Summer Special: घर पर बनाएं चटपटी राज कचौड़ी

राज कचौड़ी भारत के प्रमुख चटपटे व्यंजन में से प्रमुख है. लोग नाश्ते में इसे चटकारे लेकर खाना पसंद करते हैं. कचौड़ी और आलू की कोमलता, मसालों का चटपटा स्वाद और अनोखी खुशबू ही इस राज कचौड़ी का स्वाद बढाता हैं.

सामग्री

300 ग्राम मोठ अंकुरित

4 उबले हुए आलू

250 ग्राम मैदा

100 ग्राम बेसन

तलने के लिए तेल

स्वादानुसार नमक

1/2 टी स्पून देगी मिर्च

1 टी स्पून गरम मसाला पाउडर

500 ग्राम दही

1/2 कप इमली की चटनी

1/2 कप हरी चटनी

सजाने के लिए

1 कप अनार के दाने

1 कप बीकानेरी भुजियाए

2 टेबल स्पून बारीक कटा हरा धनिया

विधि

मैदा में पानी मिलाकर अच्छी तरह से गूंध लें. बेसन में थोड़ा-सा तेल, देगी मिर्च और नमक डाल कर गूंध लें.

मैदे की छोटी-छोटी लोइयां बनाएं और उसमें बेसन की छोटी गोली भर कर पूरी के आकार में बेलें. एक कड़ाही में तेल गर्म करें और पूडि़यां को करारा तल लें.

मोठ को उबाल कर उसमें नमक, मिर्च, गरम मसाला, उबले हुए आलू मिलाएं और कचौड़ी में भरे, दही में नमक मिलाएं और तैयार राज कचौड़ी के बीच में डालें ऊपर से मीठी और हरी चटनी डालें.

बीकानेरी भुजिया और अनार के दानों से सजाकर सर्व करें.

 

Summer Special: तेज धूप से कैसे करे त्वचा की रक्षा, फॉलो करें ये टिप्स

गरमी में खुद को सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों से बचा कर रखना जरूरी होता है. अब काम तो रुकते नहीं. घर से बाहर निकलना ही पड़ता है. ऐसे में त्वचा पर तेज धूप की वजह से रैशेज पड़ जाते हैं. धूप का प्रभाव मुख्य रूप से चेहरे, गरदन और बांहों पर पड़ता है, क्योंकि शरीर के यही हिस्से हमेशा खुले रहते हैं. इन्हें धूप के असर से बचाने के लिए आप क्या सावधानियां बरतें, आइए जानें:

  1. घर से बाहर छतरी के बिना न निकलें और अच्छे ब्रैंड के साबुन से दिन में 2 बार नहाएं.
  2. दिन में 2 बार सनब्लौक क्रीम का उपयोग करें. यह क्रीम यूवी किरणों से त्वचा की रक्षा करती है.
  3. सूती वस्त्रों का प्रयोग करें और सारे शरीर को ढक कर रखें.
  4. सनब्लौक क्रीम खरीदते समय सनप्रोटैक्शन फैक्टर यानी एसपीएफ की जांच कर लें.

कपड़ों का चुनाव

  1. कपड़े हमेशा हलके रंग के पहनें. इस से गरमी भी कम लगती है और व्यक्तित्व भी आकर्षक लगता है.
  2. इन दिनों टाइट कपड़े नहीं पहनने चाहिए. पैंट या स्कर्ट अथवा साड़ी तो डार्क कलर की हो सकती है, लेकिन ध्यान रहे कि कमर से ऊपर के कपड़े हलके रंग के होने चाहिए.
  3. काम पर जाती हैं, तो सूती कपड़ों का ही प्रयोग करें.
  4. वैसे जहां तक हो सके शिफौन, क्रैप और जौर्जेट का इस्तेमाल अधिक करें. बड़ेबड़े फूलों वाले और पोल्का परिधान भी इस मौसम में सुकून देते हैं.
  5. ग्रेसफुल दिखने के लिए कौटन के साथ शिफौन का उपयोग कर सकती हैं.
  6. एक और फैब्रिक है, लिनेन. इस का क्रिस्पीपन इसे खास बनाता है.
  7. फैब्रिक्स का बेताज बादशाह है डैनिम. इस का हर मौसम के अनुकूल होना ही इसे खास बनाता है. लेकिन इस मौसम में पहना जाने वाला डैनिम पतला होना चाहिए. मोटा डैनिम सर्दियों में पहना जाता है.

मेकअप

  1. जैलयुक्त फाउंडेशन का इस्तेमाल करें. इस से चेहरा चमकता है.
  2. गालों पर क्रीमी चीजों का इस्तेमाल करें, लेकिन यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि वे ग्रीसी न हों. इस मौसम में हलके गुलाबी या जामुनी रंग का इस्तेमाल सुंदरता को बढ़ाता है.
  3. इस मौसम में चांदी और मोती के बने गहने ही पहनें.

खरोंचें: टूटे रिश्तों की कहानी

कितनी आरजू, कितनी उमंग थी मन में. लेकिन हकीकत में मिला क्या? सारे सपने चूरचूर हुए

और रह गई सिर्फ आह. ‘‘आप इंडिया से कनाडा कब आए?’’‘‘यही कोई 5 साल पहले.’’ ‘‘यहां क्या करते हैं?’’ ‘‘फैक्टरी में लगा हूं.’’ ‘‘वहां क्या करते थे?’’ ‘‘बिड़लाज कंसर्न में अकाउंट्स अधिकारी था.’’

इन सज्जन से मेरी यह पहली मुलाकात है. अब आप ही बताएं, भारत का एक अकाउंट्स अधिकारी कनाडा आ कर फैक्टरी में मजदूरी कर रहा है. उसे कनाडा आने की बधाई दूं या 2-4 खरीखोटी सुनाऊं, यह फैसला मैं आप पर छोड़ता हूं.

‘‘अच्छा, तो वहां तो आप अपने विभाग के बौस होंगे?’’ ‘‘हांहां,  वहां करीब 60 लोग मेरे मातहत थे. अकाउंट विभाग का इंचार्ज था न, 22 हजार रुपए तनख्वाह थी.’’ ‘‘तो घर पर नौकरचाकर भी होंगे?’’ ‘‘हां, मुझे तो आफिस की तरफ से एक अर्दली भी मिला हुआ था. कार और ड्राइवर तो उस पोस्ट के साथ जुडे़ ही थे.’’

