तेरे जाने के बाद- भाग 3 क्या माया की आंखों से उठा प्यार का पर्दा

हमें तुम सिर्फ और सिर्फ बेवकूफ नजर आते थे. पूरे 9 महीने हां, पूरे 9 महीने तक कमल का बच्चा मेरे पेट में रहा. 9 महीने बाद हम एक बेटे के मांबाप बन गए. तुम मुझ से प्रैग्नैंसी के दौरान दूर रहे लेकिन कमल उस पीरियड में भी डाक्टरी सुझाव से संबंध बनाता रहा. तुम पिता बन कर बहुत खुश हुए थे और हम अपने प्यार को मंजिल पर पहुंचा कर खुश थे. तुम न्यू बौर्न बेबी का नाम एम अल्फाबेट से रखना चाहते थे लेकिन कमल का मन था प्रेम नाम रखने का. मैं ने भी कमल की हां में हां मिलाते हुए प्रेम नाम पर मुहर लगा दी. तुम प्रेम से बेपनाह प्रेम करने लगे.

तुम्हारे लिए प्रेम ही सबकुछ हो गया था. प्रेम के नाम से जागना, प्रेम के नाम से सोना. सबकुछ प्रेम पर ही अटक गया था तुम्हारा. और मैं लापरवाहों की तरह बस कमल और कमल करती रहती. पर मामला वहीं रुक जाता तो अच्छा होता शायद. अब कमल का हक मुझ पर बढ़ने लगा था. मैं पूरी तरह से कमल की हो गई थी. प्रेम के भविष्य को ले कर मैं तुम से कभी कोईर् चर्चा करना पसंद नहीं करती. कमल जो कहता वही मुझे सही लगता. रात में हम साथसाथ जरूर सोते पर मैं तुम्हें छूने तक न देना चाहती थी. मुझे घृणा होती थी तुम से. मेरी शारीरिक जरूरतें कमल दिन में पूरा कर दिया करता था. तुम्हारी जरूरत महज रुपएपैसों को ले कर रह गई थी.

मेरा बस चलता तो मैं तुम्हें अपने साथ भी न रखती, लेकिन कमल हर बार मुझे मना लेता था. उस की नजर में तुम्हारे जैसा बेवकूफ शायद कोई नहीं था. हम तुम्हारा शोषण करते रहे और तुम शोषित होते रहे. लेकिन अब केवल तुम्हारे शोषित होने या मेरे त्रियाचरित्र का खेल खेलने तक बात न रह गईर् थी. कमल की इच्छाएं बढ़ने लगी थीं. वह अपनी म्यूजिक कंपनी लौंच करना चाहता था. जिस में मुझे वह डांसर लौंच करता, म्यूजिक वीडियों में. मैं पूरी तरह से उस के समर्थन में खड़ी थी. मुझे अपने अधूरे सपने सच होने की संभावनाएं पूरी होती लगीं. मैं जागते हुए सपने देखने लगी. पर एक सचाई यह भी थी कि कमल को इस सपने को पूरा करने के लिए बहुत बड़ी रकम की आवश्यकता थी जिस का जुगाड़ कमल चाह कर भी करने में असमर्थ था.

मार्केट में उस की छवि ऐसी थी कि कोई 2 रुपए तक उधार न दे. हमारा सपना पूरा करने का एक मात्र रास्ता घर को बेच कर रुपए जुटाने पर आ अटका. कमल मेरा माइंड पूरी तरह वाश कर चुका था. चूंकि फ्लैट मेरे नाम से तुम ने लिया था, इसलिए कानूनी तौर पर तुम्हारा कोई इंटरफेयर वैलिड नहीं था. तुम ने बहुत ही मेहनत से फ्लैट लिया था. मेरी मनमानी पर पहली बार तुम ने आपत्ति की थी. तुम्हें मंजूर न था फ्लैट का बिकना. पर मैं ने तुम्हारी एक न चलने दी. मुझे तुम्हें तुम्हारी औकात दिखाने में भी वक्त न लगा. आवेश में मैं तुम्हें नामर्द तक कह गई थी. और प्रेम के जन्म की भी सारी सचाई खोल कर रख दी थी. तुम ठगे से सुनते रह गए थे.

मैं बोलती जा रही थी और तुम भावविहीन, विस्मित हो चुपचाप घर से निकल गए थे जो आज तक लौट कर नहीं आए. तुम्हारे जाते ही मैं ने फ्लैट बेच दिया. हम अब पूरी तरह से स्वतंत्र थे. हमारे सपने सच होने वाले हैं, मैं तो बस यही सोचती रह गई और कमल धीरेधीरे मुझ से पैसे लेता चला गया. कभी किसी स्टार सिंगर के संग मीटिंग के नाम पर तो कभी औफिस सैटलमैंट के नाम पर.

कभी म्यूजिक डायरैक्टर के हाफ पेमैंट का बहाना बनाता तो कभी वीडियो डायरैक्टर, कैमरामैन, स्पौट बौय को देने के नाम पर. वह पैसे मांगता रहा और मैं पैसे देती रही. दिल्ली के कई शूटिंग स्पौट पर भी ले कर जाता था. मैं तो मुग्ध हो जाया करती थी. कैमरे की फ्लैश लाइट में खो जाया करती थी मैं. सीन, लाइट, कैमरा सुनते ही मेरे अंदर झुरझुरी सी होने लगती. कमल के झूठे लाइवशो का सिलसिला अधिक दिन न चल सका. मेरे पैसे खत्म होने लग गए. कमल की मांगें बढ़ती ही गईं.

फ्लैट बिक चुका था. अकाउंट खाली हो चुका था. अब उस की नजर मेरे गहनों पर थी. लगभग गहने भी उस ने बिकवा दिए. मैं रुपएरुपए को तरसने लग गई. मेरी जरूरतें मुंह खोले मुझे चिढ़ाने लगीं. मैं बरबाद हो चुकी थी. कमल मुझ से दूर होने लगा था. मैं गृहस्थी चलाने में भी असमर्थ हो गई थी. कमल को अब मेरा फोन भी वाहियात लगने लगा था. मेरा रूप ढलने लगा था. मेरा शृंगार अपनी रंगत खो चुका था. जिस के गले में मैं ने ही बूंदबूंद कर के जहर डाला था, एक दिन तो दम तोड़ना ही था. आखिर मैं गलत ही तो कर रही थी. और गलत कामों का नतीजा तो मुझे भुगतना ही था.

मैं अब कमल से आरपार का फैसला कर लेना चाहती थी. अंतिम बार जब मैं उस से मिली तो उस ने साफसाफ शब्दों में कह दिया, ‘तुझ जैसी बाजारू औरत के लिए अपना समय बरबाद नहीं करता कमल. तुम से बढि़या तो वेश्याएं होती हैं, जो पैसों के लिए गैर मर्दों के संग सोया करती हैं. कम से कम किसी को धोखा तो नहीं देतीं. तू जब अपने बाप की, अपने पति की नहीं हुई तो मेरी कैसे हो सकती है?’

मैं अपने प्यार की दुहाई देती रही पर कमल पर कोई असर नहीं हुआ. उस ने आगे स्पष्ट किया, ‘तू न तो मेरी जिंदगी की पहली औरत है और न ही आखिरी.’ मैं फिर भी गिड़गिड़ाती रही पर उस पर कोई असर नहीं हुआ. मैं रूप, जवानी, धनदौलत सब लुटा चुकी थी. कमल अपनी मर्दानगी साबित करने के लिए मुझे मां तक बना चुका था. उस के जीवन में कोई और आ चुकी थी. नई चिडि़या को फांसने के लिए पुरानी का घरौंदा उजाड़ चुका था.

कमल की हकीकत मेरे सामने थी. मैं चुप नहीं रह सकती थी. मैं होश खो रही थी. मेरी आंखों में गुस्सा उबल रहा था. मैं उस का मर्डर कर देना चाहती थी. मैं आवेश में आ कर कमल पर चाकू फेंक मारने लगी. वह बच निकला. मुझे गालियां देते वहां से भागते हुए चला गया. उस के हाथ पर चाकू के निशान पड़ गए थे. उस ने हाफमर्डर का केस दर्ज कर दिया. असीम ने मुझे सचेत करते हुए पुलिस के आने से पहले गुड़गांव छोड़ भाग जाने की सलाह दी. असीम ने ही आगरा में मेरे और अभिलाषा के रहने का प्रबंध कर दिया. लेकिन साथ ही असीम मोहित के परिवार को भी इस घटना की सूचना दे चुका था.

