फौरगिव मी: क्या मोनिका के प्यार को समझ पाई उसकी सौतेली मां

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Top 7 Health Tips in hindi: टॉप 7 हेल्थ टिप्स

इन दिनों  हर कोई हेल्थ से जुड़ी समस्या का सामना कर रहा है. सबसे ज्यादा सफर करती हैं हम महिलाएं जिनके कंधो पर दोनों जिम्मेदारी होती है, पहली वो घर भी संभालती है और दूसरी वो बाहर अपनी पहचान बनाने के लिए काम भी करती है. इस क्रम में हमे हेल्थ से जुड़ी कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है. आज हम  आपके साथ कुछ ऐसे ही समस्याओं से जुड़े आर्टिकल शेयर कर रहे हैं.

प्रेगनेंसी के दौरान करें ये 5 एक्सरसाइज तो रहेंगी फिट

प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं को कई प्रौब्लम का सामना करना पड़ता है. कई बार ये प्रौब्लम्स प्रेग्नेंसी में ज्यादा न करने व एक्सरसाइज न करने से होता है. इसीलिए जरूरी है कि प्रेग्नेंसी में एक्सरसाइज करना न भूलें. प्रेग्नेंसी के दौरान डौक्टर कुछ खास एक्सरसाइज बताते हैं, जिसे करने से मां और बच्चे की सेहत बनी रहती है. साथ ही प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाली प्रौब्लम्स से भी छुटकारा मिलते है.

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जानें क्या हैं प्रेग्नेंसी में होने वाली प्रौब्लम और ऑटिज़्म के खतरे

ऑटिज़्म को विकास सम्बन्धी बीमारी के रूप मे जाना जाता है. इसे ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) कहा जाता है. डॉ रोहित अरोड़ा , निओनैटॉलॉजी और पेडियाट्रिक्स हेड ,मिरेकल्स मेडीक्लीनिक और अपोलो क्रेडल हॉस्पिटल का कहना है कि, “यह डिसऑर्डर (विकार)  बच्चे के व्यवहार और बातचीत करने के तरीके पर नकारात्मक प्रभाव डालता है. बच्चों में होने वाली  यह बीमारी तब नज़र आती है जब बच्चे की सोशल स्किल्स, एक ही व्यवहार को बार-बार दोहराना, बोलने तथा बिना बोलकर कम्युनिकेट करने में परेशानी महसूस होती है तो इसे ऑटिज़्म  का लक्षण माना जाता है.

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जानिए रह्यूमेटाइड अर्थराइटिस के लक्षण और उपचार

रह्यूमेटाइड अर्थराइटिस एक जटिल बीमारी है, जिस में जोड़ों में सूजन और जलन की समस्या हो जाती है. यह सूजन और जलन इतनी ज्यादा हो सकती है कि इस से हाथों और शरीर के अन्य अंगों के काम और बाह्य आकृति भी प्रभावित हो सकती है. रह्यूमेटाइड अर्थराइटिस पैरों को भी प्रभावित कर सकती है और यह पंजों के जोड़ों को विकृत कर सकती है.

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अनचाही Pregnancy से कैसे बचें

अनचाहा गर्भधारण न केवल एक नवविवाहित स्त्री के स्वास्थ्य पर असर डालता है अपितु उस का संपूर्ण विवाहित जीवन भी प्रभावित होता है. अनचाहा गर्भ ठहरने पर गर्भपात (एबार्शन) कराना इस का उचित समाधान नहीं है. शिशु को जन्म दें या नहीं, इस का निर्णय एक दंपती के जीवनकाल का अत्यंत महत्त्वपूर्ण निर्णय होता है.

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महिला गर्भनिरोधक : क्या सही, क्या गलत

 

बचाव इलाज से ज्यादा अच्छा होता है, महिला गर्भनिरोधक उपायों पर यह बात बिलकुल सही बैठती है. बाजार में काफी पहले से महिला गर्भनिरोधक मौजूद हैं, लेकिन आज भी भारत में लाखों महिलाएं ऐसी हैं, जो नहीं जानतीं कि उनके लिए कौन सा गर्भनिरोधक उपाय सही है.

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 डिहाइड्रेशन से हैं परेशान तो अपनाएं ये नेचुरल उपाय

पानी हमारे शरीर के लिए बहुत जरूरी होता है. शरीर में पानी की कमी को ही डिहाइड्रेशन कहते हैं. सामान्यत: जब गर्मियों के दिनों में आपके शरीर में पानी की मात्रा में कमी आ जाती है, तो आपको डीहाइड्रेशन से गुजरना पड़ता है. शरीर में पानी की कमी होने पर शरीर को ताकत देने वाले खनिज पदार्थ जैसे नमक, शक्कर आदि कम होने लगते हैं. आमतौर पर गर्मियों के दिनों में ऐसा होता है.

फिट ऐंड फाइन डिलिवरी के बाद भी

शिल्पा शेट्टी या करिश्मा कपूर की पतली कमर देख कर भला किस का दिल नहीं मचलेगा. इन अभिनेत्रियों की परफैक्ट फिगर व चमकती त्वचा को देख कर भला कौन कह सकता है कि ये न केवल शादीशुदा हैं बल्कि मां भी बन चुकी हैं अधिकतर महिलाएं शादी मां बनने के बाद खुद को रिटायर समझने लगती हैं और सोचने लगती हैं कि अब उन की फिगर पहले जैसा आकार नहीं ले सकती. इसलिए वे अपनी फिटनैस को ले कर लापरवाह हो जाती हैं, उसके लिए कोई कोशिश ही नहीं करतीं. नतीजतन उन का शरीर थुलथुला हो जाता है व त्वचा मुरझा जाती है.

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जब मायके जाएं शादी के बाद

जब मायके जाएं तो क्या करें कि आपकी इज्जत भी हो और सम्मान भी…

अकेले रहने वाली 70 साल की गौतमी आजकल अपने घर का रैनोवेशन करवा रही हैं. उन का सादा व साफसुथरा खुला सा घर अच्छी स्थिति में ही है पर फिर भी उन्होंने यह काम छेड़ दिया है. अस्वस्थ हैं पर फिर भी घर में इतनी तोड़फोड़ चल रही है कि शाम तक मजदूरों को देखने के चक्कर में उन की हालत पतली हो जाती है.

छोटा शहर है, आसपास के लोग बारबार पूछने लगे कि क्या जरूरत है ये सब करवाने की तो उन्होंने एक पड़ोसी से मन की बात शेयर कर ली. बताया, ‘‘बेटी सुमन जब भी आती है, नाराज ही होती रहती है कि आप के पास कैसे आएं, आप के पुराने जमाने का बना घर बहुत असुविधाजनक है. इतने पुराने ढंग का वाशरूम, न टाइल्स, न एसी, कोई सुविधा नहीं. आना भी चाहें तो यहां की तकलीफें देख कर आने का मन भी नहीं होता. न आप ने कोई खाना बनाने वाली रखी है. जब भी आओ, खाना बनाना पड़ता है.

‘‘अब एक ही तो बेटी है. बेटा अलग रहता है, उसे तो कोई मतलब ही नहीं. अब सुमन को यहां आ कर कोई परेशानी न हो, सब उस की मरजी से करवा रही हूं, मेरा खर्चा तो बहुत हो रहा है पर ठीक है, कितनी बार ये सब बातें बारबार सुनूं.’’

हर बात में नुक्ताचीनी

सुमन सचमुच जब भी मायके आती है. गौतमी का सिर घूम जाता है. उस की हर बात में नुक्ताचीनी, आप के पास यह नहीं है, वह नहीं है, अभी तक यह क्यों नहीं लिया, वह क्यों नहीं लिया. सुमन आर्थिक रूप से बहुत समृद्ध है, जितनी देर मां के घर रहती है, अकेली रहने वाली अपनी मां को नचाने में कोई कसर नहीं छोड़ती. ऐसा भी नहीं कि मां के घर में कोई आधुनिक बदलाव चाहिए तो खुद रह कर कुछ काम देख ले या अपने पैसों से ही कुछ काम करवा दे. वह भी नहीं. बस फरमाइश. वापस जाने लगती है तो मां से मिले सामान पर बहुत मुश्किल से ही कभी संतुष्ट होती है.

गौतमी कभी बेटी और उस के बच्चों को कुछ सामान दिलाने बाजार ले जाती हैं तो उन्होंने बेटी को अपने बच्चों से साफसाफ कहते सुना कि नानी दिलवा रही हैं, महंगे से महंगा ले लेना.

बेटी के जाने के बाद गौतमी को बहुत देर तक अपना दिल उदास लगता है कि यह कैसी बेटी है जो जब भी आती है, किसी न किसी बात पर मन दुखा कर ही जाती है. उस का लालच है कि जाता ही नहीं, जबकि बेटी को पैसे की कोई कमी नहीं.