‘‘अच्छा, फिर तो बडे़ ठाट की जिंदगी गुजार रहे थे आप वहां.’’ ‘‘बस, ऊपर वाले की दया थी.’’ ‘‘भाभीजी क्या करती थीं वहां?’’ ‘‘एक स्कूल में अध्यापिका थीं. कोई नौकरी वाली बात थोड़ी थी, अपने छिटपुट खर्चों और किटी पार्टी की किश्तें निकालने के लिए काम करती थीं, वरना उन्हें वहां किस बात की कमी थी.’’

‘‘तो भाभीजी भी आप के साथ ही कनाडा आई होंगी? वह क्या करती हैं यहां?’’

‘‘शुरू में तो एक स्टोर में कैशियर का काम करती थीं. फिर नौकरी बदल कर किसी दूसरी जगह करने लगीं. अब पता नहीं क्या करती हैं.’’ ‘‘पता नहीं से मतलब?’’ ‘‘हां, 2 साल पहले हमारा तलाक हो गया.’’

लीजिए, कनाडा आ कर अफसरी तो खोई ही, पत्नी भी खो दी. ‘‘माफ कीजिए, आप के निजी जीवन में दखल दे रहा हूं, पर यह तो अच्छा नहीं हुआ.’’ ‘‘अच्छा हुआ क्या, कुछ भी तो नहीं. यहां आ कर शानदार नौकरी गई, पत्नी गई और अब तो…’’

‘‘अब तो क्या?’’ ‘‘मेरी बेटी भी पता नहीं कहां और किस के साथ रहती है.’’ ‘‘आप की बेटी भी है. वह तलाक के बाद आप के पास थी या आप की पत्नी के पास?’’

‘‘मेरी बेटी 18 साल से बड़ी थी इसलिए उस ने न मेरे साथ रहना पसंद किया न अपनी मां के साथ, अलग रहने चली गई.  कहने लगी कि जो अपनी गृहस्थी नहीं संभाल सके वे मेरी जिंदगी क्या संभालेंगे. कहां चली गई किसी को पता नहीं. हां, कभीकभी फोन कर देती है, इसी से पता चलता है कि वह है, पर कहां है कभी नहीं बताती. फोन करती है तो ‘पे’ फोन से. आप ने सुना है किसी को स्वर्ग में नरक भोगते? मैं भोग रहा हूं.’’

मैं उन से क्या कहूं? क्या कह कर दिलासा दूं? स्वर्ग की चाह हम ने खुद की थी, हमारा फैसला था यह, हमारी महत्त्वाकांक्षा थी जो हमें उस आकाश के आंचल से इस आकाश के आंचल तले समेट लाई. जब जीवन वहां के अंदाज को छोड़ कर यहां के अंदाज में बदलने लगा तो हमें महसूस हुआ कि हम नरक के दरवाजे पर पहुंच गए. नरक भोगने जैसी बातें करने लगे.

मैं यह समझता हूं कि यह नरक भोगना नहीं है, यह बदल रही जीवन शैली की सचाइयों से मुझ जैसे प्रवासियों का परिचय है. यह पहला अनुभव है जो वहां की जीवन शैली से यहां की जीवन शैली में परिवर्तन के क्रम का पहला पड़ाव समान है. याद है जब भारत की भीड़ भरी बसों और ट्रेनों में धक्कामुक्की कर के चढ़ते थे और उस प्रयास में लग जाती थीं कुछ खरोंचें. वही खरोंचें हैं ये.

 

वे बच्चे: कौन था वह भिखारी

लाल बत्ती पर जैसे ही कार रुकी वैसे ही भिखारी और सामान बेचने वाले उन की तरफ लपके. बड़ा मुश्किल हो जाता है इन भिखारियों से पीछा छुड़ाना. जब तक हरी बत्ती न हो जाए, भिखारी आप का पीछा नहीं छोड़ते हैं. अब तो इन के साथसाथ हिजड़ों ने भी टै्रफिक सिग्नलों पर कार वालों को परेशान करना शुरू कर दिया है. सब से अधिक परेशान अब संपेरे करते हैं, यदि गलती से खिड़की का शीशा खुला रह जाए तो संपेरे सांप आप की कार के अंदर डाल देते हैं और आप चाह कर भी पीछा नहीं छुड़ा पाते हैं.

‘‘कार का शीशा बंद कर लो,’’ मैं ने पत्नी से कहा.

‘‘गरमी में शीशा बंद करने से घुटन होती है,’’ पत्नी ने कहा. ‘‘डेश बोर्ड पर रखे सामान पर नजर रखना. भीख मांगने वाले ये छोटे बच्चे आंख बचा कर मोबाइल फोन, पर्स चुरा लेते हैं,’’ मैं ने कहा.

इतने में एक छोटी सी बच्ची कार के दरवाजे से सट कर खड़ी हो गई और पत्नी से भीख मांगने लगी. कुछ सोचने के बाद पत्नी ने एक सिक्का निकाल कर उस छोटी सी लड़की को दे दिया. वह लड़की तो चली गई, लेकिन उस के जाने के फौरन बाद एक और छोटा सा लड़का आ टपका और कार से सट कर खड़ा हो गया.

‘‘एक को दो तो दूसरे से पीछा छुड़ाना मुश्किल हो जाता है. देखो, इस को कुछ मत देना, नहीं तो तीसरा बच्चा आ जाएगा,’’ मैं बोला. इसी बीच बत्ती हरी हो गई और कार स्टार्ट कर के मैं आगे बढ़ गया.

‘‘इन छोटेछोटे बच्चों को भीख मांगते देख कर बड़ा दुख होता है. स्कूल जाने की उम्र में पता नहीं इन को क्याक्या करना पड़ता है. इन का तो बचपन ही खराब हो जाता है,’’ पत्नी ने कहा.

