजर में वह एक शांत, सुशील और विनम्र लड़का लगा. फोन नंबर ऐक्सचेंज होते ही कितने अच्छे और मिठास भरे मैसेज भेज कर मयूर ने ईशा का मन पिघला दिया और उस ने इस रिश्ते के लिए जल्द ही हामी भर दी. चट मंगनी पट ब्याह कर ईशा मयूर के घर आ गई.

तब से ले कर आज तक दोनों एकदूसरे के प्यार में डुबकियां लगाते आए हैं. प्रेम का सागर होता ही इतना मीठा है कि चाहे जितनी बार गोते लगा लो यह प्यास नहीं बु?ाती. एकदूसरे के साथ सामंजस्य बैठाते हुए दोनों ने धीरेधीरे अपनी जिंदगी को रोजमर्रा की पटरी पर दौड़ने के लायक बना लिया. मयूर एक प्राइवेट कंपनी में उच्च पदासीन, ईशा की हर चाह को जबान पर आने से पहले ही पूरा कर दिया करता. ईशा पूरे आनंद के साथ घर संभालने लगी. विवाहित जीवन सुखमय था. इस से ज्यादा की कामना भी नहीं थी ईशा को.

‘‘इस शनिवार को हमारी कंपनी ने फैमिली डे का आयोजन रखा है. मेरी कंपनी हर साल यह आयोजन करती है जिस में सभी अपने परिवारों के साथ आते हैं. खूब धूम मचती है, तरहतरह के खेल खिलाए जाते हैं, खानापीना, नाचनागाना. सब एकदूसरे के परिवारों के सदस्यों से भी मिल लेते हैं. पिछली बार तुम अपने मायके गई हुई थीं इसलिए अब की बार तुम पहली बार सब से मिलोगी.’’

‘‘अच्छा, फिर तो बहुत मजा आएगा. इसी बहाने मैं तुम्हारी कंपनी के सहकर्मियों व उन के परिवारों से मिलूंगी,’’ मयूर की बात सुन ईशा भी खुश हो गई.

शनिवार को मयूर की मनपसंद मोरिया नीले रंग की पटोला साड़ी में ईशा का गोरा रंग और भी निखर आया. उस पर सोने का हलका सैट पहनने से मानो उस की खूबसूरती में चार चांद लग गए. सलीके से किया मेकअप और स्ट्रेटन किए कमर तक लहराते बाल. ईशा को ले कर जैसे ही मयूर पार्टी में दाखिल हुआ सब निगाहें उस की ओर उठ गईं. जोड़ी वाकई काबिले तारीफ लग रही थी.

फैमिली डे पर कहीं कोई भेदभाव नहीं था. जैसे कंपनी का मैनेजमैंट वैसे

ही कंपनी के कर्मचारी और उसी तरह कंपनी के वर्कर्स के साथ भी बरताव किया जा रहा था. सभी अपनेअपने परिवार के साथ घुलमिल रहे थे. कुछ ही देर में नाचगाना शुरू हुआ. कंपनी में काम करने वाले कुछ वर्कर्स आए और मयूर को कंधों पर उठा कर डांस फ्लोर की ओर ले गए. यह दृश्य देख कर ईशा का मन बागबाग हो गया. अपने पति के प्रति उस के मातहतों का इतना प्यार देख कर उसे आज मयूर पर नाज हो उठा. आज फैमिली डे में आ कर ईशा को ज्ञात हुआ कि मयूर अपने परिश्रमी स्वभाव के कारण अपनी कंपनी में कितना चहेता है.

तभी एक हैंडसम नवयुवक ईशा के पास की कुरसी खींच कर बैठते हुए बोला, ‘‘हाय, मेरा नाम निशांत है. मैं मयूर का दोस्त हूं. आप की शादी में भी आया था पर इतने लोगों के बीच शायद मुलाकात याद न रही हो.’’

ईशा उस मुलाकात को कैसे भूल सकती थी भला. उसे अपनी शादी का वह मंजर याद हो आया जब मयूर के सभी दोस्त स्टेज पर आ कर फोटो खिंचवा रहे थे. तब सभी मित्र दूल्हादुलहन बने मयूर और ईशा को घेर कर आगेपीछे खड़े होने लगे.

इतने में निशांत हंस कर ईशा के पास आ गया, ‘‘हम तो अपनी दुलहनिया के पास बैठेंगे,’’ और उसी के सोफे पर उस से चिपक कर बैठ गया. अपनी बांह ईशा के गले में डालते हुए उस

ने फोटोग्राफर से कहा, ‘‘अब खींच ले, भाई, हमारा फोटो.’’

ईशा को निशांत का नाम तब ज्ञात नहीं था किंतु उसे उस की दिलेरी बहुत भा गई. वह स्वयं भी एक बिंदास लड़की होने के कारण निशांत द्वारा भरी सभा में खुलेआम की गई यह हरकत उसे आकर्षित कर गई.

मयूर बेहद नियमानुसार चलने वाला लड़का था. हर बात घर वालों के कहे अनुसार करना, हर निर्णय लेने से पहले बड़ों से पूछना, छोटे से छोटे कानून का पालन करना. उस के साथ रहने पर ईशा भी एक सीधीसादी लड़की की भांति रहने लगी क्योंकि आखिर यह एक अरेंज्ड मैरिज थी और वह चाहती थी कि मयूर आरंभ से उस से प्रभावित हो जाए.

आज ईशा ने निशांत को यहां देखने की उम्मीद नहीं की थी किंतु जब वह सामने आया तो वह अनजान बनी रही, ‘‘ठीक कह रहे हैं आप. शादी के समय कितने लोगों से मिलनाजुलना होता है वह कहां याद रह पाता है. आप भी मयूर के ही डिपार्टमैंट में काम करते हैं?’’

‘‘जी नहीं, मैं तो औपरेशंस में हूं. देखा आप ने, मयूर को वर्कर्स कितना पसंद करते हैं. बहुत सीधा है. सब से घुलमिल जाता है.’’

‘‘जी,’’ ईशा के चेहरे की मुसकराहट थमने का नाम नहीं ले रही थी.

‘‘डांस करना पसंद करेंगी?’’ कहते हुए निशांत ने अपना सीधा हाथ आगे बढ़ाया. ईशा आगे कुछ सोच पाती उस से पहले निशांत बोला, ‘‘मयूर बुरा नहीं मानेगा, उसे वर्कर्स के साथ डांस करने में ज्यादा मजा आ रहा है.’’

आज निशांत ने पुन: ईशा के समक्ष अपनी अपरंपरागत सोच दर्शाई. कुछ न कहते हुए ईशा निशांत के साथ डांस फ्लोर पर उतर गई. नाचतेनाचते निशांत कहने लगा, ‘‘कहां आप इतनी स्मार्ट और आकर्षक और कहां मयूर. मेरा मतलब है आप की स्मार्टनैस के आगे मयूर थोड़ा भोंदू ही लगता है.’’

ईशा के अचकचा कर देखने पर निशांत ने आगे कहा, ‘‘बुरा मत मानिएगा, मेरा दोस्त है इसलिए कह सकता हूं.’’

मयूर के आने पर निशांत बोला, ‘‘हूर के साथ लंगूर कैसे?’’

मगर उत्तर में मयूर केवल हंसता रहा. फिर सारी पार्टी में निशांत ईशा के आसपास ही घूमता रहा. कभी उस के लिए रसमलाई लाता तो कभी कोक का गिलास. उस की उपस्थिति में निशांत मयूर की हंसी भी उड़ाता रहा और मयूर सबकुछ सुन कर हंसता रहा.

‘‘यह निशांत कैसा लड़का है?’’

‘‘बहुत अच्छा लड़का है. मेरा बहुत अच्छा दोस्त है. बहुत इंटैलिजैंट है. अपने डिपार्टमैंट का हीरा है,’’ मयूर ने निशांत की प्रशंसा के पुल बांध दिए, ‘ठीक ही कह रहा था वह. मयूर वाकई भोंदू है जो यह नहीं सम?ाता कि कौन उस का सच्चा दोस्त है और कौन नहीं,’ ईशा सोच में पड़ गई. ईशा निशांत की उस से फ्लर्ट करने की कोशिश भली प्रकार सम?ा रही थी. निशांत की ये हरकतें ईशा को बुरी नहीं लगीं अपितु मन के किसी कोने में पुलकित कर गईं.

उसी हफ्ते एक दुपहरी ईशा को एक फोन आया, ‘‘सरप्राइस कर दिया न तुम्हें? देखा, कितना स्मार्ट हूं मैं, तुम्हारा नंबर निकाल लिया,’’ दूसरी ओर से निशांत की विजय से ओतप्रोत हंसी की आवाज आई.

मगर ईशा इतनी जल्दी प्रभावित होने वाली कहां थी. अपने पीछे मजनुओं की पंक्तियों की उसे आदत थी, ‘‘कभीकभी ज्यादा स्मार्टनैस भारी पड़ जाती है. जनाब, अपना नाम तो बताइए,’’ ईशा ने पलटवार किया.

‘‘सेव कर लो यह नंबर,’’ निशांत बोला, ‘‘निशांत बोल रहा हूं, मैडम. मैं ने तुम दोनों को अपने घर लंच पर बुलाने के लिए फोन किया है. मयूर को मैं औफिस में ही न्योता दे चुका हूं पर तुम्हें भी निजी तौर पर आमंत्रित करना चाहता था इसलिए फोन किया,’’ उस ने अपनी बात पूरी की.