रोकटोक क्यों

इस के ठीक उलट मुंबई में रहने वाली नीरू जब रोहिणी, दिल्ली अपने मातापिता के पास मायके जाती है तो जितने दिन भी वहां रहती है उस की कोशिश होती है कि इन दिनों होने वाले हर खर्च को वह खुद देखे. जब उस के लौटने का समय होता है उस की मम्मी उस के हाथ में जो पैसे देती हैं वह उस में से बस क्व100 अपनी मम्मी का आशीर्वाद सम?ा कर ले लेती है और बाकी सब चुपके से एक जगह रख जाती है. बाद में फोन कर के बता देती है कि जितने लेने थे, ले लिए, बाकी आप वापस संभाल लो.

नीरू की मम्मी उसे हर बार ऐसा करने पर टोकती हैं पर नीरू कहती है, ‘‘जब मेरे रिटायर्ड पेरैंट्स अपने आप अपना खर्चा चला रहे हैं, मेरा जाना किसी भी हालत में उन पर बो?ा नहीं होना चाहिए. मैं जितना कर सकती हूं, उतना कर आती हूं. उन्होंने पढ़ालिखा कर, शादी कर के अपने सब फर्ज पूरे कर दिए हैं अब मेरा फर्ज बनता है कि जब भी जाऊं, उन्हें आराम ही दूं.’’

कोमल जब भी सहारनपुर मायके जाती है जाते ही कह देती है, ‘‘मां, भाभी, मु?ा से किचन के किसी काम की उम्मीद मत करना, अपने घर तो करते ही हैं, यहां भी करेंगे तो कैसे पता चलेगा कि मायके आई हूं.’’

वे तो उस की भाभी सरल स्वभाव की हैं जो हंसते हुए कह देती हैं, ‘‘हां, आप आराम करो, अपने घर ही काम करना. मायके का कुछ आराम मिलना ही चाहिए.’’

कोमल जितने भी दिन मायके रहती है मजाल है कि 1 कप चाय भी बना ले.

रिश्ते में मिठास जरूरी

उधर जयपुर में रेखा जितने दिन भी मायके रहती है उस के मायके में एक अलग ही रौनक रहती है. भाभी के साथ मिल कर नईनई चीजें बनाती है, कभी भाभी और मां को किचन से छुट्टी दे कर कहती है, ‘‘देखो, मैं ने क्याक्या सीख लिया है, आज सब मेरे हाथ का बना खाना खाएंगें.’’

किसी न किसी बहाने से हर रिश्ते में मिठास घोल देती है. कभी घर के सब बच्चों को कुछ खिलानेपिलाने ले जाती है. उस के पति जब उसे लेने आते हैं तो घर में कोई काम न बढ़े, सब सहज रहें, इस बात का विशेष ध्यान रखती है. सब को उस के आने का फिर दिल से इंतजार रहता है.

मायका आप का है, जहां कुछ दिन बिता कर आप फिर एक बच्ची सी बन जाती हैं, एक रिचार्ज हुई बैटरी की तरह अपने घरसंसार में लौट आती हैं. एक वयस्क महिला भी मायके जाते  हुए एक चंचल तरुणी सा अनुभव करती है. पर मायके जाएं तो ऐसे जाएं कि घर के किसी प्राणी पर आप का जाना बो?ा न लगे.

असुविधा हो तो सहन करें

आप अब मायके से जा चुकी हैं, आप का अपना घर है, आप के जाने के बाद आप के पेरैंट्स अकेले होंगें या भाभी होंगी तो इस बात का ध्यान जरूर रखें कि आप के जाने से उन्हें किसी तरह की असुविधा न हो. आप को असुविधा हो भी तो सहन कर लें.

मायके के रिश्ते बहुत सहेज कर रखने लायक होते हैं. कुछ बुरा भी लगे तो मुंह से कुछ कड़वा कह कर किसी का दिल न दुखाएं. अगर आप मायके से ज्यादा समृद्ध हैं तो घमंड और दिखावे से दूर रहें. ये चीजें अकसर रिश्तों में दीवार खड़ी कर देती हैं. मायके में रहने वाले हर सदस्य को स्नेह, सम्मान दें.

ऐसा भी न हो कि आप भी इतना खर्च कर के मायके जा रही हैं, उन का भी खर्च हो रहा है और कोई भी खुश नहीं है. रुपएपैसे को इतना महत्त्व न दें कि भावनात्मक दूरी आए. आप को अपने हिसाब से अपने घर में रहने की आदत है तो मायके के भी हर सदस्य को अपने रूटीन की आदत है. वह मां का घर है, वहां प्यार, मुहब्बतें होनी चाहिए न कि कोई स्वार्थ या हिसाबकिताब. न ईगो, न दिखावा.

निर्णय: वक्त के दोहराये पर खड़ी सोनू की मां

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Summer Special: हेयर रिमूवल के लिए अपनाएं ये 6 थेरैपी

अकसर महिलाओं को अचानक किसी पार्टी में जाना पड़ जाए, तो वे काफी परेशान हो उठती हैं कि कैसे आईब्रो और वैक्सिन करवाएं. लेकिन अब चिंता करने की जरूरत नहीं है. अब टैक्सिंग तकनीक आ चुकी है, जिस की मदद से अनचाहे बालों से हमेशा के लिए छुटकारा पाया जा सकता है.

1. गेल्वेनिक

इस में बिजली से बालों को खत्म किया जाता है. सूई या प्रोब से हेयर फोलिकल्स को बिजली का करंट दिया जाता है और उस में कैमिकल चेंजेज कर दिए जाते हैं. ये कैमिकल चेंजेज हेयर फोलिकल्स को जड़ से खत्म कर देते हैं. इस से दोबारा बाल नहीं आते.

2. थर्मोलिसिस

थर्मोलिसिस में सिर्फ एक सूई के जरिए बाल हटाए जाते हैं. इस में आल्टरनेटिंग करंट से सूई के आखिरी सिरे पर गरमी पैदा की जाती है. इसी गरमी की मदद से हेयर फोलिकल्स को खत्म किया जाता है.

3. ब्लैंड

यह थेरैपी गेल्वेनिक और थर्मोलिलिस का मिलाजुला रूप है. सख्त बालों को हटाने के लिए यह थेरैपी कारगर साबित होती है.

4. ट्रांसडर्मल

इस में बालों को हटाने के लिए जैल इलैक्ट्रोड पैचेज या ट्वीजर का प्रयोग किया जाता है. पैचेज और जैल इस्तेमाल करने से इस में काफी कम समय लगता है.

5. लेजर थेरैपी

इस थेरैपी में वेवलैंथ के जरिए किरणें स्किन पर डाली जाती हैं. ये लेजर किरणें फोलिकल्स को आसानी से खत्म कर देती हैं.

6. जीन थेरैपी

इस में स्किन पर ऐंटीग्रोथ एजेंट लगाने के बाद करंट से बालों को हटाया जाता है. इस थेरैपी में बालों को विकसित करने वाले तंतु हमेशा के लिए खत्म हो जाते हैं. ध्यान रहे कि किसी भी तरह की थेरैपी को सीधे अपने फेस पर ट्राई न करें. पहले शरीर के किसी दूसरे हिस्से पर प्रयोग करें. इन थेरैपीज के अलावा वैक्सिंग, थ्रैडिंग, शेविंग, ब्लीच से भी आप अनचाहे बालों से नजात पा सकती हैं. 

 

Summer Special: बच्चों के लिए बनाएं स्ट्राबेरी स्मूदी

गर्मियों में कोल्ड ड्रिंक और बाजार में उपलब्ध अन्य ड्रिंक का इस्तेमाल हेल्थ के लिए नुकसान दायक होता है क्योंकि इन्हें सुरक्षित रखने के लिए प्रिजर्वेटिव का प्रयोग तो किया ही जाता है, जिसमें चीनी ज्यादा होती है. इसी लिए आज हम आपको स्ट्राबेरी से बनीं स्मूदी की रेसिपी के बारे में बताएंगे.

सामग्री

–  1 कप स्ट्राबेरी

–  2 कप दही फेटा

–  1 कप दूध

–  6-7 पिस्ता

–  2 बड़े चम्मच शहद.

सामग्री लेयरिंग की

–  1 कप ट्रायल मिक्स

–  थोड़े से चिया सीड्स भीगे.

सामग्री गार्निशिंग की

–  ट्रायल मिक्स

–  थोड़ी सी पुदीनापत्ती कटी.

विधि

ब्लैंडर में स्ट्राबेरी, दही, दूध, पिस्ता व शहद को स्मूद ब्लैंड करें.

विधि लेयरिंग की

1 गिलास में ट्रायल मिक्स, चिया सीड्स डाल कर उस पर स्मूदी ऐड करें. फिर ट्रायल मिक्स व पुदीनापत्ती से गार्निश कर के तुरंत सर्व करें.