‘‘यह हम सोचते हैं, लेकिन भीख मांगना इन के लिए तो एक बिजनेस की तरह है. रोज इसी सड़क से आफिस जाने के लिए गुजरता हूं, इस लाल बत्ती पर रोज इन्हीं भिखारियों को सुबहशाम देखता हूं. कोई नया भिखारी नजर नहीं आता है. मजे की बात यह कि भिखारी सिर्फ कार वालों से ही भीख मांगते हैं. लाल बत्ती पर कभी इन को स्कूटर, बाइक वालों से भीख मांगते नहीं देखा है,’’ मैं ने कहा, ‘‘भिखारियों के साथसाथ अब सामान बेचने वालों से भी सावधान रहना पड़ता है.’’

‘‘छोड़ो इन बातों को,’’ पत्नी ने कहा, ‘‘कभीकभी तरस आता है.’’

‘‘फायदा क्या इन पर तरस दिखाने का,’’ मैं ने कहा, ‘‘जरा ध्यान रखना, फिर से लाल बत्ती आ गई.’’

‘‘अपनी भाषा कभी नहीं सुधार सकते. लाल, हरी बत्ती क्या होती है. ट्रैफिक सिग्नल नहीं कह सकते क्या,’’ पत्नी ने कहा.

‘‘फर्क क्या पड़ता है, बत्ती तो लाल और हरी ही है,’’ मैं ने कहा.

‘‘मैनर्स का फर्क पड़ता है. हमेशा सही बोलना चाहिए. अगर तुम्हें किसी को टै्रफिक सिग्नल पर मिलना हो और तुम उसे लाल बत्ती पर मिलने को कहो और मान लो, टै्रफिक सिग्नल पर हरी बत्ती हो या फिर बत्ती खराब हो तो वह व्यक्ति क्या करेगा? अगली लाल बत्ती पर आप का इंतजार करेगा, जोकि गलत होगा. इसीलिए हमेशा सही शब्दों का प्रयोग करना चाहिए,’’ पत्नी ने कहा. ‘‘अब इस बहस को बंद करते हैं. फिर से बत्ती लाल हो गई है.’’ इस बार एक छोटा सा 7-8 साल का बच्चा मेरी तरफ आया. ‘‘अंकल, टायर, एकदम नया है, सिएट, एमआरएफ, लोगे?’’ बच्चा बोला. मैं चुप रहा. ‘‘एक बार देख लो,’’ बच्चा बोला, ‘‘सस्ता लगा दूंगा.’’

‘‘नहीं लेना,’’ मैं ने कहा. ‘‘एक बार देख तो लो. देखने के पैसे नहीं लगते,’’ बच्चा बोला.‘‘कितने का देगा?’’ मैं ने पूछा. ‘‘मारुति 800 का नया टायर शोरूम में लगभग 1,100 रुपए में मिलेगा. आप के लिए सिर्फ 800 रुपए में,’’ बच्चा बोला.‘‘मेरे लिए सस्ता क्यों? टायर चोरी का तो नहीं?’’ मैं ने कहा.‘‘हम लोगों की कंपनी में सेटिंग है, इसलिए सस्ते मिल जाते हैं.’’‘‘एक टायर कितने में लाते हो?’’ ‘‘सिर्फ 50 रुपए एक टायर पर कमाते हैं.’’‘‘50 रुपए में टायर देगा?’’ ‘‘नहीं लेना तो मना कर दो, क्यों बेकार में मेरा टाइम खराब कर रहे हो,’’ बच्चा बोला. ‘‘टायर बेचने बेटे तुम आए थे, मैं चल कर तुम्हारे पास नहीं गया था,’’ मैं ने कहा.‘‘सीधे मना कर दो,’’ बच्चा बोला. ‘‘मना किया तो था, लेकिन फिर भी तुम चिपक गए तो मैं ने सोचा, चलो जब तक लाल बत्ती है तुम्हारे साथ टाइम पास कर लूं,’’ मैं ने कहा. ‘‘टाइम पास करना है तो आंटी के साथ करो न. मेरा बिजनेस टाइम क्यों खराब कर रहे हो,’’ कह कर बच्चा चला गया.

‘‘बात तो बच्चा सही कह गया,’’ पत्नी बोली, ‘‘मेरे साथ बात नहीं कर सकते थे, टाइम पास करने के लिए वह बच्चा ही मिला था. ऊपर से जलीकटी बातें भी सुना गया.’’ ‘‘आ बैल मुझे मार. चुप रहो तो मुसीबत, पीछा ही नहीं छोड़ते और बोलो तो जलीकटी सुना जाते हैं,’’ मैं ने कहा.

‘‘जब टायर लेना नहीं था तो उस के साथ उलझे क्यों?’’ पत्नी ने कहा. ऐसे ही बातोंबातों में घर आ गया.

दिल्ली शहर की भागदौड़ की जिंदगी में घर और दफ्तर का रुटीन है, इसी में इतनी जल्दी दिन बीत जाता है कि अपनों से भी बात करने का समय निकालना मुश्किल हो जाता है.

एक दिन आगरा घूमने का कार्यक्रम बना कर सुबह अपनी कार से रवाना हुए. खुशनुमा मौसम और सुबह के समय खाली सड़कें हों तो कार चलाने का आनंद ही निराला हो जाता है.

फरीदाबाद की सीमा समाप्त होते ही खुलाचौड़ा हाइवे और साफसुथरे वातावरण से मन और तन दोनों ही प्रसन्न हो जाते हैं. बीचबीच में छोटेछोटे गांव और कसबों में से गुजरते हुए कोसी पार कर मैं पत्नी से बोला, ‘‘चलो, वृंदावन की लस्सी पी कर आगे चलेंगे. वैसे हम दोनों पहले भी वृंदावन घूमने आ चुके हैं. मंदिरों व भगवान में अपनी कोई रुचि नहीं लेकिन यहां के बाजार में लस्सी पीने अैर भल्लाटिक्की खाने का अलग ही मजा है.’’

कार एक तरफ खड़ी कर इस्कान मंदिर के सामने की दुकान में हम लस्सी पीने के लिए बैठ गए.

लस्सी पी कर बाहर निकले तो पत्नी बोली, ‘‘चलो, अब थकान कम हो गई.’’

