जिंदगी की धूप- भाग 1 : मौली के मां बनने के लिए क्यों राजी नहीं था डेविड

उसका दिल जोरजोर से धड़कने लगा जब उस ने प्लास्टिक की छोटी सी पेशाबभरी कटोरी में स्टिक डाल दी और 10 सैकंड तक इंतजार करने लगी.

सिर्फ एक लकीर नीली गहरी हुई थी. इस का मतलब उसे अच्छी तरह से मालूम था. पिछले 9 साल से हर महीने यही करती आई थी और दोनों लकीरों के गहरे होने के इंतजार में जाने और कितने महीने वह इसी तरह अकेली यों ही सिसकती रहेगी.

उस ने गहरा सांस छोड़ी. फिर बाथरूम की खिड़की से बाहर  झांकने लगी. इस साल भारी वर्षा होने के कारण दूर तक पहाड़ों पर हरियाली जमी हुई थी और हवा के  झोंके अंदर के ताप को कुछ सुकून पहुंचा रहे थे. थोड़ी देर यों ही खड़ी रह कर उस ने खिड़की जोर से बंद कर दी. आज उस का मूड फिर से उखड़ा हुआ था. मूड उस का ऐसे ही रहता है जिस दिन वह यह परीक्षण करती है.

शाम को डेविड से भी जलीकटी बातें करती रही और इन सब का जिम्मेदार उसे ही ठहराती रही क्योंकि डेविड ने शुरू  के 10 सालों तक उसे गर्भनिरोधक गोलियां खिलाखिला कर खोखला कर दिया था. दरअसल, डेविड सैटल होने तक बच्चे का रिस्क नहीं लेना चाहता था.

जब भी मौली बच्चे के लिए कहती तो वह यही जवाब देता, ‘‘बच्चों को गरीब मांबाप पसंद नहीं होते. क्या तुम चाहोगी कि हमारे बच्चे हमें ही न पसंद करें?’’

डेविड को नहीं मालूम था और कितने साल सैटल होने में लग जाएंगे. शुरू के 10 साल तो यों ही पंख लगा कर उड़ गए. लेकिन डेविड बच्चे की बात भूल कर भी नहीं करता और अब तो मौली की किसी बात का डेविड पर कोई असर नहीं होता था.

सालों से वह यही सुनता आया था, ‘‘हमारा बच्चा कब होगा? तुम कभी खुद बच्चे की बात क्यों नहीं छेड़ते?’’

मजाल है जो इतना होने पर भी डेविड ने कभी बच्चे की बात शुरू की हो. उस के मन की बात कोई नहीं जानता, शायद वह खुद भी नहीं. हां, इतना जरूर था जब मौली रोने लगती तो वह कहता, ‘‘मैं भी वही चाहता हूं जो तुम चाहती हो. बताओ मैं क्या करूं?’’

यह सुन कर मौली और भड़क उठती और कहती, ‘‘मु झ से बात मत करो.’’

वह खुद भी 20 साल की अल्हड़ युवती थी जब वे प्रणयसूत्र में बंधे थे. कितने साल  तो पढ़ाईलिखाई डिगरी पाने और फिर नौकरी की तलाश में ही गुजर गए, फिर भी हमेशा एक कोने में बच्चे की चाह कुलबुलाती रहती.

पिछले 9 सालों से वे दोनों बच्चे के लिए भरपूर ट्राई कर रहे थे और 2 साल पहले तो उन्होंने डाक्टर से अपना ट्रीटमैंट भी कराने की सोची. सभी रिपोर्ट नौर्मल निकलीं तो डाक्टर ने कहा, ‘‘अब 40 की उम्र में अपनेआप बच्चे होने से रहे इसलिए ‘आईवीएफ’ करवाने की सोचो.

इस के लिए वे आर्थिक रूप से तैयार न थे लेकिन कुछ सस्ते ट्रीटमैंट जैसे ‘आईयूआई’ उन्होंने जरूर ले लिए थे. इस से उन्हें अंदाजा हो गया था कि इस आग के दरिए में डूब के ही जाना पड़ेगा. हर महीने टैबलेट लेना, फिर अपने पेट में खुद ही सीरिंज घोंपना मौली के लिए आसान काम न था. इस के बाद नियत समय पर मौली को क्लीनिक बुलाया जाता और हर बार जाने कौनकौन सी मशीनें उस के अंदर डाल दी जातीं. हाथ की मुट्ठियों को कस कर बंद कर वह सिर्फ अपने शरीर के अंदर की जा रही प्रक्रिया को महसूस कर पाती. दर्द से कई गरम धाराएं उस की आंखों से यों पड़तीं जो कई दिनों तक उस के बदन में सिहरन पैदा करती रहती थीं.

इस के अलावा हर बार क्लीनिक में जाने का खर्च 1 हजार डालर के ऊपर चला जाता. 5 बार ‘आईयूआई’ करवा कर तो दोनों ने तोबा कर ली. इस के ऊपर खर्च करना उन के बस का न था. अभी तक तो स्टूडैंट लोन भी नहीं चुकाया था. फिर दोनों की नौकरियों से कुछ खास बचता भी नहीं था इसलिए तन, मन और धन से निचुड़ चुके मौली और डेविड ने सोच लिया था कि अब अगर बच्चे होंगे तो अपनेआप नहीं तो नहीं.

खैर, अब मौली घर में ही हर महीने गर्भपरीक्षण करती और हर बार नैगेटिव रिपोर्ट आने से परेशान हो कर 2-4 दिन बाद फिर अपनेआप सामान्य हो जाती थी. और अपने अगले मासिकचक्र में गर्भवती होने के सपने देखने लगती जिस के लिए उसे खुश रहना बेहद जरूरी था.

उस के बदलते मूड से तो सभी परिचित थे. आज अपने दफ्तर में बैठी वह बहुत खुश लग रही थी. इश्योरैंस क्लेम की सभी फाइलें जल्दीजल्दी निबटाते हुए कुछ गुनगुना रही थी.

उस के सामने बैठी लौरा ने पूछ ही लिया, ‘‘कुछ खास है क्या?’’

वह अपनी मेज पर लगे हुए गुलदस्ते से फूल तोड़ते हुए बड़े ही सैक्सी अंदाज में बोली, ‘‘हां, आज की रात डेविड और मैं, मैं और डेविड बहुत बिजी होंगे,’’ लौरा खिलखिला कर हंसने लगी, तभी विक्टर आ टपका और दोनों की हंसी बिला गई.

विक्टर बोला, ‘‘जब भी मैं आता हूं तुम दोनों चुप क्यों हो जाती हो? लगता है कुछ मेरे ही बारे में बातें कर रही थीं.’’

मौली हाथ नचाते हुए बोली, ‘‘बस और कोई काम नहीं है हमें, तुम्हारे बारे में बात करने के. तुम क्या स्पैशल हो?’’

‘‘तो हंस क्यों रही थीं?’’

‘‘हंसना मना है क्या?’’

‘‘जब मैं आता हूं तुम लोग चुप क्यों हो जाती हो? अब तक तो बड़े कहकहे छूट रहे थे. मु झे बताओ न, क्या चल रहा था?’’ विक्टर थोड़ी मिन्नत वाली टोन में बोला.

‘‘ये औरतों की बात है तुम नहीं सम झोगे,’’ लौरा अपने एक हाथ को आगे मेज पर रखते हुए स्टाइल से बोली.

‘‘ऐसी क्या बात है जो मैं नहीं सम झ सकता, एक बार बताओ तो सही.’’

