तलाक: ज़ाहिरा को शादाब ने क्यों छोड़ दिया?

आजवे फिर सामने थीं, चेहरे पर वही लावण्य, वही स्निगधता लिए मुसकरा कर बातें कर रही थीं. माथे पर बिलकुल छोटी सी बिंदी, करीने से पहनी हलके रंग की कौटन की साड़ी में वे सादगी की प्रतिमूर्ति नजर आ रही थीं. वे शहर की जानीमानी शख्सियत हैं, बड़ेबड़े अखबारों और पत्रपत्रिकाओं में स्त्रीपुरुष के संबंधों की जटिलता पर लेख लिखती हैं, काउंसलिंग भी करती हैं.

न जाने कितने ही संबंधों को टूटने से बचाया है उन्होंने- वर्तमान में मनोविज्ञान विशेषज्ञा के तौर पर विश्वविद्यालय में अपनी सेवाएं दे रही हैं.

डा. रोली. यही छोटा सा नाम है उन का, लेकिन उन की शख्सियत किसी परिचय की मुहताज नहीं.

कुछ कार्यवश मुझे उन से मिलना था. फोन पर मैं ने अपना परिचय दिया तो कुछ क्षणों बाद ही वे मुझे पहचान गईं और अगले दिन दोपहर 1 बजे मिलने का समय दिया. मैं ठीक समय पर पहुंच गई. उन्हें काउंसलिंग में व्यस्त देख मैं चैंबर के बाहर ही रखी कुरसी पर बैठ गई.

उन से मेरा पहला परिचय तब हुआ था जब मैं महज 17-18 वर्ष की रही होऊंगी. एक करीबी रिश्तेदारी में विवाह था. दिसंबर की सर्दियों की अर्धरात्रि पश्चात फेरे चल रहे थे. मंडप के चारों ओर गद्देरजाइयों की व्यवस्था थी. हम सभी रजाई ओढ़े फेरे देख रहे थे. तभी एक महिला रिश्तेदार भीतर से आईं और मेरे साथ बैठी युवती से मुखातिब हुईं, तो उन की धीमी खुसफुसाहट ने मेरा ध्यान सहज आकर्षित कर लिया.

‘‘कैसी हो रोली, पूरा जनमासा छान आई, तुम यहां बैठी हो?’’

‘‘ठीक ही हूं भाभीजी, कट रही है, आइए बैठिए न,’’ उस ने धीरे से खिसक कर जगह बनाते हुए कहा.

‘‘तुम से कब से अकेले में बात करने की सोच रही थी, पर इस शादी की भीड़भाड़ में मौका ही नहीं मिला.’’

‘‘जी, कहिए, यहां तो लोग भी गिनेचुने

ही हैं. उन में से भी कुछ फेरे देखने में मगन हैं

तो कुछ ऊंघ रहे हैं,’’ कहते हुए उस ने चारों

ओर नजर दौड़ाई, तो मैं ने झट से मुंह रजाई से ढक लिया.

‘‘तुम्हारी शादी का क्या हुआ फिर, उन लोगों से कोई बात हुई? बहुत बुरा लगा सुन कर?’’ रिश्तेदार महिला ने कुरेदना शुरू किया.

‘‘क्या होना है भाभीजी, सब खत्म हो गया. तलाक मिल गया कुछ महीने पहले ही.’’

‘‘और इतना दहेज जो दिया था तुम्हारे पापा ने वह वापस लिया?

‘‘यहां जिंदगी खराब हो गई, आप दहेज की बात कर रही हैं, क्या करूंगी दहेज के सामान का? थाने में ही पड़ा है.’’

‘‘तुम खुल कर तो बताओ, ऐसे ऐबी तो न दिखता था लड़का.’’

युवती के मुंह से आह निकल गई, ‘‘ऐब भी होता तो मैं बरदाश्त कर लेती भाभीजी… क्या बताऊं समझ नहीं आता.’’

‘‘जब तक बताओगी नहीं, लोग कुछ न कुछ बोलते ही रहेंगे, सचाई तो पता चलनी ही चाहिए.’’

यह खुसफुसर मेरे कानों तक भी

स्पष्ट पहुंच रही थी. न चाहते हुए भी मेरा ध्यान अनायास ही उन पर केंद्रित हो गया… वह युवती 23-24 साल की गेंहुए रंगत वाली, लंबी, आकर्षक देहयष्टि की स्वामिनी थी. घनी केशराशि को जूड़े में कैद कर रखा था. सलीके से पहनी गई सादी साड़ी में भी बेहद सुंदर लग रही थी. विवाह वाले घर में वह जब से आई थी, सभी के आकर्षण का केंद्र बनी हुई थी.

उस के सलोने से चेहरे पर बड़ीबड़ी आंखों में काजल के बजाय गहन उदासी की स्याही थी.

‘‘भाभीजी, आप तो जानती हैं कितनी धूमधाम से शादी हुई थी मेरी, लाखों खर्च कर दिए मेरे पापा ने. सरकारी नौकरी वाला दामाद पा कर घर में सब इतने खुश थे कि किसी ने भी गहराई से तहकीकात करने की जरूरत नहीं समझ, वहां से भी चट मंगनी, पट ब्याह का दबाव था.’’

‘‘लड़के का कोई चक्कर?’’

‘‘नहींनहीं, चक्करवक्कर कुछ नहीं.’’

‘‘तो फिर? ऐसा क्या हुआ कि इधर शादी उधर तलाक की नौबत आ गई?’’

‘‘छोडि़ए न भाभीजी, क्या करेंगी जान कर, जो होना था हो गया.’’

‘‘तुम्हारी मम्मी मुझ से कह रही थीं तुम्हारे लिए कोई अच्छा लड़का बताने को… अब देखो लोग तो तरहतरह की बातें करते हैं, इसलिए

सोचा तुम से ही पूछ लूं सचाई… क्या हुआ था… बता न?’’

‘‘कोई जरूरत नहीं कोई लड़कावड़का ढूंढ़ने की… मैं जिस हाल में हूं ठीक हूं.’’

‘‘चलो ठीक है, पर कारण तो बताओ… तुम्हारी मम्मी तो कह रही थीं बहुत घटिया निकले तुम्हारी ससुराल वाले, दहेज के लिए प्रताडि़त करते थे लाखों का दहेज देने के बाद भी… रोज मारपीट तक…’’

‘‘ऐसा कुछ भी नहीं था, मेरी ससुराल वाले मेरा बहुत खयाल रखते थे.’’

‘‘तो तुम्हीं बता दो, क्या वजह रही… पहले भी तो हर बात मुझे बताती थी न? अब क्या मैं इतनी पराई हो गई?’’

वह समझ गई कि इस प्रश्नोत्तरी से उस का पीछा तब तक नहीं छूटेगा जब तक वह

सबकुछ बता नहीं देगी. लिहाजा नजरें झकाए उस ने बोलना शुरू किया और फिर बोलती चली गई…

‘‘भाभीजी, मेरी ससुराल वाले बुरे नहीं थे, बस एक गलती हो गई उन से… बहुत धूमधाम से शादी हुई थी मेरी. शादी के बाद पहली रात हर लड़की की तरह मैं भी अनगिनत सपने सजाए अमित (पति) का इंतजार कर रही थी, पर ये नहीं आए. सुबह लज्जावश और किसी से तो पूछ नहीं सकी पर छोटी ननद से पूछा तो वह बोली कि भैया तो ऊपर कमरे में सो रहे हैं.

‘‘मुझे कुछ समझ नहीं आया, लगा मेहमानों की भीड़ की वजह से शरमोहया होगी, सब ठीक हो जाएगा पर भाभीजी, पूरे 7 दिन तक अमित मुझे नजर ही नहीं आए.’’

‘‘उफ, ऐसा क्यों? ऐसी भी क्या शर्म, ब्याह हुआ है आखिर घर वालों को तो देखना चाहिए था… तुम्हारी सास मूर्ख हैं क्या?’’

‘‘भाभीजी, अब क्या बताऊं, कैसे बताऊं? मैं यही समझ कहीं बहुत बिजी हैं, मेहमानों के जाने के बाद मैं खुद उन्हें ढूंढ़ते हुए उन के सामने जा खड़ी हो गई,

तो ये मुझ से नजरें चुराने लगे… फिर एहसास हुआ कि ये तो मुझ से भाग रहे हैं. लगा कुछ ज्यादा ही शरमीले हैं पर… पर भाभीजी, महीनों तक ये लुकाछिपी चलती रही. वे भूल से भी

कमरे में न आते. बहाने बना कर मुझे मायके

भी जाने नहीं दिया, न खुद मायके के किसी सदस्य से मिलने को तैयार थे, न ही मेरे सामने आते थे. मैं इन से बात करने का, इन की इस बेरुखी की वजह जानने का मौका ढूंढ़ती पर ये

तो गजब ही कर रहे थे. आखिर एक दिन मेरा सब्र चुक गया. एक शाम किचन में खाना बनाते वक्त जब मैं ने अमित को ननद से पानी लाने को कहते सुना तो मैं खुद पानी ले कर उन के सामने पहुंच गई.

‘‘मुझे देखा तो बोले, ‘तुम क्यों आई? पानी रख दो और जाओ.’ भाभीजी, उस समय मुझे जाने क्या हुआ, सारी लाजशर्मलिहाज उतार फेंक दी और ढीठ हो कर बोली कि क्यों जाऊं? बीवी हूं आप की और यह आप क्या मुझ से छिपते फिरते हो… शादी क्या सिर्फ घर के काम और घर वालों की सेवा कराने के लिए की थी? इस तरह मुंह क्यों चुराते हैं?

‘‘जवाब में एक सनसनाता थप्पड़ रसीद हुआ था गाल पर. उदास आंखों से गंगाजमना छलकीं, जिन्हें पल्लू से सफाई से पोंछ लिया.

‘‘उस दिन थप्पड़ खा कर भी मैं चुप नहीं रह पाई थी… मैं उन के पैरों में पड़ी अपनी गलती पूछ रही थी कि आखिर किस गलती की सजा दे रहे हैं वे, जो मैं शादी के बाद भी सिर्फ नाम की ब्याहता हूं.

‘‘अमित मुझे रोता छोड़ बाहर चले गए, अब तक घर वालों को भी पता चल चुका था कि हमारे बीच क्या हुआ. रात में मम्मीजी खाने के लिए मनुहार करने आईं तो मैं ने साफ कह दिया कि जब तक अमित मुझे इस व्यवहार की वजह नहीं बताते, मैं अन्नजल कुछ भी ग्रहण नहीं करूंगी, ऐसे ही प्राण त्याग दूंगी. अगले दिन मैं कमरे से बाहर ही नहीं निकली, न ही कुछ खायापीया. मेरे सासससुर ने मनाने की बहुत कोशिश की, पर मैं अड़ गई.

‘‘अगले दिन भी मैं कमरे में बैठी आंसू बहा रही थी. जब अमित आए तब पहली बार उन्होंने मुझ से खुल कर बात की और बात क्या की भाभीजी,वज्र प्रहार कर दिया उन्होंने मुझ पर.’’

‘‘क्या… क्या बोला वह?’’

‘‘उन्होंने अपनी मैडिकल रिपोर्ट मेरे सामने रख दी. मैं ने प्रश्नवाचक नजरों से देखा तो उन्होंने नजरें झका लीं. वे… वे तो शादी निभाने के काबिल ही नहीं थे. उन्होंने बताया कि अपनी इस कमी का एहसास उन्हें उम्र की समझ आते ही हो गया था. उन के मांपापा को जब पता चला तो तमाम डाक्टरी जांचें हुईं पर डाक्टर के नकारात्मक जवाब के बाद वे इस सचाई को स्वीकार करने के बजाय झड़फूंक कराने जाने लगे…

‘‘कुछ ढोंगी बाबाओं, हकीमों ने सलाह दी कि शादी करा दो, सब ठीक हो जाएगा. यह बात सिर्फ अमित के मातापिता को ही पता थी, छोटी बहन और अन्य रिश्तेदार इस बात से सर्वथा अनजान थे. सरकारी नौकरी लगते ही अमित के लिए रिश्ते आने शुरू हो गए. अमित शादी के लिए बिलकुल तैयार नहीं थे पर उन पर रिश्तेदारों का, समाज का दबाव बढ़ता जा रहा था. लोग सवाल पूछते, जिन के जवाब में वे तरहतरह के बहाने बनाते थक चुके थे. इस दबाव के चलते आखिर उन्होंने शादी के लिए हां कर दी, लेकिन शादी के बाद उन की हिम्मत नहीं पड़ी कि वे मेरा सामना कर सकते या मुझे सचाई बता सकते, इसलिए मुझ से दूर भागते थे.

‘‘मगर जब उन्हें लगा कि अब मुझ से सच छिपाना नामुमकिन है तो बहुत हिम्मत जुटा कर वे मेरे सामने आए. उन्होंने माफी मांगी मुझ से अपने किए की… पर मैं भला क्या माफ करती?

‘‘वे मुझ से बोले, ‘जो कहो करने को तैयार हूं, जो चाहो सजा दे दो,’ इस पर मैं ने इतना ही कहा, ‘मायके भेज दीजिए मुझे.’

‘‘और इस घटना के एक दिन बाद ही मैं मायके आ गई. मायके में भी कुछ

दिन तक तो समझ ही नहीं आया कि क्या बताऊं सब को, पर भला मां और बड़ी बहन से कैसे छिपा पाती? मेरे चेहरे पर फैली उदासी उन से छिपी न रह सकी. बड़ी दीदी ने मेरा मन टटोला तो कई दिन की भरी मैं उन के सामने फूटफूट कर रो पड़ी. सबकुछ जान कर मेरे घर वालों पर तो जैसे गाज ही गिर पड़ी. मां अपना सिर पीट रही थीं. पापा और भैया को पता चला तो उन्होंने बहुत सुनाया मेरी ससुराल वालों को. मेरे ससुर अपराधी की भांति सिर झकाए सब सुनते रहे. हाथ जोड़ते रहे पर पापा का क्रोध चरम पर था. मेरे बहुत मना करने पर भी दहेज का झठा केस करवा दिया. सास, ससुर, अमित तीनों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया. भाभीजी, मेरे साथ गलत तो हुआ था, पर अब जो हो रहा था वह और भी गलत था.

