द ग्रेट इंडियन कपिल शो में आखिर क्यों रो पड़े बॉबी देओल पढ़िए यहां

बौलीवुड एक्टर सनी देओल और बॉबी देओल ‘द ग्रेट इंडियन कपिल’ शो में बतौर गेस्ट पहुंचे. शो पर बातचीत के दौरान सनी ने बताया कि साल 2023 देओल परिवार के लिए बहुत अच्छा रहा. इस साल सनी के बेटे की शादी हुई, फिर उनकी फिल्म गदर 2 आई फिर धर्मेंद्र पाजी की फिल्म ‘रॉकी और रानी की प्रेम कहानी’ भी बॉक्स औफिस पर सफल हुई और इसके बाद बॉबी की एनिमल भी कामयाब रही.

सनी ने शो पर बताया कि “1960 से हम लोग लाइमलाइट में हैं, कई सालों से हम लोग कोशिश कर रहे थे, समहाउ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें, चीजें हो नहीं रही थी लेकिन फिर मेरे बेटे की शादी हुई, उसके बाद गदर आई उसके पहले पापा की फिल्म आई कुछ यकीन नहीं हो रहा था कि रब कित्थों आ गया, उसके बाद एनिमल आई फट्टे ही चक दिए.” सनी के इतना कहने भर से बॉबी की आंखों से आंसू छलक गए. इसके बाद सभी लोग खड़े हो गए और हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से सराबोर हो गया.

इसके बाद बॉबी ने कहा कि, “अगर रीयल लाइफ में कोई है स्ट्रौंग और सूपरमैन तो वो भैया हैं.” इसके अलावा शो पर बहुत फन हुआ. सनी ने सुनील ग्रोवर के साथ पंजा लड़ाया. सनी ने यह भी बताया कि धर्मेंद्र उनसे कहते हैं कि आओ मेरे साथ बैठो दोस्त बनों. मैं बोलता हूं- पापा मैं आपको दोस्त बनकर बात बताऊंगा तो आप फिर पापा बन जाते हो.”

बॉबी ने शो पर कहा कि देओल्स बहुत रोमांटिक हैं, हमारा दिल भरता नहीं है. इसके साथ ही कपिल ने बॉबी की फिल्म आश्रम को लेकर कहा कि ‘हम समझ गए जीवन का असली सुख आश्रम में ही है’. इस पर बौबी ने कहा, ‘लड्डू खाने हैं तो आ जाओ मेरे पास’. फिर कपिल ने कहा,“पाजी लड्डू खाने में किसी को कोई प्रॉब्लम नहीं है लेकिन लड्डू खाने के बाद आप जो हरकतें करते हो ना.” इस बात पर पूरे हॉल में तालियां बजने लगीं. आपको बता दें कि इससे पहले शो पर आमिर खान आए थे.

Mother’s Day 2024: पुनरागमन- भाग 1- क्या मां को समझ पाई वह

मां के कमरे से जोरजोर से चिल्लाने की आवाज सुन कर नीरू ने किताबें टेबल पर ही एक किनारे खिसकाईं और मां के कमरे की ओर बढ़ गई. कमरे में जा कर देखा तो मां कस कर अपने होंठ भींचे और आंखें बंद किए पलंग पर बैठी थीं. आया हाथ में मग लिए उन से कुल्ला करने के लिए कह रही थी. नीरू के पैरों की आहट पा कर मां ने धीरे से अपनी आंखें खोलीं और फिर आंखें बंद कर के ऐसे बैठ गईं जैसे कुछ देखा ही न हो.

नीरू को देखते ही आया दुखी स्वर में बोली, ‘‘देखिए न दीदी, मांजी कितना परेशान कर रही हैं. एक घंटे से मग लिए खड़ी हूं पर मांजी अपना मुंह ही नहीं खोल रही हैं. मुझे दूसरे काम भी तो करने हैं. आप ही बताइए अब मैं क्या करूं?’’

मां की मुखमुद्रा देख कर नीरू को हंसी आ गई. उस ने हंस कर आया से कहा, ‘‘तुम जा कर अपना काम करो, मां को मैं संभाल लूंगी,’’ और यह कहतेकहते नीरू ने मग आया के हाथ से ले कर मां के मुंह के सामने लगा कर मां से कुल्ला करने के लिए कहा. पर मां छोटे बच्चे के समान मुंह बंद किए ही बैठी रहीं. तब नीरू ने उन्हें डांट कर कहा, ‘‘मां, जल्दी करो मुझे औफिस जाना है.’’

नीरू की बात सुन कर मां ने शैतान बच्चे की तरह धीरे से अपनी आधी आंखें खोलीं और मुंह घुमा कर बैठ गईं. परेशान नीरू बारबार घड़ी देख रही थी. आज उस के औफिस में उस की एक जरूरी मीटिंग थी. इसलिए उस का टाइम पर औफिस पहुंचना बहुत जरूरी था. पर मां तो कुछ भी समझना ही नहीं चाहती थीं.

थकहार कर नीरू ने उन के दोनों गाल प्यार से थपथपा कर जोर से कहा, ‘‘मां, मेरे पास इतना समय नहीं है कि तुम्हारे नखरे उठाती रहूं. अब जल्दी से मुंह खोलो और कुल्ला करो.’’

नीरू की बात सुन कर इस बार जब मां ने कुल्ला करने के लिए चुपचाप मुंह में पानी भरा तो नीरू ने चैन की सांस ली. थोड़ी देर तक नीरू इंतजार करती रही कि मां कुल्ला कर के पानी मग में डाल देंगी पर जब मां फिर से मुंह बंद कर के बैठ गईं तो नीरू के गुस्से का ठिकाना न रहा.

गुस्से में नीरू ने मां को झकझोर कर कहा, ‘‘मां, क्या कर रही हो? मैं तो थक गई हूं तुम्हारे नखरे सहतेसहते…’’ नीरू की बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि मां ने थुर्र कर के अपने मुंह का पूरा पानी इस प्रकार बाहर फेंका कि एक बूंद भी मग में न गिर कर नीरू के मुंह पर और कमरे में फैल गया. यह देख कर नीरू को जोर से रुलाई आ गई.

रोतेरोते उस ने मां से कहा, ‘‘क्यों करती हो तुम ऐसा, क्या बिगाड़ा है मैं ने तुम्हारा? मैं अभी नहा कर साफ कपड़े पहन कर औफिस जाने के लिए तैयार हुई थी और तुम ने मेरे कपड़े और कमरा दोनों ही फिर से गंदे कर दिए. तुम दिन में कितनी बार कमरा गंदा करती हो, कुछ अंदाजा है तुम्हें? आज आया 5 बार पोंछा लगा चुकी है. अगर आया ने काम छोड़ दिया तो? मां तुम समझती क्यों नहीं, मैं अकेली क्याक्या करूं?’’ कहती हुई नीरू अपनी आंखें पोंछती मां के कमरे से बाहर चली गई.

अपने ही कहे शब्दों पर नीरू चौंक गई. उसे लगा उस ने ये शब्द पहले किसी और के मुंह से भी सुने हैं. पर कहां?

औफिस पहुंच कर नीरू मां और घर के बारे में ही सोचती रही. पिताजी की मृत्यु के बाद मां ने अकेले ही चारों भाईबहनों को कितनी मुश्किल से पाला, यह नीरू कभी भूल नहीं सकती. नौकरी, घर, हम छोटे भाईबहन और अकेली मां. हम चारों भाईबहन मां की नाक में दम किए रहते. कभीकभी तो मां रो भी पड़ती थीं. कभी पिताजी को याद कर के रोतेरोते कहती थीं, ‘‘कहां चले गए आप मुझे अकेला छोड़ कर. मैं अकेली क्याक्या करूं.’’

अरे, मां ही तो कहती थीं, ‘मैं अकेली क्याक्या करूं,’ मां तो सचमुच अकेली थीं. मेरे पास तो काम वाली आया, कुक सब हैं. बड़ा सा घर है, रुपयापैसा और सब सुविधाएं मौजूद हैं. तब भी मैं चिड़चिड़ा जाती हूं. अब मैं मां पर अपनी चिढ़ कभी नहीं निकालूंगी. मां की मेहनत से ही तो मुझे ये सबकुछ मिला है वरना मैं कहां इस लायक थी कि आईआईटी में नौकरी कर पाती.

कितनी मेहनत की, कितना समय लगाया मेरे लिए. अभी दिन ही कितने हुए हैं जब छोटी बहन मीतू ने मुझ से कहा था, ‘मां की वजह से तुम इस मुकाम तक पहुंची हो वरना हम सभी तो बस किसी तरह जी रहे हैं. हम तो चाह कर भी मां को कोई सुख नहीं दे सकते. वैसे तुम ने बचपन में मां को कितना परेशान किया है, तुम भूली नहीं होगी. अब मां इसी जन्म में अपना हिसाब पूरा कर रही हैं.’ आज लगता है कि सच ही तो कहती है मेरी बहन.

शाम को नीरू मां की पसंद की मिठाई ले कर घर गई. घर में कुहराम मचा था. आया मां के कमरे के बाहर बैठी रो रही थी और अंदर कमरे में मां जोरजोर से चिल्ला रही थीं. नीरू को देखते ही आया दौड़ कर उस के पास आई और रोतेरोते बोली, ‘‘दीदी, अब आप दूसरी आया रख लीजिए, मुझ से आप का काम नहीं हो पाएगा.’’

‘‘क्या हुआ?’’ नीरू ने परेशान हो कर पूछा, ‘‘काम छोड़ने की बात क्यों कर रही हो. मां पहले से ऐसी नहीं थीं. तुम बरसों से हमारे यहां काम कर रही हो. अच्छी तरह से जानती हो कि मां कुछ सालों से बच्चों जैसा व्यवहार करने लगी हैं. अब इस कठिन समय में अगर तुम चली जाओगी तो मैं क्या करूंगी? तुम्हारे सहारे ही तो मैं घर और औफिस दोनों संभाल पाती हूं. अच्छा चलो, मैं तुम्हारे पैसे बढ़ा दूंगी पर काम मत छोड़ना, प्लीज. मैं मां को भी समझाऊंगी.

ये लम्हा कहां था मेरा: भाग 1- क्या था निकिता का फैसला

‘‘हमारी बात मान लो न निकिता… मिल तो लो आज अभिनव से. मैनेजर है मल्टीनैशनल कंपनी में और फोटो में भी अच्छा दिख रहा है. तुम्हें पसंद आए तभी हां करना… उस के घर से फोन आया है. पापा पूछ रहे हैं क्या कहना है उन्हें?’’ मीनाक्षी अपनी बेटी से मनुहार करते हुए बोलीं.

‘‘मम्मी, शादी करने के लिए नहीं करता मेरा मन… सोचा भी नहीं जाता मुझ से शादी के बारे में… आप तो जानती हैं सब,’’ निकिता का स्वर निराशा में डूबा था.

‘‘कब तक तुम्हारी दुनिया को अंधेरे में रखेगा वह हादसा? पापा अपनेआप को कुसूरवार समझ दिनरात गमगीन रहते हैं… निकाल दो बेटा अपने दिमाग से वे सब बातें.’’

‘‘मेरी तो कुछ समझ नहीं आता कि क्या करूं मम्मी? आप जो ठीक समझें कर लें,’’ कह कर निकिता गुमसुम सी फिर लैपटौप में खो गई.

