जब पार्टनर हो Emotionless तो क्या करें

रिया ने प्रशांत से अपना अफेयर खत्म कर लिया. और करती भी क्या, क्योंकि जब भी कोई मनमुटाव होता, प्रशांत एक दीवार की तरह सख्त और कठोर बन जाता. उस में जैसे भावनाएं हैं ही नहीं. जो कुछ भी हो रहा है उस की पूरी जिम्मेदारी रिया पर है और उसे ही इस रिश्ते को आगे चलाने का दारोमदार उठाना है.

अपनी बात, अपनी भावनाएं प्रशांत को कितनी ही बार सम झाने के विफल प्रयासों के बाद रिया को लगने लगा था कि प्रशांत उसे कभी नहीं सम झ पाएगा. आखिर कब तक वह अकेले रिश्ता निभाती रहेगी. फिर एक समय ऐसा आया जब दोनों में से कोई भी रिश्ते में भावनाएं नहीं उड़ेल रहा था. रिश्ते का टूटना तय होने लगा था. रिया को तब तक पता नहीं था कि प्रशांत दरअसल एक कम आईक्यू वाला इंसान है.

क्या होता है आईक्यू

आईक्यू यानी इमोशनल कोशैंट, मतलब इमोशनल इंटैलिजैंस का माप. अपनी तथा दूसरों की भावनाओं को सम झ पाना, अपनी भावनाओं पर काबू रख पाना, उन्हें ढंग से प्रस्तुत कर पाना और आपसी रिश्तों को सू झबू झ व समानभाव से चला पाना इमोशनल इंटैलिजैंस की श्रेणी में आता है. निजी और व्यावसायिक दोनों में उन्नति की राह इमोशनल इंटैलिजैंस से हो कर गुजरती है. कुछ ऐक्सपर्ट्स का मानना है कि जिंदगी में तरक्की के लिए इमोशनल इंटैलिजैंस, इंटैलिजैंस कोशैंट से भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण होती है.

कैंब्रिज यूनिवर्सिटी, टोरंटो यूनिवर्सिटी और लंदन के यूनिवर्सिटी कालेज द्वारा प्रकाशित शोधों से साफ है कि जो लोग अपनी इमोशनल इंटैलिजैंस को बढ़ा लेते हैं वे दूसरों को मैनिपुलेट करने में कामयाब रहते हैं. लेकिन जो इस में कमजोर होते हैं, उन के पार्टनर्स को बहुत मुसीबत उठानी पड़ती है.

कैसे पहचानें ऐसे पार्टनर को

रहेजा हौस्टिपल के साइकिएट्रिस्ट डा. केदार तिलवे कम आईक्यू वाले इंसान को पहचानने के लिए जिन बातों का ध्यान करते हैं वे हैं भावनात्मक विस्फोट, अपनी या अपने पार्टनर की भावनाओं को न सम झ सकना, इमोशंस को गलत ढंग से सम झना, परेशानी की स्थिति में सामने वाले को दोषी ठहराना, बिना तर्कसंगत और विवेकशील हुए बहसबाजी करना, सामने वाले की बात को न सुनना.

कंसल्टैंट साइकिएट्रिस्ट

डा. अनीता चंद्रा बताती हैं कि ऐसे व्यक्ति जल्दी में प्रतिक्रिया देते हैं और सामाजिक तालमेल बैठाने में कमजोर होते हैं. इन्हें अपने गुस्से के कारणों का पता नहीं होता और ये थोड़े अडि़यल स्वभाव के होते हैं.

कम आईक्यू के कारण

मनोचिकित्सक डा. अंजलि छाबरिया कहती हैं कि कम आईक्यू वाले लोग अपनी भावनाओं को भी नहीं पहचान पाते हैं और इसीलिए अपनी बातों या अपने क्रियाकलापों का असर सम झने में भी पिछड़ जाते हैं. ऐक्सपर्ट्स की राय में परेशानी में बीता बचपन या आत्ममुग्ध अभिभावकों की वजह से आईक्यू में कमी आ सकती है. कम आईक्यू जेनेटिक भी हो सकता है. ऐसे लोग दूसरों की तकलीफ कम सम झ पाते हैं और अकसर अपने कार्यों पर पछताते भी नहीं हैं.

डा. छाबरिया इन कारणों को इन के रिश्ते में आती दरारों से जोड़ कर देखती हैं. क्लीनिकल साइकोलौजिस्ट डा. सीमा हिंगोरानी के अनुसार ऐसे लोग अपने पार्टनर का ‘पौइंट औफ व्यू’ नहीं सम झते और मनमुटाव की स्थिति में सारा दोष पार्टनर के सिर पर डालने लगते हैं.

ऐसी ही एक लड़ाई के बाद जब सारिका दिल टूटने के कारण रोने लगी तब भी मोहित ने न तो उसे चुप कराया और न ही गले लगाया, उलटा पीठ फेर कर बैठ गया. हर बार रोने या दुखी होने का मोहित पर कोई फर्क न पड़ता देख सारिका ने इसे मैंटल एब्यूज का दर्जा दिया.

रिश्तों पर असर

डा. छाबरिया अपने एक केस के बारे में बताती हैं जहां एक पत्नी का ऐक्सट्रा मैरिटल अफेयर था, क्योंकि उसे अपने पति से भावनात्मक सामीप्य नहीं मिलता था. लेकिन वह अपने पति को छोड़ना भी नहीं चाहती थी. पति का अपने बच्चों के प्रति रवैया भी शुष्क था. फिर भी पत्नी उसे एक अच्छा इंसान मानती थी. कम आईक्यू वाले इंसान अपने रिश्तों में काफी कमजोर होते हैं. दोनों पार्टनर्स में एकदम अलग भावनात्मक स्तर होने के कारण रिश्ते पर आंच आने लगती है. ऐसे लोगों को उन के पार्टनर्स अच्छे से सम झ नहीं पाते और न ही वे स्वयं उन्हें सम झा पाते हैं, जिस की वजह से उन में गुस्सा और खीज बढ़ती है और तनाव व अवसाद होने की आशंका रहती है.

डा. हिंगोरानी हाल ही में हुए 3 केसों के बारे में बताती हैं जहां पत्नियां अपने पतियों से किसी भी तरह की भावनात्मक बातचीत नहीं कर पा रही थीं, क्योंकि हर बात पति या तो वहां से चला जाता या फिर टीवी की आवाज बढ़ा कर बातचीत न होने देता.

यों बचाएं रिश्ता

डा. हिंगोरानी के मुताबिक ऐसे रिश्तों को जिंदा रखने का एक ही तरीका है और वह है कम्यूनिकेशन. ‘कम्यूनिकेशन इज द की.’

आप को यह ध्यान रखना होगा कि आप का पार्टनर कुछ भी जानतेबू झते नहीं कर रहा है. उस की बैकग्राउंड को ध्यान में रखें. रोने झगड़ने, दोषारोपण करने से कोई हल नहीं निकलेगा, बल्कि आप को शांत रहना होगा.

डा. तिलवे कहते हैं कि बातचीत के दौरान आप उन की बात को दोहराएं ताकि उन्हें विश्वास हो कि आप उन्हें सम झ रहे हैं, साथ ही उन्हें भी सही तरह से सुनना आ सके, जोकि कम्यूनिकेशन में बेहद जरूरी होता है.

डा. छाबरिया कम आईक्यू वाले लोगों के पार्टनर्स को सलाह देती हैं कि वे अपनी भावनाएं, इच्छाएं और विचारों को साफ तौर पर व्यक्त करें.

क्या और कैसे करें

कम आईक्यू वाले पार्टनर से डील करते समय आप को क्या करना चाहिए कि रिश्ता कायम रहे और आप पर अत्यधिक दबाव भी न पड़े, आइए जानें:

लक्ष्मण रेखा खींचें: यह नियम बना लें कि खाने के समय पर कोई तनावपूर्ण बात नहीं की जाएगी या फिर औफिस में एकदूसरे को फोन कर के परेशान नहीं किया जाएगा.

टाइम आउट: यदि बातचीत लड़ाई का रूप लेने लगे या फिर कोई एक आपा खोने लगे तो उसी समय बातचीत रोक देने में ही आप का और आप के रिश्ते का फायदा है.

किसी तीसरे की सलाह: कई बार किसी बाहर वाले या काउंसलर की सलाह काम कर जाती है.

साफ बताएं: रिश्तों में कम्यूनिकेशन अकसर गैरमौखिक और सांकेतिक संप्रेषण

होता है. लेकिन यदि आप का पार्टनर कम आईक्यू वाला है तो उस से साफ शब्दों में अपनी भावनाएं व्यक्त करना ही सही रहता है, क्योंकि उस के लिए आप की भावनाओं को सम झ पाना मुश्किल है.

बहस न करें: आप चाहे कितने भी सही हों, किंतु कम आईक्यू वाले पार्टनर से बहस करना, उस के आगे रोना, अपनी बात को तर्क से कहना, उस की सोच बदलने की कोशिश करना सब व्यर्थ है. उलटा इस का असर यह भी हो सकता है कि वह आप पर  झल्ला पड़े, आप की बेइज्जती करने लगे, आप से लड़ने लगे या फिर आप की भावनाओं से एकदम पीछे हट जाए, इसलिए अपनी बात को शांत मन से कहें और फिर चुप हो जाएं.

रिश्तों पर पकड़ आपसी मनोभावों की सम झदारी में है. आप इन भावों को कैसे बताते हैं, कैसे सम झ पाते हैं, इसी पर रिश्तों का निबाह निर्भर करता है. यदि एक पार्टनर इस विषय में कमजोर है तो दूसरे पार्टनर को थोड़ी ज्यादा जिम्मेदारी निभानी होगी. आखिर आप का आईक्यू आप के पार्टनर से अधिक जो है.

