Romantic Story: फैसला- क्या रवि और सविता का कामयाब हुआ प्यार

Romantic Story: मैं अपने सहयोगियों के साथ औफिस की कैंटीन में बैठा था कि अचानक सविता दरवाजे पर नजर आई. खूबसूरती के साथसाथ उस में गजब की सैक्स अपील भी है. जिस की भी नजर उस पर पड़ी, उस की जबान को झटके से ताला लग गया.

‘‘रवि, लंच के बाद मुझ से मिल लेना,’’ यह मुझ से दूर से ही कह कर वह अपने रूम की तरफ चली गई.

मेरे सहयोगियों को मुझे छेड़ने का मसाला मिल गया. ‘तेरी तो लौटरी निकल आई है, रवि… भाभी तो मायके में हैं. उन्हें क्या पता कि पतिदेव किस खूबसूरत बला के चक्कर में फंसने जा रहे हैं… ऐश कर ले सविता के साथ. हम अंजू भाभी को कुछ नहीं बताएंगे…’ उन सब के ऐसे हंसीमजाक का निशाना मैं देर तक बना रहा.हमारे औफिस में तलाकशुदा सविता की रैपुटेशन बड़ी अजीब सी है. कुछ लोग उसे जबरदस्त फ्लर्ट स्त्री मानते हैं और उन की इस बात में मैं ने उस का नाम 5-6 ऐसे पुरुषों से जुड़ते देखा है, जिन्हें सीमित समय के लिए ही उस के प्रेमियों की श्रेणी में रखा  जा सकता है. उन में से 2 उस के आज भी अच्छे दोस्त हैं. बाकियों से अब उस की साधारण दुआसलाम ही है.

सविता के करीब आने की इच्छा रखने वालों की सूची तो बहुत लंबी होगी, पर वह इन दिलफेंक आशिकों को बिलकुल घास नहीं डालती. उस ने सदा अपने प्रेमियों को खुद चुना है और वे हमेशा विवाहित ही रहे हैं. मैं तो पिछले 2 महीनों से अपनी विवाहित जिंदगी में आई टैंशन व परेशानियों का शिकार बना हुआ था. अंजू 2 महीने से नाराज हो कर मायके में जमी हुई थी. अपने गुस्से के चलते मैं ने न उसे आने को कहा और न ही लेने गया. समस्या ऐसी उलझी थी कि उसे सुलझाने का कोई सिरा नजर नहीं आ रहा था. मेरा अंदाजा था कि सविता ने मुझे पिछले दिनों जरूरत से ज्यादा छुट्टियां लेने की सफाई देने को बुलाया है. तनाव के कारण ज्यादा शराब पी लेने से सुबह टाइम से औफिस आने की स्थिति में मैं कई बार नहीं रहा था. लंच के बाद मैं ने सविता के कक्ष में कदम रखा, तो उस ने बड़ी प्यारी, दिलकश मुसकान होंठों पर ला कर मेरा स्वागत किया.

‘‘हैलो, रवि, कैसे हो?’’ कुरसी पर बैठने का इशारा करते हुए उस ने दोस्ताना लहजे में वार्त्तालाप आरंभ किया.

‘‘अच्छा हूं, तुम सुनाओ,’’ आगे झूठ बोलने के लिए खुद को तैयार करने के चक्कर में मैं कुछ बेचैन हो गया था.

‘‘तुम से एक सहायता चाहिए.’’

अपनी हैरानी को काबू में रखते हुए मैं ने पूछा, ‘‘मैं क्या कर सकता हूं तुम्हारे लिए?’’

‘‘कुछ दिन पहले एक पार्टी में मैं तुम्हारे एक अच्छे दोस्त अरुण से मिली थी. वह तुम्हारे साथ कालेज में पढ़ता था.’’

‘‘वह जो बैंक में सर्विस करता है?’’

‘‘हां, वही. उस ने बताया कि तुम बहुत अच्छा गिटार बजाते हो.’’

‘‘अब उतना अच्छा अभ्यास नहीं रहा है,’’ अपने इकलौते शौक की चर्चा छिड़ जाने पर मैं मुसकरा पड़ा.

‘‘मेरे दिल में भी गिटार सीखने की तीव्र इच्छा पैदा हुई है, रवि. प्लीज कल शनिवार को मुझे एक अच्छा सा गिटार खरीदवा दो.’’

बड़े अपनेपन से किए गए सविता के आग्रह को टालने का सवाल ही नहीं उठता था. मैं ने उस के साथ बाजार जाना स्वीकार किया, तो वह किसी बच्चे की तरह खुश हो गई.

‘‘अंजू मायके गई हुई है न?’’

‘‘हां,’’ अपनी पत्नी के बारे में सवाल पूछे जाने पर मेरे होंठों से मुसकराहट गायब हो गई.

‘‘तब तो तुम कल सुबह नाश्ता भी मेरे साथ करोगे. मैं तुम्हें गोभी के परांठे खिलाऊंगी.’’

‘‘अरे, वाह. तुम्हें कैसे मालूम कि मैं उन का बड़ा शौकीन हूं?’’

‘‘तुम्हारे दोस्त अरुण ने बताया था.’’

‘‘मैं कल सुबह 9 बजे तक पहुंचूं?’’

‘‘हां, चलेगा.’’

सविता ने दोस्ताना अंदाज में मुसकराते हुए मुझे विदा किया. मेरे आए दिन छुट्टी लेने के विषय पर चर्चा ही नहीं छिड़ी थी, लेकिन अपने सहयोगियों को मैं सच्ची बात बता देता, तो वे मेरा जीना मुश्किल कर देते. इसलिए उन से बोला, ‘‘ज्यादा छुट्टियां न लेने के लिए लैक्चर सुन कर आ रहा हूं.’’ यह झूठ बोल कर मैं अपने काम में व्यस्त हो गया. पिछले 2 महीनों में वह पहली शुक्रवार की रात थी जब मैं शराब पी कर नहीं सोया. कारण यही था कि मैं सोते रह जाने का खतरा नहीं उठाना चाहता था. सविता के साथ पूरा दिन गुजारने का कार्यक्रम मुझे एकाएक जोश और उत्साह से भर गया था. पिछले 2 महीनों से दिलोदिमाग पर छाए तनाव और गुस्से के बादल फट गए थे. कालेज के दिनों में जब मैं अपनी गर्लफ्रैंड से मिलने जाता था, तब बड़े सलीके से तैयार होता था. अगले दिन सुबह भी मैं ढंग से तैयार हुआ. ऐसा उत्साह और खुशी दिलोदिमाग पर छाई थी, मानो पहली डेट पर जा रहा हूं. सविता पर पहली नजर पड़ी तो उस के रंगरूप ने मेरी आंखें ही चौंधिया दीं. नीली जींस और काले टौप में वह बहुत आकर्षक लग रही थी. उस पल से ही उस जादूगरनी का जादू मेरे सिर चढ़ कर बोलने लगा. दिल की धड़कनें बेकाबू हो चलीं. मैं उस के इशारे पर नाचने को एकदम तैयार था. फिर हंसीखुशी के साथ बीतते समय को जैसे पंख लग गए. कब सुबह से रात हुई, पता ही नहीं चला.

सविता जैसी फैशनेबल, आधुनिक स्त्री से खाना बनाने की कला में पारंगत होने की उम्मीद कम होती है, लेकिन उस सुबह उस के बनाए गोभी के परांठे खा कर मन पूरी तरह तृप्त हो गया. प्यारी और मीठीमीठी बातें करना उसे खूब आता था. कई बार तो मैं उस का चेहरा मंत्रमुग्ध सा देखता रह जाता और उस की बात बिलकुल भी समझ में नहीं आती.

‘‘कहां हो, रवि? मेरी बात सुन नहीं रहे हो न?’’ वह नकली नाराजगी दर्शाते हुए शिकायत करती और मैं बुरी तरह झेंप उठता.

मैं ने उसे स्वादिष्ठ परांठे खिलाने के लिए धन्यवाद दिया तो उस ने सहजता से मुसकराते हुए कहा, ‘‘किसी अच्छे दोस्त के लिए कुकिंग करना मुझे पसंद है. मुझे भी बड़ा मजा आया है.’’

‘‘मुझे तुम अपना अच्छा दोस्त मानती हो?’’

‘‘बिलकुल,’’ उस ने तुरंत जवाब दिया.

‘‘कब से?’’

‘‘इस सवाल से ज्यादा महत्त्वपूर्ण एक दूसरा सवाल है, रवि.’’

‘‘कौन सा?’’

‘‘क्या तुम आगे भी मेरे अच्छे दोस्त बने रहना चाहोगे?’’ उस ने मेरी आंखों में गहराई से झांका.

‘‘बिलकुल बना रहना चाहूंगा, पर क्या मुझे कुछ खास करना पड़ेगा तुम्हारी दोस्ती पाने के लिए?’’

‘‘शायद… लेकिन इस विषय पर हम बाद में बातें करेंगे. अब गिटार खरीदने चलें?’’ सवाल का जवाब देना टाल कर सविता ने मेरी उत्सुकता को बढ़ावा ही दिया.

हमारे बीच बातचीत बड़ी सहजता से हो रही थी. हमें एकदूसरे का साथ इतना भा रहा था कि कहीं भी असहज खामोशी का सामना नहीं करना पड़ा. हमारे बीच औफिस से जुड़ी बातें बिलकुल नहीं हुईं. टीवी सीरियल, फिल्म, खेल, राजनीति, फैशन, खानपान जैसे विषयों पर हमारे बीच दिलचस्प चर्चा खूब चली. उस ने अंजू से जुड़ा कोई सवाल मुझ से पूछ कर बड़ी कृपा की. हां, उस ने अपने भूतपूर्व पति संजीव से अपने संबंधों के बारे में, मेरे बिना पूछे ही जानकारी दे दी.

‘‘संजीव से मेरा तलाक उस की जिंदगी में आई एक दूसरी औरतके कारण हुआ था, रवि. वह औरत मेरी भी अच्छी सहेली थी,’’ अपने बारे में बताते हुए सविता दुखी या परेशान बिलकुल नजर नहीं आ रही थी.

‘‘तो पति ने तुम्हारी सहेली के साथ मिल कर तुम्हें धोखा दिया था?’’ मैं ने सहानुभूतिपूर्ण लहजे में टिप्पणी की.

‘‘हां, पर एक कमाल की बात बताऊं?’’

‘‘हांहां.’’

‘‘मुझे पति से खूब नाराजगी व शिकायत रही. पर वंदना नाम की उस दूसरी औरत के प्रति मेरे दिल में कभी वैरभाव नहीं रहा.’’

‘‘ऐसा क्यों?’’

‘‘वंदना का दिल सोने का था, रवि. उस के साथ मैं ने बहुत सारा समय हंसतेमुसकराते गुजारा था. यदि उस ने वह गलत कदम न उठाया होता तो वह मेरी सब से अच्छी दोस्त होती.’’

‘‘लगता है तुम्हें पति से ज्यादा अपनी जिंदगी में वंदना की कमी खलती है?’’

‘‘अच्छे दोस्त बड़ी मुश्किल से मिलते हैं, रवि. शादी कर के एक पति या पत्नी तो हर कोई पा लेता है.’’

‘‘यह तो बड़े पते की बात कही है तुम ने.’’

‘‘कोई बात पते की तभी होती है जब उस का सही महत्त्व भी इंसान समझ ले. बोलबोल कर मेरा गला सूख गया है. अब कुछ पिलवा तो दो, जनाब,’’ बड़ी कुशलता से उस ने बातचीत का विषय बदला और मेरी बांह पकड़ कर एक रेस्तरां की दिशा में बढ़ चली.

उस के स्पर्श का एहसास देर तक मेरी नसों में सनसनाहट पैदा करता रहा. सविता की फरमाइश पर हम ने एक फिल्म भी देख डाली. हौल में उस ने मेरा हाथ भी पकड़े रखा. मैं ने एक बार हिम्मत कर उस के बदन के साथ शरारत करनी चाही, तो उस ने मुझे प्यार से घूर कर रोक दिया. ‘‘शांति से बैठो और मूवी का मजा लो रवि,’’ उस की फुसफुसाहट में कुछ ऐसी अदा थी कि मेरा मन जरा भी मायूसी और चिढ़ का शिकार नहीं बना.

लंच हम ने एक बढि़या होटल में किया. फिर अच्छी देखपरख के बाद गिटार खरीदने में मैं ने उस की मदद की. उस के दिल में अपनी छवि बेहतर बनाने के लिए वह गिटार मैं उसे अपनी तरफ से उपहार में देना चाहता था, पर वह राजी नहीं हुई.

‘‘तुम चाहो तो मुझे गिटार सिखाने की जिम्मेदारी ले सकते हो,’’ वह बोली तो उस के इस प्रस्ताव को सुन कर मैं फिर से खुश हो गया.

जब हम सविता के घर वापस लौटे, तो रात के 8 बजने वाले थे. उस ने कौफी पिलाने की बात कह कर मेरी और ज्यादा समय उस के साथ गुजारने की इच्छा पूरी कर दी. वह कौफी बनाने किचन में गई तो मैं भी उस के पीछेपीछे किचन में पहुंच गया. उस के नजदीक खड़ा हो कर मैं ऊपर से हलकीफुलकी बातें करने लगा, पर मेरे मन में अजीब सी उत्तेजना लगातार बढ़ती जा रही थी. अंजू के प्यार से लंबे समय तक वंचित रहा मेरा मन सविता के सामीप्य की गरमाहट को महसूस करते हुए दोस्ती की सीमा को तोड़ने के लिए लगभग तैयार हो चुका था. तभी सविता ने मेरी तरफ घूम कर मुझे देखा. उस ने जरूर मेरी प्यासी नजरों को पढ़ लिया होगा, क्योंकि अचानक मेरा हाथ पकड़ कर वह मुझे ड्राइंगरूम की तरफ ले चली.

मैं ने रास्ते में उसे बांहों में भरने की कोशिश की, तो उस ने बिना घबराए मुझ से कहा, ‘‘रवि, मैं तुम से कुछ खास बातें करना चाहती हूं. उन बातों को किए बिना तुम को मैं दोस्त से प्रेमी नहीं बना सकती हूं.’’ उसे नाराज कर के कुछ करने का प्रश्न ही पैदा नहीं होता था. मैं अपनी भावनाओं को नियंत्रण में कर के ड्राइंगरूम में आ बैठा और सविता बेहिचक मेरी बगल में बैठ गई.

मेरा हाथ पकड़ कर उस ने हलकेफुलके अंदाज में पूछा, ‘‘मेरे साथ आज का दिन कैसा गुजरा है, रवि?’’