‘‘तुम कितनी समझदार हो… ठीक है बेटा, फिर बुला लेते हैं आज उन लोगों को,’’ निकिता के सिर पर प्यार से हाथ फेर मीनाक्षी उस के कमरे से निकल गईं.

अपना काम निबटा निकिता न चाहते हुए भी आज शाम पहनने के लिए कपड़ों का चुनाव करने चल दी. शादी के लिए किसी रिश्ते की बात शुरू होते ही वह अनमनी सी हो जाती थी.

मेहमानों के लिए हो रही तैयारी से घर में रौनक दिख रही थी. उसी रौनक की छाया सुदीप पर भी पड़ रही थी वरना 2 सालों से बेटी निकिता का दर्द उन्हें चैन से सोने नहीं दे रहा था.

शाम को आ गए वे लोग. औसत कदकाठी और आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी अभिनव की सादगी मीनाक्षी और सुदीप के मन में अंदर तक उतर गई. अभिनव और निकिता के बीच औपचारिक बातचीत हुई. एक नामी पब्लिशिंग हाउस में कंटैट राइटर की पोस्ट पर कार्य कर रही निकिता का गोरा रंग और खूबसूरत नैननक्श देख अभिनव के मम्मीपापा रिश्ता जोड़ने को बेताब हो रहे थे. डिनर के बाद जाते समय दोनों के मातापिता ने जल्द ही बच्चों से पूछ कर रिश्ता पक्का करने की बात कह खुशीखुशी एकदूसरे से बिदा ली.

उन के चले जाने के बाद मीनाक्षी और सुदीप अभिनव के विषय में निकिता की राय जानने को आतुर थे. निकिता सोच कर जवाब देने की बात कह अपने कमरे में चली गई. बिस्तर पर लेटते ही नींद की जगह विचारों का कारवां उसे घेरने लगा कि क्या करूं अब मना करती हूं शादी के लिए तो मम्मीपापा की परेशानी कम न कर पाने की गुनहगार बन जाती हूं. हां भी कैसे करूं? सोच कर ही सिहर उठती हूं कि अपना तन किसी को सौंप रही हूं.

मम्मीपापा का कहना है कि अभिनव समझदार लग रहा है. मैं खुश रह सकूंगी उस के साथ. पर क्या होगा अगर हर रात मुझे उस में राजन अंकल… नहीं… दरिंदा राजन दिखाई देने लगेगा… निकिता के दिमाग को एक बार फिर झकझोर गया वह दिन…

दिल्ली के नामी कालेज से एमए करने के बाद जब निकिता की प्लेसमैंट पुणे हुई तो मम्मी उस के दूर जाने की बात से चिंतित हो उठी थीं. तब पापा ने याद दिलाया कि उन के एक कुलीग राजन, जो पिछले साल नौकरी छोड़ गए थे, वहीं रह रहे हैं तो मीनाक्षी की सांस में सांस आ गई.

पुणे में निकिता के रहने की व्यवस्था एक पीजी में करवाने के बाद सुदीप निकिता को साथ ले राजन के घर पहुंच गए. राजन का इकलौता बेटा यूके में रह रहा था. राजन की पत्नी भी उन दिनों वहीं गई हुई थी. राजन ने कहा कि निकिता इसे अपना घर समझ कभी भी यहां आ सकती है. पूरा आश्वासन भी दिया था कि उस के रहते निकिता को किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं उठानी पड़ेगी.

निकिता और राजन की फोन पर कभीकभी बात हो जाती थी, लेकिन निकिता की व्यस्तता के कारण दोबारा मिलना नहीं हुआ था उन का. एक दिन निकिता के पास राजन का फोन आया कि पत्नी की तबीयत अचानक खराब हो जाने के कारण उसे यूके जाना पड़ रहा है, अत: जाने से पहले एक बार वह निकिता से मिलना चाहता है. निकिता शाम को राजन के घर चली गई.

राजन का व्यवहार उस दिन निकिता को बदलाबदला सा लग रहा था. उस के नमस्ते करने पर राजन ने उस के हाथों को अपने दोनों हाथों में ले कर चूम लिया. निकिता को यह बहुत अखर रहा था. कुछ देर बातचीत करने के बाद निकिता जाने लगी तो राजन ने कौफी पी कर जाने का आग्रह किया. फिर उसे कमरे में बैठने को कह कौफी बनाने चल दिया. कामवाली के बारे में निकिता के पूछने पर बोला कि वह आज जल्दी छुट्टी ले कर चली गई है.

कुछ देर बाद कौफी ला कर टेबल पर रख राजन निकिता के सामने बैठ गया. निकिता को चुपचाप कौफी पीते देख हंसता हुआ बोला, ‘‘अरे, कुछ तो बात करो… अच्छा बताओ, मैं कैसा लगता हूं तुम्हें?’’

निकिता को कौफी का घूंट हलक से उतारना मुश्किल हो गया.

‘‘आप अच्छे लगते हैं, अंकल,’’ कह कर वह जल्दीजल्दी कौफी पीने लगी ताकि वहां से निकल पाए. मगर तभी बैठेबैठे उसे चक्कर सा आने लगा. ‘कहीं कौफी में कुछ नशीला तो नहीं?’ सोच कर आधा भरा हुआ मग टेबल पर रख वह उठने लगी तो राजन उस के पास आ कर खड़ा हो गया.

‘‘पता नहीं तुम क्यों मुझे अंकल कह कर बुला रही हो? लोग तो कहते हैं मैं अभी भी किसी बौलीवुड हीरो से कम नहीं लगता.’’

‘‘जी… अच्छा है अगर लोग ऐसा कहते हैं, आप ने फिट रखा हुआ है अपने को,’’ घबराई हुई सी निकिता खुद को सामान्य दिखाने की कोशिश कर रही थी.

‘‘तो फिर जी नहीं चाहता मेरे पास आने का?’’ कहते हुए राजन निकिता से सट कर बैठ गया.

निकिता भीतर तक कांप उठी. इस से पहले कि हिम्मत जुटा वह उठ भागती राजन उसे अपनी गिरफ्त में ले चुका था. निकिता ने खुद को छुड़ाने की भरपूर कोशिश की, लेकिन कौफी में मिलाए गए नशीले पदार्थ के असर से वह लड़खड़ा रही थी.

‘‘पता है मुझे, तुम भी यही चाहती हो… पर झिझकती हो कहने में. तभी तो एक बार बुलाते ही दौड़ी चली आई मिलने.’’

‘‘नहीं अंकल…’’ चीख उठी थी निकिता.

‘‘औरत की न का मतलब हां होता है,’’ कहते हुए अपना वहशियाना रूप दिखा दिया राजन ने.

अपनी हवस मिटा कर राजन सोफे पर ही औधे मुंह गिर गया. निकिता अपने कपड़े व्यवस्थित कर गिरतीपड़ती पीजी लौटी तो कुछ सोचनेसमझने की स्थिति में नहीं थी. उस की सहेली अदीबा ने मीनाक्षी को फोन किया. अगले दिन सुदीप और मीनाक्षी वहां पहुंच गए. निकिता से सब सुन कर वे अवाक रह गए. क्रोध से तमतमाया सुदीप राजन के घर पहुंचा, पर वह तो यूके निकल चुका था. पुलिस में शिकायत करने से भी तब कोई लाभ नहीं था. निकिता को साथ ले दोनों टूटेबिखरे से वापस आ गए.

सुदीप और मीनाक्षी निकिता का सहारा बन उसे दिनरात समझाते रहते. लगभग 2 महीने बाद वह इस हादसे से कुछ दूर हुई तो नई नौकरी की तलाश में जुट गई.

अदीबा के भाई की दिल्ली में अच्छी जानपहचान थी. उस की मदद से

कई जगह उसे रिक्त पदों के विषय में जानकारी मिली. अंतत: एक पब्लिशिंग हाउस में बतौर कंटैंट राइटर चुन लिया गया. फिर वहां काम संभालते हुए वह खुद को व्यस्त रखने लगी.

कुछ माह बाद सुदीप और मीनाक्षी ने विवाह की बात छेड़ी तो निकिता ने साफ मना कर दिया. उस का व्यथित मन किसी को भी अपना मानने को तैयार नहीं था, पर मम्मीपापा चाहते थे कि वह सब भूल कर नई जिंदगी शुरू करे.

आज भी तो नहीं मिलना चाह रही थी निकिता अभिनव से, लेकिन पापा की निराशा भी नहीं देखी जाती थी उस से. अभिनव से मिल कर उसे बुरा भी नहीं लगता था, परंतु पतिपत्नी संबंध के विषय में सोचते ही लगने लगता था कि अपनी देह कहां छिपा लूं कि किसी पुरुष की नजर ही न पड़े उस पर. अतीत के काले दलदल में फंसी निकिता रातभर बिस्तर पर करवटें बदलती रही.

सुबह औफिस जाने लगी तो मीनाक्षी उस के जवाब के इंतजार में थीं. ‘‘अभी देर हो रही है, बाद में बात करते हैं,’’ कहते हुए वह भारी मन से औफिस चली गई.

औफिस में उस के पास अलगअलग विषयों पर लिखने के लिए कई मेल आए हुए थे, लेकिन काम में मन ही नहीं लग रहा था उस का. किसी तरह मन बना कर एक टौपिक पर सोच लिखना शुरू ही किया था कि मोबाइल बज उठा.

आगे पढ़ें- हक्कीबक्की सी निकिता बिना कुछ सोचे…

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रिस्क से अनजान यूथ के बीच बढ़ता फाइनैंस क्रेज

सोशल मीडिया में फाइनैंस इन्फ्लुएंसर्स के चलते यूथ में शेयर मार्केट और फाइनैंस की खासी नौलेज तो बढ़ी है पर अधिकतर इन्फ्लुएंसर्स अपनी वीडियो को ज्यादा से ज्यादा वायरल कराने के लिए इस से होने वाले खतरों को छिपा देते हैं.

एक साल पहले मेरे दूर के भाई के हाथ अपने पिताजी के 1990 में खरीदे शेयर्स का पेपर लगा, जिसे उन्होंने डीमैट अकाउंट में ट्रांसफर करा लिया. उन शेयरों की कीमत आज लाखों में है. उस के बाद उन्हें शेयर मार्केट से जैसे प्यार ही हो गया है. वे आएदिन मु?ो अपने शेयर मार्केट के स्क्रीनशौट भेजते रहते हैं और मु?ो भी इन्वैस्ट करने के लिए एनकरेज करते रहते हैं. यह हाल सिर्फ मेरे भाई का ही नहीं, बल्कि वर्तमान में अधिक्तर युवाओं का है.

मिलेनियम हो या जेनजी, भारत के युवाओं में सोशल मीडिया से ले कर लग्जरी लाइफस्टाइल के क्रेज के साथसाथ एक क्रेज और बढ़ रहा है और वह है फाइनैंस का क्रेज. इंटरनैट पर मौजूद तमाम फाइनैंशियल जानकारी के जरिए युवा फाइनैंशियल लिट्रेसी पा रहे हैं, जिस के कारण उन में इन्वैस्टमैंट का क्रेज भी बढ़ रहा है.

