गलतफहमी: क्यों रीमा को बाहर भेजने से डरती थी मिसेज चंद्रा

मैंएक मल्टीनैशनल कंपनी में सीनियर एक्जीक्यूटिव हूं. कंपनी द्वारा दिए 2-3 बैडरूम के फ्लैट में अपने परिवार के साथ रहता हूं. परिवार में मेरी पत्नी व एक 10 वर्ष का बेटा है जो कौन्वैंट स्कूल में छठी क्लास में पढ़ रहा है. मेरी पत्नी खूबसूरत, पढ़ीलिखी है. मैं इस फ्लैट में पिछले

2 साल से रह रहा हूं. चूंकि हम लोगों को कंपनी मोटी तनख्वाह देती है तो उसी हिसाब से काम भी करना पड़ता है. मैं रोज 9 बजे अपनी गाड़ी से औफिस जाता व शाम को 6-7 बजे लौटता. कभीकभी तो इस से भी ज्यादा देर हो जाती थी. इसलिए कालोनी या बिल्ंिडग में क्या हो रहा है, यहां कौन लोग रहते हैं और क्या करते हैं, इस की मुझे बहुत कम जानकारी है. थोड़ाबहुत जो मेरी पत्नी मुझे खाना खाते वक्त या किसी अन्य बातचीत में बता देती थी उतना ही मैं जान पाता था.

एक दिन छुट्टी के दिन मैं अपनी बालकनी में बैठा सुबहसुबह पेपर पढ़ते हुए चाय पी रहा था कि मेरी नजर मेरे सामने की बिल्ंिडग में रहने वाली लड़की पर पड़ी, जो यही कोई 17-18 वर्ष की रही होगी. वह मेरी तरफ देखे जा रही थी. पहले तो मैं ने उसे यों ही अपना भ्रम समझा कि हो सकता है उसे कुछ कौतूहल हो, इस कारण वह मेरे फ्लैट की तरफ देख रही हो.

वैसे सुबहशाम टहलने का मेरा एक रूटीन था. सुबह उठ कर आधापौना घंटा कालोनी की सड़कों पर टहलता था व रात को खाना खा कर हम तीनों, मैं, मेरी पत्नी व मेरा बेटा कालोनी में टहलते अवश्य थे. अगर मेरे बेटे को रात को आइसक्रीम खाने की तलब लग जाती थी तो उसे आइसक्रीम भी खिलाने जाना पड़ता था.

मैं ने कई बार इस बात पर ध्यान दिया कि वह लड़की मेरे ऊपर व मेरी गतिविधियों पर नजर रखती है. मैं बालकनी में बैठा पेपर पढ़ रहा होता तो वह बालकनी की तरफ देखती और मुझ पर नजर रखती थी. जब हम रात को टहल रहे होते तो वह भी अपने कुत्ते के साथ टहलने निकल आती थी. कभीकभी उस का छोटा भाई भी उस के साथ आ जाता था, जोकि सिर्फ 5-6 साल का था, मगर दोनों भाईबहनों में बहुत फर्क था. वह बहुत खूबसूरत थी पर उस का छोटा भाई देखने में बहुत साधारण था.

एक दिन रात को मैं ने उस के पूरे परिवार को देखा. उस लड़की को छोड़ कर बाकी सभी देखने में बहुत साधारण थे. मुझे ताज्जुब भी हुआ मगर चूंकि आज के जमाने में कुछ भी हो सकता है इसलिए मैं ने इस बारे में ज्यादा नहीं सोचा किंतु जब उस लड़की की मेरे में दिलचस्पी बढ़ती जा रही थी तो मुझे थोड़ी परेशानी होने लगी कि मेरी बीवी देखेगी तो क्या कहेगी, मेरे बच्चे पर इस का क्या असर पड़ेगा.

कुछकुछ अच्छा भी लग रहा था. इस उम्र में कोई नौजवान लड़की अगर आप को प्यार करने लगे, चाहने लगे तो बड़ा अच्छा लगता है. अपने पुरुषार्थ पर विश्वास और बढ़ जाता है. इसलिए मैं भी कभीकभी पेपर पढ़ते समय उस की तरफ देख लेता था. हालांकि मेरी बालकनी और उस की बालकनी में करीब 50 फुट का फासला था, फिर भी हम एकदूसरे पर नजर रख सकते थे.

कुछ दिनों बाद उस ने भी सुबहसुबह टहलना शुरू कर दिया. कभी मेरे आगे, कभी मेरे पीछे. मैं यह सोच कर थोड़ा रोमांचित हुआ कि वह अब मेरी निकटता चाहने लगी है. शायद उसे मुझ से वास्तव में प्यार हो गया है. मैं भी उस के मोह में गिरफ्तार हो चुका था. अब मैं खाली समय में उस के बारे में सोचता रहता था. 40 से ऊपर की उम्र में जब पतिपत्नी  के संबंधों में एक ठहराव सा, एक स्थायित्च, एक बासीपन सा आ जाता है उस दौर में इस प्रकार के संबंध नई ऊर्जा प्रदान करते हैं.

लगभग हर व्यक्ति एक नवयौवना के प्यार की कामना करता है. कुछ पा लेते हैं, कुछ सिर्फ खयालों में ही अपनी इच्छा की पूर्ति करते हैं. कुछ लोग कहानियां, सस्ते उपन्यासों द्वारा अपनी इस चाहत को पूरा करते हैं, क्योंकि इस दौर में व्यक्ति इतना बड़ा भी नहीं होता कि वह हर लड़की को बेटी समान माने, बेटी का दरजा दे. वह अपने को जवान ही समझता है व जवानी की ही कामना करता है. मैं भी इस दौर से गुजर रहा था.

मगर एक दिन गड़बड़ हो गई. उसे कहीं जाना था जो शायद मेरे औफिस जाने के रास्ते में ही पड़ता था. मैं औफिस जाने के लिए तैयार हो कर निकला. अपनी गाड़ी मैं ने बाहर निकाली तो देखा वह मेरी तरफ ही चली आ रही है. उस ने मुझे इशारे  से रुकने को कहा और नजदीक आ  कर बोली, ‘‘अंकल, क्या आप मुझे कालीदास मार्ग पर छोड़ देंगे? मुझे देर हो गई है और मुझे वहां 10 बजे तक पहुंचना बहुत जरूरी है.’’

कार से कालीदास मार्ग पहुंचने में लगभग 45 मिनट लगते हैं. हालांकि अपने लिए अंकल संबोधन सुन कर मुझे कुछ झटका सा लगा था मगर शराफत के नाते मैं ने कहा, ‘‘बैठो, छोड़ दूंगा.’’

वह चुपचाप कार में बैठ गई.‘‘वहां के स्कूल में आज आईआईटी प्रवेश की परीक्षा है,’’ उस ने संक्षिप्त जवाब दिया.रास्तेभर हम खामोश रहे. वह अपने नोट्स पढ़ती रही. मैं ने उसे उस के स्कूल छोड़ दिया.

हालांकि मेरा मन बड़ा अनमना सा हो गया था अपने लिए अंकल संबोधन सुन कर. मैं तो क्याक्या खयाली पुलाव पका रहा था और वह मेरे बारे में क्या सोचती थी? मगर उस के बाद भी उस की गतिविधियों में कोई बदलाव नहीं आया. उसी प्रकार सुबहशाम टहलना, बालकनी में खड़े हो कर मुझे देखना. चूंकि दूरी काफी थी इसलिए मैं यह नहीं समझ पा रहा था कि उस के देखने में अनुराग है, आसक्ति है या कुछ  और है.

मैं ने सोचा, हो सकता है उसे मुझ से बात शुरू करने के लिए कोई और शब्द न मिला हो इसलिए उस ने मुझे ‘अंकल’ कहा हो. चूंकि मुझ को उस में रुचि थी अत: मैं ने उस के और उस के घरपरिवार के बारे में लोगों से पूछा, पता लगाया, पत्नी के द्वारा थोड़ीबहुत जानकारी ली. मुझे पता लगा उस के पिताजी भी एक दूसरी फर्म में इंजीनियर हैं मगर उन की यह

दूसरी पत्नी हैं. पहली पत्नी की मौत हो चुकी है.एक दिन छुट्टी के दिन वह सुबहसुबह मेरे फ्लैट में आई. मैं पेपर पढ़ रहा था. पत्नी ने दरवाजा खोल कर मुझे बुलाया, ‘‘आप से मिलने कोई रीमा आई है.’’

‘‘कौन रीमा?’’‘‘वही जो सामने रहती है.’‘‘ओह, मगर उसे मुझ से क्या काम?’’‘‘आप खुद ही उस से मिल कर पूछ लो.’’

मैं बालकनी से उठ कर ड्राइंगरूम में आया. उस ने मुझे नमस्ते की.मैं ने सिर हिला कर उस की नमस्ते का जवाब दिया.‘‘बोलो?’’ मैं ने पूछा.‘‘अंकल, मैं आप की थोड़ी मदद चाहती हूं.’’‘‘किस प्रकार की मदद?’’

वह थोड़ी देर खामोश रही, फिर बोली, ‘‘मेरा सलैक्शन आईआईटी में हो गया है मगर मेरे मम्मीपापा मुझे जाने नहीं देना चाहते. मैं चाहती हूं कि आप उन्हें समझाएं.’’

‘‘मगर मैं उन्हें कैसे समझाऊं, मेरा उन से कोई परिचय नहीं. कोई बातचीत नहीं. मेरी बात क्यों मानेंगे?’ ‘‘अंकल, प्लीज, मेरी खातिर, मेरी मम्मी की खातिर आप उन्हें समझाइए.’‘‘न ही मैं तुम्हें अच्छी तरह जानता हूं और न ही तुम्हारी मम्मी को, फिर मैं तुम्हारी खातिर कैसे तुम्हारे पापा से बात करूं?’’

‘‘मैं प्रभा की बेटी हूं.’’‘‘कौन प्रभा?’’ ‘‘वही जो आप की दूर के एक रिश्तेदार की बेटी थीं.’’मैं चौंका, ‘‘क्या तुम्हारी मम्मी बाबू जगदंबा प्रसाद की बेटी थीं?’’‘‘जी.’’ ‘‘ओह, तो यह बात है, तो क्या तुम मुझे जानती हो?’’

‘‘जी, मम्मी ने आप के बारे में बताया था. नाना के पास आप की फोटो थी. मम्मी ने बताया था कि आप चाहते थे कि आप की शादी उन से हो जाए मगर नाना नहीं माने. क्योंकि तब आप की पढ़ाई पूरी नहीं हो पाई थी और आप लोग उम्र में भी लगभग बराबर के थे.’’

प्रभा बहुत खूबसूरत और मेरे एक दूर के रिश्तेदार की बेटी थी. वे लोग पैसे वाले थे. उस के पिताजी पीडब्ल्यूडी में इंजीनियर थे जबकि मेरे पिताजी बैंक में अफसर. तब पैसे के मामले में एक बैंक अफसर से पीडब्ल्यूडी के एक इंजीनियर से क्या मुकाबला?

मैं अभी पढ़ रहा था, तभी सुना कि प्रभा की शादी की बात चल रही है. मैं ने अपनी मां से कहलवाया मगर उन लोगों ने मना कर दिया, क्योंकि मैं अभी एमकौम कर रहा था और उन को प्रभा के लिए इंजीनियर लड़का मिल रहा था. फिर प्रभा की शादी हो गई. मैं ने एमकौम, फिर सीए किया तब नौकरी मिली. इसीलिए मेरी शादी भी काफी देर से हुई.

तो रीमा उसी प्रभा की बेटी है. मुझे प्रभा से शादी न हो पाने का मलाल अवश्य था मगर मुझे उस के मरने की खबर नहीं थी. असल में हमारा उन के यहां आनाजाना बहुत कम था. कभीकभार किसी समारोह में या शादीविवाह में मुलाकात हो जाती थी. मगर इधर 8-10 साल से मेरी उस के परिवार के किसी व्यक्ति से मुलाकात नहीं हुई थी. इसीलिए मुझे उस की मौत की खबर नहीं थी.

‘‘तुम्हारी मम्मी कब और कैसे गुजरीं?’’ मैं ने पूछा. ‘‘दूसरी डिलीवरी के समय 7 साल पहले मेरी मम्मी की मृत्यु हो गई.’’‘‘और आजकल जो हैं वह?’’‘‘एक साल बाद पापा ने दूसरी शादी कर ली. राहुल उन से पैदा हुआ है.’’

अब मुझे दोनों भाईबहनों की असमानता का रहस्य समझ में आया कि क्यों रीमा इतनी खूबसूरत थी और उस का भाई इतना साधारण. और क्यों दोनों में उम्र का भी काफी अंतर था.

‘‘तो तुम मुझ से क्या चाहती हो?’‘‘अंकल, मैं आप को पिता के समान मानती हूं. जब आप शाम को बच्चे के साथ बाहर घूमने निकलते हैं तो मुझे बड़ा अच्छा लगता है. मैं भी चाहती हूं कि मेरे पापा भी ऐसा करें मगर उन के पास तो मेरे लिए फुरसत ही नहीं है. मम्मी लगता है मुझ से जलती हैं कि मैं इतनी खूबसूरत क्यों हूं. अब इस में हमारा क्या दोष? इसीलिए वह मेरी हर बात में कमी निकालती हैं, हर बात का विरोध करती हैं. वह नहीं चाहतीं कि मैं ज्यादा पढ़लिख कर आगे बढ़ूं.’’

अब मुझे उस की नजरों का अर्थ समझ में आने लगा था. वह मुझ में उस आदर्श पिता की तलाश कर रही थी जो उस के आदर्शों के अनुरूप हो. जो उस के पापा की कमियों को, उस की इच्छाओं को पूरा कर सके. मुझे अपनी सोच पर आत्मग्लानि भी हुई कि मैं उस के बारे में कितना गलत सोच रहा था. लगता था वह घर से झगड़ा कर के आई थी.