‘‘मेरी जिंदगी के सब से खूबसूरत दिनों में से एक होगा आज का दिन,’’ मैं ने सचाई बता दी.

‘‘तुम आगे भी मुझ से जुड़े रहना चाहोगे?’’

‘‘हां… और तुम?’’ मैं ने उस की आंखों में गहराई तक झांका.

‘‘मैं भी,’’ उस ने नजरें हटाए बिना जवाब दिया, ‘‘लेकिन अंजू के विषय में सोचे बिना हम अपने संबंधों को मजबूत आधार नहीं दे सकते.’’

‘‘अंजू को बीच में लाना जरूरी है क्या?’’ मेरा स्वर बेचैनी से भर उठा.

‘‘तुम उसे दूर रखना चाहोगे?’’

‘‘हां.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘वह तुम्हें मेरी प्रेमिका के रूप में स्वीकार नहीं करेगी.’’

‘‘और तुम मुझे अपनी प्रेमिका बनाना चाहते हो?’’

‘‘क्या तुम ऐसा नहीं चाहती हो?’’ मेरी चिढ़ बढ़ रही थी.

कुछ देर खामोश रहने के बाद उस ने गंभीर लहजे में बोलना शुरू किया, ‘‘रवि, लोग मुझे फ्लर्ट मानते हैं और तुम्हें भी जरूर लगा होगा कि मैं तुम्हें अपने नजदीक आने का खुला निमंत्रण दे रही हूं. इस बात में सचाई है क्योंकि मैं चाहती थी कि तुम मेरा आकर्षण गहराई से महसूस करो. ऐसा करने के पीछे मेरी क्या मंशा है, मैं तुम्हें बताऊंगी. पर पहले तुम मेरे एक सवाल का जवाब दो, प्लीज.’’

‘‘पूछो,’’ उस को भावुक होता देख मैं भी संजीदा हो उठा.

‘‘क्या तुम अंजू को तलाक देने का फैसला कर चुके हो?’’

‘‘बिलकुल नहीं,’’ मैं ने चौंकते हुए जवाब दिया.

‘‘मुझे तुम्हारे दोस्त अरुण से मालूम पड़ा कि अंजू तुम से नाराज हो कर पिछले 2 महीने से मायके में रह रही है. तुम उसे वापस क्यों नहीं ला रहे हो?’’

‘‘हमारे बीच गंभीर मनमुटाव चल रहा है. उस को अपनी जबान…’’

‘‘मुझे पूरा ब्योरा बाद में बताना रवि, पर क्या तुम्हें उस की याद नहीं आती है?’’ सविता ने मुझे कोमल लहजे में टोक कर सवाल पूछा.

‘‘आती है… जरूर आती है, पर ताली एक हाथ से तो नहीं बज सकती है, सविता.’’

‘‘तुम्हारी बात ठीक है, पर मिल कर साथ रहने का आनंद तो तुम दोनों ही खो रहे हो न?’’

‘‘हां, पर…’’

‘‘देखो, कुसूरवार तो तुम दोनों ही होंगे… कम या ज्यादा की बात महत्त्वपूर्ण नहीं है, रवि. इस मनमुटाव के चलते जिंदगी के कीमती पल तो तुम दोनों ही बेकार गवां रहे हो या नहीं?’’

‘‘तुम मुझे क्या समझाना चाह रही हो?’’ मेरा मूड खराब होता जा रहा था.

‘‘रवि, मेरी बात ध्यान से सुनो,’’ सविता का स्वर अपनेपन से भर उठा, ‘‘आज तुम्हारे साथ सारा दिन मौजमस्ती के साथ गुजार कर मैं ने तुम्हें अंजू की याद दिलाने की कोशिश की है. उस से दूर रह कर तुम उन सब सुखसुविधाओं से खुद को वंचित रख रहे हो जिन्हें एक अपना समझने वाली स्त्री ही तुम्हें दे सकती है.

‘‘मेरा आए दिन ऐसे पुरुषों से सामना होता है, जो अपनी अच्छीखासी पत्नी से नहीं, बल्कि मुझ से संबंध बनाने को उतावले नजर आते हैं

‘‘मेरे साथ उन का जैसा रोमांटिक और हंसीखुशी भरा व्यवहार होता है, अगर वैसा ही अच्छा व्यवहार वे अपनी पत्नियों के साथ करें, तो वे भी उन्हें किसी प्रेमिका सी प्रिय और आकर्षक लगने लगेंगी.

‘‘तुम मुझे बहुत पसंद हो, पर मैं तुम्हें और अंजू दोनों को ही अपना अच्छा दोस्त बनाना चाहूंगी. हमारे बीच इसी तरह का संबंध हम तीनों के लिए हितकारी होगा.

‘‘तुम चाहो तो मेरे प्रेमी बन कर सिर्फ आज रात मेरे साथ सो सकते हो. लेकिन तुम ने ऐसा किया, तो वह मेरी हार होगी. कल से हम सिर्फ सहयोगी रह जाएंगे.

‘‘तुम ने दोस्त बनने का निर्णय लिया, तो मेरी जीत होगी. यह दोस्ती का रिश्ता हम तीनों के बीच आजीवन चलेगा, मुझे इस का पक्का विश्वास है.’’

‘‘बोलो, क्या फैसला करते हो, रवि? अंजू और अपने लिए मेरी आजीवन दोस्ती चाहोगे या सिर्फ 1 रात के लिए मेरी देह का सुख?’’

मुझे फैसला करने में जरा भी वक्त नहीं लगा. सविता के समझाने ने मेरी आंखें खोल दी थीं. मुझे अंजू एकदम से बहुत याद आई और मन उस से मिलने को तड़प उठा.

‘‘मैं अभी अंजू से मिलने और उसे वापस लाने को जा रहा हूं, मेरी अच्छी दोस्त.’’ मेरा फैसला सुन कर सविता का चेहरा फूल सा खिल उठा और मैं मुसकराता हुआ विदा लेने को उठ खड़ा हुआ. Romantic Story

Social Story: मन की आंखें- रमेश के साथ क्या हुआ

Social Story: सुबह 11 बजे सो कर उठा तो  काफी झल्लाया हुआ था रमेश. बगल के फ्लैट से रोज की तरह जोरजोर से बोलने की आवाजें आ रही थीं. आज संडे की वजह से अभी वह और सोना चाहता था.

‘सरकार ने एक दिन छुट्टी का बनाया है ताकि बंदा अपनी सारी थकान, आराम कर के उतार सके. पर इन बूढ़ेबुढि़या को कौन समझाए. देर रात तक जागना और मुंहअंधेरे उठ कर बकबक शुरू कर देना, पता नहीं दोनों को एकदूसरे से क्या बैर है. कभी शांति से, धीमी आवाज में बात नहीं करते आपस में, जब भी करेंगे ऊंची आवाज में चिल्ला कर ही करेंगे. बहरे हैं क्या.’ यही सब सोचता हुआ वह बाथरूम में घुस गया. नींद का तो दोनों ने सत्यानाश कर ही दिया था. चाह कर भी उसे दोबारा नींद नहीं आई.

नहाधो कर निकला तो अपने लिए चाय बनाई और पेपर ले कर पढ़ने बैठ गया. 12 बजे से इंडिया और पाकिस्तान का मैच शुरू होने वाला था. आज तो वह किसी भी हाल में घर से हिलने वाला नहीं. ऐसे में आज पूरा दिन उसे उन दोनों की बकवास सुननी पड़ेगी. यह सोच कर ही उसे घबराहट हुई.

जब उस ने इस अपार्टमैंट में फ्लैट लिया था, उसे जरा भी अंदाजा नहीं था कि वह 3 महीने में ही इतनी बुरी तरह से परेशान हो जाएगा. अपना खुद का फ्लैट खरीद कर कितना खुश हुआ था वह. पर उसे क्या पता था कि उस के बगल वाले फ्लैट में जो बुजुर्ग दंपती रहते हैं उन्हें दिनरात चिल्ला कर बोलने की ‘लाइलाज बीमारी’ है. बाहर की तरफ खुलने वाली खिड़की वह हमेशा बंद कर के रखता था. पर उन की आवाजें थीं कि दीवार तोड़ कर उस के कानों से टकराती थीं. दोनों कानों में रुई डाल लेता पर सब बेकार.

मैच शुरू हो चुका था. अभी 5 मिनट भी नहीं हुए थे कि बगल वाले फ्लैट से भी मैच की आवाजें आनी शुरू हो गईं, जो इतनी तेज और साफ सुनाई दे रही थीं कि उस ने अपने टीवी के वौल्यूम को एकदम धीमा कर दिया.

‘यार, यह क्या मुसीबत है. मैच देखो अपने टीवी पर और कमैंट्री सुनो दूसरे के टीवी से,’ वह बुरी तरह अपसैट हुआ.

कभीकभी तो उस का मन करता, जा कर उन्हें इतनी खरीखरी सुनाए कि दोबारा वे दोनों तेज आवाज में बातें करनी छोड़ दें पर ऐसा कर नहीं सका. दिन की शुरुआत होती तो वह सोचता कि आज जा कर खबर लेता हूं. औफिस से रातगए थकाहारा लौटता तो उस की यह ख्वाहिश दम तोड़ चुकी होती.

पता नहीं बाकी के फ्लैट वालों को उन से क्यों कोई एतराज नहीं था. उस ने कभी किसी को उन के दरवाजे पर आते नहीं देखा और न ही दोनों को कहीं बाहर जाते. लगता था जैसे उन दोनों की दुनिया तो बस चारदीवारी के अंदर ही कैद थी.

3 महीने में उस ने कभी उन के फ्लैट का दरवाजा खुला नहीं देखा था. ‘पता नहीं, अपनी रोजमर्रा की जरूरतें दोनों कैसे पूरी करते होंगे? दूध, अंडे, सब्जी, गैस वगैरह.

पर उसे क्या, वह क्यों इतना उन के बारे में सोच रहा है, वह कौन सा दिनभर घर में बैठा उन की निगरानी करता रहता है? वह सिर झटक कर मैच देखने लगा.

‘‘अरे, इतनी तेज आवाज में मैच क्यों देख रहे हो? तुम बहरे हो, इस का यह मतलब नहीं कि बिल्ंिडग वाले सभी बहरे हैं,’’ बोल कर बुढि़या जोर से खांसने लगी.

‘‘सिर पर क्यों खड़ी है मेरे, जा कर अपना काम देख. मैच भी शांति से नहीं देखने देती,’’ बूढ़े ने भी जोर से हांफते हुए कहा, ‘‘कम्बख्त मरती भी नहीं कि मुझे चैन मिले.’’

‘‘क्या कहा, मेरे मरने की दुआएं

मांग रहे हो? याद रखो, मर कर भी तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ूंगी और मैं क्यों मरूं? मरें मेरे दुश्मन,’’ बुढि़या ने बूढ़े की तरफ हाथ लहराया.

‘‘हांहां, मैं ही मर जाता हूं. ऊपर जा कर कम से कम सुकून से तो रहूंगा,’’ बूढ़े ने अपनी लाठी जोर से पटकी.

‘‘ज्यादा खुश मत हो बूढ़े मियां, मैं वहां भी तुम्हारे पीछे चली आऊंगी. मुझ से पीछा छुड़ाना आसान नहीं,’’ बुढि़या ने आंखें नचाईं.

‘‘तू मेरे पीछे कैसे आएगी. तेरा तो टिकट कहीं और के लिए कटेगा,’’ बूढ़ा बोल कर हंसा, हंसने से ज्यादा खांसने लगा.

अब फोन की घंटी बजने की आवाज आई और उन का टीवी बंद हो गया. शायद उन के बेटे का फोन था. दोनों बात करने के लिए आपस में लड़ने लगे. इंटरवल के पहले बुढि़या ने बूढ़े की पोल खोली. इंटरवल के बाद बूढ़े की बारी आई. उस ने भी पेटभर बुढि़या के कारनामों का बखान किया पर फिल्म का क्लाइमैक्स नहीं हो सका. उधर से फोन कट हो गया था.

‘इन की फुजूल हरकतों की वजह से ही लगता है इन्हें अपने साथ ले कर नहीं गया होगा बेचारा,’ उसे बेटे की हालत पर अफसोस हुआ.

‘‘अपने बेटे की खैरियत पूछने के बजाय तू शिकायत की पोटली ले कर बैठ गई. इसलिए फोन काट दिया उस ने,’’ बूढ़े ने बुढि़या पर गुस्सा निकाला.

‘‘और तुम ने क्या किया. परसों वाली बात भी उसे बता दी कि मैं ने मलाई चुरा कर खाई थी और मेरे पेट में दर्द हो गया था,’’ बुढि़या तमतमा कर बोली.

‘‘तू ने भी तो मेरी कल वाली शिकायत लगा दी कि मैं अकेला ही सारी खीर खा गया और मुझे बदहजमी हो गई थी,’’ उस ने ताल से ताल मिला कर कहा.

उन की खट्टीमीठी शिकायतें सुनने के चक्कर में उस के जाने कितने चौकेछक्के और कैच छूट गए. उसे बहुत कोफ्त हुई.

वह रोज सुबह 8 बजे घर से निकलता और रात 8 बजे घर लौटता था. औफिस जाने में 1 घंटा लगता. नाश्ताखाना वहीं कैंटीन में ही करता. रात के लिए बाहर से कुछ ले कर आता और दोनों कानों में रुई डाल कर सो जाता. पर हर 1 घंटे पर दोनों की चिल्लाने की आवाजें आती रहती थीं.

‘चलो एक फायदा है, दोनों के जागते रहने से उन के और अगलबगल के फ्लैटों में चोरी नहीं हो सकती,’ वह सोच कर मुसकराया और सोने की कोशिश करने लगा.

सुबह उठ कर वह फ्रैश महसूस नहीं करता था. उस की नींद पर असर  पड़ने लगा था. आंखें चढ़ी हुई और लाल रहने लगी थीं. दोस्त मजाक बनाते कि रातभर जाग कर वह क्या करता है. इस से काम पर भी असर पड़ने लगा था. बौस की डांट अलग से खानी पड़ती. कुल मिला कर वह पूरी तरह ‘डिप्रैस्ड’ हो चुका था.

एक अच्छी नींद के लिए तरस रहा था. मन ही मन दोनों को बुराभला कहता, कोसता और गालियां देता. इस के अलावा कर भी क्या सकता था. किराए का फ्लैट होता तो कब का खाली कर के, कहीं और शिफ्ट हो जाता. दिन में काम और रात में ‘रतजगा’ कर के जिंदगी गुजर रही थी.

आज बहुत जरूरी फाइल उसे कंप्लीट करनी थी. फाइल घर पर ही ले कर आ गया और रात में खाने के बाद फाइल खोल कर बैठ गया.

