जब मियां बीवी राजी तो क्यूं करें रिश्तेदार दखलअंदाजी

‘‘दादू …’’ लगभग चीखती हुई झूमुर अपने दादू से लिपट गई.

‘‘अरेअरे, हौले से भाई,’’ दादू बैठे हुए भी झूमुर के हमले से डगमगा गए, ‘‘कब बड़ी होगी मेरी बिटिया?’’

‘‘और कितना बड़ी होऊं? कालेज भी पास कर लिया, अब तो नौकरी भी लग गई है मुंबई में,’’ झूमुर की अपने दादू से बहुत अच्छी घुटती थी. अब भी वह मातापिता व अपने छोटे भाई के साथ सपरिवार उन से मिलने अपने ताऊजी के घर आती, झूमुर बस दादू से ही चिपकी रहती. ‘‘अब की बार मुझे बीकानेर भी दिल्ली जितना गरम लग रहा है वरना यहां की रात दिल्ली की रात से ठंडी हुआ करती है.’’

‘‘चलो आओ, खाना लग गया है. आप भी आ जाएं बाबूजी,’’ ताईजी की पुकार पर सब खाने की मेज पर एकत्रित हो गए. मेज पर शांति से सब ने भोजन किया. अकसर परिवारों में जब सब भाईबहन इकट्ठा होते हैं तो खूब धमाचौकड़ी मचती है. लेकिन यहां हर ओर शांति थी. यहां तक कि पापड़ खाने में भी आवाज नहीं आ रही थी. ऐसा रोब था राधेश्याम यानी सब से बड़े ताऊजी का. यों देखने में उन्हें कोई इतना सख्त नहीं मान सकता था- साधारण कदकाठी, पतली काया. किंतु रोब सामने वाले के व्यक्तित्व में होता है, शरीर में नहीं. राधेश्याम का रोब पूरे परिवार में प्रसिद्घ था. न कोई उन से बहस कर सकता था और न ही कोई उन के विरुद्घ जा सकता था. कम बोलने वाले मगर अमिताभ बच्चन की स्टाइल में जो बोल दिया, सो बोल दिया.

हर साल एक बार सभी ताऊ, चाचा व बूआ अपनेअपने परिवार सहित बीकानेर में एकत्रित हुआ करते थे. पूरे परिवार को एकजुट रखने में इस एक हफ्ते की छुट्टियों का बड़ा योगदान था. चूंकि दादाजी यहीं रहते थे राधेश्याम के परिवार के साथ, इसलिए यही घर सब का हैड औफिस जैसा था.

राधेश्याम के फैक्टरी जाते ही सब भाईबहन अपने असली रंग में आ गए. शाम तक खूब मस्ती होती रही. सारी महिलाएं कामकाज निबटाने के साथ ढेर सारी गपें भी निबटाती रहीं. झूमुर के पापा व चाचा अखबार की सुर्खियां चाट कर, थोड़ी देर सुस्ता लिए.  इसी बीच झूमुर फिर अपने दादू के पास हो ली,  ‘‘कुछ बढि़या से किस्से सुनाओ न दादू.’’ बुजुर्गों को और क्या चाहिए भला. पोतेपोतियां उन के जमाने के किस्से सुनना चाहें तो बुजुर्गों में एक नूतन उमंग भर जाती है.

‘‘बात 1950 की है जब मैं हाईस्कूल में पढ़ता था. हमारे एक मास्साब थे, मतलब टीचर हरगोविंद सर. एक बार…,’’ इस से पहले कि दादू आगे किस्सा सुनाते, झूमुर बीच में ही कूद पड़ी, ‘‘स्कूल का नहीं दादू, कोई और किस्सा. अच्छा यह बताइए, आप दादी से कैसे मिले थे. आप ठहरे राजस्थानी और दादी तो बंगाल से थीं. तो आप दोनों की शादी कैसे हुई?’’

‘‘अच्छा, तो आज दादूदादी की प्रेमकहानी सुननी है?’’ कह दादू हंसे. दादी को इस जग से गए काफी समय बीत चुका था. कई वर्षों से वे अकेले थे, बिना जीवनसाथी के. अब केवल दादी की यादें ही उन का साथ देती थीं. पूर्ण प्रसन्नता से उन्होंने अपनी कहानी आरंभ की, ‘‘बात 1957 की है. मैं ने अपना नयानया कारोबार शुरू किया था. बाजार से ब्याज पर 3,500 रुपए उठा कर मैं ने यहीं बीकानेर में बंधेज के कपड़ों का कारखाना शुरू किया था. लेकिन राजस्थान का काम राजस्थान में कितना बिकता और मैं कितना  मुनाफा कमा लेता? फिर मुझे बाजार से उठाया असल और सूद भी लौटाना था, और अपने पैरों पर खड़ा भी होना था…’’

‘‘ओहो दादू, आप तो अपने कारोबार के किस्सों में उलझ गए. असली मुद्दे पर आओ न,’’ झूमुर खीझ कर बोली.

‘‘थोड़ा धीरज रख, उसी पर आ रहा हूं. कारोबार को आगे बढ़ाने हेतु मैं कोलकाता पहुंचा. वहां तुम्हारी दादी के पिताजी की अपनी बहुत बड़ी दुकान थी कपड़ों की, लाल बाजार में. उन से मुलाकात हुई. मैं ने अपना काम दिखाया, बंधेज की साडि़यों व चुन्नियों के कुछ सैंपल उन के पास छोड़े. कुछ महीनों में वहां भी मेरा काम चल निकला.’’

‘‘और दादी? वे तो अभी तक पिक्चर में नहीं आईं,’’ झूमुर एक बार फिर उतावली हो उठी.

‘‘तेरा नाम शांति रखना चाहिए था. जरा भी धैर्य नहीं. आगे सुन, दादी के पिताजी ने ही हमारी शादी की बात चलाई. मेरे पिताजी को रिश्ता भा गया और हमारी शादी हो गई.’’

‘‘धत्त तेरे की. इस कहानी में तो कोई थ्रिल नहीं- न कोई विलेन आया और न ही कोई व्हाट नैक्स्ट मोमैंट. इतनी सहजता से हो गया सब? और जो कोई न मानता तो?’’ पूछने के साथ झूमुर का उत्साह कुछ फीका पड़ गया.

‘‘ओहो बिटिया, तू तो अपने दादू के किस्सों में उलझ गई. असली मुद्दे पर आ,’’ दादू झूमुर की नकल उतारते हुए बोले. आखिर उन्होंने बाल धूम में सफेद नहीं किए थे. उन के पास वर्षों का अनुभव तथा पारखी नजर थी. ‘‘तेरे दादू उड़ती चिरैया के पर गिन लेते हैं, समझी?’’ झूमुर की उत्सुकता, उस का अचानक दादूदादी की कहानी में रुचि दिखाना देख दादू भांप गए थे कि झूमुर उन से कुछ कहना चाहती है, ‘‘बात क्या है?’’

शाम ढलने को थी. राधेश्याम फैक्टरी से घर लौट चुके थे. हर तरफ फिर शांति थी. रात के भोजन के समय एक बार फिर ताईजी की पुकार पर सब मेज पर पहुंच गए. इस पूरे परिवार में झूमुर सब से निकट अपने दादू से थी. शुरू से ही उस ने दादू को सब से सरल , समझदार और खुले विचारों का पाया था. कैसी अजीब बात है कि ऐसे दादू के बेटे, अगली पीढ़ी के होते हुए भी संकीर्ण सोच के वारिस थे. उसे याद है कि छोटे ताऊजी की बेटी, रेणु दीदी, ने अपने कालेज के एक जाट लड़के को पसंद कर लिया था किंतु परिवार का कोई सदस्य नहीं माना था. उन्हें समाज में कमाई गई अपनी इज्जत और रुतबे की चिंता ज्यादा थी. राधेश्याम के कहने पर आननफानन रेणु की शादी अपनी जाति के एक परिवार में तय कर दी गई थी. हालांकि उस की शादी परिवार की इच्छा से की गई थी, फिर भी आज तक उसे माफ नहीं किया गया था. परिवार में सब ओर उस की बेशर्मी के किस्से बांचे जाते थे. उस ने भी कभी इस परिवार के किसी समारोह में हिस्सा नहीं लिया था.

अगली सुबह झूमुर बगीचे में झूले पर गुमसुम बैठी थी कि वहां दादू पहुंच गए, ‘‘बताई नहीं तूने मुझे असली बात.’’ वे भी झूमुर के साथ झूले पर बैठ गए.

‘‘एक आप ही हो दादू जिस से मैं अपने मन की बात…’’

‘‘जानता हूं. असली बात पर आ, वरना फिर कोई आ धमकेगा और हमारी बात बीच में ही रह जाएगी.’’

‘‘कालेज में मेरे साथ एक लड़का पढ़ता था- रिदम.  अच्छा लड़का है, नौकरी भी बहुत अच्छी लग गई है हैदराबाद में.’’

‘‘समझ गया. तुझे वह लड़का पसंद है. तो दिक्कत क्या है?’’

‘‘वह लड़का हमारे धर्म का नहीं है, ईसाई है.’’

‘‘हूं…’’ कुछ क्षण दोनों के बीच चुप्पी छाई रही. मुद्दा वाकई गंभीर था. दूसरे प्रांत या दूसरी जाति का ही नहीं, बल्कि दूसरे धर्म का प्रश्न था. उस पर इन के परिवार की गिनती शहर के जानेमाने रईस, इज्जतदार खानदानों में होती है.

‘‘हम ने अपने कालेज के दीक्षांत समारोह में दोनों परिवारों को मिलवाया. रिदम के परिवार को कोई एतराज नहीं है. मम्मी को रिदम व उस का परिवार बहुत पसंद आया है. किंतु पापा राजी नहीं हैं. उन की मजबूरी है- परिवार जो रजामंद नहीं होगा.’’ झूमुर की चिंता का कारण वाजिब था, ‘‘मैं ने पापा की काफी खुशामद की, काफी समय से उन्हें मना रही हूं. दादू, यदि रिदम नहीं तो कोई नहीं-यह बात मैं ने पापामम्मी से कह भी दी है.’’ आजकल की पीढ़ी अपनी बात रखने में कोई झिझक, कोई संकोच नहीं दिखाती है. झूमुर ने भी साफतौर से अपने दादू को सब बता दिया.

‘‘तो मामला गंभीर है. देख बिटिया, वैसे तो उम्र के इस पड़ाव में, सबकुछ देख चुकने के बाद मैं यह मानता हूं कि जो कुछ है, यही जीवन है. इसे अच्छे से जियो, खुश रहो, बस. यदि तुझे विश्वास है कि तू उस लड़के के साथ खुश रहेगी तो मैं दूंगा तेरा साथ किंतु तुझे मेरी एक बात माननी होगी-एकदम चुप रहना होगा.’’ दादू की बात मान कर झूमुर ने अपने होंठ सिल लिए. उसे अपने दादू पर पूरा विश्वास था.

दादू ने भी बिना समय गंवाए अपने बेटे बृजलाल से इस विषय में बात की. बृजलाल अचरज में थे कि पिताजी को यह बात किस ने बता दी. ‘‘मुझ से यह बात स्वयं झूमुर ने साझा की है. अब तू यह बता कि परिवार की खुशी के आगे क्या अपनी इकलौती बिटिया की खुशी खोने को तैयार है?’’

‘‘पिताजी, यही तो दुविधा है. मैं झूमुर को उदास भी नहीं देख सकता हूं और अपने परिवार को नाराज भी नहीं कर सकता हूं.’’