कार के पास जा कर जेब से चाबी निकाली और कार का दरवाजा खोलने के लिए चाबी को दरवाजे पर लगाया ही था कि तभी एक छोटा सा बच्चा आ कर दरवाजे से सट कर खड़ा हो गया और बोला, ‘‘अंकल, पैसे.’’

भिखारियों को मैं कभी पैसे नहीं दिया करता पर पता नहीं क्यों उस बच्चे पर मुझे तरस आ गया और जेब से 1 रुपए का सिक्का निकाल कर उस छोटे से बच्चे को दे दिया.

वह तो चला गया लेकिन उस के जाने के बाद पता नहीं कहां से छोटे बच्चों का एक  झुंड आ गया और चारों तरफ से हमें घेर लिया.

‘‘अंकल, पैसे,’’ एक के बाद एक ने कहना शुरू किया. मैं ने एक बार पत्नी की तरफ देखा, फिर उन बच्चों को.

जी में तो आया कि डांट कर सब को भगा दूं पर जिस तरह बच्चों की भीड़ ने हमें घेर रखा था और लोग तमाशबीन की तरह हमें देख रहे थे, शायद उस से विवश हो कर मेरा हाथ जेब में चला गया और फिर हर बच्चे को 1-1 सिक्का देता गया. किसी बच्चे को 1 रुपए का और किसी को 2 रुपए का सिक्का मिला. किसी के साथ भेदभाव नहीं था. यह इत्तफाक ही था कि जेब में 2 सिक्के रह गए और बच्चे भी 2 ही बचे थे. एक बच्चे को 5 रुपए का सिक्का चला गया और आखिरी वाले को 50 पैसे का सिक्का मिला.

‘‘क्यों, अंकल, उसे 5 रुपए और मुझे 50 पैसे?’’

‘‘जितने सिक्के जेब में थे, खत्म हो गए हैं. और सिक्के नहीं हैं, अब आप जाओ.’’

‘‘ऐसे कैसे चला जाऊं,’’ बच्चे ने अकड़ कर कहा.

‘‘और पैसे मैं नहीं दूंगा. सारे सिक्के खत्म हो गए. तुम कार के दरवाजे से हटो,’’ मैं ने कहा.

‘‘मतलब ही नहीं बनता यहां से जाने का. फटाफट पैसे निकालो. दूसरे बच्चे दूर चले गए हैं. उन्हें भाग कर पकड़ना है. अपने पास ज्यादा टाइम नहीं है. अंकल, आप के पास पैसे खत्म हो गए हैं तो आंटी के पास होंगे,’’ बच्चे ने पत्नी की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘आंटी, पर्स से फटाफट पैसे निकालो.’’

मैं और मेरी पत्नी दोनों एकदम अवाक् हो एकदूसरे की शक्ल देखने लगे.

पत्नी ने चुपचाप पर्स से 5 रुपए का सिक्का निकाला और उस बच्चे को दे दिया.

सिक्का पा कर छोटा सा बच्चा जातेजाते कहता गया,  ‘‘इतनी बड़ी कार ले कर घूमते हैं. पैसे देने को 1 घंटा लगा दिया.’’

फटाफट कार में बैठ कर  मैं ने कार स्टार्ट की और अपने गंतव्य की ओर चल पड़ा.

हम आगरा पहुंचे तो काफी थक चुके थे. पत्नी ने मेरे चेहरे की थकान को देख कर कहा, ‘‘चलो, किसी गेस्ट हाउस में चलते हैं.’’

गेस्ट हाउस के कमरे में बिस्तर पर लेटेलेटे सामने दीवार पर टकटकी लगा कर मुझे सोचते देख पत्नी ने पूछा, ‘‘क्या सोच रहे हो?’’

‘‘उस छोटे बच्चे की बात मन में बारबार आ रही है. एक तो भीख दो, ऊपर से उन की जलीकटी बातें भी सुनो. सोच रहा हूं कि दया का पात्र मैं हूं या वे बच्चे. दया की भीख मैं उन से मांगूं या उन को भीख दूं. कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि भिखारी कौन है. आखिर सुकून की जिंदगी कब और कहां मिलेगी. कहीं भी चले जाओ, ये भिखारी हर जगह सारा मजा किरकिरा कर देते हैं.’’

‘‘चलो, इस किस्से को अब भूल जाओ और हम दोनों ही प्रतिज्ञा करते हैं कि आज के बाद कभी भी किसी को भीख या दान नहीं देंगे, चाहे वह व्यक्ति कितना ही जरूरतमंद क्यों न हो.’’

‘‘करे कोई, भरे कोई,’’ मेरे मुंह से हठात निकल पड़ा.

‘‘किसी के चेहरे पर लिखा नहीं होता कि वह जरूरतमंद है.’’

‘‘सही बात है. हमें खुद अपनेआप को देखना है. दूसरों की चिंता में अपना आज क्यों खराब करें. अब आराम करते हैं.

 

मैं 22 साल की लड़की हूं, मुझे कितनी बार मैमोग्राम कराना चाहिए

आजकल लड़कियों में तेजी से ब्रेस्ट कैंसर की समस्या बढ़ती जा रही है. इस बीमारी से ग्रसित मरीज को साल में 2 बार मैमोग्राम कराना ही चाहिए. अगर परिवार में पहले से ये समस्या है तो अपने डॉक्टर से रेग्यूलर चेकअप कराएं.

सवाल

मैं 22 साल की लड़की हूं और मुझे कब और कितनी बार मैमोग्राम कराना शुरू करना चाहिए?

जवाब

22 साल अगर आप की उम्र है और आप के परिवार में ओवेरियन कैंसर और ब्रैस्ट कैंसर का इतिहास नहीं है तो चिंता करने की जरूरत नहीं है. सामान्यत: 40 साल की उम्र के बाद साल में 2 बार मैमोग्राम कराना चाहिए. अगर आप के परिवार में ब्रैस्ट कैंसर का इतिहास है तो आप को अपने डाक्टर के पास नियमित जांच करानी चाहिए और ब्रैस्ट एग्जामिनेशन टेस्ट करवाना चाहिए.