‘‘अमित को ऊपर से नोटिस आ गया था, नौकरी पर बन आई थी, छोटी ननद की मंगनी टूट गई थी… आखिरकार कुछ समय बाद आपसी सहमति से तलाक हो गया.’’

‘‘पर ऐसी शादी तो वैसे ही खारिज हो जाती.’’

‘‘हां, पर मैं कोर्ट में यह कैसे कह पाती कि अमित शादी के लायक नहीं थे… नहीं हो पाता मुझ से. मैं तो अपनी शादी के मामले को कोर्ट में घसीटना कभी चाहती ही नहीं थी, लेकिन पापा पर तो जैसे बदला लेने का जुनून सवार हो गया था. वे मेरी ससुराल वालों को कड़े से कड़ा सबक सिखाना चाहते थे, इसलिए मेरे मायके वालों ने मेरी चलने नहीं दी.

‘‘पहले अमित मुझ से नजरें चुराते थे, उस दिन तलाक के फैसले के बाद मैं उन से नजरें चुरा रही थी. मेरी वजह से वे और उन का परिवार समाज में उपहास का पात्र बन गया था.

‘‘अमित ने मेरे सामने हाथ जोड़ दिए तो

मैं संयत नहीं रह पाई, घोर आत्मग्लानि से मैं

मर रही थी… उन का वह दयनीय चेहरा मैं भूल नहीं पाती.

‘‘कुल जमा 2 साल के इस समय में पहले शादीशुदा के ठप्पे के बाद अब तलाकशुदा का ठप्पा भी लग चुका है,’’ वह शून्य में निहार रही थी.

‘‘गम न करो, उदास न हो… सब ठीक होेगा, अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है… दोबारा खुशियां जरूर आएंगी.’’

यह दिलासा सुन कर उस के चेहरे पर विद्रूप हंसी उभरी और लुप्त हो गई. बोली, ‘‘क्या खुशियां आएंगी भाभीजी? मन ही मर गया है… अब कोई खुशी नहीं चाहिए.’’

‘‘ऐसा न कहो, वहां शादी का कोई मतलब भी तो नहीं था रोली… वहां रह कर तुम करती भी क्या, आगे जीवन बहुत लंबा है.’’

‘‘शादी का मतलब अगर शारीरिक संबंध और वंश बढ़ाना ही है तो हां, फिर इस शादी का कोई मतलब नहीं था… पर भाभीजी, मैं ने तो मन, वचन, कर्म से उन्हें अपना पति माना था. पूरी निष्ठा से 7 फेरे लिए थे.

‘‘आप लोग ही तो पहले बचपन से सिखाते हो कि भारतीय नारी सिर्फ एक बार, एक ही पुरुष को अपना पति स्वीकार करती है… और अब समझ रहे हो कि जीवन बहुत लंबा है, इसलिए किसी और का हाथ थाम लो… सालों से घुट्टी

की तरह पिलाया भारतीय नारी वाला सबक चुटकियों में भूल जाओ… और दूसरे रिश्ते में भी कोई और दिक्कत हुई तो? खुशियों की वहां गारंटी है भाभीजी?’’

‘‘तो क्या सारी उम्र जोगन बनी रहोगी?’’

‘‘जिस पल मैं ने अमित को कोर्ट के बाहर एक हारे शखस की तरह सिर

झकाए, हाथ जोड़ते देखा था न, तभी सोच लिया था… किसी के होंठों की मुसकराहट और जीवन का सुकून छीनने का जो अपराध मुझ से हुआ है, मुझे भी कोई हक नहीं मुसकराने का.’’

‘‘गलती तो उन लोगों की थी जो इतना बड़ा धोखा तुम्हें दिया, फिर भी वहीं की वकालत कर रही हो, आश्चर्य है.’’

‘‘वे तो गैर थे न, पर मेरे अपनों ने क्या किया? समाज, परिवार का दबाव क्या होता है यह मैं ने जान लिया. जब परिवार प्रश्नचिह्न लगाता है कि शादी क्यों नहीं कर रहे तो इस प्रश्न का जवाब अमित जैसे लोग कैसे दें? परिवार को जवाब दे भी दें तो समाज खड़ा हो जाता है… कितना मानसिक संताप यह समाज देता है, मैं आज समझ सकती हूं.

‘‘वे समाज से यह कह नहीं सकते थे कि वे शादी के काबिल ही नहीं है. यह समाज उन्हें चैन से जीने नहीं देता. उन्होंने समाज, परिवार के दबाव में आ कर शादी की और मैं ने अपने परिवार के दबाव में आ कर कोर्ट में अपने मायके वालों के झठे आरोपों पर हामी भरी.’’

‘‘हद है, उन्हीं का पक्ष लिए जा रही हो. खैर, अभी तुम्हारा घाव ताजा है… कुछ समय लगेगा भरने में.’’

‘‘कुछ घाव कभी नहीं भरते भाभीजी… मैं भरने देना चाहती भी नहीं.’’

‘‘और अपने मांपापा को तड़पता देखती रहोगी? तुम्हारी चिंता में वे घुले जा रहे हैं.’’

‘‘मैं आत्मनिर्भर बन रही हूं, नैट क्वालिफाई कर लिया है… नियुक्ति भी मिल जाएगी… और रही बात मेरी खुशियों की तो मेरे इस दुख और स्थिति के जिम्मेदार भी वही हैं. पहले पड़ताल न की… तुरतफुरत में ब्याह दिया, फिर उन लोगों पर झठा केस किया… भाभीजी, मैं नादान थी… मायके

आ कर दीदी को सब बता दिया… पर ये लोग

तो समझदार थे न, शादी की नींव सिर्फ

शारीरिक संबंध ही होते हैं क्या? यदि उस समय थोड़ा धैर्य रखा होता तो मैं और अमित आज भी साथ होते. मैं अमित के खंडित, दमित आत्मविश्वास को सहारा देती, पतिपत्नी की

तरह दैहिक संबंध भले न होता पर एकदूसरे

के सच्चे साथी तो हम बन ही सकते थे.

भविष्य में किसी अनाथ बच्चे को गोद ले लेते तो उस का भी भविष्य संवरता, हमें भी एक उद्देश्य मिल जाता.’’

‘‘तुम पागल हो क्या रोली? ये काल्पनिक बातें हैं. तुम्हारी शादी कोई फिल्म नहीं थी. दांपत्य जीवन में दैहिक संबंध भी जरूरी होते हैं, यह भी एक महती आवश्यकता है. देखो, शादी एक स्त्री और पुरुष के बीच के संबंधों से ही फलीभूत होती है जबकि तुम्हारे केस में तो यह शादी शादी थी ही नहीं. ऐसे विवाह नहीं चलते.’’

तभी पंडितजी की आवाज से उन की तंद्रा भंग हुई… वे वरवधू से कह रहे थे, ‘‘फेरे संपन्न हुए, आप दोनों अपने कुलदेवता, कुटुंब, अपने समाज के सम्मुख मनवचनकर्म से एकदूसरे को पतिपत्नी स्वीकार कर चुके हैं. यह अटूट बंधन में अब जन्मोंजन्मों के लिए बंध चुके हैं. यह मात्र देह नहीं मन का संबंध है.  जाइए अपने स्वजनों का आशीर्वाद लीजिए.’’

वह गीली आंखें लिए मुसकराई फिर मुड़ कर बोली, ‘‘भाभीजी, मैं हो जाऊंगी तैयार दोबारा सो कौल्ड खुशियों के स्वागत के लिए… बस आप लोग एक काम और कर दीजिए.’’

‘‘हां,’’ बोलो.

‘‘मेरे मन का भी उन से तलाक करवा दीजिए,’’ कह वह उठ खड़ी हुई और वहां से चलती बनी.

और आज पूरे 20 वर्ष बाद वे फिर सामने थीं. एक तलाक के केस की काउंसलिंग में बिजी वे एक कन्या और उस के परिजनों को समझ

रही थीं.

‘‘जरा सी बात को तूल देना ठीक नहीं, अपनी लड़की से पूछा आपने, वह

तलाक चाहती भी है या नहीं?’’

फिर लड़की से मुखातिब हो कर बोलीं, ‘‘तुम बिना किसी के दबाव में आए स्पष्ट बताओ, तुम तलाक चाहती हो?’’

कुछ पलों की चुप्पी के बाद लड़की ने ‘न’ में सिर हिलाया.

‘‘संबंधों का तलाक करवा दोगे, मन का मन से तलाक कैसे करवा पाओगे? अपने अहं को संतुष्ट करने के लिए बेटी को ढाल मत बनाओ, वह तलाक नहीं चाहती. उस के फैसले का स्वागत करो.’’

परिजन भी शायद संतुष्ट हो गए थे, लड़की अपने पति और परिजनों के साथ चली गई.

वे चेयर पर सिर पीछे टिका कर निढाल सी बैठ गई थीं.

‘‘तो फिर रुकवा दिया एक तलाक?’’ मैं मुसकरा कर बोली, ‘‘बधाई हो. अब क्या सोच रही हैं आप?’’

‘‘यही कि काश, 22 साल पहले कोई रोली मुझे भी मिल गई होती.’’

Summer Special: चेहरे की सुंदरता बढ़ाएंगे आलू के ये 4 फेसपैक

चेहरे के दाग-धब्बे हटाने और आंखों के डार्क सर्कल कम करने के लिए आलू का इस्तेमाल काफी समय से किया जाता रहा है. आलू का रस आंखों के आसपास लगाने से यह आंखों की सूजन को कम करता है.

आइए जानें, चेहरे का ग्लो बढ़ाने और त्वचा में कसाव लाने के लिए घर पर कैसे तैयार करें आलू के फेसपैक…

1. आलू-अंडे फेसपैक

आलू और अंडे के फेसपैक को लगाने से चेहरे के पोर्स टाइट होते हैं. आधे आलू के रस में एक अंडे का सफेद हिस्सा मिलाकर अच्छी तरह मिक्स कर लें. इसे चेहरे और गर्दन पर लगाकर 20 मिनट के लिए छोड़ दें. बाद में सादे पानी से चेहरा धो लें. आपको तुरंत फर्क नजर आएगा.

2. आलू-हल्दी का फेसपैक

आलू और हल्‍दी के फेसपैक के नियमित उपयोग से त्‍वचा का रंग साफ होने लगता है. आधे आलू को कद्दूकस करके इसमें एक चुटकी हल्‍दी मिलाकर चेहरे पर लगाकर आधे घंटे के लिए छोड़ दें. बाद में चेहरा पानी से साफ कर लें. इस फेसपैक को हफ्ते में एक बार जरूर लगाएं.

3. आलू-मुल्तानी मिट्टी फेसपैक

यह फेसपैक आपकी त्‍वचा में निखार लाने के साथ ही मुंहासे वाली त्‍वचा की सूजन को कम करने में भी मददगार है. इस फेसपैक को बनाने के लिए बिना छीले आधे आलू का पेस्‍ट बना लें और उसमें 3 से 4 चम्‍मच मुल्‍तानी मिट्टी और कुछ बूंदें गुलाब जल की मिलाकर पेस्ट तैयार करें.

अब इस पेस्‍ट को अपने चेहरे और गर्दन पर लगाकर 30 मिनट के लिए छोड़ दें. यह पैक आपकी स्किन को चमकदार बनाता है.

4. आलू-दूध से बना फेसपैक

आधे आलू को छिलकर उसका रस निकाल लें और इसमें दो चम्‍मच कच्‍चा दूध मिलाकर अच्‍छी तरह मिक्‍स करके कॉटन की मदद चेहरे और गर्दन पर लगाएं. फिर 20 मिनट के बाद इसे धो लें. सप्‍ताह में तीन बार इसे लगाने से चेहरे पर फर्क साफ नजर आने लगेगा.

मेहंदी से दूर करें बालों की हर प्रौब्लम

बालों से जुड़ी ज्यादातर समस्याओं के लिए हम मेहंदी पर ही भरोसा करते हैं. सफेद बालों के लिए, रूखे बालों के लिए और यहां तक की दोमुंहें बालों की समस्या को दूर करने के लिए भी मेहंदी का इस्तेमाल किया जाता है. बालों की खूबसूरती बरकरार रखने और उन्हें स्वस्थ बनाए रखने के लिए भी मेहंदी सबसे भरोसेमंद मानी जाती है.

मेहंदी एक नेचुरल उत्पाद है जो बालों को पोषित करने का काम करता है साथ ही इसके नियमित इस्तेमाल से बाल घने-मुलायम और लंबे होते हैं. इसके पैक लगाने से बालों में एक कुदरती चमक आती है. यूं तो बाजार में कई तरह के हेयर कलर मौजूद हैं लेकिन ये एक नेचुरल हेयर कलर है. ये स्कैल्प का पीएच लेवल संतुलित बनाए रखने का काम करता है. यानी यह न बालों को तैलीय होने देती है और न उनको रूखा व बेजान. इसके साथ ही अगर आपके बालों में रूसी की समस्या है तो इसे भी हटाने के लिए मेहंदी लगाना एक कारगर उपाय है. गर्मियों में मेहंदी का इस्तेमाल करना और भी अधिक फायदेमंद होता है क्योंकि इसके इस्तेमाल से सिर को ठंडक भी मिलती है.