‘‘और यदि दोनों ही न रूठें तो?’’ दादू के दिमाग में खिचड़ी पक रही थी. उन्होंने बृजलाल से अपना आइडिया बांटा. उन के कहने पर झूमुर ने उसी शाम परिवार वालों के लिए फिल्म की टिकटें मंगवा दीं. जब सभी खुशीखुशी फिल्म देखने चल पड़े तो अचानक दादू ने तबीयत नासाज होने की बात कर अपने संग राधेश्याम और बृजलाल को घर में रोक लिया. अब सब जा चुके थे. सो, दादू चैन से अपने दोनों बेटों से बात कर सकते थे. ‘‘देखो भाई, मुझे तुम दोनों से एक बहुत ही गंभीर विषय में बात करनी है. मेरी एक समस्या है और इस का उपाय तुम दोनों के पास है,’’ कहते हुए उन्होंने पूरी बात राधेश्याम और बृजलाल के समक्ष रख दी.  दोनों मुंह खोले एकदूसरे को ताकने लगे. इस से पहले कि कोई कुछ बोलता, दादू आगे बोले, ‘‘मैं पहले ही एक पोती को अपनी जिंदगी से खो चुका हूं सिर्फ इसी सिलसिले में. झूमुर मेरी सब से प्यारी पोती है और सब जानते हैं सूद असल से प्यारा होता है. मैं नहीं चाहता हूं कि झूमुर को भी खो दूं या हमारी झूठी शान और इज्जत के चक्कर में झूमुर अपनी हंसीखुशी खो बैठे. इस परेशानी का हल तुझे निकालना है राधे, और वह भी ऐसे कि किसी को कानोंकान खबर न हो.’’

‘‘मैं, पिताजी?’’ राधेश्याम हतप्रभ रह गए. एक तो विधर्म विवाह की बात से वे परेशान थे, ऊपर से पिताजी इस का हल निकालने का बीड़ा उन्हें ही दे बैठे थे.

‘‘बस, यह समझ ले कि मेरे परिवार के हित में मेरी यह आखिरी इच्छा है. मेरी पोती की खुशी और घरपरिवार की इज्जत-दोनों का खयाल रखना है,’’ पिताजी की आज्ञा सर्वोपरि थी.

राधेश्याम ने बहुत सोचा-पहले तो बृजलाल से आंखोंआंखों में मूक शिकायत की लेकिन उस की झुकी गरदन के आगे वे भी बेबस थे. दोनों भाइयों ने मिल कर सोचा कि रिदम के परिवार से मिला जाए और आगे की बात तय की जाए. परिवार के बाकी सदस्यों को बिना खबर किए दोनों दूसरे शहर रिदम के घर चले गए. वहां बातचीत वगैरा हो गई और अपने घर लौट कर दोनों भाइयों ने बताया कि एक अच्छा रिश्ता मिल गया. सो, बात पक्की कर दी गई. शादी की तैयारियां आरंभ हो गईं.

किंतु रिश्तेदारों से कोई बात छिपाना ऐसे है जैसे धूप में बर्फ जमाना. रिश्तेनाते मकड़ी के जालों की भांति होते हैं. बड़े ताऊजी ने बूआ को कह डाला, साथ ही ताकीद की कि वह आगे किसी से कुछ नहीं बताएगी. बूआ के पेट में मरोड़ उठी तो उन्होंने अपनी बेटी को बता दिया. और सब रिश्तेदारों में बात फैल गई कि यह रिश्ता झूमुर की पसंद का है, तथा लड़का ईसाई है लेकिन सभी चुप थे. यह बवाल अपने सिर कौन लेता कि बात किस ने फैलाई.

बड़े संयुक्त परिवारों की यह खासीयत होती है कि मुंह के सामने ‘हम साथसाथ हैं’ और पीठ फिरते ही ‘हम आप के हैं कौन?’ सभी रिश्तेदार शादी वाले घर में एकदूसरे का काम में हाथ बंटवाते, स्त्रियां बढ़चढ़ कर रीतिरिवाज निभाने में लगी रहतीं, कोई न कोई रिवाज बता कर उलझउलझाती रहतीं परंतु जहां मौका पड़ता, कोई न कोई कह रहा होता, ‘‘अब हमारे बच्चों पर इस का क्या असर होगा, आखिर हम कैसे रोक पाएंगे आगे किसी को अपनी मनमानी करने से. ऐसा ही था तो छिपाने की क्या आवश्यकता थी. बेचारी रेणु के साथ ऐसा क्यों किया था फिर…’’

दादू के कानों में भी खुसुरफुसुर पड़ गई. यह तो अच्छा नहीं है कि पता सब को है, सब पीठ पीछे बातें भी बना रहे हैं किंतु मुंह पर मीठे बने हुए हैं. दादू को पारिवारिक रिश्तों में यह दोगलापन नहीं भाया. उन के अनुभवी मस्तिष्क में फिर एक विचार आया किंतु इस बार उन्होंने स्वयं ही इसे परिणाम देने की ठानी. न किसी दूसरे को कुछ करने हेतु कहेंगे, न वह किसी और से कहेगा, और न ही बात फैलेगी.

नियत दिन पर बरात आई. धूमधाम से विवाह संपन्न हुआ. फिर कुछ ऐसा हुआ जिस की किसी ने कल्पना भी नहीं की थी. अचानक विवाह समारोह में एक व्यक्ति आए हाथ में रजिस्टर कलम पकड़े. उन के लिए एक कुरसी व मेज लगवाई गई. और दादू ने हाथ में माईक पकड़ घोषणा करनी शुरू कर दी, ‘‘मेरी पौत्री के विवाह में पधारने हेतु आप सब का बहुतबहुत आभार…आप सब ने मेरी पौत्री को पूरे मन से आशीष दिए. हम सब निश्चितरूप से यही चाहते हैं कि झूमुर तथा रिदम सदैव प्रसन्न रहें. इस अवसर पर मैं आप सब को एक खुशखबरी और देना चाहता हूं. मेरा परिवार इस पूरे शहर में, बल्कि आसपास के शहरों में भी काफी प्रसिद्ध श्रेणी में आता है किंतु मेरे परिवार के ऊपर एक कलंक है, अपनी एक बेटी की इच्छापालन न करने का दोष. आज मैं वह कलंक धोना चाहता हूं. हम कब तक अपनी मर्यादाओं के संकुचित दायरों में रह कर अपने ही बच्चों की खुशियों का गला घोंटते रहेंगे? जब हम अपने बच्चों को अच्छी शिक्षादीक्षा प्रदान करते हैं तो उन के निर्णयों को मान क्यों नहीं दे सकते?’’

‘‘मेरी झूमुर ने एक ईसाई लड़के  को चुना. हमें भी वह लड़का व उस का परिवार बहुत पसंद आया. और सब से अच्छी बात यह है कि न तो झूमुर अपना धर्म बदलना चाहती है और न ही रिदम. दोनों को अपने संस्कारों, अपनी संस्कृतियों पर गर्व है. कितना सुदृढ़ होगा वह परिवार जिस में 2-2 धर्मों, भिन्न संस्कृतियों का मेल होगा. लेकिन कानूनन ऐसी शादियां सिविल मैरिज कहलाती हैं जिस के लिए आज यहां रजिस्ट्रार साहब को बुलाया गया है.’’

दादू के इशारे पर झूमुर व रिदम दोनों रजिस्ट्रार के पास पहुंचे और दस्तखत कर अपने विवाह को कानूनी तौर पर साकार किया.

इस प्रकार खुलेआम सारी बातें स्पष्ट रूप से कहने और स्वीकारने से रिश्तेदारों द्वारा बातों की लुकाछिपी बंद हो गई तथा आगे आने वाले समय के लिए भी बात खुलने का डर या किसी प्रकार की शर्मिंदगी का प्रश्न समाप्त हो गया. दादू की दूरंदेशी और समझदारी ने न केवल झूमुर के निर्णय की इज्जत बनाई बल्कि परिवार में भी एकरसता घोल दी. पूरे शहर में इस परिवार की एकता व हौसले के चर्चे होने लगे. विदाई के समय झूमुर सब के गले मिल कर रो रही थी. किंतु दादू के गले मिलते ही, उन्होंने उस के कान में ऐसा क्या कह दिया कि भीगे गालों व नयनों के बावजूद वह अपनी हंसी नहीं रोक पाई. जब मियांबीवी राजी तो क्यों करें रिश्तेदार दखलबाजी.

कैसी दूरी: क्या शीला की बेचैनी रवि समझ पाया?

आधी रात का गहरा सन्नाटा. दूर कहीं थोड़ीथोड़ी देर में कुत्तों के भूंकने की आवाजें उस सन्नाटे को चीर रही थीं. ऐसे में भी सभी लोग नींद के आगोश में बेसुध सो रहे थे.

अगर कोई जाग रहा था, तो वह शीला थी. उसे चाह कर भी नींद नहीं आ रही थी. पास में ही रवि सो रहे थे.

शीला को रहरह कर रवि पर गुस्सा आ रहा था. वह जाग रही थी, मगर वे चादर तान कर सो रहे थे. रवि के साथ शीला की शादी के15 साल गुजर गए थे. वह एक बेटे और एक बेटी की मां बन चुकी थी.

शादी के शुरुआती दिन भी क्या दिन थे. वे सर्द रातों में एक ही रजाई में एकदूसरे से चिपक कर सोते थे. न किसी का डर था, न कोई कहने वाला. सच, उस समय तो नौजवान दिलों में खिंचाव हुआ करता था.

शीला ने तब रवि के बारे में सुना था कि जब वे कुंआरे थे, तब आधीआधी रात तक दोस्तों के साथ गपशप किया करते थे.

तब रवि की मां हर रोज दरवाजा खोल कर डांटते हुए कहती थीं, ‘रोजरोज देर से आ कर सोने भी नहीं देता. अब शादी कर ले, फिर तेरी घरवाली ही दरवाजा खोलेगी.’रवि जवाब देने के बजाय हंस कर मां को चिढ़ाया करते थे.

जैसे ही रवि के साथ शीला की शादी हुई, दोस्तों से दोस्ती टूट गई. जैसे ही रात होती, रवि चले आते उस के पास और उस के शरीर के गुलाम बन जाते. भंवरे की तरह उस पर टूट पड़ते. उन दिनों वह भी तो फूल थी. मगर शादी के सालभर बाद जब बेटा हो गया, तब खिंचाव कम जरूर पड़ गया.

धीरेधीरे शरीर का यह खिंचाव खत्म तो नहीं हुआ, मगर मन में एक अजीब सा डर समाया रहता था कि कहीं पास सोए बच्चे जाग न जाएं. बच्चे जब बड़े हो गए, तब वे अपनी दादी के पाससोने लगे.

अब भी बच्चे दादी के पास ही सो रहे हैं, फिर भी रवि का शीला के प्रति वह खिंचाव नहीं रहा, जो पहले हुआ करता था. माना कि रवि उम्र के ढलते पायदान पर है, लेकिन आदमी की उम्र जब 40 साल की हो जाती है, तो वह बूढ़ा तो नहीं कहलाता है.

बिस्तर पर पड़ेपड़े शीला सोच रही थी, ‘इस रात में हम दोनों के बीच में कोई भी तो नहीं है, फिर भी इन की तरफ से हलचल क्यों नहीं होती है? मैं बिस्तर पर लेटीलेटी छटपटा रही हूं, मगर ये जनाब तो मेरी इच्छा को समझ ही नहीं पा रहे हैं.

‘उन दिनों जब मेरी इच्छा नहीं होती थी, तब ये जबरदस्ती किया करते थे. आज तो हम पतिपत्नी के बीच कोई दीवार नहीं है, फिर भी क्यों नहीं पास आते हैं?’

