विष अमृत: भाग-3 एक घटना ने अमिता की पूरी जिंदगी ही बदल कर रख दी

उसने बिना भूमिका बांधे अपने मन की बात उस से कह दी और उस से साफसाफ हां या न में जवाब मांगा. नमिता जिस बात से इतने बरसों से बचती आ रही थी वह सामने आ ही गई. वह कुछ क्षणों तक हतप्रभ सी आकाश को देखती रह गई. उस की आंखों में नमी तैरने लगी.

‘‘देखो अगर तुम्हारे जीवन में कोई और है तो कह दो. अगर तुम मु   झे पसंद नहीं करती तो भी बता दो लेकिन आज मैं तुम्हारे दिल की बात जानना चाहता हूं. जो भी हो साफ कह दो,’’ आकाश ने नम्रता से कहा.

‘‘म… मैं क्या कहूं. सच तो यह है कि मैं किसी से भी शादी नहीं कर सकती,’’ नमिता के माथे पर पसीना आ गया और आंखों में आंसू. ‘‘जो भी बात हो मन में वह कह डालो नमिता और कुछ नहीं तो हम दोस्त तो हैं, दोस्ती के नाते ही अपना हाल सुना दो,’’ आकाश में दोस्ताना स्वर में कहा.

नमिता कुछ देर असमंजस की स्थिति में बैठी रही मानो अपने भीतर साहस जुटा रही हो, फिर जैसे खुद को संयत कर के इस तरह कहने लगी जैसे वह भी इस स्थिति को साफ कर लेना चाहती हो.

‘‘मैं तुम्हारी भावनाओं को बरसों से सम   झ रही हूं आकाश. मु   झे पता है तुम सालों से मु   झे मन ही मन चाहते हो इसलिए मैं तटस्थ रह कर तुम से एक दूरी बना कर रखती रही,’’ नमिता बोली.

‘‘उस दूरी का ही कारण जानना चाहता हूं मैं आज,’’ आकाश ने कहा.

‘‘बचपन में हम सभी एक खेल खेलते हैं विष अमृत. उस में एक बच्चा दाम देता है और बाकी बच्चे उस से दूर भागते हैं क्योंकि दाम देने वाला जिस पर भी हाथ रख कर विष कह देता वह बच्चा खेल से अलग हो कर एक ओर स्थिर हो कर बैठ जाता है. फिर वह खेल का हिस्सा नहीं रह जाता. विष उसे मार देता है,’’ नमिता आंसू पोंछते हुए एक गहरी सांस लेते हुए कुछ पलों के लिए चुप हो गई.

आकाश दम साधे सुन रहा था. उस ने आंसुओं के साथ नमिता के मन का गुबार निकल जाने दिया.

कुछ देर बाद नमिता ने दोबारा बोलना शुरू किया, ‘‘बस ऐसे ही एक दिन खेलते हुए किसी ने मु   झे ऐसा विष दिया कि मैं सुन्न हो गई, जीते जी मर गई. अब मैं जीवन के स्वाभाविक खेल का हिस्सा नहीं रह गई. विष कह कर किसी ने मु   झे एक तरफ, सब से कट कर बैठा दिया है. आज तक…’’ आगे नमिता के बोल आंसुओं में बह गए.

‘‘कौन था वह?’’ आकाश ने गंभीर स्वर में पूछा.

‘‘पता नहीं, पड़ोस में कोई रहता था उन आंटी का भाई था. मैं उन की बेटी के साथ खेलती थी. एक दिन मैं शाम को अपनी सहेली के साथ खेलने उस के घर गई लेकिन वह और आंटी दोनों ही घर पर नहीं थे. मगर उस का मामा घर पर था. मैं बहुत छोटी थी कुछ सम   झती नहीं थी लेकिन इतना जानती थी कि मेरे साथ जो हो रहा है वह गलत है. डर के मारे मैं चिल्ला भी नहीं पाई. मगर विष भरा वह हादसा मैं आज तक भूल नहीं पाई. उसी रात को वह भाग गया. मु   झे डर के दौरे पड़ने लगे. मेरा परिवार उस शहर से दूर यहां चला आया ताकि मैं वह सब भूल जाऊं लेकिन आज तक वह विष मेरे तनमन में बसा हुआ है. मु   झे भूल जाओ आकाश और किसी अच्छी लड़की से…’’  कहते हुए नमिता की हिचकी बंध गई.

आकाश स्पष्ट देख रहा था उस हादसे के विष का कितना बुरा असर है उस के मन पर आज तक. उस ने नमिता को रोने दिया. जब वह स्थिर हो गई तब आकाश गंभीर स्वर में बोला, ‘‘तुम ने खेल का आधा हिस्सा ही बताया नमिता. उस खेल में जब कोई साथी हाथ बढ़ा कर विष वाले साथी को छू कर उसे अमृत कह देता तो वह फिर से खेल में शामिल हो जाता, जी जाता. जिंदगी में हादसे सब के ही साथ होते हैं. किसी के हाथपैर टूटते हैं, किसी को सिर में चोट लगती है. लेकिन कोई उम्रभर उन्हें याद कर के रोता नहीं रहता. जीना नहीं छोड़ देता. यह भी ऐसा ही एक हादसा भर है जिसे याद रखने की कोई जरूरत नहीं है.’’

नमिता दूर तालाब की ओर देख रही थी. वह सम   झ नहीं पा रही थी कि उस ने यह सब कह कर कहीं गलत तो नहीं किया. अभी भी उस की आंखों से आंसू बह रहे थे.

‘‘मैं तुम्हें छू कर अमृत कहना चाहता हूं नमिता. प्लीज, भूल जाओ सब पिछला जिस में तुम्हारा कोई दोष था ही नहीं. उबर जाओ इस विष से और मेरी जिंदगी को अमृत कर दो जो तुम्हारे बिना विष जैसी है. प्लीज निमी,’’ आकाश ने अपनी हथेली नमिता के सामने टेबल पर रख दी.

नमिता कभी आकाश को देखती जिस की आंखों में सच्चा प्यार और आग्रह    झलक रहा था और कभी उस की हथेली को देखती. अब भी उस की आंखों से आंसू बह रहे थे. आखिर धड़कते दिल के साथ उस ने आकाश का हाथ थाम लिया और टेबल पर उस के हाथ पर सिर रख कर सिसक पड़ी.

आकाश उस के बाल सहलाने लगा. आसमान पर डूबता सूरज सिंदूरी आभा बिखेर रहा था. उस सिंदूरी आभा में लहराता तालाब जैसे कोई प्रेम गीत गा रहा था. जब नमिता ने सिर उठाया तो आंखों में नमी के साथ ही उस के चेहरे पर मुसकान थी और डूबते सूरज की लालिमा की सिंदूरी आभा में उस का चेहरा दमक रहा था.

‘‘कल तुम्हारे घर आऊंगा तुम्हारे मातापिता से तुम्हारा हाथ मांगने,’’ आकाश बहुत प्यार से बोला.

‘‘अरे वाह यह क्या बात हुई भला. बड़े बेशर्म हो अपनी शादी की बात करने खुद

जाओगे. नहीं कल हम जाएंगे नमिता के घर तुम्हारे लिए उस का हाथ मांगने,’’ पीछे से आ कर अचानक पंकज और कनू ने आकाश के कंधे पर हाथ रख कर कहा.

‘‘बहुतबहुत बधाई हो सच में आज हम बहुत खुश हैं,’’ कनू ने नमिता को गले लगा कर कहा तो उस के कपोल लाल हो गए.

‘‘चलो इसी बात पर चारों की एक मुसकराती सैल्फी हो जाए. फिर उसे मीनाक्षी मैडम को भेज देते हैं. वहां वह खबर जानने के लिए बेताब हो रही होगी. आकाश और नमिता तुम दोनों बीच में आ जाओ,’’ कहते हुए पंकज ने चारों की सैल्फी ले कर मीनाक्षी को भेज दी जिस में नमिता के कंधे पर रखा आकाश का हाथ उस के प्यार की हां का प्रमाण था. नमिता के चेहरे पर एक खिली मुसकान थी. बरसों पहले उस की जीवनलता किसी विष के प्रभाव से मुरझा गई थी वह आज आका के प्याररूपी अमृत में भीग कर फिर से लहलहा उठी थी.

राजयोग: भाग-3 अरुणा रोली के मन को समझ नहीं पा रही थी

‘‘तुम ने जो टाइम दिया है शाम 6 बजे उसी समय आऊंगा.’ रोली ने मोबाइल स्पीकर पर रखा था. अरुणा को डाक्टर अमन की आवाज जानीपहचानी लगी. तब तक होली मोबाइल पर बात कर चुकी थी और अरुणा को देख रही थी ‘‘क्या सोच रही हो मां?’’ रोली बोली ‘‘कुछ नहीं,’’ अरुणा ने कहा.‘‘बता भी दो,’’ रोली बोली‘‘तु   झे जो डाक्टरेट करवा रहे हैं उन का पूरा नाम क्या है?’’ अरुणा ने पूछा ‘‘क्यों क्या हुआ?’’ रोली बोली.

‘‘मेरे कालेज में भी एक लड़का था अमन. मेरी ही क्लास में था,’’ अरुणा ने बताया. फिर दिल की धड़कन बढ़ गई कि कहीं यह वही अमन तो नहीं जो पढ़ने में कमजोर था उस के पीछे पागल था. वह डाक्टरेट कर के कालेज में प्रोफैसर बन गया हो. नहींनहीं यह वह नहीं हो सकता. यह दूसरा होगा. कितना पीछे पड़ा था शादी के लिए. दोनों ही एकदूसरे को पसंद भी करते थे और शादी भी करना चाहते थे. लेकिन  बाऊजी नहीं माने थे. कोई नौकरीधंधा नहीं है. घर में पैसा है तो क्या हुआ. अमन के मातापिता ने बाउजी को सम   झाया था. पर बाउजी नहीं माने थे. लड़का कुछ करता हो तो शादी भी कर देते. जातपात में भले विश्वास नहीं हो.

अमन के मातापिता ने भी सम   झाया था कि अरुणा को सुखी रखेंगे. लेकिन कुछ नहीं हुआ. अरुणा भी मातापिता से विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई ‘‘मां क्या सोचने लगी हो?’’ रोली बोली.

‘‘कुछ नहीं, कुछ नहीं,’’ कह कर अरुणा लंच की तैयारी में लग गई. ‘शाम को डिनर के लिए रोली बाहर जाएगी इसलिए लंच हलकाफुलका ही बना लेती,’ यही सोच कर उस ने धुली मूंग की दालचावल धो कर रख दिए. मटर, गाजर, गोभी, आलू, भूनने के लिए रख दिए. पुलाव और रायता चल जाएगा. रोली अपना रूम समेटने में लगी थी. शाम सुरमई होने लगी थी. केक मानस लाने वाला था. रोली ने मना भी किया था

लेकिन वह नहीं माना था. रोली सुंदर लग रही थी. अरुणा सोच में डूबी थी. क्या पहने? किस रंग की साड़ी पहने? फिर उसे याद आया कालेज में अमन ब्लू कलर पसंद करता था. आज ब्लू रंग की साड़ी पहन लेती.

दिल ने कहा क्यों ब्लू रंग क्यों? क्या मन के किसी कोने में अमन की कोमल याद जिंदा है? क्या तू अभी उस से प्यार करती हो? नहींनहीं मैं प्यार नहीं करती. अरुणा ने मन को सम   झाया. क्या पता, वही अमन है या नहीं? चलो मान लिया वही अमन है, दिल ने सवाल किया तो उस से प्यार कर पाओगी?

तुम्हारी बेटी 24 साल की है. सही बात है अमन से मैं प्यार नहीं कर पाऊंगी. लेकिन ब्लू साड़ी पहनूंगी. अरुणा का दिल नहीं माना उस ने ब्लू साड़ी पहनी. वालों को हलके जुड़े की शक्ल में बांध लिया. गले में सच्चे मोतियों की माला, हाथ में गोल्ड का ब्रेसलेट ‘‘कितनी सुंदर लग रही हो मां. साड़ी का कलर भी कितना प्यारा है,’’ रोली बोली.

