Mother’s Day 2024: मां को फील कराना चाहते हैं स्पेशल तो इन तरीकों से करें मदर्स डे सेलिब्रेट

मां एक ऐसा शब्द जिसे ममता की मूरत कहा जाता है. मां वो है जो खुद हजार दुख सहती है लेकिन अपने बच्चों पर आंच ना आने पाए उसके लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाती है. उसके मन में चल रही हजारों कुंठओं के बाद भी वह चेहरे पर एक भी शिकन नहीं आने देती और हमेशा एक प्यारी सी मुस्कान उसके चेहरे पर बनी रहती है. वैसे तो हर दिन मां के होता है लेकिन इस मदर्स डे पर हम आपको अपनी मां को स्पेशल फील कराने के तरीके बता रहे हैं.

बनाएं पसंद का खाना : मम्मी को खुश करने के लिए इस दिन उनकी पसंद का खाना बनाएं. उन्हें रसोई में ना जाने दें, उन्हें मिठाई में कुछ खास बनाकर दें जैसे खोये की बर्फी, बेसन के लड्डू, गुण के शक्कर पारे या कोई भी ऐसी चीज जिसे वे शौक से और आनंद के साथ खाएं.

गिफ्ट करें उनकी पसंदीदा ज्वेलरी : मदर्स डे पर मां को उनकी पसंद की ज्वेलरी शॉप पर ले जाकर सोने, चांदी, हीरा आदि रत्नों से जुड़ी ज्वेलरी भी दिला सकते हैं.

मां को दें स्पेशल लुक : प्यारी सी मां को इस दिन कुछ स्पेशल लुक दे. उन्हें रोजमर्रा से अलग कुछ पहनाएं या उनकी पसंदीदा साड़ी पर खुद से प्रेस करें और पहनाएं। इस दिन उनका सारा साजोश्रृंगार करें और उन्हे यह अहसास कराएं कि आप हैं तो हम हैं.

मां को उनके बीते बचपन की याद दिलाएं :  उन्हें बिना बताए उनके मायके लेकर जाएं या मामा जी, मौसी जी और उनकी सहेलियों को उन्हें बिना बताए घर पर बुलाएं और एक सरप्राइज दें.

भेजे डेट पर: आप अपनी मम्मी को पापा के साथ एक डिनर या लंच डेट पर भी भेज सकती हैं. जिससे उन्हें अपने युवास्था के दिन याद आएं

घर पर बनाएं केक : मदर्स डे पर मम्मी के लिए घर पर केक बनाएं एक पूरे कमरे को सजाकर उन्हें आंखों पर पट्टी बांधकर लेकर आएं और स्पेशल फील कराएं.

मां के जैसे तैयार हों :  घर पर जितनी भी लड़कियां और औरतें हैं वो अपनी मम्मी की तरह तैयार हो और उनकी मिमिक्री करके उनके स्पेशल होने का आभास कराएं.

तोहफे में दे सकते हैं पौधा:  इस दिन एक पौधा खरीदकर लाए और मां के साथ बागवानी करने में उनकी मदद करें. इस पौधे को रोज पानी दें और उसका ध्यान रखें.

हाथों से बुने स्वेटर : मां के लिए आप हाथों से बुना हुआ स्वेटर और पैरों में पहनने वाले मोजे भी बनाकर दे सकती हैं. जिससे उन्हें लगे कि आप उनका कितना ध्यान रखते हैं या जमीन पर बैठने वाला आसन बुनकर बना सकती हैं.

इलेक्ट्रौनिक गैजेट्स: अगर आपकी मां को गाने सुनने का शॉक है तो पॉकेट एफएम, आईपॉड या सारेगामा करवां भी गिफ्ट कर सकते हैं.

प्लैन करें वेकेशन: घर और बाहर के सारे कामों से इस दिन मां को छुट्टी देकर उनके लिए वेकेशंस भी प्लान कर सकती हैं. उन्हें किसी भी हिल स्टेशन पर लेकर जा सकती है. उनके साथ लौंग ड्राइव पर भी ले जा सकते हैं. उन्हें हवाई यात्रा भी करा सकती हैं.

जानिए कितने प्रकार की होती हैं बेल्ट ट्राई करें डिफरेंट स्टाइल

अक्सर हम लोग जब बाहर जाने के लिए तैयार होने लगते हैं तो कपड़े, जूते और ज्वेलरी तो डिसाइड कर लेते हैं लेकिन इन सबमें सबसे जरूरी होती है बेल्ट जिसे हम इग्नोर बिल्कुल भी नहीं कर सकते. आज हम आपको बेल्ट के ही कुछ प्रकार बताने जा रहे हैं.

1. ब्रेडिड बेल्ट- इस बेल्ट में लेदर को गुथकर बनाया जाता है. इन्हें आप फॉर्मल वीयर में पहन सकती हैं और कैजुअल वीयर में भी पहन सकती हैं. यह ज्यादातर वन पीस ड्रेस और फॉर्मल पैंट्स में सूट करती है.

2.कौटन बेल्ट- यह बेल्ट कॉटन से बनी होती है. इसे आप नाइट वियर और फ्रॉक्स के साथ कैरी कर सकती हैं. यह सादे कॉटन के कपड़ों से गूथकर और सिलकर बनाई जाती है.

3. रिवर्सिबल बेल्ट– इस बेल्ट को आप दोनों तरफ से अदल-बदलकर पहन सकते हैं. यह प्लेन लेदर की होती है इसे आप ब्लेजर, फॉर्मल पैंट्स और वेस्टर्न ड्रेसिज के साथ कैरी कर सकती हैं.

4. पतली बेल्ट- इसे आप साड़ी के साथ भी पहन सकती हैं। यह बेल्ट पतले लोगों की फिजीक को हाइलाइट करने के लिए ज्यादातर प्रयोग की जाती है. यह आपको कई रंगों में मिल जाएगी.

5. गेलिस: ये बेल्ट हमारे ढीले कपड़ों को टाइट करने के लिए प्रयोग की जाती है. बेसिकली जो कपड़े ढीले होते हैं उन्हें ऊपर की ओर खींचने के लिए इस बेल्ट का प्रयोग किया जाती है. यह छोटे-बच्चों और वृद्ध पुरुषों के लिए ज्यादा प्रयोग की जाती है. ये बेल्ट इलासटिक से बनाई जाती है.

6.डी रिंग बेल्ट– इस बेल्ट को दो रिंगों में बांधा जाता है. इन बेल्टों में बकल नहीं होता है. यह बेल्ट कॉटन या रेक्सीन से बनी होती है.

7.स्टडिड बेल्ट्स: ये बेल्टस वो होती हैं जिन्हें मोतियों, मेटल और नगो के साथ गुथा जाता है।यह ज्यादातर वन पीस के साथ पहनी जाती हैं. इन्हें आप अपनी सादी सी ड्रेस के साथ पहनेंगी तो बहुत अच्छी लगेगी और खिलेगी.

Mother’s Day 2024: बच्चों के लिए लंच में बनाएं कॉर्नफ्लैक्स स्टफ्ड कुकम्बर

गर्मियों में सब्जियों की उपलब्धता बहुत कम हो जाती है हर रोज एक ही समस्या होती है कि क्या सब्जी बनाई जाए. खीरा आजकल हर मौसम में भरपूर मात्रा में मिलता है. गहरे हरे और हल्के हरे रंग में पाया जाने वाले खीरे में विटामिन सी और बीटा केरोटीन जैसे एंटीऑक्सीडेंट होते हैं जो इम्युनिटी को बेहतर बनाते हैं. खीरे के छिल्के में काफी मात्रा में सिलिका पाया जाता है जो हड्डियों को मजबूत बनाता है इसलिए इसे छिल्का सहित ही खाना चाहिए.

खीरे में भरपूर मात्रा में पानी होता है जिससे यह शरीर को हाइड्रेट रखता है और नाममात्र की कैलोरी होने से वजन को भी नियंत्रित रखता है. आमतौर पर खीरे का उपयोग सलाद के रूप में किया जाता है परन्तु आज हम आपको एक नए स्टाइल में खीरे की सब्जी बनाना बता रहे हैं जो बनाने में तो बहुत आसान है ही साथ ही खाने में भी बहुत स्वादिष्ट है. तो आइए देखते हैं कि इसे कैसे बनाते हैं.

कितने लोंगों के लिए 4
बनने में लगने वाला समय 30 मिनट
मील टाइप वेज

सामग्री

मोटा बड़ा खीरा 1
कॉर्नफ्लेक्स 1 टेबलस्पून
उबला और मैश किया आलू 1
बारीक कटा प्याज 1
अदरक, लहसुन, हरी मिर्च पेस्ट 1 टीस्पून
दरदरी सौंफ 1 टीस्पून

धनिया पाउडर 1 टीस्पून
हल्दी पाउडर 1/4टीस्पून
लाल मिर्च पाउडर 1/2टीस्पून
अमचूर पाउडर 1 टीस्पून
नमक स्वादानुसार
तेल 3 टेबलस्पून
नारियल बुरादा 1 टीस्पून
बारीक कटी हरी धनिया 1 टीस्पून

विधि

खीरा को छीलकर बीच से काटकर स्कूपर से बीज वाला भाग अलग कर दें. कॉर्नफ्लैक्स को आधा कप पानी में भिगो दें. 1 टेबलस्पून गर्म तेल में प्याज सॉते करें और अदरक, हरी मिर्च, लहसुन का पेस्ट डालकर भूनें. 1टेबलस्पून पानी में सभी मसाले मिलाकर पैन में डालें और तेल के ऊपर आने तक भूनें. अब नमक, कॉर्नफ्लैक्स तथा आलू डालकर भली भांति मिलाएं. गैस बंद कर दें और मिश्रण को ठंडा होने दें. तैयार भरावन को खीरे में अच्छी तरह भरें और चारों ओर धागा लपेटें ताकि मसाला बाहर न निकले. एक नॉनस्टिक पैन में बचा 1 टेबलस्पून तेल डालें और भरे खीरे को डालकर पैन को ढक दें और मध्दिम आंच पर खीरा के गलने तक पकाएं. पकने पर धागा निकालकर हरा धनिया और नारियल बुरादा डालकर कलछी से टुकड़ों में काटकर परांठा या रोटी के साथ सर्व करें.