आप मेहंदी का इस्तेमाल किस तरह से करना पसंद करते हैं, ये पूरी तरह आप पर निर्भर करता है. लेकिन अगर आप रूसी की समस्या से जूझ रहे हैं तो मेहंदी के इन उपायों को अपना सकते हैं:

1. अंडा, जैतून का तेल और मेहंदी पाउडर

अंडे के सफेद भाग, जैतून के तेल और मेहंदी पाउडर के इस्तेमाल से रूसी की समस्या बहुत जल्दी समाप्त हो जाती है. इन तीनों चीजों को आपस में अच्छी तरह मिला लें. इस पेस्ट को स्कैल्प पर अच्छी तरह से लगा लें. 30 मिनट तक इस पेस्ट को यूं ही लगा रहने दें और उसके बाद हल्के गुनगुने पानी से बालों को साफ का लें.

2. मेहंदी, दही और नींबू

अगर आपको रूसी दूर करने के साथ ही बालों में चमक भी चाहिए तो ये हेयर-पैक आपके लिए सबसे अच्छा होगा. नींबू के रस में मेहंदी पाउडर को अच्छी तरह से फेंटकर एक पेस्ट बना लें. इस पेस्ट में दही भी मिला लीजिए. कुछ देर के लिए इस पेस्ट को स्कैल्प पर लगाकर छोड़ दें, उसके बाद हल्के गुनगुने पानी से बालों को साफ कर लें.

3. सरसों के तेल के साथ मेहंदी पाउडर का इस्तेमाल

बालों में रूसी हो जाने पर सरसों के तेल का इस्तेमाल करना बहुत फायदेमंद होता है. जब इसे मेहंदी के साथ मिलाया जाता है तो यह एक बेहतरीन कंडीशनर बन जाता है. इसके इस्तेमाल से बाल मजबूत और स्वस्थ बनते हैं. अगर आप मेहंदी पाउडर की जगह मेहंदी की पत्त‍ियों का इस्तेमाल करें तो और भी बेहतर होगा. आप चाहें तो मेहंदी की पत्तियों को सरसों के तेल में पकाकर उस तेल का इस्तेमाल कर सकते हैं.

फेस शेप के हिसाब से ऐसे चुनें बैस्ट ज्वैलरी

आभूषणों के बिना महिलाओं का शृंगार अधूरा माना जाता है. यही वजह है कि बदलते युग में भी ज्वैलरी का प्रयोग नए तरीकों से किया जाता है. ट्रैडिशनल पोशाक पसंद करने वाली अभिनेत्री विद्या बालन ने झुमकों के क्रेज के बारे में बताया कि उन्हें झुमके इतने पसंद हैं कि वे इन्हें खरीदने का कोई मौका नहीं छोड़ती हैं. उन्होंने ट्रेन में बिकने वाले 5 रुपए के सस्ते झुमके भी खरीद कर पहने हैं. विद्या को पारंपरिक गहनों की बहुत बड़ी प्रशंसक हैं.

सोनम कपूर अकसर अपने स्टाइल के साथ ऐक्सपैरिमैंट करती हैं और उन का यह लुक सभी को पसंद भी है. उन्हें भी गहनों का खास शौक है, गहने चाहे महंगे हों या कम दाम के, ड्रैस से मैच करते गहने पहनती हैं. वे कहती हैं कि ट्रैडिशनल ड्रैस हो या वैस्टर्न गहनों की हर पहनावे पर पहनने की जरूरत होती है. अभिनेत्री दीपिका पादुकोण को बहुत ही ट्रैंडी गहने पहनना पसंद है. उन्हें अधिकतर लंबे और लटकते इयररिंग्स पहने देखा जा सकता है क्योंकि उन का चेहरा लंबा है.

इस बारे में कृष्णा ज्वैलरी ऐक्सपर्ट हरि कृष्णा कहते हैं कि चेहरा व्यक्ति के व्यक्तित्व का आईना होता है. सही आभूषण सुंदरता को और बढ़ाते हैं, इसलिए भारीभरकम गहनों से अधिक ऐलिगैंट लुक वाले गहने आज के यूथ की पसंद होते हैं और यही ट्रैंड है. इसलिए जब भी कोई महिला मेरे पास आती है तो उसे मैं चेहरे के अनुरूप ही गहने खरीदने की सलाह देता हूं. यही नहीं कई बार ऐसा देखा जाता है कि गहनों का चयन चेहरे के अनुसार नहीं किए जाने पर पूरा चेहरा ही बदल जाता है, ऐसे में कैसे जाने चेहरे के अनुसार कैसी ज्वैलरी पहनी जानी चाहिए ताकि सब की नजरें आप पर ठहर जाए, आइए जाने:

ओवल फेस

ओवल फेस की सब से अच्छी बात यह है कि इस चेहरे वाली महिलाएं किसी भी लंबाई और स्टाइल के नेकलैस पहन सकती हैं. इसी तरह ओवल या टियरड्रौप डिजाइन वाले राउंड नैकलैस जोकि आप के चेहरे के आकार की नकल करते हैं, बेहतरीन विकल्प माने जाते हैं. वहीं जियोमैट्रिकल पैंडैंट के साथ शौर्ट नैकलैस मिनिमलिस्टिक लुक के लिए काफी शानदार होते हैं. लुक को परफैक्ट बनाने के लिए वाइड इयररिंग्स की मैचिंग काफी अच्छा लुक देती है.

लौंग फेस

लौंग फेस में माथे से चिन तक की लंबाई अधिक होती है, जोकि उन्हें ओवल फेस से काफी अलग बनाती है. इस तरह के चेहरों के लिए एक सरल तरकीब यह है कि चेहरे की लंबाई को कम करती हुई ज्वैलरी चुनना, जो चेहरे की चौड़ाई पर अधिक बल देती हो. चौड़े चेहरे पर इंप्रैशन देने के लिए गरदन पर ऊंचे चंकियर नेक पीस का चुनाव एक सही विकल्प है. ऐसे चेहरे के लिए फुल चोकर सैट भी एक बेहतर विकल्प हो सकता है. इस के अलावा शैंडेलियर इयररिंग्स लुक को कंप्लीट करने के लिए सब से बैस्ट हैं. फ्लोरल डिजाइनें भी इस प्रकार के चेहरे के लिए सब से बेहतरीन होती हैं.

हार्ट शेप फेसेस

यह चेहरे अकसर शौर्टर, पौइंटेड चिन वाला होता और चेहरे का ऊपरी आधा भाग चौड़ा होता है. इस तरह के चेहरे के लिए किसी भी प्रकार की ज्वैलरी को चुनने का सब से सही तरीका है, माथे की चौड़ाई को कम करने और वाइडर जौलाइन का इंप्रैशन पैदा करने वाले नैक पीस और उसी के अनुसार इयररिंग्स. इस में लौंग, वी शेप नैकलैस चिन को हाईलाइट करते हैं, इसलिए लौंग नैकलैस के बजाय शौर्ट नैकलैस, कर्व और राउंड गरदन के चारों ओर कंप्लीट लुक देते हैं और माथे की चौड़ाई को संतुलित करने में भी मदद करते हैं. लेयर्ड नैकलैस भी एक बेहतरीन पीस है और यदि पैंडैंट के लिए उत्सुक हैं, तो एक अडजस्टेबल चेन के साथ इसे चुनें ताकि इसे गले में जितना संभव हो उतना छोटा रख सकें. इस के अलावा टियरड्रौप इयररिंग्स भी निश्चित रूप से लुक को और अधिक निखार देती हैं.

राउंड फेस

राउंड फेस ओवल फेस की तुलना में एक खास अनुपात में होता है. राउंड फोरहैड और जौलाइन चेहरे की खूबसूरती को अधिक बढ़ाती है. शार्प स्टोन ज्वैलरी का चयन लुक में कुछ शार्पनैस लाने में मदद कर सकता है. लंबे पैंडैंट और नैकलैस जो कौलरबोन के नीचे वी शेप बनाते हैं, राउंड चेहरे पर सुंदर लगते हैं.

राउंड फेस वालों को चंकियर और चोकर नैकलैस पहनने से बचना चाहिए. चेहरे के अनुसार उन्हें कंट्रास्ट के लिए चौकोर एवं आयताकार वाले नैकलैस का चुनाव करना बेहतर रहता है.

स्क्वेयर फेस

इस चेहरे वालों के माथा, गाल और जौलाइन समान चौड़ाई की होती है, माथे से ले कर चिन तक की ऊंचाई भी चेहरे की चौड़ाई के समान ही होती है. स्क्वेयर फेस के लिए स्टोंस की ज्वैलरी चुनना सुरक्षित माना जाता है. इस के लिए शार्प जिओमैट्रिक डिजाइनों से बचना सब से बेहतर होता है. टैसल जैसे आकर्षक कंपोनैंट के साथ लौंग वर्टिकल नैकलैस, स्क्वेर फेस के लिए सब से बेहतरीन विकल्प हैं. लौंग नैकलैस चुनने से चेहरा लंबा दिखता है और चेहरे की सौफ्टनैस भी झलकती है.

वृक्ष मित्र: क्यों पति से ज्यादा उसे पेड़ से था प्यार

ससुराल में पति, सास और ससुरजी के बाद मुझेचौथे सब से प्रिय अपनी छत पर दाना चुगने आने वाले मुक्त मेहमान तोते और गौरैया थे. उस के बाद 5वें नंबर पर यह नीम का पौधा था. यह मेरा इकलौता पुरुष मित्र है.

इस पौधे को मैं ने नीम के बीज से अपने गमले में तैयार किया था. मैं प्रतिदिन इसे अपना स्पर्श और पानी देती हूं, इस की सुखसुविधा का खयाल रखती हूं.

6 माह पहले हमारी शादी हुई थी. यह समय हम ने रूठनेमनाने में बरबाद कर दिया. कोरोना महामारी के कारण पिछले 1 माह से अपने डाक्टर पति योगेश से एक क्षण के लिए नहीं मिली थी. कोरोना के मरीजों की देखभाल में व्यस्त थे.

आज मुझेअपना अकेलापन बहुत बुरा लग रहा था. मैं अपनी विरहपीढ़ा सह नहीं पा रही थी. अपने अकेलेपन से ऊब कर ही मैं ने नीम के इस पौधे से दोस्ती की थी.

यह पौधा मुझेप्रतिदिन ताजा, मुलायम,

हरी पत्तियां देता है. उन्हें चबा कर मैं अपने

शरीर से जहरीले पदार्थों को निकाल कर

तरोताजा महसूस करती हूं. नीम एक अच्छा ऐंटीऔक्सीडैंट है. अब यह बड़ा हो रहा था. कुछ दिनों में यह गमला और घर उस के लिए छोटा पड़ने लगेगा.

शादी के तुरंत बाद पहले भी  मैं ने एक नीम का एक पौधा तैयार किया था. मेरे पति ने उसे मुझ से मांग कर मैडिकल कालेज में अपने औफिस के प्रांगण में लगा दिया था. कुछ दिनों तक उस के हालचाल मुझेदेते रहे, पर अब उस नीम के पौधे से मेरा कोई संपर्क नहीं है.

इस बार अपने वृक्ष मित्र को अपने से

अलग नहीं होने दूंगी. पुरुष अपनी पत्नी के

पुरुष मित्रों के प्रति कुछ ज्यादा ही शंकालू होते

हैं. मेरे इकलौते पुरुष मित्र को मुझ से अलग

करने के कारण मुझेअपने पति योगेश पर बहुत गुस्सा आ रहा था. यदि वे अभी मेरे निकट होते तो मुझेउन को अभी के अभी कमरे में ले जा कर बिस्तर पर पटक देना था और फिर उन से बदला लेना था. आगे की घटना के बारे में कल्पना करते हुए मेरा चेहरा रोमांच से लाल पड़ गया.

अगली सुबह अपने वृक्ष मित्र नीम के

पौधे की अतिरिक्त टहनियों को मैं ने काट दिया और उस को बोनसाई बनाना शुरू कर दिया. इस बार मैं नीम के पौधे को बड़ा होने से रोकूंगी. अपनी हैसियत और आकार के बराबर रहने दूंगी दोस्ती के लिए समानता बहुत आवश्यक है.

मेरे पति योगेश झंसी मैडिकल कालेज के कोरोना वार्ड के इंचार्ज थे. ड्यूटी खत्म होने पर भी उन्हें होटल के कमरे में क्वारंटीन रहना पड़ता था. मैं बेसब्री से उन की ड्यूटी खत्म होने का इंतजार कर रही थी. जैसे ही वे होटल के कमरे में आते थे, हमारी वीडियो चैट शुरू हो जाती. मेरी कोशिश होती थी कि उन्हें जल्द से जल्द सैक्सुअली रिलीज कर दूं. मुझेडर था कि कहीं मेरी अनुपस्थिति के कारण वे किसी खूबसूरत नर्स के प्रेमजाल में न पड़ जाएं.

मेरी एक सहेली ने लंबे समय के लिए पति से दूर अपने मायके आते समय पति को व्यस्त रखने के लिए ‘फ्लैश लाइट बाइब्रेटर’ गिफ्ट दिया था. मैं ने भी और्डर कर दिया था, लेकिन आने में अभी देर लग रही थी.

आज सुबह मुझेनीम की पत्तियों को मुंह में रखते ही थूक देना पड़ा. आज नीम की पत्तियों का स्वाद कुछ ज्यादा कड़वा प्रतीत हो रहा था. जब मैं ने यह बात योगेश को बताई तो उन्होंने इसे मेरा वहम बताया. उन का कहना था कि एक पौधा कैसे इतनी जल्दी पत्तियों का स्वाद परिवर्तित कर सकता है?

हमारे शहर में भयावह तरीके से कोरोना फैला हुआ था. किसी न किसी कारण योगेश

की रोज अखबार में फोटो के साथ तारीफ

छपती थी. ससुरजी तुरंत उस अखबार को मेरे पास भेज देते. शाम होने पर उन की तसवीर को काट कर मैं 2 बार चूमती हूं, फिर उसे अपने ब्लाउज में रख लेती.

आज योगेश को कोरोना वार्ड में इलाज करते हुए 50 दिन हो चुके थे. पूरा स्टाफ 15 दिन काम कर के बदल हो जाता था, पर योगेश ने छुट्टी लेने से साफ इनकार कर दिया था. सिद्धांतवादी जो ठहरे मानो इन के बिना कोरोना के मरीजों का ठीक से इलाज नहीं हो पाएगा.