‘‘तुम ने नाश्ता किया है कि नहीं?’’ मैं ने पूछा तो वह खामोश रही.मैं समझ गया. झगड़े के कारण उस ने नाश्ता भी नहीं किया होगा.‘‘ठीक है, तुम पहले नाश्ता करो. शांत हो जाओ. फिर मैं चलता हूं तुम्हारे घर.’’

मैं ने उसे आश्वस्त किया. फिर हम सब ने बैठ कर नाश्ता किया. मैं ने अपनी पत्नी को बताया कि मैं रीमा के मम्मीपापा से मिलने जा रहा हूं.

‘‘मैं भी साथ चलूंगी,’’ मेरी पत्नी ने कहा.‘‘तुम क्या करोगी वहां जा कर?’’

‘‘आप नहीं जानते, यह लड़की का मामला है. अगर उन्होंने आप पर कोई उलटासीधा इलजाम लगाया या आप से पूछा कि आप को उन की बेटी में इतनी रुचि क्यों है तो आप क्या जवाब देंगे? और अगर उन्होंने कहा कि आप को उस से इतना ही लगाव है तो उसे अपने पास ही रख लीजिए. तो क्या आप इतना बड़ा फैसला अकेले कर सकेंगे?’’

मैं ने इस पहलू पर गौर ही नहीं किया था. मेरी पत्नी का कहना सही था.हम सब एकसाथ रीमा के घर गए.

मैं ने उन के घर पहुंच कर घंटी बजाई. उस की मम्मी ने दरवाजा खोला तो हम लोगों को देख कर वह नाराजगी से अंदर चली गईं फिर उस के पापा दरवाजे पर आए.

वहां का माहौल काफी तनावपूर्ण थारीमा के पिता नरेशचंद्र और मां माया रीमा से बहुत नाराज थे कि वह घर का झगड़ा बाहर क्यों ले गई, वह मेरे पास क्यों आई?

‘‘कहिए, क्या बात है?’’ वह बोले.हम दोनों ने उन को नमस्कार किया. मैं ने कहा, ‘‘क्या अंदर आने को नहीं कहेंगे?’’ उन्होंने बड़े अनमने मन से कहा, ‘‘आइए.’’

हम सब उन के ‘ड्राइंग कम डाइनिंग रूम’ में बैठ गए. थोड़ी देर खामोशी छाई रही, फिर मैं ने ही बात शुरू की.‘‘आप शायद मुझे नहीं जानते.’’‘‘जी, बिलकुल नहीं,’’ उन्होंने रूखे स्वर में कहा.

‘‘आप की पहली पत्नी मेरी बहुत दूर की रिश्तेदार थीं.’’‘‘तो?’’

‘‘इसीलिए रीमा बेटी से हम लोगों को थोड़ा लगाव सा है,’’ मैं कह तो गया मगर बाद में मुझे स्वयं अपने ऊपर ताज्जुब हुआ कि मैं इतनी बड़ी बात कैसे कह गया.

‘‘तो?’’ उन्होंने उसी बेरुखी से पूछा.मैं ने बड़ी मुश्किल से अपना धैर्य बनाए रखा. मुझे उन के इस व्यवहार से बड़ी खीज सी हो रही थी. कुछ देर खामोश रह कर मैं फिर बोला, ‘‘वह आईआईटी से पढ़ाई करना चाहती है…’’

‘‘मगर हम लोग उस को नहीं भेजना चाहते,’’ मिस्टर चंद्रा ने कहा.‘‘कोई खास बात…?’’‘‘यों ही.’’

‘‘यों ही तो नहीं हो सकता, जरूर कोई खास बात होगी. जब आप की बेटी पढ़ने में तेज है और फिर उस ने परीक्षा में सफलता प्राप्त कर ली है तो फिर आप को एतराज किस बात का है?’’

अब मिसेज चंद्रा भी बाहर आ कर अपने पति के पास बैठ गईं.‘‘देखिए भाई साहब, रीमा हमारी बेटी है. उस का भलाबुरा सोचना हमारा काम है, किसी बाहरी व्यक्ति या दूर के रिश्तेदार का नहीं,’’ मिसेज चंद्रा बोलीं.

मैं ने खामोशी से उन की बात सुनी. उन की बातों से मुझे इस बात का एहसास हो गया कि मिसेज चंद्र्रा का ही घर में काफी दबदबा है और नरेश चंद्रा उन के ही दबाव में हैं शायद इसीलिए रीमा को आगे पढ़ने नहीं देना चाहते.

मैं ने अपना धैर्य बनाए हुए संयत स्वर में कहा, ‘‘आप की बात बिलकुल सही है मगर क्या आप नहीं चाहतीं कि आप की बेटी उच्च शिक्षा प्राप्त करे, इंजीनियर बने. लोग आप का उदाहरण दें कि वह देखो वह मिसेज चंद्रा की बेटी है जो इंजीनियर बन गई है,’’ मैं ने थोड़ा मनोवैज्ञानिक दबाव बनाया.

मेरी बातों से वे थोड़ा शांत हुईं.  उन का अब तक का अंदाज बड़ा आक्रामक था.‘‘मगर हम चाहते हैं कि उस की जल्दी से शादी कर दें. वह अपने पति के घर जाए फिर उस का पति जैसा चाहे, करे.’’

‘‘मतलब आप शीघ्र ही अपनी जिम्मेदारियों से छुटकारा पाना चाहती हैं.’’‘‘जी हां,’’ मिसेज चंद्रा बोलीं.

‘‘मगर क्या रीमा एक बोझ है? मेरे विचार से तो वह बोझ नहीं है, और आजकल तो लड़के वाले भी चाहते हैं कि लड़की ज्यादा से ज्यादा पढ़ी हो. और जब वह इंजीनियर बन जाएगी, खुद अच्छा कमाएगी तो आप को भी इतनी परेशानी नहीं होगी उस की शादी में,’’ मैं ने अपनी बात कही.

‘‘आप की बात तो सही है, मगर…’’ मिसेज चंद्रा सोचते हुए बोलीं.

मैं उन के इस मगर का अर्थ समझ रहा था किंतु मैं रीमा के सामने नहीं कह सकता था. वह हम लोगों के साथ ही बैठी थी. मैं ने उसे अपने बेटे व उस के भाई के साथ मेरे घर जाने को कहा. वह थोड़ा झिझकी. मैं ने उसे इशारों से आश्वस्त किया तो वह चली गई.

‘‘देखिए, जहां तक मैं समझता हूं आप का और रीमा का सहज संबंध नहीं है. आप लोगों के बीच कुछ तनाव है.’’

मिसेज चंद्रा का चेहरा गुस्से से तमतमा गया.

‘‘देखिए, मेरी बात को आप अन्यथा न लीजिए. यह बहुत सहज बात है. असल में आप दोनों के बीच किसी ने सहज संबंध बनाने का प्रयास ही नहीं किया. आप को उस की खूबसूरती के कारण हमेशा हीनता महसूस होती है. इसीलिए आप उसे हमेशा नीचा दिखाना चाहती हैं, उस की उन्नति नहीं चाहती हैं, मगर क्या यह अच्छा नहीं होता कि आप बजाय उस से जलने के गर्व महसूस करतीं कि आप की एक बहुत ही सुंदर बेटी भी है. उसे एक खूबसूरत तोहफा मानतीं नरेश की पहली पत्नी का. उसे इतना प्यार देतीं, उस की हर बात का खयाल रखतीं कि वह आप को अपनी सगी मां से ज्यादा प्यार, सम्मान देती. अगर आप को कोई परेशानी न हो तो मैं उस की जिम्मेदारी उठाने को तैयार हूं,’’ मैं ने अपनी पत्नी की तरफ देखा तो उस ने भी आंखों ही आंखों में अपनी रजामंदी दे दी.

मेरी बात का उन पर लगता है सही असर हुआ था क्योंकि जो बात मैं ने कही थी कभीकभी इन बातों का कुछ लोग उलटा अर्थ लगा लड़ने लग जाते हैं. मगर गनीमत कि उन्होंने मेरी बातों का बुरा नहीं माना.

‘‘ठीक है, जैसी आप की मरजी. आप उस से कह दीजिए कि हम लोग उसे इंजीनियरिंग पढ़ने भेज देंगे,’’ मिसेज चंद्रा ने बड़े ही शांत स्वर में कहा.

‘‘मैं नहीं, यह बात उस से आप ही कहेंगी और आप खुद देखेंगी कि इस बात का कैसा असर होगा.’’

थोड़ी देर में वह चाय और नाश्ता लाईं जिस के लिए अभी तक उन्होंने हम लोगों से पूछा नहीं था.

फिर मैं ने अपने घर टैलीफोन कर रीमा को बुलवाया. रीमा आई तो मिसेज चंद्रा ने उसे अपने पास बिठाया. उस का हाथ अपने हाथों में ले कर थोड़ी देर तक उसे देखती रहीं, फिर उन्होंने उस का माथा चूम लिया, ‘‘तुम जो कहोगी मैं वही करूंगी,’’ उन्होंने रुंधे गले से कहा तो रीमा उन से गले लग कर रोने लगी. मिस्टर चंद्रा की आंखों में भी आंसू आ गए थे. आंसू तो हमारी भी आंखों में थे मगर वह खुशी के आंसू थे.

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द कपिल शर्मा शो पर इंडियन कैप्टन रोहित शर्मा ने अपनी पत्नी को लेकर कही ये बात

द ग्रेट इंडियन कपिल शो के दूसरे एपिसोड में इस बार डंडियन क्रिकेट टीम के कैप्टन रोहित शर्मा और खिलाड़ी श्रेयस अय्यर बतौर गेस्ट शामिल हुए. शो में रोहित की पत्नी रितिका सजदेह भी थी जो उनकी मैनेजर भी हैं.

मैनेजर की तरह काम करने पर रितिका ने भी अपने कई एक्सपीरियंस शेयर किए. शो में कपिल ने रोहित से एक सवाल पूछा कि क्या किसी खिलाड़ी की गर्लफ्रेंड के स्टेडियम में मौजूद होने पर किसी ने उनसे रिक्वेस्ट की है कि वह छक्के ना लगाएं.

इस सवाल के जवाब में रोहित ने कहा कि हां ऐसा हुआ है ऐसे में मैं उन खिलाड़ियों को कहता हूं कि जब तुम्हारी गर्लफ्रेंड वहां होती है तो मेरी पत्नी वहां मौजूद रहती है और पूरे मैच के दौरान फिंगर क्रॉस्ड करके रहती है. पत्नी उनके लिए ज्यादा जरूरी है.

 

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शो पर रोहित की पत्नी से कपिल ने सवाल किया कि रोहित को किस तरह संभालना मुश्किल होता है पति की तरह या टीम के कैप्टन की तरह?

इस पर रितिका ने जवाब दिया कि बतौर पति और कैप्टन, उन्हें मैनेज करने के लिए उनके पास टीम है. मुझे कुछ नहीं करना पड़ता. इस पर रोहित ने तुरंत कहा कि रितिका ड्रेसिंग रूम में और फील्ड में नहीं आ सकती लेकिन मुझे घर जाना है और वहां पर रितिका कैप्टन हैं.

 

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आंखों ही आंखों में अनी और झनक एक-दूसरे से कहेंगे अपने दिल का हाल, देखें Video

Jhanak Serial Update: झनक सीरियल के नए एपिसोड में अनी और झनक के बीच रोमांस दिखाया जाएगा. शो के आनेवाले एपिसोड में आप देखेंगे कि झनक के हाथ में चोट लगी हुई है और अनी उसे खुद अपने हाथों से खाना खिलाता है. शुरुआत में तो झनक अनी के हाथ से खाना खाने से मना कर देती है, लेकिन अपु दी जिद करती है और अनी भी कहता है, इसके बाद वो अनी के हाथों से खाने लगती है.

अनि झनक और अपु दी दोनों को अपने हाथों से खाना खिलाता है. दूसरी तरफ झनक अनि को भी खाने के लिए कहती है, ऐसे में अपु दी झनक को फोर्स करती है कि वो भी अनी को अपने हाथ से खाना खिलाए, इसके बाद झनक भी अपू दी के कहने पर शर्माते हुए अपने हाथ से खाना खा लेती है. दरअसल, इस समय परिवार के अन्य सदस्य घर पर नहीं होते हैं.

 

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कुछ देर बाद परिवार के लोग घर लौटते हैं, इसके बाद बिपाशा अपू दी को बाहर से मंगाया हुआ खाना देने को मना करती है, क्योंकि वो उन्हें सूट नहीं करता और वो उसे खाने से बीमार हो सकती है. बड़ो मां को इस बात का बुरा लगता है और वह अनी के पापा को खरी-खोटी सुना देती है.

 

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इसके बाद अनी खाने की टेबल पर आता है, अर्शी भी वहां मौजूद होती है और उसकी बहन झनक से खाना खाने के लिए कहती है. फिर अपू दी आकर कहती हैं कि झनक ने भी खाना खा लिया है. लेकिन अर्शी को यह बात अच्छी नहीं लगती और और वह कहती है कि झनक को किसने खाना खिलाया. तभी अनी आ जाता है और कहता है कि मैंने झनक को खाना खिला दिया है. अर्शी के साथ अनी के इस तरह से बात करने पर उसे बहुत बुरा लगता है और वह हैरान रह जाती है. अब फैंस को उस समय का इंतज़ार है जब अनी बासु परिवार के सामने अपने प्यार का इज़हार करेगा.

अपने डिनर को बनाएं खास, ट्राई करें ये टेस्टी रेसिपीज

अक्सर हम लोग घर में खाना बनाने के समय कंफ्यूज हो जाते हैं कि खाने में क्या बनाया जाए, आपकी इसी उलझन को सुलझाने के  लिए शेयर कर रहे हैं कुछ टेस्टी रेसिपीज.