 

क्या होती है वर्कआउट इंजरी और कैसे करें इससे बचाव

हाल के वर्षों में बदन तराशने का एक फैशन सा चल पड़ा है. इसे देखते हुए भारत के बड़े शहरों से ले कर छोटे कसबों तक में जिम एवं फिटनैस सैंटरों की बाढ़ सी आ गई है. आप को जिम और फिटनैस सैंटर तो हर जगह मिल जाएंगे, लेकिन कुशल ट्रेनर शायद ही कहीं मिलें. इसी वजह से फिटनैस के दीवानों को लेने के देने पड़ जाते हैं. कई बार ट्रेनर की हिदायत के बावजूद जनूनी युवा जल्दी आकर्षक शरीर पाने के लिए जरूरत से ज्यादा व्यायाम कर शरीर को बिगाड़ लेते हैं.

बी.टैक के छात्र नरेश पंड्या को हाल ही में कंधे में दर्द की शिकायत हुई. जांच से पता चला कि कंधे की रोटेटर कफ मसल में खिंचाव आ गया है. नरेश ने बताया कि हाल ही में उस ने अपनी मांसपेशियां बढ़ाने की चाह में जिम में कुछ ज्यादा ही जोरआजमाइश कर ली थी, जबकि पिछले कई वर्षों से व्यायाम नहीं करता था. इसीलिए उस की मांसपेशियां अचानक ज्यादा वजन सहने को तैयार नहीं हो पाई थीं. उस के ट्रेनर ने उसे कई बार आराम से अभ्यास करने की हिदायत दी, लेकिन इस के बावजूद वह अधिक से अधिक वजन उठाता रहा. अपनी इसी आक्रामक प्रवृत्ति के कारण नरेश को मांसपेशियों में खिंचाव का शिकार होना पड़ा.

जिम में अभ्यास करते वक्त आप को जिनजिन इंजरीज का खतरा अधिक रहता है, उन में शामिल हैं- मांसपेशियों में खिंचाव, टैंडिनिटिस, शिन स्पलिंट, नी इंजरी, कंधे की इंजरी, कलाई में मोच आना आदि. अकसर गलत प्रशिक्षण और अस्वास्थ्यकर दैनिक लाइफस्टाइल के कारण ही ऐसी इंजरीज होती हैं.

वर्कआउट संबंधी आम इंजरीज

कंधा: निष्क्रिय और कम श्रम वाले लाइफस्टाइल के कारण मांसपेशियां प्रभावित होती हैं. कंधे की मांसपेशियां भी कमजोर पड़ जाती हैं. इस के अलावा कंप्यूटर के सामने बैठ कर प्रतिदिन एक ही मुद्रा में काम करने वालों के कंधों में खिंचाव आ जाता है. यदि बिना प्रशिक्षण के अपनी मांसपेशियों पर ज्यादा जोर डालते हैं, तो कमजोर मांसपेशियां जकड़ सकती हैं. मांसपेशियों के समूह रोटेटर कफ कहलाते हैं, जिन से मूवमैंट नियंत्रित होता है और जोड़ों को स्थिरता मिलती है. कंधे के दर्द का एक बड़ा कारण रोटेटर कफ मसल्स हड्डियों की संरचना के बीच अन्य सौफ्ट टिशूज में घर्षण होना है. इसे शोल्डर इंपिंजमैंट कहा जाता है. इसे सुप्रास्पिनेट टैंडिनिटिस के नाम से अधिक जाना जाता है.

टखने में मोच: यह समस्या ऐथलीटों में अधिक होती है. लिगामैंट्स टिशू की ही पट्टियां होती हैं, जो हड्डियों को जोड़ कर रखती हैं. टखने पर अधिक दबाव आप के लिगामैंट को इंजर्ड कर सकता है. जो लोग ऊबड़खाबड़ सतहों पर टहलते या दौड़ते हैं, उन में इस समस्या का खतरा अधिक रहता है. यदि आप वर्कआउट के तहत दौड़ते या हलकी दौड़ लगाते हैं, तो पैरों में अच्छी तरह फिट आने वाले जूते ही पहनें और समतल सतह पर दौड़ लगाएं.

घुटना: घुटने में मोच भी वर्कआउट इंजरी की एक समस्या है. यह अकसर जोड़ों के अति इस्तेमाल के कारण होती है. ट्रेडमिल का अधिक इस्तेमाल करने वालों में नी इंजरी होने का खतरा अधिक रहता है. ट्रेडमिल के कारण घुटनों पर ज्यादा जोर पड़ता है. वहीं दूसरी तरफ जमीन पर दौड़ लगाने पर घुटनों को ज्यादा आसानी होती है, क्योंकि यहां आप को मशीन की क्षमता के मुताबिक नहीं चलना पड़ता है. घुटनों के जोड़ों के ऊपर आवरण के तौर पर लगे कार्टिलेज और लिगामैंट्स अत्यधिक दबाव के कारण बारबार स्ट्रैस इंजरी का शिकार हो जाते हैं. कार्टिलेज का नुकसान ज्यादा खतरनाक होता है, क्योंकि इस की मरम्मत नहीं हो पाती. लोअर बैक: वेट लिफ्टिंग का लोअर बैक यानी कमर पर सब से ज्यादा असर पड़ता है. हमारी कमर ही पूरा दिन हमारे सारे शरीर का ज्यादातर दबाव झेलती है, जिस का मतलब है कि इस में हमेशा खिंचाव बना रहता है. यदि आप बहुत ज्यादा वजन उठाते रहते हैं, तो लोअर बैक की मांसपेशियों में इंजरी हो सकती है. कई मामलों में भारी वजन उठाने पर स्लिप डिस्क का भी खतरा हो सकता है.

बचाव

इंजर्ड मसल्स, लिगामैंट या कार्टिलेज को स्वस्थ करने में लंबा समय लग सकता है. लिहाजा, बचाव ही सर्वोत्तम उपाय है. व्यायाम और वर्कआउट को स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा माना जाता है. लेकिन इस में हमेशा सुधार और कुशल निरीक्षण की जरूरत रहती है. जैसे:

1. भारी व्यायाम करने से पहले वार्मअप जरूरी है. नाकआउट करने से पहले पार्क में जौगिंग, नियमित स्टै्रचिंग और साइक्लिंग आप की मांसपेशियों को ताकतवर बनाएगी. व्यायाम से पहले स्ट्रैचिंग करना शरीर को लचीलापन प्रदान करने के लिए महत्त्वपूर्ण है. इस से शरीर कठिन व्यायाम करने में भी सक्षम हो जाता है.

2. व्यायाम करते वक्त निर्धारित पद्धति का पालन करना भी महत्त्वपूर्ण है. एक ही प्रकार की मसल्स पर अधिक जोर आजमाइश नहीं करनी चाहिए. हाथों, कूल्हों, पैरों, नितंबों और बाइसैप्स पर समान रूप से उचित ध्यान देना जरूरी है. अत्यधिक थकान वाले व्यायाम और एक ही तरह की मांसपेशियों के लिए बारबार व्यायाम करने से मांसपेशियों में खिंचाव और अकड़न आ सकती है.

3. यदि आप वजन उठाने वाला व्यायाम शुरू कर रहे हैं, तो वजन में धीरेधीरे वृद्धि करें ताकि आप की मांसपेशियां उस तनाव में ढल सकें और अधिक इस्तेमाल से खिंचाव की स्थिति में न आएं. कम वजन उठाने से शुरुआत करें. यह ट्रेनिंग 1 सप्ताह तक जारी रखें और फिर धीरेधीरे वजन बढ़ाएं.

4. फिटनैस अभ्यास के दौरान शरीर को पर्याप्त आराम दें. यदि आप को कोई शारीरिक परेशानी महसूस हो रही हो तो थोड़ी देर आराम करें.

5. वेट लिफ्ंिटग रूटीन शुरू करने से पहले ट्रेनर की सलाह लें. ट्रेनर आप की ताकत और कमजोरी को समझ आप को व्यायाम के तौरतरीके बताएगा. इस के अलावा वर्कआउट शुरू करने से पहले उपयुक्त पोशाक पहनें.

6. किसी ऐसे ट्रेनर की निगरानी में ट्रेनिंग लें जो आप के शरीर की संरचना जानता हो.

7. अपने शरीर के हाइड्रेशन लैवल का खयाल रखें. वर्कआउट शुरू करने से पहले वर्कआउट के दौरान और बाद में थोड़ा पानी पी लें.

 

वर्कआउट इंजरी से कैसे करें बचाव

टुकड़ों में बंटी जिंदगी: क्या थी पिता की गलती

सुधा कसेरा मंदबुद्धि था. अपने मन के जज्बात व्यक्त करता भी कैसे जब समझ ही कुछ नहीं आता था. लोगों की तिरस्कृत नजरों को झेलता हुआ मैं अब बस दूसरे के हाथों की कठपुतली मात्र रह गया था… पिता की गलतियों के कारण ही मैं मंदबुद्धि बालक पैदा हुआ. जब मैं मां के गर्भ में था तो मेरी मां को भरपूर खाना नहीं मिलता था. उन को मेरे पिता यह कह कर मानसिक यंत्रणा देते थे कि उन की जन्मपत्री में लिखा है कि उन का पहला बच्चा नहीं बचेगा. वह बच्चा मैं हूं. जो 35 वर्षगांठ बिना किसी समारोह के मना चुका है.

पैदा होने के बाद मैं पीलिया रोग से ग्रसित था, लेकिन मेरा इलाज नहीं करवाया गया. मेरी मां बहुत ही सीधी थीं मेरे पापा उन को पैसे नहीं देते थे कि वे अपनी मरजी से मेरे लिए कुछ कर सकें. सबकुछ सहते हुए वे अंदर से घुटती रहती थीं. वह जमाना ही ऐसा था जब लड़कियां शादी के बाद अपनी ससुराल से अर्थी में ही निकलती थीं. मायके वाले साथ नहीं देते थे. मेरी नानी मेरी मां को दुखी देख कर परेशान रहती थीं. लेकिन परिवार के अन्य लोगों का सहयोग न मिलने के कारण कुछ नहीं कर पाईं. मैं 2 साल का हो गया था, लेकिन न बोलता था, न चलता था. बस, घुटनों चलता था.