हमारे जिले की कोरोना प्रभावितों की मृत्यु दर पूरे प्रदेश में सब से कम थी, इस बात से खुश हो कर मुख्यमंत्री महोदय ने उन की प्रशंसा की थी. अखबार में उन का फोटो छपा था. उन्होंने वही नेवी ब्लू शर्ट पहनी थी जो मैं ने हनीमून पर उन्हें नैनीताल के माल रोड पर अपनी विदाई के पैसों से खरीद कर दी थी. मैं खुशी से फूली न समा रही थी.

नहाते हुए मुझेअपने हनीमून के मजे याद आ गए. मेरी मां कहा करती हैं कि हमें पूर्णत: नग्न हो कर स्नान नहीं करना चाहिए, जल देवता का अपमान होता है. शादी से पहले मैं गाउन पहन कर ही नहाती थी, लेकिन शादी के बाद हनीमून पर योगेश ने मेरी यह प्रतिज्ञा तुड़वा दी. कड़कड़ाती सर्दी में हम लोग बहुत ही बेशर्मी से 1 घंटा बाथटब में नहाए थे.

साबुन की धार वक्ष पर गोलगोल घूम कर नीचे बढ़ते हुए नाभि को भरने लगी. 10 सैकंड तक नाभि को भरने के पश्चात जांघों की ओर बहने लगी. योगेशजी कहते हैं कि मेरी बैलीबटन मेरे शरीर का सब से आकर्षक हिस्सा है.

बाहर मुख्य दरवाजे पर ससुरजी राहुल से बात कर रहे थे. ससुरजी कालेज में कैमिस्ट्री के प्रोफैसर पद से रिटायर्ड हुए थे. उन का एक पुराना छात्र राहुल इन दिनों हमारी जरूरत का सामान बाजार से खरीद कर हमें दे जाता था. राहुल और उस के दोस्त लोगों की सहायता के लिए यह काम स्वेच्छा से कर रहे थे. आज राहुल ससुरजी से किसी परिचित के लिए मैडिकल कालेज में वैंटिलेटर के लिए सिफारिश करने के लिए कह रहा था.

ससुरजी ने उसे प्यार से समझया, ‘‘लोगों को जरूरत के हिसाब से उन की स्थिति और बचने की उम्मीद को देख कर वैंटिलेटर दिया जा रहा है, फिर भी तुम्हारी बात मैं योगेश तक पहुंचा दूंगा.’’

ससुरजी और मुझेराहुल की यह सिफारिश के लिए कहना बिलकुल अच्छा नहीं लगा. योगेश तो सोर्ससिफारिश की बात सुनते ही उसी प्रकार भड़क जाते हैं जैसे सांड़ लाल कपड़े को देख भड़कता है. सांड़ की बात से ध्यान आया कि योगेश भी कई दिनों बाद मिलें तो सांड की तरह हो जाते थे. यह सोचते हुए मेरे गाल शर्म से लाल पड़ गए.

आज मैं ने नीम के पत्तियों के और अधिक कड़वा हो जाने की बात अपनी सासूमां को बताई. मां मुझेयोगेश की तुलना में ज्यादा अच्छे से जानती हैं. योगेश के साथ ज्यादा वक्त मैं या तो सिर्फ सोई थी या रोमांटिक बातें होती थीं. हम एकदूसरे के लिए चांदसितारे तोड़ लाने के झठे वादे करने में समय बरबाद करते थे.

वे सासूमां थीं जिन के साथ लोकाचार या व्यावहारिक बातें होती थीं. लौकडाउन ने सासूमां को मेरा और अच्छा दोस्त बना दिया था. हम एकदूसरे को भलीभांति जानने लगे थे. मां जानती थीं कि न तो मैं झठ बोलती हूं और न ही मेरे अवलोकन गलत होते हैं. वे हमेशा मेरे पक्ष में बोलती थीं. यहां तक कि उस के लिए वे अपने डाक्टर बेटे को भी डांट देती थीं.

योगेश का ध्यान आते ही एक बार फिर

मेरे जिस्म में करंट फैल गया. बुरा सा मुंह बना कर मैं मन ही मन बड़बड़ाई कि अपनी पत्नी की फिक्र नहीं हैं उन्हें… आने दो अच्छा मजा चखाऊंगी. यह योजना बनाते हुए मुझेगुदगुदी

होने लगी.

एक बार मां ने कह दिया, ‘‘यह नीम का पौधा तुझ से नाराज है. तुझेउसे गमले या अपने छोटे से घर में कैद रखने की योजना नहीं बनानी चाहिए.’’

उन का कहना था कि नीम को भी अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीने देना चाहिए.

उन्होंने आदेश दिया, ‘‘दूर से दोस्ती रखो इस विशाल वृक्ष से. इस की सुंदरता इस की विशालता में है.’’

आज 65वां दिन था, भोजन के अतिरिक्त टीवी देखने के लिए मैं बैठक में सासससुर के पास कुछ वक्त गुजारती थी. ससुरजी आज के समाचार को ले कर पत्रकार के साथसाथ योगेश पर भी बहुत नाराज थे कि ऐसी समाजसेवा किस काम की?

किसी पत्रकार ने योगेश पर आरोप लगाया था कि रेमडेसिविर, प्लाज्मा, फेवी

फ्लू और वैंटिलेटर में गोलमाल हो रहा है, औक्सीजन खरीदने में घपला हो रहा है.

आज ससुरजी ने बहुत ही गंभीर हो कर मुझ से कहा, ‘‘पूर्णिमा, तुम योगेश से छुट्टी लेने को क्यों नहीं कहती?’’

ससुरजी ने बताया, ‘‘तुम्हारी सासूमां शादी के बाद मुझेविश्वविद्यालय के 30 दिन के ओरिएंटेशन कार्यक्रम और 15 दिन के रिफ्रैश कार्यक्रम भी अटैंड नहीं करने देती थीं और एक तुम हो योगेश 70 दिनों से बाहर है, फिर भी तुम वापस नहीं बुला पाई.’’

मैं ने बहुत ही धीमे स्वर में कहा, ‘‘मैं

मां की तरह खूबसूरत नहीं हूं… वे मेरे बस में

नहीं हैं.’’

मेरे जबाब पर सभी हंसने लगे. हम सभी जानते हैं कि इस का कारण मेरे रूपयौवन की कमी नहीं है.

योगेश को पकड़ कर घर खींच लाने की पापाजी की बात ने मुझेबहुत ही रोमांचित कर दिया था. मैं स्वयं को इंग्लिश मूवी की लड़कियों की तरह अनुभव करने लगी जो काले चमड़े की चोली और हाफ पैंट में एक हंटर लिए रहती हैं, गोल टोपी पहनती हैं, उन के पुरुषों के गले में गुलामी का पट्टा होता है. वे पुरुष उन के सैक्स स्लैव (काम नौकर) होते हैं. उन पुरुषों का कार्य सिर्फ अपनी मालकिन को खुश रखना है.

आजकल में योगेश आ जाएंगे, यह सोच कर आज मैं ने बैक्सिंग का प्लान बनाया था. दोपहर का भोजन जल्दी निबटा कर शक्कर, शहद, नीबू के रस और रोजिन को धीमी आंच में पका कर मैं कमरे में आ गई. हाथपैरों के बाल मैं वैक्सिंग से हटाती हूं और कांख तथा अन्य कोमल जगहों के बाल रेजर से हटा देती हूं. यदि योगेश  होते तो वे अपने ट्रिमर से पहले उन्हें कम कर देते. ट्रिमर का कंपन मुझेउत्तेजित कर देता और हम बैक्सिंग छोड़ प्यार करने लगते. ऐसा दसियों बार हो चुका होगा.

सासूमां नीम के पौधे को बोनसाई बनाने की मेरी योजना के सख्त खिलाफ थीं. शाम को सासूमां के बालों में नारियल के तेल की मालिश करते समय उन्होंने मुझेफिर से समझया कि विशाल वृक्ष के विकास को बाधित करने से मुझेप्रकृति का श्राप मिलेगा. उन की बात से मैं जरा भी सहमत नहीं थी. मैं ने उपेक्षा में सिर हिलाया तो मां होने के नाते तुरंत उन्होंने इस बात को समझ लिया होगा.

रात को बेलबूटे लगी हुई बेहद वल्गर नाइटी में मैं ने योगेश से वीडियो कौल चालू की. मैं योगेश को अपने चमकदार नितंब, रेजर फेरी हुई घाटी और फीते से बंधे हुए उभारों के दर्शन करा रही थी कि मां अचानक से कमरे में आ गईं. मैं ने बड़ी मुश्किल से तौलिए से अपने को ढकते हुए काल बंद कर दी.

मां ने बहुत ही प्यार से मुझेसहलाते हुए कहा, ‘‘रागिनी, एक तरफ तुम छत पर पक्षियों को दानापानी रख कर इतना नेक काम करती हो तो दूसरी ओर एक विशाल वृक्ष को अपना गुलाम बना कर क्यों रखना चाहती हो?’’

जातेजाते मुसकराते हुए उन्होंने मुझेडांटा, ‘‘योगेश से बात करते वक्त दरवाजा बंद रखा करो. पतिपत्नी की बातें चारदीवारी से बाहर नहीं निकलनी चाहिए.’’

लौकडाउन को आज 3 महीने हो चुके थे. मेरे जिस्म का 1-1 हिस्सा योगेश के स्पर्श को तरस रहा था. अपनी उंगलियों और कृत्रिम उपकरणों के झठे स्पर्श में अब मन नहीं लगता था. शादी के बाद हम ने अब तक गर्भनिरोधक उपाय किया था. सुहागरात के दिन योगेश भूखेप्यासे की तरह मुझ पर टूट पड़े थे. आज के आधुनिक युग में लड़केलड़कियां स्कूल छोड़ने तक अपने कौमार्य को सुरक्षित नहीं रख पाते, लेकिन हम दोनों अपवाद थे. हम अपना कौमार्य अपने जीवनसाथी के लिए बचा कर रखे थे और अब अपनी सारी आकांक्षाओं को पूरा करना चाहते थे.

आज मुझेहमारी परिवार नियोजन योजना का पछतावा हो रहा था. कोरोना का

इलाज करते हुए योगेश को यदि कुछ हो गया तो क्या होगा?  इस लौकडाउन से पहले काश मैं ने गर्भधारण कर लिया होता. इन बातों को सोचते हुए मेरी आंखों से आंसू टपकने लगे.

उस शाम योगेश ने मेरे संशय को भांप कर  मुझेआश्वासन दिया, ‘‘मैं अपने शुक्राणुओं को कल ही सीमन बैंक में सुरक्षित करवा दूंगा. मम्मीपापा के आशीर्वाद के कारण मुझेकुछ नहीं हो सकता. तुम निश्चिंत रहो. तुम्हारा प्यार मुझेयमराज के दरबार से वापस खींच लाएगा. हम पूरी सावधानी रखते हैं. पूरा समय पीपीई किट पहने होते हैं. समयसमय पर सैनिटाइज करते हैं, भाप लेते हैं.’’

आज के समाचार के अनुसार, ‘‘मैडिकल कालेज के कोरोना वार्ड के इंचार्ज डा. योगेश ने समस्त मैडिकल स्टाफ के सम्मुख उदाहरण प्रस्तुत करते हुए 15 दिन का ब्रेक लेने से लगातार इनकार करते रहे हैं. लगातार इलाज करते हुए आज उन का 100वां दिन है.’’

मुझेयोगेश पर बहुत गुस्सा आ रहा था, ‘‘इन जनाब को हीरो बनने का चसका लगा हुआ है.’’

मुझेसमझ नहीं आ रहा था कि अपने इन हीरो के लिए अपनी जान दूं या इन की जान ले लूं. योगेश यदि मेरे पास होते तो मैं उन के गालों को प्यार से ही सही पर काट लेती.

आज मैं ने अपने बाल धोए थे. सासससुर को पनीर के पकौड़े और चाय बनाने

के बाद नाइटगाउन में छत पर टहल रही थी. माटी की महक के साथ ठंडी हवा चल रही थी. लगता था आसपास कहीं मौनसूनपूर्व बारिश हुई है.

हवा का झंका गाउन को उड़ाता हुआ एक तरफ ले गया. हवा के तेज झंके मेरे कांख, वक्ष, कलाई, पेट, कूल्हों, कटि प्रदेश, जांघों और पिंडलियों को इस प्रकार सहला रहे थे जैसे योगेशजी की हथेली मुझेस्पर्श कर रही हो.

हवा के एक बेहद तेज झंके ने मुझेअनावृत कर दिया. मैं लगभग अर्द्धनग्न हो घूमतेघूमते मैं अपने पुरुष मित्र नीम के पौधे के पास आ गई. आज मुझेयह मुसकराता हुआ महसूस हो रहा था. मुझेलगता है कि इसे साथ रखने की मेरी योजना के चलते अब यह मुझ से खुश है. अफसोस कि लौकडाउन खुलते ही इस नीम के पौधे को भी मुझेयोगेश के साथ भेज देना होगा. हमारे घर में मां के आदेश का आंख बंद कर पालन जो किया जाता है.

मैं ने निश्चय किया कि योगेश के वापस आने के बाद एक बार फिर मां को समझने की कोशिश करूंगी कि पत्तियों की यह बढ़ी हुई कड़वाहट उस की खुशी का प्रतीक है. नीम की पहचान उस की कड़वाहट ही है न कि मिठास. यह नीम के पौधे के द्वारा अधिक लीमोनौयड  बनाने के कारण हुआ होगा. नीम अपने लीमोनौयड रसायन के कारण ही इतना उपयोगी है. नीम, लीमोनौयड के कारण ऐंटीऔक्सीडैंट का काम करता है, जिस से यह हानिकारक पदार्थों से मानवशरीर को मुक्त करता है. मेरी इन तर्कपूर्ण बातों को जान कर शायद सासूमां नीम का पौधा घर पर रखने को मान जाएं. यह सोचते हुए मैं ने अपने शयनकक्ष में प्रवेश किया और कलैंडर पर 105वें दिन को चिह्नित कर दिया.