मौली ने  झटके से क्लेम की कुछ फाइलें उठाईं और विक्टर की मेज पर पटक दीं.

‘‘पहले इन फाइलों का काम खत्म करो फिर बताऊंगी.’’

अगले ही क्षण मौली को लगने लगा जैसे उसे बुरी तरह से चक्कर आ गए. शायद वह  झटके से उठी इसी से चक्कर आए होंगे.

उस ने सोचा पिछला परीक्षण तो नैगेटिव आया था लेकिन उस की माहवारी अभी तक नहीं हुई. आज घर जा कर फिर से परीक्षण करना चाहिए.

वैसे इस तरह तो पहले भी कई बार हो गया है जब उस की माहवारी 15-15 दिन देर से हुई और वह हर बार यही आशा पाल लेती कि शायद इस बार वह गर्भवती हो गई है.

यह परीक्षण उस के तन के लिए तो नहीं, लेकिन मन के लिए बहुत दर्दनाक था. फिर भी हर महीने करना तो पड़ता था.

घर जा कर उस ने सब से पहले परीक्षण की वही प्रक्रिया दोहराई लेकिन परीक्षण स्टिक ने आज वही परिणाम नहीं दोहराया बल्कि दोनों लकीरें नीली हो गईं. उसे विश्वास नहीं हो रहा था. यह उस की 40 साल की जिंदगी में पहली बार हुआ था. उस ने सोचा कि कल नर्सिंगहोम में टेस्ट करवा लूंगी. इन स्टिकों का क्या भरोसा, शायद इन की ऐक्सपाइरी डेट निकल गई हों.

अगले दिन खून की जांच से भी जब यह खबर पक्की हो गई तो वह तेज  कदमों से बिल्डिंग के बाहर निकल आई और एक कौफी हाउस में जा कर बैठ गई. वह कुछ पल किसी से कोई बात नहीं करना चाहती थी बस अपने साथ रहना चाहती थी.

अब तक इस एक क्षण का उसे 2 दशकों से इंतजार था. कैसा लगता है जब आंखों में पला बरसों का सपना एक  झटके में पूरा हो जाता है और मन असीम आनंद के हिंडोले में डोलने लगता है. वह भी इसी हिंडोले में बैठ कर कहीं दूर उड़ना चाहती थी.

शायद इसी दिन के लिए यह गाना बना है, ‘आजकल पांव जमीन पे नहीं पड़ते मेरे, बोलो देखा है तुम ने मु झे उड़ते हुए…’

पूरी तरह से आश्वस्त हो कर वह डेविड को फोन मिलाने लगी. उस के चेहरे पर मुसकराहट रहरह कर अपने आप चढ़ जाती शायद इतनी बड़ी खबर सुन कर सभी का यही हाल होता होगा.

तेरे जाने के बाद- भाग 1 क्या माया की आंखों से उठा प्यार का परदा

मैं अकेली हूं पर मोहित की यादें अकसर ही मुझ से बातें करने आ जाया करती हैं. लगता जैसे मोहित आते ही मुझे चिढ़ाने लगते हैं. वास्तव में तुम्हारी हिम्मत न होती थी हकीकत की जमीन पर मुझे चिढ़ाने की, लेकिन खयालों में तुम कोई मौका न छोड़ते. मैं खयालों में ही रह जाती हूं, जवाब नहीं दे पाती तुम्हें. पता नहीं पिछले कुछ दिनों से जाने क्यों मुझे रहरह कर कमल की भी याद आ रही है. मै जानती हूं वह कभी नहीं आएगा. अगर आया तो भी उस के लिए मेरी जिंदगी में कोई जगह नहीं है. आखिर मैं ने ही तो छोड़ा था उसे, फिर क्यों याद कर रही हूं मैं उस को. मैं खुश हूं अपनी जिंदगी में. क्या फर्क पड़ता है किसी के जाने से? कौन सी मैं ने मोहब्बत ही की थी उस से.

छल… हां, छल ही तो किया था उस ने मुझ से और खुद से. फिर क्यों याद बन कर सता रहा है मुझे. शायद असीम और अभिलाषा के एकदूसरे के प्रति लगन के कारण कमल का स्मरण हो आया है. मुझे अच्छी तरह से याद है. मैं ही उस के प्रति आकर्षित हुई थी पहले. कमल गोरा, लंबा आकर्षक पुरुष था. वह शादीशुदा नहीं था. मेरे पति मोहित पहले दिन ही कमल से मिलवाते हुए बता चुके थे. मुझे काफी दिलकश इंसान लगा था. खूबी होगी कुछ उस में. तभी दरवाजे की घंटी बजी. मैं खोलने चली गई.

सामने असीम खड़ा था. ‘‘अरे असीम, आ जाओ. तुम्हें ही याद कर रही थी.’’ ‘‘मुझे, पर क्यों भाभी?’’ असीम भाभी ही कहता हैं मुझे. वैसे तो हम रिश्तेदार बनने वाले हैं. उस की शादी मेरी छोटी बहन अभिलाषा से होने वाली है. लेकिन देवरभाभी का रिश्ता कमल का दिया हुआ था. असीम कमल को बड़ा भाई मानता था. ‘‘जस्ट जोकिंग डियर. अच्छा, तैयारी कैसी चल रही है शादी की?’’ ‘‘हा हा हा, तैयारी करने के लिए जब आपलोग हैं ही, फिर मुझे क्या चिंता?’’ ‘‘हींहींहीं मत कर. घोड़ी चढ़ कर भी क्या हम लोग ही आ जाएंगे.’’ ‘‘हा हा हा, लड़की आप की है, फिर आप घोड़ी चढ़ें या गदही चढ़ें, मेरी तरफ से सब मुबारका.’’

‘‘मस्ती सूझ रही दूल्हे मियां को.’’ ‘‘सोचता हूं कि कर ही लूं, फिर मौका मिले या न मिले’’, दांत निपोरते हुए असीम फिर बोला, ‘‘क्या बात है भाभी, मैं तब से आप को हंसाने की कोशिश कर रहा हूं पर आप का ध्यान कहीं और ही है?’’ ‘‘नहींनहीं, कुछ खास नही. बस, आज तुम्हारे मित्र कमल का ध्यान हो आया.’’ थोड़ी देर रुक कर मैं फिर बोली, ‘‘तुम्हारी तो बातचीत होती होगी. कहां है आजकल? क्या कर रहा है?’’ गंभीर भाव मुख पर लाते हुए असीम बोला, ‘‘जी, कभीकभी बातचीत पहले हो जाया करती थी. इधर काफी दिनों से कोई संपर्क नहीं हो पा रहा है. लेकिन आज अचानक कमल क्यों?’’ अचानक असीम के सवाल से मैं सहम सी गई.

‘‘क्योंक्या?’’ मैं झेंपते हुए बोली, बस, यों ही’’. असीम का मोबाइल बजने लगा और वह बीच में ही ‘अच्छा भाभी, मैं चलता हूं’, कहते हुए बाहर चला गया. मैं फिर से यादों से बातें करने लगी. मेरे जीवन में कमल और मोहित की यादें ही तो रह गई है सिर्फ, अन्यथा बचा ही क्या है. मैं मोहित का फोटो ले कर बैठ जाती हूं. मेरे जीवन के 2 पलड़े हैं और दोनों ही मुझ से टूट कर अलग हो गए. रह गई मेरे हाथों में केवल डंडी. आज मैं मोहित से बातें करना चाहती हूं. वे बातें जो उस के साथ रहते हुए भी कभी नहीं कर पाई थी. आज करूंगी वे बातें, वे सभी बातें तो कभी भी मैं मोहित को बताना नहीं चाहती थी. वे बातें जो मैं ने पूरी दुनिया से छिपा रखी हैं. वे बातें जो मैं ने खुद से भी छिपा रखी हैं. पता नहीं मैं किस दुनिया में पहुंच रही हूं. मैं फोटो से बात कर रही हूं या खुद से, समझ नहीं पा रही.