मेरी मां पलपल मेरा ध्यान रखती थीं और हर समय मु झे गोदी में लिए रहती थीं. शायद वे जीवनभर का प्यार 2 साल में ही देना चाहती थीं. मेरे पैदा होने के बाद मेरे कार्यकलाप में प्रगति न देख कर वे बहुत अधिक मानसिक तनाव में रहने लगीं. जिस का परिणाम यह निकला कि वे ब्लडकैंसर जैसी घातक बीमारी के कारण 3 महीने में ही चल बसीं. लेकिन मैं मंदबुद्धि बालक और उम्र भी कम होने के कारण सम झ ही नहीं पाया अपने जीवन में आए इस भूचाल को. सूनी आंखों से मां को ढूंढ़ तो रहा था, लेकिन मु झे किसी से पूछने के लिए शब्दों का ज्ञान ही नहीं था.

मुझे अच्छी तरह याद है जब मेरी मां का क्रियाकर्म कर के मेरे मामा और नाना दिल्ली लौटे तो मु झे एक बार तो उन्होंने गोद में लिया, लेकिन मेरी कुछ भी प्रतिक्रिया न देख कर किसी ने भी मेरी परवाह नहीं की. बस, मेरी नानी ने मु झे अपने से बहुत देर तक चिपटाए रखा था. मेरे पापा तो एक बार भी मु झ से मिलने नहीं आए. मां ने अंतिम समय में मेरी जिम्मेदारी किसी को नहीं सौंपी. लेकिन मेरे नानानानी ने मु झे अपने पास रखने का निर्णय ले लिया. उन का कहना था कि मेरी मां की तरह मेरे पापा मु झे भी यंत्रणा दे कर मार डालेंगे. वे भूले नहीं थे कि मेरी मां ने उन को बताया था कि गलती से मेरी बांह पर गरम प्रैस नहीं गिरी थी, बल्कि मेरे पिता ने जानबू झ कर मेरी बांह पर रख दी थी, जिस का निशान आज तक मेरी बांह पर है. एक बार सीढ़ी से धकेलने का प्रयास भी किया था.

इस के पीछे उन की क्या मानसिकता थी, शायद वे जन्मपत्री की बात सत्य साबित कर के अपना अहं संतुष्ट करने की कोशिश कर रहे थे. वे मु झे कभी लेने भी नहीं आए. मां की मृत्यु के 3 महीने के बाद ही उन्होंने दूसरा विवाह कर लिया. यह मेरे लिए विडंबना ही तो थी कि मु झे मेरी मां के स्थान पर दूसरी मां नहीं मिली, लेकिन मेरे पिता को दूसरी पत्नी मिलने में देर नहीं लगी. पिता के रहते हुए मैं अनाथ हो गया. मैं मंदबुद्धि था, इसलिए मेरे नानानानी ने मु झे पालने में बहुत शारीरिक, मानसिक व आर्थिक कष्ट सहे. शारीरिक इसलिए कि मंदबुद्धि होने के कारण 15 साल की उम्र तक लघु और दीर्घशंका का ज्ञान ही नहीं था, कपड़ों में ही अपनेआप हो जाता था और उन को नानी को साफ करना पड़ता था.

रात को बिस्तर गीला हो जाने पर नानी रात को उठ कर बिस्तर बदलती थीं. ढलती उम्र के कारण मेरे नानानानी शारीरिक व मानसिक रूप से बहुत कमजोर हो गए थे. लेकिन मोहवश वे मेरा बहुत ध्यान रखते थे. मैं स्कूल अकेला नहीं जा पाता था, इसलिए मेरे नाना मु झे स्कूलबस तक छोड़ने जाते थे. मु झे ऐसे स्कूल में भेजा जहां सभी बच्चे मेरे जैसे थे. उन्होंने मानसिक कष्ट सहे, इसलिए कि मेरे मंदबुद्धि होने के कारण नानानानी कहीं भी मु झे ले कर जाते तो लोग परिस्थितियों को नजरअंदाज करते हुए मेरे असामान्य व्यवहार को देख कर उन को ताने देते. उस से उन का मन बहुत व्यथित होता. फिर वे मु झे कहीं भी ले कर जाने में कतराने लगे. उन के अपने बच्चों ने भी मेरे कारण उन से बहुत दूरी बना ली थी.

कई रिश्तेदारों ने तो यहां तक भी कह दिया कि मु झे अनाथाश्रम में क्यों नहीं डाल देते? नानानानी को यह सुन कर बहुत दुख होता. कई बार कोई घर आता तो नानी गीले बिस्तर को जल्दी से ढक देतीं, जिस से उन की नकारात्मक प्रतिक्रिया का दंश उन को न झेलना पड़े. मैं शारीरिक रूप से बहुत तंदुरुस्त था. दिमाम का उपयोग न होने के कारण ताकत भी बहुत थी, अंदर ही अंदर अपनी कमी को सम झते हुए सारा आक्रोश अपनी नानी पर निकालता था. कभी उन के बाल खींचता कभी उन पर पानी डाल देता और कभी उन की गोदी में सिर पटक कर उन को तकलीफ पहुंचाता. मातापिता के न रहने से उन के अनुशासन के बिना मैं बहुत जिद्दी भी हो गया था. मैं ने अपनी नानी को बहुत दुख दिया.

लेकिन इस में मेरी कोई गलती नहीं थी क्योंकि मैं मंदबुद्धि बालक था. नानानानी ने आर्थिक कष्ट सहे, इस प्रकार कि मेरा सारा खर्च मेरे पैंशनधारी नाना पर आ गया था. कहीं से भी उन को सहयोग नहीं मिलता था. उन्होंने मेरा अच्छे से अच्छे डाक्टर से इलाज करवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. वैसे भी मु झे कभी किसी चीज की कमी महसूस नहीं होने दी. नानी मेरे भविष्य को ले कर बहुत चिंतित रहती थीं और मेरे कारण मानसिक आघात सहतेसहते थक कर असमय ही 65 वर्ष की उम्र में ही सदा के लिए विदा हो गईं. उस समय मेरी उम्र 18 वर्ष की रही होगी. अब तक मानसिक और शारीरिक रूप से मैं काफी ठीक हो गया था. अपने व्यक्तिगत कार्य करने के लिए आत्मनिर्भर हो गया था. लेकिन भावाभिव्यक्ति सही तरीके से सही भाषा में नहीं कर पाता था. टूटीफूटी और कई बार निरर्थक भाषा ही बोल पाता था.

मेरे जीवन की इस दूसरी त्रासदी को भी मैं नहीं सम झ पाया और न परिवार वालों के सामने अभिव्यक्त ही कर पाया, इसलिए नानी की मृत्यु पर आए परिवार के अन्य लोगों को मु झ से कोई सहानुभूति नहीं थी. वैसे भी, अभी नाना जिंदा थे मेरे पालनपोषण के लिए. औपचारिकता पूरी कर के सभी वापस लौट गए. नाना ने मु झे भरपूर प्यार दिया. उन के अन्य बच्चों के बच्चों को मु झ से ईर्ष्या भी होती थी कि उन के हिस्से का प्यार भी मु झे ही मिल रहा है. लेकिन उन के तो मातापिता भी थे, मैं तो अनाथ था. मेरी मंदबुद्धि के कारण यदि कोईर् मेरा मजाक उड़ाता तो नाना उन को खूब खरीखोटी सुनाते, लेकिन कब तक…? वे भी मु झे छोड़ कर दुनिया से विदा हो गए. उस समय मैं 28 साल का था, लेकिन परिस्थिति पर मेरी प्रतिक्रिया पहले जैसी थी. मेरा सबकुछ लुट चुका था और मैं रो भी नहीं पा रहा था. बस, एक एहसास था कि नाना अब इस दुनिया में नहीं हैं. इतनी मेरे अंदर बुद्धि नहीं थी कि मैं अपने भविष्य की चिंता कर सकूं. मु झे तो पैदा ही कई हाथों की कठपुतली बना कर किया गया था. लेकिन अभी तक मैं ऐसे हाथों के संरक्षण में था, जिन्होंने मु झे इस लायक बना दिया था

कि मैं शारीरिक रूप से बहुत सक्षम और किसी पर निर्भर नहीं था और कोई भी कार्य, जिस में बुद्धि की आवश्यकता नहीं हो, चुटकियों में कर देता था. वैसे भी, जो व्यक्ति दिमाग से काम नहीं करते, शारीरिक रूप से अधिक ताकत वाले होते हैं. मेरी मनोस्थिति बिलकुल 2 साल के बच्चे की तरह थी, जो उस के साथ क्या हो रहा है, उस के लिए क्या अच्छा है, क्या बुरा है, सम झ ही नहीं पाता. लेकिन मेरी याद्दाश्त बहुत अच्छी थी. गाडि़यों के नंबर, फोन नंबर तथा किसी का घर किस स्थान पर है. मु झे कभी भूलता नहीं था. कहने पर मैं कोई भी शारीरिक कार्य कर सकता था, लेकिन अपने मन से कुछ नहीं कर पाता था. नाना की हालत गंभीर होने पर मैं ने अपने पड़ोस की एक आंटी के कहने पर अपनी मौसी को फोन से सूचना दी तो आननफानन मेरे 2 मामा और मौसी पहुंच गए और नाना को अस्पताल में भरती कर दिया. डाक्टरों ने देखते ही कह दिया कि उन का अंतिम समय आ गया है. उन के क्रियाकर्म हो जाने के बाद सब ने घर की अलमारियों का मुआयना करना शुरू किया. महत्त्वपूर्ण दस्तावेज निकाले गए. सब की नजर नाना के मकान पर थी. मैं मूकदर्शक बना सब देखता रहा. भरापूरा घर था. मकान भी मेरे नाना का था. मेरे एक मामा की नजर आते ही मेरे हृष्टपुष्ट शरीर पर टिक गई.