किसी भी तरह इसे पूरा करना है. नहीं तो कल बौस की डांट पक्की खानी पड़ेगी. काम की वजह से उस का औफिस में इंप्रैशन खराब होने लगा है. उस ने यह सोचते हुए घड़ी देखी. रात के 11 बज रहे थे. वह पूरी तरह से काम में डूब गया.

‘‘ले, यह दवा पी ले, तबीयत ठीक नहीं है तेरी,’’ बूढ़े की जोर की आवाज आई.

रमेश को लगा मानो उसे ही दवा पीने को कह रहा है कोई. वह चौंक गया.

‘‘मुझे नहीं पीनी, खुद ही पी लो,’’ टनाक से जवाब आया.

‘‘सुबह से देख रहा हूं, कुछ कमजोर लग रही है.’’

‘‘तुम्हें इस से क्या, मैं मरूं या जीऊं. तुम्हारी बला से.’’

‘‘जिद मत कर, दवा पी ले. फिर बेटे से शिकायत न करना कि दवा नहीं दी.’’

‘‘नहीं करती, जाओ. बड़े आए दवा पिलाने वाले. हुम्म,’’ बुढि़या ने कहा.

‘‘मत पी, जा मर. मैं भी नौकर नहीं तेरा, खुशामद करूं, सेवा करूं,’’ बूढ़े ने आंखें तरेरीं.

‘‘मुझे तुम से अपनी सेवा करवानी भी नहीं. ऊपर वाले ने मुझे 2 हाथ, 2 पैर दिए हैं,’’ बुढि़या बिदक कर बोली.

‘‘हां, ठीक है. ऊपर वाले ने मुझे भी लंगड़ालूला नहीं बनाया है. तू भी अब कभी मुझे दवा पिलाने मत आइयो.’’

‘‘नहीं आती, जाओ. दवा दो, मैं खुद पी लूंगी,’’ उस ने अपने झुर्री वाले कांपते हाथ लहराए.

‘‘ला, अपना हाथ बढ़ा, गिरा तो नहीं देगी. संभाल के पी.’’

‘‘2 आंखें हैं मेरे पास,’’ उस ने अपनी धंसी हुई पलकें पटपटाईं.

‘‘मालूम है मुझे. 2 आंखें हैं तेरे पास. किसी के 4 नहीं होतीं, मेरे भी 2 ही आंखें हैं,’’ वह भी अपनी गड्ढे में धंसी हुई आंखों को मटका कर बोला.

‘‘हुर्र, अब जाओ यहां से, मेरा सिर मत खाओ,’’ बुढि़या ने हांक लगाई.

‘‘फुर्र तू यहां से,’’ पोपले मुंह से हवा उड़ाई. फिर थक कर दोनों खांसने लगे और देर तक खांसते रहे.

इधर, वह सोचने लगा कि बिना वजह कितना लड़ते हैं दोनों. बुढ़ापा है ही सब मुसीबतों की जड़. रोज उन दोनों को सुनते हुए, जीते हुए और महसूस करते हुए उसे लगा कि वह भी 70-80 साल का एक जवान बूढ़ा है. सिर्फ एक जवान बुढि़या की कमी है.

उसे भी जोर की खांसी आई. अब तीनों एकसाथ इकट्ठे खांस रहे थे.

सुबह औफिस जाते हुए वह अपनी धुन में सीटी बजाता दरवाजे को लौक कर रहा था.

‘‘ठीक से बंद कर.’’

वह बुरी तरह  चौंक कर इधरउधर देखने लगा.

‘‘हां, करती हूं. सब्र नहीं तो खुद ही खिड़की बंद कर दो,’’ बुढि़या डगडग हिलती हुई बोली.

उस ने एक ठंडी सांस छोड़ी. ये बुड्ढेबुढि़या एक दिन मेरी जान ले कर रहेंगे. अचानक बढ़ी हुई धड़कनें अब कुछ शांत हुईं.

‘‘बूढ़ी बीबी, टपक गई क्या? सुनो मेरी बात जरा.’’

‘‘मरी नहीं, अभी जिंदा हूं, बूढ़े मियां, सुनाओ अपनी बात जरा,’’ बुढि़या ने अपनी लाठी को जमीन पर जोर से पटका.

‘‘मैं कह रहा था, कमरे की सब खिड़कियां बंद कर दे. आज जोरदार बारिश होने वाली है,’’ बूढ़े ने भी जवाब में अपनी लाठी जोर से पटकी.

‘‘लो, सुनो बात. आज ही बारिश नहीं होगी, अगले 2 दिनों तक होती रहेगी.’’

‘‘हां, जानता हूं, बूढ़ी बीबी. तुम्हें तो सब पता रहता है. आज शाम को गरमगरम पकौड़ी तल देगी,’’ बूढ़ा पोपले मुंह से जुगाली करता हुआ बोला.

‘‘और सुन लो बात, बारिश हुई नहीं. अभी से बूढ़े मियां की लार टपकने लगी,’’ बुढि़या खांसी मिली हुई हंसी हंसने लगी.

वह अपार्टमैंट के बाहर आया. खिली हुई धूप थी. आकाश एकदम साफ नजर आ रहा था, कहीं से भी बारिश के आसार दिखाई नहीं दे रहे थे. हवा थोड़ी ठंडी बह रही थी.

ऊपर वाला भी कमाल के नमूने बना कर नीचे भेजता है, दूसरों की नींद हराम करने के लिए. खुद तो बड़े आराम से मजे ले कर लंबी तान के सो रहा होगा. उस ने मन ही मन कुढ़ते हुए बाइक स्टार्ट की. इन्हें तो सरकार की तरफ से मैडल मिलना चाहिए. घर बैठे मौसम विभाग की जानकारी दे रहे हैं.

औफिस से लौटते हुए वह पूरी तरह से बारिश में भीग चुका था. उस ने सोचा कि शायद सुबह तक बारिश रुक जाए. पर दूसरे दिन भी बारिश अपने पूरे शबाब पर थी. पता नहीं उसे क्यों थोड़ी बेचैनी महसूस होने लगी. शायद इतनी बारिश उस के बाहर जाने के खयाल से हो रही होगी. उस ने सिर झटका पर खुशी भी थी, जिस शहर जाना था वहां उस के मांबाप रहते थे. इसी बहाने उन के साथ दोचार दिन रह भी लेगा. अचानक देख कर खुश हो जाएंगे वे.

घर वाले उस पर लगातार शादी का प्रैशर बना रहे थे. पर वह बहाने से टालता जा रहा था. शादी के बाद वाइफ के साथ इस फ्लैट में कैसे रह सकेगा? नई जिंदगी की शुरुआत बगल वाले बुजुर्गों के साथ कैसे करेगा? उसे सोच कर कुछ और बेचैनी महसूस हुई पर हिम्मत कर के घर से बाहर निकल गया.

बगल वाले फ्लैट पर नजर गई, दरवाजा रोजाना की तरह बंद था. अंदर से हमेशा की तरह जोर से बोलने की आवाजें आ रही थीं. नजर नेमप्लेट पर गई. ‘मिस्टर यूसुफ किदवई ऐंड मिसेज किदवई’ नाम बुदबुदाता हुआ वह तेजी से आगे बढ़ गया. 4 घंटे का सफर था. उसे हैरत हुई कि 3 दिन तक बारिश लगातार होती रही थी. चौथे दिन जा कर मौसम साफ हुआ. खिल कर धूप निकली थी. उसी दिन वह लौटा.

अपार्टमैंट के पास आया तो फिर वही बेचैनी महसूस होने लगी. चारों तरफ अफरातफरी मची हुई थी. लोग बदहवासी में आजा रहे थे. दिल तेजी से धड़कने लगा. सीढि़यां चढ़ता हुआ सैकंड फ्लोर पर पहुंचा. लिफ्ट में कुछ प्रौब्लम हो गई थी. मि. यूसुफ किदवई के फ्लैट का दरवाजा आज पहली बार खुला हुआ था.

पुलिस भी आई हुई थी. बेचैनी कुछ और बढ़ गई. उस ने उन दोनों बुजुर्गों को आज तक नहीं देखा था. सिर्फ उन को सुना था. आज पहली बार उन्हें देखेगा, उन से मिलेगा, सोचता हुआ आगे बढ़ा.

तभी स्ट्रेचर पकड़े 4 लोग उन के फ्लैट से बाहर निकले. खून से लथपथ लाश थी. सफेद चादर से ढकी हुई, ऊपर से नीचे तक. चादर पर खून के लाल धब्बे दिख रहे थे.

फिर 4 लोग दूसरा स्ट्रेचर ले कर निकले. खून से लथपथ लाश थी. सफेद चादर से ढकी हुई, ऊपर से नीचे तक. दोनों के हाथ आपस में जुड़े हुए थे. अकड़ी हुई, सख्ती से उंगलियां आपस में फंसी हुई थीं.

‘‘अंतिम सांस एकदूसरे का हाथ पकड़ कर ही ली होगी,’’ एक देखने वाले ने कहा.

‘‘अब दिल्ली अकेले रहने लायक नहीं रही बुजुर्गों के लिए,’’ दूसरे ने कहा.

‘‘बेटा कब से अपने साथ अमेरिका ले जाना चाहता था पर बुढ़ापे में दरबदर नहीं होना चाहते थे. चले जाते तो ऐसी मौत तो नहीं मरते,’’ तीसरे ने कहा.

‘‘अपना देश, अपनी मिट्टी का लगाव छोड़ कर जाना नहीं चाहते थे बेचारे,’’ एक महिला आंसू पोंछते हुए बोली.

‘‘किसी तरह की कोई तकलीफ नहीं थी, बेटा सारे इंतजाम कर के गया था.’’

‘‘उन कसाइयों का कलेजा नहीं कांपा इन्हें मारते हुए. रुपएपैसे लूट लेते पर जान तो बख्श देते,’’ एक औरत भर्राए गले से बोली.

‘‘2 दिन पुरानी लाश है. इसलिए अकड़ गई है. हाथ छुड़ाते नहीं छूटता. वह तो आज इन का राशन वाला आया था. घंटी बजाता रहा. जब दरवाजा नहीं खुला तो उसे शक हुआ.’’

‘‘दोनों अंधे, लाचार बुजुर्गों को मारने वालों को कहीं भी जगह न मिलेगी. एकदूसरे का सहारा थे दोनों, मन की आंखों से एकदूसरे को देखते थे,’’ औरत रोंआसी हो आई.

‘‘पूरी जिंदगी साथ जिए, मरे भी साथ ही. बिल्ंिडग सूनी हो गई इन के बगैर. अपनी मिसाल खुद थे दोनों.’’

जितने मुंह उतनी बातें. एंबुलैंस धूल उड़ाती उन्हें ले कर चली गई. सब लोग भी वापस अपने माचिस के डब्बे में बंद हो गए.

पर वह अकेला नीचे खड़ा रहा. उसे तो सिर्फ यही सुनाई दे रहा था, ‘मन की आंखों से देखते थे एकदूसरे को.’

इन 6 महीनों में उस ने भी तो हमेशा यही चाहा था कि काश, कुछ ऐसा हो कि वे दोनों बूढ़ाबूढ़ी अचानक कहीं गायब हो जाएं और उस की जिंदगी पुरसुकून हो जाए.

जो चाहता था वही तो हुआ था. अचानक गायब हो गए थे दोनों.

फिर आंखों में ये आंसू बारबार क्यों आ रहे हैं? होंठों पर थरथराहट क्यों है? और सीने में गरम लावे से क्यों धधक रहे हैं? वे दोनों कौन लगते थे उस के? या वह कौन लगता था उन का? कोई भी तो नहीं. फिर ये तड़प क्योंकर हो रही है उस  को. हां, शायद एक रिश्ता उन का आपस में था, इंसानियत का.

पूरी बिल्ंिडग यह सचाई जानती थी  कि दोनों बुजुर्ग दंपती अंधे थे. देख नहीं सकते थे. पर वह तो आंख रहते हुए भी दिल और दिमाग से अंधा था. बस, उन्हें लड़तेझगड़ते और चिल्लाते सुनता रहा. सिर्फ अपने बारे में ही सोचता रहा. कभी उन के बारे में जानने की कोशिश नहीं की. अगलबगल फ्लैट में रहते भी अनजान बना रहा. 6 महीने का साथ था उन का. दोनों कल तक थे पर आज नहीं हैं.

उस के दिल ने क्यों एक बार भी नहीं कहा कि उन के डोर की कौलबैल बजाए. कोई तो दरवाजा खोलता, कुछ बातें होतीं, एक अनाम सा रिश्ता बनता. वे दोनों उसे जानते, वह भी उन की मुश्किलों को समझता. पर उन के फ्लैट का दरवाजा तो हमेशा बंद रहता था. तो क्या हुआ? उस ने भी तो अपने मन के दरवाजे को मजबूती से बंद कर रखा था. सिर्फ उन्हें सुनता रहा, आंखों से देखने की जरूरत ही महसूस नहीं की.

बहरहाल, किसी तरह खुद को ढोता हुआ वह अपने फ्लैट में आया. बगल वाले फ्लैट के दरवाजे पर ताला लटका हुआ था. आवाजें अब भी आ रही थीं.