बचत से अलग अब वे इन्वैस्टमैंट में बढ़चढ़ कर भाग ले रहे हैं. सोशल मीडिया में आधा कच्चा जैसा भी ज्ञान परोस रहे फाइनैंस के इंफ्लुएसरों की भूमिका इस में खासी रही है. यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफौर्म इस में मुख्य भुमिका अदा कर रहे हैं. डीमैट अकाउंट खोलना हो या एसआईपी में निवेश करना हो, बैंकों की फाइनैंस स्कीम्स के बारे में जानना हो या कंपनियों में इन्वैस्टमैंट के बारे में जानना हो, छोटे से ले कर बड़ेबड़े यूट्यूबर आप को हर तरह की जानकारी दे रहे हैं बिना किसी ?ां?ाट के, जो समस्या भी बनती जा रही है.

आजकल लोग, खासकर युवा, यूट्यूब, इंस्टाग्राम और टैलीग्राम के माध्यम से फाइनैंस की जानकारी पा रहे हैं. यूट्यूब पर ढेरों ऐसे चैनल्स उपल्बध हैं जो फाइनैंस की एबीसीडी फ्री में मुहैया करा रहे हैं.

कोरोना के बाद से यह क्रेज और तेजी से बढ़ा है. नौकरीपेशा हो चाहे बेरोजगार युवा, सभी इन्वैस्टमैंट के बारे में जानने में इंट्रैस्टेड हैं और कहीं न कहीं से जानकारी इकट्ठा कर निवेश कर रहे हैं. बेरोजगारी इतनी है कि अपनी सेविंग को लोग अब इन्वैस्ट कर रहे हैं.

वर्तमान में देखा जाए तो पिछले वर्ष नैशनल स्टौक एक्सचेंज (एनएसई) के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी आशीष चौहान का कहना था कि वर्तमान में 17 प्रतिशत भारतीय परिवार शेयरों में निवेश कर रहे हैं. आम लोग निवेश कर रहे हैं. म्यूचुअल फंड हो या एसआईपी या फिर शेयर, कितने ही तरीके आजकल के युवा निवेश के तौर पर अपना रहे हैं, जिस से निवेशकों की संख्या बढ़ रही है.

एनएसई के माध्यम से भारतीय शेयर बाजारों में 80 मिलियन लोग पैसा लगा रहे हैं. हालांकि, यह अभी भी आबादी का एक छोटा सा हिस्सा ही है. अधिकांश नए निवेशक पिछले 2-3 वर्षों में आए हैं. मोबाइल फोन और एप्लिकेशन के माध्यम से अधिक लोग अब शेयर बाजार के माध्यम से बचत कर रहे हैं.

कोरोना के बाद से इन निवेशकों की संख्या लागातार बढ़ रही है. गुजरात, उत्तर प्रदेश से ले कर कर्नाटक तक निवेशकों ने शेयर बाजार में खूब पैसा लगाया है. उत्तर प्रदेश में निवेशकों की संख्या में रिकौर्ड बढ़ोतरी हुई. यूपी ने 2022 में गुजरात को पीछे छोड़ा और सैकंड बिग इन्वैस्टर स्टेट बन गया. मार्च 2015 में 1.24 मिलियन के मुकाबले 2025 तक यूपी से निवेश करने वालों की संख्या 9.36 मिलियन रही.

17.4 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ महाराष्ट्र टौप पर रहा. 2024 तक महाराष्ट्र में 15.3 मिलियन शेयर बाजार निवेशक थे. इन में गुजरात के 9 प्रतिशत, पश्चिम बंगाल 5.6 प्रतिशत, कर्नाटक 5.6 प्रतिशत और राजस्थान के 5.6 प्रतिशत निवशक शामिल हैं. इन 6 राज्यों से 54 प्रतिशत निवेशक हैं और यह नंबर लगातार बढ़ रहा है.

जिरोधा, ग्रो, 5 पैसे और अपस्टौक जैसे मोबाइल ऐप के माध्यम से इन्वैस्ंिटग अब आसान हो गई है. शायद शेयर मार्केट में लगातार बढ़ रहे निवेशकों का यही कारण है. स्मार्टफोन यूजर आसानी से इन ऐप्स के माध्यम से अलगअलग ब्रोकर के पास अपना डीमैट अकाउंट खोल सकते हैं और पैसा इन्वैस्ट कर सकते हैं. इन का इस्तेमाल करना भी आसान है. यही वजह है कि लोग इन का इस्तेमाल कर भी रहे हैं.

 

बहकाए भी जा रहे हैं युवा

नएनए युवा स्टौक मार्केट और इन्वैस्टमैंट के इस खेल, खासकर अपना भाग्य आजमाने में उतर रहे हैं, कभी अपनी बचत को ले कर, कभी मांबाप की जमापूंजी को ले कर तो कभी ब्याज और लोन पर पैसे ले कर. फिर अपनी जमापूंजी एक ?ाटके में डुबो देते हैं, इन्फ्लुएंसर्स के बहकावे में आकर. ये यूट्यूबर्स आप को एक दिन में घरबैठे 1,000 से 10,000 रुपए तक पैसे कमाने को इतने आसान तरीके से दिखाते हैं कि हर कोई इस में फंसता चला जाता है. हालांकि ऐसा नहीं है कि ये सब गलत ही बताते हैं लेकिन इन के वीडियोज इतने आकर्षक होते हैं कि आज का युवा इन पर आसानी से विश्वास कर लेता है.

हाल ही में सेबी (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) नें 20 लाख फौलोअर्स वाले फाइनैंस इन्फ्लुएंसर्स रविंद्र भारती को 12 करोड़ रुपए से अधिक की रकम लौटाने को कहा है, जोकि गैरकानूनी तरीके से कमाई गई है. बाजार नियामक सेबी की जांच से पता चला है कि यह शख्स शेयर बाजार प्रशिक्षण संस्थान के नाम पर एक गैर रजिस्टर्ड एडवाइजरी फर्म का संचालन कर रहा था.

10.8 लाख सब्सक्राइबर्स के साथ रविंद्र भारती के शेयर मार्केट मराठी और 8.22 लाख सब्सक्राइबर्स के साथ भारती शेयर मार्केट हिंदी नाम से 2 यूट्यूब चैनल हैं. वह एक फाइनैंस इंस्टिट्यूट भी चलाता है जहां वह शर्तों पर निवेश करने की सलाहें देता है.

सेबी के आदेश में कहा गया कि इन लोगों ने निवेशकों के विश्वास के साथ धोखा किया और व्यक्तिगत लाभ के लिए संस्था बना कर सिस्टम का दुरुपयोग किया. इन लोगों ने नियमकानूनों की अवहेलना करते हुए निवेशकों को 1,000 फीसदी तक की गारंटीकृत रिटर्न देने का वादा किया. यह पूरी तरह से इक्विटी मार्केट में निवेशकों के विश्वास का दुरुपयोग है. इस के बाद अब उसे 12 करोड़ रुपए की राशि का भुगतान करना होगा.

इन्फ्लुएंसर्स का टारगेट पैसे ले कर प्रोडक्ट्स प्रमोट करना भी होता है, जिस के चलते कभीकभी वे ऐसे प्लेटफौर्म को प्रमोट करते हैं जो फ्रौड होते हैं और लोगों को फंसाने का काम करते हैं. यूट्यूब या फिर बाकी सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर लोगों को निवेश से जुड़ी कई गलत सूचनाएं इन के द्वारा दी जाती हैं जिस के लिए ये लोग हजारों रुपए चार्ज करते हैं. वहीं, मुख्य रूप से ये इन्फ्लुएंसर्स अपने कोर्सेज बेच कर और यूट्यूब के जरिए अधिकतर पैसा कमाते हैं.

यूथ सौफ्ट टारगेट

आज युवा ?झटपट अमीर बनना चाहता है. उसे लगता है कि शेयर मार्केट ऐसी जादू की छड़ी है जहां पैसा डालो और रातोंरात अमीर बन जाओ. नया युवा बिना जानकारी के ऐसी धारणा बनाता है. वह थोड़ाबहुत कमाया दांव पर लगाता है. यह बात इन्फ्लुएंसर्स जानते हैं. वे हिंदीभाषी युवाओं को टारगेट करते हैं, क्योंकि हिंदी भाषा में फाइनैंस पर आसान जानकारी उपलब्ध हो, ऐसा कहा नहीं जा सकता. यही कारण है कि उत्तर भारत में अचानक से डीमैट अकाउंट की संख्या में खासी बढ़ोतरी देखने को मिली है. युवा इन इन्फ्लुएंसर्स की वीडियो देखता है और आंखें बंद कर के निवेश शुरू कर देता है. जहांतहां से पैसा उठाया और लगा दिया कभी स्टौक्स में, कभी क्रिप्टो में तो कभी औप्शन ट्रेडिंग में और फिर भारी लौस उठाते हैं.

इसी का उदाहरण है वाल्ड जोकि सिंगापुर स्थित क्रिप्टो ट्रेडिंग प्लेटफौर्म था. 2021 में इसे 4 लोकप्रिय फाइनैंस इन्फ्लुएंसर पी आर सुंदर, अंकुर वारिकू, अक्षत श्रीवास्तव और बूमिंग बुल्स ने प्रमोट किया. बाद में विभिन्न मीडिया रिपोर्टों के अनुसार वाल्ड ने निकासी और जमा सहित अपने सभी कामों को अचानक बंद कर दिया जिस के बाद कितने ही निवेशकों के पैसे इस में फंस गए.

रिक्स छिपाने की कला इस के अलावा, इस में कोई शक नहीं कि ये फाइनैंस इन्फ्लुएंसर देश में, खासकर युवाओं में, फाइनैंस लिट्रेसी बढ़ा रहे हैं लेकिन बात तब बहकावे की आ जाती है जब ये सिक्के के सिर्फ एक पहलू की बात करते हैं. फाइनैंस और मार्केट में ये इन्फ्लुएंसर्स केवल प्रौफिट की ही बात करते हैं.

आप किसी भी इन्फ्लुएंसर के वीडियो को देख लीजिए, अंकुर वारिकू, अक्षत श्रीवास्तव या रचना रानाडे या कोई भी और इन्फ्लुएंसर, इन्हें देख कर ऐसा लगता है कि ये आप को कुछ ही महीनों में करोड़पति बना देंगे. इन की वीडियो का बड़ा हिस्सा शेयर मार्केट से होने वाले फायदे को ले कर होता हैं. ये आप को मार्केट में होने वाले बड़ेबड़े लौसेज के बारे में नहीं बताएंगे, जिन में युवा अकसर अपनी पूरी इन्वैस्टमैंट उड़ा देते हैं.

ऐसे में युवाओं के लिए जरूरी हो जाता है कि वे फाइनैंस इन्फ्लुएंसर के बहकावे में न आ कर अपने फाइनैंस को समझा कर ही इन्वैस्ट करें. सरकारों को भी चाहिए कि वे स्कूल करिकुलम से ही बच्चों में फाइनैंस की समझ विकसित करें.

कानों में घंटियां बजने जैसी आवाजें आने का कारण और इलाज बताएं?

सवाल

मेरी उम्र 35 साल है. पिछले कुछ दिनों से कानों में घंटियां बजने जैसी आवाजें आने की समस्या हो रही है. क्या करूं?