‘मोहित, तुम्हें क्या लगा कि मैं गलत थी. अरे एक बार पूछ कर तो देख लेते. पर तुम पूछते कैसे? मर्द जो ठहरे तुम. मैं नहीं जानती तुम ने ऐसा क्यों किया पर मैं अब समझ सकती हूं कि तुम्हें कैसा लगता होगा जब मैं कमल से हंसहंस कर बातें करती थी. मुझे परवा न थी दुनिया की. मैं तो सिर्फ अपनेआप में मस्त रहती थी. कभी तुम्हारे बारे में सोचा ही नहीं मैं ने. तुम मेरे पति थे और आज भी हो, लेकिन हम साथसाथ नहीं हैं. हम दोनों एकदूसरे के लिए परित्यक्त हैं. तलाकशुदा नहीं हैं हम. तुम चाहो तो मैं तुम्हारे पास वापस आने को तैयार हूं. पर तुम ऐसा क्यों चाहोगे? मैं ने कौन से पत्नीधर्म निभाए हैं.’ फिर से खयालों में खोती चली जाती हूं. ‘मैं भूल गई थी कि तुम मेरे पति हो. पर तुम कभी नहीं भूले. मोहित, तुम ने हमेशा मेरा साथ निभाया. खुदगर्जी मेरी ही थी. मैं जान ही नहीं पाईर् थी तुम्हारे समर्पण को. मेरे लिए तुम सिर्फ और सिर्फ मेरे पति थे. पर तुम्हारे लिए मैं जिम्मेदार थी. मेरी जिंदगी में भले ही तुम्हारे लिए जगह न थी लेकिन तुम्हारे लिए मैं हमेशा ही तुम्हारे सपनों की रानी रही.’

‘मैं जब अकेले में खुद से बातें करते हुए थकने लगती हूं तब तुम आ जाते हो मेरे खयालों में, बातें करने मुझ से. मुझे अच्छा लगने लगता है. मैं तुम से बातें करने लगती हूं. तुम कहने लगते हो, ‘जब तुम मुझ से खुश न थी तो फिर संग क्यों थीं? तुम्हें चले जाना चाहिए था कमल के साथ. मैं कभी नहीं रोकता तुम्हें.’ तुम मेरे अंदर से बोल पड़ते हो. ‘मैं तुम्हें जवाब देने लगती हूं.’ ‘तुम्हारे साथ मैं केवल तुम्हारे पैसों के लिए थी. अन्यथा तुम तो मुझे कभी पसंद ही नहीं थे. तुम्हारा काला रंग, निकली हुई तोंद, भारीभरकम देह, मुझ से न झेला जाता था. मैं कमल के साथ जाना चाहती थी मगर उस की लापरवाही मुझे खलती थी. कमल खुद में स्थिर नहीं था. अन्य औरतों की भांति मैं भी एक औरत के रूप मेें ठहरावपूर्ण जिंदगी चाहती थी जो कि तुम्हारे पास थी.’

‘तो फिर कमल ही क्यों? किसी अन्य पुरुष को भी तुम अपना सकती थी,’ मेरे मन का मोहित बोला. ‘हां, अपना सकती थी. लेकिन कमल सब से सुरक्षित औप्शन था. किसी को शक नहीं होता उस पर. और फिर संपर्क में भी तो कमल के अलावा मेरे पास अन्य पुरुष का विकल्प न था. और जो 2 पुरुष तुम्हारे अलावा मेरे संपर्क में थे उन में कमल मुझे कहीं अधिक आकर्षित करता था.’ ‘और असीम?’

‘असीम के प्रति मेरे मन में कभी वह भाव नहीं आया. कभी आया भी होगा तो मैं यह सोच कर रुक जाती कि वह मेरी छोटी बहन का आशिक है और उम्र में भी तो बहुत छोटा था. 10 साल, हां, 10 साल छोटा है असीम.’ ‘मेरी एक चिंता दूर करोगी क्या?’ ‘हां, बोलो, कोशिश करूंगी.’ ‘कमल मेें ऐसा क्या था जो मुझ में नहीं था?’ ‘यह तुम्हारा प्रश्न ही गलत है.’ ‘क्या मतलब?’ ‘तुम में वह सबकुछ था जो कमल में भी नहीं था. कमी तो मुझ में थी. मैं ही खयालों की दुनिया से बाहर नहीं आना चाहती थी. मुझे वाहवाही की लत जो लगी हुईर् थी. तुम कूल डूड थे और कमल एकदम हौट. तुम्हें मर्यादा में रहना पसंद था और मुझे बंधनमुक्त जीना पसंद था. तुम्हें समाज के साथ चलना पसंद था और मुझे पूरी दुनिया को अपने ठुमकों पर नचाना था.’

‘तुम एक बार बोल कर तो देखतीं. मैं तुम्हारी कला के बीच कभी नहीं आता.’ ‘आज जानती हूं तुम कभी न आते. लेकिन उस समय कहां समझ पाई थी मैं. समझ गई होती तो आज मैं…’ ‘मैं क्या?’ ‘तुम नहीं समझोगे.’ ‘मैं तब भी नहीं समझ सकता था और आज भी नहीं समझ सकता तुम्हारी नजरों को. समझदारी जो न मिली विरासत में.’ ‘तुम गलत व्यू में ले रहे हो.’ ‘तो सही तुम्हीं बात देतीं.’ मेरी तंद्रा फिर से टूट गई जब अभिलाषा आ कर मेरे गले से लिपट गई. मैं ने अभिलाषा को भले जन्म न दिया हो लेकिन वह मेरी बेटी से बढ़ कर है. मेरी सहेली, मेरी हमराज. कुछ भी तो नहीं छिपा है अभिलाषा से. मेरी और मोहित की शादी के समय अभिलाषा 6 साल की थी. दहेज में साथ ले कर मोहित के घर आ गई थी मैं. अब मेरी दुनिया अभिलाषा ही है.

 

 

प्रतिदान: भाग 1 – कौन बना जगदीश बाबू के बुढ़ापे का सहारा

बाबू साहब, यानी बाबू जगदीश नारायण श्रीवास्तव…रिटायर्ड जिला जज, अब गांव की सब से बड़ी हवेली के एक बड़े कमरे में चारपाई पर असहाय पड़े हुए थे. उन की आंखों के कोरों में आंसू के कतरे झलक रहे थे. वे वहीं अटके रहते हैं. हर रोज ऐसा होता है, जब रामचंद्र उन्हें नहलाधुला कर, साफ कपड़े पहना कर अपने हाथों से उन्हें खाना खिला कर अपने घर के काम निबटाने चला जाता है.