क्या है इंटिमेट हाइजीन

पहले महिलाएं पुरानी रूढि़वादी सोच बदलते इंटिमेट हाइजीन पर बातचीत करने से हिचकती थीं, जिस का खमियाजा भी उन्हें ही भुगतना पड़ता था. उन्हें तरहतरह के इन्फैक्शन परेशान करते थे. मगर अब जमाना बदल गया है. लड़कियां और महिलाएं इस विषय पर हर तरह की जानकारी चाहती हैं ताकि वे सेहतमंद बनी रहें.

क्या है इंटिमेट हाइजीन

पर्सनल हाइजीन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा इंटिमेट हाइजीन है. महिलाओं के लिए इंटिमेट हाइजीन बनाए रखना बेहद जरूरी है. इस से न केवल वे क्लीन और फ्रैश महसूस करती हैं, बल्कि खुजली, फंगल और बैक्टीरियल इन्फैक्शन या यूटीआई जैसी गंभीर समस्याओं से भी बचती हैं.

मगर इस हिस्से में ज्यादा साबुन का प्रयोग करने से रूखापन, जलन और पीएच बैलेंस (3.5 से 4.5) बिगड़ने की समस्या हो सकती है. शरीर के इस हिस्से में मौजूद टिशू काफी संवेदनशील होते हैं. इसलिए इस हिस्से की ज्यादा साफसफाई या कम दोनों ही वजहों से समस्याएं पैदा हो सकती हैं.

इंटिमेट हाइजीन बनाए रखने का सही तरीका

– हर महिला को दिन में कम से कम 2 बार इंटिमेट एरिया को सावधानी से साफ करना चाहिए. इस एरिया की त्वचा पर हार्ड वाटर, हार्ड साबुन आदि का इस्तेमाल करने से बचें. हमेशा जैंटल और माइल्ड प्रोडक्ट का ही इस्तेमाल करें.

– ध्यान रखें कि जिस पानी का इस्तेमाल कर रही हों वह बहुत ज्यादा गरम या ठंडा न हो. कुनकुने साफ पानी का प्रयोग करें.

– इंटिमेट एरिया को हमेशा कोमलता से धोएं या पोंछें. अगर आप तौलिए से बहुत रगड़ कर पोंछेंगी तो सैंसिटिव टिशूज डैमेज हो सकते हैं.

– इस हिस्से की त्वचा को हमेशा सूखा रखें.

– इंटिमेट एरिया की सफाई के लिए कोई भी ऐसा प्रोडक्ट इस्तेमाल न करें जिस में खुशबू मिलाई गई हो. खुशबू के लिए इन प्रोडक्ट्स में खतरनाक कैमिकल मिलाए जाते हैं, जो वैजाइना के स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं होते.

– लेस वाली अंडरवियर कितनी भी खूबसूरत क्यों न हो पर हमेशा कौटन के अंडरवियर ही चुनें. ये कंफर्टेबल होते हैं और इन से हवा सहजता से पास हो पाती है. ‘जर्नल ओब्स्टेट्रिक्स ऐंड गाइनोकोलौजी’ में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार सिंथैटिक के अंडरवियर वैजाइना में यीस्ट इन्फैक्शन का खतरा बढ़ाते हैं.

– अपने अंडर गारमैंट्स की हाइजीन पर भी ध्यान दें. हमेशा इन्हें अच्छे डिटर्जैंट से धो कर धूप में सुखाएं ताकि इन में मौजूद बैक्टीरिया खत्म हो जाएं.

– अगर संभव हो तो रात को बिना अंडरवियर या बहुत ढीले शौर्ट्स पहने कर सोएं.

– पीरियड्स के दौरान सफाई का खास खयाल रखें. हर 3-4 घंटों के अंदर सैनिटरी पैड बदलें.

– ऐसे कपड़े न पहनें जो बहुत टाइट हों. टाइट कपड़े इंटिमेट एरिया में हवा के बहाव को रोकते हैं. इस से नमी अंदर ही रहती है और यीस्ट इन्फैक्शन का खतरा रहता है.

– यदि आप को वैजाइनल डिस्चार्ज की समस्या है, तो यथाशीघ्र डाक्टर से मिल कर उपचार कराएं.

– अगर शरीर के इस हिस्से से किसी तरह की दुर्गंध महसूस हो तो भी देरी किए बिना डाक्टर से संपर्क करें.

प्रोडक्ट खरीदने से पहले  ध्यान दें

आज बाजार में इंटिमेट हाइजीन के लिए तरहतरह के प्रोडक्ट्स उपलब्ध हैं. ये प्रोडक्ट इस एरिया को साफ रखने में अलगअलग तरह से मदद करते हैं. लेकिन कोई भी प्रोडक्ट खरीदते समय कुछ बातों का खयाल रखना जरूरी है.

प्रोडक्ट ऐसा लें जो हाइपोएलर्जेनिक हो, सोप फ्री हो, पीएच फ्रैंडली हो, माइल्ड क्लींजर हो और किसी तरह का नुकसान या जलन पैदा किए बगैर अपना काम करे. मार्केट में इंटिमेट हाइजीन के लिए ऐसे प्रोडक्ट्स मौजूद हैं, जिन में पर्याप्त मात्रा में मौइस्चराइजर होता है ताकि त्वचा के ड्राई होने की समस्या से बचा जा सके.

प्यूबिक एरिया के बालों की सफाई

अपने प्यूबिक एरिया के बालों की सफाई का भी खयाल रखें. आप चाहें तो इन्हें शेव कर सकती हैं, वैक्स कर सकती हैं या फिर नियमित रूप से ट्रिम कर सकती हैं. हर बार शेव करने के लिए नए रेजर का इस्तेमाल करें. इस से इन्फैक्शन का खतरा कम होगा.

जिस तरह आप हाथपैरों के लिए साबुन या शेविंग क्रीम का इस्तेमाल करती हैं उसी तरह अपने प्यूबिक हेयर को शेव करते वक्त भी करें. शेविंग से पहले साबुन या शेविंग क्रीम से खूब सारा झाग बना लें.

इस से शेव करते वक्त कम फ्रिक्शन होगा और कटने का जोखिम भी कम होगा. यही नहीं जरूरी है कि आप साबुन या किसी अच्छे इंटिमेट वाश से प्यूबिक हेयर की रोज सफाई भी करें वरना यहां बैक्टीरिया फंसे रह सकते हैं. इस सफाई करने से आप कई प्रकार के संक्रमण से बच सकती हैं.

यहां ब्रेनवाश करना आसान है

यहां ब्रेनवाश करना आसान है आज शासन न केवल वोटों से चुन कर आए नेताओं के हाथों से खिसक कर नेताओं के लिए काम कर रहे अफसरों के हाथों में चला गया है, वे अफसर अब पुराने पुरोहितों की तरह बातें भी करने लगे हैं, वहीं पुरोहित दुनियाभर की औरतों को आज 21वीं सदी में चेनों में भी बांध कर रखते हैं. ये वे पुरोहित हैं जो औरतोंआदमियों से कहते रहे हैं कि जो भी उन्हें मिला है वह उन के माध्यम से ईश्वरअल्लाह ने दिया है और जो कुछ उन से छीना गया है, वह उसी ईश्वरअल्लाह की मरजी है.

पहले भी और आज भी ये पुरोहित इस तरह ब्रेनवाश करते रहे हैं कि सारी जनता न केवल अपना अनाज, मेहनत, कपड़ा और यहां तक कि जान भी हर समाज के कुछ चुने हुए पुरोहितों को एक तरह से अपनी मरजी से दे देती थी, हर आफत के लिए खुदको दोषी मानती थी. जब से आधुनिक, तार्किक, वैज्ञानिक सोच का जन्म हुआ, आदमियों ने इन पुरोहितों की बातें काटनी शुरू कीं और राजाओं और राजपुरोहितों की चलनी कम हुई पर यह छूट औरतों को नहीं मिली. वे पहले की तरह ही धर्म की दुकानों की तिजोरियों को भी भरती रहीं और अपना शरीर भी पुजारियों को देती रहीं. अभी अफसरनुमा पुरोहितों ने भारत में कहना शुरू किया है कि देश के थोड़ेबहुत पढ़ेलिखे युवकयुवतियों को सरकारी नौकरियों की मांग नहीं करनी चाहिए.

एक अफसर संजीव सान्याल ने युवाओं को फटकारते हुए कहा कि वे क्यों अपने जीवन के कीमती साल सरकारी नौकरियों के पीछे गंवा रहे हैं जबकि उन्हें एलन मस्क या मुकेश अंबानी बनना चाहिए. यह एक तरह से वह उपदेश है कि वे तपस्या कर के इंद्र की गद्दी के लिए सबकुछ त्याग दें और उन की आंखें बचा कर चालबाज एक मनोहर आश्रम स्थापित कर लें, जिन की रक्षा का काम राजाओं का हो. संजीव सान्याल कहते हैं कि 2 वक्तकी रोटी पाने के लिए उन्हें सरकारी नौकरी पाने के बजाय किचन ही बनानी चाहिए जहां हजारों खाना खाएं. उन का उद्देश्य बड़ा होना चाहिए. खुद सरकारी ओहदे पर बने रहते हुए उपदेश देना वैसा ही है जैसा हर प्रवचन में पादरी या पुरोहित भव्य भवन में सोने के सिंहासन पर बैठ कर माया को मोह का नाम दे और मोक्ष को पाने के लिए त्याग की महिमा गाए.