शीला ने सुन ही नहीं रखा है, बल्कि ऐसे भी तमाम उदाहरण देखे हैं कि जिस आदमी से औरत की ख्वाहिश पूरी नहीं होती है, तब वह औरत दूसरे मर्द के ऊपर डोरे डालती है और अपने खूबसूरत अंगों से उन्हें पिघला देती है. फिर रवि के भीतर का मर्द क्यों मर गया है?

मगर शीला भी उन के पास जाने की हिम्मत क्यों नहीं कर पा रही है? वह क्यों उन की चादर में घुस नहीं जाती है? उन के बीच ऐसा कौन सा परदा है, जिस के पार वह नहीं जा सकती है?

तभी शीला ने कुछ ठाना और वह रवि की चादर में जबरदस्ती घुस गई. थोड़ी देर में उसे गरमाहट जरूर आ गई, मगर रवि अभी भी बेफिक्र हो कर सो रहे थे. वे इतनी गहरी नींद में हैं कि कोई चिंता ही नहीं.

शीला ने धीरे से रवि को हिलाया. अधकचरी नींद में रवि बोले, ‘‘शीला, प्लीज सोने दो.’’

‘‘मुझे नींद नहीं आ रही है,’’ शीला शिकायत करते हुए बोली.

‘‘मुझे तो सोने दो. तुम सोने की कोशिश करो. नींद आ जाएगी तुम्हें,’’ रवि नींद में ही बड़बड़ाते हुए बोले और करवट बदल कर फिर सो गए.

शीला ने उन्हें जगाने की कोशिश की, मगर वे नहीं जागे. फिर शीला गुस्से में अपनी चादर में आ कर लेट गई, मगर नींद उस की आंखों से कोसों दूर जा चुकी थी.

सुबह जब सूरज ऊपर चढ़ चुका था, तब तक शीला सो कर नहीं उठी थी. उस की सास भी घबरा गईं. सब से ज्यादा घबराए रवि.

मां रवि के पास आ कर बोलीं, ‘‘देख रवि, बहू अभी तक सो कर नहीं उठी. कहीं उस की तबीयत तो खराब नहीं हो गई?’’

रवि बैडरूम की तरफ लपके. देखा कि शीला बेसुध सो रही थी. वे उसे झकझोरते हुए बोले, ‘‘शीला उठो.’’

‘‘सोने दो न, क्यों परेशान करते हो?’’ शीला नींद में ही बड़बड़ाई.

रवि को गुस्सा आ गया और उन्होंने पानी का एक गिलास भर कर उस के मुंह पर डाल दिया.शीला घबराते हुए उठी और गुस्से से बोली, ‘‘सोने क्यों नहीं दिया मुझे? रातभर नींद नहीं आई. सुबह होते ही नींद आई और आप ने उठा दिया.’’

‘‘देखो कितनी सुबह हो गई?’’ रवि चिल्ला कर बोले, तब आंखें मसल कर उठते हुए शीला बोली, ‘‘खुद तो ऐसे सोते हो कि रात को उठाया तो भी न उठे और मुझे उठा दिया,’’ इतना कह कर वह बाथरूम में घुस गई.यह एक रात की बात नहीं थी. तकरीबन हर रात की बात थी.मगर रवि में पहले जैसा खिंचाव क्यों नहीं रहा? या उस से उन का मन भर गया? ऐसा सुना भी है कि जिस मर्द का अपनी औरत से मन भर जाता है, फिर उस का खिंचाव दूसरी तरफ हो जाता है. कहीं रवि भी… नहीं उन के रवि ऐसे नहीं हैं.

सुना है कि महल्ले के ही जमना प्रसाद की पत्नी माधुरी का चक्कर उन के ही पड़ोसी अरुण के साथ चल रहा है. यह बात पूरे महल्ले में फैल चुकी थी. जमना प्रसाद को भी पता थी, मगर वे चुप रहा करते थे.

रात का सन्नाटा पसर चुका था. रवि और शीला बिस्तर में थे. उन्होंने चादर ओढ़ रखी थी.रवि बोले, ‘‘आज मुझे थोड़ी ठंड सी लग रही है.’’

‘‘मगर, इस ठंड में भी आप तो घोडे़ बेच कर सोते रहते हो, मैं कितनी बार आप को जगाती हूं, फिर भी कहां जागते हो. ऐसे में कोई चोर भी घुस जाए तो पता नहीं चले. इतनी गहरी नींद क्यों आती है आप को?’’

‘‘अब बुढ़ापा आ रहा है शीला.’’

‘‘बुढ़ापा आ रहा है या मुझ से अब आप का मन भर गया है?’’

‘‘कैसी बात करती हो?’’

‘‘ठीक कहती हूं. आजकल आपको न जाने क्या हो गया,’’ यह कहते हुए शीला की आंखों में वासना दिख रही थी. रवि जवाब न दे कर शीला का मुंह ताकते रहे.

शीला बोली, ‘‘ऐसे क्या देख रहे हो? कभी देखा नहीं है क्या?’’

‘‘अरे, जब से शादी हुई है, तब से देख रहा हूं. मगर आज मेरी शीला कुछ अलग ही दिख रही है,’’ शरारत करते हुए रवि बोले.

‘‘कैसी दिख रही हूं? मैं तो वैसी ही हूं, जैसी तुम ब्याह कर लाए थे,’’ कह कर शीला ने ब्लाउज के बटन खोल दिए, ‘‘हां, आप अब वैसे नहीं रहे, जैसे पहले थे.’’

‘‘क्यों भला मुझ में बदलाव कैसे आ गया?’’ अचरज से रवि बोले.

‘‘मेरा इशारा अब भी नहीं समझ रहे हो. कहीं ऐसा न हो कि मैं भी जमना प्रसाद की पत्नी माधुरी बन जाऊं.’’

‘‘अरे शीला, जमना प्रसाद तो ढीले हैं, मगर मैं नहीं हूं,’’ कह कर रवि ने शीला को अपनी बांहों में भर कर उस के कई चुंबन ले लिए.

चिराग कहां रोशनी कहां: भाग 1

‘‘इहा, यह क्या किया तुम ने?’’

‘‘धरम, यह सिर्फ मैं ने किया है, तुम ऐसा कैसे कह सकते हो? क्या तुम इस में शामिल नहीं थे?’’

‘‘वह तो ठीक है, पर मैं ने कहा था न तुम्हें सावधानी बरतने को.’’

‘‘सच मानो धरम, मैं ने तो सावधानी बरती थी. फिर यह कैसे हुआ, मु झे भी आश्चर्य हो रहा है.’’

‘‘तुम कोई भी काम ठीक से नहीं कर सकती हो.’’

‘‘डौंट वरी. कोई न कोई हल तो निकल ही आएगा हमारी प्रौब्लम का.’’

‘‘हम दोनों को ही सोचविचार कर कोई रास्ता निकालना होगा.’’

इहा मार्टिन और धर्मदास दोनों उत्तरी केरल के एक केंद्रीय विश्वविद्यालय से बायोकैमिस्ट्री में मास्टर्स कर रहे थे. इहा धर्मदास को धरम कहा करती थी. वह कैथोलिक क्रिश्चियन थी जबकि धर्मदास उत्तर प्रदेश के साधारण ब्राह्मण परिवार से था. उस के पिता का देहांत हो गया था और उस की मां गांव में रहती थी. पिता वहीं स्कूल मास्टर थे. धरम के पिता कुछ खेत छोड़ गए थे. गांव में उन की काफी इज्जत थी. उस गांव में ज्यादातर लोग ब्राह्मण ही थे, पिता की पैंशन और खेत की आय से मांबेटे का गुजारा अच्छे से हो जाता था.

करीब एक साल पहले ही इहा और धरम में दोस्ती हुई थी. धरम बीमार पड़ा था और अस्पताल में भरती था. इहा की मां नर्स थीं और पिता कुवैत में किसी कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम करते थे. इहा की मां ने अस्पताल में धरम का विशेष खयाल रखा और अच्छी तरह देखभाल की थी. इसी दौरान दोनों दोस्त बने और यह दोस्ती कुछ ही दिनों में प्यार में बदल गई.

इसी प्यार का बीज इहा की कोख में पल रहा था. उन दोनों के फाइनल एग्जाम निकट थे. अचानक ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो सकती है, इस के बारे में दोनों को तनिक भी उम्मीद नहीं थी. एग्जाम खत्म होने को थे. एक दिन धरम ने इहा से कहा, ‘‘मैं परीक्षा के बाद मां के पास गांव जा रहा हूं. उन से सारी बात बता कर तुम से शादी करने की अनुमति मांगूंगा. तुम ने भी अपनी मम्मी को नहीं बताया होगा अभी तक?’’

‘‘नहीं, मैं ने अभी तक तो कुछ नहीं कहा है पर औरतों के साथ यही तो परेशानी है कि यह बात ज्यादा दिनों तक छिपाई नहीं जा सकती है. तुम ने अभी अनुमति की बात कही है तो क्या यह सब करने से पहले तुम ने उन से अनुमति ली थी?’’

‘‘अब तुम ताने न मारो. मु झे पूरी उम्मीद है, मां मेरी बात मान लेंगी.’’

‘‘अगर नहीं मानीं, तब क्या करोगे?’’

‘‘फिर तो हमें कोर्ट मैरिज करनी होगी.’’

‘‘हां, यह हुई न मर्दों वाली बात. अपना वादा भूल न जाना, मैं इंतजार करूंगी.’’

‘‘नहीं, भूल कैसे सकता हूं? एक भूल तो कर चुका हूं, दूसरी भूल नहीं करूंगा.’’

इहा को आश्वासन दे कर धरम अपने गांव चला गया. इहा को तो उस ने भरोसा दिला रखा था पर उसे खुद अपनी मां पर इस बात के लिए भरोसा नहीं था. वहां उस ने मां को इहा के बारे में बताया और अपनी शादी का इरादा भी जताया. पर मां यह सब सुनते ही आगबबूला हो उठीं. वे बोलीं, ‘‘तुम्हें पता है कि हम ब्राह्मण हैं और यह गांव भी ब्राह्मणों का है. तुम्हारे पिता की यहां कितनी इज्जत थी और आज भी उन का नाम लोग यहां आदर के साथ लेते हैं. ऐसा कदम उठाने से पहले तुम ने एक बार भी नहीं सोचा कि ईसाई से तुम्हारी शादी नहीं हो सकती है.’’

‘‘मां, अब जमाना बदल चुका है. ये सब पुरानी बातें हैं.’’

‘‘जमाना बदल गया होगा पर हम अभी नहीं बदले हैं और न बदलेंगे. मेरे जीतेजी यह नहीं हो सकता. हां, तुम चाहो तो मु झ से नाता तोड़ कर या मु झे मरा सम झ कर उस बदजात से शादी कर सकते हो.’’

‘‘मां, पर उस बेचारी का क्या होगा? कुसूर तो सिर्फ उस का नहीं था?’’

‘‘जिस का भी कुसूर हो, मैं कुछ नहीं जानती. अगर उस से शादी करनी है तो तुम मु झे और इस गांव को सदा के लिए छोड़ कर जा सकते हो.’’

‘‘नहीं मां, मैं तुम्हें भी नहीं छोड़ सकता हूं.’’

‘‘उस लड़की को बोलो, अबौर्शन करा ले और यह सब भूल कर अपनी जातिधर्म में शादी कर ले.’’

‘‘मां, यह इतना आसान नहीं है. वह कैथोलिक ईसाई है. उस का समाज ऐसा करने की इजाजत नहीं देता है.’’

‘‘मैं ने अपना फैसला बता दिया है, अब आगे तेरी मरजी.’’

इस बीच इहा ने धरम को फोन कर पूछा, ‘‘तुम्हारी मां ने क्या फैसला किया है?’’