अरुणा तारीफ सुन कर शरमा गई. आज उसे अपने दिल की धड़कन सुनाई दे रही थी. हवा में एक मस्ती महसूस हो रही थी. मन कालेज के ग्राउंड में दूर तक चलने का हो रहा था. लाइब्रेरी में किताबों के पीछे मुसकराते अमन का चेहरा परेशान कर रहा था. कालेज की कैंटीन की कौफी की खुशबू भाप उसे महसूस होने लगी थी. तभी डोरबैल बजी तो रोली दौड़ कर दरवाजे पर गई. अरुणा घबरा गई. तुरंत किचन में चली गई. ‘‘हैप्पी बर्थडे रोली,’’ फूलों के बड़े से बुके के पीछे मानस की आवाज आई. ‘अरे मानस आओआओ,’’ कह कर जोर से हंसी. ‘‘अरे बाबा आया हूं तो अंदर तो आऊंगा ही,’’ मानस बोला.

तभी किचन से बाहर आती अरुणा के पैर छू लिए मानस ने, ‘‘नमस्ते आंटीजी, यह तुम्हारा केक,’’ कहते हुए मानस ने एक बड़ा बौक्स टेबल पर रख दिया और आराम से सोफे पर बैठ गया. ‘‘बेटा चाय पीयोगे या कौफी?’’ अरुणा ने पानी का गिलास बढ़ाया. ‘‘कुछ नहीं आंटीजी. जब कटेगा तो केक लूंगा.’’ अरुणा हंस दी.‘‘आंटी हंसती हुई आप बहुत अच्छी लगती है. उदासी चेहरे पर अच्छी नहीं लगती,’’ मानस बोला.अरुणा ने जवाब नहीं दिया और किचन में चली गई. थोड़ी देर हुई होगी डोरबैल फिर बजी. किचन से बाहर आतेआते अरुणा वहीं रुक गई. अमन होगा उस के चेहरे पर पसीने की बूंदें चमकने लगीं.मां, सर आ गए. जल्दी आओ.’’ अरुणा के पैर मानो जमीन से चिपक गए. वही अमन हुआ तो?

‘‘मांमां,’’ कहते हुए रोली किचन में घुसी. मां का चेहरा देखे बिना हाथ पकड़ कर बाहर ड्राइंगरूम में ले आई. अरुणा की नजर जैसे जमीन में गड़ जाना चाह रही हो. बड़ी मुश्किल से उस ने नजर उठाई तो देखा सामने वही अमन था जो कालेज में साथ था. ‘‘अरुणा तुम? तुम पर ब्लू रंग आज भी उतना ही खिलता है जितना कालेज में खिलता था,’’ डा. अमन ने जैसे ही ये शब्द कहे रोली आश्चर्य में भर गई, ‘‘सर आप मां को जानते हैं?’’ ‘‘तुम्हारी मां और हम साथ कालेज पढ़ते थे.’’ ‘‘अरे वाह तालियां,’’ मानस जो चुप था. अचानक खुश हो उठा. अरुणा के चेहरे पर लालिमा छा गई थी. अमन मुसकरा रहे थे.

‘‘चलोचलो केक काटो, मु   झे बहुत भूख लगी है,’’ मानस बोला. ‘‘बातें बाद में पहले केक,’’ रोली बोली. ‘‘हैप्पी बर्थडे टू यू,’’ डाक्टर अमन बोले. रोली ने केक काटा और पहला टुकड़ा अरुणा को खिलाया, ‘‘मेरी प्यारी और अच्छी मां.’’ उस के बाद मानस और अमन को. ‘‘डिनर की क्या तैयारी है?’’ मानस ने रोली से पूछा. ‘‘डिनर मेरी तरफ से रहेगा,’’ डाक्टर अमन ने घोषणा की. ‘‘लेकिन घर में जो तैयारी,’’ अरुणा बोली. ‘‘उसे फ्रिज में रख दो,’’ डाक्टर अमन बोले. ‘‘हां, मां चलो न,’’ रोली बोली. डाक्टर अमन शहर के प्रसिद्ध होटल प्रिंस प्लाजा में ले गए.

रोली बहुत खुश थी रहरह कर सैल्फी ले रही थी. कभी सब के साथ कभी अकेले. अमन और मानस किसी विषय पर चर्चा में बिजी थे. साथ ही अरुणा से भी बात करते जा रहे थे. अरुणा चाह कर भी उस चर्चा में शामिल नहीं हो पा रही थी. ‘‘मां, डिनर के लिए और्डर करो.’’ ‘‘आज सब डिश रोली की पसंद की रहेंगी.’’‘‘नहीं सब की पसंद की डिश रहेंगी,’’ रोली ने कहा. फिर सब की पसंद से डिनर का और्डर दिया गया. वैजिटेबल बिरयानी, मुगलई मक्खनी पनीर, पंचमेल दाल, वेज कोफ्ता, बंगाली खिचड़ी, लच्छा परांठा, मिक्स बीन सलाद. अरुणा ने बहुत कुछ अपनेआप को संभाल लिया था. वह नौर्मल महसूस कर रही थी.

‘‘एक बात बताओ मां, डाक्टर साहब इतने अच्छे हैं क्या कभी आप दोनों ने शादी की बात नहीं सोची?’’ रोली ने मासूम सा सवाल किया.

अरुणा चुप रही. डाक्टर अमन भी चुप. फिर पता नहीं क्या सोच कर डाक्टर अमन ने पूरी सहीसही बात रोली के सामने रख दी. अंत में कहा, ‘‘मैं उसे समय बेरोजगार नहीं होता तो शादी हो चुकी होती. बाऊजी की जिद और मेरे बेरोजगार होने से हम ने अपने रास्ते अलग कर लिए,’’ अमन बोले. ‘‘ तो क्या हुआ रास्ते तो अभी भी साथ हो सकते हैं?’’ अब की बार मानस बोला. ‘‘नहींनहीं मैं मां को कहीं नहीं जाने दूंगी,’’ रोली ने अरुणा को कस कर पकड़ लिया. रोली हो सकता है तुम्हारी जिम्मेदारी और प्यार की जंजीरों ने अरुणा को बांध कर रखा हो,’’ मानस ने कहा, ‘‘इसलिए आंटी खुद के बारे में नहीं सोच पाती हों. इतनी भी बड़ी नहीं हुई है मां कि हंसनामुसकराना छोड़ दे.\ ‘‘मानस शायद तुम सही कह रहे हो,’’ डाक्टर अमन बोले, ‘‘जंजीरों को थोड़ा ढीला भी किया जा सकता है.’’ ‘‘मतलब?’’ अरुणा बोली, ‘‘शादी? पागल हुए हो तुम लोग.’’\ ‘‘नहीं अरुणा शादी की बात कहां हुई,’’ डाक्टर अमन बोले.

‘‘आप की पत्नी, बच्चे?’’ अरुणा बोली. ‘‘मैं ने शादी की ही नहीं न ही अब करूंगा,’’ डाक्टर अमन बोले.‘‘क्या?’’ अरुणा के चेहरे पर आश्चर्य था. ‘‘आश्चर्य की कोई बात नहीं है. जीवन में शादी के अलावा

दूसरे भी लक्ष्य हो सकते हैं,’’ अमन बोले, ‘‘क्या हम अच्छे दोस्त नहीं बन सकते?’’ कह डाक्टर अमन ने अरुणा को देखा. अरुणा के चेहरे पर खुशी शर्म की मिलीजुली छाया देख फिर रोली से बोली, ‘‘बेटा तुम्हारी जिम्मेदारी ने भी अरुणा को शायद जंजीरों से बांधा हुआ हो इसलिए हंसनाबोलना भूल गई हो. सब को थोड़ी स्पेस की जरूरत है.’’ रोली बोली, ‘‘मैं तो बहुत प्यार करती हूं मां से.’’

‘‘वह सही है लेकिन इस उम्र में सैक्स से ज्यादा एक साथी की जरूरत होती है जो बातें कर सके. दुनियाभर की, सुखदुख की… मु   झे विश्वास है शायद मैं खरा उतर सकूं.’’‘‘यह हुई न बात,’’ मानस मुसकराया फिर रोली को देख कर बोला, ‘‘अभी भी देर करोगी शादी में?’’

रोली शरमा कर अरुणा के गले लग गई. अरुणा के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई. रोली का जन्मदिन उस के जीवन में नया सवेरा ले कर आया.

पति के साथ वैकेशन मनाने पहाड़ों में पहुंची सुरभि चंदना, फैंस के साथ शेयर कीं फोटोज

सुरभि चंदना इन दिनों अपने पति करण शर्मा के संग उत्तराखंड में पिकनिक मना रही हैं. उन्होंने सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म इंस्टाग्राम पर इस ट्रिप की फोटोज शेयर की हैं.

नीला सलवार कमीज़, हाथों में मेंहदी, गले में मंगलसूत्र और माथे पर बिंदी. इस नए रूप में नई नवेली दुल्हन सुरभि बहुत प्यारी लग रही हैं. उन्होंने वहां के कुमाउनी खाने का लुत्फ उठाते हुए फोटो शेयर की है और लिखा है कि उत्तराखंड की वादियां बहुत ही खूबसूरत हैं. उन्होंने जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क भी देखा.

उन्होंने यह भी कहा कि वो इस ट्रिप के दौरान सुपर एक्साइटिड है क्योंकि उनके पति को जंगल सफारी बहुत पसंद है जबकि सुरभि ने पहले कभी सफारी नहीं देखी थी.

 

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सुरभि ने पोस्ट किया है यहां का मौसम भी बहुत सुहाना रहा और उन्हें यहां पर रहना बहुत पसंद आया और वे फिर से यहां पर आना चाहती हैं. सुरभि ने ये भी बताया कि सुरभि के पति करण ने उनके लिए गरम कॉफी भी बनाई इस पल को सुरभि ने खुले मन से जिया. उन्होंने बताया कि यह सफर बहुत सुहाना था. अपनी ट्रिप पर एंडेंजर्ड प्रजाति के पक्षियों को देखा और सफारी राइड भी की

 

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गौरतलब है कि सुरभि चंदना स्टार प्लस के सीरियल इश्कबाज़ और कलर्स पर आने वाले शो नागिन-5 में काम कर चुकी हैं और उन्हें सीरियल इशकबाज़ के लिए बेस्ट एक्टर इन अ पॉपुलर रोल के लिए आ.ई.टीए (इंडियन टेलिविज़न अकैडमी) अवार्ड से नवाज़ा जा चुका है। 2020 में भी इसी शो के लिए उन्हें दोबारा से आ.ई.टीए अवॉर्ड जीता था.

अब सुरभि के फैंस को और ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ेगा क्योंकि अब वो वेबसीरीज रक्षक-इंडियास ब्रेव्स-2 में नज़र आएंगी.

मरजी की मालकिन: भाग-2 घर की चारदीवारी से निकलकर अपने सपनों को पंख देना चाहती थी रश्मि

वहीं रश्मि भी एक मध्यवर्गीय परिवार से थी और बनारस में ही उस के पिता बैंक में कार्यरत थे. उस के परिवार में एक प्राइमरी स्कूल में शिक्षिका मां के अलावा एक बहन और थी जो अभी कालेज के प्रथम वर्ष में थी. बीए कंप्लीट होते ही दोनों ने अर्थशास्त्र विषय में स्नातकोत्तर में प्रवेश लिया तो एक ही कालेज में होने के कारण दोनों का प्यार भी परवान चढ़ने लगा. अकसर दोनों कालेज के किसी पेड़ की छांव तले सारी दुनिया से बेखबर एकदूसरे की बांहों में बांहें डाले नजर आते. रश्मि अनुराग की फेमनिज्म विचारधारा पर मोहित थी तो अनुराग उस की सरलता, स्पष्टवादिता और बुधिमत्ता का कायल था धीरेधीरे दोनों ही एकदूसरे के पूरक बन गए थे.