यह पुरोहितनुमा अफसरशाही दुनियाभर में कहती रहती है कि अपनी इच्छाएं कम करो पर अपना कर्म पूरा करते रहो, शासन की सेवा करते रहो. आज हर घर पर शासन, सरकार, रिच कंपनियों के हाईटैक धर्मगुरुओं का भरपूर कब्जा है. बच्चों के पैदा होते ही क्रौस, ओम, अल्लाह का पाठ पढ़ाया जाता है ताकि वे जो भी करें, उन के लिए करें. जो थोड़े से इस मकड़जाल से निकल जाते हैं, उन्हें पुरोहिताई अफसरशाही अपने में मिला लेती है और कहती है कि हमारा विरोध न करो, अपनी तार्किक बुद्धि का इस्तेमाल आम जनता को बहकाने, लूटने के लिए करो. दुनियाभर में मांएं अपने बच्चों को या तो धर्मभीरु बना रही हैं ताकि वे धर्मनियंत्रित समाज में सेवक, अच्छे या मध्यम व्हाइट कौलर जौब्स या मेहनती मजदूरी वाली ब्ल्यू कौलर जौब्स करें या फिर शासकों की बिरादरी में पहुंच कर पीढ़ी दर पीढ़ी अपना विशिष्ट स्थान सुरक्षित कर लें.

भारत में यह ज्यादा हो रहा है. यहां ब्रेनवाश करना आसान है क्योंकि यहां जन्म से ही रट्टू पीर बना दिया जाता है. यहां पढ़ाई सवाल खड़े करने वाली नहीं होती. जो कहा गया उसे सच व अंतिम तथ्य मानना होता है. अब तो परीक्षाओं में सही उत्तर पहले ही दे दिए जाते हैं और 3 गलत उत्तरों में से ढूंढ़ना भर रह गया है. आज के पुरोहित अफसरों ने सरकार पर ही नहीं, टैक्नोलौजी पर भी कब्जा कर लिया है. जो तार्किक ज्ञान पाए पिता का बेटा है वह अलग से पढ़ाई करता है, सवाल पूछता है, नए विचार रखता है, शासन करने वालों की बिरादरी में घुसता है, कंपनियां चलाता है, टैक्नो इनवेंशन करता है, बाकियों को संजीव सान्याल कहते हैं कि इस बिरादरी में कुछ नहीं रखा, यह भ्रम है, माया है.

जपतप कर के इंद्र का स्थान पाने कीकोशिश न करो, जीजस न बनो, बुद्ध न बनो. आज स्थिति यह है कि लड़कियों को सुंदर चेहरों और रील्स बनाने पर लगा दिया गया है और लड़कों को कांवड़ ढोने पर. संजीव सान्याल इस बारे में कुछ नहीं कहते. उन्हें बंगालियों के अड्डों से शिकायत है जहां आपस में बैठ कर जीवन की गुत्थियों को बिना पुरोहितों की छत्रछाया में सम?ाने की कोशिश की जाती थी. वे सूखी रोटी पर 2 बूंद शहद टपका कर कहते हैं कि शहद बनाने की कोशिश करो और सूखी रोटी खाओ. वे जानते हैं कि शहद के लिए गुलाम मक्खियां रानी मक्खी के लिए फूलों से रस चूसती हैं और फिर मर जाती हैं.

रानी मक्खी शान से छत्ता संभालती है. हर देश में संजीव सान्याल हैं जो सम?ा रहे हैं कि कैसे आदर्श गुलाम बनो, मशीनी मानव बनो, कंप्यूटर प्रोग्रामर बनो, मैकैनिक बनो, डिलिवरी बौय बनो पर उन ऊंचे स्थानों के सपने भी न देखो जहां केवल पीढ़ी दर पीढ़ी वाले लोगों का कब्जा है. हर लड़की, हर युवती, हर औरत, हर पत्नी, हर मां इस ?ांसे में आ ही जाती है. अपने को टाइगर मौम सम?ाने वाली मांएं भी असल में सिस्टम के बंधे युवा पैदा कर रही हैं.

डिनर में बनाना चाहती हैं कुछ अलग तो ट्राई करें ये रेसिपीज

सब्ज हांड़ी

अक्सर हम लोग यह सोचकर कंन्फ्यूस हो जाते हैं कि खाने में क्या बनाए. आपकी इस समस्या का हल हमारे पास है. हम आपके साथ शेयर कर रहे हैं दो रेसिपी जिसे आप डिनर में बना सकते हैं. तो फटाफट लेकर आइए सामान और बनाइए सब्ज हांडी और अवध बिरयानी.

सामग्री

आलू  10-12 फ्रैंच बींस 1 कप ब्रौड बींस 3 गाजर डेढ़ कप छिले मटर  1 गोभी 1 गुच्छा मेथी 3 प्याज 3 टमाटर  50 ग्राम काजू 30 मिलीलीटर क्रीम 1 छोटा चम्मच अदरक का पेस्ट 1 छोटा चम्मच लहसुन का पेस्ट 1 छोटा चम्मच सुमन लालमिर्च पाउडर 1/2 छोटा चम्मच सुमन हलदी पाउडर 1/2 कप सुमन कच्ची घानी मस्टर्ड औयल धनियापत्ती  6 हरीमिर्च नमक स्वादानुसार.

विधि

सबसे पहले आलू व बींस को डायमंड शेप में काटें. फिर गोभी में से छोटे-छोटे फूल निकालें. फिर गरम पानी में काजू को उबाल कर पेस्ट तैयार करें. इस के बाद मेथी, धनियापत्ती, प्याज व हरीमिर्च काटें. फिर बरतन में सुमन कच्ची घानी मस्टर्ड औयल गरम कर उस में प्याज डाल कर सुनहरा होने तक भूनें. इस में अदरक लहसुन पेस्ट डाल कर अच्छी तरह भूनें. अब इस में सुमन लालमिर्च पाउडर, सुमन हलदी पाउडर, नमक और कटे टमाटर डाल कर अच्छी तरह पकने दें. इस में मेथी डाल कर 3-4 मिनट तक और पकाएं. अब इस में सब्जियां डाल कर मिलाएं और साथ ही काजू का पेस्ट और क्रीम भी ऐड करें. इस के बाद इस में 1 कप पानी डाल कर धीमी आंच पर तब तक पकाएं जब तक सब्जियां तीन चौथाई पक न जाएं, फिर धनियापत्ती व हरीमिर्च डाल कर सारा पानी सूखने तक पकने दें और गरमगरम सर्व करें.

 

अवधी वैज बिरयानी

सामग्री

2 कप बासमती चावल  7 बड़े चम्मच देशी घी  1 छोटा चम्मच जीरा  8 लौंग  1 टुकड़ा दालचीनी  1 टुकड़ा जावित्री  1/4 चम्मच जायफल पाउडर  8-10 केसर के धागे   2 सूखी लालमिर्च  2 बड़ी इलायची  5 छोटी इलायची  1 चम्मच अदरक पेस्ट  8-10 तेज पत्ते  1 छोटा चम्मच कालीमिर्च कुटी  1/2 कप दूध केसर भिगोने के लिए  400 ग्राम सब्जियां (फूलगोभी, फ्रेंच बीन, गाजर, मटर, शिमलामिर्च)  4 टमाटर   1/2 पुदीने के पत्ते 1 चम्मच लालमिर्च पाउडर  1 चम्मच जीरा पाउडर  2 चम्मच गरम-मसाला  3 कप पानी   नमक स्वादानुसार.

विधि

कुकर में घी गरम करें और सारे खड़े मसाले डाल कर 2 मिनट तक भूनें. अब सारी सब्जियों को डाल कर 2 मिनट फिर से भूनें. सब्जियों के बड़े टुकड़े ही काटें. इस में टमाटर डालें, हलका भूनने के बाद दही डालें और फिर से भूनें. अब सारे सूखे मसाले भी इस में मिला दें. अब कटा हुआ पुदीना मिलाएं. इस में हलका नमक मिलाएं. अब पहले से भीगे हुए चावलों से इन सब्जियों के ऊपर एक परत लगाएं. उस के ऊपर चुटकी भर गरम मसाला और एक चम्मच घी फैलाएं और थोड़ा कटा हुआ धनिया पुदीना भी फैलाएं. इस के बाद केसर मिला हुआ दूध ऊपर से डाल दें. अब इस में नमक डालें. एक फोर्क की मदद से चावलों को हलका सा पलटे जिस से नमक उस में अच्छी तरह मिल जाए इस के बाद इस में पानी डाल दे और कुकर का ढक्कन लगा कर एक सीटी लगा ले, इस के बाद करीब 3 मिनट तक गैस धीमी कर के छोड़ दें उस के बाद गैस बंद कर दें. कुकर को ठंडा होने दें जब पूरी तरह गैस निकल जाए तब कुकर का ढक्कन खोलें और फोर्क की सहायत से बिरयानी को हलके हाथों से ऊपर नीचे करें. अपनी पसंद के रायते के साथ सर्व करें.

 

मैं 25 साल की लड़की हूं और मुझे पीरियड्स में बहुत गंभीर ऐंठन/दर्द होता है. क्या करूं

सवाल

मैं 25 साल की लड़की हूं और मुझे पीरियड्स में बहुत गंभीर ऐंठन/दर्द होता है.  मैं इस को कैसे कम कर सकती हूं?

जवाब

लड़कियों में पीरियड्स के पहले 2 दिनों में मैंस्ट्रुअल कैंप यानी दर्द होना सामान्य बात है. लेकिन अगर आप में यह दर्द इतना ज्यादा है कि आप को उल्टी हो रही है और अपना रोज का काम नहीं कर पा रही हैं तो यह दर्द सामान्य दर्द नहीं है. आप दर्द को कम करने के लिए नौर्मल पेन किलर ले सकती हैं. मीठे खाद्यपदार्थों को न खाएं. कोशिश करें कि जो भी डाइट खाएं उस में सभी जरूरी पोषक तत्त्व हो. सब से जरूरी है कि तनाव न लें. अगर इस के बाद भी दर्द नहीं जाता है तो अपने गायनोकोलौजिस्ट से कंसल्ट करें क्योंकि यह दर्द एंडोमेट्रियोसिस की वजह से हो सकता है.