‘ओ बूढ़े मियां, ओ बूढ़ी बीबी, जरा हाथ तो बढ़ाना,’ उस ने अपने दोनों कान जोर से बंद कर लिए. Social Story

Dharmendra Fitness: 89 वर्ष की उम्र में कैसे रहते हैं धर्मेंद्र फिट एंड फाइन

Dharmendra Fitness: बॉलीवुड के सबसे हैंडसम हीरो कहलाने वाले धर्मेंद्र अपने जमाने में अपनी खूबसूरती और हैंडसम लुक के लिए उतने ही प्रसिद्ध थे , जितनी की उस जमाने की हीरोइने अपनी खूबसूरती को लेकर चर्चा में हुआ करती थी. उस दौरान धर्मेंद्र वर्जिश करते थे, घंटों एक्सरसाइज करते थे ,अच्छा खाते पीते थे , डाइटिंग वगैरह तो बिल्कुल नहीं करते थे फिर भी फिट एंड फाइन रहते थे ,
लेकिन आज भी 89 वर्ष की उम्र में भी धर्मेंद्र ना सिर्फ पूरी तरह स्वस्थ है , बल्कि इस उम्र में धरम जी स्विमिंग करते हैं , और अपने फार्म हाउस में बागबानी भी करते हैं . भले ही आज उम्र मे वह 89 हो गए है लेकिन दिल से आज भी वो जवान है . . हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने अपनी फिटनेस पर बात करते हुए कहा लोग मुझे बूढ़ा समझते हैं ,लेकिन आज भी मैं पूरी तरह फिट हूं , और अपना सारा काम खुद कर सकता हूं. धरम जी के अनुसार इस उम्र में भी वह पूरी तरह अनुशासित है . वह अपना ज्यादा समय फार्म हाउस में गुजारते हैं, वहां पर वह नियमित तौर पर योग करते हैं . उनके अनुसार योग से शारीरिक तौर पर ही नहीं मानसिक तौर पर भी फिट रहता हूं , धरम जी के अनुसार नियमित तौर पर योगा करने की वजह से वह कई सारी बीमारियों से बचे हुए हैं , उनके अनुसार क्योंकि मैं पंजाबी आदमी हूं इसलिए खाने पीने में ज्यादा परहेज नहीं कर सकता लेकिन योग के जरिए मैं अपने आप को फिट रख लेता हूं. मेरा तो मानना है अगर आपको लंबे समय तक स्वस्थ जीवन गुजारना है तो योगासन को नियमित रूप से अपनी जिंदगी में शामिल करना चाहिए. जो कि कई बीमारियों का इलाज है, कई तकलीफों को खत्म करता है , अगर आपकी सेहत अच्छी रही तो आप ज्यादा से ज्यादा पैसा कमा पाएंगे और अच्छी जिंदगी जी पाएंगे स्वस्थ रहने के लिए योग जरूर अपनाए,
अगर वर्क फ्रंट की बात करें तो धर्म जी आज भी फिल्मों में काम कर रहे हैं उनकी फिल्मे तेरी बातों में उलझा जिया, रॉकी और रानी की प्रेम कहानी में धरम जी के परफॉर्मेंस की सराहना हुई . वही आने वाले समय में उनकी फिलम इक्कीस रिलीज होने वाली है. Dharmendra Fitness

Hindi Family Story: क्यों हो रही थी तनुज की दूसरी शादी

Hindi Family Story: खुशियों से भरे दिन थे वे. उत्साह से भरे दिन. सजसंवर कर  रहने के दिन. प्रियजनों से मिलनेमिलाने के दिन. मुझ से 4 बरस छोटे मेरे भाई तनुज का विवाह था उस सप्ताह.

यों तो यह उस का दूसरा विवाह था पर उस के पहले विवाह को याद ही कौन कर रहा था. कुछ वर्ष पूर्व जब तनुज एक कोर्स करने के लिए इंगलैंड गया तो वहीं अपनी एक सहपाठिन से विवाह भी कर लिया. मम्मीपापा को यह विवाह मन मार कर स्वीकार करना पड़ा क्योंकि और कोई विकल्प ही नहीं था परंतु अपने एकमात्र बेटे का धूमधाम से विवाह करने की उन की तमन्ना अधूरी रह गई.

मात्र 1 वर्ष ही चला वह विवाह. कोर्स पूरा कर लौटते समय उस युवती ने भारत आ कर बसने के लिए एकदम इनकार कर दिया जबकि तनुज के अनुसार, उस ने विवाह से पूर्व ही स्पष्ट कर दिया था कि उसे भारत लौटना है. शायद उस लड़की को यह विश्वास था कि वह किसी तरह तनुज को वहीं बस जाने के लिए मना लेगी. तनुज को वहीं पर नौकरी मिल रही थी और फिर अनेक भारतीयों को उस ने ऐसा करते देखा भी था. या फिर कौन जाने तनुज ने यह बात पहले स्पष्ट की भी थी या नहीं.

बहरहाल, विवाह और तलाक की बात बता देने के बावजूद उस के लिए वधू ढूंढ़ने में जरा भी दिक्कत नहीं आई. मां ने इस बार अपने सब अरमान पूरे कर डाले. सगाई, मेहंदी, विवाह, रिसैप्शन सबकुछ. सप्ताहभर चलते रहे कार्यक्रम. मैं भी अपने अति व्यस्त जीवन से 10 दिन की छुट्टी ले कर आ गई थी. पति अनमोल को 4 दिन की छुट्टी मिल पाई तो हम उसी में खुश थे. बच्चों की खुशी का तो ठिकाना ही नहीं था. मौजमस्ती के अलावा उन्हें दिनभर के लिए मम्मीपापा का साथ भी मिल रहा था.

इंदौर में बीते खुशहाल बचपन की ढेर सारी यादें मेरे साथ जुड़ी हैं. बहुत धनवैभव न होने पर भी हमारा घर सब सुविधाओं से परिपूर्ण था. आज के मानदंड के अनुसार, चाहे मां बहुत पढ़ीलिखी नहीं थीं परंतु अत्यंत जागरूक और समय के अनुसार चलने वालों में से थीं. उन की इच्छा थी कि हम दोनों बहनभाई खूब पढ़लिख जाएं और इस के लिए वे हमें खूब प्रेरित करतीं.

स्नेह और पैसे की कमी नहीं रही हमें. शिक्षा, संस्कार सबकुछ पाया. घर का अधिकांश कार्यभार सरस्वती अम्मा संभालती थीं. पीछे से वे अच्छे घर की थीं. विपदा आन पड़ने पर काम करने को मजबूर हो गई थीं. अपाहिज हो गया पति कमा कर तो क्या लाता, पत्नी पर ही बोझ बन गया था.

सरस्वती अम्मा घरों में खाना बनाने का काम करने लगीं. हमारा गैराज खाली पड़ा था. मां के कहने पर उसी में सरस्वती अम्मा ने अपनी गृहस्थी बसा ली. एक किनारे पति चारपाई पर पड़ा रहता. अम्मा बीचबीच में जा कर उस की देखरेख कर आतीं. शेष समय हमारे घर का कामकाज देखतीं. अच्छे परिवार से थीं, साफसुथरी और समझदार. खाना मन लगा कर बनातीं. प्यार से बनाए भोजन का स्वाद ही अलग होता है. मां ने उन के दोनों बच्चों की पढ़ाई की जिम्मेदारी ले ली थी. स्कूल से लौटने पर वे उन्हें पास बिठा होमवर्क भी करा देतीं. बेटा 12वीं पास कर डाकिया बन गया. बिटिया राधा का 15 वर्ष की आयु में ही विवाह कर दिया. मां ने नाबालिग लड़की का विवाह करने से बहुत रोका किंतु परंपराओं में जकड़ी सरस्वती अम्मा के लिए ऐसा करना संभव नहीं था. उन के अनुसार अभी राधा का विवाह न करने पर वह जीवनभर कुंआरी रह जाएगी. लेकिन 1 वर्ष बाद ही कारखाने में हुई एक दुर्घटना में राधा के पति की मृत्यु हो गई. उसे मुआवजा तो मिला पर सब से बड़ी पूंजी खो दी उस ने. मां ने उस के पुनर्विवाह के लिए कहा. परंतु सरस्वती अम्मा के हिसाब से उन की बिरादरी में यह कतई संभव नहीं था.

इसी बीच मेरा भी विवाह हो गया. मैं ने कौर्पोरेट ला की पढ़ाई की थी और अपना कैरियर बनाना मेरे जीवन का सपना था. विदेशी कंपनी में एक अच्छी नौकरी मिली हुई थी मुझे. विवाह के बाद 2 वर्ष तक तो सब ठीक चलता रहा पर जब मां बनने की संभावना नजर आई तो चिंता होने लगी. कैरियर बनाने के चक्कर में पहले ही उम्र बढ़ चुकी थी एवं मातृत्व को और टाला नहीं जा सकता था.

शिशु जन्म के समय मां के पास इंदौर गई थी. अस्पताल से जब मैं नन्हे शिव को ले कर घर आई तो सरस्वती अम्मा ने एक सुझाव रखा, ‘क्यों न मैं राधा को अपने साथ ले जाऊं.’ उसे एक विश्वसनीय घर में रख कर वे निश्ंिचत हो जाएंगी. मेरी तो एक बड़ी समस्या हल हो गई, मन की मुराद पूरी हो गई. राधा को मैं बचपन से ही जानती आई थी. छोटी लड़कियों के अनेक खेल हम ने मिल कर खेले थे. वह मुझे बड़ी बहन का सा ही सम्मान देती थी. उस ने पहले शिव और 2 ही वर्ष बाद आई रिया की बहुत अच्छी तरह से देखभाल की और बच्चे भी उसे प्यार से मौसी कह कर बुलाते थे.

अनमोल जब घर पर होते तो यथासंभव हर काम में सहायता करते किंतु वे घर पर रहते ही बहुत कम थे. उन्हें दफ्तर के काम से अकसर इधरउधर जाना पड़ता और जब विदेश जाते तो महीनों बाद ही लौटते. यों अपने कैरियर के साथसाथ बच्चों को पालने और घर चलाने की पूरी जिम्मेदारी मुझ पर ही थी. राधा की सहायता के बिना मेरा एक दिन भी नहीं चल सकता था. बच्चों के बड़े हो जाने के बाद भी मुझे उस की जरूरत रहने वाली थी.

मैं उस की सुविधा का पूरा खयाल रखती थी. घर के एक सदस्य की तरह ही थी वह. यों वह रात को बच्चों के कमरे में ही सोती किंतु घर के पिछवाड़े उस का अपना एक अलग कमरा भी था.

तनुज के ब्याह के लिए मैं ने अपने परिवार वालों के साथसाथ राधा के लिए भी नए कपड़े बनवाए थे. पर ऐन वक्त उस ने इंदौर जाने से इनकार कर दिया जोकि मेरे लिए बहुत आश्चर्य की बात थी. अभी कुछ दिन पहले तक तो वह विवाह में गाए जाने वाले गीतों का जोरशोर से अभ्यास कर रही थी. वह जिंदादिल और मौजमस्ती पसंद लड़की थी. किसी भी तीजत्योहार पर उस का जोश देखते ही बनता था. अपने मातापिता से मिलने के लिए वह अकसर अवसर का इंतजार किया करती थी. पर इस बार न तो मांबाप से मिलने का मोह और न ही ब्याह की मौजमस्ती ही उसे लुभा पाई.

तनुज का विवाह बहुत धूमधाम से हो गया. हम ने भी 10 दिन खूब मस्ती की. लौट कर भी कुछ दिन उसी माहौल में खोए रहे, वहीं की बातें दोहराते रहे. राधा ने ही घर संभाले रखा. 2-3 दिन बाद जब मेरी थकान कुछ उतरी और राधा की ओर ध्यान गया तो मुझे लगा कि वह आजकल बहुत उदास रहती है. काम तो पूरे निबटा रही है किंतु उस का ध्यान कहीं और होता है. बात सुन कर भी नहीं सुनती. मांबाप की खोजखबर लेने को उत्सुक नहीं. विवाह की बातें सुनने को उत्साहित नहीं. पर बहुत पूछने पर भी उस ने कोई कारण नहीं बताया.

मैं ने काम पर जाना शुरू कर दिया था. यह चिंता नहीं थी कि मेरी अनुपस्थिति में बच्चों की देखभाल ठीक से नहीं होगी पर उस के मन में कुछ उदासी जरूर थी जो मैं महसूस कर सकती थी परंतु हल कैसे खोजती जब मैं कारण ही नहीं जानती थी.

इतवार के दिन मेरी पड़ोसिन ने मुझे अपने घर पर बुला कर बताया कि हमारी अनुपस्थिति में एक युवक दिनरात राधा के संग उस की कोठरी में रहा था.

मैं ने मां को फोन कर के पूरी बात बताई.

मां ने शांतिपूर्वक पूरी बात सुनी और फिर उतनी ही शांति से पूछा, ‘‘पर तुम उस पर इतनी क्रोधित क्यों हो रही हो? ऐसा कौन सा कुसूर कर दिया है उस ने?’’

‘‘एक परपुरुष से संबंध बनाना अनैतिक नहीं है क्या? हमें तो आप कड़े अनुशासन में रखती थीं?’’

‘‘तो इस में दोष किस का है? राधा के पति की असमय मृत्यु हो गई, यह उस का दोष तो नहीं? फिर इस बात की सजा इस लड़की को क्यों दी जा रही है? 16 वर्ष की आयु में उसे मन मार कर जीवन जीने को बाध्य कर दिया. उस के जीवन के सब रंग छीन लिए…’’

‘‘पर मां, वह विधवा हो गई, इस में हम क्या कर सकते हैं?’’

‘‘क्यों? उसे जीने का हक नहीं दिला सकते क्या? तनुज का दोबारा विवाह हुआ है न? तुम्हारे भाई के तलाक में कुछ गलती तो उस की भी रही ही होगी पर राधा के विधवा होने के लिए उसे क्यों दंडित किया जा रहा है? उस ने तो नहीं मारा न अपने पति को? यह तय कर दिया गया कि वह दूसरा विवाह नहीं करेगी. उस की जिंदगी का इतना अहम फैसला लेने से पहले क्या किसी ने उस से एक बार भी पूछा कि वह क्या चाहती है? हो सकता है उस में ताउम्र अकेली रहने की हिम्मत न हो और वह फिर से विवाह करने की इच्छुक हो. जिस पुरुष के साथ वह 1 वर्ष ही रह पाई वह भी तमाम बंदिशों के बीच, उस के साथ उस का लगाव कितना हो पाया होगा? और अब तो उस की मृत्यु को भी इतने वर्ष बीत चुके हैं.’’

‘‘मां, मुझे उस पर दया आती है पर उन लोगों के जो नियम हैं, हम उन्हें तो नहीं बदल सकते न.’’

‘‘पर ये कानून बनाए किस ने हैं? समाज द्वारा स्थापित नियमकायदे समाज नहीं बदलेगा तो कौन बदलेगा? और हम भी इसी का ही हिस्सा हैं.

‘‘तुम्हें क्या लगता है, तुम्हारी सुखी गृहस्थी देख कर उस की कभी इच्छा नहीं होती होगी कि उस का भी कोई साथी हो, जिस से वह मन की बात कह सके, अपने दुखसुख बांट सके. अपने बच्चे हों. यदि वह तुम्हारे बच्चे से इतना स्नेह करती है तो उसे अपने बच्चों की कितनी साध होगी, कभी सोचा तुम ने?

‘‘अपने भविष्य पर निगाह डालने पर क्या देखती होगी वह? एक अनंत रेगिस्तान. बिना एक भी वृक्ष की छाया के. मांबाप आज हैं, कल नहीं रहेंगे. भाई अपनी गृहस्थी में रमा है. सरस्वती की बिरादरी वाले जो राधा के पुनर्विवाह के विरुद्ध हैं, एक पुरुष के विधुर होने पर चट से उस का दूसरा विवाह कर देते हैं. तब वे कहते हैं कि बेचारे के बच्चे कौन पालेगा? स्त्री के विधवा होने पर उन की यह दयामाया कहां चली जाती है? यों हम कहते हैं कि स्त्री अबला है. सामाजिक, आर्थिक और भावनात्मक रूप से उसे पुरुष पर आश्रित बना कर रखते हैं किंतु विधवा होते ही उस से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अकेली ही इस जहान से लड़े. एक ऐसे समाज में जिस के हर वर्ग में भेडि़ए उसे नोच डालने को खुलेआम घूम रहे हैं.’’