तुम्हारी मां और बहन हमारे भागने से पहले ही आ कर मेरे हाथों से प्रेम को छीन कर ले गईं. मैं आगरा चली आई. कुछ दिनों बाद असीम ने आगरा आ कर अपने पैसों से मेरे लिए एक ब्यूटीपार्लर खुलवा दिया. तब से आज तक मैं आगरा की ही हो कर रह गई. रातभर मेरे दिलोदिमाग में मेरी पूरी जिंदगी नाचती रही. मैं पछतावे की अग्नि में जले जा रही हूं. मुझे ग्लानि हो रही है खुद पर. सुबह उठते ही सब से पहले शादी का पहला कार्ड मैं तुम्हारे परिवार को बाईपोस्ट भेजने कूरियर औफिस के लिए चल दी. शायद एक बार अपने बेटे को देखने की लालसा जाग्रत हो उठी थी.

कूरियर करवा कर मैं वापस घर आ कर तुम्हारी और प्रेम की फोटो को ले कर बैठ गई. मेरी आंखों से आंसू अपनेआप बहने लगे. मैं तुम्हारे फोटो पर गिरे अपने आंसू की बूंदों को अपने आंचल से पोंछने लगी. पता ही नहीं चला कब कमबख्त आंसू आंखों से ढुलक कर तुम्हारे फोटो पर आ गिरा था. मैं तुम्हारे फोटो से कहने लगी, ‘पहले मैं रोती थी तो तुम या कभी कमल अपना कंधा दे कर चुप करवा दिया करते थे. लेकिन अब मैं नहीं रोती. रोने का दिल भी होता तो भी मैं नहीं रोती. कोई सांत्वना के 2 शब्द बोल कर चुप करवाने वाला जो नहीं है. अब अगर रोती हूं तो उपहास का पात्र बन जाती हूं.’ तुम फिर से जवाब तलब करने आ जाते हो,

‘तुम कमल को अपना लो. अब तो मैं भी नहीं हूं तुम्हारे जीवन में. तुम्हें कमल को अपनाने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए.’ ‘दिक्कत तो कुछ नहीं है लेकिन तुम भूल रहे हो शायद कि मैं आज भी तुम्हारी पत्नी हूं. एक परित्यक्ता ही सही पर तलाकशुदा नहीं हूं. और फिर मैं वही गलती दोबारा कैसे दोहरा सकती हूं.’ ‘क्या तुम भी गलती कर सकती हो?’ ‘तुम्हारे वाक्य में कटाक्ष है. लेकिन फिर भी मैं प्रतिउत्तर दूंगी… हां, मैं गलती कैसे कर सकती हूं.

आज से 10 साल पूर्व वाली माया होती तो शायद यही उत्तर देती. लेकिन आज वाली माया जान चुकी है खुद को. खुद के परिवेश को, इस समाज को, सामाजिक आहर्ता को. वक्त सबकुछ सिखा देता है. मैं भी सीख चुकी हूं.’ ‘काश कि तुम पहले समझ जाती.’ ‘काश…’ ‘तुम में दिक्कत क्या है, तुम जानती हो? तुम किसी को अपने आगे कुछ समझती ही नहीं. तुम्हें तुम्हारी दुनिया सब से ज्यादा प्यारी लगती. तुम इस दुनिया को भी अपने अनुसार चलाना चाहती हो, लेकिन ऐसा नहीं होता. वास्तविकता का धरातल कुछ और ही है, जिसे तुम ने कभी समझने की कोशिश ही नहीं की.’ ‘तभी तो आज भुगत रही हूं.’

 

ब्रेन स्ट्रोक के उपचार और थेरेपी क्या है?

सवाल

मेरे परिवार में ब्रेन स्ट्रोक का पारिवारिक इतिहास है. मैं जानना चाहती हूं कि ब्रेन स्ट्रोक के उपचार के लिए स्टेंट रिट्रिवर थेरैपी क्या है?

जवाब

यह स्ट्रोक के उपचार की अत्याधुनिक तकनीक है. इस में पतले कैथेटर और वायर के द्वारा मस्तिष्क से ब्लड क्लाट निकाले जाते हैं तथा ब्लौक हो चुकी रक्त नलिकाओं को खोला जाता है. ये सर्जरी फेमोरल आर्टरी के द्वारा की जाती है. यह ग्रोइन एरिया या उरू मूल क्षेत्र में होती है. कई मरीज तो सर्जरी के पश्चात कुछ ही समय में बोलने लगते हैं और अपने हाथों और पैरों को हिलानाडुलाना शुरू कर देते हैं. इस की सफलता दर और बेहतर परिणामों को देखते हुए इस का इस्तेमाल लगातार बढ़ रहा है.

सवाल

मेरी माताजी की उम्र 61 वर्ष है. उन्हें 1 महीना पहले फर्स्ट स्टेज का ब्रेन ट्यूमर डायग्नोसिस हुआ था. डाक्टर ने सर्जरी द्वारा ट्यूमर निकलवाने का सुझाव दिया था, लेकिन उन्हें सर्जरी कराने से डर लग रहा है. क्या करूं?

जवाब

मस्तिष्क हमारे शरीर का एक बहुत ही आवश्यक और संवेदनशील भाग है, जब इस में ट्यूमर विकसित हो जाता है तो जीवन के लिए खतरा बढ़ जाता है. अगर ट्यूमर हाई ग्रेड है तो तुरंत उपचार कराना जरूरी है. उपचार कराने में देरी मृत्यु का कारण बन सकती है. अगर ट्यूमर का विकास बहुत धीमा है तो आप उपचार कराने के लिए थोड़ा समय ले सकते हैं.

उन्हें समझाएं कि अत्याधुनिक तकनीकों ने सर्जरी को आसान और सटीक बना दिया है. सर्जरी कराने में ज्यादा देर न करें क्योंकि कुछ ट्यूमर इतने घातक होते हैं कि कई लोग ब्रेन ट्यूमर के डायग्नोसिस के 9 से 12 महीने में मर जाते हैं. समय पर डायग्नोसिस और उपचार करा लिया जाए तो ठीक होने की संभावना काफी बढ़ जाती है.

‘हमारे बीच ज्यादा बात नहीं होती’, सलमान को लेकर बेटे के शो पर बोले अरबाज खान

अरबाज खान ने बेटे अरहान खान इन दिनों पोडकास्ट ‘दम बिरयानी’ की होस्टिंग कर रहे हैं. यह एक ऐसा  शो है जहां पर बातचीत होती है. शो के दौरान  अरबाज खान ने बताया कि बड़े भाई सलमान खान के साथ उनकी ज्यादा बात नहीं होती है.

दोनों भाइयों के साथ संबंधों को लेकर उन्होंने बताया कि वो लोग आपस में ज्यादा बात नहीं करते हैं लेकिन मुश्किल के समय साथ खड़े रहते हैं और एक दूसरे के बहुत करीब हैं.

अरबाज ने बताया कि जब हम छोटे थे तो एक दूसरे के साथ रहते थे लेकिन काम करने लगे तो घर से बाहर निकले और हम लोगों में से एक सलमान ही हैं जिन्होंने शादी नहीं की.

 

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उन्होंने बताया कि मूल बात यह है कि सलमान और अरबाज ज्यादा मिलते भी नहीं हैं और बात भी नहीं करते हैं लेकिन जब सलमान को एहसास होता है कि कोई परेशानी में है तो फिर वो अरबाज हो, सोहेल हो या फिर कोई और वो हमेशा मदद करने के लिए तैयार रहते हैं.

वर्क फ्रंट की बात करे तो अरबाज ने हाल ही में फिल्म फरे में काम किया था जिसे बहन अलवीरा और सलमान खान ने प्रड्यूस किया है. वो जल्द ही ‘फिल्म’ श्रीदेवी बंग्लो में कैमियो रोल करेंगे.

 

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आपकों बता दें कि अरबाज खान ने वर्ष 2016 में एक्ट्रेस मलाइका अरोड़ा खान से शादी की थी। शादी करने के 19 साल बाद दोनों ने तलाक ले लिया। दोनों का एक बेटा है अरहान. अभी हाल ही में अरबाज़ खान ने अपनी मेक अप आर्टिस्ट शूरा खान से शादी की है. दोनों की शादी बहन अर्पिता खान के घर पर हुई थी.

सोहेल खान का बात करें तो उन्होंने सीमा सचदेव से शादी की थी और साल 2022 में उनका तलाक हो गया। दोनों के एक बेटा है निरवान.

सलमान खान समाज सेवा के काम में भी पीछे नहीं हैं उनकी एक संस्था है बींग ह्यूमन जो गरीब बच्चों के लिए काम करती है.

यह नाइटी जो न हुई: सुहानी की कहानी

अजीअब अकेले में भी गुफ्तगू न कर सके तो लानत है ऐसी मर्दानगी पर और वैसी नाइटी वाली मुहतरमा के जुल्म ढाने वाले लापरवाह हुस्न पर. हम तो समझा करते थे नाइटी का मतलब-बेमतलब पोशाकों की उधेड़बुन से बच कर सस्ता टिकाऊ आवरण, जो स्त्री के लिए पहनना आसान भर हो. भई, हमें क्या मालूम था कि नाइटी की नटी हमारे जीवन में यों नाट्य भर जाएगी.