108वां दिन, आज कूरियर से मेरा खिलौना, जीस्पौट, रेविट बाईब्रेटिंग डेल्डो आया था. पैकेट से निकाल कर बेसब्री से योगेश की वीडियो कौल का इंतजार करने लगी.

आज 111वां दिन, हमारे घर उत्सव जैसा माहौल था. मैं, मां और पापाजी घर के कोनेकोने को साफ कर रहे थे. शहर में कोरोना के गंभीर मरीज अब कम होने लगे थे. आईसीयू की वेटिंग खत्म हो गई थी. दोपहर में फोन आया था कि योगेशजी 2-4 दिनों में लौट रहे हैं.

मैं ने मन ही मन संकल्प किया कि योगेश के घर लौटने के बाद 1 हफ्ते तक मैं उन्हें अपना शरीर छूने नहीं दूंगी. हालांकि उन का पूरा खयाल रखूंगी, उन के पैर दबाऊंगी, उन के सिर की मालिश करूंगी, उन की हर फरमाइश पूरी करूंगी, लेकिन सैक्स नहीं करने दूंगी.

जब वे अपनी गलती 10 बार मानेंगे, 10 बार मुझेमनाएंगे तो ही उन्हें अपने कपड़े उतारने दूंगी.

शाम को फोन आया कि योगेशजी घर आने के बाद 5 दिनों तक घर के पीछे नौकर के लिए बने हुए कमरे में रहेंगे. उन से शारीरिक दूरी बना कर रखनी होगी, 5 दिन कोई भी उन के पास नहीं जाएगा. उन्होंने बताया कि शहर में कोरोना भले कम हुआ है, लेकिन कोरोना के खिलाफ जंग अभी खत्म नहीं हुई है.

125वें दिन योगेश से मेरा मिलन ठीक उसी प्रकार हुआ जिस प्रकार मैं ने चाहा था. नीम का पेड़ थोड़ा जैलसी में मुरझ सा गया लग रहा था. कोविड में जो बीमार हुए उन्होंने तो बहुत सहा पर जिन्होंने अस्पतालों में उन की देखभाल की उन के बारे में उन की मेरी जैसी युवा नईनवेली पत्नियां ही जानती हैं.

तो खाने से हो जाएगी बच्चे की दोस्ती

इन बातों का भी ध्यान रखें

–  उम्र बढ़ने के साथसाथ बच्चे की भूख पर असर पड़ता है. जो उसे आज पसंद होता है, उसे वह अगली बार खाना पसंद नहीं करता. फिर भी आप हार न मानें, क्योंकि टेस्ट चेंज होता रहता है.

–  खाना खिलाने के लालच में बच्चे को स्वीट आफर न करें, क्योंकि यह सिर्फ बच्चे की स्वीट क्रेविंग को बढ़ाने का काम करता है. कभीकभार ही यह सही होता है. इस की जगह बच्चे को योगर्ट खिलाएं, क्योंकि यह न्यूट्रिएंट्स में रिच होने के कारण इम्युनिटी को बूस्ट करने का काम करता है.

–  खाने में ज्यादा मसालों का इस्तेमाल न करें, क्योंकि कुछ बच्चे मसालों व खाने से आने वाली बहुत तेज महक के कारण खाना खाना पसंद नहीं करते हैं.

–  जब बच्चे को बहुत तेज भूख लगी होती है, तब उसे वे सब चीजें खिलाने की कोशिश करें, जो अकसर बच्चा पहले खाने में आनाकानी करता है, क्योंकि तेज भूख के कारण वह ये सब सोच ही नहीं पाता है.

–  खाना छोटीछोटी बाइट्स में ही खिलाएं.

मेरा बच्चा खाना नहीं खाता है, हर खाने को देख कर पहले ही मुंह बना लेता है, रोटीसब्जी तो जैसे उस के गले से ही नहीं उतरती है, चाहे कितनी हैल्दी डिश बना दें, फिर भी चख कर नहीं देखता है. हर समय आगेपीछे घूमने के बाद भी नहीं खाता है. कभी कुछ खा भी लिया तो अगली बार उसे हाथ भी नहीं लगाता, कभी किसी सब्जी का टेस्ट पसंद नहीं आता तो कभी किसी का कलर. रोज खाने के प्रति लाइकिंगडिसलाइकिंग बदलती रहती है. लेकिन बाहर की चीजें, फास्टफूड जैसे  मैगी, पास्ता, पिज्जा, बर्गर जितना मरजी व जब मरजी खिला दो, खुश हो कर खा लेता है.

ऐसे में डाक्टर साहब आप उसे कोई टौनिक लिख दो, जो उसके शरीर की पौष्टिक जरूरतों को पूरा कर दे. ऐसी अकसर हर मां की प्रौब्लम होती है. इसी चिंता में उस का पूरा दिन बीत जाता है कि ऐसे तो मेरे बच्चे के शरीर में कमियां रह जाएंगी. लेकिन आप को बता दें कि बच्चों में यह बहुत ही नौर्मल है, लेकिन अगर आप अपने बच्चों को खाना खिलाने के लिए इन टिप्स को अमल में लाएंगी तो आप उन्हें हैल्दी चीजें भी आसानी से खिला पाएंगी:

खाने में हो अट्रैक्शन

बच्चों को सादा व सिंपल खाना पसंद नहीं होता है. उन्हें तो वे सब चीजें अट्रैक्ट करती हैं, जो डिफरैंट कलर्स के साथसाथ डिफरैंट शेप्स व डिजाइन में बनी होती हैं. ऐसे में आप अपने बच्चे को जो भी हैल्दी खिलाएं, उसे बहुत ही सुंदर तरीके से सर्व करें. जैसे अगर आप का बच्चा फू्रट्स व सलाद को खाने में आनाकानी करता है, तो आप उसे कुकी कटर से काट कर मनचाहा आकार दें.

यहां तक कि आप अपने बच्चे की पसंद का कुकी कटर खरीद कर उसे फनफन में हैल्दी चीजें खिला सकती हैं. फिर आप उस की पसंद की सौस व डिप के साथ सर्व करें. यकीन मानिए आप का यह तरीका बच्चों को खाना खिलाने में बड़े काम का साबित होगा.

औफर गुड स्नैक्स

इस सचाई को नहीं झुठलाया जा सकता कि बच्चों को थोड़ीथोड़ी देर में भूख लगती रहती है, जिस के चलते पेरैंट्स अपने बच्चों को कभी स्नैक्स के रूप में मैगी सर्व करती हैं, तो कभी कुकीज तो कभी नमकीन. जिस से धीरेधीरे बच्चे हैल्दी फूड्स ही खाना छोड़ देते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये चीजें आप के बच्चे को अंदर से खोखला बना कर उसे मोटापे, डायबिटीज, ऐलर्जी जैसी बीमारियों की गिरफ्त में ले जाती है, क्योंकि इन में शुगर, नमक, औयल की मात्रा बहुत ज्यादा होती है.

ऐसे में जब भी आप के बच्चे को भूख लगे तो उसे कुकीज की जगह कलरफुल वैजिटेबल सैंडविच, चिप्स की जगह ओट्स या फिर मूसली सर्व कर सकती हैं. इस से हैल्दी चीजें खाने के साथसाथ बच्चे का पेट लंबे समय तक भरा रहेगा, जो उस की बारबार की भूख को शांत करने व हैल्दी रखने का काम करेगा.

फू्रट जूस फौर इम्यूनिटी

बच्चे फलों को खाने में बहुत आनाकानी करते हैं. लेकिन आप इन की जगह उन के शरीर की पोषण संबंधित जरूरतों को पूरा करने के लिए उन्हें होममेड फ्रैश फू्रट का जूस बना कर दे सकती हैं. इस के लिए कभी आप उन्हें संतरे का जूस दें, तो कभी मिक्स फू्रट जूस, तो कभी अनार का, आप इस में कुछ ऐसी सब्जियों को भी ऐड कर सकते हैं, जिन्हें खाने में आप का बच्चा अकसर मुंह बनाता है.

सिर्फ जूस ही नहीं बल्कि आप उसे प्रेजैंट भी ऐसे करें कि आप का बच्चा बस उसे देखता ही रह जाए. इस के लिए आप कार्टून प्रिंट वाले ट्रांसपेरैंट गिलास में जूस डाल कर अट्रैक्टिव स्ट्रा डालें. इस से बच्चा स्ट्रा से खेलखेल में जूस पी लेगा, जो उस के शरीर को हाइड्रेट रखने के साथसाथ न्यूट्रिशन संबंधित जरूरतों को पूरा करने का भी काम करेगा.

मिल्क विद क्रिएटिविटी

आप ने सुना ही होगा कि मौम्स को बच्चे को दूध पिलाने के लिए उस के आगेपीछे घूमना पड़ता है. लेकिन थोड़ा क्रिएटिव सोचिए कि अगर आप का बच्चा प्लेन दूध पीना पसंद नहीं करता तो आप उसे फ्लेवर्ड मिल्क पिला कर दूध को उस की पसंद की लिस्ट में शामिल कर सकती हैं. आप चौकलेट बनाना स्मूदी, मैंगो शेक, ड्राईफ्रूट पाउडर, स्ट्राबेरी मिल्क शेक, पीनट बटर शेक, ओरियो कुकीज मिल्क शेक, औरेंज शेक, वैनिला शेक, चेरी शेक बना कर ऊपर से चौकलेट पाउडर, चौकलेट सिरप से सजा कर सर्व करें. आप का ये तरीका बच्चे को दूध पीने पर मजबूर कर देगा, जो बच्चे की प्रोटीन, कैल्सियम संबंधित जरूरतों को पूरा कर के आप को निश्चिंत कर देगा.

फोकस औनली फूड

अकसर मौम्स की आदत होती है कि वे अपने बच्चे को खाना खिलाते वक्त टीवी देखने की छूट दे देती हैं, जिस से बच्चा खाने से ज्यादा कार्टून पर फोकस करता है. 1-1 बाइट को काफी देर तक मुंह में दबा कर रखता है, जिस से न तो वह खाने में इंटरैस्ट लेता है और न ही उसे खाने का टेस्ट आता है. साथ ही टीवी में आने वाले ऐड्स बच्चों को कम न्यूट्रिशन वाले फूड्स खाने की तरफ ज्यादा अट्रैक्ट करते हैं. इसलिए जब भी बच्चे का मील टाइम हो तो सिर्फ उस का फोकस खाने पर रखें ताकि जितना भी खाना खाए , उस के टेस्ट को समझने के साथसाथ अपनी भूख को भी समझ पाए.

बनाएं छोटा शैफ

बच्चे जब ग्रोइंग ऐज में होते हैं तो उन्हें कुछ भी नया करना बहुत पसंद होता है. यह नया करना आप के बहुत काम आएगा. आप अपने बच्चे को छोटा शैफ बनाएं. उसे अपनी निगरानी में छोटीछोटी चीजें लाने को बोलें. जैसे बास्केट से आलू निकालने को बोलें. उसे कलरफुल दालों को बाउल में डाल कर दिखाएं. फिर उस के हाथों में उस का फैवरिट स्पून दे कर उसे अच्छी तरह मिक्स करने को बोलें.

दालों के कलर्स भले ही उसे थोड़ा लेकिन खाने के लिए अट्रैक्ट करने का काम करेंगे. इसी तरह आप कलरफुल सब्जियों को बना कर उन पर उन की पसंद की सौसेज डाल कर उन्हें सर्व करें. यह मिक्स मर्ज टेस्ट उन्हें बहुत पसंद आएगा, जो धीरेधीरे खाने के प्रति उन की आनाकानी को कम करने का काम करेगा.

ट्राई न्यू ऐवरीडे

जिस तरह हम एक ही चीज को देख व खा कर ऊब जाते हैं उसी तरह बच्चे भी रोज कुछ नया व अलग ट्राई करना चाहते हैं. इसलिए उन के टेस्ट को बदलने के लिए आप कभीकभी मैक्रोनी, पास्ता भी ट्राई कर सकती हैं. लेकिन उस के लिए आप को थोड़ा हट कर करना होगा. इस बात का ध्यान रखें कि आप जब भी इस्तेमाल करें तो आटा  मैक्त्रोनी, पास्ता ही बनाएं. आप को इसे ज्यादा से ज्यादा कलरफुल वैजिटेबल के साथ बनाना होगा. इस से बच्चे को लगेगा कि उसे उस की पसंद की डिश मिली है और आप भी संतुष्ट हो जाएंगी कि इस के जरीए बच्चे को विटामिंस, मिनरल्स भी मिल गए हैं. इसी तरह आप प्रौटीन के लिए मार्केट में मिलने वाले कार्टून शेप एग पैन का इस्तेमाल कर सकती हैं. बस थोड़ी क्रिएटिविटी की जरूरत है.

स्टफिंग से भरें पेट

अगर आप की यह समस्या है कि आप का बच्चा रोटी खाना बिलकुल पसंद नहीं करता तो आप स्टफिंग से उस की रोटी के प्रति लाइकिंग को बढ़ाने की कोशिश करें. इस के लिए कभी आप आलू स्टफ परांठा बनाएं, तो कभी पनीर स्टफ. आप बची हुई दाल का परांठा बना कर भी उसे टोमैटो कैचअप के साथ खिला सकती हैं. शायद ही कोई बच्चा होगा जो चौकलेट पसंद नहीं करता होगा. ऐसे में आप रोटी में चौकलेट सिरप को लगा कर भी उसे रोटी खाने के लिए मजबूर कर सकती हैं. आप रोटी पिज्जा भी बना सकती हैं. इस से बच्चे को लगेगा कि आप उसे पिज्जा खिला रही हैं लेकिन पिज्जा के रूप में आप तो उसे न्यूट्रिशन सर्व कर रही हैं.