इसलिए अगर किसी महिला, खास कर अगर लड़कियों में पीरियड्स का दर्द हो रहा है तो उसे डाक्टर की सलाह पर एमआरआई कराना चाहिए. मेरी उम्र 30 साल है और मेरा पीरियड सिर्फ 3 दिनों तक रहता है. क्या इसे सामान्य माना जाता है या मु?ो अपने गायनोकोलौजिस्ट से कंसल्ट करना चाहिए? अगर पहले आप का मैंस्ट्रुअल साइकल 5 दिन का होता था और अब आप को लगता है कि यह 3 दिन का हो गया है और अब पीरियड्स भी अनियमित तौर पर आ रहा है और आ भी रहा है तो फ्लो यानी खून भी कम आ रहा है तो यह नौर्मल नहीं है. इस के लिए आप अपने गायनोकोलौजिस्ट से कंसल्ट करें क्योंकि हो सकता है कि यह कुछ प्रकार की हारमोनल समस्या हो. आप अपने गायनोकोलौजिस्ट से कंसल्ट कर के इस का कारण जाने और समाधान ढूंढें.

Mother’s Day 2024- अधूरी मां- भाग 2: क्या खुश थी संविधा

संविधा भी पहले नौकरी करती थी. उसे भी 6 अंकों में वेतन मिलता था. इस तरह पतिपत्नी अच्छी कमाई कर रहे थे. लेकिन संविधा को इस में संतोष नहीं था. वह चाहती थी कि भाई की तरह उस का भी आपना कारोबार हो, क्योंकि नौकरी और अपने कारोबार में बड़ा अंतर होता है. अपना कारोबार अपना ही होता है.

नौकरी कितनी भी बड़ी क्यों न हो, कितना भी वेतन मिलता हो, नौकरी करने वाला नौकर ही होता है. इसीलिए संविधा भाई की तरह अपना कारोबार करना चाहती थी. वह फ्लैट में भी नहीं, कोठी में रहना चाहती थी. अपनी बड़ी सी गाड़ी और ड्राइवर चाहती थी. यही सोच कर उस ने सात्विक को प्रेरित किया, जिस से उस ने अपना कारोबार शुरू किया, जो चल निकला. कारोबार शुरू करने में राजन के ससुर ने काफी मदद की थी.

संविधा ने सात्विक को अपनी प्रैगनैंसी के बारे में बताया तो वह बहुत खुश

हुआ, जबकि संविधा अभी बच्चा नहीं चाहती थी. वह अपने कारोबार को और बढ़ाना चाहती भी. अभी वह अपना जो काम बाहर कराती थी, उस के लिए एक और फैक्टरी लगाना चाहती थी. इस के लिए वह काफी मेहनत कर रही थी. इसी वजह से अभी बच्चा नहीं चाहती थी, क्योंकि बच्चा होने पर कम से कम उस का 1 साल तो बरबाद होता ही. अभी वह इतना समय गंवाना नहीं चाहती थी.

सात्विक संविधा को बहुत प्यार करता था. उस की हर बात मानता था, पर इस तरह अपने बच्चे की हत्या के लिए वह तैयार नहीं था. वह चाहता था कि संविधा उस के बच्चे को जन्म दे. पहले उस ने खुद संविधा को समझाया, पर जब वह उस की बात नहीं मानी तो उस ने अपनी सास से उसे मनाने को कहा. रमा बेटी को मनाने की कोशिश कर रही थीं, पर वह जिद पर अड़ी थी. रमा ने उसे मनाने के लिए अपनी बहू ऋता को बुलाया था. लेकिन वह अभी तक आई नहीं थी. वह क्यों नहीं आई, यह जानने के लिए रमा देवी फोन करने जा ही रही थीं कि तभी डोरबैल बजी.

ऋता अकेली आई थी. राजन किसी जरूरी काम से बाहर गया था. संविधा भैयाभाभी की बात जल्दी नहीं टालती थी. वह अपनी भाभी को बहुत प्यार करती थी. ऋता भी उसे छोटी बहन की तरह मानती थी.

संविधा ने भाभी को देखा तो दौड़ कर गले लग गई. बोली, ‘‘भाभी, आप ही मम्मी को समझाएं, अभी मुझे कितने काम करने हैं, जबकि ये लोग मुझ पर बच्चे की जिम्मेदारी डालना चाहते हैं.’’

ऋता ने उस का हाथ पकड़ कर पास बैठाया और फिर गर्भपात न कराने के लिए समझाने लगी.

‘‘यह क्या भाभी, मैं ने तो सोचा था, आप मेरा साथ देंगी, पर आप भी मम्मी की हां में हां मिलाने लगीं,’’ संविधा ने ताना मारा.

‘‘खैर, तुम अपनी भाभी के लिए एक काम कर सकती हो?’’

‘‘कहो, लेकिन आप को मुझे इस बच्चे से छुटकारा दिलाने में मदद करनी होगी.’’

‘‘संविधा, तुम एक काम करो, अपना यह बच्चा मुझे दे दो.’’

‘‘ऋता…’’ रमा देवी चौंकीं.

‘‘हां मम्मी, इस में हम दोनों की समस्या का समाधान हो जाएगा. पराया बच्चा लेने से मेरी मम्मी मना करती हैं, जबकि संविधा के बच्चे को लेने से मना नहीं करेंगी. इस से संविधा की भी समस्या हल हो जाएगी और मेरी भी.’’

संविधा भाभी के इस प्रस्ताव पर खुश हो गई. उसे ऋता का यह प्रस्ताव स्वीकार था. रमा देवी भी खुश थीं. लेकिन उन्हें संदेह था तो सात्विक पर कि पता नहीं, वह मानेगा या नहीं?

संविधा ने आश्वासन दिया कि सात्विक की चिंता करने की जरूरत नहीं है, उसे वह मना लेगी. इस तरह यह मामला सुलझ गया. संविधा ने वादा करने के लिए हाथ बढ़ाया तो ऋता ने उस के हाथ पर हाथ रख कर गरदन हिलाई. इस के बाद संविधा उस के गले लग कर बोली, ‘‘लव यू भाभी.’’

‘‘पर बच्चे के जन्म तक इस बात की जानकारी किसी को नहीं होनी चाहिए,’’ ऋता

ने कहा.

ठीक समय पर संविधा ने बेटे को जन्म दिया. सात्विक बहुत खुश था. बेटे के

जन्म के बाद संविधा मम्मी के यहां रह रही थी. इसी बीच ऋता ने अपने लीगल एडवाइजर से लीगल दस्तावेज तैयार करा लिए थे. ऋता ने संविधा के बच्चे को लेने के लिए अपनी मम्मी और पापा को राजी कर लिया था. उन्हें भी ऐतराज नहीं था. राजन के ऐतराज का सवाल ही नहीं था. लीगल दस्तावेजों पर संविधा ने दस्तखत कर दिए. अब सात्विक को दस्तखत करने थे. सात्विक से दस्तखत करने को कहा गया तो वह बिगड़ गया.

रमा उसे अलग कमरे में ले जा कर कहने लगी, ‘‘बेटा, मैं ने और ऋता ने संविधा को समझाने की बहुत कोशिश की, पर वह मानी ही नहीं. उस के बाद यह रास्ता निकाला गया. तुम्हारा बेटा किसी पराए घर तो जा नहीं रहा है. इस तरह तुम्हारा बेटा जिंदा भी है और तुम्हारी वजह से ऋता और राजन को बच्चा भी मिल रहा है.’’

रमा की बातों में निवेदन था. थोड़ा सात्विक को सोचने का मौका दे कर रमा देवी ने आगे कहा, ‘‘रही बच्चे की बात तो संविधा का जब मन होगा, उसे बच्चा हो ही जाएगा.’’

रमा देवी सात्विक को प्रेम से समझा तो रही थीं, लेकिन मन में आशंका थी कि पता नहीं, सात्विक मानेगा भी या नहीं.

सात्विक को लगा, जो हो रहा है, गलत कतई नहीं है. अगर संविधा ने बिना बताए ही गर्भपात करा लिया होता तो? ऐसे में कम से कम बच्चे ने जन्म तो ले लिया. ये सब सोच कर सात्विक ने कहा, ‘‘मम्मी, आप ठीक ही कह रही हैं… चलिए, मैं दस्तखत कर देता हूं.’’

सात्विक ने दस्तखत कर दिए. संविधा खुश थी, क्योंकि सात्विक को मनाना आसान नहीं था. लेकिन रमा देवी ने बड़ी आसानी से मना लिया था.

समय बीतने लगा. संविधा जो चाहती थी, वह हो गया था. 2 महीने आराम कर के संविधा औफिस जाने लगी थी. काफी दिनों बाद आने से औफिस में काम कुछ ज्यादा था. फिर बड़ा और्डर आने से संविधा काम में कुछ इस तरह व्यस्त हो गई कि ऋता के यहां आनाजाना तो दूर वह उस से फोन पर भी बातें नहीं कर पाती.

एक दिन ऋता ने फोन किया तो संविधा बोली, ‘‘भाभी, लगता है आप बच्चे में कुछ ज्यादा ही व्यस्त हो गई हैं, फोन भी नहीं करतीं.’’

‘‘आप व्यस्त रहती हैं, इसलिए फोन नहीं किया. दिनभर औफिस की व्यस्तता, शाम को थकीमांदी घर पहुंचती हैं. सोचती हूं, फोन कर के क्यों बेकार परेशान करूं.’’

‘‘भाभी, इस में परेशान करने वाली क्या बात हुई? अरे, आप कभी भी फोन कर सकती हैं. भाभी, आप औफिस टाइम में भी फोन करेंगी, तब भी कोई परेशानी नहीं होगी. आप के लिए तो मैं हमेशा फ्री रहती हूं.’’

संविधा ने कहा, ‘‘बताओ, दिव्य कैसा है?’’

‘‘दिव्य तो बहुत अच्छा है. तुम्हारा धन्यवाद कैसे अदा करूं, मेरी समझ में नहीं आता. इस के लिए मेरे पास शब्द ही नहीं हैं. मम्मीपापा बहुत खुश रहते हैं. पूरा दिन उसी के साथ खेलते रहते हैं.