शाम को जब मयूर घर लौटा तो ईशा ने निशांत के फोन की बात बताई.

‘‘हां, पता है. मु?ा से ही तुम्हारा नंबर लिया था उस ने,’’ मयूर ने लापरवाही से कहा.

‘‘मेरा नंबर देने की क्या जरूरत थी? तुम्हें बुलाया, मु?ो बुलाया, एक ही बात है,’’ ईशा इस सिलसिले में मयूर की मानसिकता टटोलना

चाहती थी.

‘‘क्या फर्क पड़ता है… उस का मन था तुम से बात करने का,’’ मयूर ने सरलता से कहा, ‘‘इस रविवार दोपहर का लंच हम निशांत के साथ करेंगे. बहुत दूर नहीं है उस का घर.’’

रविवार को ईशा ने फूलों की प्रिंट वाली ड्रैस के साथ हाई हील्स पहनीं

और अपने बालों को हाई पोनीटेल में बांध लिया. इस वेशभूषा में वह अपनी साड़ी वाली छवि से बिलकुल उलट लग रही थी.

इस नए अवतार में निशांत ने ईशा देखा तो वह पूरे जोरशोर से उस के इर्दगिर्द चक्कर लगाने लगा. उसे लगने लगा मानो ईशा उसे अपने व्यक्तित्व का हर रंग दिखाना चाहती है. पाश्चात्य परिधान में उसे देख कर निशांत उस पर और भी मोहित हो गया, ‘‘अरे… रे… रे… मैं तो तुम्हें भारतीय नारी सम?ा था पर तुम तो दोधारी तलवार निकलीं. बेचारा मयूर. उस के पास तो ऐसी तलवार के लायक कमान भी नहीं है,’’ धीरे से ईशा के कानों में फुसफुसा कर कहता हुआ निशांत साइड से निकल गया.

मन ही मन ईशा हर्षाने लगी. शादीशुदा होने के उपरांत भी उस में आशिक बनाने की कला जीवित थी, यह जानकर वह संतुष्ट हुई. उस पर ऐसा भी नहीं था कि निशांत मयूर की आंख बचा कर यह सब कह रहा था. उस दिन निशांत, मयूर के सामने भी कई बार ईशा से फ्लर्ट करने की कोशिश करता रहा और मयूर हंसता रहा.

घर लौटते समय ईशा ने मयूर से निशांत की शिकायत की, ‘‘देखा तुम ने, निशांत कैसे फ्लर्ट करने की कोशिश करता है.’’

वह नहीं चाहती थी कि मयूर के मन में उस के प्रति कोई गलतफहमी हो जाए.

ईशा की बात को मयूर ने यह कह कर टाल दिया, ‘‘निशांत तो है ही मनमौजी किस्म का लड़का और फिर तुम उस की भाभी लगती हो. देवरभाभी में तो हंसीमजाक चलता रहता है. पर तुम उसे गलत मत सम?ाना, वह दिल का बहुत साफ और नेक लड़का है.’’

अगले हफ्ते मयूर कंपनी के काम से दूसरे शहर टूर पर गया. रोज की तरह ईशा दोपहर में कुछ देर सुस्ता रही थी कि अचानक दरवाजे की घंटी बजी. किसी कूरियर बौय की अपेक्षा करती ईशा ने जब दरवाजा खोला तो सामने निशांत को खड़ा देख वह हैरान रह गई, ‘‘तुम… इस वक्त यहां? लेकिन मयूर तो औफिस के काम से बाहर गए हैं.’’

‘‘मु?ो पता है. मैं तुम से ही मिलने आया हूं. अंदर नहीं बुलाओगी,’’ निशांत की साफगोई पर ईशा मन ही मन मोहित हो उठी. ऊपर से चेहरे पर तटस्थ भाव लिए उस ने निशांत को अंदर आने का इशारा किया और स्वयं सोफे पर बैठ गई.

निशांत ठीक उस के सामने बैठ गया, ‘‘अरे

यार, तुम्हारे यहां घर आए मेहमान को चायकौफी पूछने का रिवाज नहीं है क्या?’’

‘‘मैं ने सोचा औफिस के टाइम पर यहां आए हो तो जरूर कोई खास बात होगी. पहले वही सुन लूं,’’ ईशा ने अपने बालों में उंगलियां घुमाते हुए कहा. निशांत के साथ ईशा का बातों में नहले पर दहला मारना दोनों को पसंद आने लगा. आंखों ही आंखों के इशारे और जबानी जुगलबाजी उन की छेड़खानी में नए रंग भरती.

‘‘खास बात नहीं, खास तो तुम हो. सोचा मयूर तो यहां है नहीं, तुम्हारा हालचाल पूछता चलूं,’’ निशांत के चेहरे पर लंपटपने के भाव उभरने लगे.

‘‘मैं अपने घर में हूं. मु?ो भला किस बात की परेशानी?’’ ईशा ने दोटूक बात की. वह देखना चाह रही थी कि निशांत कहां तक जाता है.

‘‘ईशा, तुम शायद मु?ो गलत सम?ाती हो इसीलिए मु?ा से यों कटीकटी रहती हो. क्या मैं तुम्हें हैंडसम नहीं लगता?’’ संभवत: निशांत को अपने सुंदर रंगरूप का आभास भली प्रकार था.

‘‘ऐसी कोई बात नहीं. असल में निशांत, तुम मयूर के दोस्त हो, मेरे नहीं.’’

‘‘यह कैसी बात कह दी तुम ने? दोस्ती करने में कितनी देर लगती है… फ्रैंड्स?’’ कहते हुए निशांत ने अपना हाथ आगे बढ़ाया तो प्रतिउत्तर में ईशा ने अदा से अपना हाथ निशांत के हाथ में दे दिया.

‘‘यह हुई न बात,’’ कह निशांत पुलकित

हो उठा.

फिर कौफी पी कर कुछ देर बैठ कर

निशांत लौट गया. आज पहली मुलाकात में इतना पर्याप्त था, दोनों ने अपने मन में यही सोचा. निशांत को आगे बढ़ने में कोई संकोच नहीं था किंतु वो ईशा के दिल के अंदर की बात नहीं जनता था. इतनी जल्दी वह कोई खतरा उठाने के मूड में नहीं था. कहीं ईशा उस पर कोई आरोप लगा दे तो उस की क्या इज्जत रह जाएगी समाज में. उधर ईशा विवाहिता होने के कारण हर कदम फूंकफूंक कर रखने के पक्ष में थी. वैसे भी निशांत मयूर का मित्र है. उस की अनुपस्थिति में आया है. कहीं ऐसा न हो कि इसे मयूर ने ही भेजा हो… ईशा के मन में कई प्रकार के विचार आ रहे थे. दुर्घटना से देर भली.

मयूर के लौटने पर ईशा ने उसे निशांत के आने की बात स्वयं ही बता दी. मयूर को जरा सा अटपटा लगा, ‘‘अच्छा. मेरी गैरहाजिरी में क्यों आया?’’

उस की प्रतिक्रिया से ईशा आश्वस्त हो गई कि निशांत के आने में मयूर का कोई हाथ नहीं. फिर उस ने स्वयं ही बात संभाल ली, ‘‘मैं खुश हुई निशांत के आने से. कम से कम तुम्हारे यहां न होने पर इस नए शहर में मेरी खैरखबर लेने वाला कोई तो है.’’

ईशा की बात से मयूर शांत हो गया.

‘‘निशांत सच में तुम्हारा एक अच्छा मित्र है,’’ ईशा ने बात की इति कर दी.

अब ईशा के फोन पर निशांत की कौल्स अकसर आने लगीं. सावधानी बरतते हुए उस ने नंबर याद कर लिया पर अपने फोन में सेव नहीं किया. ऐसे में कभी उस का फोन मयूर के हाथ लग भी जाए तो बात खुलने का कोई डर नहीं.

किंतु ऐसे संबंध मन की चपलता को

जितनी हवा देते हैं, मन के अंदर छिपी शांति

को उतना ही छेड़ बैठते हैं. एक दिन मयूर के

फोन पर निशांत की कौल आई. मयूर बाथरूम

में था. ईशा ने देखा कि निशांत की कौल है तो उस का दिल फोन उठाने का कर गया, ‘‘मयूर, तुम्हारे लिए निशांत की कौल है. कहो तो उठा लूं?’’  ईशा ने बाथरूम के बाहर से पुकारा.

‘‘रहने दो, मैं बाहर आ कर कर लूंगा,’’ मयूर से इस उत्तर की अपेक्षा नहीं थी ईशा को.

दिल के हाथों मजबूर उस ने फोन उठा लिया, ‘‘हैलो’’ बड़े नजाकत भरे अंदाज में उस ने कहा तो निशांत भी मचल उठा, ‘‘पता होता कि फोन पर आप की मधुर आवाज सुनने को मिल जाएगी तो जरा तैयार हो कर बैठता,’’ निशांत ने फ्लर्ट करना शुरू कर दिया.

ईशा मुसकरा उठी. वह कुछ कहती उस से पहले मयूर पीछे से आ गया, ‘‘किस से बात कर रही हो?’’

‘‘बताया तो था कि निशांत की कौल है.’’

‘‘मैं ने तुम्हें फोन उठाने के लिए मना किया था. मैं बाद में कौल कर लेता. खैर, अब लाओ मु?ो दो फोन,’’ मयूर के तलखीभरी स्वर ने ईशा को डगमगा दिया. उस ने सोचा नहीं था कि मयूर उस से इस सुर में बात करेगा.