आज बाबू साहब के आंसू पोंछने वाला उन का अपना कोई आसपास नहीं है, लेकिन जब वे सेवा मेें थे, तो उन के पास सबकुछ था. संपन्नता, वैभव, सफल दांपत्यजीवन, सुखी और व्यवस्थित बच्चे. उन के 2 लड़के हैं. बड़ा लड़का उन की तरह ही प्रादेशिक न्यायिक सेवा में भरती हो कर मजिस्ट्रेट हो गया और आजकल मिर्जापुर में तैनात है. छोटे लड़के ने सिविल सेवा की तैयारी की और भारतीय राजस्व विभाग सेवा में नियुक्त हो कर आजकल मुंबई में सीमा शुल्क विभाग में बतौर डिप्टी कलेक्टर लगा हुआ है. दोनों के बीवीबच्चे उन के साथ ही रहते हैं.

बलिया से जब बाबू जगदीश नारायण रिटायर हुए तो दोनों बच्चों ने कहा जरूर था कि वे बारीबारी से उन के साथ रहें, पर उन का दिल न माना. दोनों लड़कों के बीच में बंट कर कैसे रहते? इसलिए इधरउधर दौड़ने के बजाय उन्होंने गांव में एकांत जीवन जीना पसंद किया और अपने पुश्तैनी गांव चले आए, जो अब कसबे का रूप धारण कर चुका था. चारों तरफ पक्की सड़कें बन चुकी थीं. घरों में बिजली लग चुकी थी. गांव का पुराना स्वरूप कहीं देखने को नहीं मिलता था.

बाबू जगदीश नारायण ने नौकरी में रहते हुए ही अपने पुराने कच्चे मकान को ध्वस्त कर हवेलीनुमा मकान बनवा लिया था. तब पत्नी जीवित थीं. वे खुद सशक्त और अपने पैरों पर चलनेफिरने लायक थे. सुबहशाम खेतों की तरफ जा कर काम देखते थे. पिता के जमाने से घर में काम कर रहे रामचंद्र को अपने पास रख लिया था. बाहर का ज्यादातर काम वही देखता था. मजदूर अलग से थे, जो खेतों में काम करते थे. घर में घीदूध की कमी न रहे इसलिए 2 भैंसें भी पाल ली थीं.

पतिपत्नी गांव में सुख से रहते थे. जीवन में गम क्या होता है, तब बाबू साहब को शायद पता भी नहीं था. छुट्टियों में दोनों लड़के आ जाते थे. घर में उल्लास छा जाता. दोनों बेटों के भी 2-2 बच्चे हो गए थे. वे सब आते, तो लगता उन से ज्यादा सुखी और संपन्न व्यक्ति दुनिया में और कोई नहीं है.

5 साल पहले पत्नी का देहांत हो गया. बेटे आए. तेरहवीं तक रहे. जब चलने लगे तो बेमन से कहा कि गांव में अकेले कैसे रहेंगे? बारीबारी से उन के पास रहें. गांव की जमीनजायदाद बेच दें. यहां उस का क्या मूल्य है? लेकिन उन्होंने देख लिया था कि बहुएं अपनेअपने पतियों से इशारा कर रही थीं कि पिताजी को अपने साथ रखने की कोई जरूरत नहीं है.

वैसे भी अपनी बहुओं की सारी हकीकत उन्हें ज्ञात थी. वे ठीक से उन से बात तक नहीं करती थीं. करतीं तो क्या वे स्वयं नहीं कह सकती थीं कि बाबूजी, चल कर आप हमारे साथ रहें. पर दिल से वे नहीं चाहती थीं कि बूढ़े को जिंदगी भर ढोएं और महानगर की अपनी चमकदार दुनिया को बेरंग कर दें.

बेटों को बाबू साहब ने साफ मना कर दिया कि वे उन में से किसी के साथ नहीं रहेंगे क्योंकि गांव से, खासकर अपनी कमाई से बनाई संपत्ति से उन्हें खासा लगाव हो गया था. बच्चे चले गए. एक बार मना करने के बाद दोबारा बच्चों ने चलने के लिए नहीं कहा. वे स्वाभिमानी व्यक्ति थे. जीवन में किसी के सामने झुकना नहीं सीखा था. कभी किसी के दबाव में नहीं आए थे. आज बेटों के सामने क्यों झुकते?

घर में वे और रामचंद्र रह गए. रामचंद्र की बीवी आ कर खाना बना जाती. जब तक वे बिस्तर पर न जाते, रामचंद्र अपने घर न जाता. पूर्ण निष्ठा के साथ वह देर रात तक उन की सेवा में जुटा रहता. दिन भर खेतों मेें मजदूरों के साथ काम करता, फिर आ कर घर के काम निबटाता. भैंसों को चारापानी देता. हालांकि उस की बीवी घर के कामों में उस की मदद करती थी, उस का ज्यादातर काम रसोई तक ही सीमित रहता था.

बाबू साहब को मधुमेह की बीमारी थी. जिस की दवाइयां वे लेते रहते थे. अचानक न जाने क्या हुआ कि उन के हाथपांवों में दर्द रहने लगा. घुटनों तक पैर जकड़ जाते और हाथों की उंगलियां

कड़ी हो जातीं. मुट्ठी तक न बांध पाते. सुबह नींद खुलने पर बिस्तर से तुरंत

नहीं उठ पाते थे. सारा शरीर जकड़ सा जाता.

पहले बाबू साहब ने आसपास ही इलाज करवाया. कोई फायदा नहीं हुआ तो जिला अस्पताल जा कर चेकअप करवाया. डाक्टरों ने बताया कि नसों के टिशूज मरते जा रहे हैं. नियमित टहलना, व्यायाम करना, कुछ चीजों से परहेज करना और नियमित दवाइयां खाने से फायदा हो सकता है. कोई गारंटी नहीं थी. फिर भी डाक्टरों का कहना तो मानना ही था.

जब वे अस्पताल में भरती थे तो दोनों बेटे एकएक कर के आए थे. डाक्टरों से परामर्श कर के और रामंचद्र को हिदायतें दे कर चले गए. किसी ने छुट्टी ले कर उन के पास रहना जरूरी नहीं समझा. उन की बीवियां तो आई भी नहीं. उन्हें यह सोच कर धक्का सा लगा था कि क्या बुढ़ापे में अपने सगे ऐसे हो जाते हैं. अंदर से उन्हें तकलीफ बहुत हुई थी लेकिन सबकुछ समय पर छोड़ दिया.

कुछ दिन अस्पताल में भरती रह कर बाबू साहब गांव आ गए. इलाज चल रहा था. पर कोई फायदा होता नजर नहीं आ रहा था. उन के पैर धीरेधीरे सुन्न और अशक्त होते जा रहे थे. रामचंद्र उन्हें पकड़ कर उठाता, तभी वे उठ कर बैठ पाते. चलनाफिरना दूभर होने लगा. उन्होंने बड़े बेटे को लिखा कि वह आ कर उन को लखनऊ के के.जी.एम.सी. या संजय गांधी इंस्टीट्यूट में दिखा दे.

बड़ा लड़का आया तो जरूर और उन्हें के.जी.एम.सी. में भरती करवा गया. पर इस के बाद कुछ नहीं. भरती कराने के बाद रामचंद्र से बोल गया कि जब तक इलाज चले, वह बाबूजी के साथ रहे. उस की बीवी को भी लखनऊ में छोड़ दिया.

रामचंद्र अपनी बीवी के साथ तनमन से बाबू साहब की सेवा में लगा रहा. धन तो बाबू साहब लगा ही रहे थे. उस की कमी उन के पास नहीं थी. पर न जाने उन के मन में कैसी निराशा घर कर गई थी कि किसी दवा का उन पर असर ही नहीं हो रहा था. अपनों के होते हुए भी उन का अपने पास न होने का एहसास उन्हें अंदर तक साल रहा था. डाक्टरों की लाख कोशिश के बावजूद वे ठीक न हो सके और लखनऊ से अपाहिज हो कर ही गांव लौटे.