 

गुमनाम शिकायतें: क्यों एक निर्दोष को झेलनी पड़ी सजा

पिछले 6 महीने से मुझे पुलिस स्टेशन में बुलाया जा रहा है. मुझे शहर में घटी आपराधिक घटनाओं का जिम्मेदार मानते हुए मुझ पर प्रश्न पर प्रश्न तोप के गोले की तरह दागे जा रहे थे. अपराध के समय मैं कब, कहां था. पुलिस को याद कर के जानकारी देता. मुझे जाने दिया जाता. मैं वापस आता और 2-4 दिन बाद फिर बुलावा आ जाता. पहली बार तो एक पुलिस वाला आया जो मुझे पूरा अपराधी मान कर घर से गालीगलौज करते व घसीटते हुए ले जाने को तत्पर था.

मैं ने उस से अपने अच्छे शहरी और निर्दोष होने के बारे में कहा तो उस ने पुलिसिया अंदाज में कहा, ‘पकड़े जाने से पहले सब मुजरिम यही कहते हैं. थाने चलो, पूछताछ होगी, सब पता चल जाएगा.’

चूंकि न मैं कोई सरकारी नौकरी में था न मेरी कोई दुकानदारी थी. मैं स्वतंत्र लेखन कर के किसी तरह अपनी जीविका चलाता था. उस पर, मैं अकेला था, अविवाहित भी.

पहली बार मुझे सीधा ऐसे कक्ष में बिठाया गया जहां पेशेवर अपराधियों को थर्ड डिगरी देने के लिए बिठाया जाता है. पुलिस की थर्ड डिगरी मतलब बेरहमी से शरीर को तोड़ना. मैं घबराया, डरा, सहमा था. मैं ने क्या गुनाह किया था, खुद मुझे पता नहीं था. मैं जब कभी पूछता तो मुझे डांट कर, चिल्ला कर और कभीकभी गालियों से संबोधित कर के कहा जाता, ‘शांत बैठे रहो.’ मैं घंटों बैठा डरता रहा. दूसरे अपराधियों से पुलिस की पूछताछ देख कर घबराता रहा. क्या मेरे साथ भी ये अमानवीय कृत्य होंगे. मैं यह सोचता. मैं अपने को दुनिया का सब से मजबूर, कमजोर, हीन व्यक्ति महसूस करने लगा था.

मुझ से कहा गया आदेश की तरह, ‘अपना मोबाइल, पैसा, कागजात, पेन सब जमा करा दो.’ मैं ने यंत्रवत बिना कुछ पूछे मुंशी के पास सब जमा करा दिए फिर मुझ से मेरे जूते भी उतरवा दिए गए.

उस के बाद मुझे ठंडे फर्श पर बिठा दिया गया. तभी उस यंत्रणाकक्ष में दो स्टार वाला पुलिस अफसर एक कुरसी पर मेरे सामने बैठ कर पूछने लगा :

‘क्या करते हो? कौनकौन हैं घर में? 3 तारीख की रात 2 से 4 के बीच कहां थे? किनकिन लोगों के साथ उठनाबैठना है? शहर के किसकिस अपराधी गिरोह को जानते हो? 3 जुलाई, 2012 को किसकिस से मिले थे? तुम चोर हो? लुटेरे हो?’

बड़ी कड़ाई और रुखाई से उस ने ये सवाल पूछे और धमकी, डर, चेतावनी वाले अंदाज में कहा, ‘एक भी बात झूठ निकली तो समझ लो, सीधा जेल. सच नहीं बताओगे तो हम सच उगलवाना जानते हैं.’

मैं ने उस से कहा और पूरी विनम्रता व लगभग घिघियाते हुए, डर से कंपकंपाते हुए कहा, ‘मैं एक लेखक हूं. अकेला हूं. 3 तारीख की रात 2 से 4 बजे के मध्य में अपने घर में सो रहा था. मेरा अखबार, पत्रपत्रिकाओं के कुछ संपादकों से, लेखकों से मोबाइलवार्ता व पत्रव्यवहार होता रहता है. शहर में किसी को नहीं जानता. मेरा किसी अपराधी गिरोह से कोई संपर्क नहीं है. न मैं चोर हूं, न लुटेरा. मात्र एक लेखक हूं. सुबूत के तौर पर पत्रिकाओं, अखबारों की वे प्रतियां दिखा सकता हूं जिन में मेरे लेख, कविताएं, कहानियां छपी हैं.’

मेरी बात सुन कर वह बोला, ‘पत्रकार हो?’

‘नहीं, लेखक हूं.’

‘यह क्या होता है?’

‘लगभग पत्रकार जैसा. पत्रकार घटनाओं की सूचना समाचार के रूप में और लेखक उसे विमर्श के रूप में लेख, कहानी आदि बना कर पेश करता है.’

‘मतलब प्रैस वाले हो,’ उस ने स्वयं ही अपना दिमाग चलाया.

मैं ने उत्तर नहीं दिया. प्रैस के नाम से वह कुछ प्रभावित हुआ या चौंका या डरा, यह तो मैं नहीं समझ पाया लेकिन हां, उस का लहजा मेरे प्रति नरम और कुछकुछ दोस्ताना सा हो गया था. उस ने अपने प्रश्नों का उत्तर पा कर मुझे मेरा सारा सामान वापस कर के यह कहते हुए जाने दिया कि आप जा सकते हैं. लेकिन दोबारा जरूरत पड़ी तो आना होगा.

पहली बार तो मैं ‘जान बची तो लाखों पाए’ वाले अंदाज में लौट आया लेकिन जल्द ही दोबारा बुलावा आ गया. इस बार जो पुलिस वाला लेने आया था उस का लहजा नरम था.

इस बार मुझे एक बैंच पर काफी देर बैठना पड़ा. जिसे पूछताछ करनी थी, वह किसी काम से गया हुआ था. इस बीच थाने के संतरी से ले कर मुंशी तक ने मुझे हैरानपरेशान कर दिया. किस जुर्म में आए हो, कैसे आए हो, अब तुम्हारी खैर नहीं? फिर मुझ से चायपानी, सिगरेट के लिए पैसे मांगे गए. मुझे देने पड़े न चाहते हुए भी. फिर जब वह पुलिस अधिकारी आया, मैं उसे पहचान गया. वह पहले वाला ही अधिकारी था. उस ने मुझे शक की निगाहों से देखते हुए फिर शहर में घटित अपराधों के विषय में प्रश्न पर प्रश्न करने शुरू किए. मैं ने उसे सारे उत्तर अपनी स्मरणशक्ति पर जोर लगालगा कर दिए. कुछ इस तरह डरडर कर कि एक भी प्रश्न का उत्तर गलत हुआ तो परीक्षा में बैठे छात्र की तरह मेरा हाल होगा.

चूंकि उस का रवैया नरम था सो मैं ने उस से पूछा, ‘क्या बात है, सर, मुझे बारबार बुला कर ये सब क्यों पूछा जा रहा है, मैं ने किया क्या है?’

‘पुलिस को आप पर शक है और शक के आधार पर पुलिस की पूछताछ शुरू होती है जो सुबूत पर खत्म हो कर अपराधी को जेल तक पहुंचाती है.’

‘लेकिन मुझ पर इस तरह शक करने का क्या आधार है?’

‘आप के खिलाफ हमारे पास सूचनाएं आ रही हैं.’

‘सूचनाएं, किस तरह की?’

‘यही कि शहर में हो रही घटनाओं में आप का हाथ है.’

‘लेकिन…?’

उस ने मेरी बात काटते हुए कहा, ‘आप को बताने में क्या समस्या है? हम आप से एक सभ्य शहरी की तरह ही तो बात कर रहे हैं. पुलिस की मदद करना हर अच्छे नागरिक का कर्तव्य है.’

अब मैं क्या बताऊं उसे कि हर बार थाने बुलाया जाना और पुलिस के प्रश्नों का उत्तर देना, थाने में घंटों बैठना किसी शरीफ आदमी के लिए किसी यातना से कम नहीं होता. उस की मानसिक स्थिति क्या होती है, यह वही जानता है. पलपल ऐसा लगता है कि सामने जहरीला सांप बैठा हो और उस ने अब डसा कि तब डसा.

इस तरह मुझे बुलावा आता रहा और मैं जाता रहा. यह समय मेरे जीवन के सब से बुरे समय में से था. फिर मेरे बारबार आनेजाने से थाने के आसपास की दुकानवालों और मेरे महल्ले के लोगों को लगने लगा कि या तो मैं पेशेवर अपराधी हूं या पुलिस का कोई मुखबिर. कुछ लोगों को शायद यह भी लगा होगा कि मैं पुलिस विभाग में काम करने वाला सादी वर्दी में कोई सीआईडी का आदमी हूं. मैं ने पुलिस अधिकारी से कहा, ‘सर, मैं कब तक आताजाता रहूंगा? मेरे अपने काम भी हैं.’

उस ने चिढ़ कर कहा, ‘मैं भी कोई फालतू तो बैठा नहीं हूं. मेरे पास भी अपने काम हैं. मैं भी तुम से पूछपूछ कर परेशान हो गया हूं. न तुम कुछ बताते हो, न कुबूल करते हो. प्रैस के आदमी हो. तुम पर कठोरता का व्यवहार भी नहीं कर रहा इस कारण.’