हमारी कयामत, जबान फिसल गई जी जरा. हमारी हुस्ने मलिका यानी हमारी श्रीमतीजी तो चौबीसों घंटे साड़ी में यों लिपटी रहती हैं जैसे खोल में गद्देदार तकिया. हिलाओडुलाओ तब भी न सरके.

अब बेचारी हमारी आंखें बटन तो नहीं. तरसती रहती हैं हुस्ने शबाब में गोते लगाने को. अब आप ही बताएं कि अगर ये दीदार वाली आंखें न हों तो हुस्न का काम ही क्या?

अजी साहब गुस्ताखी माफ. आज दरअसल बोलने का या कहूं श्रीमतीजी के पड़ोस में जाने से लिखने का मौका मिल गया तो हम भी बुक्का फाड़ के अपने दिल की निकालने लग पड़े.

सब्र का भी बांध होता है कोई जी. हर वक्त अब तो श्रीमतीजी का पहरा ही लग गया है हम पर. ‘यहां बालकनी में क्या कर रहे हो?’, ‘यहां छत पर क्या कर रहे हो?’, ‘खिड़की में क्या कर रहे हो?’, ‘दरवाजे पर क्या कर रहे हो?’ अजी इतना पूछेंगी तो हम भी न सोचेंगे कि आखिर है क्या इधर जो इतनी रोकटोक?

अब दिल तो बच्चा है न जी. सो हम ने भी बालकनी से, छत से, खिड़की से, दरवाजे से, आखिर वह राज जान ही लिया, जो हमारी कयामत श्रीमतीजी (लाहौल वला कूबत) ने छिपा कर रखना चाहा था.

चलो, अब और पहेलियां न बुझाएं वरना आप हम से खार खा जाओगे.

तो हुआ यों कि इस नई बसीबसाई सुसंस्कृत कालोनी के सिस्टम से बने सारे

बंगलों में से चुनचुन कर हमारे ही नए बंगले के सामने वाले बंगले में एक नवविवाहित जोड़ा रहने आया.

इन की शादी को मुश्किल से 4 महीने हुए होंगे. पहलेपहल तो इन दोनों की चुटिया तक न दिखती थी, मगर अब कुछ दिनों से तो हमारे पौबारह हैं. जब चाहो नजरें सेंक लो. सुना है लड़के के धनकुबेर ससुरजी से दामादबेटी को यह बंगला हासिल हुआ है. इस पतिपत्नी की उम्र करीब 25-30 के बीच होगी. उन के पतिदेव तो जाते अलसुबह चाकरी पर और हम जाते औफिस 10 बजे.

हमारी तकिए की खोल वाली मलिका खैर करें हमारी श्रीमतीजी जब तक रसोई में बरतन खटकातीं, हम अखबार पर आंखें रखते ‘कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना’ के जुमले को चरितार्थ करते नजरों की भागदौड़ को मनमरजी भागने देते हैं. बेचारे एक ही कालकोठरी के गुलाम, कभीकभी दिल बिदक जाए तो कुसूर ही क्या.

तो बिदकते हुए वह हमारे सामने वाले बंगले की नवयौवना, नवप्रफुल्लिता, नवसमर्पिता के हृदय कोष्ठ तक पहुंच गया, जो सागर की दुर्दांत लहरों की तरह उछलउछल कर बरसों तक एक ही गागर का पानी पीतेपीते थक चुके नवरस के प्यासे को आलिंगन में भरने को उतावला हुआ जाता था.

40 पार के अधखाए इस गुठली सर्वस्व आम जैसे आम व्यक्ति के लिए यह तो वाकईर् बड़ी बात थी. सुदर्शना घर पर रहते वक्त बालकनी में, छत पर, खिड़की पर, दरवाजे पर यानी हर उस जगह पर जहांजहां मुझ पर पहरे थे, नाइटी में ही दिखती थीं.

 

एक से बढ़ कर एक नाइटी. कभी झीनी मिनी नाइटी, कभी स्लीवलैस नाइटी, कभी बैकलैस नाइटी, फुग्गेदार बांहों वाली फ्रंट कट नाइटी, कभी सुराहीदार कमर में लिपटी बलखाती नाइटी, कभी चिकने पैरों से नजरें फिसलाती नाइटी. इन रसास्वादन में डूब कर हम मन ही मन बटन बन चुकी आंखों से कुछकुछ दिवास्वप्न देखने लग गए थे. अब गुस्ताखी तो थी, मगर अपनी श्रीमतीजी से कह दें कि अजी तुम भी कुछ बदनउघाड़ू झीनी मिनी नाइटी पहन कर हमारे तनमन पर तितली जैसी उड़ चलो तो वे झाड़ू से हमारा जहर न झाड़ दें और तितली की तो क्या, कहीं गैंडे जैसी हमारे सिर पर सवार हो गईं तो लेने के देने न पड़ जाएं? ख्वामख्वाह ही कयामत नहीं बोलतेजी.

खैर, अब जब 50 मीटर की दूरी से दीदारे हुस्न ज्यादा ही मन को तरसाने लगा तो सोचा क्यों न पड़ोसी होने के नाते कुछ वादसंवाद ही स्थापित कर लिया जाए. सो हम ने श्रीमतीजी को ‘दिखाने के दांत’ बना कर साथ ले चलना ठीक समझा. ऐसे भी ठीक न समझ कर करते भी क्या?

उन के हुक्म के बिना हमारा तो पत्ते सा शरीर भी नहीं हिलता. तो ‘दिखाने के दांत’ के साथ जैसे ही हम उन के घर के दरवाजे पर पहुंचे हमारी सांसें तो थमने को हो गईं.

गोरी नारी छरहरे बदन पे मृदुल मांसल काया,

चपलाचंचला तू कामिनी, तेरी नाइटी की अजब माया.

मुखर यामिनी, मृदुहासिनी, मधुभाषिणी… हम तो सरपट कवि हुए जा रहे थे.

हमारी जबान ने जिस बात पर अब तक ताला जड़ रखा था वह बात भी अब खुशी के मारे हमारे फूले गुब्बारे से मुंह से बाहर निकलने लग पड़ थी. क्या है कि हमारी श्रीमतीजी की काया, काया क्या कहें साड़ी में लिपटी भैंसन सी पहलवानी तगड़ी काया के आगे बढ़ हम कभी एक छटांक भर का स्वप्न भी देखने की हिम्मत न कर पाए थे. मगर अब तो इस नाइटी की रासलीला ने हमारे अंदर साहस का दरिया ही नहीं पूरा समंदर भर दिया था कि अब हम इस आग के समंदर में बेझिझक तैरने वाले थे.

शाम हो चली थी. इच्छा तो नहीं थी कि उस स्वप्नसुंदरी के पतिदेव भी पधार जाएं, लेकिन जिस तरह ‘दिखाने के दांत’ हम साथ ले कर गए थे, वैसे ही उस के भी पहरेदार साथ हों तो जरा ‘रोके न रुकेगी’ वाली फील आ ही जाएगी, सोच हम इस अभियान में निकल लिए.

अंदर से स्विच औन करने की कड़क आवाज के साथ चेहरे के सामने 20 वाट के बल्ब वाली एक पुरानी लाल लाइट जल उठी. अंदर से एक कर्कश आवाज भी कानों में पड़ी, ‘‘देखो तो बाहर कौन बुला रहा है… जब देखो तब कोई न कोई मुंह उठाए चला आता है.’’

साहब ने दरवाजा खोला. सभ्यशिष्ट लगे. अंदर बैठक में ले जा कर सौफे पर बैठाया. बैठे रहे, बैठे रहे बंगले की खरीदारी से ले कर उन के ससुरालियों की खोजखबर, उन की नौकरीचाकरी, कैरियर, राजनीति, पार्टी, देशभक्ति… क्याक्या नहीं हम ने बोलते रहने की कोशिश की. कोशिश ही कर सकते हैं साहब, भैंसन सी श्रीमतीजी के आगे जबान जो सिल कर इतने वर्षों से बैठे थे और अब अचानक वक्त खपाने और जिया भरमाने के लिए सारे टौपिकों का जिम्मा हम पर ही आन पड़ा था. मगर जिस काव्यधारा की प्रेरणा से कामना की बाढ़ में बह कर हम इस ‘राम’ की देहरी तक आ जाने की हिम्मत कर पाए थे उस नाइटी सुंदरी सीता के रसपान को जिया हलक में ही अटका रहा. कोई अतापता नहीं. बगल में बैठी श्रीमती को हम ने कुहनी मारी. अकल की होशियार या अकल की दुश्मन वही जानें, पर श्रीमतीजी ने काम और दुश्वार कर दिया हमारा. सोचा था पूछ लेंगी कि आप की बीवी कहां है? बुलाइए उसे, पर यह न पूछ कर कहती हैं कि आज बड़ी देर हो गई. अब चलते हैं. आप की बीवी से फिर कभी मिल लेंगे.

अजी, यह तो हम पर जुल्म करने की इंतहा ही हो गई. अब तो फिर से हम बालकनी में बैठेबैठे पागल होते रहेंगे.