उन्होंने मेरी मंदबुद्धि का लाभ ले कर मु झे मेरे मनपसंद खाने की चीजें बाजार से मंगवा कर दीं और बारबार मु झे उन के साथ भोपाल जाने के लिए उकसाते रहे. मु झे याद नहीं आता कि कभी उन्होंने मेरे से सीधेमुंह से बात भी की हो. तब तो और भी हद हो गई थी जब एक बार मैं नानी के साथ भोपाल उन के घर गया था और मेरे असामान्य व्यवहार के लिए उन्होंने नानी को दोषी मानते हुए बहुत जलीकटी सुनाई. उन को मामा की बातों से बहुत आघात पहुंचा. जिस कारण नानी निश्चित समय से पहले ही दिल्ली लौट गई थीं. अब उन को अचानक इतना प्यार क्यों उमड़ रहा था. यह सोचने की बुद्धि मु झ में नहीं थी. इतना सहयोग यदि नानी को पहले मिलता तो शायद वे इतनी जल्दी मु झे छोड़ कर नहीं जातीं. पहली बार सब को यह विषय विचारणीय लगा कि अब मैं किस के साथ रहूंगा? नाना से संबंधित कार्यकलाप पूरा होने तक मेरे मामा ने मेरा इतना ब्रेनवौश कर दिया कि मैं कहां रहना चाहता हूं?

किसी के भी पूछने पर मैं झट से बोलता, ‘मैं भोपाल जाऊंगा,’ नाना के कई जानने वालों ने मामा को कटाक्ष भी किया कि कैसे सब खत्म हो जाने के बाद उन का आना हुआ. इस से पहले तो उन को वर्षों से कभी देखा नहीं. इतना सुनते ही ‘चोर की दाढ़ी में तिनका’ मुहावरे को सार्थक करते हुए वे उन पर खूब बरसे. परिणाम यह निकला कि बहुत सारे लोग नाना की तेरहवीं पर बिना खाए ही लौट गए. आखिरकार, मैं मामा के साथ भोपाल पहुंच गया. मेरी दाढ़ी और बाल बहुत बड़ेबड़े हो गए थे. सब से पहले मेरे मामा ने उन्हें संवारने के लिए मु झे सैलून भेजा, फिर मेरे लिए नए कपड़े खरीदे, जिन को पहन कर मेरा व्यक्तित्व ही बदल गया था. मेरे मामा की फैक्ट्री थी, जिस में मैं उन के बेटे के काम में हाथ बंटाने के लिए जाने लगा. जब मैं नानी के साथ एक बार यहां आया था, तब मु झे इस फैक्ट्री में घुसने की भी अनुमति नहीं थी. अब जबकि मैं शारीरिक श्रम करने के लायक हो गया तो उन के लिए मेरे माने ही बदल गए थे. धीरेधीरे मु झे सम झ में आने लगा कि उन का मु झे यहां लाने का उद्देश्य क्या था? मैं चुपचाप एक रोबोट की तरह सारा काम करता. मु झे अपनी इच्छा व्यक्त करने का तो कोई अधिकार ही नहीं था. दिल्ली के जिस मकान में मेरा बचपन गुजरा, उस में तो मैं कभी जा नहीं सकता था क्योंकि प्रौपर्टी के झगड़े के कारण उस में ताला लग गया था. और मैं भी मामा की प्रौपर्टीभर बन कर रह गया था, जिस में कोई बंटवारे का झं झट नहीं था. उन का ही एकछत्र राज्य था. मैं अपने मन से किसी के पास जा नहीं सकता था, न किसी को मु झे बुलाने का अधिकार ही था. मेरा जीवन टुकड़ों में बंट गया था.

मेरा अपना कोई अस्तित्व नहीं था. मैं अपना आक्रोश प्रकट भी करता तो किस के सामने करता. कोई नानानानी की तरह मेरी भावना को सम झने वाला ही नहीं था. मैं तो इस लायक भी नहीं था कि अपने पिता से पूछूं कि मेरे इस प्रकार के टुकड़ों में बंटी जिंदगी का उत्तरदायी कौन है? उन को क्या हक था मु झे पैदा करने का? मेरी मां अंतिम समय में, मेरे पिता की ओर इशारा कर के रोते हुए मामा से कह रही थीं, ‘इस ने मु झे बीमारी दी है, इस को मारो…’ लेकिन प्रतिक्रियास्वरूप किसी ने कुछ नहीं किया, करते तो तब जब उन को मेरी मां से प्यार होता. काश, मु झे इतनी बुद्धि होती कि मैं अपनी मां का बदला अपने पिता से लेता. लेकिन काश ऐसा कोई होता जो मेरा बदला जरूर लेता. जिस के पास बुद्धि है. मेरी कथा को शब्दों का जामा पहनाने वाली को धन्यवाद, कम से कम उन को मु झ से कुछ सहानुभूति तो है, जिस के कारण मु झ मंदबुद्धि बालक, जिस को शब्दों में अभिव्यक्ति नहीं आती, की मूकभाषा तथा भावना को सम झ कर उस की आत्मकथा को कलमबद्ध कर के लोगों के सामने उजागर तो किया.

 

चाहत: दहेज के लालच में जब रमण ने सुमन को खोया

सुबहसुबह औफिस में घुसते ही रमण ने चहकते हुए कहा कि आज शाम उस के घर में उस के बेटे की सगाई की रस्म पार्टी है. यह सुन कर मैं पसोपेश में पड़ गया कि अपनी पत्नी को साथ ले कर जाना ठीक रहेगा कि नहीं.

रमण हमारे इलाके का ही है. उस का गांव मेरे गांव से 3 किलोमीटर दूर है. इधर कई साल से हमारा मिलनाबोलना तकरीबन बंद ही था. अब मैं प्रमोशन ले कर उस के औफिस में उस के शहर में आ गया तो हमारे संबंध फिर से गहरे होने लगे थे. पिछले 20 सालों में हमारे बीच बात ही कुछ ऐसी हो गई थी कि हम एकदूसरे को अपना मुंह दिखाना नहीं चाहते थे.

रमण और मैं 10वीं क्लास तक एक ही स्कूल में पढ़े थे. यह तो लाजिम ही था कि हमें एक ही कालेज में दाखिला लेना था, क्योंकि 30 मील के दायरे में वहां कोई दूसरा कालेज तो था नहीं. हम दोनों रोजाना बस से शहर जाते थे.

रमण अघोषित रूप से हमारा रिंग लीडर था. वह हम से भी ज्यादा दिलेर, मुंहफट और जल्दी से गले पड़ने वाला लड़का था.

पढ़ाई में वह फिसड्डी था, पर शरीर हट्टाकट्टा था उस का, रंग बेहद गोरा.

बचपन से ही मुझे कहानीकविता लिखने का चसका लग गया था. मजे की बात यह थी कि जिस लड़की सुमन के प्रति मैं आकर्षित हुआ था, रमण भी उसी पर डोरे डालने लगा था. हमारी क्लास में सुमन सब से खूबसूरत लड़की थी.

हम लोग तो सारे पीरियड अटैंड करते, मगर रमण पर तो एक ही धुन सवार रहती कि किसी तरह जल्दी से कालेज की कोई लड़की पट जाए. अपनी क्लास की सुमन पर तो वह बुरी तरह फिदा था. खैर, हर वक्त पीछे पड़े रहने के चलते सुमन का मन किसी तरह पिघल ही गया था.

सुमन रमण के साथ कैफे जाने लगी थी. इस कच्ची उम्र में एक ही ललक होती है कि विपरीत लिंग से किसी तरह दोस्ती हो जाए. आशिकी के क्या माने होते हैं, इस की समझ कहां होती है. रमण में यह दीवानगी हद तक थी.

एक दिन लोकल अखबार में मेरी कहानी छपी. कालेज के इंगलिश के लैक्चरर सेठ सर ने सारी क्लास के सामने मुझे खड़ा कर के मेरी तारीफ की.

मैं तो सुमन की तरफ अपलक देख रहा था, वहीं सुमन भी मेरी तरफ ही देख रही थी. उस समय उस की आंखों में जो अद्भुत चमक थी, वह मैं कई दिनों तक भुला नहीं पाया था. पता नहीं क्यों उस लड़की पर मेरा दिल अटक गया था, जबकि मुझे पता था कि वह मेरे दोस्त रमण के साथ कैफे जाती है. रमण सब के सामने ये किस्से बढ़ाचढ़ा कर बताता रहता था.

सुमन से अकेले मिलने के कई और मौके भी मिले थे मुझे. कालेज के टूर के दौरान एक थिएटर देखने का मौका मिला था हमें. चांस की बात थी कि सुमन मेरे साथ वाली कुरसी पर थी. हाल में अंधेरा था. मैं ने हिम्मत कर के उस का हाथ अपने हाथ में ले लिया तो बड़ी देर तक उस का हाथ मेरे हाथ में रहा.

रमण से गहरी दोस्ती होने के बावजूद बरसों तक मैं ने रमण से सुमन के प्रति अपना प्यार छिपाए रखा. डर था कि क्या पता रमण क्या कर बैठे. कहीं कालेज आना न छोड़ दे. सुमन के मामले में वह बहुत संजीदा था.

एक दिन किसी बात पर रमण से मेरी तकरार हो गई. मैं ने कहा, ‘क्या हर वक्त ‘मेरी सुमन’, ‘मेरी सुमन’ की रट लगाता रहता है. यों ही तू इम्तिहान में कम नंबर लाता रहेगा तो वह किसी और के साथ चली जाएगी.’

रमण दहाड़ा, ‘मेरे सिवा वह किसी और के बारे में सपने में भी नहीं सोच सकती.’

मैं ने अनमना हो कर यों ही कह दिया, ‘कल मैं तेरे सामने सुमन के साथ इसी कैफे में इसी टेबल पर कौफी पीता मिलूंगा.’

हम दोनों में शर्त लग गई.

मैं रातभर सो नहीं पाया. सुमन ने अगर मेरे साथ चलने से मना कर दिया तो रमण के सामने मेरी किरकिरी होगी. मेरा दिल भी टूट जाएगा. मगर मुझे सुमन पर भरोसा था कि वह मेरा दिल रखेगी.

दूसरे दिन सुमन मुझे लाइब्रेरी से बाहर आती हुई अकेली मिल गई. मैं ने हिम्मत कर के उस से कहा कि आज मेरा उसे कौफी पिलाने का मन कर

रहा है.