दिनभर तो काम में व्यस्त रही पर दफ्तर जाते और लौटते हुए मां की बातें मस्तिष्क में घूमती रहीं. मैं ने सिर्फ किताबी ज्ञान ही अर्जित किया था. मां ने खुली आंखों से दुनिया को जिया था, देखा और समझा था. मैं अपने ही घर में रहती राधा का दर्द नहीं समझ पाई. कहने को मैं उसे घर का सदस्य समान ही समझती थी. उस से भरपूर प्यार करती थी. मैं ने उस पर थोपे निर्णय को सिर झुका कर स्वीकार कर लिया था. जबकि मां उस के प्रति हुए अन्याय के प्रति पूर्ण जागरूक थीं.

मुझे मां की बातों में सचाई नजर आने लगी. सांझ ढलने तक मैं ने मन ही मन निर्णय ले लिया था और यही बताने के लिए दिनभर का काम समेट रात को मैं ने मां को फोन किया.

‘‘तुम उस लड़के से बात करो. उस की नौकरी, चरित्र इत्यादि के बारे में पूरी पड़ताल करो और यदि तुम्हें लगे कि लड़का सिर्फ मौजमस्ती के लिए राधा का इस्तेमाल नहीं कर रहा और इस रिश्ते को ले कर गंभीर है तो सरस्वती को मनवाने का जिम्मा मेरा,’’ मां के स्वर में आत्मविश्वास की झलक स्पष्ट थी.

मैं ने जब राधा के सामने बात छेड़ी तो उस ने रोना शुरू कर दिया. बहुत देर के बाद उस ने मन की बात मुझ से कही.

रौशन हमारे घर से थोड़ी दूर किसी का ड्राइवर था. उसे राधा के विधवा होने के बारे में मालूम था फिर भी वह उस से विवाह करने को तैयार था. पर राधा को डर था कि उस की मां इस विवाह के लिए कभी राजी नहीं होंगी. एक तो वे अपनी बिरादरी से बहुत डरती थीं, दूसरे, रौशन उन से भिन्न जाति का था. राधा की परेशानी यह थी कि यदि उस ने मांबाप की इच्छा के विरुद्ध शादी कर ली तो वह सदैव के लिए उन से कट जाएगी. एक तरफ उस की तमाम जीवन की खुशियां थीं तो दूसरी तरफ मांबाप का प्यार. इसी बात को ले कर वह उदास थी. उस ने अब तक अपने मन की बात मुझ से कहने की हिम्मत नहीं की थी तो इस में मेरा ही कुछ दोष रहा होगा.

मैं ने रौशन के पिता को बात करने के लिए बुलाया. रौशन ने पहले से ही उन्हें राजी कर रखा था. सारी पड़ताल करने के बाद मैं ने मां के आगे एक सुझाव रखा, ‘‘सरस्वती अम्मा यदि विवाह के लिए राजी हो जाती हैं तो आप उन्हें ले कर यहां आ जाइए और राधा का विवाह चुपचाप यहीं करवा देते हैं. उस की बिरादरी वालों को पता ही नहीं चलेगा.’’

मेरी कम पढ़ीलिखी मां की सोच बहुत आगे तक की थी. उन्होंने दृढ़तापूर्वक कहा, ‘‘नहीं, शादी यहीं से होगी और खुलेआम होगी ताकि उस जैसी अन्य राधाओं के आगे एक उदाहरण रखा जा सके. हम कुछ गलत नहीं कर रहे कि छिपा कर करें. मुझे इस युवक से मिल कर खुशी होगी जो यह जानते हुए भी कि राधा विधवा है, उस से विवाह करने को कटिबद्ध है. रौशन के जो भी परिजन विवाह में शामिल होना चाहें, उन का स्वागत है.’’

‘‘सरस्वती अम्मा को तो तुम मना लोगी मां, पर यदि उस की जातिबिरादरी वालों ने कोई बखेड़ा खड़ा कर दिया तो?’’ मैं अब भी हिम्मत नहीं कर पा रही थी शायद.

‘‘सेना जब युद्ध के मैदान में आगे बढ़ती है तो उस की पहली पांत को ही सर्वाधिक गोलियों का सामना करना पड़ता है. पर इस का अर्थ यह तो नहीं कि कोई आगे बढ़ने से इनकार कर देता हो. इसी तरह स्थापित किंतु अन्यायपूर्ण परंपराओं के विरुद्ध जो सब से पहले आवाज उठाता है उसे ही कड़े विरोध का सामना करना पड़ता है. फिर धीरेधीरे वही रीति स्वीकार्य हो जाती है. पर किसी को तो शुरुआत करनी ही पड़ेगी न.

‘‘पहली पांत ही यदि साहस नहीं करेगी तो समाज आगे बढ़ेगा कैसे? हमारे समय में पढ़ेलिखे घरों में भी विधवा विवाह नहीं होता था. बहुत सरल, चाहे अब भी न हो किंतु वर्जित भी नहीं रहा. विडंबना यह है कि अभी भी हमारे समाज के कई वर्ग ऐसे हैं जहां विधवा की दोबारा शादी नहीं हो पाती. शायद अकेली सरस्वती यह कदम उठाने की हिम्मत न जुटा पाए परंतु यदि हम उस का साथ देते हैं तो उस की शक्ति दोगुनी हो जाएगी.’’

मैं इंदौर जा रही हूं. इस बार राधा को संग ले कर. जा कर इस के विवाह की तैयारी भी करनी है. आज से ठीक 5वें दिन रौशन आएगा इसे ब्याहने, पूरे विधिविधान के साथ. Hindi Family Story

Monsoon Special: बारिश में पैरों की देखभाल

Monsoon Special: पैर शरीर का अभिन्न अंग हैं. इन की देखभाल बेहद जरूरी है. मगर बारिश के मौसम में इन की देखभाल की अधिक जरूरत होती है, क्योंकि इस मौसम में पैर अधिक समय तक गीले रहते हैं, जिस से कई प्रकार की बीमारियों के होने का डर रहता है.

इस बारे में डर्मैटोलौजिस्ट डा. सोमा सरकार बताती हैं कि अधिक समय तक पैर गीले रहने और समय पर सफाई न करने से उन में फंगस लग जाता है, जिस के कारण इन्फैक्शन होने का खतरा बढ़ जाता है. फिर उचित देखभाल के न होने से पैर बदसूरत भी लग सकते हैं.

पेश हैं, पैरों की देखभाल से संबंधित

कुछ सुझाव:

– पैरों की नियमित सफाई जरूरी है. बाहर से जब घर लौटें तो मैडिकेटेड साबुन से पैरों को धो कर सुखा लें. ऐंटीफंगल पाउडर का प्रयोग रोज करें.

– मौनसून में पैरों में कैंडीडायोसिस नामक बीमारी का अधिक होना देखा गया है. इस की वजह नमीयुक्त वातावरण, बारबार पैरों का गीला होना, जूतों में पानी रुकना आदि है. ऐसा होने पर तुरंत डाक्टर की सलाह लेना आवश्यक है.

– नियमित पैडीक्योर करवाने से पैर मुलायम और नमीयुक्त रहते हैं. इस में पैरों की उंगलियों की सफाई के साथसाथ टूल्स के द्वारा पैरों का व्यायाम भी करवाया जाता है.

– पैरों के नाखूनों को समयसमय पर कर्व शेप में काटें ताकि उन में गंदगी न रहे. नाखून काटते समय क्यूटिकल न काटें, क्योंकि यह नाखून के कठोर भाग को मुलायम बनाता है, जिस से संक्रमण की आशंका कम रहती है.

– हमेशा अच्छा फुटवियर पहनें, जो हवादार हो ताकि पैर सूखे रहें.

– आजकल बंद फुटवियर भी बारिश को ध्यान में रख कर बनाया जाता है, जो थोड़ा स्टाइलिश भी होता है. इस में गम बूट, स्ट्रैपर, बैलेरिनास, रबड़ के जूते आदि लोकप्रिय हैं.

– जूते हमेशा छोटी हील वाले पहनें ताकि फिसलने का डर न रहे.

त्वचारोग विशेषज्ञा डा. सरोज सेलार बताती हैं कि अगर आप वर्किंग हैं, तो औफिस जा कर अपने गीले पैरों को कपड़े से सुखा लें. जूतों को भी सुखा कर फिर पहनें. घर पहुंच कर सब से पहले हलके गरम पानी में 1 चम्मच सिरका मिला कर आधे घंटे तक पैरों को उस में डुबोए रखें. उस के बाद पैरों को साफ तौलिए से पोंछ कर उन पर क्रीम लगा लें.

फंगस से छुटकारा पाने के लिए बेकिंग सोडा का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. यह पीएच बैलेंस करने में मदद करता है. इस का पेस्ट बना कर लगाया जा सकता है या फिर जूतों में भी बुरका जा सकता है.

– किसी भी प्रकार के इन्फैक्शन से बचने के लिए एक टब में 2 बडे़ चम्मच नमक डाल कर करीब 15 मिनट तक पैरों को उस में डुबोए रखें. ऐसा रोज करने से संक्रमण नहीं होगा. यह सब से अच्छा ऐंटीसैप्टिक है.

– पानी में थोड़ी हलदी मिला कर इन्फैक्शन वाली जगह लगाने से राहत मिलती है.

– नारियल या नीम का तेल लगाने से भी फंगस कम होता है, साथ ही उस से होने वाले दर्द से भी राहत मिलती है.

– अगर आप डायबिटीज की मरीज हैं, तो पैरों का और अधिक ध्यान रखना आवश्यक है. नायलौन के मौजों की जगह कौटन के मौजे पहनें. गीले मौजों को बदलने में देरी न करें. हमेशा 1 जोड़ी सूखे मौजे साथ रखें. इस मौसम में नंगे पांव बिलकुल न चलें. Monsoon Special

Family Story: भाग 1- क्या बिगड़े बेटे को सुधार पाई मां

Family Story: शाम की क्लासेज और शाम भी जाड़े की. बर्फ नहीं पड़ रही थी वरना और मुसीबत होती. अमेरिका के विस्कौन्सिन एवेन्यू और ट्वैंटी फोर्थ स्ट्रीट का चौराहा पार करते ही दिल में धुकधुकी इतनी तेज हो जाती है कि ड्राइविंग पर ध्यान बनाए रखना दूभर हो जाता है. ट्वैंटी फोर्थ स्ट्रीट का इलाका रैड लाइट एरिया कहलाया जाने लगा है. रैड लाइट एरिया का खौफ सुमि के मन में बालपन से ही बैठा हुआ है. सुमि के पापा के दूर के कुछ रिश्तेदार पुरानी दिल्ली में दशकों पुराने जमेजमाए कारोबार के चलते वहीं हवेलियों में रहते रहे हैं. मां बताती थीं कि वहां के बड़े चावड़ी बाजार के पास एक इलाका वेश्याओं और गुंडों की वजह से बदनाम ‘रैड लाइट’ एरिया हुआ करता था जिस के आसपास महल्लों में पलक झपकते लड़कियां गायब किए जाने की वारदातें सुनने में आया करती थीं. इस कारण वहां रहने वाले परिवारों की औरतें अपने घरों से बहुत कम निकलती थीं. मजबूरी में जब भी उन्हें बड़े चावड़ी बाजार के पास से गुजरना पड़ता तो उस ओर देखे बिना झट कन्नी काट कर बच्चों, विशेषकर बच्चियों को अपनी लंबी चादर के भीतर दबोचे ऐसे लंबे डग भरतीं मानो कोई चोरउचक्का पीछे पड़ा हो.

अमेरिका के शहर मिडवैस्टर के बीचोंबीच डाउनटाउन इलाके में देश की प्रख्यात और महंगी यूनिवर्सिटी में जर्नलिज्म के तेज रफ्तार रिफ्रैशर इवनिंग कोर्स के लिए फुल स्कौलरशिप का मौका विरलों को मिलता है. सुमि इसे हर हाल में पूरा करने को कटिबद्ध है. रैग्युलर कोर्स की गुंजाइश  नहीं, दिन की नौकरी छोड़े तो गुजारा कैसे हो?

जितनी प्रख्यात यूनिवर्सिटी है डाउनटाउन का यह इलाका उतना ही बदनाम होता जा रहा है. वहां की समृद्ध फार्मर्स (किसान) पीढ़ी वृद्ध हो चुकी है और उन की संतानों को सीधा उत्तराधिकार प्राप्त नहीं. प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण उन के वृहद् फार्म्स खरीद कर डैवलपर्स वहां आलीशान घर, मौल और आधुनिक सुविधाओं से लैस उपनगर बनाते जा रहे हैं. नतीजतन, शहरी आबादी वहीं उमड़ी जा रही है. बीच शहर में बंद दुकानें, खाली घर ड्रग डीलर्स और बदनाम पेशों के अड्डे हो गए हैं जिस के चलते महंगी यूनिवर्सिटी में प्रवेशातुर रईस परिवारों की संतानों की सुरक्षा बड़ी चुनौती बन गई है. 5 मील के घेरे के भीतर रहने वाले सभी छात्रों के लिए सुबह 7 बजे से रात के 12 बजे तक निशुल्क वैन सर्विस है. इस के अलावा, यूनिवर्सिटी ने पूरे इलाके के पुनरुद्धार का बीड़ा उठाया है और इस के पुनर्वास के लिए नियत फैडरल सरकार भी भरपूर सहयोग कर रही है. जरूरतमंदों के लिए उदार छात्रवृत्तियां, डैंटिस्ट्री और नर्सिंग डिपार्टमैंट्स की ओर से फ्री क्लीनिक्स, लौ डिमार्टमैंट की ओर से मुफ्त कानूनी सलाह के सैशंस की सुविधाएं उपलब्ध हैं.

कोर्स के एक असाइनमैंट के लिए अन्य सहपाठियों ने सामयिक घटनाओं को चुना जिन के लिए तथ्य रेडियो, टीवी और पत्रपत्रिकाओं से जुटाना सहज होता है. भारत की प्रमुख पत्रिकाओं, पत्रों में प्रकाशित सुमि का शौकिया लेखन मुख्यतया मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण भोगा हुआ यथार्थ ही रहा था. ऐसी 2 प्रविष्टियों और प्रमाणित पूर्व प्रकाशनों के बल पर ही इस तेज रफ्तार कोर्स में उसे प्रवेश मिला जिस के पूर्ण होने पर स्थानीय अखबार के फीचर सैक्शन में उस की सह संपादक की नियुक्ति की संभावना बन सकती थी.