जवाब

किसी स्वास्थ्य समस्या के कारण या लगातार अत्यधिक शोर वाले स्थान में रहने के कारण कई लोगों को कानों में यह समस्या हो जाती है, जिसे चिकित्सीय भाषा में टिन्निटस कहते हैं. अगर किसी स्वास्थ्य समस्या के कारण कानों में ये आवाजें आ रही हैं तो पहले उस का उपचार किया जाता है. जैसे इयर वैक्स के कारण कानों में ब्लौकेज हो रही है तो उसे साफ किया जाता है. कानों की रक्त नलिकाओं से संबंधित कोई समस्या है तो उसे दवा या सर्जरी के द्वारा ठीक करने का प्रयास किया जाता है. अगर उम्र बढ़ने के कारण सुनने की क्षमता प्रभावित होने से यह समस्या हो रही हो तो हियरिंग ऐड के इस्तेमाल से आराम मिलता है.

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नेहा खाती तो बहुत थी, लेकिन उस के खाने में पौष्टिक तत्त्वों की हमेशा कमी रहती थी जिस कारण किशोरावस्था में उस की ग्रोथ रुक गई थी. यही नहीं वह कोई भी काम करती तो उसे जल्दी थकान होने लगती. यह बात उस ने अपने पेरैंट्स से भी छिपाई. फिर एक दिन वह अचानक बेहोश हो गई. जब उसे अस्पताल में दाखिल किया गया तो पता चला कि उस के शरीर में आयरन की बहुत कमी है. ऐसा सिर्फ नेहा के साथ ही नहीं बल्कि बहुत सी किशोरियों के साथ होता है, जो अपने खानपान का बिलकुल ध्यान नहीं रखती हैं, जबकि इस उम्र में उन के शरीर को ज्यादा आयरन की जरूरत होती है. इसलिए उन्हें अपनी डाइट में भरपूर मात्रा में पौष्टिक तत्त्व लेने चाहिए ताकि वे स्वस्थ रहें.

क्या आप भी स्किन से जुड़े इन मिथ्स पर करती हैं भरोसा

सब तारीफ करते थे स्मेंथा के टीनएज में कदम रखने से पहले उस की स्किन की. लेकिन अब वह अपनी स्किन से परेशान रहती है. आए दिन उस पर दाने हो जाते हैं. हर तीसरा शख्स उसे दोनों की एक नई वजह के साथ एक नया उपाय भी मुफ्त में दे जाता है.

स्मेंथा भी नए-नए उपाय अपना कर परेशान हो चुकी है. इन से उस की स्किन के मुंहासे खत्म होना तो दूर, उस की स्किन रूखी होने के साथसाथ झुर्रियों से भी भर गई है. अपनी स्किन की वजह से वह हीनभावना से ग्रस्त रहने लगी है. अब तो वह भीड़ या दोस्तों की महफिल में जाने से भी कतराने लगी है.

यह सिर्फ स्मेंथा की समस्या नहीं है. अकसर टीनएज में ऐसी समस्याएं आ जाती हैं, जिन के बारे में उन्हें जानकारी तो होती है, लेकिन वह जानकारी सही नहीं होती. इसी के चलते परेशानी कम होने के बजाय बढ़ जाती है. स्किनकेयर को ले कर भी युवाओं में कई मिथ हैं, जिन पर अमल कर वे अपने ही हाथों से अपनी स्किन को नुकसान पहुंचा लेते हैं. आप के साथ ऐसा न हो, इसलिए सुनीसुनाई बातों को फौलो करने से पहले अच्छी तरह सोच लें.

1. मुंहासों पर टूथपेस्ट

अकसर चेहरे या शरीर के किसी दूसरे हिस्से पर मुंहासे होने पर लोग उस जगह टूथपेस्ट लगाने की सलाह देते हैं. लेकिन सच तो यह है कि टूथपेस्ट स्किन में मौजूद तेल को कम कर उसे रूखा बनाता है. टूथपेस्ट में ऐसे कई तत्व मौजूद होते हैं, जो आप की स्किन के मुंहासों को बढ़ाने में सहायक होते हैं. इसलिए टूथपेस्ट के बजाय किसी सौम्य आयलफ्री क्लींजर बार का इस्तेमाल करें, जो आप की स्किन की चमक खोए बिना ही मुंहासों से हटा सके.

2. ब्लैकहैड्स की वजह धूल

अगर आप सोचती हैं कि आप के चेहरे पर उभर आए ब्लैकहैड्स धूल की वजह से हैं, तो आप गलत सोचती हैं. वास्तव में ऐसा नहीं है. ब्लैकहैड्स की वजह डस्ट नहीं, बल्कि आप की स्किन में मौजूद प्राकृतिक आयल है. जब स्किन के पोर्स खुले होते हैं और टिप में हवा जा सकती है, तो वह औक्साइज्ड हो कर ब्लैकहैड्स के रूप में दिखने लगती है. इसलिए बारबार चेहरा धो कर डस्ट हटाने के बजाय कोई अच्छी आयल कंट्रोल क्रीम इस्तेमाल करें.

3. चेहरे की एक्सरसाइज

अकसर लोग इस गलतफहमी में रहते हैं कि शरीर की ही तरह चेहरे की फेशल एक्सरसाइज करने से उस की मसल्स ढीली नहीं होंगी, लेकिन सच तो यह है कि फेशल एक्सरसाइज आप के चेहरे को झुर्रियों का तोहफा दे सकती है. चेहरा शरीर का एकमात्र ऐसा हिस्सा है, जिस की मसल्स स्किन से बिना पिंगमेंट और टिशू की मदद के डायरेक्ट जुड़ी होती हैं. जब आप अपनी मसल्स पर दबाव बनाएंगे, तो वह सीधा स्किन पर पड़ेगा. यही वजह है कि जब हम फेशल एक्सप्रेशन ज्यादा देते हैं या हंसते हैं, तो उस हिस्से में लाइनें बन जाती हैं. रोजाना फेशल एक्सरसाइज आप के चेहरे को झुर्रियों से भर सकती है.

4. स्किन से जुडे़ सच

कम वसा, ज्यादा फाइबर और खूब सारा पानी स्किन को स्वस्थ रखने में सब से ज्यादा सहायक होता है.

अगर आप की स्किन धोने के बाद रूखी हो जाती है, तो पीएच संतुलन वाले साबुन या क्लींजर का इस्तेमाल करें. रूखी स्किन के लिए अल्फा हाइड्रोक्सी एसिड का इस्तेमाल भी कर सकते हैं, जो स्किन को नमी देने के साथसाथ उसे कोमल बनाता है. नियमित रूप से एएचए बेस्ड प्रोडक्ट इस्तेमाल करने से भी अच्छा परिणाम मिल सकता है.

नौन कामेडोजेनिक स्किन क्रीम का इसतेमाल करें. यह स्किन के पोर्स को बंद नहीं करती, जैसा कि दूसरी क्रीमें करती हैं.

धूप से न केवल चेहरे की स्किन बल्कि आप के होंठों की स्किन भी जल सकती है, इसलिए होंठों पर भी सन प्रोटेक्टिव लिपबाम इस्तेमाल करें.

5. काम की बातें

अपनी स्किन को जरूरत से ज्यादा न छुएं. स्किन को बारबार छूने से चेहरे पर बैक्टीरिया से संक्रमण हो सकता है, जिस से स्किन पर अधिक दाने हो सकते हैं या वह फट सकती है.

मुंहासों को दबाने से स्किन खुरच जाती है, जो बाद में भद्दे निशानों के रूप में दिखाई देती है. इसलिए इस आदत को भी दूर करें.

टीनएज लड़कियों को ज्यादा मेकअप अवाइड करना चाहिए. ज्यादा मेकअप स्किन के पोर्स को बंद कर देता है.

लड़कों को खेलकूद या ज्यादा मेहनत या पोल्यूशन वाले काम के बाद अपनी स्किन को साफ करना चाहिए, ताकि स्किन के पोर्स खुले रहें, जिस से उन में जमा पसीना, तेल या डस्ट साफ हो सके.

परिंदे को उड़ जाने दो : भाग-1

“एंड द विनर इज…….”

‘शीना, प्लीज प्लीज….शीना,’ एक अन्य प्रतिभागी का हाथ पकड़े खड़ी शीना मन ही मन कह रही थी. उस के चहरे पर घबराई हुई मुस्कान थी लेकिन दिल की धड़कनें इतनी तेज थीं कि लग रहा था मानो सीना चीरते हुए बाहर आ जाएंगी.

“एंड द विनर इज… मिस नेहा कौशिक,” नाम सुनते ही पूरा औडिटोरियम तालियों की गड़गड़ाहट से भर गया.

शीना ने चेहरे पर मुस्कान सजाए रखी और अपनी साथी प्रतिभागी को जीत की बधाई देने लगी. साथी प्रतिभागी को अब अन्य प्रतिभागियों ने भी घेरना शुरू कर दिया था. शीना फर्स्ट रनरअप आई थी, जीती होती तो इस समय शायद लोगों ने उसे घेरा हुआ होता.

अपनी मम्मी शोभा के साथ ओडिटोरियम से बाहर निकलते हुए शीना कुछ उदास दिख रही थी, सिर्फ इसलिए नहीं कि वह हार गई बल्कि इसलिए भी कि अब वह अपने दोस्तों के साथ घूमने नहीं जा पाएगी क्योंकि घूमने जाने की शर्त ही मम्मी ने यह रखी थी कि शीना मिस डीवा दिल्ली का यह कौंपीटीशन जीते.

“हे, हाय शीना, कौंगरेट्स यार,” शीना की कार के पास आ नेहा ने कहा.

“जीती तो तुम हो, फिर मु…” शीना आगे कुछ कहती उस से पहले ही उस की मम्मी ने उस की बांह पकड़ उसे चुप कराने का इशारा किया और कहने लगीं, “ओह, कोंगरेट्स नेहा, तुम ने भी काफी अच्छा परफोर्म किया.”

“अरे आंटी, थैंकयू, अब सब खूबसूरती का तो खेल नहीं होता, परफौर्मेंस भी माने रखती है, क्यों शीना?” नेहा ने शीना की तरफ देखते हुए कहा. “वैसे तुम्हें न थोड़ा पढ़नालिखना भी चाहिए, तुम्हारा जवाब तो बहुत ही बुरा था आज, हाहाहाह,” शीना के मुंह पर हंसती हुए नेहा निकल गई.

“कैसी छिपकली जैसी शक्ल है और कैंची जैसी जबान, जाने क्या देख कर क्राउन दे दिया इस को,” झल्लाकर शोभा ने कहा.

“जवाब सुन कर मम्मी. उस की बौडी भी कितनी पर्फेक्ट है और बाल देखे आप ने नैचुरली सुंदर दिखते हैं,” शीना ने उदास होते हुए कहा.

“इस बार डांस के साथसाथ तेरा सोशल साइंस का ट्यूशन भी लगवा देती हूं, अच्छेअच्छे जवाब दे पाएगी तभी,” शोभा ने कुछ सोचते हुए कहा.

“इतना बुरा जवाब था क्या मेरा?”

“बेटा, आप की प्रेरणा कौन है सवाल का जवाब ऐश्वर्या राय नहीं होता बल्कि कहा जाता है कि प्रेरणा मां है. जजेस को भावुक करने की जरूरत होती है. जहां कोई जवाब न आए वहां मां को घुसा दो, बस हो गया काम. बचपन से समझाया है फिर भी आखिर में ऐश्वर्या राय बोल कर आ गई. इतनी सुंदर शक्ल के साथ थोड़ी बुद्धि भी होती तो बात बन जाती.”