नो औयली फूड

ट्रैडिशनल इंडियन बेस्ड होम्स में अपने बच्चों को घी से भरा खाना देने का चलन होता है. लेकिन वे इस बात से अनजान रहते हैं कि घी से बच्चे की भूख कम होती है. इसलिए अपने बच्चों को सिर्फ घी भरा खाना दे कर उन की भूख को खत्म न करें, बल्कि इस के बजाय उन्हें डेयरी प्रोडक्ट्स देने पर ज्यादा जोर दें.

स्केअर क्रो: क्यों सुभाष को याद कर बिलख पड़ी थी मीनाक्षी

सुभाष की कंजूसी की आदत के चलते पत्नी मीनाक्षी ही नहीं, बल्कि रिश्तेदार भी नाराज रहते, लेकिन उन की आंख बंद होते ही मायकेससुराल के लोग उन के घर की परिक्रमा करने लगे. और तब मीनाक्षी, सुभाष को याद कर बिलख पड़ी थी.

सुभाषजी की आत्मा की शांति केलिए आयोजित श्रद्धांजलि समारोह में शास्त्रीजी का प्रवचन वहां बैठे सभी लोग ध्यान से सुन रहे थे. उन्होंने पौराणिक कथाओं को जोड़ कर अपने प्रवचन को काफी दिलचस्प बना दिया था.

मीनाक्षी चाह कर भी उस प्रवचन को ध्यान से नहीं सुन पा रही थी. अपने दिवंगत पति की माला पहनी तसवीर को देखतेदेखते उस का मन बारबार अतीत की यादों में खोता जा रहा था.

‘सुभाष की बहू चांद सी सुंदर और कितनी पढ़ीलिखी है. इस सिरफिरे की तो सचमुच लाटरी निकली है.’ लोगों के मुंह से निकली इस तरह की बातें मीनाक्षी के कानों में 32 साल पहले शादी के पंडाल में ही पड़ने लगी थीं.

लोग सुभाष को सिरफिरा क्यों बता रहे थे, इस का कारण मीनाक्षी की समझ में जल्दी ही आ गया था.

बढि़या पहनने और चटपटा खाने के अलावा उस के आरामपसंद पति को किसी अन्य बात में कोई दिलचस्पी नहीं थी. न तरक्की कर के आगे बढ़ने की चाह, न कोई सपना, न कोई महत्त्वा- कांक्षा. हां, अपने अच्छे नैननक्श व प्रभावशाली कदकाठी का घमंड होने के साथसाथ उस में पति होने की अकड़ जरूर बहुत ज्यादा थी.

वे अपनी नाक पर मक्खी नहीं बैठने देते थे. क्या मजाल जो घर में कोई काम उन की मरजी के खिलाफ हो जाए. क्लेश और झगड़ा कर के किसी की भी नाक में दम कर देना उन के बाएं हाथ का खेल था.

शादी के वक्त तो मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाली मीनाक्षी की तनख्वाह उन्हीं के बराबर थी. फिर सिर्फ वही तरक्की करती चली गई. हर 2-3 साल बाद उस का प्रमोशन हो जाता. दूसरी तरफ स्कूल मास्टर सुभाषजी को पगार में होने वाली सालाना बढ़ोतरी से ज्यादा कुछ और नहीं चाहिए था और न ही मिला.

‘मेरे सामने कभी ऊंचा बोलने की कोशिश मत करना. अगर कभी मेरे सिर के ऊपर से रास्ता बनाने की कोशिश की तो 1 मिनट में नौकरी छुड़वा कर घर बिठा दूंगा,’ इस तरह की धमकी अपने से ज्यादा कमाने वाली मीनाक्षी को वे आएदिन जरूर दे देते थे.

मीनाक्षी उन से ज्यादा कमा रही है, इस कारण सुभाषजी रिश्तेदारों व परिचितों के सामने पत्नी को कुछ ज्यादा ही दबा कर रखने की कोशिश करते. अगर खराब मूड में हों तो चार लोगों के बीच पत्नी को अपमानित करने का भी वे मौका नहीं चूकते थे. ऐसा करने से उन की हीनभावना ज्यादा उभर कर सामने आती है, यह उन की समझ में कभी नहीं आया.

कमाया तो उन्होंने ज्यादा नहीं, पर घर में आते 1-1 रुपए का हिसाब वे ही रखते. कहीं भी जरूरत से ज्यादा खर्च करने की बात सुन कर उन के तेवर चढ़ जाते. उन के कंजूस स्वभाव के कारण दोनों के सामूहिक खाते में रकम तो तेजी से बढ़ती गई, पर घर के सदस्यों को कभी कोई ज्यादा खुशी नहीं मिल पाई. घर में सुखसुविधाओं की चीजें बढ़ती गईं पर हर चीज को खरीदने से पहले क्लेश होना लाजिमी था.

उन की शादी के 2 साल बाद बड़ा बेटा संजीव आ गया. मीनाक्षी के न चाहते हुए भी 2 साल बाद राजीव पैदा हो गया. सुभाष परिवार नियोजन के लिए किसी भी किस्म की जहमत उठाने को तैयार नहीं थे, इसलिए मीनाक्षी ने राजीव के होने के समय अपनी ही नसबंदी करा ली थी.

हर प्रमोशन के साथ आफिस में मीनाक्षी की जिम्मेदारियां बढ़ती चली गईं. उसे देर तक दफ्तर में रुकना पड़ जाता था. उस के लिए घर और आफिस की जिम्मेदारियां संभालना बहुत कठिन हो जाता अगर सुभाष ने घर संभालने में उस का पूरा हाथ  न बटाया होता. अपने पति के इस इकलौते गुण की तारीफ मीनाक्षी हर आएगए के सामने दिल से करती थी.

सुभाष ने घरगृहस्थी के काम निबटाने में अच्छी कुशलता हासिल कर ली थी. सुबह बच्चों को स्कूल भेजने के लिए तैयार करने से ले कर उन्हें पढ़ाने, खाना खिलाने, कपड़े बदलवाने जैसे सभी काम वही करते थे. वे खाने के शौकीन तो थे ही, इसलिए धीरेधीरे उन्होंने कई स्वादिष्ठ चीजें बनाने में महारत हासिल कर ली थी.

बड़े हो रहे बच्चों को अनुशासन में रखने के लिए वे गुस्से का इस्तेमाल खूब करते. इस का यह फायदा तो जरूर हुआ कि दोनों बेटे हर परीक्षा में अधिकतर प्रथम आते, पर अपने पिता को देखते ही उन का सहम सा जाना मीनाक्षी को दुखी कर जाता था.

वह कभी इस बाबत सुभाष से कुछ कहती तो वे बड़े रूखे से लहजे में जवाब देते, ‘हम दोनों के खूनपसीने की कमाई को आजकल चल रही फैशन की अंधी दौड़ में बरबाद करने के सपने मैं अपने दोनों बेटों को कभी नहीं देखने दूंगा. तुम भी इस मामले में उन्हें किसी भी तरह की शह देने की कोशिश मत करना.’

संजीव और राजीव को छोटी उम्र में ही कुछ इस तरह के लैक्चर सुनने को मिलने लगे थे, ‘अगर तुम्हें कोई भी कीमती या खास चीज चाहिए तो पहले परीक्षा में बहुत अच्छे नंबर लाओ और जो भी काम करने को दिया जाता है उसे जिम्मेदारी से निभाओ. इस घर में तुम्हें मुफ्त में कुछ नहीं मिलेगा और न लाड़प्यार से बिगाड़ा जाएगा, ये अच्छी तरह से समझ लो तुम दोनों.

‘ज्यादा दिखावा करना मूर्खतापूर्ण होने के साथसाथ बच्चों के अंदर गलत आदतें और संस्कार डालना है. हम ज्यादा दिखावा करेंगे तो दुनिया भर के मंगते हमारे घर में जमा होना शुरू हो जाएंगे. अपनी गांठ में पैसा बचा कर रखना समझदारी है. तुम अपने आफिस को संभालो और घर व बच्चों की चिंता मुझे करने दो. दुनियादारी की समझ है नहीं और चली हैं मुझे समझाने.’ ऐसे मौकों पर सुभाष गुस्सा हो कर मीनाक्षी की बोलती बंद कर देते थे.

सुभाष की तीखी जबान और कंजूसी की आदत के चलते घर के लोग ही नहीं, बल्कि हर रिश्तेदार भी उन से नाराज रहता था. तगड़े बैंक बैलेंस ने उन के अंदर किसी से कोई भी उलट या अपमानजनक बात कह देने का दुस्साहस पैदा कर दिया था.

एक बार मीनाक्षी के बड़े भैया ने 50 हजार रुपए अपने जीजाजी से मांगे थे. मीनाक्षी अपने भाई की सहायता करना चाहती थी पर सुभाष ने साफ इनकार कर दिया.

अपने भाई के दबाव में आ कर मीनाक्षी ने जब इस विषय पर कहनासुनना जारी रखा, तो एक दिन सुभाष ने अपने साले को ससुराल में ही जा कर भलाबुरा कह दिया था.

‘साले साहब, अपनी बहन को मेरी पीठ पीछे अगर किसी तरह की उलटी पट्टी पढ़ा कर मेरा माल खींचने की कोशिश की तो ठीक नहीं होगा. मेरा इतना कहना आप के लिए काफी होना चाहिए कि दूसरों से अपनी इज्जत कराना इनसान के अपने हाथ में होता है,’ सुभाष की इस धमकी का यह असर हुआ कि उन के साले ने करीब 5 साल तक उन के घर की दहलीज नहीं लांघी थी.

सुभाष के अपने छोटे भाई का बिजनेस हमेशा घाटे में चलता था. उसे अपने बड़े भाई से कोई आर्थिक सहायता मिली भी तो कर्जे के रूप में मिली और उसे 1-1 पाई लौटानी पड़ी थी. हर महीने अगर वह तय राशि लौटाने नहीं आता था तो सुभाषजी उस के घर पहुंच कर उसे डांटने और झगड़ा करने से नहीं चूकते थे.

सुभाषजी की कंजूसी का यह फायदा हुआ कि उन्होंने बड़ी जल्दी 200 गज के प्लाट पर एकमंजिला मकान बनवा लिया था. मकान बनवाने के 2 साल बाद कार भी ले ली थी. अपने दोनों बेटों को इंजीनियर बनाने में किसी आर्थिक कठिनाई का सामना उन्हें नहीं करना पड़ा था.

मीनाक्षी मन मार कर उन के साथ जी रही थी. उस का घूमनेफिरने और लोगों से मिलनेजुलने का शौक अपने पति के आलसी व तीखे स्वभाव के कारण कभी पूरा नहीं हो सका था. उसे हमेशा लगता था कि वह अपने पति के अजीबोगरीब व्यक्तित्व के कारण अपनी सहेलियों व सहयोगियों के सामने शर्मिंदा होती है.

शास्त्रीजी ने जब पगड़ी की रस्म शुरू करने की घोषणा की तो मीनाक्षी झटके से अतीत की यादों से निकल आई थी.

कार्यक्रम समाप्त हो जाने के बाद कई औरतें विदा लेते हुए मीनाक्षी के गले लग कर रोईं, पर मीनाक्षी को एक बार भी दिल से रोना नहीं आया. जीवनसाथी हमेशा के लिए साथ छोड़ कर चला गया है, यह तथ्य उसे बहुत ज्यादा पीड़ा नहीं पहुंचा रहा था. उसे लग रहा था कि किसी के भी दिल में अपनी जगह न बना पाने वाला इनसान अपनी पत्नी के दिल से भी खुद को दूर रखने में सफल रहा था.

सब मेहमानों के चले जाने के बाद घर के करीबी लोग रह गए थे. रात 10 बजे के करीब वह अपने कमरे में आराम करने को लेटी ही थी कि उस के बड़े भैया मिलने आ पहुंचे.

‘‘मीनू, तुम्हें जो भी इकट्ठा मिला है या मिलेगा, उसे संभाल कर रखना जरूरी है. मैं अपने अकाउंटेंट को कल ही यहां भेज देता हूं. वह बैंक और बीमे आदि के सारे कागज देख लेगा,’’ बड़े भैया ने फौरन काम की बात करनी शुरू कर दी थी.

‘‘अभी मेरा दिमाग बिलकुल काम नहीं कर रहा है, भैया. उसे कुछ दिन बाद भेज देना,’’ थकी हुई मीनाक्षी को न जाने क्यों उन का इस वक्त रुपएपैसों की बात करना अच्छा नहीं लगा था.

‘‘वह रविवार को आ जाएगा. बड़े भाई के होते हुए तुम्हें किसी तरह की चिंता करने की जरूरत नहीं है,’’ बड़े भैया ने उस के सिर पर हाथ रख कर हौसला बंधाया और फिर कमरे से बाहर चले गए थे.

उन के जाते ही मीनाक्षी का देवर सचिन उस की इजाजत ले कर कमरे के अंदर आ गया.

सामने पड़ी कुरसी पर बैठने के बाद सचिन ने संजीदा लहजे में बोलना शुरू किया, ‘‘भाभी, अब इस घर में अकेले रहने में बहुत समस्याएं आएंगी. अगर रातबिरात किसी तरह की जरूरत पड़ी तो आप किसे पुकारोगी?’’

‘‘हमारे पड़ोसी अच्छे हैं और…’’

‘‘भाभी, पड़ोसी पड़ोसी होते हैं,’’ सचिन ने आवेश भरे लहजे में उसे टोक दिया, ‘‘वे अपनों की जगह कभी नहीं ले सकते हैं. आप मेरी एक सलाह मानोगी?’’

‘‘कैसी सलाह?’’

‘‘सीमा और मैं यहां आप के पास आ कर रहना शुरू कर देते हैं. संजीव और राजीव बाहर नौकरी कर रहे हैं और मुझे नहीं लगता कि वे कभी सैटल होने के लिए यहां लौटेंगे. मैं छत पर 2 कमरों का सैट अपने खर्चे से बनवा देता हूं. हमारे यहां आ कर साथ रहने से आप को सहारा हो जाएगा. हमारे बच्चों के स्कूल यहां से बहुत पास में हैं, सो यहां शिफ्ट करने में हमारा फायदा भी है.’’