नहींनहीं, अब हमें ही कुछ करना होगा. अंतरात्मा की आवाज भी कभी हमारी इतनी जोर न पकड़ी होगी जितनी जोर दे कर हम ने यथेष्ट शालीन होते हुए कहा, ‘‘अरे, आप दोनों को जोड़ी में एक बार देख लें. फिर तो जाना ही है, क्योंजी?’’

श्रीमतीजी को देखा तो खा जाने वाली नजरों और होंठों की मुसकराहट के तालमेल का अजब प्रयोग करती नजर आईं. पर हमारी इस से निकल पड़ी.

नवयुवक को अतिथि की अंतिम इच्छा जैसी शायद फील आ गई थी, इसलिए अंदर की ओर आवाज दे कर कहा, ‘‘रंजना, इधर आओ. तुम से मिलना चाहते हैं.’’

हमारा तो जी, क्या कहूं, पहले प्रेम के चंचल हृदय की छटपटाहट सी सांसें मुंह को आने लगीं. क्या सचमुच उस सौंदर्य की बलिहारी को हम इतने निकट से देख पाएंगे? उन से कुछ देर बातें कर पाएंगे.

खुदा कसम इसी याद के साथ इस भरकम तकिए को जिंदगी भर झेल जाएंगे. परदे ठेल कर आ रही थीं हमारी हृदय की देवी.

हम ने नजरें उठाईं. यह क्या? यह मोटीताजी 6 गज की चटगुलाबी रंग की साड़ी में लिपटी चपटी नाक वाली घर में घुसते समय की कर्कश आवाज की मालकिन हमारी मनोहारिणी बलखातीइठलाती नाइटी सुंदरी?

नहींनहीं, हम चीखतेचीखते रह गए.

‘‘मिलिए, रंजना मेरी बीवी से,’’ युवक ने कहा.

हमारी अर्धांगिनी के सुखद आश्चर्य को हम बहुत शिद्दत से महसूस कर पा रहे थे. 14 साल तक धीरेधीरे यों ही न वे हमारी अर्ध अंग बनी थीं. भले ही यह आधा अंग अब हमारे पूरे अंग से भी ज्यादा भरापूरा क्यों न हो गया हो. मोटी भैंसन अभी खुशी से मन ही मन बल्लियों उछल रही थीं. हमारी खुशी पर तो उन के दिल पर सांप लौटने लगता है. अब हो गए श्रीमतीजी के सारे  अरमान पूरे.

यह तो वही कुछ सालों में होने वाली हमारी श्रीमतीजी की जिरौक्स. खुद पर क्या तरस खाएं अब तो इस युवक की ही हम सोचते रहे.

‘‘मगर आप की बीवी हम तो किसी और को समझ रहे थे?’’ हम ने घिघियाते हुए उस से स्पष्ट करवाना चाहा. आखिर गड़बड़ हुई तो कैसे?

‘‘अरे एक को आप ने देखा होगा… वह मेरी चचेरी बहन है…अमेरिका में एनआरआई लड़के से उस की शादी तय हो चुकी है. कुछ दिनों के लिए वह यहां घूमने आई थी. आज ही दोपहर को हम उसे दिल्ली फ्लाइट के लिए छोड़ आए. दिल्ली में उस का घर है. 10 दिन बाद उस की शादी है. फिर वह अमेरिका चली जाएगी.’’

आंखों के आगे मनोहारी पकवान अब भी घूम रहे थे. हम घर लौट रहे थे अपनी भूखे दांतों के बीच सूखी जीभ फिराते हुए.

 

ब्यूटीशन ने मेरी आईब्रोज को बहुत ही पतला कर दिया है, क्या करूं?

सवाल

मेरी आईब्रोज बनाने वाली ब्यूटीशियन ने 1 साल पहले मेरी आईब्रोज को बहुत ही पतला कर दिया था. एक आईब्रो पतली और एक मोटी भी है. सम?ा नहीं आ रहा क्या करूं क्योंकि अब आईब्रोज में बाल भी नहीं आ रहे. प्लीज हैल्प कीजिए?

जवाब

जब आईब्रोज में बाल आने बंद हो जाएं तो उन्हें उगाया नहीं जा सकता. इस के लिए आप परमानैंट मेकअप का सहारा ले सकती हैं. इस मेकअप से दोनों आईब्रोज को एक शेप में किया जा सकता है. इस से कुछ ही मिनट में आप की आईब्रोज बहुत ही खूबसूरत बन जाएंगी. यह बहुत ही सेफ तकनीक है क्योंकि इस में प्रयोग होने वाला मैटीरियल इंपोर्टेड होता है और सरकार द्वारा पास होता है. बस ध्यान रखने की जरूरत है कि करने वाला बहुत ऐक्सपर्ट होना चाहिए वरना आप की आईब्रोज हमेशा के लिए खराब भी हो सकती हैं. करने वाला ऐक्सपर्ट नहीं होगा तो कभीकभी आईब्रोज की शेप भी डिफरैंट हो सकती है. यह भी ध्यान रखें कि जहां भी आप परमानेंट आईब्रोज बनवाएं वहां हाइजीन का खास ध्यान रखा जाता हो. आप की नीडल भी नई होनी चाहिए ताकि किसी इन्फैक्शन का खतरा न हो. कलर भी ध्यान से चूज कीजिए जोकि आप के बालों से या आप की आईब्रोज के साथ मैच करें.

खलनायक: क्या हो पाई कविता और गौरव की शादी?

विवाह की 10वीं वर्षगांठ के निमंत्रणपत्र छप कर अभीअभी आए थे. कविता बड़े चाव से उन्हें उलटपलट कर देख रही थी. साथ ही सोच रही थी कि जल्दी से एक सूची तैयार कर ले और नाम, पते लिख कर इन्हें डाक में भेज दे. ज्यादा दिन तो बचे नहीं थे. कुछ निमंत्रणपत्र स्वयं बांटने जाना होगा, कुछ गौरव अकेले ही देने जाएंगे. हां, कुछ कार्ड ऐसे भी होंगे जिन्हें ले कर वह अके जाएगी.

सोचतेसोचते कविता को उन पंडितजी की याद आई जिन्होंने उस के विवाह के समय उस के ‘मांगलिक’ होने के कारण इस विवाह के असफल होने की आशंका प्रकट की थी. पंडितजी के संदेह के कारण दोनों परिवारों में उलझनें पैदा हो गई थीं. ताईजी ने तो अपने इन पंडितजी की बातों से प्रभावित हो कर कई पूजापाठ करवा डाले थे.

एकएक कर के कविता को अपने विवाह से संबंधित सभी छोटीबड़ी घटनाएं याद आने लगीं. कितना तनाव सहा था उस के परिवार वालों ने विवाह के 1 माह पूर्व. उस समय यदि गौरव ने आधुनिक एवं तर्कसंगत विचारों से अपने परिवार वालों को समझायाबुझाया न होता तो हो चुका था यह विवाह. कविता को जब गौरव, उस के मातापिता एवं ताईजी देखने आए थे तो सभी को दोनों की जोड़ी ऐसी जंची कि पहली बार में ही हां हो गई. गौरव के पिता नंदकिशोर का अपना व्यवसाय था. अच्छाखासा पैसा था. परिवार में गौरव के मातापिता, एक बहन और एक ताईजी थीं. कुछ वर्ष पूर्व ताऊजी की मृत्यु हो गई थी.

ताईजी बिलकुल अकेली हो गई थीं, उन की अपनी कोई संतान न थी. गौरव और उस की बहन गरिमा ही उन का सर्वस्व थे. गौरव तो वैसे ही उन की आंख का तारा था. बच्चे ताईजी को बड़ी मां कह कर पुकारते और उन्हें सचमुच में ही बड़ी मां का सम्मान भी देते. गौरव के मातापिता भी ताईजी को ही घर का मुखिया मानते थे. घर में छोटेबड़े सभी निर्णय उन की सम्मति से ही लिए जाते थे.

जैसा कि प्राय: होता है, लड़की पसंद आने के कुछ दिन पश्चात छोटीमोटी रस्म कर के रिश्ता पक्का कर दिया गया. इस बीच गौरव और कविता कभीकभार एकदूसरे से मिलने लगे. दोनों के मातापिता को इस में कोई आपत्ति भी न थी. वे स्वयं भी पढ़ेलिखे थे और स्वतंत्र विचारों के थे. बच्चों को ऊंची शिक्षा देने के साथसाथ अपना पूर्ण विश्वास भी उन्होंने बच्चों को दिया था. अत: गौरव का आनाजाना बड़े सहज रूप में स्वीकार कर लिया गया था. पंडितजी से शगुन और विवाह का मुहूर्त निकलवाने ताईजी ही गई थीं. पंडितजी ने कन्या और वर दोनों की जन्मपत्री की मांग की थी.