ताप्ती- भाग 2: ताप्ती ने जब की शादीशुदा से शादी

ताप्ती ने जैसे ही सरकारी कोठी में प्रवेश किया, अर्दली दौड़ कर आया. उस का नामपता पूछ कर अंदर फोन घुमाया और फिर उसे अंदर भेज दिया. ड्राइंगरूम को देख कर ताप्ती सोच रही थी, मेरे पूरे फ्लैट का एरिया ही इस कमरे के बराबर है.

तभी कुछ सरसराहट हुई और एक लंबी कदकाठी के सांवले युवक ने अंदर प्रवेश किया, ‘‘नमस्कार मैं आलोक हूं, आप ताप्ती हैं?’’

ताप्ती एकदम से सकपका गई, ‘‘जी हां, बच्चा किधर है?’’

‘‘गोलू अभी सो रही है. दरअसल, अभी कुछ देर पहले ही स्विमिंग क्लास से आई है.’’

ताप्ती को विश्वास नहीं हो रहा था कि यह युवक पुलिस महकमे में इतने ऊंचे पद पर आसीन होगा और इस की 9 वर्षीय बेटी भी है.

आलोक बहुत ही धीमे और मीठे स्वर में वार्त्तालाप कर रहे थे. न जाने क्यों ताप्ती बारबार उन की तरफ एकटक देख रही थी. सांवला रंग, चौड़ा सीना, उठनेबैठने में एकदम अफसरी ठसका, घने घुंघराले बाल जो थोड़ेथोड़े कानों के पास सफेद हो गए थे, उन्हें छिपाने का कोई प्रयास नहीं किया गया था और हंसी जिस में जरा भी बनावट नहीं थी, दिल के आरपार हो जाती थी. बच्चों जैसी हंसी. पता नहीं क्यों बारबार ताप्ती को लग रहा था यह बंदा एकदम खरा सोना है.

चाय आ गई थी. ताप्ती उठना ही चाह रही थी कि आलोक बोला, ‘‘ताप्तीजी, आप आई हैं तो एक बार गोलू की मम्मी से भी मिल लें… अनीता अभी रास्ते में ही हैं… बस 5 मिनट और.’’

ताप्ती को वहां बैठना मुश्किल लग रहा था पर क्या करती… चाय के दौरान बातोंबातों में पता चला कि ताप्ती और आलोक एक ही कालेज में पढ़े हुए हैं, फिर तो कब 1 घंटा बीत गया पता ही नहीं चला.

ताप्ती बोल रही थी, ‘‘आलोक सर आप के तो बहुत प्रशंसक होंगे कालेज में?’’

आलोक मंदमंद मुसकरा कर कुछ कहने ही वाले थे तभी अनीता ने प्रवेश किया.

अपने पति को किसी अजनबी खूबसूरत लड़की से बात करते देख वे प्रसन्न नहीं हुईं. रूखी सी आवाज में बोलीं, ‘‘आप हैं गोलू की ट्यूटर. देखो वह इंटरनैशनल बोर्ड में पढ़ती है… करा पाओगी तुम उस का होमवर्क? हम इसीलिए इतनी ज्यादा फीस दे रहे हैं ताकि उस के प्रोजैक्ट्स और असाइनमैंट में आप उस की मदद कर सको… मुझे और उस के पापा को तो दम मारने की भी फुरसत नहीं है.’’

ताप्ती विनम्रतापूर्वक बोली, ‘‘इसीलिए मैं आज बच्ची से मिलना चाहती थी.’’

तभी परदे में सरसराहट हुई और एक बहुत ही प्यारी बच्ची ने प्रवेश किया. उसे देखते ही अनीता के चेहरे पर कोमलता आ गई, परंतु वह दौड़ कर अपने पापा आलोक के गले में झूल गई. लड़की का नाम आरवी था. पापा के चेहरे की भव्य गढ़न और मां का रंग उस ने विरासत में पाया था, एकदम ऐसा चेहरा जो हर किसी को प्यार करने के लिए मजबूर कर दे.

अनीता अहंकारी स्वर में बोलीं, ‘‘गोलू तुम्हारी ट्यूटर आई हैं. कल से तुम्हें पढ़ाने आएंगी.’’

बच्ची मुंह फुला कर बोली, ‘‘मम्मी आई एम आरवी, राइजिंग सन.’’

ताप्ती मुसकराते हुए बोली, ‘‘हैलो आरवी, कल से मैं आप की आप के प्रोजैक्ट्स में मदद करने आया करूंगी.’’

आरवी ने मुस्करा कर हामी भर दी.

ताप्ती ने कुछ ही देर में महसूस कर लिया था जो आलोक अनीता के आने से पहले इतने सहज थे वे अभी बहुत ही बंधेबंधे से महसूस कर रहे हैं. दोनों पतिपत्नी में कोई साम्य नहीं लग रहा  था.

अब ताप्ती की शाम और देर से होती थी, क्योंकि हफ्ते में 3 शामें उस की आरवी की ट्यूशन क्लास में जाती थीं. पहले 2-3 दिनों तक तो आरवी ने उसे ज्यादा भाव नहीं दिया पर फिर धीरेधीरे ताप्ती से खुल गई. लड़की का दिमाग बहुत तेज था. उसे बस थोड़ी गाइडैंस और प्यार की जरूरत थी.

ऐसे ही एक शाम को जब ताप्ती आरवी को पढ़ाने पहुंची तो एकदम आंधीतूफान के साथ बारिश आ गई. जब 2 घंटे तक बारिश नहीं रुकी तो आलोक ने ही ताप्ती से कहा कि वे आज अपने सरकारी वाहन से उसे छोड़ देंगे.

रास्ते में वे ताप्ती से बोले, ‘‘तुम क्यों रोज इतनी परेशान होती हो… आरवी खुद तुम्हारे घर आ जाया करेगी.’’

ताप्ती बिना झिझक के बोली, ‘‘सर, अनीताजी ने मेरी ट्यूशन फीस इसीलिए क्व15 हजार तय की है, क्योंकि वे होम ट्यूटर चाहती थीं. मैं अपना काम पूरी ईमानदारी से करती हूं. मुझे कोई परेशानी नहीं होती है आनेजाने में.’’

फिर जब कार एक निर्जन सी सोसाइटी के आगे रुकी तो फिर आलोक चिंतित स्वर में बोले, ‘‘तुम्हें यहां डर नहीं लगता?’’

ताप्ती मुसकराते हुए बोली, ‘‘सर, मुझे इंसानों से डर लगता है, इसलिए यहां रहती हूं.’’

आलोक के लिए ताप्ती एक पहेली सी थी और फिर मिहिम के पिता से उन्होंने ताप्ती का सारा इतिहास पता कर लिया कि कैसे वह लड़की अकेले ही आत्मस्वाभिमान के साथ अपनी जिंदगी जी रही है. फिर भी उसे जिंदगी से कोई शिकायत नहीं है. इस के विपरीत उन की पत्नी अनीता रातदिन छोटीछोटी बातों के लिए झिकझिक करती रहती हैं. नौकर के छुट्टी करने या आरवी की आया न आने पर कैसे रणचंडी बन कर सब की क्लास लेती हैं, इस से वे भलीभांति परिचित थे.

अनीता का सौंदर्य एक कठोर पत्थर की तरह था. उन्होंने आलोक के जीवन को सख्त नियमों और कायदों में बांधा हुआ था, जिस कारण उन का फक्कड़ व्यक्तित्व भी कभीकभी विद्रोह कर उठता था.

आज भी जैसे ही ताप्ती की स्कूटी की आवाज सुनाई दी, आरवी ने शोर मचाना शुरू कर दिया, ‘‘चंचल, ताप्ती मैडम आ गई हैं. जल्दी से चायनाश्ता लगाओ.’’

कभी कभी तो आरवी को ताप्ती अपनी मां ही लगती थी. आज ताप्ती ने नीले रंग की साड़ी पहनी हुई थी, जिस पर पीला बौर्डर था. उसी से मेल खाते उस ने पीले रंग के झुमके पहने हुए थे और आरवी ने जिद कर के उस के बालों में पीला फूल भी खोंस दिया, जो उस के बालों और चेहरे की खूबसूरती को दोगुना कर रहा था.

आरवी कह रही थी, ‘‘ताप्ती मैडम, पता है आप की शक्ल एक मौडल जैसी लगती है… मुझे उस का नाम याद नहीं आ रहा है.’’

ताप्ती हंसते हुए बोली, ‘‘आरवी तुम पागल हो और तुम्हारे कुछ भी कहने से मैं आज की क्लास कैंसिल नहीं करूंगी.’’

‘‘गलत क्या कह रही हैं आरू, आप एकदम सुष्मिता सेन का प्रतिरूप लगती हैं. आप को जब पहली बार देखा था तो मैं तो थोड़ी देर दुविधा में ही रहा था कि यह विश्व सुंदरी हमारे घर कैसे आ गई,’’ आलोक बोले.

 

जिंदगी की धूप- भाग 2 : मौली के मां बनने के लिए क्यों राजी नहीं था डेविड

कमबख्त, घंटी बजती जा रही थी और वौइस मैसेज पर जा कर थम जाती, तो वह  झल्ला कर फोन काट देती. पता नहीं, डेविड फोन क्यों नहीं उठा रहा है, कुछ सोच कर उस ने फोन रख दिया. अपने दफ्तर के बालकनी में वह इधरउधर घूमने लगी. फिर सोचा, क्यों न मम्मीपापा को फोन करूं? रिंग जाने लगी लेकिन वहां भी कोई फोन नहीं उठा रहा था.

वह मन में सोचने लगी. यह क्या बात है, मैं इतनी बड़ी खबर बताना चाहती हूं और कोई फोन उठा ही नहीं रहा है. जब कोई बात नहीं होती तो घंटों बिना मतलब की बातें करते हैं और बारबार कहते हैं, ‘‘और बताओ क्या चल रहा है?’’

आज जब बात है तो कोई सुनने वाला नहीं है.