एक बार 2 दिन तक जब रश्मि कालेज नहीं आ पाई तो दिन में न जाने कितनी बार अनुराग के उस के पास कौल और व्हाट्सऐप पर मैसेज आ गए. तीसरे दिन जब लंच में दोनों कैंटीन में चाय पी रहे थे तो अचानक अनुराग ने उस का हाथ पकड़ लिया और उस की आंखों में आंखें डाल कर बोला, ‘‘रेणु जिस दिन तुम कालेज नहीं आती हो तो लगता है पूरा कालेज ही सूना है…’’

‘‘अच्छाजी इतने बड़े कालेज में क्या मैं अकेली ही पढ़ती हूं… बातें बनाना तो कोई तुम से सीखे,’’ रश्मि ने अपनेआप पर इठलाते हए कहा. समय पंख लगा कर उड़ रहा था. स्नातकोत्तर करते ही दोनों ने एकसाथ बैंक की परीक्षा दी और आश्चर्यजनक रूप से प्रथम प्रयास में ही रश्मि का 2 बैंकों में चयन हो गया पर अनुराग अभी भी तैयारी कर रहा था. यों तो अनुराग उसे बहुत प्यार करता था उस के साथ जीनेमरने और जिंदगीभर साथ निभाने का वादा भी करता, पैरों पर खड़े हो जाने के बाद अंतर्जातीय होते हुए भी दोनों ने अपनेअपने घर में शादी की बात करने का भी प्रौमिस किया पर अपनी सफलता पर अनुराग उसे खुश से अधिक कुंठित सा लगा. शायद अपनी विफलता के कारण वह रश्मि की सफलता को पचा नहीं पा रहा था पर रश्मि ने इसे सिर्फ अपने मन का बहम और असफलता की स्वाभाविक प्रातिक्रिया सम  झा और उसे एक बार फिर से पूरी मेहनत से प्रयास करने के लिए प्रोत्साहित किया.

अनुराग के प्रयास रंग लाए और अगली बार उसे भी सफलता प्राप्त हो गई. दोनों की पोस्टिंग भी मुंबई में ही हो गई जिस से दोनों ही अपने भविष्य को लेकर बहुत उत्साहित थे.चूंकि अब दोनों आत्मनिर्भर हो गए थे तो दोनों के परिवार वाले विवाह करने पर भी जोर दे रहे थे. अनुराग के परिवार वाले उदार विचारधारा के थे सो वे सहज रूप से एक कायस्थ परिवार में ब्राह्मण बहू लाने को तैयार हो गए. उन का सोचना था कि कमाऊ बहू आ रही है तो अभी तक आर्थिक विपन्नता का दंश   झेलते आए परिवार के सदस्यों को कुछ राहत तो मिलेगी दूसरे बेटी की शादी में भी रुपएपैसे की कोई कमी नहीं रहेगी परंतु कट्टर ब्राह्मणवादी विचारधारा के रश्मि के पिता इस के लिए कतई तैयार नहीं थे.

हां, मां वीना अवश्य उदारवादी और यथार्थ विचारधारा की थीं. उन का मानना था कि यदि समाज से दहेज जैसी कुप्रथा को समाप्त करना है तो अंतर्जातीय विवाह ही एकमात्र विकल्प है. अत: एक दिन उचित अवसर तलाश कर उन्होंने पति से कहा, ‘‘देखोजी अपने समाज में तो कमाऊ लड़कों के रेट बहुत ज्यादा हैं. पहले तो अपनी आत्मनिर्भर बेटी के लिए हम इतना रेट क्यों दें. आखिर हम ने भी तो अपनी बेटी को आत्मनिर्भर बनाने में उतना ही पैसा और मेहनत लगाई है जितनी उन्होंने अपने लड़के के लिए, दूसरे ऐसे बिकाऊ लड़के के साथ हमारी बेटी आजीवन खुश भी रहेगी इस बात की भी क्या गारंटी है…’’

‘‘तो गैर जाति और अपने से निम्न कुल में बेटी को ब्याह कर अपना ही धर्म भ्रष्ट कर लें हम यही कहना चाहती हो न तुम,’’ पिताजी ने कुछ आक्रोश से कहा. ‘‘जी कहां का धर्म और जाति, आप भूल गए अपनी उस इकलौती बहन को जिस का आप ने देखभाल कर अपनी ही जाति, कुल और गोत्र में न केवल विवाह किया था वरना अपनी सामर्थ्य से बढ़ कर दानदहेज भी दिया था परंतु फिर भी उस की ससुराल वालों की मांगें कभी कम ही नहीं हुईं. यही नहीं ससुराल वालों ने उन्हें अपने तानों और अनुचित व्यवहार से इस कदर आजीवन आहत किया था कि वे ताउम्र घुटती रहीं और एक दिन ऐसे ही कलह में आए हार्टअटैक ने उन की जान ही ले ली. फिर भी आप अपनी बेटी का विवाह अपनी जाति, कुल में ही करने पर अड़े हैं? मु  झे तो रश्मि की पसंद में कोई बुराई नजर नहीं आती… योग्यता और गुणों के समक्ष जाति कोई माने नहीं रखती,’’ मां ने अपना पक्ष रखते हुए कहा.

‘‘इस बात की क्या गारंटी है कि अनुराग के साथ उस का जीवन सुखमय ही होगा.’’

‘‘देखो शादी कभी जाति और धर्म से सफल नहीं होती, उस की सफलता तो पतिपत्नी के परस्पर त्याग, समर्पण, सहयोग और सम  झदारी पर निर्भर करती है. कम से कम हमारी बेटी की पसंद का तो है अनुराग, फिर कोई दानदहेज का लफड़ा नहीं. अब दांपत्य जीवन को सुखमय बनाना तो उन दोनों पर निर्भर है,’’ मां ने पिताजी को अपने तर्कों से लगभग निरुत्तर सा कर दिया.

2 वर्ष लंबी जद्दोजहद के बाद मां के तर्कों की जीत हुई और एक दिन सादे से समारोह में रश्मि अनुराग की दुलहन बन गई. विवाह के बाद दोनों खुशी के कारण आसमान में उड़ रहे थे. हनीमून के लिए उन्होंने इंडोनेशिया के बाली को चुना. बाली द्वीप में चावल के हरेभरे खेत, अप्रतिम कलात्मक और प्राकृतिक सौंदर्य को देख कर रश्मि निहाल हो गई. फैशनेबल कपड़े धारण किए आकंठ परस्पर प्रेमरस में डूबे, इस नवयुगल की खूबसूरती देखते ही बनती थी. देखतेदेखते कब हनीमून के 10 दिन बीत गए दोनों को पता ही नहीं चला.

वापसी में पैकिंग करते समय रश्मि बोली, ‘‘अनुराग वे लोग बड़े खुशहाल होते हैं जिन के प्यार को शादी की मंजिल मिलती है.’’ ‘‘और हम उन प्रेमियों में से एक हैं,’’ कहते हुए अनुराग ने उसे अपने बाहुपाश में आबद्ध कर लिया.

मुंबई आ कर दोनों ने अपनाअपना बैंक जौइन कर लिया. अकसर नवदंपतियों के प्रेम को जब जीवन की सचाइयां अपनी गिरफ्त में लेने लगती हैं, जीवन जब कल्पनाओं से परे यथार्थ के धरातल पर अवतरित होने लगता है तो प्यार हवा हो जाता है और प्यार की जगह तकरार और तनाव लेने लगता है सो लगभग 8-10 महीने बाद ही उन दोनों के बीच भी घर की छोटीमोटी समस्याएं अब समयसमय पर सिर उठाने लगी थीं. प्रेमरस में डूबे रहने वाले नवयुगल के बीच अब यदाकदा बहस, ताना, आरोपप्रत्यारोप ने भी अपनी पैठ बनानी प्रारंभ कर दी थी.

ऐसे ही एक दिन जब रश्मि शाम को बैंक से आ कर चाय बना रही थी तभी खुशी से दोहरे होते हुए अनुराग ने प्रवेश किया, ‘‘लाओलाओ जल्दी से चाय पिलाओ उस के बाद मैं तुम्हें एक गुड न्यूज दूंगा.’’

‘‘लो चाय तो बन ही गई अब बताओ क्या गुड न्यूज है?’’ रश्मि अपना और अनुराग का चाय का कप ले कर डाइनिंग टेबल पर अनुराग के सामने वाली कुरसी पर बैठ गई.

‘‘अगले हफ्ते मां और गुडि़या मुंबई आ रही हैं.’’

‘‘अरे वाह यह तो बड़े गजब की न्यूज है. पहली बार हमारे घर कोई आ रहा है,’’ रश्मि ने उत्साहपूर्वक कहा.

‘‘रेषु वे पहली बार अपने घर आ रही हैं.

मैं चाहता हूं कि हम उन का जम कर स्वागतसत्कार करें.’’

‘‘हांहां क्यों नहीं, मैं भी तो शादी के बाद पहली बार ही मिलूंगी उन दोनों से… हम उन्हें पूरा मुंबई घुमाएंगे… बहुत मजा आएगा न,’’ रश्मि भी खुश होते हुए बोली.

‘‘पर मुझे यह सम  झ नहीं आ रहा कि हम कैसे मैनेज करेंगे… तुम और मैं दोनों ही तो सुबह जा कर शाम को आ पाते हैं… ऐसा करना उन दिनों तुम बैंक से 1 सप्ताह की छुट्टी ले लेना.’’

‘‘छुट्टी क्यों लूंगी… ऐसे अगर किसी के भी आने पर छुट्टी लूंगी तो आफत मुसीबत और बीमारीहारी में क्या करूंगी… गुडि़या और मम्मीजी ही तो आ रही हैं… उन्हें भी पता है कि हम दोनों जौब में हैं… घर में हर काम के लिए मेड है और सुखसुविधा का सारा सामान उपलब्ध है आराम से रहें… औफिस से आने के बाद और शनिवाररविवार को तो हम उन के साथ ही रहेंगे न,’’ रश्मि ने अनुराग की बात काटते हुए कहा.

यह सुन कर अनुराग एकदम भनभना गया और बोला, ‘‘बीमारीहारी जब होगी तब देखा जाएगा. मु  झे नहीं अच्छा लगता कि वे दोनों यहां अकेली बोर हों और हम दोनों औफिस में रहें… क्या सोचेंगी दोनों…’’

‘‘अनुराग इस में सोचने जैसा कुछ भी नहीं है… तुम कुछ ज्यादा ही सोच रहे हो और फिर यदि तुम्हें इतना ही लग रहा है तो तुम ले लो छुट्टी और अपनी मम्मी और बहन को कंपनी दो किस ने मना किया है,’’ रश्मि ने कुछ तैश से कहा.इतना सुनते ही अनुराग का पारा एकदम हाई हो गया और वह गुस्से में पैर पटकते हुए बोला, ‘‘बहू का रहना जरूरी होता है इसलिए मेरे छुट्टी लेने का कोई मतलब ही नहीं है.’’

सदैव स्त्रीपुरुष समानता और महिला सशक्तीकरण की बात करने वाले अनुराग के मुंह से इस प्रकार की बातें सुनना उसे बहुत अजीब लगा. गोया महिला और पुरुष की नौकरी की महत्ता भी अलगअलग हो. अनुराग की जिस फेमनिज्म विचारधारा पर वह मोहित थी उस अनुराग के इन दकियानूसी विचारों को सुन कर उसे बहुत बड़ा धक्का लगा पर इस समय उस ने चुप रहना ही उचित सम  झा.

अगले हफ्ते अनुराग की मम्मी और छोटी बहन आ गईं. अनुराग की ही भांति वे भी रश्मि के बैंक चले जाने से कुछ नाखुश सी नजर आईं पर उस के मातापिता ने उसे अनुचित बात के लिए बेवजह   झुकना नहीं सिखाया था सो उस ने कोई चिंता नहीं की. हां, परिस्थितियों में संतुलन कायम करने के लिए शुक्रवार का अवकाश अवश्य ले लिया ताकि वह पूरे 3 दिन उन के साथ रह सके.