दूसरे दिन कविता के घर यह संदेशा भिजवाया गया कि कन्या की जन्मपत्री भिजवाई जाए ताकि वर की जन्मपत्री से मिला कर उस के अनुसार ही विवाह का मुहूर्त निकाला जाए. कविता के मातापिता को भला इस में क्या आपत्ति हो सकती थी, उन्होंने वैसा ही किया.

3 दिन पश्चात ताईजी स्वयं कविता के घर आईं. अपने भावी समधी से वे अनुरोध भरे स्वर में बोलीं, ‘‘कविता के पक्ष में ‘मंगलग्रह’ भारी है. इस के लिए हमारे पंडितजी का कहना है कि आप के घर में कविता द्वारा 3 दिन पूजा करवा ली जाए तो इस ग्रह का प्रकोप कम हो सकता है. आप को कष्ट तो होगा, लेकिन मैं समझती हूं कि हमें यह करवा ही लेना चाहिए.’’

कविता के मातापिता ने इस बात को अधिक तूल न देते हुए अपनी सहमति दे दी और 3 दिन के अनुष्ठान की सारी जिम्मेदारी सहर्ष स्वीकार कर ली. 2 दिन आराम से गुजर गए और कविता ने भी पूरी निष्ठा से इस अनुष्ठान में भाग लिया. तीसरे दिन प्रात: ही फोन की घंटी बजी और लगा कि कविता के पिता फोन पर बात करतेकरते थोड़े झुंझला से रहे हैं.

फोन रख कर उन्होंने बताया, ‘‘ताईजी के कोई स्वामीजी पधारे हैं. ताईजी ने उन को कविता और गौरव की जन्मकुंडली आदि दिखा कर उन की राय पूछी थी. स्वामीजी ने कहा है कि इस ग्रह को शांत करने के लिए 3 दिन नहीं, पूरे 1 सप्ताह तक पूजा करनी चाहिए और उस के उपरांत कन्या के हाथ से बड़ी मात्रा में 7 प्रकार के अन्न, अन्य वस्तुएं एवं नकद राशि का दान करवाना चाहिए. ताईजी ने हमें ऐसा ही करने का आदेश दिया है.’’

यह सब सुन कर कविता को अच्छा नहीं लगा. एक तो घर में वैसे ही विवाह के कारण काम बढ़ा हुआ था, जिस पर दिनरात पंडितों के पूजापाठ, उन के खानेपीने का प्रबंध और उन की देखभाल. वह बेहद परेशान हो उठी.  कविता जानती थी कि दानदक्षिणा की जो सूची बताई गई है उस में भी पिताजी का काफी खर्च होगा. वह समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे. लेकिन मां के चेहरे पर कोई परेशानी नहीं थी. उन्होंने ही जैसेतैसे पति और बेटी को समझाबुझा कर धीरज न खोने के लिए राजी किया. उन की व्यावहारिक बुद्धि यही कहती थी कि लड़की वालों को थोड़ाबहुत झुकना ही पड़ता है.

इस बीच गौरव भी अपनी और अपने मातापिता की ओर से कविता के घर वालों से उन्हें परेशान करने के लिए क्षमा मांगने आया. वह जानता था कि यह सब ढकोसला है, लेकिन ताईजी की भावनाओं और उन की ममता की कद्र करते हुए वह उन्हें दुखी नहीं करना चाहता था. इसलिए वह भी इस में सहयोग देने के लिए राजी हो गया था, वरना वह और उस के मातापिता किसी भी कारण से कविता के परिवार वालों को अनुचित कष्ट नहीं देना चाहते थे.

लेकिन अभी एक और प्रहार बाकी था. किसी ने यह भी बता दिया था कि इस अनुष्ठान के पश्चात कन्या का एक झूठमूठ का विवाह बकरे या भेड़ से करवाना जरूरी है क्योंकि मंगल की जो कुदृष्टि पूजा के बाद भी बच जाएगी, वह उसी पर पड़ेगी. उस के पश्चात कविता और गौरव का विवाह बड़ी धूमधाम से होगा और उन का वैवाहिक जीवन संपूर्ण रूप से निष्कंटक हो जाएगा.  ताईजी यह संदेश ले कर स्वयं आई थीं. उस समय कविता घर पर नहीं थी. जब वह आई और उस ने यह बेहूदा प्रस्ताव सुना तो बौखला उठी. उसे समझ नहीं आया कि वह क्या करे. पहली बार उस ने गौरव को अपनी ओर से इस में सम्मिलित करने का सोचा.

उस ने गौरव से मिल कर उसे सारी बात बताई. गौरव की भी वही प्रतिक्रिया हुई, जिस की कविता को आशा थी. वह सीधा घर गया और अपने परिवार वालों को अपना निर्णय सुना डाला, ‘‘यदि आप इन सब ढकोसलों को और बढ़ावा देंगे या मानेंगे तो मैं कविता तो क्या, किसी भी अन्य लड़की से विवाह नहीं करूंगा और जीवन भर अविवाहित रहूंगा. मैं आप को दुखी नहीं करना चाहता, आप की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाना चाहता, नहीं तो मैं पूजा करने की बात पर ही आप को रोक देता. लेकिन अब तो हद ही हो गई है. आप लोगों को मैं ने अपना फैसला सुना दिया है. अब आगे आप की इच्छा.’’

ताईजी का रोरो कर बुरा हाल था. उन्हें तो यही चिंता खाए जा रही थी कि कविता के ‘मांगलिक’ होने से गौरव का अनिष्ट न हो, लेकिन गौरव उन की बात समझने की कोशिश ही नहीं कर रहा था. उस का कहना था, ‘‘यह झूठमूठ का विवाह कर लेने से कविता का क्या बिगड़ जाएगा?’’  उधर कविता को भी गौरव ने यही पट्टी पढ़ाई थी कि तुम पर कैसा भी दबाव डाला जाए, तुम टस से मस न होना, भले ही कितनी मिन्नतें करें, जबरदस्ती करें, किसी भी दशा में तुम अपना फैसला न बदलना. भला कहीं मनुष्यों के विवाह जानवरों से भी होते हैं. भले ही यह झूठमूठ का ही क्यों न हो.

कविता तो वैसे ही ताईजी के इस प्रस्ताव को सुन कर आपे से बाहर हो रही थी. उस पर गौरव ने उस की बात को सम्मान दे कर उस की हिम्मत को बढ़ाया था. साथ ही गौरव ने यह भी बता दिया था कि उस के मातापिता को कविता बहुत पसंद है और वे इन ढकोसलों में विश्वास नहीं करते. इसलिए ताईजी को समझाने में उस के मातापिता भी सहायता करेंगे. वैसे ताईजी को यह स्वीकार ही नहीं होगा कि गौरव जीवन भर अविवाहित रहे. वे तो न जाने कितने वर्षों से उस के विवाह के सपने देख रही थीं और उस की बहू के लिए उन्होंने अच्छे से अच्छे जेवर सहेज कर रखे हुए थे.

लेकिन पुरानी रूढि़यों में जकड़ी अशिक्षित ताईजी एक अनजान भय से ग्रस्त इन पाखंडों और लालची पंडितों की बातों में आ गई थीं. गौरव ने कविता को बता दिया था कि धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा और अगर फिर भी ताईजी ने स्वीकृति न दी तो दोनों के मातापिता की स्वीकृति तो है ही, वे चुपचाप शादी कर लेंगे.

कविता को गौरव की बातों ने बहुत बड़ा सहारा दिया था. पर क्या ताईजी ऐसे ही मान गई थीं? घर छोड़ जाने और आजीवन विवाह न करने की गौरव द्वारा दी गई धमकियों ने अपना रंग दिखाया और 4 महीने का समय नष्ट कर के अंत में कविता और गौरव का विवाह बड़ी धूमधाम से हो गया.

कविता एक भरपूर गृहस्थी के हर सुख से संपन्न थी. धनसंपत्ति, अच्छा पति, बढि़या स्कूलों में पढ़ते लाड़ले बच्चे और अपने सासससुर की वह दुलारी बहू थी. बस, उस के वैवाहिक जीवन का एक खलनायक था, ‘मंगल ग्रह’ जिस पर गौरव की सहायता एवं प्रोत्साहन से कविता ने विजय पाई थी. कभीकभी परिवार के सभी सदस्य मंगल ग्रह की पूजा और नकली विवाह की बातें याद करते हैं तो ताईजी सब से अधिक दिल खोल कर हंसतीं. काफी देर से अकेली बैठी कविता इन्हीं मधुर स्मृतियों में खोई हुई थी. फोन की घंटी ने उसे चौंका कर इन स्मृतियों से बाहर निकाला.

फोन पर बात करने के बाद उस ने अपना कार्यक्रम निश्चित किया और यही तय किया कि अपने सफल विवाह की 10वीं वर्षगांठ का सब से पहला निमंत्रणपत्र वह आज ही पंडितजी को देने स्वयं जाएगी, ऐसा निर्णय लेते ही उस के चेहरे पर एक शरारत भरी मुसकान उभर आई.