सवाल

मैं 28 साल की महिला हूं और अभीअभी गर्भनिरोधक गोलियां लेना शुरू किया है. क्या इन गोलियों से कोई संभावित साइड इफैक्ट या खतरा है?

जवाब

जिन महिलाओं को ब्रैस्ट कैंसर की फैमिली हिस्ट्री, हार्ट की बीमारी और किसी तरह की क्लौटस हो उन्हें बर्थ कंट्रोल पिल्स यानी गर्भनिरोधक गोलियां नहीं लेनी चाहिए क्योंकि इस तरह की पिल्स में आर्टिफिशियल हारमोन होते हैं जो आप की समस्या को बढ़ा सकते हैं. वैसे तो इस तरह की पिल्स से कोई खास तरह का साइड इफैक्ट नहीं होता है. अगर आप फिट हैं और आप का वजन सही है और आप को ऊपर बताई गई समस्या नहीं है तो आप को इन पिल्स से कुछ साइड इफैक्ट नहीं होना वाला है. बहुत ही कम केस में आप को चक्कर आ सकते हैं और पीरियड्स के दौरान फ्लो कम हो सकता है. चूंकि इस में आर्टिफिशियल हारमोन होते हैं तो इस से ब्रैस्ट कैंसर, ब्रैस्ट में कड़ापन और पैरों में क्लोट्स हो सकते हैं जोकि बहुत दुर्लभ है.

 

हंसी के घुंघरु

उस दिन मेरे पिता की बरसी थी. मैं पिता के लिए कुछ भी करना नहीं चाहता था. शायद मुझे अपने पिता से घृणा थी. यह आश्चर्य की बात नहीं, सत्य है. मैं घर से बिलकुल कट गया था. वह मेरे पिता ही थे, जिन्होंने मुझे घर से कटने पर मजबूर कर दिया था.

नीरा से मेरा प्रेम विवाह हुआ था. मेरे बच्चे हुए, परंतु मैं ने घर से उन अवसरों पर भी कोई संपर्क नहीं रखा.

लेकिन मेरे पिता की पुण्य तिथि मनाने के लिए नीरा कुछ अधिक ही उत्साह से सबकुछ कर रही थी. मुझे लगता था कि शायद इस उत्साह के पीछे मां हैं.

मैं सुबह से ही तटस्थ सा सब देख रहा था. बाहर के कमरे में पिता की तसवीर लग गई थी. फूलों की एक बड़ी माला भी झूल रही थी. मुझे लगता था कि मेरी देह में सहस्रों सूइयां सी चुभ रही हैं. नीरा मुझे हर बार समझाती थी, ‘‘बड़े बड़े होते हैं. उन का हमेशा सम्मान करना चाहिए.’’

नीरा ने एक छोटा सा आयोजन कर रखा था. पंडितपुरोहितों का नहीं, स्वजनपरिजनों का. सहसा मेरे कानों में नीरा का स्वर गूंजा, ‘‘यह मेरी मां हैं. मुझे कभी लगा ही नहीं कि मैं अपनी सास के साथ हूं.’’

बातें उड़उड़ कर मेरे कानों में पड़ रही थीं. हंसीखुशी का कोलाहल गूंज रहा था. मैं मां की सिकुड़ीसिमटी आकृति को देखता रहा. मां कितनी सहजता से मेरी गृहस्थी में रचबस गई थीं.

मैं नीरा की इच्छा जाने बिना ही मां को जबरन साथ ले आया था. साथ क्या ले आया था, मुझे लाना पड़ा था. कोई दूसरा विकल्प भी तो नहीं था.

राजू व रमेश विदेश में बस गए थे. पिता की मृत्यु पर वे शोक संवेदनाएं भेज कर निश्चिंत हो गए थे. रीना, इला और राधा आई थीं. मैं श्राद्ध के दिन अकेला ही गांव पहुंचा था.

नीरा नहीं आई थी. मैं ने जोर नहीं दिया था. शायद मैं भी यही चाहता था. जब मेरे हृदय में मृत पिता के लिए स्नेह जैसी कोई चीज ही नहीं थी तो नीरा के हृदय की उदासीनता समझी जा सकती थी.

मेरी दोनों बेटियां मां के पास रह गई थीं. परिवार के दूसरे बच्चे भी सचाई को पहचान गए थे. लोगों की देखादेखी, जब वे बहुत छोटी थीं तो दादादादी की बातें पूछा करती थीं. मैं पता नहीं क्यों ‘दादा’, ‘दादी’ जैसे शब्दों के प्रति ही असहिष्णु हो गया था.

‘दादी’ शब्द मेरे मानस पर दहशत से अधिक घृणा ही पैदा करता था. मेरे बचपन की एक दादी थीं, किंतु कहानियों वाली, स्नेह देने वाली दादी नहीं. हुकूमत करने वाली दादी, मुझे ही नहीं मेरी मां को छोटीछोटी बात पर चिमटे से पीटने वाली दादी. मैं अब भी नहीं समझ पाता हूं, मेरी मां का दोष क्या था?

मेरा घर मध्यवर्गीय बिहारी घर था. सुबह होती कलह से, रात होती कलह से. मेरे पिता का कायरपन मुझे बचपन से ही उद्दंड बनाता गया.

मेरी एक परित्यक्ता बूआ थीं. अम्मां से भी बड़ी बूआ, हर मामले में हम लोगों से छोटी मानी जाती थीं. खानेपहनने, घूमने में उन का हिस्सा हम लोगों जैसा ही होता था. किंतु उन की प्रतिस्पर्धा अम्मां से रहती थी. सौतन सी, वह हर चीज में अम्मां का अधिक से अधिक हिस्सा छीनने की कोशिश करती थीं. बूआ दादी की शह पर कूदा करती थीं.

दादी और बूआ रानियों की तरह आराम से बैठी रहती थीं. हुकूमत करना उन का अधिकार था. मेरी मां दासी से भी गईबीती अवस्था में खटती रहती थीं. पिता बिस्तर से उठते ही दादी के पास चले जाते. दादी उन्हें जाने क्या कहतीं, क्या सुनातीं कि पिता अम्मां पर बरस पड़ते.