अब स्थिति यह हो गई थी कि बाबू साहब चारपाई से उठने में भी अशक्त हो गए थे. रामचंद्र अधेड़ था पर उस के शरीर में जान थी. अपने बूते पर उन्हें उठा कर बिठा देता था तो वे तकियों के सहारे बिस्तर पर पैर लटका कर बैठे रहते थे.

एक दिन नौबत यह आ गई कि वे खुद मलमूत्र त्यागने में भी अशक्त हो गए. उन्हें बिस्तर से उतार कर चारपाई पर डालना पड़ा. चारपाई के बीच एक गोल हिस्सा काट दिया गया. नीचे एक बड़ा बरतन रख दिया गया, ताकि बाबू साहब उस पर मलमूत्र त्याग कर सकें.

अब आओ न मीता- क्या सागर का प्यार अपना पाई मीता

मेरी मां को बच्चेदानी का सर्विक्स कैंसर हुआ था, क्या मुझे भी होने का रिस्क है?

सवाल

मैं 32 साल की महिला हूं. मेरी मां को बच्चेदानी का सर्विक्स कैंसर हुआ था, जिस से वे दुनिया से चल बसीं. क्या मुझे भी यह कैंसर होने का रिस्क है? अपने बचाव के लिए मैं क्याक्या उपाय कर सकती हूं?

जवाब-

यह सच है कि कुछ खासखास कैंसरों जैसे ब्रैस्ट कैंसर में मां या बहन को कैंसर होने पर स्त्री में उस कैंसर के होने का रिस्क बढ़ जाता है, पर यह जोखिम सरविक्स कैंसर के साथ नहीं देखा गया. अब तक ऐसा कोई साक्ष्य नहीं मिला है, जिस से सरविक्स कैंसर की उपज में जेनेटिक कारकों के होने की पुष्टि होती हो. अत: मां को हुए रोग को ले कर आप अनावश्यक ही यह चिंता न रखें कि कहीं आप को भी यह रोग तो नहीं हो जाएगा. बचाव के लिए अच्छा यह होगा कि आप अपने पर्सनल हाइजीन का पूरा ध्यान रखें. यदि कभी योनि से असामान्य खून आए तो उसे नजरअंदाज न करें और तुरंत गाइनोकोलौजिस्ट से सलाह लें.

बच्चों के लिए बनाएं खजूर की पैटीज

सर्दियों में अगर आप ड्राय फ्रूट्स से बना कुछ टेस्टी डिश अपने बच्चों के लिए ट्राय करना चाहती हैं तो ये रेसिपी आपके लिए परफेक्ट है. खजूर की बनी पैटीज हेल्दी के साथ-साथ टेस्टी है, जिसे आप कम समय में बनाकर अपनी फैमिली और फ्रेंड्स को खिला सकते हैं. तो आइए आपको बताते हैं खजूर की पैटीज की रेसिपी…

पैटीज के लिए हमें चाहिए

– 500 ग्राम आलू उबले व मैश किए

– 20 ग्राम आरारोट

– 4-5 हरीमिर्चें बारीक कटी

– नमक स्वादानुसार

– तलने के लिए तेल.

स्टफिंग के लिए हमें चाहिए

– 100 ग्राम खजूर बारीक कटे

– 20 ग्राम काजू बारीक कटे

– 10 ग्राम किशमिश बारीक कटी

– 10 ग्राम अनार के दाने

– 1/2 छोटा चम्मच इलायची पाउडर

– 10 ग्राम घी

– 20 ग्राम मावा.

विधि

– पैटीज और स्टफिंग की सामग्री को अलगअलग बाउल में मिला कर तैयार कर लें.

– फिर पैटीज में स्टफिंग भर लें.

– कड़ाही में तेल गरम कर पैटीज को डीप फ्राई कर गरमगरम परोसें.

सिर्फ स्वाद ही नहीं सेहत के लिए भी फायदेमंद हैं ये 6 तरह की चटनी

सर्दी हो या गर्मी हम हर मौसम में समोसे, पकौड़े या फिर भोजन के साथ चटनी खाना पसंद करते हैं. टेस्ट और शौक के हिसाब से हमारे घरों में कई तरह की चटनी बनाई जाती है. इन चटनी को हर कोई खाना पसंद करता है.

पर क्या आप जानती हैं कि घर में बनाई गई तरह तरह की यह चटनी आपको स्वस्थ बनाने में भी मददगार होती है. जी हां, चटनी केवल स्वाद बढ़ाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली चीज नहीं है बल्कि यह आपकी सेहत पर भी कई तरह के सकारात्मक प्रभाव डालती है.

आज हम आपको अलग-अलग तरह की चटनी का सेवन करने से होने वाले फायदों के बारे में बता रहे हैं.

पुदीने की चटनी

अगर आप पुदीने की चटनी खाना पसंद करती हैं और अक्सर ही अपने भोजन के साथ इसका सेवन करती हैं तो आप पाचन संबंधित बिमारियों से काफी हद तक दूर रहेंगी. ऐसा इसलिए क्योंकि पुदीने की चटनी पाचन क्रिया को बेहतर रखने में बेहद लाभदायक है. यह भूख बढ़ाने के साथ-साथ अनेक बीमारियों जैसे- मिचली, कब्ज और उल्टी आदि को ठीक करने में मददगार होता है.

आंवले की चटनी

आंवला विटामिन ‘सी’ का बेहतरीन स्रोत है. यह शरीर में रोग-प्रतिरोध क्षमता को बढ़ाने का काम करता है. इसके इस्तेमाल से त्वचा संबंधी समस्याएं नहीं होतीं. इसके अलावा आंवले की चटनी खाने से कोलेस्ट्रौल लेवल में भी कमी आती है. साथ ही यह इंसुलिन का स्राव और डायबिटीज को नियंत्रित करने में सहायता करती है.

धनिए के पत्ते की चटनी

हमारे घरों में धनिए की चटनी सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाती है. यह पाचन बढ़ाने की सर्वोत्तम दवा है. इसमें विटामिन ‘सी’ के साथ-साथ विटामिन ‘के’ भी पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है. यह ब्लड शुगर को नियंत्रित करता है. इसका सेवन आपके स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक है.

प्याज और लहसुन की चटनी

लहसुन एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-फंगल और एंटी-इन्फ्लेमेट्री गुणों से भरपूर होता है, इसलिए प्याज और लहसुन की चटनी से कब्ज और पाइल्स जैसी समस्याएं ठीक हो जाती हैं. इसके अलावा यह चटनी डायबिटीज कंट्रोल करने में भी लाभकारी है.

टमाटर की चटनी

टमाटर की चटनी में विटामिन्स और ग्लूटाथायोन काफी मात्रा में पाया जाता है. स्वस्थ जीवन के लिए टमाटर की चटनी का नियमित सेवन किया जाना चाहिए. इसमें कैंसर का इलाज करने वाले गुण पाए जाते हैं.

करी के पत्ते की चटनी

करी के पत्ते आयरन और फोलिक एसिड के बेहतरीन स्रोत होते हैं. फोलिक एसिड शरीर में आयरन को अवशोषित करने की क्षमता को बढ़ाने का काम करता है. एनीमिया से ग्रस्त लोगों के लिए करी के पत्ते की चटनी वरदान की तरह है.