1 सप्ताह बाद जब उन के जाने का दिन पास आ गया तो रश्मि बोली, ‘‘अनु कल बाजार चलकर मम्मीजी और गुडि़या को कुछ अच्छा सा खरीदवा देते हैं.’’‘‘अरे यार बाजार जाने का तो मूड बिलकुल ही नहीं है. ऐसा करो तुम ने बाली से जो ड्रैस ली थी वह गुडि़या को दे दो और पिछले मंथ बर्थडे पर जो साड़ी ली थी वह मम्मी को दे दो. तुम बाद में दूसरी ले लेना,’’ अनुराग ने कहा.

‘‘अनुराग कैसी बात करते हो उन दोनों के लिए हम बाजार से उन की पसंद का ले आते हैं. मैं अपनी पसंद की ड्रैस और साड़ी क्यों दूं. मैं ने बड़े मन से अपने लिए खरीदी है… तुम्हें तो पता है कि मु  झे कितनी मुश्किल से कुछ पसंद आ पाता है.’’ ‘‘अरे तो उस में क्या परेशानी है? क्या वे लोग तुम्हारी पसंद के कपड़े नहीं पहन सकतीं? तुम दूसरी ले लेना,’’ अपनी बात का कोई असर न होते देख और सासूमां और ननद के सामने किसी प्रकार का कोई विवाद न हो यह सोच कर अगले दिन रश्मि भरे मन से साड़ी और ड्रैस निकाल लाई और पैर छू कर दोनों को दे दीं.

उसी प्रकार की कुछ छोटीमोटी तकरारों के बीच वक्त गुजर रहा था. इसी बीच एक दिन दोनों के घर में एक नन्हे मेहमान ने अपने आगमन की दस्तक दे दी. नन्हे सदस्य के आगमन की सूचना से उन दोनों के साथसाथ पूरे परिवार में भी खुशियों की बहार आ गई. अब उन दोनों का सारा समय भावी शिशु की बातों में ही बीतता. एक दिन बैडरूम में जब दोनों भावी शिशु के बारे में चर्चा कर रहे तो उसने अनुराग से कहा, ‘‘अनु मैं चाहती हूं कि एक प्यारी सी बेटी हो हमारे घर में और मैं उस का नाम रखूंगी ‘चाहत.’’’

‘‘नहीं यार मु  झे तो लगता है कि पहला बच्चा बेटा ही होना चाहिए पहला बेटा हो जाए फिर दूसरा कुछ भी हो टैंशन नहीं रहती मैं ने तो उस का नाम भी सोच लिया है ‘चिराग.’ ‘चिराग’ रखेंगे हम अपने बेटे का नाम,’’ अनुराग ने प्यार से रश्मि के पेट पर हाथ रखते हुए कहा.

रश्मि के लिए फेमनिस्ट अनुराग के द्वारा दिया गया यह दूसरा   झटका था और वह मन ही मन सोचने लगी किसी भी विचारधारा को 4 लोगों के बीच रखने और अपने घर में लागू करने में कितना अंतर होता है. अनुराग के जिन विचारों पर वह फिदा थी वे धीरेधीरे यथार्थ के धरातल पर हवा होते नजर आ रहे थे. गर्भ उस का, शरीर उस का, डिलिवरी की पीड़ा भी वही सहेगी पर नाम रखने के लिए उस की पूछ तक नहीं. यह कैसा फेमनिज्म है. 9 महीने बाद जब सिजेरियन डिलिवरी से उस ने एक फूल सी नाजुक बेटी को जन्म दिया तो लगा उस की बरसों की मुराद पूरी हो गई हो. रुई के नर्मसफेद गोले की मानिंद, कंजी नीली आंखें और नन्हे से गुलाबी हाथपैरों वाली अपनी ही प्रतिकृति को देख रश्मि की सारी पीड़ा का ही हरण हो गया. अपने सीने से लगा उस ने पहले उसे जीभर कर प्यार किया. बेटी के होने पर अनुराग और उस के परिवार वालों ने कोई खास खुशी व्यक्त नहीं की. हां, अनुराग ने इतना आदेश जरूर दिया कि रेषु बेबी का नाम मम्मी ने अक्षिता रखने को कहा है.’’

‘‘बेटी का नाम मम्मी क्यों रखेंगी, हम रखेंगे न. बेटी तो हमारी है,’’ रश्मि ने तिलमिला कर कहा.

‘‘तुम्हारी तो छोटीछोटी सी बातों को तूल देने की आदत सी हो गई है, जैसी तुम्हारी मरजी,’’ कह कर पैर पटकता हुआ अनुराग बाहर चला गया. उस के लाख न चाहते हुए भी बेटी का नाम अक्षिता ही रखा गया. वह एक बार फिर मन मसोस कर रह गई. बैंक में बराबर का कमाने पर भी घर के बड़ेबड़े निर्णयों को तो छोड़ो अक्षिता का स्कूल, घूमने का स्थान, घर में खरीदने वाले सामान, सैलरी को कहां कब कैसे खर्च करना है आदि में अनुराग अपनी ही मरजी चलाते.

रश्मि याद है कि उस की मम्मी सदा कहा करती थीं कि अपनी बेटी को आत्मनिर्भर बना कर ही मैं उस का विवाह करूंगी ताकि उसे जिंदगी में कभी किसी का मुंह न ताकना पड़े और अपने निर्णय वह स्वयं ले सके. वह अपनी मरजी से पहनओढ़ सके और उन्होंने वह किया भी पर अब उस की पसंद ही धोखा दे गई तो वे क्या करें. सोचतेसोचते उसे वह घटना याद आ गई जिस ने उस दिन उसे अंदर तक   झं  झोड़ दिया था और कई दिनों तक वह बस यही सोचती रही कि आखिर वह कमा किसलिए रही है.

उस दिन रश्मि अपनी एक औफिस सहकर्मी के साथ मुंबई में लगे सिल्क ऐक्सपो से कांजीवरम साड़ी खरीद कर लाई थी जिस की कीमत क्व10 हजार थी.

घर आ कर जब उस ने अनुराग को वह साड़ी दिखाई तो कीमत सुनते ही वह

उछल पड़ा, ‘‘क्व10 हजार की साड़ी… इतनी महंगी भी कोई साड़ी लेता है? इतनी महंगी साड़ी कहां पहनोगी जरा बताना तो?’’

‘‘अनु यह प्योर सिल्क है और यह महंगी ही होती है. मु  झे बहुत पसंद थी तो मैं ने ले ली.’’

उस दिन इसी बात को ले कर दोनों में अच्छीखासी बहस हुई जिस से इतने मन से लाई साड़ी आज भी बिना फालपीको के कवर्ड में पड़ी थी. उस दिन उसे पहली बार लगा कि सुबह से शाम तक वह खट किसलिए रही है जब अपने लिए एक साड़ी भी नहीं खरीद सकती.

अक्षिता जब स्कूल जाने लगी तो उस का काम बहुत बढ़ गया. एक दिन अपने अंतरंग क्षणों में वह बड़े प्यार से बोली, ‘‘अनुराग, मु  झे तुम्हारे सहयोग की दरकार है. अकेले अक्षिता और नौकरी दोनों को संभालने में खुद को असहाय पा रही हूं. शाम होतेहोते तो मु  झे लगता है मानो मेरा पूरा शरीर ही निचुड़ गया है.’’

‘‘मैं क्या करूं भई इस के लिए… अब मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूं और यदि ज्यादा परेशानी हो रही है तो नौकरी छोड़ दो.’’

समय धीरेधीरे बीत रहा था. अक्षिता अब किशोरावस्था में थी. 8वीं कक्षा में आ चुकी थी. घर और बैंक इन सब के बीच जैसे रश्मि का अस्तित्व ही गुम होता जा रहा था.उसे अपने लिए 1 मिनट की भी फुरसत नहीं थी यही नहीं कई बार तो अक्षिता से भी उस की बातचीत केवल रात्रि में ही हो पाती थी. शादी से पहले हमेशा टिपटौप रहने वाली रश्मि अब किसी तरह उलटेसीधे कपड़े पहन घर के कामों को येनकेन निबटा कर बैंक आती. घर आ कर अक्षिता को देखना और घरेलू कार्य निबटातेनिबटाते रोज 11 बज जाते.

यों तो उस ने घरेलू कार्यों के लिए मेड लगा रखी थी पर इस के बावजूद घर के अनेक ऐसे कार्य होते जो उसे ही करने होते. लाख कोशिशों के बाद भी वह वर्तमान परिस्थितियों के मध्य संतुलन नहीं बैठा पा रही थी. इसी बीच हुई 2 घटनाओं ने उसे एक ठोस निर्णय लेने पर मजबूर कर दिया. उस दिन अक्षिता के स्कूल में पेरैंट्स टीचर मीटिंग थी और रश्मि के बैंक में बहुत जरूरी मीटिंग जिसे वह किसी भी कीमत पर छोड़ नहीं सकती थी. जब रश्मि ने अनुराग से पीटीएम में जाने को कहा तो उन्होंने भी जरूरी मीटिंग का हवाला दिया और उस दिन अक्षिता की पीटीएम में कोई नहीं पहुंचा. उस दिन मीटिंग में जाने से पहले अनुराग से जम कर बहस भी हुई और इस चक्कर में वह अपना टिफिन भी टेबल पर रखा ही छोड़ गई. शाम को जैसे ही मीटिंग खत्म कर के वह अपनी टेबल पर आई तो अचानक से चक्कर खा कर गिर पड़ी. उस के सहकर्मियों ने जैसेतैसे उसे संभाला और पानी के छींटे दे कर होश में लाए. किसी तरह वह घर आई.

अगले दिन अवकाश ले कर अक्षिता के स्कूल में उस की टीचर से मिली तो उनकी बातें सुन कर उस के होश उड़ गए, ‘‘अक्षिता इज फेल्ड इन मैथ्स ऐंड हार्डली पास्ड इन साइंस ऐंड संस्कृत. मेम अक्षिता दिनबदिन पढ़ाई में पिछड़ रही है. आप सम  झ सकती हैं कि नैक्स्ट ईयर नाइंथ क्लास है और फिर टैंथ. आई नो बोथ औफ यू आर वर्किंग बट टीनएज बच्चों को यदि मातापिता की तरफ से इमोशनल सपोर्ट नहीं मिलती तो वे पढ़ाई में पिछड़ने के साथसाथ कई बार रास्ता भी भटकने लगते हैं. आजकल अक्षिता का ध्यान पढ़ाई पर बिलकुल नहीं है… यू हैव टू पे अटैंशन औन हर.’’

‘‘जी,’’ कह कर रश्मि घर वापस आ गई क्योंकि जो बात आज अक्षिता की टीचर ने कही उसे तो वह कब से महसूस कर रही थी क्योंकि आजकल अक्षिता अकसर अपने दोस्तों से फोन पर लगी रहती थी और अकसर आईने के सामने खड़े हो कर अपने रूपसौंदर्य को निखारती रहती. चूंकि आज अवकाश लिया था सो वह अपनी डाक्टर दोस्त वर्षा के क्लीनिक जा पहुंची. उसे देखते ही वर्षा बोली, ‘‘अरे आज बैंक खुद चल कर हमारे क्लीनिक कैसे आ गया?’’

 

 

14 सालों के बाद वेब सीरीज ‘हीरामंडी’ से फरदीन की वापसी, ट्रेलर लॉन्च पर हुए भावुक

एक्टर फरदीन खान 14 वर्षों के बाद संजयलीला भंसाली की वेब सीरीज ‘हीरामंडी’ से फिल्मों में वापसी कर रहे है. फिल्म के ट्रेलर लॉन्च पर वो भावुक हो गए.

इस फिल्म की खास बात ये है कि भंसाली इस वेब सीरिज से ओटीटी (नेटफ्लिक्स) पर डेब्यू कर रहे हैं. दिल्ली में ट्रेलर लॉन्च के अवसर पर इस वेब सीरीज में अपने रोल वली मोहम्मद के बारे में बताते हुए फरदीन ने कहा, “यह गैप मेरे लिए बहुत लंबा था,करीब 14 साल हो गए. मैं इस अवसर के लिए बहुत आभारी हूं.

मुझे स्क्रीन पर वापसी के लिए इससे अच्छा मौका नहीं मिल सकता था.“ आपको बता दें कि फरदीन को इससे पहले 2010 में फिल्म ‘दुल्हा मिल गया में’ देखा गया था. उन्होंने यह भी बताया कि किस तरह संजय लीला भंसाली एक्टर्स को रोल में उतर जाने के लिए कहते हैं.