‘सर, आप कुछ तो रास्ता सुझाएं?’

‘अब क्या बताएं? तुम स्वयं समझदार हो. प्रैस वाले से सीधे तो नहीं कुछ मांग सकता.’

‘फिर भी कुछ तो बताइए. मैं आप की क्या सेवा करूं?’

‘चलो, ऐसा करो, तुम 10 हजार रुपए दे दो. मेरे रहते तक अब तुम्हें कोई परेशानी नहीं होगी. न तुम्हें थाने बुलाया जाएगा.’ मैं ने थोड़ा समय मांगा. इधरउधर से रुपयों का बंदोबस्त कर के उसे दिए और उस ने मुझे आश्वस्त किया कि मेरे होते अब तुम्हें नहीं आना पड़ेगा.

मैं निश्चिंत हो गया. भ्रष्टाचार के विरोध में लिखने वाले को स्वयं रिश्वत देनी पड़ी अपने बचाव में. अपनी बारबार की परेशानी से बचने के लिए और कोई रास्ता भी नहीं था. मैं कोई राजनीतिक व्यक्ति नहीं था. न मेरा किसी बड़े व्यापारी, राजनेता, पुलिस अधिकारी से परिचय था. रही मीडिया की बात, तो मैं कोई पत्रकार नहीं था. मैं मात्र लेखक था, जो अपनी रचनाएं आज भी डाक से भेजता हूं. मेरा किसी मीडियाकर्मी से कोई परिचय नहीं था. एक लेखक एक साधारण व्यक्ति से भी कम होता है सांसारिक कार्यों में. वह नहीं समझ पाता कि उसे कब क्या करना है. वह बस लिखना जानता है.

अपने महल्ले में भी लोग मुझे अजीब निगाहों से देखने लगे थे, जैसे किसी जरायमपेशा मुजरिम को देखते हैं. मैं देख रहा था कि मुझे देख कर लोग अपने घर के अंदर चले जाते थे. मुझे देखते ही तुरंत अपना दरवाजा बंद कर लेते थे. महल्ले में लोग धीरेधीरे मेरे विषय में बातें करने लगे थे. मैं कौन हूं? क्या हूं? क्यों हूं? मेरे रहने से महल्ले का वातावरण खराब हो रहा है. और भी न जाने क्याक्या. मेरे मुंह पर कोई नहीं बोलता था. बोलने की हिम्मत ही नहीं थी. मैं ठहरा उन की नजर में अपराधी और वे शरीफ आदमी. अभी कुछ ही समय हुआ था कि फिर एक पुलिस की गाड़ी सायरन बजाते हुए रुकी और मुझ से थाने चलने के लिए कहा. मेरी सांस हलक में अटक गई. लेकिन इस बार मैं ने पूछा, ‘‘क्यों?’’

‘‘साहब ने बुलाया है. आप को चलना ही पड़ेगा.’’

यह तो कृपा थी उन की कि उन्होंने मुझे कपड़े पहनने, घर में ताला लगाने का मौका दे दिया. मैं सांस रोके, पसीना पोंछते, पुलिस की गाड़ी में बैठा सोचता रहा, ‘साहब से तो तय हो गया था.’ महल्ले के लोग अपनीअपनी खिड़कियों, दरवाजों में से झांक रहे थे.

थाने पहुंच कर पता चला जो पुलिस अधिकारी अब तक पूछताछ करता रहा और जिसे मैं ने रिश्वत दी थी उस का तबादला हो गया है. उस की जगह कोई नया पुलिस अधिकारी था.

मेरे लिए खतरनाक यह था कि उस के नाम के बाद उस का सरनेम मेरे विरोध में था. वह बुद्धिस्ट, अंबेडकरवादी था और मैं सवर्ण. मैं समझ गया कि अपने पूर्वजों का कुछ हिसाबकिताब यह मुझे अपमानित और पीडि़त कर के चुकाने का प्रयास अवश्य करेगा. इस समय मुझे अपना ऊंची जाति का होना अखर रहा था.

मैं ने कई पीडि़त सवर्णों से सुना है कि थाने में यदि कोई दलित अफसर होता है तो वह कई तरह से प्रताडि़त करता है. मेरे साथ वही हुआ. मेरा सारा सामान मुंशी के पास जमा करवाया गया. मेरे जूते उतरवा कर एक तरफ रखवाए गए. मुझे ठंडे और गंदे फर्श पर बिठाया गया. फिर एक काला सा, घनी मूंछों वाला पुलिस अधिकारी बेंत लिए मेरे पास आया और ठीक सामने कुरसी डाल कर बैठ गया. उस ने हवा में अपना बेंत लहराया और फिर कुछ सोच कर रुक गया. उस ने मुझे घूर कर देखा. नाम, पता पूछा. फिर शहर में घटित तथाकथित अपराधों के विषय में पूछा.

मैं ने अब की बार दृढ़स्वर में कहा, ‘‘मैं पिछले 6 महीने से परेशान हूं. मेरा जीना मुश्किल हो रहा है. मेरा खानापीना हराम हो गया है. मेरी रातों की नींद उड़ गई है. इस से अच्छा तो यह है कि आप मुझे जेल में डाल दें. मुझे नक्सलवादी, आतंकवादी समझ कर मेरा एनकाउंटर कर दें. आप जहां चाहें, दस्तखत ले लें. आप जो कहें मैं सब कुबूल करने को तैयार हूं. लेकिन बारबार इस तरह यदि आप ने मुझे अपमानित और प्रताडि़त किया तो मैं आत्महत्या कर लूंगा,’’ यह कहतेकहते मेरी आंखों से आंसू बहने लगे.

नया पुलिस अधिकारी व्यंग्यात्मक ढंग से बोला, ‘‘आप शोषण करते रहे हजारों साल. हम ने नीचा दिखाया तो तड़प उठे पंडित महाराज.’’

उस के ये शब्द सुन कर मैं चौंका, ‘पंडित महाराज, तो एक ही व्यक्ति कहता था मुझ से. मेरे कालेज का दोस्त. छात्र कम गुंडा ज्यादा.’

‘‘पहचाना पंडित महाराज?’’ उस ने मेरी तरफ हंसते हुए कहा.

‘‘रामचरण अंबेडकर,’’ मेरे मुंह से अनायास ही निकला.

‘‘हां, वही, तुम्हारा सीनियर, तुम्हारा जिगरी दोस्त, कालेज का गुंडा.’’

‘‘अरे, तुम?’’

‘‘हां, मैं.’’

‘‘पुलिस में?’’

‘‘पहले कालेज में गुंडा हुआ करता था. अब कानून का गुंडा हूं. लेकिन तुम नहीं बदले, पंडित महाराज?’’

उस ने मुझे गले से लगाया. ससम्मान मेरा सामान मुझे लौटाया और अपने औफिस में मुझे कुरसी पर बिठा कर एक सिपाही से चायनाश्ते के लिए कहा.

यह मेरा कालेज का 1 साल सीनियर वही दोस्त था जिस ने मुझे रैगिंग से बचाया था. कई बार मेरे झगड़ों में खुद कवच बन कर सामने खड़ा हुआ था. फिर हम दोनों पक्के दोस्त बन गए थे. मेरे इसी दोस्त को कालेज की एक उच्चजातीय कन्या से प्रेम हुआ तो मैं ने ही इस के विवाह में मदद की थी. घर से भागने से ले कर कोर्टमैरिज तक में. तब भी उस ने वही कहा था और अभी फिर कहा, ‘‘दोस्ती की कोई जाति नहीं होती. बताओ, क्या चक्कर है?’’

मैं ने उदास हो कर कहा, ‘‘पिछले 6 महीने से पुलिस बुलाती है पूछताछ के नाम पर. जमाने भर के सवाल करती है. पता नहीं क्यों? मेरा तो जीना हराम हो गया है.’’

 

‘‘तुम्हारी किसी से कोई दुश्मनी है?’’

‘‘नहीं तो.’’ ‘अपनी शराफत के चलते कभी कहीं ऐसा सच बोल दिया हो जो किसी के लिए नुकसान पहुंचा गया हो और वह रंजिश के कारण ये सब कर रहा हो?’’

‘‘क्या कर रहा हो?’’‘‘गुमनाम शिकायत.’’ ‘‘क्या?’’ मैं चौंक गया, ‘‘तुम यह कह रहे हो कि कोई शरारत या नाराजगी के कारण गुमनाम शिकायत कर रहा है और पुलिस उन गुमनाम शिकायतों के आधार पर मुझे परेशान कर रही है.’’

‘‘हां, और क्या? यदि तुम मुजरिम होते तो अब तक जेल में नहीं होते. लेकिन शिकायत पर पूछताछ करना पुलिस का अधिकार है. आज मैं हूं, सब ठीक कर दूंगा. तुम्हारा दोस्त हूं. लेकिन शिकायतें जारी रहीं और मेरी जगह कल कोई और पुलिस वाला आ गया तो यह दौर जारी रह सकता है. इसीलिए कह रहा हूं, ध्यान से सोच कर बताओ कि जब से ये गुमनाम शिकायतें आ रही हैं, उस के कुछ समय पहले तुम्हारा किसी से कोई झगड़ा या ऐसा ही कुछ और हुआ था?’’