“मम्मी आप न मेरा हौसला तोड़ रही हो.”

“लोगों की माएं उन के सपने तोड़ती हैं, मैं तो फिर भी बस हौसला तोड़ रही हूं,” शोभा ने कहा और कार में जा बैठ गई. शीना भी कार में बैठी और दोनों घर के लिए निकल गईं.

शीना को 7 साल की उम्र से ही उस की मम्मी छोटेमोटे ब्यूटी पेजैंट्स में ले जाती रही हैं. अधिकतर ब्यूटी पेजैंट्स उस ने जीते ही हैं. उस के पापा डाक्टर हैं तो अपनी बेटी को भी पढ़ाई में आगे जाता देखना चाहते थे, लेकिन शोभा अपनी बेटी की खूबसूरती को यों व्यर्थ करने के पक्ष में नहीं थी. उस का कहना था कि उस की बेटी ऐश्वर्या न सही जुही चावला ही बन जाए, मिस वर्ल्ड का न सही तो एक दिन मिस इंडिया का टाइटल तो लाए.

पेजैंट्स और कुछ शूट्स से जो पैसे मिलते वे सब शोभा के पास ही रहते थे. शीना के पापा और मम्मी की अरेंज मैरिज हुई थी तो ‘शादी के बात भी प्यार हो जाता है’ का नुक्ता यहां नहीं चल पाया था और शोभा के लिए अपने पति के साथ रहना उन्हें झेलना भर था. शोभा बचपन से ही मौडल बनना चाहती थी लेकिन मम्मीपापा के ‘लोग क्या कहंगे’ के तर्क का जवाब नहीं दे पाई. कालेज के सेकंड ईयर में ही जिस लड़के से प्यार था उस से शादी करने के लिए मम्मीपापा से खूब लड़ाई की थी. नतीजा यह हुआ कि मम्मीपापा तो नहीं माने लेकिन शोभा के लिए उन के मन में जो प्यार था वो उस के प्रेमकांड के चलते कम हो गया.

कालेज का प्यार तो कालेज तक ही रहा लेकिन थर्ड ईयर में अच्छे नंबरों ने भी शोभा से मुंह मोड़ लिया. किसी अच्छे कालेज में मेरिट के आधार पर एडमिशन की नौबत तो आने से रही और इस गम में एंट्रैन्स में भी वह कुछ खास कर नहीं पाई. मम्मी के अनुसार, कालेज में जो गुल खिलाएं हैं उस के लिए अब आगे की पढ़ाई के लिए घर से तो पैसा मिलेगा नहीं, शादी करो और ससुराल जाओ. हुआ भी यही, जल्द से जल्द शादी की गई और दूसरे ही साल शीना ने जन्म ले लिया. पति से शोभा की कभी बनी नहीं, सो, शीना का एकएक खर्च उस के पापा के ऊपर था और शीना की खूबसूरती से आए पैसे शोभा के खर्च के लिए थे. क्योंकि कुछ हो न हो शोभा में स्वाभिमान तो खूब था.

घर पहुंच कर थकी हारी शीना सीधा अपने कमरे में जा लेट गई. उस ने आंखें बंद ही की थीं कि बाहर से मम्मी पापा के झगड़ने की आवाजें आने लगीं. पापा शीना के कालेज जाने की बात कर रहे थे और मम्मी का कहना था कि वह कालेज जाएगी तो डांस क्लास, सिंगिंग क्लास, जिम और शूट्स पर कौन जाएगा.

आवाजों के बीच शीना को धीरेधीरे नींद ने अपनी आगोश में घेर लिया.

अगली सुबह वह अपने कमरे से नीचे ब्रेकफास्ट के लिए आई तो मम्मी मुंह फुलाए बैठी थीं और पापा के चेहरे पर संतुष्टि की लकीरें छाई हुई थीं.

“शीना,” पापा ने कहा.

“हां, पापा,” शीना ने जवाब दिया.

“तुम्हारा फर्स्ट ईयर दो महीने पहले ही स्टार्ट हो चुका है और तुम ने उस के लिए कोई पढ़ाई स्टार्ट नहीं की है न ज्यादा क्लासेज ली हैं, तो कल से तुम रोज कालेज जाओगी और सुबह जिम, कालेज से आ कर डांस और सिंगिंग क्लास. जो एक दो शूट्स हों उन्हें वीकेंड में कर लेना. इस से आगे मुझे कुछ नहीं सुनना है.”

“ओके पापा, पर मम्मी….”

“मम्मी के कहने से कुछ नहीं होता, एक दो साल पढ़ लोगी तो कुछ नहीं बिगड़ेगा,” पापा ने कहा.

“कैसे नहीं बिगड़ेगा, कालेज में मटरगश्ती करेगी, धूप में रंग पक्का कर आएगी और पता नहीं कैसेकैसे लोगों से मिलेगी. वैसे भी मेरी बेटी सेलेब्रिटी है, ऐसे आम लोगों के साथ उठनाबैठना करेगी तो….” शोभा मुंह मटकाते हुए गुस्से में बड़बड़ाए जा रही थीं.

“तो क्या? कोई सेलेब्रिटी नहीं है तुम्हारी बेटी, दो तीन पत्रिकाओं में फोटो आ जाने से कोई सेलेब्रिटी नहीं हो जाता, इसे इतना सिर पर मत चढ़ाओ.”

“पापा, अगले महीने कालेज से ट्रिप जा रही है मैं भी जाऊं?” शीना ने मौके का फायदा उठाते हुए कहा.”

“नह…” मम्मी बोलने वाली ही थीं कि पापा ने कह दिया, “हां चले जाना.”

शीना का तो आज दिन ही बन गया था. दिन भर वह फेसपैक, हेयर मास्क, नेलपेंट आदि लगाने में व्यस्त थी. अब वह आखिर कालेज जाने वाली थी वो भी रोज. मम्मी पापा की बात इतनी जल्दी मान कैसे गईं यह उसे अब तक समझ नहीं आया था लेकिन जो भी था उसे खुशी खूब हो रही थी.

 

ताप्ती- भाग 1: ताप्ती ने जब की शादीशुदा से शादी

बहुत देर से ताप्ती मिहिम के लाए प्रस्ताव पर विचार कर रही थी. रविवार की शाम उसे अपने अकेलेपन के बावजूद बहुत प्रिय लगती थी. आज भी ऐसी ही रविवार की एक निर्जन शाम थी. अपने एकांतप्रिय व्यक्तित्व की तरह ही उस ने नोएडा ऐक्सटैंशन की एक एकांत सोसाइटी में यह फ्लैट खरीद लिया था. वह एक प्राइवेट बैंक में अकाउंटैंट थी, इसलिए लोन के लिए उसे अधिक भागदौड़ नहीं करनी पड़ी थी. कुछ धनराशि मां ने अपने जीवनकाल में उस के नाम से जमा कर दी थी और कुछ उस ने लोन ले कर यह फ्लैट खरीद लिया था.

मिहिम जो उस के बचपन का सहपाठी और जीवन का एकमात्र आत्मीय था उस के इस फैसले से खुश नहीं हुआ था. ‘‘ताप्ती तुम पागल हो जो इतनी दूर फ्लैट खरीद लिया? एक बार बोला तो होता यार… मैं तुम्हें इस से कम कीमत में घनी आबादी में फ्लैट दिलवा देता,’’ मिहिम ने कुछ नाराजगी के साथ कहा. ‘‘मिहिम मैं ने अपने एकांतवास की कीमत चुकाई है,’’ ताप्ती कुछ सोचते हुए बोली.

मिहिम ने आगे कुछ नहीं कहा. वह अपनी मित्र को बचपन से जानता था. ताप्ती गेहुएं रंग की 27 वर्षीय युवती, एकदम सधी हुई देह, जिसे पाने के लिए युवतियां रातदिन जिम में पसीना बहाती हैं, उस ने वह अपने जीवन की अनोखी परिस्थितियों से लड़तेलड़ते पा ली थी. शाम को मिहिम और ताप्ती बालकनी में बैठे थे. अचानक मिहिम बोला, ‘‘अंकल का कोई फोन आया?’’ ताप्ती बोली, ‘‘नहीं, उन क ा फोन पिछले 4 माह से स्विच्ड औफ है.’’ मिहिम फिर बोला, ‘‘देखो तुम मेरी ट्यूशन वाली बात पर विचार कर लेना. हमारे खास पारिवारिक मित्र हैं आलोक.

उन की बेटी को ही ट्यूशन पढ़ानी है. हफ्ते में बस 3 दिन. क्व15 हजार तक दे देंगे. तुम्हें इस ट्यूशन से फायदा ही होगा, सोच लेना,’’ यह कह कर जाने लगा तो ताप्ती बोली, ‘‘मिहिम, खाना खा कर जाना. तुम चले गए तो मैं अकेले ऐसे ही भूखी पड़ी रहूंगी.’’ फिर ताप्ती ने फटाफट बिरयानी और सलाद बनाया. मिहिम भी बाजार से ब्रीजर, मसाला पापड़ और रायता ले आया. मिहिम फिर रात की कौफी पी कर ही गया. मिहिम को ताप्ती से दिल से स्नेह था.

प्यार जैसा कुछ था या नहीं पता नहीं पर एक अगाध विश्वास था दोनों के बीच. उन की दोस्ती पुरुष और महिला के दायरे में नहीं आती थी. मिहिम नि:स्संकोच ताप्ती को किसी भी नई लड़की के प्रति अपने आकर्षण की बात चटकारे ले कर सुनाता तो ताप्ती भी अपनी अंदरूनी भावनाओं को मिहिम के समक्ष कहने में नहीं हिचकती थी.

जब ताप्ती की मां जिंदा थीं तो एक दिन उन्होंने ताप्ती से कहा भी था कि मिहिम और तुझे एकसाथ देख कर मेरी आंखें ठंडी हो जाती हैं. तू कहे तो मैं मिहिम से पूछ कर उस घर वालों से बात करूं?’’ ताप्ती हंसते हुए बोली, ‘‘मम्मी, आप क्या बोल रही हैं? मिहिम बस मेरा दोस्त है… मेरे मन में उस के लिए कोई आकर्षण नहीं है.’’ मम्मी डूबते स्वर में बोलीं, ‘‘यह आकर्षण ही तो हर रिश्ते का सर्वनाश करता है.’’

ताप्ती अच्छी तरह जानती थी कि मम्मी का इशारा किस ओर है. पर वह क्या करे. मिहिम को वह बचपन से अपना मित्र मानती आई है और उसे खुद भी आश्चर्य होता है कि आज तक उसे किसी भी लड़के के प्रति कोई आकर्षण नहीं हुआ… शायद उस का बिखरा परिवार, उस के पापा का उलझा हुआ व्यक्तित्व और उस की मां की हिमशिला सी सहनशीलता उसे सदा के लिए पुरुषों के प्रति ठंडा कर गई थी.