कड़ाही पनीर

सामग्री

  • 20 ग्राम बटर
  •  2 ग्राम क्रश की साबूत लालमिर्च
  •  2 ग्राम क्रश किया हुआ साबूत धनिया
  •  15 ग्राम चौकोर टुकड़ों में हरी शिमलामिर्च कटा
  •  15 ग्राम चौकोर टुकड़ों में कटे हुए प्याज
  • द्य 15 ग्राम चौकोर टुकड़ों में कटे हुए टमाटर
  •  50 ग्राम लबाबदार मसाला
  •  50 ग्राम मखनी ग्रेवी
  •  180 ग्राम कौटेज चीज टुकड़ों में कटा
  •  3 ग्राम कसूरीमेथी पाउडर
  •  5 ग्राम देगीमिर्च पाउडर
  • द्य थोड़ा सा गरममसाला
  •  थोड़ी सी धनियापत्ती कटी
  •  थोड़ा सा लैमन जूस
  • नमक स्वादानुसार

विधि

पैन में बटर गरम कर उस में क्रश की साबूत लालमिर्च, साबूत धनिया डाल कर चटकाएं. फिर इस में प्याज, टमाटर और शिमलामिर्च डाल कर अच्छी तरह मिलाएं. अब इस में लबाबदार मसाला, मखनी ग्रेवी और सारे बचे हुए मसाले डाल कर मिलाते हुए थोड़ा पकाएं. आखिर में कौटेज चीज के साथ ऊपर से लेमन जूस और गरम मसाला डालकर धनियापत्ती से गार्निश कर के स्टीम्ड राइस या नान के साथ सर्व करें.

सब्ज पुदीना पुलाव

सामग्री

  1.  60 ग्राम कटी गाजर द्य 80 ग्राम बींस कटी
  2.  40 ग्राम फ्रोजन मटर द्य 30 ग्राम ब्लैंचड फूलगोभी द्य 5 ग्राम कटा हुआ पुदीना द्य 10 ग्राम अदरक कद्दूकस किया द्य 10 ग्राम हरीमिर्च कटी
  3.  5 ग्राम जीरा द्य 50 ग्राम देशी घी द्य 20 ग्राम रिच क्रीम द्य 5 ग्राम हींग द्य 30 ग्राम ब्राउन ग्रेवी
  4. द्य थोड़ा सी धनियापत्ती कटी द्य 15 ग्राम प्याज भुना द्य 300 ग्राम बिरयानी राइस द्य 60 मिलीलीटर बिरयानी ?ोल द्य थोड़ा सा केवरा वाटर.

विधि

पैन में तेल डाल कर उस में उबली सब्जियों को डाल कर उस में सारे सूखे मसालों के साथ पुदीना, अदरक, प्याज, केवरा वाटर और देशी घी ऐड करें. फिर इस मिक्स्चर पर पके बिरयानी राइस डाल कर 2-3 मिनट तक ढक कर पकाएं और फिर प्याज, पुदीना और अदरक के टुकड़ों से सजा कर रायते के साथ गरमगरम सर्व करें.

  • सामग्री बिरयानी ?ोल की
  •  100 ग्राम रिच क्रीम द्य 10 ग्राम देशी घी
  •  15 ग्राम बटर द्य 2 ग्राम छोटी इलायची का पाउडर द्य 2 ग्राम खस की जड़ का पाउडर
  •  1 ग्राम जावित्री पाउडर द्य 3 मिलीलीटर रोजवाटर द्य 3 मिलीलीटर रोह केवरा वाटर
  •  5 ग्राम पीली मिर्च का पाउडर द्य 5 मिलीलीटर लैमन जूस द्य थोड़ी पुदीनापत्ती कटी द्य 5 ग्राम अदरक कटा द्य थोड़े से तेजपत्ते द्य 2 ग्राम साबूत छोटी हरी इलायची द्य थोड़ी सी दालचीनी
  •  1 ग्राम लौंग द्य 1 ग्राम साबूत जावित्री द्य 2 ग्राम साबूत काली इलाइची द्य 50 मिलीलीटर पानी
  •  नमक स्वादानुसार.

विधि

पैन में औयल गरम कर के उस में सारे साबुत मसाले डाल कर चटकाएं. फिर क्रीम, पानी और बाकी बची सामग्री डाल कर तब तक पकाएं जब तक पानी कम हो कर क्रीमी टैक्स्चर में न आ जाए. बिरयानी ? तेल तैयार है.

तरकारी बिरयानी

सामग्री

  •  20 ग्राम गाजर चौकोर टुकड़ों में कटी
  •  20 ग्राम बींस कटी द्य 20 ग्राम आलू चौकोर टुकड़ों में कटे द्य 75 ग्राम दही द्य थोड़ा सा अदरक व लहसुन का पेस्ट द्य 5 ग्राम हलदी पाउडर
  • द्य 10 ग्राम देगी लालमिर्च द्य थोड़ा सा लैमन जूस
  • द्य थोड़ा सा गरममसाला द्य थोड़ी सी पुदीनापत्ती व धनियापत्ती कटी द्य 10 ग्राम शाही जीरा द्य थोड़ा सा केसर द्य 1 मिलीलीटर केवड़ा द्य 15 ग्राम घी
  • द्य 150 ग्राम बासमती राइस द्य 10 ग्राम प्याज भुना
  • द्य 10 ग्राम इलायची पाउडर द्य नमक स्वादानुसार.

बनाने की विधि

सब्जियों को डायमंड शेप में काट कर औयल में थोड़ा भूनें. फिर इन में चावल, केवड़ा, इलायची पाउडर, धनिया पुदीनापत्ती और गरममसाला छोड़ कर बाकी बचे सारे मसाले डाल कर तीनचौथाई होने तक पकने के लिए छोड़ दें. फिर अलग से पैन में थोड़ा घी डाल कर उस में जीरा, अदरकलहसुन का पेस्ट डाल कर थोड़ा भूनते हुए उस में बासमती राइस में पानी डाल कर पकाएं. फिर राइस को वैजिटेबल मसाले पर डाल कर ऊपर से घी, केसर का पानी, भुना प्याज, केवड़ा, धनियापत्ती व गरममसाला डाल कर सील कर के  दम बासमती राइस को कुछ मिनट और पकाएं फिर गरमगरम सर्व करें.

कहानी लव स्टोरी की: जिंदगी के खट्टेमीठे पलों को याद करती रेणु

उम्र की परिपक्वता की ढलान पर खड़ी रेणु पार्क में अपनी शाम की सैर खत्म कर के बैंच पर बैठी सुस्ता रही थी. पास वाली बैंच पर कुछ लड़कियां बैठी गपशप कर रही थीं. वे शायद एक ही कालेज में पढ़ती थीं और अगले दिन की क्लास बंक करने की योजना बना रही थीं. उन की बातों को सुन कर रेणु के चेहरे पर एक चंचल सी मुसकान दौड़ गई. उसे उन की बातों में कहीं अपना अतीत झलकता सा लगा.

अपनी जिंदगी की कहानी के खट्टेमीठे पलों को याद करती रेणु कब पार्क की सैर से निकल कर अतीत की सैर पर चल पड़ी, उसे पता ही नहीं चला. अतीत के इस पन्ने पर लिखी थी करीब 30 साल पुरानी वह कहानी जब रेणु नईनई कालेज गई थी. अभी ग्रैजुएशन के पहले साल में थी. पहली बार आजादी का थोड़ा सा स्वाद चखने को मिला था वरना स्कूल तो घर के इतने पास था कि जोर से छींक भी दो तो आवाज घर पहुंच जाती थी.

घर से कौलेज पहुंचने में रेणु को बस से करीब 40-45 मिनट लगते थे. वह खुश थी कि कालेज घर से थोड़ी तो दूर है. रेणु के महल्लेपड़ोस की ज्यादातर लड़कियां इसी कालेज में आती थीं, इसलिए किसी भी शरारत को छिपाना तो अब भी आसान नहीं था. सब को राजदार बनाना पड़ता था.

महरौली के निम्न मध्यवर्गीय परिवार में पलीबढ़ी रेणु के घर का रहनसहन काफी कुछ गांव जैसा ही था. दरअसल, रेणु के जैसी पारिवारिक स्थिति वाले लोग एक दोहरी कल्चरल स्टैंडिंग के बीच ? झेलते रहते थे. एक ओर पढ़ी-लिखी नई पीढ़ी अपने को महानगरीय सभ्यता के नजदीक पाकर उस ओर खिंचती थी, तो दूसरी ओर कम पढ़ी-लिखी पिछली पीढ़ी अपनी प्राचीन नैतिकता की जंजीर उनके

पैरों में डाल देती थी. सगे रिश्तों के अलावा ढेर सारे मुंह बोले रिश्ते जहां पुरानी पीढ़ी का सरमाया होते थे, वहीं नई पीढ़ी के लिए अनचाही रवायत. हर बात पर घर वालों के साथसाथ महल्लेपड़ोस की भी रोकटोक

के बीच नई पीढ़ी को 1-1 कदम ऐसे फूंकफूंक कर रखना पड़ता था जैसे लैंड माइंस बिछी हों.

‘‘2 साल पहले ही रेणु के बड़े भाई

की शादी हुई थी और अभी 2 दिन पहले ही वह एक प्यारे से गोलमटोल भतीजे की बूआ बनी थी. यह बच्चा नई पीढ़ी का पहला नौनिहाल था. घर में बहुत ही खुशी का माहौल था.

रेणु के बुआ बनने की खुशखबरी जब उस की सहेलियों तक पहुंची तो सब ने उस से पार्टी के तौर पर नई फिल्म ‘लव स्टोरी’ दिखाने का आग्रह किया. रेणु के लिए सब

के टिकट का इंतजाम करना इतना मुश्किल नहीं था जितना कि सहेलियों के साथ पिक्चर देखना, अम्मां से इजाजत लेना. रेणु आज

तक अपनी अम्मां को यह तो सम?ा नहीं सकी थी कि पिक्चर देखने का मतलब लड़की का हाथ से निकल जाना या बिगड़ जाना नहीं होता. ऐसे में अम्मां उसे सहेलियों के साथ पिक्चर देखने की इजाजत देने से पहले तो उस का कालेज जाना बंद करवा देगी और कहेगी,

‘‘घर बैठ कर घर के कामकाज सीख ले, कोई जरूरत नहीं है कालेज जाने की, न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी.’’

रेणु सोच रही थी कि कोई तिगड़म तो भिड़ानी ही पड़ेगी वरना इतने सालों में

जो एक निर्भीक लड़की की छवि सहेलियों के बीच बनाई थी उस की तो इतिश्री हो जाएगी. उस ने सोचा क्यों न अम्मां के बजाय बड़े भाई से पूछ लूं. वैसे तो रेणु की आजादी के मामले में वह अम्मां से भी दो कदम आगे था लेकिन आजकल स्थिति थोड़ी अलग थी. उस ने नयानया बाप का स्वाद चखा था, सो आजकल उस खुशी के नशे में रहता था. रेणु ने सोचा कि जब वह नवजात के साथ होगा, तब वह बात करेगी. फिर कुछ सहारा तो भाभी भी लगा देंगी. वैसे भी जब से उन्होंने बेटे को जन्म दिया है तब से उन की बात की खास महत्ता हो गई है पूरे परिवार में.

अगले दिन जब रेणु ने अपनी रिकवैस्ट को नरमनरम शब्दों के तौलिए में लपेट कर उस पर माहौल की खुशी का इत्र छिड़क कर बड़े भाई के सामने पेश किया तो पता नहीं ये रेणु के शब्दों का जादू था या भाई के पिता बनने का असर या यह कि उस के भाई ने न केवल इजाजत दे दी बल्कि अपनी जेब से पैसे निकालते हुए पूछा. ‘‘कितनी सहेलियां जाएंगी?’’

‘‘5,’’ रेणु खुशी से उछल कर बोली.

‘‘ठीक है, छोटे भाई के साथ जाना,’’ कह कर वह रेणु के खुशी के उबाल पर ठंडे पानी के छींटे मारकर चलता बना.

अब समस्या थी कि छोटे भाई का

पत्ता कैसे काटें? रेणु ने छोटे भाई को सारी बात बता कर उसे कल के 6 टिकट लाने

को कहा.

यह सुनते ही वह उबल पड़ा, ‘‘पागल है क्या, मैं भला तेरे और तेरी सहेलियों के साथ फिल्म देखने क्यों जाऊंगा?’’

रेणु अपनी खुशी छिपाते हुए रोआंसे स्वर में बोली, ‘‘ठीक है, फिर हम सब अकेली चली जाएंगी पर तू बड़े भाई को

मत बताना.’’

‘‘ठीक है तू भी मत बताना कि मैं तेरे साथ नहीं गया और हां मेरे टिकट के पैसे तो दे दे जो भाई ने दिए थे.’’

पैसे ले कर छोटा भाई भी मस्त हो गया. मेहनत मेरी पर फल उसे भी मिल गया था.

रेणु को लगा कि चलो अपना काम

तो हो गया. छोटे भाई का पत्ता खुद ही कट गया. उस ने तुरंत अपनी सहेलियों को फोन किया.

‘‘कल 12 से 3 का शो पक्का. हमें अपना लंच के बाद की 2 क्लासेज मिस करनी होंगी.’’

इस में भला किसे मुश्किल होनी थी? उन्हें तो बस कालेज से लौटने के टाइम तक घर लौटना था.

अगले दिन सही वक्त पर सब सहेलियां सिनेमाहौल पहुंच गईं.

रोमांटिक फिल्म थी, तो सभी लड़कियां जमीन से 2-3 इंच ऊपर ही चल रही थीं. फिल्म समय पर शुरू हो गई. कुमार गौरव के साथ विजयेता पंडित तो हमें सिर्फ 2-4 सीन में ही दिखाई दीं वरना तो परदे पर ज्यादातर हर लड़की खुद को कुमार गौरव के साथ

देख रही थी और सपनों के हिंडोले में ल रही थी.

मध्यांतर में रेणु वाशरूम गई. वह वाशरूम से निकल कर वाशबेसिन में हाथ धो रही थी कि शीशे में उस की नजर अपने पीछे खड़ी आशा दीदी पर पड़ी.