‘‘क्या मयूर को निशांत और मु?ा पर शंका होने लगा है? क्या मयूर ने कभी निशांत का कोई मैसेज पढ़ लिया मेरे फोन पर? पर मैं तो सभी डिलीट कर देती हूं. कहीं गलती से कभी कोई छूट तो नहीं गया…’’ ईशा के मन में अनगिनत खयाल कौंधने लगे.

निशांत से रंगरलियों में ईशा को जितना आनंद आने लगा उतना ही मयूर के सामने आने पर बात बिगड़ जाने का डर सताने लगा. जैसे उस दिन जब ईशा और निशांत एक कैफे में मिले थे तब कैसे ईशा ने निशांत को एक भी पिक नहीं खींचने दी थी. यह चोरी पकड़े जाने का डर नहीं तो और क्या था.

अगले दिन निशांत की जिद पर ईशा फिर उस से मिलने चल दी. सोचा,

‘आज निशांत से मिलना भी हो जाएगा और रिटेल थेरैपी का आनंद भी ले लूंगी,’ तैयार हो कर ईशा शहर के चुनिंदा मौल पहुंची. जब तक निशांत पहुंचता, उस ने थोड़ी विंडो शौपिंग करनी शुरू की कि किसी ने उस का कंधा थपथपाया. पीछे मुड़ी तो सागरिका को सामने देख जड़ हो गई.

‘‘अरे, क्या हुआ, पहचानना भी भूल गई क्या? ऐसा तो नहीं होना चाहिए शादी के बाद कि अपनी प्यारी सहेली को ही भुला बैठे,’’ सागरिका बोल उठी. वह वहां खड़ी खिलखिलाने लगी लेकिन ईशा उसे अचानक सामने पा थोड़ी हतप्रभ रह गई. फिर दोनों बचपन की पक्की सहेलियां गले मिलीं और एक कौफी शौप में बैठ कर गप्पें लगाने लगीं. अपनी शादीशुदा जिंदगी के थोड़ेबहुत किस्से सुना कर ईशा सागरिका से उस का हाल पूछने लगी.

‘‘क्या बताऊं, ईशु, हेमंत मेरी जिंदगी में क्या आया बहार आ गई. उस जैसा जीवनसाथी शायद ही किसी को मिले. मेरी इतनी प्रशंसा करता है, हर समय साथ रहना चाहता है. आज भी मु?ो लेने आने वाला है. तुम भी मिल लेना,’’ सागरिका ने बताया.

‘‘नहींनहीं सागू, मु?ो देर हो जाएगी. मु?ो निकलना होगा,’’ ईशा हेमंत की शक्ल नहीं देखना चाहती थी. वह तुरंत वहां से घर के लिए निकल गई. रास्ते में निशांत को फोन कर के अचानक तबीयत बिगड़ जाने का बहाना बना दिया. रास्ते भर ईशा विगत की गलियों से गुजरते हुए अपने कालेज के दिनों में पहुंच गई जब बहनों से भी सगी सखियों सागरिका और ईशा के सामने हेमंत एक छैलछबीले लड़के के रूप में आया था. ऊंची कदकाठी, ऐथलैटिक बौडी, बास्केटबौल चैंपियन और पूरे कालेज का दिल मोह लेने वाला.

ईशा की दोस्त जल्दी ही हेमंत से हो गई क्योंकि ईशा की स्वयं भी बास्केटबौल में रुचि थी. वह हेमंत से बास्केटबौल खेलने के गुर सीखने लगी. फिर सागरिका के कहने पर निकट आते वैलेंटाइंस डे पर ईशा ने हेमंत से अपने दिल की बात कहने की ठानी. किंतु वैलेंटाइंस डे से पहले रोज डे पर हेमंत ने सागरिका को लाल गुलाब दे कर अचानक प्रपोज कर दिया. ईशा के साथसाथ सागरिका भी हक्कीबक्की रह गई. कुछ कहते न बना. बाद में अकेले में ईशा ने अपने दिल को सम?ा लिया कि हेमंत की तरफ से कभी कोई संदेश नहीं आया था और न ही उस ने कभी उस से कुछ ऐसा कहा था. वे दोनों सिर्फ अच्छे दोस्त थे.

मगर वह जवानी ही क्या जो रास्ता न भटके. जवानी में हमारे हारमोंस हम से वह सब करवा जाते हैं जिसे बाद में स्वीकारना तक कठिन हो जाए. युवावस्था ऐसा काल है जिस में केवल वर्तमान होता है, न भूत, न भविष्य. आज जो कदम हम उठा रहे हैं उस का कल हमें क्या भुगतान करना पड़ सकता है, यह सोचना जवानी का काम नहीं.

कालेज के आखिरी साल में एक दिन ईशा अपने होस्टल के कमरे से बाहर आ

रही थी कि हेमंत वहां आ गया. उस ने अचानक उस का हाथ पकड़ लिया, ‘‘ईशा, मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं.’’

‘‘क्या हुआ?’’ ईशा अचकचा गई.

‘‘ईशा, मैं ने तुम्हारी आंखों में अपने लिए कुछ पढ़ा है लेकिन अफसोस तुम मेरी आंखों में ?ांकने से चूक गईं.’’

‘‘यह कैसी बात कर रहे हो, हेमंत? तुम सागरिका के बौयफ्रैंड हो.’’

‘‘क्या केवल एक दिन के लिए… आज के लिए तुम यह बात भूल नहीं सकतीं? क्या मैं तुम्हें क्यूट नहीं लगता? क्या तुम मु?ो पसंद नहीं करतीं? अगर मैं ?ाठ बोल रहा हूं तो बेशक तुम फौरन इस कमरे से चली जाओ.’’

ईशा का दिमाग यह कह रहा था कि यह सागरिका के साथ धोखा होगा परंतु उस का मन इस बात से हर्षित होने लगा कि जिस हेमंत को वह मन ही मन चाहती थी वह भी उसे अपने समीप लाना चाहता है. आखिर दिलदिमाग पर हावी हो गया. उस दिन ईशा और हेमंत अपनी सीमाएं लांघते हुए एकदूसरे के आगोश में समा गए. जवानी का उबाल दूध की तरह उफनने लगा. दोनों ने सारी हदें पार कर दीं.

जब यह तूफान शांत हुआ तब ईशा का ध्यान सागरिका की ओर गया. अपने दिल की बात सुन कर क्षणिक सुख की खातिर ईशा ने हेमंत के साथ जो किया उस के कारण अब उस का मन ग्लानि से भरने लगा. अपनी सब से प्यारी सखी को धोखा दे कर वह बहुत पछताने लगी.

उस घटना के पश्चात जब कभी ईशा सागरिका के सामने आती, उसे धोखा देने का घाव एक बार फिर हरा हो जाता. इस से बचने हेतु ईशा, सागरिका से नजरें चुराती, उस से न मिलने के बहाने खोजती फिरती. अपने बचपन की सहेली को यों खो बैठने का दुख ईशा को बहुत सताता किंतु सागरिका की आंखों में देख कर बात करने की हिम्मत अब ईशा खो चुकी थी. यहां तक कि अंतिम वर्ष की परीक्षा के पश्चात उस ने मातापिता के सु?ाए रिश्ते के लिए फौरन हामी भर दी. ईशा का विवाह हो गया और वह अपनी नई दुनिया में खो गई.

आज सागरिका को पुन: मिलने के कारण ईशा के सामने सारा अतीत फिर से तन कर खड़ा हो गया. उस समय ईशा किसी से जुड़ी नहीं थी. उस के जीवन में किसी के प्रति कोई जवाबदेही नहीं थी. हेमंत ने भी यही कह कर उस के मन में उठ रहे संदेह को दबा दिया, ‘‘तुम किसी प्रकार की ग्लानि क्यों ओढ़ती हो? आखिर तुम तो किसी से कमिटेड नहीं हो. यदि किसी को आपत्ति होनी चाहिए तो वह मैं या सागरिका हैं. मु?ो कोई परेशानी नहीं और सागरिका को इस बात की भनक भी नहीं पड़ने दूंगा,’’ हेमंत उस के अंदर चल रहे द्वंद्व को कुचलने में सफल रहा. परंतु आज स्थिति अलग है.

चाहने न चाहने की यह लकीर चाकू की धार से भी ज्यादा पैनी होती है. कुछ कट जाने का डर होता है. ईशा वही गलती दोहराना नहीं चाहती थी. सागरिका उस की सहेली थी इसलिए वह उस से दूरी बना पाई, किंतु यदि मयूर को उस पर शक हो गया या उसे निशांत से उस के चोरीछिपे मिलनेजुलने के बारे में पता चल गया तो क्या वह अपने चंचल मन की खातिर अपनी बसीबसाई गृहस्थी तोड़ सकेगी? क्या वह इतनी बड़ी कीमत चुकाने को तैयार है?

घर लौटते हुए ईशा का सिर दर्द से फटने लगा. विचारों के अनगिनत घोड़े उस के दिलोदिमाग को रौंदने लगे. घर पहुंच कर ईशा ने माथे पर बाम लगाया और बिस्तर पर ढेर हो गई. शाम घिर आई थी. छिटपुट अंधेरा होने लगा. किंतु ईशा का मन आज घर की बत्तियां जलाने का भी नहीं हुआ. यों ही बैठेबैठे वह बाहर के वातावरण से मेल खाते अपने हृदय के अंधेरों में भटकने लगी. क्या करे उसे कुछ सम?ा नहीं आ रहा था, ‘‘कितनी बड़ी बेवकूफ हूं मैं जो अपने सुनहरे जीवन में खुद ही आग लगाने का काम कर बैठी.’’