 

गर्मी में बनाएं बादाम रोल कट कुल्फी

गर्मियों के मौसम में ठंडी ठंडी चीजें ही खाने का मन करता है. वास्तव में गर्मियों को तो कुल्फी, आइसक्रीम, ड्रिंक्स और शर्बत के लिए ही जाना जाता है. बाजार में मिलने वाली कुल्फी एक तो बहुत महंगी होती है दूसरे उतनी हाइजीनिक भी नहीं होती. घर में बनाने पर यह काफी सस्ती पड़ती है. घर में हम मनचाहे फ्लेवर में जमाकर रख सकते हैं. आज हम आपको एक ऐसी ही आइसक्रीम बनाना बता रहे हैं जिसे आप बहुत आसानी से घर की चीजों से ही बना सकती हैं तो आइए देखते हैं कि इसे कैसे बनाया जाता है-

कितने लोगों के लिए 4

बनने में लगने वाला समय 30 मिनट

मील टाइप वेज

सामग्री

फुल क्रीम दूध 1 लीटर
बादाम 12
शकर 2 टेबलस्पून
इलायची पाउडर 1/4 टीस्पून
पिस्ता कतरन 1 टीस्पून

विधि

बादाम को उबलते पानी में डालकर आधा घण्टे के लिए ढककर रख दें. गैस पर दूध उबलने रखें और इसे 10 से 15 मिनट तक धीमी आंच पर उबलने दें.

आधे घण्टे बाद बादाम का छिल्का उतारकर इन्हें 1 कप दूध के साथ मिक्सी में पीस लें. अब इस तैयार दूध को उबलते दूध में डालकर 5 मिनट तक उबालें.

दूसरे पैन में शकर डालकर धीमीं आंच पर कैरेमलाइज करें. शकर पिघलकर जब हल्के ब्राउन रंग में परिवर्तित हो जाये तो इसे उबलते दूध में मिला दें.

प्रारम्भ में यह जगह इकट्ठी हो जाएगी फिर धीरे धीरे दूध में मिलकर उसे हल्का ब्राउन रंग दे देगी. अब गैस को बंद कर दें और दूध को ठंडा होने दें.

जब दूध पूरी तरह ठंडा हो जाये तो इसे कुल्फी मोल्ड या सीधी शेप वाले ग्लास में भरकर जमाएं, ध्यान रखें कि मोल्ड या ग्लास को 3/4 ही भरना है.

सिल्वर फॉयल से इसे अच्छी तरह कवर कर दें. 7 से 8 घण्टे तक फ्रिज में जमाएं. डिमोल्ड करके कुल्फी के रोल को आधे आधे इंच के स्लाइस में काटकर ऊपर से पिस्ता कतरन डालकर सर्व करें.

स्वयंसिद्धा: जब स्मिता के पैरों तले खिसकी जमीन

family story in hindi

लव गेम: कैसे शीना ने जीता पति का दिल

जिंदगी मौसम की तरह होती है. कभी गरमी की तरह गरम तो कभी सर्दी की तरह सर्द तो कभी बारिश के मौसम की तरह रिमझिमरिमझिम बरसती बूंदों सी सुहानी. जैसे मौसम रंग बदलता है, वैसे ही जिंदगी भी वक्तबेवक्त रंग बदलती रहती है. लेकिन जिंदगी में कभीकभी कुछ सवालों का जवाब देना बड़ा मुश्किल हो जाता है.

यह कहानी भी कुछ ऐसी ही है. बदलते मौसम की तरह रंग बदलती हुई भी और उन रंगों में से चटख रंगों को चुराती हुई भी. आइए देखें, इस कहानी के पलपल बदलते रंगों को, जो खुदबखुद फीके पड़ कर गायब होते जाते हैं.

कंट्री क्लब में एक पार्टी का आयोजन किया गया था, जिस में आयोजकों ने अपने मैंबर्स में से कुछ ऐसे यंग कपल्स के लिए पार्टी रखी थी, जिन की शादी को अभी ज्यादा से ज्यादा 5 साल हुए थे.

इस पार्टी में करीब 50 यंग कपल्स शामिल हुए. सभी बहुत खूबसूरत थे, जो सजधज कर पार्टी में आए थे. उन सभी के छोटेछोटे बच्चे भी थे. लेकिन आर्गनाइजर्स ने बच्चों को पार्टी में लाने की परमिशन नहीं दी थी, इसलिए सब लोग अपने बच्चे घर पर ही छोड़ कर आए थे.

कई यंग कपल्स ऐसे भी थे, जो एकदूसरे को अच्छी तरह जानतेपहचानते थे, इसलिए पार्टी में आते ही वे बड़ी गर्मजोशी के साथ मिले और एकदूसरे से घुलमिल गए. पार्टी के शुरुआती दौर में स्टार्टर, कौकटेल, मौकटेल, वाइन और सौफ्ट ड्रिंक वगैरह का जम कर दौर चला. इस के बाद सब ने खाना खाया. खाना बहुत लजीज था.

खाने के बाद पार्टी में कपल्स के साथ कई तरह के गेम खेले गए. हर गेम के अपने नियम थे. बहुत ही सख्त. गेम का संचालन एक एंकर कर रहा था. जिस हौल में पार्टी चल रही थी, वहीं एक फुट ऊंचा बड़ा सा पोडियम बना था. उसी पोडियम पर गेम खेले जा रहे थे. आखिर में एक गेम और खेला गया.

एंकर ने एक यंग ब्यूटीफुल लेडी को पोडियम पर इनवाइट किया, जिस की शादी को अभी सिर्फ 4 साल हुए थे और उस का 2 साल का एक बेटा भी था. उस लेडी का नाम शीना था.शीना पोडियम पर जा कर वहां रखी एक चेयर पर बैठ गई. पोडियम पर वाइट कलर का बड़ा सा एक बोर्ड लगा था. एंकर ने शीना से कहा, ‘‘आप बोर्ड पर ऐसे 40 नाम लिखिए, जिन से आप सब से ज्यादा प्यार करती हैं.’’

हौल में जितने भी कपल्स थे, वे सभी पोडियम के आसपास एकत्र हो गए और बड़ी बेचैनी से यह सोच कर एंकर तथा उस महिला की तरफ देखने लगे कि आखिर अब कौन सा गेम होने वाला है. गेम के बारे में किसी को कुछ नहीं मालूम था.

यहां तक कि वह महिला भी नहीं जानती थी कि वह किस तरह के गेम का हिस्सा बनने जा रही है. वह तो मस्तीमस्ती में पोडियम पर आ कर बैठ गई थी.

लेकिन एंकर की बात सुनते ही वह अनईजी हो गई.

‘‘च…चालीस ऐसे लोगों के नाम…’’ शीना कंफ्यूज्ड हो कर बोली, ‘‘जिन से मैं सब से ज्यादा प्यार करती हूं?’’

‘‘यस.’’ एंकर के होठों पर उस समय एक शरारती मुसकराहट खिल रही थी, ‘‘क्या आप की जिंदगी में 40 ऐसे इंसान नहीं हैं, जिन से आप बेहद प्यार करती हों?’’

‘‘नहीं…नहीं.’’ शीना जल्दी से हड़बड़ा कर बोली, ‘‘म…मेरे कहने का मतलब यह नहीं है. 40 क्या, मेरी लाइफ में तो ऐसे बहुत से लोग हैं, जिन से मैं बेहद प्यार करती हूं और वे सब भी मुझ से बहुत प्यार करते हैं.’’

‘‘गुड.’’ एंकर उत्साहित हो कर बोला, ‘‘आप को सब के नाम नहीं लिखने हैं, जो आप की लिस्ट में सब से ऊपर हों, सिर्फ वही नाम लिखिए. इस गेम का नाम लव गेम है.’’

‘‘लव गेम.’’ पोडियम के चारों तरफ एकत्र लोगों के चेहरे पर मुसकराहट दौड़ी, ‘‘इंटरेस्टिंग.’’

शीना भी अब चेयर छोड़ कर खड़ी हो गई थी. उस ने बड़े उत्साह से मार्कर पैन उठा लिया और वाइट बोर्ड के पास जा कर उस पर जल्दीजल्दी नाम लिखने लगी. शीना ने सच कहा था. उस की जिंदगी में वाकई ऐसे काफी लोग थे, जिन से वह बहुत प्यार करती थी. यह बात उस के नाम लिखने की स्पीड से पता चल रही थी. उसे इस बारे में ज्यादा सोचना नहीं पड़ा.

कुछ ही मिनट में उस ने 40 नाम लिख दिए. उस लिस्ट में उस के रिलेटिव, फ्रैंड्स, ब्रदर, सिस्टर, मदर, फादर, हसबैंड और उस का 2 साल का बेटा भी था. नाम लिख कर वह विक्ट्री स्माइल बिखेरती हुई एंकर की तरफ मुड़ी.

‘‘क्यों, लिख दिए न मैं ने 40 नाम.’’ वह इस अंदाज में बोली, जैसे उस ने गेम जीत लिया हो.