आशा दीदी, रेणु के पड़ोस में रहने वाले उस के मुंह बोले मामा की बेटी थी.

‘‘मुंह बोले क्यों.’’

‘‘अरे भई वे अम्मा के गांव के थे न इसीलिए.’’

अच्छा कालेज के टाइम में, क्लास छोड़ कर, घर वालों से छिप कर फिल्म देखी जा रही है. जरा पहुंचने दे मु?ो घर ऐसा बम फोड़ूंगी कि नानी याद आ जाएगी,’’ आशा दीदी तो चुप थीं पर जैसी उन की आंखें कह रही हों.

यह 80 के दशक की बात है, जब किसी लड़की का स्कूलकालेज के टाइम पर सिनेमाहौल में पाया जाना किसी गंभीर अपराध से कम नहीं था. रेणु के पड़ोस की एक लड़की की इसी

जुर्म के लिए आननफानन में शादी कर दी गई

थी. यह खबर महल्ले में फैले कि लड़की

कालेज के समय में फिल्म देखते हुए पकड़ी

गई, उस से पहले ही लड़की को विदा कर दिया गया था.

अब ऐसी स्थिति में रेणु की हालत खराब होना तो लाजिम था. वह चाह रही थी कि चाहे डांट कर ही सही, लेकिन आशा दीदी पूछ तो ले कि मैं कालेज के टाइम में यहां क्यों हूं ताकि मैं बता सकूं कि मैं घर वालों से इजाजत ले कर आई हूं. अब बिना पूछे कैसे बताऊं.

लेकिन आशा दीदी थी कि उस की गुस्से से भरी आंखें तो बोल रही थीं, लेकिन जबान पर ताला पड़ा था.

आखिर रेणु ने खुद ही इधरउधर की बातें शुरू कीं, ‘‘नमस्ते दीदी, कैसी

हो? जीजाजी कैसे हैं?’’

‘‘सब ठीक,’’ एक छोटा सा जवाब जबान से आया लेकिन गुस्से से भरी आंखें कह रही थीं कि हिम्मत तो देखो इस छोरी की, कालेज से भाग कर यहां लव स्टोरी देखी जा रही है और हाल पूछ रही है मेरे. हाल तो मैं तेरे पूछूंगी, तेरी यह हरकत सब को बताने के बाद.

इधर रेणु की पिक्चर शुरू होने वाली थी उधर दीदी थी कि पूछ ही नहीं रही थी.

उसे पूरा भरोसा था कि अगर दीदी बिना पूछे चली गई तो रेणु के घर पहुंचने से पहले तो दीदी पूरे महल्ले में पोस्टर लगवा चुकी होंगी. फिर भला इजाजत ले कर जाने की बात बताने का भी क्या फायदा होगा. लेकिन बिना पूछे बताए भी कैसे. रेणु अजीब कशमकश में थी.

तभी उस ने देखा कि दीदी तो अंदर की ओर जा रही हैं.

अब रेणु क्या करे, बिना बताए भला कैसे जाने दे, सो वह दौड़ कर दीदी के सामने जा खड़ी हुई और बोली, ‘‘दीदी आप को खुशखबरी पता है न? मैं बूआ बन गई हूं.’’

‘‘पता है,’’ कह कर दीदी हलका सा मुसकराई और फिर चल दी.

रेणु भी बिना पूछे अपनी सफाई देती हुई पीछेपीछे चलते हुए बोली, ‘‘हां दीदी, इसी खुशी में तो मैं अपनी सहेलियों को पार्टी दे रही हूं.’’

‘‘पार्टी, यहां सिनेमाहौल में,’’ दीदी ठसके से बोलीं, ‘‘अभी घर जा कर तेरी अम्मां को सब बताती हूं, तेरी सारी पार्टी निकालती हूं,’’ दीदी का लावा फूटा.

‘‘अरे नहीं दीदी, मैं तो घर वालों से पूछ कर आई हूं. भतीजा आने की खुशी में घर वालों ने इजाजत दी है,’’ रेणु सफाई देते हुए बोली.

‘‘अच्छा, घर वालों से पूछ कर वह भी कालेज के टाइम में, हां…’’ आंखें मटकाते हुए दीदी ने सीधा वार किया.

‘‘अरे दीदी, वह मेरी लंच के बाद आज कोई क्लास नहीं थी न इसलिए आज का प्लान बनाया था.’’

‘‘अच्छा, दीदी ने संदेहात्मक दृष्टि से इधर उधर नजर घुमाई, जैसे किसी के वहां होने की उन्हें पूरी उम्मीद है.

‘अब मैं दीदी को कैसे विश्वास दिलाऊं,’ रेणु ने सोचा. ये तो घर जा कर चुप रहने से रहीं.

तभी उस ने अपने कंधे पर किसी का हाथ महसूस किया, मुड़ कर देखा तो उस का छोटा भाई था.

वह नकली चिंता जताते हुए बोला, ‘‘अरे रेणु तू यहां क्या कर रही है, मैं अंदर कब से तेरा इंतजार कर रहा था. पिक्चर निकल जाएगी भई. जल्दी कर. फिर दीदी की ओर एक नजर देख कर बोला, ‘‘नमस्ते दीदी, कैसी हो?’’

‘‘बिलकुल ठीक. अच्छा तू भी आया है? चलो फिर तुम पिक्चर देखो मैं चलती हूं,’’ कह कर दीदी चल दीं.

रेणु की सांस में सांस आई. वह भाई से बोली, ‘‘तूं यहां कैसे?’’

भाई ने बताया, ‘‘तेरी मेहरबानी से मु?ो भी टिकट के पैसे तो मिल ही गए थे, तो मैं भी अपने दोस्तों के साथ पिक्चर देखने आ गया. यहां देखा तो तेरी क्लास लगी हुई थी,’’ फिर शरारत से मुसकरा कर बोला, ‘‘चल सम?ा ले कि मैं ने तेरा एहसान उतार दिया. तूने मेरे लिए टिकट के पैसों का इंतजाम किया और मैं ने तु?ो दीदी से बचाया. हिसाब बराबर,’’ दोनों का ठहाका सिनेमाहौल में गूंज उठा.

तभ रेणु का मोबाइल फोन बज उठा और वह अतीत की टाइम मशीन से निकल कर

तुरंत पार्क की बैंच पर पहुंच गई. रेणु ने फोन उठाया.  उस की बेटी नीरा का फोन था.

‘हैलो मम्मा, मैं आज घर देर से आऊंगी. फ्रैंड्स के साथ मूवी देखने जा रही हूं,’’ कालेज में ऐक्सट्रा क्लासेज के बाद नीरा ने फोन किया था.

‘‘ओके बेटा,’’ कह कर रेणु ने फोन रख दिया और वह घर की ओर चल पड़ी. रास्ते मे कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा था, इसलिए वह अंधेरा होने से पहले घर पहुंच जाना चाहती थी.

जिन रास्तों पर वह जिंदगीभर चली थी, अब वे रास्ते लोगों को लंबे लगने लगे थे और सरकार द्वारा उन पर फ्लाईओवर बना कर उन्हें किसी तरह छोटा किया जा रहा था. रेणु सोच रही थी कि क्या ये फ्लाईओवर सिर्फ सड़कों पर ही बने हैं? जिंदगी की राहों पर भी तो हर कदम पर फ्लाईओवर बन गए हैं.                         द्य

उम्र की परिपक्वता की ढलान पर खड़ी रेणु पार्क में अपनी शाम की सैर खत्म कर के बैंच पर बैठी सुस्ता रही थी. पास वाली बैंच पर कुछ लड़कियां बैठी गपशप कर रही थीं. वे शायद एक ही कालेज में पढ़ती थीं और अगले दिन की क्लास बंक करने की योजना बना रही थीं. उन की बातों को सुन कर रेणु के चेहरे पर एक चंचल सी मुसकान दौड़ गई. उसे उन की बातों में कहीं अपना अतीत ?ालकता सा लगा.

अपनी जिंदगी की कहानी के खट्टेमीठे पलों को याद करती रेणु कब पार्क की सैर से निकल कर अतीत की सैर पर चल पड़ी, उसे पता ही नहीं चला. अतीत के इस पन्ने पर लिखी थी करीब 30 साल पुरानी वह कहानी जब रेणु नईनई कालेज गई थी. अभी ग्रैजुएशन के पहले साल में थी. पहली बार आजादी का थोड़ा सा स्वाद चखने को मिला था वरना स्कूल तो घर के इतने पास था कि जोर से छींक भी दो तो आवाज घर पहुंच जाती थी.

घर से कालेज पहुंचने में रेणु को बस से करीब 40-45 मिनट लगते थे. वह खुश थी कि कालेज घर से थोड़ी तो दूर है. रेणु के महल्लेपड़ोस की ज्यादातर लड़कियां इसी कालेज में आती थीं, इसलिए किसी भी शरारत को छिपाना तो अब भी आसान नहीं था. सब को राजदार बनाना पड़ता था.

महरौली के निम्न मध्यवर्गीय परिवार में पलीबढ़ी रेणु के घर का रहनसहन काफी कुछ गांव जैसा ही था. दरअसल, रेणु के जैसी पारिवारिक स्थिति वाले लोग एक दोहरी कल्चरल स्टैंडिंग के बीच ?ालते रहते थे. एक ओर पढ़ीलिखी नई पीढ़ी अपने को महानगरीय सभ्यता के नजदीक पा कर उस ओर खिंचती थी, तो दूसरी ओर कम पढ़ीलिखी पिछली पीढ़ी अपनी प्राचीन नैतिकता की जंजीर उन के

पैरों में डाल देती थी. सगे रिश्तों के अलावा ढेर सारे मुंह बोले रिश्ते जहां पुरानी पीढ़ी का सरमाया होते थे, वहीं नई पीढ़ी के लिए अनचाही रवायत. हर बात पर घर वालों के साथसाथ महल्लेपड़ोस की भी रोकटोक

के बीच नई पीढ़ी को 1-1 कदम ऐसे फूंकफूंक कर रखना पड़ता था जैसे लैंड माइंस बिछी हों.

‘‘2 साल पहले ही रेणु के बड़े भाई

की शादी हुई थी और अभी 2 दिन पहले ही वह एक प्यारे से गोलमटोल भतीजे की बूआ बनी थी. यह बच्चा नई पीढ़ी का पहला नौनिहाल था. घर में बहुत ही खुशी का माहौल था.

रेणु के बुआ बनने की खुशखबरी जब उस की सहेलियों तक पहुंची तो सब ने उस से पार्टी के तौर पर नई फिल्म ‘लव स्टोरी’ दिखाने का आग्रह किया. रेणु के लिए सब

के टिकट का इंतजाम करना इतना मुश्किल नहीं था जितना कि सहेलियों के साथ पिक्चर देखना, अम्मां से इजाजत लेना. रेणु आज

तक अपनी अम्मां को यह तो सम?ा नहीं सकी थी कि पिक्चर देखने का मतलब लड़की का हाथ से निकल जाना या बिगड़ जाना नहीं होता. ऐसे में अम्मां उसे सहेलियों के साथ पिक्चर देखने की इजाजत देने से पहले तो उस का कालेज जाना बंद करवा देगी और कहेगी,

‘‘घर बैठ कर घर के कामकाज सीख ले, कोई जरूरत नहीं है कालेज जाने की, न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी.’’

रेणु सोच रही थी कि कोई तिगड़म तो भिड़ानी ही पड़ेगी वरना इतने सालों में

जो एक निर्भीक लड़की की छवि सहेलियों के बीच बनाई थी उस की तो इतिश्री हो जाएगी. उस ने सोचा क्यों न अम्मां के बजाय बड़े भाई से पूछ लूं. वैसे तो रेणु की आजादी के मामले में वह अम्मां से भी दो कदम आगे था लेकिन आजकल स्थिति थोड़ी अलग थी. उस ने नयानया बाप का स्वाद चखा था, सो आजकल उस खुशी के नशे में रहता था. रेणु ने सोचा कि जब वह नवजात के साथ होगा, तब वह बात करेगी. फिर कुछ सहारा तो भाभी भी लगा देंगी. वैसे भी जब से उन्होंने बेटे को जन्म दिया है तब से उन की बात की खास महत्ता हो गई है पूरे परिवार में.

अगले दिन जब रेणु ने अपनी रिकवैस्ट को नरमनरम शब्दों के तौलिए में लपेट कर उस पर माहौल की खुशी का इत्र छिड़क कर बड़े भाई के सामने पेश किया तो पता नहीं ये रेणु के शब्दों का जादू था या भाई के पिता बनने का असर या यह कि उस के भाई ने न केवल इजाजत दे दी बल्कि अपनी जेब से पैसे निकालते हुए पूछा. ‘‘कितनी सहेलियां जाएंगी?’’

‘‘5,’’ रेणु खुशी से उछल कर बोली.

‘‘ठीक है, छोटे भाई के साथ जाना,’’ कह कर वह रेणु के खुशी के उबाल पर ठंडे पानी के छींटे मारकर चलता बना.

अब समस्या थी कि छोटे भाई का

पत्ता कैसे काटें? रेणु ने छोटे भाई को सारी बात बता कर उसे कल के 6 टिकट लाने

को कहा.

यह सुनते ही वह उबल पड़ा, ‘‘पागल है क्या, मैं भला तेरे और तेरी सहेलियों के साथ फिल्म देखने क्यों जाऊंगा?’’

रेणु अपनी खुशी छिपाते हुए रोआंसे स्वर में बोली, ‘‘ठीक है, फिर हम सब अकेली चली जाएंगी पर तू बड़े भाई को

मत बताना.’’

‘‘ठीक है तू भी मत बताना कि मैं तेरे साथ नहीं गया और हां मेरे टिकट के पैसे तो दे दे जो भाई ने दिए थे.’’

पैसे ले कर छोटा भाई भी मस्त हो गया. मेहनत मेरी पर फल उसे भी मिल गया था.