उस का मन 2 भागों में बट गया और दोनों ही पलड़े अपनीअपनी ओर ?ाकने लगे. एक मन कहता कि जो हो गया सो हो गया. आगे नहीं होगा. इस अध्याय को यहीं समाप्त करो. दूसरा मन कहता कहीं निशांत ने मयूर को बता दिया तो उस की गृहस्थी का क्या होगा. क्या जवाब देगी वह मयूर को. सिर पकड़ कर बैठी ईशा, मयूर के घर लौटने से चेती.

‘‘क्या हुआ? अंधेरे में क्यों बैठी हो?’’ मयूर ने घर में प्रवेश करते ही पूछा.

‘‘सिर में दर्द है इसलिए रोशनी में जाने की इच्छा नहीं की,’’ ईशा ने उदासीन सुर में उत्तर दिया.

मयूर ने ईशा के सिर को दबाया, खाना बनाया, फिर उसे दवाई दे कर जल्दी सोने भेज दिया.

‘‘कितनी बड़ी गलती कर बैठी मैं जो इतना खयाल रखने वाले पति के होते हुए बाहर भटकने लगी. क्या प्यार करने वाले जीवनसाथी के बावजूद मु?ो बाहर वालों की प्रशंसा की इतनी लालसा है कि उस के बदले मैं अपना बसाबसाया जीवन बरबाद कर दूं? अपने पीछे चाहने वालों की कतार की लोलुपता इतनी तीव्र हो गई कि मैं अपना वर्तमान भुला बैठी. यह कितना बड़ा अनर्थ करने जा रही थी मैं,’’ ईशा मानो निद्रा से जाग गई. केवल बंद नयनों में ही नींद नहीं आती, कितनी बार वह जागृत अवस्था को भी शिथिल बनाने के योग्य होती है. किंतु जब जागो तभी सवेरा. ईशा के मनमस्तिष्क में छाया अब हर धुंधलका साफ हो गया.

ईशा एक सुखमय विवाहित जीवन व्यतीत करते हुए अपने मन पर कोई अनावश्यक

बो?ा नहीं चाहती थी. उस ने निशांत से अपने बढ़ रहे संबंधों की इति करने का निश्चय कर लिया. वैसे भी अभी देर नहीं हुई. उन दोनों के मध्य कोई ऐसा अध्याय नहीं खुला था जिस की कीमत उसे अपना स्वर्णिम काल दे कर चुकानी पड़े.

अब जब कभी निशांत ने ईशा के घर आना चाहा या फिर उसे बाहर मिलने का न्योता दिया, ईशा ने हर बार कोई न कोई बहाना बना दिया. हर बार वह अबाध गति से स्थिति से निकलने में सफल रही. किंतु बारंबार ऐसा होने पर निशांत को संदेह होना स्वाभाविक था.

‘‘मु?ो ऐसा क्यों लग रहा है जैसे तुम मु?ा से मिलना नहीं चाहतीं. कोई भूल हो गई क्या मु?ा से?’’ उसे ईशा की उपेक्षा खलने लगी. वह ईशा की विमुखता का कारण जानना चाहता था.

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं. तुम तो जानते हो कि मैं एक विवाहिता स्त्री हूं. घरगृहस्थी के चक्करों में बेहद व्यस्त रहती हूं,’’ ईशा गृहस्थ जीवन की व्यस्तता का बहाना दे कर बच गई.

‘‘मयूर के साथ आओ कभी घर पर या फिर किसी संडे हम दोनों आते हैं तुम्हारे घर,’’ निशांत एक शातिर लड़का था. ईशा के जवाबों और प्रतिक्रियाओं से उसे सम?ाते देर न लगी कि अब इस गली में उस का प्रवेश निषेध है. आखिर ‘नो ऐंट्री’ के बोर्ड के आगे वह कितनी देर अपनी गाड़ी का हौर्न बजाता रहता.                     द्य

 

वापस: महेंद्र को कामयाब बनाने के लिए सुरंजना ने क्या किया

महेंद्र को कामयाब इंसान बनाने के लिए सुरंजन ने ऐसा क्या किया कि सब उस की वाहवाही करने लगे…सुरंजना के सामने स्क्रीन पर महेंद्र का परीक्षा परिणाम था और उस की आंखें उस पर लिखे अंकों पर केंद्रित थीं. महेंद्र फेल होतेहोते बचा था. अधिकांश विषयों में उत्तीर्णांक से 1-2 नंबर ही ज्यादा थे और गनीमत थी कि किसी भी विषय में रैड निशान नहीं लगा था. सुरंजना सोच रही थी, सदा ही प्रथम श्रेणी में आने वाला मेधावी युवक क्योंकर इस सीमा तक असफल हो गया? सीनियर सैकंडरी परीक्षा में पूरे पश्चिम बंगाल में महेंद्र को 10वां स्थान मिला था. इस के पश्चात कोलकाता विश्वविद्यालय के बीकौम औनर्स के इम्तिहान में उस का प्रथम श्रेणी में द्वितीय स्थान था और उसे स्कोलरशिप मिली थी. स्कूल में भी वह हर कक्षा में सदा प्रथम आता रहा था. फिर इस बार चार्टर्ड अकाउंटैंट की इंटरमीडिएट परीक्षा में वह एकदम इतना नीचे क्योंकर आ सका? उस के जीवन के इर्दगिर्द मौजूद वर्तमान परिस्थितियों में क्या पहले की परिस्थितियों की अपेक्षा कोई मौलिक परिवर्तन हुआ है?

सुरंजना का हृदय कांप उठा. इस बार की सीए इंटर परीक्षा के करीब 6 मास पूर्व महेंद्र की उस के साथ मैरिज होना निश्चय ही महेंद्र के लिए एक बेसिक चेंज परिवर्तन ही तो है. इस के साथ ही सुरंजना को याद आने लगे वे अनगिनत कमैंट, जो महेंद्र के मित्रों ने विवाह के अवसर पर उस को लक्ष्य कर के महेंद्र से कहे थे.

महेंद्र से उस का परिचय कालेज में उस समय हुआ था, जब वह बीकौम के अंतिम वर्ष में थी. लाइब्रेरी में किताबें देने के लिए 2 क्लर्क थे. महेंद्र और वह 2 विपरीत दिशाओं से लाइब्रेरी में आए थे और उन क्लर्कों के पास जा कर एक ही लेखक की अकाउंटैंसी की पुस्तक की मांग कर रहे थे. संयोग से उस समय उस किताब की एक ही प्रति मौजूद थी. दोनों ही क्लर्क एकदूसरे को देख कर मुसकराए थे और फिर उन में से एक ने जो कुछ ज्यादा ही मजाकिया स्वभाव का था, कहा, ‘‘काश, आप दोनों एक होते तो आज इस तरह की विकट समस्या से बखूबी काम चला लेते. आप दोनों ही बताइए, अब मैं क्या करूं?’’

उस की बात सुन कर एकबारगी तो सुरंजना शर्म से लाल हो उठी थी और उस से कुछ कहते नहीं बना था. पर महेंद्र ने तुरंत बात को संभाल लिया, ‘‘ठीक है सर, कम से कम इस किताब के लिए तो हम आप के ‘काश’ को टैंपरेरली वास्तविकता में बदल ही सकते हैं. आप किताब मेरे नाम से जारी कर दें. हम दोनों सा?ो में एक ही किताब से बखूबी काम चला लेंगे.’’

फिर किताब और उसे साथ लिए महेंद्र मैदान के दूसरे छोर की बैंच पर आ कर बैठा था. महेंद्र के व्यक्तित्व से तो वह बहुत पहले से प्रभावित थी, उस दिन की ‘घटना’ के बाद परिचय और भी घनिष्ठ हो गया और यह परिचय धीरेधीरे कब और किस तरह प्यार के लहलहाते पौधे में परिवर्तित हो गया, दोनों में से कोई भी तो नहीं जान सका था.

महेंद्र का अधिकांश समय अध्ययन में ही बीतता और अपनी इसी व्यस्तता के क्षणों में से वह कुछ समय निकाल प्रतिदिन उसे ले कर ?ाल के उस पार चला जाता. वहां किसी ?ाड़ी के पीछे दोनों एकदूसरे की आंखों में ?ांकते हुए किसी और ही दुनिया में खो जाते. भावी जीवन के तानेबाने बुने जाते. महेंद्र यदाकदा उन्माद में भर कर उसे अपनी बांहों में समेट कर उस के होंठों पर अपने प्यार की मुहर अंकित कर देता और तब वह भी अपना मुंह उस की छाती में छिपा कर एक अजीब सिहरन से भर उठती थी. पर दूसरे ही क्षण ज्यों ही उसे मर्यादा का बोध होता, वह छिटक कर महेंद्र के आगोश से परे हट जाती.