एक रोज अम्मां पर उठे पिता के हाथ को कस कर उमेठते हुए मैं ने कहा था, ‘‘खबरदार, जो मेरी मां पर हाथ उठाया.’’

पहले तो पिता ठगे से रह गए थे. फिर एकाएक उबल पड़े थे, लेकिन मैं डरा नहीं था. अब तो हमारा घर एक खुला अखाड़ा बन गया था. दादी मुझ से डरती थीं. मेरे दिल में किसी पके घाव को छूने सी वेदना दादी को देखने मात्र पर होती. मैं दादी को देखना तक नहीं चाहता था.

मैं सोचा करता, ‘बड़ा हो कर मैं अच्छी नौकरी कर लूंगा. फिर अम्मां को अपने पास रखूंगा. रहेंगी दादी और बूआ पिता के पास.’

उन का बढ़ता अंतराल मेरे अंतर्मन में घृणा को बढ़ाता गया. मेरी अम्मां कमजोर हो कर टूटती चली गईं.

उस दिन वह घर स्नेहविहीन हो जाएगा, ऐसा मैं ने कभी सोचा भी नहीं था. अम्मां सारे कामों को निबटा कर सो गई थीं. राधा उन की छाती से चिपटी दूध पी रही थी. मैं बगल के कमरे में पढ़ रहा था.

दादी का हुक्म हुआ, ‘‘जरा, चाय बनाना.’’

कोई उत्तर नहीं मिला. वैसे भी अम्मां तो कभी उत्तर दिया ही नहीं करती थीं. 10 मिनट बाद दादी के स्वर में गरमी बढ़ गई. चाय जो नहीं मिली थी. दादी जाने क्याक्या बड़बड़ा रही थीं. अम्मां की चुप्पी उन के क्रोध को बढ़ा रही थी.

‘‘भला, सवेरेसवेरे कहीं सोया जाता है. कब से गला फाड़ रही हूं. एक कप चाय के लिए, मगर वह राजरानी है कि सोई पड़ी है,’’ और फिर एक से बढ़ कर एक कोसने का सिलसिला.

मैं पढ़ाई छोड़ कर बाहर आ गया. अम्मां को झकझोरती दादी एकाएक चीख उठीं. मैं दरवाजा पकड़ कर खड़ा रह गया. सारे काम निबटा कर निर्जला अम्मां प्राण त्याग चुकी थीं.

दादी ने झट अपना मुखौटा बदला, ‘‘हाय लक्ष्मी…हाय रानी…तुम हमें छोड़ कर क्यों चली गईं,’’ दादी छाती पीटपीट कर रो रही थीं. बूआ चीख रही थीं. मेरे भाईबहन मुझ से सहमेसिमटे चिपक गए थे. अम्मां की दूधविहीन छाती चबाती राधा को यत्न से अलग कर मैं रो पड़ा था.

दादी हर आनेजाने वाले को रोरो कर कथा सुनातीं. पिता भी रोए थे.

अम्मां के अभाव ने घर को घर नहीं रहने दिया. बूआ कोई काम करती नहीं थीं. आदत ही नहीं थी. पिता को थोड़ी कमाई में एक बावर्ची रखना संभव नहीं था. वैसे भी कोई ऐसा नौकर तो बहू के सिवा मिल ही नहीं सकता था, जो बिना बोले, बिना खाए खटता रहे. समय से पूर्व ही रीना को बड़ा बनना पड़ा.

देखते-देखते अम्मां की मृत्यु को 6 माह बीत गए. दादी रोजरोज पिता के नए रिश्ते की बात करतीं. 1-2 रिश्तेदारों ने दबीदबी जबान से मेरी शादी की चर्चा की, ‘‘लड़का एम.एससी. कर रहा है. इसी की शादी कर दी जाए.’’

पर मेरे कायर पिता ने मां की आज्ञा मानने का बहाना कर के मुझ से भी छोटी उम्र की लड़की से ब्याह कर लिया.

मेरा मन विद्रोह कर उठा. लेकिन उस लड़की लगने वाली औरत में क्या था, नहीं समझ पाया. वह बड़ी सहजता से हम सब की मां बन गई. हम ने भी उसे मां स्वीकार कर लिया. मुझे दादी के साथसाथ पिता से भी तीव्र घृणा होने लगती, जब मेरी नजर नई मां पर पड़ती.

‘क्या लड़कियों के लिए विवाह हो जाना ही जीवन की सार्थकता होती है?’ हर बार मैं अपने मन से पूछा करता.

मां के मायके में कोई नहीं था. विधवा मां ने 10वीं कक्षा में पढ़ती बेटी का कन्यादान कर के निश्ंिचता की सांस ली थी.

मेरी दूसरी मां भी मेरी अम्मां की तरह ही बिना कोई प्रतिवाद किए सारे अत्याचार सह लेती थीं. अम्मां की मृत्यु के बाद घर से मेरा संबंध न के बराबर रह गया था.

पहली बार नई मां के अधर खुले, जब रीना के ब्याह की बात उठी. वह अड़ गईं, ‘‘विवाह नहीं होता तो मत हो. लड़की पढ़ कर नौकरी करेगी. ऐसेवैसे के गले नहीं मढूंगी.’’

पिता सिर पटक कर रह गए. दादी ने व्यंग्यबाण छोड़े. लेकिन मां शांत रहीं, ‘‘मैं योग्य आदमी से बेटी का ब्याह करूंगी.’’

मां की जिद और हम सब का सम्मिलित परिश्रम था कि अब सारा घर सुखी है. हम सभी भाईबहन पढ़लिख कर अपनीअपनी जगह सुखआनंद से थे.

नई मां ही थीं वह सूत्र जिस ने पिता के मरने के बाद मुझे गांव खींचा था. दादी मरीं, बूआ मरीं, पिता के बुलावे आए, पर मैं गांव नहीं आया. पता नहीं, कैसी वितृष्णा से मन भर गया था.

मैं अपनेआप को रोक नहीं पाया था. पिता के श्राद्ध के दिन घर पहुंचा था. भरे घर में मां एक कोने में सहमीसिकुड़ी रंग उड़ी तसवीर जैसी बैठी थीं. पूरे 10 साल बाद मैं गांव आया था. उन 10 सालों ने मां से जाने क्याक्या छीन लिया था.