ताप्ती जब भी अपने बचपन को याद करती तो बस यही पाती, कुछ इंद्रधनुषी रंग भरे हुए दिन और फिर रेत जैसी ठंडी रातें, जो ताप्ती और उस की मां की साझा थीं. ताप्ती के पापा का नाम था सत्य पर अपने नाम के विपरीत उन्होंने कभी सत्य का साथ नहीं दिया. वे एक नौकरी पकड़ते और छोड़ते गृहस्थी का सारा बोझ एक तरह से ताप्ती की मां ही उठा रही थीं, फिर भी परिस्थितियों के विपरीत वे हमेशा हंसतीमुसकराती रहती थीं.

अपने नाम के अनुरूप ताप्ती की मां स्वभाव से आनंदी थीं, जीवन से भरपूर, दोनों जब साथसाथ चलतीं तो मांबेटी कम सखियां अधिक लगती थीं. ताप्ती ने अपनी मां को कभी किसी से शिकायत करते हुए नहीं देखा था. वे एक बीमा कंपनी में कार्यरत थीं. ताप्ती ने अपनी मां को हमेशा चवन्नी छाप बिंदी, गहरा काजल और गहरे रंग की लिपस्टिक में हंसते हुए ही देखा था.

उन के जीवन की दर्द की छाप कहीं भी उन के चेहरे पर दिखाई नहीं देती थी. ताप्ती के विपरीत आनंदी को पहननेओढ़ने का बेहद शौक था. अपने आखिरी समय तक वे सजीसंवरी रहती थीं. मगर आज ताप्ती सोच रही है कि काश आनंदी अपनी हंसी के नीचे अपने दर्द को न छिपातीं तो शायद उन्हें ब्लड कैंसर जैसी घातक बीमारी न होती. पापा से ताप्ती को कोई खास लगाव नहीं था.

पापा से ज्यादा तो वह मिहिम के पापा सुरेश अंकल के करीब थी. जहां अपने पापा के साथ उसे हमेशा असुरक्षा की भावना महसूस होती थी, वहीं सुरेश अंकल का उस पर अगाध स्नेह था. वे उसे दिल से अपनी बेटी मानते थे पर मिहिम की मां को यह अहंकारी लड़की बिलकुल पसंद नहीं थी.

बापबेटे का उस लड़की पर यह प्यार देख कर वे मन ही मन कुढ़ती रहती थीं. अंदर ही अंदर उन्हें यह भय भी था कि अगर मिहिम ने ताप्ती को अपना जीवनसाथी बनाने की जिद की तो वे कुछ भी नहीं कह पाएंगी. मिहिम गौर वर्ण, गहरी काली आंखें, तीखी नाक… जब से होश संभाला था कितनी युवतियां उस की जिंदगी में आईं और गईं पर ताप्ती की जगह कभी कोई नहीं ले पाई और युवतियों के लिए वह मिहिम था पर ताप्ती के लिए वह एक खुली किताब था, जिस से उस ने कभी कुछ नहीं छिपाया था.

मां को गए 2 महीने हो गए थे. अब पूरा खर्च उसे अकेले ही चलाना था. मिहिम अच्छी तरह से जानता था कि यह स्वाभिमानी लड़की उस से कोई मदद नहीं लेगी, इसलिए वह अतिरिक्त आय के लिए कोई न कोई प्रस्ताव ले कर आ जाता था. यह ट्यूशन का प्रस्ताव भी वह इसीलिए लाया था.

आज बैंक की ड्यूटी के बाद बिना कुछ सोचे ताप्ती ने अपनी स्कूटी मिहिम के दिए हुए पते की ओर मोड़ दी. जैसे सरकारी आवास होते हैं, वैसे ही था खुला हुआ, हवादार और एक अकड़ के साथ शहर के बीचोंबीच स्थित था. आलोक पुलिस महकमे में ऊंचे पद पर हैं. और अफसरों की पत्नियों की तरह उन की पत्नी भी 3-4 समाजसेवी संस्थाओं की प्रमुख सदस्या थीं और साथ ही एक प्राइवेट कालेज में लैक्चरर की पोस्ट पर भी नियुक्त थीं.

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ऊंची उड़ान: क्या है राधा की कहानी

जाड़े की कुनकुनी धूप में बैठी मैं कई दिनों से अपने अधूरे पड़े स्वैटर को पूरा करने में जुटी थी. तभी अचानक मेरी बचपन की सहेली राधा ने आ कर मुझे चौंका दिया.

‘‘क्यों राधा तुम्हें अब फुरसत मिली है अपनी सहेली से मिलने की? तुम ने बेटे की शादी क्या की मुझे तो पूरी तरह भुला दिया… कितनी सेवा करवाओगी और कितनी बातें करोगी अपनी बहू से… कभीकभी हम जैसों को भी याद कर लिया करो.’’

‘‘कहां की सेवा और कैसी बातें? मेरी बहू को तो अपने पति से ही बातें करने की फुरसत नहीं है… मुझ से क्या बातें करेगी और क्या मेरी सेवा करेगी? मैं तो 6 महीनों से घर छोड़ कर एक वृद्धाश्रम में रह रही हूं.’’

यह सुन कर मुझे ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरे पैरों तले से जमीन खींच ली हो. मैं चाह कर भी कुछ नहीं बोल पाई. क्या बोलती उस राधा से जिस ने अपना सारा जीवन, अपनी सारी खुशियां अपने बेटे के लिए होम कर दी थीं. आज उसी बेटे ने उस के सारे सपनों की धज्जियां उड़ा कर रख दीं…

अपने बेटे मधुकर के लिए राधा ने क्या नहीं किया. अपनी सारी इच्छाओं को तिलांजलि दे, अपने भविष्य की चिंता किए बिना अपनी सारी जमापूंजी निछावर कर उसे मसूरी के प्रसिद्ध स्कूल में पढ़ाया. उस के बाद आगे की पढ़ाई के लिए उसे दिल्ली भेजा. इस सब के लिए उसे घोर आर्थिक संकट का सामना भी करना पड़ा. फिर भी वह हमेशा बेटे के उज्ज्वल भविष्य की कल्पना कर खुशीखुशी सब सहती रही. जब भी मिलती अपने बेटे की प्रगति का समाचार देना नहीं भूलती. वह अपने बेटे को खरा सोना कहती.

मैं बहुत कुछ समझ रही थी पर उस की दुखती रग पर हाथ रखने की हिम्मत नहीं हो रही थी. मैं बात बदल कर नेहा की पढ़ाई और शादी पर ले आई. शाम ढलने से पहले ही राधा आश्रम लौट गई, पर छेड़ गई अतीत की यादों को…

उस की स्थिति मेरे मन को बेचैन किए थी. बारबार मन चंचल बन उस अतीत में विचरण कर रहा था जहां कभी मेरे और राधा के बचपन से युवावस्था तक के पल गुजरे थे.

राधा मेरे बचपन की सहेली और सहपाठी थी. उस का एक ही सपना था कि वह बड़ी हो कर डाक्टर बनेगी. अपने सपने को पूरा करने के लिए मेहनत भी बहुत करती थी. टैंथ की परीक्षा में पूरे बिहार में 10वें स्थान पर रही थी.

अपने 7 भाईबहनों में सब से बड़ी होने के कारण उस के पिता ने 12वीं कक्षा की परीक्षा समाप्त होते ही विलक्षण प्रतिभा की धनी अपनी इस बेटी की शादी कर दी. शादी के बाद उसे आशा थी कि शायद पति की सहायता से अपना सपना पूरा कर पाएगी पर उस का पति तो एक तानाशाह किस्म का था जिसे लड़कियों की पढ़ाई से चिढ़ थी. इसलिए उस ने डाक्टर बनने के रहेसहे विचार को भी तिलांजलि दे दी और अपने इस रिश्ते को दिल से निभाने की कोशिश करने लगी.

जब वह पूरी तरह अपनी शादी में रम गई, तो कुदरत ने एक बार फिर उस की परीक्षा ली. एक सड़क हादसे में उस ने अपने पति को भरी जवानी में खो दिया. वह अपने 3 वर्ष के अबोध बेटे मधुकर और अपनी बूढ़ी सास के साथ अकेली रह गई. वैधव्य ने भले ही उसे तोड़ दिया था पर उस ने अपनेआप को दीनहीन नहीं बनने दिया. हिम्मत नहीं हारी. भागदौड़ कर अपने पति के बिजनैस को संभाला पर अनुभव के अभाव में उसे सही ढंग से चला नहीं पाई. फिर भी खर्च के लायक पैसे आ ही जाते थे.

उस के पति अपने मातापिता की इकलौती संतान थे, इसलिए कोई करीबी भी नहीं था, जो उसे किसी प्रकार का संरक्षण दे. फिर भी उस कर्मठ औरत ने हार नहीं मानी. अपने बेटे के उज्ज्वल भविष्य के लिए अच्छी से अच्छी शिक्षा की व्यवस्था की.

राधा के घोर परिश्रम का ही परिणाम था कि मधुकर आज आईआईटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद अहमदाबाद के प्रसिद्ध कालेज से मैनेजमैंट की पढ़ाई पूरी कर एक मल्टीनैशनल कंपनी में काफी ऊंचे पद पर काम कर रहा था. अपने बेटे की सफलता पर गर्व से दमकती राधा की तृप्त मुसकान देख मुझे लगता अंतत: कुदरत ने उस के साथ न्याय किया. अब उस के सुख के दिन आ गए हैं पर आज स्थिति यह है कि वह वृद्धाश्रम में आ गई है. वह भी अपने बेटे की शादी के मात्र 1 साल बाद ही. यह बात मेरे गले नहीं उतर रही थी.

मेरे मन की परेशानी को नेहा ने न जाने कैसे बिना बोले ही भांप लिया था. बोली, ‘‘क्या बात है ममा, जब से राधा मौसी गई हैं आप कुछ ज्यादा ही परेशान और खोईखोई लग रही हैं?’’

‘‘मैं आज यही सोच रही हूं कि इस आधुनिक युग में शिक्षा का स्तर कितना गिर गया है कि आज के उच्च शिक्षा प्राप्त लड़के भी अपने रिश्तों को अहमियत देने के बदले पैसों के पीछे भागते हैं… इन के आचरण इतने घटिया हो जाते हैं कि न मातापिता को सम्मान दे पाते हैं न ही उन की जिम्मेदारी उठाने को तैयार होते हैं. क्या फायदा है इतने बड़ेबड़े स्कूलकालेजों में पढ़ा कर जहां के शिक्षक सिर्फ सबजैक्ट का ज्ञान देते हैं आचरण और संस्कार का नहीं.’’

‘‘ममा… आप को बुरा लगेगा पर आप हमेशा अपने संस्कारों और संस्कृति की दुहाई देती हैं और यह भूल जाती हैं कि समय में परिवर्तन के अनुसार इन में भी बदलाव स्वाभाविक है. आधुनिक युग में शिक्षा नौकरशाही प्राप्त करने को साधन मात्र रह गई है, जिसे प्राप्त करने के लिए आचरण चंद लाइनों में लिखी इबारत होती है. फिर आचरण का मूल्य ही कहां रह गया है?