रेणु को लगा कि चलो अपना काम

तो हो गया. छोटे भाई का पत्ता खुद ही कट गया. उस ने तुरंत अपनी सहेलियों को फोन किया.

‘‘कल 12 से 3 का शो पक्का. हमें अपना लंच के बाद की 2 क्लासेज मिस करनी होंगी.’’

इस में भला किसे मुश्किल होनी थी? उन्हें तो बस कालेज से लौटने के टाइम तक घर लौटना था.

अगले दिन सही वक्त पर सब सहेलियां सिनेमाहौल पहुंच गईं.

रोमांटिक फिल्म थी, तो सभी लड़कियां जमीन से 2-3 इंच ऊपर ही चल रही थीं. फिल्म समय पर शुरू हो गई. कुमार गौरव के साथ विजयेता पंडित तो हमें सिर्फ 2-4 सीन में ही दिखाई दीं वरना तो परदे पर ज्यादातर हर लड़की खुद को कुमार गौरव के साथ

देख रही थी और सपनों के हिंडोले में ?ाल रही थी.

मध्यांतर में रेणु वाशरूम गई. वह वाशरूम से निकल कर वाशबेसिन में हाथ धो रही थी कि शीशे में उस की नजर अपने पीछे खड़ी आशा दीदी पर पड़ी.

आशा दीदी, रेणु के पड़ोस में रहने वाले उस के मुंह बोले मामा की बेटी थी.

‘‘मुंह बोले क्यों.’’

‘‘अरे भई वे अम्मा के गांव के थे न इसीलिए.’’

अच्छा कालेज के टाइम में, क्लास छोड़ कर, घर वालों से छिप कर फिल्म देखी जा रही है. जरा पहुंचने दे मु?ो घर ऐसा बम फोड़ूंगी कि नानी याद आ जाएगी,’’ आशा दीदी तो चुप थीं पर जैसी उन की आंखें कह रही हों.

यह 80 के दशक की बात है, जब किसी लड़की का स्कूलकालेज के टाइम पर सिनेमाहौल में पाया जाना किसी गंभीर अपराध से कम नहीं था. रेणु के पड़ोस की एक लड़की की इसी

जुर्म के लिए आननफानन में शादी कर दी गई

थी. यह खबर महल्ले में फैले कि लड़की

कालेज के समय में फिल्म देखते हुए पकड़ी

गई, उस से पहले ही लड़की को विदा कर दिया गया था.

अब ऐसी स्थिति में रेणु की हालत खराब होना तो लाजिम था. वह चाह रही थी कि चाहे डांट कर ही सही, लेकिन आशा दीदी पूछ तो ले कि मैं कालेज के टाइम में यहां क्यों हूं ताकि मैं बता सकूं कि मैं घर वालों से इजाजत ले कर आई हूं. अब बिना पूछे कैसे बताऊं.

लेकिन आशा दीदी थी कि उस की गुस्से से भरी आंखें तो बोल रही थीं, लेकिन जबान पर ताला पड़ा था.

आखिर रेणु ने खुद ही इधरउधर की बातें शुरू कीं, ‘‘नमस्ते दीदी, कैसी

हो? जीजाजी कैसे हैं?’’

‘‘सब ठीक,’’ एक छोटा सा जवाब जबान से आया लेकिन गुस्से से भरी आंखें कह रही थीं कि हिम्मत तो देखो इस छोरी की, कालेज से भाग कर यहां लव स्टोरी देखी जा रही है और हाल पूछ रही है मेरे. हाल तो मैं तेरे पूछूंगी, तेरी यह हरकत सब को बताने के बाद.

इधर रेणु की पिक्चर शुरू होने वाली थी उधर दीदी थी कि पूछ ही नहीं रही थी.

उसे पूरा भरोसा था कि अगर दीदी बिना पूछे चली गई तो रेणु के घर पहुंचने से पहले तो दीदी पूरे महल्ले में पोस्टर लगवा चुकी होंगी. फिर भला इजाजत ले कर जाने की बात बताने का भी क्या फायदा होगा. लेकिन बिना पूछे बताए भी कैसे. रेणु अजीब कशमकश में थी.

तभी उस ने देखा कि दीदी तो अंदर की ओर जा रही हैं.

अब रेणु क्या करे, बिना बताए भला कैसे जाने दे, सो वह दौड़ कर दीदी के सामने जा खड़ी हुई और बोली, ‘‘दीदी आप को खुशखबरी पता है न? मैं बूआ बन गई हूं.’’

‘‘पता है,’’ कह कर दीदी हलका सा मुसकराई और फिर चल दी.

रेणु भी बिना पूछे अपनी सफाई देती हुई पीछेपीछे चलते हुए बोली, ‘‘हां दीदी, इसी खुशी में तो मैं अपनी सहेलियों को पार्टी दे रही हूं.’’

‘‘पार्टी, यहां सिनेमाहौल में,’’ दीदी ठसके से बोलीं, ‘‘अभी घर जा कर तेरी अम्मां को सब बताती हूं, तेरी सारी पार्टी निकालती हूं,’’ दीदी का लावा फूटा.

‘‘अरे नहीं दीदी, मैं तो घर वालों से पूछ कर आई हूं. भतीजा आने की खुशी में घर वालों ने इजाजत दी है,’’ रेणु सफाई देते हुए बोली.

‘‘अच्छा, घर वालों से पूछ कर वह भी कालेज के टाइम में, हां…’’ आंखें मटकाते हुए दीदी ने सीधा वार किया.

‘‘अरे दीदी, वह मेरी लंच के बाद आज कोई क्लास नहीं थी न इसलिए आज का प्लान बनाया था.’’

‘‘अच्छा, दीदी ने संदेहात्मक दृष्टि से इधर उधर नजर घुमाई, जैसे किसी के वहां होने की उन्हें पूरी उम्मीद है.

‘अब मैं दीदी को कैसे विश्वास दिलाऊं,’ रेणु ने सोचा. ये तो घर जा कर चुप रहने से रहीं.

तभी उस ने अपने कंधे पर किसी का हाथ महसूस किया, मुड़ कर देखा तो उस का छोटा भाई था.

वह नकली चिंता जताते हुए बोला, ‘‘अरे रेणु तू यहां क्या कर रही है, मैं अंदर कब से तेरा इंतजार कर रहा था. पिक्चर निकल जाएगी भई. जल्दी कर. फिर दीदी की ओर एक नजर देख कर बोला, ‘‘नमस्ते दीदी, कैसी हो?’’

‘‘बिलकुल ठीक. अच्छा तू भी आया है? चलो फिर तुम पिक्चर देखो मैं चलती हूं,’’ कह कर दीदी चल दीं.

रेणु की सांस में सांस आई. वह भाई से बोली, ‘‘तूं यहां कैसे?’’

भाई ने बताया, ‘‘तेरी मेहरबानी से मु?ो भी टिकट के पैसे तो मिल ही गए थे, तो मैं भी अपने दोस्तों के साथ पिक्चर देखने आ गया. यहां देखा तो तेरी क्लास लगी हुई थी,’’ फिर शरारत से मुसकरा कर बोला, ‘‘चल सम?ा ले कि मैं ने तेरा एहसान उतार दिया. तूने मेरे लिए टिकट के पैसों का इंतजाम किया और मैं ने तु?ो दीदी से बचाया. हिसाब बराबर,’’ दोनों का ठहाका सिनेमाहौल में गूंज उठा.

तभ रेणु का मोबाइल फोन बज उठा और वह अतीत की टाइम मशीन से निकल कर

तुरंत पार्क की बैंच पर पहुंच गई. रेणु ने फोन उठाया.  उस की बेटी नीरा का फोन था.

‘हैलो मम्मा, मैं आज घर देर से आऊंगी. फ्रैंड्स के साथ मूवी देखने जा रही हूं,’’ कालेज में ऐक्सट्रा क्लासेज के बाद नीरा ने फोन किया था.

‘‘ओके बेटा,’’ कह कर रेणु ने फोन रख दिया और वह घर की ओर चल पड़ी. रास्ते मे कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा था, इसलिए वह अंधेरा होने से पहले घर पहुंच जाना चाहती थी.

जिन रास्तों पर वह जिंदगीभर चली थी, अब वे रास्ते लोगों को लंबे लगने लगे थे और सरकार द्वारा उन पर फ्लाईओवर बना कर उन्हें किसी तरह छोटा किया जा रहा था. रेणु सोच रही थी कि क्या ये फ्लाईओवर सिर्फ सड़कों पर ही बने हैं? जिंदगी की राहों पर भी तो हर कदम पर फ्लाईओवर बन गए हैं.

मैं बाल लंबे करना चाहती हूं उसके लिए मैं क्या करूं

सवाल

मैं बाल लंबे करना चाहती हूं. क्या तेल लगाना बालों को लंबा करने में हैल्प करता है? इस के अलावा क्या करने से बाल लंबे हो सकते हैं?

जवाब

बालों में कोकोनट, बादाम या जैतून का तेल लगाने और मालिश करने से उन की लंबाई बढ़ती है. मालिश से ब्लड सर्कुलेशन बढ़ता है जिस से खाया हुआ खाना बालों की जड़ों तक पहुंचता है और बालों की ग्रोथ में हैल्प करता है. इस के अलावा संतुलित आहार का विटामिंस और खनिज से भरपूर होना भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि बाल बढ़ते हैं प्रोटीन से. इसलिए खाने में प्रोटीन की मात्रा बढ़ने से बाल लंबे होंगे. इस के लिए चिकन, अंडा, राजमा, सोयाबीन, अंकुरित दालें प्रोटीन से भरपूर होती हैं. ये सब बालों को लंबा करने में हैल्प करते हैं. पर्याप्त पानी पीना, नियमित व्यायाम और गहरी नींद भी बालों के स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में मदद कर सकती है. बालों को लंबा करने में मदद करने के लिए नियमित रूप से ट्रिम करना भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह स्प्लिट एंड्स को रोक सकता है. इस के अलावा हीट स्टाइलिंग टूल्स का इस्तेमाल कम करें और टाइट हेयर स्टाइल्स से बचना भी बालों को नुकसान से बचाने में मदद कर सकता है.

किस्मत: सीमा ने अपनी बहू को बेटी का दर्जा क्यों नहीं दिया

‘‘हमारी बहू के कदम तो बड़े ही शुभ हैं. घर में पड़ते ही सभी की किस्मत चमक उठी,’’ सीमा आंटी यह बात अपने रिश्तेदारों, पड़ोसियों को दिन में कम से कम 10 बार तो जरूर सुनाती थीं.

1 महीना हो गया था सोहन और गौरी की शादी हुए. सोहन ने भी क्या किस्मत पाई थी, जो गौरी जैसी सलीकेदार, पढ़ीलिखी दुलहन मिली. सोहन खुद कई बार फेल होने के बाद बड़ी मुश्किल से 12वीं कक्षा पास कर पाया था. ऐसे लड़के को भला कौन सी नौकरी मिलने वाली थी? यह तो सिफारिश से चिपकाने के लायक भी नहीं था.

मनोज अंकल कमिश्नर के सैक्रेटरी के पद पर थे. उन्होंने बहुत कोशिशों के बाद गांव में रास्ता बनवाने का ठेका अपने बेटे को दिलवाया तो कहने को सोहन कमाऊ बेटा हो गया. लेकिन ठेकेदारी से हाथ में थोड़ाबहुत पैसा क्या आ गया, सोहन लड़कियों के साथ गुलछर्रे उड़ाने लगा.

मनोज अंकल व सीमा आंटी को उस की चिंता होने लगी. उन्होंने सोचा, वैसा ही किया जाए जैसा हमारे समाज में ज्यादातर मांबाप करते हैं. उस की शादी कर दी जाए तो घर के खूंटे से बंधा रहेगा. लेकिन जानपहचान में, रिश्तेदारी में कोई भी अपनी लड़की सोहन को देने के लिए राजी नहीं था

तब मनोज अंकल ने गांव से दूर गौरी नाम की लड़की ढूंढ़ी, क्योंकि इतनी दूर सोहन के गुणों के बारे में कोई नहीं जानता था. गौरी के पिता उस गांव के वैद्य थे. जड़ीबूटियों से लोगों का इलाज करते थे. लोग उन की बड़ी इज्जत करते थे.

सोहन हर लिहाज से नालायक वर था सिवा एक चीज के और वह थी उस की खूबसूरती. उस का बोलचाल का तरीका भी एकदम भिन्न था. उस के तौरतरीके इतने अच्छे थे कि सामने वाला धोखा खा जाए और गौरी के पिता भी धोखा खा गए.

सोहन के व्यक्तित्व और मनोज अंकल के रुतबे से गौरी के पिताजी इतने प्रभावित हो गए कि इन लोगों के बारे में ज्यादा खोजबीन करने की सोची ही नहीं. मनोज अंकल व सीमा आंटी भी बिना दहेज के चट मंगनी और पट ब्याह कर के बहू को घर ले आए.

सचाई कितने दिनों तक छिपती और कैसे छिपती? महीने भर के अंदर ही गौरी को सारी असलियत का पता चल गया. सोहन कहने भर को ठेकेदार है और ऊपर से अनपढ़ टाइप. उधर छोटे से गांव में रहने वाली गौरी ने दूर शहर जा कर एम.ए. की डिगरी हासिल की थी. वह भी दिखने में बहुत खूबसूरत थी और एकदम सलीकेदार थी.

गौरी जान गई कि इस शादी में उस के साथ धोखा हुआ है. मगर मांपिताजी से कैसे कहे? कब कहे? जब भी फोन पर उन से बात होती है घर का कोई न कोई सदस्य सामने जरूर मौजूद रहता है.