ट्वैंटी फोर्थ स्ट्रीट के खस्ताहाल इलाके पर सुमि के ह्यूमन इंटै्रस्ट स्टोरी के चयन पर प्रोफैसर को आश्चर्य था पर मौन अनुमोदन दे दिया शायद इसलिए कि यह यूनिवर्सिटी की वर्तमान नीति के अनुरूप हो. बहरहाल, इलाके के गली, महल्ले छानने और इंटरव्यूज कर के तथ्य बटोरने के लिए वहां वीकेंड पर दिन का समय ही सुरक्षित होगा. यह उन्होंने पहले ही बता दिया. सिटी गजट अखबार की पुरानी प्रतियों में डाउनटाउन के इतिहास में ऐतिहासिक घरों, इमारतों का प्रचुर विवरण है. हैरत की बात यह कि ऐसे कुछ घर ठीक ट्वैंटी फोर्थ स्ट्रीट पर हैं. हिस्टौरिकल सोसाइटी से संपर्क कर के सुमि ने गृहस्वामियों के नामपते लिए और फोन कर के इंटरव्यू का समय तय किया. नियत समयानुसार मिस्टर गौर्डन रैल्फ के पते पर ठिठक कर अपनी लिस्ट फिर पढ़नी पढ़ती है. गलीचे से लौन के आगे संतरी सरीखे खड़े ऊंचे दरख्तों और तराशी हुई झाडि़यों से घिरे छोटे मगर शानदार मैन्शन का इस इलाके में क्या काम? ईंटपत्थर के मकान पुराने स्थापत्य शिल्प के नामलेवा भर रह गए हैं. रैल्फ मैन्शन का एकएक पत्थर जैसे समय के बहाव को रोके अविचल खड़ा. सामने की दीवार पर खूबसूरत स्टैंड ग्लास की बड़ी गोल खिड़की जैसे उन्नत भाल पर टीका हो. हस्तनिर्मित ऐसी नायाब कृतियां तो यूरोप के पुरातन गिरजाघरों में ही मिलें.

पूर्वनियत इंटरव्यू की औपचारिकता परे रख गृहस्वामी गौर्डन चाव से सुमि को घर दिखाते हैं, अपने बारे में बताते हैं. पत्नी का देहांत हो चुका है, बेटेबेटियां सुदूर प्रांतों और देशों में हैं. दशकों पूर्व जरमनी से अमेरिका आए उद्यमियों को लेक मिशिगन के तट पर बसा शहर बियर उद्योग की स्थापना के लिए सर्वथा उपयुक्त लगा था. बे्रवरीज लगाई गईं, रिहाइश के लिए घर बनाए गए. शहरी इलाकों में भी तब सड़कें कच्ची हुआ करती थीं जिन पर घोड़े और बग्घियां चलती थीं. गैराज के बजाय घरों के आगे घोड़े या छोटीबड़ी बग्घी के लिए शेड होते थे.

जरमन बियर और इंजीनियरिंग का दुनिया में आज भी मुकाबला नहीं. उन  के घरों की पुख्ता नींवें बहुत गहरी हैं और सारी प्लंबिंग तांबे की. समयोपरांत ब्रेवरीज के रईस मालिक लेकड्राइव का रुख करते गए और बीच शहर में उन के घर ब्रेवरीज के इंजीनियर और ब्रियूमास्टर्ज खरीदते गए. मिशिगन लेक को छूती एकड़ों जमीन पर आज भी खड़े कुछ आलीशान मैन्शंज और उन के अपने गैस्टहाउस, केयरटेकर्ज कौटेजेज, ग्रीनहाउस, अस्तबल, बग्घीखाने उस युग के प्रतीक हैं. आज के युग में ऐसी इमारतों का रखरखाव लगभग असंभव है. जिन मैन्शंज के मालिक या वारिस नहीं रहे और जो नींवों में लेक का पानी रिसने से खंडहर हो चले, उन्हें डैवलपर्ज ने ढहा कर आधुनिक बंगले, बहुमंजिले मकान जिन्हें यहां कौन्डोज कहा जाता, बना डाले. गौर्डन के परनाना ब्रियूमास्टर थे और शहर के भीतर पुराने घर का विस्तार कर के उसे छोटे मैन्शन का रूप दिया था. उन्नत भाल पर टीके सी खूबसूरत खिड़की का अलग ही एक किस्सा सुनाते हैं.

गौर्डन के नाना इकलौती संतान थे और मैन्शन के उत्तराधिकारी. मैन्शन का विस्तार किया लेकिन उन के पुत्र यानी गौर्डन के मामा ने पादरी बनने का निर्णय ले लिया. मैन्शन पुत्री को मिला और उन के बाद नाती गौर्डन को. ईंटपत्थर की दोहरी दीवारों के बीच एअर स्पेस, लकड़ी के फर्श, मजबूत लकड़ी के डबल फ्रेम वाली खिड़कियां, दरवाजे और हर कमरे में फायर प्लेस व रेडिएटर हीटर्ज भीषण जाड़े में भी घर को आरामदेह रखते हैं. खुले, हवादार घर में एअरकंडीशनिंग की जरूरत भी नहीं पड़ती लेकिन बैठक की एक दीवार गरमी में बेहद गरम हो जाती थी. अधिक आराम के लिए गौर्डन ने एअरकंडीशनर भी लगाए. दीवार फिर भी गरम रहती. एअरकंडीशनर को कई बार जांचने पर भी कारण समझ नहीं आया तो प्लास्टर तोड़ा गया. नीचे दीवार में जड़ी मिली स्टैंडग्लास ही हस्तनिर्मित नायाब गोल खिड़की जिस से तेज धूप अंदर आती रही थी इसीलिए वहां पर प्लास्टर मढ़ दिया गया होगा. गौर्डन ने शीशे की वह खूबसूरत खिड़की निकाल कर घर में ऊपर के बैडरूम को जाती सीढि़यों में लैंडिंग की उस दीवार में फिर जड़वा दी जिस तरफ धूप का रुख नहीं रहता.

वही खिड़की खूबसूरती और ऐंटीक वैल्यू की वजह से उन के घर की पहचान बन गई. रैल्फ मैन्शन यदि लेक के निकट और इलाके में होता तो हैरिटेज होम्ज में शुमार किया जाता जिन की सालाना नुमाइश यानी परैड औफ होम्ज की महंगी टिकटें समाज कल्याण के कई कार्यों के लिए हजारों डौलर जुटाती हैं. अपनी स्टोरी में लगाने के लिए सुमि रैल्फ मैन्शन और खिड़की की फोटो लेती है. खूबसूरती से तराशी झाडि़यों से घिरे लौन में टहलते हुए गौर्डन अगलबगल के  घरों की खस्ता हालत के बारे में पूछने पर बताते हैं कि उन के वृद्ध मालिक या तो नर्सिंग होम में हैं या कब्रगाह में. जो वारिस नौकरियों के सिलसिले में अन्य शहरों में हैं वे घरों को किराए पर चढ़ा गए. मैन्यूफैक्चरिंग का सारा काम चीन क्या गया कि डाउनटाउन का खुशहाल इलाका अब खस्ताहाल है. बढ़ती गुंडागर्दी के कारण किराएदार घर छोड़ कर जाने लगे हैं. खाली घर खुराफात के अड्डे बन रहे हैं. कितने घर तो सरकार ने तालाबंद करवा दिए हैं. नोट्स लेने के साथसाथ सुमि उन की भी फोटोज लेती चलती है. Family Story

Hindi Crime Story: प्यार की पहली किस्त- सायरा का क्या था असली चेहरा

Hindi Crime Story: बेगम रहमान से सायरा ने झिझकते हुए कहा, ‘‘मम्मी, मैं एक बड़ी परेशानी में पड़ गई हूं.’’

उन्होंने टीवी पर से नजरें हटाए बगैर पूछा, ‘‘क्या किसी बड़ी रकम की जरूरत पड़ गई है?’’

‘‘नहीं मम्मी, मेरे पास पैसे हैं.’’

‘‘तो फिर इस बार भी इम्तिहान में खराब नंबर आए होंगे और अगली क्लास में जाने में दिक्कत आ रही होगी…’’ बेगम रहमान की निगाहें अब भी टीवी सीरियल पर लगी थीं.

‘‘नहीं मम्मी, ऐसा कुछ भी नहीं है. आप ध्यान दें, तो मैं कुछ बताऊं भी.’’

बेगम रहमान ने टीवी बंद किया और बेटी की तरफ घूम गईं, ‘‘हां, अब बताए मेरी बेटी कि ऐसी कौन सी मुसीबत आ पड़ी है, जो मम्मी की याद आ गई.’’

‘‘मम्मी, दरअसल…’’ सायरा की जबान लड़खड़ा रही थी और फिर उस ने जल्दी से अपनी बात पूरी की, ‘‘मैं पेट से हूं.’’

यह सुन कर बेगम रहमान का हंसता हुआ चेहरा गुस्से से लाल हो गया, ‘‘तुम से कितनी बार कहा है कि एहतियात बरता करो, लेकिन तुम निरी बेवकूफ की बेवकूफ रही.’’

बेगम रहमान को इस बात का सदमा कतई नहीं था कि उन की कुंआरी बेटी पेट से हो गई है. उन्हें तो इस बात पर गुस्सा आ रहा था कि उस ने एहतियात क्यों नहीं बरती.

‘‘मम्मी, मैं हर बार बहुत एहतियात बरतती थी, पर इस बार पहाड़ पर पिकनिक मनाने गए थे, वहीं चूक हो गई.’’

‘‘कितने दिन का है?’’ बेगम रहमान ने पूछा.

‘‘चौथा महीना है,’’ सायरा ने सिर झुका कर कहा.

‘‘और तुम अभी तक सो रही थी,’’ बेगम रहमान को फिर गुस्सा आ गया.

‘‘दरअसल, कैसर नवाब ने कहा था कि हम लोग शादी कर लेंगे और इस बच्चे को पालेंगे, लेकिन मम्मी, वह गजाला है न… वह बड़ी बदचलन है. कैसर नवाब पर हमेशा डोरे डालती थी. अब वे उस के चक्कर में पड़ गए और हम से दूर हो गए.’’

रहमान साहब शहर के एक नामीगिरामी अरबपति थे. कपड़े की कई मिलें थीं, सियासत में भी खासी रुचि रखते थे. सुबह से शाम तक बिजनेस मीटिंग या सियासी जलसों में मसरूफ रहते थे.

बेगम रहमान भी अपनी किटी पार्टी और लेडीज क्लब में मशगूल रहती थीं. एकलौती बेटी सायरा के पास मां की ममता और बाप के प्यार के अलावा दुनिया की हर चीज मौजूद थी, यारदोस्त, डांसपार्टी वगैरह यही सब उस की पसंद थी.

हाई सोसायटी में किरदार के अलावा हर चीज पर ध्यान दिया जाता है. सायरा ने भी दौलत की तरह अपने हुस्न और जवानी को दिल खोल कर लुटाया था, लेकिन उस में अभी इतनी गैरत बाकी थी कि वह बिनब्याही मां बन कर किसी बच्चे को पालने की हिम्मत नहीं कर सकती थी.

‘‘तुम ने मुसीबत में फंसा दिया बेटी. अब सिवा इस बात के कोई चारा नहीं है कि तुम्हारा निकाह जल्द से जल्द किसी और से कर दिया जाए. अपने बराबर वाला तो कोई कबूल करेगा

नहीं. अब कोई शरीफजादा ही तलाश करना पड़ेगा,’’ कहते हुए बेगम रहमान फिक्रमंद हो गईं.

एक महीने के अंदर ही बेगम रहमान ने रहमान साहब के भतीजे सुलतान मियां से सायरा का निकाह कर दिया.

सुलतान कोआपरेटिव बैंक में मैनेजर था. नौजवान खूबसूरत सुलतान के घर जब बेगम रहमान सायरा के रिश्ते की बात करने गईं, तो सुलतान की मां आब्दा बीबी को बड़ी हैरत हुई थी.

बेगम रहमान 5 साल पहले सुलतान के अब्बा की मौत पर आई थीं. उस के बाद वे अब आईं, तो आब्दा बीबी सोचने लगीं कि आज तो सब खैरियत है, फिर ये कैसे आ गईं.

जब बेगम रहमान ने बगैर कोई भूमिका बनाए सायरा के रिश्ते के लिए सुलतान का हाथ मांगा तो उन्हें अपने कानों पर यकीन नहीं आया था.

कहां सायरा एक अरबपति की बेटी और कहां सुलतान एक मामूली बैंक मैनेजर, जिस के बैंक का सालाना टर्नओवर भी रहमान साहब की 2 मिलों के बराबर नहीं था.

सुलतान की मां ने बड़ी मुश्किल से कहा था, ‘‘भाभी, मैं जरा सुलतान से बात कर लूं.’’

‘‘आब्दा बीबी, इस में सुलतान से बात करने की क्या जरूरत है. आखिर वह रहमान साहब का सगा भतीजा है. क्या उस पर उन का इतना भी हक नहीं है

कि सायरा के लिए उसे मांग सकें?’’ बेगम रहमान ने दोटूक शब्दों में खुद ही रिश्ता दिया और खुद ही मंजूर कर लिया था.

चंद दिनों के बाद एक आलीशान होटल में सायरा का निकाह सुलतान मियां से हो गया. रहमान साहब ने उन के हनीमून के लिए स्विट्जरलैंड के एक बेहतरीन होटल में इंतजाम करा दिया था. सायरा को जिंदगी का यह नया ढर्रा भी बहुत पसंद आया.

हनीमून से लौट कर कुछ दिन रहमान साहब की कोठी में गुजारने के बाद जब सुलतान ने दुलहन को अपने घर ले जाने की बात कही तो सायरा के साथ बेगम रहमान के माथे पर भी बल पड़ गए.

‘‘तुम कहां रखोगे मेरी बेटी सायरा को?’’ बेगम रहमान ने बड़े मजाकिया अंदाज में पूछा.

‘‘वहीं जहां मैं और मेरी अम्मी रहती हैं,’’ सुलतान ने बड़ी सादगी से जवाब दिया.

‘‘बेटे, तुम्हारे घर से बड़ा तो सायरा का बाथरूम है. वह उस घर में कैसे रह सकेगी,’’ बेगम रहमान ने फिर एक दलील दी.

सुलतान को अब यह एहसास होने लगा था कि यह सारी कहानी घरजंवाई बनाने की है.

‘‘यह सबकुछ तो आप को पहले सोचना चाहिए था,’’ सुलतान ने कहा.