उस दिन वातावरण में शाम का धुंधलका उतर आया था. ?ाल के किनारे एक घनी ?ाड़ी की ओट में महेंद्र उस की गोद में सिर रखे लेटा हुआ था और वह उस के बालों में उंगलियां फिराते हुए ‘आप की नजरों ने सम?ा प्यार के काबिल मु?ो…’ गीत गुनगुना रही थी. उस की आवा बहुत सुरीली थी. गीत समाप्त होतेहोते महेंद्र ने रोमांच से अभिभूत हो अपनी दोनों बांहें उस की गरदन की ओर फैला कर उसे नीचे की ओर ?ाका लिया और अपने तप्त अधरों को उस के ललाट की चमकती बिंदी पर धर दिया.

‘‘राजी, अब यह दूरी और नहीं सही जाती. अपने और मेरे बीच यह कैसी लक्ष्मण रेखा बनाए हुए हो? क्या तुम्हें मु?ा पर विश्वास नहीं?’’ महेंद्र फुसफुसाया. बांहें उस की कमर के इर्दगिर्द और भी कस गई थीं.

‘‘उफ, मिक्की तुम भी कैसीकैसी बातें सोचते रहते हो. मु?ो तुम पर अपनेआप से भी ज्यादा विश्वास है. पर इस सैपरेशन का भी अपना महत्त्व है.  डरती हूं कि कहीं मेरा संसर्ग, मेरा प्यार तुम्हें  अपने एक पथ से डिस्टै्रक्ट न कर दे,’’ हिचकिचाते हुए उस ने अपने मन का भय महेंद्र के सामने प्रकट कर ही दिया.

‘‘मैं सम?ा नहीं, तुम आखिर क्या कहना चाहती हो?’’

‘‘मिक्की, पहले कभी सुना था कि नारी की कमनीय काया और

मांसल सौंदर्य के प्रति पुरुष इस कदर आसक्त हो जाता है कि वह अपने कर्तव्य के प्रति भी उदासीन हो जाता है. बस, डर रही हूं कि कहीं उस तथाकथित लक्ष्मण रेखा के पार जा कर तुम भी अपने अध्ययन के प्रति उदासीन न हो जाओ. 1 माह बाद ही बीकौम की फाइनल परीक्षा है और अगले 6 महीनों के बाद ही तुम्हें सीए की इंटर परीक्षा मेें भी बैठना है. कहीं मेरा प्यार ऐग्जाम में अच्छी रेंज प्राप्त करने की तुम्हारी परंपरा पर कुठाराघात न कर दे.’’

‘‘खूब… हमारी राजी दूर की कौड़ी लाने में कितनी माहिर है, आज पता चला. अगर तुम्हारे इस संशय को एक नियम के रूप में मान लिया जाए तो भी निवेदन करना चाहूंगा कि हरेक नियम के कुछ ठोस अपवाद भी होते हैं. फिर मुख्य बात है, आत्मविश्वास. तुम्हारा संसर्ग मु?ो हम की ओर फोकस होने की प्रेरणा देगा न कि हम से डिस्ट्रैक्ट होने का आघात.’’

फिर बीकौम की परीक्षाएं समाप्त होते ही दोनों विवाह सूत्र में बंध गए. दोनों के मांबाप ने थोड़ा विरोध किया पर चूंकि दोनों कोलकाला में होस्टल में रहते थे, मांबाप को मालूम था कि उन्हें रोकने से कोई लाभ न होगा. उन्होंने खासी धूमधाम से शादी कर दी. दोनों के मांबाप साधारण आय वाले थे पर गरीब न थे. विवाह की वेदी पर से उठने के बाद ज्यों ही उन्हें एकांत मिला, महेंद्र के कुछ अंतरंग मित्रों ने उन दोनों को घेर लिया.

‘‘भई, अब अपना मिक्की गया काम से. एक होनहार छात्र की प्रतिभा की सम?ा लो कि आज हत्या हो गई,’’ एक मित्र आंखें नचाते

हुए बोला.

‘‘ठीक ही तो कह रहा है अविनाश, भाभी जैसी रूपसी की देह का स्वाद चख चुकने के बाद भला मिक्की का अध्ययन की ओर मन लगेगा?’’

‘‘स्कूल के जमाने से ले कर आज तक की सभी परीक्षाओं में निरंतर बढि़या परिणाम लाने वाले इस महेंद्र से हम लोगों ने कितनी उम्मीदें बांधी थीं. पूरा विश्वास था कि चार्टर्ड अकाउंटैंसी स्वर्णपदक जरूर प्राप्त करेगा पर अब पास हो जाए तो ही बहुत है.’’

‘‘पास होने की बात कहते हो? अरे, अब तो यह देखना है कि अध्ययन जारी भी रख पाता है या नहीं.’’

अविनाश की इस बात पर उस के सभी मित्र सम्मिलित रूप से उठे थे. उन के कटाक्ष सुन कर वह किसी अनजानी अपराधबोध की भावना से भर गई थी. महेंद्र अपने मित्रों के कटाक्षों को हलके रूप से ले रहा था. उस के चेहरे पर आत्मविश्वास की गहरी छाप विद्यमान थी और वह ओजपूर्ण स्वर में बोला, ‘‘दोस्तो, भविष्य की चिंता में वर्तमान को भी क्यों भुलाए दिए जा रहे हो? कम से कम जिंदगी की इस बेहतरीन उपलब्धि पर मित्र के नाते मु?ो बधाई तो दो.’’

शादी के बाद के 2-3 महीने तो पैशनेट नाइट्स के नशे में

देखते ही देखते गुजर गए. कभी कश्मीर की डल ?ाल पर तैरते शिकारे पर, कभी शिमला की वादियों में उड़नतश्तरी से उड़ते तोपटिब्बे पर तो कभी दार्जिलिंग की किसी ऊंची बर्फीली पहाड़ी पर स्कैटिंग करते हुए वे दिन किस तरह रोमांच और सिहरन भरी व्यस्तता में बीतते गए थे. इन सब से छुट्टी मिलती तो महेंद्र उसे आलिंगन में समेटे कमरे में पड़ा रहता. 1-2 बार दबी जबान से उस ने महेंद्र को उस की ऐग्जाम की जिम्मदारी से अवगत कराया, तो महेंद्र लापरवाही भरे अंदाज में बोला, ‘‘जानेमन, क्या बेवक्त की शहनाई ले कर बैठ जाती हो? बाबा, अपनी जिम्मेदारियों को तुम्हारा मिक्की खूब सम?ाता है.’’

मगर महेंद्र अपनी जिम्मेदारियों को सम?ा कहां सका था. जबजब वह उस से ऐग्जाम की तैयारियों के प्रति गंभीर हो जाने का आग्रह करती, महेंद्र या तो अगले दिन से ही अध्ययन की शुरुआत नए सिरे से करने की बात कह कर टाल देता अथवा नाराज हो जाने का अभिनय करते हुए कहा, ‘‘लगता है, हमारा प्यार सोडा वाटर की गैस की तरह साबित होगा. लगता है प्यार का उन्माद तुम्हारे मन से उतर चला है और तुम मु?ा से बोर होने लगी हो. लगता है…’’

इस से आगे वह उसे कहने ही नहीं देती थी और किसी पागल की तरह उस की छाती पर छोटेछोटे मुक्के बरसाती आर्द्र स्वर में कहती, ‘‘काश, मिक्की, तुम जान पाते कि राजी तुम्हारी अनुपस्थिति में किस तरह अधूरी हो जाती है, पर तुम्हारे मित्रों के वे कमैंट ?ाठे किस तरह साबित हो सकेंगे.’’

एक बार वह उसे एकांत देने के उद्देश्य से ही अपने मायके चली गई थी, पर महेंद्र

तो उस के चले जाने पर विक्षिप्त सा हो गया. उस के पास महेंद्र के मैसेज पर मैसेज आने लगे, जिन में वह अपने एकाकीपन और विक्षिप्तावस्था का वर्णन करते हुए अत्यंत करुण शब्दों में उस से वापस लौट आने का अनुरोध करता. वह दिन भर में 10-20 बार मैसेज भेजता. फिर कुछ दिनों के बाद महेंद्र स्वयं ही उस के मायके पहुंच गया और करीब एक सप्ताह वहां बिता कर उसे साथ ले कर ही लौटा.

सुरंजना की आंखें छलछला उठी थीं.

विवाह के बाद के पिछले 6 माह की घटनाओं

में रोमांच, सिहरन और टीसों का क्या खूब समन्वय था. स्क्रीन में देखते रिजल्ट पर से नजरें हटा कर वह बिस्तर पर लेट गई. महेंद्र किसी अबोध शिशु सा बेसुध नींद में पड़ा था. बाहर वातावरण की नीरवता यदाकदा किसी आवारा कुत्ते की भूंभूं से भंग हो उठती थी. सुरंजना के मस्तिष्क में निरंतर द्वंद्व चल रहा था कि क्या सचमुच नारी की मांसल देह और उस का मादक सौंदर्य एक कमिटेड और रिस्पौंसिबल व्यक्ति के लिए अभिशाप साबित होता है? महेंद्र के मित्रों के कमैंट क्या सचमुच सही साबित हो जाएंगे? विवाह के पहले की महेंद्र के अंतर की दृढ़ता और उस का कौन्फिडैंस विवाह के बाद कहां चला गया?

सुरंजना उठी. एक गिलास पानी पीया. इस तरह पराजय और कुंठा के एहसास को प्रश्रय देने से काम नहीं चलेगा. उस का मस्तिष्क तेजी से किसी योजना की रूपरेखा को संवारने में उल?ा हुआ था. इस कठिन समय में उस की अपनी स्टै्रंथ और सैल्फ कौन्फिडैंस क्या काम नहीं आएगा? अनायास रिजल्ट पर उस की नजर और मजबूत हो गई. एक ठोस निर्णय पर पहुंच जाने से उस के चेहरे पर संतोष और इतमीनाना की रेखा खिंच आई.