‘‘यस.’’ एंकर मुसकराया, ‘‘लेकिन गेम अभी खत्म नहीं हुआ मैम. गेम तो अभी शुरू हुआ है.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब अभी आप को इन में से 20 ऐसे नाम कट करने हैं, जिन से आप कम प्यार करती हैं. मान लीजिए, आप इन 40 लोगों के साथ बीच समुद्र में किसी ऐसी बोट में सवार हों, जो डूबने वाली हो. अगर 40 में से 20 लोगों को बीच समुद्र में फेंक दिया जाए तो बोट बच सकती है. ऐसी हालत में वह 20 लोग कौन होंगे, जिन्हें आप बीच समुद्र में फेंक कर बाकी के 20 लोगों की जान बचाएंगी?’’

शीना अब कंफ्यूज्ड नजर आने लगी.

फिर भी वह दोबारा वाइट बोर्ड के पास पहुंची और उस ने ऐसे 20 लोगों के नाम काट दिए, जिन्हें बीच समुद्र में फेंक कर वह बाकी के अपने 20 लोगों की जान बचा सकती थी. अब वाइट बोर्ड पर जो नाम बचे, उन में उस के बहुत करीबी, रिलेटिव, ब्रदर, सिस्टर, मदर, फादर, हसबैंड और उस का 2 साल का बेटा था.

‘गुड.’’ एंकर मुसकराया, ‘‘अब इन में से 10 नाम और काट दीजिए.’’

‘‘म…मतलब?’’ हक्कीबक्की शीना ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘सिंपल है,’’ एंकर बोला, ‘‘अब सिर्फ 10 ऐसे नाम चुनें, जिन्हें आप सब से ज्यादा प्यार करती हों और उन 10 लोगों को बचाने के लिए आप बाकी के 10 को बीच समुद्र में फेंक सकती हैं. याद रहे, आप सब बोट पर सवार हैं और वहां जिंदगी और मौत की फाइट चल रही है.’’

शीना वापस वाइट बोर्ड के पास पहुंची और उस ने 10 और नाम काट दिए. लेकिन वे 10 नाम काटना उस के लिए पहले जितना आसान नहीं था. उस ने बहुत सोचसमझ कर 10 नाम काट दिए. पोडियम के आसपास एकत्र लोग भी अब बड़ी बेचैनी से शीना की तरफ देखने लगे. सब जानना चाहते थे कि शीना अब किस के नाम काटेगी.

वाइट बोर्ड पर जो बाकी 10 नाम बचे थे, उन में उस के कुछ खास रिलेटिव, ब्रदर, सिस्टर, मदर, फादर, हसबैंड और बेटा था.

‘‘हूं.’’ एंकर ने गहरी सांस ली.

शीना 10 नाम काट कर के अभी टर्न भी नहीं हुई थी कि उस से पहले ही एंकर बोल पड़ा, ‘‘अब इन में से 6 नाम और काट दो. सिर्फ 4 रहने दो. बोट इतने लोगों का वजन भी नहीं संभाल पा रही है. अभी तुरंत 6 लोगों को और समुद्र में फेंकना पड़ेगा, वरना बोट डूब जाएगी.’’

शीना ने वाइट बोर्ड पर लिखे नाम देखे. वह अब इमोशनल होने लगी. बहरहाल उस ने 6 नाम और काट दिए. बोर्ड पर अब सिर्फ शीना के मदर, फादर, हसबैंड और उस के 2 साल के बेटे का नाम बचा था. दूसरी ओर उसे अपने ब्रदर, सिस्टर के नाम भी काटने पड़े. पूरे हौल में सन्नाटा पसर गया था. सभी लोग इमोशनल हो गए.

‘‘अब अगर इन में से भी 2 नाम और काटने पड़ें…’’ एंकर बहुत धीमी आवाज में बोला, ‘‘तो वे कौन से नाम होंगे, जो आप काटेंगी. किन 2 लोगों को बचाएंगी आप?’’

अब वाकई शीना की हालत बहुत बुरी हो गई. मस्तीमस्ती में शुरू हुआ गेम अचानक बहुत इमोशनल हो गया था. शीना किसी गहरी सोच में डूब गई.

पोडियम के चारों तरफ जमे कपल्स भी यह जानने के लिए बेचैन हो उठे कि आखिर अब शीना कौन से 2 नाम काटेगी? मदर फादर का या फिर हसबैंड और बेटे का?

हौल में सन्नाटा और गहरा गया. शीना की आंखों में भी आंसू आ गए. पोडियम के नीचे खड़ा शीना का हसबैंड उसी तरफ देख रहा था. उसे खुद भी मालूम नहीं था कि शीना अब कौन से 2 नाम काटने वाली है.

शीना ने कांपते हाथों से अपने मातापिता का नाम बोर्ड से मिटा दिया. देख कर सब सन्न रह गए. किसी को उम्मीद नहीं थी कि शीना अपने मातापिता का नाम बोर्ड से मिटा देगी. मातापिता तो जीवन देने वाले होते हैं, वह उन का नाम कैसे काट सकती थी? अब वाइट बोर्ड पर सिर्फ 2 नाम चमक रहे थे, हसबैंड और उस के बेटे का नाम.

‘‘प्लीज…’’ शीना रो पड़ी, ‘‘अब मुझ से कोई और नाम काटने के लिए मत कहना.’’

‘‘बस अब यह गेम खत्म होने वाला है.’’ एंकर बोला, ‘‘बिलकुल लास्ट है. अगर आप से कहा जाए कि इन दोनों में से भी आप किस से ज्यादा प्यार करती हैं तो आप किसे चुनेंगी? वह एक कौन होगा, जिसे बचाने के लिए आप दूसरे को बीच समुद्र में फेंक देंगी, हसबैंड या बेटा?’’

‘‘मैं खुद समुद्र में कूदना पसंद करूंगी.’’ शीना भावविह्वल हो कर बोली, ‘‘लेकिन इन दोनों में से किसी को भी अपने से अलग नहीं करूंगी.’’

‘‘नहीं…आप नहीं,’’ एंकर बोला, ‘‘आप को इन दोनों में से कोई एक नाम काटना है.’’

अब शीना की हालत बहुत बुरी हो गई थी. हौल में मौजूद हर आंख शीना पर ही टिकी थी. हर कोई यह जानना चाहता था कि अब वह किस का नाम काटेगी? हसबैंड या बेटे में से वह किसे चुनेगी?

शीना ने कांपते हाथों से वाइट बोर्ड पर लिखा अपने बेटे का नाम मिटा दिया. सब सन्न रह गए. हर कोई सोच रहा था कि वह अपने हसबैंड का नाम मिटाएगी, क्योंकि हम दुनिया में सब से ज्यादा अपने बच्चों से ही प्यार करते हैं.

‘‘क्यों?’’ एंकर ने बेचैनी के साथ पूछ ही लिया, ‘‘आप ने अपने हसबैंड को ही क्यों चुना?’’

‘‘जानते हो…’’ शीना पोडियम पर खड़ीखड़ी बहुत इमोशनल हो कर बोली, ‘‘जिस दिन मेरी शादी हुई, उस दिन मम्मीपापा ने मेरे हसबैंड के हाथ में मेरा हाथ देते हुए कहा था, ‘आज से यही आदमी जिंदगी के आखिरी सांस तक तुम्हारा साथ देगा. तुम कभी इस का साथ न छोड़ना. जिस तरह सुखदुख में वह तुम्हारा साथ दे, उसी तरह तुम भी हर सुखदुख में उस का साथ देना.’ मैं ने अपने मम्मीपापा की बात मानी.

‘‘अपने हसबैंड के लिए मैं ने अपने उन्हीं मम्मीपापा तक को त्याग दिया. यहां तक कि जब अपने बेटे और हसबैंड में से भी किसी एक को चुनने का समय आया तो मैं ने अपने हसबैंड को ही चुना. मैं अपने बेटे से बहुत प्यार करती हूं. लेकिन हसबैंड के रहते मुझे बेटा तो दूसरा मिल सकता है, पर हसबैंड दूसरा नहीं मिल सकता. पतिपत्नी का यह रिश्ता अनमोल है, अटूट है. हमें हमेशा इस रिश्ते का सम्मान करना चाहिए.’’

शीना की बातें सुन कर पूरा हौल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. सभी की आंखों में आंसू थे. शीना का हसबैंड भी बेहद इमोशनल हो गया था. एकाएक वह शाम बेहद खास हो गई. लव गेम ने सभी हसबैंड वाइफ के रिलेशन को और मजबूत कर दिया था.