मेरे उत्साह के आगे वह मना न कर सकी. वह मेरे साथ चल दी. थोड़ी देर बाद रमण भी वहां पहुंच गया. उस का चेहरा उतरा हुआ था. खैर, कुछ दिनों बाद वह बात आईगई हो गई.

सुमन और मेरे बीच कुछ है या हो सकता है, रमण ने इस बारे में कभी कल्पना भी नहीं की थी और उसे कभी इस बात की भनक तक नहीं लगी.

कालेज में छात्र यूनियन के चुनावों के दौरान खूब हुड़दंग हुआ. रमण ने चुनाव जीतने के लिए दिनरात एक कर दिया. वह तो चुनाव रणनीति बनाने में ही बिजी रहा. वह जीत भी गया.

चुनाव प्रचार के दौरान मुझे सुमन के साथ कुछ पल गुजारने का मौका मिला. न वह अपने दिल की बात कह पाई और नही मेरे मुंह से ऐसा कुछ निकला. दोनों सोचते रहे कि पहल कौन करे. जब कभी कहीं अकेले सुमन के साथ बैठने का मौका मिलता तो हम ज्यादातर खामोश ही बैठे रहते. एक दिन तो रमण ने कह ही दिया था कि तुम दोनों गूंगों की अपनी ही कोई भाषा है. सचमुच सच्चे प्यार में चुप रह कर ही दिल से सारी बातें करनी होती हैं.

मैं एमए की पढ़ाई करने के लिए यूनिवर्सिटी चला गया. रमण ने बीए कर के घर में खेती में ध्यान देना शुरू कर दिया. साथ में नौकरी के लिए तैयारी करता रहता. मैं महीनेभर बाद गांव आता तो फटाफट रमण से मिलने उस के गांव में चल देता. वह मुझे सुमन की खबरें देता.

रमण को जल्दी ही अस्थायी तौर पर सरकारी नौकरी मिल गई. सुमन भी वहीं थी. सुमन के पिता को हार्टअटैक हुआ था, इसीलिए सुमन को जौब की सख्त जरूरत थी. काफी अरसा हो गया था. सुमन से मेरी कोई मुलाकात नहीं हुई. मौका पा कर मैं उस के कसबे में चक्कर लगाता, उस कैफे में कई बार जाता, मगर मुझे सुमन का कोई अतापता न मिलता.

मेरी हालत उस बदकिस्मत मुसाफिर की तरह थी, जिस की बस उसे छोड़ कर चली गई थी और बस में उस का सामान भी रह गया था. संकोच के मारे मैं रमण से सुमन के बारे में ज्यादा पूछताछ नहीं कर सकता था. रमण के आगे मैं गिड़गिड़ाना नहीं चाहता था. मुझे उम्मीद थी कि अगर मेरा प्यार सच्चा हुआ तो सुमन मुझे जरूर मिलेगी. सुमन को तो उस की जौब में पक्का कर दिया गया. उस में काम के प्रति लगन थी. रमण को 6 महीने बाद निकाल दिया गया.

रमण को जब नौकरी से निकाला गया, तब वह जिंदगी और सुमन के बारे में संजीदा हुआ. उस के इस जुनून से मैं एक बार तो घबरा गया. अब तक वह सुमन को शर्तिया तौर पर अपना मानता था, मगर अब उसे लगने लगा था कि अगर उसे ढंग की नौकरी नहीं मिली तो सुमन भी उसे नहीं मिलेगी.

इसी दौरान मैं ने सुमन से उस के औफिस जा कर मिलना शुरू कर दिया था. मैं उसे साहित्य के क्षेत्र में अपनी उपलब्धियां बताता. उसे खास पत्रिकाओं में छपी अपनी रोमांटिक कविताएं दिखाता.

रमण ने सुमन को बहुत ही गंभीरता से लेना शुरू कर दिया था. रमण मुझे कई कहानियां सुनाता कि आज उस ने सुमन के साथ फलां होटल में लंच किया और आज वे किसी दूसरे शहर घूमने गए. सुमन के साथ अपने अंतरंग पलों का बखान वह मजे ले कर करता.

पहले रमण का सुमन के प्रति लापरवाही वाला रुख मुझे आश्वस्त कर देता था कि सुमन मुझे भी चाहती है, मगर अब रमण सच में सुमन से प्यार करने लगा था. ऐसे में मेरी उलझनें बढ़ने लगी थीं.

फिर एक अनुभाग में मुझे और रमण को नियुक्ति मिली. रमण खुश था कि अब वह सुमन को प्रपोज करेगा तो वह न नहीं कहेगी. मैं चुप रहता. मैं सोचने लगा कि अब अगर कुछ उलटफेर हो तभी मेरी और सुमन में नजदीकियां बढ़ सकती हैं. हमारा औफिस सभी विभागों के बिल पास करता था. यहां प्रमोशन के चांस बहुत थे. मैं विभागीय परीक्षाओं की तैयारी में जुट गया.

एक दिन मैं और रमण साथ बैठे थे, तभी अंदर से रमण के लिए बुलावा आ गया. 5 मिनट बाद रमण मुसकराता हुआ बाहर आया. उस ने मुझे अंदर जाने को कहा. अंदर जिला शिक्षा अधिकारी बैठे थे. वे मुझे अच्छी तरह से जानते थे. मेरे बौस ने ही सारी बात बताई, ‘बेटा, वैसे तो मुझे यह बात सीधे तौर पर तुम से नहीं करनी चाहिए. कौशल साहब को तो आप जानते ही हैं. मैं इन से कह बैठा कि हमारे औफिस में 2 लड़कों ने जौइन किया है. इन की बेटी बहुत सुंदर और होनहार है. ये करोड़पति हैं. बहुत जमीन है इन की शहर के साथ.

‘ये चाहते हैं कि तुम इन की बेटी को देख लो, पसंद कर लो और अपने घर वालों से सलाह कर लो. ‘रमण से भी पूछा था, मगर उस ने कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया. अब तुम्हें मौका मिल रहा है.’ रमण से मैं हर बार उन्नीस ही पड़ता था. बारबार कुदरत हमारा मुकाबला करवा रही थी. एक तरफ सुमन थी और दूसरी तरफ करोड़ों की जायदाद. घरजमाई बनने के लिए मैं तैयार नहीं था और सुमन से इतने सालों से किया गया प्रेम…

फिर पता चला कि शिक्षा अधिकारी ने रमण के मांबाप को राजी कर लिया है. रमण ने अपना रास्ता चुन लिया था. सुमन से सारे कसमेवादे तोड़ कर वह अपने अमीर ससुराल चला गया था. मैं प्रमोशन पा कर दिल्ली चला गया था. सुमन का रमण के प्रति मोह भंग हो गया था. सुमन ने एक दूसरी नौकरी ले ली थी और 2 साल तक मुझे उस का कोई अतापता नहीं मिला.

बहन की शादी के बाद मैं भी अखबारों में अपनी शादी के लिए इश्तिहार देने लगा था. सुमन को मैं ने बहुत ढूंढ़ा. इस के लिए मैं ने करोड़पति भावी ससुर का औफर ठुकरा दिया था. वह सुमन भी अब न जाने कहां गुम हो गई थी. उस ने मुझे हमेशा सस्पैंस में ही रखा. मैं ने कभी उसे साफसाफ नहीं कहा कि मैं क्या चाहता हूं और वह पगली मेरे प्यार की शिद्दत नहीं जान पाई.

अखबारों के इश्तिहार के जवाब में मुझे एक दिन सुमन की मां द्वारा भेजा हुआ सुमन का फोटो और बायोडाटा मिला. मैं तो निहाल हो गया. मुझे लगा कि मुझे खोई हुई मंजिल मिल गई है. मैं तो सरपट भागा. मेरे घर वाले हैरान थे कि कहां तो मैं लड़कियों में इतने नुक्स निकालता था और अब इस लड़की के पीछे दीवाना हो गया हूं.

शादी के बाद भी लोग पूछते रहते थे कि क्या तुम्हारी शादी लव मैरिज थी या अरैंज्ड तो मैं ठीक से जवाब नहीं दे पाता था. मैं तो मुसकरा कर कहता था कि सुमन से ही पूछ लो.

सुमन से शादी के बाद रमण के बारे में मैं ने कभी उस से कोई बात नहीं की. सुमन ने भी कभी भूले से रमण का नाम नहीं लिया.

वैसे, रमण सुंदर और स्मार्ट था. सुमन कुछ देर के लिए उस के जिस्मानी खिंचाव में बंध गई थी. रमण ने उस के मन को कभी नहीं छुआ.

जब रमण ने सुमन को बताया होगा कि उस के मांबाप उस की सुमन से शादी के लिए राजी नहीं हो रहे हैं तो सुमन ने कैसे रिएक्ट किया होगा.

रमण ने यह तो शायद नहीं बताया होगा कि करोड़पति बाप की एकलौती बेटी से शादी करने के लिए वह सुमन को ठुकरा रहा है. मगर जिस लहजे में रमण ने बात की होगी, सुमन सबकुछ समझ गई होगी. तभी तो वह दूसरी नौकरी के बहाने गायब हो गई.

इन 2 सालों में सुमन ने मेरे और रमण के बारे में कितना सोचाविचारा होगा. रमण से हर लिहाज में मैं पहले रैंक पर रहा, मगर सुंदरता में वह मुझ से आगे था.

आज रमण के बेटे की सगाई का समाचार पा कर मैं सोच में था कि रमण के घर जाएं या नहीं.

सुमन ने सुना तो जाने में कोई खास दिलचस्पी भी नहीं दिखाई. उसे यकीन था कि अब रमण का सामना करने में उसे कोई झेंप या असहजता नहीं होगी. इतने सालों से रमण अपने ससुराल में ही रह रहा था. सासससुर मर चुके थे. इतनी लंबीचौड़ी जमीन शहर के साथ ही जुट गई थी. खुले खेतों के बीच रमण की आलीशान कोठी थी. खुली छत पर पार्टी चल रही थी.

रमण ने सुमन को देख कर भी अनदेखा कर दिया. एक औपचारिक सी नमस्ते हुई. अब मैं रमण का बौस था, रमण के बेटे और होने वाली बहू को पूरे औफिस की तरफ से उपहार मैं ने सुमन के हाथों ही दिलवाया.