इस से पहले कि सायरा कोई जवाब देती, बेगम रहमान को याद आ गया कि यह निकाह तो एक भूल को छिपाने के लिए हुआ है. मियांबीवी में अभी से अगर तकरार शुरू हो गई, तो पेट में पलने वाले बच्चे का क्या होगा.

उन्होंने अपने मूड को खुशगवार बनाते हुए कहा, ‘‘अच्छा बेटा, ले जाओ. लेकिन सायरा को जल्दीजल्दी ले आया करना. तुम को तो पता है कि सायरा

के बगैर हम लोग एक पल भी नहीं रह सकते.’’

सुलतान और उस की मां की खुशहाल जिंदगी में आग लगाने के लिए सायरा सुलतान के घर आ गई.

2 दिनों में ही हालात इतने खराब हो गए कि सायरा अपने घर वापस आ गई. मियांबीवी की तनातनी नफरत में बदल गई और बात तलाक तक पहुंच गई, लेकिन मसला था मेहर की रकम का, जो सुलतान मियां अदा नहीं कर सकते थे.

10 लाख रुपए मेहर बांधा गया था. आखिर अरबपति की बेटी थी. उस के जिस्म को कानूनी तौर पर छूने की कीमत 10 लाख रुपए से कम क्या होती.

एक दिन मियांबीवी की इस लड़ाई को एक बेरहम ट्रक ने हमेशा के लिए खत्म कर दिया.

हुआ यों कि सुलतान मियां शाम को बैंक से अपने स्कूटर से वापस आ रहे थे, न जाने किस सोच में थे कि सामने से आते हुए ट्रक की चपेट में आ गए और बेजान लाश में तबदील हो गए.

सायरा बेगम अपने पुराने दोस्तों के साथ एक बड़े होटल में गपें लगाने में मशगूल थीं, तभी बीमा कंपनी के एक एजेंट ने उन्हें एक लिफाफे के साथ

10 लाख रुपए का चैक देते हुए कहा, ‘‘मैडम, ऐसा बहुत कम होता है कि कोई पहली किस्त जमा करने के बाद ही हादसे का शिकार हो जाए.

‘‘सुलतान साहब ने अपनी तनख्वाह में से 10 लाख रुपए की पौलिसी की पहली किस्त भरी थी और आप को नौमिनी करते समय यह लिफाफा भी दिया था. शायद वह यही सोचते हुए जा रहे थे कि महीने के बाकी दिन कैसे गुजरेंगे और ट्रक से टकरा गए.’’

सायरा ने पूरी बात सुनने के बाद एजेंट का शुक्रिया अदा किया और होटल से बाहर आ कर अपनी कार में बैठ कर लिफाफा खोला. यह सुलतान का पहला और आखिरी खत था. लिखा था :

तुम ने मुझे तोहफे में 4 महीने का बच्चा दिया था, मैं तुम्हें मेहर के 10 लाख रुपए दे रहा हूं.

तुम्हारी मजबूरी सुलतान.

सायरा ने खत को लिफाफे में रखा और ससुराल की तरफ गाड़ी को घुमा लिया.

वह होटल आई थी अरबपति रहमान की बेटी बन कर, अब वापस जा रही थी एक खुद्दार बैंक मैनेजर की बेवा बन कर. Hindi Crime Story

Crime Hindi Story: पूंजी- क्या था दुलारी का फैसला

Crime Hindi Story: महामारी तो पिछले साल से ही कहर बरपा रही है, लेकिन तब के घोषित लौकडाउन और इस साल के अघोषित लौकडाउन में बहुत फर्क है. पिछले साल सरकार और दूसरी स्वयंसेवी संस्थाएं जरूरतमंदों की मदद के लिए खूब आगे आ रही थीं. मालिक भी अपने मुलाजिमों के काम पर न आने के बावजूद उन्हें तनख्वाह दे रहे थे. चाहे वह सामाजिक दबाव के चलते ही रहा होगा, लेकिन भूख से मरने की नौबत तो कम से कम नहीं आई थी. पर इस साल तो जान बचाना ही भारी लग रहा है.

क्या किया जाए? न अंटी में पैसा, न गांठ में धेला. रोज कमानेखाने वालों के पास जमापूंजी भी कहां होती है. सरकार जनधन जैसी योजनाओं की कामयाबी के लाख दावे करे, लेकिन जमीनी हकीकत से तो भुक्तभोगी ही वाकिफ होगा न. बैंक में खाता खोल देनेभर से रुपया जमा नहीं हो जाता.

रोज सुबह एकएक अंगुल खाली होते जा रहे आटे के कनस्तर को देखती दुलारी मन ही मन अंदाजा लगाती जा रही थी कि कितने दिन और वह अपनी जद्दोजेहद को जारी रख सकती है. जिस दिन कनस्तर का पेंदा बोल जाएगा, उस दिन उसे भी सब सोचविचार छोड़ कर वही रास्ता अपनाना पड़ेगा, जिस पर वह अभी तक विचार करने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाई है.

दुलारी के होश संभालते ही मां ने मन की जमीन पर संस्कारों के बीज डालने शुरू कर दिए थे, जो उम्र के साथसाथ अब पेड़ की माफिक अपनी पक्की जड़ें जमा चुके हैं. पेड़ों को जड़ से उखाड़ना आसान है क्या?

‘हम गरीबों के पास यही एक पूंजी है छोरी और वह है हमारी इज्जत. आंखों का पानी खत्म तो सम झ सब खत्म…’ मां के दिए ऐसे संस्कार दुलारी का पीछा ही नहीं छोड़ते. लेकिन बेचारी मां को क्या पता था कि इस तरह की कोई महामारी भी आ सकती है, जिस की आंधी में उस के लगाए संस्कारों के पेड़ सूखे पत्ते से उड़ जाएंगे.

एक तरफ सरकार कहती है कि लौकडाउन लगाना सही नहीं है, वहीं दूसरी तरफ लोगों से गुजारिश भी करती है कि घर में रहो, बाहरी लोगों से कम से कम मेलजोल रखो. यह दोहरी नीति ही तो जान पर भारी पड़ रही है.

पिछली दफा किसी तरह मरतेबचते गांव वापस गए थे, लेकिन वहां भी क्या मिला? वैसे, कुसूर गांवों का भी नहीं. वहां अगर मजदूरी होती तो लोग शहरों की तरफ भागते ही क्यों? शहर कम से कम भूखा तो नहीं सुलाता था.

जल्दी ही गांव का चश्मा दुलारी की आंखों से उतर गया था. उधर वापस जब सब सामान्य होने लगा, तो सब से पहले उसी ने अपना बोरियाबिस्तर बांधा था. कितनी मुश्किल से लोगों को भरोसा दिलाया था कि वह ठीक है. अभी कुछ घरों में नियमित काम मिला ही था कि फिर से वही डर के साए.

जब से साहब लोगों के घरों में फिर से लौकडाउन लगने की सुगबुगाहट सुनी है, तब से दुलारी का जी उठाउठा का जा रहा है. काम करते समय हाथ यहां रसोई में और कान वहां टैलीविजन की खबरों पर लगे हुए हैं.

टैलीविजन पर कैसे लोग चिल्लाचिल्ला कर बहस करते हैं. उस के लिए तो अब ये बातें बिलकुल बेमानी हैं कि इन हालात में आने के लिए कौन जिम्मेदार है. किस की कहां चूक थी या किन लापरवाहियों के चलते हालात इतने बिगड़े हैं. अब वह बड़ी सरकार तो है नहीं कि सरकार के फैसले को चुनौती दे. वह तो भेड़ है, जिसे मालिक की हांक के इशारे पर ही चलना पड़ेगा.

शाम को दुलारी घर आई तो मां की आंखों में भी खौफ दिखा. उन्हें भी शायद किसी ने टैलीविजन की खबरों के बारे में बता दिया होगा. मां ने आंखों में सवाल भर कर उस की तरफ देखा तो वह आंखें बचाती हुई रसोई की तरफ मुड़ गई.

अनजाने डर से घिरी दुलारी ने घर के सारे कोने तलाश कर लिए. बामुश्किल 500 रुपए ही निकले. इतने से क्या होगा. कितने दिन प्राणों को शरीर में रोक पाएगी. और फिर वह अकेली कहां है… उस के साथ 2 प्राणी और भी तो जुड़े हैं. एक बूढ़ी मां और दूसरा अपाहिज छोटा भाई.

रातभर दुलारी के मन में उमड़घुमड़ चलती रही, ‘काश, मेरे पास भी कुछ पूंजी होती तो आज यों परेशानी में जागरण नहीं कर रही होती.’

दुलारी ने करवट बदलते हुए ठंडी सांस भरी. तभी पूंजी के नाम से मां की बात याद आ गई, ‘गरीब के पास यही तो एक पूंजी होती है छोरी…’

अपनी पूंजी का खयाल आते ही दुलारी पसीने से भीग गई. कपूर साहब की आंखें उसे अपने शरीर से चिपकी हुई महसूस होने लगीं. उस ने अपना दुपट्टा कस कर अपने चारों तरफ लपेट लिया.

‘ऐसी ही किसी आपदाविपदा के लिए तो पूंजी बचाई जाती है. किसी के पास रुपयापैसा, किसी के पास जमीनजायदाद, तो किसी के पास गहनाअंगूठी. तेरे पास तो यही पूंजी है,’ मन में छिपे कुमन ने दुलारी को उकसाया.

दुलारी कसमसाई और अपने कुमन को पीछे धकेल दिया. उस की धकेल में शायद ज्यादा ताकत नहीं थी. कुमन बेशर्मी से दांत फाड़े फिर से उठ खड़ा हुआ.

‘अरी, इस में गलत क्या है? मुसीबत में काम न आए वह कैसी पूंजी? तेरे पास कोई दूसरा रास्ता है तो वह कर ले, लेकिन अपनी और अपने परिवार की जान बचाना तेरा फर्ज है कि नहीं? जब जान ही न बचेगी तो मान बचा कर क्या करेगी,’ कुमन ने दुलारी को हकीकत दिखाने की कोशिश की.

‘ठीक ही तो कहता है बैरी. मैं खुदकुशी कर भी लूं, लेकिन इन दोनों की हत्या का पाप कैसे अपने सिर ले सकती हूं…’ मन पर कुमन हावी होने लगा और आखिरकार उस की जीत हुई.

दुलारी ने कपूर साहब के पास अपनी पूंजी गिरवी रखने का फैसला कर लिया. मन किसी फैसले पर पहुंचा तो नींद भी आ गई.

आज सुबह वही हुआ, जिस का डर था. सालभर पहले जहां से चले थे, वापस वहीं आ गए. सरकार ने प्रदेशभर में सख्त कर्फ्यू लगाने के आदेश जारी कर दिए थे. दुलारी के आंखकान फोन पर लगे थे. अभी मेमसाहब लोग के काम पर न आने के फोन आने शुरू हो जाएंगे. वह अनमनी सी अपने दैनिक काम निबटा रही थी.

‘फोन नहीं बजा. कहीं बंद तो नहीं पड़ा…’ दुलारी ने फोन उठा कर देखा. फोन चालू था. समय देखा तो 8 बजने वाले थे. एक भीतरी खुशी हुई कि शायद अपनी पूंजी गिरवी न रखनी पड़े.

‘8 बजे वर्मा साहब के घर पहुंचना होता है…’ सोचते हुए दुलारी ने रात की रखी ठंडी रोटी चाय के साथ निगली और मास्क लगा, दुपट्टे से अपना चेहरा ढकते हुए दरवाजे की तरफ लपकी, पर दरवाजे से निकल कर मेन सड़क तक आतेआते मोबाइल की घंटी बज गई.

‘सुनो, अभी कुछ दिन तुम रहने दो. थोड़ा नौर्मल हो जाएगा, तब मैं खुद तुम्हें फोन करूंगी…’ फोन उठाने के साथ ही मिसेज वर्मा ने कहा और बिना दुलारी की नमस्ते का जवाब दिए ही खट से फोन काट दिया, मानो कोरोना का वायरस मोबाइल फोन से फैल रहा हो.

दुलारी एक फीकी सी हंसी हंस कर वापस मुड़ गई. एक बार फिर से अपनी पूंजी को गिरवी रखने की सलाह कुमन देने लगा था.

‘‘ले, अखबार पढ़ ले. लोग तो अखबार से ऐसे डर रहे हैं मानो उन के घर में साक्षात मौत आ रही हो…’’ अखबार बेचने वाला राजू अपनी साइकिल पर बिना बिके अखबारों का बंडल लटकाए भारी कदमों से धीरेधीरे पैडल मारता दुलारी के पास से निकला, तो 2-3 प्रतियां उस के हाथ में थमा गया.

कर्फ्यू में क्या खुला क्या बंद रहेगा की सूची अखबार के पहले पन्ने पर ही लिखी थी… आखिरी लाइन पर आतेआते उस की नजर ठिठक गई. लिखा था, ‘मजदूरों के पलायन को रोकने की खातिर सरकार ने निर्माण कार्य जारी रखने का फैसला किया है…’

यह पढ़ते ही दुलारी की आंखों की बु झती रोशनी फिर से टिमटिमाने लगी.

‘‘नहीं करना घरघर जा कर कपड़ेबरतन. जब तक शरीर में जान है, ईंटगारा ढो लूंगी. दोनों टाइम सब्जीदाल न सही, 3 प्राणियों को चायरोटी का टोटा तो नहीं पड़ने दूंगी,’’ खुद से कह कर दुलारी ने अखबार समेटा और काख में दबाते हुए मुसकरा दी. आज अचानक ही उसे अपने कंधे बहुत मजबूत महसूस होने लगे थे. Crime Hindi Story

Age is Just a Number: लड़कियां क्यों ढूंढती हैं खुद से छोटा पति?

Age is Just a Number: एक समय था जब पति की उम्र पत्नी से ज्यादा होती थी कई बार बहुत ज्यादा भी होती थी. फिर भी उनकी शादी न सिर्फ हो जाती थी बल्कि टिक अर्थात निभ भी जाती थी. इसके पीछे की सबसे बड़ी खास वजह यह थी , पति पैसा कमाने वाला और घर चलाने वाला इकलौता सदस्य होता था, और पत्नी का काम घर में रहकर पूरे परिवार की सेवा करना और बच्चों का पालन पोषण करना होता था. क्योंकि पति अपनी पत्नी और परिवार का हर तरह से ख्याल रखता था तो बीवी को घर से बाहर जाकर पैसा नहीं कमाना पड़ता था.