‘‘मैं संजीव और राजीव से सलाह कर के तुम्हें जवाब देती हूं,’’ सिर में तेज दर्द शुरू हो जाने के कारण मीनाक्षी को बोलने में कठिनाई हो रही थी.

‘‘आप अपनों का सहारा मिलने की बात पर जोर दोगी, तो वे कमरे बनवाने की बात जरूर मान जाएंगे,’’ उन्हें ऐसी सलाह दे कर सचिन बाहर चला गया था.

सचिन चाचा के जाते ही उस के दोनों बेटे संजीव और राजीव एकसाथ कमरे में आ गए थे. दोनों ही टैंशन और हिचकिचाहट का शिकार बने नजर आ रहे थे.

‘‘तुम दोनों मुझ से कोई खास बात करने आए हो न?’’ मीनाक्षी ने यह सवाल पूछ कर उन्हें अपने मन की बात फौरन कह देने की सुविधा उपलब्ध करा दी थी.

‘‘मम्मी, अब आप के यहां अकेले रहने की कोई तुक नहीं है. हम दोनों को लगता है कि अब इस मकान को बेच कर आप को हमारे साथ रहना शुरू कर देना चाहिए,’’ कहते हुए राजीव भावुक हो उठा.

‘‘अब आफिस में और ज्यादा खटने की जरूरत भी नहीं है. आप जल्दी रिटायरमैंट लेने की अरजी दे डालो,’’ यह सलाह संजीव ने दी.

‘‘अभी तो मेरी सर्विस के 2 साल बचे हैं. शायद 1 और प्रमोशन भी मिल…’’

‘‘मम्मी, अब प्रमोशन के बदले आप को अपनी सेहत का ज्यादा ध्यान रखना चाहिए. पूना में मेरे घर के पीछे खाली जमीन पड़ी है. उस की देखभाल कर आप अपना बागबानी का शौक पूरा करो और अपना ब्लड प्रैशर भी ठीक रखो.’’

‘‘आप को यह जगह छोड़ कर अब हमारे पास रहना शुरू करना ही पड़ेगा,’’ संजीव ने जब दबाव बनाने को अपने मुंह से निकले हरेक शब्द पर बहुत जोर डाला तो मीनाक्षी मन ही मन खीज उठी थी.

कुछ पल सोचविचार में खोए रहने के बाद वह झटके से उठ खड़ी हुई और बोली, ‘‘चलो, ड्राइंगरूम में एकसाथ बैठ कर कुछ महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर फैसला कर लेते हैं.’’

वे दोनों बड़ी अनिच्छा से उस के पीछे ड्राइंगरूम की तरफ चल पड़े थे. मीनाक्षी ने ड्राइंगरूम की तरफ जाते हुए अपने भाई, देवर और देवरानी को भी साथ ले लिया था.

जब सब लोग बैठ गए तो मीनाक्षी ने खड़ेखड़े ही बोलना शुरू किया, ‘‘इस में कोई शक नहीं कि आप सब लोग मेरे करीबी भी हैं और शुभचिंतक भी, पर फिर भी मैं एक बात आप सभी से कहना चाहती हूं. यह अच्छी बात है कि आप सब को मेरे सुखदुख की चिंता है, पर यह भी समझ लें कि उन के जाने के बाद मैं कमजोर और असहाय नहीं हो गई हूं. जहां तक मेरा मार्गदर्शन करने की बात है तो जब मैं आंख बंद करती हूं तो वे मुझे हर उलझन को सुलझाने की सलाह देते नजर आने लगते हैं.

‘‘मेरे हित को ध्यान में रख कर आप सभी के द्वारा दी गई सारी सलाह और सुझावों के बारे में मैं एक ही बात कहना चाहूंगी. मुझ से कुछ कराने की सलाह देने से पहले आप सब यह जरूर सोचें कि अगर वे जिंदा होते तो आप की सलाह को ले कर उन की क्या प्रतिक्रिया होती.

‘‘मैं आप सब से साफसाफ कह देना चाहती हूं कि जो काम वे अपने सामने नहीं होने देते, उसे मेरे ऊपर दबाव डाल कर कराने की कोशिश न करें. वे किसी हालत में अपना पैसा किसी और को संभालने के लिए नहीं देते…न इस मकान के ऊपर 2 कमरों का सैट किसी को बनाने देते और न ही इस मकान को बेच कर अपने बेटों के पास रहने जाते.

‘‘अगर अब भी आप लोगों के पास मेरे हित का कोई ऐसा सुझाव बचता है जो उन्हें भी मान्य होता, तो कल सुबह उसे आप मुझे अवश्य बताएं. इस वक्त मैं बहुत थक गई हूं और सोना चाहती हूं. आप सब भी आराम करें. गुड नाइट.’’

एक नजर उन सभी करीबी लोगों के नाराज चेहरों पर डाल कर मीनाक्षी अपने कमरे की तरफ चल पड़ी थी. अपने दिवंगत पति के बारे में इस वक्त वह नए ढंग से सोच रही थी. उसे वे बहुत ज्यादा याद आ रहे थे.

मीनाक्षी के जेहन में एक चित्र जो बारबार उभर रहा था, वह खेतों में लगाए गए स्केअर क्रो का था. उस डरावनी सी शक्ल और बिना शरीर वाले पुतले को हवा से हिलताडुलता देख कर पक्षी खेत की फसल को नुकसान नहीं पहुंचा पाते हैं.

कमरे में पहुंचने के बाद अपने ‘स्केअर क्रो’ को याद कर वह पहली बार बिलखबिलख कर रो पड़ी थी.

जब बच्चे छिपाएं अफेयर की बात

प्रतिदिन अपनी पसंदीदा डिश की फरमाइश करने वाली पंखुड़ी आजकल जो बनता चुपचाप खा लेती. किसी रिश्तेदार के घर कोई फंक्शन हो या सहेलियों के साथ पार्टी, अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने को हमेशा तैयार रहने वाली पंखुड़ी इन दिनों मां के कहने पर भी साथ चलने को मना कर देती. सहेलियों के फोन आते तो उठाती ही नहीं. मातापिता उस के बदले व्यवहार से चिंतित थे.

मां ने एक दिन दुलार से उस का सिर सहलाते हुए कारण जानना चाहा तो पंखुड़ी के आंसू बहने लगे. 8 महीने पहले अपने ही कालेज के एक सीनियर नमन से प्रेम का रिश्ता बन जाना और 15 दिन पहले उस के टूट जाने की बात मां को बता कर वह सुबकने लगी.

मां एकाएक यह सब सुन सकते में आ गईं, लेकिन पंखुड़ी की पीड़ा देख उन का मन भर आया. उस लड़के के बारे में पंखुड़ी ने जो भी बताया उस से पता लगा कि शुरू में पंखुड़ी की प्रशंसा करते हुए उस के आगेपीछे घूम कर उसे अपने वश में करने के बाद नमन उस पर हावी होने लगा था. पंखुड़ी पर अपने मित्रों और शुभचिंतकों से दूरी बनाने पर वह जोर डालने लगा था. पंखुड़ी से उम्मीद करता कि वह उस की हर बात माने साथ ही खूब तारीफ भी करे. पंखुड़ी कोई सलाह देती तो उसे अपनी बात का विरोध मान झगड़ने लगता.

इन बातों से जब पंखुड़ी का मूड उखड़ाउखड़ा रहने लगा तो नमन ने यह कह कर ब्रेकअप कर लिया कि वह अब पहले सी नहीं रही. ब्रेकअप का दर्द पंखुड़ी झेल नहीं पा रही थी. उस की 1-1 बात उस दिन मां ने धैर्य से सुनी और नमन के चरित्र को समझ कर पंखुड़ी को बताया कि वह लड़का नार्सिसिस्टिक पर्सनैलिटी डिसऔर्डर से ग्रस्त लग रहा है. ऐसे लोगों का पार्टनर बन कर रिश्ता निभाना टेढ़ी खीर है. पंखुड़ी से उन्होंने यह भी कहा कि वह यदि पहले ही उस लड़के के बारे में मां से जिक्र करती तो रिश्ता शायद आगे न बढ़ता. भविष्य को ले कर सचेत हो चुकी पंखुड़ी स्वयं को तब बहुत हलका महसूस कर रही थी.

रिश्तों में उतारचढ़ाव

विपरीत लिंग के प्रति आकर्षित हो कर या भावी जीवनसाथी की तलाश में रिलेशनशिप हो जाना सामान्य है. ऐसे रिश्तों में अनेक उतारचढ़ाव आना भी सामान्य है, लेकिन समस्या तब होती है जब रिश्तों का प्रतिकूल प्रभाव सुकून छीनने लगता है. जब तक बात आपसी मतभेद को ले कर हो, किसी तीसरे की जरूरत नहीं पड़ती, लेकिन जब पार्टनर में भावी जीवनसाथी का रूप दिखना बंद हो जाए या ब्रेकअप हो जाए तो मामला गंभीर हो जाता है.

ऐसी परिस्थितियां कभीकभी किसी के जीवन को संकट में भी डाल देती हैं. पेरैंट्स को समयसमय पर रिलेशनशिप की जानकारी मिलती रहे तो संभव है कि ऐसे हालात का सामना ही न करना पड़े या इन से निबटना आसान रहे.

जब उस में लाइफ पार्टनर का रूप दिखना बंद हो जाए रिश्ता तब खोखला लगने लगता है और उस के आगे बढ़ने की गुंजाइश नहीं बचती. उन परिस्थितियों में पेरैंट्स की भूमिका क्या हो सकती है इस पर एक नजर डालते हैं:

एक हो गंभीर दूसरे के लिए रिश्ता टाइम पास: जब एक साथी रिलेशन को सीरियसली ले और दूसरा उसे शारीरिक आवश्यकता की पूर्ति का साधन मात्र माने, जब एक के लिए पार्टनर ही दुनिया हो और दूसरे का कई लोगों से रिश्ता रखने पर भीजी न भरता हो तो ऐसे रिश्ते तनाव का कारण बनने के साथ ही जानलेवा भी साबित हो जाते हैं. छत्तीसगढ़ की रहने वाली न्यूज एंकर सलमा सुल्तान की जिम संचालक मधुर साहू के हाथों हुई नृशंस हत्या कुछ ऐसे ही रिश्ते का परिणाम है. सलमा मधुर द्वारा दिए गए शादी के झांसे में आ कर उस के साथ रहने लगी थी.

जब सलमा ने मधुर के अन्य लड़कियों से संबंध पर ऐतराज जताया तो उसे जान से हाथ धोना पड़ा. इस हत्या का खुलासा लगभग 5 वर्ष बाद हुआ, कारण कि सलमा के परिवार वाले उस के और मधुर के रिश्ते का सच नहीं जानते थे. काम की व्यस्तता के बहाने सलमा मधुर के साथ लिवइन रिलेशन में रह रही थी.

मातापिता को यदि कुछ अंदाज होता तो शायद सलमा की जान बच जाती. हिंसा करने वाला हो जब पार्टनर:

बातबात में मारनेपीटने पर उतारू हो जाने वाले बौयफ्रैंड को कोई लड़की तभी सहती है जब वह मानसिक रूप से उस पर निर्भर हो गई हो और रिश्ता टूटने का डर उसे अकेलेपन का पर्याय लगने लगे. मातापिता को अफेयर की जानकारी होगी तो कुछ संबल मिलेगा और हिंसा करने वाले पार्टनर से पीछा छुड़ाने में संकोच नहीं होगा.

मानसिक स्वास्थ्य दुरूस्त न होना: छोटीछोटी बातों पर चिल्लाना, पब्लिक में डांटनाडपटना, आत्महत्या की धमकियां देना या स्वयं को चोट पहुंचाना, शक करना आदि बातें रिलेशनशिप को नुकसान पहुंचाती हैं. मैंटल हैल्थ से जुड़ी समस्याएं रिश्ते में तनाव और अलगाव का कारण बनती चली जाती हैं जो एक दिन रिलेशनशिप की टूट के रूप में सामने आती हैं. मातापिता को सब बातें समयसमय पर बताते रहें तो वे अनुभवी होने के कारण पहले ही भांप कर आगाह कर देंगे.

प्रेम की आड़ में सौदा: चेतना की मित्रता यूएसए में रहने वाले हैरी से हुई फिर यह संबंध ‘लौंग डिस्टैंस रिलेशनशिप’ में बदल गया. चेतना को शुरू में सब ठीक लग रहा था, लेकिन धीरेधीरे हैरी का रवैया बदला सा लगने लगा. भावी जीवनसाथी तो क्या वह उस में एक प्रेमी की छवि भी नहीं देख पा रही थी. हैरी वीडियो कौल करते हुए उसे बहुत कम कपड़े पहनने को कहने लगा.

ऐसे ही कपड़ों में वह फोटो भेजने की मांग भी करता. चेतना ने अपनी मम्मी को हैरी से दोस्ती के विषय में बताया था. हैरी की अटपटी मांग से उल?ान में पड़ी चेतना ने उन को यह बात भी बता दी. तब मां ने समझाया कि ऐसी तसवीरें अकसर पोर्नसाइट पर डाल दी जाती हैं. इस प्रकार प्यार के नाम पर धोखे को चेतना ने समझ लिया.

ईशानी का लिवइन पार्टनर रोहित प्रेम के नाम पर अंतरंग पलों को वीडियो में कैंद कर लिया करता था. ईशानी को उस की मरजी के खिलाफ रोहित का उन पलों में वीडियो बनाना बहुत अखर रहा था, लेकिन क्या करती? पेरैंट्स से लड़झगड़ कर लिवइन में रह रही थी.