पहली बार रमण ने हमें हैरानी से देखा था, जब मैं और सुमन उस के घर के बाहर कार से साथसाथ उतरे थे. वह समझ गया था कि हम मियांबीवी हैं.

दूर तक फैले खेतों को देख कर मेरे मन में आया कि ये सब मेरे हो सकते थे, अगर उस दिन मैं जिला शिक्षा अधिकारी की बात मान लेता.

उस शाम सारी महफिल में सुमन सब से ज्यादा खूबसूरत लग रही थी. शायद उसे देख कर रमण के मन में भी आया होगा कि अगर वह दहेज के लालच में न पड़ता तो सुमन उस की हो सकती थी. चलो, जिस की जो चाहत थी, उसे मिल गई थी.

Mother’s Day 2024: थोड़ा सा समय-सास और मां के अंतर को कैसे भूल गई जूही

हनीमून से लौटते समय टैक्सी में बैठी जूही के मन में कई तरह के विचार आ जा रहे थे. अजय ने उसे खयालों में डूबा देख उस की आंखों के आगे हाथ लहरा कर पूछा, ‘‘कहां खोई हो? घर जाने का मन नहीं कर रहा है?’’

जूही मुसकरा दी, लेकिन ससुराल में आने वाले समय को ले कर उस के मन में कुछ घबराहट सी थी. दोनों शादी के 1 हफ्ते बाद ही सिक्किम घूमने चले गए थे. उन का प्रेमविवाह था. दोनों सीए थे और नरीमन में एक ही कंपनी में जौब करते थे.

अजय ब्राह्मण परिवार का बड़ा बेटा था. पिता शिवमोहन एक प्राइवेट कंपनी में अच्छे पद पर थे. मम्मी शैलजा हाउसवाइफ थीं और छोटी बहन नेहा अभी कालेज में थी. अजय का घर मुलुंड में था.

पंजाबी परिवार की इकलौती बेटी जूही कांजुरमार्ग में रहती थी. जूही के पिता विकास डाक्टर थे और मां अंजना हाउसवाइफ थीं. दोनों परिवारों को इस विवाह पर कोई एतराज नहीं था. विवाह हंसीखुशी हो गया. जूही को जो बात परेशान कर रही थी वह यह थी कि उस के औफिस जानेआने का कोई टाइम नहीं था. अब तक तो घर की कोई जिम्मेदारी उस पर नहीं थी, नरीमन से आतेआते कभी 10 बजते, तो कभी 11. जिस क्लाइंट बेसिस पर काम करती, पूरी टीम के हिसाब से उठना पड़ता. मायके में तो घर पहुंचते ही कपड़े बदल हाथमुंह धो कर डिनर करती और फिर सीधे बैड पर.

शनिवार और रविवार पूरा आराम करती थी. मन होता तो दोस्तों के साथ मूवी देखती, डिनर करती. वैसे भी मुंबई में औफिस जाने वाली ज्यादातर कुंआरी अविवाहित लड़कियों का यही रूटीन रहता है, हफ्ते के 5 दिन काम में खूब बिजी और छुट्टी के दिन आराम. जूही के 2-3 घंटे तो रोज सफर में कट जाते थे. वह हमेशा वीकैंड के लिए उत्साहित रहती.

जैसे ही अंजना दरवाजा खोलतीं, जूही एक लंबी सांस लेते हुए कहती थी, ‘‘ओह मम्मी, आखिर वीकैंड आ ही गया.’’ अंजना को उस पर बहुत स्नेह आता कि बेचारी बच्ची, कितनी थकान होती है पूरा हफ्ता.

जूही को याद आ रहा था कि जब बिदाई के समय उस की मम्मी रोए जा रही थीं तब उस की सासूमां ने उस की मम्मी के कंधे पर हाथ रख कर कहा था, ‘‘आप परेशान न हों. बेटी की तरह रहेगी हमारे घर. मैं बेटीबहू में कोई फर्क नहीं रखूंगी.’’

तब वहीं खड़ी जूही की चाची ने व्यंग्यपूर्वक धीरे से उस के कान में कहा, ‘‘सब कहने की बातें हैं. आसान नहीं होता बहू को बेटी समझना. शुरूशुरू में हर लड़के वाले ऐसी ही बड़ीबड़ी बातें करते हैं.’’

बहते आंसुओं के बीच में जूही को चाची की यह बात साफसाफ सुनाई दी थी. पहला हफ्ता तो बहुत मसरूफियत भर निकला. अब वे घूम कर लौट रहे थे, देखते हैं क्या होता है. परसों से औफिस भी जाना है. टैक्सी घर के पास रुकी तो जूही अजय के साथ घर की तरफ चल दी.

शिवमोहन, शैलजा और नेहा उन का इंतजार ही कर रहे थे. जूही ने सासससुर के पैर छू कर उन का आशीर्वाद लिया. नेहा को उस ने गले लगा लिया, सब एकदूसरे के हालचाल पूछते रहे.

शैलजा ने कहा, ‘‘तुम लोग फै्रश हो जाओ, मैं चाय लाती हूं.’’

जूही को थकान तो बहुत महसूस हो रही थी, फिर भी उस ने कहा, ‘‘नहीं मम्मीजी मैं बना लूंगी.’’

‘‘अरे थकी होगी बेटा, आराम करो और हां, यह मम्मीजी नहीं, अजय और नेहा मुझे मां ही कहते हैं, तुम भी बस मां ही कहो.’’ जूही ने झिझकते हुए सिर हिला दिया. अजय और जूही ने फ्रैश हो कर सब के साथ चाय पी. थोड़ी देर बाद शैलजा ने पूछा, ‘‘जूही, डिनर में क्या खाओगी?’’ ‘‘मां, जो बनाना है, बता दें, मैं हैल्प करती हूं.’’ ‘‘मैं बना लूंगी.’’ ‘‘लेकिन मां, मेरे होते हुए…’’

हंस पड़ीं शैलजा, ‘‘तुम्हारे होते हुए क्या? अभी तक मैं ही बना रही हूं और मुझे कोई परेशानी भी नहीं है,’’ कह कर शैलजा किचन में आ गईं तो जूही भी मना करने के बावजूद उन का हाथ बंटाती रही.

अगले दिन की छुट्टी बाकी थी. शिवमोहन औफिस और नेहा कालेज चली गई. जूही अलमारी में अपना सामान लगाती रही. सब अपनेअपने काम में व्यस्त रहे. अगले दिन साथ औफिस जाने के लिए अजय और जूही उत्साहित थे. दोनों लोकल ट्रेन से ही जाते थे. हलकेफुलके माहौल में सब ने डिनर साथ किया.

रात को सोने के समय शिवमोहन ने कहा ‘‘कल से जूही भी लंच ले जाएगी न?’’ ‘‘हां, क्यों नहीं?’’ ‘‘इस का मतलब कल से उस की किचन की ड्यूटी शुरू?’’ ‘‘ड्यूटी कैसी? जहां मैं अब तक 3 टिफिन पैक करती थी, अब 4 कर दूंगी, क्या फर्क पड़ता है?’’ शिवमोहन ने प्यार भरी नजरों से शैलजा को देखते हुए कहा, ‘‘ममतामयी सास बनोगी इस का कुछ अंदाजा तो था मुझे.’’ ‘‘आप से कहा था न कि जूही बहू नहीं बेटी बन कर रहेगी इस घर में.’’ शिवमोहन ने उसे छेड़ते हुए कहा, ‘‘लेकिन तुम्हें तो बहुत कड़क सास मिली थीं.’’

शैलजा ने फीकी हंसी हंसते हुए कहा, ‘‘इसीलिए तो जूही को उन तकलीफों से बचाना है जो मैं ने खुद झेली हैं. छोड़ो, वह अम्मां का पुराना जमाना था, उन की सोच अलग थी, अब तो वे नहीं रहीं. अब उन बातों का क्या फायदा? अजय ने बताया था जूही को पनीर बहुत पसंद है. कल उस का पहला टिफिन तैयार करूंगी, पनीर ही बनाऊंगी, खुश हो जाएगी बच्ची.’’

शिवमोहन की आंखों में शैलजा के लिए तारीफ के भाव उभर आए. सुबह अलार्म बजा. जूही जब तक तैयार हो कर किचन में आई तो वहां 4 टिफिन पैक किए रखे थे. शैलजा डाइनिंग टेबल पर नाश्ता रख रही थीं.

जूही शर्मिंदा सी बोली. ‘‘मां, आप ने तो सब कर लिया.’’ ‘‘हां बेटा, नेहा जल्दी निकलती है. सब काम साथ ही हो जाता है. आओ, नाश्ता कर लो.’’ ‘‘कल से मैं और जल्दी उठ जाऊंगी.’’ ‘‘सब हो जाएगा बेटा, इतना मत सोचो. अभी तो मैं कर ही लेती हूं. तबीयत कभी बिगड़ेगी तो करना ही होगा और आगेआगे तो जिम्मेदारी संभालनी ही है, अभी ये दिन आराम से बिताओ, खुश रहो.’’

अजय भी तैयार हो कर आ गया था. बोला, ‘‘मां, लंच में क्या है?’’ ‘‘पनीर.’’जूही तुरंत बोली, ‘‘मां यह मेरी पसंदीदा डिश है.’’ अजय ने कहा, ‘‘मैं ने ही बताया है मां को. मां, अब क्या अपनी बहू की पसंद का ही खाना बनाओगी?’’ जूही तुनकी, ‘‘मां ने कहा है न उन के लिए बहू नहीं, बेटी हूं.’’ नेहा ने घर से निकलतेनिकलते हंसते हुए कहा, ‘‘मां, भाभी के सामने मुझे भूल त जाना.’’ शिवमोहन ने भी बातों में हिस्सा लिया, ‘‘अरे भई, थोड़ा तो सास वाला रूप दिखाओ, थोड़ा टोको, थोड़ा गुस्सा हो, पता तो चले घर में सासबहू हैं.’’ सब जोर से हंस पड़े. शैलजा ने कहा, ‘‘सौरी, यह तो किसी को पता नहीं चलेगा कि घर में सासबहू हैं.’’ सब हंसतेबोलते घर से निकल गए.