‘‘मैं अभी तक उन्हें मना नहीं सका हूं, पर थोड़ा और समय दो मु झे. कोशिश कर रहा हूं.’’

‘‘पर तुम ने तो कहा था कि ऐसी स्थिति में कोर्ट मैरिज कर लोगे?’’

‘‘कहा तो था, मां ने भी मेरे लिए बहुत कष्ट सहे हैं. इस उम्र में उन्हें म झधार में छोड़ भी नहीं सकता हूं. तुम ने अपनी मम्मी को कुछ बताया है या नहीं?’’

‘‘नहीं, पर अब छिपाना भी मुश्किल है. तीसरा महीना चढ़ आया है.’’

‘‘थोड़ी और हिम्मत रखो. मैं वहां आने की कोशिश करता हूं.’’

धरम की मां के गिरने से उन के कमर की हड्डी टूट गई और वे बिस्तर पर आ गईं. डाक्टर ने कहा कि कम से कम 3 महीने तो लग ही जाएंगे. इधर इहा की हालत देख कर उस की मम्मी को कुछ शक हुआ और उन्होंने बेटी से पूछा, ‘‘सच बता, क्या बात है? तुम कुछ छिपाने की कोशिश कर रही हो?’’

इहा को सच बताने का साहस नहीं हुआ. उसे चुप देख कर मम्मी का शक और गहराने लगा और वह बोली, ‘‘तु झे मेरी जान की कसम. तुम क्या छिपा रही हो?’’

इहा ने रोतेरोते सचाई बता ही दी. मां बोली, ‘‘तुम ने समाज में मु झे सिर उठा कर चलने लायक नहीं छोड़ा है. कलमुंही, तेरे पापा यह सुनेंगे तो उन पर क्या बीतेगी. दिल की बीमारी के बावजूद विदेश में वे दिनरात मेहनत कर पैसे इकट्ठा कर रहे हैं ताकि तेरी पढ़ाई का कर्ज उतार सकें और तेरी शादी भी अच्छे सेकर सकें.’’

‘‘सौरी मम्मी, मैं ने आप लोगों को दुख दिया है.’’

‘‘तेरे सौरी कहने मात्र से क्या होने वाला है. तेरे पापा का कौंट्रैक्ट भी 10 महीने में खत्म होने वाला है. वे यह सब देख कर क्या कहेंगे?’’

‘‘मैं धरम से बात करती हूं,’’ इहा रोते हुए बोली.

इहा ने धरम को फोन किया तो वह बोला, ‘‘फिलहाल 3 महीने तक मैं नहीं आ सकता हूं. तुम किसी तरह अबौर्शन करा लो. उस के बाद मैं आ कर सब ठीक कर दूंगा.’’

‘‘तुम जानते हो कि हमारा धर्म इस की इजाजत नहीं देता है. और अगर मैं गलत तरीके से अबौर्शन करा लेती हूं, तब तुम आ कर क्या कर लोगे? और तुम क्या सम झते हो, मैं तुम पर आगे भरोसा कर सकूंगी?’’

आगे पढ़ें- मैं भी मजबूर हूं, इहा

नो एंट्री- भाग 2 : ईशा क्यों पति से दूर होकर निशांत की तरफ आकर्षित हो रही थी

रविवार को ईशा ने फूलों की प्रिंट वाली ड्रेस के साथ हाई हील्स पहनी और अपने बालों को हाई पोनीटेल में बांध लिया. इस वेषभूषा में वो अपनी साड़ी वाली छवि से बिलकुल उलट लग रही थी. इस नए अवतार में  निशांत ने उसे देखा तो वह पूरे जोर-शोर से ईशा के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने लगा. उसे लगने लगा मानो ईशा उसे अपने व्यक्तित्व का हर रंग दिखाना चाहती है. पाश्चात्य परिधान में उसे देखकर निशांत उस पर और भी मोहित हो गया, “अरे रे रे, मैं तो तुम्हें भारतीय नारी समझा था पर तुम तो दो धारी तलवार निकलीं. बेचारा मयूर! उसके पास तो ऐसी तलवार के लायक कमान भी नहीं है”, धीरे से ईशा के कानों में फुसफुसा कर कहता हुआ निशांत साइड से निकल गया.

मन ही मन ईशा हर्षाने लगी. शादीशुदा होने के उपरांत भी उसमें आशिक बनाने की कला जीवित थी, यह जानकार वह संतुष्ट हुई. उसपर ऐसा भी नहीं था कि निशांत, मयूर की आँख बचाकर यह सब कह रहा था. उस दिन निशांत, मयूर के सामने भी कई बार ईशा से फ्लर्ट करने की कोशिश करता रहा और मयूर हँसता रहा.

घर लौटते समय ईशा ने मयूर से निशांत की शिकायत की, “देखा तुमने, निशांत कैसे फ़्लर्ट करने की कोशिश करता है.” वह नहीं चाहती थी कि मयूर के मन में उसके प्रति कोई गलतफहमी हो जाए.

ईशा की बात को मयूर ने यह कहकर टाल दिया, “निशांत तो है ही मनमौजी किस्म का लड़का. और फिर तुम उसकी भाभी लगती हो. देवर भाभी में तो हँसी-मजाक चलता रहता है. पर तुम उसे गलत मत समझना, वह दिल का बहुत साफ और नेक लड़का है.”

अगले हफ्ते मयूर कंपनी के काम से दूसरे शहर टूर पर गया. हर रोज की तरह ईशा दोपहर में कुछ देर सुस्ता रही थी कि अचानक दरवाजे की घंटी बजी. किसी कोरियर बॉय की अपेक्षा करती ईशा ने जब दरवाजा खोला तो सामने निशांत को खड़ा देख वह हतप्रभ रह गई, “तुम… इस वक्त यहां? लेकिन मयूर तो ऑफिस के काम से बाहर गए हैं.”

“मुझे पता है. मैं तुमसे ही मिलने आया हूं. अंदर नहीं बुलाओगी”, निशांत की साफगोई पर ईशा मन ही मन मोहित हो उठी. ऊपर से चेहरे पर तटस्थ भाव लिए उसने निशांत को अंदर आने का इशारा किया और स्वयं सोफे पर बैठ गई.

निशांत ठीक उसके सामने बैठ गया, “अरे यार, तुम्हारे यहां घर आए मेहमान को चाय-कॉफी पूछने का रिवाज नहीं है क्या?”

“मैंने सोचा ऑफिस के टाइम पर यहां आए हो तो ज़रूर कोई खास बात होगी. पहले वही सुन लूं”, ईशा ने अपने बालों में उँगलियाँ घुमाते हुए कहा. निशांत के साथ ईशा का बातों में नहले पर दहला मारना दोनों को पसंद आने लगा. आँखों ही आँखों के इशारे और जुबानी जुगलबाजी उनकी छेड़खानी में नए रंग भरते.

“खास बात नहीं, खास तो तुम हो. सोचा मयूर तो यहां है नहीं, तुम्हारा हालचाल पूछता चलूं”, निशांत के चेहरे पर लंपटपने के भाव उभरने लगे.

“मैं अपने घर में हूं. मुझे भला किस बात की परेशानी?”, ईशा ने दो-टूक बात की. वो देखना चाह रही थी कि निशांत कहाँ तक जाता है.

“ईशा, तुम शायद मुझे गलत समझती हो इसीलिए मुझसे यूं कटी-कटी रहती हो. क्या मैं तुम्हें हैंडसम नहीं लगता?”, संभवतः निशांत को अपने सुंदर रंग रूप का आभास भली प्रकार था.

“ऐसी कोई बात नहीं. असल में, निशांत, तुम मयूर के दोस्त हो, मेरे नहीं.”

“यह कैसी बात कह दी तुमने? दोस्ती करने में कितनी देर लगती है… फ्रेंड्स?”, कहते हुए निशांत ने अपना हाथ आगे बढ़ाया तो प्रतिउत्तर में ईशा ने अदा से अपना हाथ निशांत के हाथ में दे दिया. “ये हुई न बात”, कह निशांत पुलकित हो उठा.

फिर कॉफी पीकर, कुछ देर बैठकर निशांत लौट गया. आज पहली मुलाक़ात में इतना पर्याप्त था – दोनों ने अपने मन में यही सोचा. निशांत को आगे बढ्ने में कोई संकोच नहीं था किन्तु वो ईशा के दिल के अंदर की बात नहीं जनता था. इतनी जल्दी वो कोई खतरा उठाने के मूड में नहीं था. कहीं ईशा उसपर कोई आरोप लगा दे तो उसकी क्या इज्ज़त रह जाएगी समाज में! उधर ईशा विवाहिता होने के कारण हर कदम फूँक-फूँक कर रखने के पक्ष में थी. वैसे भी निशांत, मयूर का मित्र है. उसकी अनुपस्थिति में आया है. कहीं ऐसा न हो कि इसे मयूर ने ही भेजा हो… ईशा के मन में कई प्रकार के विचार आ रहे थे. दुर्घटना से देर भली!

मयूर के लौटने पर ईशा ने उसे निशांत के आने की बात स्वयं ही बता दी. मयूर को ज़रा-सा अटपटा लगा, “अच्छा! मेरी गैरहाजरी में क्यूँ आया?” उसकी प्रतिक्रिया से ईशा आश्वस्त हो गयी कि निशांत के आने में मयूर का कोई हाथ नहीं. फिर उसने स्वयं ही बात संभाल ली, “मैं खुश हुई निशांत के आने से. कम से कम तुम्हारे यहाँ ना होने पर इस नए शहर में मेरी खैर-खबर लेने वाला कोई तो है.” ईशा की बात से मयूर शांत हो गया. “निशांत सच में तुम्हारा एक अच्छा मित्र है”, ईशा ने बात की इति कर दी.

अब ईशा के फोन पर निशांत के कॉल अक्सर आने लगे. सावधानी बरतते हुए उसने नंबर याद कर लिया पर अपने फोन में सेव नहीं किया. ऐसे में कभी उसका फोन मयूर के हाथ लग भी जाए तो बात खुलने का कोई डर नहीं.

किन्तु ऐसे संबंध मन की चपलता को जितनी हवा देते हैं, मन के अंदर छुपी शांति को उतना ही छेड़ बैठते हैं. एक दिन मयूर के फोन पर निशांत का कॉल आया. मयूर बाथरूम में था. ईशा ने देखा कि निशांत का कॉल है तो उसका दिल फोन उठाने का कर गया. “मयूर, तुम्हारे लिए निशांत का कॉल है. कहो तो उठा लूँ?”, ईशा ने बाथरूम के बाहर से पुकारा.

“रहने दो, मैं बाहर आकर कर लूँगा”, मयूर से इस उत्तर की अपेक्षा नहीं थी ईशा को.

दिल के हाथों मजबूर उसने फोन उठा लिया. “हेलो”, बड़े नज़ाकत भरे अंदाज़ में उसने कहा तो निशांत भी मचल उठा, “पता होता कि फोन पर आपकी मधुर आवाज़ सुनने को मिल जाएगी तो ज़रा तैयार होकर बैठता.” निशांत ने फ़्लर्ट करना शुरू कर दिया.

ईशा मुस्कुरा उठी. वो कुछ कहती उससे पहले मयूर पीछे से आ गया, “किससे बात कर रही हो?”

“बताया तो था कि निशांत का कॉल है.”

“मैंने तुम्हें फोन उठाने के लिए मना किया था. मैं बाद में कॉल कर लेता. खैर, अब लाओ मुझे दो फोन”, मयूर के तल्खी-भरी स्वर ने ईशा को डगमगा दिया. उसने सोचा नहीं था कि मयूर उससे इस सुर में बात करेगा.