मैं सोचने लगा. उफ्फ, मैं ने सोचा भी नहीं था. अपने पड़ोसी मिस्टर नंद किशोर की लड़की से शादी के लिए मना करने पर वह ऐसा कर सकता है क्योंकि उस के बाद नंद किशोर ने न केवल महल्ले में मेरी बुराई करनी शुरू कर दी थी बल्कि उन के पूरे परिवार ने मुझ से बात करनी भी बंद कर दी थी. उलटे छोटीछोटी बातों पर उन का परिवार मुझ से झगड़ा करने के बहाने भी ढूंढ़ता रहता था. हो सकता है वह शिकायतकर्ता नंद किशोर ही हो. लेकिन यकीन से किसी पर उंगली उठाना ठीक नहीं है. अगर नहीं हुआ तो…मैं ने अपने पुलिस अधिकारी मित्र से कहा, ‘‘शक तो है क्योंकि एक शख्स है जो मुझ से चिढ़ता है लेकिन यकीन से नहीं कह सकता कि वही होगा.’’

फिर मैं ने उसे विवाह न करने की वजह भी बताई कि उन की लड़की किसी और से प्यार करती थी. शादी के लिए मना करने के लिए उसी ने मुझ से मदद के तौर पर प्रार्थना की थी. लेकिन मेरे मना करने के बाद भी पिता ने उस की शादी उसी की जाति के ही दूसरे व्यक्ति से करवा दी थी.

‘‘तो फिर नंद किशोर ही आप को 6 महीने से हलकान कर रहे हैं.’’

मैं ने कहा, ‘‘यार, मुझे इस मुसीबत से किसी तरह बचाओ.’’

‘‘चुटकियों का काम है. अभी कर देता हूं,’’ उस ने लापरवाही से कहा.

फिर मेरे दोस्त पुलिस अधिकारी रामचरण ने नंद किशोर को परिवार सहित थाने बुलवाया. डांट, फटकार करते हुए कहा, ‘‘आप एक शरीफ आदमी को ही नहीं, 6 महीनों से पुलिस को भी गुमराह व परेशान कर रहे हैं. इस की सजा जानते हैं आप?’’

‘‘इस का क्या सुबूत है कि ये सब हम ने किया है?’’ बुजुर्ग नंद किशोर ने अपनी बात रखी.

पुलिस अधिकारी रामचरण ने कहा, ‘‘पुलिस को बेवकूफ समझ रखा है. आप की हैंडराइटिंग मिल गई तो केस बना कर अंदर कर दूंगा. जहां से आप टाइप करवा कर झूठी शिकायतें भेजते हैं, उस टाइपिस्ट का पता लग गया है. बुलाएं उसे? अंदर करूं सब को? जेल जाना है इस उम्र में?’’

पुलिस अधिकारी ने हवा में बातें कहीं जो बिलकुल सही बैठीं. नंद किशोर सन्नाटे में आ गए.

‘‘और नंद किशोरजी, जिस वजह से आप ये सब कर रहे हैं न, उस शादी के लिए आप की लड़की ने ही मना किया था. यदि दोबारा झूठी शिकायतें आईं तो आप अंदर हो जाएंगे 1 साल के लिए.’’

नंद किशोर को डांटडपट कर और भय दिखा कर छोड़ दिया गया. मुझे यह भी लगा कि शायद नंद किशोर का इन गुमनाम शिकायतों में कोई हाथ न हो, व्यर्थ ही…

‘‘मेरे रहते कुछ नहीं होगा, गुमनाम शिकायतों पर तो बिलकुल नहीं. लेकिन थोड़ा सुधर जा. शादी कर. घर बसा. शराफत का जमाना नहीं है,’’ उस ने मुझ से कहा. फिर मेरी उस से यदाकदा मुलाकातें होती रहतीं. एक दिन उस का भी तबादला हो गया.

मैं फिर डरा कि कोई फिर गुमनाम शिकायतों भरे पत्र लिखना शुरू न कर दे क्योंकि यदि यह काम नंद किशोर का नहीं है, किसी और का है तो हो सकता है कि थाने के चक्कर काटने पड़ें. नंद किशोर ने तो स्वीकार किया ही नहीं था. वे तो मना ही करते रहे थे अंत तक.

लेकिन उस के बाद यह सिलसिला बंद हो गया. तो क्या नंद किशोर ही नाराजगी के कारण…यह कैसा गुस्सा, कैसी नाराजगी कि आदमी आत्महत्या के लिए मजबूर हो जाए. गुस्सा है तो डांटो, लड़ो. बात कर के गुस्सा निकाल लो. मन में बैर रखने से खुद भी विषधर और दूसरे का भी जीना मुश्किल. पुलिस को भी चाहिए कि गुमनाम शिकायतों की जांच करे. व्यर्थ किसी को परेशान न करे.

शायद नंद किशोर का गुस्सा खत्म हो चुका था. लेकिन अब मेरे मन में नंद किशोर के प्रति घृणा के भाव थे. उस बुड्ढे को देखते ही मुझे अपने 6 माह की हलकान जिंदगी याद आ जाती थी. एक निर्दोष व्यक्ति को झूठी गुमनाम शिकायतों से अपमानित, प्रताडि़त करने वाले को मैं कैसे माफ कर सकता था. लेकिन मैं ने कभी उत्तर देने की कोशिश नहीं की. हां, पड़ोसी होते हुए भी हमारी कभी बात नहीं होती थी. नंद किशोर के परिवार ने कभी अफसोस या प्रायश्चित्त के भाव भी नहीं दिखाए. ऐसे में मेरे लिए वे पड़ोस में रहते हुए भी दूर थे.

दो चुटकी सिंदूर : सविता की क्या थी गलती

‘‘ऐ सविता, तेरा चक्कर चल रहा है न अमित के साथ?’’ कुहनी मारते हुए सविता की सहेली नीतू ने पूछा.

सविता मुसकराते हुए बोली, ‘‘हां, सही है. और एक बात बताऊं… हम जल्दी ही शादी भी करने वाले हैं.’’

‘‘अमित से शादी कर के तो तू महलों की रानी बन जाएगी. अच्छा, वह सब छोड़. देख उधर, तेरा आशिक बैजू कैसे तुझे हसरत भरी नजरों से देख रहा है.’’ नीतू ने तो मजाक किया था, क्योंकि वह जानती थी कि बैजू को देखना तो क्या, सविता उस का नाम भी सुनना तक पसंद नहीं करती. सविता चिढ़ उठी. वह कहने लगी, ‘‘तू जानती है कि बैजू मुझे जरा भी नहीं भाता. फिर भी तू क्यों मुझे उस के साथ जोड़ती रहती है?’’

‘‘अरे पगली, मैं तो मजाक कर रही थी. और तू है कि… अच्छा, अब से नहीं करूंगी… बस,’’ अपने दोनों कान पकड़ते हुए नीतू बोली. ‘‘पक्का न…’’ अपनी आंखें तरेरते हुए सविता बोली, ‘‘कहां मेरा अमित, इतना पैसे वाला और हैंडसम. और कहां यह निठल्ला बैजू.

‘‘सच कहती हूं नीतू, इसे देख कर मुझे घिन आती है. विमला चाची खटमर कर कमाती रहती हैं और यह कमकोढ़ी बैजू गांव के चौराहे पर बैठ कर पानखैनी चबाता रहता है. बोझ है यह धरती पर.’’ ‘‘चुप… चुप… देख, विमला मौसी इधर ही आ रही हैं. अगर उन के कान में अपने बेटे के खिलाफ एक भी बात पड़ गई न, तो समझ ले हमारी खैर नहीं,’’ नीतू बोली.

सविता बोली, ‘‘पता है मुझे. यही वजह है कि यह बैजू निठल्ला रह गया.’’ विमला की जान अपने बेटे बैजू में ही बसती थी. दोनों मांबेटा ही एकदूसरे का सहारा थे. बैजू जब 2 साल का था, तभी उस के पिता चल बसे थे. सिलाईकढ़ाई का काम कर के किसी तरह विमला ने अपने बेटे को पालपोस कर बड़ा किया था.

विमला के लाड़प्यार में बैजू इतना आलसी और निकम्मा बनता जा रहा था कि न तो उस का पढ़ाईलिखाई में मन लगता था और न ही किसी काम में. बस, गांव के लड़कों के साथ बैठकर हंसीमजाक करने में ही उसे मजा आता था. लेकिन बैजू अपनी मां से प्यार बहुत करता था और यही विमला के लिए काफी था. गांव के लोग बैजू के बारे में कुछ न कुछ बोल ही देते थे, जिसे सुन कर विमला आगबबूला हो जाती थी.