पिता ने कुछ भी तो नहीं छोड़ा था उन के लिए. हर आदमी मुझे समझा रहा था, ‘‘अपना तो कोई नहीं है. एक तुम्हीं हो.’’

मां की सहमी आंखें, तनी मुद्रा मुझे आश्वस्त कर रही थीं, ‘‘मोहन, घबराओ नहीं. मुझे कुछ साल ही तो और जीना है. मेहनतमजदूरी कर के जी लूंगी.’’

सामीप्य ने मां की सारी निस्वार्थ सेवाएं याद दिलाईं. जन्म नहीं दिया तो क्या, स्नेह तो दिया था. भरपूर  स्नेह की गरमाई, जिस ने छोटे से बड़ा कर के हमें सुंदर घर बनाने में सहारा दिया था.

पता नहीं किस झोंक में मां के प्रतिवाद के बाद भी मैं उन्हें अपने साथ ले आया था.

‘नीरा क्या समझेगी? क्या कहेगी? मां से उस की निभेगी या नहीं?’ यह सब सोचसोच कर मन डर रहा था. कभीकभी अपनी भावुकता पर खीजा भी था. हालांकि विश्वास था कि मेरी मां ‘दादी’ नहीं हो सकती है.

अब 1 साल पूरा हो रहा था. मां ने बड़ी कुशलता से नीरा ही नहीं, मेरी बेटियों का मन भी जीत लिया था.

शुरू शुरू में कुछ दिन अनकहे तनाव में बीते थे. मां के आने से पहले ही आया जा चुकी थी. नई आया नहीं मिल रही थी. नौकरों का तो जैसे अकाल पड़ गया था. नीरा सुबह 9 बजे दफ्तर जाती और शाम को थकीहारी लौटती. अकसर अत्यधिक थकान के कारण हम आपस में ठीक से बात नहीं कर पाते थे. मां क्या आईं, एक स्नेहपूर्ण घर बन गया, बेचारी नीरा आया के  नहीं रहने पर परेशान हो जाती थी. मां ने नीरा का बोझ बांट लिया. मां को काम करते देख कर नीरा लज्जित हो जाती. मां घर का काम ही नहीं करतीं, बल्कि नीरा के व्यक्तिगत काम भी कर देतीं.

कभी साड़ी इस्तिरी कर देतीं. कभी बटन टांक देतीं.

‘‘मां, आप यह सब क्यों करती हैं?’’

‘‘क्या हुआ, बेटी. तुम भी तो सारा दिन खटती रहती हो. मैं घर मैं खाली बैठी रहती हूं. मन भी लग जाता है. कोई तुम पर एहसान थोड़े ही करती हूं. ये काम मेरे ही तो हैं.’’

नीरा कृतज्ञ हो जाती.

‘‘मां, आप पहले क्यों नहीं आईं?’’ गले लिपट कर लाड़ से नीरा पूछती. मां हंस देतीं.

नीरा मां का कम खयाल नहीं रखती थी. वह बुनाई मशीन खरीद लाई थी. मेरे नाराज होने पर हंस कर बोली, ‘‘मां का मन भी लगेगा और उन में आर्थिक निर्भरता भी आएगी.’’

मैं अतीत की भूलभूलैया से वर्तमान में लौटता. नीरा का अंगअंग पुलक रहा था. वह मां के स्नेह व सेवा तथा नीरा के आभिजात्य और समर्पित अनुराग का सौरभ था, जो मेरे घरआंगन को महका रहा था.

कैसे बहुओं की सासों से नहीं पटती? क्या सासें केवल बुरी ही होती हैं? लेकिन मेरी मां जैसी सास कम होती हैं, जो बहू की कठिनाइयों को समझती हैं. घावों पर मरहम लगाती हैं और लुटाती हैं निश्छल स्नेह.

रात शुरू हो रही थी. नीरा थकी सी आरामकुरसी पर बैठी थी. लेकिन आदतन बातों का सूत कात रही थी. मेरी दोनों बेटियां दादी की देह पर झूल रही थीं.

‘‘दादीजी, आज कौन सी कहानी सुनाओगी?’’

‘‘जो मेरी राजदुलारी कहेगी.’’

मैं ने मां को देखा, कैसी शांत, निद्वंद्व वह बच्चों की अनवरत बातों में मुसकराती ऊन की लच्छियां सुलझा रही थीं. मुझे लग रहा था कि वह मेरी सौतेली नहीं, मेरी सगी मां हैं. उम्र में बड़ा हो कर भी मैं बौना होने लगा था. मैं ने नीरा को मां के सामने ही कुरसी से उठा लिया, ‘‘लो, संभालो अपनी इस राजदुलारी को. इसे भी कोई कहानी सुना दो. यह कब से मेरा सिर खा रही है.’’

‘‘मां, सिर में भेजा हो तब तो खाऊं न.’’

नीरा मुसकरा दी. मां की दूध धुली खिलखिलाहट ने हमारा साथ दिया. देखते ही देखते हंसी के घुंघरुओं की झनकार से मेरा घरआंगन गूंज उठा.

मैं गर्भधारण करने में असमर्थ हूं, मुझे कब मदद लेनी चाहिए ?

सवाल

मैं 32 वर्षीय महिला हूं और पिछले एक साल से गर्भधारण करने में असमर्थ हूं. प्रजनन संबंधी समस्याओं के लक्षण क्या हैं और मुझे कब मदद लेनी चाहिए?

जवाब

अगर आप पिछले एक साल से गर्भधारण करने की कोशिश कर रही हैं और आप इस में सफल नहीं हो पा रही हैं तो आप अपने डाक्टर से कंसल्ट करें और जांच कराएं. डाक्टर आप को बता सकते हैं कि किस समय संभोग करने से गर्भ ठहर सकता है. आप का डाक्टर कुछ टेस्ट भी कर सकता है ताकि यह पता लगाया जा सके कि ओवरी का ट्यूब खुला है कि नहीं, फौर्मेशन हो रहा है कि नहीं, यूटरस ठीक है कि नहीं आदि. डाक्टर आप के पुरुष साथी की भी जांच कर सकता है ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या उस में कोई कमी तो नहीं है.