सीमा आंटी ने अपनी चालाकी का जाल बिछाना शुरू किया. वे बहू के बारे में सभी से अच्छीअच्छी बातें करतीं, उस की तारीफों के पुल बांधतीं, गुणों के कसीदे पढ़तीं. मनोज अंकल के वेतन में बढ़ोतरी हुई तो सीमा आंटी ने इस का भी श्रेय बहू को दिया कि हमारी बहू इतनी किस्मत वाली है कि उस के आते ही हमारी आमदनी बढ़ गई. साक्षात लक्ष्मी है हमारी बहू.

मनोज अंकल की सिफारिश पर सोहन को एक बड़ा ठेका मिल गया. यह भी बहू के शुभकदमों का कमाल था. एक शुभ काम वाकई में हुआ. वह यह कि मनोज अंकल की छोटी बेटी पूजा की शादी तय हो गई. पूजा दिखने में बहुत ही साधारण और मर्दाना व्यक्तित्व की मालकिन थी. पढ़ीलिखी थी, मगर कोई सलीका नहीं.

पूजा की शादी तय होना वाकई में अजूबा था. वर इतना अच्छा मिला कि पूछिए मत. इंजीनियर पिता का इकलौता लड़का. दिल्ली में नौकरी कर रहा था. मांपिताजी मुंबई में रहते थे. शादी के बाद पूजा को सासससुर का कोई झंझट नहीं. उन की सारी फैमिली एकदम खुले विचारों वाली थी.

सुमन आंटी 7वें आसमान पर थीं, ‘‘देखो, मेरी बहू के कदम पड़ते ही हमारी किस्मत तो सच में चमक गई. कितना अच्छा दामाद मिल गया. इतने भले लोग तो ढूंढ़ने पर भी नहीं मिलेंगे. क्या किस्मत पाई है हमारी पूजा बेटी ने,’’ सीमा आंटी अपने समधियों के गुण गाते नहीं थकती थीं.

सोहन और गौरी की शादी के 4 महीने बाद ही बड़ी धूमधाम से पूजा की शादी हो गई. पूजा अपने पति के साथ दिल्ली चली गई. बहू और बेटी का तीज का पहला त्योहार आया. सीमा आंटी ने जोरशोर से तैयारी शुरू कर दी.

‘‘हम तो पूजा को यहीं बुला लेंगे. उस का पहला त्योहार है न. 8-10 दिन हमारे साथ रहेगी. उस के सासससुर को भी न्योता भेजेंगे. 2-3 दिन के लिए वे लोग भी आ जाएंगे. समधियों को खुश रखना जरूरी है न?’’

एक दिन सीमा आंटी अपनी पड़ोसिन से कह रही थीं.

‘‘तो क्या गौरी भी अपने मायके जाएगी? उस का भी तो पहला त्योहार है,’’ पड़ोसिन ने खोजबीन शुरू की.

‘‘घर की बहू है. समधी लोग आएंगे तो घर की बहू का घर में होना जरूरी है. फिर वैसे भी उस छोटे से गांव में जा कर

क्या त्योहार मनाना?’’ सीमा आंटी ने सफाई दी.

‘‘उस का भी तो मन होगा मायके जाने का?’’ पड़ोसिन सीमा आंटी को कहां छोड़ने वाली थी.

‘‘इतने लोग आने वाले हैं, घर का काम कौन करेगा?’’ सच बात आंटी की जबान पर आ ही गई.

त्योहार सिर्फ बेटी के लिए था, बहू ने तो नौकरानी का दर्जा पाया था.

गौरी ने अपना मन मार कर सब का स्वागत किया. ढेर सारे पकवान बनाए. ननद के सासससुर, ननदोई खुश हो कर चले गए. गौरी समझ गई साल के सारे त्योहार, जो उस के भी पहले त्योहार होंगे, खुशी मनाने के बजाय काम करने में ही बीतेंगे.

पूजा 8 दिन और रही. उस के तौरतरीके, रंगढंग इस कदर बदल चुके थे कि

सामने वाला पहचान न पाए. जींस, शौर्ट कुरता, स्कर्ट, टौप व अलगअलग फैशन के जूते पहनती. मनोज अंकल व आंटी को यह सब बहुत अच्छा लगता था.

‘‘हमारी बेटी की किस्मत तो देखो, उस के सासससुर ने उसे सब कुछ पहनने की इजाजत दे रखी है. कहते हैं लड़कियों को तो नौकरी करनी चाहिए. जाते ही हमारी पूजा नौकरी ढूंढ़ेगी,’’ सीमा आंटी अपनी पड़ोसिन से कह रही थीं.

पड़ोसिन क्या कहती? वह तो हर रोज गौरी को सिर पर पल्लू लिए रसोई में खाना बनाते देख रही थी. सीमा आंटी खुद तो स्लीवलैस ब्लाउज पहनती थीं, तरहतरह की लिपस्टिक लगाती थीं, मगर बहू फुलस्लीव ब्लाउज पहने और बिना मेकअप के रसोई में पसीने में नहाती दिखाई देती.

सोहन, जो गौरी का पति था, अपनी कमाई बाहर उड़ाता था. जो पति अपनी पत्नी की कदर नहीं करता, उस का सम्मान नहीं करता उस की इज्जत बाकी घर वाले भी नहीं करते. वह घर वालों के लिए महज नौकरानी बन कर रह जाती है.

गौरी देखने में बहुत सुंदर थी. अगर बहू बनठन कर रहे तो अपनी बेटी फीकी पड़ जाएगी, इस ईर्ष्या से सीमा आंटी बहू को संवरने नहीं देतीं. उस के लिए बेढंगे ब्लाउज सिलवा कर लातीं.

‘‘हम तो पुराने खयालात के लोग हैं,’’ कह कर बहू पर पाबंदियां लगाती रहतीं.

गौरी ने एक बार दबे मुंह कह दिया, ‘‘पूजा के तो सारे शौक पूरे होते हैं. हमें तो नौकरानी बना कर लाया गया है.’’

गौरी के मांपिताजी को कभी न्योता नहीं गया, न गौरी को मायके भेजा गया. पूजा 6 महीने में चौथी बार मायके आ गई. आंटी का सोशल वर्क यानी किट्टी पार्टी, क्लब जाना, महिला मंडल जाना, पिक्चर देखने जाना बढ़ गया.

साल बीत गया. गौरी मां बन गई. एक नन्हे से प्यारे बेटे को जन्म दिया.

‘‘कसबे में बच्चा कैसे होगा?’’ कहकर सीमा आंटी ने उसे ससुराल में रोक लिया था.

‘‘वहां की औरतों के भी बच्चे होते हैं. इतनी ही सुविधाएं वहां भी मौजूद हैं,’’ गौरी ने अपना पक्ष रखने की कोशिश की थी मगर

उस की कौन सुनता? सोहन तो गौरी का कभी था ही नहीं, जो उस के पक्ष में बोलता. न गौरी मायके गई, न उस के मांपिताजी को न्योता गया.

40 दिन तक गौरी को जिस्मानी आराम तो मिल गया, मगर उस का मन रोता रहा. 40 दिन होते ही सीमा आंटी पुण्य कमाने 20 दिन की तीर्थ यात्रा पर चली गईं. बहू के लिए 40 दिन का आराम बहुत है. बहू कमर कस कर काम पर लग गई.

भाभी की मदद करने पूजा आ गई. वह बच्चे ले कर कमरे में लेटी रहती और गौरी किचन में खड़ी उस की फरमाइशें पूरी करती.

‘भाभी आज मालपूए बनाओ’, ‘भाभी आज कचौडि़यां खाने को मन कर रहा है.’

घर के कामों में गौरी इस कदर उलझ गई कि बच्चे को वक्त पर दूध भी न पिला पाती. उस का दूध सूख गया. बच्चा कमजोर होता चला गया.

20 दिन बाद वापस आ कर सास ने बहू को खूब सुनाया, ‘‘कैसी मां हो, बच्चे को वक्त पर दूध भी नहीं पिलाया. हमारे पोते को दुबला कर दिया. बच्चे को देखने के लिए पूजा तो थी, तुम्हें क्या काम था?’’

गौरी क्या बताती? 2 महीने बाद बच्चे का नामकरण करना तय हो गया. सभी रिश्तेदार आए, पूजा के सासससुर आए. उन्होंने गौरी से पूछा, ‘‘तुम्हारे मांबाबूजी नहीं आए?’’

गौरी ने जवाब दिया, ‘‘बुलाएंगे तभी तो आएंगे.’’

पूजा के ससुरजी से रहा न गया. उन्होंने मनोज से पूछा, ‘‘गौरी के मांबाप तो कभी दिखे नहीं.’’

सीमा आंटी ने बखूबी जवाब दिया, ‘‘अजी, पहले से ही इतने सारे मेहमान आए हैं और लोग कहां समाएंगे?’’

‘‘बच्चे के नामकरण पर बहू अपनी सास को तोहफा देती है, ऐसा हमारे यहां रिवाज है,’’ सीमा आंटी की जेठानी ने आग में घी डालने का काम शुरू किया, ‘‘अरे, बहू तो आप के लिए कोई तोहफा लाई ही नहीं. क्या सिखा कर भेजा है इस के मांबाप ने?’’

गौरी कहां से तोहफा लाती? उस के पास पैसे कहां थे. सोहन ने कभी उस के हाथ में पैसे दिए ही नहीं. फिर उस की मां उसे कब सिखातीं? शादी को सवा साल से ऊपर हो गया था, मां से मिलना नहीं हुआ था. मां यह सब कब सिखातीं?

इस शादी में उस के और उस के परिवार के साथ धोखा ही हुआ था. ऐसा निठल्ला पति और पाबंदियों में दबा कर रखने वाले सासससुर पा कर उस के हिस्से में काम और ताने ही आए थे.

पूजा के सासससुर को मनोज अंकल व सीमा आंटी का गौरी के प्रति रवैया काफी अच्छा नहीं लगा. पूजा की सास से रहा न गया. वे उठ खड़ी हुईं और बोलीं, ‘‘उस की मां न आ सकीं तो क्या हुआ? मैं हूं न, यह मेरी बेटी है, सास का सगुन मैं दूंगी,’’ और उन्होंने अपनी सोने की अंगूठी उतार कर थाली में रख दी.

सब के मुंह बंद हो गए. सीमा आंटी चुप रह गईं. समारोह खत्म होने के बाद सीमा आंटी अपनी जेठानी से कह रही थीं, ‘‘देखिए, मेरी बेटी के सासससुर कितने भले लोग हैं. ऐसे सासससुर किसीकिसी को ही मिलते हैं. उन्होंने तो दूसरे की बेटी को भी अपनी बेटी मान लिया. क्या किस्मत पाई है मेरी बेटी पूजा ने.’’

बगल में खड़ी पड़ोसिन मन ही मन सोच रही थी कि आंटी 1 बार सिर्फ 1 बार गलती से ही सही, अपनी बहू की किस्मत पर गौर कीजिए.

हैलो इट्स कामिनी नौट कमीनी

जब भी मेरे मोबाइल पर किसी अनजान व्यक्ति का फोन आता, मैं मजे लेने लग जाती और उसे खूब परेशान करती. एक दिन मेरी यही आदत मुझ पर भारी पड़ गई…

यह कहानी है सन 2006 की…

जब फोन कंपनी के कंप्यूटराइज फोन नंबर पर घंटों लाइन में लगे रहने के बाद आप कौलर ट्यून और अन्य सर्विस का लुत्फ उठा सकते थे.

मैं ठहरी म्यूजिक लवर मु?ो उस जमाने में क्व110 महीना अपने बैलेंस से कटवाना मंजूर था मगर मेरी कौलर ट्यून औरों से बिलकुल अलग और कड़क होनी चाहिए.

ट्रिंग… ट्रिंग…

ट्रिंग… ट्रिंग…

‘‘इस का फोन दे… देखें तो इस कमीनी को अनसेव्ड नंबर से कौन फोन लगा रहा है.’’

नेहा और ज्योति ने मेरी हथेली से फोन खींच कर अंकिता को थमा मु?ो जकड़ लिया.

‘‘हैलो.’’

‘‘हैलो मैडम.’’

‘‘जी बोलिए.’’

‘‘मैडम क्या मैं कामिनीजी से बात कर रहा हूं?’’ एक बिलकुल नवयुवक की तरोताजा आवाज में किसी ने पूछा.

फोन के स्पीकर को अपनी हथेली से दबा कर मेरा फोन पकड़ी हुई अंकिता जोरजोर से हंसते उस युवक से आगे कहने लगी, ‘‘ऐसा क्या काम है आप को हमारी कामिनीजी से हम भी तो सुनें?’’

‘‘नमस्ते मैडम मैं आइडिया सर्विस से सुबोध बात कर रहा हूं, कामिनीजी ने अपनी कौलर ट्यून चेंज करने के लिए रिक्वैस्ट भेजी थी.’’

‘‘अच्छा तो लगा दीजिए कोई भी घटिया सा गाना, वैसे भी इस कमीनी को कोई फोन लगाता भी नहीं है.’’

‘‘जी मैडम क्या?’’

बेतहाशा हंसती हुई ज्योति और नेहा ने मु?ो कस कर पकड़ रखा था कि मैं अंकिता को बात करते समय डिस्टर्ब न कर सकूं मगर जैसे ही उस ने किसी लड़के के सामने मेरे नाम के साथ छेड़खानी की तो मैं ने हंस कर ढीले पड़ चुके उन के हाथों से अपना हाथ ?ाटक कर ?ाट से अंकिता से फोन खींच लिया और अपनी कमान खुद संभालते हुए पूछा, ‘‘हैलो कौन बात कर रहा है?’’

‘‘हैलो कमीनीजी मैं सुबोध आइडिया सर्विस से आप से बात कर रहा हूं.‘‘

‘‘फर्स्ट औफ औल इट्स कामिनी नौट कमीनी.’’

‘‘सौरी मैडम मगर आप की सहेली आप को इसी नाम से संबोधित कर रही थी. मु?ो लगा शायद आप का नाम यही होगा,’’ सुबोध निर्दोष भाव से जवाब देने लगा.

‘‘वह तो है ही सड़क छाप. आप तो नहीं हैं न? वे जो बोलेगी तो क्या आप मान जाएंगे?’’