शिक्षक भी क्या करें उन्हें सिर्फ लक्ष्यप्राप्ति का माध्यम मान लोग पैसों से तोलते हैं. जब मातापिता को बच्चे के आचरण से ज्यादा किताबी ज्ञान प्राप्त करने की चिंता रहती है, तो शिक्षक भी यही सोचते हैं कि भाड़ में जाएं संस्कार और संस्कृति. जिस के लिए वेतन मिलता है उसी पर ध्यान दो, क्योंकि अर्थ ही आज के समाज में लोगों का कद तय करता है. इसी सोच के कारण अर्थ के पीछे भागते लोगों के अंदर भोगविलासिता इतनी बढ़ गई है कि उन्हें उसूलों और मानवता के लिए आत्मबलिदान जैसी बातें मूर्खतापूर्ण और हास्यप्रद लगती हैं और करीबी रिश्ते व्यर्थ के मायाजाल लगते हैं, जो उन्हें मिली शिक्षा और संस्कार के हिसाब से सही हैं.

‘‘अगर आप अपने अंदर झांकिएगा तो आप को खुद अपनी बातों का खोखलापन नजर आएगा, क्योंकि पैसे और पावर के पीछे भागने की प्रेरणा सब से पहले उन्हें अपने मातापिता से ही मिलती है, जो अपने बच्चों को अच्छा व्यक्ति और नागरिक बनाने से ज्यादा इस बात को प्राथमिकता देते हैं कि उन के बच्चे शिक्षा के क्षेत्र में उच्च प्रदर्शन करें. उन के नंबर हमेशा अपने सहपाठियों की तुलना में ज्यादा हों, यहां तक कि अपने बच्चों के अभ्युत्थान के लिए अपनी सामर्थ्य से ज्यादा संसाधन प्रयोग करते हैं, जिस का बोझ कहीं न कहीं बच्चों के दिलोदिमाग पर रहता है.

‘‘मातापिता की यही लालसा शिक्षा के रचनात्मक विकास के बदले तनाव, चिंता और आक्रोश का कारण बनती है और कभीकभी आत्महत्या का भी. ममा, क्या अब भी आप को लगता है कि सारा दोष इस नई पीढ़ी का ही है? अगर लड़कियां रिश्तों से ज्यादा अपने कैरियर को अहमियत दे रही हैं तो इस में उन की क्या गलती है? उन की यह सोच उन के अपने ही मातापिता और बदलते समय की देन है.’’

‘‘पुरुष तो वैसे भी भावनात्मक तौर पर इतने अहंवादी होते हैं कि अपने कैरियर को परिवार के लिए विराम देने की बात सोच भी नहीं सकते, तो लड़कियां ही सारे त्याग क्यों करें? यह आपसी टकराव सारे रिश्तों की धज्जियां उड़ा रहा है… इस स्थिति को आपसी समझदारी से ही सुलझाया जा सकता है, नई पीढ़ी को कोसने से नहीं.’’

‘‘चुप क्यों हो गई और बोलो. नैतिक मूल्यों को त्याग सिर्फ भौतिक साधनों से लोगों को सुखी बनाने की बातें करो. यही संस्कार मैं ने तुम्हें दिए हैं कि समाज और परिवार को त्याग, प्यार, ममता और मानवता के लिए कुछ कर गुजरने की भावना को भूल सिर्फ अपने लिए जीने की बातें करो जैसे मधुकर ने अपने सुखों के लिए अपनी वृद्ध मां को वृद्धाश्रम भेज दिया. मुझे पता है भविष्य में तुम भी मधुकर के नक्शेकदम पर चलोगी, क्योंकि मधुकर कभी तुम्हारा बैस्ट फ्रैंड हुआ करता था.’’

‘‘जहां तक मेरी बात है ममा वह तो बाद की बात है, अभी तो मेरी पढ़ाई भी पूरी नहीं हुई है. पर एक बात जरूर है कि राधा मौसी के वृद्धाश्रम जाने की बातें सुन मधुकर से आप को ढेर सारी शिकायतें हो गई हैं. पर जैसे आप राधा मौसी को समझती हैं मैं मधुकर को समझती हूं. सच कहूं तो राधा मौसी अपनी स्थिति के लिए स्वयं जिम्मेदार हैं. कभी आप ने सोचा है संतान का कोई भी कर्म सफलता या विफलता सब कहीं न कहीं उस के मातापिता की सोच और परवरिश का परिणाम होता है? वह राधा मौसी ही थीं, जिन्हें कभी जनून था कि उन का बेटा हमेशा अव्वल आए. वह इतनी ऊंची उड़ान भरे कि कोई उस के बराबर न आने पाए. नातेरिश्तेदार सब कहें कि देखो यह राधा का बेटा है जिसे राधा ने अकेले पति के बिना भी कितने ऊंचे पद पर पहुंचा दिया, जहां विरले ही पहुंच पाते हैं.

‘‘आप को याद है ममा… याद कैसे नहीं होगा, राधा मौसी अपना हर फैसला तो आप की सलाह से ही लेती थीं. मधुकर की दादी यमुना देवी जीवन की अंतिम घडि़यां गिन रही थीं. उन के प्राण अपने बेटे की अंतिम निशानी मधुकर में अटके हुए थे. बारबार उसे बुलवाने का अनुरोध कर रही थीं. उस समय मधुकर दिल्ली में आईआईटी की प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहा था. पर राधा मौसी ने उसे पटना बुलाना जरूरी नहीं समझा. उन का कहना था कि अगर वह फ्लाइट से भी आएगा तो भी 2 दिन बरबाद हो जाएंगे और फिर दादी को देख डिस्टर्ब हो जाएगा वह अलग. उन्होंने यमुना देवी के बीमार होने तक की सूचना मधुकर को नहीं दी, क्योंकि मधुकर भी अपनी दादी से बेहद प्यार करता था. यहां तक कि यमुना देवी का देहांत हो गया, तब भी मधुकर को सूचित नहीं किया.

‘‘मधुकर का जब आईआईटी में चयन हो गया और वह पटना आया तब उसे पता चला कि उस की दादी नहीं रहीं. वह देर तक फूटफूट कर रोता रहा, पर राधा मौसी अपनी गलती मानने के बदले अपने फैसले को सही बताती रहीं. ऐसा कर मधुकर के अंदर स्वार्थ का बीज तो खुद उन्होंने ही डाला. अब वह हर रिश्तेनाते और अपनी खुशी तक को भुला सिर्फ अपने कैरियर पर ध्यान दे रहा है, तो क्या गलत कर रहा है? मां का ही तो अरमान पूरा कर रहा है?

‘‘मधुकर राधा मौसी की कसौटी पर पूरी तरह खरा उतरा. उस ने अपनी मां की सभी इच्छाएं पूरी कीं. उस के बदले वह अपनी मां से सिर्फ इतना ही चाहता था कि जिस लड़की से वह प्यार करता है, उस के साथ राधा मौसी उस की शादी करवा दें.

‘‘उस की बात मानने के बदले राधा मौसी ने हंगामा बरपा दिया, क्योंकि उन्हें जनून था कि उन की बहू भी ऐसी हो, जो नौकरी के मामले में उन के बेटे से कतई उन्नीस न हो. मधुकर जिस से प्यार करता था वह लड़की अभी पढ़ ही रही थी. अपनी महत्त्वाकांक्षा के आगे उन्होंने मधुकर की एक नहीं सुनी. न ही उस की खुशियों का खयाल किया. उन्होंने साफसाफ कह दिया कि वह मखमल में टाट का पैबंद नहीं लगने देंगी. उन्होंने अपनी जान देने की धमकी दे मधुकर को फैसला मानने पर मजबूर कर दिया और उस की शादी अपनी पसंद की लड़की रश्मि से करवा दी.

‘‘अपनी सोच के अनुसार उन्होंने अपने बेटे के जीवन को एक नई दिशा दी, अपनी सारी इच्छाएं पूरी कीं पर अब हाल यह है कि बेटाबहू दोनों काम के बोझ तले दबे हैं. कभी मधुकर घर से महीने भर के लिए बाहर रहता है, तो कभी रश्मि, तो कभी दोनों ही. एकदूसरे के लिए भी दोनों न समय निकाल पा रहे हैं न ही परिवार बढ़ाने के बारे में सोच पा रहे हैं. फिर राधा मौसी के लिए वे कहां से समय निकालें? दोनों में से कोई भी अपनी तरक्की का मौका नहीं छोड़ना चाहता है. रश्मि वैसे अच्छी लड़की है पर अपने कैरियर से समझौता करने के लिए किसी भी शर्त पर तैयार नहीं है. यह सोच उस को अपनी मां से मिली है. वह अपने मातापिता की इकलौती संतान है. बचपन से ही उस में यह जनून इसलिए भरा गया था कि लोगों को दिखा सकें कि उन की बेटी किसी के लड़के से कम नहीं है.

‘‘दुनिया चाहे कितनी भी बदल जाए पर ममा किसी रिलेशनशिप में सब से बड़ी होती है आपसी अंडरस्टैंडिंग. अगर हम अपने नजरिए से सोचते हैं, तो वह अपने लिए सही हो सकता है पर दूसरों के लिए जरूरी नहीं कि सही हो. आप को अच्छा नहीं लगेगा पर राधा मौसी ने अपना हर फैसला खुशियों को केंद्र में रख कर लिया, जो उन के लिए जरूर सही था पर मधुकर के लिए नहीं. अपने फैसले का परिणाम वे खुद तो भोग ही रही हैं, कहीं न कहीं मधुकर भी अपने प्यार को खो देने का गम भुला नहीं पा रहा है.’’

नेहा की बातें सुन मैं हतप्रभ रह गई. वास्तव में हम अपने बच्चों में कैरियर को ले कर ऐसा जनून भर देते हैं कि पूरी उम्र उन की जिंदगी मशीन बन कर रह जाती है.

नेहा के अत्यधिक बोलने और आंखों में अस्पष्ट असंतोष और झिझक देख मेरे दिमाग में बिजली सी कौंध गई. मैं अपने को रोक नहीं सकी. बोली, ‘‘कहीं मधुकर तुम से तो प्यार नहीं करता था?’’

मेरी बात सुन वह पल भर को चौंकी, फिर अचानक उठ खड़ी हुई जैसे अपने मन की वेदना को संभाल नहीं पा रही हो और मेरे गले से आ लगी. उस की आंखों से आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा. आज पहली बार मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ.

पश्चिमी सभ्यता की चकाचौंध में हमारी आंखें इस कदर चौंधियां गई हैं कि हम समृद्धि और ऐशोआराम की चीजों को ही अपनी सच्ची खुशी समझने लगे हैं, हालांकि जल्द ही हमें इन से ऊब होने लगती है. अगर हम गहराई से देखें तो यही विलासिता आगे चल कर अकेलेपन और सामाजिक असुरक्षा का कारण बनती है. नई पीढ़ी के इस भटकाव का कारण कहीं न कहीं उस के मातापिता ही होते हैं. फिर मैं उस के बाल सहलाते हुए बेहद आत्मीयता से बोली, ‘‘मैं मानती हूं कि बड़ों की गलतियों की बहुत बड़ी सजा तुम दोनों को मिली, फिर भी अब तो यही कहूंगी कि अतीत को भुला आगे बढ़ने में ही सब की भलाई है. तुम्हारी मंजिल कभी मधुकर था, अब नहीं है तो न सही, मंजिलें और भी हैं. अब से तुम्हारी मां तुम्हारे हर कदम में तुम्हारे साथ है.’’