Summer Special: गरमियों में घूमने के लिए बेस्ट औप्शन है लाहुल-स्पीति

चारों तरफ झीलों, दर्रों और हिमखंडों से घिरी, आसमान छूते शैल शिखरों के दामन में बसी लाहुल-स्पीति की घाटियां अपने सौंदर्य और प्रकृति की विविधताओं के लिए विख्यात हैं. जहां एक तरफ इन घाटियों की प्राकृतिक सौंदर्यता निहारते आंखों को सुकून मिलता है वहीं दूसरी तरफ हिंदू और बौद्ध परंपराओं का अनूठा संगम आश्चर्यचकित कर देता है. वैसे तो लाहुल-स्पीति दोनों को मिला कर एक जिला बनता है, लेकिन ये दोनों ही जगह अपनेअपने नाम के आधार पर सौंदर्य की अलगअलग परिभाषाएं गढ़ती हैं.
स्पीति

स्पीति हिमाचल प्रदेश के उत्तरपूर्वी भाग में हिमालय की घाटी में बसा है. स्पीति का मतलब बीच की जगह होता है. इस जगह का यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि यह तिब्बत और भारत के बीच स्थित है. यह जगह अपनी ऊंचाई और प्राकृतिक सुंदरता के लिए लोकप्रिय है. स्पीति क्षेत्र बौद्ध संस्कृति और मठों के लिए भी प्रसिद्ध है.

इतिहास :

हिमालय की गोद में बसी इस जगह के लोगों को स्पीतियन कहते हैं. स्पीतियन लोगों का एक लंबा इतिहास है. इतिहास के पन्नों को पलटें तो पता चलता है कि स्पीति पर वजीरों का शासन था जिन्हें नोनो भी कहा जाता था. वैसे तो समयसमय पर स्पीति पर कई लोगों ने शासन किया लेकिन स्पीतियन लोगों ने किसी की गुलामी ज्यादा दिनों तक नहीं सही. वर्ष 1947 में देश की आजादी के बाद यह पंजाब के कांगड़ा जिले का हिस्सा हुआ करता था. 1960 में यह लाहुल-स्पीति नामक जिले के रूप में एक नए प्रदेश यानी हिमाचल प्रदेश के साथ जुड़ा. बाद में स्पीति को सब डिवीजन बनाया गया और काजा को मुख्यालय.

आबादी :

स्पीति और उस के आसपास के क्षेत्रों को भारत में सब से कम आबादी वाले क्षेत्रों में गिना जाता है. इस क्षेत्र के 2 सब से महत्त्वपूर्ण शहर काजा और केलोंग हैं. कुछ वनस्पतियों और जीव की दुर्लभ प्रजातियां भी स्पीति के महत्त्व को बढ़ाती हैं. यहां के लोग गेहूं, जौ, मटर आदि फसलें उगाते हैं.

यातायात :

स्पीति जाने के लिए सब से निकटतम हवाई अड्डा भुंतर है, जो नई दिल्ली और शिमला जैसे प्रमुख शहरों से जुड़ा है. अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक भुंतर एअर बेस के लिए दिल्ली से जोड़ने वाली उड़ानों का लाभ ले सकते हैं. स्पीति से निकटतम रेलवे स्टेशन जोगिंद्रनगर है, जो छोटी लाइन का रेलवे स्टेशन है. इस के अलावा स्पीति से चंडीगढ़ और शिमला नजदीकी प्रमुख रेलवे स्टेशन हैं, जो भारत के प्रमुख शहरों से जुड़े हैं.

यात्री रेलवे स्टेशन से स्पीति के लिए टैक्सियों और कैब की सुविधा आसानी से ले सकते हैं. सड़क से स्पीति राष्ट्रीय राजमार्ग 21 के माध्यम से पहुंचा जा सकता है. स्पीति तक रोहतांग दर्रा और कुंजम पास दोनों से पहुंचा जा सकता है.

मौसम :

नवंबर से जून तक भारी बर्फबारी के कारण स्पीति जाने वाले सभी मार्ग बंद हो जाते हैं. इसलिए वहां सर्दियों को छोड़ कर साल भर कभी भी आया जा सकता है. गरमी के मौसम में मई से अक्तूबर तक का महीना स्पीति आने के लिए अनुकूल है क्योंकि यहां का तापमान

15 डिगरी सैल्सियस से ऊपर नहीं जाता है. स्पीति बारिश के छाया क्षेत्र में स्थित है, इसलिए यहां ज्यादा बारिश नहीं होती है. सर्दियों के दौरान यह जगह बर्फबारी से ढक जाती है औैर तापमान शून्य डिगरी से नीचे चला जाता है.

दर्शनीय स्थल

स्पीति एक ऐसी घाटी है जहां सदियों से बौद्ध परंपराओं का पालन हो रहा है. यह घाटी अपने कई मठों के लिए देश और विदेश में विशेष स्थान रखती है. यहां कई मठ ऐसे हैं जिन की स्थापना सदियों पहले की गई थी. इन में तबो और धनकर मठ प्रमुख हैं.

तबो :  

तबो मठ को स्पीति घाटी में 996 में खोजा गया. यह स्थान बहुत ही सुंदर है. यह पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है. बताया जाता है कि यह मठ हिमालय पर्वतमाला के सब से पुराने मठों में से एक है. यहां की सुंदर पेंटिंग्स, मूर्तिंयां और प्राचीन ग्रंथों के अलावा दीवारों पर लिखे गए शिलालेख यात्रियों को बहुत आकर्षित करते हैं.

धनकर :

यह मठ धनकर गांव में है जोकि हिमाचल के स्पीति क्षेत्र में समुद्र तल से 3,890 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. यह जगह तबो और काजा 2 प्रसिद्ध जगहों के बीच में है. स्पीति और पिन नदी के संगम पर स्थित धनकर, दुनिया की ऐतिहासिक विरासतों में भी स्थान रखता है.

काजा :

काजा स्पीति घाटी का उप संभागीय मुख्यालय है. यह स्पीति नदी के बाएं किनारे पर खड़ी चोटी की तलहटी पर स्थित है. काजा में रैस्ट हाउस और रहने के लिए कई छोटेछोटे होटल बने हुए हैं. यहां से हिक्किम, कोमोक और लांगिया मठों पर घूमने जाया जा सकता है.

अन्य दर्शनीय स्थल

स्पीति आने वाले लोगों के लिए घूमने के स्थान की कमी नहीं है. यहां किब्बर, गेट्टे, पिन वैली, लिंगटी वैली, कुंजम पास और चंद्रताल कुछ ऐसी जगहें हैं जहां जाए बिना स्पीति की यात्रा पूरी नहीं होती.

लाहुल

कुछ लोग इसे हिमालयन स्कौटलैंड कहते हैं. वैसे लाहुल को लैंड विद मैनी पासेस भी कहा जाता है क्योंकि लाहुल से दुनिया का सब से ऊंचा हाईवे गुजरता है जो इसे मनाली, लेह, रोहतांग ला, बारालाचा ला, लचलांग ला और तंगलांग ला से जोड़ता है.

नदियां :

हिमालय की पर्वत शृंखलाओं से घिरे लाहुल में जो शिखर दिखाईर् देते हैं उन्हें गयफांग कहा जाता है. साथ ही, यहां चंद्रा और भागा नाम की 2 नदियां बहती हैं. इन्हें यहां का जलस्रोत माना जाता है. चंद्रा नदी को यहां के लोग रंगोली कहते हैं. इस के तट पर खोक्सर, सिसु, गोंढला और गोशाल 4 गांव बसे हुए हैं जबकि भागा नदी केलौंग और बारालाचा से बहती हुई चंद्रा में मिल जाती है. जब ये दोनों नदियां तांडी नाम की नदी में मिलती हैं तो इसे चंद्रभागा कहा जाता है.

भाषा और रोजगार :

लाहुल की जमीन बंजर है, इसलिए यहां घास और झाडि़यों के अलावा ज्यादा कुछ नहीं उगता. स्थानीय लोग खेती के नाम पर आलू की पैदावार करते हैं. पशुपालन औैर बुनाई ही यहां के लोगों का प्रमुख रोजगार है. यहां के घर लकड़ी, पत्थर और सीमेंट के बने होते हैं. लाहुल के निवासियों की भाषा का वैसे तो कोई नाम नहीं है लेकिन इन की  भाषा लद्दाख और तिब्बत से प्रभावित है.

यातायात :

लाहुल पहुंचने के लिए भी स्पीति की तरह भुंतर हवाई अड्डा एकमात्र साधन है. वैसे टैक्सियों औैर कैब के जरिए भी लाहुल पहुंचा जा सकता है. लाहुल का कोई अपना रेलवे स्टेशन नहीं है, इसलिए यात्रियों को पास में स्थित जोगिंदर नगर रेलवे स्टेशन उतरना पड़ता है. फिर वहां से टैक्सी और कैब से सड़क मार्र्ग द्वारा लाहुल जाया जाता है.

प्रमुख स्थल

लाहुल के आसपास घूमने के लिए केलौंग, गुरुकंटाल मठ, करडांग, शाशुर, तैयुल, गेमुर, सिसु और गोंढाल जैसे प्रमुख स्थल हैं जो किसी न किसी विशेषता की चादर ओढ़े हुए हैं.

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