थोड़ी देर बाद ही मेड श्यामाबाई आ गई. शैलजा घर की सफाई करवाने लगी. अजय के कमरे में जा कर श्यामा ने आवाज दी, ‘‘मैडम, देखो आप की बहू कैसे सामान फैला कर गई हैं.’’ शैलजा ने जा कर देखा, हर तरफ सामान बिखरा था, उन्हें हंसी आ गई. श्यामा ने पूछा, ‘‘मैडम, आप हंस रही हैं?’’ शैलजा ने कहा, ‘‘आओ, मेरे साथ,’’ शैलजा उसे नेहा के कमरे में ले गई. वहां और भी बुरा हाल था.

शैलजा ने कहा, ‘‘यहां भी वही हाल है न? तो चलो अब हर जगह सफाई कर लो जल्दी.’’ श्यामा 8 सालों से यहां काम कर रही थी. अच्छी तरह समझती थी अपनी शांतिपसंद मैडम को, अत: मुसकराते हुए अपने काम में लग गई. जूही फोन पर अपने मम्मीपापा से संपर्क में रहती ही थी. शादी के बाद आज औफिस का पहला दिन था. रास्ते में ही अंजना का फोन आ गया. हालचाल के बाद पूछा, ‘‘आज तो सुबह कुछ काम भी किए होंगे?’’

शैलजा की तारीफ के पुल बांध दिए जूही ने. तभी अचानक जूही को कुछ याद आया. बोली, ‘‘मम्मी, मैं बाद में फोन करती हूं,’’ फिर तुरंत सासूमां को फोन मिलाया. शैलजा के हैलो कहते ही तुरंत बोली, ‘‘सौरी मां, मैं अपना रूम बहुत बुरी हालत में छोड़ आई हूं… याद ही नहीं रहा.’’‘‘श्यामा ने ठीक कर दिया है.’’‘सौरी मां, कल से…’’ ‘‘सब आ जाता है धीरेधीरे. परेशान मत हो.’’

शैलजा के स्नेह भरे स्वर पर जूही का दिल भर आया. अजय और जूही दिन भर व्यस्त रहे. सहकर्मी बीचबीच में दोनों को छेड़ कर मजा लेते रहे. दोनों रात 8 बजे औफिस से निकले तो थकान हो चुकी थी. जूही का तो मन कर रहा था, सीधा जा कर बैड पर लेटे. लेकिन वह मायका था अब ससुराल है.

10 बजे तक दोनों घर पहुंचे. शिवमोहन, शैलजा और नेहा डिनर कर चुके थे. उन दोनों का टेबल पर रखा था. हाथ धो कर जूही खाने पर टूट पड़ी. खाने के बाद उस ने सारे बरतन समेट दिए. शैलजा ने कहा, ‘‘तुम लोग अब आराम करो. हम भी सोने जा रहे हैं.’’ शैलजा लेटीं तो शिवमोहन ने कहा, ‘‘तुम भी थक गई होगी न?’’‘‘हां, बस अब सोना ही है.’’‘‘काम भी तो बढ़ गया होगा?’’ ‘‘कौन सा काम?’’ ‘‘अरे, एक और टिफिन…’’

‘‘6 की जगह 8 रोटियां बन गईं तो क्या फर्क पड़ा? सब की तो बनती ही हैं और आज तो मैं ने इन दोनों का टिफिन अलगअलग बना दिया. कल से एकसाथ ही पैक कर दूंगी. खाना बच्चे साथ ही तो खाएंगे, जूही का खाना बनाने से मुझ पर कोई अतिरिक्त काम आने वाली बात है ही नहीं.’’

‘‘तुम हर बात को इतनी आसानी से कैसे ले लेती हो, शैल?’’

‘‘शांति से जीना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है, बस हम औरतें ही अपने अहं, अपनी जिद में आ कर अकसर घर में अशांति का कारण बन जाती हैं. जैसे नेहा को भी अभी कोई काम करने की ज्यादा आदत नहीं है वैसे ही वह बच्ची भी तो अभी आई है. आजकल की लड़कियां पहले पढ़ाई, फिर कैरियर में व्यस्त रहती हैं. इतना तो मैं समझती हूं आसान नहीं है कामकाजी लड़कियों का जीवन. अरे मैं तो घर में रहती हूं, थक भी गई तो दिन में थोड़ा आराम कर लूंगी. कभी नहीं कर पाऊंगी तो श्यामा है ही, किचन में हैल्प कर दिया करेगी, जूही पर घर के भी कामों का क्या दबाव डालना. नेहा को ही देख लो, कालेज और कोचिंग के बाद कहां हिम्मत होती है कुछ करने की, ये लड़कियां घर के काम तो समय के साथसाथ खुद ही सीखती चली जाती हैं. बस, थोड़ा सा समय लगता है.’’

शैलजा अपने दिल की बातें शेयर कर रही थीं, ‘‘अभी नईनई आई है, आते ही किसी बात पर मन दुखी हो गया तो वह बात दिल में एक कांटा बन कर रह जाएगी जो हमेशा चुभती रहेगी. मैं नहीं चाहती उसे किसी बात की चुभन हो,’’ कह कर वे सोने की तैयारी करने लगीं, बोलीं, ‘‘चलो, अब सो जाते हैं.’’

उधर अजय की बांहों का तकिया बना कर लेटी जूही मन ही मन सोच रही थी, आज शादी के बाद औफिस का पहला दिन था. मां के व्यवहार और स्वभाव में कितना स्नेह है. अगर उन्होंने मुझे बेटी माना है तो मैं भी उन्हें मां की तरह ही प्यार और सम्मान दूंगी. पिछले 15 दिनों से चाची की बात दिल पर बोझ की तरह रखी थी, लेकिन इस समय उसे अपना दिल फूल सा हलका लगा, बेफिक्री से आंखें मूंद कर उस ने अपना सिर अजय के सीने पर रख दिया.

 

दरबदर: मास्साब को कौनसी सजा मिली

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खामोश जवाब: भाग 1 – क्या है नीमा की कहानी

‘‘तुम्हारे टेलैंट को मैं मान गई, लोग एक नौकरी को तरसते हैं और तुम्हारे पास तो औफर्स की लाइन लगी हुई है,’’ नीमा ने युवान की प्रशंसा करते हुए कहा.

नीमा की इस बात को सुन कर युवान के चेहरे पर एक मुसकराहट तैर आई. उस ने उस का हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा, ‘‘दरअसल, मैं ऐसी नौकरी करना चाहता हूं जिस में मैं निराश लोगों के मन में छिपा दर्द बाहर निकाल कर प्रेरणा भर सकूं और उन की जिंदगी बेहतर कर सकूं.’’

‘‘अच्छा, तो लगता है कि साहब मनोचिकित्सक बनना चाहते हैं. चलो ठीक है हमारे दिलोदिमाग का भी ध्यान रखिएगा,’’ कह कर नीमा ने युवान को इस तरह निहारा जैसे उसे अपने प्रेमी युवान के इस फैसले पर बड़ा नाज हो.

युवान और नीमा एकदूसरे से विश्वविद्यालय की कैंटीन में मिले थे जहां पर युवान अपने दोस्तों के साथ बैठा हुआ मोटिवेशनल बातें कर रहा था. युवान की बातें नीमा को सुहा रही थीं. नीमा उस के हाथों की मुद्राएं और चेहरे की भावभंगिमाएं देख रही थी, कितना आत्मविश्वास था युवान की बातों में और युवान के हर तर्क के साथ उस का ओजपूर्ण चेहरा और भी चमकीला हो उठता था. कहना गलत नहीं होगा कि युवान को देखते ही पहली नजर का प्यार हो गया था और यह बात नीमा ने युवान को बताने में देर भी नहीं करी और उस की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा दिया.

नीमा एक लंबी छरहरी काया की सुंदर और बेबाक लड़की थी शायद इसीलिए युवान ने भी उस का दोस्ती का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया था. उस समय युवान मनोविज्ञान में परास्नातक की पढ़ाई कर रहा था जबकि नीमा मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई कर रही थी. दोनों ने धीरेधीरे जान लिया कि बहुत कुछ कौमन है. युवान और नीमा की दोस्ती बढ़ी तो पसंद और खयाल भी मिलने लगे. दोनों के तो प्रेम का अंकुर भी फूट गया और दोनों को लगने लगा कि इस प्रेम को रिश्ते में बदलना ठीक रहेगा. अत: दोनों ने अपनी पसंद अपनेअपने घर वालों को बताई. लड़कालड़की दोनों सम   झदार और काबिल थे इसलिए घर वालों ने इस रिश्ते के लिए हामी भर दी.

30 सितंबर की डेट शादी के लिए फिक्स कर दी गई. नीमा और युवान दोनों शादी की तैयारियों में व्यस्त थे. अपनी पसंद की चीजें नीमा औनलाइन और्डर कर रही थी.

युवान ने सोशल मीडिया पर एक विज्ञापन देखा कि उस के शहर के बाहरी छोर पर तिब्बती कपड़ों का बाजार लगा हुआ है. इस मार्केट के ऊनी कपड़ों के बारे में जम कर शहर में प्रचारप्रसार किया गया था. युवान कपड़ों का शौकीन तो था ही इसलिए उस ने आज इस तिब्बती बाजार में जा कर खरीदारी करने की बात सोची और अपनी मोटरसाइकिल पर बढ़ चला शहर के बाहरी छोर पर सजी ऊनी कपड़ों की तिब्बती मार्केट की ओर.