और वे 3 बेशरमों की तरह अपनाअपना पेट पकड़ कर बिस्तर में लोटपोट होने लगीं. उन की ऐसी हरकत देख मेरा दिमाग और खराब होने लगा.

‘‘कामिनीजी माफ करिएगा,’’ सुबोध एकदम से घबरा गया.

‘‘कोई बात नहीं… आप ने किसलिए फोन लगाया था?’’ मैं ने सोचा इस में इस बेचारे की क्या गलती जो मेरे दोस्त ही ऐसे पागल हैं.

‘‘जी जो आप ने कौलर ट्यून की रिक्वैस्ट भेजी थी वह अब हमारे सिस्टम से ऐक्सपायर हो चुकी है.’’

‘‘ऐक्सपायर हो गई. मगर मैं तो उस के पैसे दे चुकी हूं?’’

‘‘जी इसी विषय में मैं आप से चर्चा करना चाहता हूं.’’

‘‘हां बोलिए.’’

‘‘आप उस के बदले कोई दूसरा गाना सैट करा सकती हैं.’’

‘‘नाम क्या बताया आप ने अपना?’’

‘‘जी सुबोध.’’

‘‘देखो सुबोध मु?ो वह गाना बहुत पसंद था और अब आप कह रहे हैं कि वह अब आप के सिस्टम में नहीं है. ऐसा न हो कि मैं इस बार भी कोई गाना चुनूं और आप कह दें कि वह हमारे सिस्टम में नहीं है. देखिए इतना टाइम नहीं है मेरे पास.’’

पीछे से ज्योति ने जोर से चिल्लाते हुए कहा, ‘‘नल्ली, दिनभर घर में खाली पड़ी

रहती है और कहती है कि टाइम नहीं है.’’

वे तीनों फिर से ठहाके मार कर हंसने लगीं.

‘‘मैडम, मैं अभी आप को औप्शन दे देता हूं. आप उसी में से चुन लीजिए और मैं अभी आप की कौलर ट्यून सैट कर सकता हूं.’’

‘‘ठीक है बताइए औप्शन.’’

‘‘मैडम कुल 10 गाने हैं.’’

‘‘कौनकौन से?’’

‘‘पलपल हर पल…’’ सुबोध ने उस गाने को पंक्ति के जैसे कह दिया. वैसे मैं जानती थी इस ‘मुन्ना भाई एमबीबीएस’ के गाने के बोल कैसे हैं.

मगर थी तो मैं अपनी सहेलियों के लिए उन की पक्की कमीनी दोस्त. मैं ने उस अनजान नंबर से आए भोलेभाले सुबोध से मजे लेना चाहे. अत: अपनी सहेलियों को आंख मारते हुए मैं ने उस से कहा, ‘‘ये कौन सा गाना है? मु?ो सम?ा नहीं आ रहा जरा गा कर सुनाइए तब क्लीयर होगा.’’

उस ने घबराते हुए पूछा, ‘‘मैडम गा कर सुनाऊं?’’

‘‘हांहा गा कर सुनाइए और कैसे जान पाऊंगी?’’

‘‘जी ठीक है…’’

मैं ने अपना फोन स्पीकर में लगा दिया और दूसरी तरफ सुबोध ने हिचकते हुए अपना गला साफ करते हुए एक के बाद एक कौलर ट्यून गाना शुरू किया, ‘‘पलपलपलपल हरपल कैसे कटेंगे पलपल हरपल.’’

उसे गाता सुन मेरी सहेलियां बिस्तर में खड़ी हो कर नाचने लगीं.

‘‘अगला.’’

मैं ने अपनी सहेलियों को रुकने का संकेत किया और जैसे ही सुबोध ने अगला गाना शुरू किया मैं ने उन्हें फिर से डांस करने का इशारा किया और साथसाथ हर गाने में मैं भी फोन पकड़े उन के संग ?ाम रही थी.

‘‘?ालक दिखला जा ?ालक दिखला जा एक बार आजा आजा आजा आजा आजा…’’

इस बार वे अपनी हथेलियों को माइक की तरह बना हिमेश की रेशमिया बन लिपसिंग करने लगी.

‘‘वैसे सुबोधजी मानना पड़ेगा आप की आवाज काफी अच्छी है.’’

‘‘थैंक यू मैडम.’’

‘‘जरा अगला सुनाइए.’’

अब तक सुबोध थोड़ा सहमा हुआ था मगर कुछ पल बाद ऐसा लगा कि हमारी मस्ती में वह भी खुल के मजे ले रहा हो.

‘‘देश रंगीला रंगीला देश मेरा रंगीला…’’

अपने गाने को बीच में रोकते हुए उस ने खुद कहा, ‘‘मैडम यह मत लगाइएगा, ऐसा लगेगा जैसेकि आज गणतंत्र या स्वतंत्रता दिवस हो.’’

‘‘आप ने बिलकुल ठीक कहा. नैक्स्ट प्लीज.’’

‘‘जयजय मनी…’’

इस गाने में वे तीनों बंदरिया भाती उछलने लगीं.

‘‘नैक्स्ट.’’

‘‘दिल तोड़ के न जा दिल तोड़ के न जा…’’

‘‘बिलकुल नहीं अगला.’’

‘‘मैडम यह गाना बहुत अच्छा है,’’ यह कहते हुए उस ने अपना गला साफ किया और पूरे सुर और ताल के साथ ‘गैंगस्टर’ में फिल्माया गया यह गाना बड़ी शिद्दत से गाने लगा, ‘‘तू ही मेरी शब है, सुबह है, तू ही दिन है मेरा…’’

‘‘नहीं यह वाला नहीं.’’

‘‘मैडमजी एक बार सुन तो लीजिए,’’ वह खुद को गाना गाने से रोक ही नहीं पाया और आगे बड़े प्यार से गाने लगा.

‘‘तू ही मेरा रब है, जहां है, तू ही मेरी दुनिया. तू वक्त मेरे लिए, मैं हूं तेरा लमहा कैसे रहेगा भला, होके तू मु?ा से जुदा…’’ और इन तीनों महारथियों ने आगे का ‘‘ओ ओ ओ’’ कोरस दे डाला.

‘‘बस भाई अगला बताओ.’’

मैडम यह आखिरी वाला आप को सुनाता हूं, ‘‘खाई के पान बनारस वाला…’’

दूसरी ओर मेरी सहेलियां नगाड़ा बजाने जैसा हावभाव करते हुए बिलकुल फुल ऐनर्जी के साथ अपने हाथ और पैर सुबोध के गानों के बोल संग मटकाने लगी, ‘‘खुल जाए बंद अकल का ताला फिर तो…’’

मैं ने उसे बीच गाने से रोका. मगर मेरी ?ाल्ली सहेलियां बिन पीए बहक चुकी थीं. सुबोध ने तो गाना बंद कर दिया मगर वे आगे के बोल गाते जा रही थी, ‘‘फिर तो ऐसा हुआ धमाल सीधी कर दे सब की चाल. ओ छोरा गंगा किनारे वाला… ओ छोरा गंगा किनारे वाला…’’

उन के शोरशराबे के बीच मैं सुबोध से कहने लगी, ‘‘हां समझ गई समझ गई मगर यह तो काफी पुराना गाना लगता है?’’

‘‘अरे नहीं मैडम यह ‘डौन’ पिक्चर का है, अपने शाहरुख खान और प्रियंका चोपड़ा पर फिल्माया गया बढि़या रीमिक्स गाना. यह लगवा लीजिए मेरा वादा है सब लोग बड़ी तारीफ करेंगे.’’

‘‘चलो फिर ठीक है इसे डौन सौरी डन

करते हैं.’’

‘‘मैडम आप 1 मिनट लाइन पर रहिएगा आप को एक मैसेज आएगा उसे कन्फर्म कर के मुझे बताइए.’’

‘‘ठीक है,’’ फोन पकड़ेपकड़े मुझे मैसेज की टोन कानों में सुनाई दी.

‘‘हां आ गया मैसेज.’’

‘‘मैडम क्या आप मेरी सर्विस से खुश हैं?’’

‘‘हां बिलकुल.’’

‘‘मैडम यह मेरी सर्विस की स्टार रेटिंग का मैसेज है, हम जैसे नए इंप्लोई को इसी बेस पर नौकरी में रखा जाता है. मैं जानता हूं आप के पास समय कम है मगर फिर भी अगर आप…’’

‘‘आप निश्चिंत रहें मैं आप को जरूर रेटिंग दूंगी.’’

‘‘थैंक यू मैडम. आप की बात हो रही थी आइडिया सर्विस के सुबोध नायक से. मैं उम्मीद करता हूं आप की कंप्लेन दूर हो चुकी होगी. आप का दिन शुभ हो.’’

‘‘आप का भी,’’ यह कहते हुए हम दोनों ने अपनाअपना फोन काट दिया.

‘‘अरे कमीनी कहां रह गई आना इधर.’’

‘‘हां 2 मिनट में आई.’’

ऐसे में यह काम करना हमेशा इग्नोर करती हूं मगर पता नहीं क्यों इस बार मैं ने वह

मैसेज ओपन कर के उसे रेटिंग देने की सोची, बताओ उस ने अपनी नौकरी के लिए मुझे बिना झिझक के कितने गाने सुना दिए. हमारा इतना अच्छा ऐंटरटेनमैंट कर दिया वह अलग.

‘‘मैं दोस्तों के बीच जा ही रही थी कि किसी का फोन फिर से आया.’’

‘‘हैलो.’’

‘‘हां हैलो बोलिए.’’

‘‘मैडम मैं सुबोध आइडिया से.’’

‘‘हां बोलिए.’’

‘‘आप की कौलर ट्यून सैट हो गई है.’’

‘‘अरे वाह बढि़या.’’

‘‘मुझे इतनी जल्दी और इतनी अच्छी रेटिंग देने के लिए आप को बहुत थैंक यू.’’

‘‘अरे थैंक्यू कैसा? आप ने बहुत अच्छी सर्विस दी थी.’’

‘‘मैडम आज मेरा पहला दिन है, सुबह से करीब 70 फोन पर बात कर चुका हूं मगर रिक्वैस्ट करने पर भी मु?ो आप के सिवा किसी ने रेटिंग नहीं दी.’’

‘‘आप अपना दिल छोटा न करें. ऐसे ही मन लगा कर काम करिएगा. गुड लक.’’

इस वाकेआ को घटे आज कितने साल हो गए मगर हमारे बीच फोन मैं हुई यह चर्चा मुझे और मेरी (हाथ पकड़ने कहो तो गला पकड़ने वाली) सहेलियों को आज भी याद है. आशा करती हूं सुबोध आज आप जहां कहीं भी हों बहुत खुश हों.

घातक हो सकती है ब्रेन ट्यूमर के उपचार में देरी

कईं बीमारियां इतनी गंभीर होती हैं कि समय रहते उनका उपचार न कराया जाए तो घातक हो सकता है. इन्हीं में से एक है, ब्रेन ट्यूमर. तो जानिए क्यों इतना गंभीर होता है, ब्रेन ट्यूमर? इसके उपचार के कौन-कौनसे विकल्प उपलब्ध हैं? और समय रहते उपचार न कराने से स्थिति कितनी गंभीर हो सकती है?

ब्रेन ट्यूमर

कभी-कभी सिरदर्द हो तो कोई बात नहीं, लेकिन अगर आपको लगातार कईं दिनों से सिरदर्द हो रहा हो, रात में तेज सिरदर्द होने से नींद खुल रही हो, चक्कर आ रहे हों, सिरदर्द के साथ जी मचलाने और उल्टी होने की समस्या हो रही हो तो समझिए की आपके मस्तिष्क में प्रेशर बढ़ रहा है. मस्तिष्क में प्रेशर बढ़ने का कारण ब्रेन ट्यूमर हो सकता है. अगर आप पिछले कुछ दिनों से इस तरह की स्थिति का सामना कर रहे हैं तो सतर्क हो जाएं और तुरंत डायग्नोसिस कराएं.

इन संकेतों को गंभीरता से लें

ब्रेन ट्यूमर के कारण शरीर जो संकेत देता है, वो उसके आकार, स्थिति और उसके विकास की दर के अनुसार अलग-अलग हो सकते हैं. इन संकेतों में सम्मिलित हो सकते हैं:

दृष्टि संबंधी परिवर्तन.

बार-बार सिरदर्द होना.

बिना किसी कारण के जी मचलाना और उल्टी आना.

 

बोलने और सुनने में दिक्कत होना.

शारीरिक और मानसिक संतुलन गड़बड़ा जाना.

दौरे पड़ना.

डायग्नोसिस

ब्रेन ट्यूमर का संदेह होने पर डॉक्टर कुछ जरूरी जांचों और प्रक्रियाओं का सुझाव दे सकता है, जिनमें सम्मिलित हैं:

न्युरोलॉजिकल एक्जाम

इमेजिंग टेस्ट्स

कम्प्युटराइज़ टोमोग्रॉफी (सीटी) और पोज़ीट्रॉन इमिशन टोमोग्रॉफी (पीईटी)

बायोप्सी

कोविड-19 के प्रकोप में भी समय रहते उपचार है जरूरी

मस्तिष्क हमारे शरीर का एक बहुत ही आवश्यक और संवेदनशील भाग है, जब इसमें ट्यूमर विकसित हो जाता है तो जीवन के लिए खतरा बढ़ जाता है. अगर ट्यूमर हाई ग्रेड है तो तुरंत उपचार की आवश्यकता पड़ेगी, उपचार कराने में देरी मृत्यु का कारण बन सकती है. अगर ट्यूमर का विकास बहुत धीमा है तो आप उपचार कराने के लिए थोड़ा समय ले सकते हैं. लेकिन डायग्नोसिस पर ही पता चलेगा की उसका आकार कितना बड़ा है और वो किस चरण पर है. इसलिए डायग्नोसिस कराने में बिल्कुल देरी न करें. कुछ ट्यूमर इतने घातक होते हैं कि कईं लोग ब्रेन ट्यूमर के डायग्नोसिस के 9-12 महीने में मर जाते हैं.   लेकिन, समय पर डायग्नोसिस और उपचार करा लिया जाए तो ठीक होने की संभावना काफी बढ़ जाती है.