इसलिए पत्नी पति की हर बात मानती थी  और उम्र और बाकी चीजों का ख्याल ना करके अपनी पूरी जिंदगी परिवार और पति के लिए गुजार देती थी , क्योंकि पहले के मां-बाप भी अपनी बेटियों को ससुराल में एडजस्ट करने की शिक्षा देते थे यह कहकर कि पिता के घर से बेटी की डोली उठती है और पति के घर से अर्थी … अर्थात मरते दम तक पति का साथ मत छोड़ना, इसी धारणा के साथ जीते हुए चाहे कितने ही तकलीफों में पत्नी को रहना पड़े वह अपनी पूरी जिंदगी घर परिवार की सेवा में निकाल देती थी. लेकिन जैसे-जैसे समय बदला लोगों के विचार भी बदले मां बाप बेटियों को ससुराल में जबरदस्ती एडजस्ट करने के बजाय पढ़ा लिखा कर स्वावलंबी बनाने के लिए ज्यादा ध्यान देने लगे ताकि लड़कियां पढ़ लिखकर इतना पैसा कमा ले जिसमें उनका समाज में ही नहीं ससुराल में भी मान सम्मान हो, आज के समय में माता-पिता बेटी को आत्मनिर्भर और आर्थिक रूप से मजबूत देखना चाहते हैं जिसके चलते दिमागी तौर पर मजबूत  और टैलेंटेड लड़कियां इतनी ज्यादा आत्मनिर्भर हो गई कि वह लड़कों से भी ज्यादा कमाने लगी .

ऑटो रिक्शा चलाने से लेकर हवाई जहाज चलाने तक, औरतें हर क्षेत्र में आगे हैं , आज के समय में हालात यह है की लड़कियां अपने पूरे घर का खर्च अकेले चलाने की ताकत रखती है. और मां-बाप भी अपनी बेटी पर गर्व करते हैं. ऐसी लड़कियों के लिए शादी सिर्फ एक समझौता या रिवाज नहीं है बल्कि वह शादी में सुरक्षा और संतुष्टि की भी कामना करती हैं जिसके चलते कई लड़कियां जो पूरी तरह आत्मनिर्भर है वह ऐसे लड़कों से शादी करना चाहती हैं जो उनसे प्यार करने वाला हो उनका सम्मान करने वाला हो और पति से ज्यादा एक अच्छा दोस्त हो यह सारी खूबियां जब लड़कियों को अपनी से छोटी उम्र के लड़के में भी दिखती हैं तो वह उनसे शादी करने में जरा भी हिचकिचाती नहीं है,  बल्कि उम्र में बड़ी और सफल लड़कियां ऐसे लड़कों को अपना जीवन साथी बनाना ज्यादा पसंद करती हैं जो उनको प्यार और सम्मान देता हो दोस्त की तरह सलाह भी देता हो, कई बार ऐसे लड़के जो उम्र में कम है लेकिन पूरी तरह से सेटल नहीं है जिंदगी में कामयाब होने के लिए संघर्ष कर रहे हैं ऐसे कम उम्र के पति को बड़ी उम्र की लड़कियां बतौर पत्नी या प्रेमिका के रूप में फुल सपोर्ट देती है.

आज के समय में जबकि शादी कम तलाक ज्यादा हो रहे हैं इसलिए शादी को लेकर लड़कियां और भी ज्यादा अलर्ट है , क्योंकि कई बार करियर बनाते-बनाते शादी की उम्र निकल जाती है  इसलिए उन्हें जब कोई अच्छा लड़का मिलता है तो वह शादी करने से पीछे नहीं हटती फिर चाहे वह लड़का लड़की से कम उम्र का ही क्यों ना हो, क्योंकि प्यार और शादी में मन अच्छा होना जरूरी है उम्र धर्म जाति कोई मायने नहीं रखती, खास तौर पर आज के समय में ज्यादातर बड़ी उम्र की लड़कियां छोटी उम्र के लड़कों से शादी कर रही हैं और वह शादियां सफल भी हैं , जैसे कि क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर की बीवी सचिन से 7 साल बड़ी है, कैटरीना कैफ विकी कौशल से उम्र में बड़ी है, ऐसे में यह जानना बहुत जरूरी है क्या ऐसी वजह है की बड़ी उम्र की लड़कियां कम उम्र के लड़कों के साथ शादी कर रही हैं ?

ऐसी शादियों में सेक्स लाइफ कितनी सहज होती है? लड़कियां कम उम्र के लड़कों से शादी करने के क्या फायदे पाती है? छोटी उम्र के लड़के बड़ी उम्र की बीवियों के साथ कितना कंफर्टेबल रह पाते हैं? इस तरह का रिश्ता किस आधार पर टिका होता है ? पेश है इसी पर एक नजर…..

बड़ी उम्र की लड़कियों की पहली पसंद क्यों है छोटी उम्र के पति

सीधी सी बात है जहां पहले पति परमेश्वर कहलाता था, पति को भगवान का दर्जा दिया जाता था , पति के अत्याचार के बावजूद औरते पति की सेवा में जुटी रहती थी , सब कुछ सहने के बावजूद उनके खिलाफ नहीं जाती थी , अब वैसा नहीं है , आज पति पत्नी का रिश्ता बराबर का है क्योंकि कोई किसी से कम नहीं है , ऐसा रिश्ता सिर्फ और सिर्फ प्यार समझदारी और अंडरस्टैंडिंग पर टिका होता है.

उम्र कोई मायने नहीं रखती, ऐसा नहीं है कि ऐसे कपल में झगड़ा नहीं होता , या तू तू मैं मैं तकरार नहीं होती, सब कुछ वैसा ही होता है जैसा कि आम पति-पत्नी के बीच शादी के बाद देखा जाता है, लेकिन बड़ी उम्र की पत्नी ज्यादा समझदारी के चलते अपने पति को अपने बस में कर लेती है , कभी उस पति की बात मानकर या पति से बात मनवा कर, क्योंकि कम उम्र के पति पत्नी द्वारा मिले मान सम्मान और कही ना कही पैसों की वजह से  पहले से ही पत्नी के प्यार में लट्टू होते हैं इसलिए झगड़ा या तकरार भी प्यार में बदल जाती है, जैसा कि कहते हैं मियां  बीबी राजी तो क्या करेगा काजी , लिहाजा ऐसे रिश्तों में समाज भले ही कितना भला बुरा कहे , लेकिन प्यार करने वालों को कोई फर्क नहीं पड़ता , उम्र चाहे जो भी हो दिखावा या बड़प्पन की इस रिश्ते में कोई जगह नहीं होती उम्र में बड़ी होने की वजह से पत्नी हर सिचुएशन को हैंडल कर लेती है , पति को पत्नी की रक्षा करने की जरूरत नहीं पड़ती , बल्कि बड़ी उम्र की पत्नी के साथ पति अपने आप को सुरक्षित समझता है और टेंशन फ्री रहता है, क्योंकि उसकी समझदार बीवी सब कुछ अच्छे से हैंडल कर लेती है

छोटे उम्र के पति के साथ सेक्स के दौरान बिस्तर पर भी सहज रहती है बड़ी उम्र की बीवी

कहा जाता है ज्यादातर रिश्ते बिस्तर पर ही टूटते हैं, क्योंकि पति या पत्नी में से अगर कोई भी सेक्स के दौरान असहाय या असहज महसूस करता है, तो ऐसे रिश्तों के बाद पति पत्नी के रिश्ते में दरार आने लगती है , प्यार के नाम पर सेक्स के दौरान क्रूरता या जबरदस्ती शादीशुदा रिश्ते को तलाक तक ले जाती है, ऐसे में बहुत जरूरी होता है के संभोग के दौरान पति-पत्नी एक दूसरे पर हावी ना हो , सेक्स में प्यार की तड़प नजर आए ना कि सेक्स की भूख , पत्नी की उम्र बड़ी और पति छोटे उम्र का होता है तो पत्नी से जवान होने की वजह से छोटे उम्र का पति अपनी पत्नी को संतुष्ट करने में माहिर होता है , इस दौरान पत्नी अगर शर्म के मारे कुछ नहीं बोल पाती तो ऐसे समय में भी कम उम्र का पति पत्नी की जरूरत को समझते हुए संबंध बनाने के दौरान भी उसका पूरा साथ देता है.

इसके विपरीत अगर पति बड़ी उम्र का और पावरफुल इंसान है तो संभोग के दौरान पत्नी की मर्जी के बजाय अपनी मर्जी के हिसाब से संभोग करता है जो कई बार पत्नी के लिए तिरस्कार से भरा और दुखदाई भी होता है. ऐसे में पत्नी अपनी बड़ी उम्र के पति के साथ खुशी खुशी नहीं बल्कि मजबूरी में सेक्स करती है. लेकिन बड़ी उम्र की लड़की अगर छोटे उम्र के आदमी से शादी करती है तो वह शादी से पहले ही अच्छे दोस्त भी होते हैं और एक दूसरे की भावनाओं को अच्छे से समझते हैं जिस वजह से उम्र का फर्क होने के बावजूद प्यार का रिश्ता गहरा हो जाता है, और जिस रिश्ते में दिखावा नहीं होता सिर्फ प्यार सम्मान और समझदारी होती है वही रिश्ता लंबे समय तक टिकता है.

बॉलीवुड के वो शादीशुदा जोड़े जिनमे पत्नियां पति से उम्र में बड़ी है

फिल्म इंडस्ट्री ऐसी जगह है जहां पर शादी के लिए सिर्फ प्यार और अंडरस्टैंडिंग ही सबसे ज्यादा मायने रखता है जिसके चलते फिल्म इंडस्ट्री के शादीशुदा जोड़े धर्म जाति और उम्र के दिखावे से कोसो दूर है , जैसे कि काफी सालों पहले सुनील दत्त की शादी नरगिस से हुई थी जो कि सुनील दत्त से उम्र में काफी बड़ी थी इतना ही नहीं जिस फिल्म मदर इंडिया में नरगिस और सुनील दत्त का प्यार परवान चढ़ा था, उस फिल्म में नरगिस सुनील दत्त की मां के रोल में थी , और एक सीन के दौरान सुनील दत्त ने नरगिस को आग में जलने से बचाया था,  उसके बाद ही सुनील दत्त और नरगिस में प्यार और शादी हुई थी.

इसी तरह फिल्म इंडस्ट्री में कोई और ऐसे जोड़े हैं जिन में हीरोइने अपने पति से उम्र में बड़ी है, जैसे ऐश्वर्या राय अभिषेक बच्चन से 3 साल  उम्र में बड़ी है , कैटरीना कैफ विकी कौशल से 5 साल उम्र में बड़ी है , बिपाशा बसु करण सिंह ग्रोवर से 6 साल बड़ी है. प्रियंका चोपड़ा निक जोनस से 10 साल बड़ी है, नेहा धूपिया अपने पति अंगद बेदी से 2 साल बड़ी है, उर्मिला मातोंडकर अपने पति से मोहसिन अख्तर से 10 साल बड़ी है. कोरियोग्राफर फराह खान अपने पति शिरीष कुंदर  से 8 साल बड़ी है. गौरतलब है बड़ी उम्र की हीरोइन की छोटी उम्र के हीरो से शादी सफल और बरकरार है. Age is Just a Number

Golden Hour Glamour : 5 एक्ट्रैसेस जिन्होंने गोल्ड में बिखेरा जलवा…

Golden Hour Glamour : बौलीवुड की 5 खूबसूरत हीरोइन जो बौलीवुड की दीवा के रूप में जानी जाती हैं . ये दीवा अपनी खूबसूरती के लाइव जलवे बिखेरते हुए जब रेड कार्पेट पर चाहिए हो ड्रामा और रॉयल्टी, तब एक रंग हमेशा छा जाता है और वो है गोल्ड रंग, शाही, बोल्ड और पूरी तरह से अटेंशन-ग्रैबर. शाइनी सीक्विन्स से लेकर लिक्विड मेटैलिक तक, इन पांच दीवाज ने गोल्डन अंदाज में स्टाइल का नया स्टैंडर्ड सेट किया. आइए देखते हैं इस ग्लैमरस गैलरी में वो लम्हे, जहां इन हसीनाओं ने अपने तरीके से रच दी स्टाइल की नई परिभाषा…

1. जान्हवी कपूर: गोल्डन स्कल्प्टेड गॉडेस

जान्हवी का गोल्डन लुक था रॉयल एलिगेंस की मिसाल. फिगर-हगिंग, स्कल्प्टेड गोल्डन गाउन में वो किसी क्लासिक हौलीवुड दिवा से कम नहीं लगीं. सौफ्ट ड्रेप्स, शाइनी फिनिश और मिनिमल ज्वेलरी ने उनके लुक को बना दिया टाइमलेस, ग्रेसफुल और पावरफुल.

2. नुसरत भरुचा: ड्रामा और डैजल का परफेक्ट मेल

नुसरत हमेशा की तरह इस बार भी ड्रामेटिक और ग्लैमरस अंदाज़ में नजर आईं. शिमरी गोल्डन गाउन के साथ उनका फेदर केप उन्हें एक आसमानी परी जैसा लुक दे रहा था.स्लीक बन और कॉन्फिडेंट पोश्चर के साथ उन्होंने पूरी शाम को अपने नाम कर लिया.

3. निकिता दत्ता: द गोल्डन सायरन

निकिता दत्ता इस एसिमेट्रिकल गोल्डन गाउन में किसी ड्रीम सीक्वेंस से उतरी लग रही थीं. वन-शोल्डर कट और गोल्ड सीक्विन्स की चमक ने उन्हें रेड कार्पेट की रॉयल्टी बना दिया.सॉफ्ट वेव्स और मेटैलिक हील्स ने उनके ग्लैम को और निखार दिया.

4. करीना कपूर खान: लग्जरी का न्यू एज ट्विस्ट

करीना ने चुना एक स्ट्रैपलेस मोल्टन गोल्ड गाउन जो चुपचाप चमक बिखेर रहा था. क्रश्ड टेक्सचर ने इसे मौडर्न फील दिया, और क्लासिक कट ने उनके नैचुरल ग्लो को उभार दिया. एक बार फिर उन्होंने साबित किया- बेबो ट्रेंड फौलो नहीं करती, ट्रेंड बनाती हैं.

5. प्रियंका चोपड़ा: फियरलेस, फेरस और फैब्युलस

प्रियंका ने रेड कार्पेट पर फुल ऑन फायर लुक दिया अपने हाई-स्लिट, शीयर गोल्डन गाउन में. इंट्रिकेट एम्ब्रॉयडरी और बोल्ड मेटैलिक बेल्ट ने इस लुक को डिफाइन किया. डीप नेकलाइन और स्लीक स्टाइलिंग के साथ उन्होंने फिर से साबित कर दिया कि वो ग्लोबल स्टाइल क्वीन क्यों हैं.

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