एक दिन विमला की एक पड़ोसन ने सिर्फ इतना ही कहा था, ‘‘अब इस उम्र में अपनी देह कितना खटाएगी विमला, बेटे को बोल कि कुछ कमाएधमाए. कल को उस की शादी होगी, फिर बच्चे भी होंगे, तो क्या जिंदगीभर तू ही उस के परिवार को संभालती रहेगी?

‘‘यह तो सोच कि अगर तेरा बेटा कुछ कमाएगाधमाएगा नहीं, तो कौन देगा उसे अपनी बेटी?’’

विमला कहने लगी, ‘‘मैं हूं अभी अपने बेटे के लिए, तुम्हें ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है… समझी. बड़ी आई मेरे बेटे के बारे में सोचने वाली. देखना, इतनी सुंदर बहू लाऊंगी उस के लिए कि तुम सब जल कर खाक हो जाओगे.’’

सविता के पिता रामकृपाल डाकिया थे. घरघर जा कर चिट्ठियां बांटना उन का काम था, पर वे अपनी दोनों बेटियों को पढ़ालिखा कर काबिल बनाना चाहते थे. उन की दोनों बेटियां थीं भी पढ़ने में होशियार, लेकिन उन्हें यह पता नहीं था कि उन की बड़ी बेटी सविता अमित नाम के एक लड़के से प्यार करती है और वह उस से शादी के सपने भी देखने लगी है.

यह सच था कि सविता अमित से प्यार करती थी, पर अमित उस से नहीं, बल्कि उस के जिस्म से प्यार करता था. वह अकसर यह कह कर सविता के साथ जिस्मानी संबंध बनाने की जिद करता कि जल्द ही वह अपने मांबाप से दोनों की शादी की बात करेगा.

नादान सविता ने उस की बातों में आ कर अपना तन उसे सौंप दिया. जवानी के जोश में आ कर दोनों ने यह नहीं सोचा कि इस का नतीजा कितना बुरा हो सकता है और हुआ भी, जब सविता को पता चला कि वह अमित के बच्चे की मां बनने वाली है.

जब सविता ने यह बात अमित को बताई और शादी करने को कहा, तो वह कहने लगा, ‘‘क्या मैं तुम्हें बेवकूफ दिखता हूं, जो चली आई यह बताने कि तुम्हारे पेट में मेरा बच्चा है? अरे, जब तुम मेरे साथ सो सकती हो, तो न जाने और कितनों के साथ सोती होगी. यह उन्हीं में से एक का बच्चा होगा.’’

सविता के पेट से होने का घर में पता लगते ही कुहराम मच गया. अपनी इज्जत और सविता के भविष्य की खातिर उसे शहर ले जा कर घर वालों ने बच्चा गिरवा दिया और जल्द से जल्द कोई लड़का देख कर उस की शादी करने का विचार कर लिया.

एक अच्छा लड़का मिलते ही घर वालों ने सविता की शादी तय कर दी. लेकिन ऐसी बातें कहीं छिपती हैं भला.अभी शादी के फेरे होने बाकी थे कि लड़के के पिता ने ऊंची आवाज में कहा, ‘‘बंद करो… अब नहीं होगी यह शादी.’’ शादी में आए मेहमान और गांव के लोग हैरान रह गए. जब सारी बात का खुलासा हुआ, तो सारे गांव वाले सविता पर थूथू कर के वहां से चले गए.

सविता की मां तो गश खा कर गिर पड़ी थीं. रामकृपाल अपना सिर पीटते हुए कहने लगे, ‘‘अब क्या होगा… क्या मुंह दिखाएंगे हम गांव वालों को? कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा इस लड़की ने हमें. बताओ, अब कौन हाथ थामेगा इस का?’’

‘‘मैं थामूंगा सविता का हाथ,’’ अचानक किसी के मुंह से यह सुन कर रामकृपाल ने अचकचा कर पीछे मुड़ कर देखा, तो बैजू अपनी मां के साथ खड़ा था. ‘‘बैजू… तुम?’’ रामकृपाल ने बड़ी हैरानी से पूछा.

विमला कहने लगी, ‘‘हां भाई साहब, आप ने सही सुना है. मैं आप की बेटी को अपने घर की बहू बनाना चाहती हूं और वह इसलिए कि मेरा बैजू आप की बेटी से प्यार करता है.’’

रामकृपाल और उन की पत्नी को चुप और सहमा हुआ देख कर विमला आगे कहने लगी, ‘‘न… न आप गांव वालों की चिंता न करो, क्योंकि मेरे लिए मेरे बेटे की खुशी सब से ऊपर है, बाकी लोग क्या सोचेंगे, क्या कहेंगे, उस से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है.’’

अब अंधे को क्या चाहिए दो आंखें ही न. उसी मंडप में सविता और बैजू का ब्याह हो गया.

जिस बैजू को देख कर सविता को उबकाई आती थी, उसे देखना तो क्या वह उस का नाम तक सुनना पसंद नहीं करती थी, आज वही बैजू उस की मांग का सिंदूर बन गया. सविता को तो अपनी सुहागरात एक काली रात की तरह दिख रही थी.

‘क्या मुंह दिखाऊंगी मैं अपनी सखियों को, क्या कहूंगी कि जिस बैजू को देखना तक गंवारा नहीं था मुझे, वही आज मेरा पति बन गया. नहीं… नहीं, ऐसा नहीं हो सकता, इतनी बड़ी नाइंसाफी मेरे साथ नहीं हो सकती,’ सोच कर ही वह बेचैन हो गई.

तभी किसी के आने की आहट से वह उठ खड़ी हुई. अपने सामने जब उस ने बैजू को खड़ा देखा, तो उस का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया.

बैजू के मुंह पर अपने हाथ की चूडि़यां निकालनिकाल कर फेंकते हुए सविता कहने लगी, ‘‘तुम ने मेरी मजबूरी का फायदा उठाया है. तुम्हें क्या लगता है कि दो चुटकी सिंदूर मेरी मांग में भर देने से तुम मेरे पति बन गए? नहीं, कोई नहीं हो तुम मेरे. नहीं रहूंगी एक पल भी इस घर में तुम्हारे साथ मैं… समझ लो.’’

बैजू चुपचाप सब सुनता रहा. एक तकिया ले कर उसी कमरे के एक कोने में जा कर सो गया.

सविता ने मन ही मन फैसला किया कि सुबह होते ही वह अपने घर चली जाएगी. तभी उसे अपने मातापिता की कही बातें याद आने लगीं, ‘अगर आज बैजू न होता, तो शायद हम मर जाते, क्योंकि तुम ने तो हमें जीने लायक छोड़ा ही नहीं था. हो सके, तो अब हमें बख्श देना बेटी, क्योंकि अभी तुम्हारी छोटी बहन की भी शादी करनी है हमें…’

कहां ठिकाना था अब उस का इस घर के सिवा? कहां जाएगी वह? बस, यह सोच कर सविता ने अपने बढ़ते कदम रोक लिए.सविता इस घर में पलपल मर रही थी. उसे अपनी ही जिंदगी नरक लगने लगी थी, लेकिन इस सब की जिम्मेदार भी तो वही थी.

कभीकभी सविता को लगता कि बैजू की पत्नी बन कर रहने से तो अच्छा है कि कहीं नदीनाले में डूब कर मर जाए, पर मरना भी तो इतना आसान नहीं होता है. मांबाप, नातेरिश्तेदार यहां तक कि सखीसहेलियां भी छूट गईं उस की. या यों कहें कि जानबूझ कर सब ने उस से नाता तोड़ लिया. बस, जिंदगी कट रही थी उस की.

सविता को उदास और सहमा हुआ देख कर हंसनेमुसकराने वाला बैजू भी उदास हो जाता था. वह सविता को खुश रखना चाहता था, पर उसे देखते ही वह ऐसे चिल्लाने लगती थी, जैसे कोई भूत देख लिया हो. इस घर में रह कर न तो वह एक बहू का फर्ज निभा रही थी और न ही पत्नी धर्म. उस ने शादी के दूसरे दिन ही अपनी मांग का सिंदूर पोंछ लिया था.

शादी हुए कई महीने बीत चुके थे, पर इतने महीनों में न तो सविता के मातापिता ने उस की कोई खैरखबर ली और न ही कभी उस से मिलने आए. क्याक्या सोच रखा था सविता ने अपने भविष्य को ले कर, पर पलभर में सब चकनाचूर हो गया था.

‘शादी के इतने महीनों के बाद भी भले ही सविता ने प्यार से मेरी तरफ एक बार भी न देखा हो, पर पत्नी तो वह मेरी ही है न. और यही बात मेरे लिए काफी है,’ यही सोचसोच कर बैजू खुश हो उठता था. एक दिन न तो विमला घर पर थी और न ही बैजू. तभी अमित वहां आ धमका. उसे यों अचानक अपने घर आया देख सविता हैरान रह गई. वह गुस्से से तमतमाते हुए बोली, ‘‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यहां आने की?’’