रिश्ता तोड़ने की बात सोचती तो लगता पता नहीं मातापिता कैसा व्यवहार करेंगे? क्या करे और क्या नहीं, इसी उधेड़बुन में ईशानी दिनरात घुलने लगी. उस के पैरों तले तब जमीन खिसक गई, जब उसे अपनी एक सहेली से पता लगा कि कुछ लड़कों का एक ग्रुप व्हाट्सऐप पर ऐसे वीडियो शेयर करता है, रोहित भी ऐसा ही कर रहा है. अंतत: उसे घर का रुख करना पड़ा लेकिन एक पश्चात्ताप के साथ.

छोटीछोटी बातें: कई बार पार्टनर की छोटीछोटी बातें अखरने लगती हैं और यह फैसला करना मुश्किल हो जाता है कि ये आदतें बदली जा सकती हैं या भविष्य के लिए खतरा हैं. पेरैंट्स को अफेयर की जानकारी होगी तो इन छोटीछोटी बातों को समझना आसान हो जाएगा और सही निर्णय लिया जा सकेगा. दिखने में छोटी लेकिन मनमुटाव पैदा करने वाली ये बातों हैं- कौल या मैसेज को इग्नोर करना, अन्य मित्रों व सोशल मीडिया में व्यस्त हो जाना, ऐक्स की बातें करना, ताने मारना, बातबात पर नाराज होना फिर रूठ कर जल्दी से न मानना जिस से लंबे समय तक बातचीत का बंद हो जाना, बेहद खर्चीला या कंजूस होना आदि. स्वार्थी पार्टनर भी जल्द ही नापसंद किया जाने लगता है.

अपनी पसंद की फिल्में, खुद की पसंद का खाना और घूमने के लिए अपनी पसंद की जगह चुन कर पार्टनर पर थोपना रिलेशनशिप को आगे बढ़ने से रोकता है. पेरैंट्स से बातचीत कर यह जानना सरल हो जाएगा कि कौन सी आदत समय के साथ बदल जाएगी और कौन सी रिश्ते को पनपने से रोक देगी.

जब हो जाए ब्रेकअप

सही पार्टनर न मिलने से, कैरियर के कारण, पार्टनर के बेरोजगार होने या अन्य किसी कारण से ब्रेकअप हो सकता है. उस समय कोशिश यह होनी चाहिए कि अपना ध्यान वहां से हटा लिया जाए. पेरैंट्स का साथ ऐसे में मददगार साबित हो सकता है. जानते हैं कैसे-

बीता वक्त शेयर करना जरूरी: ब्रेकअप होने पर किसी से बात करना बहुत जरूरी होता है. यह कदम सही था या नहीं, यह सवाल मन में बारबार उठता है. पेरैंट्स से मन की बातें शेयर करते हुए इस स्थिति से उबरा जा सकता है.

चाहिए व्यस्त रहना: ब्रेकअप के बाद अवसाद से घिर कर अपना खयाल न रखना बड़ी भूल है. किसी भी काम में बिजी हो जाने से तनाव कम होने लगता है. मातापिता समय पर भोजन करने, रिश्तेदारों से मिलनेजुलने व घर के किसी काम में लगाए रख कर व्यस्त रखने में मदद कर सकते हैं.

जब ऐक्स देने लगे धमकी: तान्या का पार्टनर दोस्ती के नाम की आड़ ले कर रिलेशनशिप को जारी रखना चाहता था जबकि तान्या उस से कोई रिश्ता नहीं रखना चाहती थी. तान्या पर दबाव बनाने के लिए वह निजी तसवीरों को सार्वजानिक करने की धमकी दे रहा था. तान्या ने अपने पिता को बताया तो उन्होंने पुलिस में शिकायत कर दी. उस के बाद धमकियां मिलनी बंद हो गईं.

मन में आ जाए हीनभावना: श्रेया अपने बौयफ्रैंड सारांश द्वारा ब्रेकअप किए जाने से हीनभावना से घिर गई. अपने को इस टूट का जिम्मेदार मान वह सारांश के पीछे लग कर वापस रिश्ता जोड़ने की विनती करने लगी. सारांश का दिल तो कहीं और ही लग गया था. श्रेया को वह हर बार ?िड़क देता था. श्रेया की हीनभावना दूर होने के स्थान पर बढ़ती चली गई. श्रेया के विपरीत मुग्धा ने खुल कर मातापिता को अपने पार्टनर द्वारा रिश्ता तोड़ने की बातें बताईं तो पेरैंट्स ने मुग्धा जैसी गुणी लड़की से रिश्ता न रख पाने के लिए पार्टनर को दोषी बताया और कहा कि मुग्धा को वह डिजर्व ही नहीं करता था. पुराने पार्टनर के पीछे लग कर वापस रिश्ता जोड़ने की भूल से मातापिता की मदद से बचा जा सकता है.

नशे का सहारा: कुछ लोग रिलेशनशिप खत्म होने के बाद सब भूलने के लिए नशे का सहारा ले लेते हैं, जो सही नहीं है. पेरैंट्स के संपर्क में रहा जाए तो दिल का गुबार निकल जाएगा और सब भूलने की आवश्यकता ही नहीं रह जाएगी.

रिक्तता लगे तो: ब्रेकअप के बाद जीवन में एक खालीपन आने से जल्द ही किसी से रिश्ता बनाने की इच्छा जाग्रत होने लगती है. जल्दबाजी में उठने वाले ऐसे कदम पूर्व में बने कच्चे रिश्ते से भी कहीं घातक सिद्ध हो सकते हैं. मातापिता से बातचीत कर खालीपन को दूर किया जा सकता है. उन के साथ कहीं घूमने का कार्यक्रम बना कर भी इस स्थिति से बचा जा सकता है.

अफेयर की जानकारी समयसमय पर मातापिता को देते रहना सही कदम है. वे हाथ थाम कर प्रेम की राह में आने वाले गड्ढों में गिरने से बचा सकते हैं.

Summer Special: फैमिली के लिए बनाएं मटका कुल्फी

गरमी में अगर आप बाहर की मटका कुल्फी खाने की बजाय घर पर बनाना चाहती हैं तो ये रेसिपी आपके काम आएगी.

सामग्री

1/2 कप दूध,

1/2 कप कंडैंस्ड मिल्क,

1/4 मिल्क पाउडर,

1/2 छोटा चम्मच इचाइजी पाउडर. 

विधि

सारी सामग्री को मिला कर आंच पर उबलने रख दें. मिश्रण के गाढ़ा होने पर उसे आंच से उतार कर ठंडा होने दें. फिर इसे कुल्फी मोल्ड्स में भरें और रात भर फ्रिज में रखा रखें. सुबह कुल्फी को मोल्डस से अलग करने के लिए लकड़ी की सींक कुल्फी के बीच घुसाएं और फिर कुल्फी मोल्ड से निकाल कर ठंडीठंडी कुल्फी का मजा उठाएं.

काम के साथ परिवार का सामंजस्य कैसे करती है अभिनेत्री परिवा प्रणति, पढ़ें पूरी इंटरव्यू

परिवा प्रणति आज एक खूबसूरत और विनम्र अभिनेत्री के रूप में जानी जाती है. उन्होंने हिन्दी फिल्मों और धारावाहिकों में काम किया है. धारावाहिक तुझको है सलाम जिंदगीं, हमारी बेटियों का विवाह, अरमानों का बलिदान, हल्ला बोल, हमारी बहन दीदी, लौट आओ त्रिशा, बड़ी दूर से आये हैं आदि कई है. परिवा का जन्म बिहार के पटना शहर में हुआ है. उनके पिता एक वायु सेना अधिकारी हैं. पिता का जॉब में बार – बार स्थानांतरण होने की वजह से परिवा कई शहरों में रह चुकी है. उनकी पढ़ाई दिल्ली में पूरी हुई है. ऐक्टिंग के दौरान परिवा को, ऐक्टर और वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर पुनीत सचदेवा से प्यार हुआ और शादी की. उन दोनों का एक बेटा रुशांक सिन्हा है. परिवा अपने खाली समय में पेंटिंग करना, लिखना और सूफी संगीत सुनना पसंद करती है, परिवा एक पशु प्रेमी है, उन्होंने कई बिल्लियां और कुत्ते पाल रखे है. इन दिनों परिवा सोनी सब पर चल रही शो वागले की दुनिया – नई पीढ़ी नए किस्से में वंदना वागले की भूमिका निभा रही है, जिसे सभी पसंद कर रहे है, रियल लाइफ परिवा एक बच्चे की माँ है, काम के साथ परिवार को कैसे सम्हालती है, आइए जानते है. 

मां की भावना को समझना हुआ आसान  

शो में परिवा माँ की भूमिका निभा रही है और रियल लाइफ में माँ होने की वजह से उन्हें एक माँ की भावना अच्छी तरह से समझ में आती है. वह कहती है कि बन्दना वागले की भूमिका मेरे लिए एक आकर्षक भूमिका है, इसमें मैँ दो बच्चे सखी और अपूर्वा की माँ हूँ, जिसमें बेटी समझदार है और बेटा थोड़ा शरारती है. देखा जाय, तो रियल लाइफ में भी बेटियाँ बेटों से थोड़ी अधिक समझदार होती है, वैसा ही शो में दिखाया गया है. रियल लाइफ में मेरा बेटा रुशांक सिन्हा 6 साल का है और बहुत शरारती भी है. असल में जब मैँ माँ बनी तो माँ की भावनाओं को समझ सकी, जिसका फायदा मुझे शो में मिल रहा है. मुझे याद आता है, जब मैँ काम कर रही थी, तो मेरी मा रोज मुझसे बात किये बिना नहीं सोती थी, लेकिन अब मैँ माँ की भावना को समझती हूँ. पेरेंट्स बनने के बाद मेरी हमेशा चिंता बच्चे की शारीरिक रूप से सुरक्षित रहने में होती है. 

काम के साथ करें प्लानिंग 

काम के साथ परिवार को सम्हालने के बारें में पूछने पर परिवा कहती है कि मैंने हमेशा कोशिश की है कि बच्चे को पता चले कि मेरा काम करना जरूरी है, साथ ही उसे हमेशा कुछ नया सीखने के लिए मैँ उसे प्रेरित करती हूँ, ताकि वह छोटी उम्र से ही कुछ सीखता रहे और व्यस्त रहें. धीरे -धीरे मेरा बेटा अब काफी कुछ समझने लगा है कि मेरा काम पर जाना जरूरी है. इसके अलावा मेरे पति और एक हेल्पिंग हैन्ड है, जो उसका ख्याल रखते है. कई बार जरूरत पड़ने पर मेरे पेरेंट्स भी सहयोग करने आ जाते है. बच्चे को सम्हालने में पति का अधिक सहयोग रहता है, उनका मेरे बेटे के साथ एक अलग दोस्ती है. मेरे पति भी हमेशा बेटे को कुछ नया सीखने की कोशिश करता है, उसे अभी टेनिस खेलने ले जातें है, बेटे को कुछ खाने को मन हुआ तो वे उसे बनाकर दे देते है. हम दोनों आपस में मिलकर अपने समय के अनुसार बेटे की परवरिश कर रहे है. मेरे पति ऐक्टर के अलावा वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफ़र भी है, इसलिए मैँ बेटे को कई बार जिम कॉर्बेट नैशनल पार्क और ताडोबा नैशनल पार्क लेकर गए है, उसे भी ये सब पसंद है. 

जरूरत से अधिक प्रोटेक्शन देना ठीक नहीं 

अधिकतर बच्चे खाना खाने में पेरेंट्स को परेशान करते है, ऐसे में आप बच्चे को किस प्रकार से खाना खिलाती है? मैंने हमेशा घर का खाना खिलाने की कोशिश किया है, अगर वह सब्जियां नहीं खाता है, तो उसे पीसकर आटे में मिला देती हूँ, जिसे वह खा लेता है. अधिक समस्या करने पर नाना – नानी के पास भेज देती हूँ. मेरे पिता फौजी में थे, इसलिए अनुसाशन बहुत कड़ी रहती है, इसलिए वहाँ जाकर सब खाने लगता है. मैँ बेटे को लेकर अधिक प्रोटेक्टिव नहीं, क्योंकि मैँ उसे भोंदू बच्चा नहीं बनाना चाहती, लेकिन उसकी सुरक्षा पर ध्यान देती हूँ और एक आत्मनिर्भर बच्चा बनाना चाहती हूँ. हम दोनों उस पर अपनी इच्छाओं को थोपते नहीं, उसे निर्णय लेने की आजादी देते है. मैंने देखा है कि कई बार पेरेंट्स अपने बच्चे की गलती नहीं देखते, जो गलत होता है.  हमें अपने बच्चे की गलती भी पता होनी चाहिए. मैँ बचपन में बहुत समझदार बच्ची थी और सुरक्षित माहौल में बड़ी हुई हूँ. आजकल के बच्चे जरूरत से अधिक सेंसेटिव होते जा रहे है, जो पहले नहीं था. मुझे हमेशा कहा गया कि ‘नो’ सुनना भी हमें आना चाहिए. मेरे पेरेंट्स ने कभी किसी प्रकार का दबाव नहीं डाला. जब मैंने उन्हे ऐक्टिंग की बात कही, तो उन्होंने मना नहीं किया, बल्कि सहयोग दिया.

एक्टिंग नहीं था इत्तफाक 

परिवा कहती है कि मुझे बचपन में बहुत कुछ बनना होता था, हर दो महीने में मेरी इच्छा बदलती थी, फिर पता चला कि एक ऐक्टर बहुत कुछ ऐक्टिंग के जरिए बन सकता है, फिर मैंने इस क्षेत्र में आने का मन बनाया. मैँ ऐक्टिंग को बहुत इन्जॉय करती हूँ.  

जर्नी से हूँ खुश 

परिवा कहती है कि मैँ अपनी जर्नी से बहुत खुश हूँ, जितना चाहा उससे कही अधिक मुझे मिला है. ऐक्टिंग के अलावा मैं कहानियां भी लिखती हूं, एक किताब लिखने की इच्छा है. 

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