सवाल

मैं 27 वर्षीय महिला हूं और अभी मै गर्भवती हूं. स्वस्थ गर्भावस्था के लिए मुझे किन प्रसवपूर्व विटामिनों पर विचार करना चाहिए?

जवाब

आप को फोलिक ऐसिड का सेवन करना चाहिए क्योंकि गर्भावस्था के पहले 3 महीने में यह बच्चे के नर्वस सिस्टम के विकास के लिए बहुत जरूरी होता है.  विटामिन डी भी काफी जरूरी विटामिन है. कैल्शियम और आयरन भी बच्चे के विकास के लिए बहुत जरूरी होता है. आयरन से गर्भ में बच्चे के प्रति ब्लड फ्लो बढ़ता है.

वरुण की पत्नी नताशा के बेबी शॉवर की तस्वीरें आईं सामने, मीडिया में मिठाई बांटकर मनाई खुशी

कुछ ही दिनों में वरुण धवन और नताशा धवन के घर एक नन्हा सा मेहमान आनेवाला है. बीते  रविवार को उन्होंने नताशा के बेबी शावर की तस्वीरें साझा की. साथ ही वरुण ने उनके घर के बाहर इकट्ठे हुए मीडियाकर्मियों के बीच मिठाई बांटकर खुशी मनाई.

फोटोज में साफ-साफ देखा जा सकता है कि नताशा ने व्हाइट कलर का गाउन पहना हुआ है और वो बेबी बंप फ्लॉन्ट करती नजर आ रही हैं. साथ ही वरुण से व्हाइट कलर की शर्ट पहनी हुई है और पापा बनने की खुशी उनके चेहरे पर साफ झलक रही है. फोटोज में दोनों के कुछ फ्रेंड्स भी नजर आ रहे हैं.

शाहिद कपूर की पत्नी मीरा राजपूत भी इस पार्टी में शामिल हुईं. मीरा ने पार्टी के केक की फोटो शेयर की है जिसमें ऊपर की ओर टेडी बियर बना हुआ है और नीचे फ्लोरल डेकोरेशन की हुई है. नताशा और मीरा की बौंडिग बहुत अच्छी है. दोनों बहुत अच्छे दोस्त हैं. पार्टी में होने वाले दादा-दादी फिल्म डायरेक्टर डेविड धवन और उनकी पत्नी लाली धवन भी खूब झूमें.

आपको बता दें कि इस साल फरवरी में वरुण ने सोशल मीडिया पर नताशा के प्रेग्नेंट होने की खबर फैंस के साथ शेयर की थी. इस फोटो में वरुण नताशा के बेबी बंप पर किस करते नजर आ रहे थे. साथ ही उन्होंने अपने चाहने वालों से प्यार और आशिर्वाद मांगा था. वरुण ने अपनी गर्लफ्रेंड से 24 जनवरी 2021 में शादी की थी. कोरोनावायरस महामारी के कारण दोनों की शादी में बहुत कम लोग शामिल हुए थे.

वरुण के वर्कफ्रंट की बात करें तो वो अपकमिंग थ्रिलर फिल्म ‘बेबी जॉन’ में नज़र आएंगे. इस फिल्म के डायरेक्टर ए. कालीस्वरन हैं. इसके अलावा हॉलिवुड सीरिज सिटाडेल के हिन्दी वर्जन में समांथा रूथ के साथ काम करते नजर आएंगे. हिंदी वर्जन राज और डीके ने बनाया है.

लंच में बनाने का मन है कुछ लजीज खाना, तो ट्राई करें ये रेसिपी

अगर आप परिवार के लिए कुछ लजीज खाना बनाने का सोच रही है और आप कोई अच्छी सी रेसिपी ढूढ रही हैं, तो हम आज आपके साथ शेयर कर रहे हैं पनीर मखनी और मंगोड़ी बनाने की रेसिपी. पढिए और ट्राई कीजिए.

 

पनीर मखनी

सामग्री

20 ग्राम देशी घी थोड़ा सा लहसुन कटा थोड़ा सा अदरक कटा 5 ग्राम देगी मिर्च 5 ग्राम हरी मिर्च कटी 3 ग्राम कसूरी मेथी 20 ग्राम पीला बटर 20 ग्राम क्रीम 1 पोर सुर्ख पनीर 200 ग्राम मखनी ग्रेवी 2 ग्राम शुगर 3 ग्राम लहसुन भुना थोड़ा सी धनियापत्ती कटी नमक स्वादानुसार.

विधि

पैन में घी गरम कर लहसुन को सुनहरा होने तक भूनें. फिर इस में हरीमिर्च, अदरक और देगीमिर्च मिला कर तुरंत मखनी ग्रेवी डालें. अब बटर, क्रीम, कसूरीमेथी और नमक डाल कर अच्छी तरह चलाएं. इस में पनीर और चीनी डाल कर 5 मिनट तक पकाएं. फिर बाउल में निकाल कर भुने लहसुन से गार्निश कर सर्व करें.

मंगोड़ी का शोरबा

सामग्री

200 ग्राम मूंग दाल की मंगोड़ी 5 ग्राम जीरा 80 ग्राम प्याज 5 ग्राम हलदी पाउडर 10 ग्राम अदरक 15 ग्राम लहसुन 5 ग्राम हरीमिर्च लंबी कटी 10 ग्राम बटरद्य 2 ग्राम लैमन जूस थोड़ा धनियापत्ती नमक स्वादानुसार.

विधि

बरतन में 5 कप पानी ले कर उस में मंगोड़ी, प्याज, अदरक लहसुन, हरीमिर्च,  हलदी पाउडर व नमक डाल कर तब तक उबालें जब तक मंगोड़ी न पड़ जाए. फिर इस मिक्स्चर को ब्लैंड कर के छान लें और एक तरफ रख दें. फिर पैन में बटर गरम कर उस में जीरा डाल कर चटकाएं. फिर इस में तैयार की गई मंगोड़ी डाल कर जरूरत के हिसाब से पानी डाल कर उबालें. लैमन जूस और धनियापत्ती से गार्निश कर के गरमगरम सर्व करें

 

 

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