अमित कहने लगा, ‘‘अब इतना भी क्या गुस्सा? मैं तो यह देखने आया था कि तुम बैजू के साथ कितनी खुश हो? वैसे, तुम मुझे शाबाशी दे सकती हो. अरे, ऐसे क्या देख रही हो? सच ही तो कह रहा हूं कि आज मेरी वजह से ही तुम यहां इस घर में हो.’’ सविता हैरानी से बोली, ‘‘तुम्हारी वजह से… क्या मतलब?’’

‘‘अरे, मैं ने ही तो लड़के वालों को हमारे संबंधों के बारे में बताया था और यह भी कि तुम मेरे बच्चे की मां भी बनने वाली हो. सही नहीं किया क्या मैं ने?’’ अमित बोला. सविता यह सुन कर हैरान रह गई. वह बोली, ‘‘तुम ने ऐसा क्यों किया? बोलो न? जानते हो, सिर्फ तुम्हारी वजह से आज मेरी जिंदगी नरक बन चुकी है. क्या बिगाड़ा था मैं ने तुम्हारा?

‘‘बड़ा याद आता है मुझे तेरा यह गोरा बदन,’’ सविता के बदन पर अपना हाथ फेरते हुए अमित कहने लगा, तो वह दूर हट गई. अमित बोला, ‘‘सुनो, हमारे बीच जैसा पहले चल रहा था, चलने दो.’’ ‘‘मतलब,’’ सविता ने पूछा. ‘‘हमारा जिस्मानी संबंध और क्या. मैं जानता हूं कि तुम मुझ से नाराज हो, पर मैं हर लड़की से शादी तो नहीं कर सकता न?’’ अमित बड़ी बेशर्मी से बोला.

‘‘मतलब, तुम्हारा संबंध कइयों के साथ रह चुका है?’’ ‘‘छोड़ो वे सब पुरानी बातें. चलो, फिर से हम जिंदगी के मजे लेते हैं. वैसे भी अब तो तुम्हारी शादी हो चुकी है, इसलिए किसी को हम पर शक भी नहीं होगा,’’ कहता हुआ हद पार कर रहा था अमित.

सविता ने अमित के गाल पर एक जोर का तमाचा दे मारा और कहने लगी, ‘‘क्या तुम ने मुझे धंधे वाली समझ रखा है. माना कि मुझ से गलती हो गई तुम्हें पहचानने में, पर मैं ने तुम से प्यार किया था और तुम ने क्या किया?

‘‘अरे, तुम से अच्छा तो बैजू निकला, क्योंकि उस ने मुझे और मेरे परिवार को दुनिया की रुसवाइयों से बचाया. जाओ यहां से, निकल जाओ मेरे घर से, नहीं तो मैं पुलिस को बुलाती हूं,’’ कह कर सविता घर से बाहर जाने लगी कि तभी अमित ने उस का हाथ अपनी तरफ जोर से खींचा.

‘‘तेरी यह मजाल कि तू मुझ पर हाथ उठाए. पुलिस को बुलाएगी… अभी बताता हूं,’’ कह कर उस ने सविता को जमीन पर पटक दिया और खुद उस के ऊपर चढ़ गया. खुद को लाचार पा कर सविता डर गई. उस ने अमित की पकड़ से खुद को छुड़ाने की पूरी कोशिश की, पर हार गई. मिन्नतें करते हुए वह कहने लगी, ‘‘मुझे छोड़ दो. ऐसा मत करो…’’

पर अमित तो अब हैवानियत पर उतारू हो चुका था. तभी अपनी पीठ पर भारीभरकम मुक्का पड़ने से वह चौंक उठा. पलट कर देखा, तो सामने बैजू खड़ा था. ‘‘तू…’’ बैजू बोला.

अमित हंसते हुए कहने लगा, ‘‘नामर्द कहीं के… चल हट.’’ इतना कह कर वह फिर सविता की तरफ लपका. इस बार बैजू ने उस के मुंह पर एक ऐसा जोर का मुक्का मारा कि उस का होंठ फट गया और खून निकल आया. अपने बहते खून को देख अमित तमतमा गया और बोला, ‘‘तेरी इतनी मजाल कि तू मुझे मारे,’’ कह कर उस ने अपनी पिस्तौल निकाल ली और तान दी सविता पर.

अमित बोला, ‘‘आज तो इस के साथ मैं ही अपनी रातें रंगीन करूंगा.’’ पिस्तौल देख कर सविता की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. बैजू भी दंग रह गया. वह कुछ देर रुका, फिर फुरती से यह कह कह अमित की तरफ लपका, ‘‘तेरी इतनी हिम्मत कि तू मेरी पत्नी पर गोली चलाए…’’ पर तब तक तो गोली पिस्तौल से निकल चुकी थी, जो बैजू के पेट में जा लगी.

बैजू के घर लड़ाईझगड़ा होते देख कर शायद किसी ने पुलिस को बुला लिया था. अमित वहां से भागता, उस से पहले ही वह पुलिस के हत्थे चढ़ गया. खून से लथपथ बैजू को तुरंत गांव वालों ने अस्पताल पहुंचाया. घंटों आपरेशन चला. डाक्टर ने कहा, ‘‘गोली तो निकाल दी गई है, लेकिन जब तक मरीज को होश नहीं आ जाता, कुछ कहा नहीं जा सकता.’’

विमला का रोरो कर बुरा हाल था. गांव की औरतें उसे हिम्मत दे रही थीं, पर वे यह भी बोलने से नहीं चूक रही थीं कि बैजू की इस हालत की जिम्मेदार सविता है.

 

‘सच ही तो कह रहे हैं सब. बैजू की इस हालत की जिम्मेदार सिर्फ मैं ही हूं. जिस बैजू से मैं हमेशा नफरत करती रही, आज उसी ने अपनी जान पर खेल कर मेरी जान बचाई,’ अपने मन में ही बातें कर रही थी सविता. तभी नर्स ने आ कर बताया कि बैजू को होश आ गया है. बैजू के पास जाते देख विमला ने सविता का हाथ पकड़ लिया और कहने लगी, ‘‘नहीं, तुम अंदर नहीं जाओगी. आज तुम्हारी वजह से ही मेरा बेटा यहां पड़ा है. तू मेरे बेटे के लिए काला साया है. गलती हो गई मुझ से, जो मैं ने तुझे अपने बेटे के लिए चुना…’’

‘‘आप सविता हैं न?’’ तभी नर्स ने आ कर पूछा. डबडबाई आंखों से वह बोली, ‘‘जी, मैं ही हूं.’’ ‘‘अंदर जाइए, मरीज आप को पूछ रहे हैं.’’ नर्स के कहने से सविता चली तो गई, पर सास विमला के डर से वह दूर खड़ी बैजू को देखने लगी. उस की ऐसी हालत देख वह रो पड़ी. बैजू की नजरें, जो कब से सविता को ही ढूंढ़ रही थीं, देखते ही इशारों से उसे अपने पास बुलाया और धीरे से बोला, ‘‘कैसी हो सविता?’’

अपने आंसू पोंछते हुए सविता कहने लगी, ‘‘क्यों तुम ने मेरी खातिर खुद को जोखिम में डाला बैजू? मर जाने दिया होता मुझे. बोलो न, किस लिए मुझे बचाया?’’ कह कर वह वहां से जाने को पलटी ही थी कि बैजू ने उस का हाथ पकड़ लिया और बड़े गौर से उस की मांग में लगे सिंदूर को देखने लगा.

‘‘हां बैजू, यह सिंदूर मैं ने तुम्हारे ही नाम का लगाया है. आज से मैं सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी हूं,’’ कह कर वह बैजू से लिपट गई.

 

40 की उम्र में करने जा रही हैं ड्रीम वेडिंग तो स्किन पर ऐसे दें ध्यान कि नजर आए दुल्हन वाला ग्लो

उम्र के साथ-साथ स्किन रूखी और बेजान नजर आने लगती है, झुर्रियां और फाइन लाइंस दिखने लगती हैं। ऐसे में ब्राइड टू बी को अपनी स्किन पर खास ध्यान देना चाहिए.

अगर आप भी 40 की उम्र में ड्रीम वेडिंग करने जा रही हैं तो जरूरी है कि आप अपनी स्किन पर खास ध्यान दें। आप ऐसे ट्रीटमेंट और उपाय अपनाएं, जिससे अपनी जिंदगी के इस खास दिन पर आप सबसे खूबसूरत और निखरी हुई नजर आएं। आपके चेहरे की चमक आपको कॉन्फिडेंस देगी। इसलिए चेहरे पर दुल्हन वाला ग्लो लाने के लिए आप कुछ बेहद आसान स्टेप्स अपना सकती हैं.