“क्या मयूर को निशांत और मुझ पर शंका होने लगी है? क्या मयूर ने कभी निशांत का कोई मेसेज पढ़ लिया मेरे फोन पर? पर मैं तो सभी डिलीट कर देती हूँ. कहीं गलती से कभी कोई छूट तो नहीं गया…”, ईशा के मन में अनगिनत खयाल कौंधने लगे. निशांत से रंगरलियों में ईशा को जितना आनंद आने लगा उतना ही मयूर के सामने आने पर बात बिगड़ जाने का डर सताने लगा. जैसे उस दिन जब ईशा और निशांत एक कैफ़े में मिले थे तब कैसे ईशा ने निशांत को एक भी पिक नहीं खींचने दी थी. ये चोरी पकड़े जाने का डर नहीं तो और क्या था!

अगले दिन निशांत की ज़िद पर ईशा फिर उससे मिलने चल दी. सोचा “आज निशांत से मिलना भी हो जाएगा और रिटेल थेरेपी का आनंद भी ले लूँगी”, तैयार होकर ईशा शहर के चुनिंदा मॉल पहुँची. जब तक निशांत पहुँचता, उसने थोड़ी विंडो शॉपिंग करनी शुरू की कि किसी ने उसका बाया कंधा थपथपाया. पीछे मुड़ी तो सागरिका को सामने देख जड़ हो गई.

“अरे, क्या हुआ, पहचानना भी भूल गई क्या? ऐसा तो नहीं होना चाहिए शादी के बाद कि अपनी प्यारी सहेली को ही भुला बैठे”, सागरिका बोल उठी. वह वहां खड़ी खिलखिलाने लगी लेकिन ईशा उसे अचानक सामने पा थोड़ी हतप्रभ रह गई. फिर दोनों बचपन की पक्की सहेलियां गले मिलीं और एक कॉफी शॉप में बैठकर गप्पे लगाने लगीं. अपनी शादीशुदा जिंदगी के थोड़े बहुत किस्से सुनाकर ईशा, सागरिका से उसका हाल पूछने लगी.

“क्या बताऊं, ईशु, हेमंत मेरी जिंदगी में क्या आया बहार आ गई. उस जैसा जीवनसाथी शायद ही किसी को मिले. मेरी इतनी प्रशंसा करता है, हर समय साथ रहना चाहता है. आज भी मुझे लेने आने वाला है. तुम भी मिल लेना”, सागरिका ने बताया.

“नहीं-नहीं सागू, मुझे लेट हो जाएगा. मुझे निकलना होगा”, ईशा, हेमंत की शक्ल नहीं देखना चाहती थी. वह तुरंत वहाँ से घर के लिए निकल गई. रास्ते में निशांत को फोन करके अचानक तबीयत बिगड़ जाने का बहाना बना दिया. रास्ते भर ईशा विगत की गलियों से गुजरते हुए अपने कॉलेज के दिनों में पहुँच गई जब बहनों से भी सगी सखियों सागरिका और ईशा के सामने हेमंत एक छैल छबीले लड़के के रूप में आया था. ऊंची कद काठी, एथलेटिक बॉडी, बास्केटबॉल चैंपियन और पूरे कॉलेज का दिल मोह लेने वाला. ईशा की दोस्ती जल्दी ही हेमंत से हो गई क्योंकि ईशा को स्वयं भी बास्केटबॉल में रुचि थी. वह हेमंत से बास्केटबॉल खेलने के पैंतरे सीखने लगी. फिर सागरिका के कहने पर निकट आते वैलेंटाइंस डे पर ईशा ने हेमंत से अपने दिल की बात कहने की ठानी. किंतु वैलेंटाइंस डे से पहले रोज डे पर हेमंत ने सागरिका को लाल गुलाब देकर अचानक प्रपोज कर दिया. ईशा के साथ-साथ सागरिका भी हक्की बक्की रह गई. कुछ कहते ना बना. बाद में अकेले में ईशा ने अपने दिल को समझा लिया कि हेमंत की तरफ से कभी कोई संदेश नहीं आया था और ना ही उसने कभी उससे कुछ ऐसा कहा था. वो दोनों सिर्फ अच्छे दोस्त थे.

 

खामोश जवाब: भाग 2 – क्या है नीमा की कहानी

युवान से सहानुभूति तो रखी जा सकती है पर प्रेम और विवाह नहीं किया जा सकता और फिर धीरेधीरे नीमा ने युवान से किनारा कर लिया. हालांकि  युवान को ऐसे रूखे व्यवहार की आशा नहीं थी नीमा से पर उस दिन मोबाइल पर आए हुए व्हाट्सऐप संदेश ने युवान को नीमा की बेरुखी से परिचित करा ही दिया.

‘‘यू नो युवान… मेरे घर वाले मेरी मरजी के खिलाफ मेरी शादी कहीं और करना चाह रहे हैं और मेरे मना करने पर भी मु   झ पर दबाव बना रहे हैं. इसीलिए मैं अब तुम से शादी नहीं कर सकती. मु   झे लगता है तुम मेरी मजबूरी सम   झोगे, चाहो तो मु   झे सोशल मीडिया से भी ब्लौक और अन्फ्रैंड कर सकते हो पर मैं तुम्हें एक दोस्त के रूप में हमेशा याद रखूंगी… बाय.

यह संदेश पढ़ कर युवान के मन में बहुत कुछ टूट गया पर बदले में एक डूबती हुई फीकी सी मुसकराहट उस के चेहरे पर फैल गई जिस का साथ उस के छलके आंसुओं ने भी दे दिया.

नीमा एक अत्यंत महात्त्वाकांक्षी लड़की थी और ऐशोआराम का जीवन चाहती थी. अब जबकि उस के जीवन से युवान का चैप्टर क्लोज हो चुका था इसलिए उस ने अपने घर वालों की मदद से अपने लिए एक ऐसे जीवनसाथी की खोज करनी शुरू कर दी जो पैसे वाला हो और इस के लिए रिश्तेदारों, दोस्तों और मैट्रीमोनीयल साइट्स की मदद ली जाने लगी और कुछेक महीनों के बाद नीमा की तलाश पूरी हुई जब उसे विवाह डौटकौम पर एक 35 साल के 1 युवक का प्रोफाइल दिखा जो रोबीला होने के साथसाथ पैसे वाला भी था. शामक नाम था उस का. शामक आर्मी से ऐच्छिक रिटायरमैंट ले चुका था और अब एक सिक्यूरिटी एजेंसी चला रहा था. शामक की यह एजेंसी फैक्टरी में, मौल्स में और ओहदे और पैसे वाले लोगों को सुरक्षा प्रदान करने का काम करती थी. नीमा उस के मातापिता और भाई शामक से मिले. उस का लाइफस्टाइल देख कर ही इंप्रैस हो गए. उन्हें ऐसा लग कि शामक ने उन से कुछ भी छिपाया नहीं था. उस ने यह बताया कि उस के मातापिता की मौत के बाद उस के चाचा ने ही उसे पढ़ायालिखाया और उस का पूरा ध्यान रखा बदले में शामक ने भी मन से  पढ़ाई करी और कई प्रतियोगिताओं में अव्वल रहा और बाद में अपने मजबूत शरीर और फिटनैस के दम पर सेना में नौकरी हासिल कर ली. शामक भी अपने चाचा के लिए हर महीने अपनी सैलरी का आधा हिस्सा भेजना नहीं भूलता था.

शामक की उम्र बढ़ने पर चाचा ने कई बार उस से शादी करने को कहा पर शामक हर बार टालता ही गया पर अब जब वह फौज से बाहर की दुनिया में आया तब उसे शादी कर लेने की जरूरत महसूस हुई और इसीलिए उस ने भी इन साइट्स का सहारा लिया जिस के द्वारा उस की मुलाकात नीमा और उस के परिवार से हुई.

शामक के परिवार में सिर्फ उस के चाचा की रजामंदी चाहिए थी और इधर नीमा का परिवार इस बात से खुश था कि पैसे वाला शामक एक अच्छा पति साबित होगा और यही सोच कर उन लोगों ने नीमा की शादी शामक के साथ कर दी.

शामक और नीमा शादी के तुरंत बाद मालदीव अपने हनीमून के लिए चले गए, जहां उन्हें विबग्योर वर्ल्ड रिजोर्टमें रुकना था. रिजोर्ट के चारों ओर खूबसूरती फैली हुई थी. समुंदर का नीलानीला पानी नीमा को एक अलग ही दुनिया का एहसास कराता. नीमा और शामक पूरा दिन घूमते और पूरी रातभर बिस्तर पर जम कर एकदूसरे से प्यार करते. ऐसा लगता कि उन के जीवन में किसी और  के लिए कोई स्थान नहीं है.

अगले दिन दोपहर को जब नीमा की आंख लग गई तब शामक होटल से बाहर गया और जब लौटा तो उस के हाथ में जूट का बना हुआ एक बहुत सुंदर थैला था जिस पर मूंगे और मोती से बारीक कढ़ाई करी गई थी. उस थैले को शामक ने नीमा को भेंट कर दिया. नीमा ने आंखें मलते हुए देखा कि उस में मालदीव का पारंपरिक लिबास था जिसे धिवेही कहते हैं  जो एक लंबी पोशाक सी होती है और साथ में एक स्कार्फ सा होता है, इस ड्रैस के चटकीले इंद्रधनुषी रंगों को देख कर नीमा बहुत खुश हो गई. उसे लगने लगा कि अब उस के पास सिर्फ खुशियों के लिए ही जगह है पर यह सोचना नीमा के लिए जल्दबाजी थी क्योंकि शामक शक्की स्वभाव का था और वह नीमा के आसपास किसी मर्द की मौजूदगी पसंद नहीं करता था. नीमा का किसी पुरुष से बात करना भी उसे नहीं भाता था जबकि शामक खुद अपने हनीमून पर आने के बाद भी मालदीव में पैसे खर्च कर के वहां की औरतों के साथ मजे मारने से बाज नहीं आ रहा था. वह समुद्रतट पर अपनी नईनवेली पत्नी के साथ जाता पर उस की नजर हमेशा दूसरी औरतों पर होती जिस की शिकायत भी दबे शब्दों में नीमा ने उस से करी तो शामक ने लापरवाही वाले अंदाज में हंसते हुए बात को घुमा दिया.

हनीमून खत्म होने के बाद दोनों भारत आ गए और शामक ने अपना काम

संभाल लिया. नीमा ने घर की जिम्मेदारी. कुछ दिनों बाद नीमा ने शामक के व्यवहार में अजीब परिवर्तन देखा. वह चिड़चिड़ा कर बात करता और बिस्तर पर और भी आक्रामक हो गया था. पूछने पर उस ने बताया कि उसे नीमा का उस के ही चाचा के साथ बात करना अच्छा नहीं लगता.

‘‘उन बुजुर्ग चाचा से बात करना ठीक नहीं लगता पर वे तो मेरे और आप के पिता समान हैं,’’ नीमा हैरान थी.

अभी उस का वाक्य पूरा हुआ ही था कि शामक का हाथ चटाक की आवाज के साथ नीमा के कोमल गाल पर पड़ गया. अपना गाल पकड़ कर रह गई नीमा. उसे कुछ सम   झ नहीं आया कि क्या हुआ? सिर्फ सिसकती रह गई वह.

उस दिन के बाद से शामक आएदिन नीमा को शराब पी कर मारता और गंदी गालियां देता. नीमा के लिए यह सब असहनीय हो रहा था पर फिर भी उसे लग रहा था कि शामक एक दिन सुधर जाएगा पर हालात बद से बदतर हो गए. जब शामक ने एक शाम को खूब शराब पी कर लातघूंसों से नीमा को मारा तो उस का सिर फूट गया और खून निकल रहा था. उस के दोनों घुटनों में भी चोट आई थी. लिहाजा, उसे अस्पताल में भरती कराना पड़ा. अस्पताल लाए जाने पर वह बेहोश थी जहां पर उसे तुरंत गहन चिकित्सा कक्ष में भरती कराया गया.