Mother’s Day Special- अधूरी मां- भाग 3: क्या खुश थी संविधा

तुम्हारे भैया तो दिन में न जाने कितनी बार औफिस से फोन कर के उस की आवाज सुनाने को कहते हैं. शाम 4 बजे तक सारा कामकाज मैनेजर को सौंप कर घर आ जाते हैं. रात को खाना खा कर सभी दिव्य को ले कर टहलने निकल जाते हैं. दिव्य के आने से मेरे घर में रौनक आ गई है. इस के लिए संविधा तुम्हारा बहुतबहुत धन्यवाद. संविधा, अरेअरे दिव्य… संविधा मैं तुम्हें फिर फोन करती हूं. यह तेरा बेटा जो भी हाथ लगता है, सीधे मुंह में डाल लेता है. छोड़…छोड़…’’

इस के बाद दिव्य के रोने की आवाज आई और फोन कट गया.

‘‘यह भाभी भी न, दिव्य अब मेरा बेटा कहां रहा. जब उन्हें दे दिया तो वह उन का बेटा हुआ न. लेकिन जब भी कोई बात होती है, भाभी उसे मेरा ही बेटा कहती हैं. पागल…’’ बड़बड़ाते हुए संविधा ने फोन मेज पर रख दिया.

इस के बाद मोबाइल में संदेश आने की घंटी बजी. ऋता ने व्हाट्सऐप पर दिव्य का फोटो भेजा था. दिव्य को ऋता की मम्मी खेला रही थीं. संविधा आनंद के साथ फोटो देखती रही. ऋता का फोन नहीं आया तो संविधा ने सोचा, वह रात को फोन कर के बात करेगी.

इसी बीच संविधा को कारोबार के संबंध में विदेश जाना पड़ा. विदेश से वह दिव्य के लिए ढेर सारे खिलौने और कपड़े ले आई. सारा सामान ले कर वह ऋता के घर पहुंची.

ऋता ने उसे गले लगाते हुए पूछा, ‘‘तुम कब आई संविधा?’’

‘‘आज सुबह ही आई हूं. घर में सामान रखा, फ्रैश हुई और सीधे यहां आ गई.’’

पानी का गिलास थमाते हुए ऋता ने पूछा, ‘‘कैसी रही तुम्हारी कारोबारी यात्रा?’’

‘‘बहुत अच्छी, इतना और्डर मिल गया है कि 2 साल तक फुरसत नहीं मिलेगी,’’ बैड पर सामान रख कर इधरउधर देखते हुए संविधा ने पूछा, ‘‘दिव्य कहां है, उस के लिए खिलौने और कपड़े लाई हूं?’’

‘‘दिव्य मम्मी के साथ खेल रहा है. तभी दिव्य को ले कर सुधा आ गईं शायद उन्हें संविधा के आने का पता चल गया था. संविधा ने चुटकी बजा कर दिव्य को बुलाया, ‘‘देख दिव्य, तेरे लिए मैं क्या लाई हूं.’’

इस के बाद संविधा ने एक खिलौना निकाल कर दिव्य की ओर बढ़ाया. खिलौना ले

कर दिव्य ने मुंह फेर लिया. इस के बाद संविधा ने दिव्य को गोद में लेना चाहा तो वह रोने लगा.

इस पर ऋता ने कहा, अरे, यह तो रोने लगा.

वह क्या है न संविधा, यह किसी भी अजनबी के पास बिलकुल नहीं जाता.

संविधा ने हाथ खींच लिए तो दिव्य चुप हो गया. संविधा उदास हो गई. उस का मुंह लटक गया. वह कैसे अजनबी हो गई, जबकि असली मां तो वही है. संविधा जो कपड़े लाई थी, अपने हाथों से दिव्य को पहनाना चाहती थी. लेकिन ऐसा नहीं हो सका. कुछ देर बातें कर के वह सारा सामान भाभी को दे कर वहां से निकली तो सीधे मां के घर चली गई. वहां मां के गले लग कर रो पड़ी कि वह अपने ही बेटे के लिए अजनबी हो गई.

रमा देवी ने संविधा के सिर पर हाथ फेरते हुए समझाया कि वह जी न छोटा करे, दिव्य थोड़ा बड़ा होगा तो खुद ही उस के पास आने लगेगा. उस से अपनी खुशी भाईभाभी को दी है, इसलिए अब उसे अपना बेटा मान कर मन को दुखी न करे. इस के बाद संविधा को पानी पिला कर उस के कारोबार और विदेश की यात्रा के बारे में बातें करने लगीं तो संविधा उत्साह में आ गई.

कारोबार में व्यस्त हो जाने की वजह से संविधा को किसी से मिलने का समय नहीं मिल रहा था. सात्विक अब अकसर बाहर ही रहता था. फोन पर ही ऋता संविधा को दिव्य के बारे में बताती रहती थी कि आज उस ने यह खाया, ऐसा किया, यह सामान तोड़ा. मम्मी तो उस से बातें भी करने लगी हैं. अगर वह राजन के पास होता है तो वह उसे किसी दूसरे के पास नहीं जाने देते. जिस दिन दिव्य बैड पकड़ कर खड़ा हुआ और 4-5 कदम चला, ऋता ने उस का वीडियो बना कर संविधा को भेजा.

अब तक दिव्य 10 महीने का हो गया था. 2 महीने बाद उस का जन्मदिन आने वाला था. सभी उत्साह में थे कि खूब धूमधाम से जन्मदिन मनाया जाएगा. जन्मदिन मनाने में मदद के लिए संविधा को भी एक दिन पहले आने को कह दिया गया था. जब भी ऋता और संविधा की बात होती थी, ऋता यह बात याद दिलाना नहीं भूलती थी. संविधा भी खूब खुश थी.

उस दिन मीटिंग खत्म होने के बाद संविधा ने मोबाइल देखा तो ऋता की 10 मिस्डकाल्स थीं. इतनी ज्यादा मिस्डकाल्स कहीं मम्मी…? उस के मन में किसी अनहोनी की आशंका हुई. संविधा ने तुरंत ऋता को फोन किया.

दूसरी ओर से ऋता के रोने की आवाज आई. रोते हुए उस ने कहा, ‘‘कहां थीं तुम…कितने फोन किए… तुम ने फोन क्यों नही उठाया?’’

‘‘मीटिंग में थी, ऐसा कौन सा जरूरी काम था, जो इतने फोन कर दिए?’’

‘‘दिव्य को अस्पताल में भरती कराया है,’’ ऋता ने कहा.ॉ

संविधा ने तुरंत फोन काटा और सीधे अस्पताल जा पहुंची. दिव्य तमाम नलियों से घिरा स्पैशल रूम में बैड पर लेटा था. नर्स उस की देखभाल में लगी थी. डाक्टर भी खड़े थे.

वह अंदर जाने लगी तो ऋता ने रोका, ‘‘डाक्टर ने अंदर जाने से मना किया है.’’

‘‘क्या हुआ है दिव्य को?’’ संविधा ने पूछा.

‘‘कई दिनों से बुखार था. फैमिली डाक्टर से दवा ले रही थी. लेकिन बुखार उतर ही नहीं रहा था. आज यहां ले आई तो भरती कर लिया. अब ठीक है, चिंता की कोई बात नहीं है.’’

संविधा सोचने लगी, इतने दिनों से बुखार था, राजन ने ध्यान नहीं दिया. यह इन का अपना बेटा तो है नहीं. इसीलिए ध्यान नहीं दिया. खुद पैदा किया होता तो ममता होती. मेरा बच्चा है न, इसलिए इतनी लापरवाह रही. आज कुछ हो जाता, तो… संविधा ने सारे काम मैनेजर को समझा दिए और खुद अस्पताल में रुक गई बेटे की देखभाल के लिए. ऋता ने उस से बहुत कहा कि वह घर जाए, दिव्य की देखभाल वह कर लेगी, पर संविधा नहीं गई. उस की जिद के आगे ऋता को झुकना पड़ा.

अगले दिन किसी जरूरी काम से संविधा को औफिस जाना पड़ा. वह औफिस से लौटी तो देखा ऋता दिव्य के कमरे से निकल रही थी.

संविधा ने इस बारे में डाक्टर से पूछा तो उस ने कहा, ‘‘मां को तो अंदर जाना ही पड़ेगा. बिना मां के बच्चा कहां रह सकता है.’’

संविधा का मुंह उतर गया. मां वह थी.  अब उस का स्थान किसी दूसरे ने ले लिया था. वह दिव्य को देख तो पाती थी, लेकिन बीमार बेटे को गोद नहीं ले पाती थी. इसी तरह 2 दिन बीत गए. रोजाना शाम को सात्विक भी अस्पताल आता था. ऋता बारबार संविधा से निश्ंिचत रहने को कहती थी, लेकिन वह निश्ंिचत नहीं थी. अब वह दिव्य को पलभर के लिए भी आंखों से ओझल नहीं होने देना चाहती थीं. 5वें दिन डाक्टर ने दिव्य को घर ले जाने के लिए कह दिया.

सभी रमा देवी के घर इकट्ठा थे. संविधा ने दिव्य को गोद में ले कर कहा, ‘‘मैं ने इसे जन्म दिया है, इसलिए यह मेरा बेटा है. यह मेरे साथ रहेगा.’’

‘‘तुम्हारा बेटा कैसे है? मैं ने इसे गोद लिया है,’’ ऋता ने तलखी से कहा, ‘‘तुम इसे कैसे ले जा सकती हो?’’

‘‘कुछ भी हो, अब मैं दिव्य को तुम्हें नहीं दे सकती. तुम उस की ठीक से देखभाल नहीं कर सकी.’’

‘‘बिना देखभाल के ही यह इतना बड़ा हो गया? एक बार जरा…’’

‘‘एक बार जो हो गया, अब वह दोबारा नहीं हो सकता, ऐसा तो नहीं है.’’

‘‘अब तुम्हारा कारोबार कौन देखेगा… इसे दिन में संभालोगी औफिस कौन देखेगा?’’

‘‘तुम्हें इस सब की चिंता करने की जरूरत नहीं है. कारोबार मैनेजर संभाल लेगा तो औफिस सात्विक. मेरे कारोबार और औफिस के लिए तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है. कुछ भी हो, अब मेरा बेटा मेरे पास ही रहेगा.’’

ऋता और संविधा को लड़ते देख सब हैरान थे. ननदभौजाई का प्यार पलभर में

खत्म हो गया था. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कोई किसी को क्या कह कर समझाए. ऋता ने धमकी दी कि उस के पास दिव्य को गोद लेने के कागज हैं तो संविधा ने कहा कि उन्हीं को ले कर देखती रहना.

ऋता ने दिव्य को गोद में लेने के लिए हाथ आगे बढ़ाए तो राजन ने उस के हाथ थाम लिए. उसे पकड़ कर बाहर लाया और कार में बैठा दिया. ऋता रो पड़ी. राजन ने कार बढ़ा दी. राजन ने ऋता को चुप कराने की कोशिश नहीं की.

रास्ते में ऋता के मोबाइल फोन की घंटी बजी. ऋता ने आंसू पोंछ फोन रिसीव किया, ‘‘बहुतबहुत धन्यवाद भाई साहब, मेरी योजना किसी को नहीं बताई इस के लिए आभार, क्योंकि उस समय संविधा को गर्भपात न कराने का दबाव डालने के बजाय यह उपाय ज्यादा अच्छा था, जो सफल भी रहा.’’

राजन ने ऋता की ओर देखा, उस आंखों में आंसू तो थे, लेकिन चेहरे पर कोई पछतावा नहीं था.

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