1. स्किन को रखें हाइड्रेटेड

उम्र के साथ-साथ स्किन रूखी और बेजान नजर आने लगती है, झुर्रियां और फाइन लाइंस दिखने लगती हैं.  अपनी स्किन को हाइड्रेट रखकर आप इन परेशानियों से आराम पा सकती हैं. अपने स्किन रूटीन में आर्गन ऑयल, जोजोबा ऑयल, रोज ऑयल, ऑलिव ऑयल आदि शामिल हैं. इससे स्किन मॉइस्चराइज रहेगी. साथ ही स्किन सॉफ्ट होगी और ग्लोइंग नजर आएगी. दिनभर में भरपूर पानी पिएं. नींबू पानी, नारियल पानी, खीरा, टमाटर आदि को अपनी डेली डाइट का हिस्सा बनाएं.

2. एक्सफोलिएशन जरूरी

स्किन को एक्सफोलिएट करना जरूरी है। इससे डैड स्किन और सेल्स हटते हैं और अंदर से सॉफ्ट स्किन बाहर आती है. इससे स्किन की चमक लौट आती है. फलों के एंजाइम, लैक्टिक एसिड और ग्लाइकोलिक एसिड आपकी स्किन को एक्सफोलिएट करते हैं. लैवेंडर और कैमोमाइल जैसे ऑयल भी आपके काम आ सकते हैं.

3. एंटी-एजिंग सीरम करें यूज

उम्र के साथ ही स्किन पर असर साफ नजर आने लगते हैं. फाइन लाइंस, झुर्रियां, डार्क स्पॉट्स आदि कम करने के लिए एंटी एजिंग सीरम को शामिल करें. कुछ विटामिन और सीरम इसमें आपकी मदद करेंगे. विटामिन सी, हाइलूरोनिक एसिड और रेटिनॉल जैसे तत्वों से बने सीरम आप नियमित रूप से लगाएं. इससे कोलेजन का प्रोडक्शन बढ़ता है और स्किन प्रॉब्लम दूर होती हैं. अपने स्किन केयर रूटीन में रोजमेरी, चंदन, लेमन, लोबान ऑयल की कुछ बूंदे भी आप शामिल कर सकते हैं. इससे कुछ ही दिनों में आपको असर नजर आएगा.

4. धूप से करें बचाव

ब्राइड टू बी के लिए यह जरूरी है कि हर ​लेवल पर वह अपनी स्किन की सुरक्षा करे. खासतौर पर धूप और सूरज की हानिकारक यूवी किरणों से बचाव जरूरी है. यूवी एक्सपोजर स्किन की उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को तेज कर देता है. ऐेसे में न सिर्फ स्किन टेनिंग होती है, बल्कि डार्क स्पॉट्स, अन इवन स्किन टोन और लूज स्किन जैसी प्रॉब्लम होने लगती है. अपने डेली रुटीन में आप एसपीएफ 30 या 50 वाले ब्रॉड-स्पेक्ट्रम सनस्क्रीन शामिल करें. सिर्फ घर से बाहर जाने के दौरान ही नहीं, आप घर में भी इन्हें लगाएं. रास्पबेरी सीड ऑयल, ओलिव ऑयल और कोकोनट ऑयल में सबसे ज्यादा एसपीएफ होता है, आप इनका भी उपयोग कर सकती हैं.

5. स्किन को अंदर से दें पोषण

अगर आप स्किन को ग्लोइंग और शानदार बनाना चाहती हैं तो उसे अंदर से भी पोषण देना होगा. इसके लिए बैलेंस और हेल्दी डाइट लें. अपनी डेली डाइट में विटामिन, हेल्दी फैट, एंटीऑक्सिडेंट और ओमेगा फैटी एसिड शामिल करें. ये सभी आपकी स्किन के लिए अच्छे हैं. ताजे फल, सब्जियां, ड्राई फ्रूट्स, सीड्स, सी फूड आदि से आपको ये सभी पोषक तत्व आसानी से मिलेंगे।. इनसे आपकी स्किन फ्लोलेस नजर आएगी. उसमें अंदर से चमक दिखेगी.

6. टेंशन कम और नींद पूरी लें

स्किन प्रोडक्ट्स और डाइट के साथ ही कई और फैक्टर्स भी हैं, जो स्किन पर असर डालते हैं. टेंशन के कारण आपकी स्किन पर समय से पहले बुढ़ापा नजर आने लगता है. इसलिए योग को अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाएं. भरपूर नींद लें. रात में कम से कम 8 से 9 घंटे की नींद लें. इससे डार्क स्पॉट्स, डार्क सर्कल कम होंगे. ये फाइन लाइंस को कम करने में भी मददगार होगी.  इस दौरान आपकी स्किन को रिपेयर होने का भी टाइम मिलता है.

गर्मी की तपिश से राहत देंगें ये होममेड कन्सन्ट्रेट शर्बत

गर्मी की तपिश लगातार बढती ही जा रही है. आहार विशेषज्ञों के अनुसार गर्मियों में शरीर को हाईड्रेट रखना बहुत जरूरी होता है. यदि इन दिनों पानी अथवा तरल पदार्थ भरपूर मात्रा में न पियें जायें तो शरीर में पानी की कमी हो जाती है. कितनी भी कोशिश कर ली जाये परन्तु हर बार खाली पानी पीना सम्भव नहीं हो पाता इसलिए यदि हम पानी में कोई शरबत या ज्यूस मिला लें तो फ्लेवर्ड पानी पीना काफी आसान हो जाता है.

बाजार में मिलने वाले शर्बत न तो हाइजीनिक होते हैं और न ही प्योर दूसरे ये बहुत महंगे भी पड़ते हैं परन्तु थोड़ी सी मेहनत से यदि इन्हें घर पर बना लिया जाये तो ये काफी सस्ते तो ही पड़ते हैं दूसरे घर पर हम इन्हें अपने टेस्ट के अनुसार भी बना सकते हैं. आज हम आपको ऐसे ही 2 कन्सन्ट्रेट शरबत बनाना बता रहे हैं जिन्हें आप घर आसानी से बना सकती हैं. कन्सन्ट्रेट शरबत अर्थात वे शरबत जिन्हें पकाकर काफी गाढ़ा बना लिया जाता है और फिर सर्व करते समय इनमें सिर्फ पानी ही मिलाना होता है तो आइये देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाया जाता है-

पाइनएप्पल शर्बत

कितने लोगों के लिए 8
बनने में लगने वाला समय 30 मिनट
मील टाइप वेज
सामग्री
पाइनेपल 1
शकर 800 ग्राम
पानी 1/2 लीटर
काला नमक 1 टीस्पून
काली मिर्च 1/2 टीस्पून
चाट मसाला 1 टीस्पून
भुना जीरा पाउडर 1 टीस्पून
नीबू का रस 1 टीस्पून
खाने वाला पीला रंग 1 बूँद
विधि
पाइनएप्पल को छीलकर छोटे छोटे टुकड़ों में काट लें. अब इसे आधी शकर और 1 कप पानी डालकर प्रेशर कुकर में डालकर धीमी आंच पर 2 सीटी ले लें. जब प्रेशर निकल जाये तो इसे मिक्सी में पीस कर छान लें. अब छने गूदे को एक पैन में डालकर बची शकर डालकर लगातार चलाते हुए 5 मिनट तक पकाएं. गैस बंद करके नीबू का रस, चाट मसाला, फ़ूड कलर और एनी सभी मसाले डालकर अच्छी तरह चलायें. जब मिश्रण पूरी तरह ठंडा हो जाये तो किसी क्यूब्स ट्रे में डालकर फ्रीजर में जमायें अथवा किसी कांच की बोतल में भरकर फ्रिज में रखें. सर्व करते समय कांच के ग्लास में 1 टेबलस्पून कंसन्ट्रेट शरबत या जमे क्यूब्स डालकर ठंडा पानी डालकर ठंडा ठंडा सर्व करें.

बेल का शरबत

कितने लोगों के लिए 8
बनने में लगने वाला समय 30 मिनट
मील टाइप वेज
सामग्री
बेल का फल 1
पानी आधा लीटर
गुड़ पाउडर 500 ग्राम
इलायची पाउडर 1/4 टीस्पून
भुना जीरा पाउडर 1/4 टीस्पून
चाट मसाला 1 टीस्पून

विधि

बेल के पके फल को किसी भारी चीज से दबाकर फोड़ लें और किसी बड़े चम्मच की मदद से इसका सारा गूदा निकाल लें. इस गूदे को एक बाउल में डालकर पानी में डालकर ढककर आधा घंटे के लिए रख दें. आधे घंटे बाद हाथ से मसलकर छलनी से छानकर गूदे और रेशे को अलग कर लें. अब इस गुदे को गुड डालकर 5 से 10 मिनट तक गाढ़ा होने तक पकाकर गैस बंद कर दें. ठंडा होने पर इलायची पाउडर, काला नमक और भुना जीरा पाउडर डालकर चलायें और कांच के जार में भरकर फ्रिज में रखकर प्रयोग करें. सर्व करते समय ग्लास में 1 टेबलस्पून तैयार कंसन्ट्रेट शरबत, आइस क्यूब्स और ठंडा पानी डालकर सर्व करें. आप चाहें तो इसमें स्वादानुसार नीबू का रस भी मिला सकते हैं.

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