 

सिद्ध बाबा: क्यों घोंटना पड़ा सोहनलाल को अपनी ही बेटी का गला?

अपनी पत्नी को भोजन ले जाते देख सोहनलाल पूछ बैठे, ‘‘यह थाली किस के लिए है?’’

‘‘क्या आप को नहीं मालूम?’’

‘‘मुझे कुछ नहीं मालूम,’’ सोहनलाल झल्ला कर बोले.

‘‘सूरदास महाराज के लिए…’’ पत्नी ने सहजता से जवाब दिया.

‘‘बंद करो उस का भोजन,’’ सोहनलाल चीखे तो पत्नी के हाथ से थाली गिरतेगिरते बची. वह आगे बोले, ‘‘पिछले 5 साल से उस अंधे के बच्चे को खाना खिला रहा हूं. उस से कह दो कि यहां से जाए और भिक्षा मांग कर अपना पेट भरे. मेरे पास कुबेर का भंडार नहीं है.’’

‘‘गरीब ब्राह्मण है. अगर उस के घर वाले न निकालते तो भला क्यों आप के टुकड़ों पर टिका रहता. इसलिए जैसे 10 लोग खाते हैं, वैसे एक वह भी सही,’’ कहते हुए पत्नी ने थाली को और मजबूती से पकड़ा और आगे बढ़ गई.

थोड़ी देर बाद जब वह सूरदास के पास से लौटी तो सोहनलाल उसे देखते ही पुन: बोल उठे, ‘‘आखिर उस अंधे से तुम्हें क्या मिलता है?’’

‘‘तुम्हें तो राम का नाम लेने की फुरसत नहीं…कम से कम वह इस कुटिया में बैठाबैठा राम नाम तो जपता रहता है.’’

‘‘यह अंधा राम का नाम लेता है? अरे, जिस की जबान हमेशा लड़खड़ाती रहती हो वह…लेकिन हां, उस ने तुम पर जरूर जादू कर दिया है…’’

‘‘तुम आदमी लोग हमेशा फायदे की बात ही सोचते हो…सूरदास महाराज कोई साधारण इंसान नहीं हैं. वे सिद्ध बाबा हैं.’’

‘‘अच्छा…लगता है, उस ने तुम्हें कोई खजाना दिला दिया है?’’ सोहनलाल की आवाज में व्यंग्य का पुट था.

‘‘खजाना तो नहीं, लेकिन जब से उन के चरण इस घर में पड़े हैं, किसी चीज की कोई कमी नहीं रही. चमनलाल की पत्नी ने एक बार बाबा से हंसते हुए पूछा था कि क्या उस के पति की पदोन्नति होगी तो सूरदासजी ने कहा कि 3 महीने के अंदर हो जाएगी.’’

‘‘तो हुई?’’

‘‘हां, हुई, दोनों पतिपत्नी तब यहां आए थे. सूरदास महाराज ने उन्हें पुन: आशीर्वाद दिया. उन्होंने महाराजजी के चरणों में 501 रुपए और एक नारियल की भेंट भी चढ़ाई.’’

 

501 का आंकड़ा सुनते ही सोहनलाल अपने स्थान से उठ खड़े हुए. उन्हें यह सब आश्चर्य लगा. विश्वास ही नहीं हो रहा था कि जिस की जबान लड़खड़ाती है, पूरा दिन सोता रहता है, गंदगी का सैलाब अपने चारों तरफ इकट्ठा किए रहता है, उस के पास इतनी बड़ी सिद्धि हो सकती है. वे एकाएक मुसकरा उठे. पत्नी इस रहस्य को न समझ सकी.

सोहनलाल ने इशारे से पूछा, ‘‘501 रुपए हैं कहां?’’ उन की पत्नी भी मुसकरा दी. इशारे से ही जवाब दिया कि वह राशि उन के पास ही है. सोहनलाल चुपचाप उठे और सूरदास के कमरे की ओर बढ़ गए. उस वक्त सूरदास जमीन पर लेटा सींक से दांत साफ कर रहा था. सोहनलाल को लगा कि जैसे सूरदास के चेहरे पर कोई विशेष आभा चमक रही हो. उन्हें लगा कि वह जमीन पर नहीं बल्कि फूलों की शैया पर लेटा हो. उन्होंने सूरदास के चरणों में अपना सिर टिका दिया, ‘‘मेरी भूल क्षमा करो महाराज. मैं आप को पहचान नहीं पाया.’’

‘‘कौन…सोहनलाल?’’ सूरदास उठ कर बैठ गया.

‘‘जी, महाराज…मैं सोहनलाल.’’

‘‘लेकिन तुम तो मुझे अंधा ही कहो. मैं कोई सिद्ध बाबा नहीं हूं. यह तो तुम्हारी पत्नी का भ्रम है.’’

‘‘भ्रम ही सही, महाराज, मैं भी चाहता हूं कि यह भ्रम हमेशा बना रहे.’’

‘‘इस से क्या होगा?’’

‘‘यह जीवन का सब से सुनहरा सुअवसर होगा.’’

‘‘मैं समझा नहीं, तुम कहना क्या चाहते हो?’’

सोहनलाल ने आराम से बगल में बैठ कर सूरदास के कंधे पर हाथ रख दिया. फिर धीरे से बोले, ‘‘देखो सूरदास, मुझे मालूम है कि तुम कोई सिद्धविद्ध नहीं हो, लेकिन मैं चाहता हूं कि तुम सिद्ध बाबा बन जाओ. इस विज्ञान के युग में भी लोग चमत्कारों पर विश्वास करते हैं.’’ ‘‘लेकिन चमत्कार होगा कैसे? और इस से फायदा क्या होगा?’’

‘‘अब सही जगह पर लौटे हो, सूरदास. अगर 100 लोग आशीर्वाद लेने आएंगे तो 10 का काम होगा ही. 10 के नाम पर 100 का चढ़ावा मिलेगा. घर बैठे धंधा खूब चलेगा… हम दोनों का आधाआधा हिस्सा होगा.’’ सूरदास के चेहरे पर चमक आ गई. उस का अंगअंग फड़क उठा. वह चहक कर बोला, ‘‘लेकिन यह सब होगा कैसे?’’ ‘‘यह काम मेरा है.’’ सूरदास की चर्चा चमनलाल की पत्नी ने अपने पड़ोसियों से की. साथ ही सोहनलाल की पत्नी ने इस बारे में अपने परिचितों को बताया.

उधर सोहनलाल ने इसे एक अभियान का रूप दे दिया. चर्चा 2-4 लोगों के बीच शुरू हुई थी लेकिन हवा शहर के आधे हिस्से में फैल गई. शाम को सूरदास के साथ सोहनलाल किसी मुद्दे पर चर्चा कर ही रहे थे कि उन की पत्नी अपने साथ 2 औरतों को ले कर आ पहुंची.

सोहनलाल उन औरतों को देखते ही एक तरफ बैठने का इशारा कर के स्वयं सूरदास के पैर दबाने लगे. सूरदास समझ गया कि कोई अंदर आया है. उस ने गंभीर स्वर में पूछा, ‘‘सोहनलाल, कौन आया है?’’

‘‘स्वामीजी, आप के भक्त आए हैं.’’

सोहनलाल की बात पूरी हुई ही थी कि दोनों महिलाएं सूरदास के पांव  छूने लगीं.

‘‘सदा सुखी रहो,’’ सूरदास ने उन के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा.