तभी जैनेटर कूड़ा उठाने के लिए आई और एक मुसकान के साथ में बोली, ‘‘हाउ आर यू?’’ अब तो मौली के पेट में गुड़गुड़ होने लगी और पेट में दबी बात बाहर आने के लिए छटपटाने लगी. आखिर में उस ने अपने को रोका और सिर्फ इतना ही बोल पाई, ‘‘गुड, ऐंड यू?’’ उस ने जवाब में अंगूठे और तर्जनी को मिलाया और एक वी शेप बनाते हुए अपने ठीकठाक होने का संकेत देते हुए ‘हैव ए नाइस डे…’ का रटारटाया संवाद कह कर चलती बनी.

उस ने सोचा कि अच्छा ही हुआ जो उसे कुछ नहीं बताया. नहीं तो सारा मजा किरकिरा हो जाता. वह अपनी मशीनी मुसकान के साथ मुबारकबाद देती और चली जाती. अपनी खास बात वह सब से पहले उन लोगों को बताना चाहती थी जो इसे उसी की तरह महसूस कर सकें.

उस का मन हुआ फोन पर मैसेज भेज दूं लेकिन फिर वह रुक गई क्योंकि वह उस ऐक्साइटमैंट को नहीं सुन पाएगी जो वह शब्दों से सुनना चाह रही थी. तभी फोन की घंटी घनघना उठी.

उस ने थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए कहा, ‘‘कहां थे? इतनी देर से फोन मिला रही थी?’’

‘‘कहां हो सकता हूं? जेलर हूं. राउंड पर तो जाना ही पड़ता है,’’ डेविड की आवाज में थोड़ी  झुं झलाहट थी.

‘‘अच्छा तो यहां भी एक राउंड लगाने आ जाओ,’’ आवाज में मधु घोलते हुए उस ने कहा.

‘‘क्या बात है आज तो बड़ी रोमांटिक हो रही हो?’’

‘‘क्या लंच पर मिलें. ब्राइटस्ट्रीट पर?’’

‘‘नहीं यार, आज बहुत काम है.’’

देख लो, मु झे तुम्हें कुछ बताना है. बहुत खास बात है.’’

उस की आवाज की गुदगुदी और खुशी को महसूस करते हुए वह बोला, ‘‘अच्छा  ठीक है चलो मिलते हैं 12 बजे.’’

फिर दोनों अपनेअपने काम में मशगूल हो गए. मौली अपनी मीटिंग जल्दीजल्दी निबटाने लगी और बराबर घड़ी भी देखती जाती. जैसे

12 बज जाएंगे और उसे पता नहीं चलेगा. उस ने काम इतनी रफ्तार से खत्म किया कि पौने 12 बजे ही लंच पर पहुंच गई और बैठते ही एक लैमनेड और्डर कर दिया. करने को कुछ नहीं था तो अपने मोबाइल से डेविड को संदेश पर संदेश भेजने लगी.

‘‘कहां हो? जल्दी आओ यार.’’

जब वह आया तो उस ने पूछा, ‘‘भई, ऐसी क्या बेताबी थी कि तुम ने यहां मिलने के लिए बुला लिया?’’

‘‘पति महोदय, इतनी आसानी से तो मैं नहीं बता दूंगी,’’ मौली मुसकराती हुई बोली.

‘‘तुम्हें प्रमोशन मिला है क्या?’’

‘‘उस ने ‘न’ में सिर हिला दिया.’’

‘‘अच्छा पहले बताओ. दफ्तर की खबर है या घर की?’’

‘‘घर की.’’

‘‘अच्छा…’’

‘‘तुम ने नया सोफा और्डर कर दिया है जिस के बारे में तुम बोल रही थीं?’’

‘‘उफ, तुम भी कितने बोरिंग हो. नए सोफे के लिए कौन इतना ऐक्साइटेड होता है?’’

‘‘क्या तुम्हारी बहन आ रही है?’’

‘‘नहीं, बाबा.’’

‘‘फिर तुम्हारे घर से कोई और आ रहा है क्या?’’

‘‘नहीं, जी,’’ मौली इतराते हुए बोली, ‘‘अच्छा, मैं हार गया अब बताओ.’’

मौली से अब और नहीं रोका जा रहा था, ‘‘हम पेरैंट्स बनने वाले हैं,’’ उस ने लगभग चीखते हुए कहा.

आसपास के लोग उन की तरफ देखने लगे और कुछ लोगों ने तो बाकायदा ताली बजाते हुए मुबारकबाद भी दे दी.

लजाते हुए गुलाबी हो आए गालों पर हाथ रखते हुए उस ने सब को ‘शुक्रिया’ कहा.

डेविड सामने की सीट से उठ कर उस के पास आ गया और उसे गले से लगा लिया.

फिर उस के हाथ सरकते हुए मौली के पेट पर आ कर रुक गए.

देर तक डेविड मौली की आंखों में देखता रहा उस की आंखें गीली हो गईं. उसे लगा वह रो देगा. मौली की आंखों में भी नमी थी.

उस ने कहा, ‘‘मु झे लग रहा था कि यही बात है.’’

‘‘तो पहले क्यों नहीं बताया, बुद्धू.’’

‘‘मु झे लगा कि अगर यह सच नहीं हुआ तो तुम परेशान हो जाओगी,’’ डेविड ने मौली के होंठों को चूमते हुए कहा.

तभी वहां वेटर आया और दोनों ने फलाफल और सैंडविच और्डर किया और अपने इन खुशी के पलों को बारबार जीने की कोशिश करने लगे. आज दोनों बहुत खुश हैं मानो जिंदगी में सबकुछ मिल गया हो.

मौली ने कहा, ‘‘देखो, अभी सितंबर का महीना है तो हमारा बच्चा जून में होगा. जून में तो हमारी छुट्टियां भी होती हैं और मेरी मां के स्कूल भी बंद होते हैं, वे भी हमारे पास रहने आ सकती हैं. कितना अच्छा होगा कि हमारे बच्चे को नानी का साथ मिलेगा. क्या जिंदगी में कुछ इतना परफैक्ट होता है? कुदरत ने हमें सबकुछ कितना सोचसम झ कर दिया है.’’

डेविड ने मुसकरा कर उस की बात का समर्थन किया. डेविड मौली की किसी भी बात को नहीं काटना चाहता था जो वह कहती उसे खुशी से स्वीकृति दे देता. उसे मालूम है कि मौली के लिए उस की स्वीकृति कितनी जरूरी है.

क्रिसमस को डेविड की मां भी जरमनी से आ गईं. मौली उन को ज्यादा पसंद नहीं करती थी. उसे लगता था कि वे उन की जिंदगी में बहुत दखल देती हैं. भई, सभी लोग अपनी जिंदगी अपने ढंग से जीना चाहते हैं.

मौली ने डेविड से साफ कह दिया था कि तुम्हारी मां बहुत कड़क स्वभाव वाली हैं और उन का हुक्म बजाना मु झ से नहीं हो पाएगा. तब से डेविड कोशिश करता था कि मौली और मां को दूर रखा जाए लेकिन बच्चे की खबर सुन कर उस की मां मिलने चली आईं और इस अवसर पर उन्हें रोकना डेविड को उचित भी नहीं लगा था.

वे आईं तो उन्होंने मौली का खूब ध्यान रखा और उसे खानेपीने की पौष्टिक चीजें खिलाती रहीं.

इस बार मौली और मां में खूब बन रही थी. दोनों जब भी साथ होतीं तो खिलखिलाती  रहतीं. अभी टीवी पर खबर आ रही थी कि चीन में नोवल कोरोना वायरस पाया गया है. इसलिए पूरे वुहान शहर को ही बंद कर दिया गया है. दोनों खबर देख कर पेट पकड़ कर हंसने लगीं कि भला किसी शहर को यों भी लौकडाउन किया जा सकता है. कितने बेवकूफ हैं?

मौली बोली, ‘‘अगर यहां ऐसा हो तो मैं तो मर ही जाऊं.’’

मां ने कहा, ‘‘जाने कैसेकैसे लोग हैं, चमगादड़ तक को नहीं छोड़ते.’’

‘‘कुत्ते और बिल्ली कम पड़ गए होंगे,’’ कह कर दोनों देर तक हंसती रहीं.

फिर एक दिन जब मौली ने कहा कि उस की मां एक बेबी शौवर रखना चाहती हैं तो उन्होंने कहा, ‘‘जरमन में लोग कहते हैं पहले बच्चे में बेबी शौवर नहीं करना चाहिए.’’

मौली को यह बात नागवार गुजरी. अब वह किस संस्कृति के तौर तरीके अपनाए अमेरिकी या जरमनी? हालांकि मौली का पेट दिखने लगा था और अब तो 5 महीने गुजर चुके थे और सब को बताना सेफ था. जाने क्या सोच कर उस ने सास की बात रख ली और बेबी शावर नहीं रखा, बस फोन पर अपने खास जानने वालों को खबर कर दी.

सर्दी में मौली अपना खास ध्यान रखने लगी और जाने कितने ही लेख और किताबें गर्भावस्था पर पढ़ डालीं. अपने पहले बच्चे के लिए जितनी तैयारी कर सकती थी कर ली. लेकिन कोरोना के कहर के बारे में रोज सुनसुन के उस के कान पक गए थे. क्या है यह कोरोना और कैसे फैलता है किसी को ठीक से नहीं मालूम था.

जल्दी ही नर्सिंगहोम में सब को एक ज्ञापन मिला कि सभी कर्मचारियों के लिए मास्क पहनना अनिवार्य है, तो मौली को यह सम झने में बहुत मुश्किल आई कि क्यों जरूरी है? वह तो नर्सिंगहोम में एक फाइनैंशियल औफिसर है और उस का डाक्टर और नर्स से इतना वास्ता भी नहीं पड़ता. उसे ज्यादातर इंश्योरैंस कंपनी के साथ ही बातचीत करनी होती थी या मरीजों के क्लेम फाइल करने होते थे जिसे वह नर्सिंगहोम में ही बने हुए अपने एक अंडरग्राउंड दफ्तर में बैठ कर करती थी जिस में उस के साथ 3 और लोग भी थे.