सुबह किसी के ?ाक?ोरने पर महेंद्र की नींद टूटी. सामने सुरंजना को भाप उड़ाते कौफी के प्याले लिए खड़े देख कर उस की आंखें विस्मय से फैल गईं, ‘‘तुम… इतनी सुबह?’’

‘‘हां, सुबह का समय स्टडी व ऐनालिसिस के लिए सब से ज्यादा उपयुक्त होता है न? कौफी लो, सारा आलस्य दूर हो जाएगा. फिर फटाफट तैयार हो कर अपने स्टडीरूम में पहुंचो, नाश्ता वहीं मिलेगा.’’

सचमुच कौफी पीने पर महेंद्र को ताजगी

का अनुभव हुआ. अपेक्षाकृत 2 घंटे पूर्व उठ

जाने से ?ां?ालाहट नहीं हुई. कुछ देर बाद वह तैयार हो कर अपने स्टडीरूम में पहुंचा. सारे स्टडीरूम की काया पलट हो चुकी थी. कलट्टर गायब था. बड़ी मेज पर एक फूलदान रखा था, जिस में ताजे गुलाबों का एक बड़ा सा गुलदस्ता महक रहा था. रैकों में किताबें करीने से सजा कर रखी गई थीं.

उसी समय सुरंजना नाश्ते की प्लेटें लिए कक्ष में आई. चेहरे पर ताजे खिले कमल की सी स्निग्धता थी. महेंद्र ने आगे बढ़ कर उसे हग कर लिया.

‘‘बस… बस… 6 बजने ही वाले हैं. 2 घंटे निरंतर कंस्ट्रेट हो कर पढ़ो. मन को जरा भी इधरउधर न भटकने देना.’’

न जाने कैसा जादू किया था सुरंजना के स्वरों ने. महेंद्र पूरी तरह एकाग्र हो कर पढ़ने

लग गया. ठीक 8 बजे द्वार पर आहट सुन कर महेंद्र की चेतना लौटी. देखा, सामने सुरंजना मुसकराती हुई खड़ी थी. उस के एक हाथ में चाय की प्याली थी और दूसरे में उस दिन का ताजा अखबार. सुरंजना ने अब अखबार लगवा लिया था ताकि महेंद्र मोबाइल से दूर रहने की आदत डाल ले.

‘‘जब तक तुम चाय की चुसकियां लोगे,

मैं तुम्हें आज की मुख्यमुख्य खबरें पढ़ कर

सुनाती हूं.’’

आधे घंटे बाद सुरंजना अध्ययन कक्ष से चली गई, पर इस आधे घंटे की

चुहलबाजी से महेंद्र को अपने अंदर एक नई स्फूर्ति और ताजगी का एहसास हुआ. उसे आश्चर्य हो रहा था, अभी कल तक सुरंजना को ले कर उस का मस्तिष्क सब समय जिस तरह के सैक्सुअल पैशन से भरा रहता था, आज उसे सुरंजना के सामने आते ही उस तरह के पैशन का बोध नहीं हुआ. वह दूने जोश से स्टडी में लग गया. इस का फल भी उसे मिला. पिछले कई माह से अधूरे पड़े नोट्स सब पूरे हो गए थे. कौस्ट ऐनालिसिस तथा बैलेंसशीट जैसे विषयों के कई अध्याय उसे सहज ही सम?ा आ गए थे. आज के अध्ययन से उस के चेहरे पर संतोष की रेखा खिंच आई थी. 12 बजे तक वह किताबों में तन्मय हो कर उल?ा रहा, जब तक कि सुरंजना उसे खाने की मेज पर न बुला ले गई.

‘‘अब 2 घंटे तक मैं तुम्हारे पास रहूंगी. सुन रहे हो न, मिक्की, मैं होऊंगी, तुम होंगे और हमारे बीच कोई भी नहीं होगा. मेहरबानी कर के मु?ो अपनी बांहों में छिपा लो.’’

महेंद्र स्वयं को रोक नहीं पाया. 3 बजे से पुन: अध्ययन कक्ष की दिनचर्या शुरू हुई. अब तक महेंद्र के चेहरे पर भी आत्मविश्वास गहरा उठा था. इसी बीच सुरंजना कौफी का प्याला लिए एक बार उस के पास आई. उस की क्षणिक उपस्थिति महेंद्र में एक नया साहस भर देती. सुरंजना ने अपने औफिस से सबैटिकल ले

लिया था. उस की बकाया छुट्टियां थीं. उन छुट्टियों में भी वह औफिस का काम कंप्यूटर पर करती रहती थी और कई बार तो महेंद्र को पढ़ता छोड़ कर औफिस भी हो आई थी. छुट्टी में भी उस काम के प्रति कमिटमैंट को देख कर सब खुश थे. उस की अनुपस्थिति किसी को खल नहीं  रही थी.

शाम को सुरंजना आग्रह कर के उसे ?ाल के पार ले गई. वहां ?ाड़ी के पीछे महेंद्र उस की गोद में सिर रख कर लेट गया. दोनों एकदूसरे की आंखों में ?ांकते रहे और दूर रेडियो पर ‘बांहों में तेरे मस्ती के घेरे, सांसों में तेरे खुशबू के डेरे…’ गीत की आवाज हवा में तैरती हुई कानों में रस घोलती रही.

रात में 8 बजे महेंद्र तरोताजा हो पुन: अध्ययन में जुट गया. सुरंजना रसोई का काम खत्म

कर के जब कक्ष में आई तो 11 बज रहे थे. महेंद्र अकाउंटैंसी की मोटीमोटी पुस्तकों में उल?ा हुआ था. उसे देख सुरंजना दबे पांव लौट गई और एक प्याला गरम कौफी बना लाई. उस के लौटने तक महेंद्र को ?ापकी आ गईर् थी.

‘‘मिक्की…’’ सुरंजना ने हलके से उसे आवाज दी, ‘‘बहुत थक गए हो, मिक्की चलो, अब समाप्त कर दो?’’

उनींदा सा महेंद्र मुसकराया और कौफी

का प्याला थामते हुए बोला, ‘‘सचमुच इस

समय मैं कौफी की ही इच्छा महसूस कर रहा

था. तुम जा कर सो जाओ. मैं कुछ देर और बैठूंगा, राजी.’’

‘‘तब मैं भी यही रहूंगी. इन अकाउटैंसी की पुस्तकों को रखो अब. वर्णनात्मक विषय जैसे लेखा परीक्षण वगैरह की कोई पुस्तक निकालो. मैं पढ़ूंगी, तुम सुनना. इस से पढ़ी हुई बातें मस्तिष्क में फिर से सजीव हो उठेंगी.’’

सुरंजना महेंद्र के मना करने पर भी 2 बजे तक अध्ययन कक्ष में रही. लेखा परीक्षण तथा तत्संबंधी कानून के 2-2 अध्याय उस ने पढ़े, महेंद्र तन्मय हो कर सुनता रहा.

समय तेजी से बीतता रहा. महेंद्र अब पूरे विश्वास, संयम और धैर्य के साथ एकाग्र हो कर पढ़ाई में लग गया था. सुरंजना अपनी योजना के अनुरूप व्यवस्थित ढंग से उसे प्रोत्साहन देती रही. शाम को ?ाल तक टहलने के लिए ले जाना, रात में अंतिम समय तक उस के पास अध्ययन कक्ष में रहना ये दोनों बातें सुरंजना सदैव जिद कर के करती रही.

परीक्षा से 1 सप्ताह पूर्व से ही महेंद्र

सबकुछ भूल कर बस अध्ययन कक्ष में ही कैद हो कर रह गया. सुरंजना अपनी बढ़ी हुई जिम्मेदारियों के प्रति पूरी तरह सचेत थी. अध्ययन कक्ष और रसोई के बीच यह किसी तितली की तरह उड़ती रहती. दोपहर को कुछ देर के लिए वह महेंद्र के मना करने पर भी उसे खींच कर सोने के कमरे में ले जाती.

कुछ देर का उस का संसर्ग महेंद्र पर किसी टौनिक सा असर करता और वह रात्रि

को पूरे उत्साह के साथ अध्ययन में लग जाता. अध्ययन कक्ष में सुरंजना रात देर तक कभी किसी विषय के अध्याय विशेष को उसे पढ़ कर सुनाती, कभी उस की मेज के पीछे खड़ी हो कर उस के सिर को हलकेहलके सहलाती रहती या कभी यत्रतत्र बिखरी किताबें एवं नोट्स की कापियों को करीने से सजा कर रखती रहती. अंतिम दौर में, जब थकावट चरम सीमा पर पहुंच गई, महेंद्र को कभीकभी रात में अध्ययन कक्ष में ही गहरी ?ापकी आ जाती. सुरंजना तब वहीं कक्ष में ही बिस्तरा बिछा देती.

नियत समय पर परीक्षा हुई और परिणाम भी घोषित हुए. महेंद्र और सुरंजना

का परिश्रम रंग लाया. महेंद्र ने प्रथम श्रेणी में प्राप्त हुई और उसे स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया था. नगर के सभी प्रमुख समाचारपत्रों में उस की तसवीर प्रकाशित की गई.