उपचार के विकल्प

ब्रेन ट्यूमर का उपचार ट्यूमर के प्रकार, आकार और स्थिति पर निर्भर करता है, इसके साथ ही आपके संपूर्ण स्वास्थ्य और आपकी प्राथमिकता का भी ध्यान रखा जाता है. लेकिन डायग्नोसिस होने के तुरंत बाद उपचार कराना जरूरी है, ताकि जटिलताओं से बचा जा सके.

सर्जरी

अगर ब्रेन ट्यूमर ऐसे स्थान पर स्थित है, जहां ऑपरेशन के द्वारा पहुंचना संभव है, तो सर्जरी का विकल्प चुना जाता है. जब ट्यूमर मस्तिष्क के संवेदनशील भाग के पास स्थित होता है तो सर्जरी जोखिम भरी हो सकती है. इस स्थिति में, सर्जरी के द्वारा उतना ट्यूमर निकाल दिया जाएगा जितना सुरक्षित होता है. अगर ब्रेन ट्यूमर के एक भाग को भी निकाल दिया जाए तो भी लक्षणों को कम करने में सहायता मिलती है.

कीमोथेरेपी

कीमोथेरैपी में शक्‍तिशाली रसायनों का उपयोग किया जाता है जो प्रोटीन या डीएनए को क्षतिग्रस्‍त करके कोशिका विभाजन में हस्‍तक्षेप करते हैं, जिससे कैंसरग्रस्‍त कोशिकाएं मर जाती हैं.

रेडिएशन थेरेपी

रेडिएशन थेरेपी में ट्यूमर की कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए हाई-एनर्जी बीम जैसे एक्स-रे या प्रोटॉन्स का इस्तेमाल किया जाता है.

टारगेट थेरैपी

कीमोथेरैपी के दुष्‍प्रभावों को देखते हुए टारगेट थेरैपी का विकास किया गया है. इसमें सामान्‍य कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाए बिना कैंसरग्रस्‍त कोशिकाओं को नष्‍ट किया जाता है. इसके साइड इफेक्‍ट भी कम होते हैं. पिछले दशक में टारगेट थेरैपी के बहुत अच्‍छे परिणाम आएं हैं.

 

रेडियो सर्जरी

यह पारंपरिक रूप में सर्जरी नहीं है. इसमें कैंसरग्रस्त कोशिकाओं को मारने के लिए रेडिएशन की कईं बीम्स का इस्तेमाल किया जाता है, जो एक बिंदु (ट्यूमर) पर फोकस होती हैं.इसमें विभिन्न प्रकार की तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है जैसे गामा नाइफ या लीनियर एक्सेलेटर.रेडियो सर्जरी, ब्रेन ट्यूमर का एक अत्याधुनिक उपचार है, यह एक ही सीटिंग में हो जाता है और अधिकतर मामलों में, मरीज उसी दिन घर जा सकता है.

अधिक होता है संक्रमण का खतरा

जिन लोगों को कैंसर है, उनके लिए कोविड-19 के संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है, क्योंकि कैंसर के कारण शरीर अतिसंवेदनशील और इम्यून तंत्र अत्यधिक कमजोर हो जाता है. ऐसे में शरीर वायरस के आक्रमण का मुकाबला नहीं कर पाता है. पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के अनुसार, जो लोग पहले से ही शरीर के किसी भी भाग के कैंसर से जूझ रहे हैं, उनमें संक्रमण होने का खतरा स्वस्थ्य लोगों की तुलना में कईं गुना अधिक हो जाता है.

अमेरिकन कैंसर सोसायटी के अनुसार जो लोग कैंसर का उपचार करा रहे हैं, विशेषकर कीमोथेरेपी उनके लिए संक्रमण की आशंका अधिक हो जाती है, क्योंकि कीमोथेरेपी में इस्तेमाल होने वाली ड्रग्स इम्यून तंत्र को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती हैं.

इसलिए बहुत जरूरी है कि जो लोग कैंसर से जूझ रहे हैं, या इसका उपचार करा रहे हैं, वो कोविड-19 से बचने के लिए सरकार द्वारा जारी किए गए दिशा-निर्देशों का कड़ाई से पालन करें.

डॉ. मनीष वैश्य,निदेशक, न्युरो सर्जरी विभाग, मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, वैशाली, गाजियाबाद से बातचीत पर आधारित

कहीं आपका पार्टनर चीटिंग तो नहीं कर रहा ?

इस दुनिया में किसी के लिए भी सबसे मीठा एहसास होता है प्यार.  आप किसी शख्स को दिल से चाहें और वह भी आपको उतनी ही निष्ठा के साथ प्रेम करे, तो इससे अच्छी और कोई फिलिंग हो ही नहीं सकती. प्रेम करने वाला बदले में प्रेम की ही आस रखता है. लेकिन इंसान प्यार में हमेशा वफादार रहे, ये जरूरी नहीं है. विश्वासघात, बेवफाई, धोखा, चीटिंग ये सब सिर्फ शब्द नहीं हैं बल्कि मजबूत से मजबूत रिश्ते के नींव हिलाने के लिए काफी हैं. कई लोग अपने पार्टनर को चीट करते हैं. एक स्टडी के मुताबिक, कुछ सालो में ऐसे काफी सारे केसेस सामने आए हैं, जिनमें अक्सर शादी के बाद पार्टनर चीट करते हैं और आज के समय तो ये समस्या बेहद आम हो गई है.

लेकिन इस बात का पता लगाना कि आपका पार्टनर वास्तव में आपके साथ चीट कर रहा है या नहीं, जानना थोड़ा मुश्किल है. कटा-कटा रहना, आदतों में एकदम से बदलाव, काफी हद तक रिलेशनशिप में चीटिंग को दर्शता है. आपका पार्टनर विश्वासपात्र है या नहीं और कहीं वो अपकों धोखा तो नहीं दे रहा. जानिए इन संकेतों से जो बताते हैं कि कहीं आपका पार्टनर आपके साथ चीटिंग तो नहीं कर रहा.

1. व्यवहार में बदलाव

सबसे बड़ी पहचान यही है कि पार्टनर के व्यवहार में बदलाव होने लगता है. ‘मैं बोर हो गया हूँ’ जैसे शब्दों से समझ में आने लगता है कि कहीं कुछ तो गड़बड़ है. दीप्ति माखीजा के अनुसार, पार्टनर जब चीट करने लगता है तो अपने आप ही कुछ क्लू या बातें सामने आने लगती है, जिन्हें बस समझने की देरी है. जैसे उसके बोल होने लगते हैं, ‘तुम्हें बोलने का तरीका नहीं है ? अपना वजन कम करो, मोटी हो गई हो. साथ ही, आपके पार्टनर आपकी तुलना किसी दूसरे-तीसरे से करने लगते हों, बेवजह आपकी गलती निकालने लगे हों, आपकी किसी एक छोटी सी गलती पर आपको गैरजिम्मेदार ठहराने लगें हों, तो आपको सचेत हो जाना चाहिए, खासकर तब जब ऐसा पहले कभी नहीं होता था. यह न समझें कि अब वह ऐसा करके आपको शर्मिंदा महसूस कराने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसा कोई इंसान तभी करता है जब वह अपने पुराने रिश्ते को तोड़ कर किसी और के साथ रिश्ते बनाना चाहता है.

2. दिनचर्या में बदलाव

दैनिक दिनचर्या में लगातार आने वाले बदलाव भी पार्टनर के आपको धोखा देने के संकेत हो सकते हैं.  जैसे, अचानक अपने वोडरोब में कपड़ों को बदलना, खुद पर ज्यादा ध्यान देने लगना, आईने में खुद को निहारते रहना, आपके आने पर सतर्क हो जाना, मतलब कुछ तो गड़बड़ है. पहले की तरह आपमें रुचि न दिखाना, क्योंकि पहले आप दोनों एकदूसरे के नजदीक जाने के बहाने ढूंढा करते थे और अब आपका पार्टनर आपसे दूर जाने के बहाने ढूँढने लगें, कमीटमेंट से घबराने लगे तो समझिए वह आपको धोखा दे रहे हैं.  इसके अलावा आपसे बेवजह लड़ाइयाँ होने लगना, आपके हर काम में नुख्स निकालने लगना,, पहले की तरह व्यक्तिगत बातें, करियर-संबन्धित बातें आदि आपसे समझा न करने लगें, तो समझ लीजिये कि वह आपसे दूर होने की कोशिश कर रहे हैं.

3. आपके प्रति प्यार कम होना

पहले जहां आपकी हर बातें उन्हें प्यारी लगती थी, पर अब आपकी हर बात पर वह झल्लाने लगें, मूवी देखने या कहीं बाहर जाने में आना-कानी करने लगें, ज्यादा समय ऑफिस में बिताने लगें, जैसी बातों से साफ पता चलता है कि आपका पार्टनर आपको चीट कर रहा है. इसके अलावा अचानक अकेले ट्रिप पर जाना आदि कारण हो सकता है कि अब उनका ध्यान कहीं और लग गया है. जरूरी नहीं यह धोखे का ही संकेत हो. हो सकता है आपका पार्टनर किसी और बात को लेकर परेशान हो या कुछ और वजह हो सकती है. लेकिन अगर इस सबके साथ आपका पार्टनर कोई फैसला लेने में आपसे आपकी राय नहीं पूछते या आपसे अपनी बातें शेयर नहीं करते, तो यह धोखे का संकेत हो सकता हैं.

4. फोन से जुड़े बदलाव

यदि आप अपने पार्टनर की फोन से जुड़ी गतिविधियों में बदलाव को नोटिस करते हैं, तो यह धोखा देने का संकेत हो सकता है. जैसे आपका पार्टनर जरूरत से ज्यादा फोन पर व्यस्त रहने लगें. ऑफिस में उनका फोन कई-कई घंटों तक एंगेज आता हो. आप से अपने फोन और मैसेज छुपाने लगे हों.  फोन का पसवोर्ड बदल दिये हों और आपको अपना पसवोर्ड न बताएं और न ही अपना फोन छूने दें, तो यह धोखे का संकेत हो सकता है. इसके अलावा उनके सोशल मीडिया की आदतों में भी बदलाव हो सकता है, जैसे ज्यादा फोटो अपलोड करना या बार-बार अपनी प्रोफाइल बदलते रहना, बार-बार मैसेज अलर्ट चेक करना, जैसे कई छोटे-छोटे बदलाव धोखे का संकेत हो सकता हैं.

5. छोटी-छोटी बातों पर झूठ बोलने लगना

यदि आपका साथी आपसे हर छोटी-छोटी बात पर झूठ बोलने लगें, बातें छुपाने लगें, तो समझिए जरूर कुछ गड़बड़ है.

6. आँखें चुराने लगे

यदि आपका साथी आपसे बात करने से बचने लगे या बात करते वक़्त अपनी आँखें न मिला पाए, इधर-उधर देखने लगे, आपकी बातों को अनसुना करने लगे, आपकी के किसी भी बात को गंभीरता से न लेने लगे, वही काम करे जो आपको पसंद नहीं है, अपनी गलती न मनाने के बजाय आपकी ही गलती निकालने लगे, आपका फोन न उठाए और न ही आपके किसी मैसेज का जवाब दे, तो समझ लेना चाहिए की आपका पार्टनर आपको नजरंदाज कराने की कोशिश कर रह है.

धोखा देने वाला हमेशा कोई करीबी ही होता है और शायद यही वजह है कि जब इंसान को धोखा मिलता है तो सबकुछ बिखर जाता है. खासतौर पर जब धोखा देने वाला आपका पार्टनर हो. फिर क्या करें जब पार्टनर के धोखे का पता चल जाए

7. पूरा समय लें

अगर आप अपने पार्टनर के धोखा देने की बात से परेशान हैं तो जल्दबाज़ी करने से बचें. पूरा समय लें. आपको किसी से भी इस बारे में बात करने की जरूरत नहीं है. अपने पार्टनर से तो बिल्कुल नहीं. आपको गुस्सा तो आ रहा होगा, लेकिन नाराजगी में कहें शब्द नुकसान अधिक पहुँचाते हैं.

8. न तो बहस करें, न लड़े

विरोध दर्ज़ करना जरूरी है और सामने वाले को भी तो पता चलना चाहिए कि कुछ ऐसा हुआ है जिसकी वजह से आप परेशान हैं. लेकिन अपनी आवाज और शब्दों पर संयम रखें. पार्टनर को यह जरूर बताएं कि आप कैसा महसूस कर रहे हैं.

9. वोको दोष न दें

ज़्यादातर मामलों में धोखा देने वाले पार्टनर को दोषी मानने के बजाय उस लड़की या लड़के को दोषी मान लिया जाता है, जिसकी वजह से धोखा दिया गया. ऐसा करना सही नहीं है. क्योंकि जो शख्स आपके प्यार को झुठलाकर आगे निकल गया, तो गलती उसकी है.

 

10. अपने मामले में किसी और को बोलने न दें

अगर आप चाहते हैं कि आपके और आपके पार्टनर के बीच सब कुछ ठीक हो जाए तो बेहतर यही होगा कि आप इस बात की चर्चा किसी और से न करें. किसी तीसरे को इन बातों में शामिल करना आपके लिए ही खतरनाक हो सकता है.

11. एक मौका और दें

अगर आपको लगे कि आपके पार्टनर को अपनी गलती का एहसास हो गया है और वह सबकुछ ठीक करना चाहता है तो उसे वक़्त दें. हो सकता है सब फिर पहले जैसा हो जाए. इसके लिए आपदोनों का साथ रहना और साथ वक़्त बिताना जरूरी है, ताकि आप दोनों के बीच की गलतफहमी खत्म हो सके.

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