विष अमृत: भाग-2 एक घटना ने अमिता की पूरी जिंदगी ही बदल कर रख दी

मीनाक्षी आकाश की बचपन की दोस्त थी और नमिता के प्रति उस के प्यार को सम   झती थी. वह जानती थी नमिता और आकाश की जोड़ी बहुत अच्छी रहेगी. आकाश बहुत अच्छा इंसान है. उस ने कई बार नमिता को शादी के विषय पर टटोलना चाहा लेकिन हर बार नमिता एक ही जवाब देती, ‘‘मैं अपनी जिंदगी से ऐसे ही खुश हूं. किसी बंधन में बंधना नहीं चाहती.’’‘‘लेकिन हर लड़की का एक सपना होता है कि उस का अपना एक घर हो, परिवार हो,’’ मीनाक्षी कहती.‘‘है तो मेरा परिवार, मांपिताजी हैं, भैयाभाभी हैं, एक प्यारा सा भतीजा है,’’ नमिता कहती.

‘‘हां लेकिन जैसे तुम्हारे भैया का अपना एक परिवार है क्या तुम्हारा मन नहीं करता कि वैसा ही एक परिवार तुम्हारा हो, बच्चे हों?’’  मीनाक्षी उसे उकसाती. ‘‘नहीं मैं ऐसे ही खुश हूं,’’ नमिता बात को वहीं खत्म कर देती.

मीनाक्षी को समझ नहीं आता कि नमिता आखिर शादी क्यों नहीं करना चाहती. क्या उस के मातापिता कमाऊ लड़की की शादी नहीं करना चाहते ताकि उस का पैसा उन्हें मिलता रहे, लेकिन ऐसा भी नहीं लगता क्योंकि उन्हें पैसों की कोई कमी नहीं थी, अच्छाभला व्यवसाय था उन का. मीनाक्षी का सिर घूम जाता सोचसोच कर लेकिन कोई कारण उसे समझ नहीं आता.

समय यों ही बीत रहा था. रजत और निशा की शादी हो गई और तनु और पंकज की सगाई हो गई. मीनाक्षी के लिए भी उस के घर वालों ने लड़का पसंद कर लिया था और जल्द ही उस की भी सगाई होने वाली थी. हर शनिवार अब भी आकाश के घर पर उन सब की महफिल जमती मगर जल्द ही मीनाक्षी शादी के बाद यूएस जाने वाली थी और रजतनिशा बैंगलुरु शिफ्ट होने वाले थे. कनु और पंकज भी विदेश में सैटल होने का सोच रहे थे.

आकाश के दिल में एक हौल सा उठता, दर्द की एक लकीर उस के दिल के आरपार हो जाती, यह सब चले जाएंगे तो नमिता के साथ ये जो पल वह गुजारता है वे भी छिन जाएंगे. नमिता चंद घंटों के लिए ही सही उस के घर पर तो आती है. उस का उतना आना ही दिल को अजीब सी तसल्ली देता है. अब वह भी बंद हो जाएगा. यह 7 साल से जो उन का इतना अच्छा ग्रुप बना हुआ है वह अब हमेशा के लिए टूट जाएगा. खत्म हो जाएंगी इस घर की सारी स्वरलहरियां, खामोश हो जाएंगी दीवारें संगीत के बिना. जिंदगी सूनी हो जाएगी. आकाश ने अपने ड्राइंगरूम को देखा, एक छोटा सा म्यूजिकल कैफे सा ही था. यह अब बस एक साधारण सा ड्राइंगरूम भर रह जाएगा.

2 महीने बाद ही मीनाक्षी की सगाई और    झटपट शादी हो गई और वह अपने पति के साथ यूएस चली गई. रजतनिशा बैंगलुरु चले गए. कनु और पंकज की भी शादी हो गई मगर अब भी किसी शनिवार वह नमिता को ले कर आकाश के यहां आ जाते लेकिन अकसर ही आकाश की शनिवार की शाम तनहा और उदास बीतने लगी थी.

एक दिन यूएस से मीनाक्षी का फोन आया. वह बहुत खुश लग रही थी. आकाश का हालचाल पूछने के बाद थोड़ी देर बातें करने के बाद मीनाक्षी ने पूछा, ‘‘नमिता से कुछ बात की तूने आकाश?’’‘‘नहीं वह मौका ही कहां देती है बात करने का,’’ आकाश ने कहा.

‘‘वह मौका नहीं देती तो तू मौका ढूंढ़. उस से बात कर के कुछ तो किनारा ढूंढ़. कब तक यों ही भंवर में गोते खाता रहेगा? नमिता से बात कर के इस पार या उस पार कुछ फैसला कर अपने जीवन का… या तो अपनी मुहब्बत का इजहार कर उस से या फिर उसे भूल कर आगे बढ़ जा,’’ मीनाक्षी ने कहा.

‘‘ठीक है मैं बात करूंगा उस से,’’ आकाश ने कहा. ‘‘इसी शनिवार को कर. मैं पंकज से कह दूंगी औफिस से उसे विंड ऐंड वेव्स ले आए तू भी पहुंच जाना और उस से साफसाफ बात कर लेना. यदि वह मान गई तो ठीक नहीं मानी तो उस की मुहब्बत का वहीं तालाब में विसर्जन कर देना,’’ मीनाक्षी ने कहा.

आकाश को उस के कहने के ढंग पर हंसी आ गई, ‘‘हां मेरी मां मैं बात कर लूंगा उस से. वैसे मीनाक्षी तूने ठीक ही कहा है मैं भी अब इस का कोई हल चाहता हूं, मैं भी अब किसी भ्रम के जाल में उल   झा नहीं रहना चाहता.’’ ‘‘यही अच्छा रहेगा. अब मैं शनिवार की रात को तु   झे फोन करूंगी और जवाब सुनूंगी, कोई बहाना नहीं चलेगा, ठीक है न?’’  मीनाक्षी ने उसे अल्टीमेटम दे दिया.

‘‘ठीक है मैं फैसला कर आऊंगा,’’ आकाश ने हंस कर कहा.शनिवार को मीनाक्षी के कहे अनुसार पंकज कनु और नमिता को विंड ऐंड वेव्स ले आया. आकाश भी वहीं पहुंच गया. थोड़ी देर बातें करने के बाद कनु और पंकज बोटिंग करने के बहाने वहां से चले गए. उन के जाते ही नमिता एकदम असहज हो गई. आकाश ने समय व्यर्थ गंवाना ठीक नहीं सम   झा. आज वह दृढ़ फैसला कर के ही आया था कि नमिता से उस की राय जान कर ही रहेगा.

राजयोग: भाग-2 अरुणा रोली के मन को समझ नहीं पा रही थी

अरुणा खुश है कि रोली की परवरिश में वह सफल हुई. रोली आधुनिकता के गंदे जाल में नहीं फंसी है. तलाक के समय भी अम्मांबाबूजी ने कितना सम   झाया था कि माफ कर दे दामादजी को अकेले बच्चों की परवरिश नहीं कर पाएगी. जीवन बड़ा मुश्किल होता है. अरुणा ने कहा था, ‘‘अम्मां सबकुछ अच्छा होगा तुम चिंता मत करो. तुम्हारे संस्कारों और दी गई शिक्षा से फैसला लेने की हिम्मत आई है मुझ में.’’

‘‘लेकिन बेटी अकेली औरत को समाज जीने नहीं देता. तू सोच रोली बड़ी होगी उस की शादी, पढ़ाई वगैरह में जहां भी तू जाएगी तेरे जीवन की कहानी पहले आ जाएगी थोड़ा तो सोच,’’ बाबूजी बोले. मगर अरुणा के निर्णय के आगे सभी चुप हो गए थे. भैयाभाभी का थोड़ा सहारा था फिर सब अपनेअपने घरसंसार में व्यस्त हो गए थे.

कल रोली 24 साल की हो जाएगी. अरुणा ने कहा कि बर्थडे सैलिब्रेट करने के लिए अपने फ्रैंड्स के साथ मिल कर पार्टी की तैयारी कर ले पर रोली इन सब से दूर रहती. रोली उस के कंधों पर    झूलते हुए बोली, ‘‘मां के साथ ही पार्टी करूंगी घर पर बाकी फ्रैंड्स को चौकलेट से मुंह मीठा करा दूंगी. सब जानते हैं मां की मु   झे लेट नाइट क्लब की पार्टियां बगैरा पसंद नहीं.’’‘‘अच्छा बाबा मानस को बुलाएगी या उसे भी नहीं? अरुणा बोली.

‘‘तुम बोलोगी तो बुला लूंगी,’’ रोली मुसकराई, ‘‘एक बात और मां मेरे पीएचडी वाले डाक्टर साहब भी आ रहे हैं.’’ ‘‘उन का क्या काम तेरे बर्थडे पर?’’ अरुणा ने पूछा.‘‘उन से ही पीएचडी कर रही हूं उन की स्टूडैंट हूं इसलिए,’’ रोली ने जवाब दिया, ‘‘डिनर हम बाहर से और्डर करेंगे या बाहर किसी होटल में करेंगे.’’‘‘अच्छा बाबा, जैसी तेरी मरजी,’’ अरुणा बोली. रोली डाक्टरेट डाक्टर अमन के मार्गदर्शन में कर रही थी.‘‘मां कहां हो?’’ अरुणा के कानों में आवाज आई. देखा तो सामने रोली खड़ी थी. ‘‘कहां खोई हुई हो? चलो कमरे में. रोली ने मां को प्यार से आदेश दिया. अरुणा अतीत में खो गई थी… वापस वर्तमान में आई और रोली के आदेश पर चुपचाप उस के पीछे चल दी उस के कमरे में. रोली का पूरा कमरा किताबों से भरा था. कहीं भी किताब पढ़तेपढ़ते रख देती थी.

‘‘रोली देख तेरे बैड पर कितनी किताबें हैं? इन्हें इन की जगह रख दो,’’ अरुणा ने कुछ किताबें हटा कर अपने लिए जगह बनाई. मां प्रोफैसर की बेटी हूं. प्रोफैसर तो किताबों के बीच में रहता है,’’ रोली मुसकराते हुए बोली. ‘‘कल तेरा बर्थडे है. मानस तेरा रूम देखेगा तो क्या सोचेगा? कितना बिखरा है,’’ अरुणा ने कहा. ऐसा बिलकुल भी नहीं सोचेगा,’’ रोली बोली. ‘‘क्यों नहीं सोचेगा?’’ अरुणा ने सवाल किया.

‘‘वह भी तो प्रोफैसर है न. प्रोफैसर को किताबों से प्यार होता है मां,’’ रोली ने मुसकराते हुए जवाब दिया. रोली को मुसकराते हुए देख अरुणा मन ही मन खुश हुई कि शायद रोली मानस से शादी के लिए मान जाएगी. यही सोचतेसोचते उस के चेहरे पर हलकी मुसकराहट आई. रोली ने तुरंत यह बात नोट की. बोली, ‘‘मां क्या सोच रही हो?’’ ‘‘कुछ नहीं,’’ कह कर अरुणा उठने लगी तो रोली ने अरुणा का हाथ पकड़ कर उसे जबरदस्ती बैठाया और बोली, ‘‘मां मु   झे पता है आप क्या सोच कर मुसकरा रही हो.’’ ‘‘क्या सोच रही हूं बता?’’ अरुणा बोली, ‘‘तू मेरी मां है कि मैं तेरी मां हूं,’’ अरुणा ने प्यारभरे गुस्से से कहा.