समाचारपत्र की उस प्रति को लिए महेंद्र खुशी से उन्मादित हो दौड़ता हुआ रसोई में

आया. सुरंजना उस समय आटा गूंध रही थी. अखबार उस के हाथ में थमा कर विक्षिप्त सा हो महेंद्र ने उसे बांहों में भर लिया, ‘‘अब तक तुम केवल राजी ही थीं, पर अब से तुम मेरे लिए प्रेरणा भी हो.’’                                  द्य

अंधा इश्क ले डूबा: गर्लफ्रेंड और पत्नी ने राजशेखर को क्यों धोखा दिया

राज शेखर आज अपने अंधे इश्क पर लानत भेज रहा है. दरिया किनारे बैठा इस सोच में डूबा है कि अब किधर जाऊं? क्या उस पत्नी के पास जिसे मैं ने बिना किसी गुनाह के सजा दी या उस धोखेबाज लड़की के पास जिस के साथ बिना शादी के पतिपत्नी की तरह रहा, जिस पर अपना सबकुछ लुटा दिया?

मगर मैं ने तो खुद अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारी है, मेरा तो कुछ न रहा. न पत्नी न परिवार. अंधे इश्क ने सब बरबाद कर दिया, मेरा अंधा इश्क मुझे ले डूबा. जी हां. राजशेखर की 2 पत्नियां हैं. 2 पत्नियों से अर्थ यह नहीं कि उस ने 2 शादियां की हैं, 2 पत्नियों का अर्थ एक से शादी की और दूसरी के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह रहा था.

आइए, आप को उन दोनों से मिलाते हैं…पहली पत्नी मातापिता ने अच्छे खानदान में रिश्ता तय किया. लड़की सान्या जो पढ़ीलिखी होने के साथसाथ घरेलू भी है, जो जानती है कि परिवार को कैसे प्यार की डोर से बांध कर रखा जा सकता है और दूसरी (पत्नी कहें या लड़की या रखैल, बेशक आजकल लिव इन रिलेशनशिप को लोग गलत नहीं मानते, लेकिन पहले ऐसे रिश्तों को हिराकत की नजर से देखा जाता था और ऐसी स्त्रियों को रखैल कहा जाता था) तो वह दूसरी है साक्षी जो उसी बैंक में कार्यरत है.

आइए, पहले आप को पहली पत्नी अर्थात सान्या से मिलाते हैं… मुंबई शहर के ऐक्सिस बैंक में मैनेजर की पोस्ट पर कार्यरत राजशेखर की अच्छीखासी गृहस्थी चल रही है. शादी के 1 साल बाद ही एक प्यारा सा बेटा दिया कुदरत ने जिस का नाम रोहन रखा.सान्या हमेशा यही कहती, ‘‘मातापिता के कदमों में मेरा स्वर्ग, राजशेखर मेरा दिल और रोहन मेरी धड़कन. और मुझे क्या चाहिए, कुदरत ने सबकुछ तो दे दिया.’’

राजशेखर अकसर उस से ठिठोली करता, ‘‘सान्या अगर कभी मु?ो कुछ हो गया न तो तुम फिर से अपना घर बसा लेना. मगर हां इतना ध्यान रखना, तुम चुनाव सोचसम?ा कर करना. ऐसा शख्स चुनना जो हमारी इस धड़कन को अपने दिल में बसा ले.’’ सान्या उस के मुंह पर हाथ रखते हुए कहती, ‘‘ऐसी बातें क्यों करते हो?

मैं आप के हाथों इस संसार से विदा लूं ये मेरा सौभाग्य है. हां, आप जरूर ऐसा जीवनसाथी चुनना जो हमारी इस धड़कन को अपने दिल में बसा ले.’’ ‘‘अरे उस की तुम फिक्र न करो. मैं तो सोचता हूं कि तुम्हारे सामने ही शादी कर लूं ताकि तुम भी देखपरख लो,’’ इस तरह से हंसते हुए उसे छेड़ता और मां चप्पल ले कर पीछे भागती, ‘‘आ… आ मैं कराती हूं तेरी शादी. इस चप्पल से मारमार कर तेरा थोबड़ा न बिगाड़ दिया तो,’’ और नन्हा लगभग 3-4 साल का रोहन ताली बजाबजा कर खुश होता.

मगर कहते हैं न कि जो भी बोलो सोच कर बोलो न जाने कब जबां पर मां सरस्वती वास कर ले और कही बात सत्य साबित हो जाए. वही हुआ… राजशेखर के ही बैंक के स्टाफ में एक नई लड़की साक्षी आई. देखने में बला की खूबसूरत. ऊंचालंबा कद, गोरा रंग, तीखे नैननक्श, सुराहीदार गरदन, गदराया बदन, उभार कामदेव को आमंत्रित करते. इंद्रलोक की कोई अप्सरा हो जैसे. बैंक के कर्मचारी उस पर मर मिटे, हरकोई उस के पास आने, उस से बात करने के लिए लालायित रहता. हरकोई उस के साथ दो पल बिताने को तरसता.

 

मगर साक्षी का अधिकतर समय राजशेखर के कैबिन में ही बीतता क्योंकि वह जूनियर मैनेजर होने के साथसाथ दिमाग की भी बहुत तेज थी. बड़ेबड़े हिसाबकिताब तो जितनी देर में राजशेखर कैलकुलेटर निकालता उतनी देर में तो वह टोटल बना कर बता देती. किसी खास विषय पर भी यदि कोई राय लेनी हो तो राजशेखर उसी की मदद लेता.

अब भला आग और घी दूर रह सकते हैं क्या और खासतौर पर ऐसे समय में जब बीवी का अधिक ध्यान घरपरिवार और बच्चे पर हो जाए तो उस समय मर्द की इच्छाएं कई बार दब कर रह जाती हैं. ऐसे में अगर उसे बाहर स्वादिष्ठ खाना नजर आ जाए तो वह चखने क्या खाने से भी नहीं चूकता. यही हाल राजशेखर का था. उस के सामने स्वादिष्ठ व्यंजन की भरी थाली थी. (आप समझ ही गए होंगे कि यहां किस तरह की थाली की बात हो रही है) तो राजशेखर साक्षी की तरफ आकर्षित हो रहा था और राजशेखर था भी सजीला जवान, साफ रंग, भरा हुआ शरीर, छोटेछोटे बालों के साथ फ्रैंच कट दाढ़ी, आंखों पर जब चश्मा लगाता तो ऐसा लगता मानो कोई अंगरेज चला आ रहा है. महज 32-33 साल की मगर दिखने में अपनी उम्र से भी कम लगता था तो साक्षी भी उस पर मर मिटी.

आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई थी. नजदीकियां बढ़ती गईं और प्यार का रूप ले बैठीं. अब तो एकदूसरे के बिना एक पल भी नहीं रह सकते थे. राजशेखर जब घर पर होता तब भी साक्षी के बारे में सोचता या साक्षी से ही फोन पर बातें करता रहता. इस तरह से 2 साल बीत गए दोनों का प्यार पर्वत की चोटी तक पहुंच रहा था. मार्च की क्लोजिंग थी. काम का काफी प्रैशर था जो राजशेखर को कंप्लीट कर के अगले दिन रिपोर्ट करनी थी. लेकिन शाम के 7 बजने को आए अभी तक काम पूरा नहीं हुआ था. सारा स्टाफ भी जाने लगा तो साक्षी बोली, ‘‘सर, क्या मैं आप की मदद के लिए रुक जाऊं?’’

‘‘हां साक्षी, काम अभी बहुत ज्यादा है, अगर तुम हैल्प करोगी तो मैं भी जल्दी फ्री हो जाऊंगा.’’ दोनों को काम करतेकरते रात के 10 बज गए और दोनों थक कर चूर हो गए थे. साक्षी ने कौफी बनाई और दोनों पीने लगे. कौफी पीते हुए अचानक न जाने कैसे कौफी साक्षी के कपड़ों पर गिर गई.

तब राजशेखर ने अपनी शर्ट उतार कर दी, ‘‘साक्षी इसे पहन लो और अपनी शर्ट धो कर सुखा लो.’’राजशेखर के सिक्स पैक देख कर साक्षी उन की तारीफ करते हुए जैसे ही उन्हें छुआ राजशेखर के बदन में करंट सा प्रवाहित  हो गया. उस का दिल बेकाबू हो गया, खुद को न रोक सका और उस ने साक्षी को बांहों में भर लिया.

शायद साक्षी भी विरोध नहीं करना चाहती थी. उस के मन में भी मीठीमीठी बांसुरी बजने लगी. टूट कर बिखर गई वह राजशेखर की बांहों में. साक्षी ने राज के होंठों पर अपने नाजुक नर्म होंठ रख दिए. दोनों की सांसों से सांसें टकराने लगती. राजशेखर ने साक्षी को और जोर से कस कर बाहों में समेटना चाहा तो साक्षी के उभारों पर जोर पड़ा और उस के मुंह से हलकी सी सिसकारी निकली, ‘‘उफ राज, क्या करते हो?’’

राजशेखर ने उसे फिर से कस कर भींच लिया. साक्षी को अच्छा लग रहा था मगर वह इतराती हुई बोली, ‘‘राज… क्या करते हो?’’‘तुम्हारे मुंह से बारबार राज सुनने के लिए… आज पहली बार तुम ने मु?ो राज कहा. फिर से कहो वरना और जोर से दबाऊंगा.’’