 

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फरदीन ने कहा,“मेरे लिए यह कुछ ऐसा था जो मैंने नहीं किया था. यह रोल मेरे लिए परफेक्ट था. मैं जिस उम्र के पड़ाव पर हूं उस पर आप जीवन के अनुभव के साथ वापस आते हैं. आप उन कैरेक्टर्स में सहयोग कर सकते हैं जो संजय लिखते हैं. इनके कैरेक्टर्स बहुत जटिल और पेचीदा होते हैं. उनके जैसा कोई नहीं है जो यह कैरेक्टर्स लिखता हो.“

 

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फरदीन खान इससे पहले खुशी, ऑल द बेस्ट, ओम जय जगदीश, तुम बिन आदि प्रमुख फिल्म में काम कर चुके हैं. गौरतलब है कि भारत की आज़ादी की 1940 की पृष्ठभूमि पर लिखी गई यह फिल्म प्यार, सत्ता, बदला और आज़ादी का मिला-जुला स्वरूप है. फरदीन खान के अलावा फिल्म में सोनाक्षी सिन्हा, अदिति राव हैदरी, मनीषा कोईराला, संजीदा शेख, अध्ययन सुमन, शरमिल सेहगल, रिचा चड्ढा प्रमुख रोल्स में हैं. यह वेब सीरिज दर्शकों के लिए 1 मई 2024 को रीलिज़ की जाएगी.

दरबदर- भाग 3: मास्साब को कौनसी सजा मिली

सईद मास्साब की तमाम मसरूफियतें धीरेधीरे कम होने लगीं. महफिल, मजलिसों, जलसों में कभीकभी ही बुलाया जाने लगा. कहां चौबीस घंटों में सिर्फ 6 घंटे नींद के लिए होते थे, कहां अब पूरा दिन ही नींद के लिए मिल गया. पहली बीवी भी एक साल बाद रिटायर्ड हो कर घर पर रहने लगी. हमेशा बोलते रहने की उन की आदत सईद मास्साब को घर पर टिकने न देती. बाकी तीनों बीवियां नौकरी की वजह से शाम को ही खाली रहती थीं.

एक शाम में तीनों के पास जाना अब

उन के लिए संभव नहीं होता, तो

उन्होंने दिन बांट लिए. सईद मास्साब ने इतनी चालाकी से चारों बीवियों के लिए टाइम बांटा था कि किसी को भी शक नहीं हुआ. लेकिन रिटायरमैंट के बाद हर बीवी यह उम्मीद करने लगी कि अब तो वे रिटायर्ड हो गए हैं, अब उन्हें पूरे वक्त उन के पास रहना चाहिए. अगर वे अभी भी अपना पूरा वक्त उसे नहीं देते हैं तो दिन के बाकी के वक्त में वे रहते कहां हैं?

खोजबीन और जासूसी शुरू हुई तो सालों तक छिपाया गया सईद मास्साब का झूठ नमक के ढेर की तरह भरभरा कर गिर गया. सईद मास्साब बेनकाब. चारों बीवियों के पैरोंतले से जमीन खिसक गई. सारी पिछली बातें, खर्च की रकम का हिसाब लगातेलगाते चारों कमाऊ बीवियों ने उन पर उन्हें कंगाल कर के खुद ऐश करने की तोहमत लगा दी. सईद मास्साब का जीना हराम हो गया. अखबारों और मीडिया ने प्याज के छिलकों की तरह उन के दबेछिपे किरदार की एकएक परत उतार कर रख दी. रुसवाइयों की आंधी सईद मास्साब के बुढ़ापे के दिनों को दागदार कर गई.

उस दिन जोरदार बिजली कड़क रही थी. मूसलाधार बारिश हो रही थी कि अचानक सईद मास्साब के पेट में तेज दर्द उठा. चारों बीवियों में से किसी ने भी सईद मास्साब को अपने पास पनाह नहीं दी. डाक्टर ने चैक किया, अंतडि़यों का कैंसर. मास्साब की आंखों के सामने अंधेरा छा गया. औपरेशन होना था. प्राइवेट अस्पताल में अकेले बैड पर लेटे सईद मास्साब मौत और जिंदगी से जूझते रहे थे. दूर तक फैली खामोशी. नर्स वक्त पर दवाइंजैक्शन लगा जाती. पूरा दिन अपनों से घिरे रहने वाले मास्साब अकेलेपन का अवसाद झेल रहे थे.

तीनों बीवियों ने अपनेअपने ढंग से उन पर अपनी जिंदगी बरबाद करने

की तोहमत लगा कर उन से किनारा

कर लिया.

पूरे 2 महीने सईद मास्साब जिंदगी और मौत के बीच झूलते रहे.

भाई ने खिदमत की. तबीयत कुछ संभली तो लोकलाज के लिए रफीका मैडम न चाहते हुए भी उन्हें अपने घर ले गईं. दवा, परहेजी खानापीना और कीमोथेरैपी के लिए खर्च होने वाली मोटी रकम को ले कर रफीका मैडम हमेशा ताने देतीं, ‘अपनी कमाई तो तीनतीन बीवियों पर लुटा दी. अब जब कंगाल हो गए तो मुझे लूटने आए हैं. शादी तो कर ली मुझ से, मगर मां के खिताब से हमेशा महरूम रखा.

‘तीनतीन बार एबौर्शन करवा दिया मेरा. फिर मैं क्यों करूं खिदमत आप की? वैसे भी, मैं 8 घंटे कालेज में रहती हूं. नर्स रख भी ली तो मैं पराई औरत के भरोसे घर नहीं छोड़ सकती. सरपरस्ती तो मिली नहीं आप की, जो थोड़ाबहुत सरमाया जरूरत के लिए रखा है, वह भी चोरी चला जाएगा. बेहतर होगा आप अपनी दूसरी बीवियों के पास चले जाएं. आखिर उन का भी तो कोईर् फर्ज बनता है शौहर के लिए.

दूसरी बीवी जुलेखा के पास पहुंचे तो वह उन्हें देख कर नाकमुंह सिकोड़ने लगी. वह रिटायरमैंट के पैसों और अपने दिए गए पैसों का हिसाब मांगते हुए उन का खाना खराब करती रही. सईद मास्साब तीसरी बीवी के पास जा नहीं सकते थे क्योंकि तीसरी बीवी आयरीन ने सईद मास्साब की तीनतीन बीवियों की खबर मिलते ही संबंधविच्छेद कर लिया था और खुला (मुसलिम औरत के द्वारा खुद पति से मांगी गई तलाक) के लिए नोटिस भेज दिया था. वह सईद मास्साब से आधी उम्र की थी, साथ ही, अपने अब्बू की जायदाद की अकेली वारिस थी. सईद मास्साब ने उसे मां बनने से महरूम रखा था. इसलिए वह सईद मास्साब से तलाक ले कर दूसरे निकाह के मंसूबे बनाने लगी.

सईद मास्साब की पहली बीवी को जब उन के तीन और निकाह किए जाने की खबर मिली तो सदमा बरदाश्त नहीं कर पाई. रात को बिस्तर पर सोई, तो फिर उठ न सकी.

सईद मास्साब के लिए बीवियों ने तो दरवाजे बंद कर लिए. छोटा भाई, जो उन का स्कूल चला रहा था, उन्हें अपने घर ले आया. बरामदे में लोहे का पलंग डाल कर लिटा दिया. प्लास्टिक के स्टूल पर दवाइयां रख दीं. उस की बीवी भी नौकरीपेशा थी. सुबह के नाश्ते के साथ दवाइयां ले कर सईद मास्साब दिनभर अकेले बिस्तर पर दर्द सहते हुए पड़े रहते. हर 5वें मिनट पर 2 सिम वाले मोबाइल पर कौल रिसीव करने वाले सईद मास्साब कैंसर की बीमारी के साथसाथ डिप्रैशन का शिकार होने लगे.

सिर के बाल झड़ने लगे. कीमोथेरैपी भी वक्त पर नहीं होती थी. पेट में तेज दर्द रहता था. अब खाना भी नहीं पचता था. मोती जैसे चमकते दांत एकएक कर के गिरने लगे थे. चेहरा बेनूर, बेरौनक हो गया था. लाखों के बैंकबैलेंस और तमाम दूसरी जायदाद के मालिक सईद मास्साब पूरी जिंदगी में अपना सच्चा हमदर्द नहीं खरीद सके. डाक्टर तो हर बार कहते, ‘बस, 2-4 महीने के मेहमान हैं. लेकिन पता नहीं कौन सी डोर थी जो सईद मास्साब को सांसों के साथ बांधे हुए थी.

हालांकि छोटे भाई ने गिरती हालत को देख कर उन के लिए एक नर्स का इंतजाम कर दिया था, फिर भी लंबे समय तक लेटे रहने की वजह से बैडसोर हो गए. तीमारदारी की लापरवाही से बैडसोर के जख्मों में कीड़े बिलबिलाने लगे. कीड़ों को देख कर नर्स ने उन की खिदमत करने से साफ मना कर दिया और काम छोड़ कर चली गई. मास्साब पूरी रात दर्द से चीखते. छोटा भाई अपने परिवार के साथ एसी की ठंडी हवा में सुख की नींद सोता, लेकिन मास्साब पंखे की गरम, लपटभरी हवा में जानलेवा दर्द सहते खुले सहन में पड़े रहते.

शहर के नामी सईद मास्साब गुमनामी की अंधेरी गली के बाश्ंिदे हो गए. पीठ के जख्म और पेट की अंतडि़़यों का दर्द उन के इर्दगिर्द आहों, कराहों और आंसुओं का सैलाब उठाता रहता. बहुत मजबूर और कमजोर सईद मास्साब टौयलेट के लिए भी नहीं उठ पाते थे. अब उन के पलंग के इर्दगिर्द मक्खियों के झुंड भिनभिनाने लगे थे.

उन की दूसरी बीवी जुलेखा कभीकभी देखने आती तो दूर से ही मुंह पर दुपट्टा लपेटे दूर कुरसी डाल कर कुछ देर बैठती, फिर बिना कुछ कहेसुने चुपचाप उठ कर चली जाती.

सईद मास्साब का लंबाचौड़ा जिस्म सूख कर लकड़ी जैसा होता चला जा रहा था. आलमारी में पड़े उन के ढेर सारे ईनाम, उन के  कीमती कपड़े, सबकुछ जहां के तहां पड़े उन के आलीशान दिनों के साक्षी बन कर उन की विवशता की खिल्ली उड़ाते.

सईद मास्साब ने 2 बीवियों के साथसाथ भाई के लिए भी अपने पैसों से मकान बनवा दिया था. भाई के लिए ली गई गाड़ी, लौकर में सोने की गिन्नियां, बीघों में फैला स्कूल सब मास्साब की बेबसी पर ठहाका मार कर हंसते. बुरे वक्त में अपनों की बेरुखी रिश्तों के सीने पर खुदगरजी मूसल ले कर चढ़ जाती. मौकापरस्ती रिश्तों के मुंह पर कालिख मल देती.

वक्त और हालात की झुलसा देने वाली गरमी राहतों की यादों के मुंह में अंगारे ठूंसने लगती. मास्साब की कराहें उन के बीते दिनों के कहकहों पर संगीनें तानने लगतीं. मास्साब के बैडसोर के कीड़े उन के हाथों की सदाकत की रेखाओं को कुतरकुतर कर मिटाने लगे थे. अड़ोसपड़ोस की नींद मास्साब की दर्दनाक चीखों से उचटने लगी थीं. एक दिन महल्ले के माईक पर आवाज गूंजी, ‘सईद मास्साब दुनिया छोड़ गए हैं.’

कफन तैयार, डोला तैयार…बेजान जिस्म को कब्रिस्तान तक ले जाने के लिए महल्ले वाले, दोस्त, रिश्तेदार तो थे पर वे नहीं थे जिन के साथ सईद मास्साब ने अपनी जिंदगी के एकएक लमहे को बांटा था. इसलाम में एक से ज्यादा शादियों की छूट ने इंसानी जिंदगियों को हवस की कठपुतलियां बना कर रख दिया. सही गलत के बीच झूलती कई जिंदगियां… दरबदर फिरती जिंदगियां.

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ये लम्हा कहां था मेरा: भाग 3- क्या था निकिता का फैसला

उधर निकिता नीस में होटल पहुंच कुछ देर आराम करने के बाद ऐलिस के साथ सी बीच की ओर चल दी. वहां का नजारा बहुत हसीन था. आराम से लेटे युवकयुवतियां भी थे वहां और छोटे बच्चों का हाथ पकड़ उन्हें टहलाते हुए हंसतेमुसकराते बुजुर्ग भी. निकिता को बारबार अभिनव का ही खयाल आ रहा था. लग रहा था कि उसे फोन कर बताए कि कितना मनोरम दृश्य है इधर.

वहां कुछ लोगों के विचार अपनी डायरी में नोट कर तसवीरें खींचने के बाद ऐलिस के साथ वह बाजार की ओर चल दी. विभिन्न प्रकार की वस्तुएं बेचते और पर्यटन की दृष्टि से कई महत्त्वपूर्ण बाजार हैं नीस में.

सब से पहले वे उस बाजार में पहुंचे जहां लोग अपने पुराने सामान को कम कीमत पर बेचने व अन्य लोग उस में से अपनी जरूरत का सामान लेने आते हैं. निकिता दुकानदारों व लोगों से बातचीत में व्यस्त थी. ऐलिस वहां रखा सामान देखते हुए एक बड़ी सी घड़ी की ओर आकर्षित हो गई. उसे हाथों में उठा कर देखते हुए उस का पैर नीचे रखे सोफे से टकरा गया और धड़ाम से जमीन पर गिरते ही घड़ी का कांच टूट कर उस के हाथ में गड़ गया.

ऐलिस को ऐसी स्थिति में देख निकिता घबरा गई. आसपास खड़े लोगों में से किसी ने अस्पताल फोन कर ऐंबुलैंस मंगवा ली. अस्पताल पहुंचने पर कांच निकालने के लिए ऐलिस को औपरेशन थिएटर ले जाया गया. निकिता ने पब्लिशिंग हाउस में फोन कर ऐलिस के पति का मोबाइल नंबर लिया और घटना की जानकारी दे दी. औपरेशन चल ही रहा था कि ऐलिस के औफिस से कुछ लोग उस के पति के साथ वहां पहुंच गए.

निकिता ने तब अभिनव को फोन किया और सारी बात बताई. अभिनव ने सुनते ही नीस आने का निर्णय कर लिया.

‘‘अरे नहीं, ऐसा मत करो अभिनव… मैं कुछ देर बाद होटल लौट जाऊंगी और कल फिर अपने काम में लग जाऊंगी… मेरी फिक्र न करो तुम,’’ निकिता बोली.

‘‘नहीं निकिता, अजनबी जगह है वह तुम्हारे लिए, मैं आ रहा हूं… और फिर तुम ने बताया कि अभी कोई नया गाइड भी प्रोवाइड नहीं कर पाएंगे पब्लिशर तुम्हें.’’

‘‘कोई बात नहीं, तुम्हें भी तो काम है न पैरिस में… मैं यहां डरूंगी नहीं… अकेली ही…’’

‘‘अरे डर तो मैं गया था तुम्हारा फोन सुन कर…जब तुम ने कहा न कि तुम अस्पताल से बोल रही हो तो मुझे लगा कि 2016 की तरह ही कहीं फिर से टैररिस्ट अटैक तो नहीं हो गया वहां… बस उस के बाद से अचानक फिक्र सी होने लगी है तुम्हारी… बस कुछ न कहो, मैं आ रहा हूं.’’

सच तो यह था कि निकिता कुछ कहना चाह भी नहीं रही थी. ऐलिस के चोटिल होने के बाद अचानक ही वह स्वयं को इतना अकेला महसूस करने लगी थी कि कुछ देर पहले तक यहां के लोगों की मुसकराहट उसे विद्रूप हंसी लगने लगी थी और प्रत्येक पुरुष उसे राजन जैसा लग रहा था.

अगले दिन पर्यटन स्थलों पर जा कर लेखन सामग्री एकत्र करना तो दूर उसे अस्पताल से होटल लौटने में ही अजीब सी दहशत हो रही थी.

हिम्मत जुटा कर होटल पहुंची तो अभिनव का फोन आ गया. उस ने बताया कि फ्लाइट में टिकट न मिलने के कारण वह ट्रेन से रहा है. वहां से हर 40 मिनट बाद नीस के लिए ट्रेन मिल जाती है. लगभग 6-7 घंटे की जर्नी होगी. रात तक वह नीस पहुंच जाएगा.

निकिता को अभिनव का आना बहुत अच्छा लग रहा था, साथ ही चिंता भी हो रही थी कि रात के समय कहीं ट्रेन से आते हुए उसे किसी प्रकार की समस्या का सामना न करना पड़े. घबराई सी वह अभिनव को बारबार फोन कर रही थी.

अभिनव उस की परेशानी को महसूस कर उस का ध्यान कहीं और लगाने के उद्देश्य से बोला, ‘‘तुम आराम करो न निकिता… ट्रेन में मेरे पास वाली सीट पर एक बहुत खूबसूरत हसीना बैठी है. फ्रांस की ब्यूटी से बात करने का मौका मिला है… थोड़ी देर तो मजे लेने दो जिंदगी के.’’

निकिता ने ओके कह कर फोन रख दिया और रोंआंसी हो उठी. अभिनव का किसी और को सुंदर कहना और उस में रूचि लेना उसे बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा था. ‘मैं ऐसा क्यों महसूस करने लगी हूं अभिनव के प्रति और खुद को असुरक्षित महसूस करने पर मुझे अभिनव की जरूरत क्यों लगने लगी है? क्यों राजन की छवि नहीं दिखाई दे रही मुझे अभिनव में?’ उस ने स्वयं से प्रश्न करने शुरू कर दिए और फिर उत्तर भी दे दिए, ‘क्यों लगेगा वह मुझे राजन जैसा? राजन ने निकिता को सिर्फ एक देह समझा और अभिनव… उस ने मेरे मन को जाना, मुझे यहां कैसा लग रहा होगा इस वक्त, वह अच्छी तरह समझ गया.

‘मेरे इतने करीब होने पर भी कभी मन नहीं डोला उस का और 7 फेरों में बंध जाने पर भी मेरे जिस्म को अपनी जागीर नहीं समझा उस ने. तभी तो मेरा जी चाह रहा है उस के कंधे पर सिर रख कर आंखें मूंद लूं और समर्पित कर दूं खुद को मन को ही नहीं, तन को भी…’

रात के लगभग 1 बजे पहुंच गया अभिनव. निकिता उसे देख कर खिल उठी. उस का झीनी गुलाबी नाइटी पहने अपनी स्नेहिल आंखों और प्रेम भरी मुसकान से स्वागत करना अभिनव को बहुत अच्छा लगा.

‘‘मैं चेंज कर लेती हूं, फिर चलते हैं डाइनिंग हौल में,’’ कह कर निकिता उठने लगी तो अभिनव ने उस का हाथ पकड़ कर अपने पास बैठा लिया, ‘‘नहीं, रूम में ही मंगा लेते हैं कुछ… मेरे पास बैठी रहो आज… बहुत कुछ बताना है तुम्हें… बस मैं आया अभी,’’ कह कर अभिनव वाशरूम में फ्रैश होने चला गया.

निकिता ने कमरे में अनियन टार्ट और कौफी मंगवा ली.

अभिनव फ्रैश हो कर लौटा तो दोनों कौफी के घूंट भरने लगे. अभिनव तो जैसे आज निकिता के सामने अपना मन खोल देने को व्याकुल हो रहा था. बिना किसी लागलपेट को बोल उठा, ‘‘निकिता, पता है मैं शादी नहीं करना चाहता था?’’

‘‘मतलब?’’ निकिता का मुंह आश्चर्य से खुला रह गया.

कुछ पल की चुप्पी के बाद अभिनव ने आपबीती सुना दी निकिता को.

‘‘निकिता इस बात को सुनने के बाद क्या तुम मुझ पर यकीन रख पाओगी… सच बताना क्या तुम्हें लगता हूं मैं वैसा जैसा सोनाली ने इलजाम लगा मुझे बना दिया था?’’ वह रुंधे गले से निकिता की ओर देखते हुए बोला.

‘‘अभिनव स्त्री के बारे में कहा जाता है कि वह पुरुष की फितरत उस की आंखें देख कर ही जान जाती है. सच कहूं तो आज मुझे बहुत दुख हो रहा है कि आप जैसे इंसान पर ऐसे आरोप लगे. भेड़ और भेडि़ए का फर्क समझ आता है मुझे. आप चाहते तो अपने शरीर की भूख मिटा सकते थे इन बीते 3 दिनों में, पर आप जब तक मेरे दिल तक नहीं पहुंचे शरीर तक पहुंचना बेमानी लगा आप को… आप के लिए बहुत इज्जत है मेरे मन में,’’ निकिता एक सांस में ही सब बोल गई.

‘‘निकिता, तुम्हारा इस प्रकार मुझ पर विश्वास करना… बता नहीं सकता कि तुम ने मुझ पर कितना बड़ा एहसान किया है.’’

‘‘अभिनव अपने जीवन की किताब भी आज मैं खोल देना चाहती हूं तुम्हारे सामने… मैं भी शादी नहीं करना चाहती थी,’’ कह कर निकिता बेबस चेहरा लिए अभिनव की ओर देखने लगी.

‘‘मुझे सब पता है निकिता, तुम्हें कुछ बताने की जरूरत नहीं,’’ निकिता की ओर स्नेह से देखता हुआ अभिनव बोला.

‘‘क्या पता है?’’ हक्कीबक्की सी हो निकिता ने पूछा.

‘‘निकिता तुम्हारी एक सहेली थी न अदीबा नाम की, जो पुणे में तुम्हारे साथ पीजी में रहती थी, उस का भाई हाशिम मेरा दोस्त है. कुछ समय पहले वह अपनी बहन की एक सहेली के लिए हमारे औफिस में जौब की बात करने आया था. मेरा अच्छा दोस्त है, इसलिए बहन की उस सहेली के विषय में सब बताया था उस ने.उस सहेली पर किस प्रकार उस के ही पिता के दोस्त ने बुरी नजर डाली थी, यह बताते हुए उस ने मुझ से कहा था कि बहन की सहेली के लिए जल्द से जल्द नौकरी का इंतजाम करना है तो कि वह पिछला सब भूल कर सामान्य जीवन बिताने लगे.‘‘तुम एक दिन जब अदीबा के साथ हाशिम के पास आई थीं तो मैं ने देख लिया था. फिर जब तुम्हें देखने तुम्हारे घर आया तो तुम्हारे चेहरे के भाव देख कर समझ गया कि विवाह बंधन में तुम भी बंधना नहीं चाहती, पर जब तुम्हारी ओर से हां में जवाब मिला और उधर दादाजी बीमार हुए तो मैं ने भी हां कह दी. आज तुम ने जो विश्वास मुझ पर दिखाया, मैं एहसानमंद हो गया हूं तुम्हारा. हां, एक बात और तुम उस बुरे हादसे को बिलकुल भूल जाओ, मैं हूं न साथ,’’ अभिनव ने अपनी बात पूरी करने से पहले ही निकिता का हाथ अपने हाथों में ले लिया.

बिस्तर पर आतेआते रात के 3 बज चुके थे. नाइट लैंप की हलकी रोशनी में

अभिनव की आंखों में नींद की जगह मदहोशी छलक रही थी. उस मदहोशी का असर निकिता पर भी हो रहा था और वह अभिनव के आकर्षण से स्वयं को अलग नहीं कर पा रही थी. कुछ देर तक दोनों पलकें मूंदें लेट कर बातचीत शुरू करने की एकदूसरे की पहल का इंतजार करते रहे.

आखिर चुप्पी को तोड़ते हुए अभिनव बोला, ‘‘निकिता एक बात कहना चाहता हूं.’’

‘‘कहो न,’’ अभिनव के मोहपाश में जकड़ी निकिता उस की ओर प्रेमभरी दृष्टि डालते हुए बोली.

‘‘सोच रहा हूं तुम्हें फ्रांस पर बहुत कुछ लिखना है, इस के लिए जानकारी जुटा रही हो तुम. इस प्रेम नगरी में आ कर क्या फ्रैंच किस पर कुछ नहीं लिखना चाहोगी?’’ शरारत से मुसकराते हुए अभिनव बोला.

‘‘कैसे लिखूंगी? मुझे कहां पता है कुछ फ्रैंच किस के बारे में,’’ निकिता अदा से बोली.

अभिनव खिसक कर निकिता के पास आ गया और फिर उस के चेहरे पर चुंबनों की बौछार कर दी. निकिता का पोरपोर भीगा जा रहा था. कितना खूबसूरत और बेशकीमती

था वह लमहा, जो अब तक उन के भीतर ही छिपा था पर उसे महसूस करवाने वाला आज मिला था उन्हें.

‘‘ऐलिस बाजार में घड़ी की सुंदरता को निहार ही रही थी कि अचानक उस का पैर फिसला और…’’

‘‘झीनी गुलाबी नाइटी पहने निकिता ने जब रात को अभिनव का स्वागत किया तो वह खुशी से झूम उठा…’’

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खामोश जवाब: भाग 3 – क्या है नीमा की कहानी

शामक उसे अस्पताल में एक दिन भी देखने नहीं आया और चाचा भी नहीं आए. शायद शामक ने उन्हें अस्पताल जाने से मना कर दिया था.

डाक्टरों की निगरानी और दवाइयों के असर से नीमा के शरीर के घाव तो भर गए थे पर भला उन घावों का क्या जो उस के पति ने नीमा के मन पर दिए थे. नीमा कभी हंसने लगती और कभीकभी चुप हो जाती.

डाक्टरों ने नीमा को फिजिकली फिट घोषित तो कर दिया पर कहा कि

उसे किसी बात से मानसिक आघात लगा है और ये अपने मन की बात हम से शेयर नहीं कर पा रही हैं इसलिए एक मनोचिकित्सक के द्वारा इन के मन की बातों को बाहर निकलवाने की जरूरत है ताकि मानसिक दबाव कम रहे. अस्पताल में ही मौजूद एक काउंसलर को बुलाया गया जो नीमा से उस के मन में छिपे दर्द के बारे में बातें करे और दबी परतों को जान सके ताकि नीमा का इलाज सही दिशा में चले.

नीमा अपने बिस्तर पर लेटी हुई थी. तभी एक युवक उस के कमरे में दाखिल हुआ. यही युवक वह व्यक्ति था जो नीमा की काउंसलिंग करने वाला था. उस ने आसमानी रंग की शर्ट और नीले रंग की पैंट पहनी हुई थी. नीमा की आंखें उस युवक पर पड़ीं तो वह सन्न रह गई. नीमा को सम   झ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? कहां जाए? युवक कोई और नहीं बल्कि युवान था. उस के साथ में 2 जूनियर्स देख कर नीमा सम   झ गई कि युवान इसी अस्पताल में नौकरी कर रहा है पर नीमा को युवान को व्हीलचेयर पर देख कर बहुत दुख हो रहा था.

तो क्या उस दिन की दुर्घटना के बाद युवान

कभी पैरों पर खड़ा नहीं हो पाया था, अभी वह उधेड़बुन में ही थी कि बातचीत युवान की तरफ से शुरू हो गई.

‘‘अस्पताल की तरफ से मु   झे आप की मदद के लिए भेजा गया है, आशा है आप मेरे कुछ सवालों के जवाब देंगी.’’

नीमा सूनी आंखों से युवान को देख रही थी.

‘‘आप के पति के पास तो काफी पैसा है.’’

नीमा बामुश्किल ही कुछ कह पाई थी, शब्द अस्फुट निकल रहे थे, ‘‘जी… जी…’’

‘‘और आप की शादी को तो अभी कुछ ही महीने हुए हैं फिर ऐसा क्या हुआ कि उन्होंने आप के साथ इतनी मारपीट करी और आप की ऐसी हालत कर दी?’’

नीमा युवान की बातों को सुन कर और भी घबरा गई थी. उस की आंखों में शामक का खतरनाक और मारपीट वाला चेहरा आ रहा था.

युवान के चेहरे पर पथरीले भाव थे. वह बेहद प्रोफैशनली बात कर रहा था. बारबार पूछने पर भी नीमा युवान की बातों का कोई उत्तर नहीं दे पाई. ऐसा नहीं था कि वह बोलना नहीं चाहती थी पर नीमा युवान को देखने के बाद एक अपनेपन के साथसाथ ग्लानि भाव से भी भर गई थी और उसे युवान के साथ गुजारे हुए दिन याद आ गए थे. चाह कर भी उस के हलक से शब्द नहीं निकल रहे थ., हार कर युवान वहां से चला गया पर अगले दिन फिर युवान को नीमा के पास आना था.

नीमा रातभर सो नहीं सकी थी. युवान तो उसे बहुत पहले से जानता है और उसे भी तो पहली नजर का प्यार हो गया था युवान से फिर अपने मन का दर्द वह उस से क्यों नहीं बता पाई? इन सारे सवालों के जवाब उस के पास भी नहीं थे.

अगले दिन जल्द ही आ गया था युवान पर युवान को इस तरह व्हीलचेयर पर आता देख कर नीमा को बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा था.

आज नीमा ने थोड़ी हिम्मत करी और युवान की आंखों से आंखें मिला सकी.

‘‘तो तुम मनोचिकिसक बन ही गए.’’

‘‘हां,’’ युवान का जवाब इतना ही था.

‘‘और मेरे मन का इलाज भी तुम्हें ही करना था न.’’

पर नीमा की इन सौफ्टकोर बातों का युवान पर कोई असर नहीं हो रहा था. उस ने अपना सवाल पूछने का क्रम जारी रखा.

नीमा भी सम   झ चुकी थी कि युवान बेहद प्रोफैशनल तौर पर उस से बातें कर रहा है. युवान नीमा से उस की जिंदगी में आई खटास को अपनी काउंसलिंग के द्वारा दूर करना चाहता था. उस के मन से शामक का खौफ निकालाना चाहता था और यह बात अब नीमा को भी सम   झ आ चुकी थी. तभी तो आज युवान के सवाल करने पर नीमा ने साहस भर कर युवान को बताया कि उस का पति शामक, पैसे वाला होने के साथसाथ ऐय्याश भी है और उस पर और उस के घर में आनेजाने वाले किसी भी मर्द से बातें कर लेने पर शक भी करता है, चाचाजी भी उस के शक से अछूते नहीं हैं और इन सब बातों के अलावा शामक के व्यवहार में कोई स्थायित्व भी नहीं है. जानवरों की तरह चिल्लाना और मारपीट करना उस की रोज की आदतों में शामिल है. यह सब कह कर नीमा सिसकने लगी.

‘‘नीमा वह कहावत है कि सोने की गुणवत्ता उसे प्रयोग करने से और आदमी के चरित्र की गुणवत्ता उस के साथ रहने से पता चलती है.’’

नीमा को लगा कि युवान उस पर तंज कस रहा है पर ऐसा बिलकुल नहीं था बल्कि युवान तो नीमा को तब से नापसंद करने लगा था जब से नीमा ने उसे विवाह के लिए अस्वीकार कर दिया था. सड़क दुर्घटना के बाद नीमा द्वारा ठुकराया जाना किसी बड़े मानसिक आघात से कम नहीं था. युवान इस ठोकर से लड़खड़ाया जरूर था पर गिरा नहीं बल्कि उठा, संभला और संभलते हुए उस ने इस अस्पताल में एक मनोचिकिसक की नौकरी हासिल करी और अब वह नीमा जैसे कितने ही लोगों की मदद करता है.

बहुत से लोगों को डिप्रैशन से बाहर निकालने के लिए दवाई भी देनी पड़ती है पर नीमा का केस ऐसा नहीं था, नीमा के अंदर का डर तो युवान ने अपनी मोटिवेशनल और साहस भरी बातों से ही निकाल दिया था.

नीमा अब युवान की निकटता में अच्छा महसूस कर रही थी पर यह अच्छा एहसास क्या क्षणभंगुर होने वाला था?

नीमा ने अब अपने पति पर घरेलू हिंसा और उत्पीड़न का केस कर दिया था क्योंकि

उसे अपने पति की दौलत से ज्यादा जरूरत एक प्यार करने वाले पति की थी और बिस्तर पर लेटी नीमा को एहसास हो चुका था कि उस के लिए युवान से बेहतर पति कोई और नहीं हो सकता था.

आज जब युवान अपनी व्हीलचेयर पर आया तो नीमा ने उस की ओर देखा और सिसकने लगी, ‘‘मु   झे माफ कर दो युवान, मैं ने तुम्हें तब ठुकराया जब तुम्हें मेरी सब से अधिक जरूरत थी पर अब मु   झे अपनी गलती का एहसास हो गया है. मैं बहुत शर्मिंदा हूं और इस गलती के एहसास को मैं प्यार के एहसास में बदलना चाहती हूं.’’

कुछ देर रुक कर नीमा फिर बोली, ‘‘मैं शामक को तलाक दे रही हूं और तुम से शादी करना चाहती हूं, क्या तुम मु   झ से शादी करोगे?’’

‘‘मैं किसी के मन की बातें जान तो नहीं सकता पर अनुमान जरूर लगा सकता हूं और तुम्हारी मौकापरस्ती का अंदाजा तो अच्छी तरह लगा चुका हूं. कल भी तुम्हें मु   झ से प्रेम नहीं था बल्कि मैं तुम्हारी जरूरत था और आज एक बार फिर मैं तुम्हारी जरूरत बन गया हूं. जिस तरह हर बुराई में कोई न कोई अच्छाई जरूर होती है उसी तरह मेरे अपंग हो जाने की यही अच्छी बात थी कि तुम ने मु   झे ठुकरा दिया और आज जब तुम्हें मेरी जरूरत महसूस हो रही है तब मैं तुम्हें ठुकरा रहा हूं. इस से ज्यादा कुछ भी कह कर मैं अपने जवाब को हलका नहीं करना चाहता.’’

युवान ने खामोश जवाब दे दिया था. उस ने अपनी व्हीलचेयर बाहर जाने वाले रास्ते की ओर बढ़ा दी थी.

 

ताप्ती- भाग 3: ताप्ती ने जब की शादीशुदा से शादी

वे कब पीछे से आ कर चुपके से सब देख रहे थे, यह गुरुशिष्या की जोड़ी को पता ही नहीं चल पाया.

ताप्ती का चेहरा लाल हो गया. आरवी चिल्ला कर बोली, ‘‘पापा, आप कब आए?’’

पता नहीं कैसा खिंचाव था दोनों के बीच… जहां ताप्ती की उदासीनता आलोक को न जाने क्यों आकर्षित करती थी, वहीं आलोक का चुंबकीय आकर्षण भी रहरह कर ताप्ती को अपनी ओर खींचता था.

ताप्ती ने बचपन में भी कभी अपने पिता की सुरक्षा महसूस नहीं करी थी. उस ने हमेशा अपने पापा को एक हारे हुए इंसान के रूप में देखा था. जब मरजी आती वे घर आते और जब मन नहीं करता महीनोंमहीनों अपनी महिला और पुरुष मित्रों के पास पड़े रहते. ताप्ती से उन्हें कोई लगाव है या नहीं, उसे आज तक पता नहीं चल पाया.

जब उस की मम्मी को कैंसर डायग्नोज हुआ था, वे फिर उन की जिंदगी से गायब हो गए. जब भी कोई जिम्मेदारी आती तो वे ऐसे ही महीनों गायब हो जाते थे. ताप्ती कभीकभी सोचती कि मम्मी ने इस आदमी से प्यार करने की बहुत भारी कीमत चुकाई है.

आनंदी ने अपने परिवार के विरुद्ध जा कर सत्य से कोर्ट में विवाह किया था. एक प्रेमी के रूप में वे जितने अच्छे थे, पति बनते ही गृहस्थी की जिम्मेदारियों से वे भागने लगे. दरअसल, शादी के बाद ही आनंदी को एहसास हो गया कि वे शादी के लिए बने ही नहीं हैं. आनंदी मन ही मन अपने गलत लिए गए फैसले पर घुलती रही और तभी असमय कैंसररूपी दीमक उन्हें चाट गई.

सत्य एक पिता और पति के रूप में न कभी उन की जिंदगी से पूरी तरह निकले न ही पूरी तरह उन की जिंदगी का हिस्सा बन पाए. एक लुकाछिपी का खेल चलता रहा. मम्मी के परिवार ने उन्हें बहुत पहले अपनी जिंदगी से बाहर कर दिया था, शायद उन के विवाह के बाद से और सत्य के घर वाले उन के गैरजिम्मेदार रवैए के कारण उन से छुटकारा चाहते थे और इस विवाह ने उन्हें सुनहरा मौका दे दिया, इसलिए उन्होंने पहले ही दिन से दूरी बना कर रखी.

शायद आलोक का अपनी बेटी आरवी के लिए अथाह प्यार ही ताप्ती को खींचता था. वह आलोक में अपने उस पिता को ढूंढ़ती थी जो हमेशा मुसीबत आने पर उन मांबेटी को छोड़ कर चला जाता था.

एक बार ताप्ती ने अपनी मां से झुंझला कर कहा भी था, ‘‘मम्मी, क्यों इन्हें ढो रही हो, तलाक क्यों नहीं ले लेतीं?’’

तब आनंदी ने कड़वाहट से कहा था, ‘‘कोई तो है अपना कहने के लिए और पगली मैं तो तलाक ले भी लूंगी, तू बेटी तो सत्य की ही कहलाएगी… यह आदमी किस नीचता तक उतर सकता है, तुझे मालूम नहीं. जो है जैसा है रहने दे, कभीकभी ही सही कम से कम उसे पिता का फर्ज तो याद रहता है.’’

उस दिन रविवार था. ताप्ती काम खत्म कर लाल स्कर्ट और पीली कुरती में अलसा रही थी तभी बैल बजी. आरवी कार से उतरी और दौड़ती हुई ताप्ती के गले से झूल गई, ‘‘ताप्ती मैम मम्मी टूर पर गई हैं… और मेरा बिलकुल मन नहीं लग रहा था, इसलिए मैं यहां आ गई हूं. शाम को हम लोग शौपिंग पर चलेंगे.’’

ताप्ती बोली, ‘‘ठीक है बाबा, कुछ खाया या नहीं?’’

ताप्ती को कुछ ही दिनों में अपनी इस छात्रा से एक अनोखा लगाव हो गया. पता नहीं क्यों वह आरवी के साथ अपना बचपना जीती थी. वह बचपन जिसे वह कभी नहीं जी पाई, जो हमेशा एक असुरक्षा के साए में ही रहा. ताप्ती ने बहुत प्यार से आरवी के लिए पिज्जा बनाया और फिर दोपहर के खाने की तैयारी करने लगी. अभी वह खाने की मेज पर खाना लगा ही रही थी कि घर की बैल बजी.

आरवी पूछ रही थी, ‘‘पापा, आप बड़ी जल्दी आ गए?’’

‘‘मैम, तैयार हो जाओ, शौपिंग पर चलेंगे.’’

‘‘पापा, मैम ने बहुत अच्छा पिज्जा बनाया था. चलो खाना खाते हैं… शी इज एन ऐक्सीलैंट कुक.’’

आलोक हंसते हुए डाइनिंगटेबल पर बैठ गए. पता नहीं ताप्ती क्यों इतना पसीनापसीना हो रही थी.

आलोक ताप्ती से बोले, ‘‘सौरी, मुझे बहुत भूख लग रही है. तुम से पूछे बिना ही खाने पर बैठ गया हूं.’’

ताप्ती के बनाए खाने में सच में बहुत स्वाद था. अरहर की दाल, भरवां करेले, चावल और रोटी. ऐसा लगा आलोक को जैसे वे बरसों से भूखे हों. खाना खातेखाते अचानक आलोक के मुंह से निकल गया, ‘‘तुम जितना अच्छा खाना बनाती हो, उतनी ही सुंदर भी हो.’’

ताप्ती एकदम से लाल हो गई.

आलोक को जब समझ आया तो थोड़े से झेंप कर बोले, ‘‘आज आप स्कर्ट में एकदम स्कूली बच्ची लग रही हो.’’

ताप्ती आलोक के साथ नहीं जाना चाहती थी, इसलिए आरवी से बोली, ‘‘आरवी, तुम पापा के साथ जाओ, मुझे किसी जरूरी काम से जाना है.’’

आरवी रोंआसी सी बोली, ‘‘चलो न मैम नहीं तो मैं भी नहीं जाऊंगी. मुझे अपने जन्मदिन की शौपिंग करनी है… मम्मी जन्मदिन से 1 दिन पहले लौटेंगी.’’

आलोक बोले, ‘‘चलो न ताप्ती.’’

पता नहीं ताप्ती आलोक के आगे क्यों कमजोर पड़ जाती थी. जब वह फीरोजी जयपुरी बंदेज के सलवारकुरते में तैयार हो कर निकली तो आलोक फिर से खुद को काबू न कर पाए और धीरे से बोल उठे, ‘‘आज तो हम एक परिवार की तरह लग रहे हैं.’’

ताप्ती कट कर रह गई पर कुछ बोल न पाई. मन ही मन कुढ़ भी रही थी कि क्या जरूरत थी तैयार होने की. स्कर्ट भी तो ठीक ही थी.

आलोक आज खुद ही कार ड्राइव कर रहे थे. वे लगातार बोल रहे थे और माहौल को हलका करने की कोशिश कर रहे थे. वे किसी भी कीमत पर अपनी बेटी की खूबसूरत ट्यूटर को नाराज नहीं करना चाहते थे.

शौपिंग मौल में पहुंच कर ताप्ती आरवी के कपड़े दिलवाने में बिजी हो गई. वहीं घूमतेघूमते 2 घंटे बीत गए. तभी ताप्ती की नजर एक शिफौन की रानी रंग की साड़ी पर पड़ी, जिस में गोटा पट्टी लगी थी.

आरवी बोली, ‘‘पापा, ताप्ती मैम को यह साड़ी बहुत पसंद आ रही है.’’

इस से पहले कि ताप्ती कुछ बोलती, आलोक ने वह साड़ी पैक करवा दी. दुकान से बाहर आ ही रहे थे कि मिहिम से टकरा गए. अपने किसी काम से आया हुआ था. ताप्ती को आलोक और आरवी के साथ देख कर बोला, ‘‘शुक्र है तुम घर से बाहर तो निकलीं वरना मेरे लिए तो हमेशा मैडम को बहाना तैयार रहता है.’’

आलोक ने हंसते हुए कहा, ‘‘चलो मिहिम तुम भी हमारे साथ डिनर करो.’’

डिनर करते हुए मिहिम और आलोक अपनी बातों में ही व्यस्त रहे… ताप्ती का मन न जाने क्यों एक सपने के पीछे भटकता रहा. सपना उस के अपने परिवार का.

 

Summer Special: न्यू बोर्न बेबी के लिए कर रही हैं शॉपिंग तो चुने हल्के और ब्राइट रंग

गर्मियों के आगमन से आ गए है बच्चों के लिए नए फैशनेबल समर ट्रेंड्स. हालांकि बच्चों का फैशन ट्रेंड बदलता रहता है पर माता-पिता हमेशा चाहते हैं कि उनके छोटे बच्चे न केवल आरामदायक कपड़े पहने पर वो फैशनेबल और ट्रेंडी भी हों.

स्टाइलिश कपड़े एक फैशन स्टेटमेंट बनाते हैं और ट्रेंडी कपड़ों में बेबी अत्यधिक प्यारे लगते हैं. आजकल ऑनलाइन शॉपिंग के ज़माने में , माता पिता नए फैशन ट्रेंड्स से काफी अपडेटेड रहते हैं. ऑनलाइन शॉपिंग की दुनिया प्रतिबंधित नहीं हैं और इस प्रकार, माता-पिता के पास अपने बच्चों के लिए उपयुक्त पोशाक चुनने के लिए कई विकल्प हैं.

बच्चो के लिए आजकल कई विकल्प उपलब्ध हैं जैसे- बेबी सूट्स, क्यूट टॉप्स, स्कर्ट्स , ड्रेसेस, लड़को के लिए शर्ट और ट्राउज़र्स यहाँ तक किसी खास अवसर या पार्टी के लिए फोर्मलवेअर भी उपलब्ध है. आजकल न्यू बोर्न बेबी के  को बनाने में बायो कॉटन का प्रयोग किआ जाता है जिसे हाई क्वालिटी कॉटन या आर्गेनिक कॉटन भी कह सकते हैं. हाई क्वालिटी फैब्रिक, धागे की एम्ब्रायडरी और आल ओवर प्रिंट जैसे आकर्षक डिज़ाइनस के कपडे माता-पिता की फर्स्ट चॉइस हैं . बच्चों के कपड़े और एक्सेसरीज के बदलते ट्रेंड पूरे सीजन में धूम मचा रहे हैं.

बच्चे, खासकर के नवजात बेबी के कपडे चुनते समय हमे ये ध्यान रखना चाहिए की कपडे के फैब्रिक से उनकी कोमल त्वचा को कोई नुक्सान न हो. बेबी के लिए कॉटन के कपड़े ही चुने क्यूँकि कॉटन के कपडे उनकी त्वचा के लिए कोमल होते हैं, और पसीने को सोख लेते है जिससे स्किन में रैश की समस्या उत्पन्न नहीं होती.

 

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नीचे दिए गए विकल्प आप को बेबी के लिए गर्मियों के फैशनेबल और आरामदायक कपड़ों का चुनाव करने में सहायता करेंगे

बेबी के लिए बेबी सूटबेबी सूट्स में न ही न्यू बोर्न बेबी बहुत ही क्यूट लगते हैं लेकिन ये पहनाने और उतारने में भी बहुत आसान होते है जिससे माता – पिता को कपडे पहनाने में ज्यादा कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता. यह गर्मियों में बहुत अच्छा विकल्प है और यह बेबी के लिए बहुत आरामदायक होता है. हलके रंगों के बेबी सूट्स में न्यू बोर्न बेबी बेहद क्यूट लगते हैं.

हल्के और ब्राइट रंग चुनेंगर्मियों में हलके रंग के कपडे आरामदायक होते है. डार्क कलर्स अधिक गर्मी सोख्ते है जिससे डार्क कलर्स में बेबी को गर्मी महसूस होती हैं. हलके रंग गर्मियों में एक ठंडक का एहसास भी देते हैं. हलाकि ब्राइट रंग भी बेबी पर काफी अट्रैक्टिव लगते हैं पर  पिंक , ब्लू,  नेवी, रेड, वाइट , येलो व ऑरेंज कलर ख़ास अच्छे लगते हैं. गर्मियों में काला या बहुत गहरे रंग के कपडे न चुने.

 

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क्यूट पैटर्न्स और  थ्रेड एम्ब्रायडरी समर ट्रेंड्स में सबसे ज्यादा क्यूट प्रिंट्स जैसे – एनिमल मैस्कॉट , शेप्स , फ्लोरल प्रिंट्स देखने को मिलते हैं. इन प्रिंट्स में न ही बच्चे बहुत खूबसूरत दिखते है पर साथ ही जानवर, नेचर और शेप्स पहचानना भी सीखते हैं.

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ट्रेंडी शॉर्ट्स – समर में  हाफ पैंट, शॉर्ट स्कर्ट आदि बहुत स्टाइलिश लगते हैं और गर्मियों में हवादार और आरामदायक भी होते हैं. बेबी के लिए निटेड डेनिम , जीन्स कम्फर्टेबले व स्टाइलिश होते हैं.

श्री राजेश वोहरा, चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर, आर्ट्साना ग्रुप, इन एसोसिएशन विद कीको रिसर्च सेण्टर

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