‘‘मां आप यह सोच रही है कि मैं मानस के साथ शादी के लिए राजी हूं बोलो मां.’’ अरुणा चुप हो गई. उस के मन की बात रोली ने आसानी से पढ़ ली थी. फिर बोली, ‘‘हां रोली में यही सोच रही हूं तू मानस से शादी के लिए मान जाएगी. अच्छा बता क्या कमी है मानस में?’’ अरुणा ने पूछा. मां मैं ने कब कहा मानस में कोई कमी है? रोली ने उलटा अरुणा से प्रश्न किया. ‘‘फिर कहां दिक्कत है शादी में?’’ अरुणा उल   झन में थी, ‘‘पहले भी तू 2-3 लड़कों को मना कर चुकी है. अरुणा का सवाल था. ‘‘एक बात का जवाब चाहिए मु   झे तुम से,’’ रोली बोली. ‘‘बोल क्या पूछना चाहती है,’’ अरुणा भी उल   झन में थी. वह आज जानना चाहती है कि रोली शादी क्यों टाल रही है. ‘‘मां जब मेरा जन्म हुआ था तब तुम कितने साल की थी?’’ रोली ने अरुणा से पूछा,

‘‘यह कैसा सवाल है?’’ अरुणा बोली. ‘‘बस ऐसा ही सवाल है, तुम जवाब दो,’’ रोली बोली. ‘‘तू कितने साल की है?’’ अरुणा भी पीछे नहीं हटी. ‘‘कल मैं 24 साल की पूरी हो जाऊंगी,’’ रोली ने कहा.‘‘जब तेरा जन्म हुआ तब मैं 27 साल की थी,’’ अरुणा बोली. ‘‘मतलब तुम आज की तारीख में लगभग 52 की हुई,’’ रोली बोली. ‘‘तू बोलना क्या चाहती है सीधासीधा बोल?’’ अरुणा चिढ़ने लगी. ‘‘मां यह बताओ आप ने तलाक के बाद शादी क्यों नहीं? आप ने पूरा जीवन अकेले कैसे काटा है? पहले मु   झे इस का जवाब दो. फिर मेरी शादी के लिए सोचना,’’ रोली बोली. अरुणा इस सवाल के लिए तैयार नहीं थी. वह चुप रह गई. फिर बात को

टालने की गरज से बोली, ‘‘चल रात बहुत हो चुकी है ये फालतू बातें बाद में करना,’’ अरुणा बोली, ‘‘कल तेरा बर्थडे भी है. इतना लेट सोएंगे तो फिर सुबह जल्दी नहीं उठ पाएंगे. तेरे बर्थडे की शाम की तैयारी भी करनी है. चल सो जाते हैं,’’ अरुणा ने बात खत्म करने के लिए कहा ‘‘मां,’’ रोली ने गुस्सा जताया. ‘‘बेटा इस विषय पर बाद में बात करते हैं,’’ अरुणा बोली, ‘‘तेरी शादी की बात चल रही है तो उलटेसीधे सवाल कर रही है,’’ अरुणा बोली. ‘मां ये उलटेसीधे सवाल नहीं हैं,’’ रोली बोली. ‘‘चल ठीक है, कल तेरे बर्थडे के बाद बात करेंगे ठीक?’’ अरुणा बोली. ‘‘पक्का?’’ रोली ने कहा ‘‘अरे बाबा पक्कापक्का. अब सो जा कल कालेज भी जाएगी. जल्दी सो जा,’’ अरुणा बोली. ‘‘मां कल कालेज नहीं है,’’ रोली बोली ‘‘क्यों क्या हुआ?’’ अरुणा बोली ‘‘कल संडे है,’’ रोली ने जोरजोर से हंसना शुरू किया. ‘‘अरे मैं तो भूल गई थी,’’ अरुणा बोली.

सुबह जल्दी ही उठ गई थी रोली. उस ने नहा कर चाय चढ़ा दी. अरुणा के कमरे में गई तो देखा अरुणा वाशरूम में है. ‘जब तक चाय भी बन जाएगी,’ सोच वह बस्ती जाने के लिए कपड़े निकालने लगी. रोली हर जन्मदिन पर अरुणा के साथ एक बस्ती जो मजदूर वर्ग की थी, वहां बच्चों को मिठाई, कपड़े आदि देने जाती थी. मिठाई, कपड़े उस ने एक दिन पहले ही खरीद कर रख लिए थे. अरुणा जब नहा कर निकली तो चाय तैयार थी. रोली भी तैयार थी. अपनी सुंदर बेटी को देखती रह गई. कमर तक लंबे बाल उस की सुंदरता में चार चांद लगाते थे. दोनों ही तैयार हो कर बस्ती चली गईं.

वहां से जब लौट कर आईं तब भूख लग आई थी. नाश्ता भी नहीं हुआ था. अरुणा ने जल्दी से आ कर उपमा तैयार किया. फ्रिज से बंगाली मिठाई निकाली. बंगाली मिठाई रोली को पसंद थी. दोनों नाश्ता कर रही थीं. इतने में डाक्टर अमन का मोबाइल आया तो रोली खुश हो गई. चहकते हुए बोली, ‘‘सर आप कब तक आ रहे हैं?’’

 

वैलकम: भाग-3 आखिर क्या किया था अनुराग ने शेफाली के साथ

‘‘अरे, क्या बकवास कर रही है?’’ आंखें मलती हुई शेफाली उठ बैठी.

‘‘अगर विश्वास न हो तो खुद जा कर देख लें. मैं ने गैस्टरूम में बैठा दिया है. आंखें फाड़फाड़ कर क्या देख रही है? जल्दी से जा और मैं चली तेरे उस दीवाने के सत्कार के लिए,’’ कह कर उर्वशी वापस चल दी.

शेफाली बड़बड़ाई कि ओह, तो जनाब खुद तशरीफ लाए हैं. चायपानी तो दूर रहा, मैं ऐसा सुनाऊंगी कि भविष्य में किसी दूसरी लड़की को देखने और उस की बेइज्जती करने की हिम्मत नहीं कर पाएंगे. उस की आंखें क्रोध से लाल हो उठीं. वह बिना सजेसंवरे केवल हाथमुंह धो कर ही अतिथिकक्ष की तरफ बढ़ गई.

अतिथिकक्ष में प्रवेश करने पर जैसे ही शेफाली की दृष्टि अनुराग पर पड़ी, उस की आंखों में क्षमा और सौम्यता थी पर मुख पर मधुर मुसकान खेल रही थी. अचानक शेफाली के हृदय का ज्वालामुखी बजाय फूटने के आंखों की पलकों के   झरोखों से अनुराग को   झांकने के लिए आतुर हो उठा.

‘‘मौर्निंग, शेफाली,’’ अनुराग मुसकराहट के साथ बोला. ‘‘क्या अब भी इंसल्ट करने में कोई कसर रह गई है?’’ आगे वह कुछ न बोल सकी. ‘‘भाभी के व्यवहार के लिए मैं सौरी कहता हूं. इस में मेरा कोई दोष नहीं फिर भी यदि आप मुझे अपराधी सम  झती हैं तो अपराधी आप के सामने हाजिर है,’’ अनुराग बड़ी विनम्रता से बोला. ‘‘लेकिन… आप ने… इंचीटेप…’’ शेफाली का चेहरा क्रोध से तमतमा रहा था.

‘‘वह सब भाभी की चाल थी. वे नहीं चाहतीं कि उन से सुंदर दूसरी बहू हमारे परिवार में आए और उन को नीचा देखना पड़े. मैं उस समय भाभी को टोक नहीं पाया क्योंकि भाभी ने आते ही मु  झ पर इस तरह रोब जमाना शुरू कर दिया था कि मैं अपने खोल से कभी निकल नहीं पाया.

‘‘जब मुझे इन सब बातों का पता चला तो उन के जाने के बाद मैं आप से मिलने के विचार से लखनऊ में ही रह गया और मैं ने सुबह की बैंगलुरु की फ्लाइट ले ली. सचमुच आप बहुत ही मधुर गाती हैं. जब आप को पहली बार फेस टू फेस देखा तो मैं सकते में था और तब

क्या हो रहा था उस का मु  झे एहसास ही नहीं हो रहा था. फिर मैं ने यहां आप से मिल कर क्षमा मांगने का निर्णय किया और अब मैं अपनी कलाई में आप के हाथों हथकड़ी डलवाने के लिए तैयार हूं.’’ ‘‘लेकिन मैं ने तो शादी न करने का निर्णय कर लिया है और फिर भैया से…’’ ‘‘इस की चिंता न करिए. भैया की स्वीकृति ले कर ही मैं आप के पास आया हूं. रात को मैं उन से मिला था क्योंकि मैं भाभी के साथ कानपुर नहीं गया. और हां, बरात लखनऊ नहीं जाएगी. बस, आप के भैयाभाभी कानपुर आ जाएंगे और वहीं शादी हो जाएगी. शादी का पूरा जिम्मा मेरा है. हमारा पारिवारिक व्यापार इतना तो कर सकता है कि होेने वाले सदस्य का सही ढंग से वैलकम करे,’’

कहतेकहते अनुराग रुक गया और उस की याचनाभरी दृष्टि शेफाली पर टिक गई जैसे कह रहा हो, क्या इस प्रायश्चित्ता के बाद भी तुम मु  झे क्षमा नहीं करोगी?

गर्मियोंं में चाहिए स्टाइलिश लुक, इन फुटवियर्स को अपने कलेक्शन में करें शामिल

गर्मियों का मौसम है और इस मौसम में कपड़ो के साथ-साथ फुटवियर भी हमारी स्टाइल स्टेटमेंट को और अधिक अटरेक्टिव बनाती हैं. हम लोग जब कही बाहर जाते हैं तो कपड़े तय करने के बाद चप्पल कौनसी पहनें यह डिसाइड करने में अक्सर कंफ्यूज हो जाते है. आपकी इस प्रॉब्लम का सल्यूशन भी है हमारे पास पढ़िए कैसे फुटवीयर कैरी करें

1- किटन हील्स: किटन हील्स में छोटी हील्स आती है तो हाई हील से कम नॉर्मल होती हैं.  इस पर आप आराम से बैलेंस कर सकती हैं. इस हील्स की विशेषता है कि अगर ये पीयू सोल में हो तो डगमगाइगी नहीं.

2- हाई हील्स: हाई हील्स की चप्पल ज्यादातर किसी फंक्शन में ही निकाली जाती हैं. या वो महिलाएं जिन्हें भागदौड़ कर ट्रैवल नहीं करना है वो हील्स कैरी कर सकती हैं. हाई हील्स आप साड़ी, सूट और वेस्टर्न वीयर के साथ कैरी कर सकती हैं.

3-बूट्स: बूट्स को आप वेस्टर्न अटायर के साथ कैरी कर सकती है फिर वो चाहे आपके ऑफिस की मीटिंग हो या दोस्तों के साथ गेटटुगेदर, क्लासी और सिंपल दिखने के लिए आप इन्हें कैरी कर सकती हैं।

4- जूतियां : पंजाबी सूट सलवार हो या आपने जींस के साथ कुर्ती कैरी की हो, इन दोनों के साथ पंजाबी जूतियां कैरी कर सकते हैं. राजस्थान में इन्हे मोजड़ी कहा जाता है। हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में इनका सबसे ज्यादा चलन है.