साक्षी ने शर्म से पलकें झुका लीं. राज ने ऊंगली से उस की ठोड़ी को ऊपर उठाया और मनुहार करते हुए बोला, ‘‘प्लीज साक्षी, कहो न.’’ साक्षी राज के चेहरे पर चुंबनों की बौछार करते हुए राज, राज, राज कहने लगी. इस तरह से दोनों एकदूसरे में खो गए. और अंत वही हुआ, आग और घी का मिलन, आग की लपटों में बदल गया. झुलस गए दोनों इस आग में. मन से तो एक थे आज तन से भी एक हो गए.

प्यार का यह सिलसिला यों ही चलता रहा. जब राजशेखर कहीं मुंबई से बाहर मीटिंग के लिए जाता तो साक्षी भी साथ होती. कभी शहर से बाहर तो कभी शहर के किसी कोने में दोनों के मधुर मिलन की गाथा लिखी जाती. राजशेखर और साक्षी लिव इन रिलेशनशिप में रहने लगे. राजशेखर घर से बहाना करता काम के सिलसिले में बाहर जाने का और साक्षी के साथ रहता और साक्षी से भी कोई न कोई बहाना बना कर कभी इस घर तो कभी उस घर 2 नावों में पैर रख कर सफर कर रहा था.

आखिर साक्षी भी कब तक चुप रहती. उस ने पूछताछ शुरू कर दी इधर सान्या तो बहुत प्यारी और भोली थी. वैसे भी उस के लिए पति तो परमेश्वर होता है उस की हर बात सच्ची होती है इसलिए वह उस पर शक कर ही नहीं सकती थी. मगर साक्षी के सामने राजशेखर को सच उगलना पड़ा. उसे बताना पड़ा कि वहशादीशुदा है ‘‘क्या? राज यू आर ए मैरिड मैन? तुम शादीशुदा हो और तुम ने आज तक मुझे अंधेर में रखा, तुम ने बताया क्यों नहीं कि तुम शादीशुदा हो?’’

‘‘साक्षी पहले तुम ने भी कभी इस बारे में बात नहीं की, तुम पूछती तो क्या मैं झूठ बोलता तुम से और मैं ने तुम्हें कोई धोखा नहीं दिया. मैं सच्चा प्यार करता हूं तुम से. तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह सकता.’’ ‘‘मैं भी तुम से बेइंतहा मुहब्बत करती हूं और तुम्हारे सिवा कोई और मेरे तन को छूना तो क्या आंखें उठा कर भी नहीं देख सकता. तुम्हें अपनी पत्नी को तलाक दे कर मु?ा से शादी करनी होगी.’’

‘‘यह नामुमकिन है क्योंकि न तो मैं अपने बेटे के बिना जी सकता हूं और न ही सान्या के… तलाक होने पर बेटा तो किसी एक के पास ही रहेगा. लेकिन दूसरा तो जीतेजी मर जाएगा. मैं सान्या को मरते हुए नहीं देख सकता. वैसे भी सान्या मु?ो तलाक देने के नाम पर ही आत्महत्या कर लेगी, वह मु?ा से बेपनाह और सच्ची महब्बत करती है.’’

‘तो क्या मेरा प्यार झूठा है?’’ नहीं साक्षी मैं यह नहीं कह रहा. तुम अगर दिल हो तो सान्या धड़कन है. मैं दोनों में से किसी को नहीं छोड़ सकता.’’मगर अब साक्षी को अपनी सुरक्षा की चिंता होने लगी. उस ने इस रिश्ते को बनाए रखने के लिए राजशेखर के सामने एक शर्त रखी, ‘‘तुम अपनी पत्नी और बेटे को नहीं छोड़ सकते, लेकिन क्या गारंटी है कि तुम मेरा साथ पूरी जिंदगी निभाओगे और कुदरत न करे अगर मु?ा से पहले तुम्हें कुछ हो गया तो मेरे पास क्या है? तुम्हारी पत्नी के पास तुम्हारा परिवार है, उस का परिवार है और सब से अहम तुम्हारी सारी प्रौपर्टी उस के पास है. मेरा तो तुम्हारे सिवा कोई भी नहीं. न आगे न पीछे.’’

‘‘तुम ऐसा क्यों सोचती हो? जो मेरा है वह हम दोनों का है.’’ ‘‘मैं कोरी बातों पर विश्वास नहीं कर सकती. तुम कल ही अपनी आधी प्रौपर्टी मेरे नाम करो. कम से कम कुछ तो हो मेरे पास.’’

‘‘ठीक है जैसा तुम चाहो. मुझे थोड़ा समय दो मैं आधी प्रौपर्टी तुम्हारे नाम कर दूंगा.’’मगर साक्षी बहुत ने चालाकी से प्रौपर्टी के पेपर बनवा कर राजशेखर को बातों में उल?ा कर उन पर हस्ताक्षर करवा लिए और राजशेखर एक भी पेपर देख नहीं पाया क्योंकि साक्षी ने राजशेखर के वकील को खरीद लिया था और सारी की सारी प्रौपर्टी अपने नाम लिखवा ली.

साक्षी फिगर मैंटनैंस के चक्कर में मां नहीं बनना चाहती थी, इधर सान्या दूसरी बार मां बनने वाली थी. राजशेखर सान्या का अधिक ध्यान रखने लगा क्योंकि उस की तबीयत खराब रहने लगी. लेकिन साक्षी को अब यह बात हजम नहीं होती. पुराना प्यार हमेशा पुरानी शराब सा होता है जो हर पल भरपूर नशा देता है. राजशेखर फिर से सान्या की तरफ आकर्षित होने लगा.

मगर साक्षी को दूर जाते भी वह बरदाश्त नहीं कर सका. आखिर एक दिन राजशेखर ने मन मजबूत कर के सान्या और अपने परिवार को छोड़ने का फैसला कर लिया है और साफ लफ्जों में साक्षी के साथ अपना प्यार कबूल करते हुए उन्हें छोड़ कर साक्षी के पास चला गया.

न जाने क्यों फिर भी आजकल साक्षी अकसर राजशेखर से नाराज रहने लगी थी. आज भी राज औफिस में उस के कैबिन में उसे मनाने के लिए गया तो कैबिन के दरवाजे की तरफ साक्षी की पीठ थी जिस कारण उसे पता नहीं चला कि कोई अंदर आया है.

साक्षी फोन पर किसी से बात कर रही थी, ‘‘यार प्रौपर्टी तो मैं ने अपने नाम करवा ली है, बस अब सोच रही हूं कि इस राज नाम की मक्खी को दूध से निकाल कर फेंक ही दूं. बस फिर तुम और हम. हा… हा… हा… लव यू डार्लिंग.’’

ये सब सुन कर राज के होश उड़ गए. अंदर आते ही उस ने साक्षी के हाथ से जैसे ही फोन लेना चाहा साक्षी ने जोर से फोन जमीन पर फेंक कर मारा ताकि राज को पता न चले कि वह किस से बात कर ली थी, जिस से फोन टूट गया.‘‘साक्षी, मैं ने तुम से अंधा इश्क किया था, जिस का मुझे यह सिला मिला. तुम्हारे लिए मैं ने अपना परिवार तक छोड़ दिया और तुम ने मेरे साथ यह क्या किया?’’ राजशेखर लगभग रोने लगा.

 

‘‘राज, तुम ऐसे बिहेव क्यों कर रहे हो? क्या किया मैं ने तुम्हारे साथ? मेरी तो कुछ सम?ा में नहीं आ रहा, तुम कह क्या रहे हो?’’‘‘मैं ने सब सुन लिया है. अपने आशिक के साथ मिल कर तुम ने धोखे से मेरी सारी प्रौपर्टी अपने नाम करवा ली. तुम ने जो किया वह बहुत गलत किया जिस के लिए मैं तुम्हें कभी माफ नहीं कर सकता. लेकिन मैं तुम्हें सजा भी नहीं दे सकता क्योंकि मैं अभी भी तुम से प्यार करता हूं. हां, मगर आज के बाद तुम्हारे पास सबकुछ होते हुए भी कुछ नहीं होगा. दौलत तो होगी तुम्हारे पास मगर प्यार को तरसोगी तुम.’’

‘‘जब तुम सबकुछ जान ही गए हो तो जाओ मेरा पीछा छोड़ो. और हां जल्द ही तुम्हारी उस फैमिली को भी घर से बाहर करने वाली हूं मैं क्योंकि तुम्हारी सारी प्रौपर्टी अब मेरी है.’’राजशेखर के पास आज कुछ नहीं. जिस के लिए परिवार छोड़ा उस ने सारी प्रौपर्टी ले कर उसे छोड़ा.

राज ने परिवार के पास वापस जाना चाहा तो परिवार ने उसे अपनाने से इनकार कर दिया क्योंकि उसी के करण परिवार आज सड़क पर आ गया था. सान्या मासूम बच्चों और बुजुर्ग सासससुर को ले कर कहां जाए? अपनी ऐसी स्थिति देख कर सान्या को राज से नफरत हो गई. इधर साक्षी ने अपने उस आशिक के पास जा कर शादी की बात की तो उसे पता चला कि उस ने जो प्रौपर्टी के पेपर बनवाए थे वे उस ने साक्षी के नहीं बल्कि अपने नाम करवा लिए थे.राज को साक्षी ठोकर मार चुकी थी और इधर प्रौपर्टी भी हाथ से गई. न घर की न घाट की और यही हाल राज का भी है..‘‘जाएं तो जाएं कहां, समझेगा कौन यहां, दर्द भरे दिल की जबां.’’

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