लेकिन किसी नारी का पहली बार स्पर्श पा कर उस का पूरा शरीर रोमांचित हो उठा. वह तुरंत बोला, ‘‘भगवान का दिया हुआ तो तुम्हारे पास बहुत कुछ है, लेकिन फिर भी इतनी चिंतित क्यों हो, बेटी?’’

सूरदास की बात सुन कर वृद्ध महिला, जो अपनी बहू को ले कर आई थी, आंखें फाड़फाड़ कर सूरदास की ओर देखने लगी.

‘‘स्वामीजी, ये विपिन की मां हैं, साथ में इन की बहू भी है. शादी को 7 साल हो गए हैं, लेकिन…’’

सोहनलाल की पत्नी इतना ही बोल पाई कि सूरदास ने आगे की बात पूरी कर दी, ‘‘तो क्या हुआ? विपिन अब तक बच्चा चाहता ही नहीं था. जो प्रकृति का नियम है वह तो होना ही है.’’

‘‘सच, महाराजजी,’’ विपिन की मां पूछ बैठीं.

‘‘बाबा जो कह दें उस पर तर्क की गुंजाइश नहीं रहती, मां,’’ सोहनलाल ने कहा.

उसी समय एक औरत थाली में फलफूल लिए ‘सिद्ध बाबा की जय, सिद्ध बाबा की जय’ कहती हुई अंदर आ पहुंची. सभी की निगाहों ने उसे घेर लिया. सोहनलाल के चेहरे पर मुसकराहट थिरकने लगी. उस औरत ने थाली सूरदास के सामने रखते हुए अपना माथा उस के चरणों में झुका दिया. फिर मधुर वाणी में बोली, ‘‘स्वामीजी, आप का आशीर्वाद फल गया, बहू को लड़का हुआ है. मैं आप की सेवा में कुछ फलफूल ले कर आई हूं. कृपया स्वीकार कर लीजिए.’’

विपिन की मां ने देखा कि थाली में फलफूल के अलावा भी 100-100 के कई नोट रखे हुए हैं, लेकिन सूरदास लेने से इनकार कर रहा है. साथ में यह भी कह रहा है कि मुझे इन सारी चीजों का क्या करना. मैं तो सोहनलाल की दो रोटियों से ही खुश हूं.

लेकिन वह महिला न मानी और थाली वहीं पर छोड़ कर माथा टेकते हुए बाहर निकल गई. विपिन की मां को कुछ झेंप सी हुई. चलते वक्त उन्होंने भी अपना पर्स खोला और 200 रुपए निकाल कर सूरदास के चरणों में रख दिए. फिर वह सोहनलाल की पत्नी के साथ बाहर निकल आई और बोली, ‘‘स्वामीजी ने समय तो नहीं बताया.’’

‘‘हो सकता है, अभी कुछ और समय लगे, लेकिन विपिन की मां, लड़का तो अवश्य होगा. सूरदास महाराज की वाणी असत्य नहीं कह सकती. परंतु डाक्टरी इलाज अवश्य जारी रखना.’’

वक्त ने पलटा खाया और सूरदास सिद्ध बाबा के रूप में प्रसिद्ध हो गया. उसे सिद्ध बाबा बनाने में सोहनलाल का काफी योगदान रहा. मौका देख कर सिद्ध बाबा की वाहवाही करने के लिए उस के पास दर्जनों स्त्रीपुरुष थे, जो वेश बदल कर जनता के सामने उस के पास जाते और चरणों में फलफूल के साथ हजारों रुपए और सोनेचांदी के उपहार चढ़ाने का वचन दे कर बाबा से आशीर्वाद ले आते.

सिद्ध बाबा की चर्चा अब केवल उस क्षेत्र तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि उन के चरणों में मुंबई, कोलकाता और दिल्ली से भी लोग आने लगे थे. सोहनलाल अब बहुत मालदार हो गए थे. सूरदास के लिए एक बहुत ही खूबसूरत मंदिर का निर्माण कराया गया. सोहनलाल का बंगला भी कम न था और जीप, कार का तो कहना ही क्या.

सूरदास के घर वाले पास जा कर देखते भी तो उन्हें विश्वास न होता कि क्या यह वही सूरदास है जिसे सावन की झड़ी में उन्होंने घर से बाहर निकाल दिया था. घने काले बाल, मुलायम दाढ़ी जैसे सचमुच कोई ऋषिमुनि हो. उन्हें रहस्य मालूम हो गया था, लेकिन बोल नहीं सकते थे. चारों तरफ मौन का आतंक था.

सोहनलाल की कृपा से सूरदास अब पूरी तरह से व्यभिचारी हो गया था. लड़की और शराब उस के व्यसन बन चुके थे. एक दिन धर्मशाला में रात के समय किसी स्त्री के सिसकने की आवाज उभरी. चारों तरफ अंधेरा था.

एक नारी का स्वर उभरा, ‘‘मां, ऐसे दरिंदे के पास लाई थीं मुझे. यह सिद्ध बाबा नहीं, शैतान है, शैतान. इस ने मेरी इज्जत लूट ली. मां, मैं इसे नहीं छोड़ूंगी.’’ ‘‘नहीं, बेटी,’’ मां जैसे समझाने और चुप करने की चेष्टा कर रही थी. लेकिन अंधेरे का सन्नाटा टूट चुका था, ‘‘सिद्ध बाबा के हाथ बड़े लंबे हैं. तेरी जबान काट ली जाएगी. सुबह होते ही यहां से निकल चलें, इसी में हमारी भलाई है.’’

उस वक्त सूरदास का बड़ा भाई चौकसी कर रहा था. जब उस ने यह सब सुना तो वह बुरी तरह से विचलित हो उठा. उसी वक्त उस ने निर्णय किया कि सोहनलाल को सबक सिखा कर ही रहेगा. सुबह से भीड़ आ कर सोहनलाल को घेर लेती थी. सूरदास का बड़ा भाई अलग से जा कर उस से कुछ कहना चाह रहा था कि उसी समय एक आदमी दौड़ता हुआ आया और घबराए हुए स्वर में बोला, ‘‘आप की बेटी की तबीयत काफी खराब है, मांजी ने फौरन बुलाया है.’’

सोहनलाल चुपचाप उठे और शीघ्रता से अपने बंगले की ओर चल दिए. उन की बेटी को 3-4 उलटियां हुई थीं. शायद इसी वजह से बेहोश हो गई थी.

सोहनलाल बेटी की ऐसी हालत देख कर गुस्से में पत्नी से बोले, ‘‘ऐसे मौके पर डाक्टर को टेलीफोन करना चाहिए था,’’ फिर उन्होंने खुद ही रिसीवर उठा कर डायल घुमाना ही चाहा था कि उन की पत्नी ने हाथ पकड़ लिया, ‘‘डाक्टर की आवश्यकता नहीं है.’’

‘‘क्या बात है?’’ उन्होंने गंभीरता से पूछा.

‘‘हमारी बेटी गर्भवती है.’’

‘‘क्या…?’’

सोहनलाल का चेहरा फक पड़ गया.

‘‘गर्भ सूरदास का है. उस वहशी ने हमारा घर भी नहीं छोड़ा,’’ पत्नी ने आंसू बहाते हुए कहा.

‘‘उस कुत्ते की मैं हत्या कर दूंगा. कमीने को जिस थाली में खाना खिलाया उसी में छेद कर दिया,’’ सोहनलाल यह सब एक झटके में बोल गए, लेकिन उन्हें लगा कि जैसे वह कुछ गलत बोल गए हैं.