अब इस कोरोना की मुसीबत की वजह से उसे पूरे दिन मास्क लगाके और बारबार  हैंड सैनिटाइजर से हाथ रगड़ने पड़ते थे. हर 1 घंटे में वह दफ्तर के बाहर आ बैठती और एक पेड़ के नीचे मास्क हटा कर लंबीलंबी सांस लेती. उस की सांसें वैसे भी बहुत फूलती हैं लंबेचौड़े कद और भरेभरे बदन वाली तो वह पहले से ही थी.

प्रतिदान: भाग 2 – कौन बना जगदीश बाबू के बुढ़ापे का सहारा

रामचंद्र भी जीवट का आदमी था. न कोई घिन न अनिच्छा. पूरी लगन, निष्ठा और निस्वार्थ भाव से उन का मलमूत्र उठा कर फेंकने जाता. बाबू साहब ने उसे कई बार कहा कि वह कोई मेहतर बुला लिया करे. सुबहशाम आ कर गंदगी साफ कर दिया करेगा, पर रामचंद्र ने बाबू साहब की बातों को अनसुना कर दिया और खुद ही उन का मलमूत्र साफ करता रहा. उन्हें नहलाताधुलाता और साफसुथरे कपड़े पहनाता. उस की बीवी उन के गंदे कपड़े धोती, उन के लिए खाना बनाती. रामचंद्र खुद स्नान करने के बाद उन्हें अपने हाथों से खाना खिलाता. अपने सगे बहूबेटे क्या उन की इस तरह सेवा करते? शायद नहीं…कर भी नहीं सकते थे. बाबू साहब मन ही मन सोचते.

बाबू साहब उदास मन लेटेलेटे जीवन की सार्थकता पर विचार करते. मनुष्य क्यों लंबे जीवन की आकांक्षा करता है, क्यों वह केवल बेटों की कामना करता है? बेटे क्या सचमुच मनुष्य को कोई सुख प्रदान करते हैं? उन के अपने बेटे अपने जीवन में व्यस्त और सुखी हैं. अपने जन्मदाता की तरफ से निर्लिप्त हो कर अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं, जैसे अपने पिता से उन्हें कुछ लेनादेना नहीं है.

और एक तरफ रामचंद्र है, उस की बीवी है. इन दोनों से उन का क्या रिश्ता है? उन्हें नौकर के तौर पर ही तो रखा था. परंतु क्या वे नौकर से बढ़ कर नहीं हैं? वे तो उन के अपने सगे बेटों से भी बढ़ कर हैं. बेटेबहू अगर साथ होते, तब भी उन का मलमूत्र नहीं छूते.

जब से वे पूरी तरह अशक्त हुए हैं, रामचंद्र अपने घर नहीं जाता. अपनी बीवी के साथ बाबू साहब के मकान में ही रहता है. उन्होंने ही उस से कहा था कि रात को पता नहीं कब क्या जरूरत पड़ जाए? वह भी मान गया. घर में उस के बच्चे अपनी दादी के साथ रहते थे. दोनों पतिपत्नी दिनरात बाबू साहब की सेवा में लगे रहते थे.

खेतों में कितना गल्लाअनाज पैदा हुआ, कितना बिका और कितना घर में बचा है, इस का पूरापूरा हिसाब भी रामचंद्र रखता था. पैसे भी वही तिजोरी में रखता था. बाबू साहब बस पूछ लेते कि कितना क्या हुआ? बाकी मोहमाया से वह भी अब छुटकारा पाना चाहते थे. इसलिए उस की तरफ ज्यादा ध्यान न देते. रामचंद्र को बोल देते कि उसे जो करना हो, करता रहे. रुपएपैसे खर्च करने के लिए भी उसे मना नहीं करते थे. तो भी रामचंद्र उन का कहना कम ही मानता था. बाबू साहब का पैसा अपने घर में खर्च करते समय उस का मन कचोटता था. हाथ खींच कर खर्च करता. ज्यादातर पैसा उन की दवाइयों पर ही खर्च होता था. उस का वह पूरापूरा हिसाब रखता था.

रात को जगदीश नारायण को जब नींद नहीं आती तो पास में जमीन पर बैठे रामचंद्र से कहते, ‘‘रमुआ, हम सभी मिथ्या भ्रम में जीते हैं. कहते हैं कि यह हमारा है, धनसंपदा, बीवीबच्चे, भाई- बहन, बेटीदामाद, नातीपोते…क्या सचमुच ये सब आप के अपने हैं? नहीं रे, रमुआ, कोई किसी का नहीं होता. सब अपनेअपने स्वार्थ के लिए जीते हैं और मिथ्या भ्रम में पड़ कर खुश हो लेते हैं कि ये सब हमारा है,’’ और वे एक आह भर कर चुप हो जाते.

रामचंद्र मनुहार भरे स्वर में कहता, ‘‘मालिक, आप मन में इतना दुख मत पाला कीजिए. हम तो आप के साथ हैं, आप के चाकर. हम आप की सेवा मरते दम तक करेंगे और करते रहेंगे. आप को कोई कष्टतकलीफ नहीं होने देंगे.’’

‘‘हां रे, रमुआ, एक तेरा ही तो आसरा रह गया है, वरना तो कब का इस संसार से कूच कर गया होता. इस लाचार, बेकार और अपाहिज शरीर के साथ कितने दिन जीता. यह सब तेरी सेवा का फल है कि अभी तक संसार से मोह खत्म नहीं हुआ है. अब तुम्हारे सिवा मेरा है ही कौन?

‘‘मुझे अपने बेटों से कोई आशा या उम्मीद नहीं है. एक तेरे ऊपर ही मुझे विश्वास है कि जीवन के अंतिम समय तक तू मेरा साथ देगा, मुझे धोखा नहीं देगा. अब तक निस्वार्थ भाव से मेरी सेवा करता आ रहा है. बंधीबंधाई मजदूरी के सिवा और क्या दिया है मैं ने?’’

‘‘मालिक, आप की दयादृष्टि बनी रहे और मुझे क्या चाहिए? 2 बेटे हैं, बड़े हो चुके हैं, कहीं भी कमाखा लेंगे. एक बेटी है, उस की शादी कर दूंगा. वह भी अपने घर की हो जाएगी. रहा मैं और पत्नी, तो अभी आप की छत्रछाया में गुजरबसर हो रहा है. आप के न रहने पर आवंटन में जो 2 बीघा बंजर मिला है, उसी पर मेहनत करूंगा, उसे उपजाऊंगा और पेट के लिए कुछ न कुछ तो पैदा कर ही लूंगा.’’

एक तरफ था रामचंद्र…उन का पुश्तैनी नौकर, सेवक, दास या जो भी चाहे कह लीजिए. दूसरी तरफ उन के अपने सगे बेटेबहू. उन के साथ खून के रिश्ते के अलावा और कोई रिश्ता नहीं था जुड़ने के लिए. मन के तार उन से न जुड़ सके थे. दूसरी तरफ रामचंद्र ने उन के संपूर्ण अस्तित्व पर कब्जा कर लिया था, अपने सेवा भाव से. उस की कोई चाहत नहीं थी. वह जो भी कर रहा था, कर्तव्य भावना के साथ कर रहा था. वह इतना जानता था कि बाबू साहब उस के मालिक हैं, वह उन का चाकर है. उन की सेवा करना उस का धर्म है और वह अपना धर्म निभा रहा था.

बाबू साहब के पास उन के अपने नाम कुल 30 बीघे पक्की जमीन थी. 20 बीघे पुश्तैनी और 10 बीघे उन्होंने स्वयं खरीदी थी. घर अपनी बचत के पैसे से बनवाया था. उन्होेंने मन ही मन तय कर लिया था कि संपत्ति का बंटवारा किस तरह करना है.

उन के अपने कई दोस्त वकील थे. उन्होंने अपने एक विश्वस्त मित्र को रामचंद्र के माध्यम से घर पर बुलवाया और चुपचाप वसीयत कर दी. वकील को हिदायत दी कि उस की मृत्यु पर अंतिम संस्कार से पहले उन की वसीयत खोल कर पढ़ी जाए. उसी के मुताबिक उन का अंतिम संस्कार किया जाए. उस के बाद ही संपत्ति का बंटवारा हो.

फिर उन्होंने एक दिन तहसील से लेखपाल तथा एक अन्य वकील को बुलवाया और अपनी कमाई से खरीदी 10 बीघे जमीन का बैनामा रामचंद्र के नाम कर दिया. साथ ही यह भी सुनिश्चित कर दिया कि उन की मृत्यु के बाद इस जमीन पर उन के बेटों द्वारा कोई दावामुकदमा दायर न किया जाए. इस तरह का एक हलफनामा तहसील में दाखिल कर दिया.

यह सब होने के बाद रामचंद्र और उस की बीवी उन के चरणों पर गिर पड़े. वे जारजार रो रहे थे, ‘‘मालिक, यह क्या किया आप ने? यह आप के बेटों का हक था. हम तो गरीब आप के सेवक. जैसे आप की सेवा कर रहे थे, आप के बेटों की भी करते. आप ने हमें जमीन से उठा कर आसमान का चमकता तारा बना दिया.’’

वे धीरे से मुसकराए और रामचंद्र के सिर पर हाथ फेर कर बोले, ‘‘रमुआ, अब क्या तू मुझे बताएगा कि किस का क्या हक है. तू मेरे अंश से नहीं जन्मा है, तो क्या हुआ? मैं इतना जानता हूं कि मनुष्य के अंतिम समय में उस को एक अच्छा साथी मिल जाए तो उस का जीवन सफल हो जाता है. तू मेरे लिए पुत्र समान ही नहीं, सच्चा दोस्त भी है. क्या मैं तेरे लिए मरते समय इतना भी नहीं कर सकता?