5-स्लीपर्स : स्लीपर्स को हम हर जगह कैरी कर सकते हैं। अगर आपकी हाइट अच्छी है तो फ्लैट स्लीपर्स कैरी कर सकती हैं. इनके कई प्रकार हैं. ज्यादातर यंगस्टर्स जो रोज ट्रैवल करते हैं उनके लिए फ्लैट स्लीपर्स बहुत कंफर्टेबल रहती हैं. अंगूठे वाली चप्पल भी अच्छा ऑब्शन है क्योंकि इससे बैर बैलेंस रहता है और सेंडिल में भी पैर बंधा रहता है. तो ट्रैवल करते समय आर डगमगांएगी नहीं. कोल्हापुरी चप्पल भी आप आराम से कैरी कर सकते हैं ये महाराष्ट्र में सबसे अधिक मिलती है.

 

ये लम्हा कहां था मेरा: भाग 2- क्या था निकिता का फैसला

फोन मीनाक्षी का था. उन की आवाज में मनुहार की जगह आज बेबसी झलक रही थी, ‘‘बेटा, तुम्हारे मन में क्या चल रहा है, मैं समझ सकती हूं पर ऐसे कैसे अकेली रहोगी जिंदगीभर? इसी सोच में पापा दिनरात घुलते रहते हैं… कैसे समझाऊं तुम्हें कि मेरी तबीयत भी अब…’’ और बात पूरी होने से पहले ही मीनाक्षी के सिसकने की आवाजें आने लगीं.

हक्कीबक्की सी निकिता बिना कुछ सोचे बोल उठी, ‘‘मम्मी मैं आप को अभी फोन करने ही वाली थी… मुझे अभिनव पसंद है,’’ और फिर फोन काट धम्म से कुरसी पर बैठ गई. ‘शायद मुझे यही करना चाहिए था… इस के अलावा और कोईर् ऐसा रास्ता भी तो नहीं है जो मम्मीपापा को खुशियां दे पाए.’

शाम को घर पहुंची तो मीनाक्षी ने बताया कि सुदीप निकिता की हां सुनने के बाद आगे की बात करने अभिनव के घर चले गए हैं. वहां अभिनव के दादाजी की तबीयत अचानक बिगड़ गई. 2-3 दिन से चल रहा बुखार इतना तेज हो गया कि वे बेहोशी की हालत में पहुंच गए. इस कारण उन्हें हौस्पिटल में भरती करना पड़ा. सुदीप भी अभिनव के पिता के साथ हौस्पिटल में ही थे.

2 दिन बाद दादाजी को हौस्पिटल से छुट्टी मिल गई. वे धीरेधीरे स्वस्थ हो रहे थे. इस बीच एक दिन अभिनव के मम्मीपापा निकिता के घर मिठाई का डब्बा ले कर आ गए. उन्होंने बताया कि दादाजी ने अभिनव का विवाह शीघ्र ही कर देने की इच्छा व्यक्त की है. मीनाक्षी और सुदीप तो स्वयं ही चाह रहे थे कि वह विवाह जल्द से जल्द हो जाए. फिर निकिता की हां कहीं न में न बदल जाए, इस का भी उन्हें भय सता रहा था.

डाक्टर से दादाजी की तबीयत के विषय में बात कर 2 महीने बाद ही विवाह

की तिथि तय कर दी गई. इस बीच एकदूसरे से खास बातचीत का अवसर नहीं मिला अभिनव व निकिता को. दोनों वीजा औफिस में मिले, किंतु वहां औपचारिकताएं पूरी करतेकरते ही समय बीत गया. अभिनव का विवाह के बाद एक  प्रोजैक्ट के सिलसिले में फ्रांस जाने का कार्यक्रम था. दोनों परिवारों के कहने पर इसे हनीमून ट्रिप का रूप दे दिया गया. निकिता भी साथ जा रही थी. उस ने भी अपनी प्रकाशन संस्था द्वारा पर्यटन पर प्रकाशित होने वाली एक पुस्तक के लिए फ्रांस पर लिखने में रूचि दिखाते हुए वह काम ले लिया. यों निकिता का मन भी नहीं था विवाह से पहले अभिनव से मिलनेजुलने का. क्या बात करती वह उस से? मातापिता की खुशियों का खयाल न होता उसे तो क्या वह शादी का फैसला लेती? शायद कभी नहीं.

समय पंख लगा कर उड़ा और निकिता व अभिनव पतिपत्नी के रिश्ते में बंध गए. बिदा हो कर निकिता ससुराल पहुंची तो रस्मोरिवाज पूरे होतेहोते रात हो गई. डिनर के बाद वह अपने कमरे में विचारमग्न बैठी थी कि अभिनव आ गया. उस ने बताया कि दादाजी को सांस लेने में कठिनाई हो रही है, इसलिए वह उन के पास ही बैठा है. निकिता को उस ने सो जाने की सलाह दे दी, क्योंकि अगले दिन उन्हें पैरिस की फ्लाइट लेनी थी.

अभिनव के कमरे से जाते ही निकिता कपड़े बदल कर लेट गई. मातापिता की खुशियों के लिए जिंदगी से समझौता करने वाली निकिता यह नहीं जानती थी कि अभिनव भी एक मानसिक संघर्ष से जूझ रहा है. सच तो यह था कि वह भी अभी विवाह नहीं करना चाह रहा था. किसी लड़की के लिए मन में कोई भावना ही नहीं महसूस हो रही थी उसे कुछ दिनों से. अपनी पिछली नौकरी के दौरान हुआ एक अनुभव उस के मनमस्तिष्क को जकड़े बैठा था…

उस औफिस में सोनाली नाम की एक लड़की अभिनव के करीब आने की कोशिश करती रहती थी. काम में वह अच्छी नहीं थी, टीम लीडर अभिनव ही था, इसलिए उसे वश में कर प्रमोशन पाना चाहती थी. अभिनव उस की ओछी हरकतों को नापसंद करता था और उस से दूरी बनाए रखता था. इस बात से वह इतनी नाराज हुई कि एक दिन उस के कैबिन में काम की बातों पर चर्चा करते हुए अचानक ही शोर मचा दिया कि वह उस के साथ जबरदस्ती कर रहा था.

अभिनव के खिलाफ शिकायत भरा लंबाचौड़ा पत्र भी लिख कर दे दिया उस ने. उस में कहा गया कि अभिनव ने जानबूझ कर उस की रिपोर्ट खराब की है, क्योंकि वह उस से उस की मरजी के खिलाफ संबंध बनाना चाहता था. वहां के मैनेजमैंट ने अभिनव से इस विषय में सफाई मांगे बिना ही नौकरी छोड़ने का आदेश दे दिया.

उसी दिन से अभिनव कुंठित सा रहने लगा था. मातापिता द्वारा विवाह की बात शुरू होते ही वह टालमटोल करने लगता था. इस बार भी विवाह के लिए हामी उस ने अपने दादाजी की बीमारी के दबाव में आ कर भरी थी.

दादाजी के पास शादी की पहली रात अभिनव को बैठे देख उस की मम्मी ने वापस कमरे में भेज दिया. वह कमरे में पहुंचा तो निकिता गहरी नींद में थी. विचारों की कशमकश में उलझे हुए अभिनव को कब नींद आ गई, उसे पता ही नहीं लगा.

अगले दिन दोनों पैरिस रवाना हो गए. वहां लगभग 15 दिन बिताने थे उन्हें. अभिनव का काम तो केवल पैरिस तक ही सीमित था, लेकिन निकिता को फ्रांस के कुछ अन्य स्थानों पर भी जाना था.

पैरिस पहुंच कर अभिनव जहां अपने औफिस की मीटिंग्स

और प्रोजैक्ट बनाने में लग गया, वहीं निकिता भ्रमण करते हुए नईनई जानकारी जुटाने में व्यस्त हो गई. उसे अपने प्रकाशन हाउस की फ्रांस स्थित एक सहयोगी कंपनी द्वारा महिला गाइड भी दी गई मदद के लिए.

2 दिन तक निकिता ने पैरिस में डिज्नीलैंड, नात्रे डैम, लैस इन्वैलिड्स, लुव्र म्यूजियम और ऐफिल टावर जा कर पर्याप्त जानकारी एकत्र कर ली. रात में होटल पहुंच कर जब वह डिनर कर लेती तब जा कर पहुंचता था अभिनव. औफिस में वह अगले दिन की प्रेजैंटेशन तैयार करने के बहाने देर तक रुका रहता था. उस के होटल पहुंचने पर निकिता दिनभर की थकान के कारण उनींदी सी होती थी.

अभिनव काम में हुई देरी के कारण माफी मांग निकिता को सोने को कह देता और स्वयं भी बिस्तर पर लेटते ही बेसुध हो जाता. लेकिन एकदूसरे को पतिपत्नी का स्थान न दिए जाने के बावजूद भी इन 2-3 दिनों में दोनों के मन में एकदूसरे के प्रति मित्रता का भाव जन्म लेने लगा था. दिन में अकसर अपनाअपना काम करते हुए वे फोन पर बातचीत कर लेते थे. एकदूसरे से नई जगह और नए लोगों के विषय में अनुभव बांटना दोनों का अच्छा लगता था.

2 दिन बाद निकिता का पैरिस का काम पूरा हो गया और वह अपनी गाइड के साथ फ्रैंच रिविएरा के लिए रवाना हो गई. फ्रांस के दक्षिण पूर्व में भूमध्य सागर के तट पर बसे इस स्थान के विषय में सोचते हुए निकिता के मस्तिष्क में कांस फिल्म फैस्टिवल, मौजमस्ती के लिए बना विशाल खेल का मैदान, रेतीले बीच और नीस

में मनाए जाने वाले फूलों के कार्निवाल की छवि बन रही थी. मन चाह रहा था कि गाइड के स्थान पर अभिनव साथ होता तो लिखने की सामग्री जुटाने के साथसाथ ही वह दोस्ती का आनंद भी ले पाती.

नौनस्टौप फ्लाइट में लगभग डेढ़ घंटे का सफर तय कर वे नीस पहुंचे. एअरपोर्ट से निकल कर होटल जाने के लिए टैक्सी में बैठ निकिता खिड़की से बाहर झांकने लगी. साफ मौसम जहां निकिता के मन को सुकून दे रहा था, वहीं अभिनव की चाह को भी बढ़ा रहा था. ‘क्या इस समय मुझे सिर्फ एक दोस्त की जरूरत है? मेरी गाइड ऐलिस भी एक अच्छी मित्र बन गई है, फिर अभिनव ही क्यों याद आ रहा है मुझे बारबार?’

निकिता की सोच मोबाइल की रिंग बजने से टूट गई. अभिनव का फोन था अरे, मैं तो फ्लाइट से उतर कर अभिनव को फोन करना ही भूल गई. कुछ देर बातें करने के बाद फोन काटने से पहले अभिनव से मिसिंग यू सुन निकिता मंदमंद मुसकरा उठी.

पैरिस में अभिनव का मन भी औफिस में नहीं लग रहा था. तबीयत खराब होने का बहाना कर वह अपने होटल आ गया. कुछ देर टीवी देखने के बाद वाशरूम गया तो निकिता के अंतर्वस्त्र दरवाजे के पीछे टंगे थे. ‘‘भुलक्कड़, कहीं की,’’ कहते हुए उस ने मुसकरा कर उन्हें दरवाजे से उतारा तो निकिता के परफ्यूम की खुशबू से उसे अपने भीतर एक उत्तेजना सी महसूस हुई.

बिस्तर पर लेटा तो लगा कि निकिता भी पास ही लेटी दिखती तो बैड यों सूनासूना न लगता. जब होटल के कमरे में भी उस का मन नहीं लगा तो टैक्सी ले कर ऐफिल टावर पहुंच गया. वहां मस्ती करते हुए जोड़ों को हाथ में हाथ डाले घूमते देख वह बेचैन होने लगा.

 

 

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