मौसम में गुलाबी ठंडक थी, ठंडी हवा युवान को बहुत सुहा रही थी. उस का मूड रोमानी हो चला था. उस ने बाइक रोक कर अपने कानों में इयरबड लगा लिए और सिर पर हैलमेट लगा कर नीमा से बात करने लगा. युवान बाइक को भले ही धीमेधीमे चला रहा था पर पीछे से आते अन्य वाहनों की रफ्तार काफी तेज थी. युवान और नीमा बातें करते हुए हंस रहे थे कि इतने में पीछे से आती एक तेज रफ्तार और बेकाबू जीप ने युवान की बाइक को ऐसी तेज टक्कर मारी कि युवान का संतुलन पूरी तरह बिगड़ गया और वह बाइक को संभाल नहीं सका. वह रोड पर सिर के बल गिर गया और घिसटता हुआ चला गया. हैलमेट पहने होने के कारण सिर तो बच गया था पर उस के दोनों पैरों से खूब खून बह बुरहा था. युवान कुछ सम   झ नहीं सका पर उस की उड़ती हुई नजर उस टक्कर मारने वाली गाड़ी पर जरूर पड़ी और उस गाड़ी के पीछे लिखा था विधायक. सत्ता का नशा तो व्यक्ति को अंधा बनाता ही है और यदि उस पर शराब का नशा चढ़ जाए तो व्यक्ति अपनाआपा ही खो बैठता है.

कार की टक्कर से युवान अपना जीवन ही खो बैठता पर उस के शरीर से उस की सांसों की दोस्ती अच्छी थी. वह जीवित था पर बुरी तरह घायल था. लोगों की मदद से युवान को अस्पताल पहुंचाया गया और फिर उस के मोबाइल के द्वारा युवान के घर वालों को खबर करी गई. नीमा भी वहां आई थी और रोरो कर काफी परेशान थी. उस ने कई बार युवान से मिलने की इच्छा प्रकट करी पर डाक्टरों ने उसे मिलने की अनुमति नहीं दी.

युवान को आईसीयू में शिफ्ट कर दिया गया था. धीरेधीरे उस की हालत में सुधार

तो हुआ पर डाक्टरों ने युवान के घर वालों को स्पष्ट बता दिया कि दोनों पैरों के घुटने बुरी तरह चोटिल हो जाने के कारण युवान पैरों पर खड़ा नहीं हो सकेगा और हो सकता है कि उसे जीवनभर व्हीलचेयर पर रहना पड़े.

उस के घर वालों पर तो दुख का पहाड़ ही टूट पड़ा था. बेचारे किसी तरह एकदूसरे को सांत्वना दे रहे थे. 3 महीनों बाद युवान को अस्पताल से छुट्टी तो मिल गई पर वह व्हीलचेयर से नहीं उठ पाया. नीमा उस से मिलने आती तो युवान को बहुत  ि  झ   झक होती. वह अपनी अपंगता से तो परेशान था ही, साथ ही साथ नीमा का उतरा चेहरा उसे और भी पीड़ा पहुंचाता.

नीमा इस समय बहुत बुरे दौर और मानसिक पीड़ा से गुजर रही थी. जिस व्यक्ति से शादी करना चाहती थी वह अपंग हो चुका था और उसे अब व्हीलचेयर पर रहना पड़ेगा. जिस तरह से दूध में पड़ी हुई मक्खी देख कर नहीं निगली जाती उसी तरह एक अपंग व्यक्ति से कोई भी लड़की शादी नहीं करना चाहती और नीमा भी कोई अपवाद नहीं थी. पहले कुछेक दिन तो उस ने अस्पताल में आनाजाना और युवान से मिलना जारी रखा पर धीरेधीरे उसे एहसास हो चला कि अब युवान एक जीवनसाथी के रूप में किसी भी नजरिए से आदर्श नहीं रह गया है.

विष अमृत: भाग-1 एक घटना ने अमिता की पूरी जिंदगी ही बदल कर रख दी

एक घटना ने अमिता की पूरी जिदगी ही बदल कर रख दी थी और जब आकाश ने उस से शादी करने की इच्छा जताई तो वह रो पड़ी. आखिर क्या हुआ था उस के साथ. ‘‘आज जाने की जिद न करो, यों ही पहलू में बैठे रहो,’’ कनु के स्वर की मधुर स्वरलहरियां कमरे में तैर रही थीं. सब लोग मगन हो कर सुन रहे थे.

निशा रजत के कंधे पर सिर रखे आंखें बंद कर के गाने का पूरा आनंद ले रही थी बल्कि गाने की पंक्तियों को साकार कर रही थी.

आकाश दीवार से सिर टिकाए सपनों में खोया था. उस का संपूर्ण वजूद एक अक्स से आग्रह कर रहा था, ‘‘आज जाने की जिद न करो…’’नमिता खोईखोई सी नजरों से न जाने कहां देख रही थी. आकाश ने पहलू बदलने के बहाने से एक भरपूर नजर से नमिता को देखा, काश कि यह बात वह खुद नमिता से कह पाता, ‘‘मेरी निमी सिर्फ आज नहीं बल्कि तुम कभी भी इस घर से, मेरे जीवन से जाने की बात मत करो. रह जाओ न सदा के लिए यहीं मेरे पास. देखो तुम्हारे बिना यह घर और मैं दोनों कितने अकेले हैं.’’

 

मगर आकाश कभी कह नहीं पाया. कितनी मुलाकातें, एक लंबा साथ, अच्छी दोस्ती, आपसी सामंजस्य सबकुछ है दोनों के बीच लेकिन तब भी नमिता की तरफ से किसी तिनके की ऐसी ओट है जिसे पार कर वह दोस्ती की हद से आगे अपनी भावनाएं व्यक्त नहीं कर पा रहा है उस के प्रति. बस रातदिन उस के अपने ही भीतर नमिता के प्रति प्यार का रंग गाढ़ा होता जा रहा है.

तालियां बजने की आवाज से आकाश चौंक गया. कनु गाना खत्म कर चुकी थी और बाकी सब लोग तालियां बजा रहे थे. ‘‘वाह, आज तो हमें भी ऐसा लग रहा है कि हम भी तुम से यही कहें कि आज जाने की जिद न करो बस यों ही गाते रहो,’’ रजत ने कहा तो सब खिलखिला कर हंस दिए.

‘‘हां तुम तो चाहोगे ही कि कनु गाती रहे और निशा तुम्हारे कंधे पर सिर रख कर यहीं बैठी रहे. तुम दोनों अब शादी क्यों नहीं कर लेते? अब तो तुम दोनों की ही अच्छी जौब है,’’ पंकज ने रजत को छेड़ा.

‘‘अरे यार तुम्हें लगता है कि शादी के बाद हमें फुरसत मिलेगी इस तरह रोमानी शामें गुजारने की. तब तो निशा को रात का डिनर तैयार करने के लिए घर भागने की जल्दी हुआ करेगी वरना मेरी मम्मी का मुंह फूल जाया करेगा. कुछ दिन इस रोमानियत को और ऐंजौय करने दो,’’ रजत ने इस ढंग से कहा कि सब हंसने लगे.

‘‘चलो मीनाक्षी अब एक गाना तुम सुना दो,’’ निशा ने बात बदलते हुए कहा. ‘‘एक गाना सुन लिया अब एक कविता सुनी जाए आकाश से. मैं बाद में गाऊंगी,’’ मीनाक्षी ने कहा. ‘‘हां यह बात सही है, आकाश सुनाओ न हाल ही में नया क्या लिखा तुम ने?’’ पंकज ने आग्रह किया.

आकाश ने पूरे तरन्नुम में एक गजल छेड़ दी. एक दर्द भरी इश्क में डूबी गजल. उस की आवाज भी उतनी ही दर्द भरी थी. जब वह गजल गाता था तो महफिल उस में खो जाती थी. पेशे से वह एक सौफ्टवेयर इंजीनियर था लेकिन उसे लिखने और गाने का बहुत शौक था. इसी शौक ने उन सब की आपस में पहचान और दोस्ती करवाई थी और अब हर शनिवार को वे सब आकाश के घर पर इकट्ठा होते थे औफिस के बाद. चायनाश्ते के दौर के साथ ही गानों का दौर चलता रहता जिस में आकाश अपनी गजलें गाता और नमिता अपनी कविताएं सुनाती. एक छोटा सा म्यूजिक ऐंड लिटरेचर गु्रप बन गया था उन का. आकाश अपने फ्लैट में अकेला रहता था इसलिए सब यही कंफर्टेबल फील करते थे. बाकी सब अपनेअपने परिवार के साथ रहते थे.

 

आकाश की गजल के बाद मीनाक्षी ने, ‘‘आओ हुजूर तुम को बहारों में ले चलूं…’’ गाना शुरू किया तो पंकज, कनु और रजतनिशा उठ कर डांस करने लगे. मीनाक्षी ने 1-2 बार आकाश को चोरी से इशारा किया कि नमिता के साथ डांस करे लेकिन नमिता पहले ही इस आशंका से असहज लग रही थी तो आकाश ने कुछ नहीं कहा. आकाश के दिल का हाल और उस की नमिता के प्रति भावनाओं को सब जानते थे और भरसक उन दोनों को पास लाने की कोशिश करते थे लेकिन नमिता ऐसे समय एकदम से खुद में सिमट जाती थी और एक दूरी बना लेती. 9 बजे सब लोग आकाश से विदा ले कर चले गए. पंकज, कनु और नमिता को घर पहुंचाता था और रजत मीनाक्षी और निशा को. सन्नाटे भरे घर में आकाश अकेला रह गया. थोड़ी देर टीवी देखने के बाद वह कुछ लिखने बैठा और देर तक लिखता रहा. नमिता को ले कर उस की जो भावनाएं थीं, जो ख्वाब थे उन्हीं को शब्द देता रहा. उस के मन में आज यही ख्वाहिश रही थी कि काश वह नमिता के लिए कभी खुद गा पाता कि आज जाने की जिद न करो, लेकिन हर बार उस की ख्वाहिश मन में ही रह जाती है कभी होंठों तक नहीं आ पाती. ख्वाहिश को दिल से होंठों तक लाने में जाने कितने वर्षों का इंतजार करना पड़ेगा उसे. क्या जाने यह इंतजार कभी खत्म भी होगा या नहीं.

ऐसा नहीं है कि नमिता आकाश की भावनाओं से अनजान है, सम   झती तो होगी ही वह उस की चाहत को लेकिन क्यों इस तरह से एक दूरी बना कर रखती है, कभी दिल की बात वह कह पाए इतना पास ही नहीं आने देती उसे. आकाश दिल की गहराइयों से उसे चाहता था, रातरातभर उस के खयालों में जागता रहता. 4 साल हो गए हैं उसे नमिता को चाहते लेकिन यह चाहत बस आकाश के दिल तक ही सीमित थी.

 

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