‘‘मैं अपने किसी भी पुत्र को चाहे कितनी भी दौलत दे देता, फिर भी वह मेरा इस तरह मलमूत्र नहीं उठाता. उस की बीवी तो कदापि नहीं. हां, मेरी देखभाल के लिए वह कोई नौकर रख देता, लेकिन वह नौकर भी मेरी इतनी सेवा न करता, जितनी तू ने की है. मैं तुझे कोई प्रतिदान नहीं दे रहा. तेरी सेवा तो अमूल्य है. इस का मूल्य तो आंका ही नहीं जा सकता. बस तेरे परिवार के भविष्य के लिए कुछ कर के मरते वक्त मुझे मानसिक शांति प्राप्त हो सकेगी,’’ बाबू साहब आंखें बंद कर के चुप हो गए.

मनुष्य का अंत समय आता है तो बचपन से ले कर जवानी और बुढ़ापे तक के सुखमय चित्र उस के दिलोदिमाग में छा जाते हैं और वह एकएक कर बाइस्कोप की तरह गुजर जाते हैं. वह उन में खो जाता है और कुछ क्षणों तक असंभावी मृत्यु की पीड़ा से मुक्ति पा लेता है.

Mother’s Day Special: पुनरागमन- भाग 2- क्या मां को समझ पाई वह

‘‘अब बताओ, हुआ क्या है, इतनी परेशान क्यों हो?’’

‘‘मैं ने मांजी से बारबार कहा कि कपड़े गंदे न करें, जरूरत पड़ने पर मुझे बताएं. सुबह मैं ने उन से बाथरूम चलने के लिए कहा तो उन्होंने मना कर दिया और दो मिनट बाद ही बिस्तर गंदा कर दिया. मैं ने उन की सफाई के साथ ही साथ उन से नहाने के लिए भी कहा तो वे बोलीं, ‘पानी कमरे में ही ले आओ, मैं कमरे में ही नहाऊंगी.’ बहुत समझाने पर भी जब मांजी नहीं मानीं तो मैं पानी कमरे में ले आई. वैसे भी अकेले मेरे लिए मांजी को उठाना मुश्किल था. मैं ने सोचा था कि गीले कपड़े से पोंछ दूंगी, फिर खाना खिला दूंगी. पर मांजी ने तो गुस्से में पैर से पानी की पूरी बालटी ही उलट दी और खाने की थाली उठा कर नीचे फेंक दी. मैं तो दिनभर कमरा साफ करकर के थक जाती हूं.’’

नीरू ने मां के कमरे में पैर रखा तो उस का दिल घबरा गया. पूरे कमरे में पानी ही पानी भरा था. खाने की थाली एक ओर पड़ी थी और कटोरियां दूसरी तरफ. रोटी, दाल, चावल सब जमीन पर फैले थे. मां मुंह फुलाए बिस्तर पर बैठी थीं.

नीरू ने मां के पास जा कर पूछा, ‘‘क्या हुआ मां, खाना क्यों नहीं खाया? तुम ने कल रात को भी खाना नहीं खाया. इस तरह तो तुम कमजोर हो जाओगी.’’

मैं आया के हाथ का खाना नहीं खाऊंगी, आया गंदी है. उसे भगा दो. मुझ से कहती है कि मेरी शिकायत तुम से करेगी, फिर तुम मुझे डांटोगी. तुम डांटोगी मुझे?’’ मां ने किसी छोटे बच्चे की तरह भोलेपन से पूछा तो नीरू को हंसी आ गई. उस ने मां के गले में हाथ डाल कर प्यार किया और कहा, ‘‘मैं अपनी प्यारी मां को अपने हाथों से खाना खिलाऊंगी. बोलो, क्या खाओगी?’’

‘‘मिठाई दोगी?’’ मां ने आशंकित हो कर कहा.

‘‘मिठाई? पर मिठाई तो खाना खाने के बाद खाते हैं. पहले खाना खा लो, फिर मिठाई खा लेना.’’

‘‘नहीं, पहले मिठाई दो.’’

‘‘नहीं, पहले खाना, फिर मिठाई.’’ नीरू ने मां की नकल उतार कर कहा तो मां ताली बजा कर खूब हंसीं और बोलीं, ‘‘बुद्धू बना रही हो, खाना खा लूंगी तो मिठाई नहीं दोगी. पहले मिठाई लाओ.’’

नीरू ने मिठाई ला कर सामने रख दी तो मां खुश हो कर बोलीं, ‘‘पहले एक पीस मिठाई, फिर खाना.’’

‘‘अच्छा, ठीक है, लड्डू लोगी या रसगुल्ला?’’

‘‘रसगुल्ला,’’ मां ने खुश हो कर कहा.

नीरू ने एक रसगुल्ला कटोरी में रख कर उन्हें दिया और उन के लिए थाली में खाना निकालने लगी. दो कौर खाने के बाद ही मां फिर खाना खाने में आनाकानी करने लगीं. ‘‘पेट गरम हो गया, अब और नहीं खाऊंगी,’’ मां ने मुंह बना कर कहा.

‘‘अच्छा, एक कौर मेरे लिए, मां. देखो, तुम ने कल भी कुछ नहीं खाया था, अभी दवाई भी खानी है और दवाई खाने से पहले खाना खाना जरूरी है वरना तबीयत बिगड़ जाएगी.’’

‘‘नहीं, मैं नहीं खा सकती. अब एक कौर भी नहीं.’’ तुम तो दारोगा की तरह पीछे लग जाती हो. मुझे यह बिलकुल अच्छा नहीं लगता. मेरी अम्मा बनने चली हो. अब पेट में जगह नहीं है तो क्या करूं, पेट बड़ा कर लूं,’’ कहते हुए मां ने पेट फुला लिया तो नीरू को हंसी आ गई. उस ने हंसते हुए थाली की ओर हाथ बढ़ाया तो मां ने समझा कि नीरू फिर उस से खाने के लिए कहेगी. सो, अपनी आंखें बंद कर के लेट गईं. तभी फोन की घंटी बजी तो नीरू फोन पर बात करने लगी. बात करतेकरते नीरू ने देखा कि मां ने धीरे से आंखें खोल कर देखा और रसगुल्ले की ओर हाथ बढ़ाया पर नीरू को अपनी ओर आते देखा तो झट से बोलीं, ‘‘हम रसगुल्ला थोड़े उठा रहे थे, हम तो उस पर बैठा मच्छर भगा रहे थे.’’

‘‘तुम्हें एक रसगुल्ला और खाना है?’’ नीरू ने हंस कर पूछा.

‘‘हां, मुझे रसगुल्ला बहुत अच्छा लगता है.’’

‘‘तो पहले रोटी खाओ, फिर रसगुल्ला भी खा लेना.’’

‘रसगुल्ला, कचौड़ी, कचौड़ी फिर रसगुल्ला, फिर कचौड़ी…’ मां मुंह ही मुंह में बुदबुदा रही थीं. नीरू ने सुना तो उसे हंसी आ गई.

‘‘शाम को मेहमान आने वाले हैं. तब तुम्हारी पसंद की कचौड़ी बनाऊंगी,’’ नीरू ने मां को मनाने के लिए कहा तो मां प्रसन्न हो कर बोलीं, ‘‘हींग वाली कचौड़ी?’’

‘‘हां, हींग वाली. लो, अब एक रोटी खा लो, फिर शाम को कचौड़ी खाना.’’

‘‘तो मैं शाम को रोटी नहीं खाऊंगी, हां. मुझे पेटभर कचौड़ी देना.’’

‘‘अच्छा बाबा. मैं तो इसलिए रोकती हूं कि मीठा और तलाभुना खाने से तुम्हारी शुगर बढ़ जाती है. आज शाम को जो तुम कहोगी मैं तुम्हें वही खिलाऊंगी पर अभी एक रोटी खाओ.’’

नीरू ने मां को रोटी खाने के लिए मना ही लिया. शाम को मां अपने कमरे में अकेली बैठी कसमसा रही थीं. बाहर के कमरे से लगातार बातों के साथसाथ हंसने की भी आवाजें आ रही थीं. ‘क्या करूं, नीरू को बुलाने के लिए आवाज दूं क्या? नहींनहीं, नीरू गुस्सा करेगी. तो फिर? मन भी तो नहीं लग रहा है. मैं भी उसी कमरे में चली जाऊं तो? ये मेहमान भी चले क्यों नहीं जाते. 2 घंटे से चिपके हैं. अभी न जाने कितनी देर तक जमे रहेंगे. मैं पूरे दिन नीरू का इंतजार करती हूं कि शाम को नीरू के साथ बातें करूंगी वरना इस कमरे में अकेले पड़ेपड़े कितना जी घबराता है, किसी को क्या पता?’

अचानक मां के कमरे से ‘हाय मर गई. हे प्रकृति, तू मुझे उठा क्यों नहीं लेती,’ की आवाज आने लगी तो सब का ध्यान मां के कमरे की ओर गया. सब दौड़ते हुए कमरे में पहुंचे तो देखा मां अपने बिस्तर पर पड़ी कराह रही हैं. नीरू ने मां से पूछा, ‘‘क्या हुआ मां, कराह क्यों रही हो?’’

‘‘मेरा पेट गरम हो रहा है. देखो, और गरम होता जा रहा है. गरमी बढ़ती जा रही है. खड़ीखड़ी क्या कर रही हो? मेरे पेट की आग से पूरा घर जल जाएगा. सब जल जाएंगे.’’

मां की बात सुन कर नीरू ने कहा, ‘‘चलो, अस्पताल चलते हैं.’’ फिर नीरू ने मेहमानों से कहा, ‘‘आप आराम से बैठें, मैं मां को डाक्टर को दिखा कर आती हूं.’’

समय की नजाकत को भांपते हुए मेहमानों ने भी कहा, ‘‘आप मां को अस्पताल ले जाएं, हम फिर कभी आ जाएंगे.’’

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें