‘दिल ढूंढ़ता, है फिर वही… फुरसत के रात दिन…‘ सामने वाले मकान से आते इस गाने की धुन को सुन कर मैं जल्दी से छत पर आ गया. शायद कोई साउंड बौक्स पर या कैसियो से इस गाने की धुन को बजा रहा था.
‘‘वाह, कितना सुंदर…‘‘ मेरे मुंह से अनायास ही निकला. छत पर उस गाने की धुन और भी स्पष्ट सुनाई पड़ रही थी. मैं चुपचाप खड़ा गाने की धुन को सुनने लगा.
उस धुन को सुन कर ऐसा लग रहा था, जैसे कानों के रास्ते दिल में कोई अमृतरस टपक रहा हो. ऊपर से मौसम भी काफी खुशगवार था. साफ आसमान, टिमटिमाते तारे, हौलेहौले बहती ठंडी हवाएं मन आनंदित हो उठा. तभी मैं ने देखा, ऊंचीऊंची इमारतों की ओट से बड़ा सा गोलगोल चमकता हुआ चांद, अपना चेहरा बाहर निकालने का इस तरह से प्रयास कर रहा है, जैसे कोई नईनवेली दुलहन शर्मोहया से लबरेज आहिस्ताआहिस्ता अपना घूंघट हटा रही हो. प्रकृति के इस खूबसूरत नजारे को देख कर मैं ठगा सा रह गया.
‘‘क्या देख रहे हो?‘‘ तभी अचानक पीछे से प्रीति की आवाज आई. उस की आवाज सुन कर क्षण भर के लिए मैं चौंक गया. फिर उसे देख कर मैं ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आओ, तुम भी देखो, कितना खूबसूरत नजारा है न.‘‘
‘‘बहुत सुंदर है, आज पूनम की रात जो है.‘‘ प्रीति मेरे बगल में आ कर मुझ से सट कर खड़ी हो गई. फिर वह भी उस खूबसूरत नजारे को अपलक निहारने लगी.
‘‘ऐसी रात में अगर सारी रात भी जागना पड़ जाए, तो कुछ गम नहीं,‘‘ भावातिरेक में मैं ने प्रीति के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.
‘‘तुम्हें वह पूनम की रात याद है न?‘‘ प्रीति अपनी झील जैसी झिलमिलाती आंखों से मेरी ओर देखती, जैसे मुझे कुछ याद दिलाने का प्रयास करते हुए बोली.
‘‘उस रात को कैसे भूल सकता हूं? उस रात तो जैसे चांद ही धरती पर उतर आया था…‘‘ मैं ने गंभीर हो कर उदासी भरे स्वर में कहा.
उस गाने की धुन अभी भी सुनाई पड़ रही थी. चांद भी इमारतों की ओट से निकल आया था. उस की चांदनी से आंखों की ज्योत्सना बढ़ती जा रही थी पर उस रात की याद आते ही, मेरे साथसाथ प्रीति के चेहरे पर भी उदासी की झलक उतर आई. मैं ने देखा, इस के बावजूद उस के होंठों पर हलकी सी मुसकान उभर आई थी, लेकिन आंखों में तैर आए पानी को वह छिपा नहीं पाई. मैं ने उस के कंधे पर हौले से हाथ रख कर जैसे ढांढ़स बंधाने का प्रयास किया.
उस रात मेरी आंखों में नींद ही नहीं थी. बस, बिस्तर पर बारबार मैं करवटें बदल रहा था और अपने कमरे की खुली खिड़की से बाहर के नजारे को निहारे जा रहा था.
बाहर चांदी की चादर की तरह पूनम की चांदनी बिखरी हुई थी, जिस में सभी नजारे नहा रहे थे. ऐसी खूबसूरती को देख मेरे मन में आनंद की लहरें उमड़ रही थीं. खिड़की के ठीक सामने, आंगन में लगे जामुन की नईनई कोमल पत्तियों की चमक ऐसी थी, जैसे उन पर पिघली हुई चांदी की पतलीपतली परत चढ़ा दी गई हो. फिर हवा के झोंकों से अठखेलियां करती, उन पत्तियों की सरसराहट से मन में मदहोशी के साथ दिल में गुदगुदी सी पैदा हो रही थी.
दादी खाना खाने के बाद जैसा कि अकसर गांव में होता है, सीधे अपने कमरे में चली गई थीं. शायद वे सो रही थीं. रात के 9 बज चुके थे इसलिए चारों तरफ गहरी खामोशी थी. बस, कभीकभार कुत्तों के भौंकने की आवाज आती थी और दूर मैदानों में टुंगरी के आसपास उस निशाचरपक्षी के बोलने की आवाज सुनाईर् पड़ रही थी, जिसे कभी देखा तो नहीं, पर दादी से उस के बारे में सुना जरूर था, ‘रात को चरने वाली उस चिडि़या का नाम ‘टिटिटोहों‘ है. वह अधिकतर चांदनी रात में ही निकलती है.‘ उस का बोलना पता नहीं क्यों मेरे मन को हमेशा ही मोहित सा कर देता. लगता जैसे वह चांदनी रात में अपने साथ विचरण करने के लिए बुला रही हो.
मेरे दिल की बेचैनी बढ़ती ही जा रही थी, मन अधीर होता जा रहा था. उस वक्त एकएक पल जैसे घंटे के समान लग रहा था पर घड़ी के कांटे को मेरी तड़प से शायद कोई मतलब नहीं था. उस की चाल इतनी सुस्त जान पड़ रही थी कि अपने पर काबू रखना मुश्किल होता जा रहा था. फिर बड़ी मुश्किल से जब घड़ी के मिनट का कांटा तय समय पर जा कर अटका, तो मैं उसी बेचैनी के साथ जल्दी से
अपने बिस्तर से उठ कर आहिस्ताआहिस्ता अपने कमरे का दरवाजा खोल कर बाहर निकल गया.
गांव के बाहर स्थित मंदिर के पास प्रीति पहले से मेरा इंतजार कर रही थी. प्रीति को देखते ही खुशी से मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई, लेकिन अनजानी आशंका से थोड़ी घबराहट भी हुई, ‘‘कोई गड़बड़ तो नहीं हुई न,‘‘ पास पहुंचते ही मैं ने धीरे से पूछा था.
‘‘कोई गड़बड़ नहीं हुई. सभी सो चुके थे. मैं बड़ी सावधानी से निकली हूं,‘‘ प्रीति मुसकरा कर बोली थी.
‘‘तो चलो, चलते हैं,‘‘ मैं ने उत्साहित हो कर प्रीति का हाथ थामते हुए कहा.
फिर दोनों एकदूसरे का हाथ थामे टुंगरी की ओर जाने लगे. रास्ते में दोनों तरफ पुटूस के झुरमुट थे, जिन में जुगनुओं की झिलमिलाती लड़ी देखते बन रही थी. ऊपर चांदनी रात की खूबसूरती, दोनों के मन को जैसे बहकाए जा रही थी.
दोनों जब खुले मैदान में पहुंचे, तो नजारा और भी खूबसूरत हो उठा. साफ नीला आसमान, टिमटिमाते तारे और बड़ा गोल सा चांदी जैसा चमकता चांद, जिस की बरसती चांदनी में पूरी धरती जैसे स्नान कर रही थी और मंदमंद बहती हवा मन को जैसे मदहोश किए जा रही थी.
अचानक बेखुदी में दोनों के कदम तेज हो गए और एकदूसरे का हाथ पकड़, मैदान में दौड़ने लगे. अब टुंगरी भी बिलकुल पास ही थी. वह निशाचर चिडि़या नजदीक ही कहीं आवाज दे रही थी. तभी उस के पंख फड़फड़ाए और वह उड़ती नजर आई. मेरा दिल एक बार फिर से धक रह गया.
‘‘प्रीति, मुझे तो यकीन नहीं हो रहा है कि यह सब हकीकत है. कहीं यह ख्वाब तो नहीं,‘‘ मैं ने प्रीति की नाजुक हथेली को जोर से भींच कर कहा. अपने बहकते जज्बातों को मैं जैसे रोक नहीं पा रहा था.
‘‘ख्वाब ही तो है, जो हम दोनों हमेशा से देखते रहे थे. ऐसी चांदनी रात में एकदूसरे के हाथों में हाथ डाले, कुदरत के ऐसे खूबसूरत नजारे को निहारते, एकदूसरे में खोए, जब सारी दुनिया सो रही हो, हम जागते रहें…‘‘
‘‘सच कहा तुम ने, मैं ने ऐसी ही रात की कल्पना की थी.‘‘
‘‘तो फिर अब मुझे वह गाना सुनाओ, मोहम्मद रफी वाला, जो तुम हमेशा गुनगुनाते रहते हो.‘‘
‘‘कौन सा खोयाखोया चांद वाला…‘‘ मैं ने मजाकिया लहजे में कहा.
‘‘हां, गाओ न,‘‘ प्रीति खुशी से मुसकराते हुए आग्रहपूर्वक बोली.
‘‘एक शर्त पर,‘‘ मैं ने रुक कर कहा.
‘‘क्या,‘‘ कह कर प्रीति मुझे घूरने लगी.
‘‘तुम्हें भी उस फिल्म का गाना सुनाना होगा, जो मैं ने तुम्हें नैट से डाउनलोड कर के दिया था,‘‘ मैं ने मुसकरा कर कहा.
‘‘फिल्म ‘पाकीजा‘ का ‘मौसम है आशिकाना…‘‘ प्रीति मुसकराते हुए बोली.
‘‘हां,‘‘ कह कर मैं फिर से मुसकराया.
‘‘हमें मंजूर है, हुजूरेआला,‘‘ प्रीति भी जैसे चहक उठी.
उस चांदनी रात में गुनगुनाते हुए दोनों एकदूसरे के हाथों में हाथ डाले आगे बढ़ते जा रहे थे. कुछ देर बाद दोनों टुंगरी के ऊपर थे. जहां से चांदनी रात की खूबसूरती अपने पूरे शबाब में दिख रही थी. चारों तरफ पूनम की चांदनी दूर तक बिखरी हुई थी. आसमान अब भी साफ था, लेकिन कहीं से आए छोटेछोटे आवारा बादल चांद से जैसे जबरदस्ती आंखमिचौली का खेल रहे थे.
उस दिलकश खेल को देख कर दोनों के आनंद की सीमा न रही, मन नाच उठा. फिर उस जगह की खामोशी में, रात के उस सन्नाटे में एकदूसरे के धड़कते हुए दिल की आवाज सुन कर अंगड़ाइयां लेते मीठे एहसासों से, अंदर कहां से यह आवाज आ रही थी… जैसे यह चांद कभी डूबे नहीं, यह वक्त यहीं रुक जाए, यह रात कभी खत्म न हो. काश, यह दुनिया इतनी ही सुंदर होती, जहां कोईर् पाबंदी, कोई रोकटोक नहीं होती. सभी एकदूसरे से यों प्रेम करते. इस रात में जो शांति, जो संतोष का एहसास है, ऐसा ही सब के दिलों में होता. किसी को किसी से कोई बैर नहीं होता.
‘‘प्रीति, तुम्हें नहीं लगता हम दोनों जैसा सोचते हैं, ऐसा काम तो कवि या लेखक लोग करते हैं यानी कल्पना की दुनिया में जीना. वे ऐसी दुनिया या माहौल का सृजन करते हैं, जो आज के दौर में संभव ही नहीं है.‘‘
‘‘संभव है, चाहे नहीं, पर सचाई तो सचाई होती है. जिंदगी इस चांदनी रात के समान ही होनी चाहिए, शीतल, बिलकुल स्निग्ध, एकदम तृप्त. फिर सकारात्मक सोच ही जीवन को गति प्रदान करती है. जहां उम्मीद है, जिंदगी भी वहीं है.‘‘
‘‘अरे वाह, तुम्हारी इन्हीं बातों से तो मैं तुम्हारा इतना दीवाना हूं. तुम इतनी गहराई की बातें सोच कैसे लेती हो?‘‘
‘‘जब जिंदगी में किसी से सच्चा प्यार होता है, तो मन गहराई में उतरने की कला अपनेआप सीख लेता है. फिर जिसे साहित्य से भी प्यार हो, उसे सीखने में अधिक समय नहीं लगता.‘‘
‘‘प्रीति, अगर तुम मेरी जिंदगी में न आती, तो शायद मैं आज गलत रास्ते में भटक गया होता. मुझे अधिक हुड़दंगबाजी तो कभी पसंद नहीं थी. मगर आधुनिकता के नाम पर अपने दोस्तों के साथ, पौप अंगरेजी गाने सुनना और इंटरनैट पर गंदी फिल्में देखने का नशा तो चढ़ ही चुका था. अगर इस बार परीक्षाओं में मेरा बढि़या रिजल्ट आया है, तो सिर्फ तुम्हारी वजह से. अब मैं अपने उन दोस्तों से भी शान से कहता हूं कि क्लासिकल गाने एक बार दिल से सुन कर देखो, उस के रस में, उस के जज्बातों में डूब कर देखो, तुम्हें भी मेरी तरह किसी न किसी प्रीति से जरूर प्यार हो जाएगा.‘‘
‘‘तुम अब वे फिल्में तो कभी नहीं देखते न?‘‘ प्रीति ने अचानक इस तरह से प्रश्न किया, जैसे कोई अच्छी शिक्षिका अपने छात्र को उस का सबक फिर से याद दिला रही हो.
मैं ने भी डरने का नाटक करते, उसे छेड़ते हुए कहा, ‘‘अरे नहीं, कभी नहीं… अब देखूंगा भी तो तुम्हारे साथ शादी के बाद ही.‘‘
‘‘तो अभी से मन में सब सोच कर रखा है?‘‘ शिक्षिका के होंठों पर मुसकान थी, लेकिन नाराजगी स्पष्ट झलक रही थी.
‘मुझे कहीं डांट न पड़ जाए‘ यह सोच कर मैं ने झट से अपने दोनों कान पकड़ कर कहा, ‘‘अरे, नहीं बाबा, जिंदगी में कभी नहीं देखूंगा. मैं तो बस, यों ही मजाक कर रहा था पर तुम से एक बात कहने की इच्छा हो रही है.‘‘
‘‘क्या…‘‘ अपनी आंखें फिर बड़ी कर प्रीति मुझे घूरने लगी.
उसे गुस्साते देख कर, मैं ने मुसकरा कर कहा, ‘‘यही कि तुम अभी और भी खूबसूरत लग रही हो. सच कहता हूं, उस चांद से भी खूबसूरत…‘‘
‘‘अच्छा जी, तो अब मुझे बहकाने की कोशिश हो रही है,‘‘ प्रीति फिर मुंह बना कर बोली पर चेहरे पर मुसकान थी.
‘‘सच कहता हूं, जब भी तुम्हारी ये झील जैसी आंखें और गुलाब की पंखडि़यों जैसे होंठों को देखता हूं, तो अपने दिल को समझा नहीं पाता हूं. कम से कम एक किस तो दे दो,‘‘ मैं याचना कर बैठा.
इस पर फिर अपने गाल फुला कर प्रीति बोली, ‘‘ऐसी बातें करोगे, तो मैं चली जाऊंगी.‘‘
‘‘तो चली जाओ. भले ही मुझे नाराजगी न हो, यह रात और यह चांदनी, यह मौसम और ये नजारे तुम से जरूर नाराज हो जाएंगे. कहेंगे, यह लड़की कितनी पत्थर दिल है,‘‘ रूठी मैना को मनाने के चक्कर में मैं ने भी रूठने का नाटक किया.
तब अचानक अपने कदम रोक कर बिना कुछ बोले प्रीति मुझ से लिपट गई थी.
‘‘अरे, यह हुई न बात, वैसे मैं तो तुम्हें यों ही छेड़ रहा था,‘‘ मैं ने भी भावुक हो कर उसे अपनी बांहों में समेट लिया था.
प्रीति कुछ देर तक उसी तरह मेरी बांहों में लिपटी रही. दोनों की सांसें अनायास ही तेज हो चली थीं और दिल की धड़कनों का टकराना, दोनों ही महसूस कर रहे थे. फिर मैं ने प्रीति की मौन स्वीकृति को भांप कर प्यार से उस के होंठों को चूम लिया. फिर जब दोनों अलग हुए, तो दोनों की ही आंखों में प्रेम के आंसू झिलमिला रहे थे.
‘‘चलो, अब वापस चलते हैं, काफी देर हो गई,‘‘ अपने मोबाइल पर समय देखते हुए प्रीति ने कहा.
‘‘थोड़ी देर और रुको न, तुम तो जानती हो, मैं इसी रात के लिए शहर से गांव आया हूं. अगर तुम आने का वादा न करती, तो क्या मैं यहां आता?‘‘
‘‘तुम्हें पता है, मैं कितनी होशियारी से निकली हूं. अगर घर में किसी को भनक लग गई तो…‘‘
‘‘तो क्या होगा? हम यहां घूमने ही तो आए हैं, कोई गलत काम तो नहीं कर रहे.‘‘
‘‘मेरे भोले मजनूं, यह शहर नहीं गांव है. मैं यहां 14-15 साल से रह रही हूं. तुम तो बस, 2-3 दिन के लिए कभीकभार ही आते हो. यहां बात का बतंगड़ बनते देर नहीं लगती.‘‘
‘‘तो डरता कौन है? जब हमारा प्यार सच्चा है, तो मुझे किसी की परवा नहीं.‘‘
‘‘मेरी तो परवा है…‘‘
‘‘तुम्हें कोई कुछ कह कर तो देखे…‘‘
‘‘मैं अपने मांबाप की बात कर रही हूं. अगर वे ही कुछ कहेंगे तो?‘‘
‘‘अरे, उन्हें तो मैं कुछ नहीं कह सकता. मेरे लिए तो वे पूजनीय हैं, क्योंकि उन के कारण ही तो तुम मुझे मिली हो. मैं तो जिंदगी भर उन के पैर धो सकता हूं.‘‘
‘‘तो चलो, चलते हैं,‘‘ प्रीति मुसकराते हुए मेरा हाथ पकड़ कर बोली.
‘‘काश, इस तरह हम रोज मिल पाते,‘‘ मैं ने प्रीति के साथ कदम बढ़ाते हुए आह भर कर कहा.
‘‘इंतजार का मजा लेना भी सीखो. ऐसी चांदनी रात रोज नहीं हुआ करती,‘‘ प्रीति मेरी ओर देखते हंसते हुए बोली.
‘‘इसीलिए तो कह रहा हूं, थोड़ी देर और ठहर लेते हैं. खैर, छोड़ो. अब तो कुछ दिन कुछ रातें, इंतजार का ही मजा लेना पड़ेगा. तुम महीने भर बाद जो शहर लौटोगी. मुझे तो शायद कल ही लौटना पड़ेगा,‘‘ मैं ने कुछ उदास स्वर में कहा.
‘‘क्या? तुम कल ही लौट रहे हो,‘‘ प्रीति हैरानी जाहिर करते हुए बोली.
‘‘हां, पापा का फोन आया था. इस बार उन्हें छुट्टी नहीं मिल पाई वरना मम्मीपापा भी सप्ताह भर के लिए यहां आ जाते. वे नहीं आ पाएंगे, इसलिए उन्होंने इस बार दादी को भी साथ ले कर आने के लिए कहा है. अगर तुम भी साथ वापस चलती तो कितना अच्छा होता.‘‘
‘‘अगर चाचाजी आ जाते तो शायद जल्दी लौटना हो जाता, पर उन को भी छुट्टी नहीं मिल पाई. बाबा, खेतों का काम खत्म होने से पहले जाएंगे नहीं और तुम तो जानते हो मैं अकेली जा नहीं सकती.‘‘
‘‘खासकर किसी दूसरी जाति के लोगों के साथ…‘‘
‘‘फिर मुझे ताने सुना रहे हो?‘‘
‘‘नहीं, मैं तुम्हें कुछ नहीं कह रहा पर कभीकभी सोचने पर विवश हो जाता हूं कि हमारा गांव इतना खूबसूरत है मगर यहां अभी भी जातपांत के पुराने खयालातों से लोग मुक्त नहीं हो पाए हैं. पता नहीं, हमारे प्यार का अंजाम क्या होगा…‘‘
‘‘तो क्या तुम अंजाम से डरते हो?‘‘
‘‘हां, डरता तो हूं. अगर कोई कहेगा, तुम्हारी जिंदगी, तुम्हारी नहीं हो सकती, तो क्या डरना नहीं चाहिए?‘‘
‘‘बिलकुल नहीं डरना चाहिए आप को, क्योंकि आप की जिंदगी हमेशा आप के साथ रहेगी,‘‘ प्रीति मुसकरा कर बोली.
‘‘तो मैं भी अंजाम से नहीं डरता,‘‘ मैं ने भी उसी अंदाज में कहा.
‘‘यह हुई न बात‘‘ फिर शांत स्वर में बोली, ‘‘रमेश, देखना इस गांव में बदलाव हम ही लाएंगे. लोगों को यह मानना पड़ेगा कि इंसानियत से बड़ी दूसरी कोई जात नहीं होती और इंसानियत कहती है कि एकदूसरे को समान दृष्टि से देखा जाए और सभी प्रेम से मिल कर रहें.‘‘
‘‘तुम जब भी इस तरह की बातें करती हो, तो मेरे अंदर एक जोश आ जाता है. आज मैं भी इस पूनम की रात में कसम खाता हूं, रास्ता चाहे जितना कठिन हो, जब तक हमें मंजिल मिल नहीं जाती, मैं हर कदम तुम्हारे साथ रहूंगा,‘‘ मैं ने अपने दोनों हाथों को ऊपर फैला कर बड़े जोश में कहा.
उस रात ढेर सारी उम्मीदों के साथ, दिल में ढेर सारे सपनों को सजाए, एकदूसरे से विदा ले कर, हम दोनों अपनेअपने घर चले गए थे. लेकिन जिस कठिन रास्ते की हम ने कल्पना की थी, वह इतना कंटीला साबित होगा, कभी सोचा न था.
उस रात लौटते वक्त शायद किसी ने हमें देख लिया था. हो सकता है, वह मंदिर का पुजारी, गांव का पंडित ही रहा हो. क्योंकि उस ने ही प्रीति के बाबा को बुलवा कर इस की शिकायत की थी. धर्म के, समाज के ऐसे ठेकेदार, जिन्हें राधाकृष्ण के प्रेम, उन की रासलीला से तो कोई आपत्ति नहीं होती, लेकिन यदि हम जैसे जोड़े उस का अनुसरण करें, तो उन के लिए समाज की मानमर्यादा, उस की इज्जत का सवाल उत्पन्न हो जाता है…
उस दिन प्रीति के साथ क्या हुआ? यह कहने की आवश्यकता नहीं है. उस के घर वाले तो मुझे भी ढूंढ़ने आ गए थे… पर मैं दादी को ले कर शहर के लिए सुबह की बस से पहले ही निकल गया था.
बाद में गांव से प्रीति का फोन आने पर मैं पिताजी के सामने जा कर उन्हें सारी बातें बता कर रोने लगा. हमेशा की तरह एक दोस्त के समान मेरा साथ देते हुए पिताजी मुझे समझा कर तुरंत प्रीति के चाचाजी से बात करने चले गए. जो हम से कुछ ही दूर किराए के मकान में रहते थे. चाचाजी, पिताजी की तरह ही सुलझे विचारों वाले आदमी थे. गांव जा कर सब को काफी समझाने का प्रयास किया. यहां तक कि पंचों से भी बात कर के देखा, लेकिन बात नहीं बन पाई.
भाईभाई के बीच मनमुटाव वाली स्थिति पैदा हो गई. फिर पंचों से भी यह धमकी मिली कि यदि वे समाज की परंपरा के खिलाफ जाएंगे, तो उन्हें जातबिरादरी से बाहर कर दिया जाएगा. कोई उन का छुआ पानी तक नहीं पीएगा.
अंत में हार कर चाचाजी और पिताजी को पुलिस का सहारा लेना पड़ा और न चाहते हुए भी हम दोनों की शादी मजबूरन कोर्ट में करनी पड़ी.
हम दोनों की बस इतनी ही तो इच्छा थी कि समाज के सामने सामाजिक रीतिरिवाज से हम दोनों की शादी हो जाए. लेकिन समाज की रूढि़वादी परंपराओं की दीवार को गिरा पाना आसान काम तो नहीं होता. हम ने प्रयास क्या किया? कितना कुछ घटित हो गया. बाद में यह भी पता चला कि गांव के कुछ लोगों ने हमारे घर को आग लगाई और गांव से हमेशा के लिए हमारा बहिष्कार कर दिया गया.
आज इतने सालों बाद भी स्थिति जस की तस है. हमारे लिए वह रास्ता उतना ही दुर्गम है, जो वापसी को उस गांव तक जाता है. उस रात के बारे में कभी सोचता हूं, तो अपनी उस नादानी पर डर जाता हूं. क्योंकि जिस समाज में जातपांत के आधार पर इंसान का विभाजन होता हो और जहां जवान लड़केलड़की के बीच पवित्र रिश्ते जैसी किसी चीज की कल्पना तक नहीं की जाती, वहां उस सुनसान रात में एक जवान जोड़े को घूमते देख कर क्या उन्हें यों ही छोड़ दिया जाता?
फिर भी पता नहीं क्यों? उस रात को, प्रीति का साथ मैं भी कभी भुला नहीं पाया. आज भी हर ऐसी चांदनी रात में वह पूनम की रात याद आते ही मन भावविभोर हो जाता है.
शीना ने अपनी दोस्त मीताली को भी मैसेज कर यह खबर दे दी थी कि अब वह कल से कालेज आएगी.
आज कालेज जाने के लिए शीना चहकते हुए उठी थी. चेहरे पर टोनर , मोइश्चराइजर, पाउडर, लाइनर, आईशैडो, मसकारा, लिपस्टिक और गालों पर ब्लश लगा वह कालेज जाने के लिए तैयार थी.
कालेज के गेट से कार अंदर ले जाने लगी तो उस के शरीर में उमंग दौड़ गई. कार पार्क कर वह मीताली को कौल करने लगी. मीताली क्लास में ही थी तो शीना भी क्लास की तरफ बढ़ गई. वह लिफ्ट की तरफ जा रही थी तो हर कोई उसे ऊपर से नीचे देखने लगा. लंबे घने बाल, सुंदर नैननक्श, स्टायलिश कपड़े और ब्रांडेड बैग. आमतौर पर कालेज के बच्चे बेफिक्र घूमने वालों में से होते हैं, लेकिन शीना सब से अलग दिख रही थी. वह क्लास में गई तो सभी उसे एकटक देखने लगे. उस ने दूसरे डेस्क पर मीताली को देखा और उस के पास जा कर बैठ गई.
“तू तो आते ही सब की नजर में चढ़ गई, सही है सही है,” मीताली बोली.
“अब सुंदर लड़की को देखने से लोग खुद को नहीं रोक पा रहे तो मेरी क्या गलती,” कह कर शीना हंसने लगी.
क्लास में इतिहास के टीचर आए तो सभी तन कर बैठ गए. शीना को देख कर सर ने कहा, “तुम पहली बार आई हो यहां?” सर यूपी के रहने वाले थे तो उन का बोलने का लहजा सुन सभी हंसने लगते थे क्योंकि वह सुनाई कुछ इस तरह दिया था- तुम्म पेहली बार आई… हो… यहां.
“येस सर,” शीना ने झेंपते हुए कहा.
“ऐसा क्या काम करती हो जो क्लास नहीं आ पाती. तुम बच्चों का बस यही है, मांबाप के भी पैसे खर्च कराते हो और कालेज की सीट भी खराब करते हो,” सर पूरी क्लास को सुनाते हुए कहने लगे. लगभग पूरी क्लास ही शीना का मजाक उड़ता देख चहक रही थी.
“तेरा तो बड़ा अच्छा वेलकम कर दिया सर ने,” मीताली शीना पर हंसते हुए बोली.
सर क्लास से गए तो एकएक कर कोई न कोई किसी न किसी बहाने से शीना को हायहैलो करने आता रहा. मीताली के दोस्त तो कायदे से शीना के दोस्त भी थे. शीना और मीताली बचपन से एक ही स्कूल में पढ़े थे इसलिए दोनों ने एक ही कालेज में एडमिशन भी लिया था.
लड़को के लिए तो शीना से आंख हटाना मुशकिल था. मीताली के तीन और दोस्त थे जो अब शीना के दोस्त भी बन गए थे (कायदे से), नैना, सुधीर और अक्षत.
नैना और सुधीर तो शीना के आगे पीछे होने लगे थे लेकिन अक्षत का शीना पर कुछ खास ध्यान नहीं गया था. वह अपनी किताबों और अपनी गर्लफ्रेंड विभा के साथ ही घूमता फिरता था.
शीना के लिए चीजें धीरेधीरे सामान्य होने लगी थीं. लेकिन, वह कालेज से सीधा डांस और सिंगिंग क्लास के लिए निकल जाया करती थी. जब भी घूमने की बात होती तो कहती ये क्लास है, वो क्लास है, घर पर काम है या मम्मी डाटेंगी. वैसे भी शीना की मम्मी उस के कालेज जाने से खुश नहीं थीं.
कालेज में शीना अपने ग्रुप के साथ गुट बना कर बैठी थी, मीताली, सुधीर, नैना और अक्षत के साथ. बातोंबातों में सभी को पता लगा कि अक्षत और विभा का ब्रेकअप हो गया है, नैना और सुधीर ने यूपीएससी की कोचिंग जौइन कर ली है, मीताली को टीचर्स पसंद करने लगे हैं और शीना को कई लड़के अप्रोच करने लगे हैं.
“शीना, तू किसी को डेट क्यों नहीं करती, हाय हैलो से आगे तो बढ़?” नैना ने कहा.
“कोई पसंद भी तो आना चाहिए,” शीना ने जवाब दिया.
“तुझे या तेरी मम्मी को,” मीताली ने चुटकी ली.
“क्या मतलब,” सुधीर ने पूछा.
“इस की मम्मी लड़कों को इस के आगे भटकने कहां देती हैं. स्कूल में इस के बौयफ्रेंड पीयूष का मैसेज देख कर प्रिन्सिपल को बता दिया था और ट्यूशन में जो लड़का मिला था, क्या नाम था उस का…हां, मयंक, उसे तो जो फटकार लगाई थी सब के सामने बेचारा आज तक पछताता होगा,” मीताली ने बताया.
यह सुन सब शीना पर हंसने लगे. कोई कहता कि वह भरी जवानी में मम्मी के आतंक से डेटिंग का मजा मिस कर रही है तो किसी ने कहा कि उसे कालेज में तो बौयफ्रेंड बना ही लेना चाहिए. आखिर में शीना को सब ने समझाया कि मम्मी को कुछ पता नहीं चलेगा अब जो मन आए कर ले.
शीना से हट कर सब अक्षत से उस के ब्रेकअप के बारे में पूछने लगे. शीना ने भी सवाल किया, “तुम विभा के साथ क्यों थे, मेरा मतलब तुम तो काफी स्मार्ट हो, दिखने में भी उस से चार ही हो, फिर रिलेशनशिप में कैसे?”
अक्षत ने हैरानी से पूछा, “तुम शक्ल से दोस्ती करती हो या इंसान से?”
“क्या मतलब,” शीना ने कहा.
“इंसान की पहचान उस की शक्ल से कही ज्यादा होती है, तुम्हारी शायद तुम्हारी शक्ल के अलावा और कुछ न हो पर बाकी सब का यह हाल नहीं है,” अक्षत ने गंभीरता से कहा.
“अक्षत यह क्या कह रहे हो,” मीताली ने अक्षत को घूरते हुए कहा.
“मेरी क्लास है मैं जा रहा हूं,” कहता हुआ अक्षत वहां से निकल गया.
शीना के लिए यह बेज्जती अप्रत्याशित थी. उसे लगा उस ने सचमुच बेवकूफी भरी बात की है, सो उठ कर चली गई. शाम को शीना हमेशा की तरह सब से पहले घर के लिए निकल रही थी तो उसे गेट के पास अक्षत मिला. अक्षत ने उसे देखा और कहा, “वो…. मुझे इस तरह बात नहीं करनी चाहिए थी, सौरी.”
“कोई बात नहीं, मैं ने लापरवाही से कुछ भी कह दिया था, मुझे नहीं कहना चाहिए था.”
“तुम्हें सुंदरता को समझना चाहिए, चेहरे से सुंदर होना ही सबकुछ नहीं होता. मैं तुम्हें इंसल्ट नहीं कर रहा तो ओफेंड मत होना, पर जो है सो है. मैं किताबों में मस्त रहने वाला इंसान हूं खूबसूरत चेहरे के ऊपर खूबसूरत दिमाग को महत्व देता हूं, शायद तुम्हें अपने पहले वाले प्रश्न का जवाब मिल गया है. चलता हूं.”
“अक्षत, सौरी,” शीना ने कहा तो अक्षत मुस्कराते हुए वहां से चला गया.
शीना एक दिन योंही व्हाट्सऐप पर सब की प्रोफाइल पिक्चर देख रही थी कि उस की नजर अक्षत की डीपी पर गई. शांत स्वभाव का अक्षत तस्वीर में सुंदर लग रहा था. शीना की नजर उस पर ही टिक गई. अक्षत की बड़ीबड़ी आंखें, घने बाल, निचले होंठ पर तिल और हल्की मुस्कराहट शीना को अच्छी लगी थी. लेकिन, अक्षत शीना को भाव ही कहां देता था जो वह उस के बारे में सोचे.
मम्मीपापा शीना को ले कर आज भी लड़ रहे थे. ऐसा भी तो नहीं था कि वह उन दोनों में से किसी से कुछ कह सके. वैसे भी उसे बचपन से ही इन झगड़ों को सुनने की आदत थी. उस ने फोन साइड टेबल पर रखा और सो गई.
ट्रिप का दिन नजदीक आ गया था. ट्रिप पर जाने का मतलब था 5 दिन तक घर और घर के सारे ड्रामे से दूर, किसी क्लास का कोई झंझट नहीं और न मम्मी की बातें.
ट्रिप पर जाने वाले दिन ही सुबह शोभा ने शीना को सख्त हिदायत दी थी कि वह सब से दूर रहे और सिर्फ मीताली के साथ ही घूमेफिरे. किसी लड़के के साथ ज्यादा भटकने की जरूरत नहीं है वरना उस का कालेज जाना बंद कर दिया जाएगा. शीना कभी समझ नहीं पाई कि आखिर उस की मम्मी को उस के लड़कों से दोस्ती करने पर इतनी परेशानी क्या है, आखिर इतनी मौडर्न होने के बाद भी उस का कोई बौयफ्रेंड नहीं है. शीना को समझ नहीं आता कि यह मम्मी की उस को ले कर चिंता है या क्या.
यह मीटिंग सोसायटी के क्लब हाउस में हो रही थी. मीटिंग सिर्फ बहुओं की थी. अब आप कहेंगे कि इस में नया क्या है? सासबहू में तो सदियों से छत्तीस का आंकड़ा रहा है. पीडि़त बहुएं तो घरघर मिल जाएंगी. हां, यह भी ठीक है. मगर ये बहुएं थोड़ा हट कर हैं. पढ़ीलिखी, अपडेट और सास से दूर पति संग अलग आशियाने में आजाद रहने वाली यानी इन की सासें परदेश में बसती हैं या यह भी कह सकते हैं कि ये सासूबाड़ी छोड़ कर परदेश में बसी हुई हैं. फिर दुख काहे का? सास साथ नहीं रहतीं तो फिर कैसी टैंशन? यही तो बात है. ‘सासूमां साथ नहीं तो टैंशन नहीं’ लोग यही समझते हैं. घूमोफिरो मौज करो, जैसी मरजी वैसा जीने का नियम बनाओ. लेकिन जरा रूबी, सोनी, दीपा, स्वीटी, पल्लवी, सोनम, अर्चना, कनक… लंबी लिस्ट है. इन की दुखती रग पर हाथ रखो तो पता चलेगा कि सासें दूर रह कर भी कैसे इन पर हुक्म चलाती हैं और तब इन के दिल पर क्या बीतती है सहज अंदाजा लगा सकती हैं… त्राहित्राहि करती हैं ये बेचारियां. किस से करें फरियाद और कौन सुनेगा इन की फरियाद.
ये होपलैस बहुएं दूसरे शहरों में रहने वाली अपनी सासों से परेशान हो कर आज मीटिंग कर रही हैं. इस मीटिंग का धांसू आइडिया मिसेज अग्रवाल का है. वे यूएसए में रहती हैं. 2 साल बाद त्योहार पर भारत आईं है. होली मिलन समारोह में हंसीठट्ठे के बीच उन्होंने कुबूल किया, ‘‘यहीं से बैठेबैठे मेरी सास अपना शासन चलाती हैं. उफ, मैं तंग आ जाती हूं… कई बार लगता है सात समंदर पार रहने का कोई फायदा नहीं. बिंदी भले ही नहीं लगाती हूं, पर सास का हुक्म सिरमाथे पर लगा कर रहना पड़ता है.’’ हंसीमजाक में जो बात निकली तो दूर तक गई. मैडम सोनम ने ताड़ लिया कि मामला गड़बड़ है. अत: वे मिसेज अग्रवाल के पीछे पड़ गईं. उन्होंने उन से सास के कुछ राज भी उगलवा लिए. वे खुद भी दूसरे शहर में रहने वाली अपनी सासूमां से त्रस्त थीं. आरती अग्रवाल ने प्रस्ताव रखा, ‘‘कल हम लोग क्लब हाउस में मिलें और वहां अपनीअपनी बात रखें. हम सब मिल कर इस समस्या का समाधान खोजने की कोशिश करें कि कैसे सासू मां की दखलंदाजी नहींनहीं तीरंदाजी से छुटकारा पाया जाए.’’
सोसायटी की लगभग सारी बहुएं मीटिंग में आ गई थीं. मिसेज अग्रवाल ने मोरचा संभाला, ‘‘अपनीअपनी सासूमां से त्रस्त फ्रैंड्स, आप सब को पता है कि हम यहां क्यों इकट्ठा हुए हैं? हमारे पास ज्यादा समय नहीं है, इसलिए सब बिना किसी लागलपेट के अपनीअपनी परेशानी यहां रखें और फिर मिलजुल कर समाधान ढूंढ़ने का प्रयास करें. आप लोग जानती ही हैं कि मैं सात समंदर पार रहती हूं. पता है सासूमां की जिद की वजह से मुझे इस होली पर यहां आना पड़ा. वैसे यहां आ कर घरपरिवार के लोगों से मिलनाजुलना मुझे भी अच्छा लगता है लेकिन फ्रैंड्स इस बार मैं यहां इसलिए नहीं आना चाहती थी. क्योंकि मेरी तबीयत ठीक नहीं चल रही थी. डाक्टर ने 2-3 महीनों तक लंबी यात्रा करने से मना किया था.
सासूमां ने अपने बेटे को औफिस में बारबार फोन कर परेशान कर दिया कि देखो तनु सिर्फ बहाने बना रही है और कुछ नहीं. वह यहां आना ही नहीं चाहती. एक बार नहीं आएगी तो फिर हर बार नए बहाने बनाएगी. बेटे को जाने क्या पाठ पढ़ाया कि उन्होंने टिकट ले कर सीधे मुझे फरमान सुना दिया कि तुम्हें होली मां के साथ ही मनानी है.
इतना ही नहीं, सासूमां रोज वीडियो कौल कर के कोई न कोई हिदायत देती रहती हैं… कभी सुबहसुबह कहती हैं कि आज वृहस्पतिवार है. याद दिला रही हूं… तुम्हें तो कुछ याद रहता नहीं रहता … आज कपड़े मत धोना. और हां, सत्तू के पराठे मत बना लेना. तुम दोनों को बहुत पसंद हैं… जबतब बना लेती हो. वीडियो चैट में वे लंच बौक्स तक देखती हैं कि उस में सत्तू के परांठे तो नहीं हैं. मैं कितनी परेशान हूं बता नहीं सकती… ऐसीऐसी ऊलजलूल बातें करती हैं कि झेलना मुश्किल हो जाता है.
‘‘बेड़ा गर्क हो नैटवर्क कंपनियों का, जिन्होंने हमारी सासों के हाथों में फ्री नैटवर्करूपी मजबूत मिसाइल थमा दी है… क्या बताऊं यहां आने के 2 दिन पहले की बात है. हम लोग डिनर कर रहे थे. बड़े प्यार से इन्होंने खीरा, टमाटर और गाजर का सलाद काटा था. हम लोगों को यह सलाद बहुत पसंद है. सासूमां की नजर उस प्लेट पर पड़ गई. फिर क्या था उन्होंने उसी समय उसे वहां से यह कह कर हटवा दिया कि रात में ये ठंडी चीजें क्यों खा रहे हो तुम लोग? याद नहीं सोमू को पिछले साल डाक्टर ने रात में सलाद खाने से मना किया था… फिर से सर्दीवर्दी हो गई तो… और तब तक वीडियो चैट करती रहीं जब तक कि हमारा डिनर खत्म नहीं हो गया.’’ ‘‘उफ,’’ सब के मुंह से एकसाथ निकला. यह सब की आह थी.
मिसेज अग्रवाल ने सब की दुखती रग पर हाथ रख दिया था. जब सब की सांस में सांस आई तो अंकिता ने अपनी बात रखी, ‘‘मेरी सासूमां गांव में रहती हैं, जो अब आधाअधूरा शहर हो गया है. उन का फरमान है कि हर पर्वत्योहार वहीं आ कर उन के साथ मनाएं. शादी के 12 साल बीत गए हैं. यह सिलसिला जारी है. वहां जा कर त्योहार क्या मनाना, सारा दिन किचन में ही बीत जाता है.
‘‘अब बेटियां भी बड़ी हो रही हैं. वे वहां नहीं जाना चाहतीं. वहां हम लोग न तो अपनी पसंद का खा सकते हैं, न ही पहन सकते हैं और न ही मौजमस्ती कर सकते हैं. मैं किसी फैस्टिवल पर अपने हिसाब से घर सजाने के लिए तरस गई हूं. पति से कुछ कहती हूं तो कहते कि निभाना तो पड़ेगा ही. अब जब त्योहार आने वाला होता है, तो मन बुझ जाता है.
औफिस में ज्यादा काम होने की वजह से इस बार होली में इन्हें सिर्फ 2 दिन की छुट्टी मिलने वाली थी. मैं और मेरी बेटियां खुश थीं कि इस बार हम अपने मनमुताबिक होली मनाएंगे. लेकिन आप लोगों ने देखा है न कि सासूमां होली से सप्ताहभर पहले खुद आ गईं और मोरचा संभाल लिया.’’ एक बार फिर सब की आह फिजां में फैल गई.
अब रागिनी ने बड़े दुखी स्वर में राग छेड़ा, ‘‘2-3 महीने पहले की बात है. मेरी ससुराल में दूर के रिश्ते की चाची का निधन हो गया. हमारी शादी को 14 साल हो गए हैं. मैं ने 1 बार भी उन्हें नहीं देखा. यहां तक कि वे किसी शादीब्याह में भी नहीं आती थीं. उन के परलोक गमन के बाद सासूमां का संदेशा आया कि हमारे यहां का रिवाज है कि किसी की मौत के बाद 10वीं तक घर में रोटी नहीं बनती. दालसब्जी में छौंक नहीं लगता. हलदीहींग भी नहीं डालते यानी उबला खाना खाते हैं. मैं ने पति से कहा कि हम ये सारी रस्में कैसे निभा पाएंगे? फिर बच्चों को स्कूल के लिए लंच ले जाना होता है. वे क्या ले जाएंगे, क्या खाएंगे? लेकिन न सास मानीं, न पति. मैं ने जिद ठानी तो पति ने ऐलान किया कि ठीक है, तुम खाना मत बनाओ. मैं खुद बनाऊंगा. अब बताइए मैं क्या करती? यही नहीं हमारी ससुराल में 10वीं के दिन सिर मुड़ाने का रिवाज है. इन्होंने खुद का तो सिर मुड़वाया ही, 7 साल के बेटे का भी मुंडन करवा दिया. वह रोता रहा कि मुझे अपने बाल नहीं कटवाने… मुझे स्कूल में नाटक में भाग लेना है. उन्होंने उस की एक नहीं सुनी…’’
‘‘हाय रे बेचारा बच्चा,’’ सब के मुंह से निकला. कुछ पलों के लिए वातावरण में सन्नाटा छा गया. फिर स्वीटी की स्वरलहरी हवा में तैरने लगी, ‘‘मेरी सास छोटे शहर में रहती हैं. शादी को 2 साल ही हुए हैं और मैं उन की हिदायतों से परेशान हो गई हूं. आप लोग जानती ही हैं कि मैं प्रैगनैंट हूं. वे वहीं से फोन कर कहती हैं कि शाम के समय बाहर न निकलूं. शाम में बुरा साया गर्भस्त शिशु को नुकसान पहुंचा सकता है. मैं शाम को सैर करने के लिए तरस गई हूं.
‘‘न मैं किसी पार्टी में जा पाती हूं और न थिएटर या मौल में. पति शाम में आते हैं. वे बाहर ले जाना चाहते हैं, लेकिन इसी सोसायटी में रिश्ते की एक ननद रहती हैं. वे सासूमां को सारी इन्फौर्मेशन पहुंचा देती हैं और फिर सासूमां फोन पर मुझे डांटती हैं. पति की भी क्लास लगती है. इसलिए अब पति भी शाम के बाद कहीं नहीं ले जाते. अब तो किसी जरूरी चैकअप के लिए भी शाम में निकलने पर कांप जाती हूं कि न जाने सासूमां का कब कौन सा कहर टूट पड़े.’’
‘‘उफ,’’ एक तो प्रैगनैंट, उस पर सारा दिन घर में अकेली और शाम को दूर बैठी सास मिसाइल दागना शुरू कर देती हैं. लेकिन चारा क्या है.
1-1 कर सभी बहुएं अपनीअपनी मिसाइल रूपी सास का गुणगान करती गईं और साथ ही आह, ओह, हाय, उफ के साथ संवेदनशील खुसुरफुसुर भी करती रहीं. मीटिंग थी कि खत्म होने का नाम नहीं ले रही थी और न ही कोई हल निकल पा रहा था. अनीता भाभी बड़ी देर से सिर पर हाथ रख कर कुछ सोच रही थीं. तीर मारने वाले अंदाज में उठीं और बड़े जोश में हवा में हाथ लहरा कर बोलीं, ‘‘लेकिन हमारे पति तो अपनी मां को समझा सकते हैं न… अगर वे लोग उन्हें समझाएं तभी कुछ बात बने… चुगली करने वाले रिश्तेदारों को भी पाठ पढ़ाना पड़ेगा…’’
अभी वो कुछ और कहना चाहती थीं कि अचानक लेकिन कहतेकहते रुक गईं और मुख्य दरवाजे की ओर इशारा करने लगीं. सब ने देखा सलोनी मिश्रा की सास अचानक प्रकट हो गई थीं. भारीभरकम डीलडौल, भराभरा गोलमटोल चेहरा, मोटीमोटी काली आंखें… हरदम अपने साथ छाता रखतीं, हर मौसम में. उस छाते को उन्होंने मिसेज अग्रवाल की ओर ऐसे ताना जैसे मिसाल छोड़ रही हों, ‘‘अरे ओ मैडम, सलोनी कहां है, बताएंगी? इतनी भीड़ में कहां खोजूं उसे… हम इतनी दूर से आए हैं और वह हम से आंखमिचौली खेल रही है… और तुम लोग यहां एकसाथ क्यों जमा हुई हैं. कोई साजिश रच रही हैं क्या? चलोचलो… कोई कामधाम है या नहीं?’’
सलोनी को ढूंढ़ती उन की आंखें ऐसे बाहर निकली जा रही थीं जैसे सब को खा जाएंगी. सलोनी ने तेजी से उठ कर सासूमां के पैर छुए और उन के साथ ही निकल गई. मीटिंग में जैसे भूचाल आ गया हो. अब गु्रप में बंट कर बहुएं खुसुरफुसुर करने लगी थीं… मिसेज अग्रवाल कब कहां गायब हो गई किसी को पता ही नहीं चला. एक मिसाइल ही सब पर भारी पड़ गया.
सचमुच लड़कियां बड़ी भोली होती हैं. हाय, इतनी भोलीभाली लड़कियां हमारे जमाने में नहीं होती थीं. होतीं तो क्या हम प्यार का इजहार करने से चूकते. तब लड़कियां घरों से बाहर भी बहुत कम निकलती थीं. इक्कादुक्का जो घरों से निकलती थीं, वे बस 8वीं तक पढ़ने के लिए. मैं गांवदेहात की बात कर रहा हूं. शहर की बात तो कुछ और रही होगी.
हाईस्कूल और इंटरमीडिएट में मेरे साथ एक भी लड़की नहीं पढ़ती थी. निगाहों के सामने जो भी जवान लड़की आती थी, वह या तो अपने गांव की कोई बहन होती थी या फिर कोई रिश्तेदार जिस से नजर मिलाते हुए भी शर्म आती थी. इस का मतलब यह नहीं कि गांव में प्रेमाचार नहीं होता था. कुछ हिम्मती लड़केलड़कियां हमारे जमाने में भी होते थे जो चोरीछिपे ऐसा काम करते थे और उन के चर्चे भी गांव वालों की जबान पर चढ़े रहते थे.
लेकिन तब की लड़कियां इतनी भोली नहीं होती थीं, क्योंकि उन को बहलानेफुसलाने और भगा कर ले जाने के किस्से न तो आम थे, न ही खास. अब जब मैं बुढ़ापे के पायदान पर खड़ा हूं तो आएदिन न केवल अखबारों में पढ़ता हूं, टीवी पर देखता हूं, बल्कि लोगों के मुख से भी सुनता हूं कि हरदिन बहुत सारी लड़कियां बलात्कार का शिकार होती हैं. लड़कियां बयान देती हैं कि फलां व्यक्ति या लड़के ने बहलाफुसला कर उस के साथ बलात्कार किया और अब शादी करने से इनकार कर रहा है. यहां वास्तविक घटनाओं को अपवाद समझिए.
तभी तो कहता हूं कि आजकल की पढ़ीलिखी, ट्रेन, बस और हवाई जहाज में अकेले सफर करने वाली, अपने मांबाप को छोड़ कर पराए शहरों में अकेली रह कर पढ़ने वाली लड़कियां बहुत भोली हैं.
बताइए, अगर वे भोली और नादान न होतीं तो क्या कोई लड़का उन को मीठीमीठी बातें कर के बहलाफुसला कर अपने प्रेमजाल में फंसा सकता है और अकेले में ले जा कर उन के साथ बलात्कार कर सकता है.
पुलिस में लिखाई गई रिपोर्ट और लड़कियों के बयानों के आधार पर यह तथ्य सामने आता है कि आजकल की लड़कियां इतनी भोलीभाली हैं कि वे किसी भी जानपहचान और कई बार तो किसी अनजान व्यक्ति की बातों तक में आ जातीं और उस के साथ कार में बैठ कर कहीं भी चली जाती हैं.
वह व्यक्ति उन को बड़ी आसानी से होटल के कमरे या किसी सुनसान फ्लैट में ले जाता है और वहां उस के साथ बलात्कार करता है. बलात्कार के बाद लड़कियां वहां से बड़ी आसानी से निकल भी आती हैं. 3-4 दिनों तक उन्हें अपने साथ हुए बलात्कार से पीड़ा या मानसिक अवसाद नहीं होता, लेकिन फिर जैसे अचानक ही वे किसी सपने से जागती हैं और बिलबिलाती हुई बलात्कार का केस दर्ज करवाने पुलिस थाने पहुंच जाती हैं.
लड़कियां केवल इस हद तक ही भोली नहीं होती हैं. वे किसी भी अनजान लड़के की बातों पर विश्वास कर लेती हैं और उस के साथ अकेले जीवन गुजारने के लिए तैयार हो जाती हैं. लड़कों की मीठीमीठी बातों में आ कर वे अपने शरीर को भी उन्हें समर्पित कर देती हैं. दोचार साल लड़के के साथ रहने पर उन्हें अचानक लगता है कि लड़का अब उन से शादी करने वाला नहीं है, तो वे पुलिस थाने पहुंच कर उस लड़के के खिलाफ बलात्कार का मुकदमा दर्ज करवा देती हैं.
सच, आज लड़कियां क्या इतनी भोली हैं कि उन्हें यह तक समझ नहीं आता कि जिस लड़के को बिना शादी के ही मालपुआ खाने को मिल रहा हो और जिस मालपुए को जूठा कर के वह फेंक चुका है, वह उस जमीन पर गिरे मैले मालपुए को दोबारा उठा कर क्यों खाएगा.
मैं तो ऐसी लड़कियों का बहुत कायल हूं, मैं उन की बुद्धिमता की दाद देता हूं जो मांबाप की बातों को तो नहीं मानतीं, लेकिन किसी अनजान लड़के की बातों में बड़ी आसानी से आ जाती हैं. हाय रे, आज की लड़कियों का भोलापन.
लड़कियां इतनी भोली होती हैं कि वे अनजान या अपने साथ पढ़ने वाले लड़कों की बातों में तो आ जाती हैं, लेकिन अपने मांबाप की बातों में कभी नहीं आतीं. जवान होने पर वे उन का कहना नहीं मानतीं, उन की सभी नसीहतें उन के कानों में जूं की तरह रेंग जाती हैं और वे अपनी चाल चलती रहती हैं. वे अपने लिए कोई भी टुटपुंजिया, झोंपड़पट्टी में रहने वाला टेढ़ामेढ़ा, बेरोजगार लड़का पसंद कर लेती हैं, लेकिन मांबाप द्वारा चुना गया अच्छा, पढ़ालिखा, नौकरीशुदा, संभ्रांत घरपरिवार का लड़का उन्हें पसंद नहीं आता. इस में उन का भोलापन ही झलकता है, वरना मांबाप द्वारा पसंद किए गए लड़के के साथ शादी कर के हंसीखुशी जीवन न गुजारतीं. फिर उन को किसी लड़के के साथ कुछ सालों तक बिना शादी के रहने के बाद बलात्कार का मुकदमा दर्ज कराने की नौबत नहीं आती.
आजकल की लड़कियों को तब तक अक्ल नहीं आती, जब तक कोई लड़का उन के शरीर को पके आम की तरह पूरी तरह चूस कर उस से रस नहीं निचोड़ लेता. जब लड़का उस को छोड़ कर किसी दूसरी लड़की को अपने प्रेमजाल में फंसाने के लिए आतुर दिखता है, तब वे इतने भोलेपन से भोलीभाली बन कर जवाब देती हैं कि आश्चर्य होता है कि इतनी पढ़ीलिखी और नौकरीशुदा लड़की इतनी भोली भी हो सकती है कि कोई भी लड़का उसे बहलाफुसला कर, शादी का झांका दे कर उस के साथ 4 साल तक लगातार बलात्कार करता रहता है.
हाय रे, मासूम लड़कियो, इतने सालों तक कोई लड़का तुम्हारे शरीर से खेल रहा था, लेकिन तुम्हें पता नहीं चल पाया कि वह तुम्हारे साथ बलात्कार कर रहा है.
अगर शादी करने के लिए ही लड़की उस लड़के के साथ रहने को राजी हुई थी तो पहले शादी क्यों नहीं कर ली थी. बिना शादी के वह लड़के के साथ रहने के लिए क्यों राजी हो गई थी.
एक बार शादी कर लेती, तब वह उस के साथ रहने और अपने शरीर को सौंपने के लिए राजी होती. लेकिन क्या किया जाए, लड़कियां होती ही इतनी भोली हैं कि उन्हें जवानी में अच्छाबुरा कुछ नहीं सूझता और वे हर काम करने को तैयार हो जाती हैं जिसे करने के लिए उन्हें मना किया जाता है.
वे खुलेआम चिडि़यों को दाना चुगाती रहती हैं और जब चिडि़यां उड़ जाती हैं तब उन के दाना चुगने की शिकायत करती हैं. ऐसे भोलेपन का कौन नहीं लाभ उठाना चाहेगा. यह तो मानना पड़ेगा कि लड़कियों के मुकाबले लड़के ज्यादा होशियार होते हैं, तभी तो वे लड़कियों के भोलेपन का फायदा उठाते हैं. लड़कियां भोली न होतीं तो क्या अपने घर से अपनी मां के जेवर और बाप की पूरी कमाई ले कर लड़के के साथ रफूचक्कर हो जातीं.
लड़के तो कभी अपने घर से कोई मालमत्ता ले कर उड़नछू नहीं होते. वे लड़की के साथसाथ उस के पैसे से भी मौज उड़ाते हैं और जब मालमत्ता खत्म हो जाता है तो लड़की उन के लिए बासी फूल की तरह हो जाती है और तब लड़के की आंखें उस से फिर जाती हैं. उस की आंखों में कोई और मालदार लड़की आ कर बस जाती है. तब लूटी गई लड़की की अक्ल पर पड़ा पत्थर अचानक ही हट जाता है. तब भारतीय दंड संहिता की सारी धाराएं उसे याद आती हैं और वह लड़के के खिलाफ सारे हथियार उठा कर खड़ी हो जाती है. वह लड़का जो उसे दुनिया का सब से प्यारा इंसान लगता था, अचानक अब उसे वह बद से बदतर लगने लगता है.
लड़कियां अगर जीवनभर भोली बनी रहीं तो पुलिस का काम आसान हो जाए. उन के क्षेत्र में होने वाली बलात्कार की घटनाएं समाप्त हो जाएंगी, क्योंकि तब कोई लड़की बलात्कार का मुकदमा दर्ज करवाने के लिए थाने नहीं जाएगी. कई साल तक लड़के के साथ बिना शादी के रहने पर भी उसे शादी का खयाल तक नहीं आएगा. जब लड़की शादी ही नहीं करना चाहेगी तो फिर उस के साथ बलात्कार होने का सवाल ही पैदा नहीं होता.
रही बात दूसरी लड़कियों की जो बिना कुछ सोचेविचारे लड़कों के साथ, रात हो या दिन, कहीं भी चल देती हैं, पढ़लिख कर भी उन की बुद्धि पर पत्थर पड़े रहते हैं तो उन का भला कोई नहीं कर सकता.
‘‘मैं भी मजबूर हूं, इहा.’’
‘‘भाड़ में जाए तुम्हारी मर्दानगी और मजबूरी,’’ बोल कर इहा ने गुस्से में फोन काट दिया.
फिर उस ने मम्मी से कहा, ‘‘मम्मी, मैं किसी तरह से मैडिकल इमरजैंसी के तहत अबौर्शन की कोशिश करती हूं.’’
उस की मम्मी ने कहा, ‘‘बेटा, हमारा समाज अबौर्शन की इजाजत नहीं देता है. यह अपराध है, मैं ऐसा नहीं करने दूंगी.’’
‘‘तब क्या करें? मु झे हैदराबाद के अस्पताल से जौब औफर भी मिला है. मु झे 6 महीने बाद नौकरी जौइन करनी है.’’
‘‘तुम उन से और 3-4 महीने की मोहलत ले लो. तुम कोवलम के निकट अपनी बड़ी मौसी के पास चली जाओगी. वे भी रिटायर्ड नर्स हैं. वे जैसा कहें करना.’’
इहा कोवलम चली गई. उस की मौसी ने भी उसे अबौर्शन की अनुमति नहीं दी. उस ने इहा की मां से बात कर उसे कोवलम में रोक लिया. उन्होंने इहा से कहा, ‘‘तुम घबराओ मत. बस, तुम्हें जौइनिंग की एक्सटैंशन मिल जाए, उस के बाद धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा.’’
2 सप्ताह बाद इहा को जौइनिंग की एक्सटैंशन मिल गई. अब 6 महीने के बजाय उसे 9 महीने बाद जौइन करना था. दरअसल, उसे 6 महीने की ट्रेनिंग लेनी थी तो अस्पताल ने उसे अगले बैच के लोगों के साथ ट्रेनिंग लेने की अनुमति दी. उस ने मौसी को जब यह खबर दी तो उन्होंने कहा, ‘‘तू बच्चे को जन्म देगी और मैं उसे पालने में तेरी पूरी मदद करूंगी.’’
‘‘और जमाना उसे नाजायज बच्चा कह कर सारी उम्र ताने मारेगा.’’
‘‘हो सकता है तेरे बच्चे को ऐसी स्थिति का सामना न करना पड़े.’’
‘‘वह कैसे संभव है?’’
‘‘वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा. बस, तू हिम्मत न हार. मेरे जेठ का बेटा जेम्स दुबई में नौकरी कर रहा है. एक पैथोलौजिकल लैब में अच्छी पोस्ट पर है. शादी के 6 महीने के अंदर ही उस की पत्नी की वहीं कार ऐक्सिडैंट में मौत हो गई थी. हम लोग उस के लिए एक लड़की ढूंढ़ रहे हैं?’’ मौसी बोलीं.
‘‘और वह मेरे बेटे को स्वीकार करेगा? मु झे अब मर्दों पर भरोसा नहीं है,’’ इहा ने कहा.
‘‘सभी मर्द एक से नहीं होते हैं और सुन, तू जहां तक सोचती है तेरी मौसी उस से चार कदम आगे की सोचती है. मैं ने उस से तेरी चर्चा कर रखी है. उसे तेरे बारे में सब बता भी दिया है.’’
‘‘और वह मु झे बच्चे के साथ स्वीकार करेगा? मु झे तो शक है.’’
‘‘वह हंस कर स्वीकार करेगा, इतनी अच्छी लड़की उसे कहां मिलने वाली है. वह भी तो विधुर है, उस का भी एक वीक पौइंट है.’’
इहा के प्रसव का समय नजदीक आ रहा था. इसी बीच एक बार धरम इहा की मम्मी से मिलने गया और बोला, ‘‘आंटी, इहा कैसी है और आजकल कहां है?’’
‘‘तुम ने शादी कर ली न, अब उसे भूल जाओ. उस की शादी हो गई है और वह खुश है. तुम तो बुजदिल निकले. जीवनसाथी की सही पहचान तभी होती है जब वह जीवन की अग्निपरीक्षा से गुजरता है.’’
‘‘सौरी आंटी, मैं ने कभी भी इहा को धोखा नहीं देना चाहा है. वैसे मैं ने अभी तक शादी नहीं की है. खैर, खुशी की बात है कि उस की शादी हो गई है, वह जहां रहे, खुश रहे. वैसे उस का बच्चा?’’
‘‘उसे मैडिकल इमरजैंसी हुई और अबौर्शन कराना पड़ा था.’’
‘‘ओह, सौरी. मेरे कारण उसे बहुत दुख हुआ.’’
धरम चला गया. इहा की मम्मी ने उस से दो झूठ बोले. इहा की शादी के बारे में और अबौर्शन के बारे. उन्होंने एक तीसरा झूठ इहा के पापा से कहा था इहा और जेम्स के बारे में. जेम्स इंडिया आया था तब दोनों में प्यार हो गया था और दोनों की सगाई भी हो गई है. इस बात के लिए उन्होंने अपनी बड़ी बहन इहा की मौसी को भी विश्वास में ले लिया था. इस बात से आश्वत हो कर दोनों से एक भूल हो गई. इसलिए उन दोनों की शादी जल्द करनी है और आजकल जेम्स भी इंडिया आया हुआ है.
इहा के पापा ने कहा, ‘‘मेरा पासपोर्ट तो कंपनी के पास जमा है और 2 महीनों से मु झे पगार नहीं मिली है. कंपनी बोल रही है कि अब तो जल्द ही मेरा कौंट्रैक्ट खत्म होने वाला है. एक ही साथ फाइनल कर देंगे. तुम लोग इहा और जेम्स की शादी करा दो. मेरा प्यार कहना.’’
इहा की मां और मौसी दोनों ने मिल कर झूठ का सहारा तो लिया था, पर यह सिर्फ इसलिए कि इहा अपने जीवन में आए भूचाल का सामना कर सके. और इस झूठ से किसी का बुरा भी नहीं हो रहा था.
इहा ने एक बच्चे को जन्म दिया. जेम्स भी दुबई से आया था. उस ने बेटे का नाम डैनी रखा. इहा, उस की मम्मी, मौसी और जेम्स सभी खुश थे. 2 महीने बाद इहा के पापा भी कुवैत से लौट आए. पूरा परिवार जश्न मना रहा था.
इहा की ट्रेनिंग शुरू होने वाली थी. अब उस के सामने समस्या थी डैनी की परवरिश की. डैनी इतना छोटा था कि उसे मां की जरूरत थी. उसी समय इहा को खबर मिली कि ट्रेनिंग के लिए उसे त्रिवेंद्रम के ही एक अस्पताल में रिपोर्ट करना है. इस खबर से सभी को राहत मिली. कोवलम त्रिवेंद्रम के निकट ही है, इहा को कोई परेशानी नहीं होगी और उस की ट्रेनिंग खत्म होतेहोते डैनी भी कुछ बड़ा हो जाएगा. फिर तो मौसी और मां मिल कर उस की देखभाल कर लेंगी.
इधर धरम को चेन्नई में दवा बनाने वाली कंपनी में नौकरी मिली. उस की मां ठीक हो चली थी, अब वे वौकर के सहारे आराम से चल लेती थीं. डाक्टर ने कहा कि अपनी थेरैपी जारी रखें तो एक महीने के अंदर ही वे स्वयं अपने पैरों पर चल सकेंगी. जब से धरम इहा के घर से लौटा था उस की मां उसे जल्द ही शादी करने पर जोर दे रही थीं. उन्होंने एक लड़की भी देख रखी थी. लड़की सुंदर भी थी और अपनी बिरादरी की थी. उन्हें तो इहा की शादी के बारे में सुन कर बहुत संतोष हुआ क्योंकि धरम उस के लिए उदास रहने लगा था. एक दिन वे बोलीं, ‘‘बेटे, अब तो उस लड़की की शादी भी हो गई है, वह अपने परिवार में खुश है. अब तुम्हें उस को ले कर चिंतित होने की कोई जरूरत नहीं है और अब अपनी गृहस्थी बसाने की सोच. मु झे भी तो दादी बनने का शौक है. आखिर शादी तो करनी है तु झे एक न एक दिन.’’
कुछ माह बाद धरम की शादी अपनी जाति की एक लड़की सुधा से हुई. वह अपनी पत्नी और मां के साथ चेन्नई में रहने लगा था. सुधा उस समय एमए कर रही थी. दोनों ने मिल कर फैसला लिया कि जब तक सुधा की पढ़ाई समाप्त नहीं होती वह मां नहीं बनेगी. 2 साल के बाद सुधा ने एमए किया. फिर उस ने बीएड करना चाहा तो धरम ने कोई एतराज नहीं किया. पर उस की मां बोलीं, ‘‘जिंदगीभर पढ़ती ही रहेगी तो मैं दादी कब बनूंगी?’’
‘‘मां, घबराओ नहीं, उस के लिए अभी बहुत समय है.’’
सुधा बीएड करने के बाद एक स्कूल में टीचर बनी. कुछ समय बाद जब दोनों बच्चे के लिए तैयार हुए तो सुधा का लगातार 2 बार मिसकैरिज हुआ और वह मां न बन सकी. इस बीच 2 साल और बीत गए.
एक दिन सुधा और धरम दोनों डाक्टर से मिलने गए तो डाक्टर ने कहा, ‘‘आप दोनों के कुछ टैस्ट करने होंगे.’’
‘‘मेरे टैस्ट की कोई जरूरत नहीं है. सुधा के लिए जो भी टैस्ट्स जरूरी हों, आप करा लें,’’ धरम ने कहा.
‘‘खराबी दोनों में से किसी को भी हो सकती है या फिर दोनों को भी. आप इतने विश्वास के साथ कैसे कह सकते हैं?’’ डाक्टर बोला.
‘‘आप पहले सुधा के सभी टैस्ट्स कर लें. बाद में जरूरी हुआ तो मैं भी करा लूंगा.’’
सुधा ने कहा, ‘‘एक साथ दोनों के टैस्ट्स हो जाएं तो बेहतर है. कहीं आप के टैस्ट्स की जरूरत हुई और तब बेवजह हम समय बरबाद कर देंगे.’’
‘‘मैं ने कहा न. जरूरत पड़ने पर मैं बाद में करा लूंगा.’’
आगे पढ़ें- सुधा को धरम की यह दलील अच्छी नहीं…
दफ्तर की कुरसी पर अपने फूले हुए पेट के साथ मास्क लगा कर बैठना उस के लिए बहुत मुश्किल था. उस का मन अब काम में नहीं लगता था. एक दिन वहीं बैठेबैठे उसे खयाल आया कि क्यों न वह ‘वर्क फ्रोम होम’ के लिए अप्लाई कर दे.
आखिर जो काम वह अपने केबिन में बैठ करती है वह घर से भी कर सकती है और फिर अगर किसी क्लाइंट से मिलना हो तो जूम से बात कर सकती है. अब तो पूरी दुनिया ही औनलाइन काम करने लगी है.
उसे यह विचार बहुत अच्छा लगा. जल्द से जल्द वह घर से ही काम करना चाह रही थी.
उस ने एक ईमेल अपने बौस को भेज दिया और इस के जवाब में अगले दिन ही बौस ने उसे अपने दफ्तर में मिलने के लिए बुला लिया.
दोनों मास्क में थे. मौली को ‘गुडमौर्निंग’ कहते हुए मुसकराने की जहमत नहीं उठानी पड़ी. मास्क लगाने का यही एक सुख है.
बौस ने बिना लागलपेट के कहा, ‘‘नर्सिंगहोम में अभी सब से ज्यादा कर्मचारियों की आवश्यकता है और इस वक्त मैं छुट्टी नहीं दे सकता. अगर तुम दफ्तर नहीं आतीं तो तुम्हारी तनख्वाह कट जाएगी.’’
मौली ने उसे सम झाते हुए कहा, ‘‘लेकिन सर आप जानते ही हैं कि यह मेरा पहला बच्चा है और अगर मु झे कोरोना हो गया तो मेरे बच्चे का क्या होगा?’’
तुम्हें घबराने की जरूरत नहीं है. देखो, यह नैशनल रिपोर्ट आई है. इस के मुताबिक गर्भवती महिलाओं पर कोरोना का इतना असर नहीं पड़ता. ऐसा कोई प्रूफ अब तक नहीं मिला है कि इस से पेट में पलने वाले बच्चे को हानि हो सकती है इसलिए तुम बिलकुल मत घबराओ. तुम इस रिपोर्ट को अपने साथ ले जाओ और घर में आराम से पढ़ना.
मौली ने कहा, ‘‘लेकिन सर, यह बीमारी तो पहली बार हुई है. इतनी जल्दी इस रिपोर्ट पर भरोसा नहीं कर सकते, बाद में यह गलत भी साबित हो सकती है.’’
‘‘तुम्हें तो पता है कि हम लोग डाटा और रिपोर्ट पर ही निर्भर करते हैं और उसी के अनुसार अपने निर्णय लेते हैं. वैसे भी नर्सिंगहोम में तो हमेशा ही इन्फैक्शन और वाइरस से लैस मरीज आते हैं. अगर हम लोग घर बैठ जाएं तो काम कैसा चलेगा?’’ बौस ने सपाट उत्तर दिया.
मौली ने आंखें बंद कर ली और सिर झुका लिया. उस के गालों पे आंसू ढलकने लगे.
बौस अपनी कुरसी से उठा और सांत्वना देने के लिए उस की ओर बढ़ने लगा लेकिन तुरंत 6 फुट दूर रहने का नियम उसे याद हो आया और वह स्प्रिंग की भांति उछल कर वापस अपनी कुरसी पर बैठ गया.
वह बोला, ‘‘तुम्हीं बताओ मैं क्या करूं? अभी हमारे स्टाफ में 4 और लोग प्रैगनैंट हैं अगर सब को छुट्टी दे दी तो हमारा नर्सिंगहोम ही बंद हो जाएगा. तुम से पहले नैन्सी भी इस बारे में बात कर चुकी है. अब नियम तो नियम है. मैं तुम्हारे लिए बदल नहीं सकता. तुम सम झ सकती हो.’’
मौली अपने दफ्तर में जा कर फट पड़ी. अपना मास्क फेंक कर वह कुरसी पर बैठी और मेज पर सिर रख कर सिसकसिसक कर रोने लगी. कमरे में उपस्थित उस के सहकर्मचारियों ने एकदूसरे को देखा और पूछा, ‘‘क्या सब ठीक है?’’ 2-3 मिनट तक कोई जवाब न मिलने पर वे कमरे से बाहर चले गए.
‘लीव विथआउट पेड’ लेना उस के लिए मुमकिन न था. अभी तक कुछ खास सेविंग नहीं कर पाई थी. पहले ही फर्टिलिटी अस्पताल में इतना पैसा पानी की तरह बहाया जा चुका था और अपार्टमैंट का किराया हर महीने 1,500 डौलर तो देना ही है. इन सब के ऊपर बच्चे के आने पर खर्चे और बढ़ेंगे. इस स्थिति में काम छोड़ना सम झदारी नहीं है पैसे तो चाहिए ही. एक आदमी की आमदनी से घर नहीं चल सकता.
उस ने अगले 1 हफ्ते तक नौकरी के लिए कई जगह आवेदन किए. कहीं से कोई बात नहीं बनी. लगभग सभी से यही जवाब मिला, ‘‘हमारे यहां तो छंटनी चल रही है, अगले साल फिर अप्लाई कीजिए.’’
थक कर उस ने निर्णय लिया कि अब यहीं काम करती रहेगी और देखेगी क्या हो सकता है.
लेकिन यह बहुत दिन तक नहीं चल सका. एक दिन उस के सामने बैठे विक्टर ने कहा, ‘‘मालूम है लौरा कोरोना पौजिटिव है.’’
‘‘यह कब हुआ?’’
‘‘कल ही उसे पता चला.’’
‘‘फिर अब.’’
‘‘अब हम लोगों को भी कोरोना टेस्ट करवाना पड़ेगा.’’
टेस्ट का रिजल्ट जल्दी ही आ गया. मौली और विक्टर दोनों कोरोना नैगेटिव निकले.
उसे बहुत सुकून हुआ और उस ने अपने गाइनोकोलौजिस्ट को फोन किया.
डाक्टर ने बताया कि अब उसे काम नहीं करना चाहिए अगर वह करती है तो क्लीनिक में आने से पहले उसे कोरोना का टेस्ट करवाना पड़ेगा और कोरोना नैगेटिव रिजल्ट के साथ ही वह उन की क्लीनिक में आ सकती है.
मौली ने अपने बौस से दूसरी बार बात करने की कोशिश की लेकिन वह टस से मस नहीं हुआ. उदास मौली को कुछ नहीं सू झ रहा था. इतना बड़ा फैसला वह कैसे कर सकती है. अगर हर महीने तनख्वाह नहीं आएगी तो बच्चे का खर्चा कैसे पूरा होगा. सबकुछ सोचसोच कर उस का तनाव बढ़ता जा रहा था. उस की कुछ छुट्टियां बाकी थीं लेकिन वह उसे अपनी मैटरनिटी लीव के बाद लेना चाहती थी ताकि वह बच्चे के साथ रह सके.
उस ने डेविड से पूछा तो उस ने सलाह दी, ‘‘तुम्हें अभी छुट्टियां ले लेनी चाहिए और ज्यादा तनाव लेने की जरूरत नहीं है.’’
‘‘लेकिन सोचो तो अगर मेरे पास दो हफ्ते की ज्यादा छुट्टियां होंगी तो मैं बच्चे के साथ ज्यादा रह सकूंगी. मु झे तभी सब से ज्यादा छुट्टियों की जरूरत होगी,’’ मौली ने अपनी मुट्ठी को मेज पर मारते हुए कहा.
‘‘देख लो. मु झे लगता है यह कोरोना तुम्हारे नर्सिंगहोम तक पहुंच चुका है. अब यह खतरनाक होता जा रहा है. मेरी बात मानो तो छुट्टी के लिए अरजी दे दो. मु झे माहौल कुछ ठीक नहीं लग रहा है.’’
मौली चाहती थी कि डेविड बोले कि छुट्टी न लो ताकि वह छुट्टी बाद में लेने के अपने फैसले को सही करार दे सके और अगर कुछ गलत हुआ तो डेविड भी इस का हिस्सा बन सके.
गहरी सांस भर कर मौली सोफे पर लेट गई और सोचने लगी, ‘‘काश, मेरे पास कोई मशीन होती जिस से मैं अपना भविष्य देख पाती तो कितना अच्छा होता.’’
‘‘हम क्यों नहीं अपना आने वाला कल देख सकते? लोग कहते हैं कि जो तुम आज करते हो वही भविष्य में मिलता है. लेकिन जब हमेशा 2 रास्ते हों और दोनों ही धुंधले हों तो कोई क्या करे.’’
वह सोचने लगी, ‘‘अगर मु झे कोरोना हो गया तो शायद मैटरनिटी लीव की जरूरत ही नहीं पड़ेगी,’’ वह पागलों की तरह हंसने लगी.
अब उस के खुशी वाले दिन काफूर हो चुके थे. दफ्तर में होती तो पूरी एहतियात बरतती और बारबार बिना कुछ छुए भी हाथों पर सैनिटाइजर लगाती रहती. सैनिटाइजर की गंध उस के दिलोदिमाग में इस तरह बस चुकी थी कि बोतल खोलते ही उस की नसों में अजीब ऐंठन होने लगती. लेकिन अब बस वही उस का रक्षक था. मास्क वह तभी लगाती जब उसे मालूम होता कि कोई आने वाला है.
फिर वह दिन जल्दी ही आया जब उसे फोन आया कि ऊपर नर्सिंगहोम में 4 नर्स कोरोना पौजीटिव पाई गई हैं इसलिए उसे भी अपना टेस्ट फिर से करवा लेना चाहिए.
उस की आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा. उसे लगा उस के गले में कुछ अटक रहा है. उस से थूक घूंटी नहीं जा रही है और हलक में कुछ फंस रहा था. उसे पहले ही कुछ बुरा होने का आभास होने लगा था. कुछ बहुत बुरा.
जिंदगी में कुछ इस तरह के आभास सभी को कभी न कभी होते हैं लेकिन स्थिति को पहले की तरह करने का कोई उपाय मौली के पास नहीं था. उसे अपने इस सफर में एक भी औप्शन सुरक्षित नहीं लगा. मान लो अगर वह 2 हफ्ते की छुट्टी ले भी लेती तो भी तो वापस उसे इसी नर्सिंगहोम में आना पड़ता.
उस ने अपनी गाड़ी निकाली और ‘सीवीएस फार्मेसी’ के सामने लगी लंबी कारों की कतार में लग गई.
सभी कारें धीरेधीरे खिसक रही थीं. इस कोरोना परीक्षण केंद्र पर एक खास कतार सिर्फ स्वास्थ्य सेवा से जुड़े हुए कर्मचारियों के लिए थी लेकिन वह भी बहुत लंबी थी. लगभग 3 घंटे बाद उस का नंबर आया. नर्स ने उस के नाक और मुंह में स्वाब डाल कर सैंपल ले लिया और उसे जाने के लिए कह दिया.
वह बेचैन सी पार्किंग में ही अपनी गाड़ी में बैठी रही. आज धूप बहुत तेज और करारी थी लेकिन मौली को इस की परवाह नहीं थी. वह अपने गर्भावस्था के सभी स्टेज देखने लगी जैसे मरने वाला अपने जीवन की झलकियां कुछ ही पलों में देख लेता है. उस ने सोचा कि कहां से शुरू किया था और कहां पहुंच गई जिंदगी.
तभी उस के फोन पर एक संदेश आया और उस में लिखा था, ‘‘वी आर सौरी टू इनफौर्म यू दैट यू आर कोरोना पौजिटिव.’’
वह जैसे इसी संदेश का इंतजार कर रही थी बस पुष्टि करना बाकी था. उसे पता चल गया था कि उसे कुछ होने वाला है. अब आगे का रास्ता क्या है उसे नहीं मालूम. काश कि उसे कुछ मालूम होता भविष्य के बारे में. अपने पेट में पल रहे भ्रूण पर उस ने हाथ रखा और आंख बंद कर फफक कर रो पड़ी.
यह भविष्य हमेशा इतना धुंधला क्यों होता है कि कभी कुछ भी साफसाफ क्यों नहीं दिखाई देता?
काफी देर यों ही रोते हुए गुजर चुके थे. मौली कुछ शांत हुई और उस ने अपनी आंखें पोंछी और डेविड को अपने कोरोना पौजिटिव होने का संदेश भेज कर आपातकालीन अस्पताल की ओर रवाना हो गई.
बुढ़ापे की अपंगता को छोड़ कर बाबू साहब को नहीं लगता कि कभी किसी दुख से उन का आमनासामना हुआ हो. पिता संपन्न किसान थे. साथ ही उस जमाने के पटवारी भी थे. 2 बहनों के बीच अकेले भाई थे. लाड़प्यार से पालन- पोषण हुआ था. किसी चीज का अभाव नहीं था, पर वे बिगड़ैल नहीं निकले क्योंकि मां समझदार थीं. अच्छे संस्कार डाले उन में. बुद्धि के तेज थे. स्कूल में हमेशा अव्वल आते. 5वीं के बाद उन्हें पढ़ने के लिए कसबे के इंटर कालेज में भेज दिया गया. वहां भी प्राध्यापकों के चहेते रहे. इंटर के बाद उच्च शिक्षा के लिए वे इलाहाबाद गए. वहां होस्टल में रह कर पढ़ाई की. अच्छे अंकों से बी.एससी. उत्तीर्ण की. तभी उन का मन साइंस से उचट गया.
बातोंबातों में एक दिन उन के एक मित्र ने कह दिया, ‘यार जगदीश, तू क्यों साइंस के फार्मूलों में उलझा हुआ है. तेरी तो तर्कवितर्क की शक्ति बड़ी पैनी है. बहस जोरदार कर लेता है. एलएल.बी. कर के वकालत क्यों नहीं करता?’
कहां तो वे आई.ए.एस. बनने का सपना देख रहे थे, कहां उन के मित्र ने उन की दिशा बदल दी. बात उन को जम गई. बी.एससी. कर चुके थे. तुरंत ला कालेज में दाखिला ले लिया. पढ़ने में जहीन थे ही. कोई दिक्कत नहीं हुई. 3 साल में वकालत पास कर ली और इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक बड़े वकील के साथ प्रैक्टिस करने लगे. साथ ही साथ न्यायिक परीक्षा की तैयारी भी. पहली बार बैठे और पास हो गए. न्यायिक मजिस्ट्रेट बन कर पहली बार उन्नाव गए. तब से 35 साल की नौकरी में प्रदेश के कई जिलों में विभिन्न पदों पर तैनात रहे. अंत में बलिया से जिला जज के पद से रिटायर हुए. न्यायिक सेवा में अपनी कर्तव्यनिष्ठा और ईमानदारी से नाम कमाया तो आलोचनाओं के भी शिकार हुए. पर उन्हें जो सच लगा, उसी का पक्ष लिया. जानबूझ कर अंतर्मन से किसी का पक्षपात नहीं किया.
कहते हैं न कि जीवन अपना हिसाबकिताब बराबर रखता है. ज्यादातर जीवन में अगर उन्हें सुख ही सुख नसीब हुआ था, तो अब अंत समय में दुख की बारी थी. इसे भी उन्हें इसी जीवन में भुगतना था, वरना जीवन का खाता असंतुलित रह जाएगा. आय और व्यय का पूरा विवरण आना ही चाहिए. सुख अगर आय है तो दुख व्यय.
उन का शरीर दिन ब दिन क्षीण होता जा रहा था. मानसिक संताप से वे उबर नहीं पा रहे थे. बेटे बिना नागा फोन पर उन की कुशलता की जानकारी हासिल कर रहे थे. पर क्या जीवन के अंतिम क्षणों में बच्चों की कुशलक्षेम पूछने भर से उन का कष्ट और संताप कम हो सकता था.
फोन पर ही बेटों को उन्होंने बता दिया था कि पुश्तैनी जमीनजायदाद और खुद की कमाई संपत्ति की उन्होंने वसीयत कर दी है. उस को पंजीकृत भी करवा दिया है. वसीयत वकील अमरनाथ वर्मा के पास रखी है. जीतेजी देखने तो क्या आओगे? मेरी मृत्यु पर ही तुम लोग आओगे, पर अंतिम संस्कार करने से पहले वसीयत पढ़ लेना. उस के बाद ही मेरा अंतिम संस्कार करना.
और वह दिन भी आ पहुंचा. हवेली के विशाल आंगन में उन का पार्थिव शरीर रखा था. एक तरफ परिजन बैठे थे, उन के बीच सफेद कुरतेपायजामे में बाबू साहब के दोनों बेटे बैठे थे. महिलाएं अंदर थीं. वकील साहब को खबर कर दी गई थी. बस पहुंचने ही वाले थे.
वकील साहब के पहुंचते ही सब की नजरें उन के चेहरे पर टिक गईं. उन्होंने बारीबारी से सब को देखा. एक कोने में दीनहीन रामचंद्र बैठा था. केवल उस की आंखों में आंसू थे, पर वह रो नहीं सकता था, क्योंकि वहां सभी धीरगंभीर मुद्रा अपनाए थे.
वकील साहब ने अपने ब्रीफकेस से एक फाइल निकाली और उसे खोल कर पहले बाबू साहब के दोनों बेटों की तरफ देखा, फिर रामचंद्र को अपने पास बुला लिया. गंभीर वाणी में बोले, ‘‘मैं वसीयत पढ़ने जा रहा हूं. आप तीनों ध्यान से सुनना क्योंकि यह केवल आप ही 3 लोगों से संबंधित है,’’ फिर उन्होंने वसीयत पढ़नी प्रारंभ की :
‘‘मैं जगदीश नारायण श्रीवास्तव, निवासी ग्राम व पोस्ट हरचंदरपुर, जिला रायबरेली अपने पूरे होशोहवास और संज्ञान में शपथपूर्वक अपनी संपत्ति की निम्नलिखित वसीयत करता हूं :
‘‘भोरवा खेड़ा स्थित 20 बीघा पुश्तैनी जमीन, जो अलगअलग 4 चकों में है, मेरे दोनों पुत्रों के बीच बराबरबराबर बांट दी जाए. इसी तरह बैंक में जमा धनराशि के भी वे बराबर के हिस्सेदार होंगे. सोनेचांदी के जेवरात इन की बहुओं को बराबरबराबर सुनार की मध्यस्थता में उन की कीमत आंक कर बांट दिए जाएं.
‘‘रही 10 बीघा जमीन, जो मैं ने अपनी बचत और मेहनत की कमाई से खरीदी थी, उस का बैनामा मैं पहले ही अपने पुत्रसमान सेवक रामचंद्र के नाम कर चुका हूं. वह मेरा सगा बेटा नहीं है, पर मैं उस को अपने बेटों से भी बढ़ कर मानता हूं. संतान सुख क्या होता है वह मैं ने अपने दोनों पुत्रों के पालनपोषण से प्राप्त कर लिया है, परंतु जीवन के अंतिम समय में संतान एक पिता को क्या सुख देती है, यह मुझे अपने पुत्रों से प्राप्त नहीं हो सका. वह सुख मुझे मिला तो केवल रामचंद्र से, उस की पत्नी और बच्चों से.
‘‘मेरी सेवा करते समय उन के मन में कभी यह लालसा न रही होगी कि मजदूरी के अलावा उन्हें कुछ और प्राप्त हो. बचपन में हम अपने बच्चों का मलमूत्र साफ करते हैं. हमें उस से घृणा नहीं होती क्योंकि बच्चों को हम अपना अंश समझते हैं और यह समझते हैं कि वे हमारे बुढ़ापे की लाठी हैं, परंतु क्या सचमुच…
‘‘रामचंद्र के शरीर में मेरा खून नहीं है. वह मेरे घरपरिवार का भी नहीं है. है तो बस मात्र एक नौकर, परंतु उस की सेवा में नौकरभाव नहीं है. इस से कहीं कुछ ज्यादा है. वह मेरा मलमूत्र ऐसे उठाता है जैसे अपने अबोध बच्चे का उठा रहा हो. कोई घृणा नहीं उपजती है उस के मन में. उसी पितृभाव से मुझे नहलाताधुलाता है. मुझे साफ कपडे़ पहना कर अपने हाथों से खाना खिलाता है. मेरी सेवा करने में उस की पत्नी ने भी कभी कोताही नहीं बरती. कभी थकान या ऊब का भाव नहीं दिखाया. यह सब करते हुए क्या उन के मन में किसी प्रतिदान की आकांक्षा या लालसा रही होगी…कभी नहीं. इन दोनों ने मुझ से पूछे बिना कोई चीज इधर से उधर नहीं रखी.
‘‘ऐसे स्वामीभक्त रामचंद्र को मैं इस से ज्यादा दे भी क्या सकता था कि उस के बच्चों का भविष्य सुनिश्चित कर दूं. 10 बीघे जमीन में मेहनत से खेती करेंगे तो उन्हें कभी रोटी के लिए दूसरे के आगे हाथ नहीं पसारना पड़ेगा. मेरे बेटे सुखी- संपन्न और नौकरीपेशा वाले हैं. आशा है, मेरे इस निर्णय से उन के दिल को चोट नहीं पहुंची होगी.’’
वकील साहब थोड़ी देर के लिए रुके. सब लोग मंत्रमुग्ध थे. वकील साहब ने आगे पढ़ा :
‘‘इस के बाद यह मकान बचता है. इसे भी मैं ने अपने खूनपसीने की कमाई से बनवाया है. मैं जानता हूं, मेरे बेटेपोते मेरी मृत्यु के बाद गांव का रुख नहीं करेंगे. इस मकान को औनेपौने दाम में किसी बनिए को बेच देंगे. अत: यह मकान भी मैं रामचंद्र को दान करता हूं. मेरी मृत्यु के बाद वह सपरिवार इस मकान को अपने रहने के लिए उपयोग करे. दोनों भैंसें भी उसी की होंगी.’’
लाखों की संपत्ति बाबू साहब एक नौकर को दे कर चले गए. क्या उन के बेटे इस वसीयत को मानेंगे और यों ही चुप बैठे रह जाएंगे? सब की नजरें उन के बेटों की तरफ उठीं और एकटक उन्हें ही ताकने लगीं. वे क्या प्रतिक्रिया करेंगे? परिचित तथा परिजनों को विश्वास था कि अंतिम संस्कार से पहले ही कोई न कोई हंगामा खड़ा हो जाएगा.
उधर रामचंद्र जारजार रो रहा था.
दोनों बेटों ने एकदूसरे की तरफ देखा. चंद क्षणों तक एकदूसरे से कानाफूसी की और बड़े बेटे ने खड़े हो कर कहा, ‘‘हमें पिताजी पर गर्व है. उन्होंने जो कुछ किया, बहुत अच्छा किया. हमें उन से कोई शिकायत नहीं है. सच तो यही है कि हम उन के पुत्र होते हुए भी उन की कोई सेवा न कर सके. उन्हें अकेला छोड़ कर हम अपने बीवीबच्चों में मस्त रहे. वृद्धावस्था का अकेलापन और अपनों के पास न होने का बाबूजी का गम हम महसूस न कर सके. उन्हें अकेला मरने के लिए छोड़ दिया. पर हम रामचंद्र को अपना बड़ा भाई मानते हुए अपनेअपने हिस्से की जमीन को भी बोनेजोतने का अधिकार देते हैं और साथ ही यह अधिकार भी देते हैं कि बाबूजी का अंतिम संस्कार भी उसी के हाथों से संपन्न हो. इन्हीं हाथों ने बाबूजी की अंतिम दिनों में सेवा की है. यही उन का असली पुत्र है और उसे यह अधिकार मिलना चाहिए.’’
सब की नजरों में रामचंद्र के लिए अथाह आदर और सम्मान था.
मेहमानों के जाते ही मां आराम से बैठ गईं और टीवी पर अपना मनपसंद सीरियल देखने लगीं. नीरू गाड़ी की चाबी ले कर कमरे में आई और मां से बोली, ‘‘चलो मां.’’
‘‘कहां?’’ मां ने हंस कर पूछा.
‘‘कहां? अस्पताल और कहां? अभी थोड़ी देर पहले तो तुम तड़प रही थीं,’’ नीरू ने अपना पर्स उठा कर कहा.
‘‘हां, पर अब मैं नहीं जाऊंगी.’’ ‘‘क्यों.’’ ‘‘अब मेरी तबीयत ठीक हो गई. मैं अस्पताल नहीं जाऊंगी.’’ ‘‘अरे, फिर से पेट गरम हो गया तो आधी रात को जाना पड़ेगा.’’ ‘‘नहीं, नहीं जाना पड़ेगा,’’ मां ने आराम से कहा. ‘‘क्यों?’’ ‘‘क्योंकि मुझे कुछ हुआ नहीं. मैं तो एकदम ठीक हूं.’’ ‘‘तो वह क्या था जो थोड़ी देर पहले हो रहा था?’’
‘‘वह तो मेहमानों को भगाने के लिए मैं ने नाटक किया था. अच्छा था न?’’ मां ने बड़ी मासूमियत से कहा तो नीरू ने अपना सिर पीट लिया. अब वह मां को क्या बताती कि ये कोई रोज के बैठने वाले मेहमान नहीं थे. इन लोगों को उस ने अपनी बेटी के रिश्ते के लिए बुलाया था. पर क्या हो सकता है.
रोजरोज यही होता था. नीरू औफिस में भी घर की ही चिंता में डूबी रहती. पता नहीं मां ने घर में क्या तबाही मचाई होगी. आया होगी भी या काम छोड़ कर भाग गई होगी? घर जा कर जब सबकुछ ठीक देखती तो चैन की सांस लेती.
नीरू को चिंता में डूबा देख कर उस की सहेली ने पूछा, ‘‘क्या कोई परेशानी की बात तुम्हें खाए जा रही है? पता है आज मीटिंग में तुम्हारा ध्यान ही नहीं था. पता नहीं कहां और किस सोच में डूबी थी तुम. सब का ध्यान तुम्हारी तरफ लगा था. इस तरह तो तुम्हारी नौकरी चली जाएगी. घर, बच्चे और मां सब की जिम्मेदारी तुम्हारे ऊपर ही तो है.’’
‘‘मां की चिंता ही तो मुझे खाए जा रही है. मां बिलकुल बच्चों जैसा व्यवहार करने लगी हैं. अब बच्चे के लिए तो यह सोच कर सब्र हो जाता है कि थोड़े दिनों की बात है, फिर सब ठीक हो जाएगा. पर मां के लिए क्या करूं?’’
‘‘गोद ले ले.’’
‘‘क्या कहा, फिर से तो कहना.’’
‘‘कह तो रही हूं, मां को गोद ले ले. उस से तेरी चिंता कम हो जाएगी.’’
‘‘दिमाग तो खराब नहीं हो गया तेरा? मैं अपनी मां को गोद ले लूं. अगर ले भी लूं तो क्या होगा?’’
‘‘होगा यह कि मां की परेशानी तुझे परेशान नहीं करेगी. तू ने यह तो सुना ही होगा कि बूढ़े और बच्चे बराबर होते हैं. बुढ़ापा बचपन का दोबारा आना होता है. बुढ़ापे में मनुष्य की आदतें, बात, व्यवहार, जिद सब में बचपना दिखाई देने लगता है. अगर हम उन्हें बच्चा समझ कर ही लें तो उन की हरकतों पर गुस्से की जगह प्यार आने लगेगा और घर का माहौल भी अच्छा हो जाएगा.
‘‘अब हम उन से तो यह उम्मीद नहीं कर सकते हैं कि वे बदल जाएं. बदलना तो हमें पड़ेगा.
‘‘तू अपने मन में यह मान ले कि अब वे तेरी बच्ची हैं और तुझे उन का वैसे ही ध्यान रखना है जैसे कभी वे तुम्हारा रखती थीं. जब भी तुम्हें उन की कोई बात बुरी लगे, तुम अपने बचपन की कोई ऐसी घटना याद करना और उस घटना पर मां की प्रतिक्रिया भी. मुझे यकीन है तेरा गुस्सा कम हो जाएगा. यार, अब हमारी बारी है कुछ करने की.’’
‘‘मम्मी, अकेले बैठीबैठी हंस क्यों रही हो?’’ नीरू कमरे में अकेली बैठी हंस रही थी, तभी उस की बेटी रितु ने पूछा.
‘‘मैं अपने बचपन को याद कर रही थी. पता है, मैं मां को बहुत तंग करती थी. एक बार मेरी घड़ी खराब हो गई तो मैं अड़ गई कि जब तक नई घड़ी नहीं आएगी, मैं स्कूल नहीं जाऊंगी. छोटे से उस शहर में घड़ी की कोई अच्छी दुकान भी नहीं थी. तब मां पास के शहर जा कर मेरे लिए नई घड़ी लाई थीं. बहुत प्यार करती हैं मां मुझे.’’
‘‘अच्छा, तो तुम उन पर गुस्सा क्यों करती हो?’’ रितु ने पूछा.
‘‘वह तो उन की परेशानी देख कर गुस्सा आ जाता है. पर अब मैं गुस्सा नहीं करूंगी.’’
‘‘क्यों? अब ऐसा क्या हो गया?’’
‘‘तुम्हें क्या पता, जब मेरी शादी के बाद तुम्हारे दादादादी मुझे बहुत तंग करने लगे और तुम्हारे पापा भी उन्हीं की भाषा बोलने लगे तब मां मुझे वहां से अपने पास ले आईं. मैं तो उस दुख से कभी उबर ही न पाती अगर मां मुझे सहारा न देतीं.
‘‘अदालतों के चक्कर लगालगा कर, अपने जेवर बेच कर उन्होंने तुम्हारे पापा से न सिर्फ तलाक दिलवाया, मुझे नौकरी करने के लिए प्रेरित भी किया. आज मैं जो भी हूं, यह उन्हीं की मेहनत का फल है. अब मेहनत करने की बारी मेरी है.
‘‘अब मैं ने उन्हें गोद ले लिया है. अब मैं उन की मां हूं और वे मेरी प्यारी सी बच्ची. मैं उन की हर बचकानी हरकत का आनंद लूंगी. वैसे ही जैसे जब तुम छोटी थी तो तुम्हारी शैतानियों, बचकानी बातों पर मैं खुश होती थी. अब यह समय मां के बचपन का पुनरागमन ही तो है. आओ, हम सब मिल कर मां की शैतानियों का आनंद उठाएं. चलो, चलो, चलो मां के कमरे में मस्ती करेंगे सब, मां के साथ.’’
‘‘नानी उठो, हम आप के साथ मस्ती करने आए हैं,’’ रितु ने कमरे के बाहर से ही चिल्ला कर कहा पर अंदर पहुंच कर जब नानी को सोते देखा तो मायूसी से नीरू से कहा, ‘‘मां, नानी तो आज अभी से सो गईं. चलिए, हम बाहर का चक्कर लगा कर आते हैं.’’
अभी नीरू कमरे के दरवाजे तक ही पहुंची थी कि ऐसी आवाज आने लगी जैसे कोई कुछ खा रहा हो. नीरू तुरंत मुड़ी और उस ने मां की चद्दर खींच दी. चद्दर हटते ही मां घबरा कर बैठ गईं. उन्होंने अपने दोनों हाथ पीछे छिपा लिए.
‘‘दिखाओ मां, तुम्हारे हाथों में क्या है? क्या छिपा रही हो, मुझे दिखाओ?’’ कहते हुए नीरू ने मां के दोनों हाथ पकड़ कर सामने कर लिए, तो देखा मां के हाथों में अधखाए मीठे बिसकुट थे. अगर कोई और दिन होता तो नीरू जोर से चिल्ला कर पूरा घर सिर पर उठा लेती. शुगर बढ़ जाने की चिंता करती पर आज उसे याद आया अपना बचपन जब वह मां के सोने के बाद दोपहर में फ्रिज से निकाल कर स्टोर में छिप कर आईसक्रीम खाती थी. बस, यह याद आते ही उसे हंसी आ गई. उसे आज मां छोटी बच्ची सी लगीं और उस ने मां को प्यार से गले लगा लिया.