‘नहींनहीं, सूरदास की हत्या…कभी नहीं. भला कोई सोने के अंडे देने वाली मुरगी की भी हत्या करता है,’ सोचते हुए उन के चेहरे पर मुसकराहट दौड़ने लगी. होंठ फड़फड़ाए, ‘‘गर्भपात.’’

‘‘लेकिन कैसे?’’

‘‘दुनिया बहुत बड़ी है. हम लोग कुछ दिनों के लिए बाहर चले जाएंगे.’’

‘‘लेकिन लड़की उस के लिए तैयार नहीं है.’’

एकबारगी सोहनलाल का चेहरा तमतमा उठा, ‘‘वह क्या चाहती है?’’

‘‘सूरदास से शादी.’’

‘‘बेबी…’’ सोहनलाल ने बेटी को पुकारा. फिर चुपचाप उठे और बेटी के पास जा कर बैठ गए. उस के सिर पर धीरे से हाथ रख कर बोले, ‘‘बेबी, नादानी नहीं करते, कोई भी निर्णय इतनी जल्दी नहीं लेना चाहिए.’’

‘‘पिताजी, आप ने ही तो मुझे सूरदास के हवाले किया था. फिर अब इतने परेशान क्यों हैं?’’ बेबी बोली.

‘‘क्या बकती हो? तुम्हें इतना भी नहीं मालूम कि मैं तुम्हारा बाप हूं.’’

‘‘रिश्ते अपने मूल्य क्यों खो चुके हैं पिताजी, बताइए न? मेरी सहेली क्या आप की बेटी नहीं थी?’’

‘‘बेबी, होश में आओ. तुम्हें मेरा गुस्सा नहीं मालूम.’’

‘‘पिताजी, मैं ने तो सूरदास को अपना पति मान लिया है…’’

‘‘बेबी…तुम्हें मृत्यु से डरना चाहिए.’’

‘‘नहीं पिताजी, मृत्यु से तो कायर डरते हैं.’’

सोहनलाल ने सहसा पूरी ताकत के साथ बेबी की गरदन दबोच ली तो पत्नी चिल्लाई, ‘‘यह आप क्या कर रहे हैं?’’

‘‘समय के साथ समझौता…’’

परंतु तब तक बेबी की आंखें बाहर आ गई थीं और पूरा शरीर ठंडा पड़ गया था.

कमरे में सन्नाटा फैला हुआ था. सोहनलाल की पत्नी प्रस्तर प्रतिमा बनी शून्य में निहार रही थी.

क्या आप भी रोज करती हैं बालों को स्ट्रेट

लड़कियां हमेशा लेटेस्ट फैशन ट्रेंड को फॉलो करती हैं चाहें फिर आउटफिट हो या हेयरस्टाइल. हेयरस्टाइल की बात करें तो ज्यादातर लड़कियां अपने आउटफिट के हिसाब से हेयरस्टाइल का चुनाव करती हैं.

बार-बार हेयरस्टाइल चेंज करने से बालों को नुकसान पहुंचता है खासकर स्ट्रेट करने से. लगातार स्ट्रेटनिंग करने से बाल टूटने शुरू हो जाते है. आज हम आपको स्ट्रेटनिंग करने के कुछ ऐसे नुकसान बताएंगे जिसके बाद आप अपने बाल स्ट्रेट करने से पहले एक बार जरूर सोचेंगी.

बालों की चमक

नियमित रुप से स्ट्रेटनिंग करने से बालों की प्राकृतिक चमक गायब हो जाती है. बाल रुखे और बेजान दिखाई देते हैं.

खुजली

स्ट्रेटनिंग करने से सिर की त्वचा पर बुरा असर पड़ता हैं. इसकी वजह से बालों के पोर्स खत्म हो जाते हैं जिससे बालों को मॉइश्चराइज करने के लिए पर्याप्त ऑयल नहीं मिलता. इससे बालों में खुजली जैसी समस्या पैदा हो जाती है. ऐसे में रोजाना स्ट्रेटनिंग करने से बचें.

जलन की समस्या

स्ट्रेटनिंग करने से फॉर्मलडिहाइड गैस निकलती है जो बालों को नुकसान पहुंचाती है. इसके अलावा इससे नाक, त्वचा, आंखों और फेफड़ों में जलन हो सकती है.

कमजोर बाल

रोजाना स्ट्रेटनर का इस्तेमाल करने से बाल झड़ने लगते है और कमजोर हो जाते है. इससे दोमुंहें बालों की समस्या उत्पन्न हो सकती है.

रुखे बालों की समस्या

स्ट्रेटनिंग करने से बाल रुखे हो जाते हैं. इसकी हीट से नैचुरल ऑयल खत्म हो जाता हैं जिससे बाल अनसुलझे हो जाते हैं.

गर्मियों के मौसम में दिखना चाहती हैं कुछ खास तो ट्राई करें ये ड्रेसैस

गर्मियों का मौसम आ गया है और इस मौसम में हम लोग ऐसे कपड़े पहनना चाहते हैं जो आरामदायक हो. हम लड़कियां भी अपने लुक को स्टाइलिश और सिंपल रखना चाहती हैं. इस मौसम में वो कपड़े पहने जो हल्के रंग के हों और आंखों को अच्छे लगें. इसी बात को ध्यान में रखते हुए हम आज आपके साथ शेयर कर रहे हैं 5 तरह के सूट के डिजाइन.

1) पटियाला सूट– सलवार सूट मूल रूप से पंजाब की ड्रेस है, पंजाब में हर लड़की आपकों इस ड्रेस में निल जाएगी। पटियाला सलवार में हमेशा छोटी गोल कट की कुर्ति सूट करती है. पटियाला सलवार 2 तरह की होती है सेमी पटियाला और फुल पटियाला.

2) अनारकली सूट– इस मौसम में अगर आप जॉर्जेट का बना अनारकली सूट पहनेंगी तो इसे सिंपल लैगिंग के साथ कैरी कर सरती हैं और लुक की बात है तो गर्मियां होने के कारण बाल बांधकर रख सकती हैं.

3) शरारा सूट- अगर आप हल्की फुल्की पार्टी में जा रही हैं तो शरारा कैरी कर सकती हैं. यह आपको सादगी भरा लुक मिलेगा. इसे कैरी करने में भी परेशानी नहीं होगी क्योंकि यह नीचे से खुला होता है. इसके साथ आप बालों को खोलकर हाफ क्लच कर सकती हैं.

4) अंगऱखा स्टाइल – बात अगर सूट सलवार की हो तो हमारे पास कई सारे औपशंस हैं, अंगरखा स्टाइल राजस्थान में ज्यादा चलता है. यह रजवाड़ों की परंपरा है. ये देखने में बहुत खूबसूरत लगता है और इसे आप औफिस में भी पहनकर जा सकते हैं.

5) प्लाजो कुर्ता- प्लाजो कुर्ता आजकल बहुत ज्यादा ट्रेंड में है. इसे आर आराम से डेली वियर और औफिस में पहन सकती हैं.सादी भाषा में कहें तो यह पजामें का मॉडिफाइड वर्जन है. वर्किंग वुमेंस के लिए ये ड्रेस बहुत अच्छा औब्शन है.

6) सलवार सूट- सलवार सूट एवरग्रीन ड्रेस है जिसका फैशन कभी नहीं जाता। इन्हें आप घर और बाहर दोनों जगह आराम से कैरी कर सकती हैं. अगर ट्रैवल करना है या फैमिली गेट टुगेदर में जाना है तो इससे बढ़िया और अच्छा औप्शन कुछ नहीं है.

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